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Incest आह..तनी धीरे से.....दुखाता.

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Lovely Anand

Love is life
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आह ....तनी धीरे से ...दुखाता
(Exclysively for Xforum)
यह उपन्यास एक ग्रामीण युवती सुगना के जीवन के बारे में है जोअपने परिवार में पनप रहे कामुक संबंधों को रोकना तो दूर उसमें शामिल होती गई। नियति के रचे इस खेल में सुगना अपने परिवार में ही कामुक और अनुचित संबंधों को बढ़ावा देती रही, उसकी क्या मजबूरी थी? क्या उसके कदम अनुचित थे? क्या वह गलत थी? यह प्रश्न पाठक उपन्यास को पढ़कर ही बता सकते हैं। उपन्यास की शुरुआत में तत्कालीन पाठकों की रुचि को ध्यान में रखते हुए सेक्स को प्रधानता दी गई है जो समय के साथ न्यायोचित तरीके से कथानक की मांग के अनुसार दर्शाया गया है।

इस उपन्यास में इंसेस्ट एक संयोग है।
अनुक्रमणिका
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भाग 126 (मध्यांतर)
 
Last edited:

Napster

Well-Known Member
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भाग 114

अगली सुबह सुगना और सोनू को जौनपुर जाना था…

सुगना, सोनू और जौनपुर का वह घर जिसे सुगना को स्वयं अपने हाथों से सजाना था…. नियति अपनी व्यूह रचना में लग गई…

अजब विडंबना थी। सोनू अपने इष्ट से सुगना को मांग रहा था और लाली सोनू को और सबकी प्यारी सुगना को और कुछ नहीं चाहिए था सिर्फ वह सोनू के पुरुषत्व को जीवंत रखना चाहती थी। यह बात वह भूल चुकी थी की डॉक्टर ने उसके स्वयं के जननांगों की उपयोगिता बनाए रखने के लिए उसे भी भरपूर संभोग करने की नसीहत दी थी परंतु सुगना का ध्यान उस ओर न जा रहा था परंतु कोई तो था जो सुगना के स्त्रीत्व की रक्षा करने के लिए उतना ही उतावला था जितना सुगना स्वयं…


अब आगे..

सुगना के बिस्तर पर लेटा हुआ सोनू आने वाले दिनों के बारे में सोच रहा था। सुगना ने सोनू को नसीहत दे रखी थी कि दरवाजा बंद मत करना शायद इसलिए कि वह आवश्यकता पड़ने पर कोई सामान उस कमरे से ले सके और शायद इसलिए भी की कहीं सोनू उत्तेजित होकर हस्तमैथुन न कर बैठे….

कल सुगना ने जौनपुर साथ जाने की बात कह कर उसका मुंह बंद कर दिया था। उस वक्त तो वह सिर्फ सुगना को छेड़ रहा था परंतु अब वह स्वयं यह नहीं चाह रहा था कि सुगना उसके साथ जौनपुर जाए । कारण स्पष्ट था सोनू तो वो 7 दिन सुगना के साथ बिताना चाहता था जिन दिनों में उसे न सिर्फ अपने पुरुषत्व को बचाना था अपितु सुगना की उस सकरी और सुनहरी गली को भी जीवंत और खुशहाल बनाना था जिसे एबॉर्शन के दौरान डाक्टर ने अपने औजार डॉक्टर ने घायल कर दिया था।

थके होने के बावजूद नींद उसकी आंखों से दूर थी। जौनपुर का घर अभी सुगना के रहने लायक न था वह उसे ले जाकर और परेशान कतई नहीं करना चाहता था। सोनू ने निश्चय कर लिया कि वह सुगना को जौनपुर लेकर अभी कतई नहीं जाएगा। पर उन 7 दिनों का क्या..

सुगना की बात उसके दिमाग में गूंजने लगी जो उसने रेडिएंट होटल के उस कमरे में कही थी जब वह बाथरूम के अंदर छुपा हुआ था..

"सोनू के भी बता दीहे…अभी ते भी तीन चार दिन ओकरा से दूर ही रहिए… अगला हफ्ता ते सोनू संगे जौनपुर चल जाइहे ओहिजे मन भर अपन साध बुता लिए और ओकरो। लेकिन भगवान के खातिर ई हफ्ता छोड़ दे"

सोनू परेशान हो रहा था। सोनू यह बात जान चुका था की लाली का इंतजार अब चरम पर है। लाली सचमुच बेकरार हो चुकी थी जिस युवती ने किशोर सोनू की वासना को पाल पोसकर आज उफान तक पहुंचाया था उसे उस वासना का सुख लेने का हक भी था और इंतजार भी। लाली उन 7 दिनों के इंतजार में अपनी आज की रात नहीं गवाना चाह रही थी परंतु आज भी सुगना ने उसे और सोनू को अलग कर दिया था।


लाली की मनोस्थिति को ध्यान में रख आखिरकार सोनू ने अपने मन में निश्चय कर लिया फिलहाल तो वह सुगना दीदी को जौनपुर नहीं ले जाएगा…और लाली को आहत नहीं करेगा..

उधर सुनना लाली की जांघों के बीच चिपचिपापान देखकर दुखी हो गई । यह दुख उसे लाली के प्रति सहानुभूति के कारण हो रहा था। सच में वह बेचारी कई दिनों से सोनू की राह देख रही थी परंतु उसके कारण वह सोनू से संभोग सुख नहीं प्राप्त कर पा रही थी।

जांघों के बीच छुपी वह छुपी बुर की तड़प सुगना बखूबी समझती थी। जिस प्रकार भूख लगने पर मुंह और जीभ में एक अजब सी तड़प उत्पन्न होती है वही हाल सुगना और लाली की बुर का था। सुगना तो सरयू सिंह से अलग होने के बाद संयम सीख चुकी थी और अपने पति रतन द्वारा कई बार चोदे जाने के बावजूद स्खलन सुख को प्राप्त करने में असफल रही थी। उसकी वासना पर ग्रहण लगा हुआ था और धीरे धीरे उसने संयम सीख लिया था परंतु पिछले कुछ माह से सुगना को मनोस्थिति बदल रही थी…लाली और सोनू का मिलन साक्षात देखने के बाद …..सुगना और सोनू के बीच कुछ बदल चुका था…भाई बहन के श्वेत निर्मल प्यार पर वासना की लालिमा आ गई थी…जो धीरे धीरे अपना रंग और गहरा रही थी।

परंतु लाली उसे तो यह सुख लगातार मिल रहा था और वह भी सोनू जैसे युवा मर्द का। उसके लिए सोनू से यह विछोह कष्टकारी हो चला था।

न जाने सुगना को क्या सूझा उसने नीचे खिसक कर लाली की तनी हुई चूचियों को अपने होठों से पकड़ने की कोशिश की। सुगना नाइटी के ऊपर से भी लाली के तने हुए निप्पलों को पकड़ने में कामयाब रही। अपने होंठो का दबाव देकर उसने लाली को खिलखिलाने पर मजबूर कर दिया। लाली का गुस्सा एक पल में ही काफूर हो गया और उसने अपनी सहेली के सर पर हाथ लेकर उसे अपनी चुचियों में और जोर से सटा लिया।


"ए सुगना मत कर… एक तो पहले ही से बेचैन बानी और तें आग लगावत बाड़े"

सुगना ने लाली के निप्पलों को एक पल के लिए छोड़ा और अपनी ठुड्डी लाली की चूचियों से रगड़ते हुए अपने चेहरे को ऊपर उठाया और लाली का चेहरा देखते हुए बोली

"अब जब आग लागीए गईल बा तब पानी डाल ही के परी" यह कहते हुए सुगना ने अपनी हथेली से लाली की बुर को घेर लिया।

लाली ने अपने दांतो से अपने निचले होंठ को पकड़ने की कोशिश की और कराहती हुई बोली

"ई आग पानी डलला से ना निकलला से बुताई"

सच ही था लाली की आग बिना स्खलित हुए नहीं बुझनी थी।

लाली की बुर ज्यादा कोमल थी या सुगना की उंगलियां यह कहना कठिन है परंतु लाली की बुर से रिस रहा प्रेम रस उन दोनों की दूरी को और भी कम कर गया। सुगना का मुलायम कोमल हाथ लाली की बुर पर फिसलने लगा।

लाली और सुगना आज तक कई बार एक दूसरे के करीब आई थी परंतु आज सुगना अपने अपराध भाव से ग्रस्त होकर लाली के जितने करीब आ रही थी यह अलग था। किसी औरत के इतना करीब सुगना पहले सिर्फ अपनी सास कजरी के पास आई थी वह भी एक तरफा। उसे कजरी के स्त्री शरीर से कोई सरोकार न था परंतु जो खजाना वह अपने भीतर छुपाई हुई थी उसने कजरी को स्वयं उसके पास आने पर मजबूर कर दिया था। और आखिरकार सुगना की वासना को पुष्पित पल्लवित और प्रज्वलित करने में जितना योगदान सरयू सिंह ने दिया था उतना ही कजरी ने।

सुगना की हथेलियों का दबाव लाली की बुर और होठों का दबाव निप्पल पर बढ़ रहा था। कुछ ही पलों में लाली की बुर द्वारा छोड़ा गया रस उसकी जांघों के बीच फैल रहा था। सुगना की उंगलियां लाली की बुर के अगल-बगल चहल कदमी करने लगी।


कभी सुगना अपनी उंगलियों से लाली की बुर् के होठों को फैलाती कभी उस खूबसूरत दाने अपनी तर्जनी और अंगूठे के बीच लेकर को मसल देती जो अब फूल कर कुप्पा हो और चला था।

न जाने उस छोटे से मटर के दाने में इतना इतनी संवेदना कहां से भर जाती। उसके स्पर्श मात्र से लाली चिहूंक उठती। लाली कभी अपनी बुर की फांकों को सिकोड़ती कभी उन्हें फैलाती परंतु सुगना उसे फैलाने पर उतारू थी। वह अपनी उंगलियां लाली की बुर के भीतर ले जाने की कोशिश करने लगी।

सुगना की हथेली पूरी तरह लाली के प्रेम रस से भीग चुकी थी। ऊपर सुगना के होठ लाली की चूचियों को घेरने की कोशिश कर रहे थे। सुगना की आतुरता लाली को उत्तेजित कर रही थी। लाली ने स्वयं अपनी फ्रंट ओपन नाइटी के बटन खोल दिए और अपनी चूचियां सुगना के चेहरे पर रगड़ने लगी। सुगना लाली की आतुरता समझ रही थी और उसकी उत्तेजना को अंजाम तक पहुंचाने की पुरजोर कोशिश कर रही थी तभी लाली में कहा

" ते सोनूवा के काहे रोकले हा ?"


सुगना को कोई उत्तर न सोच रहा था वह इस प्रश्न का सही उत्तर देकर सोनू की नसबंदी की बात को उजागर नहीं करना चाह रही थी। जब सुगना निरुत्तर हुई उसने लाली के निप्पलों को अपने मुंह में भर कर अपनी जीभ से सहलाने लगी। और लाली एक बार फिर कराह उठी ..

"बताऊ ना सुगना?" लाली अपनी उत्तेजना के चरम पर भी अपने प्रश्न का उत्तर जानना चाह रही थी जो उसे आज दिन भर से खाए जा रहा था।

पर अब तक सुगना उत्तर खोज चुकी थी..

"अगला हफ्ता जइबे नू जौनपुर..? पुत्र के हमरा पास छोड़ दीहे और सोनूआ के दिन भर अपना संगे सुताईले रहीहे। अपनो साध बुता लिहे और ओकरो.."

सुगना की बात में अभी भी लाली के प्रश्न का उत्तर न था परंतु जो सुगना ने कहा था वह लाली की कल्पना को नया आयाम दे गया था सोनू के घर में बिना किसी अवरोध के…… दिन रात सोनू के संग रंगरेलियां मनाने की कल्पना मात्र से वह प्रसन्न हो गई थी और सुगना की उंगलियों के बीच खेल रही उसकी बूर अपना रस स्खलित करने को तैयार थी।


जैसे ही सुगना ने उसकी बुर के भगनासे को सहलाया लाली ने अपनी जांघें सी कोड ली और सुगना की उंगलियों को पूरी मजबूती से अपने भीतर दबाने लगी बुर के कंपन सुगना की उंगलियां महसूस कर पा रही थी लाली हाफ रही थी और स्खलित हो रही थी।

पूर्ण तृप्त होने के पश्चात उसके जांघों की पकड़ ढीली हुई और सुगना के होठों ने लाली की चूची को अंतिम बार चुमा और सुगना सरक पर ऊपर आ गई…

कुछ पलों बाद लाली को एहसास हुआ कि अब से कुछ देर पहले वह जिस सुख को अपनी सहेली की उंगलियों से प्राप्त कर रही थी उसकी दरकार शायद उसकी सहेली सुगना को भी हो। लाली ने सुगना की चूचियों पर हाथ फेरने की कोशिश की परंतु सुगना ने रोक दिया। वह उसके हाथों को हटाकर अपनी पीठ पर ले आई और उसे आलिंगन में लेते हुए सोने की चेष्टा करने लगी सुगना ने बड़ी शालीनता और सादगी से अपनी उत्तेजना को लाली की निगाहों में आने से बचा लिया परंतु नियति सुगना की मनोदशा समझ रही थी और अपने ताने बाने बुनने में लगी हुई थी….

आज का दिन सोनी और विकास के लिए बेहद खास था जिस प्रेम संबंध को वह दोनों पिछले एक-दो वर्षों से निभा रहे थे आज उसे सामाजिक मान्यता मिल चुकी थी सुगना भी बेहद प्रसन्न थी। दीपावली की उस काली रात के बाद सुगना का अपने इष्ट पर से विश्वास डगमगा गया था सोनू द्वारा की गई हरकत उसे आहत कर गई थी। उस पर से मोनी का गायब होना… निश्चित ही किसी अनिष्ट का संकेत दे रहा था परंतु धीरे-धीरे स्थिति सामान्य हो रही थी और विकास तथा सोनी के रिश्ते में बंध जाने के बाद सुगना प्रसन्न थी। खुशी के सुगना कब चेहरे पर वापस वही रंगत ला दी थी जिसे देखने के लिए पूरा परिवार और विशेषकर सोनू अधीर था।

लाली को तृप्त करने के बाद सुगना को ध्यान आया कही सोनू हस्तमैथुन न कर रहा हो। आज वैसे भी वह दो दो बार लाली से संभोग करने से चूक गया था। सुगना उठी और अपने कमरे में दबे पांव आई। उसके आदेशानुसार कमरे का दरवाजा खुला हुआ था और सोनू गहरी नींद में सो रहा था। सुगना खुश हो गई और वापस लाली के पास आकर निश्चिंत हो कर सो गई।




सुबह-सुबह सुगना चाय लेकर सोनू को जगाने गई .. सोनू नींद में था उसके दोनों पैर खुले हुए थे और लूंगी हटकर उसकी नग्न पुष्ट जांघों को उजागर कर रही थी.। सुगना उसकी लूंगी के पीछे छुपे उसके हथियार को देखने लगी …जो अंडरवियर में कैद होने के बावजूद अपने अस्तित्व का एहसास बखूबी करा रहा था। सुगना सोनू की नसबंदी की बात सोचने लगी। आखिर सोनू ने यह क्या कर दिया था? क्या सचमुच वह विवाह नहीं करेगा…

शायद इसे संयोग कहें या सुगना के बदन की मादक खुशबू सोनू ने एक गहरी सांस लिए और सोनू की पलकें खुली और अपनी बड़ी बहन सुगना के फूल से खिले चेहरे को देखकर सोनू का दिन बन गया वह झटपट उठकर बिस्तर पर बैठ गया और बोला..

"अरे दीदी बड़ा जल्दी उठ गईलू"

सुगना ने चाय बिस्तर पर रखी और बोली..

"देख …7:00 बज गईल बा जल्दी कहां बा अभी जौनपुर जाए के तैयारी भी तो करे के बा"

सुगना ने आगे बढ़कर खिड़की पर से पर्दा हटा दिया अचानक कमरे में रोशनी हो गई सोनू ने अपनी पलकें मीचीं और और सुगना के दमकते चेहरे को देखने लगा जो सूरज की रोशनी पढ़ने से और भी चमक रहा था…सुगना की काली काली लटें के गोरे-गोरे गालों को चूमने का प्रयास करतीं। उन पर पड़ रही रोशनी उन लटों को और खूबसूरत बना रही थी..

चाय की चुस्कियां लेते हुए सोनू ने कहा..

"दीदी हम सोचत बानी कि सामान बनारस से ही खरीदल जाऊ ओहिजा बढ़िया पलंग वलंग का जाने मिली कि ना..?"


सुगना ने सोनू की बात को संजीदगी से लिया निश्चित ही बनारस में उत्तम कोटि का सामान मिल सकता था। सुगना ने उसकी सुगना ने उसकी बात का समर्थन करते हुए कहा

" ठीक कहत बाड़े लाली के उठे दे ऊ दू तीन गो दुकान देख ले बिया ओकरे के लेकर चलेके अच्छा रही"

"हां दीदी इहे ठीक रही। जब सामान पहुंच जाई हम कमरा में लगवा देब तब तू तीन चार दिन बाद आ जाईह….तब बाकी छोट मोट और रसोई के सामान ठीक कर दीह"


तीन चार दिनों की बात सुनकर सुगना सहम गई। तीन चार दिनों बाद तो सोनू को अनवरत संभोग करना था उस समय वहां सुगना का क्या काम था… सुगना ने तपाक से कहा

"कोई बात ना वो समय लाली जौनपुर चल जाए हम फिर कभी आ जाएब_

"ना दीदी तू भी चलतू तो अच्छा रहित हम चाहत बानी की घर में गृह प्रवेश तोहरा से ही होइत "

सोनू सुगना को लेकर भावुक था। वह अपनी बड़ी बहन को अपने नए घर में सर्वप्रथम आमंत्रित करना चाहता था। वह लाली का अनादर कतई नहीं करना चाहता था पर सुगना सुगना थी उसकी आदर्श …उसकी मार्गदर्शक… हमेशा उसका ख्याल रखने वाली और अब उसका सब कुछ..

सुगना ने सुगना ने सोनू के चेहरे पर आज वही मासूमियत देखी जो दीपावली की उस रात से पहले उसे दिखाई पड़ती थी। वह उसके पास आई और बोली ₹तोहार घर हमेशा तोहरा खातिर शुभ रही.. हम हमेशा तोहारा साथ बानी…अब जो जल्दी तैयार हो जो "

जब तक लाली उठती सोनू और सुगना आगे की रणनीति बना चुके थे..


लाली के जौनपुर जाने का खतरा अब न था सो सुगना भी संतुष्ट हो चुकी थी वैसे भी अभी उसके जौनपुर जाने का कोई औचित्य न था वहां पर किसी की यदि जरूरत थी तो वह थी लाली वह भी ४ दिनों बाद।

बाजार खुलते ही सोनू सुगना और लाली फर्नीचर शोरूम में पहुंच चुके थे एसडीएम बनने के बाद पैसों की तंगी लगभग खत्म हो चुकी थी ..

