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Incest एक अनोखा बंधन - पुन: प्रारंभ (Completed)

Rockstar_Rocky

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मुझे तो लगता है कि हिन्दुस्तान का आधा बंटाधार इसी चक्कर में हो गया है। 🤦‍♂️
इधर हम और हमारी मेहरारू दोनों जने कमाते हैं, फिर भी एक बिटिया पालने में पसीने छूट गए हैं।

बाकी लिखे बढ़िया हो। 👌👌

एक बात observe करी है मैंने - भौजी बढ़िया अमरीकन अंग्रेज़ी बोल लेती है।
हमारी भौजियाँ तो सब धुर देहाती ही रह गईं इस मामले में! 😂😂

आपन-आपन क़िस्मत रही भैया! केहू का एक बिटिया मिली, केहू का तीन-तीन लाल! केहू का दूध दोहे वाली भौजाई मिली, केहू का अंग्रेजी म गिटपिट किये वाली भौजाई! :laugh:
वैसे एक बार पूरी कहानी पढ़े होतयो तो सब जान जैहो!
 

avsji

कुछ लिख लेता हूँ
Supreme
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केहू का दूध दोहे वाली भौजाई मिली, केहू का अंग्रेजी म गिटपिट किये वाली भौजाई
वो तो भाई लोगों की किस्मत (?) है। मुझे क्या हाथ हासिल होना है!
 

Rockstar_Rocky

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shaandaar update bhai

बहुत-बहुत धन्यवाद मित्र! :thank_you: :dost: :hug: :love3:
आप अपडेट पढ़ने में पीछे हैं, कृपया अपनी रफ़्तार बढ़ायें!
 

Nevil singh

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तेईसवाँ अध्याय: अभिलाषित प्रेम बन्धन
भाग - 21



अब तक आपने पढ़ा:



आज सालों बाद मौका मिला था इसलिए हमने एक दूसरे को खिलाना शुरू किया!

भौजी: जानू आप न गुस्से में अच्छे नहीं लगते|

भौजी मुझे पराँठे का निवाला खिलाते हुए बोलीं|

मैं: और आप भी!

मैंने भौजी को पराँठे का निवाला खिलाते हुए कहा|

भौजी: हम्म्म्म!

भौजी मुस्कुराते हुए बोलीं|





अब आगे:



हम
दोनों मियाँ-बीवी पलंग पर बैठे हुए मजे से खाना खा रहे थे| कमरे में चल रहे पँखे से कागज, bills, site पर ली गई photos उड़ने लगी और उड़ते-उड़ते पलंग पर फैलने लगे| भौजी ने कागज समेटे और इस दौरान उनकी नजर चन्दर के किये घपले वाली report पर पड़ी, भौजी ने वो रिपोर्ट उठा कर पढ़ी तो उनकी आँखें फटी की फटी रह गईं!

भौजी: ये...ये क्या है?

भौजी हैरान होते हुए बोलीं|

मैं: चन्दर की करनी!

मैंने बात को ज्यादा तवज्जो न देते हुए कहा|

भौजी: क्या?

चन्दर द्वारा किये घपले की बात को ले कर मेरे ढीले जवाब के कारन भौजी बहुत हैरान थीं!

मैं: उसने दस हजार का घपला किया है| मुझे पता नहीं चलता पर कल सतीश जी का फोन आया और उन्होंने मुझे खरी-खोटी सुनाई, साइट पर पहुँच के मैंने छन-बीन की तो ये सच सामने आया| तभी तो कल सारा दिन उस साइट का काम final कराया और घर नहीं आ पाया!

मैंने बात को फिर हलके में लेते हुए कहा| ऐसा नहीं था की मेरे लिए दस हजार का कोई मोल नहीं था, अगर मैं इस बात को भावुक या गुस्से से लेता तो भौजी खुद को इसका दोष देने लगतीं और उदास हो जातीं|

भौजी: कुछ दिन पहले मैंने इसके (चन्दर के) पास नोटों की गड्डी देखी थी, मुझे लगा की शायद पिताजी ने काम के लिए दिए होंगे मगर ये तो घर में ही धोखाधड़ी कर रहा है?!

भौजी अपने होठों पर हाथ रखते हुए हैरान हुई|

भौजी: आपने पिताजी को इस गबन के बारे में बताया?

भौजी ने थोड़ा सख्ती से सवाल पुछा|

मैं: नहीं!

मैंने संक्षेप में उत्तर दिया|

भौजी: क्यों?

भौजी भोयें सिकोड़ कर पूछने लगीं|

मैं: क्योंकि पिताजी बेईमानी बर्दाश्त नहीं करेंगे! Business के प्रति वो बहुत ही संवेदनशील हैं| आजतक उन्होंने एक पैसे की बेईमानी नहीं की, भले ही नुक्सान उठाया हो मगर बेईमानी की कमाई घर में कभी नहीं लाये| चन्दर की जगह कहीं मैने ये पैसे का घोटाला किया होता तो वो मुझे घर से निकाल देते| अगर उन्हें इस बारे में पता लग गया तो वो चन्दर तथा आपको वापस भेज देंगे और अब मुझ में आपको दुबारा खोने की ताक़त नहीं बची इसलिए मैंने ये सब पिताजी को नहीं बताया|

भौजी और अपने बच्चों को खोने के डर से अब मैं भावुक हो चूका था, पर फिर भी किसी तरह खुद को समेटे हुए भौजी के सामने साधारण दिखने की कोशिश कर रहा था|

भौजी: तो ये नुक्सान कौन भरेगा?

मेरे न चाहते हुए भी भौजी पैसों के नुक्सान के बारे में सोचने लगी थीं और उनका मन अंदर से कचोटने लगा था|

मैं: मैं और कौन! आपको और बच्चों को न खोने की खुदगर्जी पाले बैठा हूँ, तो इस खुदगर्ज़ी की कुछ तो सजा मिलनी ही चाहिए मुझे!

मेरे मुँह से इतना सुनना था की भौजी सँकुचाते हुए बोलीं;

भौजी: नहीं आप नहीं भरेंगे! मेरे पास कुछ जेवर....

भौजी आगे कुछ बोलतीं उससे पहले ही मैंने उनकी बात काट दी;

मैं: Shut Up! खबरदार जो मेरे सामने दुबारा ऐसी बात कही तो|

मैंने भौजी को झिड़कते हुए कहा| भौजी अपने जेवर बेचें ये मुझे नाकाबिले बर्दाश्त था इसलिए मेरा गुस्सा जायज था! मेरी झिड़की सुन भौजी खामोश हो गईं और सर झुका कर बैठ गईं| अब मैंने अपनी पत्नी को नाराज किया था तो मनाना भी मुझे ही था;

मैं: Sorry जान!

मैंने मुस्कुराते हुए कान पकड़ कर भौजी को sorry कहा| मेरे चेहरे पर आई मुस्कान देख भौजी का चेहरा फिर से खिल गया और उनकी नाराजगी काफूर हो गई!



हमारा खाना हो चूका था इसलिए भौजी बर्तन लेके चली गईं| मैं ने अपना लैपटॉप उठाया और नए प्रोजेक्ट वाले खर्चों की रिपोर्ट बनाने लगा| इतने में भौजी आईं और मेरे सामने बिस्तर पर मेरी कमीज में बटन टखने लगीं| चूँकि मैं कल रात से जाग रहा था इसलिए मुझे जम्हाई आने लगी और मेरे चेहरे से थकान झलकने लगी थी| भौजी ने जब मेरे चेहरे पर थकावट देखि तो वो फ़ट से बोलीं;

भौजी: अब सो जाइए!

भौजी ने पत्नी की तरह लजाते हुए कहा| भौजी जब कभी इस तरह लजा कर कुछ कहतीं थीं तो मेरे दिल में मीठी-मीठी हलचल होने लगती थी और मैं उनकी कही बात को मानने के लिए विवश हो जाता था|

मैं: आपकी गोद में सर रखने की इज्जाजत है?

मैंने बड़े प्यार से भौजी से इजाजत माँगी, जिसके जवाब में भौजी ने हाँ में सर हिलाया और मुस्कुराने लगीं|

भौजी: माँ पडोस में गई हैं तो आप चाहो तो अपनी एक 'किश्त' और ले सकते हो?!

भौजी फिर लजाते हुए अपने ऊँगली दाँतों तले दबाते हुए बोलीं|

मैं: आपके कहने से थोड़े ही लूँगा, जब अच्छा मौका मिलेगा तब ‘कस’ कर किश्त और ब्याज दोनों ले लूँगा!

मैंने नटखट अंदाज में भौजी को आँख मारते हुए कहा| मेरा नटखट अंदाज देख भौजी हँस पड़ीं!

मैंने भौजी की गोद में सर रखा, भौजी ने मेरी कमीज एक तरफ रख दी और बड़े प्यार से अपनी उँगलियों का जादू मेरे बालों में चलाने लगीं| अभी बस मिनट भर हुआ था की दोनों बच्चे कूदते हुए कमरे में आये और अपना school bag टाँगे हुए ही मेरे ऊपर कूद पड़े| मैंने लेटे-लेटे ही दोनों बच्चों को अपनी बाहों में भर लिया और उनके सर को चूमते हुए भौजी से शिकायत करते हुए बोला;

मैं: अच्छा हुआ न मैंने किश्त नहीं ली, वरना अभी विघ्न पड़ जाता!

ये सुन कर भौजी मुस्कुराने लगीं|

मैं: बेटा आज आप अकेले घर आ गए?

नेहा: नहीं पापा जी! दादी जी आईं थी लेने और हमें घर छोड़ कर सामने वाली दादी जी के यहाँ चली गईं!

नेहा की बात सुन मैंने लेटे हुए भौजी को देखने लगा| भौजी भी हैरान होकर मुझे ही देखे जा रही थीं| अच्छा हुआ हमने किश्त का आदान-प्रदान नहीं किया वरना आज माँ के सामने सब पोल-पट्टी खुल जाती! मैं और भौजी एक दूसरे को हैरानी से देख रहे थे की आयुष बोल पड़ा;

आयुष: पापा जी कल से न, दादी जी ही हमें लेने आएँगी!

आयुष की लालच से भरी बात हम (मैं और भौजी) समझ नहीं पाए| तभी नेहा बोल पड़ी;

नेहा: चुप कर, तुझे तो बस चाऊमीन खानी है!

नेहा की बात सुन आयुष ख़ुशी से भर उठा और हाँ में सर हिलाने लगा! :approve: मगर मेरे और भौजी के कुछ भी समझ में नहीं आया?

मैं: क्या मतलब नेहा बेटा?

मैंने नेहा के सर पर हाथ फेरते हुए पुछा तो नेहा हँसते हुए बोली;

नेहा: आज जब दादी जी हमें लेने आईं तो आयुष ने चाऊमीन खाने की जिद्द करने लगा| तब दादी जी ने हमें चाऊमीन खिलाई और फिर हम घर आये!

मैं: अरे वाह! आप दोनों की तो मौज है! चलो खाना खा लिया तो अब हम तीनों सो जाते हैं|

मेरी बात सुन बच्चों ने तुरंत अपना bag उतारा और school dress पहने हुए मुझसे लिपट कर लेट गया| मैंने दोनों बच्चों के सर पर हाथ फेरना शुरू किया और भौजी ने अपनी प्यार-प्यारी उँगलियाँ मेरे बालों में चलानी शुरू कीं| पेट भरा था इसलिए दस मिनट में बच्चे सो गए, अभी मेरी आँख बंद ही होने वाली थी की भौजी ने झुक के मेरे होठों को अपने मुँह में भर लिया और उन्हें धीमे-धीमे बिना डरे पीने लगीं| मैंने अपने दोनों हाथ बच्चों के सर से हटाए और भौजी के सर के पीछे रख उन्हें अपने होठों पर दबाने लगा| ये मधुर मिलान इतना प्यारा था की इस वक़्त मैं और भौजी ये पूरी तरह से भूल गए थे की घर खुला है तथा माँ कभी भी आ सकतीं हैं!

मिनट भर के रसपान के बाद भौजी ने जैसे ही मेरे होठों को छोड़ा मैंने उनके होठों को अपने होठों में कैद कर लिया! फिर मिनट भर बाद भौजी ने कमान दुबारा अपने हाथ में ली और अपने होंठ खींचते हुए छुड़ाए! उन्होंने मेरे होठों को कचकचा कर अपने दातों से पकड़ लिया और बड़ी बेरहमी दिखाते हुए मेरे होठों का रसपान करने लगीं! भौजी के जिस्म में उठ रही मौजों की लहरों ने भौजी को बेसब्र और प्यासा बना दिया था| इधर नजाने क्यों मुझे भौजी के बेरहम बन जाने में बड़ा मज़ा आ रहा था इसलिए मैंने सब कुछ भौजी पर छोड़ दिया! पता नहीं कब तक भौजी ने मेरे होठों का रसपान किया होगा क्योंकि थकावट के कारन मेरी आँख लग गई!



शाम को छः बजे उठा तो भौजी चाय लेके आ गईं, मैंने अंगड़ाई लेते हुए भौजी को छेड़ते हुए कहा;

मैं: यार क्या नींद आई?!

मेरा नटखट अंदाज देख भौजी हँस पड़ीं और आँखें गोल घुमाते हुए बोलीं;

भौजी: अच्छा जी?

मैं: हाँ यार, आपकी kissi में जादू है!

मैंने होंठ पर जीभ फिराते हुए कहा|

भौजी: हाय! जानू आप न बड़ी प्यारी-प्यारी बातें करते हो!

भौजी शर्माते हुए बोलीं|

मैं: सब आप की सौबत का असर है|

मैंने मुस्कुरा कर कहा|

मैंने दोनों बच्चों को उठाया और दोनों को पढ़ाने लगा| नेहा पढ़ाई में तेज थी तो उसे एक बार में ही सब समझ आ जाता था, आयुष मेरे साथ थोड़ा ज्यादा लाड करता था इसलिए मैं उसे अपनी गोद में बिठा कर अक्षर बनवाता| ऐसा नहीं था की आयुष खुद नहीं लिख सकता था, ये तो बस मेरा लाड करने का ढंग था| रात हुई तो पिताजी अकेले साइट से लौटे, मैंने बात घुमा फिरा कर पूछी की चन्दर कहाँ है तो उन्होंने बताया की कल लेंटर (छत) पड़ना है इसलिए सुबह तड़के कुछ माल आने वाला है, उसी की delivery लेने के लिए चन्दर साइट पर रुका है और कल लेंटर पड़ने के बाद ही घर आएगा| मैं जानता था की चन्दर का टेटुआ मेरे हाथ में है इसलिए वो भौजी से कोई बदतमीजी नहीं करेगा मगर दिल में कहीं तो डर छुपा था| मैंने सोचा की कल सुबह मौका देख कर पिताजी से बात करूँगा और उन्हें भौजी तथा बच्चों को यहीं रहने देने के लिए मना लूँगा|



रात को खाना खाने के बाद भौजी मेरे कमरे में आईं;

भौजी: जानू, आप न प्लीज रात को साइट पर मत रुका करो, ये दोनों शैतान आप के बिना नहीं सोते| कहानी-कहानी कह कर मेरी जान खा जाते है, जानते हो कल बड़ी मुश्किल से मैंने दोनों को सुलाया!

भौजी प्यार से बच्चों की शिकायत करते हुए बोलीं|

आयुष: पापा जी आपके बिना नीनी नहीं आती!

आयुष मेरे सीने से लिपटते हुए बोला|

मैं: Awwwww मेरा बच्चा! बेटा वादा तो नहीं कर सकता लेकिन कोशिश पूरी करूँगा की रात को साइट पर न रुकूँ!

मैंने जवाब तो बच्चों को दिया था मगर बोल भौजी पड़ीं;

भौजी: आपकी कोशिश ही मेरे लिए काफी है|

भौजी ने बड़ी चालाकी से अपने दिल की ठंडी आह मुझे सुना दी! मेरे साइट पर रुकने से बच्चों के साथ-साथ उन्हें भी तो मेरे साथ बिताने के लिए समय नहीं मिलता था!

बात खत्म हुई और भौजी अपने घर जाने लगीं, मुझे उनकी चिंता हो रही थी इसलिए मैंने उन्हें रोकते हुए कहा;

मैं: जान थोड़ी देर रुक जाओ, बच्चे सो जायेंगे फिर मैं दोनों को आपके घर छोड़ दूँगा!

भौजी मेरी बात समझ गईं मगर उन्होंने मुस्कुराते हुए न में सर हिलाया और बोलीं;

भौजी: आप मेरी चिंता मत करो, एकबार की लापरवाही ने मुझे सबक सिखा दिया है और वैसे भी जब से आपने उसका टेटुआ पकड़ा है, उसकी क्या मजाल जो मुझे आँख उठा कर भी देख ले!

भौजी मेरे ऊपर गर्व करते हुए बोलीं| भौजी की बात सुन मैं काफी हद तक निश्चिन्त हो गया की मेरी जानेमन सुरक्षित रहेगी| भौजी अपने घर गईं और इधर मैं और बच्चे चिपक कर सो गए, बच्चों के साथ चिपक कर सोने में इतना आनंद आया की सुबह मेरी आँख ही नहीं खुली और जब मैं उठा तो घर में 'सियप्पा' खड़ा हो गया!



मैं करीब नौ बजे सो कर उठा, सर दर्द से फटा जा रहा था| शुक्र है की भौजी ने बच्चों को पहले ही तैयार कर के स्कूल भेज दिया था वरना मेरे कारन आज उनका स्कूल छूट जाता! मैं अभी उठने ही वाला था की भौजी घबराई हुई सी अंदर आईं, भौजी को घबराया देख मैं चौंकन्ना हो गया;

मैं: क्या हुआ जान?

मैंने भौजी का हाथ थमते हुए पुछा|

भौजी: सुबह-सुबह वो (चन्दर) गाँव चला गया!

भौजी ने डरते हुए कहा|

मैं: फ़ट गई साले की!

मैंने शैतानी हँसी हँसते हुए एकदम से कहा| मेरे शैतानी देख भौजी भोयें सिकोड़ कर मुझे देखने लगीं और बोलीं;

भौजी: क्या मतलब?

मैं: उसे (चन्दर को) लगा होगा की मैं पिताजी को उसके घपले के बारे में बता दूँगा, इसलिए फ़ट गई उसकी!

मैंने फिर शैतानी हँसी हँसते हुए कहा| मुझे चन्दर के जाने से ख़ुशी हो रही थी पर मैं ये भूल गया था की अगर चन्दर गाँव गया है तो भौजी को भी तो गाँव जाना होगा न? उधर भौजी मेरी हँसी देख कर अब भी दंग थीं, भौजी को इस तरह हैरान देख मुझे अपनी मूर्खता समझ आई और मैं भी गंभीर हो गया|

मैं: आपने पिताजी को बताया?

मैंने चिंतित होते हुए पुछा|

भौजी: मैंने माँ को बताया था, उन्होंने पिताजी को बता दिया| आठ बजे से पिताजी फोन मिला रहा हैं पर वो फ़ोन नहीं उठाता!

भौजी घबराते हुए बोलीं| भौजी के मन में मुझसे दूर होने का डर पनप चूका था और वो अब सामने आने लगा था!

मैं: घर से कितने बजे निकला?

मैंने भोयें सिकोड़ कर पुछा|

भौजी: सुबह पौने पाँच बजे घर आया था और फटाफट अपने कपडे एक बैग में भरने लगा, ठीक पाँच बजे वो बैग ले कर निकला और चलते-चलते मुझे बोला की; " हम गाँव जाइथ है!!"

भौजी की बात सुन मैंने मन बना लिया था की अगर आज पिताजी ने भौजी और बच्चों के गाँव जाने की बात कही तो मैं आज सारी मर्यादें लाँघ जाऊँगा!

मैं: चलो बाहर चलके देखें क्या हुआ है?

मैंने भौजी से कहा और बाहर बैठक में आ गया|



जारी रहेगा भाग - 22 में...
laajwaab update bhai
 

Nevil singh

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तेईसवाँ अध्याय: अभिलाषित प्रेम बन्धन
भाग - 22



अब तक आपने पढ़ा:


मैं: घर से कितने बजे निकला?

मैंने भोयें सिकोड़ कर पुछा|

भौजी: सुबह पौने पाँच बजे घर आया था और फटाफट अपने कपडे एक बैग में भरने लगा, ठीक पाँच बजे वो बैग ले कर निकला और चलते-चलते मुझे बोला की; " हम गाँव जाइथ है!!"

भौजी की बात सुन मैंने मन बना लिया था की अगर आज पिताजी ने भौजी और बच्चों के गाँव जाने की बात कही तो मैं आज सारी मर्यादें लाँघ जाऊँगा!

मैं: चलो बाहर चलके देखें क्या हुआ है?

मैंने भौजी से कहा और बाहर बैठक में आ गया|





अब आगे:


हम
दोनों (मैं और भौजी) बाहर बैठक में आये, पिताजी बार-बार चन्दर को फ़ोन मिलाये जा रहे थे और चन्दर फ़ोन नहीं उठा रहा था| हार कर पिताजी ने बड़के दादा को फ़ोन किया;

पिताजी: परनाम बड़के भैया!

पिताजी के प्रणाम के बदले बड़के दादा ने उन्हें आशीर्वाद दिया|

पिताजी: भैया चन्दर घरे आवत है....अकेले!

पिताजी ने 'अकेले' शब्द थोड़ा विराम ले कर कहा| पिताजी की बात सुन कर बड़के दादा को हैरानी हुई होगी और उन्होंने पिताजी से चन्दर के अकेले आने का कारन पुछा होगा, जिसके जवाब में पिताजी बस इतना ही बोले;

पिताजी: पता नाहीं भैया चन्दर काहे अकेले गवा! हमका तो अभी थोड़ी देर पहले पता लगा, हम तब से फ़ोन करित है पर चन्दर फ़ोन ही नाहीं उठावत!

पता नहीं बड़के दादा ने क्या कहा, पर पिताजी उनकी बात सुन कर बोले;

पिताजी: हम चन्दर से बात करे का कोशिश करित है, जइसन कउनो बात पता चली हम आपका बताये देब!

इतना कह पिताजी ने फ़ोन रखा| पिताजी की नजर मुझ पर तथा घूँघट काढ़े मेरी बगल में खड़ी भौजी पर पड़ी, पिताजी ने चिंतित होते हुए मुझसे सवाल पुछा;

पिताजी: आखिर कल इस लड़के (चन्दर) को हुआ क्या था? ये क्यों इस तरह बिना कुछ बोले चला गया?

पिताजी का सवाल सुन मैं खामोश रहा|

पिताजी: बहु तुझे कुछ नहीं कहा?

