• If you are trying to reset your account password then don't forget to check spam folder in your mailbox. Also Mark it as "not spam" or you won't be able to click on the link.

Incest आह..तनी धीरे से.....दुखाता.

whether this story to be continued?

  • yes

    Votes: 41 97.6%
  • no

    Votes: 1 2.4%

  • Total voters
    42

Lovely Anand

Love is life
1,320
6,477
144
आह ....तनी धीरे से ...दुखाता
(Exclysively for Xforum)
यह उपन्यास एक ग्रामीण युवती सुगना के जीवन के बारे में है जोअपने परिवार में पनप रहे कामुक संबंधों को रोकना तो दूर उसमें शामिल होती गई। नियति के रचे इस खेल में सुगना अपने परिवार में ही कामुक और अनुचित संबंधों को बढ़ावा देती रही, उसकी क्या मजबूरी थी? क्या उसके कदम अनुचित थे? क्या वह गलत थी? यह प्रश्न पाठक उपन्यास को पढ़कर ही बता सकते हैं। उपन्यास की शुरुआत में तत्कालीन पाठकों की रुचि को ध्यान में रखते हुए सेक्स को प्रधानता दी गई है जो समय के साथ न्यायोचित तरीके से कथानक की मांग के अनुसार दर्शाया गया है।

इस उपन्यास में इंसेस्ट एक संयोग है।
अनुक्रमणिका
Smart-Select-20210324-171448-Chrome
भाग 126 (मध्यांतर)
 
Last edited:

LustyArjuna

New Member
24
1
3
आहह‌‌। गजब संवाद हो रहा है।
सुगना को तैयार किया जा रहा है।
 

LustyArjuna

New Member
24
1
3
अब तो आश्रम में भी बहुत से संयोग बनने वाले हैं।
लवली जी इस कहानी का कोतुहल कभी खत्म नहीं होने दे रहे।
 

LustyArjuna

New Member
24
1
3
मंगलसूत्र तो पहना ही दिया
अब तो सोनु को मालपुआ मिलने वाला है।
 

LustyArjuna

New Member
24
1
3
बहुत ही शानदार और उत्तेजना को बरकरार रखने वाला अपडेट।
 

LustyArjuna

New Member
24
1
3
लवली जी,
कृप्या करके अपडेट १०१ और १०२ भेजे।

यहां उत्तेजना पर विराम लग रहा है।😭
 

LustyArjuna

New Member
24
1
3
बहुत अच्छा अपडेट है। पुरा परिवार एक रात कि घटना से हिल गया है।
परन्तु जब सोनू और विकास बनारस निकल गये तो सोनी कमरे में जाकर किसको अवगत करा रही है।

वे से तो कहानी का मजा १०१ & १०२ के बिना आ नहीं रहा। सोनू और सुगना का बहुप्रतीक्षित मिलन का मजा नहीं ले पाए।

लवली जी कृप्या जल्दी भेजे अपडेट।
 

LustyArjuna

New Member
24
1
3
भाग 105

कजरी के हटते ही एक बार फिर सोनू ने सुगना के पैर छूते हुए कहा दीदी माफ कर द..


सुगना उठ गई और जाते-जाते बोली

"जा पहले मोनी के ढूंढ कर ले आव फिर माफी मांगीह"

सोनू को तो जैसे मुंह मांगी मुराद मिल गई हो सुगना के व्यवहार से उसने अंदाज लगा लिया की उसका और सुगना का रिश्ता पूरी तरह टूटा नहीं है..

वह सुगना का वो प्यार पा सकेगा या नहीं यह अलग बात थी.. परंतु उसे खोना सोनू को कतई गवारा न था.. सुगना अब उसकी जान थी.. अरमान थी और अब उसके बिना रहना सोनू के लिए नामुमकिन था…


अचानक घर के बाहर चीखने चिल्लाने की आवाज आने लगी……कुछ लोग एक व्यक्ति को पीट रहे थे वह दर्द से कराह रहा था मैंने कुछ नहीं किया…सोनू भी बाहर निकल कर आया…

अब आगे..

"बेटीचोद कहां ले गइले मोनी के?" सरयू सिंह की धाकड़ आवाज सुनाई दी…

तभी किसी ने उसकी पीठ पर दो लात और मारे और बेहद गुस्से से कहा..

" साला दिन भर लइकिन के पीछे भागत रहेला ना.. जाने पंडित जी एकरा के अपना संगे काहे राखेले?"

मार खा रहा व्यक्ति कोई और नहीं पंडित जी का वही हरामी हेल्पर था जो मोनी के पीछे पीछे बाग में आया था और जिसने मोनी की कुंवारी बुर के प्रथम दर्शन किए थे..

नियति उसके किए का दंड इतना शीघ्र देगी यह उसे भी अंदाजा न था..

दरअसल मोनी की कुंवारी बुर देखने के बाद उस व्यक्ति पर जैसे जुनून सवार हो गया था वह दिन भर मोनी के आगे पीछे इधर-उधर मंडराता रहा और उससे नजदीकियां बढ़ाने की कोशिश करता रहा परंतु वैरागी मोनी को उससे कोई सरोकार न था … अपनी कोमल और कमसीन बुर को जिस मोनी ने खुद भी ज्यादा न छुआ था वह उसे कैसे उसके हवाले करती। परंतु मोनी की बुर की एक झलक ने उस हेल्पर का सुख चैन छीन लिया था।

रात भर वह सरयू सिंह के दालान में पड़ा पड़ा मोनी को ही याद करता रहा…कभी सोता कभी जागता।

रात में मोनी जब बाहर आई थी तब तो वह उसे न देख पाया परंतु सुबह सुबह जब मोनी सरयू सिंह के घर से बाहर निकल रही थी वह उसके पीछे हो लिया। मोनी आगे-आगे चल रही थी और उस पर नजर रख रहा पंडित जी का शिष्य उसके पीछे पीछे।


मोनी घबरा रही थी और अपनी चाल को नियंत्रित करती तेजी से आगे चल रही थी… कुछ देर बाद रेलवे स्टेशन पर पहुंच कर पंडित के शिष्य ने मोनी को ट्रेन के प्लेटफार्म पर जाते देखा वहां और भी लोग थे…वहा जाने में वह घबरा रहा था…कदम ठिठक गए। पंडित का शिष्य घबरा गया तभी गांव के किसी व्यक्ति ने उससे पूछ लिया…

" अरे ऊ केकर लइकी ह ते ओकरा पीछे-पीछे काहे जात बाड़े?" वह निरुत्तर हो गया। संयोग से उसी समय प्लेटफार्म पर ट्रेन आई और मोनी उस ट्रेन में सवार हो गई।

पंडित के शिष्य के सारे अरमान धरे के धरे रह गए उसने यह बात अपने ही सीने में दफन रखने की सोची और चुपचाप वहां से रफा-दफा हो लिया परंतु अब जब मोनी के गायब होने की बात सार्वजनिक हो चुकी थी उसका बचना नामुमकिन था।


खबर कानो कान सरयू सिंह और हरिया तक पहुंच गई फिर क्या था सरयू सिंह के हाथ इतने भी कमजोर न थे। अपने इलाके में उनका दबदबा था और कुछ ही घंटों के पश्चात पंडित का हरामी शिष्य उनकी देहरी पर खड़ा लात खा रहा था।

सोनू ने बाहर आकर बीच बचाव किया और उससे सच जानने की कोशिश की। शिष्य ने अक्षरसः सारी बातें बता दी। बस वह एक बात छुपा ले गया जो उसे छुपाना भी चाहिए था वह थी मोनी की कुंवारी बुर देखने की बात।

कुछ ही देर में लोगों ने अंदाजा लगा लिया की मोनी जिस ट्रेन में चढ़ी थी वह उत्तराखंड की तरफ जाती थी। देहरादून उसका अंतिम पड़ाव था। मोनी कहां गई होगी यह प्रश्न अभी भी सबके दिमाग में घूम रहा था।

परंतु सोनू का दिमाग तेजी से चल रहा था मनोविज्ञान सोनू भली-भांति समझता था उसने मोनी में वैराग्य के कुछ लक्षण देखे थे। वह मन ही मन सभी संभावित गंतव्य स्थलों की सूची बनाने लगा और अपने निर्णय पर पहुंचकर उसने सरयू सिंह से कहा

" चाचा इकरा के मत मारल जाओ ई साला सही में ओकरा पीछे पीछे घूमत होई लेकिन इकरा गांणी में इतना दम नईखे की मोनी अगवा कइले होखी "

सोनू की बात में दम था. । वैसे भी वह व्यक्ति अपने किए की पर्याप्त सजा पा चुका था धूलधूसरित उस व्यक्ति के कपड़े फट चुके थे होठों से खून बह रहा था वैरागी मोनी की बुर देखने की यह सजा शायद कुछ ज्यादा ही थी…

धीरे-धीरे सोनू ने आगे की रणनीति बना ली.. सोनू लाली से मिलने से कतरा रहा था उसे लाली के प्रश्नों का कोई उत्तर नहीं समझ आ रहा था यदि लाली दीदी ने उस रात के बारे में पूछा तो वह क्या जवाब देगा? झूठ बोलना उचित न था और सच वह तो और भी अनुचित था ।

उसकी खुद की प्रतिष्ठा न सही परंतु सुगना से मिलन को वह लाली के समक्ष नहीं लाना चाह रहा था। सुगना ने प्रतिरोध किया था और सुगना के व्यवहार से यह स्पष्ट था की सुगना को वह मिलन स्वाभाविक रूप से स्वीकार्य न था। जो उसको सुगना दीदी को स्वीकार न था उसे न तो बताना कतई उचित न था।

अगली सुबह सोनू को वापस जौनपुर जाना था शाम को खाने पर उसने लाली, सुगना और सोनी को जाते समय बनारस छोड़ने की बात कही और सभी सहर्ष तैयार हो गए। आखिर छोटे-छोटे बच्चों की पढ़ाई लिखाई भी जरूरी थी। सुगना सोनू के साथ जाने में स्वयं को असहज महसूस कर रही थी परंतु कोई चारा भी न था..


सुबह अगली सुबह बोलेरो में सोनू और बनारस में रहने वाले सभी सदस्य सवार होने लगे। समान ऊपर बांधा गया और छोटे बच्चे पीछे चढ़कर अपनी अपनी जगह तलाश करने लगे। पीछे वाली सीट पर सोनू की तीनो बहने बैठी एक तरफ लाली बीच में सोनी और ड्राइवर के ठीक पीछे वाली सीट पर सुगना।

सोनी बच्चों को उछलने कूदने से रोक रही थी परंतु बच्चों को क्या? मोनी मौसी के गायब होने से उन्हें कोई विशेष फर्क न था वह सब अपनी मस्ती में चूर थे। परंतु सुगना परेशान थी मोनी को लेकर भी और अपने और सोनू के संबंधों में आए बदलाव को लेकर भी ।

वह खिड़की से बाहर गेहूं की बालियों को देखते हुए कभी उनकी सुंदरता में खोती और अपने गम को भूलने का प्रयास करती …उधर सोनू बार-बार पलट कर बात तो सोनी से करता परंतु उसकी निगाहें सुगना के गोरे गालों पर टिकी रहती.


