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Incest एक अनोखा बंधन - पुन: प्रारंभ (Completed)

prkin

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:lol: नहीं मित्र, कुल शब्द हुए थे 9898 दो शब्द और लिखता तो 9900 शब्द होते! पहले मैंने भी सोचा था की पूरे 10000 शब्द पूरे कर देता हूँ पर यहाँ सबको गुणवत्ता चाहिए, मात्रा से यहाँ किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता| पिछली अपडेट 14000+ शब्दों की थी, यहाँ चाहे कितनी भी बड़ी अपडेट लिख लो किसी न किसी ने पहले से ही सबसे बड़ी अपडेट दी होती है| मुझे पता चला की एक महानुभाव ने 50000 शब्दों की अपडेट दी है, ये कितना सच है या कितना गलत ये मैं नहीं जानता!

तारीफ के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद मित्र! :thank_you: :dost: :hug: :love3:

५०००० की अपडेट का तो यही अर्थ हुआ की पूरी कहानी छाप दी एक ही बार में.
हम और आप ऐसे लोगों से स्पर्धा नहीं कर सकते
 

Rockstar_Rocky

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५०००० की अपडेट का तो यही अर्थ हुआ की पूरी कहानी छाप दी एक ही बार में.
हम और आप ऐसे लोगों से स्पर्धा नहीं कर सकते
जी नहीं मित्र, वो केवल एक अपडेट थी! मुझे ये जानकारी मेरी Naina दीदी ने दी थी! हालांकि इस बात का कोई तथ्य उपलब्ध नहीं है, पर दीदी झूठ नहीं बोलतीं! :D
 

amita

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Za
इक्कीसवाँ अध्याय: कोशिश नई शुरुआत की
भाग -7 (1)


अब तक आपने पढ़ा:


अब शाम को हम जब मिलते तो ये फिल्में हेडफोन्स लगा कर देखने लगते| जब फिल्में देखने लगा तो इनके कुछ कलाकारों का मैं फैन बन गया, सुपरस्टार मोहन लाल का अभिनय मुझे बहुत पसंद था| उनके अलावा दो तीन लोग और अच्छे लगते थे; निविन पॉली, पृथ्वीराज और दुलकर सलमान मेरे पसंदीदा एक्टर थे| हीरोइन की बात करूँ तो मुझे पार्वथी और निथ्या मेनन सबसे जयादा पसंद थी, दोनों की सादगी का मैं फैन था! इस तरह से मार्च का महीना खत्म हुआ और उसी के साथ मेरा ऑफिस का नोटिस पीरियड भी खत्म हुआ, अब मुझे अपनी आगे की जिंदगी का निर्णय लेना था!


अब आगे:


4 तरीक थी और आज सुबह मैं बहुत देर से उठा, अंगड़ाई लेता हुआ मैं बाहर आया तो पिताजी मुझे हैरानी से देखते हुए बोले;

पिताजी: आज ऑफिस नहीं जाना?

मैं: नहीं पिताजी, कल आखरी दिन था!

मैंने कुर्सी खींच कर उनके पास बैठते हुए कहा|

पिताजी: तो आगे क्या करना है?

पिताजी ने मेरी तरफ अपना ध्यान केंद्रित करते हुए सवाल पुछा|

मैं: जी कोई और नौकरी ढूँढूँगा और जब तक नहीं मिलती साइट का काम सम्भालूँगा|

नौकरी ढूँढने की बात तो सच थी पर साइट का काम संभालने की बात मैंने सिर्फ और सिर्फ पिताजी का दिल रखने को कही थी|

पिताजी: अब तो काम भी अच्छा चल पड़ा है, तो फिर तुझे क्या जर्रूरत है नौकरी करने की?

पिताजी ने प्यार से पुछा|

मैं: पिताजी आजकल के समय में आमदनी के सिर्फ एक जरिये पर आश्रित नहीं होना चाहिए! नौकरी होगी तो कम से कम एक निश्चित पैसा घर तो आता रहेगा!

पिताजी को मुझसे इतनी अक्लमंदी की उम्मीद नहीं थी, इसलिए वो मुस्कुराने लगे और माँ से बोले;

पिताजी: देख रही हो अपने लाल को? समझदार हो गया है, अब इसका ब्याह कर देना चाहिए!

पिताजी ने ब्याह की चिंगारी सुलगाई तो माँ ने उसी आग पर अपना तवा चढ़ा दिया;

माँ: मैं तो कब से कह रही हूँ, मुझे तो एक लड़की पसंद भी आई थी पर दिक्कत ये थी की वो हमारे धर्म की नहीं और उम्र में भी इससे बड़ी है!

माँ का इशारा करुणा की तरफ था, अब पत्नी की कही बात पति न समझे ये कैसे हो सकता है?! पिताजी ने फ़ौरन माँ की बात पकड़ ली और उनसे बोले;

पिताजी: अरे भागवान! धर्म का क्या है, वो तो बदला भी जा सकता है और उम्र भी कोई मायने नहीं रखती! तुम अगर मुझसे 10-12 साल बड़ी भी होती तो क्या मैं तुमसे ब्याह नहीं करता?

पिताजी ने माँ को छेड़ते हुए कहा, ये सुन माँ शर्म से लजाने लगीं और बोलीं;

माँ: क्या आप भी..... जवान लड़का बैठा है.... और आप हो की.....!

माँ की ये बात सुन कर मैं ठहाका मार के हँसने लगा|

पिताजी: मजाक की बात एक तरफ, अब तू ब्याह कर ले!

पिताजी ने बड़े प्यार से मुझसे कहा तो मैंने भी उनकी बात का मान रखते हुए कहा;

मैं: पिताजी एक नौकरी मिल जाए फिर दिसंबर तक शादी पक्का!

मैंने अपने चेहरे पर नकली मुस्कान चिपका कर कहा और उठ कर अपने कमरे में आ गया| शादी के लिए हाँ कह के मैंने माँ-पिताजी का दिल तो रख लिया था पर मेरे दिल का क्या? इन 4 सालों में मैं अभी तक भौजी को पूरी तरह भुला नहीं पाया था, गुस्सा से ही सही पर याद तो उन्हें फिर भी करता था! तभी दिमाग बोलने लगा; 'कब तक यूँ ही कुढ़ता रहेगा? क्या तुझे किसी ख़ुशी का हक़ नहीं? तूने कौन सा पाप किया है की तू उसकी सजा यूँ अकेले भुगत रहा है? जिसने पाप किया वो तो वहाँ मजे से जिंदगी 'जी रही' है और तू यहाँ पागलों की तरह अकेला तड़प रहा है!' दिमाग की कही बात सही थी पर दिल ससुरा आगे बढ़ने ही नहीं दे रहा था!



खैर मैं तैयार हुआ और आज पिताजी के साथ नाश्ता कर के साइट के लिए निकला, मिश्रा अंकल जी का प्रोजेक्ट हमें अभी नहीं मिला था तो पिताजी ने कुछ पुराने क्लाइंट से काम उठा लिया था| यहाँ मेरे करने लायक कोई काम नहीं था इसलिए मैं बोर हो रहा था और दिमाग में बस सुबह हुई मेरी शादी की बातें ही घूम रहीं थीं| पहले सोचा की करुणा को फ़ोन करके मिलने चला जाता हूँ पर फिर लगा की वो इस वक़्त ड्यूटी पर होगी, इसलिए मैंने दिषु को फ़ोन किया और उसे मिलने को पुछा| उसने मुझे लंच में मिलने को बुलाया और तब तक मैं पिताजी के साथ रह कर कुछ काम समझने लगा|

लंच में मैं दिषु से मिला और उसे अपनी जॉब के बारे में बताया तो वो एकदम से बोला;

दिषु: तू audit करेगा?

मैं: यार 400/- रुपये के लिए तेरे सर के साथ स्टॉक ऑडिट में अपना सर खपाने की मेरी हिम्मत नहीं!

मैंने मुँह बनाते हुए कहा|

दिषु: अबे स्टॉक ऑडिट नहीं एकाउंट्स ऑडिट और वो भी दिल्ली में!

ये सुन कर मैं बहुत खुश हुआ और उससे सीधा पैसे पूछे;

मैं: पैसे कितने मिलेंगे?

दिषु: एक ऑडिट 2 से 3 दिन की होती है और इसके तुझे 1,000/- प्रति दिन मिलेंगे| खाना-पीना अलग से लेकिन एक ही बात है की ऑडिट में time boundation है! सर 3 दिन से ज्यादा टाइम नहीं देते और सबसे मजे की बात की हम दोनों साथ होंगे, मतलब फुल ऐश!

दिषु खुश होते हुए बोला|

मैं: हाँ साले फुल ऐश तो तेरी होगी, क्योंकि काम तो सारा तू मेरे ऊपर डाल देगा!

ये सुन कर दिषु जोर से हँसने लगा|



ऑडिट रोज-रोज तो होनी नहीं थी हफ्ते में एक आधी होती और खाली बैठने से तो यही अच्छा था, इसलिए मैंने इस काम के लिए हाँ कर दी| दिषु साथ में था तो मेरे लिए एक फायदा ये भी था की मैं शाम को करुणा से मिलने के लिए आराम से निकल सकता था|

खैर आज शाम करुणा को घर जल्दी जाना था क्योंकि उसके घर पर मेहमान आये थे तो मेरा उससे मिलने का कोई प्लान नहीं था| इसलिए मैं शाम को जल्दी घर आ गया और माँ को दिषु से हुई बात बताई, उस समय पिताजी नहीं आये थे तो माँ को मुझसे अकेले में कुछ ख़ास बात करने का मौका मिल गया;

माँ: ठीक है बेटा जो तुझे ठीक लगे वो कर!

मेरी दिषु के साथ ऑडिट करने की बात सुन माँ ने प्यार से मेरे सर पर हाथ फेरते हुए कहा|

माँ: अच्छा मुझे एक बात सच-सच बता, तुझे कोई लड़की पसंद है?

माँ का ये सवाल सुन कर मैं आँखें बड़ी कर के उन्हें देखने लगा|

माँ: देख बेटा आज तेरे पिताजी से मेरी बात हुई थी, वो कह रहे थे की तू उनसे शायद शर्म करे और इस सवाल का जवाब न दे इसलिए मैंने तुझसे ये सवाल पुछा|

माँ की बात सुन मेरा सर झुक गया क्योंकि मैं उन्हें बताना चाहता था की मैं भौजी से बहुत प्यार करता हूँ पर उसका कोई फायदा नहीं होता क्योंकि वो तो मुझे भुला चुकी थीं!

माँ: बेटा मुझसे तो शर्म मत कर, मैं तो तेरी माँ हूँ!

माँ ने मेरे सर झुकाने को मेरी शर्म से जोड़ा और मुझे एहसास हुआ की मुझे माँ के सामने खुद को सामन्य दिखाना होगा|

मैं: नहीं माँ ऐसी कोई बात नहीं है! मेरी जॉब लगने के बाद आप जब बोलोगे, जिससे बोलोगे मैं शादी कर लूँगा|

ये शब्द अनायास ही मेरे मुँह से निकले क्योंकि अब मैं अपने माँ-पिताजी की ख़ुशी चाहता था उसके लिए अगर शादी करनी पड़े तो वो भी कर लूँगा! शायद शादी करने से जो जिम्मेदारियाँ सर पर पड़ेंगी उससे मैं भौजी को भुला सकूँ! मेरी बात सुन कर माँ को मुझ पर बहुत गर्व हुआ और उन्होंने मेरे सर पर हाथ फेरा|



रात को पिताजी आये तो मैंने उन्हें भी दिषु वाली बात बताई तो उन्होंने; 'ठीक है' कहा, मैं जानता था की वो नहीं चाहते की मैं इस तरह छोटे-मोटे काम करूँ पर खाली बैठने से तो अच्छा ही था| खाना खाने के बाद सोते समय मेरी करुणा से whats app पर चैट हुई तो मैंने उसे दिषु के साथ काम करने की बात बताई, उसने मेरी बात का समर्थन किया| कुछ दिन बाद मुझे दिषु ने बताया की कोहट एन्क्लेव में एक ऑडिट है और उसके लिए उसने मुझे अपने बॉस से मिलने बुलाया, मैं लंच में उसके ऑफिस पहुँचा और वहाँ उसके बॉस से मेरी अच्छे से बात हुई, उन्होंने हमें बता दिया की कितने क्वार्टर का काम है तथा मुझे कितने पैसे मिलेंगे| अगले ही दिन मैं, दिषु और उसके बॉस कोहट एन्क्लेव पहुँचे और वहाँ उन्होंने मुझे सारा काम समझा दिया, वो वहाँ दस एक मिनट रुकने के बाद निकल गए| मुझे कॉस्ट ऑडिट का अच्छा तजुर्बा था, पर ये ऑडिट बड़ी सरदर्दी का काम था! मैंने जैसे ही एक क्वार्टर की सेल्स की फाइल माँगी तो चपरासी ने बड़ी-बड़ी फाइलों के दो गट्ठर मेरे सामने रख दिए! उस ढेर को देख मैं सोचने लगा की ये अगर एक क्वार्टर का काम है तो बाकी के दो क्वार्टर की फाइलों का गठ्ठर कितना बड़ा होगा? मुझे हैरानी से गठ्ठर को घूरता देख दिषु मेरे पास आया और मेरी पीठ पर जोरदार हाथ मारते हुए बोला;

दिषु: क्यों? फ़ट गई?

ये कह कर वो हँसने लगा|

मैं: साले मजे मत ले वरना सारा काम तेरे ऊपर छोड़ कर निकल जाऊँगा!

मेरी धमकी सुन कर अब दिषु की फ़टी!

दिषु: ऐसा मत बोल भाई! देख मैं तुझे एक मस्त तरीका बताता हूँ, ये ले पेंसिल और आँख बंद कर के शुरू और आखरी के बिलों पर टिक मार दे क्योंकि उनमें कुछ गड़बड़ नहीं होती!

मैं: अबे साले मुझे काम मत सीखा! जा कर purchase आर्डर क्लियर कर!

दिषु ये सुन कर मुस्कुराया और चला गया, मुझे कौन सा यहाँ चार्टर्ड अकाउंटेंट की तरह काम करना था?! अपनी 7 महीने की नौकरी मैंने सीखा था की जितना दिल लगा कर काम करोगे उतना ही ज्यादा काम मिलेगा, इसलिए काम ऐसे करो की सैलरी ज्यादा लगने लगे! मैंने सारे बिल randomly चेक किये और शाम होने तक एक क्वार्टर का सारा गट्ठर चेक कर के सेल्स मैच करा दी, बॉस को शक न हो इसलिए मैंने एक पेज पर signing authority के change होने पर बिल नंबर लिख दिए| इसके अलावा किसी बिल में तारीक आगे-पीछे थी तो वो भी नोट कर दिया, ताकि बॉस को लगे की मैंने बहुत बारीकी से काम किया है|

जैसे ही 5 बजे मैं उठ खड़ा हुआ और दिषु ये देख कर मुस्कुराते हुए बोला;

दिषु: चल दिए अपनी आशिक़ की ड्यूटी पर?

मैं: चल बे! वो मेरी दोस्त है बस!

इतना कह कर मैं चल दिया और करुणा से आज midway में मिला, आज मैंने काम के चककर में लंच नहीं किया था तो दोनों ने मेट्रो स्टेशन की सीढ़ियों पर बैठ कर माँ द्वारा दिया हुआ मेरा लंच खाया, फिर उसे घर छोड़कर मैं अपने घर लौट आया| मेरा ये नियम चलता रहा, ऑडिट खत्म हुआ तो अगले ऑडिट मिलने तक मैंने पिताजी के साथ रहना शुरू कर दिया| इसी बीच मिश्रा अंकल जी ने हमें वो नया प्रोजेक्ट दिया, उन्होंने ग्रेटर नॉएडा में एक जमीन खरीदी थी और उस पर काम लगभग खत्म हुआ था| उन्होंने पिताजी को प्लंबिंग, कारपेन्टरी और बिजली का सारा काम सौंप दिया! काम बहुत बड़ा था और पैसा भी बहुत बड़ा था, मेरे लिए ये पूरा नया अनुभव था| मैंने पूरी एक रात पिताजी के साथ बैठ कर सारा हिसाब-किताब किया, मटेरियल कहाँ से आएगा और कितना लगेगा सब का हिसाब लगा कर मैंने रिपोर्ट बनाई| काम पूरा होने पर पूरे 45,000/- रूपयों का मुनाफ़ा था! मुनाफा ज्यादा था तो खर्चा भी ज्यादा था, पिताजी के पास पैसों की कमी थी तो मैंने कुछ पैसे तो मेरी saving से डाले और बाकी मैंने मिश्रा अंकल जी से एडवांस में माँगे| काम शुरू हुआ पर अब मुझे पैसे और बचाने थे ताकि मुनाफ़ा बढे इसलिए मैंने पिताजी से ओवरटाइम कराने को कहा, पिताजी ने मना किया तो मैंने ओवरटाइम के गणित को पिताजी को अच्छे से समझाया| तीन महीने के काम को मैंने फिलहाल 3 दिन तक कम कर दिया था, मैंने और गुना भाग किये और पिताजी से लेबर बढ़ाने को कहा पर पिताजी ने पैसों के कारन मना कर दिया, मैंने भी सोचा की ज्यादा लालच ठीक नहीं| इसी बीच मुझे एक दो दिन की नई ऑडिट मिली, पिताजी ने मना किया पर मैं ने थोड़ी जिद्द की तो पिताजी आगे कुछ नहीं बोले, उन्हें नाराजगी न हो इसलिए मैंने ऑडिट के लिए जल्दी जाना शुरू किया और शाम को मैं ठीक 5 बजे साइट पर पहुँच कर पिताजी को घर भेज देता| काम रात 9 बजे तक खींच कर मैं साढ़े दस बजे तक घर पहुँचता, पर मेरी इस डबल 'शिफ्ट' के कारन मैं करुणा से दो दिन नहीं मिल पाया| ये दो दिन मेरे लिए बड़े तक़लीफदायी थे, अब जा कर मुझे ये एहसास हुआ की मुझे करुणा की आदत पड़ गई है!



करुणा से प्यार करने का तो सवाल ही नहीं पैदा होता था, इसलिए नहीं क्योंकि वो गैर धर्म की थी, या उम्र में मुझसे बड़ी थी, या उसका रंग काला था, या उसका जिस्म कमजोर था पर उसकी और मेरी आदतों का कोई मेल नहीं था| मैं पूरब था तो वो पश्चिम, उसकी बहुत सी बुरी आदतें थीं जो मुझे बहुत नापसंद थीं|

वो अपने फ़ोन को साइलेंट कर के रखती थी, जेब में फ़ोन पड़े होने पर भी उसे उसके फ़ोन की vibration महसूस नहीं होती थी!

संडे को वो घर होती थी और देर तक सोती थी, जब की मैं उसे चर्च जा कर mass अटेंड करने को कहता था, उसने कभी मेरी बात नहीं मानी! पूजा-पाठ में मुझे लापरवाही कतई मंजूर नहीं थी और जब वो मेरी बात न मान कर मुझसे बेफज़ूल के तर्क करती तो मुझे बहुत गुस्सा आता था|

आधा संडे तो वो सोते हुए निकालती और जब उठती तब भी मुझे कॉल नहीं करती, एंजेल को गोदी में बिठा कर पिक्चर देखती रहती और शाम को मुझे कॉल करती, अगर मैं बीच में फ़ोन भी करता तो फ़ोन साइलेंट होने के कारन वो कॉल नहीं उठाती!

