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चौबीसवाँ अध्याय: उलझते-सुलझते बंधन
भाग-2
भाग-2
अब तक आपने पढ़ा:
नेहा: पापा जी....मुझे न अच्छा नहीं लगता की आप तकिये को पकड़ कर सोते हो....आपकी बेटी है न यहाँ?!
जिस तरह से नेहा ने अपनी बात कही थी उसे सुन कर मैं बहुत भावुक हो गया था! मेरी बेटी अपने पापा के दिल का हाल समझती थी, वो जानती थी की मैं उसे कितना प्यार करता हूँ और उसकी (नेहा की) कमी पूरी करने के लिए रत को सोते समय तकिया खुद से चिपका कर सोता हूँ! एक पिता के लिए इस बड़ी उपलब्धि क्या होगी की उसके बच्चे जानते हैं की उनके पिता के दिल में कितना प्यार भरा है!
मैंने नेहा को कस कर अपनी बाहों में भरा और उसके सर को चूमते हुए बड़े गर्व से बोला;
मैं: ठीक है मेरा बच्चा! अब से जब भी आपको miss करूँगा, तो आपको बुला लूँगा! फिर मैं आपको प्यारी-प्यारी कहानी सुनाऊँगा और आप मुझे प्यारी-प्यारी पप्पी देना!
मेरी बात सुन नेहा मुस्कुराने लगी और मेरे दाएँ गाल पर अपनी मीठी-मीठी पप्पी दे कर सो गई|
अब आगे:
अगली सुबह बाप-बेटी समय से उठ गए, नेहा ब्रश करने लगी तो इधर आयुष मेरी गोदी में चढ़ गया| भौजी इस समय अपने कमरे में बच्चों के स्कूल के कपडे इस्त्री कर रहीं थीं, मुझे उनसे बात करने का मन था मगर बात शुरू कैसे करूँ ये सोच रहा था| तभी दिमाग की बत्ती जली और मैंने अपना कंप्यूटर चालु कर उसमें एक गाना लगा दिया, तथा उसके बोल गुनगुनाते हुए भौजी के कमरे की ओर चल पड़ा|
"रूठ ना जाना तुम से कहूँ तो
मैं इन आँखों में जो रहूँ तो
तुम ये जानो या ना जानो
तुम ये जानो या ना जानो
मेरे जैसा दीवाना तुम पाओगे नहीं
याद करोगे मैं जो ना हूँ तो,
रूठ ना जाना तुम से कहूँ तो!”
गाने के बोल सुन भौजी अपने कमरे से बाहर आ गईं और मुझे आयुष को गोदी में लिए हुए देखने लगीं| मुझे गाता हुआ सुन आयुष जाग गया और मुस्कुराते हुए अपने दोनों हाथ उठा कर मेरी गोदी में ही नाचने लगा!
“मेरी ये दीवानगी कभी ना होगी कम,
जितने भी चाहे तुम कर लो सितम,
मुझसे बोलो या ना बोलो,
मुझको देखो या ना देखो,
ये भी माना मुझसे मिलने आओगे नहीं,
सारे सितम हँसके मैं सहूँ तो,
रूठ ना जाना तुम से कहूँ तो!”
मैंने गाने के प्रथम अन्तरे को गुनगुनाते हुए भौजी को उल्हाना दिया, कल से जो वो मुझसे बात नहीं कर रहीं थीं उसके लिए| मैंने गाने के बोलों द्वारा ये भी साफ़ कह दिया की मैं उनके ये सारे सितम सह लूँगा! इस अन्तरे के खत्म होने पर भौजी के चेहरे पर शर्मीली मुस्कान आ ही गई थी! भौजी माँ की चोरी अपने कान पकड़ते हुए दबी आवाज में "sorry" बोल रही थीं! भौजी के इस तरह sorry बोलने से मैं मुस्कुराने लगा और उन्हें तुरंत माफ़ कर दिया! इधर आयुष को गाना सुनने में बहुत मज़ा आ रहा था तो उसने मेरे दाएँ गाल पर पप्पियाँ करनी शुरू कर दी| इतने में नेहा अपनी स्कूल ड्रेस पहन कर आ गई, तो मैंने दोनों बच्चों को गोदी में उठाया और गाने का अंतिम आन्तरा दोनों को गोदी में लिए हुए गाया;
“प्रेम के दरिया में लहरें हज़ार,
लहरों में जो भी डुबा हुआ वही पार,
ऊँची नीची नीची ऊँची,
नीची ऊँची ऊँची नीची,
लहरों में तुम देखूँ कैसे आओगे नहीं,
मैं इन लहरों में जो बहूँ तो,
रूठ ना जाना तुम से कहूँ तो!"
