शाहिद अपने रूम में बैठा अम्मी का इंतज़ार करने लगा।ट्रे में खाना परोस कर लाती नगमा बेहद खुश लग रही थी।कई दिन बाद उसके चेहरे पर ये खुशी फिर से लौटी थी।बेड पर बैठा शाहिद एकटक नगमा को देख रहा था।बेड के बगल के टेबल पर ट्रे रखकर नगमा ने प्लेट में खाना परोसा और शाहिद के सामने रखा।शाहिद वैसे ही चुपचाप बैठे अभी भी नगमा को देख रहा था
"क्या हुआ,खा क्यूँ नही रहे" नगमा ने पूछा
शाहिद ने मुस्कुराते हुए हाथ पे लगे प्लास्टर की तरफ इशारा किया।
"तो दूसरे हाथ से खा लो बेटा"
"अच्छा दूसरे हाथ से खा लूँ लेकिन आप नही खिला सकते" छोटे बच्चों की तरह मुँह फुलाते हुए शहीद ने बोला।
सुन कर नगमा के चेहरे पर एक लंबी से मुस्कान आ गयी।अब उसे यकीन हो गया था कि शाहिद ने उसे माफ़ कर दिया है।
नादिया ने परांठे का एक टुकड़ा तोड़ा और पनीर लेकर एक कौर बना कर शाहिद के मुँह में डाला।खाने का स्वाद मुँह में जाते ही शाहिद ने आँखें बंद करते हुए उल्टे हाथ के अंगूठे और उंगली से तारीफ का निशान बनाते हुए मुँह से "उम्ममम्मममम्ममम्ममम्मह" की आवाज़ निकाली।
"वाओ अम्मी! इतना टेस्टी क्या डाला है इसमें"
"अपना प्यार" मुश्कुराते हुए नगमा ने कहा।
"और आपके हाथों से खाने से खाना और भी टेस्टी हो गया अम्मी"
नगमा का चेहरा खिल से गया था।तभी नगमा जब शाहिद को एक और कौर बना के खिलाने ले गयी तो शाहिद ने उसे फिर से रोक दिया और अबकी बार अपने हाथों में ले लिया।
"अब मेरी बारी" बोलते हुए शहीद नगमा के मुँह के करीब लाया।
नगमा उसे एकटक देखती रही।
"अम्मी क्या सोच रहे थे,मुझे पता नही चलेगा कि मेरी प्यारी अम्मी ने दो दिन से कुछ खाया नही,चलो अब अच्छे बच्चे की तरह खाओ"
स्वयं के लिए बच्चा शब्द सुन के नगमा के चेहरे की रंगत और खिल गयी
"अच्छा तो मैं बच्ची हूँ?" नगमा ने मज़ाकिया लहज़े में पूछा।
"और नही तो क्या,बच्चे ही ऐसे बात बात पे रूठ के खाना पीना छोड़ते हैं" शाहिद ने तुरंत जवाब दिया।
दो दिन बाद शाहिद के हाथों से निवाला खाते ही नगमा भावुक हो गयी,आज उसके चेहरे के साथ साथ उसकी आँखें भी मुस्कुरा रही थी।दो दिन से सूखी पड़ी इन आँखों में अब हल्का हल्का गीला पन आ गया था।नगमा एक कौर शाहिद को खिला रही थी और शाहिद एक कौर अपनी अम्मी को और इसी के साथ नगमा की आंखों से हल्की हल्की प्रायश्चित की अग्नि से उत्पन्न हुई बूंदे बहते हुए उसके गालों से होती हुई उसके सीने तक जा रही थी,शायद इन्ही से उसके मन का मैल धुल रहा था।
"अम्मी कैसा है खाना"?"
"तेरे हाथ से तो ज़हर भी टेस्टी लगेगा" नगमा ने भावुक होते हुए कहा।
"ओहो अम्मी,यहां इतना स्वादिष्ट खाना बनाया है आपने और फिर ये जहर वेहर की बात करके टेस्ट बिगाड़ रही हो"
"तुझे अच्छा लग रहा है शाहिद?"
