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Niceतेईसवाँ अध्याय: अभिलाषित प्रेम बन्धन
भाग - 27
अब तक आपने पढ़ा:
खैर मैं खाना और बच्चों को ले कर घर पहुँचा, घर का दरवाजा खुला तो बच्चों ने अपनी मम्मी को अपनी दादी जी की गोदी में सर रख कर सोये हुए पाया! दोनों बच्चे चुप-चाप खड़े हो गए, आज जिंदगी में पहलीबार वो अपनी मम्मी को इस तरह सोते हुए देख रहे थे! माँ ने जब हम तीनों को देखा तो बड़े प्यार से भौजी के बालों में हाथ फिराते हुए उठाया;
माँ: बहु......बेटा......उठ...खाना खा ले|
भौजी ने धीरे से अपनी आँख खोली और मुझे तथा बच्चों को चुपचाप खुद को निहारते हुए पाया! फिर उन्हें एहसास हुआ की वो माँ की गोदी में सर रख कर सो गईं थीं, वो धीरे से उठ कर बैठने लगीं और आँखों के इशारे से मुझसे पूछने लगीं की; 'की क्या देख रहे हो?' जिसका जवाब मैंने मुस्कुरा कर सर न में हिलाते हुए दिया! जाने मुझे ऐसा क्यों लगा की माँ की गोदी में सर रख कर सोने से भौजी को खुद पर बहुत गर्व हो रहा है!
अब आगे:
मैंने खाना किचन काउंटर पर रखा और दोनों बच्चों को अपने कमरे में ले जा कर कपडे बदलकर बाहर ले आया| मैं, नेहा, माँ और भौजी खाने के लिए बैठ गए लेकिन आयुष खड़ा रहा| माँ ने खाना परोसा, आयुष को आज सब के हाथ से खाना था इसलिए वो बारी-बारी मेरे, माँ तथा अपनी मम्मी के हाथ से खाने लगा| उसका ये बचपना देख हम सब हँस रहे थे, उधर नेहा ने अपने छोटे-छोटे हाथों से मुझे खिलाना शुरू कर दिया| एक बाप अपनी बेटी को और बेटी अपने बाप को खाना खिला रही थी, ये दृश्य तो देखना बनता था! भौजी की नजर हम बाप-बेटी पर टिकी थी और उनके चेहरे पर प्यारभरी मुस्कान झलक आई थी!
खाना खा कर हम सभी बैठक में बैठे बात कर रहे थे, तभी नेहा कमरे में गई और अपने geometry box से 40/- रुपये निकाल कर मुझे वापस दिए;
मैं: बेटा, ये आप मुझे क्यों दे रहे हो? मैंने कहा था न की ये पैसे आप रखो, कभी जर्रूरत पड़ेगी तो काम आएंगे!
नेहा ने हाँ में सर हिलाया और पैसे वापस अपनी geometry box में रख लिए|
मैं: तो बेटा क्या खाया lunch में?
मैंने नेहा को गोदी में बिठाते हुए पुछा|
आयुष: सैंडविच और चिप्स!
आयुष कूदते हुए मेरे पास आ कर बोला, लेकिन चिप्स का नाम सुनते ही भौजी गुस्सा हो गईं;
भौजी: मैने मना किया था न तुम दोनों को!
भौजी का गुस्सा देख दोनों बच्चे सहम गए थे, इसलिए मुझे भौजी का गुस्सा शांत करवाना पड़ा;
मैं: Relax यार! मैंने दोनों के लिए एक-एक सैंडविच बनाया था, एक सैंडविच से पेट कहाँ भरता है इसलिए मैंने ही पैसे दिए थे की भूख लगे तो कुछ खा लेना|
सारी बात पता चली तो माँ भी बच्चों की तरफ हो गईं;
माँ: कोई बात नहीं बहु, बच्चे हैं!
माँ ने बच्चों की तरफदारी की तो भौजी माँ से कुछ बोल नहीं पाईं, बल्कि मुझे शिकायत भरी नजरों से देखने लगीं!
