भाग 151
वह मन ही मन ईश्वर को इतनी सुंदर काया देने के लिए धन्यवाद कर रही थी । आखिरकार उसने अपनी आंखों पर सफेद रुमाल को लपेटकर जैसे ही मोनी ने गांठ बंधी उसकी आंखों के सामने के दृश्य ओझल होते गए। उसे इतना तो एहसास हो रहा था कि कमरे में अब भी रोशनी थी परंतु आंखों से कुछ दिखाई पड़ना संभव नहीं था।
वह चुपचाप बिस्तर पर बैठ गई अपनी जांघें एक दूसरे से सटाए वह अपने परीक्षक का इंतजार कर रही थी।
अबआगे
उधर बनारस में
सरयू सिंह अब सुगना के घर में पूरी तरह सेट हो चुके थे कजरी पदमा और सुगना तीनों मिलजुल कर रहते। यह एक संयोग ही था की सरयू सिंह तीनों ही स्त्रियों से संभोग सुख प्राप्त कर चुके थे।
जहां पद्मा ने सरयू सिंह की युवा अवस्था में उनसे संभोग किया था वही कजरी उनकी भाभी होने के बावजूद पूरे समय तक उन्हें पत्नी का सुख देती रही थी और सुगना….आह … वो तो सरयू सिंह के जीवन में एक सुगन्ध की तरहआई और सरयू सिंह के जीवन को जीवंत कर दिया।
सुगना के साथ बिताया वक्त और कामुक पल ने सरयू सिंह की वासना को एक नए आयाम तक पहुंचाया और उन्होंने सुगना को जैसे अपनी वासना विरासत में दे दी थी। नियति एक पिता से उसकी वासना अपनी पुत्री में स्थानांतरित होते हुए देख रही थी।
परंतु यह सरयू सिंह का दुर्भाग्य ही था कि उन्हें सुगना और अपने बीच के रिश्ते का सच मालूम चल गया अन्यथा वह आज भी जी भर कर सुगना को भोग रहे होते और शायद सुगना भी इसे सहर्ष स्वीकार कर रही होती। सुगना और सोनू के करीब आने में सरयू सिंह की अहम भूमिका थी न तो वह सुगना के आगोश से बाहर जाते और न हीं उस रिक्त स्थान की पूर्ति के लिए सोनू सुगना के और करीब आजाता।
बनारस आने के बाद सरयू सिंह की उत्तेजना शिथिल पड़ रही थी। एकांत का समय कम ही मिल पाता। दिन भर बच्चे उन्हें घेरे रहते और सूरज तो उन्हें बेहद प्यार था वह उसे पढ़ते लिखाते और तरह-तरह के ज्ञान देते। एक गुसलखाना ही ऐसी जगह थी जहां वह अपनी काम पिपासा को गाहे बगाहे शांत करते और इसमें इनका साथ देती सोनी…
यद्यपि सरयू सिंह को यह बखूबी अहसास था कि सोनी से संभोग वह सिर्फ अपनी कल्पनाओं में ही कर सकते थे ऐसा कोई भी कारण या निमित्त न था जिससे उन्हें सोनी को भोगने का अवसर प्राप्त होता। उन्हें कभी-कभी अपनी किस्मत पर भरोसा होता कि जैसे ईश्वर ने सुगना को उनके करीब ला दिया था कभी ना कभी हो सकता है सोनी स्वयं ही उनके करीब आ जाए.. पर विचार मुंगेरीलाल के हसीन सपनों से कम न थे।
सपने उम्मीद की पराकाष्ठा होते हैं जिस उम्मीद की रूपरेखा ना हो वह सपनों में तब्दील हो जाती है।
बहरहाल सरयू सिंह की कामवासना को जिंदा रखने में अब सिर्फ सोनी का ही योगदान था उनकी तीनों परियां अब उनकी वासना का साथ छोड़ चुकी थी परंतु उनका ख्याल रखने में कोई कमी नहीं थी। वह घर के हीरो थे और एक धरोहर की भांति उनकी सेवा होती थी। वो सभी का स्नेह पाते पर उनका लंड स्त्री स्पर्श और कसी हुई बुर के लिए तरसता रहता।
शाम सोनू और लाली जौनपुर से बनारस आने वाले थे..
