शाहिद की नींद खुली तो सुबह के 9 बज चुके थे,इस वक़्त तक तो सब उठ गए होंगे।सोचते हुए शहीद बाहर आया।वसीम डाइनिंग टेबल पर अपने अखबार के साथ चाय का लुफ्त उठा रहे थे।काफी टाइम बाद आज आदिल भी साथ में था वरना उस पहले वाक्ये के बाद वो थोड़ा डर सा गया था अम्मी के ग़ुस्से से।शाहिद वाशरूम गया और फ्रेश होकर बाहर आ गया।निगाहें तेज़ी से अम्मी को ढूंढ रही थी लेकिन अम्मी कहीं नजर नही आ रही थी।
शाहिद : अब्बू,अम्मी कही नज़र नही आ रही?
वसीम (हंसते हुए) : बेटा अब बड़े हो गए हो,कभी अब्बू की भी ख़ैरियत पूछ लिया करो।कबतक अम्मी के चमचे बने रहोगे।
शाहिद : क्या अब्बू आप भी न
वसीम :अच्छा सॉरी भाई, अम्मी तुम्हारी गुल्लों के घर गयी है
शाहिद : इतनी सुबह?
वसीम :इतनी सुबह!जनाब 9 बज गए है।सवेरा आप के हिसाब से थोड़ी होगा और आज आरिफ के अब्बू अम्मी आएं है तो गुलनाज़ का हाथ बंटाने गयी है तुम्हारी अम्मी
शाहिद : ओ,तो फिर हमारा नाश्ता आज आप बनाने वाले हो क्या?
वसीम : क्यों मैं नही बना सकता
शाहिद : गयी भैंस पानी में,सोचा था संडे है,उठकर टेस्टी टेस्टी नाश्ता मिलेगा लेकिन लगता है फिर से जली हुई टोस्ट और बटर खाने को मिलेगी।
वसीम : अरे वो पिछली बार टोस्टर खराब था वरना मैं तो तुम्हारी अम्मी से भी टेस्टी खाना बनाता हूँ
आदिल : हाँ हाँ अब्बू,शेफ़ कपूर को आपने ही तो खाना बनाना सिखाया था न(हंसते हुए)
वसीम : नालायको,बंदर क्या जाने अदरक का स्वाद। दोनों भाई मिलकर मेरा मज़ाक उड़ाते हो,जाओ तुम्हारी अम्मी बना के गयी है वही बोरिंग सा नाश्ता,मैने सोचा था कुछ मस्त सा बनाता कॉन्टिनेंटल टाइप ब्रेकफास्ट(ब्रिटिश एक्सेंट में बोलते हुए) लेकिन तुम लोग तो वही बोरिंग परांठे खाने लायक हो।हुह(मज़ाक करते हुए वसीम ने कहा)
आदिल किचन में जाकर तीनो के लिए परांठे और दही ले आया।नाश्ता कर के आदिल शाहिद की तबीयत के बारे में पूछकर ऊपर चला गया। देर बाद किसी से फ़ोन पर बात करते करते वो बाहर चला गया।उसके थोड़ी देर बाद ही वसीम भी बाहर टहलने चल दिये।अब घर में नीचे शाहिद अकेला ही था,उसने थोड़ी देर तो टी. वी देखी लेकिन बोर हो गया।शाहिद चैनल बदल ही रह था कि एक अंग्रेज़ी चैनल पर आकर उसकी उंगलियाँ जम सी गयी।उसपर बहुत कामुक सीन आ रहा था,शाहिद चाहते हुए भी चैनल बदलने का बटन न दबा पाया। एक बड़े उम्र की महिला जिसके जिस्म पर सिर्फ एक तौलिया लपेटा हुआ था एक कॉलेज की उम्र के लड़के के आलिंगन में थी,लड़के के होंठ महिला के होंठो से जुड़े हुए थे और उसकी झीभ महिला के होंठों को खोलने का प्रयत्न कर रही थी।औरत बेहद कामुख और हसीन थी और लड़के को रोकने का नाकामयाब प्रयास करते हुए उसे खुद से दूर करने की कोशिश कर रही थी।अचानक से लड़का उसका टॉवल खोल देता है।अब उस महिला का पानी से भीगा चमकता जिस्म दर्शकों के और उस लड़के के सामने एकदम नग्न था।वो जल्दी से अपने वक्षस्थलों को दोनों हाथों से छुपाती है लेकिन वो लड़का उसे दीवार से चिपका के तेज़ी से चूमते हुए उसकी बड़ी चुचियो को मसलने लगता है,महिला भी अब अपना कंट्रोल खोती जा रही है,कुछ बोलने के लिए वह होंठो को थोड़ा खोलती ही है कि इसका फायदा उठाकर लड़का अपनी जीभ को उसके मुँह में प्रवेश कर देता है।महिला के मुँह से अब बस आँहें निकल रही है।अब धीरे धीरे उसके हाथ भी युवक के पीछे आलिंगन की अवस्था में स्वतः ही आ चुके हैं।अब महिला भी युवक के चुम्बन का जवाब चुम्बन से दे रही है ।अचानक महिला चुम्बन को तोड़ते हुए युवक की आंखों में देखती है और कहती है -"नो,इट्स नॉट राइट,वी कैंट डू दिस" लेकिन उसका जिस्म इस बात से असहमत लग रहा था।धीरे धीरे उसका उस लड़के को रोकने का प्रयास धूमिल होता जाता है और लड़के का हाथ ऊपर से नीचे की ओर महिला की पैंटी की तरफ बढ़ रहा था,जैसे ही पैंटी की स्ट्रिप नीचे होने वाली होती है,दरवाज़े पर किसी के आने की आहट होती है।महिला होश में आते हुए तौलिया लपेट कर दूसरे रूम में भाग जाती है और लड़का सोफ़े पर कुशन आगे लेकर बैठ जाता है।दरवाज़ा खुलने पर एक माध्यम उम्र का व्यक्ति अंदर आता है और उस लड़के को संबोधित करते हुए कहता है
"हेलो सन,एंजोयिंग योर वेकेशन्स?"
