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Incest आह..तनी धीरे से.....दुखाता.

Lovely Anand

Love is life
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आह ....तनी धीरे से ...दुखाता
(Exclysively for Xforum)
यह उपन्यास एक ग्रामीण युवती सुगना के जीवन के बारे में है जोअपने परिवार में पनप रहे कामुक संबंधों को रोकना तो दूर उसमें शामिल होती गई। नियति के रचे इस खेल में सुगना अपने परिवार में ही कामुक और अनुचित संबंधों को बढ़ावा देती रही, उसकी क्या मजबूरी थी? क्या उसके कदम अनुचित थे? क्या वह गलत थी? यह प्रश्न पाठक उपन्यास को पढ़कर ही बता सकते हैं। उपन्यास की शुरुआत में तत्कालीन पाठकों की रुचि को ध्यान में रखते हुए सेक्स को प्रधानता दी गई है जो समय के साथ न्यायोचित तरीके से कथानक की मांग के अनुसार दर्शाया गया है।

इस उपन्यास में इंसेस्ट एक संयोग है।
अनुक्रमणिका
भाग 126 (मध्यांतर)
भाग 127 भाग 128 भाग 129 भाग 130 भाग 131 भाग 132
भाग 133 भाग 134 भाग 135 भाग 136 भाग 137 भाग 138
भाग 139 भाग 140 भाग141 भाग 142 भाग 143 भाग 144 भाग 145 भाग 146 भाग 147 भाग 148
 
Last edited:

Sanju@

Well-Known Member
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भाग 143

अरे सोनू तनी धीरे चल नाता हमरा के बिस्तर पर ले जाए से पहले अस्पताल पहुंचा देबे” सुगना खिलखिलाकर हंस पड़ी।

हस्ती खिलखिलाती सुगना को यदि कोई मर्द देख ले तो उसकी नपुंसकता कुछ ही पलों में समाप्त हो जाए ऐसी खूबसूरत और चंचल थी सुगना सोनू ने अपनी रफ़्तार कुछ कम की और मन ही मन सुगना को खुश और संतुष्ट करने के लिए प्लानिंग करने लगा।


उधर सुगना भी सोनू को खुश करने के बारे में सोच रही थी। आज वह उसे दीपावली की काली रात में घटित पाप को पूरी सहमति और समर्पण के साथ अपनाने जा रही थी।


अब आगे…

सोनू बेहद उत्साहित था। रात भर वह अगले दिन के बारे में सोचता रहा और मन ही मन अपने ईश्वर से प्रार्थना करता रहा की सुगना और उसके मिलन में कोई व्यवधान नहीं आए उसे इतना तो विश्वास हो चला था कि जब सुगना ने ही मिलन का मन बना लिया है तो विधाता उसका मन जरूर रखेंगे..

अगली सुबह सुगना के बच्चों सूरज और मधु को भी यह एहसास हो चला था कि उनकी मां उन्हें कुछ घंटे के लिए छोड़कर सलेमपुर जाने वाली है। वह दोनों सुबह से ही दुखी और मुंह लटकाए हुए थे।

बच्चों का अपना नजरिया होता है सुगना को छोड़ना उन्हें किसी हालत में गवारा नहीं था सोनू ने उन दोनों को खुश करने की भरसक कोशिश की तरह-तरह के पुराने खिलौने बक्से से निकाल कर दिए पर फिर भी स्थिति कमोवेश वैसी ही रही।

तभी सरयू सिंह ने बाकी बच्चों को बाहर पार्क चलने के लिए आग्रह किया लाली के बच्चे तुरंत ही तैयार हो गए और अब सूरज और मधु भी अपने साथियों और दोस्तों के साथ पार्क में जाने के लिए राजी हो गए।

सोनू और सुगना दोनों संतुष्ट थे। सरयू सिंह ने अपनी पुत्री सुगना की खुशी का अनजाने में ही ख्याल रख लिया था।

सोनू ने और देर नहीं की उसने गाड़ी स्टार्ट की और अपनी अप्सरा को अपनी बगल में बैठा कर सलेमपुर के लिए निकल पड़ा।

अपने मोहल्ले से बाहर निकलते ही सोनू ने सुगना की तरफ देखा जो कनखियों से सोनू को ही देख रही थी

आंखें चार होते ही सोनू ने मुस्कुराते हुए पूछा

“दीदी का देखत बाड़े”

सुगना ने अपनी नज़रें झुकाए हुए कहा.

“तोर गर्दन के दाग देखत रहनि हा”

“अब तो दाग बिल्कुल नईखे..” सोनू ने उत्साहित होते हुए कहा।

“हमरा से दूर रहबे त दाग ना लागी” सुगना ने संजीदा होते हुए कहा उसे इस बात का पूरी तरह इल्म हो चुका था कि सोनू के गर्दन का दाग निश्चित ही उनके कामुक मिलन की वजह से ही उत्पन्न होता था।

“हमारा अब भी ई बात पर विश्वास ना होला. सरयू चाचा के भी तो ऐसा ही दाग होते रहे ऊ कौन गलत काम करत रहन” सोनू ने इस जटिल प्रश्न को पूछ कर सुगना को निरुत्तर कर दिया था। सरयू सिंह सुगना की दुखती रख थे। यह बात वह भली भांति जानती थी कि उनके माथे का दाग भी सुगना से मिलन के कारण ही था परंतु उनके बारे में बात कर वह स्वयं को और अपने रिश्ते को आशंकित नहीं करना चाहती थी उसने तुरंत ही बात पलटी और बोला..

“चल ठीक बा …और लाली के साथ मन लगे लगल”

“का भइल सोनी के गइला के बाद हिंदी प्रैक्टिस छूट गईल का?” शायद सोनू इस वक्त अपने और लाली के बारे में बात नहीं करना चाहता था उसका पूरा ध्यान सुगना पर केंद्रित था।

“नहीं नहीं मैं अब भी हिंदी बोल सकती हूं” सुगना ने हिंदी में बोलकर सोनू के ऑब्जरवेशन को झूठलाने की कोशिश की।

“अच्छा ठीक है मान लिया…वास्तव में आप साफ-साफ हिंदी बोलने लगी हैं.. “

अपनी तारीफ सुनकर सुगना खुश हो गई और सोनू की तरफ देखते हुए उसके आगे बोलने का इंतजार करने लगी..

“दीदी एक बात बता उस रात जो मैंने सलेमपुर में किया था क्या वह गलत था?”

एक पल के लिए सुगना को लगा जैसे सोनू इस काली रात की बात कर रहा है जब उसने सुगना के साथ पहली बार संभोग किया था। पर सुगना को यह उम्मीद नहीं थी अनजान बनते हुए उसने प्रश्न टालने की कोशिश की “किस दिन?”

“वो दीपावली के दिन”

अब कुछ सोचने समझने की संभावना नहीं थी सुगना को उस काली रात की याद आ गई जब उसके और सोनू के बीच पाप घटित हुआ था।

पर शायद वह पाप ही था जिसने सोनू और सुगना को बेहद करीब ला दिया था इतना करीब कि दोनों दो जिस्म एक जान हो चुके थे।


प्यार सुगना पहले भी सोनू से करती थी परंतु प्यार का यह रूप प्रेम की पराकाष्ठा थी और उसका आनंद सोनू और सुगना बखूबी उठा रहे थे। सोनू के प्रश्न का उत्तर यदि वर्तमान स्थिति में था तो यही था कि

सुगना के अंतरात्मा चीख चीख कर कह रही थी…”हां सोनू तुमने उस दिन जो किया था अच्छा ही किया था पर सुगना यह बात बोल नहीं पाई वह तब भी मर्यादित थी और अब भी”

“बोल ना दीदी चुप काहे बाड़े”

सोनू ने एक बार फिर अपनी मातृभाषा बोलकर सुगना की संवेदनाओं को जागृत किया।

“हां ऊ गलत ही रहे”

“पर क्यों अब तो आप उसको गलत नहीं मानती”

“तब मुझे नहीं पता था की मैं तुम्हारी सगी बहन नहीं हूं”

सुगना ने अपना पक्ष रखने की कोशिश की तभी उसे सोनू की बात याद आने लगी।

अच्छा सोनू यह तो बता “मैं किसकी पुत्री हूं मेरे पिता कौन है?”

“माफ करना दीदी मैं यह बात कर हम दोनों की मां पदमा को शर्मसार नहीं कर सकता हो सकता है उन्होंने कभी भावावेश में आकर किसी पर पुरुष से संबंध बनाए हों पर अब उसे बारे में बात करना उचित नहीं होगा”

सुगना महसूस कर रही थी कि उसके और सोनू के बीच बातचीत संजीदा हो रही थी। उधर सुगना आज स्वयं मिलन का मूड बनाए हुए थी। उसने अपना ध्यान दूसरी तरफ केंद्रित किया और सोनू को उकसाते हुए बोली..

“तोरा अपना बहिनी के संग ही मन लागेला का?”

काहे? सोनू ने उत्सुकता बस पूछा।

“ते पहिले लाली के संग भी सुतत रहले अब हमरो के भी घसीट लीहले”

(आशय : तुम पहले लाली के साथ भी सो रहे थे और बाद में मुझे भी उसमें घसीट लिया।)

अब सोनू भी पूरी तरह मूड में आ चुका था उसने कहा..

“तोहर लोग के प्यार अनूठा बा…”

काहे…? सुगना ने सोनू के मनोभाव को समझने की चेष्टा की।

सोनू ने अपना बाया हाथ बढ़ाकर सुगना की जांघों को दबाने का प्रयास किया पर सुगना ने उसकी कलाई पकड़ ली और खुद से दूर करते हुए बोली।

“ठीक से गाड़ी चलाओ ई सब घर पहुंच कर”

सुगना की बात सुनकर सोनू बाग बाग हो गया उसने गाड़ी की रफ्तार तेज कर दी सुगना मुस्कुराने लगी उसने सोनू की जांघों पर हाथ रखकर बोला

“अरे सोनू तनी धीरे चल नहीं तो मैं पलंग की बजाय अस्पताल में लेटी मिलूंगी” सुगना खिलखिलाकर हंस पड़ी।

हस्ती खिलखिलाती सुगना को यदि कोई मर्द देख ले तो उसकी नपुंसकता कुछ ही पलों में समाप्त हो जाए ऐसी खूबसूरत और चंचल थी सुगना। सोनू ने अपनी रफ़्तार कुछ कम की और मन ही मन सुगना को खुश और संतुष्ट करने के लिए प्लानिंग करने लगा।

उधर सुगना भी सोनू को खुश करने के बारे में सोच रही थी। आज वह दीपावली की काली रात में घटित पाप को अपना चुकी थी और और अब पूरी सहमति और समर्पण के साथ सोनू को अपनाने जा रही थी।

कितना अजीब सहयोग था सुगना के माथे का सिंदूर का रंग बदल चुका था । गले का मंगलसूत्र भी सोनू द्वारा ही लाया हुआ था। और उसके दिलों दिमाग पर अब सरयू सिंह की जगह सोनू राज कर रहा था।

सोनू स्वयं सुगना के बारे में सोच रहा था।

सुगना के प्रति सोनू के मन में आकर्षण तभी उत्पन्न हुआ था जब वह किशोरावस्था से गुजर रहा था स्त्री शरीर की पहली परिकल्पना उसने सुगना के रूप में ही की थी। अपनी किशोरावस्था में जब-जब वह सुगना के अंगों को देखता उसे अंदर ही अंदर एक अजब सी संवेदना होती पर मन में पाप अपराध बोध भी जन्म लेता।

उस समय सुगना के कामुक अंगों को देख पाना लगभग असंभव था पर पर इसके बावजूद वह सुगना की गोरी पीठ और घुटने के नीचे सुंदर टांगों को देखने में कामयाब रहा था वैसे भी सुगना की सुडौल कद काठी स्वयं ही उसकी चोली के पीछे छुपे खजाने का बखान करती थी।

जितना ही सोनू उन दिनों के बारे में सोचता सुगना का मासूम चेहरा उसकी आंखों के सामने घूमने लगता गांव की एक सुंदर अल्हड़ लड़की सुगना आज एक पूर्ण युवती बन चुकी थी जो इस समय कार के शीशे से बाहर लहलहाती फसलों को देख रही थी।

सुगना के विवाह के पश्चात सोनू और सुगना दूर हो गए थे पर सोनू को लाली का सानिध्य प्राप्त हो चुका था। लाली ने सोनू को अपने मुंह बोले भाई की तरह अपना लिया था आखिर वह उसकी सहेली का भाई था। लाली सोनू के करीब आती गई और सोनू की कामुकता अब लाली के सहारे उफान भरने लगी…

बनारस हॉस्टल आने के बाद जब सोनू ने लाली से और नजदीकी बढ़ाई तब जाकर उसे स्त्री शरीर के उन दोनों अद्भुत अंगों का दर्शन और स्पर्श सुख का लाभ प्राप्त हुआ…

जब एक बार सोनू ने लाली की चूचियों और बुर का स्वाद चख लिया उसकी कल्पना में न जाने कब सुगना वापस अपना स्थान खोजने लगी। सोनू को पता था कि उसका जीजा सुगना को छोड़कर जा चुका था। सुंदर और अतृप्त सुगना के कामुक जीवन में अपनी जगह बनाने के लिए सोनू मन ही मन सुगना के नजदीक आने की कोशिश करने लगा नियति ने सोनू का साथ दिया और आज वह अपनी प्यारी सुगना को उसके ही पलंग पर भोगने उसी के घर पर ले जा रहा था।

सुगना को उसके अपने ही सुहाग सेज पर चोदने की कल्पना कर सोनू का लंड पूरी तरह खड़ा हो गया जैसे ही सोनू ने स्टेरिंग से अपने हाथ हटाकर अपने लंड को व्यवस्थित करना चाह सुगना ने सोनू की यह हरकत ताड़ ली..

सोनू शर्मा गया इससे पहले की सोनू कुछ बोलता सुगना का हाथ सोनू की जांघों के बीच आ गया और सुगना में सोनू के तने हुए लंड का आकलन अपनी हथेलियां के दबाव से महसूस कर लिया और तुरंत ही सोनू के कंधे पर चपत लगाते हुए कहा..

“तोहरा दिन भर यही सब में मन लागेला का सोचत रहले हा…?”

जो सोनू सो रहा था वह बता पाना कठिन था पर उसने बेहद संजीदगी से बात बदलते हुए कहा..

“दीदी उस दिन जब सलेमपुर में पूजा थी और रतन जीजू आए थे और आप लोगों ने साथ में पूजा की थी उस दिन आप बहुत सुंदर लग रही थी”

सुगना को वह दिन याद आ गया जब उसने रतन को एक बार फिर अपने पति के रूप में स्वीकार किया था और अपने कुलदेवी के सामने पूजा अर्चना की थी और उसके बाद रतन के साथ अपनी सुहागरात मनाई थी। पर हाय री सुगना की किस्मत पुरुषार्थ से भरा रतन जो एक खूबसूरत और तगड़े लंड का स्वामी था अभिशप्त सुगना को स्खलित करने में नाकामयाब रहा था।

“बोल ना दीदी”

सुगना ने अपने चेहरे पर आश्चर्य के भाव लाते हुए सोनू से पूछा

“क्यों क्या बात है क्यों पूछ रहे हो?”

“उस दिन आपने सुन्दर लहंगा पहना था और जो इत्र लगाया था वह अनूठा था”

सुगना को उसे दिन की पूरी घटनाएं याद आ गई उसे यह भी बखूबी याद था कि जब सोनू उसके चरण छूने के लिए नीचे झुका था तो उसके लहंगे से उठ रही इत्र की खुशबू को उसने जिस तरह सूंघा था वह अलग था और बेहद कामुक था सुगना को तब सोनू से यह अपेक्षा कतई नहीं थी।

सुगना ने सोनू कि इस हरकत को बखूबी नोट किया था परंतु जानबूझकर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी थी उसे इतना तो इल्म अवश्य ताकि सोनू लाली के साथ कामुक गतिविधियों में लिप्त है और शायद यही वजह हो कि उसने अपनी काम इच्छा के बस में आकर यह हिमाकत की थी।


परंतु कई बातों पर प्रतिक्रिया न देना ही उचित होता है शायद सुगना ने तब इसीलिए अपनी प्रतिक्रिया नहीं दी थी पर अब जब सोनू ने वह बात छेड़ ही दी थी तो सुगना ने पूछा..

“ते इत्र कहा सूंघले?

सोनू से उत्तर देते नहीं बना। वह किस्म से कहता है कि वह अपनी बड़ी बहन की बुर पर लगा इत्र सूंघ रहा था । पर अब जब उसके और सुगना के बीच शर्म की दीवार हट रही थी उसने हिम्मत जुटा और बोला..

“दीदी हम बता ना सकी पर वह दिन तो बिल्कुल अप्सरा जैसन लागत रहलू और ऊ खुशबू…. सोनू ने एक लंबी आह भरी…

सोनू कहना तो बहुत कुछ चाहता था परंतु अब भी हिचकचा रहा था।

इससे पहले की उन दोनों का बात और आगे बढ़ती सलेमपुर का बाजार आ चुका था। सोनू ने गाड़ी रोकी और मिठाई की दुकान से जाकर जलपान के लिए कुछ आइटम और मिठाइयां खरीद लाया।

कुछ भी देर बाद उसकी कार सलेमपुर गांव के बीच से गुजरती सरयू सिंह के दरवाजे तक जा पहुंची।

कार का पीछा कर रहे पिछड़े वर्ग के बच्चे अब थक चुके थे। सुगना कार से बाहर आई और सोनू द्वारा खरीदी गई मिठाई में से कुछ भाग उन बच्चों में बांट दिया। बच्चे सुगना दीदी दीदी...चिल्ला कर अपनी मिठाई मांग रहे थे और सुगना सबको मिठाई बाट रही थी।सुगना निराली थी शायद इसीलिए वह हर दिल अजीज थी।

लाली के माता पिता हरिया और उसकी पत्नी भी अब तक बाहर आ चुके थे। अपनी पुत्री को ना देख कर वह थोड़े उदास हुए पर जब सुगना ने पूरी बात समझाइ वह सुगना और सोनू के आदर् सत्कार में लग गए।

जलपान कर सुगना और सोनू अपने घर में आ गए।


सुगना ने सर्वप्रथम कजरी द्वारा बताए गए गहने को उसके बक्से से निकला और सोनू को देते हुए बोली..

“सोनू इकरा के जाकर मुखिया जी के घर दे आओ और हां जाए से पहले गाड़ी में से हमरा बैग निकाल दे”

“तू हिंदी ना बोल पईबू” सोनू सुगना को चिढ़ाते हुए बोला

“ठीक है एसडीएम साहब अब हिंदी ही बोलूंगी …अब जो”

सुगना मुस्कुरा रही थी और सोनू को अपनी अदाओं से घायल किया जा रही थी।

“अब जो…. ये तो हिंदी नहीं है”

सुगना सोनू को बड़ी अदा से मारने दौड़ी..पर सोनू हंसते हुए गाड़ी से बैग निकालने चला गया।


पर न जाने क्यों सुगना से रहा नहीं क्या वह उसके पीछे-पीछे गाड़ी तक आ गई सोनू ने सुगना से पूछा

“ दो-चार घंटा खातिर अतना बड़ बैग काहे ले आइल बाड़ू”

“अब ते काहे भोजपुरी बोलत बाड़े” सुगना ने सोनू को उलाहना देते हुए कहा।

“बताव ना पूजाई के समान लेले बाड़ू का”

सोनू ने जिस संदर्भ में यह बात कही थी वह सुगना बखूबी समझ चुकी थी। बुर की पूजा का मतलब सुगना भली भांति समझती थी और सोनू इस भाषा को सीख चुका था।

सुगना एक पल के लिए शर्मा गई पर अपनी भावनाओं पर काबू करते हुए बोली

“अपना काम से काम रख ….”

वह सोनू से नज़रे चुराते हुए बैग लेकर अंदर जाने लगी तभी सोनू ने उसे पीछे से आकर पकड़ लिया अपने हाथों से उसके नंगे पेट को सहलाने लगा। उसकी हथेलियां ऊपर की तरफ बढ़ने लगी वह सुगना के कानों को चूमने की कोशिश कर रहा था और कान में फुसफुसाकर बोला..

“हमार इनाम कब मिली?”

“पहले मुखिया के घर जो और हां बाहर से ताला लगा दीहे वापस आवत समय पीछे के दरवाजा से आ जाईहे.”

सोनू सुगना की बात को पूरी तरह समझ चुका था बाहर ताला लगा होने का मतलब यह था कि घर में कोई नहीं था पिछले दरवाजे से आकर वह बिना किसी रुकावट के सुगना के साथ रंगरलिया मना सकता था।

सोनू ने अपनी पकड़ ढीली की और एक बार उसकी दोनों चूचियों को अपनी हथेली में भरते हुए बोला..

“जो हुकुम मेरे आका…”

सुगना खिलखिला कर हंस पड़ी वह उसकी पकड़ से दूर हुई और उसे धकेलते हुए बोली

“अब जो ना त देर होई “

“ फेर भोजपुरी…”

सोनू मुस्कुराते हुए उससे दूर हुआ पर दरवाजे से निकलने से पहले उसने एक बार फिर सुगना की तरफ देखा और अपने होठों को गोल कर उसे चूमने की कोशिश की यह कुछ-कुछ फ्लाइंग किस जैसा ही था सुगना ने उसी प्रकार सोनू को रिप्लाई कर उसे खुश कर दिया..

सोनू के जाने के पश्चात सुगना अपनी तैयारी में लग गई।

सजना सवरना हर स्त्री को पसंद होता है सुगना भी इससे अछूती नहीं थी। और आज तो उसे सोनू को खुश करना था जब स्त्री किसी पुरुष को अपनी अंतरात्मा से प्यार करती है तो वह उसके लिए पूरी तन्मयता से खुद को तैयार करती है आज सुगना भी अपने बैग में वही गुलाबी लहंगा चोली लेकर आई थी जो सोनू ने अपनी होने वाली पत्नी लाली के लिए चुना था और जो तात्कालिक परिस्थिति बस सुगना के भाग्य में आ गया था।

सुगना ने स्नान किया अपने केस सवारे और सोनू द्वारा दिया हुआ लहंगा चोली पहन लिया अंतर वस्त्रों की जरूरत शायद नहीं थी इसलिए सुगना ने पैंटी नहीं पहनी। पर चोली सुगना की कोमल चूचियों को तंग कर रही थी सुगना ने ब्रा ढूंढने के लिए अपना पुराना संदूक खोला..

संदूक खोलते ही सुगना की पुरानी यादें ताजा हो गई..

सरयू सिंह के साथ बिताई गई पहली रात और उसका गवाह वह लाल जोड़ा सुगना को आकर्षित कर रहा था उसने उसे लाल जोड़े को बाहर निकाल लिया और उस खूबसूरत जोड़े को सहलाते हुए सरयू सिंह के साथ बिताई गई अपनी पहली रात को याद करने लगी।

सरयू सिंह ने उसे जितना प्यार दिया था उसने उसके जीवन में खुशियों के रंग बिखेर दिए थे सुगना तब एक अल्लढ नवयौवना थी.. और सरयू सिंह कामकला में पारंगत जिस खूबसूरती से उन्होंने सुगना में वासना के रंग भरे और उसे पुष्पित पल्लवित होने दिया.. उसने सुगना के व्यक्तित्व को और निखार दिया था। व्यक्तित्व ही क्या सुगना की चूचियां उसके नितंब कटीली कमर सब कुछ कहीं ना कहीं सरयू सिंह के कारण ही थे।

वह उसके जनक भी थे उसे सजाने संवारने वाले भी थे और भोगने वाले भी।

उन्होंने न जाने कितनी बार सुगना को नग्न कर उसकी मालिश की थी कभी तेल से कभी अपने श्वेत धवल वीर्य से।

सुगना ने लहंगे पर लगे सरयू सिंह के वीर्य और अपने रज रस के दागों को देखा और मन ही मन मुस्कुराने लगी चेहरे की चमक बढ़ती चली गई।

अचानक सुगना का ध्यान संदूक में रखे अपने दूसरे लहंगे पर गया जो उसकी सास कजरी ने उसके लिए लाया था यह वही लहंगा था जो उसने रतन को अपने पति स्वरूप में स्वीकार करने के बाद घर की उसे विशेष पूजा में पहना था। पर शायद सुगना स्वाभाविक संबंधों के लिए बनी ही नहीं थी रतन के लाख जतन करने के बाद भी वह सुगना को स्खलित करने में नाकामयाब रहा था और यह जोड़ा सिर्फ और सिर्फ रतन के वीर्य का गवाह था पर सुगना का काम रास इस लहंगे के भाग में न था।

संदूक खाली हो चुका था और सुगना जिस खूबसूरत लाल ब्रा को ढूंढ रही थी वो अब साफ दिखाई पड़ रही थी सुगना ने उसे अपने हाथों में ले लिया यह ब्रा भी सुगना की पहली रात की गवाह थी पर सबसे पहले उसका साथ छोड़ कर जाने वाली या ब्रा पूरी तरह कुंवारी थी सरयू सिंह के वीर्य के दाग इस पर अब भी नहीं लगे थे।

सुगना ने अपनी चोली को उतारा और उसे खूबसूरत ब्रा को पहनने की कोशिश की।

सुगना चाह कर भी उस छोटी ब्रा में अपनी भरी भरी चूचियों को कैद करने में नाकाम रही…

सुगना की चूचियां अब अपना आकर ले चुकी थी और अब वह छोटी ब्रा में कैद होने के लिए तैयार नहीं थी एक तो उसके पहले मिलन की यादों ने उसकी चूचियों को और भी तान दिया था….

आखिरकार सुगना ने आज पहनी हुई अपनी पुरानी ब्रा को ही धारण किया अपनी चोली पहनी और अपने लहंगे को संदूक में वापस रखने लगी तभी अचानक उसे एहसास हुआ जैसे सोनू घर के पिछले दरवाजे को खोल रहा है।

वह अपने अतीत को अपने वर्तमान पर हावी नहीं होने देना चाहती थी आज उसका एकमात्र उद्देश्य सोनू को खुश करना था और कई दिनों से उसके अपने बदन में उठ रही काम अग्नि को शांत करना था। उसने फटाफट अपने पुराने लहंगे को वापस संदूक में बंद किया अपने कपड़े को व्यवस्थित किया और अपने बालों में कंघी करने लगी। अभी वह अपने बाल सवांर ही रही थी कि सोनू उसके समक्ष आ गया।

अभी सुगना की तैयारी में एक कमी थी वह थी सुगंधित इत्र का प्रयोग सुगना ने उसे बक्से से निकाल तो लिया था परंतु इसका प्रयोग नहीं कर पाई थी।

उसने सोनू से कहा..

“ए सोनू पीछे पलट हमारा तरफ मत देखिहे “

सोनू अधीर था वह सुगना की खूबसूरती का वैसे ही कायल था और इस समय तो सुगना बला की खूबसूरत लग रही थी। कमरे में व्याप्त स्नान की ही सुगना की खुशबू उसे मदहोश कर रही थी। सजी धजी सुगना से नज़रें हटाना कठिन था।

सोनू ने सुगना के दोनों कंधों को अपनी हथेलियां से पकड़ लिया और उसकी आंखों में आंखें डालते हुए बोला..

“कुछ बाकी बा का ?”

“….तोहरा से जवन बोला तानी ऊ कर” सुगना ने अपने हाथों से सोनू को पलटने का निर्देश देते हुए कहा।

अभी सोनू सुगना को जी भर कर देख भी नहीं पाया था पर बड़ी बहन सुगना का निर्देश टाल पाना कठिन था..

सोनू कोई और चारा न देख पलट गया ..

तभी सुगना की एक और हिदायत आई

“जब तक ना कहब पीछे मत देखिहे”

सोनू ने न जाने क्यों अपनी आंखें बंद कर ली शायद वह पीछे हो रहे घटनाक्रम का अंदाजा लगाना चाहता था।

सुगना ने इत्र की बोतल निकाली अपना लहंगा उठाया और इत्र में भीगी हुई रुई को अपनी दोनों जांघों के जोड़ पर रगड़ दिया।

इससे पहले कि वह इत्र की शीशी बंद कर पाती…

सोनू बोल उठा..

“दीदी ई खुशबू तो हम पहले भी सूंघले बानी”

सुगना मुस्कुरा उठी उसे पता था यह इत्र उसने कब लगाया था और यह भी बखूबी याद था कि सोनू ने उसके चरण छुते समय इस खुशबु को महसूस किया था।

“कब सूंघले बाड़े ते ही बता दे”

“पहले बोल मुड़ जाई?” सोनू अब बेचैन हो रहा था पर बिना सुगना के निर्देश के वह वापस नहीं मुड़ सकता था।

“ले हम ही तोरा सामने आ गईनी अब बता दे”

सोनू खूबसूरत और सजी-धजी सुगना को देखकर उसकी धड़कने तेज हो गईं..

सुगना के केश अब भी हल्के गीले थे..चेहरा दमक रहा था माथे पर सिंदूर आंखों में कजरा और होंठो पर लिपस्टिक उसकी खूबसूरती पर चार चांद लगा रहे थे।

गर्दन में लटक रहा सोनू का मंगलसूत्र चूचियों की घाटी में और गहरे उतर जाने को व्याकुल था।

भरी भरी मदमस्त चूचियां चोली के आवरण में कैद थी पर छलक छलक कर अपने अस्तित्व का एहसास करा रही थी।

चूचियों के ठीक नीचे सुगना का सपाट पेट और कटावदार कमर जो इस उम्र में भी किशोरियों जैसे थी सुगना का व्यक्तित्व और सुंदरता निखार रही थी।

नाभि का खूबसूरत बटन न जाने कितने मर्दों की नींद उड़ाई लेता था वह सोनू को बरबस आकर्षित कर रहा था। जिस प्रकार मिठाई की दुकान पर खड़ा ग्राहक मिठाइयों को लेकर कंफ्यूज रहता है उसी प्रकार सोनू की स्थिति थी सुगना के खजाने को वह जी भर कर देखना चाह रहा था पर नज़रें इधर-उधर फिसल रही थी।

सोनू अभी सुगना को निहार ही रहा था तभी सुगना बोल पड़ी

“ का देखे लगले कुछ बतावत रहले हा ऊ खुशबू के बारे में.”

