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Incest आह..तनी धीरे से.....दुखाता.

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Lovely Anand

Love is life
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आह ....तनी धीरे से ...दुखाता
(Exclysively for Xforum)
यह उपन्यास एक ग्रामीण युवती सुगना के जीवन के बारे में है जोअपने परिवार में पनप रहे कामुक संबंधों को रोकना तो दूर उसमें शामिल होती गई। नियति के रचे इस खेल में सुगना अपने परिवार में ही कामुक और अनुचित संबंधों को बढ़ावा देती रही, उसकी क्या मजबूरी थी? क्या उसके कदम अनुचित थे? क्या वह गलत थी? यह प्रश्न पाठक उपन्यास को पढ़कर ही बता सकते हैं। उपन्यास की शुरुआत में तत्कालीन पाठकों की रुचि को ध्यान में रखते हुए सेक्स को प्रधानता दी गई है जो समय के साथ न्यायोचित तरीके से कथानक की मांग के अनुसार दर्शाया गया है।

इस उपन्यास में इंसेस्ट एक संयोग है।
अनुक्रमणिका
Smart-Select-20210324-171448-Chrome
भाग 126 (मध्यांतर)
 
Last edited:

Lovely Anand

Love is life
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भाई साहेब, आप मुझे नाहक ही किसी पचड़े में क्यों डाल रहे हैं? शायद इसलिए कि ऐसा एक वर्णन मेरी कहानी में आया है।
लेकिन जैसा कि आपने ही लिखा, उस वर्णन में मैंने स्पष्ट किया है कि उस समय (और आज भी) महिलाएँ अपने बच्चों को उस तरह छेड़ कर अपने स्नेह को ही प्रदर्शित करती थीं। उस क्रिया में वासना का कोई स्थान ही नहीं है। आगे भी मेरी कहानी में इस तरह के वर्णन आएँगे - इसलिए मुझे सतर्क रहना पड़ेगा।
मैंने आनंद भाई की यह कहानी नहीं पढ़ी है - लेकिन उनके वर्णन से स्पष्ट है कि उनका भी वो मंतव्य नहीं था।
मुझे आपके कमेंट से पता चला कि स्निग्धा जी भाई साहेब है.....ha ha ha kya yah sach hai??
खैर इस झूठी दुनिया में इससे फर्क भी क्या पड़ता है...
 

raniaayush

Member
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आपकी लेखनी की सबसे अच्छी बात है कि पात्र आपस में तो बात करते ही हैं, उनके अंतर्मन में चलने वाली बातें भी इस कहानी का हिस्सा होती हैं, जो अंतर्द्वंद को उजागर करती हैं। मुंशी प्रेमचंद जी इस कला के महारथी थे।
इस भाग की कुछ मुख्य बातें:
आपके मन में चल रहे विचार और भावनाएं आपके चेहरे पर अपना अंश छोड़ती हैं…

सोनू और सुगना दोनों भावुक हो उठे सोनू और सुगना एक स्वाभाविक प्रेम की वजह से एक दूसरे के आलिंगन में आ गए यह आलिंगन बेहद पावन था.. शायद सोनू के मन भी कुछ समय के लिए वासना विहीन हो गया था और उसने भी सुगना ने भी आलिंगन की पवित्रता बरकरार थी।

उपरोक्त पंक्ति के संदर्भ में मैं आपकी ही किसी भाग लिखी पंक्ति ही उधृत कर रहा हूँ-
स्त्री और पुरुष के आलिंगन को देखकर उनके बीच संबंधों का आकलन किया जा सकता है .. एक दूसरे के शरीर पर बाहों का कसाव खुशी और गम दोनों स्थितियों में अलग अलग होता है। शारीरिक अंगों का मिलन रिश्तो को परिभाषित करता है,
यदि आलिंगन के दौरान पुरुष और स्त्री के पेट आपस में कसकर चिपके हुए हों तो यह मान लीजिए की या तो उन दोनों में संबंध स्थापित हो चुके हैं या फिर निकट भविष्य में होने वाले हैं।


यदि स्त्री यह कार्य स्वेच्छा से करे तो असीमितआनंद की प्राप्ति होती है....
स्त्रियों द्वारा पुरुषों को दिया जाने वाला सबसे मुख्य उपहार है मुखमैथुन… इस सुख की कल्पना शायद हर पुरुष करता है.. परंतु विरले ही वह लोग होंगे जिन्हें स्त्रियां स्वेच्छा से, हंसी खुशी और पूरी तन्मयता से उन्हें यह सुख देती है…
 

Kalpana singh

New Member
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N
भाग 98

होठों पर बेहद हल्की मुस्कान छाई हुई थी शायद सुगना कोई सुखद और मीठा स्वप्न देख रही थी..