"यस डैड,वेरी मछ"
"ग्रेट,वेअर इज़ योर मोम"
"इन हर रूम मेबी"
ये डायलॉग सुनते ही शाहिद के लोअर में उसका लण्ड लोहे की तरह कड़क हो गया।वो बैसाखी का सहारा लेते हुए नगमा के रूम में जाता है,नगमा के रूम का कबर्ड खोलते हुए इधर उधर कुछ ढूंढता है और फिर एक जालीदार लेसी पैंटी बाहर निकालते हुए जल्दी जल्दी अपने रूम में जाता है और बेड पर लेट जाता है।
बेड पर लेटे लेटे उसे कल रात की हसीन घटना याद आने लगी।साथ ही याद आता है वो सीन जिसमें उस महिला की जगह अपनी अम्मी नगमा और लड़के की जगह खुद को रखते हुए आंखें बंद करके उसी सीन को इमेजिन करने लगता है।उफ़्फ़ ऊपरवाले ने क्या तराशा है अम्मी को ये सोचते हुए उसका हाथ उसके लोवर के अंदर चला गया और कुछ ही पलों में वो अपनी अम्मी के गदराए हुए कामुक शरीर को याद करते हुए मदहोश होने लगा।आंखें बंद करते हुए धीरे धीरे उसका हाथ उसके लण्ड की तरफ बढ़ने लगता है।अब शाहिद अपने खड़े लण्ड पर नगमा की पैंटी को सूंघकर लपेट देता है और देखते ही देखते पैंटी में लपटे लण्ड पर शाहिद का हाथ चलने लगता है।अपनी अम्मी के मखमली जिस्म को याद करते हुए शाहिद मदहोशी में खोता चला जाता है।अम्मी के रसीले बड़े बड़े कसे हुए चूचे,आह! कितने टेस्टी लगते है,अम्मी का मखमली जिस्म,वो गोल गोल कसी हुई चौड़ी गांड।
ये सब सोचते हुए शाहिद का हाथ और तेज़ी से अपने लण्ड पर चलने लगता है और एक बड़े वेग के साथ उसमे से वीर्य की वर्षा ही शुरू हो जाती है जो कई सेकंड तक निकलते ही रहती है।वीर्य के साथ आँखें बंद करे शाहिद के मुँह से दो शब्द भी उसी वेग से निकलते है- "उफ्फ्फ अम्मिम्ममम्ममम्म" ।तभी शाहिद को अपने दरवाज़े पर एक आहट होती है।कोई दरवाज़ा बंद करके भागा था शायद।शाहिद उसी हालत में उठते हुए एक बैसाखी के सहारे जल्दी से दरवाज़े की तरफ बढ़ता है लेकिन बाहर तो कोई भी नही।शाहिद डर जाता है कि कही अब्बू ने तो उसे ऐसे नही देख लिया लेकिन तभी उसकी नज़र सोफ़े पर पड़ी किसी चीज़ पर पड़ती है और उसके चेहरे पर एक शैतानी भरी मुस्कान आ जाती है।सोफ़े पर और कुछ नही बल्कि उसकी अम्मी की चुन्नी थी जो वो पहन कर बाहर गयी थी।अंदर आके उन्होंने उसे उतारा होगा और फ्रेश होने के लिए शायद नीचे शाहिद के रूम के वाशरूम में जाने के लिए आई होंगी।शाहिद मुस्कुराता हुआ अपने बेड की तरफ वापस बढ़ता है लेकिन अब उसका ध्यान अपने बेड की चादर पर जाता है जो एक जगह सफेद वीर्य से भर गयी है,वही नगमा की पैंटी भी वीर्य में सनी पड़ी हुई थी,साथ ही उसका ध्यान अपनी टी शर्ट पर भी जाता है।उसपर भी उसका वीर्य गिर गया था।
तभी शाहिद के दिमाग में एक तरकीब उठती है।शाहिद अम्मी की पैंटी से चादर पर पड़े वीर्य को पोछ देता है हालांकि चादर पर सफेद दाग अभी भी है।अब शाहिद अपनी अम्मी की पैंटी ले जाकर वो बाथरूम में रख देता है।
उधर नगमा अभी अपने रूम के दरवाज़े से चिपक कर खड़ी लंबी लंबी साँसें ले रही है।ये सांसें भागने से नही बल्कि अपने बेटे को नंगा अपनी पैंटी लिए लण्ड से खेलते हुए उसका नाम लेने से चढ़ी हुई हैं।ये बात तो नगमा को बहुत पहले से मालूम थी कि शाहिद उसकी पैंटी लेकर मुठ मरता है लेकिन प्रत्यक्ष उसने पहली बार देखा था।उस वक़्त तो ये सब उम्र का पड़ाव समझ कर नज़रंदाज़ कर देती थी लेकिन अब तो शाहिद उससे अपने इश्क़ का इज़हार कर चुका था।साथ ही कल रात शाहिद ने अपने इस इरादे को भी ज़ाहिर कर दिया था कि वो नगमा के जिस्म के प्रति भी कितना आकर्षित है।शाहिद का वो उसकी पैंटी से रगड़ खाता कड़क लण्ड,उसके मुँह पर उभरी वो मादकता,उसके मुँह से ये सब करते अम्मी निकलना नगमा की तो मानो हालात ही खराब हो गयी थी।पहली बार उसने प्रत्यक्ष रूप से अपने बेटे को ये सब करते देखा था।अम्मी बोलते हुए शहीद के चेहरे पर जो मादकता के साथ संतुष्टि और खुशी के मिश्रित भाव उभरे थे नगमा की आंखों में छप चुके थे,साथ ही उसकी आँखों में छप चुकी थी उसके बेटे के जवान कड़क लण्ड की छवि।हालाँकि लण्ड आंशिक तौर पर नगमा की पैंटी से ढका हुआ था फिर भी उसकी लंबाई का अंदाज़ा लग गया था नगमा को।काल रात जो आग उसके जिस्म में जल रही थी उसे नगमा ने बड़ी मुश्किल से दबाया था लेकिन वही आग और अधिक वेग से उसके जिस्म को जलाने लगी थी।अपने अंदर एक अलग ही बेचैनी महसूस कर रही थी नगमा।दरवाज़े के सहारे खड़ी नगमा की आंखों के सम्मुख भी भी कल रात की घटना एक फ़िल्म की तरह चलने लगी और स्वतः ही उसका हाथ धीरे धीरे उसके सलवार के ऊपर से ही उस हिस्से पर जाने लगा जो नगमा के शरीर में बने ज्वालामुखी का मुख बिंदु था लेकिन तभी उसे दरवाज़े पर दस्तक के साथ शाहिद की आवाज़ सुनाई दी और वो अचानक से अपनी मदहोशी से बाहर आई।
"अब्बू.....अब्बू" (दरवाज़े पर खटखटाहट के साथ शाहिद की आवाज़ फिर आयी)
नगमा ने खुद को संभालते हुए एक और बार लंबी गहरी साँस ली और दरवाज़ा खोला।सामने शाहिद उसी टी शर्ट में खड़ा था।काली टी शर्ट के निचले हिस्से पर सफेद दाग लगे हुए थे,साथ ही शाहिद की लोअर पे भी गीले निशान थे।नगमा का न चाहते हुए भी ध्यान उनपर चला गया और फिर शाहिद की बात सुनकर हटा
"अम्मी आप!!आप कब आये?" (भूमिका बनाते हुए शाहिद ने कहा।
"वो....बस अभी....बस अभी आयी हूँ" (नगमा के जवाब में हिचक साफ साफ पता चल रही थी)
"अम्मी अब्बू कहाँ है,अभी तक आये नही क्या घूम कर?"
"नहीं, अभी तो नहीं"
"ओफ्फहो,अब क्या करूँ" (शाहिद ने परेशान होने की भूमिका बनाते हुए कहा
"क्या हुआ,मुझे बताओ" (नगमा ने पूछा)
"अम्मी वो एक्चुअली नाश्ता करते हुए मेरे ऊपर आज दही गिर गयी,ये देखिए टी शर्ट पे भी दाग लग गया है,चादर भी खराब हो गयी" (मुँह बनाते हुए शहीद ने नगमा को टीशर्ट पर दाग दिखाते हुए कहा"
नगमा को अच्छी तरह से मालूम था कि ये किस चीज़ का दाग है पर उसे इस बात की संतुष्टि थी कि शाहिद ने उसे अपने कमरे में झांके हुए नही देखा।
"अम्मी मुझे नहाने जाना था और वैसे तो आदिल रोज़ मेरी हेल्प कर देता है लेकिन वो भी बाहर गया है,मैने सोचा अब्बू आ गए होंगे तो उनसे हेल्प ले लूँ"
शाहिद ने ये बात बहुत मासूमियत से कही थी।नगमा को इस मासूमियत के पीछे छिपी खुरापात का ज़रा भी एहसास नही था।
"मैं हेल्प कर देती हूँ ना"
"अम्मी आप?"