काश! सुगना दीदी कुछ बोलती और हमेशा की तरह हंसती खिलखिलाती रहती। सोनू सुगना का मुस्कुराता और खिला-खिला चेहरा देखने के लिए तरस गया था। वह कभी अपनी गलती पर पछताता कभी अपने ईश्वर से सुगना को खुश करने के लिए प्रार्थना करता।

जब वह सुगना के स्खलित होते हुए चेहरे को याद करता उसे लगता जैसे उसने कोई पाप ना किया हो …और सुगना को पूर्ण तृप्ति देखकर उसने अपना फर्ज निभाया हो..परंतु जब उसे सुगना का प्रतिरोध याद आता वह आत्मग्लानि से भर जाता..

रास्ते में गाड़ी रोककर सोनू ने सुगना की पसंद की फेंटा लाई पर सबने उसका आनन्द लिया पर सुगना ने नहीं…जब सुगना ने नहीं लिया तो सोनू ने भी नहीं…

लाली सोनू और सुगना के बीच आए बदलाव को महसूस कर रही थी पर मजबूर थी।

सोनू और सुगना को छोड़कर बाकी सब धीरे-धीरे सामान्य हो गए थे… और कुछ घंटों के सफर के पश्चात सभी बनारस पहुंच गए सोनू ने सब का सामान उतारा परंतु अपने सामान को गाड़ी में ही रहने दिया…

सोनू ने बनारस में इस वक्त रह कर वक्त बर्बाद करना उचित न समझा मोनी को ढूंढना उसके पहली प्राथमिकता थी। तुरंत ही उसने अपने जौनपुर जाने की बात कह कर सबको आश्चर्यचकित कर दिया.. उस पर हक जमाने वाली सुगना तो जैसे निर्विकार और निरापद हो गई थी.।

लाली ने एक बार सोनू से कहा

"अरे खाना पीना खा ल तब जईहा" परंतु सोनू को जिसका इंतजार था उसने मुंह ना खोला सुगना अब भी अपने कोमल अंगूठे से मजबूत फर्श कुरेद रही थी… परंतु उसने मुंह ना खोला। सुगना की खनखनाती और मधुर आवाज सुनने के लिए सोनू के कान तरस गए थे।

सोनू ने हाथ जोड़कर सबसे विदा ली… परंतु सोनू की यह विदाई सोनी को कतई समझ में नहीं आ रही थी ।

सोनू एक तरफा हाथ हिलाते हुए घर से बाहर निकल गाड़ी में बैठ गया अंदर तीन बहनों में से सिर्फ सोनी के हाथ ही हवा लहरा रहे थे…सुगना अब भी नजरें झुकाए बेचैन खड़ी थी उसे समझ ही नहीं आ रहा था कि वह सोनू को किस प्रकार विदा करें? दिमाग के द्वंद्व ने सुगना की स्वाभाविकता छीन थी… अपने छोटे भाई सोनू से बेहद प्यार करने वाली सुगना उसे विदा होते समय देख भी न रही थी। नियति ने जिस भवसागर में सुगना और सोनू को धकेल दिया था उससे उन दोनों का ही उस भवर से निकलना जरूरी था..

सोनू के बाहर निकलते ही सोनी ने सुगना से पूछा

" दीदी … सोनू भैया से कोनो बात पर खिसियाइल बाड़े का ? " सुगना ने कोई उत्तर नहीं किया अपितु अपना सामान लेकर अपने कमरे में रखने लगी। सोनी को यह नागवार गुजरा वह सुनना के सामने आकर खड़ी हो गई और उसके कंधे को पकड़ते हुए बोली

" दीदी साफ बताओ काहे खिसीआईल बाड़े ? अइसन त ते सोनू भैया के साथ कभी ना करेले? सुगना ने सोनी की तरफ देखा और कहा अभी हमार दिमाग ठीक नईखे मोनी के मिल जाए दे फिर बात करब"


सोनी उत्तर से संतुष्ट न हुई परंतु उसे यह अहसास अवश्य था कि मोनी के गायब होने से सुगना और उसकी मां पद्मा सबसे ज्यादा दुखी थी। यह स्वाभाविक भी था। जहां सुगना अपने परिवार के मुखिया की भूमिका अदा करती थी वही मोनी अपनी मां पदमा का एकमात्र सहारा थी दिन भर साथ रहना …साथ में घर का काम करना और एक दूसरे से बातें करते हुए वक्त बिताना। मोनी के जाने से पदमा अकेली हो गई थी।

लाली और सुगना के बीच भी एक अजब सा तनाव था। सुगना को तो यह अंदाजा भी न था कि सोनू को उकसाने में लाली का योगदान था और लाली को यह आभास न था कि अंदर वास्तव में क्या हुआ था।


इतना तो तय था कि सुगना और सोनू का मिलन यदि हुआ था तो वह सुखद वातावरण में नहीं हुआ था। अन्यथा सुगना के चेहरे पर इतना तनाव कभी नहीं आता।

परंतु क्या सोनू ने अपनी ही बड़ी बहन सुगना से जबरदस्ती की होगी? छी छी सोनू जैसा प्रेमी ऐसा कतई नहीं कर सकता? फिर आखिर क्या हुआ था? यह जानने की लाली की तीव्र इच्छा थी परंतु उसके प्रश्नों का उत्तर न तो सोनू ने दिया था और नहीं सुगना से प्रश्न पूछ पाने की उसकी हिम्मत हो रही थी।

खैर जो होना था वह हो चुका था…. सोनू तेजी से जौनपुर की तरह बढ़ रहा था अपने कार्यक्षेत्र पर पहुंचकर उसका पहला उद्देश्य मोनी को ढूंढने के लिए अपने प्रशासन तंत्र की मदद लेना था.

सोनू ने जौनपुर पहुंचकर अपने विभाग के आला अधिकारियों से मदद मांगी और देखते ही देखते पुलिस विभाग की कई टीमें तैनात कर दी गई। सोनू स्वयं अपने पुलिसिया साथियों के साथ इस सर्च अभियान की कमान संभाल रहा था…

सोनू इस बात से भलीभांति अवगत था कि मोनी का झुकाव वैराग्य की तरफ है यह बात उसने पिछले बनारस महोत्सव में कई बार महसूस की थी विद्यानंद के उद्बोधन के पश्चात जब महिला और पुरुषों की भीड़ संगीत की धुन पर थिरकने लगती तो मोनी जैसे खुश हो जाती। बाकी कलयुगी लोग अपनी आंखें खोल कर इधर-उधर देखते परंतु मोनी वह तो जैसे भाव विभोर हो जाती..और लीन हो जाती।

सोनू दिन भर कभी इससे मिलता कभी उससे मिलता कभी अपनी टीम के सदस्यों से बात करता…सोनू ने मोनी को ढूंढने के लिए एड़ी चोटी चोटी का जोर लगा दिया।

एक-एक करके दिन बीतने लगे और लाली और सुगना के बीच की दूरियां कम ना हुईं। दोनों सहेलियां जो घंटों बैठ कर बात करती थी और उनकी बातें खत्म होने का नाम न लेती थी .. अब अपने अपने कमरों में पड़े अपनी अपनी यादों और एक दूसरे के साथ बिताए वक्त को याद करते एक दम शांत हो गई थीं। सुगना और लाली का चहकता हुआ घर न जाने कब एकदम शांत हो गया था।

जब घर की ग्रहणी दुखी होती है पूरे परिवार में दुख छा जाता है सारे बच्चे और यहां तक कि सोनी भी सुगना के इस बदले हुए स्वरूप से परेशान थी और सुगना के लिए चिंतित भी। सब बार-बार सुगना के पास जाते उसे मनाने और उसे दुख का कारण पूछते परंतु सुगना क्या कहती जो दर्द उसके मन में था… न तो वह उसे किसी के सामने बयां कर सकती थी और नहीं उस दुख से निजात पा सकती थी।

घर के सभी सदस्य अपने अपने इष्ट देव से सुगना के खुश होने के लिए प्रार्थना कर रहे थे…

दुआओं में असर होता है धीरे धीरे ऊपर वाले विधाता को सोनू और सुगना पर तरस आ गया और सोनू के ऑफिस में एक फोन आया…

जैसे-जैसे फोन के रिसीवर से शब्द निकल निकल कर सोनू के कानों से टकराते गए सोनू के चेहरे पर कभी आश्चर्य कभी विस्मय और अंततः मुस्कुराहट हावी होती गई …

"मैं सदैव आपका आभारी रहूंगा……जी…. जी……ठीक है मैं कल ही वहां पहुंचता हूं" सोनू ने आभार जताते हुए फोन का रिसीवर रखा और अपने दोनों हाथ जोड़कर अपनी छत को देखते हुए अपने इष्ट देव के प्रति अपनी कृतज्ञता जाहिर की।


सोनू के मन में आया कि वह इस खुशखबरी को तुरंत ही लाली और सुगना से साझा कर दे परंतु उसने कुछ सोचकर यह विचार त्याग दिया वैसे भी रात हो चुकी थी और इस समय लाली और सुगना तक संदेश पहुंचा पाना कठिन था।

सोनू अपने कमरे में आया और सुबह अपने सफर पर निकलने के लिए अपना सामान बांधा… मन में उत्साह और सुगना की यादें लिए सोनू..अपने बिस्तर पर आया…सुगना को याद करना सोनू के लिए सबसे सुकून का काम था… सुगना के खिलखिलाते और मुस्कुराते चेहरे को याद कर न सिर्फ सोनू की वासना जवान होती अपितु उसका रोम रोम खिल उठता। परंतु पिछले कुछ दिनों से सोनू सुगना के दुखी चेहरे को देखकर परेशान था। आज इस खुशखबरी को सुनकर उसका मन प्रसन्न हो गया था और वह एक बार सुगना को फिर मुस्कुराते और खिलखिलाते हुए देखना चाहता था.

उसे याद करते ही सोनू के जैसे सारे दुख गायब हो जाते न जाने सुगना में ऐसा क्या छुपा था ….कुछ ही देर में उसके दिमाग के सामने सुगना का चेहरा घूमने लगा… क्या यह खबर सुन कर सुनना दीदी उसे माफ कर देगी? क्या सुगना को वह उसी प्रकार खिलखिलाते चहकते देख पाएगा…और क्या वह अद्भुत सुख उसे कभी दोबारा प्राप्त होगा…?

जैसे ही सोनू को उस मिलन की याद आई उसकी आंखों के सामने दृश्य घूमने लगे आज का एकांत उसे उस मिलन की बारीकियां याद दिलाने लगा… कैसे उसके मजबूत लंड के सुपाडे ने सुगना की चिपचिपी गीली बुर में डुबकी लगाई थी?... सुगना दीदी की बुर गीली क्यों थी? क्यों उन्होंने उस रात पेंटी नहीं पहनी थी? क्या वह सच में इस सुख की प्रतीक्षा कर रही थी? पर यदि ऐसा था तो उन्होंने प्रतिरोध क्यों किया?

सोनू सुगना की बुर के कसाव को याद करने लगा.. कितना जीवंत था सुगना दीदी का बुर का कसाव… ऐसे लग रहा था जैसे किसी ने अपनी अनगिनत कोमल उंगलियों से उसके लंड को को अपने आलिंगन में भर लिया हो…और उगलियो के दबाव से स्वाभाविक तौर पर उसे अपने अंदर और अंदर और गहरे तक खींचे जा रहा हो..

गर्भाशय के मुख पर पहुंचकर उसके सुपाडे ने जब प्रतिरोध को महसूस किया तब उसने अपने लंड को सुगना की बुर में पूरी तरह अंदर पाया…. क्या ऊपर वाले ने सुगना की बुर और सोनू के लंड को एक दूसरे के लिए ही बनाया था..

