• If you are trying to reset your account password then don't forget to check spam folder in your mailbox. Also Mark it as "not spam" or you won't be able to click on the link.

Incest आह..तनी धीरे से.....दुखाता.

whether this story to be continued?

  • yes

    Votes: 43 97.7%
  • no

    Votes: 1 2.3%

  • Total voters
    44

Lovely Anand

Love is life
1,324
6,479
159
आह ....तनी धीरे से ...दुखाता
(Exclysively for Xforum)
यह उपन्यास एक ग्रामीण युवती सुगना के जीवन के बारे में है जोअपने परिवार में पनप रहे कामुक संबंधों को रोकना तो दूर उसमें शामिल होती गई। नियति के रचे इस खेल में सुगना अपने परिवार में ही कामुक और अनुचित संबंधों को बढ़ावा देती रही, उसकी क्या मजबूरी थी? क्या उसके कदम अनुचित थे? क्या वह गलत थी? यह प्रश्न पाठक उपन्यास को पढ़कर ही बता सकते हैं। उपन्यास की शुरुआत में तत्कालीन पाठकों की रुचि को ध्यान में रखते हुए सेक्स को प्रधानता दी गई है जो समय के साथ न्यायोचित तरीके से कथानक की मांग के अनुसार दर्शाया गया है।

इस उपन्यास में इंसेस्ट एक संयोग है।
अनुक्रमणिका
Smart-Select-20210324-171448-Chrome
भाग 126 (मध्यांतर)
 
Last edited:

Napster

Well-Known Member
5,266
14,431
188
भाग 118

उधर जौनपुर में सुगना अपना स्नान पूरा कर चुकी थी और सुगना द्वारा दिया गया दूध पीकर सोनू बिस्तर पर लेटे लेटे सो गया था शायद यह निद्रा कुछ अलग थी सुगना द्वारा दूध में मिलाया गया वह विशेष रसायन अपना असर दिखा चुका था सुगना सोनू के मासूम चेहरे को देख रही थी और कसा हुआ सोनू का बदन बिस्तर पर निढाल पड़ा हुआ था..

सुगना अपनी धड़कनों पर काबू पाते हुए आगे बढ़ रही थी.. पैर कंपकपा रहे थे यह ठंड की वजह से था या सुगना के मन में चल रहे भंवर से कहना कठिन था..

परीक्षा की घड़ी आ चुकी थी…

अब आगे

बेहद खूबसूरत नाइटी पहने सुगना धीरे-धीरे पलंग की तरह बढ़ रही थी। लाख पोछने के बावजूद शरीर पर चिपकी पानी की बूंदे नाइटी को जगह जगह से गीला कर चुकी थीं। सुगना ने बिस्तर पर रखा हुआ अपना शाल ओढ़ा और धीरे धीरे सोनू के करीब आकर बिस्तर पर बैठ गई।


सुगना ने धीमे स्वर में पुकारा

" ए सोनू…." परंतु सोनू ने कोई प्रतिक्रिया ना दी। सोनू पूरी नींद में था पर सुगना स्वयं विरोधाभास में थी। वह सोनू को जगाना कतई नहीं चाहती थी परंतु उसकी निद्रा की गंभीरता की जांच अवश्य करना चाहती थी।

सुगना ने उसे अपने हाथों को छूकर उसने चेतना में लाने की कोशिश की परंतु वैद्य जी की पत्नी द्वारा दी गई दवा कारगर थी सोनू अवचेतन अवस्था में जा चुका था। आखिरकार सुगना ने अपनी आंखें बंद की अपने इष्ट को याद किया और फिर अपने छोटे भाई सोनू के उस प्रतिबंधित क्षेत्र पर हाथ लगा दिया जो बड़ी बहन के लिए सर्वथा वर्जित था। धोती को फैलाते ही सोनू का मजबूत लंड अंडरवियर के पीछे से दिखाई पड़ने लगा।


सुगना के हाथ कांप रहे थे। उसने अपनी सांसो को अपने सीने में रोककर रखा और बाएं हाथ की उंगली से अंडर वियर की इलास्टिक पकड़कर नीचे कर दी।

सोनू का खूबसूरत लंड जो अभी सुसुप्त अवस्था में था छोटी मधु के हाथ जैसा कोमल था वह सुगना की निगाहों के सामने आ गया अपने छोटे भाई का लंड अपनी आंखों के सामने देखकर सुगना ने अपनी पलकें झुकाना चाहा परंतु सुगना की आंखों ने उस खूबसूरत दृश्य से अपनी नजरें हटाने से मना कर दिया। सुगना एक टक उस खूबसूरत लंड को देखती रह गई जो ठीक अपने मालिक की तरह नींद में सोया हुआ था।

सुगना सोनू के जननांगों के पास कोई भी बाल न देखकर हैरान थी। तो क्या सोनू ने आजकल में ही इन बालों की सफाई की थी? क्या सोनू स्वयं इसका इंतजार कर रहा था? या फिर फिर सोनू ने इसे अपनी आदत में शामिल कर लिया था?

सुगना एक पल के लिए घबरा गई पर फिर उसने हिम्मत जुटाई और अपने दाएं हाथ से पकड़ कर उस खूबसूरत लंड को बाहर निकाल लिया। अंडर वियर की इलास्टिक ने सोनू के अंडकोषों का सहारा ले लिया और लंड को ढकने की कोशिश त्याग दी।


आगे क्या करना था सुगना को पता था। यह सुगना के लिए भी आश्चर्य का विषय था की दवा से लगभग अपनी चेतना खोने के वावजूद भी सोनू के अधोभाग में उत्तेजना अब भी कायम थी जो सुगना के हाथ लगाते ही सोनू का लंड धीरे धीरे तनता चला गया।

नियति मुस्कुरा रही थी। काश सोनू अपनी बहन का यह प्यार देख पाता जिसने उसकी मर्दानगी को बचाए रखने के लिए अपनी विचारों और आदर्शों को ताक पर रखकर आखिरकार उसका लंड अपने हाथ में ले लिया था। जैसे-जैसे सुगना सोनू के लंड को सहलाती गई वह कोबरा की तरह अपना फन उठाने लगा। अपनी मेहनत को रंग लाते देख सुगना और भी तन्मयता से अपने कार्य में लग गई।

सोनू का पूरी तरह तना हुआ लंड देख सुगना मंत्रमुग्ध हो गई। युवा लंड की ताजगी और खूबसूरती देखने लायक थी। ऐसा न था कि सुगना ने यह पहली बार देखा था इसके पहले भी वह हैंडपंप पर और लाली की नंगी बुर में आगे पीछे होते सोनू का लंड देख चुकी थी परंतु आज अपनी नंगी आंखों से अपने अपने छोटे भाई सोनू के लंड को अपने हाथों में लिए उसे जी भरकर निहार रही थी।

जैसे ही सुगना ने लंड के अग्रभाग की चमड़ी को नीचे किया सोनू का फूला हुआ लाल सुपाड़ा अनावृत हो गया। सोनू के खूबसूरत लंड ने सुगना को सरयू सिंह को याद करने पर विवश कर दिया। वह उन दोनों की तुलना करने लगी और अंततः सोनू विजई रहा। सुगना के सहलाए जाने से लंड अपना आकार और बढ़ा रहा था पर अंडकोष सिकुड़ रहे थे और सुगना सोनू के लंड को हौले हौले स्खलन के लिए तैयार कर रही थी।


स्खलन आवश्यक था परंतु सुगना सोनू के लंड से कोई जोर जबरदस्ती नहीं करना चाहती थी। उसे डॉक्टर की हिदायत याद थी कि सोनू को अधिक से अधिक संभोग करना था। सुनना यह पाप करने को तो राजी ना थी परंतु अपने भाई को स्खलित करना उसकी अनिवार्य प्राथमिकता थी। सुगना धीरे धीरे लंड को सहलाती पर बिना किसी स्नेहक के उसके हाथ सोनू के लंड पर घूमने में कठिनाई महसूस कर रहे थे। सोनू के सुपाड़े से रिस रही लार ही एकमात्र सहारा थी।

अचानक सुगना को अपनी जांघों के बीच कुछ गीलापन महसूस हुआ निश्चित थी यह उत्तेजना का परिणाम था सुगना ने अपनी बुर को थपकियां देकर शांत रहने को कहा परंतु बुर ने प्रतिउत्तर में सुगना की उंगलियों को चिपचिपा कर दिया। जैसे ही सुगना को अपनी उंगलियों पर चिपचिपा पन महसूस हुआ उसके चेहरे पर मुस्कुराहट आ गई और उंगलियां स्वतः सोनू के लंड पर चली गईं।

सुगना के हाथ बड़ी खूबसूरती से सोनू के लंड पर फिसलने लगे। जब एक बार यह प्रयोग सफल रहा तो सुगना आगे बढ़ गई। जब जब चिपचिपापन कम महसूस होता वह अपनी बुर से सोनू के लिए उड़ेला प्यार अपनी उंगलियों पर ले आती और सोनू के लंड को प्यार से सहलाने लगती।

