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Incest एक अनोखा बंधन - पुन: प्रारंभ (Completed)

Akki ❸❸❸

ᴾʀᴏᴜᴅ ᵀᴏ ᴮᴇ ᴴᴀʀʏᴀɴᴠɪ
26,803
31,029
304
अंतिम अध्याय: प्रतिकाष्ठा
भाग - 7


अब तक अपने पढ़ा:


इधर मेरा नया बिज़नेस आईडिया सुन और माँ द्वारा मिली आज्ञा से सबसे ज्यादा स्तुति खुश थी| स्तुति अपने मसूड़े दिखा कर हँस रही थी और ख़ुशी की किलकारियाँ मारने में व्यस्त थी| माँ ने जब स्तुति को यूँ खुश देखा तो वो स्तुति की नाक पकड़ते हुए बोलीं; "नानी, तू बड़ी खुश है? तूने भी अपने पापा के साथ बिज़नेस करना है?" माँ के पूछे इस मज़ाकिया सवाल का जवाब स्तुति ने ख़ुशी-ख़ुशी अपना सर हाँ में हिलाते हुए दिया| स्तुति की हाँ सुन कर हम सभी को हँसी आ गई और स्तुति भी हमारे साथ खिलखिला कर हँसने लगी|

"मेरी लाड़ली इसलिए खुश है क्योंकि उसे आज रसमलाई खाने को मिलेगी!" मैंने स्तुति के मन की बात कही तो स्तुति फौरन अपना सर हाँ में हिलाने लगी|


अब आगे:


आज
मेरी बिटिया ने हम माँ-बेटे के बीच पैदा हुए गुस्से को खत्म करने का महान काम किया था इसलिए आज मेरा मन मेरी लाड़ली को कुछ ख़ास खिलाने का था| मैं स्तुति को लिए हुए घर से निकला और उसे फ्रूट संडे (fruit sundae) खिलाया, इस डिश में से मैंने स्तुति को चुन-चुन कर सरे फ्रूट्स खिलाये जिसमें स्तुति को बहुत मज़ा आया| खा-पी कर हम दोनों बाप-बेटी रस-मलाई पैक करवा कर घर पहुँचे|



दोपहर को बच्चे स्कूल से लौटे तो मैंने उन्हें मेरे नए बिज़नेस शुरू करने की खबर सुनाई| आयुष को ऑनलाइन शॉपिंग के बारे में ज्यादा पता नहीं था लेकिन इससे उसका उत्साह कम नहीं हुआ था, वो तो मेरे नया काम शुरू करने के नाम से इतना खुश था की ख़ुशी से फूला नहीं समा रहा था| अपनी ख़ुशी व्यक्त करने के लिए उसने और स्तुति ने बैठे-बैठे एक दूसरे को देखते हुए हवा में हाथ उठा कर नाचना शुरू कर दिया था| इधर नेहा को ऑनलाइन शॉपिंग के बारे में जानकारी थी इसलिए वो पूरी बात समझते हुए बहुत खुश थी और उसने अपनी ये ख़ुशी मेरे गले लग कर मुझे बधाई देते हुए प्रकट की|

अब ख़ुशी की बात चल ही रही थी तो अब बारी थी मुँह मीठा करने की, जब संगीता ने सबके लिए रसमलाई परोसी तो नेहा ख़ुशी के मारे कूदने लगी| वहीं स्तुति ने जब अपनी दिद्दा को ख़ुशी से कूदते हुए देखा तो उसने भी कूदने की इच्छा प्रकट की; "पपई...पपई...दिद्दा!" स्तुति ने अपनी दीदी की तरफ इशारा करते हुए मुझे कहा तो मैंने स्तुति के दोनों हाथ पकड़ उसे खड़े होने में सहायता की, स्तुति जैसे ही खड़ी हुई उसने धीरे-धीरे थिरकना शुरू कर दिया! माँ ने जब अपनी पोती को थिरकते देखा तो वो तालियाँ बजाते हुए स्तुति का उत्साह बढ़ाने लगीं जिस कारन स्तुति के मुख से ख़ुशी की किलकारियाँ गूँजने लगीं!



वो दोस्ती ही क्या जिसमें आपने कभी साथ बिज़नेस करने की न सोची हो? यही कारण था की मैंने अपने बिज़नेस से जुड़ने के लिए दिषु को पुछा| साथ बिज़नेस करने का सुन दिषु उतावला हो गया और शाम को मिलने आने को बोला|



इधर खाना खा कर हम सब आराम कर रहे थे, संगीता मुझसे नाराज़ थी इसलिए वो माँ के पास थी| जबकि मेरे तीनों बच्चे मुझसे लिपट कर लेटे हुए खिलखिला रहे थे| अचानक ही मौसम बदला और बारिश शुरू हो गई, बादलों की गर्जन सुन स्तुति का मन बाहर छत पर जाने को कर रहा था और वो बार-बार मुझे पुकार कर छत पर जाने को कह रही थी| मैं दबे पॉंव स्तुति को ले कर उठा और छत पर आ गया तथा स्तुति को दूर से बारिश होते हुए दिखाने लगा| जिस प्रकार बारिश मुझे अपनी ओर खींचती थी उसी प्रकार मेरी बिटिया रानी भी बरखा रानी की तरफ खींची जा रही थी| स्तुति एकदम से मेरी गोदी से नीचे उतरने को छटपटाने लगी; "बेटू, आप बारिश में भीगोगे तो बीमार हो जाओगे|" मैंने स्तुति को समझना चाहा मगर मेरी बिटिया नहीं मानी और झूठ-मूठ रोना शुरू करने लगी| "बस एक मिनट के लिए चलेंगे?" मैं स्तुति से बोला तो स्तुति एकदम से खुश हो गई| गर्मी का मौसम था इसलिए मैं स्तुति को ले कर बारिश में भीगने आ गया| बरखा की बूँदें जब हम बाप-बेटी पर पड़ी तो स्तुति ने खुशी से चिल्लाना शुरू कर दिया| तभी मेरी मासूम बिटिया का मन बारिश की बूंदों को अपनी मुठ्ठी में कैद करने का था मगर बारिश की बूँदें स्तुति की छोटी सी हथेली में कैद होना नहीं चाहती थी, परन्तु इससे स्तुति का उत्साह कम नहीं हुआ बल्कि उसका उत्साह तो बेकाबू होने लगा था!

"पपई...पपई" कहते हुए स्तुति ने मेरी गोदी से नीचे उतरने के लिए छटपटाना शुरू कर दिया| मैंने सोचा की अब तो बारिश में भीग ही चुके हैं तो क्यों न हम बाप-बेटी नहा ही लें?! अतः मैं स्तुति को गोदी में लिए हुए नीचे बह रहे बारिश के पानी पर बैठ गया| बारिश हो रही थी और पानी नाली की ओर बह रहा था| स्तुति के पॉंव जब बारिश के पानी से स्पर्श हुए तो उसने ज़मीन पर बैठने की जिद्द की| जैसे ही मैंने स्तुति को ज़मीन पर बिठाया, स्तुति ने फट से छप-छप कर पानी मेरे ऊपर उछालना शरू कर दिया! "ब्माश!" मैं मुस्कुराते हुए बोला और स्तुति पर धीरे-धीरे पानी उड़ाने लगा| हम बाप-बेटी के यूँ एक दूसरे पर पानी उड़ाने में स्तुति को बहुत मज़ा आ रहा था और उसने खिलखिलाकर हँसना शुरू कर दिया था|

अभी बस कुछ मिनट हुए थे की मेरे दोनों बच्चे आयुष और नेहा भी जाग गए और मुझे ढूँढ़ते हुए छत पर आ पहुँचे| आयुष तो पहले ही बारिश में नहाने को उत्साहित रहता था इसलिए वो दौड़ता हुआ छत पर आ गया, वहीं मेरी बिटिया नेहा को भी आज अपने पापा जी के साथ बारिश में भीगना था इसलिए नेहा भी छत पर दौड़ आई|

हम तीनों ने स्तुति को घेर लिया और एक गोल धारा बना कर बैठ गए| स्तुति बीच में थी इसलिए उसने छप-छप कर हम सभी पर पानी उड़ाना शुरू कर दिया| इधर हम तीनों (मैंने, नेहा और आयुष) ने मिलकर स्तुति पर पानी उड़ाना शुरू कर दिया| बारिश में इस कदर भीगते हुए मस्ती करने में हम चारों को बहुत मज़ा आ रहा था और हम चारों सब कुछ भूल-भाल कर हँसी-ठहाका लगाने में व्यस्त थे! हमने ये भी नहीं सोचा की हमारे इस हँसी-ठाहके की आवाज़ घर के भीतर जाएगी और जब दोनों सास-पतुआ हम चारों को यूँ बारिश में नहाते हुए देखेंगी तो बहुत गुस्सा होंगी!



उधर, हमारी ये हँसी-ठहाका सुन माँ और संगीता छत पर आये तथा हम चारों को बारिश में मस्ती करते हुए चुप-चाप देखने लगे| मेरा बचपना देख माँ का मन मुझे डाँटने का नहीं था इसलिए वो कुछ पल बाद संगीता को ले कर वापस अंदर चली गईं|



एक जगह बैठ कर पानी उड़ाकर स्तुति ऊब गई थी इसलिए वो अपने दोनों हाथों-पॉंव पर चलने लगी| स्तुति को यूँ चलते देख हम तीनों भी रेल के डिब्बों की तरह स्तुति के पीछे-पीछे अपने दोनों हाथों-पॉंव पर चलने लगे| स्तुति को यूँ रेलगाड़ी का इंजन बनना पसंद था इसलिए वो खदबद-खदबद कर आगे दौड़ने लगी तथा हम तीनों भी स्तुति की गति से उसके पीछे चलने लगे| पूरी छत का चक्कर लगा कर स्तुति फिर छत के बीचों-बीच बैठ गई और फिरसे हम पर पानी उड़ाने लगी|

हमें बारिश में मस्ती करते हुए लगभग 15 मिनट हो गए थे इसलिए मैंने हमारी इस मस्ती की रेलगाडी पर रोक लगाई और तीनों बच्चों से बोला; "बस बेटा, अब सब अंदर चलो वरना आपकी दादी जी और आपकी मम्मी हम चारों को डाटेंगी!" अपनी दादी जी और मम्मी की डाँट का नाम सुन आयुष और नेहा तो अंदर जाने को तैयार हो गए मगर स्तुति ‘न’ में सर हिलाते हुए बोली; "no...no...no"!!!

"ओ पिद्दा! मम्मी मारेगी, चल अंदर!" नेहा ने स्तुति को प्यारभरी डाँट लगाई तब भी स्तुति नहीं मानी और फिर से छत पर खदबद- खदबद कर दौड़ने लगी| अब हमें स्तुति को पकड़ कर अंदर ले जाना था इसलिए हम स्तुति को पकड़ने के लिए उसके पीछे दौड़ने लगे| दो मिनट तक स्तुति ने हमको अच्छे से दौड़ाया, कभी वो टेबल के नीचे छुप जाती तो कभी कुर्सी के पीछे! तब हमें नहीं पता था की स्तुति जानबूझ कर हमें अपने पीछे भगा रही है क्योंकि उसके लिए ये बस एक खेल ही तो था!

"बेटू, रस मलाई खाओगे?" मैंने जैसे ही रसमलाई का नाम लिया, वैसे ही मीठा खाने की लालची मेरी बिटिया जहाँ थी वहीं बैठ गई और मेरी गोदी में आने के लिए अपने दोनों हाथ खोल दिए! मैंने स्तुति को गोदी में उठाया तो नेहा ने उसके कूल्हों पर प्यार से चपत लगाई और बोली; "बिलकुल अपने आयुष भैया पर गई है, खाने का नाम लिया नहीं की फट से मान गई!" वैसे बात तो सही थी, आयुष की ही तरह स्तुति को मीठा खाने का चस्का था!



खैर, हम चारो दबे पॉंव अंदर आये क्योंकि हमें लग रहा था की हमारी इस मस्ती के बारे में माँ को नहीं पता है| अंदर आ कर बारी-बारी से सबने कपड़े बदले और फिर से बिस्तर पर लेट गए तथा ऐसा दिखाने लगे मानो हमने कोई शैतानी की ही न हो! शाम 6 बजे माँ हम चारों को उठाने आईं; "मेरे प्यारे-प्यारे शैतानों, उठ जाओ!" माँ ने प्यार से आवाज़ लगा कर हमें जगाया| हम चारों एक कतरार में उठ कर बैठ गए, चूँकि मैं माँ के नज़दीक था इसलिए माँ ने मेरा कान पकड़ कर उमेठ दिया; "तुम चारों ने बारिश में बड़ी मस्ती की न?" माँ के पूछे सवाल से हम चारों सन्न थे! आयुष और नेहा को लग रहा था की अब उन्हें डाँट पड़ने वाली है मगर स्तुति ने जब माँ को मेरा कान उमेठते हुए देखा तो उसे बड़ा मज़ा आया और उसने खिलखिलाकर हँसना शुरू कर दिया|

हम तीनों को फँसा कर स्तुति को बहुत मज़ा आ रहा था, वहीं माँ ने जब स्तुति को यूँ हँसते देखा तो उनकी भी हँसी छूट गई! जब दोनों बच्चों ने अपनी दादी जी को हँसते हुए देखा तो उनकी जान में जान आई| अब नेहा को मेरा कान माँ की पकड़ से छुड़ाना था इसलिए नेहा पलंग पर खड़ी हुई और माँ के गले लग गई| माँ नेहा को चलाकी जान गई थीं इसलिए उन्होंने नेहा के कूल्हों पर प्यार भरी चपत लगाई और बोलीं; "पापा की चमची! हमेशा अपने पापा जी को बचाने आगे आ जाती है!" जब माँ ने नेहा के कूल्हों पर प्यारी सी चपत लगाई तो स्तुति को इसमें भी बहुत मज़ा आया और उसने खिलखिलाकर हँसना शुरू कर दिया!



7 बजे दिषु घर आया और हम दोनों दोस्त मेरे कमरे में बैठ, कंप्यूटर पर हमारे नए बिज़नेस से जुडी मेरे द्वारा बनाई हुई PPT देख रहे थे| इतने में स्तुति अपने हाथों-पॉंव पर खदबद-खदबद कर आ पहुँची, मैंने स्तुति को गोदी में लिया तो स्तुति ने टेबल के ऊपर बैठने की पेशकश की| स्तुति को मैंने कंप्यूटर स्क्रीन की बगल में बिठा दिया तो स्तुति बड़ी गौर से PPT देखने लगी| "बेटा, आप भी अपने पापा जी की सेल्स पिच (sales pitch) देखोगे?" दिषु ने मज़ाक करते हुए स्तुति से पुछा तो स्तुति ने फौरन अपनी गर्दन हाँ में हिला दी| स्तुति की इस प्रतिक्रिया पर दिषु को बहुत जोर से हँसी आई और ठहाका लगा कर हँसने लगा|

"हाँ भैया, ये नानी ही तो आपकी इन्वेस्टर (investor) है!" संगीता ने दिषु की बात सुन ली थी इसलिए वो पीछे से आ कर बोली, इधर संगीता के किये इस मज़ाक पर हम दोनों दोस्त हँसने लगे|



खैर, मैं दिषु को PPT दिखाते हुए सब समझा रहा था और इस दौरान स्तुति बड़े गौर से मेरी बातें सुन रही थी| जब PPT में एनिमेशन्स (animations) आती तो स्तुति बहुत खुश होती, इतनी ख़ुशी की वो ख़ुशी से चिल्लाने लगती| इतने में संगीता चाय ले आई और जबरदस्ती स्तुति को गोदी में उठा कर ले जाने लगी, अब स्तुति को PPT देखने में आ रहा था मज़ा इसलिए वो संगीता की गोदी में छटपटाने लगी| "तेरे पल्ले कुछ पड़ भी रहा है की यहाँ क्या बातें हो रही हैं? बड़ी आई अम्बानी की चाची!" संगीता मुँह टेढ़ा करते हुए बोली और स्तुति को अपने साथ ले गई|



जब से दिषु आया था उसने संगीता के बर्ताव में आये बदलाव को भाँप लिया था| बाकी दिन जब दिषु घर आता था तो संगीता उससे बड़े प्यार से बात करती थी, लेकिन आज वो अधिक बात करने के मूड में नहीं थी| जब संगीता हम दोनों की चाय दे कर गई तो दिषु ने मुझसे सारी बात पूछी| जब मैंने उसे सारी बात बताई तो दिषु अवाक हो कर मुझे देखने लगा! "भोसड़ीके तुझे बड़ी चर्बी चढ़ी है? बहनचोद तूने रिवॉल्वर चलाई? बहनचोद तेरी तो डंडे से गांड तोड़ी जानी चाहिए!" दिषु मुझे गाली देते हुए गुस्से से बोला|

"भाई, मेरी मति मारी गई थी जो मैंने किसी के 'चढ़ाने' पर रिवॉल्वर उठाई!" मैं अपना सर पीटते हुए बोला| अब जैसा की होता है, संगीता ने हमारी सारी बातें सुन ली थीं इसलिए वो एकदम से कमरे में आ गई ताकि दिषु को मेरे खिलाफ और भड़का सके; "आपसे बातें तो छुपाते ही थे, अब तो हम सब से भी बातें छुपाने लगे हैं!" संगीता मुँह टेढ़ा करते हुए बोली|

"ये ऐसे नहीं सुधरेगा भाभी जी, ज़रा एक डंडा लाइए मैं इसे अभी कूट-पीट कर सीधा करता हूँ! बड़ी चर्बी चढ़ी है साले को, न मैंने इसकी सारी चर्बी पिघला दी तो कहना!" दिषु अपनी कमीज के स्लीव मोड़ते हुए बोला| शुक्र है की घर में डंडा नहीं था वरना अगर संगीता उसे डंडा दे देती तो ये ससुर मुझे आज सच में कूट देता!

"यार मैं अपने किये पर बहुत शर्मिंदा हूँ! मैंने जो बेवकूफी की उसके लिए मैं हाथ जोड़कर माफ़ी माँगता हूँ|" मैंने अपनी जान बचाने के लिए नम्रता से हाथ जोड़े, लेकिन बजाए नरम पड़ने के दिषु मुझे सुनाने लग गया; "मेरी भाभी जी सीधी-साधी हैं इसलिए तुझे बस कमरे से बाहर सुलाया, अगर कोई और होती न तो घर से बाहर निकाल देती तुझे! चल पॉंव-पड़ भाभी जी के!" दिषु मुझे आदेश देते हुए बोला| अब मुझे चाहिए थी संगीता की माफ़ी और इसके लिए मैं उसके पॉंव छूने को भी तैयार था| मैंने जैसे ही आगे बढ़ कर संगीता के पॉंव छूने चाहे, वैसे ही संगीता डर के मारे भाग खड़ी हुई! संगीता के एकदम से भागने पर दिषु हँस पड़ा और बोला; "अरे भाभी जी, कहाँ भाग रही हो? इसे (मुझे) माफ़ी तो माँगने दो!"

दिषु की बात सुन संगीता कमरे के बाहर जा कर रुकी और बोली; "प्यार करती हूँ इनसे और इनसे अपने पॉंव स्पर्श करवाऊँगी तो नर्क में भी जगह नहीं मिलेगी मुझे! आप इन्हें कूट-पीट कर सही कर दो, मैं ये सब देख नहीं पाऊँगी इसलिए मैं चली!" कल रात से जा कर अब संगीता के मुख से प्यारभरे बोल फूटे थे जिससे मेरा मन प्रसन्न हो गया था| अब संगीता पिघल रही थी तो उसे मनाना आसान था|



संगीता के जाने के बाद दिषु ने मुझे आराम से समझाया की मैं इस तरह बेवकूफी भरा काम न किया करूँ तथा मैंने भी दिषु की बात मानते हुए कहा; "भाई ये आखरी गलती थी मेरी, आगे से फिर कभी ऐसा नहीं करूँगा|" मैंने ऐसा बोल तो दिया लेकिन फिर आगे चल कर कुछ ऐसा घटित हुआ जिस कारण मेरा गुस्सा खुल कर सामने आया और मैं अपनी बात पर क़ायम न रह सका!



जाते-जाते दिषु संगीता से मज़ाक करते हुए बोला; "भाभी जी, मैंने इसे अच्छे से कूट दिया है| आगे फिर ये कोई बेवकूफी करे तो मुझे उसी वक़्त फ़ोन कर देना, मैं तभी दौड़ा चला आऊँगा और इसे पीट-पाट के चला जाऊँगा| अगर मैं दिल्ली में न भी हुआ न तो फ्लाइट से आऊँगा और फ्लाइट के पैसे इसी से भरवाऊँगा!" दिषु के किये मज़ाक पर संगीता की हँसी छूट गई और अपनी परिणीता को हँसते देख मेरा दिल एक बार फिर प्रसन्नता से भर गया|



दिषु के जाने के बाद, नेहा का मन मुझे अपनी मम्मी से माफ़ी दिलवाने का था इसलिए उसने मोर्चा सँभाला! मैं कमरे में बैठा कंप्यूटर पर काम कर रहा था और संगीता उसी वक़्त कमरे में कपड़े तहाने आई थी, ठीक तभी नेहा फुदकती हुई कमरे में आई| "मम्मी जी...मुझे न आपसे बात करनी है!" नेहा अपनी मम्मी को मक्खन लगाते हुए बोली|

"ज्यादा मक्खन लगाने की जर्रूरत नहीं है, सीधा मुद्दे पर आ!" संगीता मुँह टेढ़ा करते हुए बोली| संगीता जानती थी की नेहा उसे मेरे लिए मख्खन लगाने आई है इसीलिए संगीता सीधे मुँह नेहा से बात नहीं कर रही थी|



"मम्मी जी, गलती तो सब से होती है लेकिन हमें इंसान को उसकी गलती सुधारने का एक मौका देना चाहिए न?" नेहा अपनी मम्मी से तर्क करते हुए बोली| नेहा तर्क करने में बहुत तेज़ थी और उसके इस तर्क का जवाब देने में मैं भी फ़ैल हो जाता था| मैं जब नेहा के आगे तर्क में हारने लगता तो मैं बात बनाते हुए उसे लाड-प्यार कर बहला लेता था, लेकिन संगीता थी गर्म दिमाग की इसलिए वो नेहा के तर्क के आगे हारने पर उसे ही डाँट देती थी!

"तुझे पूरी बात पता भी है? आ गई यहाँ पैरवी करने!" संगीता ने नेहा को झिड़कते हुए कहा|

“हाँ जी मम्मी, मुझे सब बात पता है|" नेहा बड़े आत्मविश्वास से बोली| नेहा का आत्मविश्वास देख संगीता हैरान हो गई! संगीता को लगा मैंने नेहा को मेरे रिवाल्वर उठाने की बात भी बता दी है इसलिए संगीता अपनी आँखें फाड़े मुझे देखने लगी! नेहा जब मेरी पैरवी कर रही थी तो मैं अपना काम छोड़ दोनों माँ-बेटी की बात सुनने में व्यस्त हो गया था| जब हम मियाँ-बीवी की नज़रें आपस में टकराई तो संगीता आँखों ही आँखों में मुझसे पूछने लगी की क्या मैंने नेहा को सब बता दिया? जिसके जवाब में मैंने नेहा की चोरी, अपनी गर्दन न में हिला दी| संगीता को इत्मीनान हुआ की मैंने नेहा को सारी बात नहीं बताई इसलिए संगीता ने नेहा को छिड़कते हुए चुप करा दिया; "जा कर पढ़ाई कर अपनी! बड़ी आई वकील बनने!" नेहा को झिड़क कर संगीता रसोई में चली गई|



संगीता के जाने के बाद नेहा आ कर मेरे गले लग गई और बोली; "सॉरी पापा जी, मैं फ़ैल हो गई?" नेहा के फ़ैल होने का मतलब था की वो मुझे अपनी मम्मी से माफ़ी नहीं दिलवा पाई| पिछलीबार जब मैं संगीता से नाराज़ था तो उसी ने अपनी मम्मी को मुझसे माफ़ी दिलवाई थी, नेहा को लगा की वो इस काम में उस्ताद है इसीलिए वो मुझे अपनी मम्मी से माफ़ी दिलवाना चाहती थी| नेहा को इस कदर हार मानते देख मुझे लगा कहीं मेरी बिटिया के मन में कोई डर न बैठ जाए इसलिए मैं नेहा को हिम्मत देते हुए बोला; "बेटा, अभी आपकी मम्मी गुस्सा हैं इसलिए वो अभी इतनी जल्दी नहीं मानेंगी| एक बार आपकी मम्मी का गुस्सा शांत हो जाए तो उन्हें मनाना|" मेरी बात से नेहा को हिम्मत मिली और उसने तुरंत एक तरकीब सोच ली|



नेहा ने अपने दोनों भाई-बहन को साथ लिया और अपनी मम्मी को मनाने के लिए रसोई में जा पहुँची| ये दृश्य ऐसा ही था जैसे मेरी सत्ता बचाने के लिए मेरे तीनों विधायक गृह मंत्री के पास पहुँचे हों|

नेहा ने फट से स्तुति को आगे किया और अपनी मम्मी से बोली; "मम्मी जी, देखो स्तुति आपसे क्या कहना चाहती है|" नेहा ने जैसे ही स्तुति को आगे किया स्तुति फौरन अपनी मम्मी की गोदी में चली गई और अपनी मम्मी को मस्का लगाने के लिए अपनी मम्मी के दोनों गालों पर पप्पी करते हुए बोली; "मम-मम....पपई...उम्मा" ये कहेत हुए स्तुति ने अपनी मम्मी के गाल पर फिर से पप्पी की| स्तुति का मतलब था की; 'मम्मी, पापा जी को माफ़ कर दो और उन्हें मेरी तरह पप्पी दो!' संगीता अपनी बेटी की बात का मतलब समझ गई थी परन्तु वो अनजान बनने की बेजोड़ कोशिश कर रही थी| नेहा ने जब देखा की उसका एक पासा पिट रहा है तो नेहा ने अपना दूसरा पासा फेंका; "मम्मी, आयुष को भी कुछ कहना है|" ये कहते हुए नेहा ने आयुष को इशारा किया| आयुष आज अच्छे से रट्टा मार कर आया था इसलिए आयुष ने अपना निचला होंठ फुलाया और अपनी मम्मी से बोला; "मम्मी जीईईईईईईई.....! आप कितने अच्छे हो, हमारे लिए इतना अच्छा खाना बनाते हो, हमारे सब काम करते हो इसके लिए मैं आपको थैंक यू कहना चाहता हूँ|" आयुष ने बाल्टी भर मक्खन संगीता के ऊपर उड़ेल दिया था जिससे संगीता धीरे-धीरे पिघलने लगी थी! “मम्मी जी...आप हमारे लिए...अपने तीन प्यारे-प्यारे बच्चों के लिए, पापा जी को माफ़ कर दो न? बदले में आप जो कहोगे हम वो करेंगे, मस्ती बिलकुल नहीं करेंगे| आपकी हर बात मानेंगे अगर हम ने ज़रा सी भी मस्ती की न तो आप हमें कूट देना!" आयुष कहीं कुछ भूल न जाए इसलिए वो एक साँस में सब बोल गया| आयुष की अंत में कूटने की बात सुन संगीता के चेहरे पर इतनी देर से रोकी हुई हँसी छलक ही आई! "तुम तीनों शैतान बिलकुल अपने पापा जी पर गए हो! कैसे न कैसे कर के मुझे हँसा ही देते हो! लेकिन माफ़ी तो फिर भी नहीं मिलेगी!" संगीता हँसते हुए बोली और जा कर माँ को सारा किस्सा कह सुनाया|

"नानी! आज तूने दिनभर बहुत शैतानी की है!" ये कहते हुए माँ ने स्तुति को अपनी गोदी में लिया और उसकी नाक पकड़ कर खींचते हुए बोलीं; "तेरी सारी शैतानियाँ जानती हूँ मैं!" माँ आखिर माँ होती हैं इसलिए वो स्तुति की सारी होशियारी समझ रही थीं| नेहा की इस प्यारी सी कोशिश ने उसकी मम्मी को हँसा दिया था मगर मेरे लिए माफ़ी मुझे खुद संगीता से माँगनी थी|



रात को खाना खा कर सोने का समय हुआ तो संगीता ने चतुराई दिखाते हुए तीनों बच्चों को हमारे कमरे में भेज दिया और खुद बच्चों के कमरे में अकेली सोई| संगीता ने कल रात से मुझसे प्यार से बात नहीं की थी और मेरा मन उससे बात किये बिना चैन नहीं पा रहा था इसलिए बच्चों को जल्दी सुला मैं बच्चों के कमरे में पहुँचा|

संगीता अपनी छाती पर हाथ रखे हुए पीठ के बल लेटी थी, ऐसा लगता था मानो वो मेरा ही इंतज़ार कर रही हो! परन्तु जैसे ही संगीता ने मुझे कमरे के दरवाजे पर खड़ा देखा उसने फट से अपनी आँखें मूँद ली और ऐसा दिखाने लगी मानो वो सो रही हो!