जब कभी हम मिलते और उस बीच अगर उसके किसी दोस्त का फोन आ जाता तो वो मुझे भूल कर अपने उस दोस्त से बात करने में मशगूल हो जाती!

मुझे मिलने के लिए जल्दी बुला लेती और मुझे पौना घंटे तक इंतजार करवाती! जब मैं उसके लेट आने की शिकायत करता तो कहती की; 'मैंने बोला जल्दी आने को?' ये सुन कर गुस्सा तो बहुत आता पर मैं इस बात को छोड़ देता!

सबसे सरदर्दी के बात तो वो उसके ex boyfriend का वर्णन, जिसे सुन कर मेरा सर दर्द करने लगता था!

इन सब बुराइयों के कारन मैं फिर भी उससे मिलता था, इस उम्मीद में की मेरे साथ रह-रह कर वो धीरे-धीरे सम्भल जायेगी लेकिन वो कभी नहीं सुधरी| जब रिश्ता नया-नया हो तो आप सब गलतियों को नजरअंदाज करते हो, बस वही मैं भी कर रहा था!

वहीं करुणा अपनी खामियाँ जानती थी पर उसे सुधारने के लिए कुछ नहीं करती थी, एक दिन उसने मुझे साफ़-साफ़ कह दिया; 'आपको ठीक लग रे तो friendship कर नहीं तो छोड़ दे! मैं किसी के लिए खुद को change नहीं करते!' उसकी दो टूक बात सुन कर मुझे बहुत गुस्सा आया और मैंने उसका फ़ोन काट दिया| उसे पता चल गया था की मुझे उसकी बात का कितना बुरा लगा है, इसलिए उसने ताबड़तोड़ फ़ोन करना शुरू कर दिया| आखिर मैंने उसका फ़ोन उठा लिया और उसने रोते हुए 'सॉरी' की रट लगा दी, उसके आँसूँ मुझे बर्दाश्त नहीं होते थे इसलिए मैंने उसे माफ़ कर दिया| उस दिन से वो डरी हुई रहने लगी, उसे लगता था की मैं उसकी दोस्ती तोड़ दूँगा| एक दिन उसने अपना ये डर मुझसे साझा किया;

करुणा: मिट्टू आप एक दिन मेरा friendship छोड़ देते न?!

उसका सवाल सुन कर मुझे अजीब लगा और मैंने उसे आश्वासन देते हुए वादा किया;

मैं: I promise मैं ये दोस्ती कभी नहीं तोडूँगा, भले ही आप इसे तोड़ दो!

ये सुन कर वो जोश में बोली;

करुणा: मैं ये friendship कभी नहीं तोड़ते!

मैं: अगर फिर भी आपका मन हो दोस्ती तोड़ने का तो मुझे एक बार कारन बता देना और मेरा जवाब सुन लेना उसके बाद मैं आपको कभी कॉल नहीं करूँगा!

भौजी द्वारा बिना मेरी बात सुने मुझे छोड़ देने के कारन मैंने ये बात करुणा से कही ताकि कम से कम वो तो भौजी की तरह न करे! इधर ये सुन कर करुणा को मेरे अंदर के दुःख का एहसास हुआ और उसने मेरे जख्म को थोड़ा कुरेदते हुए कारन पुछा;

करुणा: आप ऐसा क्यों बोल रे मिट्टू?

मैं: बस ऐसे ही!

ये कह कर मैंने बात पलट दी!



अपने सवाल का जवाब तो नहीं मिला, अलबत्ता मैं इन बातों को याद करके और उलझ गया| ये तो साफ़ था की मैं उससे प्यार नहीं करता क्योंकि मेरे दिल में अब भी भौजी के लिए जज्बात दबे हुए हैं, वो जज्बात या तो गुस्से के रूप में थे या फिर शायद अब भी कहीं प्यार बच गया था!



अगले दिन से मैंने पिताजी को साइट पर आने से मना कर दिया, ऑडिट निपटा कर मैं सीधा करुणा से मिलने पहुँचा और आज उससे मिल कर दिल को सुकून मिला था| दिल ने दिमाग को ज्यादा सोचने से रोका और कहा; 'आदत है तो आदत सही, कुछ नुक्सान तो नहीं कर रही न?' ये सुन कर दिमाग शांत हो गया| कुछ दिन बाद ऑडिट निपटी और मैंने साइट का काम संभाल लिया, पर मैं ठीक शाम 5 बजे गोल हो जाता| पिताजी पूछते तो कह देता की मैं दिषु से मिलने जा रहा हूँ या फिर कोई भी बहना बना देता| पिताजी इस कर के कुछ नहीं कहते क्योंकि मैं रात 8 बजे तक घर पहुँच जाता था| कुछ दिन बाद करुणा ने अचानक दोपहर को फोन कर के बताया की उसे जयपुर में सरकारी नौकरी मिली है! उसकी आवाज से ख़ुशी झलक रही थी, पर मैं एक सेकंड के लिए सोच में पड़ गया था की अब हम दोनों कभी नहीं मिल पाएंगे, फिर अगले ही पल मेरे मन ने मुझे लताड़ा और कहा की मैं इतना स्वार्थी कैसे हो सकता हूँ? सरकारी नौकरी होने से करुणा की जिंदगी स्थिर हो जाएगी, पर दिल इस ख्याल को मानने से मना कर रहा था!

मैं: Congratulations dear!

मैंने नकली मुस्कान चिपकाए हुए कहा|

करुणा: मिट्टू मेरे को जयपुर जाना..... आप चलते?

उसके ये सवाल सुन कर मुझे हाँ करने में सेकंड नहीं लगा;

मैं: हाँ!

फिर याद आया की मैं अपने घर में क्या कहूँगा? और चलो मैं तो फिर भी झूठ बोल दूँगा पर करुणा का क्या? वो क्या बोलेगी की वो किसके साथ जा रही है?

मैं: Dear आप अपने घर पर क्या बोलोगे?

मैंने सीधा सवाल पुछा तो करुणा ने बिना सोचे जवाब दिया;

करुणा: मैं कहते की मैं आपके साथ जा रे|

ये सुन कर मैं चौंक गया, मुझे उससे इतने आसान जवाबों की उम्मीद नहीं होती थी| मेरे साथ वो हमेशा दिल से सोचती थी, दिमाग का उपयोग वो न के बराबर करती थी!

मैं: आपकी दीदी कुछ नहीं बोलेगी?

करुणा: वो सब मैं manage करते, आप मुझे ले जाते या नहीं?

करुणा ने किसी बच्चे की तरह कहा| मेरा जवाब तो पहले से ही हाँ था, मैंने उसे शाम को मिलने को कहा ताकि हम जाने की planning कर पायें|

शाम को जब हम मिले तो करुणा ने मुझे सारी बात विस्तार से बताई, ये उसकी हरबार की आदत थी, वो हर खबर को किसी news anchor की तरह आधी ही सुनाती थी!

करुणा: मैंने last year एक जॉब का फॉर्म ब...भ...भरे थे! आज सुपह (सुबह) में मेरे को एक कॉल आते| वो कॉल एक सर का थे और वो मुझे फ़ोन कर के बहुत डाटते..... बोलते की मैं irresponsible है, मैंने website पर notification नहीं पढ़े थे! मैं बोला मुझे पता नहीं ता की वेबसाइट पर notification आते, तो वो मुझे और डाँटते और बोलते की मेल पर भी वो notification आया पर मैं बोला की मेरे पास कोई notification नहीं आये! वो मुझे बहुत डाँटा और कल आने को बोला, मैंने बोले मैं इतना जल्दी कैसे आते तो वो गुस्सा कर के बोला की परसों नहीं आ रे तो वो मेरा नाम cancel कर देते! फिर मैंने अपना मम्मा को कॉल कर के सब बताया तो वो बोले की government job है इसे मत छोड़! मैंने दीदी को बताया तो वो बोले की तू चले जा, मेरे पास टाइम नहीं इसलिए मैंने आपको पुछा!

इधर उसकी बात सुनते-सुनते मैंने घर पर बोले जाने वाला झूठ सोच लिया था|

मैं: ट्रैन की टिकट तो मिलेगी नहीं, इसलिए बस से चलते हैं|

मैंने फ़ोन निकाला और दिषु से बस के बारे में पुछा, उसने बताया की RSRTC की website से टाइम-टेबल चेक कर लूँ| मैंने ऑनलाइन चेक किया तो बीकानेर हाउस से super deluxe volvo bus चलती थी, मैंने करुणा से जाने का समय पुछा तो उसने रात वाली बस लेने को कहा, मैंने अगले दिन की रात 9 बजे वाली बस की दो टिकट बुक कर ने लगा| टिकट करीब 800/- रुपये की थी और टिकट के पैसे देख कर करुणा मना करने लगी, मैंने उस बहुत समझाया तो वो बोली की वो मुझे अपनी अगली सैलरी से वापस कर देगी| टिकट बुक हुई तो करुणा पूछने लगी;

करुणा: मिट्टू आप मम्मा को क्या बोलते?

मैं उसकी बात समझ गया और अपने झूठ से पर्दा हटाते हुए बोला;

मैं: उनको ये तो नही बोल सकता की मैं आपके साथ जा रहा हूँ, तो मैं बोल दूँगा की जयपुर में मेरी ऑडिट है|

ये सुन कर करुणा को ग्लानि होने लगी;

करुणा: आप मेरे लिए झूठ बोलते?

मैं: यार सच बोलूँगा तो कोई जाने नहीं देगा, सुबह जा कर रात को लौट आना होता तो मैं शायद समझा भी लेता पर रात रुकने के लिए माँ-पिताजी मना कर देंगे!

मैंने करुणा की बात का जवाब तो दिया पर इस जवाब से वो उदास हो गई, मैंने उसे थोड़ा प्यार से समझाया और किसी तरह मना लिया| उस दिन करुणा को घर छोड़ मैं घर जा रहा था, मैंने अपने झूठ को पक्का करने के लिए दिषु को फ़ोन किया और उसे सब सच बता दिया, पर वो साला मेरी बात गलत जगह खींचने लगा;

दिषु: अबे बहुत सही! ले जा भाभी जी को!

उसे लग रहा था की मैं और करुणा घूमने जा रहे हैं!

मैं: अबे पागल मत बन! वो बस दोस्त है, उसकी जॉब का सवाल है इसलिए जा रहा हूँ|

दिषु: हाँ तो मैं कौन सा कुछ 'और' कह रहा हूँ!

उसने 'और' शब्द पर बड़ा जोर डाल कर कहा|

मैं: यार उसके बारे में ऐसा मत बोल| वो ऐसी-वैसी लड़की नहीं है, बहुत अच्छी लड़की है!

मैंने दिषु को प्यार से समझाया तब जा कर उसने मेरी टाँग खींचना बंद किया|

मैं: अगर माँ-पिताजी ने तुझसे पुछा तो तू यही कहियो की मैं जयपुर ऑडिट के लिए अकेला गया हूँ|

मैंने अपना झूठ फिर से दोहराया ताकि उसके भेजे में ये बात बैठ जाए|

दिषु: हाँ-हाँ मैं देख लूँगा, कह दूँगा एक ही आदमी का काम था इसलिए सर ने सिर्फ तुझे भेजा है|

दिषु ने मुझे इत्मीनान दिलाते हुए कहा|



मैं घर पहुँचा और अपना पहले से ही फूलप्रूफ किया झूठ अपने माँ-पिताजी के सामने परोस दिया, पिताजी ने तो कुछ नहीं कहा और जाने की इजाजत दे दी पर माँ ने मुझे पहले की तरह हिदायतें देनी शुरू कर दी| खाने-पीने से ले कर मेरे रहने तक की सारी हिदायतें उन्होंने दोहरा दी, मैंने उनसे थोड़ा मजाक करते हुए कहा;

मैं: माँ ऐसा करता हूँ आपकी सारी बातें लिख कर लैमिनेट करवा लेता हूँ ताकि आपको बार-बार दोहराना न पड़े!

मेरा मजाक सुन माँ ने प्यार से मेरी पीठ पर हाथ मारा| जब से मैंने माँ से शादी के लिए हाँ की थी तब से माँ-पिताजी ने मुझे ये बात रोज-रोज याद दिलानी शुरू कर दी थी, वो ये बात मुझे सीधे-सीधे याद नहीं दिलाते थे बल्कि बात गोल घुमा कर कहते थे|

पिताजी: अरे शादी लायक हो गया तेरा लाल और तू अब भी इसे बच्चों की तरह हिदायतें देती रहती है!

पिताजी ने शादी वाली बात मुझे सुनाते हुए कहा|

माँ: ये कितना भी बड़ा हो जाए, रहेगा तो मेरा बेटा ही|

माँ ने मेरे सर हाथ फेरते हुए कहा| माँ-पिताजी का प्यार देख कर मुझे उनसे झूठ बोलने की ग्लानि तो हो रही थी, पर मैं ये सब स्वर्थी हो कर नहीं कर रहा था, मेरे इस झूठ से करुणा को सरकारी नौकरी मिल रही थी| बस यही सोच कर मैंने खुद को समझा लिया|



तो जयपुर जाने का सारा प्लान सेट था, रात की बस हमें तड़के सुबह जयपुर उतारती, फिर हमें एक होटल में दो अलग-अलग कमरों में थोड़ा आराम करना है, फिर नाहा धो कर सीधा ऑफिस| ऑफिस से काम निपटा कर वापस होटल, नहाओ-धोओ और रात की बस से वापस दिल्ली| एक बात जर्रूर थी, मैं आजतक दिल्ली के बाहर जब भी गया तब मैं किसी के साथ होता था फिर चाहे वो मेरे माँ-पिताजी हों या फिर ऑडिट पर ले जाने वाले बॉस, इसलिए मुझे कभी खुद जिम्मेदारी नहीं लेनी पड़ी, परन्तु इस बार मुझे खुद सारी जिम्मेदारी उठानी थी, न केवल अपनी बल्कि एक लड़की की भी, बस यही सोच कर मुझे खुद पर बहुत गर्व हो रहा था की मैं इतना बड़ा हो चूका हूँ की आज एक लड़की की जिम्मेदारी उठा रहा हूँ|

शाम 6 बजे करुणा का फ़ोन आया और उसने मुझे कहा की मैं उसे घर से pick करूँ! मुझे उसकी ये बात समझ में नहीं आई की भला मैं उसे घर से क्यों pick करूँ?! पर मैंने उस समय इस बात को इतनी तवज्जो नहीं दी और सात बजे उसे लेने उसके घर पहुँचा, उसकी दीदी और करुणा दोनों नीचे खड़े थे जो मैंने कुछ दूर से पहले ही देख लिया था, तो मैंने थोड़ा नाटक करते हुए उन्हें ऐसे दिखाया जैसे मैं यहाँ पहलीबार आया हूँ| मेरी ये चालाकी भाँप कर करुणा मुस्कुराने लगी, वहीं उसकी दीदी को यक़ीन हो गया की मैं यहाँ पहलीबार आया हूँ|

करुणा की दीदी: मानु...आप इधर से कहाँ से आ रहे हो?

दीदी की हिंदी करुणा के मुक़ाबले बहुत अच्छी थी| इधर अपना झूठ बरकरार रखने के लिए मैं जानबूझ कर उलटे रास्ते से लम्बा चक्कर लगा कर आया था|

मैं: वो actually दीदी मैंने आपका एड्रेस पुछा तो एक आदमी ने मुझे गलत गली में भेज दिया, फिर वहाँ से पूछते-पूछते घुमते-घुमते हुए मैं यहाँ पहुँचा|

मैंने बात बनाते हुए कहा| फिर दीदी ने करुणा को मेरे सामने सारी चीजें संभाल के रखने का दिखावा किया और अंत में मुझसे कहा;

करुणा की दीदी: मानु अपना और इसका ध्यान रखना|

उनकी बात में मुझे थोड़ी सी चिंता दिखी, इसलिए मैंने उन्हें आश्वस्त करने के लिए कहा;

मैं: दीदी कल सुबह पहुँचते ही आपको फ़ोन करेंगे और फिर निकलते समय भी|

इतने में पीछे से ऑटो आया और मैंने उसे रोक कर बीकानेर हाउस के लिए पुछा| हम दोनों ऑटो में बैठ गए और दीदी को हाथ हिला कर bye किया| ऑटो कुछ दूर आया होगा की करुणा बोली;

करुणा: आपको पता मैंने आपको घर लेने क्यों बुलाते?

करुणा का सवाल सुन मैंने न में गर्दन हिलाई|

करुणा: कुछ दिन पहले एक न्यूज़ आते की एक लड़का और लड़की बस में जाते, बस में बहुत कम लोग ता| दो लोगों ने लड़के को बस से बाहर फेंक देते और लड़की के साथ रेप करते!

ये सुन कर मैं आँखें फाड़े करुणा को देखने लगा! उसकी बात ने मेरे गर्व को तोड़कर चकना चूर कर दिया था|

करुणा: क्या हुआ मिट्टू?

करुणा मुस्कुराते हुए बोली|

मैं: इसीलिए आपने मुझे घर लेने आने को कहा था न की अगर कुछ गड़बड़ हो तो आपका दीदी मेरे को पुलिस में दे दे?!

मैंने अपने डर को छुपाने के लिए थोड़ा मजाक करते हुए कहा| मेरी बात सुनकर करुणा हँस पड़ी और हमारा बीकानेर हाउस पहुँचने का सफर हँसी-ख़ुशी शुरू हुआ| 10 मिनट बाद करुणा ने अपने हैंडबैग से rosary निकाली और ऑटो में बैठे-बैठे pray करने लगी| ये देख कर तो मैं और भी डर गया, मुझे लगने लगा की कहीं मेरा अति आत्मविश्वास कोई मुसीबत न खड़ी कर दे?! इसलिए मैंने भी ऑटो में बैठे-बैठे प्रार्थना शुरू कर दी; 'हे भगवान हमें अपने काम में सफल करना और मुझे शक्ति देना की मैं करुणा की रक्षा कर सकूँ!' मैंने आँखें मूँद कर भगवान से मन ही मन प्रार्थना की| इधर मुझे आँखें बंद किये हुए प्रार्थना करते देख करुणा के चेहरे पर मुस्कान आ गई, पर उसने कुछ नहीं कहा|



कुछ देर में हम बीकानेर हाउस पहुँचे और बस का पता करके waiting हॉल में बैठ कर इंतजार करने लगे, हॉल में एक टीवी लगा था जिसमें टॉलीवूड की कोई फिल्म दिखा रहे थे| वो फिल्म हिंदी में dubbed थी और उसके एक्शन सीन देख कर हम दोनों को बहुत हँसी आ रही थी, कुछ समय पहले जो डर मुझे डरा रहा था वो अब फुर्र हो चूका था| कुछ समय में अनाउंसमेंट हुई की जयपुर जाने वाली बस लग चुकी है तो हम दोनों बाहर आये और अपना सामान ले कर बस में चढ़ गए| अपनी-अपनी सीट पर बैठ कर दोनों ने अपने-अपने घर फ़ोन कर दिया और बता दिया की हम बस में बैठ गए हैं| करुणा की दीदी तो जानती थीं की मैं करुणा के साथ हूँ, पर मेरे घर में कोई नहीं जानता था की करुणा मेरे साथ है!