सोनू को अच्छी तरह याद आ रहा था जब इसके बाद उसने अपने लंड को और अंदर डालने की कोशिश की और सुगना की फूली हुई बुर उसके दबाव से पूरी तरह चिपक गई….

जिस तरह आलिंगन का कसाव बढ़ाने पर दूरियां और कम हो जाती है उसी प्रकार सोनू के दबाव बढ़ाने से लंड और अन्दर गया और उसने गर्भाशय का मुख खोल दिया …


और सुगना के वह उद्गार…

"सोनू… तनी धीरे से दुखाता"

सुगना के इस उद्बोधन में सिर्फ और सिर्फ एक प्यार भरी कामुकता थी और स्खलन के लिए तैयार उसकी बहन की मिलन की पूर्णता की मांग……

अब तक सोनू का लंड उसके मनोभाव पढ़कर हरकत में आ चुका था और सोनू की हथेलियों को बरबस अपनी ओर आकर्षित कर रहा था…

जैसे ही हथेलियों ने लंड को अपने आगोश में लिया सोनू की भावनाएं और कामुक होती गई।

सोनू उस रात हुए अनुभवों को याद कर रहा था और उन्हें अपने मन में उसे एक बार फिर महसूस करने की कोशिश कर रहा था। कैसे वह अपनी सुगना दीदी की बुर से जैसे ही लंड निकालने की कोशिश करता… अंदर उत्पन्न हुआ निर्वात सोनू के लंड को तुरंत ही अपनी तरफ खींचने लगता.. और सोनू का लंड एक बार फिर और गहराई तक उतर जाता…

सुगना की कोमल जांघों का स्पर्श उसकी जांघों से हो रहा था। ऐसी मखमली त्वचा शायद उसने जीवन में कभी अनुभव न की थी। मिलन के अन्तिम पलों में सुगना की पिंडलियां उसके नितंबों पर लगातार दबाव बनाए हुए उसे अपनी तरफ खींच रही थी..

वह स्खलित होती हुई बुर के कंपन ….वो अंतिम पलों में दीदी के प्रतिरोध का बिल्कुल खत्म होना और सुगना दीदी द्वारा उसकी उंगली को चुभलाए जाना….

सोनू की गतिमान हथेलियां लंड के मान मर्दन में लगी हुई थीं..

सोनू सुगना की चूचियों के स्पर्श को याद कर रहा था.. तभी वीर्य की एक मोटी धार हवा में उड़ती हुई वापस उसके चेहरे पर आ गिरी। सोनू का लंड हवा में वीर्य वर्षा कर रहा था जिसकी पहली धार स्वयं सोनू के होठों पर ही आकर गिरी..

आज जीवन में पहली बार उसने अपने ही वीर्य का स्वाद अपने होठों से चखा था…

…सोनू स्खलित हो रहा था…आज कई दिनों बाद सोनू के चेहरे पर खुशियां थी वह अति शीघ्र अपनी बहन सुगना से मिलना चाहता था।

अगले दिन सोनू अपने गंतव्य के लिए निकल चुका दिनभर की यात्रा करने के पश्चात वह सुबह सुबह विद्यानंद के आश्रम में हाजिर था। उसे उसे यह स्पष्ट जानकारी हो चुकी थी की मोनी विद्यानंद के आश्रम में ही आई थी। पुलिस और प्रशासन के सहयोग से सोनू को यह जानकारी फोन द्वारा प्राप्त हो चुकी थी। परंतु सोनू मोनी से मिलकर इस बात की तसल्ली करना चाहता था और उसके घर छोड़ने का कारण भी जानना चाहता था।

सोनू आश्रम के पंडाल में आ चुका था।श्वेत वस्त्रों में मोनी को आंखें बंद किए अपने दोनों हाथ हवा में हिलाते हुए एक विशेष धुन पर हौले हौले नृत्य करते हुए देखकर सोनू आश्चर्यचकित था । मोनी के चेहरे पर निश्चित ही एक नया नूर था। पिछले कुछ दिनों में ही मोनी को जैसे यह आश्रम रास आ गया था…सोनू कुछ देर तक नृत्य के खत्म होने का इंतजार करता रहा और जैसे ही अल्पविराम हुआ उसने आवाज लगाई

"मोनी"

मोनी ने सोनू की तरफ देखा परंतु वह उसकी तरफ आई नहीं। शायद मोनी के मन में सोनू के प्रति घृणा उत्पन्न हो चुकी थी और हो भी क्यों न जो व्यक्ति अपनी ही बहन के साथ ऐसा दुष्कर्म कर सकता है और जो अपनी छोटी बहन को अपने दोस्त की वासना शांत करने के लिए भेज सकता है ऐसा घृणित व्यक्ति भाई कहलाने योग्य कतई नहीं हो सकता।

सोनू ने आगे बढ़कर मोनी से मुलाकात करने की कोशिश की परंतु विद्यानंद के अंग रक्षकों ने उसे महिला पंडाल की तरफ जाने से रोक लिया। विशेष अनुरोध करने पर आश्रम के ही एक अन्य व्यक्ति ने मोनी तक एक बार फिर उसकी मिलने की मंशा पहुंचाई पर मोनी ने उससे मिलने से मना कर दिया…

सोनू यह बात कतई नहीं समझ पा रहा था कि मोनी ने उसके साथ ऐसा व्यवहार क्यों किया ? हो सकता है मोनी सांसारिक दुनिया को छोड़ चुकी थी और वह अपने परिवार के सदस्यों से मिलना न चाहती हो?

खैर मोनी को कुशल देखकर सोनू को तसल्ली हो गई कि वह आश्रम में सुरक्षित और सकुशल है उसके लिए इतना ही पर्याप्त था। वह अपने मन में ढेरों प्रश्न लिए वापस बनारस की तरफ चल पड़ा…

सोनू के मन में खुशियां और दुख अपना अपना आधिपत्य जमाने के लिए होड़ लगा रहे थे। मोनी के मिलने की उसके मन में जितनी खुशी थी उतना ही मोनी को अपने परिवार से हमेशा के लिए खो देने का दुख भी।


मोनी के व्यवहार से सोनू स्तब्ध भी था वैरागी मनुष्य के चेहरे पर सामान्यता घृणा के भाव नहीं होते परंतु मोनी ने जिस तरह सोनू को देख कर अपना चेहरा घूम आया था उसने सोनू को चिंतित कर दिया था। सोनू ने अपने दिमाग को झटका और इस विचार को दरकिनार कर दिया…उसके पास और कोई चारा भी न था।

सोनू सुखद पहलू की तरफ ध्यान दे रहा था. मोनी के मिलने की बात सुगना को बता कर उसके चेहरे पर मुस्कान और खुशी देखने के विचार मात्र से उसका मन गदगद हो रहा था। सोनू अपनी बहन सुगना की माफी की प्रतीक्षा और उसके खुशहाल चेहरे को देखने की कामना की अपनी ट्रेन के जल्दी बनारस पहुंचने का इंतजार करने लगा…

हर रोज की तरह बनारस की सुबह बाहरी दुनिया के लिए खुशनुमा थी परंतु सुगना और उसके परिवार के लिए वैसी ही उदास…सोनी सोनी अपने नर्सिंग कॉलेज जा चुकी थी बच्चे स्कूल और लाली घर का जरूरी सामान लेने बाहर गई हुई थी…सुगना ने स्नान ध्यान किया और अपने इष्ट देव से हमेशा की तरह मोनी के मिलने की कामना की और रसोई से जा कर दो रोटी और सब्जी लेकर नाश्ता करने बैठ गई…न जाने आज उसे सब्जी की गंध क्यों अजीब सी लग रही थी उसने कुछ ही निवाले अपनी हलक से नीचे उतारे होंगे और उसका मन मचलने लगा वह बेचैन सी होने लगी.. उसने प्लेट जमीन पर रखी और बाथरूम की तरफ भागी ।

सुगना उल्टियां करने लगी। तभी अपने मन में ढेरों अरमान लिए सोनू दरवाजे पर आकर खड़ा हो गया। दरवाजा खुला था अपने ही घर में आने के लिए उसे किसी से अनुमति लेने की आवश्यकता न थी। बाथरूम से सुगना की उल्टियां करने की अजब सी आवाज आ रही थी….

सुगना को कष्ट हो और सोनू बेचैन ना हो यह हो नहीं सकता..

"दीदी का भईल"

सुगना की तरफ से कोई उत्तर न सुनकर सोनू बाथरूम के दरवाजे के पास पहुंच गया.. बाथरूम का दरवाजा खुला हुआ था और सुगना बेसिन में मुंह लटकाए अपने चेहरे को पानी से धो कर खुद को उल्टी की भावना से बचा रही थी… और खुद को तरोताजा करने का प्रयास कर रही थी।

शायद इसी उहापोह में उसने सोनू के आने पर अपनी प्रतिक्रिया भी नही दे पाई..

सोनू पास पहुंचकर उसकी मदद करना चाह रहा था परंतु सुगना बदहवास थी उसने हाथ हिलाकर सोनू को रुकने का इशारा किया और बड़ी मुश्किल से खुद पर काबू कर बाहर आई।

"दीदी मोनी मिल गईल" सोनू ने चहकते हुए बताया और उसके पैरो पर गिर पड़ा।

सुगना के चेहरे पर थोड़ा मुस्कान आई जिसे झुक चुका सोनू देख भी ना पाया…सुगना पीछे हटी वह एक बार फिर बाथरूम में घुस गई शायद अपनी उल्टीओ पर उसने जो क्षणिक नियंत्रण पाया था वह छूट चुका था..

सोनू ने सुगना को पीछे हटते देख सोनू डर गया क्या सुगना दीदी ने उसे अब भी माफ नहीं किया है?

शेष अगले भाग में..
बहुत सुंदर लेखनी।
लगता है सोनू ने सुगना को गर्भवती कर दिया ।
 

LustyArjuna

New Member
24
1
3
लवली जी।
अपडेट १०९ भी भेजने की कृप्या करें।
 

LustyArjuna

New Member
24
1
3
भाग 112

तभी दरवाजे पर ठक ठक की आवाज हुई सोनू ने आगे बढ़कर दरवाजा खोला…. बाहर दो बड़ी बड़ी कार खड़ी थीं …हाथों में सजी-धजी फलों और मिठाई की टोकरी लिए तीन चार व्यक्ति बाहर खड़े थे और उनके पीछे लाल रंग का चमकदार बैग लिए हांथ जोड़े दो संभ्रांत पुरुष..

उनकी वेशभूषा और फलों तथा मिठाइयों की की गई पैकिंग को देखकर यह अंदाज लगाया जा सकता था कि उनका सोनू के घर आने का क्या प्रयोजन था…

सोनू ने उन्हें अंदर आने के लिए निमंत्रित किया और अंदर आकर हाल में रखी कुर्सियों को व्यवस्थित कर उन्हें बैठाने लगा…


लग रहा था जैसे सुगना और सोनू के परिवार में कोई नया सदस्य आने वाला था…

अब आगे…

सभी आगंतुक अंदर हाल में आ चुके थे और उनके पीछे पीछे अपनी गोद में सूरज को लिए सरयू सिंह जो सूरज को बाहर घुमा कर वापस आ चुके थे। शारीरिक कद काठी में सरयू सिंह कईयों पर भारी थी। आगंतुक कपड़ों और चेहरे मोहरे से संभ्रांत जरूर सही परंतु व्यक्तित्व के मामले में निश्चित ही सरयू सिंह से कमतर थे।

पुरुषों की सुंदरता शारीरिक कद काठी और उनके गठीले शरीर के कारण ज्यादा होती है .. सरयू सिंह का तपा हुआ शरीर पुरुषत्व का अनूठा नमूना था।


सरयू सिंह को अंदर आते देख वह दोनों संभ्रांत पुरुष अभिवादन की मुद्रा में खड़े हो गए उन्होंने हाथ जोड़कर उनका अभिवादन किया….

