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Incest एक अनोखा बंधन - पुन: प्रारंभ (Completed)

Akki ❸❸❸

ᴾʀᴏᴜᴅ ᵀᴏ ᴮᴇ ᴴᴀʀʏᴀɴᴠɪ
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इधर मैंने अपनी माँ को बता दिया की भाईसाहब नेहा को अपने घर अम्बाला ले कर आ रहे हैं और अब नेहा यहीं रहकर पढ़ाई करेगी| माँ को भी ख़ुशी हुई की कमसकम नेहा की पढ़ाई में कोई बाधा नहीं आएगी| माँ ने जो दोनों बच्चों की पढ़ाई के लिए FD करवाई थी, उनके बारे में मुझे याद दिलाते हुए माँ ने कहा की मैं वो सारे पैसे भाईसाहब के अकाउंट में डाल दूँ ताकि उन्हें कभी नेहा की फीस के लिए मुझसे पैसे माँगने ही न पड़ें|



कुछ दिन बाद ही भाईसाहब सीधा पहुँचे बड़के दादा के पास और उनसे कहा की वो नेहा को अपने साथ अम्बाला में रख कर पढ़ाना चाहते हैं| बड़के दादा को नेहा से कोई ख़ास लगाव न था इसलिए उन्होंने नेहा को नहीं रोका| तो वहीं नेहा जानती थी की मैंने ही उसके बड़े मामा जी को भेजा है इसलिए नेहा बहुत खुश थी| नेहा अपने बड़े मामा जी के साथ हँसी-ख़ुशी अम्बाला पहुँची| जैसे ही नेहा ने दरवाजे पर लगी घंटी बजाई मैंने फट से दरवाजा खोला! मुझे दो साल बाद देख नेहा ने आव देखा न ताव और सीधा मेरी गोदी में आने के लिए छलांग लगा दी! मेरी बिटिया लम्बाई में इतनी बड़ी हो गई थी की अब मेरे काँधे तक आती थी मगर उसका बालपन वैसे का वैसा था!



ये दो साल का समय हम बाप-बेटी के लिए दो जन्म के समान था इसलिए गले लगे हुए हम दोनों बाप-बेटी रो पड़े| “I missed you पापा जी!" नेहा रोते हुए बोली|

“I missed you too मेरा बच्चा!” मैंने नेहा के आँसूँ पोछते हुए कहा| हम बाप-बेटी इतने भाव-विभोर हो चुके थे की हमें पता ही नहीं चला की भाईसाहब, भाभी जी और विराट एक पिता-पुत्री का ये प्यारभरा मिलन देख भावुक हो रहे हैं|



"सच मानु, ऐसा प्यार नहीं देखा मैंने!" भाभी जी अपने आँसूँ पोछते हुए बोलीं|



"मानु नेहा के प्यार में बहुत तड़पा है, देखो इसने अपनी क्या हालत बना ली!" भाईसाहब ने भाभी जी से मेरी हालत पर गौर करने को कहा तब जा कर मेरी बेटी ने मेरी बिगड़ी हुई हालत देखि| दरअसल जब नेहा ने मुझे पहलीबार देखा तो उसे बस मेरे गले लगना था इसलिए नेहा ने मेरी सूरत ठीक से नहीं देखि थी, परन्तु जब उसके बड़े मामा जी ने मेरी सूरत देखने को कहा तो मेरी ये बिगड़ी हुई हालत देख मेरी बिटिया घबरा गई!



झबरे से बाल जो की इतने घुंघराले हो गए थे की कंघी करने से भी सीधे नहीं होते थे| दाढ़ी इतनी बढ़ गई थी की मेरे होंठ दाढ़ी के बालों में छुप गए थे| वजन बढ़ गया था और मैं लार्ज से एक्सअल में आ गया था| हमेशा जीन्स-टी-शर्ट या ब्लैज़र पहनने वाला मैं आज नेहा के सामने एक कमीज जो की बाहर निकली हुई थी और पैंट पहने खड़ा था|

नेहा ने जब भी मुझे देखा था तो हमेशा स्मार्ट और अच्छे कपड़े पहने देखा था परन्तु उसने जब मेरी ये हालत देखि तो उसे अपनी आँखों पर विश्वास ही नहीं हुआ! “ये आपने अपनी क्या हालत बना ली पापा जी?” नेहा घबराते हुए बोली| नेहा के बिछोह में मुझ पर क्या बीती मैं ये सब नेहा को नहीं बताना चाहता था इसलिए मैंने बात घुमाते हुए कहा; "अब मेरी बिटिया आ गई है न तो सब ठीक होगा|"



खैर, अब नेहा का स्कूल में दाखिला करवाना था इसलिए मैं और भाईसाहब दोनों गए, जहाँ नेहा के गार्डियन (guardian) के रूप में भाईसाहब ने मेरा नंबर लिखवाया| नेहा में पढ़ाई करने का ऐसा जोश था की उसने पहले ही दिन नए दोस्त बना लिए| पहले दिन जब नेहा के स्कूल की छुट्टी हुई और मैं नेहा को लेने पहुँचा तो नेहा ने अपनी नई सहेलियों से मेरा तार्रुफ़ बड़े गर्व से अपने पापा जी के रूप में करवाया| मुझे ये देख कर बड़ी ख़ुशी हुई की मेरी इतनी बुरी हालत में भी मेरी बिटिया को मुझे सबके सामने पापा जी कहने में कोई शर्म नहीं आ रही|

मैंने उसी वक़्त प्रण लिया की मैं अब खुद को सुधारूँगा ताकि मेरी कोई मेरी बिटिया का मज़ाक न उड़ाए| शाम को मैं अच्छे से अपने बाल कटवा, दाढ़ी छोटी करवा और अच्छे कपड़े पहनकर भाईसाहब के घर लौटा| मेरा ये बदला हुआ रूप-रंग देख भाभी जी ने ज़ोर से सीटी बजा दी! वहीं भाईसाहब और विराट मुझे देख कर दंग थे की मैंने खुद को एकदम से कैसे बदल लिया?! उधर जब नेहा ने मुझे यूँ हैंडसम बना देखा तो वो दौड़ती हुई अंदर गई और मुझे नज़र न लग जाए इसलिए काजल का टीका लगाते हुए बोली; “That’s like my पापा जी! I love you पापा जी!”

अगले दिन जब मैं नेहा को स्कूल छोड़ने गया तो उसकी सारी सहेलियाँ एक हैंडसम आदमी को देख दंग रह गईं| “Oh hello girls! मेरे पापा जी को नज़र मत लगाओ!” नेहा ने जब प्यार से अपनी सहेलियों को डाँटा तो सभी ने ज़ोर से ठहाका लगाया| दोपहर को जब मैं नेहा को लेने पहुँचा तो मैं नेहा और उसकी दोस्तों के लिए चॉकलेट तथा चिप्स ले कर पहुँचा| चॉक्लेट और चिप्स पा कर नेहा की सहेलियाँ बहुत खुश हुईं तथा "थैंक यू अंकल जी" कह खिलखिलाने लगीं| उस दिन से नेहा की सभी सहेलियों के सामने मेरी एक हैंडसम अंकल की छबि बन गई थी|





खैर, चूँकि अब नेहा अपने बड़े मामा जी के यहाँ रह कर पढ़ रही थी तो ऐसे में मेरा मन बिना नेहा को मिले मानने वाला तो था नहीं इसलिए मैं हर शनिवार भाईसाहब के घर पहुँच जाता और रविवार रात वापस घर आ जाता| माँ को मेरे नेहा के प्रति बढ़ रहे इस मोह से चिंता हो रही थी की क्या होगा अगर फिर नेहा मुझसे दूर हो गई तो?! अतः माँ ने मुझे समझाना चाहा मगर मेरा मन नहीं मानता था! नेहा के आने के बाद से मैंने खुद को थोड़ा बहुत सुधारा था, यदि माँ मुझे नेहा से मिलने जाने से रोकतीं तो मैं फिर वही मायूस...हारा हुआ लड़का बन कर रह जाता! शायद यही सोच कर माँ ने मुझे नहीं रोका और मेरे अच्छे भविष्य के लिए उन्होंने अपनी अलग तैयारी शुरू कर दी|



इधर मेरा नेहा से प्रत्येक हफ्ते मिलना जारी था, शनिवार और इतवार मेरी बिटिया मेरे साथ ख़ुशी-ख़ुशी बिताती थी| कभी हम बाप-बेटी फिल्म देखने जाते, तो कभी खाना खाने बाहर जाते और कभी घूमने निकल जाते| जब नेहा के स्कूल की छुट्टियाँ होती तो मैं नेहा को घर ले आता| अपनी दादी जी के पास आते ही नेहा उनसे लिपट जाती और माँ को ज़रा सा भी काम नहीं करने देती| गॉंव में रहकर नेहा ने खाना बनाना सीख लिया था इसलिए नेहा अकेली रसोई में घुस कर खाना बनाती| माँ नेहा को रोकने जाती तो नेहा कहती; "दादी जी, मैं अब छोटी बच्ची नहीं हूँ| मैं अब बड़ी हो गई हूँ और मेरे होते हुए आप काम करो ये अच्छी बात थोड़े ही है?!" अपनी पोती से इतनी बड़ी बात सुन माँ नेहा को गले लगा कर लड़ करती और उसे कुछ न कुछ नया बनाना सिखाने लगती|



एक दिन की बता है, मैं और नेहा रात को खाना खाने बाहर गए हुए थे जब नेहा मुझे अपनी सहेली की बात बताने लगी; "पापा जी, मेरी दोस्त शालिनी कह रही थी की तेरे पापा जी कहीं से अंकल नहीं लगते| उन्हें तो भैया कहने का मन करता है!" नेहा की बात सुन मैं ठहाका मारकर हँसने लगा| मेरी हँसी इतनी तेज़ थी की आस-पास बैठे लोग भी मुझे देखने लगे थे!

