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Incest एक अनोखा बंधन - पुन: प्रारंभ (Completed)

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Finally after a long time... Stuti is back with new hungama... Very lovely update... Rockstar_Rocky manu bhaiya... Kbhi humein bhi toh milwaiye apni pyari rajkumari se... Ab itni pyari shararatein hai uski... Toh man kr rha hai ki ek baar usse mila jaye... Or YouAlreadyKnowMe aap kha ho... Aap bhi toh darshan do apne...???


Rockstar_Rocky मेरे प्रिय लेखक जी.....................अपडेट के लिए धन्यवाद बाद में करुँगी................पहले आपको आज के शुभ दिन.................यानी आज आपके जन्मदिन की बधाई दे दूँ.......................
giphy.gif
जन्मदिन की ढेर साड़ी बधाइयां.............. :kissie: ............................अब आते हैं अपडेट पर.........................बढ़िया ........नहीं सबसे बढ़िया अपडेट.....................इस अपडेट में आपने सबके बारे में कुछ न कुछ लिखा..............मेरे बारे में भी इसलिए इस बार आपसे कोई शिकायत नहीं करुँगी.....................अपडेट का सबसे बढ़िया हिस्सा वो था जब मैं नाराज़ हुई थी....................उन सारी पुरानी यादों को फिर से याद कर बहुत मज़ा आया................... :kiss1:
 

Rekha rani

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Rockstar_Rocky मेरे प्रिय लेखक जी.....................अपडेट के लिए धन्यवाद बाद में करुँगी................पहले आपको आज के शुभ दिन.................यानी आज आपके जन्मदिन की बधाई दे दूँ.......................
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जन्मदिन की ढेर साड़ी बधाइयां.............. :kissie: ............................अब आते हैं अपडेट पर.........................बढ़िया ........नहीं सबसे बढ़िया अपडेट.....................इस अपडेट में आपने सबके बारे में कुछ न कुछ लिखा..............मेरे बारे में भी इसलिए इस बार आपसे कोई शिकायत नहीं करुँगी.....................अपडेट का सबसे बढ़िया हिस्सा वो था जब मैं नाराज़ हुई थी....................उन सारी पुरानी यादों को फिर से याद कर बहुत मज़ा आया................... :kiss1:
Janmdin ki hardik subhkamnaye sir ko,
 

Sanju@

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Rockstar_Rocky मेरे प्रिय लेखक जी.....................अपडेट के लिए धन्यवाद बाद में करुँगी................पहले आपको आज के शुभ दिन.................यानी आज आपके जन्मदिन की बधाई दे दूँ.......................
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जन्मदिन की ढेर साड़ी बधाइयां.............. :kissie: ............................अब आते हैं अपडेट पर.........................बढ़िया ........नहीं सबसे बढ़िया अपडेट.....................इस अपडेट में आपने सबके बारे में कुछ न कुछ लिखा..............मेरे बारे में भी इसलिए इस बार आपसे कोई शिकायत नहीं करुँगी.....................अपडेट का सबसे बढ़िया हिस्सा वो था जब मैं नाराज़ हुई थी....................उन सारी पुरानी यादों को फिर से याद कर बहुत मज़ा आया................... :kiss1:

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Last edited:

Akki ❸❸❸

ᴾʀᴏᴜᴅ ᵀᴏ ᴮᴇ ᴴᴀʀʏᴀɴᴠɪ
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अंतिम अध्याय: प्रतिकाष्ठा
भाग - 8


अब तक अपने पढ़ा:


अगली सुबह, नेहा सबसे पहले उठी और उसने जब अपनी मम्मी-पापा जी को ऐसे सोते हुए देखा तो नेहा की ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा| नेहा को इस मनोरम दृश्य का रस लेना था इसलिए उसने स्तुति को गोदी में उठाया और मेरी छाती पर लिटा गई, फिर नेहा ने आयुष को जगाया और दोनों भाई-बहन हम दोनों मियाँ-बीवी के बीच जगह बनाते हुए जबरदस्ती घुस गए| बच्चों की इस उधमबाजी से जो चहल-पहल मची उससे हम मियाँ-बीवी जाग चुके थे इसलिए आयुष और नेहा ने खिलखिलाते हुए शोर मचाना शुरू कर दिया! हम दोनों मियाँ-बीवी भी सुबह-सुबह अपने तीनों बच्चों का प्यार पा कर बहुत खुश थे और बच्चों के साथ खिलखिला रहे थे|


पिछले कुछ दिनों से जो घर में दुःख अपना पैर पसार रहा था वो बेचारा आज अपने घर लौट गया था!



अब आगे:

मेरे
भीतर के शैतान को खत्म करने के लिए संगीता ने मुझे भरपूर प्यार दिया, परन्तु संगीता के इस प्यार को पा कर मेरे भीतर का शैतान मरा तो नहीं अपितु मेरे अंतर्मन के किसी कोने में छुप कर बैठ गया और जब समय आया तो इस शैतान ने कोहराम मचा दिया!



बहरहाल, मेरे तीनों बच्चे धीरे-धीरे बड़े होते जा रहे थे| आयुष और नेहा पढ़ाई के प्रति गंभीर हो रहे थे मगर स्तुति को अपने साथ कोई खेलने वाला चाहिए था| रोज़ सुबह संगीता माँ को बैठक के फर्श पर बिस्तर बिछा कर मालिश करती थी, स्तुति जब अपनी मम्मी को अपनी दादी जी की मालिश करते देखती तो उसे लगता की उसकी मम्मी और दादी जी कोई नया खेल खेलने वाले हैं इसलिए स्तुति खदबद-खदबद कर वहाँ दौड़ आती| शुरू-शुरू में स्तुति अपनी मम्मी को अपनी दादी जी की मालिश करते हुए बड़े गौर से देखती| एकदिन माँ ने जब स्तुति को यूँ अपनी मालिश होते हुए देखता पाया, तो उन्होंने स्तुति को समझाना शुरू कर दिया| अब स्तुति के पल्ले कहाँ कुछ पड़ता, उसके लिए तो ये सब खेल था इसलिए वो हँसते हुए अपनी दादी जी से लिपट गई|

फिर एक दिन स्तुति ने सोचा की क्यों न वो भी ये खेल-खेल कर देखे?! अतः स्तुति ने आव देखा न ताव और सीधा माँ की पिंडली पर अपने दोनों हाथ रख कर बैठ गई| इधर ये दृश्य देख संगीता को लगा की स्तुति उसकी मदद करना चाहती है इसलिए वो स्तुति को मालिश करना सिखाने लगी| अब एक छोटी सी बच्ची को कहाँ मालिश करना आता, वो तो अपने छोटे-छोटे हाथ अपनी दादी जी की पिंडली पर पटकने लगी मानो वो तबला बजा रही हो| अपनी दादी जी के इस प्रकार पैर थपथपा कर स्तुति को लग रहा था की वो मालिश कर रही है इसलिए स्तुति खिलखिला रही थी| वहीं संगीता ने स्तुति को रोकना चाहा क्योंकि उसे लगा की माँ को शायद स्तुति के इस तरह थपथपाने से पीड़ा हो रही होगी, लेकिन माँ ने संगीता को इशारे से रोक दिया और स्तुति का उत्साह बढ़ाते हुए बोली; "शाबाश बेटा! ऐसे ही तबला बजा अपनी दादी जी की टाँग पर!" स्तुति अपनी दादी जी का प्रोत्साहन पा कर बहुत खुश हुई और पूरी शिद्दत से माँ की टाँग को तबला समझ बजाने लगी!



खैर, दोपहर को जब आयुष और नेहा स्कूल से घर लौटते तो स्तुति अपने भैया-दीदी को अपने साथ खेलने को कहती| कभी-कभी आयुष और नेहा अपनी छोटी बहन की ख़ुशी के लिए उसके साथ खेल भी लेते, परन्तु जब उनका होमवर्क ज्यादा होता, या कोई क्लास टेस्ट होता तो दोनों बच्चे स्तुति के साथ खेलने से मना कर देते| अब स्तुति को कहाँ समझ आता की पढ़ाई क्या होती है? उसे तो बस अपने भैया-दीदी के साथ खेलना होता था इसलिए वो अपने भैया-दीदी से साथ खेलने की जिद्द करने लगती|

अब स्तुति का जिद्द करने का ढंग भी निराला था| मेरी शैतान बिटिया बच्चों वाले कमरे की दहलीज़ पर बैठ "दिद्दा-दिद्दा" या 'आइया-आइया" की रट लगाते हुए शोर मचाने लगती| नेहा बड़ी बहन होने के नाते स्तुति को समझाती की उन्हें (आयुष और नेहा को) पढ़ाई करनी है मगर स्तुति बहुत तेज़ थी! उसने फौरन अपने दीदड़ और भैया को इमोशनल ब्लैकमेल करने के लिए फौरन अपना निचला होंठ फुला कर अपने दोनों हाथ खोल खुद को गोदी लेने का इशारा किया| अपनी छोटी बहन के इस मासूम चेहरे को देख नेहा और आयुष एकदम से पिघल जाते तथा अपनी छोटी बहन की ख़ुशी के लिए उसके साथ खेलने लगते|

लेकिन जल्द ही नेहा ने स्तुति की ये चलाकी पकड़ ली थी! अगलीबार जब स्तुति ने अपने होंठ फुला कर अपने भैया-दीदी को इमोशनल ब्लैकमेल करने की कोशिश की तो नेहा बोली; "बस-बस! ज्यादा होशियारी मत झाड़! सब समझती हूँ तेरी ये चलाकी...चंट लड़की! अब जा कर अकेले खेल, हमारा कल क्लास टेस्ट है और हमें पढ़ना है!" ये कहते हुए नेहा ने स्तुति को कमरे के बाहर खदेड़ दिया और दरवाजा स्तुति के मुँह पर बंद कर दिया! स्तुति को अपनी दिद्दा द्वारा इस तरह से खदेड़े जाने की उम्मीद नहीं थी इसलिए स्तुति को आया गुस्सा और उसने दरवाजे को पीटना शुरू कर दिया तथा "दिद्दा....दिद्दा....दिद्दा" कहते हुए स्तुति गुस्से से चिल्लाने लगी|



कुछ मिनट तो नेहा और आयुष ने स्तुति का चिल्लाना सहा मगर जब उनसे सहा नहीं गया तो नेहा ने दरवाजा खोला और स्तुति को घूरने लगी| अपनी दिद्दा द्वारा घूरे जाने से स्तुति डर गई और खदबद-खदबद अपनी दादी जी के पास दौड़ गई| अब चूँकि स्तुति ने आयुष और नेहा की पढ़ाई में व्यवधान डाला था इसलिए दोनों भाई-बहन स्तुति को पकड़ने के लिए उसके पीछे दौड़े|

बस फिर क्या था, स्तुति ने अपने दिद्दा और अइया को तंग करने के लिए ये हतकण्डा अपना लिया| जब भी आयुष और नेहा खेलने से मना करते तो स्तुति चिल्लाते हुए दरवाजा पीटती और फिर दोंनो को अपने पीछे दौड़ाती!



स्तुति की इस शरारत का हल निकालना जर्रूरी था इसलिए दोनों भाई-बहन ने गहन चिंतन किया और एक हल निकाल ही लिया| "जब तक इस पिद्दा को ये पता नहीं चलेगा की पढ़ाई होती क्या है, ये हमें पढ़ने नहीं देगी|" नेहा ने आयुष से कहा और दोनों भाई-बहन ने बड़ा ही कमाल का आईडिया ढूँढ निकाला|



रविवार का दिन था और स्तुति अपने अइया और दिद्दा को तंग करने जा ही रही थी की तभी आयुष और नेहा एक किताब ले कर खुद उसके पास आ गए| नेहा ने स्तुति को गोदी में बिठाया और आयुष ने किताब खोल कर स्तुति को दिखाई|

नेहा: तू हमें पढ़ने नहीं देती न, तो आज से हम तुझे पढ़ाएंगे!

ये कहते हुए नेहा ने आयुष की नर्सरी की किताब से ABCD स्तुति को पढ़ाना शुरू किया|

आयुष: स्तुति, बोलो A for apple!

आयुष जोश-जोश में बोला| इधर स्तुति ने किताब में apple यानी सेब का चित्र देखा और उसने सेब खाने के लिए अपना मुँह किताब में लगा दिया!

नेहा: ये खाना नहीं है पिद्दा! बोल A for apple!

नेहा ने स्तुति को रोकते हुए उसे सख्ती दिखाते हुए बोलने को कहा| लेकिन मेरी मासूम बिटिया को सेब खाना था इसलिए उसने सेब पकड़ने के लिए अपने दोनों हाथ आगे बढ़ा दिए|

आयुष: दीदी, स्तुति को सेब पसंद है इसलिए वो इस किताब को सेब समझ खाना चाहती है| हम ऐसा करते हैं की हम B for ball से शुरू करते हैं, स्तुति ball थोड़े ही खायेगी?

आयुष की युक्ति अच्छी थी इसलिए नेहा ने उसे आगे पन्ना पलटने को कहा|

नेहा: पिद्दा…बोल B for ball!

नेहा किसी टीचर की तरह कड़क आवाज़ में स्तुति से बोली| इधर जैसे ही स्तुति ने रंग-बिरंगी ball का चित्र देखा, वो ball को पकड़ने के लिए छटपटाने लगी|

आयुष: दीदी, ये तो ball खेलने को उतावली हो रही है, मैं आगे पन्ना पलटता हूँ!

आयुष हँसते हुए बोला और उसने किताब का अगला पन्ना पलटा|

नेहा: पिद्दा…बोल C for cat!

नेहा फिर टीचर की तरह सख्ती दिखाते हुए स्तुति से बोली| लेकिन स्तुति ने जैसे ही बिल्ली का चित्र देखा उसे हमारे द्वारा सिखाई हुई बिल्ली की आवाज़ याद आ गई;

स्तुति: मी..आ…ओ!

स्तुति ने किसी तरह बिल्ली की आवाज़ की नकल करने की कोशिश की! स्तुति की ये प्यारी सी कोशिश देख नेहा का गुस्सा काफूर हो गया और वो खिलखिलाकर हँसने लगी| इधर आयुष को फिर से स्तुति के मुख से बिल्ली की आवाज़ सुन्नी थी इसलिए उसने स्तुति को फिर से बोलने को उकसाया;

स्तुति: मी..आ…ओ!

स्तुति ने फिर बिल्ली की आवाज़ निकालने की कोशिश की, जिसपर आयुष ने जोर का ठहाका लगा कर हँसना शुरू कर दिया| जब स्तुति ने अपने दोनों भैया-दीदी को हँसते हुए देखा तो उसने भी हँसना शुरू कर दिया|



जब आयुष और नेहा का हँस-हँस के पेट दर्द हो गया तो दोनों ने स्तुति को आगे पढ़ाना चाहा मगर मेरी नटखट बिटिया अंग्रेजी वर्णमाला के तीन अक्षर पढ़ कर ऊब चुकी थी इसलिए उसने अपनी दिद्दा की गोदी से नीचे उतरने के लिए छटपटाना शुरू कर दिया|

नेहा: कहाँ जा रही है पिद्दा?! बाकी के अल्फाबेट्स (alphabets) कौन पढ़ेगा? चुप-चाप बैठ यहीं पर!