बच्चों को गाने की ये पंक्तियाँ समझ नहीं आईं, उन्हें तो बस 'ऊँची-नीची, नीची-ऊँची" वाली पंक्तियाँ भाईं, जिसे सुन दोनों ने मेरी गोदी में ही नाचना शुरू कर दिया| लेकिन भौजी को अन्तरे की शुरू की दो पंक्तियाँ छू गई थीं, जहाँ एक तरफ मैं हम दोनों (मुझे और भौजी) को एक करने के लिए प्रयास कर रहा था, वहीं दूसरी तरफ वो (भौजी) हमारे पास जो अभी है उसे खोने से डर रहीं थीं| “लहरों में तुम देखूँ कैसे आओगे नहीं” ये पंक्ति ख़ास थी, ये भौजी के लिए एक तरह की चुनौती थी की आखिर कब तक वो इस तरह नाराज रह कर मुझे रोकेंगी?!
गाना खत्म हुआ और माँ ने मुस्कुराते हुए कहा;
माँ: अब बस भी कर! चल जा कर आयुष को तैयार कर!
मैंने बच्चों को स्कूल के लिए तैयार किया और उन्हें उनकी school van में बिठा आया| पिताजी ने मुझे काम की लिस्ट बना दी, आज उनको माँ के साथ कहीं जाना था इसलिए आज सारा काम मेरे जिम्मे था| मैं दिमाग में calculations बिठाने लगा की कैसे भी करके मैं टाइम निकाल कर घर आ सकूँ ताकि भौजी के साथ बिताने के लिए मुझे कुछ समय मिल जाए| मुझे समय बचाना था इसलिए मैं बिना नाश्ता किये ही निकल गया, मेरे निकलने के आधे घंटे बाद माँ-पिताजी भी निकल गए थे| उनके निकलते ही भौजी ने मुझे फ़ोन कर दिया;
भौजी: आपने कुछ खाया?
भौजी ने चिंता जताते हुए पुछा|
मैं: जान, कोशिश कर रहा हूँ की काम जल्दी निपटा कर घर आ जाऊँ!
मैंने उत्साहित होते हुए कहा|
भौजी: वो तो ठीक है, पर पहले कुछ खाओ! मैं आपको 10 मिनट में कॉल करती हूँ|
इतना कह उन्होंने फ़ोन काट दिया| अब हुक्म मिला था तो उसकी तामील करनी थी, इसलिए मैंने चाय-मट्ठी ले ली| पाँच मिनट में उन्होंने (भौजी ने) फिर कॉल कर दिया;
भौजी: कुछ खाया?
भौजी ने एकदम से अपना सवाल दागा|
मैं: हाँ जी, खा रहा हूँ!
मैंने मट्ठी खाते हुए कहा|
भौजी: क्या खा रहे हो?
मैं: चाय-मट्ठी|
मैंने चाय की चुस्की लेते हुए कहा|
भौजी: और कुछ अच्छा नहीं मिला आपको? पता नहीं कैसे पानी की चाय बनाता होगा? कहीं बैठ कर आराम से परांठे नहीं खा सकते थे?!
भौजी नाश्ते को ले कर मेरे ऊपर रासन-पानी ले कर चढ़ गईं!
मैं: जान, जब आपने कॉल किया तब मैं बस में था| आपने खाने का हुक्म दिया तो मैं अगले स्टैंड पर उतर गया, वहाँ जो भी नजदीक खाने-पीने की चीज दिखी वो ले ली|
मैंने अपनी सफाई दी|
भौजी: हुँह!
