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Incest आह..तनी धीरे से.....दुखाता.

whether this story to be continued?

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  • no

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Lovely Anand

Love is life
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आह ....तनी धीरे से ...दुखाता
(Exclysively for Xforum)
यह उपन्यास एक ग्रामीण युवती सुगना के जीवन के बारे में है जोअपने परिवार में पनप रहे कामुक संबंधों को रोकना तो दूर उसमें शामिल होती गई। नियति के रचे इस खेल में सुगना अपने परिवार में ही कामुक और अनुचित संबंधों को बढ़ावा देती रही, उसकी क्या मजबूरी थी? क्या उसके कदम अनुचित थे? क्या वह गलत थी? यह प्रश्न पाठक उपन्यास को पढ़कर ही बता सकते हैं। उपन्यास की शुरुआत में तत्कालीन पाठकों की रुचि को ध्यान में रखते हुए सेक्स को प्रधानता दी गई है जो समय के साथ न्यायोचित तरीके से कथानक की मांग के अनुसार दर्शाया गया है।

इस उपन्यास में इंसेस्ट एक संयोग है।
अनुक्रमणिका
भाग 126 (मध्यांतर)
भाग 127 भाग 128 भाग 129 भाग 130 भाग 131 भाग 132
भाग 133 भाग 134
 
Last edited:

arushi_dayal

Active Member
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लवली जी सच कहूं तो रतन का किरदार मुझे एक थके हारे और लाचार व्यक्ति सा लगता है जो पहले तो अपने पारिवारिक जिम्मेदरियो से विमुख हो अपनी पत्नी सुगना को बेसहारा छोड़ दूसरे शहर चला गयाज वहां भी उसकी प्रेमिका ने उसे दुत्कार कर किसी और से संबंध बना लिया और अब यहां आश्रम में वो अपनी छोटी साली को पेलने के चक्कर में ना जाने किसे पेल आया। इसके विपरीत सोनू का किरदार एक मजबूत सम्मान और समझदार व्यक्ति का किरदार है जिसे हर औरत पाना चाहती है। सुगना और लाली के मन में उसके प्रति आकर्षण इसका एक जीवंत प्रमाण है। खैर ये सब मेरे निजी विचार हैं। कुल मिलाकर फिर से एक बढ़िया अपडेट
 

Lovely Anand

Love is life
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लवली जी सच कहूं तो रतन का किरदार मुझे एक थके हारे और लाचार व्यक्ति सा लगता है जो पहले तो अपने पारिवारिक जिम्मेदरियो से विमुख हो अपनी पत्नी सुगना को बेसहारा छोड़ दूसरे शहर चला गयाज वहां भी उसकी प्रेमिका ने उसे दुत्कार कर किसी और से संबंध बना लिया और अब यहां आश्रम में वो अपनी छोटी साली को पेलने के चक्कर में ना जाने किसे पेल आया। इसके विपरीत सोनू का किरदार एक मजबूत सम्मान और समझदार व्यक्ति का किरदार है जिसे हर औरत पाना चाहती है। सुगना और लाली के मन में उसके प्रति आकर्षण इसका एक जीवंत प्रमाण है। खैर ये सब मेरे निजी विचार हैं। कुल मिलाकर फिर से एक बढ़िया अपडेट
आपने बिल्कुल सही कहा यह ससुरा रतन मेरे लिए भी परेशानी का सबब बना हुआ है। यह तो कहानी में मोनी की एक प्रमुख भूमिका है जिसके लिए इस रतन को ढोया या जा रहा है वरना जो सुगना का ना हुआ वह किसी का क्या होगा।
बर्दाश्त करते रहीए जैसे नियति कर रही है।
 
Last edited:

sunoanuj

Well-Known Member
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अगले भाग की प्रतीक्षा में है लवली जी !
 

Pooja_69

Dream girl
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Pooja_69 अरे अपनी राम प्यारी को ज्यादा परेशान मत करिए वरना दो चार एपिसोड पढ़ते पढ़ते छिल जाएगी..
माफ कीजिएगा यह एक मजाक था...
जुड़े रहिए...
अरे आनंद बाबू इतनी जल्दी नहीं छिलने वाली है वो अपनी सुरक्षा के लिए अपना लुब्रिकेंट स्वयं बनाना जानती है 😅
 
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Rockstar_Rocky

Well-Known Member
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प्रिय मित्र Lovely Anand

मेरा नाम मानु है| मुझे आपकी ये रचना बहुत-बहुत पसंद आई, कहानी जब भोजपुरी भाषा में डायलाग आते हैं तो पढ़ कर मज़ा दुगना हो जाता है| मैंने आपकी ये रचना बहुत पहले पढ़नी शुरू की थी परन्तु कुछ कारण वश मैं इसे आगे नहीं पढ़ पाया| मैंने सोचा की जब ये कहानी पूर्ण होगी तो इसे पुनः पढ़ूँगा| परन्तु समय का चक्का ऐसा घूमा की मैं इस कहानी के रस से अछूता रह गया!

कल ऐसे ही मोबाइल पर स्क्रॉल करते हुए मेरा आपकी इस कहानी से पुनः मिलन हुआ| अंतिम पैन के कमैंट्स में मैंने पढ़ा की आप कुछ चुनिंदा अपडेट केवल DM पर देते हैं| फिर मैंने आपकी कहानी का इंडेक्स देखा तो ये मुझे पूर्ण लगा|
इससे पहले की मैं कहानी फिर से पढ़नी शुरू करूँ, कृपया मुझे बताएं की कौन-कौन से अपडेट आप DM में देंगे? ताकि जब मैं उस अपडेट पर पहुँचूँ तो आपसे सम्पर्क करूँ|

आपके जवाब की आस में,

एक अदना सा पाठक,
मानु
 
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विनय07

New Member
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भाग 131

लाली…सोनू का बेसब्री से इंतजार करने लगी…पर सुगना सतर्क थी..उसे सोनू का इंतजार भी था पर एक डर भी था कही सोनू ने फिर…नहीं..नहीं अब बस.. जो हुआ सो हुआ। वह मन ही मन निर्णय लेने की कोशिश कर रही थी पर जांघों के बीच छुपी प्रतीक्षारत बुर सुगना के निर्णय को कमजोर करने की कोशिश कर रही थी।

नियति मुस्कुरा रही थी और विधाता द्वारा लिखी गई आगे की पटकथा को पढ़ने का प्रयास कर रही थी…


अब आगे..

सुबह-सुबह अपनी पारिवारिक जिम्मेदारीयो को निभाने के पश्चात सुगना अपने भगवान के समक्ष अपने परिवार के कुशल क्षेम की प्रार्थना कर रही थी। सोनू के नसबंदी कर लेने के पश्चात यह सुनिश्चित हो चुका था कि सोनू अब विवाह नहीं कर सकता । पूरे परिवार में यह बात सिर्फ सुगना को पता थी और उसने इसीलिए सोनू और लाली के विवाह का निर्णय ले लिया था।

सुगाना यह चाहती थी की लाली और सोनू पति-पत्नी के रूप में साथ में रहने लगे जिससे सोनू की वासना तृप्ति होती रहे और सोनू जिसका ध्यान भटकते भटकते स्वयं उसकी तरफ आ चुका था वह उससे दूर ही रहे। परंतु सुगना को शायद यह अंदाजा न था कि सोनू और सुगना एक दूसरे के लिए ही बने थे उन्हें अलग कर पाना इतना आसान न था।

दोपहर में सुगना और लाली भोजन के पश्चात एक ही बिस्तर पर लेटे हुए थे । सुगना ने लाली की ओर करवट ली और बोली..

