मुन्नार की यात्रा
आयुष और नेहा की विंटर वेकेशन (winter vacation) शुरू होने वाली थीं| घर में रहते हुए नेहा मुझे सबके समाने पापा जी नहीं कह पाती थी, जब रात होती और हम बाप-बेटी सोने जाते तभी नेहा मुझे बिना डरे पापा जी कह पाती| नेहा का मन था की वो मुझे बिना डरे पापा जी कहे, अब ऐसा घर पर रहते हुए तो हो नहीं सकता था इसलिए मेरे बालमन ने इसका एक रास्ता निकाला|
मैं नेहा को गोदी लिए हुए माँ के पास पहुँचा और अपना बचपना दिखाते हुए बोला; "माँ, मैं नेहा को घुमाने शहर से बाहर ले जा रहा हूँ|" मेरी बात सुन नेहा ख़ुशी से मेरी गोदी में नाचने लगी| लेकिन जैसे ही मैंने माँ को अपना फैसला सुनाया तो पीछे से आयुष बोला; "और मैं?" अब मैं आयुष को कुछ कहता उससे पहले ही मेरी गोदी में चढ़ी हुई नेहा उसे डाँटते हुए बोली; "तू यहाँ रह कर गेम खेलिओ!" अब आयुष को भी मेरे साथ घूमने जाना था इसलिए उसने साथ चलने की ज़िद्द पकड़ ली|
एक तरफ दोनों बच्चों की मेरे साथ घूमने जाने की रस्सा-कसी चल रही थी तो दूसरी तरफ संगीता ने हम बाप-बेटा-बेटी की इस यात्रा में अपनी टाँग घुसा दी; "ये सही है, आप तीनों घूमने जाओगे तो मैं, माँ और पिताजी यहाँ बैठ कर अचार डालेंगे?" संगीता की बात सुन माँ फौरन अपनी बहु की तरफ हो गईं और उन्होंने नेहा को भावुक करते हुए कहा; "मुन्नी, अगर तू मानु के साथ चली जायेगी तो मैं यहाँ अकेली क्या करुँगी?" नेहा अपनी दादी जी के भावुक होने के ड्रामे को असल समझ बैठी और मेरी गोदी में आ कर बोली की मैं तीनों को (माँ, नेहा और आयुष को) घूमने ले जाऊँ|
जब नेहा ने संगीता का नाम नहीं लिया तो संगीता ने घर में गृहयुद्ध छेड़ दिया| कुछ देर बाद पिताजी घर लौटे तो संगीता ने साफ़ ऐलान कर दिया की अगर घूमने जाएंगे तो सब जाएंगे वरना कोई नहीं जाएगा| पिताजी चाहते थे की मैं सबको घुमा लाऊँ और वो यहाँ अकेले रह कर काम सँभालें| लेकिन नेहा और आयुष ने पिताजी को अपने मोहपाश में जकड़ लिया और जिद्द करते हुए बोले की वो भी हमारे साथ चलें| थोड़ी ना-नुकुर के बाद माँ-पिताजी मान गए और मुन्नार जाने का प्रोग्राम बन गया|
मौका अच्छा था और मैं इस मौके में रोमांस का तड़का मारना चाहता था इसलिए मैंने एक गुप्त योजना बनाई| दिषु के साथ मिलकर मैंने जुगाड़ लगा कर होटल बुक किया और मैनेजर से बात करते हुए तीन कमरे बुक किये| एक डबल कमरा माँ-पिताजी के लिए और दो सिंगल कमरे मेरे और संगीता के लिए| हम दोनों के कमरे आमने-सामने थे जिससे रात को हमारा मिलना आसान था|
जब मैंने अपनी इस योजना के बारे में संगीता को बताया तो वो ख़ुशी से फूली न समाई| दुनिया की नजरों से छुप कर हम दोनों पति-पत्नी का रिश्ता निभा ही रहे थे ऐसे में ये यात्रा हमारे लिए किसी हनीमून से कम नहीं थी|
फिर आया संगीता का जन्मदिन और वो दिन बहुत ख़ुशी-ख़ुशी बीता| देर रात को मौका पा कर माँ-पिताजी से छुप कर संगीता को उसका ख़ास उपहार भी दिया गया!
मुन्नार पहुँचने की यात्रा आप सभी ने पढ़ी थी| होटल पहुँच कर मैंने चालाकी से होटल के मैनेजर को ले कर कमरे का मुआइना करने के बहाने अकेले में समझा दिया की मुझे पीने-खाने की आदत है और अपने परिवार की उपस्थ्ति में ये सम्भव नहीं इसलिए मुझे एक अकेला कमरा चाहिए| मेरे पितजी उससे (मैनेजर से) अवश्य कहेंगे की वो हमें तीन की बजाए दो डबल कमरे दे दे ताकि हमारे पैसे बच जाएँ मगर उसे कुछ भी कर के उनकी बात नहीं माननी है| यदि मेरे पिताजी ज्यादा ज़ोर दें तो वो उन्हें दिखाने के लिए डिस्काउंट का झाँसा दे दे, बाद में मैं उसे अपने पिताजी की चोरी पूरे पैसे दे ही दूँगा|
अब जैसा की मैंने सोचा था, पिताजी ने मैनेजर से बहुत कहा की वो हमें दो कमरे दे-दे मगर मैनेजर मेरे पढ़ाये पाठ पर कायम रहा और झूठ-मूठ का डिस्काउंट देने को राज़ी हो गया|
अंततः मुन्नार की यात्रा के दौरान हम दोनों को प्यार करने के अवसर रात 12 बजे के बाद जब सब सो जाते थे तभी मिलते थे|
चन्दर का घर आना और संगीता की जान लेने की कोशिश करना|
सब कुछ सुखद चल रहा था मगर नियति ने हमारे प्यार की इस गाडी को पहला झटका देना था| हमारे घर की खुशियों को दुःख का ग्रहण लग चूका था!
जिस समय हम सब मुन्नार में अपनी खुशियाँ मनाने में लगे थे, उसी समय चन्दर नशा मुक्ति केंद्र से भाग आया था और उसे संगीता के गर्भधारण के बारे में पता चल गया था| चन्दर जनता था की उसने संगीता को 5 साल में छुआ तक नहीं इसलिए ये बच्चा उसका तो हो ही नहीं सकता! एक बस मैं ही था जो संगीता के सबसे करीब था इसलिए उसे पूरा यक़ीन था की ये बच्चा मेरा ही है|
गुस्से की आग में जलते हुए संगीता की जान लेने के इरादे से चन्दर दिल्ली आया था| जिस दिन हम मुन्नार से लौटे, उसी सुबह चन्दर घर में घुस आया और संगीता की जान लेने के लिए उसका गला दबाने लगा| मेरे और संगीता के रिश्ते पर कीचड़ उछालते हुए, संगीता को गरियाते हुए चन्दर संगीता का गला दबा रहा था| ख़ुशक़िस्मती से मैं उस वक़्त घर पर मौजूद था, उसके बाद जो मार-पीट हुई उसके बारे में आप सभी पढ़ ही चुके हैं|
संगीता इस समय बहुत डरी हुई थी और उसे सँभालना किसी के लिए भी नामुमकिन था| वहीं दोनों बच्चे भी इस हिंसा को देख कर डरे-सहमे हुए थे| जब माँ-पिताजी घर लौटे और उन्हें मार-पीट के बारे में पता चला तो मैं ने आधी बात छुपा ली| "चन्दर वहाँ अस्पताल (नशा मुक्ति केंद्र) में था और संगीता यहाँ थी इसलिए चन्दर को बहुत गुस्सा आया और वो संगीता की जान लेने के लिए यहाँ आया था| खुशकिस्मती से मैं घर पर था और संगीता की जान बचाने के लिए मैंने उस पर हाथ छोड़ दिया!" मेरी बात सुन माँ-पिताजी ने मुझे कुछ नहीं कहा| बल्कि माँ को तो आज मुझ पर बहुत गर्व हो रहा था की उनके लड़के ने एक स्त्री की रक्षा की है| आस-पड़ोस के लोग सभी माँ-पिताजी से मेरी सरहाना कर रहे थे की कैसे मैंने डट कर चन्दर का सामना किया तथा मार-मार कर उसका बुरा हाल कर दिया|
वहीं दूसरी तरफ जब ये खबर गॉंव पहुँची तो सबसे ज्यादा मिर्ची लगी मामा जी को! उन्होंने बड़के दादा को फौरन फ़ोन कर मेरे खिलाफ भड़का दिया और मेरे ऊपर पुलिस केस करने को उकसाया|
पुलिस स्टेशन में सारा मसला हमारे वकील साहब ने सुलटा दिया और हम बाप-बेटा घर लौट आये| मुझ पर पुलिस केस करने के लिए पिताजी आज पहलीबार अपने भाईसहाब पर क्रोधित हुए, बची-कुचि कसर माँ ने अपने गुस्से में पिताजी को बड़के दादा के खिलाफ भड़का कर पूरी कर दी| पिताजी को गुस्सा तो बहुत आया मगर उनमें अपने भाईसाहब को कुछ कहने की हिम्मत नहीं थी| मैं अपने पिताजी के आचरण को जनता था इसलिए मैंने सभी का ध्यान डरे-सहमे बच्चों तथा संगीता की तरफ मोड़ दिया| माँ-पिताजी अपने लाड-प्यार से संगीता और बच्चों को सँभालने में जुट गए| बच्चे तो अपने दादा-दादी जी के मोह के कारण शांत हो गए मगर संगीता को सँभाल पाना माँ-पिताजी के मुश्किल था| "बेटा, तू ही अपनी दोस्त को समझा|" माँ ने मुझे संगीता को सँभालने का कार्य दे दिया, जिसे मैंने पूरी शिद्दत से निभाया| वो बात अलग है की संगीता तब भी नहीं सँभली!
संगीता अपने भविष्य को ले कर बहुत डरी हुई थी क्योंकि इस सबके बाद जल्द ही संगीता को गॉंव से बुलावा आना था, आखिर चन्दर कानूनी तौर पर उसका पति जो था! इस समय मैं भी संगीता और अपने बच्चों को खोने के नाम से डरा हुआ था परन्तु मेरे पास इसका हल पहले से ही तैयार था|
मैं बार-बार संगीता को यही समझा रहा था की अब हमारे पास सिवाय शादी करने के और कोई रास्ता नहीं है, परन्तु संगीता ने मेरी इस बात का कोई जवाब नहीं दिया| मुझे लगा शायद संगीता सदमे में है इसलिए वो कोई भी फैसला लेने में असमर्थ है इसलिए मैंने संगीता के जख्म भरने का इंतज़ार करना ठीक समझा| जहाँ एक तरफ मैं संगीता को प्यार से सँभालने में लगा था और उसका जी हल्का करने की हर कोशिश कर रहा था वहीं दूसरी तरफ संगीता मुझसे कटती जा रही थी| संगीता ने जैसे मन ही मन ये मान लिया था की अब हम दोनों हमेशा-हमेशा के लिए अलग हो जायेंगे!
संगीता का मेरे प्रति ये रूखा व्यवहार देख मैं चिड़चिड़ा होता जा रहा था और ऊल-जुलूल चीजें सोचने लगा था| इसी बीच गॉंव से बड़के दादा का फ़ोन आया, चूँकि पिताजी का फ़ोन मेरे पास था इसलिए मैंने ही वो फ़ोन उठाया| मेरी आवाज़ सुन बड़के दादा बहुत गुस्सा हुए और मुझे मेरे पिताजी के साथ गॉंव आने को कहा| मुझे डर था की कहीं चन्दर ने गॉंव में मेरे और संगीता के बारे में सब सच तो नहीं कह दिया, यदि ऐसा हो गया होता तो मेरे पिताजी क्या प्रतिक्रिया देंगे उसके लिए मैं तैयार नहीं था इसलिए मैंने बिना किसी को कुछ बताये अकेले गॉंव जाने का फैसला किया|
जब मैं गॉंव पहुँचा तो वहाँ पंचों वाली पंचायत नहीं बल्कि घर के सदस्यों की पंचायत बैठी थी| इस पंचायत के सदस्य थे;
१. बड़के दादा
२. संगीता के पिताजी
३. मामा जी
४. बड़की अम्मा और
५. मामी जी
मुझे अकेला देख सभी हैरान हुए और मुझसे पुछा गया की मेरे पिताजी क्यों नहीं आये तो मैंने साफ़ कह दिया की; "मार-पीट मैंने की है, पिताजी ने नहीं|" मेरे ये तेवर दर्शाते थे की मुझे अपने किये पर ज़रा भी पछतावा नहीं है|
आगे जो बहस हुई उसे मैं आप सभी के सामने रख रहा हूँ;
बड़के दादा: चन्दर हुआँ बहु और बच्चा का लिए खतिर गवा रहा, तू काहे ओकरे संगे मार-पीट किहो? तोहार का हक़ रहा ओपर हाथ उठाये का?
बड़के दादा ने गुस्से से मेरी ओर इशारा करते हुए मुझे पर झूठा आरोप लगाया|
मैं: बड़के दादा, चन्दर वहाँ आपकी बहु को लेने नहीं बल्कि उसकी हत्या करने के इरादे से आया था!...
मैंने बड़ेक दादा की बात का काट करते हुए कहा| मेरा जवाब सुन मामा जी को मिर्ची लग गई और वो एकदम से मेरी बात काटते हुए बोले;
मामा जी: तू झूठ कहत हो! मुन्ना (चन्दर) हुआँ कउनो लड़ाई-झगड़ा किये नाहीं गवा रहा| तू ऊ बेचारे का इतना बुरी तरह मारयो की ओकरा हाथ टूटी गवा|
मैं: झूठ मैं नहीं ये (चन्दर) कह रहा है|
मैंने गुस्से से चन्दर की तरफ इशारा करते हुए कहा|
चन्दर: चुपये रहो! नाहीं तो...
