Nice update bhaiचौबीसवाँ अध्याय: उलझते-सुलझते बंधन
भाग-1
मैं भौजी को प्यार से समझा-बुझा कर नीचे ले आया| रात का खाना मैंने बाहर से मँगाया और हम पाँचों ने साथ बैठ कर खाना खाया| बच्चे मेरे और अपनी मम्मी के जीवन में उठे तूफ़ान से अनजान थे इसलिए बड़े मजे से खाना खा रहे थे! उधर भौजी थोड़ा खामोश-खामोश थीं, माँ उनसे जो थोड़ी बहुत बात कर रहीं थीं, भौजी बस उसका जवाब दे रहीं थीं! इधर मैं अपना ध्यान बच्चों को खाना खाने में लगाए हुए था, ताकि बच्चों के मन में कोई शक न पनपे! पिताजी रात 10 बजे की गाडी से आने वाले थे, इसलिए खाना खा कर मैंने चुपके से भौजी को गर्म पानी करके दिया ताकि वो अपनी सिंकाई कर सकें! फिर मैं पिताजी को लेने railway station निकल गया, ट्रैन थोड़ी लेट थी इसलिए हमें (मुझे और पिताजी को) घर लौटते हुए देर हो गई! घर लौट कर पता चला की भौजी दवाई ले कर सो चुकी हैं, बच्चे मेरे बिना सो नहीं रहे थे इसलिए भौजी ने उन्हें बहुत बुरी तरह डाँटा और बच्चे रोते-रोते सो गए! मुझे उनपर (भौजी पर) गुस्सा तो बहुत आया मगर मैंने अपने गुस्से को दबाया और पिताजी के साथ dining table पर बैठ गया| पिताजी ने खाना खाया और मुझसे काम के बारे में report माँगी, मैंने उन्हें सारी जानकारी दी| हम आगे बात करते मगर माँ ने ‘कौन बनेगा करोड़पति के अमिताभ बच्चन’ की तरह समय समाप्ति की घोषणा कर दी;
माँ: बस करो जी! थके-मांदे आये हो, ग्यारह बज रहे हैं, आराम करो और लड़के को भी आराम करने दो!
माँ की बात सुन पिताजी हँस पड़े और सोने चले गए| मैंने एक नजर भौजी के कमरे में डाली तो पाया की वो सो रही हैं या कम से कम दूर से देख कर तो ऐसा ही लगा|
मैं अपने कमरे में आया तो देखा बच्चे अब भी जगे हुए थे, नेहा ने अपनी बड़ी बहन होने का फ़र्ज़ अच्छे से निभाया था और आयुष की पीठ थपथपाते हुए सुला रही थी! जैसे ही कमरे का दरवाजा खोल कर मैं अंदर आया दोनों बच्चे फुर्ती से पलंग पर खड़े हो गए! मैंने आगे बढ़कर दोनों को गले लगाया, और उनके सर पर हाथ फेरते हुए बोला;
मैं: बेटा मैं कपडे बदल लूँ फिर मैं आप दोनों को प्याली-प्याली कहानी सुनाता हूँ|
अब जा कर दोनों बच्चे मुस्कुरा रहे थे, मैंने कपडे बदले और फटाफट बिस्तर में घुस गया| मैं पलंग के बीचों-बीच लेटा था, अपनी दोनों बाहों को फैलाते हुए मैंने दोनों बच्चों के लिए तकिया बना दिया| आयुष मेरी बाईं तरफ लेटा और नेहा मेरी दाहिनी तरफ, दोनों ने अपने हाथ मेरे सीने पर रख दिए तथा मुझसे से सट कर लेट गए| आयुष ने अपनी बाईं टाँग उठा कर मेरे पेट पर रख दी, उसकी देखा देखि नेहा ने भी अपनी दाईं टाँग उठा कर मेरे पेट पर रख दी! मैंने अपने दोनों हाथों को कस कर बच्चों को अपने सीने से कस लिया और उन्हें एक प्यारी-प्यारी कहानी सुनाने लगा| कुछ ही मिनटों में दोनों बच्चों की आँख लग गई और वो चैन से सो गए|
वो पूरी रात मैं जागता रहा और सोचता रहा की कल मैं कैसे हिम्मत जुटा कर पिताजी से सच कहूँगा? ये तो तय था की पिताजी नहीं मानेंगे और बात घर छोड़ने पर आ जायेगी, लेकिन क्या मेरा घर छोड़ना सही होगा? क्या अपने माँ-पिताजी के इतने प्यार-दुलार का यही सिला होना चाहिए की मैं भौजी के लिए उन्हें छोड़ दूँ? मेरी माँ जिसने मुझे नौ महीने अपनी कोख में रखा, मेरा लालन-पालन किया उसे अपने बच्चों (नेहा-आयुष) के लिए छोड़ दूँ? या मेरे पिताजी जिन्होंने एक पिता होने की सारी जिम्मेदारियाँ निभाईं, मुझे अच्छे संस्कार दिए, एक अच्छा इंसान बनाया उन्हें अपने प्यार (भौजी) के लिए छोड़ दूँ? दिमाग में खड़े इन सवालों ने मुझे एक पल के लिए भी सोने नहीं दिया!