“सोनूआ शनिचर के आवता…सोचा तनी सोनी के सीतापुर भेज दी… सोमवार के भी छुट्टी बा 2 दिन मां के साथ रहली अच्छा लागी।

लाली मंद मंद मुस्कुराने लगी। वह जानती थी कि सोनी की उपस्थिति में सोनू से संभोग करना एक आसान कार्य न था। पिछली बार बड़े दिनों बाद जब सोनू और लाली का मिलन हुआ था तब सोनी घर में थी और लाली और सोनू दोनों के बीच कामुक गतिविधियों के दौरान दोनों अहसज महसूस कर रहे थे।

एक तरफ जहां सुगना की उपस्थिति लाली और सोनू दोनों में जोश भर देती थी। वहीं दूसरी तरफ सोनी से लाली और सोनू दोनों अपने अनूठे रिश्ता का पर्दा रखते थे।


सोनी को यह इल्म भी ना था की उसके सोनू भैया जो उसके लिए एक आदर्श थे अपनी मुंह बोली बहन लाली के साथ बिस्तर पर धमा चौकड़ी करते थे।

लाली ने मुस्कुराते हुए कहा..

“ठीक कहा त बाड़े , दो-चार दिन घुम आईबे तो ओकरो अच्छा लागी”

सुगना में उसे चिकौटी काटते हुए कहा

“और ताहरा?”

लाली सुगना से सटकर गले लग गई।

सोनी के अनुपस्थित होने पर जब भी सोनू घर में होता, सुगना घर के सभी बच्चों को संभाल लेती । वह उनके साथ खेलती उन्हें कहानियां सुनाती बातें करती इसी दौरान लाली और सोनू अपनी कामवासना को शांत कर लेते। दिन हो या रात सुगना के रहने से लाली और सोनू को पूरा एकांत मिलता दोनों इसके लिए सुगना के शुक्रगुजार भी थे और कृतज्ञ भी।

सुगना ने हिम्मत जुटा कर लाली से सोनू और उसके विवाह के बारे में बात करने की सोची और उसकी बाहों पर अपनी हथेली रखते हुए बोली

“ए लाली जौनपुर अबकी ते सोनू के साथ जौनपुर चल जो सोनू तोर पसंद के पलंग सजाबले बा. मन भर सुख लीहे.. ओकर घर बहुत सुंदर बा”

“जाए के तो हमरो मन करता पर बच्चन के के स्कूल चलता।

“ते जो हम संभाल लेब” सुगना ने रास्ता सुझाया।

“पगला गई बाड़े का । सोनू के साथ अकेले जाएब तो लोग का सोची ? हम ओकर बहिन हई बीबी ना..” लाली मुस्कुराने लगी।

समझदार सुगना ने न जाने ऐसी बात कैसे बोल दी थी। लाली का प्रश्न उचित था सोनू के साथ बिना बच्चों के जाना मुमकिन ना था।

पर अब जब सुगना के मुख से बात निकल ही गई थी उसने इसे अवसर में तब्दील कर दिया और बेहद संजीदगी से बोली..

“अच्छा ई बताओ लाली तोरा सोनूवा के साथ हमेशा रहे के मन करेला की ना?”

“काहे पूछत बाडू तू ना जाने लू का? अगला जन्म में भगवान हमारा हिस्सा में सोनुआ के देते त हमार भाग जाग जाएत..”

“और भगवान एही जन्म में दे देस तब?”

सुगना ने पूरी संजीदगी से उसकी आंखों में आंखें डालते हुए कहा।

सुगना ने लाली की दुखती रंग छेड़ दी थी जो लाली कभी अपनी कल्पनाओं में इस बात को सोचती थी आज सुगना ने अपने मुंह से वह बात कह कर अकस्मात लाली को उसकी संभावनाओं पर सोचने के लिए विवश कर दिया था। फिर भी वह सतर्क थी उसने मुंह बिचकाते हुए कहा

“ काहे ए अभागन से मजाक करत बाड़े। जतना प्यार हमरा सोनू से मिलेला हम ओतना से खुश बानी हमरा के ढेर लालची मत बनाव “

सुगना भली-भांति समझती थी की लाली सोनू को अपने पति रूप में स्वीकार करना चाहती तो अवश्य होगी पर सांसारिक और वैचारिक बंधनों से यह एक बेहद कठिन कार्य था।

आखिरकार सुगना ने अपने चिर परिचित दृढ़ अंदाज में लाली से कहा..

“लाली यदि सोनू तोहरा से खुद विवाह करें के इच्छा व्यक्त करी तो मना मत करिह बाकी सब हम देख लेब” लाली सुगना की बात सुनकर आश्चर्यचकित थी.

“ए सुगना अइसन मजाक मत कर”

“हम सच कहत बानी बस तू ओकर प्रस्ताव स्वीकार कर लीह “

“और घर परिवार के लोग “

“उ सब हमारा पर छोड़ दा?

“लाली पर सोनू हमरा से छोट ह और ईद दु दु गो बच्चा लोग ?” इ शादी बेमेल लागी।

लाली का प्रश्न सही था। निश्चित ही यह शादी बच्चों की वजह से कुछ अटपटी और बेमेल लग रही थी। परंतु लाली और सोनू जब अगल-बगल खड़े होते तो उम्र का अंतर बहुत ज्यादा नहीं प्रतीत होता था। सोनू अपनी उम्र से ज्यादा मेहनत कर अपना शरीर एक मर्द की तरह बना चुका था और इसके इतर लाली अब भी अपनी कमानीयता बरकरार रखने में कायम रही थी। उम्र में कुछ वर्ष बड़े होने के बावजूद उसने अपने शरीर को मेंटेन करते हुए इस उम्र के पहले को यथासंभव कम कर दिया था।

इसके बावजूद लाली को सुगना की बातें एक दिवास्वप्न की तरह लग रही थी। पर जिस संगीदगी से सुगना ने यह बात कही थी उसे सिरे से नकार देना संभव न था।

लाली के तो मन में अब लड्डू फूटने लगे थे। परंतु क्या यह इतना आसान होगा? क्या उसके और उसके परिवार के लोग इस बात को स्वीकार करेंगे ? क्या वह सचमुच सोनू से विवाह करेंगी? हे भगवान क्या उसकी कल्पना एक मूर्त रूप लेने जा रही थी? वह सुगना के प्रति कृतज्ञता और आभार प्रकट करते हुए उसकी दोनों हथेलियां को अपने हाथों में ले ली और बेहद प्यार से सहलाते हुए बोली

“सुगना हमरा के माफ कर दीहे हम तोहरा साथ बहुत नाइंसाफी कइले बानी”

सुगना ने प्रश्नवाचक निगाहों से लाली की तरफ देखा जैसे उसके इस वाक्य का मतलब समझाना चाह रही हो लाली की आंखों में आंसू थे उसने अपनी पलके झुकाए हुएकहा..


