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Incest उफ्फ अम्मी(एक अनार दो बेकरार)

firefox420

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bahut he badhiya .. har ek kirdaar ke charitr ko itni sanjeedgi se dikhaya hai aur unke manobhaavo ko aur unki visangatiyo se susajit aantrik kaleh ka ati anupam vishleshan kiya hai ...
 
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bahut he badhiya .. har ek kirdaar ke charitr ko itni sanjeedgi se dikhaya hai aur unke manobhaavo ko aur unki visangatiyo se susajit aantrik kaleh ka ati anupam vishleshan kiya hai ...
You are too kind.thank you so much for your valuable feedback.aise hi pyaar banae rakhein
 
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नादिया के जाने के कुछ समय बाद तक शाहिद की नज़र बगल में रखे खाली बाउल पर जाती है।मूंग दाल हलवा,कितना ज्यादा पसंद है उसे।अम्मी ने सच ही तो कहा, कैसे किचन से चुरा चुरा के खाता था वो पहले,आखिर बनाती ही इतना स्वादिष्ट थी उसकी अम्मी।बाहर भी उसने कई दफा खाया था लेकिन वो स्वाद नही आता था जो उसकी अम्मी के हाथ के बने हलवे में आता है।उसने एक बार नगमा से पूछा भी था कि अम्मी आकिर आप हलवे में ऐसा क्या डालती हो जो इतना टेस्टी होता है।नगमा ने मुस्कुराते हुए बस एक चीज़ बोली थी-मेरा प्यार।

"कितना तो प्यार करती है अम्मी मुझसे,आज तक हमेशा मेरी गलतियों में भी मेरा बीच बचाव ही किया है,क्या मैं कुछ ज्यादा ही ओवर रियेक्ट कर रहा हूँ"

"और आज जब अम्मी ने इतने प्यार से मेरे लिए हलवा बनाया था तो मैंने अम्मी से ऐसा बर्ताव किया,वो भी किसी और के सामने,उस दिन अम्मी ने किसी के सामने तो नही डाँटा था मुझे" शाहिद को ये सोचते सोचते अपने किये पे पछतावा हो रहा था।उसे अब अपने किये पे शर्मिंदगी महसूस हो रही थी।सोचा कि जा कर अपनी अम्मी से माँफी मांगे लेकिन खुद का अहम उसे ऐसा करने से रोक रहा था।गाल पे पड़े वो थप्पड़ उसके पैरों की जंजीर बन रहे थे,उसकी ज़ुबान को कड़वी बना रहे थे।शाहिद वही बिस्तर पर लेट गया। न जाने कब उसे नींद आ गयी।

"शाहिद.....बेटा शाहिद"

शाहिद की नींद खुली

"अब्बू आप?"

"बेटा चलो खाना खा लो,टाइम हो गया है तुम्हारी दवाई लेने का"

"अब्बू प्लीज मेरा डिनर यहीं भिजवा दें"

वसीम पिछले दिनों से अपनी पत्नी का हाल देख रहा था।हमेशा खिली खिली रहने वाली नगमा अब खोई खोई उदास सी रहने लगी थी।पहले उसे लगा कि शायद शाहिद के एक्सीडेंट की वजह से है लेकिन शाहिद के घर आने के बाद से नगमा की हालत और खराब हो गयी थी।चेहरे की मानो रंगत ही उतर गई हो,ना ज्यादा बात करती थी न पहले की तरह देर रात तक टीवी देखने पे वसीम को टोकती थी,बस काम कर के चुप चाप वसीम के कमरे की तरफ देखती रहती और फिर जाकर अपने कमरे में सो जाती।वसीम से ये अब देखा नही जा रहा था।

"शाहिद मुझे ये तो नही पता कि तुम्हारी अम्मी से तुम क्यों नाराज़ हो,लेकिन ये ज़रूर पता है कि ये नाराज़गी तुम पर भारी पड़े न पड़े उसपर बेहद भारी पड़ रही है।मैन सुना कि तुमने सुबह कुछ खाया नही?"

