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Nice update broअध्याय 8लता तुरंत उठ कर खड़ी हुई स्नान घर में घुस गई बिना नंदिनी से आंखें मिलाए, नंदिनी अभी हो कुछ हुआ और उसके बाद अपनी मां की प्रतिक्रिया को समझने की कोशिश करने लगी। इसी बीच उसने अपनी टांगों के बीच हाथ लगाकर देखा तो सलवार को गीला पाया उसे बदलने का सोच कर वो भी उठ गई। आगे...
छोटू फुर्ती में लल्लू के घर से निकला था, दिमाग में भूचाल आया हुआ था कि अभी ताई के साथ क्या हुआ था ये सोच सोच कर उसका दिमाग घूम रहा था, इसी सोच विचार में खोया हुआ वो आगे बढ़ रहा था और तभी अचानक से कोई उसे पीछे से पकड़ के रोकता है तो वो होश में आकर पीछे देखता है तो पाता है लल्लू और भूरा थे, उन्हें देख कर तो छोटू का चेहरा सफेद पढ़ जाता है, अभी अभी जो इसकी मां के साथ करके आया था उसके बाद लल्लू का सामने पड़ जाना छोटू का दिल धड़कने लगता है।
लल्लू: क्यों बे कहां है सुबह से एक बार भी मिला नहीं अबतक।
भूरा: और क्या हुआ तुझे चाची कह रही थीं कि तेरी तबीयत ठीक नहीं है।
छोटू उनकी बात सुनकर खुद को थोड़ा शांत करता है फिर भी उसके मन में घबराहट अभी भी थी,
छोटू: कक्कुछ भी तो न नहीं, वो रात को थोड़ा चक्कर आ गए थे बस। और तुम्हें पता ही है घरवाले जरा सी बात को बड़ा बना लेते हैं।
लल्लू: साले मुट्ठी ही इतनी मारता है तू कमज़ोर हो गया है,
भूरा: सारा माल हिला कर निकाल देगा तो चक्कर तो आयेंगे ही।
छोटू: अरे नहीं यार ऐसा नहीं है, बस तुम लोगों के साथ ही तो करता हूं।
भूरा: झूठ बोल रहा है, ये अभी भी हिला कर आया है।
ये सुन तो छोटू सुन्न पड़ जाता है,उसे कुछ बोलते नहीं पड़ता,
लल्लू: क्यूं छोटू सही में?
भूरा: अरे तू खुद देख पसीना पसीना हो रखा है थका हुआ भी लग रहा है
तभी लल्लू उसे ध्यान से देखते हुए बोल पड़ता है: और तूने मेरा निक्कर क्यूं पहना है भेंचो?
छोटू ये सुन डर जाता है उसे लगता है कहीं सच बाहर न आ जाए, वैसे भी जिसके मन में कोई ऐसी बात होती है जिसके बाहर आने पर बड़े कांड हो जाएं उसके मन में हमेशा यही डर रहता है कि बात बाहर न आ जाए यही हाल छोटू का था, छोटू घबराया हुआ जरूर था पर उसका दिमाग भी तेज चलता था, और उसे ही चला कर उसने बड़ी सावधानी से सोच कर बोलना शुरू किया।
छोटू: अरे यार तुम लोग भी ना, मैं तो तुम दोनों को ही ढूंढ रहा था और ढूंढ़ते हुए तेरे घर पहुंचा, तू तो मिला नहीं पर ताई ने गेहूं साफ करवाने के लिए रोक लिया मुझे उसी से पसीना पसीना हो गया और फिर ताई ने मुझे दही दिया था पीने को वो मेरे पजामे पर गिर गया इसलिए तेरा निक्कर पहन लिया।
लल्लू और भूरा ये सुनकर हंसने लगे।
लल्लू: सही फंसा बेटा तू आज मां के चक्कर में। मां सुबह मुझे बोल ही रही थी मैं चुपचाप भाग आया था,
भूरा: छोटू बेचारा फंस गया तेरी वजह से, जो काम तुझे करना था छोटू ने किया।
भूरा ने हंस कर कहा, पर उसकी बातें सुन कर और ये सुन के वो काम छोटू को करना पड़ा था ये सोच कर छोटू के मन में तो लता का वो ही रूप सामने आ रहा था जो उसने अंत में देखा था जिसमें लता का चेहरा उसके रस में भीगा हुआ नज़र आ रहा था, वो जितना उस दृश्य को हटाने की कोशिश करता उतना उसकी आंखों के सामने वो दृश्य आ रहा था। फिर भी उसने किसी तरह बात को संभाला।
छोटू: अब तो कर दिया मैंने तुम लोग कहां जा रहे थे?
लल्लू: अरे हम तो तुझे ही ढूंढ रहे थे, और कहां जाएंगे। और सुन एक मस्त चीज़ मिली है चल तुझे दिखाते हैं।
छोटू: क्या?
भूरा: अरे चल तो सब पता चल जायेगा।
छोटू उनके साथ चल देता है तीनों दोस्त जल्दी ही नदी के किनारे होते हैं, और एक ओर पेड़ों की ओट में छिप कर बैठ जाते हैं, और फिर किसी खजाने की तरह लल्लू और भूरा उसे सत्तू के द्वारा दिए हुए पृष्ठ निकाल कर दिखाते हैं, छोटू भी उन पर बने हुए चित्रों को देख कर चौंक जाता है और बड़े ध्यान से आंखें बड़ी कर कर के उन्हें देखने लगता है, वो पहली बार ऐसा कुछ देख रहा था इसलिए हैरान होना स्वाभाविक ही था,
छोटू: ये तुम दोनों को कहां से मिले बे?
भूरा: मस्त हैं ना?
छोटू: हां पर आए कहां से?
लल्लू: सत्तू ने दिए हैं, उसे शहर में मिले थे किसी से।
छोटू: सही है यार पता नहीं था औरतें ऐसी फोटो भी खिंचवाती हैं।
भूरा: अरे ये अंग्रेजन हैं, वहां तो सब कुछ चलता है।
लल्लू: और का, सत्तू ने बोला है और भी बातें बताएगा साथ ही शायद और भी तस्वीरें हों उसके पास।
छोटू: मज़ेदार हैं यार। कैसी बातें?
भूरा: औरतों के बारे में,
छोटू: मतलब?