“सुगना ऊ दिवाली के रात सोनुआ तोहरा साथ जवन काईले रहे ओ में हमारे गलती रहे। हम ही ओकरा के उकसावले रहनी की की तु ओकरा से मिलन खाती तैयार बाडू।”

सुगना आश्चर्यचकित होकर लाली को देख रही थी। उसे समझ में नहीं आ रहा था की लाली के इस कन्फेशन से वह खुश हो या दुखी । एक तरफ उसके कन्फेशन सोनू को कुछ हद तक दोष मुक्त कर रहे थे और दूसरी तरफ उसका अंतरमन लाली का धन्यवाद दे रहा था जो उसने सोनू से उसका मिलन जाने अनजाने आसान कर दिया था। और उसके जीवन में एक बार फिर प्रेम और वासना की तरंगे छोड़ दी थी

सुगना ने खुद को संयमित किया वह उस बारे में और बात करना नहीं चाह रही थी उसने लाली की बात को ज्यादा तवज्जो न देते हुए कहा…

“तोरा कारण का का परेशानी भइल जानते बाड़े ..पर शायद कौनों पाप रहे कट गईल अब भूल जो ऊ सब”

बच्चों के ऑटो की आवाज सुनकर दोनों सहेलियों का वार्तालाप बंद हुआ लाली खुशी बच्चों को लेने बाहर गई और सुगना एक लंबी आह भरते हुए आगे की रणनीति बनाने लगी।

सुगना ने मन ही मन अपनी रणनीति बनानी शुरू कर दी उसे भी पता था यह कार्य बेहद कठिन था सोनू जैसे सजीले मर्द जो एक अच्छे प्रशासनिक पद पर भी था और तो और इसके लिए कई नामी गिरामी लोगों की लड़कियों के रिश्ते आ रहे थे ऐसे में सोनू लाली जैसी दो बच्चों वाली विधवा से विवाह के लिए सभी परिवार वालों को राजी करना बेहद कठिन था।

परंतु सुगना यह बात भली भांति जानती थी कि जब से सोनू ने अपनी नसबंदी करा ली थी उसका विवाह किसी सामान्य लड़की से करना उचित न था। यह उस लड़की के साथ भी अन्याय होता और उसके परिवार के साथ भी। यह धोखा था जिसे सुगना कतई नहीं चाहती थी।

सुगना की विडंबना यह थी कि वह सोनू की नसबंदी की बात किसी से साझा नहीं कर सकती थी यह राज सिर्फ उन दोनों के बीच था।

आखिरकार सोनू शनिवार को बनारस आने वाला था लाली और सुगना दोनों तैयार हो रहीं थी। एक सोनू के स्वागत के लिए और दूसरी सोनू के आने वाले जीवन में खुशियां बिखरने के लिए।

कुछ ही देर बाद सोनी और सुगना अपने दोनों बच्चों के साथ सीतापुर के लिए निकल पड़े। लाली को यह कुछ अजीब सा लगा

“अरे काल चल जईहे आज सोनू से मुलाकात कर ले..”

“ना ओकरा आवे में देर होई…अगला सप्ताह भेंट होखी” ऑटो में बैठ चुके बच्चे उछल कूद मचा रहे थे। सोनी और सुगना सीतापुर के लिए निकल चुके थे। वैसे भी सोनू का आना जाना एक सामान्य बात थी।

सुगना को पता था की सोनू निश्चित ही किसी न किसी बहाने उसे अपने मोहपाश में बांधेगा और उसकी निगोडी बुर में कामेच्छा जागृत करेगा और मौका देखकर संसर्ग के लिए किसी न किसी प्रकार उसे मना लेगा। ठीक वैसे ही जैसे वह बचपन में सुगना का उसका मन ना होते हुए भी अपने खेल में घसीट लेता था।

वैसे भी अभी सुगना की प्राथमिकताएं दूसरी थी अपने और लाली के घर वालों को मनाना उसके लिए एक कठिन कार्य था।

सोनू बनारस आया पर सुगना को घर में ना देखकर उसका उत्साह ठंडा पड़ गया। परंतु लाली खुश थी। आज उसके मिलन में कोई भी व्यवधान न था। सुगना से तो उसे वैसे भी कोई दिक्कत न थी परंतु सोनी……से पार पाना कठिन था। उसकी उपस्थिति में फूक फूक कर कदम रखना पड़ता था।

लाली का ध्यान सोनू की गर्दन की तरफ गया। गर्दन का दाग पूरी तरह गायब था। लाली खुश हो गई। पर सोनू की आंखों से चमक गायब थी। जिससे मिलने के लिए वह दिल में तड़प लिए बनारस आया था वह न जाने क्यों उसे छोड़कर चली गई थी।

शाम होते होते वस्तु स्थिति को स्वीकार करने के अलावा सोनू के पास और कोई चारा नहीं था। लाली जी जान से रात की तैयारी कर रही थी सोनू अब अपनी खुशी लाली में ही तलाश रहा था। लाली ने जिस तरीके से सुगना के समक्ष अपनी गलती मानी थी तब से उसकी मन हल्का हो गया था और वह अपनी सहेली सुगना के प्रति दिल से कृतज्ञ थी जिसने उसके वीरान जिंदगी में सोनू जैसा हीरा डालने का वचन दिया था।

लाली ने मन ही मन सोच लिया कि वह सोनू को संभोग के समय सुगना का नाम लेकर और नहीं उकसाएगी…

परंतु रात में जब सोनू और लाली एक दूसरे की प्रेम अग्न बुझा रहे थे बरबस ही सुगना का ध्यान उन दोनों के मनो मस्तिष्क में घूम रहा था। लाली द्वारा सुगना का जिक्र न किए जाने के बावजूद सोनू तो सुगना में ही खोया हुआ था। सोनू के आवेग और वेग में कमी नहीं थी। अपनी सुगना के लिए जितनी वासना सोनू ने अपने तन बदन में समेट रखी थी वह सारी लाली पर उड़ेल कर वह निढाल हो गया।

उधर सुगना अपने परिवार के बीच पहुंच चुकी थी..

सुगना जिस मिशन पर गई थी वह एक दो मुलाकातों में पूरा नहीं होने वाला था परंतु जब सुगना मन बना चुकी थी.. तो उसके लिए कोई भी कार्य दुष्कर न था।

अगले दो तीन महीने यूं ही बीत गए। हर शनिवार सोनू सुगना से मिलने बनारस आता पर कभी सुगना अपने गांव चली जाती कभी अपनी मां या कजरी और सरयू सिंह को बनारस बुला लेती इन दोनों ही परिस्थितियों में सोनू और सुगना का मिलन असंभव था । और सपना के प्यार में कोई कमी न थी। वह सब की उपस्थिति में सोनू से पूर्व की भांति प्यार करती उससे सटती कभी उसके गोद में सर रख देती पर उसे कामुक होने का कोई मौका नहीं देती। कभी-कभी सोनू एकांत में सुगना को बाहर घूमाने की जिद करता परंतु सुगना सोनू को उसे घुमाने का मूल उद्देश्य जानती थी और बड़ी सफाई से बिना उसे आहत किए बच निकलती..

जिस तरह मछली को पानी में पकड़ना मुश्किल होता है वह हांथ तो आती है पर पकड़ में नहीं आती सुगना भी अपने परिवार के बीच सुनहरी मछली जैसी ही थी..

सोनू उसका स्पर्श सुख तो बीच बीच में ले पा रहा था पर उछलती मचलती सुगना उसकी पकड़ से दूर थी..

