बाईसवाँ अध्याय: अनपेक्षित आगमन
भाग -5
अब तक आपने पढ़ा:
भौजी ग्लानि से बेहाल थीं, वो मेरे सामने अपने घुटनों पर गिर गईं और बिलख-बिलख कर रोने लगीं तथा मेरा बायाँ पाँव अपने दोनों हाथों से कस कर पकड़ लिया| उन्हें यूँ अपने सामने बिखरा हुआ देख मेरा सब्र टूटने लगा| मैंने भौजी से बहुत प्यार किया था और शायद अब भी करता हूँ, फिर मुझे मेरी प्यारी बेटी नेहा मिल गई थी, उसे पा कर मैं तृप्त था इसलिए मैंने भौजी की पकड़ से अपनी टाँग निकाली और तीन कदम पीछे जाते हुए बोला;
मैं: Despite everything you did to me……. I forgive you! This is the least I can do!
मैंने भौजी को माफ़ कर दिया लेकिन उन्होंने जो मेरे साथ किया उसे कभी भूल नहीं सकता था| मैंने भौजी से आगे कुछ नहीं कहा और वहाँ से घर लौट आया|
अब आगे:
घर लौट कर मुझे चैन नहीं मिल रहा था, भौजी से हुआ ये सामना मेरे दिल को कचोटे जा रहा था, आयुष से मिलकर उसे उसका पापा न कह कर चाचा बताना चुभ रहा था! बस एक बात अच्छी हुई थी, वो ये की मुझे मेरी बेटी नेहा वापस मिल गई थी! कहीं फिर से मैं दुःख को अपने सीने से लगा कर वापस पीना न शुरू कर दूँ इसलिए मैंने खुद को व्यस्त करने की सोची और मैंने पिताजी को फ़ोन किया ताकि पूछ सकूँ की वो कौनसी साइट पर हैं तथा वहाँ पहुँच कर खुद को व्यस्त कर लूँ मगर पिताजी ने मुझे दोपहर के खाने तक घर पर रहने को कहा| मैंने फ़ोन रखा ही था की इतने में भौजी और बच्चे घर आ गए, भौजी ने रो-रो कर बिगाड़ी हुई अपनी हालत जैसे-तैसे संभाल रखी थी, वहीं दोनों बच्चों ने हॉल में खेलना शुरू कर दिया| मैं अपने कमरे में बैठा दोनों बच्चों की आवाजें सुन रहा था और उनकी किलकारियाँ का आनंद ले ने लगा था| इन किलकारियों के कारन मेरा मन शांत होने लगा था| उधर भौजी और माँ ने रसोई में खाना बनाना शुरू किया, भौजी माँ से बड़े इत्मीनान से बात कर रहीं थीं, उनकी बातों से लगा ही नहीं की वो कुछ देर पहले रोते हुए टूट चुकी थीं| आखिर भौजी को अपने जज्बात छुपाने में महारत जो हासिल थी!
कुछ देर बाद पिताजी और चन्दर आ गये, पिताजी को सतीश जी ने अपने नए फ्लैट का ठेका दिया था तो पिताजी ने मुझे उसी के बारे में बताना शुरू किया| खाना बनने तक हमारी बातें चलती रहीं तथा मैं बीच-बीच में बच्चों को खेलते हुए देखता रहा| खाना तैयार हुआ और dining table पर परोसा गया, मेरी नजर नेहा पर पड़ी तो मैंने पाया की वो आस भरी नजरों से मुझे देख रही थी| मैं अपने कमरे में गया और वहाँ से नेहा के बैठने के लिए स्टूल ले आया, मैंने वो स्टूल अपनी कुर्सी के बगल में रखा| नेहा फुदकती हुई आई और फ़ौरन उस स्टूल पर बैठ गई, उसके चेहरे पर आई ख़ुशी देख मेरे दिल धक् सा रह गया| मैं भी नेहा की बगल में बैठ गया, माँ ने जैसे ही हम दोनों को ऐसे बैठा देखा उन्होंने मेरी थाली में और खाना परोस दिया| माँ जब खाना परोस रहीं थीं तो मेरे चेहरे पर मुस्कान आ गई, ये मुस्कान इसलिए थी की मेरी माँ नेहा के लिए मेरे प्यार को समझती थीं| आज सालों बाद मैं अपनी प्यारी सी बेटी को खाना खिलाने वाला था, इसकी ख़ुशी इतनी थी की उसे ब्यान करने को शब्द नहीं थे| जैसे ही मैंने नेहा को पहला कौर खिलाया तो उसने पहले की तरह खाते ही ख़ुशी से अपनी गर्दन दाएँ-बाएँ हिलानी शुरू कर दी! नेहा को इतना खुश देख मेरे नजरों के सामने उसकी पाँच साल पहले की तस्वीर आ गई! मेरी बेटी ज़रा भी नहीं बदली थी, उसका बचपना, ख़ुशी से चहकना सब कुछ पहले जैसा था!
मुझे नेहा को खाना खिलाता हुआ देख भौजी के दिल को सुकून मिल रहा था, घूंघट के भीतर से मैं उनका ये सुकून महसूस कर पा रहा था| उधर पिताजी ने जब मुझे नेहा को खाना खिलाते देखा तो उन्होंने मुझे प्यार से डाँटते हुए बोला;
पिताजी: देखा?! आज घर पर दोपहर का खाना खाने रुका तो अपनी प्यारी भतीजी को खाना खिलाने का सुख मिला न?
पिताजी का नेहा को मेरी भतीजी कहना बुरा लगा पर दिमाग ने उनकी बात को दिल से नहीं लगाया और मैंने पिताजी की बात का जवाब कुछ इस तरह दिया की भौजी एक बार फिर शर्मिंदा हो गईं;
मैं: वो क्या है न पिताजी अपनी प्याली-प्याली बेटी के गुस्से से डरता था, इसीलिए घर से बाहर रहता था!
मेरे डरने की बात भौजी और नेहा को छोड़ किसी के समझ नहीं आई थी;
पिताजी: क्यों भई? मुन्नी से कैसा डर?
मैं: गाँव से आते समय नेहा से वादा कर के आया था की मैं उससे मिलने स्कूल की छुट्टियों में आऊँगा, वादा तोडा था इसलिए डर रहा था की नेहा से कैसे बात करूँगा?!
मेरी बात सुन भौजी का सर शर्म से झुक गया|
पिताजी: अरे हमारी मुन्नी इतनी निर्दयी थोड़े ही है, वो तुझे बहुत प्यार करती है!
पिताजी नेहा के सर पर हाथ फेरते हुए बोले|
मैं: वो तो है पिताजी, मैंने आज माफ़ी माँगी और मेरी बिटिया ने झट से मुझे माफ़ कर दिया!
मैंने नेहा के सर को चूमते हुए कहा|
मैं नेहा को खाना खिला रहा था और वो भी बड़े प्यार से खाना खा रही थी, तभी मेरी नजर आयुष पर पड़ी जो अपनी प्लेट ले कर हॉल में टी.वी. के सामने बैठा था| आयुष मुझे नेहा को खाना खिलाते हुए देख रहा था, मेरा मन बोला की आयुष को एक बार खाना खिलाने का सुख तो मैं भोग ही सकता हूँ! मैंने गर्दन के इशारे से आयुष को अपने पास बुलाया, आयुष मेरा इशारा समझते ही शर्म से लाल-म-लाल हो गया! उसके इस तरह शर्माने से मुझे कुछ याद आ गया, जब मैं आयुष की उम्र का था तो पिताजी कई बार मुझे अपने साथ कहीं रिश्तेदारी में मिलने-मिलाने ले जाते थे| अनजान जगह में जा कर मैं हमेशा माँ-पिताजी से चिपका रहता था, जब कोई प्यार से मुझे अपने पास बुलाता तो मैं शर्मा जाता और अपने माँ-पिताजी की तरफ देखने लगता! उसी तरह आयुष भी इस समय अपनी मम्मी को देख रहा था, लेकिन भौजी का ध्यान माँ से बात करने में था! आयुष का यूँ शर्माना देख कर मेरा मन उसे अपने गले लगाने को कर रहा था, उसके सर पर हाथ फेरने को कर रहा था| मैंने एक बार पुनः कोशिश की और उसे अपने हाथ से खाना खिलाने का इशारा किया, मगर मेरा शर्मीला बेटा अपनी गर्दन घुमा-घुमा कर अपनी मम्मी से आज्ञा लेने में लग गया!
