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Incest एक अनोखा बंधन - पुन: प्रारंभ (Completed)

Abhi32

Well-Known Member
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प्रिय मित्रों, पाठकों और भाइयों

आज का ये update मेरे लिए बहुत भावुक पल था| उस पल को आज याद करते हुए मेरी आँखें कितनी ही बार नम हुईं...यही कारण था की मुझे ये update लिखने में इतना समय लगा!

आप सभी ये update आराम से पढ़ें और उस दृश्य की कल्पना करें जब ये सब घटित हुआ होगा!

आपके comments की प्रतीक्षा में! 🙏 :verysad:
Nice and emotional update bhai.Aisa is umra me hota hai jab bachhe ko kisi ki advice ya suggestions achhe nahi lagte hai ,par yaha neha puri tarah se galat hai,use aisa nahi karna chaiye .kya abhi bhi neha ke sath apka relation accha nahi hai?
 

Rekha rani

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आज का अपडेट सच मे दिल को रुलाने वाला अपडेट है, एक बेटी जिसके लिए अपना पापा ही सब कुछ था, आज तक जो प्यार हमने यहाँ पढ़ा है उसका ऐसे अंत सच मे बहुत डरावना है, नेहा के साथ इस समय बहुत कुछ हो रहा होगा जिससे उसका माइंड वाश हुआ है, आज के अपडेट ने सच मे डरा दिया है, अगर ऐसा कुछ मेरी गुड़िया ने किया तो कैसे सहन कर पाऊँगी , अब तो आने वाले अपडेट का इंतजार है आपने कैसे नेहा को संभाला होगा ताकि मुझे भी कुछ सीखने को मिले, अगर मैं इस समय इस हालत में होती तो कसम से नही सह पाती, और कुछ न कुछ गलत कर बैठती , आजकल के बच्चे समझ नही पा रहे मा बाप को , मा बाप के प्रेम का कोई मोल नही समझता उनके लिए सिर्फ फ़र्ज़ है हमारा लेकिन अपना फर्ज वो नही समझते, उनको अपने भले बुरे से कोई मतलब नही सिवाए अपनी आजादी से,
सच मे मुझे भी कोई टिप्स देना ताकि अपनी गुड़िया को ऐसी सिचुएशन में संभाल सकू।
आपकी मनोस्थिति को समझ कर मन बहुत व्यथित है, और मन में ये जिज्ञासा भी है कि नेहा में इतना बदलाव कैसे आया जो लड़की अभी तक अपने पापा की इतनी care करती थी पूरे परिवार को संभालने की हिम्मत रखती थी, वो कैसे बदल गयी अचानक से,
आज की बातों का जब संगीता जी को मालूम चला होगा तो उन पर क्या बीती होगी, नेहा ने तो आज अभी तक कि आपकी उस पर की गई आपके प्यार care, परवरिश सब पर सवाल खड़े कर दिए, उसके मन मे जो सौतेले पन का सवाल कैसे आ गया,
आज मन बहुत विचलित हो गया है, अब तक का मेरे लिए सबसे सॉकिंग अपडेट है,
अगले अपडेट का इनतजार रहेगा।
 
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Sआपके प्यारभरे प्रोत्साहन के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद! :thank_you: :dost: :hug: :love3:

Review और comment की चिंता मत करो, आप अपनी पढ़ाई पर ध्यान दो| जब समय मिले तो मन हल्का करने के लिए पढ़ना| God Bless You and Best of Luck for your exams! :hug:

FYI नई update आज रात आएगी! :announce: जब समय मिले तो अवश्य पढ़ना|
YouAlreadyKnowMe... Sangeeta ji manu bhaiya samjh gye or aap nhi... :verysad::verysad::verysad::sad::sad::sad::sadwavey::sadwavey::sadwavey:
 
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अंतिम अध्याय: प्रतिकाष्ठा
भाग - 10


अब तक अपने पढ़ा:


उस दिन के बाद से नेहा जब भी अपने दोस्तों के साथ घूमने जाती तो केवल दिन में और किसी भी हाल में उसे शाम 5 बजे से पहले घर लौटना होता था| लेकिन फिर आगे चल कर नेहा के पढ़ाई में हमेशा अव्वल आने और जिम्मेदारी को देखते हुए माँ ने समय की ये लक्ष्मण रेखा और बढ़ा दी| अब नेहा को शाम 7 बजे तक घर आने का हुक्म मिल चूका था, जिससे नेहा बहुत खुश थी|


समय हँसी-ख़ुशी बीत रहा था... और फिर एक ऐसा भी दिन आया की मेरी लाड़ली बेटी नेहा इतनी बड़ी हो गई की मेरे कँधे तक आने लगी!



अब आगे:


नेहा
अब बड़ी क्लास में आ गई थी, तो अब मैं नेहा को गोदी ले कर लाड नहीं करता था| नेहा को मेरा स्नेह केवल गले लग कर या उसके मस्तक पर पप्पी के रूप में मिलता जिससे नेहा बहुत खुश होती|



ज्यों-ज्यों नेहा बड़ी हो रही थी, त्यों-त्यों उसके व्यवहार में बदलाव आने लगा था| सब बात सर झुका कर मानने वाली मेरी बेटी नेहा अब थोड़ी बाग़ी हो गई थी| जब कभी नेहा होमवर्क खत्म कर अपने मोबाइल में घुसी होती तो संगीता उसे झिड़कते हुए कहती; "सारा दिन मोबाइल में घुसी रहती है, कभी पढ़ाई भी किया कर!" अपनी मम्मी के इस तंज के जवाब में नेहा फौरन पलट कर चिढ़ते हुए बोलती; "होमवर्क खत्म कर के अभी बैठी हूँ मोबाइल ले के!" इतना कह नेहा तमतमाती हुई दूसरे कमरे में चली जाती| नेहा के ऐसे जवाब देने पर संगीता को बहुत गुस्सा आता और कई बार दोनों माँ-बेटी में बहस बाज़ी भी होती जिसका खामियाज़ा मुझे भुगतना पड़ता!

