भाग 125
अब तक आपने पढ़ा.
भाई बहन दोनों एक दूसरे की आगोश में स्वप्नलोक में विचरण करने लगे..
तृप्ति का एहसास एक सुखद नींद प्रदान करता है आज सुगना और सोनू दोनों बेफिक्र होकर एक दूसरे की बाहों में एक सुखद नींद में खो गए।
नियति यह प्यार देख स्वयं अभिभूत थी…शायद विधाता ने सुगना और सोनू के जीवन में रंग भरने की ठान ली थी…पर भाई बहन क्या यूं ही जीवन बिता पाएंगे? …लाली और समाज अपनी भूमिका निभाने को तैयार हो रहा था…..नियति सुगना के जीवन के किताब के पन्ने पलटने में लग गई…
अब आगे..
बीती रात सुगना और सोनू ने जो किया था वह निश्चित ही धर्माचरण के विरुद्ध था भाई-बहन के बीच इस प्रकार का कामुक संभोग सर्वमान्य और समाज के नियमों के अनुरूप न था और जो समाज को स्वीकार्य न हो वह धर्म नहीं हो सकता….
सुगना ने सोनू की बातों में उलझ कर और संदेह का लाभ लेकर सोनू को अपने प्रेमी के रूप में स्वीकार कर लिया था…सुगना पाप की भागिनी थी या नहीं यह मानव मन की सोच पर निर्भर करता है …परंतु जो सोनू ने किया था वह निश्चित ही सामाजिक पाप की श्रेणी में गिना जा सकता था…
अगली सुबह सुगना हमेशा की तरह जल्दी उठी और जैसे ही उसने अपना लिहाफ हटाया उसे अपनी नग्नता का एहसास हुआ और उसकी आंखों में बीती रात के अंतरंग दृश्य घूमने लगे…अपने भाई सोनू को गहरी नींद में सोया देखकर उसे चुमने का मन हुआ परंतु उसने सोनू की नींद में व्यवधान डालना उचित न समझा।
पर एक बार फिर उसके मन में कौतूहल हुआ और उसने लिहाफ उठाकर कल रात के हीरो सोनू के लंड को देखने की कोशिश की जो लटक कर चादर को छू रहा था… एकदम शांत निर्विकार और निर्दोष पर अपने आकार से ध्यान खींचने वाला…सुगना विधाता की उस अद्भुत कृति को देख रही थी जिसने बीती रात हलचल मचा कर सोनू और सुगना के बीच रिश्तो को तार-तार कर दिया था.. वह आज भाई बहन की जिंदगी में भुचाल ला कर एकदम शांत और निर्दोष की भांति लटका हुआ था..
सुगना नित्य कर्म के लिए गुसल खाने में गई स्नान किया और अपने छोटे भाई सोनू के लिए उसकी पसंद की चाय बनाकर उसके समीप आ गई..
अपना चेहरा अपना चेहरा सोनू के चेहरे के ऊपर लाकर सुगना ने धीमे से कहा..
"ए सोनू …उठ जा"
सोनू ऊंघता रहा परंतु उसने अपनी आंखें न खोली…पर सुगना को बाहों में भरने के लिए उसने अपनी बाहें जरूर फैला दीं.. सुगना अपने भाई के इरादे जानती थी…सुगना के पास कई अस्त्र थे .. सुगना ने अपने गीले गीले बालों को झटका दिया और पानी की छोटी-छोटी बूंदों की फुहार सोनू के चेहरे पर आकर गिरी… सोनू ने अपनी आंखें खोल ली दीं । अपनी बड़ी बहन को ताजे खिले फूल की तरह अपने समीप देख सोनू अचानक उठा और सुगना को अपनी बाहों में भर लिया और बिस्तर पर अपने ऊपर ही गिरा लिया।
सुगना ने बड़ी मुश्किल से खुद को संभाला परंतु सोनू के ऊपर गिरने से रोक न पाई.. अचानक सुगना सचेत हुई और बोली
" सोनू ई का करत बाडे काल का बात भईल रहे..?"
सोनू एक पल के लिए कल रात हुए समझौते को भूल सा गया था..