लल्लू और भूरा फिर मिलकर जो ज्ञान सत्तू ने उनके साथ सांझा किया था वो उसे छोटू तक भी पहुंचाते हैं, छोटू भी उनकी बातों को ध्यान से सुनता और समझता है, लल्लू और भूरा छोटू को अपनी बातों में और अपने साथ शामिल कर, जो सुबह हुआ था जब उन्होने छोटू की मां पुष्पा की गांड को नंगा देखा था उसकी ग्लानि को मिटाने की कोशिश कर रहे थे, वहीं छोटू के मन में अपना अलग डर और पछतावा था, वहीं भूरा भी मन ही मन में एक बात से व्यथित था जब से उसके मन में उसकी मां के लिए ही अलग तरह के विचार आए थे।
खैर इस तरह थोड़ा समय बीता तो फिर तीनों जानवरों के लेकर चराने के लिए निकल गए। पुष्पा, सुधा और रत्ना साथ में रत्ना के यहां बैठे हुए बातें कर रहे थे, कुछ ही देर में लता भी वहां आ गई, गांव की औरतों की किट्टी पार्टी तो होती नहीं थी और होती थी तो वो भी शायद ऐसे ही होती थी, दोपहर में जब किसी दिन समय खाली मिला तो किसी के घर बैठकर इधर उधर की बातें कर लीं, अपने दुख सुख बांट लिए, मज़ाक कर लिए, और दूसरी औरतों की बुराई यही सब होता था। ऐसे ही आज भी चारों एक साथ थीं।
खूब बातें चल रहीं थीं लता आज थोड़ा चुप ही थी, उसके दिमाग में तो वही सब चल रहा था, जो आज हुआ था, वहीं पुष्पा और सुधा भी एक दूसरे से नज़रें तो चुरा रहीं थी पर वो भी जानती थीं कि एक ही घर में रहना है तो चाहे अनचाहे बात तो करनी ही पड़ेगी, इसलिए जो हुआ उसको छोड़कर बाकी बातों पर बिल्कुल साधारण तरह से बातें कर रही थीं। इसी बीच बात छिड़ गई बच्चों की अब त्रिया चरित्र होता ही है कि पेट में कोई बात पचती नहीं, तो पुष्पा सुधा से भी नहीं पची और घर की बात है बाहर ना जाए ये बोलकर रत्ना और लता को सारी बात बता दी,
छोटू का नाम आने पर लता थोड़ी चौंकी ज़रूर पर जब उसने पूरी बात सुनी तो सोचने लगी कि एक चीज तो मैंने सोची ही नहीं थी कि जब छोटू का पजामा मैंने उतारा था तब उसका लंड पहले से ही खड़ा हुआ था, और वहां कुछ ऐसा भी नहीं हो रहा था जिससे लंड खड़ा हो, सिर्फ मैं ही थी वहां पर लंड तो तब खड़ा होता है जब कोई उत्तेजित करने वाली चीज देखी जाए, पर ऐसा कुछ नहीं था,
लता मन ही मन में गुणा भाग कर रही थी, और एक निष्कर्ष पर पहुंची, इसका मतलब ये सही है ज़रूर छुटुआ पर उदयभान की लुगाई ने कुछ किया है तभी उसका लंड ऐसे खड़ा था, और कितना बड़ा भी लग रहा था, नहीं तो इतनी सी उमर में ऐसी लंबाई, वो भी छुटूआ की जिसकी कद काठी इतनी ज्यादा भी नहीं है।
लता: हाय दैय्या और उसका रस हमने अपने ऊपर लिया और लिया तो लिया साथ में मैंने और नंदिनी ने चखा भी, कहीं कुछ अनहोनी न हो जाए।
लता मन ही मन सोच कर घबराने लगी, इधर रत्ना के साथ तो कुछ नहीं हुआ था पर उसका डरने वाला स्वभाव था ही तो ये सुनकर तो उसके मन में भी डर बैठने लगा, उसे ये भी पता था कि उसका बेटा भूरा भी तो छोटू के साथ जंगल में गया था कहीं उसके साथ तो कुछ नहीं हुआ, वो भी मन में नई नई कहानियां गड़ने लगी।
शाम होने से पहले ही सारी औरतें घर को चल दीं, पर सबके मन में ही अपनी अपनी व्यथा थीं।
सूरज ढलने से पहले ही सारे घरों में खाना बन चुका था, आज छोटू भूरा और लल्लू भी भैंसों को चराकर जल्दी घर लौट आए थे, जैसा कि उन्हें समझाया गया था, रत्ना ने अपने दोनों बेटों और पति और ससुर को खाना खिला दिया था और खुद खाकर अब पटिया पर बैठे बैठे बर्तन माँझ रही थी, उसके मन में वही सब चल रहा था जो आज दोपहर में बातें हुई थीं, उसका मन अंदर ही अंदर घबरा रहा था, बर्तन माँझने के बाद रत्ना कमरे के अंदर गई और दिए की रोशनी में उसने अपनी टोटके वाली किताब निकाली और उसमें ऐसी परिस्थिति के लिए कोई उपाय ढूंढने लगी, काफी ढूंढने के बाद उसे एक उपाय मिला, जिसमें लिखा था कि अपने परिवार को भटकती आत्माओं से बचाने के लिए, अपने ही परिवार के गुजरे हुए पूर्वज जिनका निधन सबसे अंत में हुआ हो उनसे ही रक्षा करने के लिए पूजा करनी चाहिए।
पूजा की विधि: जिस मृत व्यक्ति की पूजा करनी है उनका रखा हुआ वस्त्र और गहने आदि जो भी मिल सकें उसे धारण कर, एक कटोरी में सरसों का तेल एक नींबू लेकर अपने सामने रखें और फिर आंखें बंद कर के उनकी आत्मा का आहवान करें और उन्हें अपनी मदद के लिए मन ही मन पुकारें, फिर आंखे खोल कर नींबू को तेल की कटोरी में डाल कर पुनः आंखे बंद कर उनसे रक्षा की प्रार्थना करें और फिर उठ जाएं और उस सरसों के तेल को लेकर परिवार के सभी सदस्यों के बिस्तर के चारों कोनों पर लगा दें, जिससे कोई भी बाहरी आत्मा से परिवार की रक्षा होगी ऐसा लगातार सात दिन करना होगा। परंतु यह सब कार्य रात्रि में सबके सोने के बाद ही करें।
