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Incest आह..तनी धीरे से.....दुखाता.

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Lovely Anand

Love is life
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आह ....तनी धीरे से ...दुखाता
(Exclysively for Xforum)
यह उपन्यास एक ग्रामीण युवती सुगना के जीवन के बारे में है जोअपने परिवार में पनप रहे कामुक संबंधों को रोकना तो दूर उसमें शामिल होती गई। नियति के रचे इस खेल में सुगना अपने परिवार में ही कामुक और अनुचित संबंधों को बढ़ावा देती रही, उसकी क्या मजबूरी थी? क्या उसके कदम अनुचित थे? क्या वह गलत थी? यह प्रश्न पाठक उपन्यास को पढ़कर ही बता सकते हैं। उपन्यास की शुरुआत में तत्कालीन पाठकों की रुचि को ध्यान में रखते हुए सेक्स को प्रधानता दी गई है जो समय के साथ न्यायोचित तरीके से कथानक की मांग के अनुसार दर्शाया गया है।

इस उपन्यास में इंसेस्ट एक संयोग है।
अनुक्रमणिका
Smart-Select-20210324-171448-Chrome
भाग 126 (मध्यांतर)
 
Last edited:

jaishur

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अपडेट 90 और 91 सिर्फ उन्हीं पाठकों के लिए उपलब्ध है जो कहानी के पटल पर आकर कहानी के बारे में अपने अच्छे या बुरे विचार रख रहे हैं यदि आप भी यह अपडेट पढ़ना चाहते हैं तो कृपया कहानी के पेज पर आकर अपनी प्रतिक्रिया अवश्य दें प्रतिक्रिया छोटी, बड़ी, लंबी कामा, फुलस्टॉप कुछ भी हो सकती है परंतु आपकी उपस्थिति आवश्यक है मैं आपको अपडेट 90 और 91 आपके डायरेक्ट मैसेज पर भेज दूंगा

धन्यवाद
Update bhejiye
 

Lovely Anand

Love is life
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बहुत ही रोमांचक अपडेट
थैंक्स
एक और बहुत ही सुंदर लाजवाब और अद्भुत रमणिय अपडेट है भाई मजा आ गया :adore:
वासना और व्यस्तता एक दुसरे की दुश्मन इसका प्रत्यय का अपडेट में बहुत सुन्दर वर्णन
सरयुसिंग का व्यक्तीमत्व मनोरमा मॅडम के साथ रातभर कामक्रिडा
सोनू का सिनेमा के पोस्टर को निहारना सुगना का सोनू को शर्मसार हो कर शादी कर लेने का कहना
सोनू बाजार से सुगना के लिये महीन रेशमी लहंगा चोली लाना और बनारस लौटते वक्त वोही पहनने को कहना ऑटो में सुगना की मखमली जांघो का जायजा ले कर उत्तेजना महसुस करना लाली याद आना बहुत ही रोमांचकारी
ट्रेन में चढाते वक्त सुगना के नरम मख्खन जैसे नितंब पकड कर उपर ढकेलते हुए स्वर्गीय आनंद लेना गर्दी में अपना खुंटे जैसा लंड सुगना के नितंब पर रगड महसुस कर सोनू के लंड की तस्वीर सुगना के दिमाग में उपजना
बहुत खुब अद्भुत लेखन अवर्णनीय
आपकी प्रतिक्रिया पढ़कर भी मन उतना ही गदगद होता है जितना आपका कहानी पढ़कर होता होगा धन्यवाद जुड़े रहे और यूं ही कुछ ना कुछ लिखते पढ़ते रहे
Ati sundar, adhbhut, ramaniya, padhte padhte me nikal jata hu banaras..
Man ka भटकाव और आनद का आगमन यही कहानी है यही जीवन है
ताजा अपड़ेट पढे ।
सन्तुष्टि के साथ जिज्ञासा
दोनों की प्राप्ति हुई।
अब इन्तजार है नये धमाके का।
बस होने ही वाला है
Send update 90 91
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Update bhejiye
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Anami123

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भाग 96

सोनू के मन में सिर्फ एक ही चिंता थी कि अब जब वह सुगना के सामने आएगा तो वह उससे कैसा व्यवहार करें कि क्या उसने उसे ट्रेन में हुई घटना के लिए माफ कर दिया होगा?

सोनू के पास सिर्फ और सिर्फ प्रश्न थे उसे सुगना का सामना करना ही था। उसने अपने इष्ट से सब कुछ सामान्य और अनुकूल रहने की कामना की और अपना सामान बांध कर बनारस विस्तृत सुगना के घर आ गया..सामन पैक करते वक्त उसे रहीम और फातिमा की चूदाई गाथा की वह फटी किताब भी दिखाई पड़ गई और सोनू मुस्कुराने लगा.. उसने न जाने क्या सोच कर उस अधूरी किताब को भी रख लिया…

अगली सुबह सोनू अपना ढेर सारा सामान आटो में लाद कर सुगना के घर के सामने खड़ा था..


उसका कलेजा धक धक कर रहा था..

अब आगे…

दरवाजा सुगना ने ही खोला…सुगना के चेहरे पर स्वागत करने वाली मुस्कान थी एक पल के लिए वह यह बात भूल गई थी कि सामने खड़ा सोनू वही सोनू है जिसने अपने तने हुए लंड को उसके नितंबों से रगड़ते हुए एक कुत्सित स्खलन को अंजाम दिया था… सुगना ने उस घटना को नजरअंदाज कर अपनी डेहरी पर खड़े सोनू का स्वागत किया और बोला..

"अरे तोर ट्रेन तो जल्दी आ गईल आज"

अंदर आने के पश्चात सोनू ने सुगना के चरण छुए परंतु सुगना को अपने आलिंगन में लेने की हिम्मत न जुटा पाया… शायद सुगना भी सतर्क थी..


मन में जब पाप उत्पन्न हो जाता है तो प्रतिक्रिया स्वाभाविक रूप से बदल जाती है।

यही हाल सोनू का था…

सुगना का व्यवहार क्यों बदला यह कहना कठिन था शायद इसमें कुछ अंश उस ट्रेन में हुई घटना का था और उसके मन के किसी कोने में उपज रहे पाप का भी..

इसके उलट सोनी खुलकर अपने भाई सोनू के गले लग गई सोनू और सोनी का यह मिलन पूरी तरह वासना विहीन था यद्यपि सोनू ने सोनी को अपने दोस्त विकास के साथ अपने पूरे यौवन और कामुकता के साथ संभोग करते देखा था… परंतु न जाने क्यों उसने उस रिश्ते को स्वीकार कर लिया था।


सोनी उसे अपनी छोटी बहन ही दिखाई देती थी जिसके बारे में उसके मन में गलत ख्याल शायद ही कभी आते हों… वर्तमान में सोनू के दिलो-दिमाग सब पर सुगना छाई हुई थी…और एक तरह से राज कर रही थी।

जिस प्रकार पूर्णिमा का चांद आकाश में छाए छुटपुट सितारों की रोशनी धूमिल कर देता है उसी प्रकार सुगना इस समय सोनू की वासना पर एकाधिकार जमाए हुए थी …सोनू के लिए जैसे बाकी युवतियां गौड़ हो चुकी थीं।

थोड़ी ही देर में सोनू लाली और सुगना के बच्चों में घुलमिल कर बच्चों की तरह खेलने लगा। एक प्रतिष्ठित और युवा एसडीएम अपनी उम्र को आधा कर बच्चों के साथ वैसे ही खेल रहा था जैसे वह खुद एक बच्चा हो…. सुगना बार-बार उसके इस स्वरूप को देखती और मन ही मन उसे क्षमा कर देती….

आखिरकार सुगना ने सोनू से कहा

"ए सोनू जो जल्दी नहा ले हम खाना लगा दे तानी.."

पता नहीं सोनू के मन में कहां से हिम्मत आई उसने अकस्मात ही कहा

"ठीक बा हम जा तानी आंगन में नहाए तनी पानी चला दिहे "

सोनू ने जो कहा था वह सुगना को उस दिन की याद दिला गया जब वह लाली के कहने पर हैंडपंप चलाने गई थी और सोनू ने उसे लाली समझकर उसके सामने ही अपने तने हुए लंड पर साबुन लगा रहा था… सुगना के जेहन में वह दृश्य पूरी तरह घूम गया…वैसे भी वह पिछले दो-तीन दिनों से न जाने कितनी बार उसके उस तने हुए लंड के बारे में सोच चुकी थी…. उसने बचते हुए कहा..

"ते जो नहाए लाली पानी चला दी."

शायद सोनू ने बिना सोचे समझे वह बात कही थी परंतु सुगना अब फूंक-फूंक कर कदम रख रही थी..

अब तक के हुए घटनाक्रमों में लाली एक बात तो जान गई थी कि सुगना की कामुक काया सोनू को आकर्षक लगती थी। सुगना भी उसे और सोनू को लेकर कई मजाक किया करती थी परंतु जब कभी सोनू का नाम उसके साथ जोड़कर लाली मजाक करती तो वह एक हद के बाद उसे रोक देती देती…

बातों ही बातों में सुगना ने उसे उसे उसके और सोनू के बीच हुए संभोग को देखे जाने की घटना घटना बता दी थी ….लाली के लिए सुगना को समझ पाना कठिन हो रहा था वह कभी तो हंसते खिलखिलाते लाली से सोनू के बारे में ढेरों बातें करती जिसमें कभी कभी कामुक अंश भी होते परंतु कभी-कभी न जाने क्यों सोनू को लेकर छोटी सी बात पर नाराज हो जाती।


लाली ने कई बार ऐसा महसूस किया था कि संभोग के दौरान सुगना का नाम लेने पर सोनू और भी उत्तेजित हुआ करता था तथा सुगना के बारे में और बातें करना चाहता था।

यह लाली पर ही निर्भर करता था कि वह वासना और कामुकता से भरी हुई बातों में सुगना को कितना खींचे और कितना छोड़े…पर सोनू इस पर कोई आपत्ति नहीं जताता था।

लाली ने आज सोनू को खुश करने की ठान ली..