सोनू घुटनों के बल बैठ गया.. उसने अपना सर नीचे किया और सुगना के अलता लगे खूबसूरत पैरों की तरफ अपना सर ले जाने लगा एक पल के लिए सुगना को लगा जैसे वह उसके पैरों पर अपना कर रख रहा हो।

शायद सुगना इसके लिए तैयार न थी उसने झुक कर सोनू को पकड़ने की कोशिश की पर तब तक सोनू के होंठ सुगना के पंजों को चूम चुके थे।

लहंगे के भीतर से आ रही इत्र की खुशबू सोनू के नथुनों में पढ़ चुकी थी।

सोनू अपना सर उठाता गया और इत्र की खुशबू के स्रोत को ढूंढता गया। सुगना का लहंगा सोनू के सर के साथ-साथ ऊपर उठ रहा था न जाने क्यों सुगना यंत्रवत खड़ी थी। सोनू लगातार सुगना के पैरों को चूमें जा रहा था.. घुटनों के ऊपर पहुंचते पहुंचते सुगना का सब्र जवाब दे गया। उसे अपनी नग्नता का एहसास हुआ यदि वह सोनू को नहीं रोकती तो काम रस की बूंदे उसकी प्यासी बर से छलक कर टपक पड़ती। वह एक कदम पीछे हटी और लहंगे ने वापस नीचे गिर कर उसके खूबसूरत पैरों को ढक लिया।

सोनू को यह यह नागवार गुजरा उसने आश्चर्य से सुगना की तरफ देखा। कितना तारतम्य था सुगना और सोनू में सुगना ने सोनू के मनोभाव को ताड़ लिया और अपनी सरल मुस्कान से उसकी तरफ देखते हुए बोला

“ना पहचानले नू?”

सोनू के मन में उपजा गुस्सा तुरंत शांत हो गया..

उसने लहंगे के ऊपर से ही सुगना की जांघों को सूंघते हुए बोला

“दीदी ये वही खुशबू ह जब तू रतन जीजा के साथ पूजा करे के समय लगवले रहलू “

“तब से बहुत बदमाश बाड़े ओ समय भी तू यही सूंघत रहले”

सोनू शर्मा गया। …पर अब सुगना और सोनू के बीच शर्म की दीवार हट रही थी।

“तू पहले भी अप्सरा जैसन रहलू मन तो बहुत करत रहे पर डर लागत रहे”

“का मन करत रहे?” सुगना ने मुस्कुराते हुए सोनू को छेड़ा.

सोनू अचानक उठ खड़ा हुआ और सुगना को अपनी बाहों में भरते हुए उसके होठों को चूम लिया और अपने बदन से सटाए हुए सुगना को सोनू पूरी तरह आलिंगन में भर चुका था उसकी हथेलियां सुगना की पीठ से होते हुए नितंबों की तरफ बढ़ रही थी।

सुगना खिले हुए फूलों की तरह दमक रही थी परंतु सोनू शायद उतना फ्रेश महसूस नहीं कर रहा था अचानक उसने कहा…

“दीदी 1 मिनट रुक तनी हम भी नहा ली”

सुगना ने उसे नहीं रोका उसने तुरंत ही सरयू सिंह की एक धोती लाकर सोनू को दी और कुछ ही पलों में सोनू वह धोती पहनकर आंगन में लगे हैंड पंप पर आ गया।

सोनू का गठीला बदन हल्की धूप में चमक रहा था। धोती को अपनी जांघों पर लपेटे सोनू हैंड पंप चलाकर बाल्टी में पानी भर रहा था।

सुगना अपने कमरे से सोनू को देख रही थी जो अब एक पूर्ण मर्द बन चुका था। सोनू की मजबूत भुजाएं चौड़ा सीना और गठीली कमर किसी भी स्त्री को अपने मोहपाश में बांधने में सक्षम थी।

अचानक सोनू ने सुगना के कमरे की तरफ देखा खिड़की से ललचायी आंखों से ताकती सुगना की निगाहें सोनू से मिल गई। आंखों ने आंखों की भाषा पढ़ ली सुगना सोनू में जो देख रही थी उसका असर उसकी जांघों के बीच महसूस हो रहा था। सुगना की बुर पानिया गई थी।

नजरे मिलते ही सुगाना ने अपनी आंखें झुका ली। पर लंड और तन गया…

शेष अगले भाग में…
बहुत ही कामुक गरमागरम और उत्तेजना से भरपूर अपडेट है सुगना और सोनू सलेमपुर आ गए हैं और दोनों मिलन के लिए बैचेन हो रहे हैं आज सुगना ने सोनू को खुश करने का प्लान बना लिया है आज सुगना ने वह जोड़ा पहना है जिस को पहन कर उसने सुहागरात मनाई थी आज फिर से सुहागरात मनाने की तैयारी कर रही है सोनू को खुश करने के लिए इत्र भी लगाया है जो उसने रतन के साथ पूजा में लगाया था
 

Sanju@

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भाग 144


अब तक अपने पढ़ा…

सुगना अपने कमरे से सोनू को देख रही थी जो अब एक पूर्ण मर्द बन चुका था। सोनू की मजबूत भुजाएं चौड़ा सीना और गठीली कमर किसी भी स्त्री को अपने मोहपाश में बांधने में सक्षम थी।


अचानक सोनू ने सुगना के कमरे की तरफ देखा खिड़की से ललचायी आंखों से ताकती सुगना की निगाहें सोनू से मिल गई। आंखों ने आंखों की भाषा पढ़ ली सुगना सोनू में जो देख रही थी उसका असर उसकी जांघों के बीच महसूस हो रहा था। सुगना की बुर पानिया गई थी।

नजरे मिलते ही सुगाना ने अपनी आंखें झुका ली। पर लंड और तन गया

अब आगे…

सोनू वापस बाल्टी में पानी भरने लगा उसे वह दिन याद आने लगा जब बनारस में लगभग यही स्थिति उत्पन्न हो गई थी तब भी सुगना उसे इसी प्रकार रसोई से नहाते हुए देख रही थी।

सोनू जैसे-जैसे उसे दिन के बारे में सोचता गया उसके मन में तरह-तरह की भावनाएं आने लगीं और मन शैतान होने लगा।

।।।।।।पुराने भाग 83 से उद्धृत।।।।


उस दिन सुगना ने सोनू की तरफ मुखातिब होते हुए कहा

"जो सोनू नहा ले हम नाश्ता लगावत बानी…"

"हमार कपड़ा कहां बा? "

सुगना ने लाली से कहा

"ए लाली एकर कपरवा दे दे"

लाली और सोनू दोनों रसोई घर से बाहर निकल गए.. सोनू और लाली हॉल में आते ही एक दूसरे के आलिंगन में आ गए। सुगना ने यह मिलन महसूस किया और पीछे पलट कर देखा … सुगना मुस्कुरा रही थी.. वह वापस अपना ध्यान सब्जी बनाने पर लगाने लगी उसके लिए सोनू और लाली का मिलन आम हो गया था।

देर में कुछ ही देर में सोनू आंगन में नहाने चला गया । रसोई घर की एक खिड़की आंगन में भी खुलती थी सुगना ने सोनू को आंगन में हैंडपंप से बाल्टी भरते हुए देखा और पीछे खड़ी लाली से पूछा सोनू आंगन में काहे नहाता बाथरूम त खालीए रहल हा।

"अरे कहता धूप में नहाएब हम कहनी हा … जो नहो"

सुगना को यह थोड़ा अटपटा अवश्य लगा परंतु उसने कोई प्रतिक्रिया न थी । वह खाना बनाने में व्यस्त थी परंतु आंखें सोनू को देखने का लालच ना छोड़ पाईं। सोनू अपनी बनियान उतार चुका था और हैंडपंप से बाल्टी में पानी भर रहा था सोनू की मजबूत भुजाएं और मर्दाना शरीर सुगना की निगाहों के सामने था। सोनू रसोई घर की तरफ नहीं देख रहा था और इसका फायदा सुगना बखूबी उठा रही थी वह कतई नहीं चाहती थी कि उसकी नजरें सोनू से मिले।

बाल्टी भरने के पश्चात सोनू सुगना की तरफ पीठ कर पालथी मारकर बैठ गया। और लोटे से अपने सर पर पानी डालने लगा।


सोनू का सुडौल और मर्दाना शरीर धूप में चमक रहा था पीठ की मांसपेशियां अपना आकार दिखा रही थी और सुगना की निगाहें बार-बार सोनू पर चली जाती।

वह मजबूत भुजाएं वह कसी हुई कमर सोनू का शरीर सुगना को बेहद आकर्षक लग रहा था। उसके दिमाग में फिर सरयू सिंह घूमने लगे जैसे-जैसे सुगना सोनू को देखती गई वह मंत्र मुक्त होती गई सुगना के हाथ बेकाबू होने लगे। उसका मन अब सब्जी चलाने में ना लग रहा था वह बार-बार आंगन की तरफ देख रही थी।

सोनू अपनी पीठ पर साबुन लगाने का प्रयास कर रहा था परंतु पीठ के कुछ हिस्सों पर अब भी साबुन लगा पाने में नाकामयाब था। इस प्रक्रिया में उसकी भुजाएं और भी खुलकर अपना शारीरिक सौष्ठव दिखा रही थी सुगना सोनू के शरीर पर मंत्रमुग्ध हुई जा रही थी।

सुगना के मन ने दिमाग के दिशा निर्देशों का एक बार और उल्लंघन किया और सुगना का शरीर उत्तेजना से भरता गया सूचियां एक बार फिर तन गई ..


लाली सुगना को आंगन की तरफ बार-बार ताकते हुए देख रही थी.. और मन ही मन मुस्कुरा रही थी.

सोनू के मजबूत और मर्दाना शरीर का आकर्षण स्वाभाविक था…

"कहां ध्यान बा तोर देख सब्जी जलता.."

सुगना की चोरी पकड़ी गई उसने अपनी वासना पर काबू पाया और लाली की तरफ मुस्कुराते हुए देखा और बोला


"सांच में बड़ भईला पर बच्चा कितना बदल जाला, पहले सोनू छोटा बच्चा रहे तो केतना बार हम ओकरा के नहलावले बानी" सुगना यह बात बोल कर अपने बड़े होने और इस तरह देखने को न्यायोचित ठहरा रही थी लाली मजाक करने के लहजे में बोली

"तो जो अभियो नहला दे .."

सुगना शर्म से पानी पानी हो गई उसने गरम छनौटे को लाली की तरह दिखाते हुए बोला दे

"आजकल ढेर बकबक करत बाड़े ले चलाओ सब्जी हम अब जा तानी सूरज के देखे.."

सुगना स्वयं को अब असहज महसूस कर रही थी उसने और बात करना उचित न समझा और लाली को छोड़ हाल में आ गई जहां सूरज मधु के साथ खेल रहा था..

आगन से आवाज आई…

" दीदी तनी पानी चला द खत्म हो गइल बा".

सोनू की आवाज सुगना ने भी सुनी और लाली ने भी लाली चुपचाप रसोई घर में सब्जी बनाती रही और सुगना चुप ही रही।

और सोनू को एक बार फिर पुकारना पड़ा


"दीदी पानी चला द"

सुगना से रहा न गया वह रसोई में गई उसने लाली से कहा

"जो पानी चला दे, हम सब्जी बना दे तानी,"

लाली मुस्कुरा उठी उसने अपनी हंसी पर काबू करते हुए कहा..

"सब्जी बस बने वाला बा…जो तेहि पानी चला दे… "

सुगना को अनमने ढंग से वही खड़े देखकर लाली ने फिर कहा

"काहे अपन भाई से लाज लगता का?

सुनना के पास अब कोई चारा न था। वह बढ़ी हुई धड़कनों के साथ आंगन में जाने लगी..

सुगना ने आंगन में पैर रखा सोनू की मर्दाना छाती उसके सामने हो गई। पूरे शरीर पर साबुन लगा हुआ था और सोनू को आंखे बंद थीं..

सोनू का भरा भरा सीना पतली कसी हुई कमर और मांसल जांघें सब कुछ सांचे में ढला हुआ सुगना हैंडपंप पर आकर पानी भरने लगी।

हैंडपंप का हत्था पकड़ते ही उसे सरयू सिंह के लंड की याद आ गई और सुगना का ध्यान उस जगह पर चला गया जो एक बहन के लिए निश्चित ही प्रतिबंधित था।


परंतु सुगना अपनी निगाहों को रोक न पाईं। सोनू की बड़ी सी लूंगी सिमटकर छोटी हो गई थी। और उस छोटी लूंगी को चीरकर सोनू का खड़ा खूटे जैसा लंड बाहर आ गया था जो साबुन के झाग से पूरी तरह डूबा हुआ था साबुन तो सोनू के सारे शरीर पर भी लगा था परंतु सोनू का वह खूबसूरत और तना हुआ लंड सुगना की आंखों को बरबस अपनी ओर खींचे हुए था सुगना कुछ देर यूं ही मंत्रमुग्ध होकर देखती रही और उसके हाथ हैंडपंप पर चलते रहे..

रसोई घर में खड़ी लाली सुगना को देख रही थी उसके लज्जा भरे चेहरे को देखकर मन ही मन मुस्कुरा रही थी। सोनू आंखे बंद किए साबुन लगा रहा था अचानक उसने कहा

" ए लाली दीदी तनी पीठ में साबुन लगा द"

सुगना कुछ ना बोली और हैंड पंप चलाती रही उसे समझ ही नहीं आ रहा था कि वह क्या करें? सोनू के मर्दाना शरीर पर अपने हाथ फिराने की कल्पना मात्र से उसके शरीर में एक करंट सी दौड़ गई।

सोनू यही न रूका.. उसने आंखें बंद किए परंतु मुस्कुराते हुए कहा

"अच्छा पीठ पर ना त ऐही पर लगा द" और सोनू ने उसने अपने खूटे जैसे खड़े लंड को मजबूत हथेलियों से पकड़ लिया…और अपनी हथेली से उस पर लगे साबुन के झाग को हटाकर उसे और भी नंगा कर दिया..

उसका खूबसूरत और तना हुआ लंड अपनी पूरी खूबसूरती में उसकी बड़ी बहन सुगना की आंखों के सामने था.

"दीदी आवा न,"

सोनू बेहद धीमी आवाज में बोल रहा था जो सुगना के कानों तक तो पहुंच रही थी परंतु लाली तक नहीं जो रसोई से दोनों भाई बहन को घूर रही थी..

सुगना का कलेजा धक धक करने लगा.. उसके हाथ कांप रहे थे बाल्टी भरने ही वाली थी। सोनू की आंखे बंद देखकर वह उस लंड को निहारने का लालच न रोक पाई।

मन के कोने में बैठी वासना अपना आकार बढ़ा रही थी। एक पल के लिए सुगना के मन में आया कि वह उस खूबसूरत और कापते हुए लंड को अपने हाथों में लेकर खूब सहलाए , प्यार करें वही उसका दिमाग उसकी नजरों को बंद करना चाह रहा था। जो आंखे देख रही थीं वह एक बड़ी बहन के लिए उचित न था.. पर बुर का क्या? उसका हमसफर सामने खड़ा उसमे समाहित होने को बेकरार था…

उधर लाली का उत्तर ना पाकर सोनू ने अपनी आंख थोड़ी सी खोली और सामने साड़ी पहने हुए सुगना के गोरे गोरे पैरों को देखकर सन्न रह गया। लंड में भरा हुआ लहू अचानक न जानें कहां गायब हो गया…

उसने अपनी आंखे जोर से बच्चे की भांति बंद कर ली और लंड को लुंगी में छुपाने की कोशिश करने लगा.

सुगना सोनू की मासूमियत देख मुस्कुरा उठी..आज अपनी आंखे मूंदे सोनू ने सुगना को उसका बचपन याद दिला दिया..बहन का प्यार हावी हुआ और सुगना ने कहा ..

"दे पीठ में साबुन लगा दीं.."

"ना दीदी अब हो गइल" और सोनू अपने शरीर पर लोटे से पानी डालने लगा..

"रुक रुक हमारा के जाए दे"

सुगना पानी की छीटों से बचने का प्रयास करते हुए दूर हटने लगी..

सुगना और सोनू कुछ पलों के लिए वासना विहीन हो गए थे। लंड सिकुड़ कर न जाने कब अपनी अकड़ खो चुका था..सुगना की लार टपकाती बुर ने भी अपने खुले हुए होंठ बंद कर लिए पर अब तक छलक आए प्रेमरस ने सुगना की जांघें गीली कर दीं थीं..

सुगना उल्टे कदमों से चलती हुई आपने कमरे में आ गई…सोनू का कसरती शरीर सुगना में दिलो दिमाग में बस गया था…


सुगना के जाने के बाद सोनू ने रसोई घर की खिड़की की तरफ देखा उसकी और लाली की नजरें मिल गई। सोनू ने चेहरे पर झूठा गुस्सा लाया पर लाली मुस्कुरा दी..लाली ने अपनी चाल चल दी थी…

लाली ने सुगना को भेजकर एक अनोखा कार्य कर दिया था। परंतु सामने खड़ी सुगना के सामने अपने खड़े लंड को खड़ा रख पाने की हिम्मत न सोनू जुटा पाया न उसका लंड……सुगना एक बड़ी बहन के रूप में अपना मर्यादित व्यक्तित्व लिए अब भी भारी थी।

।।।। उद्धरण समाप्त ।।।


ऐसा नहीं था कि उस दृश्य के बारे में सोनू अकेला सोच रहा था सुगना भी अपने दिमाग में उन्हीं दृश्यों को याद कर रही थी। कैसे सोनू हैंडपंप पर नहा रहा था और जब उसने उसे पानी चलाने के लिए हैंडपंप पर बुलाया उसका कलेजा धक-धक कर रहा था फिर भी उसने सोनू के लिए हैंड पंप चलाए और…. हे भगवान उस दिन उसने सोनू के लंड को साक्षात साबुन में लिपटे हुए देखा था।

तभी बाल्टी और लोटे की आवाज से सुगना की तंद्रा टूटी और उसकी आंखों के सामने ठीक वही दृश्य दिखाई पड़ने लगे सोनू सुगना की तरफ अपना चेहरा कर बाल्टी से अपने बदन पर पानी डालने लगा मजबूत सीने से उतरती पानी की बूंदे सोनू की कमर पर बंधी धोती से टकराती और धीरे-धीरे उसके अधोभाग को भिगोने लगी।


कुछ ही देर में पतली धोती सोनू के लंड को छुआ पाने में असमर्थ थी। भीगी हुई धोती के पीछे उसका लंड अब दिखाई पड़ने लगा था। ऐसा लग रहा था जैसे सपेरे ने काले नाग को सफेद कपड़े से ढक रखा हो। सुगना अब भी सोनू को एक टक देख रही थी पर निगाहें सोनू के चेहरे से हटकर उसकी जांघों के बीच तक जा पहुंची थी जिसे सोनू ने बखूबी महसूस कर लिया था अचानक सोनू में आवाज लगाई ..

दीदी तनी हैंड पंप चला दे पानी खत्म हो गईल बा..

सुगना का कलेजा एक बार फिर धक-धक करने लगा वह सोनू के आग्रह को टाल नहीं पाई और आंगन में आ गई।

क्या खूबसूरत नजारा था। सुहाग सेज पर बिछने को तैयार एक सजी-धजी अप्सरा हैंडपंप चला रही थी और उसके समक्ष एक गठीला नौजवान उसके सामने उसी पानी से नहा रहा था।

उस दिन बनारस में जो कुछ हुआ था आज वह पुनः घटित हो रहा था पर परिस्थितिया तब अलग थी आज अलग।

सोनू और सुगना दोनों उस दिन की यादों में खोए हुए थे तभी सोनू ने अपने बदन पर साबुन लगाना शुरू कर दिया। सुगना सोचने लगी…हे भगवान क्या सोनू भी वही सोच रहा है?

सुगना मन ही मन सोचने लगी हे भगवान क्या सोनू ने उस दिन जो किया था जानबूझकर किया था क्या सच में वह अपना लंड उसे दिखाना चाह रहा था। नहीं नहीं उस दिन तो वह लाली का इंतजार कर रहा था। अब तक सुगना यही समझ रही थी कि उस दिन उसने सोनू का लंड अकारण ही देख लिया था पर आज सुगना को यकीन नहीं हो रहा था। कुछ ही देर में सोनू के हाथ उसकी जांघों तक पहुंच गए और वही हुआ जिसका डर था। सोनू के हाथ में उसका तना और फूला हुआ लंड आ चुका था। सोनू की हथेलियों ने उसके लंड पर साबुन मलना शुरू कर दिया। स्थित ठीक उसी दिन जैसी हो चुकी थी सुगना एक टक सोनू के लंड को देख रही थी तभी सोनू ने अपनी आंखें खोल दी और मुस्कुराते हुए बोला..

“का देखत बाड़े? पहले नईखे देखले का?

सुगना झेंप गई वह कुछ बोली नहीं अपितु उसने अपनी आंखें हटा ली।

“ले पानी भर गइल अब जल्दी नहा ले” सुगना ने बखूबी बात बदल दी”

“दीदी तनी पीठ पर साबुन लगा दे”

सुगना हिचकिचा रही थी तभी सोनू ने फिर कहा..

“आज का लाज लगता पहले भी तो लगावले बाड़ू”

सुगना क्या कहती वह धीरे-धीरे सोनू के पास पहुंच गई और उसकी मांसल पीठ पर साबुन लगाने लगी नजरे बरबस ही सोनू के लंड पर जा रही थी जो सोनू के मजबूत हाथों में आगे पीछे हो रहा था कभी उसका सुपड़ा उछल कर बाहर आता कभी सोनू अपनी हथेलियों से उसे ढक लेता ऐसा लग रहा था जैसे सोनू सुगना को दिखाकर उसे हिला रहा था।

अचानक सोनू ने अपना हाथ पीछे किया और सुगना की कलाई पकड़ ली और उसे अपनी तरफ खींच लिया।

सजी-धजी सुगना सोनू की गोद में आकर गिर गई। एक तरफ सुगना लहंगा चोली में पूरी तरह सजी-धजी थी दूसरी तरफ सोनू साबुन में लिपटा हुआ नंग धड़ंग..

नियति इस अनोखे जोड़े को देखकर मुस्कुरा रही थी।

“ई का कईले. तोहरे खातिर अतना सजनी धजनी सब बिगाड़ देले.” सुगना ने अपने चेहरे पर झूठी नाराजगी के भाव लाते हुए कहा परंतु सोनू की गोद में आकर आज उसे पहली बार महसूस हो रहा था कि जिस सोनू को उसने अब तक अपनी गोद में उठाया था वह सोनू आज स्वयं उसे गोद में लेने लायक हो गया था।

सोनू ने सुगना को चूमने की कोशिश की तभी सुगना ने कहा

“अरे हमार लहंगा भी खराब हो गईल देख साबुन लाग गइल”

सोनू ने सुगना के चेहरे को छोड़कर उसके लहंगे की तरफ देखा लहंगे के ठीक ऊपर सुगना की सुंदर नाभी दिखाई पड़ गई। गोरे सपाट पेट पर मणि जैसी चमकती नाभि को देखकर सोनू मदहोश होने लगा..

खूबसूरती अनुभव और संयम की चीज है इसका रसपान जितना धीरे हो उतना अच्छा।

सुगना ने सोनू की गोद से उठने की कोशिश की पर सोनू के मजबूत हाथों ने सुगना को यथा स्थिति में रहने के लिए विवश कर दिया यद्यपि यह जबरदस्ती नहीं थी परंतु एक मजबूत इशारा जरूर था।

सोनू के साबुन लगे हाथ सुगना की गोरे पेट पर थे.. सुगना सिहर उठी.. उसने आज के लिए न जाने क्या-क्या सोचा था और क्या हो रहा था.

अचानक सोनू ने सुगना के लहंगे की डोरी खींच दी कमर पर कसा लहंगा ढीला हो गया।

“ई का करत बाड़े “ सुगना ने शरमाते हुए सोनू का ध्यान अपनी तरफ खींचा..

एक बार फिर सोनू सुगना के चेहरे की तरफ देखने लगा पर उसके हाथ ना रुके सुगना का लहंगा नीचे सरकता जा रहा था.. यह सोनू की सम्मोहक आंखों का जादू था या सोनू और सुगना के बीच गहरे प्यार का नतीजा सुगना की कमर स्स्वतः ही उठती गई और लहंगा धीरे-धीरे उसकी जांघों से नीचे आ गया…

सुगना ने जैसे ही अपनी कमर नीचे की उसके गदराए नितंबों पर सोनू के तने हुए लंड का संपर्क हुआ..

सुगना सहम गई उसने स्वयं को सोनू की गोद में व्यवस्थित करने की कोशिश की और सोनू के लंड को अपनी जांघों के बीच से बाहर आ जाने दिया शायद यही उसके पास एक मात्र रास्ता था.

सुगना की यह हरकत सोनू बखूबी महसूस कर रहा था.. पर वह लगातार सुगना की आंखों में देखे जा रहा था जैसे उसके मनोभाव पढ़ने की कोशिश कर रहा हूं परंतु आज सुगना बीच-बीच में मारे शर्म के अपनी आंखें बंद कर ले रही थी सोनू का बर्ताव आज पूरी तरह मर्दाना था उसका छोटा सोनू अब मर्द बन चुका था..

तभी सुगना ने अपने लहंगे को अपने घुटनों पिंडलियों और फिर पैर से बाहर निकलते हुए महसूस किया। सुगना के पैरों की पायल की हुक ने लहंगे को फंसा कर रोकने की कोशिश की पर सोनू के हल्के तनाव से वह प्रतिरोध भी टूट गया और सुगना का लहंगा हैंडपंप के बगल में पड़ा अपनी मालकिन को नग्न देख रहा था वह उसकी आबरू बचाने में नाकाम और लाचार पड़ा अब अपनी नग्न मालकिन की खूबसूरती निहार रहा था।

लहंगे पर विजय प्राप्त करने के बाद सोनू के हाथ सुगना की चोली से खेलने लगे। अब जब भरतपुर लुट ही चुका था सुगना ने चोली के हक को भी खुल जाने दिया उसका ध्यान ब्रा पर केंद्रित था वह उसे किसी हाल में भिगोना नहीं चाहती थी यही एकमात्र ब्रा थी जिसे पहन कर उसे वापस जाना था।

चोली का हुक खुलने के बाद सुगना ने शरमाते हुए धीरे से बोला..

“ब्रा के मत भीगईहे ईहे पहन के जाए के बा” इतना कहकर सुगना ने स्वयं अपने हाथों से ब्रा के हुक को खोलने लगी। सुगना को अंदेशा था की सोनू पहले की भांति कभी भी ब्रा के हुक तोड़ सकता है वह पहले भी ऐसा कर चुका था। सुगना की चूचियों को देखने के लिए कोई भी अधीर हो जाता सोनू भी इससे अछूता नहीं था। पर आज सोनू ने सुगना की मदद की और ब्रा को सुरक्षित सुगना के शरीर से अलग कर दूर रख दिया…

हल्की धूप में चमकता सुगना का नग्न बदन देखकर सोनू की वासना भड़क उठी…

सुगना की आत्मा प्रफुल्लित थी उसे नग्न तो होना ही था बिस्तर पर ना सही घर के खुले आंगन में ही सही। वह पहले भी सरयू सिंह के साथ यह आनंद ले चुकी थी पर आज वह अपने सोनू की बाहों में थी।

सुगना के होठों पर लाली और चमकता चेहरा सोनू को अपनी और खींच रहा था सोनू ने अपना सर झुकाया और अपनी हथेली से सुगना के सर को हल्का ऊपर उठाया और अपने होंठ सुगना के होठों से सटा दिए…

सुगना और सोनू में एक दूसरे के भीतर समा जाने की होड़ लग गई। सुगना और सोनू की जीभ को एक दूसरे के मुख में प्रवेश कर उसकी गर्मी का आकलन करने लगी।

सोनू का दाहिना हाथ चूचियों को सहला रहा था जैसे वह उन्हें तसल्ली दे रहा हूं कि चुंबन का अवसर उन्हें भी अवश्य प्राप्त होगा और हुआ भी वही..

सुगना के अधरो का अमृत पान करने के पश्चात सोनू सुगना की चूचियों की तरफ आ गया…आज सोनू का दिया मंगलसूत्र ही चूचियों की रक्षा करने पर आमादा था जब-जब सोनू सुगना की चूचियों को मुंह में भरने की कोशिश करता वह मंगलसूत्र उसके आड़े आ जाता..

सोनू अधीर हो रहा था और सुगना मुस्कुरा रही थी.. इधर सोनू सुगना की चुचियों में खोया था उधर उसकी नासिका में इत्र की सुगंध आ रही थी…

उस मोहक और मादक सुगंध की तलाश में सोनू ने चुचियों का आकर्षण छोड़ दिया और अपना सर और नीचे करता गया…

पर सोनू अपनी गर्दन को और नहीं झुका पाया यह संभव भी नहीं था सुगना की नाभि तक आते-आते उसके गर्दन की लोच खत्म हो गई..

सुगना द्वारा अपनी जांघों पर लगाए गए इत्र की खुशबू सोनू की नथनो में भर रही थी…सुगना की जांघों के बीच से झांकता उसका लंड उसे दिखाई पड़ रहा था पर वह चाहकर भी इस अवस्था में सुगना के बुर को चूम पाने में असमर्थ था..

स्थिति को असहज होते देख सुगना ने कहा

“अब मन भर गइल न… तब चल नहा ले…”

“दीदी एक बात बताओ की ई विशेष इत्र काहे लगावल जाला?” सोनू ने सुगना की आंखों में आंखें डालते हुए पूछा..


इस दौरान वह सुगना की चूचियों को अपनी दाहिनी हथेली से सहलाते जा रहा था.. और बाएं हाथ से उसके गर्दन को सहारा दिए हुए थे सुगना सोनू की गोद में थी।

सुगना मन ही मन सोच रही थी कि वह कभी छोटे सोनू को इसी प्रकार अपनी गोद में लिया करती थी परंतु तब शायद वह दोनों वासना मुक्त थे। पर आज स्थिति उलट थी छोटा सोनू अब पूर्ण मर्द था और सुगना उम्र में बड़े होने के बावजूद अभी कमसिन कचनार थी..

“बता ना दीदी ..” सुगना मुस्कुराने लगी वह जानती थी कि सोनू उसे छेड़ रहा है लाली सोनू को उस पारंपरिक इत्र के प्रयोग और उसकी अहमियत पहले ही बता चुकी थी।

“तोरा मालूम नइखे का…”

“ना” सोनू भोली सूरत बनाते हुए बोला..

“लाली सुहागरात में ना लगवले रहे का..”

“ना “ सोनू सुगना के गाल से अपने गाल रगड़ते हुए बोला..हथेलियां चूचियों को अपने आगोश में भरने का अब भी प्रयास कर रहीं थी..

“अच्छा रुक बतावत बानी”

सुगना ने खुद को सोनू की गोद में व्यवस्थित किया पर गोद से उतरी नहीं..और अपनी कातिल मुस्कान लिए अपनी आंखों से अपनी पनियाई बुर की तरफ इशारा करते हुए अपनी जांघें खोल दी और बोला..