"कौन बात दीदी.?_.
"ई कुल काम अकेले में…"
"त अभी एहिजा के बा…?"
अचानक सोनू ने महसूस किया कि उसके पैरों पर कोई बैठने की कोशिश कर रहा है। सोनू ने सर उठा कर देखा उसका भांजा सूरज उसके पैरों पर चढ़ने की कोशिश कर रहा था। सोनू सुगना की तरफ देख कर मुस्कुराया और सुगना खुद भी मुस्कुराने लगी। भाई बहन के प्यार को याद दिलाने वाला सूरज अपनी मीठी आवाज में बोला
" मामा जल्दी उठा आज घूमे चले के बा…"
सोनू ने पूरी संजीदगी से लिहाफ को अपने बदन पर चारों तरफ लपेट लिया और तकिए का सहारा लेकर सिरहाने से अपनी पीठ टिका दी उसने इस बात का बखूबी ध्यान रखा कि उसकी नग्नता बाहर न दिखाई पड़े..
सुगना ने उसके हाथ में चाय की प्याली पकड़ाई और दोनों भाई बहन चाय की चुस्कियां लेने लगे तभी सुगना ने आश्चर्य से सोनू की गर्दन की तरफ इशारा करते हुए पूछा..
"अरे इ तोरा गर्दन पर दाग कैसे भईल बा?"
" का जाने परसो से ही भईल बा तनी सफेद हो गईल बा.."
"अरे ना इतना ज्यादा बा…"
सुगना ने अपनी तर्जनी को अंगूठे से दबा कर उस दाग के आकार को दिखाते हुए सोनू को उसकी गंभीरता बताने की कोशिश की।
"दीदी ते भी बात बढ़ा चढ़ा कर बतावेले छोटा सा दाग बा ठीक हो जाए"
सुगना सोनू की बात से संतुष्ट ना हुई अपने छोटे भाई के बेदाग शरीर पर वह दाग उसे स्वीकार न था। वह सिरहाने पर रखी अपनी दर्पण को ले आई और उसे सोनू के चेहरे के समक्ष रख कर उस दाग को दिखाने की कोशिश की। निश्चित ही उसे देखकर सोनू के चेहरे पर चिंता की लकीरें आ गई।
"हां दीदी सांच कहत बाड़े काल परसों में थोड़ा ज्यादा हो गइल बा"
"कब से भईल बा? हमार ध्यान त आज गईला हा…"
अब तक सूरज सुगना के समीप आ चुका था और अपनी मां के हाथों से कप से लगभग ठंडी हो चुकी चाय पर अपनी जीभ फिरा रहा था। उधर सोनू याद कर रहा था। इस दाग के बारे में पहली बार उसके दोस्त विकास ने उसे बताया था जब वह दीपावली की रात सुगना को उसकी इच्छा के विरुद्ध चोदने के पश्चात सलेमपुर से भाग कर वापस बनारस आ रहा था।
सोनू को तब भी यकीन ना हुआ था…उसमें आगे कस्बे में रोड किनारे बैठे एक नाई की दुकान पर उतर कर अपनी गर्दन पर लगे उस दाग को देखा और थोड़ा परेशान हो गया था परंतु कुछ ही दिनों बाद वह दाग धीरे-धीरे गायब हो गया था और सोनू निश्चिंत हो गया था।
परंतु पिछले एक-दो दिनों में वह दाग धीरे-धीरे फिर उभर आया था और आज उस दाग को देखकर सोनू के चेहरे पर भी चिंता की लकीरें आ गई थीं।
सोनू को परेशान देख सुगना के चेहरे पर भी चिंता की लकीरे आ गई परंतु सुगना सुगना थी मुसीबतों से लड़ना वह सीख चुकी थी वह तुरंत ही पूजा घर में गई और कपूर और नारियल तेल का मिश्रण बनाकर ले आई उसने सोनू के गले पर उसका लेप लगाया और बोला
"देखीहे जल्दी ही ठीक हो जाए…"
सोनू भी कुछ हद तक सामान्य हुआ और अपनी दिनचर्या में लग गया…. बीती रात के कुछ अद्भुत सुख की यादें उसे आनंदित किए हुए थी परंतु इस दाग ने एक प्रश्नचिन्ह अवश्य लगा दिया था…
इधर सोनू और सुगना अपने प्रेम का नया अध्याय लिख रहे थे उधर लाली और सोनी अपनी-अपनी विरह वेदना में तड़प रहे थे।
सोनी को तो न जाने क्या हो गया रात में उसके सपने भयावह हो चले थे। कभी उसके सपने वासना से शुरू होते और धीरे-धीरे मिलन की तरफ बढ़ते पर अचानक कभी कभी उसे सरयू सिंह का वह काला मूसल दिखाई पड़ने लगता उसके पश्चात न जाने क्या-क्या होता जिसकी धुंधली तस्वीरें सोनी को डरा जाति फिर कभी उसे सारा परिवार एक साथ दिखाई पड़ता सब उसी कोस रहे होते..