सरयू सिंह के कुछ कहने से पहले ही सोनू बोल उठा

"चाचा …. यह मेरे दोस्त विकास के पिताजी हैं और यह विकास के चाचा जी"


इससे पहले की सोनू सरयू सिंह का परिचय देता विकास के पिता ने बेहद अदब के साथ कहा

"जहां तक मैं समझ रहा हूं आप सरयू सिंह जी हैं?" चेहरे पर मुस्कुराहट और आखों में प्रश्न लिए विकास के पिता ने कहा…सोनू ने विकास के पिता की बात में हां में हां मिलाई और बोला..


"आपने सही पहचाना यही हमारे पूज्य सरयू चाचा हैं " लग रहा था जैसे विकास ने सरयू सिंह के व्यक्तित्व के बारे में अपने घर परिवार को निश्चित ही बता दिया था..

अगल-बगल रखी मिठाई की टोकरी और फलों को देखकर सरयू सिंह बेचैन हो उठे.…इससे पहले कि वह कुछ सोच पाते विकास के पिता ने कहा

" हमें आपकी सोनी पसंद है यदि आपकी अनुमति हो तो हम सोनी को अपने घर की लक्ष्मी बनाने के लिए तैयार हैं"

सुगना और लाली हाल में हो रही बातें सुन रही थी सुगना की खुशी का ठिकाना ना रहा विकास निश्चित थी एक योग्य लड़का था। विवाहित स्त्रियों को पुरुषों की जिस अंदरूनी योग्यता की लालसा रहती है शायद विवाह के दौरान उन दिनों उसकी कोई अहमियत न थी। हष्ट पुष्ट युवकों को मर्दानगी से भरा स्वाभाविक रूप से मान लिया जाता था।

विकास सोनू का दोस्त था और सुगना और लाली दोनों ही सोनू का पुरुषत्व देख चुकी थी.. निश्चित ही विकास भी सोनू की तरह ही मर्दानगी से भरा होगा ऐसा लाली और सुगना ने सोचा। सोनी के भविष्य को लेकर सुगना प्रसन्न हो गई विकास में वैसे भी कोई कमी न थी और और जो थी शायद सोनी को पता न थी। जिसने भुसावल केला देखा ना हो उसे उसकी ताकत और मिठास का क्या अंदाजा होगा? विकास के पास जो था सोनी उसमें खुश थी …उसकी गुलाब की कली जैसी बुर के लिए वह छोटा लंड की उतना ही मजेदार था…पर बीती रात सरयू सिंह की धोती के उभार ने सोनी के मन में कुछ अजब भाव पैदा किए थे जो अभी अस्पष्ट थे.

सरयू सिंह अचानक आए इस प्रस्ताव से हड़बड़ा से गए उन्होंने सोनू की तरफ देखा ..आखिरकार सोनू भी अब इस परिवार का एक जिम्मेदार व्यक्ति था। सोनू ने अपनी पलके झुका कर सरयू सिंह को भरोसा दिलाया और विकास के पिता की तरफ मुखातिब हुआ और बोला ..

"चाचा जी को भी विकास पसंद है। हम सब को यह रिश्ता स्वीकार है…_

सभी मेहमानों के चेहरे पर मुस्कुराहट दौड़ गई और सब का साथ देने के लिए सरयू सिंह को भी अपने चेहरे पर मुस्कुराहट लानी पड़ी। नियति सरयू सिंह की स्थिति को देख रही थी और उनके मन में चल रही वेदना को समझने का प्रयास कर रही थी। जिस बात को वह सुगना से साझा करना चाहते थे वह बात अब उस बात का औचित्य न था उन्होंने उसे अपने सीने में दफन करना ही उचित समझा।


सरयू सिंह को यह युग तेजी से बदलता हुआ दिखाई पड़ रहा था। उन्होंने आज तक लड़की वालों को लड़के वालों के घर रिश्ता लेकर जाते देखा था परंतु यह मामला उल्टा था।

बहरहाल लाली और सुगना ने आगंतुकों का भरपूर स्वागत किया ..और कुछ ही देर में तरह-तरह के पकवान बनाकर सबका दिल जीत लिया।

आवभगत की कला ग्रामीण समाज से जुड़े युवतियों में प्रचुर मात्रा में होती है शहरी लोग उस संस्कार को सीखने में पूरा जीवन भी बता दें तो भी शायद वह अपनत्व और प्यार अपने व्यवहार में ला पाना कठिन होगा।


अब तक इस रिश्ते की प्रमुख कड़ी सोनी को भी अपने घर में चल रहे घटनाक्रम की खबर लग चुकी थी। निश्चित ही उसे यह जानकारी देने वाला कोई और नहीं विकास स्वयं था। वह आज विकास के साथ सिनेमा हॉल न जाकर वापस अपने घर ही आ रही थी।

दोनों ने साथ में अंदर प्रवेश किया और बड़े बुजुर्गों का आशीर्वाद लिया। विकास और सोनी ने जब सरयू सिंह के चरण छुए सरयू सिंह बरबस ही अपने स्वभाव बस सोनी और विकास को खुश रखने का आशीर्वाद दिया उनकी निगाहें एक बार फिर सोनी के नितंबों पर गई पर परंतु अब परिस्थितियां बदल चुकी थी।


सोनी और विकास ने पहले जो भी किया हो पर इस वक्त वह उन्हें स्वीकार्य थे। सरयू सिंह की वासना परवान चढ़ने से पहले ही फना हो गई थी परंतु सोनी का क्या ? उसने सरयू सिंह का वह रूप देख लिया था जो शायद उसके कोमल मन पर असर कर चुका था।

भोजन के उपरांत सोनी और विकास के विवाह कार्यक्रम की रूपरेखा तय की जाने लगी सरयू सिंह ने विवाह स्थल के बारे में जानना चाहा उन्हें शादी में होने वाले खर्च का अंदाज लगाना था…

विकास के परिवार और उनके परिवार की हैसियत में कोई मेल न था। सरयू सिंह के मन में आए प्रश्न का विकास के पिता ने उत्तर दिया वह बोले…

"सोनी बेटी हमारे घर की लक्ष्मी है हमें आपकी बेटी चाहिए और कुछ नहीं । आपसे अनुरोध है की विवाह कार्यक्रम बनारस शहर में ही रखा जाए आपका घर भी तो बनारस में है यहां पर मेहमानों को अच्छी और माकूल व्यवस्थाएं प्रदान करना आसान होगा। वैसे आप चाहे तो हम बारात लेकर आपके गांव भी आ सकते हैं"

सरयू सिंह विकास की पिता की सहृदयता के कायल हो गए सच में वह सभ्रांत व्यक्ति थे न सिर्फ वेशभूषा और पहनावे अपितु उसके विचार भी उतने ही मृदुल और सराहनीय थे। सरयू सिंह ने अपने हाथ जोड़ लिए

विकास के पिता ने आगे कहा

" हां एक बात और विवाह के खर्चों को लेकर आप परेशान मत होईएगा सारा आयोजन विकास और उसके दोस्त मिलकर करेंगे सोनू भी तो विकास का दोस्त ही है। जो खर्चा आपसे हो पाएगा वह आप करिएगा जो हमसे हो पाएगा हम करेंगे। आखिर यह मिलन हम दो परिवारों का भी है।


सरयू सिंह विकास के पिता की बातों से प्रभावित हो भावनात्मक हो गए और उन्होंने उठ कर दिल से उनका अभिवादन किया। सरयू सिंह के सारे मलाल और आशंकाएं दूर हो चुकी थी।

विकास और सोनी का रिश्ता तय हो चुका था। आज घर में खुशियों का माहौल था। विकास ने लाली और सुगना के चरण छुए सुगना और लाली ने उसे जी भर कर आशीर्वाद दिया पर सुगना ने विकास को छेड़ दिया…

"अच्छा यह बात थी… तभी आप दीपावली के दिन सोनी के पीछे पीछे सलेमपुर तक पहुंच गए थे सोनी अपने घरवालों से भी ज्यादा प्यारी हो गई थी।"

इस मजाक का सुगना को हक भी था । उधर विकास कहीं और खोया हुआ था। जैसे ही विकास ने सुगना के चरण छुए उसे एक अजब सा एहसास हुआ वह आलता लगे हुए चमकते गोरे …पैर उस पर उंगलियों में चांदी की अंगूठी…पैर की त्वचा का वह मखमली स्पर्श…. विकास सतर्क हो गया… जैसे जैसे वह ऊपर उठता गया सुगना के मादक बदन की खुशबू उसके नथुनों ने भी महसूस की और आंखें घुटनों के ऊपर साड़ी में कैद सुगना की सुदृढ़ जांघें देखती हुई ऊपर उठने लगी। और जब आंखों का यह सफर सुगना की कटावतार कमर पर आया विकास ने अपनी आंखें बंद कर ली. उसके मन में वासना का अंकुर फूटा परंतु विकास की प्रवृत्ति ऐसी न थी…वह उठकर सीधा खड़ा हो गया।


न जाने सुगना किस मिट्टी की बनी थी हर व्यक्ति जो उसके करीब आता उसके मन में एक न एक बार उसकी खूबसूरती और उसका गदराया हुआ तन घूम जाता और सुगना उसके मन में वासना के तार छेड़ देती।

अचानक विकास के चाचा ने अपने भाई से मुखातिब होते हुए कहा…

"भाई साहब आप तो एक बात भूल ही गए…"

सरयू सिंह उनकी बात से आश्चर्य चकित होते हुए उन्हें देखने लगे..

उसने अपने बड़े भ्राता विकास के पिता के कान में कुछ कहा और फिर विकास के पिता मुस्कुराते हुए बोले

"अरे खुशी में मैं एक बात भूल ही गया…यदि आप सब की अनुमति हो तो कल दोनों बच्चों की रिंग सेरेमनी करा देते हैं। आप सब यहां बनारस में है ही और मेरे तो सारे रिश्तेदार बनारस में ही है। आप अपने रिश्तेदारों को कल बुला लीजिए दरअसल विकास को वापस विदेश जाना है इसलिए समय कम है।

"पर इतनी जल्दी इस सब की व्यवस्था?" सरयू सिंह ने अपना स्वाभाविक प्रश्न किया

"मैंने कहा ना आप परेशान मत होइए यह बनारस शहर है यहां व्यवस्था में समय नहीं लगता आप सिर्फ अपने रिश्तेदारों को एकत्रित करने की कोशिश कीजिए। रेडिएंट होटल हमारा अपना होटल है मंगनी का कार्यक्रम वहीं पर होगा"


रेडिएंट होटल का नाम सुनकर सरयू सिंह सन्न रह गए। यह वही होटल था जहां बनारस महोत्सव के आखिरी दिन उन्होंने अपनी प्यारी बहू सुगना की बुर को कसकर चोदने के बाद उसके दूसरे छेद का भी उद्घाटन किया था। और अपनी वासना को चरम पर ले जाकर स्खलित होने का प्रयास किया था… परंतु वह ऐसा न कर पाए थे और मूर्छित होकर गिर पड़े थे। सारे दृश्य उनके दिमाग में एक-एक करके घूमने लगे। वह सुगना को चोदते समय उसकी केलाइडोस्कोप की तरह फूलती और पिचकती छोटी सी गांड… उन्हे सदा आकर्षित करती थी। कैसे उन्होंने उस छोटी सी गांड में अपना मोटा मुसल बेरहमी से डाल दिया था…. एक एक दृश्य याद आ रहा था कैसे उनके मन में पहली बार सुगना के लिए क्रोध आया था। सुगना ने जो पिछली रात रतन के घर बिताई थी उसका क्रोध उन पर छाया था। सुगना कराह रही थी पर सरयू सिंह की उस अनोखी इच्छा और अनूठी वासना को शांत करने का प्रयास कर रही थी.. जैसे-जैसे वह दृश्य सरयू सिंह की आंखों के सामने घूमते गए उनका लंड अपनी ताकत को याद कर जागने लगा। अचानक विकास के चाचा ने कहा

"सरयू जी आप कहां खो गए..?"