यदि कामदेव भी सुगना को उस रूप में देख लेते तो उन्हें इस बात का अफसोस होता कि उन्होंने ऐसी सुंदर अप्सरा को धरती पर क्यों दर् दर ठोकरे खाने के लिए छोड़ दिया था…

अचानक दरवाजे पर खटखट हुई और सुगना जाग उठी ….रजाई के अंदर उसे अपनी नग्नता का एहसास हुआ…नाइटी चुचियों के अपर एक घेरा बनाकर पड़ी हुई थी सुगना की ब्रा और पेंटी तकिए के नीचे अपने बाहर आने की राह देख रहे थे…

न जाने क्यों दिन भर स्त्री अस्मिता के वो दोनो प्रहरी रात्रि में रति भाव के आगमन पर अपनी उपयोगिता को देते थे…

जब तक सुगना उन्हे पहन पाती दरवाजे पर खट खट के साथ मधुर आवाज आई…


"दीदी…

अब आगे

कमरे में रोशनी देखकर सुगना परेशान हो गई… अरे आज इतना देर कैसे हो गईंल….. उसने स्वयं से पूछा और आनंद फानन में उठकर दरवाजा खोला ….बाहर सोनी खड़ी थी

" अरे दीदी दरवाजा बंद करके काहे सुतल बाड़े ?…. तु त कभी दरवाजा ना बंद करेलू"

सुगना को कोई उत्तर नहीं सूझ रहा था उसमें अपने बिस्तर की तरफ देखा मधु अभी भी सो रही थी… सुगना की निगाहों ने इस भाग की तस्दीक कर ली कि वह किताब उसके बिस्तर पर न थी। उसने सोनी को आश्वस्त करते हुए अंदर आते हुए बोली…

"राते कपड़ा बदलला के बाद दरवाजा खोले भुला गइल रहनी… " चल चल तैयारी कईल जाओ…. सोनू उठल की ना?"

नियति मुस्कुरा रही थी जिस सोनू को लेकर सुगना रात भर बेचैन थी आज सुबह भी उसके होठों पर उसका ही नाम था….

उधर लाली सतर्क थी वह सोनू के कमरे से जा चुकी थी पर उसके लंड पर अपना प्रेम रस छोड़कर… सोनू तो जैसे अब भी घोडे बेचकर सो रहा था…बीती रात एक नहीं दो दो बार उसने लाली की घनघोर चूदाई की थी और अपनी भावनाओं में सुगना से बड़ी बहन का दर्जा कई मर्तबा छीन लिया था…और…ना जाने कितनी बार अपनें मन में पाप को अंजाम दिया था..

नियति सोनू को मनोदशा से अनभिज्ञ न थी…

सोनी ने कहा "जा तानी सोनू भैया के जगा देत बानी"

सुगना ने उसे रोक लिया उसे यह डर था कि कहीं सोनू आपत्तिजनक अवस्था में ना हो और इस तरह सोनी का वहां जाना कतई उचित न होगा। आजकल वैसे भी सोनू कुछ ज्यादा ही लापरवाह हो चुका था… उसने सोनी से कहा

" रुक जा चाय बन जाए दे तब उठा दीहे"

सोनी अपनी दिनचर्या में लग गई और…कुछ देर बाद सुगना स्वयं चाय लेकर सोनू के कमरे के बाहर खड़ी थी… उसने लाली को आवाज दी

" लाली उठ चाय लेले " दरअसल सुगना सोनू के कमरे में ऐसे नहीं जाना चाहती थी… इसीलिए उसने लाली को आवाज दी।

सोनू अपनी नींद से ज्यादा और न जाने किस धुन में कहा

" कम इन" हॉस्टल में रहते रहते एसडीएम साहब पर ऑफिसर होने का रंग चढ़ चुका था…उन्हें शायद यह ईल्म न था कि दरवाजे पर खड़ा व्यक्ति उनका मातहत नहीं अपितु उनकी बड़ी बहन सुगना थी।

फिर भी सुगना कमरे के अंदर आई सोनू अब भी रजाई ओढ़े लेटा हुआ था उसकी आंखें बंद थी सुगना ने पास पड़े टेबल पर चाय रखी और वापस जाने लगी तभी सोनू ने अचानक उठ कर उसकी कलाइयां पकड़ ली और धीरे से खींचकर बिस्तर पर बिठा दिया..

