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Incest एक अनोखा बंधन - पुन: प्रारंभ (Completed)

Rockstar_Rocky

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बहुत ही शानदार अपडेट है

भौजी का गुस्सा तो अभी भी कम नहीं हुआ है manu भाई आप को खोने का डर भी है
बहुत-बहुत धन्यवाद मित्र! :thank_you: :dost: :hug: :love3:
सही कहा मित्र!
 

Rockstar_Rocky

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Ye bhi shi h 🙂

Lekin sayad apne piche ki story nhi padi
Pehle bhi kai bar aisa ho chuka h, bas us samay neha shikar banti thi dono ke beech jagde me, bad me sulah hoti thi to kasme khai jati thi ki fir se bache bech me na ayenge

Lekin kasmo ka kya h toot jati h :sigh:

अरे भाई-भाई! मुझे काहे बदनाम करते हो? मैंने तो कभी बच्चों को डाँटा नहीं! कसमें तोड़ने का शौक भौजी को है!
 

sunoanuj

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Rockstar_Rocky

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चौबीसवाँ अध्याय: उलझते-सुलझते बंधन
भाग-3

अब तक आपने पढ़ा:


अपना मजाक उड़ता देख आयुष ने मुँह फुला लिया और मेरी तरफ देखने लगा;

मैं: आजा मेरा बेटा!

ये कहते हुए मैंने आयुष को आपने गले लगा लिया| आज पहलीबार मैंने सबके सामने आयुष को 'मेरा बेटा' कहा था और ये मैंने जानबूझ कर नहीं कहा था, बल्कि अनायास ही मेरे मुँह से निकल गया था| माँ-पिताजी ने इस बात पर गौर नहीं किया, मगर भौजी आँखें बड़ी कर के मुझे देखने लगीं थीं! जब भौजी ने मुझे यूँ आँखें बड़ी कर के देखा तो मुझे मेरे बोले हुए शब्दों का एहसास हुआ, परन्तु मैंने न इस बात को छुपाने की कोशिश की और न ही इस बात को और बढ़ाया| मैंने आयुष को गोद में लिया और अपने हाथ से पकोड़े खिलाने लगा|



अब आगे:



भौजी के चेहरे पर आई मुस्कान बस कुछ पल के लिए ही थी, वो अब पुनः मुझसे उखड़ी-उखड़ी घर के काम करने में लगी थीं| माँ-पिताजी की मौजूदगी थी इसलिए मैं उनसे खुल कर बात नहीं कर पा रहा था, तो मैंने अपना ध्यान दोनों बच्चों के साथ खेलने में लगा दिया| कुछ देर बाद बारिश रुकी तो पिताजी ने मुझे अपने साथ काम की बात करने के लिए बिठा लिया| आगे भविष्य में काम कैसे बढ़ाना है, किस तरह के projects उठाने चाहिए आदि के विषय में पिताजी ने मेरे विचार जाने| मेरे सपने शुरू से ही ऊँचे रहे हैं, जब मैंने पिताजी से company register करवाने की बात कही तो उन्हें बहुत ख़ुशी हुई! मुझे काम professional ढँग से करने का शौक था, कहने की जर्रूरत तो नहीं की ये शौक मुझे पिताजी से ही लगा था| जब मैं छोटा था तो पिताजी सर्दियों के दिनों में कोर्ट-टाई लगा कर काम पर जाते थे, उन्हें यूँ जाते देख कर मुझे हमेशा गर्व होता था, ऐसा लगता था जैसे मेरे पिताजी किसी बहुत बड़ी company के मालिक हों! Company register करवा कर मैं चाहता था की हम दोनों बाप बेटे ऐसे ही काम पर जाएँ और मेरा बचपन का सपना सच हो जाए| मेरी बात सुन पिताजी मुस्कुराने लगे, फिर उन्होंने मुझसे हिसाब-किताब की बात की तो मैंने उन्हें सारा हिसाब दे दिया| पिताजी मेरे हिसाब-किताब साफ़ रखने से बड़े खुश थे और उनकी ये ख़ुशी गर्व बनकर उनके चेहरे पर झलक रही थी|

वहीं आज पिताजी से बात करते हुए नज़ाने क्यों ऐसा लगा की जैसे वो मेरी तरफ कुछ झुक गए हों! जब से वो गाँव से आये थे, मेरे प्रति उनका व्यवहार कुछ ज्यादा ही नरम हो गया था| शायद गाँव में उन्होंने चन्दर के जो काण्ड देखे उन्हें देखते हुए उन्हें अपने आज्ञाकारी बेटे पर गुमान हो रहा था! बिगड़ने को मैं भी बिगड़ सकता था, शराब मैं भी पीता था, मगर पिताजी के द्वारा पकडे जाने पर मैंने शराब से तौबा कर ली थी और शायद इसी का फक्र पिताजी को हो रहा था! चलो मेरे लिए तो पिताजी का यूँ मेरे प्रति नरम पढ़ना मेरे लिए फायदे की बात थी, क्योंकि मेरे मुख से सच्चाई जानकार वो मुझे सीधा घर से निकाल नहीं देते, बल्कि मुझे मेरी बात रखने का एक मौका अवश्य देते!



बहरहाल दिवाली आने में कुछ दिन रह गए थे, मगर भौजी के वयवहार में रत्ती भर बदलाव नहीं आया था| वही चिचिड़ापन, वही मेरे साथ उखड़े रहना, वही मुझे तड़पाना, मेरी बात न सुनना, मुझसे बात न करना, बच्चों को झिड़कते रहना, बच्चों को मेरे पास सोने न देना बल्कि उन्हें मेरे से दूर रखना! मैं ये सब बर्दाश्त कर रहा था क्योंकि मैं उनके दिल का हाल समझता था| मैं जानता था की वो गलत हैं मगर मैं इस वक़्त उन्हें सही-गलत का भाषण नहीं दे सकता था, क्योंकि उनकी नजर में मैं खुद गलत करने जा रहा था! हाँ एक बात पक्की हो गई थी की भौजी को मेरे ऊपर भरोसा नहीं, या फिर शायद मैं ही अपने ऊपर हद्द से ज्यादा भरोसा करने लगा था!