सरयू सिंह अपने ख्यालों से बाहर आए और एक बार फिर अपने चेहरे पर मुस्कुराहट लाते हुए बोले..

"सब कुछ इतनी जल्दी में हो रहा है यकीन ही नहीं हो रहा"

विकास के चाचा ने फिर कहा


"अब जब दोनों बच्चे एक दूसरे को पसंद करते हैं तो हमें उनकी इच्छा का मान रखना ही पड़ेगा वैसे भी सोनी जैसी खूबसूरत और पढ़ी-लिखी लड़की को कौन अपने घर की बहू नहीं बनाना चाहेगा.."

विकास के पिता ने हाथ जोड़कर सरयू सिंह के घर परिवार वालों से इजाजत ली….

सरयू सिंह ने अपने झोले से 1001 रुपए निकालकर विकास के हाथ में शगुन के तौर पर दिया और अपने दोनों हाथ जोड़कर आगंतुकों को ससम्मान विदा किया वह मन ही मन कल की तैयारियों के बारे में सोचने लगे।

विकास अपने परिवार के साथ लौट रहा था। सोनी और उसकी आंखों में एक अजब सी चमक थी। दोनों एक दूसरे के साथ वैवाहिक जीवन जीना प्रारंभ कर चुके थे परंतु आज उसे सामाजिक मान्यता मिल गई थी। उन दोनों की खुशी का ठिकाना न था। सोनी सुगना के गले लगे गई और आज इस आलिंगन की प्रगाढ़ता चरम पर थी। सुगना की चूचियों ने सोनी की चूचियों का अंदाजा लिया और सुगना को यकीन हो गया की सोनी की चूचियां पुरुष हथेली का संसर्ग प्राप्त कर चुकी है।

खैर अब जो होना था हो चुका था। लाली भी सुगना और सोनी के करीब आ गई। तीनों बहने एक दूसरे से गुत्थमगुत्था हो गई।

आज किशोरी सोनी तरुणीयों में शामिल ही गई थी। लाली ने सोनी को छेड़ते हुए कहा

"अब रोज हमारा से एक घंटा ट्रेनिंग ले लीहा .. विकास जी के कब्जा में रखें में काम आई "

सुगना मुस्कुरा उठी और बोली "चला लोग सब तैयारी करल जाओ"

सुगना के चेहरे पर यह मुस्कुराहट कई दिनों बाद आई थी। सोनू सुगना के खुशहाल चेहरे को देखकर प्रसन्न हो गया। लाली के मजाक ने सुगना के चेहरे पर भी लालिमा ला दी थी। सोनू की बड़ी बहन और ख्वाबों खयालों की अप्सरा आज खुश थी और सोनू उसे खुश देखकर बागबाग था।


सरयू सिंह और सोनू कल की तैयारियों के लिए विचार विमर्श करने लगे। सरयू सिंह की स्थिति देखने लायक थी.. वह उसी सुकन्या के विवाह की तैयारियों में व्यस्त हो गए जिस चोदने का अरमान लिए वह पिछले कुछ दिनों से घूम रहे थे…और उसे अंजाम तक पहुंचाने की जुगत लगाते लगाते बनारस तक आ गए थे.

बहरहाल सरयू सिंह ने जो सोचा था और उनके मन में जो वासना आई थी उसका एक अंश सोनी स्वयं देख चुकी थी। धोती के पीछे छुपे उस दिव्यास्त्र का आभास सोनी ने कर लिया था। नियति किसी भी घटनाक्रम को व्यर्थ नहीं जाने देती… सोनी के मन में जो उत्सुकता आई थी उसने दिमाग के एक कोने में अपनी जगह बना ली थी। वह इस समय तो अपने ख्वाबों की दुनिया में खोई हुई थी परंतु आने वाले समय में उसकी उत्सुकता क्या रंग दिखाएगी यह तो भविष्य के गर्भ में दफन था…

हाल में अपने भूतपूर्व सरयू सिंह और वर्तमान प्रेमी सोनू के साथ बैठकर सुगना सोनी की रिंग सेरेमनी की तैयारियों पर विचार विमर्श कर रही थी।

रिश्तेदारों को लाने की बात पर सुगना ने अपना प्रस्ताव रखा

"बाबूजी सोनू के गाड़ी लेकर भेज दी.. मां के भी लेले आई है और जो अपन रिश्तेदार बड़े लोग उन लोग के भी लेले आई"


सरयू सिंह सुगना की बात पर कभी कोई प्रश्न ना उठाते थे उन्हें पता था इस परिवार के लिए सुगना का हर निर्णय परिवार की उन्नति के लिए था। उन्होंने सुगना की बात का समर्थन करते हुए कहा

"हां वहां सलेमपुर जाकर एक गाड़ी और कर लीह एक गाड़ी में अतना आदमी ना आई"

सोनू के गांव जाने की बात सुनकर लाली थोड़ा दुखी हो गई आज रात वह सोनू से जमकर चुदने वाली थी परंतु सुगना के इस प्रस्ताव ने उसकी उम्मीदों पर पानी फेर दिया था। बहरहाल लाली के दुख से ज्यादा उसके मन में आज सोनी को लेकर खुशियां थी…

सुगना ने आज रात के लिए सोनू और लाली को दूर कर दिया था और खुश हो गई थी। सोनू को लाली से दूर रखना अनिवार्य था…और सुगना उसमें स्वाभाविक रूप से सफल हो गई थी।

सरयू सिंह, सुगना और लाली ने यहां बनारस की व्यवस्था संभाली.. सरयू सिंह रस्मो रिवाज के सारे सामान खरीदने के लिए लिस्ट बनाने लगे। सुगना और लाली …सबके लिए नए और माकूल कपड़े खरीदने चली गईं…सोनी के लिए वस्त्र खरीदने का जिम्मा विकास और उसकी मां ने स्वयं उठा रखा था। सोनी ने बच्चों को घर में संभालने की जिम्मेदारी ले ली।

"काश मोनी भी आज के दिन एहिजा रहीत!"


अचानक सोनी ने मोनी का नाम लेकर सब को मायूस कर दिया…

मोनी का खूबसूरत चेहरा सबकी निगाहों में घूम गया जो इस समय विद्यानंद के आश्रम में एक अनोखी परीक्षा से गुजर रही थी..

अपने कक्ष में अपने बिस्तर पर लेटी हुई मोनी बेसुध थी हाथ पैर जैसे उसके वश में न थे। तभी दो महिलाएं उसके कमरे में आई। उन्होंने मोनी के सर को हिला कर देखा निश्चित ही मोनी अचेतन थी।

"डॉक्टर चेक कर लीजिए…यह नहीं जागेगी" साथ आई महिला ने कहा। और डॉक्टर ने मोनी के अक्कू ढक रहा श्वेत उठाने लगी। आज नियति मोनी की पुष्ट जांघों को पहली बार देख रही थी जो सादगी की प्रतीक थीं। न पैरों में आलता न घुटनों पर कोई कालापन एकदम बेदाग…जितना मोनी का मन साफ था उतना ही तन। धीरे-धीरे श्वेत वस्त्र ऊपर उठता हुआ जांघों के जोड़ पर आ गया …और खूबसूरत सुनहरे बालों के बीच वह दिव्य त्रिकोण दिखाई पड़ने लगा जिसका मोनी के लिए अब तक कोई उपयोग न था।


जिस तरह किसी अबोध के लिए कोहिनूर का कोई मोल नहीं होता उसी प्रकार मोनी के लिए उसकी जांघों के बीच छुपा खजाने कि कोई विशेष अहमियत न थी।

डॉक्टर ने साथ आई महिला की मदद से मोनी की दोनों जांघें फैलाई और उस अनछुई कोमल बुर की दोनों फांकों को अपनी उंगलियों से ही अलग करने की कोशिश की …परंतु मोनी की बुर को फांके उंगलियों से छलक कर पुट …की धीमी ध्वनि के साथ फिर एक दूसरे के पास आ गई। ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे मोनी अपनी अवचेतन अवस्था में भी अपने भीतर छुपी गुलाब की कली को किसी और को नहीं दिखाना चाह रही थी।

डॉक्टर ने डॉक्टर ने एक बार फिर कोशिश की। छोटी सी गुलाब की कली की पंखुड़ियों को फैला कर न जाने वह क्या देखना चाह रही थी …जितना ही वह उसे अपनी उंगलियों से फैलाती गई उतनी ही गुलाबी लालिमा और मांसल बुर और उजागर होती।

परंतु एक हद के बाद अंदर देख पाना संभव न था..डॉक्टर ने साथ आई महिला से कहा

"पास"


साथ चल रही महिला ने अपने रजिस्टर में कुछ दर्ज किया और मुस्कुराते हुए बोली। मुझे पूरा विश्वास था कि यह निश्चित ही कुंवारी होगी चाल ढाल और रहन-सहन से यह बात स्पष्ट होती है कि जैसे इसे विपरीत लिंग में कोई आकर्षण नहीं है..

"देखना है कि क्या आगे भी ऐसा ही रहेगा…" डॉक्टर मुस्कुरा रही थी….

मोनी को वापस उसी प्रकार उसके श्वेत वस्त्रों से ढक दिया गया और डॉक्टर अपनी महिला साथी के साथ अगले कक्ष में प्रवेश कर गई…

इसी प्रकार अलग-अलग कक्षाओं में जाकर उस डॉक्टर सहयोगी ने कई नई युवतियों का कौमार्य परीक्षण किया तथा अपने रजिस्टर में दर्ज करती चली गई.


