• If you are trying to reset your account password then don't forget to check spam folder in your mailbox. Also Mark it as "not spam" or you won't be able to click on the link.

Incest एक अनोखा बंधन - पुन: प्रारंभ (Completed)

Abhi32

Well-Known Member
8,023
12,406
188
प्रिय भाइयों व् मित्रों,

आज नए साल की आप सभी को ढेरों शुभकानमायें|
giphy.gif


फिर नया साल ,नयी सुबह , नयी उमीदें|

ए खुदा खैर की खबर के उजालें रखना|| 🙏

संगीता का internet recharge खत्म हो गया इसलिए उसने मुझे आप सभी को नए साल की मुबारकबाद देने को कहा इसलिए संगीता की तरफ से आप सभी को नया साल मुबारक हो!
giphy.gif


आयुष और नेहा की तरफ से आप सभी को प्रणाम तथा Happy New Year 2023!!! :party2:

सबसे अंत में, स्तुति की तरफ से सभी को दो-दो पप्पियाँ!
giphy.gif

Note: दो से ज्यादा पप्पियों का stock नहीं था स्तुति के पास इसलिए उसने मेरे सभी दोस्तों को बस दो-दो पप्पियाँ ही भेजी हैं! कृपया पप्पियाँ पाने के लिए कोई धक्का-मुक्की न करे!
Happy new year bhai
 

Rockstar_Rocky

Well-Known Member
8,948
36,820
219
प्रिय मित्रों,

इस कहानी का आगाज़ 15 जनवरी 2020 को हुआ था और मैं चाहता हूँ की इस कहानी का अंत भी उसी दिन हो| अतः Big Reveal वाली post 15 जनवरी 2023 को जब इस कहानी को पूरे तीन साल होंगें तब आएगी|

वैसे आप सभी की जानकारी के लिए बता दूँ की अभी तक मैंने 31853 शब्द लिख लिए हैं और अभी थोड़ा बहुत लिखना बाकी है! :online:
 

Abhi32

Well-Known Member
8,023
12,406
188
प्रिय मित्रों,

इस कहानी का आगाज़ 15 जनवरी 2020 को हुआ था और मैं चाहता हूँ की इस कहानी का अंत भी उसी दिन हो| अतः Big Reveal वाली post 15 जनवरी 2023 को जब इस कहानी को पूरे तीन साल होंगें तब आएगी|

वैसे आप सभी की जानकारी के लिए बता दूँ की अभी तक मैंने 31853 शब्द लिख लिए हैं और अभी थोड़ा बहुत लिखना बाकी है! :online:
Besabri se intezar rahega
 

Kala Nag

Mr. X
Prime
4,343
17,042
144
प्रिय मित्रों,

इस कहानी का आगाज़ 15 जनवरी 2020 को हुआ था और मैं चाहता हूँ की इस कहानी का अंत भी उसी दिन हो| अतः Big Reveal वाली post 15 जनवरी 2023 को जब इस कहानी को पूरे तीन साल होंगें तब आएगी|

वैसे आप सभी की जानकारी के लिए बता दूँ की अभी तक मैंने 31853 शब्द लिख लिए हैं और अभी थोड़ा बहुत लिखना बाकी है! :online:
ठीक है भाई
उस दिन हमारा पोस्ट पोंगल संक्रांति होगी
अच्छा दिन है
इंतजार रहेगा
 
161
829
94
...............फाइनली ये पता चल गया की मेरा थ्रेड किस दिन खुलेगा :lol1: .................. 🙏 लेखक जी 💃 Lib am अमित जी Akki ❸❸❸ अक्कीवा Rekha rani जी देख लीजिये................१५ जनवरी को आप सभी को बिग रिवील पढ़ने को मिलेगा और मेरे थ्रेड की शुरुआत होगी :toohappy:
 

Abhi32

Well-Known Member
8,023
12,406
188
...............फाइनली ये पता चल गया की मेरा थ्रेड किस दिन खुलेगा :lol1: .................. 🙏 लेखक जी 💃 Lib am अमित जी Akki ❸❸❸ अक्कीवा Rekha rani जी देख लीजिये................१५ जनवरी को आप सभी को बिग रिवील पढ़ने को मिलेगा और मेरे थ्रेड की शुरुआत होगी :toohappy:
Us din intezar rahega
 

Sanju@

Well-Known Member
4,840
19,542
158
प्रिय मित्रों,

इस कहानी का आगाज़ 15 जनवरी 2020 को हुआ था और मैं चाहता हूँ की इस कहानी का अंत भी उसी दिन हो| अतः Big Reveal वाली post 15 जनवरी 2023 को जब इस कहानी को पूरे तीन साल होंगें तब आएगी|

