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Incest आह..तनी धीरे से.....दुखाता.

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Lovely Anand

Love is life
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आह ....तनी धीरे से ...दुखाता
(Exclysively for Xforum)
यह उपन्यास एक ग्रामीण युवती सुगना के जीवन के बारे में है जोअपने परिवार में पनप रहे कामुक संबंधों को रोकना तो दूर उसमें शामिल होती गई। नियति के रचे इस खेल में सुगना अपने परिवार में ही कामुक और अनुचित संबंधों को बढ़ावा देती रही, उसकी क्या मजबूरी थी? क्या उसके कदम अनुचित थे? क्या वह गलत थी? यह प्रश्न पाठक उपन्यास को पढ़कर ही बता सकते हैं। उपन्यास की शुरुआत में तत्कालीन पाठकों की रुचि को ध्यान में रखते हुए सेक्स को प्रधानता दी गई है जो समय के साथ न्यायोचित तरीके से कथानक की मांग के अनुसार दर्शाया गया है।

इस उपन्यास में इंसेस्ट एक संयोग है।
अनुक्रमणिका
भाग 126 (मध्यांतर)
भाग 127 भाग 128 भाग 129 भाग 130 भाग 131 भाग 132
भाग 133 भाग 134 भाग 135 भाग 136 भाग 137 भाग 138
भाग 139 भाग 140 भाग141 भाग 142 भाग 143
 
Last edited:

LustyArjuna

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भाग 129

सुगना को जैसे ही एहसास हुआ कि सोनू उसकी गुदाज गांड़ को देख रहा है उसने अपने कूल्हे सिकोड़ लिए और झटके से उठ खड़ी हुई और थोड़ी तल्खी से बोली…


“अब बस अपन मर्यादा में रहा ज्यादा बेशर्म मत बन..”

सोनू सावधान हो गया परंतु उसने जो देखा था वह उसके दिलों दिमाग पर छप गया था…

सुगना अद्भुत थी अनोखी थी…और उसका हर अंग अनूठा था अलौकिक था। आधे घंटे का निर्धारित समय बीत चुका था..


सोनू और सुगना एक दूसरे के समक्ष पूरी तरह नग्न खड़े थे सोनू की निगाहें झुकी हुई थी वह सुगना के अगले निर्देश का इंतजार कर रहा था…

अब आगे…


इंतजार …इंतजार …. हर तरफ इंतजार…उधर बनारस में सोनी और लाली, सुगना और सोनू का इंतजार करते-करते थक चुके थे। रात के 11:00 रहे थे और अब उनका सब्र जवाब दे रहा था।

सोनी अपने कॉलेज का कार्य निपटाकर सोने की तैयारी में थी और लाली भी सोनू का इंतजार करते-करते अब थक कर सोने का मन बना चुकी थी। उसने अपनी सहेली और सोनू के लिए खाना बना कर रखा था परंतु ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे अब उनके आने की संभावना कम ही थी।

रात गहरा रही थी और उधर लखनऊ में सुगना अपने छोटे भाई सोनू की मनोकामना पूरी कर रही थी..जो अनोखी थी और निराली थी..

छोटा सोनू अब शैतान हो चुका था परंतु सुगना तब भी उसे बहुत प्यार करती थी और अब भी।

अगली सुबह पूरे परिवार के लिए निराली थी…

सोनू और सुगना के बीच बीती रात जो हुआ था वह अनूठा था…सोनू और सुगना ने आज मर्यादाओं की एक और सीमा लांघी थी जिसका असर सोनू के दाग पर स्पष्ट दिखाई पड़ रहा था और अब वह बरबस सब का ध्यान खींच रहा था..

सुबह जब सुगना गुसल खाने से बाहर आई सोनू दर्पण में अपने इस दाग को निहार रहा था।

सुगना को अपनी ओर देखते हुए जानकर सोनू ने कहा ..

“दीदी तु साच कहत बाडू…देख ना दाग कितना बढ़ गईल बा । “

सुगना ने भी महसूस किया दाग कल की तुलना में और बढ़ा हुआ था।


“देख सोनू तू जवन रात में हमारा साथ कईला ऊ वासना के अतिरेक रहे अपना मन पर लगाम लगवा और हमारा से कुछ दिन दूर ही रहा… हमारा लगता कि हमारा से दूर रहला पर तहर ई दाग धीरे-धीरे खत्म हो जाए।”

सुगना यह बात महसूस कर चुकी थी कि सोनू की गर्दन का दाग और सरयू सिंह के माथे के दाग में निश्चित ही कुछ समानता थी। जब-जब सरयू सिंह सुगना के साथ लगातार वासना के भंवर में गोते लगाते और उचित अनुचित कृत्य करते उनके माथे का दाग बढ़ता जाता।

यद्यपि सुगना की सोच का कोई पुष्ट आधार नहीं था परंतु दोनों दागों के जन्म उनके बढ़ने और कम होने में समानता अवश्य थी…


लगभग यही स्थिति सोनू की भी थी बीती रात उसने जो किया था नियति ने उसकी कामुकता और कृत्य का असर उसके गर्दन पर छोड़ दिया था नियति अपनी बहन के साथ किए गए कामुक क्रियाकलापों के प्रति सोनू को लगातार आगाह करना चाहती थी।

सोनू को इस बात का कतई यकीन नहीं हो रहा था कि इस दाग का संबंध किसी भी प्रकार से सुगना के साथ किए जा रहे संभोग से था। वैज्ञानिक युग का पढ़ा लिखा सोनू इस बात पे यकीन नहीं कर पा रहा था…

परंतु सोनू को इस बात का इलाज ढूंढना जरूरी था। इतने सम्मानित पद पर उसका कई लोगों से रोज मिलना जुलना होता था निश्चित ही यह दाग आम लोगों की नजर में आता और सोनू को बेवजह लोगों से ज्ञान लेना पड़ता या अपनी सफाई देनी पड़ती।


दाग हमेशा दाग होता है वह आपके व्यक्तित्व में एक कालिख की तरह होता है जिसे कोई भी व्यक्ति स्वीकार नहीं कर सकता सोनू के लिए दाग अब तनाव का कारण बन रहा था।

सुगना ने सोनू को अपने दाग पर क्रीम लगाकर रखने की सलाह दी और उसे इस बात को लाली से और सभी से छुपाने के लिए कहा विशेष कर यह बात कि इस दाग का असर कही न कहीं सुगना के साथ कामुक संबंधों से है।

“ ते लाली से नसबंदी और पिछला सप्ताह हमनी के बीच भइल ई कुल के बारे में कभी बात मत करिहे “

सोनू ने मुस्कुराते हुए सुगना की तरफ देखा और उसे छेड़ता हुए बोला..

“हम त बतायब हमरा सुगना दीदी कामदेवी हई….”

