aman rathore
Enigma ke pankhe
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amazing update hai maanu bhai,उन्नीसवाँ अध्याय: बिछड़न!
भाग -10
अब तक आपने पढ़ा....
मैंने अपनी आँखें बंद की और मेरी बंद आँखों के सामने भौजी के साथ बिताई तमाम यादों की रील चल पड़ी, उन्हीं यादों को फिर से जीते हुए, ट्रैन के झटके सहते हुए मैं सो गया| अगली सुबह जब मेरी नींद खुली तो मुझे होश ही नहीं था की मैंने अपना गाँव छोड़ दिया है, अपनी प्रियतमा को अकेले छोड़ आया हूँ, अपनी लाड़ली बेटी को छोड़ आया हूँ! मैं तो इस उम्मीद में था की अब भौजी आएँगी और मुझे प्यार से उठाएँगी, good morning kiss देंगी! फिर मेरी लाड़ली आएगी और वो आकर मेरे गाल परअपनी मीठी-मीठी पप्पी देगी! लेकिन तभी पिताजी की कड़क आवाज कान में पड़ी;
पिताजी: मानु...उठ जा ...स्टेशन आने वाला है|
पिताजी की आवाज सुन एकदम से उठ बैठा| अब जाके होश आया की न तो यहाँ भौजी हैं और न ही नेहा, ये एहसास होते ही मुझे बहुत दुःख हुआ लेकिन अब किया भी क्या जा सकता था!
अब आगे...
कुछ देर में 'नयी दिल्ली' स्टेशन आया और हम सामान ले कर उतर गए, जबसे उठता तब से भौजी और नेहा की आवाज सुनने को विचलित था इसलिए स्टेशन से बाहर आते-आते मैंने भौजी को कॉल किया, पर अब भी फ़ोन बंद ही था| स्टेशन से बाहर आ कर पिताजी ऑटो करने लगे तो मैंने फिर भौजी को फ़ोन खनका दिया, पर कोई फायदा नहीं| आखिर ऑटो करके हम घर पहुँचे, महीने भर से घर बंद था तो अंदर का हाल बड़ा बुरा था| मैं जानता था की पिताजी मुझे सफाई में लगा देंगे, ऐसे में मैं भौजी से बात कैसे करूँगा? इसलिए मैंने खुद ही झाड़ू उठाया और फटाफट सफाई शुरू कर दी, पिताजी टंकी में पानी चढाने लगे| पोन घंटे में सफाई कर मैं अपने कमरे में आ गया और साथ ही पिताजी का फ़ोन भी चुरा लाया! लेकिन तभी माँ ने बैग से सामान निकालने को कहा तो मुझे उनका कहा काम करना पड़ा| घडी में बजे थे साढ़े दस तो मैंने सोचा की थोड़ा और इंतजार कर लेता हूँ, बारह बजे अनिल के नंबर पर कॉल करता हूँ तब तक तो भौजी तो अपने मायके पहुँच ही जाएँगी! इतने में पिताजी टंकी में पानी चढ़ा कर नीचे आ गए और अपना फ़ोन माँगा, नचाहते हुए भी मैंने उन्हें उनका फ़ोन वापस दिया| पिताजी ने बड़के दादा को कॉल किया और उन्हीं घर पहुँचने का समाचार दिया, एकबार को मन तो किया की क्यों न मैं भी पिताजी से फ़ोन ले कर बात करूँ और फिर बड़के दादा से कह दूँगा की वो भौजी को बुला दें, पर फिर सोचा की मेरा ऐसा कहने से बड़के दादा क्या सोचेंगे? भौजी के लिए भी अपने ससुर से फ़ोन ले कर मुझसे बात करना मुश्किल होगा और वो ढंग से बात भी नहीं कर पाएँगी| मैंने दिल को समझाया की थोड़ा और सब्र कर, सब्र का फल मीठा होता है!
इधर फ़ोन पर बात कर पिताजी ने मुझे झिड़कते हुए कहा;
पिताजी: एक महीना बहुत मन की कर ली तूने, अब चुप-चाप पढ़ाई में ध्यान लगा!
पिताजी की झिड़की सुन मैं अपने कमरे में लौट आया, नहाया और अपना हॉलिडे होमवर्क खोल कर बैठ गया| पर मन पढ़ाई में नहीं लग रहा था, आँखें घडी की सुइयों पर टिकी हुई थीं, कब बारह बजे और मैं फटाफट भौजी को कॉल करूँ! टिक-टी ककरते हुए आखिर घडी ने बारह बजाए और मैंने फटाफट अपने साले साहब को कॉल मिलाया;
अनिल: हेल्लो?!
अनिल की आवाज सुन मैं थोड़ा चौंक गया, क्योंकि मैं उम्मीद कर रहा था की फ़ोन भौजी ही उठाएँगी|
मैं: हेल्लो...अनिल, मैं मानु बोल रहा हूँ|
मेरी आवाज सुन कर वो थोड़ा आस्चर्यचकित हुआ|
अनिल: नमस्ते जीजा जी...आप कैसे हैं?
उसने बात शुरू करते हुए कहा|
मैं: मैं ठीक हूँ......
इसके आगे बोलने में मैं हिचक रहा था, अब उससे कैसे कहूँ की मुझे तुम्हारी दीदी से बात करनी है?! पर भौजी से बात तो करनी ही थी, इसलिए मैंने हिम्मत करके कहा;
मैं: मेरी बात हो जाएगी...!
इतना कह मैं चुप हो गया, 'भौजी' कह नहीं सकता था! मैं उम्मीद करने लगा की अनिल शायद समझ जाए, पर वो कैसे समझता की मैं किस्से बात करने को व्याकुल हूँ?!
अनिल: किससे?
उसने जिज्ञासु बनते हुए पुछा|
मैं: अ...अ..... वो....आपकी दीदी से!
मैंने हकलाते हुए कहा|
अनिल: वो तो यहाँ नहीं हैं!
अनिल का जवाब सुन मुझे लगा की वो शायद घर पर नहीं होगा|
मैं: आप घर पर नहीं हो?
अनिल: मैं तो घर पर ही हूँ, पर दीदी यहाँ नहीं आईं|
अनिल की बात सुन मैं अवाक रह गया!
मैं: अच्छा? ओके....
ये कहते हुए में सोचने लगा की भौजी ने मुझसे किया वादा कैसे तोड़ दिया?! तभी अनिल बोला;
अनिल: क्या दीदी न कहा था ई वो आज आएँगी?
मैं; नहीं..नहीं...शायद ....मतलब मुझे ऐसा लगा| खेर..मैं बाद में बात करता हूँ, बाय!
मैं अब भी सोच में था, इसलिए बात जल्दी से खत्म की|
अनिल: बाय जीजा जी|
फ़ोन रख कर मेरे दिमाग में एक सवाल कौंधा; ‘कहीं बड़की अम्मा ने भौजी को जाने से मना तो नहीं कर दिया?!’ ये सोच के मुझे बहुत चिंता होने लगी थी, फिर मैंने सोचा की चलो एक बार और अजय भैया का नंबर मिला के देखूँ| खुश किस्मती से इस बार नंबर मिल गया और पहली घंटी बजते ही भौजी ने फ़ोन उठा लिया;
भौजी: हेल्लो....