"आप शालिनी से कहना की वो मुझे भैया ही कहे!" मैंने हँसते हुए कहा तो नेहा भी खिलखिलाकर हँसने लगी| नेहा की सहेलियों को लग रहा था की शायद मेरा बाल-विवाह हुआ होगा इसीलिए मैं तीन बच्चों का पिता होने के बाद भी इतना जवान दिखता हूँ| तब नेहा ने उन्हें सच बताया की कैसे हम बाप-बेटी का रिश्ता कायम हुआ| जब नेहा की सहेलियों को पता चला की मैं अविवाहित हूँ तो उसकी एक दोस्त ने मज़ाक-मज़ाक में कह दिया की मैं उसकी चचेरी बहन से शादी कर लूँ! ये बात सुन मैंने फिर ज़ोर से ठहाका लगाया और पेट पकड़ कर हँसने लगा|



"पापा जी, एक बात पूछूँ?" नेहा अपनी हँसी काबू करते हुए बोली| मैंने हाँ में सर हिला कर नेहा को अनुमति दी तो नेहा थोड़ा गंभीर होते हुए बोली; "पापा जी, मम्मी ने जो किया...उस सबके बाद…आप अब भी उनसे प्यार करते हो?" मैंने नेहा से ऐसे प्रश्न की उम्मीद नहीं की थी इसलिए उसका सवाल सुन मैं हँसते हुए से गंभीर हो गया| संगीता का ज़िक्र होते ही मेरे दिल का ज़ख्म ताज़ा हो गया था और आँसूँ आँखों की दहलीज़ तक पहुँच गए थे| मन तो मेरा संगीता को गाली देने का था परन्तु मैं अपनी बेटी के सामने उसकी माँ को गाली नहीं देना चाहता था इसलिए मैंने शब्दों को सेंसर कर जवाब दिया; “बेटा, मेरे जीवन के ये ढाई साल आपकी मम्मी की वजह से ऐसे गुजरे हैं की मैं आपको बता भी नहीं सकता इसलिए आपकी मम्मी के लिए मेरे दिल में अब भी प्यार होने का सवाल ही पैदा नहीं होता!"

नेहा मेरे जज़्बात समझती थी इसलिए मेरा हाथ अपने हाथों में ले कर नेहा बोली; “I know पापा जी, आप ने मम्मी की वजह से कितना दुःख भोगा है| बड़े मामा जी मुझे अम्बाला आते हुए बता रहे थे की मेरे बिना आप इतना डिप्रेशन में थे की आपने अपनी बहुत बुरी हालत बना ली थी|…And I know आपके मन में मम्मी के लिए कितना गुस्सा है...नफरत है and trust me I understand how badly you want to forget mummy…इसलिए मैं चाहती हूँ की आप अब खुश रहो और इसके लिए अब आपको move on करना होगा! Its time for my पापा जी to get married!” अपनी बेटी के मुँह से अपनी शादी की बात सुन मैं मुस्कुराने लगा| नेहा के सर पर हाथ फेरते हुए मैं बोला; "मेरा बच्चा इतना बड़ा हो गया की वो अपने पापा जी को शादी करने के लिए कह रहा है?!" मेरी बात सुन नेहा मुस्कुराने लगी और हाँ में सर हिलाने लगी|



किसी ने सच ही कहा है, लड़कियाँ कब बड़ी हो जाती हैं, पता ही नहीं चलता!



खैर, मैंने नेहा की कही बात का कोई जवाब नहीं दिया क्योंकि मुझे खुद नहीं पता था की मुझे शादी करनी चाहिए या नहीं?! लेकिन जब मैं घर वापस आया तो माँ ने मेरी शादी की बात उठाई; "बेटा, मैं सोच रही हूँ की तू अब शादी कर ले और अपना घर बसा ले|" नेहा ने जब मेरी शादी की बात उठाई थी तो मैं उस समय तो इस सवाल से बच गया था मगर माँ के सवाल से बच पाना नामुमकिन था इसलिए मैं खामोश हो कर बैठा रहा| मुझे यूँ खामोश देख माँ मुझे समझाते हुए बोलीं; "बेटा, तेरी शादी होगी तो तुझे एक जीवन साथी मिलेगा फिर तेरे बच्चे होंगें तो तेरा मन अपने बच्चों को लाड-प्यार करने में लगेगा और मुझे भी पोता-पोती का सुख मिलेगा|" माँ की बात समझ कर मुझे माँ की सारी प्लानिंग समझ आई| दरअसल मैं कहीं नेहा से फिर अधिक मोह न बढ़ा लूँ और फिर से डिप्रेशन में न चला जाऊँ इसीलिए मेरी माँ ‘मेरे हाथ पीले’ करना चाहती थीं| एक बार मेरी शादी हो जाती, बच्चे हो जाते तो मैं अपने बच्चों से अधिक मोह करता न की नेहा से!

माँ अपना ये प्लान बनाये बैठीं थी तो मेरे दिमाग में मेरी अपनी प्लानिंग शुरू हो गई थी| मैंने सोच लिया की शादी के बाद मैं जबरदस्ती नेहा को ही गोद ले लूँगा और फिर मुझे नेहा के खोने का भय ही नहीं रहेगा!

"माँ, आप जब कहोगे...जिससे कहोगे मैं शादी कर लूँगा| आपको मुझसे कुछ भी पूछने की जर्रूरत नहीं है| हाँ इतना ध्यान रखना की लड़की में गुण अपने पसंद के ढूँढना था, मेरा काम शादी निभाना है और मैं कैसे भी निभा लूँगा|" मैंने माँ के दोनों हाथ अपने हाथों में ले कर कहा| अपने फ़रमाबरदार बेटे के मुँह से इतनी बड़ी बात सुन मेरी माँ को बहुत ख़ुशी हुई और उन्होंने ख़ुशी से मेरा मस्तक चूम लिया|



उस दिन से मेरी माँ ने मेरे लिए रिश्ते खोजने शुरू कर दिए| माँ ने ये खबर नेहा की नानी जी को भी दी ताकि वो भी मेरे लिए लड़की ढूँढ सकें| ज़ाहिर है ये खबर उड़ते-उड़ते संगीता तक पहुँच ही गई, मेरी शादी हो रही है ये सुनकर संगीता के प्राण सूखने लगे! अपने प्यार को किसी दूसरे की बाहों में जाते हुए कौन सा मेहबूबा देख सकती है! ये एक ऐसा ग़म है जिसे बर्दाश्त करने के लिए पत्थर का कलेजा चाहिए होता है|



जब संगीता हमारे साथ दिल्ली रहती थी और उसके गॉंव वापस जाने की बात चल रही थी, तब मैं संगीता को खोने के ग़म में मरा जा रहा था| उसी तरह से संगीता मुझे किसी और का होता हुआ सोच कर ग़म में मरी जा रही थी! तब संगीता ने मेरा शादी का प्रस्ताव ठुकरा कर जो पाप किया था, आज संगीता को अपने किये उसी पाप पर पश्चाताप हो रहा था!



संगीता मुझे शादी करने से रोकना चाहती थी मगर अब वो किस मुँह से मुझसे बात करती? फिर उसे ये भी भय था की मैं क्यों उसकी बात मानकर शादी करने से मना करूँगा? इन ढाई- पौने तीन सालों में हमारे बीच कौनसा रिश्ता रह गया था जिसके लिए मैं रुकता!