"हाँ मैं।क्यूँ?मैं हेल्प नही कर सकती तुम्हारी?"
"अम्मी वो....वैसी बात नही.....वो मुझे...श... शर्म आती है"
ये सुनते ही नगमा को ज़ोर की हंसी आ गयी और उसके मुँह से अनायास ही निकल गया-
"कल रात अम्मी को नंगा करने में शर्म नही आ रही थी आज अम्मी के सामने खुद नंगा होने में शर्म आ रही है?"
बात बोलने के बाद नगमा को एहसास हुआ कि उसने क्या बोल दिया लेकिन अब कमान से निकल चुका तीर और मुँह से निकली बात वापस तो आ नही सकते तो नगमा ने इस बात को हँसी हँसी में निकलना चाहा और एक झूठी हँसी हसने लगी।शाहिद को तो मानो सामने से न्योता ही मिल गया हो।उसने भी इस मौके को लपकने में एक सेकंड की भी देरी नही की।
"ठीक है अम्मी,उड़ा लीजिये मेरा मज़ाक।आज दही नही गिरी होती तो आप मेरा मज़ाक नही उड़ा पाते।ओके चलिए ,मैं तैयार हूँ"
अपने कमरे की तरफ बढ़ते हुए शाहिद के चेहरे पर एक शरारती मुस्कुराहट थी।पीछे पीछे नगमा भी रूम में आती है।
"देखो न अम्मी,पूरी चादर खराब हो गयी"
(चादर पर शहीद ने नगमा की पैंटी से अपने सफेद गाढ़े वीर्य को एकदम फैला दिया था)
इतना वीर्य देख कर नगमा का आश्चर्य से मुँह खुला का खुला रह गया और सहज ही उसके मुँह से प्रश्न निकल गया
"बाप रे,शाहिद इतना ज्यादा कैसे!!!!"
ऐसा अभी कुछ ही श्रण में दूरी बार हुआ था जब नगमा के मुँह से स्वतः ही कोई बात निकल गयी थी।जिस्म के अंदर जो ज्वालामुखी जल रहा था उसने शायद नगमा की सोचने की शक्ति को कुछ कमज़ोर बना दिया था।
"अम्मी सब आपका जादू है" (शाहिद ने शरारती लहज़े में बोल)
"क्या मतलब" (नगमा ने शहीद की बात को सुनकर चकित होते हुए पूछा)
"वो अम्मी आप नाश्ता इतना टेस्टी बना के गयी थी कि मैंने कुछ ज्यादा ही ले लिया और फिर ये प्लास्टर होने की वजह से ठीक से कंट्रोल नही हो पाया और सब जगह बिखर गया" (शाहिद ने फिर मासूम बनते हुए बोला)
ये सब करते हुए अंदर ही अंदर शाहिद को बहुत ही मज़ा आ रहा था।दूसरी तरफ बेटे के लण्ड से निकले वीर्य की मात्रा को देख नगमा का जिस्म उसे और अधिक उत्साहित कर रहा था।
"क्या हेल्प चाहिए बेटा?" (नगमा ने शरीर में उठ रहे उन्माद को संभालते हुए पूछा)
"अम्मी,पहले तो कपड़े उतारने में और फिर सोप लगाने से लेकर पोछने तक,सब जगह हेल्प चाहिए होती है अभी तो"
"ओ अच्छा ठीक है,चलो"
शाहिद तो मानो इसी मौके के इंतज़ार में था,वो आगे आगे बाथरूम में घुसता है और फिर नगमा बाथरूम में प्रवेश करती है।नगमा की नज़र शाहिद के वीर्य से सने अपने पैंटी पर पड़ती है जोकि कोने में शाहिद ने जान बूझ कर रखी थी।अपनी पैंटी पर वीर्य सना देख कर जिस्म में मादक उन्माद की लहरें उमड़ पड़ती है।शाहिद देख लेता है कि अम्मी कज नज़र पैंटी पर पड़ चुकी है लेकिन इसके बाद भी वो चुप है,कुछ बोल नही रहीं।अपनी तरकीब को कामयाब होता देख शाहिद अंदर से और प्रफुल्लित हो जाता है।अब वो दरवाज़ा बंद कर के डोर लॉक भी कर देता है।
"शाहिद,ये लॉक क्यों कर दिया दरवाज़ा"
"अम्मी वो बात ये है कज डोर थोड़ा लूज़ हो गया है और ये बाथरूम भी तो वाशरूम के साथ कंबाइंड होने से छोटा हो गया है जिससे अगर इसके डोर को लॉक न करें तो नहाते वक्त पानी भी बाहर चले जाता है रूम में"
शाहिद ने बड़ी चालाकी से ये सब सोच लिया था।नगमा यहां वाशरूम का इस्तेमाल करने तो आती थी लेकिन नहाने वगैरह के लिए वो ऊपर के अपने रूम के बाथरूम का ही इस्तेमाल करती थी क्योंकि कम्बाइंड होने की वजह से ये बाथरूम नहाने के लिए छोटा पड़ता था।घर पर इसका इस्तेमाल आये हुए मेहमान ही करते थे।अब शाहिद एक्सीडेंट की वजह से गेस्ट रूम में रह रहा था तो इसका इस्तेमाल कर रहा था।नगमा को शहीद का बाथरूम का दरवाजा लॉक न होने पर पानी के बाहर जाने वाली बात पर बिल्कुल शक न हुआ।अब बारी थी अगले कदम की।
"अम्मी टीशर्ट निकाल दीजिये न"
"अरे हाँ"
आहिस्ता आहिस्ता नगमा शाहिद का प्लास्टर वाला हाथ संभालते हुए उसकी टीशर्ट निकालने लगती है।शाहिद अभी अपने दोनों पैरों पर खड़ा नही हो सकता था तो वो एक हाथ निकलते ही सहारा लेने का बहाना बनाते हुए नगमा की छाती के ऊपर मगर कंधे से थोड़ा नीचे रख देता है।टीशर्ट निकाल कर नगमा शाहिद के सुडौल जिस्म को निहारती है। शाहिद के चौड़े सीने और गठीले बदन को देख कर,उसकी मज़बूत बाहें देख कर,उसका मासूम और सुंदर चेहरा देख कर,नगमा के सीने से एक आह निकलती है लेकिन वो उसे सीने की गहराई में ही दबा लेती है,ठीक उसी तरह जैसे उसने अपनी मदहोशी को दबाया हुआ है,ठीक उसी तरह जैसे उसने अपने तप रहे जिस्म की ज्वालामुखी में फूट के बाहर आने को लालायित लावा को दबाया हुआ है।तभी बाथरूम में अंधेरा होने से नगमा की सोच टूटती है।
"शाहिद ये क्या?लाइट क्यों बंद कर दी?"