चन्दर ने मुझे धमकाना चाहा और अपनी बात अधूरी छोड़ दी| दरअसल चन्दर कहना चाहता था की अगर मैं चुप नहीं रहा तो वो मेरे और संगीता के रिश्ते के बारे में सब बता देगा| लेकिन मैं उसकी इस गीदड़ भभकी से डरा नहीं और सीधा मुद्दे की बात पर आ गया;
मैं: अगर आप सबको लगता है की मैं झूठा हूँ तो मैं भवानी माँ की कसम खाने को तैयार हूँ| कहिये इस चन्दर को की ये भी भवानी माँ की कसम खा कर कह दे की ये मेरे घर क्यों आया था?! हम दोनों में से जो भी झूठा होगा उसे भवानी माँ अभी के अभी सजा दे देंगी!
मैंने जानबूझ कर चन्दर के आगे ये चुनौत रखी थी, ज़ाहिर था की उसके मन में था चोर इसलिए वो भवानी माँ की कसम खाने से मुकर गया|
चन्दर के मुकरने से बड़के दादा और बड़की अम्मा का सर शर्म से झुक गया था| मुझे सच्चा साबित होता हुआ देख चन्दर तिमिला गया और सच बोलने ही वाला हुआ था की मैंने उसे चुप कराने के लिए एक बार फिर उस पर आरोपों से हमला कर दिया;
मैं: मुझे यक़ीन नहीं होता की आप सब ने क्या सोच कर मुझे गलत समझा? जब आखरीबार मैं गॉंव आया था तब इसने (चन्दर ने) अपनी चमड़े की बेल्ट से मेरी खाल उधेड़ दी थी, जबकि मैं इसे अपना बड़ा भाई मानकर इसकी मार सहता रहा| दिल्ली में हमारे साथ रहकर हमारे ही साथ विश्वास घात किया इसने, पैसों का घपला किया इसने, मेरे पिताजी की सालों की बनी-बनाई इज्जत खराब की इसने, लेकिन फिर भी मेरे पिताजी ने यहाँ किसी से एक शब्द नहीं कहा और आप सब इस आदमी की बातों में आ कर मुझे दोषी समझने लगे?!
मेरी माँ ने मुझे सिखाया है की स्त्री का मान-सम्मान करना चाहिए उसकी रक्षा करनी चाहिए और वही मैंने उस दिन किया…और अगर इसने फिर ऐसा कुछ किया तो मैं इसे फिर पीटूँगा! इस बार तो हाथ तोडा था, अगलीबार इसकी ऐसी हालत करूँगा की ये बिस्तर से उठ नहीं पायेगा!
अपनी बात कहते-कहते मैं तेश में आ चूका था और मेरा गुस्सा देख सभी हैरान थे की आखिर बचपन में जो लड़का सबसे बड़े अदबों-अदब से बात करता था वो इतना हिंसक...इतना गुस्सैल कैसे हो गया?!
बहरहाल, मेरी सारी बातें सुन कर घर के पंचों के सर शर्म से झुक गए थे| वहीं सबको यूँ खामोश देख और मेरे मुख से अपनी तीखी आलोचना सुन, चन्दर भुनभुना गया था! वो इस समय खामोश था तो सिर्फ इसलिए की वो झूठा साबित हुआ था और उसका पक्ष लेने वाला इस समय कोई नहीं था|
चन्दर गुस्से से खड़ा हुआ और बिना किसी से कुछ कहे वहाँ से भाग खड़ा हुआ|
मैं गॉंव रुकने के इरादे से नहीं आया था इसलिए मैंने हाथ जोड़कर सभी से अपने वापस जाने की अनुमति माँगी| वहाँ कोई नहीं चाहता था की मैं घर में रुकूँ इसलिए किसी ने मुझे झूठे मुँह भी रुकने को नहीं कहा|
बड़के दादा इस समय अपने बेटे के कारण शर्मिंदा थे और कुछ भी कहने की स्थिति में नहीं थे| मैंने भी उनसे कुछ और बात करना ठीक नहीं समझा| मैंने उनके पॉंव छुए परन्तु बड़के दादा ने मुझे आशीर्वाद नहीं दिया! बड़के दादा द्वारा किये इस तिरस्कार को देख मुझे अपनी माँ द्वारा बताई वो बात याद आई जब माँ-पिताजी शादी कर गॉंव आये थे और बड़के दादा ने उन्हें भद्दी-भद्दी गालियाँ दे कर उनका तिरस्कार किया था|
फिर मैंने बड़की अम्मा के पॉंव छुए तो बड़की अम्मा ने मेरे मस्तक को चूमते हुए मुझे आशीर्वाद दिया| इस समय अगर किसी को मेरे ऊपर गर्व हो रहा था तो वो थी मेरी बड़की अम्मा, उन्हें ये देख कर ख़ुशी हुई थी की कैसे मैंने उनकी बहु की रक्षा की|
जब मैं संगीता के पिताजी के पॉंव छूने लगा तो उन्होंने मुझे रोक दिया तथा मुझे अपने गले लगा लिया| “हम मुन्ना का सड़क तक छोड़ देब और आपन घरे निकल जाब|” संगीता के पिताजी ने सभी से हाथ जोड़कर अपने जाने की आज्ञा लेते हुए कहा|
मामा जी और मामी जी के पैर न छू कर मैंने उन्हें पूरी तरह से अनदेखा कर दिया और संगीता के पिताजी के साथ चल पड़ा| संगीता के पिताजी को मुझ पर गर्व हो रहा था की मैंने कैसे उनकी बेटी की रक्षा की| चूँकि वो एक लड़की के पिता थे इसलिए वो अपनी बेटी के बचाव में कुछ कह नहीं सकते थे| मेरे लिए इतना ही बहुत था की इस पूरी बहस के दौरान उन्होंने मेरे खिलाफ एक शब्द नहीं कहा|
सड़क तक पहुँचते-पहुँचते हमारी बातें जारी थीं और इसी दौरान मुझे उनके कर्जे (loan) का पता चला| मैं उस समय उनकी मदद करने की स्थति में था इसलिए मैंने गुपचुप उनकी मदद कर दी|
घर वापस लौटा तो वापस संगीता का वो मुरझाया हुआ चेहरा दिखा| मुझसे अब संगीता का ये हाल नहीं देखा जा रहा था इसलिए मैं चिड़चिड़ा हो उठा था| उसी समय मेरे दिमाग में एक ख्याल आया; 'कहीं संगीता मुझसे शादी का प्रस्ताव इसलिए तो अस्वीकार कर रही क्योंकि मैं कमाता नहीं?' ये फज़ूल का ख्याल दिमाग में आते ही मैंने नौकरी करने का फैसला कर लिया|
मुझे एक अच्छी नौकरी चाहिए थी ताकि मैं संगीता और बच्चों की जिम्मेदारी अच्छे से निभा सकूँ| नौकरी करने की सनक दिमाग पर चढ़ी और अगले ही दिन मैं मुंबई के लिए निकल गया| वहाँ अपने दोस्त से मिल, एक अच्छी नौकरी सिक्योर (secure) कर मैं अनिल और संगीता की माँ से मिला| अनिल का ऑपरेशन हुआ और आखिर मैं घर वापस लौटा|
मैं संगीता से उसके पिताजी से मिलने, मुंबई में अनिल और उसकी माँ से मिलने की सारी बातें इसलिए छुपा रहा था क्योंकि ये सब जानकार संगीता खुद को मेरे एहसान के बोझ तले दबा महसूस करती, फिर वो मेरे एहसान का बदला चुकाने के लिए मेरा शादी का प्रस्ताव मान लेती और मुझे ये कतई गवारा नहीं था| मैं चाहता था की संगीता को मेरे प्यार पर विश्वास हो जाए और वो दिल से मेरे शादी के प्रस्ताव को मान ले|
जब मैं मुंबई से वापस लौटा तब भी मुझे संगीता के बर्ताव में कोई फर्क नहीं दिखाई दिया| वो एक चलती-फिरती लाश की तरह मेरे सामने रहती थी, न मुझसे ठीक से बात करती थी और प्यार करने की तो कोई उम्मीद थी ही नहीं! एक दिन जब घर में कोई नहीं था तब मेरे गुस्से का प्याला छलक गया और मैं संगीता पर बरस पड़ा; "मैं जानता हूँ की तुम हमारे रिश्ते के टूटने को ले कर भीतर से कितनी डरी हुई हो मगर कब तक यूँ दुखी हो कर खामोश बैठी रहोगी?! इस समस्या का बस एक ही हल है और वो है हम दोनों का हमेशा-हमेशा के लिए एक हो जाना|
मैंने सब कुछ सेट कर दिया है| मुंबई में मैंने एक MNC में नौकरी ढूँढ़ ली है, 3-4 महीनों में मुझे offshore posting मिल जाएगी तो हम चारों (मैं, संगीता और दोनों बच्चे) विदेश में settle हो जायेंगे| जब यहाँ सब शांत हो जायेगा, तो हम लौट आएंगे और मैं सबको मना लूँगा|" मैंने जब अपना ये प्लान संगीता को बताया तो वो एकदम से गुस्से से तमतमा गई!
"मतलब की हम भाग जाएँ? अपने सोचा की हमारे यूँ भागने से हमारे परिवार पर क्या बीतेगी? आपके माँ-पिताजी पर क्या बीतेगी? मेरे माँ-पिताजी पर क्या बीतेगी? हमारे माँ-पिताजी किसी को मुँह दिखाने लायक नहीं रहेंगे, यही चाहते हो आप?" संगीता मुझे गुस्से से घूरते हुए मुझसे सवाल करने लगी|
"नहीं...मैं ये बिलकुल नहीं चाहता! मैं तो चाहता था की मैं पहले अपने माँ-पिताजी से हमारी शादी की बात करूँ और फिर तुम्हारे माँ-पिताजी से बात करूँ| लेकिन तुमने मुझे अपनी ‘बेहूदा कसम’ से बाँध रखा है! जब तुम मुझे सीधे रास्ते जाने नहीं दोगी तो मुझे घुमा कर कान पकड़ना ही पड़ेगा न?! या फिर मैं भी तुम्हारी तरह हाथ पर हाथ रखे बैठ जाऊँ और दुनिया को हमें अलग करते हुए देखता रहूँ?!!" मैं बिदकते हुए बोला|
"ये नामुमकिन है! आपके माँ-पिताजी ही नहीं मानेंगे तो मेरे माँ-पिताजी के मानने की तो बात ही छोडो! ये सब उतना आसान नहीं है जितना आपने कल्पना कर अपनी कहानी में लिखा है|" मेरे गुस्से को देख संगीता का गुस्सा डर के कारण शांत होने लगा था|
"सब कुछ मुमकिन है! भले ही मेरे पिताजी न माने मगर माँ तुम्हें बहुत चाहती हैं| मैं अपनी माँ के पॉंव में गिर जाऊँगा, उनसे मिन्नतें करूँगा और मुझे पूरा यक़ीन है की वो अपने बेटे की ये विनती मान जाएँगी| तुम्हें बस मुझे अपनी कसम से आज़ाद करना है!" अगर उस पल संगीता मान गई होती तो मैं अपनी माँ को मेरी शादी के लिए मना लेता| रही पिताजी की बात तो, उनके मानने न मानने से क्या फर्क पड़ता...आखिर उन्होंने अंत में अपने असली परिवार को तो छोड़ ही दिया न?!
खैर, संगीता को मेरे प्यार पर ज़रा भी भरोसा नहीं था इसलिए वो बिना कुछ कहे चली गई| इधर मैं अपने गुस्से की आग में बुरी तरह जल रहा था| अगर आयुष और नेहा मेरे पास न होते तो मैं अपने गुस्से की आग में पूरी तरह जल ही गया होता!
मुसीबत के समय में इंसान को उपाए खोजना चाहिए, न की मुसीबत के आगे घुटने टेक देने चाहिए|
जहाँ एक तरफ मैं संगीता को अपने प्यार पर विश्वास दिला कर हमारे रिश्ते को जायज नाम देने के लिए लड़ना चाहता था, वहीं सब कुछ खोने के डर से संगीता ने मुसीबत के आगे अपने हथियार डालकर खुद को हालातों के सहारे छोड़ दिया था|
कुछ दिन बीते की गॉंव से खबर आई की संगीता के पिताजी उसे लेने दिल्ली आ रहे हैं| ये खबर सुन मेरे होश फाख्ता हो गए! मुझे एक क्षण नहीं लगा ये कप्लना करने में की हम दोनों का ये साथ अब हमेशा-हमेशा के लिए छूट जायेगा… और टूट जायेगा बाप-बेटी का ये पाक रिश्ता!
दरअसल मेरे वापस चले आने के बाद, चन्दर ने घर पर ये राज़ खोल दिया था की संगीता के पेट में पल रहे बच्चे का बाप मैं हूँ| ये बात जानकार बड़के दादा का खून खौल गया था| वो तो सीधा पिताजी को फ़ोन करने वाले थे लेकिन बड़की अम्मा ने बीच में पड़ते हुए पहले संगीता को घर बुला कर बात पूछने को कहा| एक बार इस बात की पुष्टि हो जाती तो फिर घर में कोहराम मचना तय था!
वहीं, संगीता के पिताजी को ये बात जानबूझ कर बताई नहीं गई थी क्योंकि मामा जी का कहना था की वो संगीता को सब बता कर पहले से ही सचेत कर देंगे और संगीता कोई न कोई बहाना बना कर बच निकलेगी!
मैंने सुना था की, इंसान जब डूबने लगता है तो उसकी असली fighting spirit बाहर आती है, खुद को बचाने के लिए इंसान मौत से भी लड़ लेता है...मुझे तो बस संगीता की कसम तोड़नी थी!