वैसे आप सभी की जानकारी के लिए बता दूँ की अभी तक मैंने 31853 शब्द लिख लिए हैं और अभी थोड़ा बहुत लिखना बाकी है! :online:
बेसब्री से इंतजार रहेगा
 

Sanju@

Well-Known Member
4,840
19,542
158
प्रिय मित्रों,

इस कहानी का आगाज़ 15 जनवरी 2020 को हुआ था और मैं चाहता हूँ की इस कहानी का अंत भी उसी दिन हो| अतः Big Reveal वाली post 15 जनवरी 2023 को जब इस कहानी को पूरे तीन साल होंगें तब आएगी|

वैसे आप सभी की जानकारी के लिए बता दूँ की अभी तक मैंने 31853 शब्द लिख लिए हैं और अभी थोड़ा बहुत लिखना बाकी है! :online:
चलो अच्छा है कम से कम मेरे बर्थडे का गिफ्ट तो मिल ही जायेगा अपडेट के रूप में
 

Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
19,339
40,086
259
इकत्तीसवाँ अध्याय: घर संसार
भाग - 3


अब तक अपने पढ़ा:


मिश्रा अंकल जी ने माँ को बताया की उन्होंने पिताजी से बात की थी तथा उन्हें बहुत समझाया भी की वो घर अपने परिवार के पास लौट आयें मगर पिताजी की भाई-भक्ति बीच में आ रही थी जिसने पिताजी की अक्ल पर पर्दा कर दिया था| “भाईसाहब, जब उन्होंने अपने खून…अपने बेटे की नहीं सुनी, अपनी धर्मपत्नी की नहीं सुनी तो वो आपकी बात कहाँ से सुनेंगे| उनकी ये भाई-भक्ति कभी खत्म नहीं होगी!" माँ ने निराश होते हुए कहा| मुझसे अपनी माँ को यूँ निराश नहीं देखा जा रहा था इसलिए में उन्हें सँभालते हुए बोला; "आप निराश क्यों होते हो माँ, आपका बेटा है न आपके पास? तो फिर आपको किसी और की क्या जर्रूरत?" मैंने बड़े गर्व से बात कही थी जिससे मेरी माँ का दिल फिर से खिल गया था| उन्होंने मेरे सर को चूम मुझे आशीर्वाद दिया तथा मुझ पर फक्र करते हुए मिश्रा अंकल और आंटी जी से बोलीं; "ये मेरा बेटा मुझे सबसे ज्यादा प्यारा है, इसके रहते मुझे कोई चिंता नहीं!" माँ के कहे इन शब्दों ने मेरा आत्मविश्वास कई गुना बढ़ा दिया था और मुझ में नया जोश भरने लगा था|



अब आगे:


किसी
भी परिवार की नीव उसके बुजुर्गों यानी दादा-दादी या माता-पिता पर टिकी होती है| हमारे परिवार की ये नीव मेरे माँ-पिताजी पर टिकी थी, लेकिन जब पिताजी ने हमारे परिवार की नीव को झकझोड़ कर रख दिया तो मुझे और संगीता को अपना सहारा दे कर इस नीव को मज़बूत बनाना पड़ा ताकि हमारी परिवार रुपी ये इमारत कहीं ढह न जाए| लेकिन हम पति-पत्नी द्वारा दिए गए इस सहारे में एक चीज़ की कमी थी और वो थी तज़ुर्बा! जो तज़ुर्बा माँ और पिताजी को था वो हमें नहीं था, वो (मेरे माता-पिता) जानते थे की किस हालात में कैसे अपने परिवार को सँभालना है| हम दोनों मियाँ-बीवी अपनी तरफ से कोशिश पूरी करते थे हमारे परिवार को सँभालने की मगर फिर भी थोड़ी तो कमी रह ही जाती थी! जहाँ हमारी कोशिशें कम पड़ती थीं वहाँ मेरे आयुष और नेहा अपने प्यार से उस कमी को पूरा कर देते थे! आयुष और नेहा में नजाने कौन सी दिव्य शक्ति थी की वो घर में दुःख को एकदम से भाँप जाते थे तथा अपने प्यार से हमें अपने मोहपाश में बाँध कर चिंता मुक्त कर देते थे!