इधर पिताजी ने एक पिता-पुत्र की इशारों भरी बातें देख ली थीं;
पिताजी: आयुष बेटा आपके चाचा आपको खाना खिलाने को बुला रहे हैं, आप शर्मा क्यों रहे हो?
पिताजी की बात सुन कर सभी का ध्यान मेरे और आयुष की मौन बातचीत पर आ गया| जो बात मुझे सबसे ज्यादा चुभी वो थी पिताजी का मुझे आयुष का चाचा कहना, मैं कतई नहीं चाहता था की आयुष किसी दबाव में आ कर मुझे अपना चाचा समझ कर मेरे हाथ से खाना खाये, इसलिए मैंने आयुष को बचाने के लिए तथा भौजी को ताना मारने के लिए कहा;
मैं: रहने दीजिये पिताजी, छोटा बच्चा है 'अनजानों' के पास जाने से डरता है!
मैंने ‘अंजानो’ शब्द पर जोर डालते हुए कहा, मेरा खुद को अनजान कहना भौजी के दिल को चीर गया, वो तो सब की मौजूदगी थी इसलिए भौजी ने किसी तरह खुद को संभाला हुआ था वरना वो फिर से अपने 'टेसुएँ' बहाने लगतीं! खैर मैंने बात को आगे बढ़ने नहीं दिया और नई बात छेड़ते हुए सबका ध्यान उन्हें बातों में लगा दिया|
मैंने नेहा को पहले खाना खिलाया और उसे आयुष के साथ खेलने जाने को कहा| पिताजी और चन्दर खाना खा चुके थे और साइट के काम पर चर्चा कर रहे थे| इतने में माँ भी अपना खाना ले कर बैठ गईं, हमारे घर में ऐसा कोई नियम नहीं की आदमी पहले खाएंगे और औरतें बाद में, लेकिन भौजी को इसकी आदत नहीं थी तो वो खाने के लिए नहीं बैठीं थीं| मुझे सलाद चाहिए था तो मैंने भौजी को कहा;
मैं: भाभी सलाद देना|
मेरा भौजी को 'भाभी' कहना था की पिताजी मुझे टोकते हुए बोले;
पिताजी: क्यों भई, तू तो बहु को भौजी कहा करता था? अब भाभी कह रहा है?
इसबार भाभी शब्द मैंने जानबूझ कर नहीं कहा था, मेरा ध्यान पिताजी की बातों में था! शायद कुछ देर पहले जो भौजी का बहाना सुन कर मेरे कलेजे में आग लगी थी वो अभी तक नहीं बुझी थी!
मैं: तब मैं छोटा था, अब बड़ा हो चूका हूँ|
मैंने पिताजी से नजर चुराते हुए अपनी बात को संभाला|
पिताजी: हाँ-हाँ बहुत बड़ा हो गया है?!
पिताजी ने टोंट मारते हुए कहा| इतने में पिताजी का फोन बजा, गुडगाँव वाली साइट पर कोई गड़बड़ हो गई थी तो उन्हें और चन्दर को तुरंत निकलना पड़ा| जाते-जाते वो मुझे कह गए की मैं खाना खा कर नॉएडा वाली साइट पर पहुँच जाऊँ!
आयुष का खाना हो चूका था और वो नेहा के साथ टी.वी. देखने में व्यस्त था, टेबल पर बस मैं और माँ ही बैठे खाना खा रहे थे|
माँ: बहु तू भी आजा!
माँ ने भौजी को अपना खाना परोस कर हमारे साथ बैठने को कहा| भौजी ने उनकी बात का कोई जवाब नहीं दिया बस घूँघट काढ़े अपनी थाली ले कर माँ की बगल में बैठ गईं| मुझे भौजी का यूँ घूँघट करना खटक रहा था, घर में पिताजी तो थे नहीं जिनके कारन भौजी ने घूँघट किया हो? भौजी जब कुर्सी पर बैठने लगीं तभी उनकी आँख से आँसूँ की एक बूँद टेबल पर टपकी! बात साफ़ थी, मेरा सब के सामने भौजी को भाभी कहना आहत कर गया था! भौजी की आँख से टपके उस आँसूँ को देख मेरे माथे पर चिंता की रेखा खींच गई और मैं आधे खाने पर से उठ गया! जब माँ ने मुझे खाने पर से उठते देखा तो पुछा;
माँ: तू कहाँ जा रहा है...खाना तो खा के जा?
मैं: सर दर्द हो रहा है, मैं सोने जा रहा हूँ|
मैंने माँ से नजरें चुराते हुए कहा और अपने कमरे में सर झुका कर बैठ गया| इन कुछ दिनों में मैंने जो भौजी को तड़पाने की कोशिश की थी उन बातों पर मैं अपना ध्यान केंद्रित करने लगा|
मेरा भौजी को सुबह-सवेरे दर्द भरे गाने गा कर सुनाना और उन्हें मेरे दर्द से अवगत कराना ठीक था, लेकिन उस दिन जब मैं 'मेरे दुश्मन तू मेरी दोस्ती को तरसे' भौजी को देखते हुए गा रहा था तो गाने में जब बद्दुआ वाला मुखड़ा आया तब मैंने भौजी की तरफ क्यों नहीं देखा? क्यों मेरे दर्द भरे दिल से भौजी के लिए बद्दुआ नहीं निकलती? आज जब भौजी ने मुझसे दूर रहने के लिए अपना बेवकूफों से भरा कारन दिया तो मैंने उन्हें क्यों माफ़ कर दिया? भौजी को जला कर, तड़पा कर उन्हें खून के आँसूँ रुला कर भी क्यों मेरे दिल को तड़प महसूस होती है? क्या अब भी मेरे दिल में भौजी के लिए प्यार है?
मेरे इन सभी सवालों का जवाब मुझे बाहर नेहा की किलकारी सुन कर मिल गया! अपनी बेटी को पा कर मैं संवेदनशील हो गया था, मेरी बेटी के प्यार ने मुझे बदले की राह पर जाने से रोक लिया था वरना मैं भौजी को तड़पाने के चक्कर में खुद तिल-तिल कर मर जाता| मेरी बेटी की पवित्र आभा ने मेरे जीवन में सकारात्मकता भर दी, तभी तो अभी तक मैंने शराब के बारे में नहीं सोचा था! नेहा के पाक साफ़ दिल ने मेरा हृदय परिवर्तन कर दिया था और मुझे कठोर से कोमल हृदय वाला बना दिया था|
मुझे अपने विचारों में डूबे पाँच मिनट हुए थे की भौजी मेरे कमरे का दरवाजा खोलते हुए अंदर आईं, उनके हाथ में खाने की प्लेट थी जो वो मेरे लिए लाईं थीं|
भौजी: जानू चलो खाना खा लो?
भौजी ने मुझे प्यार से मनाते हुए कहा|
मैं: मूड नहीं है!
इतना कह मैंने भौजी से मुँह मोड़ लिया और उनसे मुँह मोड हुए उनसे माफ़ी माँगते हुए बोला;
मैं: और Sorry!.
मैंने उन्हें "भाभी" कहने के लिए Sorry बोला|
भौजी: पहले जख्म देते हो फिर उस पर अपने "Sorry" का मरहम भी लगा देते हो! अब चलो खाना खा लो?
भौजी ने प्यार से मुँह टेढ़ा करते हुए कहा| उनकी बातों में मरे लिए प्यार झलक रहा था, मगर उनका प्यार देख कर मेरे दिमाग में गुस्सा भरने लगा था| मेरे दिल में दफन प्यार, गुस्से की आग में जल रहा था!
मैं: नहीं! मुझे कुछ जर्रुरी काम याद आ गया!
इतना कह कर मैं गुस्से से खड़ा हुआ|
भौजी: जानती हूँ क्या जर्रुरी काम है, चलो चुप-चाप खाना खाओ वरना मैं भी नहीं खाऊँगी?