शाम की चाय का वक्त था सुगना चाय बनाकर लाई और पूरा परिवार चाय पीने लगा तभी सरयू सिंह ने कहा.
“सोचा तनी कल सलेमपुर चल जाई”
कजरी ने उत्सुकता बस पूछा
“काहे का बात ?”
“अरे खेत के मालगुजारी खाती कुछ कागज देबे के बा”
“ आप कहा बस से जाईब सोनू आज आवता सुगना के लेकर चल जाए हमरो कुछ सामान लेके आवेके बा” कजरी ने सरयू सिंह से कहा अब कजरी की वाणी में एक अधिकार महसूस होता जो उम्र के साथ पत्नी की आवाज में महसूस होता है।
सुगना के मन में लड्डू फूटने लगे सोनू का साथ उसके लिए बेहद रोमांचक और कामुक होता था और अब सुगना सोनू के साथ एकांत का इंतजार करती थी। उसने झटपट कजरी की हां में हां मिलाई और बोली
“बाबूजी हम कल सोनू के साथ चल जाएब आप सूरज के ध्यान राख लेब”
तभी पदमा भी बोल उठी
“ओहिजा से तनी सीतापुर भी चल जईहे हमार बक्सा से साल ले ले आईहै”
सुगना को एक पल के लिए लगा जैसे सारा समय आने जाने में ही बीत जाएगा वह थोड़ा सकुचाई परंतु अपनी मां की बात काटने का साहस न जुटा पाई..
सुगना को क्या पता था कि उसकी मां ने उसे जो काम बताया था वह सुगना की मां की लालसा पूरी करने वाला था।
“ठीक बा कॉल तनी जल्दी निकल जाएब..” सुगना मन ही मन बेहद प्रसन्न थी।
पदमा और कजरी शाम के खाने की बातें करने लगी और कुछ ही देर बाद में उनकी तैयारी में लग गई। सुगना ने हमेशा की भांति सोनू के आगमन की खुशी में स्नान किया अपनी मुनिया को धो पोंछ कर चमका दिया खुद को सजाया संवारा। उसे पता था सोनू कुछ पलों के साथ में भी कामुक हो सकता था इसलिए वह हमेशा खुद को सोनू के लिए तैयार रखती थी।
जितना प्यार सोनू अपने दहेज से करता था सुगना को इसका बखूबी अहसास था। सोनू के होंठ सुगना के निचले होठों से मिलन के लिए हमेशा आतुर रहते थे और सुगना अपने सोनू को कतई निराश नहीं करना चाहती थी।
वह अब जानबूझकर सोनू की उपस्थिति में अपनी पैंटी का परित्याग कर देती थी। सोनू और सुगना का साहस बढ़ता जा रहा था उन्हें यह आभास नहीं था कि उनके बीच के कामुक संबंध कभी पकड़े भी जा सकते हैं। सुगना सज धज कर एक ताजा खिले फूल की तरह इधर-उधर मर्डर रही थी उसने संध्या आरती की और घर में चारों तरफ आरती की थाल घूमाने लगी..