“एकर पुजाई खातिर लगावल जाला…”

सोनू की आंखों ने सुगना की निगाहों का पीछा किया और सुगना की रसभरी गुलाबी बुर उसे दिखाई पड़ गई…

सोनू की हथेली जब तक सुगना की चूची को छोड़कर उसकी बुर को अपने आगोश में ले पाती सुगना के कोमल हाथों ने सोनू की मजबूत कलाई थाम ली और उसे आगे बढ़ने से रोक लिया.. और अपनी बुर के कपाट अपनी जांघों से फिर बंद कर दिए. सोनू का लंड अब अभी जांघों के बीच था..

“अभी ना… पहिले नहा ले “ सुगना ने सोनू से कहा और उसे सांत्वना स्वरूप एक मीठा सा चुंबन दे दिया।

“ठीक बा ..पहले साबुन त लगा दे..”सोनू ने शरारती लहजे में कहा। सोनू के मन में कुछ और ही चल रहा था।

सोनू ने सुगना पर अपनी पकड़ ढीली की और सुगना सावधानी पूर्वक खड़ी हो गई. उसे अपनी नग्नता का एहसास तब हुआ जब सोनू ने अपना चेहरा उसकी जांघों के बीच सटा दिया.. और अपने नथुनों से सुगना के इत्र की खुशबू सूंघने लगा..

सुगना के काम रस की खुशबू और इत्र की खुशबू दोनों ने सोनू को कामान्ध कर दिया.. वह अधीर होकर सुगना की बुर को चूमने की कोशिश करने लगा..

सुगना खड़ी थी इस अवस्था में सोनू के होंठ बुर के होठों से मिल नहीं पा रहे थे। सोनू ने अपनी मजबूत हथेलियां से सुगना के कूल्हे पकड़े और उसे अपनी तरफ हल्के से खींचा। सुगना का बैलेंस बिगड़ा और उसने सोनू का सर थामकर खुद को गिरने से बचाया।

सोनू को ऐसा प्रतीत हुआ जैसे सुगना ने स्वेच्छा से उसके सर को अपनी बुर की तरफ धकेला है। सोनू और भी कामुक हो गया उसने अपनी लंबी जीभ निकाली और सुगना की जांघों के बीच गहराई तक उतार दी। सुगना की बुर की सुनहरी दरार से रस चुराते हुए सोनू की जीभ सुगना के भागनाशे से तक आ पहुंची…


सोनू की जिह्वा अपनी बहन के अमृत रस से शराबोर हो गई..

सोनू ने अपना सर अलग किया और सुगना की तरफ देखा उसकी जीभ और होंठो से सुगना की बुर की लार अब भी टपक रही थी..

“दीदी ठीक लागत बा नू..?”

सुगना मदहोश थी अपने छोटे भाई का यह प्रश्न इस अवस्था में बेमानी थी। बुर की लार सुगना की अवस्था चीख चीख कर बता रही थी..

सुगना मारे शर्म के पानी पानी थी उसने अपनी पलके बंद कर ली और एक बार फिर सोनू के सर को अपनी जांघों से सटा दिया..

सोनू एक बार फिर उसे अमृत कलश से अमृत चाटने की कोशिश करने लगा सुगना से और बर्दाश्त नहीं हुआ उसे लगा जैसे वह स्खलित हो जाएगी…सुगना को यह मंजूर नहीं था आज उसे जी भर कर काम सुख का आनंद लेना था उसने सोनू के सर को खुद से अलग करते हुए कहा

“तोरा शरीर का पूरा साबुन सूख गया है पहले नहा ले यह सब बाद में…”

सोनू ने सुगना का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया और उसके नितंबों पर से अपना हाथ हटा लिया…

और सुगना की तरफ देखते हुए बोला

“दीदी ठीक बा नहला द” सोनू ने जिस अंदाज में यह बात कही थी उसने सुगना को सोनू के बचपन की याद दिला दी। पर आज परिस्थितिया भिन्न थी ।

नंगी सुगना आगे झुकी बाल्टी में से लोटे में पानी निकला इस दौरान उसकी झूलती हुई चूचियां सोनू की आंखों के सामने थिरक रही थी। सोनू से बर्दाश्त ना हुआ उसने अपनी हथेलियों से सुगना की चूची पकड़ ली। सुगना को जैसे करंट सा लगा..

“ए सोनू बाबू अभी छोड़ दे हम गिर जाएब.. तंग मत कर”

नंगी सुगना क्या-क्या बचाती सब कुछ दिन की दूधिया रोशनी में सोनू की आंखों के सामने था। गोरी मांसल जांघों के बीच सुगना की बुर के फूले हुए होंठ और उसमें में से लटकती हुई काम रस की बूंद सोनू का ध्यान खींचे हुए थी..

सुगना ने लौटे का पानी सोनू के सर पर डाल दिया.. सोनू ने अपने हाथों से पानी को अपने सर और बदन पर फैलाया तब तक सुगना एक बार और लोटे से पानी उसके सर पर डाल चुकी थी।

सुगना साबुन उठाने के लिए सोनू के बगल में झुकी और सोनू की पीठ पर साबुन मलने लगी। जांघों में हो रही हलचल से बुर की फांके सोनू के आंखों के सामने बार-बार उस गुलाबी छेद को दिखा रही थी जो इस सृष्टि की रचयिता थी। सोनू से रहा न गया उसकी उंगलियों ने सुगना की बुर से लटकती हुई लार को छीनने की कोशिश की.. और उसने सुगना की संवेदनशील बुर पर अपनी उंगलियां फिरा दी। सुगना चिहुंक उठी और अपना संतुलन खो बैठी परंतु सोनू ने उसे संभाल लिया और वह सीधा सोनू की गोद में आ गिरी..

सुगना के दोनों पैर सोनू की कमर के दोनों तरफ थे। सोनू का लंड सुगना और उसके पेट के बीच फंस गया था। सोनू और सुगना का चेहरा एक दूसरे के सामने था…भरी भरी चूचियां सोनू के मजबूत सीने से सटकर सपाट हो रही थी पर निप्पलो का तनाव सोनू महसूस कर पा रहा था।

सोनू अपनी मजबूत बाहों से सुगना को अपनी तरफ खींचा हुआ था और अपनी मजबूत जांघों से सुगना के नितंबों को सहारा दिए हुए था।

सोनू सुगना की आंखों में देखते हुए बेहद का कामुक अंदाज में बोला..

“तू इतना सुंदर काहे बाड़ू “ सोनू सुगना की सपाट और चिकनी पीठ पर अपने हाथ फेरे जा रहा था।

इस बार सुगना ने प्रति उत्तर में सोनू के अधरों को चूम लिया और अपनी हथेलियां में पड़े साबुन को सोनू की पीठ पर मलने लगी..

सुगना जैसे-जैसे सोनू की पीठ पर साबुन लगाती गई उसकी चूचियां लगातार सोनू के सीने से रगड़ खाती रहीं और सोनू का लंड सुगना के पेट से रगड़ खाकर और तनता चला गया। लंड में हो रही संवेदना सोनू को बेहद पसंद आ रही थी ऐसा लग रहा था जैसे सोनू का लंड सुगना की नाभि से टकरा रहा था।

सुगना ने अपनी पहुंच बढ़ाने के लिए अपने पंजों पर जोर लगाया और अपने कूल्हे को थोड़ा ऊंचा किया ताकि वह सोनू की पीठ पर आसानी से पहुंच सके…

सुगना की बुर भी साथ-साथ उठ गई थी.. सोनू ने सुगना को अपने और समीप खींचा और सुगना की बुर के होठों पर सोनू के लंड ने दस्तक दे दी।

सुगना सोनू की पीठ पर साबुन लगाती रही और जाने अनजाने अपनी बुर को सोनू के लंड के सुपाड़े पर हल्के-हल्के रगड़ती रही यह संवेदना जितना सोनू को पसंद आ रही थी उतना ही सुगना को दोनों चुप थे पर आनंद में शराबोर थे। सुगना की चूचियां सोनू के चेहरे से सट रही थी वह उन्हें अपने होठों में भरने की कोशिश कर रहा था पर सफल नहीं हो पा रहा था।

सोनू की हथेलियां सुगना के नंगे नितंबों पर घूम रही थी धीरे-धीरे वह नितंबों के बीच की घाटी में उतरती गई और आखिरकार सोनू की भीगी उंगलियों ने सुगना की गुदांज गांड को छू लिया…

सुगना अपना संतुलन एक बार फिर खो बैठी पर इस बार उसे सोनू के मजबूत खूंटे का सहारा मिला सोनू का लंड जो अब तक सुगना की बुर को चूम रहा था अब उसकी गहराइयों में उतरता गया…

कई महीनो बाद आज सोनू का मजबूत लंड सुगना की बुर में प्रवेश कर रहा था.. सुगना की बुर अब अभी सोनू के लिए तंग ही थी। सुगना ने अपने अंदर एक भराव महसूस हुआ और जब तक सुगना संभल पाती सोनू के लंड ने उसके गर्भाशय को चूम लिया.. सुगना कराह उठी..

“आह सोनू बाबू तनी धीरे से….”

उसने अपने होठों को अपने दांतों से दबाया और खुद को व्यवस्थित करने लगी लंड अब भी सुगना के गर्भाशय पर दबाव बनाया हुआ था.. खुद को संतुलित करने के बाद

सुगना ने सोनू की तरफ घूरकर देखा जैसे उससे पूछ रही हो कि उसने उसकी गांड को क्यों छुआ?

सोनू को अपनी गलती पता थी उसने तुरंत अपनी उंगलियां सुगना की गांड से हटा ली और सुगना के होठों को अपने होठों के बीच भर लिया। उसने अपनी जांघों को थोड़ा ऊंचा कर उसने सुखना को ऊपर उठने में मदद की और फिर अपनी जांघें फैला दी सुगना एक बार फिर लंड पर पूरी तरह बैठ गई और सोनू के लंड ने सुगना के किले में अपनी जगह बना ली। सोनू ने अपनी जांघें ऊंची और नीची कर अपने लंड को सुखना की बुर में धीरे-धीरे हिलाना शुरू कर दिया सुगना आनंद में डूबने लगी। सोनू ने जो गलती सुगना की गांड को छू कर की थी शायद उसने उसका प्रायश्चित कर दिया था सुगना खुश थी और सोनू भी।

सोनू का लंड सुगना की बुर में जड़ तक धस चुका था.. सुगना सोनू की गर्दन को पकड़ कर अपना बैलेंस बनाए हुए थी। कुछ पलों के लिए गहरी शांति हो गई थी। पर सोनू का लंड अंदर थिरक रहा था…

सोनू और सुगना संभोग की मुद्रा में आ चुके थे। सुगना की पलकें बंद हो चुकी थी वह आनंद में डूबी थी..

क्या हुआ कैसे हुआ कहना कठिन था पर सुगना की कमर अब हिल रही थी सोनू का लंड उसकी दीदी सुगना की बुर से कुछ पलों के लिए बाहर आता और फिर सुगना की प्यासी बर उसे पूरी तरह लील देती…

सुगना की आंखें बंद थी और चेहरा आकाश की तरफ था.. अधर खुले थे सुगना गहरी सांस भर रही थी…भरी भरी चूचियां सोनू के सीने से रगड़ खा रही थी.. सोनू की हथेलियां सुगना के नितंबों को थामें उसे सहारा दे रही थी… सोनू अपने होठों से सुगना की चूचियों को पकड़ने की कोशिश करता परंतु सुगना के निप्पल उसकी पहुंच से बाहर थे…सोनू का दिल सुगना की गुदांज गांड को छूने के लिए बेताब था। पर सोनू ने सुगना का तारतम्य बिगाड़ने की कोशिश ना कि वह अपनी बहन को परमआनंद में डूबते उतराते देख रहा था…आज सोनू नटखट छोटे भाई की बजाए एक मर्द की तरह बर्ताव कर रहा था। सोनू का सुगना के प्रति प्यार अनोखा था वासना थी पर उसे सुगना की खुशी का एहसास भी था। सुगना मदहोश थी और यंत्रवत अपनी कमर हिलाये जा रही थी.. चेहरे पर तेज और तृप्ति के भाव स्पष्ट थे..
सोनू की वासना आज जागृत थी वह मन ही मन इस मिलन को यादगार बनाना चाह रहा था.. उसके नथुनों में सुगना के काम रास और उस इत्र की खुशबू अब भी आ रही थी ..
नियति ने रति क्रिया में पूरी तन्मयता से लिप्त सोनू और सुगना को कुछ पल के लिए उन्हीं के हाल में छोड़ दिया.. और सोनू केअंतरमन को पढ़ने का प्रयास करने लगी।



शेष अगले भाग में…
बहुत ही कामुक गरमागरम अपडेट है
सुगना और सोनू के मिलन का चित्रण बहुत ही शानदार और लाज़वाब तरीके से किया है
 

Sanju@

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भाग 145


आई अब आपको वापस साउथ अफ्रीका लिए चलते हैं जहां सोनी को पुरस्कार मिलने वाला था..

ऐसा अद्भुत दृश्य मैंने सिर्फ फिल्मों में ही देखा था और कल यह मेरी आंखों के सामने घटित होने वाला था। सोनीभी एक अद्भुत आनंद में डूबने वाली थी वह उसके लिए आनंद होता या कष्ट यह समय की बात थी। पर मेरी वहां उपस्थिति ही काफी थी मेरी सोनीको कोई कष्ट पहुंचाया यह असंभव था।


अब आगे..

(मैं सोनी)

मैं पूरी तरह थकी हुई थी। इस अद्भुत और उत्तेजक संभोग से मेरी थकान और भी ज्यादा हो गई. विकास ने मसाज के लिए जो बातें कही थी वह अविश्वसनीय थी पर उनकी कल्पनाएं एक अलग ही प्रकार की होती थी उत्तेजना से भरी हुई। मैंने अपनी रजामंदी दे दी। जब वह मेरे साथ थे मुझे अपनी चिंता नहीं थी वह मेरे सब कुछ थे। इस काया को इस रूप में पहुंचाने वाले और मुझ में उत्तेजना को जागृत करने वाले। वह सच में मेरे कामदेव थे और मैं उनकी रति। उनकी हथेलियां मेरी पीठ सहला रही थी लंड बुर के सानिध्य में सो रहा था मैं भी अपने स्तनों को उनके सीने से सटाए निद्रा देवी की आगोश में चली गई।

होटल के एक खूबसूरत कमरे में एक सुंदर सी लड़की चादर ओढ़ कर लेटी हुई थी उसके स्तनों का ऊपरी भाग दिखाई पड़ रहा था ऐसा लग रहा था जैसे वह पूरी तरह नग्न थी चादर उसने स्वयं की नग्नता छुपाने के लिए ओढ़ रखी थी। मैं उस युवती को पहचानती अवश्य थी पर उसका नाम मुझे याद नहीं आ रहा था। मैं परेशान हो रही थी।

तभी एक पुरुष बाथरूम से निकलकर बिस्तर पर जा रहा था उसकी कद काठी भी जानी पहचानी लग रही थी पर मैं चाह कर भी उन दोनों को पहचान नहीं पा रही थी मेरे मन में अजब सी कशिश थी मेरे लाख प्रयास करने के बावजूद मैं मैं उन्हें नहीं पहचान पा रही थी कुछ ही देर में वह दोनों एक दूसरे के आलिंगन में आ गए और संभोग सुख लेने लगे उस अद्भुत दृश्य से मैं स्वयं उत्तेजित हो रही थी परंतु उन्हें पहचानने के लिए बेचैन थी पुरुष का चेहरा मुझे दिखाई नहीं पड़ रहा था पर वो दोनों पूरी उत्तेजना के साथ संभोग कर रहे थे।


मेरी बेचैनी बढ़ती जा रही थी. पुरुष का वीर्य स्खलन प्रारंभ हो चुका था अपने वीर्य से उस स्त्री को भिगोते हुए वह बह मेरा नाम …..पुकार रहा था. तभी मुझे उसका चेहरा दिखाई दे गया मैं चीख पड़ी "सरयू चाचा"

" क्या हुआ सोनी?" विकास उठ चुके थे। मैं बिस्तर पर उठ कर बैठ चुकी थी मेरे नग्न स्तन चादर से बाहर आ चुके थे मैं हांफ रही थी.

"कुछ नहीं मैंने एक सपना देखा"

"मेरी प्यारी सोनी के सपने सपने नहीं सच होते हैं" वह मुझे आलिंगन में लेकर चुमने लगे हम दोनों बिस्तर पर फिर लेट चुके थे।

"पर तुमने कौन सा सपना देखा अल्बर्ट का" शायद विकास सरयू सिंह का नाम सुन नहीं पाया था। और अल्बर्ट ही उसके दिमाग में घूम रहा था।

मैं अपनी छोटी-छोटी मुठ्ठीयों से उनके सीने पर मारने लगी वह मुझे चिढ़ा रहे थे. मैं अल्बर्ट के नाम से सिहर गयी थी.


हम दोनों एक बार फिर सोने की कोशिश करने लगे । मेरे दिमाग में अभी भी स्वप्न की बातें चल रही थी सरयू चाचा किसके साथ संभोग कर रहे थे मैं यह लाख जतन करने के बाद भी नहीं जान पाई… पर उन्होंने मेरा नाम क्यों लिया? सपनों की एक अलग विडंबना है आप चाह कर भी वह दृश्य दोबारा नहीं देख सकते।

सुबह में देर से उठी.. विकास जैसे मेरे उठने का है इंतजार कर रहे थे मुझे आलिंगन में लेते हुए उन्होंने मेरे माथे को चूम लिया और मुझे आज दिन भर की गतिविधियों के बारे में बताने लगे.. जैसे-जैसे वह अपनी प्लानिंग बताते गए मेरा दिल तेजी से धड़कने लगा और आखिर में मैंने यही कहा यदि आपकी यही इच्छा है तो यही सही..

"मैं विकास"


हमने आज के बॉडी मसाज लिए विशेष तैयारी की हुई थी। सोनी नहा कर अपने बिस्तर पर लेटी हुई थी उसने सुर्ख लाल रंग की ब्रा और पेंटी पहनी हुई थी. ये पैन्टी विशेष प्रकार की थी। इसके दोनो तरफ पतली रेशम की रस्सियां थी जिन्हें खींचने पर आसानी से दो अलग अलग भागों में हो जाती। इसे हटाने के लिए खींचकर बाहर निकालने की जरूरत नहीं थी। यही हाल ब्रा का था.

यह ब्रा और पेंटी मैंने कल ही विशेषकर इस अवसर के लिए खरीदी थी. सोनीने आज वही जालीदार टॉप पहनी हुई थी जिसे पहनकर कर उसने अल्बर्ट का वीर्य दोहन किया था.

हम दोनों ही हमारे नए मेहमान का इंतजार कर रहे थे जो सोनीकी और मेरी कल्पना को साकार करने वाला था. दरवाजे पर आहट हुई और मसाज करने वाला व्यक्ति अंदर आ गया।


वो अल्बर्ट था. सोनीऔर मैं आश्चर्यचकित थे. उसने एक सुंदर टी-शर्ट और जींस पहन रखी थी. मैने उसे ध्यान से देखा उसका चेहरा तो आकर्षक नहीं था परंतु शरीर काबिले तारीफ था. वह अंदर आया और मुझे अभिवादन किया.

मैंने उसे सोफे पर बैठने के लिए कहा। सोनीअभी भी बिस्तर पर तकिया लगा कर लेटी हुई थी. अल्बर्ट को देखने के पश्चात सोनीथोड़ी घबराई हुई लग रही थी. उसे सब कुछ एक सपने की भांति लग रहा था।


मैं आज पहली बार उसे एक बिल्कुल अपरिचित मर्द के हाथों सौंपने जा रहा था। हमारे लिए एक ही बात अच्छी हुई थी कि इस अद्भुत मसाज के लिए अल्बर्ट ही आया था जिसके साथ का आनंद सोनी कुछ हद तक कल ही उठा चुकी थी।

मेरे लिए भी उत्तेजना की घड़ी थी और उसके लिए भी. हालांकि इस मसाज में छुपी हुई कामुकता को किस हद तक ले जाना है यह सोनीको ही निर्धारित करना था.


पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार मैं कमरे से सटे दूसरे कमरे में आ गया और अल्बर्ट बाथरूम में नहाने चला गया. यह कमरा होटल का वी आई पी सूइट था जिसमें एक बेडरूम और उसके साथ लगा हुआ एक ड्राइंग रूम था. ड्राइंग रूम और बैडरूम आपस में कनेक्टेड थे. मैं ड्राइंग रूम में आकर बैठ गया मुझे वहां से बेडरूम के दृश्य दिखाई पड़ रहे थे.

कुछ ही देर में अल्बर्ट एक सफेद तौलिया लपेटे हुए कमरे में आ गया. सोनीउसे देखकर सिहर उठी. अल्बर्ट ने अपना शरीर इस कदर सुंदर और आकर्षक बनाया था जिसे देखकर मुझे जलन हो रही थी. इतना सुंदर और बलिष्ठ शरीर सच में हर मर्द की चाहत होती है पर एक ही बात की कमी थी वह उसके चेहरे की खूबसूरती और रंग. मैं इस मामले में उससे कोसों आगे था.

धीरे-धीरे वो सोनीके पास आ गया सोनीने अपनी आंखें बंद कर ली और वह पेट के बल लेट गयी. होटल में मसाज के लिए पहले से ही एक सुगंधित तेल का सुंदर जार रखा हुआ था. अल्बर्ट ने वह जार उठाया और सोनीके बिस्तर पर आ गया. सोनीकी जालीदार टॉप को उसने अपने हाथों से खींचा जो आसानी से बाहर आ गया. मेरी प्यारी सोनीअब सिर्फ लाल ब्रा और पेंटी में पेट के बल बिस्तर पर लेटी हुई थी. उसके बाल लाल रंग के सुंदर तकिए पर फैले हुए थे. और उसका चेहरा मेरी तरफ था परंतु उसकी आंखें बंद थीं. इतना मोहक दृश्य मैं कई दिनों बाद में देख रहा था.

अल्बर्ट ने जार से मसाज आयल निकाला और सोनीकी पीठ पर गिराने लगा कुछ ही देर में उसके हाथ सोनीकी नग्न पीठ पर घूम रहे थे. ऐसा लग रहा था जैसे सोनी के गोरे पीठ पर कोई बड़ा काला साया घूम रहा हो. धीरे-धीरे उसके हाथ सोनीकी कमर से पीठ तक तक मसाज कर रहे थे. ऊपर जाते समय उसकी उंगलियां ब्रा से टकराती. उसने अभी तक ब्रा नहीं खोली थी.

वह अपने हाथों को उठाता और सोनीके कंधों की मालिश करता. ऊपर से नीचे आने के क्रम में ब्रा बार-बार अवरोध उत्पन्न कर रही थी. पर अल्बर्ट ने कोई जल्दबाजी नहीं दिखाई. वह सोनीकी गर्दन पर भी मसाज करने लगा. मसाज का आनंद स्त्री या पुरुष दोनों को ही आनंद देता है खासकर तब जब मसाज करने वाला विपरीत लिंगी हो.

सोनी भी अल्बर्ट के कठोर हाथों से मसाज पाकर आनंदित थी. मैं उसके चेहरे पर तनाव मुक्त खुशी देख रहा था. अल्बर्ट उसकी कमर से लेकर गर्दन तक मालिश कर रहा था. अचानक अल्बर्ट में सोनीके ब्रा की डोरियां खोल दी. ब्रा का ऊपरी भाग अब अलग हो गया था. जैसे ही अल्बर्ट अपने हाथ कमर से कंधों की तरफ ले गया ब्रा का ऊपरी भाग भी कंधों पर आ गया. अब सोनीकी पूरी पीठ नंगी थी. अल्बर्ट की हथेलियाँ अब आसानी से सोनीकी नंगी पीठ पर फिसल रहीं थी. वह अपने दोनों अंगूठे रीड की हड्डी के ऊपर रखकर नीचे से ऊपर ले जाता उसकी बड़ी-बड़ी हथेलियां सोनीके पेट को सहलाते हुए जब सीने पर पहुंचती तो सोनीके उभारों से टकरातीं।

पेट के बल लेट होने की वजह से उसके उभार सीने के दोनों तरफ आ गए थे. वैसे भी पिछले कुछ महीनों में सोनीके स्तनों में आशातीत वृद्धि हुई थी. अल्बर्ट ने अपने हाथों के कमाल से सोनीको खुश कर दिया था. मुझ में तो अब उत्तेजना भी आ चुकी थी.

कुछ देर यूं ही मसाज करने के बाद अब सोनीके कोमल जांघों की बारी थी। अल्बर्ट ने पैर की उंगलियों से लेकर उसकी जांघों को तेल से भिगो दिया। वह सोनीके पैरों के पास बैठ गया था तथा अपने कठोर और बड़ी-बड़ी हथेलियों से सोनीके पैरों और जांघों की मालिश कर रहा था। वह अपने हाथ सोनीके नितंबों तक ले जाता और वही से वापस नीचे की तरफ आ जाता। कुछ ही देर में उसने सोनी की पेंटी के नीचे से नितंबों को छूना शुरु कर दिया। उसके दोनों अंगूठे नितंबों के बीच की गहराई में रहते और हथेलियां नितंबों पर रहती उसकी उंगलियां पैन्टी से बाहर आकर कमर को छूतीं और वहीं से वापस लौट जातीं। नितंबों को छूते समय अल्बर्ट के चेहरे पर चमक आ जाती।

सोनीके चेहरे पर अब कुछ उत्तेजना भी दिखाई पड़ रही थी। उसका तनावमुक्त चेहरा अब उत्तेजना से भर रहा था। मुझे ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे कोई बहुत बड़ा आदमी किसी कोमल युवती की मालिश कर रहा हो। सोनीपूर्णतयः वयस्क और युवा थी पर अल्बर्ट निश्चय ही कद काठी में उससे काफी बड़ा था।


मेरी नजरें एक पल के लिए सोनीसे हटी मैंने अपने खड़े हो चुके लंड को बाहर निकाला और सोफे पर पड़े कुशन से उसे ढक लिया। दोबारा निगाह पड़ते ही मैंने देखा सोनी की पैन्टी का ऊपरी भाग बिस्तर पर आ गया था।

सोनी अब ऊपर से पूरी तरह नंगी हो चुकी थी. अल्बर्ट की बड़ी-बड़ी हथेलियां सोनीके पैरों से शुरू होती और सोनीकी पीठ तक एक ही झटके में आ जाती. वापस आते समय वह सोनीके दोनों नितंबों के बीच की गहराइयों को छूता हुआ पैरों के नीचे तक आ जाता. कभी-कभी सोनी चिहुंक जाती पर उसने कोई प्रतिरोध नहीं दिखाया। मुझे ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे दोनों नितंबों के बीच से गुजरते हुए वह सोनी की गांड को भी जरूर छू रहा होगा.

सोनी के चेहरे पर आश्चर्यजनक भाव आ रहे थे मिलन की घड़ी धीरे-धीरे करीब आ रही थी. कुछ ही देर में उसने सोनी को सीधा होने का इशारा किया सोनीके सीधे होते ही सोनी ने अपनी ब्रा से अपने स्तनों को ढकने की कोशिश की पर इस हड़बड़ी में वह अपनी बुर को ढकना भूल गई.


अल्बर्ट के सामने सोनी की नग्न बुरअपने होठों पर मुस्कान लिए खड़ी थी. बुर के होठों पर लार की बूंदे दिखाई पड़ने लगी. इससे उसकी चमक और भी बढ़ गई थी. मैंने अल्बर्ट की आंखों में एक गजब का भाव देखा ऐसी उत्तेजना और हवस मैंने आज तक नहीं देखी थी.

उसने सोनी के पैरों की मालिश एक बार पुनः शुरू कर दी इस बार जब वह जांघों के जोड़ तक पहुंचा पर उसने सोनी की बुरको नहीं छुआ. उसने अपनी उंगलियों से सोनीके कमर को सह लाते हुए स्तनों के करीब पहुंच गया और वही से वापस हो गया. उसने यह प्रक्रिया कई बार जारी रखी. सोनी शायद इस बात का इंतजार कर रही थी कि वह उसके यौन अंगों को जरूर छुएगा पर वह संयमित तरीके से व्यवहार कर रहा था.

पर कुछ ही देर में वह सोनी के दोनों पैरों को आपस में सटाकर सोनी के घुटनों के ऊपर आ गया. वह अपना वजन अपने घुटनो पर रोके हुए था जो कि बिस्तर पर थे। उसने अपने नितंबों को भी ऊपर उठा कर रखा था. उसके नितंब सोनीके घुटनों से टकरा जरूर रहे थे परंतु उसका वजन सोनी पर नहीं था.

अब उसके हाथ सोनीकी जांघों से शुरू होकर ऊपर की तरफ जाते उसके कंधों की मालिश करते और हाथों को दबाते हुए वापस उंगलियों पर खत्म होते. कुछ देर यही प्रक्रिया करने के बाद अचानक उसने सोनी के दोनों स्तनों को छू लिया.


सोनीकी आंखें एक पल के लिए खुली अब वह हल्की डरी हुई महसूस हो रही थी. उसने सोनीके दोनों स्तनों को अपनी बड़ी-बड़ी हथेलियों में ले लिया और उन्हें सहलाने लगा. उसकी बड़ी-बड़ी हथेलियों में सोनी के बड़े स्तन भी छोटे लग रहे थे.

बीच-बीच में वह सोनीकी नाभि और उसके नीचे के भाग को सहलाता पर सोनीकी बुरको उसने अभी तक स्पर्श नहीं किया था.

सोनीकी बुरके दोनों होठों को छोड़कर उसने सोनीके पूरे शरीर को तेल से ढक दिया था. उसकी मसाज से सोनीके शरीर में एक अद्भुत निखार आ गया था. सिर्फ उसकी बुर अभी खुले होठों से लार टपकाते हुए अपनी बारी की प्रतीक्षा कर रही थी.


अंततः अल्बर्ट ने उसका इंतजार भी खत्म कर दिया. वह सोनी के पैरों से उठकर सोनीके सिर की तरफ आ गया वह सोनीके सिर के एक तरफ वज्रासन में बैठ गया.

सामने झुकते हुए वह सोनीकी बुर के ठीक समीप आ गया. जब तक सोनीकुछ समझ पाती उसकी उसकी बड़ी सी लाल जीभ सोनी की बुरके होठों को छू रही थी. मैं अल्बर्ट की इतनी बड़ी जीभ देखकर एक बार को डर गया. मुझे ऐसा महसूस हुआ जैसे कोई बहुत बड़ा सा डाबरमैन कुत्ता अपनी जीभ निकाला हुआ हो.

उसकी बड़ी सी जीभ सोनी की सुंदर बुर को पहले तो सिर्फ छू रही थी पर धीरे-धीरे उसने सोने की बुर को पूरा ढक लिया।

सोनीने अपने पैर पहले तो सिकोड़ लिए थे पर कुछ ही देर में उसकी जांघें फैल गईं। सोनीके चेहरे पर उत्तेजना साफ दिखाई पड़ रही थी पर उसने अपनी आंखें बंद कर रखी थी और चादर को अपनी मुट्ठियों से पकड़ने की कोशिश कर रही थी। अल्बर्ट की जीभ अब बुरके दोनों होठों को अलग कर उसके मुख में प्रविष्ट हो रही थी. मुझे ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे उसकी जीभ उसकी बुरके काफी अंदर तक जा रही थी.

