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जोरू का गुलाम भाग २३७
बंबई -मंगलवार रात
३३,४६,२७९
करोल बाग़ के पास से एयर पोर्ट ,... एक आदमी बल्कि लड़की से उन्होंने मीटिंग प्रेस क्लब में रखी थी , पर उस लड़की ने खुद बोला की वो लाउंज में एयरपोर्ट पर मिल जायेगी ,
एक बात सीख ली थी, बल्कि दो बातें और उस प्रेस वाली लड़की से बातें करने में बहुत काम आयी।
पहली बात थी, बोलना कम, सुनना ज्यादा, हर शादी शुदा आदमी सीख लेता है लेकिन उसे आफिस में बिजनेस में इस्तेमाल करना सीखना एक अलग कला है। और साथ में सुनते हुए कान खोल के सुनना और उससे जो बोल रहा है उसके बारे में भी पता कर लेना
दूसरी बात थी, जो भी थोड़ा बहुत बोलना हो, उससे बोलने वाले को एनकरेज कर के अपने काम की बात निकलवा लेना
उस लड़की का ज्ञान, कॉन्टेक्ट्स और अगले दिन क्या होने वाला है, उसके बारे में अंदर की जानकारी अद्भुत थी।
वह एक सिंडिकेटेड कालम लिखती थी, ब्लूमबर्ग से लेकर मिंट और मनीकंट्रोल तक के लिए वो एक सिंडिकेटेड कालम लिखती थी, लेकिन उससे बड़ी बात ये थी की जो शेयर मार्केट के लिए राय देते थे, जिनकी राय की कदर झुनझुनवाला ऐसे लोग भी करते थे, जो बड़े बड़े फंड मैनेजर्स के पे रोल पे थे, ऐसे चार पांच लोग भी उससे राय लेते थे।
मुश्किल से २४-२५ साल की होगी, लेकिन १४-१५ साल की उम्र से वो स्टॉक मार्किट में घुस गयी थी, मैक्रो इकोनॉमिक्स में उसने स्टैनफोर्ड से पढ़ाई की, दो साल वाल स्ट्रीट में काम किया किसी हेज फंड, लेकिन इंडिपेंडेंट रहने की इच्छा , ....और देश की मिटटी के चक्कर में वापस मुंबई, लेकिन अभी उसने अपना अड्डा दिल्ली में बना लिया था, हाँ हफ्ते में दो तीन दिन मुम्बई,
एक बात उन्होंने सीख ली थी की असली खेल है नैरेटिव और मार्केट की गट फील, और वो अभी न तो इन्वेस्टमेंट के मूड में था और न उनकी कम्पनी के पक्ष में। मूड खिलाफ भी नहीं था, लेकिन हाई गेन वाली कैटगरी में नहीं था।
उन्हें मालूम था की वो लड़की उनसे कुछ राज खुलवाना चाहती है इसलिए जानबूझ के उन्होंने वो बातें बतायीं, जो सही भी थीं, एक दो दिन में होने वाली थीं, नैरेटिव और इन्वेस्टमेंट मूड उनकी कंपनी के पक्ष में करतीं।
दूसरे बहुत से बातें जो उन्हें एक्वायर करना चाहता था उसके बारे में पता चल गयी। मार्केट में कौन उसके साथ हैं, और उन्हें उनकी सपॉटिंग सरकारी संस्थाओ में कौन इन्वेस्टमेंट के डिसीजन लेता है उसकी क्या प्रायर्टीज हैं।
उनकी पैरेंट कम्पनी से जुड़ा वाशिंगटन में जो एक पेपर था उन्होंने बातचीत में उनके एकॉनिमक्स के कॉलमिस्ट का नाम लिया और ज्यादा तो नहीं लेकिन ये बस जिक्र किया की वो लोग इण्डिया में किसी यंग जर्नलिस्ट को ढूंढ रहे हैं।इतना चारा बहुत था,
आज रात से सारे इकनॉमिक साइट्स , न्यूज पेपर्स में क्या जाना है , ये सब उन्होंने डिसकस कर लिया , और कल सुबह से जितने चैनल हैं , सी एन बी ऍफ़ सी से लेकर एन डी टी वी बिजनेस तक ,...