रत्ना ये पढ़ मन ही मन खुश हो जाती है और सोचती है अभी समय है आज से ही शुरू कर देती हूं, पर किसकी पूजा करूं? सबसे आखिर में तो भूरा की दादी ही सिधारी हैं, सही है उन्हीं की करती हूं। वो तुरंत कमरे में रखा पुराना संदूक खोलने लगती है, और कुछ देर बाद उसे अपनी सास की एक पुरानी साड़ी नजर आती है, साड़ी के बाद वो बाकी कपड़े भी ढूंढती है पर उसे और कुछ नहीं मिलता ना ब्लाउज और न ही पेटीकोट। रत्ना सोचती है अरे उससे ही गलती हो गई महीने भर पहले ही उसने बाकी कपड़े खुद ही सफाई के दौरान फेंक दिए थे, पर कोई नहीं साड़ी से ही काम चलाना होगा।
साड़ी को रख वो बाहर आकर देखती है तो उसके दोनों बेटे और पति आंगन में सो रहे थे, वहीं उसके ससुर चबूतरे पर सोते थे, ताकि बहु आंगन में सो सके इसलिए या तो दरवाज़े के बाहर चबूतरे पर या छत पर ही सोते थे।
उसने दरवाजे पर झांक कर देखा तो ससुर प्यारेलाल भी से रहे थे। रत्ना ने सही समय जान कर जैसा जैसा लिखा था वैसे ही करने की ठानी और अपने कमरे में आकर सास की साड़ी उठाई, पर ब्लाउज और पेटीकोट नहीं था तो उसने सोचा थोड़ी देर की ही तो बात है सिर्फ साड़ी से ही काम चलाती हूं पर पूजा अच्छे से होनी चाहिए ये सोच उसने अपने सारे कपड़े उतार दिए और अपने बदन पर सिर्फ अपनी सास की साड़ी लपेट ली और फिर जैसे पूजा की विधि थी वैसे ही पूजा की और फिर तेल को लेकर आंगन में चारों खाट के चारों कोनों पर लगाया और फिर चुपके दबे पांव जाकर अपने ससुर की खाट के भी चारों पांओं पर लगा आई,
और फिर साड़ी को उतार कर अपने कपड़े पहन लेट गई,उसके मन में एक संतुष्टी हुई की अब उसके परिवार को उदयभान की लुगाई की आत्मा यदि कुछ करना चाहेगी तो उसकी सास की आत्मा उनकी रक्षा करेगी।
दूसरी ओर लता ने भी अपने यहां सबको खिला पिला दिया था, बस वो नंदिनी से थोड़ा आंखें चुरा रही थी, उसका सामना करने में लता को शर्म आ रही थी, वहीं नंदिनी तो आज जो कुछ हुआ उसे सोच सोच कर उत्तेजित हो रही थी वो अपनी मां के करीब जाने की उनसे बातें करने की कोशिश कर रही थी पर लता उससे दूर दूर रह रही थी। वहीं लता भले ही खुद को नंदिनी से दूर रख रही थी पर खुद को उत्तेजित होने से रोक नहीं पा रही थी, दोपहर को जो भी हुआ उसे सोच सोच कर उसका बदन गरम हो रहा था,उसकी चूत फिर से गीली महसूस हो रही थी, उसे समझ नहीं आ रहा था ऐसा क्यूं हो रहा है, क्या ये सब उदयभान की लुगाई की वजह से है, उसी ने कुछ किया है जो मेरा बदन ऐसे तड़प रहा है, हो भी सकता है जब से छोटू का रस मेरे अंदर गया है एक आग सी अंदर भड़क गई है, कहीं नंदिनी को भी तो ऐसा ही नहीं लग रहा, हाय क्या करूं, कैसे बचूं, कैसे बचाऊं अपनी बिटिया को, मुझे तो उसके सामने जाने में भी शर्म आ रही है, पर कब तक उससे दूर रहूंगी।
लता ये सब सोचते हुए काम निपटा रही थी, वहीं नंदिनी सब को खाना परोस रही थी, खाना खाने के बाद मगन और कुंवरपाल खेत पर चल दिए क्योंकि गेहूं कट रहे थे और आधा खेत अभी भी बाकी था, तो सोचा कल दिन में धूप में काटने से अच्छा है अभी रात में ही ठंडा ठंडा निपटा लेते हैं। चांदनी रात थी तो अच्छा खासा उजाला भी होगा।
लता: अरे लल्लू को भी ले जाओ ना थोड़ी मदद हो जायेगी।
लल्लू का तो ये सुनकर मुंह बन गया, सोचने लगा मां ने फंसा दिया,
कुंवरपाल: अरे रहने दे बहू ये कहां रात भर जागेगा।
मगन: अरे नहीं पिताजी, दिन में कौनसा काम करता है ये, चल लल्लू उठा दरांती,
लल्लू अब क्या बोलता बाप को मना करने का मतलब था मार इसलिए जल भुन कर दरांती उठाई और चलने लगा, नंदिनी ने रात के लिए भी खाना बांध दिया था तीनों सारा सामान लेकर निकल लिए कुंवर पाल ने पीछे से आवाज लगाई: नंदिनी बिटिया, किवाड़ लगा ले।
नंदिनी भाग कर किवाड़ और उन पर कुंडी लगा आई अब घर में सिर्फ मां बेटी थे, रसोई का काम निपटा कर लता जब खाली हुई तो नंदिनी बोली: मां बिस्तर कहां लगाऊं? कमरे में सोना है या आंगन में।
नंदिनी की बात सुनकर अचानक से लता को एहसास हुआ कि घर पर रात भर सिर्फ वो और उसकी बेटी है और ये सोचकर ही उसके बदन में एक सिहरन सी हुई, उसे बदन में उत्तेजना होने लगी, वो मन ही मन विचार करने लगी कि ऐसा क्यूं हो रहा है मेरे साथ, क्यों मेरे मन में अपनी ही बिटिया के लिए ये सब खयाल आ रहे हैं,
ये सब विचार करते हुए उसने कहा: आंगन में ही सोएंगे।
नंदिनी ये सुन आंगन में बिस्तर बिछाने लगी,
वैसे उत्तेजित तो नंदिनी भी हो रही थी, साथ में उत्साहित भी जबसे दोपहर में उसकी मां और उसके बीच जो हुआ था वो उसे भुला नहीं पा रही थी या कहें भुलाना ही नहीं चाह रही थी। ऐसी उत्तेजना तो उसे सत्तू के साथ होने पर भी नहीं होती थी, जैसी मां के साथ हुई थी।