भौजी मुँह टेढ़ा करते हुए बोलीं और फ़ोन काट दिया| चाय-मट्ठी खा कर मैं साइट की ओर चल दिया, लकिन ठीक 15 मिनट बाद भौजी ने फिर फ़ोन खडका दिया!
भौजी: कहाँ पहुँचे?
भौजी ऐसे बात कर रहीं थीं जैसे वो मुझसे कोई कर्ज़ा वापस माँग रही हों|
मैं: जान अभी रास्ते में ही हूँ! अभी कम से कम पौना घंटा लगेगा!
इतना सुन भौजी ने फ़ोन रख दिया| मुझे भौजी का ये अजीब व्यवहार समझ नहीं आ रहा था? उनसे पूछ भी नहीं सकता था क्योंकि एक तो मैं बस में था और दूसरा भौजी से सवाल पूछना मतलब उनके गुस्से को निमंत्रण देना| मुझे सब्र से काम लेना था इसलिए मैं दिमाग शांत कर के बैठा रहा| ठीक 15 मिनट बाद भौजी ने फिर फ़ोन खड़काया और मुझसे पुछा की मैं कहाँ पहुँचा हूँ तथा साइट पहुँचने में अभी कितनी देर लगेगी?! ये फ़ोन करने का सिलसिला पूरे एक घंटे तक चला, वो फ़ोन करतीं, पूछतीं मैं कहाँ हूँ और फ़ोन काट देतीं| फिर थोड़ी देर बाद कॉल करना, पूछना और कॉल काट देना! पता नहीं उन्हें किस बात की जल्दी थी!
आखिर मैं साइट पर पहुँच ही गया और भौजी ने भी ठीक समय से फ़ोन खड़का दिया!
मैं: हाँ जी बोलिये!
मैंने फ़ोन उठा कर प्यार से कहा|
भौजी: साइट पहुँच गए की नहीं? पाताल पूरी में साइट है क्या?
भौजी चिढ़ते हुए बोलीं|
मैं: हाँ जी बस अभी-अभी पहुँचा हूँ!
मैंने प्यार से कहा|
भौजी: मुझे आपसे कुछ पूछना है?
इतना कह भौजी ने एक लम्बी साँस ली और अपना सवाल दागा;
भौजी: आपने मेरे सामने शादी का प्रस्ताव सिर्फ इसलिए रखा न क्योंकि मैं माँ बनना चाहती थी? अगर मैं ये माँग नहीं करती तो आप मेरे सामने शादी का प्रस्ताव ही नहीं रखते न?
भौजी की आवाज में शक झलक रहा था और मुझे बिना किसी वजह के खुद पर शक किया जाना नागवार था! कोई और दिन होता तो मैं भौजी को अच्छे से झिड़क देता मगर आजकल भौजी का पारा पहले ही चढ़ा हुआ था, अब मैं अगर उन्हें झिड़कता तो उनके पास लड़ने के लिए नया बहाना होता, इसीलिए मैंने हालात को समझते हुए उन्हें प्यार से समझाना शुरू किया;
मैं: जान ऐसा नहीं! चन्दर के गाँव जाने के बाद से मैं एक बिंदु तलाश कर रहा था जिसके सहारे मैं हमारे रिश्ते को बाँध सकूँ और आपको यहाँ अपने पास हमेशा-हमेशा के लिए रोक सकूँ| उस समय मेरे पास सिर्फ और सिर्फ बच्चों का ही बहाना था, मगर जब आपने माँ बनने की बात कही तो मुझे वो बिंदु मिल गया जिसके सहारे मैं हमारे रिश्ते के लिए नै रूप-रेखा खींच सकता हूँ! ऐसी रूप-रेखा जिससे हमारा ही नहीं बल्कि हमारे बच्चों का जीवन भी सुधर जाएगा| अगर आप ने मुझसे माँ बनने की माँग नहीं की होती तो भी मेरे पास हमारे रिश्ते को बचाने के लिए शादी ही आखरी विकल्प रहता! फर्क बस इतना रहता की मैं घर छोड़ने के लिए मानसिक रूप से तत्पर नहीं होता, लेकिन इस वक़्त मैं आपको पाने के लिए सब कुछ छोड़ने को तैयार हूँ!