कभी कभी सुगना को लगता की वह अपनी उंगलियों का दबाव बढ़ाकर सोनू को शीघ्र स्खलित कर दे पर सोनू के आपरेशन की बात याद कर उसकी उंगलियां अपना दबाव घटा देती। वह कतई अपने अवचेतन भाई के उस अंग को गलती से भी चोट नहीं पहुंचाना चाहती थी…जिसे उसके कारण ही आपरेशन जैसी यातना झेलनी पड़ी हो…पर जिस प्यार और आत्मीयता की दरकार सोनू के लंड को थी वह सुगना की जांघों के बीच लार टपकाए स्वयं इंतजार कर रही थी पर उसकी मालकिन सुगना अब भी तैयार न थी।


सुगना का प्यार अपने चरम पर था बस रूप अलग था।

प्यार का यह खेल ज्यादा देर न चल पाया। जैसे ही सुगना ने सोनू के लंड के पिछले भाग को अपने अंगूठे से हल्के हल्के कुरेदा सोनू के अंडकोशों में जबरदस्त संकुचन हुआ और सोनू ने लंड ने सुगना के हथेलियों से बाहर आने की कोशिश की पर सुगना ने उसे घेर लिया और एक बार फिर उसके सुपाड़े को हौले से मसल दिया… आखिरकार वीर्य धारा फूट पड़ी…

जब तक सुगना संभलती वीर्य की धार ने छत की ऊंचाई नापने की कोशिश की…और सुगना का नहाना व्यर्थ हो गया। सोनू के वीर्य की 2 - 3 लंबी धार उसके बदन पर आकर गिरी। कुछ बूंदों को नाइटी ने आड़े आकर सुगना के बदन से मिलने से रोक लिया पर कुछ सुगना के बदन को चूमने में कामयाब हो गईं। सोनू के वीर्य की वो भाग्यशाली बूंदे उसकी बहन के गर्दन से होते हुए उसकी चूचियों तक जाने लगीं।


सुगना ने अपने हाथों से उन बहती बूंदों का मार्ग अवरुद्ध किया जो सरयू सिंह के वीर्य की तरह उसकी चुचियों को चूमना चाहती थीं…सुगना मुस्कुराने लगी। अवचेतन सोनू के वीर्य की इस शरारत ने सुगना के चेहरे पर मुस्कान ला दी थी। उसने बड़े प्यार से सोनू लंड को एक मीठी सी चपत लगाई…

नितांत एकांत, जागृत वासना और सोनू के प्रति प्यार ने सुगना के मन के किसी कोने में उस प्यारे और प्रेम युद्ध में हार चुके लंड को चूमने की इच्छा जाग्रत कर दी जिसे सुगना ने छल से हरा दिया था। पर सोनू उसका भाई था…अपने भाई का लंड चूमना….?


सुगना के मन में वासना और आदर्शों के बीच द्वंद्व शुरू हो गया। आज सुगना का प्रयोग सफल रहा था वो सोनू को स्खलित करने में कामयाब हो गई थी। अपने सफलता की खुशी में उसे स्वयं द्वारा किया गया क्रियाकलाप स्वाभाविक तौर पर स्वीकार्य लग रहा था।

सुगना ने अपनी वासना पर विजय पाई और सोनू के लंड को वापस अंडरवियर में कैद कर दिया।

सुगना खुश थी वह उसकी धोती ठीक कर दूसरी पलंग के दूसरी तरफ जाकर मधु के बगल में लेट गई। सुगना ने मन ही मन वैद्य जी की पत्नी का शुक्रिया अदा किया और अपने इष्ट से क्षमा मांगकर सोने की कोशिश करने लगी। उसकी निगोड़ी बुर अब भी मुंह बाये सुगना का ध्यान खींच रही थी परंतु सुगना अपना कर्तव्य निर्वहन कर संतुष्ट थी… नियति चीख चीख कर सुगना को उसकी अद्भुत बुर को जीवंत रखने के लिए उसे हस्तमैथुन को उकसा रही थी परंतु उसका यह प्रयास असफल हो रहा था और…. नियति का सबसे वीर सिपाही सोनू अभी गहरी निद्रा में सोया हुआ था….

####


उधर सलेमपुर में सरयू सिंह की आंखों से नींद गायब थी। बनारस से वापस आने के बाद उनके सोनी के करीब आने की संभावनाओं पर विराम लग गया था। सरयू सिंह की वासना को कोई रास्ता दिखाई नहीं पड़ रहा था वह भटक रही थी।

आखिरकार वह वास्तविकता से कल्पना की दुनिया में खोते चले गए और अपनी कल्पना को यथासंभव मूर्त रूप देने के लिए वह बाजार से जाकर टीवी खरीद लाए।


रात को अपने एकांत में टीवी चला कर खूबसूरत हीरोइनों को निहारना और उनके तराशे हुए बदन की कल्पना कर अपनी वासना को जागृत करना। वह अधनंगी हीरोइनों को निहारते और अपने मजबूत और खूबसूरत लंड को हाथों में पकड़ कर बड़े प्यार से सहलाते और बॉलीवुड की तात्कालिक खूबसूरत कन्याओं को अपने दिमाग में रखते हुए लंड को मसल मसल कर स्खलित कर लेते। आज भी वह जीनत अमान को देखते हुए अपने लंड को सहला रहे थे तभी कजरी दूध लेकर अंदर आ गई।

सरयू सिंह ने झटपट अपने खड़े लंड को धोती के अंदर किया पर उस मजबूत लंड को छुपा ना असंभव था। कजरी ने सरयू सिंह की हरकत ताड़ ली और बोली

" ई उमर में भी ई कुल करें में मन लागत बा?"

"काहे मरद और घोड़ा कभी बूढ़ा होला का" सरयू सिंह ने अपनी मर्दानगी का दंभ भरते हुए कहा..

"काहे भुला गईनी का बनारस में का भईल रहे?"

सरयू सिंह को बनारस की वह सुबह याद आ गई जब रेडिएंट होटल में मनोरमा के कमरे में अपनी प्यारी सुगना को चोदते और विकृत वासना के आधीन होकर दूसरे कसे हुए दूसरे छेद का उद्घाटन कर अपनी कोमल बहु सुगना को गचागच चोदते रूप देते हुए अपनी हृदय गति पर काबू न कर पाए और बेहोश हो गए थे।


यद्यपि यह बात वह सब से छुपा ले गए थे पर कजरी और सुगना बेहद अंतरंग थे। सुगना ने सारी बातें कजरी से साझा कर ली थी।

सुगना का ध्यान आते ही सरयू सिंह चुप हो गए।

कजरी ने अपनी बात पर एक बार फिर जोर देते हुए कहा

" अब ई सब छोड़ दीं और पूजा पाठ में मन लगाई "

"हमरा खातिर ई भी एगो पूजा ह….तोहार पुजाई एहि से भईल रहे भुला गईलू … कितना खुश रहत रहलु ऐही घोड़ा के सवारी करके और अब इकरा के अकेले छोड़ देले बाडु"। सरयू सिंह ने अपने तने हुए लंड को कजरी को दिखाते हुए कहा।

कजरी ने अपनी पलके झुका ली उसे बखूबी पता था कि उसके और उसकी बहु सुगना के जीवन में खुशियां भरने वाला यही खूबसूरत लंड था फिर भी उसने बात बदलते हुए कहा …

"काल तनी सीतापुर चल जईती …छोटकी डॉक्टरनी आईल बिया। हम गुड़ के लड्डू बनावले बानी ओकरा के दे अईती बहुत पसंद करेले।

सोनी का नाम आते ही सरयू सिंह चैतन्य हो गए। अपनी खुशी को काबू में करते हुए सरयू सिंह ने कहा ठीक बा चल जाएब…कजरी दूध रखकर चली गई….और एक बार फिर सरयू सिंह सोनी को याद करने लगे…


सोनी सरयू सिंह के दिमाग में घूमने लगी। सोनी के बारे में सोचते ही उनकी सारी इंद्रियां जाग उठती। सोनी की खूबसूरत और कोमल त्वचा को अपनी हथेलियों से छूने की कल्पना मात्र से तन बदन सिहर जाता। जैसे-जैसे उनके दिमाग में सोनी की मादक काया घूमती गई सरयू सिंह की बेचैनी बढ़ती गई।

कजरी के आने से जो कार्य अधूरा छूटा था आज फिर सोनी अनजाने में ही उसे अंजाम पर पहुंचाने में लग गई। हथेलियां अपने कार्य में लग गई और सरयू सिंह के लंड का मान मर्दन करने लगीं।

उधर सोनू स्खलित हो चुका था इधर सरयू सिंह भी स्खलित होने को तैयार थे।

पदमा की युवा पुत्रियां सुगना सोनी और मोनी रूप लावण्य से भरी काया में मादकता लिए आने वाले प्रेमसमर में लिए तैयार हो रही थीं।

अगली सुबह सरयू सिंह ने नया धोती कुर्ता निकाला नए-नए लक्स साबुन से पूरे बदन को साफ किया इत्र लगाया और उसकी भीनी भीनी खुशबू संजोए तैयार होकर कजरी द्वारा दिया लड्डू अपने झोले में रख सीतापुर की तरफ निकल पड़े….