नेहा स्तुति को स्कूल की मास्टरनी की तरह हुक्म देते हुए बोली मगर मेरी चंचल बिटिया रानी नहीं मानी और उसने अपनी दादी जी को मदद के लिए पुकारना शुरू कर दिया|

स्तुति: दाई...दाई...दाई?!

स्तुति की पुकार सुन सास-पतुआ प्रकट हुईं| माँ ने स्तुति को गोदी लिया तो स्तुति ने फट से अपने दिद्दा और अइया की शिकायत अपनी दाई से कर दी|

नेहा: दादी जी, मैं और आयुष स्तुति को ABCD पढ़ा रहे थे मगर ये शैतान पढ़ ही नहीं रही!

जैसे ही नेहा ने स्तुति की शिकायत की वैसे ही आयुष ने आग में घी डालने का काम किया;

आयुष: हाँ जी दादी जी, आप डाँटो स्तुति को!

जिस तरह स्तुति अपने भैया-दीदी को उनकी दादी जी से प्यारभरी डाँट पड़वाती थी, वैसे ही आज आयुष अभी अपनी छोटी बहन को प्यारभरी डाँट पढ़वाना चाहता था| लेकिन माँ कुछ कहें उससे पहले ही संगीता बीच में बोल पड़ी;

संगीता: इस नानी से ठीक से दीदी-भैया नहीं बोला जाता और तुम दोनों इसे ABCD पढ़ा रहे हो?!

संगीता हँसते हुए बोली|

माँ: शूगी...बेटा...तू इतनी मस्ती करती है...तो थोड़ी पढ़ाई भी किया कर!

मेरी माँ जनती थी की पढ़ाई कितनी जर्रूरी होती है इसलिए वो स्तुति को पढ़ाई के लिए प्रोत्साहित करना चाहती थीं मगर मेरी बिटिया को केवल पसंद थी मस्ती इसलिए वो अपना सर न में हिलाने लगी|



चूँकि सब बेचारी स्तुति के पीछे पढ़ाई को ले कर पड़ गए थे इसलिए मेरी बिटिया रानी अकेली पड़ गई थी| ठीक तभी मैं नहा कर निकला, मुझे देखते ही स्तुति मेरी गोदी में आ गई और मेरे कँधे पर सर रख एकदम से गुम-सुम हो गई| कहीं मैं स्तुति के गुम-सुम होने से पिघल न जाऊँ इसलिए नेहा ने फट से स्तुति की पढ़ाई न करने की शिकयत मुझसे करनी शुरू कर दी| नेहा की स्तुति के प्रति शिकायत शुरू होते ही स्तुति ने अपना सर न में हिलाना शुरू कर दिया और जब तक नेहा की शिकायत पूरी नहीं हुई तब तक मेरी बिटिया का सर न में हिलाना जारी रहा|

"अच्छा...बेटा...मेरा बेटू...मेरी बात तो सुनो?" मैंने किसी तरह स्तुति का सर न में हिलने से रुकवाया और उसे बहलाते हुए बोला; "बेटा, बस एक चम्मच पढ़ाई कर लेना! ठीक है?"



जब मैं स्तुति को खाना खिलाता था और स्तुति पेटभर खाने से मना करती तो मैं उसे बहलाने के लिए कहता की; "बेटा, बस एक चम्मच और खा लो!" मेरे इतना कहने से मेरी बिटिया फौरन एक चम्मच खा लेती थी| अपने उसी हतकंडे को अपनाते हुए आज जब मैंने स्तुति से कहा की उसे बस एक चम्मच पढ़ाई करनी है तो स्तुति को लगा की पढ़ाई करना मतलब एक चम्मच सेरेलक्स खाना इसलिए स्तुति ने ख़ुशी-ख़ुशी फौरन अपना सर हाँ में हिलाना शुरू कर दिया|



माँ ने जब स्तुति को यूँ एक चम्मच पढ़ाई करने के लिए हाँ में सर हिलाते देखा तो, माँ हँसते हुए मुझसे बोलीं; "तू मेरी शूगी को पढ़ाई करने को कह रहा है या रसमलाई खिलाने को?" मेरे स्तुति को एक चम्मच पढ़ाई करने की कही बात और माँ के पूछे सवाल पर सभी ने जोर से ठहाका लगाया| इधर स्तुति ने रस मलाई का नाम सुना तो उसने अपना सर ख़ुशी से दाएँ-बाएँ हिलाना शुरू कर दिया!



खैर, स्तुति का मन पढ़ाई में लगाने के लिए मैंने बड़ी जबरदस्त तरकीब निकाली थी| मैं स्तुति को गोदी में ले कर कंप्यूटर के आगे बैठ जाता और यूट्यूब (youtube) पर छोटे बच्चों की कविताओं वाली वीडियो चला देता| स्तुति का मन इन वीडियो में लग जाता और वो वीडियो देख-देख कर धीरे-धीरे कवितायें गुनगुनाने लगी| स्तुति को नई चीजें सीखना अच्छा लगता था मगर पहले उसके मन में रूचि जगानी पड़ती थी, स्तुति की ये रूचि किसी को देख कर ही पैदा होती थी और ये बात मैं अच्छे से जानता था|

एक दिन जब आयुष और नेहा ने स्तुति को इस तरह नर्सरी की कवितायें गुनगुनाते हुए देखा तो दोनों ने स्तुति को ABCD सिखाने का एक नायाब तरीका ढूँढ निकाला| मेरी अनुपस्थिति में दोनों बच्चे स्तुति को अपनी दादी जी की गोदी में बिठा देते और अपनी दादी जी को ABCD पढ़ाते| माँ जब "A for apple" बोलती तो स्तुति को इसमें बड़ा मज़ा आता और वो खिलखिलाने लगती| देखते ही देखते स्तुति ने ABCD को गाने के रूप में गुनगुना शुरू कर दिया, तो कुछ इस तरह से स्तुति का मन पढ़ाई में अभी से लग चूका था|



पढ़ाई में तो स्तुति की रूचि थी है मगर वो मस्ती करने से भी नहीं चूकती थी! स्तुति को अपनी दिद्दा और अइया को पढ़ाई करने के समय सताना अच्छा लगता था| स्तुति का दरवाजा पीटना, चिल्लाना जारी था जिससे दोनों बच्चों की पढ़ाई में व्यवधान पैदा हो जाता था| गुस्से में आ कर दोनों भाई-बहन स्तुति के पीछे दौड़ते और स्तुति सारे घर में अपने भैया-दीदी को अपने पीछे दौड़ाती|

एक दिन नेहा फर्श पर बैठ कर चार्ट पेपर पर अपना प्रोजेक्ट बना रही थी की तभी वहाँ स्तुति आ गई| नेहा वाटर कलर से पेंटिंग कर रही थी और स्तुति अस्चर्य में डूबी हुई, आँखें फाड़े अपनी दिद्दा को देख रही थी| "जा के आयुष के साथ खेल, मुझे काम करने दे!" नेहा ने स्तुति को झिड़क दिया क्योंकि नेहा को डर था की स्तुति उसके प्रोजेक्ट को खराब कर देगी!

स्तुति को आया गुस्सा और वो अपना निचला होंठ फुलाते हुए खदबद-खदबद जाने लगी, लेकिन गलती से स्तुति ने पानी का गिलास जिसमें नेहा अपने पेंटिंग ब्रश डूबा रही थी वो गिरा दिया! शुक्र है की पानी सीधा फर्श पर गिरा और नेहा का चार्ट पेपर खराब नहीं हुआ| "स्तुति की बच्ची! रुक वहीं!" नेहा, स्तुति को डाँट लगाते हुए गुस्से से चिल्लाई| दरअसल स्तुति को अपनी गलती का बोध नहीं था, वो तो कमरे से बाहर जा रही थी| खैर, अपनी दिद्दा की डाँट सुन स्तुति डर के मारे जहाँ थीं वहीं बैठ गई| "कान पकड़ अपने!" नेहा ने गुस्से से स्तुति को आदेश दिया| स्तुति बेचारी घबराई हुई थी इसलिए उसने डर के मारे वही किया जो उसकी दिद्दा ने कहा| स्तुति ने अपने कान पकड़े तो नेहा उसे फिर डाँटते हुए बोली; "सॉरी बोल! बोल सॉरी!"

अपनी दिद्दा का गुस्सा देख स्तुति ने डरके मारे सॉरी बोलना चाहा; "ओली (सॉरी)!"



"गलती करते हैं तो सॉरी बोलते हैं! यूँ पीठ दिखा कर भागते नहीं हैं! समझी? अब जा कर खेल आयुष के साथ|" नेहा ने स्तुति को डाँटते हुए कमरे से भगा दिया| बेचारी स्तुति रुनवासी हो कर चली गई, लेकिन उस दिन स्तुति ने सॉरी बोलने का सबक अच्छे से सीख लिया था|



नेहा का गुस्सा अपनी मम्मी जैसा था, वो स्तुति पर बहुत जल्दी गुस्सा हो जाती थी और डाँट लगा कर सबक सिखाती थी| वहीं आयुष ने मुझे स्तुति को हमेशा प्यार से बात समझाते हुए देखा था इसलिए वो अपनी छोटी बहन को डाँटने की बजाए उसे प्यार से समझाता था| ऐसा नहीं था की नेहा स्तुति से चिढ़ती थी या हमेशा नाराज़ रहती थी, नेहा को बस स्तुति की मस्तियाँ नहीं भाति थीं| उसे लगता था की जितनी मस्ती स्तुति करती है वो गलत बात है इसलिए वो स्तुति के प्रति थोड़ी सख्त थी|



एक दिन की बात है, मैं घर पर अपने बिज़नेस की रेजिस्ट्रेशन से जुडा काम कर रहा था, वहीं आयुष और नेहा अपनी पढ़ाई में लगे हुए थे| अब स्तुति को किसी के साथ तो खेलना था इसलिए वो सीधा अपने भैया-दीदी के पास पहुँची| हरबार की तरह नेहा ने खेलने से मना करते हुए स्तुति को भगा दिया इसलिए बेचारी स्तुति मेरे पास आ गई और मेरी टांगों से लिपट गई| स्तुति को अपनी टांगों से लिपटा देख मैंने अपना काम छोड़ अपनी बिटिया को गोदी में लेकर लाड किया तथा उसके गुम-सुम होने का कारण पुछा| सारी बात जान मैंने स्तुति को नीचे उतारा और उसे उसके खिलोने ले कर आने को कहा| जबतक स्तुति अपने खिलोने लाई तबतक मैंने अपना काम आधा निपटा लिया था|

स्तुति को नहीं पता था की वो कौन से खिलोने ले कर मेरे पास आये इसलिए मेरी भोली बिटिया अपनी खिलोनो से भरी हुई टोकरी मेरे पास खींच लाई| मैंने स्तुति को गोदी ले कर टेबल पर बिठाया और खिलौनों की टोकरी से स्तुति के छोटे-छोटे बर्तन निकाले| "कोई आपके साथ नहीं खेलता न, तो न सही! मैं आपके साथ खेलूँगा|" मेरी बात सुन स्तुति बहुत खुश हुई की कम से कम उसके पापा जी तो उसकी ख़ुशी का ख्याल रखते हुए उसके साथ खेल रहे हैं|



मैंने टेबल पर रखे कीबोर्ड (keyboard) को एक तरफ किया और स्तुति के सारे बर्तन सज़ा कर स्तुति की रसोई का निर्माण कर दिया| "बेटा, हम है न घर-घर खेलते हैं| मेरी बिटिया खाना बनाएगी और तबतक आपके पापा जी ऑफिस का काम कर के घर आएंगे|" मेरी बात सुन स्तुति खुश हो गई और फौरन अपने छोटे-छोटे बर्तनों को उठा कर खाना बनाने में लग गई| हमारा खेल असली लगे उसके लिए मैंने स्तुति के बर्तनों में थोड़े ड्राई फ्रूट्स डाल दिए; "बेटा, ये ड्राई फ्रूट्स ही हमारा खाना होंगें|" मैंने स्तुति को खेल समझाया तो स्तुति ख़ुशी से खिलखिलाने लगी| जबतक स्तुति ने खाना बनाया तबतक मेरा रेजिस्ट्रशन का काम पूरा हो चूका था और मैं पूरा ध्यान स्तुति पर लगा सकता था|



स्तुति अपनी मम्मी को खाना, चाय इत्यादि बनाते हुए गौर से देखती थी इसलिए आज स्तुति ने बिलकुल अपनी मम्मी की नकल करते हुए झूठ-मूठ का खाना बनाया| खेल-खेल में खाना बनाते हुए स्तुति से गलती से मेरा पेन स्टैंड (pen stand) गिर गया| स्तुति ने जब देखा की पेन स्टैंड गिरने से सारे पेन फ़ैल गए हैं तो स्तुति एकदम से घबरा गई| स्तुति को अपनी दीदी द्वारा डाँटना याद आ गई इसलिए स्तुति ने फौरन अपने कान पकड़ लिए और घबराते हुए बोली; "औली पपई!"