बड़े से फर्नीचर शोरूम में तरह-तरह के डबल बेड लगे हुए थे लाली तो पहले भी कई बार ऐसे शोरूम में आ चुकी थी यद्यपि उस समय उसकी हैसियत न थी कि वह ऐसे पलंग खरीद पाती पाती परंतु उसका स्वर्गीय पति राजेश इन मामलों में अपनी हैसियत से एक दो कदम आगे की सोचता था वह लाली को कई बार ऐसे फर्नीचर शोरूम मे ला चुका था वह उसकी पसंद की चीजें तो नहीं पर छुटपुट चीजें खरीद कर उसको मना लेता और घर पहुंच कर उसकी खुशियों का भरपूर फायदा उठाता और मन भर चूदाई करता।

सोनू ने सुगना और लाली को पलंग पसंद करने की खुली छूट दे दी। सुगना पलंग की खूबसूरती देख देख कर मोहित हुई जा रही थी अचानक उसे अपना पलंग और अपना फर्नीचर बेहद कमतर प्रतीत होने लगा फिर भी उसने अपने मन के भाव को अपने चेहरे पर ना आने दिया और अपने प्यारे सोनू के लिए पलंग पसंद करने लगी…

सुगना और लाली की पसंद अलग अलग थी और यह स्वाभाविक भी था। दोनों ही पलंग बेहद खूबसूरत थे। भरे भरे डनलप के गद्दे साथ में खूबसूरत सिरहाना बिस्तर की खूबसूरती मन मोहने वाली थी और उन सभी युवतियों के मन को गुदगुदाने वाली थी जिनकी जांघों के बीच पल रही खूबसूरत रानी या तो जवान हो चुकी थी या किशोरावस्था के मादक दौर से गुजर रही थी और यहां तो सुगना और लाली जवानी की पराकाष्ठा पर थी।

डबल बेड के साथ खूबसूरत श्रृंगारदान भी था यद्यपि सोनू के लिए श्रृंगारदान का कोई महत्व न था परंतु वह डबल बेड के साथ ही उपलब्ध था।

सुगना एक पल के लिए एक पल के लिए सोनू और उसकी होने वाली पत्नी के बारे में सोचने लगी क्या भगवान ने सोनू के लिए भी किसी की रचना की होगी.. क्या उसका भाई जीवन भर सच में अविवाहित रहेगा ? क्या लाली और सोनू इसी तरह जीवन में गुपचुप मिलते रहेंगे सुगना अपनी सोच में डूब गए तभी


साथ आए सूरज ने कहा सूरज ने कहा

"मामा ई वाला मां के पसंद बा और ऊ वाला लाली मौसी के बतावा कौन लेबा"

सोनू ने अपनी दोनों बहनों के चेहरे के भाव पढ़ने की कोशिश की जैसे वह उन दोनों में से कोई एक चुनना चाह रहा हो। सुगना सुगना थी वह कभी भी सोनू को धर्म संकट में नहीं डालना चाहती थी अचानक उसने कहा

"ई वाला छोड़ दे लाली वाला ज्यादा ठीक लागा ता। ओकरे के लेले…_" आखिर जिसे उस बिस्तर पर चुदना था पसंद उसकी ही होनी चाहिए।

पर सोनू सुगना को बखूबी जानता था। सुगना हमेशा से अपनों के लिए अपनी पसंद का त्याग करती आई थी।

सोनू ने उस बात को वहीं विराम दिया और दोनों बहनों को आगे ले जाकर एक खूबसूरत सोफासेट दिखाकर उनकी राय मांगी और दोनों एक सुर में बोल उठी

"अरे इतना सुंदर बा इकरे के लेले" और इस प्रकार लगभग सभी मुख्य सामान पर सभी की आम राय हो गई। सोनू ने दुकान के मालिक से मिलकर जरूरी दिशा निर्देश दिए और जौनपुर में सामान की डिलीवरी सुनिश्चित कर अपने परिवार के साथ बाहर आ गया..

लाली और सुगना के लिए कुछ और जरूरी साजो सामग्री खरीदने के पश्चात सोनू अपनी दोनों बहनों के साथ घर आ गया और अब उसकी विदाई का वक्त करीब था। सोनू जौनपुर के लिए निकलने वाला था अब जो परिस्थितियां बनी थी उसके अनुसार लाली को तीन चार दिनों बाद ही जौनपुर जाना था। खैर जैसे लाली ने इतने दिनों तक इंतजार किया था 3 दिन और इंतजार कर सकती थी।

विदा होने से पहले सोनू को सुगना ने अपने कमरे में बुलाया और अपना चेहरा झुकाए हुए बोली..

"सोनू एक बात ध्यान राखिहे…अभी तीन-चार दिन तक ऊ कुल गलत काम मत करिहे…"

सोनू सुगना के मुंह से यह बात सुनने के लिए पिछले कुछ दिनों से तरस रहा था उसे बार-बार यही लगता कि आखिर डॉक्टर की नसीहत को सुगना दीदी ने उसे क्यों नहीं बताया।

फिर भी सोनू ने अनजान बनते हुए कहा

"कौन काम?"

सुगना शर्म से पानी पानी हो रही थी अपने ही भाई से हस्तमैथुन की बात करना उसे शर्मसार कर रहा था परंतु वह बार-बार इस बात को लेकर परेशान हो रही थी कि यदि उसने डॉक्टर का संदेश सोनू को ना पहुंचाया तो वह कहीं हस्तमैथुन कर को खुद को खतरे में ना डाल ले। अब तक तो वह लाली को उससे दूर किए हुए थी..पर एकांत वासना ग्रस्त इंसान को हस्तमैथुन की तरफ प्रेरित करता है सुगना यह बात बखूबी जानती थी।

सोनू अब भी सुगना के उत्तर का इंतजार कर रहा था "बताओ ना दीदी कौन काम?" सोनू ने अनजान बनते हुए सुगना से दोबारा पूछा

"ऊ जौन तू अस्पताल में करौले बाड़ ओकरा बाद सप्ताह भर तक ओकरा के हाथ नैईखे लगावे के…ऊ कुल काम बिल्कुल मत करिहा जवन कॉलेज वाला लाइका सब करेला….. बाकी जब लाली आई अपन ही सब बता दी …"

सुगना ने अपनी बात अपनी मर्यादा में रहकर कर तो दी और सोनू उसे बखूबी समझ भी गया था परंतु सोनू के चेहरे पर मुस्कुराहट देखकर सुगना घबरा गई उसे लगा जैसे सोनू उससे इस बारे में और भी सवाल जवाब करेगा जिसका उत्तर देने के लिए सुगना कतई तैयार न थी। वह कमरे से निकलकर बाहर आने लगी तभी सोनू ने उसकी कलाई पकड़ ली और बोला…

" दीदी हम तोहार सब बात जिंदगी भर मानब लेकिन हमरा के माफ कर दीहा …तू सचमुच हमार बहुत ख्याल रखे लू…"

सुगना की आंखों में खुशी की चमक थी उसने अपनी बात सोनू तक बखूबी पहुंचा दी थी… और सोनू ने उसे स्वीकार भी कर लिया था आधी लड़ाई सुगना जीत चुकी थी।

अपने परिवार के सभी सदस्यों को यथोचित दुलार प्यार करने के बाद सोनू अलग हुआ और जाते-जाते लाली को अपने आलिंगन में भरकर उसकी आग को एक बार फिर भड़का गया और कान में बोला दीदी हम तोहार इंतजार करब…लाली प्रसन्न हो गई।

सोनू के दोनों हाथों में लड्डू थे…. और पेट में जबरदस्त भूख पर जिस लड्डू को वह पहले खाना चाहता था वह अभी भी उससे दूर था और दूसरा मुंह में जाने को बेताब…

नियति अपनी चाल चल रही थी…वह सोनू की वह सोनू की इच्छा पूरी करने को आमादा थी…

जौनपुर में होने वाले प्रेमयुद्ध का अखाड़ा ट्रक पर लोड हो चुका था और धीरे धीरे सोनू के नए बंगले की तरफ कूच कर रहा था….


शेष अगले भाग में..
बहुत ही सुंदर लाजवाब और अद्भुत रमणिय अपडेट है भाई मजा आ गया
 

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भाग 114

अगली सुबह सुगना और सोनू को जौनपुर जाना था…

सुगना, सोनू और जौनपुर का वह घर जिसे सुगना को स्वयं अपने हाथों से सजाना था…. नियति अपनी व्यूह रचना में लग गई…

अजब विडंबना थी। सोनू अपने इष्ट से सुगना को मांग रहा था और लाली सोनू को और सबकी प्यारी सुगना को और कुछ नहीं चाहिए था सिर्फ वह सोनू के पुरुषत्व को जीवंत रखना चाहती थी। यह बात वह भूल चुकी थी की डॉक्टर ने उसके स्वयं के जननांगों की उपयोगिता बनाए रखने के लिए उसे भी भरपूर संभोग करने की नसीहत दी थी परंतु सुगना का ध्यान उस ओर न जा रहा था परंतु कोई तो था जो सुगना के स्त्रीत्व की रक्षा करने के लिए उतना ही उतावला था जितना सुगना स्वयं…


अब आगे..

सुगना के बिस्तर पर लेटा हुआ सोनू आने वाले दिनों के बारे में सोच रहा था। सुगना ने सोनू को नसीहत दे रखी थी कि दरवाजा बंद मत करना शायद इसलिए कि वह आवश्यकता पड़ने पर कोई सामान उस कमरे से ले सके और शायद इसलिए भी की कहीं सोनू उत्तेजित होकर हस्तमैथुन न कर बैठे….

कल सुगना ने जौनपुर साथ जाने की बात कह कर उसका मुंह बंद कर दिया था। उस वक्त तो वह सिर्फ सुगना को छेड़ रहा था परंतु अब वह स्वयं यह नहीं चाह रहा था कि सुगना उसके साथ जौनपुर जाए । कारण स्पष्ट था सोनू तो वो 7 दिन सुगना के साथ बिताना चाहता था जिन दिनों में उसे न सिर्फ अपने पुरुषत्व को बचाना था अपितु सुगना की उस सकरी और सुनहरी गली को भी जीवंत और खुशहाल बनाना था जिसे एबॉर्शन के दौरान डाक्टर ने अपने औजार डॉक्टर ने घायल कर दिया था।

थके होने के बावजूद नींद उसकी आंखों से दूर थी। जौनपुर का घर अभी सुगना के रहने लायक न था वह उसे ले जाकर और परेशान कतई नहीं करना चाहता था। सोनू ने निश्चय कर लिया कि वह सुगना को जौनपुर लेकर अभी कतई नहीं जाएगा। पर उन 7 दिनों का क्या..

सुगना की बात उसके दिमाग में गूंजने लगी जो उसने रेडिएंट होटल के उस कमरे में कही थी जब वह बाथरूम के अंदर छुपा हुआ था..

"सोनू के भी बता दीहे…अभी ते भी तीन चार दिन ओकरा से दूर ही रहिए… अगला हफ्ता ते सोनू संगे जौनपुर चल जाइहे ओहिजे मन भर अपन साध बुता लिए और ओकरो। लेकिन भगवान के खातिर ई हफ्ता छोड़ दे"

सोनू परेशान हो रहा था। सोनू यह बात जान चुका था की लाली का इंतजार अब चरम पर है। लाली सचमुच बेकरार हो चुकी थी जिस युवती ने किशोर सोनू की वासना को पाल पोसकर आज उफान तक पहुंचाया था उसे उस वासना का सुख लेने का हक भी था और इंतजार भी। लाली उन 7 दिनों के इंतजार में अपनी आज की रात नहीं गवाना चाह रही थी परंतु आज भी सुगना ने उसे और सोनू को अलग कर दिया था।


लाली की मनोस्थिति को ध्यान में रख आखिरकार सोनू ने अपने मन में निश्चय कर लिया फिलहाल तो वह सुगना दीदी को जौनपुर नहीं ले जाएगा…और लाली को आहत नहीं करेगा..

उधर सुनना लाली की जांघों के बीच चिपचिपापान देखकर दुखी हो गई । यह दुख उसे लाली के प्रति सहानुभूति के कारण हो रहा था। सच में वह बेचारी कई दिनों से सोनू की राह देख रही थी परंतु उसके कारण वह सोनू से संभोग सुख नहीं प्राप्त कर पा रही थी।

जांघों के बीच छुपी वह छुपी बुर की तड़प सुगना बखूबी समझती थी। जिस प्रकार भूख लगने पर मुंह और जीभ में एक अजब सी तड़प उत्पन्न होती है वही हाल सुगना और लाली की बुर का था। सुगना तो सरयू सिंह से अलग होने के बाद संयम सीख चुकी थी और अपने पति रतन द्वारा कई बार चोदे जाने के बावजूद स्खलन सुख को प्राप्त करने में असफल रही थी। उसकी वासना पर ग्रहण लगा हुआ था और धीरे धीरे उसने संयम सीख लिया था परंतु पिछले कुछ माह से सुगना को मनोस्थिति बदल रही थी…लाली और सोनू का मिलन साक्षात देखने के बाद …..सुगना और सोनू के बीच कुछ बदल चुका था…भाई बहन के श्वेत निर्मल प्यार पर वासना की लालिमा आ गई थी…जो धीरे धीरे अपना रंग और गहरा रही थी।

परंतु लाली उसे तो यह सुख लगातार मिल रहा था और वह भी सोनू जैसे युवा मर्द का। उसके लिए सोनू से यह विछोह कष्टकारी हो चला था।

न जाने सुगना को क्या सूझा उसने नीचे खिसक कर लाली की तनी हुई चूचियों को अपने होठों से पकड़ने की कोशिश की। सुगना नाइटी के ऊपर से भी लाली के तने हुए निप्पलों को पकड़ने में कामयाब रही। अपने होंठो का दबाव देकर उसने लाली को खिलखिलाने पर मजबूर कर दिया। लाली का गुस्सा एक पल में ही काफूर हो गया और उसने अपनी सहेली के सर पर हाथ लेकर उसे अपनी चुचियों में और जोर से सटा लिया।


"ए सुगना मत कर… एक तो पहले ही से बेचैन बानी और तें आग लगावत बाड़े"

सुगना ने लाली के निप्पलों को एक पल के लिए छोड़ा और अपनी ठुड्डी लाली की चूचियों से रगड़ते हुए अपने चेहरे को ऊपर उठाया और लाली का चेहरा देखते हुए बोली

"अब जब आग लागीए गईल बा तब पानी डाल ही के परी" यह कहते हुए सुगना ने अपनी हथेली से लाली की बुर को घेर लिया।

लाली ने अपने दांतो से अपने निचले होंठ को पकड़ने की कोशिश की और कराहती हुई बोली

"ई आग पानी डलला से ना निकलला से बुताई"

सच ही था लाली की आग बिना स्खलित हुए नहीं बुझनी थी।

लाली की बुर ज्यादा कोमल थी या सुगना की उंगलियां यह कहना कठिन है परंतु लाली की बुर से रिस रहा प्रेम रस उन दोनों की दूरी को और भी कम कर गया। सुगना का मुलायम कोमल हाथ लाली की बुर पर फिसलने लगा।

लाली और सुगना आज तक कई बार एक दूसरे के करीब आई थी परंतु आज सुगना अपने अपराध भाव से ग्रस्त होकर लाली के जितने करीब आ रही थी यह अलग था। किसी औरत के इतना करीब सुगना पहले सिर्फ अपनी सास कजरी के पास आई थी वह भी एक तरफा। उसे कजरी के स्त्री शरीर से कोई सरोकार न था परंतु जो खजाना वह अपने भीतर छुपाई हुई थी उसने कजरी को स्वयं उसके पास आने पर मजबूर कर दिया था। और आखिरकार सुगना की वासना को पुष्पित पल्लवित और प्रज्वलित करने में जितना योगदान सरयू सिंह ने दिया था उतना ही कजरी ने।

सुगना की हथेलियों का दबाव लाली की बुर और होठों का दबाव निप्पल पर बढ़ रहा था। कुछ ही पलों में लाली की बुर द्वारा छोड़ा गया रस उसकी जांघों के बीच फैल रहा था। सुगना की उंगलियां लाली की बुर के अगल-बगल चहल कदमी करने लगी।


कभी सुगना अपनी उंगलियों से लाली की बुर् के होठों को फैलाती कभी उस खूबसूरत दाने अपनी तर्जनी और अंगूठे के बीच लेकर को मसल देती जो अब फूल कर कुप्पा हो और चला था।

न जाने उस छोटे से मटर के दाने में इतना इतनी संवेदना कहां से भर जाती। उसके स्पर्श मात्र से लाली चिहूंक उठती। लाली कभी अपनी बुर की फांकों को सिकोड़ती कभी उन्हें फैलाती परंतु सुगना उसे फैलाने पर उतारू थी। वह अपनी उंगलियां लाली की बुर के भीतर ले जाने की कोशिश करने लगी।

सुगना की हथेली पूरी तरह लाली के प्रेम रस से भीग चुकी थी। ऊपर सुगना के होठ लाली की चूचियों को घेरने की कोशिश कर रहे थे। सुगना की आतुरता लाली को उत्तेजित कर रही थी। लाली ने स्वयं अपनी फ्रंट ओपन नाइटी के बटन खोल दिए और अपनी चूचियां सुगना के चेहरे पर रगड़ने लगी। सुगना लाली की आतुरता समझ रही थी और उसकी उत्तेजना को अंजाम तक पहुंचाने की पुरजोर कोशिश कर रही थी तभी लाली में कहा

" ते सोनूवा के काहे रोकले हा ?"


सुगना को कोई उत्तर न सोच रहा था वह इस प्रश्न का सही उत्तर देकर सोनू की नसबंदी की बात को उजागर नहीं करना चाह रही थी। जब सुगना निरुत्तर हुई उसने लाली के निप्पलों को अपने मुंह में भर कर अपनी जीभ से सहलाने लगी। और लाली एक बार फिर कराह उठी ..

"बताऊ ना सुगना?" लाली अपनी उत्तेजना के चरम पर भी अपने प्रश्न का उत्तर जानना चाह रही थी जो उसे आज दिन भर से खाए जा रहा था।

पर अब तक सुगना उत्तर खोज चुकी थी..

"अगला हफ्ता जइबे नू जौनपुर..? पुत्र के हमरा पास छोड़ दीहे और सोनूआ के दिन भर अपना संगे सुताईले रहीहे। अपनो साध बुता लिहे और ओकरो.."

सुगना की बात में अभी भी लाली के प्रश्न का उत्तर न था परंतु जो सुगना ने कहा था वह लाली की कल्पना को नया आयाम दे गया था सोनू के घर में बिना किसी अवरोध के…… दिन रात सोनू के संग रंगरेलियां मनाने की कल्पना मात्र से वह प्रसन्न हो गई थी और सुगना की उंगलियों के बीच खेल रही उसकी बूर अपना रस स्खलित करने को तैयार थी।


जैसे ही सुगना ने उसकी बुर के भगनासे को सहलाया लाली ने अपनी जांघें सी कोड ली और सुगना की उंगलियों को पूरी मजबूती से अपने भीतर दबाने लगी बुर के कंपन सुगना की उंगलियां महसूस कर पा रही थी लाली हाफ रही थी और स्खलित हो रही थी।

पूर्ण तृप्त होने के पश्चात उसके जांघों की पकड़ ढीली हुई और सुगना के होठों ने लाली की चूची को अंतिम बार चुमा और सुगना सरक पर ऊपर आ गई…

कुछ पलों बाद लाली को एहसास हुआ कि अब से कुछ देर पहले वह जिस सुख को अपनी सहेली की उंगलियों से प्राप्त कर रही थी उसकी दरकार शायद उसकी सहेली सुगना को भी हो। लाली ने सुगना की चूचियों पर हाथ फेरने की कोशिश की परंतु सुगना ने रोक दिया। वह उसके हाथों को हटाकर अपनी पीठ पर ले आई और उसे आलिंगन में लेते हुए सोने की चेष्टा करने लगी सुगना ने बड़ी शालीनता और सादगी से अपनी उत्तेजना को लाली की निगाहों में आने से बचा लिया परंतु नियति सुगना की मनोदशा समझ रही थी और अपने ताने बाने बुनने में लगी हुई थी….

आज का दिन सोनी और विकास के लिए बेहद खास था जिस प्रेम संबंध को वह दोनों पिछले एक-दो वर्षों से निभा रहे थे आज उसे सामाजिक मान्यता मिल चुकी थी सुगना भी बेहद प्रसन्न थी। दीपावली की उस काली रात के बाद सुगना का अपने इष्ट पर से विश्वास डगमगा गया था सोनू द्वारा की गई हरकत उसे आहत कर गई थी। उस पर से मोनी का गायब होना… निश्चित ही किसी अनिष्ट का संकेत दे रहा था परंतु धीरे-धीरे स्थिति सामान्य हो रही थी और विकास तथा सोनी के रिश्ते में बंध जाने के बाद सुगना प्रसन्न थी। खुशी के सुगना कब चेहरे पर वापस वही रंगत ला दी थी जिसे देखने के लिए पूरा परिवार और विशेषकर सोनू अधीर था।

लाली को तृप्त करने के बाद सुगना को ध्यान आया कही सोनू हस्तमैथुन न कर रहा हो। आज वैसे भी वह दो दो बार लाली से संभोग करने से चूक गया था। सुगना उठी और अपने कमरे में दबे पांव आई। उसके आदेशानुसार कमरे का दरवाजा खुला हुआ था और सोनू गहरी नींद में सो रहा था। सुगना खुश हो गई और वापस लाली के पास आकर निश्चिंत हो कर सो गई।




सुबह-सुबह सुगना चाय लेकर सोनू को जगाने गई .. सोनू नींद में था उसके दोनों पैर खुले हुए थे और लूंगी हटकर उसकी नग्न पुष्ट जांघों को उजागर कर रही थी.। सुगना उसकी लूंगी के पीछे छुपे उसके हथियार को देखने लगी …जो अंडरवियर में कैद होने के बावजूद अपने अस्तित्व का एहसास बखूबी करा रहा था। सुगना सोनू की नसबंदी की बात सोचने लगी। आखिर सोनू ने यह क्या कर दिया था? क्या सचमुच वह विवाह नहीं करेगा…

शायद इसे संयोग कहें या सुगना के बदन की मादक खुशबू सोनू ने एक गहरी सांस लिए और सोनू की पलकें खुली और अपनी बड़ी बहन सुगना के फूल से खिले चेहरे को देखकर सोनू का दिन बन गया वह झटपट उठकर बिस्तर पर बैठ गया और बोला..