सुगना का कलेजा धक-धक कर रहा था कहीं ऐसा तो नहीं कि सोनू अब भी नग्न था वह घबरा गई दिन के उजाले में वह किसी असहज स्थिति का शिकार नहीं बनना चाहती थी..

सोनू ने अगड़ाई लेते हुए कहा…

"सुबह-सुबह तोहरा के देख लेनी त पूरा दिन मन खुश रहेला.. भगवान से मनाओ कि हमार पोस्टिंग बनारस हो जाए ….त असहि तोहार हाथ के चाय रोज मिली"

सोनू ने जो बात कही थी वह बेहद गूढ़ थी…परंतु भोली भाली सुगना अपने भाई की मीठी मीठी बातों में आ गई सुगना मुस्कुराने लगी वह बिस्तर पर बैठ गई पर अब भी उसके मन का डर काम था। रजाई का आवरण ओढ़े सोनू का लंड अभी उसकी आंखों के सामने घूमने लगा…


अचानक सोनू बिस्तर से उठ खड़ा हुआ सोनू ने अपनी वस्त्र सभ्य युवा की भांति बखूबी पहने हुए थे लूंगी के अंदर अंडरवियर भी अपनी जगह पर सोनू के अद्भुत लंड को कैद किए अपनी उपयोगिता साबित कर रहा था।

सुगना को आज अपनी ही सोच पर शर्म आई और वह एक बार फिर मुस्कुराने लगी..

आपके मन में चल रहे विचार और भावनाएं आपके चेहरे पर अपना अंश छोड़ती हैं…सुगना जो अपने मन में सोच रही थी उसने उसे मुस्कुराने पर विवश कर दिया था


सोनू अपनी बहन सुगना के सुंदर चेहरे को देखते हुए चाय पीने लगा तभी…कुछ कुछ ही देर में लाली और सोनी भी वहां आ गए गई सोनू एक बार फिर अपनी बहनों के बीच बैठा आगे आने वाली जीवन की प्लानिंग किए जा रहा था ….

सोनी ने पूछा " तब अबकी दीपावली गांव पर ही मनी पक्का बा नू "

सुगना ने सोनू को निर्देश करते हुए कहा ..

"सोनू तू भी अपना साहब से बात कर लीहे दीपावली में एक हफ्ता के छुट्टी लेके गांव चले के बा…अबकी गांव में भोज भात भी कईल जाई"


सोनू रह-रहकर सुगना के खूबसूरत चेहरे और मदमस्त बदन में पर खो जाता परंतु जब भी सुगना की आवाज उसके खानों में पढ़ती वह सचेत हो जाता। वैसे भी सुगना कहे और सोनू ना मानें ….. ऐसे आज्ञाकारी भाई या प्रेमी की तलाश युवतियों को हमेशा रहती है…

सोनू ने अपनी रजामंदी दे दी…

सोनू के लिए अगले एक-दो दिन बेहद खुशहाली भरे थे सुगना और लाली उसका जी भर ख्याल रखते सुगना के हाव भाव से यही लगता कि जैसे उसने उसे ट्रेन वाली घटना के लिए पूरी तरह माफ कर दिया था ..

परंतु सोनू अब तक यह बात नहीं जान पाया था कि उसकी सुगना दीदी ने वह रहीम फातिमा की किताब पढ़ी या नहीं। सुगना का व्यवहार संयमित था उस किताब से उसके व्यवहार में कोई परिवर्तन नहीं दिखाई पड़ रहा था परंतु इतना तो अवश्य था कि सुगना के मन में सोनू से शर्म पैदा हो चुकी थी। सुगना का वह अल्हड़ पन और स्वाभाविकता कुछ परिवर्तित होती प्रतीत हो रही थी।


उसका सगा भाई होने के बावजूद सोनू से वह उतनी सहज न रही थी। जब जब बही बहन की भावनाएं प्रगाढ़ होती सुगना सोनू से और सहज होती और जब उसे सोनू का काम रूप दिखाई पड़ता सुगना एक नई नवेली दुल्हन की तरह उससे दूर हो जाती।