मुझे पेन स्टैंड गिरने से कोई फर्क नहीं पड़ा था मगर अपनी प्यारी-प्यारी बिटिया को कान पकड़े देख और स्तुति के मुख से सॉरी सुन मेरे दिल में प्यारी सी हूक उठी! मुझे बहुत ख़ुशी हुई की इतनी छोटी सी उम्र में मेरी नन्ही सी बिटिया को अपनी गलती समझ आने लगी है और उसने सॉरी बोलना भी सीख लिया है| खैर, मैंने स्तुति के दोनों हाथों से उसके कान छुड़वाये और उसके दोनों हाथों को चूमते हुए बोला; "कोई बात नहीं बेटू!" मेरे चेहरे पर मुस्कान देख स्तुति का चेहरा खिल गया और स्तुति ने आगे बढ़ कर मेरे गालों पर अपनी प्यारी-प्यारी पप्पी दी|



स्तुति ने ख़ुशी-ख़ुशी फिर से खाना बनाना शुरू किया| सबसे पहले मेरी लाड़ली बिटिया ने चाय बनाई और छोटी सी प्याली में परोस कर मुझे दी| चाय की प्याली इतनी छोटी थी की मैं उसे ठीक से पकड़ भी नहीं पा रहा था, लेकिन अपनी बिटिया का दिल रखने के लिए मैं झूठ-मूठ की चाय पीने और चाय स्वाद होने का नाटक करने लगा| तभी माँ और संगीता कमरे में आये और हम बाप-बेटी का खेल देख बोले; "अरे भई हमें भी चाय पिलाओ|" संगीता ने चाय माँगी तो स्तुति अपना निचला होंठ फुला कर अपनी मम्मी को अपनी नारजगी दिखाने लगी|

"तुम्हें काहे चाय पिलायें? जब मेरी बिटिया तुम्हारे पास आई थी की उसके साथ तनिक खेल लिहो तब खेलो रहा?" मैंने स्तुति का पक्ष लेते हुए संगीता को झूठ-मूठ का डाँटा| तभी माँ स्तुति से बोलीं; "मेरी शूगी मुझे चाय नहीं देगी?" माँ ने इतने प्यार से कहा की स्तुति ने मुस्कुराते हुए अपना चाय का कप माँ को दे दिया| अपनी पोती के इस प्यार पर माँ का दिल भर आया और उन्होंने स्तुति के सर को चूमते हुए आशीर्वाद दिया| माँ को जब चाय मिली तो संगीता ने जबरदस्ती अपनी नाक हम बाप-बेटी के खेल में घुसेड़ दी, साथ ही उसने माँ को भी इस खेल में खींच लिया| स्तुति को बनाना था खाना इसलिए वो हम सब से पूछ रही थी की हम क्या खाएंगे| हम माँ-बेटे ने तो यही कहा की जो स्तुति बनाएगी हम खाएंगे मगर संगीता ने अपनी खाने की लम्बी-चौड़ी लिस्ट नन्ही सी स्तुति को दे दी! "ये कोई होटल नहीं है जहाँ तुम्हारे पसंद का खाना बनेगा! जो सामने धरा है सो खाये लिहो!" मैंने संगीता को प्यारभरी डाँट लगाते हुए कहा| मेरी ये प्यारी सी डाँट सुन संगीता हँस पड़ी और हँसते हुए स्तुति से बोली; "सॉरी बेटा! आप जो बनाओगे मैं खा लूँगी!" अपनी मम्मी की बात सुन स्तुति ने अपने बर्तन अपने छोटे से खिलोने वाले चूल्हे पर चढ़ाये और अपनी मम्मी की नकल करते हुए खाना बनाने लगी|



इधर हम चारों का शोर सुन दोनों बच्चे (आयुष और नेहा) आ गए, जब दोनों ने हमें स्तुति के साथ खेलते हुए देखा तो उनका भी मन खेलने का किया| "हम भी खेलेंगे!" आयुष ख़ुशी से चहकता हुआ बोला लेकिन इस बार स्तुति नाराज़ हो गई और गुस्से में बोली; "no!" आज स्तुति का ये गुस्सा देख तो सभी थोड़ा डर गए थे!

"बेटा, आपकी एक छोटी सी...प्यारी सी बहन है| उस बेचारी के पास आप दोनों के सिवाए खेलने वाला कोई नहीं, ऐसे में अगर आप ही उसके साथ नहीं खेलोगे और उसे भगा दोगे तो उसे गुस्सा आएगा न?!" मैंने प्यार से आयुष और नेहा को समझाया तो दोनों को उनकी गलती का एहसास हुआ| "मुझे माफ़ कर दो स्तुति जी! आगे से मैं आपको नहीं डाटूँगी!" नेहा ने अपने दोनों कान पकड़ते हुए स्तुति से माफ़ी माँगी| जब नेहा ने स्तुति को "स्तुति जी" कहा तो मेरे, माँ और संगीता के चेहरे पर मुस्कान आ गई क्योंकि नेहा अपनी छोटी बहन को मनाने के लिए मक्खन लगा रही थी|

उधर स्तुति ने जब अपनी दीदी को माफ़ी माँगते देखा तो उसने ख़ुशी-ख़ुशी अपनी दीदी को माफ़ कर दिया तथा अपने खेल में शामिल कर लिया| स्तुति ने सबसे पहले अपने भैया-दीदी को एक छोटी प्लेट में झूठ-मूठ का खाना परोसा| बचे हम तीन (मैं, माँ और संगीता) तो हमें खाना परोसने के लिए स्तुति के पास थाली या प्लेट बची ही नहीं थी इसलिए स्तुति ने कढ़ाई और पतीले हमें दे दिए| उन बर्तनों में कुछ नहीं था लेकिन हम सब खा ऐसे रहे थे मानो सच में उन बर्तनों में खाना हो| आज एक छोटी सी बच्ची के साथ खेल-खेलते हुए हम बड़े भी बच्चे बन गए थे!



बहरहाल बच्चों का बचपना जारी था और दूसरी तरफ मेरी बिज़नेस की ट्रैन पटरी पर आ रही थी| बिज़नेस शुरू करने के लिए जितने भी जर्रूरी कागज़-पत्री बनवानी थी बनाई जा चुकी थी| अपने बिज़नेस के लिए मुझे एक छोटा सा ऑफिस चाहिए था तो वो मैंने अपने घर के पास किराए पर ले लिया| इसके अलावा जूतों का स्टॉक रखने के लिए एक स्टोर चाहिए था तो मैंने ये स्टोर अपने ही घर की छत पर बनवा लिया|

उधर मिश्रा अंकल जी की साइट का काम थोड़ा धीमा हो गया था क्योंकि संतोष को मिश्रा अंकल जी के गुस्सा होने का डर लग रहा था, नतीजन मुझे संतोष का मनोबल बढ़ाने के लिए उसके साथ काम में लगना पड़ा| मिश्रा अंकल जी ने हमें 2 ठेके और दे दिए जो की मैंने संतोष की जिम्मे लगा दिए|



ऐसे ही एक दिन सुबह-सुबह मैं मिश्रा अंकल जी की साइट पर काम शुरू करवा रहा था और संतोष उस समय माल लेने के लिए गया हुआ था| तभी अचानक वहाँ मिश्रा अंकल जी आ पहुँचे और मुझे अलग एक कोने में ले आये| "मुन्ना ई लिहो! तोहार खतिर हम कछु लायन है|" ये कहते हुए मिश्रा अंकल जी ने मुझे एक डिब्बा दिया| डिब्बा वज़न में बहुत भारी था और मैं इस वज़न को महसूस कर सोच में पड़ा था की इसमें आखिर है क्या? 'कहीं ये शावर पैनल (shower panel) तो नहीं? वही होगा!' मैं मन ही मन बोला| मैंने वो डिब्बा खोला तो उसके अंदर जो चीज़ थी उसे देख मेरी आँखें फटने की कगार तक बड़ी हो गई!




उस डिब्बे में Smith & Wesson Magnum Revolver थी!


उस चमचमाती रिवाल्वर को देख मेरे भीतर छुपा शैतान, जिसे संगीता ने अपने प्रेम से सुला दिया था वो एकदम से जाग गया! मेरे हृदय की गति एकदम से बढ़ गई, शरीर का सारा खून मेरे हाथों की ओर बहने लगा| दिमाग था की ससुरा बंद हो चूका था और मन था जो बावरा हो कर मुझे रिवॉल्वर उठाने को उकसा रहा था|

आजतक मैंने ये रिवॉल्वर बस कंप्यूटर गेम में चलाई थी, कंप्यूटर गेम में जब मैंने ये रिवॉल्वर चलाई तो इसकी आवाज़ सुनकर मुझे बहुत मज़ा आता था और आज मेरे पास मौका था असल में इस रिवॉल्वर की आवाज़ सुनने का!



परन्तु, मेरे भीतर अच्छाई अब भी मौजूद थी जिसने मेरा दामन अबतक थामा हुआ था और यही अच्छाई मुझे रिवॉल्वर उठाने नहीं दे रही थी! "नहीं अंकल जी, ये मैं नहीं ले सकता|" ये कहते हुए मैंने बड़े भारी मन से डिब्बा बंद कर अंकल जी को वापस दिया| लेकिन अंकल जी ने वो डिब्बा वापस नहीं लिया बल्कि मेरे कँधे पर हाथ रख बोले; "रख लिहा मानु बेटा! हम जानित है बंदूक तोहका बहुत भावत (पसंद) है| ऊ रतिया जब तोहरे हाथ मा हमार तमंचा रहा तो तोहार अलग ही रूप सामने आवा रहा| अइसन रूप जेह मा तू केहू से नाहीं डरात रहेओ, तोहार भीतर मौजूद ताक़त सामने आवि रही जेह का देखि के ऊ तीनों आदमियन की फाट रही!

फिर हमार पार्टी मा हमार मूर्ख दामादवा के भड़काए पर जइसन तू ताव में आये के हमार रिवॉल्वर उठाये के चलायो रहेओ ऊ दिन हम तोहार आँखियन में चिंगारी देखें रहन| तू आपन परिवार की रक्षा खतिर कछु भी कर गुजरिहो, एहि से हम तोहार और तोहार परिवार की रक्षा करे खतिर ई (रिवॉल्वर) तोहका तोहफा म देइत है|" जैसे ही मिश्रा अंकल जी ने 'परिवार की रक्षा' का जिक्र किया वैसे ही मेरे भीतर का शैतान मुझ पर हावी हो गया और मिश्रा अंकल जी की बात को सही ठहराते हुए मुझसे बोला; 'अंकल जी ठीक ही तो कह रहे हैं! अगर तेरे पास बंदूक होती तो चन्दर का किस्सा उसी दिन खत्म हो जाता जब वो संगीता की जान लेने के इरादे से तेरे घर में घुस आया था और आज पिताजी तेरे साथ रह रहे होते|' मन में जब ये विचार कौंधा तो मेरी अच्छाई हारने लगी| हाल ये था की मेरी रिवॉल्वर हाथ में लेने की इच्छा प्रबल हो चुकी थी|



लेकिन कुछ तो था जो की मुझे रोके हुए था...मेरा हाथ पकड़ कर मुझे बुराई की तरफ जाने से रोक रहा था| जिस प्रकार एक डूबता हुआ इंसान, खुद को बचाने के लिए पानी में हाथ-पैर मारता है, वही इस समय मेरी अच्छाई कर रही थी और मुझे रिवॉल्वर लेने से रोकने के लिए तर्क दे रही थी|

मैं: अंकल जी, मैं इसे (रिवॉल्वर को) संभाला नहीं पाऊँगा| मेरा गुस्सा बहुत तेज़ है और अपने गुस्से में बहते हुए मैं कुछ गलत कर बैठूँगा! ऊपर से अगर घर में किसी को इसके (रिवॉल्वर के) बारे में पता चल गया तो...

मैंने जानबूझ कर अपनी बात अधूरी छोड़ दी ताकि अंकल जी मेरी समस्या समझ सकें और अपना ये उपहार वापस ले लें!

मिश्रा अंकल जी: मुन्ना, हम तोहका तोहार पैदा भय से देखत आयन है| तोहार गुस्सा भले ही बहुत तेज़ है मगर तू आजतलक कउनो गलत काम नाहीं किहो है| तोहार सहन-सकती (सहन शक्ति), तोहार सूझ-बूझ औरन के मुक़ाबले बहुत नीक है, एहि से हमका पूर बिश्वास है की तू ई का (रिवॉल्वर का) कउनो गलत इस्तेमाल न करिहो|

अंकल जी का तर्क सुन मेरे भीतर का शैतान बोला; 'तू भले ही बहुत गुस्से वाला है मगर आजतक तूने कभी गुस्से में ऐसा कदम नहीं उठाता की तुझे बाद में पछताना पड़े|' अपने भीतर के शैतान का तर्क सुन मैं फिर रिवॉल्वर हाथ में लेने के लिए झुक रहा था लेकिन तभी मेरे भीतर की अच्छाई बोली; 'लेकिन तब तेरे पास रिवॉल्वर नहीं थी इसलिए तू गुस्से में कुछ गलत नहीं कर सकता था, परन्तु रिवॉल्वर पास होने पर तेरा क्या भरोसा?' अपने भीतर की अच्छाई के तर्क को सुन मैंने खुद को रिवॉल्वर उठाने की तरफ बढ़ने से रोका और अगला तर्क सोचने लगा|

इधर मिश्रा अंकल जी ने जब देखा की उनका तर्क सुन कर भी मेरा मन रिवॉल्वर लेने के लिए नहीं मान रहा तो वो मुझे उदहारण सहित समझाते हुए बोले;

मिश्रा अंकल जी: अच्छा मुन्ना एक ठो बात बतावा| तोहका गाडी चलाये का आवत रही? नहीं ना? काहे से की तोहरे लगे गाडी नाहीं रही, लेकिन जब तू गाडी खरीद लिहो तब तू चलाये का जानी गयो न?! अब तोहार गरम खून ठहरा लेकिन आजतलक कभौं तू गाडी फुल स्पीड मा भगायो है? आजतलक कउनो ट्रैफिक का नियम-कानून तोड्यो है? नाहीं ना? काहे से की तू अच्छी तरह जानत हो की जिम्मेदारी कौन चीज़ होवत है और तू आपन ई जिम्मेदारी से कभौं मुँह नाहीं मोडत हो| एहि खतिर हम कहित है की तू ई का (रिवॉल्वर को) अच्छे से सँभाली सकत हो!

अंकल जी के मुख से अपनी प्रशंसा में लिपटा हुआ तर्क सुन मेरे भीतर का शैतान बहुत खुश हुआ और अत्यधिक बल से मुझे अपनी ओर खींचने लगा| 'अंकल जी सही तो कह रहे हैं, तू कोई बिगड़ैल आदमी थोड़े ही है जो रिवॉल्वर हाथ में ले कर बेकाबू हो जायेगा|' ये कहते हुए मेरे भीतर के शैतान ने मुझे अपनी ओर जोर से खींचा| इधर मेरी अच्छाई मुझे अब भी कस कर पकड़े हुए थी तथा मुझे घर में ये बात खुलने का डर दिखा के डराने पर तुली थी| मिश्रा अंकल जी ने जब मेरा ये डर भाँपा तो वो एकदम से बोल पड़े;

मिश्रा अंकल जी: हम जानिथ है मुन्ना की तू एहि बात से घबड़ावत हो की अगर घरे मा तोहार ई रिवाल्वर संगीता बहु या तोहार माँ देख लिहिन तो घर माँ झगड़ा हुई जाई| तो हमार बात सुनो मुन्ना, घर वालन का ई सब बात नाहीं बतावा जात है, नाहीं तो सभाएं घबराये जावत हैं| अब हम ही का देख लिहो, का हम तोहार आंटी का आज तलक बतायं की हम तमंचा रखित है? नाहीं...काहे से की ऊ हमार जान खतिर घबराये लागि| अब तुहुँ बताओ, का तू आपन घरे मा काम-काज की टेंशन वाली बात बतावत हो?...नाहीं काहे से की आदमियन का काम होवत है पइसवा कमाए का, ना की घरे मा टेंशन बाटें का|

मिश्रा अंकल जी का तर्क सुन मेरे भीतर की बुराई फिर हिलोरे मारने लगी और मिश्रा अंकल जी के तर्क को सही बता उकसाने लगी| वहीं मेरे भीतर की अच्छाई ने मुझे बुराई की तरफ जाने से रोकने के लिए फट से एक नया तर्क प्रस्तुत कर दिया;

मैं: अंकल जी ये...बहुत महँगी है!