लेकिन इस सब के बावजूद जहाँ एक ओर भौजी मुझसे खींची-खींची रह रहीं थीं, वहीं दूसरी ओर मैं अपना सब्र दिखाते हुए उनके नजदीक बना हुआ था! हमारा रिश्ता जैसे rubber band बन चूका था जिसे भौजी खींच कर तोडना चाहती थीं, मगर हमारे प्यार का rubber band खींच कर वापस मुझे उनके पास ले आता था|



चूँकि दिवाली नजदीक थी तो छोटे -मोटे कामों का ठेका बढ़ गया था, जिस कारण मैं साइट पर ज्यादा व्यस्त रहने लगा था| रात में मुझे आने में देर हो जाया करती थी, इसलिए भौजी ने जबरदस्ती बच्चों को अपने साथ सुलाना शुरू कर दिया! वहीं दूसरी तरफ मैं व्यस्त होते हुए भी समय निकाल कर भौजी को what's app पर message कर के उन्हें अपनी उपस्थिति से परिचित कराता रहता था| कभी कोई joke भेज देता, तो कभी उन्हें खुश करने के लिए कोई शायरी, कभी-कभी मैं अपनी अच्छी selfie खींच कर भौजी के दिल में अपना प्यार जगाये रखता| भौजी मेरे message तो देख लेतीं मगर किसी message का जवाब नहीं देतीं! मैंने भी हार नहीं मानी और उन्हें kissi की आवाज record कर भेज ने लगा| भले ही भौजी ठंडी पढ़ रहीं हों, पर मैं अपना कर्म करते हुए हमारे romance का दिया जलाये हुए था!



जब से कमाने लायक हुआ था, तब से हर साल दिवाली पर मैं माँ-पिताजी के लिए कुछ न कुछ लिया करता था| इस बार भौजी और मेरे बच्चे साथ थे तो मैंने सब के लिए online कपडे देखना शुरू किया| पिताजी के लिए मैंने branded shirt-pant, माँ के लिए chiffon की साडी, नेहा के लिए लेहंगा चोली और आयुष के लिए मैंने कुरता और धोती order कर दिया| सब के लिए जो भी मैंने मँगाया था वो मैंने घर के पते पर deliver करवाया और माँ को बता दिया की वो ये order ले लें, मगर भौजी के लिए मैंने एक ख़ास बनारसी साडी मँगाई जिसे मैंने अपनी साइट के पते पर मँगवाया ताकि भौजी को पता न चले| माँ की साडी समय से घर आ गई थी, मैंने पीछे पड़ कर माँ को जबरदस्ती के दर्जी के पास भेजा वरना माँ हर बार की तरह ये साडी भी पैक कर के रखतीं, जबकी मैं चाहता था की वो दिवाली पर यही साडी पहने| उधर भौजी की साडी साइट पर deliver हो गई, मगर अब दिक्कत ये थी की उसे दर्जी को दूँ कैसे? दर्जी के पास साडी देने के लिए मुझे भौजी का माप दिलवाना होता, अब अगर भौजी से माप देने की बात कहता तो उन्हें पता चल जाता की मैंने उनके लिए साडी खरीदी है! मुझे ये बात फिलहाल छुपानी थी इसलिए मैंने थोड़ा दिमाग लगाया! मुझे याद आया की कई बार माँ दर्जी को अपना माप न दे कर पहले से सिला कोई कपडा दे देतीं थीं, तो भौजी की साडी के लिए मुझे उनका कोई ब्लाउज चाहिए था! अब उनसे जा कर माँग तो सकता नहीं था इसलिए मैंने चोरी करने का सोचा! अपने घर में, अपनी परिणीता का ब्लाउज चुराने में मुझे बहुत शर्म आ रही थी! लेकिन ब्लाउज तो चाहिए था इसलिए मैं चुपचाप भौजी के कमरे में घुसा और उनका एक ब्लाउज चुरा कर जेब में डालकर अपने कमरे में आ गाय| मैंने एक दूसरे दर्जी को भौजी की साडी और माप के लिए भौजी का चुराया हुआ ब्लाउज दिया ताकि कहीं माँ को पता न चल जाए| आंटी जी (दर्जी) ने माप वाला ब्लाउज साडी के साथ रख लिया था, मैं जानता था की भौजी आज नहीं तो कल ये ब्लाउज ढूँढेंगी जर्रूर, इसलिए मैंने आंटी जी से कहा की वो माप ले कर ब्लाउज मुझे वापस दे दें! आंटी जी ने माप ले कर ब्लाउज मुझे दे दिया, मैंने उन्हें समय से पहले साडी और ब्लाउज तैयार करने को कहा| थोड़े पैसे बढ़ा कर आंटी जी मान गईं और मुझे धनतेरस के दिन साडी और ब्लाउज ले जाने को कहा|



इधर माँ ने मुझे एक दिन भौजी के सामने पूछ लिया;

माँ: तूने सब के लिए कुछ न कुछ मँगाया पर अपनी दोस्त, अपनी भौजी के लिए कुछ क्यों नहीं मँगाया?

माँ का सवाल सुन मैं थोड़ा हैरान था, ऊपर से भौजी भी वहीं बैठीं सब्जी काट रहीं थीं| अगर माँ ने अकेले में पुछा होता तो मैं उन्हें सच बता देता, मगर भौजी के सामने कैसे कुछ कहूँ?

मैं: क्या है न माँ, दोस्ती का रिश्ता दो तरफा होता है! ये तो कहीं की रीत नहीं की सिर्फ मैं ही दोस्ती का रिश्ता निभाऊँ!

मैंने भौजी को उल्हाना देते हुए कहा और उठ कर साइट पर निकल गाय| मैं तो उल्हाना दे कर चल दिया, मगर मेरे पीछे माँ ने भौजी से सवालों की झड़ी लगा दी! पता नहीं बेचारी भौजी ने क्या-क्या कहा होगा, सच तो बोल नहीं पाईं होंगी?! बेचारी ने मन मारकर माँ से झूठ ही कहा होगा! मुझे लगा की भौजी समय मिलने पर जर्रूर मुझे कॉल करेंगी और मुझसे शिकायत करेंगी या लड़ेंगी, परन्तु उन्होंने ऐसा कुछ नहीं किया!