"अम्मी वो मैने लोवर के अंदर कुछ पहना नही है,एक हाथ से वाशरूम यूज़ करने में प्रॉब्लम होती है वरना,इसलिए"
नगमा ये सुनकर थोड़ी हैरान होती है पर कुछ कह नही पाती।ऊपर के वेंटिलेशन से कमरे की हल्की रोशनी अभी भी बाथरूम में आ रही है।ये बस उतनी है कि दोनों लोग एक दूसरे के जिस्म को देख पा रहे हैं लेकिन करीब से।ये रोशनी रात की नाईट बल्ब की रोशनी से काफी कम है।नगमा दरवाज़े के पास है तो उसका जिस्म शाहिद को ज्यादा दिख रहा है जबकि शाहिद का जिस्म तो दिख रहा है लेकिन चेहरे के भाव का अंदाज़ा केवल बेहद करीब आकर ही लग सकता है।
नगमा ये सोच कर थोड़ी सिहर जाती है कि उसका बेटा उसके सामने पूर्ण नंगा होगा।वो सोचती है कि शाहिद को बोल दे कि लोवर पर से ही नह ले।
"शाहिद वो......"
अभी इतना ही बोलना था कि शाहिद नगमा को बीच में टोक देता है।
"नही नही अम्मी ,लाइट नही जलेगी।चीटिंग होगी ये तो।रात को भी तो अंधेरा था न और ऊपर से आप तो पूरी नंगी भी नही हुई थी में तो हो रहा हूँ"
(उस समय नगमा ने जो खुद को नंगी देखने वाली बात कही थी वो अकस्मात ही निकल गयी थी लेकिन इस वक़्त ये बात शाहिद ने पूरी सोच समझ कर बोली थी।शाहिद ये भी जान रहा था कि उसकज अम्मी लाइट ऑन करने के लिए नही बल्कि उसे नंगा न होने के लिए बोलेंगी लेकिन उसने बड़ी चालाकी से इस बात को टाल दिया)
"इसलिए अम्मी कोई बात नही मानूँगा मैं,लाइट ऑन नही होगी।"
इतना बोलते ही शाहिद ने एक हाथ से अपना लोवर नीचे सरका दिया और पूर्ण रूप ने नग्न हो गया।वेंटीलेटर से आती उस हल्की रोशनी में शाहिद का खड़ा लण्ड अब नगमा की आंखों के सामने था।
"अम्मी आपको कुछ दिख तो नही रह न"
(शाहिद ने एक और बार भूमिका बनाते हुए अपने लण्ड को अपने हाथों से छुपाते हुए पूछा)
नगमा की तो आंखें और ध्यान दोनों ही शाहिद के नंगे जिस्म पर अड़ी हुई थी।ना वो अपनी नज़र हटा पा रही थी और ना ध्यान।हटाती भी कैसे अपनी शादी के इतने सालों में उसने आज तक बस एक ही लण्ड देखा और महसूस किया था और वो था उसके पति वसीम का।आज अपने इतने करीब एक जवान खड़ा लण्ड वो भी अपने सगे बेटे का,ये बात नगमा के अंदर लगी आग को और भड़क रही थी।वो जानती थी कि शाहिद उसके जिस्म को पाना चाहता है और अब शाहिद का मद्धम रोशनी में ये नग्न रूप देख कर उसके दिल की धड़कने भी तेज हो गयी थी।इधर शाहिद पूरा तो नही पर हल्का हल्का नगमा के चेहरे को रोशनी की वजह से देख पा रहा था और ये जान गया था कि नगमा की निगाहें इस वक़्त कहाँ है।उसने उसे छेड़ने के लिए फिर से पूछा
"अम्मी आपको सच में कुछ दिख नही रह न"
अब नगमा की खुमारी उसपर हावी थी और वो भी अपनी जिस्म में उठती तरंगों की उत्पन्न हुई उतेजना के वेश में थी।
"आखिर इसमें बुराई ही क्या है,मैने तो शाहिद को वैसे भी बचपन में नंगा देखा ही है ना और ऊपर से हम कुछ गलत थोड़ी कर रहे है,में तो उसकी हेल्प कर रही हूं नहाने में।"
नगमा ने ये बात स्वयं को समझते हुए मन ही मन कही।वो भी इन पलो का आनंद लेना चाहती थी।आखिर उसकी उम्र में इतना हसीन जवान जिस्म नग्न देखने को कहाँ मिलता।
"आमी"
"हाँ"!"(चौंकते हुए खयालो से बाहर आई)
"अम्मी आपको कुछ दिख तो नही रह न,सच सच बताना चीटिंग मत करना"
"अरे नही,नही दिख रहा,इतना रात को तो नही शर्मा रहे थे" (नगमा ने हंसते हुए कहा)
"तो रात को मेरे थोड़ी कपड़े उतरे थे,आपके उतरे थे और आप तो मुझसे कई गुना ज्यादा शर्मा रहे थे,कितना वक्त लगा एक नाइटी उतारने में और वो भी आप पूरे नंगे खान हुई, मैं तो पूरा नंगा हूँ"
शाहिद ने फिर से बड़ी मासूमियत से कहा
"अच्छा जी,तो मेरे कपड़े उतारना और तुम्हारे उतारना एक ही बात है क्या?"(नगमा ने फिर हंसते हुए पूछा)
"और नही तो क्या?फर्क बस इतना है कि मैं आपकी तरह इतना ड्रामा नही करता....हुँह"
(शाहिद ने मुँह बनाते हुए नगमा को छेड़ा)
और न आपकी तरह चीटिंग करता हूँ।
"चीटिंग!मैंने कब और कैसी चीटिंग की भई"
"ओहो,अब कितने भोले बन रहे हो,कल अपनी अंडरवियर तो खोलने नही दी लेकिन आज मुझे पूरा नंगा होने से एक बार भी नही रोका"
(शाहिद ने तुरंत जवाब दिया)
"अरे, तुम तो नहाने आये हो न,बिना कपड़े उतारे कैसे नहाते"
"तो आप भी तो रात को कपड़े उतारने ही वाले थे बिना उतारे से.....(आगे बोलने से पहले ही शाहिद रुक गया,उसे एहसास हो गया कि वो अभी क्या बोलने जा रहा था)
नगमा के भी गाल लाल हो गए।उसे भी पता चल गया था कि शाहिद क्या बोलते बोलते रुका है।कुछ सेकंड तक चुप्पी सी छाई रहे।तरकीब कही विफल न हो जाये इसलिए शाहिद ने बात को संभाला और बात को बदलते हुए दूसरी दिशा दे दी।
"अरे अम्मी,बहुत बातें हो गयी,नहा लूँ अब"
(बाल्टी में नलका खोलते हुए)
"शाहिद शावर का इस्तेमाल क्यों नही कर रहे"(नगमा ने पूछा)
"वो अम्मी प्लास्टर पर पानी पड़ जाएगा तो प्रॉब्लम होगी न,इसलिए मैं मग का यूज़ करता हूँ"
"ओ हाँ ये तो मैंने सोचा ही नही,पर पैर पे तो फिर भी गिरेगा न,उसे कैसे बचाओगे"(नगमा ने फिर सवाल पूछा
"अम्मी वो सस्पेंडेर बांध है उसपर पैर रख कर एक पैर पर पाइप पकड़ कर खड़ा हो जाता हूँ और दूसरा आदमी ऊपर पानी डाल देता है"