सुगना प्यार से सोनू की तरफ उसे मारने के लिए आगे बढ़ी पर सोनू ने उसे अपने आलिंगन में भर लिया।

सोनू खुद भी यह बात सुगना से कहना चाह रहा था। भाई बहन इस राज को राज रखने में अपनी सहमति दे चुके थे यही उचित था परंतु इश्क और मुश्क छुपाए नहीं छुपाते यह बात शायद सोनू और सुगना भूल चुके थे।

कुछ ही देर बाद सोनू सुगना और दोनों बच्चे बनारस के लिए निकल चुके थे छोटा सूरज भी अपने मामा के गर्दन पर लगे दाग को देखकर बोला

“ मामा ये चोट कैसे लग गया है…”

सोनू किस मुंह से बोलता कि यह उसकी मां को कसकर चोदने के करने के कारण हुआ है..सोनू मन ही मन मुस्कुराने लगा था। सुगना स्वयं सूरज के प्रश्न पर अपनी मुस्कुराहट नहीं रोक पा रही थी।

सोनू ने सूरज के प्रश्न का उत्तर न दिया अपितु आइसक्रीम के लिए पूछ कर उसका ध्यान भटका दिया।

सोनू और सुगना सपरिवार हंसते खेलते बनारस की सीमा में प्रवेश कर चुके थे और कुछ ही देर बाद उनकी गाड़ी सुगना के घर पर खड़ी थी। लाली की खुशी का ठिकाना न था वह भाग कर बाहर आई और अपनी सहेली सुगना के गले लग गई। आज भी वह सुगना से बेहद लगाव रखती थी। सोनू ने आगे बढ़कर गाड़ी से सारा सामान निकाला और घर के अंदर पहुंचा दिया। सोनू ने एक बार फिर लाली के चरण छूने की कोशिश की परंतु लाली ने सोनू को रोक लिया और स्वयं उसके आलिंगन में आ गई यह आलिंगन भाई-बहन के आलिंगन के समान भी था और अलग भी।

आलिंगन से अलग होते हुए लाली सोनू के सुंदर मुखड़े को निहार रही थी तभी उसका ध्यान सोनू के गर्दन के दाग पर चला गया

“अरे तोहरा गर्दन पर ही दाग कैसे हो गइल बा ?”

जिसका डर था वही हुआ। सोनू के उत्तर देने से पहले ही सुगना बोल पड़ी

“अरे कुछ कीड़ा काट देले बा दु चार दिन में ठीक हो जाए”

लाली अपने पंजों के ऊपर खड़ी होकर सोनू के गर्दन के दाग को और ध्यान से देखने लगी…

“ सुगना… ऐसा ही दाग सरयू चाचा के माथा पर भी रहत रहे.. हम तो दो-तीन साल तक उनका माथा पर ई दाग देखत रहनी कभी दाग बढ़ जाए कभी कम हो जाए ..कोनो बीमारी ता ना ह ई ?”

“हट पागल देखिए दो-चार दिन में ठीक हो जाए। चल कुछ खाना-वाना बनावले बाड़े की खाली बकबक ही करत रहबे “

सुगना ने इस बातचीत को यही अंत करने का सोचा परंतु सोनू लाली की बातों को बड़े ध्यान से सुन रहा था।

यदि इस दाग का संबंध सुगना के साथ संभोग से है तो यह दाग सरयू चाचा के माथे पर कैसे?। सोनू भली भांति जान चुका था कि सरयू सिंह सुगना के पिता हैं पर सामाजिक रिश्ते में सुगना उनकी बहु थी।


ऐसा कैसे हो सकता है …सोनू का दिमाग कई दिशाओं में दौड़ने लगा। जब-जब सोनू के विचार अपना रास्ता इधर-उधर भटकते सरयू सिंह का तेजस्वी चेहरा और मर्यादित व्यक्तित्व सोनू के विचारों को भटकने से रोक लेता। सोनू को कुछ समझ नहीं आ रहा था। सरयू सिंह और सुगना के बीच इस प्रकार के संबंध सोनू की कल्पना से परे था।

उधर लाली बेहद प्रसन्न थी आज वह और उसकी बुर सोनू के स्वागत के लिए पूरी तरह से तैयार थी। शाम होते होते सोनी भी अपने कॉलेज से आ चुकी थी। सोनू अपने गर्दन का दाग सोनी से छुपा कर उसके प्रश्नों से बचना चाहता था.. परंतु नियति ने यह दाग ऐसी जगह पर छोड़ा था जिसे छुपाना बेहद कठिन था। कुछ ही देर बाद सोनी ने सोनू के दाग पर एक और प्रश्न कर जड़ दिया..

“अरे ई सोनू भैया के गर्दन पर का हो गैल बा”

सोनू को असहज देखकर इस बार सुगना की जगह लाली ने वही उत्तर देकर सोनी को शांत करने की कोशिश की जो सुगना ने उसे दिया था। परंतु सोनी ने नर्सिंग की पढ़ाई की हुई थी वह अपने आप को डॉक्टर से कम ना समझती थी। उसने सोनू के गर्दन के दाग का मुआयना किया परंतु उसका कारण और निदान दोनों ही उसके बस में ना था।

यह दाग जितना अनूठा था उसका कारण भी और इलाज भी उतना ही अनूठा था।

लाली भी सोनू के इस दाग को लेकर चिंतित हो गई थी पर चाह कर भी सरयू सिंह और सोनू के दागों को आपस में लिंक करने में नाकामयाब रही थी।

शाम को पूरा परिवार हंसते खेलते पिछले हफ्ते की घटनाक्रमों को आपस में साझा कर रहा था। सिर्फ सोनू और सुगना सावधान थे। जब-जब जौनपुर की बात आती सुगना सोनू के घर की तारीफ करने में जुट जाती। लाली और सोनी भी सोनू के जौनपुर वाले घर में जाने को लालायित हो उठीं। परंतु सोनू अभी पूर्णतया तृप्त था। सुगना की करिश्माई बुर ने उसके अंदर का सारा लावा खींच लिया था। लाली को देने के लिए न तो उसके पास न

उत्तेजना थी और न हीं अंडकोषों में दम और सोनी के प्रति उसके मन में कोई भी ऐसे वैसे विचार न थे।

सोनू खुद थका हुआ महसूस कर रहा था। और हो भी क्यों ना पिछले सप्ताह सुगना का खेत जोतने में की गई जी तोड़ मेहनत और फिर आज का सफर.. सोनू को थका देने के लिए काफी थे।

उधर सोनू से संभोग के लिए लाली पूरी तरह उत्साहित थी और सोनू अपने दाग को लेकर चिंतित.. सोनू के मन में मिलन का उत्साह न था यह बात लाली नोटिस कर रही थी और आखिरकार उसने सुगना से पूछा ..

“सोनुआ काहे उदास उदास लागत बा देह के गर्मी कहां गायब हो गैल बा। आज त हमारा पीछे-पीछे घूमते नईखे। का भइल बा ?”

सुगना क्या कहती …जिसने सुगना को एक हफ्ते तक लगातार भोगा हो उसे सुगना को छोड़कर किसी और के साथ संभोग करने में शायद ही दिलचस्पी हो..

