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Incest आह..तनी धीरे से.....दुखाता.

whether this story to be continued?

  • yes

    Votes: 43 97.7%
  • no

    Votes: 1 2.3%

  • Total voters
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Lovely Anand

Love is life
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आह ....तनी धीरे से ...दुखाता
(Exclysively for Xforum)
यह उपन्यास एक ग्रामीण युवती सुगना के जीवन के बारे में है जोअपने परिवार में पनप रहे कामुक संबंधों को रोकना तो दूर उसमें शामिल होती गई। नियति के रचे इस खेल में सुगना अपने परिवार में ही कामुक और अनुचित संबंधों को बढ़ावा देती रही, उसकी क्या मजबूरी थी? क्या उसके कदम अनुचित थे? क्या वह गलत थी? यह प्रश्न पाठक उपन्यास को पढ़कर ही बता सकते हैं। उपन्यास की शुरुआत में तत्कालीन पाठकों की रुचि को ध्यान में रखते हुए सेक्स को प्रधानता दी गई है जो समय के साथ न्यायोचित तरीके से कथानक की मांग के अनुसार दर्शाया गया है।

इस उपन्यास में इंसेस्ट एक संयोग है।
अनुक्रमणिका
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भाग 126 (मध्यांतर)
 
Last edited:

komaalrani

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स्वर्ण जयंती पोस्ट सचमुच स्वर्णिम है. किसी भी रचना को आगे बढ़ाने के लिए, उसे अर्थगर्भित करने के लिए एक द्वन्द या कांफ्लिक्ट की आवश्यकता होती है, और शिवानंद और सरयू सिंह तथा कजरी के मिलने में यह अच्छी तरह रेखांकित हो गया।

चित्रलेखा का स्मरण तो आपको और आपके पाठक पाठिकाओं को होगा ही , भगवती चरण वर्मा जी का एक कालजयी उंपन्यास, जिसकी शुरुआत ही इस कठिन प्रश्न से होती है, " और पाप क्या है ? " चित्रलेखा में दो चरित्र हैं बीजगुप्त और कुमारगुप्त और द्वन्द दो जीवन दृष्टियों का है, और कुछ कुछ उसकी अंनुगूंज मुझे सरजू सिंह और शिवानंद में दिखती है. शिवानंद उसे टोकता है, माथे के निशान के लिए, जो सुगना से उसके संबंध से जुड़ा है, और सरजू सिंह के मन में एक झंझावात शुरू होता है, ' पाप क्या है "?

मेरे नेते इस कहानी के सबसे शक्तिशाली चरित्रों में से एक सरजू सिंह हैं. उनके अंदर एक कमी है, काम भावना की, ... आपने इस बात को पहले भी इंगित किया था की सुगना से उनका संबंध मात्र सुगना को पुत्र देने का नहीं है बल्कि काम भावना से भी प्रेरित है क्योंकि वह उसे गर्भ न होने की दवाएं भी देते हैं, और यह एकदम सही है। कोई भी कथा तबतक आगे नहीं बढ़ती जबतक हीरो के चरित्र में कोई एक एक महत्वपूर्ण कमी न हो, और वही घटनाओं को घटित कराती है, एक त्रासदी को जन्म देती है , मैंने अपनी एक पिछली पोस्ट में ग्रीक त्रासदियों का उल्लेख किया था. पर सरजू सिंह विवाहित नहीं हैं , सुगना से संबंध बना कर उन्होंने किसी के साथ धोखा नहीं किया , कजरी की भी सहमति के साथ लेकिन उसके सामने अगर हम शिवानंद को देखें, आपने जितना अच्छा बनारस महोत्स्व का और शिवानंद के कक्ष का चित्र उकेरा है, वैभव, ऐश्वर्य से वो परे नहीं है और धर्म,... ब्रम्हचर्य आश्रम में जो करना वर्जित है वही गृहस्थ आश्रम में धर्म है , पत्नी, पुत्र को छोड़कर चले जाना, ... के गृहस्थ आश्रम के धर्म के परे नहीं है। और कजरी को उस मिलन के मौके पर जिस तरह की उपेक्षा मिली , उसने उस कष्ट को कई गुना कर दिया होगा

खैर, एक अच्छी कहानी की पहचान यही है की वह हर पढ़ने वाले को अपने ढंग से सोचने पर मजबूर कर दे, मात्र वाग विलास न हो , इसलिए एक बार फिर मेरी यही गुजारिश है , की इतनी अच्छी कहानी को कुछ लोगों तक सिमित न रखें उसे यहीं पोस्ट करें जिसे सुरसरि की तरह सबको उसमे अवगाहन का आनंद मिले,
 