हालांकि शाहिद के द्वारा बताई गई ये बात केवल आंशिक रूप से ही सच थी।सच क्या थी 90% तो झूठ ही थी।दरअसल नहाने के लिए शाहिद एक बड़े स्टूल का उपयोग करता था जिसपर बैठ कर वो अपनी प्लास्टर वाली टांग सस्पेंडेर पर रख देता था और फिर एक होज(एक तरीके का पाइप) की सहायता से बड़े प्यार से नहा लेता था।हाँ पीठ पर साबुन लगाने के लिए कभी कभार अब्बू या आदिल को बुला लेता लेकिन अक्सर खुद ही नह लेता था।लेकिन आज उसे अपने बनाई योजना को सफल जो बनाना था।
"ओके ठीक है"(नगमा ने समझते हुए कहा)
"बहुत दिक्कत होती है ना शाहिद,सब मेरी वजह से ही है"(थोड़ा हताश होते हुए कहा था नगमा ने ये)
"क्या अम्मी,अगर आप मुझे रोज़ नहलाओ तो मैं तो सालों तक ऐसे प्लास्टर लगा कर रह सकता हूँ"(शाहिद ने फ़्लर्ट करए हुए कहा)
नगमा के साथ ऐसी दिलकश बातें उसके दोनों बेटे अक्सर करते ही रहते थे।इन्ही सब ने उसकी जिंदगी को एक सहारा दे रखा था।नगमा भी इन सब बातों को सुन खुश हो जाया करती थी।
"धत बदमाश तू भी न,चल अब नहा ले"
"जी अम्मी"
शाहिद ने अपनी प्लास्टर लगे पैर को दीवार से लटके सस्पेंडेर पर टांग दिया और एक हाथ से पाइप पकड़ कर खड़ा हो गया।उसकी टांगे अब एक 90° का एंगल बना रही थी और अब बीच में खड़ा लण्ड एकदम साफ साफ दिखाई दे रहा था।नगमा ने उसे देख कर अपने होंठो को दांतों तले दबा लिया।अब बारी थी शाहिद को नहलाने की।उसके करीब आ जाने से हल्की रोशनी में शाहिद को भी नगमा का चेहरा अब साफ तो नही पर नजर आ रहा था।नगमा जब मग में बाल्टी से पानी लेने झुकी तो लण्ड उसके मुह से एकदम करीब आ गया था और एकदम सिपाही की तरह खड़े होकर मानो उसे सलामी दे रहा था।एक टाइम तो उसका मन हुआ कि अपने होंठो को खोल इसे मुँह में लेले लेकिन फिर उसने जैसे तैसे खुद को संभाला।खड़े होकर नगमा ने शहीद के ऊपर पानी डालने शुरू किया।पानी डालते हुए वो शाहिद के जिस्म को जब मलती थी तो उसके शरीर में मानो एक अलग ही विद्युत प्रवाह से हो जाता था।एक तो खड़ा जवान लण्ड जिसके खड़े होने का कारण नगमा भली भाँति जानती थी दूसरा शाहिद का जवान गठीला शरीर।अगर शाहिद उसका सगा बेटा न होता तो नगमा खुद उसे इसी समय खा जाती अपनी जिस्म की इस भूख को शांत करने के लिए।ये जिस्म की भूख तो हर पल और अधिक बढ़ती जा रही थी और नगमा ने बड़ी मुश्किल से खिड को संभाला था।
बार बार शाहिद के ऊपर मग से पानी डालने पर पानी नगमा के ऊपर भी गिर रहा था और उससे अब उसका सूट गीला होने लगा था।इसका अंदाज़ा होते ही उसने शाहिद के सामने ये बात रखी।
"ओहो,अम्मी इसमें क्या प्रॉब्लम"(शाहिद ने तपाक से बोला)"मुझे नहलाते वक़्त अब्बू या आदिल भी अपनी टीशर्ट या शर्ट उतार देते है,आप भी उतार दो"
(ये वो मोड़ था जिसमे आर या पार की बात होने वाली थी,शाहिद अब बेशब्री से नगमा के जवाब का इंतज़ार कर रहा था।ये मोड़ उसे किसी भी तरह पार करना था अगर अपनी मंज़िल पर पहुंचना है तो)
"नही,बदमाश में सब समझती हूँ ऐसा कुछ नही होने वाला"(नगमा ने कुछ सोचते हुए कहा)
"ओके अम्मी,जैसी आपकी मर्जी,पर आपने सूट तो बदल दिया था न फूफी के यहां से आकर"
"तू तो ऐसे बोल रहा है तूने देखा नही जैसे,टाइम कहाँ मिला,अभी मैं आयी ही थी कि तू आ गया बुलाने"
"ओ,मैन ध्यान नही दिया।खैर मुझे क्या,अभी तो आपको सोप और शैम्पू भी लगाना है,वो भी लगेगा आपके सूट पर और जहां तक मुझे याद है ये सूट काफी महंगा बनवाया था आपने बुटीक से और खराब न हो जाए इसलिए हमेशा इसे ड्राई क्लीन करवाती हो,अब आपको आज यहां इसे ऐसे खराब करने है तो मुझे क्या?"
नगमा अब थोड़ी सोच में पड़ गयी।उसने ये सूट स्पेशली अपनी पसंद की बुटीक से बनवाया था ।काफी कारीगरी का काम होने की वजह से वो इसे घर में न धोकर ड्राई क्लीन करवाती थी और खास मौकों पर ही पहनती भी थी।हालांकि ये सूट उसे काफी महंगा पड़ा था लेकिन इस सूट को पहनने के बाद उसे जितनी तारीफें मिलती थी उनसे इसकी कीमत भी वसूल हो जाती थी।नगमा अभी भी ये तय नही कर पा रही थी कि क्या करे।शाहिद जनता था कि नगमा इस समय थोड़ी कंफ्यूज यानी भ्रमित है।वो चाहता था कि नगमा की ये कनफ्यूज़न बनी रहे क्योंकि एक भ्रमित दिमाग आदमी की सही फैसले लेने की श्रमता को धूमिल कर देता है और इस समय ये बात शाहिद के पक्ष में थी।नगमा कुछ उपाय सोच पाती,कोई तरीका निकालती इससे पहले ही शाहिद ने हड़बड़ी मचानी शुरू कर दी।
"अम्मी क्या कर रहे हो जल्दी करो न,ऐसे खड़े होने में दिक्कत होती है,मेरे पांव में दर्द हो जाएगा"
अब नगमा क्या कर सकती थी।उसने अपना सूट ऊपर की तरफ निकलना शुरू कर दिया।सीने से ऊपर होते ही उसके वक्षस्थल एक बार फिर से बाउंस होते हुए बाहर आये।हल्की रोशनी में भी बड़े बड़े चुचों का उभार साफ नजर आ रहा था।शाहिद को अब अपना प्लान कामयाब होता नजर आ रहा था साथ ही आ रहा था उसके मुँह में पानी।उन बड़े बड़े दूध के गागर को अपने मुँह में लेने की उसकी तीव्र इच्छा हुई लेकिन उसने तुरंत खुद को संभाल लिया,वो कोई जल्द बाज़ी नही करना चाहता था।नगमा ने सूट को दीवार पर लगे हेंगर पर टांग दिया और एक बार शाहिद के चेहरे की तरफ देखा।हालांकि अंधेरा था लेकिन शाहिद का पूरा जिस्म ऊपर से आती रोशनी में दिख रहा था।नगमा ने शाहिद के चेहरे की तरफ देखा जो किसी और ही तरफ मुड़ा हुआ था।नगमा थोड़ी आस्वस्त हो गयी कि अंधेरे में शाहिद को उसका जिस्म नही दिख रहा वरना वो ये नज़ारा कभी मिस नही करता।पहले भी दो बार वो नगमा की नंगी चुचियो को देख चुका था और नगमा एक औरत होने की वजह से ये तो भांप ही गयी थी कि कितनी बेसब्री और भूखी निगाहों से शाहिद देखता था उसकी चुचियो को।कल रात ही वो किस तरह से इनसे खेल रहा था और अगर इस वक़्त वो ये सब नही कर रहा तो इसका मतलब ये है कि रोशनी के उल्टी तरफ होने की वजह से उसे कुछ दिख नही रहा।नगमा ये तर्क करते हुए आगे बढ़ी और झुकते हुए फिर मग से पानी उठाया और शाहिद को नहलाना शुरू कर दिया