"अरे दीदी बड़ा जल्दी उठ गईलू"

सुगना ने चाय बिस्तर पर रखी और बोली..

"देख …7:00 बज गईल बा जल्दी कहां बा अभी जौनपुर जाए के तैयारी भी तो करे के बा"

सुगना ने आगे बढ़कर खिड़की पर से पर्दा हटा दिया अचानक कमरे में रोशनी हो गई सोनू ने अपनी पलकें मीचीं और और सुगना के दमकते चेहरे को देखने लगा जो सूरज की रोशनी पढ़ने से और भी चमक रहा था…सुगना की काली काली लटें के गोरे-गोरे गालों को चूमने का प्रयास करतीं। उन पर पड़ रही रोशनी उन लटों को और खूबसूरत बना रही थी..

चाय की चुस्कियां लेते हुए सोनू ने कहा..

"दीदी हम सोचत बानी कि सामान बनारस से ही खरीदल जाऊ ओहिजा बढ़िया पलंग वलंग का जाने मिली कि ना..?"


सुगना ने सोनू की बात को संजीदगी से लिया निश्चित ही बनारस में उत्तम कोटि का सामान मिल सकता था। सुगना ने उसकी सुगना ने उसकी बात का समर्थन करते हुए कहा

" ठीक कहत बाड़े लाली के उठे दे ऊ दू तीन गो दुकान देख ले बिया ओकरे के लेकर चलेके अच्छा रही"

"हां दीदी इहे ठीक रही। जब सामान पहुंच जाई हम कमरा में लगवा देब तब तू तीन चार दिन बाद आ जाईह….तब बाकी छोट मोट और रसोई के सामान ठीक कर दीह"


तीन चार दिनों की बात सुनकर सुगना सहम गई। तीन चार दिनों बाद तो सोनू को अनवरत संभोग करना था उस समय वहां सुगना का क्या काम था… सुगना ने तपाक से कहा

"कोई बात ना वो समय लाली जौनपुर चल जाए हम फिर कभी आ जाएब_

"ना दीदी तू भी चलतू तो अच्छा रहित हम चाहत बानी की घर में गृह प्रवेश तोहरा से ही होइत "

सोनू सुगना को लेकर भावुक था। वह अपनी बड़ी बहन को अपने नए घर में सर्वप्रथम आमंत्रित करना चाहता था। वह लाली का अनादर कतई नहीं करना चाहता था पर सुगना सुगना थी उसकी आदर्श …उसकी मार्गदर्शक… हमेशा उसका ख्याल रखने वाली और अब उसका सब कुछ..

सुगना ने सुगना ने सोनू के चेहरे पर आज वही मासूमियत देखी जो दीपावली की उस रात से पहले उसे दिखाई पड़ती थी। वह उसके पास आई और बोली ₹तोहार घर हमेशा तोहरा खातिर शुभ रही.. हम हमेशा तोहारा साथ बानी…अब जो जल्दी तैयार हो जो "

जब तक लाली उठती सोनू और सुगना आगे की रणनीति बना चुके थे..


लाली के जौनपुर जाने का खतरा अब न था सो सुगना भी संतुष्ट हो चुकी थी वैसे भी अभी उसके जौनपुर जाने का कोई औचित्य न था वहां पर किसी की यदि जरूरत थी तो वह थी लाली वह भी ४ दिनों बाद।

बाजार खुलते ही सोनू सुगना और लाली फर्नीचर शोरूम में पहुंच चुके थे एसडीएम बनने के बाद पैसों की तंगी लगभग खत्म हो चुकी थी ..

बड़े से फर्नीचर शोरूम में तरह-तरह के डबल बेड लगे हुए थे लाली तो पहले भी कई बार ऐसे शोरूम में आ चुकी थी यद्यपि उस समय उसकी हैसियत न थी कि वह ऐसे पलंग खरीद पाती पाती परंतु उसका स्वर्गीय पति राजेश इन मामलों में अपनी हैसियत से एक दो कदम आगे की सोचता था वह लाली को कई बार ऐसे फर्नीचर शोरूम मे ला चुका था वह उसकी पसंद की चीजें तो नहीं पर छुटपुट चीजें खरीद कर उसको मना लेता और घर पहुंच कर उसकी खुशियों का भरपूर फायदा उठाता और मन भर चूदाई करता।

सोनू ने सुगना और लाली को पलंग पसंद करने की खुली छूट दे दी। सुगना पलंग की खूबसूरती देख देख कर मोहित हुई जा रही थी अचानक उसे अपना पलंग और अपना फर्नीचर बेहद कमतर प्रतीत होने लगा फिर भी उसने अपने मन के भाव को अपने चेहरे पर ना आने दिया और अपने प्यारे सोनू के लिए पलंग पसंद करने लगी…

सुगना और लाली की पसंद अलग अलग थी और यह स्वाभाविक भी था। दोनों ही पलंग बेहद खूबसूरत थे। भरे भरे डनलप के गद्दे साथ में खूबसूरत सिरहाना बिस्तर की खूबसूरती मन मोहने वाली थी और उन सभी युवतियों के मन को गुदगुदाने वाली थी जिनकी जांघों के बीच पल रही खूबसूरत रानी या तो जवान हो चुकी थी या किशोरावस्था के मादक दौर से गुजर रही थी और यहां तो सुगना और लाली जवानी की पराकाष्ठा पर थी।

डबल बेड के साथ खूबसूरत श्रृंगारदान भी था यद्यपि सोनू के लिए श्रृंगारदान का कोई महत्व न था परंतु वह डबल बेड के साथ ही उपलब्ध था।

सुगना एक पल के लिए एक पल के लिए सोनू और उसकी होने वाली पत्नी के बारे में सोचने लगी क्या भगवान ने सोनू के लिए भी किसी की रचना की होगी.. क्या उसका भाई जीवन भर सच में अविवाहित रहेगा ? क्या लाली और सोनू इसी तरह जीवन में गुपचुप मिलते रहेंगे सुगना अपनी सोच में डूब गए तभी


साथ आए सूरज ने कहा सूरज ने कहा

"मामा ई वाला मां के पसंद बा और ऊ वाला लाली मौसी के बतावा कौन लेबा"

सोनू ने अपनी दोनों बहनों के चेहरे के भाव पढ़ने की कोशिश की जैसे वह उन दोनों में से कोई एक चुनना चाह रहा हो। सुगना सुगना थी वह कभी भी सोनू को धर्म संकट में नहीं डालना चाहती थी अचानक उसने कहा

"ई वाला छोड़ दे लाली वाला ज्यादा ठीक लागा ता। ओकरे के लेले…_" आखिर जिसे उस बिस्तर पर चुदना था पसंद उसकी ही होनी चाहिए।

पर सोनू सुगना को बखूबी जानता था। सुगना हमेशा से अपनों के लिए अपनी पसंद का त्याग करती आई थी।

सोनू ने उस बात को वहीं विराम दिया और दोनों बहनों को आगे ले जाकर एक खूबसूरत सोफासेट दिखाकर उनकी राय मांगी और दोनों एक सुर में बोल उठी

"अरे इतना सुंदर बा इकरे के लेले" और इस प्रकार लगभग सभी मुख्य सामान पर सभी की आम राय हो गई। सोनू ने दुकान के मालिक से मिलकर जरूरी दिशा निर्देश दिए और जौनपुर में सामान की डिलीवरी सुनिश्चित कर अपने परिवार के साथ बाहर आ गया..

लाली और सुगना के लिए कुछ और जरूरी साजो सामग्री खरीदने के पश्चात सोनू अपनी दोनों बहनों के साथ घर आ गया और अब उसकी विदाई का वक्त करीब था। सोनू जौनपुर के लिए निकलने वाला था अब जो परिस्थितियां बनी थी उसके अनुसार लाली को तीन चार दिनों बाद ही जौनपुर जाना था। खैर जैसे लाली ने इतने दिनों तक इंतजार किया था 3 दिन और इंतजार कर सकती थी।

विदा होने से पहले सोनू को सुगना ने अपने कमरे में बुलाया और अपना चेहरा झुकाए हुए बोली..

"सोनू एक बात ध्यान राखिहे…अभी तीन-चार दिन तक ऊ कुल गलत काम मत करिहे…"

सोनू सुगना के मुंह से यह बात सुनने के लिए पिछले कुछ दिनों से तरस रहा था उसे बार-बार यही लगता कि आखिर डॉक्टर की नसीहत को सुगना दीदी ने उसे क्यों नहीं बताया।

फिर भी सोनू ने अनजान बनते हुए कहा

"कौन काम?"

सुगना शर्म से पानी पानी हो रही थी अपने ही भाई से हस्तमैथुन की बात करना उसे शर्मसार कर रहा था परंतु वह बार-बार इस बात को लेकर परेशान हो रही थी कि यदि उसने डॉक्टर का संदेश सोनू को ना पहुंचाया तो वह कहीं हस्तमैथुन कर को खुद को खतरे में ना डाल ले। अब तक तो वह लाली को उससे दूर किए हुए थी..पर एकांत वासना ग्रस्त इंसान को हस्तमैथुन की तरफ प्रेरित करता है सुगना यह बात बखूबी जानती थी।

सोनू अब भी सुगना के उत्तर का इंतजार कर रहा था "बताओ ना दीदी कौन काम?" सोनू ने अनजान बनते हुए सुगना से दोबारा पूछा

"ऊ जौन तू अस्पताल में करौले बाड़ ओकरा बाद सप्ताह भर तक ओकरा के हाथ नैईखे लगावे के…ऊ कुल काम बिल्कुल मत करिहा जवन कॉलेज वाला लाइका सब करेला….. बाकी जब लाली आई अपन ही सब बता दी …"

सुगना ने अपनी बात अपनी मर्यादा में रहकर कर तो दी और सोनू उसे बखूबी समझ भी गया था परंतु सोनू के चेहरे पर मुस्कुराहट देखकर सुगना घबरा गई उसे लगा जैसे सोनू उससे इस बारे में और भी सवाल जवाब करेगा जिसका उत्तर देने के लिए सुगना कतई तैयार न थी। वह कमरे से निकलकर बाहर आने लगी तभी सोनू ने उसकी कलाई पकड़ ली और बोला…

" दीदी हम तोहार सब बात जिंदगी भर मानब लेकिन हमरा के माफ कर दीहा …तू सचमुच हमार बहुत ख्याल रखे लू…"

सुगना की आंखों में खुशी की चमक थी उसने अपनी बात सोनू तक बखूबी पहुंचा दी थी… और सोनू ने उसे स्वीकार भी कर लिया था आधी लड़ाई सुगना जीत चुकी थी।

अपने परिवार के सभी सदस्यों को यथोचित दुलार प्यार करने के बाद सोनू अलग हुआ और जाते-जाते लाली को अपने आलिंगन में भरकर उसकी आग को एक बार फिर भड़का गया और कान में बोला दीदी हम तोहार इंतजार करब…लाली प्रसन्न हो गई।

सोनू के दोनों हाथों में लड्डू थे…. और पेट में जबरदस्त भूख पर जिस लड्डू को वह पहले खाना चाहता था वह अभी भी उससे दूर था और दूसरा मुंह में जाने को बेताब…

नियति अपनी चाल चल रही थी…वह सोनू की वह सोनू की इच्छा पूरी करने को आमादा थी…

जौनपुर में होने वाले प्रेमयुद्ध का अखाड़ा ट्रक पर लोड हो चुका था और धीरे धीरे सोनू के नए बंगले की तरफ कूच कर रहा था….


शेष अगले भाग में..
बहुत ही सुंदर लाजवाब और अद्भुत रमणिय अपडेट है भाई मजा आ गया
 

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भाग 115

सोनू के दोनों हाथों में लड्डू थे…. और पेट में जबरदस्त भूख पर जिस लड्डू को वह पहले खाना चाहता था वह अभी भी उससे दूर था और दूसरा मुंह में जाने को बेताब…

नियति अपनी चाल चल रही थी… वह सोनू की इच्छा पूरी करने को आमादा थी…

जौनपुर में होने वाले प्रेमयुद्ध का अखाड़ा ट्रक पर लोड हो चुका था और धीरे धीरे सोनू के नए बंगले की तरफ कूच कर रहा था….


अब आगे..

सोनू जौनपुर पहुंच चुका था और पीछे पीछे फर्नीचर की दुकान से खरीदा गया वह सामान भी आ रहा था । सोनू का इंतजार उसके मातहत नए बंगले पर कर रहे थे जैसे ही सोनू की कार वहां पहुंची आसपास आराम कर रहे मातहत सावधान मुद्रा में खड़े हो गए।

बंगले की सुरक्षा में लगे गार्ड ने सोनू की कार का दरवाजा खोला और सोनू अपने पूरे रोआब के साथ अपनी कार से उतर गया। अपने कपड़े व्यवस्थित करते हुए वह अपने बंगले के अंदर प्रवेश कर गया। आंखे बंगले की दीवारों पर घूम रही थीं।


सचमुच रंग रोगन के बाद बंगला अपने पूरे शबाब पर था। अंदर घुसते ही एक बड़ा सा हाल और उस हाल से लगे हुए 3 खूबसूरत कमरे। बड़ी सी रसोई और उसके सामने एक छोटा सा हाल। शासकीय बंगलों की अहमियत उसे अब समझ आ रही थी। वैसे भी मनोरमा के बंगले को देखने के बाद सोनू के मन में भी हसरत जगी थी और जौनपुर के इस बंगले ने कुछ हद तक उसकी हसरतों को पूरा कर दिया था परंतु सोनू के अंतर्मन में जो हसरत पिछले कई दिनों से पनप रही थी वह अब भी तृप्ति की राह देख रही थी।

सोनू ने पूरे बंगले का मुआयना किया और उसकी साफ-सफाई देख कर खुश हो गया उसने अपने सभी मातहतों को की तारीफ की।

थोड़ी ही देर बाद बनारस से चला हुआ ट्रक भी पहुंच गया..

ट्रक से सामान उतर कर उतार कर सोनू के दिशा निर्देश में अलग-अलग कमरों में पहुंचाया जाने लगा …

ट्रक पर आए ढेर सारे सामान को देखकर सोनू के मातहत आपस में बात करने लगे

"अरे साहब तो अभी अविवाहित और अकेले हैं फिर इतना सारा सामान?"


जब प्रश्न उठा था तो उसका उत्तर मिलना भी जरूरी था। सोनू के साथ साथ रहने वाले ड्राइवर ने तपाक से कहा

"अरे साहब का परिवार बहुत बड़ा है तीन तीन बहने हैं और उनके बच्चे भी…. हो सकता है दो-तीन दिनों बाद उन लोग यहां आए भी"

ड्राइवर ने सोनू लाली और सुगना की बातें कुछ हद तक सुन ली थी और कुछ समझ भी ली थी.. पर उस रिश्ते में आई उस वासना भरी मिठास को वह समझ नहीं पाया था। यह शायद उसके लिए उचित भी था और सोनू के लिए भी..

ट्रक के साथ आए फर्नीचर के कारीगरों ने कुछ ही घंटों की मेहनत में फर्नीचर को विधिवत सजा दिया। घर की सजावट घंटों का काम नहीं दिनों का काम होता है। फर्नीचर के अलावा और भी ढेरों कार्य थे। नंगी और खुली हुई खिड़कियां अपने ऊपर आवरण खोज रही थी सोनू ने अपने मातहतों को दिशा निर्देश देकर उनकी माप करवाई और इसी प्रकार एक-एक करके अपने घर को पूरी तरह व्यवस्थित कराने लगा…

सुगना और लाली द्वारा पसंद किए गए दोनों पलंग सोनू ने खरीद लिए थे। वैसे भी सोनू की दीवानगी इस हद तक बढ़ चुकी थी की वह सुगना की मन की बातें पढ़ उसे खुश करना चाहता था और उस फर्नीचर शॉप में तो सुगना ने उस पलंग पर अपना हाथ रख दिया था।


निश्चित ही उसके मन में उस पलंग पर लेटने और सोने की बात आई होगी । सोनू उत्साहित हो गया। अपनी कल्पना में स्वयं पसंद किए पलंग पर अपनी मल्लिका सुगना को लेटे और अंगड़ाइयां लेते देख उसका लंड .. खड़ा हो गया। जितना ही वह उस पर से ध्यान हटाता उतना ही छोटा सोनू उसका ध्यान अपनी तरफ खींच लाता। सुगना का श्रृंगारदान भी बेहद खूबसूरत था परंतु सूना था बिल्कुल अपनी मालकिन सुगना की तरह …जो एक बेहद खूबसूरत काया और सबका मन मोहने वाला दिल लिए सुहागन होने के बावजूद अब भी विधवाओं जैसी जिंदगी जी रही थी।

सोनू अपने दूसरे कमरे में आया जहां लाली द्वारा पसंद किया गया पलंग लगा था। लाली और सुगना की तुलना सोनू कतई नहीं करना चाहता था परंतु तुलना मनुष्य का स्वाभाविक गुण है।

जब तक सुगना सिर्फ और सिर्फ उसकी बड़ी बहन थी वह देवतुल्य थी और लाली उसकी मेनका रंभा और न जाने क्या-क्या। तब न तो तुलना की आवश्यकता थी और ना ही उसका औचित्य।

परंतु जब से उसने सुगना को अपनी वासना भरी दुनिया में खींच लाया था और उसको को अपना बनाने की ठान ली थी… सुगना भी उन्ही अप्सराओं मे शामिल हो चुकी थी… और अब तुलना स्वाभाविक हो चुकी थी और सुगना निर्विवाद रूप से लाली पर भारी पड़ रही थी।


आपका अंतर्मन आपके विचारों को नियंत्रित करता है। सुगना के प्रति सोनू के अनोखे प्यार ने बंगले का सबसे खूबसूरत कमरा सुगना को देने पर मजबूर कर दिया था।

यद्यपि दोनों ही कमरे खूबसूरत थे परंतु जो अंतर लाली और सुगना में था वही अंतर उनके कमरों में भी स्पष्ट नजर आ रहा था।

बहरहाल सोनू ने अपने दोनों बहनों की पसंद का ख्याल रख उनके दोनों कमरे सजा दिए थे…और सोनू का बैठका उसके स्वयं द्वारा पसंद किए गए सोफे से जगमगा उठा था। घर की साफ सफाई की निगरानी करते करते रात हो चुकी थी परंतु अभी भी कई कार्य बाकी थे…

अगले दो-तीन दिनों तक सोनू अपना आवश्यक शासकीय कार्य निपटाने के बाद अपने बंगले पर आ जाता और कभी पर्दे कभी शीशा कभी कपड़े रखने की अलमारी और तरह-तरह की छोटी बड़ी चीजें खरीदता और घर को धीरे धीरे हर तरीके से रहने लायक बनाने की कोशिश करता। रसोई घर के सामान कि उसे विशेष जानकारी न थी फिर भी वह अत्याधुनिक और जौनपुर में उपलब्ध उत्तम कोटि के रसोई घर के सामान भी खरीद लाया था पर उन्हें यथावत छोड़ दिया था…

रसोई घर को सजा पाना उसके वश में न था एकमात्र वही काम उसने अपनी बहनों के लिए छोड़ दिया था..

पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार लाली को ही जौनपुर आना था सोनू को भी सुगना के साथ साथ उसका भी इंतजार था। लाली को अभी आने से रोकना और तीन-चार दिनों बाद जौनपुर भेजने की योजना सुगना ने डॉक्टर की नसीहत को ध्यान में रखते हुए ही बनाई थी।

परंतु सोनू भी कम न था उसने जानबूझकर सुगना को अभी जौनपुर आने से रोक लिया था और फर्नीचर खरीदने का प्रबंध बनारस से ही कर लिया था ताकि वह घर की सजावट पूरी होने के बाद लाली और सुगना को एक साथ ही जौनपुर ले आए। नए घर में प्रवेश की बात कर सुगना को आसानी से मना सकता था और इसके लिए जिद भी कर सकता था।

वैसे भी लाली और उसके बीच जो कुछ हो रहा था वह न सिर्फ सुगना जान रही थी अपितु अपनी खुली और नंगी आंखों से देख भी चुकी थी और अब तो सोनू और लाली के मिलन की अनिवार्यता भी थी। सुगना लाली और उसे करीब लाने में कोई कमी नहीं रखेगी यह बात सोनू बखूबी जानता था वह मन ही मन तरह-तरह की कल्पनाएं करता और सुगना की उपस्थिति में लाली को चोद चोद कर सुगना को और उत्तेजित करने का प्रयास करता उसे पता था सुगना की उस खूबसूरत और अद्भुत बुर को जीवंत बनाए रखने के लिए सुगना का भी संभोग करना अनिवार्य था चाहे कृत्रिम रूप से या स्वाभाविक रूप से…


परंतु सोनू के लिए सुगना से संभोग अब भी दुरूह कार्य था सुगना जब तक स्वयं अपनी जांघे नहीं खोलती सोनू वही गलती दोबारा दोहराने को कतई तैयार न था जो उसने दीपावली की रात की थी । सुगना का मायूस और उदास चेहरा जब जब सोनू के सामने घूमता उसके सुगना के जबरदस्ती करीब जाने के विचार पानी के बुलबुले की तरह बिखर जाते ।

सोनू पूरी जी जान से अपनी परियों के आशियाने को सजाने में जुटा हुआ था और परियों की रानी सुगना कि उस अद्भुत और रसीली बुर को जीवंत बनाए रखने की संभावनाओं पर लगातार सोच विचार कर रहा था।

ऐसा न था कि आने वाले 1 सप्ताह की तैयारियां सिर्फ सोनू कर रहा था उधर बनारस में उसकी बहन सुगना भी लाली को उस प्रेम युद्ध के लिए पूरी तरह तैयार कर रही थी…

"ए लाली तोर महीना कब आई रहे"


"काहे पुछत बाड़े.." लाली में सुगना के इस अप्रत्याशित प्रश्न पर एक और प्रश्न किया

"तोरा जौनपुर भी जाए के बा..भुला गईले का?" सुगना ने लाली के पेट पर चिकोटी काटते हुए कहा

"देखत बानी तू ज्यादा बेचैन बाड़ू …..का बात बा? अभी तो सोनुआ के भीरी ठेके ना देत रहलु हा और अब जौनपुर भेजें खातिर अकुताईल बाड़ू_

सुगना जब पकड़ी जाती थी तो अपनी खूबसूरत मुस्कुराहट और अपने स्पर्श से सामने वाले को मोहित कर लेती थी। उसने लाली की हथेली को अपनी गोद में लिया और उसकी बाहों को दबाते हुए बोली..

"अब जाता रे नू जौनपुर खूब सेवा करिए और करवाईहे हम ना रोकब टोकब "

लाली भी सुगना को छेड़ने के मूड में आ चुकी थी..

"ते हु चल ना कुछ ना करबे त देख देख कर मजा लीहे पहले भी तो देखलहीं बाड़े "

सुगना ने लाली की बाहें अपनी गोद से हटाकर दूर फेंकते हुए कहा

" लाली फालतू बात मत कर तोरा कारण ही सोनूवा के दिमाग खराब हो गईल रहे और ऊ कुल कांड भईल अब हमरा बारे में सोनूवा से कोनो बात मत करिहे_"

"हम कहां करीना तोरे सोनूवा बेचैन रहेला? का जाने ते का देखावले बाड़े और का चिखावले बाड़े" लाली ने अपनी नजर सुगना की भरी भरी चुचियों पर घुमाई और फिर उन्हें उसके सपाट पेट से होटी हुई जांघों के बीच तक ले गई। सुगना बखूबी लाली की नाचती हुई आंखों को देख रही थी।

"ई सब पाप ह.." सुगना ने अपनी आंखें बंद कर ऊपर छत की तरफ देखा और अपने अंतर्मन से चिर परिचित प्रतिरोध करने की कोशिश की..

"काहे पाप ह…?"लाली में पूछा । लाली तो जैसे वाद विवाद पर उतारू थी ..

"सोनूवा हमार अपना भाई हां भाई बहन के बीच ई कुल …छी कितना गंदा बात बा.."

सुगना की स्पष्ट और उचित बात ने लाली को भी सोचने पर मजबूर कर दिया और वह कुछ पलों के लिए चुप हो गई फिर उसने सुगना की हथेली पकड़ी और बोला

"काश सोनुआ तोर आपन भाई ना रहित.."

लाली की बात सुनकर सुगना अंदर ही अंदर सिहर उठी..लाली ने उसकी दुखती रग छेड़ दी थी.. अपने एकांत में न जाने सुगना कितनी बार यह बात सोचती थी..


सुगना से अब रहा न गया उसने लाली की बात में हां में हां मिलाते हुए कहा

" हां सच कहते बाड़े काश सोनुआ हमार भाई ना होके तोर भाई रहित.."

दोनों सहेलियां खिलखिला कर हंस पड़ी। लाली का कोई अपना सगा भाई न था। उसे इस रिश्ते की पवित्रता और मर्यादा का बोध न था उसने तो सोनू को ही अपना मुंहबोला भाई माना था परंतु जैसे-जैसे सोनू जवान होता गया उसने लाली को दिल से बहन न माना …

संबोधन और आकर्षण दोनों साथ-साथ बढ़ते रहे लाली दीदी के प्रति सोनू की आसक्ति समय के साथ बढ़ती गई और अब लाली और सोनू के संबंध अपनी अलग ऊंचाइयों पर थे…

" ते हमार बात घुमा दे ले लेकिन बतावाले हा ना कि महिनवा कब आई रहे…?

"मत घबरो .. अभी महीना आवे में 2 सप्ताह बा। अब ठीक बानू"


सुगना निश्चिंत हो गई उसे तो सिर्फ 1 हफ्ते की दरकार थी। उसके पश्चात लाली और सोनू लगातार साथ रहे या ना रहे उससे सुगना को कोई फर्क नही पड़ना था। परंतु सोनू की वासना और उसके जननांगों को जीवंत रखना सुगना की प्राथमिकता भी थी और धर्म भी। डॉक्टर ने जो दायित्व सुगना को दिया था वह उसे वह बखूबी निभा रही थी।

अचानक सुगना के मन में आया…

"ए लाली चल ना ढेर दिन भर उबटन लगावल जाओ.."

सुगना ने लाली के मन की बात कह दी थी । लाली स्वयं भी सोनू से जी भर चुदने किसे पहले अपने बदन को और मखमली करना चाह रही थी। दोनों सहेलियां सरसों का उबटन पीसने में लग गई…

आइए जब तक सुगना और लाली अपना उबटन पीसते हैं तब तक आपको लिए चलते हैं सलेमपुर जहां सरयू सिंह आज अपनी कोठरी की साफ सफाई कर रहे थे। यही वह कोठरी थी जहां सुगना की छोटी बहन सोनी अपने प्रेमी विकास से दीपावली की रात जमकर चुदी थी और हड़बड़ाहट में अपनी जालीदार लाल पेंटी अनजाने में ही सरयू सिंह के लिए उपहार स्वरूप छोड़ गई थी।


सरयू सिंह में उस लाल पेंटी और उसमें कैद होने वाले खूबसूरत नितंबों की कल्पना कर अपनी वासना को कई दिनों तक जवान रखा था और हस्तमैथुन कर अपने लंड को उसकी शक्ति याद दिलाते रहे थे। सोनी के मोहपाश में बंधे अपने मन में तरह-तरह के विचार और ख्वाब लिए वह उसका पीछा करते हुए बनारस भी पहुंच चुके थे। परंतु अब उनके मन में एक अजब सी कसक थी सोनी और विकास के रिश्ते के बाद उसके बारे में गलत सोचना न जाने उन्हें अब क्यों खराब लग रहा था। उनकी वासना अब भी सोनी को एक व्यभिचारी औरत काम पिपासु युवती के रूप में देखने को मजबूर करती परंतु पहले और अब का अंतर स्पष्ट था। जितने कामुक खयालों के साथ वह अपने विचारों में सोनी के साथ व्यभिचार करते थे वह उसकी धार अब कुंद पड़ रही थी सरयू सिंह ने सोनी के साथ जो वासनाजन्या कल्पनाएं की थी अब उन में अब बदलाव आ रहा था। शायद सोनी के प्रति उनका गुस्सा कुछ कम हो गया था।

सोनी को चोद पाने की उनकी तमन्ना धीरे-धीरे दम तोड़ रही थी जिस सुकन्या का विवाह अगले कुछ महीनों में होने वाला था वह भी विकास जैसे युवक से वह क्यों कर भला सरयू सिंह जैसे ढलती उम्र के व्यक्ति के पास सहर्ष चुदवाने के लिए आएगी…परंतु सरयू सिंह एक बात भूल रहे थे जांघों के बीच नियति ने उन्हें जो शक्ति प्रदान की थी वह अनोखी थी…

*************************

उधर विद्यानंद के आश्रम में…


मोनी के कौमार्य परीक्षण के पश्चात उसे आश्रम के विशेष भाग में स्थानांतरित कर दिया गया था वहां उसकी उम्र की करीब दस और लड़कियां थी मोनी को सिर्फ इतना पता था कि वह आश्रम के विशेष सदस्यों की टोली में शामिल की गई थी जहां उसे एक विशेष साधना में लगना था।

नित्य कर्म के पश्चात सभी लड़कियां एक बड़ी सी कुटिया में आ चुकी थी सभी के शरीर पर एक श्वेत धवल वस्त्र था जो उनके अंग प्रत्यंग ओं को पूरी तरह आवरण दिए हुए था सभी लड़कियां नीचे बनी बिछी आशनी पर बैठ गई सामने चबूतरे पर आसनी बिछी हुई थी पर स्थान रिक्त था..

कुछ ही पलों में कुटिया में लगे ध्वनि यंत्र से एक आवाज सुनाई दी…आप सभी को एक विशेष साधना के लिए चुना गया है जिसमें आपका स्वागत है.. आप सबकी गुरु माधवी जी अब से कुछ देर बाद मंच पर विराजमान होंगी वही आपको आने वाले एक माह तक निर्देशित करेंगी । आप सब उनके दिशा निर्देशों का पालन करते हुए इस विशेष आश्रम में रहेंगी और अपनी साधना पूर्ण करेंगी कुछ कार्य आप सब को सामूहिक रूप में करना होगा कुछ टोलियों में और कुछ अकेले। माधवी जी हमेशा आप लोगों के बीच रहेंगी। आप सब अपनी आंखें बंद कर माधवी जी का इंतजार करें और उनके कहने पर ही अपनी आंखें खोलिएगा।

सभी लड़कियां विस्मित भाव से उस ध्वनि यंत्र को खोज रही थी जो न जाने कहां छुपा हुआ था। दिशा निर्देश स्पष्ट थे सभी लड़कियों ने आंखें बंद कर लीं और वज्रासन मुद्रा में बैठ गईं सामने मंच पर किसी के आने की आहट हुई परंतु लड़कियों ने निर्देशानुसार अपनी आंखें बंद किए रखी।


कुछ ही पलों बाद माधवी की मधुर आवाज सुनाई पड़ी

"आप सब अपनी आंखें खोल सकती हैं"


सभी लड़कियों ने अपनी आंखें धीरे-धीरे खोल दीं।

मोनी सामने पहली कतार में बैठी थी मंच पर एक सुंदर और बेहद खूबसूरत महिला को नग्न देखकर वह अचंभित रह गई। उसने अपने अगल-बगल लड़कियों को देखा सब की सब विस्मित भाव से माधवी को देख रही थी माधवी पूर्ण नग्न होकर वज्रासन में बैठी हुई थी और उसकी आंखें बंद थी दोनों हाथ प्रणाम की मुद्रा में जुड़े हुए थे और उसकी भरी-भरी चूचियां दोनों हाथों के बीच से निकलकर तनी हुई थी प्रणाम की मुद्रा में दोनों पंजे सटे हुए दोनों चुचियों के बीच आ गए थे। बेहद खूबसूरत दृश्य था….

माधवी ने भी अपनी आंखें खोली और सामने बैठी लड़कियों को संबोधित करते हुए बोली

"मेरा नाम माधवी है मैं आप की आगे की यात्रा में कुछ दूर तक आपके साथ रहूंगी …आप सब मेरे शरीर पर वस्त्र न देख कर हैरान हो रहे होंगे परंतु विधाता की बनाई इस दुनिया में वस्त्रों का सृजन पुरुषों और स्त्रियों के भेद को छुपाने के लिए ही हुआ था और यहां हम सब स्त्रियां ही हैं अतः हम सबके बीच किसी पर्दे की आवश्यकता नहीं है क्या आपने कभी गायों को बछियों को वस्त्र पहने देखा है?"


सभी माधवी की बातों को मंत्रमुग्ध होकर सुन रहे थे एक तो माधवी बेहद खूबसूरत थी ऊपर से उसका कसा हुआ बदन उसके व्यक्तित्व में चार चांद लगा रहा था। भरी-भरी गोरी गोरी चूचीया और उस पर तने हुए गुलाबी निप्पल सभी लड़कियों को खुद अपने स्तनों को उस से तुलना करने पर मजबूर कर रहा था और निश्चित ही माधवी उन सब पर भारी थी। परंतु मोनी माधवी से होड़ लगाने को तैयार थी। सुगना की बहन होने का कुछ असर मोनी पर भी था।

आइए हम सब अपने एकवस्त्र को खोल कर यही कुटिया में छोड़ देंगे और शाम सूरज ढलने के पश्चात वापस अपने वस्त्र लेकर अपने अपने कमरों में चले जाएंगे। इसी प्रकार आने वाले 1 महीने तक हम सुबह सुबह यहां एकत्रित होंगे और प्रकृति के बीच रहकर अपनी साधना को पूरा करेंगे।

एक बात ध्यान रखिएगा यह साधना आप सबके लिए है और इस साधना में हुए अनुभव और सीख किसी और से साझा मत करिएगा दीवारों के भी कान होते हैं।


एक-एक करके सभी लड़कियों ने अपने श्वेत वस्त्र को अपने शरीर से उतार दिया और नग्न होने लगी मोनी आज पहली बार किसी के समक्ष नग्न हो रही थी नियति मोनी की काया पर से आवरण हटते हुए देख रही थी न जाने ऊपर वाले ने सारी सुंदरता पदमा की बेटियों को ही क्यों दे दी थी। एक से बढ़कर एक खूबसूरत और जवानी से भरपूर तीनों बहनें…

गोरी चिट्टी मोनी गांव में अपनी मां पदमा का हाथ बटाते बटाते शारीरिक रूप से सुदृढ़ हो गई थी। खेती किसानी और घरेलू कार्य करते करते उसके शरीर में कसाव आ चुका था और स्त्री सुलभ कोमलता उस कसे हुए शरीर को और खूबसूरत बना रही थी।

मोनी का वस्त्र उसके जांघों के जोड़ तक आ गया और उसकी खूबसूरत और अनछुई बुर माधवी की निगाहों के सामने आ गई और बरबस ही माधवी का ध्यान मोनी की बुर पर अटक गया मोनी के भगनासे के पास एक बड़ा सा तिल था…यह तिल निश्चित ही सब का ध्यान खींचने वाला था माधवी मंत्रमुग्ध होकर मोनी को देखे जा रही थी।

कुछ ही देर में कुछ ही देर में सभी कुदरती अवस्था में आ चुके थे और एक दूसरे से अपनी झिझक मिटाते हुए कुछ ही पलों में सामान्य हो गए थे। लड़कियों की जांघों के बीच वह खूबसूरत बुर आज खुली हवा में सांस ले रही थी.. और तनी हुई चूचियां उछल उछल कर लड़कियों को एक अलग ही एहसास करा रही थी.

आश्रम का यह भाग प्राकृतिक सुंदरता से भरा हुआ था । जहां पर प्रकृति ने साथ न दिया था वहां लक्ष्मी जी के वैभव से वही प्राकृतिक सुंदरता कृत्रिम रूप से बना दी गई थी….

धूप खिली हुई थी और सभी नग्न लड़कियां कृत्रिम पर विशालकाय झरने के बीच आकर एक दूसरे से अठखेलियां करने लगी। कभी अपनी अंजुली में पानी लेकर एक दूसरे पर छिड़कती और अपनी बारी आने पर उसी पानी से बचने के लिए अपने चेहरे को इधर-उधर करती कभी अपने हाथों से अपने चेहरे और आंखों को ढकती…

प्रकृति की सुंदरता उफान पर थी आज अपनी ही बनाई खूबसूरत तरुणियों को अपनी आगोश में लिए हुए प्रकृति और भी खूबसूरत हो गई थी। आश्रम का यह भाग दर्शनीय था। हरे भरे उपवन में पानी का झरना और झरने में खेलती मादक यौवन से लबरेज उन्मुक्त होकर खेलती हुई युवतियां।

परंतु उस दिव्य दर्शन की इजाजत शायद किसी को न थी पर जो इस आश्रम का रचयिता था वह बखूबी इस दृश्य को देख रहा था….

आइए तरुणियो को अपने हाल पर छोड़ देते हैं और वापस आपको लिए चलते हैं बनारस में आपकी प्यारी सुगना के पास…

दोपहर का वक्त खाली था सारे बच्चे स्कूल जा चुके थे और सोनी भी.. अपने कॉलेज के लिए निकल चुकी थी वैसे भी अब उसका मन कॉलेज में ना लगता था जो पढ़ाई वह पढ़ रही थी अब वह उसके जीविकोपार्जन का साधन ना होकर एक शौक बन चुका था फिर भी जब सोनी ने इतनी मेहनत की थी वह इस अंतिम परीक्षा में सफल हो जाना चाहती थी…


घर के एकांत में लाली और सुगना उबटन लेकर अपने कमरे में थी..सुगना लाली के हाथ पैरों में उबटन लगा रही थी। धीरे धीरे सुगना के हाथ अपनी मर्यादा को लांघते हुए लाली की जांघों तक पहुंचने लगे।

लाली ने सुगना के स्पर्श में उत्तेजना महसूस की। और वह बीती रात की बात याद करने लगी जब सुगना ने पहली बार उसकी बुर को स्खलित किया था।

कुछ ही देर में लाली सुगना के समक्ष अर्धनग्न होती गई पेटीकोट सरकता सरकता लाली के नितंबों तक आ चुका था और उसके मादक नितंबों को बड़ी मुश्किल से छुपाने की कोशिश कर रहा था । लाली को अब सुगना से कोई शर्म न थी परंतु वह खुद ही अपनी पेटीकोट को और ऊपर करना नहीं चाह रही थी थी सुगना में लाली की जांघों पर पीले उबटन का लेप लगाया और धीरे-धीरे उसकी जांघों और पैरों की मालिश करने लगी सुगना ने मुस्कुराते हुए औंधे मुंह पड़ी लाली से कहा

"जा तारे नू जौनपुर… तोरा के बरियार(ताकतवर) कर देत बानी सोनूवा से हार मत मनीहे"

लाली का चेहरा सुगना से दूर था उसने बड़ी मुश्किल से अपनी गर्दन घुमाई फिर भी वह सुगना का चेहरा ना देख पाई जो उसके पैरों पर बैठी उसकी जांघों पर मालिश कर रही थी फिर भी लाली ने कहा…

"बड़ा तैयारी करावत बाड़े कुछ बात बा जरूर ….बतावत काहे नईखे?"

सुगना सुगना एक बार फिर निरुत्तर हुई परंतु अभी तो मामला गरम था सुगना ने उबटन उसके लाली के नितंबों के बीचो बीच उस गहरी घाटी में लगाते हुए बोला..

" जो अबकी सोनू छोड़ी ना…इतना चिकना दे तानी आगे से थक जयबे तो एकरो के मैदान में उतार दीहे।"

सुगना आज सचमुच नटखट होकर लाली को उकसा रही थी उसे पता था लाली राजेश के साथ अपने अगले और पिछले दोनों गलियों का आनंद ले चुकी थी… परंतु सोनू वह तो अभी सामने की दुनिया में ही खोया हुआ था..