1- 2 दिन कैसे बीत गए किसी को पता ना चला और अब बारी थी सोनू को अपनी पहली पोस्टिंग जौनपुर पर भेजने की। एक बार फिर लाली और सुगना दोनों ने सोनू के लिए ढेर सारे नाश्ते बनाए और तैयारियां पूरी की अगली सुबह सोनू जौनपुर जाने के लिए हाल में खड़ा था।

सुगना हाथों में आरती का थाल लिए उसकी आरती उतार रही थी और सोनू एक टक सुगना के खूबसूरत चेहरे को देख जा रहा था. साड़ी पहनी हुई सुगना ने अपनी साड़ी का पल्लू अपनी कमर में फंसा हुआ था उसकी दोनों भरी-भरी चूचियां पल्लू से पूरी तरह ढकी हुई थी गले में पड़ा रतन का मंगलसूत्र अब भी उसके विवाहिता होने का एहसास दिला रहा था… ..

सुगना आरती की थाल घुमा रही थी..सोनी और लाली बगल में खड़ी अपनी बारी का इंतजार कर रही थी.. तभी सोनू ने सोनी से कहा

" टेबल पर लिफाफा रखल बा तनी लेआउ त" सोनी लिफाफा लेने सोनू के कमरे की तरफ गई उसी दौरान सुगना ने अपनी आरती पूरी की और सोनू को नीचे झुकने के लिए कहा उसने सोनू के माथे पर तिलक लगाया और अपने पूर्व अंदाज में उसके माथे को चुमने के लिए आगे बढ़ी इससे पहले कि सुगना अपने होठों को गोल कर उसके माथे को चुमती सोनू ने अपना चेहरा ऊपर उठा दिया और सुगना के होंठ सोनू के होठों से छू गए…. एक करंट सुगना के शरीर में दौड़ गई ..

कोई और देखे या ना देखे पास खड़ी लाली ने चार खूबसूरत लबों को आपस में मिलते देख लिया और मुस्कुराते हुए बोली …

" लागा ता सोनुआ के कुल प्यार अभिए दे दे देबू"

सुगना झेंप गई उसके गाल शर्म से लाल हो गए उसने लाली को घूर कर देखा और आरती को थाल पकड़ाते हुए बोला..

" ते आज कल ढेर बक बक करत बाड़े "

निश्चित ही जो कुछ हुआ था वह अनजाने में हुआ था परंतु लाली ने ऐसा कह कर सुगना को सोचने पर मजबूर कर दिया और जब एक बार सोच में वह बात आ गई सुगना के गाल लाल होने थे सो हो हुए और सोनू की धड़कनें तेज हो गई..

अब बारी लाली की थी सोनू ने लाली के पैर छुए लाली ने उसके सर पर हाथ फेरा और बेहद प्यार से कहा "भगवान तोहर सब मनोकामना पूरा करस और उसने अपनी निगाहों से सुगना की तरफ देखा …" सोनू लाली की बात समझ न पाया पर नियति समझदार थी और पाठक भी..

सोनी आ चुकी थी उसने सोनू को लिफाफा पकड़ाया और सोनू के चरण छू कर उस आजकल की प्यार भरी झप्पी भी दी…जो पूरी तरह वासना विहीन थी.

सोनू विदा हो रहा था जाते-जाते उसने अपनी बड़ी बहन सुगना के चरण छुए और बोला.

"आज हमार नौकरी के पहला दिन ह हमरा खातिर प्रार्थना करिहे… हमरा से कभी कोई गलती भईल होगी तो माफ कर दीहे…"

सोनू ने ऐसी भावुक लाइन क्यों कही थी यह तो वही जाने पर भावुकता स्वाभाविक थी…सोनू आज इस प्रतिष्ठित पद को ग्रहण करने जा रहा था वह सुगना और उसके परिवार के लिए एक दिवास्वप्न से कम न था जिसे सोनू ने अपनी मेहनत से सच कर दिखाया था..।

सोनू और सुगना दोनों भावुक हो उठे सोनू और सुगना एक स्वाभाविक प्रेम की वजह से एक दूसरे के आलिंगन में आ गए यह आलिंगन बेहद पावन था.. शायद सोनू के मन भी कुछ समय के लिए वासना विहीन हो गया था और उसने भी सुगना ने भी आलिंगन की पवित्रता बरकरार थी।