बस चली तो मैंने अपने बैग से माँ द्वारा पैक किये हुए आलू के परांठे निकाले, आलू के परांठे देखते ही करुणा की आँखें किसी छोटे बच्चे की तरह चमकने लगीं| मैं जानता था की करुणा को आलू के परांठे कितने पसंद हैं इसलिए मैंने जानबूझ कर माँ से आलू के परांठे बनवाये थे| साथ में माँ ने आम का अचार दिया था जो करुणा की दूसरी सबसे मन पसंद चीज थी! करुणा ने दबा के परांठे खाये और पेट भरने के बाद अब उसे सोना था|



वहीं Volvo बस में सफर करना मेरा सपना था और आज मैं इस सपने के पूरा होने पर बहुत खुश था| आजतक पिताजी के साथ रोडवेज की बसों में मैंने कई बार सफर किया था, पर Vovo उसके मुक़ाबले में कई ज्यादा आराम दायक थी! कहाँ रोडवेज की उधड़ी हुई सीट और कहाँ volvo की नरम-नरम सीट जिसमें आप आराम से अपनी कोहनी टिका कर, पाँव footrest पर रख कर पीठ से कुर्सी के पीछे वाली गद्दी को पीछे धकेल कर आराम से बैठ सकते थे| कहाँ वो सड़क के हर गढ्ढे पर हिचकोले खाती हुई, घड़घड़ करती हुई रोडवेज की बस और कहाँ ये low floor वाली बिना आवाज किये चलने वाली शानदार बस! कहाँ वो रोडवेज की खिड़की से आती बदबूदार हवा और कहाँ volvo बस का शानदार AC जिसने एक पल के लिए करुणा को काँपने पर मजबूर कर दिया था! मैं चुपचाप बैठा रोडवेज की बस और volvo बस में तुलना कर रहा था|



उधर बस में यही कोई 10 यात्री थे और सब के सब आदमी थे, करुणा इस बस में अकेली लड़की थी| जब ड्राइवर ने बस के अंदर की लाइट बंद की तब मैंने पीछे मुड़ कर देखा और मुझे इतने कम लोग देख कर मुझे थोड़ी चिंता होने लगी! ये सभी यात्री पूरी बस में फैले हुए थे और अलग-अलग सीट घेर कर बैठे थे, मुझे लगा था की शायद IFFCO चौक से शायद और यात्री चढ़ेंगे पर ऐसा नहीं हुआ| वहीं करुणा बड़े आराम से कुर्सी पर बैठी ऊँघ रही थी, उसने न तो इस बात पर गौर किया था की बस में वो अकेली लड़की है न ही उसे एक लड़के के साथ रात में बस से सफर करने का कोई डर था| वो तो बेख़ौफ़ सो गई पर मैं पलट कर ये देखने लगा की हमारे आस-पास कितने लोग मौजूद हैं| हमारे आगे एक लड़का दोनों सीट पर फ़ैल कर बैठा था, हमारे बगल वाली सीट पर कोई नहीं बैठा था, हमारे पीछे वाली सीट भी खाली थी और उसके पीछे एक आदमी सीट पर फ़ैल कर सो रहा था| इसी तरह से पूरी बस में जितने आदमी थे सब के सब दोनों सीटों पर फ़ैल कर सो रहे थे| ये देख कर मुझे थोड़ा इत्मीनान हुआ, सामने की तरफ बस का सबसे बड़ा शीशा था जिसमें से मुझे सामने का ट्रैफिक साफ़ दिख रहा था| रात का सन्नाटा और उस सन्नाटे में आस-पास जलती हुई ढाबों की रंग-बिरंगी लाइटें, ये देख कर मेरे दिल को एक अजीब सा चैन मिल रहा था| इसी चैन ने मेरी इस बेचैनी को खत्म कर दिया था|

मुझे याद आया की जब माँ-पिताजी के साथ बस से रात को सफर करता था तब मैं थोड़ी देर जागता था, उसके बाद कभी पिताजी की गोदी तो कभी माँ की गोदी में सर रख कर सो जाता था, पर आजकी बात और थी, आज मुझ पर एक लड़की की जिम्मेदारी तथा volvo बस में पहले सफर दोनों का जोश सवार था! यही जोश मुझे सोने नहीं दे रहा था, मैं चुपचाप बैठा चेहरे पर मुस्कान लिए हुए सामने की ओर सड़क को देख रहा था| मेरे आलावा बस एक ड्राइवर था जो जाग रहा था, वरना पूरी बस में सन्नाटा पसरा हुआ था!



इधर करुणा को बहुत गहरी नींद आ रही थी, नींद में उसका सर मेरे कंधे से छुआ तो मैं थोड़ा चौंक गया, इन चार महीनो में ये हम दोनों का पहला स्पर्श था| मुझे लगा की अचानक से करुणा का सर मेरे कंधे पर आने से वो उठ जाएगी पर वो तो बड़े चैन से मेरे कंधे पर सर रख कर सो रही थी| इधर मुझे ये एहसास बहुत ही अजीब लग रहा था क्योंकि आज पहलीबार किसी लड़की ने मुझे इस कदर छुआ था| अब उसे जगा कर उसकी नींद खराब करने का मन नहीं हुआ तो मैंने कान में हेडफोन्स लगाए और 'यूँ ही चला चल राही ' सुनने लगा| ये गाना सुनते हुए मन में एक ख्याल आया की हम इंसान तो इस सड़क पर से चलते हुए अपनी मंजिल तक पहुँच जाते हैं, पर ये सड़क हमेशा यहीं रहती है, क्या इसका मन नहीं करता होगा की जिन लोगों को ये उनकी मंजिल तक पहुँचाती है वो एक पल ठहर कर इसे शुक्रिया करें?! इस एक ख्याल के आते ही नजाने क्यों मैंने खुद की तुलना इस सड़क से करनी शुरू कर दी, मैं भी तो इस सड़क की ही तरह पहले भौजी को उनकी खुशियों की तरफ ले गया था और अब मैं करुणा को उसकी नई जिंदगी की शुरुआत की ओर ले जा रहा हूँ!

पर मुझ में ओर इस सड़क में बहुत बड़ा फर्क था, ये सड़क मेरी तरह स्वार्थी नहीं थी, शिकायत नहीं करती थी! हालाँकि मैंने भौजी या करुणा के साथ कभी किसी चीज की उम्मीद नहीं की, उनके लिए मैंने आजतक जो भी किया उसके बदले में मैंने बस प्यार और साथ ही माँगा था, पर प्यार या साथ माँगना भी तो एक तरह से स्वर्थी होना ही था! ये ख्याल आने से मैंने खुद को एक स्वार्थी की उपाधि दे दी, पर मुझे इसका कोई गिला नहीं था| प्यार और साथ माँगना कोई पाप नहीं था?!



करुणा: मिट्टू आप सोते नहीं?

करुणा के बोल सुन मैं अपनी सोच से बाहर आया और मुस्कुरा कर बोला;

मैं: यार इतना शांत माहौल है, रंगबिरंगी लाइट्स हैं, अगल-बगल से बसें और ट्रक गुजर रहे! इन्हें छोड़कर सोने का मन नहीं कर रहा|

ये सुन कर करुणा मुस्कुराई और बोली;

करुणा: आप क्या poet है?

मैंने बस मुस्कुराते हुए हाँ में जवाब दिया| उसने आगे कुछ नहीं कहा और खिड़की से सर लगा कर सोने लगी| मैं वापस सड़क, बसें और ढाबे की रंग-बिरंगी लाइट देखने लगा|

कुछ समय बाद मुझे लगा की करुणा ठीक से सो सके इसलिए मैं उठ कर पीछे वाली सीट पर बैठ गया, पीछे वाली सीट पर बैठने का फायदा ये हुआ की मुझे खिड़की के पास बैठने का मौका मिल गया और मैं वहाँ से दूसरी सड़क पर गुजरती हुई गाड़ियाँ देखने लगा! खिड़की से आती-जाती गाड़ियाँ और ट्रक देखने में बड़ा मजा आ रहा था, उन कुछ पलों के लिए मैं सारी चिंताएँ भूल गया था| कुछ देर बाद बस ने एक हॉल्ट लिया, मुझे बाथरूम जाना था तो मैंने करुणा को बेमन से उठाया और उससे पुछा की उसे 'फ्रेश' होना है क्या? करुणा को बहुत जोरदार नींद आई थी इसलिए उसने 'न' कहा और मैं अकेला बाथरूम चला गया| बाथरूम हो कर मैं जल्दी से लौट आया क्योंकि मुझे डर था की मेरी गैरहाजरी में करुणा के साथ कुछ गलत न हो जाए?! मैं फटाफट लौटा तो देखा की करुणा दोनों सीटों पर पैर फैला कर लेटी हुई सो रही है| मैं पुनः करुणा के पीछे वाली सीट पर पाँव फैला कर बैठ गया, 10 मिनट में सब लौट आये और बस फिर चल पड़ी| जयपुर आने तक मैंने एक पल के लिए भी आँख बंद नहीं की और खिड़की के बाहर की दुनिया को टकटकी लगाए देखता रहा| कुछ देर बाद करुणा की नींद खुली और मुझे अपने पास ना पा कर वो डर गई, उसे लगा की मैं कहीं उतर गया इसलिए वो डरी-सहमी सी खड़ी हो कर मुझे ढूँढने लगी, उसके खड़े होती ही मैंने अपना दाहिना हाथ हिला कर उसका ध्यान अपनी ओर खींचा| मुझे देख कर उसके दिल को चैन आया और वो मुस्कुराई, उसने मुझे आगे बैठने को कहा तो मैने कह दिया की वो आराम से लेटे, तबतक मैं खिड़की पर बैठ कर अपनी आँखें ठंडी कर लूँ! वो वापस पैर फैला कर लेट गई और मैं अपने काम में लग गया|



सुबह तीन बजे बस ने हमें सिंधी कैंप बस स्टैंड उतारा, वहाँ उतरते ही हम दोनों बाहर की ओर चल पड़े| अभी हम बाहर पहुँचे भी नहीं थे की हमें होटल वाले दलाल मिल गए, हम दोनों को देख कर वो समझ गए की एक लड़का-लड़की यहाँ घूमने और मौज-मस्ती करने आये हैं| उन्होंने हमें 2,000/- से ऊपर के होटल के बारे में बताना शुरू कर दिया पर हम दोनो बस न में गर्दन हिलाते हुए आगे बढ़ने लगे| आगे चलकर हमें 2-4 ऑटो वाले मिल गए और मैंने उनसे 1,000/- तक के होटल के बारे में पुछा तो वो हमें ले कर सीधा बस स्टैंड के सामने वाली लाइन में घुस गया जहाँ गलियों में होटल थे| ये सारा मोमडन इलाका था, ऑटो वाले ने एक होटल के सामने ऑटो रोका और मुझे साथ चलने को कहा| मैंने करुणा को इशारे से ऑटो में बैठे रहने को कहा और मैं ऑटोवाले के साथ होटल में घुसा| ऑटो वाले ने आगे बढ़ कर बताया की साहब और मेमसाब के लिए रूम चाहिए, ये सुन कर होटल के मालिक ने मुझसे सीधा सवाल पुछा;

होटल मालिक: शादी-शुदा हैं?

ये सुन कर मेरी शक्ल पर हवाइयाँ उड़ने लगी! मैं चाहता तो उससे कह सकता था की हमें दो कमरे चाहिए पर ये जगह देख कर मुझे फिल्मों में दिखाए जाने वाला red light area जैसा दिख रहा था, जिसे देख कर मेरा मन बहुत घबरा रहा था, इसलिए मैंने न में गर्दन हिलाई| मेरी ये हालत देख कर मालिक को लगा की मैं यहाँ 'उस' काम के लिए यहाँ आया हूँ तो उसने कमरा देने से साफ़ मना कर दिया| मैं और ऑटो वाला लौट आये और मैंने उससे साफ़ कहा;

मैं: भैया 1,500/- तक का भी होटल चलेगा पर इस तरह गीच-पिच इलाके में होटल मत दिखाओ!

ये सुन कर ऑटो वाले ने एक अच्छी कॉलोनी की तरफ ऑटो घुमाया और एक राधास्वामी होटल के सामने ऑटो रोका| होटल एक खुली जगह में था, बाहर से दिखने में ही वो 4 स्टार होटल लग रहा था इसलिए मैंने करुणा को उतरने को बोला| हम दोनों बैग लेकर होटल में घुसे, करुणा को नींद आ रही थी तो मैंने उसे lobby में सोफे पर बैठने को कहा और मैं reception पर बात करने लगा| मैंने receptionist से कमरों का किराया तो उसने बताया की 1,200/- रुपये प्रति कमरा, मैंने उससे दो कमरे माँगे और उसने मुझसे हम दोनों की ID माँगी| मैंने उसे अपनी ID दी और करुणा से उसकी ID लेने उसके पास आया;

करुणा: कितना पैसा बोल रे?

मैं: 1,200/- एक रूम का, मैं दो रूम बुक कर रहा हूँ.....

आगे मेरी बात पूरी होती उससे पहले ही करुणा एकदम से गुस्सा हो गई;

करुणा: तुम पागल होरे? दो रूम क्यों लेरे? एक लो!

आज करुणा ने पहली बार मुझे 'तुम' कहा था, पर मेरा ध्यान उस वक़्त उस बात पर नहीं गया बल्कि मैं तो उसकी एक रूम में रहने की बात सुन कर उसे आँखें फाड़े देख रहा था! मुझे यूँ आँखें फाड़े देखते हुए करुणा मेरे मन की स्थिति और मेरे दिमाग में उठ रहे सवालों को समझ गई, पर वो उस समय वहाँ कुछ कह कर हम दोनों का मजाक नहीं बनवाना चाहती थी इसलिए वो अपनी ID ले कर खड़ी हो गई| हम दोनों reception पर लौटे और receptionist ने हमारी ओर होटल का रजिस्टर घुमा दिया| मैंने बिना डरे अपना नाम-पता भर दिया और रजिस्टर करुणा के आगे कर दिया, जबतक करुणा अपनी डिटेल भर रही थी तब तक receptionist ने मुझसे पुछा की कितने दिन के लिए रूम चाहिए, मैं उस वक़्त एक लड़की के साथ रूम में रुकने के नाम से हड़बड़ाया था और उसी हड़बड़ी में मैंने जवाब दिया;

मैं: जी बस 5-6 घंटों के लिए!

ये सुन कर receptionist और करुणा दोनों मुझे घूरने लगे, दोनों की आँखें मुझ पर टिकी थीं और मैं मन ही मन सोच रहा था की अब मैंने क्या गलत कह दिया?!

करुणा ने जैसे-तैसे बात संभाली और बोली;

करुणा: हम evening check out करते!

करुणा की बात सुन कर जैसे उसे इत्मीनान हो गया तथा उसने और कुछ नहीं कहा| करुणा के डिटेल भरने के बाद Receptionist ने एकबार रजिस्टर चेक किया, उसने रजिस्टर में relation वाले column की तरफ इशारा करते हुए हमें स्वालियाँ नजरों से देखा! पेन करुणा के हाथ में था तो उसने उस column में 'friends' लिख दिया| इतने में एक लड़का निकल कर आया जिसने हमें पहली मंजिल पर अपना कमरा दिखाया| कमरे में पहले मैंने प्रवेश किया था और घुसते ही मेरी नजर सीधा पलंग पर पड़ी, उसे देखते ही मैं स्तब्ध खड़ा हो गया| इधर करुणा ने दरवाजे पर अंदर से चिटकनी लगाई, उस चिटकनी की आवाज सुन मेरी तंद्रा भंग हुई| एक कुँवारी लड़की के साथ एक कमरे में एक पलंग पर सोने की बात से ही शरीर में चिंता की झुरझुरी छूटने लगी थी!



करुणा बिना कुछ कहे सीधा बाथरूम में घुस गई, इधर मैंने दोनों बैग रखे और अपने बैग से सोने के लिए पहनने वाले कपडे निकालने लगा| एक पजामा और टी-शर्ट निकाल कर मैं मुड़ा तो देखा करुणा मुझे ही देख रही है;

करुणा: आप दो रूम क्यों बुक कर रहा ता? ज्यादा पैसा आ रे?

करुणा ने अपने दोनों हाथ अपनी कमर पर रखते हुए प्यारभरे गुस्से से पुछा|

मैं: यार मैं एक लड़का हूँ...और आप एक लड़की हो.... हम दोनों ...एक कमरे में...एक बेड पर.... कैसे?

मैंने घबराते हुए कहा|

करुणा: हम best friends है न? एक साथ बेड पर सो रे न और तो कुछ नहीं कर रहे!

करुणा ने फट्क से जवाब दिया|

मैं: Dear मैंने आजतक किसी लड़की के साथ room share नहीं किया, फिर मेरे या आपके घर में पता चला तो कितनी प्रॉब्लम होगी?

करुणा: उनको कौन बोल रे की हम एक साथ रुका था?!

करुणा ने आज पहलीबार मेरे सामने झूठ बोलने की हिम्मत दिखाते हुए कहा|

करुणा: और आप पागल है क्या जो उस receptionist को बोल रे की हमें बस कुछ घंटों के लिए रूम चाहिए?

करुणा की आवाज में थोड़ा गुस्सा झलक रहा था और मुझे उसका कारन जानना था;

मैं: तो उसमें क्या गलत था? थोड़ी देर सो कर तो सुबह ऑफिस के लिए निकल जाना था....

मेरी बात अभी पूरी भी नहीं हुई थी की करुणा मेरी बात काटते हुए बोली;

करुणा: आपको पता है की कुछ घंटों के लिए कौन रूम बुक करते?

उसने बहुत गुस्से से कहा| वहीं मैं उसके सवाल से अनजान था, इसलिए मैं मासूमियत भरी नजरों से उसे देखने लगा|

करुणा: Prostitute को ले कर आते तब आदमी लोग ऐसे रूम बुक करते!

ये सुनते ही मैं आँखें फाड़े हैरानी से उसे देखने लगा!

करुणा: मैं आपको Prostitute दिखते?

उसने फिर गुस्से से मुझसे सवाल पूछा|

मैं: I’m really sorry dear! सच में मुझे ये सब नहीं पता था, मैं तो बस.....

इसके आगे मुझसे कुछ बोला नहीं गया और मैंने उसके आगे हाथ जोड़ दिए| करुणा को मेरे चेहरे पर ईमानदारी दिखी और उसने बात को आगे नहीं खींचा| मैं सर झुकाये बाथरूम में घुस कर कपडे बदल कर बाहर आया, मुझमें हिम्मत नहीं हो रही थी की मैं उससे कोई बात करूँ|



मैं पलंग की तरफ बढ़ा तो देखा की करुणा टीवी ऑन कर रही है| तभी उसने पलट कर मुझे देखा और बात शुरू करते हुए बोली;

करुणा: आप सोने के लिए कपडा लाया ता?

मैंने हाँ में सर हिला कर उसकी बात का जवाब दिया|

करुणा: मैं तो लाना ही भूल गए!

करुणा पलंग के दाईं तरफ बैठ गई, मैं बाईं तरफ आया और अपना तकिया उठा कर गद्दे के बीचों-बीच रख दिया जिससे मैं नींद में करुणा की तरफ न चला जाऊँ!

जब से मैं गाँव से आया था तब से मैं दो तकिये ले कर सोता था, एक मेरे सिरहाने होता था और दूसरे तकिये को मैं नेहा समझ कर अपनी छाती से चिपका कर सोता था| अब यहाँ सोने के लिए जो एक तकिया मिला था उसे मैंने हम दोनों के बीच में रख दिया था, जब करुणा की नजर उस बीच में रखे तकिये पर पड़ी तो वो एक दम से बोली;

करुणा: ये तकिया बीच में क्यों रख रे?