"कल जब तुम्हारे पिताजी आएंगे तो मैं सबके सामने सब सच कह दूँगा| फिर चाहे मुझे सबके पैर पड़ने पड़ें या नाक रगड़नी पड़े मगर मैं सबको हमारी शादी के लिए मना कर रहूँगा| I don’t give a fuck about your कसम!” मैंने गुस्से में संगीता के सामने उसकी कसम तोड़ने की अपनी मंशा साफ़ कर दी थी|
"मेरी कसम तोड़ कर तो देखो! न मैंने उसी पल अपनी जान दे दी तो कहना! मेरी कसम को यूँ हल्के में लेने की भूल मत करना!” संगीता की आँखों में अंगारे जल रहे थे जिन्हें देख कर मुझे उसे खो देने का भय सताने लगा! मैं संगीता के जीते जी उसे खुद से दूर होते हुए देख कर जो दर्द महसूस करता वो संगीता के मृत शरीर को अपने सामने देखने की पीड़ा से बहुत कम था! संगीता को अपनी नज़रों से दूर देख कर मैं शायद जी लेता मगर उसके इस दुनिया में न रहने पर मेरे लिए जीना नामुमकिन था!
जितनी हिम्मत और आत्मविश्वास से मैं संगीता की कसम तोडना चाह रहा था, संगीता की इस धमकी ने सब पर पानी फेर दिया था! अब मेरे पास सिवाए बेबस बन कर सब कुछ अपनी आँखों के सामने घटित होते हुए देखने के कोई और चारा न था|
भले ही मैं कुछ कह नहीं सकता था मगर मुझ में जीने की इच्छा नहीं थी| अपने प्यार...अपने बच्चों को खो कर मैं कैसे जेता यही कारण है की मैंने उसी पल से अन्न-जल त्याग दिया!
अगले दिन संगीता के पिताजी घर पहुँचे, पूरा समय मेरी नजरें संगीता पर जमी हुई थीं...इस आस में की वो हमारे प्यार की लाज रख ले और अपने पिताजी के साथ जाने से मना कर दे| लेकिन संगीता के मुख से कोई बोल नहीं फूटे| संगीता बिना किसी से कुछ बोले अपने कमरे में जा कर अपना सामान पैक करने लगी|
इधर मैं संगीता को मनाने जाना चाहता था मगर संगीता के पिताजी ने मुझे अपने पास बिठा लिया| "मुन्ना, आभायें हम केवल मुन्नी का लिये जाइथ है| दू-तीन महीना बाद, जब दुनो बच्चा का परीक्षा पूर होइ तब हम फिर आब और दुनो का आपन साथै लेइ जाब|" संगीता के पिताजी से मिली ये जानकारी मेरे गले में फाँस के समान अटक गई थी!
'संगीता तो मुझसे दूर हो ही रही थी, तीन महीने बाद बच्चों से भी मेरा नाता छूट जायेगा!' मन में आये इस ख्याल ने मुझे झकझोड़ कर रख दिया और मेरी आँखों में दर्द भरे आँसूँ उतर आये| मैं किसी को अपने आँसूँ दिखा कर उनके मन में सवाल नहीं जगाना चाहता था इसलिए मैं फ़ोन का बहाना कर संगीता के कमरे में आ गया|
इधर, संगीता को अपने आँसूँ छुपाने की महारथ हासिल थी इसलिए संगीता बिना कुछ कहे बैग में अपने कपड़े रख रही थी|
"प्लीज जान! मत जाओ! तुम्हारे बिना मैं जी नहीं पाऊँगा!" आँखों में आँसूँ लिए, हाथ जोड़े मैंने संगीता के सामने अपने घुटने टेक कर मिन्नत माँगी| ये वही शब्द थे जो मैंने संगीता को रोकने के लिए आखरी बार कहे थे| मेरी आवाज़ सुन संगीता मुड़ी और मुझे घुटने टेके देख उसकी आँखें छलछला गईं! वो फौरन दौड़ती हुई मेरे पास आई और मेरे कँधे थाम मुझे उठाया और मेरे आँसूँ पोंछ कर दबी हुई सी आवाज़ में बोली; "आपको जीना होगा!" इतना कह संगीता ने मुझसे मुँह मोड़ लिया और मेरी ओर पीठ कर खड़ी हो सिसकने लगी| संगीता मुझे अपने आँसूँ दिखा कर कमजोर नहीं करना चाहती थी इसीलिए वो मेरी ओर पीठ कर खड़ी थी| उस पगली को क्या पता की उसके जाने से मैं वैसे ही टूट जाऊँगा!
मैंने संगीता के बाएँ काँधे पर हाथ रख उसे अपनी तरफ घुमाया और उसके चेहरे को थामे बोला; "प्लीज मुझे अपनी कसम से आज़ाद कर दो! मैं सबके सामने भीख माँग कर सबको हमारी शादी के लिए मना लूँगा, तुम बस थोड़ा सा मेरा साथ दो!" मैंने पूरे आत्मविश्वास से कहा परन्तु संगीता को अब भी मेरे प्यार पर भरोसा नहीं था| संगीता ने न में अपनी गर्दन हिलाई और अपने दोनों हाथ मेरे हाथों पर रख अपना चेहरा मेरी पकड़ से छुड़ा कर बाहर चली गई|
मैं जानता था की जितना दर्द मुझे संगीता से दूर होने का हो रहा है उतना ही दर्द संगीता भी महसूस कर रही है मगर फिर भी वो आखिर क्यों मुझसे यूँ उखड़ी हुई है? क्यों वो मुझ पर मेरे प्यार पर विश्वास नहीं कर रही? क्यों वो मेरे साथ नहीं खड़ी? मन में ऐसे बहुत से सवाल थे और मैं अकेला कमरे में खड़ा, रोते हुए इन सवालों का जवाब खोज रहा था|
कुछ देर बाद माँ ने मुझे आवाज़ दी तो मैं मुँह-हाथ धो कर बाहर आया ताकि किसी को मेरे दर्द में जल रहे दिल का हाल पता न चले| माँ ने मुझे संगीता और उसके पिताजी को बस स्टैंड छोड़ने जाने को कहा| उस पल मेरे मन में हुक उठी की शायद रास्ते में संगीता का मन बदल जाए और वो अपने पिताजी के साथ गॉंव जाने से मना कर दे| दिल में उम्मीद की आखरी किरण लिए मैंने फ़ोन कर टैक्सी बुलाई और अपनी जानेमन का बैग खुद टैक्सी में रखा|
कैसी विडंबना थी, जिसे मैं अपने पास रोकना चाहता था उसी का सामान मैं टैक्सी में रख रहा था!
मैं ड्राइवर साहब के साथ आगे बैठा था और संगीता तथा उसके पिताजी पीछे बैठे थे| सारे रास्ते संगीता खिड़की से बाहर देखने का दिखावा करते हुए मुझसे नज़रें फेरे रही| वहीं संगीता के पिताजी मुझसे बातें करने में लगे थे, मैं भी मज़बूर था इसलिए मैं उनकी बातों का जवाब दिए जा रहा था|
आखिर बस स्टैंड आया और संगीता के पिताजी टिकट लेने लाइन में लगे, मैं टिकट लेने लाइन में लग सकता था मगर मैं जानबूझ कर नहीं गया ताकि एक आखरी बार अपनी परिणीता को रोकने की कोशिश कर सकूँ| "जान..." आँखों में आँसूँ लिए मैंने संगीता को पुकारा मगर संगीता ने मुझसे नजरें फेर लीं| साफ़ था की अब कुछ नहीं हो सकता इसलिए हार मानते हुए मैं सर झुका कर बैठ गया!
कुछ देर बाद संगीता के पिताजी बस की टिकट ले कर आये और मैंने दोनों को बस में बिठा दिया तथा उनके लिए पानी और चिप्स-बिस्किट ले कर आया| बस चलने को हुई तो मैंने संगीता के पिताजी के पॉंव छु कर आशीर्वाद लिया| फिर जब मैंने संगीता की ओर देखा तो उसने मुझसे फिर नजरें फेर लीं और खिड़की से बाहर देखने लगी|
मेरा दिल टूट कर चकना चूर हो चूका था, जो रही-सही उम्मीद थी की संगीता अपने पिताजी के साथ गॉंव जाने से मना कर देगी वो भी टूट चुकी थी! आँखों में आँसूँ लिए मैं बस से उतरा और बिना पीछे मुड़े सीधा बस स्टैंड से बाहर आ गया!
दोपहर को जब मैं घर पहुँचा तो मुझे मेरे दोनों बच्चे उदास मिले| दरअसल जब वो स्कूल से घर आये तो उन्हें पता चला की उनके नाना जी उनकी मम्मी को गॉंव ले जा चुके हैं तथा परीक्षाओं के बाद उन्हें भी गाँव चले जाना है|
बच्चों को जितना दुःख हो रहा था उससे कई गुना दर्द मुझे हो रहा था| अपनी जान को तो मैं खो ही चूका था और कुछ दिनों में मैं अपने बच्चों को भी खोने वाला था| मैंने दोनों बच्चों को गोदी लिया और छत पर आ गया| मेरी ही तरह आयुष को भी अपने आँसूँ सबको दिखाना अच्छा नहीं लगता था इसलिए छत पर पहुँच आयुष सिसकते हुए बोला; "चाचू, मुझे गॉंव नहीं जाना! मैं यहीं रहूँगा आपके पास! आप मम्मी को वापस ले आओ, फिर हम सब यहीं रहेंगे|" आयुष जानता था की मैं उसकी हर माँग पूरी करता हूँ इसीलिए उसने मुझसे ये माँग की, इस उम्मीद में की मैं उसकी ये माँग भी पूरी करूँगा|
अब मैं आयुष को कैसे समझाता की उसकी मम्मी मेरी बात मान ही नहीं रही, अगर वो मेरी बात मान जाती तो हम सब एक साथ ख़ुशी-ख़ुशी रह रहे होते| आयुष को ये सच बता कर मैं उसके मासूम मन में उसकी मम्मी की छबि खराब नहीं करना चाहता था इसलिए मैंने आयुष के सवाल का जवाब दिए बिना उसे अपने सीने से लगा लिया और उसके सर को चूम उसके मन में उथल-पुथल को शांत किया|
नेहा इस समय एकदम खामोश थी और उसकी ये ख़ामोशी मुझे डरा रही थी| आयुष को बहला कर मैंने नीचे खेलने भेज दिया तथा नेहा को अपने सीने से लगा कर रो पड़ा! मेरे रोने पर नेहा भी खुद को रोक न पाई और मुझसे कस कर लिपट रो पड़ी! नेहा को मुझे अपनी बाहों में कसना ये दर्शाता था की वो मुझसे दूर नहीं जायेगी, लेकिन नियति को कुछ और ही मंज़ूर था|
"प्...पापा जी...मैं गॉंव नहीं जाऊँगी! मैं आपके साथ ही रहूँगी!" नेहा ने मुझे अपना फैसला सुनाते हुए कहा| न मेरे पास आयुष के सवाल का जवाब था और न ही नेहा के फैसले को सुन मैं कुछ कर सकता था! मैं तो बेबस था, ऐसा बेबस पिता जो कुछ ही दिनों में अपना सब कुछ खो देने वाला था!
मुझे खामोश देख नेहा का नाज़ुक मन दहल गया था, वो मुझे खोना नहीं चाहती थी इसलिए नेहा ने मेरी आँखों में देखते हुए पुछा; "बोलो न पापा जी, आप मुझे खुद से दूर जाने नहीं दोगे न? बोलो न पापा जी? मैं जानती हूँ आप मुझसे बहुत प्यार करते हो और आप मुझे खुद से दूर जाते हुए नहीं देख सकते!" नेहा का सवाल सुन, उसका मुझ पर इतना विश्वास देख मैं टूट गया; "I’m sorry बेटा! आपकी मम्मी नहीं चाहतीं की हम सब एक साथ रहें| मैंने उनसे कहा था की वो मुझसे शादी कर लें ताकि हम सब एक साथ रहें, मैं अपने तीनों बच्चों को खूब लाड-प्यार करूँ मगर आपकी मम्मी डरती हैं की जब सबको सच पता चलेगा तो हम हमेशा-हमेशा के लिए अलग हो जायेंगे!" मैंने रोते हुए सब सच कहा तो नेहा को अपनी मम्मी पर बहुत गुस्सा आया और वो गुस्से से चीखी; " तो क्या अभी हम अलग नहीं हो रहे? मम्मी क्यों आपकी बात नहीं मान रहीं? ठीक है...उन्हें नहीं रहना न आपके साथ तो न सही, मैं आपने पापा जी के साथ रहूँगी! मैं किसी हाल में गॉंव नहीं जाऊँगी! अगर किसी ने मेरे साथ जबरदस्ती की न तो मैं और आप ये घर छोड़ कर भाग जायेंगे! हम मज़े से जिंदगी जियेंगे, फिर हमें अलग होने का कोई डर नहीं होगा!" इतनी छोटी उम्र में नेहा इतनी हिम्मत दिखा रही थी की मेरे साथ...अपने पापा जी के साथ भाग कर नई ज़िन्दगी शुरू करना चाहती थी, जबकि उसकी मम्मी में इतनी हिम्मत नहीं थी की वो मेरे साथ बस खड़ी रहे!
अपनी बेटी की हिम्मत देख मुझे उस पर गर्व हो रहा था इसलिए मैंने नेहा को अपने सीने से लगा लिया और फफक कर रो पड़ा! संगीता की बेरुखी ने मुझे इतना कमजोर कर दिया था, इतना बुज़दिल बना दिया था की मैं अपनी बेटी के हिम्मत दिखाने पर उसका साथ ही नहीं दे पाया!