सोनी अचानक नींद से जाग जाती अपनी जांघों के बीच उसे चिपचिपा पन महसूस होता पर सीने की बढ़ी हुई धड़कन उसे उस अनाप-शनाप सपने के बारे में सोचने पर मजबूर कर करती.
सपने सोनी को परेशान करने लगे थे और वह सरयू सिंह के मुसल को भूल जाना चाहती थी जब जब सरयू सिंह उसके सपनों में आते थे सपनों का अंत कुछ स्पष्ट सा होता था… बढ़ती हुई उत्तेजना न जाने कहां विलीन हो जाती।
इन्हीं सपनों की वजह से सोनी अपनी मां पदमा के साथ सोने लगी थी…
बीती रात भी सोनी ने ऐसा ही कुछ सपना देख रही थी …अपने स्वप्न मैं शायद उसे याद न रहा कि वह अपनी मां के बिस्तर पर सो रही हैं। आंख लगते ही सोनी एक बार फिर सपनों की दुनिया में चली गई उसके हाथ उसके घागरे में पहुंचकर उसकी कोमल बुर पर चले गए.. सोनी मीठे सपने में विकास के संग रंगरलियां मना रही थी…तभी एक बार फिर न जाने कहां से सरयू सिंह उसके सपने में आ गए ….और इसके बाद वही हुआ .. जो पिछली कुछ रातों से हो रहा था…सोनी को मखमली बुर के होंठो पर सरयू सिंह का सुपाड़ा रगड़ खाने लगा….
सोनी सपने में बुदबुदाने लगी…सरयू चाचा सरयू चाचा बस अब… ना ….ना….. आह…..
पदमा की आंख खुल गई अपनी बेटी को सरयू सिंह का नाम लेते देख वह आश्चर्य से सोनी को देखने लगी उसके दाहिने हाथ को घागरे के अंदर देख पदमा ने उसका हाथ बाहर खींचा और सोनी हड़बड़ा कर उठकर बैठ गई थी।
"का सपना देखा ताले हा ?" का बड़बड़ात रहले हा…
सोनी ने सोनी ने अपनी आंखें खोल कर इधर-उधर अकबका कर देखा सपने में घटित हो रहे दृश्य हकीकत से बिल्कुल अलग थे.. सोनी ने कहा खुद को संतुलित करते हुए कहा…
"बड़ा खराब सपना रहल हा.."
"का रहल हा बोलबे तब नू जानब "
अब तक सोनी अपना उत्तर तैयार कर चुकी थी।
सोनी को सपने में सरयू सिंह का मुसल स्पष्ट दिखाई दे रहा था। परंतु अपनी मां से इस बारे में बात करने की सोनी की हिम्मत न थी।
"अरे सरयू चाचा का जाने गांव में केकरा से झगड़ा करत रहले हा "
पदमा सोनी की बात से संतुष्ट ना हुई… झगड़े का स्वप्न और और सोनी की जांघों के बीच उसकी हथेली दोनों में कोई संबंध न था। पदमा ने एक बार फिर पूछा
" केकारा से झगड़ा करत रहले हा…"
" का जाने चार पांच गो लफंगा रहले हा सो " सोनी ने फिर बात बनाई..