सोचते-सोचते सुबह के 6 बज गए, भौजी बच्चों को जगाने आईं तो मुझे खुली आँखों से कमरे की छत को घूरते हुए पाया|
भौजी: सोये नहीं न सारी रात?
भौजी के सवाल को सुन मैं अपने सवालों से बाहर आया;
मैं: नहीं और जानता हूँ की आप भी नहीं सोये होगे, लेकिन आज पिताजी से बात करने के बाद सब ठीक हो जायेगा!
मैंने गहरी साँस छोड़ते हुए, उठ कर पीठ टिका कर बैठते हुए कहा|
भौजी: मैं आपसे एक विनती करने आई हूँ|
भौजी ने गंभीर आवाज से कहा| मैं जान गया की वो मुझसे यही विनती करेंगी की मैं पिताजी से बात न करूँ, इसलिए मैंने पहले ही उनकी इस बात को मानने से मना कर दिया;
मैं: हाँ जी बोलो! लेकिन अगर आप चाहते हो की मैं वो बात पिताजी से न करूँ तो I'm sorry मैं आपकी ये बात नहीं मानूँगा|
मैंने प्यार से अपना फैसला भौजी के सामने रख दिया|
भौजी: नहीं मैं आपको बात करने के लिए रोक नहीं रही! मैं बस ये कह रही हूँ की आप बात करो पर अभी नहीं, दिवाली खत्म होने दो! कम से कम एक दिवाली तो आपके साथ मना लूँ, क्या पता फिर आगे मौका मिले न मिले?!
भौजी की बातों से ये तो तय था की वो हिम्मत हार चुकीं हैं, उनके मन में ये बात बैठ चुकी है की हमारा साथ छूट जाएगा!
मैं: Hey जान! ऐसे क्यों बोल रहे हो? ऐसा कुछ नहीं होगा, मैं आपको खुद से दूर नहीं जाने दूँगा!
मैंने भौजी को हिम्मत बँधाई|
मैं: आप चाहते हो न की मैं दिवाली के बाद बात करूँ तो ठीक है, लेकिन दिवाली के बाद मैं पिताजी से बात करने में एक भी दिन की देरी नहीं करूँगा! ठीक है?
भौजी मेरे आश्वासन से संतुष्ट थीं|
भौजी: जी ठीक है!
भौजी ने बेमन से कहा और बाहर चली गईं|
इधर मेरे बच्चे कुनमुना रहे थे इसलिए मैंने दोनों के सर चूमते हुए उन्हें उठाया| नींद से जागते ही आयुष और नेहा ने मेरे गाल पर अपनी प्याली-प्याली पप्पी दी तथा ब्रश करने लगे| बाकी दिन नेहा सबसे पहले तैयार होती थी और आयुष को मुझे तैयार करना होता था, मगर आज आयुष पहले तैयार हो गया तथा मेरे फ़ोन पर गेम खेलने बैठ गया| जब नेहा तैयार हुई तो आयुष की पीठ पर थपकी मारते हुए बोली;
नेहा: सारा दिन गेम-गेम खेलता रहता है!