मैं भौजी को इससे अच्छे तरीके से अपने दिल के जज्बात नहीं समझा सकता था| उधर भौजी ने बड़े गौर से मेरे दिल की बात सुनी, परन्तु उनकी सुई फिर घूम फिरकर मेरे अपने परिवार से अलग होने पर अटक गई;
भौजी: आप सच में मेरे लिए अपने माँ-पिताजी को छोड़ दोगे?
भौजी भावुक होते हुए बोलीं| ये सवाल हम दोनों के लिए बहुत संवेदनशील था, भौजी मुझे अपने परिवार से अलग होता हुआ नहीं देखना चाहतीं थीं और मैं भी अपने माँ-बाप को छोड़ना नहीं चाहता था! शुक्र है की दो दिन पहले मैंने रात भर इस विषय पर गहन विचार किया था, तथा मेरे दिमाग ने मुझे तर्कसिद्ध (logical) रास्ता दिखा दिया था;
मैं: जान, मैं पूरी कोशिश करूँगा की बात मेरे घर छोड़ने तक नहीं आये, मगर फिर भी अगर ऐसे हालात बने तो भी मैं अपने माँ-पिताजी को अच्छे से जानता हूँ! उनका गुस्सा कुछ दिनों का होगा, शादी कर के हम घर लौट आएंगे और मैं उनके पाँव में गिरकर घर छोड़ने की माफ़ी माँग लूँगा| माता-पिता का गुस्सा कभी इतना बड़ा नहीं होता की वो अपने बच्चों को हमेशा-हमेशा के लिए अपनी जिंदगी से निकाल फेंक दें| मेरी माँ का दिल सबसे कोमल है, वो मुझे झट से माफ़ कर देंगी! रही बात पिताजी की तो उन्हें थोड़ा समय लगेगा, परन्तु जब वो देखेंगे की मैं अपने परिवार की जिम्मेदारी अच्छे से उठा रहा हूँ तो वो भी मुझे माफ़ कर देंगे| सब कुछ ठीक हो जाएगा, आप बस मेरा साथ दो!
मैंने भौजी को इत्मीनान से मेरी बात समझा दी थी, अब ये नहीं पता की उनको कितनी बात समझ में आई और कितनी नहीं, क्योंकि मेरी बात पूरी होते ही भौजी ने बिना कुछ कहे फ़ोन काट दिया! मुझे लगा की शायद माँ घर आ गई होंगी इसलिए भौजी ने फ़ोन काट दिया, पर ऐसा नहीं था क्योंकि माँ शाम को घर पहुँचीं थीं|
खैर मैं कुछ हिसाब-किताब करने में लग गया, लेबर की दिहाड़ी का हिसाब करना था और माल के आने-जाने का हिसाब लिखना था| लंच के समय भौजी ने मुझे कॉल किया, मैं उस वक़्त लेबर से सामान चढ़वा रहा था फिर भी मैंने उनका कॉल उठाया;
भौजी: खाना खाने कब आ रहे हो आप?
भौजी ने बड़े साधारण तरीके से पुछा|
मैं: जान, अभी साइट पर ही हूँ, आना नामुमकिन है लेकिन रात को समय से आ जाऊँगा|
मैंने बड़े प्यार से कहा, इस उम्मीद में की भौजी कुछ प्यार से कह दें| लेकिन कहाँ जी, मैडम जी के तो सर पर पता नहीं कौन सा भूत सवार था! इतने में पीछे से आयुष की आवाज आई;
आयुष: मम्मी मुझे पापा से बात करनी है|
आयुष खुश होते हुए बोला| दरअसल बच्चे जानते थे की अगर उनकी मम्मी फ़ोन पर बात कर रहीं हैं तो वो मुझसे ही बात कर रहीं हैं|
भौजी: तेरे पापा नहीं आने वाले, अब जा कर कपडे बदल!
भौजी ने बड़े रूखे शब्दों से आयुष से कहा|
नेहा: मुझे बात करनी है!
नेहा अपना हाथ उठाते हुए बोली|
भौजी: फ़ोन की बैटरी खत्म हो गई!