पदमा जान चुकी थी की सोनी उसे हकीकत बताने के पक्ष में न थी।
"जो सूत रहु"
पद्मा ने बात समाप्त की और स्वयं करवट लेकर सोने लगी। पदमा इस बात से आश्वस्त थी कि उसकी पुत्री एक अच्छे और धनाढ्य घर में ब्याही जा रही थी और उसका होने वाला पति सर्वगुण संपन्न था और उसकी बेटी को बेहद प्यार करता था। सरयू सिंह वासना ग्रसित व्यक्ति अवश्य थे परंतु वह स्त्रियों की इच्छा के विरुद्ध उन्हें भोगने के पक्षधर न थे।
एक मां के लिए भला इससे ज्यादा और क्या चाहिए था.। परंतु पदमा को शायद इस बात का अंदाजा न था कि सरयू सिंह के दिव्य लंड को सोनी देख चुकी थी जो अब उसके ख्यालों का एक हिस्सा बन चुका था।
अब यह तो विधाता और नियति के हाथ में था की सोनी के द्वारा देखे जा रहे स्वप्न हकीकत का जामा पहन पाते हैं या सरयू सिंह और सोनी अपने अपने मन के किसी कोने में उपजी हुए इच्छा के साथ ही अपना जीवन व्यतीत करते हैं।
उधर लाली अब पूरी तरह ऊब चुकी थी उसकी मां अब पूरी तरह स्वस्थ थी पर पैर का प्लास्टर अब भी अपनी जगह तैनात था और उसकी मां को चलने फिरने से रोक रहा था। परंतु लाली का मन अब गांव में बिल्कुल न लग रहा था। आंगन में सुबह-सुबह लाली पुत्र राजू अनमने ढंग से इधर-उधर घूम रहा था लाली के पिता हरिया ने उसे अपने पास बुलाया और बोला..
"चलो आज तुमको गन्ना खिलाते हैं.. "
हरिया ने राजू को खुश करने की कोशिश की। हरिया के बुलाने पर व उसके पास आ तो गया परंतु हरिया के दुलार प्यार का माकूल जवाब राजू न दे रहा था
"क्यों परेशान है मेरा राजू?"
राजू अपने मन में जो सोच रहा था उसने हिम्मत जुटाकर अपने नाना से वह बात कह दी
" नाना आप लोग भी बनारस चलिए ना यहां मन नहीं लग रहा है…"
"राजू की बात उसकी मां लाली ने भी सुनी जो अपने पिता अपने पिता हरिया के लिए चाय लेकर रसोई से बाहर आ रही थी।
"बाउजी बनारस ही चलल जाओ ए खाली मां के डॉक्टर से भी देखा लिहल जाय…"
"पर आवे जाए में दिक्कत ना होई…" हरिया ने खटिया पर पड़ी अपनी पत्नी की तरफ देख कर कहा…
" दिक्कत का होई रिजरब गाड़ी से ही चलेके"
लाली की मा ने खटिया पर लेटे लेटे ही कहा। शायद उसका भी मन अब बिस्तर पर पड़े पड़े उठ चुका था उसे लगा शायद स्थान बदलने से उसका मन कुछ हल्का होगा..
जब इच्छा शक्ति प्रबल होती है मार्ग में आने वाले हर व्यवधान का समाधान दिखाई पड़ने लगता है…
आखिर हरिया के पिता ने दो दिनों बाद बनारस जाने के लिए अपनी सहमति दें दी…
लाली बनारस जाने की तैयारी करने लगी…
इधर सोनू का ऑफिस जाने को मन बिल्कुल भी नहीं कर रहा था बीती रात उसने सुगना के साथ जो आनंद उठाए थे उसे एक नहीं बार-बार दोहराने का मन कर रहा था। परंतु सोनू का एक जन कार्यक्रम में जाना अनिवार्य हो गया था एक समाज सेवी संस्था द्वारा महिलाओं के उद्धार और उनकी दशा दिशा में बदलाव के लिए एक गोष्ठी रखी गई थी जिसमें सोनू उर्फ संग्राम सिंह मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित था। सोनू तैयार हो रहा था और सुगना उसकी मदद कर रही थी कभी क्रीम कभी कंघी…
"दीदी तू हु चल ना …कार्यक्रम में…" सोनू ने सुगना से अनुरोध किया
"अरे हम का करब…"
सूरज तो जैसे अपने मामा के साथ जाने के लिए उतावला था उसने सुगना की साड़ी खींचने शुरू कर दी
"मां चल ना"
"हां दीदी चल ना ….पास में बाजार भी बा मन ना लगी त ओहीजा चल जाईहे ना त वापस आ जाईहे। .. बच्चा लोग के भी घूमल हो जाई.."