(मैं सोनी)

अभी तक मैंने मसाज के दौरान अल्बर्ट को सिर्फ एक बार देखा था. उसकी कद काठी देखकर मैं निश्चित ही डर गई थी. आज उसकी कद काठी भयावह लग रही थी. विकास मेरे बगल के कमरे में थे मुझे डर तो था परंतु यह भी पता था कि सारी स्थिति हमारे ही नियंत्रण में थी. यदि मैं चाहती तो यह मसाज आगे बढ़ता नहीं तो वहीं पर रुक जाता. मुझे यहां के नियम पता चल गए थे.


विकास ने मुझे स्पष्ट रूप से बताया था कि जब तक आप मसाज करने वाले व्यक्ति का लिंग नहीं पकड़ेंगे वह आपसे संभोग नहीं करेगा। आप संभोग की इच्छा होने पर उसका लिंग पकड़ सकते हैं और सहला सकते हैं यही उस मसाज करने वाले के लिए आप की सहमति और इशारा होगा.

अल्बर्ट जिस प्रकार अपनी जीभ से मेरी योनि को उत्तेजित कर रहा था मैं इस आनंद को पहली बार अनुभव कर रही थी. एक नितांत अपरिचित और लगभग दैत्याकार पुरुष से संभोग की परिकल्पना मात्र से मैं डरी हुई भी थी और उत्तेजित भी. मेरी उत्तेजना अब उफान पर थी. मैंने अपनी आंखें खोली और अपने दाहिनी तरफ एक बड़े से काले लंड को देखकर मेरी सांसे तेजी से चलने लगी. मैं अब अपनी खुली आंखों से उस विशालकाय लंड को देख रही थी कल यह मेरे हांथो में था पर आज वह एकदम काला और चमकदार लग रहा था.

वह निश्चय ही मेरे कोहनी से लेकर कलाई जितना लंबा था. उसकी मोटाई भी लगभग मेरी कलाई जितनी रही होगी. लिंग का अगला भाग भाग कुछ लालिमा लिए हुए था. और आकार में भी थोड़ा बड़ा लग रहा था वह चमक रहा था.

मैंने अचानक विकास की तरफ देखा वह स्वयं इस अद्भुत लंड को देख रहे थे।

मैं उस अद्भुत लिंग को देखकर घबरायी जरूर थी. परंतु धीरे-धीरे मैं उसे देखकर सहज हो रही थी आखिर इसका वीर्यपात कल मैं अपने हांथों से कर चुकी थी. मुझे पता था उसके साथ संभोग करना निश्चय ही एक अलग अनुभव होगा जिसमें दर्द होने की पूरी संभावना थी पर आज विकास मेरे करीब थे मैं उनपर भगवान से ज्यादा विश्वास करती थी. आखिरकार मैंने अपना मन बना लिया...


अचानक अल्बर्ट ने मेरी दाहिनी हथेली को अपने हाथों में पकड़ कर अपने लंड के पास लाया और उसे अपने लंड पर रख दिया. एक बार मैं फिर से सिहर उठी. उसने अपनी हथेलियों से मेरी हथेलियों को अपने लंड पर आगे पीछे किया. मैंने भी उस दिव्य लंड को महसूस करने के लिए उसका साथ दिया. मेरे गोरे गोरे हाथों में वह कला लैंड बेहद खूबसूरत लग रहा था। एक दो बार ऐसा करने के पश्चात उसने अपना हाथ हटा लिया परंतु मैंने लिंग पर अपना हाथ आगे पीछे करना जारी रखा.

मुझे अद्भुत आनंद आ रहा था. जब मैं लिंग के सुपाडे को अपने हाथों से छूती तो मुझे ऐसा प्रतीत होता है जैसे मैंने एक बड़े से नींबू को अपनी हथेलियों में ले लिया हो. अपनी हथेलियों को पीछे करते समय मैं उसके अंडकोषों तक पहुंचती और फिर से एक बार अपनी हथेलियों को आगे की तरफ ले कर चली जाती. अल्बर्ट ने एक बार फिर मेरी बुरके होठों को अपनी जीभ से फैला रहा था. जैसे जैसे मैं उसके लिंग को सहलाती उसी रिदम में वह अपनी जीभ से मेरी बुरके होठों को सहलाता.

उसके लिंग का उछलना मैं महसूस कर रही थी. मेरा हाथ उस लंड की उछाल के साथ खेल रहा था. एक अजब सी ताकत थी स्टीफन के लंड में. कुछ देर यही क्रम जारी रहा. मेरी निगाहें विकास से टकराई वह यह दृश्य देखकर वो मुस्कुरा रहे थे. मैं उन्हें मुस्कुराते हुए देख शर्मा गई उन्होंने मुझे फ्लाइंग किस दिया जैसे वह मुझे आगे बढ़ने का इशारा कर रहे थे.

कुछ ही देर में अल्बर्ट ने मुझे अपनी गोद में उठा लिया और बिस्तर के नीचे आ गया. यह ठीक वही अवस्था थी जिसमें विकास मुझे हमेशा उठाया करते थे. वह मुझे अपनी गोद में लिए हुए विकास के पास आ गया. उसका लंड मेरे नितंबों पर गड़ रहा था। अल्बर्ट बेहद ताकतवर था ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे उसने बिना किसी प्रयास के ही मुझे आसानी से अपनी गोद में ले लिया था.

विकास के पास पहुंचने के बाद उसने कहा..

"शी इस रेडी" उसकी आवाज में एक अजब भारीपन था. अब विकास उसके साथ साथ खड़े हो गए और आगे बढ़कर मुझे चुम लिया और बोले

"सोनी बेस्ट ऑफ लक"

"आप भी आइए" मैंने अपने बचाव में आग्रह किया पर शायद मैं अपनी राजा मंडी दे दी थी


स्टीफन एक बार फिर मुझे लेकर बिस्तर की तरफ आ चुका था. उसने मुझे बिस्तर पर उसी प्रकार रख दिया. विकास भी तब तक नंगे होकर बिस्तर पर आ गये. उन्होंने मुझे चूमना शुरू कर दिया. वह चाहते थे कि मैं पूर्ण उत्तेजना में ही स्टीफन के लंड को अपनी बुरमें प्रवेश कराउ ताकि उत्तेजित अवस्था में यदि कुछ दर्द होता भी है तो मैं उसे आसानी से सहन कर सकूं.

विकास मुझे लगातार चूम रहे थे. कुछ देर चूमने के पश्चात विकास ने अपने लंड को अपनी प्यारी बुरके मुंह में प्रवेश करा दिया हम दोनों संभोग सुख का आनंद लेने लगे. मेरी बुरमें उत्तेजना महसूस करते ही विकास मुझसे अलग हो गए और एक बार फिर मेरे होठों को चूम लिया. अल्बर्ट यह सब देख रहा था वह मेरे पैरों को सहला रहा था. कुछ देर बाद विकास ने अल्बर्ट को इशारा किया वह अपने हाथों में अपना लंड लिए मेरे बिल्कुल समीप आ चुका था. जैसे ही उसने अपने लिंग का सुपाड़ा मेरी बुर पर रखा मेरी आंखें बड़ी हो गई उसके थोड़ा सा ही प्रवेश कराने पर मुझे हल्की पीड़ा का अनुभव हुआ मैं कराह उठी..

“थोड़ा धीरे से…….दुखाता..” विकास ने मेरा दर्द समझ लिया और मुझे चुमते हुए मेरी बुरके पास चले गए.

(मैं विकास)


सोनीका चिहुकना देख कर एक बार के लिए मुझे अपने निर्णय पर पछतावा हो रहा था कहीं ऐसा ना हो की अल्बर्ट के लंड से सोनी की बुर घायल हो जाए. पर उत्तेजना में हम दोनों ही थे. सोनी की बुर से मेरा लंड अभी संभोग कर निकला ही था. मैं अपने होठों से बुर को तसल्ली देना चाह रहा था ताकि सोनी की बुर का गीलापन और बढ़ा सकूं. मैं उसकी बुरको चूम ही रहा था कि तभी स्टीफन ने अपना लंड एक बार फिर बुर में प्रवेश कराने की कोशिश की वह शायद अब ज्यादा अधीर हो गया था।

मैं सोनीकी बुर को अपनी जीभ से सहलाए जा रहा था। अल्बर्ट आश्चर्य चकित था पर वह इसका आनंद ले रहा था। वह सोनी की जांघों को सहलाये जा रहा था। एक बार फिर अल्बर्ट का लंड सोनी की गुलाबी बुर के मुंह के अंदर था। मुझे ऐसा लग रहा था अब वह अंदर जाने वाला था। मैं एक बार फिर सोनी के होठों को चूमने लगा। अल्बर्ट ने मौके का फायदा उठाते हुए अपना लंड सोनीकी बुरके अंदर घुसेड़ दिया।


सोनी बहुत जोर से चीख उठी उसके होंठ मेरे होंठों के अंदर थे। इसलिए आवाज बाहर नहीं आ पाई पर सोनी की आंखें बाहर निकलने को हो गयी। मैं समझ रहा था कि सोनीको जरूर ही कष्ट की अनुभूति हुई थी। मैंने अल्बर्ट को इशारा किया उसने उसी अवस्था में अपने आप को रोक लिया उसका लंड लगभग 4 -5 इंच अंदर आ चुका था। और कम से कम उतना ही बाहर था। मुझे पता था सोनी उसे अपने अंदर पूरा नहीं ले पाएगी।

मैंने अल्बर्ट को पहले ही बता दिया था कि सोनीको कष्ट नहीं होना चाहिए। वह उसी अवस्था में रुका रहा सोनीकी आंखें सामान्य होने के पश्चात मैंने अपने होंठ हटाए और उसके स्तनों को सहलाने लगा सोनीने मुझे एक बार फिर कुछ बोलना चाहा। मैंने अल्बर्ट को इशारा किया पर उसने उसे उल्टा ही समझा उसने एक और जोर का झटका दिया। और उसके लिंग का सुपाड़ा सोनीके गर्भाशय से जा टकराया।

उई मां की आवाज से एक बार सोनी फिर चिहुँक उठी। सोनीने अपने होठ आने दांतों से दबा लिए थे। मैंने उसके होठों पर फिर से चुंबन लिया और "स्टॉप" कहकर अल्बर्ट को रुकने का इशारा किया। स्टीफन अपनी गलती समझ चुका था पर उसका लंड सोनी की बुर में गहराई तक उतर चुका था।

इसके आगे लंड का जा पाना नामुमकिन था। सोनी अपने अंदर एक अजब सा खिंचाव महसूस कर रही थी यह उसके चेहरे पर स्पष्ट था।


मैं उसे बेतहाशा चुम रहा था। कुछ ही देर में सोनीका दर्द कम हो गया मैं वापस आकर उसकी बुरको देखा ऐसा लग रहा था जैसे उसकी बुर के अंदर कोई मोटा सा मुसल डाल दिया गया हो। उसकी सुंदर और गोरी बुर में इतना काला लंड देखकर एक बार के लिए मुझे हंसी भी आ गई। एक अद्भुत दृश्य था जितनी सोनी की बुर सुंदर थी यह काला लंड उतना ही विपरीत था। पर लंड की चमक और आकार काबिले तारीफ था।

अल्बर्ट ने अपनी उत्तेजना कायम रखने के लिए सोनीके दोनों स्तनों को अपने हाथों में ले लिया और अपने लिंग को थोड़ा सा पीछे किया। जैसे ही लिंग बाहर आया सोनीके चेहरे पर मुस्कान आई पर स्टीफन में दोबारा अपना लंड अंदर कर सोनी की मुस्कान छीन ली। लंड के इस तरह आगे पीछे होने से उसकी दोस्ती बुर से हो चली थी।


सोनीअब इसका आनंद लेने लगी थी। मैं सोनीके आंखों में आये दर्द के आंशु में अब खुसी के आँसुओं में तब्दील होते देख रहा था। अल्बर्ट अब पूरी तन्मयता से सोनीको चोद रहा था। सोनी की जांघें भी अब ऊपर उठ गई थी और पैर हवा में थे।

सोनी की गोरी बुर के अंदर उसके काले लंड को आते जाते देखकर मैं भी उत्तेजित हो चला था। मैंने अल्बर्ट को हटने का इशारा किया और स्वयं सोनी की जांघों के बीच में आकर सोनी की बुर के अब तक के पसंदीदा लंड को उसकी आगोश में देने लगा पर आज सोनीकी बुर मदहोश थी। वह अपने पति के लंड को छोड़ उस काले और मजबूत लंड की प्रतीक्षा में थी।

मेरा लंड अंदर जाने के बाद उपेक्षित सा महसूस हो रहा था। बुर उसे अपने आगोश में लेते हुए भी वह उत्साह नहीं दिखा रही थी। उसकी आगोश में ढीलापन था। मैं सोनी को देख कर मुस्कुराया वह भी मुझे देख कर मुस्कुरायी। मैंने अपने लिंग को बाहर निकाला और वापस उसे चूमने लगा।


अल्बर्ट ने अब सोनी की कमर को उठाकर अपने ऊपर खींच लिया था वह मेरी प्यारी और खूबसूरत सोनीको अब जी भर कर चोद रहा था। सोनी की सांसे तेज हो गयी बदन तनाव में आ गया। वो स्खलित होने वाली थी। अल्बर्ट ने उसे स्खलित होता हुआ महसूस किया पर अल्बर्ट ने कोई मुरव्वत ना दिखाते हुए लगातार उसकी बुर को अपने लंड से चोदता रहा।

स्खलन पूरा हो जाने के पश्चात मैंने सोनीको उसके लंड से अलग कर दिया। स्खलित हो चुकी बुरसे संभोग करना मेरी आंखों को अच्छा नहीं लग रहा था। स्टीफन पूरी तरह उत्तेजित था उसका लंड अभी भी उछल रहा था।


वह सोनीको और चोदना चाहता था पर मैंने उसे इंतजार करने के लिए कहा। सोनीधीरे धीरे शांत हो रही थी। मैंने उसे अपनी आगोश में लिया हुआ था। उसने मुझे अपने आलिंगन में तेजी से पकड़ा हुआ था वह मुझे चूम रही थी। मैंने अपनी हथेलियों से उसके नितंबों को सहारा दिया हुआ था हम दोनों इसी अवस्था में थे। अलब अपना लंड अपने हाथों से हिला रहा था और दुबारा संभोग की प्रतीक्षा में था। कुछ ही देर में सोनी मेरे ऊपर मासूमियत से तरह लेटी हुई थी। वह अल्बर्ट की अद्भुत चुदाई से थकी हुई लग रही थी.

मसाज सेंटर के नियमानुसार अल्बर्ट को स्खलित किए बिना सोनी की छुट्टी नहीं होनी थी। सोनीको एक बार फिर संभोग के लिए प्रस्तुत होना था। वह इसके लिए बिल्कुल तैयार नहीं थी। वह सादगी से संभोग करने वाली मेरी प्रियतमा थी पर आज हम दोनों ही इस जाल में फस चुके थे। अल्बर्ट अपना लंड हाथ में लिए हुए हिला रहा था। वह सोनीको बहुत कामुक निगाहों से देख रहा था जैसे कोई शिकारी अपने शिकार को देखता है।

सोनी मेरे सीने में अपना मुंह छुपाए हुए थी जैसे मुझसे मदद की गुहार कर रही हो। उसकी दोनों जाँघे मेरे कमर के दोनों तरफ थी। निश्चत ही सोनीकी बुर अल्बर्ट को साफ-साफ दिखाई पड़ रही होगी। मेरा लंड हम दोनों के पेट के बीच में शांत पर उत्तेजित पड़ा हुआ था। सोनी आराम करना चाह रही थी पर अल्बर्ट बार-बार उसके नितंबों को छू रहा था सोनी मेरी तरफ कातर निगाहों से देखती मैं भी मजबूर था। सोनी को घी मसाज सेंटर के नियम बखूबी मालूम थे। देखते ही देखते अल्बर्ट में अपना लंड सोनी की बुर में एक बार फिर से प्रवेश करा दिया।

सोनी मेरे ऊपर थी मैं उसे अपने आगोश में लिए हुआ था ताकि उसे सहारा दे सकूं। इसी अवस्था में अल्बर्ट उसे चोदना शुरू कर चुका था. स्टीफन के मजबूत धक्कों से सोनीबार-बार आगे को आती और मेरे होठों से उसके होंठ टकरा जाते। जैसे ही अल्बर्ट अपना लंड बाहर निकलता सोनी उसके साथ साथ खींचती हुई पीछे की तरफ चली जाती।

अल्बर्ट लगातार उसे चोद रहा था। कुछ ही देर में मैंने सोनी को अलग कर दिया.

सोनी भी अब सामान्य हो रही थी और उत्तेजित भी। वह अब डॉगी स्टाइल में आ चुकी थी। अल्बर्ट को शायद यह स्टाइल ज्यादा ही पसंद थी। उसके चेहरे पर एक मुस्कान आ गई उसने सोनीको अपने दोनों हाथों से दबोच लिया। ठीक उसी प्रकार जैसे कोई बड़ा सा डाबरमैन एक छोटी और मासूम कुत्तिया को संभोग के लिए अपने आगोश में ले लेता है।


अल्बर्ट के दोनों हाथ सोनीके कमर से होते हुए आपस में मिल गए थे वह सोनीको अपनी तरफ खींच रहा था। जैसे-जैसे व उसे अपनी तरफ खींचता उसका लंड सोनी की बुर में धसता चला जा रहा था।

सोनीकी आंखें बाहर निकलने को हो रही थी। मैं यह दृश्य देखकर क्रोधित भी हो रहा था पर वह मेरे नियंत्रण से बाहर था। कुछ ही देर में उसकी रफ्तार बढ़ती गई सोनी हिम्मत करके अपने आप को रोके हुई थी। अल्बर्ट की काली और मोटी हथेलियां सोनीके बड़े स्तनों (जोकि अल्बर्ट के लिए बहुत ही छोटे थे) को मसल रहीं थीं । इस दोहरे प्रहार से सोनी एक बार फिर उत्तेजित हो चली थी सोनी की उत्तेजना में उसका दर्द गायब हो गया था। सोनीके चेहरे पर अब वासना की लालिमा थी। वह एक घायल शेरनी की भांति दिखाई पड़ रही थी। अल्बर्ट का लंड सोनीकी चूत के अंदरूनी भाग तक जाता और वापस आता। इस प्रकार सोनीकी चुदाई देखकर मैं खुद भी डरा हुआ था पर सोनीअब उसका आनंद ले रही थी। उसके चेहरे पर सिर्फ और सिर्फ वासना की भूख दिखाई दे रही थी। वह अपना दर्द भूल चुकी थी। कुछ ही देर में सोनी को मैंने कांपते हुए महसूस किया वह झड़ रही थी।

अल्बर्ट भी अपने लंड को अद्भुत गति से हिलाने लगा और कुछ ही देर में उसने एक जोर का धक्का दियाऔर अपने मजबूत हाथों से सोनी को पलट दिया.. सोनी ने तुरंत अपने आपको व्यवस्थित किया और पीठ के बल आ गयी। शायद वह अल्बर्ट को स्खलित होते हुए देखना चाहती थी। वह अभी अभी स्खलित हुई थी और अभी भी कांप रही थी। अल्बर्ट के वीर्य की धार फूट पड़ी थी।

वह सोनीको भीगो रहा था ऐसा महसूस हो रहा था जैसे 4-5 पुरुषों का वीर्य उसके अंडकोष में आ गया था। उसने सोनी को लगभग नहला दिया था। सोनी की जांघो चूचियों और चेहरे पर इतना वीर्य गिरा था जिसे देखकर मुझे विश्वास ही नहीं हो रहा था। अल्बर्ट ने अपनी काली और मोटी हथेलियों से एक बार फिर सोनीके स्तन सहलाये। अल्बर्ट का दूसरा हाथ उसके लंड को सोनी को बुर पर पटक रहा था सिर वीर्य की अंतिम बूंद को बाहर निकाल रहा था।

अल्बर्ट के चेहरे पर तृप्ति के भाव थे आज सोनी के साथ संभोग कर उसने जीवन का वह आनंद प्राप्त किया था जो इस व्यवसाय से जुड़ने के बाद उसे पहली बार मिला था। आज तक उसने जितनी भी युवतियों को संतुष्ट किया था वह अपने व्यवसाय की मजबूरी बस किया था पर आज जो उसे सोनीसे मिला था उसने उसके मन में भी सोनी के प्रति आदर और सम्मान ला दिया था।


स्खलन के पश्चात सोनी को सिर से पैर तक चूमने के बाद अल्बर्ट ने कहा..

" मैम यू आर मार्बलस यू आर मैग्नीफिसेंट. आई हैव नेवर इंजॉयड सेक्स विथ एनी लेडी लाइक यू. यू आर सो डेलिकेट एंड सेक्सी व्हेनेवर यू कम नेक्स्ट टाइम प्लीज कॉल मी आई विल बी हैप्पी टू सर्व यू विदाउट एनी चार्ज. रियली यू आर ग्रेट एंड ऑलवेज डिजायरेबल."

वह मेरी तरफ मुड़ा और बोला

"सर आई एम सॉरी फॉर द ट्रबल. यू बोथ आर मेड फॉर ईच अदर. आई हैव नेवर सीन सो केयरिंग हसबैंड लाइक यू. बट ट्रस्ट मी सी हैड इंजॉयड एंड इट विल क्रिएट ए लोंग लास्टिंग मेमोरी इन हर लाइफ. प्लीज टेक दिस क्रीम एंड आपलई आन वेजाइना शी विल भी नॉर्मल नेक्स्ट डे. "


जाते-जाते उसने एक बात और भी कहीं "आई हैव स्पेशली टोल्ड मसाज पार्लर इफ यू कम फॉर द मसाज प्लीज सेंड मी टू यू"

मुझे लगता है कल सोनीके साथ गुजारे वक्त ने उसे ऐसा करने पर मजबूर किया होगा उसे कहीं ना कहीं यह उम्मीद होगी कि शायद सोनी मसाज सेंटर की सर्विस लेगी यदि ऐसा होता तो वह सोनी के साथ संभोग कर अपनी दिली इच्छा पूरी कर लेता।

अल्बर्ट अब अपने कपड़े पहनने लगा कुछ ही देर में वह होटल के कमरे से बाहर चला गया मैंने सोनीकी तरफ देखा वह शांत भाव से पड़ी हुई थी मैंने उसे चूम लिया उसके चेहरे पर मुस्कुराहट आई.

मैं उसकी बुरको देख पाने की हिम्मत नहीं कर पाया उसका मुंह आश्चर्यजनक रूप से खुल गया था. मैंने सोनी की दोनों जाँघे आपस में सटा दी और पास पडी चादर को उसके शरीर पर डाल दिया। मैं सोनी को प्यार करता रहा वह इतनी थकी हुई थी कुछ ही देर में उसे नींद आ गई। मैं भी उसे अपने आगोश में ले कर सो गया। शाम को 7:00 बजे जब हम उठे तो सोनी बाथरूम जाने के लिए बिस्तर से खड़ी हुई। मुझे उसकी सुकुमारी प्यारी बुरके दर्शन हो गए वह मदहोशी में अपने दोनों होंठ फैलाए हुए मुंह बाए हुए थी।


एक पल के लिए मुझे लगा जैसे सोनीकी बुर अपने दांत उखड़वा कर आई हो। मुझे अपनी सोच पर हंसी आ गयी। सोनीकी चाल में एक लचक आ गई थी जिसका कारण मुझे और सोनी दोनों को स्पष्ट था.

शाम को सोनीको चलने में थोड़ा कष्ट हो रहा था पर् हम धीरे धीरे डायनिंग हॉल की तरफ बढ़ रहे थे। उसे यह खराब लग रहा था पर जैसे ही हम लॉबी में आए 2- 3 सुंदर महिलाएं इसी लचक के साथ डायनिंग हॉल की तरफ जाती हुई दिखाई दी. सोनीने कल शाम जो प्रश्न मुझसे किया था उसका स्पस्ट उत्तर उसे मिल चुका था। मैं और सोनीएक दूसरे को देख कर मुस्कुराने लगे. मसाज सेंटर का होटल से गहरा संबंध था। मेरे और सोनीके लिए यह एक यादगार अनुभव बन गया था।

अल्बर्ट द्वारा दी गई क्रीम से सोनीकी बुर रात भर में ही स्वस्थ हो गयी और मेरे लंड को उसी उत्साह और आवेश के साथ अपने भीतर पनाह देना शुरू कर दिया। कभी-कभी मुझे लगता जैसे सोनी को सच में जादुई शक्तियां प्राप्त थीं। लंड को उसकी बुरअपने पूर्व रूप में प्राप्त हो चुकी थी और सोनीके चेहरे पर खुशी पहले जैसी ही कायम थी। मैं उसे छेड़ता और वह शर्म से पानी पानी होकर मेरे आगोश में छुप जाती मेरी सोनीअद्भुत थी और उसे जीवन का यह अद्भुत आनंद भी प्राप्त हो चुका था।
बहुत ही कामुक गरमागरम अपडेट है सोनी अल्बर्ट के मोटे लन्ड से चूद ही गई विकाश ने सोनी को नीग्रो से चूदवा दिया सोनी मोटे लन्ड से चूदकर तृप्त हो गई
 

Sanju@

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भाग 146

(प्रिय पाठको,


सलेमपुर में सुगना और सोनू के मिलन की विस्तृत दास्तान जो की एक स्पेशल एपिसोड है तैयार हो रहा है उसे पहले की ही भांति उन्हीं पाठकों को भेजा जाएगा जो कहानी से अपना लगातार जुड़ाव दिखाएं रखते हैं यद्यपि यह एपिसोड सिर्फ और सिर्फ सोनू और सुगना के कामुक मिलन को इंगित करता है इसका कहानी को आगे बढ़ाने में कोई विशेष उपयोग नहीं है। )

सोनू और सुगना का यह मिलन उनके बीच की लगभग सभी दूरियां मिटा गया था वासना की आग में सोनू और सुगना के बीच मर्यादा की सारी लकीरें लांघ दी थी सुगना जिस गरिमा और मर्यादा के साथ अब तक सोनू के साथ बर्ताव करती आई थी उसमें परिवर्तन आ चुका था सोनू अब सुगना पर भारी पड़ रहा था।

अब बनारस आने की तैयारी हो रही थी।

सोनू अपने कपड़े पहन चुका था यद्यपि वह बेहद थका हुआ था परंतु फिर भी आज वह एक जिम्मेदार व्यक्ति की तरह व्यवहार कर रहा था सुगना अब भी अपने पलंग पर नंगी लेटी हुई थी चेहरे पर गहरी शांति और तृप्ति के भाव लिए अपनी बंद पलकों के साथ बेहद गहरी नींद में थी। सोनू उसे उठाना तो नहीं चाह रहा था परंतु बनारस पहुंचना जरूरी था ज्यादा देर होने पर इसका कारण बता पाना कठिन था। आखिरकार सोनू ने सुगना के माथे को चुनते हुए बोला

“दीदी उठ ना ता बहुत देर हो जाए लाली 10 सवाल करी”

सुगना के कानों तक पहुंचे शब्द उसके दिमाग तक पहुंचे या नहीं पर लाली शब्द ने उसके दिमाग को जागृत कर दिया। शायद सुगना को पता था की सोनू को अपनी जांघों के बीच खींचकर उसने जो किया था कहीं ना कहीं उसके मन में लाली के प्रति अपराध बोध आ रहा था।

सुगना ने अपनी आंखें खोल दी और सोनू की गर्दन में अपनी गोरी बाहें डालते हुए उसे अपनी और खींच लिया सोनू और सुगना के अधर एक दूसरे की मिठास महसूस करने लगे तभी सुगना ने कहा…

“लाली अब तोहरा से हमारा बारे में बात ना कर ले”

सोनू अभी सुगना की छेड़छाड़ में नहीं उलझना चाह रहा था वह समय की अहमियत समझ रहा था पर आज सुगना बिंदास थी।

“दीदी चल लेट हो जाए तो जवाब देती ना बनी”

आखिर सुगना खड़ी हुई उसे अपने नंगेपन का एहसास हुआ. उसने सोनू को पलटने का इशारा किया …

सोनू ने पलटते हुए कहा

“अब भी कुछ बाकी बा का….”

“जवन कुछ भइल ओकरा के भूल जो आज भी तेज छोट बाड़े छोट जैसन रहु”


आज से तुम जो कुछ हुआ उसे भूल जाओ तुम छोटे हो और छोटे जैसे ही रहो।

सुगना अपने कपड़े पहने लगी नियति को भी यह बात समझ नहीं आ रही थी कि अब सुगना के पास छुपाने को कुछ भी ना था फिर भी न जाने क्यों उसने सोनू को पलटने का निर्देश दिया था।

सुगना ने महसूस किया कि उसके बदन पर गिरा सोनू का वीर्य अब सूख चुका था और त्वचा में आ रहा खिंचाव इसका एहसास बखूबी दिला रहा था सुगना ने स्नान करने की सोची..

“अरे रुक पहले नहा ली देख ई का कर देले बाड़े..”

सोनू पलट गया उसकी निगाहों ने सुगना की तर्जनी को फॉलो किया और सुगना की भरी हुई चूंची पर पड़े वीर्य के सूखने से पड़े चक्कते को देखा और अपने हाथों से उसे हटाने की कोशिश की…

“दीदी इ त प्यार के निशानी हो कुछ देर रहे दे बनारस में जाकर धो लीहे।

सुगना ने सोनू के गाल पर हल्की सी चपत लगाई और “कहा ते बहुत बदमाश बाड़े..”

सुगना ने भी अपने कपड़े पहन लिए और उठ खड़ी हुई। उसने सोनू के साथ आज अपने कामुक मिलन के गवाह अपने गुलाबी रंग के लहंगा और चोली को वापस उस बक्से में रखा जिसमें उसने अपने पुराने दो लहंगे रखे थे। यह संदूक सुगना के कामुक मिलन की यादों को संजोए रखने में एक अहम भूमिका निभा रहा था। सुगना के यह तीनों मिलन अनोखे थे अनूठे थे पर यह विधि का विधान ही था की रतन से उसका मिलन अधूरा था।

अब कमरे से बाहर निकालने की बारी थी। आज जिस तरह सोनू ने उसे कस कर चोदा था इसका असर उसकी चाल पर भी दिखाई पड़ रहा था सुगना अपने कदम संभाल संभाल कर रख रही थी। सुगना आगे आगे सोनू पीछे पीछे.. सुगना की चाल सोनू की मर्दानगी की मिसाल पेश कर रही थी सोनू के चेहरे पर विजई मुस्कान थी। आज आखिरकार उसने सुगना को हरा दिया था।

सुगना और सोनू मुख्य द्वार की तरफ बढ़ रहे थे तभी सुगना ने कहा ..