भौजी ने हक़ जताते हुए कहा| उनका हक़ जताने का करना ये था की वो जानना चाहतीं थीं की क्या मैंने उन्हें सच में माफ़ कर दिया है, या मैं अब भी उनके लिए मन में घृणा पाले हूँ!
मैं: जैसी आपकी मर्ज़ी|
मैंने रूखे ढंग से जवाब दिया और पिताजी के बताये काम पर निकलने लगा निकलते हुए मैंने भौजी को सुनाते हुए कहा माँ से कह दिया की मैं रात तक लौटूँगा| मेरी बात सुन भौजी समझ चुकीं थीं की मैं रात को उनके जाने के बाद ही घर आऊँगा और इसी गुस्से में आ कर उन्होंने खाना नहीं खाया! रात का खाना भौजी ने बनाया और माँ का सहारा ले कर मुझे खाना खाने को घर बुलाया| मैंने माँ से झूठ कह दिया की मैं थोड़ी देर में आ रहा हूँ, जबकि मैं रात को दस बजे पिताजी और चन्दर भैया के साथ लौटा| साइट पर देर रूकने के कारन हम तीनों ने रात को बाहर ही खाना खाया था, चन्दर तो सीधा अपने घर चला गया और मैं तथा पिताजी अपने घर लौट आये| घर में घुसा ही था की नेहा दौड़ते हुए मेरी ओर आई, नेहा को देख कर मैं सब कुछ भूल बैठा और उसे बरसों बाद अपनी गोदी में उठा कर दुलार करने लगा| नेहा का मन मेरे साथ कहानी सुनते हुए सोने का था इसलिए वो जानबूझ कर माँ के पास रुकी मेरा इंतजार कर रही थी|
नेहा को अपनी गोदी में लिए हुए मैं अपने कमरे में आया, मैंने नेहा को पलंग पर बैठने को कहा और तबतक मैं बाथरूम में कपडे बदलने लगा| जब मैं बाथरूम से निकला तो पाया की नेहा उस्तुकता भरी आँखों से मेरे कमरे को देख रही है, जब से वो आई थी तब से उसने मेरा कमरा नहीं देखा था| मैंने नेहा के सर पर हाथ फेरा और उससे प्यार से बोला;
मैं: बेटा ये अब से आपका भी कमरा है|
ये सुन नेहा का चेहर ख़ुशी से खिल गया| गाँव में रहने वाली एक बच्ची को उसको अपना कमरा मिला तो उसका ख़ुशी से खिल जाना लाज़मी था| नेहा पैर झाड़ कर पलंग पर चढ़ गई और आलथी-पालथी मार कर बैठ गई, मैं समझ गया की वो मेरे लेटने का इंतजार कर रही है| मैं पलंग पर सीधा हो कर लेट गया, नेहा मुस्कुराते हुए मेरी छाती पर सर रख कर लेट गई| नेहा के मेरे छाती पर सर रखते ही मैंने उसे पने दोनों हाथों में जकड़ लिया, उधर नेहा ने भी अपने दोनों हाथों को मेरी बगलों से होते पीठ तक ले जाने की कोशिश करते हुए जकड़ लिया! नेहा को अपने सीने से लगा कर सोने में आज बरसों पुराना आनंद आने लगा था, नेहा के प्यारे से धड़कते दिल ने मेरे मन को जन्मो-जन्म की शान्ति प्रदान की थी! वहीं बरसों बाद अपने पापा की छाती पर सर रख कर सोने का सुख नेहा के चेहरे पर मीठी मुस्कान ओस की बूँद बन कर चमकने लगी| मेरी नजरें नेहा के दमकते चेहरे पर टिक गईं और तब तक टिकी रहीं जब तक मुझे नींद नहीं आ गई| एक युग के बाद मुझे चैन की नींद आई थी और इसी नींद ने मुझे एक मधुर सपने की सौगात दी! इस सुहाने सपने में मैंने अपने कोचिंग वाली अप्सरा को देखा, आज सालों बाद उसे सपने देख कर दिल बाग़-बाग़ हो गया था! सपने में मेरी और उसकी शादी हो गई थी तथा उसने नेहा को हमारी बेटी के रूप में अपना लिया था| नेहा भी मेरे उसके (कोचिंग वाली लड़की के) साथ बहुत खुश थी और ख़ुशी से चहक रही थी| हम दोनों किसी नव-विवाहित जोड़े की तरह डिफेन्स कॉलोनी मार्किट में घूम रहे थे, नेहा हम दोनों के बीच में थी और उसने हम दोनों की एक-एक ऊँगली पकड़ रखी थी| अपनी पत्नी और बेटी के चेहरे पर आई मुस्कान देख कर मेरा दिल ख़ुशी के मारे तेज धड़कने लगा था! मेरे इस छोटे से सपने दुनिया भर की खुशियाँ समाई थीं, एक प्रेम करने वाली पत्नी, एक आज्ञाकारी बेटी और एक जिम्मेदार पति तथा बाप! सब कुछ था इस सपने में और मुझे ये सपना पूरा करना था, किसी भी हाल में!
रात में मैंने अपने कमरे का दरवाजा बंद नहीं किया था, जिस कारन सुबह पिताजी ने 6 बजे मेरे कमरे में सीधा आ गए| मुझे और नेहा को इस कदर सोया देख उनके चेहरे पर मुस्कान आ गई और मेरे बचपन के बाद आज जा कर उन्होंने मेरे सर पर हाथ फेरते हुए उठाया| उनके चेहरे पर आई मुस्कराहट देख कर मेरा तो मानो दिन बन गया, मैंने उठना चाहा पर नेहा के मेरी छाती पर सर रखे होने के कारन मैं उठ नहीं पाया| पिताजी ने इशारे से मुझे आराम से उठने को कहा और बाहर चले गए| उनके जाने के बाद मैंने अपनी बेटी के सर को चूमते हुए उसे प्यार से उठाया;
मैं: मेरा बच्चा.....मेला प्याला-प्याला बच्चा....उठो बेटा!
मैंने नेहा के सर को एक बार फिर चूमा| नेहा आँख मलते-मलते उठी और मेरे पेट पर बैठ गई, मेरे चेहरे पर मुस्कराहट देख उसने मेरे दोनों गालों की पप्पी ली और एक बार फिर मेरे सीने से लिपट गई| मैं अपनी बेटी को उठाना नहीं चाहता था, इसलिए मैं सावधानी से नेहा को अपनी बाहों में समेटे हुए उठा और खड़े हो कर उसे ठीक से गोदी लिया| नेहा ने अपना सर मेरे बाएँ कँधे पर रख लिया और अपने दोनों हाथों का फंदा मेरी गर्दन के इर्द-गिर्द बना लिया ताकि मैं उसे छोड़ कर कहीं न जाऊँ| मुझे नेहा को गोद में उठाये देख माँ हँस पड़ी, उनकी हँसी देख पिताजी माँ से बोले;
पिताजी: दोनों चाचा-भतीजी ऐसे ही सोये थे!
पिताजी का नेहा को मेरी भतीजी कहना मुझे फिर खटका लेकिन मैंने उनकी बात को दिल पर नहीं लिया| मेरा दिल सुबह के देखे सपने तथा नेहा को पा कर बहुत खुश था और मैं इस ख़ुशी को पिताजी की कही बात के कारन खराब नहीं करना चाहता था|
बाकी दिन मैं brush कर के चाय पीता था पर आज मन नेहा को गोद से उतारना नहीं चाहता था, इसलिए मैंने बिना brush किये ही माँ से चाय माँगी| मैं चाय पीते हुए पिताजी से बात करता रहा और नेहा मेरी छाती से लिपटी मजे से सोती रही! पौने सात हुए तो चन्दर, भौजी और आयुष तीनों आ गए| नेहा को मुझसे यूँ लिपटा देख आयुष आँखें बड़ी कर के हैरानी से देखने लगा, उधर चन्दर ने ये दृश्य देख भौजी को गुस्सा करते हुए कहा;
चन्दर: हुआँ का ठाड़ है, जाये के ई लड़की का अंदर ले जा कर पहुडा दे!