मिश्रा अंकल जी द्वारा बताई बात से घर में भावुक वातावरण बन गया था, तभी बच्चे उठ गए और सीधा बैठक में आ गए| अपने दादा-दादी (मिश्रा अंकल-आंटी जी) को देख दोनों बच्चों ने मुस्कुराते हुए उनके पाँव छुए| मिश्रा अंकल जी ने आयुष को गोदी में बिठा लिया और आंटी जी ने नेहा को अपने पास बिठा कर उससे प्यार से बात करनी शुरू कर दी| दोनों बच्चों को यूँ हँसता-खेलता देख घर का वातावरण फिर से खुशनुमा होने लगा था| संगीता चाय बनाने के लिए उठने वाली थी की नेहा ने एकदम से चाय बनाने की जिम्मेदारी ले ली| जब नेहा चाय बना कर लाई तो मिश्रा अंकल जी ने चाय पीते हुए नेहा की बड़ी तारीफ की, अब आयुष बेचारे की तारीफ नहीं हुई थी इसलिए माँ को ही उसका पक्ष लेना पड़ा; "भाईसाहब, मेरे दोनों पोता-पोती बड़े जिम्मेदार हैं| आप जानते हो आयुष मुझे रोज़ रात को कहानी सुनाता है और कम्पूटर (computer) पर गेम खेलना सिखाता है!" माँ की बात सुन मिश्रा अंकल-आंटी जी हँसने लगे, मिश्रा आंटी जी ने आयुष को अपने पास बुलाया और उसके गाल चूमते हुए बोलीं; "अरे हमार मुन्ना बहुत नीक है!" आयुष को तारीफ हुई तो उसके गाल शर्म से लाल हो रहे थे और वो शर्माते हुए मुझसे आ कर लिपट गया!



रात को खाना खाने के बाद हम सभी बैठक में बैठे बात कर रहे थे, वहीं नेहा और आयुष अपना कार्टून देखने में व्यस्त थे| मैं, संगीता और माँ किसी नए लड़के को काम पर रखने पर चर्चा कर रहे थे, उस लड़के के सर सारी भाग-दौड़ की जिम्मेदारी सौंप मैं नए ठेके, माल लेने, लेबर प्रबंधित करना आदि कामों पर ध्यान लगा सकता था| माँ को मेरा ये सुझाव बहुत पसंद आया था और वो मुझे अपनी तरफ से कुछ नाम बता रहीं थीं जिनसे मैं बात कर के किसी लड़के को काम पर रखने की बात कर सकता था|

उधर आयुष का ध्यान अपने कार्टून देखने में कम और हमारी बातों पर ज्यादा था| हमारी साइट का कामकाज देखने के लिए नए लड़के को रखने की बात सुन आयुष एकदम से उठ खड़ा हुआ और अपना हाथ ऊपर उठाते हुए कूदने लगा| आयुष का ये बालपन देख हम तीनों (मैं, माँ और संगीता) मुस्कुरा रहे थे, हमें नहीं पता था की आयुष क्यों इस तरह जोश में कूद रहा है, हमें तो उसका ये बचपना देख कर उस पर प्यार आ रहा था| "दादी जी, मैं हूँ न सारा काम देखने के लिए? मैं भाग-दौड़ कर पापा जी का सारा काम सँभाल लूँगा|" आयुष अपने उत्साह में बड़े जोर से चीखते हुए बोला| आयुष की उम्र को देखते हुए उसका यूँ जिम्मेदारी वाला काम उत्साह से अपने सर उठाना क़ाबिल-ऐ-तारीफ था! ये दृश्य देख हम सभी उस छोटे से बच्चे पर मोहित हो रहे थे| आखिर सबसे पहले माँ का प्यार छलक उठा; "ये है मेरा जिम्मेदार बेटा! शाबाश!" माँ ने आयुष की तारीफ करते हुए उसे अपने गले लगाया तथा उसके सर को बार-बार चूमने लगीं| आयुष अपनी दादी जी का प्यार पा कर ख़ुशी से फूला नहीं समा रहा था, वो अपनी दादी जी से लिपट गया और अपनी दादी जी के प्यार का आनंद लेने लगा|

इधर संगीता चुप कैसे रहती, उसे तो आयुष की बात पर चुटकी लेने का मौका मिल गया था; "ठीक ही है माँ, इसे (आयुष को) ही काम पर रख लो| इसे तो तनख्वा भी नहीं देनी होगी, ये तो एक प्लेट चाऊमीन से ही खुश हो जाएगा!" संगीता की कही इस बात पर आयुष के मुँह में एकदम से पानी आ गया और वो अपने होठों पर जीभ फिराने लगा| संगीता की ये बात और आयुष की इस प्रतिक्रिया पर हम सभी ने जोर से ठहाका लगाया|



अगले दिन मैं सबसे पहले सतीश जी से मिला और उन्हें चन्दर के मरने की बात बताई, उन्हें ये बात बताने का कारन ये था की वो संगीता का चन्दर से तलाक फाइनल करवा दें तथा हमारी शादी को जायज़ स्वीकृति मिल जाए| मेरी सारी बात सुन कर सतीश जो को बहुत बड़ा झटका लगा, उन्हें उम्मीद नहीं थी की मेरे जैसा सीधा-साधा लड़का अपनी जान बचाने के लिए अपने ही ताऊ के लड़के को मार सकता है! "भई मानु, मुझे यक़ीन नहीं होता की तुम्हारे जैसा सीधा-साधा लड़का भी मार-काट कर सकता है? लेकिन जो हुआ वो सही हुआ, तुम अपने मन पर कोई बोझ मत रखना की तुमसे कुछ गलत हुआ है| आजकल की दुनिया में या तो तुम लड़ सकते हो या फिर कुचले जा सकते हो| मुझे ख़ुशी इस बात की है की तुमने लड़ने का फैसला किया और अपने परिवार की रक्षा की| हाँ अगर तुम मुझे गाँव से एक फ़ोन कर देते तो मैं यहीं बैठे-बैठे सब कुछ सँभाल लेता|" सतीश जी मेरी हौसला अफ़ज़ाई करते हुए बोले|