ऐसा नहीं था कि सुगना ने इस दौरान सोनू को नजरअंदाज कर दिया था बस दूरी बना ली थी यद्यपि बीच-बीच में वह उसमें वासना की तरंगे भरने का काम जरुर कर देती थी।

आखिरकार सुगना अपने घर वालों और लाली के घर वालों को इस अनोखे विवाह के लिए राजी करने में कामयाब हो गई। सर्वसम्मति से यह विवाह आर्य समाज विधि से साधारण रूप से किसी पवित्र मंदिर में किया जाना निश्चित हुआ।

पूरे घर में खुशियों का माहौल था। इस अनूठे रिश्ते से सोनी सबसे ज्यादा आश्चर्यचकित थी। सोनू और लाली कब मुंह बोले भाई बहन से एक दूसरे के प्रेमी बन गए थे सोनी ने शायद इसकी कल्पना भी ना की थी। परंतु सोनू के निर्णय पर प्रश्न चिन्ह करने का ना तो सोनी के पास कोई अधिकार था और नहीं कोई जरूरत जब मियां बीबी राजी तो वह बीच में कई काजी की भूमिका अदा नहीं करना चाहती थी।

शुरुवात में सोनू की मां पद्मा का मन थोड़ा दुखी जरूर था परंतु लाली ने पदमा की सेवा कर उसका भी मन जीत लिया था। पूरे परिवार ने आखिरकार मिलकर यह हत्या किया कि यह विवाह सोनी के विवाह के बात करना उचित होगा अन्यथा सोनी के ससुराल वाले इस विवाह पर प्रश्न चिन्ह लगा सकते थे।

सुगना के लिए सोनू की तड़प बढ़ती जा रही थी और अब कमोबेश यही हाल सुगना का भी था इन दो-तीन महीनो में सुगना ने लाली और सोनू को हमेशा के लिए एक करने के लिए भरपूर प्रयास किया था और सफल भी रही थी। उसका कोमल तन बदन सोनू के मजबूत आलिंगन में आने को तड़प रहा था। पर अपने मन पर मजबूत नियंत्रण रखने वाली सुगना अपनी भावनाओं को काबू में किए हुए थी।

आज शुक्रवार का दिन था। लाली अपने बच्चों के साथ अपने माता-पिता से मिलने सलेमपुर गई हुई थी। शायद उसके माता-पिता ने उसके लिए घर पर कोई छोटी पूजा रखी थी जिसमें उसका उपस्थित रहना जरूरी था। सुगना ने लाली को हिदायत दी थी की कैसे भी करके कल शाम तक बनारस आ जाना। पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार कल सोनू को बनारस आना था और सुगना कतई नहीं चाहती थी कि सोनू बिना लाली की उपस्थिति के बनारस में उसके साथ एक ही छत के नीचे रहे। सुगना अब तक अपनी भावनाओं पर नियंत्रण रखने में कामयाब रही थी और सोनू अपनी भावनाओं को काबू में रखने को मजबूर था।

सुगना अपने दोनों बच्चों को स्कूल भेजने के बाद पूरी तरह खाली थी। आज उसने पूरी तन्मयता से स्नान किया स्नान करते वक्त अपनी छोटी सी बुर के चारों तरफ उग आए काले बालों की झुरमुट को सोनू के पुराने रेजर से साफ किया। इस दौरान न जाने क्यों वह सोनू को याद करती रही ।


सुगना महसूस कर रही थी कि पिछले कुछ महीनो में उसने सोनू को हद से ज्यादा बेचैन कर दिया था पर उसकी नजरों में शायद यही उचित था। बिस्तर पर जब जब सुगना स्वयं उत्तेजना का शिकार होती अपनी जांघों के बीच तकिया फसाकर जौनपुर में सोनू के साथ बिताए पल को याद करती सोनू को याद करते-करते उसकी उंगलियां उसकी बुर को थपकियां देकर सुलाने की कोशिश करती।

कभी वह रहीम और फातिमा की किताब निकाल कर पढ़ती और इसी दौरान न जाने कब सुगना की बुर उसकी जांघों को ऐंठने पर मजबूर कर देती और सुगना तृप्ति का सुखद एहसास लिए नींद में खो जाती। रहीम एवं फातिमा की किताब अब उसके लिए एक अनमोल धरोहर हो चुकी थी जो उसके एकांत और सुख की साथी थी..

सुगना ने तसल्ली से स्नान किया खूबसूरत मैरून कलर की साटिन की नाईटी पहनी …. बालों की सफाई होने के पश्चात उसकी बुर संवेदनशील हो चुकी थी अतः उसने अंतर्वस्त्र पहनने को आवश्यकता नहीं समझी पर एहतियातन अपनी चूचियों को ब्रा सहारा दे दिया। वैसे भी आज कई दिनों वह घर में नितांत अकेली थी और आज दोपहर रहीम और फातिमा की किताब पढ़ते हुए अपने कामोत्तेजना शांत करने वाली थी।

स्नान के बाद ध्यान की बारी थी। अपने इष्ट देव को याद करते हुए सुगना पूजा पाठ में संलग्न हो गई। सुगना ने आरती दिखाई और अपने परिवार की खुशियों को कामना की..इसी बीच उसने लाली और सोनू का भी ध्यान किया और उनके विवाह के लिए मंगल कामना की। इधर सुगना ने अंतरमन ने सोनू को याद कर लिया…उधर

दरवाजे पर ठक ठक की आवाज हुई.. हाथ में आरती की थाल लिए अपने घर और बरामदे में आरती दिखाते हुए सुगना दरवाजे तक गई और दरवाजा खोल दिया..

सामने सोनू खड़ा था.. सुगना सुगना आश्चर्यचकित थी..पर बेहद खुश थी

“अरे सोनू बाबू आज कैसे? छुट्टी बा का?”

“ना दीदी बनारस में काम रहे…” सुंदर नाइटी में फूल सी खिली सुगना की मादक सुगंध में खोए हुए सोनू ने मुस्कुराते हुए उत्तर दिया..

उसने झुक कर सुगना के चरण छुए… उठते वक्त उसने सुगना के हाथ में पकड़ी आरती की थाल को पूरे आदर और सम्मान से अपनी दोनों हथेलियों से स्वीकार किया और उसे अपने माथे पर लगा लिया।


सुगना खुश भी थी और आश्चर्यचकित भी उसने सोनू के माथे पर तिलक लगाया और सर पर रखकर उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होने का आशीर्वाद दिया..नियति मुस्कुरा रही थी सुगना ने अनजाने में उसे स्वयं को समर्पित कर दिया था आखिर इस वक्त सोनू की एकमात्र मनोकामना सुगना स्वयं थी। सुगना वापस पूजा का थाल रखना अपने छोटे से मंदिर में चली गई..

इधर सोनू अपना सामान लाली के कमरे में रख चुका था कमरे की स्थिति यह बता रही थी की लाली अपने पूर्व नियोजित कार्यक्रम के अनुसार सलेमपुर जा चुकी थी..

अब तक सोनू को पिछले कुछ महीने से खुद से दूर रख पाने में सफल सुगना आज अचानक ही नियत के खेल में फंस चुकी थी। सोनू की खुशी सातवें आसमान पर थी और अपने इष्ट देव के समक्ष सर झुकाए सुगना का दिल धड़क रहा था…सुगना को स्वयं यह समझ नहीं आ रहा था कि वह ईश्वर से मांगे तो क्या मांगे जो जीवन में उसे सबसे प्यारा था वह उसके समक्ष था.

सोनू मंदिर के दरवाजे पर खड़ा सुगना के बाहर आने का इंतजार कर रहा था..

जैसे ही सुगना अपने पूजा कक्ष से बाहर आई सोनू ने उसे सोनू ने उसे एक झटके में ही अपनी गोद में उठा लिया..सुगना ने अपनी खुशी को नियंत्रित करते हुए पर अपनी मादक मुस्कान बिखरते हुए सोनू से कहा..

“अरे रुक भगवान जी के सामने…”

सोनू ने सुगना को अपनी गोद में लिए हुए अपने घर के मंदिर के सामने लगे परदे को खींचने का अवसर दिया। सुगना ने अपने इष्ट देव को एक बार फिर प्रणाम किया जब तक सुगना अपने ईस्ट से अपने मन की बात कह पाती तब तक सोनू सुगना को अपने गोद में लिए हुए सुगना के कक्ष की तरफ बढ़ चला।

उसकी उंगलियां सुगना के नंगे पेट से सट रही थी वह बीच-बीच में सुगना के पेट को अपनी उंगलियों से गुदगुदा देता। सुगना का अंतर्मन फूल की तरह खिल गया था वह खिलखिला रही थी।

नियति को हंसती खिलखिलाती सुगना एक कामातुर तरुणी की तरह प्रतीत हो रही थी…

नियति सतर्क थी..और सोनू और सुगना के मिलन की प्रत्यक्षदर्शी होने के लिए आतुर थी…

शेष अगले भाग में.