घर में दिनभर घर में चहल पहल रही … सोनू की तीनों बहनें सोनू का जी भर कर ख्याल रख रही थी…

शाम जब सुगना और लाली सब्जी भाजी लेने बाजार गईं सोनू घर में अकेला था…. वह सुगना के कमरे में किताब का दूसरा हिस्सा खोजने लगा रहीम और फातिमा की अधूरी कहानी को पूरा पढ़ने की उसकी तमन्ना जाग उठी थी।

सोनू ने सुगना के कमरे का कोना-कोना छान मारा और आखिरकार वह आधी किताब उसके हाथ आ गई..

सोनू ने उस किताब के पन्नों के बिछड़े हुए भाग को आपस में पूरी तन्मयता और मेहनत से जोड़ा और किताब को मन लगाकर पढ़ने लगा …जैसे-जैसे रहीम और फातिमा की कहानी आगे बढ़ती गई न जाने कब कहानी में रहीम सोनू बन गया और सुगना फातिमा ….कहानी को पढ़ते समय सोनू के जेहन में सिर्फ और सिर्फ सुगना की तस्वीर घूम रही थी..

सोनू का लंड तो जैसे सुगना का नाम लेते ही उछल कर खड़ा हो जाता था सोनू ने उसे थपकी या देकर शांत करने की कोशिश की …. जिस तरह अभी तक सोनू ने अपना धैर्य कायम किया हुआ था उसी प्रकार सोनू के लंड को भी अभी धैर्य रखना था…

आखिर सोनू ने हिम्मत जुटाई और उस किताब को सुगना के शृंगारदान के पास रख दिया…उसे पता था सुगना रात को सोने से पहले श्रृंगारदान खोलकर अपने चेहरे पर क्रीम लगती थी.. वह उस किताब को देखेगी जरूर ….. सोनू ने किताब के अपने वाले हिस्से पर कुछ कलाकारी भी की थी वह भी उस दौरान जब वह लखनऊ में अकेले था…. एक बार के लिए सोनू का मन हुआ कि वह उसके द्वारा की गई कलाकारी को मिटा दे परंतु शायद यह इतना आसान न था…

सोनू ने सब कुछ नियति के हवाले छोड़ दिया

आखिरकार आखिरकार रात हुई जिसका इंतजार सबसे ज्यादा लाली को था…

रात के 10:00 बज चुके थे सारे बच्चे अपने दिनभर की थकावट को दूर करने निद्रा देवी के आगोश में आ चुके थे। बच्चे घर की शान होते हैं और जब वह सो जाते हैं तो ऐसा लगता है जैसे घर में सन्नाटा पसर गया हो।।

परंतु युवा प्रेमियों को यह सन्नाटा बेहद सुहाना लगता है सोनू और लाली आज रंगरलिया मनाने के लिए पूरी तरह तैयार थे। परंतु लाली आज दूसरे ही मूड में थी..

वो सोनू के कमरे में बैठी उससे बातें कर रही थी ..

तभी सोनू ने लाली को अपने पास खींच लिया और उसके गालों को चुमते हुए उसकी चूंची सहलाने लगा सोनू का हाथ धीरे-धीरे लाली की नाइटी में प्रवेश करता गया तभी लाली ने कहा..

अरे सोनू थोड़ा सब्र कर ले सुगना के सूत जाए दे…

"अब बर्दाश्त नईखे होत… देखा तब से खड़ा बा सोनू ने अपनी लूंगी हटाकर अपने खड़े ल** को लाली की निगाहों के ठीक सामने ला दिया..

सोनू का लंड दिन पर दिन और युवा होता जा रहा था.. ऐसा लग रहा था लाली की बुर ने उसे मालिश कर और बलवान बना दिया था.

लाली ने सुगना की लूंगी खींचकर खूंटी पर टांग दी और उसके लंड को अपने हाथों में लेकर उसके आकार में और इजाफा करने लगी तभी रसोई से सुगना की आवाज आई…

"ए लाली सोनू के दूध ले जो"

लाली ने सोनू से 5 मिनट का समय मांगा और सोनू ने अपने नंगे बदन पर लिहाफ डाल लिया… लाली बलखाती हुई कमरे से चली गई…परंतु जाते जाते उसने कमरे की बत्तियां बुझा दी…कमरे में चल रही टीवी से पर्याप्त रोशनी आ रही थी और सोनू बिस्तर के सिरहाने अपनी पीठ टिकाए टीवी देख रहा था और मन ही मन आज लाली के साथ जी भर कर रंगरलिया मनाने की तैयारी कर रहा था।

सोनू अपने हाथों से अपने लंड को सहलाते हुए लाली का इंतजार कर रहा था…. परंतु यह क्या कमरे में दूध लिए सुगना आ चुकी थी… सोनू के होश फाख्ता हो गए पतली रजाई के नीचे सोनू पूरी तरह नग्न था.. यह तो ऊपर वाले का शुक्र था कि उसने अपनी बनियान न उतारी थी अन्यथा सुगना उसकी नग्न अवस्था को तुरंत ही पकड़ लेती… सुगना सोनू के बिल्कुल करीब आ चुकी थी सोनू ने अपने दोनों घुटनों को उठाकर अपने खड़े लंड को रजाई के नीचे छुपा लिया

सोनू ने अपना दाहिना हाथ अपने लंड पर से हटाया और हाथ बढ़ाकर सुगना के हाथों से दूध ले लिया..

सुगना से नजरें मिला पाने की सोनू की हिम्मत न थी.. परंतु वह सुगना की भरी भरी चूचियों को अवश्य देख रहा था। दोनों दुग्ध कलश उसकी आंखों के ठीक सामने थे परंतु उसकी अप्सरा उसे ग्लास में दूध पकड़ा रही थी.. सुगना जैसे ही जाने के लिए पलटी लाली आ चुकी थी..

लाली नेआते ही कहा…

"रसोई के सब काम हो गईल अब बैठ सोनू अपन पहला पोस्टिंग के बात बतावता"

सुगना भली-भांति यह बात जानती थी की सोनू और लाली अब से कुछ देर बाद घनघोर चूदाई करने वाले थे इसकी पूर्व तैयारियां लाली आज सुबह से ही कर रही थी.. वह दाल भात में मूसर चंद नहीं बनना चाहती थी परंतु लाली में उसे हाथ पकड़ कर बिस्तर पर बैठा दिया और सोनू से कहा..


अरे बीच में खिसक अपना दीदी के बैठे थे सोनू पलंग के ठीक बीच में बैठ गया और सुगना अनमने मन से बिस्तर पर बैठ गई… उसके दोनों पैर अब भी बिस्तर के नीचे लटक रहे थे। लाली सुगना के करीब आई और बोली..

"अरे पैरवा ऊपर कर ले आज बहुत ठंडा बा ए सोनू अपना दीदी के रजाई ओढ़ा दे"

सोनू खुद असहज महसूस कर रहा था उसे लाली का यह व्यवहार कतई समझ ना आ रहा था वह पूरी तरह लाली को चोदने के मूड में था.. परंतु लाली ऐसा क्यों कर रही थी यह उसकी समझ के परे था…

अंततः सुगना ने अपने दोनों पैर ऊपर कर लिए और सोनू ने अनमने ढंग से रजाई का कुछ हिस्सा सुगना के पैरों पर डाल दिया परंतु उससे सुरक्षित दूरी बनाते हुए अलग हो गया रजाई के अंदर सोनू पूरी तरह नग्न था और यही उसकी असहजता का मुख्य कारण भी था।

सोनू का लंड अपना तनाव खो रहा था। उसे अब लाली पर गुस्सा आ रहा परंतु सुगना साथ हो और सोनू उसे खुद से दूर करें यह संभव न था।


उसने बातें शुरू कर दी… लाली अब सोनू के दूसरे तरफ आकर बैठ चुकी थी और उसने भी रजाई में अपने पैर डाल लिए थे…सोनू अपनी दोनों बहनों के बीच बिस्तर के सिरहाने अपनी पीठ टिकाए अपने अनुभव को साझा कर रहा था…

सुगना और लाली दोनों पूरी उत्सुकता और तन्मयता से सोनू के अनुभवों को सुन रही थी और समझने का प्रयास कर रहीं थी। अचानक लाली की हथेलियों ने सोनू के लंड को अपने हाथों में पकड़ लिया सोनू को यह अटपटा भी लगा और आनंददायक भी ।

उसने कोई प्रतिक्रिया न दी और उसी तरह अपनी बहन सुगना से बातें करता रहा… लाली के साथ अब अपनी कार्यकुशलता दिखाने लगे सोनू के लंड का सुपाड़ा आगे पीछे हो रहा था.. सुपाड़े के ऊपर सूख चुकी लंड की लार एक बार फिर छलकने लगी।


कुछ ही पलों में लंड एक बार फिर पूरी तरह तन चुका था। सुगना लाली की हरकतों से अनजान अपने भाई के प्रशासनिक अनुभव को सुन रही थी कमरे में …वासना अपना रंग दिखाने लगी थी….