“सोनू बाहर से तो ताला लगा होगा”

“नहीं दीदी मैंने खोल दिया था”

“पर कब ?”

“काम होने के बाद आप जब सो रही थीं”

सुगना समझ चुकी थी काम शब्द उन दोनों की काम क्रीड़ा की तरफ इंगित कर रहा था उसने अपनी गर्दन झुका ली घर से बाहर आते ही लाली के माता-पिता एक बार फिर दरवाजे पर उनका इंतजार कर रहे थे सुगन की चाल में आई लचक को लाली की मां ने ताड़ लिया और बोला..

“अरे सुगना का भइल एसे काहे चलत बा?”

सुगना सचेत हुई उसने यथासंभव अपनी चाल को नियंत्रित किया और मुस्कुराते हुए बोली..

बहुत दिन बाद घर आई रहनी हां तो अपन कमरा ठीक-ठाक करे लगनी हा…वो ही से से थोडा थकावट हो गइल बा।

लाली की मां परखी जरूर थी पर इतनी भी नहीं कि वह सोनू और सुगना के बीच बन चुके इस अनूठे संबंध के बारे में सोच भी पाती। सुगना का चरित्र सुगना को छोड़ बाकी सब की निगाहों में अब भी उतना ही प्रभावशाली था।

सुगना द्वारा लाई गई मिठाई उसे ही खिलाकर लाली के माता-पिता ने सोनू और सुगना को विदा किया और कुछ ही देर बाद गांव की तंग सड़कों से निकलकर सोनू की कर बाजार में आ गई इस बार मिठाई की दुकान पर सोनू और सुगना एक साथ उतरे सुगना ने तरह-तरह की मिठाइयां पैक करवाई और वापस बनारस की तरह निकल पड़े। कार बनारस की तरफ सरपट दौड़ने लगी सोनू और सुगना दोनों आज की कामुक यादों में खोए हुए थे। सुगना मन ही मन सोच रही थी आखिर क्या है उसके गुदाद्वार के छेद में जिसने सरयू सिंह के साथ-साथ अब सोनू को भी पागल कर दिया था।

इसका प्रयोग कामवासना के लिए? सुगना मर्दों की इस अनूठी इच्छा को अब भी समझ ना पा रही थी पर उसे इस बात का बखूबी अहसास था की चरम सुख के अंतिम पलों में उसने सुगना सोनू की उंगलियों के अनूठे स्पर्श का आनंद अवश्य लिया था।

दीदी अपन वादा याद बा नू…सोनू ने सुगना की तरफ देखते हुए बोला..

सुगना को अपना वादा बखूबी याद था परंतु सुगना चतुर थी..

उसने अपनी मादक आंखों से सोनू की तरफ देखा और आंखों आंखें डालते हुए बोला

“ हां याद बा लेकिन कब ई हम ही बताइब..ये जनम में की अगला जनम में” सुगना ने अपनी बात समाप्त करते-करते अपना चेहरा वापस सड़क की तरफ कर लिया था । उसने देखा कि सोनू की गाड़ी एक गाड़ी के बिल्कुल करीब आ रही थी वह जोर से चिल्लाई..

“ओ सामने देख गाड़ी…”


सोनू सचेत हुआ उसने तुरंत ही अपनी गाड़ी को दाहिनी तरफ मोडा और सामने वाली गाड़ी से टकराने से बच गया परंतु यह पूर्ण लापरवाही की श्रेणी में गिना जा सकता था। सुगना ने सोनू को हिदायत देते हुए कहा

“ गाड़ी चलाते समय यह सब बकबक मत किया कर जतना मिलल बा उतना में खुश रहल कर।”

“ठीक बा दीदी हमार सब खुशी तोहरे से बा तू जैसन चहबू ऊहे होई..”

अचानक सुगना को सोनू के दाग का ध्यान आया जो अब तक सोनू द्वारा गले में डाले गए गमछे की वजह से बचा हुआ था। सुगना ने अपने हाथ बढ़ाए और सोनू के गले से गमछा खींच लिया। जैसा की सुगना को अनुमान था

सोनू की गर्दन पर दाग आ चुका था और यह अब तक पहले की तुलना में कतई ज्यादा था…

“अरे तोर ई दाग तो अबकी बार बहुत ज्यादा बा..”

“छोड़ ना दीदी ठीक हो जाई”

“ना सोनू, कुछ बात जरूर बा आज तोरा का हो गइल रहे..? अतना टाइम कभी ना लगता रहे ..

“काहे में..” सोनू भली-भांति जानता था कि सुगना उसके स्खलन के बारे में बात कर रही है परंतु फिर भी उसने उसे छेड़ने और उसका ध्यान दाग से भटकने की कोशिश की।

परंतु सोनू को यह बात भली बात जानता था कि आज उसने सुगना पर जो विजय प्राप्त की थी वह उसकी मर्दानगी के साथ-साथ शिलाजीत का भी असर था सोनू ने अपनी बड़ी बहन की कामुकता पर विजय पाने के लिए शिलाजीत का सहारा लिया था और शायद यही वजह रही होगी जिससे विधाता ने उसके दाग को और भी उभार दिया था।

बाहर हाल जो होना था हो चुका था सोनू की गर्दन का दाग आज उफान पर था..

कुछ ही घंटों बाद सोनू और सुगना बनारस आ चुके थे सुगना गांव के बाजार से खरीदी गई मिठाइयां अपने और लाली के बच्चों में बांट रही थी हर दिल अजीज सुगना ने अपनी मां और कजरी दोनों की पसंद की मिठाई भी लाई और सरयू सिंह के लिए पसंदीदा मालपुआ भी।

सरयू सिंह का भाग्य अब बदल चुका था सुगना का मालपुआ उन्होंने स्वेच्छा से छोड़ दिया था और सुगना ने अब अपना मालपुआ सरयू सिंह की प्लेट से उठाकर हमेशा के लिए सोनू की प्लेट में डाल दिया था जिसे सोनू पूरे चाव से चूम चाट रहा था और उसका रस भी पी रहा था।

लाली के लिए सुगना ने उसकी मां द्वारा दिया गया पैकेट दे दिया…लाली भी खुश हो गई वैसे भी वह सोनू के आ जाने से खुश हो गई थी पर इन्हीं खुशियों के बीच देर होने का कारण तो पूछना ही था आखिरकार सरयू सिंह ने सोनू से पूछा

“इतना देर क्यों हो गया कोनो दिक्कत तो ना हुआ”

प्रश्न पूछा सोनू से गया था पर जवाब सुगना ने दिया एक बार जो झूठ सुगना ने लाली की मां से बोला था अब उसने अपने अपने गुमनाम पिता को चिपका दिया था।

नियत भी एक पुत्री को अपने पिता से अपने काम संबंधों को छुपाने के लिए झूठ बोलते देख रही थी।

सुगना की बात पर विश्वास न करना सरयू सिंह के लिए संभव न था कुछ ही देर में घर का माहौल सामान्य हो गया सुगना बेहद संभल संभल कर सबसे बात कर रही थी उसकी चाल में थकावट थी पर इस थकावट को उसने सफर के नाम डाल दिया था परंतु सब कुछ इतना आसान न था सोनू की गर्दन का दाग उसके किए गए अनाचार की गवाही दे रहा था आखिरकार लाली ने पूछ ही दिया

अरे यह गर्दन में दाग फिर उभर गया है ये क्या हो गया है ? डाक्टर से दिखा लो“


वह दाग बरबस ही सबका ध्यान खींच रहा था सोनू ने शायद इसका उत्तर पहले ही सोच रखा था

“अरे गांव में कुछ ना कुछ लागले रहेला मकड़ी छुआ गइल होई …अब शायद भूख लागल बा खाना बनल बाकी ना?”

घर का मुखिया सोनू भूखा हो तो किसी और बात पर चर्चा करना बेमानी था। लाली और सुगना झटपट रसोई में चली गई परंतु सुगना को पता था वह अभी रसोई में काम करने लायक न थी उसने लाली से कहा

“ सोनू के खाना खिला दे हम थोड़ा नहा लेते बानी “

लाली की नजरों में सुगना की इज्जत पहले की तुलना में काफी बढ़ गई थी दोनों सहेलियां अब नंद भाभी बन चुकी थी पर सुगना का कद और व्यक्तित्व लाली पर भारी था सोनू और लाली का विवाह कर कर उसने लाली की नजरों में और भी सम्मानित हो गई थी।

इससे पहले की सोनू के गर्दन पर और भी विचार विमर्श हो सोनू ने सोचा अपने दोस्तों से मिलने चले जाना ही उचित होगा।

पर इश्क और मुश्क छुपाए नहीं छुपाते सोनू का दाग आज चरम पर था। किसी प्रकार शाम बीत गई सोनू बचत बचाता आखिर में लाली के साथ बिस्तर पर था

सोनू लाली की तरफ पीट कर कर सोया हुआ था और आज सुगना के साथ बिताएं गए वक्त के बारे में सोच रहा था नतीजा स्पष्ट था उसका लंड पूरी तरह तन गया था वह लूंगी के नीचे से उसे बार-बार सहला रहा था तभी लाली ने अपने हाथ उसके लंड पर रख दिए।

अरे वह आज तो छोटे राजा पहले से ही तैयार बैठे हैं..

लाली आज मूड में थी…उसने देर न की और सोनू के लंड पर झुक गई । उसने लंड को बाहर निकाल लियाजै से ही उसने सोनू के लैंड को चूमने की कोशिश की इत्र की भीनी भीनी खुशबू उसके नथुनों में आने लगी जैसे-जैसे वह खुशबू सुनती गई उसके नथुनों में से हवा का प्रवाह और तेज होता गया। जैसे वह उस खुशबू को पहचानने की कोशिश कर रही हो अचानक उसने सोनू से पूछ लिया …अरे

“अरे यह इत्र तुमने क्यों लगाया है…”

सोनू की सिट्टी पिट्टी गुम हो गई उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था ।

लाली ने उसके लंड को पकड़ कर सोनू का ध्यान खींचा और

“बोला बताओ ना इत्र क्यों लगाया है? यह कहां मिला?

प्रश्न पर प्रश्न….. उत्तर देना कठिन था सोनू ने अपने मजबूत हाथों से लाली को अपनी तरफ खींचा और उसे चूमते हुए उसकी चूचियों से खेलने लगा पर लाली बार-बार अपने प्रश्न पर आ जाती।

लाली को बखूबी पता था कि इत्र सुगना के पास था जिसकी खुशबू अनूठी थी और इसका प्रयोग सुगना विशेष अवसर पर ही करती थी…

सोनू फंस चुका था लाली को संतुष्ट करना जरूरी था अन्यथा उन दोनों के बीच खटास आने की संभावना थी।

उसने कहा अरे यह इत्र दीदी के बक्से में था वह अपना बक्सा ठीक कर रही थी तभी यह दिखाई पड़ गया मैंने इसको देखने के लिए लिया यह मेरे हाथों में लग गया।

“अरे वाह इत्र हाथों में लगा और खुशबू नीचे से आ रही है?”

लाली ने सोनू के लंड को नीचे की तरफ खींचकर उसके सुपारे को उजागर कर दिया जो सुगना की याद में फुल कर कुप्पा हुआ चमक रहा था।

अब से कुछ घंटे पहले जो सुगना की मढ़मस्त बुर में हलचल मचाकर आया था अब लाली के होठों के स्पर्श को महसूस कर रहा था। तभी लाली ने सुपाड़े को अपने मुंह में भर लिया। कुछ पल चुभलाने के बाद और सोनू की तरफ देखती हुई बोली…

“सोनू ई खाली हमार ह नु एकर कोनो साझेदारी नईखे नू?”

लाली ने अपने मन में न जाने क्या-क्या सोचा यह तो वही जाने पर सोनू घबरा गया था वह अपने और सुगना के संबंधों को अब उजागर कर पाने की स्थिति में नहीं था.. उसने लाली को अपनी तरफ खींचा और उसकी साड़ी को जांघों से ऊपर करते हुए अपने तने हुए लंड को उसकी

चिर परिचित बुर के मुहाने पर रखकर लाली की आंखों में आंखें डालते हुए बोला

ई हमार पहलकी ह और आखरी भी यही रही “ सोनू ने जो कहा उसका अर्ध वही जाने पर लाली की पनियाई बुर ने उसके दिमाग को शांत कर दिया।धीरे-धीरे लंड लाली की बुर में उतरता गया और लाली के होंठ सोनू के होठों से मिलते चले गए।


सोनू के साथ संभोग के सुख ने लाली को कुछ पलों के लिए रोक लिया परंतु सुगना के इत्र की अनोखी खुशबू वह भी सोनू के लंड पर….इस अनोखे संयोग से लाली के मन में शक का कीड़ा अवश्य आ गया था।

उधर सोनी और विकास अपनी दक्षिण अफ्रीका यात्रा पूरी कर वापस अमेरिका की फ्लाइट में बैठ चुके थे। सोनी ने अल्बर्ट के साथ जो अनोखा संभोग किया था उसने उसके दिलों दिमाग में सेक्स की परिभाषा ही बदल दी थी। उसे मजबूत और तगड़े लंड की अहमियत शायद अब पता चली थी। वह बार-बार यही सोचती की क्या मैंने सही किया ? क्या यह उचित था ? पर जब-जब वह विकास की आतुरता को याद करती द उसे अपने निर्णय पर पछतावा कम होता आखिरकार इसमें विकास की पूर्ण और सक्रिय सहमति शामिल थी।

विकास तृप्त था वह सोनी के हाथों को अपने हाथों में लेकर सहला रहा था और उसकी तरफ बड़े प्यार से देख रहा था उसने कहा..

“यहां की बात यही भूल जाना उचित है यदि तुम कहोगी तो इस बारे में हम आगे कभी बात नहीं करेंगे”

सोनी ने मुस्कुरा कर जवाब दिया “जैसा आप चाहें”

कुछ ही दिनों में विकास और सोने के बीच सब कुछ पहले की भांति सामान्य हो गया.। अल्बर्ट को भूल पाना अब सोनी के लिए संभव न था और न हीं विकास के लिए बिस्तर पर दोनों एक दूसरे से उसके बारे में बात नहीं करते पर उनके अंतर्मन में कहीं न कहीं अल्बर्ट घूमता रहता।


वो कामुक दृश्य ….वह सोनी की गोरी बुर में उसे काले लंड का आना-जाना वह, सोनी का प्रेम भरे दर्द से आंखें बाहर निकलना…वो सोनी की कोमल गोरे हाथों में उस मजबूत लंड का फिसलना …एक एक दृश्य विकास और सोनी को रोमांचित कर जाते।

अल्बर्ट द्वारा दी गई क्रीम काम कर गई थी। सोनी की बुर भी अब विकास के लंड को आत्मीयता से पनाह दे रही थी और उसका कसाव विकास को इस स्खलित करने में कामयाब था ।

सोनी अब अब एक गदराई माल थी। पूर्णतया उन्नत यौवन के साथ भारी-भारी चूचियां गदराई जांघें भरे भरे नितम्ब और चमकती त्वचा …सोनी को देखकर ऐसा लगता था जैसे जिस पुरुष ने इस नवयौवना को नहीं भोगा उसका जीवन निश्चित ही अपूर्ण था।

सपने अवचेतन मन में चल रही भावनाओं की अभिव्यक्ति होते हैं। सोनी के सपने धीरे-धीरे भयावह हो चले थे…उसे सपने में कभी अल्बर्ट सा मोटा लंड दिखाई पड़ता तो कभी सरयू सिंह का मर्दाना शरीर…धोती कुर्ता पहने पुरुषार्थ से भरे सरयू सिंह को जब सोनी अपना लहंगा उठाते देखती …उसकी बुर पनिया जाती…जैसे ही सरयू सिंह उसकी जांघों को फैलाकर उसके गुलाबी छेद को अपनी आंखों से निहारते सोनी शर्म से पानी पानी हो जाती…इसके आगे जो होता वह सोने की नींद तोड़ने के लिए काफी होता और वह अचकचा कर उठ जाती..

अक्सर सपना टूटते समय उसके मुख पर सरयू चाचा का मान होता…विकास भी सोनी के सपने में सरयू चाचा के योगदान से अनजान था और यह बात बताने लायक भी कतई नहीं थी यह निश्चित ही सोनी की विकृत मानसिकता का प्रतीक होती।

विकास और सोनी की शादी को 1 वर्ष से अधिक बीत चुका था। यद्यपि विकास का परिवार आधुनिक विचारों का था परंतु उसकी मां अपने पोते के लिए बेचैन थी। सोनी ने 1 वर्ष का समय मांगा था और अब धीरे-धीरे विकास अपना वीर्य सोनी के गर्भ में डालकर उसे जीवंत करने की कोशिश में लगातार लगा हुआ था।

सुगना और सोनी अपनी अपनी जगह पर आनंद में थी और उनकी तीसरी बहन मोनी भी आश्रम के अनोखे कूपन में रतन से मुख मैथुन का आनंद ले रही थी परंतु जब कभी रतन अपने तने हुए लंड को उसकी जादूई बुर से छूवाता मनी कुए का लाल बटन दबा देता और रतन को बरबस अपनी कामुक गतिविधि रोकनी पड़ती। रतन मुनि को एक तरफा प्यार दे रहा था मुनि को तो शायद यह ज्ञात भी नहीं था कि उसे अनोखा मुखमैथुन देने वाला व्यक्ति उसका जीजा रतन था।

विद्यानंद का यह आश्रम तेजी से प्रगति कर रहा था और भीड़ लगातार बढ़ रही थी मोनी जैसी कई सारी कुंवारी लड़कियां इन कूपों में आती और किशोर और पुरुषों की वासना को कुछ हद तक शांत करने का प्रयास करतीं।

इसी दौरान कई सारी किशोरियों अपनी वासना पर काबू न रख पाती और कूपे में लड़कों द्वारा संभोग की पहल करने पर खुद को नहीं रोक पाती और अपना कोमार्य खो बैठती।

कौमार्य परीक्षण के दौरान ऐसी लड़कियों को इस अनूठे कृत्य से बाहर कर दिया जाता। निश्चित ही कुंवारी लड़कियों को मिल रहा है यह विशेष काम सुख अधूरा था पर आश्रम में उन्हें काफी इज्जत की निगाह से देखा जाता था और उनके रहन-सहन का विशेष ख्याल रखा जाता था। मोनी अब तक इस आश्रम में कुंवारी लड़कियों के बीचअपनी जगह बनाई हुई थी। ऐसी भरी और मदमस्त जवानी लिए अब तक कुंवारे रहना एक एक अनोखी बात थी। नियति उसके कौमार्य भंग के लिए व्यूह रचना में लगी हुई थी…

शेष अगले भाग में…
आज तो सोनू सुगना के इत्र के चक्कर में फंस जाता लेकिन बच गया सुगना की जगह कोई और होती तो लाली का शक करना पक्का था लेकिन लगता है लाली को शक है इसलिए ही उसने ये बोला कि इस पर उसका ही हक है
वहीं सोनी अल्बर्ट की चुदाई को नहीं भूल पा रही है लगता है जल्दी ही किसी और से भी चुदने वाली है
 
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भाग 147

(विशेष भाग)

भाग 145 में आपने पढ़ा..

सुगना की आंखें बंद थी और चेहरा आकाश की तरफ था.. अधर खुले थे सुगना गहरी सांस भर रही थी…भरी भरी चूचियां सोनू के सीने से रगड़ खा रही थी.. सोनू की हथेलियां सुगना के नितंबों को थामें उसे सहारा दे रही थी… सोनू अपने होठों से सुगना की चूचियों को पकड़ने की कोशिश करता परंतु सुगना के निप्पल उसकी पहुंच से बाहर थे…सोनू का दिल सुगना की गुदांज गांड को छूने के लिए बेताब था। पर सोनू ने सुगना का तारतम्य बिगाड़ने की कोशिश ना कि वह अपनी बहन को परमआनंद में डूबते उतराते देख रहा था…आज सोनू नटखट छोटे भाई की बजाए एक मर्द की तरह बर्ताव कर रहा था। सोनू का सुगना के प्रति प्यार अनोखा था वासना थी पर उसे सुगना की खुशी का एहसास भी था। सुगना मदहोश थी और यंत्रवत अपनी कमर हिलाये जा रही थी.. चेहरे पर तेज और तृप्ति के भाव स्पष्ट थे..


नियति ने रति क्रिया में पूरी तन्मयता से लिप्त सोनू और सुगना को कुछ पल के लिए उन्हीं के हाल में छोड़ दिया..

अब आगे…

जैसे-जैसे सुगना की उत्तेजना बढ़ती गई उसकी कमर रफ्तार पकड़ती गई । सोनू अपनी दोनों हथेलियां से उसके कमर को थामें हुआ था और उसकी कमर की गति को संतुलित किए हुए था। सुगना की उत्तेजना जब चरम पर पहुंच गई सोनू को इसका एहसास हो गया उसने अपने एक हाथ से सुगना को सहारा दिया और दूसरा हाथ सुगना सुगना के दाहिने नितंब को सहारा दे रहा था उंगलियां दरार में उस गुप्त द्वारा को खोज रही थी जो हर मर्द को पसंद होता है। आखिरकार सोनू ने सुगना की करिश्माई गांड को अपनी उंगलियों से छू लिया और धीरे-धीरे सहलाने लगा। गुलाब की कली जैसी सुगना की गांड को वह अपनी उंगलियों से धीरे-धीरे फैलाने की कोशिश करने लगा।

सुगना ने सोनू की उंगलियों का यह स्पर्श महसूस किया परंतु उत्तेजना के शिखर पर पहुंच चुकी सुगना अपनी काम यात्रा में किसी भी प्रकार की बाधा नहीं चाहती थी उसने कोई प्रतिक्रिया नहीं की पर स्वाभाविक रूप से अपनी गांड को सिकोड़ लिया। उसका ध्यान अब भी वही केंद्रित था कुछ ही देर में सोनू की उंगलियों ने उसकी गांड पर दबाव बनाना शुरू किया अब सुगना को यह स्पर्श मादक लगने लगा उसने अपने कमर की गति और बढ़ा दी और आखिरकार सुगना की बुर से रस फूट पड़ा।

सुगना की कमर अब धीरे-धीरे शांत पड़ रही थी। उसने निढाल होकर अपना सर सोनू के कंधे पर रखकर सोनू से एकाकार हो गयी । ऐसा लग रहा था जैसे सुगना एक बच्चे की भांति सोनू की गोद में थी और अपना सर उसके कंधे पर रखे हुए कुछ फलों के लिए आराम कर रही थी। सोनू ने अपनी उंगलियां उसकी गांड से हटा ली और सुगना को एक बच्चे की तरह गोद में रहने दिया वह उसकी पीठ सहलाता रहा।


कुछ पलों बाद सुगना को एहसास हुआ कि उसके इस अद्भुत स्खलन के बावजूद सोनू का लंड अब भी उसके बुर में खूंटे की तरह तना हुआ है। वह आश्चर्यचकित थी।


इतनी उत्तेजना में आज तक कोई बिना स्खलित हुए नहीं रह सकता था पर आज सोनू के लंड ने सुगना को चुनौती दे दी थी। सुगना ने बिना सोनू से नजरे मिलाए उसके कान में बोला..

“ए सोनू तोर पानी ना छूटल हा का”

सोनू के चेहरे पर विजेता की मुस्कान थी उसने सुगना के चेहरे को अपनी आंखों के ठीक सामने कर लिया और उसके होठों को चूमते हुए बोला

“आज त तू अपने में लागल रहलु हा हमार ध्यान कहां रहल हा”

बात सच थी सुगना आज सच में वासना में डूबी हुई थी उसने एक बार फिर अपनी कमर हिलानी चाही पर उसकी बुर संवेदनशील हो चुकी थी वह और संभोग कर पाने की स्थिति में नहीं थी। उसने अपनी कमर थोड़ा ऊपर उठाई सोनू उसका इशारा समझ गया उसने अपना लंड सुगना की झड़ी हुई बुर से बाहर निकाल लिया।

लंड पक्क ….की आवाज के साथ बाहर आ गया.। ऐसा लग रहा था जैसे किसी वैक्यूम पंप से उसके पिस्टन को खींच लिया गया हो।

सोनू का लंड सुगना के प्रेम रस से पूरी तरह नहाया हुआ था । ऐसा लग रहा था जैसे सोनू के लंड को किसी मक्खन की हांडी में डुबो दिया गया हो सुगना उस अद्भुत लंड को देख रही थी जो उसके ही काम रस में डूबा चमक रहा था। सोनू ने सुगना को अपनी बाईं जांघ पर बैठा लिया और अपनी हथेली से सुगना की बुर को थपथपाते हुए बोला..


“दीदी आज तो यह स्वार्थी हो गई सिर्फ अपना ध्यान रखा और अपने साथी को अकेला छोड़ दिया”

सुगना अपनी हार स्वीकार कर चुकी थी उसने अपने कोमल हाथों से सोनू के लंड को थाम लिया और होले होले उसे हिलने लगी।

सोनू अब भी सुगना की बुर को सहलाए जा रहा था उसने सुगना को छेड़ते हुए बोला…

“दीदी ठीक लागल ह नू…”

“हां सोनू सुगना ने सोनू के होठों को चूमते हुए बोला और इस बात की तस्दीक भी कर दी कि वह बेहद खुश थी।

“अब जल्दी से अपन भी कर ले “

“अब सब तहरे हाथ में बा..” सोनू ने प्रतिउत्तर में सुगना के होंठ चूमते हुए कहा।

बात सच थी सोनू का लंड सुगना के हाथ में था सुगना उसे पूरी तन्मयता से हिला रही थी वह कभी उसके सुपाड़े को बाहर करती कभी सुपाड़े के पीछे केंद्रित नसों को सहलाती कभी उसे अपनी मुट्ठी में लेकर मसल देती और कभी अपनी हथेलियों को नीचे लाकर सोनू के अंडकोसों को सहलाती। वह पूरी तन्मयता से सोनू को स्खलित करने में लगी हुई थी पर सोनू को न जाने आज कौन सी दिव्य शक्ति प्राप्त थी वह इस स्खलित होने को तैयार न था..

सुगना ने सोनू को उत्तेजित करने के लिए दूसरा रास्ता अख्तियार किया और बोला…

“अपन हाथ से का सहलावत बाड़े…” सोनू को सुगना से ऐसे प्रश्न की उम्मीद ना थी पर अब जब सुगना ने पूछ ही दिया था उसने अपनी नज़रें झुकाए हुए कहा

“अपन सुगना दीदी के…” सोनू के शब्द रुक गए अपने होठों से सुगना की बुर कहने की हिम्मत सोनू नहीं जुटा पाया पर सुगना ने आज कुछ और ही सोच रखा था..

साफ-साफ बोल


“अपना दीदी के का?

सोनू को जैसे करंट सा लगा उसके लंड में अचानक एक कंपन हुआ सुगना ने उसे महसूस भी किया सुगना मन ही मन मुस्कुरा रही थी उसका दांव कामयाब हो रहा था वह अपने भाई की इच्छा बखूबी जानती थी।

उधर सोनू सोच रहा था सुगना दीदी आज किस मूड में है.

“बोल ना अपन दीदी के का…?” सोनू जितना शर्मा रहा था सुगना अब उतना ही सोनू पर हावी हो रही थी। आखिरकार सोनू भी मैदान में आ गया और सुगना की बुर की फांकों को अपनी उंगलियों से फैलाते हुए बोला..

“बुर……” सोनू के यह शब्द बेहद उत्तेजक थे यह उत्तेजना जितना सुगना ने महसूस की सोनू ने उससे ज्यादा और उसका लंड स्खलन के कगार पर पहुंच गया.. पर सोनू स्खलित नहीं होना चाहता था वह सुगना से और भी बातें करना चाहता था। आज जब सुगना ने कामुक बातें खुद ही शुरू की थी तो सोनू मन ही मन इस अवसर का सदुपयोग कर सुगना को और भी खोलना चाह रहा था।

उधर सुगना ने लंड के उछलने को महसूस कर अपनी उंगलियों का दबाव कुछ और भी बढ़ा दिया था ताकि वह सोनू को शीघ्र स्खलित कर सके कभी सोनू बोल उठा

दीदी तनी धीरे से …दुखाता…

सोनू ने अपनी उत्तेजना कम करने के लिए बाल्टी में से लोटे से पानी निकाला और अपने लंड पर डाल दिया।

लंड पर पानी पढ़ते ही सुगना का काम रस जो अब तक एक स्नेहक का काम कर रहा था धुल गया सुगना को अब अपनी हथेली आगे पीछे करने में असुविधा हो रही थी।

तभी सोनू ने सुगना की बुर पर से अपनी उंगलियां उठाई और सुगना के होठों को उसके ही काम रस से भीगी हुई अंगुलियों से छूते हुए बोला..

“दीदी लगता तहर हांथ दुखा जाई…. लेकिन तहर होंठ में जादू बा “

सुगना को सोनू की यह हरकत अटपटी लगी परंतु उसने सोनू का रिदम नहीं तोड़ा। सोनू ने जो इशारे में कहा था कहा था वह कठिन था। इस वक्त खुली धूप में अपने ही घर के आंगन में अपने ही भाई सोनू का लंड चूसना… हे भगवान सोनू क्या चाह रहा था..

परंतु सुगना को न जाने क्या हो गया था उसे सोनू की कोई बात बुरी न लग रही थी उसने सोनू के कान में कहा अच्छा ठीक बा पहले ठीक से नहा ले तब..

सोनू ने एक बार फिर बाल्टी से पानी निकालने की कोशिश की पर बाल्टी में पानी खत्म हो चुका था लोटे और बाल्टी के टकराने की आवाज ने इस बात की तस्दीक की और अब सुगना को सोनू की गोद से उठाना ही पड़ा।

पूरी तरह नंगी सुगना खड़ी हो रही थी सुगना की जांघों के बीच चुदी हुई फूल चुकी बुर सोनू की निगाहों के सामने थी।

सोनू ने सुगना के नितंबों को पड़कर उसे अपने चेहरे से सटा लिया। सोनू की जीभ बाहर आई और सुगना की बुर से स्खलित हुए रस को छीन लाई..

सुगना तुरंत पीछे हटी और सोनू के सर को खुद से धकेलते हुए बोली

“ अरे सोनू अभी गंदा बा मत कर”

सोनू को इस बात से कोई फर्क ना पड़ता था उसे तो सुगना प्यारी थी उसका हर अंग प्यारा था और हर रूप में प्यारा था फिर भी बहस की गुंजाइश न थी। सुगना पूरी तरह नंगी थी उसने तार पर टंगा तोलिया उठाकर अपने अधोभाग को ढकने की कोशिश की पर सोनू ने रोक लिया और बोला ..