बहरहाल, जिस प्रकार मैं अपने बच्चों को याद कर कुढ़ रहा था, वही हाल इस वक़्त संगीता का था| संगीता का दिल मुझसे बात करने का था मगर वो जानती थी की मैं उसका फ़ोन उठाऊँगा नहीं| वो मुझसे मिलना चाहती थी परन्तु मेरे घर नहीं आ सकती थी क्योंकि पिछलीबार वो जिस तरह अचानक से अपना सामान बटोर कर गई थी उससे मेरी माँ को दुःख हुआ था, मेरी माँ उससे नाराज़ होंगी इसलिए वो मेरे घर नहीं आ सकती थी|

अपने दिमाग का इस्तेमाल करते हुए संगीता अपनी माँ के साथ आ गई अपने भाईसाहब के घर| अपनी चतुराई दिखाते हुए संगीता ने भाईसाहब से मुझे फ़ोन करवाया और माँ के साथ आने को कहा| नेहा की नानी जी आई हुई हैं ये सोचकर मैं माँ के साथ भाईसाहब के घर पहुँचा| मुझे नहीं पता था की वहाँ संगीता भी होगी वरना मैं कभी भाईसाहब के घर जाता ही नहीं|



मैं और माँ घर पहुँचे तो दरवाजा नेहा ने खोला| अपनी दादी जी के पॉंव छू आशीर्वाद ले कर नेहा सीधा मेरे गले लग गई| हम तीनों अंदर आये और सीधा बैठक में पहुँचे जहाँ सभी मौजूद थे| इतने साल बाद संगीता मुझे देख किसी गुलाब की तरह खिल गई थी मगर जैसे ही मेरी नज़र संगीता पर पड़ी मेरा खून खौल गया और मैं बिना कुछ बोले घर से निकल आया| सभी ने पीछे से मुझे आवाज़ दे कर रोकना चाहा मगर मैंने किसी की नहीं सुनी और घर से दूर आ कर अपना गुस्सा काबू करने में लग गया|



उधर घर पर मेरा ये गुस्सा देख सभी चिंतित और डर गए थे| संगीता का तो डर के मारे हाल ही बुरा था इसलिए वो रोते हुए मेरी माँ से अपने किये छल की माफ़ी माँग रही थी| संगीता का माफ़ी माँगने का ढंग भी निराला था, वो अपने किये को सही साबित करने के लिए सफाई दे रही थी की उसने जो किया उसमें मेरी भलाई छिपी थी| मेरी माँ सीधी-साधी हैं इसलिए वो संगीता की बातों में आ गईं और उसे माफ़ कर दिया|



कुछ देर बाद नेहा ने मुझे फ़ोन किया और घर आने को कहा| अब मैं सारा दिन तो घर से बाहर रह नहीं सकता था और न ही वापस दिल्ली जा सकता था क्योंकि यहाँ माँ अकेली रह जातीं इसलिए मन मारकर मैं भाईसाहब के घर पहुँचा|

बैठक में सब चिंतित बैठे थे, जैसे ही मैं आया की सभी मुझे एक साथ कहने लगे की मैं संगीता को माफ़ कर दूँ| मैंने संगीता की तरफ देखा तो पाया की वो आँखों में आँसूँ लिए और मेरे आगे हाथ जोड़े खड़ी है| संगीता को यूँ हाथ जोड़े देखते ही मेरे सर पर नफरत सवार हो गई! मैं तेजी से उसकी तरफ बढ़ा और खींच कर उसके गाल पर थप्पड़ मारते हुए चिल्लाया; "ढाई साल मुझे डिप्रेशन में सड़ाने के बाद तुम्हें माफ़ी माँगने की याद आई?” मेरा गुस्सा देख भाईसाहब ने फुर्ती दिखाते हुए मुझे कस कर पकड़ संगीता से दूर किया क्योंकि उन्हें डर था की कहीं मैं संगीता को फिर एक थप्पड़ न धर दूँ!



"ये सब इस औरत ने जानबूझ कर किया, सोच समझ कर मेरे खिलाफ प्लानिंग की! मेरे साथ काम करने वाले लड़के से कहा की वो पार्टी का चेक सुबह की बजाए शाम को जमा करे ताकि पैसे को ले कर साइट पर किल्ल्त हो और मुझे मजबूरन साइट पर जाना पड़े...और उसी का फायदा उठाते हुए ये मेरे तीनों बच्चों को ले कर गॉंव भाग गई!

और आप सब जानते हैं इसने ये सब क्यों किया?...क्योंकि मैं नेहा और स्तुति को गोद लेना चाहता था! मैंने कभी किसी के आगे घुटने नहीं टेके मगर इस औरत के आगे मैंने घुटने टेके...भीख माँगी की ये मुझे मेरी दोनों बेटियाँ गोद दे दे...पर इसने मेरी एक न सुनी! यहाँ तक की नेहा ने इसके पॉंव तक पकड़ लिए मगर इसने अपनी ही बेटी को लात मार दी!

जब इसने मेरी बेटी को लात मारी तो मैंने सोच लिया की मैं नेहा और स्तुति को किसी हालत में गॉंव जाने नहीं दूँगा! मैंने इसे चुनौती देते हुए कहा की भाईसाहब के आने पर मैं उन्हें अपना फैसला सुना दूँगा और कानूनी रूप से नेहा और स्तुति को गोद ले कर रहूँगा! कहीं ये मुझसे हार न जाए इसीलिए इसने मेरे साथ ये छल किया! ये जानती थी की दोनों बच्चों के बिना मैं टूट जाऊँगा, लेकिन फिर भी इसने ये सब जानबूझ कर किया! इस औरत की वजह से मेरी बेटी स्तुति अपने पपई को भूल गई....सब इसकी वजह से!



जब ये मेरे बच्चों को ले कर निकली तो मैं पागलों की तरह फ़ोन करता रहा मगर इसने नेहा का फ़ोन बंद कर दिया, अपना फ़ोन बंद कर दिया, भाईसाहब को मेरा फ़ोन उठाने नहीं दिया, भाभी जी और माँ (नेहा की नानी जी को) तक को फ़ोन करने से रोका...ये सब एक रणनीति के तहत करने वाली ये औरत आज मुझसे माफ़ी माँग रही है?!



चलो मुझसे दुश्मनी सही....नफरत सही...मगर मेरी माँ से इसकी क्या दुश्मनी थी? कहाँ थी ये जब मेरे माँ-पिताजी का तलाक हुआ? एक फ़ोन तक किया इसने? नहीं! तब इससे कोई फ़ोन नहीं हुआ, लेकिन पता नहीं क्यों आज इसके भीतर इंसानियत जाग गई?!

आप सब मुझे इसे माफ़ करने की बात कहते हैं मगर मैं मरते दम तक इसे माफ़ नहीं करूँगा!” आज एक बाप बोल रहा था...एक दर्द से छटपटाता हुआ पिता बोल रहा था इसलिए मैं आज सच बोलने से ज़रा भी नहीं डरा, हाँ मुझे इतना ख्याल अवश्य था की कहीं मैं अपने और संगीता के रिश्ते को सब पर जायज न कर दूँ! इन ढाई सालों से मेरे भीतर जितना जहर घुला हुआ था वो सब आज एक ज्वालामुखी की तरह फट कर बाहर आया था| ये सच जो मैंने आजतक अपने भीतर छुपा रखा था उसे सबके सामने ला कर मैंने संगीता को सबके सामने बुरी तरह शर्मिंदा कर दिया था! मुझे अब और कुछ नहीं कहना था इसलिए मैं बाहर आंगन में अकेला आ कर बैठ गया|



उधर बैठक में मेरे मुँह से ये जहरीले शब्द सुन कर संगीता की आत्मा तक छलनी हो चुकी थी! जिसे मैं आजतक 'जान' कह कर बुलाता था उसके लिए आज मेरे मुँह से "इसके' और 'औरत' जैसे शब्द निकले थे इसलिए संगीता के दिल को बहुत ज्यादा ठेस पहुँची थी|

ऊपर से मेरे जाने के बाद नेहा की नानी जी ने संगीता को बहुत डाँटा की उसने इतना बड़ा खिलवाड़ मेरे साथ आखिर क्यों किया! भाईसाहब अपनी बहन को कह तो कुछ नहीं पाए मगर उनकी नज़र में उनकी बहन आज बहुत गिर चुकी थी! भाभी जी अपने पति का अपनी बहन के प्रति प्रेम जानती थीं इसलिए वो डर के मारे कुछ नहीं कह रहीं थीं की कहीं उनके पतिदेव उनपर गुस्सा न हो जाएँ| लेकिन इतना अवश्य था की संगीता उनकी नज़र में भी गिर चुकी थी| एक बस मेरी माँ थीं जो सब कुछ जानने के बाद भी संगीता के साथ खड़ी थीं और सबको शांत करवा उसे सांत्वना दे रही थीं|



कुछ देर बाद संगीता को अकेला छोड़ सब मेरे पास आंगन में आये| मेरा गुस्सा कहीं फिर न फट पड़े इसके लिए नेहा फट से मेरे गले लग गई| नेहा के गले लगने से मेरा गुस्सा ऐसे शांत हुआ था जैसे किसी ने गरमा-गर्म लोहा ठंडे पानी में डाल दिया हो|

नेहा को गले लगा कर मैं आँख बंद किये उस सुख को भोग रहा था जब मेरी माँ बोलीं; "बेटा, बहु ने गॉंव में रहते हुए बहुत दुःख भोगा है| उसकी शादी-शुदा जिंदगी खराब बर्बाद हो चुकी है| चन्दर उससे बात नहीं करता और तेरे बड़के दादा और बड़की अम्मा भी संगीता से ठीक से बात नहीं करते| यही नहीं, कुछ महीने पहले संगीता ‘खेते’ गई थी और वापस आते समय उसने किसी के उतार किये हुए को लाँघ दिया जिस कारण उसके ऊपर कोई ऊपरी साया आ चूका है इसलिए कभी-कभी वो साया जब संगीता के सर पर सवार होता है तो संगीता का सारा शरीर कँपकँपा जाता है! इस कर के संगीता को वहाँ घर में सब अछूत समझते हैं! नजाने कितने बाबाओं ने झाड़-फूँक की, इसने व्रत आदि किये मगर संगीता के सर से ये साया उतरता नहीं| इतना सब अकेले भोगते-भोगते बेचारी बहुत परेशान है! एक तू ही तो इसका सबसे बड़ा दोस्त है...जो हमेशा उसके सुख-दुःख में साथी रहा है, अब तू भी इसे माफ़ नहीं करेगा तो ये बेचारी कहाँ जाएगी?!" हमारे गॉंव में लोग टोना-टोटका करते रहते हैं और इस चक्कर में वो न जाने कितनी सारी चीजें उतार- फुतार कर फेंकते रहते हैं| कई बार हम लोग जाने-अनजाने में इन चीजों को लाँघ जाते हैं| इस लाँघने के कारण यदि कोई बीमार पड़ जाए तो बड़े-बूढ़े कहते हैं की उस व्यक्ति के सर पर वो बुरा साया आ चूका है| जब माँ ने मुझे संगीता की ये 'कहानी' सुनाई तो मैं समझ गया की ये संगीता का झूठ है| रही बात संगीता के परिवार की निंदा झेलने, अपमान झेलने की बात तो उसकी दोषी खुद संगीता थी इसीलिए माँ की बात सुन कर भी मेरा दिल नहीं पिघला और मैं मौन रहा|