जल्दी ही लता ने सारे काम निपटाए और कमरे के किवाड़ लगाकर बाहर के किवाड़ भी देखे कि बंद हैं कि नहीं और फिर वहीं किवाड़ के बगल से निकलती नाली पर अपनी साड़ी उठाकर बैठ गई और मूतने लगी, मूतते हुए उसका बड़ा मन हुआ कि अपनी चूत को छूकर थोड़ा सा सहला दे ताकि उसकी खुजली से थोड़ा उसे आराम मिले पर उसने खुद को रोका, अब वो कोई भी गलत कदम नहीं रखना चाहती थी।
मूतने के बाद लता आंगन में वापिस आई तो आंगन में बिस्तर देख कर थोड़ा सकुची क्योंकि नंदिनी ने सिर्फ एक ही बड़ी खाट बिछाई थी और उसी पर बिस्तर लगाकर एक ओर लेटी हुई थी, नंदिनी के साथ एक ही बिस्तर पर सोने का सोच कर लता सकुचाने लगी, ऐसा नहीं था कि वो और नंदिनी एक खाट पर कभी सोते नहीं थे बल्कि अक्सर ही ऐसा होता था, पर आज की बार अलग थी, आज जो कुछ हुआ उससे उनके रिश्ते में बदलाव आ गया था, लता बिस्तर के पास खड़ी होकर सोच में व्यस्त थी, तो नंदिनी ने उसे देखा और कहा: मां खड़ी क्यूं हो, आओ लेटो ना।
नंदिनी ने बिस्तर पर खाली जगह को थपथपा कर उसे दिखाते हुए कहा, लता अपने आप को एक नई नवेली दुल्हन की तरह महसूस कर रही थी जो कि बिस्तर के बगल में खड़ी सकुचाती है और उसका पति उसे बिस्तर पर आने के लिए कहता है, पर अभी अंतर इतना था कि ना तो वो नई नवेली दुल्हन थी बल्कि और न ही बिस्तर पर उसका पति, बल्कि बिस्तर पर तो उसकी खुद की जन्मी बिटिया थी पर लता उसके साथ सोने में भी झिझक रही थी। लता ने सोचा अगर अलग सोऊंगी तो बेकार में नंदिनी दस सवाल करेगी और फिर से दोपहर वाली बात आ जायेगी इससे अच्छा है चुपचाप सो ही जाती हूं।
हल्के कदमों से आगे बढ़ कर लता नंदिनी के बगल में बैठी तो नंदिनी उसे रोकते हुए बोली: अरे मां आज तुम्हें गर्मी नहीं लग रही का आज साड़ी पहन कर ही सोउगी?
लता के ऊपर एक और समस्या आ गई क्योंकि वो अक्सर सिर्फ पेटीकोट ब्लाउज में ही सोती थी, साड़ी पहनकर तभी सोती थी जब उसके ससुर घर में ही सोते थे या कोई अतिथि आया हो, पति और बच्चों के आगे तो साड़ी उतारकर ही सोती थी, अब नंदिनी ने जब ये पूछा तो उसके बदन में फिर से सिरहन हुई, उसे समझ नहीं आया कि नंदिनी की बात का क्या जवाब दे तो उसने खड़े होकर अपनी साड़ी को खोलना शुरू कर दिया, जैसे जैसे वो साड़ी खोल रही थी उसे उसकी चूत गीली होती महसूस हो रही थी, उसे लग रहा था जैसे उसका बदन फिर से कामाग्नि में जल रहा है।
नंदिनी बिस्तर पर लेटे हुए अपनी मां को साड़ी उतारते देख रही थी, चांद की दूधिया चांदनी में उसकी मां का गोरा बदन चमक रहा था, नंदिनी की आंखें अपने मां के बदन पर ही टिकी हुई थीं, उसे लग रहा था कि उसने आज से पहले अपनी मां के बदन पर कभी ध्यान ही नहीं दिया, कितना सुंदर और कामुक बदन है मां का, हर ओर से गदराया हुआ, फिर उसके मन में विचार आया कि पर उसे अपनी मां के बदन से ये आकर्षण क्यों हो रहा है, भले ही मां कितनी भी सुंदर क्यों न हो, पर मैं एक लड़की हूं और एक लड़की का आकर्षण तो लड़के से होना चाहिए पर मुझे ऐसा क्यूं हो रहा है?ये कुछ सवाल थे जिनका जवाब उसके पास नहीं था।।
कुछ ही पलों में लता की साड़ी उसके बदन से अलग हुई तो उसने साड़ी को बगल में ही रस्सी पर टांग दिया, और फिर बिना नंदिनी की ओर देखे खाट पर लेट गई और तुरंत आंखें मूंद लीं, वो किसी भी तरह से नंदिनी का सामना करने से बच रही थी।
नंदिनी तो पहले ही उसकी ओर करवट लेकर सो रही थी, उसने देखा की उसकी मां लेट कर तुरंत आंखें बंद कर सोने लगी है तो उसे कुछ ठीक नहीं लगा, वो चाह रही थी कुछ अलग हो, जो कुछ दोपहर में हुआ उसके बाद वो सब भुला कर सो तो नहीं सकती थी,पर उसे मां के गुस्सा होने का डर भी था,
वहीं लता ने सोचा था मैं सोने का नाटक करती हूं जल्दी ही ये भी सो जायेगी तो सब सही रहेगा। पर मन ही मन न जाने उसका मन भी चाह रहा था कि ये रात बस ऐसे ही न बीत जाए। नंदिनी ने कुछ सोचा और फिर अपना एक हाथ अपनी मां के नंगे पेट पर रख दिया, लता को जैसे ही पेट पर नंदिनी का हाथ महसोस हुआ उसके बदन में तरंगें उठने लगी, पर उसने खुद को संभाला और वैसे ही सोने का नाटक करने लगी, नंदिनी को भी अपने बदन में मां के पेट का स्पर्श पाकर एक अदभुत आनंद हुआ, उसके बदन में भी फिर से वही उत्तेजना होने लगी जो उसने दिन में महसूस की थी।