चन्दर का गुस्सा देख मैंने उसे चिढ़ते हुए कहा;
मैं: रहने दो मेरे पास!
इतना कह मैंने माँ को नेहा के लिए दूध बनाने को कहा, माँ दूध बनातीं उससे पहले ही भौजी बोल पड़ीं;
भौजी: माँ आप बैठो, मैं बनाती हूँ|
भौजी ने दोनों बच्चों के लिए दूध बनाया और इधर मैंने नेहा के माथे को चूमते हुए उसे उठाया| मैंने दूध का गिलास उठा कर नेहा को पिलाना चाहा तो नेहा brush करने का इशारा करने लगी| मैं समझ गया की बिना ब्रश किये वो कैसे दूध पीती, मगर पिताजी एकदम से बोले;
पिताजी: कोई बात नहीं मुन्नी, जंगल में शेरों के मुँह कौन धोता है? आज बिना ब्रश किये ही दूध पी लो|
पिताजी की बात सुन नेहा और मैं हँस पड़े| मैंने नेहा को अपने हाथों से दूध पिलाया और अपने कमरे में आ गया| मैंने नेहा से कहा की मैं नहाने जा रहा हूँ तो नेहा जान गई की मैं थोड़ी देर में साइट पर निकल जाऊँगा, लेकिन उसका मन आज पूरा दिन मेरे साथ रहने का था;
नेहा: पापा जी.....मैं...भी आपके साथ चलूँ?!
नेहा ने मासूमियत से भरी आवाज में कहा, उसकी बात सुन कर मुझे गाँव का वो दिन याद आया जब मैं दिल्ली आ रहा था और नेहा ने कहा था की मुझे भी अपने साथ ले चलो! ये याद आते ही मैंने फ़ौरन हाँ में सर हिलाया, मेरे हाँ करते ही नेहा ख़ुशी से कूदने लगी! मैंने नेहा को अपनी पीठ पर लादा और भौजी के पास रसोई में पहुँचा;
मैं: घर की चाभी देना|
मैंने बिना भौजी की तरफ देखे कहा| भौजी ने अपनी साडी के पल्लू में बँधी चाभी मुझे दे दी, वो उम्मीद कर रहीं थीं की मैं कुछ और बोलूँगा, बात करूँगा, मगर मैं बिना कुछ कहे ही वहाँ से निकल गया| भौजी के घर जा कर मैंने नेहा से कहा की वो अपने सारे कपडे ले आये, नेहा फ़ौरन कमरे में दौड़ गई और अपने कपडे जैसे-तैसे हाथ में पकडे हुए बाहर आई| मुझे अपने कपडे थमा कर वो वापस अंदर गई और अपनी कुछ किताबें और toothbrush ले कर आ गई| हम दोनों बाप-बेटी घर वापस पहुँचे, मेरे हाथों में कपडे देख सब को हैरत हुई मगर कोई कुछ कहता उससे पहले ही मैंने अपना फरमान सुना दिया;
मैं: आज से नेहा मेरे पास ही रहेगी!
मैंने किसी के कोई जवाब या सवाल का इंतजार नहीं किया और दोनों बाप-बेटी मेरे कमरे में आ गए| नेहा के कपडे मैंने अलमारी में रख मैं नहाने चला गया और जब बाहर आया तो मैंने नेहा से पुछा की वो कौनसे कपडे पहनेगी? नेहा ने नासमझी में अपनी स्कूल dress की ओर इशारा किया, मैंने सर न में हिला कर नेहा से कहा;
मैं: बेटा मैं जो आपके लिए gift में कपडे लाया था न, आप वो पहनना|
नेहा के चेहरे पर फिर से मुस्कान खिल गई|
मैं: और बेटा आज है न आप दो चोटी बनाना!
ये सुन नेहा हँस पड़ी ओर हाँ में गर्दन हिलाने लगी|
मैं बाहर हॉल में आ कर नाश्ता करने बैठ गया, नेहा के मेरे साथ रहने को ले कर किसी ने कुछ नहीं कहा था और सब कुछ सामन्य ढंग से चल रहा था| आधे घंटे बाद जब नेहा तैयार हो कर बाहर आई तो सब के सब उसे देखते ही रह गए! नीली जीन्स जो नेहा के टखने से थोड़ा ऊपर तक थी, सफ़ेद रंग का पूरी बाजू वाला टॉप और दो चोटियों में मेरी बेटी बहुत खूबसूरत लग रही थी| ये कपडे नेहा पर इतने प्यारे लगेंगे इसकी मैंने कभी कल्पना भी नहीं की थी! नेहा को इन कपड़ों में देख मुझे आज जा कर एहसास हुआ की वो कितनी बड़ी हो गई है!
उधर नेहा को इन कपड़ों में देख चन्दर चिढ़ते हुए नेहा को डाँटने लगा;
चन्दर: ई कहाँ पायो? के दिहिस ई तोहका?
मैं: मैंने दिए हैं!
मैंने उखड़ते हुए आवाज ऊँची करते हुए कहा| पिताजी को लगा की कहीं मैं और चन्दर लड़ न पड़ें, इसलिए वो बीच में बोल पड़े;
पिताजी: अरे कउनो बात नाहीं, आजकल हियाँ सेहर मा सब बच्चे यही पहरत हैं!
मैंने अपनी दोनों बाहें फैलाते हुए नेहा को बुलाया तो वो दौड़ती हुई आई और मेरे सीने से लग गई| नेहा रो न पड़े इसलिए मैंने नेहा की तारीफ करनी शुरू कर दी;
मैं: मेरी बेटी इतनी प्यारी लग रही है, राजकुमारी लग रही है की क्या बताऊँ?
मैंने नेहा के माथे को चूमा, इतने में माँ ने नेहा को अपने पास बुलाया और उसके कान के पीछे काला टीका लगाते हुए कहा;
माँ: मेरी प्यारी मुन्नी को नजर न लगे|
आयुष जो अभी तक खामोश था वो दौड़ कर अपनी दीदी के पास आया और कुछ खुसफुसाते हुए नेहा से बोला जिसे सुन नेहा शर्मा गई| मेरे मन में जिज्ञासा हुई की आखिर दोनों भाई-बहन क्या बात कर रहे थे, मैं दोनों के पास पहुँचा और नेहा से पूछने लगा की आयुष ने क्या बोला तो नेहा शर्माते हुए बोली;
नेहा: आयुष ने बोला....की...मैं.....प्रीति (pretty) लग...रही...हूँ!
प्रीति सुन कर मैं सोच में पड़ गया की भला ये प्रीति कौन है, मुझे कुछ सोचते हुए देख नेहा बोली;
नेहा: ये बुद्धू pretty को प्रीति कहता है!
नेहा ने जैसे ही आयुष को बुद्धू कहा तो आयुष ने अपने दोनों गाल फुला लिए और नेहा को गुस्से से देखने लगा! उसका यूँ गाल फुलाना देख मुझे हँसी आ गई, मुझे हँसता हुआ देख नेहा भी खिलखिला कर हँसने लगी! जाहिर सी बात है की अपना मजाक उड़ता देख आयुष को प्यारा सा गुस्सा आ गाय, उसने नेहा की एक चोटी खींची और माँ-पिताजी के कमरे में भाग गया|
नेहा: (आह!) रुक तुझे मैं बताती हूँ!
ये कहते हुए नेहा आयुष के पीछे भागी, दोनों बच्चों के प्यार-भरी तकरार घर में गूँजने लगी! दोनों बच्चे घर में इधर-से उधर दौड़ रहे थे और घर में अपनी हँसी के बीज बो रहे थे! दोनों बच्चों की किलकारियाँ सुन मेरा ये घर आज सच का घर लगने लगा था|
नाश्ता तैयार हुआ तो बच्चों की धमा चौकड़ी खत्म हुई, नेहा ने खुद अपना स्टूल मेरी बगल में लगाया और मेरे खाना खिलाने का इंतजार करने लगी| नाश्ते में आलू के परांठे बने थे, मैंने धीरे-धीरे नेहा को मक्खन से चुपड़ कर खिलाना शुरू किया| मैंने आयुष को खिलाने की आस लिए उसे देखना शुरू किया, मगर आयुष अपने छोटे-छोटे हाथों से गर्म-गर्म परांठे को छू-छू कर देख रहा था की वो किस तरफ से ठंडा हो गया है| नेहा ने मुझे आयुष को देखते हुए पाया, वो उठी और आयुष के कान में कुछ खुसफुसा कर बोली| आयुष ने अपनी मम्मी को देखा पर भौजी का ध्यान परांठे बनाने में लगा था, आयुष ने न में सर हिला कर मना कर दिया| नेहा मेरे पास लौट आई और अपनी जगह बैठ गई, मैंने इशारे से उससे पुछा की वो आयुष से क्या बात कर रही थी तो नेहा ने मेरे कान में खुसफुसाते हुए कहा;
नेहा: मैं आयुष को बुलाने गई थी ताकि आप उसे भी अपने हाथ से खिलाओ, पर वो बुद्धू मना करने लगा!