आखिरकार सुगना तैयार हो गई और कुछ ही देर बाद सोनू अपने परिवार के साथ गाड़ी में बैठकर…कार्यक्रम स्थल की तरफ जाने लगा…
कार्यक्रम स्थल पर उम्मीद से ज्यादा गहमागहमी थी समाज सेवी संस्था के बैनर पर विद्यानंद की तस्वीर देख सोनू की दिमाग में बनारस महोत्सव की तस्वीरें घूमने लगी। उसे अंदाजा ना था कि विद्यानंद के आश्रम की जड़े समाज में कितने गहरे तक उतर चुकी थी। जब तक वह अपने निष्कर्ष पर पहुंचता कार कार्यक्रम स्थल के मुख्य दरवाजे के पास आकर खड़ी हो गई। कार की पिछली गेट का दरवाजा ड्राइवर और साथ चल रहे संतरी ने खोला और सुगना एवं सोनू अपने बच्चों समेत बाहर आने लगे..
सोनू और सुगना किसी सेलिब्रिटी की भांति कार् से बाहर आ रहे थे। सोनू पर पद और प्रतिष्ठा की मोहर थी परंतु सुगना उसे तो जैसे कायनात ने अपने हुनर से गढ़ा था…. गोद में मधु को लेने के बावजूद साड़ी पहने सुगना बेहद आकर्षक और युवा प्रतीत हो रही थी यदि सुगना के दोनों बच्चे साथ ना होते तो निश्चित ही सुगना और सुगना की जोड़ी आदर्श पति पत्नी के रूप में दिखाई पड़ती…
इससे पहले कि लोग अटकलें लगाते सोनू सुगना के पास गया…कहा ..
"दीदी इधर आ जाइए…"
सोनू के संबोधन ने लोगों की अटकलों और सोच पर विराम लगा दिया…सोनू और सुगना मंच की तरफ बढ़ने लगे सुगना का मंच पर जाना उचित न था वह यहां अकस्मात पधारी थी। फिर भी आयोजक मंडल ने आनन-फानन में उसके लिए मंच पर जगह बनाना शुरू किया परंतु सुगना ने कहा…
" नहीं हम सामने ही बैठ जाएंगे" सुगना ने दर्शक दीर्घा में इशारा करते हुए कहा। सुगना की भाषा में बदलाव आने लगा था घर के बाहर वह हिंदी बोलने की कोशिश करने लगी थी।
और आखिरकार मंच के सामने सुगना के लिए एक विशेष जगह पर बनाई गई.. जहां पर वह अपने दोनों बच्चों के साथ बैठ गई।
पत्रकारों के कैमरे मंच पर चमक रहे थे और उनमें से कुछ कैमरे सुगना की तरफ भी घूम रहे थे। सुगना इस सम्मान से अभिभूत अवश्य थी परंतु अपने पूरे संयम और मर्यादा से बैठी हुई कभी अपने बच्चों के साथ खेलती कभी मंच पर अपना ध्यान बनाए रखती..
मंच पर महिलाओं के उत्थान और उनकी स्थिति को बेहतर बनाने के लिए कई वक्ताओं ने अपने अपने विचार रखें और आखिरकार इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि और युवा एसडीएम संग्राम सिर्फ उर्फ सोनू को आमंत्रित किया गया सोनू ने अपना भाषण प्रारंभ किया..