मैंने झिझकते हुए कहा तो अंकल जी मुस्कुराते हुए बोले;

मिश्रा अंकल जी: मुन्ना ई न कहो! देखो हम तोहका आपन बेटा मानित है और हमार प्यार का अइसन रुपया-पैसा मा न तौलो| तू नाहीं जानत हो लेकिन जब तू नानभरेक रहेओ तो तोहार पिताजी तोहका लेइ के साइट पर आवत रहे| तोहार पिताजी तो काम मा लगी जावत रहे लेकिन हम तोहका गोदी लेइ के खिलाइत रहन| ई तोहफा हम तोहार खतिर ख़ास करके इम्पोर्ट (import) करि के मँगवायन है| ई का नाहीं न कहो!

मिश्रा अंकल जी अपनी बात कहते हुए भावुक हो गए थे| दरअसल मिश्रा अंकल जी की केवल एक संतान थी और वो लड़की थी, जबकि मिश्रा अंकल जी की एक आस थी की उन्हें एक लड़का हो जो उनका सारा काम सँभाले| लेकिन उनके हालात ऐसे थे जिनकी वजह से उन्हें फिर कोई संतान नहीं हुई और उनका ये सपना टूट गया| मिश्रा अंकल जी अपनी बेटी के प्यार से खुश थे मगर जब वो मेरे पिताजी को मुझे लाड करते देखते तो उनकी ये अधूरी इच्छा टीस मारने लगती| ज्यों-ज्यों मैं बड़ा होता गया त्यों-त्यों मेरे अच्छे संस्कारों को देख मिश्रा अंकल जी के मन में मेरे प्रति झुकाव व प्रेम उतपन्न होता गया, तभी तो वो मुझे बुला-बुला कर काम दिया करते थे|

बहरहाल, मिश्रा अंकल जी की बातों से मेरे भीतर का शैतान मुझे जबरदस्ती भावुक कर रहा था| मेरा यूँ भावुक होना मेरे भीतर के शैतान के लिए अच्छा ही था क्योंकि अब मेरे पास ये रिवॉल्वर स्वीकारने की एक और वजह थी| लेकिन मेरे भीतर की अच्छाई मुझे अब भी रोके हुए थी और उसने खुद को हारने से बचाने के लिए एक आखरी तर्क पेश किया;

मैं: अंकल जी...मेरे पास लाइसेंस नहीं!

ये मेरे तर्कों के शस्त्रागार का आखरी शस्त्र था, इसके आगे मेरी अच्छाई के पास कोई भी तर्क नहीं था जिसे दे कर मैं मिश्रा अंकल जी का दिल तोड़े बिना रिवॉल्वर लेने से मना कर सकूँ| परन्तु, मिश्रा अंकल जी के पास मेरे इस तर्क का भी जवाब था;

मिश्रा अंकल जी: अरे ई कउनो दिक्कत की बात थोड़े ही है! एहि लागे चलो हमरे संगे, तोहार खतिर हम सारी कागज़-पत्री आजे बनवाईथ है|

ये कहते हुए अंकल जी मेरे साथ मेरी ही गाडी में अपने जानकार के पास चल दिए| मिश्रा अंकल जी की पहुँच इतनी ऊँची थी की कुछ ही घंटों में मिश्रा अंकल जी ने रिवॉल्वर के कागज़ात और मेरा हैंडगन लाइसेंस (handgun license) दोनों बनवा दिया|



लाइसेंस धारी होने से अब मुझे पुलिस की कोई चिंता नहीं थी, चिंता थी तो केवल इस रिवॉल्वर के माँ या संगीता के हाथ लगने की इसलिए मैं ये रिवॉल्वर घर में तो नहीं रख सकता था| बहुत सोच-विचार कर मैंने रिवॉल्वर गाडी में रखने का फैसला किया| गाडी में मेरी सीट के नीचे थोड़ी जगह थी और चूँकि मेरे अलावा मेरी गाडी कोई नहीं चलाता था इसलिए सीट को आगे-पीछे करने का सवाल ही नहीं था, मैंने अपनी रिवॉल्वर अपनी सीट के नीचे कपड़े में बाँध कर छुपा दी|

भले ही मेरे भीतर का शैतान जीत गया था मगर मेरे भीतर की अच्छाई मरी नहीं थी| मैंने रिवॉल्वर रख तो ली थी मगर उसे कभी इस्तेमाल न करने की कसम खा ली थी| लेकिन ये कसम कुछ सालों में ही टूटी, उस समय हालात क्या थे ये आपको आगे पता चलेगा!



बहरहाल, जैसा की मैंने बताया मेरे बिज़नेस की रेजिस्ट्रशन और कागज़ी कारवाही पूरी हो चुकी थी| इस बीच मैंने आगरा में जूतों की फैक्ट्री मालिकों से बात करनी शुरू कर दी थी| दिन भर मैं फ़ोन पर बिजी रहता था और मेरे फ़ोन के what's app पर दिनभर जूतों की तस्वीरें आती रहती थीं| जल्द ही मुझे इन फैक्ट्री मालिकों से मिलने के लिए आगरा के चक्कर लगाने पड़े| मैं तड़के सुबह निकलता था और रात 12 बजे तक लौटता| कई बार दिषु भी मेरे साथ आगरा गया और हमने किस फैक्ट्री से कितना माल लेना है ये तय किया|

अब चूँकि मेरा आगरा आना-जाना बढ़ गया था इसलिए आयुष और नेहा मेरे साथ आगरा घूमने जाना चाहते थे| मैं बच्चों को आगरा की गलियों-कूचों में धक्के नहीं खिलवाना चाहता था इसलिए मैं बच्चों को अपने साथ ले जाने से मना करता था, बदले में मैं बच्चों का मन-पसंद डोडा पेठा ला देता था| कुछ दिन तो दोनों बच्चे डोडा पेठा वाली रिश्वत ले कर मान गए, लेकिन एक दिन दोनों बच्चों ने मुझ पर ऐसा मोहपाश फेंका की मैं मोम की तरह पिघल गया|



शाम का समय था और मैं अपनी साइट से लौटा था, मुझे देखते ही सबसे पहले स्तुति मेरी गोदी में आने के लिए दौड़ी मगर दोनों भाई-बहन ने मिलकर स्तुति को उठा कर माँ की गोदी में छोड़ा और आ कर मुझसे कस कर लिपट गए| "आई लव यू पापा जी" कहते हुए मेरे दोनों बच्चे शोर मचाने लगे| फिर नेहा मेरा हाथ पकड़ कर मुझे सोफे तक लाई, उधर आयुष मेरे लिए पानी का गिलास भर कर लाया| जब तक मैं पानी पी रहा था तबतक आयुष ने मेरे पॉंव दबाने शुरू किये और नेहा ने मेरे दोनों हाथ दबाने शुरू किये| अपने दोनों बच्चों का ये प्यार देख मैं सोच रहा था की जर्रूर कुछ तो बात है, तभी आज मुझे इतना मक्खन लगाया जा रहा है|

उधर स्तुति जो अभी तक अपने दीदी-भैया को मेरी सेवा करते हुए देख रही थी, उसका भी मन किया की वो भी मेरी सेवा करे इसलिए वो अपनी दादी जी की गोदी से उतरने के लिए छटपटाने लगी| माँ ने स्तुति को अपनी गोदी से उतारा तो वो दौड़ती हुई मेरे पास आई और अपने बड़े भैया की देखा-देखि मेरे पाँव दबाने की कोशिश करने लगी; "नहीं बेटा" ये कहते हुए मैंने स्तुति को एकदम से गोदी उठा लिया और उसे लाड करते हुए बोला; "बेटा, छोटे बच्चे पाँव नहीं दबाते| छोटे बच्चे पापा जी को पारी (प्यारी) करते हैं|" मेरी बात सुनते ही स्तुति ने मेरे दोनों गालों पर अपनी प्यारी-प्यारी पप्पी देनी शुरू कर दी| एक के बाद एक मेरी बिटिया ने मेरे दोनों गाल अपनी पप्पी से गीले कर दिए|

उधर नेहा और आयुष आ कर मुझसे कस कर लिपट गए तथा स्तुति के साथ मिल कर मुझे पप्पी करने लगे| तो अब समा ऐसा था की मेरे तीनों बच्चों ने मुझे नीचे दबा रखा था और मेरे पूरे चेहरे को अपनी पप्पियों से गीला कर दिया था| मुझे बच्चों के इस प्यार करने के ढंग में बहुत मज़ा आ रहा था और मैं अपने तीनों बच्चों का उत्साह बढ़ाने में लगा था ताकि वो मुझे और प्यार करें|



"पापा जी, हमें भी आगरा घुमा लाओ न?!" नेहा एकदम से बोली| मेरा मन अपने तीनों बच्चों की पप्पियों पा कर इस कदर प्रसन्न था की मैं नेहा को मना करने का कोई तर्क सोच ही नहीं पाया| इतने में आयुष भी अपनी दीदी के साथ हो लिया; "पापा जी, हमने अभी तक ताजमहल नहीं देखा|" आयुष अपना निचला होंठ फुला कर बोला और मेरे सीने से लिपट गया| "पपई...पपई...आज..अहल (ताजमहल)" स्तुति अपनी टूटी-फूटी भाषा में बोली और फिर कस कर मेरी कमीज को अपनी मुठ्ठी में भर लिया, मानो वो मुझे तबतक कहीं जाने नहीं देगी जबतक मैं उसे ताजमहल न घुमा लाऊँ! मुझे हैरानी इस बात की थी की नेहा ने बड़ी चतुराई से अपने दोनों भाई-बहन को अपने प्लान में शामिल कर लिया था, यहाँ तक की स्तुति को ताजमहल शब्द बोलना तक सीखा दिया था!



मैं समझ गया था की ये सारी प्लांनिंग नेहा की है इसलिए मुझे मेरी बिटिया की इस होशियारी पर प्यार आ रहा था| मैं आज अपने ही तीनों बच्चों के प्यार द्वारा ठगा गया था और मुझे इसमें बहुत मज़ा आ रहा था| मैंने अपने तीनों बच्चों को अपनी बाहों में भर लिया और तीनों के सर बारी-बारी चूमते हुए बोला; "मेरे प्यारे-प्यारे बच्चों! आपके प्यार के आगे मैं ख़ुशी-ख़ुशी अपनी हार स्वीकारता हूँ! हम सब कल ही ताजमहल घूमने जाएंगे|" मैंने जब सबके ताजमहल जाने की बात कही तो तीनों बच्चों की किलकारी एक साथ घर में गूँजने लगी!

अगले दिन हम सभी ट्रैन से आगरा के लिए निकले, हम चेयर कार से सफर कर रहे थे और हमारी सीटें बिलकुल आमने सामने थीं| आयुष, संगीता और माँ एक तरफ बैठे तथा मैं, मेरी गोदी में स्तुति और नेहा उनके ठीक सामने बैठे| हमारी सीटों के बीच एक टेबल पहले से लगा हुआ था| स्तुति को बिठाने के लिए ये टेबल सबसे बढ़िया था इसलिए स्तुति शीशे के पास टेबल के ऊपर बैठ कर खिलखिलाने लगी| अब चूँकि टेबल लगा ही हुआ था तो आयुष ने कुछ खाने की माँग की तो मैंने सभी के लिए चिप्स और फ्रूटी ले ली| सफर बड़ा हँसी-ख़ुशी बीत रहा था की तभी मथुरा स्टेशन आया| माँ ने ट्रैन में बैठे-बैठे ही श्री कृष्ण जन्मभूमि को हाथ जोड़कर प्रणाम किया, वहीं माँ को देख हम सभी ने भी हाथ जोड़कर श्री कृष्ण जन्मभूमि को प्रणाम किया| गौर करने वाली बात ये थी की स्तुति भी पीछे नहीं रही, उसने भी हमारी देखा-देखि अपने छोटे-छोटे हाथ जोड़कर भगवान श्री कृष्ण की जन्मभूमि को प्रणाम किया| एक छोटी सी बच्ची को यूँ भगवान जी को प्रणाम करते देख हमारे दिल में प्यारी सी गुदगुदी होने लगी|



खैर, पिछलीबार संगीता और मैं जब आगरा जा रहे थे तब संगीता ने मथुरा दर्शन करने की इच्छा प्रकट की थी, उस समय मैंने उसे ये कह कर मना कर दिया था की अगलीबार हम सब साथ आएंगे| चूँकि इस बार पूरा परिवार साथ था तो संगीता के मन में दर्शन करने का लालच जाग गया| संगीता ने चपलता दिखाते हुए दोनों बच्चों के मन में भगवान श्री कृष्ण जी की जन्मभूमि के दर्शन करने की लालसा जगा दी| संगीता जानती थी की अगर वो मथुरा दर्शन करने की इच्छा प्रकट करेगी तो मैं समय का अभाव का बहाना कर के मना कर दूँगा, लेकिन अपने बच्चों की इच्छा का मान मैं हर हाल में करूँगा|

आयुष और नेहा ने अपनी प्यारी सी इच्छा जाहिर की तो मैं उन्हें समझाते हुए बोला; "बेटा जी, मथुरा-वृन्दावन दर्शन करने में कम से कम 3 दिन चाहिए क्योंकि यहाँ पर श्री कृष्ण जी के बहुत सारे मंदिर हैं| अब आज पहले ही अपने अपने स्कूल की छुट्टी कर ली है, यदि दो दिन और आप स्कूल नहीं जाओगे तो टीचर डाँटेगी न?! इसलिए हम फिर कभी मथुरा आएंगे और 3-4 दिन रुक कर, आराम से सारे मंदिरों के दर्शन करेंगे|" दोनों बच्चों को मेरी बात समझ आई और उन्होंने अगलीबार आने की प्लानिंग अभी से करनी शुरू कर दी|



इधर ट्रैन के टेबल पर बैठे-बैठे, खिड़की से बाहर देखते-देखते मेरी गुड़िया रानी ऊब गई थी इसलिए वो अपनी टूटी-फूटी भाषा में बोली; "पपई...पपई..आ..आज...अहल..?' स्तुति की बात का तातपर्य था की आखिर ताजमहल कब आयेगा? स्तुति की बेसब्री समझते हुए नेहा ने मेरा फ़ोन लिया और स्तुति को ताजमहल की तस्वीर दिखाते हुए बोली; "ऐसा दिखता है ताजमहल!" नेहा को लगा था की ताजमहल की तस्वीर देख स्तुति को कुछ देर के लिए चैन मिलेगा मगर स्तुति ने जैसे ही फ़ोन में तस्वीर देखि उसने ताजमहल की तस्वीर को हाथ से छु कर देखा| मोबाइल की स्क्रीन को ताजमहल समझ स्पर्श करने पर स्तुति का मन खट्टा हो गया और वो मुँह बिगाड़ते हुए मेरे फ़ोन को देख ये समझने की कोशिश करने लगी की आखिर इस ताजमहल में ऐसी दिलचस्प बात है क्या?