“ दीदी इतना सुंदर लगत बाड़ू मत तोलिया मत खराब कर..” सोनू ने जिस तरह से यह बात कही थी सुगना भली-भांति समझ चुकी थी कि सोनू उसे पूरी तरह नंगा देखना और रखना चाह रहा है तोलिया का खराब होना तो एक बहाना था।

नंगी सुगना हैंडपंप चलाने लगी…सोनू उसे एक टक देखे जा रहा था..भरी भरी चूचियां लटक कर कभी हैंडपंप के हैंडल को छूती भरी भरी जांघें और उसके त्रिकोण पर चमकती फूली हुई बुर…. सोनू मंत्रमुंध होकर सुगना को देख रहा था…

सुगना शर्मा रही थी..

उसने लजाते हुए कहा…

“अपना दीदी के ऐसे नंगा कर हैंडपंप चलवावत तोर लाज नइखे लागत”

सोनू को न जाने क्या सूझा वह उठकर खड़ा हो गया और सुगना की मदद के लिए उसके पास आ गया सुगना ने उसे रोकने की कोशिश की.. और बोली

“अरे हम तो ऐसे ही मजाक करत रहनी हां ते नहा ले”

पर सोनू अब कहां मानने वाला था उसने जिस अवस्था में सुगना को देखा था उसके मन में कुछ और ही चल रहा था वह सुगना के पीछे आ चुका था और अपने दोनों हाथों को सुगरा की कमर के दोनों तरफ करते हुए सुगना के साथ-साथ हैंडपंप के हैंडल को पकड़ चुका था सुगना उसकी पकड़ में थी वह अपने होंठ सुगना की पीठ से सटाए हुए था और धीरे-धीरे हैंडपंप चलाए जा रहा था। सोनू का मजबूत सीना सुगना की कमर से सटा हुआ था और सोनू की पुष्टि जांघें सुगना की जांघों से सटने लगी थी । सुगना को अंदाज़ हो गया था कि आगे क्या होने वाला है..

कुछ ही पलों में सोनू के लंड ने सुगना की बुर के मुहाने पर एक बार फिर दस्तक दे दी.. अब तक सुगना की बुर पुनः संभोग के लिए तैयार हो चुकी थी सुगना ने अपनी कमर थोड़ा पीछे की और सोनू के लंड का स्वागत किया हैंडपंप से पानी निकलना जारी था। सोनू हल्के हल्के हैंडपंप चलाए जा रहा था और अपनी बहन के बुर में अपने लंड को अंदर डाले जा रहा था।

सेक्स की यह पोजीशन अनोखी थी सुगना मन ही मन सोनू की आतुरता पर मुस्कुरा रही थी उसने सोनू का भरपूर साथ देने की सोची उसने अपनी कमर को थोड़ा और नीचे किया और नितंबों को ऊंचा कर सोनू के कार्य को सरल कर दिया सोनू अब सुगना को धीरे-धीरे चोद रहा था और हल्के-हल्के हैंड पंप चलाए जा रहा था।

धीरे-धीरे चुदाई का वेग बढ़ता गया.. सोनू और सुगना दोनों आनंद में डूबे हुए थे सुगना की उत्तेजना एक बार फिर बढ़ने लगी उसने सोनू के एक हाथ को हैंडपंप पर रहने दिया पर दूसरे हाथ को उठाकर अपनी चूचियों पर रख दिया सोनू को तो मानो दोनों जहां की खुशियां मिल गई हों।

बाल्टी में पानी भर चुका था और सोनू के अंडकोषों में भी।

सुगना की कमर अब दुखने लगी थी…बह हैंडपंप को रोकते हुए बोली ..

“ जो पानी भर गइल नहा ले “

सोनू अब भी सुगना को चोद रहा था। सुगना एक झटके से खड़ी हुई और सोनू का लैंड एक बार फिर

“पक्क…. “ की आवाज करते हुए बाहरआ गया। सुगना पलटी उसने सोनू के काम रस से सने लंड को अपने हाथों में लिया और बोला “सोनू अब नहा ले बाकी बिस्तर पर”

पर सोनू अब पूरी तरह गर्म हो चुका था उसने आंगन में किनारे रखें धान के बोरे को खींच कर आंगन के बीच में कर दिया और सुगना के लहंगे को उसके ऊपर डाल दिया…सुगना सोनू की मनोदशा समझ चुकी थी वह नंगी धीरे-धीरे सोनू के पास आ गई..

ऐसा लग रहा था जैसे सुगना सोनू के अधीन हों चुकी थी।

एक दासी की भांति वह उसके इशारे को पूरी तरह स्वीकार और अंगीकार कर रही थी।

सोनू ने उसे अपनी गोद में उठा लिया और उसे धान के बोरे पर पीठ के बल लिटा दिया…सुगना की दोनों जांघें स्वतः हवा में पैल गई.. और फूली हुई बुर आसमान की तरफ ताकने लगी जैसे विधाता से अपने हिस्से की अधूरी खुशियां मांग रहीं हो..

विधाता ने उसे निराश न किया सोनू जो एक टक सुगना की नंगी बुर को देख रहा था उस पर झुकता गया और अपने होंठ खोलकर बुर के होठों को ढंक लिया और जीभ चुदी हुई बुर की गहराइयों में उतरने लगी। सुगना ने अपनी फैली हुई जांघें सिकोड़ ली और सोनू के सर को दबाने की कोशिश की पर सुगना आज स्वयं कंफ्यूज थी वह सोनू के सर को धकेलना तो बाहर की तरफ चाहती थी पर जांघों का दबाव बुर की तरफ था।

सुगना के गोरे पैर सोनू की मांसल पीठ पर आराम कर रहे थे..

सोनू पूरी तसल्ली से कटोरी में से खीर खा रहा था जो सुगना और सोनू दोनों ने मिलकर बनाई थी। सुगना तड़प रही थी उसकी काम उत्तेजना एक बार फिर परवान चढ़ रही थी…कहां उसे सोनू को स्खलित करना था पर वह खुद एक बार फिर स्खलित होने को तैयार थी।


तभी सोनू ने अपना सर बाहर किया सुगना से बोला…

“दीदी आज मन खुश हो गइल बा…”

“ई काहे “ सुगना ने अपनी शरारती आंखे नचाते हुए बोला…

“आज मन भर चूमब और चाटब “


सुगना जान चुकी थी कि आज सोनू उसे गंदी बातें कर अपनी हदें तोड़ रहा है पर आज सुगना ने कोई आपत्ति जाहिर न कि अभी तक वह उसका खुलकर साथ देने लगी और बोली..

“का चटबे ?”

“अपना सुगना दीदी के बुर…” सोनू यह बोल तो गया परंतु उसे एहसास हो गया कि उसने कुछ ज्यादा ही बोल दिया है उसने झट अपना सर सुगना के पेडू से सटा दिया और होंठ एक बार फिर रस चूसने में लग गए..

“बदमाश ..तनी धीरे से….. दुखा……” सुगना अपनी उत्तेजना के चरम पर थी वह अपनी मादक कराह को पूरी न कर पाई…उसकी आवाज लहरा रही थी। वह स्खलित होना कतई नहीं चाहती थी वो अपने गोरे पैर सोनू की पीठ पर धीरे-धीरे पटकने लगी।

सोनू रुक गया और एक बार फिर सुगना की जांघों के बीच से सर निकाल लिया। सोनू के होंठ काम रस से चमक रहे थे सुगना ने अपने हाथों से उसे आलिंगन में आने का इशारा किया और सोनू सुगना के ऊपर छाता चला गया। सुगना ने उसे अपनी बाहों में भर लिया और उसके अधरों को चूमते हुए बोली..

“ तोरा हमरा ओकरा से कभी घिन ना लागेला का…अतना गंदा चीज के भी जब चाहे चुम ले वे ले”

(आशय तुम्हें मेरी उस चीज से कभी घिन नहीं लगता है क्या? उसे कभी भी चूम लेते हो…)

“कौन चीज दीदी” सोनू सच में शैतानी कर रहा था यह बात कहते हुए उसका लंड और तन गया था और उसने सुगना के बुर के मुहाने पर दस्तक दे दी थी…जिसे सुगना ने भी महसूस कर लिया था….लंड का सुपाड़ा फूलकर कुप्पा हो गया था.. और सुगना के भगनासे पर दस्तक दे रहा था.

सुगना ने सोनू की तरफ देखा और अपनी पलके बंद करते हुए उसे अपनी तरफ खींच लिया और कान में बोली “अपना दीदी के चोदल बुर….” सुगना की कामुक आवाज में कहे गए यह शब्द सोनू के कान में गूंजने लगे।

सोनू बेहद उत्साहित था..उसने अपने लंड को सुगना की बुर की दरार पर रगड़ते हुए कहा..

“काहे लागी.. चोदले भी त हम ही बानी…”

सुगना निरुत्तर थी…जैसे को तैसा मिला चुका था। सुगना का सिखाया सोनू उस पर ही भारी पड़ रहा था..

सुगना को चुप देखकर सोनू ने उसे उकसाते हुए कहा .

“पर तू लजालू..”

“ ना …अईसन बात नइखे ले आऊ…” सुगना ने सोनू को मुखमैथुन के लिए आमंत्रित कर दिया।

“तोहरा घिन ना लागी” सोनू अपनी खुशी को दबाते हुए बोला।

“अरे हमरा घिन काहे लागी हमार आपन ह”

सुगना सोनू को आमंत्रित कर रही थी सोनू से रहा न गया उसने सुगना के होठों को चूम लिया। सुगना को भली बात पता था कि सोनू के होठों पर उसका काम रस और सोनू के लंड से निकली वीर्य की लार लगी हुई थी।

सोनू और सुगना के अधर एक दूसरे में खो गए और इसी समय सोनू ने अपना लंड एक बार फिर सुगना की बुर में गहरे तक उतार दिया। सुगना मचल उठी पर होंठ बंद थे उसने अपनी जांघों को सोनू के नितंबों पर लपेटकर अपनी उत्तेजना का प्रदर्शन किया… परंतु अगले ही पल सोनू ने अपने लंड को सुगना की बुर से पूरी तरह बाहर निकाल लिया। सोनू का लंड सुगना की बुर की चासनी से नहाया हुआ प्रतीत हो रहा था। सोनू धान के बोरे का सहारा लेकर खड़ा हो गया उसने सुगना के हाथ पकड़े और उसे भी बोरी पर बैठा दिया।


सोनू का लंड सुगना की आंखों की ठीक सामने था उसके ही कामरस से डूबा हुआ, चमकता और पूरी तरह उत्तेजित। सुगना को पता था उसका सोनू क्या चाह रहा था। उसने एक बार सोनू की तरफ देखा और अगले ही पल अपने होंठ खोलकर सोनू के लंड के सुपाड़े को अपने होठों के भीतर भर लिया।

अपने दोनों हथेलियां से सोनू के लंड को पकड़े सुगना सोनू के लंड के सुपाड़े को चुभलाने लगी उसकी आंखें सोनू को देख रही थी जैसे वह सोनू को बताना चाह रही हूं कि मैं तुमसे और तुम्हारे किसी भी कृत्य से घृणा नहीं करती हूं… मुझे तुम पसंद हो .हर हाल में ..हर रूप में …हर अवस्था में …तुम्हारी चाहत ही मेरी इबादत है.. सुगना का यह समर्पण अनूठा था..

नंगी सुगना पूरी तन्मयता से अपने भाई सोनू का लंड चूस रही थी।

सोनू बेहद प्रसन्न हो गया सुगना ने उसके सारे अरमान पूरे कर दिए थे। उसने अपना लंड सुगना के मुंह से निकाला और नीचे घुटनों के बाल बैठते हुए सुगना की जांघों पर अपना सर रख दिया और बेहद संजीदा स्वर में बोला दीदी हमरा के माफ कर दिहा लेकिन लेकिन एक इच्छा मन में और बा..

“गुस्सा ना करबू तो बोलीं “

सुगना सोनू के बाल सहलाते हुए बोली “गुस्सा ना करब”

“हमरा ऊ हो चाहिंं “

(मुझे वह भी चाहिए)

सुगना को समझ नहीं आया कि सोनू क्या कहना चाह रहा है उसने प्यार से पूछा

“का चाहि साफ-साफ बोल”


सोनू ने बहुत हिम्मत जुटाई पर उसके होंठ नहीं खुले। अपनी जिस बहन के नाराज होने से कभी उसकी सिटी पिट्टी गुम हो जाती थी वह किस मुंह से कहता कि वह उसकी गुदाज गाड़ को भोगना चाह रहा है।

सोनू चुप ही रहा पर सुगना ने उसे फिर उकसाया

“जवन मन में बा साफ-साफ बोल लजो मत” सुगना सोनू से लज्जा त्याग कर अपनी बात कहने के लिए कह रही थी

आखिरकार सोनू ने हिम्मत जुटाई उसके होंठ तो अब भी ना खुले पर उसने अपनी उंगलियों से सुगना की उस जादुई गांड को छू लिया।

सुगना समझ चुकी थी आखिर सोनू भी अब पूरी तरह मर्द हो चुका था जिस तरह कभी सरयू सिंह उसकी गांड के पीछे पड़े थे अब उसका छोटा भाई सोनू भी उसी राह चल पड़ा था सुगना को पता चला चुका था यह अंग कामुक मर्दों को बेहद पसंद आता था।

सुगना ने सोनू के सर को अपनी गोद से उठाया और उसके कान पकड़ते हुए बोला..

“ते अब कुछ ज्यादा सयान हो गइल बाड़े”

सोनू ने कोई उत्तर ना दिया पर सुगना की जांघों को चूमते हुए बोला “बोल ना दीदी देबे”

सुगना चुप ही रही उसे पता था यह उसके और सोनू के बीच यह वासना की पराकाष्ठा होती उसने… सोनू के लंड को पकड़ कर उसे सहलाते पर बात को टालते हुए कहा…

“छोटका सोनू के जवन चाहि सब मिली पर आज ना.. आज मालूम बा नू केकर पुजाई करके बा?

सोनू को ध्यान आ गया कि आज सुगना की बुर की पूजा होनी थी जिसके लिए सुगना ने आज विशेष इत्र भी लगाया था।

सोनू ने और देर ना की उसने एक बार फिर सुगना को धान के बोरे पर लिटा दिया और अपने लंड को सुगना की लिस्लीसी बुर में गहरे तक उतार दिया। सुगना की दोनों चूचियों को अपने हाथों से थामे सोनू सुगना को चोदने लगा।

कभी वह उसके होठों को चूमता कभी चूचियों को और अपने प्यार का इजहार करता परंतु नीचे उसका लंड बेरहमी से सुगना की बुर को चोद रहा था.. धीरे-धीरे सोनू और सुगना का प्यार परवान चढ़ता गया.. उत्तेजना में सोनू ने एक बार सुगना की चूची को जोर से मसल दिया और उसे सुगना की वही मादक कराह सुनाई पड़ गई जिसके लिए सोनू बेचैन था.

“सोनू बाबू तनी धीरे से…दुखाता…”

सोनू ने अपनी चुदाई की रफ्तार और बढ़ा दी और उसके लंड ने सुगना की बुर के कंपन महसूस किए…सुगना एक बार और झड़ने वाली थी। अब सोनू ने भी अपनी उत्तेजना पर लगाम लगाना उचित न समझा उसने मन ही मन सुगना की उस गुदाज की गांड की कल्पना की…और सुगना को पूरी ताकत से चोदने लगा…. नतीजा स्पष्ट था सुगना हाफ रही थी और उसकी बुर कांप पर रही थी सुगना एक बार फिर झड़ रही थी..

इस अवस्था में भी सुगना को यह याद था कि उसका छोटा भाई अब तक स्खलित नहीं हुआ है उसने अपने चरमोत्कर्ष से समझौता कर मदमस्त आवाज में कहा

“सोनू और जोर से…. ह हा ऐसे ही …आ….. ईईई”

सोनू सुगना की झड़ती बुर को और ना चोद पाया.. उसके वीर्य की धार सुगना के गर्भाशय को छू गई.. सोनू ने तुरंत ही अपना लंड बाहर निकाल दिया…और अपने पंप को हाथों से पकड़ कर अपने वीर्य की धार से अपनी बहन सुगना को भिगोने लगा..

सुगना अपनी अधखुली पलकों से सोनू के लंड को स्खलित होते हुए देख रही थी… और सोनू की वीर्य वर्षा में भीगते हुए तृप्त हो रही थी..


सोनू भी निढाल होकर धीरे-धीरे नीचे घुटनों के बल बैठ गया अपने लंड को सुगना के बुर के मुहाने पर धीरे धीरे पटकने लगा… ऐसा लग रहा था कि सुगना की बुर की पूजा करते-करते सोनू का लंड अब दम तोड़ चुका था।

सोनू ने अपने भाई की मेहनत को नजरअंदाज ना किया उसने उसका सर अपनी नंगी चूची पर रख लिया जो उसके ही वीर्य से सनी हुई थी ..

सोनू पूर्ण तृप्ति के साथ अपनी बहन सुगना के आगोश में कुछ पलों के लिए बेसुध सा हो गया..

सुगना ने कुछ पलों बाद सोनू को जगाया। पहले सुगना ने स्नान किया और वह अपने कपड़े लेकर अंदर अपने कमरे में चली गई सोनू अब भी स्नान कर रहा था। सुगना को कपड़े ले जाते हुए देखकर सोनू ने कहा..

“दीदी कपड़ा मत पहनीहे एक बार और?” सुगना ने पीछे पलट कर देखा वह सोनू के आग्रह को टाल नहीं पाई

सुगना अपने बिस्तर पर नंगी लेटी हुई सोनू का इंतजार कर रही थी…सोनू अब भी नहा रहा था वैसे भी उसके पास समय था लंड को दोबारा जागृत होने में समय लगना स्वाभाविक ही था।

स्नान करने के बाद सोनू सुगना के कक्ष में आया सुगना उसकी घनघोर चुदाई से तृप्त थकी हुई बिस्तर पर नग्न सो रही थी…वह अपने सोनू का इंतजार कर रही थी पर परंतु उसकी आंख लग चुकी थी. इतनी सुंदर इतनी प्यारी और चेहरे पर गजब की संतुष्टि लिए सुगना बेहद खूबसूरत लग रही थी। सोनू अपनी बहन की नग्नता का आनंद लेता रहा पर उसको चोदने के लिए जगाना उचित न समझा…

सोनू और सुगना का प्यार निराला था। सुगना के प्रति उसका प्यार उसकी वासना पर भारी पड़ गया था।

बिस्तर पर पड़ा सुगना का लहंगा सोनू के वीर्य की गवाही दे रहा था…जो सुगना और सोनू के मिलन के दौरान धान के बोरे पर पड़ा अपनी मल्लिका की नंगी पीठ को छिलने से बचाए हुए था।

कुछ देर यूं ही निहारने के बाद सोनू ने अपने कपड़े पहने और पिछले दरवाजे से बाहर निकाल कर एक बार फिर सामने के दरवाजे का ताला खोलकर अंदर दाखिल हो गया।

सुगना अब भी सो रही थी…बिंदास बेपरवाह क्योंकि उसकी परवाह करने वाला उसके करीब ही था…
बहुत ही शानदार कामुक गरमागरम और उत्तेजना से भरपूर अपडेट है सोनू और सुगना के मिलन का चित्रण आपने बहुत ही शानदार तरीके से किया है आज तो सुगना ने ही हार मान ली सोनू ने उसे कई बार स्खलित कर भरपूर मजा दिया अब वह सुगना की गांड़ भी मरना चाहता है सुगना ने सोचा भी नहीं होगा ऐसे ऐसे पोज में उसकी चुदाई हुई है
 

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भाग 148

इसी दौरान कई सारी किशोरियों अपनी वासना पर काबू न रख पाती और कूपे में लड़कों द्वारा संभोग की पहल करने पर खुद को नहीं रोक पाती और अपना कोमार्य खो बैठती।

कौमार्य परीक्षण के दौरान ऐसी लड़कियों को इस अनूठे कृत्य से बाहर कर दिया जाता। निश्चित ही कुंवारी लड़कियों को मिल रहा है यह विशेष काम सुख अधूरा था पर आश्रम में उन्हें काफी इज्जत की निगाह से देखा जाता था और उनके रहन-सहन का विशेष ख्याल रखा जाता था। मोनी अब तक इस आश्रम में कुंवारी लड़कियों के बीचअपनी जगह बनाई हुई थी। ऐसी भरी और मदमस्त जवानी लिए अब तक कुंवारे रहना एक एक अनोखी बात थी। नियति उसके कौमार्य भंग के लिए व्यूह रचना में लगी हुई थी…

अब आगे


रतन अब तक दर्जनों पर अपनी साली मोनी की बुर चूस चुका था पर दुर्भाग्य मोनी ने अब तक उसके लंड को हाथ तक ना लगाया था। मोनी को तो यह ज्ञात भी नहीं था कि कूपे में उसे मुखमैथुन का सुख देने वाला कोई और नहीं उसका अपना जीजा रतन था।

आश्रम में रतन जब जब मोनी को देखता उसकी काम उत्तेजना जागृत हो जाती। ऐसी दिव्य सुंदरी को भोगने की इच्छा लिए वह उसके आसपास रहने की कोशिश करता परंतु मोनी निर्विकार भाव से उससे बात करती। उसे तो यह एहसास भी नहीं था कि उसकी छोटी सी अधखिली बुर को फूल बनाने के लिए उसका जीजा कब से तड़प रहा था। विद्यानंद ने भी मोनी को नोटिस कर लिया था पिछले कई महीनो से कुएं में जाने के बावजूद मोनी ने अपना कौमार्य बचा कर रखा था निश्चित ही यह एक संयम की बात थी। विद्यानंद कई बार उसे सबके बीच प्रोत्साहित और सम्मानित कर चुके थे। मोनी नई किशोरियों के लिए एक प्रेरणास्रोत थी।

नियति स्वयं आश्चर्य चकित थी कि एक बार मुखमैथुन का यौन सुख लेने के पश्चात क्या यह इतना सरल था की पुरुष की उंगलियों या लिंग को अपने योनि में प्रवेश होने से रोक लेना. कितना कठिन होगा मोनी के लिए उस समय लाल बटन को दबाना जब उसकी बुर स्वयं पुरुष स्पर्श को अपनी योनि में गहरे और गहरे तक महसूस करने के लिए लालायित हो रही होगी।

बहरहाल मोनी को इंतजार करना था…

उधर बनारस में सुगना और सरयू सिंह के अनूठे प्रेम से पैदा हुआ सूरज, सुगना के पास बैठा अपने नाखून कटा रहा था…सुगना उसके दिव्य अंगूठे को देखकर सोनी के बारे में सोचने लगी…


कैसे वह सूरज के अंगूठे को सहलाकर उसकी नून्नी को बड़ा कर देती थी और फिर उसे शांत करने के लिए उसे अपने होंठ लगाने पड़ते थे। विधाता ने न जाने सूरज को यह विशेष अंगूठा किसलिए दिया था…इधर सुगना की नजर अंगूठे पर थी उधर सूरज स्वयं बोल उठा जो शायद स्वयं भी यही बात सोच रहा था..

“मां…सोनी मौसी कब आएंगी?

“क्यों क्या बात है अभी उनकी क्यों याद आ रही है?”

जिस अंगूठे को देखकर सुगना ने सोनी को याद किया था शायद सूरज को भी वही बातें याद आ गई थी वह चुप ही रहा। छोटे सूरज ने अपना अंगूठा हिला कर दिखाया और मुस्कुराने लगा। सुगना समझ चुकी थी उसने सूरज की गाल पर एक मीठी चपत लगाई और बोली..

“बेटा ई ठीक ना ह अपना अंगूठा बचाकर रखना भगवान ने इसे विशेष काम के लिए बनाया है…”

शायद सुगना के पास इस समस्या का निदान नहीं था वह सूरज को समझने के लिए और इस प्रक्रिया से दूर रहने के लिए भगवान और धर्म का सहारा ले रही थी।

तभी लाली सुगना के पास आई और मचिया खींचकर उसके बगल बैठ गई। नाखून कट जाने के बाद सूरज खेलने भाग गया… तभी लाली ने सुगना से बात शुरू करते हुए पूछा…

“मां बाबूजी कैसे हैं?

“बिल्कुल ठीक है तुम्हारे लिए कुछ बनाकर भेजा था खिलाई नहीं क्या था उसमें”

लाली खुश हो गई वह तुरंत ही उठकर जाने लगी परंतु सुगना ने रोक लिया…और बोली

“ठीक बा बाद में खिलाना”

“ए सुगना उस दिन उतना देर क्यों हो गया था..अपने गांव सीतापुर भी गईं थी क्या..”

लाली असल में देरी का कारण जानना चाह रही थी पर शायद सीधे-सीधे पूछने में घबरा रही थी।

सुगना की छठी इंद्री काम करने लगी उसे न जाने क्यों ऐसा एहसास हुआ कि कहीं लाली को शक तो नहीं हो गया है उसने बड़ी चतुराई से पूछा

“सोनूवा से ना पूछले हां का?”

“ तू हिंदी कभी ना सीख पईबू हम हिंदी बोला तानी तब फिर भोजपुरी शुरू हो गईलु “

“ठीक है बाबा सॉरी …अब हिंदी ही बोलूंगी”

सुगना ने अपने चेहरे पर कातिल मुस्कान बिखेर दी और अपने हाथों से अपने कान पकड़ लिए। ऐसा लग रहा था.. जैसे वह सलेमपुर में सोनू के साथ किए गए कृत्य के लिए उसकी पत्नी लाली से माफी मांग रही थी। सुगना की यह अदा इतनी खूबसूरत थी की मर्द तो क्या लाली स्वयं उस पर आसक्त हो जाती थी कितनी सुंदर कितनी प्यारी थी सुगना। उस पर नाराज होना या उससे रुष्ट होना बेहद कठिन था। दोनों सहेलियां इधर-उधर की बातें करने लगी पर लाली के मन में शक का कीड़ा धीरे-धीरे और बड़ा हो रहा था। लाली को यह पता था कि उस इत्र का प्रयोग विशेष अवसरों पर ही किया जाता है वह भी कामुक गतिविधियों की तैयारी करते समय।


स्त्रियां उसे पुरुषों को लुभाने के लिए अपने जननागों पर लगाती हैं और पुरुष उसकी मादक खुशबू में अपना सर और होंठ उनकी जांघों के बीच ले आते हैं।

तभी फोन की घंटी बज उठी…फोन सुगना के पास ही था उसने अपने हाथ बढ़ाए और फोन का रिसीवर अपने कानों में लगाकर अपनी मधुर आवाज में बोली

“हेलो…”

“लाली घर पर है क्या?” सामने से एक भारी आवाज आई

“आप कौन” सुगना उस अजनबी को नहीं पहचान पा रही थी..

“लाली यही रहती है ना?” उस अजनबी ने पूछा..

“पर आप कौन?” सुगना ने अपना प्रश्न दोहराया।

“आप लाली को फोन दीजिए ना?” वह मुझे पहचान जाएगी..

“कौन है” लाली नेपूछा

सुगना ने फोन लाली को पकड़ा दिया..

“ हां बोलिए.. कौन हैं आप…” लाली ने पूछा

“आवाज से पहचानो”

लाली को यह आवाज पहचानी पहचानी सी लग रही थी पर मन में संशय था..

“बनारस आ गइल बानी हम ” उस अजनबी ने आगे कहा।

लाली उस अनजान व्यक्ति को थोड़ा थोड़ा पहचान रही थी फिर उसने तुक्का लगाया और बोला..

“मनोहर भैया ?”

“हां और कैसी हो…”

अब जब लाली पहचान ही चुकी थी तो उन दोनों की बातें शुरू हो गई सुगना कुछ देर तक तो लाली की बात सुनती रही और उनकी बातचीत से उस अनजान व्यक्ति को पहचानने की कोशिश करती रही परंतु सफल न रही…

“ठीक बा शाम के आवा…” लाली ने बात समाप्त की और फोन रख दिया उसके चेहरे पर खुशी थी।

कौन था लाली? सुगना ने उत्सुकता वश पूछा..

अरे मनोहर भैया उनका ट्रांसफर बनारस हो गया है…

“कौन ?” सुगना उस अजनबी को नाम से नहीं पहचान पा रही थी।

अरे वही मनोहर भैया मेरे मामा के लड़के जिनका पूरा परिवार एक एक्सीडेंट में मारा गया था…

लाली के चेहरे पर खुशी से उदासी के भाव आ गए। उसे वह दिन याद आ गया जब मनोहर के परिवार के सारे सदस्य एक साथ एक कर दुर्घटना में मारे गए थे और वह अपने मांमा के घर में मनोहर को रोते बिलखते देख रही थी। घर में पड़ी पांच लाशें देखकर सभी का कलेजा मुंह को आ रहा था।

इस दुर्घटना ने मनोहर को पूरी तरह अकेला कर दिया था। उसकी पत्नी उसके दोनों बच्चे और उसकी मां और उसका छोटा भाई सभी उसे कर दुर्घटना में मारे गए थे।

मनोहर जो लाली से उम्र में लगभग 4 , 5 साल बड़ा था इस दुर्घटना के बाद पूरी तरह अकेला हो गया था। क्योंकि वह एक सरकारी नौकरी में था इसलिए वह अक्सर बाहर दिल्ली ही रहता था। यह तो भला हो फोन का जिससे वह वह लाली के संपर्क में आ गया था। वरना लाली से उसका मिलना कम ही हो पता था जब वह गांव जाता तो लाली बनारस में अपने पति पूर्व राजेश के साथ रहती थी।

बहरहाल लाली मनोहर के आगमन की तैयारी में लग गई सुगना ने भी स्वाभाविक रूप से अपनी सहेली का साथ दिया और आज शाम के खाने के लिए तरह-तरह के पकवान बनाए जाने लगे मेहमानों का स्वागत लाली और सुगना दोनों को पसंद था वैसे भी यह मेहमान अनूठा था।

शाम को पूरा परिवार नए मेहमान का इंतजार कर रहा था। बाहर गाड़ी की आवाज से लाली को एहसास हो गया कि उसके मनोहर भैया आ चुके हैं वह दरवाजा खोलने के लिए आगे बढ़ी

मनोहर गाड़ी से उतर रहा था। कद लगभग 5 फुट 11 इंच कसरती बदन और सुंदर सुडौल काया लिए वह लाली की तरफ बढ़ा। लाली ने झुककर उसके चरण छुए और उसे अंदर बुला लिया..

अंदर पूरा परिवार उसका इंतजार कर रहा था सोनू ने आगे बढ़कर उसे हाथ मिलाया। मनोहर आगे बढ़ा उसने सरयू सिंह और कजरी के पैर छुए पदमा को वह पहचानता तो नहीं था परंतु उम्र के कारण उसने पदमा के भी पैर छुए। पदमा के पैर छूकर वह जैसे ही उठा उसे सुगना के दर्शन हो गए।

मनोहर खूबसूरत सुगना को देखते ही रह गया हे भगवान यह अप्सरा जैसी युवती कौन है? इससे पहले की मनोहर इधर-उधर देखता लाली बोल पड़ी..