"जान...मैं जानता हूँ तुम सोई नहीं हो! मैं तुमसे बात करने आया हूँ...माफ़ी माँगने आया हूँ!" मैंने संगीता को पुकारते हुए कहा| मेरी बात सुन संगीता ने आँख खोल ली और उठ कर बैठ गई| संगीता का मुझे मेरी बात कहना का मौका देना ये दर्शाता था की उसका गुस्सा अब शांत हो रहा है|

"जान, मैंने जो गलती की वो माफ़ी के लायक तो नहीं है मगर एक बार मेरे दिल की बात सुन लो… मैंने उस दिन क्या महसूस किया था ये सुन लो!



उस रात जब मिश्रा अंकल जी ने मुझे फ़ोन कर बुलाया तो मैं केवल और केवल उनकी मदद करने के लिए गया था मगर जब मैंने मिश्रा अंकल जी की गाडी में पिस्तौल देखि तो न जाने मेरे भीतर कैसी कसक उठी की मैंने बिना कुछ सोचे-समझे वो पिस्तौल उठाने के लिए अपने हाथ बढ़ा दिए| उस पिस्तौल में मानो कोई चुंबकीय शक्ति थी जो मुझे अपनी ओर खींच रही थी और वो चाहती थी की मैं उसे उठा लूँ| जैसे ही मैंने वो पिस्तौल उठाई तो पता नहीं मेरे ऊपर क्या सनक चढ़ी की मैं बावरा सा हो गया! उस पिस्तौल का वजन मेरा हाथ नहीं मेरी आत्मा महसूस कर रही थी और मेरे भीतर जर्रूरत से ज्यादा आत्मविश्वास फूँक रही थी| मैंने कभी घमंड नहीं किया था मगर इस पिस्तौल ने मुझे एक पल में घमंडी बना दिया था... वो भी ऐसा घमंडी जिसे न अपनी जान की परवाह थी और ना ही अपने परिवार की!



तुम्हें याद है उस दिन जब मैंने चन्दर पर कट्टा चलाया था?! उस दिन उस कट्टे की आवाज़ से मेरे भीतर बैठा हुआ एक शैतान जागा था, वो तो मेरी अंतरात्मा ने पाप-पुण्य का डर दिखा के इस शैतान को काबू में कर रखा था| लेकिन फिर भी ये शैतान कभी न कभी अपना फन्न फैला ही देता था, बीते एक-डेढ़ साल में जो तुमने मेरा गुस्सा...क्रोध देखा है ये सब उसी शैतान की देन है| जब मैंने मिश्रा अंकल जी की गाडी से पिस्तौल उठाई तो ये शैतान मुझ पर हावी हो गया| फिर मुझे न अपनी सुध थी और न तुम्हारी, मेरा मन तो बस वो पिस्तौल चलाने का था| भगवान जी की कृपा कहो की उस रात हालात नहीं बिगड़े और मेरे हाथों गोली नहीं चली और मैंने केवल अपनी अकड़ उन गुंडों को दिखा कर रह गया वरना क्या पता सच में मैं उन तीनों गुंडों को मौत के घात उतार ही देता|

फिर अगली सुबह, जब तुम माँ के साथ सब्जी लेने गई थी तब मेरा अंतर्मन शांत था और मेरे रात में किये जाहिलपने के लिए मुझे धिक्कार रहा था| मुझे ग्लानि हो रही थी की क्यों मैं इतना गैरजिम्मेदार बन गया? क्यों मैंने बिना कुछ सोचे समझे अपनी जान के साथ ऐसा खिलवाड़ किया? मेरा ये अपराध बोध मेरे मन को कचोटने लगा था और मैं ग्लानि के गढ्ढे में गिरने वाला था...की तभी स्तुति के प्यार ने मुझे थाम लिया| स्तुति की मस्ती देख मैं सब भूल बैठा और उसे लाड-प्यार करने में व्यस्त हो गया|



फिर पार्टी वाली रात, मुकुल मुझे नीचा दिखाने पर तुल गया! उस पार्टी में इतने अमीर आदमियों के बीच मैं पहले ही खुद को बहुत छोटा समझ रहा था उस पर जब मुकुल ने मुझे नीचा दिखाने की कोशिश की तो मेरे भीतर का शैतान फिर जागा|



मुकुल ने मुझे छोटा दिखाने के लिए पहले शराब पीने को उकसाया, जिसका मैंने बड़ी हलीमी से जवाब दे कर पीने से मना कर दिया| लेकिन फिर उसने अपनी अगली चाल चली और मुझे गरीब दिखाने के लिए मिश्रा अंकल जी को एक महँगी रिवॉल्वर गिफ्ट दी| पिछलीबार की तरह इस बार भी उस रिवॉल्वर को देख मेरे दिमाग ने काम करना बंद कर दिया| उस चमचमाती रिवॉल्वर को देख मैं उसी के वशीभूत हो उसे उठाने को मरा जा रहा था| मेरा दिल कह रहा था की एक बार तो इसे उठा कर देख, इसके वजन को अपने हाथों में महसूस कर के देख! एक बार उस ट्रिगर को अपनी ऊँगली से दबा कर देख! गोली चलने की उस शानदार आवाज़ को सुनने के लिए मेरे कान जैसे तरसने लगे थे! परन्तु किसी तरह मेरी अंतरात्मा जागी और मैंने रिवॉल्वर से नज़रें फेरते हुए अपने बेकाबू मन को शांत करना शुरू किया| बीती रात को याद कर मुझे मेरी बेवकूफी याद आ गई थी और मैं ये बेवकूफी फिर नहीं दोहराना चाहता था|

लेकिन मुकुल ने मुझे रिवॉल्वर से नजरें फेरते हुए पकड़ लिया था और उसे लगा की मैं बुज़दिल हूँ तथा रिवॉल्वर से डरता हूँ इसलिए उसने मुझे नीचा दिखाना शुरू कर दिया| उसने मेरी सादगी को मेरी बुज़दिली कहा और मुझ पर ठीक वैसे ही हँसा जैसे उस दिन चन्दर हँस रहा था| चन्दर की वो घिनौनी हँसी याद आते ही मुझसे रहा नहीं गया और मैंने अपने भीतर बैठे शैतान की बात मानते हुए न केवल रिवॉल्वर उठाई बल्कि चला भी दी! जब मैंने वो रिवॉल्वर चलाई, उन कुछ पलों के लिए मेरे भीतर का शैतान जैसे प्रसन्न हो गया था| जहाँ एक तरफ रिवॉल्वर चलने और उसकी आवाज़ से सब दहल गए थे, वहीं मुझे इसमें असीम आनंद आया था| रिवॉल्वर अपने हाथ में महसूस कर ऐसा लगता था मानो मेरे जिस्म का कोई भाग जो पहले टूट गया था वो अब पूरा हो चूका है| गोली चलने की वो आवाज़ सुन मैं किसी अलग ही दुनिया में खो गया था| उन कुछ पलों के लिए ऐसा लगता था मानो मेरा दिल जो चाहता था उसे मिल गया हो|



इस रिवॉल्वर ने मेरे अंदर घमंड जगा दिया था और इसी घमंड में चूर मैंने मुकुल को सबके सामने अच्छे से सुना दिया| सबके सामने मुकुल को यूँ बेइज्जत कर मेरे दिल को अजीब सी राहत और सुकून मिल रहा था| लेकिन फिर मेरी नज़र पड़ी तुम पर और जितना भी सुख मैंने इन कुछ पलों में महसूस किया था वो सबका सब पल भर में छू मन्त्र हो गया और उसकी जगह मेरे मन में तुम्हारा गुस्सा होने का डर बैठ गया! तुम्हारे चेहरे पर मैंने चिंता और डर की लकीरें देख ली थीं और उसी पल मुझे मेरी बेवकूफी समझ आई| मैं तुमसे माफ़ी माँगने तुम्हें समझाने आना चाहता था मगर मिश्रा अंकल जी ने मेरे कँधे पर हाथ रख मुझे अपनी बातों में लगा लिया, जिस कारण मैं तुम्हारे पास नहीं आ पाया|



जान, मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूँ और तुम्हारे मुझसे इस कदर नाराज़ होने से...गुस्सा होने से मैं एकदम से अधूरा हो गया था! सच पूछो तो मैं तुमसे बात करने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था, डरता था की कहीं तुम फिर इ मुझ पर बरस पड़ीं तो? मुझे बस एक आखरी मौका दे दो ताकि मैं अपनी गलती सुधार सकूँ!" मैंने संगीता को अपने जज्बातों से अच्छे से अवगत करा दिया था तथा एक आखरी मौक़ा भी माँग लिया था|



वहीं मेरे भीतर एक शैतान मौजूद होने की बात सुन संगीता घबरा गई थी! मेरे भीतर का ये शैतान जो कभी-कभी बाहर आ जाता था उसे हमेशा के लिए खत्म करना था और ये काम केवल संगीता का प्यार कर सकता था, परन्तु उसके लिए पहले संगीता का गुस्सा शांत होना चाहिए था?!

इधर मेरी पूरी बात सुन संगीता के चेहरे पर कोई ख़ास बदलाव नहीं आये थे, उसका चेहरा अब भी फीका पड़ा हुआ था, ऐसा लगता था मानो मेरी बातें सुन उसे कोई फर्क ही न पड़ा हो! संगीता एकदम से उठी और दरवाजे की तरफ बढ़ने लगी, मुझे लगा की उसका गुस्सा अब भी खत्म नहीं हुआ है और वो कमरे से बाहर जाना चाहती है| मेरी वजह से बेचारी संगीता पहले ही अकेली कमरे में सो रही थी, मैं नहीं चाहता था की वो अब इस कमरे से भी निकल कर बैठक में सोये इसलिए मैंने संगीता को रोकना चाहा; "जान, मैं इस कमरे से चला जाता हूँ...तुम मेरी वजह से सोफे पर मत सोओ!"

मेरी बात पूरी होते-होते संगीता मेरे पास पहुँच चुकी थी, जैसे ही मेरी बात पूरी हुई संगीता एकदम से मेरे गले लग गई| इसके आगे न संगीता को कुछ कहने की जर्रूरत थी न ही मुझे कुछ कहने की| संगीता मेरे गले लगे हुए ही मुझे पलंग तक लाई और हम दोनों मियाँ-बीवी एक दूसरे की बाहों में खो गए|



अगली सुबह, नेहा सबसे पहले उठी और उसने जब अपनी मम्मी-पापा जी को ऐसे सोते हुए देखा तो नेहा की ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा| नेहा को इस मनोरम दृश्य का रस लेना था इसलिए उसने स्तुति को गोदी में उठाया और मेरी छाती पर लिटा गई, फिर नेहा ने आयुष को जगाया और दोनों भाई-बहन हम दोनों मियाँ-बीवी के बीच जगह बनाते हुए जबरदस्ती घुस गए| बच्चों की इस उधमबाजी से जो चहल-पहल मची उससे हम मियाँ-बीवी जाग चुके थे इसलिए आयुष और नेहा ने खिलखिलाते हुए शोर मचाना शुरू कर दिया! हम दोनों मियाँ-बीवी भी सुबह-सुबह अपने तीनों बच्चों का प्यार पा कर बहुत खुश थे और बच्चों के साथ खिलखिला रहे थे|




पिछले कुछ दिनों से जो घर में दुःख अपना पैर पसार रहा था वो बेचारा आज अपने घर लौट गया था!
जारी रहेगा भाग - 8 में...
Bdiya update gurujii :love2:

खैर, हम चारो दबे पॉंव अंदर आये क्योंकि हमें लग रहा था की हमारी इस मस्ती के बारे में माँ को नहीं पता है

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Akki ❸❸❸

ᴾʀᴏᴜᴅ ᵀᴏ ᴮᴇ ᴴᴀʀʏᴀɴᴠɪ
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304
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Kala Nag

Mr. X
Prime
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144
अंतिम अध्याय: प्रतिकाष्ठा
भाग - 7


अब तक अपने पढ़ा:


इधर मेरा नया बिज़नेस आईडिया सुन और माँ द्वारा मिली आज्ञा से सबसे ज्यादा स्तुति खुश थी| स्तुति अपने मसूड़े दिखा कर हँस रही थी और ख़ुशी की किलकारियाँ मारने में व्यस्त थी| माँ ने जब स्तुति को यूँ खुश देखा तो वो स्तुति की नाक पकड़ते हुए बोलीं; "नानी, तू बड़ी खुश है? तूने भी अपने पापा के साथ बिज़नेस करना है?" माँ के पूछे इस मज़ाकिया सवाल का जवाब स्तुति ने ख़ुशी-ख़ुशी अपना सर हाँ में हिलाते हुए दिया| स्तुति की हाँ सुन कर हम सभी को हँसी आ गई और स्तुति भी हमारे साथ खिलखिला कर हँसने लगी|

"मेरी लाड़ली इसलिए खुश है क्योंकि उसे आज रसमलाई खाने को मिलेगी!" मैंने स्तुति के मन की बात कही तो स्तुति फौरन अपना सर हाँ में हिलाने लगी|


अब आगे:


आज
मेरी बिटिया ने हम माँ-बेटे के बीच पैदा हुए गुस्से को खत्म करने का महान काम किया था इसलिए आज मेरा मन मेरी लाड़ली को कुछ ख़ास खिलाने का था| मैं स्तुति को लिए हुए घर से निकला और उसे फ्रूट संडे (fruit sundae) खिलाया, इस डिश में से मैंने स्तुति को चुन-चुन कर सरे फ्रूट्स खिलाये जिसमें स्तुति को बहुत मज़ा आया| खा-पी कर हम दोनों बाप-बेटी रस-मलाई पैक करवा कर घर पहुँचे|



दोपहर को बच्चे स्कूल से लौटे तो मैंने उन्हें मेरे नए बिज़नेस शुरू करने की खबर सुनाई| आयुष को ऑनलाइन शॉपिंग के बारे में ज्यादा पता नहीं था लेकिन इससे उसका उत्साह कम नहीं हुआ था, वो तो मेरे नया काम शुरू करने के नाम से इतना खुश था की ख़ुशी से फूला नहीं समा रहा था| अपनी ख़ुशी व्यक्त करने के लिए उसने और स्तुति ने बैठे-बैठे एक दूसरे को देखते हुए हवा में हाथ उठा कर नाचना शुरू कर दिया था| इधर नेहा को ऑनलाइन शॉपिंग के बारे में जानकारी थी इसलिए वो पूरी बात समझते हुए बहुत खुश थी और उसने अपनी ये ख़ुशी मेरे गले लग कर मुझे बधाई देते हुए प्रकट की|

अब ख़ुशी की बात चल ही रही थी तो अब बारी थी मुँह मीठा करने की, जब संगीता ने सबके लिए रसमलाई परोसी तो नेहा ख़ुशी के मारे कूदने लगी| वहीं स्तुति ने जब अपनी दिद्दा को ख़ुशी से कूदते हुए देखा तो उसने भी कूदने की इच्छा प्रकट की; "पपई...पपई...दिद्दा!" स्तुति ने अपनी दीदी की तरफ इशारा करते हुए मुझे कहा तो मैंने स्तुति के दोनों हाथ पकड़ उसे खड़े होने में सहायता की, स्तुति जैसे ही खड़ी हुई उसने धीरे-धीरे थिरकना शुरू कर दिया! माँ ने जब अपनी पोती को थिरकते देखा तो वो तालियाँ बजाते हुए स्तुति का उत्साह बढ़ाने लगीं जिस कारन स्तुति के मुख से ख़ुशी की किलकारियाँ गूँजने लगीं!



वो दोस्ती ही क्या जिसमें आपने कभी साथ बिज़नेस करने की न सोची हो? यही कारण था की मैंने अपने बिज़नेस से जुड़ने के लिए दिषु को पुछा| साथ बिज़नेस करने का सुन दिषु उतावला हो गया और शाम को मिलने आने को बोला|



इधर खाना खा कर हम सब आराम कर रहे थे, संगीता मुझसे नाराज़ थी इसलिए वो माँ के पास थी| जबकि मेरे तीनों बच्चे मुझसे लिपट कर लेटे हुए खिलखिला रहे थे| अचानक ही मौसम बदला और बारिश शुरू हो गई, बादलों की गर्जन सुन स्तुति का मन बाहर छत पर जाने को कर रहा था और वो बार-बार मुझे पुकार कर छत पर जाने को कह रही थी| मैं दबे पॉंव स्तुति को ले कर उठा और छत पर आ गया तथा स्तुति को दूर से बारिश होते हुए दिखाने लगा| जिस प्रकार बारिश मुझे अपनी ओर खींचती थी उसी प्रकार मेरी बिटिया रानी भी बरखा रानी की तरफ खींची जा रही थी| स्तुति एकदम से मेरी गोदी से नीचे उतरने को छटपटाने लगी; "बेटू, आप बारिश में भीगोगे तो बीमार हो जाओगे|" मैंने स्तुति को समझना चाहा मगर मेरी बिटिया नहीं मानी और झूठ-मूठ रोना शुरू करने लगी| "बस एक मिनट के लिए चलेंगे?" मैं स्तुति से बोला तो स्तुति एकदम से खुश हो गई| गर्मी का मौसम था इसलिए मैं स्तुति को ले कर बारिश में भीगने आ गया| बरखा की बूँदें जब हम बाप-बेटी पर पड़ी तो स्तुति ने खुशी से चिल्लाना शुरू कर दिया| तभी मेरी मासूम बिटिया का मन बारिश की बूंदों को अपनी मुठ्ठी में कैद करने का था मगर बारिश की बूँदें स्तुति की छोटी सी हथेली में कैद होना नहीं चाहती थी, परन्तु इससे स्तुति का उत्साह कम नहीं हुआ बल्कि उसका उत्साह तो बेकाबू होने लगा था!

"पपई...पपई" कहते हुए स्तुति ने मेरी गोदी से नीचे उतरने के लिए छटपटाना शुरू कर दिया| मैंने सोचा की अब तो बारिश में भीग ही चुके हैं तो क्यों न हम बाप-बेटी नहा ही लें?! अतः मैं स्तुति को गोदी में लिए हुए नीचे बह रहे बारिश के पानी पर बैठ गया| बारिश हो रही थी और पानी नाली की ओर बह रहा था| स्तुति के पॉंव जब बारिश के पानी से स्पर्श हुए तो उसने ज़मीन पर बैठने की जिद्द की| जैसे ही मैंने स्तुति को ज़मीन पर बिठाया, स्तुति ने फट से छप-छप कर पानी मेरे ऊपर उछालना शरू कर दिया! "ब्माश!" मैं मुस्कुराते हुए बोला और स्तुति पर धीरे-धीरे पानी उड़ाने लगा| हम बाप-बेटी के यूँ एक दूसरे पर पानी उड़ाने में स्तुति को बहुत मज़ा आ रहा था और उसने खिलखिलाकर हँसना शुरू कर दिया था|

अभी बस कुछ मिनट हुए थे की मेरे दोनों बच्चे आयुष और नेहा भी जाग गए और मुझे ढूँढ़ते हुए छत पर आ पहुँचे| आयुष तो पहले ही बारिश में नहाने को उत्साहित रहता था इसलिए वो दौड़ता हुआ छत पर आ गया, वहीं मेरी बिटिया नेहा को भी आज अपने पापा जी के साथ बारिश में भीगना था इसलिए नेहा भी छत पर दौड़ आई|

हम तीनों ने स्तुति को घेर लिया और एक गोल धारा बना कर बैठ गए| स्तुति बीच में थी इसलिए उसने छप-छप कर हम सभी पर पानी उड़ाना शुरू कर दिया| इधर हम तीनों (मैंने, नेहा और आयुष) ने मिलकर स्तुति पर पानी उड़ाना शुरू कर दिया| बारिश में इस कदर भीगते हुए मस्ती करने में हम चारों को बहुत मज़ा आ रहा था और हम चारों सब कुछ भूल-भाल कर हँसी-ठहाका लगाने में व्यस्त थे! हमने ये भी नहीं सोचा की हमारे इस हँसी-ठाहके की आवाज़ घर के भीतर जाएगी और जब दोनों सास-पतुआ हम चारों को यूँ बारिश में नहाते हुए देखेंगी तो बहुत गुस्सा होंगी!



उधर, हमारी ये हँसी-ठहाका सुन माँ और संगीता छत पर आये तथा हम चारों को बारिश में मस्ती करते हुए चुप-चाप देखने लगे| मेरा बचपना देख माँ का मन मुझे डाँटने का नहीं था इसलिए वो कुछ पल बाद संगीता को ले कर वापस अंदर चली गईं|



एक जगह बैठ कर पानी उड़ाकर स्तुति ऊब गई थी इसलिए वो अपने दोनों हाथों-पॉंव पर चलने लगी| स्तुति को यूँ चलते देख हम तीनों भी रेल के डिब्बों की तरह स्तुति के पीछे-पीछे अपने दोनों हाथों-पॉंव पर चलने लगे| स्तुति को यूँ रेलगाड़ी का इंजन बनना पसंद था इसलिए वो खदबद-खदबद कर आगे दौड़ने लगी तथा हम तीनों भी स्तुति की गति से उसके पीछे चलने लगे| पूरी छत का चक्कर लगा कर स्तुति फिर छत के बीचों-बीच बैठ गई और फिरसे हम पर पानी उड़ाने लगी|

हमें बारिश में मस्ती करते हुए लगभग 15 मिनट हो गए थे इसलिए मैंने हमारी इस मस्ती की रेलगाडी पर रोक लगाई और तीनों बच्चों से बोला; "बस बेटा, अब सब अंदर चलो वरना आपकी दादी जी और आपकी मम्मी हम चारों को डाटेंगी!" अपनी दादी जी और मम्मी की डाँट का नाम सुन आयुष और नेहा तो अंदर जाने को तैयार हो गए मगर स्तुति ‘न’ में सर हिलाते हुए बोली; "no...no...no"!!!

"ओ पिद्दा! मम्मी मारेगी, चल अंदर!" नेहा ने स्तुति को प्यारभरी डाँट लगाई तब भी स्तुति नहीं मानी और फिर से छत पर खदबद- खदबद कर दौड़ने लगी| अब हमें स्तुति को पकड़ कर अंदर ले जाना था इसलिए हम स्तुति को पकड़ने के लिए उसके पीछे दौड़ने लगे| दो मिनट तक स्तुति ने हमको अच्छे से दौड़ाया, कभी वो टेबल के नीचे छुप जाती तो कभी कुर्सी के पीछे! तब हमें नहीं पता था की स्तुति जानबूझ कर हमें अपने पीछे भगा रही है क्योंकि उसके लिए ये बस एक खेल ही तो था!

"बेटू, रस मलाई खाओगे?" मैंने जैसे ही रसमलाई का नाम लिया, वैसे ही मीठा खाने की लालची मेरी बिटिया जहाँ थी वहीं बैठ गई और मेरी गोदी में आने के लिए अपने दोनों हाथ खोल दिए! मैंने स्तुति को गोदी में उठाया तो नेहा ने उसके कूल्हों पर प्यार से चपत लगाई और बोली; "बिलकुल अपने आयुष भैया पर गई है, खाने का नाम लिया नहीं की फट से मान गई!" वैसे बात तो सही थी, आयुष की ही तरह स्तुति को मीठा खाने का चस्का था!



खैर, हम चारो दबे पॉंव अंदर आये क्योंकि हमें लग रहा था की हमारी इस मस्ती के बारे में माँ को नहीं पता है| अंदर आ कर बारी-बारी से सबने कपड़े बदले और फिर से बिस्तर पर लेट गए तथा ऐसा दिखाने लगे मानो हमने कोई शैतानी की ही न हो! शाम 6 बजे माँ हम चारों को उठाने आईं; "मेरे प्यारे-प्यारे शैतानों, उठ जाओ!" माँ ने प्यार से आवाज़ लगा कर हमें जगाया| हम चारों एक कतरार में उठ कर बैठ गए, चूँकि मैं माँ के नज़दीक था इसलिए माँ ने मेरा कान पकड़ कर उमेठ दिया; "तुम चारों ने बारिश में बड़ी मस्ती की न?" माँ के पूछे सवाल से हम चारों सन्न थे! आयुष और नेहा को लग रहा था की अब उन्हें डाँट पड़ने वाली है मगर स्तुति ने जब माँ को मेरा कान उमेठते हुए देखा तो उसे बड़ा मज़ा आया और उसने खिलखिलाकर हँसना शुरू कर दिया|

हम तीनों को फँसा कर स्तुति को बहुत मज़ा आ रहा था, वहीं माँ ने जब स्तुति को यूँ हँसते देखा तो उनकी भी हँसी छूट गई! जब दोनों बच्चों ने अपनी दादी जी को हँसते हुए देखा तो उनकी जान में जान आई| अब नेहा को मेरा कान माँ की पकड़ से छुड़ाना था इसलिए नेहा पलंग पर खड़ी हुई और माँ के गले लग गई| माँ नेहा को चलाकी जान गई थीं इसलिए उन्होंने नेहा के कूल्हों पर प्यार भरी चपत लगाई और बोलीं; "पापा की चमची! हमेशा अपने पापा जी को बचाने आगे आ जाती है!" जब माँ ने नेहा के कूल्हों पर प्यारी सी चपत लगाई तो स्तुति को इसमें भी बहुत मज़ा आया और उसने खिलखिलाकर हँसना शुरू कर दिया!