मैं पहले ही अन्न-जल त्याग चूका था, दवाई लेना बंद कर चूका था और संगीता की जुदाई का दुःख मेरे सर पर इस कदर सवार हुआ की मेरा शरीर ये पीड़ा बर्दाश्त न कर पाया तथा चक्कर खा कर मैं ऐसा गिरा की पहले अस्पताल पहुँचा और फिर कोमा (coma) में!
उधर अगले दिन संगीता गॉंव पहुँची और उसके पिताजी सीधा उसे उसके ससुराल छोड़ने पहुँचे| दोपहर के 1 बजे थे जब गॉंव में मेरी तबियत खराब होने की खबर पहुँची! मेरी हालत की खबर जान कर संगीता के प्राण सूख गए और उसने वापस दिल्ली आना चाहा मगर तभी चन्दर ने पूरे परिवार के सामने उस पर तोहमद लगा दी;
चन्दर: अब का आपन पेट मा पल रहे ई मनहूस का बाप से मिले खतिर जाइहो?!
चन्दर के मुख से निकले इन विषैले शब्दों को सुन संगीता के पिताजी के पॉंव तले ज़मीन खिसक गई! उन्हें विश्वास ही नहीं हो रहा था की चन्दर उनके खून...उनकी बेटी पर इतना गंदा आरोप लगा रहा है! वहीं चन्दर ने जब हमारे होने वाले बच्चे पर कीचड़ उछाला तो संगीता के गुस्से की सीमा नहीं रही! वो गुस्से से चन्दर पर चिल्लाई;
संगीता: खबरदार जो हमार बच्चा के बारे में कछु कहेऔ तो?! एहि लागे तोहआर गला रेत (काट) देब!!
हमेशा दबी-सहमी रहने वाली, सब कुछ सहने वाली बहु के ये तेवर देख कर सभी दंग थे!
बड़के दादा: खामोश बड़का (बहु)! ई तोहार मरद है, आपन मरद का जान लिहो तो बिधबा हुई जाबो!
संगीता सबसे बड़ी बहु थी इसलिए उसे बड़के दादा और बड़की अम्मा 'बड़का' कहते थे| बड़के दादा ने जब गुस्से से संगीता को विधवा होने का डर दिखा कर खामोश करवाना चाहा तो संगीता गुस्से से चन्दर पर ही बरस पड़ी;
संगीता: काहे का मरद? जे आपन पत्नी का गला दबाये का मारे चाहत रहा ऊ कौन मरद? जे आपन पत्नी पर सबका सामने गंदा इलज़ाम लगावता है, ऊ काहे का मरद? जे आपन पत्नी का हमेशा डराए के रखत है, ऊ का साथे जबरदस्ती करत है...जबरदस्ती ऊ का छुअत है ऊ काहे का मरद?
संगीता ने जब चन्दर की मर्दानगी को ललकारा तो चन्दर का खून खौल गया और वो संगीता को मारने के लिए आगे बढ़ा| लेकिन इससे पहले की चन्दर कुछ कर पाता, बड़के दादा बीच में आ गए और अपनी आँखों से उसे घूर कर देखने लगे तथा गुपचुप इशारे से अपने समधी यानी संगीता के पिताजी की मौजूदगी का एहसास करवाया| बड़के दादा का इशारा समझ चन्दर रुक गया और संगीता पर सीधा आरोप लगाते हुए बोला;
चन्दर: ओकरे संगे (मेरे साथ) रही के बहुत जबान (जुबान) उग आई है न तोहार?! तो हमका ई बतावा की जब हम तोहका पाँच साल से छूबे नहीं किहिन तो ई तोहार कोख मा बच्चा कहाँ से आवा? सच कही दे की ई खून ऊ मानु का है!
चन्दर के आरोप लगते ही संगीता मेरे बचाव में कूद पड़ी और चन्दर को ही दोषी बना दिया;
संगीता: भूल गए ऊ दिन जब रतिया के साइट से पी कर धुत्त होइ के आयो रहेओ और हमरे संगे जबरदस्ती किहे रहेओ?! हम गहरी नींद मा सोवत रहन, जे का तू फायदा उठाये रहेओ! जब हम जागी गयन और तोह से बची के भागत रहन तब हमरे ऊपर हाथ उठाये रहेओ? फिर अगले दिन साइट पर पिटे रहेओ?!
संगीता ने जैसे ही चन्दर को साइट पर मेरे पिटाई की याद दिलाई चन्दर की आँखों में खून उतर आया;
चन्दर: @#$* हम कब तोहका @#$*&!
चन्दर ने संगीता को गालियाँ देनी शुरू कर दी थी, ये दृश्य देख कर संगीता के पिताजी का खून खौल रहा था मगर वो चुप थे तो बस एक बेटी के बाप होने के कारण|
चन्दर: रंग-रँलियाँ मनाओ तू ऊ मानु संगे और बच्चा थोपो हमार सिरे!
चन्दर ने जब फिर से संगीता पर आरोप लगाया तो संगीता ने चन्दर तथा सबको डराने के लिए वही अस्त्र चलाया जो उसने पिछली बार यानी आयुष के पैदा होने के समय चलाया था;
संगीता: चलो आभायें डॉक्टर लगे और हमरे संगे DNA टेस्ट करवाओ, तब सब दूध का दूध और पानी का पानी हुई जाई! एक बार डॉक्टर कही दे की ई तोहार बच्चा है तो फिर देखो हम का करित है?! न हम तोहका जेल मा चक्की पिसवाइन, तो हमार नाम संगीता नाहीं!
संगीता ने बड़े आत्मविश्वास से अपनी बात कही, इतने आत्मविश्वास से की सभी उसकी बातों पर विश्वास करें| खैर, संगीता ने जैसे ही पुलिस की धमकी दी वैसे ही चन्दर की पतलून गीली होने लगी! वहीं बड़के दादा और बड़की अम्मा की आँखें फटी की फटी रह गईं की उनकी सीधी-साधी बहु आज उन्हें कचेहरी की धमकी दे रही है?!
बड़के दादा: बड़का? तू आपन मरद पर केस करिहो? हम सबका कचेहरी ले जाबो?
बड़के दादा ने संगीता को घूर कर देखते हुए कहा|
संगीता: काहे? जब आप बिना किसी की बात सुने सीधा पुलिस भेज दिहो रहा तो हम आपन जान बचाये खतिर, आपन इज्जत बचाये खातिर ई पर केस नाहीं करि सकित है?!
संगीता ने आज पहलीबार अपने ससुर को सीधे मुँह जवाब दिया था| सबको लगा था की संगीता डर जाएगी मगर संगीता के ये तेवर देख सब हैरान थे| उधर, बड़के दादा संगीता के ये तेवर देख कुछ कहते उसके पहले ही मामा जी बेच में बोल पड़े;
मामा जी: शहर जाए का सब लाज-सरम बेच खायो है का, जो आपन ससुर से कौन मेर के बात की जात है ऊ तक भुलाये गया? हम सब हियाँ आराम से बात किये खतिर इकठ्ठा भवे रहे की तोहार पेट मा जउन बच्चा है ऊ किसका है और तू आपन ससुर पर ही केस करे खतिर तैयार हो? ई दिखावत है की तोहार मन कितना काला है, ई जर्रूर तोहार और मानु का नाजायज बच्चा है!
संगीता इस समय तक गुस्से से भर चुकी थी, जैसे ही मामा जी ने हमारे बच्चे को सबके सामने नाजायज कहा उन्होंने अनजाने में ही संगीता के क्रोध को दावी दे दी! अब तो संगीता ने गुस्से से फट ही जाना था;
संगीता: तू हमका लाज-सरम सिखैहो?...तू? जे आपन बेटा सामान भाँजा का बिगाडिस...ओहका गलत आदत डाली के ओकरी ज़िन्दगी बर्बाद करिस! …कही दो की ई तोहार घरे आई के तोहार घर के बगल वाली रंडी का पास नाहीं जावत है?! कही दो की तू आपन भाँजा का शराब, चरस, गाँजा पिए का नाहीं सिखायो?!
बड़के दादा ये तो जानते थे की मामा जी ने बचपन से ही चन्दर को लाड-प्यार कर बिगाड़ा है मगर वो ये नहीं जानते थे की चन्दर की सारी बुरी आदतों का स्त्रोत्र मामा जी ही हैं| लेकिन आज जब उन्हें सच पता चला तो उनकी आँखें फटी की फटी रह गईं!
वहीं दूसरी तरफ संगीता ने जैसे ही पलट कर मामा जी पर आरोप लगाया वो गुस्से से तिलमिला गए;
मामा जी: आपन गलती माने का बजाए तू हमरे ऊपर कीचड़ उछलत हो?!...अरे तू तो हो ही....
मामा जी ने खुद को बचाने के लिए संगीता के चरित्र पर ही कीचड़ उछालना चाहा मगर संगीता ने उन्हें कोई मौका नहीं दिया;
संगीता: हम झूठ कहित है? का अम्मा....कही दो की हम झूठ कहित है?! तुहुँ ऊ दिन हमका बताये रहयो न की तोहार 'सपूत' आपन मामा के घरे जाए का-का गुल खिलावत है?
जब संगीता ने बड़की अम्मा का नाम लिया तो बड़की अम्मा का सर शर्म से झुक गया| अपनी पत्नी का शर्म से झुका हुआ सर देख बड़के दादा को बहुत बड़ा धक्का लगा और वो अपना सर पकड़ कर चारपाई पर बैठ गए! वहीं मामा जी ने जब अपनी बहन का झुका हुआ सर देखा तो वो खामोश हो गए! उधर चन्दर एकदम से खामोश हो गया था क्योंकि अब बलि का बकरा उसके मामा जी बने थे! अब अगर वो अपने मामा जी का पक्ष लेता तो बड़के दादा उसी पर बरस पड़ते|
सबको खमोश देख संगीता को मौका मिल गया की वो सभी को भावुक कर इस बात को हमेशा-हमेशा के लिए दबा दे! “आप खुद ही सोचिये की आप किसकी बात पर भरोसा करेंगे, अपनी बहु की बात पर जो डॉक्टर के पास जा कर DNA टेस्ट करवाने को तैयार है या फिर अपने बेटे की जो की नशे और गंदी आदतों का इतना आदि है की उसे होश-खबर ही नहीं रहती की वो क्या कर रहा है?” संगीता ने बड़ी ही होशियारी से डॉक्टरी टेस्ट (DNA Test) की माँग की थी क्योंकि वो जानती थी की परिवार की इज्जत बचाने के लिए कोई भी DNA test के लिए कभी राज़ी नहीं होगा| वहीं चन्दर का चरित्र पहले से ही इतना खराब था की अब उस पर कोई विश्वास करने वाला था नहीं|
खैर, संगीता के पूछे सवाल पर किसी के मुख से कोई बोल न फूटे इसलिए सभी को भावुक करने के लिए संगीता ने अपनी बात आगे बढ़ाई; “जिस लड़के पर (मुझ पर) आप सभी इतने गंदे आरोप लगा रहे हो उसका चरित्र कैसा है ये आप सभी बहुत अच्छे से जानते हो| बचपन से ही चंचल मन था मगर सिवाए प्यार पाने के उसके मन में कभी किसी के लिए कुछ बुरा नहीं था| मेरे साथ हमेशा दोस्तों जैसा रिश्ता निभाया, मैं रोई तो अपने बालपन से मुझे हँसाया, बुलाया, चुप कराया| मैं बीमार हुई तो एक दोस्त की तरह मेरी तीमारदारी की! लेकिन आप सबने इस झूठे आदमी (मामा जी) के बहकावे में आ कर अपने मासूम मुन्ना पर ही कीचड़ उछाल दिया?!