मंच पर उपस्थित सभी गणमान्य लोगों के अलावा सोनू ने अपने संबोधन में अपनी बड़ी बहन सुगना का भी जिक्र किया और सबको अपने जीवन में सुगना के महत्व के बारे में बताया वह बार-बार समाज में स्त्रियों के योगदान और उनकी स्थिति के बारे में अपने विचार रखता रहा न जाने कब बात विधवाओं पर आ गई और सोनू ने विधवा विवाह की वकालत कर दी उस दौरान विधवा विवाह का चलन शुरू अवश्य हुआ था परंतु अभी वह बड़े शहरों तक ही केंद्रित था जौनपुर जैसे शहर में विधवा विवाह की बात दर्शक दीर्घा में अधिकतर लोगों को पच न रही थी। बहरहाल सोनू के भाषण खत्म होने के पश्चात तालियों की गूंज में कोई कमी न थी और सुगना भी अपने दोनों हाथ से बच्चों की तरह तालियां बजा रही थी अपने छोटे भाई सोनू की भाषण से वह स्वयं अभिभूत थी। कितने आधुनिक विचार रखे थे सोनू ने। स्त्रियों को बराबरी का दर्जा देना उनके सम्मान को बरकरार रखने के लिए सोनू ने जो कुछ भी मंच से कहा था वह सुगना के सीने में रच बस गया था सुगना के मन में सोनू के प्रति प्यार और गहरा रहा था।
परंतु विधवा विवाह की वकालत करना सोनू के लिए भारी पड़ गया मंच से उतरकर अपनी कार तक जाने के बीच में पत्रकारों ने उसे घेर लिया और एक उद्दंड पत्रकार ने सोनू से प्रश्न कर लिया
"संग्राम सिंह जी आप स्वयं एक युवा है क्या आप स्वयं किसी विधवा से विवाह कर उसे समाज में स्थान और खुशियां दिलाएंगे..?"
सोनू सकपका गया उसने इस बारे में न तो कभी सोचा था और नहीं कभी कल्पना की थी नसबंदी के उपरांत उसने दृढ़ निश्चय कर लिया था कि वह कभी विवाह नहीं करेगा परंतु पत्रकार द्वारा पूछे गए अचानक प्रश्न से वह निरुत्तर सा हो गया।
सोनू के एक सहायक ने कहा
"यह कैसा प्रश्न है साहब की निजी जिंदगी के बारे में आप ऐसा कैसे पूछ सकते हैं.."
साथ चल रहे सिपाही भी उस पत्रकार से नाराज हो गए और उसे खींचकर किनारे कर दिया सोनू और सुनना तेजी से अपने कदम बढ़ाते हुए कार तक आ पहुंचे छोटा सूरज भी साथ चल रहे सिक्योरिटी गार्ड की गोद में कार तक आ गया था।
पत्रकार ने जो प्रश्न पूछा था उसने सुगना के दिमाग में हलचल मचा दी थी।
दोपहर में बच्चों के सो जाने के पश्चात सुगना और सोनू एक बार फिर अकेले थे…
दोनों बच्चे पालने की बजाए आज सुगना के बिस्तर पर सो रहे थे । बच्चों को सुलाने के पश्चात सुगना कपड़े बदलने के लिए सोनू के घर के दूसरे कमरे में आ गई जिसमें लाली की पसंद का पलंग लगाया गया था।
सोनू न जाने कब से सुगना का इंतजार कर रहा था।
सुगना ने अपनी साड़ी उतारी और अपने मदमस्त कामुक बदन को सोनू की नजरों के सामने परोस दिया सुगना को यह आभास ना था कि सोनू दरवाजे पर खड़ा उसे निहार रहा है। बड़ी बहन को पेटीकोट और ब्लाउज में देखकर उसका लंड तुरंत ही खड़ा हो गया इससे पहले की सुगना कुछ समझ पाती सोनू ने उसे पीछे से आकर पकड़ लिया।