नंदिनी ने लता के चेहरे की ओर देखा तो पाया कि वो वैसे ही सो रही है, तो नंदिनी ने अपने हाथ को मां के चिकने पेट पर फिराना शुरू कर दिया, उसे अच्छा लग रहा था अपनी मां के चिकने पेट पर हाथ फिराकर, लता भी अपनी बिटिया के हाथ को अपने पेट पर चलता महसूस कर मन ही मन खुश हो रही थी पर बाहर से सोने का नाटक जारी था। पर उसकी सांसें गहरी होने लगीं थीं। नंदिनी भी देख रही थी कि कैसे उसकी मां की छाती ऊपर नीचे हो रही थी, उसकी बड़ी बड़ी चूचियों को यूं ऊपर नीचे होते देख नंदिनी को अच्छा लग रहा था, नंदिनी का हाथ अब लता के पूरे नंगे पेट पर चल रहा था एक ओर से कमर से लेकर दूसरी ओर तक ऊपर ब्लाउज से लेकर पेटिकोट तक। कुछ देर तक वो यूं ही पेट को सहलाती रही फिर जब उसका सहलाने से मन भर गया तो उसने लता के पेट को हल्के हल्के मसलना शुरू कर दिया, अपनी मां के गदराए पेट की कोमल त्वचा को मसलने में उसे अच्छा भी लग रहा था,
वहीं लता को भी बेटी के द्वारा यूं मसले जाना अच्छा लग रहा था, जहां जहां नंदिनी के हाथ उसके पेट को मसलते मानो उस जगह से एक आनंद की तरंग उठती और पूरे बदन में उत्तेजना बनकर फैल जाती, सोने का नाटक करते रहना लता के लिए मुश्किल होता जा रहा था, नंदिनी लगातार उसके बदन को अपनी इच्छानुसार मसल रही थी उससे खेल रही थी। अपनी मां के बदन के साथ ऐसे छेड़ छाड़ करने में नंदिनी को बहुत मज़ा आ रहा था, लता को भी एक अदभुत आनंद मिल रहा था पर वो उसे मन में दबाए हुए सोने का नाटक कर रही थी, उसका एक मन कर रहा था कि अपनी बेटी से खुल कर अपने बदन को मसलवाए पर एक मां होने के नाते कैसे अपनी बेटी के आगे लाज शर्म को त्याग दे, कैसे समाज के बनाए हुए सारे नियमों को अपने बदन की आग में जला दे, कैसे अब तक मिले संस्कारों को मसल कर रख दे।
इसी बीच लता के पेट से नंदिनी का हाथ हट गया तो लता मन ही मन सोचने लगी कि क्या हुआ नंदिनी ने हाथ क्यों हटा लिया, हालांकि जहां शुरुआत में वो खुद यही चाह रही थी कि उसके और बेटी के बीच कुछ ना हो वो अभी बेटी का हाथ पेट पर से हटने से बेचैन होने लगी, उसे नंदिनी का हाथ हटना बिल्कुल भी नहीं भा रहा था, वो सोचने लगी कि ये क्या हो रहा है, नंदिनी ने हाथ क्यों हटा लिया, कहीं उसका मन तो नहीं बदल गया, कहीं मेरी ओर से कोई साथ ना मिलने की वजह से तो नहीं उसने खुद को अलग कर लिया, क्या पता उसे लग रहा हो मैं सो गई हूं, क्या करूं? आंख खोल कर देखूं? लता के मन में ऐसी ही कई सारे प्रश्न आने लगे साथ ही हर बढ़ते पल के साथ वो बेटी के स्पर्श के लिए तड़पने लगी।
नंदिनी इतनी जल्दी हार मानने वालों में से नहीं थी, खाट के बगल में रखे लोटे से पानी पीते हुए भी उसकी लगातार नजर अपनी मां के कामुक बदन पर ही थी, उसे मां का बदन ऐसा लग रहा था कि जिससे वो जितना भी खेल ले उसका मन नहीं भर रहा था, बिस्तर पर बैठी नंदिनी पानी से अपनी प्यास बुझा रही थी तो बगल में लेटी हुई उसकी मां बदन अंदर ही अंदर बदन की गर्मी से जल रही थी, पानी पीने के बाद नंदिनी ने दोबारा ध्यान अपनी मां पर दिया पर इस बार मां के बगल में लेटी नहीं बल्कि लता के पैरों की ओर बैठ कर वो उसके ऊपर झुक गई, इधर बेचैन लता को पहले खाट पर कुछ हरकत महसूस हुई और फिर उसे अगले ही पल अपने पेट पर हाथ का स्पर्श हुआ जिसे पाकर लता का बदन फिर से सिहर उठा, उसके बेचैन बदन को चैन मिला, पर अगले ही पल उसे हाथ के साथ ही कुछ और स्पर्श महसूस हुआ और जैसे ही उसे एहसास हुआ कि ये क्या है उसका पूरा बदन उत्तेजना में जल उठा, क्यूंकि नंदिनी ने अपनी मां के मक्खन जैसे पेट पर अपने होंठ लगा दिए थे और पेट को चाटने लगी, लता बेटी की इस हरकत से पागल होने लगी, उसके लिए सोने का नाटक करते रहना बहुत मुश्किल होने लगा, फिर भी बड़ी मुश्किल से लता ने खुद को संभाला,
नंदिनी को तो जैसे मां के जागने का कोई डर ही नहीं था या यूं कहें वो जानती थी कि उसकी मां जाग रही है, बस सोने का नाटक कर रही है, एक औरत होने के नाते नंदिनी लता की मनोदशा भी समझ रही थी और उसके बदन के इशारे भी, उसकी मां की तेज चलती हुई सांसें चेहरे के भाव सब बता रहे थे कि उसकी मां कितनी उत्तेजित है चाहे वो उसे छुपाने का कितना भी प्रयास कर रही थी, नंदिनी को इस खेल में भी मजा आ रहा था वो देखना चाहती थी कि उसकी मां कब तक सोने का नाटक करती रहेगी। अगली कुछ देर तक नंदिनी ने लता के पेट के हर हिस्से को खूब अच्छे से चाटा जितना भी पेट ब्लाउज और पेटीकोट नंगा था उसने कोई भी हिस्सा बिना चाटे नहीं छोड़ा। वहीं नीचे पड़ी हुई लता बेटी की हरकतों से तड़पती रही, उसकी उत्तेजना को वो कैसे संभाल रही थी वो खुद ही जानती थी,