नेहा की प्यारभरी झिड़की सुन आयुष उसे जीभ चिढ़ाने लगा और मेरा मोबाइल लिए हुए घर में दौड़ने लगा| दोनों बच्चों के हँसी-ठाहके से मेरा घर गूँजने लगा और इस हँसी-ठाहके ने माँ-पिताजी के चेहरे पर भी मुस्कान ला दी! माँ-पिताजी के चेहरे पर आई ये मुस्कान मेरे लिए उम्मीद की किरण साबित हुई, मेरा आत्मविश्वास और पक्का हो गया की मैं अपने मकसद में जर्रूर कामयाब हूँगा!
खैर दोनों बच्चों को गोदी में लिए हुए मैं उन्हें school van में बिठा आया, घर आ कर नाश्ता करते समय पिताजी ने मुझे आज के कामों की list बना दी| तीन sites के बीच आना-जाना था इसलिए दोपहर को घर पर खाना नामुमकिन था| मैं तैयार हो कर कमरे से निकलने लगा तो भौजी मेरे कमरे में आईं और प्यार से बोलीं;
भौजी: मैं रात के खाने पर आपका इंतजार करुँगी!
सुबह के हिसाब से अभी भौजी का दिल थोड़ा खुश था, इसलिए मैंने मुस्कुरा कर हाँ में सर हिला दिया| इतने में बाहर से पिताजी की आवाज आई तो मैं उनके पास पहुँचा, दोनों बाप-बेटे घर से साथ निकले और सबसे पहले सतीश जी के यहाँ पहुँचे| संतोष वहाँ पहले से ही मौजूद था तो मैंने उसके साथ मिलकर सतीश जी का काम पहले शुरू करवा दिया| फिर वहाँ से मैं गुडगाँव साइट पहुँचा और architect के साथ काम का जायजा लिया| उसके बाद नॉएडा और फिर वापस गुडगाँव, इस भगा दौड़ी में मैंने ध्यान नहीं दिया की मेरा फ़ोन switch off हो चूका है! दरअसल सुबह गेम खेलते हुए आयुष ने फ़ोन की बैटरी आधी कर दी थी! दोपहर को lunch के समय बच्चों ने मुझे कॉल किया मगर मेरा फ़ोन तो switch off था! मुझे भी lunch करने का समय नहीं मिला क्योंकि तब मैं पिताजी वाली साइट की तरफ जा रहा था| शाम को मैंने अपना फ़ोन देखा तो पता चला की मेरा फ़ोन discharge हो चूका है, अब न मेरे पास charger था न power bank की मैं अपना फ़ोन charge कर लूँ!
रात को मुझे आने में देर हो गई, रात के ग्यारह बजे थे| पिताजी खाना खा कर सो चुके थे, बस माँ और भौजी जागीं हुईं थीं! मुझे देख कर भौजी का चहेरा गुस्से से तमतमा गया था, मैं जान गया था की आज मेरी ऐसी-तैसी होने वाली है! मैं कपडे बदलने कमरे में आया तो भौजी भी गुस्से में मेरे पीछे-पीछे आ गईं;
भौजी: सुबह से आपने एक कॉल तक नहीं किया, इतना busy हो गए थे?
भौजी गुस्से से बोलीं|
मैं: जान फ़ोन की बैटरी discharge हो गई थी, इसलिए कॉल नहीं कर पाया!
मैंने अपनी सफाई देते हुए कहा, लेकिन भौजी का गुस्सा रत्तीभर कम नहीं हुआ था!
मैं: I'm sorry जान!
मैंने का पकड़ते हुए प्यार से भौजी को sorry कहा, मगर उनका गुस्सा फिर भी कम नहीं हुआ!
मैं: अच्छा...I know आपने खाना नहीं खाया होगा, चलो चल कर खाना खाते हैं, फिर आप जो सजा दोगे मुझे कबूल होगी!
मैंने बात बनाते हुए कहा ताकि भौजी का गुस्सा शांत हो जाए, मगर वो तुनकते हुए बोलीं;
भौजी: नहीं! मैंने खाना खा लिया!