हाथ चूचियों पर और लंड सुगना के नितंबों से सटने लगा। सोनू ने अपने घुटने थोड़ा मोड़कर अपने लंड को सुगना के नितंबों के बीच फसाने की कोशिश करने लगा…सोनू के स्पर्श से सुगना भी मदहोश होने लगी परंतु सुगना कामांध न थी। इस तरह दिन के उजाले में सोनू के साथ अंतरंग होना उसे असहज कर रहा था।
"अरे सोनूआ छोड़ ई सब काम राती के जल्दबाजी में ना"
सोनू अब भी सुगना के कानों और गालों को लगातार चूमे जा रहा था और उसके हाथ चुचियों को छोड़ नीचे सुगना के पेटीकोट के नाड़े से खेलने लगे थे। सुगना अपनी हथेलियों से सोनू की उंगलियों को पकड़ने की कोशिश कर रही थी परंतु उंगलियां कबड्डी के मैच की तरह सुगना की हथेलियों के बीच से छटक छटक कर इधर-उधर होती और नाड़े को खोलने का प्रयास करतीं।
आखिरकार विजय सोनू की हुई उंगलियों ने नाड़े की गांठ को खोल दिया परंतु सोनू उसे अपने हाथों से पकड़े रहा। आखिरकार सुगना ने सोनू को डांटते हुए कहा
"सोनू मना करत बानी नू आपन हाथ हटाऊ"
सोनू के होठों पर शरारती मुस्कान आई और उसने अपनी बड़ी बहन सुगना का कहना मान लिया। सोनू ने अपने हाथ हटा लिए …अपने हाथ ही क्या अपने हाथों पर रखी सुगना को हथेली भी खुद ब खुद सोनू की हथेलियों के साथ हट गई।
पेटिकोट का नाड़ा पहले ही खुला हुआ था सोनू की हथेली हटते ही वह सरक कर नीचे आ गया। सुगना के उभरे हुए नितंब भी उसे रोक ना पाए। सुगना ने उसे पकड़ने की कोशिश की परंतु नाकाम रही। सोनू का हाथ सुगना की हथेली और पेटीकोट के बीच आ गया था।
सुगना सिर्फ ब्लाउज पहने अर्धनग्न अवस्था में आ चुकी थी अपनी बुर को अपनी हथेलियों से ढकते हुए वह बिस्तर पर बैठ गई और बोली
"सोनू ई कुल काम रात में …"
" हम कुछ ना करब दीदी बस मन भर देख लेवे दे…कितना सुंदर लगाता"
"ते पागल हवे का तोरा लाज नईखे लागत का देखल चाहत बाड़े?"
सुगना ने जिस संजीदगी से सोनू से प्रश्न पूछा था उसका सच उत्तर दे पाना कठिन था आखिर सोनू किस मुंह से कहता है कि वह अपनी बड़ी बहन की बुर देखना चाह रहा है।
सोनू को कोई उत्तर न सूझ रहा था आखिरकार वह अपने हाथ जोड़कर घुटनों के बल जमीन पर बैठ गया..उसका चेहरा सुगना की नाभि की सीध में आ गया…और सीना सुगना के नंगे घुटनों से टकराने लगा।
सोनू अपनी आंख बंद किए हुए था… सुगना से सोनू की अवस्था देखी न गई उसने अपने हाथ अपनी जांघों के बीच से हटाए और सोनू सर को नीचे झुकाते हुए अपनी नंगी जांघों पर रख लिया…सोनू का सर सुगना के वस्ति प्रदेश से टकरा रहा था और सोनू की नाक सुगना के दोनो जांघो के मध्य बुर से कुछ दूरी पर उसकी मादक और तीक्ष्ण खुशबू सूंघ रही थी.. सोनू की गर्म सांसे सुगना की जांघों के बीच के बीच हल्की हल्की गर्मी पैदा कर रही थी। सुगना सोनू के सर को सहलाते हुए बोली…
"ए सोनू ते बियाह कर ले…"
सुगना के मुंह से यह बात सुन सोनू भौचक रह गया...अभी कुछ पहर पहले ही सुगना ने उसके प्यार को स्वीकार किया था फिर..विवाह.?.
अपनी ही बहन से विवाह...?
शेष अगले भाग में…