पहले की ही भांति अगला एपिसोड उन्हीं पाठकों को भेजा जाएगा जिन्होंने कहानी से कमेंट के माध्यम से अपना जुड़ाव दिखाया है..
प्रतीक्षारत
Kahani kuch alag chal Rahi.......hum to aas lagaye baithe hai ki kab sugna lali or sonu sath aaye
 

Lovely Anand

Love is life
1,415
6,731
159
अरे आनंद बाबू इतनी जल्दी नहीं छिलने वाली है वो अपनी सुरक्षा के लिए अपना लुब्रिकेंट स्वयं बनाना जानती
फिर ठीक है,
प्रिय मित्र Lovely Anand

मेरा नाम मानु है| मुझे आपकी ये रचना बहुत-बहुत पसंद आई, कहानी जब भोजपुरी भाषा में डायलाग आते हैं तो पढ़ कर मज़ा दुगना हो जाता है| मैंने आपकी ये रचना बहुत पहले पढ़नी शुरू की थी परन्तु कुछ कारण वश मैं इसे आगे नहीं पढ़ पाया| मैंने सोचा की जब ये कहानी पूर्ण होगी तो इसे पुनः पढ़ूँगा| परन्तु समय का चक्का ऐसा घूमा की मैं इस कहानी के रस से अछूता रह गया!

कल ऐसे ही मोबाइल पर स्क्रॉल करते हुए मेरा आपकी इस कहानी से पुनः मिलन हुआ| अंतिम पैन के कमैंट्स में मैंने पढ़ा की आप कुछ चुनिंदा अपडेट केवल DM पर देते हैं| फिर मैंने आपकी कहानी का इंडेक्स देखा तो ये मुझे पूर्ण लगा|
इससे पहले की मैं कहानी फिर से पढ़नी शुरू करूँ, कृपया मुझे बताएं की कौन-कौन से अपडेट आप DM में देंगे? ताकि जब मैं उस अपडेट पर पहुँचूँ तो आपसे सम्पर्क करूँ|

आपके जवाब की आस में,

एक अदना सा पाठक,
मानु
आपका स्वागत है। आप बेशक कहानी पढ़ना कर सकते हैं मिसिंग अपडेट्स कुछ तो मैंने आपको भेज दिए हैं और कुछ भेजता रहूंगा। एक बात और कहना चाहूंगा यह कहानी कब खत्म होगी मुझे खुद भी अंदाजा नहीं लग रहा। लिखने को बहुत कुछ है और पढ़ने को भी। यह तो जीवन के छोटे-छोटे घटनाक्रम है उन्हें जितना विस्तार से लिखिए उतना ही लिखने में भी आनंद आता है और पढ़ने में भी।
आप स्वयं रचनाकार हैं और यह बात समझ सकते हैं।
कहानी में त्रुटियां और समीक्षा देते रहिएगा... मुझे प्रबुद्ध पाठकों की राय और उनके कॉमेंट्स पढ़ना अच्छा लगता है।
पुनः स्वागत
 
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Premkumar65

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भाग 134

दरबान के दरवाजा खोलते ही रतन की नजरे अंदर खड़ी लड़कियों की तरफ चली गई और उसकी आंखें फटी रह गई आगे की लाइन में परियों की तरह खूबसूरत बन चुकी मोनी से उसकी नजरें चार हो गईं…



रतन और मोनी दोनों इस स्थिति के लिए तैयार न थे। परंतु मोनी की मादक काया रतन की निगाहों में छप सी गई..

मोनी ने अपनी स्थिति का आकलन किया और नजरे झुका ली.. शायद वह अपनी नग्नता को लेकर अब सजग हो गई थी..

अब आगे…

मोनी इस आश्रम में आई जरूर थी परंतु अभी भी वह रिश्तो को बखूबी पहचानती थी उसे अभी वैराग्य शायद पूरी तरह न हुआ था। रतन उसका जीजा था और अपनी इस अवस्था में उसे रतन से शर्म आ रही थी।

विद्यानंद के जाने के बाद माधवी उन युवा लड़कियों को उनकी भूमिका समझा रही थी।

सहेलियों अब हम सबको समाज सेवा में लगना है। हम हम सब रोज प्रातः काल नए आश्रम में चला करेंगे वहां हम सबको एक विशेष कुपे में खड़ा रहना होगा। हमारा सर कंधे और हांथ उस कूपे के बाहर होगा परंतु कंधे के नीचे का भाग ऊपर में कूपे के आवरण के भीतर रहेगा। हम सब पूर्णतया प्राकृतिक अवस्था रहे में रहेंगे मेरा आशय आप सब समझ ही रहे होंगे हमें कोई भी वस्त्र धारण नहीं करना है।

इस कूपे में कोई ना कोई युवा पुरुष जो आश्रम के अनुयायियों में से किसी का पुत्र या रिश्तेदार हो सकता है और जो स्त्री शरीर को समझना चाहता है आश्रम के प्रबंधकों द्वारा अंदर भेज दिया जाएगा।

(पाठकों को शायद याद होगा कि रतन ने जी आश्रम का निर्माण कराया था उसमें कुछ विशेष कूपे बनाए गए थे। जिनका विस्तृत विवरण पूर्व के एपिसोड में दिया गया है)

हम सबको अपने स्थान पर बिना किसी प्रतिक्रिया के खड़े रहना है वह पुरुष हमारे तन बदन को छू सकता है महसूस कर सकता है और यहां तक की हमारी योनि और स्तनों को अपनी उंगलियों और हथेलियों से छूकर महसूस कर सकता है। आपकी योनि के कौमार्य को देखने को कोशिश कर सकता है।

माधवी की यह बात सुनकर सभी लड़कियां असमंजस में थी। आपस में खुसुर फुसुर शुरू हो गई थी।

आप लोग परेशान मत होइए ऐसा वैसा कुछ भी नहीं होगा आप लोगों के हाथ में एक बटन रहेगा यदि वह पुरुष आपके कौमार्य को भंग करने की कोशिश करता है तो आपको बटन को दबाना है जिससे उस कूपे में लाल रोशनी हो जाएगी और उस व्यक्ति को वार्निंग मिल जाएगी और वह अपनी गतिविधियां रोक लेगा। यदि उसने अपनी गतिविधि नहीं रोका तो आप लाल बटन को एक के बाद एक लगातार दो बार दबा दीजिएगा। आपके इस सिग्नल को इमरजेंसी सिग्नल माना जाएगा और तुरंत ही उस व्यक्ति को कूपे से बाहर निकाल कर दंडित किया जाएगा।

कूपे में आने वाले सभी पुरुषों को यह नियम बखूबी समझा कर भेजा जाएगा और आप सब निश्चिंत रहिए आपके साथ कोई भी ज्यादती नहीं होगी। आप सबका सहयोग पुरुषों को स्त्री शरीर को समझने में मदद करेगा जैसा की स्वामी जी के आप सब को बताया था।

हां एक बात और पुरुषों के स्पर्श से स्त्री शरीर में निश्चित ही उत्तेजना उत्पन्न होती है पर आप सबको अपनी उत्तेजना को यथासंभव वश में करना है। यह कामवासना पर विजय प्राप्त करने के लिए एक योग की तरह है। प्रत्येक पुरुष को लगभग 10 मिनट का वक्त दिया जाएगा और इस 10 मिनट तक आपको अपनी संवेदना और वासना पर विजय प्राप्त करनी हैं।