मुझे खामोश देख नेहा की नानी जी आगे आईं और मेरी बगल में बैठ मेरे सर पर हाथ फेरते हुए बोलीं; "मुन्ना, जउन संगीता किहिस ऊ तनिको ठीक नाहीं रहा और ओकरी तरफ से हम माफ़ी मांगित है!" ये कहते हुए नेहा की नानी जी ने मेरे आगे हाथ जोड़े तो मैंने फौरन उनके दोनों हाथ अपने हाथों में पकड़ लिए और बोला; "माँ, अपने थोड़े ही कुछ गलत किया था जो आप माफ़ी माँग रहे हो और अगर आपने ये सब किया भी होता तो भी मैं आपसे नाराज़ नहीं होता क्योंकि आप या मेरी माँ हो, आप जो भी करते उसमें मेरी भलाई छिपी होती है| लेकिन संगीता ने जो किया उसे तो मैं कभी मान ही नहीं सकता की उसने मेरी भलाई के बारे में सोच कर किया था! उसे तो पता नहीं मुझसे कौन सा बदला लेना था?!" मेरी बातों में मेरी दोनों माओं के लिए प्यार था मगर संगीता के लिए बस आक्रोश था!

अब जैसा की होता आया है, माओं को जब अपनी बात मनवानी होती है तो वो अपने बच्चों को हमेशा अपनी क़सम से बाँध देती हैं, वही मेरे साथ उस दिन हुआ| मेरी माँ मेरी दूसरी बगल में बैठ गईं और दोनों माओं ने मेरे एक-एक हाथ को अपने सर पर रख मुझे अपनी-अपनी क़सम से बाँध दिया; "तू मेरा बेटा है न, तो बहु को माफ़ कर दे! तुझे मेरी कसम!" मेरी माँ ने मुझे फट से अपनी क़सम में बाँधते हुए कहा| मैं कुछ कह पाता उससे पहले ही मेरी दूसरी माँ बोल पड़ीं; "तू हमार नीक मुन्ना हो न, तो हमार खतिर संगीता को माफ़ कर दिहो!" एक साथ अपनी दोनों माओं के मोहपाश में बाँधा गया था इसलिए मरता क्या न करता बेमन से मैंने अपना सर हाँ में हिला दिया| मेरी हाँ सुन मेरी दोनों मायें इतनी खुश हुईं की वो मुझसे लिपट गईं और मुझे आशीर्वाद देने लगीं की मैं उनकी सब बातें मानता हूँ|



ये मनोरम दृश्य देख भाईसाहब बोले; "मानु भैया तुम हो नसीब वाले जो तुम्हें एक साथ दो-दो माँ मिलीं| अब मुझे देखो मेरे पास एक ही माँ हैं और वो भी मेरी बात नहीं मानती| मैं कब से कह रहा हूँ की मेरे साथ यहीं रहो तो वो मना कर देती हैं|" भाईसाहब मेरा सहारा ले कर अपनी माँ को मनाना चाह रहे थे|

भाईसाहब की व्यथा समझते हुए मैं फट से बोला; "भाईसाहब आप ऐसा करो की ये घर बेच कर दिल्ली में हमारे घर के नीचे वाला घर ले लो, फिर देखना माँ झट से मेरे पास रहने के लिए मान जाएँगी|" जैसे ही मैंने ये सुझाव दिया नेहा की नानी जी ने फट से कह दिया की अगर ऐसा होता है तो वो दिल्ली रहने के लिए ख़ुशी-ख़ुशी तैयार हैं| उनके इस बचपने को देख हम सभी हँस पड़े!





दोपहर का खाना खाने सब बैठे थे और बेचारी संगीता आस लिए मेरी तरफ देख रही थी की मैं उससे बात करूँगा मगर मैं उसे नज़रअंदाज़ कर अपनी लाड़ली बिटिया को खाना खिला रहा था| खाना खा कर सब आराम कर रहे थे की तभी संगीता ने चतुराई दिखाते हुए नेहा से कहा की वो मुझे छत पर ले आये| उस समय तक नेहा अपनी मम्मी को माफ़ कर चुकी थी इसलिए नेहा ने अपनी मम्मी की बात मानी और मुझे बहाने से छत पर अपने साथ ले आई| जब मैंने संगीता को छत पर देखा तो मैं समझ गया की ये सब संगीता की ही चाल है इसलिए मैं वापस जाने लगा की तभी नेहा और संगीता ने मेरा हाथ थाम लिया| "प्लीज पापा जी, मेरे लिए एक बार मम्मी की बात सुन लो फिर आपका जो फैसला होगा मुझे मंज़ूर होगा|" नेहा ने मुझे अपना वास्ता दिया था इसलिए मैंने रुक गया और हाथ बाँधे संगीता को गुस्से से देखने लगा|

पता नहीं संगीता में ऐसी कौन सी शक्ति थी की वो सभी को अपनी बातों पर विश्वास दिला देती थी| यहाँ तक की नेहा जो अपनी मम्मी से नफरत करती थी वो भी अपनी मम्मी के आगे यूँ नरम पड़ चुकी थी|



खैर, नेहा हम दोनों को अकेला छोड़ कर नीचे आ गई ताकि हम एकबार आपस में बात कर लें|



“मैंने आजतक आपको…आपको बहुत दुःख दिए हैं, जिसकी सजा मुझे भगवान दे रहा है| लेकिन मेरा यक़ीन मानिये मैंने कभी आपका बुरा नहीं चाहा, मैंने हमेशा आपका भला चाहा है मगर मैं बेवकूफ आपका भला करने के चक्कर में हमेशा आपका बुरा कर देती हूँ! आप मुझसे शादी कर नई शुरुआत करना चाहते थे मगर मैं उस समय बहुत डर गई थी इसलिए मैंने कदम पीछे हटा लिए थे क्योंकि मुझ में दुनिया से लड़ने की हिम्मत नहीं थी| जैसा चल रहा था मेरे लिए वही आसान था और मैं उसी से खुश थी| भले ही चोरी-छुपे सही मगर हम साथ तो थे!

आपका नेहा और स्तुति के प्रति मोह देख मैं आपके भविष्य के लिए डर गई थी! मैं भले ही आपको दोनों बच्चियाँ गोद देने के लिए राज़ी हो जाती मगर बप्पा (बड़के दादा) इसके लिए कभी राज़ी नहीं होते! बस इसीलिए मैंने अचानक नेहा और स्तुति को गॉंव लाने की तैयारी की|

मैं जानती थी की इससे आपको दुःख होगा, लेकिन मैंने सोचा की कुछ दिनों में आप इस ग़म से लड़ लोगे और मुझसे नफरत करते हुए फिर से अपनी ज़िन्दगी शुरुआत कर लोगे! मैंने नहीं सोचा था की मेरे उठाये इस कदम से आपकी सारी दुनिया ही उजड़ जाएगी!

और ऐसा मत सोचिये की आपसे अलग रह कर मैं खुश थी! नहीं...मैंने भी आपके बिना दिन कैसे गुजारे ये बस मैं जानती हूँ! वो भेड़िया मुझे नोच खाने को हरपाल तैयार रहता था! मेरी ये जान...मेरा ये जिस्म आपकी अमानत था इसलिए खुद को बचाने के लिए मैं तरह-तरह के जतन करती थी| कभी उससे लड़ती थी तो कभी उससे बचते हुए अपनी माँ के घर आ जाती थी| जब ये सारे हतकंडे कमजोर पड़ने लगे तो मैंने ये भूत-प्रेत का नाटक शुरू किया, जिसके डर से उसने मेरे पास भटकना तक छोड़ दिया!...” संगीता मेरे सामने अपना रोना ले कर बैठ गई थी मगर मुझे उसका ये झूठ और रोना सुनने का ज़रा भी मन नहीं था इसलिए मैंने उसकी बात बीच में काट दी; “मैंने तुमसे कहा था की मेरा भला चाहो? या तुमने मुझसे मेरा भला करने से पहले एक बार भी पुछा? तुमने आजतक जितने फैसले लिए वो मेरे खिलाफ लिए...ये फैसले बस तुम्हारी सहूलत के लिए थे न की मेरे! सच तो ये है की तुम्हें मेरा दिल दुखाने में मज़ा आता है!...और किस सजा की बात कर रही हो तुम? भगवान ने अभी तुम्हें सजा दी ही कहाँ है? तुम बस मुझे दुःख देने के लिए इस दुनिया में आई हो और हरबार तूम मुझे दुःख दे कर कोई न कोई सफाई दे कर बच निकलती हो! लेकिन इस बार नहीं, इस बार तुम्हारी कोई सफाई...तुम्हारा कोई बहाना मेरे सामने नहीं चलेगा|



तुमने मेरा शादी का प्रस्ताव बार-बार इसलिए ठुकराया क्योंकि तुम्हें मेरे साथ मिलकर इस दुनिया से मुक़ाबला नहीं करना था क्योंकि तुम्हें चाहिए बस आराम की ज़िन्दगी| एक ऐसी ज़िन्दगी जिसमें सब कुछ तुम्हारे अनुसार हो, दुनिया की नजरों में धुल झोंक कर हो| सच तो ये है की तुमने कभी मुझसे प्यार किया ही नहीं, अगर मुझसे सच्चा प्यार करती तो मेरे साथ कँधे से कन्धा मिला कर खड़ी रहती और तबतक इस दुनिअय से लड़ती जबतक हमारा एक सुखी परिवार न बस जाता| लेकिन नहीं....तुम्हें चाहिए थे रिश्ते...दुनियादारी...तो चाटो उन रिश्तों को...रहो इस दुनिया में और भुगतो ज़िल्ल्त!