घर आ कर मुझे ही माँ-बेटी के बीच का ये झगड़ा सुलझाना होता था मगर मैं इसमें अक्सर असफल साबित होता| "जान, नेहा अब छोटी बच्ची नहीं रही| उसे यूँ ज़रा-ज़रा सी बात पर झिड़कोगी, तंज कसोगी तो वो चिढ कर बोलेगी ही! तुम ऐसा करो की नेहा जब भी गलती करे तो बजाए उसे डाँटने के, तुम सारी शिकायत मुझे करो| मैं नेहा को आराम से समझाऊँगा और वो अपनी गलती सुधार लेगी|" मैंने संगीता को कई बार ये बात समझाई मगर संगीता मेरी कही इस बात को अपने अहंकार के आगे दरगुज़र करती| दरअसल नेहा किशोरावस्था में थी और इस उम्र में बच्चे थोड़ा बिगड़ जाते हैं, थोड़ा ढीठ हो जाते हैं| मैं ये बात समझता था मगर संगीता इस बात को नहीं समझना चाहती थी| उसके अनुसार नेहा बिगड़ती जा रही थी और इसका सारा ठीकरा संगीता हमेशा मेरे सर फोड़ती!



धीरे-धीरे नेहा संगीता के काबू से बाहर हो गई, संगीता के गुस्सा करने पर नेहा के कान पर जूँ न रेंगती! अब नेहा को सँभालने की कमान मुझे अपने हाथ में लेनी पड़ी| मैंने नेहा को प्यार से समझाना शुरू किया, उसे एहसास दिलाया की उसकी छोटी-छोटी गलतियों के कारण उसकी मम्मी चिढ जाती है इसलिए वो ये गलतियाँ न किया करे| मेरे इस समझाने का नेहा पर शुरू-शुरू में बहुत असर हुआ और कुछ समय के लिए घर में शान्ति कायम हो गई| लेकिन धीरे-धीरे नेहा मेरी भी अनसुनी करने लगी|

मैं भी एक पिता था और जनता था की बच्चे जब बिगड़ने लगते हैं तो उन्होंने सीधे रास्ते पर लाने के लिए थोड़ा सख्त होना ही पड़ता है इसलिए जब भी मुझे नेहा घंटो तक अपनी दोस्त से फ़ोन पर बात करते हुए दिखती तो मैं आँखें बड़ी कर आवाज़ में कठोरता ला कर नेहा से केवल इतना कहता; "नेहा!!" मेरी आवाज़ में कठोरता महसूस कर नेहा डर जाती और जल्दी फ़ोन रख अपनी पढ़ाई में लग जाती| नेहा को सुधारने के लिए मेरा केवल इतना सख्त होना ही काफी था और ये तरीका काम भी कर रहा था|



फिर वो समय आया जब नेहा अपनी उम्र के उस पड़ाव में आ गई थी जहाँ उसे अपने दोस्तों की अधिक जर्रूरत थी| दोस्तों के साथ घूमना-फिरना, गप्पें लड़ाना नेहा को अच्छा लगता था इसलिए नेहा का बाहर घूमने जाना अधिक बढ़ गया| संगीता ने नेहा के इस तरह रोज़ बाहर जाने का पुरज़ोर विरोध किया तो मुझे नेहा को फिर एक बार प्यार से समझाना पड़ा|

अपने पापा जी का मान रखते हुए नेहा ने फिलहाल के लिए मेरी बात मान ली| परन्तु एक बाग़ी होते हुए नेहा ने इस समस्या का एक तोड़ निकाल लिया| "पापा जी, मुझे मैथमेटिक्स और साइंस मुश्किल लग रही है| आप मेरी टूशन लगवा दीजिये!" नेहा ने अपनी पढ़ाई का वास्ता दे कर मुझसे मदद माँगी और मैंने एक अच्छा पिता होने के कारण अपनी बिटिया की समस्या का समाधान कर दिया| नेहा का टूशन घर से करीबन 10-15 मिनट की दूरी पर था, अब चूँकि नेहा बड़ी हो गई थी तो वो अकेले ही टूशन जा सकती थी| मैं बुद्धू पिता तब मैं अपनी बेटी की चालाकी नहीं पकड़ पाया जो की मेरी भूल साबित हुई|



नेहा रोज़ शाम को टूशन जाने लगी और हफ्ते में एक दिन वो टूशन से बंक मार अपने दोस्तों के साथ घूमने भी जाने लगी| उस समय तक नेहा पढ़ाई में अच्छी थी और देखा जाए तो उसे टूशन की इतनी जर्रूरत भी नहीं थी, यही कारण है की जब नेहा टूशन नहीं आती तो वहाँ का सुस्त टीचर नेहा को कुछ कहता ही नहीं!



