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Ek dam fadhu update Diya bhai ji maza aa gya kha ratna apne ghar ko sukhi rakhne ke liye totka kar rahi thi but pyarelal ne jo tadhi pi thi usme baba ji ki butee mili thi or usi ka reaction ne aaj rat me ratna ki chut bajwa di dekhte h aagle update me kya dekhne ko milta hसोमपाल: अरे तुझे पता है न कितना वहमी है वो, अगर पुड़िया की नहीं बोलता न तो मन होने के बाद भी नहीं पीता।
कुंवरपाल: ये तो सही कहा धी का लंड है तो इसी लायक, पर अब रात को इसका हल तैयार हो गया तो क्या करेगा? बेचारे के पास खेत तो है नहीं।
सोमपाल: तभी तो मजा आएगा, रात भर तड़पेगा ससुरा।
कुंवरपाल: चल अब हम भी चलें खोपड़ी घूम रही है।
सोमपाल: हां हां चल सही कह रहा है।
दोनों भी अपने अपने घर की ओर बढ़ जाते हैं।
अध्याय 14
प्यारेलाल बहकते कदमों के साथ अपने घर पहुंचता है, ये बात सच थी कि उस पर ताड़ी का सुरूर कुछ ज़्यादा ही चढ़ता था, घर पर पहुंचते ही खाट पर बैठ जाता है तब तक खाना भी बन चुका था तो रत्ना ने अपने ससुर, पति और दोनों बेटों को परोस दिया, प्यारे लाल का तो सिर झूम रहा था इसलिए जल्दी से उसने खाना निपटाया और बाहर चबूतरे की ओर तुरंत ही निकल गया,
ससुर को जाते देख रत्ना ने तुरंत ही भूरा को कहा: ए लल्ला जा बाबा की खाट बिछा दे जाकर।
भूरा भी तुंरत बाहर चबूतरे पर गया और अपने बाबा के लिए बिस्तर लगा दिया, प्यारे लाल तो वैसे भी झूम रहा था तुरंत बिस्तर पर पसर गया, इधर रत्ना ने सबको खाना खिलाया और फिर खुद खाया, सारा काम निपटाया तब तक उसके पति और दोनों बेटे भी अपने अपने बिस्तर पर पहुंच चुके थे, सारा काम निपटा कर सब पर एक बार नज़र मारती है और जब उसे आभास होता है कि सब सो चुके हैं तो वो अपने टोटके वाले काम पर लग जाती है, तुरंत कमरे में जाकर वो अपनी सास की साड़ी पहनने लगती है
चबूतरे पर प्यारेलाल परेशान हो रहा था एक तो ताड़ी का असर जिसके कारण उसका दिमाग घूम रहा था दूसरी ओर कुंवर पाल ने जो पुड़िया दी थी उसके कारण उसके बदन में एक अलग ही गर्मी और उत्तेजना का संचार हो रहा था, उसका लंड धोती में बिल्कुल तन कर खड़ा था, वो सोने का भरसक प्रयास कर रहा था पर बार बार उसकी नींद खुल जाती थी,
उसकी आंख लगी ही थी कि उसे फिर से कुछ आभास हुआ उसने धीरे से आँखें खोल कर देखा तो एक साया अपने बगल में देखा, अपने घूमते हुए दिमाग के साथ वो समझने का प्रयास करने लगा ये कौन है तो चांद की रोशनी में वो साड़ी दिखी जिसे वो अच्छे से पहचानता था साड़ी का ध्यान आते ही उसके मन में एक नाम गूंज गया, गेंदा मेरी गेंदा, उसकी स्वर्गीय पत्नी।
ताड़ी का असर और पुड़िया की उत्तेजना ने उसे ये भुलावा कर दिया कि उसकी पत्नी तो स्वर्ग सिधार चुकी है, धोती में उसका लंड और कड़क हो गया, वो ध्यान से अपनी पत्नी के साए को देखने लगा जो उसके बिस्तर के पास घूम रही थी,
उसके बगल से होते हुए वो नीचे की ओर गई और फिर दूसरी तरफ आने लगी, कि तभी प्यारे लाल से और संयम नहीं हुआ और प्यारेलाल ने अपनी पत्नी का हाथ पकड़ कर उसे बिस्तर पर खींच लिया, खींचते ही गेंदा की चीख निकली पर प्यारेलाल ने तुरंत ही उसका मुंह अपने हाथ से बंद कर दिया, और उसे बिस्तर पर नीचे दबा कर खुद उसके ऊपर आ गए।
प्यारेलाल: हाय लल्ला की मां, बिल्कुल सही बखत आई है तू, देख कितना तड़प रहा था मैं तेरे लिए।
पर गेंदा उसका कोई जवाब नहीं दे रही थी बल्कि उसको अपने ऊपर से हटाने का प्रयास कर रही थी, पर प्यारे लाल बदन में उससे भारी भी था और बलशाली भी,
प्यारेलाल: तू भी न पहले पास आती भी है और फिर शर्मा के इतने नखरे भी करती है, अब आ गई है तो गेंदा का रस पिए बिना ये भंवरा नहीं मानेगा।