सलेमपुर से सीतापुर का सफर न जाने सरयू सिंह ने कितनी बार तय किया था परंतु जो सफर उन्होंने कुंवारी सुगना के साथ किया था वह अभी भी उन्हें गुदगुदा जाता था। सुगना उनकी अपनी पुत्री है यह जानने के बाद आए वैचारिक परिवर्तन के बावजूद जैसे ही वह बरगद का पेड़ उन्हें दिखाई पड़ता उनका तन बदन सिहर उठता कैसे बारिश के सुहाने मौसम में उन्होंने अपनी प्यारी सुगना को अपनी गोद में बैठाया था और धीरे धीरे उसकी गोरी और कुंवारी जांघो के बीच अपना लंड रगड़ते हुए स्खलित हो गए थे।

वासना के झोंके ने उनके लंड में फिर तनाव भर दिया…सरयू सिंह ने सुगना को छोड़ सोनी को ध्यान में लाया और उनके कदमों की जांच स्वतः ही तेज होती गई और कुछ ही मिनटों बाद सरयू सिंह पदमा के दरवाजे पर आ पहुंचे…


घर के बाहर दालान के सामने एक सुंदरी अपने घागरे को घुटने तक लपेटे ऊकड़ू बैठी हुई थी उसके हाथ गोबर से सने हुए थे। वह गोबर और भूसा को आपस में मिलाकर आटे जैसे गूथ रही थी और उसके बड़े बड़े गोल लड्डू बनाकर अपने पंजे पर लेती और उसे आगे बढ़कर दीवाल पर तेजी पटक कर चिपका देती उंगलियों के निशान उस गोबर की रोटी नुमा आकृति पर स्पष्ट स्पष्ट दिखाई पड़ने लगते …

सरयू सिंह मंत्र मुक्त होकर उस खूबसूरत तरुणी को देख रहे थे। घुटनों से नीचे उसका बेहद खूबसूरत और गोरा पैर चमक रहा था। बाकी सारा शरीर घाघरा और चोली से ढका हुआ था। चोली और छाघरे के बीच से उसकी दूधिया कमर की झलक कभी-कभी दिखाई पड़ जाती। घाघरे में कैद जांघें और भरे भरे नितंब देख सरयू सिंह का लंड हरकत में आ गया।


सरयू सिंह का लंड सुंदर युवती देखते ही अपने अस्तित्व का एहसास सरयू सिंह को करा जाता था। सरयू सिंह ने अपनी लंगोट पर हाथ फेर कर उसे शांत रहने का निर्देश दिया यद्यपि उन्हें यह बात पता थी कि इन मामलों में वह उनका दिशा निर्देश कभी भी नहीं मानता था। सरजू सिंह मंत्रमुग्ध होकर तरुणी को देखे जा रहे थे…

अचानक दरवाजे पर किसी कुत्ते के भौंकने की आवाज आई. उस सुंदरी ने दरवाजे की तरफ देखा और सरयू सिंह की आंख उससे तरूणी से जा मिली..


सरयू सिंह को यकीन नहीं ना हुआ कि वह गोबर पाथ रही लड़की छोटी डॉक्टरनी सोनी थी.. शहर की पढ़ी लिखी और आधुनिक वेशभूषा में रहने वाली सोनी आज पारंपरिक वेशभूषा में अपनी मां का हाथ बटा रही थी।

सरयू सिंह बेहद प्रसन्न हो गए और अपने कदम बढ़ाते हुए सोनी के पास आने लगे। सोनी में भी गोबर पाथने का कार्य छोड़ दिया और बाल्टी में रखे गंदे हो चुके पानी से अपने हाथ साफ किए और उठकर खड़ी हो गई।

चेहरे और गर्दन पर पसीने की बूंदें उसे और खूबसूरत बना रही थी गालों पर लटकती लट …आह….सरयू सिंह सोनी की खूबसूरती में खो गए पर यह नयनाभिराम दृश्य कुछ पलों के लिए ही था। सोनी आगे बढ़ी और उसने सरयू सिंह के चरण छुए और अगले ही पल भागती हुई घर के अंदर प्रवेश कर गई…. पर इन कुछ ही पलों में सरयू सिंह ने सोनी के घाघरे में छुपे उन गोल नितंबों को हिलते हुए देख लिया और उनका लंगोट एक बार फिर छोटा पड़ने लगा…

"मां सरयू चाचा आईल बाडे "

पदमा रसोई में खाना बना रही थी वह उठकर बाहर आई …

पदमा के सर पर पड़े आंचल ने उसके गाल ढक रखे थे। सरयू सिंह पदमा को देख रहे थे। उनके मन में हमेशा से एक अलग किस्म का प्यार था। सुगना उनकी ममेरी बहन थी पर उस कामुक मिलन ने उन्हे और करीब ला दिया था। यह जानने के बाद की सुगना अद्भुत प्यार से जन्मी है यह प्यार और भी बढ़ गया था।

सरयू सिंह कुछ पलों के लिए खो से गए। पद्मा ने दीवाल का सहारा लेकर खड़ी की गई चारपाई को नीचे बिछाया और सरयू सिंह से बैठने के लिए कहा अब तक सोनी अंदर से बतासे और लोटे में पानी लेकर आ गई थी। बताशा देते समय सोनी की चोली थोड़ा ढीली हुई और विकास की जी तोड़ मेहनत से उन्नत हुई चूचियां ने सरयू सिंह का ध्यान खींचने में कामयाबी हासिल कर ली। जैसे ही सोनी ने सरयू सिंह की निगाहों को अपने बदन में छेद करते हुए महसूस किया उसने झटपट अपनी चोली ठीक की… जिसे पास खड़ी पद्मा ने भी देख लिया।

सरयू सिंह ने अपनी निगाहों पर नियंत्रण किया और सोनी के हाथ से बतासा लेकर "खबर खबर" की आवाज के साथ खाने लगे और लोटे से गटागट पानी पीने लगे…

सरयू सिंह ने अपने झोले से कजरी द्वारा बनाया लड्डू बाहर निकाला और सोनी को देते हुए बोले

"कजरी तोहरा खातिर भेजले बाडी"। उन पीले सुनहरे लड्डुओं को देखकर सोनी खुश हो गई और सोनी ने उसमें से लड्डू निकाल कर तुरंत ही खाने के लिए अपना खूबसूरत मुंह खोल दिया..सोनी के चमकते दांत और गोल होठों को देखकर सरयू सिंह फिर वासना में खो गए लड्डू की जगह उन्हें अपने लंड का सुपाड़ा सोनी के मुंह में जाता हुआ महसूस हुआ।


न जाने सरयू सिंह को क्या हो गया था? मादक सोनी को इस ग्रामीण वेशभूषा और उसकी अल्हड़ता देखकर वह सुधबुध को बैठे थे। पद्मा ने सरयू सिंह को सोनी की तरफ देखते पकड़ लिया था उसे अभी यह तो एहसास न था कि सरयू सिंह के मन में सोनी के प्रति वासना जाग चुकी है परंतु इतना तो वह भली-भांति जानती थी कि युवा और अल्हड़ लड़कियों को दूसरों से सुरक्षित दूरी बनाए रखनी चाहिए चाहे वह कितना भी करीबी क्यों ना हो। उसने सोनी को डाटा ..

"अरे एहीजे लड्डू खाए लगले जो भीतर बैठ के आराम से खो और चाचा जी खातिर चाय बना ले आऊ"

सरयू सिंह और पदमा इधर उधर की बातें करने लगे धीरे-धीरे जैसे गांव वालों को खबर लगी की पटवारी साहब सीतापुर आए हैं पदमा के घर के सामने लोगों का हुजूम लगने लगा। सोनी को पता था चाय की मात्रा सिर्फ सरयू सिंह के लिए नहीं गांव के और सम्मानित लोगों के लिए भी बनानी थी। कुछ ही देर में पदमा का सुना पड़ा घर गुलजार हो गया था।




उधर जौनपुर में ….बीती रात सुगना ने जो सफलता प्राप्त की थी उसकी संतुष्ट सुगना के चेहरे पर स्पष्ट दिखाई पड़ रही थी। सूर्य की कोमल किरणों ने जैसे ही सुगना की पलकों को छुआ सुगना अपनी नींद से बाहर आई और मुस्कुराते हुए अगड़ाई ली। करवट लेकर वह बगल में लेटे हुए सोनू को देख कर मुस्कुरा उठी। बीती रात उसने जो किया था एक बार वह सारे दृश्य उसकी आंखों के सामने घूम गए और नजरें सोनू के अधोभाग भाग पर चली गई जहां सोनू का लंड अभी अपनी उपस्थिति महसूस करा रहा था।

सुगना धीरे धीरे बिस्तर से उठी और मुस्कुराते हुए गुसल खाने में प्रवेश कर गई। नित्यकर्म के पश्चात वह गुनगुनाते हुए रसोई में गई वह हाथों में चाय की प्याली लिए एक बार फिर कमरे में उपस्थित थी।

शायद सोनू अपनी नींद पूरी कर चुका था या सुगना के कदमों की आहट कुछ ज्यादा ही तेज थी सोनू की पलकें खुली और अपनी अप्सरा को अपने आंखों के सामने चाय का प्याला लिए देखकर सोनू खुश हो गया। रात में सुगना द्वारा दी गई उस दवा का असर भी अब शायद खत्म हो गया था।


वह बिस्तर पर उठकर बैठ गया उसे यह एहसास न था की बीती रात क्या हुआ है परंतु सुगना को संतुष्ट और खुश देख कर उसे शक हुआ..