सोनू तृप्त हो चुका था उसके दिलों दिमाग में सिर्फ और सिर्फ सुगना घूम रही थी..

सोनू के मन में लाली से मिलन को लेकर उत्साह की कमी को सुगना ने भी बखूबी नोटिस किया …जहां एक और लाली चहक रही थी वहीं सोनू बेहद शांत और खोया खोया था।

मौका पाकर सुगना ने सोनू से कहा..

“लाली कितना दिन से तोर इंतजार करत बाड़ी ओकर सब साध बुता दीहे..”

“ आज ना …दीदी आज हमार मन मन नईखे “

“लाली के शक हो जाई ..अपना दीदी खातिर लाली के मन रख ले… मन ना होखे तब भी… एक बार कल रात के खेला याद कर लीहे मन करे लागी..”

सुगना हाजिर जवाब भी थी और शरारती भी. कल रात की बात सोनू को याद दिला कर उसने सोनू का मूड बना दिया.. सोनू के दिलों दिमाग में बीती रात के कामुक दृश्य घूमने लगे.. सोनू का युवराज भी आलस छोड़ उठ खड़ा हुआ।

रात गहराने लगी और सब अपनी अपनी जगह पर चले सोने चले गए। सोनू को लाली धीरे-धीरे अपने कमरे की तरफ ले गई।

घर में सभी सदस्यों के सोने के पश्चात लाली.. सोनू के करीब आती गई और सोनू …बीती रात सुगना के साथ बिताए गए पलों को याद करता रहा और उसका लन्ड एक बार फिर अपनी पुरानी पिच पर धमाल मचाने पर आमादा था..।

लाली ने जी भर कर सोनू पर अपना प्यार लुटाया और सोनू ने भी सुगना को याद करते हुए लाली को तृप्त कर दिया..

वासना का तूफान शांत होते ही लाली ने सोनू से फिर उस दाग को देख रही थी।

लाली कभी दाग को सरयू सिंह के माथे के दाग से तुलना करती कभी उसे सुगना के उत्तर से..

यह दाग अनोखा था और कीड़े काटने के दाग से बिल्कुल अलग था…

सुबह की सुनहरी धूप खिड़कियों की दरारों से रास्ता तलाशती सुगना के कमरे में प्रवेश कर चुकी थी। सूरज की चंचल किरणें सुगना के गालों को चूमने का प्रयास कर रहीं थी.. और इस कहानी की नायिका बिंदास सो रही थी पिछले हफ्ते उसने सोनू की मर्दानगी को जीवंत रखने के लिए लिए जो किया था उसमें वह स्वयं भी तन मन से शामिल हो गई थी।

सुगना के लिए पिछला सप्ताह एक हनीमून की तरह था सोनू और सुगना ने जी भरकर इस सप्ताह का सदुपयोग किया था…

सूरज की किरणों को अपनी पलकों पर महसूस कर सुगना की नींद खुल गई। वह अलसाते हुए बिस्तर से उठी और कुछ ही देर बाद सुगना का घर एक बार फिर जीवंत हो गया..

बच्चों का कोलाहल और सुबह तैयार होने की भाग दौड़ …सोनी भी कॉलेज जाने के लिए तैयार हो रही थी उसे आज तक सोनू और लाली के संबंधों के बारे में भनक न थी।


स्नान करने के पश्चात सुगना की खूबसूरती दोगुनी हो जाती थी । उसका तन-बदन खिले हुए फूलों की तरह दमक उठता था। सुगना के चेहरे पर तृप्ति का भाव था जैसा संभोग सुख प्राप्त कर रही नव सुहागिनों के चेहरे पर होता है।

लाली ने सुगना को इतना खुश और तृप्त कई दिनों बाद देखा था…वह खुद को नहीं रोक पाई और सुगना से बोली..

“लगता सोनूवा तोर खूब सेवा कइले बा देह और चेहरा चमक गईल बा..”

हाजिर जवाब सुगना बोली..

“अरे हमर भाई ह हमार सेवा ना करी त केकर करी?

सुगना ने उत्तर देकर लाली कोनिरुत्तर कर दिया.. सुगना भलीभांति समझ चुकी थी की लाली उससे कामुक मजाक करना चाह रही है पर उसने उसकी चलने ना दी.

“दीदी हम कालेज जा तानी” सोनी चहकते हुए कॉलेज के लिए निकलने लगी। जींस में अपने गदराए हुए कूल्हों को समेटे सोनी पीछे से बेहद मादक लग रही थी। सुगना और सोनी दोनों की निगाहें उसके मटकते हुए कूल्हों पर थीं।

लाली से रहा नहीं गया वह सुगना की तरफ देखते हुए बोली

“सोनी पूरा गदरा गईल बिया …पहले सब केहू आपन सामान छुपावत रहे ई त मटका मटका के चलत बीया”

सुगना भी सोनी में आए शारीरिक परिवर्तन को महसूस कर रही थी पिछले कुछ महीनो में उसकी चुचियों का उभार और कूल्हों का आकार जिस प्रकार बड़ा था उसने सुगना को सोचने पर विवश कर दिया था …कहीं ना कहीं उसे विकास और सोनी के संबंधों पर शक होने लगा था. यह तो शुक्र है कि विकास के परिवार वालों ने स्वयं आगे बढ़कर सोनी का हाथ मांग लिया था और दोनों का इंगेजमेंट पिछले दिनों हो गया था।

लाली की बात सुनकर सुगना मुस्कुराने लगी और लाली से मजाक करते हुए बोली..

“विकास जी सोनिया के संभाल लीहे नू जईसन एकर जवानी छलकता बुझाता सोनी ही भारी पड़ी”

सुगना का मूड देखकर लाली भी जोश में आ गई और सुगना से मजाक करते हुए बोली..

“बुझाता विदेश जाए से पहले विकास जी सोनी के खेत जोत देले बाड़े.. तबे देहिया फूल गइल बा…”

सुगना को शायद यह कॉमेंट उतना पसंद नहीं आया…सोनी आधुनिक विचारों की लड़की थी हो सकता है लाली की बात सच भी हो परंतु सुगना शायद इस बात से इत्तेफाक नहीं रखती थी।

“चल सोनी के छोड़ , कॉल रात अपन साध बुता ले ले नू” सुगना ने लाली का ध्यान भटकाया और अपने अंगूठे और तर्जनी से उसके दोनों निकालो को ब्लाउज के ऊपर से पकड़ना चाहा..

सुगना की पकड़ और निशाना सटीक था लाली चिहुंक उठी…”अरे छोड़ …..दुखाता” शायद सुगना ने उसके निप्पल को थोड़ा जोर से दबा दिया था।

सोनू के आने की आहट से दोनों सहेलियां सतर्क हो गई।

सोनू करीब आ चुका था और अपनी दोनों आंखों से अपनी दोनों अप्सराओं को देख रहा था । सुगना और लाली दोनों एक से बढ़कर एक थीं ।

यद्यपि सुगना लाली पर भारी थी परंतु वह धतूरे का फूल थी जो प्रतिबंधित था, जिसमें नशा तो था परंतु कांटे भी थे और लाली वह तो खूबसूरत गुलाब की भांति थी जिसमें सोनू के प्रति अगाध प्रेम था । वह सोनी ही थी जिसने सोनू में कामवासना जगाई थी, उसे पाला पोसा था और उसे किशोरावस्था में वह सारे सुख दिए थे जो सुगना ने न तो उसके लिए सोचे थे और न हीं सुगना के लिए वह देना संभव था।

सुगना का ध्यान एक बार फिर सोनू के दाग पर गया दाग कल की तुलना में कुछ कम था…

सुगना ने इसका जिक्र ना किया और सोनू से पूछा..