यह मेरी सहेली है सुगना…पर अब ननद बन चुकी है.. लाली चहकते हुए बोली..

सुगना ने हाथ जोड़कर प्रणाम किया और प्रति उत्तर में मनोहर ने भी। मनोहर की आंखें सुगना पर कुछ फलों के लिए टिकी रह गई।

चाय का दौर चला और मनोहर के बारे में अब सब विस्तार पूर्वक जान चुके थे। मनोहर एक राजस्व अधिकारी था वह पहले दिल्ली में पोस्टेड था उसका गांव आना-जाना काम ही होता था वैसे भी पूरे परिवार के देहांत के बाद गांव आने का कोई औचित्य भी नहीं था। अभी कुछ दिनों पहले उसका कैडर चेंज हुआ और उसकी नई पोस्टिंग बनारस में मिली और वह ज्वाइन करने के बाद सीधा लाली से मिलने आ गया था।

मनोहर द्वारा लाई गई विविध प्रकार की मिठाइयां और फल बच्चे बड़े प्रेम से खा रहे थे। लाली ने सभी बच्चों से भी मनोहर का परिचय कराया और कुछ ही देर में मनोहर परिवार के एक सदस्य के रूप में सबसे घुल मिल गया सिर्फ सुगना ही एक ऐसी थी जिससे वह नजरे नहीं मिल पा रहा था पता नहीं उसके मन में क्या कसक थी…और सुगना स्वयं किसी अजनबी से अपने परिवार वालों की उपस्थिति में इतनी जल्दी खुल जाए यह मुमकिन नहीं था।


परंतु बातों के दौरान सुगना का भी जिक्र आया और उसके भगोड़े पति रतन का भी। मनोहर सुगना के लिए सोच कर दुखी हो रहा था इस छोटी उम्र में ही सुगना को विधवा सा जीवन व्यतीत करना पड़ रहा था। विधाता ने सच में उसके साथ अन्याय किया था। मनोहर की सोच एक सामान्य व्यक्ति की सोच थी पर विधाता के लिखे को टाल पाने की शक्ति शायद किसी में न थी।

मनोहर कुछ ही घंटे में पूरे परिवार के साथ दूध में पानी की तरह मिल गया। खाना खिलाने वक्त सुगना भी उससे कुछ हद तक रूबरू हुई और मनोहर के कानों में सुगना की मधुर आवाज सुनाई पड़ी जो उसके जेहन में रच बस गई।

कुल मिलाकर मनोहर एक प्रभावशाली व्यक्तित्व का स्वामी था और काबिल था। वह लाली के परिवार से नजदीकियां बढ़ाना चाहता था। कारण स्पष्ट था उसके जीवन में परिवार के नाम पर कुछ भी ना था और अब बनारस आने के बाद उसे ईश्वर की कृपा से एक परिवार मिल रहा था। सोनू और मनोहर भी अपने शासकीय कार्यों के बारे में बात करते-करते कुछ हद तक दोस्त बन रहे थे।

“सरयू सिंह ने मनोहर से कहा रात हो गई है

बेटा यहीं रुक जाते।”

मनोहर रुकना तो चाहता था परंतु वह इस तैयारी के साथ नहीं आया था उसने हाथ जोड़कर क्षमा मांगी और फिर कभी कह कर परिवार से विदा लिया और अपनी घड़ी में बैठकर अपने गेस्ट हाउस की तरफ निकल पड़ा।

मनोहर सभी के दिलों दिमाग पर एक अच्छी और अमित छवि छोड़ गया था।

अगली सुबह लाली और सोनू अपने बच्चों के साथ जौनपुर के लिए निकल रहे थे। लाली अपने कमरे में तैयार हो रही थी उधर सुगना झटपट सबके लिए नाश्ता बना रही थी एकांत पाकर सोनू रसोई में चला गया…

उसने सुगना को पीछे से अपने आगोश में भर लिया और सुगना कि याद में तने हुए अपने लंड को उसके नितंबों से सटाते हुए उसके गर्दन को चूमने लगा और बोला.

“दीदी कल के दिन हमेशा याद रही “

“हमरो..” सुगना का अंतर्मन मुस्कुरा रहा था

“दीदी सावधान रहिह लाली तोहरा इत्र के खुशबू सूंघ ले ले बिया…”

सुगना सोनू का इशारा समझ चुकी थी उसने पूछा

“तब तू का कहल?”

“कह देनी की दीदी अपन बक्सा ठीक करत रहे ओहि में इत्र देखनी और हमारा हाथ में लग गईल”

अब तक लाली भी रसोई में पहुंच चुकी थी उसने उन दोनों की बातें ज्यादा तो न सुनी पर इत्र का जिक्र वह सुन चुकी थी अंदर आते ही उसने बोला..

“लगता अपना सुगना दीदी के इत्र तोहरा ज्यादा पसंद आ गइल बा..”

सोनू और सुगना दोनों सतर्क हो गए…सुगना ने पाला बदला और लाली का साथ देते हुए बोली…

“इकरा अपने बहिनिया के खुशबू पसंद आवेला…ते भी त पहिले लाली दीदी ही रहले…”

सुगना ने जो कहा वह सोनू और लाली दोनों अपने-अपने हिसाब से सोच रहे थे..पर लाली सुगना की बातों में खुद ही उलझ गई थी…

बात सच ही थी जो सोनू पहले लाली की बुर के पीछे दीवाना रहता था अब अपनी बहन सुगना के घाघरे में अपनी जन्नत तलाश रहा था।

सुगना का भरा पूरा घर कुछ ही देर में खाली हो गया..

लाली और सोनू जौनपुर के लिए निकल चुके थे कुछ ही देर बाद सरयू सिंह और कजरी भी अस्पताल के लिए निकल गए। बच्चे स्कूल के लिए जा चुके थे


घर में सिर्फ सुगना और उसकी मां पदमा ही बचे थे। घरेलू कार्य निपटाने ने के बाद दोनों मां बेटी बैठे बातें कर रहे थे। पदमा की मां ने मनोहर की बात छेड़ दी। पदमा उसकी तारीफ करते हुए नहीं थक रही थी और ईश्वर द्वारा उसके साथ किए गए अन्याय के लिए उससे सहानुभूति दिख रही थी। सुगना भी उसकी बातें सुन तो रही थी परंतु कोई विशेष प्रतिक्रिया नहीं दे रही थी।

उधर सरयू सिंह और कजरी हॉस्पिटल में डॉक्टर का इंतजार कर रहे थे तभी सरयू सिंह ने कहा..

“लाली का तो भाग्य ही बदल गया सोनू से विवाह करने के बाद लाली और उसका परिवार बेहद खुश है मुझे लगता है सोनू भी खुश है भगवान दोनों की जोड़ी बनाए रखें”

“हां सच में यह शादी पहले तो बेमेल लग रही थी पर दोनों को देखकर लगता है कि यह निर्णय सही ही रहा सुगना सच में समझदार और सबका ख्याल रखने वाली है” कजरी ने सरयू सिंह के समर्थन में कहा.

“पर बेचारी सुगना के भाग्य में भगवान ने ऐसा क्यों लिखा?”

सुगना कजरी की पुत्रवधू थी और उसे बेहद प्यारी थी उन दोनों ने सरयू सिंह को अपने जीवन में एक साथ साझा किया था यहां तक कि अपनी पुरी यात्रा के दौरान सरयू सिंह के साथ बिस्तर भी साझा किया था..

*क्यों अब क्या हुआ…? कजरी ने बातचीत के क्रम को आगे बढ़ाया।

“क्या सुगना अपना आगे का जीवन अकेले व्यतीत करेगी? रतनवा तो अब आने वाला नहीं है?

कजरी के कलेजे में हूक उठी अपने पुत्र के बिछड़ने का गम उसे भी था उसकी उम्मीद भी अब धीरे-धीरे खत्म हो रही थी यह तय था की रतन अब वापस नहीं आएगा .. दोबारा सुगना को स्वीकार करने के बाद उसे छोड़कर जाने वाले रत्न से अब कोई उम्मीद नहीं थी..

“हां बात तो सही है पर क्या किया जा सकता है?”

“क्या लाली के जैसे सुगना पुनर्विवाह नहीं कर सकती? सरयू सिंह ने अपने मन की बात कह दी..

कजरी कोई उत्तर दे पाती इससे पहले अस्पताल के अटेंडेंट ने आवाज लगाई “सरयू सिंह ..सरयू सिंह”

सरयू सिंह का नंबर आ चुका था वह अपना झोला झंडी लेकर खड़े हो गए…कजरी भी उनके पीछे हो ली।

कजरी के दिमाग में सरयू सिंह द्वारा कही गई बातें घूम रही थी सुगना का पुनर्विवाह …यदि ऐसा हुआ तो…


क्या अब सुगना उसकी पुत्र वधु नहीं रहेगी। यह विधाता पहले पुत्र गया तो क्या अब सुगना भी चली जाएगी मैं अपना बुढ़ापा किसके सहारे काटूंगी? नहीं नहीं मुझे स्वार्थी नहीं होना चाहिए…सच में लाली कितना खुश है यदि सुगना का पुनर्विवाह होता है तो क्या वो और खुश हो जाएगी? पर अभी भी तो वह खुश ही रहती है? कई तरह की बातें कजरी के दिमाग में चलने लगीं।

सरयू सिंह कजरी को भंवर जाल में छोड़कर बिस्तर पर लेकर अपना चेकअप कर रहे थे। चेकअप की गतिविधियों में वह कुछ पलों के लिए सभी को भूल अपने चेकअप पर ध्यान दे रहे थे।

शाम होते होते सरयू सिंह और कजरी वापस सलेमपुर के रास्ते में थे।

कजरी ने अपनी स्वार्थी भावनाओं पर विजय पाई और उसने सुगना के भले की ही सोची।

“आप ठीक ही कह रहे थे सुगना के विवाह हो जाए तो ठीक ही रहल हा” कोई मन में बा का?

“तोहरा मनोहर कैसन लागल हा? ओकर भी कोई परिवार नईखे?”

कजरी अब सारी बात समझ आ चुकी थी सरयू सिंह के दिमाग में यह विचार क्यों आया..

सरयू सिंह की भांति कजरी भी अब मनोहर और सुगना को एक साथ देखने लगी। सुगना और मनोहर की जोड़ी में कोई भी कमी दिखाई नहीं पड़ रही थी दोनों एक दूसरे के लिए सर्वथा उपयुक्त थे।

शायद पहले जोड़ियां मिलते समय भौतिक और सामाजिक मेल मिलाप को ज्यादा महत्व दिया जाता था । अंतर्मन और प्यार का कोई विशेष स्थान नहीं होता था ऐसा मान लिया जाता था कि एक बार जब दोनों एक ही खुद से बदले तो उनमें निश्चित ही प्यार हो जाएगा।

पर क्या ऐसा हों पाएगा…तब सुगना और सोनू के प्यार का क्या होगा। जो सुगना अपनी बुर पहले ही सोनू को दहेज में दे चुकी थी वह क्यों भला किसी और मर्द को अपनाएगी..

प्रश्न कई थे उत्तर भविष्य के गर्भ में दफन था।

सारी गुत्थियां सुलझाने वाली नियति खुद ही उलझ गई थी उसे विराम चाहिए था…

शेष अगले भाग में…
बहुत ही शानदार और लाज़वाब अपडेट है मनोहर के आ जाने से कई उलझने आ गई हैं कजरी ,सरयू और पदमा तीनों ही सुगना की शादी मनोहर से करवाना चाहते हैं और ये ही सोनू और सुगना के लिए उलझने है लगता है नियति आगे बहुत कुछ करवाने वाली है
 

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अच्छा लगा, आप भी कहानी मन लगाकर पढ़ते हैं

जुड़े रहें
मैं तो शुरुआत से ही जुड़ा हुआ हूं लेकिन बीच में आपने लिखना छोड़ दिया था कुछ अपडेट तो dm किए थे बाद में आपने कहानी ही stop कर दी
 

Sanju@

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भाग 149

शायद पहले जोड़ियां मिलते समय भौतिक और सामाजिक मेल मिलाप को ज्यादा महत्व दिया जाता था । अंतर्मन और प्यार का कोई विशेष स्थान नहीं होता था ऐसा मान लिया जाता था कि एक बार जब दोनों एक ही खुद से बदले तो उनमें निश्चित ही प्यार हो जाएगा।
पर क्या ऐसा हों पाएगा…तब सुगना और सोनू के प्यार का क्या होगा। जो सुगना अपनी बुर पहले ही सोनू को दहेज में दे चुकी थी वह क्यों भला किसी और मर्द को अपनाएगी..
प्रश्न कई थे उत्तर भविष्य के गर्भ में दफन था।

सारी गुत्थियां सुलझाने वाली नियति खुद ही उलझ गई थी उसे विराम चाहिए था…

अब आगे..
मनोहर अपने गेस्ट हाउस वापस आ चुका था। बिस्तर पर आते ही आज लाली के घर हुए घटनाक्रमों को याद कर रहा था पर आज जो बात अनोखी थी वह थी सुगना से मुलाकात। क्या कोई स्त्री इतनी सरल इतनी चंचल और इतनी सुंदर हो सकती है.. चेहरे पर जैसे नूर बरस रहा हो.. कैसा अभागा था उसका पति जो इस कोहिनूर हीरे को छोड़कर न जाने किस संन्यासी के आश्रम में चला गया था.
क्या सुगना से अलग होना इतना सरल रहा होगा?
क्या अध्यात्म में इतनी ताकत है जो सुगना जैसी स्त्री को त्यागने की शक्ति देता है? मनोहर इस् बात से कतई संतुष्ट नहीं था कि रतन ने सही निर्णय लिया था पर मन ही मन विधाता को धन्यवाद दे रहा था कि आज वह सुगना के बारे में सोच पा रहा था।
बेचारे मनोहर को क्या पता था की सुगना अभिशप्त है उसे रतन के साथ संभोग में कभी सफलता प्राप्त न हुई और रतन जैसा गबरू मर्द भी उसे चरमसुख देने में नाकामयाब रहा।
सुगना को संतुष्ट करने वाले दोनों मर्द सरयू सिंह और सोनू से उसका खून का रिश्ता था। यद्यपि यह बात सुगना को अब भी ज्ञात न थी कि वह अभिशप्त है।
उधर लाली और सोनू का विवाह भी अनूठा था। यद्यपि लाली मनोहर के बुआ की लड़की यानी बहन थी फिर भी मनोहर यह भली-भांति जानता था कि सोनू जैसे काबिल मर्द को लाली से बेहतर स्त्री मिल सकती थी।
सोनू और लाली कैसे करीब आए होंगे और कैसे सोनू ने एक विधवा स्त्री से विवाह करना स्वीकार किया होगा? काश कि मनोहर स्वयं लाली के भूतकाल के पन्ने पलट पता तो उसे इस संबंध की आवश्यकता और अहमियत समझ आ जाती।

मनोहर अपने तेज दिमाग से भी इस गुत्थी को सुलझाने में नाकामयाब रहा। दूसरी तरफ लाली और सुगना का पूरा परिवार बेहद शालीन सभ्य और मेहमान नवाजी में अव्वल था किसी भी व्यक्ति के लिए उनके बारे में बुरा सोचना कठिन था।
मनोहर को सुगना और उसके परिवार में भूतकाल और वर्तमान में चल रहे कामुक संबंधों की कोई जानकारी नहीं थी और होती भी कैसे यह मनोहर की कल्पना के पार होती। सुगना जैसी दिव्य सुंदरी किसी और मर्द से संबंध बना सकती हो पर कभी वो अपने ही पिता (बायोलॉजिकल पिता) और भाई से संबंध बना सकती है यह सोचना कठिन था नामुमकिन था।
मनोहर जैसे-जैसे सुगना के बारे में सोचता गया वैसे-वैसे वह सुगना से आसक्त होता गया। दो बच्चों की मां होने के बावजूद सुगना उसे बेहद आकर्षक लगी थी। और आज पहली बार मनोहर ने अपनी दिवंगत पत्नी के अलावा किसी और स्त्री को इस भाव से देखा था।
उत्तेजना शालीनता छीन लेती है।

मनोहर के मन मस्तिष्क के अलावा उसके जननांगों में भी आज हलचल हो रही थी निश्चित ही इसमें सुगना का योगदान था। जैसे-जैसे मनोहर सुगना के बारे में सोचता गया कब उसकी विचारधारा शालीनता से हटकर सुगना की नग्नता पर आ गई और सुगना मनोहर के ख्यालों में अपनी नग्नता के साथ दिखाई पड़ने लगी…
स्त्री शरीर की जितनी परिकल्पना अपने ख्वाबों खयालों में की जा सकती है मनोहर वही कर रहा था और हर बार सुगना अपना तेजस्वी और मुस्कुराता चेहरा लिए मनोहर की कल्पनाओं को साकार कर रही थी। आखिरकार मनोहर ने सफलतापूर्वक अपनी कल्पनाओं को अपने हाथों से मूर्त रूप दिया और सुगना को याद करते हुए अपने अंडकोषों में कई महीनो से संजोए हुए वीर्य को तकिए पर उड़ेल दिया जो अब तक उसकी जांघों के बीच लगातार रगड़ खा रहा था।
अप्राकृतिक स्खलन के उपरांत सिर्फ पश्चाताप ही होता है। मनोहर अपने कलुषित विचारों के लिए अपने ईष्ट से क्षमा मांग रहा था जिसमें उसने सुगना को बिना उसकी सहमति से नग्न किया था और मन ही मन उसे भोगा था।
मनोहर और सुगना की इस मुलाकात में मनोहर के मन में प्यार का अंकुर प्रस्फुटित कर दिया था। उधर सुगना बेपरवाह और बिंदास थी वह अपने में मगन थी और वक्त बेवक्त अपने सोनू की गर्दन पर दाग लगाने को आतुर थी जब अक्सर उसके दिलों दिमाग में रहा करता था।
आईये अब आपको अमेरिका लिए चलते हैं जहां सोनी की पूर्ण सहमति से विकास उसे गर्भवती करने में लगा हुआ था।
अपनी मां को किया गया वादा विकास को याद था और सोनी को भी। सोनी ने अपनी सास से एक वर्ष का वक्त उन्मुक्त जीवन के लिए मांगा था और उसके बाद गर्भवती होने का वचन दिया था।
विकास और सोनी को मेहनत करते 3 महीने बीत चुके थे। घर में टीवी पर अब कामुक फिल्मों की जगह बच्चा पैदा करने की सही सेक्स पोजीशन। गर्भधारण के लिए तरह-तरह की सलाह वाली किताबें और अन्य उपाय पढ़े जा रहे थे, समझे जा रहे थे। जब-जब सोनी रजस्वला होती ऐसा लगता की सोने की बुर से निकला वह लाल रक्त विकास और सोनी के जीवन में कालिमा बिखेर देता। सोनी और विकास दोनों निराश हो जाते।
सोनी और विकास के लिए सेक्स अब गौड़ हो चला था एक सूत्रीय कार्यक्रम था सोनी की बुर में वीर्य भरकर उसे देर तक अंदर संजोए रखना और उसे गर्भधारण करने में मदद करना।
कुछ महीने यूं बीत गए पर नतीजा सिफर रहा.
आखिरकार विकास ने सोनी को लेकर डॉक्टर से मिलने की सोची। दोनों पति-पत्नी अपने मन में कई तरह की आशंकाएं लिए अस्पताल पहुंच चुके थे दोनों ने सेक्स एक्सपर्ट से अपनी जांच कराई।
शाम को रिपोर्ट के लिए जाते वक्त विकास और सोनी का कलेजा धक धक कर रहा था मन में आशंकाएं प्रबल हो रही थी और डॉक्टर से मिलते वक्त उसका लटका हुआ चेहरा देखकर विकास को आशंका प्रबल हो गई..
“क्या हुआ डॉक्टर साहब रिपोर्ट ठीक तो है ना” विकास ने मन में उत्सुकता लिए हुए पूछा
सोनी जी की रिपोर्ट तो ठीक है पर आपके सीमन मैं शुक्राणुओं की संख्या कम है इस अवस्था में गर्भधारण संभव नहीं है। डॉक्टर ने बेहद संजीदगी से जवाब दिया
“तो क्या डॉक्टर स्पर्म काउंट बढ़ाने की कोई मेडिकेशन नहीं है?
“है तो जरूर पर उतनी कारगर नहीं है फिर भी हम सब प्रयास करेंगे मैं यह कुछ मेडिसिन लिख देता हूं आप इसे दो माह तक लेते रहिए ईश्वर करें यह आपको सूट कर जाए।”
डॉक्टर परचे पर दवाई या लिखने लगा और विकास ने सोनी की तरफ देखा जो अपना सर पकड़े कुछ सोच रही थी।
दोनों पति-पत्नी अस्पताल से बाहर आए ना तो सोनी का मन लग रहा था और ना विकास का। विकास ने कॉफी पीने के लिए सोनी को आमंत्रित किया और अपने सर में उठ रहे दर्द को शांत करने के लिए दोनों पास के एक कैफे में आकर बैठ गए।
विकास ने सोनी का हाथ अपने हाथों में ले लिया और बेहद संजीदगी से बोला..
“सोनी जो कुछ हुआ है यह क्यों हुआ मुझे नहीं पता मुझे तो ज्ञात भी नहीं कि ऐसा क्यों होता है। आशा है तुम मुझे मेरी इस कमी के लिए माफ कर दोगी”
सोनी ने विकास के हाथ को सहलाते हुए बोला हम दोनों का मिलन विधाता की इच्छा थी मैं आपसे बहुत प्यार करती हूं हम प्रयास करेंगे और करते रहेंगे विधाता कभी ना कभी हमारी जरूर सुनेगा.। शुक्राणुओं की संख्या कम ही सही पर कुछ है तो जरूर यदि विधाता चाहेंगे तो मेरी गोद भरने के लिए एक शुक्राणु ही काफी होगा।
सोनी और विकास एक दूसरे से दिलो जान से प्यार करते थे और एक दूसरे का पूरा ख्याल रखते थे यह अलग बात थी कि उन दोनों की कामुकता दक्षिण अफ्रीका के दौरान वासना के अतिरिक्त तक जा पहुंची थी और विकास ने सोनी के मन में उस दबी हुई इच्छा की पूर्ति के लिए वह सोनी को उसे अद्भुत मसाज के लिए न सिर्फ प्रेरित किया था अपित उसे अंजाम तक पहुंचा दिया था।
सोनी और विकास डॉक्टर द्वारा दी गई दवाइयां के सहारे एक बार फिर गर्भधारण की प्रक्रिया में लग गए सेक्स अब अपना रूप बदल चुका था सोनी कभी स्खलित होती कभी नहीं परंतु विकास का वीर्य हमेशा उसकी बुर में जितना गहरा जा सकता था उतने गहरे तक उतार दिया जाता और सोनी अपनी दोनों जांघें ऊंची कर कुछ देर इस अवस्था में रहती और अपनी बुर में विकास के वीर्य से अपने गर्भाशय को सिंचित होता महसूस करती परंतु रिजल्ट वही ढाक के तीन पात..
एक दिन सोनी दोपहर में अपने बिस्तर पर पड़ी अपने शादी का एल्बम देख रही थी। पन्ने पलटते पलटते उसके दिमाग में शादी की सुंदर यादें ताज होती गई और एक पृष्ठ पर सरयू सिंह की तस्वीर पर उसकी निगाहें रूक गई.. कैसे कोई 55 वर्ष की उम्र में भी एकदम चुस्त दुरुस्त रह सकता है। वह मर्दाना शरीर, तेजस्वी चेहरा और बलिष्ठ भुजाएं ऐसा लगता था जैसे प्राचीन काल का कोई ऋषि महर्षि इस धरती पर अब भी टहल रहा हो।
क्या सरयू चाचा ने अब तक ब्रह्मचर्य का पालन किया है? यह कैसे संभव हुआ होगा क्या उन में काम इच्छा नहीं होगी? क्या उन्होंने आज तक किसी स्त्री के तन को हाथ नहीं लगाया होगा? जब आज वह इस अद्भुत काया के धनी है तो अपनी युवावस्था में कैसे रहे होंगे..?
और उनका खूबसूरत लंड ….क्या कभी उसने वीर्य स्खलन का सुख महसूस नहीं किया होगा?
सोनी ने यह बराबर महसूस किया था की सरयू सिंह की निगाहें उस पर थी परंतु वह इस बात का निर्णय ले पाने में अक्षम थी की सरयू सिंह उससे वास्तव में कामुक संबंध बनाना चाहते हैं।
सरयू सिंह का व्यक्तित्व अनूठा था। सरयू सिंह के बारे में सोचते सोचते न जाने कब सोनी की आंख लग गई…
बर्फीले पहाड़ों के बीच एक छोटा सा गांव चारों तरफ बर्फ ही बर्फ…पर गांव में दो-चार छोटे-छोटे घर…ठंड से ठिठुरती कुछ महिलाओं ने अलाव जलाया हुआ था। मैं भी ठंड से बचने के लिए वहां अलाव तापने लगी। धीरे-धीरे अलाव की आज तेज होती जा रही थी और चारों तरफ फैल रही थी मैंने महसूस किया कि मैं चारों तरफ से आग़ से घिर चुकी हूँ..
बाहर निकलने का कोई रास्ता नहीं दिखाई पड़ रहा था.. मैं बेहद घबरा गई थी तभी उस आग में से कोई चिंगारी निकाल कर मेरे घागरे की तरफ आई और मेरे घागरे में आग पकड़ ली…मैं बेहद घबरा गई और अपना घाघरा निकाल कर दूर फेंक दिया जो कुछ ही देर में आग़ की भेंट चढ़ गया।
मेरी चोली न जाने कब मेरे बदन से गायब हो चुकी थी। मैं स्वयं आश्चर्यचकित थी कि इसे तो मैंने खोला भी नहीं था। मैं खुद को उस आग के बीच पूरी नंगी असहाय महसूस कर रही थी…नग्नता मेरे लिए गौड़ हो चुकी थी मेरे लिए जीवन मरण का प्रश्न था। मैं मदद की गुहार लगा रही थी परंतु मैंने महसूस किया कि मेरे लाख चिल्लाने के बाद भी मेरे मुख से आवाज बाहर नहीं निकल पा रही थी। यह क्या हो गया था ? मेरा बदन आग की गर्मी से तप रहा था..
तभी मैंने एक प्रौढ़ व्यक्ति को अपने पास आता हुआ महसूस किया वह श्वेत वस्त्र पहने हुए थे वह ऋषि मुनियों की भांति प्रतीत हो रहे थे.. वह उस आग को चीरकर मेरे पास आ चुके थे मैं मदद की गुहार लिए उनके समीप उनके आलिंगन में चली गई अपनी नग्नता का एहसास कुछ पलों के लिए गायब हो गया था..
उनकी मजबूत हथेलियां ने जब मेरी नंगी पीठ को छुआ तो मुझे अपनी नग्नता का एहसास हुआ।
उन्होंने मुझे अपनी गोद में उठा लिया और आग को चीरते हुए बाहर आ गए बाहर। आज की तपिश से बाहर आते ही मुझे शीतलता का एहसास होने लगा। मैं उन्हें पहचानने की लगातार कोशिश कर रही थी पर मेरे लिए यह मुमकिन नहीं था। अब मेरी नग्नता मुझे और शीतल कर रही थी वो मुझे एक बगीचे में ले आये।
फूलों के सुंदर उपवन में एक झूला लगा हुआ था। उन्होंने मुझे उस पर लिटा दिया और मेरे माथे पर चुंबन देते हुए कहा..
“देवी अब आप सुरक्षित हो…” मुझे लगा जैसे मैंने यह आवाज सुनी हुई है पर फिर भी उसे आवाज से उन ऋषि की पहचान करना कठिन था।
मैं अब ठंड से कांप रही थी…उन्होंने अपने सीने पर पहना हुआ अंग वस्त्र हटाया उनकी चौड़ी और नंगी छाती मेरी आंखों के सामने थी मैंने ऐसा दिव्य पुरुष कभी नहीं देखा था मैं एक टक उनके मांसल बदन को देखे जा रही थी उन्होंने अपना अंग वस्त्र मेरे बदन पर डालने की कोशिश की।
मेरा बदन अब भी कांप रहा था…. मैंने उन्हें अपने आलिंगन में लेने के लिए अपनी बाहें खोल दी.। वह मेरे ऊपर एक साये की तरह छाये जा रहे थे…
अचानक मैंने अपने बदन को उनसे सटते हुए महसूस किया। उनका मजबूत सीना मेरी नंगी चूचियों पर रगड़ खाने लगा। मेरी चूचियां जो ठंड की वजह से अकड़ कर तनी हुई थी उनके सीने का दबाव पाते ही सपाट होने लगी। वो मेरी आंखों में आंखें डाले लगातार मुझे देखे जा रहे थे परंतु मेरी उनसे नज़रें मिलाने की हिम्मत न थी।।

मैंने अपनी पलके बंद कर ली और उनके बदन की गर्मी को अपने बदन में महसूस करने लगी…
मेरी दोनों जांघें कब हवा में फैल गई मुझे पता भी ना चला और मुझे अपने वस्ति प्रदेश पर एक मजबूत लंड का स्पर्श महसूस हुआ जो अपनी दिशा तलाश रहा था। मैंने स्वयं अपनी जांघें हिलाकर उसे रास्ता देने की कोशिश की और वह मेरी योनि के भीतर गहरे और गहरे तक उतरता चला गया। क्या दिव्या एहसास था मेरी जांघों के बीच से बेहद गर्म शक्तिपुंज मेरे अंदर प्रवेश कर रहा था जो मुझे उत्तेजना के साथ-साथ गर्मी प्रदान कर रहा था उसकी तापिश से मेरे अंदरूनी अंग प्रत्यंग गर्म हो रहे थे।

कुछ ही देर में मैं दिव्य पुरुष से संभोगरत थी। वह बेहद हौले हौले से मेरा यौनिमर्दन कर रहे थे.. मेरी कंपकपाहट अब खत्म हो चली थी और पूरे बदन में एक गर्मी सी महसूस हो रही थी यह निश्चित थी उनके बदन की गर्मी से मिलने वाली गर्मी थी। मैं उसे व्यक्ति को पहचानने की कोशिश कर रही थी परंतु मेरे लिए यह कठिन हो रहा था परंतु जैसे-जैसे संभोग की गति बढ़ती गई और इस्खलन की बेला आ पहुंची..मुझे उसे व्यक्ति का चेहरा जाना पहचाना लगने लगा और जब उन्होंने मुझे मेरे नाम से पुकारा तो बरबस ही मेरे मुंह से निकल गया सरयू चाचा…