ये कहते हुए भौजी ने फ़ोन काटा और अपना फ़ोन switch off कर दिया| मैं इतना तो समझ चूका था की भौजी ने जानबूझ कर मुझे ये सब सुनाने के लिए कहा है, मगर इसका कारन क्या है ये मेरी समझ से परे था!
रात सात बजे में घर पहुँचा तो मेरा स्वागत मेरे दोनों बच्चों ने प्यार भरी पप्पी से किया! दोनों को गोदी में ले कर मैं खुश हो गया, दिन भर की जितनी थकान थी वो सब मेरे बच्चों की पप्पी ने उतार दी थी! चलो बच्चों के कारन ही सही कम से कम मेरे चेहरे पर मुस्कान तो आ गई थी!
रात के खाने के बाद मैंने भौजी से बात करनी चाहि, मैं उनके कमरे में बात करने पहुँचा तो वो सरसराती हुई मेरी बगल से बाहर निकल गईं और माँ के साथ बैठ कर टी.वी. देखने लगीं| एक बार फिर मुझे गुस्सा चढ़ने लगा, तभी आयुष आ कर मेरी टाँगों से लिपट गया! मैं आयुष और नेहा को ले कर अपने कमरे में आ गया तथा उन्हें कहानी सुनाते हुए सुला दिया|
भौजी के इस रूखेपन से मैं बेचैन होने लगा था इस कर के मुझे नींद नहीं आ रही थी| मैंने उनके अचानक से ऐसे उखड़ जाने के बारे में बहुत सोचा, बहुत जोड़-गाँठ की, गुना-भाग किया और अंत में मैं समझ ही गया!
रात एक बजे आयुष को बाथरूम जाना था, वो उठा और बाथरूम गया, मेरी आँख उसी वक़्त लगी थी इसलिए आयुष के उठने पर मेरी नींद खुल गई थी| मैंने कमरे की लाइट जला दी ताकि आयुष अँधेरे में कहीं टकरा न जाए, जैसे ही आयुष बाथरूम से निकला भौजी मेरे कमरे में घुसीं और आयुष को गोद में उठा कर ले गईं! उन्होंने (भौजी ने) देख लिया था की मैं जाग रहा हूँ, फिर भी उन्होंने ये जानबूझ कर मुझे गुसा दिलाने के लिए किया था| मैं शांत रहा और नेहा को अपनी बाहों में कस कर लेट गया क्योंकि भौजी का इस वक़्त कोई पता नहीं था, हो सकता था की वो दुबारा वापस आयें और नेहा को भी अपने साथ ले जाएँ|
खैर अगले कुछ दिनों तक भौजी और मेरा ये खेल चलता रहा| वो (भौजी) मुझे गुस्सा दिलाने के लिए ऊल-जुलूल हरकतें करती रहतीं| कभी दिनभर इतने फ़ोन करतीं की पूछू मत तो कभी एक फ़ोन तक नहीं करतीं! मैं जब फ़ोन करूँ तो वो फ़ोन काट देतीं और switch off कर के अपने कमरे में छुपा देतीं! मेरे सामने दोनों बच्चों को हर छोटी-छोटी बात पर डाँट देतीं, कभी सोफे पर बैठ कर पढ़ने पर, तो कभी ज़मीन पर बैठ कर पढ़ने पर! कभी घर में खेलने पर तो कभी कभी घर में दौड़ने पर! मैंने इस पूरे दौरान खुद को काबू में रखा और बच्चों के उदास होने पर उनका मन हल्का करने के फ़र्ज़ निभाता रहा|
एक दिन की बात है, sunday का दिन था और सुबह से पानी बरस रहा था| बच्चों के स्कूल की छुट्टी थी, नेहा तो रात में मेरे साथ सोइ थी मगर आयुष जो रात को अपनी मम्मी के साथ सोया था वो सुबह उठ कर मेरी छाती पर चढ़ कर फिर सो गया| सात बजे भौजी आईं और आयुष को मेरी छाती के ऊपर से खींच कर अपने साथ ले गईं| आयुष बेचारा बहुत छटपटाया मगर भौजी फिर भी जबरदस्ती उसे अपने साथ ले गईं और उसे ब्रश करवा के जबरदस्ती पढ़ाने बैठ गईं| मेरा मन सोने का था पर आयुष के साथ होता हुआ ये जुल्म मैं कैसे बर्दाश्त करता, इसलिए मैं बाहर आया और आँख मलते हुए माँ से शिकायत करते हुए बोला;
मैं: यार देखो न sunday के दिन भी बेचारे आयुष को सोने को नहीं मिल रहा!