उसके सवाल से मैं हैरान हुआ और बोला;

मैं: ये बीच में इसलिए रखा है ताकि मैं नींद में आपकी तरफ न आ जाऊँ|

ये सुन कर करुणा हँसने लगी;

करुणा: आप sleep walking करते?

उसने हँसते हुए पुछा| मैंने भोली सी सूरत लिए न में सर हिलाया|

करुणा: मिट्टू हम दोनों छोटा बच्चा नहीं है, grown up है और सब जानते है| कुछ नहीं होते, आप आराम से सो जाओ!

करुणा ने मुझे बड़े प्यार से समझते हुए कहा| पर मैंने वो तकिया नहीं हटाया और बिना तकिये के सोने लगा, करुणा ने मुझे अपना तकिया देना चाहा पर मैंने मना कर दिया| करुणा ने टीवी बंद किया और मुझे 'good night' कह अपना तकिया सामने कुर्सी पर रख कर सो गई| बस में सारी रात जागने की थकावट थी पर दिल अभी भी थोड़ा बेचैन था, बार-बार दिमाग में एक लड़की की मौजूदगी होने का एहसास दिमाग में कौंध रहा था| जैसे-तैसे मेरी आँख लगी और मैं सो गया, सुबह ठीक 7 बजे मेरा अलार्म बजा| मैं फ़ौरन उठ बैठा और बाथरूम जाकर फ्रेश हो गया, अब करुणा को उठाना था तो बिना उसे छुए कैसे उठाऊँ? इसलिए मैंने उसका फ़ोन उठाया और उसे साइलेंट मोड से हटा कर उसके मुँह के पास रख दिया, फिर अपने फ़ोन से उसके फ़ोन पर कॉल किया| फ़ोन की जोरदार आवाज से करुणा की नींद खुली और उसने अधखुली आँखों से मुझे मुस्कुराते हुए देखा|

मैं: Good Morning dear!

पर उसकी नींद पूरी नहीं हुई थी इसलिए वो फिर से सोने लगी, मैंने उसे बहुत कहा की वो उठ जाए पर वो बस 5 मिनट बोल कर सो जाती| मैं नहाया-धोया और कपडे पहन कर तैयार हो गया, करुणा को जगाने के लिए मैंने टीवी पर कार्टून लगा दिया और पलंग से टेक लगा कर बैठ गया| कार्टून की आवाज सुन कर करुणा उठी और दोनों हाथ फैला कर अंगड़ाई लेने लगी| आज मैं पहलीबार उसे अंगड़ाई लेते हुए देख रहा था और वो दृश्य वाक़ई में मनमोहक दृश्य था! उसके अंगड़ाई लेने से उसके ऊपर के जिस्म के कटाव दिखने लगे थे, ऐसा नहीं था की उसे देख कर मुझे उत्तेजना पैदा हो रही थी बल्कि मैं तो उसकी ख़ूबसूरती को निहार रहा था, पर अगले ही सेकंड मुझे एहसास हुआ की वो मेरी दोस्त है इसलियें मैंने मुँह मोड़ लिया और अपने फ़ोन को ऑन कर के कुछ देखने लगा| शुक्र है की करुणा ने मुझे उसे निहारते नहीं देखा था वरना वो पता यहीं क्या सोचती|



आखिर करुणा उठी और बाथरूम में फ्रेश होने गई, जब वो वापस आई तो उसने बताया की उसे अभी उलटी हुई है| वो अंदर से इतनी कमजोर थी की जल्दी ही बीमार हो जाया करती थी| मैंने उससे पुछा की वो कुछ खायेगी तो उसने मना कर दिया, मैंने थोड़ा जोर दिया तो उसने कॉफ़ी के लिए हाँ बोला| मैंने दो कॉफ़ी मँगाई और तबतक वो नहा-धो कर तैयार हो गई| कॉफ़ी पी कर हम दोनों नीचे आये तो कल रात वाले receptionist ने हमें रोका और एडवांस माँगा, मैंने उसे 1,000/- रुपये एडवांस दिया और साथ ही उससे उस ऑफिस के बारे में पुछा जहाँ मुझे करुणा को ले कर जाना था|

Receptionist: सर मैं ऑटो वाला बुला देता हूँ!

ये कहते हुए उसने ऑटो वाले को फ़ोन कर बुला दिया|

Receptionist: आप वहाँ काम करते हैं?

Receptionist ने थोड़ी रुचि लेटे हुए बात शुरू की|

मैं: Actually she's a nurse and we were called here by the seniors for an interview.

मैंने जानबूझकर ये बात उसे बताई ताकि आज सुबह जो मैंने बेवकूफी भरी गलती की थी उसे संभाल सकूँ और करुणा की छबि खराब न हो| मुझे ऐसा लगा की मेरी बात सुन कर उसके मन में करुणा के लिए अब कुछ भी गलत ख्याल नहीं बचा है|



खैर ऑटो आया और हम दोनों उस ऑफिस पहुँचे जहाँ करुणा को बुलाया गया था| ऑफिस पहुँच कर मैंने करुणा को आगे कर दिया क्योंकि मैं चाहता था की वो खुद कोशिश करे, पर वो बुद्धू थी और लोगों से बात करने में उसे बहुत डर लगता था| Reception काउंटर पर कोई नहीं था तो वो हाथ बाँधे इंतजार करने लगी की वहाँ कोई आ कर बैठे, मैंने वहीं से गुजरते हुए एक चपरासी को रोक कर जे.बी. गुप्ता जी के बारे में पुछा जिन्होंने करुणा को फ़ोन कर के यहाँ बुलाया था| चपरासी ने उनका कमरा नंबर बताया तो मैं करुणा को ले कर ऊपर चल दिया, कमरे के बाहर पहुँचते ही करुणा के हाथ-पैर फूल गए और वो उम्मीद लिए मेरी ओर देखने लगी की मैं आगे आ कर सब बात करूँ| मैंने चौधरी बनते हुए प्रभार संभाला और कमरे का दरवाजा खटखटाया, तो अंदर से आवाज आई;

जे.बी. गुप्ता: आ जाओ!

सबसे पहले मैं अंदर घुसा और मेरे पीछे करुणा घबराई हुई सी घुसी;

मैं: गुड मॉर्निंग सर! मेरा नाम मानु मौर्या है और ये मेरी दोस्त करुणा है, दो दिन पहले आपने कॉल कर के बताया था की नर्स की पोस्ट के लिए इनका सिलेक्शन हुआ है.....

मैं आगे कुछ कहता या पूछता, उसके पहले ही उन्होंने करुणा को थोड़ा डाँट दिया;

जे.बी. गुप्ता: कितनी लापरवाह लड़की हो तुम?! यहाँ लोग नौकरी के लिए मरे जा रहे हैं और तुम्हें मुझे फ़ोन करके बताना पड़ रहा है?

करुणा बेचारी सर झुका कर खामोश खड़ी रही तो मुझे ही मजबूरन उसके बचाव में उतरना पड़ा;

मैं: माफ़ी चाहूँगा सर, दरअसल इनकी माँ की तबियत खराब थी और उनकी देखभाल करने वाली बस ये अकेली हैं, इसी कारन ये अपनी ईमेल और वेबसाइट चेक करना भूल गईं!

मैंने बहुत नरमी से कहा जिसे सुन जे.बी. गुप्ता जी का दिल पिघल गया और उन्होंने हमें अपने डिप्टी भंवर लाल जी से मिलने को कहा| हम दोनों ने उन्हें हाथ जोड़ कर धन्यवाद कहा और हम भंवर लाल जी के कमरे की ओर चल पड़े| वहाँ पहुँचे तो पता चला की वो इस वक़्त मीटिंग में बैठे हैं तो मजबूरन हमें बाहर इंतजार करना था|

15-20 मिनट इंतजार करने के बाद मैं बगल वाले कमरे में घुसा और वहाँ बैठीं एक मैडम को जे.बी. गुप्ता जी से हुई सारी बात बताई, उन्होंने मुझे बताया की अभी थोड़ी देर में लाल सिंह जी आएंगे तथा वो ही फाइल बना कर भंवर लाल जी के पास ले जायेंगे| दस मिनट बाद एक आदमी उस कमरे में घुसने लगा तो मैंने उन्हें रोक कर पुछा की क्या वो ही लाल सिंह जी हैं तो उन्होंने हाँ में सर हिलाया, फिर मैंने उन्हीं सारी बात बताई तो उन्होंने हम दोनों को अंदर बुलाया| उन्होंने एक लिस्ट निकाली और उस लिस्ट में करुणा का नाम ढूँढने को कहा, मैंने करुणा का नाम ढूँढा और उन्हें करुणा के नाम का सीरियल नंबर बताया| फिर उन्होंने उस सीरियल नम्बर की फाइल निकाली और फाइल ले कर भंवर लाल जी के कमरे में घुस गए| 10 मिनट में वो बाहर आये और बोले की हमें लंच के बाद अंदर बुलाया है, तब तक हम बाहर बने पार्क में बैठ सकते हैं|



हम दोनों बाहर पार्क में आ कर बैठ गए, मैंने करुणा को याद दिलाया की वो अपने घर फ़ोन कर के बता दे और तब तक मैंने भी माँ को फ़ोन कर के बता दिया की मैं ऑडिट करने ऑफिस पहुँच चूका हूँ| माँ ने मुझे मेरा ख्याल रखने को कहा तथा खाना ठीक से खाने को कहा और रात में चलते समय फ़ोन करने को कहा| उधर करुणा ने भी अपनी दीदी को फ़ोन कर के मलयालम में गिड़-बिड करके सब कुछ बता दिया|

वहीं पार्क में कुत्ते का एक पिल्ला था जो घांस में कुछ सूँघ रहा था, करुणा ने उसे पुचकारते हुए अपने पास बुलाना शुरू किया| फिर उसने अपने बैग से एक केला निकाला और उसका एक टुकड़ा उसने सामने की ओर डाला जिसे देख वो पिल्ला फ़ौरन आ गया और मजे से केला खाने लगा| धीरे-धीरे करुणा ने वो पूरा केला उसे ऐसे ही टुकड़े-टुकड़े कर के खिला दिया| केला खा कर वो पिल्ला भाग गया, अब करुणा ने अपने बैग में से एक सेब निकाला और मुझे दिया तथा अपने लिए उसने एक और केला निकाला|

मैं: आपका बैग है या फ्रीज?

मैंने मजाक करते हुए कहा| ये सुन कर करुणा जोर से ठहाका मारने लगी!



खैर लंच हुआ और अब मुझे भूख लग आई थी, पर सुबह उलटी होने के डर के कारन करुणा कुछ भी खाने से मना कर रही थी| अब उसके बिना मैं कैसे खाता इसलिए मैंने भी अकेले खाने से मना कर दिया, हारकर करुणा खाना खाने के लिए मानी और हम दोनों कैंटीन पहँचे| वहाँ पहुँच कर देखा तो लाल सिंह जी खाना खा रहे थे, उन्होंने हमदोनों को भी खाने को कहा और खा कर भंवर लाल जी से मिलने जाने को कहा|

मुझे डर था की कहीं फिर से करुणा को उलटी न हो जाए इसलिए मैंने दोनों के लिए कॉफ़ी और बिस्कुट लिए| करुणा जानती थी की मुझे भूख लगी है इसलिए वो खुद गई और एक प्लेट डोसा ले आई| जैसे ही हमें डोसा खाया तो वो मुँह बिदकाने लगी और बोली;

करुणा: छी! ये डोसा है? इससे अच्छा डोसा तो मैं बनाते!

अब मैंने तो सिर्फ बाहर का डोसा ही खाया था और मुझे उस स्वाद में ज्यादा फर्क नहीं मिला, हाँ साम्भर जर्रूर बेकार था|

मैं: ऐसा कर आप जा कर बना के लाओ!

मैंने मजाक किया तो करुणा हँस पड़ी|



हम दोनों ने जल्दी से वो डोसा खत्म किया और भंवर लाल जी के कमरे के बाहर खड़े हो गए, कुछ देर बाद वो लंच कर के लौटे तो हमें बाहर खड़ा पाया| उन्होंने हमारा नाम पुछा और दोनों को अंदर आने को कहा;

भंवर लाल जी: अपने सर्टिफिकेट्स दिखाओ?

मैंने फ़ौरन करुणा की तरफ देखा तो उसने झट से अपनी फाइल निकल कर दी, उन्होंने बड़े इत्मीनान से सारे सर्टिफिकेट देखे और फिर लाल सिंह जी को बुलाया|

भंवर लाल जी: ऐसा करो इनका नियुक्ति पत्र बनाओ|

करुणा नहीं जानती थी की 'नियुक्ति पत्र' क्या होता है, इसलिए वो सवालिया नजरों से मुझे देखने लगी|

लाल सिंह जी: सर गुप्ता जी तो निकल गए, वो तो 2 दिन बाद आएंगे!

भंवर लाल जी: ठीक है जब वो आ जाएँ तो उनसे दस्तखत करवा कर इनके एड्रेस पर भेज देना|

हम तीनों बाहर आये और लाल सिंह जी ने करुणा के सारे सर्टिफिकेट की कॉपी माँगी, अब करुणा के पास फोटो कॉपी नहीं थी! उस वक़्त मुझे उसकी मूर्खता पर बड़ा गुस्सा आया की वो सरकारी दफ्तर में आई है और अपने सर्टिफिकेट्स की फोटोकॉपी तक नहीं लाई! उसकी जगह कोई और होता तो मैं बहुत जोर से झाड़ता, पर जैसे-तैसे मैंने अपना गुस्सा पीया तथा फोटोकॉपी कराने के लिए नीचे आया| सारे सर्टिफिकेट फोटोकॉपी करवा कर हम दोनों लौटे तो लाल सिंह जी ने मुझे एक सफ़ेद कागज दिया और कहा की मैं उसमें हिंदी में एक पत्र लिख दूँ की करुणा का नियुक्ति पत्र पोस्ट के जरिये उसके पते पर भेज दिया जाय|

अब हिंदी में लिखने के नाम से ही हम दोनों एक दूसरे की शक्ल देखने लगे क्योंकि दोनों को हिंदी में लिखना नहीं आता था! मैंने लाल सिंह से पुछा की अंग्रेजी में पत्र लिख दूँ तो वो बोले की राजस्थान में सिर्फ हिंदी भाषा का उपयोग होता है, इसलिए या तो मैं लिखूँ या फिर किसी से लिखवा लूँ| हम दोनों बाहर आये और सोचने लगे की पत्र कैसे लिखें;

करुणा: ये नियुप्टी क्या होते?

करुणा से तो नियुक्ति पत्र नहीं बोला जा रहा था तो वो क्या ही लिखती!

मैं: 'नियुक्ति पत्र' मतलब appointment letter!

अब जा कर उसे समझ आया की यहाँ इतनी देर से किस बात पर चर्चा हो रही थी| मैंने वहाँ काम करने वालों को रोक कर उनसे मदद माँगी तो सब ने मना कर दिया, एक भले मानस ने बताया की मैं फोटोकॉपी वाले से लिखवा लूँ| मैं करुणा को ले कर नीचे आया और फोटोकॉपी वाले लड़के से मदद माँगी, उसने हमारी मदद की और बदले में 10/- रुपये भी लिए| पत्र ले कर हम ऊपर आये और लाल सिंह जी को दिया, मैंने एक बार हाथ जोड़कर उनसे विनती करते हुए कहा;

मैं: सर प्लीज थोड़ा जल्दी करवा देना!

मेरी देखा देखि करुणा ने भी हाथ जोड़ कर उनसे विनती की, उन्होंने हमें मुस्कुराते हुए आश्वस्त किया की काम जल्दी हो जायेगा| वहाँ से हम दोनों सीधा सिंधी कैंप बस स्टैंड आये, घडी में साढ़े चार हुए थे और दिल्ली जाने वाली सुपर डीलक्स बस रात 9 बजे की थी! मैंने दो टिकटें खरीदी और हम दोनों ने अपने-अपने घर फ़ोन कर के हमारे आने का समय बता दिया| उधर करुणा ने अपनी बहन को आज दिन भर में जो हुआ सब बता दिया|



हम दोनों होटल लौटे और आराम करने लगे, रात सात बजे मैंने करुणा से खाना खाने को कहा तो उसने बताया कल उसे कुछ हल्का खाना है| मैंने दोनों के लिए दाल-चावल मँगाए, चूँकि राधास्वामी होटल था तो खाने में लस्सन और प्याज नहीं था पर खाना बहुत स्वाद था| खाना खा कर ठीक 8 बजे हमने चेकआउट किया और बस स्टैंड पहुँच कर बस का इंतजार करने लगे| बस आई और इस बार बस में बहुत यात्री थे, सारी बस लगभग भरी हुई थी| हम अपनी सीट पर बैठ गए और कुछ देर बाद बस चल पड़ी| करुणा को आई थी नींद थी, उसे न जाने क्या सूझा की उसने अपन सर मेरे दाएँ कंधे पर रखा और मेरी दाईं बाजू को अपने दोनों हाथों से पकड़ कर सोने लगी| उसका ये करना देख मैं स्तब्ध था, उसके मुझे स्पर्श करने से मेरे जिस्म में तरंगें उठने लगती थीं और मेरे दिमाग में बार-बार इस रिश्ते को लेकर सवाल उठने लगे थे|

करुणा तो पूरी रात बड़ी चैन से सोई इधर मैं रात भर जागते हुए ढाबों की रोशनियाँ देखता रहा और मन में उठ रहे सवालों का जवाब सोचता रहा| बस ठीक 6 बजे बीकानेर हाउस पहुँची और फिर टैक्सी कर के पहले मैंने करुणा को उसके घर छोड़ा, फिर अंत में मैं अपने घर पहुँचा| दरवाजा माँ ने खोला और उन्हें देखते ही मैं उनके गले लग गया, माँ ने मेरे माथे को चूमा और फिर बैग रख कर मैं नहाने चला गया| नाहा-धो कर जब मैं आया तो माँ ने चाय बना दी थी, पिताजी भी डाइनिंग टेबल पर बैठे अखबार पढ़ रहे थे| उन्होंने मुझसे जयपुर के बारे में पुछा तो मुझे मजबूरन सुबह-सुबह ऑडिट का झूठ बोलना पड़ा| मैंने ऑडिट की बात को ज्यादा नहीं खींचा और पिताजी से काम के बारे में पूछने लगा, पिताजी ने बताया की उन्होंने एक वकील साहब के जरिये एक नया प्रोजेक्ट उठाया है पर ये प्रोजेक्ट हमें जुलाई-अगस्त में मिलेगा तथा ये प्रोजेक्ट बहुत बड़ा है! मैंने उसी प्रोजेक्ट की जानकारी लेते हुए पिताजी का ध्यान भटकाए रखा ताकि वो फिर से मुझसे ऑडिट के बारे में न मुचने लगे और मुझे फिरसे उनसे झूठ न बोलना पड़े|


जारी रहेगा भाग 7(2) में...
Zabardast
 

Kaleen Bhaiya

King of Mirzapur
106
117
43
इक्कीसवाँ अध्याय: कोशिश नई शुरुआत की
भाग -7 (1)


अब तक आपने पढ़ा:


अब शाम को हम जब मिलते तो ये फिल्में हेडफोन्स लगा कर देखने लगते| जब फिल्में देखने लगा तो इनके कुछ कलाकारों का मैं फैन बन गया, सुपरस्टार मोहन लाल का अभिनय मुझे बहुत पसंद था| उनके अलावा दो तीन लोग और अच्छे लगते थे; निविन पॉली, पृथ्वीराज और दुलकर सलमान मेरे पसंदीदा एक्टर थे| हीरोइन की बात करूँ तो मुझे पार्वथी और निथ्या मेनन सबसे जयादा पसंद थी, दोनों की सादगी का मैं फैन था! इस तरह से मार्च का महीना खत्म हुआ और उसी के साथ मेरा ऑफिस का नोटिस पीरियड भी खत्म हुआ, अब मुझे अपनी आगे की जिंदगी का निर्णय लेना था!