पिताजी ने भौजी से सवाल पुछा, भौजी बोलने को हुईं थीं की तभी मैंने चुपके से उनका हाथ पकड़ा और धीमे से दबा कर खामोश रहने को कहा, भौजी मेरा इशारा समझ गईं और खामोश खड़ी रहीं|

पिताजी चन्दर के बारे में भौजी से और कुछ पूछते उससे पहले ही सतीश जी का फ़ोन आ गया, मैंने चुपके से भौजी को इशारा किया और उन्हें रसोई में भेज दिया तथा मैं पिताजी के पास कुर्सी पर बैठ गया|

पिताजी: प्रणाम मालिक!

मालिक शब्द सुन मैं जान गया था की ये सतीश जी का फ़ोन है| अब मुझे घबराहट होने लगी थी की कहीं सतीश जी चन्दर की पोल-पट्टी न खोल दें, क्योंकि अगर ये राज़ फ़ाश होता तो मेरे लिए भौजी और बच्चों को यहाँ रोके रखना नामुमकिन हो जाता!

सतीश जी: प्रणाम भाईसाहब! आज आपसे मुलाक़ात हो सकती है?

पिताजी: हाँ-हाँ मालिक! आप बोलो कब आऊँ?

पिताजी ने जब मिलने की बात कही तो मुझे थोड़ा सुकून आया की सतीश जी ने चन्दर की शिकायत करने को फ़ोन नहीं किया|

सतीश जी: बारह बजे आजाईये और हाँ मानु को साथ लाइयेगा|

जब सतीश जी ने ख़ास कर मुझे अपने साथ लाने को कहा तो पिताजी का माथा ठनका|

पिताजी: क्यों उसका कोई ख़ास काम है आपको?

पिताजी की बात सुन मैं समझ गया की अब सतीश जी जर्रूर सारी पोल-पट्टी खोल देंगे!

सतीश जी: देखिये भाईसाहब आपको मानु ने तो सब बता ही दिया होगा| आज जो काम मैं आपको देने वाला हूँ वो सिर्फ और सिर्फ मानु ही कराएगा वरना मैं किसी और को बुला लूँगा|

पिताजी: अरे नहीं मालिक! मानु ही देख लेगा सारा काम, मैं आपसे बारह बजे मिलता हूँ!

इतना कह पिताजी ने फोन काटा और मैंने राहत की साँस ली, क्योंकि मुझे लगा की पिताजी को चन्दर के घोटाले के बारे में कुछ नहीं पता चला| मगर मैंने कुछ जल्दी ही राहत की साँस ले ली थी, मेरे पिताजी सतीश जी की बात सुन कर समझ गए थे की कल जर्रूर कुछ हुआ है|



माँ और भौजी नाश्ता बनाने में लगे थे और इधर पिताजी मेरे मुँह से सच उगलवाने की फ़िराक में थे;

पिताजी: हाँ तो अब तू बता?

पिताजी ने मुझे भोयें सिकोड़ कर देखा|

मैं: क्या?

मैंने एकदम से अनजान बनने का नाटक किया|

पिताजी: सतीश जी कह रहे थे की कल कुछ हुआ है!

पिताजी ने सतीश जी की बात को तोड़कर कहा ताकि मैं घबरा जाऊँ और सब सच बक दूँ, पर मैं फिर भी भोली सूरत लिए अनजान बना बैठा रहा और बोला;

मैं; कल कुछ भी तो नहीं हुआ!

मैं भूल गया था की पिताजी इतना बेवकूफ नहीं जितना मैं उन्हें बनाने की सोच रहा था, वो मेरा झूठ पकड़ना जानते थे इसीलिए उन्होंने मुझे हड़काते हुए सख्ती से पुछा;

पिताजी: देख जूठ मत बोल! बता क्या हुआ है?

पिताजी की सख्ती देख मैं अब भी भोली शकल बनाये हुए बैठा था और अपनी बात पर अडिग था;

मैं: सच में कुछ नहीं हुआ, बस वो सतीश जी वाला काम थोड़ा ज्यादा खिंच गया था!

मैंने बात हलके में लेते हुए कहा|

भौजी जो रसोई से मेरी और पिताजी की बातें सुन रहीं थीं, उन्हें मेरा पिताजी से झूठ बोलना खल रहा था| भौजी मेरे कमरे में गईं और चन्दर के घपले वाली फाइल उठा लाईं और पिताजी के सामने रखते हुए बोलीं;

भौजी: पिताजी...ये कारन है उनके (चन्दर के) गाँव जाने का और मुझे नहीं पता लेकिन शायद सतीश जी भी यही कह रहे होंगे|

पिताजी के सामने पड़ी वो फाइल और भौजी की बात सुन मैं बहुत सख्ते में था! भौजी ने जिस तरह बिना डरे चन्दर के घपले का सबूत पिताजी के सामने पेश किया था उससे हम दोनों का (भौजी और मेरा) रिश्ता खतरे में आ गया था| मैं जान गया था की चन्दर का ये धोखा पिताजी बर्दाश्त नहीं करेंगे और उनका गुस्सा फूट पड़ेगा जिसका खामयाजा मैं, भौजी और बच्चे भुगतेंगे! अपने रिश्तों को डूबता देख मैंने भौजी और बच्चों को यहाँ रोकने की तरकीब सोचनी शुरू कर दी|



उधर पिताजी ने वो file खोल कर देखि, उसमें मौजूद साइट की photo, बिल में लिखे पैसे तथा घटिया चीजों का जिक्र पढ़ कर पिताजी ने अपना सर पीट लिया! चन्दर चूँकि पिताजी के बड़े भाई का लड़का था इसलिए अपने बड़े भाई का मान करते हुए पिताजी के मुँह से चन्दर के लिए गाली नहीं निकल रही थी वरना अब तक तो पिताजी गुस्से से आग-बबूला हो कर चन्दर पर गालियों की बरसात कर देते!

पिताजी: हे भगवान! ये लड़का हमारे साथ ही धोका-धडी कर रहा था? और मैं मूरख इसे अपना आधा बिज़नेस सौंपना चाहता था! अपनों पर भी विश्वास नहीं कर सकते?!

पिताजी दुखी होते हुए बोले|

भौजी: और एक बात है पिताजी.....

भौजी आधी बात बोल कर रुक गईं|

पिताजी: बोलो बहु!

पिताजी ने हैरान होते हुए कहा|

भौजी: ये (चन्दर) शराब भी पीते हैं!

पिताजी: क्या? पर चन्दर ने तो अपनी माँ की कसम खाई थी!

पिताजी हैरान होते हुए बोले|



अब जब चन्दर के सब राज़ खुल रहे थे तो मैंने सोचा की मैं भी सब सच बोल ही देता हूँ;

मैं: परसों मिश्रा अंकल जी से बात कर के जब मैं घर लौटा तो मुझे पता चला की चन्दर भैया 'इन्हें' (भौजी) मारते-पीटते हैं!

मैंने भौजी की तरफ इशारा करते हुए अपनी बात शुरू की|

मैं: मैं सीधा साइट पहुँचा ताकि चन्दर भैया से बात कर सकूँ| नीचे गाडी खड़ी कर के मैं ऊपर जाने वाला था तब सतीश जी ने मुझे फ़ोन कर के काम को ले कर बहुत खरी-खोटी सुनाई! तब मुझे पता चला की चन्दर भैया ने इतना बड़ा घपला किया है| मैं उनसे (चन्दर से) बात करने ऊपर पहुँचा तो पाया की चन्दर भैया नशे में धुत्त हैं, मैंने जब उनसे ये सब बातें की तो उन्होंने मुझे ही गालियाँ देनी शुरू कर दी! मुझे पहले ही बहुत गुस्सा आ रहा था और गालियाँ सुन कर मैंने चन्दर भैया पर हाथ छोड़ दिया! मेरे पीटने से चन्दर भैया का नशा टूटा, वो घबरा गए और मिन्नत करने लगे की मैं आपसे उनके किये घपले की बात न कहूँ!

चन्दर के दारु पीने की बात जान कर अब कोई उस पर भरोसा करने वाला था नहीं, तो मैंने इसी बात का फायदा उठा कर मैंने बड़ी होशियारी से सारी बात चन्दर के सर पर डाल दी| लेकिन मेरी होशियारी मुझ पर थोड़ी भारी पड़ गई, क्योंकि जैसे ही मेरी बात खत्म हुई पिताजी ने मुझे झाड़ दिया;

पिताजी: और तू उसके गुनाहों पर पर्दा डाल रहा था! वो तो भला हो बहु का जो उसने सारी बात बताई वरना बरसों की हमारी बनाई इज्जत इस लड़के (चन्दर) ने मिटटी में मिला देनी थी!

पिताजी की झिड़की सुन मैं सर झुका कर बैठा रहा| पिताजी ने फ़ौरन बड़के दादा को फ़ोन कर के सारी बात बताई तथा ये भी कह दिया की इस घर के दरवाजे चन्दर के लिए हमेशा-हमेशा के लिए बंद हो चुके हैं! बड़के दादा ने जब चन्दर की बेमानी वाली बात सुनी तो वो भी आग-बबूला होते हुए उसे (चन्दर को) गालियाँ बकने लगे! बड़के दादा ने पिताजी से लाख बार पुछा की चन्दर ने कितने पैसों का गबन किया है मगर पिताजी ने उन्हें कुछ नहीं बताया! गुस्से में बड़के दादा बोलने लगे की चन्दर अगर यहाँ आया तो ज़िंदा नहीं जायेगा! अब ये तो मैं जानता ही था की क्या पिद्दी और क्या पिद्दी का शोरबा! बड़के दादा ने घंटा चन्दर को कुछ नहीं कहना था, आखिर चन्दर उनका चहेता लड़का जो था! लगे हाथ बड़के दादा ने कुछ बात करने के लिए पिताजी गाँव और बुला लिया! पिताजी अपने बड़े भाई के बुलावे पर गाँव जाने को तैयार हो गए और फ़ोन रखते ही मुझसे बोले;

पिताजी: बेटा मुझे रात की ट्रैन से गाँव निकलना होगा, पता नहीं कितने दिन लगेंगे?! अब तुझे ही सारा काम देखना होगा, आज लेंटर पड़ना था और नॉएडा वाली साइट का काम भी फाइनल हो चूका है तो उसका हिसाब-किताब भी देखना होगा!

काम तो सब मैं संभाल लेता मगर पिताजी की बात सुन कर मेरा दिल बहुत तेजी से धड़क रहा था| मुझे रह-रह कर भौजी और बच्चों की चिंता हो रही थी! दिमाग को कुछ सूझ नहीं रहा था सो जो मुँह में आया वो बक दिया;

मैं: जी ठीक है! लेकिन आपको इस समस्या का हल निकालना होगा| चन्दर भैया न तो शराब छोड़ सकते हैं और न ही इन्हें (भौजी) मारना पीटना, ऐसे में बच्चों का क्या होगा? उनका भविष्य, उनकी ज़िन्दगी सब खराब कर देगा ये इंसान!

पिताजी: बेटा तू चिंता मत कर यही सब बात करने के लिए तेरे बड़के दादा ने मुझे गाँव बुलाया है! लेकिन मेरी गैरहाजरी में तुझे सारा काम संभालना पड़ेगा....अपने चन्दर भैया का भी!!!

जैसे ही पिताजी ने चन्दर का नाम लिया मेरे दिमाग में बेसर-पैर का idea आ गया!

मैं: पिताजी...एक बात कहना चाहता हूँ|

मैंने संकुचाते हुए कहा|

पिताजी: हाँ-हाँ बोल?

मैं: पिताजी, मैं चाहता हूँ की चन्दर भैया के काम से जो भी प्रॉफिट हो उसकी मैं आयुष और नेहा के नाम की FD बना दूँ ताकि आगे चल कर बच्चों की पढ़ाई लिखाई में कोई रुकावट न आये!

मैंने बात गोल घुमाकर पिताजी के दिमाग में बच्चों को यहीं पढ़ने देने की बात बिठा दी ताकि गाँव में जब चन्दर और भौजी की जिंदगियों का फैसला हो तो पिताजी के दिमाग में ये बात बैठी रहे और वो चन्दर को यहाँ दुबारा न आने-देने के लिए न अड़ जाएँ! जानता हूँ ये कोई idea नहीं था पर उस वक़्त मेरे लिए ये उम्मीद की एक किरण थी जो मुझे निराश होने से बचाने के लिए काफी थी! पिताजी के गाँव जाने से मुझे कुछ दिनों की मोहलत मिली थी और मुझे इन कुछ दिनों में कोई न कोई बेजोड़ तरकीब सोचनी थी ताकि मैं बच्चों और भौजी को यहीं रोके रखूँ! उधर मेरी बात सुन भौजी घूँघट की आढ़ में मेरी तरफ हैरान हो कर देखने लगीं!

पिताजी: अच्छा विचार है बेटा! लेकिन मैं सोच रहा था की हम गाडी ले लें, पर तेरा ये विचार बहुत अच्छा है और यही होगा! जब मिश्रा जी से पैसे मिलें तू अपनी भौजी को बैंक ले जाइयो और दोनों बच्चों के नाम की FD करा दियो!

पिताजी पढ़ाई का महत्त्व जानते थे इसलिए वो फट से मेरी बातों में आ गए| पिताजी की बात सुन मेरी आशा की किरण मुझे halogen bulb लगने लगी!

मैं: जी बेहतर!

मैंने खुश होते हुए कहा| अब जब इतना कुछ हो रहा था तो मैंने सोचा की पिताजी से भौजी के हमारे घर में रहने की भी बात कर ही लेता हूँ;

मैं: पिताजी अब क्योंकि चन्दर भैया हैं नहीं तो ऐसे में बच्चों और इनका (भौजी का) अकेले उस घर में रहना ठीक नहीं! फिर उस घर का किराया देना पड़ता है सो अलग, तो अगर तीनों (आयुष, नेहा और भौजी) इसी घर में रहे तो? अब मैं तो साइट पर बिजी हूँगा तो ऐसे में मेरी गैरहाजरी में भौजी और बच्चों के साथ माँ का भी मन लगा रहेगा!

मन साला लालची हो गया था और अपने इस बौरेपन में कुछ भी बोले जा रहा था, लेकिन पिताजी इसके लिए भी मान गए| हमारे घर में एक छोटा कमरा था जिसमें एक टूटा हुआ पलंग और कुछ फ़ालतू सामान भरा हुआ था| पिताजी ने संतोष को फ़ोन कर इस कमरे को साफ़ करने को कह दिया|



मैं नाश्ता करके पिताजी के साथ काम पर निकल गया| लेंटर का काम कल होना था तो मैंने माल मँगवा कर कल की सारी तैयारी कर ली! रात को पिताजी ने गाडी पकड़नी थी, लेकिन ऐन मौके पर लेबर भाग गई! पिताजी वाले project से लेबर मँगवानी पड़ी, ऊपर से चन्दर के गाँव जाने से जो काम लटक गया था उसकी due date आ गई थी इसलिए मैं उस काम को पूरा करवाने में फँस गया, फिर न तो मैं पिताजी को station छोड़ने जा पाया और न ही घर! बच्चों ने दिन में फ़ोन किया था, मगर काम में व्यस्त होने के कारन मैं उनका फ़ोन नहीं उठा पाया! रात में भौजी ने फ़ोन कर के घर आने को पुछा तो मैंने उन्हें काम में व्यस्त होने की बात कह कर समझा दिया| भौजी तो मान गईं पर बच्चे दोपहर को मेरे फ़ोन न उठाने के कारन नाराज हो गए थे और अपनी मम्मी की नाक में दम कर रहे थे! भौजी ने फ़ोन loudspeaker पर डाला और मैंने बच्चों को प्यार से समझना शुरू किया;

मैं: मेले प्याले-प्याले बच्चों! अपने पापा छे (से) नालाज हो?!

मैंने तुतलाते हुए कहा तो दोनों बच्चों ने खिलखिलाकर हँसना शुरू कर दिया!

मैं: Sorry बेटा जी! दोपहर को मैं काम में बिजी था इसलिए आपका फ़ोन नहीं उठा पाया!

मेरी बात सुन दोनों बच्चों ने एकदम से मुझे माफ़ कर दिया!

आयुष: पापा कहानी!

आयुष ने पलंग पर कूदते हुए कहा|

नेहा: हाँ पापा जी कहानी सुनाओ, नहीं तो कट्टी!

बच्चों ने जिद्द पकड़ी तो मैंने ख़ुशी से बच्चों को एक कहानी सुनाई जिसे सुनते-सुनते दोनों बच्चे सो गए| बच्चे सो गए तो मुझे और भौजी को बात करने का मौका मिल गया;

मैं: जान कैसा लग रहा है मेरे घर में सो कर?

भौजी: आपके बिना सूना लग रहा है!

भौजी ठंडी आह भरते हुए बोलीं|

मैं: Sorry जान! कल लेंटर पड़ जाए, उसके बाद मैं रात को साइट पर नहीं रुकूँगा!

मैंने माफ़ी माँगते हुए कहा|

भौजी: कोई बात नहीं जानू!

भौजी ने मुस्कुराते हुए कहा| उस रात हमने दो बजे तक बातें की, माँ ने जब कमरे में लाइट जलती देखि तो वो भौजी को देखने आईं तब भौजी ने एकदम से फ़ोन काट दिया और सोने का नाटक करने लगीं|



जारी रहेगा भाग - 23 में...
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Nevil singh

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तेईसवाँ अध्याय: अभिलाषित प्रेम बन्धन
भाग - 23



अब तक आपने पढ़ा:



बच्चों ने जिद्द पकड़ी तो मैंने ख़ुशी से बच्चों को एक कहानी सुनाई जिसे सुनते-सुनते दोनों बच्चे सो गए| बच्चे सो गए तो मुझे और भौजी को बात करने का मौका मिल गया;
मैं: जान कैसा लग रहा है मेरे घर में सो कर?
भौजी: आपके बिना सूना लग रहा है!
भौजी ठंडी आह भरते हुए बोलीं|
मैं: Sorry जान! कल लेंटर पड़ जाए, उसके बाद मैं रात को साइट पर नहीं रुकूँगा!
मैंने माफ़ी माँगते हुए कहा|
भौजी: कोई बात नहीं जानू!
भौजी ने मुस्कुराते हुए कहा| उस रात हमने दो बजे तक बातें की, माँ ने जब कमरे में लाइट जलती देखि तो वो भौजी को देखने आईं तब भौजी ने एकदम से फ़ोन काट दिया और सोने का नाटक करने लगीं|





अब आगे:


अगले दिन मैं सुबह 6 बजे घर पहुँचा, दोनों बच्चे उठ चुके थे और brush कर रहे थे| मुझे देखते ही दोनों दौड़ कर आये और मैंने दोनों को गोद में उठा लिया! दोनों बच्चों के गाल चूमते हुए मैं अपने कमरे में आया, बच्चे नीचे उतरने के लिए छटपटाये और मुँह धो कर फिर मेरी गोद में चढ़ गए|

आयुष: I love you पापा!

आयुष मेरी पप्पी लेते हुए बोला!

नेहा: I love you पापा!

नेहा भी मेरी पप्पी लेते हुए बोली!

मैं: I love you too मेरे बच्चों!

मैंने दोनों बच्चों के सर को चूमा और उन्हें स्कूल के लिए तैयार होने को कहा| इधर मैं नहाया और अपनी नींद पूरी करने के लिए लेट गया, बच्चे स्कूल के लिए तैयार हो गए तथा जाते-जाते मेरे गाल पर अपनी bye-bye वाली पप्पी दे गए!

दस बजे मैं उठा और कपडे बदल कर तैयार हो कर नाश्ता करने बैठ गया| नाश्ता करते समय माँ ने कल रात की बात छेड़ दी;

माँ: बहु कल रात को तेरे कमरे की लाइट क्यों चालु थी?

माँ का सवाल सुन मेरी हँसी छूट गई और मैं खिलखिलाकर हँसने लगा| मुझे हँसता हुआ देख माँ हैरान हुईं और भौजी आँखें बड़ी कर के मुझे उल्हना देने लगीं! माँ कुछ शक न करें इसलिए भौजी ने बच्चों पर इल्जाम लगा दिया;

भौजी: माँ वो बच्चे...बड़े शैतान हैं! कहानी-कहानी कह कर उधम मचा दिया, अब मुझे कहानी आती नहीं तो मैंने नेहा को फ़ोन दे दिया और मैं लेट गई, दोनों बच्चे इनसे (मुझसे) कहानी सुनते-सुनते सो गए और लाइट चालु रह गई!

भौजी की बात सुन माँ हँस पड़ी! मुझे भौजी को यूँ फँसा कर बहुत मज़ा आ रहा था और उधर भौजी मन ही मन मुझसे शिकायत कर रहीं थीं की क्यों मैंने उन्हें फँसाया!



नाश्ता खत्म हुआ तो पिताजी का फ़ोन आया, वो गाँव पहुँच चुके थे मगर चन्दर अभी तक घर नहीं पहुँचा था! वो कल सुबह का निकला था और उसे रात तक गाँव पहुँच जाना था! दरअसल कल जब पिताजी ने बड़के दादा को चन्दर के शराब पीने और गबन के बारे में बताया तो उन्होंने अपने साले यानी चन्दर के मामा को भी ये बात बता दी| चन्दर ने पिताजी तथा बड़के दादा का फ़ोन नहीं उठाया पर जब मामा जी ने फ़ोन किया तो उसने फ़ट से फ़ोन उठा लिया| मामा जी ने उसे सारी बात बताई तो चन्दर और घबरा गया, वो अपने घर न जा कर सीधा मामा जी के घर जा पहुँचा| मामा जी ने ही चन्दर को बिगाड़ा था, वो ही उसे हर बात पर शय देते थे! अब चन्दर मामा जी के घर पहुँच के शराब पीने और अपना जुगाड़ पेलने में लग गया! उधर उसके घर वाले परेशान हो कर इधर-उधर फोने करने लगे, पता नहीं क्यों पर सबसे अंत में मामा जी को फ़ोन किया गया| जब मामा जी ने बताया की चन्दर उनके घर पर है तो बड़के दादा ने उन्हें ढेरों गालियाँ सुनाई की आखिर क्यों उन्होंने नहीं बताया की चन्दर उनके यहाँ छुपा हुआ है! पिताजी और बड़के दादा ने चन्दर से बात करनी चाहि पर वो डर के मारे फ़ोन पर ही नहीं आया, बड़के दादा ने उसे घर आने को कहा लेकिन चन्दर ने घर आने से साफ़ मना कर दिया|

इसके आगे क्या हुआ ये उस समय हम लोग (मैं, माँ और भौजी) नहीं जानते थे!