बाहर जीप में बैठा रतन डाक्टर का इंतजार कर रहा था। यह डाक्टर कोई और नहीं अपितु वह खूबसूरत अंग्रेजन माधवी थी जो दीपावली की रात रतन के बनाए खूबसूरत भवन की महिला विंग की देखरेख कर रही थी….।

रतन पास बैठी माधवी को बार-बार देख रहा था उसकी भरी-भरी चूचियां रतन का ध्यान बरबस ही खींच रही थीं। रतन का बलशाली लंड पजामे के भीतर तन रहा था। उसे दीपावली की वह खूबसूरत रात याद आने लगी …माधवी ने रतन कि निगाहों को पढ़ लिया वह इसके पहले भी आंखों में उसके प्रति उपजी वासना को देख चुकी थी।

"रतन जी आश्रम में ध्यान लगाइए मुझमें नहीं.."माधवी ने अपने चेहरे पर मुस्कुराहट लाते हुए कहा…रतन शरमा गया और उसने अपने तने लंड को एक तरफ किया और उसने जीप की रफ्तार बढ़ा दी…रतन माधवी को पाने के लिए तड़प रहा था। उसने अपने ही बनाए उस अनोखे कूपे में माधवी के कामुक बदन न सिर्फ जी भर कर देखा था अपितु उसके कोमल बदन को अपने कठोर हाथों से जी भर स्पर्श किया वह सुख अद्भुत था। रतन ने जो मेहनत माधवी के तराशे हुए बदन पर की थी उसने उसका असर भी देखा था…. माधवी की जांघों के बीच अमृत की बूंदें छलक आई थी….परंतु मिलन अधूरा था…

जीप तेज गति से विद्यालय में के आश्रम की तरह बढ़ रही थी।

यह महज संजोग था या नियति की चाल…उधर बनारस में रेडिएंट होटल के तीन कमरे सुगना और सरयू सिंह के परिवार के लिए सजाए जा रहे थे उनमें से एक वही कमरा था जिसमें सरयू सिंह ने बनारस महोत्सव के आखिरी दिन सुगना को जमकर चोदा था …. यह कमरा सुगना और उसके परिवार के लिए अहम होने वाला था…

शेष अगले भाग में …
सोनी और विकास के रिश्ते ने सरयू सिंह कि वासना पर कुछ समय के लिए विराम लगा दिया है।

कहानी किसी web series की भांति लेखक ने बखुबी Direct की है।
 

LustyArjuna

New Member
24
1
3
भाग 115

सोनू के दोनों हाथों में लड्डू थे…. और पेट में जबरदस्त भूख पर जिस लड्डू को वह पहले खाना चाहता था वह अभी भी उससे दूर था और दूसरा मुंह में जाने को बेताब…

नियति अपनी चाल चल रही थी… वह सोनू की इच्छा पूरी करने को आमादा थी…

जौनपुर में होने वाले प्रेमयुद्ध का अखाड़ा ट्रक पर लोड हो चुका था और धीरे धीरे सोनू के नए बंगले की तरफ कूच कर रहा था….


अब आगे..

सोनू जौनपुर पहुंच चुका था और पीछे पीछे फर्नीचर की दुकान से खरीदा गया वह सामान भी आ रहा था । सोनू का इंतजार उसके मातहत नए बंगले पर कर रहे थे जैसे ही सोनू की कार वहां पहुंची आसपास आराम कर रहे मातहत सावधान मुद्रा में खड़े हो गए।

बंगले की सुरक्षा में लगे गार्ड ने सोनू की कार का दरवाजा खोला और सोनू अपने पूरे रोआब के साथ अपनी कार से उतर गया। अपने कपड़े व्यवस्थित करते हुए वह अपने बंगले के अंदर प्रवेश कर गया। आंखे बंगले की दीवारों पर घूम रही थीं।


सचमुच रंग रोगन के बाद बंगला अपने पूरे शबाब पर था। अंदर घुसते ही एक बड़ा सा हाल और उस हाल से लगे हुए 3 खूबसूरत कमरे। बड़ी सी रसोई और उसके सामने एक छोटा सा हाल। शासकीय बंगलों की अहमियत उसे अब समझ आ रही थी। वैसे भी मनोरमा के बंगले को देखने के बाद सोनू के मन में भी हसरत जगी थी और जौनपुर के इस बंगले ने कुछ हद तक उसकी हसरतों को पूरा कर दिया था परंतु सोनू के अंतर्मन में जो हसरत पिछले कई दिनों से पनप रही थी वह अब भी तृप्ति की राह देख रही थी।

सोनू ने पूरे बंगले का मुआयना किया और उसकी साफ-सफाई देख कर खुश हो गया उसने अपने सभी मातहतों को की तारीफ की।

थोड़ी ही देर बाद बनारस से चला हुआ ट्रक भी पहुंच गया..

ट्रक से सामान उतर कर उतार कर सोनू के दिशा निर्देश में अलग-अलग कमरों में पहुंचाया जाने लगा …

ट्रक पर आए ढेर सारे सामान को देखकर सोनू के मातहत आपस में बात करने लगे

"अरे साहब तो अभी अविवाहित और अकेले हैं फिर इतना सारा सामान?"


जब प्रश्न उठा था तो उसका उत्तर मिलना भी जरूरी था। सोनू के साथ साथ रहने वाले ड्राइवर ने तपाक से कहा

"अरे साहब का परिवार बहुत बड़ा है तीन तीन बहने हैं और उनके बच्चे भी…. हो सकता है दो-तीन दिनों बाद उन लोग यहां आए भी"

ड्राइवर ने सोनू लाली और सुगना की बातें कुछ हद तक सुन ली थी और कुछ समझ भी ली थी.. पर उस रिश्ते में आई उस वासना भरी मिठास को वह समझ नहीं पाया था। यह शायद उसके लिए उचित भी था और सोनू के लिए भी..

ट्रक के साथ आए फर्नीचर के कारीगरों ने कुछ ही घंटों की मेहनत में फर्नीचर को विधिवत सजा दिया। घर की सजावट घंटों का काम नहीं दिनों का काम होता है। फर्नीचर के अलावा और भी ढेरों कार्य थे। नंगी और खुली हुई खिड़कियां अपने ऊपर आवरण खोज रही थी सोनू ने अपने मातहतों को दिशा निर्देश देकर उनकी माप करवाई और इसी प्रकार एक-एक करके अपने घर को पूरी तरह व्यवस्थित कराने लगा…

सुगना और लाली द्वारा पसंद किए गए दोनों पलंग सोनू ने खरीद लिए थे। वैसे भी सोनू की दीवानगी इस हद तक बढ़ चुकी थी की वह सुगना की मन की बातें पढ़ उसे खुश करना चाहता था और उस फर्नीचर शॉप में तो सुगना ने उस पलंग पर अपना हाथ रख दिया था।


निश्चित ही उसके मन में उस पलंग पर लेटने और सोने की बात आई होगी । सोनू उत्साहित हो गया। अपनी कल्पना में स्वयं पसंद किए पलंग पर अपनी मल्लिका सुगना को लेटे और अंगड़ाइयां लेते देख उसका लंड .. खड़ा हो गया। जितना ही वह उस पर से ध्यान हटाता उतना ही छोटा सोनू उसका ध्यान अपनी तरफ खींच लाता। सुगना का श्रृंगारदान भी बेहद खूबसूरत था परंतु सूना था बिल्कुल अपनी मालकिन सुगना की तरह …जो एक बेहद खूबसूरत काया और सबका मन मोहने वाला दिल लिए सुहागन होने के बावजूद अब भी विधवाओं जैसी जिंदगी जी रही थी।

सोनू अपने दूसरे कमरे में आया जहां लाली द्वारा पसंद किया गया पलंग लगा था। लाली और सुगना की तुलना सोनू कतई नहीं करना चाहता था परंतु तुलना मनुष्य का स्वाभाविक गुण है।

जब तक सुगना सिर्फ और सिर्फ उसकी बड़ी बहन थी वह देवतुल्य थी और लाली उसकी मेनका रंभा और न जाने क्या-क्या। तब न तो तुलना की आवश्यकता थी और ना ही उसका औचित्य।

परंतु जब से उसने सुगना को अपनी वासना भरी दुनिया में खींच लाया था और उसको को अपना बनाने की ठान ली थी… सुगना भी उन्ही अप्सराओं मे शामिल हो चुकी थी… और अब तुलना स्वाभाविक हो चुकी थी और सुगना निर्विवाद रूप से लाली पर भारी पड़ रही थी।


आपका अंतर्मन आपके विचारों को नियंत्रित करता है। सुगना के प्रति सोनू के अनोखे प्यार ने बंगले का सबसे खूबसूरत कमरा सुगना को देने पर मजबूर कर दिया था।

यद्यपि दोनों ही कमरे खूबसूरत थे परंतु जो अंतर लाली और सुगना में था वही अंतर उनके कमरों में भी स्पष्ट नजर आ रहा था।

बहरहाल सोनू ने अपने दोनों बहनों की पसंद का ख्याल रख उनके दोनों कमरे सजा दिए थे…और सोनू का बैठका उसके स्वयं द्वारा पसंद किए गए सोफे से जगमगा उठा था। घर की साफ सफाई की निगरानी करते करते रात हो चुकी थी परंतु अभी भी कई कार्य बाकी थे…

अगले दो-तीन दिनों तक सोनू अपना आवश्यक शासकीय कार्य निपटाने के बाद अपने बंगले पर आ जाता और कभी पर्दे कभी शीशा कभी कपड़े रखने की अलमारी और तरह-तरह की छोटी बड़ी चीजें खरीदता और घर को धीरे धीरे हर तरीके से रहने लायक बनाने की कोशिश करता। रसोई घर के सामान कि उसे विशेष जानकारी न थी फिर भी वह अत्याधुनिक और जौनपुर में उपलब्ध उत्तम कोटि के रसोई घर के सामान भी खरीद लाया था पर उन्हें यथावत छोड़ दिया था…

रसोई घर को सजा पाना उसके वश में न था एकमात्र वही काम उसने अपनी बहनों के लिए छोड़ दिया था..

पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार लाली को ही जौनपुर आना था सोनू को भी सुगना के साथ साथ उसका भी इंतजार था। लाली को अभी आने से रोकना और तीन-चार दिनों बाद जौनपुर भेजने की योजना सुगना ने डॉक्टर की नसीहत को ध्यान में रखते हुए ही बनाई थी।

परंतु सोनू भी कम न था उसने जानबूझकर सुगना को अभी जौनपुर आने से रोक लिया था और फर्नीचर खरीदने का प्रबंध बनारस से ही कर लिया था ताकि वह घर की सजावट पूरी होने के बाद लाली और सुगना को एक साथ ही जौनपुर ले आए। नए घर में प्रवेश की बात कर सुगना को आसानी से मना सकता था और इसके लिए जिद भी कर सकता था।

वैसे भी लाली और उसके बीच जो कुछ हो रहा था वह न सिर्फ सुगना जान रही थी अपितु अपनी खुली और नंगी आंखों से देख भी चुकी थी और अब तो सोनू और लाली के मिलन की अनिवार्यता भी थी। सुगना लाली और उसे करीब लाने में कोई कमी नहीं रखेगी यह बात सोनू बखूबी जानता था वह मन ही मन तरह-तरह की कल्पनाएं करता और सुगना की उपस्थिति में लाली को चोद चोद कर सुगना को और उत्तेजित करने का प्रयास करता उसे पता था सुगना की उस खूबसूरत और अद्भुत बुर को जीवंत बनाए रखने के लिए सुगना का भी संभोग करना अनिवार्य था चाहे कृत्रिम रूप से या स्वाभाविक रूप से…


परंतु सोनू के लिए सुगना से संभोग अब भी दुरूह कार्य था सुगना जब तक स्वयं अपनी जांघे नहीं खोलती सोनू वही गलती दोबारा दोहराने को कतई तैयार न था जो उसने दीपावली की रात की थी । सुगना का मायूस और उदास चेहरा जब जब सोनू के सामने घूमता उसके सुगना के जबरदस्ती करीब जाने के विचार पानी के बुलबुले की तरह बिखर जाते ।

सोनू पूरी जी जान से अपनी परियों के आशियाने को सजाने में जुटा हुआ था और परियों की रानी सुगना कि उस अद्भुत और रसीली बुर को जीवंत बनाए रखने की संभावनाओं पर लगातार सोच विचार कर रहा था।

ऐसा न था कि आने वाले 1 सप्ताह की तैयारियां सिर्फ सोनू कर रहा था उधर बनारस में उसकी बहन सुगना भी लाली को उस प्रेम युद्ध के लिए पूरी तरह तैयार कर रही थी…

"ए लाली तोर महीना कब आई रहे"


"काहे पुछत बाड़े.." लाली में सुगना के इस अप्रत्याशित प्रश्न पर एक और प्रश्न किया

"तोरा जौनपुर भी जाए के बा..भुला गईले का?" सुगना ने लाली के पेट पर चिकोटी काटते हुए कहा

"देखत बानी तू ज्यादा बेचैन बाड़ू …..का बात बा? अभी तो सोनुआ के भीरी ठेके ना देत रहलु हा और अब जौनपुर भेजें खातिर अकुताईल बाड़ू_

सुगना जब पकड़ी जाती थी तो अपनी खूबसूरत मुस्कुराहट और अपने स्पर्श से सामने वाले को मोहित कर लेती थी। उसने लाली की हथेली को अपनी गोद में लिया और उसकी बाहों को दबाते हुए बोली..