अब आगे:


4 तरीक थी और आज सुबह मैं बहुत देर से उठा, अंगड़ाई लेता हुआ मैं बाहर आया तो पिताजी मुझे हैरानी से देखते हुए बोले;

पिताजी: आज ऑफिस नहीं जाना?

मैं: नहीं पिताजी, कल आखरी दिन था!

मैंने कुर्सी खींच कर उनके पास बैठते हुए कहा|

पिताजी: तो आगे क्या करना है?

पिताजी ने मेरी तरफ अपना ध्यान केंद्रित करते हुए सवाल पुछा|

मैं: जी कोई और नौकरी ढूँढूँगा और जब तक नहीं मिलती साइट का काम सम्भालूँगा|

नौकरी ढूँढने की बात तो सच थी पर साइट का काम संभालने की बात मैंने सिर्फ और सिर्फ पिताजी का दिल रखने को कही थी|

पिताजी: अब तो काम भी अच्छा चल पड़ा है, तो फिर तुझे क्या जर्रूरत है नौकरी करने की?

पिताजी ने प्यार से पुछा|

मैं: पिताजी आजकल के समय में आमदनी के सिर्फ एक जरिये पर आश्रित नहीं होना चाहिए! नौकरी होगी तो कम से कम एक निश्चित पैसा घर तो आता रहेगा!

पिताजी को मुझसे इतनी अक्लमंदी की उम्मीद नहीं थी, इसलिए वो मुस्कुराने लगे और माँ से बोले;

पिताजी: देख रही हो अपने लाल को? समझदार हो गया है, अब इसका ब्याह कर देना चाहिए!

पिताजी ने ब्याह की चिंगारी सुलगाई तो माँ ने उसी आग पर अपना तवा चढ़ा दिया;

माँ: मैं तो कब से कह रही हूँ, मुझे तो एक लड़की पसंद भी आई थी पर दिक्कत ये थी की वो हमारे धर्म की नहीं और उम्र में भी इससे बड़ी है!

माँ का इशारा करुणा की तरफ था, अब पत्नी की कही बात पति न समझे ये कैसे हो सकता है?! पिताजी ने फ़ौरन माँ की बात पकड़ ली और उनसे बोले;

पिताजी: अरे भागवान! धर्म का क्या है, वो तो बदला भी जा सकता है और उम्र भी कोई मायने नहीं रखती! तुम अगर मुझसे 10-12 साल बड़ी भी होती तो क्या मैं तुमसे ब्याह नहीं करता?

पिताजी ने माँ को छेड़ते हुए कहा, ये सुन माँ शर्म से लजाने लगीं और बोलीं;

माँ: क्या आप भी..... जवान लड़का बैठा है.... और आप हो की.....!

माँ की ये बात सुन कर मैं ठहाका मार के हँसने लगा|

पिताजी: मजाक की बात एक तरफ, अब तू ब्याह कर ले!

पिताजी ने बड़े प्यार से मुझसे कहा तो मैंने भी उनकी बात का मान रखते हुए कहा;

मैं: पिताजी एक नौकरी मिल जाए फिर दिसंबर तक शादी पक्का!

मैंने अपने चेहरे पर नकली मुस्कान चिपका कर कहा और उठ कर अपने कमरे में आ गया| शादी के लिए हाँ कह के मैंने माँ-पिताजी का दिल तो रख लिया था पर मेरे दिल का क्या? इन 4 सालों में मैं अभी तक भौजी को पूरी तरह भुला नहीं पाया था, गुस्सा से ही सही पर याद तो उन्हें फिर भी करता था! तभी दिमाग बोलने लगा; 'कब तक यूँ ही कुढ़ता रहेगा? क्या तुझे किसी ख़ुशी का हक़ नहीं? तूने कौन सा पाप किया है की तू उसकी सजा यूँ अकेले भुगत रहा है? जिसने पाप किया वो तो वहाँ मजे से जिंदगी 'जी रही' है और तू यहाँ पागलों की तरह अकेला तड़प रहा है!' दिमाग की कही बात सही थी पर दिल ससुरा आगे बढ़ने ही नहीं दे रहा था!



खैर मैं तैयार हुआ और आज पिताजी के साथ नाश्ता कर के साइट के लिए निकला, मिश्रा अंकल जी का प्रोजेक्ट हमें अभी नहीं मिला था तो पिताजी ने कुछ पुराने क्लाइंट से काम उठा लिया था| यहाँ मेरे करने लायक कोई काम नहीं था इसलिए मैं बोर हो रहा था और दिमाग में बस सुबह हुई मेरी शादी की बातें ही घूम रहीं थीं| पहले सोचा की करुणा को फ़ोन करके मिलने चला जाता हूँ पर फिर लगा की वो इस वक़्त ड्यूटी पर होगी, इसलिए मैंने दिषु को फ़ोन किया और उसे मिलने को पुछा| उसने मुझे लंच में मिलने को बुलाया और तब तक मैं पिताजी के साथ रह कर कुछ काम समझने लगा|

लंच में मैं दिषु से मिला और उसे अपनी जॉब के बारे में बताया तो वो एकदम से बोला;

दिषु: तू audit करेगा?

मैं: यार 400/- रुपये के लिए तेरे सर के साथ स्टॉक ऑडिट में अपना सर खपाने की मेरी हिम्मत नहीं!

मैंने मुँह बनाते हुए कहा|

दिषु: अबे स्टॉक ऑडिट नहीं एकाउंट्स ऑडिट और वो भी दिल्ली में!

ये सुन कर मैं बहुत खुश हुआ और उससे सीधा पैसे पूछे;

मैं: पैसे कितने मिलेंगे?

दिषु: एक ऑडिट 2 से 3 दिन की होती है और इसके तुझे 1,000/- प्रति दिन मिलेंगे| खाना-पीना अलग से लेकिन एक ही बात है की ऑडिट में time boundation है! सर 3 दिन से ज्यादा टाइम नहीं देते और सबसे मजे की बात की हम दोनों साथ होंगे, मतलब फुल ऐश!

दिषु खुश होते हुए बोला|

मैं: हाँ साले फुल ऐश तो तेरी होगी, क्योंकि काम तो सारा तू मेरे ऊपर डाल देगा!

ये सुन कर दिषु जोर से हँसने लगा|



ऑडिट रोज-रोज तो होनी नहीं थी हफ्ते में एक आधी होती और खाली बैठने से तो यही अच्छा था, इसलिए मैंने इस काम के लिए हाँ कर दी| दिषु साथ में था तो मेरे लिए एक फायदा ये भी था की मैं शाम को करुणा से मिलने के लिए आराम से निकल सकता था|

खैर आज शाम करुणा को घर जल्दी जाना था क्योंकि उसके घर पर मेहमान आये थे तो मेरा उससे मिलने का कोई प्लान नहीं था| इसलिए मैं शाम को जल्दी घर आ गया और माँ को दिषु से हुई बात बताई, उस समय पिताजी नहीं आये थे तो माँ को मुझसे अकेले में कुछ ख़ास बात करने का मौका मिल गया;

माँ: ठीक है बेटा जो तुझे ठीक लगे वो कर!

मेरी दिषु के साथ ऑडिट करने की बात सुन माँ ने प्यार से मेरे सर पर हाथ फेरते हुए कहा|

माँ: अच्छा मुझे एक बात सच-सच बता, तुझे कोई लड़की पसंद है?

माँ का ये सवाल सुन कर मैं आँखें बड़ी कर के उन्हें देखने लगा|

माँ: देख बेटा आज तेरे पिताजी से मेरी बात हुई थी, वो कह रहे थे की तू उनसे शायद शर्म करे और इस सवाल का जवाब न दे इसलिए मैंने तुझसे ये सवाल पुछा|

माँ की बात सुन मेरा सर झुक गया क्योंकि मैं उन्हें बताना चाहता था की मैं भौजी से बहुत प्यार करता हूँ पर उसका कोई फायदा नहीं होता क्योंकि वो तो मुझे भुला चुकी थीं!

माँ: बेटा मुझसे तो शर्म मत कर, मैं तो तेरी माँ हूँ!

माँ ने मेरे सर झुकाने को मेरी शर्म से जोड़ा और मुझे एहसास हुआ की मुझे माँ के सामने खुद को सामन्य दिखाना होगा|

मैं: नहीं माँ ऐसी कोई बात नहीं है! मेरी जॉब लगने के बाद आप जब बोलोगे, जिससे बोलोगे मैं शादी कर लूँगा|

ये शब्द अनायास ही मेरे मुँह से निकले क्योंकि अब मैं अपने माँ-पिताजी की ख़ुशी चाहता था उसके लिए अगर शादी करनी पड़े तो वो भी कर लूँगा! शायद शादी करने से जो जिम्मेदारियाँ सर पर पड़ेंगी उससे मैं भौजी को भुला सकूँ! मेरी बात सुन कर माँ को मुझ पर बहुत गर्व हुआ और उन्होंने मेरे सर पर हाथ फेरा|



रात को पिताजी आये तो मैंने उन्हें भी दिषु वाली बात बताई तो उन्होंने; 'ठीक है' कहा, मैं जानता था की वो नहीं चाहते की मैं इस तरह छोटे-मोटे काम करूँ पर खाली बैठने से तो अच्छा ही था| खाना खाने के बाद सोते समय मेरी करुणा से whats app पर चैट हुई तो मैंने उसे दिषु के साथ काम करने की बात बताई, उसने मेरी बात का समर्थन किया| कुछ दिन बाद मुझे दिषु ने बताया की कोहट एन्क्लेव में एक ऑडिट है और उसके लिए उसने मुझे अपने बॉस से मिलने बुलाया, मैं लंच में उसके ऑफिस पहुँचा और वहाँ उसके बॉस से मेरी अच्छे से बात हुई, उन्होंने हमें बता दिया की कितने क्वार्टर का काम है तथा मुझे कितने पैसे मिलेंगे| अगले ही दिन मैं, दिषु और उसके बॉस कोहट एन्क्लेव पहुँचे और वहाँ उन्होंने मुझे सारा काम समझा दिया, वो वहाँ दस एक मिनट रुकने के बाद निकल गए| मुझे कॉस्ट ऑडिट का अच्छा तजुर्बा था, पर ये ऑडिट बड़ी सरदर्दी का काम था! मैंने जैसे ही एक क्वार्टर की सेल्स की फाइल माँगी तो चपरासी ने बड़ी-बड़ी फाइलों के दो गट्ठर मेरे सामने रख दिए! उस ढेर को देख मैं सोचने लगा की ये अगर एक क्वार्टर का काम है तो बाकी के दो क्वार्टर की फाइलों का गठ्ठर कितना बड़ा होगा? मुझे हैरानी से गठ्ठर को घूरता देख दिषु मेरे पास आया और मेरी पीठ पर जोरदार हाथ मारते हुए बोला;

दिषु: क्यों? फ़ट गई?

ये कह कर वो हँसने लगा|

मैं: साले मजे मत ले वरना सारा काम तेरे ऊपर छोड़ कर निकल जाऊँगा!

मेरी धमकी सुन कर अब दिषु की फ़टी!

दिषु: ऐसा मत बोल भाई! देख मैं तुझे एक मस्त तरीका बताता हूँ, ये ले पेंसिल और आँख बंद कर के शुरू और आखरी के बिलों पर टिक मार दे क्योंकि उनमें कुछ गड़बड़ नहीं होती!

मैं: अबे साले मुझे काम मत सीखा! जा कर purchase आर्डर क्लियर कर!

दिषु ये सुन कर मुस्कुराया और चला गया, मुझे कौन सा यहाँ चार्टर्ड अकाउंटेंट की तरह काम करना था?! अपनी 7 महीने की नौकरी मैंने सीखा था की जितना दिल लगा कर काम करोगे उतना ही ज्यादा काम मिलेगा, इसलिए काम ऐसे करो की सैलरी ज्यादा लगने लगे! मैंने सारे बिल randomly चेक किये और शाम होने तक एक क्वार्टर का सारा गट्ठर चेक कर के सेल्स मैच करा दी, बॉस को शक न हो इसलिए मैंने एक पेज पर signing authority के change होने पर बिल नंबर लिख दिए| इसके अलावा किसी बिल में तारीक आगे-पीछे थी तो वो भी नोट कर दिया, ताकि बॉस को लगे की मैंने बहुत बारीकी से काम किया है|

जैसे ही 5 बजे मैं उठ खड़ा हुआ और दिषु ये देख कर मुस्कुराते हुए बोला;

दिषु: चल दिए अपनी आशिक़ की ड्यूटी पर?

मैं: चल बे! वो मेरी दोस्त है बस!

इतना कह कर मैं चल दिया और करुणा से आज midway में मिला, आज मैंने काम के चककर में लंच नहीं किया था तो दोनों ने मेट्रो स्टेशन की सीढ़ियों पर बैठ कर माँ द्वारा दिया हुआ मेरा लंच खाया, फिर उसे घर छोड़कर मैं अपने घर लौट आया| मेरा ये नियम चलता रहा, ऑडिट खत्म हुआ तो अगले ऑडिट मिलने तक मैंने पिताजी के साथ रहना शुरू कर दिया| इसी बीच मिश्रा अंकल जी ने हमें वो नया प्रोजेक्ट दिया, उन्होंने ग्रेटर नॉएडा में एक जमीन खरीदी थी और उस पर काम लगभग खत्म हुआ था| उन्होंने पिताजी को प्लंबिंग, कारपेन्टरी और बिजली का सारा काम सौंप दिया! काम बहुत बड़ा था और पैसा भी बहुत बड़ा था, मेरे लिए ये पूरा नया अनुभव था| मैंने पूरी एक रात पिताजी के साथ बैठ कर सारा हिसाब-किताब किया, मटेरियल कहाँ से आएगा और कितना लगेगा सब का हिसाब लगा कर मैंने रिपोर्ट बनाई| काम पूरा होने पर पूरे 45,000/- रूपयों का मुनाफ़ा था! मुनाफा ज्यादा था तो खर्चा भी ज्यादा था, पिताजी के पास पैसों की कमी थी तो मैंने कुछ पैसे तो मेरी saving से डाले और बाकी मैंने मिश्रा अंकल जी से एडवांस में माँगे| काम शुरू हुआ पर अब मुझे पैसे और बचाने थे ताकि मुनाफ़ा बढे इसलिए मैंने पिताजी से ओवरटाइम कराने को कहा, पिताजी ने मना किया तो मैंने ओवरटाइम के गणित को पिताजी को अच्छे से समझाया| तीन महीने के काम को मैंने फिलहाल 3 दिन तक कम कर दिया था, मैंने और गुना भाग किये और पिताजी से लेबर बढ़ाने को कहा पर पिताजी ने पैसों के कारन मना कर दिया, मैंने भी सोचा की ज्यादा लालच ठीक नहीं| इसी बीच मुझे एक दो दिन की नई ऑडिट मिली, पिताजी ने मना किया पर मैं ने थोड़ी जिद्द की तो पिताजी आगे कुछ नहीं बोले, उन्हें नाराजगी न हो इसलिए मैंने ऑडिट के लिए जल्दी जाना शुरू किया और शाम को मैं ठीक 5 बजे साइट पर पहुँच कर पिताजी को घर भेज देता| काम रात 9 बजे तक खींच कर मैं साढ़े दस बजे तक घर पहुँचता, पर मेरी इस डबल 'शिफ्ट' के कारन मैं करुणा से दो दिन नहीं मिल पाया| ये दो दिन मेरे लिए बड़े तक़लीफदायी थे, अब जा कर मुझे ये एहसास हुआ की मुझे करुणा की आदत पड़ गई है!



करुणा से प्यार करने का तो सवाल ही नहीं पैदा होता था, इसलिए नहीं क्योंकि वो गैर धर्म की थी, या उम्र में मुझसे बड़ी थी, या उसका रंग काला था, या उसका जिस्म कमजोर था पर उसकी और मेरी आदतों का कोई मेल नहीं था| मैं पूरब था तो वो पश्चिम, उसकी बहुत सी बुरी आदतें थीं जो मुझे बहुत नापसंद थीं|

वो अपने फ़ोन को साइलेंट कर के रखती थी, जेब में फ़ोन पड़े होने पर भी उसे उसके फ़ोन की vibration महसूस नहीं होती थी!

संडे को वो घर होती थी और देर तक सोती थी, जब की मैं उसे चर्च जा कर mass अटेंड करने को कहता था, उसने कभी मेरी बात नहीं मानी! पूजा-पाठ में मुझे लापरवाही कतई मंजूर नहीं थी और जब वो मेरी बात न मान कर मुझसे बेफज़ूल के तर्क करती तो मुझे बहुत गुस्सा आता था|

आधा संडे तो वो सोते हुए निकालती और जब उठती तब भी मुझे कॉल नहीं करती, एंजेल को गोदी में बिठा कर पिक्चर देखती रहती और शाम को मुझे कॉल करती, अगर मैं बीच में फ़ोन भी करता तो फ़ोन साइलेंट होने के कारन वो कॉल नहीं उठाती!

जब कभी हम मिलते और उस बीच अगर उसके किसी दोस्त का फोन आ जाता तो वो मुझे भूल कर अपने उस दोस्त से बात करने में मशगूल हो जाती!

मुझे मिलने के लिए जल्दी बुला लेती और मुझे पौना घंटे तक इंतजार करवाती! जब मैं उसके लेट आने की शिकायत करता तो कहती की; 'मैंने बोला जल्दी आने को?' ये सुन कर गुस्सा तो बहुत आता पर मैं इस बात को छोड़ देता!

सबसे सरदर्दी के बात तो वो उसके ex boyfriend का वर्णन, जिसे सुन कर मेरा सर दर्द करने लगता था!

इन सब बुराइयों के कारन मैं फिर भी उससे मिलता था, इस उम्मीद में की मेरे साथ रह-रह कर वो धीरे-धीरे सम्भल जायेगी लेकिन वो कभी नहीं सुधरी| जब रिश्ता नया-नया हो तो आप सब गलतियों को नजरअंदाज करते हो, बस वही मैं भी कर रहा था!

वहीं करुणा अपनी खामियाँ जानती थी पर उसे सुधारने के लिए कुछ नहीं करती थी, एक दिन उसने मुझे साफ़-साफ़ कह दिया; 'आपको ठीक लग रे तो friendship कर नहीं तो छोड़ दे! मैं किसी के लिए खुद को change नहीं करते!' उसकी दो टूक बात सुन कर मुझे बहुत गुस्सा आया और मैंने उसका फ़ोन काट दिया| उसे पता चल गया था की मुझे उसकी बात का कितना बुरा लगा है, इसलिए उसने ताबड़तोड़ फ़ोन करना शुरू कर दिया| आखिर मैंने उसका फ़ोन उठा लिया और उसने रोते हुए 'सॉरी' की रट लगा दी, उसके आँसूँ मुझे बर्दाश्त नहीं होते थे इसलिए मैंने उसे माफ़ कर दिया| उस दिन से वो डरी हुई रहने लगी, उसे लगता था की मैं उसकी दोस्ती तोड़ दूँगा| एक दिन उसने अपना ये डर मुझसे साझा किया;

करुणा: मिट्टू आप एक दिन मेरा friendship छोड़ देते न?!