चन्दर की हरकत जानकर सब सख्ते में थे, लेकिन मेरी और भौजी की मनोदशा बिगड़ने लगी थी| एक दूसरे से फिर दूर हो जाने का दर्द हमें जलाने लगा था| भौजी तो कुछ कर नहीं सकती थीं, जो भी करना था मुझे करना था मगर करना क्या है ये मैं नहीं जानता था! मैं अपने कमरे में पर्स लेने आया था की तभी भौजी पीछे से आईं और मुझे अपनी बाहों में भर कर खड़ी हो गईं! मैं भौजी की तरफ घूमा और उन्हें कस कर अपने गले लगा लिया| चन्दर की खबर मिलने के बाद भौजी के दिल में उठ रही बेचैनी मैं समझ रहा था मगर मेरे पास फिलहाल उसका कोई इलाज नहीं था! मैं बस भौजी को सांत्वना दे सकता था, उसके अलावा कुछ नहीं!

मैं: जान! सब ठीक हो जायेगा!

मैंने भौजी के सर को चूमते हुए कहा, मगर मेरी बात में वो वजन, वो आत्मविश्वास नहीं था जो होना चाहिए था!

मैं जब साइट पर पहुँचा तो लेंटर का काम संतोष भैया की देख-रेख में चालू हो चूका था| संतोष भाई काम संभाल रहे थे और मैं अपने परिवार (भौजी और बच्चों) को समेटने की सोच रहा था| दिल बाग़ी हो चूका था और मुझे बार-बार उस रिश्ते की रेखा को लाँघने के लिए उकसा रहा था जिससे हमारा सारा परिवार बँधा था! 'भाग जा अपने बीवी- बच्चों को ले कर!' दिल बोला मगर दिमाग इसका तर्क देते हुए बोला; 'माँ-पिताजी का क्या होगा, ये सोचा तूने?' दिमाग का ये तर्क मेरे लिए झिड़की थी जिसे सुन मैंने दिल की बजाए दिमाग लड़ाना सही समझा| मैंने बहुत सोचा मगर मेरे पास सिवाए बच्चों के बहाने के और कोई बहाना नहीं था! कौन विश्वास कर सकता था की भौजी और बच्चों को अपने पास रोके रखने के लिए मुझे बच्चों की पढ़ाई के बहाने का सहारा लेना था!



दोपहर को बच्चों ने फ़ोन किया और एक साथ बोले; "पापा जी भूख लगी!" जिस तरह बच्चों ने एक साथ शोर मचा कर कहा था उसे सुन कर मैं हँस पड़ा और अपनी सारी चिंता भूल गया!

मैं: Awwww मेरे बच्चों! बेटा अभी काम ज्यादा है इसलिए मैं आपसे रात में मिलूँगा और आप दोनों के लिए चॉकलेट भी लाऊँगा!

चॉकलेट खाने के नाम से बच्चे खुश हो गए| रात को 9 बजे मैं घर पहुँचा तो बच्चे जाग रहे थे, पहले दोनों बच्चों ने मुझे ढेर सारी पप्पियाँ दी और फिर सीधा चॉकलेट पर टूट पड़े! रात के खाने के बाद माँ सोने चली गईं और मैं बच्चों को ले कर अपने कमरे में आ गया| रसोई समेट कर भौजी मेरे कमरे में आईं और आ कर मेरे सीने से लिपट गईं| भौजी के दिल की धड़कनें बढ़ी हुई थीं, उनके जिस्म में डर की कंपकंपी थी और आँसूँ उनकी आँखों की दहलीज पर आ चुके थे! भौजी रो न पड़ें इसके लिए मैंने उन्हें कस कर अपनी बाहों से जकड लिया! हम दोनों ही बहुत भावुक हो चुके थे और अगर कुछ बोलने की कोशिश करते तो रो पड़ते, इसलिए हम दोनों खामोश एक दूसरे की बाहों में खोये हुए थे! अपने मम्मी-पापा को यूँ खामोश, एक दूसरे में सिमटे हुए देख बच्चों के मन में जिज्ञासा जागी;

नेहा: क्या हुआ पापा?

नेहा ने चिंतित होते हुए पुछा|

मैं: कुछ नहीं बेटा, इधर आओ दोनों!

मैंने दोनों बच्चों को गोद में उठाया और भौजी को फिर से गले लगा लिया| मैं बच्चों को ये सब नहीं बताना चाहता था, क्योंकि उन्हें ये सब जानकार दुःख होता और भावनाओ में बह कर वो किसी के भी सामने सब कुछ सच कह देते!



दिन बीतने लगे मगर एक भी दिन ऐसा नहीं था जब मैंने हमारे (भौजी और मेरे) रिश्ते को बचाने के लिए कोई जुगाड़ न सोचा हो, लेकिन कोई भी जुगाड़, कोई भी झूठ fit नहीं बैठ रहा था! मुझे कोई रास्ता नहीं सूझ रहा था, बस एक बिंदु मिल जाए जिसके सहारे मैं भौजी और मेरे रिश्ते के लिए एक नई रेखा खींच सकूँ, पर ऐसा कोई बिंदु नहीं मिल रहा था!

उधर काम में व्यस्त होने के करण बच्चों को तो अपने पापा का प्यार मिल रहा था, मगर भौजी को अपने हृदयेश्वर का प्रेम नहीं मिल रहा था! जब कभी मैं घर होता तो भौजी आ कर मेरे सीने से लग जातीं और अपनी जान लगा देतीं की वो मेरे सामने न रोएँ! लेकिन सच ये था की भौजी अंदर से टूटने लगी थीं और मेरे साथ अपनी जिंदगी बिताने की सारी उम्मीद खो चुकी थीं! मुझे गले लग कर वो बस अपने दिल की तसल्ली कर लेती थीं की हमारे पास जो चंद घड़ियाँ हैं उन्हें जी भर के जी लें!



करवा चौथ से ठीक एक दिन पहले की बात है, मैं नाश्ता कर के साइट पर निकलने वाला था| माँ पड़ोस वाली आंटी के घर करवाचौथ की बातें कर रहीं थीं, जब भौजी ने मेरा हाथ पकड़ा और मुझे खींचते हुए छत पर ले आईं;

भौजी: जानू, मुझे आपसे एक बात करनी हैं|

भौजी ने हक़ जताते हुए कहा|

मैं: हाँ जी कहिये!

ये कह मैं हाथ बाँध कर खड़ा हो गया|

भौजी: मैंने आपको दिल से अपना पति-परमेश्वर माना है इसलिए आज तक मैं हर करवाचौथ पर व्रत सिर्फ और सिर्फ आपके लिए रखती आई हूँ! मुझे उस शक्स से कभी कोई वास्ता नहीं था, हरबार आपको ही याद कर के व्रत रखा और आपको ही याद कर के व्रत खोला करती थी| मैं आपको बता नहीं सकती की मैं आज के दिन आप को कितना याद किया करती थी और कितना रोया करती थी! लेकिन इस बार मौका मिला है तो मैं चाहती हूँ की कल रात को पूजा करते समय आप मेरे सामने हो और आप ही अपने हाथों से मुझे पानी पिला कर मेरा व्रत खुलवाओ! मुझे नहीं पता आप ये कैसे करोगे, पर मुझे कल पूजा के समय मेरा पति मेरे सामने चाहिए! बोलो आप मेरी ये इच्छा पूरी करोगे न?

भौजी के यूँ हक़ जताने से मैं शुरू से पिघल जाया करता था, इसलिए इस बार भी उनकी बात सुन मैं होले से मुस्कुराते हुए बोला;

मैं: ठीक है जान! लेकिन मैं भी आपके लिए व्रत रखूँगा!

मेरी व्रत रखने की बात सुन भौजी एकदम से बोलीं;

भौजी: बिलकुल नहीं! एक तो अपनी दवाई के चलते आप निर्जला व्रत नहीं रख सकते और दूसरा आपको बाहर काम करना होता है, इतनी दौड़-भाग करनी होती है इसलिए आप ये व्रत नहीं रखोगे!

भौजी ने अपना फरमान सुनाते हुए कहा, मगर मैं कहाँ उनकी सुनने वाला था;

मैं: मैंने आपसे इजाजत नहीं माँगी है!

मैंने दो टूक अपनी बात कही!

भौजी: पर....

भौजी तर्क करने वाली हुईं थीं मगर मैंने उनकी बात काट दी;

मैं: मैं कुछ नहीं सुनने वाला!

मैंने सख्ती से कहा| भौजी जानती थीं की मैं उन्हें अकेला व्रत रखने नहीं दूँगा इसलिए उन्होंने मुझे फँसाते हुए अपनी चाल चली;

भौजी: ठीक है! पर मेरी भी एक शर्त है!

इतना कह भौजी ने मेरी आँखों में बड़े गौर से देखा और पूरे आत्मविश्वास से बोलीं;

भौजी: मुझसे अब ये दूरी नहीं सही जाती इसलिए कल की रात आप और मैं 'एक' होंगें!!

भौजी की बात मेरे लिए शर्त कम हुक्म ज्यादा थी!

मैं: यार मैंने आपसे पहले भी कहा था की....

मैं भौजी को समझाने को हुआ था की भौजी ने मेरी बात काट दी और बोलीं;

भौजी: मैं कुछ नहीं सुनुँगी! I need YOU!! Please!!! मैं जानती हूँ की आपको मेरी कितनी चिंता है, लेकिन हमारे पास जो चंद दिन बचे हैं उन्हें मैं आपके साथ जी भर कर जीना चाहती हूँ, क्या पता फिर मौका मिले न मिले!

भौजी हिम्मत हार चुकी थीं, उनके मन-मस्तिष्क में हमारे कल को ले कर सवाल खड़े हो गए थे! वो ये मान चुकीं थीं की पिताजी के गाँव से वापस आने के बाद ही भौजी और बच्चों को मुझसे अलग कर के हमेशा-हमेशा के लिए गाँव भेज देंगे!

मैं: जान ऐसा कुछ नहीं होगा!

मैंने भौजी को अपने सीने से लगाना चाहा मगर भौजी जानती थीं की मेरे सीने से लग कर वो पिघल जाएँगी और अपनी जिद्द छोड़ देंगी, इसलिए वो दो कदम पीछे हो गईं और गुस्से से बोलीं;

भौजी: क्या नहीं होगा? कैसे रोकोगे मुझे? क्या बहाना मारोगे?

भौजी के आँसूँ उनकी दहलीज पर आ गए और बारी-बारी बहने लगे!

मैं: बच्चों की पढ़ाई का वास्ता दे कर मैं आप तीनों को रोक लूँगा!

मैंने मेरे पास बचा एक मात्र रास्ता भौजी को बता दिया| लेकिन बच्चों का नाम सुन भौजी का गुस्सा और भड़क उठा;

भौजी: तो सिर्फ बच्चों को रोक लो न, मेरी क्या जर्रूरत है आपको? बस उनको प्यार देना याद रहता है आपको? उन्हें अपने सीने से लगाना अच्छा लगता है न आपको? वो मेरे बिना ख़ुशी-ख़ुशी आपके पास रुक जायेंगे, पाल लेना उन्हें प्यार से और खूब पढ़ाना-लिखाना! मुझे जाने दो...मरने दो!

भौजी रोते हुए बोलीं| भौजी की चुभती हुई बातें मेरे दिल को घाव कर गईं;

मैं: आपका दिमाग खराब हो गया है क्या जो अपनी बराबरी मेरे बच्चों से कर रही हो? बच्चों से प्यार एक तरफ है और आपसे प्यार दूसरी तरफ! जब मैं कभी आप में और बच्चों में भेद-भाव नहीं करता तो आप कैसे कर सकते हो? एक माँ हो कर अपने बच्चों से ईर्ष्या करते हो?!

मैंने भौजी को गुस्से से झिड़कते हुए कहा|

मैं: और एक बात बताओ, उपाए सुनना है न आपको तो भागोगे मेरे साथ?

मैंने तड़पते हुए कहा| मेरा सवाल सुन भौजी काँप गईं और अपना सर न में हिलाने लगीं|

मैं: मैं आपके जज्बात समझता हूँ, मगर मैं आपकी तरह हार नहीं मान सकता न? नहीं जाने दूँगा मैं आपको और बच्चों को कहीं, फिर चाहे मुझे धरती-आसमान एक ही क्यों न करना पड़े!

मैंने बड़े आत्मविश्वास से अपनी बात कही! लेकिन सच तो ये था की मुझे खुद नहीं पता था की मैं भौजी और बच्चों को कैसे रोकूँगा! मेरा आत्मविश्वास देख भौजी को कुछ तसल्ली हुई मगर उनकी जिद्द खत्म नहीं हुई;

भौजी: ठीक है! मगर मेरी शर्त आपको माननी ही होगी! Please!

भौजी हाथ जोड़ते हुए बोलीं| मैं इतना निर्दई नहीं था की अपनी प्रेमिका के प्रणय मिलन की विनती को मना कर दूँ!

मैं: ठीक है जान! लेकिन हमें precaution लेनी होगी इसलिए मैं कल condom ले आऊँगा|

Condom का नाम सुन भौजी एकदम से चिढ गईं और बोलीं;

भौजी: बिलकुल नहीं!!! इतने सालों बाद हम एक होंगे और आपको इस मधुर मिलन के समय rubber या latex, जो कुछ भी वो होता है उसे इस्तेमाल करना है? कतई नहीं! मैं परसों सुबह 'I-Pill' ले लूँगी| लेकिन आप मुझे अभी Promise करो की पिछलीबार की तरह आप भाग नहीं जाओगे?!

भौजी के I-pill लेने से मेरी चिंता कम हो गई थी इसलिए मैंने गहरी साँस छोड़ते हुए भौजी के आगे हार मान ली;

मैं: ठीक है बाबा I promise!

इतना सुनना था की भौजी एकदम से खुश हो गईं और बोलीं;

भौजी: Thank You जानू!!! I love you!

भौजी मेरे सीने से चिपक गईं|

मैं: I love you too जान!

मैंने भौजी को कस कर अपनी बाहों में समेटते हुए कहा|


जारी रहेगा भाग - 24 में...
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तेईसवाँ अध्याय: अभिलाषित प्रेम बन्धन
भाग - 24



अब तक आपने पढ़ा:




भौजी: ठीक है! मगर मेरी शर्त आपको माननी ही होगी! Please!

भौजी हाथ जोड़ते हुए बोलीं| मैं इतना निर्दई नहीं था की अपनी प्रेमिका के प्रणय मिलन की विनती को मना कर दूँ!

मैं: ठीक है जान! लेकिन हमें precaution लेनी होगी इसलिए मैं कल condom ले आऊँगा|

Condom का नाम सुन भौजी एकदम से चिढ गईं और बोलीं;

भौजी: बिलकुल नहीं!!! इतने सालों बाद हम एक होंगे और आपको इस मधुर मिलन के समय rubber या latex, जो कुछ भी वो होता है उसे इस्तेमाल करना है? कतई नहीं! मैं परसों सुबह 'I-Pill' ले लूँगी| लेकिन आप मुझे अभी Promise करो की पिछलीबार की तरह आप भाग नहीं जाओगे?!

भौजी के I-pill लेने से मेरी चिंता कम हो गई थी इसलिए मैंने गहरी साँस छोड़ते हुए भौजी के आगे हार मान ली;

मैं: ठीक है बाबा I promise!

इतना सुनना था की भौजी एकदम से खुश हो गईं और बोलीं;

भौजी: Thank You जानू!!! I love you!

भौजी मेरे सीने से चिपक गईं|

मैं: I love you too जान!

मैंने भौजी को कस कर अपनी बाहों में समेटते हुए कहा|




अब आगे:




भौजी से बात कर के मैं साइट पर पहुँचा और काम निपटाते हुए कल के दिन की सारी planning कर ली! रात में जब मैं घर पहुँचा तो मैंने बच्चों को आधा प्लान बता दिया जिसके अनुसार कल बच्चों को माँ के सामने जिद्द कर के अपने स्कूल से छुट्टी लेनी थी| लेकिन भौजी को मेरे प्लान के बारे में कुछ नहीं पता था| सुबह उठते ही दोनों बच्चे माँ (यानी अपनी दादी जी) की गोद में चढ़ गए और अपनी दादी से लाड करते हुए स्कूल की छुट्टी कर ली! मैं समय से पहले उठ कर जल्दी ही बिना कुछ खाये-पीये साइट पर निकल गया, माँ ने चाय पीने के लिए बहुत रोका पर मैंने काम का बहाना कर दिया| अब माँ को तो बता नहीं सकता था न की मैंने आज व्रत रखा है?! साइट पर मैंने लेबर को काम पर लगाया और आधा दिन होने से पहले ही उन्हें छुट्टी दे दी! ठीक बारह बजे मैं दिषु की गाडी भगाते हुए ले आया! लगभग महीना होने को आया था और दिषु की गाडी मैं ही घुमा रहा था| वो मेरे भाई समान था इसलिए कुछ नहीं कहता था, पेट्रोल मैं भरा देता था और उसकी गाडी का अच्छे से ध्यान भी रखता था, वैसे भी दिषु के पास उसकी बाइक तो थी ही!



पिताजी कल रात की गाडी पकड़ कर परसों लौटने वाले थे, उनके घर लौटने पर हमें पता चलने वाला था की गाँव में क्या हुआ है और उसका हमारी (मेरी और भौजी की) ज़िन्दगी पर क्या असर पड़ने वाला है?



खैर जब मैं घर पहुँचा तो भौजी पूजा के लिए बैल्कुल तैयार थीं| मुझे अचानक घर पर देख कर भौजी हैरान हुईं, वो कुछ पूछतीं उसके पहले ही मैंने उनसे माँ के बारे में पुछा| भौजी ने बताया की माँ पड़ोस में बाकी अंटियों और भाभियों के पास बैठी हैं, तथा भौजी को कह गईं हैं की वो बच्चों और मेरा खाना बना कर चार बजे तक कथा सुनने आ जाएँ| अब मैं तो खाना खाने वाला था नहीं इसलिए उन्होंने बच्चों के लिए खाना बना दिया था|

भौजी: चलो आप आ गये हो तो आप बच्चों का ध्यान रखो, मैं चली!

इतना कह भौजी जाने लगीं तो मैंने उनकी दाहिनी कलाई पकड़ ली;

मैं: ओ मैडम जी, आज ते पटाखा लगदेपय हो!

मैंने पंजाबी में भौजी की तारीफ की जिसे सुन भौजी खिखिलाकर हँस पड़ीं!

लाल साडी पहने हुए और जो थोड़ा बहुत साज-श्रृंगार उन्होंने किया था उसमें भौजी बहुत जच रहीं थीं!

भौजी: जाने दो न जानू!

भौजी झूठ- मूठ में अपनी कलाई छुड़ाने का नाटक करते हुए बोलीं|

मैं: कहाँ जा रहे हो?

मैंने उनकी कलाई तो नहीं छोड़ी अलबत्ता उन्हें खींच कर अपने गले जर्रूर लगा लिया!

भौजी: माँ के पास...कथा के लिए!

भौजी कसमसाते हुए बोलीं! वो तो भौजी का आज व्रत था इसलिए वो कसमसा रहीं थीं वरना अब तक तो वो कसकर मुझसे बेल की तरह लिपट चुकी होतीं!

मैं: कथा तो चार बजे है न?

मैंने पुछा तो भौजी सर हाँ में हिलाने लगी|

मैं: ठीक है, फिर अभी चलो मेरे साथ!

मैंने भौजी को हुक्म देते हुए कहा|

भौजी: कहाँ?

भौजी ने हैरान होते हुए पुछा|

मैं: पिक्चर देखने!

मैंने मुस्कुरा कर कहा, लेकिन भौजी की जान अटकी थी माँ के पास जाने में;

भौजी: और माँ?

मैं: उन्हें मैं फोन कर देता हूँ|

मैंने जेब से फ़ोन निकाला और माँ को कॉल किया;

मैं: माँ सुबह कुछ हुआ है क्या?

मैंने बात बनाते हुए कहा|

माँ: किसे?

माँ के सवाल के कारन मैं फँस गया की भौजी का नाम कैसे लूँ?

मैं: सुबह से मुँह बना कर घूम 'रहीं' हैं!

मैंने रहीं शब्द पर जोर डालते हुए कहा जिससे माँ को समझ आ गया की मैं भौजी की बात कर रहा हूँ|

माँ: कौन बहु न? पता नहीं बेटा अभी तक तो ठीक-ठाक थी!

माँ हैरान होते हुए बोलीं|

मैं: लगता है उनका मन उदास है! आप कहो तो उन्हें और बच्चों को पिक्चर ले जाऊँ?

मैंने बेखौफ पिक्चर जाने की बात कही, माँ ने भी कुछ नहीं कहा और इजाजत दे दी!

माँ: ठीक है बेटा, लेकिन बहु का ध्यान रखिओ!

मैं जानता था की माँ मना नहीं करेंगी, उनकी इजाजत मिलते है मैंने ख़ुशी-ख़ुशी; "जी" कहा और फ़ोन रख दिया|



भौजी जो पीछे खड़ी खामोशी से सब सुन रहीं थीं उन्हें मेरा माँ से झूठ बोलना अच्छा नहीं लगा;

भौजी: मेरा मन कहाँ उदास है, मैं तो खुश हूँ!

भौजी ने प्यार भरा गुस्सा दिखाते हुए पुछा|

मैं: अरे यार झूठ बोला, बस!

मैंने बात को हलके में लेते हुए कहा|

भौजी: क्यों बोला? माँ से जूठ मत बोला करो|

भौजी थोड़ा नाराज होते हुए बोलीं|

मैं: अच्छा बाबा, आज के बाद उनसे झूठ नहीं बोलूँगा|

मैंने कान पकड़ते हुए कहा| मेरे कान पकड़ने से भौजी हँस पड़ीं और दोनों बच्चों को तैयार होने के लिए कहने लगीं| लेकिन बच्चे तो पहले से ही तैयार थे, वो तो बस मेरे कमरे में बैठे खेल रहे थे, अपनी मम्मी की आवाज सुन दोनों बच्चे दौड़ते हुए बाहर आ गए| दोनों बच्चों को तैयार देख भौजी आस्चर्यचकित हो गईं और अपने होठों पर हाथ रखते हुए बोलीं;

भौजी: तो इन शैतानों को सब पहले से पता है?

भौजी की बात सुन बाप-बेटा-बेटी खिलखिलाकर हँस पड़े!

भौजी: मुझे कुछ मत बताना आप!

भौजी प्यार भरी शिकायत करते हुए बोलीं!

मैं: अजी देखते जाइये आज आपको और क्या-क्या surprises मिलते हैं!

