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Jaise main bhi ek do item song director dal deta hai.kyunki film kaise bhi karke hit ho I chahiye.or dusra trend bhi yahi chal raha hai isi tarah se achhi story main agar pics or gif bhi ho to story padne ka maza doguna ho jata hai. or Aaj kal trend bhi chal Raha hai.to plz pics or gif bhi dalo plzपिछले कुछ दिनों में pic और gifs आदि डालने की कई बार सिफ़ारिश हुई है, तो आप लोगों का क्या मानना है कि क्या पिक्चर और gifs डालना सही है, वैसे मेरी व्यक्तिगत राय तो ये है कि बिना इन सब के ही कहानी अच्छी लगती है, पाठक को खुद की कल्पना के द्वार खोलने का मौका मिलता है जो वो अपने आप से अपनी पसन्द से कर सकते हैं, अपने विचार रखिए।
बहुत ही मस्त और गजब का अपडेट हैं भाई मजा आ गयाअध्याय 3
कहानी सुनते सुनते लल्लू और नंदिनी सो गए तो कुंवर पाल ने भी आंखें मूंद ली और नींद की गहराई में खो गए, सब नींद के आगोश में चले गए सिर्फ मगन के जो कि हर बार की तरह ही सबके सोने के बाद अपनी खाट से आहिस्ता से उठे और धीरे धीरे कमरे की ओर बढ़ गए जहां उनकी पत्नी लता सो रही थी, अब आगे...
मगन हल्के कदमों से चलते हुए कमरे के बाहर पहुंचा और फिर सावधानी से किवाड़ को धीरे से धकेलते हुए खोल कर अंदर घुस गया और फिर तुरंत किवाड़ को वैसे ही बंद कर दिया वैसे भी ये उसका लगभग रोज का ही काम था, कमरे के अंदर मिट्टी के तेल का एक दिया जल रहा था जिससे निकलती पीली रोशनी कमरे में बिखरी हुई थी, मगन ने किवाड़ लगाकर मुड़कर देखा तो उसकी नज़र बिस्तर पर पड़ी और देख कर वो रुक गया,
बिस्तर पर लता उसकी पत्नी लेटी हुई सो रही थी, उसे सोते देख मगन के होंठो पर मुस्कान फैल गई, कितनी सुंदर लग रही थी लता सोते हुए, मगन सोचने लगा ये वही छरहरी सी लड़की है जिसे वो बीस बरस पहले ब्याह के लाया था, सोलह बरस की बिलकुल भोली सी नाजुक सी गुड़िया थी, बदन बिलकुल पतला सा था नंदिनी अभी जैसी लगती है उससे भी आधी लगती थी, पर आज देखो बीस बरस बाद दो संतानों को जन्म देने के बाद उसका बदन बिलकुल भर गया था,
सोते होने की वजह से लता का पल्लू नीचे सरका हुआ था, मगन की नजर अपनी पत्नी की छाती पर पड़ी जहां ब्याह के समय तो बस चुचियों के नाम पर सिर्फ तिकोनी सी छाया थी अब वहां ब्लाउज में बंद दो पपीते थे, उसकी चूचियों के भारीपन की कहानी तो उसका ब्लाउज कह रहा था जो कि उसकी हर सांस के साथ ऊपर नीचे हो रहा था, और इस कदर चूचियों पर कसा हुआ था कि लग रहा था कि लता ने थोड़ी तेज से सांस ली तो अभी सारे बटन टूट कर गिर जायेंगे और उसकी चूचियां कैद से आजाद हो जाएंगी।
ब्लाउज के नीचे उसका गोरा भरा हुआ पेट था, पर पेट पर चर्बी उतनी थी जिसे मोटापा नहीं कहा जा सकता, कमर में पड़ी हुई सिलवट उसकी कमर की कामुकता को और बढ़ाती थी, तभी लता ने एक और करवट बदली और अपनी पीठ मगन की ओर करदी, जिससे मगन के सामने उसकी पत्नी का एक और खजाना या गया, लता की फैली हुई गांड का मगन दीवाना था, अभी भी साड़ी में लिपटी देख मगन का लंड लुंगी में ठुमके मार रहा था, ऐसी गोल मटोल और भरी हुई गांड थी लता की कि मानो लगता था साड़ी के अंदर दो तरबूज छुपा रखे हों, पिछले बीस बरस से भोगने के बाद भी लता का कामुक भरा हुआ गदराया बदन देख कर मगन का लंड आज भी हिचकोले मरने लगता था, वैसे सच कहा जाए तो सिर्फ मगन का ही नहीं गांव के सारे मर्द ही लता को देख आहें भरते थे।
मगन अपने ख्यालों की दुनिया से बाहर आया और बिस्तर की ओर बढ़ा, दोनों पति पत्नी का हर रात का यही कार्यक्रम होता था, बाहर सबके सोने के बाद मगन छुपके से कमरे में आता था और फिर अपनी पत्नी के भरे गदराये बदन को खूब भोगता था, आज भी वैसा ही कुछ होना था पर लता आज इंतज़ार करते हुए सो गई थी, मगन बिस्तर के पास पहुंचा और उसने लता के चेहरे को देखा, मगन खुद को बहुत भाग्यशाली मानता था जो उसे इतनी सुंदर पत्नी मिली थी, गोरे रंग की लता के नैन नक्श बड़े सुंदर थे जिन्हें मगन अभी एक तक देखे जा रहा था, लता के मुलायम रसीले होंठों को देखकर ही मगन के मुंह में पानी आने लगा और वो खुद को रोक नहीं पाया और मुंह आगे लेजाकर उसने अपने होंठों को लता के होंठों से मिला दिया, और उनका रस पीने लगा, लता शायद आज ज़्यादा ही नींद में थी जो कि उसके होंठों को चूसे जाने पर भी उसकी नींद नहीं टूट रही थी, मगन अपनी पत्नी के रसीले होंठों को चूसते हुए अपने हाथ को उसके चिकने भरे हुए पेट पर रख कर सहलाने लगा, कुछ पल लता के होंठो को चूसने के बाद मगन ने उन्हें छोड़ा और फिर लता के कामुक भरे हुए पेट को सहलाते हुए झुका और झुककर अपने होंठों को उसके पेट पर टिका दिया और उसके पेट को चाटने लगा, लता अपनी साड़ी नाभी से ऊपर बांधती थी, अब गांवों में तो ऐसे ही बांधी जाती थी क्यूंकि नाभी को औरत का कामुक हिस्सा माना जाता है, और उस हिस्से को सिर्फ प्रेमी या पति ही देखे ऐसा माना जाता था, नाभी से तीन इंच नीचे बांधने का दौर तो उस समय शहर में भी नहीं आया था,
लता के पेट को चाटते हुए मगन का मन हुआ लता की नाभी से खेलने का, उसे लता की नाभी बहुत पसंद थी, उसके भरे हुए पेट के बीच एक गोल कुएं जैसी नाभी उसके पेट की सुन्दरता में चार चांद लगा देती थी, मगन ने धीरे से लता की कमर के दोनों ओर उसकी साड़ी में उंगलियों को फंसाया और उसे नीचे की ओर खिसकाने की कोशिश करने लगा एक दो बार के प्रयास के बाद मगन को सफलता भी मिली और साड़ी थोड़ी ढीली हो गई जिससे इतनी नीचे खिसक गई की लता की सुंदर गोल गहरी नाभी उसके सामने आ गई, जिसे देख कर मगन खुद को रोक नहीं पाया और अपना मुंह नाभी पर लगा कर अपनी जीभ से नाभी को चूसने लगा, लता को नाभी पर जैसे ही ये एहसास हुआ वो नींद में भी कसमसाने लगी और कुछ ही पलों में उसकी नींद भी खुल गई।
लता ने आंखें खोल कर देखा तो पाया कि उसका पति बिस्तर के नीचे घुटने टिकाकर उसके पर झुककर उसकी नाभी को जीभ से चूस रहा है, लता का एक हाथ उठकर मगन के सिर पर पहुंच गया और उसके बालों में हाथ फिराते हुए वो बोली: अह्ह्ह्ह जी, आप भी ना, कम से कम एक दिन तो आराम से सो जाते।
मगन को जब ज्ञात हुआ कि लता जाग गई है तो उसकी नाभी से मुंह हटाकर और उसके पेट को सहलाते हुए वो बोला: तुम्हें तो पता है मेरी रानी जब तक तुम्हारा प्यार ना मिले मुझे नींद नहीं आती।
लता ये सुनकर मुस्कुरा कर बोली: हां जानती हूं कैसा प्यार है तुम्हारा, हवस को प्यार का नाम देते हो,
मगन: वो तो अपना अपना नज़रिया है कोई उसे हवस कहता है और कोई प्रेम। तुम नहीं चाहती मैं तुम्हें प्यार करूं?
मगन भी ऊपर होकर लता को बाहों में भर कर बिस्तर पर ही लेट गया,
लता: मैं तो बस तुम्हारे लिए कहती हूं, दिन भर तुम खेत में मेहनत करते हो और फिर रात को मुझपर, कहीं कमज़ोर हो गए तो?