7 बजे दिषु घर आया और हम दोनों दोस्त मेरे कमरे में बैठ, कंप्यूटर पर हमारे नए बिज़नेस से जुडी मेरे द्वारा बनाई हुई PPT देख रहे थे| इतने में स्तुति अपने हाथों-पॉंव पर खदबद-खदबद कर आ पहुँची, मैंने स्तुति को गोदी में लिया तो स्तुति ने टेबल के ऊपर बैठने की पेशकश की| स्तुति को मैंने कंप्यूटर स्क्रीन की बगल में बिठा दिया तो स्तुति बड़ी गौर से PPT देखने लगी| "बेटा, आप भी अपने पापा जी की सेल्स पिच (sales pitch) देखोगे?" दिषु ने मज़ाक करते हुए स्तुति से पुछा तो स्तुति ने फौरन अपनी गर्दन हाँ में हिला दी| स्तुति की इस प्रतिक्रिया पर दिषु को बहुत जोर से हँसी आई और ठहाका लगा कर हँसने लगा|

"हाँ भैया, ये नानी ही तो आपकी इन्वेस्टर (investor) है!" संगीता ने दिषु की बात सुन ली थी इसलिए वो पीछे से आ कर बोली, इधर संगीता के किये इस मज़ाक पर हम दोनों दोस्त हँसने लगे|



खैर, मैं दिषु को PPT दिखाते हुए सब समझा रहा था और इस दौरान स्तुति बड़े गौर से मेरी बातें सुन रही थी| जब PPT में एनिमेशन्स (animations) आती तो स्तुति बहुत खुश होती, इतनी ख़ुशी की वो ख़ुशी से चिल्लाने लगती| इतने में संगीता चाय ले आई और जबरदस्ती स्तुति को गोदी में उठा कर ले जाने लगी, अब स्तुति को PPT देखने में आ रहा था मज़ा इसलिए वो संगीता की गोदी में छटपटाने लगी| "तेरे पल्ले कुछ पड़ भी रहा है की यहाँ क्या बातें हो रही हैं? बड़ी आई अम्बानी की चाची!" संगीता मुँह टेढ़ा करते हुए बोली और स्तुति को अपने साथ ले गई|



जब से दिषु आया था उसने संगीता के बर्ताव में आये बदलाव को भाँप लिया था| बाकी दिन जब दिषु घर आता था तो संगीता उससे बड़े प्यार से बात करती थी, लेकिन आज वो अधिक बात करने के मूड में नहीं थी| जब संगीता हम दोनों की चाय दे कर गई तो दिषु ने मुझसे सारी बात पूछी| जब मैंने उसे सारी बात बताई तो दिषु अवाक हो कर मुझे देखने लगा! "भोसड़ीके तुझे बड़ी चर्बी चढ़ी है? बहनचोद तूने रिवॉल्वर चलाई? बहनचोद तेरी तो डंडे से गांड तोड़ी जानी चाहिए!" दिषु मुझे गाली देते हुए गुस्से से बोला|

"भाई, मेरी मति मारी गई थी जो मैंने किसी के 'चढ़ाने' पर रिवॉल्वर उठाई!" मैं अपना सर पीटते हुए बोला| अब जैसा की होता है, संगीता ने हमारी सारी बातें सुन ली थीं इसलिए वो एकदम से कमरे में आ गई ताकि दिषु को मेरे खिलाफ और भड़का सके; "आपसे बातें तो छुपाते ही थे, अब तो हम सब से भी बातें छुपाने लगे हैं!" संगीता मुँह टेढ़ा करते हुए बोली|

"ये ऐसे नहीं सुधरेगा भाभी जी, ज़रा एक डंडा लाइए मैं इसे अभी कूट-पीट कर सीधा करता हूँ! बड़ी चर्बी चढ़ी है साले को, न मैंने इसकी सारी चर्बी पिघला दी तो कहना!" दिषु अपनी कमीज के स्लीव मोड़ते हुए बोला| शुक्र है की घर में डंडा नहीं था वरना अगर संगीता उसे डंडा दे देती तो ये ससुर मुझे आज सच में कूट देता!

"यार मैं अपने किये पर बहुत शर्मिंदा हूँ! मैंने जो बेवकूफी की उसके लिए मैं हाथ जोड़कर माफ़ी माँगता हूँ|" मैंने अपनी जान बचाने के लिए नम्रता से हाथ जोड़े, लेकिन बजाए नरम पड़ने के दिषु मुझे सुनाने लग गया; "मेरी भाभी जी सीधी-साधी हैं इसलिए तुझे बस कमरे से बाहर सुलाया, अगर कोई और होती न तो घर से बाहर निकाल देती तुझे! चल पॉंव-पड़ भाभी जी के!" दिषु मुझे आदेश देते हुए बोला| अब मुझे चाहिए थी संगीता की माफ़ी और इसके लिए मैं उसके पॉंव छूने को भी तैयार था| मैंने जैसे ही आगे बढ़ कर संगीता के पॉंव छूने चाहे, वैसे ही संगीता डर के मारे भाग खड़ी हुई! संगीता के एकदम से भागने पर दिषु हँस पड़ा और बोला; "अरे भाभी जी, कहाँ भाग रही हो? इसे (मुझे) माफ़ी तो माँगने दो!"

दिषु की बात सुन संगीता कमरे के बाहर जा कर रुकी और बोली; "प्यार करती हूँ इनसे और इनसे अपने पॉंव स्पर्श करवाऊँगी तो नर्क में भी जगह नहीं मिलेगी मुझे! आप इन्हें कूट-पीट कर सही कर दो, मैं ये सब देख नहीं पाऊँगी इसलिए मैं चली!" कल रात से जा कर अब संगीता के मुख से प्यारभरे बोल फूटे थे जिससे मेरा मन प्रसन्न हो गया था| अब संगीता पिघल रही थी तो उसे मनाना आसान था|



संगीता के जाने के बाद दिषु ने मुझे आराम से समझाया की मैं इस तरह बेवकूफी भरा काम न किया करूँ तथा मैंने भी दिषु की बात मानते हुए कहा; "भाई ये आखरी गलती थी मेरी, आगे से फिर कभी ऐसा नहीं करूँगा|" मैंने ऐसा बोल तो दिया लेकिन फिर आगे चल कर कुछ ऐसा घटित हुआ जिस कारण मेरा गुस्सा खुल कर सामने आया और मैं अपनी बात पर क़ायम न रह सका!



जाते-जाते दिषु संगीता से मज़ाक करते हुए बोला; "भाभी जी, मैंने इसे अच्छे से कूट दिया है| आगे फिर ये कोई बेवकूफी करे तो मुझे उसी वक़्त फ़ोन कर देना, मैं तभी दौड़ा चला आऊँगा और इसे पीट-पाट के चला जाऊँगा| अगर मैं दिल्ली में न भी हुआ न तो फ्लाइट से आऊँगा और फ्लाइट के पैसे इसी से भरवाऊँगा!" दिषु के किये मज़ाक पर संगीता की हँसी छूट गई और अपनी परिणीता को हँसते देख मेरा दिल एक बार फिर प्रसन्नता से भर गया|



दिषु के जाने के बाद, नेहा का मन मुझे अपनी मम्मी से माफ़ी दिलवाने का था इसलिए उसने मोर्चा सँभाला! मैं कमरे में बैठा कंप्यूटर पर काम कर रहा था और संगीता उसी वक़्त कमरे में कपड़े तहाने आई थी, ठीक तभी नेहा फुदकती हुई कमरे में आई| "मम्मी जी...मुझे न आपसे बात करनी है!" नेहा अपनी मम्मी को मक्खन लगाते हुए बोली|

"ज्यादा मक्खन लगाने की जर्रूरत नहीं है, सीधा मुद्दे पर आ!" संगीता मुँह टेढ़ा करते हुए बोली| संगीता जानती थी की नेहा उसे मेरे लिए मख्खन लगाने आई है इसीलिए संगीता सीधे मुँह नेहा से बात नहीं कर रही थी|



"मम्मी जी, गलती तो सब से होती है लेकिन हमें इंसान को उसकी गलती सुधारने का एक मौका देना चाहिए न?" नेहा अपनी मम्मी से तर्क करते हुए बोली| नेहा तर्क करने में बहुत तेज़ थी और उसके इस तर्क का जवाब देने में मैं भी फ़ैल हो जाता था| मैं जब नेहा के आगे तर्क में हारने लगता तो मैं बात बनाते हुए उसे लाड-प्यार कर बहला लेता था, लेकिन संगीता थी गर्म दिमाग की इसलिए वो नेहा के तर्क के आगे हारने पर उसे ही डाँट देती थी!

"तुझे पूरी बात पता भी है? आ गई यहाँ पैरवी करने!" संगीता ने नेहा को झिड़कते हुए कहा|

“हाँ जी मम्मी, मुझे सब बात पता है|" नेहा बड़े आत्मविश्वास से बोली| नेहा का आत्मविश्वास देख संगीता हैरान हो गई! संगीता को लगा मैंने नेहा को मेरे रिवाल्वर उठाने की बात भी बता दी है इसलिए संगीता अपनी आँखें फाड़े मुझे देखने लगी! नेहा जब मेरी पैरवी कर रही थी तो मैं अपना काम छोड़ दोनों माँ-बेटी की बात सुनने में व्यस्त हो गया था| जब हम मियाँ-बीवी की नज़रें आपस में टकराई तो संगीता आँखों ही आँखों में मुझसे पूछने लगी की क्या मैंने नेहा को सब बता दिया? जिसके जवाब में मैंने नेहा की चोरी, अपनी गर्दन न में हिला दी| संगीता को इत्मीनान हुआ की मैंने नेहा को सारी बात नहीं बताई इसलिए संगीता ने नेहा को छिड़कते हुए चुप करा दिया; "जा कर पढ़ाई कर अपनी! बड़ी आई वकील बनने!" नेहा को झिड़क कर संगीता रसोई में चली गई|



संगीता के जाने के बाद नेहा आ कर मेरे गले लग गई और बोली; "सॉरी पापा जी, मैं फ़ैल हो गई?" नेहा के फ़ैल होने का मतलब था की वो मुझे अपनी मम्मी से माफ़ी नहीं दिलवा पाई| पिछलीबार जब मैं संगीता से नाराज़ था तो उसी ने अपनी मम्मी को मुझसे माफ़ी दिलवाई थी, नेहा को लगा की वो इस काम में उस्ताद है इसीलिए वो मुझे अपनी मम्मी से माफ़ी दिलवाना चाहती थी| नेहा को इस कदर हार मानते देख मुझे लगा कहीं मेरी बिटिया के मन में कोई डर न बैठ जाए इसलिए मैं नेहा को हिम्मत देते हुए बोला; "बेटा, अभी आपकी मम्मी गुस्सा हैं इसलिए वो अभी इतनी जल्दी नहीं मानेंगी| एक बार आपकी मम्मी का गुस्सा शांत हो जाए तो उन्हें मनाना|" मेरी बात से नेहा को हिम्मत मिली और उसने तुरंत एक तरकीब सोच ली|



नेहा ने अपने दोनों भाई-बहन को साथ लिया और अपनी मम्मी को मनाने के लिए रसोई में जा पहुँची| ये दृश्य ऐसा ही था जैसे मेरी सत्ता बचाने के लिए मेरे तीनों विधायक गृह मंत्री के पास पहुँचे हों|

नेहा ने फट से स्तुति को आगे किया और अपनी मम्मी से बोली; "मम्मी जी, देखो स्तुति आपसे क्या कहना चाहती है|" नेहा ने जैसे ही स्तुति को आगे किया स्तुति फौरन अपनी मम्मी की गोदी में चली गई और अपनी मम्मी को मस्का लगाने के लिए अपनी मम्मी के दोनों गालों पर पप्पी करते हुए बोली; "मम-मम....पपई...उम्मा" ये कहेत हुए स्तुति ने अपनी मम्मी के गाल पर फिर से पप्पी की| स्तुति का मतलब था की; 'मम्मी, पापा जी को माफ़ कर दो और उन्हें मेरी तरह पप्पी दो!' संगीता अपनी बेटी की बात का मतलब समझ गई थी परन्तु वो अनजान बनने की बेजोड़ कोशिश कर रही थी| नेहा ने जब देखा की उसका एक पासा पिट रहा है तो नेहा ने अपना दूसरा पासा फेंका; "मम्मी, आयुष को भी कुछ कहना है|" ये कहते हुए नेहा ने आयुष को इशारा किया| आयुष आज अच्छे से रट्टा मार कर आया था इसलिए आयुष ने अपना निचला होंठ फुलाया और अपनी मम्मी से बोला; "मम्मी जीईईईईईईई.....! आप कितने अच्छे हो, हमारे लिए इतना अच्छा खाना बनाते हो, हमारे सब काम करते हो इसके लिए मैं आपको थैंक यू कहना चाहता हूँ|" आयुष ने बाल्टी भर मक्खन संगीता के ऊपर उड़ेल दिया था जिससे संगीता धीरे-धीरे पिघलने लगी थी! “मम्मी जी...आप हमारे लिए...अपने तीन प्यारे-प्यारे बच्चों के लिए, पापा जी को माफ़ कर दो न? बदले में आप जो कहोगे हम वो करेंगे, मस्ती बिलकुल नहीं करेंगे| आपकी हर बात मानेंगे अगर हम ने ज़रा सी भी मस्ती की न तो आप हमें कूट देना!" आयुष कहीं कुछ भूल न जाए इसलिए वो एक साँस में सब बोल गया| आयुष की अंत में कूटने की बात सुन संगीता के चेहरे पर इतनी देर से रोकी हुई हँसी छलक ही आई! "तुम तीनों शैतान बिलकुल अपने पापा जी पर गए हो! कैसे न कैसे कर के मुझे हँसा ही देते हो! लेकिन माफ़ी तो फिर भी नहीं मिलेगी!" संगीता हँसते हुए बोली और जा कर माँ को सारा किस्सा कह सुनाया|

"नानी! आज तूने दिनभर बहुत शैतानी की है!" ये कहते हुए माँ ने स्तुति को अपनी गोदी में लिया और उसकी नाक पकड़ कर खींचते हुए बोलीं; "तेरी सारी शैतानियाँ जानती हूँ मैं!" माँ आखिर माँ होती हैं इसलिए वो स्तुति की सारी होशियारी समझ रही थीं| नेहा की इस प्यारी सी कोशिश ने उसकी मम्मी को हँसा दिया था मगर मेरे लिए माफ़ी मुझे खुद संगीता से माँगनी थी|



रात को खाना खा कर सोने का समय हुआ तो संगीता ने चतुराई दिखाते हुए तीनों बच्चों को हमारे कमरे में भेज दिया और खुद बच्चों के कमरे में अकेली सोई| संगीता ने कल रात से मुझसे प्यार से बात नहीं की थी और मेरा मन उससे बात किये बिना चैन नहीं पा रहा था इसलिए बच्चों को जल्दी सुला मैं बच्चों के कमरे में पहुँचा|

संगीता अपनी छाती पर हाथ रखे हुए पीठ के बल लेटी थी, ऐसा लगता था मानो वो मेरा ही इंतज़ार कर रही हो! परन्तु जैसे ही संगीता ने मुझे कमरे के दरवाजे पर खड़ा देखा उसने फट से अपनी आँखें मूँद ली और ऐसा दिखाने लगी मानो वो सो रही हो!

"जान...मैं जानता हूँ तुम सोई नहीं हो! मैं तुमसे बात करने आया हूँ...माफ़ी माँगने आया हूँ!" मैंने संगीता को पुकारते हुए कहा| मेरी बात सुन संगीता ने आँख खोल ली और उठ कर बैठ गई| संगीता का मुझे मेरी बात कहना का मौका देना ये दर्शाता था की उसका गुस्सा अब शांत हो रहा है|

"जान, मैंने जो गलती की वो माफ़ी के लायक तो नहीं है मगर एक बार मेरे दिल की बात सुन लो… मैंने उस दिन क्या महसूस किया था ये सुन लो!



उस रात जब मिश्रा अंकल जी ने मुझे फ़ोन कर बुलाया तो मैं केवल और केवल उनकी मदद करने के लिए गया था मगर जब मैंने मिश्रा अंकल जी की गाडी में पिस्तौल देखि तो न जाने मेरे भीतर कैसी कसक उठी की मैंने बिना कुछ सोचे-समझे वो पिस्तौल उठाने के लिए अपने हाथ बढ़ा दिए| उस पिस्तौल में मानो कोई चुंबकीय शक्ति थी जो मुझे अपनी ओर खींच रही थी और वो चाहती थी की मैं उसे उठा लूँ| जैसे ही मैंने वो पिस्तौल उठाई तो पता नहीं मेरे ऊपर क्या सनक चढ़ी की मैं बावरा सा हो गया! उस पिस्तौल का वजन मेरा हाथ नहीं मेरी आत्मा महसूस कर रही थी और मेरे भीतर जर्रूरत से ज्यादा आत्मविश्वास फूँक रही थी| मैंने कभी घमंड नहीं किया था मगर इस पिस्तौल ने मुझे एक पल में घमंडी बना दिया था... वो भी ऐसा घमंडी जिसे न अपनी जान की परवाह थी और ना ही अपने परिवार की!



तुम्हें याद है उस दिन जब मैंने चन्दर पर कट्टा चलाया था?! उस दिन उस कट्टे की आवाज़ से मेरे भीतर बैठा हुआ एक शैतान जागा था, वो तो मेरी अंतरात्मा ने पाप-पुण्य का डर दिखा के इस शैतान को काबू में कर रखा था| लेकिन फिर भी ये शैतान कभी न कभी अपना फन्न फैला ही देता था, बीते एक-डेढ़ साल में जो तुमने मेरा गुस्सा...क्रोध देखा है ये सब उसी शैतान की देन है| जब मैंने मिश्रा अंकल जी की गाडी से पिस्तौल उठाई तो ये शैतान मुझ पर हावी हो गया| फिर मुझे न अपनी सुध थी और न तुम्हारी, मेरा मन तो बस वो पिस्तौल चलाने का था| भगवान जी की कृपा कहो की उस रात हालात नहीं बिगड़े और मेरे हाथों गोली नहीं चली और मैंने केवल अपनी अकड़ उन गुंडों को दिखा कर रह गया वरना क्या पता सच में मैं उन तीनों गुंडों को मौत के घात उतार ही देता|

फिर अगली सुबह, जब तुम माँ के साथ सब्जी लेने गई थी तब मेरा अंतर्मन शांत था और मेरे रात में किये जाहिलपने के लिए मुझे धिक्कार रहा था| मुझे ग्लानि हो रही थी की क्यों मैं इतना गैरजिम्मेदार बन गया? क्यों मैंने बिना कुछ सोचे समझे अपनी जान के साथ ऐसा खिलवाड़ किया? मेरा ये अपराध बोध मेरे मन को कचोटने लगा था और मैं ग्लानि के गढ्ढे में गिरने वाला था...की तभी स्तुति के प्यार ने मुझे थाम लिया| स्तुति की मस्ती देख मैं सब भूल बैठा और उसे लाड-प्यार करने में व्यस्त हो गया|



फिर पार्टी वाली रात, मुकुल मुझे नीचा दिखाने पर तुल गया! उस पार्टी में इतने अमीर आदमियों के बीच मैं पहले ही खुद को बहुत छोटा समझ रहा था उस पर जब मुकुल ने मुझे नीचा दिखाने की कोशिश की तो मेरे भीतर का शैतान फिर जागा|



मुकुल ने मुझे छोटा दिखाने के लिए पहले शराब पीने को उकसाया, जिसका मैंने बड़ी हलीमी से जवाब दे कर पीने से मना कर दिया| लेकिन फिर उसने अपनी अगली चाल चली और मुझे गरीब दिखाने के लिए मिश्रा अंकल जी को एक महँगी रिवॉल्वर गिफ्ट दी| पिछलीबार की तरह इस बार भी उस रिवॉल्वर को देख मेरे दिमाग ने काम करना बंद कर दिया| उस चमचमाती रिवॉल्वर को देख मैं उसी के वशीभूत हो उसे उठाने को मरा जा रहा था| मेरा दिल कह रहा था की एक बार तो इसे उठा कर देख, इसके वजन को अपने हाथों में महसूस कर के देख! एक बार उस ट्रिगर को अपनी ऊँगली से दबा कर देख! गोली चलने की उस शानदार आवाज़ को सुनने के लिए मेरे कान जैसे तरसने लगे थे! परन्तु किसी तरह मेरी अंतरात्मा जागी और मैंने रिवॉल्वर से नज़रें फेरते हुए अपने बेकाबू मन को शांत करना शुरू किया| बीती रात को याद कर मुझे मेरी बेवकूफी याद आ गई थी और मैं ये बेवकूफी फिर नहीं दोहराना चाहता था|

लेकिन मुकुल ने मुझे रिवॉल्वर से नजरें फेरते हुए पकड़ लिया था और उसे लगा की मैं बुज़दिल हूँ तथा रिवॉल्वर से डरता हूँ इसलिए उसने मुझे नीचा दिखाना शुरू कर दिया| उसने मेरी सादगी को मेरी बुज़दिली कहा और मुझ पर ठीक वैसे ही हँसा जैसे उस दिन चन्दर हँस रहा था| चन्दर की वो घिनौनी हँसी याद आते ही मुझसे रहा नहीं गया और मैंने अपने भीतर बैठे शैतान की बात मानते हुए न केवल रिवॉल्वर उठाई बल्कि चला भी दी! जब मैंने वो रिवॉल्वर चलाई, उन कुछ पलों के लिए मेरे भीतर का शैतान जैसे प्रसन्न हो गया था| जहाँ एक तरफ रिवॉल्वर चलने और उसकी आवाज़ से सब दहल गए थे, वहीं मुझे इसमें असीम आनंद आया था| रिवॉल्वर अपने हाथ में महसूस कर ऐसा लगता था मानो मेरे जिस्म का कोई भाग जो पहले टूट गया था वो अब पूरा हो चूका है| गोली चलने की वो आवाज़ सुन मैं किसी अलग ही दुनिया में खो गया था| उन कुछ पलों के लिए ऐसा लगता था मानो मेरा दिल जो चाहता था उसे मिल गया हो|



इस रिवॉल्वर ने मेरे अंदर घमंड जगा दिया था और इसी घमंड में चूर मैंने मुकुल को सबके सामने अच्छे से सुना दिया| सबके सामने मुकुल को यूँ बेइज्जत कर मेरे दिल को अजीब सी राहत और सुकून मिल रहा था| लेकिन फिर मेरी नज़र पड़ी तुम पर और जितना भी सुख मैंने इन कुछ पलों में महसूस किया था वो सबका सब पल भर में छू मन्त्र हो गया और उसकी जगह मेरे मन में तुम्हारा गुस्सा होने का डर बैठ गया! तुम्हारे चेहरे पर मैंने चिंता और डर की लकीरें देख ली थीं और उसी पल मुझे मेरी बेवकूफी समझ आई| मैं तुमसे माफ़ी माँगने तुम्हें समझाने आना चाहता था मगर मिश्रा अंकल जी ने मेरे कँधे पर हाथ रख मुझे अपनी बातों में लगा लिया, जिस कारण मैं तुम्हारे पास नहीं आ पाया|



जान, मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूँ और तुम्हारे मुझसे इस कदर नाराज़ होने से...गुस्सा होने से मैं एकदम से अधूरा हो गया था! सच पूछो तो मैं तुमसे बात करने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था, डरता था की कहीं तुम फिर इ मुझ पर बरस पड़ीं तो? मुझे बस एक आखरी मौका दे दो ताकि मैं अपनी गलती सुधार सकूँ!" मैंने संगीता को अपने जज्बातों से अच्छे से अवगत करा दिया था तथा एक आखरी मौक़ा भी माँग लिया था|



वहीं मेरे भीतर एक शैतान मौजूद होने की बात सुन संगीता घबरा गई थी! मेरे भीतर का ये शैतान जो कभी-कभी बाहर आ जाता था उसे हमेशा के लिए खत्म करना था और ये काम केवल संगीता का प्यार कर सकता था, परन्तु उसके लिए पहले संगीता का गुस्सा शांत होना चाहिए था?!

इधर मेरी पूरी बात सुन संगीता के चेहरे पर कोई ख़ास बदलाव नहीं आये थे, उसका चेहरा अब भी फीका पड़ा हुआ था, ऐसा लगता था मानो मेरी बातें सुन उसे कोई फर्क ही न पड़ा हो! संगीता एकदम से उठी और दरवाजे की तरफ बढ़ने लगी, मुझे लगा की उसका गुस्सा अब भी खत्म नहीं हुआ है और वो कमरे से बाहर जाना चाहती है| मेरी वजह से बेचारी संगीता पहले ही अकेली कमरे में सो रही थी, मैं नहीं चाहता था की वो अब इस कमरे से भी निकल कर बैठक में सोये इसलिए मैंने संगीता को रोकना चाहा; "जान, मैं इस कमरे से चला जाता हूँ...तुम मेरी वजह से सोफे पर मत सोओ!"

