बड़े समय बाद आज नगमा के चेहरे पे रौनक और खुशी एक साथ छलक रही थी।एक शांति एक सुकून सा था उसके मन में आज।शांति इस बात की कि शाहिद ने उसे दिल से माफ कर दिया है,जो उसके मन में बुरे बुरे विचारों ने घर कर लिया था कि शाहिद अब उससे नफरत करने लगा है और शायद कभी माफ नही करेगा वो सब विचार आज शाहिद की इज़हारे मुहब्बत के बाद खत्म हो गए थे।सुकून इस बात का था कि अब शाहिद ठीक से खा पी रहा है और जल्द ही पूरी तरह से ठीक हो जाएगा।आज शाहिद ने अपना दिल खोल के रख दिया था नगमा के आगे और उसे वही पुराने दिन याद आ गए थे जब शाहिद और आदिल उससे कुछ छुपाते नही थे,सब चीज़ उससे साँझा करते थे।दोनों ही अपनी अम्मी का प्यार पाने के लिए लड़ते रहते थे।तभी से तो उसने दोनों को प्यार से रहना और हर एक चीज़ को शेयर करना सिखाया था।
एक अजीब बात ये थी कि आज शाहिद ने अपने दिल में बसी नगमा के लिए मोहब्बत का इज़हार कर दिया था लेकिन नगमा को न इससे बुरा लगा था न वो इस बात को लेकर असहज थी,एक अलग तरह की खुशी थी उसके मन में और वो नादिया वाली बात से तो उसकी ये खुशी बढ़ जा रही थी।नादिया इतनी हसीन,खूबसूरत,यौवन से भरपूर शरीर,मदमस्त जवानी होने के साथ साथ मृदुभाषी और संस्कारी भी है लेकिन उस जैसी लड़की से अपनी उम्र की औरत की तुलना करना और न केवल तुलना करना बल्कि तुलना में नगमा को नादिया से बेहतर बताना शाहिद के द्वारा एक अलग ही उमंग पैदा कर रहा था नादिया के मन में।हालांकि वो शाहिद की अम्मी थी लेकिन एक स्त्री भी तो थी और विश्व में ऐसी कौन सी ही स्त्री होगी जिसे उससे कई गुना जवान लड़की की तुलना में जब ज्यादा आकर्षक और सुंदर बोला जाए तो खुश न हो।इन सबके बीच नादिया एक बात को नज़रंदाज़ करने का प्रयास कर रही थी और वो था शाहिद का उसके प्रति अपने प्रेम का प्रस्ताव,शाहिद की इज़हार -ए-मोहब्बत ,इसका जवाब न नगमा ने उस वक़्त दिया था न अब दे पा रही थी।ये तो साफ था कि वो शाहिद को उस तरीके से तो नही अपना सकती,शाहिद के प्रस्ताव को मान तो नही सकती,अपनी "हाँ" तो नही कर सकती लेकिन कोई चीज़ उसे "ना" भी नही करने दे रही थी।जब भी उसके मन में ये बात आती तो वो मन को तुरंत किसी और चीज़ में लगा देती।वो इस प्रश्न का सामना ही नही करना चाहती थी।ये "हाँ" और "ना" के बीच जो थोड़ी अस्पष्ट सी सीमा थी नगमा उसी में अपना सुकून ढूंढ रही थी।वो सच्चाई का सामना नही करना चाहती थी।एक तरफ तो सामाजिक मर्यादा उसे बता रही थी कि ये गलत है दूसरी तरफ उसके स्त्री शरीर में शाहिद की बातों से,शाहिद की नज़र का उसके शरीर पर पड़ने से तो तरंगे,जो उमंगे पैदा हो रही थी वो उसे परम सुख की अनुभूति करा रही थी।वो इस सुख से बंधती जा रही थी।इसे खोना नही चाहती थी।और फिर शाहिद ने खुद ही तो कहा था कि नगमा को उसकी वजह से घबराने की कोई जरूरत नही,वो ऐसा कुछ नही करेगा जिससे नगमा को बुरा लगे।
नगमा किचन में रात का डिनर बना रही थी और आज शाहिद भी ड्राइंग रूम में काउच पे बैठा था,वसीम भी वही बैठे टी.वी देख रहे थे लेकिन शाहिद का ध्यान तो अपनी हसीन खूबसूरत अम्मी पे था।जहां वो बैठा था वह से नगमा ठीक उसकी नज़र के सामने थी,नगमा भी कनखियों से शाहिद को अपनी ओर देखते देख रही थी,किस ओर से उसकी आँखें नगमा के जिस्म पे पड़ रही थी।नगमा बिना भविष्य की चिंता किया अभी इस समय इस सुख को महसूस करना चाहती थी।तभी उसके दिमाग में एक शरारत सूझी।किचन में काम करते वक़्त नगमा चुन्नी नही पहनती थी,उसके बढ़े हुए चुचों की वजह से सूट में क्लीवेज साफ साफ नजर आता था,नगमा ने एक कलछी जानबूझकर नीचे गिरा दी और उसे उठाने के लिए झुकी तो शाहिद के सामने उसकी भारी भारी दूधिया चुचियो का प्रदर्शन हो गया था,नगमा ने उठने में कोई जल्दबाज़ी नही की और आराम से उठी।उठते ही उसने शाहिद की तरफ देखा।शाहिद की आंखें तो फटने को हो गयी थी,उसके माथे पर पसीना आ गया था और मुँह खुला रह गया था।नगमा ने शाहीद के सामने कोई प्रतिक्रिया नही दी लेकिन पीछे मुड़ते ही उसके चेहरे पे पड़ी सी मुस्कान थी जिसे शाहिद देख नही सकता था।नगमा के अंदर इस शरारत ने अलग ही खुशी पैदा करी थी।उसे अपने बेटे की हालत पर दया भी आ रही थी और हंसी भी।थोड़ा गलत भी लग रहा था कि उसकी अम्मी होने के बाद भी वो शाहिद को अपने अंगों का प्रदर्शन कर रही है लेकिन फिर उसने सोचा आखिर देखने में बुराई क्या है?वैसे भी शहीद ने अभी दो दिन पहले ही तो नगमा के उभारों से स्तनपान किया था और जो चीज़ देखी ही है उसे छुपाना क्या।ये नगमा पे जो खुमारी छाई थी वो हावी होक उसके दिमाग को समझा रही थी।उसके स्त्री शरीर को कई सालों बाद ऐसी खुमारी महसूस हुई थी।