नंदिनी को भी अपनी मां का पेट चाटने में ऐसा अद्भुत आनंद आ रहा था जिसे उसने आजतक महसूस नहीं किया था, उसकी खुद की उत्तेजना और बदन में गर्मी हद से ज्यादा बड़ गई थी, साथ ही उसकी चूत में इतनी खुजली हो रही थी कि उसके लिए सहना मुश्किल हो रहा था, साथ ही उसे इस के साथ साथ मूत भी आ रहा था, पर उसके लिए मां का पेट छोड़ना मुश्किल हो रहा था, पर कुछ पल बाद उससे सहना मुश्किल हो गया तो वो खाट से उठी और बाहर किवाड़ की ओर मूतने के लिए लपकी, और अपनी पजामी को खोल वहीं बैठ गई जहां कुछ देर पहले उसकी मां मूत कर गई थी, मूतने के बाद नंदिनी को थोड़ा आराम मिला, काफी देर से उसने मूत रोक कर रखा हुआ था, मूतने के बाद पजामी ऊपर कर वो बापिस खाट के पास आई और उसने फिर से अपनी मां पर नजर डाली तो देखा कि मां की सोने की स्थिति थोड़ी बदल गई थी पहले जो हाथ अगल बगल थे अब उनसे लता ने अपने सिर के ऊपर रख लिया था जिससे उसका माथा खासकर आंखें ढंक गई थी, शायद ये इसलिए था कि वो आंखे खोले भी तो नंदिनी को न दिखें।
नंदिनी बापिस खाट पर चढ़ कर बैठ गई और उसने दोबारा से हाथ अपनी मां के पेट पर रखा और वो फिर से पर पर हाथ चलाने लगी, उसने हाथ ऊपर की ओर चलाया तो उसका हाथ ब्लाउज के किनारे से लगा तो उसे कुछ अलग सा महसूस हुआ उसने तुरंत ब्लाऊज की ओर देखा तो उसकी आंखे फैल गई उसने तुरंत उंगली आगे कर के देखा तो पाया कि उसकी मां का ब्लाऊज खुला ही था जो की उसकी उंगली लगते ही अलग होने लगा, मतलब ब्लाउज के सारे बटन खुले हुए थे बस सिर्फ दोनों पट ऐसे रखे हुए थे जैसे कि ब्लाउज बंद हो, नंदिनी की तो ये जानकर आंखें और मुंह दोनों खुल गए। वो सोचने लगी कि अभी जाने से पहले जब वो मां का पेट चाट रही थी तो ब्लाउज के सारे बटन बंद थे उसे अच्छे से याद है मतलब मां ने मेरे पेशाब करने जाने पर ब्लाउज खोला है ये सोच कर ही उसके चेहरे पर मुस्कान आ गई, वो सोचने लगी मां भी वही चाहती है बस शर्मा रही है, ये सोच उसने तुरंत ब्लाऊज के पाटों को फैला दिया और उसकी मां के बड़े बड़े नंगे चूंचे चांद की चांदनी में उसके सामने आ गए जिन पर उसने तुरंत ही अपने हाथ जमा दिए और उन्हें मसलने लगी, और उन्हें मसलते हुए अपनी मां के चेहरे के भावों को देखने लगी वो देख पा रही थी कि उसकी मां कितना प्रयास कर रही है कुछ भी न जताने का,
लता के लिए बहुत मुश्किल हो रहा था खुद को संभालना नंदिनी के हाथ ज्यों ज्यों उसकी चूचियों को मसल रहे थे वो पागल हो रही थी और फिर कुछ ऐसा हुआ कि उसका मुंह खुल गया और न चाहते हुए भी उसके मुंह से एक आह निकल गई और वो हुआ इसलिए क्योंकि नंदिनी ने अपनी मां की चूची को मुंह में जो भर लिया था, और चूसने लगी थी,
लता की आह ज़रूर निकली थी, पर नंदिनी का तो उस आह पर ध्यान ही नहीं गया उसका सारा ध्यान तो अपनी मां की मोटी मोटी चूचियों पर था, वो पागलों की तरह अपनी मां की चुचियों को चूसने में लगी हुई थी, उसकी मां भी उसकी हरकतों से पागल हो रही थी, नंदिनी को इस बात की और खुशी थी कि उसकी मां ने खुद से ब्लाउज खोला था ताकि वो उसकी चूचियों की पी सके, इस बात से उसे और जोश आ रहा था, और बदल बदल कर वो दोनों चुचियों को चूस रही थी, दोनों चूचियों को जी भर चूसने के बाद भी नंदिनी रुकी नहीं और फिर से लता के पेट को चाटने लगी हर ओर चूमती चाटती हुई वो पेटिकोट के ऊपर पहुंची और पेटीकोट के ऊपर से ही लता की नाभी को महसूस कर उसे चाटने लगी, क्योंकि लता साड़ी और पेटीकोट नाभी से ऊपर बांधती थी तो उसकी नाभी पेटिकोट के नीचे छिपी हुई थी, जिसे पेटिकोट के ऊपर से ही नंदिनी चूमने लगी,
ऐसा नहीं था कि नंदिनी ने ऐसा पहले कभी किया हो या उसे संभोग का कोई ज्ञान हो वो सब स्वभाविक ही किए जा रही थी, वैसे भी सम्भोग भी एक स्वाभाविक क्रिया है, जानवरों को कौन सिखाता है सब कुछ अपने आप होता चला जाता है, उसी प्रकार नंदिनी भी सब कुछ किए जा रही थी।
लता तो अपनी नाभी के कपड़े के ऊपर के चुम्बन से ही आहें भर रही थी, उसके बदन में एक करंट सा दौड़ रहा था जिसे वो पूरी तरह से महसूस नहीं कर पा रही थी क्योंकि बीच में पेटिकोट जो आ रहा था, लता ने अगले ही पल वो किया जो वो शायद कभी होश में करने का सोचती भी नहीं, पर अभी होश की जगह ही कहां थी अभी तो सिर्फ वासना का नशा था, और उसी नशे में बहकते हुए लता ने अपने कांपते हाथों से अपने पेटिकोट का नाड़े में लगी गांठ खोलदी, नंदिनी ने अपनी आंखों के सामने अपनी मां की उंगलियों को नाड़े को खोलते देखा तो नंदिनी के बदन में भी बिजली दौड़ गई उसे विश्वास नहीं हो रहा था कि उसकी मां खुद से ये सब कर रही हैं, नाड़े की गांठ खुलते ही नंदिनी ने पेटिकोट को थोड़ा सा नीचे किया और उसके सामने उसकी मां की गहरी नाभी आ गई जिसे देखते ही नंदिनी ने अपने होंठ उस पर लगा दिए और अपनी जीभ उसके बीच में घुसा दी।
