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Incest एक अनोखा बंधन - पुन: प्रारंभ (Completed)

Aakash.

ᴇᴍʙʀᴀᴄᴇ ᴛʜᴇ ꜰᴇᴀʀ
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तेईसवाँ अध्याय: अभिलाषित प्रेम बन्धन
भाग - 27



अब तक आपने पढ़ा:


खैर मैं खाना और बच्चों को ले कर घर पहुँचा, घर का दरवाजा खुला तो बच्चों ने अपनी मम्मी को अपनी दादी जी की गोदी में सर रख कर सोये हुए पाया! दोनों बच्चे चुप-चाप खड़े हो गए, आज जिंदगी में पहलीबार वो अपनी मम्मी को इस तरह सोते हुए देख रहे थे! माँ ने जब हम तीनों को देखा तो बड़े प्यार से भौजी के बालों में हाथ फिराते हुए उठाया;

माँ: बहु......बेटा......उठ...खाना खा ले|

भौजी ने धीरे से अपनी आँख खोली और मुझे तथा बच्चों को चुपचाप खुद को निहारते हुए पाया! फिर उन्हें एहसास हुआ की वो माँ की गोदी में सर रख कर सो गईं थीं, वो धीरे से उठ कर बैठने लगीं और आँखों के इशारे से मुझसे पूछने लगीं की; 'की क्या देख रहे हो?' जिसका जवाब मैंने मुस्कुरा कर सर न में हिलाते हुए दिया! जाने मुझे ऐसा क्यों लगा की माँ की गोदी में सर रख कर सोने से भौजी को खुद पर बहुत गर्व हो रहा है!



अब आगे:


मैंने खाना किचन काउंटर पर रखा और दोनों बच्चों को अपने कमरे में ले जा कर कपडे बदलकर बाहर ले आया| मैं, नेहा, माँ और भौजी खाने के लिए बैठ गए लेकिन आयुष खड़ा रहा| माँ ने खाना परोसा, आयुष को आज सब के हाथ से खाना था इसलिए वो बारी-बारी मेरे, माँ तथा अपनी मम्मी के हाथ से खाने लगा| उसका ये बचपना देख हम सब हँस रहे थे, उधर नेहा ने अपने छोटे-छोटे हाथों से मुझे खिलाना शुरू कर दिया| एक बाप अपनी बेटी को और बेटी अपने बाप को खाना खिला रही थी, ये दृश्य तो देखना बनता था! भौजी की नजर हम बाप-बेटी पर टिकी थी और उनके चेहरे पर प्यारभरी मुस्कान झलक आई थी!

खाना खा कर हम सभी बैठक में बैठे बात कर रहे थे, तभी नेहा कमरे में गई और अपने geometry box से 40/- रुपये निकाल कर मुझे वापस दिए;

मैं: बेटा, ये आप मुझे क्यों दे रहे हो? मैंने कहा था न की ये पैसे आप रखो, कभी जर्रूरत पड़ेगी तो काम आएंगे!

नेहा ने हाँ में सर हिलाया और पैसे वापस अपनी geometry box में रख लिए|

मैं: तो बेटा क्या खाया lunch में?

मैंने नेहा को गोदी में बिठाते हुए पुछा|

आयुष: सैंडविच और चिप्स!

आयुष कूदते हुए मेरे पास आ कर बोला, लेकिन चिप्स का नाम सुनते ही भौजी गुस्सा हो गईं;

भौजी: मैने मना किया था न तुम दोनों को!

भौजी का गुस्सा देख दोनों बच्चे सहम गए थे, इसलिए मुझे भौजी का गुस्सा शांत करवाना पड़ा;

मैं: Relax यार! मैंने दोनों के लिए एक-एक सैंडविच बनाया था, एक सैंडविच से पेट कहाँ भरता है इसलिए मैंने ही पैसे दिए थे की भूख लगे तो कुछ खा लेना|

सारी बात पता चली तो माँ भी बच्चों की तरफ हो गईं;

माँ: कोई बात नहीं बहु, बच्चे हैं!

माँ ने बच्चों की तरफदारी की तो भौजी माँ से कुछ बोल नहीं पाईं, बल्कि मुझे शिकायत भरी नजरों से देखने लगीं!



कुछ देर बात कर के माँ ने भौजी को उनके कमरे में सोने भेज दिया, माँ भी अपने कमरे में जा कर लेट गईं, अब बचे बाप-बेटा-बेटी तो हमने पहले थोड़ी मस्ती की, फिर तीनों लेट गए| आयुष मेरी छाती पर चढ़ कर सो गया और नेहा मुझसे लिपट कर सो गई| थोड़ी देर बाद मैं भौजी की तबियत जानने के लिए उठा, मैं दबे पाँव उनके कमरे में गया और उनका माथा छू कर उनका बुखार check करने लगा| लेकिन मेरे छूने से भौजी की नींद खुल गई;

भौजी: क्या हुआ जानू?

मैं: Sorry जान आपको जगा दिया! मैं बस आपका बुखार check कर रहा था, अभी बुखार नहीं है, आप आराम करो हम शाम को मिलते हैं|

मैने मुस्कुराते हुए कहा और पलट कर जाने लगा की भौजी ने एकदम से मेरा हाथ पकड़ लिया;

भौजी: मुझे नींद नहीं आएगी, आप भी यहीं सो जाओ न!

भौजी किसी प्रेयसी की तरह बोलीं|

मैं: माँ घर पे है!

मैंने भौजी को माँ की मौजूदगी के बारे में आगाह किया|

भौजी: Please!!!

भौजी बच्चे की तरह जिद्द करने लगीं! जिस तरह से भौजी ने मुँह बना कर आग्रह किया था उसे देख कर मैं उन्हें मना नहीं कर पाया| मैंने दोनों बच्चों को बारी-बारी गोदी में उठाया और भौजी वाले कमरे में लाकर भौजी की बगल में लिटा दिया|



हम दोनों (मैं और भौजी) बच्चों के अगल-बगल लेटे हुए थे, भौजी ने अपना बायाँ हाथ आयुष की छाती पर रख उसे थपथपा कर सुलाने लगीं| वहीं नेहा ने मेरी तरफ करवट ली और अपना हाथ मेरी बगल में रख कर मेरी छाती से चिपक कर सो गई! नेहा को मुझसे यूँ लिपटा देख भौजी को मीठी जलन होने लगी और मुझे भौजी को जलते हुए देख हँसी आने लगी!

फिर तो ऐसी नींद आई की सीधा शाम को छः बजे आँख खुली| भौजी और बच्चे अभी भी सो रहे थे, मैंने धीरे से खुद को नेहा की पकड़ से छुड़ाया और अपने कमरे में मुँह धोया| फिर सोचा की चाय बना लूँ, मैं कमरे से बाहर आ कर रसोई में जाने लगा तो देखा की माँ अकेली dining table पर बैठीं चाय पी रहीं हैं| मैं माँ से बात करने आया तो देखा की माँ काफी गंभीर हैं, उन्होंने मुझे अपने पास बिठाया और गाँव में घाट रही घटनाओं के बारे में बताया| माँ की पिताजी से बात हुई थी और जो जानकारी हमें मिली थी वो काफी चिंताजनक थी! मेरे सर पर चिंता सवार हो गई थी, मेरे दिमाग ने भौजी और बच्चों के मेरे से दूर जाने की कल्पना करनी शुरू कर दी थी, मगर मैं अपने प्यार तथा बच्चों को खुद से कैसे दूर जाने देता?! इसलिए मैंने जुगाड़ लड़ाना शुरू कर दिए, मेरे पास जो एकलौता बहाना था उसे मजबूत करने के लिए तर्क सोचने शुरू कर दिए!

मैंने माँ की सारी बात खामोशी से सुनी, मैंने एक भी शब्द नहीं कहा क्योंकि मेरा ध्यान भौजी और बच्चों पर लगा हुआ था| कुछ देर बाद भौजी जागीं और आँख मलते हुए बाहर आईं, भौजी का चेहरा दमक रहा था, मतलब की भौजी की तबियत अब ठीक है! एक बात थी, भौजी की चाल में थोड़ा फर्क था, वो बड़ा सम्भल-सम्भल कर चल रहीं थीं| माँ भले ही ये फर्क न पकड़ पाईं हों मगर मैं ये फर्क ताड़ चूका था!



भौजी आ कर माँ की बाईं तरफ बैठ गईं, हमें चाय पीता हुआ देख वो बोलीं;

भौजी: माँ, मुझे उठा देते मैं चाय बना लेती|

माँ: पहले बता तेरी तबियत कैसी है?