कुछ देर बात कर के माँ ने भौजी को उनके कमरे में सोने भेज दिया, माँ भी अपने कमरे में जा कर लेट गईं, अब बचे बाप-बेटा-बेटी तो हमने पहले थोड़ी मस्ती की, फिर तीनों लेट गए| आयुष मेरी छाती पर चढ़ कर सो गया और नेहा मुझसे लिपट कर सो गई| थोड़ी देर बाद मैं भौजी की तबियत जानने के लिए उठा, मैं दबे पाँव उनके कमरे में गया और उनका माथा छू कर उनका बुखार check करने लगा| लेकिन मेरे छूने से भौजी की नींद खुल गई;
भौजी: क्या हुआ जानू?
मैं: Sorry जान आपको जगा दिया! मैं बस आपका बुखार check कर रहा था, अभी बुखार नहीं है, आप आराम करो हम शाम को मिलते हैं|
मैने मुस्कुराते हुए कहा और पलट कर जाने लगा की भौजी ने एकदम से मेरा हाथ पकड़ लिया;
भौजी: मुझे नींद नहीं आएगी, आप भी यहीं सो जाओ न!
भौजी किसी प्रेयसी की तरह बोलीं|
मैं: माँ घर पे है!
मैंने भौजी को माँ की मौजूदगी के बारे में आगाह किया|
भौजी: Please!!!
भौजी बच्चे की तरह जिद्द करने लगीं! जिस तरह से भौजी ने मुँह बना कर आग्रह किया था उसे देख कर मैं उन्हें मना नहीं कर पाया| मैंने दोनों बच्चों को बारी-बारी गोदी में उठाया और भौजी वाले कमरे में लाकर भौजी की बगल में लिटा दिया|
हम दोनों (मैं और भौजी) बच्चों के अगल-बगल लेटे हुए थे, भौजी ने अपना बायाँ हाथ आयुष की छाती पर रख उसे थपथपा कर सुलाने लगीं| वहीं नेहा ने मेरी तरफ करवट ली और अपना हाथ मेरी बगल में रख कर मेरी छाती से चिपक कर सो गई! नेहा को मुझसे यूँ लिपटा देख भौजी को मीठी जलन होने लगी और मुझे भौजी को जलते हुए देख हँसी आने लगी!
फिर तो ऐसी नींद आई की सीधा शाम को छः बजे आँख खुली| भौजी और बच्चे अभी भी सो रहे थे, मैंने धीरे से खुद को नेहा की पकड़ से छुड़ाया और अपने कमरे में मुँह धोया| फिर सोचा की चाय बना लूँ, मैं कमरे से बाहर आ कर रसोई में जाने लगा तो देखा की माँ अकेली dining table पर बैठीं चाय पी रहीं हैं| मैं माँ से बात करने आया तो देखा की माँ काफी गंभीर हैं, उन्होंने मुझे अपने पास बिठाया और गाँव में घाट रही घटनाओं के बारे में बताया| माँ की पिताजी से बात हुई थी और जो जानकारी हमें मिली थी वो काफी चिंताजनक थी! मेरे सर पर चिंता सवार हो गई थी, मेरे दिमाग ने भौजी और बच्चों के मेरे से दूर जाने की कल्पना करनी शुरू कर दी थी, मगर मैं अपने प्यार तथा बच्चों को खुद से कैसे दूर जाने देता?! इसलिए मैंने जुगाड़ लड़ाना शुरू कर दिए, मेरे पास जो एकलौता बहाना था उसे मजबूत करने के लिए तर्क सोचने शुरू कर दिए!
मैंने माँ की सारी बात खामोशी से सुनी, मैंने एक भी शब्द नहीं कहा क्योंकि मेरा ध्यान भौजी और बच्चों पर लगा हुआ था| कुछ देर बाद भौजी जागीं और आँख मलते हुए बाहर आईं, भौजी का चेहरा दमक रहा था, मतलब की भौजी की तबियत अब ठीक है! एक बात थी, भौजी की चाल में थोड़ा फर्क था, वो बड़ा सम्भल-सम्भल कर चल रहीं थीं| माँ भले ही ये फर्क न पकड़ पाईं हों मगर मैं ये फर्क ताड़ चूका था!