सुगना सोनू और लाली का इंतजार कर रहे थी वह बार-बार दरवाजे की तरफ जाती और सोनू की गाड़ी की आहट सुनने के लिए उसके कान तरस रहे थे…
नियती ने सुगना को निराश ना किया कुछ ही देर में गाड़ी की आवाज सुनाई पड़ी और सुगना हाथों में आरती का थाल लिए भागती हुई दरवाजा खोलने गई।
सुगना ने एक हांथ से दरवाजा खुला और सामने मनोहर को देखकर थोड़ा उदास हो गई उसे सोनू का इंतजार था मनोहर का आना अप्रत्याशित था.. वह एक कदम पीछे हटी और तुरंत ही अपने हाथों में पकड़ी आरती की थाल मनोहर के आगे कर दी।
बेहद सलीके से पारंपरिक साड़ी में तैयार हुई, और हाथों में आरती का थाल लिए सुगना.. एक आदर्श स्त्री की भांति मनोहर के सामने खड़ी थी। खूबसूरत बदन, कामुक काया, चमकती त्वचा और बेहद सुंदर मासूम चेहरे के साथ सुगना एक आदर्श युवती की भांति दिखाई पड़ रही थी। मनोहर सुगना को एक टक देखा ही रह गया..
उसके हाथ आरती लेने के लिए आगे बढ़े पर नज़रें सुगना के चेहरे से नहीं हट रही थी। सुगना ने अपनी पलके झुका ली और आरती की थाल के ऊपर घूमते मनोहर के मजबूत हाथों को देखने लगी।
स्थिति आशाए होते हुए देखकर सुगना सतर्क हुई और बेहद संजीदगी से बोली…
“अंदर आइए ……मां मनोहर जी आए हैं” आखरी वाक्यांश कहते हुए सुगना की आज आवाज स्वाभाविक रूप से थोड़ा ऊंची हो गई थी।
मनोहर अंदर आ गया उसने पूछा
“अरे लाली और सोनू अभी तक पहुंचे नहीं क्या ?”
सुगना ने मनोहर को बैठने का इशारा किया और बोली “आते ही होंगे हम लोग भी इंतजार ही कर रहे हैं”
मनोहर स्वयं अपनी आतुरता पर अब खुद को कोस रहा था आखिर इतनी भी क्या जल्दी थी सुगना के घर आ धमकने की परंतु मन ही मन वह सुगना को देखना चाहता था उससे बात करना चाहता था शायद इसीलिए वह अपनी अधीरता पर काबू न कर सका और झटपट सुगना के घर आ धमका था।
सुगना ने रसोई में जाकर अपनी मां पदमा और कजरी को मनोहर के आने की सूचना दी और गिलास में पानी लेकर मनोहर के पास आ गई। जैसे ही सुगना पानी देने के लिए आगे झुकी मनोहर की आंखों ने वह दृश्य देख लिया जिसके बारे में न जाने उसने कितनी बार कल्पना की थी सुगना के दुग्ध कलश जो ब्लाउज के भीतर कैद होने के बावजूद अपने आकार और कोमलता का प्रदर्शन कर रहे थे वह मनोहर की आंखों के सामने नृत्य करने लगे।
मनोहर की आंखें बरबस सुगना की चूचियों पर टिक गई आज पहली बार सुगना में मनोहर की कामुक निगाहों को अपने बदन पर महसूस किया और तुरंत ही अपनी साड़ी का आंचल ठीक किया और दुग्ध कलश पर एक झीना ही सही परंतु मजबूत आवरण डाल लिया
सुगना अपनी आंखें मनोहर से नहीं मिला सकी। मनोहर अब तक उसकी निगाहों में छिछोरा नहीं था वह एक काबिल , संजीदा और सम्मानित व्यक्ति था परंतु आज सुगना ने मनोहर में एक कामुक पुरुष को देखा था। वह तुरंत ही सचेत हो गई। जैसे ही मनोहर ने पानी का गिलास पकड़ा वह खड़ी हो गई और वापस रसोई घर की तरफ चली गई।
कुछ ही देर में उसकी मां पदमा मनोहर के पास आ चुकी थी। सुगना ने बखूबी अपनी मां पदमा को मनोहर से बातें करने के लिए लगा दिया था और किचन में अपनी सास कजरी के साथ रसोई के कार्य में लग गई।
थोड़ी ही देर बाद सोनू और लाली भी पहुंच गए और एक बार फिर सुगना का घर गुलजार हो गया। जब जब सोनू सुगना के आसपास रहता सुगना के पूरे बदन में आनंद की तरंगे दौड़ रही होती। वह सचेत रहती उसे यह बखूबी अहसास रहता है कि सोनू कभी भी उसे अपने आलिंगन में ले सकता है …उसकी चूचियां मीस सकता है उसके होंठ चूम सकता है और अपना बना हुआ लंड उसके नितंबों से सटा सकता है ।
सोनू क्या करेगा यह अप्रत्याशित रहता परंतु कुछ ना कुछ करेगा जरूर सुगना यह बात भली भांति जानती थी।
उधर बच्चों की मौज हो गई थी। सब एक दूसरे से मिलकर शोर शराब करने लगे। सरयू सिंह भी अपना हाट बाजार घूम कर वापस आ चुके थे।
शहर में भी गांव सा माहौल हो गया था घर की भीड़भाड़ बरबस ही गांव की याद दिला देती है।
बातचीत का क्रम आगे बढ़ा और तभी कुछ अप्रत्याशित हुआ सरयू सिंह अपनी भावनाओं पर नियंत्रण नहीं रख पाए और मनोहर से बोल बैठे.