"नही अब्बू ऐसा नही है,खाया था"

"शहीद में तुम्हारी अम्मी नही हूँ,क्या तुम टेबल से उठ कर नही चले गए थे?बोलो"

"वो अब्बू.....वो मेरा पेट भर गया था"

"अच्छा और जब नादिया आयी थी शाम को तब?"

"ओह तो अब समझ,अम्मी ने मेरी चुगली करी आपसे"

"शाहिद!" वसीम ग़ुस्से में डाँटते हुए चिल्लाया

"शर्म नही आ रही तुम्हे,मुझे ये तो पता नही की हुआ क्या लेकिन इतना जरूर जानता हूँ कि गलती नगमा की नही हो सकती।इतने साल से वो मेरी बीवी ही नही मेरे घर को संभाल के रखने वाली औरत भी है,निकाह के वक़्त क्या हालत थी मेरी जानते हो,ये आज जो तुम देख रहे हो,जिस ऐश से जी पा रहे हो ये सब मै इसलिए कर पाया क्योंकि मेरे पीछे नगमा थी।आज तक इतने साल बीतने के बाद भी उसने कुछ नही मांगा मुझसे अपने लिए,हमेशा या तो मेरी फिक्र करती रही या तुम लोगो की,यहां तक कि तुम्हारी फूफी के लिए भी उसने अपने जिस्म के बारे में नही सोचा।क्या लगता है उन सब दवाइयों का कोई साइड इफ़ेक्ट नही होता होगा।लेकिन उसने अपनी खुशी से ज्यादा दुसरो की खुशी को तवज़्ज़ो दिया,उसकी वजह से आज गुलनाज़ का घर बच गया,आरिफ के अब्बू अम्मी ने फ़ोन करके माँफी मांगी गुल्लों से और अगले हफ्ते आ रहे है उससे मिलने और आज तुम उससे ऐसा बर्ताव कर रहे हो।नादिया मिली थी मुझे जाते वक्त,अच्छी लड़की है,फिक्र है उसे तुम्हारी इसलिए उसने पूछना चाहा मेरे से।लेकिन दुनिया की कोई भी लड़की हो,तुम्हारी अम्मी से ज्यादा प्यार नही कर सकती तुमसे।पता है तुम्हे जबसे तुम्हारे एक्सीडेंट की बात सुनी है तबसे उसने एक निवाला तक मुँह में नही डाला और तुम यहाँ उसपर चुगली करने का इल्जाम लगा रहे हो।वाह!"

"अब्बू ये क्या कह रहे हैं आप अम्मी ने दो दिन से कुछ...."

"खाना तो दूर,पानी तक नही पिया,सुबह बोलो तो कहती है बाद में खा लूँगी, रात को बोलो तो कहती है शाम को खा लिया"

ये सुनके शाहिद अंदर तक हिल गया,उसे रह रह कर अम्मी का चेहरा याद आने लगा।कितने उत्साह से सुबह तरह तरह का खाना बनाया था,कितना खुश होकर हलवा लेकर आयीं थी।


"शाहिद देखो तुम अब बच्चे नही हो,अच्छा बुरा सब समझते हो,हो सकता है तुम्हारी नाराज़गी जायज़ हो लेकिन फिर आगे का अंजाम सोच लेना,नगमा को इस तरह मैं तो नही देख सकता,तुम देख पाओगे?"

इतना कह कर वसीम बाहर चला गया,थोड़ी देर बाद आदिल शाहिद के लिए खाना लेकर आया।

"भैया ,खाना खा लो,फिर दवाई कहा लेना"

"आदि अम्मी ने खाना खाया"

"नही भैया,उन्होंने कहा कि शाम को खा लिया है"

"ठीक है,यहां रख दो,अम्मी कहाँ है?"

"वो अपने रूम में है"

"अब्बू भी है?"