उधर दिवाली के उपलक्ष्य में बच्चों की स्कूल की छुट्टियाँ हो चुकीं थीं, घर में अकेले रहते हुए बच्चे मुझसे दूर रह कर दुखी रहने लगे थे! उधर मैं भी काम बढ़ने के कारण बच्चों को जरा सा भी समय नहीं दे पा रहा था| रात को थक कर चूर देर से घर आना और सुबह 8 बजे तक सो के नींद पूरी करने के कारण मैं बच्चों को देख भी नहीं पाता था| वहीं भौजी बच्चों को मुझसे दूर रखते हुए उन्हें सुबह या रात को मेरे पास आने नहीं देतीं| रात को मेरे घर आने से पहले ही वो बच्चों को जबरदस्ती डाँट-फटकार कर सुला देतीं, मुझे खाना परोस कर वो सोने चली जातीं और अपने कमरे का दरवाजा अंदर से बंद कर लेतीं ताकि देर रात या सुबह बच्चे उठ कर मेरे पास न आ जाएँ| भौजी के दरवाजा बंद कर सोने का एक कारण और भी था, वो ये की कहीं मैं रात को उनसे बात करने न चला आऊँ! जब बच्चों का स्कूल होता था तब वो ये ध्यान रखतीं की बच्चे मेरे पास न आ पाएँ इसके लिए वो दोनों बच्चों के सर पर खड़ीं रहतीं और उन्हें तैयार करतीं थीं| जब बच्चों के स्कूल की छुट्टियाँ हुईं तो उन्होंने बच्चों को सुबह उठने से मना कर दिया! भौजी की इस सख्ती के कारण सुबह-सुबह मुझे मिलने वाली मीठी-मीठी पप्पी भी बंद हो गई थी! दोपहर को बच्चे मुझे फ़ोन करना चाहते तो भौजी उन्हें झूठ बोल देतीं की मैं काम में व्यस्त हूँ और बात नहीं कर सकता| बच्चे बेचारे मन मसोस कर रह जाते और मायूस हो कर बैठ जाते! वो तो मेरे माँ-पिताजी यानी उनके दादा-दादी थे जो उनका मन बहलाये रखते थे, जिससे बच्चे थोड़ा खिले-खिले रहते! दोनों बच्चे जानते थे की उन पर ये जुल्म उनकी मम्मी ही कर रही है, क्योंकि मैं ऐसा कतई नहीं था! आयुष चूँकि छोटा था तो कुछ कह नहीं पाता था, परन्तु नेहा बड़ी थी और उससे अपनी मम्मी का ये उखड़ा हुआ व्यवहार बर्दाश्त नहीं हो रहा था| नेहा का मन दिनभर मेरे बिना नहीं लगता था, रात होती तो उसे मेरे बिना नींद नहीं आती, वो तो उसे अपनी मम्मी का डर था जिसके मारे वो सहती रहती थी| परन्तु अब उसके सब्र की इंतेहा हो रही थी, उसके मन का ज्वालामुखी फटने की कगार पर आ चूका था!



धनतेरस से एक दिन पहले की बात है, रात में आज फिर मैं देर से घर आया था| भौजी ने बच्चों को डरा-धमका कर सुला दिया था, पिताजी तो पहले ही सो चुके थे बस माँ और भौजी टी.वी. देखते हुए मेरा इंतजार कर रहे थे| मैं घर पहुँचा तो भौजी मेरा खाना परोसने लगीं, मैं मुँह-हाथ धो कर खाना खाने बैठ गया| भौजी और मेरे बीच अब भी कोई बात नहीं हो रही थी, मैंने बात शुरु करते हुए माँ से बच्चों के बारे में बात करना शुरू कर दिया| माँ और मेरी बात होने लगी तो भौजी माँ को “शुभरात्रि” बोल कर सोने चली गईं, रोज की तरह मुझे उनके दरवाजा अंदर से बंद करने की आवाज आई| दिल तो बहुत दुखता था की वो मुझे मेरे ही बच्चों से दूर कर रहीं हैं, मगर माँ की उपस्थिति के कारण मैं लाचार था| खाना खा कर बर्तन सिंक में डालकर मैं सोने चला गया और माँ भी सोने चली गईं| रात के 12 बजे थे और नेहा कोई डरावना सपना देख कर दहल गई थी, वो चुपचाप उठ कर मेरे पास आने लगी तो भौजी ने उसे डाँट दिया;

भौजी: चुपचाप सो जा!

भौजी की डाँट सुन कर भी नेहा नहीं मानी और सिसकते हुए कुर्सी खींच कर दरवाजे के पास ले आई| कुर्सी पर चढ़ कर वो दरवाजे की चिटकनी खोलने लगी, अब तक भौजी उठ चुकीं थीं और उन्होंने कमरे की लाइट जला दी थी| भौजी ने जब नेहा को कुर्सी पर चढ़ कर चिटकनी खोलते देखा तो उनका गुस्सा फूट पड़ा;

भौजी: नेहा! तुझे समझ नहीं आती एक बार में?! सो जा चुप चाप!

भौजी का गुस्सा देख नेहा से बर्दाश्त नहीं हुआ और वो रोते हुए अपनी मम्मी पर चिल्लाई;

नेहा: नहीं!

इतना कह वो फटाफट कुर्सी से नीचे कूदी और दरवाजा खोलकर मेरे कमरे की तरफ दौड़ी| उधर नेहा की चीख सुन कर मैं उठ कर बैठ चूका था, मैंने फटाफट कमरे की लाइट जलाई और उठ कर अपने दरवाजे तक पहुँचा था की रोती हुई नेहा आ कर मेरी टाँगों से लिपट गई! मैंने नेहा को गोद में उठाया और उसे पुचकारते हुए चुप कराने लगा| मेरी बेटी फफक कर रो रही थी और उसे यूँ रोता हुआ देख मेरा दिल खून के आँसूँ रोने लगा था! मैं नेहा की पीठ सहलाते हुए उसे ढाँढस बँधा रहा था की तभी मेरी नजर भौजी के कमरे पर पड़ी, मैंने देखा भौजी गुस्से से आँखें बड़ी कर के मुझे और नेहा को देख रहीं हैं! भौजी की आँखों में गुस्सा देख मेरी आँखें गुस्से से जलने लगीं, मैंने घूर कर उन्हें देखा और गुस्से में आ कर मेरे मुँह से कुछ निकलने वाला था की तभी माँ-पिताजी आ गए! नेहा की चीख सुन के वे भी जाग गए थे, उन्हें अपने सामने देख मैंने अपने होंठ सी लिए और गुस्से से दाँत पीसते हुए खामोश हो गया!

पिताजी: क्या हुआ बेटा, नेहा क्यों चीखी?

पिताजी ने चिंतित होते हुए पुछा|

मैं: बुरा सपना देख कर उठ गई!

मैंने दाँत पीसते हुए भौजी को देखते हुए कहा, मेरा गुस्सा देख कर भौजी की जान हलक में आ गई थी और वो सर झुकाये मुझसे नजरें चुराने लगीं! घर में कलेश न हो इसलिए मैं नेहा को गोदी में लिए हुए कमरे में आ गया, बाकी सब भी अपने-अपने कमरे में लौट गए!



मैं नेहा को गोदी में लिए कमरे में टहलने लगा और उसे पुचकार कर शांत कराने लगा, थोड़ा टाइम लगा नेहा का रोना रुकने में|

नेहा: पा..पा (पापा)... म…मम्मी...मु...झे (मुझे)....आप...से....अ...लग (अलग)....कर....रही...है!

नेहा सिसकते हुए बोली| नेहा की बात सुन मैं सख्ते में था क्योंकि मैंने उस छोटी सी बच्ची से इतनी बड़ी बात सोचने की कभी उम्मीद नहीं की थी! मैंने नेहा को गोदी से उतारा और उसे पलंग पर खड़ा करते हुए उसकी आँखों में देखते हुए बोला;

मैं: बेटा कोई मुझे आप से अलग नहीं कर सकता! उन्हें (भौजी को) जो करना है वो करने दो, आप ये कभी मत सोचना की हम दोनों बाप-बेटी कभी अलग होंगें! मैं आपको कभी खुद से दूर जाने नहीं दूँगा, चाहे मुझे उसके लिए किसी से भी लड़ना पड़े!