अब आते हैं तुम्हारे दूसरे झूठ पर, तुम मेरा नेहा और स्तुति के प्रति मोह जानती थी| तुम जानती थी की मैं उनके बिना नहीं जी पाऊँगा मगर फिर भी तुमने मेरी दोनों बेटियों को मुझसे छीना! मैं तुम्हारे आगे रोया था, गिड़गिड़ाया था, अपनी बेटियों की भीख तक माँगी मगर तुम्हारा दिल ज़रा भी न पसीजा! अगर तुम मुझसे प्यार करती तो सबके खिलाफ जा कर मुझे मेरी दोनों बेटियाँ दे देती! लेकिन नहीं...तुमने चुना आसान रास्ता और छोड़ दिया मुझे मरने के लिए! मुझे हैरानी है तो इस बात की कि कैसे तुम आज यहाँ छाती ठोक कर झूठ बोल रही हो की तुम्हें नहीं पता था की मेरा क्या हाल होगा?!

जब मैं तुम्हारे आगे गिड़गिड़ा रहा था की मैं नेहा और स्तुति के बिना नहीं जी पाऊँगा, तब तुम्हें नहीं पता था की मेरी दोनों बेटियों के जाने के बाद क्या होगा?! तुम्हें तो शर्म आनी चाहिए की जिस इंसान को तुम इतना प्यार करने का दावा करती हो, वो इंसान तुम्हारे आगे रोया...गिड़गिड़ाया मगर तुमने उसकी मिन्नत को लात मार दी, उसके सारे अरमानो को कुचल कर रख दिया...उससे उसकी जीने की चाह तक छीन ली तुमने!



जब तुम दिल्ली आई थी, तब मैंने आयुष के मुझे पापा जी की जगह चाचू कहने पर कभी तुम्हें दोष नहीं दिया क्योंकि मैंने आयुष के मुख से अपने लिए चाचू शब्द सुनने की कोई आस नहीं की थी| परन्तु आज मन में एक सवाल पैदा होता है की वो कैसी औरत होगी जो अपने बेटे को उसके असली बाप को 'पापा जी' की जगह 'चाचू' कहना सिखाती होगी? कैसा लगता होगा उस औरत को जब उसका बेटा अपने ही बाप को 'चाचू' कह कर बुलाता होगा?

वो तो मेरे बेटे में मेरे गुण आये थे जो उसने भले ही मुझे 'चाचू' कहा मगर उसने हमेशा मेरे अंदर एक पिता को देखा और मैंने भी उसे एक पिता की तरह ही प्यार दिया|



और क्या कहा था तुमने उस दिन जब तुम स्तुति को कंसीव (conceive) करने के लिए मुझसे लड़ पड़ी थी; 'मैं चाहती हूँ की आप इस बच्चे को अपनी गोदी में खिलाओ, उसे अच्छी-अच्छी बातें सिखाओ, उसे वो लाड-प्यार दे सको जो आप आयुष को न दे पाए| यही तुम्हारा मुझे मेरे बच्चों से अलग करने के पाप का प्रयाश्चित होगा|’ मैं पूछता हूँ की कहाँ गया वो तुम्हारा पश्चाताप? तुम्हारे उठाये इस कदम के कारण आज मेरी बेटी, मेरा अपना खून स्तुति मुझे...अपने पपई को भूल गई!

स्तुति को मुझसे छीन कर, उसके मन से मेरी सारी यादें मिटा कर तुमने एक बाप-बेटी को अलग करने का जो पाप किया है उसके लिए तुम्हें मैं तो क्या भगवान भी माफ़ नहीं कर सकता!



और ये क्या तुम अपनी इज्जत बचाने का दवा कर रही हो? एक समय था जब मैं तुम्हारी कही हर बात पर आँख मूँद कर विश्वास कर लेता था, लेकिन इतने साल मुझसे दूर रह कर तुम्हारा ये जिस्म अब भी मेरा है, ये बात मैं कैसे मान लूँ? मेरे प्यार को छोड़ कर उस भेड़िये को तुम्ही ने चुना था न?! बजाए मेरे साथ खड़े होने के, तुम्ही गई थी न उस भेड़िये के पास?! तो इतने सालों में उसने तुम्हारा ज़रा सा भी माँस न चखा हो ऐसा तो हो ही नहीं सकता!”



इंसान के शब्दों में बहुत ताक़त होती है, कभी तो ये शहद बनकर सुनने वाले के कानों में घुल जाते हैं तो कभी ये ज़हरीले बाण बन कर सुनने वाले की आत्मा भेद कर रख देते हैं|

आज मेरे कहे ये ज़हरीले शब्द संगीता की अंतरात्मा तक नोच-खंसोट गए थे! खासकर जब मैंने अंत में कहा की संगीता अब पहले की तरह पवित्र नहीं है, उसके जिस्म पर चन्दर का ग्रहण लग चूका है, ये सुनकर तो संगीता घुटनों के बल जा गिरी और फफक कर रोने लगी!



"नहीं...जानू...प्लीज...ऐसा मत...कहो...मैं..अब भी...पाक..साफ़ हूँ" संगीता बिलखते हुए बोली मगर मैं उसे अनसुना कर नीचे आ गया|



मेरे कहे ये ज़हरीले शब्द संगीता के कानों में गूँज रहे थे| ख़ास कर जो मैंने संगीता के चरित्र पर ऊँगली उठाई थी उससे तो संगीता का दिल चकना चूर हो चूका था| वहीं मैं अपने दिल की सारी भड़ास निकाल चूका था, अब मुझे संगीता से न तो कुछ कहना था और न ही सुनना था इसलिए अगले ही दिन मैं माँ को ले कर वापस दिल्ली आ गया| यदि और भाईसाहब के घर रुकता तो सब मेरे पीछे पड़ जाते की मैं संगीता से बात करूँ!





हमारे दिल्ली वापस आने के दो-तीन दिन बाद नेहा की नानी जी ने हमें फ़ोन कर बताया की उनकी जान-पहचान में किसी ने मेरे लिए एक रिश्ता देखा है| जब ये बात संगीता को पता चली तो उसकी जान निकलने लगी| एक तो पहले ही मेरे कहे कड़वे शब्द उसके मस्तिष्क में बार-बार घूमने से वो तिल-तिल मर रही थी, ऊपर से मेरे लिए रिश्ता आने की खबर से उसकी साँस ही गले में अटक गई! मुझे खोने का डर संगीता के लिए हर पल गहराता जा रहा था इसलिए संगीता ने खुद को सजा देने के लिए खाना-पीना छोड़ दिया| नतीज़न पहले तो उसे कमजोरी आई और फिर उसे चढ़ा बुखार| संगीता का ये बुखार हर पल बढ़ता जा रहा था, संगीता को लगा की उसका अंतिम समय अब आ ही गया इसलिए उसने नेहा से मुझे आखरी बार मिलने के लिए बुलाने को कहा|

जहाँ पिछलीबार जब संगीता दिल्ली में थी और मेरे उसे भाभी कहने पर वो बीमार हो गई थी, तब मैं उसकी तबियत के बारे में सुन घबराया हुआ था| वहीं इस बार जब नेहा ने मुझे अपनी मम्मी की खराब हुई तबियत के बारे में बताया तो मुझे कुछ महसूस ही नहीं हुआ, मेरे भीतर जैसे सारे जज़्बात मर चुके थे! नेहा की बात सुनकर भी मैं अम्बाला नहीं जाने वाला था, वो तो माँ ने मुझे जबरदस्ती जाने को कहा तब जा कर मैं अम्बाला के लिए निकला|



भाईसाहब के घर पर संगीता को ले कर सभी लोग बड़े चिंतित थे| उनके अनुसार ये कोई भूत-बाधा है जो संगीता के सर पर सवार हुई है इसलिए नेहा की नानी जी ने डॉक्टर की दवा करने के बजाए किसी तांत्रिक को घर बुलाया हुआ था| जब मैं घर पहुँचा तो मैंने देखा की वो तांत्रिक हवस भरी नजरों से बेसुध हुई संगीता के जिस्म को घूर रहा है और बाकी सबको लग रहा था की यहाँ संगीता का इलाज जारी है| उस पल पता नहीं क्यों मेरे तन-बदन में आग लग गई! "ओ बाबा जी, चलो निकलो आप!" मैंने गुस्से से कहा और उस बाबा को 500/- का नोट दिखाते हुए जाने को कहा| मेरे बात करने के अंदाज़ और मेरे तेवर देख वो बाबा गुस्से से भुनभुनाता हुआ चला गया|