“बेटा मनोहर आगे कब तक अकेले रहने का इरादा है…जो हुआ उसे भूल जाना ही उचित होगा यह जीवन है इसे तो जीना ही है एक साथी रहेगा तो यह जीवन आसानी से सुखद रूप से बीतेगा..”
सोनू भी यह वार्तालाप सुन रहा था वह सरयू सिंह का इशारा बखूबी समझ चुका था उसने भी सरयू सिंह की हां में हां मिलाई और बोला ।
“हां यह बात सच है आपको दूसरा विवाह कर लेना चाहिए…आखिर एक से दो भले”
मनोहर मन ही मन प्रसन्न हो रहा था यद्यपि सरयू सिंह और सोनू की बातों में कहीं भी सुगना का जिक्र न था परंतु मनोहर के दिमाग में सिर्फ और सिर्फ सुगना घूम रही थी वह हर बात को सुगना से ही जोड़कर देख रहा था उसका अंतर्मन इस कल्पना मात्र से खुश हो रहा था।
“हां चाचा जी कभी-कभी सोचता हूं देखता हूं कब कोई उचित जीवनसाथी मिलता है”
अचानक सुगना गरम पकोड़े लेकर उनके बीच हाजिर थी।
क्या अनूठा संयोग था सुगना एक-एक करके पकौड़े अपने पूर्व प्रेमी सरयू सिंह वर्तमान प्रेमी सोनू और अपने मन में सुगना का भविष्य बनने की लालसा लिए मनोहर.. की प्लेट में डाल रही थी।
मुस्कुराती हुई अपनी अल्हड़ जवानी को समेटने की नाकाम कोशिश करती हुई सुगना मनोहर और सोनू दोनों के लंड में जान डालने में कामयाब रही थी सरयू सिंह का तो जैसे स्विच ही ऑफ हो गया था।
सुगना की उपस्थिति में आगे बात करना कठिन था। सरयू सिंह ने बात बदल दी और नरसिम्हा राव के बारे में वार्तालाप करने लगे। बात आई गई हो गई।
सरयू सिंह और मनोहर थोड़ा टहलने के उद्देश्य से गली में चल कमी कर रहे थे
सुगना और लाली दोनों लाली के कमरे में हंसी ठिठोली कर रही थी। सोनू बच्चो के साथ खेल रहा था। तभी सोनू ने लाली को अपने कमरे से निकाल कर बाथरूम की तरफ जाते देखा।
इधर लाली ने बाथरूम का दरवाजा बंद किया और उधर सोनू पलक झपकते ही सुगना के पास था। लाली और सुगना दोनों अपनी साड़ी अपनी जांघों तक उठा रहे थे लाली का उद्देश्य सर्वविदित था और सुगना सोनू का इशारा समझ चुकी थी और कुछ ही पलों में सोनू के अधरों को उसके दहेज पर घूमते महसूस कर रही थी।
सोनू के पास ज्यादा वक्त ना था लाली के कदमों के आहट के साथ ही वह सतर्क हो गया.. सोनू को पता था उसके पास वक्त कम था पर वो उसका सदुपयोग करने में सफल रहा था।
जब तक लाली कमरे के दरवाजे तक पहुंचती सोनूअपने लंड में उत्तेजना लिए कमरे से बाहर निकल रहा था। होंठो पर सुगना की बुर से चुराया मदन रस चमक रहा था। सुगना और सोनू दोनों के चेहरे पर मुस्कुराहट थी और धड़कनें तेज थी और गर्दन के दाग पर भी इसका कुछ असर आ गया था. ऐसा प्रतीत होता था जैसे गर्दन का दाग काम आनंद के अनुरूप और समानुपातिक था।
लाली को एक बार फिर शंका हुई परंतु नतीजा सिफर था… सुगना ने लाली के चेहरे के भाव पढ़ने की कोशिश की और बोला
“का सोचे लगले ?”