अचानक सुगना का ध्यान लाली की हरकतों पर चला गया सोनू की जांघों के बीच हिलती हुई रजाई ने उसके मन में शक पैदा कर दिया। निश्चित ही लाली सोनू के लंड को छू रही थी। सुगना असहज होने लगी सोनू अपनी उत्तेजना को काबू में रखते हुए सुगना से बातें किया जा रहा था परंतु लाली की उंगलियों और हथेलियों के जादू को अपने लंड पर बखूबी महसूस कर रहा था।

एक पल के लिए उसके मन में आया कि वह अपने ठीक बगल में बैठी सुगना जांघों पर हाथ रख दे परंतु…सोनू अभी इतनी हिम्मत न जुटा पाया सुगना ने अचानक बिस्तर से उठते हुए कहा

"तोहान लोग टीवी देख हम जा तानी सूते "

सुगना कमरे से निकल गई परंतु वह कमरे से ज्यादा दूर ना जा पाईं…उसे सोनू की आवाज सुनाई पड़ी..

"दीदी तू काहे हिलावत रहलु हा सुगना दीदी देख लिहित तब"

"अइसन कह तारा जैसे उ जानत नईखे" लाली ने हल्का गुस्सा दिखाते ही बोला..

"अरे सुगना दीदी जानत बीया ऊ ठीक बा लेकिन हाईसन हालत में देख लीहित तब" सोनू ने लिहाफ हटा दिया और अपने खूंटे से जैसे तने हुए लंड को हाथ में लेते हुए बोला"

अब तक सोनू के मुंह से अपना नाम सुनकर सुगना खिड़की पर आ चुकी थी उसमें अंदर झांका लिहाफ हटा हुआ था और सोनू अपना खूबसूरत लंड अपने हाथों में लिए लाली को दिखा रहा था..

"ज्यादा सयान मत बन…. हैंड पंप पर अपना बहिनी के आपन हथियार देखावले रहला तब …ना लाज लागत रहे"

लाली अपने बालों को बांधते हुए बोली… ऐसा लग रहा था जैसे लाली प्रेम युद्ध के लिए स्वयं को तैयार कर रही हो…

सोनू की सिट्टी पिट्टी गुम हो गई तो क्या सुगना दीदी ने लाली से सब कुछ बता दिया था क्या ट्रेन की घटना भी…

सोनू ने झेपते हुए कहा..

"हम जानत रहनी की पानी चलावे तू अइबू एहि से सुगना दीदी रहती तब थोड़ी ना करतीं"


सुगना मन ही मन खुश हो गई… शायद उसका भाई सोनू इतना भी बदमाश ना था कि वह अपनी बड़ी बहन को अपना लंड खोल कर दिखा रहा हो…

"चल मान लेनी लेकिन सांच कह.. इ सुगना खातिर तनेला की ना?….लाली ने सोनू की दुखती रग को छेड़ दिया…

"लाली दीदी तू ई का बोला तारू"

"देख अभिये से उछलता …..नामे लेला प " लाली ने सोनू के उछलते हुए लंड को सहलाते हुए बोला….

सुगना के बारे में बातें कर सोनू बेहद उत्तेजित हो गया। वह बिस्तर से उठ खड़ा हुआ और उसमें एक ही झटके में लाली की नाइटी उतार के लाली को पूरी तरह नंगा कर सामने चल रही टीवी के प्रकाश में उसका दूधिया बदन चमकने लगा सुगना बाहर लॉबी में खड़े खिड़की से अंदर झांक रही थी.


सोनू ने लाली को पीछे से पकड़ कर दबोच लिया.. लाली की पीठ सोनू के नंगे सीने से सटी हुई थी सोनू के मजबूत हाथ लाली की नाभि और कमर पर लिपटे हुए थे. सोनू लाली को ऊपर उठा रहा था..और लाली खिलखिला कर हंस रही थी लाली के दोनों पर हवा में थे और सोनू का खूंटे जैसा तना हुआ लंड नितंबों के बीच जगह ढूंढ रहा था…

"आराम से सोनू चोट लग जायी"

परंतु सोनू सुनने के मूड में न था.. सुगना आज अपनी आंखों से वही दृश्य देख रही थी जो स्वयं उसके साथ बनारस महोत्सव में घटा था उस दिन भी सोनू ने ठीक इसी प्रकार उसे उठा लिया था और उसने भी अपने नितंबों के बीच सोनू के तने हुए लंड को महसूस किया था यद्यपि उस दिन सोनू ने अपने कपड़े पहने हुए थे फिर भी सोनू के मजबूत लंड का तनाव छपने लायक न था।

सुगना की आंखें एक बार फिर जड़ हो गई.. कदम फिर रुक गए और सांसे तेज होने लगी सोनू ने लाली को बिस्तर पर पीठ के बल लिटा कर उसकी जांघों के बीच आ गया परंतु आज सोनू किसी और मूड में था..

ई बतावा लाली दीदी सुगना दीदी तोहरा से सब बात करेले का?

"कौन बात?"

"इहे कुल"

"अरे साफ-साफ बोल ना कौन बात?"

"सोनू ने लाली की चूचियों को मसलते हुए कहा"

"इहे कुल..अब बुझाइल "

"हां ऊ हमार सहेली ह त करी ना"

"वो दिन का सुगना दीदी साच में देख ले ले रहे"

"हां देखले रहे और कह तो रहे"

"का कहत रहे?"

"कि हमार भाई अब मर्द बन गईल बा.".

"अवरू का कहत रहे"

"खाली बकबक करब की कामों होई…"

"बतावाना? दीदी का कहत रहे…

"काश सोनू हमर भाई न होखित"

सुगना लाली की बात सुनकर आश्चर्यचकित रह गई उसने ऐसा कुछ न कहा था…. जब भी यह वाक्यांश शब्दों के रूप में आए थे लाली के मुख से ही आए थे। उसे लाली पर गुस्सा आया..पर अभी वह कुछ कहने की स्थिति में न थी।

"तू पागल हउ सुगना दीदी अइसन कभी ना बोली…"

"अरे वाह हम तहर दीदी ना हई "

"सुगना दीदी और तहरा में बहुत अंतर बा ऊ ई कुल के चक्कर में ना रहेली"

"हाई देखतार नू…. एकर कोई जात धर्म रिश्ता नाता ना होला…"लाली ने सोनू को अपनी जांघों के बीच अपनी फूली हुई बुर को दिखाते हुए कहा।

"एकर साथी एके ह…".इतना कहकर लाली ने सोनू के लंड को अपनी हथेलियों में पकड़ लिया…लंड पर रिस आयी लार लाली की हथेलियों में लग गई..

लाली ने मुस्कुराते हुए कहा..

"देख बुझाता इहो आपन सुगना दीदी खातिर लार टपकावता…"

सोनू का लाल फूला हुआ सुपाड़ा लाली की हथेली में था…ऐसा लग रहा था जैसे लाली उसे खुद को छोड़ किसी और को चाहने का दंड दे रही हो पर लंड आज सुगना की चाहत लिए तैयार था…

सोनू उत्तेजना से कपने लगा…लाली ने उसे बेहद उत्तेजित कर दिया था..

और एक बार फिर लाली चुदने लगी….सुगना ने आज लाली का नया रूप देखा था…शायद उसे लाली से यह उम्मीद न थी…

सुगना से और बर्दाश्त न हुआ….वह अपने कमरे में आ गई…

सुगना ने खुद को संतुलित किया और गंदे गंदे ख्यालों को दरकिनार कर वह अपने श्रृंगारदान को खोल कर अपनी क्रीम लगाने लगी तभी उसका ध्यान उस जिंदगी किताब तक चला गया जिसको सोनू अपनी बड़ी बहन सुगना के लिए छोड़ आया था किताब के दोनों हिस्सों को एक साथ देख कर सुगना चौक उठी आखिर यह किसने किया हे भगवान…

शेष अगले भाग में…
Ati sundar update

Lali ka sonu ko sugna ka name lekar uksana... Sugna ka fir ek baar lali or sonunka sambhog dekhna....

Or aham baat ki jis fatima or rahim ki kahani ki wajah se sonu or sugna ka ye khel suru hua tha wo hi kitab aaj fir se sugna ke haat me hona .....

Ye niyati ( Lovely Bhai ) ke chakkar bhi ajeeb hai

Ek or badhiya update ke liye dhanyavad lovely bhai
 
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Lovely Anand

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भाग 97
सोनू का लाल फूला हुआ सुपाड़ा लाली की हथेली में था…ऐसा लग रहा था जैसे लाली उसे खुद को छोड़ किसी और को चाहने का दंड दे रही हो पर लंड आज सुगना की चाहत लिए तैयार था…

सोनू उत्तेजना से कपने लगा…लाली ने उसे बेहद उत्तेजित कर दिया था..

और एक बार फिर लाली चुदने लगी….सुगना ने आज लाली का नया रूप देखा था…शायद उसे लाली से यह उम्मीद न थी…

सुगना से और बर्दाश्त न हुआ….वह अपने कमरे में आ गई…


सुगना ने खुद को संतुलित किया और गंदे गंदे ख्यालों को दरकिनार कर वह अपने श्रृंगारदान को खोल कर अपनी क्रीम लगाने लगी तभी उसका ध्यान उस जिल्द लगी किताब पर चला गया जिसको सोनू अपनी बड़ी बहन सुगना के लिए छोड़ आया था किताब के दोनों हिस्सों को एक साथ देख कर सुगना चौक उठी आखिर यह किसने किया हे भगवान…

अब आगे…..