"दीदी का बात का बड़ा खुश लागत बाडू?"

"कुछ ना तोर जौनपुर की हवा ठीक लागत बा"

कई बार सामने वाले की मन की बातें आप समझ नहीं पाते… वही हाल सोनू का था। सुगना ने यह बात बस यूं ही कह दी थी वैसे भी अपनी खुशी का राज बताना उचित न था।

सोनू को मूत्र विसर्जन की इच्छा हुई और वह चाय का प्याला बिस्तर पर रख गुसल खाने की तरफ बढ़ गया। अंदर जैसे ही उसने छोटे सोनू को बाहर निकाला रात की बात सोनू को समझ में आ गई सुपाड़े के अंदर लिपटा हुआ सोनू का वीर्य से सना चिपचिपा सुपाड़ा यह बार-बार एहसास दिला रहा था की कल रात कुछ न कुछ हुआ है। सोनू को यह समझते देर न लगी कि उसका वीर्य स्खलन हुआ है…पर कैसे? सोनू ने अपने अंडरवियर को ध्यान से देखा…वीर्य स्खलन के अंश वहां मौजूद ना थे। सोनू ने एक बार फिर सुपाड़े पर लगे चिपचिपे वीर्य को अपनी उंगलियों पर लिया और अपने नाक के पास लाया…सोनू को यकीन हो गया कि उसका वीर्य स्खलन हुआ नहीं था अपितु कराया गया था….तो क्या सुगना दीदी….?

शेष अगले भाग में
बहुत ही सुंदर लाजवाब और मादकता से भरपूर कामोत्तेजक अपडेट है भाई मजा आ गया
सोनू के पुरुषत्व को बचाने के लिये सुगना ने जो निर्णय लिया और सोनू को निंद की दवा देकर जो हस्तमैथुन का काम कर वीर्य स्खलन कारवाया उसमें उसकी नाजूक और गुलाबी बुरके पानी का रोल बहुत ही अहम था
इधर ये साला सरयुसिंग के दिमाग से सोनी निकल ही नहीं रही
कजरी के समझाने के बाद भी वो अपनी काम क्रिया भुलने को तयार ही नहीं हो रहा अब तो कजरी ने उसे खुद ही सोनी के घर भेज दिया और वहा सोनी को ग्रामीण परीवेश में देख उसका लंड खडा होने लगा उसकी ताकझाक पद्मा के नजर में आ ही गयी
सुबह उठने पर बाथरूम में सोनू को रात में कुछ तो हुआ हैं जो उसका वीर्य स्खलन अपने आप नहीं हुआ तो उसकी प्रतिक्रिया क्या होती है सुगना के प्रति देखते हैं आगे
 

findcruxy

New Member
17
37
13
send me 127 part b and all new updates
 

Jittu meena

New Member
18
8
3
लवली भाई कृपया अब कहानी को गति प्रदान करे । बहुत इंतजार के बाद कलम के जादूगर ने कलम उठाई है
 

jpjindal

New Member
63
50
18
waiting..
 

Yog320010

Member
141
93
44
Bhai kisi ko Ghar ik phelhi Jo xossip par story thi uske bare Pat's hai ki yeh story kaha milage ya koi link ho please Bhai koi to batana please
 

Napster

Well-Known Member
5,266
14,431
188
भाग 119


सोनू को मूत्र विसर्जन की इच्छा हुई और वह चाय का प्याला बिस्तर पर रख गुसल खाने की तरफ बढ़ गया। अंदर जैसे ही उसने छोटे सोनू को बाहर निकाला रात की बात सोनू को समझ में आ गई सुपाड़े के अंदर लिपटा हुआ सोनू का वीर्य से सना चिपचिपा सुपाड़ा यह बार-बार एहसास दिला रहा था की कल रात कुछ न कुछ हुआ है। सोनू को यह समझते देर न लगी कि उसका वीर्य स्खलन हुआ है…पर कैसे? सोनू ने अपने अंडरवियर को ध्यान से देखा…वीर्य स्खलन के अंश वहां मौजूद ना थे। सोनू ने एक बार फिर सुपाड़े पर लगे चिपचिपे वीर्य को अपनी उंगलियों पर लिया और अपने नाक के पास लाया…सोनू को यकीन हो गया कि उसका वीर्य स्खलन हुआ नहीं था अपितु कराया गया था….तो क्या सुगना दीदी….?

अब आगे…

सोनू ने अपने दिमाग पर जोर देने की कोशिश की परंतु दूध पीने के बाद का कोई भी दृश्य उसे याद न था उसे यह बात अवश्य ध्यान आ रही थी कि दूध का स्वाद कुछ अलग था।

अचानक उसे रहीम और फातिमा की किताब का वाकया ध्यान आ गया जिसमें फातिमा ने अपने छोटे भाई को दूध में मिलाकर कोई नशीला द्रव्य दिया था..और सोनू के होंठो पर मुस्कुराहट दौड़ गई। उसके जी में आया कि वह अपनी सुगना दीदी को जाकर चूम ले…पर भाई बहन के बीच नियति ने तय किया था वो घटित होना इतना आसान न था।

सोनू वापस बिस्तर पर आया और खुद को सामान्य दिखाते हुए सुगना के साथ चाय पीने लगा। सोनू को सामान्य देख सुगना भी सहज हो गई। कल रात हुई घटना सुगना और सोनू दोनों के लिए सुखद रही सुगना ने अपना कार्य पूरा कर लिया और सोनू अपनी बहन के और करीब आ गया।

आज शनिवार का दिन था सोनू की ऑफिस की छुट्टियां थी। रसोईघर का बिखरा हुआ सामान सोनू और सुगना का ध्यान खींच रहा था। कुछ ही देर बाद सुगना रसोई घर को सजाने में लग गई शायद यही एकमात्र कार्य सोनू ने अपनी बहनों के लिए छोड़ा था।

सुगना ने सोनू को निराश ना किया वह तन मन से रसोई घर को सजाने लगी। धीरे धीरे रसोईघर अपनी रंगत में आता गया…सुगना बीती रात के बारे में सोचते सोचते रसोई घर का सामान व्यवस्थित कर रही थी। उसके जेहन में वैद्य जी की पत्नी की बातें घूम रही थी …. उत्तेजना और स्खलन कुछ पलों का खेल नहीं स्त्री और पुरुष दिन भर में कई बार वासना के आगोश में आते हैं और पुरुषों में उसी दौरान वीर्य का निर्माण होता है। जितना अधिक वीर्य निर्माण उतना शीघ्र स्खलन।

सुगना ने पूरी तरह यह बात आत्मसात कर ली थी। उसने ठान लिया था कि वह सोनू के वीर्य निर्माण में अपनी भी भूमिका अदा करेगी। उसे पता था सोनू की विचारधारा उसके प्रति बदल चुकी थी.. और वर्तमान में सोनू की उत्तेजना का प्रमुख केंद्र व स्वयं थी.

सुगना रसोईघर को व्यवस्थित करने में लगी थी। शरीर पर पड़ी पतली नाइटी सुगना की मादकता को और बढ़ा रही थी अंदर पहने अंग वस्त्र चूचियों को तो कैद में कर चुके थे परंतु सुगना के गदराए नितंब छोटी पेंटी के बस में न थे। वह बार-बार सोनू का ध्यान खींच रहे थे …जो हॉल में बार-बार आकर अपनी बड़ी बहन के युवा और अतृप्त बदन को निहार रहा था…

जब सुगना उसे अपनी तरफ देखते पकड़ लेती सोनू की नजरें झुक जाती और वह बिना कुछ बोले वापस कमरे में जाकर सूरज और मधु के साथ खेलने लगता…सुगना जान चुकी थी कि सोनू की उत्तेजना से दोनों का ही फायदा था सुगना को मेहनत कम करनी पड़ती और वीर्य उत्पादन तथा स्खलन आसान हो जाता जो सोनू के पुरुषत्व को बचाए रखने के लिए आवश्यक था।

कुछ सामान अभी ऊपर के खाने में सजाए जाने थे सुगना का हाथ पहुंचना मुश्किल था दरअसल ऊंचाई ज्यादा होने की वजह से सुगना ही क्या सोनू का भी हाथ पहुंचना कठिन होता।

सुगना ने आवाज लगाई

" ए सोनू…."