"अब जाता रे नू जौनपुर खूब सेवा करिए और करवाईहे हम ना रोकब टोकब "

लाली भी सुगना को छेड़ने के मूड में आ चुकी थी..

"ते हु चल ना कुछ ना करबे त देख देख कर मजा लीहे पहले भी तो देखलहीं बाड़े "

सुगना ने लाली की बाहें अपनी गोद से हटाकर दूर फेंकते हुए कहा

" लाली फालतू बात मत कर तोरा कारण ही सोनूवा के दिमाग खराब हो गईल रहे और ऊ कुल कांड भईल अब हमरा बारे में सोनूवा से कोनो बात मत करिहे_"

"हम कहां करीना तोरे सोनूवा बेचैन रहेला? का जाने ते का देखावले बाड़े और का चिखावले बाड़े" लाली ने अपनी नजर सुगना की भरी भरी चुचियों पर घुमाई और फिर उन्हें उसके सपाट पेट से होटी हुई जांघों के बीच तक ले गई। सुगना बखूबी लाली की नाचती हुई आंखों को देख रही थी।

"ई सब पाप ह.." सुगना ने अपनी आंखें बंद कर ऊपर छत की तरफ देखा और अपने अंतर्मन से चिर परिचित प्रतिरोध करने की कोशिश की..

"काहे पाप ह…?"लाली में पूछा । लाली तो जैसे वाद विवाद पर उतारू थी ..

"सोनूवा हमार अपना भाई हां भाई बहन के बीच ई कुल …छी कितना गंदा बात बा.."

सुगना की स्पष्ट और उचित बात ने लाली को भी सोचने पर मजबूर कर दिया और वह कुछ पलों के लिए चुप हो गई फिर उसने सुगना की हथेली पकड़ी और बोला

"काश सोनुआ तोर आपन भाई ना रहित.."

लाली की बात सुनकर सुगना अंदर ही अंदर सिहर उठी..लाली ने उसकी दुखती रग छेड़ दी थी.. अपने एकांत में न जाने सुगना कितनी बार यह बात सोचती थी..


सुगना से अब रहा न गया उसने लाली की बात में हां में हां मिलाते हुए कहा

" हां सच कहते बाड़े काश सोनुआ हमार भाई ना होके तोर भाई रहित.."

दोनों सहेलियां खिलखिला कर हंस पड़ी। लाली का कोई अपना सगा भाई न था। उसे इस रिश्ते की पवित्रता और मर्यादा का बोध न था उसने तो सोनू को ही अपना मुंहबोला भाई माना था परंतु जैसे-जैसे सोनू जवान होता गया उसने लाली को दिल से बहन न माना …

संबोधन और आकर्षण दोनों साथ-साथ बढ़ते रहे लाली दीदी के प्रति सोनू की आसक्ति समय के साथ बढ़ती गई और अब लाली और सोनू के संबंध अपनी अलग ऊंचाइयों पर थे…

" ते हमार बात घुमा दे ले लेकिन बतावाले हा ना कि महिनवा कब आई रहे…?

"मत घबरो .. अभी महीना आवे में 2 सप्ताह बा। अब ठीक बानू"


सुगना निश्चिंत हो गई उसे तो सिर्फ 1 हफ्ते की दरकार थी। उसके पश्चात लाली और सोनू लगातार साथ रहे या ना रहे उससे सुगना को कोई फर्क नही पड़ना था। परंतु सोनू की वासना और उसके जननांगों को जीवंत रखना सुगना की प्राथमिकता भी थी और धर्म भी। डॉक्टर ने जो दायित्व सुगना को दिया था वह उसे वह बखूबी निभा रही थी।

अचानक सुगना के मन में आया…

"ए लाली चल ना ढेर दिन भर उबटन लगावल जाओ.."

सुगना ने लाली के मन की बात कह दी थी । लाली स्वयं भी सोनू से जी भर चुदने किसे पहले अपने बदन को और मखमली करना चाह रही थी। दोनों सहेलियां सरसों का उबटन पीसने में लग गई…

आइए जब तक सुगना और लाली अपना उबटन पीसते हैं तब तक आपको लिए चलते हैं सलेमपुर जहां सरयू सिंह आज अपनी कोठरी की साफ सफाई कर रहे थे। यही वह कोठरी थी जहां सुगना की छोटी बहन सोनी अपने प्रेमी विकास से दीपावली की रात जमकर चुदी थी और हड़बड़ाहट में अपनी जालीदार लाल पेंटी अनजाने में ही सरयू सिंह के लिए उपहार स्वरूप छोड़ गई थी।


सरयू सिंह में उस लाल पेंटी और उसमें कैद होने वाले खूबसूरत नितंबों की कल्पना कर अपनी वासना को कई दिनों तक जवान रखा था और हस्तमैथुन कर अपने लंड को उसकी शक्ति याद दिलाते रहे थे। सोनी के मोहपाश में बंधे अपने मन में तरह-तरह के विचार और ख्वाब लिए वह उसका पीछा करते हुए बनारस भी पहुंच चुके थे। परंतु अब उनके मन में एक अजब सी कसक थी सोनी और विकास के रिश्ते के बाद उसके बारे में गलत सोचना न जाने उन्हें अब क्यों खराब लग रहा था। उनकी वासना अब भी सोनी को एक व्यभिचारी औरत काम पिपासु युवती के रूप में देखने को मजबूर करती परंतु पहले और अब का अंतर स्पष्ट था। जितने कामुक खयालों के साथ वह अपने विचारों में सोनी के साथ व्यभिचार करते थे वह उसकी धार अब कुंद पड़ रही थी सरयू सिंह ने सोनी के साथ जो वासनाजन्या कल्पनाएं की थी अब उन में अब बदलाव आ रहा था। शायद सोनी के प्रति उनका गुस्सा कुछ कम हो गया था।

सोनी को चोद पाने की उनकी तमन्ना धीरे-धीरे दम तोड़ रही थी जिस सुकन्या का विवाह अगले कुछ महीनों में होने वाला था वह भी विकास जैसे युवक से वह क्यों कर भला सरयू सिंह जैसे ढलती उम्र के व्यक्ति के पास सहर्ष चुदवाने के लिए आएगी…परंतु सरयू सिंह एक बात भूल रहे थे जांघों के बीच नियति ने उन्हें जो शक्ति प्रदान की थी वह अनोखी थी…

*************************

उधर विद्यानंद के आश्रम में…


मोनी के कौमार्य परीक्षण के पश्चात उसे आश्रम के विशेष भाग में स्थानांतरित कर दिया गया था वहां उसकी उम्र की करीब दस और लड़कियां थी मोनी को सिर्फ इतना पता था कि वह आश्रम के विशेष सदस्यों की टोली में शामिल की गई थी जहां उसे एक विशेष साधना में लगना था।

नित्य कर्म के पश्चात सभी लड़कियां एक बड़ी सी कुटिया में आ चुकी थी सभी के शरीर पर एक श्वेत धवल वस्त्र था जो उनके अंग प्रत्यंग ओं को पूरी तरह आवरण दिए हुए था सभी लड़कियां नीचे बनी बिछी आशनी पर बैठ गई सामने चबूतरे पर आसनी बिछी हुई थी पर स्थान रिक्त था..

कुछ ही पलों में कुटिया में लगे ध्वनि यंत्र से एक आवाज सुनाई दी…आप सभी को एक विशेष साधना के लिए चुना गया है जिसमें आपका स्वागत है.. आप सबकी गुरु माधवी जी अब से कुछ देर बाद मंच पर विराजमान होंगी वही आपको आने वाले एक माह तक निर्देशित करेंगी । आप सब उनके दिशा निर्देशों का पालन करते हुए इस विशेष आश्रम में रहेंगी और अपनी साधना पूर्ण करेंगी कुछ कार्य आप सब को सामूहिक रूप में करना होगा कुछ टोलियों में और कुछ अकेले। माधवी जी हमेशा आप लोगों के बीच रहेंगी। आप सब अपनी आंखें बंद कर माधवी जी का इंतजार करें और उनके कहने पर ही अपनी आंखें खोलिएगा।

सभी लड़कियां विस्मित भाव से उस ध्वनि यंत्र को खोज रही थी जो न जाने कहां छुपा हुआ था। दिशा निर्देश स्पष्ट थे सभी लड़कियों ने आंखें बंद कर लीं और वज्रासन मुद्रा में बैठ गईं सामने मंच पर किसी के आने की आहट हुई परंतु लड़कियों ने निर्देशानुसार अपनी आंखें बंद किए रखी।


कुछ ही पलों बाद माधवी की मधुर आवाज सुनाई पड़ी

"आप सब अपनी आंखें खोल सकती हैं"


सभी लड़कियों ने अपनी आंखें धीरे-धीरे खोल दीं।

मोनी सामने पहली कतार में बैठी थी मंच पर एक सुंदर और बेहद खूबसूरत महिला को नग्न देखकर वह अचंभित रह गई। उसने अपने अगल-बगल लड़कियों को देखा सब की सब विस्मित भाव से माधवी को देख रही थी माधवी पूर्ण नग्न होकर वज्रासन में बैठी हुई थी और उसकी आंखें बंद थी दोनों हाथ प्रणाम की मुद्रा में जुड़े हुए थे और उसकी भरी-भरी चूचियां दोनों हाथों के बीच से निकलकर तनी हुई थी प्रणाम की मुद्रा में दोनों पंजे सटे हुए दोनों चुचियों के बीच आ गए थे। बेहद खूबसूरत दृश्य था….

माधवी ने भी अपनी आंखें खोली और सामने बैठी लड़कियों को संबोधित करते हुए बोली

"मेरा नाम माधवी है मैं आप की आगे की यात्रा में कुछ दूर तक आपके साथ रहूंगी …आप सब मेरे शरीर पर वस्त्र न देख कर हैरान हो रहे होंगे परंतु विधाता की बनाई इस दुनिया में वस्त्रों का सृजन पुरुषों और स्त्रियों के भेद को छुपाने के लिए ही हुआ था और यहां हम सब स्त्रियां ही हैं अतः हम सबके बीच किसी पर्दे की आवश्यकता नहीं है क्या आपने कभी गायों को बछियों को वस्त्र पहने देखा है?"