आइए सुगना को अपनी तड़प और सोनू को लाली के साथ उनके हाल पर छोड़ देते हैं….. और आपको लिए चलते हैं हिमालय की गोद में जहां सुगना के पति रतन की मेहनत अब रंग ला चुकी थी। विद्यानंद ने उसे जिस आश्रम का निर्माण कार्य सौंपा था वह अब पूरा हो चुका था ….आज रतन उसका मुआयना करने जा रहा था..…

कुछ ही महीनों में रतन ने विद्यानंद आश्रम में एक महत्वपूर्ण स्थान बना लिया था ऐसा नहीं था कि यह स्थान उसे विद्यानंद के पुत्र होने के कारण प्राप्त हुआ था अपितु उसने अपनी मेहनत और लगन से वह मुकाम हासिल किया था l

आश्रम सच में बेहद खूबसूरत बना था रतन अपनी जीप में बैठकर आश्रम के लिए निकल चुका था कुछ दूर की यात्रा करने के बाद बड़े-बड़े चीड़ के पेड़ दिखाई पढ़ने लगे….. जैसे जैसे वह शहर से दूर होता गया प्रकृति की गोद में आता गया।

शहर की सुंदरता कृत्रिम है और जंगल की प्राकृतिक

कृत्रिम निर्माण सदैव तनाव का कारण है और प्रकृति सहज एवं सरल..

यह वाक्यांश जीवन के हर क्षेत्र में अपनी अहमियत साबित करते हैं चाहे वह जीवन शैली हो या सेक्स…

रतन खोया हुआ था…धरती इतनी सुंदर कैसे हो सकती है ?…शहरों में भीड़ भाड़ और लगातार हो रहे विकास कार्यों की वजह से…शहर प्रदूषित हो चुके है जबकि जंगल में प्रकृति अपनी खूबसूरती को संजोए हमेशा नई नवेली दुल्हन की तरह सजी धजी रहती है …..

रतन प्रकृति की खूबसूरती में खोया हुआ धीरे-धीरे आश्रम के गेट पर आ गया। इस आश्रम तक जन सामान्य का पहुंचना बेहद कठिन था…. निजी वाहनों के अलावा यहां आने का कोई विकल्प न था शहर से दूर यह सड़क विशेषकर इस आश्रम के लिए ही बनाई गई थी…

दो सिक्यूरिटी गार्ड ने उस आश्रम का विशाल गेट खोला और रतन की गाड़ी अंदर प्रवेश कर गई।

अंदर की खूबसूरती देखने लायक थी. सड़क के किनारे सुंदर सुंदर पार्क बनाए गए थे उसमें करीने से जंगली और खूबसूरत फूल लगाए गए थे जो अब अपनी कलियां बिखेर कर रतन की मेहनत को चरितार्थ कर रहे थे…

सपाट खाली जगह सुंदर विदेशी घांस से पटी हुई थी कभी-कभी प्रकृति से की गई छेड़छाड़ उसे और भी सुंदर बना देती है इस आश्रम के चारों तरफ जो फूल पौधे लगाए गए थे वह इस आश्रम को और भी खूबसूरत बना रहे थे…

सामने तीन मंजिला भवन दिखाई पढ़ने लगा भवन की खूबसूरती दिखने लायक थी दूर से देखने पर यह होटल दिखाई पड़ता परंतु भवन के मुख्य भाग की सजावट उसे एक आलीशान आश्रम की शक्ल दे रही थी। रतन उस भवन तक पहुंच चुका था सिक्योरिटी गार्ड ने अपने पैर पटक कर रतन को सैल्यूट किया.. और रतन स्वयं अपनी ही बनाई कृति को देखकर भावविभोर हो उठा.. भवन के रंग रोगन ने उसे और भी खूबसूरत बना दिया था.

उस दौरान (90 के दशक में) इतनी सुंदर कलाकृति का निर्माण देखने लायक था…

अब तक निर्माण कार्य में लगे लोगों की फौज वहां आ चुकी थी और उनके प्रतिनिधि ने रतन को बताया..

"महाराज पुरुष आश्रम का कार्य लगभग पूर्ण हो चुका है परंतु महिला हॉस्टल में कुछ ही काम बाकी है वह भी अगले हफ्ते में पूरा हो जाएगा आश्रम का उद्घाटन हम लोग दीपावली के दिन कर सकते हैं…"


रतन ने पुरुष आश्रम के कक्षों का मुआयना किया और वहां पर उपलब्ध सामग्री की गुणवत्ता की जांच की दीवारों के रंग रोगन को अपने पारखी निगाहों से देखा। निर्माण कार्य में लगे लोगों ने अच्छा कार्य किया था।

आश्रम में कमरों में जो सादगी थी वह होटल से अलग थी। यह कहना कठिन था की आश्रम के कमरे ज्यादा खूबसूरत थे या पांच सितारा होटल का सजा धजा शयनकक्ष…परंतु सादगी जितनी खूबसूरत हो सकती थी वो थी।

जिस प्रकार कहानी की नायिका सुगना ग्रामीण परिवेश में पलने बढ़ने के बाद भी बिना किसी कृत्रिम प्रयास के बेहद खूबसूरत और कोमल थी या आश्रम भी उसी प्रकार खूबसूरत था…

इस पुरुष आश्रम के ठीक पीछे वह विशेष भवन था जिसमें वह अनोखे कूपे बनाए गए थे (जिनका विवरण पहले दिया जा चुका है..) इस भवन का निर्माण विद्यानंद ने एक विशेष प्रयोजन के लिए कराया था जिसकी आधी अधूरी जानकारी रतन को थी परंतु विद्यानंद के मन में क्या था यह तो वही जाने …परंतु रतन ने इस विशेष भवन का निर्माण पूरी तन्मयता और कार्यकुशलता से किया था… अंदर बने कूपे निराले थे।

आज इस विशेष भवन में प्रवेश कर रतन खुद गौरवान्वित महसूस कर रहा था सचमुच अंदर से उस भवन की खूबसूरती देखने लायक थी.. दीवारों पर की गई नक्काशी और कृत्रिम प्रकाश से उसे बेहद खूबसूरत ढंग से सजाया था।

विधाता ने प्रकृति के माध्यम से इंसान को रंगों की पहचान थी परंतु विधाता की कृति इंसान ने उन रंगों के इतने रूप बना दिए जितने शायद विधाता की कल्पना भी न थी..

प्रकाश के विविध रंगों ने साज सज्जा को नया आयाम दे दिया था अलग-अलग रंगों के प्रकाश जब दीवार पर सजी मूर्तियों पर पढ़ते उसकी खूबसूरती निखर निखर कर बाहर आती ऐसा लगता जैसे पत्थर बोलने को आतुर थे वह इस भवन में होने वाली घटनाओं के साक्षी बनने वाले थे…


ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे विद्यानंद ने जो भी धन अर्जित किया था उसका अधिकांश भाग इसके निर्माण में लगा दिया था..

इस विशेष भवन के पीछे हुबहू पुरुष आश्रम जैसा सा ही एक और आश्रम था.. वह महिलाओं के लिए बनाया गया था.. महिलाओं के आश्रम के ठीक सामने भी वैसा ही पार्क और वैसे ही सड़क थी.. यूं कहिए कि वह विशेष भवन पुरुष आश्रम और महिला आश्रम के बीच एक कड़ी था। बाकी पुरुष आश्रम तक पहुंचने का रास्ता अलग था और महिला आश्रम तक पहुंचने का रास्ता अलग।


पुरुष आश्रम में आ रहे आगंतुकों को महिला आश्रम दिखाई नहीं पड़ता था इसी प्रकार महिला आश्रम में आ रहे लोग पुरुष आश्रम को देख नहीं सकते थे यहां तक कि वह विशेष भवन भी सामने से दिखाई नहीं पड़ता क्योंकि वह पुरुष आश्रम और महिला आश्रम के बीचों-बीच स्थित था….

महिला आश्रम का मुआयना करने के पश्चात जो छुटपुट कार्य बाकी थे उसके लिए रतन ने निर्माण कार्य में लगे लोगों को दिशा निर्देशित किया।

अब तक उसकी जीप घूम कर महिला आश्रम के गेट पर आकर खड़ी हो गई थी…महिला आश्रम और पुरुष आश्रम के एक दूसरे से नजदीक होने के बावजूद वाहन को वहां पहुंचने के लिए 10 किलोमीटर का सफर तय करना पड़ा था…दरअसल महिला आश्रम और पुरुष आश्रम के पहुंचने के लिए जो मुख्य द्वार बनाया गया था वह पूरी तरह अलग था…

रतन आश्रम का मुआइना कर पूरी तरह संतुष्ट हो गया जो कुछ छुटपुट कार्य बाकी था वह दो तीन दिनों में पूरा हो जाना था।


आज रतन विद्यानंद से मिलकर आश्रम के की निर्माण कार्य पूरा हो जाने की सूचना देने वाला था ….और उनसे आश्रम के उद्घाटन से संबंधित दिशा निर्देश प्राप्त करने वाला था.

रतन खुशी खुशी वापस विद्यानंद के मुख्य आश्रम की ओर निकल पड़ा……महिला आश्रम के सामने बने पार्क से उसकी जीप गुजर रही थी एक पल के लिए उसे यह भ्रम हो गया कि वह पुरुष आश्रम के सामने की तरफ से जा रहा है या महिला आश्रम के? उसने पीछे पलट कर देखा और मुस्कुराते हुए उसने ड्राइवर से कहा

"यह पार्क हूबहू पुरुष आश्रम के पार्क की तरह ही है "

हां महाराज दोनों ही बिल्कुल एक जैसे दिखाई पड़ते हैं ....