मैंने अपनी डींग हाँकते हुए कहा और नेहा को आँख मारते हुए इशारा किया| नेहा ने एक पैकेट छुपा कर मुझे दे दिया, मैंने दोनों बच्चों और भौजी को आगे भेजा तथा मैं ताला बंद करने के बहाने पीछे-पीछे आया| गली के बाहर पहुँचते ही मैंने रिमोट से गाडी unlock की, दोनों बच्चे दौड़ते हुए पीछे की सीट पर बैठ गए और वो पैकेट नेहा ने फिर छुपा कर अपने पास रख लिया| भौजी बच्चों को आगे न बैठते देख हैरान थीं, उन्हें नहीं पता था की बच्चों को मैंने कल ही सब पीछे बैठने के लिए मना लिया है| अब मैंने भौजी के पास आ कर गाडी के आगे वाला बाएँ तरफ का दरवाजा खोला और भौजी को बैठने का इशारा किया! भौजी मेरी chivalry देख मुस्कुरा दीं और मुस्कुराते हुए बैठ गईं| मैं भी अपनी सीट पर बैठ गया और भौजी के नजदीक जाते हुए उनकी seat belt लगाई, मुझे अपने इतने नजदीक देख भौजी के दिल की धड़कन तेज हो गई! वो आसभरी आँखों से मुझे देखने लगीं, व्रत का ख्याल न होता तो मैं उनके थरथराते हुए गुलाबी होंठ जर्रूर चूम लेता! फिर भी मैंने भौजी के दिल की बात को गाने के रूप में गुनगुनाते हुए कह दिया;

"आप की निगाह ने कहा तो कुछ ज़रूर हैं,

मेरा दिल मचल गया तो मेरा क्या क़ुसूर हैं!" गाने की ये पंक्तियाँ भौजी के दिल का हाल और मेरी गुस्ताखी दोनों बयान कर रही थीं|

मैंने अपनी सीट बेल्ट पहनी, गाडी start की और सामने की ओर देखते हुए मुस्कुराने लगा| मुझे यूँ मुस्कुराते हुए देख भौजी को थोड़ा अचरज हुआ;

भौजी: क्या हुआ जानू?

भौजी अपनी प्यारी आवाज में बोलीं!

मैं: आज पहली बार गाड़ी की अगली सीट पर मेरे साथ कोई लड़की बैठी है|

मेरी बात सुन भौजी कुछ नहीं बोली बस होले से मुस्कुरा दीं| भौजी शर्म के मारे लाल हो गईं और उन्हें यूँ शर्म से लाल देख मेरा मन गाडी gear में डालने का ही नहीं कर रहा था!

आयुष: पापा जी जल्दी चलो वरना पिक्चर खत्म हो जाएगी!

आयुष खड़ा हुआ और आगे की तरफ झाँकते हुए बोला| आयुष की आवाज सुन मैं और भौजी अपनी सपनो की दुनिया से बाहर आये, उधर नेहा ने आयुष की टी-शर्ट पीछे खींचि और उसे सीट पर बिठाते हुए बोली;

नेहा: तुझे बड़ी जल्दी है? छत पर बाँध दें तुझे!

नेहा की बात सुन आयुष मुझसे शिकयत करने लगा;

आयुष: पापा जी देखो न, दीदी मुझे क्या कह रहीं हैं!

दोनों बच्चों की बातें सुन भौजी दबी आवाज में मुझसे बोलीं;

भौजी: पता नहीं कैसे संभालते हो आप इन दोनों को!

भौजी की बात सुन मैंने अपना फ़ोन आयुष को दिया और कहा;

मैं: बेटा पापा आपकी पिक्चर miss नहीं करवाएंगे, आप गेम खेलो और तब तक मैं गाडी चलाता हूँ!

आयुष शान्ति से मेरे फ़ोन में गेम खलेने लगा और नेहा खिड़की से बाहर देखने लगी! दोनों बच्चों के एकदम से शांत हो जाने से भौजी मेरी ओर देखते हुए बोलीं;

भौजी: अरे वाह! आप तो बहुत smart हो!

मैंने सर झुका कर उनकी तारीफ के लिए धन्यवाद कहा और गाडी mall की तरफ ले ली| Mall की parking में गाडी park कर मैंने नेहा से वो पैकेट ले कर भौजी को दिया;

भौजी: ये क्या है?

भौजी पैकेट को गौर से देखते हुए बोलीं|

मैं: Washroom जाओ और ये पहन कर आओ|

मैंने कहा तो भौजी ने जल्दी से पैकेट खोल कर देखा और मुझे देखते हुए प्यारभरे गुस्से से मुस्कुराने लगीं! पैकेट में वही top और jeans थी जो मैंने उस दिन भौजी के लिए खरीदी थी!

बीस मिनट बाद भौजी change कर के आईं तो वो उस रात की तरह पटाखा लग रहीं थीं| मैं आँखें फाड़े उन्हें देख ने लगा, आज भले ही उन्हीं दूसरी बार इन कपड़ों में देख रहा था लेकिन हैरानी आज भी हो रही थी! माँग में लाल सिन्दूर, दोनों हाथों में लाल-लाल चूड़ियाँ, बाल खुले और कमर तक लटके हुए! 'हाय!' मेरा दिल ठंडी आह लेते हुए बोला! मुझे यूँ ख़ामोशी से ठंडी आह भरते देख भौजी शर्माते हुए बोलीं;

भौजी: आपने पहले से सब सोच रखा था न?

मैं: हाँ जी!

मैंने अपने धड़कते दिल को काबू करते हुए मुस्कुरा कर कहा|

नेहा: मम्मी you looking beautiful!

अपनी बेटी के मुँह से अपनी तारीफ सुन भौजी शर्मा गईं! इतने में आयुष ने अपनी मम्मी का हाथ पकड़ के उन्हें अपनी height के level तक झुकाया और अपनी मम्मी के दाएँ गाल की पप्पी लेते हुए बोला;

आयुष: SUPERB!

आयुष को बस एक शब्द आता था और वो उसी को दोहराता था! :laugh:

भौजी: Awwwwwww!!!

इतना कह भौजी ने आयुष को गले लगा लिया! भौजी शर्मा कर लाल हुई जा रहीं थीं इसलिए उन्हें शर्म से बचाने के लिए मैंने बच्चों का ध्यान फिर से पिक्चर की तरफ मोड़ दिया;

मैं: तो पिक्चर चलें?

भौजी ने हाँ में सर हिलाया और मेरा हाथ पकड़ कर theatre की ओर चल पड़ीं! आस-पास मौजूद जितने लड़के थे सब भौजी को ही देख रहे थे तथा हमें couple समझ रहे थे शायद इसलिए भी क्योंकि मैंने दाढ़ी बढ़ा रखी थी और मैं लगभग भौजी की उम्र का ही लग रहा था|



Auditorium में हमारी seats last row में सबसे कोने की थी, हम अपनी seats पर कुछ इस order में बैठे: सबसे पहले मैं, फिर भौजी, फिर आयुष और अंत में नेहा| लेकिन बच्चे अकेले नहीं बैठना चाहते थे, उन्हें मेरे और भौजी के बीच में बैठना था! भौजी ने मेरी रणनीति अपनाते हुए बच्चों को खाने-पीने का लालच देते हुए समझाया, बच्चे मान गए और थोड़ी देर के लिए शांत बैठ गए| अभी screen पर ads चल रही थीं और इधर भौजी ने मेरे दाएँ कँधे को अपना तकिया बनाते हुए अपना सर उस पर टिका दिया| पिक्चर शुरू हुई और दोनों बच्चों ने उथल-पुथल मचानी शुरू कर दी क्योंकि दोनों को मेरी गोदी में बैठना था, इसलिए मैंने हमारी seats का order फिर change कर दिया: पहले नेहा, फिर आयुष, फिर मैं और अंत में भौजी| भौजी की बगल वाली सीट पर एक आंटी बैठी थीं, इसलिए भौजी अब मेरे साथ मस्ती नहीं कर सकती थीं!

मैं: क्या हुआ जान? अब क्यों नहीं सर रख रहे मेरे कँधे पर?

मैंने खुसफुसाते हुए कहा|

भौजी: बगल में आंटी बैठीं हैं!

भौजी ने चुपके से आंटी की तरफ इशारा करते हुए कहा|

मैं: तो? डर लग रहा है?

मैंने भौजी की टाँग खींचते हुए कहा|

भौजी: नहीं तो!

भौजी खुद को बहदुर साबित करना चाहतीं थीं इसलिए उन्होंने अपनी झूठी अकड़ दिखाते हुए कहा| भौजी ने थोड़ी हिम्मत दिखाई और वापस मेरे कँधे पर सर रख के इत्मीनान से बैठ गईं| आयुष मेरी बगल में बैठा था और बड़े चाव से पिक्चर देख रहा था, नेहा अकेला महसूस न करे इसलिए मेरा बायाँ हाथ आयुष के पीछे से होता हुआ नेहा के सर पर था| पिक्चर शुरू हो चुकी थी और इधर भौजी की मस्तियाँ भी शुरू हो चुकी थीं| भौजी का ध्यान पिक्चर में तो था नहीं, उन्हें तो मेरे साथ दिल्लगी करनी थी इसलिए उन्होंने मेरे दाहिने कान की लौ को दाँत से काट लिया! मैंने गर्दन टेढ़ी कर के अपने कान को भौजी के होठों से दूर किया, भौजी ने अपने बाएँ हाथ को मेरी पीठ से ले जाते हुए मेरा बायाँ कंधा पकड़ कर अपनी तरफ खींच लिया, अपने नजदीक पाते ही भौजी ने मेरे दाहिने गाल को होले से चूम लिया! मेरे चेहरे पर हलकी दाढ़ी थी इसलिए भौजी को उतना मजा नहीं आया जो पहले मेरे नंगे गाल को चूमते हुए आता था, इसलिए भौजी ने धड़ाधड़ मेरे दाहिने गाल को चूमना शुरू कर दिया!

अब मन तो मेरा भी कर रहा था की मैं भी भौजी की मस्तियों का जवाब दूँ मगर बगल में बैठीं आंटी मुझे मस्ती करते हुए बड़े आराम से देख सकती थीं इसलिए मन मार कर चुप-चाप बैठा रहा! जब मैंने कोई प्रतिरोध नहीं किया तो भौजी ने मेरा दाईं हथेली अपने दोनों हाथों में जकड़ ली और मुझे kiss करते हुए मेरी दाएँ हथेली को मींजने लगी! भौजी के शरीर की गर्मी उनकी हथेली से निकलते हुए मेरे जिस्म में आग भड़काने लगी थी, मैंने भी थोड़ी पहल करते हुए भौजी की हथेली को मींजने लगा!

भौजी: जानू, आप नहीं करोगे मुझे kiss?

भौजी मुझे छेड़ते हुए बोलीं|

मैं: आंटी जी ने देख लिया न तो शोर मचा देंगी की देखो ये लड़का-लड़की खुले में चुम्मा-चाटी कर रहे हैं!

मैंने मजाक करते हुए कहा तो भौजी खिलखिलाकर हँसने लगीं!



थोड़ी देर में interval हुआ तो मैं तीनों को लेके बाहर आ गया, बच्चों को एक जगह बिठा कर भौजी का हाथ पकड़ कर popcorn खरीदने वाली line में लग गया|

भौजी: अपने और बच्चों के लिए ही लेना, मैं नहीं खा सकती!

भौजी मुझे आगाह करते हुए बोलीं|

मैं: मैं सिर्फ बच्चों के लिए ही लेने के लिए लाइन में लगा हूँ|

मैंने भौजी को अपने व्रत की याद दिलाई|

भौजी: पर....

भौजी कुछ कहने को हुईं थीं, लेकिन मेरे चेहरे पर आई थोड़ी सी शिकन को देख कर बोलीं;

भौजी: ठीक है बाबा!

हमारा नंबर आ गया था, मैंने बच्चों के लिए दो medium caramel popcorn लिए और साथ में दो coke! जब पेमेंट की बारी आई तो मैंने भौजी की तरफ देखा, शुक्र है की भौजी मेरा debit card लाना नहीं भूलीं थीं, उन्होंने फ़ट से मुझे debit card दिया, मगर मैंने कार्ड नहीं लिया और उनसे बोला; "आप pay करो!" Card से payment करने के नाम से भौजी घबरा गईं और न में सर हिलाने लगीं! भौजी की झिझक जायज थी मगर मैंने भी आज के दिन उन्हें debit card चलाना सीखाना था! मैंने उनका हाथ पकड़ कर machine में card swipe करवाया और फिर उन्हें PIN नंबर डालने को कहा| भौजी PIN नंबर machine में enter करने से डर रहीं थीं इसलिए उन्होंने 2 बार PIN गलत डाल दिया! चूँकि हमें 3-4 मिनट हो चुके थे इसलिए मैंने पीछे मुड़ कर देखा तो वही आंटी जी खड़ीं थीं| "Sorry आंटी जी, आज इनका first time है!" मैंने कहा तो वो मुस्कुराते हुए बोलीं; "कोई बात नहीं बेटा!" आखिरकर भौजी ने इस बार सही से ATM PIN नंबर डाला और payment हो गई! पहली बार खुद से कुछ सामान खरीद कर भौजी बहुत उत्साहित हुईं और मुस्कुराते हुए मुझे "thank you जानू" बोलीं!

Interval खत्म हुआ और हम चारों अपनी-अपनी जगह बैठ गए, बच्चे popcorn और coke पीते हुए पिक्चर देखने लगे| इधर भौजी ने फिर अपनी मस्तियाँ शुरू कर दी, अब आंटी जी की शर्म के मारे मैं कुछ कर नहीं सकता था तो भौजी इसका पूरा फायदा उठाने में लगी थीं| कभी मेरे दाहिने कान को काट लेतीं, कभी कान की लौ अपने मुँह में भर के चूसने लगतीं! उन्होंने हद्द तो तब पार की जब उन्होंने मेरे outer ear में जीभ से गुदगुदी की और मैं एकदम से सिंहर उठा और खुद को भौजी की पकड़ से थोड़ा दूर किया| इतने में आयुष ने मुझे popcorn का एक टुकड़ा खिलाना चाहा तो मैंने सर न में हिला कर उसे प्यार से मना कर दिया|

भौजी: जानू, देखो न कितने प्यार से खिला रहा है?! खा लो ना!

भौजी प्यार से बोलीं|

मैं: नहीं जान!

ये कहते हुए मैंने आयुष के सर को चूम लिया|



खेर पिक्चर खत्म हुई और हम जल्दी से घर पहुँचे, भौजी फटाफट नहा धोके तैयार हुईं और कथा के लिए समय से पहुँच गईं| मैं और बच्चे घर पर अकेले थे, मैंने दोनों बच्चों को computer पर गेम लग दी तथा मैं कल के काम के लिए बेलदार और लेबर से बात करने लगा| पूजा के बाद माँ और भौजी घर आ गये, माँ पिताजी से फोन पर बात करने लगीं जिसकी भनक फिलहाल किसी को नहीं थी! उधर मैं बेसब्री से चाँद दिखने का इन्तेजार करने लगा, इसलिए नहीं की मैं भूखा था बल्कि इसलिए की मेरा प्यार सुबह से भूखा-प्यासा था; पेट से भी और दिल से भी! मैं, आयुष और नेहा को लेके छत पर डेरा डाल के बैठ गया, बच्चे तो आपस में पकड़ा-पकड़ी खेलने लगे पर मेरी आँखें चाँद का दीदार करने को तरस रहीं थीं! थोड़ी देर में माँ और भौजी भी ऊपर छत पर आ गए और मुझे आसमान में टकटकी लगाए देखता पा कर माँ हँसते हुए बोलीं;

माँ: बेटा हमसे ज्यादा बेसब्र तो तू है, निकल आएगा चाँद इतना क्यों परेशान हो रहा है?

अब माँ क्या जाने की मैं किसके लिए परेशान हो रहा हूँ?!

मैं: परेशान नहीं हूँ माँ, उम्मीद लगाये बैठा हूँ की चाँद जल्दी निकल आये|

मैंने बिना माँ की तरफ देखे कहा| माँ और भौजी छत पर पड़ी कुर्सियों पर बैठ गए तथा मैं टंकी पर चढ़ कर चाँद को काले आसमान में ढूढ़ने लगा| मुझे टंकी पर चढ़ा देख भौजी को मेरी चिंता हुई और उन्होंने माँ से मेरी शिकायत कर दी;

भौजी: माँ देखो न कहाँ चढ़ गए हैं?

माँ: मानु नीचे आजा बेटा वरना चोट लग जाएगी|

माँ ने मुझे छोटे बच्चे की तरह डाँटते हुए कहा| आप जितना भी बड़े हो जाओ माँ के लिए हमेशा छोटे से बच्चे रहोगे!

मैं: आ रहा हूँ माँ|

इतना कह मैंने एक आखरी बार आसमान में चाँद को ढूँढा तो वो आखिरकर नजर आ ही गया| चाँद दिखते ही मैं जोर से चिलाया; "चाँद निकल आया|" मेरा उत्साह देख भौजी मुस्कुरा दी|



अब चूँकि पिताजी नहीं थे तो माँ को उनके बिना ही पूजा करनी थी, वहीं माँ की नजर में चन्दर के न होने पर भौजी को भी उनकी तरह अकेले पूजा करनी थी| अब भौजी चाहती थीं की उनकी पूजा मेरे साथ हो और ये माँ के सामने होना नामुमकिन था, इसलिए भौजी चुप-चाप थाली लेके खड़ी थी जबकि माँ ने पूजा शुरू कर दी थी| मैं जानता था की मेरे बिना भौजी पूजा शुरू नहीं करेंगी इसलिए मैंने नेहा को इशारे से अपने पास बुलाया और उसके कान में फुसफुसाया;

मैं: बेटा मेरा एक काम करोगे?

नेहा: जी पापा जी!

नेहा मुस्कुराते हुए बोली|

मैं: बेटा आप दादी को किसी बहाने से नीचे ले जाओगे?

इतना सुनना था की नेहा हाँ में सर हिलाते हुए बोली;

नेहा: ठीक है पापा जी!

नेहा माँ की ओर चल दी और मैं अपना फ़ोन निकाल कर झूठ-मूठ का दिखावा करते हुए बात करने लगा|

नेहा: दादी जी, मेरा कार्टून टी.वी. पर शुरू हो गया है! नीचे चलो न!

नेहा ने प्यार से मुँह बनाते हुए कहा|

माँ: बेटा आपकी मम्मी पूजा कर लें फिर हम सब चलते हैं|

माँ ने नेहा के सर पर हाथ रखते हुए कहा|

माँ: बहु तू खड़ी क्यों है, चल जल्दी से पूजा कर!

माँ की बात सुन भौजी घबरा गईं, उन्हें लगा की उन्हें मेरे बिना पूजा करनी होगी! भौजी ने माँ की चोरी मुझे देखा और मुझसे मूक विनती करने लगीं की मैं कोई रास्ता निकालूँ! मैंने भौजी को हाथ का इशारा कर शांत रहने का इशारा किया, मेरा इशारा पाते ही भौजी ने पूजा शुरू करने की तैयारी करने का ड्रामा शुरू कर दिया| इधर नेहा ने अपनी दादी से जिद्द पकड़ ली;

नेहा: दादी जी, please!

नेहा की देखा देखि आयुष भी अपनी बहन के साथ हो लिया;

आयुष: हाँ दादी जी मेरा कार्टून!

दोनों बच्चों की जिद्द देख माँ मुझसे बोलीं;

माँ: मानु ले जा बच्चों को नीचे और टी.वी. दिखा दे!

मैं: माँ कल लेबर आने से मना कर रही है, अगर कल लेबर नहीं आई तो सारा काम ठप्प हो जायेगा, प्लीज बात करने दो!

मैंने परेशान से शक्ल बना कर कहा| उधर दोनों बच्चों ने; “कार्टून देखना है -कार्टून देखना है” कह कर कूदना शुरू कर दिया|

माँ: अच्छा बाबा, चलो मैं तुम लोगों को पहले टी.वी ही दिखा दूँ|

माँ ने दोनों बच्चों का हाथ पकड़ा और नीचे चली गईं|



माँ बच्चों के साथ नीचे गईं तो भौजी के चेहरे पर वही रौनक, वही ख़ुशी लौट आई जो सुबह उनके चेहरे पर थी! मैं हाथ बाँधे भौजी के सामने खड़ा हो गया और मुस्कुराते हुए उन्हें देखने लगा! भौजी ने सच्चे मन से पूजा शुरू कर दी, पूजा सम्पन्न होने के बाद भौजी ने ने मेरे पाँव छुए और मैंने उनके सर पर हाथ रख कर उन्हें आशीर्वाद दिया तथा अपने गले लगा लिया| मेरे गले लगते ही भौजी की आँखों से आँसूँ छलक आये और मेरी कमीज भिगोने लगे!

मैं: Hey! जान मैं हूँ तो सही आपके पास, फिर आपकी आँखें क्यों भर आईं?

मैंने भौजी के सर पर हाथ फेरते हुए उन्हें पुचकारा|

भौजी: आज मेरी बरसों की एक मुराद पूरी हो गई, इसलिए आँखें छलक आईं!

मैंने भौजी का सर चूमा और उन्हें अपने सीने से अलग करते हुए बोला;

मैं: अच्छा बाबा! चलो अब आपका व्रत खुलवायें! चलो मेरे हाथ से पानी पीओ|

ये कहते हुए मैंने भौजी को अपने हाथ से पानी पिला कर उनका व्रत खुलवाया| फिर भौजी ने मुझे अपने हाथ से पानी पिला कर मेरा व्रत खुलवाया| पूजा-पाठ हो गया तो अब मौका था romantic होने का;

मैं: आँखें बंद करो!

आँखें बंद करने को कहा तो भौजी ने हैरान होते हुए अपनी आँखें और बड़ी कर ली;

भौजी: क्यों?

मैं: अरे यार मैंने आँखें बंद करने को कहा है आँखें बड़ी करने को नहीं|

भौजी ने कुछ सोचते हुए आँखें बंद की| मैं धीरे से भौजी के पीछे जा कर खड़ा हो गया, अपनी जेब से मैंने सोने का मंगलसूत्र निकाला और भौजी को पहना दिया| भौजी को अपने पीछे मेरी मौजूदगी का एहसास होते ही उन्होंने फटाफट आँख खोल दी| आँख खुलते ही भौजी ने अपने गले में पड़े सोने के मंगलसूत्र को देखा और आँखें बड़ी करते हुए बोलना चाहा;

भौजी: ये......आप....प्....

मैं: Hey जान! गाँव में मेरे पास पैसे नहीं थे तो आपको चाँदी का मंगलसूत्र पहनाया था, अब पैसे कमा रहा हूँ तो सोचा सोने का पहना दूँ!

मैंने भौजी के माथे को चूमते हुए कहा| अब अगर भौजी पैसे को लेकर मुझे कुछ कहतीं तो मैं उनपर बरस पड़ता इसलिए भौजी ने कुछ नहीं कहा और मुस्कुराते हुए बोलीं;

भौजी: I love you जानू!

मैं: I love you too जान!

मैंने भौजी को कस कर अपने गले लगा लिया|



हम दोनों मियाँ-बीवी नीचे आ गए और खाना खा के सोने की बारी आ गई| बच्चे रोज की तरह मेरे साथ मेरे कमरे में सोना चाहते थे;

मैं: बेटा आज न आप मेरे और अपनी मम्मी के साथ सोओगे!