भौजी की हेल्लो सुनते ही मेरे मुँह से हेल्लो निकला;
मैं: हेल्लो!
मेरी आवाज में चिंता झलक रही थी, उधर भौजी भी चिंतित थीं क्योंकि इतने दिन साथ रहने के बाद आज पहला दिन था जब उन्होंने सुबह उठते ही नेरा चेहरा न देखा हो!
भौजी: जानू....जानू...आप कैसे हो? आपकी आवाज सुनने को तरस गई थी|
भौजी घबराते हुए बोलीं|
मैं: मैं ठीक हूँ जान! कल रात से छत्तीस बार नंबर मिला चूका हूँ, पर फोन switch off जा रहा था|
मैंने उन्हें अपने हालात बताये और मेरी आवाज में चिंता बराबर झलक रही थी|
भौजी: वो फोन की बैटरी खत्म हो गई थी...अभी-अभी अजय भैया फ़ोन चार्ज करा के लाये और मुझे दिया| आपको पता है, सारी रात मैं सो नहीं पाई.... करवटें बदलती रही....आपकी आवाज ने सोने नहीं दिया|
भौजी ने रूँधे गले से अपने दिल के जज़्बात ब्यान किये|
मैं: चिंता से मेरी जान जा रही थी...और ये बताओ की आप अब तक यहीं हो?
मैंने भौजी पर अपना सवाल दागा, मेरी आवाज में चिंता के साथ-साथ थोड़ा गुस्सा भी झलक ने लगा था|
भौजी: जी....वो..... फोन तो किया था अनिल को...पर वो आया नहीं!
भौजी ने डरते हुए मुझसे झूठ बोला|
मैं: जूठ बोल रहे हो ना?!
मैंने आवाज में थोड़ी सी हलीमी लाते हुए कहा, जो इस बात का संकेत था की मैंने उनकी चोरी पकड़ ली है|
भौजी: जी....वो.....
भौजी हकलाते हुए बहाना सोचना चाहा|
मैं: मेरी अभी बात हुई थी अनिल से, उससे बात कर के पता चला की आपने मायके आने का कोई संदेसा ही नहीं भिजवाया तो वो आता कैसे आपको लेने?
मेरी बात सुन भौजी शर्मिंदा हुईं और अंततः सच बोलीं;
भौजी: सॉरी जानू, कल आप चले गए और आज अगर मैं चली जाती तो घर कौन संभालता?
भौजी की बात सुन मेरा गुस्सा फिर से भड़क उठा, वो घर संभालने के लिए अपनी और हमारे बच्चे की जान दाऔ पर लगा रहीं थीं और ये मुझे कतई गंवारा नहीं था|
मैं: आप जानते हो न, आपने अपना वादा तोड़ दिया! और घर संभालने के लिए 'वो' (रसिका) है ना! आप कल मुझे अपने मायके में मिलने चाहिए? समझे? वरना मैं कल रात की गाडी पकड़ के आ रहा हूँ!
मैंने गुस्से में भौजी को हड़काया!
भौजी: तो आ जाओ ना....
पर भौजी मेरे कल आने की बात सुनकर खुश हो गईं और अपने प्यार भरी आवाज में मुझे आने का निमंत्रण ही दे डाला! इधर भौजी की ये बात सुन कर मेरा मन प्रफुल्लित हो गया;
मैं: सच?
मैंने उत्साहित होते हुए पुछा|
भौजी: नहीं बाबा, आज ही तो पहुँचे हो तो कल कैसे आओगे? आप अक्टूबर में आना, तब तक मैं आपका इंतजार करूँगी! और मैं आपसे हाथ जोड़कर माफ़ी मांगती हूँ की मैंने आपसे किया वादा तोडा, पर ये आखरी बार था की मैं आपसे किया कोई वादा तोड़ रही हूँ! आज के बाद अगर मैंने कोई वादा तोडा तो खाल खींच लेना मेरी! आपकी कसम मैं कल अपने मायके चली जाऊँगी और कल वहाँ पहुँचते ही आपको फोन करुँगी|
भौजी ने बड़े प्यार से अपनी वादा खिलाफी के लिए माफ़ी माँगी, उनकी इसी अदा का तो मैं कायल था और एकदम से पिघल गया था पर पति था उनका थोड़ा और हड़काना तो बनता था!
मैं: जब तक आप फोन नहीं करोगे मैं कुछ नहीं खाऊँगा!
मेरी बात सुन भौजी थोड़ा डर गईं और बोलीं;
भौजी: नहीं..नहीं.. ऐसा मत कहो!
मैं: नहीं मैं कुछ नहीं जानता, कल आप अगर अपने मायके नहीं पहुँचे तो......
मैंने भौजी को एक खोखली धमकी दे डाली और अपनी बात अधूरी छोड़ दी|
भौजी: ठीक है बाबा, मैं कल सुबह ही चली जाऊँगी|
भौजी ने हार मानते हुए मुस्कुरा कर कहा|
मैं: और हाँ प्लीज इसी तरह मुस्कुराते रहना, I love you!
मैंने मुस्कुरा कर कहा, उस समय लगा की काश भौजी मेरे सामने होतीं और मैं उन्हें अपने सीने से लगा कर उनके सर को चूम पाता|
भौजी: I love you too!
भौजी ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया, वहीं उनकी ये मुस्कान मैं पिताजी के नोकिआ 1600 पर महसूस कर रहा था|
मैं: अच्छा मेरी लाड़ली कहाँ है, उसकी आवाज भी तो सुनाओ!
भौजी: वो तो अभी तक स्कूल से नहीं आई, कल उससे जी भर के बात कर लेना!