ये कहते हुए माँ ने भौजी के माथे को छू के देखा|

माँ: हम्म्म! अब बुखार नहीं है|

माँ का प्यार देख भौजी के चेहरे पर गर्वपूर्ण मुस्कान आ गई| जब भी माँ मेरे सामने उनसे लाड-प्यार करतीं थीं तो भौजी को हमेशा अपने ऊपर गर्व होता था! इसी लाड-प्यार के चलते भौजी को अपनी तबियत के बारे में बताने का मन ही नहीं किया! इधर माँ को इत्मीनान हो गया की भौजी की तबियत ठीक है| देखने वाली बात ये थी की माँ ने भौजी से गाँव में घट रही घटना की बातें छुपाईं थीं, कारण मैं नहीं जानता पर मैंने सोच लिया की मैं भौजी से फिलहाल ये बात छुपाऊँगा!

माँ भौजी से आस-पड़ोस की बातें करने लगीं, मैं अगर वहाँ बैठता तो भौजी मेरे दिल में उठी उथल-पुथल पढ़ लेतीं, इसलिए मैं धीरे से उठा और भौजी के लिए चाय बनाई| भौजी को चाय दे कर मैं बच्चों को उठाने चल दिया, दोनों बच्चों को गोद में लिए हुए बाहर आया| भौजी ने दोनों बच्चों का दूध बना दिया था, दोनों बच्चों ने मेरी गोदी में चढ़े हुए ही दूध पिया और मेरे कमरे में पढ़ाई करने बैठ गए|



माँ की बताई बातों ने मुझे भावुक कर दिया था, मैं हार तो नहीं मानने वाला था लेकिन दिल में कहीं न कहीं निराशा जर्रूर छुपी थी, शायद उसी निराशा के कारण मैंने बच्चों के लिए टाँड पर रखे अपने खिलोने ढूँढना शुरू कर दिए| ये खिलोने मेरे बचपन के थे, दसवीं कक्षा तक मैं खिलौनों से खेलता था| पिताजी या माँ से जो थोड़ी बहुत जेब खर्ची मिलती थी उसे जोड़ कर मैं खिलौने खरीदता और collect करता था| मेरी collection में G.I. Joe और Hot Wheels की गाड़ियाँ, Beyblades आदि थे| माँ मुझसे हमेशा पूछतीं थीं की बेटा अब तू बड़ा हो गया है, ये खिलोने किसी दूरसे बच्चे को दे दे, तो मैं बड़े गर्व से कहता की मैं ये खिलोने अपने बच्चों को दूँगा! आज वो दिन आ गया था की मैं अपने बच्चों के सुपुर्द अपनी खिलोने रूपी जायदाद कर दूँ!

मैं: बच्चों, आप दोनों के लिए मेरे पास कुछ है|

इतना सुनना था की दोनों ने अपनी किताब बंद की और दौड़ते हुए मेरे पास आ गए| मैंने खिलोने अपने पीछे छुपा रखे थे इसलिए दोनों बच्चे नहीं जानते थे की मैं उन्हें क्या देने वाला हूँ?!

नेहा: आपने क्या छुपाया है पापा जी?

नेहा ने जिज्ञासा वश पुछा|

मैंने खिलोने अपने पीछे से निकाले और बच्चों के सामने रखते हुए बोला;

मैं: ये लो बेटा आप दोनों के लिए खिलोने!

खिलोने देख कर सबसे ज्यादा खुश आयुष था, उसकी आँखें ऐसी चमक रही थी मानो उसने ‘कारूँ का खजाना’ देख लिया हो! वहीं नेहा भी ये खिलोने देख कर खुश थी मगर उसके मतलब के खिलोने नहीं थे, अब मैं लड़का था तो मैं गुड़िया-गुस्से आदि से नहीं खेलता था!

मैं: आयुष बेटा ये हैं G.I. Joe ये मेरे सबसे पसंदीदा खिलोने थे, जब मैं आपसे थोड़ा सा बड़ा था तब मैं इनके साथ घंटो तक खेलता था!

मैंने आयुष को अपने G.I. Joe के हाथ-पैर मोड़ कर बैठना, खड़ा होना, बन्दूक पकड़ना, लड़ना सिखाया| G.I. Joe के साथ उनकी गाड़ियाँ, नाव, बंदूकें, backpack आदि थे जिन्हें मैं दोनों बच्चों को बड़े गर्व से दिखा रहा था| आयुष को G I Joes भा गए थे और वो मेरे सिखाये तरीके से उनके साथ खेलने लगा, अब बारी थी नेहा को कुछ खिलोने देने की;

मैं: नेहा बेटा, I'm sorry पर मेरे पास गुड़िया नहीं है, लेकिन मैं आपको नए खिलोने ला दूँगा|

मैंने नेहा का दिल रखने के लिए कहा, मगर नेहा को अपने पापा के खिलोनो में कुछ पसंद आ गया था;

नेहा: पापा जी मैं ये वाली गाडी ले लूँ?

नेहा ने बड़े प्यार से एक Hot wheels वाली गाडी चुनी| मैंने वो गाडी नेहा को दी तो नेहा उसे पकड़ कर पलंग पर चारों तरफ दौड़ाने लगी| मेरी बेटी की गाड़ियों में दिलचस्पी देख मुझे बहुत अच्छा लगा| उधर आयुष ने जब अपनी दीदी को गाडी के साथ खेलते देखा तो उसने भी एक गाडी उठा ली और नेहा के पीछे अपनी गाडी दौड़ाने लगा! दोनों बच्चे कमरे में गाडी ले कर दौड़ रहे थे और "पी..पी..पी" की आवाज निकाल कर खेलने लगे|

मैं: अच्छा बेटा अभी और भी कुछ है, इधर आओ|

दोनों बच्चे दौड़ते हुए मेरे पास आये| मैंने दोनों को beyblade के साथ खेलना सिखाया, launcher में beyblade लगाना और फिर उसे फर्श पर launch कर के दिखाया| Beyblades को गोल-गोल घूमता देख दोनों बच्चों ने कूदना शुरू कर दिया, उनके चेहरे की ख़ुशी ऐसी थी की क्या कहूँ! जब दोनों beyblades घूमते हुए टकराते तो दोनों बच्चे शोर मचाने लगते! मैंने उन्हें beyblade cartoon के बारे में बताया तो दोनों के मन में वो cartoon देखने की भावना जाग गई, इसलिए sunday को हम तीनों ने साथ बैठ कर internet पर beyblade देखने का plan बना लिया|



खेल-कूद तो हो गया था, अब बारी थी दोनों बच्चों को थोड़ी जिम्मेदारी देने की;

मैं: बेटा ये तो थे खिलोने, अब मैं आपको एक ख़ास चीज देने जा रहा हूँ और वो है ये piggy bank (गुल्ल्क)!

मैंने दोनों बच्चों को दो piggy bank दिखाए| एक piggy bank Disney Tarzan का collectors item था जो मैंने आयुष को दिया और दूसरा वाला mickey mouse वाला था जो मेरे बचपन का था जब मैं आयुष की उम्र का था, उसे मैंने नेहा को दिया| नेहा तो piggy bank का मतलब जानती थी, मगर आयुष अपने piggy bank को उलट-पुलट कर देखने लगा!

आयुष: ये तो लोहे का डिब्बा है?

आयुष निराश होते हुए बोला|

नेहा: अरे बुद्धू! ये गुल्ल्क है, इसमें पैसे जमा करते हैं|

नेहा ने आयुष की पीठ पर थपकी मारते हुए उसे समझाया|

आयुष: ओ!

आयुष अपने होंठ गोल बनाते हुए बोला|

मैं: नेहा बेटा, आप 100/- रुपये इसमें (गुल्लक में) डालो और आयुष बेटा आप 50/- रुपये इसमें डालो|

मैंने दोनों बच्चों को पैसे दिए, मगर दोनों हैरानी से मुझे देख रहे थे! ये भौजी के संस्कार थे की कभी किसी से पैसे नहीं लेने!

नेहा: पर किस लिए पापा जी?

नेहा ने हिम्मत कर के पुछा|

मैं: बेटा ये पैसे आपकी pocket money हैं, अब से मैं हर महीने आपको इतने ही पैसे दूँगा| आपको ये पैसे जमा करने हैं और सिर्फ जर्रूरत पड़ने पर ही खर्च करने हैं! जब आपके पास बहुत सारे पैसे इकठ्ठा हो जायेंगे न तब में आप दोनों का अलग bank account खुलवा दूँगा!

बच्चों को बात समझ आ गई थी और अपना bank account खुलने के नाम से दोनों बहुत उत्साहित भी थे!

आयुष: तो पापा जी, मैं भी आपकी तरह checkbook पर sign कर के पैसे निकाल सकूँगा?