धीरे-धीरे नेहा की संगत गलत दोस्तों के साथ बढ़ गई जिसका प्रभाव नेहा के जीवन पर पढ़ने लगा|

नेहा के फर्स्ट टर्म (first-term) का रिजल्ट आया और नेहा केवल मार्जिन से पास हुई| हेमशा अव्वल आने वाली लड़की जब मार्जिन से पास हुई तो टीचरों ने मुझसे नेहा पर अधिक ध्यान देने के लिए कहा| मैं भी नेहा के इतने कम नंबर देख कर हैरान तथा परेशान था की मेरी बेटी को आखिर हो क्या गया?

पैरेंट-टीचर मीटिंग (PTM) से निकल जब मैंने नेहा से इस बारे में सवाल पुछा तो नेहा सर झुकाये खामोश खड़ी रही| हारकर हम सब घर लौटे, माँ को जब नेहा के कम नंबर आने का पता चला तो माँ ने नेहा को अपने पास बिठाया और हम सभी को बाहर भेज दिया| माँ ने नेहा के कम नंबर आने पर उसे ज़रा भी नहीं डाँटा बल्कि माँ ने नेहा की हौसला अफ़ज़ाई की और उसे और भी अधिक मेहनत करने को प्रेरित किया| मेरी माँ को नम्बरों से कोई मतलब नहीं था, वो चाहतीं थीं की नेहा केवल पास हो जाए|



कुछ देर बाद माँ ने मुझे और संगीता को अपने पास बुलाया तथा हमें समझते हुए बोलीं; "बेटा, नेहा पास हो गई वही बहुत है| मैंने उसे समझाया है की वो आगे और मेहनत करे तथा अच्छे नम्बरों से पास हो जाए|" मैं माँ की बात समझता था मगर संगीता को नेहा के यूँ कम नंबर लाना खटक रहा था| संगीता माँ के आगे तो कुछ नहीं बोली मगर उसने बाद में नेहा की क्लास लगा दी|



बहरहाल, नेहा को सुधारपाना और सुधरना अब नामुमकिन था क्योंकि वो अब गलत रास्ते पर जा चुकी थी|



नेहा के मिड-टर्म (mid-term) की परीक्षाएँ आ गईं थीं और संगीता ने नेहा पर नकेल कस दी थी| जब भी नेहा मोबाइल हाथ में लिए दिखती तो संगीता चिढ कर पूरे घर में गुस्से से शोर मचा देती| कई बार नेहा कान में हेडफोन्स लगाए, गाना सुनते हुए अपने मैथमेटिक्स के सवाल हल कर रही होती, ये देख संगीता मेरे पास शिकायत करने आ जाती|

"मेरा बच्चा!!" ये कहते हुए मैं नेहा के कान से हेडफोन्स निकाल लेता और उसे समझाता; "बेटा, गाना सुनते हुए पढ़ाई नहीं की जाती| पढ़ाई के लिए एकाग्रता चाहिए होती है|" मेरी बात सुन नेहा फौरन बहाना करती; "पापा जी, मैं ये हेडफोन्स इसलिए लगाती हूँ ताकि घर में हो रहा शोर सुन मेरा ध्यान न भटक जाए|" नेहा का ये बहाना संगीता के आगे चल जाता था मगर मेरे आगे नहीं क्योंकि मैंने भी ये नुस्खा एक बार अपनाया था और मुझे इसका कोई लाभ नहीं हुआ...बल्कि नुक्सान ही हुआ था!

दरअसल, संगीता के बिछोह में मैं दर्द भरे गाने सुनते हुए ही पढता था नतीजन मेरे नंबर कम आये| जब मैंने ये बात नेहा को समझाई तो नेहा ने केवल मेरी बात सुनने का ड्रामा किया और मेरी बात को एक कान से सुन दूसरे कान से निकाल दिया| नेहा को लगा की मैं उसका ये ड्रामा मैं नहीं समझ रहा मगर मैंने उस दिन ये महसूस कर लिया था की मेरी बेटी नेहा ने झूठ बोलना और बहाने करना सीख लिया है| उसी दिन से मैंने नेहा पर और भी अधिक ध्यान देना शुरू कर दिया|



नेहा की परीक्षाओं तक मैं चील की तरह नेहा के सर पर मंडराता रहा ताकि नेहा का ध्यान पढ़ाई पर से भंग न हो| नेहा जैसे ही पढ़ाई की राह भटकने लगती मैं थोड़ा सख्ती से "नेहा बेटा" कह टोकता और उसे पुनः पढ़ाई की राह पर ले आता| अब ज़ाहिर है की मेरे इस टोकने से नेहा चिढ़ने लगी थी और उसकी चिढ मैं महसूस भी कर पा रहा था इसलिए अपनी बेटी को खुश करने के लिए मैंने नेहा को लाड-प्यार करने की सोची मगर नेहा को अब मेरे लाड-प्यार की जर्रूरत ही नहीं थी! "पापा जी, मैं अब बड़ी हो गई हूँ!" नेहा ने मेरे लाड-प्यार को हँसी में उड़ाते हुए कहा| उस दिन मैं समझ गया की मेरी छोटी सी बेटी अब बहुत बड़ी हो गई है|