मेरी बात सुन माँ ने बैठक से आयुष को आवाज मारी;
माँ: आयुष बेटा!
अपनी दादी की बात सुन आयुष दौड़ता हुआ बाहर आया| मुझे माँ के पास बैठा देख वो जान गया की उसकी जान बचाने वाले उसके पापा हैं, आयुष ने खुश होते हुए अपने दोनों हाथ खोल दिए और मैंने उसे अपने सीने से चिपका लिया| 5 मिनट बाद भौजी उठ कर आ गईं;
माँ: बहु आज sunday है, कम से कम आज तो बच्चों को सोने देती!
माँ ने प्यार से भौजी को समझाते हुए कहा तो भौजी सर झुकाते हुए बोलीं;
भौजी: Sorry माँ!
इतना कह वो चाय बनाने लग गईं| जान तो वो (भौजी) गईं थीं की मैंने ही उनकी शिकायत माँ से की है इसलिए उनका गुस्सा फिर उबाले मारने लगा|
मैंने आयुष को खेलने जाने को कहा तो वो अपने खिलौनों से खेलने लगा| इधर पिताजी चाय पीने dining table पर बैठ गए, अब मैं जागा हुआ था तो पिताजी ने मुझे हिसाब-किताब की बातों में लगा दिया| आधे घंटे बाद पिताजी की बात खत्म हुई तो मैं अंगड़ाई लेते हुए उठा| मैं अपने कमरे में जा रहा था की तभी बाहर जोरदार बिजली कड़की, बिजली की आवाज से मेरा ध्यान बारिश की ओर गया| मेरे अंदर का बच्चा बाहर आ गया और मैं सबसे नजरें बचाते हुए छत पर आ गया| जब छत पर आया तो देखा की आयुष पहले से ही बारिश में अपने खिलौनों के साथ खेल रहा है! बाप की तरह बेटे को भी बारिश में खलने का शौक था! मैं चुपचाप छत के दरवाजे पर हाथ बाँधे खड़ा हो कर आयुष को खेलते हुए देखने लगा, उसे यूँ बारिश में खेलते हुए देख मुझे अपना बचपन याद आ रहा था|
2 मिनट बाद जब आयुष की नजर मुझ पर पड़ी तो वो बेचारा डर गया! उसे लगा की मैं उसे बारिश में भीगने के लिए डाटूँगा इसलिए आयुष डरते हुए मेरी तरह सर झुका कर खड़ा हो गया! अब मैं आयुष पर गुस्सा थोड़े ही था जो उसे डाँटता, मैं भी बारिश में भीगते हुए उसके पास पहुँचा और आयुष के सामने अपने दोनों घुटने टेक कर बैठ गया, मैंने आयुष की ठुड्डी पकड़ कर ऊपर उठाई और बोला;
मैं: बेटा मैं आपसे गुस्सा नहीं हूँ! आपको पता है, मुझे भी बारिश में भीगना और खेलना बहुत पसंद है|
मेरी बात सुन आयुष के चेहरे पर मुस्कान आ गई और वो हँसने लगा, आखिर उसे अपने पिता के रूप में एक साथी जो मिल गया था| बस फिर क्या था, बाप-बेटों ने मिलकर खुराफात मचानी शरू कर दी| मैंने छत पर मौजूद नाली पर पत्थर रख कर पानी का रास्ता रोक दिया, जिससे छत पर पानी भरने लगा, अब मैंने आयुष से उसके खिलोने लाने को कहा| खिलौनों में प्लास्टिक की एक नाव थी, उस नाव में मैंने 2-3 G.I. Joe’s बिठा दिए और दोनों बाप-बेटे ने मिलकर नाव पानी में छोड़ दी| नाव कुछ दूर जा कर डूब गई! आयुष को खेल समझ आ गया, आयुष ने G.I. Joe’s को नाव में बिठाया और पानी में छोड़ दिया, इस बार भी नाव कुछ दूर जा कर डूब गई! इस छोटी सी ख़ुशी से खुश हो कर हम दोनों बाप-बेटे ने पानी में ‘छपाक-छपाक’ कर उछलना शुरू कर दिया!