ये कहकर प्यारेलाल ने उसका चेहरा पकड़ कर अपने होंठों को अपनी पत्नी के होंठो से मिला दिया, जिनके मिलते ही गेंदा ने उसे फिर से अपने ऊपर से धकेलने की कोशिश की पर प्यारेलाल के आगे उसका जोर नहीं चल रहा था, हवस और उत्तेजना में पागल प्यारेलाल उसके होंठों को पागलों की तरह चूसने लगा।
उसके दिमाग में वही वर्षों पुरानी यादें चल रहीं थी जहां वो अपनी पत्नी के साथ रात को बिस्तर गरम करता था, उसे अपनी पत्नी आज और जवान लग रही थी उसके होंठ और अधिक रसीले हो गए थे, वैसे हो भी क्यों न क्योंकि जिसके होंठों को वो चूस रहा था वो उसकी पत्नी गेंदा नहीं बल्कि उसकी बहु रत्ना थी।
रत्ना बेचारी अपनी सास की साड़ी पहन कर टोटका कर रही थी, अपने बेटों और पति की खाट पर टोटका करने यानि खाट के चारों पावों पर तेल लगाने के बाद वो दबे पांव बाहर चबूतरे पर आई थी, उसने ससुर पर नज़र डाली तो वो उसे सोते दिखे थे उन्हें देख कर वो अपना काम करने लगी और खाट के पावों को तेल लगाने लगी पर जैसे ही तीसरे पाए से चौथे की ओर बड़ी उसे ससुर जी ने हाथ बढ़ाकर बिस्तर पर खींच लिया, उसकी चीख भी निकली जिसे ससुर जी ने तुरंत हाथ से बंद कर दिया, वो झटपटने लगी अपने आप को ससुर जी से छुड़ाने की कोशिश करने लगी पर ससुरजी उसे नीचे कर खुद उसके ऊपर चढ़ गए, और फिर जब ससुर जी से उसने अपनी सास का नाम सुना तो वो समझ गई कि वो उसे उसकी सास यानी अपनी पत्नी समझ रहे हैं, वो परेशान हो गई उसे समझ नहीं आ रहा था कि वो किस मुश्किल में फंस गई है, क्यों उसके ससुर उसके साथ ऐसा कर रहे हैं, फिर जैसे उसे खुद ही उत्तर मिल गया कि शाम को उसने उन्हें ताड़ी पीते देखा था उसे समझ आ गया कि उसके ससुर नशे में हैं साथ ही उसने भी अपनी सास की साड़ी पहनी है इसलिए ये सब हो रहा है,
वो सोचने लगी आज टोटके की वजह से बहुत बुरी फंसी हूं, उसे कुछ समझ आता इससे पहले ही उसके ससुर के होंठ उसके होंठों पर थे उसे बहुत गलत लगा तो उसने तुरंत अपने ससुर को धक्का लगाने की कोशिश की पर उसकी ससुर के आगे उसका बल कुछ भी नहीं था, उसके ससुर उसके होंठों के रस को पीने लगे और वो उनके नीचे दबी हुई तड़पने लगी, कुछ पल के बाद उसका बदन भी गरम होने लगा, न चाहते हुए भी उसके ससुर के होंठों से उत्तेजना की तरंगें निकल कर उसके पूरे बदन में फैलने लगीं, फिर भी वो किसी तरह से इस सब से निकलना चाहती थी, इसी बीच उसके ससुर के हाथ उसके चेहरे से नीचे सरकने लगे और उसकी छाती तक पहुंच गए तब जाकर उसे आभास हुआ कि वो कितनी बुरी फंस चुकी है क्योंकि छाती पर हाथ पहुंचते ही प्यारेलाल को एहसास हुआ कि गेंदा ने सिर्फ साड़ी लपेट रखी है और कुछ नहीं पहना।
रत्ना मन ही मन खुद को कोसने लगी कि क्यों उसने ये टोटका करने की सोची, ऊपर से उसे सास की सिर्फ साड़ी मिली थी और कुछ नहीं और वो सिर्फ उसे ही बदन पर लपेट कर ये टोटका करती थी, उसके ससुर उसकी साड़ी का पल्लू उसकी छाती से हटाने लगे तो उसने खुद की चूचियों को बचाने के लिए पल्लू को पकड़ लिया दोनों हाथों से और हटाने से रोकने लगी,
प्यारेलाल भी उसके होंठों को चूसना छोड़ उसका पल्लू खींचने में लग गए, रत्ना भी अपना पूरा जोर लगा रही थी पल्लू को रोकने में कि तभी प्यारेलाल ने थोड़ा अपने बदन को ऊपर उठाया और दोबारा से नीचे हो गए और नीचे होते ही रत्ना के मुंह से हल्की सिसकी निकल गई और उसके हाथ पल्लू पर ढीले पड़ गए जिसका फायदा प्यारे लाल ने उठाया और अगले ही पल रत्ना की चूचियां उसके ससुर के सामने बिल्कुल नंगी थीं, लेकिन अभी रत्ना का ध्यान अपनी नंगी चूचियों पर नहीं था बल्कि कहीं और था और वो जगह थी उसकी टांगों के बीच क्योंकि जैसे ही प्यारेलाल थोड़ा हिला डुला था तो उस कारण से उसका कड़क लंड सीधा रत्ना की टांगों के बीच था और रत्ना की चूत पर टक्कर मार रहा था,