मेरी आवाज में बहुत आत्मविश्वास था, इतना आत्मविश्वास की मेरी बेटी के मन से मुझसे अलग होने का डर हमेशा-हमेशा के लिए जा चूका था!

डर से मुक्त हो कर नेहा ने मुस्कुराने की कोशिश की, मैंने नेहा के आँसूँ पोछे और उसे समझाते हुए बोला;

मैं: बेटा आपकी मम्मी इस वक़्त बहुत बड़ी उलझन में हैं! सही चीज जो उनके सामने है वो उसे समझ नहीं पा रहीं, डर रहीं हैं और अपने इस डर को छुपाने के लिए अपना गुस्सा आप दोनों पर निकाल रहीं हैं!

मैं नेहा को सब सच नहीं बता सकता था क्योंकि अपनी माँ से बगावत की चिंगारी जो आज नेहा के अंदर जली थी, ये बात जानकार वो चिंगारी कभी भी धधकती हुई आग बन सकती थी, इसीलिए मैंने नेहा से सारी बात गोल-मोल की थी! नेहा ने मुझसे कोई सवाल नहीं पुछा और आ कर मुझसे लिपट गई! दोनों बाप-बेटी रात को चैन से सोये, सुबह हुई तो माँ हमें जगाने आईं| बच्चों के स्कूल की छुट्टी थी इसलिए सुबह सब आराम से उठे थे| नेहा अभी नींद में थी और नींद में होते हुए भी मेरी छाती से चिपटी हुई थी, मैं नेहा को गोद में लिए हुए बाहर आया और बैठक में बैठ गया| पिताजी ने नेहा की पीठ थपथपाई और मुझसे बात करने लगे| आज चूँकि धनतेरस थी तो उन्होंने माँ के साथ खरीदारी करने जाना था और मेरे हिस्से सारे काम आ गए थे| चूँकि मैं नेहा को गोदी लिए हुए था तो पिताजी ने कागज़ पर मेरे लिए आज के काम की लिस्ट बना कर दे दी| इतने में माँ चाय ले आईं, नेहा को यूँ सोता हुआ देख उन्होंने नेहा के सर पर हाथ फेरा और नेहा को पुकारा| नेहा आँख मलते हुए जागी और मेरे गाल पर अपनी मीठी-मीठी पप्पी दी! अब तो आयुष भी जाग चूका था और मेरी आवाज सुन वो अंदर से दौड़ता हुआ आया| नेहा मेरी गोदी से उतरी ताकि उसके भाई को भी थोड़ा प्यार मिले, नेहा बाथरूम गई और इधर आयुष ने मेरे गाल पर मीठी-मीठी पप्पी दी! मैं आयुष को गोदी में ले कर अपने कमरे में आया, नेहा उस समय बाथरूम से निकल रही थी जब आयुष मुस्कुराते हुए बोला;

आयुष: I love you पापा!

इतने दिनों बाद अपने पापा के गले लग कर आयुष खुश हो गया था| मैंने आयुष के माथे को चूमा और बोला;

मैं: पापा loves you too बेटा!

मेरे दोनों बच्चे जिस प्यार को तरस रहे थे उसे पा कर वो खुश हो गए थे| नाश्ता कर मैं तैयार होने लगा तो नेहा डरी हुई सी मेरे पास आई;

नेहा: पापा जी, मैं भी आपके साथ चलूँ?

नेहा सर झुकाते हुए बोली| दरअसल नेहा जानती थी की आज घर पर बस वो, आयुष और उसकी मम्मी होंगे! ऐसे में भौजी के गुस्से का कोई भरोसा नहीं, हो सकता था की कल रात की नेहा की गुस्ताखी के लिए आज उसे मार पड़ती! इधर मैं अपने साथ दोनों बच्चों को नहीं रख सकता था, क्योंकि साइट पर वो दोनों बोर हो जाते!

मैं: Sorry बेटा! लेकिन मेरा काम दौड़-भाग वाला है! लेकिन आप चिंता मत करो, मेरा पास एक plan है!

मैंने नेहा को अपनी ऊँगली पकड़ाई और उसे पिताजी के पास बैठक में ले आया;

मैं: पिताजी, आप से एक गुजारिश है!

इतना सुन पिताजी उत्सुक्ता से मुझे देखने लगे|

मैं: पिताजी आप खरीदारी करने जा रहे हैं तो दोनों बच्चों को साथ ले जाइये!

बाहर घूमने जाने की बात से आयुष तो दौड़ कर मेरे पास आ गया|

पिताजी: अरे बेटा ये भी कोई कहने की बात है! तू चिंता न कर हम सारे (पिताजी, माँ, आयुष, नेहा और भौजी) चले जाएँगे!

अपनी मम्मी की डाँट से बचने का मौका मिला तो नेहा के चेहरे पर भी ख़ुशी की मुस्कान आ गई|

मैं: बेटा आप दोनों अपने दादा जी और दादी जी को तंग मत करना!

मैंने प्यार से दोनों बच्चों को हिदायत दी| इतने में पीछे से माँ बोल पड़ीं;

माँ: हमारे बच्चे हमें तंग थोड़े ही करते हैं!

माँ को अपनी तरफदारी करते सुन दोनों बच्चे उनके पास दौड़ गए| माँ उस समय dining table पर बैठीं थीं और उन्हीं की बगल में भौजी बैठीं नाश्ता कर रहीं थीं| मैं माँ के पास आया तो भौजी उठ गईं, मैंने दोनों बच्चों को पिताजी के पास भेजा तथा मैं खुद माँ के पास बैठा और धीमी आवाज में उनसे बोला;

मैं: माँ, बच्चों का ध्यान रखना!

इतना कह मैंने भौजी की तरफ गर्दन से इशारा किया और अपनी बात पूरी की;

मैं: मेरे आने तक बच्चों को इनसे दूर रखना!

मेरी बात सुन माँ अचरज में पड़ गईं और पूछ बैठीं;

माँ: क्यों?

माँ ने भोयें सिकोड़ कर पुछा| मैंने फिर से भौजी की तरफ गर्दन से इशारा किया और बोला;

मैं: इनका पारा आजकल बहुत चढ़ा हुआ है!

माँ मेरी बात समझ गईं और बोलीं;

माँ: तू चिंता मत कर मैं समझाऊँगी बहु को!

सच कहूँ तो मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता था की माँ उनसे क्या बात करेंगी, इसलिए मैंने कोई प्रतिक्रया नहीं दी और नकली मुस्कान के साथ उठ गया| मैं दोनों बच्चों को "bye" कहा और बदले में मुझे दोनों बच्चों ने अपनी प्यारी-प्यारी पप्पी दी!