सोनू और सुगना अपने अश्रुपूरित नयन लिए अपने ईस्ट देव से एक दूसरे के लिए खुशियां मांगते…एक दूसरे से अलग हो गए… सोनू ऑटो से सर निकालकर बार-बार पीछे देख रहा था जहां उसके तीनों बहने खड़ी हाथ हिला रही थी सोनू का सर ऑटो से बाहर देख कर सुगना जैसे मन ही मन सोनू से कह रही थी कि अपना सर अंदर कर ले चोट लग जाएगी उसने अपने हाथों से सोनू को अपना सर अंदर करने का इशारा भी किया सच सुगना सोनू का बेहद ख्याल रखती थी…. कुछ ही देर में ऑटो गली से मुड़ गया और तीनो बहने घर के अंदर आ गई।

दीपावली आने वाली थी इस दीपावली ने सुगना के जीवन में ढेरों खुशियां लाई थी परंतु क्या आने वाली दीपावली सोनू और सुनना के बीच कुछ की दूरियां खत्म करेगी? या सोनू को सुगना जैसी कोई जीवन संगिनी मिल जाएगी…? जिसके लिए सरयू सिंह और उनके रिश्तेदार पूरी तत्परता से लगे हुए थे…सोनू की इस सफलता ने तो आसपास के कई जिलों के मानिंद लोगों को भी अपनी बेटी सोनू से ब्याने के लिए उत्साहित कर दिया था..


नियति के लिए एक बड़ा प्रश्न था… वह विधाता द्वारा लिखे गए पन्नों को पलट कर आगे की रूपरेखा बनाने लगी… सरयू सिंह के दरवाजे पर आज भी अपनी सुकुमारी किशोरियों का रिश्ता लेकर आने वालों का तांता लगा रहता था और सोनू पढ़ी-लिखी अक्षत योवनाओं को छोड़ अपनी बड़ी बहन सुगना से तार जोड़ने पर आमादा था.

दीपावली का त्यौहार शायद हिंदुस्तान में मनाया जाने वाला सबसे प्रमुख त्यौहार है। 90 के दशक में इस त्यौहार की अहमियत और भी ज्यादा हुआ करती थी दूर-दूर से लोग अपने घरों पर वापस आ जाया करते थे सोनी का प्रेमी विकास भी अमेरिका से वापस बनारस आ रहा था सोनी को जब इसकी खबर मिली वह चहकने लगी…

विकास से मिलन की कल्पना कर उसकी वासना हिलोरे मारने लगी …उस तरुणी का तन बदन और दिमाग सब कुछ विकास का बेसब्री से इंतजार करने लगा परंतु इस बार की दीपावली सलेमपुर में मनाई जानी थी और सोनी को उसमें शरीक भी होना था तो क्या वह अपनी दीपावली विकास के साथ नहीं मना पाएगी…?

क्या ऐसा नहीं हो सकता कि विकास भी उस दिन सलेमपुर चले आखिर अब वह उसका ससुराल भी था यद्यपि सोनी और विकास का विवाह एक गंधर्व विवाह की श्रेणी में रखा जा सकता है परंतु सोनी और विकास दोनों उस विवाह की पवित्रता को अपने मन में पूरी अहमियत देते थे..

सोनी ने मन ही मन ठान लिया कि वह अपने स्त्री हक और अधिकार का प्रयोग करते हुए विकास को सलेमपुर चलने के लिए मनाएगी चाहे इसके लिए उसे कुछ भी करना पड़े…

और आखिरकार सोनी ने पीसीओ से विकास को फोन लगा दिया…

फोन की घंटी जाते ही अमेरिका में बैठे विकास ने फोन काटा…और वापस पलट कर उसी नंबर पर अपने फोन से फोन किया विकास सोनी की आर्थिक स्थिति को भलीभांति जानता था।

सोनी और विकास ने कुछ देर बातें की और अंततः सोनी ने विकास को दीपावली की रात सलेमपुर आने के लिए मना लिया…. सोनी अपनी विजय पर मुस्कुरा रही थी उसने अपने जिस दिव्य और कोमल हथियार का प्रयोग इस विजय के लिए किया था वह थे उसके खूबसूरत होंठ…

जिन होठों का प्रयोग वह सूरज की नून्नी पर करती आई थी… दीपावली के दिन उसे उसका सही उपयोग करना था…. विकास उस अनोखे सुख की कल्पना कर सोनी के सामने पूरी तरह सरेंडर हो गया …और उसने और उसमें अपने परिवार को भूल अपनी प्रेमिका और पत्नी सोनी के घर पर दीपावली मनाने को अपनी रजामंदी दे दी…