लता ने प्यार से मगन के नंगे सीने पर हाथ फिराते हुए कहा।
मगन: अरे मेरी भोली रानी, खेत की मेहनत से मैं थकता हूं, पर तुम्हारे साथ मेहनत करने से मेरी सारी थकान मिट जाती है,
लता: बातों में तुमसे मैं आज तक जीती हूं जो आज जीतूंगी,
मगन: तो समय क्यों गंवा रही हो,
मगन आगे होकर लता के होंठो को फिर से जकड़ लेता है इस बार लता भी उसका पूरी तरह साथ देने लगती है, वैसे लता मगन को थोड़े बहुत नखरे ज़रूर दिखाती थी चुदाई से पहले पर उसे भी चुदाई की उतनी ही तलब होती थी जितनी मगन को, पिछले बीस बरसो से कुछ ही रातें ऐसी बीती होंगी जब दोनों ने एक दूसरे के साथ चुदाई का ये खेल न खेला हो, तो लता को भी ऐसी आदत लग चुकी थी कि अब एक रात बिना चुदे गुजारना उसके लिए भी मुस्किल होता था, उसे मगन के लंड की ऐसी लत लगी थी की जब तक उसे वो अपनी गीली गरम चूत में ना ले ले उसे आराम नहीं मिलता था, दोनों एक दूसरे के होंठों को ऐसे चूस रहे थे मानों वर्षों से बिछड़े हुए प्रेमी आज मिले हों, मगन के हाथ लता की कमर से होते हुए उसके पीछे पहुंच गए और वो लता के मांसल गोल मटोल चूतड़ों को मसलने लगा, लता भी पीछे नहीं थी उसका हाथ भी मगन की धोती के अंदर घुस चुका था और मगन के कच्छे के ऊपर से उसके कड़क लंड को सहला रहा था, दोनों के होंठ अलग हुए तो चिंगारी और भड़क उठी थी, मगन ने अपनी पत्नी की आंखों में देखा और कहा: अब रहा नही जा रहा अह्ह्ह,
लता: तो मत रहो न मेरे राजा ओह्ह्ह्ह, घुसा दो ना अपना मूसल मेरी ओखली में और पीस दो ना मेरा बदन।
मगन ये सुनकर और उत्तेजित हो उठा और तुरंत उसने उठकर अपनी लुंगी और कच्छे को निकल फेंका और पूरा नंगा होकर लता के पैरों में लिपटी साड़ी को पेटीकोट समेत ऊपर की तरफ उठा कर चढ़ाने लगा जिसमें लता ने भी अपने मोटे चूतड़ों को उठाकर चढ़ाने में मदद की, कुछ ही पलों में लता की साड़ी और पेटिकोट उसकी कमर पर चढ़ा हुआ था, और उसकी रसीली गरम चूत उसके पति के सामने थी उस समय गांव की औरतों के लिए चड्डी या आजकल की भाषा में कहें तो पैंटी पहनना उतना ही दूभर था जितना गांव में बिजली का होना, ख़ैर लता की चूत मगन के सामने थी जो कि दूर से ही गीली नजर आ रही थी, मगन ने भी देर नहीं की और तुरंत लता के ऊपर चढ़ गया और अपने लंड पर थूक लगा कर उसे लता की चूत के द्वार से भिड़ाया और फिर अंदर धकेल दिया, लता के हाथ मगन की पीठ पर कस गए जब उसकी चूत में घुसते लंड का एहसास हुआ तो, दो तीन झटको में मगन ने अपना पूरा लंड लता की चूत में उतार दिया, और फिर लय बनाकर थापें लगाने लगा, इस बात का ध्यान रखते हुए कि आवाज़ बाहर न जाए।
लता: अह्ह्ह्ह्ह लल्लू ओह्ह्ह के पापा अह्ह्ह्ह उहम्म्म।
मगन: ओह्ह्ह्ह् मज़ा आ रहा है अह्ह्ह्हह रानी, उह्ह्ह्ह क्या चूत है तुम्हारी, अह्ह्ह्ह्।
मगन ने थोड़ा ऊपर होकर ब्लाउज के बटन खोलने की कोशिश करते हुए कहा, जिसमें खुद लता ने मदद कर दी और खुद ही ब्लाउज के बटन खोल दिए, ब्लाउज के खुलते ही लता की चूचियां बाहर कूद पड़ीं जिन्हे तुरंत मगन ने अपने एक एक हाथ में जकड़ लिया, पर लता की चूचियां एक हाथ में कहां सामने वाली थीं,
लता: ओह्ह तुम्हारी ही है मेरे राजा, अह्ह्ह् मेरे चोदू राजा चोदते जाओ, अह्ह्ह्ह।
मगन: हां अह्ह्ह्ह्ह चोदूंगा मेरी रानी, अह्ह्ह्ह्ह चोद चोद के सारी खुजली मिटा दूंगा, अह्ह्ह्ह्ह।
मगन लता की चूचियों को मसलते हुए उसकी चूत में धक्के लगाते हुए आहें भरते हुए बोला,
ऐसी ही आहें निकलवाने वाली चुदाई काफी देर तक चली और फिर अपनी पत्नी की चूत को अपने रस से भरने के बाद मगन शांत हुआ, लता तो पहले ही दो बार झड़ चुकी थी, खैर चुदाई खत्म हुई तो मगन चुपचाप उठ कर बाहर आकर अपनी खाट पर सो गया।
इधर कुछ देर पहले की ही बात है छोटू खाना पीना खाकर आंगन में लेटा हुआ था, उसके घर में अगल बगल लेते हुए सब सो चुके थे, पर उसकी आंखों से नींद गायब थी क्योंकि उसके दिमाग में कुछ और ही द्वंद चल रहा था,
छोटू(मन में): अरे यार क्या करूं, आज जल्दी सो जाऊं?, कल जल्दी उठना भी है, कुछ समझ नहीं आ रहा, सोने का मन भी नही कर रहा।
छोटू कुछ पल सोचते हुए अपना सिर उठा कर इधर उधर देखता है तो पाता है सब सो रहे हैं, ये देखकर वो वापिस सिर नीचे कर के लेट जाता है और कुछ सोचने लगता है, कुछ पल बाद वो खाट पर उठ कर बैठ जाता है, और थोड़ा इंतज़ार करने के बाद धीरे धीरे खाट से उतरता है ताकि ज़्यादा आवाज़ न हो। खाट से उतर कर वो सावधानी से इधर उधर देखता है और फिर दबे पांव जहां जानवर बांधते हैं उस ओर चल देता है, वहां जाकर एक बार फिर से आंगन में नज़र मारकर वो सुनिश्चित करता है कि सब सो रहे हैं कि नहीं, सब ठीक जान कर वो एक कोने की ओर आता है और दीवार के सहारे जो भूसा और चारे के बोरे रखे थे उन पर चढ़ने लगता है, और जल्दी ही चढ़ने में सफल हो जाता है, बोरे पर खड़े हो कर वो थोड़ा उचक कर दीवार में बने मोखले में अपना सिर लगा देता है, और दूसरी ओर का दृश्य देख कर एक बार फिर से उसके बदन में रोज की तरह बिजली दौड़ने लगती है,
सीधे से बात की जाए तो ये है कि छोटू के घर में दो ही कमरे हैं एक में उसका परिवार रहता है और दूसरे में उसके चाचा चाची का, जानवरों के लिए पड़ा छप्पर जो है वो उसके चाचा संजय के कमरे की एक दीवार से टिका हुआ है और उसी तरफ कमरे का एक मौखला या रोशनदान भी था तो हमारे छोटू उस्ताद उसी मौखले का भरपूर फायदा उठा रहे हैं, वैसे उठाएं भी क्यों न जब सामने का दृश्य इतना मनोहर और कामुक हो तो,
छोटू देखता है कि कमरे में एक दिया जल रहा है और उसकी रोशनी में उसे बिस्तर पर अपनी चाची सुधा दिखती हैं जो बिल्कुल नंगी हैं और उनके नीचे चाचा भी दिखते हैं जो कि पूरा नंगे हैं, और अभी चाची अपनी चूत में चाचा का लंड लेकर उछल रही हैं, पर छोटू का सारा ध्यान तो चाची की मोटी चूचियों पर है जो हर झटके के साथ ऊपर नीचे हो रही हैं, चाची का सपाट पेट उसके बीच गोल गहरी नाभी अह्ह्ह्ह्ह ये देख छोटू के पूरे बदन में झुरझुरी होने लगती है, तभी उसके चाचा हाथ ऊपर लाकर चाची की चूचियों को मसलने लगते हैं, तो छोटू को अपने चाचा की किस्मत से जलन होने लगती है, छोटू का हाथ अपने आप ही पजामे में पहुंच भी जाता है और पजामे के अंदर ठुमकते उसके कड़क लंड को बाहर निकाल लाता है, छोटू की नजर तो अंदर ही टिकी रहती है, इसका फायदा उसका लंड उठता है और हाथ को आदेश करता है तो हाथ तुरंत ही उसे मुठियाना शुरू कर देता है,
पिछले कुछ दिनों से ही ताका झांकी का प्रोग्राम शुरू हुआ था और इसी कारण से छोटू सुबह उठने में लेट हो जाता था, क्योंकि रात को अपने चाचा चाची की चुदाई देखकर खुद को शांत करके सोना आप समझ ही सकते हैं कितनी मेहनत का काम है, हालांकि पहले दिन छोटू को बहुत ग्लानि हुई कि वो अपने मां बाप जैसे चाचा चाची को इस अवस्था में देख रहा है और उनके बारे में गलत विचार ला रहा है, उसने खुद के खूब कोसा, और प्रण भी लिया की आगे से ऐसा नहीं करूंगा, पर काम के आगे किसकी चली है, और ये तो ठहरा अपना छोटू, तो तब से ही झड़ने के बाद बेचारा रोज दृढ़ निश्चय करता कि अब से नहीं करूंगा, पर अगली रात फिर से आ जाता अपनी जगह।
वैसी ही रात आज थी पर आज की रात कुछ खास भी थी, क्योंकि अब तक जितनी बार भी उसने चाचा चाची की चुदाई देखी थी तो उसमे सुधा चाची को पूरा नंगा नहीं देखा था खास कर उनकी छाती को, क्यूंकि चुदते हुए भी वो ब्लाउज पहने रखती थी, पर आज वो पूरी नंगी थी, और उनकी उन्नत चूचियों की उछल कूद देख आज छोटू का मन गुलाठी मार रहा था, वो आज कुछ ज्यादा ही जोश में आ रहा था, और उसका हाथ भी उसी तेजी से उसके लंड पर चल रहा था, उसने एक पल को अपने हाथ को रोका और दोनों हाथों से अपने पजामे को कमर से नीचे सरका दिया, सुधा चाची को नंगा देख कर उसे भी नंगा होने का मन किया तो उसने तुरंत पजामे को पैरों में सरका दिया और फिर पैरों से भी एक एक पैर करके निकलने लगा, पर उसका सारा ध्यान कमरे के अंदर था, जैसे ही उसने पजामे से पैर बाहर निकाल कर रखा तो उसका पैर बोरे पर पड़ने की जगह पजामे पर ही पड़ गया और वो तुरंत नीचे सरकता हुआ आने लगा और उसके साथ ही बोरे भी, अचानक ये होने से उसकी गांड फट गई की कहीं आवाज सुन कर चाचा चाची को न पता चल जाए, अगले ही पल पहले बोरा गिरा और उसके ऊपर छोटू, पर क्योंकि बोरा भुस का था तो ज़्यादा आवाज़ नहीं हुई और नहीं छोटू को चोट लगी पर छोटू की गांड डर के मारे लूप लूप करने लगी, उसने सोचा अगर किसी ने भुस को ऐसे देखा तो कोई भी समझ जाएगा, वैसे भी कहते हैं ना कि चोर की दाढ़ी में तिनका वोही हाल छोटू का था,
वो तुरंत उठा और भुस का बोरा उठा कर जैसा था वैसा रखने लगा ये सब करते हुए उसे याद नहीं रहा कि वो नीचे से नंगा है उसका पजामा उतरा हुआ पड़ा है, पर छोटू ने तुरंत ही बोरे को जैसा था वैसा रख दिया रख कर हाथ जैसे ही हटाया कि उसे एक आवाज़ आई और उसे लगा आज उसका आखिरी दिन होने वाला है, और उसी पल उसकी नज़र नीचे पड़े पजामे पर पड़ी तो उसे याद आया वो नीचे से नंगा भी है, छोटू के तो मानो तोते उड़ गए ये सोचकर कि किसी ने उसे इस हालत में यहां देख लिया तो क्या होगा, बस यही सोचकर छोटू ने तुरंत पजामा उठाया और दूसरी ओर लपका, इधर बेचारी भैंस जो बोरे गिरने की वजह उठ गई थी उसने अचानक से छोटू को सफेद पजामा लहराते आता देखा तो वो डर गई, छोटू ने उसकी ओर ध्यान नहीं दिया पर जैसे ही छोटू भैंस के पास आया भैंस ने सिर झुकाकर छोटू को अपने सींगों में टांग कर फेंक दिया और छोटू उछल कर सीधा दूसरी भैंस पर गिरा जो अपने ऊपर छोटू के गिरते ही चिल्लाने लगी, छोटू का पजामा उछल कर छप्पर में अटक गया, और छोटू भैंस से टकराकर नीचे से नंगा होकर नीचे पड़ा था,
ये सब आवाज़ सुनकर आंगन में जो भी सोए थे तुरंत उठकर भागे, और पास आने लगे तो छोटू की गांड फट गई की अब क्या होगा तो अंत में उसे कुछ नहीं सूझा तो उसे बस एक उपाय दिखा, इधर उसकी दादी दादा मां बाप साथ ही उसके चाचा का बेटा राजेश और बेटी नीलम ये सब भी तेज़ी से दौड़ कर उसके पास पहुंचे,
राजेश: अरे क्या हुआ,
सोमपाल: कुछ आवाज़ आई
सुभाष: हां भैंस भी चिल्लाई,
सारे लोग तुरंत भैंस के पीछे आकर देखते हैं तो दंग रह जाते हैं छोटू नीचे पड़ा हुआ है नीचे से बिल्कुल नंगा ऊपर एक बनियान है और सो रहा है, छोटू को इस हालत में देख नीलम मुंह फेर लेती है और पीछे मुड़ जाती है, किसी को समझ नहीं आता क्या हो रहा है,
सुभाष: ए छोटू ए यहां क्या कर रहा है ऐसे उठ?