मेरी बात पूरी होते-होते संगीता मेरे पास पहुँच चुकी थी, जैसे ही मेरी बात पूरी हुई संगीता एकदम से मेरे गले लग गई| इसके आगे न संगीता को कुछ कहने की जर्रूरत थी न ही मुझे कुछ कहने की| संगीता मेरे गले लगे हुए ही मुझे पलंग तक लाई और हम दोनों मियाँ-बीवी एक दूसरे की बाहों में खो गए|



अगली सुबह, नेहा सबसे पहले उठी और उसने जब अपनी मम्मी-पापा जी को ऐसे सोते हुए देखा तो नेहा की ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा| नेहा को इस मनोरम दृश्य का रस लेना था इसलिए उसने स्तुति को गोदी में उठाया और मेरी छाती पर लिटा गई, फिर नेहा ने आयुष को जगाया और दोनों भाई-बहन हम दोनों मियाँ-बीवी के बीच जगह बनाते हुए जबरदस्ती घुस गए| बच्चों की इस उधमबाजी से जो चहल-पहल मची उससे हम मियाँ-बीवी जाग चुके थे इसलिए आयुष और नेहा ने खिलखिलाते हुए शोर मचाना शुरू कर दिया! हम दोनों मियाँ-बीवी भी सुबह-सुबह अपने तीनों बच्चों का प्यार पा कर बहुत खुश थे और बच्चों के साथ खिलखिला रहे थे|




पिछले कुछ दिनों से जो घर में दुःख अपना पैर पसार रहा था वो बेचारा आज अपने घर लौट गया था!
जारी रहेगा भाग - 8 में...
एक गाना बज रहा है
जिंदाबाद जिंदाबाद
ऐ मुहब्बत जिंदाबाद

खैर आपका भौजी के समक्ष सबमिशन बहुत ही बढ़िया रहा और भौजी का स्वीकार मधुर रहा

हर अंक में स्तुति हीरो बन कर उभर रही है l आखिर बच्चे मन के सच्चे जो होते हैं l

नेहा अपने उम्र के अनुसार या यूं कहूँ शायद आगे बढ़ कर सयानी हो रही है

दिषु लाज़वाब मित्र है
आख़िर अपनी हरकतों से भौजी के चेहरे पर मुस्कान ला ही दिया

पर मनु भाई आपको नहीं लगता इन खुशियों में कहीं ना कहीं बाउजी मिसिंग हैं
 

Abhi32

Well-Known Member
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188
अंतिम अध्याय: प्रतिकाष्ठा
भाग - 7


अब तक अपने पढ़ा:


इधर मेरा नया बिज़नेस आईडिया सुन और माँ द्वारा मिली आज्ञा से सबसे ज्यादा स्तुति खुश थी| स्तुति अपने मसूड़े दिखा कर हँस रही थी और ख़ुशी की किलकारियाँ मारने में व्यस्त थी| माँ ने जब स्तुति को यूँ खुश देखा तो वो स्तुति की नाक पकड़ते हुए बोलीं; "नानी, तू बड़ी खुश है? तूने भी अपने पापा के साथ बिज़नेस करना है?" माँ के पूछे इस मज़ाकिया सवाल का जवाब स्तुति ने ख़ुशी-ख़ुशी अपना सर हाँ में हिलाते हुए दिया| स्तुति की हाँ सुन कर हम सभी को हँसी आ गई और स्तुति भी हमारे साथ खिलखिला कर हँसने लगी|

"मेरी लाड़ली इसलिए खुश है क्योंकि उसे आज रसमलाई खाने को मिलेगी!" मैंने स्तुति के मन की बात कही तो स्तुति फौरन अपना सर हाँ में हिलाने लगी|


अब आगे:


आज
मेरी बिटिया ने हम माँ-बेटे के बीच पैदा हुए गुस्से को खत्म करने का महान काम किया था इसलिए आज मेरा मन मेरी लाड़ली को कुछ ख़ास खिलाने का था| मैं स्तुति को लिए हुए घर से निकला और उसे फ्रूट संडे (fruit sundae) खिलाया, इस डिश में से मैंने स्तुति को चुन-चुन कर सरे फ्रूट्स खिलाये जिसमें स्तुति को बहुत मज़ा आया| खा-पी कर हम दोनों बाप-बेटी रस-मलाई पैक करवा कर घर पहुँचे|



दोपहर को बच्चे स्कूल से लौटे तो मैंने उन्हें मेरे नए बिज़नेस शुरू करने की खबर सुनाई| आयुष को ऑनलाइन शॉपिंग के बारे में ज्यादा पता नहीं था लेकिन इससे उसका उत्साह कम नहीं हुआ था, वो तो मेरे नया काम शुरू करने के नाम से इतना खुश था की ख़ुशी से फूला नहीं समा रहा था| अपनी ख़ुशी व्यक्त करने के लिए उसने और स्तुति ने बैठे-बैठे एक दूसरे को देखते हुए हवा में हाथ उठा कर नाचना शुरू कर दिया था| इधर नेहा को ऑनलाइन शॉपिंग के बारे में जानकारी थी इसलिए वो पूरी बात समझते हुए बहुत खुश थी और उसने अपनी ये ख़ुशी मेरे गले लग कर मुझे बधाई देते हुए प्रकट की|

अब ख़ुशी की बात चल ही रही थी तो अब बारी थी मुँह मीठा करने की, जब संगीता ने सबके लिए रसमलाई परोसी तो नेहा ख़ुशी के मारे कूदने लगी| वहीं स्तुति ने जब अपनी दिद्दा को ख़ुशी से कूदते हुए देखा तो उसने भी कूदने की इच्छा प्रकट की; "पपई...पपई...दिद्दा!" स्तुति ने अपनी दीदी की तरफ इशारा करते हुए मुझे कहा तो मैंने स्तुति के दोनों हाथ पकड़ उसे खड़े होने में सहायता की, स्तुति जैसे ही खड़ी हुई उसने धीरे-धीरे थिरकना शुरू कर दिया! माँ ने जब अपनी पोती को थिरकते देखा तो वो तालियाँ बजाते हुए स्तुति का उत्साह बढ़ाने लगीं जिस कारन स्तुति के मुख से ख़ुशी की किलकारियाँ गूँजने लगीं!



वो दोस्ती ही क्या जिसमें आपने कभी साथ बिज़नेस करने की न सोची हो? यही कारण था की मैंने अपने बिज़नेस से जुड़ने के लिए दिषु को पुछा| साथ बिज़नेस करने का सुन दिषु उतावला हो गया और शाम को मिलने आने को बोला|



इधर खाना खा कर हम सब आराम कर रहे थे, संगीता मुझसे नाराज़ थी इसलिए वो माँ के पास थी| जबकि मेरे तीनों बच्चे मुझसे लिपट कर लेटे हुए खिलखिला रहे थे| अचानक ही मौसम बदला और बारिश शुरू हो गई, बादलों की गर्जन सुन स्तुति का मन बाहर छत पर जाने को कर रहा था और वो बार-बार मुझे पुकार कर छत पर जाने को कह रही थी| मैं दबे पॉंव स्तुति को ले कर उठा और छत पर आ गया तथा स्तुति को दूर से बारिश होते हुए दिखाने लगा| जिस प्रकार बारिश मुझे अपनी ओर खींचती थी उसी प्रकार मेरी बिटिया रानी भी बरखा रानी की तरफ खींची जा रही थी| स्तुति एकदम से मेरी गोदी से नीचे उतरने को छटपटाने लगी; "बेटू, आप बारिश में भीगोगे तो बीमार हो जाओगे|" मैंने स्तुति को समझना चाहा मगर मेरी बिटिया नहीं मानी और झूठ-मूठ रोना शुरू करने लगी| "बस एक मिनट के लिए चलेंगे?" मैं स्तुति से बोला तो स्तुति एकदम से खुश हो गई| गर्मी का मौसम था इसलिए मैं स्तुति को ले कर बारिश में भीगने आ गया| बरखा की बूँदें जब हम बाप-बेटी पर पड़ी तो स्तुति ने खुशी से चिल्लाना शुरू कर दिया| तभी मेरी मासूम बिटिया का मन बारिश की बूंदों को अपनी मुठ्ठी में कैद करने का था मगर बारिश की बूँदें स्तुति की छोटी सी हथेली में कैद होना नहीं चाहती थी, परन्तु इससे स्तुति का उत्साह कम नहीं हुआ बल्कि उसका उत्साह तो बेकाबू होने लगा था!

"पपई...पपई" कहते हुए स्तुति ने मेरी गोदी से नीचे उतरने के लिए छटपटाना शुरू कर दिया| मैंने सोचा की अब तो बारिश में भीग ही चुके हैं तो क्यों न हम बाप-बेटी नहा ही लें?! अतः मैं स्तुति को गोदी में लिए हुए नीचे बह रहे बारिश के पानी पर बैठ गया| बारिश हो रही थी और पानी नाली की ओर बह रहा था| स्तुति के पॉंव जब बारिश के पानी से स्पर्श हुए तो उसने ज़मीन पर बैठने की जिद्द की| जैसे ही मैंने स्तुति को ज़मीन पर बिठाया, स्तुति ने फट से छप-छप कर पानी मेरे ऊपर उछालना शरू कर दिया! "ब्माश!" मैं मुस्कुराते हुए बोला और स्तुति पर धीरे-धीरे पानी उड़ाने लगा| हम बाप-बेटी के यूँ एक दूसरे पर पानी उड़ाने में स्तुति को बहुत मज़ा आ रहा था और उसने खिलखिलाकर हँसना शुरू कर दिया था|

अभी बस कुछ मिनट हुए थे की मेरे दोनों बच्चे आयुष और नेहा भी जाग गए और मुझे ढूँढ़ते हुए छत पर आ पहुँचे| आयुष तो पहले ही बारिश में नहाने को उत्साहित रहता था इसलिए वो दौड़ता हुआ छत पर आ गया, वहीं मेरी बिटिया नेहा को भी आज अपने पापा जी के साथ बारिश में भीगना था इसलिए नेहा भी छत पर दौड़ आई|

हम तीनों ने स्तुति को घेर लिया और एक गोल धारा बना कर बैठ गए| स्तुति बीच में थी इसलिए उसने छप-छप कर हम सभी पर पानी उड़ाना शुरू कर दिया| इधर हम तीनों (मैंने, नेहा और आयुष) ने मिलकर स्तुति पर पानी उड़ाना शुरू कर दिया| बारिश में इस कदर भीगते हुए मस्ती करने में हम चारों को बहुत मज़ा आ रहा था और हम चारों सब कुछ भूल-भाल कर हँसी-ठहाका लगाने में व्यस्त थे! हमने ये भी नहीं सोचा की हमारे इस हँसी-ठाहके की आवाज़ घर के भीतर जाएगी और जब दोनों सास-पतुआ हम चारों को यूँ बारिश में नहाते हुए देखेंगी तो बहुत गुस्सा होंगी!



उधर, हमारी ये हँसी-ठहाका सुन माँ और संगीता छत पर आये तथा हम चारों को बारिश में मस्ती करते हुए चुप-चाप देखने लगे| मेरा बचपना देख माँ का मन मुझे डाँटने का नहीं था इसलिए वो कुछ पल बाद संगीता को ले कर वापस अंदर चली गईं|



एक जगह बैठ कर पानी उड़ाकर स्तुति ऊब गई थी इसलिए वो अपने दोनों हाथों-पॉंव पर चलने लगी| स्तुति को यूँ चलते देख हम तीनों भी रेल के डिब्बों की तरह स्तुति के पीछे-पीछे अपने दोनों हाथों-पॉंव पर चलने लगे| स्तुति को यूँ रेलगाड़ी का इंजन बनना पसंद था इसलिए वो खदबद-खदबद कर आगे दौड़ने लगी तथा हम तीनों भी स्तुति की गति से उसके पीछे चलने लगे| पूरी छत का चक्कर लगा कर स्तुति फिर छत के बीचों-बीच बैठ गई और फिरसे हम पर पानी उड़ाने लगी|

हमें बारिश में मस्ती करते हुए लगभग 15 मिनट हो गए थे इसलिए मैंने हमारी इस मस्ती की रेलगाडी पर रोक लगाई और तीनों बच्चों से बोला; "बस बेटा, अब सब अंदर चलो वरना आपकी दादी जी और आपकी मम्मी हम चारों को डाटेंगी!" अपनी दादी जी और मम्मी की डाँट का नाम सुन आयुष और नेहा तो अंदर जाने को तैयार हो गए मगर स्तुति ‘न’ में सर हिलाते हुए बोली; "no...no...no"!!!

"ओ पिद्दा! मम्मी मारेगी, चल अंदर!" नेहा ने स्तुति को प्यारभरी डाँट लगाई तब भी स्तुति नहीं मानी और फिर से छत पर खदबद- खदबद कर दौड़ने लगी| अब हमें स्तुति को पकड़ कर अंदर ले जाना था इसलिए हम स्तुति को पकड़ने के लिए उसके पीछे दौड़ने लगे| दो मिनट तक स्तुति ने हमको अच्छे से दौड़ाया, कभी वो टेबल के नीचे छुप जाती तो कभी कुर्सी के पीछे! तब हमें नहीं पता था की स्तुति जानबूझ कर हमें अपने पीछे भगा रही है क्योंकि उसके लिए ये बस एक खेल ही तो था!

"बेटू, रस मलाई खाओगे?" मैंने जैसे ही रसमलाई का नाम लिया, वैसे ही मीठा खाने की लालची मेरी बिटिया जहाँ थी वहीं बैठ गई और मेरी गोदी में आने के लिए अपने दोनों हाथ खोल दिए! मैंने स्तुति को गोदी में उठाया तो नेहा ने उसके कूल्हों पर प्यार से चपत लगाई और बोली; "बिलकुल अपने आयुष भैया पर गई है, खाने का नाम लिया नहीं की फट से मान गई!" वैसे बात तो सही थी, आयुष की ही तरह स्तुति को मीठा खाने का चस्का था!



खैर, हम चारो दबे पॉंव अंदर आये क्योंकि हमें लग रहा था की हमारी इस मस्ती के बारे में माँ को नहीं पता है| अंदर आ कर बारी-बारी से सबने कपड़े बदले और फिर से बिस्तर पर लेट गए तथा ऐसा दिखाने लगे मानो हमने कोई शैतानी की ही न हो! शाम 6 बजे माँ हम चारों को उठाने आईं; "मेरे प्यारे-प्यारे शैतानों, उठ जाओ!" माँ ने प्यार से आवाज़ लगा कर हमें जगाया| हम चारों एक कतरार में उठ कर बैठ गए, चूँकि मैं माँ के नज़दीक था इसलिए माँ ने मेरा कान पकड़ कर उमेठ दिया; "तुम चारों ने बारिश में बड़ी मस्ती की न?" माँ के पूछे सवाल से हम चारों सन्न थे! आयुष और नेहा को लग रहा था की अब उन्हें डाँट पड़ने वाली है मगर स्तुति ने जब माँ को मेरा कान उमेठते हुए देखा तो उसे बड़ा मज़ा आया और उसने खिलखिलाकर हँसना शुरू कर दिया|

हम तीनों को फँसा कर स्तुति को बहुत मज़ा आ रहा था, वहीं माँ ने जब स्तुति को यूँ हँसते देखा तो उनकी भी हँसी छूट गई! जब दोनों बच्चों ने अपनी दादी जी को हँसते हुए देखा तो उनकी जान में जान आई| अब नेहा को मेरा कान माँ की पकड़ से छुड़ाना था इसलिए नेहा पलंग पर खड़ी हुई और माँ के गले लग गई| माँ नेहा को चलाकी जान गई थीं इसलिए उन्होंने नेहा के कूल्हों पर प्यार भरी चपत लगाई और बोलीं; "पापा की चमची! हमेशा अपने पापा जी को बचाने आगे आ जाती है!" जब माँ ने नेहा के कूल्हों पर प्यारी सी चपत लगाई तो स्तुति को इसमें भी बहुत मज़ा आया और उसने खिलखिलाकर हँसना शुरू कर दिया!



7 बजे दिषु घर आया और हम दोनों दोस्त मेरे कमरे में बैठ, कंप्यूटर पर हमारे नए बिज़नेस से जुडी मेरे द्वारा बनाई हुई PPT देख रहे थे| इतने में स्तुति अपने हाथों-पॉंव पर खदबद-खदबद कर आ पहुँची, मैंने स्तुति को गोदी में लिया तो स्तुति ने टेबल के ऊपर बैठने की पेशकश की| स्तुति को मैंने कंप्यूटर स्क्रीन की बगल में बिठा दिया तो स्तुति बड़ी गौर से PPT देखने लगी| "बेटा, आप भी अपने पापा जी की सेल्स पिच (sales pitch) देखोगे?" दिषु ने मज़ाक करते हुए स्तुति से पुछा तो स्तुति ने फौरन अपनी गर्दन हाँ में हिला दी| स्तुति की इस प्रतिक्रिया पर दिषु को बहुत जोर से हँसी आई और ठहाका लगा कर हँसने लगा|

"हाँ भैया, ये नानी ही तो आपकी इन्वेस्टर (investor) है!" संगीता ने दिषु की बात सुन ली थी इसलिए वो पीछे से आ कर बोली, इधर संगीता के किये इस मज़ाक पर हम दोनों दोस्त हँसने लगे|



खैर, मैं दिषु को PPT दिखाते हुए सब समझा रहा था और इस दौरान स्तुति बड़े गौर से मेरी बातें सुन रही थी| जब PPT में एनिमेशन्स (animations) आती तो स्तुति बहुत खुश होती, इतनी ख़ुशी की वो ख़ुशी से चिल्लाने लगती| इतने में संगीता चाय ले आई और जबरदस्ती स्तुति को गोदी में उठा कर ले जाने लगी, अब स्तुति को PPT देखने में आ रहा था मज़ा इसलिए वो संगीता की गोदी में छटपटाने लगी| "तेरे पल्ले कुछ पड़ भी रहा है की यहाँ क्या बातें हो रही हैं? बड़ी आई अम्बानी की चाची!" संगीता मुँह टेढ़ा करते हुए बोली और स्तुति को अपने साथ ले गई|



जब से दिषु आया था उसने संगीता के बर्ताव में आये बदलाव को भाँप लिया था| बाकी दिन जब दिषु घर आता था तो संगीता उससे बड़े प्यार से बात करती थी, लेकिन आज वो अधिक बात करने के मूड में नहीं थी| जब संगीता हम दोनों की चाय दे कर गई तो दिषु ने मुझसे सारी बात पूछी| जब मैंने उसे सारी बात बताई तो दिषु अवाक हो कर मुझे देखने लगा! "भोसड़ीके तुझे बड़ी चर्बी चढ़ी है? बहनचोद तूने रिवॉल्वर चलाई? बहनचोद तेरी तो डंडे से गांड तोड़ी जानी चाहिए!" दिषु मुझे गाली देते हुए गुस्से से बोला|

"भाई, मेरी मति मारी गई थी जो मैंने किसी के 'चढ़ाने' पर रिवॉल्वर उठाई!" मैं अपना सर पीटते हुए बोला| अब जैसा की होता है, संगीता ने हमारी सारी बातें सुन ली थीं इसलिए वो एकदम से कमरे में आ गई ताकि दिषु को मेरे खिलाफ और भड़का सके; "आपसे बातें तो छुपाते ही थे, अब तो हम सब से भी बातें छुपाने लगे हैं!" संगीता मुँह टेढ़ा करते हुए बोली|

"ये ऐसे नहीं सुधरेगा भाभी जी, ज़रा एक डंडा लाइए मैं इसे अभी कूट-पीट कर सीधा करता हूँ! बड़ी चर्बी चढ़ी है साले को, न मैंने इसकी सारी चर्बी पिघला दी तो कहना!" दिषु अपनी कमीज के स्लीव मोड़ते हुए बोला| शुक्र है की घर में डंडा नहीं था वरना अगर संगीता उसे डंडा दे देती तो ये ससुर मुझे आज सच में कूट देता!

"यार मैं अपने किये पर बहुत शर्मिंदा हूँ! मैंने जो बेवकूफी की उसके लिए मैं हाथ जोड़कर माफ़ी माँगता हूँ|" मैंने अपनी जान बचाने के लिए नम्रता से हाथ जोड़े, लेकिन बजाए नरम पड़ने के दिषु मुझे सुनाने लग गया; "मेरी भाभी जी सीधी-साधी हैं इसलिए तुझे बस कमरे से बाहर सुलाया, अगर कोई और होती न तो घर से बाहर निकाल देती तुझे! चल पॉंव-पड़ भाभी जी के!" दिषु मुझे आदेश देते हुए बोला| अब मुझे चाहिए थी संगीता की माफ़ी और इसके लिए मैं उसके पॉंव छूने को भी तैयार था| मैंने जैसे ही आगे बढ़ कर संगीता के पॉंव छूने चाहे, वैसे ही संगीता डर के मारे भाग खड़ी हुई! संगीता के एकदम से भागने पर दिषु हँस पड़ा और बोला; "अरे भाभी जी, कहाँ भाग रही हो? इसे (मुझे) माफ़ी तो माँगने दो!"

दिषु की बात सुन संगीता कमरे के बाहर जा कर रुकी और बोली; "प्यार करती हूँ इनसे और इनसे अपने पॉंव स्पर्श करवाऊँगी तो नर्क में भी जगह नहीं मिलेगी मुझे! आप इन्हें कूट-पीट कर सही कर दो, मैं ये सब देख नहीं पाऊँगी इसलिए मैं चली!" कल रात से जा कर अब संगीता के मुख से प्यारभरे बोल फूटे थे जिससे मेरा मन प्रसन्न हो गया था| अब संगीता पिघल रही थी तो उसे मनाना आसान था|



संगीता के जाने के बाद दिषु ने मुझे आराम से समझाया की मैं इस तरह बेवकूफी भरा काम न किया करूँ तथा मैंने भी दिषु की बात मानते हुए कहा; "भाई ये आखरी गलती थी मेरी, आगे से फिर कभी ऐसा नहीं करूँगा|" मैंने ऐसा बोल तो दिया लेकिन फिर आगे चल कर कुछ ऐसा घटित हुआ जिस कारण मेरा गुस्सा खुल कर सामने आया और मैं अपनी बात पर क़ायम न रह सका!



जाते-जाते दिषु संगीता से मज़ाक करते हुए बोला; "भाभी जी, मैंने इसे अच्छे से कूट दिया है| आगे फिर ये कोई बेवकूफी करे तो मुझे उसी वक़्त फ़ोन कर देना, मैं तभी दौड़ा चला आऊँगा और इसे पीट-पाट के चला जाऊँगा| अगर मैं दिल्ली में न भी हुआ न तो फ्लाइट से आऊँगा और फ्लाइट के पैसे इसी से भरवाऊँगा!" दिषु के किये मज़ाक पर संगीता की हँसी छूट गई और अपनी परिणीता को हँसते देख मेरा दिल एक बार फिर प्रसन्नता से भर गया|



दिषु के जाने के बाद, नेहा का मन मुझे अपनी मम्मी से माफ़ी दिलवाने का था इसलिए उसने मोर्चा सँभाला! मैं कमरे में बैठा कंप्यूटर पर काम कर रहा था और संगीता उसी वक़्त कमरे में कपड़े तहाने आई थी, ठीक तभी नेहा फुदकती हुई कमरे में आई| "मम्मी जी...मुझे न आपसे बात करनी है!" नेहा अपनी मम्मी को मक्खन लगाते हुए बोली|

"ज्यादा मक्खन लगाने की जर्रूरत नहीं है, सीधा मुद्दे पर आ!" संगीता मुँह टेढ़ा करते हुए बोली| संगीता जानती थी की नेहा उसे मेरे लिए मख्खन लगाने आई है इसीलिए संगीता सीधे मुँह नेहा से बात नहीं कर रही थी|



"मम्मी जी, गलती तो सब से होती है लेकिन हमें इंसान को उसकी गलती सुधारने का एक मौका देना चाहिए न?" नेहा अपनी मम्मी से तर्क करते हुए बोली| नेहा तर्क करने में बहुत तेज़ थी और उसके इस तर्क का जवाब देने में मैं भी फ़ैल हो जाता था| मैं जब नेहा के आगे तर्क में हारने लगता तो मैं बात बनाते हुए उसे लाड-प्यार कर बहला लेता था, लेकिन संगीता थी गर्म दिमाग की इसलिए वो नेहा के तर्क के आगे हारने पर उसे ही डाँट देती थी!