मैं काम पर आया और उधर बच्चों ने माँ-पिताजी के साथ खूब मस्ती की! माँ-पिताजी ने दोनों बच्चों को खूब लाड-प्यार से घुमाया और अच्छे से खिलाया-पिलाया! पिछले कुछ दिनों से बच्चों पर जो अपनी मम्मी का दबाव बन गया था वो आज की मौज-मस्ती ने खत्म कर दिया था| बजार से घूम कर आते-आते सब को 3 बज गए थे, घर आते ही दोनों बच्चों ने अपनी दादी जी के फ़ोन से मुझे कॉल किया और बड़े उत्साह से मुझे सारा ब्यौरा दिया! मैं खुश था की मेरे बच्चे खुश हैं!

रात को जब मैं घर पहुँचा तो बच्चे ख़ुशी से चहक रहे थे| वहीं माँ ने भौजी से उनके गुस्से को ले कर बात की थी और उन्हें बहुत समझाया भी था, यही कारण था की भौजी इस वक़्त शांत थीं मगर मेरे प्रति वो अब भी उखड़ीं थीं! अब तो माँ से उनकी (भौजी की) शिकायत करने की तोहमत भी मेरे सर लग चुकी थी! चलो मुझे तो भौजी के गुस्से की आदत पड़ चुकी थी इसलिए मैंने इस बात का बुरा लगाना ही छोड़ दिया!



अगले दिन छोटी दिवाली थी और आज माँ-पिताजी का plan जान-पहचान में मिठाई देने जाना था| कल की दादा-दादी संग की गई मस्ती के कारण बच्चे आज भी उन्हीं के संग रहना चाहते थे! माँ-पिताजी को इससे कोई परेशानी नहीं थी, बल्कि वो तो बहुत खुश थे! उनका और बच्चों का plan तो सेट था, अब बचे हम दोनों (मैं और भौजी) तो हम दोनों के नसीब में आज मिलना लिखा ही नहीं था! मिश्रा अंकल जी की एक साइट का काम आज फाइनल होना था इसलिए मेरा सारा समय वहीं पर निकला| काम फाइनल हुआ तो मिश्रा अंकल जी ने हाथ के हाथ payment पिताजी के अकाउंट में डलवा दी! रात को जब मैं घर पहुँचा तो दोनों बच्चों ने मुझे घेर लिया और आज की मस्ती के बारे में बताने लगे तथा माँ-पिताजी मुस्कुराते हुए दोनों बच्चों को अपनी बचकानी बात करते हुए देख रहे थे|

मैंने खाना खाया और दोनों बच्चों को अपने साथ ले कर कमरे में आ गया, कल दिवाली थी और मैं घर पर ही रहने वाला था इसलिए दोनों बच्चे चहक रहे थे| जहाँ एक तरफ आयुष को अपने नए कपडे पहनने का उत्साह था, वहीं नेहा को पूरा दिन मेरे साथ रहने की ख़ुशी थी! बच्चों का उत्साह इतना था की आज उन्हें सुलाने के लिए एक कहानी कम पड़ी, दोनों ने "please...please" कह कर दूसरी कहानी भी सुनी और तब जा कर वो सोये!


जारी रहेगा भाग-4 में...
 

Nevil singh

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चौबीसवाँ अध्याय: उलझते-सुलझते बंधन
भाग-1



मैं भौजी को प्यार से समझा-बुझा कर नीचे ले आया| रात का खाना मैंने बाहर से मँगाया और हम पाँचों ने साथ बैठ कर खाना खाया| बच्चे मेरे और अपनी मम्मी के जीवन में उठे तूफ़ान से अनजान थे इसलिए बड़े मजे से खाना खा रहे थे! उधर भौजी थोड़ा खामोश-खामोश थीं, माँ उनसे जो थोड़ी बहुत बात कर रहीं थीं, भौजी बस उसका जवाब दे रहीं थीं! इधर मैं अपना ध्यान बच्चों को खाना खाने में लगाए हुए था, ताकि बच्चों के मन में कोई शक न पनपे! पिताजी रात 10 बजे की गाडी से आने वाले थे, इसलिए खाना खा कर मैंने चुपके से भौजी को गर्म पानी करके दिया ताकि वो अपनी सिंकाई कर सकें! फिर मैं पिताजी को लेने railway station निकल गया, ट्रैन थोड़ी लेट थी इसलिए हमें (मुझे और पिताजी को) घर लौटते हुए देर हो गई! घर लौट कर पता चला की भौजी दवाई ले कर सो चुकी हैं, बच्चे मेरे बिना सो नहीं रहे थे इसलिए भौजी ने उन्हें बहुत बुरी तरह डाँटा और बच्चे रोते-रोते सो गए! मुझे उनपर (भौजी पर) गुस्सा तो बहुत आया मगर मैंने अपने गुस्से को दबाया और पिताजी के साथ dining table पर बैठ गया| पिताजी ने खाना खाया और मुझसे काम के बारे में report माँगी, मैंने उन्हें सारी जानकारी दी| हम आगे बात करते मगर माँ ने ‘कौन बनेगा करोड़पति के अमिताभ बच्चन’ की तरह समय समाप्ति की घोषणा कर दी;

माँ: बस करो जी! थके-मांदे आये हो, ग्यारह बज रहे हैं, आराम करो और लड़के को भी आराम करने दो!

माँ की बात सुन पिताजी हँस पड़े और सोने चले गए| मैंने एक नजर भौजी के कमरे में डाली तो पाया की वो सो रही हैं या कम से कम दूर से देख कर तो ऐसा ही लगा|

मैं अपने कमरे में आया तो देखा बच्चे अब भी जगे हुए थे, नेहा ने अपनी बड़ी बहन होने का फ़र्ज़ अच्छे से निभाया था और आयुष की पीठ थपथपाते हुए सुला रही थी! जैसे ही कमरे का दरवाजा खोल कर मैं अंदर आया दोनों बच्चे फुर्ती से पलंग पर खड़े हो गए! मैंने आगे बढ़कर दोनों को गले लगाया, और उनके सर पर हाथ फेरते हुए बोला;

मैं: बेटा मैं कपडे बदल लूँ फिर मैं आप दोनों को प्याली-प्याली कहानी सुनाता हूँ|

अब जा कर दोनों बच्चे मुस्कुरा रहे थे, मैंने कपडे बदले और फटाफट बिस्तर में घुस गया| मैं पलंग के बीचों-बीच लेटा था, अपनी दोनों बाहों को फैलाते हुए मैंने दोनों बच्चों के लिए तकिया बना दिया| आयुष मेरी बाईं तरफ लेटा और नेहा मेरी दाहिनी तरफ, दोनों ने अपने हाथ मेरे सीने पर रख दिए तथा मुझसे से सट कर लेट गए| आयुष ने अपनी बाईं टाँग उठा कर मेरे पेट पर रख दी, उसकी देखा देखि नेहा ने भी अपनी दाईं टाँग उठा कर मेरे पेट पर रख दी! मैंने अपने दोनों हाथों को कस कर बच्चों को अपने सीने से कस लिया और उन्हें एक प्यारी-प्यारी कहानी सुनाने लगा| कुछ ही मिनटों में दोनों बच्चों की आँख लग गई और वो चैन से सो गए|