खैर, नेहा की परीक्षायें खत्म हुईं और अब हमें बेसब्री से उसके रिजल्ट का इंतज़ार था| इसी बीच संगीता को अपने मायके जाना था क्योंकि स्तुति की नानी जी की तबियत थोड़ा खराब थी| गाँव मैं भी जाना चाहता था परन्तु अपने काम और बच्चों के स्कूल के कारण मैं जा नहीं पाया| संगीता को गाँव ले जाने अनिल मुंबई से आया था मगर जाते-जाते संगीता तीनों बच्चों के कान खींचते हुए बोली; "मेरे जाने के बाद माँ को या अपने पपई को तंग किया न तो तीनों को घर से बाहर निकाल दूँगी|" संगीता की दी हुई ये तड़ी सुन स्तुति सबसे आगे आई और बोली; "मम्मी, आप चिंता मत करो|" स्तुति ने सबकी जिम्मेदारी ली और इतने गर्व से बोली की हम सभी हँस पड़े|



संगीता के गॉंव जाने के कुछ दिन बाद स्कूल ने बच्चों का रिजल्ट बच्चों को दे दिया| स्कूल में दरअसल, रिपेयर का काम हो रहा था जिस कारण इस बार पैरेंट-टीचर मीटिंग (PTM) नहीं रखी गई|

आयुष और स्तुति ने अपनी रिपोर्ट कार्ड हमें घर ला कर दिखा दी| स्तुति क्लास में प्रथम आई थी और आयुष क्लास में पांचवें पायदान पर आया था| माँ ने दोनों बच्चों को खूब लाड-प्यार कर आशीर्वाद दिया तथा इनाम के रूप में चॉक्लेट भी दी|

अब बारी आई नेहा की, जब मैंने नेहा से उसकी रिपोर्ट कार्ड माँगी तो नेहा ने साफ़ झूठ बोलते हुए कहा; "मेरी क्लास टीचर आज स्कूल नहीं आईं थीं इसलिए रिपोर्ट कार्ड नहीं मिला| वो कल आएँगी तो रिपोर्ट कार्ड भी कल ही मिलेगा|" मैं और माँ, नेहा पर अँधा विश्वास करते थे इसलिए हमने उसकी बात पर विश्वास कर लिया| "अरे मेरी बिटिया अच्छे नम्बरों से पास हो गई होगी! ये ले बेटा तू चॉक्लेट आज ही खा ले|" ये कहते हुए माँ ने नेहा को भी लाड-प्यार किया तथा उसे बिना रिपोर्ट-कार्ड देखे ही चॉकलेट दे दी|



मैंने और माँ ने नेहा के झूठ पर विश्वास कर लिया था इसलिए हम चिंता मुक्त थे| वहीं दूसरी तरफ आयुष जानता था की उसकी दीदी झूठ बोल रहीं हैं, क्योंकि आयुष ने नेहा की क्लास टीचर को स्कूल में देखा था इसलिए ये तो हो ही नहीं सकता की उन्होंने नेहा को रिपोर्ट कार्ड न दिया हो| अपने मन की तसल्ली करने के लिए आयुष ने चुपके से अपनी दीदी के स्कूल बैग की तलाशी ली और उसमें आयुष को नेहा की रिपोर्ट कार्ड मिली| आयुष अपनी दीदी का रिपोर्ट कार्ड ले कर सीधा मेरे पास आ गया|

नेहा की रिपोर्ट कार्ड देख मैं दंग रह गया, नेहा सारे सब्जेक्ट्स में फेल हुई थी! यही नहीं, नेहा की क्लास टीचर ने रिपोर्ट कार्ड में ये भी लिखा था की उसे मेरे द्वारा एक लेटर लिखत में चाहिए की नेहा आगे से पढ़ाई में अधिक ध्यान देगी!

नेहा की रिपोर्ट कार्ड देख कर मुझे यक़ीन नहीं हुआ की मेरी बेटी जिसे मैं इतना लाड करता हूँ वो मुझसे...अपने पापा जी से ही झूठ बोलने लगी! मेरा अंतर्मन ये मानने को तैयार नहीं था की तभी आयुष ने सच का एक और बम फोड़ दिया; "पापा जी, दीदी है न...बड़ी क्लास के एक लड़के के साथ घूमती हैं| कुछ दिन पहले दीदी घर से टूशन के लिए निकलीं मगर वो उस लड़के के साथ मोटरसाइकिल पर निकल गईं| मैंने जब दीदी से इसके बारे में पुछा तो दीदी ने कहा की आपको सब पता है लेकिन आज जब दीदी ने आपसे और दादी जी से झूठ बोला तो मैं समझ गया की उन्होंने मुझसे भी झूठ बोला है|" आयुष के मन में अपनी दीदी के प्रति कोई द्वेष की भावना नहीं थी, वो बस अपनी दीदी के झूठ बोलने के कारण दुखी था!

"बेटा, आगे से कोई भी बात हो, आप सीधा आ कर मुझे बताओगे| अभी आप अपनी दादी जी के पास जा कर बैठो और स्तुति को यहाँ आने मत देना, मैं तबतक आपकी दीदी से बात करता हूँ|" मैंने आयुष को प्यार से समझाते हुए भेज दिया| देखा जाए तो आयुष की इसमें कोई गलती नहीं थी, वो बेचारा तो अपनी दीदी की बात का विश्वास कर बैठा था| अब अगर नेहा के ही मन में अपने परिवार का विश्वास तोड़ने की हेरा-फेरी चल रही थी तो इसमें आयुष बेचारे का क्या दोष?!