भौजी आ कर माँ की बाईं तरफ बैठ गईं, हमें चाय पीता हुआ देख वो बोलीं;
भौजी: माँ, मुझे उठा देते मैं चाय बना लेती|
माँ: पहले बता तेरी तबियत कैसी है?
ये कहते हुए माँ ने भौजी के माथे को छू के देखा|
माँ: हम्म्म! अब बुखार नहीं है|
माँ का प्यार देख भौजी के चेहरे पर गर्वपूर्ण मुस्कान आ गई| जब भी माँ मेरे सामने उनसे लाड-प्यार करतीं थीं तो भौजी को हमेशा अपने ऊपर गर्व होता था! इसी लाड-प्यार के चलते भौजी को अपनी तबियत के बारे में बताने का मन ही नहीं किया! इधर माँ को इत्मीनान हो गया की भौजी की तबियत ठीक है| देखने वाली बात ये थी की माँ ने भौजी से गाँव में घट रही घटना की बातें छुपाईं थीं, कारण मैं नहीं जानता पर मैंने सोच लिया की मैं भौजी से फिलहाल ये बात छुपाऊँगा!
माँ भौजी से आस-पड़ोस की बातें करने लगीं, मैं अगर वहाँ बैठता तो भौजी मेरे दिल में उठी उथल-पुथल पढ़ लेतीं, इसलिए मैं धीरे से उठा और भौजी के लिए चाय बनाई| भौजी को चाय दे कर मैं बच्चों को उठाने चल दिया, दोनों बच्चों को गोद में लिए हुए बाहर आया| भौजी ने दोनों बच्चों का दूध बना दिया था, दोनों बच्चों ने मेरी गोदी में चढ़े हुए ही दूध पिया और मेरे कमरे में पढ़ाई करने बैठ गए|
माँ की बताई बातों ने मुझे भावुक कर दिया था, मैं हार तो नहीं मानने वाला था लेकिन दिल में कहीं न कहीं निराशा जर्रूर छुपी थी, शायद उसी निराशा के कारण मैंने बच्चों के लिए टाँड पर रखे अपने खिलोने ढूँढना शुरू कर दिए| ये खिलोने मेरे बचपन के थे, दसवीं कक्षा तक मैं खिलौनों से खेलता था| पिताजी या माँ से जो थोड़ी बहुत जेब खर्ची मिलती थी उसे जोड़ कर मैं खिलौने खरीदता और collect करता था| मेरी collection में G.I. Joe और Hot Wheels की गाड़ियाँ, Beyblades आदि थे| माँ मुझसे हमेशा पूछतीं थीं की बेटा अब तू बड़ा हो गया है, ये खिलोने किसी दूरसे बच्चे को दे दे, तो मैं बड़े गर्व से कहता की मैं ये खिलोने अपने बच्चों को दूँगा! आज वो दिन आ गया था की मैं अपने बच्चों के सुपुर्द अपनी खिलोने रूपी जायदाद कर दूँ!
मैं: बच्चों, आप दोनों के लिए मेरे पास कुछ है|
इतना सुनना था की दोनों ने अपनी किताब बंद की और दौड़ते हुए मेरे पास आ गए| मैंने खिलोने अपने पीछे छुपा रखे थे इसलिए दोनों बच्चे नहीं जानते थे की मैं उन्हें क्या देने वाला हूँ?!
नेहा: आपने क्या छुपाया है पापा जी?
नेहा ने जिज्ञासा वश पुछा|
मैंने खिलोने अपने पीछे से निकाले और बच्चों के सामने रखते हुए बोला;
मैं: ये लो बेटा आप दोनों के लिए खिलोने!