सुगना की उत्तेजक बातें सुनकर लाली गर्म हो रही थी। मन में उत्तेजना होने पर स्पर्श और मालिश का सुख दुगना हो जाता है । लाली सुगना के उबटन लगाए जाने से खुश थी और उसका भरपूर आनंद ले रही थी।


नियति सुगना को अपने भाई सोनू के पुरूषत्व को बचाने के लिए अपनी सहेली लाली को तैयार करते हुए देख रही थी.. सच सुगना का प्यार निराला था।

लाली के बदन पर उबटन लगाते लगाते सुगना की आंखों के सामने वही दृश्य घूमने लगे जब सोनू लाली को चोद रहा था। जितना ही सुगना सोचती उतना ही स्वयं भी वासना के घेरे में घिरती।

लाली की पीठ और जांघों के पिछले भाग पर उबटन लगाने के बाद अब बारी लाली को पीठ के बल लिटा दिया और एक बार फिर उसके पैरों पर सामने की तरफ से उबटन लगाने लगी।


जब एक बार उबटन शरीर पर लग गया तो उसे छूड़ाने के लिए उस सुगना को मेहनत करनी ही थी। उसने दिल खोलकर लाली के शरीर पर लगे उबटन से रगड़ रगड़ कर मालिश करतीं रही। लाली सुगना की मालिश से अभिभूत होती रही।

बीच-बीच में दोनों सहेलियां एक दूसरे को छेड़तीं.. उत्तेजना सिर्फ लाली में न थी अपितु लाली के बदन को मसलते मसलते सुगना स्वयं उत्तेजना के आगोश में आ चुकी थी। पूरे शरीर में जहां तहां उबटन लग चुका और जैसे ही लाली के बदन से उबटन अलग हुआ… लाली ने सुगना को उसी बिस्तर पर लिटा दिया जिस पर वह अब से कुछ देर पहले लाली की मालिश कर रही थी…

" ई का करत बाड़े " सुगना ने लाली की पकड़ से छूटने की कोशिश की और खिलखिलाते हुए बोली

लाली ने कहा

" इतना सारा उबटन बाचल बा ले आओ तोहरो के लगा दी"

सुगना ना ना करती रही..


"ना ना मत कर" लाली ने सुगना के पेट और पैरों पर उबटन लपेट दिया और एक बार फिर वही दौर चल पड़ा बस स्थितियां बदल चुकी थी. लाली सुगना के पैरों पर बैठी सुगना की जांघों की मालिश कर रही थी और सुगना इस अप्रत्याशित स्थिति से बचने का प्रयास करने कर रही थी।

परंतु अब यह संभव न था नियति लाली और सुगना के बीच का प्यार देख रही थी… सोनू की दोनों बहने जाने अनजाने एक दूसरे को सोनू के लिए तैयार कर रही थीं


नियति सोनू के भाग्य पर रश्क कर रही थी। क्या होने वाला था? सोनू के पुरुषत्व को बचाने के लिए जौनपुर के अखाड़े में किसे कूदना था लाली को या सुगना को या दोनों बहने एक साथ मैदान में उतरने की तैयारी में थी…

उधर सोनू अपने हथियार को अपने हाथ में लिए उसे सब्र करने को समझा रहा था…और अपने इष्ट से लगातार मिन्नते कर रहा था …सुगना को पाने के लिए उसकी उसकी मांगे कुछ उचित थी कुछ अनुचित…. ईश्वर स्वयं उसकी अधीरता से तंग आ चुके थे और आखिरकार……

शेष अगले भाग में
बहुत ही सुंदर लाजवाब और गजब का मदमस्त अपडेट है भाई मजा आ गया
ये आश्रम में मोनी और अन्य कुवारी लडकीयोंसे कौनसी साधना करवायी जा रही है और वो कौन है जो उन्हे देख रहा हैं
सोनू ने लाली और सुगना के पसंद के पलंग खरीद कर जौनपुर में ले आया तो क्या सुगना और लाली अपनी पसंद के पलंग पर सोनू से चुदने वाली है
क्या सोनू और सुगना लाली के रहते चुदाई कर सकते हैं देखते हैं आगे
 

Humpty22

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लंबे इंतजार के बाद आखिरकार अपडेट आ ही गया। सोनी को सरजू काका के साथ संभोग कराने की सुगना को क्या जरूरत पड़ी। अगले अपडेट मे शायद जवाब मिलेंगे सारे प्रश्नो के।
Waiting for next update
 

Lutgaya

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Xforum.live इस वेबसाइट की आत्मा कहीं गुम हो गयी थी। अब वापस आयी है, उम्मीद है लंबे समय तक जीवित रहेगी।
आत्मा न कभी पैदा होती है न ही मरती है। बस शरीर बदल जाते हैं। लवली भाई दिल की धडकन है इस साईट की।
 
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भाग 116

परंतु अब यह संभव न था नियति लाली और सुगना के बीच का प्यार देख रही थी… सोनू की दोनों बहने जाने अनजाने एक दूसरे को सोनू के लिए तैयार कर रही थीं


नियति सोनू के भाग्य पर रश्क कर रही थी। क्या होने वाला था? सोनू के पुरुषत्व को बचाने के लिए जौनपुर के अखाड़े में किसे कूदना था लाली को या सुगना को या दोनों बहने एक साथ मैदान में उतरने की तैयारी में थी…


उधर सोनू अपने हथियार को अपने हाथ में लिए उसे सब्र करने को समझा रहा था…और अपने इष्ट से लगातार मिन्नते कर रहा था …सुगना को पाने के लिए उसकी उसकी मांगे कुछ उचित थी कुछ अनुचित…. ईश्वर स्वयं उसकी अधीरता से तंग आ चुके थे और आखिरकार…

अब आगे….

दीपावली को बीते लगभग एक डेढ़ माह हो चुके थे क्रिसमस आने वाला था सोनी के नर्सिंग कॉलेज की भी छुट्टियां हो चुकी थी। और वह अपनी मां पदमा के पास जा रही थी मालती भी सोनी के साथ हो ली वह दोनों अपने ही गांव के किसी गरीबी परिवार के साथ सीतापुर के लिए निकल गए….


सुगना लाली की तैयारियों को अंतिम रूप देने में लगी हुई थी। सुगना लाली को सजाने संवारने पर जितनी मेहनत कर रही थी वह अलग था और बार-बार लाली को सुगना के व्यवहार के बारे में सोचने पर मजबूर करता था। सुगना हर हाल में सोनू और लाली का मिलन चाहती थी वह भी पूरे उमंग और जोश खरोश के साथ शायद सुगना के मन में यह बात घर कर गई थी कि नसबंदी के कारण सोनू के पुरुषत्व पर लगाया प्रश्नचिन्ह उसके और सोनू के उस मिलन के कारण ही उत्पन्न हुआ था जिसमें कुछ हद तक वह भी न सिर्फ भागीदार थी और जिम्मेदार भी थी।

पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार सोनू को आज सुबह-सुबह ही बनारस आना था और लाली को लेकर वापस जौनपुर चले जाना था शुक्रवार का दिन था। सुगना और लाली सोनू का इंतजार कर रही थी सुगना ने लाली की मदद से अपने भाई के लिए तरह-तरह के पकवान बनाए पर जो पकवान सोनू को सबसे ज्यादा पसंद था वह था रसीला मालपुआ…. लाली ने उसे सजाने संवारने में कोई कमी न की परंतु अब सोनू जिस मालपुए की तलाश में था वह उसकी बड़ी बहन सुगना अपनी जांघों के बीच लिए घूम रही थी रस से भरी हुई और अनोखे प्यार से लबरेज ..

यह एक संयोग ही था कि सुगना को आज सुबह-सुबह आस पड़ोस में एक विशेष पूजा में जाना था। शायद यह पूजा सुहागिनों की थी सुगना भी सज धज कर पूरी तरह तैयार थी। हाथों में मेहंदी पैरों में आलता, खनकती पाजेब और मदमस्त बदन। सजी-धजी सुगना कईयों के आह भरने का कारण बनती..थी और आज अपने पूरे शबाब में सज धज कर पूजा के लिए निकल चुकी थी। गले में लटकता हुआ सोनू का दिया मंगलसूत्र सुगना की खूबसूरती में चार चांद लगा रहा था।


लाली सोनू की आगमन का इंतजार कर रही थी जो जौनपुर से अपने मन में ढेरों उम्मीदें लिए निकल चुका था। पूरे रास्ते पर सोनू सुगना को जौनपुर लाने के लिए लिए तरह-तरह के पैंतरे सोचता परंतु सुगना को उसकी ईच्छा के बिना जौनपुर लाना कठिन था सोनू यह बात भली भांति जानता था कि सुगना दीदी लाली को जौनपुर इसीलिए भेज रही है ताकि वह दोनों एकांत में जी भर कर संभोग कर सकें और इस दौरान वह भला क्योंकर जौनपुर आना चाहेगी जब घर में खुला वासना का खुला खेल चल रहा हो।

अधीरता सफर को लंबा कर देती है सोनू जल्द से जल्द बनारस पहुंचना चाहता था परंतु रास्ते का ट्रैफिक सोनू के मार्ग में बाधा बन रहा था और वह व्यग्र होकर कभी गाड़ी के भीतर बैठे बैठे रोड पर बढ़ रहे ट्रैफिक को लेकर परेशान होता कभी अपने मन की भड़ास निकालने के लिए मन ही नहीं मन बुदबुदाता।

आखिरकार सोनू घर पहुंच गया…सुगना घर पर न थी परंतु लाली सोनू के लिए फलक फावड़े बिछाए इंतजार कर रही थी परंतु इससे पहले की सोनू लाली को अपनी आलिंगन में ले पाता लाली के रघु और रीमा उसके पास गए दोनो का अनुरोध सोनू टाल ना पाया उन्हें अपनी साथ खिलाने लगा जैसे ही लाड प्यार का समय खत्म हुआ और सोनू की लाई मिठाइयों और चॉकलेट में व्यस्त हुए सोनू ने लाली को अपनी बाहों में भर लिया परंतु निगाहें अब भी सुगना को ही खोज रही थी…

लाली ने छोटे सोनू के तनाव को बखूबी अपने पेट पर महसूस किया और अपनी हथेली से सोनू के ल** को पैंट के ऊपर से ही दबाते हुए बोली

"ई तो पहले से ही तैयार बा…"

उधर लाली ने सोनू के लंड को स्पर्श किया और उधर सोनू की बड़ी-बड़ी हथेलियां लाली के नितंबों को अपने आगोश में लेने के लिए प्रयासरत हो गई। लाली और सोनू के बीच दूरी तेजी से घट रही थी चूचियां सीने से सट रही थी और पेट से पेट। सोनू की हथेलियों ने लाली के लहंगे को धीरे-धीरे ऊपर करना शुरू कर दिया और लाली को अपनी नग्नता का एहसास होता गया जैसे ही लहंगा कमर पर आया लाली ने स्वयं अपने लहंगे को अपने दोनों हाथों से थाम लिया और सोनू को अपनी पेंटी उतारने की इजाजत दे दी लाली यह बात जानती थी कि अगले 1 हफ्ते तक उसे जौनपुर में सोनू से जी भर कर चुदना है परंतु फिर भी वह सोनू के इस तात्कालिक आग्रह को न टाल पाई। सोनू घुटनों के बल बैठ गया…और लाली की लाल पेंटी को नीचे सरकाते हुए घुटनों तक ले आया…या तो पेंटी छोटी थी या लाली के नितंबों का आकार कुछ बढ़ गया था पेंटी को नीचे लाने में सोनू को मशक्कत करनी पड़ी थी.. जैसे ही सोनू ने लाली की बुर् के होठों को चूमने के लिए अपना चेहरा उसकी जांघों के बीच सटाया…


तभी दरवाजे पर खटखट हुई…

लाली और सोनू ने एक दूसरे की तरफ देखा…. मिलन में रुकावट आ चुकी थी. लाली सोनू से अलग हुई उसने अपने कपड़े फटाफट ठीक किए और दरवाजा खोलने लगी आगंतुक सलेमपुर से आया एक व्यक्ति था जो सरयू सिंह और लाली के पिता हरिया का पड़ोसी था..

अब तक सोनू भी ऑल में आ चुका था उस व्यक्ति को देखकर सोनू ने कहा

"का हो का बात बा? बड़ा परेशान लगत बाड़ा"

"परेशानी के बातें बा हरिया चाचा और चाची मोटरसाइकिल से गिर गईल बा लोग हाथ गोड छिला गईल बा और चाची के त प्लास्टर भी लागल बा लाली दीदी के लिआवे आईल बानी…" आगंतुक ने एक ही सुर में अपनी सारी बात रख दी।

अपने माता पिता को लगी चोट और प्लास्टर की बात सुनकर लाली हिल गई कोई भी बेटी अपने मां-बाप पर आई इस विपदा से निश्चित ही परेशान हो जाती सो लाली भी हुई

…विषम परिस्थितियों में वासना विलुप्त हो जाती है. अपने माता पिता पर आई इस विपदा ने लाली के मन में फिलहाल जौनपुर जाने के ख्याल को एकदम से खारिज कर दिया.

लाली ने उस आगंतुक को बैठाया उसे पानी पिलाया और विस्तार से उस घटना की जानकारी ली. लाली के माता-पिता दोनों ठीक थे परंतु प्लास्टर की वजह से लाली की मां का चलना फिरना बंद हो गया था लाली का सलेमपुर जाना अनिवार्य हो गया था अपनी मां को नित्यकर्म कराना और उसकी सेवा करना लाली की प्राथमिकता थी वासना का खेल तो जीवन भर चलना था। उस लाली को क्या पता था कि वह जिस कार्य के लिए जा रही थी वह भी उतना ही महत्वपूर्ण था। वैसे भी सोनू के पुरुषत्व का सर्वाधिक लाभ अब तक लाली ने ही उठाया था।


लाली सलेमपुर जाने के लिए राजी हो गई और बोली बस भैया थोड़ा देर रुक जा हम अपन सामान ले ली…

"ए सोनू जाकर सुगना के बुला ले आवा चौबे जी के यहां पूजा में गईल बिया.."

सोनू तुरंत ही सुनना को बुलाने के लिए निकल पड़ा रास्ते भर सोनू सोच रहा था क्या विधाता ने उसका अनुरोध स्वीकार नहीं किया। वह तो चाहता था कि लाली और सुगना दोनों जौनपुर चलें। परंतु यहां स्थिति पलट चुकी थी सोनू के पुरुषत्व को बचाने के लिए जो सबसे सटीक हथियार था वह विफल हो चुका था सोनू उदास था। खुशियों के बीच आशंकाओं का अपना स्थान होता है ..…क्या सचमुच उसे इस महत्वपूर्ण समय में संभोग सुख प्राप्त नहीं होगा। क्या अगला हफ्ता सिर्फ और सिर्फ हस्तमैथुन के सहारे व्यतीत करना होगा।।

लाली के सलेमपुर जाने की बात लगभग तय हो गई थी। परंतु सुगना दीदी? क्या वह जौनपुर जाएंगी? क्या डॉक्टर ने जो नसीहत उन्हें दी है वह उसके पालन के लिए कुछ प्रयास करेंगी? अचानक सोनू के मन में एक सुखद ख्याल आया… हे भगवान क्या सच में उसकी मुराद पूरी होगी? जैसे-जैसे सोनू सोचता गया उसकी अधीरता बढ़ती गई और कदमों की चाल तेज होती गई। चौबे जी के घर पहुंच कर उसने सुनना को बाहर बुलवाया और वस्तुस्थिति की जानकारी दी।


सुगना की आंखें फटी रह गई। सुगना ने पूजा अधूरी छोड़ दी और सोनू के साथ चलती हुई वापस अपने घर आ गई.

जो होना था वह हो चुका था लाली का सलेमपुर जाना तय था…. लाली ने जो तैयारियां जौनपुर के लिए की थी उनका सलेमपुर में कोई उपयोग न था वह कामुकता से भरपूर नाइटीयां और अंतर्वस्त्र सलेमपुर में किस काम आते।


लाली अपने उन वस्त्रों को झोले से निकालकर वापस बिस्तर पर रखने लगी । सुगना परेशान हो रही थी अचानक सुनना के मन में ख्याल आया वह बाहर आई और बोली

" ए सोनू तू भी लाली के साथ ए सलेमपुर चलजो एक दो दिन ओहिजे रुक के देख लीहे "

सोनू सुगना के प्रस्ताव से अकबका गया उसे कोई उत्तर न सूझ रहा था उसने आखिरकार अपने मन में कुछ सोचा और बोला…

"हम लाली दीदी के लेकर सलेमपुर चल जाएब पर रुकब ना.. पहले ही हमार छुट्टी ज्यादा हो गईल बा अब छुट्टी मिले में दिक्कत होई" सोनू ने मन ही मन निश्चित ही कुछ फैसला ले लिया था इन परिस्थितियों में लाली से संभोग संभव न था सोनू को अब भी सुगना से कुछ उम्मीद अवश्य थी उसने अंतिम दांव खेल दिया था।

लाली ने भी सोनू की बात में हां में हां मिलाई और

"सोनू ठीक कहत बा …जायदे सोनू छोड़कर चल जाई"


अचानक आया दुख आपके मूल स्वभाव में जमीन आसमान का अंतर ला सकता है हमेशा छेड़ने और मजाक करने वाली लाली यदि सामान्य अवस्था में होती तो वह एक बार फिर सुगना से मजाक करने से बाज ना आती।

सुगना ने फटाफट खाना निकाल कर उस आगंतुक और सोनू को खाना खिलाया। खाना खाते वक्त सुगना सोनू के मासूम चेहरे को देख रही थी जिसके चेहरे पर उदासी स्पष्ट थी।

परंतु सोनू के चेहरे पर आई यह उदासी लाली के परिवार पर आए कष्ट की वजह से न थी अपितु अपने अगले 1 सप्ताह के सपनों पर पानी फिर जाने की वजह से थी। युवाओं को ऐसी छोटी-मोटी घटनाओं से होने वाले तकलीफों का अंदाजा कुछ कम ही रहता है शायद सोनू को भी लाली के माता-पिता को लगी चोट की गहराई का अंदाजा न था।


लाली की तो भूख जैसे मर गई थी सुगना के लाख कहने के बावजूद उसने कुछ भी ना खाया..

लाली व्यग्र थी उसे फिलहाल अपने घर पहुंचना था अपने मां-बाप को इस स्थिति में जानकर वह दुखी हो गई थी.. उसने फटाफट अपने सामान बाहर निकालl और कुछ ही देर में लाली और रघु और रीमा के साथ सोनू की गाड़ी में बैठ गई…

सोनू जब सुगना से विदा लेने आया तो सुगना से ने कहा " वापसी में एनीये से जईहे तोहरा खातिर कुछ सामान बनल बा…"

सोनू की बांछें खिल गई उसके मन में उम्मीद जाग उठी।

दरअसल सलेमपुर से एक रास्ता सीधा जौनपुर को जाता था यह रास्ता बनारस शहर से बाहर बाहर ही था सुगना ने सोनू को वापसी में एक बार फिर बनारस आने के लिए कह कर उसकी उम्मीद जगा दी पर क्या सुगना सचमुच बनारस जाने को तैयार हो गई थी? . जब तक सोनू अपने मन में उठे प्रश्न के संभावित उत्तर खोज पाता गाड़ी में बैठे लाली पुत्र राजू ने आवाज दी

"मामा जल्दी चल…अ"

सोनू गाड़ी में अगली सीट पर बैठ गया और गाड़ी धीरे धीरे आगे बढ़ते हुए सुगना की नजरों से ओझल हो गई…

सोनू और लाली के जाते ही सुगना सोच में पड़ गई। अब सोनू का क्या होगा? सलेमपुर में इन परिस्थितियों में लाली और सोनू का नजदीक आना संभव न था। और यदि ने इस सप्ताह लगातार वीर्य स्खलन न किया तब?

क्या सोनू नपुंसक हो जाएगा? क्या शारिरिक रूप से परिपक्व और मर्दाना ताकत से भरपूर अपने भाई को सुगना यू ही नपुंसक हो जाने देगी? क्या सोनू के जीवन से यह कुदरती सुख हमेशा के लिए विलुप्त हो जाएगा?

सुगना यह बात मानती थी कि इस विषम परिस्थिति के लिए वह स्वयं जिम्मेवार थी। आखिर सोनू ने नसबंदी का फैसला उसके कारण ही लिया था।

इधर सुगना तनाव में आ रही थी उधर मोनी पूर्ण नग्न होकर अपनी सहेलियों के साथ प्रकृति की गोद में धीरे-धीरे सहज हो रही थी। माधवी उन सभी कुंवारी लड़कियों की देखभाल कर रही थी।

आज माधवी उन सभी लड़कियों को लेकर एक खूबसूरत बगीचे में आ गई जहां बेहद मुलायम घास उगी हुई थी परंतु घास की लंबाई कुछ ज्यादा ही थी। कुछ घांसो के ऊपर सफेद और दानेदार छोटे-छोटे फूल भी खिले हुए थे। सभी लड़कियां अभिभूत होकर उस दिव्य बाग को देख रही थी..