सभी माधवी की बातों को मंत्रमुग्ध होकर सुन रहे थे एक तो माधवी बेहद खूबसूरत थी ऊपर से उसका कसा हुआ बदन उसके व्यक्तित्व में चार चांद लगा रहा था। भरी-भरी गोरी गोरी चूचीया और उस पर तने हुए गुलाबी निप्पल सभी लड़कियों को खुद अपने स्तनों को उस से तुलना करने पर मजबूर कर रहा था और निश्चित ही माधवी उन सब पर भारी थी। परंतु मोनी माधवी से होड़ लगाने को तैयार थी। सुगना की बहन होने का कुछ असर मोनी पर भी था।

आइए हम सब अपने एकवस्त्र को खोल कर यही कुटिया में छोड़ देंगे और शाम सूरज ढलने के पश्चात वापस अपने वस्त्र लेकर अपने अपने कमरों में चले जाएंगे। इसी प्रकार आने वाले 1 महीने तक हम सुबह सुबह यहां एकत्रित होंगे और प्रकृति के बीच रहकर अपनी साधना को पूरा करेंगे।

एक बात ध्यान रखिएगा यह साधना आप सबके लिए है और इस साधना में हुए अनुभव और सीख किसी और से साझा मत करिएगा दीवारों के भी कान होते हैं।


एक-एक करके सभी लड़कियों ने अपने श्वेत वस्त्र को अपने शरीर से उतार दिया और नग्न होने लगी मोनी आज पहली बार किसी के समक्ष नग्न हो रही थी नियति मोनी की काया पर से आवरण हटते हुए देख रही थी न जाने ऊपर वाले ने सारी सुंदरता पदमा की बेटियों को ही क्यों दे दी थी। एक से बढ़कर एक खूबसूरत और जवानी से भरपूर तीनों बहनें…

गोरी चिट्टी मोनी गांव में अपनी मां पदमा का हाथ बटाते बटाते शारीरिक रूप से सुदृढ़ हो गई थी। खेती किसानी और घरेलू कार्य करते करते उसके शरीर में कसाव आ चुका था और स्त्री सुलभ कोमलता उस कसे हुए शरीर को और खूबसूरत बना रही थी।

मोनी का वस्त्र उसके जांघों के जोड़ तक आ गया और उसकी खूबसूरत और अनछुई बुर माधवी की निगाहों के सामने आ गई और बरबस ही माधवी का ध्यान मोनी की बुर पर अटक गया मोनी के भगनासे के पास एक बड़ा सा तिल था…यह तिल निश्चित ही सब का ध्यान खींचने वाला था माधवी मंत्रमुग्ध होकर मोनी को देखे जा रही थी।

कुछ ही देर में कुछ ही देर में सभी कुदरती अवस्था में आ चुके थे और एक दूसरे से अपनी झिझक मिटाते हुए कुछ ही पलों में सामान्य हो गए थे। लड़कियों की जांघों के बीच वह खूबसूरत बुर आज खुली हवा में सांस ले रही थी.. और तनी हुई चूचियां उछल उछल कर लड़कियों को एक अलग ही एहसास करा रही थी.

आश्रम का यह भाग प्राकृतिक सुंदरता से भरा हुआ था । जहां पर प्रकृति ने साथ न दिया था वहां लक्ष्मी जी के वैभव से वही प्राकृतिक सुंदरता कृत्रिम रूप से बना दी गई थी….

धूप खिली हुई थी और सभी नग्न लड़कियां कृत्रिम पर विशालकाय झरने के बीच आकर एक दूसरे से अठखेलियां करने लगी। कभी अपनी अंजुली में पानी लेकर एक दूसरे पर छिड़कती और अपनी बारी आने पर उसी पानी से बचने के लिए अपने चेहरे को इधर-उधर करती कभी अपने हाथों से अपने चेहरे और आंखों को ढकती…

प्रकृति की सुंदरता उफान पर थी आज अपनी ही बनाई खूबसूरत तरुणियों को अपनी आगोश में लिए हुए प्रकृति और भी खूबसूरत हो गई थी। आश्रम का यह भाग दर्शनीय था। हरे भरे उपवन में पानी का झरना और झरने में खेलती मादक यौवन से लबरेज उन्मुक्त होकर खेलती हुई युवतियां।

परंतु उस दिव्य दर्शन की इजाजत शायद किसी को न थी पर जो इस आश्रम का रचयिता था वह बखूबी इस दृश्य को देख रहा था….

आइए तरुणियो को अपने हाल पर छोड़ देते हैं और वापस आपको लिए चलते हैं बनारस में आपकी प्यारी सुगना के पास…

दोपहर का वक्त खाली था सारे बच्चे स्कूल जा चुके थे और सोनी भी.. अपने कॉलेज के लिए निकल चुकी थी वैसे भी अब उसका मन कॉलेज में ना लगता था जो पढ़ाई वह पढ़ रही थी अब वह उसके जीविकोपार्जन का साधन ना होकर एक शौक बन चुका था फिर भी जब सोनी ने इतनी मेहनत की थी वह इस अंतिम परीक्षा में सफल हो जाना चाहती थी…


घर के एकांत में लाली और सुगना उबटन लेकर अपने कमरे में थी..सुगना लाली के हाथ पैरों में उबटन लगा रही थी। धीरे धीरे सुगना के हाथ अपनी मर्यादा को लांघते हुए लाली की जांघों तक पहुंचने लगे।

लाली ने सुगना के स्पर्श में उत्तेजना महसूस की। और वह बीती रात की बात याद करने लगी जब सुगना ने पहली बार उसकी बुर को स्खलित किया था।

कुछ ही देर में लाली सुगना के समक्ष अर्धनग्न होती गई पेटीकोट सरकता सरकता लाली के नितंबों तक आ चुका था और उसके मादक नितंबों को बड़ी मुश्किल से छुपाने की कोशिश कर रहा था । लाली को अब सुगना से कोई शर्म न थी परंतु वह खुद ही अपनी पेटीकोट को और ऊपर करना नहीं चाह रही थी थी सुगना में लाली की जांघों पर पीले उबटन का लेप लगाया और धीरे-धीरे उसकी जांघों और पैरों की मालिश करने लगी सुगना ने मुस्कुराते हुए औंधे मुंह पड़ी लाली से कहा

"जा तारे नू जौनपुर… तोरा के बरियार(ताकतवर) कर देत बानी सोनूवा से हार मत मनीहे"

लाली का चेहरा सुगना से दूर था उसने बड़ी मुश्किल से अपनी गर्दन घुमाई फिर भी वह सुगना का चेहरा ना देख पाई जो उसके पैरों पर बैठी उसकी जांघों पर मालिश कर रही थी फिर भी लाली ने कहा…

"बड़ा तैयारी करावत बाड़े कुछ बात बा जरूर ….बतावत काहे नईखे?"

सुगना सुगना एक बार फिर निरुत्तर हुई परंतु अभी तो मामला गरम था सुगना ने उबटन उसके लाली के नितंबों के बीचो बीच उस गहरी घाटी में लगाते हुए बोला..

" जो अबकी सोनू छोड़ी ना…इतना चिकना दे तानी आगे से थक जयबे तो एकरो के मैदान में उतार दीहे।"

सुगना आज सचमुच नटखट होकर लाली को उकसा रही थी उसे पता था लाली राजेश के साथ अपने अगले और पिछले दोनों गलियों का आनंद ले चुकी थी… परंतु सोनू वह तो अभी सामने की दुनिया में ही खोया हुआ था..

सुगना की उत्तेजक बातें सुनकर लाली गर्म हो रही थी। मन में उत्तेजना होने पर स्पर्श और मालिश का सुख दुगना हो जाता है । लाली सुगना के उबटन लगाए जाने से खुश थी और उसका भरपूर आनंद ले रही थी।


नियति सुगना को अपने भाई सोनू के पुरूषत्व को बचाने के लिए अपनी सहेली लाली को तैयार करते हुए देख रही थी.. सच सुगना का प्यार निराला था।

लाली के बदन पर उबटन लगाते लगाते सुगना की आंखों के सामने वही दृश्य घूमने लगे जब सोनू लाली को चोद रहा था। जितना ही सुगना सोचती उतना ही स्वयं भी वासना के घेरे में घिरती।

लाली की पीठ और जांघों के पिछले भाग पर उबटन लगाने के बाद अब बारी लाली को पीठ के बल लिटा दिया और एक बार फिर उसके पैरों पर सामने की तरफ से उबटन लगाने लगी।


जब एक बार उबटन शरीर पर लग गया तो उसे छूड़ाने के लिए उस सुगना को मेहनत करनी ही थी। उसने दिल खोलकर लाली के शरीर पर लगे उबटन से रगड़ रगड़ कर मालिश करतीं रही। लाली सुगना की मालिश से अभिभूत होती रही।

बीच-बीच में दोनों सहेलियां एक दूसरे को छेड़तीं.. उत्तेजना सिर्फ लाली में न थी अपितु लाली के बदन को मसलते मसलते सुगना स्वयं उत्तेजना के आगोश में आ चुकी थी। पूरे शरीर में जहां तहां उबटन लग चुका और जैसे ही लाली के बदन से उबटन अलग हुआ… लाली ने सुगना को उसी बिस्तर पर लिटा दिया जिस पर वह अब से कुछ देर पहले लाली की मालिश कर रही थी…

" ई का करत बाड़े " सुगना ने लाली की पकड़ से छूटने की कोशिश की और खिलखिलाते हुए बोली

लाली ने कहा

" इतना सारा उबटन बाचल बा ले आओ तोहरो के लगा दी"

सुगना ना ना करती रही..


"ना ना मत कर" लाली ने सुगना के पेट और पैरों पर उबटन लपेट दिया और एक बार फिर वही दौर चल पड़ा बस स्थितियां बदल चुकी थी. लाली सुगना के पैरों पर बैठी सुगना की जांघों की मालिश कर रही थी और सुगना इस अप्रत्याशित स्थिति से बचने का प्रयास करने कर रही थी।

परंतु अब यह संभव न था नियति लाली और सुगना के बीच का प्यार देख रही थी… सोनू की दोनों बहने जाने अनजाने एक दूसरे को सोनू के लिए तैयार कर रही थीं


नियति सोनू के भाग्य पर रश्क कर रही थी। क्या होने वाला था? सोनू के पुरुषत्व को बचाने के लिए जौनपुर के अखाड़े में किसे कूदना था लाली को या सुगना को या दोनों बहने एक साथ मैदान में उतरने की तैयारी में थी…

उधर सोनू अपने हथियार को अपने हाथ में लिए उसे सब्र करने को समझा रहा था…और अपने इष्ट से लगातार मिन्नते कर रहा था …सुगना को पाने के लिए उसकी उसकी मांगे कुछ उचित थी कुछ अनुचित…. ईश्वर स्वयं उसकी अधीरता से तंग आ चुके थे और आखिरकार……

शेष अगले भाग में
एक तरफ मोनी आश्रम में प्रशिक्षण ले रही हैं दूसरी तरफ सुगना और लाली जौनपुर अखाड़े मैं महा धमाका की तैयारियां कर रही हैं।
लेखक महोदय की लेखनी बहुत ही उत्कृष्ट हैं, जो पाठकों को निश्चित ही कहानी से जोड़े रखने में सफल रही हैं।
हर अपडेट के बाद से अगले अपडेट का इन्तजार जब यह कहानी चल रही थी तब, पाठकों के लिए बहुत मुश्किल रहा होगा।
 
Top