भूल गए आप सब रसिका को, उस पर जब हवस सवार हुई तो कैसे वो हाथ धो कर पीछे पड़ी थी और कैसे खुद को बचाने के लिए खुद को कष्ट दे कर (वो) अपनी जाना बचा रहे थे| अगर आपके बेटे जैसे होते तो कब का रसिका के साथ सब कुछ कर लिया होता और किसी को पता भी नहीं चलता! लेकिन नहीं, उन्होंने सिर्फ आप सबका प्यार चाहा इससे ज्यादा उन्होंने कभी आपसे कुछ माँगा ही नहीं|
अम्मा, आप के लिए तो वो बेटे जैसे हैं...आपकी गोदी में खेले हैं...क्या आपको अपने बेटे के चरित्र पर शक है? चलो मेरी न सही, मैं तो आई ही दूसरे घर से हूँ, लेकिन बप्पा क्या आपको अपने खून...अपने सगे भाई के खून पर भी भरोसा नहीं?! क्या सोचेंगे चाचा (मेरे पिताजी) जब उन्हें पता चलेगा की आप सबने उनके इकलौते बेटे पर इतने घिनोने इल्जाम लगाए हैं?!” संगीता की बातों से प्रभावित हो बड़की अम्मा रो पड़ीं और संगीता उन्हें सँभालने के लिए आगे आई| संगीता के गले लग कर बड़की अम्मा ने रोते हुए माफ़ी माँगी की चन्दर की बातों में आ कर उन्होंने उसके चरित्र पर शक किया|
वहीं बड़के दादा माफ़ी माँगने से रहे क्योंकि वो अपनी बहु के आगे कैसे झुकते इसलिए उन्होंने अपना गुस्सा सीधा अपने साले पर निकाला; "मरी कटऔ!!! निकर जाओ हमार घरे से और आज का बाद अगर हियाँ कभौं पैर धरेऊ तो तोहार टुकड़े-टुकड़े कर सरजू जी मा बहा देब! और तू चन्दर, कल का कल तू नशा मुक्ति केंद्र मा भर्ती हुईहो और आपन ई नशे की लत से पीछा छुड़ाओ नाहीं तो तोहका हमार जमीन-जायदाद मा एको हिस्सा न मिली! और खबरदार जो कभौं आपन मामा के हियाँ गया तो वरना हमार-तोहार रिस्ता खत्म!" बड़के दादा उम्र में बड़े थे और उनका गुस्सा बहुत तेज़ था इसीलिए उनका गुस्सा देख मामा जी अपना मुँह छुपा कर निकल गए, वहीं चन्दर डर के मारे घर में घुस गया|
"अम्मा, आपके मुन्ना की तबियत खराब है वो अभी अस्पताल में हैं|" संगीता ने जब सबको ये बात बताई तो बड़की अम्मा के प्राण सूखने लगे| "वहाँ बस चाचा-चाची हैं और वो अकेले सब नहीं सँभाल सकते इसलिए मुझे जाना होगा|" संगीता ने जब अम्मा को ये बात बताई तो अम्मा ने सर हाँ में हिला कर संगीता को जाने की अनुमति दे दी|
संगीता अपने पिताजी के साथ उसी वक़्त बस अड्डे के लिए निकल पड़ी और रास्ते में उसे पता चला की मैं सबकी चोरी गॉंव आया था तथा कैसे मैंने सबका सामना अकेले किया था|
दिल्ली पहुँचने तक संगीता की जान उसके हलक़ में अटकी हुई थी की पता नहीं मेरा क्या हाल हुआ होगा! दिल्ली पहुँचते-पहुँचते संगीता ने अपने पिताजी को समझा दिया था की वो गॉंव में हुए इस छीछालेदर के बारे में मेरे माँ-पिताजी को न बताएं क्योंकि ये सच जानकार उनका दिल दुखता और गुस्से में माँ घर सर पर उठा लेतीं|
खैर, जब संगीता ने मुझे अस्पताल में लेटा पाया तो उसकी हिम्मत टूट गई, वो तो माँ-पिताजी की मौजूदगी थी इसलिए वो अपना रोना रोके हुए थी| माँ-पिताजी ने उसे सब बात बताई तो संगीता समझ गई की उसके मेरे जीवन से चले जाने का मुझे इतना बड़ा धक्का लगा की मेरी ये हालत हुई|
वहीं, आयुष ने जब अपनी मम्मी को देखा तो वो अपनी मम्मी की गोदी में चढ़ कर रो पड़ा; "मम्मी...चाचू को क्या हुआ?" आयुष के पूछे सवाल का संगीता क्या जवाब देती?! एक माँ का फ़र्ज़ निभाते हुए संगीता ने आयुष को उम्मीद देते हुए चुप कराने लगी| लेकिन तभी नेहा अपने मम्मी पर गुस्से से बरस पड़ी; "सब मम्मी की वजह से हुआ है आयुष!" नेहा ने गुस्से में आ कर अपनी मम्मी पर आरोप तो लगा दिया मगर वो सच कह न पाई|
नेहा को सबके सामने बदतमीजी करते देख पिताजी ने आज पहलीबार नेहा को डाँटा| अपने दादा जी का मान रखते हुए नेहा खामोश हो गई और सर झुकाये सिसकने लगी| माँ ने नेहा को चुप कराने के लिए उसे अपने गले लगा लिया और उसे प्यार से समझाने लगीं|
वहीं संगीता के पिताजी जानते थे की मैं दोनों बच्चों से कितना प्यार करता हूँ इसलिए उन्होंने नेहा की बात का ये मतलब निकाला की संगीता के कारण मेरे और चन्दर के बीच मार-पीट हुई तथा जिसके फल स्वरूप बच्चे मुझसे दूर हो रहे थे| मेरे लिए अपने बच्चों की जुदाई बर्दाश्त करना मुश्किल था इसीलिए मैंने खाना-पीना तथा दवाई लेना छोड़ दिया और अपनी ये हालत बना ली!
संगीता के पिताजी को मेरी ये हालत देख कर बहुत दुःख हुआ| उनके अनुसार संगीता को मुझे बच्चों से अधिक मोह बढ़ाने नहीं देना चाहिए था| अपनी बेटी के सर सारा दोष मढ़ते हुए उन्होंने संगीता को बहुत डाँटा| अपने इसी क्रोध में बहते हुए उन्होंने गॉंव में मेरा उनसे मिलना तथा मेरे द्वारा की गई उनकी मदद के बारे में बता दिया!
मेरे माँ-पिताजी को मेरे बिना बताये गॉंव जाने का सुन कर धक्का लगा था लेकिन सबसे बड़ा धक्का संगीता को ये जानकार लगा की उसकी जानकार के बिना मैं उसके पिताजी की कितनी बड़ी मदद की थी!
सबके सामने संगीता बड़ी मुश्किल से खुद को सहेज कर रखे हुए थे, जबकि उसका मन मेरे कोमा में पड़े शरीर से लिपट कर रोने का था इसलिए उसने सभी को घर भेज दिया और खुद अस्पताल में मेरे पास अकेली रुक गई| सबके जाने के बाद संगीता मुझसे लिपट कर बहुत रोई, उसने मुझसे बहुत माफियाँ माँगी मगर उसकी ये गुहार सुनने वाला मैं मूर्छित पड़ा था|
'मेरे सीने कि आग या तो मुझे जिंदा कर सकती थी या मुझे मार सकती थी.
पर साला अब उठे कौन? कौन फिर से मेहनत करे दिल लगाने को.. दिल तुडवाने को..' रंझाना फिल्म का ये डायलाग इस परिस्थति में सही उतरता था|
अगले दिन संगीता की माँ और अनिल अस्पताल पहुँचे और उन्हें जब ये सब सच पता चला तो उन्होंने भी संगीता को ही दोषी बना दिया तथा उससे मुँह मोड़ लिया| अनिल ने नेहा को बहलाते हुए सच पुछा तो नेहा ने उसे बता दिया की संगीता जाने से पहले मुझसे बहुत उखड़ी हुई थी और ज़रा भी बात नहीं करती थी| ये भी एक कारण था मेरे बीमार होने का| ये बात जानकार अनिल को और गुस्सा आया और उसने अपनी दीदी को अपने ऑपरेशन के बारे में बताया| ये सच जानकार संगीता को एक बार फिर धक्का लगा और वो रात में मुझसे लिपट कर फिर रोने लगी|
2 दिन बाद बड़की अम्मा मेरा हाल-खबर लेने दिल्ली आईं, जब उन्होंने मेरी हालत देखि तो वो ग्लानि के कारण खूब रोईं| उसके बाद जो कुछ हुआ आप सभी ने पढ़ा है इसलिए दुबारा वो सब नहीं दोहराना चाहूँगा| संगीता ने होशियारी दिखाते हुए बड़की अम्मा को गॉंव में हुई छीछालेदर के बारे में बोलने से रोक लिया|
जब मुझे होश आया तो बिना आँखें खोले ही मैंने संगीता की मौजूदगी को महसूस कर लिया| मैंने महसूस किया की मेरी ये हालत देख कर संगीता पर क्या बीती होगी| संगीता की गर्भावस्था में जब मुझे उसे खुशियाँ देनी चाहिए थीं मैं उसे दुःख दे रहा था! ये सब सोच कर ही मैं "सॉरी" शब्द बुदबुदाने लगा|
खैर, घर पहुँचने तक मुझे और संगीता को बात करने का ज़रा भी मौका नहीं मिला| माँ, पिताजी, बड़की अम्मा, संगीता के माँ-पिताजी, अनिल, आयुष और नेहा सभी मुझसे बात कर रहे थे, मुझे फिर कभी कोई लापरवाही करने के लिए अभी से थोड़ा-बहुत डाँट रहे थे|
जब मैं घर पहुँचा तो दोपहर को खाना खाते समय मुझे संगीता के साथ बात करने का थोड़ा समय मिल गया| मुझे आज भी अपने कहे वो शब्द याद हैं; "आखिर मेरा प्यार तुम्हें मेरे पास पुनः खींच ही लाया न?" मैंने संगीता को छेड़ते हुए कहा| मेरी बात सुन संगीता के चेहरे पर मुस्कान छा गई और उसने बड़े अदब से अपनी नजरें झुका ली| मौका अच्छा था तो मैंने एक बार फिर संगीता के सामने शादी का प्रस्ताव रख दिया; "अब तो तुम्हें मेरे साथ निकाह करना कबूल है न?" मैंने बात को थोड़ा हलके रूप में कहा ताकि संगीता मेरी बात से आहात हो कर फिर से गुमसुम न हो जाए|
"पहले आप ठीक हो जाओ!" संगीता ने नई-नवेली दुल्हन की तरह लजाते हुए अपनी नजरें झुकाये हुए कहा| संगीता के इस तरह बात करने का मैं हमेशा से कायल रहा हूँ इसलिए जब उसने आज मुझसे इस तरह बात की तो मेरा सारा शरीर ख़ुशी से झनझना गया!
"अगर पता होता की मेरे बीमार पड़ने से तुम शादी के लिए मान जाओगी तो मैं पहले ही बीमार पड़ जाता!" मैंने मज़ाक करते हुए कहा मगर संगीता को मेरी बात पर प्यारभरा गुस्सा आ गया!
"खबरदार जो ऐसा फिर कभी किया तो!!" संगीता ने मुझे आपने प्यारे से गुस्से से चेता दिया| संगीता को खुश करने के लिए मैंने फ़ौरन छोटे बच्चे की तरह अपने दोनों कान पकड़ कर उससे माफ़ी माँग ली, जिसपर संगीता खिलखिला कर हँस पड़ी! सच, एक आरसे बाद मैंने संगीता को यूँ मुस्कुराते हुए देखा था|
मुझे विश्वास हो चूका था की संगीता को मेरे प्यार पर पूरा विश्वास हो चूका है, अब तो मुझे और भी जल्दी से ठीक होना था ताकि हमारी जल्दी से शादी हो सके!
मेरे किये इस काण्ड की वजह से सब संगीता से नाराज़ थे इसलिए मैंने सबसे माफ़ी माँग, सभी के मन में संगीता के लिए प्यार पुनः जीवित किया| दो दिन बाद बड़की अम्मा ने गॉंव जाने की बात कही, वो अपने साथ संगीता को भी ले जाना चाहती थीं मगर संगीता ने मेरे सामने ही उनसे कहा; "अम्मा, अभी इनकी तबियत थोड़ी सुधर जाए तब..." संगीता ने जानबूझकर अपनी बात अधूरी छोड़ दी| अम्मा मेरे सामने संगीता को मना नहीं कर पाईं और मुस्कुराते हुए संगीता को यहाँ रहने की अनुमति दे दी|
मेरे तंदुरुस्त होते-होते घर में छोटे-मोटे काण्ड होते रहे जैसे की करुणा का मेरी ज़िन्दगी में पुनः आना तथा मेरे पिताजी का नेहा और आयुष को अप्रत्यक्ष रूप से ये बात समझाना की उन्हें मेरे साथ अधिक घुलना-मिलना नहीं चाहिए क्योंकि परीक्षाओं के बाद दोनों बच्चों ने गॉंव चले जाना है|
करुणा के मेरी ज़िन्दगी में पुनः आने से संगीता को जो मिर्ची लगी उसके बारे में आप पढ़ ही चुके हैं|
परन्तु जब पिताजी ने बच्चों को मुझसे अधिक घुलने-मिलने से रोकना चाहा तो दोनों बच्चे इससे बहुत आहात हुए| आयुष अपने दादा जी के गुस्सा होने से डरता था इसलिए वो बेचारा तो अपने दादा जी की बात मानते हुए मुझसे धीरे-धीरे दूर होने लगा मगर नेहा को ये बात आघात कर गई थी! कुछ दिन पहले पिताजी ने अस्पताल में नेहा को डाँट दिया था इसलिए नेहा में इतनी हिम्मत नहीं थी की वो अपने दादा जी को कह सके की वो मेरे पास ही रहेगी| अपने मन को मारते हुए नेहा ने मुझसे धीरे-धीरे दूरी बनाने की कोशिश की मगर उसका नाज़ुक मन उसे मुझसे दूर नहीं रहने देता था| आपने पढ़ा ही कैसे रात को मेरे बिना सोने के समय नेहा डर के उठने लगी|
एक रात मैंने नेहा को अकेले रोते हुए देख लिया और उसे गोदी ले कर सारी बात पूछी| जब मुझे पिताजी द्वारा कही बता का पता लगा तो मैंने नेहा को प्यार से समझाया; "बेटा, हम बाप-बेटी कभी दूर नहीं होंगें| मैंने आपकी मम्मी को शादी करने के लिए मना लिया है, जैसे ही मैं तंदुरुस्त हूँगा मैं आपके दादा जी और नाना जी से शादी की बात करूँगा और फिर हम सब एक साथ हँसी-ख़ुशी रहेंगे|" मेरी बात सुन नेहा को इतनी ख़ुशी हुई की वो कस कर मेरे सीने से लिपट गई| उस दिन से मैंने आयुष और नेहा को खुद से दूर नहीं जाने दिया, माँ-पिताजी के सामने ही मैं दोनों को खूब लाड-प्यार करता| माँ-पिताजी मेरी तबियत का ध्यान रखते हुए कुछ कह नहीं पाते थे जिसका मैं भरपूर फायदा उठा रहा था|
ऐसे ही एक दिन नेहा स्कूल से आई और "आई लव यू पापा जी!" चिलाते हुए ख़ुशी से मेरी गोदी में आने को छलाँग लगाई| तब नेहा को नहीं पता था की उसके दादा-दादी जी घर पर हैं|
उस समय माँ-पिताजी अपने कमरे में से निकल रहे थे जब उन्होंने नेहा की ख़ुशी से चिल्लाने की आवाज़ सुनी| नेहा का मुझे 'पापा जी' कहना माँ-पिताजी को बहुत अजीब लगा! "नेहा बेटा, ऐसा नहीं कहते! मानु तुम्हारा चाचा है, तुम्हारा पापा चन्दर है|" कहीं मुझे बुरा न लगे इसलिए पिताजी ने बड़ी नरमी से नेहा को समझाया| लेकिन उनका नेहा को चन्दर की बेटी कहना मुझे चुभ गया था! जितना दर्द मुझे इस समय हो रहा था, उतना ही दर्द मेरी बिटिया भी महसूस कर रही थी| नजाने उस समय नेहा को क्या सूझी की वो बड़े प्यार से अपने दादा जी से बोली; "दादा जी, मेरे असली पापा ने तो कभी मुझे प्यार किया ही नहीं?! मैं इतनी बड़ी हो गई मगर आजतक उन्होंने मुझे कभी गोदी नहीं लिया, कभी मुझे अपने हाथ से खाना नहीं खिलाया, कभी मुझे ज़रा सा भी लाड-प्यार नहीं किया| मुझे आजतक जो भी प्यार मिला वो मेरे चाचू ने दिया इसलिए मैं तो उन्हें ही अपना पापा जी मानती हूँ| मेरे लिए ये ही मेरे पापा जी है और हमेशा मेरे पापा जी ही रहेंगे|" नेहा की कही बात माँ-पिताजी को छु गई और उनकी आँखें नम हो गईं! माँ ने नेहा को अपने पास बुलाया और उसके दोनों गलों को चूमते हुए बोलीं; "बेटा, मैं समझ सकती हूँ की तुझे तेरे असली बाप से कभी प्यार नहीं मिला, लेकिन बेटा अगर तू सबके सामने अगर मानु को पापा जी कहेगी तो लोग क्या कहेंगे? सबको तो नहीं पता न की तुझे चन्दर प्यार नहीं करता?!" माँ की समझाई बात नेहा को समझ आ गई और उसने फौरन एक बीच का रास्ता खोज निकाला; "आप ठीक कह रहे हो दादी जी, मैं पापा जी को सबके सामने नहीं लेकिन अकेले में तो पापा जी कह सकती हूँ न?" अपनी पोती की चतुराई भरी बातें सुन माँ-पिताजी मुस्कुराने लगे और नेहा को मुझे घर के भीतर पापा जी कहने की इज्जाजत दे दी|
इस छोटी सी आज़ादी को पा कर नेहा इतनी खुश हुई की उसका चेहरा ख़ुशी से जगमगाने लगा|
कुछ दिन बीते थे, आयुष मुझे अपने स्कूल के किस्से सुना रहा था और मैं बड़े गौर से उसकी बात सुन रहा था| हम बाप-बेटे को यूँ बातें करते देख, नेहा के बालमन में एक आस जगी की क्यों न आयुष भी मुझे नेहा की ही तरह 'पापा जी' कहे| अगर ऐसा होता तो फिर दोनों भाई-बहन मुझे ‘पापा जी’ कहते और नेहा को इसमें बहुत मज़ा आता|
नेहा: आयुष, मेरी एक बात मानेगा?