आयुष का मना करना मुझे बुरा लगा, पर फिर मैंने नेहा का मासूम चेहरा देखा और अपना ध्यान उसे प्यार से खिलाने में लगा दिया| नाश्ता कर के दोनों बाप-बेटी साइट पर निकलने लगे तो मैंने आयुष से अपने साथ घूमने ले चलने की कोशिश करते हुए बात की;
मैं: बेटा आप चलोगे मेरे और अपनी दीदी के साथ घूमने?
ये सुन कर आयुष शर्म से लाल हो गया और भाग कर अपनी मम्मी के पीछे छुप गया| तभी मुझे अपने बचपन की एक मीठी याद आई, मैं भी बचपन में शर्मीला था| कोई अजनबी जब मुझसे बात करता था तो मैं शर्मा कर पिताजी के पीछे छुप जाता था| फिर पिताजी मुझसे उस अजनबी का परिचय करवाते और मुझे उसके साथ जाने की अनुमति देते तभी मैं उस अजनबी के साथ जाता था| इधर आयुष को अपने पीछे छुपा देख भौजी सोच में पड़ गईं, पर जब उन्होंने आयुष की नजर का पीछा किया जो मुझ पर टिकी थीं तो भौजी सब समझ गईं|
भौजी: जाओ बेटा!
भौजी ने दबी आवाज में कहा पर आयुष मुझसे शरमाये जा रहा था| भौजी को देख मेरा मन फीका होने लगा तो मैंने नेहा को अपनी ऊँगली पकड़ाई और दोनों बाप- बेटी निकलने लगे|
माँ: कहाँ चली सवारी?
माँ ने प्यार से टोकते हुए पुछा|
मैं: आज अपनी बिटिया को मैं हमारी साइट दिखाऊँगा!
मैंने नेहा को अपनी ऊँगली पकड़ाते हुए कहा|
पिताजी: अरे तो आयुष को भी ले जा?
पिताजी की बात सुन कर आयुष फिर भौजी के पीछे छुप गया|
मैं: अभी मुझसे शर्माता है!
इतना कह मैं नेहा को ले कर निकल गया, मैंने ये तक नहीं देखा की भौजी ने मेरी बात सुन कर क्या प्रतिक्रिया दी|
नेहा मेरी ऊँगली पकडे हुए बहुत खुश थी, सड़क पर आ कर मैंने मेट्रो के लिए ऑटो किया| आखरी बार मेरे साथ ऑटो में नेहा तब बैठी थी जब भौजी मुझसे मिलने दिल्ली आईं थीं और भौजी ने मुझसे अपने प्यार का इजहार किया था| ऑटो में बैठते ही नेहा मेरे से सट कर बैठ गई, मैंने अपना दाहिना हाथ उठा कर उसे अपने से चिपका लिया|
नेहा: पापा मेट्रो क्या होती है?
नेहा ने भोलेपन से सवाल किया|
मैं: बेटा मेट्रो एक तरह की ट्रैन होती है जो जमीन के नीचे चलती है|
ट्रैन का नाम सुन नेहा एकदम से बोली;
नेहा: वही ट्रैन जिसमें हम गाँव से आये थे?
मैं: नहीं बेटा, वो अलग ट्रैन थी! आप जब देखोगे न तब आपको ज्यादा मजा आएगा|
मेरा जवाब सुन नेहा ने अपने कल्पना के घोड़े दौड़ाने शुरू कर दिए की आखिर मेट्रो दिखती कैसी होगी?
रास्ते भर नेहा ऑटो के भीतर से इधर-उधर देखती रही, गाड़ियाँ, स्कूटर, बाइक, लोग, दुकानें, बच्चे सब उसके लिए नया था| बड़ी-बड़ी गाड़ियाँ देखकर नेहा उत्साह से भर जाती और मेरा हाथ पकड़ कर खींचते हुए मेरा ध्यान उन पर केंद्रित करती| जिंदगी में पहली बार नेहा ने इतनी गाड़ियाँ देखि थीं तो उसका उत्साहित होना लाजमी था! मुझे हैरानी तो तब हुई जब नेहा लाल बत्ती को देख कर खुश हो गई, दरअसल हमारे गाँव और आस-पास के बजारों में कोई लाल बत्ती नहीं थी न ही ट्रैफिक के कोई नियम-कानून थे!
खैर हम मेट्रो स्टेशन पहुँचे, मैंने ऑटो वाले को पैसे दिए और नेहा का हाथ पकड़ कर मेट्रो स्टेशन की ओर चल पड़ा| बजाये सीढ़ियों से नीचे जाने के मैं नेहा को ले कर लिफ्ट की तरफ बढ़ गया| मैं और नेहा लिफ्ट के बंद दरवाजे के सामने खड़े थे, मैंने एक बटन दबाया तो नेहा अचरज भरी आँखों से लिफ्ट के दरवाजे को देखने लगी| लिफ्ट ऊपर आई और दरवाजा अपने आप खुला तो ये दृश्य देख नेहा के चेहरे पर हैरानी भरी मुस्कान आ गई! दोनों बाप-बेटी लिफ्ट में घुसे, मैंने लिफ्ट का बटन दबाया, लिफ्ट नीचे जाने लगी तो नेहा को डर लगा और वो डर के मारे एकदम से मेरी कमर से लिपट गई|
मैं: बेटा डरते नहीं ये लिफ्ट है! ये हमें ऊपर से नीचे और नीचे से ऊपर ले जाती है|
मेरी बात सुन कर नेहा का डर खत्म हुआ| हम नीचे पहुँचे तो लोगों की चहल-पहल और स्टेशन की announcement सुन नेहा दंग रह गई| मैं नेहा को ले कर टिकट काउंटर की ओर जा रहा था की नेहा की नजर मेट्रो में रखे उस लड़की के पुतले पर गई जो कहती है की मेरी उम्र XX इतनी हो गई है, पापा मेरी भी टिकट लो! नेहा ने उस पुतले की ओर इशारा किया तो मैंने कहा;
मैं: हाँ जी बेटा, मैं आपकी ही टिकट ले रहा हूँ| मेरे पास मेट्रो का कार्ड है|
मैंने नेहा को मेट्रो का कार्ड दिखाया| कार्ड पर छपी ट्रैन को देख नेहा मुझसे बोली;
नेहा: पापा हम इसी ट्रैन में जाएंगे?
मैंने हाँ में सर हिला कर नेहा का जवाब दिया| मैंने नेहा की टिकट ली और फिर हम security check point पर पहुँचे| मैंने स्त्रियों की लाइन की तरफ इशारा करते हुए नेहा को समझाया की उसे वहाँ लाइन में लगना है ताकि उसकी checking महिला अफसर कर सके, मगर नेहा मुझसे दूर जाने में घबरा रही थी! तभी वहाँ लाइन में एक महिला लगने वालीं थीं तो मैंने उनसे मदद माँगते हुए कहा;
मैं: Excuse me! मेरी बेटी पहली बार मेट्रो में आई है और वो checking से घबरा रही है, आप प्लीज उसे अपने साथ रख कर security checking करवा दीजिये तब तक मैं आदमियों वाली तरफ से अपनी security checking करवा लेता हूँ|
उन महिला ने नेहा को अपने पास बुलाया तो नेहा उनके पास जाने से घबराने लगी|
मैं: बेटा ये security checking जर्रूरी होती है ताकि कोई चोर-डकैत यहाँ न घुस सके! आप madam के साथ जाकर security checking कराओ मैं आपको आगे मिलता हूँ|
डरते-डरते नेहा मान गई और उन महिला के साथ चली गई, उस महिला ने नेहा का ध्यान अपनी बातों में लगाये रखा जिससे नेहा ज्यादा घबराई नहीं| मैंने फटाफट अपनी security checking करवाई और मैं दूसरी तरफ नेहा का इंतजार करने लगा| Security check के बाद नेहा दौड़ती हुई मेरे पास आई और मेरी कमर के इर्द-गिर्द अपने हाथ लपेट कर लिपट गई| मैंने उस महिला को धन्यवाद दिया और नेहा को ले कर मेट्रो के entry gate पर पहुँचा, gate को खुलते और बंद होते हुए देख नेहा अस्चर्य से भर गई! उसकी समझ में ये तकनीक नहीं आई की भला ये सब हो क्या रहा है?