और इसके उपरांत आप सब आधे घंटे का विश्राम ले सकती हैं जिसमें आप सब एक दूसरे से मिल सकती हैं और अपने अनुभव साझा कर सकती हैं।

इतना ध्यान रखिएगा की अकारण ही लाल बटन दबाना कतई उचित नहीं होगा यदि पुरुष स्पर्श से बेचैन या असहज होकर अपने लाल बटन दबाया तो आपको इस इस सेवा से मुक्त कर दिया जाएगा और आश्रम में किसी अन्य कार्य में लगा दिया जाएगा। पर यदि भावावेश में यदि आपने पुरुषों को सही समय पर नहीं रोका तो वह आपका कौमार्य भंग कर सकते हैं। इसलिए खतरा महसूस होते ही लाल बटन को लगातार दो बार अवश्य दबा कर इमरजेंसी का संकेत अवश्य दीजिएगा।

मोनी और उसकी सहेलियां पूरा ध्यान लगाकर माधवी की बातें सुन रही थी अपनी वासना पर विजय प्राप्त करने का निर्णय तो उन्होंने आश्रम में आने से पहले ही ले लिया था अब परीक्षा की घड़ी थी लड़कियों ने मन ही मन ठान लिया की वह इस परीक्षा में भी सफल होकर दिखाएंगी।

सभी लड़कियां माधवी की बात को समझ चुकी थी बाकी सब आश्रम में पहुंचने के बाद स्वतः ही समझ में आ जाना था। क्योंकि इस प्रक्रिया के रिहर्सल के लिए आश्रम के ही ट्रेंड पुरुषों को यह अवसर दिया जाना था।

बड़ा ही अनोखा आश्रम बनाया था विद्यानंद ने और उसकी सोच भी अनोखी थी।

इधर माधवी ने जिस प्रकार से लड़कियों को तैयार किया था वैसे ही दूसरी तरफ रतन ने पुरुषों को तैयार किया था। परंतु शायद आश्रम में ऐसे पुरुषों की उपयोगिता कम ही थी क्योंकि उस दौर में पुरुष शरीर को समझने के लिए स्त्रियों का आगे आना बेहद कठिन था।


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बहरहाल मोनी और उसकी सभी सहेलियां आज आश्रम के उसे विशेष कूपे में जाने वाली थी।

उधर रतन ने जब से मोनी को एक वस्त्र में देखा था उसे मोनी का यह बदला हुआ स्वरूप अविश्वसनीय लग रहा था। गांव में गुमसुम सी रहने वाली मोनी आज एक परिपक्व युवती की तरह प्रतीत हो रही थी और उसका तन-बदन भी सुडौल और कामुक हो चुका था उस झीने से एक वस्त्र के पीछे छुपी हुई मादक काया रतन की नजरे ताड़ गई थीं।

मोनी ने तो अपनी कामुकता पर विजय प्राप्त करने का प्रण लिया हुआ था परंतु रतन के मन में हलचल होने लगी वह मन ही मन अपनी व्यूह रचना करने लगा।

अगली सुबह माधवी ने मोनी और उसकी सहेलियों को एक बार फिर अपने उसी बगीचे में बुलाया जहां वह सब नग्न घूमा करती थी.

माधवी ने सभी लड़कियों को अपने बाल बांधने के लिए कहा और फिर सभी लड़कियों ने अपने सुंदर बालों को समेट कर जूड़े का आकार दे दिया.

आज वहां एक विशेष कुंड रखा था…जिसमें विशेष द्रव्य भरा हुआ था.. लड़कियां कौतूहल भरी निगाहों से माधवी की तरफ देख रहीं थी।

माधवी ने उन्हें संबोधित करते हुए कहा आप सब मेरे पीछे-पीछे आईये ध्यान रहे की इस कुंड से आपको बेहद सावधानी से निकलना है और कुंड में भरा द्रव्य आपके कंधे के ऊपर किसी भाग से नहीं छूना चाहिए विशेष कर बालों से और चेहरे से…

लड़कियां थोड़ा घबरा सी गई आखिर क्या था उस कुंड में? परंतु कुछ ही पलों में उनका भ्रम दूर हो गया माधवी स्वयं नग्न होकर धीरे-धीरे उस कुंड में उतरी और धीमे-धीमे चलते हुए कुंड से बाहर आ गई।

इसके बाद सभी लड़कियां एक-एक करके माधवी का अनुसरण किया।

कुंड से बाहर आने के कुछ समय पश्चात माधवी ने लड़कियों को अपने बदन को तौलिए से पोछने के लिए कहा..

विद्यानंद के आश्रम की व्यवस्थाएं दिव्य थी जितनी लड़कियां उससे कहीं ज्यादा मुलायम तौलिए माधवी ने पहले से ही सजा कर रखवा दिए थे।

लड़कियों ने अपने गीले बदन को पोछना शुरू किया उनका बदन चमक उठा। हाथ पैरों के रोए पूरी तरह गायब हो चुके थे और त्वचा चमकने लगी थी।

लड़कियों ने जैसे ही अपनी बुर और उसके आसपास के भाग को पोछा .. उनके आश्चर्य का ठिकाना न रहा उनकी बर का आवरण पूरी तरह हट चुका था.. चमकती बुर वह खुद तो नहीं देख पा रही थी परंतु अपनी सहेलियों की जांघों के जोड़ पर नजर पड़ते ही वह मंत्र मुग्ध होकर प्रकृति द्वारा निर्मित उस दिव्य अंग को देख रहीं थीं।

लड़कियों के आश्चर्य का ठिकाना न था वह एक दूसरे की तरफ देखकर मुस्कुराती कभी स्वयं अपनी निगाहें नीचे कर और कंधे को यथा संभव झुककर जांघों के जोड़ के बीच छुपी अपनी बुर को देखने का प्रयास करतीं।


लड़कियां स्वभाबिक रूप से एक दूसरे के अंगों से अपनी तुलना करने लगी थी। माधवी उनके कुतूहल को देखकर मुस्कुरा रही थी। सामने खड़ी मोनी भी इस स्वाभाविक कौतूहल को नहीं रोक पा रही थी। सभी लड़कियों का बदन चमकने लगा था पूरे शरीर पर कोई भी रोवा या बाल न बचा था। सभी लड़कियां बेहद खुश थी उन्हें उन अनचाहे बालों से छुटकारा मिल गया था जिन्हें हटाने के लिए ना तो कभी उन्होंने सोचा था और नहीं उनके हिसाब से शायद यह संभव था।

इस आश्रम में आई हुई यह सभी लड़कियां सामान्य परिवारों से आई हुई थी और आधुनिकता की दौड़ से बेहद दूर थीं जिस दौरान धनाढ्य परिवारों में यह प्रचलन आम हो चुका था परंतु मध्यम वर्ग और गरीब तबके से आई हुई है लड़कियां अभी कामुकता को प्राचीन परंपरा के हिसाब से ही जी रही थीं।वैसे भी यहां आई लड़कियां तो अपनी कामुकता और वासना को छोड़कर ही यहां आई थी।

माधवी ने सभी लड़कियों को संबोधित करते हुए कहा उम्मीद है आज का अनुभव आपको अच्छा लगा होगा और आपका शरीर कुंदन की भांति चमक रहा है आज पहली बार आप अपनी सेवा देने जा रही हैं। आपकी कक्षा में एक विशेष परिधान रखा हुआ है आप उस परिधान को पहन कर ठीक 10:00 बजे सभागार में उपस्थित होइए। वहां से हम सब एक साथ प्रस्थान करेंगे।

मोनी और उसकी सहेलियों ने माधवी के निर्देशानुसार स्नान ध्यान कर एक वस्त्र में तैयार हुई और निर्धारित समय पर हाल में आ गईं । हाल के बाहर एक बस खड़ी थी जिसमें सभी लड़कियां बैठ गई और बस रतन द्वारा बनाए गए आश्रम की तरफ चल पड़ी…


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लड़कियों का यह अनुभव अनोखा होने वाला था…

उधर रतन अपनी व्यूह रचना में लगा हुआ था। वह अपने आश्रम को सजा धजा कर माधवी और उसकी लड़कियों का इंतजार कर रहा था..