थोड़ी देर तो शाहिद चुप रह लेकिन फिर अपने प्लान के मुताबिक उसका क्रियान्वन चालू कर।अभी नगमा ने उसके यूजर पानी डाल ही था कि उसने फिसलने का बहाना बना कर नगमा के ठीक कमर के नीचे उस जगह हाथ रख दिया जहां से सलवार शुरू होती है।
"शाहिद संभाल के बेटा"
"अम्मी बैलेंस बिगड़ता गया था सॉरी"
"नही कोई बात नही तू मुझे पकड़ कर खड़ा होजा"
"हाँ अम्मी,उससे ज्यादा बेटर बैलेंस बनेगा लेकिन अम्मी आपने बस सूट खोल है क्या" (हाथ नगमा की कमर पर और पेट पर इधर उधर फेरते हुए पूछा)
"हाँ क्यूँ"
"अम्मी ये तो चीटिंग है,मुझे पूरा नंगा कर दिया और आप तो कल से भी ज्यादा कपड़े में हो"(हंसते हुए कहा)
"नहा तुम रहे हो में नही और जो रात में हुआ वो सब भूल जाओ,उस वक़्त में होश में नही थी शायद"
"क्या बात है शराब को खुद नशा कबसे होने लगा?"(शाहिद ने फिर से फ़्लर्ट करने के अंदाज़ में बोला)
"मतलब"(नगमा ने पूछा)
"मतलब की आपको देख कर तो दूसरे लोगों के होश उड़ते है अम्मी,आप ने खुद को कही आईने में तो नही देख लिया था कहीं"
ये सुन कर नगमा के चेहरे पर एक बड़ी सी मुस्कान आ गयी थी।औरत किसी भी उम्र की हो।अपनी सुंदरता की तारीफ सुनकर हमेशा खुश होती ही है और जब ये तारीफ कोई आपसे आधी उम्र का हसीन और जवान लड़का कर रहा हो तो खुशी कैसे न हो।
"चुप बदमाश,इतना फ्लर्टी कैसे हो गया"
(नगमा ने मुश्कुराते हुए पूछा)
"क्या करूँ जब सामने आप सी हसीन लड़की हो तो कोई भी हो जाएगा"
अपने लिए शहीद के द्वारा लड़की शब्द का प्रयोग किये जाने से नगमा के दिल में खुशी की लहर भर गई।
"कर ले जितनी फ्लर्टिंग करनी है,यहां दाल नही गलने वाली बच्चु,ये प्रॉपर्टी तुम्हारे अब्बू के नाम रजिस्टर्ड हो चुकी है"(नगमा ने हंसते हुए कहा)
"वाओ,मैं तो फिर सोचता था कि जिसे मैं पाना चाहता हूँ ,अपनी बनाना चाहता हूँ वो कभी मेरी हो ही नही सकती लेकिन अब्बू की प्रॉपर्टी का वारिस तो मैं हूँ ही यानी उस प्रॉपर्टी पर तो मेरा लीगल हक़ बनता है फिर"
शाहिद ने ये बात इतनी चालाकी से बोली थी।नगमा के पास अब न कोई इसका तोड़ था और ना ही जवाब।
"शाहिद!बदमाश"
"खैर अम्मी मैं तो वो सूट वाली बात इसलिए पूछ रहा था कि अगर आपने सलवार अभी तक पहनी है तो वो गीली नही हो रही क्या"
"हाँ हो तो रही है पर....
बीच में ही टोकते हुए
"ऑफ हो अम्मी आप भी न,अम्मी क्या ही पता चलेगा कि आपने सलवार ओहनी है या नही,अंधेरे में वैसे भी कुछ दिख कहाँ रहा है या दिख रहा है आपको?" (एक बार फिर लुंड को हाथो से छुपाते हुए शाहिद ने भूमिका बनाई)
नगमा को शहीद के जिस्म का एक एक अंग दिख रहा था लेकिन वो इस सोच में थी कि शायद रोशनी की उल्टी दिशा में होने के कारण शाहिद को उसका जिस्म नही दिख रहा और थोड़ी चीटिंग करने में हर्ज़ ही क्या है।ये सब सोचते हुए ही नगमा ने शहीद को ना में जवाब दिया।
"नही शाहिद,सच में कुछ नही दिख रहा"
ये बोल कर नगमा अब अपने ही जाल में फंस चुकी थी
"फिर अम्मी आप अपनी मैचिंग सलवार क्यों खराब कर रहे हो,इसे भी खोल दो,वैसे भी अगर कुछ दिख भी रहा होता तो कल रात से ज्यादा क्या ही दिख जाएगा"
"बदमाश,चुप" (ये बोलकर नगमा ने अपनी सलवार का नाडा खोल दिया और झुक कर सलवार उतारने लगी नीचे झुकने से,नगमा की पैंटी में किसी गोल गोल सुडौल गांड पूरी चौड़ी हो गयी जिसे देख कर शाहिद के सिपाही ने एक तगड़ा झटका मारा जो जाके नगमा के गाल पर लगा।गाल से लण्ड लगते ही नगमा की निगाह सीधा लण्ड पर पड़ी और उसके तो मानो होश ही फ़ाख्ता हो गए।लण्ड अब पहले से भी ज्यादा टाइट और लंबा हो गया था और इस वक़्त उसके होंठो से एकदम नज़दीक था,इतना नज़दीक की नगमा उसकी मर्दाना महक को अब साफ ससफ़ सूंघ पा रही थी।शाहिद भी अपनी झुकी हुई अम्मी की फैली हुई गांड देख कर मानो पागल ही हो रहा था।नगमा थोड़ी देर ऐसे ही रहती तो पक्का शाहिद ने अपना संयम खो दिया होता लेकिन नगमा ने खड़े होकर सूट के पास ही हेंगर पे सलवार भी टांग दी।उसकी साँसें भी अब तेज़ हो रही थी।ऊपर नीची होती साँसों की वजह से ब्रा में कसे उसके बड़े बड़े दूधिया चुचें भी ऊपर नीचे होकर मादकता बढ़ा रहे थे।कैद से छूटने को बेकरार थे।इधर नगमा जब खड़ी हुई तो उसने आज एक साधारण सी डब्लू शेप की पैंटी पहनी थी लेकिन नगमा के असाधारण जिस्म पे जो भी चीज़ चढ़ती थी वो साधारण कहाँ रह जाती थी।पैंटी एकदम कसी हुई उसकी योनि के आकार को उभार रही थी लेकिन अंधेरे में शाहिद को ये दिख नही पा रहा था।हाँ अम्मी की गोरी गोरी भारी मखमली जाँघे उसे जरूर दिख रही थी।शाहिद ने एक बार फिर अपने हाथों से पाइप को पकड़ लिया था क्योंकि बार बार नगमा के झुकने उठने से उसका बैलेंस सच में ही बिगड़ रहा था।नगमा अब जब जब झुक रही थी तो पीछे उसकी गोल गोल सुडौल गांड और चौड़ी हो जाती थी,मानो शाहिद को आमंत्रित कर रही हो।मानो उसके लिए वो जन्नत के द्वार को खोल रही हो बार बार।ये सब देख कर शाहिद का सिपाही भी अब उछाल कूद मचाने लगा था।उसके लिए अब बरदाश करना बेहद कठिन था और शाहिद के लिए भी।नगमा जब इस बार मग में पानी भरने के लिए झुकी को लण्ड ने इस बार फिर छलांग मारी और नगमा के गाल से टकरा गया लेकिन तभी इस बार नगमा उससे दूर नही हुई पिछली बार की तरह।उसने उसे ऐसे ही गाल पर लगे रहने दिया और श्रनिक भर उसकी खुशबू को महसूस कर फिर ऊपर हुई और शाहिद के शरीर पर पानी डालने लगी।