जीप तेजी से सरपट विद्यानंद के मुख्य आश्रम की तरफ बढ़ती जा रही थी। रतन अपने जीवन के पन्ने पलट कर देख रहा था कैसे वह मुंबई में एक आम जीवन जीवन व्यतीत करते करते आज अचानक खास हो गया था । शायद इसमें वह सुगना का ही योगदान मानता था उसके प्यार की वजह से ही वह बबीता जैसी दुष्ट और व्यभिचारी पत्नी को छोड़ पाने की हिम्मत जुटा पाया और अपनी प्यारी मिंकी को लेकर सुगना की शरण में आ गया था …पर हाय री नियति सुगना और रतन का मिलन हुआ तो अवश्य परंतु न जाने उस प्यार की पवित्रता में क्या कमी थी सुगना की जादुई बुर ने रतन के लंड को स्वीकार न किया।

रतन ने सुगना के कुएं से अपनी प्यास खूब बुझाई पर कुआं स्वयं प्यासा रह गया…

रतन.सुगना को तृप्त न कर पाया था और यही उसके लिए विरक्ति का कारण बन गया था.. जैसे-जैसे रतन की जीप विद्यानंद के आश्रम की करीब आ रही थी रतन की धड़कनें बढ़ रही थी । आज भी वह विद्यानंद के सामने जाने में घबराता था परंतु धीरे-धीरे वह उनके करीब आ रहा था..

रतन यद्यपि विद्यानंद का पुत्र था परंतु फिर भी उसका चेहरा विद्यानंद से पूरी तरह नहीं मिलता था किसी बाहरी व्यक्ति के लिए यह बता पाना कठिन था कि रतन विद्यानंद का पुत्र है ऐसा क्यों हुआ होगा यह तो विधाता ही जाने परंतु रतन की मां कजरी और विद्यानंद का मिलन एक मधुर मिलन न था …

विद्यानंद के कक्ष के बाहर बैठा रतन अपनी बारी का इंतजार कर रहा था । अंदर विद्यानंद अपना ध्यान लगाकर अपने इष्ट को याद कर रहे थे कुछ ही देर बाद एक सेविका रतन को अंदर ले गई।


विद्यानंद ने अपनी आंखें खोली और रतन को देखकर बोले

" बताओ वत्स… तुम्हारे चेहरे की मुस्कुराहट बता रही है कि मैंने तुम्हें जो कार्य दिया था वह तुमने पूर्ण कर लिया है"

" हां महाराज .. आपके आशीर्वाद से आश्रम का निर्माण कार्य पूरा हो गया है आप जब चाहें हम लोग उसका उद्घाटन कर सकते हैं.."


विद्यानंद की चेहरे पर मुस्कुराहट आ गई का चेहरा आभा से चमकने लगा उन्होंने रतन को बैठने के लिए कहा और अपनी सेविका को एकांत का इशारा किया…

विद्यानंद ने रतन को संबोधित करते हुए कहा..

" जन सामान्य की यह अवधारणा है कि जिस व्यक्ति ने संयास ले लिया है उसने भौतिक इच्छाओं पर विजय प्राप्त कर ली परंतु ऐसा कर पाना इतना आसान नहीं है…काम क्रोध मद लोभ यह मनुष्य के स्वाभाविक गुण हैं इन पर नियंत्रण कर और विजय पाकर वह मोक्ष को प्राप्त कर सकता है.


आश्रम में रहने वाले मेरे हजारों अनुयायियों में से आज भी कई लोग इन सामान्य गुणों का परित्याग कर पाने में अक्षम हैं.. मुझे यह स्पष्ट दिखाई पड़ता है.."

रतन की आंखें शर्म से झुक गई उसे ऐसा लगा जैसे विद्यानंद की बातें उसकी ओर ही इंगित कर रही थी रतन सकपका गया तो क्या विद्यानंद जी को उसके आश्रम में किए गए व्यभिचार की खबर थी? वह सर झुकाए विद्यानंद की बातें सुनता रहा विद्यानंद ने आगे कहा..

" आज भी इस आश्रम के अनुयायी किसी ने किसी रूप में वासना से ग्रस्त हैं वो अपनी अपनी समस्याओं की वजह से घर त्यागकर इस आश्रम में आए हुए हैं।

ऐसी लोग आश्रम में आ तो गए हैं परंतु उनकी स्वाभाविक कामवासना अभी भी जीवित है और वह अपने उचित की साथी की तलाश में अक्सर अपना समझ जाया करते है..

जिस आश्रम का निर्माण तुमने कराया है उसका एक विशेष प्रयोजन है यह आश्रम .. मेरे अनुयायियों को कामवासना से मुक्ति दिलाने के लिए ही बनाया गया है."

रतन रतन ने आंख उठाकर विद्यानंद की तरफ देखा जो अपनी आंखें बंद किए अपने मुख से यह अप्रत्याशित शब्द कह रहे थे परंतु उनके चेहरे के भाव यह बता रहे थे कि वह जो कुछ कह रहे थे वह आवेश और उद्वेग से परे एक शांत और सहज मन की बात थी..उन्होंने फिर कहा..

"मेरी बात ध्यान से सुनना वह आश्रम स्त्री और पुरुष के मिलन के लिए बनाया गया है… समाज में आज भी कई किशोर युवक और युवतियां समागम को लेकर अलग-अलग भ्रांतियां पाले हुए है.. जिसकी वजह से किशोर और किशोरियों में एक भय जन्म ले चुका है.. किशोरियां समागम से घबराती हैं और किशोर अपनी मर्दानगी पर प्रश्न चिन्ह खड़ा करते हैं समाज में धीरे धीरे यह व्याधि फैलती जा रही है और उनके माता-पिता अक्सर मेरी शरण में आकर उनके लिए सुखद गृहस्थ जीवन का आशीर्वाद मांगते हैं।


स्त्री और पुरुष का मिलन ही गृहस्थ जीवन की कुंजी है यह उतना ही पावन है जितना परमात्मा से मिलन.. परंतु किसी न किसी कारणवश सभी स्त्री और पुरुषों का मिलन उतना सुखद नहीं होता जितना उन्हें होना चाहिए इसका कारण सिर्फ और सिर्फ अज्ञानता है..न तो पुरुष स्त्री के कोमल शरीर को पूरी तरह समझ पाता है और नहीं स्त्री पुरुष की उग्र उत्तेजना को..

और जब उन दोनों का मिलन होता है तब निश्चित की परिणाम आशानुरूप नहीं रहते.. मैं चाहता हूं कि तुम गृहस्थ जीवन में रहने के इच्छुक स्त्री और पुरुषों को एक दूसरे को समझ में में मदद करो.. जिस आश्रम का निर्माण तुमने कराया है वह इस प्रयोजन को चरितार्थ करेगा

तुम्हें इस बात का विशेष प्रबंध करना होगा कि आश्रम में रह रहे इस स्त्री और पुरुष एक दूसरे को कभी भी न जान पाएं…उनकी गोपनीयता सुरक्षित रखना तुम्हारा कार्य है यदि गोपनीयता भंग होती है तो यह आश्रम अपना अस्तित्व खो बैठेगा…..


पुरुष और स्त्री दोनों का मिलन सिर्फ और सिर्फ आश्रम के मुख्य भवन में होना चाहिए इसके अलावा कहीं नहीं..

आश्रम से संबंधित दिशा निर्देश और विस्तृत नियमावली माधवी ने बनाई है वह तुम्हें और भी विस्तार से समझा देगी…

माधवी का नाम सुनकर रतन चौका.. लगभग विद्यानंद से जुड़े सभी खास स्त्री और पुरुषों को जानता था पर माधवी का नाम उसने आज से पहले कभी नहीं सुना था विद्यानंद ने…

विद्यानंद ने आगे कहा..


"इस आश्रम से कुछ स्त्रियां और कुछ पुरुष उस आश्रम में रहने के लिए भेजे जाएंगे और जब उनकी वासना समाप्त हो जाएगी तब वो इस आश्रम में वापस आ सकेंगे…"

रतन विद्यानंद की बातों को बेहद ध्यान से सुन रहा था उसे यकीन ही नहीं हो रहा था कि विद्यानंद जैसा महात्मा भी वासना को इतना महत्व देता था.. रतन ने भी वासना की कई रूप देखे थे अपनी पत्नी बबीता के व्यभिचार को भी और अपनी पत्नी सुगना के व्यभिचार को जिससे उसने सूरज जैसे दिव्य बालक को जन्म दिया था यह अलग बात थी की व्यभिचार के कारण अलग थे पर इन संबंधों की सामाजिक मान्यता न थी ना हो सकती थी..