नेहा ने बड़े प्यार से हम बाप-बेटे की बात को काटते हुए कहा| अपनी दीदी की प्यारी सी अर्ज़ी सुन आयुष फ़ट से बोला;
आयुष: हाँजी दीदी!
नेहा: तू आज से मेरे पापा जी को चाचू नहीं, पापा जी बोलेगा|
अपनी दीदी की बात सुन आयुष एकदम से शर्मा गया और सर झुका कर बैठ गया| आयुष के चेहरे पर आई उस बाल मुस्कान को देख मेरा मन बोला की आयुष भी मुझे अपना पापा जी मानता है मगर वो ये शब्द कहने से शर्माता है...डरता है की कहीं उसे कोई डाँट न दे|
खैर, मैं नहीं चाहता था की आयुष किसी के दबाव में आ कर मुझे पापा जी कहे इसलिए मैं बीच में बोल पड़ा;
मैं: कोई बात नहीं बेटा, आप मुझे चाचू ही कहो| रिश्ते को बस नाम देने से कुछ नहीं होता, जब तक की आप उस रिश्ते को दिल से ना अपनाओ|
मेरी बात सुन आयुष मेरे सीने से लग गया और ख़ुशी से खिलखिलाने लगा| उस पल नेहा को ये बात समझ आ गई थी की मुझे सिर्फ उसी के मुख से पापा जी सुनना अच्छा लगता है| नेहा भी मेरे सीने से लिपट गई और ख़ुशी से आयुष के साथ खिलखिलाने लगी|
दिन प्यारभरे बीत रहे थे, आयुष का जन्मदिन आया जो की मैंने इतनी हर्ष और उल्लास से मनाया की वो दिन हमेशा-हमेशा के लिए एक सुनहरी याद बन कर मेरे मन में बस गया| आयुष के जन्मदिन के बाद कुछ ऐसी घटनाएं घटी जिनकी मैंने उम्मीद नहीं की थी|
आयुष की जन्मदिन की पार्टी के बाद मेरा मन रोमांस करने का था जबकि संगीता थोड़ी चिढ़ी हुई थी| उस वक़्त क्या हुआ वो आप सबने पढ़ ही लिया था| रोमांस को ले कर मैं संगीता से नाराज़ था इसलिए उसके मुझे रिझाने के सारे जतन मैं एक के बाद एक फ़ैल विफल किये जा रहा था| उसी बीच मुझे नेहा के असली डर का पता लगा| नेहा के साथ स्कूल में हो रही bullying के बारे में जानकार मेरा खून खौल गया|
जब हम नेहा की counselling करवा कर घर लौटे तो नेहा ने स्कूल में अपने दोस्त न होने का दो कारण बताये:
पहला, चूँकि नेहा गॉंव से आई थी तो उसके बोलने के लहजे में, पहनावे-ओढावे में थोड़ा बहुत देहाती ढंग अभी भी था| ये देहाती ढंग हमारे घर में इतना उभर कर नहीं आता था क्योंकि घर में नेहा को किसी से बात करने में भय नहीं लगता था| लेकिन जब नेहा-आयुष गली के बच्चों के साथ खेलने जाते तो खेल-खेल में कभी-कभी नेहा की बातों में ये देहाती ढंग नज़र आता था| जब गली के बच्चों ने नेहा के इस देहाती ढंग का मज़ाक उड़ाया तो नेहा ने डर के मारे बहार खेलने जाना ही बंद कर दिया| गली में न खेल कर तो नेहा खुद को दूसरे बच्चों के सामने शर्मिंदा होने से बचा लेती थी मगर जब वो स्कूल गई तो गली के कुछ बच्चे उसके स्कूल में भी थे, जिन्होंने स्कूल में भी नेहा का मज़ाक उड़ाना शुरू कर दिया|
दूसरा कारण था मेरा और संगीता का रिश्ता| चन्दर के घर से जाने के बाद भी संगीता हमारे घर रह रही थी और आस-पड़ोस में इस बात को ले कर खुसर-फुसर हो रही थी| हालांकि मैं और संगीता सबके सामने उपयुक्त दूरी बनाये रखते थे ताकि किसी को हमारे रिश्ते पर शक न हो लेकिन फिर भी पड़ोसियों ने एक शादीशुदा औरत का मुझ जैसे कुंवारे लड़के के घर रहने को ले कर तरह-तरह की बातें बनाना शुरू कर दिया था| अब बच्चे तो वही सीखेंगे जो वो अपने घर में देखेंगे-सुनेंगे, जब गली के बच्चों को इसका पता चला तो उन्होंने मेरे और संगीता के रिश्ते को ले कर नेहा को ताने मारने शुरू कर दिए| ये वो एक सवाल था जो संगीता ने मुझसे उस दिन छत पर पुछा था जब मैंने पहलीबार शादी का प्रस्ताव रखा था की क्या होगा अगर हमारी शादी हो गई तो हमारे रिश्ते को लेकर आस-पड़ोस वाले हमारे बच्चों को क्या कहेंगे?!
ये सब सच जानकार मेरा खून खौल गया और मैं अक्षय यादव को सबक सिखाने के इरादे स्कूल पहुँचा| मन तो मेरा अक्षय को थप्पड़ मारने का था परन्तु इससे सब नेहा से डरने लगते न की उससे दोस्ती करते! अपने दिमाग का इस्तेमाल कर मैंने स्थिति को कैसे सँभाला ये आपने पढ़ा ही था|
वहीं जब ये बात पिताजी को पता चली तो उन्होंने क्या किया वो आप सभी ने पढ़ा था| पिताजी का ये गुस्सा देख संगीता मन ही मन ये सोच रही थी की क्या होता अगर माँ-पिताजी को गॉंव में मची छीछालेदर के बारे में पता चलता?!
बहरहाल, आयुष के जन्मदिन वाले रात संगीता के गुस्से ने मेरे रोमांस के कीड़ों पर फ्लिंट केमिकल उड़ेल कर मेरे रोमांस के सारे कीड़े मार दिए थे| अब संगीता को मुझे मनाना था इसलिए वो तरह-तरह की जुगत करती रहती थी| वहीं संगीता की सारी जुगत विफल करने के लिए मैंने साइट पर देर रात तक काम खींचना शुरू कर दिया था| एक रात जब मैं देर रात साइट से लौटा तो दरवाजा संगीता ने खोला| अपनी चतुराई से संगीता ने सभी को खाना खिला कर जल्दी सुला दिया था| जब मैं घर आया तो मुझे खाना खिला संगीता ने मुझ पर चाँस मारा|
उस दिन मुझे संगीता पर गुस्सा आया और हमारे बीच जो तू-तू मैं-मैं हुई उसे मैंने आप सभी से साझा किया था| गुस्से में आ कर मैंने जो संगीता को मेरे और करुणा के बारे में बताया था, वो सब संगीता ने अगले दिन मेरी माँ को बता दिया और फिर जो कोहराम हुआ उसे आप सबने पढ़ा ही है|
संगीता के पिताजी की मृत्यु
संगीता के पिताजी की मृत्यु मेरे जीवन में दूसरा बहुत बड़ा मोड़ था, ऐसा मोड़ जिसने मुझे पूरी तरह से बदल दिया| जहाँ मेरे भीतर हिंसा और क्रोध ने जन्म लिया, वहीं मेरा परिवार अचानक से टूट गया!
जिस वक़्त मैं कोमा में था, उस वक़्त बड़के दादा ने जबरदस्ती चन्दर को नशा मुक्ति केंद्र में दुबारा भर्ती करवाया| परन्तु नशे का आदि चन्दर वहाँ कुछ ही दिन टिका और फिर वहाँ से भाग कर अपने मामा जी के यहाँ दुबक गया! चन्दर के नशा मुक्ति केंद्र से भागने की बात बड़के दादा को कुछ दिन बाद पता चली| नतीजन बड़के दादा ने गुस्से में आ कर चन्दर से अपने तालुक़्क़ात ही तोड़ लिए! हालांकि ये गुस्सा बस कुछ ही समय के लिए था! यही कारण था की बड़के दादा ने अपनी बहु संगीता को गॉंव वापस नहीं बुलाया था|
जब संगीता के पिताजी की मृत्यु हुई तब उनकी आखरी इच्छा का मान रखते हुए मैं और संगीता गॉंव पहुँचे| संगीता के पिताजी के अपने बेटों के द्वारा नहीं बल्कि मेरे द्वारा मुखाग्नि दी जानी है ये बात पूरे गॉंव में आग की तरह फ़ैल गई थी| इसी बात के साथ एक अफवाह और उड़ाई जा चुकी थी की संगीता के पिताजी ने अपना घर तथा ज़मीन मेरे नाम कर दी है!
जब ये बात संगीता के दोनों जीजाओं को पता लगी तो उन्होंने पहले तो इसका विरोध किया परन्तु जब उनके विरोध को अनिल और भाईसाहब ने मिलकर दबा दिया तो सब खामोश हो गए| संगीता के दोनों जीजा अकेले पड़ गए थे, ऐसे में उन्हें मिला चन्दर! चन्दर की मेरी वजह से पहले ही किलसति थी इसलिए उसने अपने दोनों सालों के साथ मिल कर मेरे ही खिलाफ एक क्षद्यंत्र रच डाला| तीनों जीजा-साले ने मिलकर 15,000/- रुपये इकठ्ठा किये और मेरे ही नाम की सुपारी दे डाली!
अपनी आत्मरक्षा में मैंने जिस व्यक्ति को मारा वो चन्दर नहीं, बल्कि एक गुंडा था जिसे चन्दर और संगीता के दोनों जीजाओं ने मेरे नाम की सुपारी दी थी!
मैंने अपनी कहानी में चन्दर को मारने की बात इसलिए लिखी थी क्योंकि मैं आज भी यही चाहता हूँ की काश उस दिन मेरे हाथों चन्दर का खून हुआ होता! काश वो हरामजादा मर गया होता तो आज मैं और संगीता सुखी-सुखी जीवन जी रहे होते!
खैर, जब इस हत्यकांड की तफ्तीश शुरू हुई तो भाईसाहब के साले साहब यानी SP साहब को चन्दर और बाकी दोनों जीजाओं का नाम पता चला| अगर ये बात खुल जाती तो तीनों के खिलाफ केस दर्ज होता और करवाई होती जिससे भाईसाहब की तीनों बहनों के ससुराल में हाहाकार मच जाता| एक भाई हमेशा अपनी बहन का घर बचाता है, यही कारण था की भाईसाहब ने ये केस उसी वक़्त दबा दिया!
"मानु, मुझे माफ़ करना लेकिन अगर ये बात खुली तो मेरी तीनों बहनों के घर उजड़ जायेंगे!" भाईसाहब ने उस दिन मुझसे हाथ जोड़कर माफ़ी माँगते हुए यही शब्द कहे थे| एक भाई की विनती के आगे मैं कुछ कह नहीं सकता था इसलिए मैंने चुप्पी साध ली और आजतक ये बात न अपनी माँ और न ही संगीता को बताई!