दिक्कत ये थी की उन दिनों call rates बहुत महँगे थे, STD कॉल 2/- रूपए प्रति मिनट होता था और लोकल 1/- प्रति मिनट! अब मैं कमाता-धमाता तो था नहीं, इसी कारन न तो मैं भौजी से ज्यादा लम्बी बात कर सकता था और न ही नेहा के आने तक मैं कॉल होल्ड कर सकता था! कल उससे बात होगी ये सोच कर ही मैंने दिल को तसल्ली दे दी और भौजी को bye कह कर कॉल काटा| भौजी से बात होकर मेरे बेकरार दिल को चैन आ गया था|
अब समय था किताबें खोलने का और मन लगा कर पढ़ाई करने का वरना भौजी मेरी पढ़ाई में मिली नाकामी को अपने सर ले लेतीं! मैंने अपने स्कूल के दोस्तों को फ़ोन मिलाया और उन्हें अपने आने की सुचना दी, उन सब के तो holiday homework खत्म हो चुके थे पर मेरे सामने holiday homework का पहाड़ खड़ा हुआ था|
प्यार मोहब्बत में डेढ़ महीना कैसे निकला पता ही नहीं चला, लेकिन ये डेढ़ महीना वो समय था जिसने मेरी जिंदगी को पूरी तरह बदल दिया था| इन डेढ़ महीनों में मुझे एक पत्नी मिली जो मुझे दिलों जान से प्यार करती है, एक प्यारी सी गुड़िया जैसी बेटी मिली जो मुझमें अपने पिता को देखती है, एक आने वाले नए मेहमान की ख़ुशी मिली जो न केवल हम दोनों पति-पत्नी के प्रेम की निशानी था बल्कि वो हमें ताउम्र साथ जोड़े रखता और अंत में मुझे एक अच्छी सी दोस्त सुनीता के रूप में मिली थी! इतनी खुशियाँ वो भी डेढ़ महीने में, कौन यकीन करेगा?! मैंने इस बात को अपने दोस्तों से राज रखने का सोचा, परन्तु मेरा दोस्त दिषु वो मेरी प्रेम कहानी 'आधी' जानता था तो जाहिर था की वो मेरे पीछे पड़ता| मेरी दिषु से मुलाक़ात कल सुबह होने वाली थी और मैं ने सोच लिया था की मैं उसे भौजी और मेरे रिश्ते के बारे में नहीं बताऊँगा, ऊपर-ऊपर से बता दूँगा! दोपहर के भोजन के बाद मैंने सबसे पहले अपना इंग्लिश का holiday homework निकाला और रात 9 बजे तक बैठ कर आधा खत्म कर दिया, रात में खाना खाने के दौरान पिताजी माँ से काम के बारे में बात करने लगे| इतने दिन गाँव में रहने से 'हमेशा की तरह' काम का बहुत नुक्सान हुआ था, जाने से पहले पिताजी ने खाली एक साइट का काम चालु रखा था| इतने दिन गाँव रहने से कोई भी नया ठेका नहीं मिला था, जो भी पुराने जान-पहचान वाले हरहाक थे उन सब ने काम किसी और को दे दिया था! पर ये कोई नै बात नहीं थी, जब भी पिताजी गाँव जाते थे तो ऐसा ही होता था, शुरू-शुरू में माँ उन्हें टोकती पर पिताजी पलट कर उन्हीं झाड़ दिया करते थे इसलिए अब माँ ने चुप रहना शुरू कर दिया था| पिताजी के लिए नाते-रिश्ते पहले आते थे और काम-धंधा बाद में, उनकी ये नीति माँ को कभी पसंद नहीं आई थी! खैर खाना खा कर मैं फिर homework ले कर बैठ गया, दस बजे माँ ने आ कर मुझे सोने को कहा पर नेहा और भौजी के बिना मुझे नींद कैसे आती? मैं लेट तो गया पर नींद नहीं आई, मैंने करवटें बदलनी शुरू की पर कोई चैन नहीं! नेहा को अपने सीने से चिपका कर सोने की आदत जो पद गई थी, हारकर मैंने एक तकिया लिए और उसे अपने सीने से चिपका लिया| उस तकिये को मैंने नेहा मान लिया और उसे चूमता रहा, कुछ देर में नींद आ गई लेकिन एक बजे मैं चौंक कर उठ गया! मैंने बहुत डरावना सपना देखा था, सपने में मैं भागकर गाँव पहुँचा था और मुझे देखते ही भौजी और नेहा हवा में 'गायब' हो गए थे! इस सपने ने मेरी नींद उदा दी, मैं उठ कर बैठा और अपनी साँसों को नियंत्रित करने लगा| फिर पानी पिया और अपने कमरे की लाइट जला कर टेबल पर बैठ गया, नींद तो आ नहीं रही थी इसलिए मैंने सोचा की क्यों न homework ही खत्म कर लिया जाए! सुबह के 4 बजे तक जाग कर मैंने इंग्लिश का holiday homework खत्म कर दिया और अब मुझे खुद पर बहुत गर्व महसूस हो रहा था| आँखें बोझिल हो रहीं थीं इसलिए मैंने लेट गया और लेटते ही नींद आ गई, फिर जब आँख खुली तो सुबह के साढ़े 7 हो रहे थे| मैं ट्रैक पंत और टी-शर्ट पहन कर बाहर आया तो माँ-पिताजी मुझे डाइनिंग टेबल पर बैठे मिले| मैंने दोनों के पाँव हाथ लगाए की तभी माँ मेरे सर पर हाथ फेरते हुए बोलीं;
माँ: मेरा लाल रात भर जाग कर पढ़ रहा था|
माँ ने मेरी तारीफ की, पर पिताजी थोड़ा कठोर स्वभाव के थे इसलिए वो तुनक कर बोले;
पिताजी: हाँ तो करेगा ही, डेढ़ महीना मस्ती जो मारी है इसने! पढ़ेगा नहीं तो टाँग नहीं तोड़ दूँगा इसकी!
पिताजी की झिड़की सुन मेरा सर शर्म से झुक गया, माँ की तारीफ से दिल को थोड़ी ख़ुशी मिली थी पर पिताजी के अंगारों ने दिल को जला दिया था| अब अगर वहां रुकता तो माँ-पिताजी के बीच मुझे लेकर झगड़ा हो जाता तो मैं माँ से बोला;
मैं: माँ मैं पार्क जा रहा हूँ, एक घंटे में आ जाऊँगा|
माँ ने मेरे सर पर हाथ फेरा और पिताजी को सुनाते हुए बोलीं;
माँ: ठीक है बेटा, थोड़ी ताजा हवा खा ले| जब तू आएगा न तो मैं तुझे मैगी बना देती हूँ!
माँ मेरा दिल खुश करना जानती थी, मैगी का नाम सुनते ही मैं खुश हो गया पर मेरे पिताजी.... वो माँ को सुनाते हुए बोले;
पिताजी: ज्यादा मटर-गश्ती मत करिओ, चुप चाप घर पर रह कर अपनी पढ़ाई करिओ!
पिताजी की चेतावनी सुन मेरे चेहरे से फिर ख़ुशी हवा हो गई और मैं सर झुकाये हुए पार्क पहुँचा जहाँ दिषु मेरा इंतजार कर रहा था|
दिषु: आ गए मजनू अपनी लैला को छोड़ कर?
दिषु मुझे चिढ़ाते हुए बोला| उसकी ये बात सुन कर मैं हँस पड़ा, फिर हम गले मिले और पार्क का चक्कर लगाने लगे|
दिषु: और भाई, क्या किया इतने दिन गाँव में? भाभी कैसी हैं?
भाभी का नाम सुनते ही मैं चौंक गया और आँखें बड़ी कर के उसे देखने लगा, मैं मन ही मन सोचने लगा की मैंने तो दिषु को भौजी के बारे में बताया नहीं फिर उसे कैसे पता?
मैं: भ...भाभी?
मैंने हकलाते हुए पुछा, दिषु ने एक जोरदार थपकी मेरी पीठ पर मारी और हँसते हुए बोला;
दिषु: अबे मेरी भाभी, मतलब तेरी बंदी!
उसकी बात सुन कर मेरे दिल को चैन मिला और मैं भी हँस पड़ा| तभी दिषु ने मेरी पीठ में एक जोरदार घुसा मारा और बोला;
दिषु: बहनचोद! घर से भागने वाला था, भोसड़ीवाले, चूतिया हो गया था क्या?!
दिषु ने थोड़ा गुस्से से कहा|
मैं; सॉरी यार! दिमाग खराब हो गया था!
मैंने उससे माफ़ी माँगते हुए कहा| अब वो मेरे पीछे पद गया की मैं उसे सब बताऊँ तो मैंने उसे बताना शुरू किया;
मैं: यार बहुत प्यार करता हूँ 'उससे'!