सोनू सूरज और मधु के साथ खेलने में व्यस्त था।

अपनी बहन सुगना की आवाज सुनकर सोनू अगले ही पल रसोईघर में आ गया।

सोनू में सारी जुगत लगाई परंतु ऊपर के खाने में सामान रखने में नाकाम रहा.. आखिरकार सुगना ने कहा

"ले हमरा के पकड़ के उठाऊ हम रख देत बानी"

सुगना ने यह बात कह तो दी परंतु उसे आगे होने वाले घटनाक्रम का अंदाजा न था। सोनू ने सुगना को पीछे से आकर कमर से पकड़ लिया और उसे ऊपर उठाने लगा सुगना आगे की तरफ गिरने लगी उसने बड़ी मुश्किल से दीवाल का सहारा लिया और बोली

" उतार उतार ऐसे त हम गिर जाएब"


सोनू को अपनी गलती का एहसास हुआ वह सुगना के सामने की तरफ आया और उसने अपनी मजबूत बाहें पीछे की और सुगना के नितम्बो के ठीक नीचे उसकी जांघों को अपनी भुजाओं में कसते हुए सुगना को ऊपर उठा दिया।

मर्द सोनू की मजबूत भुजाओं में युवा सुगना को देखकर नियति स्वयं मचल उठी… सोनू का चेहरा सुगना की नाभि से छू रहा था और सुगना के मादक बदन की खुशबू सोनू के नथुनो में नशा भर रही थी थी इस खुशबू में निश्चित ही सुगना की अद्भुत योनि और उससे रिस रहे प्रेमरस की खुशबू भी शामिल थी। सोनू को न जाने कितने खजाने एक साथ मिल गए थे उसकी बांहों को सुगना के कोमल नितंबों का स्पर्श मिल रहा था और उंगलियां जांघों की कोमलता महसूस कर रही थी। सुगना के पंजे सोनू के लंड के बिल्कुल करीब थे सोनू घबरा रहा था कहीं उसकी उत्तेजना का अंदाज सुगना दीदी न कर लें और यह सुखद क्षण जल्द ही समाप्त हो जाए।

सुगना सोनू की मनोदशा से अनजान रसोई घर का जरूरी सामान ऊपरी खाने में सजाने लगी। कुछ ही पलों में आवश्यक सामान ऊपर व्यवस्थित कर दिया गया और जब कार्य खत्म हुआ तो सुगना को अपनी अवस्था का ध्यान आया सोनू की गर्म सांसे अपनी नाभि पर महसूस कर सुगना की वासना जाग उठी वह यह बात भूल गई कि उसे बाहों में उठाने वाला व्यक्ति सरयू सिंह नहीं अपितु उसका छोटा भाई सोनू है…सुगना कुछ देर तक उस आनंद में खो गई और सोनू की गर्म सांसो को अपने बदन पर फैलते हुए महसूस करने लगी उसके हाथ ऊपर रखे सामानों को यूं ही आगे पीछे कर व्यवस्थित कर रहे थे परंतु शरीर की सारी चेतना वासना पर केंद्रित हो गई थी..


सुगना ने अंदाज कर लिया कि उसका पैर सोनू की जांघों के ठीक बीच में है उसने जानबूझकर अपने पैर के पंजों से सोनू के लंड को छूने की कोशिश की और सोनू के लंड को पूरी तरह तना हुआ पाकर मन ही मन मुस्कुराने लगी…

अपने तने हुए लंड पर सुगना के पंजों का स्पर्श पाकर सोनू शर्मसार हो गया उसने झल्लाते हुए कहा

"अरे दीदी अब उतर हाथ दुख गईल"

"ठीक बा अब उतार दे काम हो गएल" और सोनू ने धीरे-धीरे अपनी भुजाओं का कसाव कम करना शुरू किया और सुगना ऊपर से नीचे धीरे-धीरे सोनू के बदन से सटती हुई नीचे आने लगी। सोनू की हथेलियों ने सुगना के नितंबों को बेहद करीब से महसूस किया और सोनू की वासना तड़प कर रह गई …लंड उस मखमली स्पर्श के लिए तड़प कर रह गया।

ऊपर सुगना की मदमस्त चूचियां सोनू के चेहरे के बेहद करीब से लगभग सटती हुई नीचे आ रही थी और फिर सुगना का खूबसूरत और कोमल चेहरा। एक पल के लिए सोनू के मन में आया कि वह सुगना को इसी अवस्था में पकड़ ले और उसके खूबसूरत होठों को कसकर चूम ले पर सुगना ….उसकी बड़ी बहन थी और को सोनू सोच रहा था वो अभी संभव न था।.


सुगना यह बात भली-भांति जान चुकी थी की कुछ मिनटो में जो स्पर्श सुख सोनू ने लिया था उसका असर सुगना ने अपने पैर के पंजों महसूस कर लिया था। उसने कोई प्रतिक्रिया न दी और बेहद प्यार से बोली…

"देख इतना सुंदर तोर रसोईघर बना देनी ठीक लागत बा नू….."

सोनू को अब मौका मिल गया उसने सुगना को अपने आलिंगन में भर लिया और बेहद प्यार से बोला

" जवन भी चीज में हमरा दीदी के हाथ लग जाला ऊ चीज सुंदर हो जाला"

"जाकी रही भावना जैसी " सुगना एक बार फिर कल सोनू के लंड के बारे में सोचने लगी जो उसके हाथों का स्पर्श पाते ही खिलकर खड़ा हो गया था।"

सोनू के आलिंगन में खुद को महसूस कर सुगना सहम गई बात आगे बढ़ती इससे पहले सुगना ने सोनू के सीने पर हल्का धक्का दिया और बोली

"चल हट तोर काम हो गईल अब ढेर मक्खन मत लगाव"

सोनू कमरे से बाहर जा चुका था। अचानक सुगना ने अपनी जांघों के बीच कुछ गीलापन महसूस किया जो स्वाभाविक था सोनू जैसे मर्द की बाहों में आने के बाद कोई भी तरुणी अपने कामांगो का ध्यान अवश्य करती और निश्चित ही उसके कामांग सोनू से मिलने को आतुर हो उठते।

सुगना की बुर धीरे-धीरे बेचैन हो रही थी आखिर डॉक्टर की नसीहत उसके लिए भी थी सुगना को भी अपनी बुर को जीवंत रखने के लिए जमकर संभोग करना था परंतु सुगना का भविष्य गर्त में था सुगना के जीवन में आए दोनों मर्द सरयू सिंह और रतन अब बीते दिनों की बात हो चुके थे और उसके सामने जो खड़ा था वह हर रूप में उसके योग्य होने के बावजूद रिश्तों के आड़े आ रहा था।

कमरे में सुगना के पलंग पर सूरज और मधु दोनों सोनू के साथ खेल रहे थे। आत्मीयता इतनी कि यदि उन्हें कोई इस तरह खेलते देखता तो निश्चित यही समझता कि सोनू उन दोनों खूबसूरत बच्चों का पिता है यह बात भी अर्धसत्य थी मधु सोनू और लाली के मिलन से जन्मी थी। अचानक सूरज ने कहा

"मामा लखनऊ वाली कलेक्टर मैडम के यहां कतना बढ़िया झूला रहे तू काहे ना खरीदला ? "

बालमन सहज पर सजग होता है। वह भी अपनी आवश्यकता की चीजों का निरीक्षण करता रहता है और मन ही मन उनकी इच्छा अपने दिल में करता रहता है। सूरज को भी शायद मनोरमा मैडम के घर में रखा हुआ पिंकी का वह झूला बेहद पसंद आया था जिसमें लेटी हुई पिंकी चैन की नींद ले रही थी। सूरज के मन में भी तब से वह झूला घर पर गया था और उसने अपनी बात अपने मामा सोनू से खुलकर कह थी।


जब एक बार बात निकल गई तो फिर सोनू को रोकना कठिन था। सोनू बाजार गया और कुछ ही देर बाद मनोरमा जैसा तो न सही परंतु शायद उससे भी खूबसूरत बच्चों का झूला घर में हाजिर था।

झूला छोटी मधु के लिए था पर आकार में बड़ा हो पाने के कारण सूरज भी उसमे आराम से आ सकता था उसकी उम्र ही क्या थी।

सोनू ने सूरज और मधु दोनों को ही पालने में डाल दिया और बेहद प्यार से ही आने लगा सूरज छोटी मधु को बड़े प्यार से खिला रहा था और उसके पेट पर गुदगुदी कर रहा था अब तक कमरे में सुगना आ चुकी थी अपने दोनों बच्चों को झूले में हंसता खेलता देख उसका हृदय गदगद हो गया था और बिस्तर पर बैठा सोंनू उसे और भी प्यारा लग रहा था पलंग अपने प्रेमी जोड़ों के लिए पलक पावडे बिछाए तैयार था।

उधर सीतापुर में दोपहर हो चुकी थी पदमा सरयू सिंह को भोजन करा रही थी…और बगल में बैठकर बातें कर रही थी सोनी बीच-बीच में आकर घटा बढ़ा सामान पहुंचा रही थी। जब जब सोनी करीब आती सरयू सिंह की पीठ में तनाव आ जाता और वह संभल कर बैठ जाते और उसके जाते ही फिर सहज हो जाते हैं युवा किशोरियों और तरुणियों को देखकर सरयू सिंह का यह व्यवहार अनूठा था। चुदने योग्य युवतियों को देख सरयू सिंह का गठीला बदन युवा अवस्था में लौट आता सीना चौड़ा हो जाता और बाहर झांकता हुआ पेट तुरंत ही रीड की हड्डी से जा चिपकता। यह कार्य उतने ही स्वाभाविक तरीके से होता जैसे पलकों का झपकना।