थोड़ी देर बाद जब उसने दोबारा उस तरफ देखा तो पाया कि शाहिद वहां नही था।कही शाहिद को उसकी इस शरारत का पता तो नही चल गया,कही वो खुद को यूं तड़पाने से नाराज़ तो नही हो गया फिर से।नगमा तुरंत किचन से बाहर आई
"शाहिद कहाँ गया" उसने वसीम से पूछा
"अपने रूम में चला गया फिर से" वसीम ने टी.वी से आंख न हटाते हुए कहा
नगमा तेजी से रूम की तरफ बढ़ी,सोच रही थी कि ग़ुस्से में दरवाज़ा बंद होगा पर दरवाज़ा तो खुला था।नगमा ने अंदर प्रवेश किया तो देखा कि शाहिद तो वहाँ नही था।तभी उसका ध्यान बाथरूम के दरवाज़े की तरफ गया जो बंद था पर लाइट की रोशनी आ रही थी।नगमा के पैर स्वयं ही उस तरफ बढ़ गए ।दरवाज़े पे पोहोचते ही नगमा ने कान लगा दिए।वो क्या कर रही थी इसका उसे खुद ही अंदाज़ा नही था।ऐसा लग रहा था उसका शरीर स्वयं उससे ये सब करवा रहा है।अचानक उसके चेहरे पर आश्चर्य और खुशी से मिश्रित के मुस्कान फैल गयी।
"उफ़्फ़ अम्म्ममम्ममम्मीईईईईई....आहहहहहह"
नगमा समझ गयी कि अंदर क्या हो रहा है,वो दरवाज़े से दूर हटके खड़ी हो गयी।तभी दरवाज़ा खुलने की आवाज़ हुई और नगमा ने अपनी मुस्कुराहट को सामान्य बना लिया।शाहिद बाहर निकलते ही नगमा को देख कर अचंभित था।
"अम्मी आप?" शाहिद ने एक झलक नगमा को देखा पर अपनी निगाहों को नगमा के उभारों की खाई से दूर न रख पाया, चेहरे से फिसलती हुई नजर सीधा नगमा की क्लीवेज की खाई पर आ टिकी थी।
"वो वाशरूम यूज़ करना है"
"ओह"
नीचे ये इकलौता वाशरूम था तो शाहिद को कुछ अजीब नही लगा।
उधर नगमा की नज़र भी शाहिद के लोवर पे गयी जिसमे अभी भी उसका उभार हल्का हल्का दिख रहा था,वो तुरंत अंदर आ गयी,दरवाज़ा बंद कर के लंबी सांस ली।बाथरूम की फर्श और दीवारों तक पर पानी था,ज़ाहिर सी बात थी कि क्या साफ करा गया था।हो न हो ये नगमा द्वारा किचन में की गई शरारत का ही परिणाम था।नगमा को एक अलग ही आभास हो रहा था उसे अपने नीचे की गर्मी का एहसास हो रहा था।उसने सलवार नीचे कर के अपनी चड्डी पर हाथ लगाया।वो गीली हो गयी थी।नगमा के गालो पर शर्म से लालिमा छा गयी थी।उसके दिमाग में फिर से वो शब्द क्रोन्ध गए थे "उफ्फ्फ अम्म्ममम्ममम्मी"
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नगमा और वसीम का बेडरूम
आज शाम को हुई घटना के बाद नगमा का बुरा हाल था।उसका जिस्म भट्टी की तरह तप रहा था।पूरा बदन टूट रहा था।जिस्म की भूख में मदहोश हो गयी थी नगमा।मादकता उसके चेहरे पर झलक रही थी।12:30 बज गए थे।वसीम कुछ जरूरी काम बोल कर गए थे 10 बजे डिनर के बाद और अभी तक नही आये थे।अक्सर वसीम डिनर के बाद सैर पर जाते है सोसाइटी की अपनी मित्र मंडली के साथ और 11:30 तक आ जाते है,हां अगर अगले दिन इतवार हो या कोई छुट्टी हो तो ये समय थोड़ा और बढ़ जाता है।कल भी संडे की छुट्टी है आफिस की शायद इसलिए वसीम को लेट हो रहा है ये सोचते हुए नगमा उठ कर अपने कबर्ड के पास गई और कुछ ढूंढने लगी।अचानक से उसके आंखों में चमक आ गयी।उसने कबर्ड में से एक बहुत ही सेक्सी लाल रंग की टू पीस ब्रा पेंटी निकाली।साथ ही एक गाउन भी था जो इनके ऊपर डालने के लिए था।नगमा ने जल्दी से खुद को सलवार सूट से आज़ाद किया।अपने नंगे बदन पर ए.सी की ठंडी ठंडी हवा महसूस होते ही उसके तपते बदन में एक झुरझुरी सी उठी।नगमा ने बड़ी आहिस्ते आहिस्ते से पहले पैंटी पहनी और फिर ब्रा को पहना और फिर आईने के सामने खड़े होकर खुद को देखा।जालीदार ब्रा और पैंटी जितना छुपा नही रहे थे उससे ज्यादा दिखा रहे थे।पैंटी W शेप की थी लेकिन फूली फूली योनि का उभार कसी हुई पैंटी में एकदम मादक लग रहा था।योनि की फांक से चिपक के जो कैमल टो (camel toe) फूलकर पैंटी पर अपना आकार बनाए हुए था उसे देख कर कल्पना करने के लिए विशेष कुछ बचा नही था।नगमा ने आईने के सामने देखते हुए अपनी फूली हुई योनि के उसी भाग को अपनी उंगलियों से महसूस कर।ऐसा लगा जैसे किसी जलती भट्टी के मुँह पर हाथ रख दिया हो।स्वतः ही नगमा ने अपने होंठो को दांतों तले दबा दिया।अब उसने पलटते हुए खुद को आईने में देखा,उसके गोल गोल भारी नितंबो पर ये जालीदार लाल पैंटी इतनी तेज कसी हुई थी कि नितंबो का आकार अपने पूरे सौंदर्य के साथ नज़र आ रहा था।