पर छोटू वैसा ही पड़ा रहता है और कुछ प्रतिक्रिया नहीं देता, बाकी सब भी उसे जगाने की कोशिश करते हैं पर छोटू कोई प्रतिक्रिया नहीं देता, राजेश छप्पर से उसका पजामा उतरता है और वो और सुभाष मिलकर उसे पहनाते हैं, इतने में सुधा और संजय भी बाहर आ जाते हैं, छोटू को फिर उठाकर बिस्तर पर लिटाया जाता है, छोटू अभी भी आंखें मीचे पड़ा हुआ है, उसकी मां पुष्पा तो रोना शुरू कर देती है: हाय हमारे लाल को क्या हो गया हाय हमारे लाल को क्या हो गया,
उसकी मां तो सिर्फ रोती हैं, पर उसकी दादी फुलवा तो आस पास भटकती आत्माओं और भूत प्रेतों को गाली सुनाने लगती हैं,
फुलवा: हमारी मानो ये जरूर उस उदयभान की लुगाई का काम है, कलमुही ज़िंदा रही तो भी गांव के लड़कों को अपने जाल में फांसती रही, रांड को मरने के बाद भी चैन नहीं, आ इतनी प्यास है तो सामने आ तेरी सारी प्यास बुझा दूंगी, छिनाल, नासपीटी।
सुभाष : शांत हो जाओ अम्मा।
फुलवा: अरे शांत कैसे हो जाऊं, उस दारी ने हमारे लल्ला को पकड़ा है, हमारे नाती को, छिनार को मरने के बाद भी चैन नहीं लेने दूंगी, कल ही इसका इलाज़ करवाती हूं,
छोटू मन ही मन सोच रहा था बच गया, हालांकि उदयभान की मृतक लुगाई को उसके कारण क्या क्या सुनना पड़ रहा था , पर छोटू ने मन ही मन उससे माफी मांगी की तुम तो मर ही गई हो मुझे ज़िंदा रहना है तो तुम्हारा सहारा लेना पड़ेगा। छोटू को मन ही मन ये उपाय ही ठीक लगा क्योंकि कौनसा उदयभान की लुगाई अपनी सफाई पेश करने आ रही थी।
आगे अगले अध्याय में, अपनी प्रतिक्रिया ज़रूर दें।
Nice updateअध्याय 3
कहानी सुनते सुनते लल्लू और नंदिनी सो गए तो कुंवर पाल ने भी आंखें मूंद ली और नींद की गहराई में खो गए, सब नींद के आगोश में चले गए सिर्फ मगन के जो कि हर बार की तरह ही सबके सोने के बाद अपनी खाट से आहिस्ता से उठे और धीरे धीरे कमरे की ओर बढ़ गए जहां उनकी पत्नी लता सो रही थी, अब आगे...
मगन हल्के कदमों से चलते हुए कमरे के बाहर पहुंचा और फिर सावधानी से किवाड़ को धीरे से धकेलते हुए खोल कर अंदर घुस गया और फिर तुरंत किवाड़ को वैसे ही बंद कर दिया वैसे भी ये उसका लगभग रोज का ही काम था, कमरे के अंदर मिट्टी के तेल का एक दिया जल रहा था जिससे निकलती पीली रोशनी कमरे में बिखरी हुई थी, मगन ने किवाड़ लगाकर मुड़कर देखा तो उसकी नज़र बिस्तर पर पड़ी और देख कर वो रुक गया,
बिस्तर पर लता उसकी पत्नी लेटी हुई सो रही थी, उसे सोते देख मगन के होंठो पर मुस्कान फैल गई, कितनी सुंदर लग रही थी लता सोते हुए, मगन सोचने लगा ये वही छरहरी सी लड़की है जिसे वो बीस बरस पहले ब्याह के लाया था, सोलह बरस की बिलकुल भोली सी नाजुक सी गुड़िया थी, बदन बिलकुल पतला सा था नंदिनी अभी जैसी लगती है उससे भी आधी लगती थी, पर आज देखो बीस बरस बाद दो संतानों को जन्म देने के बाद उसका बदन बिलकुल भर गया था,
सोते होने की वजह से लता का पल्लू नीचे सरका हुआ था, मगन की नजर अपनी पत्नी की छाती पर पड़ी जहां ब्याह के समय तो बस चुचियों के नाम पर सिर्फ तिकोनी सी छाया थी अब वहां ब्लाउज में बंद दो पपीते थे, उसकी चूचियों के भारीपन की कहानी तो उसका ब्लाउज कह रहा था जो कि उसकी हर सांस के साथ ऊपर नीचे हो रहा था, और इस कदर चूचियों पर कसा हुआ था कि लग रहा था कि लता ने थोड़ी तेज से सांस ली तो अभी सारे बटन टूट कर गिर जायेंगे और उसकी चूचियां कैद से आजाद हो जाएंगी।
ब्लाउज के नीचे उसका गोरा भरा हुआ पेट था, पर पेट पर चर्बी उतनी थी जिसे मोटापा नहीं कहा जा सकता, कमर में पड़ी हुई सिलवट उसकी कमर की कामुकता को और बढ़ाती थी, तभी लता ने एक और करवट बदली और अपनी पीठ मगन की ओर करदी, जिससे मगन के सामने उसकी पत्नी का एक और खजाना या गया, लता की फैली हुई गांड का मगन दीवाना था, अभी भी साड़ी में लिपटी देख मगन का लंड लुंगी में ठुमके मार रहा था, ऐसी गोल मटोल और भरी हुई गांड थी लता की कि मानो लगता था साड़ी के अंदर दो तरबूज छुपा रखे हों, पिछले बीस बरस से भोगने के बाद भी लता का कामुक भरा हुआ गदराया बदन देख कर मगन का लंड आज भी हिचकोले मरने लगता था, वैसे सच कहा जाए तो सिर्फ मगन का ही नहीं गांव के सारे मर्द ही लता को देख आहें भरते थे।
मगन अपने ख्यालों की दुनिया से बाहर आया और बिस्तर की ओर बढ़ा, दोनों पति पत्नी का हर रात का यही कार्यक्रम होता था, बाहर सबके सोने के बाद मगन छुपके से कमरे में आता था और फिर अपनी पत्नी के भरे गदराये बदन को खूब भोगता था, आज भी वैसा ही कुछ होना था पर लता आज इंतज़ार करते हुए सो गई थी, मगन बिस्तर के पास पहुंचा और उसने लता के चेहरे को देखा, मगन खुद को बहुत भाग्यशाली मानता था जो उसे इतनी सुंदर पत्नी मिली थी, गोरे रंग की लता के नैन नक्श बड़े सुंदर थे जिन्हें मगन अभी एक तक देखे जा रहा था, लता के मुलायम रसीले होंठों को देखकर ही मगन के मुंह में पानी आने लगा और वो खुद को रोक नहीं पाया और मुंह आगे लेजाकर उसने अपने होंठों को लता के होंठों से मिला दिया, और उनका रस पीने लगा, लता शायद आज ज़्यादा ही नींद में थी जो कि उसके होंठों को चूसे जाने पर भी उसकी नींद नहीं टूट रही थी, मगन अपनी पत्नी के रसीले होंठों को चूसते हुए अपने हाथ को उसके चिकने भरे हुए पेट पर रख कर सहलाने लगा, कुछ पल लता के होंठो को चूसने के बाद मगन ने उन्हें छोड़ा और फिर लता के कामुक भरे हुए पेट को सहलाते हुए झुका और झुककर अपने होंठों को उसके पेट पर टिका दिया और उसके पेट को चाटने लगा, लता अपनी साड़ी नाभी से ऊपर बांधती थी, अब गांवों में तो ऐसे ही बांधी जाती थी क्यूंकि नाभी को औरत का कामुक हिस्सा माना जाता है, और उस हिस्से को सिर्फ प्रेमी या पति ही देखे ऐसा माना जाता था, नाभी से तीन इंच नीचे बांधने का दौर तो उस समय शहर में भी नहीं आया था,
लता के पेट को चाटते हुए मगन का मन हुआ लता की नाभी से खेलने का, उसे लता की नाभी बहुत पसंद थी, उसके भरे हुए पेट के बीच एक गोल कुएं जैसी नाभी उसके पेट की सुन्दरता में चार चांद लगा देती थी, मगन ने धीरे से लता की कमर के दोनों ओर उसकी साड़ी में उंगलियों को फंसाया और उसे नीचे की ओर खिसकाने की कोशिश करने लगा एक दो बार के प्रयास के बाद मगन को सफलता भी मिली और साड़ी थोड़ी ढीली हो गई जिससे इतनी नीचे खिसक गई की लता की सुंदर गोल गहरी नाभी उसके सामने आ गई, जिसे देख कर मगन खुद को रोक नहीं पाया और अपना मुंह नाभी पर लगा कर अपनी जीभ से नाभी को चूसने लगा, लता को नाभी पर जैसे ही ये एहसास हुआ वो नींद में भी कसमसाने लगी और कुछ ही पलों में उसकी नींद भी खुल गई।
लता ने आंखें खोल कर देखा तो पाया कि उसका पति बिस्तर के नीचे घुटने टिकाकर उसके पर झुककर उसकी नाभी को जीभ से चूस रहा है, लता का एक हाथ उठकर मगन के सिर पर पहुंच गया और उसके बालों में हाथ फिराते हुए वो बोली: अह्ह्ह्ह जी, आप भी ना, कम से कम एक दिन तो आराम से सो जाते।
मगन को जब ज्ञात हुआ कि लता जाग गई है तो उसकी नाभी से मुंह हटाकर और उसके पेट को सहलाते हुए वो बोला: तुम्हें तो पता है मेरी रानी जब तक तुम्हारा प्यार ना मिले मुझे नींद नहीं आती।
लता ये सुनकर मुस्कुरा कर बोली: हां जानती हूं कैसा प्यार है तुम्हारा, हवस को प्यार का नाम देते हो,
मगन: वो तो अपना अपना नज़रिया है कोई उसे हवस कहता है और कोई प्रेम। तुम नहीं चाहती मैं तुम्हें प्यार करूं?
मगन भी ऊपर होकर लता को बाहों में भर कर बिस्तर पर ही लेट गया,
लता: मैं तो बस तुम्हारे लिए कहती हूं, दिन भर तुम खेत में मेहनत करते हो और फिर रात को मुझपर, कहीं कमज़ोर हो गए तो?