उसकी टक्कर से तो रत्ना का पूरा बदन कंप कंपा उठा, प्यारेलाल के लंड और रत्ना की चूत के बीच सिर्फ रत्ना की साड़ी थी क्योंकि प्यारेलाल की धोती तो कब की खुल चुकी थी, रत्ना की चूत की गंध प्यारेलाल के लंड को मिल चुकी थी प्यारेलाल की कमर स्वतः ही धीरे धीरे हिलने लगी जिससे रत्ना की हालत खराब होने लगी क्योंकि प्यारेलाल के हिलने से उसका लंड बार बार रत्न की चूत पर दबाव डालने लगा,
ऊपर प्यारेलाल ने रत्ना की छाती से पल्लू हटा दिया था रत्ना की मोटी मोटी चूचियां चांद की रोशनी में उसके ससुर के सामने थीं, प्यारेलाल ने भी जैसे ही उन सुंदर चूचियों को देखा उसने तुंरत अपना मुंह एक चूची में लगा दिया, वहीं दूसरी को अपने एक हाथ से मसलने लगा, रत्ना जो पहले से ही हैरत में थी जैसे ही ससुर का मुंह चूचियों पर पड़ा वो मचलने लगी, उसका बदन सिहरने लगा, एक ओर वो इस मुसीबत से निकलना चाहती थी पर वहीं उसके बदन पर उसके ससुर की हरकतों का असर हो रहा था, चूचियों के चूसे जाने से उसके बदन में उत्तेजना बढ़ रही थी वहीं चूत पर ठोकर मारता लंड उसके विरोध की दीवार को हर टक्कर पर तोड़ता जा रहा था, उसे यकीन नहीं हों रहा था कि वो घर के बाहर चबूतरे पर खुले आसमान के नीचे अपने ससुर के साथ ये सब कर रही थी,
प्यारेलाल अपने काम में बहुत कुशल था, चूचियों को चूसते हुए उसने अपना एक हाथ नीचे ले जा कर रत्ना की साड़ी को ऊपर खींचने लगा, रत्ना तो अभी अलग ही द्वंद लड़ रही थी अपने ही आप से उसका ध्यान अपने ससुर के हाथ पर तो बिल्कुल नहीं था, धीरे धीरे प्यारेलाल ने उसकी साड़ी को उसकी जांघों पर इकठ्ठा कर दिया पर ये सब करते हुए भी प्यारेलाल ने अपना मुंह उसकी चूची से नहीं हटाया, धीरे धीरे रत्ना की साड़ी उसकी जांघों पर इकट्ठी हो चुकी थी अब बस उसके मोटे चूतड़ों के नीचे दबे होने के कारण ही रुकी हुई थी, पर प्यारेलाल के सिर पर हवस चढ़ी हुई थी और हो भी क्यों न बाबा की पुड़िया का जो असर था, प्यारेलाल ने अपना दूसरा हाथ भी रत्ना की चूची से हटाया और अपने दोनों हाथ नीचे ले जाकर रत्ना की कमर के नीचे फंसा कर उसे थोड़ा ऊपर उठा लिया रत्ना ने भी अनजाने ही अपने ससुर का साथ दे दिया अपनी कमर उठा कर बस इतना समय काफी था प्यारेलाल के अनुभवी हाथों को साड़ी ऊपर करने के लिए, रत्ना की साड़ी उसकी कमर पर इकट्ठी थी और रत्ना को इस बात का आभास तब हुआ जब उसका ससुर का मोटा लौड़ा उसकी गरम चूत से टकराया,
इस स्पर्श से ही वो कांप गई उसे पता ही नहीं चला था कि उसकी साड़ी कब कमर से ऊपर उठ गई थी, स्पर्श होते ही उसका पूरा बदन झनझना उठा उसे विश्वास ही नहीं हो रहा था उसके ससुर का लंड उसकी चूत पर है, पर इस आभास ने उसे झकझोर दिया कि जो हो रहा है बहुत गलत है महापाप है अभी भी ये सब होने से रोक ले रत्ना, और उसी आवाज़ को सुनकर उसने भी तुरंत नीचे हाथ बढ़ाया अपने ससुर को रोकने के लिए अपनी चूत को अपने ससुर के लंड से बचाने के लिए,
पर अक्सर कई बार होता है कि आप जीवन में कुछ करने का भरसक प्रयास करते हो पर आपके हाथ सिर्फ लौड़े लगते हैं रत्ना के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ हाथ तो उसने अपनी चूत को बचाने के लिए बढ़ाया था पर उसके हाथ में आ गया उसके ससुर का कड़क गरम मोटा लोड़ा, जिसके हाथ में आते ही रत्ना के पूरे बदन में बिजली दौड़ गई उसे ऐसा लगा जैसे उसके हाथ में बिजली का कोई खंभा है जिससे बिजली निकल रही है और पूरे बदन में उत्तेजना भर रही है, उसकी चूत गीली होने लगी, वहीं प्यारेलाल लंड पर हाथ महसूस कर और जोश में आ गया और कमर हिला हिला कर हाथ को ही चोदने लगा,