स्तुति के जीवन का बड़ा सीधा सा ऊसूल था, जिस चीज़ को आप खा नहीं सकते...उसे स्पर्श कर उसके साथ खेल नहीं सकते उस चीज़ का क्या फायदा? यही कारण है की मोबाइल में स्तुति को ताजमहल की तस्वीर देख कर ज़रा भी मज़ा नहीं आया इसलिए उसने बेमन से फ़ोन को दूर खिसका दिया और मेरी गोदी में आ कर मेरे कँधे पर सर रख कर उबासी लेने लगी| स्तुति की ये प्रतिक्रिया दिखाती थी की उसे अब ताजमहल देखने की ज़रा भी इच्छा नहीं है, वहीं हम स्तुति की इस प्रतिक्रिया को देख अपना हँसना नहीं रोक पा रहे थे|



खैर, हम आगरा पहुँचे और हम सब ने पहले स्टेशन पर पेट-पूजा की| पेट पूजा कर जब हम स्टेशन से बाहर निकले तो हमें ऑटो वालो ने घेर लिया, अब हमें कटवानी थी पर्ची इसलिए मैं सभी को न बोलते हुए गर्दन हिला रहा था| अब मुझे देख स्तुति ने भी अपनी गर्दन न में हिलानी शुरू कर दी और सभी ऑटो वालों को "no...no...no..." कहना शुरू कर दिया|

ऑटो की पर्ची कटवा, सवारी कर हम सबसे पहले आगरे का किला देखने पहुँचे| यहाँ पहुँचते ही संगीता को हमारी पिछली यात्रा की याद आ गई और उसके पेट में तितलियाँ उड़ने लगीं जिस कारण संगीता के चेहरे पर प्यारी सी मुस्कान फैली हुई थी मगर वो अपने मन के विचार सबसे छुपाने में लगी थी| वहीं, मैं अपनी परिणीता के मन के भाव पढ़ और समझ चूका था इसलिए मैंने भी संगीता को एक प्यारभरा सरप्राइज देने की तैयारी कर ली|



आगरे के किले में घुमते हुए स्तुति बहुत उत्साहित थी और मेरी गोदी से उतरने को छटपटा रही थी, लेकिन मैं स्तुति को गोदी से उतारना नहीं चाहता था वरना स्तुति अपने सारे कपड़े गंदे कर लेती| अपनी बिटिया को बहलाने के लिए मैंने स्तुति को थोड़ा भावुक करने की सोची; "बेटू, आप पाने पापा जी की गोदी से उतर जाओगे तो मैं अकेला हो जाऊँगा! फिर मेरे साथ कौन घूमेगा?" मैंने थोड़ा उदास होने का अभिनय करते हुए कहा| मेरी बात सुनते ही स्तुति ने गोदी से उतरने की ज़िद्द छोड़ दी और मेरे गाल पर पप्पी करते हुए बोली; "पपई..आई..लव..यू!" अपनी प्यारी बिटिया के मुख से ये शब्द सुनते ही मेरा मन एकदम से खुशियों से भर उठा और मैंने स्तुति की ढेर सारी पप्पी ली|



उधर बच्चे अपनी दादी जी और अपनी मम्मी को ले कर एक टूर गाइड (tour guide) के पीछे चलते हुए सब देख रहे थे, वहीं हम बाप-बेटी की अलग ही घुम्मी हो रही थी| स्तुति जिस तरफ ऊँगली से इशारा करती मैं उसी तरफ स्तुति को ले कर चल पड़ता और स्तुति को उस चीज़ से जुडी बातें बताता, कुछ बातें स्तुति को अच्छी लगतीं तथा स्तुति खिलखिलाकर हँस पड़ती, बाकी बातें स्तुति की मतलब की नहीं होती और वो फौरन दूसरी तरफ ऊँगली से इशारा कर चलने को कहती|



आखिर हम किले के उस हिस्से में पहुँचे जहाँ से ताजमहल धुँधला दिख रहा था, आयुष और नेहा तो ये दृश्य देख कर कल्पना करने लगे थे की ताजमहल नज़दीक से कैसा दिखता होगा मगर स्तुति का मन उस धुँधले ताजमहल को देख कर ऊब चूका था इसलिए स्तुति ने फौरन मेरा ध्यान किले की दूसरी तरफ खींचा| "ओ नानी, यहाँ सब के साथ घूम, क्या तब से अपने पापा जी को इधर-उधर दौड़ा रही है?" माँ ने स्तुति के गाल खींचते हुए कहा, जिस पर स्तुति मसूड़े दिखा कर हँसने लगी|



आगरे के किले से निकल कर हमने ताजमहल के लिए सवारी की, इस पूरे रास्ते नेहा और आयुष की बातें चल रही थीं की आखिर ताजमहल कैसा दिखता होगा| मैं, माँ और संगीता तो बच्चों की बातें सुन कर मुस्कुरा रहे थे लेकिन स्तुति अपने बड़े भैया-दीदी की बातें बड़ी गौर से सुन रही थी| ऐसा लगता था मानो स्तुति अपने छोटे से मस्तिष्क में कल्पना कर रही हो की ताजमहल दिखता कैसा होगा?!



अंततः हम ताजमहल पहुँचे और टिकट खरीदकर कतार में लग गए, सिक्युरिटी चेक के समय स्तुति मेरी गोदी में थी और जब मेरी चेकिंग हो रही थी तो स्तुति बड़ी उत्सुकता से सब देख रही थी| स्तुति की उत्सुकता देखते हुए गार्ड साहब स्तुति से बोले; "बेटा, हम केवल आपके पापा की चेकिंग कर रहे हैं, बाकी आपकी चेकिंग नहीं होगी|" गार्ड साहब की बात सुन स्तुति खुश हो गई और हँसते हुए मुझसे लिपट गई|

सिक्युरिटी चेकिंग के बाद हम ताजमहल के गेट की तरफ बढ़ रहे थे लेकिन दोनों बच्चे अभी से ताजमहल देखने को अधीर हो रहे थे; "पापा जी, ताजमहल कहाँ है?" आयुष उदास होते हुए मुझसे पूछने लगा|

"पापा जी ने जेब में रखा हुआ है ताजमहल!" नेहा आयुष की पीठ पर थपकी मारते हुए बोली| "ये पूछ की ताजमहल कब दिखाई देगा?" नेहा ने आयुष का सवाल दुरुस्त करते हुए मुझसे पुछा|

"बेटा, अभी थोड़ा आगे चलकर एक बड़ा सा दरवाजा आएगा, वो दरवाजा पार कर के आपको ताजमहल दिखाई देगा|" मैंने दोनों बच्चों की जिज्ञासा शांत करते हुए कहा, अतः बच्चों की जिज्ञासा कुछ पल के लिए शांत हो गई थी|



माँ के कारण हम धीरे-धीरे चलते हुए पहुँचे सीढ़ियों के पास, यहाँ पहुँचते ही मैंने तीनों बच्चों से कहा; "बेटा, ये सीढ़ियां चढ़ने के बाद आपको ताजमहल नज़र आएगा मगर उसके लिए आप तीनों को अपनी आँखें बंद करनी होंगी और जब मैं कहूँ तभी खोलनी होगी|" मेरी बात सुन सबसे पहले स्तुति ने अपने दोनों हाथ अपनी आँखों पर रख बंद कर लिए| दरअसल, स्तुति को मेरे द्वारा सरप्राइज दिया जाना बहुत पसंद था इसलिए वो बहुत उत्सुक थी| वहीं आयुष और नेहा ने भी मेरी बात मानी और अपनी आँखें बंद कर ली| आँखें बंद होने से दोनों बच्चे सीढ़ी नहीं चढ़ सकते थे इसलिए संगीता ने आयुष को गोदी में उठा लिया, वहीं मैंने नेहा को अपनी पीठ पर लाद लिया, स्तुति तो पहले ही मेरी गोदी में अपने दोनों हाथों से आँख बंद किये हुए थी|

वहीं, माँ को मेरा बच्चों के साथ यूँ बच्चा बने देखना बहुत अच्छा लग रहा था इसलिए उनके चेहरे पर मुस्कान फैली हुई थी|



सीढ़ी चढ़ कर हम ऊपर आये और हमने बच्चों को एक लाइन में खड़ा कर दिया| "बेटा, अब आप सब अपनी आँखें खोलो|" मैंने तीनों बच्चों से आँखें खोलने को कहा तो सबसे पहले आँखें नेहा और आयुष ने खोलीं| आँखें खुलते ही बच्चों को अपनी आँखों के सामने संगेमरमर की विशालकाय ईमारत नज़र आई तो दोनों के मुख खुले के खुले रह गए! इधर स्तुति ने भी अपनी आँखें खोल लीं थीं, जब स्तुति ने इतनी विशालकाय सफ़ेद ईमारत देखि तो स्तुति ख़ुशी से चीख पड़ी; "पपई...पपई...आज...महल?" स्तुति ताजमहल की इशारा करते हुए हैरत भरी नज़रों से मुझे देखते हुए पूछने लगी|

“हाँ जी, बेटा जी...ये है आपका ताजमहल|" मैंने बड़े गर्व से कहा, मानो ये ताजमहल मेरी संपत्ति हो जिसे मैं स्तुति के नाम कर रहा हूँ! मेरी बात स्तुति को बहुत अच्छी लगी और स्तुति ने ताजमहल की सुंदरता का बखान अपनी बोली-भासा में करना शुरू कर दिया| ताजमहल की व्याख्या में स्तुति ने जो भी शब्द कहे वो सब अधिकतर खिलोने, कार्टून और खाने-पीने की चीजें जैसे की रस-मलाई से जुड़े थे|



खैर, हम बाप-बेटी अपनी बातों में व्यस्त थे और उधर सास-पतुआ अपनी बातों में व्यस्त थे| वहीं दूसरी तरफ आयुष और नेहा एकदम से खामोश खड़े थे| दोनों बच्चे सफ़ेद संगेमरमर की इस ईमारत को देख उसकी सुंदरता में खोये हुए थे| जब मैंने देखा की मेरे हमेशा चहकने वाले बच्चे एकदम से खामोश हैं तो मैं स्तुति को गोदी में लिए हुए आयुष और नेहा के सामने उकडून हो कर बैठा| मैंने देखा की मेरे दोनों बच्चों की आँखें अस्चर्य से फटी हुई हैं और मुँह हैरत के मारे खुला हुआ है! "क्या हुआ बेटा?" मैंने मुस्कुराते हुए अपने दोनों प्यारे बच्चों से सवाल पुछा तो आयुष-नेहा अपने ख्यालों की दुनिया से बाहर आये|

"पापा जी, मैं सपना तो नहीं देख रही?" नेहा अस्चर्य से भरी हुई बोली, तो मैंने मुस्कुराते हुए नेहा के सर पर हाथ फेरते हुए न में गर्दन हिलाई|

"पापा जी, हम...हम ताजमहल के पास जा सकते हैं न?" आयुष ने भोलेपन में सवाल पुछा| मेरे बेटे ने आज पहलीबार इतनी सुन्दर इमारत देखि थी इसलिए मेरा बेटा थोड़ा घबराया हुआ था तथा उसका मन ताजमहल को छू कर देखने का था| मैंने आयुष को अपने गले लगाया और उसके माथे को चूमते हुए बोला; "हाँ जी, बेटा जी!"



हम सभी चलते हुए ताजमहल की तरफ बढ़ रहे थे की रास्ते में मियूज़ियम पड़ा, माँ ने ताजमहल तो पहले भी देखा था मगर वो कभी मियूज़ियम नहीं गई थीं इसलिए हम सब ने मियूज़ियम में प्रवेश किया| पिछलीबार की तरह मियूज़ियम में मुमताज़ की तस्वीर लगी हुई थी, उस तस्वीर को देख संगीता के मन में फिर से सवाल कौंधा! आयुष और नेहा अपनी दादी जी का हाथ पकड़े आगे थे और मियूज़ियम में रखी चीजों के बारे में अपनी दादी जी को पढ़-पढ़ कर बताने में लगे थे| इधर मैं, मेरी गोदी में स्तुति और संगीता मुमताज़ की तस्वीर के पास खड़े थे, तभी संगीता ने स्तुति से सवाल पुछा; "बेटा, एक बात तो बता...मैं ज्यादा सुन्दर हूँ या मुमताज़?"

अपनी मम्मी का सवाल सुन स्तुति ने फौरन अपनी मम्मी की तरफ ऊँगली कर इशारा कर बता दिया की संगीता ज्यादा सुन्दर है| अब छोटे बच्चे झूठ थोड़े ही बोलेंगे ये सोच कर संगीता का दिल गदगद हो गया और वो अपनी सुंदरता पर गुमान करने लगी| जबकि असल बात ये थी की स्तुति ने अपनी मम्मी की तारीफ इसलिए की थी की कहीं उसे मम्मी से डाँट न पड़ जाए, अपनी बिटिया के मन की बता बस मैं जानता था इसलिए मेरे चेहरे पर एक शरारती मुस्कान थी|



अब संगीता को तो अपनी तारीफ सुनने का पहले ही बहुत शौक है इसलिए संगीता ने चुपचाप इशारे से नेहा को अपने पास बुलाया| नेहा के आते ही संगीता ने फिर वही सवाल दोहराया और नेहा ने भी अपनी छोटी बहन स्तुति की तरह अपनी मम्मी के डर के मारे संगीता को ही सबसे खूबसूरत कह दिया| इस समय संगीता का सर सातवे आसमान पर था और वो आँखों ही आँखों में मुझे इशारे कर के कह रही थी की; 'देखो, इस मुमताज़ से तो मैं ज्यादा सुन्दर हूँ! मेरे लिए क्या ख़ास बनवाओगे?' इधर मैं अपनी दोनों बिटिया के झूठ से परिचित था इसलिए मैं बस मुस्कुराये जा रहा था|

मुझे मुस्कुराते देख संगीता समझ गई की मैं उसका मज़ाक उड़ा रहा हूँ इसलिए उसने नेहा को माँ के पास भेज आयुष को चुपचाप इशारा कर बुलाया तथा उससे भी वही सवाल पुछा की मुमताज़ ज्यादा खूबसूरत है या मैं (संगीता)? अब एक तो आयुष को अपनी मम्मी की डाँट खाने की आदत थी और दूसरा वो जानता था की मेरे सामने उसकी मम्मी उसे कुछ नहीं कह सकती इसलिए आयुष को सूझी मस्ती| चेहरे पर शरारत भरी मुस्कान लिए आयुष मुझे देखने लगा और मैंने भी आयुष को एक मूक इशारा कर दिया| मेरा इशारा पाते ही आयुष ने फट से मुमताज़ की तस्वीर की ओर इशारा किया और मुमताज़ को अपनी मम्मी से ज्यादा खूबसूरत कह दिया!