वो पूरी रात मैं जागता रहा और सोचता रहा की कल मैं कैसे हिम्मत जुटा कर पिताजी से सच कहूँगा? ये तो तय था की पिताजी नहीं मानेंगे और बात घर छोड़ने पर आ जायेगी, लेकिन क्या मेरा घर छोड़ना सही होगा? क्या अपने माँ-पिताजी के इतने प्यार-दुलार का यही सिला होना चाहिए की मैं भौजी के लिए उन्हें छोड़ दूँ? मेरी माँ जिसने मुझे नौ महीने अपनी कोख में रखा, मेरा लालन-पालन किया उसे अपने बच्चों (नेहा-आयुष) के लिए छोड़ दूँ? या मेरे पिताजी जिन्होंने एक पिता होने की सारी जिम्मेदारियाँ निभाईं, मुझे अच्छे संस्कार दिए, एक अच्छा इंसान बनाया उन्हें अपने प्यार (भौजी) के लिए छोड़ दूँ? दिमाग में खड़े इन सवालों ने मुझे एक पल के लिए भी सोने नहीं दिया!



सोचते-सोचते सुबह के 6 बज गए, भौजी बच्चों को जगाने आईं तो मुझे खुली आँखों से कमरे की छत को घूरते हुए पाया|

भौजी: सोये नहीं न सारी रात?

भौजी के सवाल को सुन मैं अपने सवालों से बाहर आया;

मैं: नहीं और जानता हूँ की आप भी नहीं सोये होगे, लेकिन आज पिताजी से बात करने के बाद सब ठीक हो जायेगा!

मैंने गहरी साँस छोड़ते हुए, उठ कर पीठ टिका कर बैठते हुए कहा|

भौजी: मैं आपसे एक विनती करने आई हूँ|

भौजी ने गंभीर आवाज से कहा| मैं जान गया की वो मुझसे यही विनती करेंगी की मैं पिताजी से बात न करूँ, इसलिए मैंने पहले ही उनकी इस बात को मानने से मना कर दिया;

मैं: हाँ जी बोलो! लेकिन अगर आप चाहते हो की मैं वो बात पिताजी से न करूँ तो I'm sorry मैं आपकी ये बात नहीं मानूँगा|

मैंने प्यार से अपना फैसला भौजी के सामने रख दिया|

भौजी: नहीं मैं आपको बात करने के लिए रोक नहीं रही! मैं बस ये कह रही हूँ की आप बात करो पर अभी नहीं, दिवाली खत्म होने दो! कम से कम एक दिवाली तो आपके साथ मना लूँ, क्या पता फिर आगे मौका मिले न मिले?!

भौजी की बातों से ये तो तय था की वो हिम्मत हार चुकीं हैं, उनके मन में ये बात बैठ चुकी है की हमारा साथ छूट जाएगा!

मैं: Hey जान! ऐसे क्यों बोल रहे हो? ऐसा कुछ नहीं होगा, मैं आपको खुद से दूर नहीं जाने दूँगा!

मैंने भौजी को हिम्मत बँधाई|

मैं: आप चाहते हो न की मैं दिवाली के बाद बात करूँ तो ठीक है, लेकिन दिवाली के बाद मैं पिताजी से बात करने में एक भी दिन की देरी नहीं करूँगा! ठीक है?

भौजी मेरे आश्वासन से संतुष्ट थीं|

भौजी: जी ठीक है!

भौजी ने बेमन से कहा और बाहर चली गईं|



इधर मेरे बच्चे कुनमुना रहे थे इसलिए मैंने दोनों के सर चूमते हुए उन्हें उठाया| नींद से जागते ही आयुष और नेहा ने मेरे गाल पर अपनी प्याली-प्याली पप्पी दी तथा ब्रश करने लगे| बाकी दिन नेहा सबसे पहले तैयार होती थी और आयुष को मुझे तैयार करना होता था, मगर आज आयुष पहले तैयार हो गया तथा मेरे फ़ोन पर गेम खेलने बैठ गया| जब नेहा तैयार हुई तो आयुष की पीठ पर थपकी मारते हुए बोली;

नेहा: सारा दिन गेम-गेम खेलता रहता है!

नेहा की प्यारभरी झिड़की सुन आयुष उसे जीभ चिढ़ाने लगा और मेरा मोबाइल लिए हुए घर में दौड़ने लगा| दोनों बच्चों के हँसी-ठाहके से मेरा घर गूँजने लगा और इस हँसी-ठाहके ने माँ-पिताजी के चेहरे पर भी मुस्कान ला दी! माँ-पिताजी के चेहरे पर आई ये मुस्कान मेरे लिए उम्मीद की किरण साबित हुई, मेरा आत्मविश्वास और पक्का हो गया की मैं अपने मकसद में जर्रूर कामयाब हूँगा!



खैर दोनों बच्चों को गोदी में लिए हुए मैं उन्हें school van में बिठा आया, घर आ कर नाश्ता करते समय पिताजी ने मुझे आज के कामों की list बना दी| तीन sites के बीच आना-जाना था इसलिए दोपहर को घर पर खाना नामुमकिन था| मैं तैयार हो कर कमरे से निकलने लगा तो भौजी मेरे कमरे में आईं और प्यार से बोलीं;

भौजी: मैं रात के खाने पर आपका इंतजार करुँगी!

सुबह के हिसाब से अभी भौजी का दिल थोड़ा खुश था, इसलिए मैंने मुस्कुरा कर हाँ में सर हिला दिया| इतने में बाहर से पिताजी की आवाज आई तो मैं उनके पास पहुँचा, दोनों बाप-बेटे घर से साथ निकले और सबसे पहले सतीश जी के यहाँ पहुँचे| संतोष वहाँ पहले से ही मौजूद था तो मैंने उसके साथ मिलकर सतीश जी का काम पहले शुरू करवा दिया| फिर वहाँ से मैं गुडगाँव साइट पहुँचा और architect के साथ काम का जायजा लिया| उसके बाद नॉएडा और फिर वापस गुडगाँव, इस भगा दौड़ी में मैंने ध्यान नहीं दिया की मेरा फ़ोन switch off हो चूका है! दरअसल सुबह गेम खेलते हुए आयुष ने फ़ोन की बैटरी आधी कर दी थी! दोपहर को lunch के समय बच्चों ने मुझे कॉल किया मगर मेरा फ़ोन तो switch off था! मुझे भी lunch करने का समय नहीं मिला क्योंकि तब मैं पिताजी वाली साइट की तरफ जा रहा था| शाम को मैंने अपना फ़ोन देखा तो पता चला की मेरा फ़ोन discharge हो चूका है, अब न मेरे पास charger था न power bank की मैं अपना फ़ोन charge कर लूँ!