अब परिस्थिति कुछ ऐसी थी कि प्यारेलाल के मुंह में रत्ना की चूची थी वहीं रत्ना के हाथ में उसके ससुर का कड़क लंड था ज्यों ज्यों प्यारेलाल कमर को आगे कर झटका मारता तो उसका लंड रत्ना के हाथ में आगे पीछे होता जैसे रत्ना उसे मुठिया रही हो वहीं लंड का टोपा उसकी मुट्ठी से आगे निकल कर हर झटके पर रत्ना की चूत से टकराता, और हर झटके पर रत्ना का बुरा हाल हो रहा था, उसे पता था कि सब कितना गलत हो रहा है पर फिर भी उसका बदन उसका साथ नहीं दे रहा था, चूत के ऊपर पड़ रहे लंड के वार से उसका विरोध कमज़ोर पड़ता जा रहा था, इसी बीच प्यारेलाल ने उसकी चूची को मुंह से निकाला और चेहरा ऊपर कर फिर से उसके होंठों को चूसने लगा, रत्ना के मन में अब ससुर को रोकने जैसा तो कोई विचार ही नहीं आ रहा था वो बस खुद को रोकने की कोशिश कर रही थी खुद को रोके इस वासना में बहने से पर हर बढ़ते पल के साथ ये मुश्किल होता जा रहा था, उसे खुद पता नहीं चला कि वो खुद कब अपने ससुर का साथ देने लगी उसके होंठ चूसने में, वो इतनी उत्तेजित हो गई कि जिस हाथ से उसने अपने ससुर का लंड रोकने के लिए पकड़ रखा था उसी हाथ से उसने लंड को अपनी चूत के द्वार पर रख दिया और हाथ हटा लिया बाकी का काम प्यारेलाल के धक्के ने कर दिया और प्यारेलाल का लंड सरसराता हुआ उसकी बहु की चूत में घुस गया, रत्ना के मुंह से एक चीख तो निकली पर वो उसके ससुर के मुंह में ही घुट के रह गई, प्यारेलाल को भी लंड चूत में घुसने का आभास हुआ तो वो भी उत्तेजित होकर गुर्राया, और अपना मुंह रत्ना के मुंह से हटाया और फिर आँखें बंद कर अपनी कमर चलाने लगा, और अपनी बहु की चूत में जिसे वो अपनी स्वर्गीय पत्नी समझ रहा था उसे चोदने लगा, वैसे प्यारेलाल का हवस में यूं पागल होना स्वाभाविक था क्योंकि वर्षों बाद आज उसे चूत मिल रही थी चोदने को ऊपर से पुड़िया का असर तो वो आंखें मूंद कर अपने वर्षों की गर्मी दनादन धक्का लगाकर निकालने लगा,
वैसे आंखें तो रत्ना की भी बंद थी, एक तो पहली बार जीवन में अपने पति के अलावा किसी का लंड उसने लिया था और वो भी अपने ससुर का, और उसका ससुर तो उसे पागलों की तरह चोद रहा था एक साथ उसके अंदर इतने सारे भाव आ रहे थे खुद से घृणा भी हो रही थी तो चूत में अंदर बाहर होता लंड उसे एक अलग ही मज़ा दे रहा था, हर बढ़ते पल के साथ उसकी उत्तेजना बढ़ती जा रही थी, और एक पल ऐसा आया जब वो सब भुला कर अपने ससुर की चुदाई का आनंद लेने लगी, हालांकि उसका पति भी महीने में एक आध बार उसे खूब अच्छे से चोदता था पर अभी जो उत्तेजना उसे ससुर के साथ महसूस हो रही थी वो पति के साथ नहीं हुई थी, ये वही एहसास था जो कुछ गलत करने पर मन को एक उत्साह का आभास कराता है, रत्ना को भी यही हो रहा था, प्यारेलाल गुर्राते हुए अपनी बहु को ताबड़तोड़ चोद रहा था, और उस चुदाई का असर रत्ना पर भी भर पूर हो रहा था, घर के बाहर चबूतरे पर वो अपने ससुर से चुदवा रही थी, इस एहसास से ही वो सिहर रही थी और अंत में उसकी उत्तेजना उसके शिखर पर पहुंच गई और वो स्खलित होते हुए पानी छोड़ने लगी, इधर प्यारेलाल ने भी कुछ झटके और लगाए और फिर उसने भी अपना रस अपनी बहु की चूत में भर दिया, झड़ने के बाद प्यारेलाल तो रत्ना के ऊपर ही गिर गया, नशा और झड़ने के बाद के आलस ने उसे तुरंत नींद में पहुंचा दिया, उसका लंड सिकुड़ कर रत्ना की चूत से बाहर आ गया, रत्ना को भी अब फिर से वास्तविकता का एहसास होने लगा तो वो परेशान होने लगी।
घबराते हुए उसने धक्का देकर अपने ससुर को अपने ऊपर से हटाया और बिस्तर से उठ कर अंदर की ओर भागी उसकी साड़ी प्यारेलाल के नीचे दब कर वहीं रह गई वो नंगी ही घर के अंदर की ओर भागी, आंखों में आंसुओं की धार बह रही थी, और मन जैसे फटने को हो रहा था और हों भी क्यों न कहां कुछ देर पहले तक वो एक संस्कारी पतिव्रता औरत थी और कहां उसने अपने पति को धोखा देकर किसी और से चुदवा लिया था और वो भी कोई और नहीं अपने ससुर से।