अपनी मस्ती में हम ये भूल गए की हमारे उछलने से नीचे आवाज जा रही है! हमारी चहलकदमी सुन माँ-पिताजी जान गए की मैं और आयुष ही उधम मचा रहे हैं, उन्होंने भौजी को हमें नीचे बुलाने को भेजा| भौजी जो पहले से ही गुस्से से भरी बैठीं थीं, पाँव पटकते हुए ऊपर आ गईं| मैं उस वक़्त आयुष को गोदी में ले कर तेजी से गोल-गोल घूम रहा था और आयुष खूब जोर से खिखिलाकर हँस रहा था! तभी भौजी बहुत जोर से चीखीं;
भौजी: आयुष!
भौजी की गर्जन सुन आयुष की जान हलक में आ गई| मैंने आयुष को नीचे उतारा तो वो सर झुकाते हुए अपनी मम्मी की ओर चल दिया|
भौजी: बारिश में खेलने से मना किया था न मैंने तुझे?!
भौजी गुस्से से बोलीं| भौजी का गुस्सा देख आयुष रोने लगा, मैं दौड़ कर उसके पास पहुँचा और उसे गोदी में लेकर भौजी को गुस्से से घूर कर देखने लगा! मेरी आँखों में गुस्सा देख भौजी भीगी बिल्ली बन कर नीचे भाग गईं! वो जानती थीं की अगर उन्होंने एक शब्द भी कहा तो मेरे मुँह से अंगारे निकलेंगे जो उन्हें जला कर भस्म कर देंगे!
मैं: बस बेटा रोना नहीं, आप तो मेरे बहादुर बेटे हो न?!
मैंने आयुष को पुचकारते हुए कहा| आयुष ने रोना बंद किया और सिसकने लगा| मेरे बेटे के चेहरे पर आये आँसुओं को देख कर मुझे बहुत दुःख हो रहा था, कहाँ तो कुछ देर पहले मेरे बेटे के चेहरे पर मुस्कान छाई हुई थी और अब मेरे बेटे के चेहरे पर उदासी का काला साया छा गया था| अपने बेटे को फिरसे हँसाने के लिए मैं फिर से उसे गोद में ले कर बारिश में आ गया, फिर से बारिश में भीग कर मेरे मेरे बेटे का दिल खुश हो गया और उसके चेहरे पर फिर से मुस्कान खिल उठी! मैंने नाली पर रखा हुआ पत्थर हटाया और आयुष के खिलोने ले कर नीचे आ गया|
माँ ने मुझे और आयुष को बारिश से तरबतर देखा तो मुझे प्यार से डाँटते हुए बोलीं;
माँ: जा कर जल्दी अपने और आयुष के कपडे बदल वरना सर्दी लग जाएगी!
मैंने फटाफट आयुष के कपडे बदले और उसके बाल सूखा दिए, फिर मैंने अपने कपड़े बदले| इतने में नेहा भी जाग चुकी थी और हम दोनों (आयुष और मुझे) को यूँ देख कर हैरान थी! वो कुछ पूछती या कहती उससे पहले ही आयुष ने मुझसे सवाल पुछा;
आयुष: पापा जी, मम्मी इतना गुस्सा क्यों करती हैं?
आयुष ने अपना निचला होंठ फुला कर पुछा|
मैं: बेटा, ये जो आप और मैं ठंड के मौसम में बारिश में भीग रहे थे, इसी के लिए आपकी मम्मी गुस्सा हो गई थीं! अब आप देखो आपकी दादी जी ने भी मुझे बारिश में भीगने के लिए डाँटा न?
देखा जाए तो भौजी का गुस्सा होना जायज था, नवंबर का महीना था और ठंड शुरू हो रही थी, ऐसे में बारिश में भीगना था तो गलत! लेकिन करें क्या, बारिश में भीगना आदत जो ठहरी!