मैं: बेटा ये लो आपका टोकन!
ये कहते हुए मैंने मैंने नेहा को उसका मेट्रो का टोकन दिया| नेहा उस प्लास्टिक के सिक्के को पलट-पलट कर देखने लगी, इससे पहले वो पूछती मैंने उसकी जिज्ञासा शांत करते हुए कहा;
मैं: बेटा ये एक तरह की टिकट होती है, बिना इस टिकट के आप इस गेट से पार नहीं हो सकते|
फिर मैंने नेहा को टोकन कैसे इस्तेमाल करना है वो सिखाया| मैं उसके पीछे खड़ा था, मैंने नेहा का हाथ पकड़ कर उसका टोकन गेट के scanner पर लगाया जिससे गेट एकदम से खुल गए;
मैं: चलो-चलो बेटा!
मैंने कहा तो नेहा दौड़ती हुई गेट से निकल गई और गेट फिर से बंद हो गया| नेहा ने पीछे मुड़ कर मुझे देखा तो मैं गेट के उस पर था, नेहा घबरा गई थी, उसे लगा की हम दोनों अलग हो गए हैं और हम कभी नहीं मिलेंगे| मैंने नेहा को हाथ के इशारे से शांत रहने को कहा और अपना मेट्रो कार्ड स्कैन कर के गेट के उस पार नेहा के पास आया|
मैं: देखो बेटा मेट्रो के अंदर आपको घबराने की जर्रूरत नहीं है, यहाँ आपको जब भी कोई मदद चाहिए हो तो आप किसी भी पुलिस अंकल या पुलिस आंटी से मदद माँग सकते हो| अगर हम दोनों गलती से यहाँ बिछड़ जाएँ तो आप सीधा पुलिस के पास जाना और उनसे सब बात बताना| Okay?
नेहा के लिए ये सब नया था मगर मेरी बेटी बहुत बाहदुर थी उसने हाँ में सर हिलाया और मेरे दाएँ हाथ की ऊँगली कस कर पकड़ ली| हम दोनों नीचे प्लेटफार्म पर आये और लास्ट कोच की तरफ इंतजार करने वाली जगह पर बैठ गए|
नेहा: पापा यहाँ तो कितना ठंडा-ठंडा है?
नेहा ने खुश होते हुए कहा|
मैं: बेटा अभी ट्रैन आएगी न तो वो अंदर से यहाँ से और भी ज्यादा ठंडी होगी|
नेहा उत्सुकता से ट्रैन का इंतजार करने लगी, तभी पीछे वाले प्लेटफार्म पर ट्रैन आई| ट्रैन को देख कर नेहा उठ खड़ी हुई और मेरा ध्यान उस ओर खींचते हुए बोली;
नेहा: पापा जल्दी चलो ट्रैन आ गई!
मैं: बेटा वो ट्रैन दूसरी तरफ जाती है, हमारी ट्रैन सामने आएगी|
मैंने नेहा से कहा पर उसका ध्यान ट्रैन के इंजन को देखने पर था, मैं नेहा को ट्रैन के इंजन के पास लाया ओर नेहा बड़े गौर से ट्रैन का इंजन देखने लगी| जब ट्रैन चलने को हुई तो अंदर बैठे चालक ने नेहा को हाथ हिला कर bye किया| नेहा इतनी खुश हुई की उसने कूदना शुरू कर दिया और अपना हाथ हिला कर ट्रैन चालक को bye किया| इतने में हमारी ट्रैन आ गई तो नेहा मेरा हाथ पकड़ कर हमारी ट्रैन की ओर खींचने लगी|
मैं: बेटा मेट्रो में दौड़ते-भागते नहीं हैं, वरना आप यहाँ फिसल कर गिर जाओगे और चोट लग जायेगी|
लास्ट कोच लगभग खाली ही था तो दोनों बाप-बेटी को बैठने की जगह मिल गई| ट्रैन के अंदर AC की ठंडी हवा में नेहा के चेहरे पर मुस्कान आ गई;
नेहा: पापा इस ट्रैन में...वो...के...का...स...वो...हम जब अयोध्या गए थे तब वो ठंडी हवा वाली चीज थी न?
नेहा को AC का नाम याद नहीं आ रहा था|
मैं: AC बेटा! हाँ मेट्रो की सारी ट्रेनों में AC होता है!
नेहा को AC बहुत पसंद था और AC में सफर करने को ले कर वो खुश हो गई| ट्रैन के दरवाजे बंद हुए तो नेहा को बड़ा मजा आया;
नेहा: पापा ये दरवाजे अपने आप बंद और खुलते हैं?
मैं: बेटा ट्रैन चलाने वाले ड्राइवर साहब के पास बटन होता है, वो ही दरवाजे खोलते और बंद करते हैं|
नेहा ने बड़े ध्यान से मेरी बात सुनी और ट्रैन चालक के बारे में सोचने लगी की वो व्यक्ति कितना जबरदस्त काम करता होगा|
ट्रैन चल पड़ी तो नेहा का ध्यान ट्रैन की खिड़कियों पर गया, तभी ट्रैन में announcement होने लगी| नेहा अपनी गर्दन घुमा कर ये पता लगाने लगी की ये आवाज कहाँ से आ रही है? मैंने इशारे से उसे दो कोच के बीच लगा स्पीकर दिखाया, स्पीकर के साथ display में लिखी जानकारी नेहा बड़े गौर से पढ़ने लगी| मैं उठा और नेहा को दरवाजे के पास ले आया, मैंने नेहा को गोद में उठा कर आने वाले स्टेशन के बारे में बताने लगा| दरवाजे के ऊपर लगे बोर्ड में जलती हुई लाइट को देख नेहा खुश हो गई और आगे के स्टेशन के नाम याद करने लगी| हम वापस अपनी जगह बैठ गए, चूँकि हमें ट्रैन interchange नहीं करनी थी इसलिए हम आराम से अपनी जगह बैठे रहे| नेहा बैठे-बैठे ही स्टेशन के नाम याद कर रही थी, खिड़की से आते-जाते यात्रियों को देख रही थी और मजे से announcement याद कर रही थी! जब मेट्रो tunnel से निकल कर ऊपर धरती पर आई तो नेहा की आँखें अस्चर्य से फ़ैल गईं! इतनी ऊँचाई से नेहा को घरों की छतें और दूर बने मंदिर दिखने लगे थे!
आखिर हमारा स्टैंड आया और दोनों बाप-बेटी उतरे| मेट्रो के automatic गेट पर पहुँच मैंने नेहा को टोकन डाल कर बाहर जाना सिखाया, नेहा ने मेरे बताये तरीके से टोकन गेट में लगी मशीन में डाला और दौड़ती हुई दूसरी तरफ निकल गई| नेहा को लगता था की अगर गेट बंद हो गए तो वो अंदर ही रह जाएगी इसलिए वो तेजी से भागती थी! मेट्रो से बाहर निकलते समय मैंने वो गेट चुना जहाँ escalators लगे थे, escalators पर लोगों को चढ़ते देख देख एक बार फिर नेहा हैरान हो गई!