"तुझे पूरी बात पता भी है? आ गई यहाँ पैरवी करने!" संगीता ने नेहा को झिड़कते हुए कहा|

“हाँ जी मम्मी, मुझे सब बात पता है|" नेहा बड़े आत्मविश्वास से बोली| नेहा का आत्मविश्वास देख संगीता हैरान हो गई! संगीता को लगा मैंने नेहा को मेरे रिवाल्वर उठाने की बात भी बता दी है इसलिए संगीता अपनी आँखें फाड़े मुझे देखने लगी! नेहा जब मेरी पैरवी कर रही थी तो मैं अपना काम छोड़ दोनों माँ-बेटी की बात सुनने में व्यस्त हो गया था| जब हम मियाँ-बीवी की नज़रें आपस में टकराई तो संगीता आँखों ही आँखों में मुझसे पूछने लगी की क्या मैंने नेहा को सब बता दिया? जिसके जवाब में मैंने नेहा की चोरी, अपनी गर्दन न में हिला दी| संगीता को इत्मीनान हुआ की मैंने नेहा को सारी बात नहीं बताई इसलिए संगीता ने नेहा को छिड़कते हुए चुप करा दिया; "जा कर पढ़ाई कर अपनी! बड़ी आई वकील बनने!" नेहा को झिड़क कर संगीता रसोई में चली गई|



संगीता के जाने के बाद नेहा आ कर मेरे गले लग गई और बोली; "सॉरी पापा जी, मैं फ़ैल हो गई?" नेहा के फ़ैल होने का मतलब था की वो मुझे अपनी मम्मी से माफ़ी नहीं दिलवा पाई| पिछलीबार जब मैं संगीता से नाराज़ था तो उसी ने अपनी मम्मी को मुझसे माफ़ी दिलवाई थी, नेहा को लगा की वो इस काम में उस्ताद है इसीलिए वो मुझे अपनी मम्मी से माफ़ी दिलवाना चाहती थी| नेहा को इस कदर हार मानते देख मुझे लगा कहीं मेरी बिटिया के मन में कोई डर न बैठ जाए इसलिए मैं नेहा को हिम्मत देते हुए बोला; "बेटा, अभी आपकी मम्मी गुस्सा हैं इसलिए वो अभी इतनी जल्दी नहीं मानेंगी| एक बार आपकी मम्मी का गुस्सा शांत हो जाए तो उन्हें मनाना|" मेरी बात से नेहा को हिम्मत मिली और उसने तुरंत एक तरकीब सोच ली|



नेहा ने अपने दोनों भाई-बहन को साथ लिया और अपनी मम्मी को मनाने के लिए रसोई में जा पहुँची| ये दृश्य ऐसा ही था जैसे मेरी सत्ता बचाने के लिए मेरे तीनों विधायक गृह मंत्री के पास पहुँचे हों|

नेहा ने फट से स्तुति को आगे किया और अपनी मम्मी से बोली; "मम्मी जी, देखो स्तुति आपसे क्या कहना चाहती है|" नेहा ने जैसे ही स्तुति को आगे किया स्तुति फौरन अपनी मम्मी की गोदी में चली गई और अपनी मम्मी को मस्का लगाने के लिए अपनी मम्मी के दोनों गालों पर पप्पी करते हुए बोली; "मम-मम....पपई...उम्मा" ये कहेत हुए स्तुति ने अपनी मम्मी के गाल पर फिर से पप्पी की| स्तुति का मतलब था की; 'मम्मी, पापा जी को माफ़ कर दो और उन्हें मेरी तरह पप्पी दो!' संगीता अपनी बेटी की बात का मतलब समझ गई थी परन्तु वो अनजान बनने की बेजोड़ कोशिश कर रही थी| नेहा ने जब देखा की उसका एक पासा पिट रहा है तो नेहा ने अपना दूसरा पासा फेंका; "मम्मी, आयुष को भी कुछ कहना है|" ये कहते हुए नेहा ने आयुष को इशारा किया| आयुष आज अच्छे से रट्टा मार कर आया था इसलिए आयुष ने अपना निचला होंठ फुलाया और अपनी मम्मी से बोला; "मम्मी जीईईईईईईई.....! आप कितने अच्छे हो, हमारे लिए इतना अच्छा खाना बनाते हो, हमारे सब काम करते हो इसके लिए मैं आपको थैंक यू कहना चाहता हूँ|" आयुष ने बाल्टी भर मक्खन संगीता के ऊपर उड़ेल दिया था जिससे संगीता धीरे-धीरे पिघलने लगी थी! “मम्मी जी...आप हमारे लिए...अपने तीन प्यारे-प्यारे बच्चों के लिए, पापा जी को माफ़ कर दो न? बदले में आप जो कहोगे हम वो करेंगे, मस्ती बिलकुल नहीं करेंगे| आपकी हर बात मानेंगे अगर हम ने ज़रा सी भी मस्ती की न तो आप हमें कूट देना!" आयुष कहीं कुछ भूल न जाए इसलिए वो एक साँस में सब बोल गया| आयुष की अंत में कूटने की बात सुन संगीता के चेहरे पर इतनी देर से रोकी हुई हँसी छलक ही आई! "तुम तीनों शैतान बिलकुल अपने पापा जी पर गए हो! कैसे न कैसे कर के मुझे हँसा ही देते हो! लेकिन माफ़ी तो फिर भी नहीं मिलेगी!" संगीता हँसते हुए बोली और जा कर माँ को सारा किस्सा कह सुनाया|

"नानी! आज तूने दिनभर बहुत शैतानी की है!" ये कहते हुए माँ ने स्तुति को अपनी गोदी में लिया और उसकी नाक पकड़ कर खींचते हुए बोलीं; "तेरी सारी शैतानियाँ जानती हूँ मैं!" माँ आखिर माँ होती हैं इसलिए वो स्तुति की सारी होशियारी समझ रही थीं| नेहा की इस प्यारी सी कोशिश ने उसकी मम्मी को हँसा दिया था मगर मेरे लिए माफ़ी मुझे खुद संगीता से माँगनी थी|



रात को खाना खा कर सोने का समय हुआ तो संगीता ने चतुराई दिखाते हुए तीनों बच्चों को हमारे कमरे में भेज दिया और खुद बच्चों के कमरे में अकेली सोई| संगीता ने कल रात से मुझसे प्यार से बात नहीं की थी और मेरा मन उससे बात किये बिना चैन नहीं पा रहा था इसलिए बच्चों को जल्दी सुला मैं बच्चों के कमरे में पहुँचा|

संगीता अपनी छाती पर हाथ रखे हुए पीठ के बल लेटी थी, ऐसा लगता था मानो वो मेरा ही इंतज़ार कर रही हो! परन्तु जैसे ही संगीता ने मुझे कमरे के दरवाजे पर खड़ा देखा उसने फट से अपनी आँखें मूँद ली और ऐसा दिखाने लगी मानो वो सो रही हो!

"जान...मैं जानता हूँ तुम सोई नहीं हो! मैं तुमसे बात करने आया हूँ...माफ़ी माँगने आया हूँ!" मैंने संगीता को पुकारते हुए कहा| मेरी बात सुन संगीता ने आँख खोल ली और उठ कर बैठ गई| संगीता का मुझे मेरी बात कहना का मौका देना ये दर्शाता था की उसका गुस्सा अब शांत हो रहा है|

"जान, मैंने जो गलती की वो माफ़ी के लायक तो नहीं है मगर एक बार मेरे दिल की बात सुन लो… मैंने उस दिन क्या महसूस किया था ये सुन लो!



उस रात जब मिश्रा अंकल जी ने मुझे फ़ोन कर बुलाया तो मैं केवल और केवल उनकी मदद करने के लिए गया था मगर जब मैंने मिश्रा अंकल जी की गाडी में पिस्तौल देखि तो न जाने मेरे भीतर कैसी कसक उठी की मैंने बिना कुछ सोचे-समझे वो पिस्तौल उठाने के लिए अपने हाथ बढ़ा दिए| उस पिस्तौल में मानो कोई चुंबकीय शक्ति थी जो मुझे अपनी ओर खींच रही थी और वो चाहती थी की मैं उसे उठा लूँ| जैसे ही मैंने वो पिस्तौल उठाई तो पता नहीं मेरे ऊपर क्या सनक चढ़ी की मैं बावरा सा हो गया! उस पिस्तौल का वजन मेरा हाथ नहीं मेरी आत्मा महसूस कर रही थी और मेरे भीतर जर्रूरत से ज्यादा आत्मविश्वास फूँक रही थी| मैंने कभी घमंड नहीं किया था मगर इस पिस्तौल ने मुझे एक पल में घमंडी बना दिया था... वो भी ऐसा घमंडी जिसे न अपनी जान की परवाह थी और ना ही अपने परिवार की!



तुम्हें याद है उस दिन जब मैंने चन्दर पर कट्टा चलाया था?! उस दिन उस कट्टे की आवाज़ से मेरे भीतर बैठा हुआ एक शैतान जागा था, वो तो मेरी अंतरात्मा ने पाप-पुण्य का डर दिखा के इस शैतान को काबू में कर रखा था| लेकिन फिर भी ये शैतान कभी न कभी अपना फन्न फैला ही देता था, बीते एक-डेढ़ साल में जो तुमने मेरा गुस्सा...क्रोध देखा है ये सब उसी शैतान की देन है| जब मैंने मिश्रा अंकल जी की गाडी से पिस्तौल उठाई तो ये शैतान मुझ पर हावी हो गया| फिर मुझे न अपनी सुध थी और न तुम्हारी, मेरा मन तो बस वो पिस्तौल चलाने का था| भगवान जी की कृपा कहो की उस रात हालात नहीं बिगड़े और मेरे हाथों गोली नहीं चली और मैंने केवल अपनी अकड़ उन गुंडों को दिखा कर रह गया वरना क्या पता सच में मैं उन तीनों गुंडों को मौत के घात उतार ही देता|

फिर अगली सुबह, जब तुम माँ के साथ सब्जी लेने गई थी तब मेरा अंतर्मन शांत था और मेरे रात में किये जाहिलपने के लिए मुझे धिक्कार रहा था| मुझे ग्लानि हो रही थी की क्यों मैं इतना गैरजिम्मेदार बन गया? क्यों मैंने बिना कुछ सोचे समझे अपनी जान के साथ ऐसा खिलवाड़ किया? मेरा ये अपराध बोध मेरे मन को कचोटने लगा था और मैं ग्लानि के गढ्ढे में गिरने वाला था...की तभी स्तुति के प्यार ने मुझे थाम लिया| स्तुति की मस्ती देख मैं सब भूल बैठा और उसे लाड-प्यार करने में व्यस्त हो गया|



फिर पार्टी वाली रात, मुकुल मुझे नीचा दिखाने पर तुल गया! उस पार्टी में इतने अमीर आदमियों के बीच मैं पहले ही खुद को बहुत छोटा समझ रहा था उस पर जब मुकुल ने मुझे नीचा दिखाने की कोशिश की तो मेरे भीतर का शैतान फिर जागा|



मुकुल ने मुझे छोटा दिखाने के लिए पहले शराब पीने को उकसाया, जिसका मैंने बड़ी हलीमी से जवाब दे कर पीने से मना कर दिया| लेकिन फिर उसने अपनी अगली चाल चली और मुझे गरीब दिखाने के लिए मिश्रा अंकल जी को एक महँगी रिवॉल्वर गिफ्ट दी| पिछलीबार की तरह इस बार भी उस रिवॉल्वर को देख मेरे दिमाग ने काम करना बंद कर दिया| उस चमचमाती रिवॉल्वर को देख मैं उसी के वशीभूत हो उसे उठाने को मरा जा रहा था| मेरा दिल कह रहा था की एक बार तो इसे उठा कर देख, इसके वजन को अपने हाथों में महसूस कर के देख! एक बार उस ट्रिगर को अपनी ऊँगली से दबा कर देख! गोली चलने की उस शानदार आवाज़ को सुनने के लिए मेरे कान जैसे तरसने लगे थे! परन्तु किसी तरह मेरी अंतरात्मा जागी और मैंने रिवॉल्वर से नज़रें फेरते हुए अपने बेकाबू मन को शांत करना शुरू किया| बीती रात को याद कर मुझे मेरी बेवकूफी याद आ गई थी और मैं ये बेवकूफी फिर नहीं दोहराना चाहता था|

लेकिन मुकुल ने मुझे रिवॉल्वर से नजरें फेरते हुए पकड़ लिया था और उसे लगा की मैं बुज़दिल हूँ तथा रिवॉल्वर से डरता हूँ इसलिए उसने मुझे नीचा दिखाना शुरू कर दिया| उसने मेरी सादगी को मेरी बुज़दिली कहा और मुझ पर ठीक वैसे ही हँसा जैसे उस दिन चन्दर हँस रहा था| चन्दर की वो घिनौनी हँसी याद आते ही मुझसे रहा नहीं गया और मैंने अपने भीतर बैठे शैतान की बात मानते हुए न केवल रिवॉल्वर उठाई बल्कि चला भी दी! जब मैंने वो रिवॉल्वर चलाई, उन कुछ पलों के लिए मेरे भीतर का शैतान जैसे प्रसन्न हो गया था| जहाँ एक तरफ रिवॉल्वर चलने और उसकी आवाज़ से सब दहल गए थे, वहीं मुझे इसमें असीम आनंद आया था| रिवॉल्वर अपने हाथ में महसूस कर ऐसा लगता था मानो मेरे जिस्म का कोई भाग जो पहले टूट गया था वो अब पूरा हो चूका है| गोली चलने की वो आवाज़ सुन मैं किसी अलग ही दुनिया में खो गया था| उन कुछ पलों के लिए ऐसा लगता था मानो मेरा दिल जो चाहता था उसे मिल गया हो|



इस रिवॉल्वर ने मेरे अंदर घमंड जगा दिया था और इसी घमंड में चूर मैंने मुकुल को सबके सामने अच्छे से सुना दिया| सबके सामने मुकुल को यूँ बेइज्जत कर मेरे दिल को अजीब सी राहत और सुकून मिल रहा था| लेकिन फिर मेरी नज़र पड़ी तुम पर और जितना भी सुख मैंने इन कुछ पलों में महसूस किया था वो सबका सब पल भर में छू मन्त्र हो गया और उसकी जगह मेरे मन में तुम्हारा गुस्सा होने का डर बैठ गया! तुम्हारे चेहरे पर मैंने चिंता और डर की लकीरें देख ली थीं और उसी पल मुझे मेरी बेवकूफी समझ आई| मैं तुमसे माफ़ी माँगने तुम्हें समझाने आना चाहता था मगर मिश्रा अंकल जी ने मेरे कँधे पर हाथ रख मुझे अपनी बातों में लगा लिया, जिस कारण मैं तुम्हारे पास नहीं आ पाया|



जान, मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूँ और तुम्हारे मुझसे इस कदर नाराज़ होने से...गुस्सा होने से मैं एकदम से अधूरा हो गया था! सच पूछो तो मैं तुमसे बात करने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था, डरता था की कहीं तुम फिर इ मुझ पर बरस पड़ीं तो? मुझे बस एक आखरी मौका दे दो ताकि मैं अपनी गलती सुधार सकूँ!" मैंने संगीता को अपने जज्बातों से अच्छे से अवगत करा दिया था तथा एक आखरी मौक़ा भी माँग लिया था|



वहीं मेरे भीतर एक शैतान मौजूद होने की बात सुन संगीता घबरा गई थी! मेरे भीतर का ये शैतान जो कभी-कभी बाहर आ जाता था उसे हमेशा के लिए खत्म करना था और ये काम केवल संगीता का प्यार कर सकता था, परन्तु उसके लिए पहले संगीता का गुस्सा शांत होना चाहिए था?!

इधर मेरी पूरी बात सुन संगीता के चेहरे पर कोई ख़ास बदलाव नहीं आये थे, उसका चेहरा अब भी फीका पड़ा हुआ था, ऐसा लगता था मानो मेरी बातें सुन उसे कोई फर्क ही न पड़ा हो! संगीता एकदम से उठी और दरवाजे की तरफ बढ़ने लगी, मुझे लगा की उसका गुस्सा अब भी खत्म नहीं हुआ है और वो कमरे से बाहर जाना चाहती है| मेरी वजह से बेचारी संगीता पहले ही अकेली कमरे में सो रही थी, मैं नहीं चाहता था की वो अब इस कमरे से भी निकल कर बैठक में सोये इसलिए मैंने संगीता को रोकना चाहा; "जान, मैं इस कमरे से चला जाता हूँ...तुम मेरी वजह से सोफे पर मत सोओ!"

मेरी बात पूरी होते-होते संगीता मेरे पास पहुँच चुकी थी, जैसे ही मेरी बात पूरी हुई संगीता एकदम से मेरे गले लग गई| इसके आगे न संगीता को कुछ कहने की जर्रूरत थी न ही मुझे कुछ कहने की| संगीता मेरे गले लगे हुए ही मुझे पलंग तक लाई और हम दोनों मियाँ-बीवी एक दूसरे की बाहों में खो गए|



अगली सुबह, नेहा सबसे पहले उठी और उसने जब अपनी मम्मी-पापा जी को ऐसे सोते हुए देखा तो नेहा की ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा| नेहा को इस मनोरम दृश्य का रस लेना था इसलिए उसने स्तुति को गोदी में उठाया और मेरी छाती पर लिटा गई, फिर नेहा ने आयुष को जगाया और दोनों भाई-बहन हम दोनों मियाँ-बीवी के बीच जगह बनाते हुए जबरदस्ती घुस गए| बच्चों की इस उधमबाजी से जो चहल-पहल मची उससे हम मियाँ-बीवी जाग चुके थे इसलिए आयुष और नेहा ने खिलखिलाते हुए शोर मचाना शुरू कर दिया! हम दोनों मियाँ-बीवी भी सुबह-सुबह अपने तीनों बच्चों का प्यार पा कर बहुत खुश थे और बच्चों के साथ खिलखिला रहे थे|




पिछले कुछ दिनों से जो घर में दुःख अपना पैर पसार रहा था वो बेचारा आज अपने घर लौट गया था!
जारी रहेगा भाग - 8 में...
Nice update bhai.finally mafi mil gayi aur beech beech me suspence bankar rakhhe hai .
 

Sanju@

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अंतिम अध्याय: प्रतिकाष्ठा
भाग - 7


अब तक अपने पढ़ा:


इधर मेरा नया बिज़नेस आईडिया सुन और माँ द्वारा मिली आज्ञा से सबसे ज्यादा स्तुति खुश थी| स्तुति अपने मसूड़े दिखा कर हँस रही थी और ख़ुशी की किलकारियाँ मारने में व्यस्त थी| माँ ने जब स्तुति को यूँ खुश देखा तो वो स्तुति की नाक पकड़ते हुए बोलीं; "नानी, तू बड़ी खुश है? तूने भी अपने पापा के साथ बिज़नेस करना है?" माँ के पूछे इस मज़ाकिया सवाल का जवाब स्तुति ने ख़ुशी-ख़ुशी अपना सर हाँ में हिलाते हुए दिया| स्तुति की हाँ सुन कर हम सभी को हँसी आ गई और स्तुति भी हमारे साथ खिलखिला कर हँसने लगी|

"मेरी लाड़ली इसलिए खुश है क्योंकि उसे आज रसमलाई खाने को मिलेगी!" मैंने स्तुति के मन की बात कही तो स्तुति फौरन अपना सर हाँ में हिलाने लगी|


अब आगे:


आज
मेरी बिटिया ने हम माँ-बेटे के बीच पैदा हुए गुस्से को खत्म करने का महान काम किया था इसलिए आज मेरा मन मेरी लाड़ली को कुछ ख़ास खिलाने का था| मैं स्तुति को लिए हुए घर से निकला और उसे फ्रूट संडे (fruit sundae) खिलाया, इस डिश में से मैंने स्तुति को चुन-चुन कर सरे फ्रूट्स खिलाये जिसमें स्तुति को बहुत मज़ा आया| खा-पी कर हम दोनों बाप-बेटी रस-मलाई पैक करवा कर घर पहुँचे|



दोपहर को बच्चे स्कूल से लौटे तो मैंने उन्हें मेरे नए बिज़नेस शुरू करने की खबर सुनाई| आयुष को ऑनलाइन शॉपिंग के बारे में ज्यादा पता नहीं था लेकिन इससे उसका उत्साह कम नहीं हुआ था, वो तो मेरे नया काम शुरू करने के नाम से इतना खुश था की ख़ुशी से फूला नहीं समा रहा था| अपनी ख़ुशी व्यक्त करने के लिए उसने और स्तुति ने बैठे-बैठे एक दूसरे को देखते हुए हवा में हाथ उठा कर नाचना शुरू कर दिया था| इधर नेहा को ऑनलाइन शॉपिंग के बारे में जानकारी थी इसलिए वो पूरी बात समझते हुए बहुत खुश थी और उसने अपनी ये ख़ुशी मेरे गले लग कर मुझे बधाई देते हुए प्रकट की|

अब ख़ुशी की बात चल ही रही थी तो अब बारी थी मुँह मीठा करने की, जब संगीता ने सबके लिए रसमलाई परोसी तो नेहा ख़ुशी के मारे कूदने लगी| वहीं स्तुति ने जब अपनी दिद्दा को ख़ुशी से कूदते हुए देखा तो उसने भी कूदने की इच्छा प्रकट की; "पपई...पपई...दिद्दा!" स्तुति ने अपनी दीदी की तरफ इशारा करते हुए मुझे कहा तो मैंने स्तुति के दोनों हाथ पकड़ उसे खड़े होने में सहायता की, स्तुति जैसे ही खड़ी हुई उसने धीरे-धीरे थिरकना शुरू कर दिया! माँ ने जब अपनी पोती को थिरकते देखा तो वो तालियाँ बजाते हुए स्तुति का उत्साह बढ़ाने लगीं जिस कारन स्तुति के मुख से ख़ुशी की किलकारियाँ गूँजने लगीं!



वो दोस्ती ही क्या जिसमें आपने कभी साथ बिज़नेस करने की न सोची हो? यही कारण था की मैंने अपने बिज़नेस से जुड़ने के लिए दिषु को पुछा| साथ बिज़नेस करने का सुन दिषु उतावला हो गया और शाम को मिलने आने को बोला|



इधर खाना खा कर हम सब आराम कर रहे थे, संगीता मुझसे नाराज़ थी इसलिए वो माँ के पास थी| जबकि मेरे तीनों बच्चे मुझसे लिपट कर लेटे हुए खिलखिला रहे थे| अचानक ही मौसम बदला और बारिश शुरू हो गई, बादलों की गर्जन सुन स्तुति का मन बाहर छत पर जाने को कर रहा था और वो बार-बार मुझे पुकार कर छत पर जाने को कह रही थी| मैं दबे पॉंव स्तुति को ले कर उठा और छत पर आ गया तथा स्तुति को दूर से बारिश होते हुए दिखाने लगा| जिस प्रकार बारिश मुझे अपनी ओर खींचती थी उसी प्रकार मेरी बिटिया रानी भी बरखा रानी की तरफ खींची जा रही थी| स्तुति एकदम से मेरी गोदी से नीचे उतरने को छटपटाने लगी; "बेटू, आप बारिश में भीगोगे तो बीमार हो जाओगे|" मैंने स्तुति को समझना चाहा मगर मेरी बिटिया नहीं मानी और झूठ-मूठ रोना शुरू करने लगी| "बस एक मिनट के लिए चलेंगे?" मैं स्तुति से बोला तो स्तुति एकदम से खुश हो गई| गर्मी का मौसम था इसलिए मैं स्तुति को ले कर बारिश में भीगने आ गया| बरखा की बूँदें जब हम बाप-बेटी पर पड़ी तो स्तुति ने खुशी से चिल्लाना शुरू कर दिया| तभी मेरी मासूम बिटिया का मन बारिश की बूंदों को अपनी मुठ्ठी में कैद करने का था मगर बारिश की बूँदें स्तुति की छोटी सी हथेली में कैद होना नहीं चाहती थी, परन्तु इससे स्तुति का उत्साह कम नहीं हुआ बल्कि उसका उत्साह तो बेकाबू होने लगा था!

"पपई...पपई" कहते हुए स्तुति ने मेरी गोदी से नीचे उतरने के लिए छटपटाना शुरू कर दिया| मैंने सोचा की अब तो बारिश में भीग ही चुके हैं तो क्यों न हम बाप-बेटी नहा ही लें?! अतः मैं स्तुति को गोदी में लिए हुए नीचे बह रहे बारिश के पानी पर बैठ गया| बारिश हो रही थी और पानी नाली की ओर बह रहा था| स्तुति के पॉंव जब बारिश के पानी से स्पर्श हुए तो उसने ज़मीन पर बैठने की जिद्द की| जैसे ही मैंने स्तुति को ज़मीन पर बिठाया, स्तुति ने फट से छप-छप कर पानी मेरे ऊपर उछालना शरू कर दिया! "ब्माश!" मैं मुस्कुराते हुए बोला और स्तुति पर धीरे-धीरे पानी उड़ाने लगा| हम बाप-बेटी के यूँ एक दूसरे पर पानी उड़ाने में स्तुति को बहुत मज़ा आ रहा था और उसने खिलखिलाकर हँसना शुरू कर दिया था|

अभी बस कुछ मिनट हुए थे की मेरे दोनों बच्चे आयुष और नेहा भी जाग गए और मुझे ढूँढ़ते हुए छत पर आ पहुँचे| आयुष तो पहले ही बारिश में नहाने को उत्साहित रहता था इसलिए वो दौड़ता हुआ छत पर आ गया, वहीं मेरी बिटिया नेहा को भी आज अपने पापा जी के साथ बारिश में भीगना था इसलिए नेहा भी छत पर दौड़ आई|

हम तीनों ने स्तुति को घेर लिया और एक गोल धारा बना कर बैठ गए| स्तुति बीच में थी इसलिए उसने छप-छप कर हम सभी पर पानी उड़ाना शुरू कर दिया| इधर हम तीनों (मैंने, नेहा और आयुष) ने मिलकर स्तुति पर पानी उड़ाना शुरू कर दिया| बारिश में इस कदर भीगते हुए मस्ती करने में हम चारों को बहुत मज़ा आ रहा था और हम चारों सब कुछ भूल-भाल कर हँसी-ठहाका लगाने में व्यस्त थे! हमने ये भी नहीं सोचा की हमारे इस हँसी-ठाहके की आवाज़ घर के भीतर जाएगी और जब दोनों सास-पतुआ हम चारों को यूँ बारिश में नहाते हुए देखेंगी तो बहुत गुस्सा होंगी!



उधर, हमारी ये हँसी-ठहाका सुन माँ और संगीता छत पर आये तथा हम चारों को बारिश में मस्ती करते हुए चुप-चाप देखने लगे| मेरा बचपना देख माँ का मन मुझे डाँटने का नहीं था इसलिए वो कुछ पल बाद संगीता को ले कर वापस अंदर चली गईं|



एक जगह बैठ कर पानी उड़ाकर स्तुति ऊब गई थी इसलिए वो अपने दोनों हाथों-पॉंव पर चलने लगी| स्तुति को यूँ चलते देख हम तीनों भी रेल के डिब्बों की तरह स्तुति के पीछे-पीछे अपने दोनों हाथों-पॉंव पर चलने लगे| स्तुति को यूँ रेलगाड़ी का इंजन बनना पसंद था इसलिए वो खदबद-खदबद कर आगे दौड़ने लगी तथा हम तीनों भी स्तुति की गति से उसके पीछे चलने लगे| पूरी छत का चक्कर लगा कर स्तुति फिर छत के बीचों-बीच बैठ गई और फिरसे हम पर पानी उड़ाने लगी|

हमें बारिश में मस्ती करते हुए लगभग 15 मिनट हो गए थे इसलिए मैंने हमारी इस मस्ती की रेलगाडी पर रोक लगाई और तीनों बच्चों से बोला; "बस बेटा, अब सब अंदर चलो वरना आपकी दादी जी और आपकी मम्मी हम चारों को डाटेंगी!" अपनी दादी जी और मम्मी की डाँट का नाम सुन आयुष और नेहा तो अंदर जाने को तैयार हो गए मगर स्तुति ‘न’ में सर हिलाते हुए बोली; "no...no...no"!!!

"ओ पिद्दा! मम्मी मारेगी, चल अंदर!" नेहा ने स्तुति को प्यारभरी डाँट लगाई तब भी स्तुति नहीं मानी और फिर से छत पर खदबद- खदबद कर दौड़ने लगी| अब हमें स्तुति को पकड़ कर अंदर ले जाना था इसलिए हम स्तुति को पकड़ने के लिए उसके पीछे दौड़ने लगे| दो मिनट तक स्तुति ने हमको अच्छे से दौड़ाया, कभी वो टेबल के नीचे छुप जाती तो कभी कुर्सी के पीछे! तब हमें नहीं पता था की स्तुति जानबूझ कर हमें अपने पीछे भगा रही है क्योंकि उसके लिए ये बस एक खेल ही तो था!

"बेटू, रस मलाई खाओगे?" मैंने जैसे ही रसमलाई का नाम लिया, वैसे ही मीठा खाने की लालची मेरी बिटिया जहाँ थी वहीं बैठ गई और मेरी गोदी में आने के लिए अपने दोनों हाथ खोल दिए! मैंने स्तुति को गोदी में उठाया तो नेहा ने उसके कूल्हों पर प्यार से चपत लगाई और बोली; "बिलकुल अपने आयुष भैया पर गई है, खाने का नाम लिया नहीं की फट से मान गई!" वैसे बात तो सही थी, आयुष की ही तरह स्तुति को मीठा खाने का चस्का था!