"अम्मी अब साबुन लगा दो न"
"ह्म्म्म,ठीक है लेकिन कुछ दिख नही रहा, एक सेकंड के लिए लाइट ऑन कर दे ना"
शाहिद समझ गया था कि उसकी अम्मी उसके नंगे जिस्म और खासकर उसके लण्ड को अच्छी तरह देखना चाहती है।एक सेकंड के लिए तो उसे ख्याल आया कि वो लाइट ऑन कर दे और अपनी अम्मी के गदराए भींगे मादक जिस्म के भी नज़ारे लेले लेकिन दूसरे ही पल उसे अपनी योजना याद आ गयी।आज अगर अम्मी को तड़पाया नही तो वो कभी राज़ी नही होंगी।शाहिद नगमा को इस कदर तड़पा देना चाहता था कि वो स्वयं ही खुद को उसे सौंप दे इसके लिए जरूरी था कि छोटे छोटे फायदों के त्याग करके ध्यान केवल और केवल अंतिम लक्ष्य की ओर लगाया जाए।
"नही अम्मी,बिल्कुल नही,मैं पूरा नंगा हूँ और ऐसे में लाइट नही जला सकता"
"शाहिद क्या ज़िद कर रहा गई,बस एक बार जला दे न,बस एक बार"
"नही अम्मी,मैं देता हूँ न आपको ढूंढ कर साबुन,ऐसे पूरा नंगा हूँ कैसे जला दूँ लाइट"
"क्या नंगा नंगा लगा रखा है,मैंने तुझे बचपन में नंगा देखा नही क्या"(नगमा की आवाज़ मदहोशी में भारी होती जा रही थी)
"अम्मी तब मैं बच्चा था,अब नही।लाइट ऑन करके आप तो मुझे नंगा देख लोगे लेकिन मेरा क्या?"
"मतलब"
"मतलब कल रात आपने मुझे रोक दिया था तो अब मैं भी आपकी बात क्यों मानू"
"कहाँ रोका था,कितना कुछ तो कर ही लिया था तूने,क्या हर अम्मी अपने बेटे को वो सब करने देती है जो तूने किया था......बोल न"
नगमा की आवाज़ में मदहोशी,मादकता और गिड़गिड़ाहट का मिश्रण था।अगर शाहिद ने अपनी योजना न बनाई होती तो नगमा को ऐसे अर्धनग्न रूप में इस आवाज़ में सुन कर वो अपने होश ही खो बैठता लेकिन अभी उसने खुद को पत्थर के समान कठोर बना लिया था क्योंकि जो फल वो खाना चाहता था वो बस किस्मत के अति धनी व्यक्तियों को ही नसीब हो सकता था।इसलिए उसने जल्दी से साबुन उठाया और नगमा के हांथो में रख दिया।
"नही अम्मी ,मैं आपकी बातों में नही आने वाला आज।कितना तड़प हूँ मैं पूरी रात इसका कोई अंदाज़ा भी है आपको।जानती हो न कि मैं आपसे प्यार करता हूँ ।मुश्किल हो जाता है मेरे लिए खिड को संभालना आपको ऐसे देख कर(नगमा अभी बस ब्रा और पैंटी में थी,शाहिद का इशारा इसी तरफ था) इसलिए अम्मी मैने कल रात बड़ी मुश्किल से खुद को संभाला है और अब फिर से आपको वैसे देख कर में खुद पर काबू नही रख पाऊंगा और मुझे पता है कि आप फिर मेरे साथ वही करोगे।इसलिए लाइट जलाने की कोई जरूरत नही,ये लीजिये साबुन।(नगमा के हाथ में साबुन पकड़ाते हुए)
नगमा ने भी दुखी मन से साबुन लिया और शाहिद की गर्दन फिर कंधों पे लगाते हुए हाथों पर पोहची,हाथो पे साबुन फेरते फेरते नगमा छाती पर पहुँची, छाती को सहलाते हुए पेट पर और अब नीचे आते हुए उसकी साँसें तेज़ होती जा रही थी।अब नगमा पेट पे साबुन लगाने के लिए नीचे बैठ गयी।खड़ा मुँह के एकदम करीब था,जिसे देख कर नगमा का गला सूख रहा था।धीरे धीरे जांघो पर फिर नीचे पैरों पर और फिर दूसरे पर से ऊपर जाते जाते जांघों पर।इन सबके दौरान नगमा की आंखें शाहिद के लण्ड से एक पल के लिए भी दूर न हो पाई।शाहिद और उसका सिपाही दोनों ही नगमा की ये हालात देख कर और अधिक उत्साहित होते जा रहे थे और आपकी बार जो लण्ड ने झटका दिया वो सीधा नगमा के होंठो पर जा लगा और एक सेकंड के भी एक सेकंडवे भाग में शहीद को ऐसा लग की नगमा की जीभ उसके लण्ड के सुपर को छू कर गयी।तो क्या अब उसकी अम्मी अपना कंट्रोल खो चुकी है,क्या अब वो भी शाहिद के साथ एक हो जाना चाहती है,क्या अब नगमा भी संसारिक बंधनो को तोड़ने के लिए तैयार है।शाहिद अपने इस छोटे से अनुमान के सहारे नही रहना चाहता था।नगमा को पाने के लिए उसे अपनी योजना को पूरा 100% कामयाब बनाना था।गलती की कोई गुंजाइश ही नही थी।
"अम्मी पीछे भी"
शाहिद ने इतना ही बोल कज नगमा के हाथ अब पीछे उसकी गांड पर चले गए।नगमा उस हिस्से पर धीरे धीरे साबुन लगते हुए उसके गठीलेपन को महसूस कर ही रही थी की शाहिद ने उसे खड़े होने को बोला।शाहिद नगमा को आज पूरे तरह से तड़पा देना चाहता था।उसके अंदर एक ऐसी तड़प पैदा कर देना चाहता था जिसमे मचल कर नगमा खिड ही खिड को शाहिद के हवाले कर दे।
"अम्मी हो गया नीचे ,अब खड़े हो जाओ और पीठ पर लगा दो"
नगमा उदास होते हुए खड़ी हुई
"पीठ पर कैसे लगाऊं शाहिद,तुम्हे मुड़ना पड़ेगा"
"अम्मी मुड़ नही सकता,ऐसे ही पीछे हाथ करके लगा दो न"
"ठीक है बेटा"