“जौनपुर कब जाए के बा?”

“दोपहर के बाद जाएब” सोनू ने उत्तर दिया। कुछ ही देर में स्कूल के लिए तैयार हो चुके सुगना और लाली के बच्चे सोनू को घेर कर बातें करने लगे और अपने-अपने ऑटो रिक्शा का इंतजार करने लगे।

जिसके पास इतना बड़ा परिवार हो उससे किसी और की क्या जरूरत होगी सोनू ने अपनी नसबंदी करा कर कोई गलत निर्णय नहीं लिया था शायद यही निर्णय उसे सुगना के और करीब ले आया था और वह अपनी कल्पना को हकीकत बना पाया था

वरना सुगना उसके लिए आकाश के इंद्रधनुष की भांति थी जिसे वह देख सकता था महसूस कर सकता था परंतु उसे छु पाना कतई संभव न था।

बच्चों के जाने के पश्चात सोनू ने एक बार इस दाग को लेकर डॉक्टर से सलाह लेने की सोची। सुगना द्वारा बताया गया दाग का रहस्य उसके समझ से परे था। सुगना एक स्त्री थी और सोनू पुरुष । स्त्री पुरुष का संभोग विधि का विधान है इसमें इस दाग का क्या स्थान?

यद्यपि सुगना और सोनू ने एक ही गर्भ से जन्म लिया था फिर भी यह दाग क्यों?

कुछ ही देर बात सोनू अपने ओहदे और गरिमा के साथ डॉक्टर के समक्ष उपस्थित था।

डॉक्टर ने उसके दाग का मुआयना किया.. उसे छूकर देखा, और कई तरीके से उसे पहचानने की कोशिश की परंतु किसी निष्कर्ष तक न पहुंच सका। वह बार-बार यही प्रश्न पूछता रहा कि यह दाग कब से है और सोनू बार-बार उसे यही बता रहा था कि पिछले एक हफ्ते से यह दाग धीरे-धीरे कर बढ़ रहा है।

डॉक्टर के माथे की शिकन देखकर सोनू समझ गया कि यह दाग अनोखा है और शायद डॉक्टर ने भी इस प्रकार के दाग को अपने जीवन में पहली बार देखा है।

सोनू को सुगना की बात पर यकीन होने लगा…

डॉक्टर ने आखिरकार सोनू से कहा

“यह दाग अनूठा है मैंने पहले कभी ऐसा दाग नहीं देखा है मैं इसके लिए कोई विशेष दवा तो नहीं बता सकता पर यह क्रीम लगाते रहिएगा हो सकता है यह काम कर जाए…”

मरता क्या ना करता सोनू ने वह क्रीम ले ली और अनमने मन से बाहर आ गया..

वह दाग के कारण को समझना चाहता था यदि सच में यह सुगना के साथ संभोग के कारण जन्मा था तो यह चिंतनीय था। क्या वह सुगना के साथ आगे अपनी कामेच्छा पूरी नहीं कर पाएगा…

क्या उसके सपने बिखर जाएंगे?

सुगना के साथ बिताए गए कामुक पल उसके जेहन में चलचित्र की भांति घूमने लगे…

ऐसा लग रहा था जैसे उसकी खुशियों पर यह दाग ग्रहण की भांति छा गया था…

अचानक सोनू को लाली की बात याद आई जिसने उसके दाग की तुलना सरयू सिंह के माथे के दाग से की थी।

सोनू अपनी गाड़ी में बैठा वापस घर की तरफ जा रहा था सुगना उसके दिमाग में अब भी घूम रही थी इस दाग का सुगना से संबंध सोनू को स्वीकार्य न था।


सोनू का तेजस्वी चेहरा निस्तेज हो रहा था।

सोनू घर पहुंच चुका था..अंदर आते ही सोनू के चेहरे की उदासी सुगना ने पढ़ ली।

“काहे परेशान बाड़े कोई दिक्कत बा का?”

सुगना सोनू की नस-नस पहचानती थी वह कब दुखी होता और कब खुश होता सुगना उसके चेहरे के भाव पढ़ कर समझ जाती दोनों के बीच यह बंधन अनूठा था।

सोनू ने डॉक्टर के साथ हुई अपनी मुलाकात का जिक्र सुगना से किया और इसी बीच लाली भी पीछे खड़ी सोनू की बातें सुन रही थी। उसने बिना मांगे अपनी राय चिपका दी

“अरे सोनू सरयू चाचा से एक बार मिल के पूछीहे उनकर दाग भी ठीक अईसन ही रहे। अब त उनकर दाग बिल्कुल ठीक बा.. उ जरूर बता दीहें”

डूबते को तिनके का सहारा …सोनू को उम्मीद की एक किरण दिखाई पड़ी। परंतु सुगना की रूह कांप उठी।

सरयू सिंह और सोनू को दाग के बारे में बात करते सोच कर ही उसे लगा वह गश खाकर गिर पड़ेगी..

सोनू ने सुगना को सहारा दिया और उसे अपने पास बैठा लिया..

दीदी का भइल….?

यह प्रश्न जितना सरल था उसका उत्तर उतना ही दुरूह…

नियति सुगना की तरह ही निरुत्तर थी ..

आशंकित थी…

कुछ अनिष्ट होने की आशंका प्रबल हो रही थी…सुगना का दिल धक-धक कर रहा था…


शेष अगले भाग में


आपके आपके कमेंट की प्रतीक्षा में
Suspense and drama........... majedar update.
 
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Shubham babu

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भाग 136
“क्या है इसमें” सोनी ने कौतूहल वश पूछा और उसके हाथों से वह पैकेट छीनने का प्रयास करने लगी

“तुम्हारी खुशियों का पिटारा” विकास अब भी उसे वह पैकेट नहीं दे रहा था। सोनी अपने हाथ बढ़ाकर उसे पैकेट को पकड़ने का प्रयास करती और विकास उसकी अधीरता को और बढ़ा जाता। बीच-बीच में वह उसे चूमने की कोशिश करता पर सोनी का सारा ध्यान उसे पैकेट पर अटका था।

आखीरकार सोनी ने वह पैकेट विकास के हाथों से छीन लिया…

सोनी के गुस्से से विकास की तरफ देखा…

ये क्या है?

अब आगे..

सोनी ने जीवन में पहली बार सीडी देखी थी। वो उस सीडी को हाथ में लेकर उसे समझने का प्रयास करने लगी.. अपने काम की चीज ना समझ कर उसने गुस्से से बोला

“हट ..यह क्या चीज है?”