रतन द्वारा बनाए गए कूपे की विशेषता यह थी कि उसमें स्त्री या पुरुष जो भी खड़ा होता उसकी पहचान करना कठिन था। क्योंकि कूपे में उसके कंधे के नीचे का भाग ही दिखाई पड़ता था कंधे के ऊपर का भाग उस कूपे से बाहर रहता था।

जब विपरीत लिंग का दूसरा व्यक्ति उस कूपे में आता वह चबूतरे पर खड़े अपने साथी को पूर्णतयः नग्न अवस्था में पाता। परंतु अपने साथी का चेहरा देख पाने की कोई संभावना नहीं थी। और यही बात उस व्यक्ति पर भी लागू होती थी जो कूपे में पहले से आकर खड़ा होता था।

कूपे के चबूतरे की ऊंचाई इस प्रकार रखी गई थी की कुपे के अंदर खड़े व्यक्ति के कंधे कपड़े की सीलिंग से बाहर आ सके। और दूसरा साथी पूरी तरह कूपे के अंदर रह सके।

यह कपड़े की सीलिंग ही दोनों प्रतिभागियों के लिए पर्दा थी। जिस प्रतिभागी का कंधे और हांथ कूपे की सीलिंग से बाहर रहता था उसके हाथ में ही वह विशेष बटन दिया जाता था जिसे दबाने पर कुपे में एक लाल लाइट जलती थी। जिससे कूपे के अंदर के प्रतिभागी को तुरंत ही अपनी कामुक गतिविधियां रोक देनी होती थी इसका स्पष्ट मतलब था कि दूसरे व्यक्ति को यह बेहद असहज लग रहा है।

यदि कोई पुरुष या स्त्री कामुकता के अतिरेक में यदि दूसरे व्यक्ति को जरूर से ज्यादा परेशान करता या स्त्रियों का कौमार्य भंग करने का प्रयास करता तो उन्हें इस बटन को लगातार दो बार दबाना था और इसके बाद जो होता वह निश्चित ही उस पुरुष या स्त्री के लिए कतई ठीक ना होता।

लड़कियों को लेकर आ रही बस नए आश्रम तक पहुंच चुकी थी। रतन और उसके द्वारा तैयार किए गए लड़कों की टोली बस का इंतजार कर रही थी। एक-एक करके स्वर्ग की अप्सराएं नीचे उतर रही थी रतन की टोली के कुछ लड़कों के आनंद की सीमा न थी। लड़कों को आज इन्हें अप्सराओं के साथ उस कूपे में एक अनोखे और नए अनुभव को प्राप्त करना था। लड़कियों को इस बात का तो अंदाज़ की आज उनके साथ कुछ नया होगा परंतु उनके साथ ही यह लड़के होंगे इसका आवास कतई न था।

लड़कियों को एक कक्ष में बैठने के बाद माधवी रतन को लेकर एक बार फिर विशिष्ट कूपे का मुआयना करने गई एक-एक कूपे को और उसमें लगे बटन को स्वयं अपने हाथों से चेक किया और पूरी तसल्ली के बाद हाल में तैनात सुरक्षा कर्मियों से बात की। कुछ प्रश्नों के उत्तर के दौरान उसने सुरक्षा कर्मियों के चेहरे पर झिझक को नोटिस किया।

रतन जी कृपया आई हुई लड़कियों के लिए फल फूल की व्यवस्था करा दें।

रतन वहां से हटना तो नहीं चाहता था परंतु माधवी का आदेश टाल पाने की उसकी हिम्मत न थी। वह वहां से चला गया माधवी ने सभी तैनात सुरक्षा कर्मियों से विस्तार में बात की और और वापस अपनी लड़कियों की टोली में आ गई उसके चेहरे पर मुस्कान थी..

आखिरकार वह वक्त आ गया जब लड़कियों को उसे अनोखे कूपे में जाना था। सभी लड़कियां कूपन मे बने चबूतरे पर जाकर खड़ी हो गई और अपने एकमात्र वस्त्र को अपने गर्दन तक उठा लिया अपने दोनों हाथों को फैलाने के बाद उन्होंने कॉपी की कपड़े की सीलिंग को चढ़ा दिया और अब ऊपर के अंदर उनका कंधे से नीचे का भाग पूरी तरह नग्न था। दोनों हाथ भी कूपे के बाहर थे और उनमें से एक हाथ में सभी लड़कियों ने वह बटन पकड़ा हुआ था।

एक लड़की ने कौतूहलवश बटन को एक बार दबाया नीचे उस कूपे के अंदर जल रही श्वेत रोशनी का कलर लाल हो गया जैसे ही उसने बटन छोड़ा रंग वापस श्वेत हो गया।

उस लड़की ने बटन को दो बार दबाने की हिम्मत ना दिखाई शायद उसे चेक करना इतना जरूरी भी नहीं था उसे आश्रम की व्यवस्थाओं पर यकीन हो चला था।

धीरे-धीरे सभी लड़कियां कूपे के नियमों से अवगत हो चुकी थी और माधवी के सिग्नल देने के बाद कूपन में रतन के लड़कों को आने की अनुमति दे दी गई। लड़के भी ठीक उसी प्रकार नग्न थे जिस प्रकार लड़कियां थी कफे के अंदर किस कौन सी अप्सरा प्राप्त होगी इसका कोई विवरण या नियम नहीं था वैसे भी लड़कों के लिए वह सभी लड़कियां अप्सराओं के समान थी। जिन लड़कों में वासना प्रबल थी वह बेहद उत्साह में थे। नग्न लड़कियों के साथ 10 मिनट का वक्त बिताना और उन्हें पूरी आजादी के साथ चुनाव और महसूस करना यह स्वर्गिक सुख सेकाम न था।

सभी लड़के एक-एक कप में प्रवेश कर गए और मौका देखकर और नियमों को ताक पर रख रतन भी एक विशिष्ट कूपे में प्रवेश कर गया। बड़ी सफाई से उसने मोनी को पहचानने की व्यवस्था कर रखी थी।

सभी कूपों में दिव्य नजारा था।

लड़कियों का खूबसूरती से तराशा हुआ बदन लड़कों के लिए आश्चर्य का विषय था। उनमें से अधिकतर शायद पहली बार लड़की का नग्न शरीर देख रहे थे। माधवी ने लड़कियों के बदन पर कसाव और कटाव लाने के लिए जो उन्हें योगाभ्यास कराया था उसका असर स्पष्ट दिखाई पड़ रहा था।

लड़कों के आनंद की सीमा न थी वह बेहद उत्साह से उन दिव्य लड़कियों के बदन से खेलने लगे कभी-कभी किसी कूपे में लाल लाइट जलती पर तुरंत ही बंद हो जाती।

उधर रतन भी अपने विशिष्ट कूपे में प्रवेश कर चुका था..