"नही,वो बाहर वाल्क करने गए"

"ठीक है"

आदिल खाना बगल में रख कर चला जाता है।

"भैया अम्मी को मेरी गलती की सज़ा मत दो"

दरवाज़े पर खड़ा आदिल शाहिद से कह कर के दरवाज़ा बन्द कर देता है।

*********

अम्मी अम्मी"
दरवाज़े खटखटाते हुए शाहिद की आवाज़ आती है।शाहिद की आवाज़ सुन कर नगमा भाग कर दरवाज़ा खोलती है।सामने दरवाज़े पर शाहिद दीवार का सहारा लिए खड़ा है।दो दिनों में पहली बार उसने शाहिद के मुँह से ख़ुद को प्यार से बुलाते सुना था।

"शाहिद, मुझे माफ़ कर दो,मैने ग़ुस्से में जाने क्या क्या बोल दिया था,माफ़ कर दो अपनी अम्मी को"
शाहिद को देखते ही नगमा रोते गिड़गिड़ाते हुए कहती है।

"बेटा मेरा वो सब मतलब नही था,तेरे बिना मैं रह सकती हूँ क्या?शाहिद माफ कर दे बेटा मुझे,मुझे तुमपे हाथ नही उठाना चाहिए था,एक काम कर तू भी मुझे थप्पड़ मार ले"
रोते हुए नगमा ने शाहिद से कहा

शाहिद एक हाथ से उसके कोमल गालों पे बहती आँशुओं की बूंदों को पोछता है।

"अम्मी ,आप क्यों माँफी माँग रही हो,माँफी तो मुझे मांगनी चाहिए आपसे,मैने कितना तड़पाया आपको,हॉस्पिटल में भी आपसे ठीक से बात तक नही की,मुझे माफ़ कर दीजिए अम्मी,आपने इतनी प्यार से मेरे लिए खाना बनाया और मैने खाया भी नही और नादिया के सामने कितना बुरा बर्ताव किया आपके साथ।आई एम सॉरी अम्मी,माफ कर दीजिए मुझे अम्मी"

"नही बेटा नही,तेरी कोई गलती नही है"
नगमा ने शाहिद को अपने गले से लगा लिया।पत्थर पड़ी आंखों में जैसे फिर से भावो की बाढ़ उमड़ पड़ी थी।

"और अम्मी ,मैं आप पर हाथ उठाऊ इससे अच्छा मेरे हाथ हमेशा के लिए टूट ही जाए"

"नही नही शाहिद"
शाहिद के होंठो पे हाथ रखते हुए नगमा ने कहा
"ऐसा नही बोलते"

माथे को चूमते हुए नगमा शाहिद से माफी मांगती है।शाहिद के उससे बात करने की खुशी में उसने उसे उत्सुकतावश इतनी जोर से गले लगा लिया था कि बीच में उसका प्लास्टर लगा हाथ दब गया था।

"आह हहह"
शाहिद का हाथ दबने से सिसकी निकल गयी

"सॉरी सॉरी बेटा, ध्यान नही दिया मैने माफ करदे"

नगमा की तरफ बड़े प्यार से देखते हुए शहीद ने कहा "एक शर्त पर"

"हां बोल न"

"चलो,मेरे साथ खाना खाओ"

नगमा ने आगे बढ़ कर शाहिद को फिर से गले लगा लिया।दोनों की आंखों से झरना बह रहा था।निश्छल प्रेम का झरना,जिसमे सारे गिले शिकवे बह रहे थे।

********
Wonderful update. Bhout Bariya likha hai. Kabhi kabhi baap ki khamosh bate chair ke rakh dete hai.
 
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Ikri

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Lajawaab update shahid bhai. Had update ki tarah.
Shahid ne aakhir sulah jar hi li aur aadil bhi apni maa se kuch kam pyaar nahi karta, maine use sirf tharki samajh liya tha par jab use apne kiye kaam ki wajah se hue apni maa ki halat Delhi to usne bhi sabse pehle apni maa ka khayal aya aur shahid ko samjhane ki sonchi. Ha shahid ki tarah utna close nahi ho phir bhi WO ek bigda hua shehzada hain Jo apni maa ka bohot fayda uthaya to sahi par pyaar bhi zaroor karta hain
 
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