उस बाबा के जाने के बाद नेहा की नानी जी चिंतित होते हुए मुझे कुछ कहने वाली हुई थीं की मैं एकदम से बोल पड़ा; "माँ, आप भी किन ढोंगी बाबाओं के चक्कर में पड़ जाती हो! आपने देखा वो बाबा कितनी गंदी नजरों से आपकी बेटी को देख रहा था!" जब मैंने उस बाबा के बारे में सच बताया तो भाईसाहब बोले; "अब हम क्या करें मानु, मुन्नी यूँ अचानक बीमार पड़ गई...कोई दवाई असर नहीं कर रही थी इसलिए हमने..." भाईसाहब ने अपनी मज़बूरी ब्यान की|

मैं जानता था की क्यों कोई दवाई संगीता पर असर नहीं कर रही, अब जब वो दवाई खाती ही नहीं होगी तो दवाई असर कैसे करेगी?! दरअसल संगीता जानबूझ कर दवाई खाने के बजाए चुपके से फेंक दिया करती थी|



"आप सब यही चाहते हो न की संगीता ठीक हो जाए, तो आप सभी को मुझे उसे डाँटने और जर्रूरत पड़ने पर मारने की छूट देनी होगी! फिर देखना दो दिन...दो दिन में संगीता की तबियत में सुधार आप सभी को देखने को मिलेगा|" मैं अपनी छाती ठोंक कर ये बात कह रहा था की मैं संगीता का तंदुरुस्त कर सकता हूँ इसलिए नेहा की नानी जी बोलीं; "ठीक है मुन्ना, तोहका जो ठीक लागे, ऊ करो लेकिन हमार मुन्नी का तंदुरुस्त कर दिहो!" मुझे छूट मिल चुकी थी इसलिए मैं सबसे पहले एक डॉक्टर को घर लाया| डॉक्टर ने संगीता का चेकअप किया तथा उसे होश में लाने के लिए एक इंजेक्शन लगाया| संगीता के भीतर बहुत कमजोरी थी इसलिए डॉक्टर ने उसे I.V. लगाई तथा दवाइयाँ लिख कर चला गया|



संगीता ने होश में आकर जब मुझे देखा तो उसके दिल को सुकून मिला| इधर मैंने भाभी जी से कहा की वो फटाफट खिचड़ी बनायें| सब लोग मौजूद थे इसलिए संगीता मुझसे कुछ कह न पाई, वो बेचारी तो बस अपनी आँखों से मुझे इशारे कर अपनी बात कहना चाह रही थी| जब खिचड़ी आई तो मैंने संगीता को उठा कर बिठाया और उसे खिचड़ी खाने को कहा| संगीता को करनी थी मुझसे बात इसलिए वो खाने से मना करने लगी| "चुप-चाप खाओ खाना वरना मारूँगा एक खींच कर!" मैंने गुस्से से संगीता को हड़काया तो डर के मारे उसने थोड़ी सी खिचड़ी खाई| अब बारी थी दवाई देने की, मैंने जब संगीता को दवाई दी तो उसे डाँटते हुए बोला; "खबरदार जो ये दवाई फेंकी तो! एक खींच कर लगाऊँगा!" जब मैंने दवाई फेंकने की बात की तो सभी लोग दंग रह गए| "ये आपकी मुन्नी दवाई खाती नहीं फेंक देती थी इसीलिए इस पर कोई दवाई असर नहीं कर रही थी!" मैंने संगीता को पोल-पट्टी खोली तो सभी मुँह बाए मुझे देखने लगे की मुझे ये सब कैसे पता?! इतने सालों से संगीता के साथ रह रहा था तो उसकी आदतें अच्छे से जानता-पहचानता था|



अगले दो दिन रह कर मैंने संगीता का खाना-पीना पुनः शुरू करवाया जिससे संगीता की तबियत में सुधार आने लगा| “माँ, ये भूत-प्रेत आदि से डरने के बजाए भगवान जी का नाम लिया करो और जब आपकी ये बेटी बेलगाम हो जाए तो खींच कर एक मारा करो, फिर देखना ये कभी बीमार नहीं पड़ेगी!” मैंने हँसते हुए नेहा की नानी जी को ये मंत्र दिया तो माँ ने मेरे सर को चूम मुझे आशीर्वाद दिया|



संगीता की तबियत में सुधार आ चूका था इसलिए मैं शाम को वापस निकलने वाला था| इसी बीच संगीता को मुझसे बात करने का एक मौका मिल गया और उसने नेहा को मुझे बहाने से बुलाने को कहा| "जानू, मुझे आपसे कुछ कहना था| मैं लाख बुरी सही लेकिन मैंने कभी आपका भरोसा नहीं तोडा! आपके अलावा मुझे कभी किसी दूसरे आदमी ने नहीं छुआ! चाहो तो मेरी अग्नि परीक्षा ले लो पर मेरे ऊपर कुलटा होने का दाग न लगाओ!" संगीता मेरे आगे हाथ जोड़े, आँखों में आँसूँ लिए बोली|

"जानता हूँ!" मैंने बस इतना कहा| संगीता ने मेरी आँखों में देखा तो उसे मेरी आँखों में वही विश्वास दिखा जो पहले दिखता था| सच बात ये थी की मैंने संगीता के चरित्र पर कभी शक किया ही नहीं| मैं जानता था की वो मरते मर जायेगी मगर किसी पराये मर्द को खुद को छूने नहीं देगी| मैंने वो ताना बस संगीता को दुःख देने के लिए मारा था और मैं अपने इस लक्ष्य में सफल भी हुआ था|



मेरी आँखों में विश्वास देख संगीता मेरे आगे हाथ जोड़कर विनती करते हुए बोली; "जानू, प्लीज ये शादी मत करना! मैं आपको अपनी आँखों के सामने किसी और का होता हुआ नहीं देख सकती! प्लीज जानू! मैं मर जाऊँगी!!!” संगीता रोते हुए बोली| संगीता की बात सुन मुझे एहसास हुआ की संगीता आखिर किस डर से घबराई हुई थी की उसकी ऐसी हालत हुई|

इसके आगे हमारी बात हो पाती उससे पहले ही भाभी जी कमरे में आ गईं| उनके आते ही मैंने मैंने इधर-उधर की बात छेड़ दी जिससे माहौल फिर से सामन्य हो गया|



शाम को मैं सबसे विदा ले कर चला मगर मैं संगीता से विदा लेने उसके कमरे में नहीं गया| बस में बैठ मैं संगीता की बातों को सोचने में लग गया| संगीता के कहे ये अंतिम शब्द की; "मैं आपको अपनी आँखों के सामने किसी और का होता हुआ नहीं देख सकती! प्लीज जानू! मैं मर जाऊँगी" मेरे दिमाग में गूँजने लगे| मैंने कल्पना की कि मुझे कैसा लगता अगर मेरा मेहबूब किसी और की बाहों में जा रहा होता? कैसे मैं उन हालातों से लड़ता? इन हालातों में मेरे पास सिवाए शराब के कोई दूसरा सहारा था नहीं, मैं तो डर के मारे सीधा शराब में ही डूब जाता! पर संगीता के पास तो ये रास्ता भी नहीं था! वो बेचारी या तो मेरी जुदाई के ग़म में पागल हो जाती या फिर मर जाती...और इस सबका दोषी मैं ही होता! मेरी वजह से संगीता खुदखुशी करती तो मैं सारी उम्र खुद को माफ़ नहीं कर पाता और इस ग़म के तले दबकर कुढ़ता रहता!



जानता हूँ ये विचार पढ़कर आप सभी को लगेगा की इतना गुस्सा होने के बावजूद भी मैं संगीता के आगे क्यों नरम पड़ने लगा था? परन्तु ऐसा कतई नहीं था की मैं संगीता से फिर मोहब्बत करने लगा था, मैं उससे नफरत तो बहुत करता था मगर फिर भी उसे जानबूझ कर ऐसा नासूर बनने वाला जख्म नहीं देना चाहता था| अब मैं अपना सारा गुस्सा संगीता के ऊपर निकाल चूका था, मुझे मेरी एक बेटी नेहा मिल चुकी थी तो ऐसे में अब मेरे भीतर संगीता के लिए कोई जज़्बात नहीं बचे थे| लेकिन फिर भी मेरा मन संगीता की बात को सोचते हुए न जाने क्यों विचलित हो रहा था!