सरयू सिंह की हरकतों और उनके हावभाव से पदमा ने यह भाप लिया की सरयू सिंह निश्चित ही सोनी की उपस्थिति में कुछ असहज महसूस कर रहे हैं और इतना तो पदमा को भली-भांति पता था कि कोई पुरुष यदि स्त्री की उपस्थिति में थोड़ा भी असहज महसूस करें तो यह मान लेना चाहिए कि उन दोनों के बीच जो संबंध हैं वह उन्हें स्वीकार्य नहीं और उन संबंधों में कुछ बदलाव होने की आशंका है पदमा सरयू सिंह की नस नस से वाकिफ थी ऐसा न था की सरयू सिंह किसी युवती पर डोरे डालते थे और उससे अपनी वासना में खींचने की कोशिश करते परंतु वह यह बात भली-भांति जानती थी सरयू सिंह का व्यक्तित्व और उनका मर्दाना शरीर तरुणियों को स्वतः उनकी तरफ आकर्षित करता था।

शायद यही वजह थी कि सरयू सिंह की निगाहों से असहज महसूस करने वाली सोनी रह-रहकर उनके करीब आ रही थी।

खाना खत्म होने के बाद पद्मा ने सरयू सिंह से कहा

"बनारस जाके शादी के दिन बार के बारे में बतिया लेब सोनी कहत रहली की विकास के पढ़ाई दो-तीन महीना में खत्म हो जाए और वह बनारस वापस आ जईहैं"

सरयू सिंह को एक पल के लिए लगा जैसे उनका दिवास्वप्न तोड़ दिया गया था। जिस सोनी को अपनी ख्वाबों में सजाए और उसके खूबसूरत अंगों की परिकल्पना करते हुए सरयू सिंह भोजन कर रहे थे वह भोजन के खात्मे के साथ ही खत्म हो चुका था उन्होंने अपने हाथ धोते हुए कहा

"ठीक बा…"

सरयू सिंह ने थोड़ा विश्राम किया और फिर वापस सलेमपुर के लिए निकल पड़े आज सुबह छोटी डॉक्टरनी का जो रूप उन्होंने देखा था उसने सोनी के प्रति उनके विचारों में परिवर्तन लाया था शहरों में आधुनिक वेशभूषा में घूमने और रहने वाली सोनी आज सुबह गांव के पारंपरिक वेशभूषा में जिस तरह अपनी मां का हाथ बटा रही थी वह सराहनीय था। सोनी को लेकर सरयू सिंह के विचार बदल रहे थे परंतु अभी दिल्ली दूर थी सोनी को अपनी गोद में लेकर मनभर चोदने की इच्छा को हकीकत का जामा पहना पाना कठिन था।

बोली उधर जौनपुर में सुगना के अनुरोध पर सोनू दोनों बच्चों को लेकर मंदिर गया और सुगना ने अपने आराध्य से अपने परिवार की खुशियां मांगी परंतु सोनू ने जो मांगा वह पाठक भली-भांति समझ सकते हैं । इस समय सुगना सोनू के चेतन और अवचेतन मन दोनों पर राज कर रही थी उसे सुगना के अलावा न कुछ दिखाई दे रहा ना था और न कुछ सूझ रहा था। सुगना के बदन के बारे में सोचते सोचते सोनू के विचार एक तूफान की तरह अपने केंद्र में एकत्रित होते और उसका अंत सुगना की मखमली बुर पर खत्म होता..

धीरे-धीरे दिन भर का तनाव खत्म होने का वक्त आया सुगना ने अपने बच्चों और सोनू के लिए खाना बनाया.. सोनू की पसंद के पकवान बनाते समय सुगना सोनू के बचपन से लेकर युवा होने तक सारी बातें याद कर रही थी जबसे सोनू युवा हुआ था और लाली के करीब आया था सुगना के विचारों में सोनू का बालपन न जाने कब अपना रूप बदल चुका था लाली को चोदते हुए देखने के बाद सुगना ने पहली बार सोनू से नजरें मिलाने में शर्म महसूस की और फिर जैसे-जैसे वासना सोनू और सुनना को अपने आगोश में लेती गई दोनों के बीच भाई-बहन की मासूमियत तार-तार होती गई और सुगना ने अपनी जांघों के बीच सोनू के लिए उत्तेजना महसूस करना शुरू कर दिया….

सुगना ने बीती रात जो प्रयोग किया था आज भी उसे हूबहू दोहराने के लिए बिसात बिछा ली उस मासूम को क्या पता था कि वह जिस सोनू पर जिस हथियार का प्रयोग करने जा रही थी उसने उसकी रणनीति बना रखी थी।

सोनू और सुगना ने साथ में भोजन किया बच्चों ने भी दिनभर की खेलकूद के पश्चात मनपसंद भोजन कर नए-नए पालने में आकर झूला झूलने लगे सूरज ने भी जिद कर उसी झूले में अपने लिए जगह तलाश ली।


सोनू सूरज और मधु को पालने में एक दूसरे के साथ प्यार करते और खेलते देखकर मन ही मन सोच रहा था क्या बालपन का यह प्यार भविष्य में कोई और रूप ले सकता है सुगना और उसके बीच कुछ ऐसी ही घटनाएं बालपन में हुई होंगी और उसकी सुगना दीदी ने उसका ऐसे ही ख्याल रखा होगा परंतु आज…

वासना के आधीन सोनू उस रिश्ते की पवित्रता को नजरअंदाज कर सिर्फ और सिर्फ सुगना की चूचियों और बुर पर अपना ध्यान लगाए हुए था। मन के किसी कोने में सुगना की अतृप्त इच्छाओं की पूर्ति करना वह अपना दायित्व समझ रहा था। बीती रात उसकी बहन ने जो उसके पुरुषत्व को बचाने के लिए किया था आज उसका ऋण चुकाने का वक्त था ….

सोनू बाथरूम में मुत्रत्याग के लिए गया और मूत्र त्याग के दौरान शावर की लंबी रोड पर टंगी सुगना की ब्रा और पेंटी को देखकर मदहोश होने लगा। लंड से मूत्रधार बहती रही और लंड में लहू एकत्रित होता गया। उसने सुगना के अंतर्वस्त्र को चूमा पुचकारा और फिर वापस उसी जगह रख दिया। अंतर्वस्त्रों ने सोनू की कल्पना को आज फिर एक नया रूप दे दिया।

अचानक सोनू के दिमाग में कुछ विचार आए और उसने सुगना की ब्रा और पेंटी को शावर की रॉड के ठीक किनारे लटका दिया जिससे उसका अधिकतर भार एक तरफ झूल गया…. उस पर से उसने सुगना की नाइटी डाल दी जिससे ब्रा और पेंटी नीचे गिरने से तात्कालिक रूप से बच गई। पर यदि सुगना अपनी नाइटी को हटाकर ब्रा और पैंटी को पकड़ने की कोशिश करती तो निश्चित ही असावधानी के कारण ब्रा और पेंटिं नीचे गिरकर बाल्टी में गिरती या फर्श के पानी भीग जाती।

सोनू न जाने अपने मन में क्या-क्या सोच रहा था और उसी अनुसार अपने मन में योजनाएं बना रहा था। उधर सोनू के लंड ने अब तक अपना आकार ले लिया था अपनी बड़ी बहन की ब्रा और पेंटी को चूमने तथा पूचकारने का असर नीचे दिखाई पड़ रहा था सोनू ने अपने लंड को अपने हाथों में ले और उसे मसल मसल कर वीर्य त्याग करने लगा था। सोनू अपनी योजना पर आगे बढ़ रहा था।

कुछ ही देर में सोनू ने अपना वीर्य स्खलन पूरा किया और वापस आकर बिस्तर पर उसी तरह लेट गया। सफेद धोती में अपना लंड छुपाए और सफेद गंजी में सोनू का बदन एक बार फिर चमक रहा था।

उधर रसोई में सुगना ने दूध तैयार किया वैद्य जी की पत्नी द्वारा दी गई दवाई मिलाई और दूध लेकर सोनू की तरफ आने लगी।पर कल की तरह आज सुगना के हाथ में दो गिलास न थे। शायद दिन भर में दूध की खपत कुछ ज्यादा हो गई थी और रात्रि के लिए दूध एक ही गिलास बचा था।

बिस्तर पर लेटे सोनू की धड़कन तेज थी लंड स्खलित होकर आराम कर रहा था। आज सोनू ने जानबूझकर अपना अंडरवियर नहीं पहना था परंतु सतर्क होने के कारण धोती का आवरण भी उसे ढकने में कामयाब हो रहा था। सुगना को अपने करीब आते देख कर उसने स्वयं को व्यवस्थित किया और पालथी मारकर पलंग पर बैठ गया धोती को अपने जननांगों के पास समेट कर उसने अपने आराम कर रहे लंड को पूरी तरह ढक लिया।

"आज दिन भर ढेर काम हो गईल ने दूध पीकर सूत जो…." सुगना ने स्वयं को यथासंभव सामान्य दिखाते हुए कहा।

"अरे एक ही गिलास दूध ले आईल बाड़ू तू ना पियाबु"

"नाना हम पी ले ले बानी" सुगना ने झूठ बोलने की कोशिश की पर इस झूठ में सिर्फ और सिर्फ त्याग था।

"अइसन हो ना सकेला हमार कसम खा"

सोनू की झूठी कसम खा पाना सुगना के लिए संभव न था वह बात बदलते हुए बोली

"अरे पी ले हम ढेर खाना खा ले ले बानी"

परंतु सोनू ना माना उसने आगे झुक कर सुगना की कलाइयां पकड़ ली और उसे खींचकर अपने बगल में बैठा लिया

"पहले तू थोड़ा दूध पी ला तब हम पियेब " सोनू ने अधिकार जमाते हुए कहा।

सुगना को पता था सोनू अपनी जिद नहीं छोड़ेगा पर यदि उसने दूध पिया तो……. सुगना का हलक सूखने लगा

"का सोचे लगलू? थोड़ा सा पी ला…"

सुगना को कोई उत्तर न सूझ रहा था आखिरकार उसने हार मान ली और बोली

" बस दो घूंट और ना.."