"सर, संगीता के बड़े भाईसाहब के साले साहब हमारे ही जिले के SP साहब थे, तो उन्होंने खुद इस केस में अपना हाथ डाला और सब कुछ सुलझा दिया इसलिए आपको तंग करने की जर्रूरत नहीं पड़ी|" मैंने हलीमी से जवाब दिया| मेरा जवाब सुन सतीश जी मेरी पीठ थपथपाने लगे और मुझे आश्वस्त करते हुए बोले; "यार, तकलीफ कैसी?! खैर, अब मैं जल्दी से संगीता का तलाक निपटवा देता हूँ, इसके लिए कुछ कागजी करवाई करनी होगी|" ये कहते हुए सतीश जी ने मुझसे चन्दर का death certificate माँगा| चूँकि वो कागज मेरे पास नहीं था इसलिए मैंने भाईसाहब को फ़ोन कर उनसे इस कागज का जुगाड़ करने को कहा| भाईसाहब ने उसी समय अपने साले साहब को फ़ोन किया और और चन्दर का death certificate सीधा सतीश जी को email करने को कह दिया|

तो कुछ इस तरह मेरे जीवन की एक समस्या का हल चन्दर की मौत ने कर दिया था| 'चलो कहीं तो चन्दर की मौत मेरे काम आई!' मैं मन ही मन बुदबुदाया और अपने काम पर निकल गया|



अगले दो दिन मेरे लिए भाग-दौड़ भरे रहे, गुड़गाँव वाली साइट का काम फाइनल हो चूका था और काम पूरा होने पर पैसे मिलने वाले थे| वहीं मैंने अपनी मदद के लिए एक लड़का 'सरयू' ढूँढ लिया था, सरयू बक्सर, उत्तर प्रदेश का रहने वाला था और यहाँ दिल्ली में correspondence से course कर रहा था| खर्चा चलाने के लिए उसे नौकरी चाहिए थी इसलिए मैंने उससे साफ़-साफ़ बात की; "देख यार, मेरा काम फिलहाल थोड़ा कमजोर है इसलिए मैं फिलहाल तुझे 5,000/- तनख्वा दे सकता हूँ|" 5,000/- थे तो काम मगर मैं इस वक़्त किसी को भी तनख्वा पर रखने की हालत में नहीं था| सरयू का इतनी कम तनख्वा से मन फीका हो रहा था इसलिए मैंने उसे एक आस रुपी लालच दे दिया; "इसके अलावा जो भी ठेके पूरे होंगे उसका 10% मैं तुझे तनख्वा के साथ दे दूँगा| जानता हूँ की ये पैसे बहुत कम हैं मगर ये भी सोच की तुझे काम भी सीखने को मिल रहा है| इस बीच अगर तुझे कोई दूसरी नौकरी मिल जाए तो वो पकड़ लियो, मेरी तरफ से कोई बंदिश नहीं होगी|" मेरी ये बात सुन सरयू ने हाँ में सर हिला दिया और अगले दिन से ही काम शुरू कर दिया|

अगले दिन मैंने सरयू को सारी sites घुमा दी और उसे काम दे कर भगा-दौड़ी पर लगा दिया| मिश्रा अंकल जी द्वारा दिए गए दोनों ठेकों पर काम मैंने शुरू करवा दिया था, मुझे इत्मीनान इस बात का था की इन दोनों ठेकों के खत्म होने से घर की आर्थिक स्थिति मज़बूत होगी| भले ही काम मैंने थोड़ा ही फैलाया था मगर कुछ भाग-दौड़ मुझे भी करनी पड़ रही थी, मेरी इस भगा-दौड़ी का असर मेरे दोपहर को घर न जाने पर पड़ रहा था| लेकिन बच्चे, माँ और संगीता ने मुझसे मेरे दोपहर खाना खाने घर न आने पर कोई शिकायत नहीं की| हाँ इतना जर्रूर है की रात को मैं 7 बजे तक घर पहुँच जाता था और अपने परिवार को पर्याप्त समय देता था|