माधवी ने सभी लड़कियों को संबोधित करते हुए कहा…

"आइए हम सब एक खेल खेलते हैं आप सभी को इस मुलायम घास पर शौच की मुद्रा में बैठना है…इस तरह…" ऐसा कहते हुए माधवी अपने दोनों पंजों और एड़ी के बल जमीन पर बैठ गई। माधुरी की पुष्ट जांघे स्वतः ही थोड़ी सी खुल गई और उसकी चमकती दमकती गोरी बुर उन सभी लड़कियों की निगाह में आ गई।


मोनी भी वह दृश्य देख रही थी अचानक उसका ध्यान अपनी छोटी सी मुनिया पर गया और उसने खुद की तुलना माधवी से कर ली। बात सच थी मोनी की जांघों के बीच छुपी खूबसूरत गुलाब की कली माधवी के खिले हुए फूल से कम न थी।

धीरे-धीरे सभी लड़कियां उस मुलायम घास पर बैठ गई और उनकी कुंवारी बुर की होंठ खुल गए ऐसा लग रहा था जैसे बुर के दिव्य दर्शन के लिए उसके कपाट खोल दिए गए हों। मुलायम घास जांघों के बीच से कभी बुर के होठों से छूती कभी गुदाद्वार को। एक अजब सा एहसास हो रहा था जो शुरू में शुरुआत में तो सनसनी पैदा कर रहा था परंतु कुछ ही देर बाद वह बुर् के संवेदनशील भाग पर उत्तेजना पैदा करने लगा। यह एहसास नया था अनोखा था। जब तक मोनी उस एहसास को समझ पाती। माधवी की आवाज एक बार फिर आई। उसने पास रखी डलिया से छोटे छोटे लाल कंचे अपने हाथों में लिए और लड़कियों को दिखाते हुए बोली

" यह देखिए मैं ढेर सारे कंचे इसी घास पर बिखेर देती हूं और आप सबको यह कंचे बटोरने हैं पर ध्यान रहे आपको इसी अवस्था में आगे बढ़ना है उठना नहीं है…. तो क्या आप सब तैयार हैं ?"

कुछ लड़कियां अब भी उस अद्भुत संवेदना में खोई हुई थी और कुछ माधवी की बातें ध्यान से सुन रही थी ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार कुछ संवेदनशील विद्यार्थी कक्षा की भौतिक परिस्थितियों को नजरअंदाज कर अपने गुरु द्वारा बताई जा रही बातों में खोए रहते हैं और अपना सारा ध्यान उनके द्वारा दिए जा रहे दिशा-निर्देशों पर केंद्रित रखते हैं

"हां हां " लड़कियों ने आवाज दी।


और माधुरी ने कंचे हरी हरी घास पर बिखेर दिए। घांस लंबी होने की वजह से वह कंचे खो गए सभी लड़कियां कंचे बीनने के लिए अपने पंजों की मदद से आगे पीछे होने लगी। खेल प्रारंभ हो गया उनका हाथ और दिमाग कंचे ढूंढने में व्यस्त था परंतु कुछ लड़कियां अपने आगे पीछे होने की वजह से अपनी बुर पर एक अजीब संवेदना महसूस कर रही थी जो उन मुलायम घासों से रगड़ खाने से हो रही थी। उनका खेल परिवर्तित हो रहा था कंचे ढूंढने और प्रथम आने के आनंद के अलावा वह किसी और आनंद में खो गई…उनकी जांघों और संवेदनशील बुर पर पर घांसों के अद्भुत स्पर्श का आनंद कुछ अलग ही था।

मोनी भी आज उस आनंद से अछूती न थी प्रकृति की गोद खिली कोमल घांस के कोपलों ने आज मोनी को अपने स्पर्श से अभिभूत कर दिया था। मोनी खुश थी और अपनी कमर हौले हौले हिला कर अपनी खूबसूरत मुनिया को उन घासों से रगड़ रही थी ….उसके चेहरे पर मुस्कुराहट और गालों पर ही शर्म की लालिमा दूर खड़ी माधवी देख रही थी कक्षा का प्यह दिन मोनी के लिए सुखद हो रहा था। और माधवी को जिस खूबसूरत और अद्भुत कन्या की तलाश थी वह पूरी होती दिखाई पड़ रही थी।

कुछ देर बाद माधवी ने फिर कहा अब आप सब अपनी अपनी जगह पर खड़े हो जाएं। जिन लोगों ने जितने कंचे बटोरे हैं वह अपनी अंजुली में लेकर बारी बारी से मेरे पास आए और इस डलियां…में वापस रख दें..

कई लड़कियों ने पूरी तल्लीनता और मेहनत से ढेरों कंचे बटोरे थे परंतु मोनी और उस जैसी कुछ लड़कियों ने इस खूबसूरत खेल से कुछ और प्राप्त किया था और वह उस घास के स्पर्श सुख से अभिभूत होकर अपनी बुर में एक अजीब सी संवेदना महसूस कर रही थीं।

जैसे ही वह खड़ी हुई बुर के अंदर भरी हुई नमी छलक कर बुर् के होठों पर आ गई और बुर् के होंठ अचानक चमकीले हो गए थे…. माधुरी की निगाहें कंचो पर न होकर बुर् के होठों पर थी। वह देख रही थी कि उसकी शिष्यायों में वासना का अंकुर फूट रहा है मोनी कम कंचे बटोरने के बावजूद अपनी परीक्षा में सफल थी.. उसकी बुर पर छलक आई काम रस की बूंदे कई कंचों पर भारी थी. मोनी को जो इस खेल में जो आनंद आया था वह निराला था।

इधर मोनी अपनी नई दुनिया में खुश थी उधर सुगना का तनाव बढ़ता जा रहा था। उसका उसका सारा किया धरा पानी में मिल गया था लाली को उसने कितनी उम्मीदों से तैयार किया था परंतु विधाता ने ऐसी परिस्थिति लाकर लाली को जौनपुर की बजाय सलेमपुर जाने पर मजबूर कर दिया था। छोटा सूरज अपनी मां सुगना को परेशान देखकर बोला..

"मां जौनपुर हमनी के चलल जाओ…मामा के नया घर देखें के आ जाएके" सूरज ने मासूमियत से यह बात कह तो दी थी।

सुगना सूरज को क्या उत्तर देती लाली जिस निमित्त जौनपुर जा रही थी वह प्रयोजन पूरा कर पाना सुगना के बस में न था…जितना ही सुगना इस बारे में सोचती वह परेशान होती…आखिर कैसे कोई बड़ी बहन अपने ही छोटे भाई को उसे चोदने के लिए उकसा सकती थी यद्यपि सुगना यह बात जानती थी कि आज से कुछ दिनों पहले तक सोनू की वासना में उसका भी स्थान था और शायद इसी वासना के आगोश में सोनू ने दीपावली की रात वह पाप कर दिया था. ..परंतु दीपावली की रात के बाद हुई आत्मग्लानि ने शायद सोनू के व्यवहार में परिवर्तन ला दिया था। पिछले कुछ दिनों में सोनू का व्यवहार एक छोटे भाई के रूप में सर्वथा उचित था और पूरी तरह उत्तेजना विहीन था…


सुगना मासूम थी…सोनू के मन में उसके प्रति छाई वासना को वह नजरअंदाज कर रही थी…उधर सोनू उधर सोनू अपनी बड़ी बहन सुगना के प्यार में पूरी तरह मदहोश हो चुका था। वासना अपनी जगह थी और प्यार अपनी जगह।

अभी तो शायद प्यार का पलड़ा ही भारी था सोनू यथाशीघ्र लाली को सलेमपुर छोड़कर वापस बनारस आ जाना चाहता था। उसे विश्वास था कि उसकी मिन्नतें सुगना दीदी ठुकरा ना पाएगी और उसके साथ जौनपुर आ जाएगी बाकी जो होना था वह स्वयं सुगना दीदी को करना था उसे यकीन था कि सुगना दीदी उसके पुरुषत्व को यूं ही व्यर्थ गर्त में नहीं जाने देगी…

उधर कोई और रास्ता न देख सुगना ने फैसला कर लिया कि वह लाज शर्म छोड़कर…सोनू से खुलकर बात करेगी और डॉक्टर द्वारा दी गई नसीहत को स्पष्ट रूप से सोनू को बता देगी.

सुगना अपनी बात सोनू तक स्पष्ट रूप से पहुंचाने के लिए अपने शब्दों को सजोने लगी …निश्चित ही अपने छोटे भाई को डॉक्टर द्वारा दी गई उस नसीहत को समझाना कठिन था…

शेष अगले भाग में….
बहुत ही सुंदर लाजवाब और अद्भुत मनभावन अपडेट है भाई मजा आ गया
सुगना लाली को जौनपुर भेज कर उसकी और सोनू की चुदाई का पुरा इंतजाम कर रही थी वो लाली को उबटन लगा कर सोनू के लिये चिकनी चमेली बना रही थी
इधर सोनू भी खुश था लेकीन लाली के माँ, पिता का अपघात सोनु और सुगना का घात कर गया लाली जौनपुर की जगह सलेमपुर निकल गयी
आश्रम में मोनी और अन्य कुवारी लडकीयोंसे ये कौनसा खेल खिला कर उनके नाजुक अंगो को परखा जा रहा हैं और क्यो देखने वाली बात है
लाली सलेमपुर चली जाने से क्या सुगना जौनपुर जाने का फैसला करती है उसे उसके बेटे सुरज ने भी कह दिया चली जाने को
तो क्या सोनू के पुरुषत्व को बचाने के लिये सुगना कोई कडा निर्णय ले कर सोनू के साथ जौनपुर जाती है देखते हैं आगे
 

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भाग 116

परंतु अब यह संभव न था नियति लाली और सुगना के बीच का प्यार देख रही थी… सोनू की दोनों बहने जाने अनजाने एक दूसरे को सोनू के लिए तैयार कर रही थीं


नियति सोनू के भाग्य पर रश्क कर रही थी। क्या होने वाला था? सोनू के पुरुषत्व को बचाने के लिए जौनपुर के अखाड़े में किसे कूदना था लाली को या सुगना को या दोनों बहने एक साथ मैदान में उतरने की तैयारी में थी…


उधर सोनू अपने हथियार को अपने हाथ में लिए उसे सब्र करने को समझा रहा था…और अपने इष्ट से लगातार मिन्नते कर रहा था …सुगना को पाने के लिए उसकी उसकी मांगे कुछ उचित थी कुछ अनुचित…. ईश्वर स्वयं उसकी अधीरता से तंग आ चुके थे और आखिरकार…

अब आगे….

दीपावली को बीते लगभग एक डेढ़ माह हो चुके थे क्रिसमस आने वाला था सोनी के नर्सिंग कॉलेज की भी छुट्टियां हो चुकी थी। और वह अपनी मां पदमा के पास जा रही थी मालती भी सोनी के साथ हो ली वह दोनों अपने ही गांव के किसी गरीबी परिवार के साथ सीतापुर के लिए निकल गए….


सुगना लाली की तैयारियों को अंतिम रूप देने में लगी हुई थी। सुगना लाली को सजाने संवारने पर जितनी मेहनत कर रही थी वह अलग था और बार-बार लाली को सुगना के व्यवहार के बारे में सोचने पर मजबूर करता था। सुगना हर हाल में सोनू और लाली का मिलन चाहती थी वह भी पूरे उमंग और जोश खरोश के साथ शायद सुगना के मन में यह बात घर कर गई थी कि नसबंदी के कारण सोनू के पुरुषत्व पर लगाया प्रश्नचिन्ह उसके और सोनू के उस मिलन के कारण ही उत्पन्न हुआ था जिसमें कुछ हद तक वह भी न सिर्फ भागीदार थी और जिम्मेदार भी थी।

पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार सोनू को आज सुबह-सुबह ही बनारस आना था और लाली को लेकर वापस जौनपुर चले जाना था शुक्रवार का दिन था। सुगना और लाली सोनू का इंतजार कर रही थी सुगना ने लाली की मदद से अपने भाई के लिए तरह-तरह के पकवान बनाए पर जो पकवान सोनू को सबसे ज्यादा पसंद था वह था रसीला मालपुआ…. लाली ने उसे सजाने संवारने में कोई कमी न की परंतु अब सोनू जिस मालपुए की तलाश में था वह उसकी बड़ी बहन सुगना अपनी जांघों के बीच लिए घूम रही थी रस से भरी हुई और अनोखे प्यार से लबरेज ..

यह एक संयोग ही था कि सुगना को आज सुबह-सुबह आस पड़ोस में एक विशेष पूजा में जाना था। शायद यह पूजा सुहागिनों की थी सुगना भी सज धज कर पूरी तरह तैयार थी। हाथों में मेहंदी पैरों में आलता, खनकती पाजेब और मदमस्त बदन। सजी-धजी सुगना कईयों के आह भरने का कारण बनती..थी और आज अपने पूरे शबाब में सज धज कर पूजा के लिए निकल चुकी थी। गले में लटकता हुआ सोनू का दिया मंगलसूत्र सुगना की खूबसूरती में चार चांद लगा रहा था।


लाली सोनू की आगमन का इंतजार कर रही थी जो जौनपुर से अपने मन में ढेरों उम्मीदें लिए निकल चुका था। पूरे रास्ते पर सोनू सुगना को जौनपुर लाने के लिए लिए तरह-तरह के पैंतरे सोचता परंतु सुगना को उसकी ईच्छा के बिना जौनपुर लाना कठिन था सोनू यह बात भली भांति जानता था कि सुगना दीदी लाली को जौनपुर इसीलिए भेज रही है ताकि वह दोनों एकांत में जी भर कर संभोग कर सकें और इस दौरान वह भला क्योंकर जौनपुर आना चाहेगी जब घर में खुला वासना का खुला खेल चल रहा हो।

अधीरता सफर को लंबा कर देती है सोनू जल्द से जल्द बनारस पहुंचना चाहता था परंतु रास्ते का ट्रैफिक सोनू के मार्ग में बाधा बन रहा था और वह व्यग्र होकर कभी गाड़ी के भीतर बैठे बैठे रोड पर बढ़ रहे ट्रैफिक को लेकर परेशान होता कभी अपने मन की भड़ास निकालने के लिए मन ही नहीं मन बुदबुदाता।

आखिरकार सोनू घर पहुंच गया…सुगना घर पर न थी परंतु लाली सोनू के लिए फलक फावड़े बिछाए इंतजार कर रही थी परंतु इससे पहले की सोनू लाली को अपनी आलिंगन में ले पाता लाली के रघु और रीमा उसके पास गए दोनो का अनुरोध सोनू टाल ना पाया उन्हें अपनी साथ खिलाने लगा जैसे ही लाड प्यार का समय खत्म हुआ और सोनू की लाई मिठाइयों और चॉकलेट में व्यस्त हुए सोनू ने लाली को अपनी बाहों में भर लिया परंतु निगाहें अब भी सुगना को ही खोज रही थी…

लाली ने छोटे सोनू के तनाव को बखूबी अपने पेट पर महसूस किया और अपनी हथेली से सोनू के ल** को पैंट के ऊपर से ही दबाते हुए बोली

"ई तो पहले से ही तैयार बा…"

उधर लाली ने सोनू के लंड को स्पर्श किया और उधर सोनू की बड़ी-बड़ी हथेलियां लाली के नितंबों को अपने आगोश में लेने के लिए प्रयासरत हो गई। लाली और सोनू के बीच दूरी तेजी से घट रही थी चूचियां सीने से सट रही थी और पेट से पेट। सोनू की हथेलियों ने लाली के लहंगे को धीरे-धीरे ऊपर करना शुरू कर दिया और लाली को अपनी नग्नता का एहसास होता गया जैसे ही लहंगा कमर पर आया लाली ने स्वयं अपने लहंगे को अपने दोनों हाथों से थाम लिया और सोनू को अपनी पेंटी उतारने की इजाजत दे दी लाली यह बात जानती थी कि अगले 1 हफ्ते तक उसे जौनपुर में सोनू से जी भर कर चुदना है परंतु फिर भी वह सोनू के इस तात्कालिक आग्रह को न टाल पाई। सोनू घुटनों के बल बैठ गया…और लाली की लाल पेंटी को नीचे सरकाते हुए घुटनों तक ले आया…या तो पेंटी छोटी थी या लाली के नितंबों का आकार कुछ बढ़ गया था पेंटी को नीचे लाने में सोनू को मशक्कत करनी पड़ी थी.. जैसे ही सोनू ने लाली की बुर् के होठों को चूमने के लिए अपना चेहरा उसकी जांघों के बीच सटाया…


तभी दरवाजे पर खटखट हुई…

लाली और सोनू ने एक दूसरे की तरफ देखा…. मिलन में रुकावट आ चुकी थी. लाली सोनू से अलग हुई उसने अपने कपड़े फटाफट ठीक किए और दरवाजा खोलने लगी आगंतुक सलेमपुर से आया एक व्यक्ति था जो सरयू सिंह और लाली के पिता हरिया का पड़ोसी था..

अब तक सोनू भी ऑल में आ चुका था उस व्यक्ति को देखकर सोनू ने कहा

"का हो का बात बा? बड़ा परेशान लगत बाड़ा"

"परेशानी के बातें बा हरिया चाचा और चाची मोटरसाइकिल से गिर गईल बा लोग हाथ गोड छिला गईल बा और चाची के त प्लास्टर भी लागल बा लाली दीदी के लिआवे आईल बानी…" आगंतुक ने एक ही सुर में अपनी सारी बात रख दी।

अपने माता पिता को लगी चोट और प्लास्टर की बात सुनकर लाली हिल गई कोई भी बेटी अपने मां-बाप पर आई इस विपदा से निश्चित ही परेशान हो जाती सो लाली भी हुई

…विषम परिस्थितियों में वासना विलुप्त हो जाती है. अपने माता पिता पर आई इस विपदा ने लाली के मन में फिलहाल जौनपुर जाने के ख्याल को एकदम से खारिज कर दिया.

लाली ने उस आगंतुक को बैठाया उसे पानी पिलाया और विस्तार से उस घटना की जानकारी ली. लाली के माता-पिता दोनों ठीक थे परंतु प्लास्टर की वजह से लाली की मां का चलना फिरना बंद हो गया था लाली का सलेमपुर जाना अनिवार्य हो गया था अपनी मां को नित्यकर्म कराना और उसकी सेवा करना लाली की प्राथमिकता थी वासना का खेल तो जीवन भर चलना था। उस लाली को क्या पता था कि वह जिस कार्य के लिए जा रही थी वह भी उतना ही महत्वपूर्ण था। वैसे भी सोनू के पुरुषत्व का सर्वाधिक लाभ अब तक लाली ने ही उठाया था।


लाली सलेमपुर जाने के लिए राजी हो गई और बोली बस भैया थोड़ा देर रुक जा हम अपन सामान ले ली…

"ए सोनू जाकर सुगना के बुला ले आवा चौबे जी के यहां पूजा में गईल बिया.."

सोनू तुरंत ही सुनना को बुलाने के लिए निकल पड़ा रास्ते भर सोनू सोच रहा था क्या विधाता ने उसका अनुरोध स्वीकार नहीं किया। वह तो चाहता था कि लाली और सुगना दोनों जौनपुर चलें। परंतु यहां स्थिति पलट चुकी थी सोनू के पुरुषत्व को बचाने के लिए जो सबसे सटीक हथियार था वह विफल हो चुका था सोनू उदास था। खुशियों के बीच आशंकाओं का अपना स्थान होता है ..…क्या सचमुच उसे इस महत्वपूर्ण समय में संभोग सुख प्राप्त नहीं होगा। क्या अगला हफ्ता सिर्फ और सिर्फ हस्तमैथुन के सहारे व्यतीत करना होगा।।

लाली के सलेमपुर जाने की बात लगभग तय हो गई थी। परंतु सुगना दीदी? क्या वह जौनपुर जाएंगी? क्या डॉक्टर ने जो नसीहत उन्हें दी है वह उसके पालन के लिए कुछ प्रयास करेंगी? अचानक सोनू के मन में एक सुखद ख्याल आया… हे भगवान क्या सच में उसकी मुराद पूरी होगी? जैसे-जैसे सोनू सोचता गया उसकी अधीरता बढ़ती गई और कदमों की चाल तेज होती गई। चौबे जी के घर पहुंच कर उसने सुनना को बाहर बुलवाया और वस्तुस्थिति की जानकारी दी।


सुगना की आंखें फटी रह गई। सुगना ने पूजा अधूरी छोड़ दी और सोनू के साथ चलती हुई वापस अपने घर आ गई.