लता ने प्यार से मगन के नंगे सीने पर हाथ फिराते हुए कहा।
मगन: अरे मेरी भोली रानी, खेत की मेहनत से मैं थकता हूं, पर तुम्हारे साथ मेहनत करने से मेरी सारी थकान मिट जाती है,
लता: बातों में तुमसे मैं आज तक जीती हूं जो आज जीतूंगी,
मगन: तो समय क्यों गंवा रही हो,
मगन आगे होकर लता के होंठो को फिर से जकड़ लेता है इस बार लता भी उसका पूरी तरह साथ देने लगती है, वैसे लता मगन को थोड़े बहुत नखरे ज़रूर दिखाती थी चुदाई से पहले पर उसे भी चुदाई की उतनी ही तलब होती थी जितनी मगन को, पिछले बीस बरसो से कुछ ही रातें ऐसी बीती होंगी जब दोनों ने एक दूसरे के साथ चुदाई का ये खेल न खेला हो, तो लता को भी ऐसी आदत लग चुकी थी कि अब एक रात बिना चुदे गुजारना उसके लिए भी मुस्किल होता था, उसे मगन के लंड की ऐसी लत लगी थी की जब तक उसे वो अपनी गीली गरम चूत में ना ले ले उसे आराम नहीं मिलता था, दोनों एक दूसरे के होंठों को ऐसे चूस रहे थे मानों वर्षों से बिछड़े हुए प्रेमी आज मिले हों, मगन के हाथ लता की कमर से होते हुए उसके पीछे पहुंच गए और वो लता के मांसल गोल मटोल चूतड़ों को मसलने लगा, लता भी पीछे नहीं थी उसका हाथ भी मगन की धोती के अंदर घुस चुका था और मगन के कच्छे के ऊपर से उसके कड़क लंड को सहला रहा था, दोनों के होंठ अलग हुए तो चिंगारी और भड़क उठी थी, मगन ने अपनी पत्नी की आंखों में देखा और कहा: अब रहा नही जा रहा अह्ह्ह,
लता: तो मत रहो न मेरे राजा ओह्ह्ह्ह, घुसा दो ना अपना मूसल मेरी ओखली में और पीस दो ना मेरा बदन।
मगन ये सुनकर और उत्तेजित हो उठा और तुरंत उसने उठकर अपनी लुंगी और कच्छे को निकल फेंका और पूरा नंगा होकर लता के पैरों में लिपटी साड़ी को पेटीकोट समेत ऊपर की तरफ उठा कर चढ़ाने लगा जिसमें लता ने भी अपने मोटे चूतड़ों को उठाकर चढ़ाने में मदद की, कुछ ही पलों में लता की साड़ी और पेटिकोट उसकी कमर पर चढ़ा हुआ था, और उसकी रसीली गरम चूत उसके पति के सामने थी उस समय गांव की औरतों के लिए चड्डी या आजकल की भाषा में कहें तो पैंटी पहनना उतना ही दूभर था जितना गांव में बिजली का होना, ख़ैर लता की चूत मगन के सामने थी जो कि दूर से ही गीली नजर आ रही थी, मगन ने भी देर नहीं की और तुरंत लता के ऊपर चढ़ गया और अपने लंड पर थूक लगा कर उसे लता की चूत के द्वार से भिड़ाया और फिर अंदर धकेल दिया, लता के हाथ मगन की पीठ पर कस गए जब उसकी चूत में घुसते लंड का एहसास हुआ तो, दो तीन झटको में मगन ने अपना पूरा लंड लता की चूत में उतार दिया, और फिर लय बनाकर थापें लगाने लगा, इस बात का ध्यान रखते हुए कि आवाज़ बाहर न जाए।
लता: अह्ह्ह्ह्ह लल्लू ओह्ह्ह के पापा अह्ह्ह्ह उहम्म्म।
मगन: ओह्ह्ह्ह् मज़ा आ रहा है अह्ह्ह्हह रानी, उह्ह्ह्ह क्या चूत है तुम्हारी, अह्ह्ह्ह्।
मगन ने थोड़ा ऊपर होकर ब्लाउज के बटन खोलने की कोशिश करते हुए कहा, जिसमें खुद लता ने मदद कर दी और खुद ही ब्लाउज के बटन खोल दिए, ब्लाउज के खुलते ही लता की चूचियां बाहर कूद पड़ीं जिन्हे तुरंत मगन ने अपने एक एक हाथ में जकड़ लिया, पर लता की चूचियां एक हाथ में कहां सामने वाली थीं,
लता: ओह्ह तुम्हारी ही है मेरे राजा, अह्ह्ह् मेरे चोदू राजा चोदते जाओ, अह्ह्ह्ह।
मगन: हां अह्ह्ह्ह्ह चोदूंगा मेरी रानी, अह्ह्ह्ह्ह चोद चोद के सारी खुजली मिटा दूंगा, अह्ह्ह्ह्ह।
मगन लता की चूचियों को मसलते हुए उसकी चूत में धक्के लगाते हुए आहें भरते हुए बोला,
ऐसी ही आहें निकलवाने वाली चुदाई काफी देर तक चली और फिर अपनी पत्नी की चूत को अपने रस से भरने के बाद मगन शांत हुआ, लता तो पहले ही दो बार झड़ चुकी थी, खैर चुदाई खत्म हुई तो मगन चुपचाप उठ कर बाहर आकर अपनी खाट पर सो गया।
इधर कुछ देर पहले की ही बात है छोटू खाना पीना खाकर आंगन में लेटा हुआ था, उसके घर में अगल बगल लेते हुए सब सो चुके थे, पर उसकी आंखों से नींद गायब थी क्योंकि उसके दिमाग में कुछ और ही द्वंद चल रहा था,
छोटू(मन में): अरे यार क्या करूं, आज जल्दी सो जाऊं?, कल जल्दी उठना भी है, कुछ समझ नहीं आ रहा, सोने का मन भी नही कर रहा।
छोटू कुछ पल सोचते हुए अपना सिर उठा कर इधर उधर देखता है तो पाता है सब सो रहे हैं, ये देखकर वो वापिस सिर नीचे कर के लेट जाता है और कुछ सोचने लगता है, कुछ पल बाद वो खाट पर उठ कर बैठ जाता है, और थोड़ा इंतज़ार करने के बाद धीरे धीरे खाट से उतरता है ताकि ज़्यादा आवाज़ न हो। खाट से उतर कर वो सावधानी से इधर उधर देखता है और फिर दबे पांव जहां जानवर बांधते हैं उस ओर चल देता है, वहां जाकर एक बार फिर से आंगन में नज़र मारकर वो सुनिश्चित करता है कि सब सो रहे हैं कि नहीं, सब ठीक जान कर वो एक कोने की ओर आता है और दीवार के सहारे जो भूसा और चारे के बोरे रखे थे उन पर चढ़ने लगता है, और जल्दी ही चढ़ने में सफल हो जाता है, बोरे पर खड़े हो कर वो थोड़ा उचक कर दीवार में बने मोखले में अपना सिर लगा देता है, और दूसरी ओर का दृश्य देख कर एक बार फिर से उसके बदन में रोज की तरह बिजली दौड़ने लगती है,
सीधे से बात की जाए तो ये है कि छोटू के घर में दो ही कमरे हैं एक में उसका परिवार रहता है और दूसरे में उसके चाचा चाची का, जानवरों के लिए पड़ा छप्पर जो है वो उसके चाचा संजय के कमरे की एक दीवार से टिका हुआ है और उसी तरफ कमरे का एक मौखला या रोशनदान भी था तो हमारे छोटू उस्ताद उसी मौखले का भरपूर फायदा उठा रहे हैं, वैसे उठाएं भी क्यों न जब सामने का दृश्य इतना मनोहर और कामुक हो तो,
छोटू देखता है कि कमरे में एक दिया जल रहा है और उसकी रोशनी में उसे बिस्तर पर अपनी चाची सुधा दिखती हैं जो बिल्कुल नंगी हैं और उनके नीचे चाचा भी दिखते हैं जो कि पूरा नंगे हैं, और अभी चाची अपनी चूत में चाचा का लंड लेकर उछल रही हैं, पर छोटू का सारा ध्यान तो चाची की मोटी चूचियों पर है जो हर झटके के साथ ऊपर नीचे हो रही हैं, चाची का सपाट पेट उसके बीच गोल गहरी नाभी अह्ह्ह्ह्ह ये देख छोटू के पूरे बदन में झुरझुरी होने लगती है, तभी उसके चाचा हाथ ऊपर लाकर चाची की चूचियों को मसलने लगते हैं, तो छोटू को अपने चाचा की किस्मत से जलन होने लगती है, छोटू का हाथ अपने आप ही पजामे में पहुंच भी जाता है और पजामे के अंदर ठुमकते उसके कड़क लंड को बाहर निकाल लाता है, छोटू की नजर तो अंदर ही टिकी रहती है, इसका फायदा उसका लंड उठता है और हाथ को आदेश करता है तो हाथ तुरंत ही उसे मुठियाना शुरू कर देता है,
पिछले कुछ दिनों से ही ताका झांकी का प्रोग्राम शुरू हुआ था और इसी कारण से छोटू सुबह उठने में लेट हो जाता था, क्योंकि रात को अपने चाचा चाची की चुदाई देखकर खुद को शांत करके सोना आप समझ ही सकते हैं कितनी मेहनत का काम है, हालांकि पहले दिन छोटू को बहुत ग्लानि हुई कि वो अपने मां बाप जैसे चाचा चाची को इस अवस्था में देख रहा है और उनके बारे में गलत विचार ला रहा है, उसने खुद के खूब कोसा, और प्रण भी लिया की आगे से ऐसा नहीं करूंगा, पर काम के आगे किसकी चली है, और ये तो ठहरा अपना छोटू, तो तब से ही झड़ने के बाद बेचारा रोज दृढ़ निश्चय करता कि अब से नहीं करूंगा, पर अगली रात फिर से आ जाता अपनी जगह।
वैसी ही रात आज थी पर आज की रात कुछ खास भी थी, क्योंकि अब तक जितनी बार भी उसने चाचा चाची की चुदाई देखी थी तो उसमे सुधा चाची को पूरा नंगा नहीं देखा था खास कर उनकी छाती को, क्यूंकि चुदते हुए भी वो ब्लाउज पहने रखती थी, पर आज वो पूरी नंगी थी, और उनकी उन्नत चूचियों की उछल कूद देख आज छोटू का मन गुलाठी मार रहा था, वो आज कुछ ज्यादा ही जोश में आ रहा था, और उसका हाथ भी उसी तेजी से उसके लंड पर चल रहा था, उसने एक पल को अपने हाथ को रोका और दोनों हाथों से अपने पजामे को कमर से नीचे सरका दिया, सुधा चाची को नंगा देख कर उसे भी नंगा होने का मन किया तो उसने तुरंत पजामे को पैरों में सरका दिया और फिर पैरों से भी एक एक पैर करके निकलने लगा, पर उसका सारा ध्यान कमरे के अंदर था, जैसे ही उसने पजामे से पैर बाहर निकाल कर रखा तो उसका पैर बोरे पर पड़ने की जगह पजामे पर ही पड़ गया और वो तुरंत नीचे सरकता हुआ आने लगा और उसके साथ ही बोरे भी, अचानक ये होने से उसकी गांड फट गई की कहीं आवाज सुन कर चाचा चाची को न पता चल जाए, अगले ही पल पहले बोरा गिरा और उसके ऊपर छोटू, पर क्योंकि बोरा भुस का था तो ज़्यादा आवाज़ नहीं हुई और नहीं छोटू को चोट लगी पर छोटू की गांड डर के मारे लूप लूप करने लगी, उसने सोचा अगर किसी ने भुस को ऐसे देखा तो कोई भी समझ जाएगा, वैसे भी कहते हैं ना कि चोर की दाढ़ी में तिनका वोही हाल छोटू का था,
वो तुरंत उठा और भुस का बोरा उठा कर जैसा था वैसा रखने लगा ये सब करते हुए उसे याद नहीं रहा कि वो नीचे से नंगा है उसका पजामा उतरा हुआ पड़ा है, पर छोटू ने तुरंत ही बोरे को जैसा था वैसा रख दिया रख कर हाथ जैसे ही हटाया कि उसे एक आवाज़ आई और उसे लगा आज उसका आखिरी दिन होने वाला है, और उसी पल उसकी नज़र नीचे पड़े पजामे पर पड़ी तो उसे याद आया वो नीचे से नंगा भी है, छोटू के तो मानो तोते उड़ गए ये सोचकर कि किसी ने उसे इस हालत में यहां देख लिया तो क्या होगा, बस यही सोचकर छोटू ने तुरंत पजामा उठाया और दूसरी ओर लपका, इधर बेचारी भैंस जो बोरे गिरने की वजह उठ गई थी उसने अचानक से छोटू को सफेद पजामा लहराते आता देखा तो वो डर गई, छोटू ने उसकी ओर ध्यान नहीं दिया पर जैसे ही छोटू भैंस के पास आया भैंस ने सिर झुकाकर छोटू को अपने सींगों में टांग कर फेंक दिया और छोटू उछल कर सीधा दूसरी भैंस पर गिरा जो अपने ऊपर छोटू के गिरते ही चिल्लाने लगी, छोटू का पजामा उछल कर छप्पर में अटक गया, और छोटू भैंस से टकराकर नीचे से नंगा होकर नीचे पड़ा था,
ये सब आवाज़ सुनकर आंगन में जो भी सोए थे तुरंत उठकर भागे, और पास आने लगे तो छोटू की गांड फट गई की अब क्या होगा तो अंत में उसे कुछ नहीं सूझा तो उसे बस एक उपाय दिखा, इधर उसकी दादी दादा मां बाप साथ ही उसके चाचा का बेटा राजेश और बेटी नीलम ये सब भी तेज़ी से दौड़ कर उसके पास पहुंचे,
राजेश: अरे क्या हुआ,
सोमपाल: कुछ आवाज़ आई
सुभाष: हां भैंस भी चिल्लाई,
सारे लोग तुरंत भैंस के पीछे आकर देखते हैं तो दंग रह जाते हैं छोटू नीचे पड़ा हुआ है नीचे से बिल्कुल नंगा ऊपर एक बनियान है और सो रहा है, छोटू को इस हालत में देख नीलम मुंह फेर लेती है और पीछे मुड़ जाती है, किसी को समझ नहीं आता क्या हो रहा है,
सुभाष: ए छोटू ए यहां क्या कर रहा है ऐसे उठ?