खिलोने देख कर सबसे ज्यादा खुश आयुष था, उसकी आँखें ऐसी चमक रही थी मानो उसने ‘कारूँ का खजाना’ देख लिया हो! वहीं नेहा भी ये खिलोने देख कर खुश थी मगर उसके मतलब के खिलोने नहीं थे, अब मैं लड़का था तो मैं गुड़िया-गुस्से आदि से नहीं खेलता था!
मैं: आयुष बेटा ये हैं G.I. Joe ये मेरे सबसे पसंदीदा खिलोने थे, जब मैं आपसे थोड़ा सा बड़ा था तब मैं इनके साथ घंटो तक खेलता था!
मैंने आयुष को अपने G.I. Joe के हाथ-पैर मोड़ कर बैठना, खड़ा होना, बन्दूक पकड़ना, लड़ना सिखाया| G.I. Joe के साथ उनकी गाड़ियाँ, नाव, बंदूकें, backpack आदि थे जिन्हें मैं दोनों बच्चों को बड़े गर्व से दिखा रहा था| आयुष को G I Joes भा गए थे और वो मेरे सिखाये तरीके से उनके साथ खेलने लगा, अब बारी थी नेहा को कुछ खिलोने देने की;
मैं: नेहा बेटा, I'm sorry पर मेरे पास गुड़िया नहीं है, लेकिन मैं आपको नए खिलोने ला दूँगा|
मैंने नेहा का दिल रखने के लिए कहा, मगर नेहा को अपने पापा के खिलोनो में कुछ पसंद आ गया था;
नेहा: पापा जी मैं ये वाली गाडी ले लूँ?
नेहा ने बड़े प्यार से एक Hot wheels वाली गाडी चुनी| मैंने वो गाडी नेहा को दी तो नेहा उसे पकड़ कर पलंग पर चारों तरफ दौड़ाने लगी| मेरी बेटी की गाड़ियों में दिलचस्पी देख मुझे बहुत अच्छा लगा| उधर आयुष ने जब अपनी दीदी को गाडी के साथ खेलते देखा तो उसने भी एक गाडी उठा ली और नेहा के पीछे अपनी गाडी दौड़ाने लगा! दोनों बच्चे कमरे में गाडी ले कर दौड़ रहे थे और "पी..पी..पी" की आवाज निकाल कर खेलने लगे|
मैं: अच्छा बेटा अभी और भी कुछ है, इधर आओ|
दोनों बच्चे दौड़ते हुए मेरे पास आये| मैंने दोनों को beyblade के साथ खेलना सिखाया, launcher में beyblade लगाना और फिर उसे फर्श पर launch कर के दिखाया| Beyblades को गोल-गोल घूमता देख दोनों बच्चों ने कूदना शुरू कर दिया, उनके चेहरे की ख़ुशी ऐसी थी की क्या कहूँ! जब दोनों beyblades घूमते हुए टकराते तो दोनों बच्चे शोर मचाने लगते! मैंने उन्हें beyblade cartoon के बारे में बताया तो दोनों के मन में वो cartoon देखने की भावना जाग गई, इसलिए sunday को हम तीनों ने साथ बैठ कर internet पर beyblade देखने का plan बना लिया|
खेल-कूद तो हो गया था, अब बारी थी दोनों बच्चों को थोड़ी जिम्मेदारी देने की;
मैं: बेटा ये तो थे खिलोने, अब मैं आपको एक ख़ास चीज देने जा रहा हूँ और वो है ये piggy bank (गुल्ल्क)!
मैंने दोनों बच्चों को दो piggy bank दिखाए| एक piggy bank Disney Tarzan का collectors item था जो मैंने आयुष को दिया और दूसरा वाला mickey mouse वाला था जो मेरे बचपन का था जब मैं आयुष की उम्र का था, उसे मैंने नेहा को दिया| नेहा तो piggy bank का मतलब जानती थी, मगर आयुष अपने piggy bank को उलट-पुलट कर देखने लगा!
आयुष: ये तो लोहे का डिब्बा है?