जो होना था वह हो चुका था लाली का सलेमपुर जाना तय था…. लाली ने जो तैयारियां जौनपुर के लिए की थी उनका सलेमपुर में कोई उपयोग न था वह कामुकता से भरपूर नाइटीयां और अंतर्वस्त्र सलेमपुर में किस काम आते।


लाली अपने उन वस्त्रों को झोले से निकालकर वापस बिस्तर पर रखने लगी । सुगना परेशान हो रही थी अचानक सुनना के मन में ख्याल आया वह बाहर आई और बोली

" ए सोनू तू भी लाली के साथ ए सलेमपुर चलजो एक दो दिन ओहिजे रुक के देख लीहे "

सोनू सुगना के प्रस्ताव से अकबका गया उसे कोई उत्तर न सूझ रहा था उसने आखिरकार अपने मन में कुछ सोचा और बोला…

"हम लाली दीदी के लेकर सलेमपुर चल जाएब पर रुकब ना.. पहले ही हमार छुट्टी ज्यादा हो गईल बा अब छुट्टी मिले में दिक्कत होई" सोनू ने मन ही मन निश्चित ही कुछ फैसला ले लिया था इन परिस्थितियों में लाली से संभोग संभव न था सोनू को अब भी सुगना से कुछ उम्मीद अवश्य थी उसने अंतिम दांव खेल दिया था।

लाली ने भी सोनू की बात में हां में हां मिलाई और

"सोनू ठीक कहत बा …जायदे सोनू छोड़कर चल जाई"


अचानक आया दुख आपके मूल स्वभाव में जमीन आसमान का अंतर ला सकता है हमेशा छेड़ने और मजाक करने वाली लाली यदि सामान्य अवस्था में होती तो वह एक बार फिर सुगना से मजाक करने से बाज ना आती।

सुगना ने फटाफट खाना निकाल कर उस आगंतुक और सोनू को खाना खिलाया। खाना खाते वक्त सुगना सोनू के मासूम चेहरे को देख रही थी जिसके चेहरे पर उदासी स्पष्ट थी।

परंतु सोनू के चेहरे पर आई यह उदासी लाली के परिवार पर आए कष्ट की वजह से न थी अपितु अपने अगले 1 सप्ताह के सपनों पर पानी फिर जाने की वजह से थी। युवाओं को ऐसी छोटी-मोटी घटनाओं से होने वाले तकलीफों का अंदाजा कुछ कम ही रहता है शायद सोनू को भी लाली के माता-पिता को लगी चोट की गहराई का अंदाजा न था।


लाली की तो भूख जैसे मर गई थी सुगना के लाख कहने के बावजूद उसने कुछ भी ना खाया..

लाली व्यग्र थी उसे फिलहाल अपने घर पहुंचना था अपने मां-बाप को इस स्थिति में जानकर वह दुखी हो गई थी.. उसने फटाफट अपने सामान बाहर निकालl और कुछ ही देर में लाली और रघु और रीमा के साथ सोनू की गाड़ी में बैठ गई…

सोनू जब सुगना से विदा लेने आया तो सुगना से ने कहा " वापसी में एनीये से जईहे तोहरा खातिर कुछ सामान बनल बा…"

सोनू की बांछें खिल गई उसके मन में उम्मीद जाग उठी।

दरअसल सलेमपुर से एक रास्ता सीधा जौनपुर को जाता था यह रास्ता बनारस शहर से बाहर बाहर ही था सुगना ने सोनू को वापसी में एक बार फिर बनारस आने के लिए कह कर उसकी उम्मीद जगा दी पर क्या सुगना सचमुच बनारस जाने को तैयार हो गई थी? . जब तक सोनू अपने मन में उठे प्रश्न के संभावित उत्तर खोज पाता गाड़ी में बैठे लाली पुत्र राजू ने आवाज दी

"मामा जल्दी चल…अ"

सोनू गाड़ी में अगली सीट पर बैठ गया और गाड़ी धीरे धीरे आगे बढ़ते हुए सुगना की नजरों से ओझल हो गई…

सोनू और लाली के जाते ही सुगना सोच में पड़ गई। अब सोनू का क्या होगा? सलेमपुर में इन परिस्थितियों में लाली और सोनू का नजदीक आना संभव न था। और यदि ने इस सप्ताह लगातार वीर्य स्खलन न किया तब?

क्या सोनू नपुंसक हो जाएगा? क्या शारिरिक रूप से परिपक्व और मर्दाना ताकत से भरपूर अपने भाई को सुगना यू ही नपुंसक हो जाने देगी? क्या सोनू के जीवन से यह कुदरती सुख हमेशा के लिए विलुप्त हो जाएगा?

सुगना यह बात मानती थी कि इस विषम परिस्थिति के लिए वह स्वयं जिम्मेवार थी। आखिर सोनू ने नसबंदी का फैसला उसके कारण ही लिया था।

इधर सुगना तनाव में आ रही थी उधर मोनी पूर्ण नग्न होकर अपनी सहेलियों के साथ प्रकृति की गोद में धीरे-धीरे सहज हो रही थी। माधवी उन सभी कुंवारी लड़कियों की देखभाल कर रही थी।

आज माधवी उन सभी लड़कियों को लेकर एक खूबसूरत बगीचे में आ गई जहां बेहद मुलायम घास उगी हुई थी परंतु घास की लंबाई कुछ ज्यादा ही थी। कुछ घांसो के ऊपर सफेद और दानेदार छोटे-छोटे फूल भी खिले हुए थे। सभी लड़कियां अभिभूत होकर उस दिव्य बाग को देख रही थी..


माधवी ने सभी लड़कियों को संबोधित करते हुए कहा…

"आइए हम सब एक खेल खेलते हैं आप सभी को इस मुलायम घास पर शौच की मुद्रा में बैठना है…इस तरह…" ऐसा कहते हुए माधवी अपने दोनों पंजों और एड़ी के बल जमीन पर बैठ गई। माधुरी की पुष्ट जांघे स्वतः ही थोड़ी सी खुल गई और उसकी चमकती दमकती गोरी बुर उन सभी लड़कियों की निगाह में आ गई।


मोनी भी वह दृश्य देख रही थी अचानक उसका ध्यान अपनी छोटी सी मुनिया पर गया और उसने खुद की तुलना माधवी से कर ली। बात सच थी मोनी की जांघों के बीच छुपी खूबसूरत गुलाब की कली माधवी के खिले हुए फूल से कम न थी।

धीरे-धीरे सभी लड़कियां उस मुलायम घास पर बैठ गई और उनकी कुंवारी बुर की होंठ खुल गए ऐसा लग रहा था जैसे बुर के दिव्य दर्शन के लिए उसके कपाट खोल दिए गए हों। मुलायम घास जांघों के बीच से कभी बुर के होठों से छूती कभी गुदाद्वार को। एक अजब सा एहसास हो रहा था जो शुरू में शुरुआत में तो सनसनी पैदा कर रहा था परंतु कुछ ही देर बाद वह बुर् के संवेदनशील भाग पर उत्तेजना पैदा करने लगा। यह एहसास नया था अनोखा था। जब तक मोनी उस एहसास को समझ पाती। माधवी की आवाज एक बार फिर आई। उसने पास रखी डलिया से छोटे छोटे लाल कंचे अपने हाथों में लिए और लड़कियों को दिखाते हुए बोली

" यह देखिए मैं ढेर सारे कंचे इसी घास पर बिखेर देती हूं और आप सबको यह कंचे बटोरने हैं पर ध्यान रहे आपको इसी अवस्था में आगे बढ़ना है उठना नहीं है…. तो क्या आप सब तैयार हैं ?"

कुछ लड़कियां अब भी उस अद्भुत संवेदना में खोई हुई थी और कुछ माधवी की बातें ध्यान से सुन रही थी ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार कुछ संवेदनशील विद्यार्थी कक्षा की भौतिक परिस्थितियों को नजरअंदाज कर अपने गुरु द्वारा बताई जा रही बातों में खोए रहते हैं और अपना सारा ध्यान उनके द्वारा दिए जा रहे दिशा-निर्देशों पर केंद्रित रखते हैं

"हां हां " लड़कियों ने आवाज दी।


और माधुरी ने कंचे हरी हरी घास पर बिखेर दिए। घांस लंबी होने की वजह से वह कंचे खो गए सभी लड़कियां कंचे बीनने के लिए अपने पंजों की मदद से आगे पीछे होने लगी। खेल प्रारंभ हो गया उनका हाथ और दिमाग कंचे ढूंढने में व्यस्त था परंतु कुछ लड़कियां अपने आगे पीछे होने की वजह से अपनी बुर पर एक अजीब संवेदना महसूस कर रही थी जो उन मुलायम घासों से रगड़ खाने से हो रही थी। उनका खेल परिवर्तित हो रहा था कंचे ढूंढने और प्रथम आने के आनंद के अलावा वह किसी और आनंद में खो गई…उनकी जांघों और संवेदनशील बुर पर पर घांसों के अद्भुत स्पर्श का आनंद कुछ अलग ही था।

मोनी भी आज उस आनंद से अछूती न थी प्रकृति की गोद खिली कोमल घांस के कोपलों ने आज मोनी को अपने स्पर्श से अभिभूत कर दिया था। मोनी खुश थी और अपनी कमर हौले हौले हिला कर अपनी खूबसूरत मुनिया को उन घासों से रगड़ रही थी ….उसके चेहरे पर मुस्कुराहट और गालों पर ही शर्म की लालिमा दूर खड़ी माधवी देख रही थी कक्षा का प्यह दिन मोनी के लिए सुखद हो रहा था। और माधवी को जिस खूबसूरत और अद्भुत कन्या की तलाश थी वह पूरी होती दिखाई पड़ रही थी।

कुछ देर बाद माधवी ने फिर कहा अब आप सब अपनी अपनी जगह पर खड़े हो जाएं। जिन लोगों ने जितने कंचे बटोरे हैं वह अपनी अंजुली में लेकर बारी बारी से मेरे पास आए और इस डलियां…में वापस रख दें..

कई लड़कियों ने पूरी तल्लीनता और मेहनत से ढेरों कंचे बटोरे थे परंतु मोनी और उस जैसी कुछ लड़कियों ने इस खूबसूरत खेल से कुछ और प्राप्त किया था और वह उस घास के स्पर्श सुख से अभिभूत होकर अपनी बुर में एक अजीब सी संवेदना महसूस कर रही थीं।

जैसे ही वह खड़ी हुई बुर के अंदर भरी हुई नमी छलक कर बुर् के होठों पर आ गई और बुर् के होंठ अचानक चमकीले हो गए थे…. माधुरी की निगाहें कंचो पर न होकर बुर् के होठों पर थी। वह देख रही थी कि उसकी शिष्यायों में वासना का अंकुर फूट रहा है मोनी कम कंचे बटोरने के बावजूद अपनी परीक्षा में सफल थी.. उसकी बुर पर छलक आई काम रस की बूंदे कई कंचों पर भारी थी. मोनी को जो इस खेल में जो आनंद आया था वह निराला था।

इधर मोनी अपनी नई दुनिया में खुश थी उधर सुगना का तनाव बढ़ता जा रहा था। उसका उसका सारा किया धरा पानी में मिल गया था लाली को उसने कितनी उम्मीदों से तैयार किया था परंतु विधाता ने ऐसी परिस्थिति लाकर लाली को जौनपुर की बजाय सलेमपुर जाने पर मजबूर कर दिया था। छोटा सूरज अपनी मां सुगना को परेशान देखकर बोला..

"मां जौनपुर हमनी के चलल जाओ…मामा के नया घर देखें के आ जाएके" सूरज ने मासूमियत से यह बात कह तो दी थी।

सुगना सूरज को क्या उत्तर देती लाली जिस निमित्त जौनपुर जा रही थी वह प्रयोजन पूरा कर पाना सुगना के बस में न था…जितना ही सुगना इस बारे में सोचती वह परेशान होती…आखिर कैसे कोई बड़ी बहन अपने ही छोटे भाई को उसे चोदने के लिए उकसा सकती थी यद्यपि सुगना यह बात जानती थी कि आज से कुछ दिनों पहले तक सोनू की वासना में उसका भी स्थान था और शायद इसी वासना के आगोश में सोनू ने दीपावली की रात वह पाप कर दिया था. ..परंतु दीपावली की रात के बाद हुई आत्मग्लानि ने शायद सोनू के व्यवहार में परिवर्तन ला दिया था। पिछले कुछ दिनों में सोनू का व्यवहार एक छोटे भाई के रूप में सर्वथा उचित था और पूरी तरह उत्तेजना विहीन था…


सुगना मासूम थी…सोनू के मन में उसके प्रति छाई वासना को वह नजरअंदाज कर रही थी…उधर सोनू उधर सोनू अपनी बड़ी बहन सुगना के प्यार में पूरी तरह मदहोश हो चुका था। वासना अपनी जगह थी और प्यार अपनी जगह।

अभी तो शायद प्यार का पलड़ा ही भारी था सोनू यथाशीघ्र लाली को सलेमपुर छोड़कर वापस बनारस आ जाना चाहता था। उसे विश्वास था कि उसकी मिन्नतें सुगना दीदी ठुकरा ना पाएगी और उसके साथ जौनपुर आ जाएगी बाकी जो होना था वह स्वयं सुगना दीदी को करना था उसे यकीन था कि सुगना दीदी उसके पुरुषत्व को यूं ही व्यर्थ गर्त में नहीं जाने देगी…

उधर कोई और रास्ता न देख सुगना ने फैसला कर लिया कि वह लाज शर्म छोड़कर…सोनू से खुलकर बात करेगी और डॉक्टर द्वारा दी गई नसीहत को स्पष्ट रूप से सोनू को बता देगी.

सुगना अपनी बात सोनू तक स्पष्ट रूप से पहुंचाने के लिए अपने शब्दों को सजोने लगी …निश्चित ही अपने छोटे भाई को डॉक्टर द्वारा दी गई उस नसीहत को समझाना कठिन था…

शेष अगले भाग में….
बहुत ही सुंदर लाजवाब और अद्भुत मनभावन अपडेट है भाई मजा आ गया
सुगना लाली को जौनपुर भेज कर उसकी और सोनू की चुदाई का पुरा इंतजाम कर रही थी वो लाली को उबटन लगा कर सोनू के लिये चिकनी चमेली बना रही थी
इधर सोनू भी खुश था लेकीन लाली के माँ, पिता का अपघात सोनु और सुगना का घात कर गया लाली जौनपुर की जगह सलेमपुर निकल गयी
आश्रम में मोनी और अन्य कुवारी लडकीयोंसे ये कौनसा खेल खिला कर उनके नाजुक अंगो को परखा जा रहा हैं और क्यो देखने वाली बात है
लाली सलेमपुर चली जाने से क्या सुगना जौनपुर जाने का फैसला करती है उसे उसके बेटे सुरज ने भी कह दिया चली जाने को
तो क्या सोनू के पुरुषत्व को बचाने के लिये सुगना कोई कडा निर्णय ले कर सोनू के साथ जौनपुर जाती है देखते हैं आगे
 

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भाग 117

उधर कोई और रास्ता न देख सुगना ने फैसला कर लिया कि वह लाज शर्म छोड़कर…सोनू से खुलकर बात करेगी और डॉक्टर द्वारा दी गई नसीहत को स्पष्ट रूप से सोनू को बता देगी.


सुगना अपनी बात सोनू तक स्पष्ट रूप से पहुंचाने के लिए अपने शब्दों को सजोने लगी …निश्चित ही अपने छोटे भाई को डॉक्टर द्वारा दी गई उस नसीहत को समझाना कठिन था

अब आगे..

लाली और सोनू के जाने के बाद सुगना खुद को असहाय महसूस कर रही थी। नियति ने उसे न जाने किस परीक्षा में डाल दिया था उसका अचूक अस्त्र लाली रणक्षेत्र से बाहर हो चुकी थी।


सोनू के पुरुषत्व को जीवित रखने के लिए सुगना नए-नए उपाय सोच रही थी। सोनू द्वारा स्वयं हस्तमैथुन कर अपने पुरुषत्व को जगाए रखना ही एकमात्र विकल्प नजर आ रहा था।

मुसीबत में इंसान तार्किक हुए बिना कई संभावनाएं तलाश लेता है परंतु हकीकत की कसौटी पर वह संभावनाएं औंधे मुंह गिर पड़ती हैं। अपने ही भाई को अब से कुछ दिनों पहले हस्तमैथुन के लिए पहले रोकना और अब उसे समझा कर उसी बात के राजी करना सुगना को विचित्र लग रहा था।

यद्यपि हस्तमैथुन वीर्य स्खलन करने में सक्षम तो था परंतु डॉक्टर ने दूसरे विकल्प के रूप में बताया था पहला विकल्प अब भी स्पष्ट था संभोग और संभोग हस्तमैथुन का विकल्प तब के लिए था जब सुगना संभोग के लायक कुदरती रूप से न रहती। शायद उस डॉक्टर ने वह क्रीम इसीलिए दी थी।

कई बार कुछ कार्य बेहद आसान होते हैं और अचानक ही एक कड़ी के टूट जाने से वह दुरूह हो जाते है। लाली और सोनू का मिलन सबसे सटीक उपाय था पर अब वह हाथ से निकल चुका था। अचानक सुगना को रहीम और फातिमा की कहानी याद आई और उसकी आंखों में चमक आ गई सुगना ने फटाफट कपड़े बदले और अपने दोनों बच्चों को पड़ोस में कुछ देर के लिए छोड़ कर बाजार की तरफ निकल गई। वैसे भी अब सूरज समझदार हो चुका था और अपनी बहन मधु का ख्याल रख लेता था।


जब जब सुगना सूरज और मधु को साथ देखती उसे भविष्य के दृश्य दिखाई देने लगते विद्यानंद द्वारा कही गई बातें उसके जेहन में गूंजने लगती सूरज कैसे अपनी छोटी बहन के साथ संभोग करेगा ?

सुगना न जाने क्यों यह बात भूल रही थी कि वह स्वयं उसी दहलीज पर खड़ी थी सोनू भी तो उसका अपना भाई था।

सुगना का रिक्शा एक राजसी वैद्य की कुटिया के पास रुका। अंदर वैद्य की जगह उनकी पत्नी उनका कार्यभार सम्हालती थी। कजरी से पूर्व परिचित होने के कारण वह सुगना के भी करीब हो चुकी थीं। सुगना अंदर प्रवेश कर गई। कुछ देर तक वार्तालाप करने की पश्चात वापसी में सुगना के चेहरे पर संतोष स्पष्ट दिखाई पड़ रहा था शायद अंदर उसे जो शिक्षा और ज्ञान मिला था उससे सुगना संतुष्ट थी।

शाम के 4:00 बज चुके थे सुगना सोनू का इंतजार कर रही थी पर परंतु सोनू के आने में विलंब हो रहा था। सुगना सोनू से बात करने का मसौदा तैयार कर चुकी थी और न जाने कितनी बार उन शब्दों को अपने मन में दोहरा चुकी थी।


हर इंतजार का अंत होता है और सुगना का इंतजार भी खत्म हुआ सोनू की गाड़ी की आवाज बाहर सुनाई दी और सुगना झट से खिड़की पर आ गई। सोनू गाड़ी से उतर कर अंदर आ रहा था चेहरे पर थकावट स्पष्ट रूप से दिखाई दे रही। बात सच थी आज का दिन सोनू का भागते दौड़ते बीत गया था। योजनाएं सिर्फ सुगना की चकनाचूर न हुई थी सोनू भी आशंकाओं से घिरा हुआ था। सलेमपुर में हुई घटना ने सब कुछ तितर-बितर कर दिया था।

सोनू अपना चेहरा अपने अंगौछे से पोछता हुआ अंदर आया।

"कईसन बाड़े लोग हरिया चाचा और चाची? ज्यादा चोट तो नाइखे लागल ?" सुगना ने स्वाभाविक प्रश्न किया। हरिया चाचा उसके पड़ोसी थे और सरयू सिंह के परम मित्र भी सुगना के सलेमपुर प्रवास के दिनों में उन दोनों ने सुगना का बखूबी ख्याल रखा था। कमरे के अंदर सरयू सिंह के उस दिव्य रूप और रिश्ते को छोड़ दिया जाए तो सरयू सिंह और हरिया दोनों पिता तुल्य ही थे।

"ठीक बाड़े लोग तीन-चार दिन में घाव सूख जाई ज्यादा चोट नईखे लागल चाची के ही पैर में प्लास्टर लागल बा उहे दिक्कत के बात बा? लाली दीदी त बुझाता ओहीजे रहीहैं " सोनू ने स्पष्ट तौर पर सुगना के मन में चल रही सारी संभावनाओं पर विराम लगा दिया।

सोनू स्वयं सुगना के मन की बात जानना चाहता था क्या सुगना उसके साथ जौनपुर जाएगी?

अपनी अधीरता सोनू रोक ना पाया शायद इसीलिए उसने सारी बातें स्पष्ट रूप से सुगना को बता दीं…वह बिना प्रश्न पूछे ही अपना उत्तर चाह रहा था।

सुगना सोच में डूब गई…

सुगना को मौन देख सोनू ने कहा..