मुझे मजबूरन यहाँ भौजी के लिए 'उनसे' शब्द की जगह 'उससे' शब्द का प्रयोग किया, कारन था मेरा दिषु से भौजी और मेरे रिश्ते को छुपाना|
मैं: वो भी मुझे बहुत प्यार करती है, इतना प्यार की कभी-कभी तो हम जैसे मुक़ाबले करने लगते थे की कौन किसे ज्यादा प्यार करता है| सुबह आँख खुलने से लेकर रात को सोने तक मेरी आँखों के सामने बस वही होती थी, इतने दिनों में बस एक हफ्ता ही हम अलग रह पाए और वो एक हफ्ता या तो मैं बीमार पड़ा रहा या फिर वो बीमार पड़ी रही| इतना प्यार है हम दोनों के बीच की तू सोच भी नहीं सकता, बहुत नसीब वाला हूँ मैं जो मुझे इतना प्यार करने वाली मिली|
मेरे मुँह से प्यार की बातें सुन दिषु को भौजी का नाम जानने की इच्छा पैदा हुई, अब मैं उसे मना कैसे करता इसलिए मैंने उसे भौजी का असली नाम बता दिया| अब जैसा की लौंडों में होता है, जब हमें दोस्त की बंदी का नाम पता चल जाए तो हम अपने दोस्त की टाँग खींचने से बाज नहीं आते| ठीक वही 'चुल्ल' दिषु को भी मची और उसने भौजी का नाम ले-ले कर मेरी खिंचाई शुरू कर दी| इसी खिंचाई के दौरान उसने वो सवाल भी पुछा जिसे जानने को लौंडे बहुत इच्छुक रहते हैं;
दिषु: अच्छा ये बता, तूने कुछ किया या नहीं?!
मैं उसका मतलब समझ गया और शर्म से सर झुका कर मुस्कुराने लगा| मेरे चेहरे पर शर्म की लाली देख कर दिषु ने मुझे चिढ़ाना शुरू कर दिया;
दिषु: ओये-होये! लड़के के गाल शर्म से लाल हो गए, मतलब की मेरा भाई अब वर्जिन न रहा!
दिषु ने मुझे छेड़ते हुए कहा, उसकी बात सुन कर मैं शर्म से लाल था पर अभी तो वो सबकुछ नहीं जानता था, अगर जानता तो मुँह बाए मुझे देखता रहता|
पार्क से घर लौट कर मैंने मैगी खाई और चुपचाप पिताजी का फ़ोन चुरा कर अपने कमरे में पहुँच गया| मैंने फटफट अनिल का नंबर मिलाया तो पता चला की अनिल अभी तक उन्हें लेने ही नहीं गया है, उसने बताया की वो दोपहर तक पहुँचेगा| मैंने घडी देखि तो अभी बस 10 बजे थे, मेरा मन फिर से बेसब्र हो चला था, दिल भौजी और नेहा की आवाज सुनने को तड़प रहा था| तभी पिताजी ने अपना फ़ोन माँगा और वो साइट पर निकल गए, आमतौर पर पिताजी दोपहर को खाना खाने आ जाते थे पर कभी-कभार वो सीधा रात को आते थे| मेरा दिल बस यही दुआ कर रहा था की कैसे भी आज पिताजी जर्रूर खाना खाने आएं ताकि मैं भौजी और नेहा से बात कर सकूँ! मैंने अपनी किताब खोली और एकाउंट्स का holiday homework खोल कर बैठ गया, दोपहर होने तक मैं अपना ध्यान पढ़ाई में लगाने में कामयाब रहा| दो बजे पिताजी खाना खाने आये और मैंने उनसे दिषु को फ़ोन करने का बहाना मार के फ़ोन लिया, पहले फ़ोन साइलेंट किया और झूठ मूठ का दिखावा करते हुए उससे बात करने लगा, पिताजी को इत्मीनान हो गया की मैं दिषु से ही बात कर रहा हूँ| माँ ने पिताजी को खाना परोसा और मुझे भी आने को कहा;
मैं: माँ आप खाना खाइये, मैं बस एक सवाल का हल पूछ कर आ रहा हूँ
इतना कह मैं अपने कमरे में खिसक गया और भौजी को फ़ोन मिलाया, खुशकिस्मती से भौजी अपने घर पहुँच चुकी थीं और फ़ोन की पहली घंटी भी पूरी नहीं बजी थी की भौजी ने एकदम से फ़ोन उठा लिया;
मैं: हेल्लो?!
मेरे हेल्लो सुनते ही भौजी ख़ुशी से चहकते हुए बोलीं;
भौजी: हेल्लो जानू!
उनकी आवाज सुन कर मेरे दिल को करार आया|
मैं: कैसे हो आप?
भौजी: आपके बिना, बस समय काट रही हूँ! तो कब आ रहे हो आप?
भौजी ने अपनी अधीरता दिखाते हुए सवाल पुछा;
मैं: जान जैसे ही स्कूल खुलेंगे मैं जुगाड़ लगा के पता करता हूँ की दशेरे की छुटियाँ कब हैं, फिर तुरंत टिकट बुक करवा लूँगा|
मैंने उत्साहित होते हुए भौजी की आस बँधाई|
भौजी: और प्लीज जानू इस बार कोई सरप्राइज प्लान मत करना!
भौजी ने वाराणसी से लौटने के दिन वाले सरप्राइज की याद दिलाते हुए विनती की|
मैं: जानता हूँ जान, इस बार ऐसा कोई सरप्राइज नहीं दूँगा, सीधा दौड़ते हुए आपके मायके आ जाऊँगा|
मेरी बात सुन भौजी को इत्मीनान हुआ की इस बार मैंने उन्हें अपने सरप्राइज से तड़पाऊँगा नहीं|
भौजी: अच्छा ये बताओ, आपने खाना खाया की नहीं?
भौजी ने चिंता जताते हुए पुछा|
मैं: अभी नहीं|
भौजी: तो पहले खाना खाओ जाके, फिर बाद में बात करते हैं|
भौजी में मुझे हुक्म देते हुए कहा|
मैं: जान, पिताजी अभी खाना खाने घर आये हैं और खा कर फिर चले जायेंगे, तो हम बात कब करेंगे? रात में वो देर से आते हैं, फिर कल सुबह तक इन्तेजार करना पड़ेगा|
मैंने भौजी को परिस्थिति से अवगत कराया|
भौजी: सच कहूँ तो मेरा मन करता है की भाग के आपके पास आ जाऊँ!
भौजी ने एकदम से अपने दिल के अरमान मुझे बताये|
मैं: Hey....मैं आ रहा हूँ ना, तो आपको भागने की क्या जर्रूरत है?!
मैंने भौजी को बड़े प्यार से समझाया, इतने में पीछे से नेहा के बोलने की आवाज आई|
मैं: अच्छा अब नेहा से बात कराओ?
ये सुन भौजी मुस्कुराईं और बोलीं;
भौजी: ये लो बात करो, कल से सौ बार पूछ चुकी है की पापा कब आएंगे?
भौजी ने फ़ोन नेहा को दिया और उसकी प्यारी सी मधुर आवाज कान में पड़ी;
नेहा: हे..हेल्लो पापा!
नेहा आज जिंदगी में पहलीबार फ़ोन पर बात कर रही थी और वो भी मुझसे| मैं आँखे बंद किये हुए कल्पना करने लगा की वो कैसी दिखती होगी, फ़ोन उठाये हुए|
मैं: Awww...मेरा बच्चा कैसा है?