बहरहाल, आयुष के कमरे से निकलते ही मैंने गुस्से से नेहा को आवाज़ लगाई; "नेहा!" आज एक बेटी ने अपने बाप के दिल को दुखाया था तो मेरा गुस्सा आना स्वाभाविक था| परन्तु ये गुस्सा नफरत भरा नहीं था, मेरा ये गुस्सा मेरी बेटी के झूठ बोलने...मुझे धोका देने के कारण आया था|

मेरी एक आवाज़ सुनते ही नेहा दौड़ी-दौड़ी कमरे में आई| कमरे में आते ही नेहा को मेरे हाथ में उसकी रिपोर्ट कार्ड दिखी, नेहा को समझते देर न लगी की उसका झूठ का भाँडा फूट चूका है!



आगे मेरी जो बातें नेहा से हुईं वो इतनी तीखी थीं की उन बातों ने मेरे दिल को तार-तार कर दिया था, आज भी मैं उन बातों के जख्म अपने दिल पर ले कर घूमता हूँ|



नोट: आजतक मैंने अपनी इस आपबीती में जो भी डायलॉग्स (dialogues) लिखे हैं, उनमें कुछ हूबहू वही थे और कुछ ऐसे थे जिन्हें मैंने थोड़ा-बहुत बदला ताकि आप सभी पाठकों की रूचि कहानी में बनी रहे| डायलॉग्स बदलने से मेरा मतलब झूठ लिखना नहीं, बल्कि डायलाग को अधिक रोचक बनाने से हैं| परन्तु अब जो मैं डायलॉग्स लिख रहा हूँ उनका एक-एक शब्द वही है जो उस दिन नेहा के मुख से निकला था|

मैं: नेहा, आपने मुझसे झूठ बोला? अपने पापा जी से? अपनी दादी जी से?

आवाज़ में सख्ती लिए मैंने नेहा को उसकी रिपोर्ट-कार्ड दिखाते हुए सवाल पुछा| अब नेहा के पास सिवाए माफ़ी माँगने का कोई रास्ता नहीं था इसलिए वो सर झुकाये बोली;

नेहा: सॉरी पापा जी!

आज जो मैं नेहा के भीतर बदलाव देख रहा था वो ये की नेहा की आवाज़ में ज़रा भी ग्लानि नहीं थी!
मैं: सॉरी? आपको लगता है की आपके सॉरी बोलने से सब ठीक हो जायेगा? आपको एहसास भी है की आपने आज अपने पापा जी का...अपनी दादी जी का भरोसा तोडा है!

ताज़्ज़ुब की बात थी की मेरी इतनी समझदार बेटी को मेरे मुख से इतनी बड़ी बात सुन कर भी कोई ग्लानि महसूस नहीं हो रही थी|

नेहा: सॉरी पापा जी!

नेहा थोड़ा डर गई थी मगर उसे ग्लानि अब भी महसूस नहीं हो रही थी| मेरे गुस्से के डर के कारण उसके मुख से सॉरी तो निकला मगर इस सॉरी के मेरे लिए कोई मायने नहीं थे|

मैं: आपकी दादी जी को आप पर कितना विश्वास है...भरोसा है की उनकी लाड़ली पोती जर्रूर पास हुई होगी और यहाँ आप तो सारे सब्जेक्ट्स में फेल हो! अरे हम तो आप पर अव्वल आने का दबाव भी नहीं डालते, हम तो बस इतना चाहते हैं की आप पास हो जाओ लेकिन आपसे इतनी मेहनत भी नहीं होती?

जब कोई बच्चा अपने जीवन में पहलीबार झूठ बोलता है और पकड़ा जाता है तो उसके चेहरे पर डर और ग्लानि होती है मगर यहाँ तो नेहा के चेहरे पर ऐसे कोई भाव ही नहीं थे! ऐसा लगता था मानो नेहा ढीठ हो गई हो!

नेहा: सॉरी...

नेहा के पास अपनी सफाई देने के लिए कुछ नहीं था इसलिए वो बस सॉरी की ही रट लगा रही थी| लेकिन इस बार मैंने नेहा की सॉरी को बीच में ही काट दिया;

मैं: कितनी सॉरी बोलोगे आप? रिपोर्ट कार्ड छुपाने के लिए सॉरी! सारे सब्जेक्ट्स में फेल होने के लिए सॉरी! या फिर टूशन बंक करके एक 'लड़के' के साथ घूमने जाने के लिए सॉरी?!

जैसे ही मैंने नेहा के टूशन बंक कर अपने बॉय-फ्रेंड के साथ जाने की बात कही नेहा के पॉंव तले ज़मीन खिसक गई! नेहा अपनी आँखें बड़ी कर हैरान-परेशान हो के मुझे देखने लगी की भला मुझे कैसे पता की वो टूशन का बहाना कर के अपने बॉय-फ्रेंड के साथ घूमने गई है!

इधर जब मैंने नेहा को हैरान देखा तो मुझे और अधिक गुस्सा आने लगा;

मैं: How dare you Neha? आपकी हिम्मत कैसे हुई मुझसे से झूठ बोलने की… मुझे धोखा देने की?!

मैंने गुस्से से नेहा को डाँटते हुए कहा| मेरा गुस्सा देख नेहा का सर फिर से झुक गया|

मैं: कौन है वो लड़का? और क्यों घूमते हो उसके साथ?