अब नगमा ने दोनों हाथ शाहिद के पीछे करे और जैसे कोई किसी के आलिंगन में समाता है उसी प्रकार गले लगते हुए हाथ पीछे साबुन के साथ फेरने लगी।शाहिद ने भी इस वक़्त अपना हाथ नगमा के पीछे ले जाकर कमर पर बांध लिया।अब दोनों ही आलिंगन की मुद्रा में थे,नगमा की बड़ी बड़ी ब्रा में कसी हुई चुचियाँ अब शाहिद के सीने में धंस चुकी थी ,ब्रा में से खड़े निप्पलों को शाहिद अपने सीने पर महसूस कर पा रहा था,वही शाहिद का लोहे समान खड़ा लण्ड नगमा के पेट से चिपका उछल कूद कर रहा था इन सबके साथ ही शाहिद की पीठ पर नगमा का हाथ फेरना अब शाहिद को भी मदहोशी की सीमा पार करा चुका था।
"अम्मी थोड़ा ऊपर ठीक से लगाओ,रुको में ही थोड़ा झुक जाता हूँ"
ये बोलते हुए शाहिद थोड़ा नीचे झुक गया और अब उसका लोहे की तरह अकड़ा लण्ड सीधा नगमा की पैंटी के ऊपर से उसकी चूत पर लग रहा था।नगमा की पैंटी में उसकी चूत मादकतावश गीली होकर फूली हुई थी और पूरी तरह से उभर के बाहर आ रही थी।चूत पर शाहिद का लण्ड महसूस होते ही नगमा के मुह से आह निकल गयी लेकिन उसने इसका विरोध नही किया बल्कि शाहिद को और कस के बाहों में भरते हुए तेज़ी से पीठ पर हाथ फेरने लगी।दोनों की सांसें तेज़ चल रही थी और दोनों को एक दूसरे की गरम साँसें महसूस हो रही थी।नगमा अब पीठ से होते हुए शहीद के नितंभो पर तक अपने हाथ फेरने लगी।जैसे ही शाहिद के नितंभो पर उसके हाथ जाते,मौके का फायदा उठा कर शाहिद अपनी अम्मी की चूत पर ध्क्का मार देता।हाथ से अब साबुन नीचे गिर चुका था,साबुन के गिरते ही नगमा का हाथ फेरना भी रुक गया।शाहिद ने जैसे ही इसे भांपा वो तुरंत बोला
"कोई बात नही अम्मी,साबुन तो लग ही गया है,आप उसे हाथो से ही अच्छे से लगा दो न"
ये सुनते ही नगमा के हाथ तेज़ी से शाहिद की पीठ कमर और उसके नितंबो पर चलने लगे और साथ ही बढ़ गयी शाहिद द्वारा फूली हुई चूत पर धक्के मारने की गिनती।पहले तो जब नगमा शाहिद के नितंबो को शाहिद को साबुन लगाने के बहाने सहलाती तो शाहिद भी पीछे से धक्का मिलने के बहाने से लण्ड चूत पर दबा रहा था लेकिन अब शाहिद नगमा को उसकी पैंटी के ऊपर से ही लण्ड के धक्के पे धक्के दे रहा था जिससे पैंटी का कपड़ा भी चूत के अंदर हो गया था लेकिन नगमा की पैंटी इतनी कसी हुई थी कि चूत के फूलने के बाद भी लण्ड बस ऊपर ऊपर रगड़ खा कर रह जा रहा था।तभी
"शाहिद"
"हाँ अम्मी?"
"आई एम सॉरी"(बड़ी मादक आवाज़ में)
"क्यों अम्मी"
"बेटा सॉरी जो मेरी वजह से कल तुम इतना तड़पे,आज ऐसा नही होगा।तुम ठीक ही कह रहे थे,तुम्हारे सारे कपड़े उतरे है और मैंने नही उतारे,ये सच में अनफेयर है।बेटा(शाहिद के गले लगे हुए) अगर तुम चाहो तो मेरे कपड़े भी......उतार सकते हो"
"सच्च अम्मी"
"हाँ लेकिन तब तो हम बराबर हो जाएंगे न,तब तो कुछ अनफेयर नही होगा न,लाइट ऑन कर दोगे फिर?"
इतना सुनना ही था कि तुरन्त शाहिद ने अपने गीले हाथो की परवाह न करते हुए स्विच ऑन कर दिया।बाथरूम तो रोशनी से भर गया लेकिन चमक शाहिद की आंखों में आ गयी थी।नगमा के चेहरे पर उसे अब बस उसे एक लाचारी दिख रही थी,ये लाचारी उस तड़प से पैदा हुई थी जिसकी चिंगारी शाहिद ने आज लगाई थी और उसी चिंगारी ने नगमा के तपते शरीर के ज्वालामुखी को सुलगा दिया जो अब फटने के लिए तैयार ही था।नगमा भी अब पीछे हुई और रोशनी में शाहिद के विशाल लण्ड को देख कर उसका मुँह खुला का खुला रह गया।शाहिद ने भी अपनी अम्मी को ऊपर से नीचे देखा।नगमा के जिस्म पर भी आगे से साबुन लग चुका था जो उसके जिस्म को और भी मादक बना रहा था।कसी हुई ब्रा में साबुन से सने गोर गोर चूचे आज़ाद होने को बेचैन थे लेकिन जब नज़र नगमा की पैंटी पर पड़ी तो शाहिद के होश ही उड़ गए,गुलाबी फूलों वाली उस डब्लू शेप पैंटी में लण्ड के रगड़ खाने से आगे से कपड़ा उसके होंठो के बीच घुस जाने से भूली हुई चूत का पूरा आकार साफ साफ दिख रहा था।
नगमा ने शाहिद को अपनी चूत को भूखी नज़रों से घूरते देखा।वो उसका हाल समझ रही थी।
"शाहिद,में जानती हूँ तुमने प्रॉमिस किया था कि बिना मेरी मर्ज़ी के कुछ नही करोगे।आज मेरी मर्ज़ी है बेटा, खोल सकते हो इसे।
"आर यू स्योर अम्मी"
"यस बेटा और वैसे भी हम कुछ गलत थोड़ी करने जा रहे है,मैं तो बस ये नही चाहती कि अपने प्यारे बेटे के साथ अनफेयर रहूं,जब वो बिना कपड़ों के है तो मैं कैसे रह सकती हूं ये पहने"
शाहिद ने तुरंत नगमा को फिर से उसी तरह खुद से चिपक लिटा और पीछे से उसकी ब्रा का हुक खोलने लगा।लेकिन एक हाथ से इसे खोलने में उसे दिक्कत हो रही थी।नगमा ने इस बात को समझते हुए पीछे हाथ करके स्वयं अपनी ब्रा को उतार दिया।दोनों चूचे शाहिद की छाती पर छलांग लगते हुए धसे।अब बारी थी जन्नत के दर्शन की।नगमा थोड़ा पीछे हुई मुस्कुराते हुए अपने हाथ पैंटी की स्ट्रिप पर ले गयी।शाहिद को अब कुछ ही सेकंड में अपनी अम्मी की मादक चूत के प्रत्यक्ष दर्शन होने वाले थे।नगमा ने हल्के से पैंटी को नीचे सरकना शुरू किया।शाहिद बड़ी उम्मीद से अपना ध्यान उसी तरफ लगाए था कि तभी बाथरूम के दरवाज़े पर खटखटाहट हुई।
"शाहिद....नगमा"
ये आवाज़ और किसी की नही बल्कि नगमा के शौहर और शाहिद के अब्बू वसीम की थी।
क्या उसने शाहिद और नगमा की बातों को सुन लिया था?क्या दोनों अम्मी बीटा अब पकड़े जाने वाले थे?खुलासा होगा अगले अपडेट में।जुड़े रहें।