खैर, हम चारो दबे पॉंव अंदर आये क्योंकि हमें लग रहा था की हमारी इस मस्ती के बारे में माँ को नहीं पता है| अंदर आ कर बारी-बारी से सबने कपड़े बदले और फिर से बिस्तर पर लेट गए तथा ऐसा दिखाने लगे मानो हमने कोई शैतानी की ही न हो! शाम 6 बजे माँ हम चारों को उठाने आईं; "मेरे प्यारे-प्यारे शैतानों, उठ जाओ!" माँ ने प्यार से आवाज़ लगा कर हमें जगाया| हम चारों एक कतरार में उठ कर बैठ गए, चूँकि मैं माँ के नज़दीक था इसलिए माँ ने मेरा कान पकड़ कर उमेठ दिया; "तुम चारों ने बारिश में बड़ी मस्ती की न?" माँ के पूछे सवाल से हम चारों सन्न थे! आयुष और नेहा को लग रहा था की अब उन्हें डाँट पड़ने वाली है मगर स्तुति ने जब माँ को मेरा कान उमेठते हुए देखा तो उसे बड़ा मज़ा आया और उसने खिलखिलाकर हँसना शुरू कर दिया|

हम तीनों को फँसा कर स्तुति को बहुत मज़ा आ रहा था, वहीं माँ ने जब स्तुति को यूँ हँसते देखा तो उनकी भी हँसी छूट गई! जब दोनों बच्चों ने अपनी दादी जी को हँसते हुए देखा तो उनकी जान में जान आई| अब नेहा को मेरा कान माँ की पकड़ से छुड़ाना था इसलिए नेहा पलंग पर खड़ी हुई और माँ के गले लग गई| माँ नेहा को चलाकी जान गई थीं इसलिए उन्होंने नेहा के कूल्हों पर प्यार भरी चपत लगाई और बोलीं; "पापा की चमची! हमेशा अपने पापा जी को बचाने आगे आ जाती है!" जब माँ ने नेहा के कूल्हों पर प्यारी सी चपत लगाई तो स्तुति को इसमें भी बहुत मज़ा आया और उसने खिलखिलाकर हँसना शुरू कर दिया!



7 बजे दिषु घर आया और हम दोनों दोस्त मेरे कमरे में बैठ, कंप्यूटर पर हमारे नए बिज़नेस से जुडी मेरे द्वारा बनाई हुई PPT देख रहे थे| इतने में स्तुति अपने हाथों-पॉंव पर खदबद-खदबद कर आ पहुँची, मैंने स्तुति को गोदी में लिया तो स्तुति ने टेबल के ऊपर बैठने की पेशकश की| स्तुति को मैंने कंप्यूटर स्क्रीन की बगल में बिठा दिया तो स्तुति बड़ी गौर से PPT देखने लगी| "बेटा, आप भी अपने पापा जी की सेल्स पिच (sales pitch) देखोगे?" दिषु ने मज़ाक करते हुए स्तुति से पुछा तो स्तुति ने फौरन अपनी गर्दन हाँ में हिला दी| स्तुति की इस प्रतिक्रिया पर दिषु को बहुत जोर से हँसी आई और ठहाका लगा कर हँसने लगा|

"हाँ भैया, ये नानी ही तो आपकी इन्वेस्टर (investor) है!" संगीता ने दिषु की बात सुन ली थी इसलिए वो पीछे से आ कर बोली, इधर संगीता के किये इस मज़ाक पर हम दोनों दोस्त हँसने लगे|



खैर, मैं दिषु को PPT दिखाते हुए सब समझा रहा था और इस दौरान स्तुति बड़े गौर से मेरी बातें सुन रही थी| जब PPT में एनिमेशन्स (animations) आती तो स्तुति बहुत खुश होती, इतनी ख़ुशी की वो ख़ुशी से चिल्लाने लगती| इतने में संगीता चाय ले आई और जबरदस्ती स्तुति को गोदी में उठा कर ले जाने लगी, अब स्तुति को PPT देखने में आ रहा था मज़ा इसलिए वो संगीता की गोदी में छटपटाने लगी| "तेरे पल्ले कुछ पड़ भी रहा है की यहाँ क्या बातें हो रही हैं? बड़ी आई अम्बानी की चाची!" संगीता मुँह टेढ़ा करते हुए बोली और स्तुति को अपने साथ ले गई|



जब से दिषु आया था उसने संगीता के बर्ताव में आये बदलाव को भाँप लिया था| बाकी दिन जब दिषु घर आता था तो संगीता उससे बड़े प्यार से बात करती थी, लेकिन आज वो अधिक बात करने के मूड में नहीं थी| जब संगीता हम दोनों की चाय दे कर गई तो दिषु ने मुझसे सारी बात पूछी| जब मैंने उसे सारी बात बताई तो दिषु अवाक हो कर मुझे देखने लगा! "भोसड़ीके तुझे बड़ी चर्बी चढ़ी है? बहनचोद तूने रिवॉल्वर चलाई? बहनचोद तेरी तो डंडे से गांड तोड़ी जानी चाहिए!" दिषु मुझे गाली देते हुए गुस्से से बोला|

"भाई, मेरी मति मारी गई थी जो मैंने किसी के 'चढ़ाने' पर रिवॉल्वर उठाई!" मैं अपना सर पीटते हुए बोला| अब जैसा की होता है, संगीता ने हमारी सारी बातें सुन ली थीं इसलिए वो एकदम से कमरे में आ गई ताकि दिषु को मेरे खिलाफ और भड़का सके; "आपसे बातें तो छुपाते ही थे, अब तो हम सब से भी बातें छुपाने लगे हैं!" संगीता मुँह टेढ़ा करते हुए बोली|

"ये ऐसे नहीं सुधरेगा भाभी जी, ज़रा एक डंडा लाइए मैं इसे अभी कूट-पीट कर सीधा करता हूँ! बड़ी चर्बी चढ़ी है साले को, न मैंने इसकी सारी चर्बी पिघला दी तो कहना!" दिषु अपनी कमीज के स्लीव मोड़ते हुए बोला| शुक्र है की घर में डंडा नहीं था वरना अगर संगीता उसे डंडा दे देती तो ये ससुर मुझे आज सच में कूट देता!

"यार मैं अपने किये पर बहुत शर्मिंदा हूँ! मैंने जो बेवकूफी की उसके लिए मैं हाथ जोड़कर माफ़ी माँगता हूँ|" मैंने अपनी जान बचाने के लिए नम्रता से हाथ जोड़े, लेकिन बजाए नरम पड़ने के दिषु मुझे सुनाने लग गया; "मेरी भाभी जी सीधी-साधी हैं इसलिए तुझे बस कमरे से बाहर सुलाया, अगर कोई और होती न तो घर से बाहर निकाल देती तुझे! चल पॉंव-पड़ भाभी जी के!" दिषु मुझे आदेश देते हुए बोला| अब मुझे चाहिए थी संगीता की माफ़ी और इसके लिए मैं उसके पॉंव छूने को भी तैयार था| मैंने जैसे ही आगे बढ़ कर संगीता के पॉंव छूने चाहे, वैसे ही संगीता डर के मारे भाग खड़ी हुई! संगीता के एकदम से भागने पर दिषु हँस पड़ा और बोला; "अरे भाभी जी, कहाँ भाग रही हो? इसे (मुझे) माफ़ी तो माँगने दो!"

दिषु की बात सुन संगीता कमरे के बाहर जा कर रुकी और बोली; "प्यार करती हूँ इनसे और इनसे अपने पॉंव स्पर्श करवाऊँगी तो नर्क में भी जगह नहीं मिलेगी मुझे! आप इन्हें कूट-पीट कर सही कर दो, मैं ये सब देख नहीं पाऊँगी इसलिए मैं चली!" कल रात से जा कर अब संगीता के मुख से प्यारभरे बोल फूटे थे जिससे मेरा मन प्रसन्न हो गया था| अब संगीता पिघल रही थी तो उसे मनाना आसान था|



संगीता के जाने के बाद दिषु ने मुझे आराम से समझाया की मैं इस तरह बेवकूफी भरा काम न किया करूँ तथा मैंने भी दिषु की बात मानते हुए कहा; "भाई ये आखरी गलती थी मेरी, आगे से फिर कभी ऐसा नहीं करूँगा|" मैंने ऐसा बोल तो दिया लेकिन फिर आगे चल कर कुछ ऐसा घटित हुआ जिस कारण मेरा गुस्सा खुल कर सामने आया और मैं अपनी बात पर क़ायम न रह सका!



जाते-जाते दिषु संगीता से मज़ाक करते हुए बोला; "भाभी जी, मैंने इसे अच्छे से कूट दिया है| आगे फिर ये कोई बेवकूफी करे तो मुझे उसी वक़्त फ़ोन कर देना, मैं तभी दौड़ा चला आऊँगा और इसे पीट-पाट के चला जाऊँगा| अगर मैं दिल्ली में न भी हुआ न तो फ्लाइट से आऊँगा और फ्लाइट के पैसे इसी से भरवाऊँगा!" दिषु के किये मज़ाक पर संगीता की हँसी छूट गई और अपनी परिणीता को हँसते देख मेरा दिल एक बार फिर प्रसन्नता से भर गया|



दिषु के जाने के बाद, नेहा का मन मुझे अपनी मम्मी से माफ़ी दिलवाने का था इसलिए उसने मोर्चा सँभाला! मैं कमरे में बैठा कंप्यूटर पर काम कर रहा था और संगीता उसी वक़्त कमरे में कपड़े तहाने आई थी, ठीक तभी नेहा फुदकती हुई कमरे में आई| "मम्मी जी...मुझे न आपसे बात करनी है!" नेहा अपनी मम्मी को मक्खन लगाते हुए बोली|

"ज्यादा मक्खन लगाने की जर्रूरत नहीं है, सीधा मुद्दे पर आ!" संगीता मुँह टेढ़ा करते हुए बोली| संगीता जानती थी की नेहा उसे मेरे लिए मख्खन लगाने आई है इसीलिए संगीता सीधे मुँह नेहा से बात नहीं कर रही थी|



"मम्मी जी, गलती तो सब से होती है लेकिन हमें इंसान को उसकी गलती सुधारने का एक मौका देना चाहिए न?" नेहा अपनी मम्मी से तर्क करते हुए बोली| नेहा तर्क करने में बहुत तेज़ थी और उसके इस तर्क का जवाब देने में मैं भी फ़ैल हो जाता था| मैं जब नेहा के आगे तर्क में हारने लगता तो मैं बात बनाते हुए उसे लाड-प्यार कर बहला लेता था, लेकिन संगीता थी गर्म दिमाग की इसलिए वो नेहा के तर्क के आगे हारने पर उसे ही डाँट देती थी!

"तुझे पूरी बात पता भी है? आ गई यहाँ पैरवी करने!" संगीता ने नेहा को झिड़कते हुए कहा|

“हाँ जी मम्मी, मुझे सब बात पता है|" नेहा बड़े आत्मविश्वास से बोली| नेहा का आत्मविश्वास देख संगीता हैरान हो गई! संगीता को लगा मैंने नेहा को मेरे रिवाल्वर उठाने की बात भी बता दी है इसलिए संगीता अपनी आँखें फाड़े मुझे देखने लगी! नेहा जब मेरी पैरवी कर रही थी तो मैं अपना काम छोड़ दोनों माँ-बेटी की बात सुनने में व्यस्त हो गया था| जब हम मियाँ-बीवी की नज़रें आपस में टकराई तो संगीता आँखों ही आँखों में मुझसे पूछने लगी की क्या मैंने नेहा को सब बता दिया? जिसके जवाब में मैंने नेहा की चोरी, अपनी गर्दन न में हिला दी| संगीता को इत्मीनान हुआ की मैंने नेहा को सारी बात नहीं बताई इसलिए संगीता ने नेहा को छिड़कते हुए चुप करा दिया; "जा कर पढ़ाई कर अपनी! बड़ी आई वकील बनने!" नेहा को झिड़क कर संगीता रसोई में चली गई|



संगीता के जाने के बाद नेहा आ कर मेरे गले लग गई और बोली; "सॉरी पापा जी, मैं फ़ैल हो गई?" नेहा के फ़ैल होने का मतलब था की वो मुझे अपनी मम्मी से माफ़ी नहीं दिलवा पाई| पिछलीबार जब मैं संगीता से नाराज़ था तो उसी ने अपनी मम्मी को मुझसे माफ़ी दिलवाई थी, नेहा को लगा की वो इस काम में उस्ताद है इसीलिए वो मुझे अपनी मम्मी से माफ़ी दिलवाना चाहती थी| नेहा को इस कदर हार मानते देख मुझे लगा कहीं मेरी बिटिया के मन में कोई डर न बैठ जाए इसलिए मैं नेहा को हिम्मत देते हुए बोला; "बेटा, अभी आपकी मम्मी गुस्सा हैं इसलिए वो अभी इतनी जल्दी नहीं मानेंगी| एक बार आपकी मम्मी का गुस्सा शांत हो जाए तो उन्हें मनाना|" मेरी बात से नेहा को हिम्मत मिली और उसने तुरंत एक तरकीब सोच ली|



नेहा ने अपने दोनों भाई-बहन को साथ लिया और अपनी मम्मी को मनाने के लिए रसोई में जा पहुँची| ये दृश्य ऐसा ही था जैसे मेरी सत्ता बचाने के लिए मेरे तीनों विधायक गृह मंत्री के पास पहुँचे हों|

नेहा ने फट से स्तुति को आगे किया और अपनी मम्मी से बोली; "मम्मी जी, देखो स्तुति आपसे क्या कहना चाहती है|" नेहा ने जैसे ही स्तुति को आगे किया स्तुति फौरन अपनी मम्मी की गोदी में चली गई और अपनी मम्मी को मस्का लगाने के लिए अपनी मम्मी के दोनों गालों पर पप्पी करते हुए बोली; "मम-मम....पपई...उम्मा" ये कहेत हुए स्तुति ने अपनी मम्मी के गाल पर फिर से पप्पी की| स्तुति का मतलब था की; 'मम्मी, पापा जी को माफ़ कर दो और उन्हें मेरी तरह पप्पी दो!' संगीता अपनी बेटी की बात का मतलब समझ गई थी परन्तु वो अनजान बनने की बेजोड़ कोशिश कर रही थी| नेहा ने जब देखा की उसका एक पासा पिट रहा है तो नेहा ने अपना दूसरा पासा फेंका; "मम्मी, आयुष को भी कुछ कहना है|" ये कहते हुए नेहा ने आयुष को इशारा किया| आयुष आज अच्छे से रट्टा मार कर आया था इसलिए आयुष ने अपना निचला होंठ फुलाया और अपनी मम्मी से बोला; "मम्मी जीईईईईईईई.....! आप कितने अच्छे हो, हमारे लिए इतना अच्छा खाना बनाते हो, हमारे सब काम करते हो इसके लिए मैं आपको थैंक यू कहना चाहता हूँ|" आयुष ने बाल्टी भर मक्खन संगीता के ऊपर उड़ेल दिया था जिससे संगीता धीरे-धीरे पिघलने लगी थी! “मम्मी जी...आप हमारे लिए...अपने तीन प्यारे-प्यारे बच्चों के लिए, पापा जी को माफ़ कर दो न? बदले में आप जो कहोगे हम वो करेंगे, मस्ती बिलकुल नहीं करेंगे| आपकी हर बात मानेंगे अगर हम ने ज़रा सी भी मस्ती की न तो आप हमें कूट देना!" आयुष कहीं कुछ भूल न जाए इसलिए वो एक साँस में सब बोल गया| आयुष की अंत में कूटने की बात सुन संगीता के चेहरे पर इतनी देर से रोकी हुई हँसी छलक ही आई! "तुम तीनों शैतान बिलकुल अपने पापा जी पर गए हो! कैसे न कैसे कर के मुझे हँसा ही देते हो! लेकिन माफ़ी तो फिर भी नहीं मिलेगी!" संगीता हँसते हुए बोली और जा कर माँ को सारा किस्सा कह सुनाया|

"नानी! आज तूने दिनभर बहुत शैतानी की है!" ये कहते हुए माँ ने स्तुति को अपनी गोदी में लिया और उसकी नाक पकड़ कर खींचते हुए बोलीं; "तेरी सारी शैतानियाँ जानती हूँ मैं!" माँ आखिर माँ होती हैं इसलिए वो स्तुति की सारी होशियारी समझ रही थीं| नेहा की इस प्यारी सी कोशिश ने उसकी मम्मी को हँसा दिया था मगर मेरे लिए माफ़ी मुझे खुद संगीता से माँगनी थी|



रात को खाना खा कर सोने का समय हुआ तो संगीता ने चतुराई दिखाते हुए तीनों बच्चों को हमारे कमरे में भेज दिया और खुद बच्चों के कमरे में अकेली सोई| संगीता ने कल रात से मुझसे प्यार से बात नहीं की थी और मेरा मन उससे बात किये बिना चैन नहीं पा रहा था इसलिए बच्चों को जल्दी सुला मैं बच्चों के कमरे में पहुँचा|

संगीता अपनी छाती पर हाथ रखे हुए पीठ के बल लेटी थी, ऐसा लगता था मानो वो मेरा ही इंतज़ार कर रही हो! परन्तु जैसे ही संगीता ने मुझे कमरे के दरवाजे पर खड़ा देखा उसने फट से अपनी आँखें मूँद ली और ऐसा दिखाने लगी मानो वो सो रही हो!

"जान...मैं जानता हूँ तुम सोई नहीं हो! मैं तुमसे बात करने आया हूँ...माफ़ी माँगने आया हूँ!" मैंने संगीता को पुकारते हुए कहा| मेरी बात सुन संगीता ने आँख खोल ली और उठ कर बैठ गई| संगीता का मुझे मेरी बात कहना का मौका देना ये दर्शाता था की उसका गुस्सा अब शांत हो रहा है|

"जान, मैंने जो गलती की वो माफ़ी के लायक तो नहीं है मगर एक बार मेरे दिल की बात सुन लो… मैंने उस दिन क्या महसूस किया था ये सुन लो!



उस रात जब मिश्रा अंकल जी ने मुझे फ़ोन कर बुलाया तो मैं केवल और केवल उनकी मदद करने के लिए गया था मगर जब मैंने मिश्रा अंकल जी की गाडी में पिस्तौल देखि तो न जाने मेरे भीतर कैसी कसक उठी की मैंने बिना कुछ सोचे-समझे वो पिस्तौल उठाने के लिए अपने हाथ बढ़ा दिए| उस पिस्तौल में मानो कोई चुंबकीय शक्ति थी जो मुझे अपनी ओर खींच रही थी और वो चाहती थी की मैं उसे उठा लूँ| जैसे ही मैंने वो पिस्तौल उठाई तो पता नहीं मेरे ऊपर क्या सनक चढ़ी की मैं बावरा सा हो गया! उस पिस्तौल का वजन मेरा हाथ नहीं मेरी आत्मा महसूस कर रही थी और मेरे भीतर जर्रूरत से ज्यादा आत्मविश्वास फूँक रही थी| मैंने कभी घमंड नहीं किया था मगर इस पिस्तौल ने मुझे एक पल में घमंडी बना दिया था... वो भी ऐसा घमंडी जिसे न अपनी जान की परवाह थी और ना ही अपने परिवार की!



तुम्हें याद है उस दिन जब मैंने चन्दर पर कट्टा चलाया था?! उस दिन उस कट्टे की आवाज़ से मेरे भीतर बैठा हुआ एक शैतान जागा था, वो तो मेरी अंतरात्मा ने पाप-पुण्य का डर दिखा के इस शैतान को काबू में कर रखा था| लेकिन फिर भी ये शैतान कभी न कभी अपना फन्न फैला ही देता था, बीते एक-डेढ़ साल में जो तुमने मेरा गुस्सा...क्रोध देखा है ये सब उसी शैतान की देन है| जब मैंने मिश्रा अंकल जी की गाडी से पिस्तौल उठाई तो ये शैतान मुझ पर हावी हो गया| फिर मुझे न अपनी सुध थी और न तुम्हारी, मेरा मन तो बस वो पिस्तौल चलाने का था| भगवान जी की कृपा कहो की उस रात हालात नहीं बिगड़े और मेरे हाथों गोली नहीं चली और मैंने केवल अपनी अकड़ उन गुंडों को दिखा कर रह गया वरना क्या पता सच में मैं उन तीनों गुंडों को मौत के घात उतार ही देता|

फिर अगली सुबह, जब तुम माँ के साथ सब्जी लेने गई थी तब मेरा अंतर्मन शांत था और मेरे रात में किये जाहिलपने के लिए मुझे धिक्कार रहा था| मुझे ग्लानि हो रही थी की क्यों मैं इतना गैरजिम्मेदार बन गया? क्यों मैंने बिना कुछ सोचे समझे अपनी जान के साथ ऐसा खिलवाड़ किया? मेरा ये अपराध बोध मेरे मन को कचोटने लगा था और मैं ग्लानि के गढ्ढे में गिरने वाला था...की तभी स्तुति के प्यार ने मुझे थाम लिया| स्तुति की मस्ती देख मैं सब भूल बैठा और उसे लाड-प्यार करने में व्यस्त हो गया|



फिर पार्टी वाली रात, मुकुल मुझे नीचा दिखाने पर तुल गया! उस पार्टी में इतने अमीर आदमियों के बीच मैं पहले ही खुद को बहुत छोटा समझ रहा था उस पर जब मुकुल ने मुझे नीचा दिखाने की कोशिश की तो मेरे भीतर का शैतान फिर जागा|



मुकुल ने मुझे छोटा दिखाने के लिए पहले शराब पीने को उकसाया, जिसका मैंने बड़ी हलीमी से जवाब दे कर पीने से मना कर दिया| लेकिन फिर उसने अपनी अगली चाल चली और मुझे गरीब दिखाने के लिए मिश्रा अंकल जी को एक महँगी रिवॉल्वर गिफ्ट दी| पिछलीबार की तरह इस बार भी उस रिवॉल्वर को देख मेरे दिमाग ने काम करना बंद कर दिया| उस चमचमाती रिवॉल्वर को देख मैं उसी के वशीभूत हो उसे उठाने को मरा जा रहा था| मेरा दिल कह रहा था की एक बार तो इसे उठा कर देख, इसके वजन को अपने हाथों में महसूस कर के देख! एक बार उस ट्रिगर को अपनी ऊँगली से दबा कर देख! गोली चलने की उस शानदार आवाज़ को सुनने के लिए मेरे कान जैसे तरसने लगे थे! परन्तु किसी तरह मेरी अंतरात्मा जागी और मैंने रिवॉल्वर से नज़रें फेरते हुए अपने बेकाबू मन को शांत करना शुरू किया| बीती रात को याद कर मुझे मेरी बेवकूफी याद आ गई थी और मैं ये बेवकूफी फिर नहीं दोहराना चाहता था|

लेकिन मुकुल ने मुझे रिवॉल्वर से नजरें फेरते हुए पकड़ लिया था और उसे लगा की मैं बुज़दिल हूँ तथा रिवॉल्वर से डरता हूँ इसलिए उसने मुझे नीचा दिखाना शुरू कर दिया| उसने मेरी सादगी को मेरी बुज़दिली कहा और मुझ पर ठीक वैसे ही हँसा जैसे उस दिन चन्दर हँस रहा था| चन्दर की वो घिनौनी हँसी याद आते ही मुझसे रहा नहीं गया और मैंने अपने भीतर बैठे शैतान की बात मानते हुए न केवल रिवॉल्वर उठाई बल्कि चला भी दी! जब मैंने वो रिवॉल्वर चलाई, उन कुछ पलों के लिए मेरे भीतर का शैतान जैसे प्रसन्न हो गया था| जहाँ एक तरफ रिवॉल्वर चलने और उसकी आवाज़ से सब दहल गए थे, वहीं मुझे इसमें असीम आनंद आया था| रिवॉल्वर अपने हाथ में महसूस कर ऐसा लगता था मानो मेरे जिस्म का कोई भाग जो पहले टूट गया था वो अब पूरा हो चूका है| गोली चलने की वो आवाज़ सुन मैं किसी अलग ही दुनिया में खो गया था| उन कुछ पलों के लिए ऐसा लगता था मानो मेरा दिल जो चाहता था उसे मिल गया हो|



इस रिवॉल्वर ने मेरे अंदर घमंड जगा दिया था और इसी घमंड में चूर मैंने मुकुल को सबके सामने अच्छे से सुना दिया| सबके सामने मुकुल को यूँ बेइज्जत कर मेरे दिल को अजीब सी राहत और सुकून मिल रहा था| लेकिन फिर मेरी नज़र पड़ी तुम पर और जितना भी सुख मैंने इन कुछ पलों में महसूस किया था वो सबका सब पल भर में छू मन्त्र हो गया और उसकी जगह मेरे मन में तुम्हारा गुस्सा होने का डर बैठ गया! तुम्हारे चेहरे पर मैंने चिंता और डर की लकीरें देख ली थीं और उसी पल मुझे मेरी बेवकूफी समझ आई| मैं तुमसे माफ़ी माँगने तुम्हें समझाने आना चाहता था मगर मिश्रा अंकल जी ने मेरे कँधे पर हाथ रख मुझे अपनी बातों में लगा लिया, जिस कारण मैं तुम्हारे पास नहीं आ पाया|



जान, मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूँ और तुम्हारे मुझसे इस कदर नाराज़ होने से...गुस्सा होने से मैं एकदम से अधूरा हो गया था! सच पूछो तो मैं तुमसे बात करने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था, डरता था की कहीं तुम फिर इ मुझ पर बरस पड़ीं तो? मुझे बस एक आखरी मौका दे दो ताकि मैं अपनी गलती सुधार सकूँ!" मैंने संगीता को अपने जज्बातों से अच्छे से अवगत करा दिया था तथा एक आखरी मौक़ा भी माँग लिया था|



वहीं मेरे भीतर एक शैतान मौजूद होने की बात सुन संगीता घबरा गई थी! मेरे भीतर का ये शैतान जो कभी-कभी बाहर आ जाता था उसे हमेशा के लिए खत्म करना था और ये काम केवल संगीता का प्यार कर सकता था, परन्तु उसके लिए पहले संगीता का गुस्सा शांत होना चाहिए था?!

इधर मेरी पूरी बात सुन संगीता के चेहरे पर कोई ख़ास बदलाव नहीं आये थे, उसका चेहरा अब भी फीका पड़ा हुआ था, ऐसा लगता था मानो मेरी बातें सुन उसे कोई फर्क ही न पड़ा हो! संगीता एकदम से उठी और दरवाजे की तरफ बढ़ने लगी, मुझे लगा की उसका गुस्सा अब भी खत्म नहीं हुआ है और वो कमरे से बाहर जाना चाहती है| मेरी वजह से बेचारी संगीता पहले ही अकेली कमरे में सो रही थी, मैं नहीं चाहता था की वो अब इस कमरे से भी निकल कर बैठक में सोये इसलिए मैंने संगीता को रोकना चाहा; "जान, मैं इस कमरे से चला जाता हूँ...तुम मेरी वजह से सोफे पर मत सोओ!"