विद्यानंद की गंभीर आवाज आई

" माधवी को बुलाया जाए" और थोड़ी ही देर में एक विदेशी और बेहद खूबसूरत युवती रतन के सामने खड़ी थी.. श्वेत धवल वस्त्रों में उस विदेशी युवती को देखकर रतन अवाक रह गया। माधवी….. उसकी खूबसूरती देखने लायक थी 24 - 25 वर्ष की माधवी सुडौल काया की स्वामी थी.. हल्के भूरे रेशमी बाल जो एकदम सीधे थे उसके चेहरे की खूबसूरती और भी बड़ा रहे थे… रतन उसकी खूबसूरती में खो गया और विद्यानंद ने रतन की आंखों को पढ़कर उसके मनोभावों का अंदाजा लगा लिया….. विद्यानंद ने रतन से कहा

"वत्स तुम माधवी के साथ चले जाओ यह तुम्हें उस आश्रम से संबंधित नियमावली समझा देगी और मैं चाहता हूं कि तुम भी उस आश्रम में रहकर ही वहां का कार्य भार देखो …. तुम पुरुष आश्रम का कार्यभार संभाल लेना और माधवी महिला आश्रम का…"

विद्यानंद ने अपनी आंखें बंद कर ली.. और हाथ उठाकर रतन को आशीर्वाद दिया शायद यह मुलाकात की समाप्ति का इशारा भी था रतन के मन में अब भी ढेरों प्रश्न थे उसने कुछ और कहना चाहा परंतु विद्यानंद अपनी ध्यान मुद्रा में जा चुके थे। उसने माधवी की तरफ देखा और माधवी ने मुस्कुरा कर उसका अभिवादन किया अपने रतन को अपने पीछे आने का इशारा किया और वह पलट कर वापस जाने लगी..

विद्यानंद की आंखें बंद होने के बाद रतन की आंखें पूरी तरह खुल गई सामने बलखाती हुई माधवी जा रही थी और रतन उसके पीछे-पीछे …

श्वेत चादर में लिपटी माधवी की कामुक और मदमस्त काया देखने लायक थी…श्वेत वस्त्र के आवरण के बावजूद माधवी की चौडी छाती पतली कमर और भरे-भरे नितंब अपनी खूबसूरती का एहसास बखूबी करा रहे थे…

रतन की वासना ने उसे घेर लिया और उसका लंड कुलांचे मारने लगा…उसके नेत्र वस्त्रों के पार माधवी की मदमस्त काया को देखने का प्रयास करने लगे माधवी की नग्न छवि उसके दिलो-दिमाग में बनती चली गई…

जैसे-जैसे वासना हावी होती गई दिमाग कुंद होता गया शरीर का सारा रक्त जैसे उस वह तना हुआ लंड अपनी तरफ खींच रहा था…

माधवी अपने कक्ष में आ चुकी थी और रतन दरवाजे पर खड़ा माधवी के इशारे का इंतजार कर रहा था ऐसे ही किसी युवती के कमरे में जाने में वह संकोच कर रहा था..

"अरे रतन जी अंदर आ जाइए" विदेशी युवती के मुख से शुद्ध हिंदी में संबोधन सुनकर रतन और भी आश्चर्य में पड़ गया वह यंत्र वत अंदर आ.गया.."

माधुरी का कमरा भी बेहद भव्य था शायद वह विद्यानंद की विशेष शिष्या थी… रतन को यह एहसास हो गया था कि विद्यानंद से शायद वह जितना नजदीक था माधवी उससे दो कदम आगे थी.. आप बैठिए मैं दो मिनट में आती हूं..

माधवी अपने कक्ष के भीतर बने एक छोटे से कक्ष में प्रवेश कर गई और रतन अपनी तेज धड़कनें के साथ उसका इंतजार करने लगा…

##############

इधर बनारस में सूरज चढ़ आया था …खिड़कियों के बीच फंसे शीशों से उसकी रोशनी छन छन कर सुगना के गोरे चेहरे पर पढ़ रही थी …बदन पर पड़ी हुई रजाई सुगना के मदमस्त बदन को छुपाए हुए थी..परंतु बंद पलकें, गोरे गाल और रस से लबरेज उसके होंठ सूरज की रोशनी में चमक रहे थे…

उस पर बाल की दो लड़िया निकलकर गालों को चूमने का प्रयास कर रहीं थीं …

होठों पर बेहद हल्की मुस्कान छाई हुई थी शायद सुगना कोई सुखद और मीठा स्वप्न देख रही थी..

यदि कामदेव भी सुगना को उस रूप में देख लेते तो उन्हें इस बात का अफसोस होता कि उन्होंने ऐसी सुंदर अप्सरा को धरती पर क्यों दर् दर ठोकरे खाने के लिए छोड़ दिया था…

अचानक दरवाजे पर खटखट हुई और सुगना जाग उठी ….रजाई के अंदर उसे अपनी नग्नता का एहसास हुआ…नाइटी चुचियों के अपर एक घेरा बनाकर पड़ी हुई थी सुगना की ब्रा और पेंटी तकिए के नीचे अपने बाहर आने की राह देख रहे थे…

न जाने क्यों दिन भर स्त्री अस्मिता के वो दोनो प्रहरी रात्रि में रति भाव के आगमन पर अपनी उपयोगिता को देते थे…

जब तक सुगना उन्हे पहन पाती दरवाजे पर खट खट के साथ मधुर आवाज आई…

"दीदी…

शेष अगले भाग में..
 

Yamanadu

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भाग 96

सोनू के मन में सिर्फ एक ही चिंता थी कि अब जब वह सुगना के सामने आएगा तो वह उससे कैसा व्यवहार करें कि क्या उसने उसे ट्रेन में हुई घटना के लिए माफ कर दिया होगा?

सोनू के पास सिर्फ और सिर्फ प्रश्न थे उसे सुगना का सामना करना ही था। उसने अपने इष्ट से सब कुछ सामान्य और अनुकूल रहने की कामना की और अपना सामान बांध कर बनारस विस्तृत सुगना के घर आ गया..सामन पैक करते वक्त उसे रहीम और फातिमा की चूदाई गाथा की वह फटी किताब भी दिखाई पड़ गई और सोनू मुस्कुराने लगा.. उसने न जाने क्या सोच कर उस अधूरी किताब को भी रख लिया…

अगली सुबह सोनू अपना ढेर सारा सामान आटो में लाद कर सुगना के घर के सामने खड़ा था..


उसका कलेजा धक धक कर रहा था..

अब आगे…

दरवाजा सुगना ने ही खोला…सुगना के चेहरे पर स्वागत करने वाली मुस्कान थी एक पल के लिए वह यह बात भूल गई थी कि सामने खड़ा सोनू वही सोनू है जिसने अपने तने हुए लंड को उसके नितंबों से रगड़ते हुए एक कुत्सित स्खलन को अंजाम दिया था… सुगना ने उस घटना को नजरअंदाज कर अपनी डेहरी पर खड़े सोनू का स्वागत किया और बोला..

"अरे तोर ट्रेन तो जल्दी आ गईल आज"

अंदर आने के पश्चात सोनू ने सुगना के चरण छुए परंतु सुगना को अपने आलिंगन में लेने की हिम्मत न जुटा पाया… शायद सुगना भी सतर्क थी..


मन में जब पाप उत्पन्न हो जाता है तो प्रतिक्रिया स्वाभाविक रूप से बदल जाती है।

यही हाल सोनू का था…

सुगना का व्यवहार क्यों बदला यह कहना कठिन था शायद इसमें कुछ अंश उस ट्रेन में हुई घटना का था और उसके मन के किसी कोने में उपज रहे पाप का भी..

इसके उलट सोनी खुलकर अपने भाई सोनू के गले लग गई सोनू और सोनी का यह मिलन पूरी तरह वासना विहीन था यद्यपि सोनू ने सोनी को अपने दोस्त विकास के साथ अपने पूरे यौवन और कामुकता के साथ संभोग करते देखा था… परंतु न जाने क्यों उसने उस रिश्ते को स्वीकार कर लिया था।


सोनी उसे अपनी छोटी बहन ही दिखाई देती थी जिसके बारे में उसके मन में गलत ख्याल शायद ही कभी आते हों… वर्तमान में सोनू के दिलो-दिमाग सब पर सुगना छाई हुई थी…और एक तरह से राज कर रही थी।

जिस प्रकार पूर्णिमा का चांद आकाश में छाए छुटपुट सितारों की रोशनी धूमिल कर देता है उसी प्रकार सुगना इस समय सोनू की वासना पर एकाधिकार जमाए हुए थी …सोनू के लिए जैसे बाकी युवतियां गौड़ हो चुकी थीं।

थोड़ी ही देर में सोनू लाली और सुगना के बच्चों में घुलमिल कर बच्चों की तरह खेलने लगा। एक प्रतिष्ठित और युवा एसडीएम अपनी उम्र को आधा कर बच्चों के साथ वैसे ही खेल रहा था जैसे वह खुद एक बच्चा हो…. सुगना बार-बार उसके इस स्वरूप को देखती और मन ही मन उसे क्षमा कर देती….

आखिरकार सुगना ने सोनू से कहा

"ए सोनू जो जल्दी नहा ले हम खाना लगा दे तानी.."

पता नहीं सोनू के मन में कहां से हिम्मत आई उसने अकस्मात ही कहा

"ठीक बा हम जा तानी आंगन में नहाए तनी पानी चला दिहे "

सोनू ने जो कहा था वह सुगना को उस दिन की याद दिला गया जब वह लाली के कहने पर हैंडपंप चलाने गई थी और सोनू ने उसे लाली समझकर उसके सामने ही अपने तने हुए लंड पर साबुन लगा रहा था… सुगना के जेहन में वह दृश्य पूरी तरह घूम गया…वैसे भी वह पिछले दो-तीन दिनों से न जाने कितनी बार उसके उस तने हुए लंड के बारे में सोच चुकी थी…. उसने बचते हुए कहा..

"ते जो नहाए लाली पानी चला दी."

शायद सोनू ने बिना सोचे समझे वह बात कही थी परंतु सुगना अब फूंक-फूंक कर कदम रख रही थी..