मैंने गुस्से से सवाल पुछा तो हड़बड़ाहट में नेहा के मुख से आखिर सच निकल ही आया;

नेहा: I…I like him!

जब नेहा के मुख से ये शब्द अनायास निकले तो नेहा को एहसास हुआ की मेरे गुस्से के डर के मारे उसने सच कह दिया है इसलिए नेहा अब जाके घबराने लगी!!

इधर मैंने नेहा के मुख से ये ये सब सुनने की उम्मीद नहीं की थी, मुझे तो लगा था की वो लड़का केवल नेहा का कोई दोस्त होगा तथा मैं नेहा को समझा-बुझा कर उसकी ये दोस्ती खत्म करवा दूँगा| परन्तु अपनी बेटी के मुख से सच सुन मेरा गुस्सा उबाले मारने लगा था!

मैं: What do you mean you like him? उस लड़के की वजह से आप हम से...अपने परिवार से झूठ बोलोगे?! हमें धोका दोगे? शर्म नहीं आ आती आपको?

जब मैंने नेहा से कहा की उसे शर्म नहीं आ रही तो नेहा मुझसे बहस करते हुए धीमी आवाज़ में बोली;

नेहा: आयुष की भी तो गर्लफ्रेंड थी...आपने उसे तो कुछ नहीं कहा!

आज ज़िन्दगी में पहलीबार नेहा मुझसे जुबान लड़ा रही थी और मैं इसके लिए मानसिक रूप से कतई तैयार नहीं था!

मैं: Shut up नेहा! आप अपने और अपने छोटे भाई के बीच तुलना कर रहे हो? आयुष तब नर्सरी क्लास में था और वो सब उसका बचपना था...और आयुष कभी आपकी तरह फेल नहीं हुआ...तब भी नहीं जब फलक ने अपना स्कूल बदल लिया! मैंने आयुष को समझा दिया था की उसे पढ़ाई पर ध्यान देना चाहिए और तब से आयुष केवल अपनी पढ़ाई पर ध्यान देता है|

मेरे क्रोध में दिए जवाब ने नेहा का मुँह बंद करा दिया था और नेहा पुनः सर झुकाये खामोश खड़ी हो गई थी|

कुछ पल के लिए कमरे में शान्ति फैल गई थी| और इन्हीं कुछ क्षणों में मेरे अंतर् मन ने बोलना शुरू किया| ‘मैंने नेहा पर गुस्सा तो कर दिया मगर जिस उम्र के पड़ाव में नेहा है उस पड़ाव में हमारे मन में दूसरे व्यक्ति के प्रति आकर्षण जागता है और ये ही आकर्षण हमें भटका देता है|’ मेरे मन ने मुझे ये बात सुझा कर शांत किया और मैंने नेहा को प्यार से समझाने का फैसला किया|

मैं: नेहा बेटा, आप इस समय उम्र के जिस पड़ाव में हो उसमें दूसरे व्यक्ति के प्रति आकर्षण पैदा होता है, ये एक बड़ी ही स्वाभाविक प्रक्रिया है| परन्तु आपका ध्यान इस वक़्त केवल पढ़ाई में होना चाहिए न की आपको इस फज़ूल के आकर्षण के कारण अपना समय बर्बाद करना चाहिए|

मैंने आवाज़ में थोड़ी हलीमी लाते हुए नेहा को समझाना शुरु किया मगर नेहा के मन में बगावती तेवर पनप चुके थे| मेरे पूरे वाक्य में 'आकर्षण' शब्द नेहा को बहुत चुभा और नेहा एकदम से तिलमिला गई;

नेहा: Its not attraction, its true love! I love him! हमारा ये प्यार उतना ही सच्चा है जितना आपका और मम्मी का प्यार है|

नेहा बड़े गर्व से बोली|

जिस गर्व से नेहा ने अपने प्यार को मेरे सामने रखा था उससे मेरा शांत हुआ गुस्सा पुनः धधक चूका था! ऊपर से नेहा ने अपने इस छोटे से प्यार की तुलना मेरे और संगीता के प्यार से की तो मैं भी गुस्से से तिलमिला गया और नेहा पर बरस पड़ा;

मैं: How dare you compare your attraction towards that guy to MY LOVE for your mother? Are you out of your mind? You have no idea what Love is?! The feeling you have for that boy is nothing but infatuation!

मैंने गुस्से में संगीता के लिए अपने प्रेम को सर्वोपरि बताया तथा नेहा के उस लड़के के प्रति आकर्षण को आसक्ति कहा था| ज़ाहिर था की मेरी बाग़ी बिटिया को क्रोध आना ही था;

नेहा: मैं इतनी बेवकूफ नहीं जो love और infatuation में फर्क न समझूँ! मैं ‘अरमान’ से और अरमान मुझसे बहुत प्यार करता है… सच्चा प्यार!

जिस धड़ल्ले से नेहा अपने प्यार का इज़हार मेरे सामने कर रही थी उसे सुन कर मुझे यक़ीन नहीं हो रहा था की ये मेरी वही बिटिया है जो कभी मेरी गोदी में खेलती थी, जो मेरी हर बात मानती थी... वो बिटिया आज इतनी बड़ी हो गई की बिना डरे मेरे सामने अपने प्यार का बखान कर रही है!