अंदर आकर वो सीधे कमरे में गई और बिस्तर पर लेट कर सुबकने लगी, काफी देर तक रोने के बाद उसे एहसास हुआ कि वो अभी भी नंगी है तो उसने तुरंत उठ कर कपड़े पहने और रोते रोते ही सो गई।
जारी रहेगी
बहुत ही गरमागरम कामुक और जबरदस्त अपडेट हैं भाई मजा आ गयासोमपाल: अरे तुझे पता है न कितना वहमी है वो, अगर पुड़िया की नहीं बोलता न तो मन होने के बाद भी नहीं पीता।
कुंवरपाल: ये तो सही कहा धी का लंड है तो इसी लायक, पर अब रात को इसका हल तैयार हो गया तो क्या करेगा? बेचारे के पास खेत तो है नहीं।
सोमपाल: तभी तो मजा आएगा, रात भर तड़पेगा ससुरा।
कुंवरपाल: चल अब हम भी चलें खोपड़ी घूम रही है।
सोमपाल: हां हां चल सही कह रहा है।
दोनों भी अपने अपने घर की ओर बढ़ जाते हैं।
अध्याय 14
प्यारेलाल बहकते कदमों के साथ अपने घर पहुंचता है, ये बात सच थी कि उस पर ताड़ी का सुरूर कुछ ज़्यादा ही चढ़ता था, घर पर पहुंचते ही खाट पर बैठ जाता है तब तक खाना भी बन चुका था तो रत्ना ने अपने ससुर, पति और दोनों बेटों को परोस दिया, प्यारे लाल का तो सिर झूम रहा था इसलिए जल्दी से उसने खाना निपटाया और बाहर चबूतरे की ओर तुरंत ही निकल गया,
ससुर को जाते देख रत्ना ने तुरंत ही भूरा को कहा: ए लल्ला जा बाबा की खाट बिछा दे जाकर।
भूरा भी तुंरत बाहर चबूतरे पर गया और अपने बाबा के लिए बिस्तर लगा दिया, प्यारे लाल तो वैसे भी झूम रहा था तुरंत बिस्तर पर पसर गया, इधर रत्ना ने सबको खाना खिलाया और फिर खुद खाया, सारा काम निपटाया तब तक उसके पति और दोनों बेटे भी अपने अपने बिस्तर पर पहुंच चुके थे, सारा काम निपटा कर सब पर एक बार नज़र मारती है और जब उसे आभास होता है कि सब सो चुके हैं तो वो अपने टोटके वाले काम पर लग जाती है, तुरंत कमरे में जाकर वो अपनी सास की साड़ी पहनने लगती है
चबूतरे पर प्यारेलाल परेशान हो रहा था एक तो ताड़ी का असर जिसके कारण उसका दिमाग घूम रहा था दूसरी ओर कुंवर पाल ने जो पुड़िया दी थी उसके कारण उसके बदन में एक अलग ही गर्मी और उत्तेजना का संचार हो रहा था, उसका लंड धोती में बिल्कुल तन कर खड़ा था, वो सोने का भरसक प्रयास कर रहा था पर बार बार उसकी नींद खुल जाती थी,
उसकी आंख लगी ही थी कि उसे फिर से कुछ आभास हुआ उसने धीरे से आँखें खोल कर देखा तो एक साया अपने बगल में देखा, अपने घूमते हुए दिमाग के साथ वो समझने का प्रयास करने लगा ये कौन है तो चांद की रोशनी में वो साड़ी दिखी जिसे वो अच्छे से पहचानता था साड़ी का ध्यान आते ही उसके मन में एक नाम गूंज गया, गेंदा मेरी गेंदा, उसकी स्वर्गीय पत्नी।
ताड़ी का असर और पुड़िया की उत्तेजना ने उसे ये भुलावा कर दिया कि उसकी पत्नी तो स्वर्ग सिधार चुकी है, धोती में उसका लंड और कड़क हो गया, वो ध्यान से अपनी पत्नी के साए को देखने लगा जो उसके बिस्तर के पास घूम रही थी,
उसके बगल से होते हुए वो नीचे की ओर गई और फिर दूसरी तरफ आने लगी, कि तभी प्यारे लाल से और संयम नहीं हुआ और प्यारेलाल ने अपनी पत्नी का हाथ पकड़ कर उसे बिस्तर पर खींच लिया, खींचते ही गेंदा की चीख निकली पर प्यारेलाल ने तुरंत ही उसका मुंह अपने हाथ से बंद कर दिया, और उसे बिस्तर पर नीचे दबा कर खुद उसके ऊपर आ गए।
प्यारेलाल: हाय लल्ला की मां, बिल्कुल सही बखत आई है तू, देख कितना तड़प रहा था मैं तेरे लिए।
पर गेंदा उसका कोई जवाब नहीं दे रही थी बल्कि उसको अपने ऊपर से हटाने का प्रयास कर रही थी, पर प्यारे लाल बदन में उससे भारी भी था और बलशाली भी,
प्यारेलाल: तू भी न पहले पास आती भी है और फिर शर्मा के इतने नखरे भी करती है, अब आ गई है तो गेंदा का रस पिए बिना ये भंवरा नहीं मानेगा।
ये कहकर प्यारेलाल ने उसका चेहरा पकड़ कर अपने होंठों को अपनी पत्नी के होंठो से मिला दिया, जिनके मिलते ही गेंदा ने उसे फिर से अपने ऊपर से धकेलने की कोशिश की पर प्यारेलाल के आगे उसका जोर नहीं चल रहा था, हवस और उत्तेजना में पागल प्यारेलाल उसके होंठों को पागलों की तरह चूसने लगा।