पर छोटू वैसा ही पड़ा रहता है और कुछ प्रतिक्रिया नहीं देता, बाकी सब भी उसे जगाने की कोशिश करते हैं पर छोटू कोई प्रतिक्रिया नहीं देता, राजेश छप्पर से उसका पजामा उतरता है और वो और सुभाष मिलकर उसे पहनाते हैं, इतने में सुधा और संजय भी बाहर आ जाते हैं, छोटू को फिर उठाकर बिस्तर पर लिटाया जाता है, छोटू अभी भी आंखें मीचे पड़ा हुआ है, उसकी मां पुष्पा तो रोना शुरू कर देती है: हाय हमारे लाल को क्या हो गया हाय हमारे लाल को क्या हो गया,
उसकी मां तो सिर्फ रोती हैं, पर उसकी दादी फुलवा तो आस पास भटकती आत्माओं और भूत प्रेतों को गाली सुनाने लगती हैं,
फुलवा: हमारी मानो ये जरूर उस उदयभान की लुगाई का काम है, कलमुही ज़िंदा रही तो भी गांव के लड़कों को अपने जाल में फांसती रही, रांड को मरने के बाद भी चैन नहीं, आ इतनी प्यास है तो सामने आ तेरी सारी प्यास बुझा दूंगी, छिनाल, नासपीटी।
सुभाष : शांत हो जाओ अम्मा।
फुलवा: अरे शांत कैसे हो जाऊं, उस दारी ने हमारे लल्ला को पकड़ा है, हमारे नाती को, छिनार को मरने के बाद भी चैन नहीं लेने दूंगी, कल ही इसका इलाज़ करवाती हूं,
छोटू मन ही मन सोच रहा था बच गया, हालांकि उदयभान की मृतक लुगाई को उसके कारण क्या क्या सुनना पड़ रहा था , पर छोटू ने मन ही मन उससे माफी मांगी की तुम तो मर ही गई हो मुझे ज़िंदा रहना है तो तुम्हारा सहारा लेना पड़ेगा। छोटू को मन ही मन ये उपाय ही ठीक लगा क्योंकि कौनसा उदयभान की लुगाई अपनी सफाई पेश करने आ रही थी।
आगे अगले अध्याय में, अपनी प्रतिक्रिया ज़रूर दें।
Nice start with lovely family.अध्याय 1
बात 1960 के दशक की है, पूरा देश आजादी के दूसरे दशक में संभलने की कोशिश कर रहा था, देश में गरीबी से बुरा हाल था, राजनीतिक उथल पुथल जारी थी, पड़ोसी देशों से खतरे का डर था, ऐसे सब खतरों को झेलते हुए देश संघर्ष कर रहा था। वहीं देश के एक राज्य के एक कोने के ज़िले में बसा हुआ था एक छोटा सा गांव बरहपुर, जिसके होने ना होने का शायद ही सरकार में कोई दस्तावेज़ भी हो, एक ओर पर्वत एक ओर नदी और एक ओर घने जंगल से घिरा हुआ ये गांव प्रकृति की सुंदरता का नमूना था, जिस पर अभी समाज के मच्छरों की नजर नहीं पड़ी थी जो कि प्रकृति का ख़ून चूस चूस कर अपने लालच की तोंद को भरते रहते थे। किसी सरकारी रिकॉर्ड में नाम न होना एक तरह से गांव के लिए अच्छा ही था, बरहपुर नदी के किनारे ही बसा हुआ था,
यहां के लोगों का मुख्य काम खेती और पशुपालन था, यहां के लोग अन्न के साथ सब्जियों की खेती ज़्यादा करते थे जिन्हें वो नदी के रास्ते शहर में जाकर बेचते थे, जिनके भैंस या गाय ज़्यादा थी वो दूध दही घी भी शहर में बेचकर आते थे, जिससे इनकी आमदनी होती थी, घर सारे कच्चे ही थे, लोग भोले भी हैं और चालू भी जैसा हर जगह होता है, अच्छाई और बुराई, सही और गलत, प्रेम और हवस ये गांव सब से भरपूर है खैर आप लोग गांव के बारे में समझ गए होंगे तो अब शुरू करते हैं और गांव के हाल जानते हैं।
लल्लू- अरे जल्दी बिछा यार अब रहा नहीं जा रहा,
छोटू - बिछा तो रहे हैं उधर का कोना तो पकड़ ना।
भूरा - ये साला ऐसा ही है, कोई काम नही करना चाहता।
लल्लू - कर तो रहा हूं तुम दोनो ना तुंरत गांड़ जैसा मुंह बनाने लगते हो,
लल्लू ने भी अपनी ओर से चादर को पकड़ते हुए कहा, और जल्दी ही तीनों ने चादर बिछा दी और तुरंत उस पर चढ़ कर बैठ गए, अभी तीनों ही गांव से सटे जंगल के कोने पर ही एक पेड़ के नीचे अपने प्रतिदिन के ठिकाने पर थे,
छोटू- चल बिछ गई अब बताओ आज कौन किसे किसे पेलेगा,
छोटू अपने पुराने से पजामे के ऊपर से ही अपने सांप का गला घौंटते हुए बोला।
भूरा- भैया आज मेरी तो नज़र मुन्नी चाची की गांड पर है आज उनकी गांड मारे बिना नहीं छोड़ूंगा।
लल्लू- अरे वाह साले, तो आज मैं भी तगड़ा माल चोदूंगा,
छोटू - किसे?
लल्लू - पंडितायन को, अःह्ह्ह क्या मोटी मोटी दूध की थैलियां हैं यार। तेरा मन आज किस पर आ रहा है बे,
छोटू - आज मेरा मन तो सुबह से ही दुकान वाली पंखुड़ी चाची पर आया है, सुबह दुकान में जबसे झुकते हुए उनके पतीले देखे हैं यार लोड़ा बैठने का नाम ही नहीं ले रहा,
भूरा - अह्ह् साले कड़क माल चुना है, मज़ा आ जायेगा।
लल्लू - तो अब शुरू करते हैं यार अब रुका नहीं जा रहा।
लल्लू ने अपना पजामा नीचे खिसकाते हुए अपना कड़क लंड बाहर निकालकर हिलाते हुए कहा,
लल्लू के साथ ही भूरा और छोटू ने भी अपने अपने लंड बाहर निकाल लिए और दोनों ने अपनी अपनी मुठियां अपने अपने हथियार पर कस लीं और गोलियां चलानी शुरू कर दीं, तीनों का ये प्रतिदिन का काम था तीनों मिलकर एक साथ गांव की औरतों को चोदने की कल्पना करते हुए अपने अपने लंड मुठियाते थे, इस खेल की शुरुआत लल्लू से हूई थी जो कि पहले अकेले आकर जंगल में मुठ मारता था, कुछ ही दिनों में पर छोटू और भूरा ने उसे पकड़ लिया तो शुरुआती झिझक के बाद ये दोनों भी खेल में शामिल हो गए, क्योंकि दोनों को ही मजा आने लगा, पहले तो तीनों एक बाद बार जो सिनेमा में हीरोइन देखी थी उसे सोच सोच कर मुठियाते थे, फ़िर धीरे धीरे आपसी सहमति से उनके गांव की औरतें ही उनके पानी गिराने का कारण बनने लगी, और बनें भी क्यों न एक से बढ़कर एक भरे हुए बदन की औरत थी उनके गांव में, अब ये ही उनका खेल भी था मनोरंजन भी और हवस मिटाने का तरीका भी। आज भी उसी खेल का एक और भाग चल रहा था जिसमें सबसे पहले अपनी दौड़ खत्म की भूरा ने जो मुन्नी चाची की गांड को ख्यालों में चोदते हुए झड़ने लगा, उसके लंड से रस की पिचकारी निकल कर घास को भिगाने लगी, अगर घास गर्भ धारण कर सकती तो जल्दी ही भूरी घास उगने लगती वहां, क्योंकि भूरा ने इतना रस को गिराया था, भूरा झड़ने के बाद पीछे होकर लंबी सांसे भरकर आराम लेने लगा, उसके बाद लल्लू और छोटू भी पीछे नहीं थे और जल्दी ही दोनों के लंड पिचकारी छोड़ रहे थे, और अपने अपने सामने की घास को तर कर रहे थे। झड़ने के बाद और थोड़ा सा आराम करने के बाद तीनों गांव की ओर निकल गए।
तीनों ही एक ही उमर के थे, तीनों अभी किशोर थे जिनके अंदर जवानी पूरी तरह से रंग दिखा रही थी, आइए अब आपका परिचय करा दिया जाए। लल्लू तीनों में थोड़ा लम्बा था और कुछ महीने बढ़ा भी, इसलिए तीनों का मुखिया चाहे अनचाहे ये ही बन जाता था, लल्लू के परिवार में कुल मिलाकर पांच लोग ही थे उसकी मां लता, बाप मगन उसकी बड़ी बहन नंदिनी और चौथा वो खुद और पांचवें उसके दादा कुंवर पाल।
भूरा के घर में भी कुछ ऐसा ही हाल था उसके पिताजी राजकुमार, मां रत्ना, उसकी एक बड़ी बहन थी रानी जिसका विवाह हो चुका था फिर एक बड़ा भाई राजू उसके दादा प्यारेलाल और अंत में वो उसका असली नाम रजत था, पर शायद ही कभी कोई उसका नाम भूरा के अलावा लेता हो।
अंत में था छोटू जो कि अपने थोड़े छोटे कद के कारण इस नाम से प्रसिद्ध हुआ था उसका असली नाम पवन था , उसके घर में उसकी मां पुष्पा और बाप सुभाष थे साथ ही उसके चाचा संजय चाची सुधा और उनका एक बेटा राजेश और बेटी नीलम भी रहते थे, साथ ही उसके दादा सोमपाल और दादी फुलवा रहती थी,
ये था इनका एक छोटा सा परिचय बाकी जैसे जैसे आप सबसे मिलते जायेंगे उनके बारे में जानते जाएंगे।
Magan ko to lata ki chut nazar aa rahi hai.अध्याय 2शाम का समय हो चला था तीनों दोस्त भी साथ में अपनी अपनी भैंसों को चराकर लौट रहे थे, गांव में कोई विद्यालय तो था नहीं तो पढ़ना लिखना तो था ही नहीं, हां बस हिसाब लगाने लायक तीनों को ही उनके बाप दादा ने सिखा दिया था अभी तो तीनों पर पशुओं की जिम्मेदारी होती थी, उनके बाप दादा भाई खेती और शहर जाकर सब्जी बेचने का काम करते थे, गांव ज्यादा बढ़ा तो था नहीं इसलिए तीनों के घर भी आस पास ही थे, और लगभग एक ही तरह से बने हुए थे, जिनमें जानवरों के लिए भी घर में ही छप्पर डालकर जगह बनाई हुई थी।
खैर तीनों दोस्त अपने अपने पशुओं को हांकते हुए चले आ रहे थे,
लल्लू - ए हट्ट सीधी चल हुरर।
भूरा - ओए छोटू कल टेम से नहीं उठा न तो बताऊंगा तुझे,
छोटू - अरे हां ना एक दिन थोड़ा आंख क्या लग गई तू तो मेरी गांड के पीछे ही पड़ गया है।
भूरा - मुझे न तेरी गांड के पीछे लगने का कोई शौक नहीं है, साले तेरी वजह से जिनकी देखनी थी उनकी नहीं देख पाया।
लल्लू- अरे कोई बात नहीं भूरा अगर ये कल नहीं उठा ना तो हम दोनों ही निकल जाएंगे,
छोटू - अरे यार ये क्या बात हुई, मतलब ये ही दोस्ती है का,
भूरा - अरे दोस्ती है तो तेरा ठेका ले लें उठाने का, भेंचो गांड उठाकर सोता क्यूं रहता है इतनी देर तक?