विकास ने सोनी को अपने आगोश में ले लिया और उसके होठों को चूमते हुए बोला इंतजार करो बिस्तर पर बताऊंगा।

सोनी के मन में कौतूहल अब भी था परंतु उसने इंतजार करना ही उचित समझा। दोनों पति-पत्नी ने साथ में खाना खाया। खाना खाते समय विकास ने सोनी को भी आज वाइन ऑफर की जिसे सोनी ने पीया तो नहीं पर अपने होठों से उसे चख अवश्य लिया…उसे उसका स्वाद तो पसंद नहीं आया पर उसके असर के बारे में वह बखूबी जानती थी।

कुछ ही देर बाद विकास और सोनी अपने प्रेम अखाड़े में पूरी तैयारी के साथ उतर चुके थे। अब एक दूसरे के कपड़े उतारने में देर नहीं होती थी। विकास सोनी को अपनी बाहों में लिए चूम चाट रहा था सोनी की नंगी चूचियां विकास के सीने से रगड़ खा रही थी। दरअसल विकास स्वयं अपने सीने से उसकी चूचियों को मसल रहा था।

सोनी का दिमाग अब भी उस सीडी पर अटका हुआ था उसने विकास के होठों को चूमते हुए बोला

“अरे अब बताइए ना आप उसे समय क्या लाए थे… ?”

विकास ने और देर ना कि वह सीडी पहले ही सीडी प्लेयर में लगा चुका था आखिरकार उसने रिमोट का बटन दबा दिया और टीवी पर फिल्म दिखाई पड़ने लगी..

टीवी पर दो युवा आकर अंग्रेजी में कुछ बातें कर रहे थे सोनी बेहद ध्यान से उनकी बातें समझने का प्रयास कर रही थी पर अब भी उसे फिल्मों की अंग्रेजी समझने में कष्ट होता था…

“यह कौन सी पिक्चर है? “

सोनी ने अपना ध्यान टीवी पर लगाए लगाए विकास से पूछा?

विकास ने अपनी हथेलियां से सोनी की चूची मीसते हुए कहा

“मेरी जान बस देखते जाओ”

कुछ ही देर में उस फिल्म का सार सोनी को समझ में आने लगा । दो-तीन मिनट बाद ही वह दोनों युवा पूरी तरह नग्न हो चुके थे और एक दूसरे को चूम चाट रहे थे। सोनी ने एक झलक विकास की तरफ देखा और फिर पूछा


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“यही ब्लू फिल्म है क्या?”

“अरे तुम्हें कैसे पता? तुमने कब देखा” विकास को अचानक सोनी पर शक हुआ उसे यह कतई यकीन नहीं था कि सोनी ब्लू फिल्मों के बारे में जानती होगी और उसने पहले कभी इसे देखा होगा।

सोनी ने मुस्कुराते हुए उसकी तरफ देखा और बोला

“ मैं कहां देखूंगी? बनारस में मिलती है क्या? पर हां अपनी सहेलियों से इसके बारे में सुना जरूर था”

सोनी के एक ही उत्तर ने विकास के सारे प्रश्नों का उत्तर दे दिया बनारस में उस समय ऐसे ब्लू फिल्मों की सीडी की उपलब्धता नहीं थी और यदि थी भी तो वह सामान्य जनमानस की पहुंच से बहुत दूर थी।

सोनी उस युवक के लंड पर अपनी नज़रें गड़ाए हुए थी। जो निश्चित ही विकास के लंड से कम से कम डेढ़ गुना होगा। जब लंड के आकार का ध्यान आया तो एक बार फिर सोनी के दिमाग में सरयू सिंह का मजबूत लंड घूम गया जो निश्चित है इस फिल्म स्टार के लंड से काफी बड़ा और सुदृढ़ था।


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सोनी टकटकी लगाकर उसे लंड को देख रही थी जिसे उस फिल्म की नायिका अब अपने होठों से चूम रही थी और कुछ ही देर में हुआ लंड उसके गले तक अंदर धंसता चला गया। लड़के ने उसे लड़की के बाल पकड़ रखे थे और अपने लंड को उसके मुंह में जबरदस्ती घुसारहा था। लड़की के गले से गला चोक होने की आवाज निकल रही थी। अचानक वह लंड उसके मुंह से पूरी तरह बाहर आ गया। लंड लार से डूबा हुआ था और वह लार उसके लंड से नीचे टपक रही थी।

सोनी मन ही मन सोचने लगी…क्या कोई लंड को इतना अंदर तक मुंह में ले सकता है?

सोनी गर्म होने लगी थी. आत्मविश्वास से लबरेज सोनी मानती थी कि दुनिया में कोई भी चीज नामुमकिन नहीं। विकास उसके बालों को सहला रहा था उसके मन में भी शायद मुखमैथुन की चाहत थी और वह भी टीवी की तरफ लगातार देख रहा था। उसने शायद सोनी से यह मांग पहले भी रखी हुई थी पर शायद वह सफल नहीं हो पाया था। आज आखिरकार सोनी ने उसे खुश करने का फैसला किया और कुछ ही देर में वह बिस्तर पर नीचे सरकती चली गई और आखिरकार विकास का लंड अपने मुंह में भरने की कोशिश की और कामयाब भी रही।


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कारण स्पष्ट था विकास को भगवान ने शायद पैसे रुतबे में कमी ना की थी पर न जाने क्यों उसका हथियार छोटा ही रखा था। यद्यपि वह अपने हथियार और कामुक कार्यकलापों से सोनी को चरम सुख देकर स्खलित करने में लगातार कामयाब रहा था।

परंतु सोनी का क्या उसने जब से मर्सिडीज़ गाड़ी देखी थी रह रहकर उसे उसे पर बैठने और उसका आनंद लेने की कसक सी उठती थी… विकाश ने सोनी को अपनी तरफ खींचा एक बार फिर सोनी और विकास का संभोग प्रारंभ हो गया।

कुछ ही देर में सोनी घोड़ी बन गई और और उसका घुड़सवार उस पर सवारी कर अपनी कमर हिलाने लगा सोनी की आंखें अब भी टीवी पर चल रही फिल्म पर थी। जहां लगभग यही दृश्य चल रहा था। सोनी की निगाहें नायिका की बुर में धंसते और बाहर निकलते लंड पर टिकी हुई थी जो पल भर के लिए बाहर आता और फिर वापस उसी रफ्तार से उस गहरी गुफा में गायब हो जाता। वह अपनी कल्पना में सरयू सिंह के लंड को अपनी बुर के अंदर धंसते हुए महसूस कर रही थी और यह अंदाज लगा रही थी कि वह उसकी गहरी चूत में कितना अंदर जा सकता है। परंतु इस अनुभव को सिर्फ सोचकर प्राप्त करना बेहद कठिन था..