मैंने अपने चित-परिचित आवाज में कहा, जिसे सुन नेहा के चेहरे पर बड़ी सी मुस्कान आ गई|
नेहा: पापा ... आई...लब....यू.....शो....मच!
नेहा ने अटकते-अटकते पहली बार अंग्रेजी में मुझे; 'I love you so much' कहा| पहलीबार था इसलिए नेहा थोड़ा घबराई थी और शब्दों का उच्चारण ठीक से नहीं कर पा रही थी|
मैं: Awwww मेरा बच्चा...!
मैंने नेहा को अपनी बाहों में भरना चाहा, पर वो मेरे सामने तो थी नहीं! ये बेबसी महसूस कर के मुझे थोड़ी सी मायूसी हुई पर दिल ने कहा की तू बाद में रो लिओ, पर अपनी बेटी से बात तो कर ले|
मैं: बेटा किसने सिखाया ये, मम्मी ने न?
मेरा सवाल सुन नेहा ने हाँ में गर्दन हिलाई और बोली;
नेहा: हाँ जी|
मैं: I Love You Too मेरा बेटा! कैसा है मेरा बच्चा?
मैंने नेहा से तुतलाते हुए बात की, उस समय मुझे उस पर बहुत-बहुत प्यार जो आ रहा था!
नेहा: मैं ठीक हूँ पापा, आप कैसे हो और मुझसे मिलने कब आ रहे हो?
मैं: मैं ठीक हूँ बेटा और आपसे मिलने बहुत जल्द आऊँगा, आपके लिए बहुत सारे तोहफे भी लाऊँगा!
मुझसे मिलने की बात सुन कर नेहा का दिल उल्लास से भर उठा और वो ख़ुशी से चीखते हुए बोली;
नेहा: सच पापा?
मैं: हाँ बेटा जी, आपके बिना तो मैं सो भी नहीं पा रहा| कल पूरी रात जाग रहा था, अब आप को गले लगा कर सोने की आदत पड़ गई है न इसलिए मैं जितना जल्दी होगा उतनी जल्दी आऊँगा!
ये सुन कर नेहा बड़े भोली आवाज में बोली;
नेहा: आप जल्दी आ जाओ, फिर न मैं रोज आपसे लिपट कर सोऊँगी|
मैं: Awwww....मेरा बच्चा! चलो अब आप अपनी मम्मी को फोन दो|
नेहा ने फ़ोन भौजी को दिया और उन्हीं के बगल मैं बैठ कर बात सुनने लगी|
भौजी: हाँ जी बोलिए जानू?!
भौजी मुस्कुराते हुए बोलीं, उन्होंने मेरी नेहा के बिना न सोने की बात जो सुन ली थी|
मैं: बहुत कुछ सीखा रहे हो मेरी बेटी को?!
भौजी: हाँ जी! उसने ही पूछा था की I love you का मतलब क्या होता है, तो मैंने बता दिया|
भौजी सफाई देते हुए बोलीं|
मैं: अच्छा जी? उसने ये I love you शब्द कहाँ सुन लिया?!
मैंने भोयें सिकोड़ते हुए पुछा|
भौजी: कितनी बार हमें बोलते हुए सुना था, मेरी बेटी बहुत होशियार है!
भौजी ने नेहा की तारीफ करते हुए कहा| वहीं नेहा अपनी तारीफ सुन कर शर्माने लगी थी| आगे बात हो पाती उससे पहले ही पिताजी ने मुझे खाना खाने के लिए बाहर से पुकारा|
मैं: अच्छा जान मैं चलता हूँ,.कल सुबह फोन करूँगा| Bye!
भौजी: ना...ऐसे नहीं, पहले I love you कहो?
मैं: I love you जान!
भौजी: I love you too जानू!
मैं फ़ोन रखता उससे पहले ही नेहा ने अपनी मम्मी से फ़ोन ले लिया और फ़ोन के स्पीकर पर अपना मुँह लगा कर बोली;
नेहा: उम्मम्मम्माह्ह्ह्हह्ह!
नेहा ने मुझे फ़ोन पर ही सुबह की good morning वाली पप्पी दी|
मैं: Awwwww मेरा बच्चा! सुबह से आपकी पप्पी को बहुत याद कर रहा था|
ये सुनते ही नेहा खुश हो गई और फ़ोन पर खिलखिलाकर हँस पड़ी|
फ़ोन रखने का मन तो नहीं था, पर अगर मैं नहीं जाता तो पिताजी कमरे में आ जाते इसलिए फ़ोन काट आकर मैंने फ़ोन लिस्ट से भौजी का नंबर डिलीट किया और दिषु का फ़ोन मिलाकर काट दिया, ताकि पिताजी को कोई शक न हो| फ़ोन पिताजी को दे मैं खाना खाने बैठ गया, शुक्र है की पिताजी ने कुछ नहीं पुछा| खाना खाके वो साइट पर निकल गए और मैं पढ़ाई करने बैठ गया| भौजी और नेहा से हुई कुछ देर की बातों ने मेरे मूड को ताजा कर दिया था, सबसे पहले मैंने अपना टाइम-टेबल बनाया ताकि उसके अनुसार मैं अपना holiday homework और भौजी से बात करने का समय निश्चित कर सकूँ| ये टाइम-टेबल मैंने बड़ी सतर्कता से बनाया ताकि मैं इसमें भौजी से बात करने का समय इस तरह से 'फिट' कर सकूँ ताकि पिताजी और माँ को कोई शक न हो की मैं दिषु का बहाना करके किसी और से बात नहीं कर रहा| भौजी से बात करने के लिए मुझे सुबह का समय सबसे ठीक लग रहा था, उस समय मैं पार्क जाने का बहाना कर सकता था और वहाँ मुझे माँ-पिताजी का कोई भय नहीं था| लेकिन उसके लिए मुझे सुबह जल्दी निकलना होता, क्योंकि पिताजी 9-10 बजे तक साइट पर निकल जाते और फ़ोन उनके साथ ही जाता| सुबह जल्दी पार्क जाने के लिए, रात को जल्दी सोना था जिससे मुझे अपनी पढ़ाई का समय बदलना था| खैर सुबह जल्दी उठना मुश्किल नहीं था पर सुबह-सुबह फ़ोन ले जाना चुनौती भरा काम था, क्योंकि पिताजी पूछते की मैं सुबह-सुबह फ़ोन क्यों ले जा रहा हूँ?! ये ऐसा सवाल था जिसका कोई उपयुक्त जवाब नहीं था, क्या कहता; 'स्टाइल मारने को ले जा रहा हूँ', तो पिताजी कहते 'सुबह-सुबह किस पर स्टाइल झाड़ना है तुझे?!' पर मैंने इसका भी एक हल निकाल लिया, सुबह जल्दी उठ कर दिषु को एक 'नकली कॉल' मिला कर पूछना की तू पहुँच गया? और फिर बातें करते हुए घर से फटाफट भाग जाना! सुनने में बचकाना लगता है पर इसके अलावा कोई चारा भी नहीं था| अब आते हैं दूसरे सबसे बड़े सवाल पर, call rates! 