अब तक के हुए घटनाक्रमों में लाली एक बात तो जान गई थी कि सुगना की कामुक काया सोनू को आकर्षक लगती थी। सुगना भी उसे और सोनू को लेकर कई मजाक किया करती थी परंतु जब कभी सोनू का नाम उसके साथ जोड़कर लाली मजाक करती तो वह एक हद के बाद उसे रोक देती देती…

बातों ही बातों में सुगना ने उसे उसे उसके और सोनू के बीच हुए संभोग को देखे जाने की घटना घटना बता दी थी ….लाली के लिए सुगना को समझ पाना कठिन हो रहा था वह कभी तो हंसते खिलखिलाते लाली से सोनू के बारे में ढेरों बातें करती जिसमें कभी कभी कामुक अंश भी होते परंतु कभी-कभी न जाने क्यों सोनू को लेकर छोटी सी बात पर नाराज हो जाती।


लाली ने कई बार ऐसा महसूस किया था कि संभोग के दौरान सुगना का नाम लेने पर सोनू और भी उत्तेजित हुआ करता था तथा सुगना के बारे में और बातें करना चाहता था।

यह लाली पर ही निर्भर करता था कि वह वासना और कामुकता से भरी हुई बातों में सुगना को कितना खींचे और कितना छोड़े…पर सोनू इस पर कोई आपत्ति नहीं जताता था।

लाली ने आज सोनू को खुश करने की ठान ली..

घर में दिनभर घर में चहल पहल रही … सोनू की तीनों बहनें सोनू का जी भर कर ख्याल रख रही थी…

शाम जब सुगना और लाली सब्जी भाजी लेने बाजार गईं सोनू घर में अकेला था…. वह सुगना के कमरे में किताब का दूसरा हिस्सा खोजने लगा रहीम और फातिमा की अधूरी कहानी को पूरा पढ़ने की उसकी तमन्ना जाग उठी थी।

सोनू ने सुगना के कमरे का कोना-कोना छान मारा और आखिरकार वह आधी किताब उसके हाथ आ गई..

सोनू ने उस किताब के पन्नों के बिछड़े हुए भाग को आपस में पूरी तन्मयता और मेहनत से जोड़ा और किताब को मन लगाकर पढ़ने लगा …जैसे-जैसे रहीम और फातिमा की कहानी आगे बढ़ती गई न जाने कब कहानी में रहीम सोनू बन गया और सुगना फातिमा ….कहानी को पढ़ते समय सोनू के जेहन में सिर्फ और सिर्फ सुगना की तस्वीर घूम रही थी..

सोनू का लंड तो जैसे सुगना का नाम लेते ही उछल कर खड़ा हो जाता था सोनू ने उसे थपकी या देकर शांत करने की कोशिश की …. जिस तरह अभी तक सोनू ने अपना धैर्य कायम किया हुआ था उसी प्रकार सोनू के लंड को भी अभी धैर्य रखना था…

आखिर सोनू ने हिम्मत जुटाई और उस किताब को सुगना के शृंगारदान के पास रख दिया…उसे पता था सुगना रात को सोने से पहले श्रृंगारदान खोलकर अपने चेहरे पर क्रीम लगती थी.. वह उस किताब को देखेगी जरूर ….. सोनू ने किताब के अपने वाले हिस्से पर कुछ कलाकारी भी की थी वह भी उस दौरान जब वह लखनऊ में अकेले था…. एक बार के लिए सोनू का मन हुआ कि वह उसके द्वारा की गई कलाकारी को मिटा दे परंतु शायद यह इतना आसान न था…

सोनू ने सब कुछ नियति के हवाले छोड़ दिया

आखिरकार आखिरकार रात हुई जिसका इंतजार सबसे ज्यादा लाली को था…

रात के 10:00 बज चुके थे सारे बच्चे अपने दिनभर की थकावट को दूर करने निद्रा देवी के आगोश में आ चुके थे। बच्चे घर की शान होते हैं और जब वह सो जाते हैं तो ऐसा लगता है जैसे घर में सन्नाटा पसर गया हो।।

परंतु युवा प्रेमियों को यह सन्नाटा बेहद सुहाना लगता है सोनू और लाली आज रंगरलिया मनाने के लिए पूरी तरह तैयार थे। परंतु लाली आज दूसरे ही मूड में थी..

वो सोनू के कमरे में बैठी उससे बातें कर रही थी ..

तभी सोनू ने लाली को अपने पास खींच लिया और उसके गालों को चुमते हुए उसकी चूंची सहलाने लगा सोनू का हाथ धीरे-धीरे लाली की नाइटी में प्रवेश करता गया तभी लाली ने कहा..

अरे सोनू थोड़ा सब्र कर ले सुगना के सूत जाए दे…

"अब बर्दाश्त नईखे होत… देखा तब से खड़ा बा सोनू ने अपनी लूंगी हटाकर अपने खड़े ल** को लाली की निगाहों के ठीक सामने ला दिया..

सोनू का लंड दिन पर दिन और युवा होता जा रहा था.. ऐसा लग रहा था लाली की बुर ने उसे मालिश कर और बलवान बना दिया था.

लाली ने सुगना की लूंगी खींचकर खूंटी पर टांग दी और उसके लंड को अपने हाथों में लेकर उसके आकार में और इजाफा करने लगी तभी रसोई से सुगना की आवाज आई…

"ए लाली सोनू के दूध ले जो"

लाली ने सोनू से 5 मिनट का समय मांगा और सोनू ने अपने नंगे बदन पर लिहाफ डाल लिया… लाली बलखाती हुई कमरे से चली गई…परंतु जाते जाते उसने कमरे की बत्तियां बुझा दी…कमरे में चल रही टीवी से पर्याप्त रोशनी आ रही थी और सोनू बिस्तर के सिरहाने अपनी पीठ टिकाए टीवी देख रहा था और मन ही मन आज लाली के साथ जी भर कर रंगरलिया मनाने की तैयारी कर रहा था।

सोनू अपने हाथों से अपने लंड को सहलाते हुए लाली का इंतजार कर रहा था…. परंतु यह क्या कमरे में दूध लिए सुगना आ चुकी थी… सोनू के होश फाख्ता हो गए पतली रजाई के नीचे सोनू पूरी तरह नग्न था.. यह तो ऊपर वाले का शुक्र था कि उसने अपनी बनियान न उतारी थी अन्यथा सुगना उसकी नग्न अवस्था को तुरंत ही पकड़ लेती… सुगना सोनू के बिल्कुल करीब आ चुकी थी सोनू ने अपने दोनों घुटनों को उठाकर अपने खड़े लंड को रजाई के नीचे छुपा लिया

सोनू ने अपना दाहिना हाथ अपने लंड पर से हटाया और हाथ बढ़ाकर सुगना के हाथों से दूध ले लिया..

सुगना से नजरें मिला पाने की सोनू की हिम्मत न थी.. परंतु वह सुगना की भरी भरी चूचियों को अवश्य देख रहा था। दोनों दुग्ध कलश उसकी आंखों के ठीक सामने थे परंतु उसकी अप्सरा उसे ग्लास में दूध पकड़ा रही थी.. सुगना जैसे ही जाने के लिए पलटी लाली आ चुकी थी..

लाली नेआते ही कहा…

"रसोई के सब काम हो गईल अब बैठ सोनू अपन पहला पोस्टिंग के बात बतावता"

सुगना भली-भांति यह बात जानती थी की सोनू और लाली अब से कुछ देर बाद घनघोर चूदाई करने वाले थे इसकी पूर्व तैयारियां लाली आज सुबह से ही कर रही थी.. वह दाल भात में मूसर चंद नहीं बनना चाहती थी परंतु लाली में उसे हाथ पकड़ कर बिस्तर पर बैठा दिया और सोनू से कहा..


अरे बीच में खिसक अपना दीदी के बैठे थे सोनू पलंग के ठीक बीच में बैठ गया और सुगना अनमने मन से बिस्तर पर बैठ गई… उसके दोनों पैर अब भी बिस्तर के नीचे लटक रहे थे। लाली सुगना के करीब आई और बोली..

"अरे पैरवा ऊपर कर ले आज बहुत ठंडा बा ए सोनू अपना दीदी के रजाई ओढ़ा दे"

सोनू खुद असहज महसूस कर रहा था उसे लाली का यह व्यवहार कतई समझ ना आ रहा था वह पूरी तरह लाली को चोदने के मूड में था.. परंतु लाली ऐसा क्यों कर रही थी यह उसकी समझ के परे था…

अंततः सुगना ने अपने दोनों पैर ऊपर कर लिए और सोनू ने अनमने ढंग से रजाई का कुछ हिस्सा सुगना के पैरों पर डाल दिया परंतु उससे सुरक्षित दूरी बनाते हुए अलग हो गया रजाई के अंदर सोनू पूरी तरह नग्न था और यही उसकी असहजता का मुख्य कारण भी था।

सोनू का लंड अपना तनाव खो रहा था। उसे अब लाली पर गुस्सा आ रहा परंतु सुगना साथ हो और सोनू उसे खुद से दूर करें यह संभव न था।


उसने बातें शुरू कर दी… लाली अब सोनू के दूसरे तरफ आकर बैठ चुकी थी और उसने भी रजाई में अपने पैर डाल लिए थे…सोनू अपनी दोनों बहनों के बीच बिस्तर के सिरहाने अपनी पीठ टिकाए अपने अनुभव को साझा कर रहा था…

सुगना और लाली दोनों पूरी उत्सुकता और तन्मयता से सोनू के अनुभवों को सुन रही थी और समझने का प्रयास कर रहीं थी। अचानक लाली की हथेलियों ने सोनू के लंड को अपने हाथों में पकड़ लिया सोनू को यह अटपटा भी लगा और आनंददायक भी ।

उसने कोई प्रतिक्रिया न दी और उसी तरह अपनी बहन सुगना से बातें करता रहा… लाली के साथ अब अपनी कार्यकुशलता दिखाने लगे सोनू के लंड का सुपाड़ा आगे पीछे हो रहा था.. सुपाड़े के ऊपर सूख चुकी लंड की लार एक बार फिर छलकने लगी।


कुछ ही पलों में लंड एक बार फिर पूरी तरह तन चुका था। सुगना लाली की हरकतों से अनजान अपने भाई के प्रशासनिक अनुभव को सुन रही थी कमरे में …वासना अपना रंग दिखाने लगी थी….