4-5 दिन बीते थे की शाम 7 बजे संतोष का फ़ोन आया, उसने बताया की वो दिल्ली पहुँच चूका है और सीधा मेरे घर ही आ रहा है| इस समय संतोष का मेरे घर आना किसी अशुभ घटना के घटित होने का सूचक था| संतोष के फ़ोन के बाद मैं सोच में पड़ गया की आखिर क्यों संतोष रात को इस समय मेरे घर आना चाहता है? 'कहीं संतोष काम तो नहीं छोड़ रहा? अगर ऐसा हुआ तो कल से सारा काम मेरे लिए अकेला सँभालना चुनैती भरा काम होगा!' मैं मन ही मन बड़बड़ाया| परन्तु मेरे इतना सोचने से कोई फर्क तो पड़ने वाला था नहीं, क्योंकि जो घटित होना था वो तो घट के ही रहना था!

रात सवा 9 बजे संतोष मेरे घर पहुँचा, तब तक हमने बच्चों को खाना खिला कर सुला दिया था ताकि बच्चे घर में हो रही बातें न सुनें| संतोष ने माँ के पैर छू आशीर्वाद लिया और फिर अपने इस समय आने का प्रयोजन बताया;

संतोष: आंटी जी, मुझे अंकल जी ने फ़ोन कर के अपने पास गाँव बुलाया था| उनके पास आप सबके कुछ कपड़े रह गए थे तो अंकल जी ने मुझे कहा की मैं ये कपड़े आपको पहुँचा दूँ|

संतोष की बात सुन माँ को बहुत गुस्सा आया था| संतोष हमारे घर का सदस्य नहीं था, ऐसे में उसे घर की बातों में शामिल करना माँ को नागवार था| हमें लग रहा था की शायद पिताजी ने संतोष को कुछ नहीं बताया होगा, परन्तु जब संतोष ने आगे अपनी बात कही तो हम तीनों (मुझे, माँ और संगीता) को बहुत बड़ा झटका लगा;

संतोष: आंटी जी, अंकल जी ने कहा है की आप उनके अकाउंट की चेक बुक और उनके पहचान पत्र कूरियर द्वारा भिजवा दें!

जब पिताजी ने अपनी चेक बुक और पहचान पत्र माँगा तो जाहिर था की संतोष ने जर्रूर पुछा होगा की आखिर क्यों पिताजी खुद हमसे बात न कर के उसे आगे रख कर बात कर रहे हैं? जिसके जवाब में पिताजी ने संतोष को सारी बात अवश्य बता दी होगी, तो अब हमें संतोष से कुछ भी छुपाने की जर्रूरत नहीं थी| परन्तु अभी तो पिताजी ने माँ के लिए खासकर एक और फरमान संतोष के हाथों भिजवाया था;

संतोष: और आंटी जी, अंकल जी ने कहा था की मैं आपकी बात उनसे करवा दूँ|

संतोष की ये बात सुन मुझे लगा था की माँ, पिताजी से बात करने को मना कर देंगी मगर माँ गुस्से में भरी बैठीं थीं और उन्हें अपना ये गुस्सा पिताजी पर निकालना था;

माँ: फ़ोन मिला बेटा!

माँ ने संतोष को हुक्म देते हुए कहा तो संतोष ने फ़ट से मेरे पिताजी को फ़ोन मिला दिया और फ़ोन माँ को दे दिया| फ़ोन की एक घंटी बजते ही पिताजी ने फ़ोन उठा लिया था, दरअसल पिताजी ने संतोष को ये आदेश दिया था की वो दिल्ली पहुँचते ही सबसे पहले हमसे मिले और माँ की बात उनसे करवाए इसीलिए पिताजी को संतोष के फ़ोन का पहले से ही इंतज़ार था|

माँ: हाँ!

माँ ने बड़ी कड़क आवाज में फ़ोन कान पर लगाते हुए कहा|

पिताजी: मैंने तुम्हें बस ये कहने के लिए फ़ोन किया था की कल को अगर तुम्हारा बेटा तुम्हें घर से निकाल दे तो यहाँ गाँव मेरे पास आ जाना| मुझे उस लड़के (मेरा) का रत्ती भर विश्वास नहीं, जो अपने ही भाई का खून कर सकता है वो कल को तुम्हें घर से भी निकाल सकता है! मेरी इस बात को ठंडे दिमाग से सोचना और फिर चाहे तो मुझे कॉल कर के मुझसे बात करना|

पिताजी की ये बात हम तीनों (मैं, संगीता और संतोष) में से किसी ने नहीं सुनी थी| उधर पिताजी की कही ये बात सुनते ही माँ का गुस्सा पिताजी पर फ़ट पड़ा;

माँ: आपको अपने बेटे पर भरोसा न हो न सही मगर मुझे मेरे बेटे पर पूरा विश्वास है! न उसने आपको घर से निकाला था और न ही वो कभी मुझे घर से निकालेगा! आप रहो अपने भाई-भाभी के पास और हमें यहाँ चैन से रहने दो! आपको पैसे ही चाहिए न, मानु आपको आपके सारे कागज-पत्री, चेक बुक कॉरिएल (courier) कर देगा! खबरदार जो आज के बाद आपने मुझे या मेरे बेटे को फ़ोन किया तो, मुझसे बुरा कोई न होगा, कहे देती हूँ!