खैर, इस हत्याकांड की खबर पूरे गॉंव में फ़ैल चुकी थी, गॉंव देहात में ऐसी खबरें मिर्च-मसाला लगा कर फैलती हैं|
जब संगीता के पिताजी की मृत्यु हुई और खासकर मेरा इंतज़ार किया जा रहा था तो बड़के दादा को ये सब बहुत चुभा| शोक प्रकट करने आये सभी लोगों ने बड़के दादा को बहुत भड़काया की उनके बेटे चन्दर की बजाए मेरा यानी बड़के दादा के सबसे छोटे भाई के बेटे का इंतज़ार किया जा रहा था! नतीजन बड़के दादा मेरे पहुँचने से पहले ही अपना गुस्सा दिखाते हुए वापस घर चले गए|
जब मेरे हाथों हत्या होने की खबर बड़के दादा को मिली तो उन्हें अपने छोटे भाई को नीचे दिखाते हुए पुनः रिश्ता जोड़ने का बहाना मिल गया| दरअसल, बड़के दादा को अपने से छोटों से माफ़ी माँगने से चिढ थी, उनका मानना था की जो छोटे होते हैं उनसे क्या माफ़ी माँगना! आपने पढ़ा होगा की जब पिताजी मेरी माँ को ब्याह घर ले गए थे तब बड़के दादा ने उनका कितना तिरस्कार किया, फिर बाद में जब उन्हें मेरे पिताजी की जर्रूरत पड़ी तो उन्हें बुलाने के लिए बिना कोई माफ़ी माँगें चिठ्ठी लिख दी! यही नहीं, जब आयुष पैदा होने वाला था और बड़के दादा को लड़के की आस थी तब मैंने उनके इस लड़का-लड़की के भेदभाव करने को लेकर उनसे बहस की थी तब भी बड़के दादा ने मुझसे माफ़ी माँगने के बजाए बात ही खत्म कर दी थी| ये घटनायें वो सबूत हैं जो दर्शाती हैं की बड़के दादा के लिए उनका अभिमान सबसे ऊपर था|
" किसी ने सही कहा है, जैसा बाप वैसा बेटा! जब तू गुंडा बन कर शहर में ठेकेदारी करता था तो तेरा बेटा तो तुझसे चार कदम आगे ही निकला! पहले तेरे लड़के ने अपने चचेरे बड़े भाई चन्दर को पीटा और आज एक अनजान आदमी को मौत के घाट उतार दिया!" कुछ ऐसे ही जहरीले शब्द कह कर बड़के दादा ने मेरे पिताजी के मन में मेरे खिलाफ नफरत का बीज बो दिया था| मेरे हाथों खून हुआ इस बात ने मेरे पिताजी को झकझोड़ कर रख दिया था! जहाँ एक तरफ मेरी माँ अपने बेटे के स्वस्थ को ले कर चिंतित थीं, वहीं मेरे पिताजी ये सोच कर चिंता कर रहे थे की वो दुनिया को क्या जवाब देंगे? अपने बेटे से ज्यादा मेरे पिताजी को समाज की चिंता थी की समाज उन्हें एक हत्यारे का पिता कहेगा! मन में जन्में इस एक भय ने मेरे पिताजी को मुझसे और अपनी पत्नी से दूर कर दिया!
अपने परिवार को टूटने से बचाने के लिए. मैं पिताजी को सच बताने बड़के दादा के घर पहुँचा| लेकिन बड़के दादा ने मुझे मुहारे (घर के आंगन) तक में पैर रखने नहीं दिया; "खबरदार जो एक्को कदम अगर बढ़ायो! एक हत्यारे से हम या हमार परिवार का कउनो आदमी रिस्ता न रखी!" बड़के दादा के कहे इन कड़े शब्दों ने सबके सामने मेरे माथे पर खुनी का तमगा लगा दिया था| इस समय मेरी हालत बिलकुल वैसी थी जैसी उस दिन चन्दर की हुई थी जब संगीता ने उस पर एक के बाद एक आरोप लगा दिए थे| उस समय न कोई चन्दर की बात का विश्वास करता और न ही आज कोई मेरे ऊपर विश्वास करता|
भले ही किसी को मुझ पर विश्वास न हो मगर मेरी बड़की अम्मा को मुझ पर विश्वास था| बड़की अम्मा की आँखों में वही प्यार और गर्व था जो मेरी माँ की आँखों में था| जबकि मेरे अपने पिता की आँखों में मेरे प्रति शर्म थी की उनका बेटा एक खूनी है!
मेरा परिवार टूट चूका था और मैं अब गॉंव में नहीं रहना चाहता था, वहीं मेरी माँ को मेरी जान का खतरा अब भी डरा रहा था इसलिए माँ ने दिल्ली वापस जाने की बात कही| संगीता मेरे दिल की हालत जानती थी, मेरा इस समय गॉंव से दूर रहना ही ठीक होगा इसलिए संगीता ने मुझे नहीं रोका| अभी संगीता के पिताजी की तेरहवीं बाकी थी इसलिए संगीता को अभी कुछ दिन और गॉंव में रहना था|
इधर मेरी बिटिया नेहा मेरे बिना रह नहीं सकती थी, ऊपर से जब से मेरे ऊपर जानलेवा हमला हुआ था तब से तो नेहा मुझे ले कर बहुत डर गई थी इसलिए नेहा भी मेरे और माँ के साथ दिल्ली आने की जिद्द करने लगी| जबकि आयुष अपने नाना जी की तेरहवीं के लिए गॉंव में अपनी मम्मी के पास रुक गया था|
हम यहाँ दिल्ली पहुँचे और वहाँ गॉंव में बड़के दादा ने संगीता और आयुष को घर वापस बुलाने के लिए बुलावा भेजा| चन्दर उस समय घर पर ही था और संगीता के लिए वापस न जाने का ये सबसे अच्छा बहाना था| "हम ऊ जानवर लगे (चन्दर) न जाब! जब तक ऊ आपन नशा का इलाज न करवाई, जब तक ऊ दोसर औरत लगे जाना ना छोड़ी हम वापस न जाब! पाहिले ओकरा इलाज कराओ तभाएं हम वापस आबे!” संगीता ने जानबूझ कर अपने वापस आने की ये शर्त रखी थी क्योंकि वो जानती थी की चन्दर इतनी जल्दी सुधरने वाला है नहीं और जबतक वो सुधर नहीं जाता संगीता मेरे पास आसानी से रह सकती है| वहीं बड़के दादा के प्राण बेस थे आयुष में इसलिए उनके पास अपनी बहु की शर्त मानने के अलावा कोई चारा नहीं था| उन्होंने संगीता की शर्त मान ली और एक विनती की कि संगीता कुछ दिनों के लिए आयुष को उनके पास रहने दे ताकि वो अपने पोते को लाड-प्यार कर सकें| संगीता के लिए इतना बहुत था की बड़के दादा अपने पोते के मोह में थोड़ा झुक गए हैं इसलिए उसने उनकी ख़ुशी के लिए आयुष को स्कूल खुलने तक बड़के दादा के पास भेज दिया|
मेरे पिताजी के अचानक से अपने परिवार को यूँ मझधार में छोड़ने से सारी जिम्मेदारियाँ मेरे सर पर आ चुकी थीं| मैं उस समय शारीरिक तौर पर जख्मी था, कहीं मैं बीमार न पड़ जाऊँ इसलिए मैंने धीरे-धीरे काम और घर के बीच तालमेल बनाना शुरू किया|
उधर बड़के दादा और गॉंव वालों ने मेरे पिताजी को मेरे ही खिलाफ कर दिया था| सब उन्हें डरा रहे थे की मैं अपनी माँ के साथ भी बुरा सलूक करूँगा और माँ को भी घर से निकाल दूँगा| ये बेसर-पैर की बात सोच पिताजी को माँ की चिंता होने लगी की माँ क्या करेंगी अगर मैंने उन्हें घर से निकाल दिया तो?! पिताजी ने माँ को फ़ोन कर जब ये डर दिखाया और गॉंव बुलाया तो मेरी माँ ने उन्हें खूब सुनाया और पिताजी की अक्ल ठिकाने लगा दी!
पिताजी के हमें छोड़ कर अपने भाई-भाभी के पास रहने से माँ थोड़ी अकेली पड़ गई थीं क्योंकि उनका जीवनसाथी जो छूट गया था! इस दुःख को संगीता...एक औरत होते हुए अच्छे से महसूस कर सकती थी इसलिए वो अपने पिताजी की तेरहवीं के अगले दिन ही हमारे पास वापस दिल्ली आने की तैयारी करने लगी| जब बड़के दादा को ये खबर पता चली की संगीता वापस दिल्ली हमारे घर आ रही है तो उन्होंने संगीता को दिल्ली न जाने की चेतावनी दे डाली| "हमार पोता पर ऊ मनहूस (मेरी) का साया न पड़ी!" बड़के दादा के कहे ये जहरीले शब्द सुन संगीता को बहुत दुःख हुआ, लकिन उसने दिल्ली आने की ठान ली थी इसलिए संगीता ने अपने भाईसाहब को बड़के दादा के पास मेरा पक्ष समझाने के लिए भेजा|
भाईसाहब की पहचान गॉंव के मुखिया से थी और हमारे गॉंव में जो मुखिया से रसूख रखता है उसका बड़ा मान-सम्मान होता है| भाईसाहब ने बड़के दादा को इत्मीनान से उस दिन की सारी घटना बताई| सारी सच्चाई जानकार बड़की अम्मा...एक माँ का दिल पिघल गया वहीं बड़के दादा और मेरे पिताजी को भाईसाहब की बातें सुन कर भी मुझ पर विश्वास नहीं हुआ| बड़के दादा संगीता को दिल्ली जाने देने के लिए राज़ी हो गए मगर आयुष को दिल्ली भेजने के लिए वो कतई राज़ी न थे|
संगीता जानती थी की ऐसी परिस्थिति जर्रूर पैदा होगी इसलिए उसने भाईसाहब को इसके लिए पहले से ही सीखा-पढ़ा कर भेजा था| भाईसाहब ने शहर के स्कूलों के गुणगान करना शुरू कर दिया तथा बड़के दादा को थोड़ा डराने के लिए एक झूठ भी कह दिया की छोटे बच्चे का बार-बार स्कूल बदलने से बच्चे का पढ़ाई में मन नहीं लगता! अब बड़के दादा ठहरे अपने पोते के प्यार में अंधे, वो कैसे अपने पोते का जीवन बर्बाद होने देते?! दिल पर पत्थर रख कर उन्होंने आयुष को भी दिल्ली जाने के लिए इजाजत दे दी मगर उन्होंने ये शर्त रखी की छुट्टियों में आयुष को गॉंव उनके पास रहने आना होगा| आयुष को छुट्टियों में गॉंव पहुँचाने की जिम्मेदारी खुद भाईसाहब ने अपने सर ली तब जा कर बड़के दादा को इत्मीनान हुआ और उन्होंने आयुष को लाड कर भेजा|
संगीता और आयुष को यूँ अचानक घर पर देख माँ हैरान हुईं| जब माँ ने संगीता से पुछा की वो अपने ससुराल क्यों नहीं गई तो संगीता बोली; "मेरी एक माँ को सँभालने के लिए उनका बड़ा बेटा गॉंव में है लेकिन मेरी इस माँ को सँभालने के लिए मेरा यहाँ होना ज्यादा जर्रूरी था|" संगीता की ये भावुक बात सुन माँ ने संगीता को अपने गले लगा लिया और ख़ुशी से उसका मस्तक चूम लिया| उस पल मेरा मन कह रहा था की काश माँ को पता होता की मैं संगीता से कितना प्यार करता हूँ, तो आज माँ ने संगीता को अपनी बहु के रूप में अपना लिया होता|
दोनों बच्चों को मेरे माँ-पिताजी यानी अपने दादा-दादी जी के अलग होने के बारे में कुछ नहीं पता था, लेकिन इतना जर्रूर था की दोनों बच्चे ये महसूस अवश्य कर रहे थे की उनकी दादी जी अकेली हैं| इस समयसा का हल बच्चों ने खुद निकाला और मुझे तथा अपनी दादी जी को अपने प्यार के मोहपाश से जकड़ लिया| दोनों बच्चों के इसी प्यार के कारण हम माँ-बेटे को पिताजी की कमी महसूस नहीं हो रही थी|
कुछ ही दिन बीते होंगें की प्रेगनेंसी के कारण संगीता को मूड स्विंग्स (mood swings) शुरू हो गए| संगीता के ये मूड स्विंग्स समय से पहले शुरू हुए थे इसलिए मेरा ये मानना है की संगीता जानबूझ कर यूँ बच्चों की तरह बर्ताव करती थी| उधर माँ को संगीता का ये बालपन देखना अच्छा लगता था इसलिए वो संगीता को कुछ अधिक ही लाड करती थीं| वहीं मुझे...अपने बेटे को माँ ने घर का नौकर बना कर सारा काम मेरे सर डाल दिया था| स्तुति के पैदा होने तक, यानी पूरे 7 महीने इतने प्यार भरे बीते की वो हर एक दिन मुझे आज भी अच्छे से याद हैं|
समय बीता और आखिर वो दिन आ ही गया जब स्तुति पैदा हुई तथा मैंने पहलीबार स्तुति को गोदी में लिए| आप सभी ने पढ़ा ही होगा की कैसे उस पल हम बाप-बेटी का एक अनोखा रिश्ता बन गया था! स्तुति में मेरी जान बसती थी, तो वहीं स्तुति के मन को चैन तभी मिलता था जब वो मेरी गोदी में होती थी|
ज्यों-ज्यों स्तुति बड़ी होती गई उसका मेरे प्रति लगाव गहरा होता गया| जब स्तुति बोलने लायक हुई तो मेरी बिटिया ने मुझे बड़ा ही प्यारा नाम दिया; "पपई"! इस शब्द का मतलब घर में मेरे और स्तुति के सिवा आज तक कोई नहीं जानता| दरअसल, स्तुति ने अपनी दीदी को मुझे "पापा जी" कहते हुए सुना था| उम्र में छोटी होने के कारण स्तुति पूरा शब्द तो बोल नहीं पाती थी इसलिए उसने दोनों शब्दों को जोड़ कर मुझे ये नया नाम दे दिया| सारा समय मेरी लाड़ली बिटिया मुझे पपई-पपई कह घर में खिलखिलाती रहती थी|
स्तुति के प्रति मेरा प्यार इस कदर बढ़ गया था की मैं अब संगीता से शादी करने को आतुर था ताकि जल्दी से जल्दी मैं अपना ये परिवार पूरा कर सकूँ| मैंने अंतिम बार संगीता से शादी के विषय में बात की और जैसा की होना था....संगीता ने इस बार भी मेरा प्रस्ताव ठुकरा दिया! "आखिर क्यों?" मैंने तुनक कर बड़ा ही सरल सवाल पुछा था मगर संगीता मेरे इस सवाल से चिड़चिड़ी हो गई थी!