आयुष ने मुझे और पिताजी को कई बार चेकबुक पर sign करते देखा था और उसके मन में ये लालसा थी की वो भी checkbook पर sign करे!

मैं: हाँ जी बेटा!

मैंने आयुष के सर पर हाथ फेरते हुए कहा|

नेहा: और हमें भी ATM card मिलेगा?

नेहा ने उत्साहित होते हुए पुछा|

मैं: हाँ जी बेटा, आप दोनों को आपका ATM card मिलेगा!

मैंने नेहा के सर को चूमते हुए कहा| बच्चों को खिलोने और गुल्लक दे कर मेरा दिल निराशा के जाल से बाहर आ चूका था, ये मौका मेरे लिए एक उम्मीद के समान था जिसे मेरे चेहरे पर फिरसे मुस्कान ला दी थी|



भौजी पीछे चुपचाप खड़ीं हमारी बातें सुन रहीं थीं, नजाने उन्हें क्या सूझी की वो मेरे बच्चों को पैसे देने की बात पर टोकते हुए बोलीं;

भौजी: क्यों आदत बिगाड़ रहे हो इनकी?

कोई और दिन होता तो मैं भौजी को सुना देता पर इस समय मैं बहुत भावुक था, इसलिए मैंने उन्हें बड़े इत्मीनान से जवाब दिया;

मैं: बिगाड़ नहीं रहा, बचत करना सीखा रहा हूँ! मैंने भी बचत करना अपने बचपन से सीखा था और अब मेरे बच्चे भी सीखेंगे! मुझे मेरे बच्चों पर पूरा भरोसा है की वो पैसे कभी बर्बाद नहीं करेंगे! नहीं करोगे न बच्चों?

मैंने दोनों बच्चों से सवाल पुछा तो दोनों आ कर मेरे गले लग गए और एक साथ बोले; "कभी नहीं पापा जी!" भौजी ये प्यार देख कर मुस्कुराने लगीं| अब चूँकि भौजी ने बच्चों के ऊपर सवाल उठाया था इसलिए दोनों बच्चे अपनी मम्मी को जीभ चिढ़ाने लगे! बच्चों के जीभ चिढ़ाने से भौजी को मिर्ची लगी और वो हँसते हुए बोलीं;

भौजी: शैतानों इधर आओ! कहाँ भाग रहे हो?

बच्चे अपनी मम्मी को चिढ़ाने के लिए कमरे में इधर-उधर भागने लगे, भौजी उनके पीछे भागने को हुईं तो मैंने उनकी कलाई थाम ली और खींच कर अपने पास बिठा लिया|




जारी रहेगा भाग - 28 में...
Nice
 

Rockstar_Rocky

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Shandar Update Maanu Bhai, aaj pichli tino update padhi, gazab likhte ho bhai aap.

बहुत-बहुत धन्यवाद मित्र! :thank_you: :dost: :hug: :love3:
ये तो आप सभी का प्यार है जो मुझे लिखने के लिए प्रेरित करता है!
 

Rockstar_Rocky

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Aise gane to kai barso se sun rhe

Abhi tak na dil lga aur na hi kta :sigh:

किसी महान व्यक्ति ने क्या खूब कहा है की;



इसलिए थोड़ा सब्र करें, आपका काटने वाली फिलहाल किसी और का काट रही होगी! :lol1:
 

Rockstar_Rocky

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तेईसवाँ अध्याय: अभिलाषित प्रेम बन्धन
भाग - 28



अब तक आपने पढ़ा:


भौजी पीछे चुपचाप खड़ीं हमारी बातें सुन रहीं थीं, नजाने उन्हें क्या सूझी की वो मेरे बच्चों को पैसे देने की बात पर टोकते हुए बोलीं;

भौजी: क्यों आदत बिगाड़ रहे हो इनकी?

कोई और दिन होता तो मैं भौजी को सुना देता पर इस समय मैं बहुत भावुक था, इसलिए मैंने उन्हें बड़े इत्मीनान से जवाब दिया;

मैं: बिगाड़ नहीं रहा, बचत करना सीखा रहा हूँ! मैंने भी बचत करना अपने बचपन से सीखा था और अब मेरे बच्चे भी सीखेंगे! मुझे मेरे बच्चों पर पूरा भरोसा है की वो पैसे कभी बर्बाद नहीं करेंगे! नहीं करोगे न बच्चों?

मैंने दोनों बच्चों से सवाल पुछा तो दोनों आ कर मेरे गले लग गए और एक साथ बोले; "कभी नहीं पापा जी!" भौजी ये प्यार देख कर मुस्कुराने लगीं| अब चूँकि भौजी ने बच्चों के ऊपर सवाल उठाया था इसलिए दोनों बच्चे अपनी मम्मी को जीभ चिढ़ाने लगे! बच्चों के जीभ चिढ़ाने से भौजी को मिर्ची लगी और वो हँसते हुए बोलीं;

भौजी: शैतानों इधर आओ! कहाँ भाग रहे हो?

बच्चे अपनी मम्मी को चिढ़ाने के लिए कमरे में इधर-उधर भागने लगे, भौजी उनके पीछे भागने को हुईं तो मैंने उनकी कलाई थाम ली और खींच कर अपने पास बिठा लिया|


अब आगे:

मैं: बैठो मेरे पास और बताओ की अब कैसा महसूस कर रहे हो?

मैंने भौजी का हाथ अपने हाथ में लिए हुए पुछा|

भौजी: ऐसा लग रहा है जैसे प्राण आपके पास रह गए हों और ये खोखला शरीर मेरे पास रह गया!

भौजी को अपने दिल की बात कहनी थी पर वो अपनी भावनाओ में बहते हुए कुछ ज्यादा कह गईं जिससे मुझे हँसी आ गई! :laugh:

मैं: ओह! ये कुछ ज्यादा नहीं हो गया?

मैंने हँसते हुए बोला|

भौजी: न!

भौजी भी हँसते हुए बोलीं तथा अपना हाथ मेरे हाथ से छुड़ा कर अपनी बाँहों का हार बनाकर मेरी गर्दन में डाल दिया| भौजी का हाथ मेरे कँधे से छुआ तो मेरी आह निकल गई;

मैं: आह!

मेरी आह सुन भौजी परेशान हो गईं;

भौजी: क्या हुआ?

भौजी ने भोयें सिकोड़ कर पुछा|

मैं: कुछ नहीं!

मैंने बात को तूल न देते हुए कहा, लेकिन भौजी को चैन तो पड़ने वाला था नहीं इसलिए उन्होंने फ़ौरन मेरी टी-शर्ट का कालर मेरे कँधे तक खींचा तो उन्हें कल रात वाले अपने दाँतों के निशान दिखाई दिए! मेरा कन्धा उतने हिस्से में काला पड़ चूका था, भौजी अपने होठों पर हाथ रखते हुए बोलीं;

भौजी: हाय राम! ये मैंने.....!

इतना कह भौजी एकदम से दवाई लेने जाने लगीं, लेकिन मैंने उन्हें उठने नहीं दिया;

मैं: ये ठीक हो जायेगा! आप ये लो....

ये कहते हुए मैंने भौजी की तरफ i-pill का पत्ता बढ़ाया| उस i-pill के पत्ते को देख भौजी की आँखें बड़ी हो गईं, एक पल के लिए भौजी की आँखों में डर पनपा लेकिन फिर अगले ही पल उनकी आँखों में मुझे दृढ निस्चय नजर आने लगा!

भौजी: I wanna conceive this baby!

भौजी की दृढ निस्चय से भरी बात सुन कर मेरी हालत ऐसी थी की न साँस आ रहा था ओर न जा रहा था, मैं तो बस आँखें फाड़े उन्हें देख रहा था! अगले कुछ सेकंड तक मैं बस भौजी के कहे शब्दों को सोच रहा था, जितना मैं उन शब्दों को अपने दिमाग में दोहराता, उतना ही गुस्सा मेरे दिमाग पर चढ़ने लगता! वहीं भौजी का आत्मविश्वास देख मेरे दिमाग में शक का बीज बोआ जा चूका था;

मैं: तो आपने ये सब पहले से plan कर रखा था न, इसीलिए आपने मुझे कल रात condom use नहीं करने दिया न?

मैंने अपना शक जताते हुए पुछा तो भौजी ने अपना गुनाह कबूल करते हुए मुजरिम की तरह सर झुका लिया!

मैं: मैं आपसे कुछ पूछ रहा हूँ, answer me!!!