_ और सबसे बड़ी बात ये थी की बैकचैनेल्स में, जो रिटेल शेयरवालो को एडवाइस देते हैं, उन्हें जहाँ से खबरें मिलती हैं, वहां भी आज रातो रात,.... उनके राइवल के खिलाफ और उनके सपोर्ट में, ' विश्वस्त सूत्र ' वाली बातें पहुँच जाएंगी.
हाँ फ्लाइट में बोर्डिंग के पहले दो काम और किया था उन्होंने।
जब उन्होंने दिल्ली में होटल में चेक इन किया तो मिसेज डिमेलो का नाम भी अपने पार्टनर की तरह रखा, आई डी भी मिसेज डी मेलो की नोट करा दीं थी और होटल से चेक आऊट उन्होंने नहीं किया, सामान भी नहीं खाली किया। मिसेज डी मेलो तो ट्रेन से दिल्ली पहुंची थी हीं, वो उस कमरें में दो दिन तक रही। फ्लाइट में भी लास्ट मिनट में अपने टिकट को बिजनेस क्लास में अपग्रेड करा लिया। फेसियल रिकग्निशन से बचने के लिए भी उन्होंने एक कैप लगा रखी थी।
फ्लाइट पौने छह बजे टर्मिनल टू पर पहुंच गयी , और उस के पहले उन्हें शेड्यूल मिल गया ,
१ - ७. ३० सेबी - बॉम्बे जिमखाना
२. ८. ४० , एल आई सी कॉर्पोरेट हेडक्वार्टस ,
३. ९. ३० एन बी ऍफ़ सी -यॉट क्लब
गनीमत है तीनों कोलाबा में थे , अमेरिकन कांसुलेट में उन्हें साढ़े ग्यारह के आस पास पहुँचना था , तबतक पैरेंट कम्पनी के आफिस खुल जाते , अमेरिका में।
बंबई -मंगलवार रात
३३,४६,२७९
करोल बाग़ के पास से एयर पोर्ट ,... एक आदमी बल्कि लड़की से उन्होंने मीटिंग प्रेस क्लब में रखी थी , पर उस लड़की ने खुद बोला की वो लाउंज में एयरपोर्ट पर मिल जायेगी ,
एक बात सीख ली थी, बल्कि दो बातें और उस प्रेस वाली लड़की से बातें करने में बहुत काम आयी।
पहली बात थी, बोलना कम, सुनना ज्यादा, हर शादी शुदा आदमी सीख लेता है लेकिन उसे आफिस में बिजनेस में इस्तेमाल करना सीखना एक अलग कला है। और साथ में सुनते हुए कान खोल के सुनना और उससे जो बोल रहा है उसके बारे में भी पता कर लेना
दूसरी बात थी, जो भी थोड़ा बहुत बोलना हो, उससे बोलने वाले को एनकरेज कर के अपने काम की बात निकलवा लेना
उस लड़की का ज्ञान, कॉन्टेक्ट्स और अगले दिन क्या होने वाला है, उसके बारे में अंदर की जानकारी अद्भुत थी।
वह एक सिंडिकेटेड कालम लिखती थी, ब्लूमबर्ग से लेकर मिंट और मनीकंट्रोल तक के लिए वो एक सिंडिकेटेड कालम लिखती थी, लेकिन उससे बड़ी बात ये थी की जो शेयर मार्केट के लिए राय देते थे, जिनकी राय की कदर झुनझुनवाला ऐसे लोग भी करते थे, जो बड़े बड़े फंड मैनेजर्स के पे रोल पे थे, ऐसे चार पांच लोग भी उससे राय लेते थे।
मुश्किल से २४-२५ साल की होगी, लेकिन १४-१५ साल की उम्र से वो स्टॉक मार्किट में घुस गयी थी, मैक्रो इकोनॉमिक्स में उसने स्टैनफोर्ड से पढ़ाई की, दो साल वाल स्ट्रीट में काम किया किसी हेज फंड, लेकिन इंडिपेंडेंट रहने की इच्छा , ....और देश की मिटटी के चक्कर में वापस मुंबई, लेकिन अभी उसने अपना अड्डा दिल्ली में बना लिया था, हाँ हफ्ते में दो तीन दिन मुम्बई,