"क्योंकि मैं ये सब खोना नहीं चाहती! मेरे पास अभी जो है मैं उसी से खुश हूँ और इससे ज्यादा की मैं न तो उम्मीद करती हूँ और न ही मैंने कभी कामना की थी! कम से कम हम अभी साथ तो हैं, आप बच्चों को प्यार तो दे पा रहे हो लेकिन आपकी ये ज़िद्द सबकुछ उजाड़ कर रख देगी!" संगीता बहुत बुरी तरह मुझ पर चिल्लाई थी!
"खो तो तुम दोगी सबकुछ...अभी नहीं तो कुछ दिनों बाद सही! अगर तुमने मुझे अपनी कसम से आज़ाद नहीं किया तो एक दिन तुम ये सारे रिश्ते तबाह कर दोगी!...और जब वो दिन आएगा तो तुम पछताओगी...रोओगी! संगीता को चेतावनी दे मैं स्तुति को ले कर घर से निकल गया| मैंने संगीता को चेतावनी तो दे दी थी मगर इस चेतावनी से संगीता से ज्यादा मैं डर गया था!
वहीं मेरी दी गई इस चेतावनी का संगीता पर कोई असर नहीं हुआ| संगीता मुझे मनाना जानती थी इसलिए उसने मुझे बहला-फुसला कर फिर से हँसा ही दिया!
अगले दो साल बड़े ही उथल-पुथल भरे रहे!
इधर मैं काम की जिम्मेदारियों और बच्चों के प्यार में लीन था तो वहीं गॉंव में चन्दर को सही राह पर लाने के लिए सारा परिवार एकजुट हो चूका था| चन्दर को नशा-मुक्ति केंद्र में फिर से भर्ती करवाने का कोई फायदा नहीं था क्योंकि वो वहाँ टिकता ही नहीं और घरवालों की नजर से दूर होने का फायदा उठा कर फिर से मामा जी के घर भाग जाता इसलिए बड़के दादा ने चन्दर को घर पर रख कर ही उसका इलाज करवाना ठीक समझा| घर पर रहते हुए बड़के दादा और मेरे पिताजी की नजरें हमेशा चन्दर पर गड़ी रहती थी इसलिए चन्दर कोई काण्ड न कर पाता| चन्दर को कहीं भी बाहर आने-जाने की इजाजत नहीं थी, घर से खेत और खेत से घर यही ज़िन्दगी रह गई थी उसकी| जाहिर है चन्दर ने इसका विरोध किया और कई बार घर में सबसे लड़ाई भी की लेकिन बड़के दादा का एक चाँटा पड़ते ही चन्दर डरके मारे चुप हो जाता!
बड़की अम्मा ने कोई वैध, कोई हकीम, कोई तांत्रिक नहीं छोड़ा...वो सभी के पास जातीं और वहाँ से लाई भभूत आदि चन्दर को खिलाती-पिलातीं ताकि उनका बेटा सही राह पर आ जाए| लेकिन अगर चन्दर के सर पर कोई भूत-बाधा होती तब तो कुछ होता न, उसे तो बस नशे की आदत थी!
अगर आप सभी ने कभी सरकारी बस से सफर किया हो तो आपने देखा होगा की बस में एक किताब बेचने वाला चढ़ता है जो की कहानियों, चुटकुले, ज्ञान-विज्ञान आदि की हिंदी में लिखी किताबें बेचता है| इन किताबों के अंतिम पन्नों पर बहुत अड्वॅरटीज़मेंट होते हैं| कुछ बाबाओं-ओझाओं के तो कुछ हकीमों के| कुछ ऐसे हकीम होते हैं जो कहते हैं की उनकी दवाई लेने से बुरी से बुरी नशे की आदत छुड़ाने की दवाइयाँ दी जाती हैं जिन्हें यदि खाने की चीजों में मिला कर खिलाने से नशे के आदि व्यक्ति का नशा छूट जाता है| यदि वह आदमी फिर भी नशा करे तो उसे तुरंत मितली हो जाती है|
ये नायाब नुस्खा अजय भैया खोज कर लाये थे और इसी से कुछ महीनों तक चन्दर का इलाज हुआ, वो बात अलग है की इसका कोई ख़ास फायदा हुआ नहीं!
चन्दर नशे का आदि था और जब उसकी इस लत ने उसके जिस्म को झकझोड़ना शुरू किया तो उसने घर वालों को धोका दे कर आधी रात को घर से निकलने की तैयारी कर ली| आधी रात के समय जब सब सो रहे होते तो चन्दर घर से चुप-चाप निकलता और अपने किसी गंजेड़ी दोस्त के साथ मिल कर गाँजा फूँकता| ऐसे ही एक रात उसे जाते हुए बड़के दादा और मेरे पिताजी ने देख लिया| बस फिर क्या था लाठी-डंडे से चन्दर और उसके दोस्त की अच्छे से तुड़ाई की गई!
घर में सबके सारे नुस्खे बर्बाद होते जा रहे थे और परिणाम कुछ निकल नहीं रहा था| आखिर किसी ने एक प्राइवेट संस्था के बारे में बताया जहाँ नशे का पक्के तौर पर इलाज किया जाता था| ये संस्था एक बाबा चलाता था और वहाँ उस बाबा के चमचे आदि नशे के आदि व्यक्तियों को कूट-पीट कर सीधा कर देते थे|
तीन महीने चन्दर वहाँ रहा और उपचार के साथ लात-घुसे खाये तब जा कर उसमें थोड़ा बहुत सुधार आया| चन्दर का शराब पीना तो छूट गया मगर उसकी गांजे की लत नहीं छूटी| गाँजा पीने से चन्दर की शराब की लत काबू में रहती थी|
गाँजे के साथ ही चन्दर को बीड़ी पीने की लत लग गई थी, उस साले ने बाबा के आश्रम में रहते हुए छुप कर बीड़ी पीना शुरू कर दिया था| आखिर तंग आ कर उस बाबा ने भी अपने हाथ खड़े कर दिए की वो चन्दर जैसे दुष्ट को नहीं सुधार सकते!
चन्दर घर आ गया पर बड़के दादा ने उस पर सख्ती दिखाते हुए उसका गाँजा पीना कम करवा दिया| चन्दर को सँभलता हुआ देख बड़के दादा को इत्मीनान आया की उनका लड़का अब पहले जैसा ऐयाश नहीं रहा| लेकिन चन्दर अपने पिताजी से बहुत तेज़ था वो छुप-छुप कर गाँजा फूँक लिया करता था, साथ ही उसने गॉंव के बाहर रह रहे बंजारों की लड़कियों के साथ भी दुष्कर्म करने शुरू कर दिए थे|
लेकिन चन्दर की क़िस्मत बहुत खराब थी, जल्द ही उसके इन दोष-कर्मों का भाँडा फुट गया जब एक लड़की घर आ गई और बड़के दादा से उनके लड़के के कर्म-कांडों का सारा भाँडा फोड़ दिया! उस लड़की का मुँह बंद करने के लिए चाहिए थे पैसे और इस मौके का फायदा उठा कर मामा जी फिर से अपना रिश्ता पुनः स्थापित करने अपनी बहन के घर आ धमके| 5,000/- नकद दे कर उन्होंने उस लड़की का मुँह बंद कर भगा दिया| मामा जी की ये बनावटी 'दरियादिली' देख बड़के दादा ने उन्हें अंततः माफ़ कर दिया|
उसके बाद मामा जी ने चन्दर को ऐसी पट्टी पढ़ाई की चन्दर एक दिन में सीधा हो गया| अगले दिन से चन्दर खेतों की जुताई में लग गया और उसने सबको यक़ीन दिला दिया की वो अब पूरी तरह से सुधर चूका है| सबको लगा की ये सब मामा जी का जादू है इसलिए सभी मामा जी का मान-सम्मान करने लगे| जबकि असल में मामा जी ने चन्दर को सुधरने का दिखावा करने को कहा था ताकि फिर से उसका उनके घर आना-जाना शुरू हो जाए और वो मामा जी के घर के पास रहने वाली औरत से अपने नाजायज रिश्ते पुनः स्थापित कर पाए|
'चन्दर की तबियत सुधर रही है!' बड़के दादा ने ये खबर अपनी समधन तक पहुँचा दी ताकि वो संगीता को वापस बुला लें| संगीता की माँ ने ये खबर संगीता को दी और उसे घर वापस बुलाया| अब संगीता मुझसे तो इस बारे में कोई मदद माँग नहीं सकती थी क्योंकि मेरे पास इस समस्या का बस एक ही हल था...शादी इसलिए उसने अपना दिमाग चलाते हुए अपने भाईसाहब को फ़ोन कर वापस न जाने का ये बहाना दिया की चूँकि स्तुति को पैदा हुए 3 महीने हुए हैं, ऊपर से ठंड का मौसम है तो स्तुति के बीमार होने का खतरा है| फिर दोनों बच्चों के मध्यमवर्गी परीक्षाएं भी आ रहीं हैं, ऐसे में उसका वापस जाना सम्भव नहीं| संगीता जानती थी की उसके भाईसाहब की कही बात बड़के दादा नहीं टाल पाएंगे इसीलिए उसने जानबूझकर अपने भाईसाहब को आगे कर दिया|
बजाए सच का साथ देने के, बजाए कमर कस कर मेरे साथ खड़े होने के, संगीता बहाने बना कर बचना चाह रही थी| खैर, खुशकिस्मती से संगीता की ये चाल काम कर गई और कुछ महीनों के लिए संगीता चिंता मुक्त हो गई| लेकिन जब बच्चों की परीक्षाएं खत्म हुई तो संगीता के लिए गॉंव से पुनः बुलावा आ गया| इस बार भी संगीता ने अपना दिमाग लड़ाते हुए नया बहाना सोच लिया और वो बहाना था ‘बच्चों की अच्छी पढ़ाई’ का! संगीता जानती थी की बड़के दादा के लिए उनके पोते की अच्छी शिक्षा बहुत मायने रखती है, अब गॉंव में कोई प्राइवेट स्कूल है नहीं जहाँ आयुष अच्छे से पढ़ सके इसलिए इस आपदा को अवसर में तब्दील कर संगीता ने आयुष के अच्छे भविष्य की दुहाई देते हुए अपने भाईसाहब को सब समझा दिया|
वहीं मेरी बड़ी बिटिया नेहा को आयुष को यूँ बार-बार छुट्टियों में गॉंव जाना अखर रहा था| अपनी मम्मी की मुखबरी करते हुए बातें सुन नेहा सारी बात जान गई और उसने मेरे पास रुकने का अपना नायब प्लान तैयार कर लिया| नेहा ने आयुष को अच्छे से पट्टी पढ़ाई की उसे गॉंव जा कर बड़के दादा के सामने अपने दिल्ली के स्कूल की दिल खोल कर तारीफ करनी है| यहाँ कितनी अच्छी पढ़ाई कराई जाती है ये जानकार बड़के दादा का दिल पिघलता और वो आयुष को यहाँ रह कर पढ़ने देते|
अपनी दीदी की बात मानते हुए आयुष ने वही किया जो उसकी दीदी ने कहा था| आयुष ने शहद में डुबो-डुबो कर अपने स्कूल की तारीफ की तथा जो थोड़ी बहुत अंग्रेजी आयुष यहाँ सीखा था वो भी बोल कर बड़के दादा को सुना दी| अपने पोते को पढ़ाई में अव्वल आते देख, उसके मुँह से मेरी जैसी फर्राटेदार अंग्रेजी सुन बड़के दादा बड़े खुश हुए| उनके खानदान का चश्मों-चिराग आयुष, उनके खानदान का नाम सुनहरे अक्षरों में लिखेगा ये सोच कर बड़के दादा ने आयुष को मेरे घर रहने की इज्जाजत दे ही दी|
जैसा की होता आया है, इंसान के बहाने कुछ समय तक ही काम करते हैं! जब तक स्तुति दो साल की हुई तब तक हमारे गॉंव से कुछ ही दूरी पर एक नया प्राइवेट स्कूल खुल गया! संगीता के लिए बहानों के ज़मीन पर भागते-भागते अब ज़मीन खत्म हो चुकी थी! उसे अब अपनी ज़िन्दगी का सबसे बड़ा निर्णय लेना था, या तो मेरे प्यार पर भरोसा रख मुझसे शादी कर ले और ख़ुशी-ख़ुशी रहे या फिर मुझसे रिश्ते-नाते तोड़ गाँव लौट जाए!