लाली के पास कोई उतरना था उसके मन में जो वहम था उसे होठों पर लाना कठिन था पाप था।
लाली और सुगना इधर-उधर की बातें कर रहे थे तभी लाली ने अचानक ही एक नया सुर छेड़ दिया…
ए सुगना अब तेरा मन नहीं करता है क्या?
सोनू से विवाह के पश्चात लाली और सुगना कभी भी अंतरंग नहीं हुईं थीं। और शायद इसकी आवश्यकता भी नहीं थी। फिर भी सुगना ने लाली का इशारा समझ लिया और मुस्कुराते हुए बोली..
काहे का?
लाली ने उसकी चूचियों को मीसते हुए बोला..
“मेरे साथ रजाई में…”
सुगना ने लाली को अपने आलिंगन में कसते हुए कहा
“जब सोनू छोड़ी तब नू….”
दोनों सहेलियां एक दूसरे के आलिंगन में आ गई और लाली ने सुगना के कान में कहा
“आज तू हमारा भीरी सुतिहा”
सुगना ने इशारों ही इशारों में अपनी मौन स्वीकृति दे दी..
तभी सुगना का पुत्र सूरज …कमरे में प्रवेश कर रहा था सुगना लाली से तुरंत ही दूर हो गई…और अपने पुत्र को गोद में लेकर प्यार करने लगी।
कुछ ही देर बाद रात्रि के खाने की तैयारी होने लगी…मनोहर और सुगना की नजरे कई चार हुई और हर बार सुगना ने मनोहर की आंखों में कुछ अलग देखा उसने अपनी नज़रें झुका ली परंतु मनोहर का यह व्यवहार उसे असहज कर रहा था।
घर के तीनों बुजुर्ग जिस प्रकार मनोहर से घुल मिलकर बात कर रहे थे उससे मनोहर को काफी अपनापन महसूस हो रहा था और ऐसा लग रहा था जैसे वह इस परिवार का ही एक हिस्सा हो..
सुगना को लेकर मनोहर के मन में भावनाएं हिलोरे लेने लगी थी। उधर घर के तीनों बुजुर्ग मनोहर को लेकर अब संजीदा हो चुके थे वह अपने ईश्वर से इस जोड़ी को एक करने की मन ही मन गुहार लगा रहे थे…
यह बात अभी सबके मन में ही थी इस पर ना तो अभी लाली से चर्चा हुई थी और ना ही सोनू से। और सुगना तो इस पूरे घटनाक्रम से ही अनभिज्ञ थी।
खाना खाने के पश्चात मनोहर वापस जा चुका था। लाली और कजरी मिलकर किचन में बर्तन साफ कर रही थी तभी कजरी ने अपने मन की बात कह दी..
“ए लाली मनोहर दोसर बियाह ना करिहें का?”
“काहे का बात बा?”