एक बात उन्होंने सीख ली थी की असली खेल है नैरेटिव और मार्केट की गट फील, और वो अभी न तो इन्वेस्टमेंट के मूड में था और न उनकी कम्पनी के पक्ष में। मूड खिलाफ भी नहीं था, लेकिन हाई गेन वाली कैटगरी में नहीं था।
उन्हें मालूम था की वो लड़की उनसे कुछ राज खुलवाना चाहती है इसलिए जानबूझ के उन्होंने वो बातें बतायीं, जो सही भी थीं, एक दो दिन में होने वाली थीं, नैरेटिव और इन्वेस्टमेंट मूड उनकी कंपनी के पक्ष में करतीं।
दूसरे बहुत से बातें जो उन्हें एक्वायर करना चाहता था उसके बारे में पता चल गयी। मार्केट में कौन उसके साथ हैं, और उन्हें उनकी सपॉटिंग सरकारी संस्थाओ में कौन इन्वेस्टमेंट के डिसीजन लेता है उसकी क्या प्रायर्टीज हैं।
उनकी पैरेंट कम्पनी से जुड़ा वाशिंगटन में जो एक पेपर था उन्होंने बातचीत में उनके एकॉनिमक्स के कॉलमिस्ट का नाम लिया और ज्यादा तो नहीं लेकिन ये बस जिक्र किया की वो लोग इण्डिया में किसी यंग जर्नलिस्ट को ढूंढ रहे हैं।इतना चारा बहुत था,
आज रात से सारे इकनॉमिक साइट्स , न्यूज पेपर्स में क्या जाना है , ये सब उन्होंने डिसकस कर लिया , और कल सुबह से जितने चैनल हैं , सी एन बी ऍफ़ सी से लेकर एन डी टी वी बिजनेस तक ,...
_ और सबसे बड़ी बात ये थी की बैकचैनेल्स में, जो रिटेल शेयरवालो को एडवाइस देते हैं, उन्हें जहाँ से खबरें मिलती हैं, वहां भी आज रातो रात,.... उनके राइवल के खिलाफ और उनके सपोर्ट में, ' विश्वस्त सूत्र ' वाली बातें पहुँच जाएंगी.
हाँ फ्लाइट में बोर्डिंग के पहले दो काम और किया था उन्होंने।
जब उन्होंने दिल्ली में होटल में चेक इन किया तो मिसेज डिमेलो का नाम भी अपने पार्टनर की तरह रखा, आई डी भी मिसेज डी मेलो की नोट करा दीं थी और होटल से चेक आऊट उन्होंने नहीं किया, सामान भी नहीं खाली किया। मिसेज डी मेलो तो ट्रेन से दिल्ली पहुंची थी हीं, वो उस कमरें में दो दिन तक रही। फ्लाइट में भी लास्ट मिनट में अपने टिकट को बिजनेस क्लास में अपग्रेड करा लिया। फेसियल रिकग्निशन से बचने के लिए भी उन्होंने एक कैप लगा रखी थी।
फ्लाइट पौने छह बजे टर्मिनल टू पर पहुंच गयी , और उस के पहले उन्हें शेड्यूल मिल गया ,
१ - ७. ३० सेबी - बॉम्बे जिमखाना
२. ८. ४० , एल आई सी कॉर्पोरेट हेडक्वार्टस ,
३. ९. ३० एन बी ऍफ़ सी -यॉट क्लब
गनीमत है तीनों कोलाबा में थे , अमेरिकन कांसुलेट में उन्हें साढ़े ग्यारह के आस पास पहुँचना था , तबतक पैरेंट कम्पनी के आफिस खुल जाते , अमेरिका में।
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