बच्चों को अपने मम्मी-पापा के साथ में सोने का मौका मिला तो दोंनो ख़ुशी-ख़ुशी मान गए| मैं दोनों बच्चों को ले कर भौजी वाले कमरे में पहुँचा, मैं और भौजी अगल-बगल लेट गए तथा बच्चे हमारे बीचे में| मैंने बच्चों को प्यारी-प्यारी कहानी सुनाई और दोनों मेरी तरफ करवट ले कर सो गए! बच्चों के सोने के बाद मैंने खुद को उनकी पकड़ से छुड़ाया और बिस्तर से उठ गया| कमरे के दरवाजे पर पहुँच कर मैं रुका और भौजी की तरफ मुड़ते हुए बोला;

मैं: रात बारह बजे!

मैंने भौजी की आँख मारते हुए कहा| मुझे आगे कुछ बोलने की जर्रूरत नहीं पड़ी क्योंकि भौजी मेरा इशारा समझ चुकीं थीं!





जारी रहेगा भाग - 25 में...
prem puran update bhai
bahut badhiya vart puran kiya bhouji ne
 

Ajay

Well-Known Member
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218
तेईसवाँ अध्याय: अभिलाषित प्रेम बन्धन
भाग - 28



अब तक आपने पढ़ा:


भौजी पीछे चुपचाप खड़ीं हमारी बातें सुन रहीं थीं, नजाने उन्हें क्या सूझी की वो मेरे बच्चों को पैसे देने की बात पर टोकते हुए बोलीं;

भौजी: क्यों आदत बिगाड़ रहे हो इनकी?

कोई और दिन होता तो मैं भौजी को सुना देता पर इस समय मैं बहुत भावुक था, इसलिए मैंने उन्हें बड़े इत्मीनान से जवाब दिया;

मैं: बिगाड़ नहीं रहा, बचत करना सीखा रहा हूँ! मैंने भी बचत करना अपने बचपन से सीखा था और अब मेरे बच्चे भी सीखेंगे! मुझे मेरे बच्चों पर पूरा भरोसा है की वो पैसे कभी बर्बाद नहीं करेंगे! नहीं करोगे न बच्चों?

मैंने दोनों बच्चों से सवाल पुछा तो दोनों आ कर मेरे गले लग गए और एक साथ बोले; "कभी नहीं पापा जी!" भौजी ये प्यार देख कर मुस्कुराने लगीं| अब चूँकि भौजी ने बच्चों के ऊपर सवाल उठाया था इसलिए दोनों बच्चे अपनी मम्मी को जीभ चिढ़ाने लगे! बच्चों के जीभ चिढ़ाने से भौजी को मिर्ची लगी और वो हँसते हुए बोलीं;

भौजी: शैतानों इधर आओ! कहाँ भाग रहे हो?

बच्चे अपनी मम्मी को चिढ़ाने के लिए कमरे में इधर-उधर भागने लगे, भौजी उनके पीछे भागने को हुईं तो मैंने उनकी कलाई थाम ली और खींच कर अपने पास बिठा लिया|


अब आगे:

मैं: बैठो मेरे पास और बताओ की अब कैसा महसूस कर रहे हो?

मैंने भौजी का हाथ अपने हाथ में लिए हुए पुछा|

भौजी: ऐसा लग रहा है जैसे प्राण आपके पास रह गए हों और ये खोखला शरीर मेरे पास रह गया!

भौजी को अपने दिल की बात कहनी थी पर वो अपनी भावनाओ में बहते हुए कुछ ज्यादा कह गईं जिससे मुझे हँसी आ गई! :laugh:

मैं: ओह! ये कुछ ज्यादा नहीं हो गया?

मैंने हँसते हुए बोला|

भौजी: न!

भौजी भी हँसते हुए बोलीं तथा अपना हाथ मेरे हाथ से छुड़ा कर अपनी बाँहों का हार बनाकर मेरी गर्दन में डाल दिया| भौजी का हाथ मेरे कँधे से छुआ तो मेरी आह निकल गई;

मैं: आह!

मेरी आह सुन भौजी परेशान हो गईं;

भौजी: क्या हुआ?

भौजी ने भोयें सिकोड़ कर पुछा|

मैं: कुछ नहीं!

मैंने बात को तूल न देते हुए कहा, लेकिन भौजी को चैन तो पड़ने वाला था नहीं इसलिए उन्होंने फ़ौरन मेरी टी-शर्ट का कालर मेरे कँधे तक खींचा तो उन्हें कल रात वाले अपने दाँतों के निशान दिखाई दिए! मेरा कन्धा उतने हिस्से में काला पड़ चूका था, भौजी अपने होठों पर हाथ रखते हुए बोलीं;

भौजी: हाय राम! ये मैंने.....!

इतना कह भौजी एकदम से दवाई लेने जाने लगीं, लेकिन मैंने उन्हें उठने नहीं दिया;

मैं: ये ठीक हो जायेगा! आप ये लो....

ये कहते हुए मैंने भौजी की तरफ i-pill का पत्ता बढ़ाया| उस i-pill के पत्ते को देख भौजी की आँखें बड़ी हो गईं, एक पल के लिए भौजी की आँखों में डर पनपा लेकिन फिर अगले ही पल उनकी आँखों में मुझे दृढ निस्चय नजर आने लगा!

भौजी: I wanna conceive this baby!

भौजी की दृढ निस्चय से भरी बात सुन कर मेरी हालत ऐसी थी की न साँस आ रहा था ओर न जा रहा था, मैं तो बस आँखें फाड़े उन्हें देख रहा था! अगले कुछ सेकंड तक मैं बस भौजी के कहे शब्दों को सोच रहा था, जितना मैं उन शब्दों को अपने दिमाग में दोहराता, उतना ही गुस्सा मेरे दिमाग पर चढ़ने लगता! वहीं भौजी का आत्मविश्वास देख मेरे दिमाग में शक का बीज बोआ जा चूका था;

मैं: तो आपने ये सब पहले से plan कर रखा था न, इसीलिए आपने मुझे कल रात condom use नहीं करने दिया न?

मैंने अपना शक जताते हुए पुछा तो भौजी ने अपना गुनाह कबूल करते हुए मुजरिम की तरह सर झुका लिया!

मैं: मैं आपसे कुछ पूछ रहा हूँ, answer me!!!

मैंने भौजी से सख्ती से पुछा, पर अपना गुस्सा उन पर नहीं निकाला था| मेरी सख्ती देख भौजी ने हाँ में सर हिला कर अपना जवाब दिया| ‘FUCK’ मैं अपने मन में चीखा! मैंने भौजी से इतनी चालाकी की कभी उम्मीद नहीं की थी और इसीलिए मुझे खुद पर गुस्सा आ रहा था! मैंने अपने सर पर हाथ रखा और गुस्से से उठ के खड़ा हो गया! गुस्सा मेरे अंदर भर चूका था और बाहर आने को मचल रहा था| मैं अपने इस गुस्से को दबाना चाहता था इसलिए मैंने अपना गुस्सा दबाने के लिए कमरे में एक कोने से दूसरे कोने तक तेजी से चलने लगा|



ये समझ लो शोले फिल्म के गब्बर और सांभा का दृश्य था, मैं गब्बर की तरह चल रहा था और भौजी सांभा की तरह सर झुकाये बैठीं थीं!



इधर मेरा गुस्सा इतना था की एक बार को तो मन किया की भौजी को जी भर के डाँट लगाऊँ, मगर उनकी तबियत का ख्याल कर मैंने अपना गुस्सा शांत करना शुरू किया और उन्हें इत्मीनान से बात समझाने की सोची| मुझे पूरा भरोसा था की मैं भौजी को सारे तथ्य समझा दूँगा और उन्हें मना भी लूँगा!

मैं: चलो एक पल के लिए मैं आपकी बात मान लेता हूँ की आप मेरे बच्चे की माँ बनना चाहते हो और आपको ये बच्चा चाहिए मगर मुझे ये बताओ की आप सब से कहोगे क्या? बड़की अम्मा, माँ, पिताजी, बड़के दादा और हाँ चन्दर... उस साले से क्या कहोगे?

मैंने भौजी की ओर मुँह करते हुए अपने हाथ बढ़ते हुए कहा, मगर भौजी खामोश रहीं और कुछ नहीं बोलीं|

मैं: चन्दर कहेगा की मैंने तुम्हें (भौजी को) पाँच सालों से छुआ तक नहीं तो ये बच्चा कहाँ से आया? बोलो है कोई जवाब?

मैं जानता था की इस सवाल का जवाब भौजी क्या देंगीं, इसलिए मैंने उनके कुछ कहने से पहले ही उनके जवाब को सवाल बना दिया;

या फिर इस बार भी आप यही कहोगे की शराब पी कर उसने (चन्दर ने) आपके साथ जबरदस्ती की?

अब भौजी के पास मेरे सवालों का कोई जवाब नहीं था, इसलिए वो बस सर झुकाये बैठी रहीं!

मैं: बताओ क्या जवाब दोगे?

मुझे पता था की भौजी के पास मेरे इन सवालों का कोई जवाब नहीं होगा, लेकिन तभी भौजी ने रोते हुए अपनी बात कही;

भौजी: मैं ...नहीं जानती...मैं क्या जवाब दूँगी! मैं बस ये बच्चा चाहती हूँ....आप मुझे ये गोली लेने को कह रहे हो...पर अंदर ही अंदर ये बात मुझे काट रही है! मैं....मैं ये नहीं कर सकती....

शुक्र है की बच्चे बाहर बैठक में माँ के पास बैठे खेल रहे थे, वरना अपनी मम्मी को यूँ रोता हुआ देख वो भी परेशान हो जाते| इधर भौजी की कही बात बिना सर-पैर की थी, उसमें कोई तर्क नहीं था मगर फिर भी मैं उनकी बातों में आ गया और उन्हें प्यार से समझाने लगा| मैं भौजी के सामने अपने दोनों घुटने टेक कर बैठ गया;

मैं: Hey!!! Listen to me, अभी बच्चा आपकी कोख में नहीं आया है! आप उसकी हत्या नहीं कर रहे हो! अभी 24 घंटे भी नहीं हुए हैं this pill....its completely safe! कुछ नहीं होगा, all you've to do is take this pill ...and that's it!

भौजी: मेरा मन नहीं मान रहा इसके लिए! पाँच साल पहले जब मैंने आपको फोन किया था तब भी मेरा मन नहीं मान रहा था! मैंने अपना मन मार के आपको फोन किया और आप देख सकते हो की उसका नतीजा क्या हुआ? मेरे एक गलत फैसले ने आपको आपके ही बेटे, आपके अपने खून से दूर कर दिया! आपको बाप बनने का मैंने कोई सुख नहीं दिया, आप कभी आयुष को अपनी गोद में खिला नहीं पाये, उसे वो प्यार नहीं दे पाये जो आप उसे देना चाहते थे, यहाँ तक बेचारी नेहा भी आपके प्यार से वंचित रही! आज जब आयुष आपके सामने आता है तो मुझे बड़ी खेज होती है की मैंने बिना आपसे पूछे आप से वो खुशियाँ छीन ली!

इतना कह भौजी अपने पेट पर हाथ रखते हुए बोलीं;

भौजी: हमारा ये बच्चा आपको बाप बनने का सुख देगा! आप हमारे इस बच्चे को अपनी गोद में खिलाओगे, उसे प्यार करोगे, उसे कहानी सुनाओगे, उसे वो सारी बातें सिखाओगे जो आप आयुष को सिखाना चाहते थे|

भौजी के मुँह से सच सुन कर मैं हैरान था, मैंने ये कभी उम्मीद नहीं की थी की मुझे आयुष से दूर रखने के लिए वो अब भी खुद को दोषी समझतीं हैं!

मैं: जान ऐसा नहीं है! मैं आयुष से बहुत प्यार करता हूँ! मेरी जगह आपने उसे वो संस्कार दिए हैं जो मैं देता! फिर उसके बड़े होने से मेरे प्यार में कोई कमी नहीं आई! हमारे (भौजी और मेरे) बीच जो हुआ वो past था, आप क्यों उसके चक्कर में हमारा present ख़राब करने पर तुले हो!

मैंने भौजी के आगे हाथ जोड़ते हुए कहा, लेकिन भौजी ने पलट कर मेरे आगे हाथ जोड़ दिए;

भौजी: Please...मैं आपके आगे हाथ जोड़ती हूँ...मुझे ये पाप करने को मत कहो...मैं अपना मन नहीं मार सकती!

भौजी रोते हुए विनती करने लगीं| अब सब बातें साफ़ थीं, मेरी किसी भी बात कर असर भौजी पर नहीं पड़ने वाला था इसलिए मैं गुस्से से उठा और अपना सारा गुस्सा उस i-pill के पत्ते पर निकलते हुए उसे तोड़-मोड़ कर तहस-नहस कर भौजी के सामने कूड़ेदान में खींच कर दे मारा!

मैं: FINE!

मैंने गुस्से से कहा और ताज़ी हवा खाने के लिए छत पर आ गया| गुस्सा सर पर चढ़ा था इसलिए मैं टंकी पर जा चढ़ा, रात होने लगी थी और केवल ठंडी हवा मेरा दिमाग शांत कर सकती थी!



भौजी की बातों ने मेरे मन में अपने बच्चे को गोद में खिलाने की लालसा जगा दी थी, लेकिन ये सम्भव नहीं था! भौजी की pregnancy पूरे परिवार की नजरें हम दोनों (मेरे और भौजी) पर ले आतीं और हम दोनों आकर्षण का केंद्र बन जाते! अगर भौजी कुछ झूठ बोल कर अपनी pregnancy को चन्दर के सर मढ़ भी देतीं तो मेरे बच्चे को चन्दर का नाम मिलता, न की मेरा! जबकि इस बच्चे को मैं अपना नाम देना चाहता था! मैं चाहता था की ये बच्चा मुझे पापा कहे न की चन्दर को! “मैं उसे अपनी गोद में खिलाऊँगा, वो मुझे पापा कहेगा, मेरी ऊँगली पकड़ कर चलेगा और मैं ही उसे अपना नाम दूँगा!” मैं अपनी सनक में बड़बड़ाया! मुझ पर अपने बच्चे को पाने का जूनून सवार हो चूका था, ये ही वो बिंदु था जहाँ से हमारे (भौजी और मेरे) रिश्ते की नई शुरुआत हो सकती थी! ये बच्चा मेरी जिंदगी को ठहराव देने वाला था और इस ठहराव के लिए मैं मोर्चा सँभालने को तैयार था!

मैंने फैसला ले लिया था, अब इस फैसले पर सख्ती से अम्ल करना था! चाहे जो हो जाए मैं इस बार हार नहीं मानने वाला था! अब दुनिया की कोई दिवार मुझे नहीं रोक सकती थी, मेरे सामने मेरा लक्ष्य था और मुझे अपना लक्ष्य पाना था!



करीब एक घंटे बाद भौजी छत पर आईं और "जानू...जानू" पुकारते हुए मुझे छत पर ढूँढने लगीं! मैं चूँकि टंकी पर चुपचाप बैठा था इसलिए भौजी मुझे देख नहीं पाईं! मैं धीरे से दबे पाँव नीचे उतरा और भौजी को पीछे से अपनी बाहों में जकड़ लिया, अगले पल मैंने भौजी को झटके से अपनी तरफ घुमाया और उनकी आँखों में आँखें डालते हुए बोला;

मैं: Marry me!

मेरी आवाज में आत्मविश्वास था और मेरा ये आत्मविश्वास देख कर भौजी की आँखें फटी की फटी रह गईं| भौजी इस वक़्त वैसा ही महसूस कर रहीं थीं जैसा मैंने किया था जब भौजी ने मुझसे हमारा बच्चा conceive करने की बात कही थी!

भौजी: क्या?

भौजी को अपने कानों पर विश्वास नहीं हो रहा था!

मैं: I said ‘Marry Me! Its the only way, we both can be happy!

मैंने अपनी बात थोड़ा विस्तार से बताई, मगर मेरी बात सुन कर भौजी न में गर्दन हिलाने लगीं और रुँधे गले से बोलीं;

भौजी: No…we can’t!

मैं: मैं आपके सामने कोई शर्त नहीं रख रहूँ, अब मुझे भी ये बच्चा चाहिए पर मैं चाहता हूँ की ये बच्चा मुझे सब के सामने पापा कह सके, न की आयुष और नेहा की तरह छुपते-छुपाते पापा कहे! गाँव में जब आपने माँ बनने की माँग रखी थी तब मैंने हमारे बच्चे से कोई उम्मीद नहीं रखी थी, मैंने नहीं चाहा था की वो मुझे पापा कहे मगर इस बार मैं चाहता हूँ की हमारा बच्चा मुझे बेख़ौफ़ पापा कहे!

मेरी भावुक बात सुन भौजी की आँखें भर आईं थीं, वो एक बाप के दर्द को महसूस कर रहीं थीं लेकिन वो ये भी जानतीं थीं की ये मुमकिन नहीं है, तभी तो वो न में सर हिला रहीं थीं!

मैं: जान जरा सोचो! हम दोनों एक नई शुरुआत करेंगे, आपको कोई झूठ बोलने की जर्रूरत नहीं पड़ेगी, हमें बिछड़ने का कोई डर नहीं रहेगा, इस तरह छुपकर मिलने से आजादी और हमारे बच्चे सब के सामने हमें मम्मी-पापा कह सकेंगे! Everything's gonna be fine!

मैंने भौजी को सुनहरे सपने दिखाते हुए कहा|

भौजी: नहीं...कुछ भी fine नहीं होगा....माँ-पिताजी कभी नहीं मानेंगे...कम से कम अभी हम साथ तो हैं...आपकी इस बात को जानकर वो हम दोनों को अलग देंगे! मैं जैसी भी हूँ...भले ही उस इंसान (चन्दर) के साथ रह रही हूँ पर दिल से तो आपसे ही प्यार करती हूँ...मैं उसके साथ रह लूँगी...पर please...

भौजी रोते-बिलखते हुए बोलीं| भौजी के मन में वही डर दिख रहा था जो पिछले कुछ दिनों से मैं अपने सीने में दबाये हुए था! अब समय था भौजी को आज शाम माँ की बताई हुई बात बताने का;

मैं: आप उसके साथ तो अब वैसे भी नहीं रह सकते क्योंकि वो लखनऊ के ‘नशा मुक्ति केंद्र’ में भर्ती है|

मैंने भौजी की बात काटते हुए उन पर पहाड़ गिरा दिया!

भौजी: क्या?

भौजी चौंकते हुए बोलीं|

मैं: हाँ! कल पिताजी और माँ की बात हुई थी, उन्होंने बताया की चन्दर घर नहीं आ रहा था तो उसे लेने के लिए सब लोग मामा के घर जा पहुँचे! चन्दर के गबन को ले कर वहाँ बहुत क्लेश हुआ, फिर किसी ने चन्दर को लखनऊ के नशा मुकरी केंद्र में भर्ती करवाने की बात कही| बात सब को जची इसलिए सब ने हामी भर दी, लेकिन चन्दर नहीं माना! बड़ी मुश्किल से उसे समझा-बुझा कर नशा मुक्ति केंद्र में भर्ती करवाया गया है तथा बड़के दादा ने आपको और बच्चों को गाँव वापस बुलाया था| पिताजी के गाँव जाने से पहले जो मैंने उनके दिमाग में बच्चों की पढ़ाई की बात बिठाई थी, उसके चलते पिताजी ने बड़के दादा को समझाया की इस तरह बीच साल में बच्चों को गाँव बुलाने से उनका पूरा पढ़ाई का साल खराब हो जायेगा! तब जा कर बड़के दादा ने आपको और बच्चों को बस तीन महीने की मोहलत दी है, फरवरी में बच्चों के पेपर के बाद आप तीनों को गाँव रवाना कर दिया जाएगा, जो मैं होने नहीं दूँगा! इसीलिए यही सही समय है जब मैं माँ-पिताजी से हमारे रिश्ते के बारे में बात करूँ! माँ की आँखों में मैंने आपके लिए जो प्यार आज देखा है, उससे मुझे पूरा यक़ीन है की वो मान जाएँगी, रही बात पिताजी की तो उन्हें थोड़ा समय लगेगा!

मैंने भौजी को सच से रूबरू कराया और अंत में उन्हें उम्मीद की किरण भी दिखा दी, मगर भौजी मेरी तरह सैद्धांतिक बातों पर नहीं चलना चाहतीं थीं, वो व्यवहारिक बात सोच रहीं थीं;

भौजी: नहीं...please.... वो नहीं मानेंगे! कोई नहीं मानेग! उसकी (चन्दर की) नशे की आदत छूट जाएगी तो वो मेरे साथ बदतमीजी नहीं करेगा!

भौजी फफक कर रोते हुए बोलीं| उनमें न तो हमारे रिश्ते के लिए लड़ने की ताक़त थी और न ही उसे खो देने को बर्दाश्त करने की हिम्मत! उन्हें लग रहा था जैसा चल रहा है वैसा चलता रहेगा, चन्दर की नशे की आदत छूटेगी और पिताजी उसे फिर से अपने साथ काम में लगा लेंगे, मगर मैं भौजी को सच से रूबरू करवाना चाहता था;

मैं: आपको पूरा यकीन है की उसकी शराब पीने की आदत छूट जाएगी और वो आपको मानसिक तौर पर परेशान नहीं करेगा? उसके अंदर की वासना की आग का क्या, क्या वो इतनी जल्दी बुझ जाएगी? अगर ये सब हो भी गया तो आपको लगता है की पिताजी उसे हमारे साथ काम करने का दूसरा मौका देंगे?

मेरे सवाल सुन कर भौजी खामोश हो गईं|

मैं: इन सब सवालों का जवाब है: 'नहीं'! ये समय उम्मीद करने का नहीं है, बल्कि दिल मजबूत कर के कदम उठाने का है!

मैंने भौजी को हिम्मत देनी चाहि मगर उनका दिल बहुत कमजोर था, उनकी आँखों से बस डर के आँसूँ बह रहे थे|

मैं: अच्छा at least let me try once...please!

मैंने भौजी को उम्मीद देते हुए कहा|

भौजी: अगर माँ-पिताजी नहीं माने तो? हम दोनों को हमेशा के लिए जुदा कर दिया जायेगा और मैं सच कहती हूँ, मैं आपके बिना जान दे दूँगी!

मेरे समझाने का थोड़ा असर हो रहा था, भौजी के मन में अब बस एक ही सवाल था और वो था मेरे माँ-पिताजी की अनुमति न मिलना! वो जानती थीं की मेरे माँ-पिताजी मेरी बात कभी नहीं मानेंगे और हम दोनों को हमेशा के लिए जुदा कर दिया जायेगा जो भौजी बर्दाश्त नहीं कर पायेंगी! अब मुझे इस मुद्दे पर एक stand लेना था, मुझे अपना पक्ष साफ़ रखना था की मैं ऐसे हालात में क्या करूँगा;

मैं: मैं माँ-पिताजी से बात कर लूँगा और उन्हें मना भी लूँगा! अगर वे नहीं माने…तो हम चारों ये घर छोड़कर चले जाएँगे! मैं अब कमा सकता हूँ तो मैं आपका और हमारे बच्चों का बहुत अच्छे से ध्यान रख सकता हूँ!