लाली को यह प्रश्न बिल्कुल भी आउट ऑफ सब्जेक्ट लगा।
“कुछ ना …असही पूछता रहनी हां अतना सुंदर और सुशील लइका बाड़े पूरा जीवन अकेले कैसे कटिहें?”
“लेकिन चाची तू ई बात काहे पूछत बाड़ू?”
कजरी लाली के पास गई और उसके कान में धीरे से कहा..
“सोचत बानी की सुगना के भी दोसर बियाह कर दीहल जाओ.. रतन के आवे के अब कोनो उम्मीद नईखे”
लाली के दिमाग में घंटियां बजने लगी उसके लिए यह वार्तालाप कल्पना से परे था इससे पहले की लाली कुछ बोल पाती सुगना रसोई घर में आ धमकी और उसने कजरी को लाली के कान में कुछ बोलते देख लिया और अपनी सास कजरी से बोली..
“अरे कान में क्या बोलत बाड़ू? साफ-साफ बोल”
कजरी ने तुरंत बाद पलट दी और बोली
“कल तोरा सलेमपुर जाए के बा नू इहे बतावत रहनि हा”
अब चौंकने की बारी लाली की थी..
कजरी ने बिना प्रश्न पूछे दोबारा अपनी बात दोहराई
“कल सुगना के सोनू के साथ सलेमपुर जाए के बा कुछ कागज के काम बाटे “
लाली को पिछली बार सुगना और सोनू के एक साथ जाने और लौटने का वक्त याद आ गया जब उसने सुगना के इत्र की खुशबू सोनू के लंड से महसूस की थी.. औरतों और उसके गर्दन का दाग उसे दिन चरम पर था।
लाली तपाक से बोल उठी
“कल हम भी जाएब मां बाबूजी से मिले बहुत दिन हो गइल बा”
लाली ने जिस दृढ़ता से यह बात कही थी उसकी बात काट पाना मुश्किल था। सुगना ने स्थिति की गंभीरता को समझते हुए कहा
“ठीक बा तू भी चल चलीहा”
सुगना एक पल के लिए तो उदास हो गई परंतु उसे अपनी मां पदमा की बात याद आ गई उसे सीतापुर भी जाना था सुगना मन ही मन मुस्करा उठी इस बार सोनू के साथ अपने इस घर में जिसमें वह जवान हुई थी उसे घर से उसकी किशोरावस्था और बचपन की कई यादें जुड़ी थी सुगना मन ही मन अपनी किशोरावस्था के दिन याद करने लगी।
सुगना को आज लाली के साथ सोना था.. लाली ने स्वयं सुगना के साथ आज अंतरंग होने की इच्छा व्यक्त की थी दोनों सहेलियां पहले भी एक दूसरे की बाहों में अपनी कामुकता शांत करती आईं थी पर सोनू से विवाह होने के बाद यह पहला अवसर था।
सुगना बच्चों और सोनू को दूध देने के लिए उनके कमरे में गई और उसने सोनू के कान में कुछ ऐसा कहा जिससे सोनू के चेहरे पर चमक आ गई उसने सुगना का हाथ चूम लिया। सोनू रात का इंतजार करने लगा।
धीरे-धीरे सभी अपने-अपने शयन कक्ष की तरफ बढ़ चले।
शयन व्यवस्था आज बदली हुई थी.. सोनू सुगना के बच्चों के साथ उसके कमरे में सो रहा था. लाली और सुगना दोनों आज एक ही बिस्तर पर पड़े गप्पे मार रहे थे कुछ देर तक कजरी और पदमा भी उनके साथ थी परंतु थोड़ी ही देर बाद उन्हें नींद आने लगी और वह अपनी अपनी जगह पर सोने चली गई इस वक्त कल तीन लोग जाग रहे थे लाली और सुगना और उन दोनों का प्यारा सोनू….
सोनू को सुगना का इंतजार था और लाली को सुगना का…
कुछ होने वाला था...