मैंने भौजी से सख्ती से पुछा, पर अपना गुस्सा उन पर नहीं निकाला था| मेरी सख्ती देख भौजी ने हाँ में सर हिला कर अपना जवाब दिया| ‘FUCK’ मैं अपने मन में चीखा! मैंने भौजी से इतनी चालाकी की कभी उम्मीद नहीं की थी और इसीलिए मुझे खुद पर गुस्सा आ रहा था! मैंने अपने सर पर हाथ रखा और गुस्से से उठ के खड़ा हो गया! गुस्सा मेरे अंदर भर चूका था और बाहर आने को मचल रहा था| मैं अपने इस गुस्से को दबाना चाहता था इसलिए मैंने अपना गुस्सा दबाने के लिए कमरे में एक कोने से दूसरे कोने तक तेजी से चलने लगा|



ये समझ लो शोले फिल्म के गब्बर और सांभा का दृश्य था, मैं गब्बर की तरह चल रहा था और भौजी सांभा की तरह सर झुकाये बैठीं थीं!



इधर मेरा गुस्सा इतना था की एक बार को तो मन किया की भौजी को जी भर के डाँट लगाऊँ, मगर उनकी तबियत का ख्याल कर मैंने अपना गुस्सा शांत करना शुरू किया और उन्हें इत्मीनान से बात समझाने की सोची| मुझे पूरा भरोसा था की मैं भौजी को सारे तथ्य समझा दूँगा और उन्हें मना भी लूँगा!

मैं: चलो एक पल के लिए मैं आपकी बात मान लेता हूँ की आप मेरे बच्चे की माँ बनना चाहते हो और आपको ये बच्चा चाहिए मगर मुझे ये बताओ की आप सब से कहोगे क्या? बड़की अम्मा, माँ, पिताजी, बड़के दादा और हाँ चन्दर... उस साले से क्या कहोगे?

मैंने भौजी की ओर मुँह करते हुए अपने हाथ बढ़ते हुए कहा, मगर भौजी खामोश रहीं और कुछ नहीं बोलीं|

मैं: चन्दर कहेगा की मैंने तुम्हें (भौजी को) पाँच सालों से छुआ तक नहीं तो ये बच्चा कहाँ से आया? बोलो है कोई जवाब?

मैं जानता था की इस सवाल का जवाब भौजी क्या देंगीं, इसलिए मैंने उनके कुछ कहने से पहले ही उनके जवाब को सवाल बना दिया;

या फिर इस बार भी आप यही कहोगे की शराब पी कर उसने (चन्दर ने) आपके साथ जबरदस्ती की?

अब भौजी के पास मेरे सवालों का कोई जवाब नहीं था, इसलिए वो बस सर झुकाये बैठी रहीं!

मैं: बताओ क्या जवाब दोगे?

मुझे पता था की भौजी के पास मेरे इन सवालों का कोई जवाब नहीं होगा, लेकिन तभी भौजी ने रोते हुए अपनी बात कही;

भौजी: मैं ...नहीं जानती...मैं क्या जवाब दूँगी! मैं बस ये बच्चा चाहती हूँ....आप मुझे ये गोली लेने को कह रहे हो...पर अंदर ही अंदर ये बात मुझे काट रही है! मैं....मैं ये नहीं कर सकती....

शुक्र है की बच्चे बाहर बैठक में माँ के पास बैठे खेल रहे थे, वरना अपनी मम्मी को यूँ रोता हुआ देख वो भी परेशान हो जाते| इधर भौजी की कही बात बिना सर-पैर की थी, उसमें कोई तर्क नहीं था मगर फिर भी मैं उनकी बातों में आ गया और उन्हें प्यार से समझाने लगा| मैं भौजी के सामने अपने दोनों घुटने टेक कर बैठ गया;

मैं: Hey!!! Listen to me, अभी बच्चा आपकी कोख में नहीं आया है! आप उसकी हत्या नहीं कर रहे हो! अभी 24 घंटे भी नहीं हुए हैं this pill....its completely safe! कुछ नहीं होगा, all you've to do is take this pill ...and that's it!

भौजी: मेरा मन नहीं मान रहा इसके लिए! पाँच साल पहले जब मैंने आपको फोन किया था तब भी मेरा मन नहीं मान रहा था! मैंने अपना मन मार के आपको फोन किया और आप देख सकते हो की उसका नतीजा क्या हुआ? मेरे एक गलत फैसले ने आपको आपके ही बेटे, आपके अपने खून से दूर कर दिया! आपको बाप बनने का मैंने कोई सुख नहीं दिया, आप कभी आयुष को अपनी गोद में खिला नहीं पाये, उसे वो प्यार नहीं दे पाये जो आप उसे देना चाहते थे, यहाँ तक बेचारी नेहा भी आपके प्यार से वंचित रही! आज जब आयुष आपके सामने आता है तो मुझे बड़ी खेज होती है की मैंने बिना आपसे पूछे आप से वो खुशियाँ छीन ली!

इतना कह भौजी अपने पेट पर हाथ रखते हुए बोलीं;

भौजी: हमारा ये बच्चा आपको बाप बनने का सुख देगा! आप हमारे इस बच्चे को अपनी गोद में खिलाओगे, उसे प्यार करोगे, उसे कहानी सुनाओगे, उसे वो सारी बातें सिखाओगे जो आप आयुष को सिखाना चाहते थे|

भौजी के मुँह से सच सुन कर मैं हैरान था, मैंने ये कभी उम्मीद नहीं की थी की मुझे आयुष से दूर रखने के लिए वो अब भी खुद को दोषी समझतीं हैं!

मैं: जान ऐसा नहीं है! मैं आयुष से बहुत प्यार करता हूँ! मेरी जगह आपने उसे वो संस्कार दिए हैं जो मैं देता! फिर उसके बड़े होने से मेरे प्यार में कोई कमी नहीं आई! हमारे (भौजी और मेरे) बीच जो हुआ वो past था, आप क्यों उसके चक्कर में हमारा present ख़राब करने पर तुले हो!

मैंने भौजी के आगे हाथ जोड़ते हुए कहा, लेकिन भौजी ने पलट कर मेरे आगे हाथ जोड़ दिए;

भौजी: Please...मैं आपके आगे हाथ जोड़ती हूँ...मुझे ये पाप करने को मत कहो...मैं अपना मन नहीं मार सकती!

भौजी रोते हुए विनती करने लगीं| अब सब बातें साफ़ थीं, मेरी किसी भी बात कर असर भौजी पर नहीं पड़ने वाला था इसलिए मैं गुस्से से उठा और अपना सारा गुस्सा उस i-pill के पत्ते पर निकलते हुए उसे तोड़-मोड़ कर तहस-नहस कर भौजी के सामने कूड़ेदान में खींच कर दे मारा!

मैं: FINE!

मैंने गुस्से से कहा और ताज़ी हवा खाने के लिए छत पर आ गया| गुस्सा सर पर चढ़ा था इसलिए मैं टंकी पर जा चढ़ा, रात होने लगी थी और केवल ठंडी हवा मेरा दिमाग शांत कर सकती थी!



भौजी की बातों ने मेरे मन में अपने बच्चे को गोद में खिलाने की लालसा जगा दी थी, लेकिन ये सम्भव नहीं था! भौजी की pregnancy पूरे परिवार की नजरें हम दोनों (मेरे और भौजी) पर ले आतीं और हम दोनों आकर्षण का केंद्र बन जाते! अगर भौजी कुछ झूठ बोल कर अपनी pregnancy को चन्दर के सर मढ़ भी देतीं तो मेरे बच्चे को चन्दर का नाम मिलता, न की मेरा! जबकि इस बच्चे को मैं अपना नाम देना चाहता था! मैं चाहता था की ये बच्चा मुझे पापा कहे न की चन्दर को! “मैं उसे अपनी गोद में खिलाऊँगा, वो मुझे पापा कहेगा, मेरी ऊँगली पकड़ कर चलेगा और मैं ही उसे अपना नाम दूँगा!” मैं अपनी सनक में बड़बड़ाया! मुझ पर अपने बच्चे को पाने का जूनून सवार हो चूका था, ये ही वो बिंदु था जहाँ से हमारे (भौजी और मेरे) रिश्ते की नई शुरुआत हो सकती थी! ये बच्चा मेरी जिंदगी को ठहराव देने वाला था और इस ठहराव के लिए मैं मोर्चा सँभालने को तैयार था!

मैंने फैसला ले लिया था, अब इस फैसले पर सख्ती से अम्ल करना था! चाहे जो हो जाए मैं इस बार हार नहीं मानने वाला था! अब दुनिया की कोई दिवार मुझे नहीं रोक सकती थी, मेरे सामने मेरा लक्ष्य था और मुझे अपना लक्ष्य पाना था!