रात को मुझे आने में देर हो गई, रात के ग्यारह बजे थे| पिताजी खाना खा कर सो चुके थे, बस माँ और भौजी जागीं हुईं थीं! मुझे देख कर भौजी का चहेरा गुस्से से तमतमा गया था, मैं जान गया था की आज मेरी ऐसी-तैसी होने वाली है! मैं कपडे बदलने कमरे में आया तो भौजी भी गुस्से में मेरे पीछे-पीछे आ गईं;

भौजी: सुबह से आपने एक कॉल तक नहीं किया, इतना busy हो गए थे?

भौजी गुस्से से बोलीं|

मैं: जान फ़ोन की बैटरी discharge हो गई थी, इसलिए कॉल नहीं कर पाया!

मैंने अपनी सफाई देते हुए कहा, लेकिन भौजी का गुस्सा रत्तीभर कम नहीं हुआ था!

मैं: I'm sorry जान!

मैंने का पकड़ते हुए प्यार से भौजी को sorry कहा, मगर उनका गुस्सा फिर भी कम नहीं हुआ!

मैं: अच्छा...I know आपने खाना नहीं खाया होगा, चलो चल कर खाना खाते हैं, फिर आप जो सजा दोगे मुझे कबूल होगी!

मैंने बात बनाते हुए कहा ताकि भौजी का गुस्सा शांत हो जाए, मगर वो तुनकते हुए बोलीं;

भौजी: नहीं! मैंने खाना खा लिया!

भौजी का जवाब बड़ा रुखा था! उनका गुस्सा देख मैंने ज्यादा दबाव डालने की नहीं सोची, भौजी भी आगे कुछ नहीं बोलीं और तुनक कर अपने कमरे में चली गईं| मैं कपडे बदलकर बाहर आया तो माँ ने खाना परोस दिया, खाना खाते हुए मैंने चपलता दिखाते हुए भौजी के खाना खाने के बारे में पुछा तो माँ ने बताया की भौजी ने सबके साथ बैठ कर खाना खाया था, मुझे संतोष हो गया की कम से कम उन्होंने (भौजी ने) खाना तो खा लिया था| खाना खा कर मैं बच्चों को लेने के लिए भौजी के कमरे में पहुँचा;

मैं: नेहा...आयुष?

मेरी आवाज सुनते ही नेहा जाग गई और आयुष को जगाने लगी, लेकिन तभी भौजी ने नेहा को डाँट दिया;

भौजी: सो जा चुपचाप!

भौजी की डाँट सुनते ही नेहा सहम गई और फिर से लेट गई! मुझे बुरा तो बहुत लगा पर मैं भौजी के गुस्से को छेड़ना नहीं चाहता था, इसलिए चुप-चाप अपने कमरे में आ कर लेट गया| बच्चों को अपने सीने से चिपका कर सोने की आदत थी, इसलिए अपनी इस आदत के चलते मैंने अपना तकिया अपने सीने से चिपकाया और बच्चों की कल्पना कर सोने की कोशिश करने लगा|

अगली सुबह 5 बजे मेरी बेटी कमरे में आई, मुझे यूँ तकिये को अपने सीने से लगाए हुए देख वो पलंग पर चढ़ी और गुस्से से तकिये को खींच कर फेंक दिया! नेहा जानती थी की गाँव से आने के बाद, मैं नेहा को याद कर के इसी तरह सोता था, लेकिन नेहा को ये कतई पसंद नहीं था क्योंकि वो मुझे इस तरह तरसते हुए नहीं देख सकती थी! नेहा के तकिया खींचने से मेरी नींद खुल गई थी, मैंने अधखुली आँखों से उसे देखा और हैरान हुआ! तभी मुस्कुराते हुए नेहा मेरी छाती पर चढ़ गई और बिना कुछ कहे सो गई! मैंने नेहा का सर चूमा और उसे अपनी बाहों में कसते हुए सो गया!



कुछ देर बाद alarm बजा तो मैंने नेहा का सर चूमते हुए उसे उठाया और ब्रश करने भेज दिया| इधर नेहा गई और उधर आयुष दौड़ता हुआ आया और मेरी गोदी में चढ़ गया| 10 मिनट तक मैं आयुष को गोदी लिए हुए कमरे में इधर से उधर चलता रहा, तभी भौजी गुस्से से भरी हुईं कमरे में आईं और आयुष पर चिल्लाईं;

भौजी: आयुष! तुझे ब्रश करने को कहा था न? चल जल्दी से ब्रश कर!

आयुष को डाँट पड़ी थी मगर फिर भी वो डरा नहीं क्योंकि वो अपने पापा की गोदी में था| मैंने आयुष को लाड करते हुए ब्रश करने को कहा तो वो ख़ुशी-ख़ुशी ब्रश करने चला गया| इधर नेहा अपने स्कूल के कपडे पहनने भौजी के कमरे में चली गई, मैं उठ कर बाहर बैठक में आ कर बैठ गया| पिताजी ने आज के कामों के बारे में मुझे बताना शुरू कर दिया, कल के मुक़ाबले आज काम कम थे इसलिए मैंने सोच लिया था की आज उन्हें (भौजी को) नाराज नहीं करूँगा और समय से खाने पर आ जाऊँगा|

आज मेरा एक काम बच्चों के स्कूल के पास का था, इसलिए आज बच्चों को मैंने खुद स्कूल छोड़ा और अपने काम पर निकल गया| जल्दी निकलने के चक्कर में आज मैंने नाश्ता नहीं किया था, बाकी दिन जब मैं बिना नाश्ता किये निकलता था तो भौजी मुझे नाश्ते के समय कॉल अवश्य करती थीं| मैं जानता था की कल के गुस्से के कारन वो तो आज मुझे कॉल करेंगी नहीं इसलिए मैंने ही उन्हें कॉल घुमाया, फ़ोन बजता रहा मगर भौजी ने फ़ोन नहीं उठाया| मैंने सोचा की शायद माँ सामने होंगी इसलिए नहीं उठा रहीं, कुछ देर बाद मैंने फिर फ़ोन मिलाया, परन्तु भौजी ने फ़ोन नहीं उठाया अलबत्ता काट कर switch off कर दिया! 1 बजे तक मैंने सैकड़ों बार फ़ोन किया मगर भौजी का फ़ोन switch off ही रहा, मैं समझ गया की उन्होंने जानबूझ कर फ़ोन बंद कर रखा है| मैंने what's app पर उन्हें प्यारभरा sorry लिख कर भेज दिया, सोचा शायद मैसेज देख कर उनका दिल पिघल जाये, मगर ऐसा हुआ नहीं!



दोपहर डेढ़ बजे नेहा ने मुझे फ़ोन करना था, उसने जब अपनी मम्मी से फ़ोन माँगा तो भौजी ने उसे कह दिया की बैटरी खत्म हो गई है! मेरी बेटी बहुत होशियार थी, उसने अपनी दादी जी यानी मेरी माँ से फ़ोन लिया और मेरे कमरे में जा कर मुझे फ़ोन किया|

नेहा: पापा जी, आप घर कब आ रहे हो?

नेहा ने चहकते हुए पुछा|

मैं: क्या बात है, मेरा बच्चा आज बहुत खुश है?