लल्लू - ज़रूर ये रात में जागता रहता होगा,
छोटू ये सुन थोड़ा सकपका जाता है।
छोटू - नहीं तो, मैं तो जल्दी ही सो जाता हूं, देखना कल तुम आओगे उससे पहले उठा मिलूंगा,
भूरा - नहीं उठेगा तो तेरा ही नुकसान है क्यों बे लल्लू,
लल्लू - और क्या, हम तो चले जाएंगे रोज रोज थोड़े ही तेरे जागने का इंतजार करेंगे।
छोटू - अरे ठीक है ना बोला तो कल सबसे पहले ही उठ कर मिलूंगा।
भूरा - चल देखते हैं।
ऐसे ही बहस करते हुए तीनों घर के पास आ गए और फिर अपने अपने पशुओं के साथ घर में घुस गए,
लल्लू - दीदी, मां, जरा बंधवाना तो, आ गया मैं।
लल्लू ने घर में घुसते ही आवाज लगाई, क्योंकि सारे जानवरों को बांधना अकेले के बस की बात नहीं थी क्योंकि एक को पकड़ो तो दूसरा भाग जाता था, उसकी आवाज सुनकर तुरंत उसकी बहन नंदिनी कमरे से आई और उसकी मदद करने लगी,
नंदिनी - क्यूँरे इतनी देर से क्यों आया आज सूरज डूबने को है?
लल्लू: अरे दीदी जंगल के अंदर गए थे न, इसलिए ज़रा देर हो गई।
लल्लू रस्सी को खूंटे में बांधता हुआ बोला।
नंदिनी: अच्छा तुम तीनों को पहले ही बोला है ना कि जंगल के अंदर मत जाया करो, सही नहीं है। नंदिनी भी रस्सी के फंदे खूंटे में लगाते हुए बोली।
लल्लू: अरे मैदान की घास तो पहले ही चर चुकी है, अब कुछ दिन लगेंगे उगने में तो तब तक कुछ तो जुगाड़ बैठाना पड़ेगा ना।
नंदिनी: जुगाड़ तो ठीक है पर ध्यान से जंगल में अंदर जाना ठीक नही है ध्यान से रहना तीनों।
लल्लू: हां दीदी, हम ध्यान रखते हैं और साथ ही रहते हैं,
दोनों ने मिलकर सब पशुओं को बांध दिया था,
नंदिनी: चल ठीक है अब हाथ पैर धो ले आ पानी डाल देती हूं,
नंदिनी और लल्लू दोनों पटिया पर आ गए और नंदिनी बाल्टी से पानी लोटे में भरकर लल्लू के हाथ पैर धुलवाने लगी।
झुककर हाथ पैर धोते हुए अकस्मात ही लल्लू की नज़र नंदिनी की छाती पर चली गई जो कि नंदिनी के झुके होने से उसका सूट नीचे लटक रहा था और लल्लू को अपनी बहन की छाती की रेखा नज़र आने लगी ये देख लल्लू थोड़ा सकुचाया और उसने तुरंत अपनी नज़र वहां से हटा ली, हालांकि वो तीनों दोस्त गांव की औरतों को सोचकर मुठियाते ज़रूर थे पर अपने घर की औरतों के लिए उनके मन में कोई भी मैल नहीं आया था। एक बार नज़र जाने के बाद लल्लू के मन में एक पल को खयाल भी आया दोबारा से झांकने का पर उस खयाल को लल्लू ने मन में ही दबा दिया।
वैसे लल्लू इस तरह का खयाल आना गलत नहीं था, आखिर जवान होता लड़का था और उसे ऐसा दृश्य दिखेगा तो कौन नहीं डोलेगा? आखिर नंदिनी किसी भी तरह से अब कम नहीं रह गई थी, लल्लू से तीन वर्ष बड़ी थी पर उसका बदन कुछ और ही कहानी बयां करता था, जवानी के बादल उस पर बड़ी जोर से बरसे थे, गोरे रंग का पूरा बदन बिलकुल कस गया था, कुछ बरस पहले छाती पर जहां नींबू थे अब वो पके हुए आम बन चुके थे, पिछले बरस में बने सारे सूट उसे कसके आने लगे थे, खासकर छाती पर।
उसके नितंब भी अब ऐसे हो गए थे कि जिन्हें हर कोई एक बार आंख भर के देखता ज़रूर था कई पुरानी सलवार तो बैठते झुकते हुए उधड़ चुकी थी, नंदिनी जवानी के पूरे चढ़ाव पर थी। कली पूरी तरह रस से भर चुकी थी, और बस इंतज़ार था तो भंवरे का जो उसे कली से फूल बनाता।
ख़ैर सूरज डूब चुका था लल्लू हाथ पैर धोकर आंगन में पड़ी खाट पर आकर पसर जाता है, नंदिनी भी घर के काम में लग जाती है, लल्लू का घर वैसा ही था जैसे उस समय अक्सर घर होते थे, घर में दो कमरे थे दोनों एक दूसरे के बगल में थे, कमरों के आगे छप्पर पड़ा था जिसके नीचे रसोई थी जैसी गांव में होती थी, मिट्टी का चूल्हा था और एक कच्ची 3 फुट की दीवार ओट के लिए जिससे आंगन में से रसोई ना दिखे, साथ ही हवा भी न लगे चूल्हे में, छप्पर के आगे आंगन था और आंगन के दूसरी ओर एक और छप्पर था जिसमें पशु बंधे थे, आंगन में ही एक ओर नल लगा हुआ था उसके बगल में ही खुली हुई पटिया थी और उसके बगल में ही चार बांस गाड़ कर और उन्हें कपड़े और चादर आदि से ढक कर औरतों के नहाने के लिए एक जगह बनी हुई थी, बाकी आदमी तो खुली हुई पटिया पर ही नहा लेते थे।
लल्लू ओ लल्लू ले खाना ले जा।
रसोई में से ही लता ने आवाज लगाकर लल्लू को पुकारा,
लल्लू: आया मां।
लल्लू तुरंत उठ कर रसोई में पहुंचा तो लता ने उसके हाथ में थाली पकड़ा दी,
लल्लू: मां आम का अचार भी दे दो ना,
लता: अरे तेरा आम का अचार, रुक अभी देती हूं,
लता अपने पल्लू से चेहरे पर आए पसीने को पोंछते हुए बोली, लल्लू भी अपनी थाली लेकर वहीं बैठ गया, लता ने पीछे से डिब्बा लिया और आम का अचार लल्लू की थाली में डाल दिया, लल्लू बड़े चाव से खाने लगा,
लता: अरे तू क्यों यहां बैठ के खा रहा है, देख कितनी गर्मी है चूल्हे के आगे, जा आंगन में बैठ कर खा ले,
लता ने चूल्हे में लकड़ियों को सरकाते हुए कहा,
लल्लू: अरे मां फिर रोटी लेने बार बार आना पड़ेगा,
लता: अरे देखो तो अभी से इतना आलस लगता है तुझ पर सबसे ज्यादा बुढ़ापा चढ़ रहा है,
लल्लू ये सुनकर दांत निपोरने लगा,
लता: ले और रोटी ले जा और आंगन में ही बैठ, मुझे तो झेलनी पड़ ही रही है तू क्यूं झुलस रहा है,
लल्लू ने अपनी मां की बात मानी और थाली लेकर आंगन में बैठ गया खाने, वैसे भी वो गर्मी से परेशान मां को गुस्सा दिलाने का जोखिम नहीं उठाना चाहता था, इतने में नंदिनी भी कमरे से बाहर आ गई काम निपटा कर, लल्लू का खाना खत्म हुआ ही था कि उसके पापा मगन और दादा कुंवरपाल भी खेत से घर आ गए, लल्लू ने दोनों के हाथ पैर धुलवाए, और फिर नंदिनी ने दोनों को खाना परोसा, उन्हें खिलाने के बाद मां बेटी ने खाया और फ़िर बर्तन आदि का काम निपटाया, बिजली का तो कोई नाम ही नहीं था गांव में इसलिए सूरज डूबने तक खाना पीना निपटा कर सब सोने के लिए लेट जाते थे, सुबह जल्दी उठना फिर शौच के लिए खेतों में जाना, दिनचर्या ही गांव की अक्सर ऐसी होती है।
सब निपटा कर लल्लू और नंदिनी ने मिलकर सबके बिस्तर लगा दिए, चार खाट आंगन में बिछा दी गई जिसमें एक पर लल्लू के दादा कुंवर पाल एक पर उसके पापा मगन एक पर नंदिनी और एक पर लल्लू खुद सोता था, लता कमरे के अंदर सोती थी क्यूंकि ससुर के सामने बहु कैसे सो सकती थी, लल्लू अपने दादा से कहानी सुनने की ज़िद करता जो कि बचपन से उसकी आदत थी, कुंवरपाल भी अपने अनुभव की किताब से एक पन्ना निकालकर जोड़ तोड़ कर कहानी सुनाने लगे, हालांकि कहानी सुनने का रोमांच नंदिनी को भी होता था पर वो अपने आप से कहती नहीं थी। कहानी सुनते सुनते लल्लू और नंदिनी सो गए तो कुंवर पाल ने भी आंखें मूंद ली और नींद की गहराई में खो गए, सब नींद के आगोश में चले गए सिर्फ मगन के जो कि हर बार की तरह ही सबके सोने के बाद अपनी खाट से आहिस्ता से उठे और धीरे धीरे कमरे की ओर बढ़ गए जहां उनकी पत्नी लता सो रही थी,
आगे की कहानी जारी रहेगी। धन्यवाद।।
Very nice plot.अध्याय 3
कहानी सुनते सुनते लल्लू और नंदिनी सो गए तो कुंवर पाल ने भी आंखें मूंद ली और नींद की गहराई में खो गए, सब नींद के आगोश में चले गए सिर्फ मगन के जो कि हर बार की तरह ही सबके सोने के बाद अपनी खाट से आहिस्ता से उठे और धीरे धीरे कमरे की ओर बढ़ गए जहां उनकी पत्नी लता सो रही थी, अब आगे...