भौजी का जवाब बड़ा रुखा था! उनका गुस्सा देख मैंने ज्यादा दबाव डालने की नहीं सोची, भौजी भी आगे कुछ नहीं बोलीं और तुनक कर अपने कमरे में चली गईं| मैं कपडे बदलकर बाहर आया तो माँ ने खाना परोस दिया, खाना खाते हुए मैंने चपलता दिखाते हुए भौजी के खाना खाने के बारे में पुछा तो माँ ने बताया की भौजी ने सबके साथ बैठ कर खाना खाया था, मुझे संतोष हो गया की कम से कम उन्होंने (भौजी ने) खाना तो खा लिया था| खाना खा कर मैं बच्चों को लेने के लिए भौजी के कमरे में पहुँचा;
मैं: नेहा...आयुष?
मेरी आवाज सुनते ही नेहा जाग गई और आयुष को जगाने लगी, लेकिन तभी भौजी ने नेहा को डाँट दिया;
भौजी: सो जा चुपचाप!
भौजी की डाँट सुनते ही नेहा सहम गई और फिर से लेट गई! मुझे बुरा तो बहुत लगा पर मैं भौजी के गुस्से को छेड़ना नहीं चाहता था, इसलिए चुप-चाप अपने कमरे में आ कर लेट गया| बच्चों को अपने सीने से चिपका कर सोने की आदत थी, इसलिए अपनी इस आदत के चलते मैंने अपना तकिया अपने सीने से चिपकाया और बच्चों की कल्पना कर सोने की कोशिश करने लगा|
अगली सुबह 5 बजे मेरी बेटी कमरे में आई, मुझे यूँ तकिये को अपने सीने से लगाए हुए देख वो पलंग पर चढ़ी और गुस्से से तकिये को खींच कर फेंक दिया! नेहा जानती थी की गाँव से आने के बाद, मैं नेहा को याद कर के इसी तरह सोता था, लेकिन नेहा को ये कतई पसंद नहीं था क्योंकि वो मुझे इस तरह तरसते हुए नहीं देख सकती थी! नेहा के तकिया खींचने से मेरी नींद खुल गई थी, मैंने अधखुली आँखों से उसे देखा और हैरान हुआ! तभी मुस्कुराते हुए नेहा मेरी छाती पर चढ़ गई और बिना कुछ कहे सो गई! मैंने नेहा का सर चूमा और उसे अपनी बाहों में कसते हुए सो गया!
कुछ देर बाद alarm बजा तो मैंने नेहा का सर चूमते हुए उसे उठाया और ब्रश करने भेज दिया| इधर नेहा गई और उधर आयुष दौड़ता हुआ आया और मेरी गोदी में चढ़ गया| 10 मिनट तक मैं आयुष को गोदी लिए हुए कमरे में इधर से उधर चलता रहा, तभी भौजी गुस्से से भरी हुईं कमरे में आईं और आयुष पर चिल्लाईं;
भौजी: आयुष! तुझे ब्रश करने को कहा था न? चल जल्दी से ब्रश कर!