करीब एक घंटे बाद भौजी छत पर आईं और "जानू...जानू" पुकारते हुए मुझे छत पर ढूँढने लगीं! मैं चूँकि टंकी पर चुपचाप बैठा था इसलिए भौजी मुझे देख नहीं पाईं! मैं धीरे से दबे पाँव नीचे उतरा और भौजी को पीछे से अपनी बाहों में जकड़ लिया, अगले पल मैंने भौजी को झटके से अपनी तरफ घुमाया और उनकी आँखों में आँखें डालते हुए बोला;

मैं: Marry me!

मेरी आवाज में आत्मविश्वास था और मेरा ये आत्मविश्वास देख कर भौजी की आँखें फटी की फटी रह गईं| भौजी इस वक़्त वैसा ही महसूस कर रहीं थीं जैसा मैंने किया था जब भौजी ने मुझसे हमारा बच्चा conceive करने की बात कही थी!

भौजी: क्या?

भौजी को अपने कानों पर विश्वास नहीं हो रहा था!

मैं: I said ‘Marry Me! Its the only way, we both can be happy!

मैंने अपनी बात थोड़ा विस्तार से बताई, मगर मेरी बात सुन कर भौजी न में गर्दन हिलाने लगीं और रुँधे गले से बोलीं;

भौजी: No…we can’t!

मैं: मैं आपके सामने कोई शर्त नहीं रख रहूँ, अब मुझे भी ये बच्चा चाहिए पर मैं चाहता हूँ की ये बच्चा मुझे सब के सामने पापा कह सके, न की आयुष और नेहा की तरह छुपते-छुपाते पापा कहे! गाँव में जब आपने माँ बनने की माँग रखी थी तब मैंने हमारे बच्चे से कोई उम्मीद नहीं रखी थी, मैंने नहीं चाहा था की वो मुझे पापा कहे मगर इस बार मैं चाहता हूँ की हमारा बच्चा मुझे बेख़ौफ़ पापा कहे!

मेरी भावुक बात सुन भौजी की आँखें भर आईं थीं, वो एक बाप के दर्द को महसूस कर रहीं थीं लेकिन वो ये भी जानतीं थीं की ये मुमकिन नहीं है, तभी तो वो न में सर हिला रहीं थीं!

मैं: जान जरा सोचो! हम दोनों एक नई शुरुआत करेंगे, आपको कोई झूठ बोलने की जर्रूरत नहीं पड़ेगी, हमें बिछड़ने का कोई डर नहीं रहेगा, इस तरह छुपकर मिलने से आजादी और हमारे बच्चे सब के सामने हमें मम्मी-पापा कह सकेंगे! Everything's gonna be fine!

मैंने भौजी को सुनहरे सपने दिखाते हुए कहा|

भौजी: नहीं...कुछ भी fine नहीं होगा....माँ-पिताजी कभी नहीं मानेंगे...कम से कम अभी हम साथ तो हैं...आपकी इस बात को जानकर वो हम दोनों को अलग देंगे! मैं जैसी भी हूँ...भले ही उस इंसान (चन्दर) के साथ रह रही हूँ पर दिल से तो आपसे ही प्यार करती हूँ...मैं उसके साथ रह लूँगी...पर please...

भौजी रोते-बिलखते हुए बोलीं| भौजी के मन में वही डर दिख रहा था जो पिछले कुछ दिनों से मैं अपने सीने में दबाये हुए था! अब समय था भौजी को आज शाम माँ की बताई हुई बात बताने का;

मैं: आप उसके साथ तो अब वैसे भी नहीं रह सकते क्योंकि वो लखनऊ के ‘नशा मुक्ति केंद्र’ में भर्ती है|

मैंने भौजी की बात काटते हुए उन पर पहाड़ गिरा दिया!

भौजी: क्या?

भौजी चौंकते हुए बोलीं|

मैं: हाँ! कल पिताजी और माँ की बात हुई थी, उन्होंने बताया की चन्दर घर नहीं आ रहा था तो उसे लेने के लिए सब लोग मामा के घर जा पहुँचे! चन्दर के गबन को ले कर वहाँ बहुत क्लेश हुआ, फिर किसी ने चन्दर को लखनऊ के नशा मुकरी केंद्र में भर्ती करवाने की बात कही| बात सब को जची इसलिए सब ने हामी भर दी, लेकिन चन्दर नहीं माना! बड़ी मुश्किल से उसे समझा-बुझा कर नशा मुक्ति केंद्र में भर्ती करवाया गया है तथा बड़के दादा ने आपको और बच्चों को गाँव वापस बुलाया था| पिताजी के गाँव जाने से पहले जो मैंने उनके दिमाग में बच्चों की पढ़ाई की बात बिठाई थी, उसके चलते पिताजी ने बड़के दादा को समझाया की इस तरह बीच साल में बच्चों को गाँव बुलाने से उनका पूरा पढ़ाई का साल खराब हो जायेगा! तब जा कर बड़के दादा ने आपको और बच्चों को बस तीन महीने की मोहलत दी है, फरवरी में बच्चों के पेपर के बाद आप तीनों को गाँव रवाना कर दिया जाएगा, जो मैं होने नहीं दूँगा! इसीलिए यही सही समय है जब मैं माँ-पिताजी से हमारे रिश्ते के बारे में बात करूँ! माँ की आँखों में मैंने आपके लिए जो प्यार आज देखा है, उससे मुझे पूरा यक़ीन है की वो मान जाएँगी, रही बात पिताजी की तो उन्हें थोड़ा समय लगेगा!

मैंने भौजी को सच से रूबरू कराया और अंत में उन्हें उम्मीद की किरण भी दिखा दी, मगर भौजी मेरी तरह सैद्धांतिक बातों पर नहीं चलना चाहतीं थीं, वो व्यवहारिक बात सोच रहीं थीं;

भौजी: नहीं...please.... वो नहीं मानेंगे! कोई नहीं मानेग! उसकी (चन्दर की) नशे की आदत छूट जाएगी तो वो मेरे साथ बदतमीजी नहीं करेगा!

भौजी फफक कर रोते हुए बोलीं| उनमें न तो हमारे रिश्ते के लिए लड़ने की ताक़त थी और न ही उसे खो देने को बर्दाश्त करने की हिम्मत! उन्हें लग रहा था जैसा चल रहा है वैसा चलता रहेगा, चन्दर की नशे की आदत छूटेगी और पिताजी उसे फिर से अपने साथ काम में लगा लेंगे, मगर मैं भौजी को सच से रूबरू करवाना चाहता था;

मैं: आपको पूरा यकीन है की उसकी शराब पीने की आदत छूट जाएगी और वो आपको मानसिक तौर पर परेशान नहीं करेगा? उसके अंदर की वासना की आग का क्या, क्या वो इतनी जल्दी बुझ जाएगी? अगर ये सब हो भी गया तो आपको लगता है की पिताजी उसे हमारे साथ काम करने का दूसरा मौका देंगे?

मेरे सवाल सुन कर भौजी खामोश हो गईं|

मैं: इन सब सवालों का जवाब है: 'नहीं'! ये समय उम्मीद करने का नहीं है, बल्कि दिल मजबूत कर के कदम उठाने का है!

मैंने भौजी को हिम्मत देनी चाहि मगर उनका दिल बहुत कमजोर था, उनकी आँखों से बस डर के आँसूँ बह रहे थे|

मैं: अच्छा at least let me try once...please!

मैंने भौजी को उम्मीद देते हुए कहा|

भौजी: अगर माँ-पिताजी नहीं माने तो? हम दोनों को हमेशा के लिए जुदा कर दिया जायेगा और मैं सच कहती हूँ, मैं आपके बिना जान दे दूँगी!

मेरे समझाने का थोड़ा असर हो रहा था, भौजी के मन में अब बस एक ही सवाल था और वो था मेरे माँ-पिताजी की अनुमति न मिलना! वो जानती थीं की मेरे माँ-पिताजी मेरी बात कभी नहीं मानेंगे और हम दोनों को हमेशा के लिए जुदा कर दिया जायेगा जो भौजी बर्दाश्त नहीं कर पायेंगी! अब मुझे इस मुद्दे पर एक stand लेना था, मुझे अपना पक्ष साफ़ रखना था की मैं ऐसे हालात में क्या करूँगा;

मैं: मैं माँ-पिताजी से बात कर लूँगा और उन्हें मना भी लूँगा! अगर वे नहीं माने…तो हम चारों ये घर छोड़कर चले जाएँगे! मैं अब कमा सकता हूँ तो मैं आपका और हमारे बच्चों का बहुत अच्छे से ध्यान रख सकता हूँ!