अब चूँकि बारिश हो रही थी तो पिताजी ने माँ से पकोड़े बनाने की माँग की, माँ और भौजी ने मिलकर खूब सारे पकोड़े बना दिए! पकोड़ों की महक सूँघ कर मैं और बच्चे बाहर आ गए| माँ-पिताजी dining table पर बैठ कर पकोड़े खा रहे थे और मैं, भौजी तथा बच्चे थोड़ा दूर टी.वी. के सामने बैठ कर पकोड़े खा रहे थे| पकोड़े खाते समय भौजी का ध्यान खींचने के लिए मैंने बच्चों से बात शुरू की, मैंने ये ध्यान रखा था की मेरी आवाज इतनी ऊँची न हो की माँ-पिताजी सुन लें लेकिन इतनी धीमी भी न हो की भौजी और बच्चे सुन न पाएँ|
मैं: नेहा, बेटा आपको याद है गाँव में एक बार आप, मैं और आपकी मम्मी इसी तरह बैठ कर पकोड़े खा रहे थे?
मैंने भौजी को देखते हुए नेहा से सवाल किया| मेरा सवाल सुन भौजी के चेहरे पर एक तीखी मुस्कान आ गई, वो बारिश में मेरे संग उनका (भौजी का) भीगना, मेरी बाहों में उनका सिमटना, वो खुले आसमान के तले हमारा प्रेम-मिलाप, वो बाहों में बाहें डालकर नाचना, सब उन्हें याद आ चूका था! भौजी के चेहरे पर आई मुस्कान, उस दिन को याद करते हुए बढ़ती जा रही थी! तभी मैंने पकोड़े में मिर्ची लगने का बहाना किया और "सी...सी...सी..." की आवाज निकालने लगा| मेरी सी-सी ने उन्हें (भौजी को) हमारे उस दिन के प्यार भरे चुंबन की याद ताज़ा कर दी थी! भौजी मेरी शरारत जान चुकी थीं तभी वो मुझसे नजरें चुरा कर मसुकुराये जा रहीं थीं! हमारा ये नजरों का खेल और चलता मगर आयुष अपने भोलेपन में बोल उठा;
आयुष: मुझे क्यों नहीं बुलाया?
आयुष की भोलेपन की बात सुन नेहा एकदम से बोल पड़ी;
नेहा: तू तब गेम खेल रहा था!
आयुष के भोलेपन से भरे सवाल और नेहा के टेढ़े जवाब को सुन मैं जोर से ठहाका लगा कर हँस पड़ा! अब जाहिर था की मेरे इस तरह हँसने पर माँ-पिताजी ने कारण जानना था;
मैं: कुछ नहीं पिताजी, वो मैं नेहा को याद दिला रहा था की आखरी बार इस तरह से पकोड़े हमने गाँव में खाये थे, तो आयुष पूछने लगा की तब मैं कहाँ था? इस पर नेहा बोली की तू गेम खेल रहा था!
मेरी बात सुन माँ-पिताजी भी हँस पड़े और उनके संग भौजी तथा नेहा भी हँसने लगे! अपना मजाक उड़ता देख आयुष ने मुँह फुला लिया और मेरी तरफ देखने लगा;
मैं: आजा मेरा बेटा!
ये कहते हुए मैंने आयुष को आपने गले लगा लिया| आज पहलीबार मैंने सबके सामने आयुष को 'मेरा बेटा' कहा था और ये मैंने जानबूझ कर नहीं कहा था, बल्कि अनायास ही मेरे मुँह से निकल गया था| माँ-पिताजी ने इस बात पर गौर नहीं किया, मगर भौजी आँखें बड़ी कर के मुझे देखने लगीं थीं! जब भौजी ने मुझे यूँ आँखें बड़ी कर के देखा तो मुझे मेरे बोले हुए शब्दों का एहसास हुआ, परन्तु मैंने न इस बात को छुपाने की कोशिश की और न ही इस बात को और बढ़ाया| मैंने आयुष को गोद में लिया और अपने हाथ से पकोड़े खिलाने लगा|
जारी रहेगा भाग-3 में...