Royal boy034

Member
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कहानी का गोल्डन जुबली यानी 50वां भाग उन सभी पाठकों को भेज दिया गया है जिन्होंने कहानी से अपना जुड़ाव दिखाया है।
जिन पाठकों को यह नही प्राप्त हुआ हो कृपया इसी थ्रेड में सूचित करें मैं आपको भी भेज दूंगा।

सादर आभार। शुभ रात्रि।
Plz share 50th update, I am unable to find it. Saguna aur sarayu singh ki anal chudai
 

Lovely Anand

Love is life
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Plz share 50th update, I am unable to find it. Saguna aur sarayu singh ki anal chudai
Welcome. I am including you.
 

Gentlemanleo

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स्वर्ण जयंती पोस्ट सचमुच स्वर्णिम है. किसी भी रचना को आगे बढ़ाने के लिए, उसे अर्थगर्भित करने के लिए एक द्वन्द या कांफ्लिक्ट की आवश्यकता होती है, और शिवानंद और सरयू सिंह तथा कजरी के मिलने में यह अच्छी तरह रेखांकित हो गया।

चित्रलेखा का स्मरण तो आपको और आपके पाठक पाठिकाओं को होगा ही , भगवती चरण वर्मा जी का एक कालजयी उंपन्यास, जिसकी शुरुआत ही इस कठिन प्रश्न से होती है, " और पाप क्या है ? " चित्रलेखा में दो चरित्र हैं बीजगुप्त और कुमारगुप्त और द्वन्द दो जीवन दृष्टियों का है, और कुछ कुछ उसकी अंनुगूंज मुझे सरजू सिंह और शिवानंद में दिखती है. शिवानंद उसे टोकता है, माथे के निशान के लिए, जो सुगना से उसके संबंध से जुड़ा है, और सरजू सिंह के मन में एक झंझावात शुरू होता है, ' पाप क्या है "?

मेरे नेते इस कहानी के सबसे शक्तिशाली चरित्रों में से एक सरजू सिंह हैं. उनके अंदर एक कमी है, काम भावना की, ... आपने इस बात को पहले भी इंगित किया था की सुगना से उनका संबंध मात्र सुगना को पुत्र देने का नहीं है बल्कि काम भावना से भी प्रेरित है क्योंकि वह उसे गर्भ न होने की दवाएं भी देते हैं, और यह एकदम सही है। कोई भी कथा तबतक आगे नहीं बढ़ती जबतक हीरो के चरित्र में कोई एक एक महत्वपूर्ण कमी न हो, और वही घटनाओं को घटित कराती है, एक त्रासदी को जन्म देती है , मैंने अपनी एक पिछली पोस्ट में ग्रीक त्रासदियों का उल्लेख किया था. पर सरजू सिंह विवाहित नहीं हैं , सुगना से संबंध बना कर उन्होंने किसी के साथ धोखा नहीं किया , कजरी की भी सहमति के साथ लेकिन उसके सामने अगर हम शिवानंद को देखें, आपने जितना अच्छा बनारस महोत्स्व का और शिवानंद के कक्ष का चित्र उकेरा है, वैभव, ऐश्वर्य से वो परे नहीं है और धर्म,... ब्रम्हचर्य आश्रम में जो करना वर्जित है वही गृहस्थ आश्रम में धर्म है , पत्नी, पुत्र को छोड़कर चले जाना, ... के गृहस्थ आश्रम के धर्म के परे नहीं है। और कजरी को उस मिलन के मौके पर जिस तरह की उपेक्षा मिली , उसने उस कष्ट को कई गुना कर दिया होगा

खैर, एक अच्छी कहानी की पहचान यही है की वह हर पढ़ने वाले को अपने ढंग से सोचने पर मजबूर कर दे, मात्र वाग विलास न हो , इसलिए एक बार फिर मेरी यही गुजारिश है , की इतनी अच्छी कहानी को कुछ लोगों तक सिमित न रखें उसे यहीं पोस्ट करें जिसे सुरसरि की तरह सबको उसमे अवगाहन का आनंद मिले,
मेरे लिए कहानी का अस्तित्व उसके चरित्रों के सुदृढ रूप से गढ़ने में है। यदि लेखक ने चरित्रों को पाप, पुण्य और मर्यादा के नागफांस से निकाल, उन्हें वर्तमान के सत्य से सिंचित किया है तो कथानक अपने आप अपने परिणाम तक पहुंच जाता है। हम मनुष्य है, कलयुग में 21वी शताब्दी में विचरण कर रहे है जहां समाज हर अंतराल के बाद स्वीकार्य और अस्वीकार्य की परिभाषा बदलता है, ऐसे में सरजू, सुगना, कजरी, पद्दमा, लाली और राजेश के साथ मनोरमा सब जाने, देखे और जिये हुये चरित्र लगते है। मेरे लिए बाबूजी..... इसीलिए जीवंत रचना है।
 