मैंने भौजी को स्पष्ट शब्दों में अपनी बात समझा दी, परन्तु उनका दिल बहुत अच्छा था, वो मुझे मेरे परिवार से अलग नहीं करना चाहतीं थीं;

भौजी: Please…ऐसा मत कहो!...please..... मेरे खातिर माँ-पिताजी को मत छोडो....उनका दिल मत दुखाओ! आपके इस एक कदम से आपका पूरा परिवार तबाह हो जाएगा!

भौजी रोते हुए मेरे आगे हाथ जोड़ कर विनती करने लगीं|

मैं: आप मुझसे प्यार करते हो न, तो मुझ पर भरोसा रखो और दुआ करो की कुछ तबाह न हो और सब हमारी शादी के लिए मान जाएँ!

इतना कह मैंने भौजी को अपने गले लगा लिया और उनकी पीठ पर हाथ फेरते हुए उन्हें शांत करने लगा;

मैं: बस मेरी जान...बस .... अब रोने का समय नहीं है...आज रात पिताजी आ जाएँगे और मैं कल ही उनसे सारी बात कर लूँगा| फिर हम दोनों हमेशा-हमेशा के लिए एक हो जायेंगे!

मैंने भौजी को बहुत बड़ी आस बँधा दी थी, मुझे अपने ऊपर पूरा विश्वास था की मैं पिताजी से अपने दिल की बात कह दूँगा और उन्हें तथा पूरे परिवार को मना भी लूँगा, मगर ये इतना आसान काम तो था नहीं! मैं पिताजी से कोई खिलौना नहीं माँग रहा था जिसे वो इतनी आसानी से मुझे खरीद देते, वैसे भी बचपन में वो मुझे खिलोने खरीदकर कम ही देते थे! मैं उनसे (पिताजी से) जो माँगने जा रहा था वो हमारे पूरे खानदान को झकझोड़ने वाला था, परन्तु मुझे ये चाहिए था, किसी भी कीमत पर!
 

avsji

कुछ लिख लेता हूँ
Supreme
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भौजी: हमारा ये बच्चा आपको बाप बनने का सुख देगा! आप हमारे इस बच्चे को अपनी गोद में खिलाओगे, उसे प्यार करोगे, उसे कहानी सुनाओगे, उसे वो सारी बातें सिखाओगे जो आप आयुष को सिखाना चाहते थे|
मुझे तो लगता है कि हिन्दुस्तान का आधा बंटाधार इसी चक्कर में हो गया है। 🤦‍♂️
इधर हम और हमारी मेहरारू दोनों जने कमाते हैं, फिर भी एक बिटिया पालने में पसीने छूट गए हैं।

बाकी लिखे बढ़िया हो। 👌👌

एक बात observe करी है मैंने - भौजी बढ़िया अमरीकन अंग्रेज़ी बोल लेती है।
हमारी भौजियाँ तो सब धुर देहाती ही रह गईं इस मामले में! 😂😂
 

Nevil singh

Well-Known Member
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तेईसवाँ अध्याय: अभिलाषित प्रेम बन्धन
भाग - 20



अब तक आपने पढ़ा:



चन्दर: आअह्ह्ह्ह! म...माफ़....माफ़ कर दिहो....अब हम ऊ का कछु न कहब.....हम ऊ का आस-पास भी न भटकब! ह…हम का माफ़ कर दिहो!

चन्दर हाथ जोड़ते हुए माफ़ी के लिए गिड़गिड़ाने लगा| मैंने चन्दर का गला छोड़ा, चन्दर धीरे से फर्श पर गिर पड़ा और पाना पेट पकड़ कर कराहने लगा! उसे कराहता हुआ छोड़ मैंने कमरे से बाहर आ कर देखा तो लेबर झुण्ड बना कर खड़ी थी| गुस्से से मेरे गर्म तेवर देख कर कोई कुछ नहीं बोला और मैं सबके बीच से होता हुआ सतीश जी वाली साइट की ओर चल पड़ा|



अब आगे:



'क्या मैंने जो किया वो सही किया? क्या होगा अगर मेरी चन्दर को पीटने की बात खुली तो? अगर चन्दर की बेमानी पिताजी के सामने आ गई तो? उन्होंने चन्दर को परिवार समेत गाँव वापस भेज दिया तो? मेरा प्यार, मेरे बच्चे सब मुझसे छिन जायेंगे! कैसे जी पाउँगा मैं उनके (भौजी और बच्चों के) बिना?' रास्ते भर दिमाग में ये सवाल गूँजते रहे पर मेरे पास इन में से एक भी सवाल का जवाब नहीं था! "पहले जो काम की मुसीबत है उसे संभाल, बाद की बाद में सोचेंगे!" मैं बड़बड़ाता हुआ गाडी से उतरा और सतीश जी वाली साइट का inspection करने लगा| मैंने दोनों बाथरूम का जायजा लिया तो मैंने अपना सर पीट लिया, चन्दर ने CPVC की पाइप की जगह जंग लगी लोहे वाली पाइप लगाई थी! पिताजी ने ivory commode order किया था, मगर चन्दर ने local नीले रंग वाला commode लगाया था और वो भी साला leak कर रहा था! पिताजी ने designer faucets लगाने को कहा था मगर इस हरामजादे ने प्लास्टिक की टोटियाँ लगाई थीं! मैंने सबकी तसवीरें खींचीं ताकि कल को जर्रूरत पड़े तो मैं इन तस्वीरों का सही इस्तेमाल कर सकूँ!

फिर मैंने नए माल का आर्डर देने के लिए अपने hardware वाले दुकानदार को फ़ोन किया, दुकानदार से हमारी अच्छी जान-पहचान थी इसलिए माल लिखते समय उसने मुझे चन्दर की करनी के बारे में बताया| सतीश जी के काम के लिए पिताजी ने जो माल order किया था उसे न ले कर चन्दर ने घटिया माल लगाकर पूरे 10,000/- रुपयों का घपला किया था! ये सुन कर तो मेरे कान खड़े हो गए! उसपर दुकानदार ने जब चन्दर से पुछा की साहब जी (मेरे पिताजी) ने तो महँगे समान का order दिया है तो ये सस्ता माल क्यों ले रहे हो? तो चन्दर बोला; "एक बार ई समान लग जाई तो कउनो हमार झांट नाहीं उखड सकत!" दुकानदार की कही ये बात मैंने record कर ली ताकि अगर कल को चन्दर अपनी बात से पलटी मारने लगे तो मैं इस recording को सबूत के तौर पर इस्तेमाल कर सकूँ!



अब अगर पिताजी ये सब देखते-सुनते तो पक्का चन्दर को घर से बाहर निकाल देते, लेकिन मैं अपने निजी स्वार्थ में पड़ कर उन्हें ये सब नहीं बताना चाहता था, मगर मैं जानता था की कभी न कभी ये बात खुलेगी जर्रूर और तब मुझे एक अहम् निर्णय लेना होगा!



फिलहाल के लिए मैंने सामान मँगवा लिया और नए समान के साथ-साथ चन्दर द्वारा मँगाए घटिया समान का भी duplicate bill मँगवा लिया| पिताजी रात ग़ाज़ियाबाद में किसी जानकार के यहाँ रुके थे और कल दोपहर को घर आने वाले थे जिसका फायदा उठा कर मैंने plumber से रात भर overtime करने को रोक लिया| बच्चों ने मुझे शाम को कॉल किया, मैंने उन्हें खाना खा कर अपनी मम्मी के पास सोने को कहा और कल दोपहर मिलने का वादा कर दिया| इतने में भौजी ने बच्चों से फ़ोन ले कर मुझसे बात करनी चाहि पर मैंने उनकी आवाज में '"हेल्लो" सुनते ही फ़ोन काट दिया| उसके बात भौजी ने 4-5 बार फ़ोन किया मगर मैंने जान बूझकर उनका फ़ोन नहीं उठाया| चन्दर द्वारा उन्हें (भौजी को) दी जाने वाली यातना को छुपाने की बात मुझे नक़ाबिले बर्दाश्त थी! जितना भौजी फ़ोन कर रहीं थीं, उतना गुस्सा और भड़क रहा था, मैं कहीं उन्हें झाड़ न दूँ इसीलिए मैंने उनका फ़ोन नहीं उठा रहा था!

सारा काम सुबह 11 बजे खत्म हुआ और ठीक उसी समय सतीश जी आये| काम देख कर वो बहुत खुश हुए और अपने कल के व्यवहार के लिए माफ़ी माँगते हुए बोले;

सतीश जी: मानु, यार माफ़ करना! कल मैं बहुत गुस्से में था!

मैं: सर जी कोई बात नहीं| दरअसल एक confusion हो गई थी, काम कहीं और का था और तकलीफ आपको हुई! आगे से मैं खुद ध्यान रखूँगा की ऐसी कोई गलती न हो!