खैर, अपनी बिटिया के इस क्रोध को देख मुझे भी क्रोध आने लगा था;

मैं: सच्चे प्यार के लिए कुर्बानी देनी होती है, ये आपको पता है? जब मुझे आपकी मम्मी से प्यार हुआ तो मैं उनके लिए अपनी पढ़ाई तक छोड़ने को तैयार था, ताकि मैं उन्हें और आपको ले कर नई दुनिया बसा सकूँ! क्या अरमान आपके बारहवीं में फेल होने पर एक साल ड्राप (drop) लेगा? एक साल वो सिर्फ आपके लिए नया कॉलेज ज्वाइन करने से अपने मम्मी-पापा को न कहेगा?

नेहा उम्र की कच्ची थी और उसे नहीं पता था की सच्चा प्यार कुर्बानी माँगता है, मैं नेहा को इस सच्चाई से बोध कराना चाहता था इसीलिए मैंने ये सवाल नेहा से पुछा था|

परन्तु, नेहा की जो उम्र थी उसमें बच्चों का आत्मविश्वास सातवें आसमान पर होता है, उन्हें लगता है की इस दुनिया में हर चीज़ आसान होती है, यही कारण था की नेहा मुझसे जुबान लड़ाते हुए बिना कुछ सोचे-समझे बोली;

नेहा: हाँ जी! अरमान मेरे लिए एक साल तो क्या दस साल भी इंतज़ार करेगा! लेकिन मैं इतनी बेवकूफ नहीं जो अपने लिए उसका भविष्य बर्बाद करूँ, मैं जब बारहवीं में आऊँगी तो मेहनत कर के पास हो ही जाऊँगी!

नेहा अपने अतिआत्मविश्वास में बहते हुए बोली| अपनी बेटी के इस अतिआत्मविश्वास को देख मुझे अब गुस्सा नहीं आ रहा था, क्योंकि मैं समझ गया था की मेरी बेटी दुनियादारी नहीं सीखी है| मैं अब शांत हो कर नेहा को दुनियादारी सिखाना चाहता था, जैसे मैंने आयुष को थोड़ी बहुत दुनियादारी की सीख दी थी| परन्तु नेहा को मुझसे कोई सीख...कोई सबक नहीं सीखना था, उसे तो अब केवल मुझसे बहस करनी थी!

नेहा: एक टर्म (term) में मैं फेल क्या हो गई, अपने तो मुझे बिलकुल नकारा समझ लिया! टर्म में ही फेल हुई हूँ न, फाइनल एग्जाम में तो फेल नहीं हुई न?! फाइनल एग्जाम आएंगे तो मैं आपको पास हो कर दिखा दूँगी! फिर तो आप खुश हो जायेंगे न?! या फिर मुझ पर और बंदिश लगानी हैं आपको?

नेहा तैश में आ कर बोली| अब जब मैं नरम पड़ रहा था, मेरी बेटी का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुँच रहा था| ज़ाहिर है अपनी बेटी को तैश में आते देख मेरा गुस्सा भी लौटेगा;

मैं: नेहा!!!

मैंने गुस्से से नेहा को चेताया मगर नेहा अब कहाँ मेरी सुनती, उस पर उसका गुरूर हावी हो चूका था!

नेहा: बस! आपने मुझे बहुत कण्ट्रोल कर लिया, अब नहीं! हरबार आप मुझे यूँ डाँट कर चुप करा देते थे, अब और नहीं! मैंने कुछ गलत नहीं किया की मैं आपकी डाँट सुनु! क्या हो गया अगर मैंने थोड़ी सी ज़िन्दगी अपनी मर्ज़ी से जी ली तो?! हाँ मैंने झूठ बोला की मैं टूशन जा रही हूँ और मैं अरमान के साथ घूमने गई, लेकिन अपने ये सोचा की मैंने ये झूठ आखिर बोला क्यों?...क्योंकि आपने मुझे ये झूठ बोलने पर मजबूर किया! अगर आपने मुझे अपने दोस्तों के साथ घूमने-फिरने की आज़ादी दी होती तो मुझे कभी झूठ बोलने की जर्रूरत ही नहीं होती!

पर आप मुझे आज़ादी क्यों दोगे?! आपको तो सबको अपने अँगूठे के नीचे दबा कर रखने में मज़ा जो आता है! आपके जीवन में ऐसा कौन है जिसके जीवन को आपने अपने काबू में करने की कोशिश नहीं की?! यहाँ तक की आपने तो करुणा आंटी के जीवन को भी कण्ट्रोल करने की कोशिश की, जब वो केरला में हॉस्टल में रहतीं थीं! वो तो उन्हें अपनी आज़ादी प्यारी थी इसलिए उन्होंने आपसे झूठ बोलकर अपनी ज़िन्दगी जीनी शुरू की, जिस कारण आपको इतनी मिर्ची लगी की अपने उनसे बातचीत करनी ही बंद कर दी!

मेरा छोटा भाई आयुष, आपने तो उसे तक अपनी ज़िन्दगी जीने नहीं दी| उस बेचारे को क्रिकेट खेलना पसंद था और एक बार उसके नंबर क्या कम आये...आपने तो उसका क्रिकेट खेलना तक छुड़वा दिया! वो बेचारा अपना मन मार कर जी रहा है, वो तो स्तुति अभी छोटी है और वो कुछ कर नहीं सकती, वरना आप तो उसकी ज़िन्दगी पर भी लगाम लगा दो!