उसके दिमाग में वही वर्षों पुरानी यादें चल रहीं थी जहां वो अपनी पत्नी के साथ रात को बिस्तर गरम करता था, उसे अपनी पत्नी आज और जवान लग रही थी उसके होंठ और अधिक रसीले हो गए थे, वैसे हो भी क्यों न क्योंकि जिसके होंठों को वो चूस रहा था वो उसकी पत्नी गेंदा नहीं बल्कि उसकी बहु रत्ना थी।
रत्ना बेचारी अपनी सास की साड़ी पहन कर टोटका कर रही थी, अपने बेटों और पति की खाट पर टोटका करने यानि खाट के चारों पावों पर तेल लगाने के बाद वो दबे पांव बाहर चबूतरे पर आई थी, उसने ससुर पर नज़र डाली तो वो उसे सोते दिखे थे उन्हें देख कर वो अपना काम करने लगी और खाट के पावों को तेल लगाने लगी पर जैसे ही तीसरे पाए से चौथे की ओर बड़ी उसे ससुर जी ने हाथ बढ़ाकर बिस्तर पर खींच लिया, उसकी चीख भी निकली जिसे ससुर जी ने तुरंत हाथ से बंद कर दिया, वो झटपटने लगी अपने आप को ससुर जी से छुड़ाने की कोशिश करने लगी पर ससुरजी उसे नीचे कर खुद उसके ऊपर चढ़ गए, और फिर जब ससुर जी से उसने अपनी सास का नाम सुना तो वो समझ गई कि वो उसे उसकी सास यानी अपनी पत्नी समझ रहे हैं, वो परेशान हो गई उसे समझ नहीं आ रहा था कि वो किस मुश्किल में फंस गई है, क्यों उसके ससुर उसके साथ ऐसा कर रहे हैं, फिर जैसे उसे खुद ही उत्तर मिल गया कि शाम को उसने उन्हें ताड़ी पीते देखा था उसे समझ आ गया कि उसके ससुर नशे में हैं साथ ही उसने भी अपनी सास की साड़ी पहनी है इसलिए ये सब हो रहा है,
वो सोचने लगी आज टोटके की वजह से बहुत बुरी फंसी हूं, उसे कुछ समझ आता इससे पहले ही उसके ससुर के होंठ उसके होंठों पर थे उसे बहुत गलत लगा तो उसने तुरंत अपने ससुर को धक्का लगाने की कोशिश की पर उसकी ससुर के आगे उसका बल कुछ भी नहीं था, उसके ससुर उसके होंठों के रस को पीने लगे और वो उनके नीचे दबी हुई तड़पने लगी, कुछ पल के बाद उसका बदन भी गरम होने लगा, न चाहते हुए भी उसके ससुर के होंठों से उत्तेजना की तरंगें निकल कर उसके पूरे बदन में फैलने लगीं, फिर भी वो किसी तरह से इस सब से निकलना चाहती थी, इसी बीच उसके ससुर के हाथ उसके चेहरे से नीचे सरकने लगे और उसकी छाती तक पहुंच गए तब जाकर उसे आभास हुआ कि वो कितनी बुरी फंस चुकी है क्योंकि छाती पर हाथ पहुंचते ही प्यारेलाल को एहसास हुआ कि गेंदा ने सिर्फ साड़ी लपेट रखी है और कुछ नहीं पहना।
रत्ना मन ही मन खुद को कोसने लगी कि क्यों उसने ये टोटका करने की सोची, ऊपर से उसे सास की सिर्फ साड़ी मिली थी और कुछ नहीं और वो सिर्फ उसे ही बदन पर लपेट कर ये टोटका करती थी, उसके ससुर उसकी साड़ी का पल्लू उसकी छाती से हटाने लगे तो उसने खुद की चूचियों को बचाने के लिए पल्लू को पकड़ लिया दोनों हाथों से और हटाने से रोकने लगी,
प्यारेलाल भी उसके होंठों को चूसना छोड़ उसका पल्लू खींचने में लग गए, रत्ना भी अपना पूरा जोर लगा रही थी पल्लू को रोकने में कि तभी प्यारेलाल ने थोड़ा अपने बदन को ऊपर उठाया और दोबारा से नीचे हो गए और नीचे होते ही रत्ना के मुंह से हल्की सिसकी निकल गई और उसके हाथ पल्लू पर ढीले पड़ गए जिसका फायदा प्यारे लाल ने उठाया और अगले ही पल रत्ना की चूचियां उसके ससुर के सामने बिल्कुल नंगी थीं, लेकिन अभी रत्ना का ध्यान अपनी नंगी चूचियों पर नहीं था बल्कि कहीं और था और वो जगह थी उसकी टांगों के बीच क्योंकि जैसे ही प्यारेलाल थोड़ा हिला डुला था तो उस कारण से उसका कड़क लंड सीधा रत्ना की टांगों के बीच था और रत्ना की चूत पर टक्कर मार रहा था,