2/- प्रति मिनट सुनने में ही इतना महँगा लग रहा है तो कॉल खत्म होने के बाद कितना चुभता?! अब ऐसा तो था नहीं की मुझे भौजी से बस 2-4 मिनट बात करनी थी, कम से कम आधा घंटा तो बात होती और उसके लिए पैसे कहाँ से लाता?! मैं कोई काम-धाम तो करता नहीं था, न ही मुझे pocket money मिलती थी और अगर मिल भी जाती तो पिताजी उसके खर्चे का हिसाब माँगते?! वैसे कहने को मैं भौजी से कह सकता था की वो मुझे फ़ोन करें, पर खर्चा तो उनका भी होता न और रोज-रोज का ये खर्चा उनको न सही पर भौजी के मायके वालों को जर्रूर अखरता! इसलिए मेरे पास सिवाए उधारी के कोई दूसरा रास्ता नहीं था और उसके लिए मुझे दिषु से मददद माँगनी पड़ी| दिषु से मेरी दोस्ती इतनी गहरी थी की उसने कभी पैसों को हमारे बीच में आने नहीं दिया, इसलिए मैं पैसों की तरफ से निश्चिन्त था| उससे ली हुई उधारी मैं स्कूल जाते समय मिलने वाली खर्ची की हेरा-फेरी से पूरी कर देता|
खेर मैंने holiday homework पर फोकस बनाया, वरना स्कूल में मेरी पढ़ाकू बच्चे की छबि पर दाग लग जाता| जितना मैं भौजी से प्यार करता था, उतना ही मैं पढ़ाई से भी करता था और मैं नहीं चाहता था की पढ़ाई को लेके भौजी किसी भी तरह की कोई चिंता करें| मैंने दिल लगा कर पढ़ाई करना शुरू कर दिया|
अगली सुबह मैं जल्दी उठा और अपने तथाकथित 'प्लान' पर काम करते हुए पिताजी का फ़ोन ले कर चम्पत हो गया| पार्क पहुँच कर मैंने दिषु को साड़ी प्लानिंग समझाई, ताकि कल को पिताजी उसे कॉल करके पूछें तो वो पलटी न मार जाए| मेरी प्लानिंग सुन कर वो बहुत हँसा और मेरा दिल खोल कर मजाक उड़ाया, मैं भी उसके संग थोड़ा हँस लिया और फ़ोन ले कर कुछ दूर आ गया और भौजी को कॉल मिलाया;
मैं: हेल्लो?!
नेहा: उम्मम्मम्मम्माःह्ह्ह्ह!
नेहा ने एकदम से मुझे प्याली-प्याली पप्पी दी!
मैं: Awwww....मेरा बच्चा! मेरी तरफ से आपको उम्मम्मम्मम्हाःह्ह्ह्ह!
मैंने भी नेहा को प्यार भरी पप्पी दी, मेरी पप्पी मिलते ही नेहा जोर से हँस पड़ी|
नेहा: I love you पापा!
नेहा प्यार से बोली|
मैं: I love you too मेरा बच्चा!
बाप-बेटी के बीच प्यार के आदान-प्रदान के बाद नेहा ने एकदम से अपनी मम्मी की शिकायत कर दी;
नेहा: पापा..... मम्मी है न.... मुझे है न.... कहानी नहीं सुनाती!
नेहा की भोली सी बात सुन कर पहले तो मैं खूब हँसा फिर मैंने उसका दिल रखने को कहा;
मैं: अच्छा? दो मम्मी को फ़ोन, अभी डाँटता हूँ उन्हें!
नेहा ने फ़ोन भौजी को दिया और मैंने उन्हें फ़ोन स्पीकर पर रखने को कहा;
मैं: आप मेरी बच्ची को क्यों कहानी नहीं सुनाते?
मैंने भौजी को प्यारभरे गुस्से से डाँटते हुए कहा|
भौजी: अब मुझे आती नहीं तो मैं क्या करूँ?!
भौजी ने तुतलाते हुए अपनी सफाई दी|
मैं: आपको कहा था न की हमारी कहानी सुनाओ? चलो मैं आपको कुछ टिप्स देता हूँ उन्हीं याद करो और कहानी बनाया करो|
फिर मैंने भौजी को कुछ टिप्स दीं, ये कुछ ख़ास टिप्स नहीं थे बस मैंने खुद को राजकुमार और उनको राजकुमारी बनने को कहा| फिर हमारी सारी मुलाक़ातों को कहानी में पिरोकर रोज एक नै कहानी बनाने को कहा, भौजी को मेरा आईडिया समझ आया और वो इसके लिए राजी भी हो गईं| इसके बाद नेहा ने फिर से फ़ोन अपने पास खींच लिया और मेरे से दस मिनट तक बातें करने लगी| उसकी बातें कुछ ख़ास नहीं बस उसकी दिनचर्या, उसके स्कूल की बातें और आज उसने कितना भौजी का ख्याल रखा स जुडी होती थी| उसकी प्यारी बातें सुनने में बड़ा मजा आ राह था पर भौजी वहाँ बात करने को व्यकुल थीं;
भौजी: बेटा मुझे भी बात करने दे न?!
भौजी ने पीछे से प्यारभरी बिनती करते हुए कहा, पर नहीं मानी वो फ़ोन ले कर घर के आँगन में दौड़ने लगी| मुझे फ़ोन पर दोनों के दौड़ने और हँसने की आवाज आ रही थी, भौजी तो भागते-भागते थक गईं और चारपाई पर सर झुका कर बैठ गईं| उन्होंने झूठ-मूठ के टेसुएँ बहाने शुरू कर दिए ताकि नेहा को लगे की वो रो रहीं हैं! मेरी बच्ची अबोध थी, उसे सच में लगा की उसकी मम्मी फ़ोन न मिलने से रो रहीं है| वो फ़ोन ले कर उनके पास पहुँची और मुझसे बोली;
नेहा: पापा जी, आप मम्मी से बात करो हम कल बात करेंगे!
नेहा का प्यार देख भौजी ने अपना झूठ-मूठ का रोना बंद किया और उसे अपने सीने से लगा कर उसके सर को चूमा|
भौजी: ये ले और जा कर चिप्स खा ले!
उन्होंने नेहा को पैसे दिए और वो दौड़ती हुई चिप्स लेने गई|
भौजी: हाँ जी अब बोलो, अब कोई तंग नहीं करेगा!
भौजी हँसते हुए बोलीं|
मैं: हाँ नेहा को तो रिश्वत दे कर भगा दिया आपने!
ये सुन भौजी खिलखिलाकर हँस पड़ीं|
भौजी: अब क्या करूँ जानू, आपसे बात करने को मन था और आपकी लाड़ली फ़ोन ही नहीं दे रही थी|
मैं: जब भी आपको नेहा से कुछ काम हो तो उसे गोद में लो और उसकी दो पप्पियाँ लो, फिर उसे जो काम कहोगे वो सब करेगी!
मेरी चालाकी सुन कर भौजी पहले तो हँस पड़ीं, फिर एकदम से नराज होते हुए बोलीं;
भौजी: एक बात बताने का कष्ट करो, आपने नेहा से क्या कहा था की आप सिर्फ उसे मिलने आओगे?!