आयुष को डाँट पड़ी थी मगर फिर भी वो डरा नहीं क्योंकि वो अपने पापा की गोदी में था| मैंने आयुष को लाड करते हुए ब्रश करने को कहा तो वो ख़ुशी-ख़ुशी ब्रश करने चला गया| इधर नेहा अपने स्कूल के कपडे पहनने भौजी के कमरे में चली गई, मैं उठ कर बाहर बैठक में आ कर बैठ गया| पिताजी ने आज के कामों के बारे में मुझे बताना शुरू कर दिया, कल के मुक़ाबले आज काम कम थे इसलिए मैंने सोच लिया था की आज उन्हें (भौजी को) नाराज नहीं करूँगा और समय से खाने पर आ जाऊँगा|
आज मेरा एक काम बच्चों के स्कूल के पास का था, इसलिए आज बच्चों को मैंने खुद स्कूल छोड़ा और अपने काम पर निकल गया| जल्दी निकलने के चक्कर में आज मैंने नाश्ता नहीं किया था, बाकी दिन जब मैं बिना नाश्ता किये निकलता था तो भौजी मुझे नाश्ते के समय कॉल अवश्य करती थीं| मैं जानता था की कल के गुस्से के कारन वो तो आज मुझे कॉल करेंगी नहीं इसलिए मैंने ही उन्हें कॉल घुमाया, फ़ोन बजता रहा मगर भौजी ने फ़ोन नहीं उठाया| मैंने सोचा की शायद माँ सामने होंगी इसलिए नहीं उठा रहीं, कुछ देर बाद मैंने फिर फ़ोन मिलाया, परन्तु भौजी ने फ़ोन नहीं उठाया अलबत्ता काट कर switch off कर दिया! 1 बजे तक मैंने सैकड़ों बार फ़ोन किया मगर भौजी का फ़ोन switch off ही रहा, मैं समझ गया की उन्होंने जानबूझ कर फ़ोन बंद कर रखा है| मैंने what's app पर उन्हें प्यारभरा sorry लिख कर भेज दिया, सोचा शायद मैसेज देख कर उनका दिल पिघल जाये, मगर ऐसा हुआ नहीं!
दोपहर डेढ़ बजे नेहा ने मुझे फ़ोन करना था, उसने जब अपनी मम्मी से फ़ोन माँगा तो भौजी ने उसे कह दिया की बैटरी खत्म हो गई है! मेरी बेटी बहुत होशियार थी, उसने अपनी दादी जी यानी मेरी माँ से फ़ोन लिया और मेरे कमरे में जा कर मुझे फ़ोन किया|
नेहा: पापा जी, आप घर कब आ रहे हो?
नेहा ने चहकते हुए पुछा|
मैं: क्या बात है, मेरा बच्चा आज बहुत खुश है?
मैंने पुछा तो नेहा ख़ुशी-ख़ुशी बोली;
नेहा: आप घर आओगे तब बताऊँगी!
मैं: मैं बस 15 मिनट में आ रहा हूँ बेटा!
मैंने फ़ोन रखा और सोचने लगा की मेरी बेटी आज इतना खुश क्यों है?
कुछ देर बाद जैसे ही मैं घर में घुसा नेहा दौड़ती हुई आई और मेरी टाँगों से लिपट गई| मैंने नेहा को गोद में उठाया और अपने कमरे में आ गया;
नेहा: पापा जी एक मिनट!
नेहा नीचे उतरने के लिए छटपटाई, मैंने उसे नीचे उतारा तो वो भौजी वाले कमरे में दौड़ गई और वापसी में अपने साथ अपनी एक कॉपी ले आई| उसने अपनी कॉपी खोल कर मुझे दिखाई और बोली;
नेहा: पापा जी मुझे आज surprise class test में ‘Excellent’ मिला!
वो 'Excellent' मिलने की ख़ुशी नेहा के लिए किसी पद्म विभूषण से कम नहीं थी| मैंने नेहा को अपने सीने से लगाया और उसके सर को चूमते हुए बोला;
मैं: I’m proud of you my बच्चा!
नेहा को खुद पर इतना गर्व हो रहा था की जिसकी कोई सीमा नहीं थी! नेहा को गोदी में ले कर मैं बाहर आया और माँ को ये बात बताई, माँ को excellent का मतलब नहीं पता लेकिन पूरे नंबर सुन कर माँ ने नेहा को आशीर्वाद दिया| आयुष नहा कर निकला और मेरी गोद में आने को कूदा, आयुष को गोदी में उठा कर मैं गोल-गोल घूमने लगा! आयुष को इस खेल में मज़ा आ रहा था और वो चहक रहा था| तभी भौजी को पता नहीं क्या हुआ वो आयुष को झिड़कते हुए बोलीं;
भौजी: देख अपनी दीदी को, आज उसे surprise class test में EXCELLENT मिला है और तू है की सारा दिन बस खेलता रहता है!