विकास लगातार मेहनत कर रहा था और सोनी अपने दिमाग में उस काल्पनिक लैंड से चुद रही थी जिसने उसकी नींद हराम कर रखी थी। आखिरकार सोनी अपना स्खलन पूर्ण करने में कामयाब रही। इसका श्रेय जितना विकास को था शायद उतना ही सरयू सिंह के उसे दिव्य और अनोखे लंड को भी।

दोनों निहाल होकर बिस्तर पर लेट गए वीर्य सोनी की जांघों से बहता हुआ बिस्तर पर आ रहा था। परंतु सोनी अपने ख्वाबों में डूबी हुई अपनी आंखें बंद की हुई थी।

विकास उसे प्यार से चूम रहा था आखिर में विकास ने उसे चूमते हुए कहा

“कैसा लगा मजा आया ना? “

सोनी क्या कहती सच में इस फिल्म ने उसे सेक्स का एक नया आयाम दे दिया था । जैसे ही फिल्म खत्म हुई दूसरी फिल्म शुरू हो गई इससे पहले की विकास रिमोट से उसे बंद कर पाता सोनी ने उसका हांथ पकड़ लिया।

दूसरी फिल्म का नायक एक नीग्रो था और वह पूरी तरह नग्न अपने सोफे पर बैठा अपने लंड को हिला रहा था।

उस नीग्रो के लैंड को देखकर सोनी की आंखें फटी की फटी रह गई… उसने अपनी आंखें टीवी से नहीं हटाई पर विकास से कहा

“रुक जाओ 5 मिनट… यह क्या है? विकास सोनी की उत्सुकता समझ रहा था उसने फिल्म बंद न की और सोनी को समझाते हुए बोला

“ यह नीग्रो प्रजाति के लोग हैं अमेरिका में भी पाए जाते इनका हथियार जरूरत से ज्यादा बड़ा होता है और ये इसके लिए ही प्रसिद्ध है। “

सोनी की आंखें लगातार टीवी पर टिकी हुई थी वह विकास की बातें सुन तो रही थी पर अब जब दृश्य आंखों के सामने थे किसी व्याख्या की जरूरत नहीं थी।

नीग्रो के लंड का आकार लगभग सरयू सिंह के जैसा ही था। सोनी खुश थी और उस लंड को देख रही थी। विकास सोनी को अपने आगोश में लेकर उसे प्यार करना चाहता परंतु सोनी को शायद इसमें कम आनंद आ रहा था और फिल्म में ज्यादा

जिस उत्सुकता से सोनी फिल्म में उसे नीग्रो के लैंड को देख रही थी विकास आश्चर्यचकित था उसने सोनी को छेड़ते हुए कहा

“अरे मेरी चुलबुली सोनी उतना बड़ा लंड देखकर तुम्हें डर नहीं लगता?”

“डर क्यों लगेगा कौन सा टीवी से निकल कर बाहर आ जाएगा” विकास और सोने दोनों हंसने लगे…

सोनी का ध्यान हटते देख विकास ने तुरंत ही टीवी बंद कर दिया और अपनी सोनी को वापस चूमने चाटने लगा सोनी भी उसके आगोश में आकर नींद की आगोश में जाने लगी अब उसके दिमाग में सरयू सिंह के लंड के साथ-साथ उसे नीग्रो का दिव्य लैंड भी घूमने लगा…

सोनी की कामुकता एक नए रूप में जागृत हो रही थी….

कामुकता मनुष्य में स्वाभाविक रूप से होती है परंतु जब जब कामुकता को जागृत करने के लिए ब्लू फिल्म और अन्य अप्राकृतिक गतिविधियों का सहारा लिया जाता है तो इनका स्पष्ट असर तो दिखाई पड़ता है परंतु यह निरंतर कायम नहीं रह सकता।

मुखमैथुन भी अब दोनों के बीच आम को चला था कभी-कभी तो दोनों मुख मैथुन में ही स्खलित हो जाते और संभोग की नौबत भी नहीं आती ।शायद विकास के अंडकोषों में इतना दम ना था कि वह सोनी को लगातार दो बार चोद सकता। सोनी का क्या था उसे तो सिर्फ अपनी जांघें फैलानी थी और एक के बाद एक चुदाने का आनंद लेना था।

धीरे-धीरे विकास और सोनी अपने सेक्स लाइफ का बेहतरीन समय एक दूसरे के साथ आनंद लेते हुए व्यतीत करने लगे। ब्लू फिल्में भी उनके बेडरूम का हिस्सा बन चुकी थी।

विकास हमेशा यह बात नोट करता था कि जब जब वह नीग्रो का लंड देखती थी उसे और कुछ न सूझता था और कुछ पलों के लिए उसकी वासना एकाग्रचित हो जाती और सोनी की सारी गतिविधियां रुक जाती थी।

जब वह नीग्रो अपना लैंड किसी को भी लकड़ी की चूत में डालकर हिला रहा होता सोनी के बदन में एक गजब सी गंनगानाहट स होती उसकी शरीर और हाथों के रोए खड़े हो जाते। आखिरकार विकास में सोनी को अपनी बाहों में लिए हुए एक बार पूछ ही लिया

“ तुम्हें इस नीग्रो का लंड अच्छा लगता है क्या? “

“ आप ऐसा क्यों पूछ रहे है? पर क्या सच में वह इतना बड़ा होता होगा?

“ हा तो क्या वह झूठ थोड़े दिखाएगा?”

“ हो सकता है कैमरे का कमांल हो”

“हो सकता है ..पर फिर भी इतना बड़ा तो होगा ही”

विकास ने अपनी हथेली फैला कर दिखाया…

“सोनी ने अपनी पलके बंद करते हुए कहा दुनिया में कैसे-कैसे लोग हैं पता नहीं उस लड़की का क्या होता होगा “

विकास न जाने अपने मन में क्या-क्या सोचने लगा। क्या सोनी के दिमाग में किसी पर पुरुष वो भी नीग्रो से चुदवाने की इच्छा है…क्या सोनी यह सोच सकती है…. हे भगवान क्या सोनी सचमुच ऐसी है..

विकास अब तक जितना सोनी को जानता था उससे सोनी का यह रूप बिल्कुल अलग था..

विकास ने मुस्कुराते हुए कहा

“ देखनहीं रही थी कितना मजा ले रही थी”

सोनी ने फिर अपनी आंखें खोली और बोली

“पर इतना अंदर जाता कैसे होगा”

“अरे तुम्हें याद है जब पहली बार तुम्हारी मुनिया ने इस छोटू को लिया था तुम कैसे चीख पड़ी थी “ विकास सोनी की बुर को शुरुआत में मुनिया कहां करता था।

सोनी अपनी गर्दन झुका कर मुस्कुराने लगी

“पर अब कितनी आसानी से इसे घोंट लेती हो । वैसे ही यह कुदरत ने जांघों के बीच जादुई गुफा बनाई है जिससे एक बच्चा बाहर आ जाता है तो फिर यह नीग्रो की क्या बिसात न जाने वह अपने अंदर क्या-क्या लील सकती है “

धीरे धीरे विकास यह बात नोटिस कर रहा था कि जब-जब वह और सोनी एक दूसरे के आलिंगन में संभोग सुख ले रहे होते या ले चुके होते कभी ना कभी एक बार उस नीग्रो और उसके जादुई लंड का जिक्र जरूर होता।

सोनी उन बातों में पूरी तरह न सिर्फ शरीक होती बल्कि विकास को और भी बातें करने को उत्साहित करती…

कुछ महीनो में ही विकास और सोनी की सेक्स लाइफ मैं ब्लू फिल्मों का योगदान कम होता गया और अब विकास सोनी के मन में वासना जगाए रखने के लिए अन्य उपायों के बारे में सोचने लगा..