शायद मैं शादी की जिम्मेदारी उठाना नहीं चाहता था या फिर मैं संगीता को इतना बड़ा दुःख नहीं देना चाहता...वजह कुछ भी हो मगर मैंने शादी न करने का इरादा कर लिया था|



घर पहुँच कर माँ ने मुझे मेरे लिये आये रिश्ते के बारे में बताया तो मैंने शादी से बचने के लिए अपना पहले से सोचा हुआ बहाना माँ के आगे इस कदर रखा की माँ को ये न लगे की मैं शादी करने से भाग रहा हूँ; "माँ, आपने मेरी कुंडली भेजी है उन्हें? पता है न मैं मांगलिक हूँ, देख लो बाद में कहीं कोई दिक्क्त न हो!" इतना कह मैं उठ कर अपने कमरे में चला गया| मेरी बात सुन माँ ने फौरन मेरी कुंडली लड़की वालों के यहाँ भिजवाई| मुझे अपनी कुंडली पर पूरा विश्वास था इसलिए वही हुआ जो मैंने चाहा था| मेरी कुंडली में मांगलिक दोष इतना कठोर था की लड़की वालों ने शादी से मना कर दिया|

मेरी कुंडली के इस दोष को देख मेरी माँ घबरा गई थीं इसलिए उन्होंने मुझे पंडित जी के पास चलने को कहा| इधर मैंने पंडित जी के बेटे से सेटिंग कर ली थी और उसे झूठ बोलने के लिए राज़ी कर लिया था| माँ के सामने उसने मेरी कुंडली देखि और ग्रहों के ठीक होने तक यानी कमसकम 3 साल इंतज़ार करने का बेसर-पैर का उपाए बता दिया| मेरी भोली भाली माँ अपने बेटे के इस जाल में फँस गईं और कुछ न बोल पाईं| अपनी चतुराई से मैंने शादी की वरमाला से अपनी गर्दन बचा ली थी|





भले ही स्तुति अपने पपई को भूल गई हो मगर आयुष अपने चाचू को नहीं भूला था| मैं भी अपने दोनों बच्चों के लिए उनके जन्मदिन पर खिलोने, कपड़े आदि भिजवाता रहता था| इधर आयुष ने भी अपनी दीदी की तरह अपने एक दोस्त के फ़ोन से मुझे कभी-कभी फ़ोन करता था| उसके स्कूल में क्या-क्या हो रहा है, आयुष ने कोई नई दोस्त बनाई या नहीं, क्रिकेट में आयुष ने कितने रन बनाये आदि की जानकारी आयुष मुझे बड़े चाव से बताता था| एक बार तो आयुष और उसके दोस्त के बीच marvel के superheros को ले कर बहस हो गई जिसका फैसला मैंने फ़ोन पर करवाया|

खैर, बड़के दादा के अधिक लाड-प्यार के कारण आयुष पढ़ाई में थोड़ा ढीला पड़ गया था जिस वजह से वो अपने मिड टर्म के एक्साम्स में अव्वल नहीं आया था! इस पर आयुष को सबसे डाँट पड़ी तब मैंने ही आयुष को फ़ोन पर बात कर सँभाला और भाईसाहब से कह उसकी टूशन का इंतज़ाम करवाया|



इधर नेहा अपने स्कूल की छुट्टियों में कभी-कबार अपनी मम्मी के पास गॉंव जाती थी मगर मेरे पिताजी को छोड़ किसी को भी नेहा के आने से कोई ख़ुशी नहीं होती थी| पिताजी अपनी पोती से उसके स्कूल के बारे में पूछते और उसे खूब-लाड प्यार करते|

गॉंव में कोई नहीं जनता था की मैं नेहा से मिलता हूँ इसलिए जब नेहा घर आती तो आयुष अपनी दीदी से मेरे बारे में सब पूछता| नेहा भी अपने छोटे भाई को बताती की हम बाप-बेटी मिलकर कितनी शैतानी करते हैं| एक-आध बार मैंने नेहा के हाथों आयुष की मनपसंद चॉकलेट भी भेजी, जिसे देख आयुष भावुक हो गया था की इतने सालों से दूर होने पर भी मैं आयुष की कोई पसंद-नपसंद नहीं भूला| आयुष अपनी दीदी के साथ अपने बड़े मामा जी के यहाँ घूमने जाना चाहता था मगर बड़के दादा उसे कहीं आने-जाने ही नहीं देते थे इसलिए मेरे बेटा बस मुझसे फ़ोन पर बात कर के ही खुश हो लिया करता था|





गॉंव में जो पुराने जख्म थे उनपर अब समय के साथ पपड़ी बनने लगी थी| एक दिन अचानक पिताजी ने मुझे फ़ोन किया और इस बार उन्होंने मुझसे बड़े अच्छे से बात की, मेरा हाल-चाल पुछा, माँ का हाल-चाल पुछा| उन्हें पता था की मैं नेहा से मिलता हूँ मगर फिर भी वो खामोश थे क्योंकि अब जा कर उन्हें अपने फ़रमाबरदार बेटे की याद सता रही थी|

पिताजी मुझे गॉंव बुला रहे थे मगर माँ मुझे गॉंव जाने नहीं देती थीं, उन्हें डर था की यदि मैं गॉंव गया तो फिर मेरी जानपर कोई हमला होगा! मैंने ये बात पिताजी को बताई तो उन्हें भी मेरी चिंता हुई तथा उन्होंने मुझे आने से मना कर दिया| मुझसे हुई ये बातें पिताजी बड़के दादा की चोरी अपनी भाभी से बताते थे, एक दिन बड़की अम्मा से मेरी बात हुई और मैंने उन्हें दिल्ली आने को कहा| भाईसाहब से बात कर उन्हें मैंने बड़की अम्मा और नेहा की नानी जी को मेरे घर लाने को कहा| कुछ दिन बाद बड़की अम्मा का आगमन हुआ, मुझे देख अम्मा ने मुझे सीधा अपने गले लगा लिया और मेरे पूरे चेहरे को चूमते हुए वो रो पड़ीं| सही होने पर भी मैंने जो अपने परिवार की ज़िल्ल्त सही, मानसिक तौर पर जंग लड़ी, अपनी माँ का सहारा बना...इन बातों के कारण बड़की अम्मा को मुझ पर बहुत गर्व हो रहा था|



इन कुछ सालों में बड़के दादा को धीरे-धीरे सच पता लगने लगा थी की आखिर उस दिन संगीता के मायके में आखिर क्या घटित हुआ था जिस कारण बड़के दादा का गुस्सा अब ठंडा पड़ने लगा था इसलिए बड़की अम्मा ने कहा की भले ही मेरे-पिताजी का तलाक हुआ हो पर फिर भी मैं माँ को ले कर अब भी गॉंव आ सकता हूँ|

परन्तु मेरी माँ का मेरे पिताजी के प्रति मन फट चूका था, वो तो पिताजी की सूरत तक नहीं देखना चाहतीं थीं इसलिए माँ ने गॉंव जाने से साफ़ मना कर दिया| मैं भी माँ का गुस्सा समझता था इसलिए मैंने आजतक माँ को कभी गॉंव जाने के लिए नहीं कहा| मेरी माँ का बस एक ही सपना है की जब राम मंदिर बनेगा तो वो सीधा अयोध्या जाएंगी|





मैंने अपनी शादी को लटका कर संगीता पर एहसान किया है ये सोचकर संगीता को मुझ पर बहुत प्यार आ रहा था इसलिए अब उसने महीने में एक बार कोई न कोई बहाना कर मेरे घर आना शुरू कर दिया था| कभी वो सभी को (भाईसाहब, भाभी जी, विराट और नेहा) को ले कर आ टपकती तो कभी अपनी माँ को साथ ले कर अनिल के साथ आ जाती|

घर आ कर किसी न किसी बहाने से संगीता मुझसे बात करने की कोशिश करती थी पर मेरी संगीता से बात करने की कोई इच्छा नहीं थी इसलिए मैं अपने ही घर में उससे बचने की कोशिश करता था| लेकिन संगीता बहुत चंट थी, वो कुछ न कुछ तिगड़म लगा कर मुझे अकेला पा कर मुझसे बात करने आ ही जाती थी| "मुझे आपको थैंक यू कहना था, आपने मेरे लिए शादी करने का विचार त्याग दिया..." संगीता मुस्कुराते हुए बोली|

"पहली बात तो ये की अपने मन से ये खुशफहमी निकाल दो की मैं तुम्हारी वजह से शादी नहीं कर रहा| और दूसरी बात ये की तुमने भले ही मुझसे बेवफाई की हो मगर मैं तुम्हारी तरह गिरा हुआ नहीं हूँ जो अपने सर बेवफाई का दाग ले कर जी सकूँ!" मैंने संगीता को ताना मारते हुए कहा और बिना उसकी कोई प्रतिक्रिया लिए वहाँ से चला गया| मेरा मारा ये ताना संगीता को बुरा तो अवश्य लगा होगा मगर फिर भी उसने हँस के ये ताना स्वीकार लिया|



नेहा की बग़ावत

लगभग साल बीता था और नेहा अब दसवीं कक्षा में आ गई थी| ये साल नेहा और मेरे लिए बहुत अहम था, नेहा के लिए ये साल इसलिए अहम था क्योंकि उसे बोर्ड की परीक्षा देनी थी और मेरे लिए इसलिए क्योंकि इसी साल नेहा के बगावती तेवर सामने आये थे|


नेहा के अम्बाला आने के बाद से ही मैंने उसे थोड़ी-थोड़ी छूट देनी शुरू कर दी थी| तब मुझे नहीं पता था की मेरी दी जाने वाली इस छूट के कारण मेरी बिटिया मुझसे दूर होती जा रही है!