मैं: बेटा इन्हें escalators बोलते हैं, ये मशीन से चलने वाली सीढ़ियाँ हैं|
मैं नेहा को उस पर चढ़ने का तरीका बताने लगा, तभी announcement हुई की; 'escalators में चढ़ते समय बच्चों का हाथ पकडे रहे तथा अपने पाँव पीली रेखा के भीतर रखें'| नेहा ने फ़ौरन मेरा हाथ पकड़ लिया और मेरी देखा-देखि किसी तरह escalators पर चढ़ गई| जैसे-जैसे सीढ़ियाँ ऊपर आईं नेहा को बाहर का नजारा दिखने लगा| नेहा को escalators पर भी बहुत मजा आ रहा था, बाहर आ कर मैंने ऑटो किया और बाप-बेटी साइट पहुँचे| मैंने एक लेबर को 500/- का नोट दिया और उसे लड्डू लाने को कहा, जब वो लड्डू ले कर आया तो मैंने सारी लेबर से कहा;
मैं: उस दिन सब पूछ रहे थे न की मैं क्यों खुश हूँ? तो ये है मेरी ख़ुशी का कारन, मेरी प्यारी बिटिया रानी!
मैंने नेहा के सर पर हाथ फेरते हुए कहा| लेबर नई थी और खाने को लड्डू मिले तो किसे क्या पड़ी थी की मेरा और नेहा का रिश्ता क्या है? सब ने एक-एक कर नेहा को आशीर्वाद दिया और लड्डू खा कर काम पर लग गए| मैंने काम का जायजा लिया और इस बीच नेहा ख़ामोशी से मुझे हिसाब-किताब करते हुए देखती रही| दोपहर हुई तो मैंने दिषु को फ़ोन किया और उसे कहा की मुझे उससे किसी से मिलवाना है| मेरी आवाज में मौजूद ख़ुशी महसूस कर दिषु खुश हो गया, उसने कहीं बाहर मिलने को कहा पर मैंने उसे कहा की नहीं आज उसके ऑफिस के पास वाले छोले-भठूरे खाने का मन है| नेहा को ले कर मैं साइट से चल दिया, इस बार मैंने नेहा की ख़ुशी के लिए uber की Hyundai Xcent बुलवाई| जब वो गाडी हमारे नजदीक आ कर खड़ी हुई तो नेहा ख़ुशी से बोली;
नेहा: पापा...ये देखो....बड़ी गाडी!
मैं घुटने मोड़ कर झुका और नेहा से बोला;
मैं: बेटा ये आपके लिए मँगाई है मैंने!
ये सुन कर नेहा ख़ुशी से फूली नहीं समाई!
नेहा: ये हमारी गाडी है?
नेहा ने खुश होते हुए पुछा|
मैं: बेटा ये हमारी कैब है, जैसे गाँव में जीप चलती थी न, वैसे यहाँ कैब चलती है|
गाँव की जीप में तो लोगों को भूसे की तरह भरा जाता था, इसलिए नेहा को लगा की इस गाडी में भी भूसे की तरह लोगों को भरा जायेगा|
नेहा: तो इसमें और भी लोग बैठेंगे?
मैं: नहीं बेटा, ये बस हम दोनों के लिए है|
इतनी बड़ी गाडी में बस बाप-बेटी बैठेंगे, ये सुनते ही नेहा खुश हो गई!
मैंने गाडी का दरवाजा खोला और नेहा को बैठने को कहा| नेहा जैसे ही गाडी में घुसी सबसे पहले उसे गाडी के AC की हवा लगी! फिर गद्देदार सीट पर बैठते ही नेहा को गाडी के आराम का एहसास हुआ| गुडगाँव से लाजपत नगर तक का सफर बहुत लम्बा था, जैसे ही कैब चली की नेहा ने अपने दोनों हाथ मेरी छाती के इर्द-गिर्द लपेट लिए| मैंने भी उसे अपने दोनों हाथों की जकड़ से कैद कर लिया और उसके सर को चूमने लगा| मेरी बेटी आज ख़ुशी से फूली नहीं समा रही थी, शायद इसीलिए वो थोड़ी सी भावुक हो गई थी| मैंने नेहा का ध्यान गाडी से बाहर लगाया और उसे आस-पास की जगह के बारे में बताने लगा| कैब जब कभी मेट्रो के पास से गुजरती तो नेहा मेट्रो ट्रैन देख को आते-जाते देख खुश हो जाती| इसी हँसी-ख़ुशी से भरे सफर में हम दिषु के ऑफिस के बाहर पहुँचे, मैंने दिषु को फ़ोन किया तो वो अपने ऑफिस से बाहर आया| दिषु ऑफिस से निकला तो उसे मुस्कुराता हुआ मेरा चहेरा नजर आया, फिर उसकी नजर मेरे साथ खड़ी नेहा पर पड़ी, अब वो सब समझ गया की मैं आखिर इतना खुश क्यों हूँ| दिषु जब मेरे नजदीक आया तो मैंने उसका तार्रुफ़ अपनी बेटी से करवाते हुए कहा;
मैं: ये है मेरी प्यारी बेटी....
मेरी बात पूरी हो पाती उससे पहले ही दिषु बोल पड़ा;
दिषु: नेहा! जिसके लिए तू इतना रोता था!
उसके चेहरे पर आई मुस्कान देख मैं समझ गया की वो सब समझ गया है, पर मेरे रोने की बात सुन कर नेहा थोड़ा परेशान हो गई थी| अब बारी थी नेहा का तार्रुफ़ दिषु से करवाने की;
मैं: बेटा ये हैं आपके पापा के बचपन के दोस्त, भाई, सहपाठी, आपके दिषु चाचा! ये आपके बारे में सब कुछ जानते हैं, जब आप यहाँ नहीं थे तो आपके दिषु चाचा ही आपके पापा को संभालते थे!
मेरा खुद को नेहा का पापा कहना सुन कर दिषु को मेरा नेहा के लिए मोह समझ आने लगा था| उधर नेहा ने अपने दोनों हाथ जोड़ कर दिषु से सर झुका कर कहा;
नेहा: नमस्ते चाचा जी!
नेहा का यूँ सर झुका कर दिषु को नमस्ते कहना दिषु को भा गया, उसने नेहा के सर पर हाथ रखते हुए कहा;
दिषु: भाई अब समझ में आया की तू क्यों इतना प्यार करता है नेहा से?! इतनी प्यारी, cute से बेटी हो तो कौन नहीं रोयेगा!
दिषु के मेरे दो बार रोने का जिक्र करने से नेहा भावुक हो रही थी इसलिए मैंने बात बदलते हुए कहा;
मैं: भाई बातें ही करेगा या फिर कुछ खियलएगा भी?
ये सुन हम दोनों ठहाका मार कर हँसने लगे| हम तीनों नागपाल छोले-भठूरे पर आये और मैंने तीन प्लेट का आर्डर दिया| नेहा को पता नहीं था की छोले भठूरे क्या होते हैं तो उसने मेरी कमीज खींचते हुए पुछा;
नेहा: पापा छोले-भठूरे क्या होते हैं?
उसका सवाल सुन दिषु थोड़ा हैरान हुआ, हमारे गाँव में तब तक छोले-भठूरे, चाऊमीन, मोमोस, पिज़्ज़ा, डोसा आदि बनने वाली टेक्नोलॉजी नहीं आई थी! मैंने नेहा को दूकान में बन रहे भठूरे दिखाए और उसे छोलों के बारे में बताया;
मैं: बेटा याद है जब आप गाँव में मेरे साथ बाहर खाना खाने गए थे? तब मैंने आपको चना मसाला खिलाया था न? तो छोले वैसे ही होते हैं लेकिन बहुत स्वाद होते हैं|
भठूरे बनाने की विधि नेहा बड़े गौर से देख रही थी और जब तक हमारा आर्डर नहीं आया तब तक वो चाव से भठूरे बनते हुए देखती रही| आर्डर ले कर हम तीनों खाने वाली टेबल पर पहुँचे, यहाँ बैठ कर खाने का प्रबंध नहीं था, लोग खड़े हो कर ही खाते थे| टेबल ऊँचा होने के कारन नेहा को अपने दोनों हाथ ऊपर उठा कर खाना पड़ता, इसलिए मैंने ही उसे खिलाना शुरू किया| पहले कौर खाते ही नेहा की आँखें बड़ी हो गई और उसने अपनी गर्दन दाएँ-बाएँ हिलनी शुरू कर दी|
नेहा: उम्म्म....पापा....ये तो...बहुत स्वाद है!