उसकी टक्कर से तो रत्ना का पूरा बदन कंप कंपा उठा, प्यारेलाल के लंड और रत्ना की चूत के बीच सिर्फ रत्ना की साड़ी थी क्योंकि प्यारेलाल की धोती तो कब की खुल चुकी थी, रत्ना की चूत की गंध प्यारेलाल के लंड को मिल चुकी थी प्यारेलाल की कमर स्वतः ही धीरे धीरे हिलने लगी जिससे रत्ना की हालत खराब होने लगी क्योंकि प्यारेलाल के हिलने से उसका लंड बार बार रत्न की चूत पर दबाव डालने लगा,
ऊपर प्यारेलाल ने रत्ना की छाती से पल्लू हटा दिया था रत्ना की मोटी मोटी चूचियां चांद की रोशनी में उसके ससुर के सामने थीं, प्यारेलाल ने भी जैसे ही उन सुंदर चूचियों को देखा उसने तुंरत अपना मुंह एक चूची में लगा दिया, वहीं दूसरी को अपने एक हाथ से मसलने लगा, रत्ना जो पहले से ही हैरत में थी जैसे ही ससुर का मुंह चूचियों पर पड़ा वो मचलने लगी, उसका बदन सिहरने लगा, एक ओर वो इस मुसीबत से निकलना चाहती थी पर वहीं उसके बदन पर उसके ससुर की हरकतों का असर हो रहा था, चूचियों के चूसे जाने से उसके बदन में उत्तेजना बढ़ रही थी वहीं चूत पर ठोकर मारता लंड उसके विरोध की दीवार को हर टक्कर पर तोड़ता जा रहा था, उसे यकीन नहीं हों रहा था कि वो घर के बाहर चबूतरे पर खुले आसमान के नीचे अपने ससुर के साथ ये सब कर रही थी,
प्यारेलाल अपने काम में बहुत कुशल था, चूचियों को चूसते हुए उसने अपना एक हाथ नीचे ले जा कर रत्ना की साड़ी को ऊपर खींचने लगा, रत्ना तो अभी अलग ही द्वंद लड़ रही थी अपने ही आप से उसका ध्यान अपने ससुर के हाथ पर तो बिल्कुल नहीं था, धीरे धीरे प्यारेलाल ने उसकी साड़ी को उसकी जांघों पर इकठ्ठा कर दिया पर ये सब करते हुए भी प्यारेलाल ने अपना मुंह उसकी चूची से नहीं हटाया, धीरे धीरे रत्ना की साड़ी उसकी जांघों पर इकट्ठी हो चुकी थी अब बस उसके मोटे चूतड़ों के नीचे दबे होने के कारण ही रुकी हुई थी, पर प्यारेलाल के सिर पर हवस चढ़ी हुई थी और हो भी क्यों न बाबा की पुड़िया का जो असर था, प्यारेलाल ने अपना दूसरा हाथ भी रत्ना की चूची से हटाया और अपने दोनों हाथ नीचे ले जाकर रत्ना की कमर के नीचे फंसा कर उसे थोड़ा ऊपर उठा लिया रत्ना ने भी अनजाने ही अपने ससुर का साथ दे दिया अपनी कमर उठा कर बस इतना समय काफी था प्यारेलाल के अनुभवी हाथों को साड़ी ऊपर करने के लिए, रत्ना की साड़ी उसकी कमर पर इकट्ठी थी और रत्ना को इस बात का आभास तब हुआ जब उसका ससुर का मोटा लौड़ा उसकी गरम चूत से टकराया,
इस स्पर्श से ही वो कांप गई उसे पता ही नहीं चला था कि उसकी साड़ी कब कमर से ऊपर उठ गई थी, स्पर्श होते ही उसका पूरा बदन झनझना उठा उसे विश्वास ही नहीं हो रहा था उसके ससुर का लंड उसकी चूत पर है, पर इस आभास ने उसे झकझोर दिया कि जो हो रहा है बहुत गलत है महापाप है अभी भी ये सब होने से रोक ले रत्ना, और उसी आवाज़ को सुनकर उसने भी तुरंत नीचे हाथ बढ़ाया अपने ससुर को रोकने के लिए अपनी चूत को अपने ससुर के लंड से बचाने के लिए,
पर अक्सर कई बार होता है कि आप जीवन में कुछ करने का भरसक प्रयास करते हो पर आपके हाथ सिर्फ लौड़े लगते हैं रत्ना के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ हाथ तो उसने अपनी चूत को बचाने के लिए बढ़ाया था पर उसके हाथ में आ गया उसके ससुर का कड़क गरम मोटा लोड़ा, जिसके हाथ में आते ही रत्ना के पूरे बदन में बिजली दौड़ गई उसे ऐसा लगा जैसे उसके हाथ में बिजली का कोई खंभा है जिससे बिजली निकल रही है और पूरे बदन में उत्तेजना भर रही है, उसकी चूत गीली होने लगी, वहीं प्यारेलाल लंड पर हाथ महसूस कर और जोश में आ गया और कमर हिला हिला कर हाथ को ही चोदने लगा,