आयुष की बात सुन संगीता को आया प्यार भरा गुस्सा और वो प्यारभरे गुस्से से चिल्लाई; "आयुष के बच्चे" तथा आयुष को पकड़ने के लिए उसके पीछे दौड़ पड़ी! अब आयुष को बचानी थी अपनी जान इसलिए वो मियूज़ियम से बाहर भाग गया|



अपने बड़े भैया और मम्मी को इस तरह दौड़ते देख स्तुति को बहुत मज़ा आया और स्तुति ने कुछ ज्यादा जोर से किलकारियाँ मारनी शुरू कर दी| वहीं जब माँ और नेहा, स्तुति की किलकारियाँ सुन मेरे पास आये तो मैंने उन्हें सारी बात बताई! इतने में संगीता आयुष का कान पकड़ कर उसे वापस ले आई और मुझ पर रासन-पानी ले कर चढ़ गई; "आप है न, बहुत मस्तीबाज़ी करते हो मेरे साथ! ऊपर से इस लड़के को अभी अपने रंग में रंग लिया है! घर चलो दोनों बाप-बेटे, आप दोनों की खटिया खड़ी करती हूँ!" संगीता का प्यारभरा गुस्सा देख स्तुति को बहुत मज़ा आ रहा था इसलिए वो बहुत हँस रही थी; "और तू भी सुन ले, ज्यादा मत हँस वरना तुझे बाथरूम में बंद कर दूँगी!" संगीता ने प्यार से स्तुति को धमकाया तो मेरी बिटिया रानी डरके मारे मेरे से लिपट गई! तब माँ ने बात सँभाली और संगीता की पीठ पर थपकी मारते हुए बोलीं; "मानु की देखा-देखि तुझ में भी बचपना भर गया है! चल अब...ताजमहल नज़दीक से देखते हैं|" माँ हँसते हुए बोलीं और हम सभी ताजमहल के चबूतरे पर आ पहुँचे|



ताजमहल को इतने नज़दीक से देख मेरे तीनों बच्चे मंत्र-मुग्ध हो गए थे, जहाँ एक तरफ आयुष के सवाल बचकाने थे वहीं दूसरी तरफ नेहा के सवाल सूझ-बूझ वाले और तथ्यों से जुड़े हुए थे| लेकिन सबसे मजेदार बातें तो स्तुति की थीं जो अपनी बोली-भासा में मुझसे पता नहीं क्या-क्या पूछ रही थी!

ताजमहल अंदर से घूम हम सब ताजमहल की दाईं तरफ आ कर बैठ गए| अब समय था संगीता को एक प्यारा सा सरप्राइज देने का| मैं तीनों बच्चों को साथ ले कर ताजमहल के पीछे आ गया जहाँ से हमें यमुना नदी बहती हुई नज़र आ रही थी, यहाँ मैंने अपने बच्चों को ज्ञान की कुछ बातें बताईं और नेहा-आयुष को उनकी मम्मी को बुलाने को भेजा| जैसे ही संगीता आई उसे मेरी आँखों में शैतानी नज़र आई, वो समझ गई की जर्रूर मेरे दिमाग में कुछ खुराफात चल रही है इसीलिए संगीता जिज्ञासु हो मुझे भोयें सिकोड़ कर देखने लगी!



"पिछली बार जब हम ताजमहल आये थे तो तुमने कुछ माँग की थी!” इतनी बात सुनते ही संगीता के गाल शर्म से लाल होने लगे क्योंकि उसे हमारा उस दिन का kiss याद आ गया था! “उस वक़्त तुम्हारी इच्छा मैंने आधे मन से पूरी की थी, आज कहो तो पूरे मन से तुम्हारी वो इच्छा पूरी कर दूँ?" मैंने संगीता से जैसे ही ये सवाल पुछा की संगीता के चेहरे पर खुशियों की फुलझड़ियाँ छूटने लगीं! संगीता ने आव देखा न ताव और सीधा हाँ में अपना सर हिला दिया|



उस समय स्तुति मेरी गोदी में पीछे बह रही यमुना नदी देखने में व्यस्त थी, तो मैंने इस मौके का फायदा उठाया और संगीता को अपने नज़दीक खींच उसके लबों से अपने लब भिड़ा दिए! हमें रसपान करते हुए कुछ सेकंड ही हुए थे की स्तुति ने पलट कर हमारी तरफ देखा| अपनी मम्मी के चेहरे को अपने इतने नज़दीक देख स्तुति समझी की वो मेरी पप्पी ले रही है इसलिए स्तुति को आया गुस्सा!

मेरी सारी पप्पी लेने का सारा ठेका स्तुति ने ले रखा था इसलिए स्तुति ने गुस्से से अपनी मम्मी के चेहरे को दूर धकेला और अपनी मम्मी पर गुस्से से चिल्लाई; "न..ई (नहीं)....मेले पपई!" स्तुति के कहने का मतलब था की ये मेरे पापा हैं और आप इनकी पप्पी नहीं ले सकते!



स्तुति द्वारा गुस्से किये जाने से संगीता को भी प्यारभरा गुस्सा आ गया और उसने स्तुति के गाल खींचते हुए कहा; "ओ लड़की! तुझे कहा था न की ये तेरे पापा बाद में और पहले मेरे पति हैं! और इनसे सबसे ज्यादा प्यार मैं करती हूँ....तेरे से भी ज्यादा प्यार!" अपनी मम्मी द्वारा यूँ गुस्सा किये जाने और अपनी मम्मी के मुझे ज्यादा प्यार करने की बात सुन मेरी बिटिया रानी को लगा की मेरे प्रति उसका प्यार कम और उसकी मम्मी का प्यार ज्यादा है| ये बात सुन स्तुति का नाज़ुक दिल टूट गया और स्तुति ने ज़ोर से रोना शुरू कर दिया!



अपनी बिटिया को यूँ रोते देख मैं एकदम से घबरा गया और मैंने स्तुति को लाड कर बहलाना शुरू कर दिया; "औ ले ले...मेरा बच्चा...नहीं-नहीं...रोते नहीं बेटा!" मेरे लाड करने पर भी जब स्तुति चुप न हुई तो मैंने स्तुति को खुश करने के लिए कहा; "बेटा, आपकी मम्मी मुझसे ज्यादा प्यार करतीं हैं तो क्या हुआ, मैं तो सबसे ज्यादा आपसे प्यार करता हूँ न? अब आप ही बताओ की जब मैं घर आता हूँ तो मैं सबसे पहले किसे बुलाता हूँ; आपको या आपकी मम्मी को?" मेरी बात सुन स्तुति का रोना कुछ कम हुआ था और मेरे अंत में पूछे सवाल के जवाब में स्तुति ने अपनी तरफ ऊँगली का इशारा कर जवाब भी दिया| "सबसे ज्यादा पप्पी मैं किसकी लेता हूँ? किसे गोदी ले कर लाड-प्यार करता हूँ?" मेरे पूछे सवाल के जवाब में स्तुति ने बड़े गर्व से अपनी तरफ इशारा करते हुए जवाब दिया| "फिर मैं आपसे ज्यादा प्यार करता हूँ न?" मेरे पूछे सवाल के जवाब में स्तुति ने फौरन हाँ में जवाब दिया और गुस्से से अपनी मम्मी को जीभ चिढ़ाई!

स्तुति से बात करते हुए मेरा सारा ध्यान स्तुति पर था इसलिए मैं जोश-जोश में कुछ ज्यादा ही बक गया! उधर संगीता ने जब सुना की मैं उसकी बजाए स्तुति से ज्यादा प्यार करता हूँ तो वो जल-भून कर राख हो गई और प्यारभरे गुस्से से मुझे घूरने लगी! जब मैंने संगीता का ये गुस्सा देखा तो मुझे एहसास हुआ की अपनी बिटिया को मनाने के चक्कर में मैंने अपनी परिणीता को नाराज़ कर दिया! मैं संगीता को मनाने की कोशिश करूँ, उसके पहले ही संगीता भुनभुनाती हुई माँ के पास लौट गई|



इधर मेरी प्यारी-प्यारी बिटिया रानी का रोना थम चूका था और अब स्तुति को मुझसे बातें करनी थी इसलिए स्तुति यमुना नदी की तरफ इशारा करते हुए मुझसे अपनी बोली-भाषा में सवाल पूछने लगी| करीब 5 मिनट बाद जब मैं माँ के पास लौटा तो मैंने पाया की संगीता ने माँ और बच्चों को स्तुति के मुझ पर अधिकार जमाने तथा रोने के बारे में सब बता दिया है, जिस कारण सभी के चेहरों पर शैतानी भरी मुस्कान तैर रही थी|

माँ ने मुझे अपने पास बैठने को कहा और फिर स्तुति को चिढ़ाने के लिए बोलीं; "बड़े साल हो गए मैंने मानु को लाड नहीं किया, आज तो मैं मानु को लाड करुँगी!" माँ की बात सुन मैं सोच में पड़ गया की आज आखरी माँ को अचानक मुझ पर इतना प्यार कैसे आ गया?! अभी मैं अपनी सोच में डूबा था की माँ मेरा मस्तक चूमने के लिए आगे बढ़ीं|

स्तुति मेरी गोदी में थी और जैसे ही उसने देखा की माँ मेरा मस्तक चूम रहीं हैं स्तुति ने थोड़ा प्यार से अपनी दादी जी को रोका और बोली; "no...no...no दाई! मेरे पपई हैं!" स्तुति की बात सुन माँ हँस पड़ीं और स्तुति के हाथ चूमते हुए बोलीं; "नानी! तेरा बाप बाद में, पहले मेरा बेटा है!" माँ ने बड़े प्यार से बात कही थी जिस पर स्तुति मुस्कुराने लगी|

फिर स्तुति की नज़र पड़ी अपने भैया और दिद्दा पर, अब स्तुति को उन्हें भी बताना था की मैं सिर्फ उसका पापा हूँ; " दिद्दा...अइया...मेले पपई हैं!" स्तुति मुझ पर अधिकार जमाते हुए बड़े गर्व से बोली| आयुष ने तो अपनी छोटी बहन की बात हँसी में उड़ा दी मगर संगीता को स्तुति को चिढ़ाना था इसलिए वो फट से बोली; "लाउड स्पीकर पर चिल्ला-चिल्ला कर सब को बता दे!" संगीता मुँह टेढ़ा करते हुए बोली, जिसपर स्तुति ने अपनी मम्मी को जीभ चिढ़ाई!
उधर स्तुति के मुझ पर अधिकार जमाने की बात सुन नेहा गुस्से से गर्म हो गई; "बड़ी आई मेरे पपई वाली! ये सिर्फ मेरे पापा जी हैं, तू सबसे बाद में पैदा हुई है!" नेहा चिढ़ते हुए बोली| मुझे लगा की अपनी दिद्दा का गुस्सा देख स्तुति रोयेगी मगर स्तुति ने फौरन अपनी दिद्दा को जीभ दिखा के चिढ़ाया और मेरे कंधे पर सर रख कर अपना चेहरा छुपा लिया| स्तुति के जीभ चिढ़ाने से नेहा को बड़ी जोर से मिर्ची लगी और वो स्तुति को मारने के लिए लपकी की तभी मैंने नेहा को एक पल के लिए शांत रहने को कहा| "बेटा, आप भैया के साथ खेलने जाओ!" ये कहते हुए मैंने स्तुति को ताजमहल के संगेमरमर के फर्श पर उतारा और आयुष को जिम्मेदारी देते हुए बोला; "आयुष बेटा, स्तुति का ध्यान रखना|" स्तुति को सफ़ेद और ठंण्डा पत्थर बहुत अच्छा लगा और वो सरपट दौड़ने लगी, वहीं आयुष भी एक अच्छा भाई होने के नाते स्तुति पर नज़र रखते हुए उसके पीछे दौड़ने लगा|



जब दोनों बच्चे चले गए तो मैंने नेहा को गोदी लिया और उसे समझाते हुए बोला; "बेटा, छोटे बच्चे मासूम होते हैं, उन्हें लगता है की सबकुछ उनका ही है और वो सबपर हक़ जमाते हैं| आप आयुष और स्तुति की बड़ी बहन हो, क्या आप जानते हो की बड़ी बहन माँ समान होती है?! इसलिए आपको यूँ गुस्सा नहीं करना चाहिए बल्कि प्यार से अपने छोटे भाई और छोटी बहन को समझाना चाहिए|" मेरी दी हुई ये सीख नेहा ने बड़े गौर से सुनी और उसका गुस्सा शांत होने लगा, जो बची-कुचि कसर थी वो मैंने नेहा के सर को चूमकर पूरी कर दी जिस कारण नेहा ख़ुशी से खिलखिलाने लगी|

"स्तुति, मैं भी खेलूँगी!" कहते हुए नेहा अपना गुस्सा थूक, स्तुति के पास दौड़ गई और तीनों बच्चे पकड़ा-पकड़ी का खेल-खेलने लगे|



नेहा के जाने के बाद मेरी माँ मेरे सर पर हाथ फेरते हुए बोलीं; "बेटा, मैंने बाप-बेटी का लाड-प्यार बहुत देखा है मगर जो प्यार...मोह...लगाव...अनोखा बंधन स्तुति और तेरे बीच है, वैसा प्यार मैंने आजतक नहीं देखा| कल जब तू घर पर नहीं था न, तब स्तुति अकेली अपने खिलोनो से खेलते हुए ‘पपई...पपई’ कहते हुए तेरा नाम रट रही थी| तेरे घर पर न होने पर स्तुति तुझे अपने गुड्डे-गुड़ियों में ढूँढती है और खूब खेलती है| कभी-कभी तेरी चप्पल या जूते पहनने की कोशिश करती है और उसका ये बालपन देख मेरे दिल को अजीब सा सुकून मिलता है| जब तुझे घर लौटने में देर हो जाती है तो स्तुति एकदम से घबरा जाती है और मेरी गोदी में आ कर पूछती है की तू घर कब आएगा? और आज देख, कैसे उसने हम सभी को परे धकेलते हुए साफ़ कर दिया की वो तुझसे सबसे ज्यादा प्यार करती है तथा उसके सिवा कोई भी तेरी पप्पी न तो ले सकता है न ही दे सकता है!" माँ की बात सुन मुझे ज्यादा हैरानी नहीं हुई क्योंकि मैं जानता था की स्तुति का मेरे प्रति प्रेम सबसे अधिक है| वो अपनी माँ के बिना रह सकती थी मगर मेरे बिना एक दिन भी नहीं रह सकती! परन्तु मुझे हैरानी ये जानकार हुई की मेरी लाड़ली बिटिया मेरी गैरमौजूदगी में मुझे अपने खिलौनों में ढूँढती है!