जो शनिवार-इतवार हम बाप-बेटी साथ बिताया करते थे वो समय अब नेहा ने अपनी सहेलियों के साथ बाहर जाने में इस्तेमाल करना शुरू कर दिया था| मैंने इस बात पर कोई आपत्ति नहीं जताई क्योंकि मैं ये मानता था की नेहा अब बड़ी हो चुकी है और ऐसे में मुझे उसे अब थोड़ा 'स्पेस' (space) देना चाहिए| लेकिन नेहा को स्पेस देते-देते मैंने ये नहीं देखा की वो पढ़ाई के प्रति लापरवाह होती जा रही है! वो तो एकदिन भाभी जी ने जब नेहा के स्कूलबैग की तलाशी ली तो उन्हें नेहा के पेपर मिले जिनमें नेहा बड़ी मुश्किल से पास हुई थी! ये खबर मिलते ही मैं दौड़ा-दौड़ा अम्बाला आया और नेहा को समझा कर पुनः पढ़ाई की पटरी पर ले आया| परन्तु ये तो मेरा भ्र्म था, मेरी बिटिया अब कुछ ज्यादा ही सयानी हो गई थी!



वहीं ये खबर जब संगीता तक पहुँची तो उसने अपनी भाभी को पूरी आज़ादी दे दी की वह नेहा को अच्छे से सीधा कर दें! संगीता की हाँ मिलते ही भाभी जी हाथ धो कर नेहा के पीछे पड़ गईं| बीच-बीच में संगीता भी टपक पड़ती थी और नेहा को डाँट-डपट कर चली जाती थी| मैं भी अब हर शनिवार-इतवार आता और नेहा को प्यार से समझाता, तो कभी उसे अंग्रेजी, हिस्ट्री, साइंस पढ़ाने लगता|



इस रोका-टोकी से नेहा का दम घुटने लगा था और उसके भीतर का ज्वालामुखी सुलगने लगा था| अब नेहा अपना ये लावा अपनी मामी जी या अपनी मम्मी पर उड़ेल नहीं सकती थी क्योंकि नेहा जानती थी की ये दोनों जनानियाँ मार-मार कर उसकी जान निकाल देंगी| बचा केवल मैं जिसने आजतक नेहा को कभी डाँटा नहीं था!



नेहा के मिड टर्म एग्जाम के बाद जब मैं उसका रिजल्ट जानने पहुँचा तो नेहा ने मुझसे अपने फ़ैल होने की बात छुपाई| तब भाभी जी ने नेहा के बैग से उसकी मार्कशीट निकाल कर मुझे दिखाई| साथ ही विराट ने नेहा की इश्कबाजी की पोल मेरे सामने खोल दी| ये सच जानने के बाद मैंने नेहा को कमरे में ले जा कर बहुत डाँटा| हम बाप-बेटी के बीच जो बात हुई उसे आप पढ़ ही चुके हैं| जो बात आपको नहीं मालूम वो ये की भाभी जी ने हम बाप-बेटी की बातें सुन ली थीं!




जब नेहा ने कहा की मैं उसका असली पापा नहीं हूँ तो ये सुनने के बाद मेरा मन उस घर में रुकना का ज़रा भी नहीं था| अपना पिट्ठू बैग ले कर मैं कमरे से बाहर आया तो मैंने भाभी जी को दरवाजे के पास खड़ा पाया| जब मैंने भाभी जी को देखा तो मैंने उनके भीतर अपने प्रति हमदर्दी पाई! वो जानती थीं की मैं नेहा से कितना प्यार करता हूँ और उसके मुँह से ये जहरीले शब्द सुन कर मुझ पर क्या बीती होगी शायद इसीलिए उन्होंने मेरे और संगीता के रिश्ते के बारे में कुछ नहीं पुछा| परन्तु मुझे बैग उठाये देख वो मुझे रोकते हुए बोलीं; "मानु रात के दस बज रहे हैं, इस वक़्त सफर नहीं करते, चलो बैग दो मुझे!" लेकिन मेरा मन इस समय बस अकेले में रोने का था इसलिए मैंने हाथ जोड़ भाभी जी को नमस्ते की और उनके बार-बार रोकने पर भी उनकी अनसुनी कर सीधा बस स्टैंड पहुँचा|

दिल्ली की बस 11 बजे की थी और तबतक मैं बस स्टैंड के एक कोने में बैठा, अपनी बेटी के कहे शब्दों को याद कर रोता रहा| बस आई तो मैंने बस की सबसे पीछे की सीट पकड़ ली और नेहा के बचपन के दिनों को याद करते हुए जागते हुए पूरा सफर सिसकता रहा| जबतक मेरी बेटी छोटी थी तबतक उसका मन कितना निश्छल और पाक-साफ़ था और अब देखो उसके मन में अपने ही पापा जी के लिए इतना जहर घुल गया है!
:sweat:
 

Rockstar_Rocky

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Manu bhaiya agla update kb ayega?

कल मैंने जो Big Reveal post किया था वो सब पढ़ लिया? :shocking:
 

Arjun2000

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Kl jbse update pdha kai sare khayal mn m aaye....sngita k liye dil ss galiya, bad dyaaye nikli....me kafi time se apki story pdh rha h bt hmesha ek silent reader ki trh hi mene ye story pdhi h...bite 2 salo me 40 se jyada bar me ise pdh chuka hu ....is form ki pr mujhe sbse jyada 3 hi story psnd aaye he....aur ye un me se ek h...

Kl k update k pehle ye story me mujhe neha k bad sngita ka role psnd tha q ki wo bhle hi apne wade pr n tike pr phir b wo sirf manu se pyar krti h...saccha pyar....usk khushi k liye kisi se bhi ld skti h....

Bt kl jb reality jani tb sivay ghusse aur nfrt k kuch ni rha sngita k liye mere dil m....wo chahe koi bhi bahane de, kuch b khe k duniya kya khegi, priwar kya khega, bcche god ni de skti bdke dada nj mante etc etc....pr sch yhi h k usse brdasht hi nj hua jb manu ne usk alaw neha stuti ko mang liya....


Jisse ap sbse jyada pyar krte ho....hmesha hamare khushi k vare m sochta h....khud drd seh kr apne pyar ko khush rkhta h....bt yha to sb ulta h...manu sngita k liye kuch b krne ko ready h...bt sngita jo sirf apne bare m sochti h...jln ki bhawana jisk dil m hd se jyada h apni hi betiyo k prti....


Sngita manu ko chod k chli gayi....ye kehte huye k samaj, priwar, hamara sath possible ni h....2:5 sal tk kbhi koi contact ni rha....jb manu ki shadi ki bat chli tb ye maharani prkt hui....Q?? Q aai wapas...jb ye janti h k iska or manu ka sath possible ni h to phir q manu ko aage ni bdhne de rhi apni life m.....ye chahti h agr ye khud drd seh rhi h to maanu b drd she....ye pyar nj ho skta....pyar apne pyar ko hmesha khush rkhta h...

Agr sngita ko itna hi smj aa gya h k inka ek sath hona possible ni h...manu akele reh kr tut jayega...to ye khud uski shadi ka sochti.....us ki khushi ka sochti tb isk liye mere dil m bhot ijjt hoti ...pr na ji inhe khud ki khushiya kisi or se jyada important h...

Jb manu gaav me tha starting time me tb neha 4 yr ki thi....manu ne hi uska admission krwaya tha...tb manu age 16-17 thi...1 sal sath rhe phir aarush k waqt 5 sal ka gap...dubara 3 sal sath phir 2-3 sal ka gap...is hisab se andajn aaj ki dat m manu ki age 28-30 tk hogi...meri age 26 h yani mere barbar hi pkd lo...agr mere sath aisa hota to m sngita ko shayad hr chij k liye maf krdeta ....bt jb me apni bacchiyo k liye bhikh mang rha tha aur wo jhatak k chki gai us k liye m use kbhi maaf ni krta...n kbhi uski shkl dekhta...


Hr bar sangita kuch n kuch krti h...phir faltu k koi b bate bana k ro dho k apni bat manwa leti h....

Manu bhaiya ye ort apka daba k kat rhi h...ab bhi waqt h smbhl jao....vrna jivn bhr drd sehna pdega....agr ap jb arush k time 5 sal ka jo gap hua tb hi ise apne jivn m ni ane dete to 2:5 sal apne jivn k itne drd m n gujarne pdte....jis age me ldke apne spne pure krne me apna bhavishya banane m lgate h wha ap drd me gujar rhe the...is sb m apki maa ne bhi bhot saha h...apne abtk sngita k liya kafi socha bt ab apna aur apni maa k bare m socho....aage bdho....jitna ap sngita k bare m socho ge utna drd shoge....m y ni kehta k sngita ko jrurt ho to uski mdt n kro use hr trh se support kro bt apne aur apni maa k bare m pehle socho....apni Khushi k vare m socho....aksr hm tb hi itna drd sehte h jb hm hd se jyada kisi se pyar krte h aur apne jivn ki dor usk hath sop dete h....

Lastly m itna hi khunga apna aur apni maa ka sochiye....phir chahe koi apko khudgrj khe to koi dikkt ni.....km se km ap drd se to bch jaoge....kisi achi ldki se shadi kr aage bdhiye...taki ap b apne bcche ko duniya k samne apni olad keh pane ka sukb bhog sko....


Kuch likha hua bura lga ho to maf krna Bhai...m koi writer ni hu na hi mujhe kuch likhna ata h shi h....jo bat dil me hoti thi wo likh diya h...apki life h ap jante ho apko kya krna h...
 
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