मैंने भौजी को स्पष्ट शब्दों में अपनी बात समझा दी, परन्तु उनका दिल बहुत अच्छा था, वो मुझे मेरे परिवार से अलग नहीं करना चाहतीं थीं;

भौजी: Please…ऐसा मत कहो!...please..... मेरे खातिर माँ-पिताजी को मत छोडो....उनका दिल मत दुखाओ! आपके इस एक कदम से आपका पूरा परिवार तबाह हो जाएगा!

भौजी रोते हुए मेरे आगे हाथ जोड़ कर विनती करने लगीं|

मैं: आप मुझसे प्यार करते हो न, तो मुझ पर भरोसा रखो और दुआ करो की कुछ तबाह न हो और सब हमारी शादी के लिए मान जाएँ!

इतना कह मैंने भौजी को अपने गले लगा लिया और उनकी पीठ पर हाथ फेरते हुए उन्हें शांत करने लगा;

मैं: बस मेरी जान...बस .... अब रोने का समय नहीं है...आज रात पिताजी आ जाएँगे और मैं कल ही उनसे सारी बात कर लूँगा| फिर हम दोनों हमेशा-हमेशा के लिए एक हो जायेंगे!

मैंने भौजी को बहुत बड़ी आस बँधा दी थी, मुझे अपने ऊपर पूरा विश्वास था की मैं पिताजी से अपने दिल की बात कह दूँगा और उन्हें तथा पूरे परिवार को मना भी लूँगा, मगर ये इतना आसान काम तो था नहीं! मैं पिताजी से कोई खिलौना नहीं माँग रहा था जिसे वो इतनी आसानी से मुझे खरीद देते, वैसे भी बचपन में वो मुझे खिलोने खरीदकर कम ही देते थे! मैं उनसे (पिताजी से) जो माँगने जा रहा था वो हमारे पूरे खानदान को झकझोड़ने वाला था, परन्तु मुझे ये चाहिए था, किसी भी कीमत पर!
Nice update bhai
 

Nevil singh

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तेईसवाँ अध्याय: अभिलाषित प्रेम बन्धन
भाग - 25



अब तक आपने पढ़ा:


बच्चों को अपने मम्मी-पापा के साथ में सोने का मौका मिला तो दोंनो ख़ुशी-ख़ुशी मान गए| मैं दोनों बच्चों को ले कर भौजी वाले कमरे में पहुँचा, मैं और भौजी अगल-बगल लेट गए तथा बच्चे हमारे बीचे में| मैंने बच्चों को प्यारी-प्यारी कहानी सुनाई और दोनों मेरी तरफ करवट ले कर सो गए! बच्चों के सोने के बाद मैंने खुद को उनकी पकड़ से छुड़ाया और बिस्तर से उठ गया| कमरे के दरवाजे पर पहुँच कर मैं रुका और भौजी की तरफ मुड़ते हुए बोला;

मैं: रात बारह बजे!

मैंने भौजी की आँख मारते हुए कहा| मुझे आगे कुछ बोलने की जर्रूरत नहीं पड़ी क्योंकि भौजी मेरा इशारा समझ चुकीं थीं!




अब आगे:



भौजी के कमरे से निकल कर मैंने एक नजर माँ के कमरे पर डाली, माँ व्रत रखने के कारन थक गईं थीं इसलिए खाना खा कर वो मस्त घोड़े बेच कर सोइ हुई थीं! रास्ता साफ़ था और आज हमारे (भौजी और मेरे) मिलन में कोई विघ्न नहीं पड़ने वाला था! मैं चुपचाप अपने कमरे में आ गया और बगैर दरवाजा बंद किये पलंग पर अपनी पीठ टिका कर बैठ गया| मुझे आजकी रात यादगार बनानी थी इसलिए मैंने अपना tablet उठाया और उस पर गानों की playlist बनाने लगा| घडी ने बारह बजाये और मुझे अपने कमरे के बाहर से 'छम' की आवाज आ गई, ये छम की आवाज भौजी की पायल की थी जिसे सुन मैं जान गया की भौजी मेरे कमरे में प्रवेश करने वाली हैं| मैं दरवाजे पर नजरें बिछाए उनके भीतर आने का इंतजार करने लगा, आखिरकर भौजी ने कमरे में प्रवेश किया और जैसी ही मेरी नजर उन पर पड़ी तो मैं उन्हें टकटकी लगाए देखने लगा! मेहरून रंग की satin वाली नाइटी जिसको बाँधने वाली रस्सी भौजी के पीछे कमर पर बँधी थी, माँग में लाल रंग का सिन्दूर, बाल खुले, होठों पर लाली, जिस्म से उठ रही मधुर सुगँध! सच भौजी ने मुझे लुभाने के लिए बड़े दिल से तैयारी की थी!

मुझे खुद को निहारते देख भौजी मुस्कुराईं और दरवाजा बंद करने को मुड़ीं! बस यही वो पल था जब मैंने अपना आपा खो दिया, मैं एकदम से पलंग से उठा और भौजी को फटक से अपनी गोद में उठा लिया! भौजी शायद इसके लिए पहले से ही तैयार थीं, उन्होंने अपना बायाँ हाथ मेरी गर्दन में डाला और मेरे होठों पर एक चुम्मा जड़ दिया! भौजी को गोद में उठाये हुए ही मैंने भौजी को लाइट बुझाने का इशारा किया तो भौजी ने अपना दायाँ हाथ दिवार में लगे switch board की तरफ बढ़ाया और लाइट बंद कर लाल रंग का zero watt का बल्ब जला दिया! बीतते हर पल के साथ मेरा सब्र जवाब दे रहा था इसलिए मैं भौजी को गोद में लिए हुए पलंग पर चढ़ गया, अपने घुटने मोड़ कर मैंने उन्हें पलंग के बीचों बीच लिटा दिया! मैं भौजी के ऊपर झुका और आँख बंद किये उनके अधरों को अपने मुँह में भर कर उनका पान करने लगा! भौजी के जिस्म से आ रही मधुर सुगंध ने मुझे मंत्र-मुग्ध कर दिया था जिस कारन मैं सब कुछ भुला कर आज उन्हें जी भर कर प्यार करना चाहता था! जिस जोश में मैं भौजी के कोमल अधरों को चूस रहा था उससे भौजी मेरे दिल में लगी आग को भाँप गई थीं, फिर भी मेरे दिल की टोह लेने के लिए भौजी मेरी टाँग खींचते हुए पहले मुझे अपने होठों से दूर किया और मुस्कुराते हुए मेरी आँखों में देखते हुए बोलीं;

भौजी: क्या बात है जानू आज बड़ा प्यार आ रहा है मुझ पर?

भौजी के मुझे अपने होठों से दूर करने और मुझसे सवाल पूछने को मैंने उनका उल्हाना समझा|

मैं: आपकी फरमाइश पूरी करने के दो रास्ते थे, एक ये की मैं सब बेमन से सिर्फ आपकी ख़ुशी के लिए करूँ, जिसमें न आपको आनंद आता न मुझे! दूसरा रास्ता था की मैं सब कुछ दिल से तथा पूरे मन से करूँ, इसलिए मैंने दूसरा रास्ता चुना!

मैंने भौजी को समझाते हुए कहा| मेरी बात सुन भौजी मुस्कुरा दी|



मैंने अपना tablet उठाया और अपनी playlist से पहला गाना धीमी आवाज में चलाया: 'आज फिर तुम पर प्यार आया है!' गाना भौजी के सवाल का जवाब था इसलिए भौजी के चेहरे पर कातिल मुस्कान आ गई!

भौजी: जानू गाना बिलकुल सूट कर रहा है!

भौजी अपना होंठ काटते हुए बोलीं|

मैं: तभी तो लगाया है मेरी जान!

मैंने भौजी को आँख मारते हुए कहा| गाने ने हम दोनों पर एक सुरुर्र सा चढ़ा दिया था, मेरी नजर भौजी की सुराहीदार गर्दन पर पड़ी, उसे देखते ही मेरे होंठ खुदबखुद थरथराने लगे! मैंने अपने थरथराते होंठ भौजी की गर्दन पर रख दिए! भौजी की गर्दन को चूमते हुए मैं उसी में खो स गया, मेरा मन ही नहीं हुआ की मैं उनकी गर्दन को छोड़ूँ! मेरे उनकी गर्दन को चूमने से भौजी के जिस्म में सिहरन उठने लगी तथा भौजी की दिल की धड़कनें तेज हो चलीं थीं! भौजी ने अपनी बाहों को मेरी गर्दन के पीछे ले जाके lock कर दिया, कुछ पल बाद मैं भौजी की गर्दन को चूमता हुआ उनके चेहरे की ओर आ गया तथा उनके लबों को अपने लबों से पुनः मिला दिया| बिना देरी किये मैंने अपनी जीभ भौजी के मुँह में प्रवेश करा दी और भौजी ने उसे अपनाते हुए अपने दाँतों से पकड़ चूसने लगीं| इधर मेरे हाथों ने भौजी के स्तनों के ऊपर चहलकदमी शुरू कर दी, मैं उनकी नाइटी के ऊपर से ही उनके स्तनों को सहला रहा था और धीरे-धीरे मींज रहा था! भौजी के गुदाज स्तन को महसूस कर के मेरे जिस्म में जोश भरता जा रहा था जिस कारन मैं कभी-कभी उनके स्तनों को कस कर दबा देता था और भौजी; "उम्म्म" कह के कसमसा कर रह जातीं!

मिनट भर बाद भौजी ने कमान अपने हाथों में संभालनी चाहि, भौजी ने बड़े धीरे से अपनी जीभ मेरे मुँह में प्रवेश करा दी! मेरा ध्यान अब भौजी की जीभ पर आ गया था, मैंने भौजी की जीभ को अपने दाँत से दबा लिया ओर अपनी जीभ उनकी जीभ से भिड़ा दी! भौजी ने इसकी कतई उम्मीद नहीं की थी, इसलिए जैसे ही मैंने अपनी जीभ से भौजी की जीभ चुभलानी शुरू किया तो भौजी के जिस्म ने मचलना शुरू कर दिया! भौजी के दोनों हाथों ने मेरी पीठ पर घूमना शुरू कर दिया! मुझे भी उस पल नजाने क्या सूझी मैंने कस कर भौजी के चुचुक उमेठ दिए! "उम्म्म्म" भौजी कसमसाईं और उनका पूरा जिस्म नागिन की तरह बलखाने लगा! जिस तरह भौजी कसमसा रहीं थीं, एक पल को लगा की मैं शायद भौजी के उफनते जिस्म को सँभाल ही न पाऊँ!



भौजी को यूँ कसमसाते देख मैंने उन्हें थोड़ा तड़पाने की सोची, मैंने भौजी की जीभ को छोड़ दिया और भौजी के ऊपर से हट गया तथा उनकी बगल में कोहनी का सहारा ले कर लेट गया| भौजी आँखें बंद किये हुए किसी खुमारी में गुम थीं, भौजी को उनकी खुमारी से बाहर लाने के लिए मैंने अपने बाएँ हाथ की उँगलियाँ भौजी के चेहरे पर फिरानी शुरू कर दी| मेरी उँगलियाँ जहाँ-जहाँ जातीं भौजी अपनी गर्दन उसी ओर घुमा लेतीं! भौजी की खुमारी टूटी तो उन्होंने मेरी तरफ करवट ले ली और अपने दाएँ हाथ की ऊँगली मेरे होठों पर रख दी, मैंने गप्प से भौजी की वो ऊँगली अपने मुँह में भर ली तथा उसे अपनी जीभ की सहायता से चूसने-चुभलाने लगा! मैंने भौजी के साथ थोड़ी और मस्ती करनी चाहि इसलिए मैंने भौजी की ऊँगली को धीरे से काट लिया;

भौजी: स्स्स्स्स्स्स्स्स.... जानू....

भौजी सीसियाते हुए कुछ कहतीं उससे पहले ही मैंने भौजी के होठों पर ऊँगली रखते हुए उन्हें खामोश कर दिया| मैंने पलट कर अपना tablet उठाया और दूसरा गाना लगाया; 'कुछ न कहो, कुछ भी न कहो!' गाने के पहले बोल सुनते ही भौजी प्यारभरी नजरों से मुझे देखने लगीं, जैसे की मुझसे पूछ रहीं हों की; ‘आज आपको हो क्या गया है? इतना रोमांस आपको कैसे सूझ रहा है?' पर ये तो हमारी मिलन की रात की शुरुआत भर थी!



भौजी ने अपना दायाँ हाथ कमर पर ले जाते हुए अपनी नाइटी की रस्सी खोलनी चाहिए, ठीक उसी समय गाने के बोल आये; 'समय का ये पल, थम सा गया है!

और इस पल में, कोई नहीं है,

बस एक मैं हूँ, बस एक तुम हो!'

गाने के बोल सुन भौजी ने अपनी नाइटी खोलन का प्रयास छोड़ दिया! इस गाने ने पूरे कमरे का माहौल रोमांटिक बना दिया, ऊपर से गाने के बोल ऐसे थे की हम दोनों खामोशी से बिना कुछ कहे अपने दिल के जज्बात एक दूसरे से कह पा रहे थे| गाना सुनते हुए मैं भौजी को निहार रहा था, ऐसा लगता था की बरसों बाद उन्हें इस तरह निहार रहा हूँ! उधर भौजी भी मुझे बिना पलकें झपकाये देख रहीं थीं, उस मध्धम बल्ब की रौशनी में दो धड़कते दिल बस एक दूसरे को निहारने में व्यस्त थे! हमें आज कोई जल्दी नहीं थी क्योंकि अभी तो आधी रात बाकी थी!

कुछ मिनट बाद गाने के बोल आये, जो मैंने भौजी को देखते हुए गुनगुनाये;

मैं: सुलगी-सुलगी साँसे, बहकी-बहकी धड़कन

और इस पल में कोई नहीं है,

बस एक मैं हूँ,

बस एक तुम हो!!!

मेरे मुँह से निकले ये बोल हम दोनों की अंदरूनी परिस्थिति ब्यान कर रहे थे! मेरे मुँह से ये बोल सुन भौजी के चेहरे पर भीनी सी मुस्कान आ गई! उनकी ये मुस्कान देख मैंने सीधे भौजी की गर्दन को चूम लिया! भौजी के जिस्म की महक में कुछ जादू तो था जो मैं बार-बार बहक जाता था! गाने के अंतिम बोल चल रहे थे और मैं पुनः भौजी के ऊपर छा चूका था! भौजी का शरीर मेरी दोनों टांगों के बीच था, मैंने उनकी कमर के नीचे हाथ ले जाकर उनकी नाइटी की डोर खोल दी, लेकिन मैंने उनकी नाइटी को सामने से नहीं खोला!

उधर tablet पर गाना खत्म हो चूका था और भौजी को अपनी पसंद का गाना सुनना था| उन्होंने tablet उठाया और उस पर गाना ढूँढने लगीं| अगला गाना जो उन्होंने लगाया वो था; 'पिया बसंती रे!' चूँकि मैं भौजी की नाइटी की डोर खोल कर भौजी की जाँघों पर बैठा था तो मुझे उल्हाना देने के लिए भौजी ने ये गाना लगाया था;

भौजी: पीया बसंती रे, काहे सताए आ जा!

भौजी ने उलहाने देते हुए कहा और अपनी दोनों बाहें खोल कर मुझे अपने गले लगने का निमंत्रण देने लगीं! मैं भौजी का उल्हाना समझ चूका था, मैं उनके गले लगा और पुनः भौजी की जाँघों पर बैठ कर उनकी नाइटी को धीरे-धीरे खोलने लगा| जब नाइटी खुली तो सामने जो दृश्य था उसे देख कर मैं सन्न था! भौजी ने गहरे लाल रंग की satin वाली ब्रा-पैंटी पहनी हुई थी! लाल रंग मेरा शुरू से पसंदीदा रहा है, ये ऐसा रंग था जो मुझे उत्तेजित कर देता था!



भौजी को लाल रंग की ब्रा-पैंटी में देख मेरी आँखें बड़ी हो चुकी थीं, मेरी उत्तेजना धीरे-धीरे बढ़ रही थी! मैंने भौजी के ऊपर पुनः झुक कर उनके सीने को चूम लिया तथा फिर से उनकी बगल में कोहनी का सहारा ले के लेट गया! मुझे अपनी ये उत्तेजना संभालनी थी ताकि कहीं मैं अपनी उत्तेजना में बहते हुए भौजी को मझधार में छोड़ने की गलती न कर दूँ!

मैं: जान क्या बात है, एक के बाद एक surprise दे रहे हो? Satin की नाइटी, लाल रंग की satin वाली ब्रा-पैंटी! लगता है आज तो आप मेरा कत्ल कर के रहोगे!

मैंने खुसफुसाते हुए भौजी की टाँग खींचते हुए कहा!

भौजी: जानू, आज के दिन की तैयारी मैंने नजाने कब से कर रखी थी!

भौजी खुद पर गर्व महसूस करती हुई बोलीं! भौजी की वो भोली सूरत देख मुझे उन पर बहुत प्यार आ रहा था, मैंने आगे बढ़ते हुए भौजी को एक बार फिर kiss कर लिया! गाना खत्म हो चूका था और मेरा पूरा कमरा बिलकुल शांत था|

इधर भौजी के जिस्म में उत्तेजना का ज्वर चढ़ने लगा था, इसलिए भौजी ने मेरी तरफ करवट ली और मुझे धक्का देते हुए मेरे ऊपर आ के बैठ गईं| भौजी ने अपनी नाइटी उतार फेंकी और ब्रा-पैंटी पहने मेरे कामदण्ड पर बैठ गईं!

मैं: जान अपनी पैंटी तो उतारो!

मैंने मुस्कुराते हुए भौजी की पैंटी को छूते हुए कहा|

भौजी: न!

भौजी अपना सर न में हिलाते हुए बचकाने ढँग से बोलीं|

भौजी: आप उतारो|

भौजी ने मेरी तरफ ऊँगली करते हुए बड़े नटखट ढँग से कहा| भौजी के नटखट अंदाज को देख मेरे दिल में तरंगें उठने लगीं| मैंने अपने दोनों हाथों से भौजी की कमर को थामा और एकदम से करवट लेके उन्हें अपने नीचे ले आया!

मैं: My naughty girl!

मैंने मुस्कुराते हुए कहा| मैंने भौजी की पैंटी के दोनों किनारों में अपनी ऊँगली फँसाई और नीचे खींचते हुए भौजी की पैंटी उतार कर नीचे फेंक दी! भौजी की नग्न योनि को देख अचानक मेरे दिल की धड़कन तेज हो गई, दिल तो किया की घप्प से भौजी की योनि पर मुँह लगा दूँ लेकिन मुझे आज जल्दी नहीं दिखानी थी! मुझे तो आज भौजी के हर अंग को जी भर कर प्रेम करना था, इसलिए मैंने झुक कर भौजी की योनि को बाहर से एक बार चूमा और पीठ के बल सीधा लेट गया! मेरी ये हरकत देख भौजी को अचंभा हुआ;

भौजी: बस?

भौजी ने प्यासी नजरों से पुछा|

मैं: नहीं जान, अभी तो शुरुआत है! आप ऐसा करो अपनी दोनों टाँगें फैला कर मेरे मुँह पर बैठ जाओ! भौजी मेरा मतलब अच्छे से समझ गईं, वो मुस्कुराते हुए उठ के खड़ी हुईं और मेरे चेहरे के ऊपर आ कर उकड़ूँ होके इस प्रकार बैठीं की उनकी योनि ठीक मेरे होठों के ऊपर थी! भौजी की योनि की सुगंध से मेरे पूरे जिस्म में चहल-पहल मच गई! मेरा कामदण्ड अपना विराट रूप इख्तियार करने लगा, आँखें एकदम से बंद हुईं और लपलपाती हुई मेरी जीभ भौजी की योनि की फाँकों को फैलाते हुए भौजी की योनि में पहुँच गई! भौजी की योनि भीतर से बहुत गर्म थी, मानो भौजी के जिस्म की सारी गर्मी उनकी योनि में समा गई हो और उनकी यही गर्मी मेरी उत्तेजना बढाए जा रही थी! मैंने अपनी जीभ को भौजी की योनि के भीतर गोल-गोल घुमाना शुरू कर दिया, मेरी जीभ ने भौजी की योनि में हड़कंप मचाना शुरू किया तो भौजी के मुँह से सीत्कारें निकलने लगीं; "स्स्स्स्स्स...जानू.....!" मैंने अपनी जीभ भौजी की योनि से बाहर निकाली और उनकी योनि की फाँकों को बारी-बारी से मुँह में लेके चूसने लगा, भौजी की योनि की फाँकों को खींच कर चूसने में मुझे बड़ा मजा आ रहा था! मेरे भौजी की फाँकों को चुभलाने से उन्होंने अपनी कमर आगे-पीछे हिलाना शुरू कर दिया था! मिनट भर बाद मैंने अपनी जीभ वापस उनकी योनि में प्रवेश करा दी, अब भौजी की कमर आगे-पीछे हिलाने से ऐसा लग रहा था जैसे मेरी जीभ मेरे कामदण्ड का काम कर रही हो और अंदर-बाहर होते हुए भौजी को वही संतुष्टि प्रदान कर रही थी जो मेरा कामदण्ड करता!