अपनी मम्मी की झिड़की सुन आयुष उदास हो गया| अब मैं उसकी तरफदारी करता तो भौजी नाराज हो जातीं, इसलिए मैं आयुष को गोद में पुचकारते हुए अपने कमरे में आ गया|
मैं: कोई बात नहीं बेटा, जब आपका class test होगा न तब आप भी खूब मन लगा कर पढ़ना और अच्छे नंबर लाना|
पढ़ाई को लेकर मैं अपने बच्चों पर कोई दबाव नहीं बनाना चाहता था, न ही ये चाहता था की आयुष और नेहा के बीच class में top करने की कोई होड़ हो इसीलिए मैंने आयुष से class में top करने की कोई बात नहीं कही| इतने में पीछे से नेहा आ गई और आयुष की पीठ पर हाथ फेरते हुए बोली;
नेहा: आयुष मैं है न अब से तुझे पढ़ाऊँगी, फिर तुझे भी class में excellent मिलेगा!
इतना सुनना था की आयुष खुश हो गया और पहले की तरह चहकने लगा|
दोपहर का खाना खा कर मैं फिर काम पर निकल गया और रात को समय से घर आ गया| मुझे लगा था की मेरे आज सबके साथ खाना खाने से भौजी का गुस्सा कम होगा पर ऐसा नहीं हुआ| रात के खाने के बाद सोने की बारी थी, पिताजी अपने कमरे में लेट चुके थे, माँ टी.वी. देख रहीं थीं, नेहा मेरी गोद में बैठी थी और आयुष ब्रश कर रहा था| इतने में भौजी पीछे से आ गईं और नेहा को सोने के लिए बोलने लगीं, नेहा ने अपनी होशियारी दिखाई और मेरी गोद में बैठ कर सोने का ड्रामा करने लगी! मैंने नेहा का ड्रामा देख लिया था, पर मैं फिर भी खामोश रहा और नेहा की साइड हो लिया| भौजी नेहा को लेने के लिए मेरे पास आईं तो मैंने धीमी आवाज में कहा;
मैं: नेहा सो गई|
भौजी में इतनी हिम्मत नहीं थी की वो नेहा को मेरी गोद से ले लें, इसलिए वो बिना कुछ कहे माँ की बगल में टी.वी. देखने बैठ गईं| अब मैं ज्यादा देर वहाँ बैठता तो भौजी को पता लग जाता की नेहा जागी है, इसलिए मैं नेहा को गोद में ले कर उठा और अपने कमरे में आ गया| कमरे का दरवाजा भिड़ा कर दोनों बाप-बेटी लेट गए;
मैं: मेरा बच्चा ड्रामा करता है!
मैंने नेहा का सर चूमते हुए कहा तो नेहा के चेहरे पर नटखट भरी मुस्कान आ गई| नेहा उठी और मेरी छाती पर सर रख कर बोली;
नेहा: पापा जी....मुझे न अच्छा नहीं लगता की आप तकिये को पकड़ कर सोते हो....आपकी बेटी है न यहाँ?!
जिस तरह से नेहा ने अपनी बात कही थी उसे सुन कर मैं बहुत भावुक हो गया था! मेरी बेटी अपने पापा के दिल का हाल समझती थी, वो जानती थी की मैं उसे कितना प्यार करता हूँ और उसकी (नेहा की) कमी पूरी करने के लिए रत को सोते समय तकिया खुद से चिपका कर सोता हूँ! एक पिता के लिए इस बड़ी उपलब्धि क्या होगी की उसके बच्चे जानते हैं की उनके पिता के दिल में कितना प्यार भरा है!
मैंने नेहा को कस कर अपनी बाहों में भरा और उसके सर को चूमते हुए बड़े गर्व से बोला;
मैं: ठीक है मेरा बच्चा! अब से जब भी आपको miss करूँगा, तो आपको बुला लूँगा! फिर मैं आपको प्यारी-प्यारी कहानी सुनाऊँगा और आप मुझे प्यारी-प्यारी पप्पी देना!
मेरी बात सुन नेहा मुस्कुराने लगी और मेरे दाएँ गाल पर अपनी मीठी-मीठी पप्पी दे कर सो गई|
जारी रहेगा भाग-2 में...