"बताया तो,अच्छा ही नही बहुत ज्यादा अच्छा, इतना कि मन कर रहा है आपकी उंगलियाँ खा जाऊं" हंसते हुए शहीद ने जवाब दिया।
"मुझे तो लगा अब तुझे मेरे हाथ का न खाना पसंद आएगा और न में ,तेरे अब्बू कह रहे थे कि शाहिद को अस्पताल का खाना और वहां के लोग दोनों ही जँच गए हैं" नगमा ने पलके नीचे करते हुए कहा।शाहिद को ये समझने में एक पल भी न लगा कि अम्मी का इशारा नादिया की तरफ है।नगमा अब भावुक हो चुकी थी और दिल की बात उसकी ज़ुबान पे आ रही थी।पलके झुकाए हुए अब बस वो शाहिद के सामने अपनी दिल की किताब खोल के रख देना चाहती थी।
"शाहिद"
"जी अम्मी" नगमा की आंखों में देखते हुए।
"बेटा, मुझे फिर से माफ कर दे,मैने ग़ुस्से में कुछ ज्यादा ही बोल दिया था,वो जिस्म को महसूस करने वाली बात,वो मुझे न छूने वाली बात....वो थप्पड़......उस रात जो हुआ उसका सारा दोष मैने तुझपे डाल दिया जबकि गलती मेरी भी उतनी ही थी,शायद तुमसे ज्यादा ही।मैं बहुत बुरी हूँ,माफ़ करदो मुझे....."
अभी नगमा बोल ही रही थी कि शाहिद बीच में बोला।
"आई लव यू"
नगमा ने हैरान होते हुए ऊपर देखा।शाहिद भरे आत्मविश्वास से उसकी तरफ देख रहा था।
"जाने अब्बू ने आपको हॉस्पिटल और हॉस्पिटल वाली के बारे में क्या क्या बताया,पर जो भी बताया वो झूठ नही है पर ये पूरा सच भी नही है अम्मी।मैं समझ गया कि आपका इशारा नादिया की तरफ है,मैं ये भी समझता हूं कि आपका ऐसा लगना भी बिल्कुल ज़ायज़ है,आखिर वो इतनी हसीन,इतनी खूबसूरत,इतनी केयरिंग जो है,उसकी बातें सुनके उसे देख कर किसी का भी दिल आ जाएगा उसपर लेकिन अम्मी ये भी सच है कि वो मुझे आज से नही ,स्कूल के टाइम से पसंद करती थी लेकिन मैं....मैं जिसे पसंद करता था उससे कही ज्यादा हसीन,खूबसूरत,कही ज्यादा प्यारी है और मेरे मामले में उससे ज्यादा केअर कोई नही कर सकता मेरी,इसलिए मैं स्कूल टाइम से ही नादिया से दूर हो गया था"
"कौन" नगमा के गले से बस यही एक शब्द निकल पाया।
शाहिद ने उसका इशारा अपने दाएं हाथ से बाएं तरफ किया।
नगमा के चेहरे पे हल्की की शर्म की लाली आ गयी।सामने ड्रेसिंग टेबल का आईना था जिसमे नगमा की सुंदर छवि दिख रही थी।
"आई लव यू अम्मी,मैं आपसे प्यार करता हूँ,हां जानता हूँ कि जिस तरीके का प्यार मेरा है वो हमेशा एकतरफा ही रहेगा,आप समाज या कोई भी उसे अपना नही सकता,सबकी नजरों में ये गलत है लेकिन अम्मी प्यार सही गलत देख के थोड़ी ही होता है।आपको याद है मैं बचपन में कहता था कि बड़े होकर आपसे शादी करूँगा और फिर मेरी और आदि की इस बात पर लड़ाई होती थी और आप ज़ोर ज़ोर से हंसते थे,पता ही नही चला कि कब वो बचपना प्यार में बदल गया।अम्मी उस रात आपकी कोई गलती नही थी,गलती मेरी ही थी जो मैं अपने ज़ज़्बातों को काबू में नही रख पाया।"
"शाहिद पर...."