फिर से आगे मुड़ के नगमा की नज़र उसके गोल गोल दूधिये चुचों पर पड़ी।आज इन्हें इस ब्रा में कैद करने के लिए उसे भरसक मसक्कत करनी पड़ी थी।कैद होने के बाद भी 80 प्रतिशत हिस्सा तो इनसे बाहर ही था और जो कैद में था वो भी इन बंधनो को तोड़ कर बाहर आने को लालायित था।उसे आज किचन में करी गयी अपनी शरारत फिर से याद आ गयी और उसके चेहरे पर मादकता के भाव और बढ़ गए।सफेद मखमली जिस्म पे ऐसा कसा हुआ यौवन तो बड़े बड़े तपस्वियों की तपस्या भी भंग कर सकता है।पीर फकीरों को दोबारा से इस सांसारिक माया से लिप्त कर सकता है।नगमा के गालो पर एक गुलाबी सुर्ख शरारत भारी मुस्कान आ गयी थी।शादी के शुरुआती सालों में हर जवान दंपति की तरह वसीम और नगमा की सेक्स लाइफ भी काफी सक्रिय थी लेकिन बढ़ती जिम्मेदारी और उम्र के साथ साथ अब जीवन में उनकी प्राथमिकताएं बदल गयी थी।सेक्स अभी भी करते थे दोनों लेकिन महीने में एक दो बार।उसमे भी जब वसीम ऑफिस के काम से बाहर चले जाते तो वो भी नही हो पाता था।नगमा भी अपने जीवन की प्राथमिकताओं को समझती थी।उसे वसीम से कोई शिकायत नही थी बल्कि उसे वसीम के द्वारा करी जा रही मेहनत देख कर उसपे गर्व होता था।आखिर क्या नही दिया वसीम ने उसे,इतना प्यार परिवार,कपड़े,गहने,शहर में इतनी बढ़िया सोसाइटी में घर।बिना मांगे ही तो सब ला देता है वसीम उसके लिए,उसका कितना ख्याल रखता है नगमा का ,उससे प्यार करता है।नगमा ने भी वसीम के अलावा किसी दूसरे मर्द को नज़र उठा के नही देखा था आजतक।निकाह से बाद से वसीम और उसके परिवार की खुशी को ही अपनी खुशी बना लिया था उसने।शायद जीवन की दौड़ ने उसके जिस्म की भूख को शांत कर दिया था।इसी तरह वसीम भी जब कभी नगमा के साथ प्यार के पल बिताना चाहता और नगमा को बच्चो के साथ या फिर गुलनाज़ के साथ व्यस्त देख या फिर दिन भर के काम से थका देख नगमा के साथ कभी जबरदस्ती करने की कोशिश नही करता था।आखरी बार दोनों एक साथ तब हमबिस्तर हुए थे जब गुलनाज़ के माँ बनने की खुशखबर मिली थी।उसके बाद से नगमा अक्सर अस्पताल के चक्कर लगाने लगी और फिर गुलनाज़ के बच्चे को दूध पिलाने के लिए मेडिसिन लेकर उसके घर के चक्कर लगाने लगी।बीच में कई मौके दोनों के साथ निकले भी लेकिन ऐन वक्त पर गुलनाज़ के घर से फ़ोन आ जाता था या वसीम बच्चे को लेकर खुद यहां आ जाता था।इन सब के बीच दोनों ने ही शायद अपने जिस्म की भूख को बांध कर रख लिया था।
आग नगमा के जिस्म में भी लगी थी और उसने किसी तरह इसे शांत करा हुआ था लेकिन उस रात की घटना ने और आज शाहिद के प्यार के इज़हार और किचन में हुई शरारत ने इस आग में घी डाल दिया था और नगमा का जिस्म आज एक बार फिर भूख से तड़प रहा था।इस तड़पते शरीर को तृप्ति की आवश्यकता थी,इस तपती देह को शीतलता की आवश्यकता थी।नगमा ने एक आखिरी बार अपने शरीर को निहारा और फिर उसे गाउन के अंदर ढक लिया और स्ट्रिप से बांध दिया।गाउन ने नगमा के शरीर को ठीक उसी तरह से ढक लिया था जैसे गिफ़्ट को गिफ्ट व्रैप में ढक दिया जाता है।रेपर खोल कर उपहार बाहर निकालने का अलग ही मज़ा है।वो उत्सुकता तब नही आती जब उपहार बिना व्रैप करे ही मिल जाये।अंदर क्या देखने को मिलेगा इस रहस्य को जल्द से जल्द दूर करने की उत्सुकता एक अलग ही आनंद देती है।आज अब नगमा को बेसब्री से वसीम का इंतज़ार था,अभी नगमा अपने खयालों में ही खोई ही थी कि मोबाइल की रिंग ने उसे उसकी तंद्रा को भंग करा।वसीम की ही कॉल थी।
नगमा : जी वसीम कहाँ पे हैं आप जल्दी आएं,कितनी देर हो गयी,आप के लिए सरप्राइज़ है
वसीम : नगमा वो सोसाइटी के बाहर मिश्रा जी मिल गए,अब उनकी मिसज अपने मायके गयी है तो वो सबको अपनी कार में ही उनकी सोसाइटी ले आये,अब यहां आज महफ़िल जम गयी है और वो आने नही दे रहे।
ये सुनते ही नगमा के अभी के देखे सारे ख्वाब चकनाचूर हो गए।कितने आशा,कितनी उम्मीद से सजी थी वो वसीम के लिए।एक पल में अपनी सुंदरता पर करा सारा गुरुर उत्तर गया था उसका।मन में खुद के ही प्रति मलीनता और असुरक्षा की भावना स्थान कर गयी थी इस एक ही पल में।उसकी आंखें और उसका दिल दोनों भारी हो गये और गला भर सा गया।उधर फ़ोन से वसीम ने कोई प्रतिक्रिया न सुनकर फिर से बोला
वसीम : नगमा मैं और साथी आज मिश्रा जी के यहां रुके हुए हैं,आज आ नही पाएंगे।तुम सो जाना.....हेलो हेलो....नगमा....आवाज़ आ रही है?सुन पा रही हो तुम?