ये कहते हुए भौजी रसन-पानी ले कर मेरे ऊपर चढ़ गईं| उनका तातपर्य उस दिन से था जब रसिका ने उन्हें मेरे जाने की बात बता आकर आग लगाई थी, तब नेहा रोये जा रही थी और उसे चुप कराने को मैंने कहा था की मैं सिर्फ उसे मिलने आऊँगा| अब नेहा ने भोलेपन में ये बात अपनी मम्मी से कह दी, जिसे सुन कर भौजी मुझसे नाराज हो गईं थीं|
मैं: जान, उस दिन अपने नेहा को मेरे जाने की बात एकदम से बता कर रुला दिया था, तब मैंने उसका दिल रखने को ये कहा था| अब आप बताओ की ऐसा हो सकता है की मैं सिर्फ नेहा से मिलने आऊँ? अरे आपके बिना मेरा यहाँ क्या हाल है, ये आप क्या जानो? पता है रात को नींद नहीं आती, अगर गलती से झपकी लग जाए तो आपकी पायल की मधुर आवाज सुन कर जाग जाता हूँ! फिर पागलों की तरह कमरे में आपकी मौजूदगी के निशान ढूँढने लगता हूँ! दिमाग मेरे साथ छल करने लगा है, आपके न होते हुए भी आपकी मौजूदगी महसूस करता हूँ! कभी-कभी अपना वो रुमाल जिसमें आपकी खुशबु कैद थी उसे सूँघ लेता हूँ, तो कभी हमारे साथ बिताये लम्हें याद करने लगता हूँ!
मुझे अपनी सफाई देने की जरूरत तो नहीं थी पर फिर भी मैंने भौजी को अपने दिल के जज्बातों से रूबरू कराया|
भौजी: जानू मेरा भी हाल आपके जैसा है! कई बार आँख बंद कर के आपकी छुअन महसूस होती है, मन बावरा हो जाता है! दिल करता है की सब छोड़कर आपके पास भाग आऊँ!
भौजी ने भी मुझसे अपने मन की व्यथा साझा की|
मैं: जान आपके पास नेहा तो है, पर मेरे पास तो कोई नहीं?! आपकी एक फोटो भी नहीं, इस बार आऊँगा तो कैमरा ले कर आऊँगा और हम दोनों की बहुत सारी तस्वीरें खींच कर ले जाऊँगा!
भौजी: कैमरा लाओ चाहे न लाओ, अपनी नई फोटो जर्रूर ला देना! कहते हैं गर्भवती औरत को जिस इंसान की तस्वीर ज्यादा देखती है, बच्चा वैसा ही पैदा होता है और मुझे बस आपकी तस्वीर देखनी है ताकि हमारा बच्चा बिलकुल आप जैसा पैदा हो!
भौजी ने थोड़ा हुक्म चलाते हुए कहा|
मैं: ठीक है जान और कोई हुक्म?!
मैंने मुस्कुरा कर पुछा|
भौजी: हम्म्म... मुझे एक kiss चाहिए!
मैं: उम्मम्मम्माह्ह्हह्ह!!!
मैंने भौजी को फ़ोन पर kiss दी|
भौजी: हाय! आपकी इसी kiss का सहारा है!
भौजी ठंडी आँहें भरते हुए बोलीं|
मैं: क्यों? नेहा सुबह उठ कर पप्पी नहीं देती?!
मैंने भौजी को छेड़ते हुए कहा|
भौजी: अरे कहाँ! Good morning वाली पप्पी सिर्फ आपके लिए थी, आपके आलावा वो न तो किसी को पप्पी देती है न ही किसी से पप्पी लेती है!
भौजी तुनक कर बोलीं|
मैं: हाँ तो ठीक ही तो है, नेहा की सारी पप्पियों का ठेका मैंने ले रखा है!
मैंने नेहा पर हक़ जताते हुए कहा, मेरा ऐसा कहना था की भौजी खिलखिला कर हँसने लगीं|
मैं: अच्छा जान ये बताओ नेहा स्कूल कैसे जाती है, आपके घर से तो स्कूल दूर पड़ता होगा न?
भौजी: अनिल उसे सुबह साइकिल से स्कूल छोड़ देता है और चरण काका उसे साइकिल से ले आते हैं|
मैं: चलो उसका तथा अपना ध्यान रखना और मेरी तरफ से उसे बहुत-बहुत प्यार देना!
भौजी: ओके जानू! आप भी अपना ख्याल रखना और मैं कल सुबह इसी टाइम आपके फ़ोन का इंतजार करूँगी!
मैं: I love you जान!
भौजी: I love you जानू!
इस तरह हमारी प्यारभरी बातें खत्म हुईं और मैं दिषु को ढूँढने लगा, हम दोनों अपने-अपने घर लौटे और पढ़ाई में लग गए| अगले दिन से हमारे टूशन वाले सर ने क्लास शुरू कर दी, holiday homework के साथ-साथ टूशन क्लास भी संभालनी पड़ी| लेकिन इसका असर मेरे और भौजी के बात करने पर नहीं पड़ा, हम अब भी सुबह बातें किया करते थे| हाँ कभी-कभार पिताजी सुबह पार्क जाने के समय मुझसे फ़ोन ले लिए करते थे, तो तब मैं दिषु के फ़ोन से भौजी को फ़ोन कर लिया करता था|
गाँव में मिलने वाली साक्षात् good morning kiss और (नेहा की) पप्पियाँ, अब फ़ोन पर मिलने लगी थीं| ये सोच कर ही संतोष कर लिया की कम से कम फ़ोन पर ही सही मिल तो रहीं हैं! हमारी प्यारभरी बातें, नोक-झोंक, रूठना-मनाना, बाप-बेटी का प्यार सब कुछ बदस्तूर फ़ोन पर चल रही थीं| इन सब बातों के साथ-साथ मैं भौजी को अपनी पढ़ाई की अपडेट भी दे रहा था, मैंने कितना holiday homework निपटाया और कितनी पढ़ाई की उनतक मेरी सारी जानकारी पहुँच रही थी| भौजी मेरी इन छोटी-छोटी उपलब्धियों से बहुत खुश थीं और उनके मन में अब मेरी पढ़ाई को ले कर कोई डर नहीं था| मैंने अपना सारा holiday homework 15 दिन में खत्म कर दिया और जब ये बात भौजी को पता चली तो वो भी बहुत खुश हुईं| अभी मेरे पास तकरीबन 1 हफ्ता बचा था तो मैंने इस हफ्ते में मैथ्स (गणित) उठा ली, ये एक ऐसा सब्जेक्ट था जिससे मुझे डर लगता था| इस एक हफ्ते में मैंने मैथ्स की बड़ी उपासना की और आराम से पास हो जाऊँ उतना समझ गया!
अब समय आया स्कूल खुलने का और अब हमारा सुबह बात कर पाना नामुमकिन था, मैं जुगाड़ फिट करने लगा की किस समय मैं भौजी से बात करूँ?! सुबह और रात नामुमकिन था, बचा सिर्फ और सिर्फ 1 बजे से 6 बजे तक का टाइम! इस समय के बीच अगर पिताजी दोपहर में खाना खाने आते तो मैं उनके फ़ोन से कॉल कर लेता या फिर शाम को जल्दी टूशन के बहाने से निकलता और सीधा दिषु के घर जा कर उसके फ़ोन से कॉल करता| मैंने भौजी को अपना ये नया टाईम-टेबल अच्छे से समझा दिया, भौजी मेरा ये उतावलापन देख पहले तो खूब हँसी, लेकिन मुझसे बात करने की आग तो उनके मन में भी लगी थी! मैंने पिताजी से मिली जेब खर्ची से 30/- वाले रिचार्ज कूपन इकठ्ठा करने शुरू कर दिए, ताकि अगर भौजी से कभी बात करते हुए बैलेंस खत्म हो तो फटाफट रिचार्ज कर के बात कर लूँ| इन रिचार्ज कूपन का बड़ा फायदा था, घर में हूँ या बाहर कभी भी रिचार्ज करो और बात करते जाओ!