अंदर खड़ी मोनी को देखकर रतन हतप्रभ रह गया..। उसने मोनी की जो कल्पना की थी मोनी उससे अलग ही लग रही थी। बदन खूबसूरती से तराशा हुआ अवश्य था पर रंग रतन की उम्मीद से कहीं ज्यादा गोरा था।

रतन ने ऊपर सर उठाकर मोनी का चेहरा देखने की कोशिश की पर कामयाब ना रहा। कूपे की रचना इस प्रकार से ही की गई थी। एक पल के लिए उसे भ्रम हुआ कि कहीं कोई और तो मोनी के लिए निर्धारित कूपे में नहीं आ गया है।


पर रतन को अपनी व्यवस्थाओं पर पूरा भरोसा था। वैसे भी जितने कूपे बनाए गए थे उतनी ही लड़कियां इस आश्रम में लाई गई थी।

रतन ने और समय व्यर्थ करना उचित न समझा और उसकी नज़रों ने समक्ष उपस्थित खूबसूरत शरीर का माप लेना शुरू कर दिया।

मोनी की काया खजुराहो की मूर्ति की भांति प्रतीत हो रही थी। कसे हुए उन्नत उरोज पतला कटिप्रदेश और भरे पूरे नितंब ऐसा लग रहा था जैसे किसी खजुराहो की मूर्ति को जीवंत कर चबूतरे पर खड़ा कर दिया गया हो।

रतन आगे बढ़ा और अपने हाथ बढ़ाकर उसे मोनी की कमर पर रख दिया। रतन ने मोनी के बदन की कपकपाहट महसूस की। ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे इस स्पर्श से मोनी असहज हो गई थी। पर शायद यही मोनी की परीक्षा थी।

रतन ने अपने हाथ ऊपर की तरफ बढ़ाए और मोनी की भरी भरी गोल चूचियों को अपनी हथेलियां में लेकर सहलाने लगा। मोनी अब उत्तेजना महसूस कर रही थी और रतन के इस कामुक प्रयास को महसूस करते हुए भी नजर अंदाज कर रही थी।


रतन ने दोनों चूचियों को बारी बारी से सहलाया । अपने अंगूठे और तर्जनी के बीच उसके निप्पलों को लेकर धीरे-धीरे मसालना शुरू कर दिया। उसे बात का इल्म तो अवश्य था था कि मोनी को किसी भी प्रकार का कष्ट नहीं होना चाहिए अन्यथा वह बटन को लगातार दो बार भी दबा सकती है और रतन को शर्मनाक स्थिति में ला सकती है।

रतन बेहद सावधानी से चूचियों को छू रहा था और बेहद प्यार से मसल रहा था। मोनी की तरफ से कोई प्रतिरोध न पाकर रतन ने अपने होंठ मोनी की चूचियों से सटा दिए और हथेलियो से उसके कूल्हों को पकड़कर सहलाने लगा। रतन के होंठ अब कुंवारी चूचियों और उसके निप्पलों पर घूमने लगे। ऊपर चल रही वासनाजन्य गतिविधियों का असर नीचे दिखाई पड़ने लगा।

रतन ने अपना ध्यान चूचियों से हटकर उसके सपाट पेट पर केंद्रित किया और धीरे-धीरे नाभि को चूमते चूमते नीचे उसकी जांघों के बीच झांक रही बुर पर आ गया।

जांघों पर रिस आई बुर की लार स्पष्ट दिखाई पड़ रही थी। मोनी गर्म हो चुकी थी और स्वयं को पूरी तरह समर्पित कर चुकी थी। रतन को मोनी से यह उम्मीद कतई नहीं थी परंतु जब वासना चरम पर हो मनुष्य का दिमाग काम करना बंद कर देता है।

रतन कोई मौका नहीं छोड़ना चाहता था वह स्वयं मोनी के चबूतरे पर चढ़ गया। और मोनी के बदन से अपने लंड को छुआने का प्रयास करने लगा। यह एहसास अनोखा था। रतन की वासना परवान चढ़ रही थी। ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे मोनी इस कामुक मिलन का इंतजार कर रही थी।


आखिरकार रतन ने अपने एक हाथ से मोनी के एक पैर को सहारा देकर ऊपर उठाया और अपने लंड को मोनी की पनियाई बुर पर रगड़ने लगा। रतन वासना में यह भूल गया था कि यहां आई सारी लड़कियां कुंवारी हैं और उन्हें अपना कौमार्य सुरक्षित रखना है। परंतु रतन अपनी वासना में पूरी तरह घिर चुका था और मोनी की कोमल बुर जैसे उसके लंड के स्वागत के लिए तैयार बैठी थी। उसने अपनी कमर पर थोड़ा जोर लगाया और लंड का सुपड़ा बुर में धंस गया..

कमरे में एक मीठी आह गूंज उठी.. यह आवाज बेहद कामुक थी परंतु इस आह से उस व्यक्ति की पहचान करना कठिन था छोटी-मोटी सिसकियां तो उस कक्ष में मौजूद कई लड़कियां भर रही थी पर यह आवाज कुछ अनूठी थी और इस कूपे में हो रहा कृत्य भी अनूठा था।


रतन का लंड कई दिनों बाद बुर के संपर्क में आकर थिरकने लगा था । किसी योद्धा की भांति वह आगे बढ़ने को आतुर था।

रतन ने मोनी के कमर और कूल्हों को अपने हाथों से सहलाया और फिर पकड़ लिया और जैसे ही अपने लंड का थोड़ा दबाव बढ़ाया लंड गर्भाशय को चूमने में कामयाब हो गया। कुछ पलों के लिए मोनी के बदन में कंपन होने लगे रतन के लंड पर अद्भुत संकुचन हो रहा था।

अब तक मोनी की तरफ से लाल बत्ती नहीं जलाई गई थी इसका स्पष्ट संकेत यह था कि मोनी को यह कृत्य पसंद आ रहा था। रतन ने देर ना की और अपने लंड को आगे पीछे करने लगा।

उत्तेजना के चरम पर पहुंचकर उसने अपने लंड को गर्भाशय के मुख्य तक ठास दिया और चूचियों को चूसता रहा। मोनी से भी और बर्दाश्त ना हुआ और वह रतन के लंड पर प्रेम वर्षा करने लगी और स्खलित होने लगी। 10 मिनट का अलार्म बज चुका था। परंतु रतन और मोनी अब भी अपना स्स्खलन पूर्ण करने में लगे हुए थे।

आखिरकार रतन ने अपना लंड मोनी की बुर से बाहर किया और उसने जो मोनी के अंदर भरा था वह रिसता हुआ उसकी जांघों पर आने लगा।

सभी लड़कियां और लड़के एक-एक कर बाहर आ रही थे .. अंत में रतन भी अब जा चुका था।

बाहर लड़कियां अपनी सहेलियों से आज की घटनाक्रम और अपने अनुभवों को एक दूसरे से साझा कर रही थी …तभी

“अरे मोनी कहीं नहीं दिखाई दे रही है कहां है वो?” एक लड़की ने पूछा..

माधवी भी अब तक उन लड़कियों के पास आ चुकी थी उसने तपाक से जवाब दिया..

मोनी रजस्वला है और कमरे में आराम कर रही है..

नियति स्वयं आश्चर्यचकित थी..

क्या रतन के खेल को माधवी ने खराब कर दिया था या कोई और खेल रच दिया था?

उधर रतन संतुष्ट था तृप्त था वह अब भी मोनी के अविश्वसनीय गोरे रंग के बारे में सोच रहा था।

शेष अगले भाग में..
Interesting story. Kamukta bhari hui. Ratan ne kiska kaumarya bhang kiya hai ye dekha hai?
 
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