बिटिया के होंठ नाभी पर लगते ही और जीभ का नाभी की गहराई में स्पर्श होते ही लता की कमर झटके खाने लगी और कुछ पल के लिए ऊपर उठ गई, ये देख नंदिनी को बड़ा अच्छा महसूस हो रहा था कि वो अपनी मां को ऐसा आनंद दे पा रही है कि जिसे पाकर वो स्वयं पर भी नियंत्रण नहीं रख पा रही हैं,
वहीं लता का तो बुरा हाल था उसने आज तक ऐसा आनंद ऐसी उत्तेजना कभी महसूस नहीं की थी जो कि वो आज अपनी बेटी के साथ कर रही थी, उसे पता ही नहीं था कि संभोग में बिना लंड के चूत में घुसाए भी इतना मज़ा आ सकता है, उसकी चूत गीली होकर बार बार रो रही थी, उसकी चूत में मानों हज़ारों चीटियां अब रेंग रहीं थी, हर पल उसकी ये चूत की खुजली असहनीय होती जा रही थी,
नंदिनी अपनी जीभ को मां की नाभी में घुसा कर ऐसे चूस रही थी मानो उसने से रस निकल कर उसके मुंह में घुल रहा हो, और उसके पूरा बदन में उत्तेजना का नशा गोल रहा हो, लता को भी ऐसा ही लग रहा था जैसे उसकी बेटी की जीभ से उसकी नाभी में कुछ तरंगे निकल रहीं थी और वो तरंगें नाभी से सीधी उसकी चूत में जा रही थीं और उसकी चूत की खुजली को और बड़ा रहीं थीं। लता की चूत भी अब सेवा मांग रही थी चूचियों और पेट को मिले ध्यान ने उसकी निगोड़ी चूत को जला भुना दिया था। वहीं नंदिनी की जीभ से उसकी नाभी में ऐसी तरंगें उठ रहीं थी जो उसके पूरे बदन को कांपने पर मजबूर कर रही थी, लता की चूत में अब असहनीय खुजली होने लगी और उसी के चलते वो खाट पर पड़ी हुई तड़पने लगी उसके हाथ नंदिनी के सिर पर कस गए और वो उसके सिर को अपनी नाभी में दबाने लगी।
जबसे ये सब शुरू हुआ था तबसे पहली बार कोई हरकत लता ने की थी बेटी के सामने, नंदिनी को खुशी हुई कि उसने उसकी मां को नाटक छोड़ने पर मजबूर कर दिया, लता के दिमाग में तो अभी नाटक, शर्म, लाज कुछ भी नहीं था अभी तो उसे सिर्फ उसकी चूत की खुजली, चूत की प्यास पागल कर रही थी वो चाह रही थी जल्दी से उसे इस असहनीय पीढ़ा से राहत मिले, और इसी वश वो नंदिनी के सिर को नीचे की ओर धकेलने लगी, अपनी मां से नीचे की ओर का दबाब देख नंदिनी को समझ नहीं आया कि उसकी मां क्या चाहती है पर वो नीचे होने लगी, वैसे पता तो लता क्रो भी नहीं था कि वो क्या चाहती है वो तो बस इस असहनीय खुजली से राहत चाहती थी जो उसकी चूत में हो रही थी,
नंदिनी ने नाभी को छोड़ा और नीचे की ओर बढ़ी पर अपने साथ साथ मां का ढीला और खुला हुआ पेटिकोट भी सरकाने लगी, उसकी मां उसके सिर को नीचे की ओर दबा रही थी, जल्दी ही पेटीकोट और नंदिनी का सिर लता की चूत से नीचे था और नंदिनी के सामने उसका जन्म द्वार था, अपनी मां की चूत देख कर नंदिनी की आंखें फट हुईं, उसे यकीन नहीं हुआ कि वो सच में अपनी मां की चूत देख पा रही है, वही चूत जिससे सालों पहले निकल कर वो इस दुनिया में आई थी, उसने देखा कि उसकी मां की चूत कितनी गीली है और रस बहा रही है, लड़की होने के नाते वो जानती थी कि ये मूत नहीं है, कभी कभी उसकी चूत से भी ऐसा बहाव होता था, जब वो बहुत उत्तेजित होती थी तब। उसकी मां की कमर उसके नीचे मछली की तरह तड़प रही थी लता की कमर बार बार उठकर नीचे गिरती जैसे अक्सर चुदाई के दौरान उत्तेजित होने पर औरतें करती हैं, नंदिनी ने ऊपर से नीचे तक एक बार अपनी मां के तड़पते बदन को देखा और फिर उसके ऊपर से हट गई, एक हाथ से पेटिकोट को पकड़ा और उसे लता की टांगों में से निकाल दिया और अपनी मां को नीचे से पूर्ण नग्न कर दिया, पर लता को इससे कोई फर्क नहीं पड़ा उसे अभी सिर्फ़ अपनी चूत की बैचैनी से मतलब था। नंदिनी इतने पर भी नहीं रुकी और उसने ऊपर की ओर आकर लता की बाहों मे उलझे ब्लाउज को भी उतार दिया, और उसके लिए उसने एक गुड़िया की तरह अपनी मां के बदन की इधर उधर हिलाया और बाहों से ब्लाउज अलग कर दिया।
अब लता अपनी बेटी के सामने खाट पर बिल्कुल नंगी पड़ी तड़प रही थी, नंदनी ने बापिस उसकी टांगों के बीच जगह ली और उसकी दोनों टांगों को पकड़कर फैला दिया जिससे उसकी चूत और खुल कर सामने आ गई, नंदिनी को अपनी मां की चूत से एक अजीब सी सौंधी सी गंध आ रही थी जो उसके बदन को उत्तेजित कर रही थी। वो सोचते लगी ये कैसी गंध है मां की चूत की और ये ही सोच उसने अपना मुंह आगे किया और लता की चूत के पास नाक लेजाकर सूंघने लगी, अपनी मां की चूत की गंध सूंघकर उसके पूरे बदन में कंपन्न सा होने लगा,
वहीं नीचे लेटी लता की चूत पर ज्यों ही नंदिनी की गरम सांसे पड़ीं तो वो और तड़पने लगी, उसकी चूत की बैचैनी और बढ़ गई, उसे लगा इस बेचैनी से वो पागल हो जायेगी, वो चाहती थी कि उसकी बेटी उसकी चूत को भी कैसे भी करके शांत कर दे पर नंदिनी तो उसी तड़प और बढ़ा रही थी, इसी तड़प के चलते लता के हाथ फिर से नीचे आकर नंदिनी के सिर पर कस गए और इससे पहले नंदिनी कुछ करती या समझती लता ने उसका चेहरा अपनी चूत में दबा दिया नंदिनी के होंठ सीधे उसकी मां की चूत से लगे और लता होंठ लगते ही अपनी कमर को पागलों की तरह घुमा घुमा कर अपनी चूत को नंदिनी के होंठों पर घिसने लगी।