भौजी के जिस्म में उठ रही काम हिलोरों के कारन उनके लिए अब उकड़ूँ हो के बैठ पाना मुश्किल हो रहा था, इसलिए वो एकदम से खड़ी हुईं और वापस अपने घुटने टेक कर ठीक मेरे होठों पर अपनी योनि टिका के बैठ गईं| भौजी की योनि और मेरे होठों के बीच नेश मात्र भी जगह नहीं था, मैंने देर न करते हुए अपनी जीभ सरसराती हुई भौजी की योनि में पुनः प्रवेश करा दी! इस बार मेरी जीभ समूची भौजी की योनि में दाखिल हो गई, उधर भौजी मेरी समूची जीभ को अपनी योनि के भीतर महसूस कर बड़े ही मादक ढँग से अपनी कमर को गोल-गोल मटकाने लगीं! साफ़ पता चल रहा था की भौजी की उत्तेजना उनके चरम की ओर बढ़ रही है! भौजी से खुद को संभाल पाना मुश्किल हो रहा था इसलिए उन्होंने अपने शरीर का सम्पूर्ण भार मेरे मुँह पर रख दिया! अपनी उत्तेजना में बहते हुए भौजी ने अपना दाहिना हाथ मेरे सर पर रखा और उसे अपनी योनि पर दबाने लगीं तथा अपनी कमर को आगे-पीछे हिलाने लगीं|

मुझे भौजी को जल्द से जल्द चरम पर पहुँचाना था क्योंकि जिस आसन में भौजी बैठीं थीं उस आसान में मेरे लिए साँस ले पाना मुश्किल हो रहा था! मैंने अपनी जीभ भौजी की योनि में लपलपानी शुरू की, किसी giant ant eater की तरह मेरी जीभ बड़ी तेजी से भौजी की योनि में अंदर-बाहर होने लगी! भौजी से मेरी जीभ की ये चहलकदमी बर्दाश्त कर पाना मुश्किल हो रहा था, अंततः भौजी अपने चरमोत्कर्ष पर पहुँच गईं ओर अगले ही पल कलकल करतीं हुईं स्खलित होने लगीं! स्खलित होते समय भौजी ने उत्तेजना वश मेरे सर के बालों को अपनी मुट्ठी में भर लिया और अपने कामरज की एक-एक बूँद मेरे मुँह में उड़ेल दी! भौजी का रज आज इतना था की एक पल के लिए मैं हैरान था की अभी कुछ दिन पहले ही तो मैंने इन्हें अपने मुख के द्वारा यौन सुख दिया था और उस समय भी भौजी की योनि से इतना रज नहीं निकला था जितना आज निकल रहा था| मेरा मुँह भौजी के योनि के तले दबा हुआ था इसलिए मैं अपना मुँह इधर-उधर भी नहीं कर सकता था! मैंने भौजी का अधिकतम रज पी लिया था, बाकी थोड़ा-बहुत मेरे मुँह के किनारों से बहता हुआ मेरी दाढ़ी में सन गया था!



भौजी का स्खलन समाप्त हुआ तो भौजी बड़ी मुश्किल से मेरे मुँह के ऊपर से उठीं और हाँफती हुई मेरी बगल में लेट गईं! मैंने भौजी की नाइटी से अपना चेहरा साफ़ किया और भौजी को आँखें बंद किये हुए अपनी साँसों को दुरुस्त करते हुए देखने लगा! भौजी के हाँफने से उनकी छाती ऊपर नीचे हो रही थी और उनकी छाती ऊपर-नीचे होने से उनके स्तन भी ऊपर-नीचे हो रहे थे! मुझे ये दृश्य कुछ ज्यादा ही मनभावन लग रहा था इसलिए मैं मुस्कुराते हुए उन्हें (स्तनों को) ऊपर नीचे होते हुए देख रहा था! भौजी की सांसें सामन्य होने में थोड़ा समय लगा और जब तक वो सामन्य नहीं हुईं मैंने उन्हें स्पर्श नहीं किया, बल्कि मैं भी पीठ के बल स्थिर लेटा रहा| जब भौजी की सांसें समन्य हुईं तो उन्होंने मुझे स्थिर लेटे हुए पाया, उन्हें लगा की मैं उन्हें चरमसुख दे कर स्वयं सो गया!

भौजी: सो गए क्या?

भौजी ने मेरा बायाँ कंधा हिलाते हुए पुछा|

मैं: नहीं जान! यार आज भी अगर मैं सो गया तो, जानता हूँ कल आप मुझसे बात नहीं करोगे|

मैंने भौजी को प्यार से ताना मारते हुए कहा|

भौजी: वो तो है! और सिर्फ बात ही नहीं करुँगी, बल्कि चाक़ू से अपनी नस काट लूँगी|

भौजी थोड़ा गुस्से से बोलीं! ये भौजी का पागलपन था जो कभी-कभी सामने आ जाया करता था! गाँव में मेरे दिल्ली वापस आने के समय भौजी यही पागलपन करने वाली थीं और उस दिन की याद आते ही मेरे चेहरे पर गुस्सा आ गया;

मैं: Hey!!!

मैंने गुस्से में आवाज ऊँची करते हुए कहा| आवाज इतनी ऊँची नहीं थी की माँ सुन ले, लेकिन इतनी कठोर थी की भौजी को एहसास हो जाए की उनके इस पागलपन से भरी बात को सुन कर मुझे कितना गुस्सा आया है|

भौजी: Sorry बाबा!

भौजी अपने कान पकड़ते हुए बोलीं! इस डर से की कहीं मैं उन्हें (भौजी को) डाँट कर सारे मूड का सत्यानाश न कर दूँ, भौजी उठीं और सीधा मेरे कामदण्ड पर बैठ गईं! भौजी ने फिलहाल केवल ब्रा पहनी थी, वहीं मैं इस वक़्त पूरे कपड़ों अर्थात टी-शर्ट और पाजामे में था| भौजी ने मेरे कामदण्ड पर बैठे-बैठे मेरे ऊपर झुकीं और मेरी टी-शर्ट निकाल फेंकी! फिर उन्होंने मेरे पजामे का नाड़ा खोला, उठ कर मेरे पाजामे तथा मेरे कच्छे को एक साथ खींचते हुए निकाल फेंका और मेरी जाँघों पर बैठ गईं| भौजी ने मेरी बिना बालों वाली छाती पर एक बार हाथ फेरा और फिर उसपर अपने गर्म होंठ रखते हुए बोलीं;

भौजी: Wow जानू! आपकी chest बिना बालों के कितनी दमक रही है!

मैं: हम्म! आपके लिए ही साफ़ की है!

मैंने भौजी को आँख मारते हुए कहा| अब भौजी ने अपने दोनों हाथों से मेरे दोनों गालों को सहलाया और शिकायत करते हुए बोलीं;

भौजी: तो इस मुई दाढ़ी का भी कुछ करो ना? मुझे आप दाढ़ी में अच्छे नहीं लगते, clean shaven अच्छे लगते हो बिलकुल पहले की तरह!

भौजी किसी प्रेमिका की तरह माँग करते हुए बोलीं| भौजी अब सीधी हो कर बैठ गईं थीं और उनकी नजर मेरे कामदण्ड पर थी;

भौजी: अब आपका 'ये' (मेरा कामदण्ड) देखो, बिना बालों के कितना प्यारा लग रहा है!

ये कहते हुए भौजी शर्म से लाल हो चुकी थीं!

भौजी: मुझे न आप में सब कुछ पहले जैसा चाहिए, इसलिए please कल शेव कर लेना!

भौजी ने लजाते हुए आँखें झुका कर विनती की!

मैं: हाय!

भौजी के इस तरह लजाने से मैं घायल हो गया था इसलिए मैं ठंडी आह भरते हुए बोला!

मैं: जान आपके आने के बाद से मैंने दाढ़ी हलकी रखी हुई ताकि बाहर घुमते समय हम दोनों perfect couple लगें!

Perfect couple से मेरा मतलब था की कोई मेरी और भौजी के बीच में मौजूद उम्र का फासला न पकड़ पाए| अब ये बात मैं सीधे-सीधे भौजी से कह कर उनका मन खराब नहीं करना चाहता था इसलिए मैंने बात थोड़ी घुमा कर कही, लेकिन भौजी के मेरी ये बात पल्ले नहीं पड़ी!

भौजी: वो सब मैं नहीं जानती! आपको kiss करते समय ये (दाढ़ी) चुभती है, इसलिए आप कल ही मेरी इस सौतन दाढ़ी को काट लेना|

भौजी नाराज हो कर हुक्म देते हुए बोलीं|

मैं: ठीक है बाबा!

मैंने मुस्कुरा कर कहा|



मुझसे कुछ पल बातें करने से भौजी का कामज्वर अब शांत हो चूका था, इसलिए अब उनका पूरा ध्यान मेरे ऊपर था! भौजी मेरे ऊपर झुकीं और मेरे लबों को अपने लबों से मिलाते हुए मेरे लबों को निचोड़ने लगीं! मिनट भर मेरे होठों को पीने के बाद भौजी धीरे-धीरे नीचे की ओर सरकने लगीं, मेरे कामदण्ड के नजदीक पहुँच उन्होंने अपने दोनों हाथों से मेरे कामदण्ड को कस कर पकड़ लिया तथा कुछ क्षण भर के लिए उसे निहारते हुए अपने मुँह की गर्म साँसें उस पर छोड़ने लगीं! ऐसा लगा मानो जैसे भौजी मेरे लिंग को देख कर चिंतित हों, फिलहाल उनकी ये चिंता मेरी समझ से परे थी! भौजी की कसी हुई पकड़ ने मेरे लिंग में खून का प्रवाह ते ज कर दिया था, अब मैं उम्मीद कर रहा था की भौजी जल्दी से अपना मुख खोल कर उसे (मेरे लिंग को) अपने मुख के भीतर ले लें! उधर भौजी को शायद मुझे उकसाना था तभी तो वो सब कुछ धीरे-धीरे कर रहीं थीं! उन्होंने सर्वप्रथम अपने गीले होठों से मेरे लिंग के मुंड को छुआ, मुंड को छूने के दौरान भौजी ने अपनी लार से मेरे लिंग को गीला कर दिया| अब भौजी ने धीरे-धीरे अपने होठों को खोला और अपनी जीभ की नोक से मेरे मुंड के छिद्र को कुरेदने लगीं! भौजी की इस क्रिया से मुझे एक जोरदार करंट का आभास हुआ और मेरी हालत खरब होने लगी|

मैं: सससस....जान you’re killing me! ममम...ससस....!

मैं सीसियाते हुए बोला! मेरे जिस्म में उठा वो करंट कामोत्तेजना को निमंत्रण दे चूका था!

भौजी: ममम!

भौजी मुस्कुराते हुए मेरी तरफ देखते हुए बोलीं!

भौजी को मेरे जिस्म में मौजूद कामोत्तेजक जगह का पता लग गया था और अब वो मुझे भरपूर सुख देना चाहतीं थीं! अगले ही पल भौजी जितना अपना मुँह खोल सकतीं थीं उतना खोला और मेरा समूचा कामदण्ड अपने मुख में भरने का भरसक प्रयास करने लगीं, मगर फिर भी मेरा वो (मेरा लिंग) थोड़ा-बहुत बाहर रह ही गया! इतने सालों बाद आज भौजी का प्रथम प्रयास था, न उन्हें (भौजी को) deepthroat आता था और न ही मैं इतना kinky था! भौजी ने हार न मानते हुए 2-4 बार अपनी गर्दन को मेरे लिंग पर ऊपर-नीचे करते हुए पुनः कोशिश की लेकिन वो नाकामयाब रहीं, मगर उनकी इस कोशिश ने मुझे जो सुखद एहसास कराया था उसे एहसास ने मेरे जिम के रोएं खड़े कर दिए थे! जब भौजी ने मेरे कामदण्ड को अपने मुँह से निकाला तो मेरा लिंग भौजी की लार से सना हुआ चमक रहा था! मेरा वो (लिंग) इतना चमक रहा था की मैं उसे देख कर हैरान था, ऐसा लगता था की जैसे किसी ने aloevera gel से उसे सान दिया हो! मैं हैरान भोयें सिकोड़ कर भौजी को देखने लगा की आखिर भौजी ऐसा क्यों कर रहीं हैं?! भौजी मेरी हैरानी समझ गईं और आँखें झुकाते हुए लजा कर बोलीं;

भौजी: जानू, मैंने आपको बताया नहीं, आयुष जब पैदा हुआ था तो मैंने 'caesarian surgery' करवाई थी क्योंकि मैं चाहती थी की जब हम दुबारा मिलें तो आपको मेरी उसमें (योनि) वही एहसास (कसावट) हो जो पहले मिलता था! आज हम पाँच साल बाद यूँ मिले हैं और अब मेरी 'ये' (योनि) बहुत ज्यादा संकुंचा गई है क्योंकि मैंने इन पाँच सालों में मैंने कभी भी खुद को फारिग करने की नहीं सोची, हालांकि आपको याद कर-कर के मन तो बहुत किया लेकिन मेरा एक सपना था की मेरा 'रज' आपके 'रज' से मिले! लेकिन उस रात आपने मेरा ये सपना तोड़ दिया और मुझे अकेला छोड़ कर घर चले आये! इसलिए आज पाँच साल बाद मेरे लिए 'first time' जैसा है, आपका 'ये' (मेरा कामदण्ड) इतना बड़ा हो चूका है की मैं इसे झेल नहीं पाऊँगी, इसीलिए मैं 'इसे' (मेरे कामदण्ड को) चिकना कर रही हूँ!

भौजी की बात सुन कर मैं हैरान था, मैं जानता था की वो मुझसे कितना प्यार करती हैं मगर उन्होंने मेरे लिए इतना सोचा ये मेरी समझ से परे था!

कहते हैं जब सम्भोग के दौरान औरत खुल कर बोलती है तो मर्दों के लिए आनंद दुगना हो जाता है! भौजी ने भले ही हमारे यौनांगों को 'इसे', 'ये', 'वो' आदि कहा हो, परन्तु मेरे लिए तो ये भी कामोत्तेजक था! भौजी की बातें सुन कर, कुछ देर पहले उनके चेहरे पर आई चिंता की लकीरों का कारन समझ गया था! दरअसल भौजी को चिंता थी की मेरा कामदण्ड उनकी छुई-मुई की क्या गत करेगा?

मैं: समझा!

मैंने मुस्कुराते हुए कहा और भौजी को एकदम से अपने ऊपर खींच लिया, फिर मैंने करवट बदली और उन्हें अपने नीचे ले आया| भौजी की घबराहट उनके चेहरे से झलक रही थी, मगर साथ ही साथ उनके जिस्म में प्रेम की अगन भी दहक रही थी!

मैं: जान relax! मैं बहुत प्यार से 'करूँगा', ज़रा सी भी जबरदस्ती नहीं करूँगा! I'll be VERY cautious!

मैंने भौजी को निश्चिंत करते हुए कहा|

मैं: फिर भी अगर आपको लगता है की आप अभी 'उसके' लिए (सम्भोग के लिए) तैयार नहीं हो तो कल करते हैं!

मैंने भौजी को सताने के लिए कहा और उनके ऊपर से हटने का दिखावा करने लगा| मेरे ऊपर से हटने को सच मान कर भौजी डर गईं की कहीं आज भी हमारा मिलन अधूरा न रह जाए इसलिए वो तपाक से बोलीं;

भौजी: नहीं! जो करना है, आज ही करो! मुझे आप पर पूरा विश्वास है!

भौजी के इस तरह घबराजाने से मैं मुस्कुराने लगा और तब भौजी को मेरा छल समझ आया, साथ ही वो अपनी आतुरता पर हँसने लगीं!

मैं: Okay जान! I'll be gentle!

मैंने मुस्कुरा कर भौजी को फिर आश्वस्त किया|



अब समय आ गया था हमारे यौनांगों के मिलन का! मैंने अपने कामदण्ड को हाथ में थामा तो वो गुस्से से फुँफकारने लगा, मैंने अपने लिंग के मुंड को भौजी की योनि द्वार पर रख उसे सहलाना शुरू कर दिया| मेरी इस क्रिया की प्रतिक्रिया भौजी ने आँखें मीचते हुए अपने दोनों हाथों से कस कर पलंग पर बिछी चादर को अपनी मुट्ठी में भींचते हुए दी! इधर नीचे मेरे सहलाने के कारन भौजी की योनि ने एक लिसलिसे द्रव्य (precum) को बहाना शुरू कर दिया, वहीं मेरे छोटे भाईसाहब (लिंग) ने भी वैसा ही लिसलिसा (precum) द्रव्य बहाना शुरू कर दिया था| अब समय था 'भेदन' का, मैंने अपने कामदण्ड को भौजी की योनि पर रखा और बहुत धीरे-धीरे अपना कामदण्ड भौजी की योनि में भेदना शुरू किया!

अभी केवल मेरे लिंग का मुंड अंदर गया था मगर भौजी के जिस्म में दर्द की तेज लहर दौड़ चुकी थी! भौजी ने कस कर आँखें मीचे हुए अपने दोनों हाथ मेरी छाती पर रख मुझे आगे बढ़ने से रोक दिया! भौजी की योनि अंदर से काफी गर्म तथा गीली थी, उनकी योनि में कसावट इतनी थी की मेरे कामदण्ड को निगलकर उसका सारा रस निचोड़ ले! मुझे अपने कामदण्ड के इर्द-गिर्द कुछ गीला-गीला महसूस होने लगा था, शायद भौजी का स्खलन हुआ था! मैं उसी आसन में बिना हिले-डुले झुका रहा! मेरे मन में भौजी के 'श्वेत कबूतर' देखने की इच्छा पैदा हुई तो मैंने धीरे से अपने हाथ ले जा कर भौजी की ब्रा उतारनी चाहि, नजाने कब भौजी ने अपनी ब्रा का हुक खोल दिया था क्योंकि जैसे ही मैंने भौजी के कँधे के elastic band को सरकाया भौजी की ब्रा खिसकती हुई आधी खुल गई! मैंने भौजी की ब्रा निकाल दी और अपने सामने उन 'सफ़ेद बर्फ के गोलों' को निहारने लगा! ऐसा नहीं था की मैं उन्हें पहली बार देख रहा था, बल्कि जब भी उन्हीं देखता था तो हरबार मुझे वो आकर्षक दिखते थे! मुझे खुद को यूँ देखते हुए भौजी के स्तन शिकायत करने लगे; 'हमें इतना चाहते हो और हम ही से इतनी दूरी?' भौजी की स्तनों की शिकायत सुन मेरे मन ने उन्हें छूने की सोची, अगले ही पल मेरे दोनों हाथ उनकी (भौजी के स्तनों की) ओर चल पड़े| मेरे दाएँ हाथ ने भौजी का दायाँ स्तन और मेरे बाएँ हाथ ने भौजी का बाएँ स्तन को दबोच लिया! मैंने दोनों हाथों से भौजी के दोनों स्तनों का मर्दन किया, परन्तु अब होठों को उनका (भौजी के स्तनों का) स्वाद चखना था, इसलिए मैं भौजी के ऊपर कुछ इस तरह झुका की मेरा लिंग भौजी की योनि में अंदर न जाए!

इस समय मेरे मन में जोश इतना था की मैंने सबसे पहले भौजी के दाएँ स्तन पर हमला किया तथा अपने दाँत भौजी के स्तन पर गड़ा दिए! "आह..उम्म्म!" भौजी कराँहि! मुझे एहसास हुआ की भौजी की योनि पहले ही मेरे कामदण्ड के लिए खुद को समायोजित कर रही है उसपर मेरे इस तरह दाँत गड़ा देने से भौजी को बहुत दर्द हो रहा होगा इसलिए मैंने खुद पर काबू किया और धीरे से भौजी के चुचुक को अपने होठों में दबा कर चूसने तथा अपनी जीभ से चुभलाने लगा! मेरा इरादा था की भौजी के स्तनों पर हो रही चहलकदमी से भौजी की पीड़ा कम होने लगे ताकि मैं नीचे अपने कामदण्ड को कुछ अंदर ले जा सकूँ! मगर हुआ कुछ उल्टा ही, भौजी के लिए मेरे ये दोहरे हमले झेलपाना मुश्किल हो गया था! उनके माथे पर दर्द भरी शिकन नजर आने लगी, दरअसल भौजी के चुचुक को चूसने के समय मेरी उत्तेजना और बढ़ गई थी जिस कारन मेरा कामदण्ड फूलने लगा था जो भौजी की योनि को और फैलाता जा रहा था जिस करण भौजी को बहुत दर्द होने लगा था!

मैं: दर्द हो रहा है जान?

मैंने चिंतित होते हुए पुछा|

भौजी: नहीं....आपको पाने का सुख इस दर्द से बहुत बड़ा है! इतना दर्द तो मैं सह ही लूँगी!

भौजी दर्द भरी मुस्कान से बोलीं| भौजी की बात में प्रेम झलक रहा था और खुद पर गर्व भी की उन्होंने आज मुझे लगभग पा ही लिया है!



इधर मैं उलझन में था की आगे क्या करूँ? 'आगे बढ़ूँ या पीछे हट जाऊँ?!' मैंने कुछ कहानियों में पढ़ा था की अगर ऐसा कुछ हो तो क्या करें, मैंने आज वही ज्ञान यहाँ लड़ाने की सोची! मेरे लिंग ने भौजी की योनि में थोड़ी बहुत जगह बना ली थी, इसलिए जितना वो अंदर था मैंने उतना ही अंदर-बाहर करना शरू कर दिया| मुझे नहीं पता ये उपाए कितना कारगर था, पर इस उपाए के इलावा मेरे पास और कोई रास्ता नहीं था! परन्तु ये उपाए कारगर सिद्द हुआ! मेरे इन छोटे-छोटे हमलों से भौजी को आनंद आने लगा था तथा उनका जिस्म उन्माद से भर उठा था! भौजी ने एकदम से मुझे छाती से जकड़ लिया और मेरी नंगी पीठ पर हाथ फिराते हुए बोलीं;

भौजी: जानू please थोड़ा और अंदर 'push' करो न!

भौजी के जिस्म में उठे उन्माद ने उनके दर्द को भुला दिया था और भौजी अब मेरे दूसरे प्रहार के लिए तैयार हो चुकी थीं|

मैं: पक्का?

मैंने थोड़ा हैरान होते हुए पुछा, क्योंकि मुझे यक़ीन नहीं हो रहा था की मेरा तुक्का fit हो चूका था!

भौजी: स्स्स्स्स...हाँ!

भौजी ने सीसियाते हुए अपनी स्वीकृतिति दी! मैंने धीरे-धीरे अपने कामदण्ड को भौजी की योनि के भीतर दबाना शुरू किया! जैसे-जैसे वो अंदर जा रहा था भौजी के चेहरे पर फिर से दर्द की लकीरें पड़ने लगी थीं| जब मेरा लिंग आधे से ज्यादा अंदर पहुँच गया तो भौजी से दर्द बर्दाश्त नहीं हुआ, उनकी कमर से ऊपर का हिस्सा दर्द के मारे कमान की तरह तन गया! भौजी को यूँ दर्द में देख मैं जिस आसन में था उसी आसन में घबरा कर रुक गया! मैं फिरसे असमंजस की स्थिति में था, समझ नहीं आ रहा था की आगे बढ़ूँ या पीछे हटूं?! करीब मिनट भर बाद जब भौजी का शरीर ढीला हो कर पुनः सामन्य हुआ तब मेरी चिंता कुछ कम हुई! लेकिन ये क्या, भौजी तो भरभरा कर स्खलित हो गईं थीं और तेजी से साँस लेते हुए हाँफने लगी थीं!



मैं भौजी को सताना नहीं चाहता था इसलिए उनकी योनि में अपना कामदण्ड डाले हुए ही घुटने मोड़ कर बैठ गया| भौजी आँखें बंद किये हुए अपने चरमोत्कृष्ठ के नशे में चूर थीं, उन्हें यूँ स्खलन की थकान में देख मुझे आज खुद पर बहुत फक्र हो रहा था! मैंने आज बिना ज्यादा मेहनत किये भौजी को दो बार 'छका' दिया था, मेरी उत्तेजना पूरी तरह से मेरे काबू में थी और मुझे अपने इस कण्ट्रोल पर ग़ुमान होने लगा था! देखा जाए तो मैंने कोई तीर नहीं मारा था, मैं अभी तक 'टिका' हुआ था क्योंकि मैंने अभी तक जोश लगाया ही नहीं था, भौजी को हो रही पीड़ा के कारन मैं डर चूका था और जो थोड़ी-बहुत मेहनत मैंने की थी वो कुछ ख़ास नहीं थी!