माँ का ऐसा गुस्सैल रूप हमने आज तक नहीं देखा था, उनके इस गुस्से ने पिताजी की बोलती बंद कर दी थी! माँ का गुस्सा ऐसा था की अगर पिताजी उनके सामने होते तो माँ उन्हें फाड़ कर खा ही जातीं!



माँ ने गुस्से में फ़ोन काट दिया और अपना गुस्सा काबू करने लगीं| मैंने जब माँ को खामोश देखा तो मैं उनके पास बैठ गया, इस उम्मीद में की माँ कुछ कहें| जब माँ कुछ नहीं बोलीं तो मैंने ही बात शुरू की;

मैं: माँ?

मेरी बात सुन माँ होश में आईं और उन्होंने हमें पिताजी द्वारा कही हुई सारी बात बताई| माँ से हुई पिताजी की बातों से मुझे बहुत दुःख हुआ और मैं खामोश हो कर सोच में पड़ गया| अभी तक मेरे पिताजी ने मुझ पर खुनी होने की तोहमद लगाई थी लेकिन आज तो उन्होंने मुझ पर अपनी ही माँ को घर से बाहर निकालने का आरोप भी लगा दिया था!

उधर जब माँ ने मुझे खामोश देखा तो वो मुझे हिम्मत बँधाने लगीं;

माँ: बेटा, तू अपने पिताजी की बात को दिल से मत लगा! उनकी अक्ल पर पत्थर पड़े हैं, उन्हें बस अपने भैया-भाभी सही दिखते हैं और अपना खून गलत!

ये कहते हुए माँ ने मुझे अपने गले लगा लिया| मैं और खामोश रह कर माँ का दिल नहीं दुखाना चाहता था इसलिए मैंने नकली मुस्कान लिए हुए सर हाँ में हिलाया|



अब चूँकि संतोष को सारी बात मालूम थी इसलिए मुझे अब उससे एक जर्रूरी सवाल पूछना था;

मैं: तो संतोष, अब तुझे सारी बात पता ही है तो मेरा बस एक ही सवाल है, क्या तुझे मेरे साथ अब भी काम करना है?

मेरा ये सवाल सुन माँ और संगीता दंग थे! जबकि मेरा मकसद संतोष की मेरे और मेरे काम के प्रति निष्ठा जानना था|

संतोष: भैया, मैंने आजतक आपको कुछ भी गलत करते नहीं देखा| आपने अगर चन्दर भैया पर गोली चलाई भी तो इसलिए क्योंकि वो आपको जान से मारने आया था, आप उसकी जान लेने नहीं गए थे इसलिए अगर आपको लगता है की अंकल जी की आपके खिलाफ कही बातों से मैं आपके साथ काम नहीं करूँगा तो मैं आपको बता दूँ की मैं अंकल जी की बातों से ज़रा भी प्रभावित नहीं हूँ| मैं तबतक आपके साथ काम करूँगा जबतक की आप मुझे खुद काम से नहीं निकाल देते!

संतोष की बातों में मुझ पर आत्मविश्वास था, वो दिल से ये बात मानता था की मैं गलत नहीं हूँ तभी वो मेरे साथ काम करने को तैयार हुआ था|



खैर, अब बातें साफ़ हो गई थीं तो अब कम से कम काम को ले कर मुझे कोई चिंता करने की जर्रूरत नहीं थी| मैंने संतोष से काम को ले कर बात करने लगा, मेरी बातों से कोई नहीं कह सकता था की मुझे पिताजी की कही बातों से कितना दुःख हुआ है! मुझे अपना दुःख अपने परिवार के सामने आने से रोकना था इसलिए मैं सबके सामने हँसी का मुखौटा ओढ़े बैठा था|

इधर घर में बातें हो रहीं थीं इसलिए बच्चे जाग गए और आँखें मलते हुए मेरी गोदी में चढ़ गए| बच्चों के प्यारभरे मोहपाश ने मुझे जकड़ लिया था और मेरा दिल ख़ुशी से भरने लगा था| बच्चों ने शायद मेरे भीतर बसी मायूसी को भाँप लिया था तभी तो वो मेरे सीने से लगे हुए चहक रहे थे!

संगीता: तुम दोनों शैतानों को नींद नहीं आती?!