मगन हल्के कदमों से चलते हुए कमरे के बाहर पहुंचा और फिर सावधानी से किवाड़ को धीरे से धकेलते हुए खोल कर अंदर घुस गया और फिर तुरंत किवाड़ को वैसे ही बंद कर दिया वैसे भी ये उसका लगभग रोज का ही काम था, कमरे के अंदर मिट्टी के तेल का एक दिया जल रहा था जिससे निकलती पीली रोशनी कमरे में बिखरी हुई थी, मगन ने किवाड़ लगाकर मुड़कर देखा तो उसकी नज़र बिस्तर पर पड़ी और देख कर वो रुक गया,
बिस्तर पर लता उसकी पत्नी लेटी हुई सो रही थी, उसे सोते देख मगन के होंठो पर मुस्कान फैल गई, कितनी सुंदर लग रही थी लता सोते हुए, मगन सोचने लगा ये वही छरहरी सी लड़की है जिसे वो बीस बरस पहले ब्याह के लाया था, सोलह बरस की बिलकुल भोली सी नाजुक सी गुड़िया थी, बदन बिलकुल पतला सा था नंदिनी अभी जैसी लगती है उससे भी आधी लगती थी, पर आज देखो बीस बरस बाद दो संतानों को जन्म देने के बाद उसका बदन बिलकुल भर गया था,
सोते होने की वजह से लता का पल्लू नीचे सरका हुआ था, मगन की नजर अपनी पत्नी की छाती पर पड़ी जहां ब्याह के समय तो बस चुचियों के नाम पर सिर्फ तिकोनी सी छाया थी अब वहां ब्लाउज में बंद दो पपीते थे, उसकी चूचियों के भारीपन की कहानी तो उसका ब्लाउज कह रहा था जो कि उसकी हर सांस के साथ ऊपर नीचे हो रहा था, और इस कदर चूचियों पर कसा हुआ था कि लग रहा था कि लता ने थोड़ी तेज से सांस ली तो अभी सारे बटन टूट कर गिर जायेंगे और उसकी चूचियां कैद से आजाद हो जाएंगी।
ब्लाउज के नीचे उसका गोरा भरा हुआ पेट था, पर पेट पर चर्बी उतनी थी जिसे मोटापा नहीं कहा जा सकता, कमर में पड़ी हुई सिलवट उसकी कमर की कामुकता को और बढ़ाती थी, तभी लता ने एक और करवट बदली और अपनी पीठ मगन की ओर करदी, जिससे मगन के सामने उसकी पत्नी का एक और खजाना या गया, लता की फैली हुई गांड का मगन दीवाना था, अभी भी साड़ी में लिपटी देख मगन का लंड लुंगी में ठुमके मार रहा था, ऐसी गोल मटोल और भरी हुई गांड थी लता की कि मानो लगता था साड़ी के अंदर दो तरबूज छुपा रखे हों, पिछले बीस बरस से भोगने के बाद भी लता का कामुक भरा हुआ गदराया बदन देख कर मगन का लंड आज भी हिचकोले मरने लगता था, वैसे सच कहा जाए तो सिर्फ मगन का ही नहीं गांव के सारे मर्द ही लता को देख आहें भरते थे।
मगन अपने ख्यालों की दुनिया से बाहर आया और बिस्तर की ओर बढ़ा, दोनों पति पत्नी का हर रात का यही कार्यक्रम होता था, बाहर सबके सोने के बाद मगन छुपके से कमरे में आता था और फिर अपनी पत्नी के भरे गदराये बदन को खूब भोगता था, आज भी वैसा ही कुछ होना था पर लता आज इंतज़ार करते हुए सो गई थी, मगन बिस्तर के पास पहुंचा और उसने लता के चेहरे को देखा, मगन खुद को बहुत भाग्यशाली मानता था जो उसे इतनी सुंदर पत्नी मिली थी, गोरे रंग की लता के नैन नक्श बड़े सुंदर थे जिन्हें मगन अभी एक तक देखे जा रहा था, लता के मुलायम रसीले होंठों को देखकर ही मगन के मुंह में पानी आने लगा और वो खुद को रोक नहीं पाया और मुंह आगे लेजाकर उसने अपने होंठों को लता के होंठों से मिला दिया, और उनका रस पीने लगा, लता शायद आज ज़्यादा ही नींद में थी जो कि उसके होंठों को चूसे जाने पर भी उसकी नींद नहीं टूट रही थी, मगन अपनी पत्नी के रसीले होंठों को चूसते हुए अपने हाथ को उसके चिकने भरे हुए पेट पर रख कर सहलाने लगा, कुछ पल लता के होंठो को चूसने के बाद मगन ने उन्हें छोड़ा और फिर लता के कामुक भरे हुए पेट को सहलाते हुए झुका और झुककर अपने होंठों को उसके पेट पर टिका दिया और उसके पेट को चाटने लगा, लता अपनी साड़ी नाभी से ऊपर बांधती थी, अब गांवों में तो ऐसे ही बांधी जाती थी क्यूंकि नाभी को औरत का कामुक हिस्सा माना जाता है, और उस हिस्से को सिर्फ प्रेमी या पति ही देखे ऐसा माना जाता था, नाभी से तीन इंच नीचे बांधने का दौर तो उस समय शहर में भी नहीं आया था,
लता के पेट को चाटते हुए मगन का मन हुआ लता की नाभी से खेलने का, उसे लता की नाभी बहुत पसंद थी, उसके भरे हुए पेट के बीच एक गोल कुएं जैसी नाभी उसके पेट की सुन्दरता में चार चांद लगा देती थी, मगन ने धीरे से लता की कमर के दोनों ओर उसकी साड़ी में उंगलियों को फंसाया और उसे नीचे की ओर खिसकाने की कोशिश करने लगा एक दो बार के प्रयास के बाद मगन को सफलता भी मिली और साड़ी थोड़ी ढीली हो गई जिससे इतनी नीचे खिसक गई की लता की सुंदर गोल गहरी नाभी उसके सामने आ गई, जिसे देख कर मगन खुद को रोक नहीं पाया और अपना मुंह नाभी पर लगा कर अपनी जीभ से नाभी को चूसने लगा, लता को नाभी पर जैसे ही ये एहसास हुआ वो नींद में भी कसमसाने लगी और कुछ ही पलों में उसकी नींद भी खुल गई।
लता ने आंखें खोल कर देखा तो पाया कि उसका पति बिस्तर के नीचे घुटने टिकाकर उसके पर झुककर उसकी नाभी को जीभ से चूस रहा है, लता का एक हाथ उठकर मगन के सिर पर पहुंच गया और उसके बालों में हाथ फिराते हुए वो बोली: अह्ह्ह्ह जी, आप भी ना, कम से कम एक दिन तो आराम से सो जाते।
मगन को जब ज्ञात हुआ कि लता जाग गई है तो उसकी नाभी से मुंह हटाकर और उसके पेट को सहलाते हुए वो बोला: तुम्हें तो पता है मेरी रानी जब तक तुम्हारा प्यार ना मिले मुझे नींद नहीं आती।
लता ये सुनकर मुस्कुरा कर बोली: हां जानती हूं कैसा प्यार है तुम्हारा, हवस को प्यार का नाम देते हो,
मगन: वो तो अपना अपना नज़रिया है कोई उसे हवस कहता है और कोई प्रेम। तुम नहीं चाहती मैं तुम्हें प्यार करूं?
मगन भी ऊपर होकर लता को बाहों में भर कर बिस्तर पर ही लेट गया,
लता: मैं तो बस तुम्हारे लिए कहती हूं, दिन भर तुम खेत में मेहनत करते हो और फिर रात को मुझपर, कहीं कमज़ोर हो गए तो?
लता ने प्यार से मगन के नंगे सीने पर हाथ फिराते हुए कहा।
मगन: अरे मेरी भोली रानी, खेत की मेहनत से मैं थकता हूं, पर तुम्हारे साथ मेहनत करने से मेरी सारी थकान मिट जाती है,
लता: बातों में तुमसे मैं आज तक जीती हूं जो आज जीतूंगी,
मगन: तो समय क्यों गंवा रही हो,
मगन आगे होकर लता के होंठो को फिर से जकड़ लेता है इस बार लता भी उसका पूरी तरह साथ देने लगती है, वैसे लता मगन को थोड़े बहुत नखरे ज़रूर दिखाती थी चुदाई से पहले पर उसे भी चुदाई की उतनी ही तलब होती थी जितनी मगन को, पिछले बीस बरसो से कुछ ही रातें ऐसी बीती होंगी जब दोनों ने एक दूसरे के साथ चुदाई का ये खेल न खेला हो, तो लता को भी ऐसी आदत लग चुकी थी कि अब एक रात बिना चुदे गुजारना उसके लिए भी मुस्किल होता था, उसे मगन के लंड की ऐसी लत लगी थी की जब तक उसे वो अपनी गीली गरम चूत में ना ले ले उसे आराम नहीं मिलता था, दोनों एक दूसरे के होंठों को ऐसे चूस रहे थे मानों वर्षों से बिछड़े हुए प्रेमी आज मिले हों, मगन के हाथ लता की कमर से होते हुए उसके पीछे पहुंच गए और वो लता के मांसल गोल मटोल चूतड़ों को मसलने लगा, लता भी पीछे नहीं थी उसका हाथ भी मगन की धोती के अंदर घुस चुका था और मगन के कच्छे के ऊपर से उसके कड़क लंड को सहला रहा था, दोनों के होंठ अलग हुए तो चिंगारी और भड़क उठी थी, मगन ने अपनी पत्नी की आंखों में देखा और कहा: अब रहा नही जा रहा अह्ह्ह,
लता: तो मत रहो न मेरे राजा ओह्ह्ह्ह, घुसा दो ना अपना मूसल मेरी ओखली में और पीस दो ना मेरा बदन।
मगन ये सुनकर और उत्तेजित हो उठा और तुरंत उसने उठकर अपनी लुंगी और कच्छे को निकल फेंका और पूरा नंगा होकर लता के पैरों में लिपटी साड़ी को पेटीकोट समेत ऊपर की तरफ उठा कर चढ़ाने लगा जिसमें लता ने भी अपने मोटे चूतड़ों को उठाकर चढ़ाने में मदद की, कुछ ही पलों में लता की साड़ी और पेटिकोट उसकी कमर पर चढ़ा हुआ था, और उसकी रसीली गरम चूत उसके पति के सामने थी उस समय गांव की औरतों के लिए चड्डी या आजकल की भाषा में कहें तो पैंटी पहनना उतना ही दूभर था जितना गांव में बिजली का होना, ख़ैर लता की चूत मगन के सामने थी जो कि दूर से ही गीली नजर आ रही थी, मगन ने भी देर नहीं की और तुरंत लता के ऊपर चढ़ गया और अपने लंड पर थूक लगा कर उसे लता की चूत के द्वार से भिड़ाया और फिर अंदर धकेल दिया, लता के हाथ मगन की पीठ पर कस गए जब उसकी चूत में घुसते लंड का एहसास हुआ तो, दो तीन झटको में मगन ने अपना पूरा लंड लता की चूत में उतार दिया, और फिर लय बनाकर थापें लगाने लगा, इस बात का ध्यान रखते हुए कि आवाज़ बाहर न जाए।
लता: अह्ह्ह्ह्ह लल्लू ओह्ह्ह के पापा अह्ह्ह्ह उहम्म्म।
मगन: ओह्ह्ह्ह् मज़ा आ रहा है अह्ह्ह्हह रानी, उह्ह्ह्ह क्या चूत है तुम्हारी, अह्ह्ह्ह्।
मगन ने थोड़ा ऊपर होकर ब्लाउज के बटन खोलने की कोशिश करते हुए कहा, जिसमें खुद लता ने मदद कर दी और खुद ही ब्लाउज के बटन खोल दिए, ब्लाउज के खुलते ही लता की चूचियां बाहर कूद पड़ीं जिन्हे तुरंत मगन ने अपने एक एक हाथ में जकड़ लिया, पर लता की चूचियां एक हाथ में कहां सामने वाली थीं,
लता: ओह्ह तुम्हारी ही है मेरे राजा, अह्ह्ह् मेरे चोदू राजा चोदते जाओ, अह्ह्ह्ह।