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बनारस महोत्सव के तीसरे दिन वाला अपडेट जबरदस्त था । स्वामी विद्यानंद उर्फ बिरजू की सरयू सिंह और कजरी से मुलाकात बहुत ही शानदार ढंग से हुई । और दूसरी तरफ नियति ने मनोरमा मैडम की उनके पति के संग अधूरी चुदाई ने सरयू सिंह के साथ होने वाले मिलन की तरफ एक कदम ओर बढ़ा दिया । कहानी अपनी पूरी रफ्तार से आगे बढ़ रही है
 

Royal boy034

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Gajab ka 50th update hai, awesome...Manorama ka bhi hal niklega saryu singh ke aujar se. Full suspence ja rahi story, age kya hoga dekhate hai
 
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Lovely Anand

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मेरे लिए कहानी का अस्तित्व उसके चरित्रों के सुदृढ रूप से गढ़ने में है। यदि लेखक ने चरित्रों को पाप, पुण्य और मर्यादा के नागफांस से निकाल, उन्हें वर्तमान के सत्य से सिंचित किया है तो कथानक अपने आप अपने परिणाम तक पहुंच जाता है। हम मनुष्य है, कलयुग में 21वी शताब्दी में विचरण कर रहे है जहां समाज हर अंतराल के बाद स्वीकार्य और अस्वीकार्य की परिभाषा बदलता है, ऐसे में सरजू, सुगना, कजरी, पद्दमा, लाली और राजेश के साथ मनोरमा सब जाने, देखे और जिये हुये चरित्र लगते है। मेरे लिए बाबूजी..... इसीलिए जीवंत रचना है।
आपको बहुत-बहुत धन्यवाद मुझे भी कहानी के यह पात्र कहीं ना कहीं देखे हुए प्रतीत होते हैं कुछ घटनाएं अपवाद और कामुकता से ओतप्रोत हो सकती हैं परंतु सब की सब निराधार नहीं हैं।

कोमल जी के विचारों का आयाम अलग है परंतु आप सभी पाठक यदि दिल से इस कहानी से जुड़ रहे हैं तो निश्चय ही सभी का अंतर्मन एक है।

क्योंकि नियति का नियंत्रण स्वयं मेरे हाथों में है मैं आपको विश्वास दिलाता हूं की मैं कहानी के चरित्रों से न्याय करने का भरपूर प्रयास करता रहूंगा और यदि कहीं मैं भटका तो उम्मीद करता हूं आप सब मुझे वापस पटरी पर ला देंगे पाठकों का यही सहयोग और समर्थन किसी कहानी को अंजाम तक पहुंचाता है मैं सभी संजीदा पाठकों का तहे दिल से शुक्रगुजार हूँ।
 

Lovely Anand

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बनारस महोत्सव के तीसरे दिन वाला अपडेट जबरदस्त था । स्वामी विद्यानंद उर्फ बिरजू की सरयू सिंह और कजरी से मुलाकात बहुत ही शानदार ढंग से हुई । और दूसरी तरफ नियति ने मनोरमा मैडम की उनके पति के संग अधूरी चुदाई ने सरयू सिंह के साथ होने वाले मिलन की तरफ एक कदम ओर बढ़ा दिया । कहानी अपनी पूरी रफ्तार से आगे बढ़ रही है
धन्यवाद भाई
 

Lovely Anand

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Gajab ka 50th update hai, awesome...Manorama ka bhi hal niklega saryu singh ke aujar se. Full suspence ja rahi story, age kya hoga dekhate hai
धन्यवाद जी बस आप जैसे पाठवा की कमी खल रही थी जो कहानी पढ़ कर भी अपना विचार नहीं रख रहे थे मैं उम्मीद करता हूं कि आगे भी आपके विचार सुनने को मिलते रहेंगे धन्यवाद
 
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