बहरहाल, ताजमहल से घूम कर हम पहुँचे आगरा की मशहूर सत्तो लाला की बेड़मी पूड़ी खाने| खाना शुरू करने से पहले मैंने सभी को आगाह करते हुए कहा; "आलू की सब्जी बहुत मिर्ची वाली है इसलिए जब मिर्ची लगे तो पानी नहीं गरमा-गर्म जलेबी खानी होगी|" आयुष को तो पहले ही मीठा बहुत पसंद था इसलिए सबसे पहले आयुष की गर्दन हाँ में हिली|

सब ने पहला निवाला खाया और सभी को थोड़ी-थोड़ी मिर्ची लगी तथा सभी ने जलेबी खाई| वहीं, स्तुति को मैंने केवल बेड़मी पूड़ी का एक छोटा सा निवाला खिलाया जो की स्तुति को स्वाद लगा, लेकिन जब स्तुति ने जलेबी खाई तो स्तुति ख़ुशी से अपना सर दाएँ-बाएँ हिलाने लगी!



शाम के 6 बज रहे थे और अब समय था स्टेशन जाने का इसलिए पंछी ब्रांड का डोडा पेठा ले कर हम स्टेशन पहुँचे| स्टेशन पहुँच कर पता लगा की ट्रैन लेट है इसलिए हम सभी वेटिंग हॉल में बैठ गए| संगीता अब भी मुझसे नाराज़ थी इसलिए मुझे संगीता को मनाना था, मैंने दोनों बच्चों को माँ के साथ बातों में व्यस्त किया तथा संगीता का हाथ चुपके से थाम वेटिंग हॉल से बाहर आ गया| "जान..." मैं आगे कुछ कहते उससे पहले ही संगीता प्यारभरे गुस्से से मुझ पर बरस पड़ी; "जा के लाड-प्यार करो अपनी बेटी को! उसके आगे मेरा क्या मोल?"

"जान...स्तुति की माँ हो तुम, यानी वो तुम्हारा अंश है| अब मैं तुमसे ज्यादा प्यार करूँ या तुम्हारे अंश से ज्यादा प्यार करूँ, बात तो एक ही हुई न?!" मैंने बड़े प्यार से संगीता के साथ तर्क किया जिससे संगीता सोच में पड़ गई| लकिन इससे पहले की संगीता मेरा तर्क समझे मैंने फौरन संगीता का ध्यान बँटा दिया; "अच्छा जान एक बात बताओ, जब पति का फ़र्ज़ होता है अपनी पत्नी की इच्छाएँ पूरी करना तो क्या पत्नी का फ़र्ज़ नहीं होता की वो अपने पति की सारी इच्छाएँ पूरी करे?" मेरे पूछे सवाल से संगीता अचम्भित हो गई की आखिर मेरी ऐसी कौन सी इच्छा है जो की उसने अभी तक पूरी नहीं की|

खैर, चूँकि मुझे मेरे सवाल का जवाब नहीं मिला था इसलिए मैंने अपना सवाल फिर से दोहराया, इस बार संगीता ने हाँ में सर हिलाया और मैंने अपनी इच्छा प्रकट की; "जान, जब हम सब मुन्नार ट्रैन से जा रहे थे न, तब मेरा मन था की चलती ट्रैन में वो...." इतना कह मैं शर्मा गया और खामोश हो गया| उधर संगीता ने जब मेरी आधी बात सुनी तो संगीता आँखें फाड़े मुझे देखने लगी! "उस बार न सही, इस बार तो..." इतना कह मैं शर्मा कर खामोश हो गया और संगीता की प्रतिक्रिया जानने को उत्सुक हो गया|



"चलती ट्रैन में? इतने सारे लोगों की मौजूदगी में?" संगीता अपने होठों पर हाथ रखे हुए हैरत से भर कर बोली| संगीता का सवाल सुन मैंने संगीता के साथ तर्क किया; " ताजमहल में हजारों लोगों की मौजूदगी में जब हम kiss कर रहे थे तब तो तुमने कुछ नहीं कहा? अरे हमारी वो kissi तो CCTV कैमरा में भी कैद हो गई होगी! जबकि ट्रैन में तो किसी को कुछ पता भी नहीं चलेगा!" जब संगीता को पता चला की हमारा ताजमहल वाला kiss CCTV कैमरा में कैद हो चूका है तो संगीता के गाल लाज के मारे लाल हो गए! अब चूँकि संगीता नरम पड़ रही थी तो मौके का फायदा उठा कर मुझे संगीता को ट्रैन में प्रेम-मिलाप के लिए मनाना था; "जान, मैंने सब कुछ सोच रखा है, तुम्हें बस थोड़ी सी हिम्मत दिखानी है|" ये कहते हुए मैंने संगीता को सारा प्लान सुनाया और अपनी ख़ुशी का वास्ता दे कर मना ही लिया|



ट्रैन आते-आते रात के 9 आज गए थे, ऊपर से ट्रैन चल भी बहुत धीमे रही थी क्योंकि उसे ट्रैक पूरी तरह क्लियर नहीं मिल रहा था| इधर स्तुति अपनी दादी जी की गोदी में सो चुकी थी वहीं दोनों बच्चे भी नींद के कारण ऊँघ रहे थे| जब माँ की आँख लग गई तो मैंने संगीता को इशारा किया और हम दोनों ट्रैन के बाथरूम में पहुँचे| रात के लगभग 11 बज गए थे और ज्यादातर मुसाफिर सो चुके थे| हिलती हुई ट्रैन के बाथरूम में जगह तो कम थी ही, ऊपर से हमारे ट्रैन के बाथरूम में घुसते ही ट्रैन ने एकदम से रफ़्तार पकड़ ली| ट्रैन इतनी तेज़ हिल रही थी की हम दोनों ठीक से खड़े भी नहीं हो पा रहे थे, फिर किसी के द्वारा पकड़े जाने का डर था सो अलग! परन्तु इन सभी परेशानियों के बाद भी हमारा प्रेम-मिलाप का उत्साह कम नहीं हो रहा था बल्कि अब तो हमारे मन में अजब सा रोमांच पैदा हो गया था!

15-20 मिनट की फटाफट मेहनत कर हम बाथरूम से बाहर निकले और अपनी-अपनी जगह चुप-चाप बैठ गए| इस रोमांचकारी अनुभव से संगीता के चहरे पर ऐसी मुस्कान फैली थी की उसे देख कर मेरा मन फिर से प्रेम-मिलाप का बन गया था! मैंने कई बार संगीता को फिर से चलने का इशारा किया मगर संगीता मेरे इशारे को समझ ऐसी लजाई की उसने अपने दोनों हाथों से अपना चेहरा छुपा लिया!



रात एक बजे हम अब घर पहुँचे, सभी इतना थके थे की कपड़े बदलकर हम सब सो गए| अगली सुबह मेरे लिए बड़ी यादगार सुबह थी क्योंकि अगली सुबह मैंने अपनी प्यारी बिटिया का बड़ा ही मनमोहक रूप देखा|



रात को देर से आने के कारण माँ ने बच्चों के स्कूल की छुट्टी करवा दी, नतीजन दोनों बच्चे और मैं देर तक सोते रहे| अब स्तुति की नींद पूरी हो चुकी थी इसलिए वो जाग चुकी थी| माँ को जल्दी उठने की आदत है इसलिए वो भी समय के अनुसार जल्दी जाग गईं| संगीता को भी माँ के लिए चाय बनानी थी इसलिए वो भी जाग गई| चाय पी कर संगीता ने कपड़े तह लगा कर पलंग पर रखे ही थे की मेरी छोटी बिटिया मुझे ढूँढ़ते हुए आ गई| "पपई?" कहते हुए जब स्तुति ने मुझे पुकारा तो संगीता ने स्तुति को गोदी ले कर पलंग के बीचों-बीच बिठा दिया और बोली; "अब जी भर कर अपने पापा जी को तंग कर, नाक में दम कर दे इनकी! तब इन्हें समझ आएगा की तू कितनी शरारती है!" संगीता मेरी लाड़ली बेटी को मेरे खिलाफ उकसा कर चली गई मगर मेरी बिटिया मुझे तंग नहीं बल्कि मुझे प्यार करती थी| स्तुति ने मेरे दाहिने गाल पर अपनी सुबह की गुड मॉर्निंग वाली पप्पी दी और "पपई...पपई" कह मुझे जगाने लगी|

"बेटू...,मुझे नीनी आ रही है!" मैंने कुनमुनाते हुए कहा| मेरी बचकानी बात सुन स्तुति खिलखिला कर हँसने लगी| अगले ही पल मेरी बिटिया के भीतर का माँ का रूप सामने आया और स्तुति ने मेरे मस्तक को थपथपा कर मुझे सुलाना शुरू कर दिया| जब स्तुति सोती नहीं थी तब मैं उसे प्यार से थपथपा कर सुला दिया करता था, शायद आज वही प्यार मेरी बिटिया मुझे दिखा रही थी|

स्तुति के मेरा सर थपथपाने से मेरे चेहरे पर संतोषजनक मुस्कान फैली हुई थी और अब मुझे बड़ी प्यारी सी नींद आ रही थी| उधर लघभग दो मिनट मेरा सर थपथपाने के बाद स्तुति ऊब गई और उसने मेरे सिरहाने पड़ी अपनी गुड्डा-गुड़िया उठाली तथा उनके साथ खेलने लगी| गौर करने वाली बात ये थी की अपने गुड्डे-गुड़िया से खेलते हुए भी मेरी बिटिया के मुख से बस मेरा नाम निकल रहा था; "पपई...पपई...पपई...पपई...पपई!" स्तुति को अपना नाम रटता हुआ देख मुझे माँ की कही बात याद आई की मेरी गैरमौजूदगी में मेरी बिटिया मेरा नाम रट कर अपना मन बहलाती है! स्तुति को अपने गुड्डे पर इतना प्यार आ रहा था की उसने गुड्डे को मुझे समझ गुड्डे के गाल पर अपनी पप्पी शुरू कर दी! मैं ये मनमोहक दृश्य अपनी अधखुली आँखों से देख रहा था तथा मंद-मंद मुस्कुरा रहा था|



खैर, कुछ देर बाद मेरी बिटिया का चंचल मन गुड़िया-गुड्डे से खेल कर भर गया था इसलिए स्तुति ने खेलने के लिए कुछ और ढूँढने को अपनी गर्दन इधर-उधर घुमानी शुरू कर दी| मैंने सोचा की अब मेरी बिटिया कुछ नै शैतानी करेगी इसलिए मैंने सोचा की क्यों न मैं एक छोटी सी झपकी मार लूँ!

उधर पलंग पर स्तुति के खेलने लायक कुछ नहीं था, थे तो बस संगीता द्वारा तह लगा कर रखे हुए कपड़ों की एक मीनार| इस कपड़े की मीनार के सबसे ऊपर संगीता की साडी थी जो की स्तुति को कुछ ज्यादा ही पसंद थी| स्तुति ने साडी से खेलने के लिए उस साडी को खींच लिया तथा कपड़ों की मीनार गिरा कर फैला दी! अपनी पसंदीदा साडी से खेलने के चक्कर में स्तुति ने अपनी मम्मी की तह लगा कर रखी साडी खोल कर फैला दी तथा उस साडी को अपने पूरे शरीर से जैसे-तैसे लपेट लिया! “पपई? पपई?" कह स्तुति ने मुझे पुकारना शुरू किया तब मैंने अपनी आँख खोली|

जब मेरी आँखें खुलीं तो जो दृश्य मैंने देखा उसे देख मेरा दिल जैसे ठहर सा गया! मेरी लाड़ली बिटिया अपनी मम्मी की साडी लपेटे, सर पर घूँघट किये मुझे देख मुस्कुरा रही थी! अपनी बिटिया का ये रूप देख उस पल जैसे मेरा नाज़ुक सा दिल घबरा कर धड़कना ही भूल गया! 'मेरी बेटी इतनी बड़ी हो गई?' अपनी बिटिया को साडी लपेटे देख मुझे ऐसा लग रहा था मानो मेरी बिटिया शादी लायक बड़ी हो गई, यही कारण था की मेरे मन में ये सवाल कौंधा|

लेकिन फिर अगले ही पल मैंने अपनी बिटिया को मुस्कुराते हुए देखा और तब मुझे एहसास हुआ की; 'नहीं...अभी मेरी लाड़ली इतनी बड़ी नहीं हुई की मैं उसका कन्यादान कर दूँ!' मैंने रहत भरी साँस लेते हुए मन में सोचा|

दरअसल, अपनी बिटिया का ये रूप देखने के लिए मैं अभी तक मानसिक रूप से सज नहीं था| एक बाप को कन्यादान करते समय जो दुःख...जो भय होता है वो, एहसास मैंने इन कुछ पलों में ही कर लिया था, तभी तो मैं एकदम से डर गया था|



"मेलि प्याली प्याली बिटिया! मेलि लाडो रानी, इतनी जल्दी बड़े न होना, अभी आपकी शादी करने के लिए मैं मानसिक रूप से अक्षम हूँ!” मैंने उठ कर स्तुति को गोदी में उठाया तथा उसके सर पर से घूँघट हटाते हुए कहा| मेरे तुतला कर बोलने से मेरी बिटिया का दिल पिघल गया और वो शर्मा कर मेरे गले से लिपट कर कहकहे लगाने लगी|



स्तुति को बिस्तर पर खेलता हुआ छोड़ मैं तैयार होने लगा| इधर स्तुति ने फिर से अपनी मम्मी की साडी ओढ़ ली और दुल्हन बन कर अपने खिलोनो से खेलने लगी| इतने में माँ मुझे ढूँढ़ते हुए कमरे में आईं और स्तुति को यूँ साडी से घूँघट किये खेलता देख बोलीं; "अरे, ई के हुऐ! ई दुल्हिन कहाँ से आई?" माँ की बात सुन स्तुति ने अपनी दादी जी को देखा और खिलखिला कर हँसते हुऐ अपना घूँघट हटाया और अपनी दादी जी को देख बोली; "दाई....सू…गी" स्तुति ऐसे बोली मानो बता रही हो की दादी जी मुझे पहचानो, मैं आपकी शूगी हूँ!

ठीक तभी मैं बाथरूम से नहा कर निकला, मैंने दादी-पोती की बातें सुन ली थीं इसलिए मेरा मन प्रसन्नता से भरा हुआ था| पीछे से आई संगीता और उसने जब स्तुति को यूँ अपनी साडी लपेटे देखा तो उसे कल रात कही मेरी बात याद आई की स्तुति उसी का एक अंश है| एक पल के लिए संगीता के चेहरे पर मुस्कान आई लेकिन फिर अगले ही पल उसके चेहरे पर प्यारभरा गुस्सा अपनी तह लगा कर रखी हुई साडी के तहस-नहस होने पर उभर आया और वो स्तुति को प्यारभरे गुस्से से डाँटते हुए बोली; "शैतान लड़की! तूने तह लगा कर रखे सारे कपड़े तहस-नहस कर दिए!"