नगमा : ह्म्म्म (गला भर आया था और वो बस इतना ही बोल पाई)
फ़ोन कटते ही नगमा उदास होकर बेड पर बैठ गयी।जिस्म अभी भी भूख से तप रहा था।निराश होते हुए आज उसे अपनी तड़प को फिर से दबाना था।दुखी मन लिए नगमा बैडरूम से बाहर निकली।ड्राइंग रूम में नाईट बल्ब की हल्की हल्की रोशनी थी।नगमा मुख्य द्वार की तरफ बड़ी और उसे अंदर से बंद करते ही उसकी आँखों से धार बह गई।नगमा की आंखों में अब संभाले भी आँशु नही रुक रहे थे।दरवाज़ा बंद करके आँशु पोछते हुए नगमा पीछे मुड़ी ही थी कि पीछे शाहिद बैसाखी का सहारा लिए उसे खड़ा मिला।
नगमा : शाहिद तुम! (हैरान होते हुए) अभी तक सोये नही बेटा, क्या हुआ कुछ तकलीफ है,दर्द हो रहा है क्या? (पूछते हुए नगमा शाहिद के करीब आयी)
शाहिद : नही अम्मी बस नींद नही आ रही थी और फिर दरवाज़े की आवाज़ सुनी तो उठ गया कि शायद अब्बू होंगे,उन्हें गुड नाईट बोल दूँगा,लेकिन आप क्यों उठे हो अभी तक (शाहिद बगल में काउच पर बैठ गया)
नगमा : वो बेटा.... वो मुझे भी नींद नही आ रही थी और फिर तुम्हारे अब्बू का अभी अभी फ़ोन आया कि वो आज अपने दोस्त के यहां ही....
नगमा के करीब आने से उसके चेहरे पे आँशुओं से बनी लकीरें शाहिद को दिख गयी।उसने नगमा को बीच में ही टोकते हुए कहा
शाहिद : अम्मी आप रो रहे हो?
नगमा (चौंकते हुए) : कौन मैं? नही....नही तो
शाहिद : तो फिर ये क्या है (नगमा के चेहरे पर गिरी आँशु की बूंदों को अपने हाथ से पोछ कर नगमा को दिखाया
नगमा : ओ ये....ये तो वो....हॉं वो आंख में दरवाज़ा बंद करते हुए ऊपर से कुछ पड़ गया
शाहिद बिना कुछ कहे नगमा की आंखों में देखने लगा।
नगमा : क्या हुआ ऐसे क्या देख रहा है,कहा न कुछ पड़ गया था ऊपर से
शाहिद : दोनों आंखों में एक साथ
नगमा : (थोड़ा झल्ला के तेज बोलते हुए) हां दोनों में एक साथ,क्यों पड़ नही सकता (मुँह सामने की तरफ फेर कर)
शाहिद (नगमा का चेहरा अपनी तरफ करते हुए) : आपको तो ढंग से झूठ बोलना भी नही आता
इतना सुनना ही था कि नगमा के अंदर जो भावनाओं का समंदर भरा हुआ था उसका बांध टूट गया और उसकी आँखों से अब आँशुओं का झरना बहने लगा।नगमा के ऊपर अब उसकी भावनाएं हावी थी और वो बस रोये जा रही थी।शाहिद ने उसे बाएं हाथ से हग करते हुए उसके सिर को अपने कंधे पे रख दिया।नगमा ने भी अपने हाथों से शाहिद को आलिंगित कर लिया था और फूट फूट कर उसकी बाहों में रोये जा रही थी।शाहिद ने गौर किया कि अम्मी ने आज नाइटी नही बल्कि गाउन पहना है और उनका शरीर तप रहा है।शाहिद अब बच्चा नही था।उसे समझते देर न लगी कि माजरा क्या है।
" अम्मी प्लीज,चुप हो जाओ,क्या हुआ" शाहिद ने बड़े प्यार से नगमा के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा।
नगमा अभी भी रोये जा रही थी।
"शाहिद वो....तुम्हारे अब्बू....शाहिद अब...."
बोलते बोलते नगमा चुप हो गयी।
शाहिद : बोलिये न अम्मी,अब्बू क्या?झगड़ा हुआ क्या अब्बू से आपका,बोला कुछ उन्होंने आपको?
नगमा (सुबकते हुए) : नही कुछ नही हुआ,तुम जाओ जाकर अपने कमरे में सो जाओ।
कह कर नगमा काउच से उठी ही थी कि शाहिद ने उसका हाथ पकड़ लिया।
शाहिद : अम्मी अगर मैं इस वक़्त यहां बैठ कर ऐसे रो रहा होता तो क्या मुझे ऐसे देख कर आप अपने कमरे में जाकर चैन से सो पाते?
नगमा ने पलके नीचे झुका ली।
शाहिद : आपकी खामोशी ही आपका जवाब है अम्मी।अब आप सोचिए कि आपको ऐसी हालत में अगर मैं छोड़ दूंगा तो क्या मैं खुद चैन से सो पाऊंगा।
नगमा अभी भी खामोश थी।
शाहिद : ओ अब समझा, बेशक मै आपको अपने दिल का सारा फसाना बयान कर दिया लेकिन आप मुझे इस लायक नही समझती की अपने दिल की बात,अपने जज़्बात मुझसे साँझा करें।ठीक है अम्मी,यू कैन गो टू योर रूम।मैं अब आपको और फ़ोर्स या डिस्टर्ब नही करूँगा। (हाथ छोड़ते हुए बड़ी बेरुखी से शाहिद ने कहा)
"नही नही शाहिद ऐसी कोई बात नही है,जबसे तुम और आदि मेरी ज़िंदगी में आये हो तबसे ही मैंने तुम दोनों को अपना जीवन बना लिया है।ऐसी कोई बात नही जो में तुमसे छुपा सकती हूं लेकिन ये"
बोलते बोलते नगमा एक बार फिर रुक गयी थी।शाहिद ने उसे हाथ पकड़ के फिर अपने करीब बैठा लिया और उसका सिर अपने कंधे पे रख के सहलाने लगा।
शाहिद : लेकिन क्या अम्मी?यू कैन शेयर एनीथिंग विद मी।आई प्रॉमिस डेट आई वॉन्ट टेल एनीवन।
नगमा उठ कर शाहिद की आंखों में देखती है।उसे उनमे सच्चाई और प्यार नज़र आता है।
नगमा : शाहिद....