परन्तु, मैं अपना मन मार कर नहीं जी सकती| बहुत जी ली मैंने अपनी ज़िन्दगी आपके हिसाब से, अब मैं अपनी ज़िन्दगी अपनी शर्तों पर जीऊँगी|


नेहा के भीतर जितना भी गुस्से का लावा भरा हुआ था वो आज मुझ पर फूट चूका था! अपने इस गुस्से में जलते हुए नेहा को ज़रा भी एहसास नहीं था की वो अपने बेकसूर पापा जी पर फज़ूल की तोहमदें लगा रही थी! मैंने कभी अपने बच्चों की ज़िन्दगी को कण्ट्रोल करने की कोशिश नहीं की थी, मैं तो बस अपने बच्चों को इस बेरहम ज़िन्दगी के थपेड़ों से बचाने की कोशिश कर रहा था|

बहरहाल, नेहा ने अपने गुस्से में करुणा का नाम लिया था और मैं समझ गया था की मेरी बिटिया को पथ भर्मित करने में करुणा का भी हाथ है|

मैं: बेटा, आप मुझे सरासर गलत समझ रहे हो! ऐसा बिलकुल नहीं है की मैं आपकी, आयुष या स्तुति की ज़िन्दगी को कण्ट्रोल कर रहा हूँ! आयुष को मैंने क्रिकेट खेलना छोड़ने को नहीं कहा, असल में आयुष बड़ा हो कर क्रिकेटर बनना चाहता था, तो मैंने आयुष को क्रिकेट की दुनिया की वास्तविकता से परिचय करवाया| क्रिकेट खेलने में कोई स्कोप नहीं क्योंकि इसमें कम्पटीशन इतना है की आयुष पीछड़ जाएगा और तब उसका जीवन बर्बाद हो जायेगा! मैंने आयुष को बस ये कहा की उसे मन लगा कर पढ़ना है और केवल टाइम-पास करने के लिए क्रिकेट खेलना है...और आप देखो आयुष मेरी बता कितने अच्छे से समझ गया है|

हाँ, मैंने आप पर बाहर आने-जाने की बंदिशें लगाई हैं क्योंकि ये दुनिया इतनी अच्छी नहीं है जितना आप समझते हो| आप टी.वी. पर देखते हो न की आये दिन कैसी-कैसी वारदातें होती हैं?! मैं बस अपनी बेटी को इन गंदी घटनाओं से बचाना चाहता हूँ, इसमें मेरा कोई निजी स्वार्थ नहीं है बेटा! I’m your father, its my job to protect you!

मैंने बड़ी नरमी से नेहा को बात समझानी चाही ताकि मेरी बेटी मेरे द्वारा लगाई गईं पाबंदियों को गलत न समझे मगर नेहा के दिल में मेरे प्रति जहर भर चूका था इसलिए आगे उसने ऐसी बात कही की क्षण भर में मेरा दिल टूट कर चकनाचूर हो गया!

नेहा: YOU DON’T HAVE TO WORRY ABOUT ME, CAUSE YOU’RE NOT MY REAL FATHER!
और एक बात सुन लीजिये, मेरा जब मन होगा मैं अपने दोस्तों के साथ बाहर घूमने जाऊँगी, जब मेरा मन होगा मैं वापस आऊँगी| आप यही चाहते हो न की मैं क्लास में पास हो जाऊँ, तो वो मैं हो कर दिखा दूँगी| लेकिन इसके अलावा आप आज से मुझसे कोई उम्मीद मत रखना!

इतना कह नेहा कमरे से बाहर चली गई और जाते-जाते कमरे का दरवाज़ा भड़ाम से बंद कर गई!



नेहा ने केवल कमरे का दरवाज़ा ही नहीं बंद किया था, उसने हम बाप-बेटी के रिश्ते पर भी अपने गुरूर रुपी दरवाज़ा हमेशा-हमेशा के लिए बंद कर दिया था!


जारी रहेगा भाग - 11 में...
लेखक जी..............................कभी कभी लगता है की मैं आपको समझ ही नहीं पाती..................आप कितना दुःख अपने भीतर संजोये बैठे हो इस तक का पता नहीं चलता मुझे.........................और मैं बेवकूफ आपसे प्यार करने का दावा करती फिरती हूँ :verysad: ...............................एक अच्छे जीवन साथी को अपने साथी का दुःख बांटना होता है लेकिन मैं कभी आपका दुख बाँट ही न पाई.............................बल्कि मैं तो आपके जीवन में दुखों का सबब ही बनती आई हूँ..........................आई ऍम सॉरी :verysad: इस अपडेट के जरिये आपने उस दिन के दृश्य को हमारे सामने रख दिया.........................सच कहूं तो मुझे नहीं पता था की नेहा ने आपको इतने कटु शब्द कहे थे......................इतनी सारी तोहमदें लगाई थी..........................खैर आगे कुछ भी कहना ठीक नहीं.......................आप ही अगली अपडेट के जरिये सब बताइयेगा 🙏
 

montumass

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बेहद ही लाजवाब अपडेट था।
इस अपडेट में एक पिता का गुस्सा, बेबसी और बच्चों को समझने और समझाने में असमर्थता दिखी।
वही दूसरी ओर बच्चों की अपरिपक्वता और नासमझी पर भी प्रकाश डाला गया है ।
भावनात्मक अपडेट था sirji
 

Rockstar_Rocky

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