संगीता हँसते हुए बोली| संगीता की बात सुन दोनों बच्चे खिलखिलाकर हँसने लगे|

मैं: मेरे बिना मेरे बच्चों को नींद आती कहाँ है?!

मैंने दोनों बच्चों के सर चूमते हुए कहा| मेरी बात सुन दोनों बच्चों ने मिल कर मेरे दोनों गाल चूम-चूम कर गीले कर दिए|



रात बहुत हो रही थी, माँ ने संतोष से खाना खाने के लिए पुछा तो संतोष ने बताया की उसने ट्रैन से उतरते ही खाना खा लिया था| मैं, संतोष को छोड़ने के लिए उसके साथ बात करते हुए घर से निकला, संतोष को ऑटो करवा कर मैं अकेला घर लौट रहा था की तभी मेरे दिमाग में आज पिताजी की कही बातें घूमने लगीं| पिताजी का यूँ मेरे बारे में इतना गलत सोचना मेरा दिल बर्दाश्त नहीं कर पा रहा था| यही सोच अगर किसी तीसरे व्यक्ति की होती तो मुझे कुछ फर्क नहीं पड़ता मगर अपने ही पिता के अपने बेटे के बारे में ऐसा सोचना मेरे दिल को आहात कर गया था! जब दिल दुःखा तो उसे कोई सहारा चाहिए था, ये सहारा मैं अपने परिवार से नहीं माँग सकता था क्योंकि मैं उन्हें कमजोर दिखता और मुझे यूँ कमजोर देख सबकी हिम्मत टूट जाती| मुझे कोई ऐसा सहारा चाहिए था जिसके बारे में किसी को पता न चले, ऐसा सहारा जो की मुझे कोई व्यक्ति नहीं बलिकी एक वस्तु दे सकती थी!

आज कई दिनों बाद दिल में नशे की हुक जगी! 'संगीता ने जब मुझे खुद से दूर किया था तब इसी नशे ने मुझे सहारा दिया था' ये सोचते हुए मेरे कदम शराब के ठेके की ओर मुड़ना चाहते थे की तभी मेरी अंतरात्मा ने मुझे जकझोड़ते हुए बच्चों की याद दिला दी; 'शराब पी कर न केवल तू अपने पिताजी से किया वादा तोड़ेगा बल्कि अपनी माँ, अपने बीवी-बच्चों से कभी नज़र नहीं मिला पायेगा!' अंतरात्मा की कही ये बात सुन मैं अपने नशे की हुक पर काबू पाने की कोशिश करने लगा| जब आपका दिल दुःखा हो तो वो इस स्थिति में नहीं होता की आपको सही-गलत में फर्क करना सिखाये| उस समय जो आपके दिल को सुकून दे वही चीज़ सही और जो दिल को दुखाये वो गलत होती है! नशा मेरे दिल को सुकून दे सकता था इसलिए मेरा दिल मुझे नशे को पाने से लड़ने नहीं दे रहा था|



'शराब न सही, सिगरेट तो पी ही सकता हूँ?! उसके लिए न तो मैंने किसी से कोई वादा किया था और न ही सिगरेट पीने की खबर किसी को लगेगी| और कौन सी रोज़ पी रहा हूँ, बस आज भर की तो बात है!' मेरे दिमाग को नशे की लत पहले ही थी, वो तो मेरे परिवार के प्यार के कारण ये लत छूट गई थी, ऐसे में आज जब दिल की नशे की माँग की तो दिमाग ने भर-भरकर तर्क मेरे आगे इन शब्दों में परोस दिए| दिल और दिमाग की नशे की हुक के आगे मेरी संकल्प शक्ति जवाब दे गई तथा मेरे कदम मुझे पनवाड़ी की दूकान तक खींच ले गए|

पनवाड़ी के पास पहुँच तो गया मगर सिगरेट लूँ कौनसी ये समझ ही नहीं आया! ऊपर से सिगरेट माँगने में फ़ट अलग से रही थी की कहीं कोई आस-पड़ोस वाला मुझे सिगरेट लेता देख न ले! मैंने अपना फ़ोन निकाला और ऐसे दिखाया जैसे मैं कोई मैसेज पढ़ने में व्यस्त हूँ, जबकि मेरा ध्यान बाकी ग्राहकों पर था| तभी एक लड़का आया और उसने पनवाड़ी से "1 मिंट वाली देना" कहा| जब उसने ये कहा तो पनवाड़ी ने उसे एक सिगरेट निकाल कर दी| मैंने ये नाम तुरंत पकड़ लिया और अपनी नज़र फ़ोन में गड़ाए हुए ही पनवाड़ी से "1 मिंट वाली" सिगरेट माँगी| सिगरेट ले कर मैंने ये तक नहीं देखा की ये कौन सी ब्रांड की है, मैं तो इस सोच में था की ये पीयूँ कहाँ? सबके सामने सिगरेट पी नहीं सकता था, पहलीबार था और सिगरेट का पहला कश लेते ही मुझे खाँसी आती| मेरी किरकिरी न हो इसलिए मैंने सिगरेट अपने घर की छत पर पीने का फैसला किया, वहाँ मुझ पर हँसने वाला कोई नहीं था तथा मैं चैन से बैठ कर सिगरेट पी सकता था| सिगरेट तथा एक chewing gum ले कर मैं घर लौट आया|