नेहा के चेहरे पर आई ख़ुशी देख मैंने और दिषु मुस्कुरा दिए| अब बिना लस्सी के छोले-भठूरे खाना सफल नहीं होता, मैं लस्सी लेने जाने लगा तो दिषु ने कहा की वो लिम्का लेगा| इधर मैं लस्सी और लिम्का लेने गया, उधर नेहा ने दिषु से पुछा;
नेहा: चाचा जी, क्या पापा मुझे याद कर के रोते थे?
दिषु: बेटा आपके पापा आपसे बहुत प्यार करते हैं, आपकी मम्मी से भी जयादा! जब आप यहाँ नहीं थे तो वो आपको याद कर के मायूस हो जाया करते थे| जब आपके पापा को पता चला की आप आ रहे हो तो वो बहुत खुश हुए, लेकिन फिर आप ने जब गुस्से में आ कर उनसे बात नहीं की तो वो बहुत दुखी हुए! शुक्र है की अब आप अच्छे से बात करते हो वरना आपके पापा बीमार पड़ जाते!
दिषु ने नेहा से मेरे पीने का जिक्र नहीं किया वरना पता नहीं नेहा का क्या हाल होता?! बहरहाल मेरा नेहा के बिना क्या हाल था उसे आज पता चल गया था! जब मैं लस्सी और लिम्का ले कर लौटा तो नेहा कुछ खामोश नजर आई! मुझे लगा शायद उसे मिर्ची लगी होगी इसलिए मैंने नेहा को कुल्हड़ में लाई लस्सी पीने को दी!
मैं: कैसी लगी लस्सी बेटा?
मैंने पुछा तो नेहा फिर से अपना सर दाएँ-बाएँ हिलाने लगी;
नेहा: उम्म्म...गाढ़ी-गाढ़ी!
हमारे गाँव की लस्सी होती थी पतली-पतली, उसका रंग भी cream color होता था, क्योंकि बड़की अम्मा दही जमाते समय मिटटी के घड़े का इस्तेमाल करती थीं, उसी मिटटी की घड़े में गाये से निकला दूध अंगीठी की मध्यम आँच में उबला जाता था, इस कर के दही का रंग cream color होता था| गुड़ की उस पतली-पतली लस्सी का स्वाद ही अलग होता था!
खैर खा-पीकर हम घर को चल दिए, रास्ते भर नेहा मेरे सीने से चिपकी रही और मैं उसके सर पर हाथ फेरता रहा| घर पहुँचे तो सब खाना खा कर उठ रहे थे, एक बस भौजी थीं जिन्होंने खाना नहीं खाया था| माँ ने मुझसे खाने को पुछा तो नेहा ख़ुशी से चहकते हुए बोल पड़ी;
नेहा: दादी जी, हमने न छोले-भठूरे खाये और लस्सी भी पी!
उसे ख़ुशी से चहकते देख माँ-पिताजी ने पूछना शुरू कर दिया की आज दिन भर मैंने नेहा को कहाँ घुमाया| चन्दर को इन बातों में कोई दिलचस्पी नहीं थी, इसलिए वो बस सुनने का दिखावा कर रहा था| इससे बेखबर नेहा ने सब को घर से निकलने से ले कर घर आने तक की सारी राम कहानी बड़े चाव से सुनाई| बच्चों की बातों में उनके भोलेपन और अज्ञानता का रस होता है और इसे सुनने का आनंद ही कुछ और होता है| माँ, पिताजी, भौजी और आयुष बड़े ध्यान से नेहा की बातें सुन रहे थे| नेहा की बताई बातें पिताजी के लिए नई नहीं थीं, उन्होंने भी मेट्रो में सफर किया था, नागपाल के छोले-भठूरे खाये थे पर फिर भी वो नेहा की बातें बड़े गौर से सुन रहे थे| वहीं भौजी और आयुष तो नेहा की बातें सुनकर मंत्र-मुग्ध हो गए थे, न तो उन्होंने छोले-भठूरे खाये थे, न मेट्रो देखि थी और न ही कैब में बैठे थे! मैं नेहा की बातें सुनते हुए साइट से मिले बिल का हिसाब-किताब बना रहा था जब माँ ने मुझे आगे करते हुए पिताजी को उल्हाना देते हुए कहा;
माँ: हाँ भाई! मुन्नी गाँव से आई तो उसे मेट्रो में घूमने को मिला, छोले-भठूरे खाने को मिले, लस्सी पीने को मिली, गाडी में बैठने को मिला और एक मैं हूँ, 24 साल हो गए इस सहर में आज तक मुझे तो कभी नहीं घुमाया!
मैं माँ का उद्देश्य समझ गया था और शायद पिताजी भी समझ गए थे तभी वो अपनी मूछों में मुस्कुरा रहे थे! लेकिन नेहा को लगा की माँ मुझसे नाराज हो कर शिकायत कर रहीं हैं, तो मुझे डाँट खाने से बचाने के लिए नेहा कूद पड़ी;
नेहा: कोई बात नहीं दादी जी, मैं हूँ न! आप मेरे साथ चलना, मैं आपको सब घुमाऊँगी!
नेहा की आत्मविश्वास से कही बात सुन कर सब उसकी तारीफ करने लगे| माँ ने नेहा को अपने पास बुलाया और उसे अपने गले लगाते हुए बोली;
माँ: देखा मेरी मुन्नी मुझे कितना प्यार करती है! मैं तो नेहा के साथ ही घूमने जाऊँगी!
माँ की ये बात सुन कर हम सब हँस पड़े!
जारी रहेगा भाग - 6 में....
Bhaiya ?
Mere isse pehle wale review ka jo reply diya tha uske liye kehna chahunga
Thank you is seekh ke liye ..... Dhyaan rakhunga ....
Ab aate hai is update pe to ye update me 3 baar padh chuka hu bhot hi acha laga aur jitni baar bhi padha smile bani rahi bus kuch moments the jahan smile chale jaati lekin bhot hi acha laga aur mere liye to bhot acha raha kyu ki pichle kuch dino se kuch jyada hi mood kharab chal raha tha ...Na to dosto se baat kar raha tha Na ghar walo se ..... Raat me update padha to mood acha hua
Wo moment bhot pyara laga dinning table wala aur jis tarha se aapne likha
natmastak
Neha ka Maanu ko Aas bhari najro se dekhna ki pehle ki tarha wo maanu ke haath se khayegi aur phir maanu ka uski aankhon se pehchaan jana ki uski beti kya cha hati hai aur phir uske liye stool lana aur maanu ki maa ka thaali me khana parosna
Aur neha ka pehla Kaur khate hi uska wo gardan left right ghumana
Bhot acha laga ese hi chote chote moments bhot pyaare lagte hai
aayush ko bulana aur uska laalam laal ho jana ? esa hi kuch nature mera bhi hai kuch jyada hi shy hu ....
Maanu ko ehsaas to hua ki wo gusse me khud ko hi takleef pohcha raha tha aur sayad ye neha ke pyaar ke saath sath uske nature ke wajah se bhi hai kyu ki usne kabhi kisi ka bura nahi chaha jab ki chander ne kitna buri tarike se maara tha maanu ko to bhi uska bura nahi chaha
phir ye to wo insaan hai jisse maanu pyaar karta tha jiske liye wo ghar se bhaagne tak ko taiyaar tha
Ye maanu ko ye sapna aana.... lagta hai uski zindagi me kuch naya aagaaz hone wala hai
To aakhir maanu neha ko delhi darshan karane nikal gaya achi baat hai isi bahane meko pata to chala kese kya hota hai metro me .... Meko bhi nahi pata tha ab thoda thoda pata chal gaya
Dhonobad Mota Bhai
Update bhot hi pyaara tha
Bhot bada lekin pata hi nahi chala kab khatam ho gaya aur esa lag ki pdhte raho
Ab to wait hai bhaiya agle update ka
Be happy and keep smiling