मेरी बात पूरी होते-होते संगीता मेरे पास पहुँच चुकी थी, जैसे ही मेरी बात पूरी हुई संगीता एकदम से मेरे गले लग गई| इसके आगे न संगीता को कुछ कहने की जर्रूरत थी न ही मुझे कुछ कहने की| संगीता मेरे गले लगे हुए ही मुझे पलंग तक लाई और हम दोनों मियाँ-बीवी एक दूसरे की बाहों में खो गए|



अगली सुबह, नेहा सबसे पहले उठी और उसने जब अपनी मम्मी-पापा जी को ऐसे सोते हुए देखा तो नेहा की ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा| नेहा को इस मनोरम दृश्य का रस लेना था इसलिए उसने स्तुति को गोदी में उठाया और मेरी छाती पर लिटा गई, फिर नेहा ने आयुष को जगाया और दोनों भाई-बहन हम दोनों मियाँ-बीवी के बीच जगह बनाते हुए जबरदस्ती घुस गए| बच्चों की इस उधमबाजी से जो चहल-पहल मची उससे हम मियाँ-बीवी जाग चुके थे इसलिए आयुष और नेहा ने खिलखिलाते हुए शोर मचाना शुरू कर दिया! हम दोनों मियाँ-बीवी भी सुबह-सुबह अपने तीनों बच्चों का प्यार पा कर बहुत खुश थे और बच्चों के साथ खिलखिला रहे थे|




पिछले कुछ दिनों से जो घर में दुःख अपना पैर पसार रहा था वो बेचारा आज अपने घर लौट गया था!
जारी रहेगा भाग - 8 में...
बहुत ही सुन्दर लाजवाब और अद्भुत अपडेट है स्तुति ने मां और आपके बीच सुलह करवा दी और उसके बदले में अपने उसे फ्रूट संडे खिलाया स्तुति इस अपडेट में हीरो बनी है उसकी चुलबुलिया बढ़ रही है बारिश में स्तुति के साथ सब का खेलना और छुप कर वापिस रूम में आना लेकिन मां द्वारा पकड़ लेना बहुत ही रोमांचकारी था नेहा द्वारा आयुष और स्तुति को लेकर अपनी मां को मनाना दिषु को जब अपना प्लान बताया उसका घर आना और सारी बात जानकर मानू को डांट लगाना और अपनी हरकतों से भौजी के चहरे पर मुस्कान का लाना और मानू का संगीता से माफी मांगना ये सब बहुत ही सुन्दर और रोमांचकारी था
 
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अंतिम अध्याय: प्रतिकाष्ठा
भाग - 7


अब तक अपने पढ़ा:


इधर मेरा नया बिज़नेस आईडिया सुन और माँ द्वारा मिली आज्ञा से सबसे ज्यादा स्तुति खुश थी| स्तुति अपने मसूड़े दिखा कर हँस रही थी और ख़ुशी की किलकारियाँ मारने में व्यस्त थी| माँ ने जब स्तुति को यूँ खुश देखा तो वो स्तुति की नाक पकड़ते हुए बोलीं; "नानी, तू बड़ी खुश है? तूने भी अपने पापा के साथ बिज़नेस करना है?" माँ के पूछे इस मज़ाकिया सवाल का जवाब स्तुति ने ख़ुशी-ख़ुशी अपना सर हाँ में हिलाते हुए दिया| स्तुति की हाँ सुन कर हम सभी को हँसी आ गई और स्तुति भी हमारे साथ खिलखिला कर हँसने लगी|

"मेरी लाड़ली इसलिए खुश है क्योंकि उसे आज रसमलाई खाने को मिलेगी!" मैंने स्तुति के मन की बात कही तो स्तुति फौरन अपना सर हाँ में हिलाने लगी|


अब आगे:


आज
मेरी बिटिया ने हम माँ-बेटे के बीच पैदा हुए गुस्से को खत्म करने का महान काम किया था इसलिए आज मेरा मन मेरी लाड़ली को कुछ ख़ास खिलाने का था| मैं स्तुति को लिए हुए घर से निकला और उसे फ्रूट संडे (fruit sundae) खिलाया, इस डिश में से मैंने स्तुति को चुन-चुन कर सरे फ्रूट्स खिलाये जिसमें स्तुति को बहुत मज़ा आया| खा-पी कर हम दोनों बाप-बेटी रस-मलाई पैक करवा कर घर पहुँचे|



दोपहर को बच्चे स्कूल से लौटे तो मैंने उन्हें मेरे नए बिज़नेस शुरू करने की खबर सुनाई| आयुष को ऑनलाइन शॉपिंग के बारे में ज्यादा पता नहीं था लेकिन इससे उसका उत्साह कम नहीं हुआ था, वो तो मेरे नया काम शुरू करने के नाम से इतना खुश था की ख़ुशी से फूला नहीं समा रहा था| अपनी ख़ुशी व्यक्त करने के लिए उसने और स्तुति ने बैठे-बैठे एक दूसरे को देखते हुए हवा में हाथ उठा कर नाचना शुरू कर दिया था| इधर नेहा को ऑनलाइन शॉपिंग के बारे में जानकारी थी इसलिए वो पूरी बात समझते हुए बहुत खुश थी और उसने अपनी ये ख़ुशी मेरे गले लग कर मुझे बधाई देते हुए प्रकट की|

अब ख़ुशी की बात चल ही रही थी तो अब बारी थी मुँह मीठा करने की, जब संगीता ने सबके लिए रसमलाई परोसी तो नेहा ख़ुशी के मारे कूदने लगी| वहीं स्तुति ने जब अपनी दिद्दा को ख़ुशी से कूदते हुए देखा तो उसने भी कूदने की इच्छा प्रकट की; "पपई...पपई...दिद्दा!" स्तुति ने अपनी दीदी की तरफ इशारा करते हुए मुझे कहा तो मैंने स्तुति के दोनों हाथ पकड़ उसे खड़े होने में सहायता की, स्तुति जैसे ही खड़ी हुई उसने धीरे-धीरे थिरकना शुरू कर दिया! माँ ने जब अपनी पोती को थिरकते देखा तो वो तालियाँ बजाते हुए स्तुति का उत्साह बढ़ाने लगीं जिस कारन स्तुति के मुख से ख़ुशी की किलकारियाँ गूँजने लगीं!



वो दोस्ती ही क्या जिसमें आपने कभी साथ बिज़नेस करने की न सोची हो? यही कारण था की मैंने अपने बिज़नेस से जुड़ने के लिए दिषु को पुछा| साथ बिज़नेस करने का सुन दिषु उतावला हो गया और शाम को मिलने आने को बोला|



इधर खाना खा कर हम सब आराम कर रहे थे, संगीता मुझसे नाराज़ थी इसलिए वो माँ के पास थी| जबकि मेरे तीनों बच्चे मुझसे लिपट कर लेटे हुए खिलखिला रहे थे| अचानक ही मौसम बदला और बारिश शुरू हो गई, बादलों की गर्जन सुन स्तुति का मन बाहर छत पर जाने को कर रहा था और वो बार-बार मुझे पुकार कर छत पर जाने को कह रही थी| मैं दबे पॉंव स्तुति को ले कर उठा और छत पर आ गया तथा स्तुति को दूर से बारिश होते हुए दिखाने लगा| जिस प्रकार बारिश मुझे अपनी ओर खींचती थी उसी प्रकार मेरी बिटिया रानी भी बरखा रानी की तरफ खींची जा रही थी| स्तुति एकदम से मेरी गोदी से नीचे उतरने को छटपटाने लगी; "बेटू, आप बारिश में भीगोगे तो बीमार हो जाओगे|" मैंने स्तुति को समझना चाहा मगर मेरी बिटिया नहीं मानी और झूठ-मूठ रोना शुरू करने लगी| "बस एक मिनट के लिए चलेंगे?" मैं स्तुति से बोला तो स्तुति एकदम से खुश हो गई| गर्मी का मौसम था इसलिए मैं स्तुति को ले कर बारिश में भीगने आ गया| बरखा की बूँदें जब हम बाप-बेटी पर पड़ी तो स्तुति ने खुशी से चिल्लाना शुरू कर दिया| तभी मेरी मासूम बिटिया का मन बारिश की बूंदों को अपनी मुठ्ठी में कैद करने का था मगर बारिश की बूँदें स्तुति की छोटी सी हथेली में कैद होना नहीं चाहती थी, परन्तु इससे स्तुति का उत्साह कम नहीं हुआ बल्कि उसका उत्साह तो बेकाबू होने लगा था!

"पपई...पपई" कहते हुए स्तुति ने मेरी गोदी से नीचे उतरने के लिए छटपटाना शुरू कर दिया| मैंने सोचा की अब तो बारिश में भीग ही चुके हैं तो क्यों न हम बाप-बेटी नहा ही लें?! अतः मैं स्तुति को गोदी में लिए हुए नीचे बह रहे बारिश के पानी पर बैठ गया| बारिश हो रही थी और पानी नाली की ओर बह रहा था| स्तुति के पॉंव जब बारिश के पानी से स्पर्श हुए तो उसने ज़मीन पर बैठने की जिद्द की| जैसे ही मैंने स्तुति को ज़मीन पर बिठाया, स्तुति ने फट से छप-छप कर पानी मेरे ऊपर उछालना शरू कर दिया! "ब्माश!" मैं मुस्कुराते हुए बोला और स्तुति पर धीरे-धीरे पानी उड़ाने लगा| हम बाप-बेटी के यूँ एक दूसरे पर पानी उड़ाने में स्तुति को बहुत मज़ा आ रहा था और उसने खिलखिलाकर हँसना शुरू कर दिया था|

अभी बस कुछ मिनट हुए थे की मेरे दोनों बच्चे आयुष और नेहा भी जाग गए और मुझे ढूँढ़ते हुए छत पर आ पहुँचे| आयुष तो पहले ही बारिश में नहाने को उत्साहित रहता था इसलिए वो दौड़ता हुआ छत पर आ गया, वहीं मेरी बिटिया नेहा को भी आज अपने पापा जी के साथ बारिश में भीगना था इसलिए नेहा भी छत पर दौड़ आई|

हम तीनों ने स्तुति को घेर लिया और एक गोल धारा बना कर बैठ गए| स्तुति बीच में थी इसलिए उसने छप-छप कर हम सभी पर पानी उड़ाना शुरू कर दिया| इधर हम तीनों (मैंने, नेहा और आयुष) ने मिलकर स्तुति पर पानी उड़ाना शुरू कर दिया| बारिश में इस कदर भीगते हुए मस्ती करने में हम चारों को बहुत मज़ा आ रहा था और हम चारों सब कुछ भूल-भाल कर हँसी-ठहाका लगाने में व्यस्त थे! हमने ये भी नहीं सोचा की हमारे इस हँसी-ठाहके की आवाज़ घर के भीतर जाएगी और जब दोनों सास-पतुआ हम चारों को यूँ बारिश में नहाते हुए देखेंगी तो बहुत गुस्सा होंगी!



उधर, हमारी ये हँसी-ठहाका सुन माँ और संगीता छत पर आये तथा हम चारों को बारिश में मस्ती करते हुए चुप-चाप देखने लगे| मेरा बचपना देख माँ का मन मुझे डाँटने का नहीं था इसलिए वो कुछ पल बाद संगीता को ले कर वापस अंदर चली गईं|



एक जगह बैठ कर पानी उड़ाकर स्तुति ऊब गई थी इसलिए वो अपने दोनों हाथों-पॉंव पर चलने लगी| स्तुति को यूँ चलते देख हम तीनों भी रेल के डिब्बों की तरह स्तुति के पीछे-पीछे अपने दोनों हाथों-पॉंव पर चलने लगे| स्तुति को यूँ रेलगाड़ी का इंजन बनना पसंद था इसलिए वो खदबद-खदबद कर आगे दौड़ने लगी तथा हम तीनों भी स्तुति की गति से उसके पीछे चलने लगे| पूरी छत का चक्कर लगा कर स्तुति फिर छत के बीचों-बीच बैठ गई और फिरसे हम पर पानी उड़ाने लगी|

हमें बारिश में मस्ती करते हुए लगभग 15 मिनट हो गए थे इसलिए मैंने हमारी इस मस्ती की रेलगाडी पर रोक लगाई और तीनों बच्चों से बोला; "बस बेटा, अब सब अंदर चलो वरना आपकी दादी जी और आपकी मम्मी हम चारों को डाटेंगी!" अपनी दादी जी और मम्मी की डाँट का नाम सुन आयुष और नेहा तो अंदर जाने को तैयार हो गए मगर स्तुति ‘न’ में सर हिलाते हुए बोली; "no...no...no"!!!

"ओ पिद्दा! मम्मी मारेगी, चल अंदर!" नेहा ने स्तुति को प्यारभरी डाँट लगाई तब भी स्तुति नहीं मानी और फिर से छत पर खदबद- खदबद कर दौड़ने लगी| अब हमें स्तुति को पकड़ कर अंदर ले जाना था इसलिए हम स्तुति को पकड़ने के लिए उसके पीछे दौड़ने लगे| दो मिनट तक स्तुति ने हमको अच्छे से दौड़ाया, कभी वो टेबल के नीचे छुप जाती तो कभी कुर्सी के पीछे! तब हमें नहीं पता था की स्तुति जानबूझ कर हमें अपने पीछे भगा रही है क्योंकि उसके लिए ये बस एक खेल ही तो था!

"बेटू, रस मलाई खाओगे?" मैंने जैसे ही रसमलाई का नाम लिया, वैसे ही मीठा खाने की लालची मेरी बिटिया जहाँ थी वहीं बैठ गई और मेरी गोदी में आने के लिए अपने दोनों हाथ खोल दिए! मैंने स्तुति को गोदी में उठाया तो नेहा ने उसके कूल्हों पर प्यार से चपत लगाई और बोली; "बिलकुल अपने आयुष भैया पर गई है, खाने का नाम लिया नहीं की फट से मान गई!" वैसे बात तो सही थी, आयुष की ही तरह स्तुति को मीठा खाने का चस्का था!



खैर, हम चारो दबे पॉंव अंदर आये क्योंकि हमें लग रहा था की हमारी इस मस्ती के बारे में माँ को नहीं पता है| अंदर आ कर बारी-बारी से सबने कपड़े बदले और फिर से बिस्तर पर लेट गए तथा ऐसा दिखाने लगे मानो हमने कोई शैतानी की ही न हो! शाम 6 बजे माँ हम चारों को उठाने आईं; "मेरे प्यारे-प्यारे शैतानों, उठ जाओ!" माँ ने प्यार से आवाज़ लगा कर हमें जगाया| हम चारों एक कतरार में उठ कर बैठ गए, चूँकि मैं माँ के नज़दीक था इसलिए माँ ने मेरा कान पकड़ कर उमेठ दिया; "तुम चारों ने बारिश में बड़ी मस्ती की न?" माँ के पूछे सवाल से हम चारों सन्न थे! आयुष और नेहा को लग रहा था की अब उन्हें डाँट पड़ने वाली है मगर स्तुति ने जब माँ को मेरा कान उमेठते हुए देखा तो उसे बड़ा मज़ा आया और उसने खिलखिलाकर हँसना शुरू कर दिया|

हम तीनों को फँसा कर स्तुति को बहुत मज़ा आ रहा था, वहीं माँ ने जब स्तुति को यूँ हँसते देखा तो उनकी भी हँसी छूट गई! जब दोनों बच्चों ने अपनी दादी जी को हँसते हुए देखा तो उनकी जान में जान आई| अब नेहा को मेरा कान माँ की पकड़ से छुड़ाना था इसलिए नेहा पलंग पर खड़ी हुई और माँ के गले लग गई| माँ नेहा को चलाकी जान गई थीं इसलिए उन्होंने नेहा के कूल्हों पर प्यार भरी चपत लगाई और बोलीं; "पापा की चमची! हमेशा अपने पापा जी को बचाने आगे आ जाती है!" जब माँ ने नेहा के कूल्हों पर प्यारी सी चपत लगाई तो स्तुति को इसमें भी बहुत मज़ा आया और उसने खिलखिलाकर हँसना शुरू कर दिया!



7 बजे दिषु घर आया और हम दोनों दोस्त मेरे कमरे में बैठ, कंप्यूटर पर हमारे नए बिज़नेस से जुडी मेरे द्वारा बनाई हुई PPT देख रहे थे| इतने में स्तुति अपने हाथों-पॉंव पर खदबद-खदबद कर आ पहुँची, मैंने स्तुति को गोदी में लिया तो स्तुति ने टेबल के ऊपर बैठने की पेशकश की| स्तुति को मैंने कंप्यूटर स्क्रीन की बगल में बिठा दिया तो स्तुति बड़ी गौर से PPT देखने लगी| "बेटा, आप भी अपने पापा जी की सेल्स पिच (sales pitch) देखोगे?" दिषु ने मज़ाक करते हुए स्तुति से पुछा तो स्तुति ने फौरन अपनी गर्दन हाँ में हिला दी| स्तुति की इस प्रतिक्रिया पर दिषु को बहुत जोर से हँसी आई और ठहाका लगा कर हँसने लगा|

"हाँ भैया, ये नानी ही तो आपकी इन्वेस्टर (investor) है!" संगीता ने दिषु की बात सुन ली थी इसलिए वो पीछे से आ कर बोली, इधर संगीता के किये इस मज़ाक पर हम दोनों दोस्त हँसने लगे|



खैर, मैं दिषु को PPT दिखाते हुए सब समझा रहा था और इस दौरान स्तुति बड़े गौर से मेरी बातें सुन रही थी| जब PPT में एनिमेशन्स (animations) आती तो स्तुति बहुत खुश होती, इतनी ख़ुशी की वो ख़ुशी से चिल्लाने लगती| इतने में संगीता चाय ले आई और जबरदस्ती स्तुति को गोदी में उठा कर ले जाने लगी, अब स्तुति को PPT देखने में आ रहा था मज़ा इसलिए वो संगीता की गोदी में छटपटाने लगी| "तेरे पल्ले कुछ पड़ भी रहा है की यहाँ क्या बातें हो रही हैं? बड़ी आई अम्बानी की चाची!" संगीता मुँह टेढ़ा करते हुए बोली और स्तुति को अपने साथ ले गई|



जब से दिषु आया था उसने संगीता के बर्ताव में आये बदलाव को भाँप लिया था| बाकी दिन जब दिषु घर आता था तो संगीता उससे बड़े प्यार से बात करती थी, लेकिन आज वो अधिक बात करने के मूड में नहीं थी| जब संगीता हम दोनों की चाय दे कर गई तो दिषु ने मुझसे सारी बात पूछी| जब मैंने उसे सारी बात बताई तो दिषु अवाक हो कर मुझे देखने लगा! "भोसड़ीके तुझे बड़ी चर्बी चढ़ी है? बहनचोद तूने रिवॉल्वर चलाई? बहनचोद तेरी तो डंडे से गांड तोड़ी जानी चाहिए!" दिषु मुझे गाली देते हुए गुस्से से बोला|

"भाई, मेरी मति मारी गई थी जो मैंने किसी के 'चढ़ाने' पर रिवॉल्वर उठाई!" मैं अपना सर पीटते हुए बोला| अब जैसा की होता है, संगीता ने हमारी सारी बातें सुन ली थीं इसलिए वो एकदम से कमरे में आ गई ताकि दिषु को मेरे खिलाफ और भड़का सके; "आपसे बातें तो छुपाते ही थे, अब तो हम सब से भी बातें छुपाने लगे हैं!" संगीता मुँह टेढ़ा करते हुए बोली|

"ये ऐसे नहीं सुधरेगा भाभी जी, ज़रा एक डंडा लाइए मैं इसे अभी कूट-पीट कर सीधा करता हूँ! बड़ी चर्बी चढ़ी है साले को, न मैंने इसकी सारी चर्बी पिघला दी तो कहना!" दिषु अपनी कमीज के स्लीव मोड़ते हुए बोला| शुक्र है की घर में डंडा नहीं था वरना अगर संगीता उसे डंडा दे देती तो ये ससुर मुझे आज सच में कूट देता!

"यार मैं अपने किये पर बहुत शर्मिंदा हूँ! मैंने जो बेवकूफी की उसके लिए मैं हाथ जोड़कर माफ़ी माँगता हूँ|" मैंने अपनी जान बचाने के लिए नम्रता से हाथ जोड़े, लेकिन बजाए नरम पड़ने के दिषु मुझे सुनाने लग गया; "मेरी भाभी जी सीधी-साधी हैं इसलिए तुझे बस कमरे से बाहर सुलाया, अगर कोई और होती न तो घर से बाहर निकाल देती तुझे! चल पॉंव-पड़ भाभी जी के!" दिषु मुझे आदेश देते हुए बोला| अब मुझे चाहिए थी संगीता की माफ़ी और इसके लिए मैं उसके पॉंव छूने को भी तैयार था| मैंने जैसे ही आगे बढ़ कर संगीता के पॉंव छूने चाहे, वैसे ही संगीता डर के मारे भाग खड़ी हुई! संगीता के एकदम से भागने पर दिषु हँस पड़ा और बोला; "अरे भाभी जी, कहाँ भाग रही हो? इसे (मुझे) माफ़ी तो माँगने दो!"

दिषु की बात सुन संगीता कमरे के बाहर जा कर रुकी और बोली; "प्यार करती हूँ इनसे और इनसे अपने पॉंव स्पर्श करवाऊँगी तो नर्क में भी जगह नहीं मिलेगी मुझे! आप इन्हें कूट-पीट कर सही कर दो, मैं ये सब देख नहीं पाऊँगी इसलिए मैं चली!" कल रात से जा कर अब संगीता के मुख से प्यारभरे बोल फूटे थे जिससे मेरा मन प्रसन्न हो गया था| अब संगीता पिघल रही थी तो उसे मनाना आसान था|



संगीता के जाने के बाद दिषु ने मुझे आराम से समझाया की मैं इस तरह बेवकूफी भरा काम न किया करूँ तथा मैंने भी दिषु की बात मानते हुए कहा; "भाई ये आखरी गलती थी मेरी, आगे से फिर कभी ऐसा नहीं करूँगा|" मैंने ऐसा बोल तो दिया लेकिन फिर आगे चल कर कुछ ऐसा घटित हुआ जिस कारण मेरा गुस्सा खुल कर सामने आया और मैं अपनी बात पर क़ायम न रह सका!



जाते-जाते दिषु संगीता से मज़ाक करते हुए बोला; "भाभी जी, मैंने इसे अच्छे से कूट दिया है| आगे फिर ये कोई बेवकूफी करे तो मुझे उसी वक़्त फ़ोन कर देना, मैं तभी दौड़ा चला आऊँगा और इसे पीट-पाट के चला जाऊँगा| अगर मैं दिल्ली में न भी हुआ न तो फ्लाइट से आऊँगा और फ्लाइट के पैसे इसी से भरवाऊँगा!" दिषु के किये मज़ाक पर संगीता की हँसी छूट गई और अपनी परिणीता को हँसते देख मेरा दिल एक बार फिर प्रसन्नता से भर गया|



दिषु के जाने के बाद, नेहा का मन मुझे अपनी मम्मी से माफ़ी दिलवाने का था इसलिए उसने मोर्चा सँभाला! मैं कमरे में बैठा कंप्यूटर पर काम कर रहा था और संगीता उसी वक़्त कमरे में कपड़े तहाने आई थी, ठीक तभी नेहा फुदकती हुई कमरे में आई| "मम्मी जी...मुझे न आपसे बात करनी है!" नेहा अपनी मम्मी को मक्खन लगाते हुए बोली|

"ज्यादा मक्खन लगाने की जर्रूरत नहीं है, सीधा मुद्दे पर आ!" संगीता मुँह टेढ़ा करते हुए बोली| संगीता जानती थी की नेहा उसे मेरे लिए मख्खन लगाने आई है इसीलिए संगीता सीधे मुँह नेहा से बात नहीं कर रही थी|



"मम्मी जी, गलती तो सब से होती है लेकिन हमें इंसान को उसकी गलती सुधारने का एक मौका देना चाहिए न?" नेहा अपनी मम्मी से तर्क करते हुए बोली| नेहा तर्क करने में बहुत तेज़ थी और उसके इस तर्क का जवाब देने में मैं भी फ़ैल हो जाता था| मैं जब नेहा के आगे तर्क में हारने लगता तो मैं बात बनाते हुए उसे लाड-प्यार कर बहला लेता था, लेकिन संगीता थी गर्म दिमाग की इसलिए वो नेहा के तर्क के आगे हारने पर उसे ही डाँट देती थी!