उसका सवाल सुन कर मुझे अजीब लगा और मैंने उसे आश्वासन देते हुए वादा किया;

मैं: I promise मैं ये दोस्ती कभी नहीं तोडूँगा, भले ही आप इसे तोड़ दो!

ये सुन कर वो जोश में बोली;

करुणा: मैं ये friendship कभी नहीं तोड़ते!

मैं: अगर फिर भी आपका मन हो दोस्ती तोड़ने का तो मुझे एक बार कारन बता देना और मेरा जवाब सुन लेना उसके बाद मैं आपको कभी कॉल नहीं करूँगा!

भौजी द्वारा बिना मेरी बात सुने मुझे छोड़ देने के कारन मैंने ये बात करुणा से कही ताकि कम से कम वो तो भौजी की तरह न करे! इधर ये सुन कर करुणा को मेरे अंदर के दुःख का एहसास हुआ और उसने मेरे जख्म को थोड़ा कुरेदते हुए कारन पुछा;

करुणा: आप ऐसा क्यों बोल रे मिट्टू?

मैं: बस ऐसे ही!

ये कह कर मैंने बात पलट दी!



अपने सवाल का जवाब तो नहीं मिला, अलबत्ता मैं इन बातों को याद करके और उलझ गया| ये तो साफ़ था की मैं उससे प्यार नहीं करता क्योंकि मेरे दिल में अब भी भौजी के लिए जज्बात दबे हुए हैं, वो जज्बात या तो गुस्से के रूप में थे या फिर शायद अब भी कहीं प्यार बच गया था!



अगले दिन से मैंने पिताजी को साइट पर आने से मना कर दिया, ऑडिट निपटा कर मैं सीधा करुणा से मिलने पहुँचा और आज उससे मिल कर दिल को सुकून मिला था| दिल ने दिमाग को ज्यादा सोचने से रोका और कहा; 'आदत है तो आदत सही, कुछ नुक्सान तो नहीं कर रही न?' ये सुन कर दिमाग शांत हो गया| कुछ दिन बाद ऑडिट निपटी और मैंने साइट का काम संभाल लिया, पर मैं ठीक शाम 5 बजे गोल हो जाता| पिताजी पूछते तो कह देता की मैं दिषु से मिलने जा रहा हूँ या फिर कोई भी बहना बना देता| पिताजी इस कर के कुछ नहीं कहते क्योंकि मैं रात 8 बजे तक घर पहुँच जाता था| कुछ दिन बाद करुणा ने अचानक दोपहर को फोन कर के बताया की उसे जयपुर में सरकारी नौकरी मिली है! उसकी आवाज से ख़ुशी झलक रही थी, पर मैं एक सेकंड के लिए सोच में पड़ गया था की अब हम दोनों कभी नहीं मिल पाएंगे, फिर अगले ही पल मेरे मन ने मुझे लताड़ा और कहा की मैं इतना स्वार्थी कैसे हो सकता हूँ? सरकारी नौकरी होने से करुणा की जिंदगी स्थिर हो जाएगी, पर दिल इस ख्याल को मानने से मना कर रहा था!

मैं: Congratulations dear!

मैंने नकली मुस्कान चिपकाए हुए कहा|

करुणा: मिट्टू मेरे को जयपुर जाना..... आप चलते?

उसके ये सवाल सुन कर मुझे हाँ करने में सेकंड नहीं लगा;

मैं: हाँ!

फिर याद आया की मैं अपने घर में क्या कहूँगा? और चलो मैं तो फिर भी झूठ बोल दूँगा पर करुणा का क्या? वो क्या बोलेगी की वो किसके साथ जा रही है?

मैं: Dear आप अपने घर पर क्या बोलोगे?

मैंने सीधा सवाल पुछा तो करुणा ने बिना सोचे जवाब दिया;

करुणा: मैं कहते की मैं आपके साथ जा रे|

ये सुन कर मैं चौंक गया, मुझे उससे इतने आसान जवाबों की उम्मीद नहीं होती थी| मेरे साथ वो हमेशा दिल से सोचती थी, दिमाग का उपयोग वो न के बराबर करती थी!

मैं: आपकी दीदी कुछ नहीं बोलेगी?

करुणा: वो सब मैं manage करते, आप मुझे ले जाते या नहीं?

करुणा ने किसी बच्चे की तरह कहा| मेरा जवाब तो पहले से ही हाँ था, मैंने उसे शाम को मिलने को कहा ताकि हम जाने की planning कर पायें|

शाम को जब हम मिले तो करुणा ने मुझे सारी बात विस्तार से बताई, ये उसकी हरबार की आदत थी, वो हर खबर को किसी news anchor की तरह आधी ही सुनाती थी!

करुणा: मैंने last year एक जॉब का फॉर्म ब...भ...भरे थे! आज सुपह (सुबह) में मेरे को एक कॉल आते| वो कॉल एक सर का थे और वो मुझे फ़ोन कर के बहुत डाटते..... बोलते की मैं irresponsible है, मैंने website पर notification नहीं पढ़े थे! मैं बोला मुझे पता नहीं ता की वेबसाइट पर notification आते, तो वो मुझे और डाँटते और बोलते की मेल पर भी वो notification आया पर मैं बोला की मेरे पास कोई notification नहीं आये! वो मुझे बहुत डाँटा और कल आने को बोला, मैंने बोले मैं इतना जल्दी कैसे आते तो वो गुस्सा कर के बोला की परसों नहीं आ रे तो वो मेरा नाम cancel कर देते! फिर मैंने अपना मम्मा को कॉल कर के सब बताया तो वो बोले की government job है इसे मत छोड़! मैंने दीदी को बताया तो वो बोले की तू चले जा, मेरे पास टाइम नहीं इसलिए मैंने आपको पुछा!

इधर उसकी बात सुनते-सुनते मैंने घर पर बोले जाने वाला झूठ सोच लिया था|

मैं: ट्रैन की टिकट तो मिलेगी नहीं, इसलिए बस से चलते हैं|

मैंने फ़ोन निकाला और दिषु से बस के बारे में पुछा, उसने बताया की RSRTC की website से टाइम-टेबल चेक कर लूँ| मैंने ऑनलाइन चेक किया तो बीकानेर हाउस से super deluxe volvo bus चलती थी, मैंने करुणा से जाने का समय पुछा तो उसने रात वाली बस लेने को कहा, मैंने अगले दिन की रात 9 बजे वाली बस की दो टिकट बुक कर ने लगा| टिकट करीब 800/- रुपये की थी और टिकट के पैसे देख कर करुणा मना करने लगी, मैंने उस बहुत समझाया तो वो बोली की वो मुझे अपनी अगली सैलरी से वापस कर देगी| टिकट बुक हुई तो करुणा पूछने लगी;

करुणा: मिट्टू आप मम्मा को क्या बोलते?

मैं उसकी बात समझ गया और अपने झूठ से पर्दा हटाते हुए बोला;

मैं: उनको ये तो नही बोल सकता की मैं आपके साथ जा रहा हूँ, तो मैं बोल दूँगा की जयपुर में मेरी ऑडिट है|

ये सुन कर करुणा को ग्लानि होने लगी;

करुणा: आप मेरे लिए झूठ बोलते?

मैं: यार सच बोलूँगा तो कोई जाने नहीं देगा, सुबह जा कर रात को लौट आना होता तो मैं शायद समझा भी लेता पर रात रुकने के लिए माँ-पिताजी मना कर देंगे!

मैंने करुणा की बात का जवाब तो दिया पर इस जवाब से वो उदास हो गई, मैंने उसे थोड़ा प्यार से समझाया और किसी तरह मना लिया| उस दिन करुणा को घर छोड़ मैं घर जा रहा था, मैंने अपने झूठ को पक्का करने के लिए दिषु को फ़ोन किया और उसे सब सच बता दिया, पर वो साला मेरी बात गलत जगह खींचने लगा;

दिषु: अबे बहुत सही! ले जा भाभी जी को!

उसे लग रहा था की मैं और करुणा घूमने जा रहे हैं!

मैं: अबे पागल मत बन! वो बस दोस्त है, उसकी जॉब का सवाल है इसलिए जा रहा हूँ|

दिषु: हाँ तो मैं कौन सा कुछ 'और' कह रहा हूँ!

उसने 'और' शब्द पर बड़ा जोर डाल कर कहा|

मैं: यार उसके बारे में ऐसा मत बोल| वो ऐसी-वैसी लड़की नहीं है, बहुत अच्छी लड़की है!

मैंने दिषु को प्यार से समझाया तब जा कर उसने मेरी टाँग खींचना बंद किया|

मैं: अगर माँ-पिताजी ने तुझसे पुछा तो तू यही कहियो की मैं जयपुर ऑडिट के लिए अकेला गया हूँ|

मैंने अपना झूठ फिर से दोहराया ताकि उसके भेजे में ये बात बैठ जाए|

दिषु: हाँ-हाँ मैं देख लूँगा, कह दूँगा एक ही आदमी का काम था इसलिए सर ने सिर्फ तुझे भेजा है|

दिषु ने मुझे इत्मीनान दिलाते हुए कहा|



मैं घर पहुँचा और अपना पहले से ही फूलप्रूफ किया झूठ अपने माँ-पिताजी के सामने परोस दिया, पिताजी ने तो कुछ नहीं कहा और जाने की इजाजत दे दी पर माँ ने मुझे पहले की तरह हिदायतें देनी शुरू कर दी| खाने-पीने से ले कर मेरे रहने तक की सारी हिदायतें उन्होंने दोहरा दी, मैंने उनसे थोड़ा मजाक करते हुए कहा;

मैं: माँ ऐसा करता हूँ आपकी सारी बातें लिख कर लैमिनेट करवा लेता हूँ ताकि आपको बार-बार दोहराना न पड़े!

मेरा मजाक सुन माँ ने प्यार से मेरी पीठ पर हाथ मारा| जब से मैंने माँ से शादी के लिए हाँ की थी तब से माँ-पिताजी ने मुझे ये बात रोज-रोज याद दिलानी शुरू कर दी थी, वो ये बात मुझे सीधे-सीधे याद नहीं दिलाते थे बल्कि बात गोल घुमा कर कहते थे|

पिताजी: अरे शादी लायक हो गया तेरा लाल और तू अब भी इसे बच्चों की तरह हिदायतें देती रहती है!

पिताजी ने शादी वाली बात मुझे सुनाते हुए कहा|

माँ: ये कितना भी बड़ा हो जाए, रहेगा तो मेरा बेटा ही|

माँ ने मेरे सर हाथ फेरते हुए कहा| माँ-पिताजी का प्यार देख कर मुझे उनसे झूठ बोलने की ग्लानि तो हो रही थी, पर मैं ये सब स्वर्थी हो कर नहीं कर रहा था, मेरे इस झूठ से करुणा को सरकारी नौकरी मिल रही थी| बस यही सोच कर मैंने खुद को समझा लिया|



तो जयपुर जाने का सारा प्लान सेट था, रात की बस हमें तड़के सुबह जयपुर उतारती, फिर हमें एक होटल में दो अलग-अलग कमरों में थोड़ा आराम करना है, फिर नाहा धो कर सीधा ऑफिस| ऑफिस से काम निपटा कर वापस होटल, नहाओ-धोओ और रात की बस से वापस दिल्ली| एक बात जर्रूर थी, मैं आजतक दिल्ली के बाहर जब भी गया तब मैं किसी के साथ होता था फिर चाहे वो मेरे माँ-पिताजी हों या फिर ऑडिट पर ले जाने वाले बॉस, इसलिए मुझे कभी खुद जिम्मेदारी नहीं लेनी पड़ी, परन्तु इस बार मुझे खुद सारी जिम्मेदारी उठानी थी, न केवल अपनी बल्कि एक लड़की की भी, बस यही सोच कर मुझे खुद पर बहुत गर्व हो रहा था की मैं इतना बड़ा हो चूका हूँ की आज एक लड़की की जिम्मेदारी उठा रहा हूँ|

शाम 6 बजे करुणा का फ़ोन आया और उसने मुझे कहा की मैं उसे घर से pick करूँ! मुझे उसकी ये बात समझ में नहीं आई की भला मैं उसे घर से क्यों pick करूँ?! पर मैंने उस समय इस बात को इतनी तवज्जो नहीं दी और सात बजे उसे लेने उसके घर पहुँचा, उसकी दीदी और करुणा दोनों नीचे खड़े थे जो मैंने कुछ दूर से पहले ही देख लिया था, तो मैंने थोड़ा नाटक करते हुए उन्हें ऐसे दिखाया जैसे मैं यहाँ पहलीबार आया हूँ| मेरी ये चालाकी भाँप कर करुणा मुस्कुराने लगी, वहीं उसकी दीदी को यक़ीन हो गया की मैं यहाँ पहलीबार आया हूँ|

करुणा की दीदी: मानु...आप इधर से कहाँ से आ रहे हो?

दीदी की हिंदी करुणा के मुक़ाबले बहुत अच्छी थी| इधर अपना झूठ बरकरार रखने के लिए मैं जानबूझ कर उलटे रास्ते से लम्बा चक्कर लगा कर आया था|

मैं: वो actually दीदी मैंने आपका एड्रेस पुछा तो एक आदमी ने मुझे गलत गली में भेज दिया, फिर वहाँ से पूछते-पूछते घुमते-घुमते हुए मैं यहाँ पहुँचा|

मैंने बात बनाते हुए कहा| फिर दीदी ने करुणा को मेरे सामने सारी चीजें संभाल के रखने का दिखावा किया और अंत में मुझसे कहा;

करुणा की दीदी: मानु अपना और इसका ध्यान रखना|

उनकी बात में मुझे थोड़ी सी चिंता दिखी, इसलिए मैंने उन्हें आश्वस्त करने के लिए कहा;

मैं: दीदी कल सुबह पहुँचते ही आपको फ़ोन करेंगे और फिर निकलते समय भी|

इतने में पीछे से ऑटो आया और मैंने उसे रोक कर बीकानेर हाउस के लिए पुछा| हम दोनों ऑटो में बैठ गए और दीदी को हाथ हिला कर bye किया| ऑटो कुछ दूर आया होगा की करुणा बोली;

करुणा: आपको पता मैंने आपको घर लेने क्यों बुलाते?

करुणा का सवाल सुन मैंने न में गर्दन हिलाई|

करुणा: कुछ दिन पहले एक न्यूज़ आते की एक लड़का और लड़की बस में जाते, बस में बहुत कम लोग ता| दो लोगों ने लड़के को बस से बाहर फेंक देते और लड़की के साथ रेप करते!

ये सुन कर मैं आँखें फाड़े करुणा को देखने लगा! उसकी बात ने मेरे गर्व को तोड़कर चकना चूर कर दिया था|

करुणा: क्या हुआ मिट्टू?

करुणा मुस्कुराते हुए बोली|

मैं: इसीलिए आपने मुझे घर लेने आने को कहा था न की अगर कुछ गड़बड़ हो तो आपका दीदी मेरे को पुलिस में दे दे?!

मैंने अपने डर को छुपाने के लिए थोड़ा मजाक करते हुए कहा| मेरी बात सुनकर करुणा हँस पड़ी और हमारा बीकानेर हाउस पहुँचने का सफर हँसी-ख़ुशी शुरू हुआ| 10 मिनट बाद करुणा ने अपने हैंडबैग से rosary निकाली और ऑटो में बैठे-बैठे pray करने लगी| ये देख कर तो मैं और भी डर गया, मुझे लगने लगा की कहीं मेरा अति आत्मविश्वास कोई मुसीबत न खड़ी कर दे?! इसलिए मैंने भी ऑटो में बैठे-बैठे प्रार्थना शुरू कर दी; 'हे भगवान हमें अपने काम में सफल करना और मुझे शक्ति देना की मैं करुणा की रक्षा कर सकूँ!' मैंने आँखें मूँद कर भगवान से मन ही मन प्रार्थना की| इधर मुझे आँखें बंद किये हुए प्रार्थना करते देख करुणा के चेहरे पर मुस्कान आ गई, पर उसने कुछ नहीं कहा|



कुछ देर में हम बीकानेर हाउस पहुँचे और बस का पता करके waiting हॉल में बैठ कर इंतजार करने लगे, हॉल में एक टीवी लगा था जिसमें टॉलीवूड की कोई फिल्म दिखा रहे थे| वो फिल्म हिंदी में dubbed थी और उसके एक्शन सीन देख कर हम दोनों को बहुत हँसी आ रही थी, कुछ समय पहले जो डर मुझे डरा रहा था वो अब फुर्र हो चूका था| कुछ समय में अनाउंसमेंट हुई की जयपुर जाने वाली बस लग चुकी है तो हम दोनों बाहर आये और अपना सामान ले कर बस में चढ़ गए| अपनी-अपनी सीट पर बैठ कर दोनों ने अपने-अपने घर फ़ोन कर दिया और बता दिया की हम बस में बैठ गए हैं| करुणा की दीदी तो जानती थीं की मैं करुणा के साथ हूँ, पर मेरे घर में कोई नहीं जानता था की करुणा मेरे साथ है!