नियति सोनी और सुगना को और उनकी कामुकता को देख रही थी और उनकी तुलना कर रही थी। एक ओर सोनी जहां वासना को जागृत करने के लिए तरह-तरह के उपाय खोजती दूसरी तरफ सुगना स्वाभाविक रूप से अब तक कामुकता का आनंद ले रही थी।

अब जब सुगना का जिक्र आ ही गया है तो लिए आपको फिर बनारस लिए चलते हैं जहां सोनी के विवाह के बाद गहमागहमी खत्म हो चुकी थी और सुगना का घर वापस सामान्य स्थिति में आ चुका था।

सोनू और लाली ने कोर्ट मैरिज के लिए आवेदन दे दिया था और अब एक महीने पश्चात उनका विवाह तय हो गया था। ऐसा लग ही नहीं रहा था जैसे कोई नई चीज होने जा रही हो सब कुछ सामान्य जैसा ही था । सुगना के परिवार ने यह पहले ही तय कर लिया था कि विवाह मे ज्यादा टीम टॉम नहीं किया जाएगा।

सोनू और लाली रिश्ते में अवश्य बधने जा रहे थे परंतु उन दोनों में जितनी आत्मीयता पहले थी अब उससे और बढ़ने की कोई उम्मीद नहीं थी। लाली वैसे भी पूरी तरह से सोनू के लिए समर्पित थी और यह तो सोनू के ऊपर था कि वह उसे कितना आसक्त होता।

सोनू के लाली से विवाह का मुख्य कारण थी सुगना। सोनू के जीवन में जो भूचाल सुगना ने लाया था उसे अब सुगना को ही संभालना था। अन्यथा सोनू जैसे काबिल और हर तरीके से सक्षम युवा के लिए न जाने कितनी कमसिन और अति खूबसूरत लड़कियां लाइन लगाए खड़ी होती परंतु सोनू अपनी बड़ी बहन सुगना की बात नहीं टाल पाया। कारण स्पष्ट था सोनू को सिर्फ और सिर्फ सुगना चाहिए थी वह भी किसी कीमत पर। वह लाली और उसके परिवार को अपना तो पहले ही मान चुका था अब सुगना के कहने पर उसे कानूनी दर्जा देने को तैयार हो गया। उसे सुगना पर पूरा विश्वास था कि वह हमेशा उसका भला ही चाहेगी और उसकी खुशियों का ख्याल रखती रहेगी।

कुछ ही दिनों के जौनपुर प्रवास में उसने सोनू की जिंदगी में इतने रंग भर दिए थे कि उसे यह दुनिया बेहद खूबसूरत स्त्री लगने लगी थी। सोनू को सुगना हर रूप में प्यारी थी बड़ी बहन के रूप में भी, एक सखा रूप में भी , प्रेमिका के रूप में भी और वात्सल्य से ओतप्रोत एक मां के रूप में भी।

ऐसा प्रतीत होता था जैसे सोनू ने स्त्री को जिस जिस रूप में देखा था या अनुभव किया था सुगना हर रूप में आदर्श थी। जब वह सुगना के आसपास रहता उसके शरीर में एक अजब सी ताजगी रहती और सुगना के करीब आने की ललक। उसके पास आकर जैसे वह भूल जाता।

सोनू को भी यह बात बखूबी मालूम थी कि सुगना के पति रतन के अब वापस गृहस्थ जीवन में आने की कोई उम्मीद नहीं थी और आने वाला समय सुगना को भी अकेले ही व्यतीत करना था। निश्चित ही उसे सोनू की आवश्यकता थी और सोनू उसे पूरी जिम्मेदारी के साथ निभाने को तैयार था अपितु यह कहा जाए कि वह निभा रहा था।

सोनू सुगना और लाली यह तीनो एक त्रिभुज की भांति एक दूसरे से जुड़े हुए थे और अब किसी को किसी से कोई शिकायत नहीं थी पर सोनू और सुगना का कामुक रिश्ता लाली के संज्ञान में नहीं था और शायद इसकी जरूरत भी नहीं थी।

सुगना के साथ दीपावली की रात उस वांछित या अवांछित संभोग ने इन तीनों के बीच समीकरण कुछ समय के लिए गड़बड़ा दिया था और पूरे परिवार में तनाव का माहौल हो गया था। परंतु धीरे-धीरे अब सब कुछ सामान्य हो चला था अपितु और भी बेहतर स्थिति आ चुका था। सभी खुश थे और सबकी मनोकामनाएं पूर्ण हो चुकी थी या पूरी होने वालीं थी। परंतु एक बात सोनू को कमी हमेशा खलती थी वह थी लाली से संभोग के दौरान सुगना के बारे में होने वाली बातचीत।

सुगना के प्रति सोनू में उत्तेजना जागृत करने में लाली की भी अहम भूमिका थी परंतु जब से उसने सुगना को उस दीपावली की काली रात सोनू को उत्साहित कर सुगना को मुसीबत में डाला था उसे उसका अफसोस था। वह उसे क्षमा भी मांग चुकी थी और अब उसका नाम कामुक गतिविधियों के दौरान लेने से बचती थी। सोनू के उकसाने के बावजूद वह बेहद चतुराई से बच निकलती।

लाली और सोनू के विवाह के दिन अब करीब आ चुके थे। सुगना एक बार फिर बाजारों की खाक छानने लगी। लाली के लिए खूबसूरत लाल जोड़े की तलाश में न जाने कितनी वह कितनी दुकानें देखी और आखिरकार वह अपनी पसंद का लाल जोड़ा अपनी सहेली और अब होने वाली भाभी के लिए खरीद लाई।

उसने सोनू के लिए भी बेहद खूबसूरत शेरवानी खरीदी शेरवानी खरीदते समय उसकी आंखें नम थी। यदि ईश्वर ने दीपावली की वह काली रात उसके जीवन में न लाई होती तो निश्चित ही वह सोनू की शादी बेहद धूमधाम से करती पर उस काली रात ने उसके जीवन में ऐसा मोड ला दिया था जिससे वह सोनू की शादी धूमधाम से तो नहीं कर पाई पर पूरे परिवार की खुशियां कायम रखने में कामयाब रही थी।

पर अब उन बातों को भूल जाना ही बेहतर था। जब सोनू खुश था तो सुगना भी खुश थी। जब कभी सुगना सोनू के चेहरे पर मिलन का उत्साह और उससे बिछड़ते वक़्त आंखों में नमी देखती उसे नियति और अपने निर्णय पर अफसोस नहीं होता।

विवाह से कुछ दिन पूर्व सोनू सुगना के घर आया हुआ था। वह लाली के लिए एक सुंदर सा लहंगा और चोली खरीद कर लाया हुआ था। यह लहंगा और चोली आधुनिक युग के विवाह में आजकल पहना जा रहा था पर उसका रंग सुर्ख लाल नहीं था। सोनू जब यह जोड़ा खरीद तो रहा था लाली के लिए, पर उसके दिलों दिमाग में कोई और नहीं सिर्फ सुगना घूम रही थी। काश वह सुहाग का जोड़ा सुगना के लिए खरीद पाता….