आयुष निराश होते हुए बोला|
नेहा: अरे बुद्धू! ये गुल्ल्क है, इसमें पैसे जमा करते हैं|
नेहा ने आयुष की पीठ पर थपकी मारते हुए उसे समझाया|
आयुष: ओ!
आयुष अपने होंठ गोल बनाते हुए बोला|
मैं: नेहा बेटा, आप 100/- रुपये इसमें (गुल्लक में) डालो और आयुष बेटा आप 50/- रुपये इसमें डालो|
मैंने दोनों बच्चों को पैसे दिए, मगर दोनों हैरानी से मुझे देख रहे थे! ये भौजी के संस्कार थे की कभी किसी से पैसे नहीं लेने!
नेहा: पर किस लिए पापा जी?
नेहा ने हिम्मत कर के पुछा|
मैं: बेटा ये पैसे आपकी pocket money हैं, अब से मैं हर महीने आपको इतने ही पैसे दूँगा| आपको ये पैसे जमा करने हैं और सिर्फ जर्रूरत पड़ने पर ही खर्च करने हैं! जब आपके पास बहुत सारे पैसे इकठ्ठा हो जायेंगे न तब में आप दोनों का अलग bank account खुलवा दूँगा!
बच्चों को बात समझ आ गई थी और अपना bank account खुलने के नाम से दोनों बहुत उत्साहित भी थे!
आयुष: तो पापा जी, मैं भी आपकी तरह checkbook पर sign कर के पैसे निकाल सकूँगा?
आयुष ने मुझे और पिताजी को कई बार चेकबुक पर sign करते देखा था और उसके मन में ये लालसा थी की वो भी checkbook पर sign करे!
मैं: हाँ जी बेटा!
मैंने आयुष के सर पर हाथ फेरते हुए कहा|
नेहा: और हमें भी ATM card मिलेगा?
नेहा ने उत्साहित होते हुए पुछा|
मैं: हाँ जी बेटा, आप दोनों को आपका ATM card मिलेगा!
मैंने नेहा के सर को चूमते हुए कहा| बच्चों को खिलोने और गुल्लक दे कर मेरा दिल निराशा के जाल से बाहर आ चूका था, ये मौका मेरे लिए एक उम्मीद के समान था जिसे मेरे चेहरे पर फिरसे मुस्कान ला दी थी|
भौजी पीछे चुपचाप खड़ीं हमारी बातें सुन रहीं थीं, नजाने उन्हें क्या सूझी की वो मेरे बच्चों को पैसे देने की बात पर टोकते हुए बोलीं;
भौजी: क्यों आदत बिगाड़ रहे हो इनकी?
कोई और दिन होता तो मैं भौजी को सुना देता पर इस समय मैं बहुत भावुक था, इसलिए मैंने उन्हें बड़े इत्मीनान से जवाब दिया;
मैं: बिगाड़ नहीं रहा, बचत करना सीखा रहा हूँ! मैंने भी बचत करना अपने बचपन से सीखा था और अब मेरे बच्चे भी सीखेंगे! मुझे मेरे बच्चों पर पूरा भरोसा है की वो पैसे कभी बर्बाद नहीं करेंगे! नहीं करोगे न बच्चों?
मैंने दोनों बच्चों से सवाल पुछा तो दोनों आ कर मेरे गले लग गए और एक साथ बोले; "कभी नहीं पापा जी!" भौजी ये प्यार देख कर मुस्कुराने लगीं| अब चूँकि भौजी ने बच्चों के ऊपर सवाल उठाया था इसलिए दोनों बच्चे अपनी मम्मी को जीभ चिढ़ाने लगे! बच्चों के जीभ चिढ़ाने से भौजी को मिर्ची लगी और वो हँसते हुए बोलीं;
भौजी: शैतानों इधर आओ! कहाँ भाग रहे हो?
बच्चे अपनी मम्मी को चिढ़ाने के लिए कमरे में इधर-उधर भागने लगे, भौजी उनके पीछे भागने को हुईं तो मैंने उनकी कलाई थाम ली और खींच कर अपने पास बिठा लिया|
जारी रहेगा भाग - 28 में...