शाहिद : हां, बोलिये अम्मी
नगमा (पलके नीचे झुकाते हुए) : शहीद....मैं .....कैसी दिखती हूँ?
सवाल सुनकर शाहिद थोड़ा चौंका जरूर लेकिन पूरे प्यार के साथ इसका जवाब देते हुए कहा
"अम्मी आप इस दुनिया की सबसे हसीन औरत हो"
नगमा ने एक बार फिर उसकी आँखों में देखा।
नगमा : ये तुम मेरा दिल रखने के लिए बोल रहे हो न?
शाहिद : क्या?अम्मी बिल्कुल भी नही।आप तो मुझे जानती ही हो न, मैं कभी झूठ नही बोलता।अम्मी आप वाकई इस दुनिया की सबसे हसीन लड़की हो।
नगमा: लड़की?
शाहिद : अरे एक बार मेरे कॉलेज आकर देखो,कोई कह नही पाएगा कि आप दो बच्चो की माँ हो (हंसते हुए शहीद ने कहा)हाँ मेरी उम्र के तो नही लगते लेकिन कितनी ही पी.एच. डी की स्टूडेंट्स से काफी यंग लगते हो आप
नगमा : सच्ची?
शाहिद : मुच्ची
नगमा : (उदासी से सिर झुकाते हुए कंधे से शाहिद के सीने पे कर लिया) लेकिन फिर तेरे अब्बू को ये सब नही दिखता क्या?कितने ही दिन हो गए....(आगे बोलते हुए नगमा ने खुद को रोक लिया)
शाहिद समझ गया था कि नगमा का इशारा किस तरफ है।
शाहिद : अम्मी इधर देखो (चेहरे पर हाथ रख कर ऊपर उठाया और गालो पे हाथ लगते हुए) अम्मी नादिया को देखा है ना आपने?
नगमा को शहीद के मुँह से इस वक़्त नादिया का नाम सुन कर जाने क्यों अच्छा नही लगा लेकिन इस बात को छुपाते उसने बस हाँ में सिर हिलाया।
शाहिद : कैसी है वो?
नगमा को बुरा लगा कि इस समय शाहिद उसके मुंह से नादिया की तारीफ सुनना चाहता है।उसने शाहिद के सीने से अपना सिर उठाया और सीधे बैठ गयी।
नगमा : अच्छी है,तहज़ीबदार है।
शाहिद : अम्मी देखने में कैसी है।
नगमा : हाँ, सुंदर है,खूबसूरत है।
शाहिद : बस खूबसूरत है या बेहद खूबसूरत है।
नगमा : हॉं, हाँ बेहद खूबसूरत ,बेहद हसीन है तेरी नादिया बस (नगमा ने चिढ़ते हुए बोला)
उसे बिल्कुल भी पसंद नही आ रहा था कि शाहिद इस वक़्त उससे नादिया के बारे में बात करने लगा।ये चीज़,नगमा की ये चिढ़ शाहिद से छुपी नही।शाहिद अंदर ही अंदर ये देख मुश्कुरा रहा था।
शाहिद : अम्मी नादिया बेहद नही बेहद बेहद खूबसूरत है,उसके जैसी हसीन लड़की मैने आज तक नही देखी थी,बेहद खूबसूरत होने के साथ साथ पढ़ लिख भी रही है,कुछ सालों में अपने पैरों पे खड़ी भी होगी।निकाह के लिए लड़के लाइन लगा देंगे उसके घर के बाहर,तब क्या अभी भी हज़ारो उसके पीछे पड़े है।दो तीन तो डॉक्टर्स ही उसके अस्पताल के उसे अपना दिल दे बैठे है।
नगमा अब बहुत ज्यादा चिढ़ गयी थी।
नगमा : तो ये सब तू मुझे क्यों बता रहा है?