बस चली तो मैंने अपने बैग से माँ द्वारा पैक किये हुए आलू के परांठे निकाले, आलू के परांठे देखते ही करुणा की आँखें किसी छोटे बच्चे की तरह चमकने लगीं| मैं जानता था की करुणा को आलू के परांठे कितने पसंद हैं इसलिए मैंने जानबूझ कर माँ से आलू के परांठे बनवाये थे| साथ में माँ ने आम का अचार दिया था जो करुणा की दूसरी सबसे मन पसंद चीज थी! करुणा ने दबा के परांठे खाये और पेट भरने के बाद अब उसे सोना था|



वहीं Volvo बस में सफर करना मेरा सपना था और आज मैं इस सपने के पूरा होने पर बहुत खुश था| आजतक पिताजी के साथ रोडवेज की बसों में मैंने कई बार सफर किया था, पर Vovo उसके मुक़ाबले में कई ज्यादा आराम दायक थी! कहाँ रोडवेज की उधड़ी हुई सीट और कहाँ volvo की नरम-नरम सीट जिसमें आप आराम से अपनी कोहनी टिका कर, पाँव footrest पर रख कर पीठ से कुर्सी के पीछे वाली गद्दी को पीछे धकेल कर आराम से बैठ सकते थे| कहाँ वो सड़क के हर गढ्ढे पर हिचकोले खाती हुई, घड़घड़ करती हुई रोडवेज की बस और कहाँ ये low floor वाली बिना आवाज किये चलने वाली शानदार बस! कहाँ वो रोडवेज की खिड़की से आती बदबूदार हवा और कहाँ volvo बस का शानदार AC जिसने एक पल के लिए करुणा को काँपने पर मजबूर कर दिया था! मैं चुपचाप बैठा रोडवेज की बस और volvo बस में तुलना कर रहा था|



उधर बस में यही कोई 10 यात्री थे और सब के सब आदमी थे, करुणा इस बस में अकेली लड़की थी| जब ड्राइवर ने बस के अंदर की लाइट बंद की तब मैंने पीछे मुड़ कर देखा और मुझे इतने कम लोग देख कर मुझे थोड़ी चिंता होने लगी! ये सभी यात्री पूरी बस में फैले हुए थे और अलग-अलग सीट घेर कर बैठे थे, मुझे लगा था की शायद IFFCO चौक से शायद और यात्री चढ़ेंगे पर ऐसा नहीं हुआ| वहीं करुणा बड़े आराम से कुर्सी पर बैठी ऊँघ रही थी, उसने न तो इस बात पर गौर किया था की बस में वो अकेली लड़की है न ही उसे एक लड़के के साथ रात में बस से सफर करने का कोई डर था| वो तो बेख़ौफ़ सो गई पर मैं पलट कर ये देखने लगा की हमारे आस-पास कितने लोग मौजूद हैं| हमारे आगे एक लड़का दोनों सीट पर फ़ैल कर बैठा था, हमारे बगल वाली सीट पर कोई नहीं बैठा था, हमारे पीछे वाली सीट भी खाली थी और उसके पीछे एक आदमी सीट पर फ़ैल कर सो रहा था| इसी तरह से पूरी बस में जितने आदमी थे सब के सब दोनों सीटों पर फ़ैल कर सो रहे थे| ये देख कर मुझे थोड़ा इत्मीनान हुआ, सामने की तरफ बस का सबसे बड़ा शीशा था जिसमें से मुझे सामने का ट्रैफिक साफ़ दिख रहा था| रात का सन्नाटा और उस सन्नाटे में आस-पास जलती हुई ढाबों की रंग-बिरंगी लाइटें, ये देख कर मेरे दिल को एक अजीब सा चैन मिल रहा था| इसी चैन ने मेरी इस बेचैनी को खत्म कर दिया था|

मुझे याद आया की जब माँ-पिताजी के साथ बस से रात को सफर करता था तब मैं थोड़ी देर जागता था, उसके बाद कभी पिताजी की गोदी तो कभी माँ की गोदी में सर रख कर सो जाता था, पर आजकी बात और थी, आज मुझ पर एक लड़की की जिम्मेदारी तथा volvo बस में पहले सफर दोनों का जोश सवार था! यही जोश मुझे सोने नहीं दे रहा था, मैं चुपचाप बैठा चेहरे पर मुस्कान लिए हुए सामने की ओर सड़क को देख रहा था| मेरे आलावा बस एक ड्राइवर था जो जाग रहा था, वरना पूरी बस में सन्नाटा पसरा हुआ था!



इधर करुणा को बहुत गहरी नींद आ रही थी, नींद में उसका सर मेरे कंधे से छुआ तो मैं थोड़ा चौंक गया, इन चार महीनो में ये हम दोनों का पहला स्पर्श था| मुझे लगा की अचानक से करुणा का सर मेरे कंधे पर आने से वो उठ जाएगी पर वो तो बड़े चैन से मेरे कंधे पर सर रख कर सो रही थी| इधर मुझे ये एहसास बहुत ही अजीब लग रहा था क्योंकि आज पहलीबार किसी लड़की ने मुझे इस कदर छुआ था| अब उसे जगा कर उसकी नींद खराब करने का मन नहीं हुआ तो मैंने कान में हेडफोन्स लगाए और 'यूँ ही चला चल राही ' सुनने लगा| ये गाना सुनते हुए मन में एक ख्याल आया की हम इंसान तो इस सड़क पर से चलते हुए अपनी मंजिल तक पहुँच जाते हैं, पर ये सड़क हमेशा यहीं रहती है, क्या इसका मन नहीं करता होगा की जिन लोगों को ये उनकी मंजिल तक पहुँचाती है वो एक पल ठहर कर इसे शुक्रिया करें?! इस एक ख्याल के आते ही नजाने क्यों मैंने खुद की तुलना इस सड़क से करनी शुरू कर दी, मैं भी तो इस सड़क की ही तरह पहले भौजी को उनकी खुशियों की तरफ ले गया था और अब मैं करुणा को उसकी नई जिंदगी की शुरुआत की ओर ले जा रहा हूँ!

पर मुझ में ओर इस सड़क में बहुत बड़ा फर्क था, ये सड़क मेरी तरह स्वार्थी नहीं थी, शिकायत नहीं करती थी! हालाँकि मैंने भौजी या करुणा के साथ कभी किसी चीज की उम्मीद नहीं की, उनके लिए मैंने आजतक जो भी किया उसके बदले में मैंने बस प्यार और साथ ही माँगा था, पर प्यार या साथ माँगना भी तो एक तरह से स्वर्थी होना ही था! ये ख्याल आने से मैंने खुद को एक स्वार्थी की उपाधि दे दी, पर मुझे इसका कोई गिला नहीं था| प्यार और साथ माँगना कोई पाप नहीं था?!



करुणा: मिट्टू आप सोते नहीं?

करुणा के बोल सुन मैं अपनी सोच से बाहर आया और मुस्कुरा कर बोला;

मैं: यार इतना शांत माहौल है, रंगबिरंगी लाइट्स हैं, अगल-बगल से बसें और ट्रक गुजर रहे! इन्हें छोड़कर सोने का मन नहीं कर रहा|

ये सुन कर करुणा मुस्कुराई और बोली;

करुणा: आप क्या poet है?

मैंने बस मुस्कुराते हुए हाँ में जवाब दिया| उसने आगे कुछ नहीं कहा और खिड़की से सर लगा कर सोने लगी| मैं वापस सड़क, बसें और ढाबे की रंग-बिरंगी लाइट देखने लगा|

कुछ समय बाद मुझे लगा की करुणा ठीक से सो सके इसलिए मैं उठ कर पीछे वाली सीट पर बैठ गया, पीछे वाली सीट पर बैठने का फायदा ये हुआ की मुझे खिड़की के पास बैठने का मौका मिल गया और मैं वहाँ से दूसरी सड़क पर गुजरती हुई गाड़ियाँ देखने लगा! खिड़की से आती-जाती गाड़ियाँ और ट्रक देखने में बड़ा मजा आ रहा था, उन कुछ पलों के लिए मैं सारी चिंताएँ भूल गया था| कुछ देर बाद बस ने एक हॉल्ट लिया, मुझे बाथरूम जाना था तो मैंने करुणा को बेमन से उठाया और उससे पुछा की उसे 'फ्रेश' होना है क्या? करुणा को बहुत जोरदार नींद आई थी इसलिए उसने 'न' कहा और मैं अकेला बाथरूम चला गया| बाथरूम हो कर मैं जल्दी से लौट आया क्योंकि मुझे डर था की मेरी गैरहाजरी में करुणा के साथ कुछ गलत न हो जाए?! मैं फटाफट लौटा तो देखा की करुणा दोनों सीटों पर पैर फैला कर लेटी हुई सो रही है| मैं पुनः करुणा के पीछे वाली सीट पर पाँव फैला कर बैठ गया, 10 मिनट में सब लौट आये और बस फिर चल पड़ी| जयपुर आने तक मैंने एक पल के लिए भी आँख बंद नहीं की और खिड़की के बाहर की दुनिया को टकटकी लगाए देखता रहा| कुछ देर बाद करुणा की नींद खुली और मुझे अपने पास ना पा कर वो डर गई, उसे लगा की मैं कहीं उतर गया इसलिए वो डरी-सहमी सी खड़ी हो कर मुझे ढूँढने लगी, उसके खड़े होती ही मैंने अपना दाहिना हाथ हिला कर उसका ध्यान अपनी ओर खींचा| मुझे देख कर उसके दिल को चैन आया और वो मुस्कुराई, उसने मुझे आगे बैठने को कहा तो मैने कह दिया की वो आराम से लेटे, तबतक मैं खिड़की पर बैठ कर अपनी आँखें ठंडी कर लूँ! वो वापस पैर फैला कर लेट गई और मैं अपने काम में लग गया|



सुबह तीन बजे बस ने हमें सिंधी कैंप बस स्टैंड उतारा, वहाँ उतरते ही हम दोनों बाहर की ओर चल पड़े| अभी हम बाहर पहुँचे भी नहीं थे की हमें होटल वाले दलाल मिल गए, हम दोनों को देख कर वो समझ गए की एक लड़का-लड़की यहाँ घूमने और मौज-मस्ती करने आये हैं| उन्होंने हमें 2,000/- से ऊपर के होटल के बारे में बताना शुरू कर दिया पर हम दोनो बस न में गर्दन हिलाते हुए आगे बढ़ने लगे| आगे चलकर हमें 2-4 ऑटो वाले मिल गए और मैंने उनसे 1,000/- तक के होटल के बारे में पुछा तो वो हमें ले कर सीधा बस स्टैंड के सामने वाली लाइन में घुस गया जहाँ गलियों में होटल थे| ये सारा मोमडन इलाका था, ऑटो वाले ने एक होटल के सामने ऑटो रोका और मुझे साथ चलने को कहा| मैंने करुणा को इशारे से ऑटो में बैठे रहने को कहा और मैं ऑटोवाले के साथ होटल में घुसा| ऑटो वाले ने आगे बढ़ कर बताया की साहब और मेमसाब के लिए रूम चाहिए, ये सुन कर होटल के मालिक ने मुझसे सीधा सवाल पुछा;

होटल मालिक: शादी-शुदा हैं?

ये सुन कर मेरी शक्ल पर हवाइयाँ उड़ने लगी! मैं चाहता तो उससे कह सकता था की हमें दो कमरे चाहिए पर ये जगह देख कर मुझे फिल्मों में दिखाए जाने वाला red light area जैसा दिख रहा था, जिसे देख कर मेरा मन बहुत घबरा रहा था, इसलिए मैंने न में गर्दन हिलाई| मेरी ये हालत देख कर मालिक को लगा की मैं यहाँ 'उस' काम के लिए यहाँ आया हूँ तो उसने कमरा देने से साफ़ मना कर दिया| मैं और ऑटो वाला लौट आये और मैंने उससे साफ़ कहा;

मैं: भैया 1,500/- तक का भी होटल चलेगा पर इस तरह गीच-पिच इलाके में होटल मत दिखाओ!

ये सुन कर ऑटो वाले ने एक अच्छी कॉलोनी की तरफ ऑटो घुमाया और एक राधास्वामी होटल के सामने ऑटो रोका| होटल एक खुली जगह में था, बाहर से दिखने में ही वो 4 स्टार होटल लग रहा था इसलिए मैंने करुणा को उतरने को बोला| हम दोनों बैग लेकर होटल में घुसे, करुणा को नींद आ रही थी तो मैंने उसे lobby में सोफे पर बैठने को कहा और मैं reception पर बात करने लगा| मैंने receptionist से कमरों का किराया तो उसने बताया की 1,200/- रुपये प्रति कमरा, मैंने उससे दो कमरे माँगे और उसने मुझसे हम दोनों की ID माँगी| मैंने उसे अपनी ID दी और करुणा से उसकी ID लेने उसके पास आया;

करुणा: कितना पैसा बोल रे?

मैं: 1,200/- एक रूम का, मैं दो रूम बुक कर रहा हूँ.....

आगे मेरी बात पूरी होती उससे पहले ही करुणा एकदम से गुस्सा हो गई;

करुणा: तुम पागल होरे? दो रूम क्यों लेरे? एक लो!

आज करुणा ने पहली बार मुझे 'तुम' कहा था, पर मेरा ध्यान उस वक़्त उस बात पर नहीं गया बल्कि मैं तो उसकी एक रूम में रहने की बात सुन कर उसे आँखें फाड़े देख रहा था! मुझे यूँ आँखें फाड़े देखते हुए करुणा मेरे मन की स्थिति और मेरे दिमाग में उठ रहे सवालों को समझ गई, पर वो उस समय वहाँ कुछ कह कर हम दोनों का मजाक नहीं बनवाना चाहती थी इसलिए वो अपनी ID ले कर खड़ी हो गई| हम दोनों reception पर लौटे और receptionist ने हमारी ओर होटल का रजिस्टर घुमा दिया| मैंने बिना डरे अपना नाम-पता भर दिया और रजिस्टर करुणा के आगे कर दिया, जबतक करुणा अपनी डिटेल भर रही थी तब तक receptionist ने मुझसे पुछा की कितने दिन के लिए रूम चाहिए, मैं उस वक़्त एक लड़की के साथ रूम में रुकने के नाम से हड़बड़ाया था और उसी हड़बड़ी में मैंने जवाब दिया;

मैं: जी बस 5-6 घंटों के लिए!

ये सुन कर receptionist और करुणा दोनों मुझे घूरने लगे, दोनों की आँखें मुझ पर टिकी थीं और मैं मन ही मन सोच रहा था की अब मैंने क्या गलत कह दिया?!

करुणा ने जैसे-तैसे बात संभाली और बोली;

करुणा: हम evening check out करते!

करुणा की बात सुन कर जैसे उसे इत्मीनान हो गया तथा उसने और कुछ नहीं कहा| करुणा के डिटेल भरने के बाद Receptionist ने एकबार रजिस्टर चेक किया, उसने रजिस्टर में relation वाले column की तरफ इशारा करते हुए हमें स्वालियाँ नजरों से देखा! पेन करुणा के हाथ में था तो उसने उस column में 'friends' लिख दिया| इतने में एक लड़का निकल कर आया जिसने हमें पहली मंजिल पर अपना कमरा दिखाया| कमरे में पहले मैंने प्रवेश किया था और घुसते ही मेरी नजर सीधा पलंग पर पड़ी, उसे देखते ही मैं स्तब्ध खड़ा हो गया| इधर करुणा ने दरवाजे पर अंदर से चिटकनी लगाई, उस चिटकनी की आवाज सुन मेरी तंद्रा भंग हुई| एक कुँवारी लड़की के साथ एक कमरे में एक पलंग पर सोने की बात से ही शरीर में चिंता की झुरझुरी छूटने लगी थी!



करुणा बिना कुछ कहे सीधा बाथरूम में घुस गई, इधर मैंने दोनों बैग रखे और अपने बैग से सोने के लिए पहनने वाले कपडे निकालने लगा| एक पजामा और टी-शर्ट निकाल कर मैं मुड़ा तो देखा करुणा मुझे ही देख रही है;

करुणा: आप दो रूम क्यों बुक कर रहा ता? ज्यादा पैसा आ रे?

करुणा ने अपने दोनों हाथ अपनी कमर पर रखते हुए प्यारभरे गुस्से से पुछा|

मैं: यार मैं एक लड़का हूँ...और आप एक लड़की हो.... हम दोनों ...एक कमरे में...एक बेड पर.... कैसे?

मैंने घबराते हुए कहा|

करुणा: हम best friends है न? एक साथ बेड पर सो रे न और तो कुछ नहीं कर रहे!

करुणा ने फट्क से जवाब दिया|

मैं: Dear मैंने आजतक किसी लड़की के साथ room share नहीं किया, फिर मेरे या आपके घर में पता चला तो कितनी प्रॉब्लम होगी?

करुणा: उनको कौन बोल रे की हम एक साथ रुका था?!

करुणा ने आज पहलीबार मेरे सामने झूठ बोलने की हिम्मत दिखाते हुए कहा|

करुणा: और आप पागल है क्या जो उस receptionist को बोल रे की हमें बस कुछ घंटों के लिए रूम चाहिए?

करुणा की आवाज में थोड़ा गुस्सा झलक रहा था और मुझे उसका कारन जानना था;

मैं: तो उसमें क्या गलत था? थोड़ी देर सो कर तो सुबह ऑफिस के लिए निकल जाना था....

मेरी बात अभी पूरी भी नहीं हुई थी की करुणा मेरी बात काटते हुए बोली;

करुणा: आपको पता है की कुछ घंटों के लिए कौन रूम बुक करते?

उसने बहुत गुस्से से कहा| वहीं मैं उसके सवाल से अनजान था, इसलिए मैं मासूमियत भरी नजरों से उसे देखने लगा|

करुणा: Prostitute को ले कर आते तब आदमी लोग ऐसे रूम बुक करते!

ये सुनते ही मैं आँखें फाड़े हैरानी से उसे देखने लगा!

करुणा: मैं आपको Prostitute दिखते?

उसने फिर गुस्से से मुझसे सवाल पूछा|

मैं: I’m really sorry dear! सच में मुझे ये सब नहीं पता था, मैं तो बस.....

इसके आगे मुझसे कुछ बोला नहीं गया और मैंने उसके आगे हाथ जोड़ दिए| करुणा को मेरे चेहरे पर ईमानदारी दिखी और उसने बात को आगे नहीं खींचा| मैं सर झुकाये बाथरूम में घुस कर कपडे बदल कर बाहर आया, मुझमें हिम्मत नहीं हो रही थी की मैं उससे कोई बात करूँ|



मैं पलंग की तरफ बढ़ा तो देखा की करुणा टीवी ऑन कर रही है| तभी उसने पलट कर मुझे देखा और बात शुरू करते हुए बोली;

करुणा: आप सोने के लिए कपडा लाया ता?

मैंने हाँ में सर हिला कर उसकी बात का जवाब दिया|

करुणा: मैं तो लाना ही भूल गए!

करुणा पलंग के दाईं तरफ बैठ गई, मैं बाईं तरफ आया और अपना तकिया उठा कर गद्दे के बीचों-बीच रख दिया जिससे मैं नींद में करुणा की तरफ न चला जाऊँ!

जब से मैं गाँव से आया था तब से मैं दो तकिये ले कर सोता था, एक मेरे सिरहाने होता था और दूसरे तकिये को मैं नेहा समझ कर अपनी छाती से चिपका कर सोता था| अब यहाँ सोने के लिए जो एक तकिया मिला था उसे मैंने हम दोनों के बीच में रख दिया था, जब करुणा की नजर उस बीच में रखे तकिये पर पड़ी तो वो एक दम से बोली;

करुणा: ये तकिया बीच में क्यों रख रे?

उसके सवाल से मैं हैरान हुआ और बोला;

मैं: ये बीच में इसलिए रखा है ताकि मैं नींद में आपकी तरफ न आ जाऊँ|

ये सुन कर करुणा हँसने लगी;

करुणा: आप sleep walking करते?

उसने हँसते हुए पुछा| मैंने भोली सी सूरत लिए न में सर हिलाया|

करुणा: मिट्टू हम दोनों छोटा बच्चा नहीं है, grown up है और सब जानते है| कुछ नहीं होते, आप आराम से सो जाओ!

करुणा ने मुझे बड़े प्यार से समझते हुए कहा| पर मैंने वो तकिया नहीं हटाया और बिना तकिये के सोने लगा, करुणा ने मुझे अपना तकिया देना चाहा पर मैंने मना कर दिया| करुणा ने टीवी बंद किया और मुझे 'good night' कह अपना तकिया सामने कुर्सी पर रख कर सो गई| बस में सारी रात जागने की थकावट थी पर दिल अभी भी थोड़ा बेचैन था, बार-बार दिमाग में एक लड़की की मौजूदगी होने का एहसास दिमाग में कौंध रहा था| जैसे-तैसे मेरी आँख लगी और मैं सो गया, सुबह ठीक 7 बजे मेरा अलार्म बजा| मैं फ़ौरन उठ बैठा और बाथरूम जाकर फ्रेश हो गया, अब करुणा को उठाना था तो बिना उसे छुए कैसे उठाऊँ? इसलिए मैंने उसका फ़ोन उठाया और उसे साइलेंट मोड से हटा कर उसके मुँह के पास रख दिया, फिर अपने फ़ोन से उसके फ़ोन पर कॉल किया| फ़ोन की जोरदार आवाज से करुणा की नींद खुली और उसने अधखुली आँखों से मुझे मुस्कुराते हुए देखा|

मैं: Good Morning dear!