अब परिस्थिति कुछ ऐसी थी कि प्यारेलाल के मुंह में रत्ना की चूची थी वहीं रत्ना के हाथ में उसके ससुर का कड़क लंड था ज्यों ज्यों प्यारेलाल कमर को आगे कर झटका मारता तो उसका लंड रत्ना के हाथ में आगे पीछे होता जैसे रत्ना उसे मुठिया रही हो वहीं लंड का टोपा उसकी मुट्ठी से आगे निकल कर हर झटके पर रत्ना की चूत से टकराता, और हर झटके पर रत्ना का बुरा हाल हो रहा था, उसे पता था कि सब कितना गलत हो रहा है पर फिर भी उसका बदन उसका साथ नहीं दे रहा था, चूत के ऊपर पड़ रहे लंड के वार से उसका विरोध कमज़ोर पड़ता जा रहा था, इसी बीच प्यारेलाल ने उसकी चूची को मुंह से निकाला और चेहरा ऊपर कर फिर से उसके होंठों को चूसने लगा, रत्ना के मन में अब ससुर को रोकने जैसा तो कोई विचार ही नहीं आ रहा था वो बस खुद को रोकने की कोशिश कर रही थी खुद को रोके इस वासना में बहने से पर हर बढ़ते पल के साथ ये मुश्किल होता जा रहा था, उसे खुद पता नहीं चला कि वो खुद कब अपने ससुर का साथ देने लगी उसके होंठ चूसने में, वो इतनी उत्तेजित हो गई कि जिस हाथ से उसने अपने ससुर का लंड रोकने के लिए पकड़ रखा था उसी हाथ से उसने लंड को अपनी चूत के द्वार पर रख दिया और हाथ हटा लिया बाकी का काम प्यारेलाल के धक्के ने कर दिया और प्यारेलाल का लंड सरसराता हुआ उसकी बहु की चूत में घुस गया, रत्ना के मुंह से एक चीख तो निकली पर वो उसके ससुर के मुंह में ही घुट के रह गई, प्यारेलाल को भी लंड चूत में घुसने का आभास हुआ तो वो भी उत्तेजित होकर गुर्राया, और अपना मुंह रत्ना के मुंह से हटाया और फिर आँखें बंद कर अपनी कमर चलाने लगा, और अपनी बहु की चूत में जिसे वो अपनी स्वर्गीय पत्नी समझ रहा था उसे चोदने लगा, वैसे प्यारेलाल का हवस में यूं पागल होना स्वाभाविक था क्योंकि वर्षों बाद आज उसे चूत मिल रही थी चोदने को ऊपर से पुड़िया का असर तो वो आंखें मूंद कर अपने वर्षों की गर्मी दनादन धक्का लगाकर निकालने लगा,
वैसे आंखें तो रत्ना की भी बंद थी, एक तो पहली बार जीवन में अपने पति के अलावा किसी का लंड उसने लिया था और वो भी अपने ससुर का, और उसका ससुर तो उसे पागलों की तरह चोद रहा था एक साथ उसके अंदर इतने सारे भाव आ रहे थे खुद से घृणा भी हो रही थी तो चूत में अंदर बाहर होता लंड उसे एक अलग ही मज़ा दे रहा था, हर बढ़ते पल के साथ उसकी उत्तेजना बढ़ती जा रही थी, और एक पल ऐसा आया जब वो सब भुला कर अपने ससुर की चुदाई का आनंद लेने लगी, हालांकि उसका पति भी महीने में एक आध बार उसे खूब अच्छे से चोदता था पर अभी जो उत्तेजना उसे ससुर के साथ महसूस हो रही थी वो पति के साथ नहीं हुई थी, ये वही एहसास था जो कुछ गलत करने पर मन को एक उत्साह का आभास कराता है, रत्ना को भी यही हो रहा था, प्यारेलाल गुर्राते हुए अपनी बहु को ताबड़तोड़ चोद रहा था, और उस चुदाई का असर रत्ना पर भी भर पूर हो रहा था, घर के बाहर चबूतरे पर वो अपने ससुर से चुदवा रही थी, इस एहसास से ही वो सिहर रही थी और अंत में उसकी उत्तेजना उसके शिखर पर पहुंच गई और वो स्खलित होते हुए पानी छोड़ने लगी, इधर प्यारेलाल ने भी कुछ झटके और लगाए और फिर उसने भी अपना रस अपनी बहु की चूत में भर दिया, झड़ने के बाद प्यारेलाल तो रत्ना के ऊपर ही गिर गया, नशा और झड़ने के बाद के आलस ने उसे तुरंत नींद में पहुंचा दिया, उसका लंड सिकुड़ कर रत्ना की चूत से बाहर आ गया, रत्ना को भी अब फिर से वास्तविकता का एहसास होने लगा तो वो परेशान होने लगी।
घबराते हुए उसने धक्का देकर अपने ससुर को अपने ऊपर से हटाया और बिस्तर से उठ कर अंदर की ओर भागी उसकी साड़ी प्यारेलाल के नीचे दब कर वहीं रह गई वो नंगी ही घर के अंदर की ओर भागी, आंखों में आंसुओं की धार बह रही थी, और मन जैसे फटने को हो रहा था और हों भी क्यों न कहां कुछ देर पहले तक वो एक संस्कारी पतिव्रता औरत थी और कहां उसने अपने पति को धोखा देकर किसी और से चुदवा लिया था और वो भी कोई और नहीं अपने ससुर से।
अंदर आकर वो सीधे कमरे में गई और बिस्तर पर लेट कर सुबकने लगी, काफी देर तक रोने के बाद उसे एहसास हुआ कि वो अभी भी नंगी है तो उसने तुरंत उठ कर कपड़े पहने और रोते रोते ही सो गई।
जारी रहेगी