कुछ पल बाद जब भौजी की सांसें नियंत्रित हुईं और उन्होंने अपनी आँखें खोलीं तब मैंने अपना लिंग उनकी योनि से निकला| भौजी के चेहरे पर थकान दिख रही थी और मुझे उन पर तरस आ रहा था, इसलिए मैं उठ कर उनकी बगल में लेट गया| पूरे कमरे में भौजी के योनि रस की महक गूँज रही थी जो मुझे बहकाये जा रही थी और मेरे छोटे साहब को बार-बार ठुमके मारने पर मजबूर कर रही थी!



वहीँ जैसे ही भौजी को अपने भीतर खालीपन का एहसास हुआ उन्होंने मुझे देखा और चिंतित होते हुए बोलीं;

भौजी: ये क्या, आप हट क्यों गए? आज मैं आपको relieve किये बिना जाने नहीं दूँगी|

भौजी की आवाज में मेरे लिए प्यार और गुस्सा दोनों झलक रहा था| उन्हें लग रहा था की मैं इस बार भी उन्हें संतुष्ट कर प्यासा रहने वाला हूँ! भौजी कभी स्वार्थी नहीं थीं, हम सम्भोग करें और मैं प्यासा रह जाऊँ ये उन्हीं नगवार था!

दो बार के स्खलन से भौजी कुछ थक गईं थीं मगर फिर भी वो उचक कर मेरे कामदण्ड पर बैठ गईं! हमारे यौनांगों का मिलन हुआ था मगर अभी मेरा कामदण्ड उनकी 'फूलकुमारी' के भीतर नहीं था! भौजी की फूलकुमारी से निकल रही आँच ने मेरे छोटे भाईसाहब को ललकारा था और मेरे छोटे भाईसाहब अपना दमखम दिखाने के लिए तैयार थे!

मैं: जान, I’m not going anywhere, in fact I'm gonna give you the best fuck of your lifetime. I was just giving you some time so you can recharge or you'll be exhausted for the grand finale!

मैंने खुसफुसाते हुए कहा| भले ही मेरे अंदर वासना की आग लगी हुई थी मगर मुझे भौजी का भी ख्याल था!

भौजी: You don’t care about my exhaustion जानू! I just want you inside me!

भौजी मुझे उकसाते हुए बोलीं! भौजी आगे की ओर झुकीं और मेरे कामदण्ड को अपने हाथों में लेते हुए अपनी 'सुकुमारी' (भौजी की योनि) के मुख से भिड़ाते हुए 'गचक' से सीधी बैठ गईं! मेरा लिंग सरसराते हुए भौजी की योनि में 'घुस' गया ओर सीधा उनके (भौजी के) गर्भाशय से जा टकराया! दर्द की तेज लहर भौजी के जिस्म में दौड़ गई और भौजी दर्द के मारे चिंहुँक उठीं; "आहहहह!...मममम!" भौजी की आँखों से आँसुओं की धारा बह निकली थी, वो अपनी आँखें बंद किये हुए बिना हिले-डुले, अपने होठों को दाँतों तले दबाये हुए अपने दर्द को दबाने में लगी थीं! वहीं दूसरी तरफ भौजी की सुकुमारी ने मेरे छोटे भाईसाहब के इर्द-गिर्द जो पकड़ बनाई थी उसने मुझे चरमोत्कर्ष की राह दिखा दी थी और मैं इस राह पर आँखें बंद किये हुए चल पड़ा था, इस बात से अनजान की मेरी प्रियतमा दर्द से तड़प रही है! मिनट भर तक जब भौजी ने कोई चहलकर्मी नहीं की तो मैंने आँखें खोलीं और भौजी को पीड़ा से जूझते हुए देख बोला;

मैं: See I told you to be careful!

मैंने भौजी की चिंता करते हुए कहा|

भौजी: Its okay जी!

भौजी मुस्कुराते हुए बोलीं, मगर उनकी इस मुस्कराहट में दर्द छुपा था!



भौजी ने अपनी हिम्मत बटोरी और धीरे-धीरे मेरे कामदण्ड की सवारी शुरू की! मेरी उत्तेजना भड़कने लगी थी इसलिए जैसे ही भौजी अपनी कमर ऊपर उठातीं मैं अपनी कमर नीचे खींच लेता, लेकिन जैसे ही भौजी अपनी कमर नीचे लातीं मैं अपनी कमर ऊपर उठा देता जिससे मेरा समूचा लिंग भौजी के गर्भाशय से जा टकराता! मुझे इसमें बहुत मज़ा आने लगा था, भौजी के गर्भाशय से लिंग टकराने का एहसास मेरे लिए आनंदमई था! भौजी की गति बहुत कम थी और मेरी उत्तेजना मुझ पर हावी होने लगी थी! मुझे अब कमान अपने हाथ में चाहिए थी ताकि मैं अपनी गति से चरमोत्कर्ष की राह पर जा सकूँ! मैंने भौजी को कमर से थामा और करवट लेते हुए उन्हें फिर से अपने नीचे ले आया! मैंने गति पकड़ी और अपनी पूरी ताक़त झोकने लगा! मेरी रफ़्तार के आगे भौजी का टिक पाना मुश्किल था क्योंकि इतने सालों बाद तो मेरे अंदर कामज्वर उठा था और आज रात इस ज्वर ने भौजी के फाक्ते उड़ाने थे! उधर भौजी की हालत खराब होने लगी थी, मेरी तेजी ने भौजी के मुख से सीत्कारें निकाल दी थीं; "स्स्स्स्स्स्स...अह्ह्ह्ह...सससस...आह्ह्ह्ह...म्म्म्म....ससस...जानू...प्लीज.....!" भौजी मेरी रफ़्तार का पूर्ण आनंद ले रहीं थीं और उनकी ये सीत्कारें मेरा जोश बढ़ा रहीं थीं! 5 मिनट के भीतर ही अपने जोश में बहते हुए मैं अपने चरमोत्कृष्ठ तक पहुँचने वाला था की तभी मैंने एकदम से break लगा दी! मेरा मन मुझे इतनी जल्दी स्खलन पर जाने से रोक रहा था, वो चाहता था की ये round और देर तक चले इसलिए मुझे खुद पर काबू करना था! मैंने 'Stop-Start' का तरीका अपनाया, जब भी मैं स्खलित होने वाला होता तो मैं एकदम रुक जाता, फिर जब मेरी कामोत्तेजना कम होने लगती तो मैं धीरे-धीरे फिर अपनी गति पकड़ने लगता!



मैं झुक कर भौजी के स्तनों को चूसते हुए अपनी कामोत्तेजना को शांत कर रहा था और भौजी अपने दाएँ हाथ की उँगलियाँ मेरे बालों में चला रहीं थीं, साफ़ था की उन्हें भी संतुष्टि मिल रही थी!

भौजी: स्स्स्स....जानू....आप....रूक क्यों ....गए?

भौजी अपनी साँसें दुरुस्त करते हुए बोलीं! दरअसल भौजी हैरान थीं की भला मैं क्यों अपनी गाडी 100 की स्पीड पर ला कर एकदम से रोक देता हूँ?!

मैं: Just want to extend this pleasure!

मैंने भौजी को आँख मारते हुए कहा, भौजी मेरा इशारा समझ गईं और मुस्कुराने लगीं!

मैं बड़े आराम से भौजी के दोनों श्वेत कबूतरों को अपनी मुठ्ठी से मींजता और उन्हें अपने होठों में भर कर जीभ से चुभलाता, लेकिन भौजी बेसब्र हो रहीं थीं क्योंकि वो मुझे स्खलित होते हुए देखना चाहतीं थीं, इसलिए भौजी ने नीचे से अपनी कमर उचकानी शुरू कर दी! मतलब भौजी चाहतीं थीं की मैं फिर से शुरू हो जाऊँ, मगर मेरे दिमाग में कुछ और ही खुराफात चल रही थी! मैं भौजी के कान में खुसफसाते हुए बोला;

मैं: Hold me tight!

भौजी ने फ़ौरन अपनी बाहों को मेरे गर्दन के इर्द-गिर्द कस लिया और अपनी टाँगों को मेरी कमर के इर्द-गिर्द lock कर लिया| मैंने कस कर भौजी की कमर को थामा और उन्हें खुद से चिपकाए हुए बिस्तर से उठा! भौजी मेरी खुराफात जान नहीं पाईं थीं इसलिए मुस्कुराते हुए हैरानी से मुझे टकटकी बांधे देख रहीं थीं! इधर भौजी को खुद से चिपकाए हुए मैं अपने कमरे के दरवाजे पर पहुँचा और भौजी की पीठ दरवाजे से सटा दी और तेजी से धक्के लगाने लगा! मेरे अंदर जैसे कोई जानवर जाग गया था जो बस अपने 'उपभोग' के बारे में सोच रहा था!

ठंडे फर्श की ठंडक मेरे पाँव के तलवे से होती हुई मेरे जिस्म में नै ऊर्जा फूँक रही थी, मेरा लिंग कहीं शिथिल न पड़ जाए इस डर से मैं भौजी पर कुछ ज्यादा ही ताक़त दिखाने लगा था! उधर भौजी मेरे और दरवाजे के बीच दबी हुई कराहना चाह रहीं थीं, मगर माँ या बच्चे न जाग जाएँ उस डर से अपनी कराह दबाने की जी-तोड़ कोशिश कर रहीं थीं! बीतते हर सेकन्ड के साथ मेरा खुद पर से काबू छूटने लगा था और मेरी गति बढ़ती जा रही थी! वहीं भौजी से अपनी कराह नहीं दबाई जा रही थी, मेरे हर तीव्र झटके से भौजी के मुख से "आहहहनन" की कराह निकल रही थी, मेरे कान भौजी की कराह नहीं सुन रहे थे या फिर मैं इसे भौजी को आ रहे आनंद का सूचक समझ रहा था! कराहते-कराहते भौजी अपने तीसरे चरमोत्कृष्ठ पर पहुँच गई थीं, मैं भी उनके पीछे-पीछे अपने स्खलन की ओर पहुँच चूका था लेकिन तभी भौजी अपने दाँत पीसते हुए बोलीं;

भौजी: I'mmmm cummming! आअह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह....स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स!!!!

भौजी का ये स्खलन बहुत तीव्र था और भौजी की साँस उखड़ने सी लगी थी! भौजी की हालत मुझे खस्ता लग रही थी और उस एक पल में मेरी सारी उत्तेजना काफूर हो गई! मुझे खुद पर क्रोध आने लगा की मैं कैसा प्रेमी हूँ जो अपनी परिणीता पर ऐसी बर्बरता दिखा रहा है! 'क्या सच में इतना बड़ा जानवर हूँ जो अपनी ही प्रेयसी को नोच खाने वाला था?' इस एक सवाल ने मेरा जोश ठंडा कर दिया! मुझे भौजी पर तरस और खुद पर बेहद क्रोध आ रहा था इसलिए मैंने भौजी को बड़े प्यार से सम्भाला और पुनः बिस्तर पर लिटा दिया| भौजी को लिटा कर जैसे ही मैं उनपर से हटने लगा, भौजी ने अपनी दोनों बाहों को मेरी गर्दन के पीछे ले जा कर मुझे जकड़ लिया!

भौजी: कहाँ...जा....रहे....हो....आप?

भौजी अपनी साँसों को नियंत्रित करते हुए बोलीं|

मैं: Yaar look at you…you’re completely exhausted!

मैंने भौजी की चिंता करते हुए कहा|

भौजी: But you haven't finished! And I’m not letting you slip away this time!

भौजी मेरी आँखों में देखते हुए बोलीं|

मैं: यार आप तीन बार...(स्खलित)...हो चुके हो...आप एक और बार बर्दाश्त नहीं कर पाओगे...बेहोश हो जाओगे!

मैंने अपनी चिंता जाहिर की|

भौजी: I don't care!! Finish what you started!

भौजी गुस्से में मुझे हुक्म देते हुए बोलीं|

मैं: Please...don't make me do this!

मैंने भौजी से विनती की तो भौजी पिघल गईं और मेरे आगे हाथ जोड़ते हुए रूँधे गले से बोलीं;

भौजी: I beg of you! I want you inside me!

ये कहते हुए भौजी की आँखें भर आईं थीं, लेकिन इससे पहले की भौजी की आँखें छलकती मैंने भौजी पर झुकते हुए उनके होठों पर जोरदार चुंबन जड़ दिया! मेरे चुंबन का जवाब देते हुए भौजी ने अपनी जीभ मेरे मुख के भीतर पहुँचा दी जिसे मैंने अपने दाँतों से पकड़ लिया और उसे चूसने लगा! मेरा ध्यान चुंबन पर ही केंद्रित था क्योंकि मैं भौजी को चैन की साँस लेने का समय देना चाहता था|



वहीं भौजी में बिलकुल ताकत नहीं बची थी, मगर फिर भी पता नहीं कैसे उन्होंने नीचे से अपनी कमर की थाप मेरे कामदण्ड पर शुरू कर दी! मैं भौजी का इशारा समझ गया और धीरे-धीरे धक्के लगाना शुरू कर दिया| मैंने अपने धक्कों की गति जान-बुझ के कम रखी ताकि भौजी थक न जाएँ, परन्तु मेरा लिंग को इस गति से संतुष्टि नहीं मिल रही थी! मेरी इस धीमी गति में भी भौजी की आह निकल रही थी;

भौजी: लगता है....(आह)....ससस...सारी रात...स्स्स्स्स्स्स.....यूँ ही आपके नीचे कटेगी.......मेरी...(आह)!

भौजी आँखें बंद किये हुए मुस्कुरा कर बोलीं! मैं भौजी का मतलब समझ गया था, अब मुझे मजबूरन अपनी तीव्रता बढ़ानी थी जिसका सीधा असर भौजी के पहले से थके जिस्म पर होने वाला था! मैंने अपनी गति बढ़ाई तो भौजी ने अपने जिस्म को ढीला छोड़ दिया, उनमें अब जरा भी ताक़त नहीं बची थी की वो मेरा साथ दे पाएँ! मेरी तीव्रता के आगे भौजी का जिस्म अब बुरी तरह हिलने लगा था, मुझे जल्द से जल्द हमारा ये सम्भोग सम्पन्न करना था ताकि भौजी को आराम मिले| चरम पर पहुँचने का जोश मेरे दिमाग पर चढ़ने लगा था और मेरी कामोत्तेजना फिर से भड़क उठी थी! मेरा जोश इतना था की नीचे के हमले के साथ-साथ मैंने भौजी के ऊपरी जिस्म पर अपने दाँत गड़ाने शुरू कर दिए! सबसे पहले मेरी नजर भौजी की सुराहीदार गर्दन पर पड़ी, उसे देखते ही पता नहीं मेरे जिस्म में क्या बिजली कौंधी की मैंने उस (गर्दन) पर अपने Dracula जैसे पैने दाँत गड़ा दिए! "आहम्म्म!" भौजी कराहिं पर उनकी ये कराह मेरे लिए उत्तेजना साबित हुई, मैंने अपनी गति और तीव्र कर दी और सीधा भौजी के स्तनों पर हमला कर दिया! मैंने भौजी के दोनों चुचुकों को काट खाया, मेरे काटने से उतपन्न हुए दर्द के कारन भौजी तड़प उठीं मगर मुझ पर रत्ती भर फर्क नहीं पड़ा! भौजी के गोल-गोल, सफ़ेद-सफ़ेद स्तनों को देख मुझे फिर जोश आया और मैंने अपना पूरा मुँह खोल कर सारे दाँत उन (स्तनों) पर गड़ा दिए, भौजी कसमसा कर कराहती रहीं! भौजी का ऊपर का जिस्म जगह-जगह से मेरे काटने के कारण लाल हो चूका था!



20 मिनट की धक्कमपेल के बाद हम दोनों के जिस्म पसीने से तरबतर थे! भौजी अपने स्खलन पर पहुँच चुकीं थीं और उनसे अब बर्दाश्त कर पाना नामुमकिन था! भौजी ने तैश में आकर अपने नाखून मेरी नंगी पसीने से भीगी पीठ में गड़ा दिए तथा मुझसे कस कर चिपक गईं! भौजी के स्खलन ने उनके भीतर से सारी जान निकाल दी थी, परन्तु अपने स्खलन के अंतिम पड़ाव में भौजी ने कचकचा के अपने दाँत मेरे कंधे पर गड़ा दिए और बहुत जोर से काट खाया! "आह्हः!" मैं दर्द से बिलबिलाया! भौजी के काटने से उठे दर्द ने मुझे एकदम से चरम पर पहुँचा दिया और मैं भरभरा कर स्खलित होने लगा! मेरे जिस्म में मौजूद गाढ़ा-गाढ़ा लावा जो इतने सालों से अंडकोष रुपी safe deposit box में पड़ा था वो आज सूत समेत भौजी की योनि में भरने लगा था! मेरा 'जीवन सार' भौजी की फूलकुमारी के भीतर लबालब भर चूका था! मैं बहुत थक गया था इसलिए भौजी के ऊपर ही पसर गया!



अगले दस मिनट तक हम दोंनो इसी तरह पड़े रहे, मेरा कामदण्ड अब भी भौजी की योनि में किसी ‘बुच’ की तरह लगा हुआ था! जैसे मैं भौजी के ऊपर से हटा तो भौजी की योनि में से मेरा लिंग बहार आया और उसके साथ ही हम दोनों का कामरज बाहर की ओर रिसने लगा! मैंने भौजी को देखा तो वो आँखें बंद किये हुए थीं, उनकी हालत मुझे बहुत ज्यादा खस्ता लग रही थी! इतनी खस्ता की मैं अब उनके स्वास्थ्य को लेकर डरने लगा था!

वहीं मेरा पूरा कमरा हम दोनों के कामरस की महक से भरा हुआ था! मैंने side table पर पड़ी घडी उठा कर देखि तो उसमें सुबह के तीन बज रहे थे, मतलब माँ के उठने में बस दो घंटे रह गए थे! मैं सकपका कर खड़ा हुआ और भौजी की नाइटी ढूँढने लगा, नाइटी मिली तो मैंने भौजी को जगाना चाहा पर वो नहीं उठीं! मुझे लगा की थकावट के कारन वो गहरी नींद में होंगी इसलिए मैंने सोचा की मैं ही उन्हें नाइटी पहना देता हूँ! मैंने भौजी का हाथ पकड़ कर उन्हें बिठाया और बड़ी मुश्किल से नाइटी पहनाई क्योंकि भौजी का जिस्म किसी कटे हुए पेड़ की तरह बार-बार बिस्तर पर लुढ़क रहा था! फिर मैंने फटाफट अपने कपड़े पहने, मुझ में भौजी को ब्रा-पैंटी पहनाने का सब्र नहीं था, इसलिए केवल नाइटी पहना कर मैंने भौजी को गोद में उठाया और दबे पाँव उन्हें उनके कमरे में ले आया| मैंने बड़े ध्यान से भौजी को बिस्तर पर लिटाया और उनके ऊपर एक चादर डाल दी तथा भौजी की ब्रा-पैंटी मैंने पलंग के नीचे फेंक दी! मैंने भौजी के माथे को चूमा और अपने कमरे में जाने के लिए पलटा, नजाने क्यों मेरा मन उन्हें सोते हुए देखने का किया?! आज भौजी को पा कर मेरा मन अत्यधिक खुश था, ऐसे मिलन की तो मैंने कभी कल्पना भी नहीं की थी, शायद यही कारन था की मुझे भौजी पर बहुत प्यार आ रहा था! मैं कुछ देर के लिए रुक गया और दिवार का सहारा लेकर भौजी को सोते हुए निहारने लगा| मैं उम्मीद कर रहा था की वो करवट लें, मगर 10 मिनट के इंतजार के बाद भी उन्होंने कोई करवट नहीं बदली तो मुझे घबराहट होने लगी! दरअसल भौजी अपने अंतिम स्खलन के बाद बेहोश हो चुकी थीं और ये बात मुझे अब जा कर महसूस होने लगी थी! मैंने फटाफट भौजी की छाती से अपने कान भिड़ाये और उनके दिल की धड़कन सुनने लगा| भौजी का दिल सामान्य रफ़्तार से धड़क रहा था, मैंने खुद को समझाया की इतने जबरदस्त प्रेम मिलन के बाद भौजी थक गई होंगी, सुबह तक आराम करेंगी तो ठीक हो जाएँगी! यही कामने लिए की सुबह भौजी मेरे लिए चाय ले कर आएँगी, मैं अपने कमरे में लौट आया!



अपने कमरे में लौट कर जब मैंने लाइट जलाई तो मेरा मुँह खुला का खुला रह गया! पूरा पलंग अस्त-व्यस्त था, चादर गद्दे के चारों कोनो से निकली पड़ी थी, ठीक बीचों बीच भौजी की योनि से निकला खून तथा हम दोनों के स्खलन से निकला हुआ कामरज चादर से होता हुआ गद्दे को भिगा रहा था, और तो और मैं अभी दरवाजे के पास खड़ा था, वहाँ भी ज़मीन पर भौजी का कामरज फैला हुआ था! ये दृश्य देख कर मैंने अपना सर पीट लिया; 'ओ बहनचोद! ये क्या गदर मचाया तूने?!' मेरा दिमाग मुझे गरियाते हुए बोला! मैंने फटाफट कमरे की खिड़की खोली ताकि ताज़ी हवा आये और कमरे में मौजूद दो जिस्मों के मिलन की महक को अपने साथ बाहर ले जाए वरना सुबह अगर माँ कमरे में आतीं तो उन्हें सब पता चल जाता! फिर मैंने बिस्तर पर पड़ी चादर समेटी और उसी चादर से दरवाजे के पास वाली ज़मीन पर घिस कर वहाँ पड़ा हुआ भौजी का कामरज साफ़ किया! ये गन्दी चादर मैंने अपने बाथरूम में कोने में छुपा दी, फिर नई चादर पलंग पर बिछाई और मुँह-हाथ धो कर पलंग पर पसर गया! थकावट मुझ पर असर दिखाने लगी थी, पहले सम्भोग और उसके बाद सफाई के कारन मैं बहुत थक चूका था, इसलिए लेटते ही मेरी आँख लग गई! मगर चैन तो मेरी क़िस्मत में लिखा ही नहीं था सो सुबह अलग ही कोहराम मचा जब भौजी उठी ही नहीं!


जारी रहेगा भाग - 26 में...
rashila update hai bhai
bahad
 
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