मैंने नकली मुस्कान के साथ बात संभाली और सतीश जी से हाथ मिला कर घर लौट आया| जैसे ही मैं घर में घुसा, पिताजी और चन्दर डाइनिंग टेबल पर बैठे बात कर रहे थे| पिताजी ने नाराज होते हुए मुझसे पुछा;

पिताजी: कहाँ गायब था सारी रात?

पिताजी को लग रहा था की रात भर मैं मटरगश्ती कर रहा था इसलिए वो नाराज थे|

मैं: जी वो सतीश जी की साइट का काम पूरा करवा रहा था!

मैंने चन्दर की ओर देखते हुए कहा| मेरी चुभती नजरों के कारन शर्म के मारे चन्दर का सर नीचे झुक गया, शुक्र है की पिताजी ने मुझे चन्दर को यूँ देखते हुए नहीं देखा था!

पिताजी: काहे मुन्ना? तू तो कहे रहेओ की काम पूरा होई गवा?

पिताजी ने थोड़ा गुस्सा दिखाते हुए से चन्दर से सवाल पुछा तो उसकी जान हलक में अटक गई!

चन्दर: ऊ चाचा...ऊ.....

बेचारे से कुछ कहा नहीं जा रहा था! चन्दर को यूँ हकलाते देख पिताजी ने उसे आज पहलीबार डाँट लगाई;

पिताजी: ई सब नाहीं चली मुन्ना! हम काम में कउनो लापरवाही नाहीं सहब! आगे से हम जउन काम कहित है ऊ काम ओहि लागे हुएक चाहि!

अभी तो मैंने उन्हें चन्दर के किये घोटाले की बात नहीं बताई थी, अगर वो बता दी होती तो पिताजी आसमान सर पर उठा लेते और घर में कलेश हो जाता!



पिताजी ने आज मुझे आराम करने को कहा और चन्दर को अपने साथ लेके नॉएडा वाली साइट पर निकल गए| मैं नहाया और अपनी आदत से मजबूर हो कर कमरे में बैठ project report बनाने लगा| Project report बनाने का एक ख़ास कारन ये होता था की मुझे पता चल जाता था की इस project में हमने कितना मुनाफा कमाया है, कहाँ-कहाँ खर्चा बचाया जा सकता था, ताकि ये मेरे लिए सबक बन कर रहे| वैसे एक कारन और था जिसके लिए मैं प्रोजेक्ट रिपोर्ट बनाता था, project report बनाते समय मैं खुद को किसी company का CEO समझता था! :laugh:

खैर इस project report में मैं चन्दर के घपले का जिक्र नहीं कर सकता था, क्योंकि कई बार पिताजी ये project reports देखा करते थे ताकि वो भी देख सकें मैंने कहाँ कौन सा खर्चा किया है? इसलिए मैंने चन्दर के घपले की अलग file बना डाली जिसमें मैंने साइट पर ली हुई photos के साथ-साथ bill वगैरह की copy भी file में बना दी! ये उस सरकारी घपले की फाइल की तरह थी जो पिताजी को मिल जाती तो कोहराम मच जाता!



File तैयार कर के मैं अभी हटा ही था की भौजी एक प्लेट में पराँठे ले आईं;

भौजी: कल आप घर क्यों नहीं आये?

भौजी ने बड़े प्रेम से शिकायत करते हुए कहा|

मैं: हाँ वो काम ज्यादा था!

मैंने पलंग पर बैठते हुए कहा| मेरी आवाज में अभी भी कल का भौजी पर आया गुस्सा झलक रहा था|

भौजी: सब जानती हूँ की क्या काम था?

भौजी ने शैतानी मुस्कान लिए हुए कहा|

भौजी: तो सबक सीखा दिया आपने उसे?

भौजी ने मुस्कुराते हुए मुझसे पुछा| उनकी इस मुस्कान में उन्हें मुझ पर हो रहा गर्व भी छुपा था|

मैं: बता दिया सब उसने?

मैंने भोयें सिकोड़ कर पुछा|

भौजी: हाँ! कल रात को कह रहा था की मैंने आप से शिकायत की और आपने उसकी जम कर पिटाई की!

भौजी किसी मासूम बच्चे की तरह मुस्कुराते हुए बोलीं| गौर करने की बात ये थी की चन्दर ने भौजी को अपने किये घपले के बारे में नहीं बताया था, मैं भी इस बात को फिलहाल नहीं उठाना चाहता था क्योंकि इसमें भौजी का कोई कसूर नहीं था|

मैं: He deserved that!

मैंने दाँत पीसते हुए कहा|

मैं: आपको खो देने का ख़याल आ गया इसलिए उस कुत्ते को ज्यादा नहीं पीटा वरना कल उसकी धुलाई पक्की थी! हरामजादे ने अम्मा की जूठी कसम खाई और मेरे प्यार को छूने की कोशिश की, सजा तो मिलनी ही थी!

मैंने गुस्से से भौजी पर हक़ जताया|

भौजी: पर आपने ऐसा क्यों किया? अगर उसने पिताजी से आपकी शिकायत कर दी तो?

भौजी को लग रहा था की मैंने चन्दर को पीटते समय गुस्से में उसपर भौजी और मेरा रिश्ता जाहिर कर दिया होगा, इस कारण उन्हें मुझे खो देने का डर सता रहा था! चन्दर की शिकायत करने पर हमारा प्यार सामने आ सकता था और तब हम दोनों को हमेशा के लिए अलग कर दिया जाता| लेकिन भौजी नहीं जानती थीं की उनका आशिक़ इतना भी बेवकूफ नहीं जो अपने प्यार का ढिंढोरता पीटता रहे! खैर भौजी के इस सवाल ने मेरे गुस्से के ऊपर से ढक्कन हटा दिया;

मैं: नहीं करेगा! और अगर कर भी दे तो I DON'T GVE A FUCK!!!

मैंने आवाज ऊँची करते कहा| शुक्र है की माँ उस समय पड़ोस में गई थीं वरना मेरी गुस्से से भरी आवाज सुन वो अंदर आ जातीं!

भौजी: ये क्या हो गया है आपको? क्यों ऐसी भाषा का प्रयोग कर रहे हो?

भौजी ने मुझे अभद्र भाषा का प्रयोग करने के लिए प्यार से चेताया|

मैं: मेरा दिमाग खराब हो गया है! उस साले की हिम्मत कैसे हुई आपको हाथ लगाने की?

मैंने गुस्से से लाल होते हुए कहा|

मैं: और आप....आप ने मुझे क्यों नहीं बताया की चन्दर शराब पीता है और आपके साथ जबरदस्ती करने की कोशिश करता है? आप कब से उसकी गलतियों पर पर्दा डालने लगे?

मैंने गुस्से में भौजी से सीधा सवाल पूछ लिया| इस समय भौजी के सामने उनका आशिक़ खड़ा था और उसे अपनी प्रेमिका के बात छुपाने पर बहुत गुस्सा आ रहा था|

उधर मेरा गुस्सा देख भौजी को मुझ पर प्यार आ रहा था और साथ में थोड़ा डर भी लग रहा था|

भौजी: देखिये आप अभी शांत हो जाइए, मैं आपको सब बताती हूँ|

ये कह कर भौजी मेरे पास बैठ गईं और मेरा हाथ अपने हाथों में लेते हुए बोलीं;

भौजी: आयुष के पैदा होने के समय मैं तो अपने मायके में थी और तभी से उसने (चन्दर ने) पीना शुरू कर दिया, लेकिन तब ये कोई नहीं जानता था| आयुष के पैदा होने के बाद जब मैं घर वापस आई तो एक रात ये कमरे में आया और अपनी छुपाई हुई बोतल से शराब पीने लगा| जैसे ही मैंने इसे शराब पीते हुए देखा मैं आयुष और नेहा को ले कर छप्पर के नीचे अम्मा के पास सो गई| तब से मैंने रात को सोते समय दरवाजा बंद कर के सोना शुरू कर दिया| कई बार ये रात-बेरात दरवाजा खटखटाता था पर मैंने कभी दरवाजा नहीं खोला, एक-दो बार मेरे दरवाजा न खोलने पर बाहर से ही इसने चिल्लाना शुरू कर दिया| मैं कोई जवाब नहीं देती थी और दरवाजा बंद कर के पड़ी रहती थी| फर एक दिन अम्मा ने मुझे समझना शुरू किया की मैं रात को इस तरह दरवाजा बंद करके न सोऊँ, तब मैंने अम्मा से साफ़ कह दिया की मैं उस आदमी (चन्दर) का गंदा साया मेरे बच्चों पर नहीं पड़ने दूँगी और अगर वो (बड़की अम्मा) जोर-जबरदस्ती करेंगी तो मैं आयुष को ले कर अपने मायके चली जाऊँगी! अम्मा को लगा की मैंने शगुन और चन्दर के नाजायज रिश्ते की बात कर रही हूँ, इसलिए वो खामोश हो गईं| अम्मा-बप्पा को अपने पोते का सुख चाहिए था इसलिए उन्होंने इस बात को ले कर मेरे साथ दुबारा कोई बात नहीं की| वहीं अब ऐसा तो था नहीं की चन्दर के पास अपनी जर्रूरत पूरी करने के लिए कोई और 'थी' नहीं?! इसलिए चन्दर ने आये दिन मामा के घर जाना शुरू कर दिया|