शाहिद : इसलिए कि ऐसी लड़की को वही लड़का छोड़ सकता है जिसके पास उससे भी खूबसूरत लड़की का प्यार हो।अम्मी,मैने बाहर बेशक नादिया से खूबसूरत लड़की नही देखी लेकिन जब मैं घर में आता हूँ तू उससे लाख गुना खूबसूरत चेहरा मेरी आँखों के सामने रहता है।जब मैं इस चेहरे को देखता हूं ना(नगमा के गाल पे हाथ रख कर) तो नादिया क्या दुनिया की सारी खूबसूरती इसके सामने फीकी लगती है।
स्त्री के दिमाग को समझ पाना उतना ही कठिन है जितना कि समय में वापस जा पाना।ना कोई कर पाया है और न कोई कर पायेगा।अभी जिस नादिया का नाम सुन कर ही नगमा के सीने में चिढ़ और जलन पैदा हो गयी थी उसी नादिया की बराबरी में खुद को ज्यादा हसीन और सुंदर कहे जाने के बाद नगमा का दिल खुशियों से झूम उठा था।उसके उदास चेहरे पर एकदम से मुस्कान आ गयी थी।
शाहिद : अम्मी मेरी नादिया नही है,आप हो।ये जानते हुए भी की नादिया मुझे क्या दे सकती है,ये जानते हुए भी की आपसे कभी वैसा प्यार नही मिल पाएगा,मैने आपको चुना अम्मी उसे नही।आपको पा नही सकता तो क्या हुआ,आपको मुस्कुराते देख कर मैं अपनी पूरी ज़िंदगी काट सकता हूँ अम्मी और आप मुझसे ये खुशी भी छीन रहे हो इन मोतियों को जाया कर के (हाथ से आँशु पोछ कर नगमा की दोनों आंखों को चूमता है)
नगमा की आंखें एक बार फिर छलक जाती है।इस बार दुख से नही प्यार से।वो शाहिद को बाहों में भरते हुए गले से लगा लेती है।इस दौरान गाउन नगमा की टांगों पर से खिसक जाता है और उसकी गोरी गोरी मांसल जांघे ,नाईट लाइट की मद्धम रोशनी में शहीद के अंदर एक बेचैनी पैदा कर देती है।ना चाहते हुए भी शाहिद अपना हाथ नगमा की जांघो पर रख देता है।अपनी नंगी जांघो पे शाहिद की छुअन से नगमा को करंट जैसा लगता है लेकिन नगमा ने उसे अभी भी अपने सीने से लगाए हुए है।जिस्म पे पुरुष की छुअन नगमा के तपते शरीर को और भड़का देती है।नगमा शाहिद को सीने से लगाए उसके बाल सहला रही है और शाहिद भी धीरे धीरे नगमा की जांघो को सहलाना शुरू करता है।क्या मखमली एहसास है नगमा के जिस्म का ऐसा लगता है शाहिद का हाथ अपनी अम्मी के जिस्म पर चल नही बल्कि फिसल रहा है।अब शाहिद पर भी खुमारी छाने लगी थी।धीरे धीरे जांघ सहलाते हुए हाथ ऊपर ऊपर बढ़ते जा रहे थे।नगमा पहले से ही मदहोश थी।उसे अपने तपते हुए जिस्म पे शाहिद की छुअन से आंनद की तरंगें महसूस हो रही थी।आंखें बंद कर के शाहिद के बाल सहलाते हुए वो इन तरंगो का आनंद उठा रही थी।जैसे जैसे हाथ ऊपर बढ़ रहा था वैसे वैसे नगमा की बढ़ती साँसों के साथ उसकी धड़कन भी बढ़ते जा रही थी जो उसके सीने पर सर रखे शाहिद को साफ साफ सुनाई दे रही थी।हाथ ऊपर बढ़ते जा रहा था और गाउन खुलते जा रहा था।अब दाएँ तरफ की पूरी टांग गाउन से बाहर थी।एक साइड से कसी हुई नगमा की लाल पैंटी ने जिस तरह से जांघ को कस के रखा था वो देख शाहिद की लोअर में उसका कॉमरेड उसे सलामी देने लगा था।अब शाहिद दिमाग की बात कम और अपने कॉमरेड की ज्यादा बात सुन रहा था।उसके एक हाथ में प्लास्टर लगा था इसलिए उसने अब अपना बायां हाथ नगमा की दायीं जाँघ से हटा के बायीं जाँघ पे रख लिया और उसे सहलाने लगा।
शाहिद : अम्मी आई लव यू (नगमा की बाएं तरफ की जांघ सहलाते हुए गाउन को हटाता है)
नगमा (आंखें बंद किए हुए,शाहिद का सिर सहलाते हुए) : आई लव यू टू बेटा
शाहिद : अम्मी आई वांट यू अज माय गर्लफ्रैंड।आई वांट टू मेक लव विथ यू, गिव यू ऑल दी हैप्पीनेस यू डिज़र्व।
नगमा : नही शाहिद,वी कैंट डू डेट लव।मैं तुम्हारी सगी अम्मी हूँ।(सिर को चूमते हुए)
जाँघ सहलाते हुए अब गाउन को दोनों जांघो पर से हटा दिया था शाहिद ने।गाउन की स्ट्रिप पेट के पास बंधी है इस वजह से नीचे से गाउन त्रिकोण आकर में खुलते हुए नगमा के कमर के नीचे की खूबसूरती को पूरी तरह से अब उजागर कर रहा था।अब नीचे से नगमा पूरी तरह से निर्वस्त्र बस एक पैंटी में बैठी थी।शाहिद ने दूसरी बार अपनी अम्मी को पैंटी में देखा था।लण्ड कंट्रोल से बाहर हो रहा था।शाहिद ने एक बार फिर से हाथ बदलते हुए नगमा के दाएँ पैर को थोड़ा फैला दिया जिससे कि दोनों जांघो के बीच छुपा योनि का हिस्सा अब उसके प्रत्यक्ष था।लाल रंग की मद्धम नाईट लाइट में नगमा का जिस्म भी लाल लग रहा था।नीचे की तरफ़ जिस्म से कस कर चिपकी हुई लाल पैंटी और जांघो पर पड़ती लाल रोशनी ने सारा फर्क ही मिटा दिया था।