अचानक सुगना का ध्यान लाली की हरकतों पर चला गया सोनू की जांघों के बीच हिलती हुई रजाई ने उसके मन में शक पैदा कर दिया। निश्चित ही लाली सोनू के लंड को छू रही थी। सुगना असहज होने लगी सोनू अपनी उत्तेजना को काबू में रखते हुए सुगना से बातें किया जा रहा था परंतु लाली की उंगलियों और हथेलियों के जादू को अपने लंड पर बखूबी महसूस कर रहा था।

एक पल के लिए उसके मन में आया कि वह अपने ठीक बगल में बैठी सुगना जांघों पर हाथ रख दे परंतु…सोनू अभी इतनी हिम्मत न जुटा पाया सुगना ने अचानक बिस्तर से उठते हुए कहा

"तोहान लोग टीवी देख हम जा तानी सूते "

सुगना कमरे से निकल गई परंतु वह कमरे से ज्यादा दूर ना जा पाईं…उसे सोनू की आवाज सुनाई पड़ी..

"दीदी तू काहे हिलावत रहलु हा सुगना दीदी देख लिहित तब"

"अइसन कह तारा जैसे उ जानत नईखे" लाली ने हल्का गुस्सा दिखाते ही बोला..

"अरे सुगना दीदी जानत बीया ऊ ठीक बा लेकिन हाईसन हालत में देख लीहित तब" सोनू ने लिहाफ हटा दिया और अपने खूंटे से जैसे तने हुए लंड को हाथ में लेते हुए बोला"

अब तक सोनू के मुंह से अपना नाम सुनकर सुगना खिड़की पर आ चुकी थी उसमें अंदर झांका लिहाफ हटा हुआ था और सोनू अपना खूबसूरत लंड अपने हाथों में लिए लाली को दिखा रहा था..

"ज्यादा सयान मत बन…. हैंड पंप पर अपना बहिनी के आपन हथियार देखावले रहला तब …ना लाज लागत रहे"

लाली अपने बालों को बांधते हुए बोली… ऐसा लग रहा था जैसे लाली प्रेम युद्ध के लिए स्वयं को तैयार कर रही हो…

सोनू की सिट्टी पिट्टी गुम हो गई तो क्या सुगना दीदी ने लाली से सब कुछ बता दिया था क्या ट्रेन की घटना भी…

सोनू ने झेपते हुए कहा..

"हम जानत रहनी की पानी चलावे तू अइबू एहि से सुगना दीदी रहती तब थोड़ी ना करतीं"


सुगना मन ही मन खुश हो गई… शायद उसका भाई सोनू इतना भी बदमाश ना था कि वह अपनी बड़ी बहन को अपना लंड खोल कर दिखा रहा हो…

"चल मान लेनी लेकिन सांच कह.. इ सुगना खातिर तनेला की ना?….लाली ने सोनू की दुखती रग को छेड़ दिया…

"लाली दीदी तू ई का बोला तारू"

"देख अभिये से उछलता …..नामे लेला प " लाली ने सोनू के उछलते हुए लंड को सहलाते हुए बोला….

सुगना के बारे में बातें कर सोनू बेहद उत्तेजित हो गया। वह बिस्तर से उठ खड़ा हुआ और उसमें एक ही झटके में लाली की नाइटी उतार के लाली को पूरी तरह नंगा कर सामने चल रही टीवी के प्रकाश में उसका दूधिया बदन चमकने लगा सुगना बाहर लॉबी में खड़े खिड़की से अंदर झांक रही थी.


सोनू ने लाली को पीछे से पकड़ कर दबोच लिया.. लाली की पीठ सोनू के नंगे सीने से सटी हुई थी सोनू के मजबूत हाथ लाली की नाभि और कमर पर लिपटे हुए थे. सोनू लाली को ऊपर उठा रहा था..और लाली खिलखिला कर हंस रही थी लाली के दोनों पर हवा में थे और सोनू का खूंटे जैसा तना हुआ लंड नितंबों के बीच जगह ढूंढ रहा था…

"आराम से सोनू चोट लग जायी"

परंतु सोनू सुनने के मूड में न था.. सुगना आज अपनी आंखों से वही दृश्य देख रही थी जो स्वयं उसके साथ बनारस महोत्सव में घटा था उस दिन भी सोनू ने ठीक इसी प्रकार उसे उठा लिया था और उसने भी अपने नितंबों के बीच सोनू के तने हुए लंड को महसूस किया था यद्यपि उस दिन सोनू ने अपने कपड़े पहने हुए थे फिर भी सोनू के मजबूत लंड का तनाव छपने लायक न था।

सुगना की आंखें एक बार फिर जड़ हो गई.. कदम फिर रुक गए और सांसे तेज होने लगी सोनू ने लाली को बिस्तर पर पीठ के बल लिटा कर उसकी जांघों के बीच आ गया परंतु आज सोनू किसी और मूड में था..

ई बतावा लाली दीदी सुगना दीदी तोहरा से सब बात करेले का?

"कौन बात?"

"इहे कुल"

"अरे साफ-साफ बोल ना कौन बात?"

"सोनू ने लाली की चूचियों को मसलते हुए कहा"

"इहे कुल..अब बुझाइल "

"हां ऊ हमार सहेली ह त करी ना"

"वो दिन का सुगना दीदी साच में देख ले ले रहे"

"हां देखले रहे और कह तो रहे"

"का कहत रहे?"

"कि हमार भाई अब मर्द बन गईल बा.".

"अवरू का कहत रहे"

"खाली बकबक करब की कामों होई…"

"बतावाना? दीदी का कहत रहे…

"काश सोनू हमर भाई न होखित"

सुगना लाली की बात सुनकर आश्चर्यचकित रह गई उसने ऐसा कुछ न कहा था…. जब भी यह वाक्यांश शब्दों के रूप में आए थे लाली के मुख से ही आए थे। उसे लाली पर गुस्सा आया..पर अभी वह कुछ कहने की स्थिति में न थी।

"तू पागल हउ सुगना दीदी अइसन कभी ना बोली…"

"अरे वाह हम तहर दीदी ना हई "

"सुगना दीदी और तहरा में बहुत अंतर बा ऊ ई कुल के चक्कर में ना रहेली"

"हाई देखतार नू…. एकर कोई जात धर्म रिश्ता नाता ना होला…"लाली ने सोनू को अपनी जांघों के बीच अपनी फूली हुई बुर को दिखाते हुए कहा।

"एकर साथी एके ह…".इतना कहकर लाली ने सोनू के लंड को अपनी हथेलियों में पकड़ लिया…लंड पर रिस आयी लार लाली की हथेलियों में लग गई..

लाली ने मुस्कुराते हुए कहा..

"देख बुझाता इहो आपन सुगना दीदी खातिर लार टपकावता…"

सोनू का लाल फूला हुआ सुपाड़ा लाली की हथेली में था…ऐसा लग रहा था जैसे लाली उसे खुद को छोड़ किसी और को चाहने का दंड दे रही हो पर लंड आज सुगना की चाहत लिए तैयार था…

सोनू उत्तेजना से कपने लगा…लाली ने उसे बेहद उत्तेजित कर दिया था..

और एक बार फिर लाली चुदने लगी….सुगना ने आज लाली का नया रूप देखा था…शायद उसे लाली से यह उम्मीद न थी…

सुगना से और बर्दाश्त न हुआ….वह अपने कमरे में आ गई…

सुगना ने खुद को संतुलित किया और गंदे गंदे ख्यालों को दरकिनार कर वह अपने श्रृंगारदान को खोल कर अपनी क्रीम लगाने लगी तभी उसका ध्यान उस जिंदगी किताब तक चला गया जिसको सोनू अपनी बड़ी बहन सुगना के लिए छोड़ आया था किताब के दोनों हिस्सों को एक साथ देख कर सुगना चौक उठी आखिर यह किसने किया हे भगवान…

शेष अगले भाग में…
Wah manto wah.....
 

snidgha12

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अद्भुत ज्ञान का निर्झर... विद्यानंद ने क्या बात कही है...
समाज में आज भी कई किशोर युवक और युवतियां समागम को लेकर अलग-अलग भ्रांतियां पाले हुए है.. इसका कारण सिर्फ और सिर्फ अज्ञानता है..न तो पुरुष स्त्री के कोमल शरीर को पूरी तरह समझ पाता है और नहीं स्त्री पुरुष की उग्र उत्तेजना को...:love3:

और आप श्री Lovely Anand जी ने इस गुढ़ तथ्य को शब्दों में पिरोकर यहां उद्धृत किया आप श्री को बहुमान
 
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snidgha12

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कथा चक्र अब एक नए एंगल में बढ़ रही है, और कथानक एक उपन्यास का रुप ले रहा है,
आशा ही नहीं वरन विश्वास है कि आप सभी पात्रों एवं कथा क्रम के साथ पुर्ण न्याय कर सकेंगे। अग्रिम शुभकामनाएं
 
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