घर लौटा तो देखा की मेरे दोनों प्यारे बच्चे सोने का नाम ही नहीं ले रहे! संतोष के इंतज़ार में मैंने, माँ ने और संगीता ने खाना नहीं खाया था, यही कारण था की बच्चे सोने का नाम नहीं ले रहे थे| संगीता ने जब सबके लिए खाना परोसा तो दोनों बच्चे मेरे हाथों खाना खाने के लिए उत्साहित हो कर कूदने लगे| जब मैंने दोनों बच्चों को अपने हाथों से एक-एक कौर खिलाया तब जा कर दोनों बच्चों का उत्साह शांत हुआ और वो सोने के लिए तैयार हुए| जितनी देर बच्चे उत्साह से मेरे सामने कूद रहे थे उतनी देर के लिए मेरा मन शांत था और मेरी सिगरेट पीने की इच्छा नहीं हो रही थी मगर जैसे ही बच्चे सो गए मेरा दिल सिगरेट का नशा पाने के लिए आतुर हो गया!

रात के साढ़े बारह बजे थे और मेरा मन पिताजी की बातें सोच-सोच कर व्याकुल हो गया था तथा सिगरेट पीने की मेरी इच्छा प्रबल हो गई थी| मैं दबे पाँव उठा और छत पर पहुँच गया, छत पर लगी टंकी के पीछे मैं पीठ टिका कर बैठ गया| रात का सन्नाटा था और ठंडी-ठंडी हवा बह रही थी, इस शांत वातावरण में मेरा मन रोने को कर रहा था| पिताजी के साथ बिताई मेरी बचपन की यादें एक-एक कर मेरे दिल को आघात कर रही थीं! मेरे बचपन में मुझे लाड-प्यार करने वाले मेरे पिताजी मुझसे अब नफरत करने लगे थे| "मैंने क्या गलत किया जो आप मुझसे नफरत कर रहे हो?" मैं गुस्से में बड़बड़ाया| चूँकि मैं यहाँ अकेला था इसलिए मुझे चिंता नहीं थी की कोई मेरी बात सुनेगा|



मैंने सिगरेट निकाली और होठों पर लगा कर जलाई, पहला कश अंदर खींचते ही शुरू-शुरू में मुझे मिंट की ठंडक महसूस हुई लेकिन फिर सिगरेट का धुआँ सीधा जा कर गले में लगा और मुझे खाँसी आ गई! शुक्र है की मैंने पहला कश छोटा खींचा था इसलिए अधिक खाँसी नहीं आई, जैसे ही खाँसी रुकी मैंने वैसे ही सिगरेट का अगला कश सँभल कर खींचा ताकि इस बार खाँसी न आये इसलिए इस बार मुझे खाँसी नहीं आई बल्कि गले में ठंडक महसूस होने लगी| सिगरेट पीते हुए नजाने क्यों मेरा मन शांत हो गया था, न पिताजी की कही बातें याद आ रहीं थीं और न ही कोई अन्य चिंता मुझे सता रही थी| मेरे लिए तो ये सिगरेट जैसे कोई जादुई चिराग था, जिसे जला कर मैं अपनी सब चिंताएँ भूल सकता था!

खैर ये मेरी केवल कोरी कल्पना थी, सिगरेट पीने से मुझे कोई ‘निर्वाना’ नहीं मिल गया था! ये तो बस दिल को नशे की जर्रूरत थी और उसने मेरे दिमाग को ऐसा सोचने पर मजबूर कर दिया था की सिगरेट पीने से मेरी सभी चिंताएँ खत्म हो गई हैं| अगर सच में सिगरेट से चिंताएँ खत्म हो जातीं तो बात ही क्या थी!



सिगरेट पी कर आधे घंटे बाद मैं नीचे आ गया और मुँह धो कर लेट गया| मेरे लेटते ही संगीता की नींद खुल गई और वो मुझसे बच्चों की तरह लिपट गई जिससे मुझे बड़ी मीठी नींद आई| अगली सुबह उठते ही मैंने पिताजी के सभी कागज-पत्तर, उनकी चेक बुक आदि इकठ्ठा की और एक लिफ़ाफ़े में ठीक से पैक कर के संतोष के हाथों पिताजी को गाँव में कूरियर करवा दी|


जारी रहेगा भाग - 4 में...
नशा नाश की जड़ है।
 
Top