ये पता कर पाना मुश्किल हो गया था की नगमा का जिस्म ढक रखा है या पूरी तरह नग्न है।योनि पर पैंटी इतनी टाइट थी कि उभार के साथ साथ योनि के लबो के बीच दरार भी साफ साफ दिख रही थी।जिस दिन शाहिद और आदि को नगमा ने दूध पिलाया था उस दिन नगमा ने जो पैंटी पहनी थी वो इतनी मादक नही थी।योनि का उभार तो बिल्कुल भी नही देख पाया था शाहिद।लेकिन आज तो जैसे उसे पैंटी के ऊपर से ही नगमा की योनि साफ साफ नजर आ रही थी।एक समय तो शाहिद को लगा कि कही अम्मी नग्न तो नही लेकिन जब उसने हाथ योनि के पास फेरना शुरू किया तो उसे पैंटी के कपड़े का आभास हुआ।अपनी अम्मी की फूली हुई चूत के धुंधले दर्शन पाकर ही शाहीद का लण्ड अब "आउट ऑफ कंट्रोल" हो गया था।शाहिद से उसका कॉमरेड अब "लोवर से आज़ादी" मांगने लगा था।शाहिद अब अंदर योनि के करीब नगमा की जाँघ को सहला रहा था और नगमा की गरम साँसों को अपने गर्दन पर महसूस कर पा रहा था।जांघो को सहलाते सहलाते उसने सिर उठा के नगमा की सुराही जैसी गर्दन को चूमना शुरू कर दिया।नगमा ने अब आंखें बंद करे हुए अपने सिर को पीछे की तरफ काउच पे रख लिया।शाहिद धीरे धीरे गर्दन को चूमते चूमते अब अपनी जीभ से चाटने भी लगा था।अम्मी के जिस्म का स्वाद उसे मदहोश करे जा रहा था।इधर अपनी गर्दन पर शहीद के जीभ फेरने से नगमा जैसे पागल ही हुए जा रही थी।शाहिद अब पूरी गर्दन पर अपनी जीभ फेर रहा था।जीभ फेरते हुए वो नगमा के गर्दन के अलग अलग हिस्सों को चूम और चूस भी रहा था।गर्दन से वो नगमा के चेहरे पर जाता उसे पूरा चूमता और चाटता और फिर होंठो को बचाते हुए दोबारा गर्दन पर आ जाता।ऐसा करते करते वो हर बार थोड़ा थोड़ा नीचे नगमा के उरोज़ो की तरफ बढ़ रहा था और हर बार नीचे बढ़ते समय नगमा का गाउन थोड़ा थोड़ा खिसकाया जा रहा था।अब नगमा के उरोज़ो के बीच की खाई दिखने लग गयी थी ।शाहिद अब छाती के ऊपर के हिस्से पर अपनी जुबान से कलाकारी कर रहा था।धीरे धीरे नीचे से उसका हाथ भी उसके योनि के करीब से होता हुआ उसके पेट पर पहुंच गया था।शाहिद इस बार कोई जल्दबाज़ी कर के काम ख़राब नही करना चाहता था।उधर नगमा का भी बुरा हाल था।उसकी योनि ने अब पानी छोड़ना शुरू कर दिया था।पूरा शरीर मदमस्त हो रखा था।अब इस तपते रेगिस्तान को शीतलता की आवश्यता थी।पेट को सहलाते सहलाते शाहिद का हाथ अब उस हिस्से पर था जहाँ गाउन की स्ट्रिप बंधी पड़ी थी।शाहिद ने उसे खोलने के लिए हाथ बढ़ाया ही था कि नगमा ने उसके हाथ को थाम लिया और आंखें बंद करे ही ना में सिर हिलाया।
शाहिद धीरे से नगमा के उरोज़ो की खाई को चूमता हुआ उसकी गर्दन पे पोहचा,वहाँ थोड़ी देर उसे चूमने और चाटने के बाद वो धीरे धीरे ऊपर बढ़ा और नगमा के काम के पास जाकर कान में जीभ डाल कर उससे खेलने लगा।खेलते खेलते उसमे नगमा के कान पर अपने दाँत गड़ा दिए।नगमा के मुंह से "आहहहह" निकल गयी।
शाहिद : प्लीज अम्मी (कान में बहुत मादकता से बोलते हुए दोबारा कान के निचले हिस्से पे अपनी जीभ फेरते हुए उसे मुँह में लेकर चूसने लगा।
अब शाहिद के हाथों पर नगमा के हाँथो की पकड़ ढीली हो गयी थी।शाहिद ने तुरंत इसका फायदा उठाया और स्ट्रिप को खोल दिया
स्ट्रिप काफी लूज़ बंधी थी तो खुलने में परेशानी नही हुई।अब नगमा के लेसी ब्रा में कसे हुए उरोज पूरी तरह से शाहिद की आंखों के सामने थे।जो गिफ्ट नगमा ने वसीम के लिए रखा था उसे शाहिद ने खोल दिया था।लाल रंग की जालीदार लेसी ब्रा में लाल रंग की नाईट लाइट में कसे हुए नगमा के दूधिया चूचे और भी बड़े और टाइट लग रहे थे।ब्रा में खड़े निप्पल का आकार साफ साफ नजर आ रहा था।छुपाने के लिए नगमा के पूरे शरीर पर कुछ बचा ही नही था।पहाड़ जैसे उभरे अपनी अम्मी के चूचे इस कसी हुई सेक्सी ब्रा में देख कर शाहिद पागल ही हो गया।उसने बिना कोई कोशिस करे नगमा के चुचों से ब्रा खींचकर उसके चुचों को आज़ाद कर दिया जिससे नगमा के चूचे एकदम उछलते हुए बाहर आये।बहुत तेज़ कसे होने के कारण नगमा के चुचों में से थोड़ा दूध बह निकला था।शाहिद ने बिना कोई समय गवाएं एक चूचे को पकड़ के मुह में लिया और उसे पागलो की तरह चूसने लगा।अपने चुचों पर शहीद के होंठ पड़ते ही नगमा के शरीर में मानो एक झटका से लगा।उसने कस कर शाहिद का मुंह अपने चुचों पर दबा लिया और उसके सिर को सहलाने लगी।
शाहिद : ओह अम्मी,इट फील्स सो गुड़।बहुत मीठा टेस्ट है आपके दूध का,उमममममम.....