इधर मैं आयुष पर मैं हमेशा अपनी नजर गड़ाए रहती थी, जब आयुष छोटा था तो वो हमेशा मेरी गोद में या बड़की अम्मा की गोद में रहता| घर का काम-धाम तो सब रसिका की जिम्मेदारी थी इसलिए मैं मजे से पाँव फैलाये आयुष को गोद में लिए आपकी बातें करती रहती| भले ही उसे कुछ समझ नहीं आता था पर मेरा मन तो लगा रहता था! जब आयुष बड़ा हुआ तो वो अधिकतर बप्पा के पास रहता, बप्पा उसे गोदी में लिए हुए गाँव भर में टहल आते और जब आयुष को भूख लगती उसे अम्मा को दे देते| जब आयुष खेलने लायक बड़ा हुआ तो मैंने नेहा को उसके साथ रहने की duty लगा दी, ये आदमी (चन्दर) आयुष के आस-पास दिखा नहीं की मैं जोर से चिल्ला कर आयुष को अपने पास बुला लेती थी| आयुष मेरी गुस्से से भरी आवाज सुन सकपका जाता और जिस हाल में होता उसी हाल में दौड़ता हुआ मेरे पास आ जाता| फिर मैंने आयुष को चन्दर के नाम से इस कदर डराया की आयुष के मन में चन्दर का हौआ बैठा गया| उसे (चन्दर को) देखते ही आयुष भाग जाता था, चन्दर पीछे से लाखों आवाज देता मगर मजाल है मेरा बेटा उसकी गोद में चला जाए? तब मैं नेहा को उसके (आयुष के) पास भेज देती और दोनों टहलते हुए दूकान या स्कूल चले जाते| चन्दर को इसपर बहुत गुस्सा आता था, एक बार उसने आयुष को मारने के लिए डंडा भी उठाया था तब बप्पा ने उसे (चन्दर को) खींचकर थप्पड़ मार दिया और वो (चन्दर) अपनी साइकिल उठा कर मामा के घर भाग गया| उस दिन से चन्दर का मन आयुष के प्रति कट गया, तो इस तरह मैंने गाँव में हमारे (भौजी और मेरे) बच्चों को चन्दर की पहुँच से बचाये रखा| मैंने उसके (चन्दर के) पीने की बात गाँव में किसी को इसलिए नहीं बताई क्योंकि तब हो सकता था की बप्पा उसे दिल्ली नहीं आने देते और अगर वो (चन्दर) नहीं आता तो मैं कैसे आती?



दिल्ली आने के बाद शायद आपने कभी गौर नहीं किया पर मैं हमेशा नेहा या आयुष को अपने साथ सुलाती थी, दरअसल रात को मैं बच्चों के साथ सोने का बहाना कर के दूसरे कमरे में सो जाती और दरवाजा अंदर से बंद कर लेती ताकि अगर रात को शराब के नशे में इस आदमी को मुझे नोच खाने की सनक सवार हो तो मैं खुद को बचा पाऊँ| लेकिन हर बार सावधानी बरतने वाली मैं परसों रात को बेख़ौफ़ हो गई थी! परसों रात को मैं कुछ ज्यादा थकी हुई थी और इस आदमी ने घर नहीं आना होगा ये सोच कर मैं चैन से सो गई! आधी रात को नशे में धुत्त ये घर में घुसा, मुझे सोता हुआ देख इसने मेरा नाजायज फायदा उठाने की सोची| इसने मेरा दायाँ हाथ पकड़ा, जैसे ही इसके हाथ ने मुझे छुआ मैं उठ बैठी और इसे धक्का देते हुए उस पर जोर से चिल्लाई, मगर इसको कोई फर्क नहीं पड़ा! मुझे अपनी इज्जत बचानी थी वरना मैं आपको क्या जवाब देती इसलिए मैं दौड़ती हुई दूसरे कमरे में गई और दरवाजा बंद कर लिया! इसने बहुत दरवाजा पीटा पर मैंने दरवाजा नहीं खोला और मैंने रोते-रोते रात काटी! मैं आपको ये बात नहीं बताना चाहती थी क्योंकि जानती थी की ये सब जानकार आप उसे (चन्दर को) जान से मार दोगे! लेकिन पता नहीं क्यों मुझे खुद से घिन्न आने लगी थी, मैं अपने चैन से सोने को दोष देने लगी, अपनी रक्षा खुद न कर पाने को दोष देने लगी और जब आपने प्यार से पिक्चर चलने को कहा तो उसे मैंने आपका हुक्म देना समझ बैठी! जिन आँसुओं को मैं रोकना चाहती थी उनपर से लगाम हट गई और वो आपके सामने छलक आये!

ये कहते हुए भौजी भावुक हो गईं थीं! भौजी की बात सुन मुझे उनके दुःख को जानने का कारण मौका मिला| कैसा लगता होगा जब कोई आदमी किसी औरत को बिना उसकी इच्छा के छूता होगा? रसिका भाभी के छूने पर मुझे जो घिन्न आई थी, ये पीड़ा उससे कई करोड़ गुना बड़ी थी! उसपल मैंने उसी बेबसी को महसूस किया भौजी को चन्दर से बच कर भागते हुए महसूस हुई होगी! गाँव में बड़के दादा और बड़की अम्मा के अपने पोते के प्रति मोह का फायदा उठा कर भौजी खुद को बचा लेतीं थीं, लेकिन यहाँ उनकी इज्जत बच्चों के रूप में मौजूद एक पतली सी टहनी पर टिकी थी! मैं नहीं चाहता था की वो (भौजी) हमेशा चन्दर के डर के साये में रहे, इसलिए मैंने एक plan सोच लिया था जिसके लिए मुझे पिताजी को मनाना था| फिलहाल के लिए मुझे अपनी प्रेमिका रोने से रोकना था;

मैं: जान मैंने जो चन्दर के साथ किया मुझे उसका रत्तीभर भी पछतावा नहीं है! मुझे आप पर गुस्सा सिर्फ और सिर्फ इसलिए आया क्योंकि आपने मुझसे चन्दर के शराब पीने और उसका आपको छूने की बात छुपाई! चन्दर ने आपको छूआ ये सोच कर मेरे जिस्म में आग लगी हुई थी, दिमाग कल्पना करने लगा था की उसके आपको छूने से आपको कितना दुःख हुआ होगा और यही सोच कर मैंने खुद को बहुत रोकते हुए भी अपना सारा गुस्सा उस हरामजादे पर निकाल दिया! उस कुत्ते ने अपनी माँ की कसम तोड़ी है, अगर ये बात पिताजी को पता चल गई होती की चन्दर ने उनकी (पिताजी की) भाभी की कसम तोड़ी है तो वो भी उसे (चन्दर को) सूतने से नहीं चूकते! पिताजी के लिए बड़की अम्मा सिर्फ उनकी भाभी नहीं बल्कि माँ समान हैं!

इस बार मैंने बड़े इत्मीनान से भौजी को अपने गुस्सा होने का कारण समझाया| मेरा कारण सुन भौजी मुस्कुरा उठीं और मुस्कुराते हुए बोलीं;

भौजी: ठीक है जानू! अब चलिए खाना खाइये|

इतना कह भौजी उठ कर जाने लगीं|

मैं: आपने खाया?

भौजी: नहीं!

भौजी ने सर न में हिलाकर मुस्कुराते हुए कहा|

मैं: तो बैठो यहाँ और मेरे साथ खाओ|

मैंने भौजी का हाथ पकड़ कर उन्हें फिर बिठा लिया| आज सालों बाद मौका मिला था इसलिए हमने एक दूसरे को खिलाना शुरू किया!

भौजी: जानू आप न गुस्से में अच्छे नहीं लगते|

भौजी मुझे पराँठे का निवाला खिलाते हुए बोलीं|

मैं: और आप भी!

मैंने भौजी को पराँठे का निवाला खिलाते हुए कहा|

भौजी: हम्म्म्म!

भौजी मुस्कुराते हुए बोलीं|


जारी रहेगा भाग - 21 में...
shaandaar update bhai
 
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