सोनू ने गिलास अपने हाथ में लेकर अपने अंगूठे से गिलास पर निशान बनाया और बोला

"इतना पी जा ना ता हम दूध ना पिएब"

सुगना जानती थी यदि उसने दूध पीने में आनाकानी की और ज्यादा जिद की तो सोनू को शक हो सकता था । और यदि सोनू ने दूध न पिया तो आज उसका वीर्य स्खलन असंभव हो जाता। उसने सोनू की संतुष्टि के लिए मजबूरी बस दूध के कुछ घूंट अपने हलक के नीचे उतार लिए।


उसे पता था कि वह स्वयं अब उस दवा के प्रकोप में आ सकती है परम उसे विश्वास था कि वह दूध की कुछ मात्रा लेने के बावजूद भी वह अपनी चेतना बरकरार रख सकती है। सुगना ने दूध के कुछ घूंट पिए और गिलास सोनू को हाथ में देते हुए बोली

"अब पी जा बदमाशी मत कर हम जा तानी नहाए…"

सोनू दूध पीने के मूड में बिल्कुल भी नहीं था परंतु सुगना वहां से हिलने को तैयार ना थी। जब तक सोनू के गले की मांसपेशियों ने दूध हलक में उतरने का दृश्य सुगना की आंखों के समक्ष न लाया सुगना वहां से न हटी। परंतु जैसे ही सुगना ने बाथरूम की तरफ अपने कदम बढ़ाए सोनू ने दूध पीना रोक लिया और सुगना के बाथरूम में जाते ही वह दूध रसोई घर में जाकर बेसिन में गिरा आया।

भाई-बहन के इस मीठे प्यार ने दोनों के हलक में उस दिव्य दूध की चंद घूटें उतार दी थी…

दोनों भाई बहन कभी अपने सर को झटकते कभी अपनी आंखों को बड़ा कर दवा के असर को कम करने की कोशिश करते….


सुगना निर्वस्त्र होकर स्नान करने लगी उसके दिमाग में एक बार फिर सोनू का लंड घूमने लगा जिसे अब से कुछ देर बाद उसे हाथों में लेकर सहलाते हुए स्खलित करना था। जांघों के बीच हो रही बेचैनी को सुगना ने रोकने की कोशिश न कि आखिर बुर से बह रही लार ने कल रात सुगना की मदद ही की थी..
अपने उत्तेजक ख्यालों में खोई सुगना ने अपना स्नान पूरा किया तौलिए से अपने भीगे बदन को पोछा और अपने अंतर्वस्त्र पहनने के लिए शावर की रॉड पर टंगी अपनी नाइटी को हटाया….

जब तक सुगना अपने अंतर्वस्त्र पकड़ पाती वह नाइटी के हटते ही वह रॉड से नीचे गिर गए। सुगना ने उन्हें पकड़ने की कोशिश अवश्य की परंतु सोनू की चाल कामयाब हो गई थी। सुगना की ब्रा और पेंटी नीचे रखी बाल्टी में जा गिरे थे और भीग गए। वो अब पहनने लायक न थे। सुगना कुछ समय के लिए परेशान हो गई पर कोई उपाय न था। आखिर का उसने हिम्मत जुटाई और बिना अंतर्वस्त्र पहले ही नाइटी पहन कर बाहर आ गई…

वैसे भी उसके अनुसार उसका भाई सोनू अवचेतन अवस्था में होगा नाइटी के अंदर अंतर्वस्त्र है या नहीं इससे किसी को फर्क नहीं पड़ना था। परंतु सुगना शायद यह बात नहीं जानती थी कि उसका छोटा भाई सोनू उसका बेसब्री से इंतजार कर रहा और जब वह उसकी भरी-भरी चुचियों और जांघों के बीच से झांक रहे अमृत कलश को अपनी निगाहों से देखेगा वह कैसे खुद पर काबू रख पाएगा…

सुगना को अपनी तरफ आते देख सोनू ने सुगना की चूचीयों को बंद पलकों के बीच से झांक कर देखा और चुचियों की थिरकन से उसने अपनी योजना की सफलता का आकलन कर लिया।


सुगना एक बार फिर सोनू के बगल में बैठ चुकी थी। और अपने दाहिने हाथ से सोनू की धोती को अलग कर रही थी नियति मुस्कुरा रही थी…सुगना जागृत सोनू का लंड अपने हाथों से पकड़ने जा रही थी..

दवा की खुमारी ने सोनू और सुगना दोनों को सहज कर दिया था।

पाप घटित होने जा रहा था….

शेष अगले भाग में….
बहुत ही सुंदर लाजवाब और अद्भुत रमणिय अपडेट है भाई मजा आ गया
सोनू की पहली योजना कामयाब हुई और सुगना नहाने के बाद बीना ब्रा पेंटी पहने ही सोनू के पास आगयी
दूध पिने के बाद अर्ध अवचेतना अवस्था में कुछ बडा हो जाने की संभावना लगती हैं जो आगे की रुपरेखा तयार करेगा खैर देखते हैं आगे क्या होता है
 

Napster

Well-Known Member
5,266
14,431
188
लव्हली भाई 120 वा अपडेट भेजने की कृपा करे
 

omijust4u

KumuDni :)
34
39
19
अध्याय 2

भाग 127 पार्ट 1

समय बीतते देर नहीं लगती आज सलेमपुर में माहौल गमगीन था सलेमपुर के हीरो सरयू सिंह आज श्मशान घाट में कफन ओढ़े मुखाग्नि का इंतजार कर रहे थे सलेमपुर की सारी जनता अपने सम्मानित सरयू सिंह को विदा करने श्मशान घाट पर उमड़ी हुई थी। शायद यह पहला अवसर था जब श्मशान घाट पर इतनी भीड़ देखी जा रही थी पुरुषों के साथ-साथ महिलाएं भी पहली बार श्मशान घाट पर उपस्थित हुई थी सुगना कजरी और पदमा का रो रो कर बुरा हाल था।


चिता सजाई जा रही थी सभी अपनी अपनी बुद्धि और प्रेम के हिसाब से सरयू सिंह को अंतिम सम्मान देने का प्रयास कर रहे थे कोई चिता के चरण छूता कोई फूल डालता… धीरे-धीरे मुखाग्नि का समय करीब आ रहा था।

संग्राम सिर्फ उर्फ सोनू अब भी दुविधा में था। वह एक तरफ पत्थर की शिला पर बैठा आंखे बंद किए धरती में न जाने क्या देख रहा था…

गांव के सरपंच ने आखिरकार जन समाज के समक्ष यह बात रखी की सरयू सिंह को मुखाग्नि कौन देगा?

"सरयू सिंह कि कोई संतान तो है नहीं पर सोनू भैया इनके पुत्र जैसे ही हैं मुखाग्नि इन्हीं को देना चाहिए" गांव के एक युवा पंच ने अपनी बात रखी।

सोनू दूर बैठा यह बात सुन रहा था उसका कलेजा दहल उठा सोनू भली-भांति जानता था की सुगना सरयू सिंह की पुत्री है यह अलग बात थी की उसका जन्म सरयू सिंह के नाजायज संबंधों की वजह से हुआ था परंतु सुगना के शरीर में सरयू सिंह का ही खून था सोनू से रहा न गया सोनू ने पूरी दृढ़ता से कहा..

"सुगना दीदी ने जीवन भर एक पुत्री की भांति सरयू चाचा की सेवा की है मुखाग्नि सुगना दीदी देंगी.."

सोनू का कद और उसकी प्रतिष्ठा अब इतनी बढ़ चुकी थी कि उसकी बात काट पाने का सामर्थ गांव के किसी व्यक्ति में न था। सभी एक बारगी महिलाओं के झुंड की तरफ देखने लगे… बात कानो कान सुगना तक पहुंच गई..

सुगना पहले ही दुखी थी…यह बात सुनकर उसकी भावनाओं का सैलाब फुट पड़ा और एक बार वह फिर फफक फफक कर रोने लगी… अब तक सोनू उसके करीब आ चुका था उसने सुगना को अपने गले से लगाया और उसे समझाने के लिए उसे भीड़ से हटाकर कुछ दूर ले आया..

"सोनू ई का कहत बाड़े…? हम मुंह मे आग कैसे देब?

"काहे जब केहू के बेटा ना रहे ता बेटी ना दीही?"

सोनू ने स्वयं प्रश्न पूछ कर सुगना को निरुत्तर कर दिया।

"दीदी याद बा हम तहरा के बतावले रहनी की तू हमर बहिन ना हाउ "

सुगना को जौनपुर की वह रात याद आ गई जब सोनू ने संभोग से पहले सुखना के कानों में यह बात बोली थी और मिलन को आतुर सुगना को धर्म संकट से बाहर निकाल लिया था।

सुगना का कलेजा धक धक करने लगा…

रक्त का प्रवाह तेजी से शरीर में बढ़ने लगा परंतु दिमाग में झनझनाहट कायम थी सुगना सोनू की तरफ आश्चर्य से देख रही थी..