खैर स्कूल खुले और मेरे मित्र मेरा खिला हुआ चेहरे देख कर सोच में पड़े थे की आखिर इस पढ़ाकू लड़के के चेहरे पर इतनी मुस्कान कैसे?! इधर मैं सोच रहा था की कब दशहरे की छुटियाँ declare होंगी, पर जुलाई में दशहरे की छुटियाँ कैसे declare होतीं? अब बाकी स्कूलों की तरह ही हमारे principle सर कहते थे की science section के मुक़ाबले commerce section के नंबर ज्यादा आने चाहिए, क्योंकि science tough होती है! उनकी ये गलतफैमी हमारे पिछवाड़े पर टीचर के surprise class test के रूप में 'चट' से पड़ी! मेरी तैयारी ठीक-ठाक थी तो मैं सारे tests में अच्छे नम्बरों से पास हो गया| मैंने जानबूझ कर इस बात को पिताजी के सामने बड़े शान से प्रस्तुत किया, उसका करना था की वो दशहरे में गाँव जाने के लिए ये कह कर मना न कर दें की मेरे mid-term paper हैं! मेरे अच्छे नंबर देख कर पिताजी खुश हुए और आखिकर उनके चेहरे पर मुस्कान आ ही गई| वहीं जब शाम को मैंने भौजी को ये खुशखबरी दी तो वो एकदम से बोलीं;
भौजी: जानू, इस बार आपको मिलने पर एक बहुत बड़ा surprise दूँगी!
उनके मुँह से surprise के बारे में सुन कर मेरे मुँह में पानी आ गया, दिमाग ने अलग-अलग कल्पनाएँ शुरू कर दी| मैंने बहुत पुछा पर भौजी ने कुछ नहीं बताया और मुझे गाँव में मेरे द्वारा दिए हुए सरप्राइज का उल्हाना दे कर सताती रहीं| ठीक भी था, सरप्राइज देने का मजा तब है जब बात गुप्त रहे, खुल जाने पर मजा किरकिरा हो जाता है| सरप्राइज के लिए मन व्यकुल था तो मैंने आज के आज ही क्लास के उस लड़के से बात की जिसकी स्कूल के चपरासी से अच्छी बनती थी| जब मैंने उस लड़के से पुछा की दशहरे की छुट्टियाँ कब से होंगी तो वो भी मुझ पर खूब हँसा और बोला; "अभी तो गर्मियों की छुटियाँ खत्म हुई हैं और तू दशहरे की छुट्टियाँ मनाना चाहता है?" अब मुझे उसे कुछ तो जवाब देना था तो मैंने उसे बहाना बना दिया; "यार वो गाँव में पूजा है और उसके लिए ट्रैन की टिकट बुक करानी है, इसलिए पुछा!" बहाना फिट बैठ गया और उसने चपरासी से बातों-बातों में पुछा| चपरासी ने उसे कोई सटीक तरीक तो नहीं बताई बस ये बताया की 10 अक्टूबर से 25 अक्टूबर के बीच हो सकती हैं| मेरे लिए इतना ही काफी था, तरीक का अंदाजा लगते ही मेरे दिमाग ने गुणा-भाग शुरू कर दी, एक सटीक तारिख निकालने के लिए माने पंचाँग तक देख मारा| एक आध दिन आगे-पीछे करते हुए हुए मैंने 10 अक्टूबर की तरीक चुन ली, अब आगे का काम इसी तरीक के अनुसार करना था|
आखरी पीरियड फ्री था तो मैं सबसे पीछे वाली बेंच पर बैठ गया और अपने आने-जाने का हिसाब लगाने लगा| 10 अक्टूबर को निकलना और 11 अक्टूबर को गाँव पहुँचना, अब उसी दिन तो मैं भौजी के मायके नहीं जा सकता तो मैं अगले दिन उनके मायके जाऊँगा तथा अपने सास-ससुर के रोकने का बहाना मारकर वहीं रुक जाऊँगा| थोड़ा बेशर्म हो कर 2-3 दिन तो वहाँ चिपक ही जाऊँगा, 1 आध दिन के लिए बड़की अम्मा के पास रुक जाऊँगा और फिर दिल्ली वापस| चलो दिन काटने की प्लानिंग तो हो गई पर गाँव जाएंगे कैसे? बहुत दिमाग लड़ाया पर कोई कारन नहीं मिला, फिर एक बचकाना ख्याल आया! बड़की अम्मा...मुझे उनसे बात करनी होगी और उन्हें ये विश्वास दिलाना होगा की मैं गाँव उनसे मिलने आना चाहता हूँ, अगर मान लो उन्होंने मेरी चोरी पकड़ भी ली तो वो तो सब जानती ही हैं, मुझे मना थोड़े ही करेंगी? प्लान फूलप्रूफ नहीं था पर इसके लिए मैंने एक बैकअप प्लान तैयार कर लिया था, दिषु को इसमें फँसाऊँगा! वो कहेगा की उसके किसी रिश्तेदार की शादी/मुंडन/मौत कुछ भी बहाना मार के उसके साथ निकलूँगा और सीधा उड़ता हुआ भौजी के घर जा पहुँचूँगा! देखा जाए तो मेरा बैकअप प्लान भी फूलप्रूफ नहीं था, दिषु वाला झूठ भी खुलता जर्रूर और उसके बाद जो तुड़ाई होती मेरी वो जबरदस्त होती, पर भौजी और नेहा से मिलने की इतनी ललक थी की मैं कोई भी काण्ड करने को तैयार था!
भौजी को अपने आने की खुशखबरी देने को मैं आज बहुत उत्सुक था, इसलिए आज स्कूल से दौड़ते हुए घर पहुँचा| घर पहुँच कर देखा तो पिताजी आज पहले ही खाना खाने आ चुके थे, मतलब आज मेरी किस्मत कुछ ज्यादा ही मेहरबान थी! माने उनसे फ़ोन लिया और झूठ-मूठ का दिखावा करते हुए दिषु से बात करने लगा, बहाना बना कर मैं अपने कमरे में आया और भौजी को फ़ोन मिला दिया|
behad hi shandaar aur lajawab update hai bhai,
aaj ka update planning ke lihaaj se kaafi funny tha, jab hum teenager hote hain to apni bachkani planning ko bhi foolproof samajh kar kuchh jyada hi khush ho jaate hain lekin hamein nahin pata hota ki tudai to honi hi hai chahe kitna bhi planning kar loon,
aapne bhauji aur neha se baat karne ke desperation ko shandaar tarike se dikhaya hai,
dishu bhi abhi aapka sabse achchha sahara bana hua hai,
ab dekhte hain ki aage kya hota hai,
Waiting for next update