पर उसकी नींद पूरी नहीं हुई थी इसलिए वो फिर से सोने लगी, मैंने उसे बहुत कहा की वो उठ जाए पर वो बस 5 मिनट बोल कर सो जाती| मैं नहाया-धोया और कपडे पहन कर तैयार हो गया, करुणा को जगाने के लिए मैंने टीवी पर कार्टून लगा दिया और पलंग से टेक लगा कर बैठ गया| कार्टून की आवाज सुन कर करुणा उठी और दोनों हाथ फैला कर अंगड़ाई लेने लगी| आज मैं पहलीबार उसे अंगड़ाई लेते हुए देख रहा था और वो दृश्य वाक़ई में मनमोहक दृश्य था! उसके अंगड़ाई लेने से उसके ऊपर के जिस्म के कटाव दिखने लगे थे, ऐसा नहीं था की उसे देख कर मुझे उत्तेजना पैदा हो रही थी बल्कि मैं तो उसकी ख़ूबसूरती को निहार रहा था, पर अगले ही सेकंड मुझे एहसास हुआ की वो मेरी दोस्त है इसलियें मैंने मुँह मोड़ लिया और अपने फ़ोन को ऑन कर के कुछ देखने लगा| शुक्र है की करुणा ने मुझे उसे निहारते नहीं देखा था वरना वो पता यहीं क्या सोचती|



आखिर करुणा उठी और बाथरूम में फ्रेश होने गई, जब वो वापस आई तो उसने बताया की उसे अभी उलटी हुई है| वो अंदर से इतनी कमजोर थी की जल्दी ही बीमार हो जाया करती थी| मैंने उससे पुछा की वो कुछ खायेगी तो उसने मना कर दिया, मैंने थोड़ा जोर दिया तो उसने कॉफ़ी के लिए हाँ बोला| मैंने दो कॉफ़ी मँगाई और तबतक वो नहा-धो कर तैयार हो गई| कॉफ़ी पी कर हम दोनों नीचे आये तो कल रात वाले receptionist ने हमें रोका और एडवांस माँगा, मैंने उसे 1,000/- रुपये एडवांस दिया और साथ ही उससे उस ऑफिस के बारे में पुछा जहाँ मुझे करुणा को ले कर जाना था|

Receptionist: सर मैं ऑटो वाला बुला देता हूँ!

ये कहते हुए उसने ऑटो वाले को फ़ोन कर बुला दिया|

Receptionist: आप वहाँ काम करते हैं?

Receptionist ने थोड़ी रुचि लेटे हुए बात शुरू की|

मैं: Actually she's a nurse and we were called here by the seniors for an interview.

मैंने जानबूझकर ये बात उसे बताई ताकि आज सुबह जो मैंने बेवकूफी भरी गलती की थी उसे संभाल सकूँ और करुणा की छबि खराब न हो| मुझे ऐसा लगा की मेरी बात सुन कर उसके मन में करुणा के लिए अब कुछ भी गलत ख्याल नहीं बचा है|



खैर ऑटो आया और हम दोनों उस ऑफिस पहुँचे जहाँ करुणा को बुलाया गया था| ऑफिस पहुँच कर मैंने करुणा को आगे कर दिया क्योंकि मैं चाहता था की वो खुद कोशिश करे, पर वो बुद्धू थी और लोगों से बात करने में उसे बहुत डर लगता था| Reception काउंटर पर कोई नहीं था तो वो हाथ बाँधे इंतजार करने लगी की वहाँ कोई आ कर बैठे, मैंने वहीं से गुजरते हुए एक चपरासी को रोक कर जे.बी. गुप्ता जी के बारे में पुछा जिन्होंने करुणा को फ़ोन कर के यहाँ बुलाया था| चपरासी ने उनका कमरा नंबर बताया तो मैं करुणा को ले कर ऊपर चल दिया, कमरे के बाहर पहुँचते ही करुणा के हाथ-पैर फूल गए और वो उम्मीद लिए मेरी ओर देखने लगी की मैं आगे आ कर सब बात करूँ| मैंने चौधरी बनते हुए प्रभार संभाला और कमरे का दरवाजा खटखटाया, तो अंदर से आवाज आई;

जे.बी. गुप्ता: आ जाओ!

सबसे पहले मैं अंदर घुसा और मेरे पीछे करुणा घबराई हुई सी घुसी;

मैं: गुड मॉर्निंग सर! मेरा नाम मानु मौर्या है और ये मेरी दोस्त करुणा है, दो दिन पहले आपने कॉल कर के बताया था की नर्स की पोस्ट के लिए इनका सिलेक्शन हुआ है.....

मैं आगे कुछ कहता या पूछता, उसके पहले ही उन्होंने करुणा को थोड़ा डाँट दिया;

जे.बी. गुप्ता: कितनी लापरवाह लड़की हो तुम?! यहाँ लोग नौकरी के लिए मरे जा रहे हैं और तुम्हें मुझे फ़ोन करके बताना पड़ रहा है?

करुणा बेचारी सर झुका कर खामोश खड़ी रही तो मुझे ही मजबूरन उसके बचाव में उतरना पड़ा;

मैं: माफ़ी चाहूँगा सर, दरअसल इनकी माँ की तबियत खराब थी और उनकी देखभाल करने वाली बस ये अकेली हैं, इसी कारन ये अपनी ईमेल और वेबसाइट चेक करना भूल गईं!

मैंने बहुत नरमी से कहा जिसे सुन जे.बी. गुप्ता जी का दिल पिघल गया और उन्होंने हमें अपने डिप्टी भंवर लाल जी से मिलने को कहा| हम दोनों ने उन्हें हाथ जोड़ कर धन्यवाद कहा और हम भंवर लाल जी के कमरे की ओर चल पड़े| वहाँ पहुँचे तो पता चला की वो इस वक़्त मीटिंग में बैठे हैं तो मजबूरन हमें बाहर इंतजार करना था|

15-20 मिनट इंतजार करने के बाद मैं बगल वाले कमरे में घुसा और वहाँ बैठीं एक मैडम को जे.बी. गुप्ता जी से हुई सारी बात बताई, उन्होंने मुझे बताया की अभी थोड़ी देर में लाल सिंह जी आएंगे तथा वो ही फाइल बना कर भंवर लाल जी के पास ले जायेंगे| दस मिनट बाद एक आदमी उस कमरे में घुसने लगा तो मैंने उन्हें रोक कर पुछा की क्या वो ही लाल सिंह जी हैं तो उन्होंने हाँ में सर हिलाया, फिर मैंने उन्हीं सारी बात बताई तो उन्होंने हम दोनों को अंदर बुलाया| उन्होंने एक लिस्ट निकाली और उस लिस्ट में करुणा का नाम ढूँढने को कहा, मैंने करुणा का नाम ढूँढा और उन्हें करुणा के नाम का सीरियल नंबर बताया| फिर उन्होंने उस सीरियल नम्बर की फाइल निकाली और फाइल ले कर भंवर लाल जी के कमरे में घुस गए| 10 मिनट में वो बाहर आये और बोले की हमें लंच के बाद अंदर बुलाया है, तब तक हम बाहर बने पार्क में बैठ सकते हैं|



हम दोनों बाहर पार्क में आ कर बैठ गए, मैंने करुणा को याद दिलाया की वो अपने घर फ़ोन कर के बता दे और तब तक मैंने भी माँ को फ़ोन कर के बता दिया की मैं ऑडिट करने ऑफिस पहुँच चूका हूँ| माँ ने मुझे मेरा ख्याल रखने को कहा तथा खाना ठीक से खाने को कहा और रात में चलते समय फ़ोन करने को कहा| उधर करुणा ने भी अपनी दीदी को फ़ोन कर के मलयालम में गिड़-बिड करके सब कुछ बता दिया|

वहीं पार्क में कुत्ते का एक पिल्ला था जो घांस में कुछ सूँघ रहा था, करुणा ने उसे पुचकारते हुए अपने पास बुलाना शुरू किया| फिर उसने अपने बैग से एक केला निकाला और उसका एक टुकड़ा उसने सामने की ओर डाला जिसे देख वो पिल्ला फ़ौरन आ गया और मजे से केला खाने लगा| धीरे-धीरे करुणा ने वो पूरा केला उसे ऐसे ही टुकड़े-टुकड़े कर के खिला दिया| केला खा कर वो पिल्ला भाग गया, अब करुणा ने अपने बैग में से एक सेब निकाला और मुझे दिया तथा अपने लिए उसने एक और केला निकाला|

मैं: आपका बैग है या फ्रीज?

मैंने मजाक करते हुए कहा| ये सुन कर करुणा जोर से ठहाका मारने लगी!



खैर लंच हुआ और अब मुझे भूख लग आई थी, पर सुबह उलटी होने के डर के कारन करुणा कुछ भी खाने से मना कर रही थी| अब उसके बिना मैं कैसे खाता इसलिए मैंने भी अकेले खाने से मना कर दिया, हारकर करुणा खाना खाने के लिए मानी और हम दोनों कैंटीन पहँचे| वहाँ पहुँच कर देखा तो लाल सिंह जी खाना खा रहे थे, उन्होंने हमदोनों को भी खाने को कहा और खा कर भंवर लाल जी से मिलने जाने को कहा|

मुझे डर था की कहीं फिर से करुणा को उलटी न हो जाए इसलिए मैंने दोनों के लिए कॉफ़ी और बिस्कुट लिए| करुणा जानती थी की मुझे भूख लगी है इसलिए वो खुद गई और एक प्लेट डोसा ले आई| जैसे ही हमें डोसा खाया तो वो मुँह बिदकाने लगी और बोली;

करुणा: छी! ये डोसा है? इससे अच्छा डोसा तो मैं बनाते!

अब मैंने तो सिर्फ बाहर का डोसा ही खाया था और मुझे उस स्वाद में ज्यादा फर्क नहीं मिला, हाँ साम्भर जर्रूर बेकार था|

मैं: ऐसा कर आप जा कर बना के लाओ!

मैंने मजाक किया तो करुणा हँस पड़ी|



हम दोनों ने जल्दी से वो डोसा खत्म किया और भंवर लाल जी के कमरे के बाहर खड़े हो गए, कुछ देर बाद वो लंच कर के लौटे तो हमें बाहर खड़ा पाया| उन्होंने हमारा नाम पुछा और दोनों को अंदर आने को कहा;

भंवर लाल जी: अपने सर्टिफिकेट्स दिखाओ?

मैंने फ़ौरन करुणा की तरफ देखा तो उसने झट से अपनी फाइल निकल कर दी, उन्होंने बड़े इत्मीनान से सारे सर्टिफिकेट देखे और फिर लाल सिंह जी को बुलाया|

भंवर लाल जी: ऐसा करो इनका नियुक्ति पत्र बनाओ|

करुणा नहीं जानती थी की 'नियुक्ति पत्र' क्या होता है, इसलिए वो सवालिया नजरों से मुझे देखने लगी|

लाल सिंह जी: सर गुप्ता जी तो निकल गए, वो तो 2 दिन बाद आएंगे!

भंवर लाल जी: ठीक है जब वो आ जाएँ तो उनसे दस्तखत करवा कर इनके एड्रेस पर भेज देना|

हम तीनों बाहर आये और लाल सिंह जी ने करुणा के सारे सर्टिफिकेट की कॉपी माँगी, अब करुणा के पास फोटो कॉपी नहीं थी! उस वक़्त मुझे उसकी मूर्खता पर बड़ा गुस्सा आया की वो सरकारी दफ्तर में आई है और अपने सर्टिफिकेट्स की फोटोकॉपी तक नहीं लाई! उसकी जगह कोई और होता तो मैं बहुत जोर से झाड़ता, पर जैसे-तैसे मैंने अपना गुस्सा पीया तथा फोटोकॉपी कराने के लिए नीचे आया| सारे सर्टिफिकेट फोटोकॉपी करवा कर हम दोनों लौटे तो लाल सिंह जी ने मुझे एक सफ़ेद कागज दिया और कहा की मैं उसमें हिंदी में एक पत्र लिख दूँ की करुणा का नियुक्ति पत्र पोस्ट के जरिये उसके पते पर भेज दिया जाय|

अब हिंदी में लिखने के नाम से ही हम दोनों एक दूसरे की शक्ल देखने लगे क्योंकि दोनों को हिंदी में लिखना नहीं आता था! मैंने लाल सिंह से पुछा की अंग्रेजी में पत्र लिख दूँ तो वो बोले की राजस्थान में सिर्फ हिंदी भाषा का उपयोग होता है, इसलिए या तो मैं लिखूँ या फिर किसी से लिखवा लूँ| हम दोनों बाहर आये और सोचने लगे की पत्र कैसे लिखें;

करुणा: ये नियुप्टी क्या होते?

करुणा से तो नियुक्ति पत्र नहीं बोला जा रहा था तो वो क्या ही लिखती!

मैं: 'नियुक्ति पत्र' मतलब appointment letter!

अब जा कर उसे समझ आया की यहाँ इतनी देर से किस बात पर चर्चा हो रही थी| मैंने वहाँ काम करने वालों को रोक कर उनसे मदद माँगी तो सब ने मना कर दिया, एक भले मानस ने बताया की मैं फोटोकॉपी वाले से लिखवा लूँ| मैं करुणा को ले कर नीचे आया और फोटोकॉपी वाले लड़के से मदद माँगी, उसने हमारी मदद की और बदले में 10/- रुपये भी लिए| पत्र ले कर हम ऊपर आये और लाल सिंह जी को दिया, मैंने एक बार हाथ जोड़कर उनसे विनती करते हुए कहा;

मैं: सर प्लीज थोड़ा जल्दी करवा देना!

मेरी देखा देखि करुणा ने भी हाथ जोड़ कर उनसे विनती की, उन्होंने हमें मुस्कुराते हुए आश्वस्त किया की काम जल्दी हो जायेगा| वहाँ से हम दोनों सीधा सिंधी कैंप बस स्टैंड आये, घडी में साढ़े चार हुए थे और दिल्ली जाने वाली सुपर डीलक्स बस रात 9 बजे की थी! मैंने दो टिकटें खरीदी और हम दोनों ने अपने-अपने घर फ़ोन कर के हमारे आने का समय बता दिया| उधर करुणा ने अपनी बहन को आज दिन भर में जो हुआ सब बता दिया|



हम दोनों होटल लौटे और आराम करने लगे, रात सात बजे मैंने करुणा से खाना खाने को कहा तो उसने बताया कल उसे कुछ हल्का खाना है| मैंने दोनों के लिए दाल-चावल मँगाए, चूँकि राधास्वामी होटल था तो खाने में लस्सन और प्याज नहीं था पर खाना बहुत स्वाद था| खाना खा कर ठीक 8 बजे हमने चेकआउट किया और बस स्टैंड पहुँच कर बस का इंतजार करने लगे| बस आई और इस बार बस में बहुत यात्री थे, सारी बस लगभग भरी हुई थी| हम अपनी सीट पर बैठ गए और कुछ देर बाद बस चल पड़ी| करुणा को आई थी नींद थी, उसे न जाने क्या सूझा की उसने अपन सर मेरे दाएँ कंधे पर रखा और मेरी दाईं बाजू को अपने दोनों हाथों से पकड़ कर सोने लगी| उसका ये करना देख मैं स्तब्ध था, उसके मुझे स्पर्श करने से मेरे जिस्म में तरंगें उठने लगती थीं और मेरे दिमाग में बार-बार इस रिश्ते को लेकर सवाल उठने लगे थे|

करुणा तो पूरी रात बड़ी चैन से सोई इधर मैं रात भर जागते हुए ढाबों की रोशनियाँ देखता रहा और मन में उठ रहे सवालों का जवाब सोचता रहा| बस ठीक 6 बजे बीकानेर हाउस पहुँची और फिर टैक्सी कर के पहले मैंने करुणा को उसके घर छोड़ा, फिर अंत में मैं अपने घर पहुँचा| दरवाजा माँ ने खोला और उन्हें देखते ही मैं उनके गले लग गया, माँ ने मेरे माथे को चूमा और फिर बैग रख कर मैं नहाने चला गया| नाहा-धो कर जब मैं आया तो माँ ने चाय बना दी थी, पिताजी भी डाइनिंग टेबल पर बैठे अखबार पढ़ रहे थे| उन्होंने मुझसे जयपुर के बारे में पुछा तो मुझे मजबूरन सुबह-सुबह ऑडिट का झूठ बोलना पड़ा| मैंने ऑडिट की बात को ज्यादा नहीं खींचा और पिताजी से काम के बारे में पूछने लगा, पिताजी ने बताया की उन्होंने एक वकील साहब के जरिये एक नया प्रोजेक्ट उठाया है पर ये प्रोजेक्ट हमें जुलाई-अगस्त में मिलेगा तथा ये प्रोजेक्ट बहुत बड़ा है! मैंने उसी प्रोजेक्ट की जानकारी लेते हुए पिताजी का ध्यान भटकाए रखा ताकि वो फिर से मुझसे ऑडिट के बारे में न मुचने लगे और मुझे फिरसे उनसे झूठ न बोलना पड़े|


जारी रहेगा भाग 7(2) में...
Bhout hi bdiya update gurujii :love3:
Mja aa gya padkar
पिताजी: देख रही हो अपने लाल को? समझदार हो गया है, अब इसका ब्याह कर देना चाहिए!

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:hinthint2:
दिषु: क्यों? फ़ट गई?
:lotpot:
वो अपने फ़ोन को साइलेंट कर के रखती थी, जेब में फ़ोन पड़े होने पर भी उसे उसके फ़ोन की vibration महसूस नहीं होती थी!

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Ye to same mere sath bhi hota h

हॉल में एक टीवी लगा था जिसमें टॉलीवूड की कोई फिल्म दिखा रहे थे

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मैं चुपचाप बैठा रोडवेज की बस और volvo बस में तुलना कर रहा था|

:nana:
Bilkul galat
jit bus ka bhi jhaj ? bnade bgane me
kuch din to guzaro mhare haryana me
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jo mja haryana roadways me h vo to hwai jhaj me bhi nhi h ?

हम दोनों को देख कर वो समझ गए की एक लड़का-लड़की यहाँ घूमने और मौज-मस्ती करने आये हैं|

Tharki :sigh:
अब हिंदी में लिखने के नाम से ही हम दोनों एक दूसरे की शक्ल देखने लगे क्योंकि दोनों को हिंदी में लिखना नहीं आता था!

Ek hum. H jinhe english me letter likhna nhi ata
Sirf hindi me ata h ????

मैंने उसी प्रोजेक्ट की जानकारी लेते हुए पिताजी का ध्यान भटकाए रखा ताकि वो फिर से मुझसे ऑडिट के बारे में न मुचने :( लगे और मुझे फिरसे उनसे झूठ न बोलना पड़े|

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Update me karuna ki buraiya bhi bta hi di aaj ??
Ab sab kuch sahi chal rha h, pitaji ke saath business, karuna ki govt job, manu bhaiya ko bhi job mil gyi h

Sirf kami h to bhouji ki aur saath me sunita ki bhi ???
Sunita kha h ??

Waiting for next UPDATE gurujii ??
 
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Lutgaya

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मानु भाई इस कहानी को कौनसी डायरी में लिख कर ऱखा है
चुरा कर एक बार में पूरी पढ लूं
 
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