"समझता हूं अम्मी,ये गलत है,आप मेरी अम्मी हो,मुझे ऐसा नही सोचना चाहिए और भी वगेरा वगेरा,लेकिन अम्मी इस दिल को कैसे समझाऊं में"
नगमा खामोशी से सुनते रहती है।
"अम्मी आई नो दैत वाट आई वांट इज नॉट पॉसिबल,यू कांट बी माइन द वे आई वांट, बट अम्मी आई कांट कंट्रोल माई फीलिंग्स एनीमोर।मैं अब अपनी भावनाओं को और दबा के नही रख सकता,उस दिन जो मेरे साथ हुआ उसके बाद मैं डर गया था कि कही आपको खो न दूँ,अगर उस दिन नादिया मुझे न बचाती तो जाने मुझे फिर ये मौका मिलता न मिलता,उसके लिए मैं उसका शुक्रगुज़ार हूँ लेकिन अम्मी वो मेरे दिन मैं वो जगह नही ले सकती जो मैंने आपको दे रखी है,मैं आपसे बेइंतेहा मोहब्बत करता हूँ,अपनी जान से भी ज्यादा।"
नगमा इस वक़्त एकदम किंकर्तव्यविमूढ़ है।उसके चेहरे पर शून्यता है।शाहिद एक बार फिर उसकी आँखों में देखता है और उसकी उलझन को भाँपते हुए उसके हाथों पर अपना हाथ रखते हुए बोलता है
"अम्मी आपको इस बात से परेशान होने की कोई जरूरत नही,प्यार तो मैंने किया है न तो भुगतना भी मुझे ही पड़ेगा (हंसते हुए),वैसे भी मैं अपने अंजाम से तो शुरू से ही वाकिफ़ था।अम्मी आई प्रॉमिस की मेरी वजह से आपको कोई दिक्कत नही होगी,जो उस रात हुआ वो कभी दोबारा नही होगा।आपको किसी बात की फिक्र करने की जरूरत नही।"
नगमा खामोशी से बुत बने हुए शाहिद की बातों को सुन रही थी।आंखें फिर भर आयी थी उसकी। इसलिए नही की शाहिद ने जो कहा उससे वो दुखी है बल्कि इसलिए कि पहली बार शाहिद ने उससे खुल कर अपने दिल की बात कही।पहली बार उसे एहसास हुआ था कि शाहिद कितना ज्यादा प्यार करता है उससे।अपने प्रति अपने बेटों के आकर्षण का आभास तो उसे पहले से ही था लेकिन अब उसे इस बात की अनुभूति हो रही थी कि जिसे वो अपने प्रति आसक्ति समझती थी,जिसे उसने इंफेचुएसन की संज्ञा दे दी थी वो असल में प्यार है।जब नगमा कभी शाहिद के रूम में अपनी पैंटीज पर लगा उसका प्रेमरस देखती तो वो उसे "उम्र का पड़ाव" समझ कर नज़रंदाज़ कर देती,लेकिन अब उसे शाहिद की तड़प महसूस हुई थी।इन सारी बातों को अभी भी उसका मन मानने को राजी नही हो रहा था,वो बार बार उसे समझ रहा था कि ये शाहिद नही बल्कि उसकी उम्र बोल रही है,इस उम्र में सभी को स्त्री शरीर की लालसा होती है लेकिन शाहिद की बातों से तो उसकी उम्र नही झलक रही थी।इतनी परीपक्वता से उसने अपने दिल की बात कही थी नगमा से।नगमा ने आगे बढ़ते हुए शहीद को गले से लगा लिया।निश्चल प्रेम की बूंदें दोनों की आंखों से बह रही थी।
"आई एम सॉरी शाहिद,मैने तुम्हे गलत समझा बेटा..... सॉरी शाहिद"
"अरे वाह!आखिर माँ बेटे में संधि हो ही गयी,चलो अच्छा है,अब कम से कम घर में मुँह बनाए हुए चेहरे तो देखने को नही मिलेंगे और शाहिद का साथ साथ हमे प्यार मिलने पे जो बेन लगा था शायद वो भी अब हट जाए"
नगमा और शाहिद ने दरवाज़े की तरफ देखा।वसीम की प्यार पर बेन लगने वाली बात को सुन नगमा थोड़ा झेंप गयी।वसीम दरवाज़े पर खड़े हँस रहे थे।