मगन: हां अह्ह्ह्ह्ह चोदूंगा मेरी रानी, अह्ह्ह्ह्ह चोद चोद के सारी खुजली मिटा दूंगा, अह्ह्ह्ह्ह।
मगन लता की चूचियों को मसलते हुए उसकी चूत में धक्के लगाते हुए आहें भरते हुए बोला,
ऐसी ही आहें निकलवाने वाली चुदाई काफी देर तक चली और फिर अपनी पत्नी की चूत को अपने रस से भरने के बाद मगन शांत हुआ, लता तो पहले ही दो बार झड़ चुकी थी, खैर चुदाई खत्म हुई तो मगन चुपचाप उठ कर बाहर आकर अपनी खाट पर सो गया।
इधर कुछ देर पहले की ही बात है छोटू खाना पीना खाकर आंगन में लेटा हुआ था, उसके घर में अगल बगल लेते हुए सब सो चुके थे, पर उसकी आंखों से नींद गायब थी क्योंकि उसके दिमाग में कुछ और ही द्वंद चल रहा था,
छोटू(मन में): अरे यार क्या करूं, आज जल्दी सो जाऊं?, कल जल्दी उठना भी है, कुछ समझ नहीं आ रहा, सोने का मन भी नही कर रहा।
छोटू कुछ पल सोचते हुए अपना सिर उठा कर इधर उधर देखता है तो पाता है सब सो रहे हैं, ये देखकर वो वापिस सिर नीचे कर के लेट जाता है और कुछ सोचने लगता है, कुछ पल बाद वो खाट पर उठ कर बैठ जाता है, और थोड़ा इंतज़ार करने के बाद धीरे धीरे खाट से उतरता है ताकि ज़्यादा आवाज़ न हो। खाट से उतर कर वो सावधानी से इधर उधर देखता है और फिर दबे पांव जहां जानवर बांधते हैं उस ओर चल देता है, वहां जाकर एक बार फिर से आंगन में नज़र मारकर वो सुनिश्चित करता है कि सब सो रहे हैं कि नहीं, सब ठीक जान कर वो एक कोने की ओर आता है और दीवार के सहारे जो भूसा और चारे के बोरे रखे थे उन पर चढ़ने लगता है, और जल्दी ही चढ़ने में सफल हो जाता है, बोरे पर खड़े हो कर वो थोड़ा उचक कर दीवार में बने मोखले में अपना सिर लगा देता है, और दूसरी ओर का दृश्य देख कर एक बार फिर से उसके बदन में रोज की तरह बिजली दौड़ने लगती है,
सीधे से बात की जाए तो ये है कि छोटू के घर में दो ही कमरे हैं एक में उसका परिवार रहता है और दूसरे में उसके चाचा चाची का, जानवरों के लिए पड़ा छप्पर जो है वो उसके चाचा संजय के कमरे की एक दीवार से टिका हुआ है और उसी तरफ कमरे का एक मौखला या रोशनदान भी था तो हमारे छोटू उस्ताद उसी मौखले का भरपूर फायदा उठा रहे हैं, वैसे उठाएं भी क्यों न जब सामने का दृश्य इतना मनोहर और कामुक हो तो,
छोटू देखता है कि कमरे में एक दिया जल रहा है और उसकी रोशनी में उसे बिस्तर पर अपनी चाची सुधा दिखती हैं जो बिल्कुल नंगी हैं और उनके नीचे चाचा भी दिखते हैं जो कि पूरा नंगे हैं, और अभी चाची अपनी चूत में चाचा का लंड लेकर उछल रही हैं, पर छोटू का सारा ध्यान तो चाची की मोटी चूचियों पर है जो हर झटके के साथ ऊपर नीचे हो रही हैं, चाची का सपाट पेट उसके बीच गोल गहरी नाभी अह्ह्ह्ह्ह ये देख छोटू के पूरे बदन में झुरझुरी होने लगती है, तभी उसके चाचा हाथ ऊपर लाकर चाची की चूचियों को मसलने लगते हैं, तो छोटू को अपने चाचा की किस्मत से जलन होने लगती है, छोटू का हाथ अपने आप ही पजामे में पहुंच भी जाता है और पजामे के अंदर ठुमकते उसके कड़क लंड को बाहर निकाल लाता है, छोटू की नजर तो अंदर ही टिकी रहती है, इसका फायदा उसका लंड उठता है और हाथ को आदेश करता है तो हाथ तुरंत ही उसे मुठियाना शुरू कर देता है,
पिछले कुछ दिनों से ही ताका झांकी का प्रोग्राम शुरू हुआ था और इसी कारण से छोटू सुबह उठने में लेट हो जाता था, क्योंकि रात को अपने चाचा चाची की चुदाई देखकर खुद को शांत करके सोना आप समझ ही सकते हैं कितनी मेहनत का काम है, हालांकि पहले दिन छोटू को बहुत ग्लानि हुई कि वो अपने मां बाप जैसे चाचा चाची को इस अवस्था में देख रहा है और उनके बारे में गलत विचार ला रहा है, उसने खुद के खूब कोसा, और प्रण भी लिया की आगे से ऐसा नहीं करूंगा, पर काम के आगे किसकी चली है, और ये तो ठहरा अपना छोटू, तो तब से ही झड़ने के बाद बेचारा रोज दृढ़ निश्चय करता कि अब से नहीं करूंगा, पर अगली रात फिर से आ जाता अपनी जगह।
वैसी ही रात आज थी पर आज की रात कुछ खास भी थी, क्योंकि अब तक जितनी बार भी उसने चाचा चाची की चुदाई देखी थी तो उसमे सुधा चाची को पूरा नंगा नहीं देखा था खास कर उनकी छाती को, क्यूंकि चुदते हुए भी वो ब्लाउज पहने रखती थी, पर आज वो पूरी नंगी थी, और उनकी उन्नत चूचियों की उछल कूद देख आज छोटू का मन गुलाठी मार रहा था, वो आज कुछ ज्यादा ही जोश में आ रहा था, और उसका हाथ भी उसी तेजी से उसके लंड पर चल रहा था, उसने एक पल को अपने हाथ को रोका और दोनों हाथों से अपने पजामे को कमर से नीचे सरका दिया, सुधा चाची को नंगा देख कर उसे भी नंगा होने का मन किया तो उसने तुरंत पजामे को पैरों में सरका दिया और फिर पैरों से भी एक एक पैर करके निकलने लगा, पर उसका सारा ध्यान कमरे के अंदर था, जैसे ही उसने पजामे से पैर बाहर निकाल कर रखा तो उसका पैर बोरे पर पड़ने की जगह पजामे पर ही पड़ गया और वो तुरंत नीचे सरकता हुआ आने लगा और उसके साथ ही बोरे भी, अचानक ये होने से उसकी गांड फट गई की कहीं आवाज सुन कर चाचा चाची को न पता चल जाए, अगले ही पल पहले बोरा गिरा और उसके ऊपर छोटू, पर क्योंकि बोरा भुस का था तो ज़्यादा आवाज़ नहीं हुई और नहीं छोटू को चोट लगी पर छोटू की गांड डर के मारे लूप लूप करने लगी, उसने सोचा अगर किसी ने भुस को ऐसे देखा तो कोई भी समझ जाएगा, वैसे भी कहते हैं ना कि चोर की दाढ़ी में तिनका वोही हाल छोटू का था,
वो तुरंत उठा और भुस का बोरा उठा कर जैसा था वैसा रखने लगा ये सब करते हुए उसे याद नहीं रहा कि वो नीचे से नंगा है उसका पजामा उतरा हुआ पड़ा है, पर छोटू ने तुरंत ही बोरे को जैसा था वैसा रख दिया रख कर हाथ जैसे ही हटाया कि उसे एक आवाज़ आई और उसे लगा आज उसका आखिरी दिन होने वाला है, और उसी पल उसकी नज़र नीचे पड़े पजामे पर पड़ी तो उसे याद आया वो नीचे से नंगा भी है, छोटू के तो मानो तोते उड़ गए ये सोचकर कि किसी ने उसे इस हालत में यहां देख लिया तो क्या होगा, बस यही सोचकर छोटू ने तुरंत पजामा उठाया और दूसरी ओर लपका, इधर बेचारी भैंस जो बोरे गिरने की वजह उठ गई थी उसने अचानक से छोटू को सफेद पजामा लहराते आता देखा तो वो डर गई, छोटू ने उसकी ओर ध्यान नहीं दिया पर जैसे ही छोटू भैंस के पास आया भैंस ने सिर झुकाकर छोटू को अपने सींगों में टांग कर फेंक दिया और छोटू उछल कर सीधा दूसरी भैंस पर गिरा जो अपने ऊपर छोटू के गिरते ही चिल्लाने लगी, छोटू का पजामा उछल कर छप्पर में अटक गया, और छोटू भैंस से टकराकर नीचे से नंगा होकर नीचे पड़ा था,
ये सब आवाज़ सुनकर आंगन में जो भी सोए थे तुरंत उठकर भागे, और पास आने लगे तो छोटू की गांड फट गई की अब क्या होगा तो अंत में उसे कुछ नहीं सूझा तो उसे बस एक उपाय दिखा, इधर उसकी दादी दादा मां बाप साथ ही उसके चाचा का बेटा राजेश और बेटी नीलम ये सब भी तेज़ी से दौड़ कर उसके पास पहुंचे,
राजेश: अरे क्या हुआ,
सोमपाल: कुछ आवाज़ आई
सुभाष: हां भैंस भी चिल्लाई,
सारे लोग तुरंत भैंस के पीछे आकर देखते हैं तो दंग रह जाते हैं छोटू नीचे पड़ा हुआ है नीचे से बिल्कुल नंगा ऊपर एक बनियान है और सो रहा है, छोटू को इस हालत में देख नीलम मुंह फेर लेती है और पीछे मुड़ जाती है, किसी को समझ नहीं आता क्या हो रहा है,
सुभाष: ए छोटू ए यहां क्या कर रहा है ऐसे उठ?
पर छोटू वैसा ही पड़ा रहता है और कुछ प्रतिक्रिया नहीं देता, बाकी सब भी उसे जगाने की कोशिश करते हैं पर छोटू कोई प्रतिक्रिया नहीं देता, राजेश छप्पर से उसका पजामा उतरता है और वो और सुभाष मिलकर उसे पहनाते हैं, इतने में सुधा और संजय भी बाहर आ जाते हैं, छोटू को फिर उठाकर बिस्तर पर लिटाया जाता है, छोटू अभी भी आंखें मीचे पड़ा हुआ है, उसकी मां पुष्पा तो रोना शुरू कर देती है: हाय हमारे लाल को क्या हो गया हाय हमारे लाल को क्या हो गया,
उसकी मां तो सिर्फ रोती हैं, पर उसकी दादी फुलवा तो आस पास भटकती आत्माओं और भूत प्रेतों को गाली सुनाने लगती हैं,
फुलवा: हमारी मानो ये जरूर उस उदयभान की लुगाई का काम है, कलमुही ज़िंदा रही तो भी गांव के लड़कों को अपने जाल में फांसती रही, रांड को मरने के बाद भी चैन नहीं, आ इतनी प्यास है तो सामने आ तेरी सारी प्यास बुझा दूंगी, छिनाल, नासपीटी।
सुभाष : शांत हो जाओ अम्मा।
फुलवा: अरे शांत कैसे हो जाऊं, उस दारी ने हमारे लल्ला को पकड़ा है, हमारे नाती को, छिनार को मरने के बाद भी चैन नहीं लेने दूंगी, कल ही इसका इलाज़ करवाती हूं,
छोटू मन ही मन सोच रहा था बच गया, हालांकि उदयभान की मृतक लुगाई को उसके कारण क्या क्या सुनना पड़ रहा था , पर छोटू ने मन ही मन उससे माफी मांगी की तुम तो मर ही गई हो मुझे ज़िंदा रहना है तो तुम्हारा सहारा लेना पड़ेगा। छोटू को मन ही मन ये उपाय ही ठीक लगा क्योंकि कौनसा उदयभान की लुगाई अपनी सफाई पेश करने आ रही थी।
आगे अगले अध्याय में, अपनी प्रतिक्रिया ज़रूर दें।