"तुझे पूरी बात पता भी है? आ गई यहाँ पैरवी करने!" संगीता ने नेहा को झिड़कते हुए कहा|

“हाँ जी मम्मी, मुझे सब बात पता है|" नेहा बड़े आत्मविश्वास से बोली| नेहा का आत्मविश्वास देख संगीता हैरान हो गई! संगीता को लगा मैंने नेहा को मेरे रिवाल्वर उठाने की बात भी बता दी है इसलिए संगीता अपनी आँखें फाड़े मुझे देखने लगी! नेहा जब मेरी पैरवी कर रही थी तो मैं अपना काम छोड़ दोनों माँ-बेटी की बात सुनने में व्यस्त हो गया था| जब हम मियाँ-बीवी की नज़रें आपस में टकराई तो संगीता आँखों ही आँखों में मुझसे पूछने लगी की क्या मैंने नेहा को सब बता दिया? जिसके जवाब में मैंने नेहा की चोरी, अपनी गर्दन न में हिला दी| संगीता को इत्मीनान हुआ की मैंने नेहा को सारी बात नहीं बताई इसलिए संगीता ने नेहा को छिड़कते हुए चुप करा दिया; "जा कर पढ़ाई कर अपनी! बड़ी आई वकील बनने!" नेहा को झिड़क कर संगीता रसोई में चली गई|



संगीता के जाने के बाद नेहा आ कर मेरे गले लग गई और बोली; "सॉरी पापा जी, मैं फ़ैल हो गई?" नेहा के फ़ैल होने का मतलब था की वो मुझे अपनी मम्मी से माफ़ी नहीं दिलवा पाई| पिछलीबार जब मैं संगीता से नाराज़ था तो उसी ने अपनी मम्मी को मुझसे माफ़ी दिलवाई थी, नेहा को लगा की वो इस काम में उस्ताद है इसीलिए वो मुझे अपनी मम्मी से माफ़ी दिलवाना चाहती थी| नेहा को इस कदर हार मानते देख मुझे लगा कहीं मेरी बिटिया के मन में कोई डर न बैठ जाए इसलिए मैं नेहा को हिम्मत देते हुए बोला; "बेटा, अभी आपकी मम्मी गुस्सा हैं इसलिए वो अभी इतनी जल्दी नहीं मानेंगी| एक बार आपकी मम्मी का गुस्सा शांत हो जाए तो उन्हें मनाना|" मेरी बात से नेहा को हिम्मत मिली और उसने तुरंत एक तरकीब सोच ली|



नेहा ने अपने दोनों भाई-बहन को साथ लिया और अपनी मम्मी को मनाने के लिए रसोई में जा पहुँची| ये दृश्य ऐसा ही था जैसे मेरी सत्ता बचाने के लिए मेरे तीनों विधायक गृह मंत्री के पास पहुँचे हों|

नेहा ने फट से स्तुति को आगे किया और अपनी मम्मी से बोली; "मम्मी जी, देखो स्तुति आपसे क्या कहना चाहती है|" नेहा ने जैसे ही स्तुति को आगे किया स्तुति फौरन अपनी मम्मी की गोदी में चली गई और अपनी मम्मी को मस्का लगाने के लिए अपनी मम्मी के दोनों गालों पर पप्पी करते हुए बोली; "मम-मम....पपई...उम्मा" ये कहेत हुए स्तुति ने अपनी मम्मी के गाल पर फिर से पप्पी की| स्तुति का मतलब था की; 'मम्मी, पापा जी को माफ़ कर दो और उन्हें मेरी तरह पप्पी दो!' संगीता अपनी बेटी की बात का मतलब समझ गई थी परन्तु वो अनजान बनने की बेजोड़ कोशिश कर रही थी| नेहा ने जब देखा की उसका एक पासा पिट रहा है तो नेहा ने अपना दूसरा पासा फेंका; "मम्मी, आयुष को भी कुछ कहना है|" ये कहते हुए नेहा ने आयुष को इशारा किया| आयुष आज अच्छे से रट्टा मार कर आया था इसलिए आयुष ने अपना निचला होंठ फुलाया और अपनी मम्मी से बोला; "मम्मी जीईईईईईईई.....! आप कितने अच्छे हो, हमारे लिए इतना अच्छा खाना बनाते हो, हमारे सब काम करते हो इसके लिए मैं आपको थैंक यू कहना चाहता हूँ|" आयुष ने बाल्टी भर मक्खन संगीता के ऊपर उड़ेल दिया था जिससे संगीता धीरे-धीरे पिघलने लगी थी! “मम्मी जी...आप हमारे लिए...अपने तीन प्यारे-प्यारे बच्चों के लिए, पापा जी को माफ़ कर दो न? बदले में आप जो कहोगे हम वो करेंगे, मस्ती बिलकुल नहीं करेंगे| आपकी हर बात मानेंगे अगर हम ने ज़रा सी भी मस्ती की न तो आप हमें कूट देना!" आयुष कहीं कुछ भूल न जाए इसलिए वो एक साँस में सब बोल गया| आयुष की अंत में कूटने की बात सुन संगीता के चेहरे पर इतनी देर से रोकी हुई हँसी छलक ही आई! "तुम तीनों शैतान बिलकुल अपने पापा जी पर गए हो! कैसे न कैसे कर के मुझे हँसा ही देते हो! लेकिन माफ़ी तो फिर भी नहीं मिलेगी!" संगीता हँसते हुए बोली और जा कर माँ को सारा किस्सा कह सुनाया|

"नानी! आज तूने दिनभर बहुत शैतानी की है!" ये कहते हुए माँ ने स्तुति को अपनी गोदी में लिया और उसकी नाक पकड़ कर खींचते हुए बोलीं; "तेरी सारी शैतानियाँ जानती हूँ मैं!" माँ आखिर माँ होती हैं इसलिए वो स्तुति की सारी होशियारी समझ रही थीं| नेहा की इस प्यारी सी कोशिश ने उसकी मम्मी को हँसा दिया था मगर मेरे लिए माफ़ी मुझे खुद संगीता से माँगनी थी|



रात को खाना खा कर सोने का समय हुआ तो संगीता ने चतुराई दिखाते हुए तीनों बच्चों को हमारे कमरे में भेज दिया और खुद बच्चों के कमरे में अकेली सोई| संगीता ने कल रात से मुझसे प्यार से बात नहीं की थी और मेरा मन उससे बात किये बिना चैन नहीं पा रहा था इसलिए बच्चों को जल्दी सुला मैं बच्चों के कमरे में पहुँचा|

संगीता अपनी छाती पर हाथ रखे हुए पीठ के बल लेटी थी, ऐसा लगता था मानो वो मेरा ही इंतज़ार कर रही हो! परन्तु जैसे ही संगीता ने मुझे कमरे के दरवाजे पर खड़ा देखा उसने फट से अपनी आँखें मूँद ली और ऐसा दिखाने लगी मानो वो सो रही हो!

"जान...मैं जानता हूँ तुम सोई नहीं हो! मैं तुमसे बात करने आया हूँ...माफ़ी माँगने आया हूँ!" मैंने संगीता को पुकारते हुए कहा| मेरी बात सुन संगीता ने आँख खोल ली और उठ कर बैठ गई| संगीता का मुझे मेरी बात कहना का मौका देना ये दर्शाता था की उसका गुस्सा अब शांत हो रहा है|

"जान, मैंने जो गलती की वो माफ़ी के लायक तो नहीं है मगर एक बार मेरे दिल की बात सुन लो… मैंने उस दिन क्या महसूस किया था ये सुन लो!



उस रात जब मिश्रा अंकल जी ने मुझे फ़ोन कर बुलाया तो मैं केवल और केवल उनकी मदद करने के लिए गया था मगर जब मैंने मिश्रा अंकल जी की गाडी में पिस्तौल देखि तो न जाने मेरे भीतर कैसी कसक उठी की मैंने बिना कुछ सोचे-समझे वो पिस्तौल उठाने के लिए अपने हाथ बढ़ा दिए| उस पिस्तौल में मानो कोई चुंबकीय शक्ति थी जो मुझे अपनी ओर खींच रही थी और वो चाहती थी की मैं उसे उठा लूँ| जैसे ही मैंने वो पिस्तौल उठाई तो पता नहीं मेरे ऊपर क्या सनक चढ़ी की मैं बावरा सा हो गया! उस पिस्तौल का वजन मेरा हाथ नहीं मेरी आत्मा महसूस कर रही थी और मेरे भीतर जर्रूरत से ज्यादा आत्मविश्वास फूँक रही थी| मैंने कभी घमंड नहीं किया था मगर इस पिस्तौल ने मुझे एक पल में घमंडी बना दिया था... वो भी ऐसा घमंडी जिसे न अपनी जान की परवाह थी और ना ही अपने परिवार की!



तुम्हें याद है उस दिन जब मैंने चन्दर पर कट्टा चलाया था?! उस दिन उस कट्टे की आवाज़ से मेरे भीतर बैठा हुआ एक शैतान जागा था, वो तो मेरी अंतरात्मा ने पाप-पुण्य का डर दिखा के इस शैतान को काबू में कर रखा था| लेकिन फिर भी ये शैतान कभी न कभी अपना फन्न फैला ही देता था, बीते एक-डेढ़ साल में जो तुमने मेरा गुस्सा...क्रोध देखा है ये सब उसी शैतान की देन है| जब मैंने मिश्रा अंकल जी की गाडी से पिस्तौल उठाई तो ये शैतान मुझ पर हावी हो गया| फिर मुझे न अपनी सुध थी और न तुम्हारी, मेरा मन तो बस वो पिस्तौल चलाने का था| भगवान जी की कृपा कहो की उस रात हालात नहीं बिगड़े और मेरे हाथों गोली नहीं चली और मैंने केवल अपनी अकड़ उन गुंडों को दिखा कर रह गया वरना क्या पता सच में मैं उन तीनों गुंडों को मौत के घात उतार ही देता|

फिर अगली सुबह, जब तुम माँ के साथ सब्जी लेने गई थी तब मेरा अंतर्मन शांत था और मेरे रात में किये जाहिलपने के लिए मुझे धिक्कार रहा था| मुझे ग्लानि हो रही थी की क्यों मैं इतना गैरजिम्मेदार बन गया? क्यों मैंने बिना कुछ सोचे समझे अपनी जान के साथ ऐसा खिलवाड़ किया? मेरा ये अपराध बोध मेरे मन को कचोटने लगा था और मैं ग्लानि के गढ्ढे में गिरने वाला था...की तभी स्तुति के प्यार ने मुझे थाम लिया| स्तुति की मस्ती देख मैं सब भूल बैठा और उसे लाड-प्यार करने में व्यस्त हो गया|



फिर पार्टी वाली रात, मुकुल मुझे नीचा दिखाने पर तुल गया! उस पार्टी में इतने अमीर आदमियों के बीच मैं पहले ही खुद को बहुत छोटा समझ रहा था उस पर जब मुकुल ने मुझे नीचा दिखाने की कोशिश की तो मेरे भीतर का शैतान फिर जागा|



मुकुल ने मुझे छोटा दिखाने के लिए पहले शराब पीने को उकसाया, जिसका मैंने बड़ी हलीमी से जवाब दे कर पीने से मना कर दिया| लेकिन फिर उसने अपनी अगली चाल चली और मुझे गरीब दिखाने के लिए मिश्रा अंकल जी को एक महँगी रिवॉल्वर गिफ्ट दी| पिछलीबार की तरह इस बार भी उस रिवॉल्वर को देख मेरे दिमाग ने काम करना बंद कर दिया| उस चमचमाती रिवॉल्वर को देख मैं उसी के वशीभूत हो उसे उठाने को मरा जा रहा था| मेरा दिल कह रहा था की एक बार तो इसे उठा कर देख, इसके वजन को अपने हाथों में महसूस कर के देख! एक बार उस ट्रिगर को अपनी ऊँगली से दबा कर देख! गोली चलने की उस शानदार आवाज़ को सुनने के लिए मेरे कान जैसे तरसने लगे थे! परन्तु किसी तरह मेरी अंतरात्मा जागी और मैंने रिवॉल्वर से नज़रें फेरते हुए अपने बेकाबू मन को शांत करना शुरू किया| बीती रात को याद कर मुझे मेरी बेवकूफी याद आ गई थी और मैं ये बेवकूफी फिर नहीं दोहराना चाहता था|

लेकिन मुकुल ने मुझे रिवॉल्वर से नजरें फेरते हुए पकड़ लिया था और उसे लगा की मैं बुज़दिल हूँ तथा रिवॉल्वर से डरता हूँ इसलिए उसने मुझे नीचा दिखाना शुरू कर दिया| उसने मेरी सादगी को मेरी बुज़दिली कहा और मुझ पर ठीक वैसे ही हँसा जैसे उस दिन चन्दर हँस रहा था| चन्दर की वो घिनौनी हँसी याद आते ही मुझसे रहा नहीं गया और मैंने अपने भीतर बैठे शैतान की बात मानते हुए न केवल रिवॉल्वर उठाई बल्कि चला भी दी! जब मैंने वो रिवॉल्वर चलाई, उन कुछ पलों के लिए मेरे भीतर का शैतान जैसे प्रसन्न हो गया था| जहाँ एक तरफ रिवॉल्वर चलने और उसकी आवाज़ से सब दहल गए थे, वहीं मुझे इसमें असीम आनंद आया था| रिवॉल्वर अपने हाथ में महसूस कर ऐसा लगता था मानो मेरे जिस्म का कोई भाग जो पहले टूट गया था वो अब पूरा हो चूका है| गोली चलने की वो आवाज़ सुन मैं किसी अलग ही दुनिया में खो गया था| उन कुछ पलों के लिए ऐसा लगता था मानो मेरा दिल जो चाहता था उसे मिल गया हो|



इस रिवॉल्वर ने मेरे अंदर घमंड जगा दिया था और इसी घमंड में चूर मैंने मुकुल को सबके सामने अच्छे से सुना दिया| सबके सामने मुकुल को यूँ बेइज्जत कर मेरे दिल को अजीब सी राहत और सुकून मिल रहा था| लेकिन फिर मेरी नज़र पड़ी तुम पर और जितना भी सुख मैंने इन कुछ पलों में महसूस किया था वो सबका सब पल भर में छू मन्त्र हो गया और उसकी जगह मेरे मन में तुम्हारा गुस्सा होने का डर बैठ गया! तुम्हारे चेहरे पर मैंने चिंता और डर की लकीरें देख ली थीं और उसी पल मुझे मेरी बेवकूफी समझ आई| मैं तुमसे माफ़ी माँगने तुम्हें समझाने आना चाहता था मगर मिश्रा अंकल जी ने मेरे कँधे पर हाथ रख मुझे अपनी बातों में लगा लिया, जिस कारण मैं तुम्हारे पास नहीं आ पाया|



जान, मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूँ और तुम्हारे मुझसे इस कदर नाराज़ होने से...गुस्सा होने से मैं एकदम से अधूरा हो गया था! सच पूछो तो मैं तुमसे बात करने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था, डरता था की कहीं तुम फिर इ मुझ पर बरस पड़ीं तो? मुझे बस एक आखरी मौका दे दो ताकि मैं अपनी गलती सुधार सकूँ!" मैंने संगीता को अपने जज्बातों से अच्छे से अवगत करा दिया था तथा एक आखरी मौक़ा भी माँग लिया था|



वहीं मेरे भीतर एक शैतान मौजूद होने की बात सुन संगीता घबरा गई थी! मेरे भीतर का ये शैतान जो कभी-कभी बाहर आ जाता था उसे हमेशा के लिए खत्म करना था और ये काम केवल संगीता का प्यार कर सकता था, परन्तु उसके लिए पहले संगीता का गुस्सा शांत होना चाहिए था?!

इधर मेरी पूरी बात सुन संगीता के चेहरे पर कोई ख़ास बदलाव नहीं आये थे, उसका चेहरा अब भी फीका पड़ा हुआ था, ऐसा लगता था मानो मेरी बातें सुन उसे कोई फर्क ही न पड़ा हो! संगीता एकदम से उठी और दरवाजे की तरफ बढ़ने लगी, मुझे लगा की उसका गुस्सा अब भी खत्म नहीं हुआ है और वो कमरे से बाहर जाना चाहती है| मेरी वजह से बेचारी संगीता पहले ही अकेली कमरे में सो रही थी, मैं नहीं चाहता था की वो अब इस कमरे से भी निकल कर बैठक में सोये इसलिए मैंने संगीता को रोकना चाहा; "जान, मैं इस कमरे से चला जाता हूँ...तुम मेरी वजह से सोफे पर मत सोओ!"

मेरी बात पूरी होते-होते संगीता मेरे पास पहुँच चुकी थी, जैसे ही मेरी बात पूरी हुई संगीता एकदम से मेरे गले लग गई| इसके आगे न संगीता को कुछ कहने की जर्रूरत थी न ही मुझे कुछ कहने की| संगीता मेरे गले लगे हुए ही मुझे पलंग तक लाई और हम दोनों मियाँ-बीवी एक दूसरे की बाहों में खो गए|



अगली सुबह, नेहा सबसे पहले उठी और उसने जब अपनी मम्मी-पापा जी को ऐसे सोते हुए देखा तो नेहा की ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा| नेहा को इस मनोरम दृश्य का रस लेना था इसलिए उसने स्तुति को गोदी में उठाया और मेरी छाती पर लिटा गई, फिर नेहा ने आयुष को जगाया और दोनों भाई-बहन हम दोनों मियाँ-बीवी के बीच जगह बनाते हुए जबरदस्ती घुस गए| बच्चों की इस उधमबाजी से जो चहल-पहल मची उससे हम मियाँ-बीवी जाग चुके थे इसलिए आयुष और नेहा ने खिलखिलाते हुए शोर मचाना शुरू कर दिया! हम दोनों मियाँ-बीवी भी सुबह-सुबह अपने तीनों बच्चों का प्यार पा कर बहुत खुश थे और बच्चों के साथ खिलखिला रहे थे|




पिछले कुछ दिनों से जो घर में दुःख अपना पैर पसार रहा था वो बेचारा आज अपने घर लौट गया था!
जारी रहेगा भाग - 8 में...
वाह यहां कहानी की नायिका आपकी चिंता में आधी हुई जा रही है और नवाब साहब की मौज मस्ती ही काम नही हो रही है। ये तो हुआ नही की भौजी के सामने कान पकड़ कर 1000 उठक बैठक करके माफी मांग लो बस अपनी मस्ती काम नही होनी चाहिए। ये भी नही सोचा की बेचारी भौजी का 10 किलो वजन कम हो गया इन 2जेड3 दिन में टेंशन की वजह से।

हमे तो स्तुति मस्त लगती है, खूब मस्ती करो और अपने मंद बुद्धि पापा की गलतियों की माफी दिलवाओ दादी और मम्मी से, उफ्फ ये नन्ही सी जान और इतने बड़े काम, बेचारी स्तुति के नाजुक और छोटे कंधो पर कितनी जिम्मेदारी आ गई है। काश उस दिन भौजी ने दिशू को डंडा दे दिया होता तो लेखक महोदय के अंदर का मिथुन चक्रवर्ती जो की 1 गोली से 10 गुंडों का मार सकता है वो लेखक महोदय के पिछवाड़े से दुम दबा कर बाहर आ जाता।

चलो आगे देखते है की ये मिया तीस मार खान अपने गुस्से में और क्या गुल खिलाने वाले है। दिशु के साथ बिजनेस इस कूढ़ मगज लेखक का एक अच्छा विचार है, देखते है की आगे ये विचार क्या मूर्त रूप लेता है।

हमारी कहानी की नायिका जितनी महान है उनका दिल उससे भी बड़ा है जो इस गलती के पुतले की हर गलती माफ कर देती है अपने प्यार की वजह से। कभी कभी सोचता हूं की ये जो कहावत है कि "इंसान गलतियों का पुतला होता है" ये हमारे लेखक महोदय को देख कर ही बनी है शायद। कुल मिलकर एक ठीक ठाक से लेखक का एक बहुत ही सुंदर लेखन जो शायद इस वजह से हो पाया कि ये अपडेट मुख्यत मेरे दो प्रिय पात्रों पर लिखा गया है। इस इंसान को तो रोज भगवान का धन्यवाद करना चाहिए जिसने उससे इतनी सुशील, समझदार, भावुक, कोमल हृदय और संवेदनशील पत्नी दी है।

भौजी देखो आपकी तारीफों के कितने सारे काल्पनिक पुल बांध दिए है, अब तो खुश हो ना और लेखक महोदय गुस्सा आना स्वाभाविक है मगर कब, कितना और कहां ये आपके कंट्रोल में रहना चाहिए। बेहतरीन अपडेट।

प्रथा को कायम रखते हुए कुछ पंक्तियां, लेखक महोदय ये संसार के बहुत प्राचीन और सिद्ध मंत्रो में से एक है और इसका प्रतिदिन जाप करने से आपका वैवाहिक जीवन सदैव सुखमय रहेगा।

अरे लोग मुझे क्यूँ देते हैं ताना, हाँ मैं हूँ बीवी का दीवाना
अरे तो क्या हुआ, ज़माना तो है नौकर बीवी का

सारे शहर को आँख दिखाए, सबकी उड़ाए खिल्ली
शौहर बाहर शेर बने, पर घर में भीगी बिल्ली
घर-घर का दस्तूर यही है, बम्बई हो या दिल्ली
क्या, ज़माना तो है नौकर बीवी का

जय हो पत्नी रानी, हर पूजा से बढ़ कर देखी
मैंने पत्नी पूजा,
प्यार में डूबा बीवी के तो, और नहीं कुछ सूझा,
दुनिया में खुश रहने का, कोई और न रास्ता दूजा

क्यूँ, क्योंकि ज़माना तो है नौकर बीवी का

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वाह यहां कहानी की नायिका आपकी चिंता में आधी हुई जा रही है और नवाब साहब की मौज मस्ती ही काम नही हो रही है। ये तो हुआ नही की भौजी के सामने कान पकड़ कर 1000 उठक बैठक करके माफी मांग लो बस अपनी मस्ती काम नही होनी चाहिए। ये भी नही सोचा की बेचारी भौजी का 10 किलो वजन कम हो गया इन 2जेड3 दिन में टेंशन की वजह से।

हमे तो स्तुति मस्त लगती है, खूब मस्ती करो और अपने मंद बुद्धि पापा की गलतियों की माफी दिलवाओ दादी और मम्मी से, उफ्फ ये नन्ही सी जान और इतने बड़े काम, बेचारी स्तुति के नाजुक और छोटे कंधो पर कितनी जिम्मेदारी आ गई है। काश उस दिन भौजी ने दिशू को डंडा दे दिया होता तो लेखक महोदय के अंदर का मिथुन चक्रवर्ती जो की 1 गोली से 10 गुंडों का मार सकता है वो लेखक महोदय के पिछवाड़े से दुम दबा कर बाहर आ जाता।

चलो आगे देखते है की ये मिया तीस मार खान अपने गुस्से में और क्या गुल खिलाने वाले है। दिशु के साथ बिजनेस इस कूढ़ मगज लेखक का एक अच्छा विचार है, देखते है की आगे ये विचार क्या मूर्त रूप लेता है।

हमारी कहानी की नायिका जितनी महान है उनका दिल उससे भी बड़ा है जो इस गलती के पुतले की हर गलती माफ कर देती है अपने प्यार की वजह से। कभी कभी सोचता हूं की ये जो कहावत है कि "इंसान गलतियों का पुतला होता है" ये हमारे लेखक महोदय को देख कर ही बनी है शायद। कुल मिलकर एक ठीक ठाक से लेखक का एक बहुत ही सुंदर लेखन जो शायद इस वजह से हो पाया कि ये अपडेट मुख्यत मेरे दो प्रिय पात्रों पर लिखा गया है। इस इंसान को तो रोज भगवान का धन्यवाद करना चाहिए जिसने उससे इतनी सुशील, समझदार, भावुक, कोमल हृदय और संवेदनशील पत्नी दी है।

भौजी देखो आपकी तारीफों के कितने सारे काल्पनिक पुल बांध दिए है, अब तो खुश हो ना और लेखक महोदय गुस्सा आना स्वाभाविक है मगर कब, कितना और कहां ये आपके कंट्रोल में रहना चाहिए। बेहतरीन अपडेट।

प्रथा को कायम रखते हुए कुछ पंक्तियां, लेखक महोदय ये संसार के बहुत प्राचीन और सिद्ध मंत्रो में से एक है और इसका प्रतिदिन जाप करने से आपका वैवाहिक जीवन सदैव सुखमय रहेगा।

अरे लोग मुझे क्यूँ देते हैं ताना, हाँ मैं हूँ बीवी का दीवाना
अरे तो क्या हुआ, ज़माना तो है नौकर बीवी का

सारे शहर को आँख दिखाए, सबकी उड़ाए खिल्ली
शौहर बाहर शेर बने, पर घर में भीगी बिल्ली
घर-घर का दस्तूर यही है, बम्बई हो या दिल्ली
क्या, ज़माना तो है नौकर बीवी का

जय हो पत्नी रानी, हर पूजा से बढ़ कर देखी
मैंने पत्नी पूजा,
प्यार में डूबा बीवी के तो, और नहीं कुछ सूझा,
दुनिया में खुश रहने का, कोई और न रास्ता दूजा

क्यूँ, क्योंकि ज़माना तो है नौकर बीवी का

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गलतियों की गुड़िया मैं हूँ............................ये तो बस थोड़ी बहुत गलतियां करते हैं.....................और माफ़ी भी मांग लेते हैं.........................एक मैं हूँ जो की गलती पर गलती करती हूँ और माफ़ी तक नहीं मांगती.........................और जब मांगती भी हूँ तो बहुत देर हो चुकी होती है......................लकी ये नहीं मैं हूँ जो मुझे ये मिले....................इतना चाहने वाले.....................मैं बेवकूफ ही इनके प्यार की कदर नहीं करती :verysad: ............................................ अपनी तारीफ सुनकर .................... .................... ........................तारीफ जारी रखी जाए :makeup: :blush1:
_____________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________
Rockstar_Rocky लेखक जी......................अब तो सबने कमेंट कर दिया....................अब तो बता दो की अगली अपडेट कब आएगी?????????????? मैं तो बस डेट जानना चाहती हूँ.............. 🙏
 

Rockstar_Rocky

Well-Known Member
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:nana: मैं अहिंसावादी हूँ................मैंने आजतक इनकी कुटाई नहीं की...................इतने गौ समान आदमी को कुटूंगी तो नर्क में भी जगह नहीं मिलेगी मुझे..........................आपकी बातों से लगता है की आपकी कुटाई जर्रूर होती होगी............................और होनी भी चाहिए....................वो भी झाड़ू से :roflol:
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Rockstar_Rocky लेखक जी.............................अपडेट मेरे मन मुताबिक़ दिए...................आखिर मेरी छबि निखर ही आई :makeup: ..............................आगे भी मेरी ये छबि बनाये रखियेगा................... 🙏 ....................................बढ़िया अपडेट..............................मजेदार....................सबसे अच्छा लगा था जब स्तुति मुझे मना रही थी :love:

तारीफ के लिए शुक्रिया देवी जी 🙏
मैंने कोई आपकी 'छबि' नहीं सुधारि, मैंने तो केवल सच लिखा है| आगे तुम अच्छा काम करोगी/करती तो छबि सुधरेगी/सुधरती!


अपने गुरु जी की तरफ झुक गए.........................वाह..................अब उनकी तरफदारी की जा रही है................... :spank: ................ तू मेरी पार्टी का है....................खबरदार जो मुझे छोड़कर लेखक जी की पार्टी में गया तो.............. :bat1: मैं चाहे सही हूँ या गलत मुझे हमेशा सपोर्ट करना :girlmad: ..................................... और आप भी सुन लो Rockstar_Rocky लेखक जी.......................जल्दी से अपडेट दो वरना हम सब स्ट्राइक पर चले जायेंगे :protest:

journalist342 को मेरी तरफदारी करते देख

:hinthint2:

और जो update की माँग कर रही हो उसके लिए मैं कहूँगा की;

:D

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Rockstar_Rocky लेखक जी......................अब तो सबने कमेंट कर दिया....................अब तो बता दो की अगली अपडेट कब आएगी?????????????? मैं तो बस डेट जानना चाहती हूँ.............. 🙏

Update आने की date जानने की

:writing:
 

Rockstar_Rocky

Well-Known Member
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Bdiya update gurujii :love2:



IMG-20220722-181907

प्रिय अक्की भाई,

आपके प्यारभरे प्रोत्साहन के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद! :thank_you: :dost: :hug: :love3:

आपके द्वारा post किया हुआ meme स्थिति के अनुसार perfect बैठता है! :lol1:

Waiting for next update :elephant:

इतनी जल्दी update कहाँ से लाऊँ? लिखने के लिए


:rofl:
 

Akki ❸❸❸

ᴾʀᴏᴜᴅ ᵀᴏ ᴮᴇ ᴴᴀʀʏᴀɴᴠɪ
26,803
31,029
304
और जो update की माँग कर रही हो उसके लिए मैं कहूँगा की;
:D
Update आने की date जानने की

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aunty-gormint


इतनी जल्दी update कहाँ से लाऊँ? लिखने के लिए



:rofl:

Baahane-mat-mar-jugaad-kar-1-768x432
 
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