"दीदी सरयू का चाचा हि ताहार बाबूजी हवे। तू उनकरे बेटी हाउ एकरा से ज्यादा हमरा से कुछ मत पूछीह…"

सुगना के कान में जैसे पारा पड़ गया हो वह हक्की बक्की रह गई आंखें सोनू के चेहरे और भाव भंगिमा को पढ़ने की कोशिश कर रही थी परंतु कान जैसे और कुछ सुनने को तैयार ना थे।

"ते झूठ बोलत बाड़े ऐसा कभी ना हो सके ला?"

सोनू भी यह बात जानता था कि सुगना दीदी के लिए इस बात पर विश्वास करना कठिन होगा इसलिए उसने बिना देर किए सुगना के हाथों को अपने हाथों में ले लिया और बोला

" दीदी हम तोहार कसम खाकर कहत बानी .. तू सरयू चाचा की बेटी हाउ .. घर पहुंच गए हम तोहरा के डॉक्टर के रिपोर्ट भी दिखा देहब अभी हमारी बात मान ल।"

सुगना को यह अटूट विश्वास था कि सोनू उसकी झूठी कसम कतई नहीं कह सकता था जो बात सोनू ने कही थी उस पर विश्वास करने के अलावा सुगना के पास कोई और चारा ना था। जैसे ही सुगना के दिमाग में सरयू सिंह के साथ बिताए कामुक पलों के स्मृतिचिन्ह घूमें सुगना बदहवास हो गई…अपने ही पिता के साथ….वासना का वो खेल….. हे भगवान सुगना चेतना शून्य होने लगी… और खुद को संभालने की नाकामयाब कोशिश करते नीचे की तरफ गिरने लगी सोनू ने उसे सहारा दिया परंतु सुगना धीरे-धीरे जमीन पर बैठ गई…

कुछ दूर सोनू और सोनू को बातें करते वे देख रही महिलाएं भागकर सुगना की तरफ आई और उसे संभालने की कोशिश करने लगी सुगना के मुंह पर पानी के छींटे मारे गए और सुगना ने एक बार फिर अपनी चेतना प्राप्त की कलेजा मुंह को आ रहा था और आंखों से अश्रु धार फूट रही थी..

उसे सरयू सिंह का प्यार भरपूर मिला था एक ससुर के रूप में भी, एक प्रेमी के रूप में भी और बाद में एक पिता के रूप में भी…

सुगना को अंदर ही अंदर ही अंदर यह बात खाए जा रही थी कि आज सरयू सिंह की अकाल मृत्यु के पीछे कहीं ना कहीं कारण वह स्वयं थी…

उधर सरयू सिंह के घर के अंदर कोठरी में सोनी सुबक रही थी एकमात्र वही थी जो इस समय सरयू सिंह के घर में थी…

बीती रात के दृश्य उसकी आंखों के समक्ष घूम रहे थे कैसे दरवाजे की आहट से वह सहम गई थी…

अंदर आ रही कदमों की आहट से उसका कलेजा दहला जा रहा था तभी सुगना की आवाज ने उसे संबल दिया..

बाउजी "तनी धीरे से………"

तू जा सरयू सिंह को मजबूत आवाज ने सोनी के रोंगटे खड़े कर दिए…


सोनी पलंग पर घोड़ी बनी हुई थी पलंग पर लगी मच्छरदानी की रॉड से एक पर्दा लटका दिया गया था सोनी के घाघरे में ढके नितंब पर्दे के बाहर थे और सोनी का पूरा शरीर पर्दे के अंदर..

सरयू सिंह उत्तेजना से पागल थे उन्होंने सोनी की घागरे में कैद नितंबों को अनावृत किया और अपनी मजबूत और खुरदरी उंगलियों से उन चिकने नितंबों की कोमलता को अंदाज ने की कोशिश की उंगलियां स्वता ही सोनी की दरारों में घूम लक्ष्य की तलाश में भटकने लगी सरयू सिंह से रहा न गया सुगना के तय किए गए नियमों के खिलाफ सरयू सिंह ने अपनी कमर में कसी छोटी टॉर्च निकाली और सोनी के नितंबों को उजाले में देखने को कोशिश की..

दो खूबसूरत चांदो और उनके बीच की गहरी घाटी में सरयू सिंह के लंड में एक अद्भुत तनाव पैदा किया और सरयू सिंह से झुककर सोनी के नितंबों को चूम लिया..

खिड़की पर खड़ी सुगना ने अंदर कमरे में हुए रोशनी देखकर अपना ध्यान खिड़की की तरफ लगाया और सरयू सिंह को सोनी के नितंब चूमते हुए देख लिया..

सरयू सिंह बहक रहे थे सुगना ने छद्म खासी की आवाज निकाल कर सरयू सिंह को उनका कर्तव्य याद दिलाया और टॉर्च की रोशनी बंद हो गई।

और कुछ ही देर बाद कमरे में ढोलक की हल्की थाप गूंजने लगी सोनी आज अपने उन ख्वाबों को साकार होते महसूस कर रही थी वही ख्वाब जिसकी उसने न जाने कितनी बार कल्पना की थी…


लगातार दो बार चरम प्राप्त करने के पश्चात वह पूरी तरह तृप्त थी परंतु जिस निमित्त हेतु यह संभोग हो रहा था अभी उसकी पूर्णाहुति में समय था सरयू सिंह का स्खलन अब तक ना हुआ था।

इसके बाद जो हुआ सोनी स्वयं को उसके लिए गुनाहगार मान रही थी…उसे वह समय याद आ रहा था.. जब सरयू सिंह उसकी बुर में लंड डाले उसे गचागच चोद रहे थे और वह उन्हें और उकसाए जा रही थी..


अचानक ही सरयू सिंह वह उसपर लेट गए थे उसने उनकी पीठ सहलाकर उन्हें वापस मैदान में उतारने की कोशिश की परंतु कोई प्रतिक्रिया न देखकर वह घबरा गई. अपने सीने पर सरयू सिंह की धड़कनों की धीमी पड़ती गति और सरयू सिंह के चेहरे से झर झर बहता पसीना सोनी को व्याकुल कर रहा था।

काफी मशक्कत के बाद सोनी ने खुद को सरयू सिंह की के आगोश से बाहर निकाला और अपने हृदय गति पर काबू पाकर अपने अपने नंगे बदन पर आनन-फानन में वस्त्र डालें और भागकर सुगना को ढूंढती हुई आंगन में आ गई सुगना ने बदहवाश सोनी को देखते ही पूछा "क्या हुआ?" सोनी के मुंह से आवाज न निकल रही थी अंदर दोनों बहने सरयू सिंह को देख रही थी जो पलंग पर नंग धड़ंग मृत पड़े हुए थे।

बड़ी मुश्किल से सरयू सिंह को वस्त्रों से ढका गया और कुछ ही पलों में घर में कोहराम मच गया।

सुगना अब अपनी भावनाओं पर नियंत्रण पा चुकी थी और धीरे-धीरे चेतना प्राप्त कर अपने पिता सरयू सिंह को मुखाग्नि देने के लिए आगे बढ़ रही थी..

सरयू सिंह की आत्मा अपनी पुत्री को अपनी मृत शरीर को मुखाग्नि देने हेतु आगे बढ़ते देख आह्लादित हो रही थी आखिरकार सुगना और सरयु सिंह के बीच जो हुआ था वह अनजाने में हुआ था…

सरयू सिंह की चिता धू धू कर जल रही थी…उनकी आत्मा को इस बात का मलाल अवश्य था कि वह सोनी को विभिन्न अवस्थाओं में कसकर चोदने के बावजूद स्खलन को प्राप्त न हो पाए थे और अतृप्ति का अहसास लिए उसे देह छोड़नी पड़ी थी।

सुगना चिता को जलते देख रही थी और विगत तीन चार वर्षों में अपने घर में आए रिश्तों के बदलाव और उसके कारणों को याद कर रही थी..

क्या सुगना गुनहगार थी…एक बार के लिए उसके मन में आया कि वह सरयू सिंह की चिता के साथ ही अपने प्राण त्याग दे पर सूरज का चेहरा ध्यान आते ही…उसे अपने जीवन की उपयोगिता का ध्यान आ गया…पुत्र मोह ने उसे जीवन जीने का कारण दिया पर सुगना ने मन ही मन यह निर्णय कर लिया कि वह अब और वासना के आगोश में नहीं रहेगी और सोनू से अपने कामुक संबंधों का खात्मा कर लेगी..

कुछ होने वाला था….

शेष अगले एपिसोड में

जितने पाठक बचे है वह अपने कमेंट और अपेक्षाएं देकर अपनी उपस्थिति का प्रमाण अवश्य दे ताकि अगला एपिसोड उन्हें DM par bheja ja sake..
बहुत ही रोचक अपडेट था।

कहानी को दोबारा शुरू करने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद। काफी दिनों से प्रतीक्षा थी आपकी। 127 भाग 2 का बेसब्री से इंतजार है। जैसे ही लिखना हो जाए भेजिएगा जरूर।
 
Top