अब तक नंदिनी ही सारथी थी इस हवस के रथ की पर पहली बार लता ने आक्रामक होते हुए कमान अपने हाथों में ले ली।
नंदिनी को यूं तो अब तक हर चीज में मज़ा आ रहा था पर अपने होंठ मां की चूत से लगते ही वो परेशान होने लगी, उसके मन में घिन आने लगी क्यूंकि जहां से उसकी मां पेशाब करती है उसका मुंह वहां लगा था, भले ही वो हवस में कितनी भी आगे बढ़ गई हो पर अब तक उसने जो सीखा था समाज से उसे कैसे पल भर में भूल जाती, कि पेशाब की जगह गंदी होती है उसमें तो हाथ लगाने के बाद भी लोग हाथ धोते हैं और यहां उसका मुंह उसकी मां की चूत में घुसा हुआ था, वो छूटने की कोशिश करने लगी पर लता ने उसका सिर मजबूती से चूत में दबा रखा था। उसने घबरा कर अपना मुंह खोला कुछ बोलने के लिए तो उसकी मां की चूत का दाना उसके मुंह में घुस गया और उसकी जीभ से टकराया, जिससे नंदिनी को तो जैसे उल्टी जैसा मन हुआ और उसकी जीभ बाहर निकल आई।
इधर लता की कमर लगातार घूम रही थी तो नंदिनी की जीभ बाहर आते ही सीधा उसकी मां की चूत से टकराई और बाकी का काम लता की घूमती कमर ने कर दिया और लता की चूत बेटी की जीभ पर घिसने लगी,
इधर नंदिनी की तो हर चाल उल्टी ही पड़ रही थी, उसे अपनी जीभ पर मां की चूत का स्वाद महसूस हो रहा था कुछ ही पल बाद उसे आभास हुआ कि उसकी मां की चूत का स्वाद इतना बुरा नहीं जैसा उसे लग रहा था, और कुछ ही पलों में उसके अंदर की घिन फिर से हवस में बदल गई अब वो खुद से मां की चूत चाटने लगी क्योंकि उसे स्वयं को आनंद आ रहा था, वहीं लता तो और उत्तेजना के शिखर पर पहुंच गई, नंदिनी जिस तरह से मां की चूचियों और पेट को चाट रही थी अब उसकी चूत को भी चाटने लगी, और जितने अच्छे से वो चूत चाटती उसके स्वयं के बदन में उतनी उत्तेजना बढ़ती,
कुछ ही पलों में लता की आँखें ऊपर की ओर खिंच गईं, उसकी कमर बिस्तर से उठ कर धनुष की तरह तन गई, और झटके खानेलागी, एक पल को तो नंदिनी को डर लगा कि मां को कुछ हो तो नहीं गया पर उसने चूत पर जीभ चलाना जारी रखा, लता थरथराते हुए झड़ने लगी, उसने आज तक ऐसा स्खलन महसूस नहीं किया था जैसा आज कर रही थी उसे लग रहा था कि उसके बदन की सारी ऊर्जा आज चूत के रास्ते निकल जाएगी।
नंदिनी को अपनी जीभ पर मां की चूत का रस महसूस हो रहा था जिसे भी वो चाट गई क्यूंकि उसे उसका स्वाद पसंद आया और फिर अगले ही पल उसके चेहरे पर लता के मूत की धार टकराई, उसे समझ नही आया ये क्या हो रहा है, लता की कमर झटके खा रही थी और झटके के साथ उसकी चूत से पेशाब की एक छोटी धार निकलती और नंदिनी के चेहरे और जीभ को भीगा जाती, दो चार बार ऐसा हुआ और फिर लता एक कटे पेड़ के समान धम्म से बिस्तर पर गिर पड़ी, और बिल्कुल बेहोश सी हो गई, नंदिनी अपनी मां को देखते हुए सुन्न बैठी थी उसे समझ नही आ रहा था कि आज उसने क्या क्या किया था बाकी सब तो छोड़ो अपनी ही मां की चूत को चाटा और अंत में उनके मूत को भी अपने मुंह में लिया,
ये सोच कर ही उसका हाथ खुद की चूत पर पहुंच गया वो अपने हाथ से अपनी चूत को मसलती हुई सोचने लगी कि क्या सच में आज उसने अपनी मां का मूत चख लिया, पर उससे भी बड़ी बात उसे ये सब गलत क्यूं नहीं लग रहा, अच्छा क्यूं लग रहा है। ये ही सोच उसने अपनी जीभ होंठों पर फिराई तो उसे अपनी मां के पेशाब का स्वाद मिला जिसे चख कर उसके बदन में बिजली दौड़ गई।
आगे अगले अध्याय में।
bhai, lagta hai aap mere story pe aana bhool gaye...bahut dinon se koi comments bhi nahi hai mere story pe...aaj hi latest update post kiya hai..aapke comments kaa intezaar rahega..Zabardast update bhai
कॉमेंट और प्रतिक्रिया भी अधिक चाहिए मित्र मुझे भी लिखने का मज़ा आने दो।we want more more more
बहुत बहुत धन्यवाद भाई, आपको यहां देख कर बहुत खुशी हुई, आपकी कथा चोदमपुर की और सपना या हकीकत कहानी पढ़ कर ही मैंने हिम्मत करके ये कहानी शुरू की, आज आप की प्रतिक्रिया पाकर बहुत हर्षित हूं, आशा है अब आपकी प्रतिक्रिया लगातार आती रहेगी। साथ ही आपकी कहानी पर भी आगे के अपडेट की प्रतीक्षा है।Bahut acha likh rahe ho dost, devanagari ka maza hi kuch aur hai, aur us par gaon ka itna ache se presentation kia hai like, saare updates aaj hi pade kaafi acha likh rahe ho, kirdaar bhi sabhi zabardast hai. Aage ka intezaar