लाली और सुगना दोनों सोनू द्वारा लाए गए लहंगे को देखकर खुश हो गए तभी सुगना ने कहा..

“अरे कितना सुंदर बा.. पर देख लाली सोनू आजे से बदल गइल “

“काहे का भइल?” सोनू ने आश्चर्यचकित होते हुए पूछा

“अपना बीवी खाती ले आईले और हमारा खातीर ? सुगना ने मुस्कुराते हुए शिकायती लहजे में कहा..

“तू बतावले ना रहलू तहरा का चाही …चल शाम के खरीद देब”

“ए सुगना तोरा ढेर पसंद बा त तेही ले ले …तोरा में ई गुलाबी रंग ठीक भी लागी..” सुगना को यह बात रास नहीं आ रही थी क्योंकि सोनू यह अपनी पसंद से अपनी होने वाली पत्नी लाली के लिए लाया था और इस तरह उसकी पसंद पर बीच में डाका डालना सुगना को कतई गवारा न था। उसने बात बदलते हुए कहा..

“अरे लाली खातिर त सुहाग की जोड़ा हम भी खरीद ले आइल बानी”

सोनू सुगना की तरफ देखने लगा और पूछा

“उ कैसन बा?”

“ए लाली तनी लेके आव और सोनू के दिखाओ त”

लाली झटपट अपने कमरे में गई और सुगना द्वारा खरीदा गया लाल जोड़ा ले आई।

सचमुच सुगना की पसंद बेहतरीन थी जितनी खूबसूरत सुगना थी उसके द्वारा खरीदा गया लाल जोड़ा उतना ही खूबसूरत था।

“अरे ई तो बहुत ही सुंदर बा कहां मिलल”

सोनू ने सुगना की तारीफ करते हुए कहा..

सोनू और लाली दोनों सुगना द्वारा ले गए सुहाग के जोड़े को ज्यादा पसंद कर रहे थे। आखिरकार सोनू ने अपना फैसला सुना दिया..

“लाली दीदी तू ई वाला ही पहनी ह”

सुगना ने सोनू के सर पर फिर एक बार मीठी सी चपत लगाई और बोला

“ते मनबे ना अभियो दीदी बोलत बाड़े”

सोनू बुरी तरह झेंप गया और अगले ही पल बोला

“ए लाली एक गिलास पानी पिलाईए ना” सोनू ने हिम्मत जुटाकर और हिंदी भाषा का प्रयोग कर लाली को आज नाम से संबोधित किया था और उम्र का अंतर मिटाने का प्रयास किया था पर फिर भी “ पिलाइए “ शब्द का प्रयोग कर अब भी उम्र के अन्तर को मिटा पाने में नाकामयाब रहा था।

“हां अब ठीक बा” सुगना ने आगे बढ़कर सोनू के माथे को चूम लिया।

सोनू ने देखा लाली किचन की तरफ जा चुकी है उसने देर ना की सुगना की भरी-भरी चूचियां जो सुगना के झुकने से उसकी निगाहों के सामने आ चुकी थी उसने बिना देर किए सुगना की चूचियों को अपने हाथों में ले लिया।

सुगना ने सोनू का माथा चूमने के बाद तुरंत ही अपने अधर नीचे किये और सोनू के होठों को चूम लिया और उठते हुए बोली…

“ तोर पसंद हमेशा अच्छा रहेला” अब तक लाली आ चुकी थी और उसने सुगना की बात सुन ली थी वह मन ही मन और भी प्रसन्न हो गई थी। उसे शायद यह भ्रम हो गया था कि यह बात सुगना ने उसके लिए कही है।

ग्लास का पानी खत्म कर सोनू ने लाली और सुगना से गुलाबी रंग के लहंगे को दिखाते हुए पूछा..

“अब इ का होई…”

लाली के चट से जवाब दिया..

“ये अब सुगना दीदी पहनेंगी..” लाली ने वह लहंगा अपने हाथों से उठा लिया और उसे सुगना की कमर से लगा कर सोनू को दिखाते हुए पूछा.

“ अच्छा लग रहा है ना?”

सोनू क्या बोलता …उस लहंगे में सुगना की कल्पना कर उसका लंड अब खड़ा हो चुका था।

“अच्छा है…दीदी में वैसे भी सब कुछ अच्छा लगता है”

सुगना मुस्कुरा उठी…और उसकी मुनिया भी..सोनू को अपना कर उसने गलत नहीं किया था।

सुगना सोनू की पसंद का लहंगा उसके विवाह में पहनने वाली थी…सोनू बहुत खुश था…और अब अपने विवाह का इंतजार बेसब्री से कर रहा था…

नियति मुस्कुरा रही थी…और मिलन के ताने बाने बुन रही थी।

शेष अगले भाग में..

Khubsurati se likha hai 🍑👌👌
 
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yenjvoy

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मुझे लगता है सोनी और सरयू सिंह का मिलन निश्चित होगा और घमासान होगा. और यह भी लग रहा है कि भारत आने से पहले अमरीका में ही सोनी कही काली मर्सिडीज ढूंढ कर सवारी न कर ले 😆
लाली का सोच कर डर लगता है क्योंकि इश्क और मुश्क छुपाए नहीं छुपते सो कभी तो सोनू और सुगना का खेल उजागर हो ही जाएगा, और तब लाली का दिल और विश्वास टूटेगा, अपने पति और अपनी अंतरंग सहेली दोनों की तरफ से. पर विश्वास है कि चतुर समझदार सुगना किसी प्रकार सम्भल ही लेगी .
 

Lovely Anand

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मुझे लगता है सोनी और सरयू सिंह का मिलन निश्चित होगा और घमासान होगा. और यह भी लग रहा है कि भारत आने से पहले अमरीका में ही सोनी कही काली मर्सिडीज ढूंढ कर सवारी न कर ले 😆
लाली का सोच कर डर लगता है क्योंकि इश्क और मुश्क छुपाए नहीं छुपते सो कभी तो सोनू और सुगना का खेल उजागर हो ही जाएगा, और तब लाली का दिल और विश्वास टूटेगा, अपने पति और अपनी अंतरंग सहेली दोनों की तरफ से. पर विश्वास है कि चतुर समझदार सुगना किसी प्रकार सम्भल ही लेगी .
खूबसूरत अनुमान
 
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