शाहिद एक हाथ से चूचे को मुह में लेकर चूस रहा था और फिर उसी हाथ से दूसरे चूचे को दबा रहा था।लेकिन नगमा के चूचे बड़े और भारी होने के कारण बार बार उसके मुँह से नगमा की चुचिया निकल जा रही थी जिससे वो ठीक से चूस नही पा रहा था।नगमा शाहिद की इस परेशानी को समझ गयी और फिर अपने एक हाथ से चूची पकड़ के शाहिद के मुँह में डाल दिया।ठीक उसी तरह जैसे वो बचपन में शाहिद को अपनी इन्ही चुचियो का रसपान कराती थी।इधर शाहिद अब खुल के अम्मी की चुचियो को चूस रहा था,बीच बीच में वो नगमा के काले गुलाबी निप्पलों को चाटते हुए उनपे अपने दाँत भी गड़ा देता था।नगमा से मुँह से निकली मादक सिसिकियाँ माहौल को और मादक बना रही थीं।दूसरे हाथ से नगमा की चुचियो को मसल और दबा रहा था।हल्की हल्की दूध की धार नगमा के पूरे पेट पर बह चुकी थी।अब शाहिद उसी धार को चाटते हुए नीचे बढ़ने लगा।अब वो इस तरह लेट गया जैसे नगमा की गोद में लेता हो।नगमा ने भी किसी छोटे बच्चे की तरह उसे लिटा लिया था।शाहिद अब नगमा के नंगे गोर पेट पे अपनी जीभ फेर रहा था।आह! क्या स्वाद है अम्मी के रस का और अम्मी के जिस्म से सीधा इसका रसपान कर पाना तो उसे अमृत जैसा लग रहा था।धीरे धीरे वो नगमा की नाभी पर आ चुका था।पहले उसने नगमा की नाभि के ऊपर गोलाकार तरीके से अपनी जीभ को घुमाया।नगमा के पूरे बदन में बिजली सी दौड़ गयी थी।नगम ने कस कर शाहिद के मुँह को अपनी नाभि पर दबाया और शाहिद उसमे अपनी जीभ फेरने लगा।इसके साथ साथ वो एक हाथ से नगमा की चुचियो को मसल मसल के उनमे से दूध निकाल रहा था और नाभि पर बह कर आये दूध को जीभ फेर फेर कर चाट रहा था।नगमा इस वक़्त किसी और ही दुनिया में जा चुकी थी।पूरा माहौल मादकता से भर गया था।
नगमा का दिमाग थोड़ी थोड़ी देर में उसे चेता रहा था लेकिन वो इस चेतावनी को सुनने को तैयार नही थी।जब शाहिद ने उसकी जाँघ से गाउन हटाया था तब भी उसके दिमाग ने चेताया था,जब गर्दन पर शहीद की जीभ उसे उमंग की लहरें दे रही थी तब भी चेताया था,जब शाहिद उसके गर्दन से नीचे बढ़ रहा था तब भी उसके दिमाग ने चेताया था कि उसे अभी रोक ले पर नगमा हर बार उसे यही समझाते रही कि वो शाहिद को इससे आगे नही बढ़ने देगी।नतीजा ये हुआ था कि अब उसके पूरे जिस्म पर एक वो कसी हुई पैंटी ही थी बाकी तो शाहिद ने कुछ छोड़ा नही था।अब जब उसकी नाभि से खेलते हुए शाहिद की जीभ उसके शरीर में कामोत्तेजना की लहरें उठा रही थी उस वक़्त भी चेता रहा था।इस वक़्त भी काम के वेश में,अपनी देह को मिल रहे आनंद में खोते हुए नगमा ने उसे ये बोल कर समझा दिया था कि शाहिद ने उसे पहले भी तो ऐसे देखा है और अगर वो उसके उरोज़ो से रसपान कर भी लेता है तो क्या बुराई है,वो उसी का बेटा है।उसने 5 साल तक तो इनमें से रसपान किया ही है तो अब क्या बुराई है।जब किसी पर हवस भारी होती है,जब कोई हवस की आग में जल रहा हो तो उसे उस समय हर तर्क को अपने पक्ष में किसी न किसी तरह से मोड़ तोड़ कर अपने हिसाब से खुद को सही बनाने की इच्छा होती है।नगमा जानती थी कि वो जो कर रही है गलत है,मर्यादा के खिलाफ है लेकिन अपने हर तर्क को वो किसी न किसी दूसरे तर्क से काट कर खुद को सही साबित करना चाह रही थी जिससे कि बाद में उसे आत्मग्लानि ना हो या वो पिछली बार की तरह खुद को दोषी न माने।
नगमा अपनी सोच में थी।अपने शरीर को मिल रहे सुख के सागर में गोते खाते हुए बेसुध थी कि इधर नीचे शाहिद का हाथ नगमा के जाँघ के ऊपरी हिस्से को सहलाते उसकी योनि के इतने करीब आ गया था कि शाहिद को अपनी उंगलियों पर नगमा के योनि की गर्मी महसूस होने लगी थी।अब खुद को रोक पाना मुश्किल था शाहिद ने अपना हाथ नगमा की फूली हुई योनि के होंठो पर रख दिया और उंगलीयों को दरार पर फेरने लगा।चूत की दरार पर उंगलियों की रगड़ महसूस होते ही नगमा को 440 वॉट का करंट से लगा।उसने सीधे होते हुए शहीद के हाथ को पकड़ा।
नगमा : नही शाहिद......नॉट देयर....वहां नही
शाहिद : अम्मी प्लीज.....लेट मी मेक यू हैप्पी....प्लीज अम्मी।आई नो यू वांट इट टू।आपको भी मन है अम्मी तभी तो ये गीली है।
शाहिद में एक बार और नगमा की चूत की दरार पर पैंटी के ऊपर से उंगली फेरी।
नगमा : तो? इससे तुम्हे वो सब करने का हक़ नही मिल जाता तो तुम्हारे अब्बू को है।आई एम नॉट सम होर।मैं कोई बाजार की रंडी नही हूँ शाहिद।आई एम योर मोम एंड यू आर माय सन।बाकी रात काफी हो गयी अब जाकर सो जाओ अपने कमरे में।
नगमा काउच से उठी और अपने गाउन की स्ट्रिप बांध कर अपने रूम की तरफ जाने लगी।
शाहिद : सॉरी अम्मी
नगमा चुप चाप अपने रूम की तरफ बिना कुछ बोले बढ़ गयी।शाहिद को लगा कही उसकी अम्मी फिर से उससे नाराज़ तो नही हो गयी।
दरवाज़ा खोल कर अंदर घुसने से पहले नगमा एक बार पीछे मुड़ी
नगमा : (शाहिद की तरफ देखते हुए) वैसे तो तुम्हारी नाईट ऑलरेडी काफी गुड हो गयी है लेकिन फिर भी गुड़ नाईट।
ये सुन कर शाहिद के चेहरे पर बड़ी सी मुस्कान आ गयी । ऐसी ही मुस्कान शायद उसने नगमा के चेहरे पर भी देखी अंदर जाते हुए।गुड तो सच में हो गयी थी उसकी नाईट।उसने भी अम्मी को गुड नाईट कहा और अपने कमरे की तरफ चल दिया।