स्त्रियों द्वारा पुरुषों को दिया जाने वाला सबसे मुख्य उपहार है मुखमैथुन… इस सुख की कल्पना शायद हर पुरुष करता है.. परंतु विरले ही वह लोग होंगे जिन्हें स्त्रियां स्वेच्छा से, हंसी खुशी और पूरी तन्मयता से उन्हें यह सुख देती है…

सलेमपुर में दीपावली की तैयारियां जोरों पर थी…दीपावली के दिन सोनू के सम्मान में विशेष पूजा रखी जानी थी. और दोपहर में ही आसपास के गांव के लोगों को सामूहिक भोज पर आमंत्रित किया गया था यह एक प्रकार की खुली मुनादी थी जो भी चाहे उस कार्यक्रम में शरीक हो सकता था। विशेष मानिंद लोगों को अलग से नियुक्ति भेजे गए थे और बाकी गांव वालों के लिए डुगडुगी बजाकर मुनादी करा दी गई थी…

सरयू सिंह ने दिल खोलकर पैसे खर्च किए थे वैसे भी यह एक प्रकार का इन्वेस्टमेंट ही था जो सम्मान और प्रतिष्ठा उनके परिवार को प्राप्त हुई थी यह आयोजन उस प्रतिष्ठा को और भी बढ़ाने वाला था..

सरयू सिंह के पुराने मकान को भी रंग रोगन कर सजा धजा दिया गया। घर के बाहर ईंटों से बने कुछ कमरे भी तैयार कर दिए गए थे जिनमें पुरुषों के रहने की व्यवस्था की गई थी…

घर के अंदर महिलाओं के रहने की व्यवस्था थी…सरयू सिंह के परिवार का यह दुर्भाग्य ही था की इसमें कोई भी जोड़े में उपलब्ध न था।


कजरी और सुगना दोनों सास बहू अकेले रहने को मजबूर थी। रतन और विद्यानंद दोनों न जाने किस विशेष आश्रम की तैयारियों में लगे हुए थे। दोनों ने ही अपने अपने परिवार को अलग-अलग कारणों से छोड़ रखा था।

सरयू सिंह जो इस परिवार के आधार स्तंभ थे वह भी अब सुगना से दूरी बना चुके थे और कजरी वह तो अब निरापद हो चुकी थी वासना और कामुकता से परे …

पूजा पाठ और गांव वालों के साथ समय व्यतीत करना उसे बेहद पसंद आता था।

सिर्फ एक विवाहित जोडी उस दिन सलेमपुर आने वाली थी वह थी विकास और सोनी की जोड़ी। परंतु यह जोड़ी जिस तरह एकांत में बनाई गई थी उन्हें वह एकांत उस दिन कतई नहीं मिलना था.. समाज और अपने परिवार की नजरों में सोनी अब भी अविवाहित थी।

खैर जो होना था वह तो दीपावली के दिन होना था नियति प्रेमियों का हमेशा मार्ग प्रशस्त करती है वह सोनी और विकास को मिलाने के लिए जुगत लगाने लगी… परंतु सुगना और सोनू दोनों की तड़प अब उससे देखी नहीं जा रही थी… एक तरफ सोनू खुलकर अपनी बड़ी बहन सुगना को अपना लेना चाहता था परंतु मर्यादा और समाज का डर अब भी उस पर हावी था।


काश कोई उससे कह देता कि सुगना उसकी अपनी सगी बड़ी बहन नहीं है तो वह सुगना के सामने नतमस्तक होकर उसके प्यार की भीख मांग लेता और उसे येन केन प्रकारेण मना लेता। और अपने छद्म गुरु रहीम की तरह अपनी बड़ी बहन सुगना को फातिमा जैसे जी भर कर प्यार करता….