सोनी अचकचा कर उठकर बैठ गई । उसकी सांसे तेज थी वह हॉफ रही थी। उसने महसूस किया कि उसकी जांघों के बीच गीलापन था। लगता है वह अपने स्वप्न में ही स्खलित हो गई थी।
सोनी मन ही मन मुस्कुराने लगी। अपने स्खलन का जो आनंद उसने स्वप्न में उठाया था वह भी अनूठा था उसने एक बार फिर अपनी पलके बंद कर उस दृश्य को याद करना चाहा परंतु वह पानी के बुलबुले की तरह गायब हो चुका था पर सोनी के दिमाग में मीठी यादें छोड़ गया था।
सोनी के दिमाग में ब्रह्मचारी का रूप धरे सरयू सिंह धीरे-धीरे सोनी के हीरो बन चुके थे। एक पल के लिए सोनी को लगा कि वह स्वयं मेनका बनकर उनका ब्रह्मचर्य तोड़ सकती है। पर वह अपनी इस अनोखी सोच पर खुद ही मुस्कुरा बैठी अपने पिता तुल्य व्यक्ति से संबंध सोनी की कल्पना से परे था पर सपनों में वह यह आनंद कई बार ले चुकी थी।
विकास की मां का फोन लगातार आ रहा था वह भी बार-बार अपने पोते का जिक्र सोनी से करती और सोनी उसे अपना वादा पूरा करने की बात दोहरा कर शांत कर देती। विकास की मां की आकांक्षाएं सोनी पर लगातार दबाव बनाए हुए थीं।
अमेरिकी डॉक्टर की दवाइयां से कोई फायदा होता हुआ न देख विकास ने अपने देश भारत जाने की सोची।
वैसे भी विकास और सोनी को अपने देश आए काफी वक्त बीत चुका था और अब दोनों ने अपने देश आने की तैयारी करने लगे। विकास को अपने देश में इस समस्या के इलाज का ज्यादा भरोसा था वह मन में उम्मीद लिए सोनी को लेकर अपने वतन आने की तैयारी में लग गया।
जब यह खबर सुगना तक पहुंची उसकी खुशी का ठिकाना ना रहा। सोनी को देखे कई दिन हो गए थे और अब उसके आगमन की खबर ने सुगना के मन में खुशियों की लहर बिखेर दी थी। अगले शनिवार तक यह खबर सभी की जुबान पर थी छोटा सूरज भी न जाने क्यों खुश हो रहा था उसकी प्यारी मौसी घर आ रही थी वह बार-बार अपने अंगूठे को देखता और मुस्कुरा देता।
खबर सरयू सिंह तक भी पहुंची और वह भी सोनी का स्वागत करने के लिए अपने मन में कई तरह की कल्पनाएं करने लगे। क्या सोनी बदल चुकी होगी उसके विवाह को एक वर्ष से ज्यादा हो गया था। निश्चित ही उसमें बदलाव अपेक्षित था। सरयू सिंह सोनी को अपनी कल्पनाओं में देखने की कोशिश कर रहे थे परंतु बार-बार उनका दिमाग सोनी के गदराए नितंबों पर अटक जा रहा था वह उनके आकार और उनमें आ रहे परिवर्तनों के बारे में ज्यादा चिंतित थे।
इंतजार में दिन बीत रहे थे
उधर लाली के मन में आए शक ने लाली को चिंतित कर दिया था। यद्यपि सोनू के हाथों में इत्र का कारण सुगना और सोनू ने एक ही बताया था पर क्या यह एक संयोग था कि इत्र हाथों पर लगा और सोनू ने तुरंत ही उसे अपने लंड पर रगड़ दिया।

सुगना के सामने या उसकी उपस्थिति में अपने लंड को छूना यह बात लाली के गले नहीं उतर रही थी। लाली सोनू और सुगना के बीच हो रही गतिविधियों पर नजर रखना चाहती थी।
अक्सर जब-जब लाली और सोनू बनारस आते लाली मनोहर को फोन कर देती और वह भी उनसे मिलने उनके घर आ जाता। सोनू को मजबूरन मनोहर का साथ देना पड़ता और सोनू और सुगना के मिलन में निश्चित ही बाधा उत्पन्न होती। पहले तो सोनू सुगना के साथ एकांत का कुछ न कुछ वक्त निकाल ही लेता था और कभी-कभी उसके आलिंगन और चुंबन का सुख प्राप्त कर लेता था कभी-कभी तो वह मौका पाकर अपना दहेज भी चूम चाट भी लेता।
पर अब सुगना और सोनू के मिलन में मनोहर की उपस्थिति से बाधा उत्पन्न हो रही थी। सोनू बनारस सिर्फ और सिर्फ सुगना से मिलने आता था सुगना उसके जीवन में और उसके अंगों में जान भर देती थी और वह सुगना की याद लिए अगला एक हफ्ता लाली के साथ फिर उसके इंतजार में बिता लेता था।
इस बार उसका पूरा दिन मनोहर के साथ इधर-उधर की बातें करने में गुजर गया वह चाह कर भी सुगना से अंतरंग नहीं हो पाया सोनू की बेचैनी बढ़ती जा रही थी।
उधर मनोहर भी सोनू का साथ सिर्फ इसलिए दे रहा था ताकि वह ज्यादा से ज्यादा समय लाली और सोनू के घर में व्यतीत कर सके जब-जब सुगना चाय पानी के लिए उसके समीप आती उसके शरीर में एक ताजगी भर जाती।
मनोहर एक समझदार व्यक्ति था और अपनी मर्यादा में रहना जानता था। मनोहर के व्यवहार से अब तक सुगना उसके मन में चल रही भावनाओं का अंदाज नहीं लगा पाई थी। मनोहर सुगना को देखता तो अवश्य था पर उसकी नज़रें बचा कर। जब-जब सुगना चाय पानी देने के बाद पीछे मुड़कर रसोई की तरफ जाती मनोहर की निगाहें उसके बदन के कटाव को देखती और उसके मन में सुगना की कल्पना और मूर्त रूप ले लेती। सोनू मनोहर के यहां लगातार रहने से अब थोड़ा विचलित हो रहा था।

दोपहर का खाना होने के पश्चात उसने लाली से कहा..
मनोहर जी के लिए बच्चों वाले कमरे में बिस्तर लगा दो थोड़ा आराम कर लेंगे तब तक मैं भी आराम कर लेता हूं हम सबको एक-दो दिन ही तो दोपहर की नींद लेने का अवसर प्राप्त होता है। मनोहर ने सोनू की हां में हां मिलाई और बच्चों के कमरे में लेट गया।
मनोहर को नींद कहां आ रही थी पर वह धीरे-धीरे बच्चों से घुल मिल गया सभी बच्चे मनोहर के पास बैठकर कुछ खेल खेलने लगे और मनोहर भी उनमें बच्चों की तरह खो गया। सुगना की मां पदमा मनोहर के व्यक्तित्व का आकलन कर रही थी। वह भी उनके पास बैठी मनोहर से बातें कर रही थी। धीरे-धीरे मनोहर पूरे घर परिवार का मन जीतता गया। परंतु सोनू को मनोहर की उपस्थिति अब खलने लगी थी।
पिछले दो-तीन हफ्तों से सुगना से अंतरंग न हो पाने के कारण सोनू के गर्दन का दाग पूरी तरह गायब था. लाली भी अब सोनू के गर्दन के दाग का रहस्य समझना चाहती थी आखिर ऐसा क्या हो जाता था जौनपुर में या सलेमपुर में जिससे सोनू के गर्दन का दाग ठीक उसी जगह उभर आता था।
सुगना के इत्र की खुशबू ने लाली को उन दोनों के बारे में सोचने पर विवश कर दिया था यद्यपि इसका कारण और प्रारब्ध लाली दोनों ही नहीं समझ पा रही थी।।।
लाली जितना ही इस बारे में सोचती उसका दिमाग उतना ही खराब होता। सोनू और सुगना के बीच जो उस दीपावली की काली रात को हुआ था उसका असर उसने घर में कई महीनो तक देखा था। वह स्वयं अपराध भाव से हमेशा के लिए ग्रस्त हो गई थी। लाली स्वयं अपने आप को उसे अपवित्र मिलन के लिए गुनाहगार मानती थी। आखिरकार सुगना जैसी संजीदा औरत क्यों कर ऐसे अपवित्र संबंध बनाएगी वह भी अपने सगे भाई से…. मेल मिलाप बातचीत कामुक बातें छेड़छाड़ सब अपनी जगह पर अपनी ही सगे भाई से अपनी बुर चुदवाना छी छी सुगना ऐसा कभी नहीं करेगी।
लाली का दिमाग कई दिशा में दौड़ रहा था परंतु सटीक उत्तर खोज पाना कठिन था उसे इतना तो एहसास था कि पहले सोनू सुगना के नाम से उत्साहित और उत्तेजित हो जाता है.. परंतु उसे सोनू से ज्यादा सुगना पर भरोसा था.
सोनू भी अब सुगना से मिलन के लिए तड़प रहा था तीन-चार हफ्ते बीत चुके थे और हर बार जाने अनजाने मनोहर लाली के घर में उपस्थित होकर सोनू और सुगना के मिलन में बाधा डाल देता था.
अगली बार जौनपुर से निकलते समय ही उसने लाली को सचेत कर दिया और बेहद सलीके से कहा
“मनोहर भैया को शाम को खाने पर बुलाना दोपहर में उनका भी अपना काम होता होगा.”.
“हां ठीक है .. सोनू की बात काटने की हिम्मत लाली में न थी उसने उसके सुर में सुर मिलाते हुए कहा..मैं भी यही सोच रही थी सुगना से आराम से बात नहीं हो पाती ज्यादातर समय मनोहर जी की खातेदारी में ही बीत जाता है इस बार शाम के लिए ही बोलूंगी…
उधर मनोहर हमेशा इतवार के दिन का इंतजार किया करता था लाली के घर जाने का उसका आकर्षण अब सुगना बन चुकी थी। मनोहर का प्यार एक तरफा था सुगना जैसी पारखी स्त्री भी अब तक मनोहर की मनोदशा से अनजान थी। शायद मनोहर भी महिलाओं को समझता था और अपनी वासना भरी निगाहों पर उसका नियंत्रण कायम था..
सुगना उसके जीवन में एक सुगंध की तरह आ गई थी जिसकी खुशबू वह पूरे हफ्ते तक महसूस करता और जब उसकी यादें धूमिल पड़ती वह उन्हें तरोताजा करने फिर सुगना के घर पहुंच जाता..
सुगना स्वयं सोनू की चमकती गर्दन को दागदार करने के लिए स्वयं अधीर हो रही थी।
सुगना के घर फोन की घंटी बजी
“सुगना दीदी…प्रणाम , हम लोग दीपावली में बनारस आ रहे हैं” यह चहकती आवाज सोनी की थी। उनका इंडिया आने का टिकट कंफर्म हो चुका था। दीपावली के पटाखे का इंतजार सबको था पाठकों को भी और नियति को भी..

शेष अगले भाग में
सोनी और विकाश ने खूब मेहनत की लेकिन सोनी अभी तक मां नहीं बन पाई जांच कराई तो पता चला कि seman में शुक्राणु की संख्या कम है लेकिन सोनी को अपनी शादी के एल्बम में सरयू नजर आया और उसे वो बात याद आ गई लगता है इस दीवाली पर सोनी भी सरयू से चूद कर मां बनने वाली है वहीं मनोहर सुगना से नजदीकियों बढ़ाने की कोशिश कर रहा है दो बच्चों की मां होने के बाद भी मनोहर के दिल में एक छाप छोड़ दी है देखते हैं आगे नियति ने क्या खेल रचा है
 

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भाग 150

उधर मनोहर हमेशा इतवार के दिन का इंतजार किया करता था लाली के घर जाने का उसका आकर्षण अब सुगना बन चुकी थी। मनोहर का प्यार एक तरफा था सुगना जैसी पारखी स्त्री भी अब तक मनोहर की मनोदशा से अनजान थी। शायद मनोहर भी महिलाओं को समझता था और अपनी वासना भरी निगाहों पर उसका नियंत्रण कायम था..
सुगना उसके जीवन में एक सुगंध की तरह आ गई थी जिसकी खुशबू वह पूरे हफ्ते तक महसूस करता और जब उसकी यादें धूमिल पड़ती वह उन्हें तरोताजा करने फिर सुगना के घर पहुंच जाता..
सुगना स्वयं सोनू की चमकती गर्दन को दागदार करने के लिए स्वयं अधीर हो रही थी।
सुगना के घर फोन की घंटी बजी
“सुगना दीदी…प्रणाम , हम लोग दीपावली में बनारस आ रहे हैं” यह चहकती आवाज सोनी की थी। उनका इंडिया आने का टिकट कंफर्म हो चुका था और अगले महीने विकास और सोनी अमेरिका से बनारस आ रहे थे।

अब आगे….
बनारस में सुगना से मिलना सोनू के लिए कठिन हो रहा था। फिर भी सुगना सोनू को कभी भी खाली हाथ विदा नहीं करती थी.. और गर्दन के दाग को अक्सर जीवंत जरूर कर देती थी चाहे आकस्मिक हस्तमैथुन, त्वरित मुख मैथुन द्वारा हो या फिर कभी त्वरित संभोग द्वारा।

सुगना के पास सोनू को खुश करने के कई उपाय थे पर सबसे ज्यादा खुशी सोनू को अपने दहेज को देखने और चूमने चाटने में मिलती थी जिसके लिए एकांत आवश्यक था।
लाली को हमेशा से यह कंफ्यूजन बना रहता था की जौनपुर आने के बाद ऐसा क्या हो जाता है कि सोनू की गर्दन पर दाग उभर आता है। सोनू और सुगना के कामुक मिलन का संबंध इस दाग से था लाली इससे अनभिज्ञ थी।
पिछली बार की तरह सुगना के साथ सलेमपुर अकेले जाने दोबारा अवसर कभी प्राप्त नहीं हो रहा था…
सोनू तो सुगना को अपने घर सीतापुर ले जाने की फिराक में था परंतु उसकी मां पदमा ने अपने किसी रिश्तेदार को वहां रख छोड़ा था।
मनुष्य अपनी परिस्थितियों का निर्माता स्वयं होता है।
इस बार सोनू ने अपनी चाल चल दी…
सोनू ने सरयू सिंह का ट्रांसफर बनारस के पास के एक गांव में करवा दिया…यह काम उसने गुपचुप तरीके से किया जिससे सरयू सिंह मजबूरन बनारस आ जाए। सरयू सिंह के बनारस आगमन के कई फायदे थे।
एक तो जौनपुर जाने के पश्चात घर सुगना के घर में कोई मर्द नहीं रहता था सुगना और उसकी मां अकेले रहती थी और सोनू को हमेशा एक डर लगा रहता था। सरयू सिंह की उपस्थिति से घर में एक मर्द की कमी पूरी हो जाती जो गाहे बगाहे जरूरत पड़ने पर पूरे परिवार की मदद कर सकता था। यद्यपि सोनू यह कार्य अपने किसी साथी या मनोहर से भी करा सकता था परंतु अपना अपना होता है।
सरयू सिंह के लिहाज से भी यह अच्छा था क्योंकि उन्हें अक्सर अपने या कजरी के इलाज के लिए बनारस आना पड़ता था सो उनका भी काम आसान हो जाना था।

एक हफ्ते बाद सरयू सिंह कजरी के साथ बनारस शिफ्ट हो चुके थे और अपनी नई पोस्टिंग पर ज्वाइन कर चुके थे।
गांव में उनके दरवाजे पर ताला लटक चुका था। सोनू यही नहीं रुका। अपने घर सीतापुर में रह रहे रिश्तेदार को भी उसने जौनपुर बुला लिया और एक छोटी-मोटी नौकरी लगा दी वह रिश्तेदार अब शनिवार और रविवार के दिन सोनू के घर का ख्याल रखने लगा।
वैसे भी सोनू को पता था गांव में ऐसा कुछ था ही नहीं जिसे चोरी किया जा सके।
सोनू अपनी शतरंज की बिसात बिछा चुका था।
शतरंज की विसात सिर्फ सोनू ने नहीं बिछाई थी अपितू सरयू सिंह भी अपने मन की बात जो उन्होंने मनोहर को लेकर कजरी से की थी वही बात आज पदमा से कर रहे थे। कजरी सरयू सिंह और पदमा के बीच मध्यस्थ का काम कर रही थी उसने पदमा को समझाते हुए कहा
“ए बहिनी जैसे लाली के भाग्य खुल गईल ओकर दोसर बियाह हो गईल …का हमार सुगना के ना हो सकेला?
कजरी ने तो जैसे पदमा के मन की बात कह दी थी अब जब सुगना की सास ने आगे बढ़कर या बात कही थी तो पद्मा ने तुरंत ही अपनी हामी भर दी. पर उसके मन में संशय था अपने संशय को मिटाने के उद्देश्य से उसने आतुरता से कहा..
“पर सुगना तो अभी सुहागन दिया दोसर ब्याह कैसे हो सकेला ?”
अब बारी सरयू सिंह की थी
“अईसन बियाह कौन काम के ? जब पति सन्यासी बैरागी हो होकर घर से भाग गईल बा. “
सरयू सिंह की बातें कजरी को थोड़ा नागवार गुजरी आखिर कुछ भी हो रतन उसका पुत्र था परंतु बात तो सच थी। कजरी ने सरयू सिंह की बात को आगे बढ़ते हुए कहा
अब रतन के भूल जायल ही ठीक बा। उ वापस ना लौटी सुगना सिंदूर जरूर लगावत दिया पर ओकर वापस आवे के अब कोनो उम्मीद नईखे।
पद्मा को उम्मीद की किरण दिखाई पड़ने लगी अब जब सरयू सिंह और कजरी दोनों जो सुगना के साथ ससुर की भूमिका निभा रहे थे जब उन्होंने ही फैसला कर लिया था। पद्मा ने कजरी का हाथ पकड़ते हुए कहा
“ देखा भगवान का चाहत बाड़े पर सुगना से ब्याह के करी “
तीनों के मन में ही एक ही उत्तर था पर कहने की जहमत कजरी ने ही उठाई
“ए बहिनी तहरा मनोहर कईसन लागेले?”
पदमा की अंतरात्मा खुश हो गई
“उ तो बहुत सुंदर लाइका बाड़े पर का ऊ भी ऐसन सोचत होगें”
“यदि तारा पसंद होखे तो उनका मन छुवल जाऊ । आखिर वह भी तो अकेले ही रहले । उनका भी इ दोसर बियाह होखी। सुगना और मनोहर के जोड़ी अच्छा लगी” कजरी ने पदमा से कहा
सरयू सिंह ने भी अपनी सहमति दी और घर के तीनों बुजुर्ग एक मत होकर सुगना के लिए मनोहर को पसंद कर चुके थे। अब बारी थी मनोहर का मन जानने की।
सरयू सिंह ने बेहद चतुराई और अपने अनुभव से कहा कि “सब काम में जल्दी बाजी नइखे करेके मनोहर के धीरे-धीरे आवे जावे द लोग यदि उनका मन में ऐसा कोई बात होगी तो धीरे-धीरे पता लाग ही जाए”
पद्मा ने अपनी बात रखते हुए कहा
“ हां लाली बुची मनोहर के मन छू सकेली..”
बात सच थी लाली सुगना की सहेली थी और मनोहर उसका ममेरा भाई वह बातों ही बातों में मनोहर के दूसरे विवाह और उस दौरान सुगरा का जिक्र कर मनोहर के अंतर्मन को पढ़ सकती थी।
यद्यपि अब तक लाली को ना तो कोई इसका अंदाजा था और नहीं अपने घर के वरिष्ठ सदस्यों के मन में चल रहे इस अनोखे विचार के बारे में कोई आभास।

उधर विकास सोनी का खेत जोत जोत कर थक चुका था परंतु सोनी गर्भधारण करने में अक्षम रही थी जब बीज में दम नहीं था तो फसल क्या खाक उगती..
सोनी की वासना पर ग्रहण लग चुका था। सेक्स अब एक काम की भांति लगता था किसका परिणाम सिफर था। पर सोनी की सपने बदस्तूर जारी थे। सरयू सिंह उसके अवचेतन मन के सपनों के हीरो थे सोनी को यह आभास था कि हकीकत में यह संभव न था। कैसे वह नग्न होकर पितातुल्य सरयू सिंह को उसे चोदने के लिए आमंत्रित करेगी। या सरयू सिंह कैसे उसे नग्न कर उसकी गोरी जांघें फैलाएंगे और उसकी मुनिया को अपनी आंखों से देखेंगे..
आह वह पल कैसा होगा जब वह अपना तना हुआ विशाल लंड अपनी हथेलियों से मसलते हुए उसकी बुर के भग्नाशे पर रगड़ेंगे और उसे धीरे धीरे…..
आह सोनी ने महसूस किया कि आज बाद जागती आंखों से स्वप्न देखने को कशिश कर रही है…बुर में संवेदना जाग चुकी थी…सोनी इस एहसास को और महसूस करना चाहती थी…सरयू सिंह का लंड न सही उसकी जगह उसकी अंगुलियों ने बुर में अपनी हलचल बढ़ा दी. दिमाग में सरयू सिंह के साथ सोनी ने वो सारी कल्पनाएं की जो उसका चेतन मन शायद कभी न कर पाता पर वासना ग्रसित सोनी स्वतंत्र थी और उसकी सोच भी…
आखिर कर सोनी ने हांफते हुए एक सफल स्खलन को पूर्ण किया और ….अपनी नींद लेने लगी।
दिन बीत रहे थे…
उधर रतन मोनी के करीब आने की कोशिश में लगा हुआ था। माधवी यह बात जान चुकी थी और वह मोनी को अपना संरक्षण दी हुए थी वह मोनी कोर्नटन से दूर ही रखना चाहती थी। रतन ने जब में माधवी को धोखे से कूपे में अपने किसी लड़के से बेरहमी से चुदवाया तब से उनमें एक दूरी सी आ गईं थी।
मोनी धीरे धीरे पूरे आश्रम में प्रसिद्ध हो चुकी थी…अपनी सुंदरता कटावदार बदन और चमकते चेहरे की वजह से अनूठी लगती थी। उपर से इतने दिन कूपे में जाने के बावजूद उसका कौमार्य सुरक्षित था।
कूपे में धीरे धीरे रेटिंग सिस्टम भी शुरू हो चुका था..
लड़के कूपे में आई लड़की के सौन्दर्य और उसके कामुक अंगों के आधार पर अपनी रेटिंग देते। मोनी उसमें भी नंबर वन थी।
और इसी प्रकार मोनी ने अपने 11 महीने पूर्ण कर लिए।
विद्यानंद का यह अनूठा विश्वास था की स्त्री योनि को पुरुष यदि लगातार कामुकता के साथ स्पर्श चुंबन और स्पर्श करते रहे तो स्त्री को अपना काउमरीय सुरक्षित करना संभव था उसे संभोग के लालसा निश्चित ही उत्पन्न होती और वह संभोगरत हो ही जाती।
इस अनोखे कूपे का निर्माण भी शायद विद्यानंद ने अपने इसी विश्वास को मूर्त रूप देने करने के लिए बनवाया था। और वह काफी हद तक इसमें सफल भी रहा था। लगभग लड़किया कूपे में जाने के बाद अपना सुरक्षित रखने में नाकामयाब रहीं थी। कोई एक महीना तो कोई दो महीना कुछ चार पांच महीने तक तक भी अपना कौमार्य सुरक्षित रखने में कामयाब रहीं थीं। परंतु मोनी अनूठी थी उसने विद्यानंद की परीक्षा पास कर ली थी और 11 महीने बाद भी उसका कौमार्य सुरक्षित था।
आखिरकार विद्यानंद ने स्वयं मोर्चा संभाला। मोनी की अगली परीक्षा के लिए एक विशेष दिन निर्धारित किया गया। आश्रम में उत्सव का दिन था।
मोनी को आज के दिन होने वाली गतिविधियों का कोई भी पूर्वानुमान नहीं था बस उसे इतना पता था कि आज आश्रम में एक विशेष दिन है जिसमें उसकी अहम भूमिका है।
प्रातः काल नित्य कर्म के बाद उसे एक बार फिर कुंवारी लड़कियों के साथ उपवन भ्रमण के लिए भेज दिया गया सुबह के 10:00 बजे मोनी ने दुग्ध स्नान किया और तत्पश्चात सुगंधित इत्र और विशेष प्रकार की सुगंध से बहे कुंड में स्नान कराया गया।
मोनी का रोम रोम खिल चुका था। उसकी चमकती त्वचा और भी निखर गई थी पूरे शरीर में एक अलग किस्म की संवेदना थी त्वचा का निखार और चमक अद्भुत थी। त्वचा की कोमलता अफगान के सिल्क से भी मुलायम और कोमल थी।
मोनी को श्वेत सिल्क से बने गाउन को पहनाया गया और धीरे-धीरे मोनी आश्रम के उस विशेष कक्ष में उपस्थित हो गई।
विशेष कक्ष को करीने से सजाया गया था। राजा महाराजा के शयन कक्ष भी शायद इतने खूबसूरत नहीं होते होंगे जितना सुंदर आश्रम का यह खूबसूरत कमरा था।
बेहद खूबसूरत आलीशान पलंग पर लाल मखमली चादर बिछी हुई थी। सिरहाने पर मसलंद और तकिया करीने से सजाए गए थे। शयनकश की दीवारें खूबसूरत पेंटिंग और तरह-तरह की मूर्तियों से सुसज्जित थीं। कमरे से ताजे फूलों की भीनी भीनी खुशबू आ रही थी ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे यह संयनकक्ष किसी बाग के अंदर निर्मित किया गया हो।
मोनी भव्यता और सुंदरता दोनों से अभिभूत थी…उसे स्वयं किसी राजमहल की रानी होने का अनुमान हो रहा था धीरे-धीरे उसकी मातहत उसे उसे वैभवशाली पलंग तक ले आई और बेहद विनम्रता से कहा आप पलंग पर बैठ जाइए थोड़ी ही देर में आगे की दिशा निर्देश दिए जाएंगे।
मोनी आश्चर्य से होने वाली घटनाक्रम को अंदाज रही थी। तभी कमरे में एक गंभीर आवाज गूंजी
देवी आप धन्य है.. आप शायद आश्रम की ऐसी पहली युवती है जिसने पिछले 11 महीनो से लगातार पुरुष प्रजाति की सेवा करने के पश्चात भी अपना कौमार्य सुरक्षित रखा है। मैं आपसे काफी प्रभावित हूं। इस आश्रम के नियमों के अनुसार आपको अंतिम परीक्षा से गुजरना होगा। इस परीक्षा में सफल होने के पश्चात आपको भविष्य में किसी कूपे में जाने की आवश्यकता नहीं होगी परंतु यदि आप चाहे तो स्वेच्छा से अवश्य जा सकती है..
इसके अतिरिक्त आपको आश्रम में एक विशेष दर्जा प्राप्त होगा जो निश्चित ही आपके लिए सम्मान का विषय होगा।
यह परीक्षा आपके यौन संयम की ही परीक्षा है जिसमें अब तक आप सफल होती आई है। यदि आप इस परीक्षा में स्वेच्छा से भाग लेना चाहती हैं तो अपने दोनों हाथ जोड़कर खड़े हो जाए और अपना श्वेत वस्त्र स्वयं निकालकर पास पड़ी टेबल पर रख दें। उसी टेबल पर एक रुमाल नुमा कपड़ा रखा होगा उसे स्वयं अपनी आंखों पर बांध ले। आपकी परीक्षा लेने वाला पुरुष शायद आपसे नजरे नहीं मिल पाएगा और आपको भी उसे देखने की चेष्टा नहीं करनी चाहिए यह नियमों के विरुद्ध होगा।
कूपे की भांति इस समय भी आपके पास लाल बटन उपलब्ध रहेगा जो की पलंग के सिरहाने रखा हुआ है आप जब चाहे उसे दबाकर उस व्यक्ति को अपनी गतिविधियां रोकने के लिए इशारा कर सकती है।
ध्यान रहे लाल बटन का प्रयोग सिर्फ तभी करना है जब पुरुष आपसे ज्यादती कर रहा हो…
मुझे विश्वास है कि आप नियम पूरी तरह समझ चुकी होगी। मेरी तरफ से हार्दिक शुभकामनाएं..
वह गंभीर आवाज अचानक ही शांत हो गई. मोनी को यह आवाज कुछ जानी पहचानी लग रही थी परंतु लाउडस्पीकर से आने की वजह से वह पूरी तरह आश्वस्त नहीं हो पा रही थी।
मोनी ने मन ही मन इस परीक्षा में भाग लेने की ठान ली। वैसे भी वह अब तक आश्रम में विशेष सम्मान पाती आई थी उसके मन में और भी ऊपर उठने की लालसा प्रबल थी। मोनी उठकर अपना श्वेत रंग का गाउन उतरने लगी जैसे-जैसे वह गांव उसके बदन का साथ छोड़ता गया मोनी की मादक और चमकती काया नग्न होने लगी। सामने आदमकद दर्पण में अपनी खूबसूरत बदन को निहारती मोनी स्वयं अपनी सुंदरता से अभीभूत हो रही थी।
तरासे हुए उरोज, पतली गठीली कमर.. मादक और भरी-भरी जांघें और उनके जोड़ पर बरमूडा ट्रायंगल की तरह खूबसूरत त्रिकोण जिस पर कुदरत का लगाया वह अद्भुत चीरा जिसके अंदर प्रकृति का सार छुपा हुआ था। मोनी का यह रहस्य अब तक उजागर नहीं हुआ था। वह स्खलित तो कई बार हुई थी पर अपने कौमार्य को बचाने में सफल रहीं थी…
मोनी अपने पैर आगे पीछे कर अपने गदराए नितंबों को देखने का लालच नहीं रोक पा रही थी। वह पीछे पलटी और अपनी गर्दन घूमाकर दर्पण में अपने बदन के पिछले भाग को देखने लगी मोनी के नितंब बेहद आकर्षक थे वह अपनी हथेलियां से उसे छूती और उसकी कोमलता और कसाव दोनों को महसूस करती।
वह मन ही मन ईश्वर को इतनी सुंदर काया देने के लिए धन्यवाद कर रही थी । आखिरकार उसने अपनी आंखों पर सफेद रुमाल को लपेटकर जैसे ही मोनी ने गांठ बंधी उसकी आंखों के सामने के दृश्य ओझल होते गए। उसे इतना तो एहसास हो रहा था कि कमरे में अब भी रोशनी थी परंतु आंखों से कुछ दिखाई पड़ना संभव नहीं था।
वह चुपचाप बिस्तर पर बैठ गई अपनी जांघें एक दूसरे से सटाए वह अपने परीक्षक का इंतजार कर रही थी।
शेष अगले भाग में..
बहुत ही शानदार और लाज़वाब अपडेट है नियति अपना खेल खेल रही है और सोनू अपना खेल खेल रहा है वह शतरंज की विसात बिछा रहा है दोनों ही अपनी तरफ से जीतने की पूरी कोशिश कर रहे हैं देखते जीत किसकी होती है नियति या मनुष्य की????
 
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