तब माँ अपनी पोती का बचाव करते हुऐ बोलीं; "माफ़ कर दे स्तुति को बहु!" जैसे ही माँ ने स्तुति के लिए संगीता से माफ़ी माँगी, वैसे ही स्तुति ने अपने कान पकड़े और अपनी मम्मी से बोली; "सोल्ली मम-मम!" माँ और अपनी बेटी का सॉरी सुन संगीता झट से पिघल गई और मुस्कुराने लगी| इधर माँ स्तुति को लाड करते हुऐ बोलीं; "चल बेटा, मैं तुझे अपनी एक चुन्नी देती हूँ| तू उसे साडी समझ कर लपेट लेना|" अपनी दादी जी की बात सुन स्तुति उत्साह से भर गई और दोनों दादी-पोती माँ के कमरे में चले गए| फिर तो माँ पर ऐसा बचपना सवार हुआ की उन्होंने अपनी चुन्नी स्तुति को साडी की तरह पहनाई और छोटा सा पल्लू उसके सर पर सजा दिया| यही नहीं, माँ ने तो अपनी पोती के माथे पर छोटी सी बिंदी भी लगाई, आँखों में काजल लगाया और हाथों में चूड़ी पहना कर एकदम भरतीय नारी की तरह सजा दिया|

सच कहूँ तो मेरी छोटी सी बिटिया साडी में बड़ी प्यारी लग रही थी, इतनी प्यारी की कहीं उसे मेरी ही नज़र न लग जाए इसलिए मैंने स्तुति को खुद काला टीका लगाया|



दिन प्यारभरे बीत रहे थे की एक ऐसा दिन आया जब मेरे बेटे का मासूम सा दिल टूट गया!

स्कूल से लौट आयुष एकदम से गुमसुम हो कर बैठा था| अपने पोते को गुमसुम देख माँ ने आयुष को बहला कर सारी बात जाननी चाही मगर आयुष कुछ नहीं बोला| आखिर माँ ने नेहा से आयुष के खमोश होने का कारण पुछा तो नेहा ने सारा सच कह दिया; "इसकी गर्लफ्रेंड बीच साल में स्कूल छोड़ रही है इसलिए ये तब से मुँह फुला कर बैठा है!" नेहा की बात सुन माँ ने आयुष को बहलाने की बहुत कोशिश की, खूब लाड-प्यार किया, उसे तरह-तरह के लालच दिये मगर आयुष गुमसुम ही रहा| हारकर माँ ने मुझे साइट पर फ़ोन किया और सारी बात बताई| मैं अपने बेटे के दिल की हालत समझता था इसलिए मैं सारा काम संतोष के जिम्मे लगा कर घर आ गया| रास्ते में मैंने फलक के पापा से बात की और उन्होंने मुझे बताया की उनका अचानक ट्रांसफर हो गया है इसलिए उन्हें यूँ अचानक फलक का स्कूल बीच साल में छुड़वा कर जाना पड़ रहा है| जब मैंने उन्हें बताया की फलक के जाने से आयुष गुमसुम हो गया है तो उन्हें आयुष के लिए बहुत बुरा लगा; "आयुष छोटा है और जल्दी बातों को दिल से लगा लेता है, मैं उसे समझाऊँगा|'" मैंने बात खत्म करते हुए कहा|



घर पहुँच मैंने सबसे पहले आयुष को पुकारा और अपनी बाहें खोलीं तो आयुष दौड़ कर मेरे गले लग गया| आयुष को गोदी लिए हुए मैंने छत पर आ गया और पानी की टंकी के ऊपर बैठ अपने बेटे को समझाने लगा;

"बेटा, मैं आपका दुःख महसूस कर सकता हूँ|" मैंने बात शुरू करते हुए आयुष से कहा| मेरी बात सुन आयुष आँखों में सवाल लिए मुझे देखने लगा की भला मैं कैसे उसका दुःख महसूस कर रहा हूँ| अपने बेटे के मन में उठे सवाल का जवाब देते हुए मैं बोला; "जब मैं नर्सरी में था तब मेरी भी गर्लफ्रेंड थी जिसके साथ मेरी गहरी दोस्ती थी| माँ ने आपको उसके बारे में बताया ही होगा?" आयुष मेरी गर्लफ्रेंड के बारे में जानता था इसलिए आयुष सर हाँ में हिलाने लगा| "जब हम दोनों पास हो कर फर्स्ट क्लास में आये तब उसके मम्मी-पापा ने उसका स्कूल बदल दिया| ये बात जब मुझे पता चली तो मैं भी आपकी तरह बहुत दुखी हुआ| दुखी और बुझे मन से मैं घर लौटा और आपकी ही तरह खामोश हो कर लेट गया| मेरी माँ यानी आपकी दादी जी ने मुझे बहुत लाड-प्यार किया मगर मैं ये सोच कर दुखी था की अगले दिन जब मैं स्कूल जाऊँगा तब मेरी गर्लफ्रेंड वहाँ नहीं होगी, ऐसे में मैं किसके साथ अपना टिफ़िन शेयर करूँगा? किस्से बात करूँगा? किसके साथ खेलूँगा?

मुझे यूँ उदास और गुमसुम देख आपके दादा जी और दादी जी बड़े दुखी थे| उन्होंने मुझे हँसाने-बुलाने की बहुत कोशिश की मगर मेरा मन किसी चीज़ में नहीं लग रहा था| दोपहर से शाम हुई और शाम से रात मगर मैं गुमसुम ही बैठा रहा| मैंने गौर किया तो पाया की मेरे कारण मेरे माँ-पिताजी उदास बैठे हैं और पूरे घर में सन्नाटा पसरा हुआ है| उस पल मुझे बहुत बुरा लगा की मेरे कारण मेरे माँ-पिताजी, जो की मुझसे इस दुनिया में सबसे ज्यादा प्यार करते हैं..वो उदास बैठे हैं! मैंने खुद को सँभाला और सबसे पहले भगवान जी से माफ़ी माँगी और मुझे आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करने को कहा| फिर मैंने अपनी माँ और पिताजी के पॉंव छू कर माफ़ी माँगी तथा उन्हें सारी बात बताई| मेरी सारी बात सुन माँ यानी आपकी दादी जी ने मुझे जो सीख दी वो मैं आज आपको देता हूँ;

बेटा, हमारी ज़िन्दगी में बहुत से लोग आते-जाते हैं, लेकिन लोगों के जाने का दुःख इस कदर नहीं मनाते की हम अपने परिवार को ही दुखी कर दें! अभी आपकी ज़िन्दगी में बहुत से दोस्तों ने आना है, कुछ दोस्त हमेशा के लिए आते हैं जैसे आपके दिषु चाचू, जो की सारी उम्र आपका साथ निभाते हैं तो कुछ दोस्त केवल दो पल के लिए आते हैं| यूँ किसी के आपके जीवन से चले जाने का शोक मनाना अच्छी बात नहीं|" हम बाप-बेटों के जीवन का ये हिस्से पूर्णतः एक जैसा था इसलिए आयुष जानता था की मैं जो भी कुछ कह रहा हूँ उसे मैंने खुद भोगा है, यही कारण है की आयुष मेरी बातें बड़ी गौर से सुन रहा था| वहीं माँ द्वारा मुझे दी हुई सीख आयुष को बहुत अच्छे समझ आ गई थी|



बहरहाल, आयुष के अचानक उदास हो जाने से, हमारा परिवार जो दुःख भोग रहा था उस दुःख से अब आयुष को परिचय करवाना जर्रूरी था; "बेटा, आपको पता है आज जब से आप स्कूल से आये हो आपके उदास हो जाने से हम सब पर क्या बीती है? आपकी दादी जी आपको हँसाने-बुलाने को इतनी कोशिश कर चुकी हैं की हार मान कर वो उदास बैठीं हैं! आपकी मम्मी जो आपकी हँसी-बोली सुन कर हमेशा खुश रहतीं थीं, उन्होंने दोपहर को खाना ही नहीं खाया! आपकी दीदी नेहा अपने कमरे में चुप-चाप लेटी हुई है! यहाँ तक की आपकी छोटी सी, प्यारी सी बहन स्तुति भी गुमसुम बैठी है! मुझे इस सब के बारे में आपकी दादी जी ने बताया और मैं अपना सब काम छोड़- छाड़ कर यहाँ सिर्फ आपके लिए भागा आया ताकि मैं अपने लाडले बेटे को हँसा-बुला सकूँ| क्या आपकी दोस्त फलक आपको हम सब से ज्यादा प्यारी है? क्या उसके स्कूल बदल लेने से आप इतना दुखी हो की आपको हम सबका दुःख नहीं दिख रहा?" मेरे पूछे प्रश्नों को सुन आयुष भावुक हो गया और उसकी आँखें भर आई| आयुष मेरे सीने से लिपट कर रोने लगा तथा रोते हुए बोला; "सॉरी...पापा जी....मुझे...माफ़...कर दीजिये!" इस समय आयुष को रोने देना जर्रूरी था ताकि उसके मन से उसकी दोस्त के स्कूल छोड़ने का सारा ग़म निकल जाए| मैंने आयुष को अपनी बाहों में कैद कर लिया और उसे जी भर कर रोने दिया|

करीब मिनट भर रोने के बाद आयुष चुप हुआ तो मैंने आयुष को लाड करना शुरू किया; "मेरा बहादुर बेटा, आई ऍम सो प्राउड ऑफ़ यू! आगे से आपको ज़िन्दगी में जब भी लगे की आप बहुत उदास हो तो एक बार अपने परिवार को देखना और सोचना की आपके हार मानने से, आपके उदास होने से आपके परिवार पर क्या बीतेगी? ये सवाल सोचते ही आपकी सारी उदासी, सारी परेशानियाँ हार जाएँगी!

हम लड़कों के ऊपर अपने परिवार की सारी जिम्मेदारी होती है, हमारे यूँ हार मानने से, उदास होने से हमारा परिवार टूटने लगता है इसलिए हालात कैसे भी हों कभी हार नहीं माननी, कभी यूँ उदास नहीं होना..बल्कि आ कर सीधा मुझसे या अपनी मम्मी से बात करनी है ताकि हम मिलकर समस्याओं का हल मिल कर निकाल सकें|" देखा जाए तो मेरी कही ये सब बातें आयुष जैसे छोटे बच्चे के लिए बहुत बड़ी थीं मगर मुझे ये देख कर ख़ुशी हुई की आयुष ने मेरी दी हुई ये सीख अपने मन में बसा ली और जीवन में आजतक कभी उदासी का मुँह नहीं देखा|



हम बाप-बेटे को छत पर आये हुए 1 घंटा होने को आया था इसलिए माँ, संगीता, स्तुति और नेहा छत पर आ पहुँचे| माँ ने जब हम बाप-बेटों को टंकी के ऊपर बैठे देखा तो माँ ने गुस्सा करते हुए हमें नीचे उतरने को कहा| नीचे उतर कर आयुष ने अपनी दादी जी तथा अपनी मम्मी के पाँव छू कर उनसे माफ़ी माँगी; "दादी जी…मम्मी…मुझे माफ़ कर दीजिये की मैंने ऐसे उदास हो कर आपको दुःख पहुँचाया| मैं वादा करता हूँ की आज के बाद मैं कभी उदास हो कर आप सभी को दुःख नहीं दूँगा|" एक छोटे से बच्चे के मुख से इतनी बड़ी बात सुन माँ और संगीता का दिल भर आया और दोनों ने मिलकर आयुष को लाड-प्यार किया|

उधर स्तुति अपने बड़े भैया को सबसे माफ़ी माँगते हुए बड़े प्यार से देख रही थी| जब आयुष को सब ने लाड-प्यार कर लिया तो स्तुति ने अपने भैया को पुकारा; "आइया...चो...को (चॉकलेट)" ये कहते हुए स्तुति ने अपने बड़े भैया आयुष को खुश करने के लिए अपनी आधी खाई हुई चॉकलेट दी| आयुष ने हँसते हुए स्तुति की आधी खाई हुई चॉकलेट ले ली और बोला; "स्तुति, बाकी की चॉकलेट कहाँ गई?" आयुष के पूछे सवाल के जवाब में स्तुति मसूड़े दिखा कर हँसने लगी और तब हमें पता चला की स्तुति आधी चॉक्लेट खुद खा गई!


"चॉकलेट तो ये पिद्दा आयुष के लिए लाई थी मगर सीढ़ी चढ़ते हुए इस शैतान को लालच आ गया और इस शैतानी की नानी ने आधी चॉकलेट खुद ही खा ली! " नेहा ने स्तुति की चुगली की जिसपर हम सभी ने जोरदार ठहाका लगाया!

जारी रहेगा भाग - 9 में...
Bdiya pyara, some emotional update gurujii :love:
Sweet and simple :love2:

नेहा ने स्तुति को डाँटते हुए कमरे से भगा दिया| बेचारी स्तुति रुनवासी हो कर चली गई
नेहा का गुस्सा अपनी मम्मी जैसा था, वो स्तुति पर बहुत जल्दी गुस्सा हो जाती थी और डाँट लगा कर सबक सिखाती थी|

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Bhouji ka asar pad gya h lgta h :sad:

15-20 मिनट की फटाफट मेहनत कर हम बाथरूम से बाहर निकले और अपनी-अपनी जगह चुप-चाप बैठ गए|
Tharki Readers gang after reading this :-

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Scene to dikhaya hi nhi :dazed:

अपनी बिटिया का ये रूप देखने के लिए मैं अभी तक मानसिक रूप से सज नहीं था| एक बाप को कन्यादान करते समय जो दुःख...जो भय होता है वो, एहसास मैंने इन कुछ पलों में ही कर लिया था, तभी तो मैं एकदम से डर गया था|

aamir-khan-smiling-vs-crying-meme-template-3-idiots-768x432
:weep:

Aur last me ayush wala scene to emotional tha gurujii :cry2:

images-5
 
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Akki ❸❸❸

ᴾʀᴏᴜᴅ ᵀᴏ ᴮᴇ ᴴᴀʀʏᴀɴᴠɪ
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Waiting for next Update gurujii :elephant:
 

Akki ❸❸❸

ᴾʀᴏᴜᴅ ᵀᴏ ᴮᴇ ᴴᴀʀʏᴀɴᴠɪ
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पहले आपको आज के शुभ दिन.................यानी आज आपके जन्मदिन की बधाई दे दूँ.......................
Are bdhai ho gurujii jnmdin ki :hug:

Apki sabhi icha puri ho

Aap jio hzaro saal
Saal me din ho ek hzar :D

:beer:
 
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Rockstar_Rocky

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