" हमरा के जल्दी से चाय पिला द हमरा वापिस जौनपुर जाए के बा"

सुगना ने सोनू की बात का कोई उत्तर न दिया परंतु रसोईघर में जाते-जाते उसने सोनू और दिशा निर्देश दे दिया जाकर पहले मुंह हाथ धो ला। दिन भर के थाकल बाड़.. अ पहले चाय पी ल फिर बतियावाल जाए"


सुगना पूरी तरह तैयार थी। वैद्य जी की पत्नी से मिलने के बाद सुगना के पास कई विकल्प थे। जिसके तरकस में कई तीर आ चुके हों उसमें आत्मविश्वास आना स्वाभाविक।

सुगना रसोई घर में और सोनू गुसल खाने में अपने अपने कार्यों में लग गए पर दिमाग एक ही दिशा में कार्य कर रहा था।

आखिरकार सुगना चाय लेकर सोनू के समक्ष उपस्थित थी। सुगना आपने चेहरे पर उभर रहे भाव को यथासंभव नियंत्रित करने का प्रयास कर रही थी और अपनी नजरें झुकाए हुए थी। उसने सोनू के हाथ में चाय की प्याली दी और बोला

"आज ही जाएल जरूरी बा का?"

हां दीदी बहुत छुट्टी हो गईल बा अब और छुट्टी ना मिली…वैसे भी साल बीते में 1 सप्ताह ही बा।


सुगना ने फिर कहा

"1 सप्ताह बाद फिर लखनऊ भी जाए के बा चेकअप करावे मालूम बानू"

"हां याद बा… नया साल में चलल जाई"

"सोनू एक बात कही?" सुगना लाख प्रयास करने के बाद भी अपनी प्रश्न में छुपी हुई संजीदगी रोक ना पाए और सोनू सतर्क हो गया..

"हां बोल ना दीदी"

"डॉक्टर कहत रहे….." सुगना की सारी तैयारी एक पल में स्वाहा हो गई और उसकी जुबान लड़खड़ा गई

सोनू ने आतुरता से सुगना के मुंह में जबान डालते हुए बोला

"का कहत रहे दीदी?"


सुगना ने फिर हिम्मत जुटाई और बोली

" ते जवन नसबंदी करोले ल बाड़े ओकरे बारे में कहत रहे…"

"का कहत रहे?" सोनू ने सुगना को उत्साहित किया

"सुगना शर्म से गड़ी जा रही थी.. अपने कोमल पैरों से मजबूत फर्श को कुरेदनी की कोशिश की और अपनी हांथ की उंगलियों को एक दूसरे में उलझा लिया शारीरिक क्रियाएं दिमाग में चल रही उलझन का संकेत देती हैं सुगना परेशान हो गई थी। उसने बेहद धीमे स्वर में कहा ..

"डॉक्टर कहते रहे की… नसबंदी के सात दिन बाद एक हफ्ता तक ज्यादा से ज्यादा वीर्य स्खलन करना चाहिए… जिससे ऊ अंग आगे भी काम करता रहे चाहे इसके लिए हस्तमैथुन ही क्यों ना करना पड़े "

सुगना ने डॉक्टर की नसीहत को तोड़मरोड़ कर सोनू को सुना दिया था…हिंदी भाषा का अधिकाधिक प्रयोग कर सुगना ने सोनू को डॉक्टर द्वारा दी गई नसीहत सुनाने की कोशिश की थी…. परंतु परंतु संभोग की बात वह छुपा ले गई थी आखिर जो संभव न था उसके जिक्र का कोई औचित्य भी न था।

अपनी बहन के मुख से हिंदी के वाक्य सुनकर सोनू भी आश्चर्यचकित था और मन ही मन मुस्कुरा रहा था उसने सुगना के शर्माते हुए चेहरे को पढ़ने की कोशिश की परंतु सुगना नजरे ना मिला रही थी.

"का दीदी अभी तीन-चार दिन पहले तक तो उल्टा कहत रहलू और अब उल्टा बोला तारु "

"जरूरी बार एही से बोला तानी"

"दीदी हमरा से ई सब ना होई वैसे भी हमार ई सब से मन हट गईल बा अब हमार जीवन के लक्ष्य बदल गईल बा"

सुगना को एक पल के लिए भ्रम हुआ जैसे सोनू सच कह रहा है परंतु सुगना यह बात भली-भांति जानती थी कि सोनू लाली को चोदने के लिए आतुर था बड़ी मुश्किल से उसने उसे लाली से 1 हफ्ते तक दूर रखा था अचानक वासना से विरक्ति निश्चित ही यकीन योग्य बात न थी।

सुगना कुछ और कहना चाहती थी तभी सूरज कमरे में आ गया और सोनू के पास में आते हुए बोला

"मामा लाली मौसी जौनपुर नईखे जात त हमनी के ले चला… हमरो स्कूल के छुट्टी हो गईल बा"

सोनू ने सूरज के गाल पर पप्पी ली और अपने मन में उठ रही खुशी की तरंगों को नियंत्रित करते हुए बोला.. "हमरा से का बोलत बाड़ा अपना मां से बोला हम तो चाहते बानी"

सूरज सोनू के पास से उठकर सुगना के पास में आ गया और उसके गालों और होठों को चूमते हुए बोला "मां चल ना " सोनू सुगना के चेहरे पर बदल रहे भाव को पढ़ रहा था। और उसने एक बार फिर सुगना से बेहद प्यार से कहा ..

" चल ना दीदी अब तो घर में केहू नईखे …दू चार दिन रह के नया घर देख लिहे ओहिजे से लखनऊ भी चल जाएके "

सुगना ने न जाने क्या सोचा पर उसने अपनी हामी भर दी और उठ कर अपने कमरे में आ गई। थोड़ी ही देर में सुगना अपने दोनों छोटे बच्चों के साथ जौनपुर जाने के लिए तैयार थी। सुगना का पहला तीर खाली गया था पर उसके तरकश में अब भी तीर बाकी थे।

सोनू की सरकारी गाड़ी सड़क पर तेजी से दौड़ रही थी ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे सोनू की अधीरता उसका ड्राइवर भी समझ रहा था सुगना खिड़की का शीशा खोलें बाहर देख रही थी। चेहरा एकदम शांत पर मन में हिलोरे उठ रही थी जो सुगना ने सोचा था उसे अंजाम में लाने की सोच कर उसका तन बदन सिहर रहा था।

आखिरकार सुगना सोनू के नए बंगले पर खड़ी थी सोनू के मातहत फटाफट सुगना और सोनू का सामान गाड़ी से निकालकर अंदर लाने लगे और सोनू पहली बार अपनी बड़ी बहन सुगना तो अपने नए आशियाने में अंदर ला रहा था खूबसूरत सजा हुआ घर वह भी अपना….. सुगना घर की खूबसूरती देखकर प्रसन्न हो गई थी उसने हॉल में कुछ कदम बढ़ाए उसका ध्यान बगल के कमरे पर गया..

"अरे ई पलंगवा काहे खरीदले"


सोनू के घर में स्वयं द्वारा पसंद किए गए पलंग को देखकर सुगना आश्चर्यचकित थी। उस दिन बनारस में एक ही पलंग खरीदने की बात हुई थी और वह था लाली की पसंद का। सुगना ने पीछे मुड़कर सोनू को देखा और प्रश्न किया

"लाली ई पलंग देखित त का सोचित?"


सोनू पीछे खड़ा मुस्कुरा रहा था। वह सुगना के पास आया और उसका हांथ पकड़ कर दूसरे कमरे में ले गया…जहां लाली की पसंद का पलंग लगा था। सुगना सोनू की समझदारी पर खुश हो गई।

दोनों ही कमरे सोनू ने बेहद खूबसूरती के साथ सजाए थे और जितना भी वह अपनी बहनों को समझ पाया था उसने दीवारों पर रंगरोगन और बिस्तर की चादर का रंग भी उनके पसंद के अनुसार ही रखा था… सुगना अभिभूत थी। सोनू के प्रति उसके दिल में प्यार और इज्जत बढ़ गई।

सोनू के अर्दली और मातहतों ने सुगना का सामान सुगना के पलंग पर लाकर रख दिया और थोड़ी ही देर में सुगना अपने कमरे में सहज होने लगी। सूरज और मधु नए पलंग पर खेलने लगे।

रसोई घर की हालत देखकर सुगना ने सोनू से कहा…

"खाली रसोई घर के हालत खराब बा बाकी तो घर तू चमका ले ले बाड़ा"

"दीदी ई त हम तोहरा और लाली दीदी के खातिर छोड़ देले रहनी.. अब काल आराम से सरिया लिहा"

" तब आज खाना कैसे बनी"

"आज खाना बाहर से आई… ड्राइवर चल गईल बा ले आवे"

सुगना ने सोनू से पूछा

"और सूरज मधु खातिर दूध?"

" मंगा देले बानी.. और तोहरा खातिर भी तू भी त पसंद करेलू "

सुगना मुस्कुरा रही थी उसे इस बात की खुशी थी कि उसका छोटा भाई उसकी हर पसंद नापसंद से अब भी बखूबी वाकिफ था।

धीरे-धीरे सभी घर में सहज हो गए खाना आ चुका था सूरज और मधु तो पहले से ही चॉकलेट और न जाने क्या-क्या अनाप-शनाप खाकर मस्त हो गए थे। सुगना ने सूरज और मधु को गिलास से दूध पिलाया। मधु भी अब काफी समय से सुगना की चूचियां पीना छोड़ चुकी थी शायद अब न तो उसे इसकी आवश्यकता थी और नहीं सुगना की चूचियां और दूध उत्सर्जन कर रही थीं। अब जो उनका उपयोग था उसका इंतजार कोई और कर रहा था।

अब तक सोनू स्नान ध्यान कर तैयार हो चुका था सफेद धोती और नई नई सैंडो बनियान पहने सोनू का गठीला बदन देखने लायक था बदन से चिपकी हुई बनियान उसे और खूबसूरत आकार दे रही थी पुष्ट और चौड़ा मांसल सीना और उस पर उभरी मांसल नसें ट्यूबलाइट के दूधिया प्रकाश में चमक रही थीं…

सूरज के अनुरोध पर सोनू सुगना के बिस्तर पर आकर दोनों के साथ खेलना लगा। सूरज और मधु धीरे-धीरे अंगड़ाई लेते हुए बिस्तर पर लेटे सोनू से कहानियां सुनने लगे।

जब तक दोनो नींद में जाते सुगना सोनू के लिए खाना लेकर आ चुकी थी।

सोनू ने जिद कर सुगना के लिए भी प्लेट मंगवा ली सुगना कहती रही कि मैं स्नान करने के बाद आराम से खा लूंगी परंतु सोनू न माना। आखिरकार सोनू और सुगना साथ साथ भोजन करने लगे बार-बार सुगना की निगाहें सोनू के गठीले बदन पर जाती और सुगना सोनू के मर्दाना शरीर को देखकर मोहित हो जाती काश यदि सोनू उसका भाई ना होता तो निश्चित ही वह उसके सपनों का राजकुमार होता परंतु मन का सोचा कहां होता है हकीकत और कल्पना का अंतर है सुगना भली भांति जानती थी ।

सुगना ने मन बना लिया था कि वह सोनू के पुरुषत्व को निश्चित ही यूं ही खत्म नहीं होने देगी आखिर देर सबेर यदि सोनू विवाह के लिए राजी होता है तो अपनी अर्धांगिनी को वंश तो नहीं परंतु स्त्री सुख अवश्य दे पाएगा।

सोनू का कलेजा भी सीने में कुछ ज्यादा ही तेज धड़क रहा था जैसे-जैसे रात्रि की बेला नजदीक आ रही थी सोनू अधीर हो रहा था क्या होने वाला था? सुगना दीदी आखिर क्या करने वाली थी उसे इस बात का तो यकीन था कि आज की रात व्यर्थ न जाएगी पर कोई सुगना के व्यवहार में इसकी झलक दिखाई नहीं पड़ रही थी।

सुगना खाने की झूठी प्लेट लेकर वापस रसोई घर की तरफ से आ रही थी और उसके मादक नितंब सोनू की नजरों के साथ थिरक रहे थे।

सोनू अपने मन में सुगना के साथ बिताए कामुक पलों को याद करने लगा सुगना का नंगा बदन उसकी आंखों में घूमने लगा वासना चरम पर थी जैसे-जैसे सुगना का नशा दिमाग पर चढ़ता गया लंड उत्तेजना से भरता चला गया उधर सुगना के हाथ कांप रहे थे गर्म दूध गिलास में निकाल कर उसने अपने ब्लाउज में हाथ डालकर एक लाल पुड़िया निकाली… .और पुड़िया में रखा एक चुटकी सफेद पाउडर दूध की गिलास में मिला दिया….

उसने हाथ जोड़कर अपने इष्ट देव को याद किया और वैद्य जी की पत्नी को धन्यवाद दिया तथा अपनी पलकें बंद कर ली…शायद सुगना किए जाने वाले कृत्य की अग्रिम माफी मांग रही थी..

हाथ में गिलास का दूध लिए सुगना सोनू के बिस्तर पर आ चुकी थी…

"ले सोनू दूध पी ले "

"तू भी दूध पी ल" सोनू अपनी तरफ से सुगना का पूरा ख्याल रखना चाहता था।

सुगना ने बड़ी बहन के अधिकार को प्रयोग करते हुए सोनू से कहा

"अब चुपचाप दूध पी ला तोहरा कहना पर बिना नहाए ले खा लेनी अब दूध ना पियब…हम नहा के पी लेब "


सोनू ने दूध का गिलास पकड़ लिया। सुगना सूरज और मधु के ऊपर रजाई डालने लगी। वह बार-बार कनखियों से सोनू को देख रही थी मन में आशंका उठ रही थी कि कहीं सोनू को दूध का स्वाद अलग ना लगे और हुआ भी वही जैसे ही सोनू ने दूध का पहला घूंट लिया उसकी स्वाद इंद्रियों ने स्वाद में बदलाव महसूस किया परंतु इस बदलाव का कारण सोनू की कल्पना शक्ति से परे था। सोनू यह बात सोच भी नहीं सकता था कि उसकी बहन सुगना ने उस दूध में कुछ तत्व मिलाए थे।

सोनू ने फिर भी सुगना से कहा

"ओहिजा गांव में बढ़िया दूध मिलत रहे आज के दूध तो बिल्कुल अलग लागत बा.."

सुगना हड़बड़ा गई दूध का स्वाद निश्चित ही कुछ बदल गया होगा परंतु सुगना ने सोनू की बात को ज्यादा अहमियत न देते हुए कहा…

"हां अलग-अलग जगह के दूध में अंतर होला वैसे देखे में तो ठीक लागत रहे"

सोनू धीरे-धीरे दूध के घूंट पीता रहा और जब सुगना संतुष्ट हो गई की सोनू पूरा दूध खत्म कर लेगा वह नहाने के लिए गुसलखाने में प्रवेश कर गई।

सुगना का कलेजा धक-धक कर रहा था बाथरूम में नग्न शरीर पर गर्म पानी डालते हुए सुगना सोच रही थी क्या वह जो करने जा रही थी वह उचित था..

आइए सुगना को स्थिर चित्त होने के लिए कुछ समय देते हैं और आपको लिए चलते हैं सलेमपुर के उसी घर में जहां पर इस कहानी की शुरुआत हुई थी। सुगना के आगमन से अब तक घर में कई बदलाव आ चुके थे पर मूल ढांचा अब भी वहीं था परंतु समृद्धि का असर घर पर दिखाई दे रहा था सरयू सिंह की कोठरी भी अब बिजली के प्रकाश से जगमगाने लगी थी।

बनारस से वापस आने के बाद उनकी उम्मीदें टूट चुकी थी पर सोनी को याद करना अब भी बदस्तूर जारी था। हस्तमैथुन के समय सोनी अब भी याद आती थी परंतु ग्लानि भाव के साथ। आखिरकार सरयू सिंह ने अपनी वासना को नया रूप दिया और बाजार से जाकर टीवी खरीद लाए टीवी में कई नायिकाएं नायिकाएं और उनके प्रणय दृश्य सरयू सिंह को लुभाने लगे और धीरे-धीरे स्वयं को उन नायिकाओं के साथ कल्पना कर सरयू सिंह की रातें एक बार फिर रंगीन होने लगी।

हकीकत और टीवी का अंतर स्पष्ट था जब जब उनके मन में सोनी का गदराया बदन घूमता उत्तेजना नया रूप ले लेती परंतु वह भी यह बात जान चुके थे कि सोनी अब हाथ से निकल चुकी है।


मन में दबी हुई आस लिए सरयू सिंह धीरे-धीरे अपना समय व्यतीत कर रहे थे परंतु उन्होंने सोनी के लिए जो मन्नतें मांगी थी नियति ने उनकी इच्छा का मान रखने की सोच ली थी।

तभी कजरी उनकी कोठरी में आई और सरयू सिंह ने अपनी धोती से अपने खड़े लंड को ढक लिया..

टीवी पर चल रहे दृश्यों को कजरी ने सरयू सिंह की मनो स्थिति समझ ली और कहा…

"जाने ई कुल से राऊर ध्यान कब हटी"

सरयू सिंह ने कजरी को छेड़ते हुए कहा

" अब तू ता पूछा हूं ना आवेलू "

"अब हमरा से ई कुल ना होई आपके भी इस सब छोड़ देवें के चाही अतना उम्र में के ई कुल करेला?"

"काहे ना करेला ? काहे जब ले जान बा आदमी सांस लेला की ना.?." सरयू सिंह ने उल्टा प्रश्न पूछ कर अपनी बात रखने की कोशिश की.

"तब अपना पतोहिया सुगना के काहे छोड़ देनी…जैसे तीन चार साल खेत जोतले रहनी… आगे भी…जोतत रहतीं ओकरो जीवन त अभियो उदासे बा"

सरयू सिंह निरुत्तर हो गए। अपनी पुत्री सुगना के साथ जो पाप उन्होंने किया था वह उसे भली-भांति समझते थे। पर अब वह और उस बारे में नहीं सोचना चाहते थे और ना ही बात करना। सुगना उनकी दुखती रग थी जिसके बारे में कामुक बातें करने पर सरयू सिंह शांत पड़ जाते थे।

सरयू सिंह को को चुप देखकर कजरी ने उन्हें और परेशान करना उचित न समझा। यह बात कजरी भी जानती थी कि अब सुगना और सरयू सिंह के बीच कोई भी कामुक रिश्ता नहीं बचा है पर इसकी वजह क्या थी यह ज्ञान उसे न था।

कजरी आई थी कुछ और बात कहने और सरयू सिंह की दशा दिशा देखकर बातें कुछ और होने लगी थी कजरी ने मूल बात पर आते हुए कहा

"गुड़ के लड्डू बनावले बानी …छोटकी डॉक्टरनी सीतापुर आईल बिया जाके दे आईं बहुत पसंद करेले"

"के ?" सरयू सिंह छोटी डॉक्टरनी को समझ ना पाए

"अरे सब के दुलरवी सोनी"

सरयू सिंह के जेहन में सोनी का चेहरा घूम गया उन्होंने सहर्ष सीतापुर जाने की सहमति दे दी मन में उमंगे हिलोरे मार रही थी सोनी के करीब जाने की बात सुनकर मन एक बार फिर ख्वाब बुनने लगा था परंतु हकीकत सरयू सिंह भी जानते थे पर उम्मीदों का क्या?

उधर जौनपुर में सुगना अपना स्नान पूरा कर चुकी थी और सुगना द्वारा दिया गया दूध पीकर सोनू बिस्तर पर लेटे लेटे सो गया था शायद यह निद्रा कुछ अलग थी सुगना द्वारा दूध में मिलाया गया वह विशेष रसायन अपना असर दिखा चुका था सुगना सोनू के मासूम चेहरे को देख रही थी और कसा हुआ सोनू का बदन बिस्तर पर निढाल पड़ा हुआ था..

सुगना अपनी धड़कनों पर काबू पाते हुए आगे बढ़ रही थी.. पैर कंपकपा रहे थे यह ठंड की वजह से था या सुगना के मन में चल रहे भंवर से कहना कठिन था..

परीक्षा की घड़ी आ चुकी थी…

शेष अगले भाग में….
अप्रतिम और अद्भुत रमणिय अपडेट है भाई मजा आ गया
नियती ने आगे के लिये बहुत कुछ पसार कर रखा हैं जैसे सोनी और सरयुसिंग का मीलन हो पायेगा
सोनू के पुरुषत्व को बचाने सुगना कौनसा कदम उठाती हैं
सुगना ने दुध में क्या मिलाया क्या रहीम और फातिमा की कहानी प्रत्यक्ष रुप में खुद आजमायेगी खैर देखते हैं आगे क्या होता है
 
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