दूसरी तरफ सुगना अपने मन में एक नई प्रकार की वासना को जन्म लेते हुए महसूस कर रही थी.. रहीम और फातिमा की वह किताब अब उसे इतनी बुरी नहीं लगती… सोनू ने जब से उस किताब के दोनों भागों को जोड़ दिया था वह न जाने कितनी बार उस किताब को पढ़ चुकी थी… जब जब वह एकांत में होती वासना उसे गुदगुदाती उसके चेहरे पर मुस्कुराहट आती और कुछ ही देर में वह किताब उसके हाथों में आ जाती।


सुगना न जाने कब उस किताब की गिरफ्त में आ गई सोनू ने उस किताब में कई जगह सुगना का नाम लिखा हुआ था…. इतना तो अब सुगना भली-भांति समझने लगी थी कि सोनू उसके कामुक बदन का कायल है परंतु उसे सोनू से कभी कोई खतरा नहीं हो सकता था… इतना तो वह भली-भांति जानती थी कि सोनू कभी भी उसके साथ ऐसी वैसी हरकत नहीं करेगा…विशेषकर तब जब तक वह खुद ही उसे न उकसाए। परंतु वह स्वयं अपनी वासना के आधीन होकर सोनू के लंड को अपने ख्यालों में लाने में अब परहेज नहीं करती थी और गाहे-बगाहे अपनी उत्तेजना में उसे शामिल कर लेती…

आज रात सुगना की आंखों से फिर नींद गायब थी …घर के सारे सदस्य सो चुके थे और सुगना अपने बिस्तर पर हाथों में किताब लिए आ गई..

एक हाथ में किताब और दूसरे हाथ से अपनी छोटी सी अबोध बुर पर हाथ फिराते हुए वह किताब पढ़ने लगी…

कुछ ही देर में किताब के शब्दों में छुपा रस उसकी जांघों के बीच रिस रिस कर उंगलियों को भिगोने लगा और उंगलियों का संसर्ग उसके बुर की फांकों से और भी आत्मीय होता गया…

किताब के कुछ अंश..


रहीम : दीदी हम दोनों के प्यार करने पर रोक क्यों है?

रहीम ने अपनी बड़ी बहन की चुचियों को सहलाते हुए पूछा….

फातिमा: तू पागल है भला कोई अपने बहन से के साथ ये सब काम करता है.

रहीम: कौन सा काम …. रहीम ने फातिमा के फूले हुए निप्पलों को मसलते हुए कहा

फातिमा: ये जो तू कर रहा है…बड़ी बहन मां समान होती है…. फातिमा ने अपनी उखड़ती सांसो पर काबू करते हुए कहा..

रहीम : सच दीदी ….बड़ी बहन सचमुच मां समान होती है…

इतना कहते हुए रहीम ने फातिमा की बड़ी बड़ी चूचियों को अपने मुंह में भरने की कोशिश की और अपनी जीभ से उसके निप्पल चुभलाने लगा..

सोनू रहीम ने अपनी आंखें उठाकर फातिमा को देखा जैसे पूछ रहा हूं अब ठीक है …

किताब में फातिमा उत्तेजना से कांपने लगी और बिस्तर पर पड़ी सुगना भी उसने किताब को एक तरफ रखा और उसकी हथेलियां जांघों के बीच अपनी करामात दिखाने लगी…

रहीम और फातिमा की किताब जितनी उत्तेजक थी उससे कहीं ज्यादा उत्तेजक सोनू के ख्वाब थे पर उसके ख्वाब अभी उसके दिल में ही दफन थे जाने कब वह सुगना को अपने दिल की बात बताएगा…

नियति का कुछ ऐसा चक्र था कि सोनू जो कुछ अपनी खुली आंखों से पूरे होशो हवास में सुगना के साथ करना चाहता था वह सुगना अपने स्वप्न में देखा करती थी.. सुगना के जीवन में रतन के जाने बाद आई नीरसता उसके सपनों ने दूर कर उसकी रातें रंगीन कर दीं थीं।

परंतु दिन के उजाले में सुगना अपनी वासनाओं को काबू कर एक सभ्य और सुसंस्कृत बड़ी बहन की तरह अपने घर की जिम्मेदारियां अब भी उठा रही थी…उसे पता था रहीम और फातिमा की कहानी एक कुत्सित मन द्वारा उपजी वासना के अलावा और कुछ भी नहीं है….हकीकत इससे इतर थी…सुगना को अपने भाई के लिए एक सुंदर दुल्हन खोजनी थी जिसमें सुगना कोई कोताही नहीं बरतना चाहती थी…

दीपावली आने वाली थी…सुगना अपने भाई सोनू और सोनी अपने प्रेमी विकास का का इंतजार करने लगी…

इंतजार सबको था सरयू सिंह को भी , सोनू की मां पद्मा को भी और नियति को भी…

शेष अगले भाग में
Iceupdate
Is kahani me abhi kewal intejar hi chal rha hai ...
 
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