मैंने पुछा तो नेहा ख़ुशी-ख़ुशी बोली;

नेहा: आप घर आओगे तब बताऊँगी!

मैं: मैं बस 15 मिनट में आ रहा हूँ बेटा!

मैंने फ़ोन रखा और सोचने लगा की मेरी बेटी आज इतना खुश क्यों है?

कुछ देर बाद जैसे ही मैं घर में घुसा नेहा दौड़ती हुई आई और मेरी टाँगों से लिपट गई| मैंने नेहा को गोद में उठाया और अपने कमरे में आ गया;

नेहा: पापा जी एक मिनट!

नेहा नीचे उतरने के लिए छटपटाई, मैंने उसे नीचे उतारा तो वो भौजी वाले कमरे में दौड़ गई और वापसी में अपने साथ अपनी एक कॉपी ले आई| उसने अपनी कॉपी खोल कर मुझे दिखाई और बोली;

नेहा: पापा जी मुझे आज surprise class test में ‘Excellent’ मिला!

वो 'Excellent' मिलने की ख़ुशी नेहा के लिए किसी पद्म विभूषण से कम नहीं थी| मैंने नेहा को अपने सीने से लगाया और उसके सर को चूमते हुए बोला;

मैं: I’m proud of you my बच्चा!

नेहा को खुद पर इतना गर्व हो रहा था की जिसकी कोई सीमा नहीं थी! नेहा को गोदी में ले कर मैं बाहर आया और माँ को ये बात बताई, माँ को excellent का मतलब नहीं पता लेकिन पूरे नंबर सुन कर माँ ने नेहा को आशीर्वाद दिया| आयुष नहा कर निकला और मेरी गोद में आने को कूदा, आयुष को गोदी में उठा कर मैं गोल-गोल घूमने लगा! आयुष को इस खेल में मज़ा आ रहा था और वो चहक रहा था| तभी भौजी को पता नहीं क्या हुआ वो आयुष को झिड़कते हुए बोलीं;

भौजी: देख अपनी दीदी को, आज उसे surprise class test में EXCELLENT मिला है और तू है की सारा दिन बस खेलता रहता है!

अपनी मम्मी की झिड़की सुन आयुष उदास हो गया| अब मैं उसकी तरफदारी करता तो भौजी नाराज हो जातीं, इसलिए मैं आयुष को गोद में पुचकारते हुए अपने कमरे में आ गया|

मैं: कोई बात नहीं बेटा, जब आपका class test होगा न तब आप भी खूब मन लगा कर पढ़ना और अच्छे नंबर लाना|

पढ़ाई को लेकर मैं अपने बच्चों पर कोई दबाव नहीं बनाना चाहता था, न ही ये चाहता था की आयुष और नेहा के बीच class में top करने की कोई होड़ हो इसीलिए मैंने आयुष से class में top करने की कोई बात नहीं कही| इतने में पीछे से नेहा आ गई और आयुष की पीठ पर हाथ फेरते हुए बोली;

नेहा: आयुष मैं है न अब से तुझे पढ़ाऊँगी, फिर तुझे भी class में excellent मिलेगा!

इतना सुनना था की आयुष खुश हो गया और पहले की तरह चहकने लगा|



दोपहर का खाना खा कर मैं फिर काम पर निकल गया और रात को समय से घर आ गया| मुझे लगा था की मेरे आज सबके साथ खाना खाने से भौजी का गुस्सा कम होगा पर ऐसा नहीं हुआ| रात के खाने के बाद सोने की बारी थी, पिताजी अपने कमरे में लेट चुके थे, माँ टी.वी. देख रहीं थीं, नेहा मेरी गोद में बैठी थी और आयुष ब्रश कर रहा था| इतने में भौजी पीछे से आ गईं और नेहा को सोने के लिए बोलने लगीं, नेहा ने अपनी होशियारी दिखाई और मेरी गोद में बैठ कर सोने का ड्रामा करने लगी! मैंने नेहा का ड्रामा देख लिया था, पर मैं फिर भी खामोश रहा और नेहा की साइड हो लिया| भौजी नेहा को लेने के लिए मेरे पास आईं तो मैंने धीमी आवाज में कहा;

मैं: नेहा सो गई|

भौजी में इतनी हिम्मत नहीं थी की वो नेहा को मेरी गोद से ले लें, इसलिए वो बिना कुछ कहे माँ की बगल में टी.वी. देखने बैठ गईं| अब मैं ज्यादा देर वहाँ बैठता तो भौजी को पता लग जाता की नेहा जागी है, इसलिए मैं नेहा को गोद में ले कर उठा और अपने कमरे में आ गया| कमरे का दरवाजा भिड़ा कर दोनों बाप-बेटी लेट गए;

मैं: मेरा बच्चा ड्रामा करता है!

मैंने नेहा का सर चूमते हुए कहा तो नेहा के चेहरे पर नटखट भरी मुस्कान आ गई| नेहा उठी और मेरी छाती पर सर रख कर बोली;

नेहा: पापा जी....मुझे न अच्छा नहीं लगता की आप तकिये को पकड़ कर सोते हो....आपकी बेटी है न यहाँ?!

जिस तरह से नेहा ने अपनी बात कही थी उसे सुन कर मैं बहुत भावुक हो गया था! मेरी बेटी अपने पापा के दिल का हाल समझती थी, वो जानती थी की मैं उसे कितना प्यार करता हूँ और उसकी (नेहा की) कमी पूरी करने के लिए रत को सोते समय तकिया खुद से चिपका कर सोता हूँ! एक पिता के लिए इस बड़ी उपलब्धि क्या होगी की उसके बच्चे जानते हैं की उनके पिता के दिल में कितना प्यार भरा है!

मैंने नेहा को कस कर अपनी बाहों में भरा और उसके सर को चूमते हुए बड़े गर्व से बोला;

मैं: ठीक है मेरा बच्चा! अब से जब भी आपको miss करूँगा, तो आपको बुला लूँगा! फिर मैं आपको प्यारी-प्यारी कहानी सुनाऊँगा और आप मुझे प्यारी-प्यारी पप्पी देना!

मेरी बात सुन नेहा मुस्कुराने लगी और मेरे दाएँ गाल पर अपनी मीठी-मीठी पप्पी दे कर सो गई|


जारी रहेगा भाग-2 में...
behtreen update mere aziz dost
 

Nevil singh

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चौबीसवाँ अध्याय: उलझते-सुलझते बंधन
भाग-2

अब तक आपने पढ़ा:

नेहा: पापा जी....मुझे न अच्छा नहीं लगता की आप तकिये को पकड़ कर सोते हो....आपकी बेटी है न यहाँ?!

जिस तरह से नेहा ने अपनी बात कही थी उसे सुन कर मैं बहुत भावुक हो गया था! मेरी बेटी अपने पापा के दिल का हाल समझती थी, वो जानती थी की मैं उसे कितना प्यार करता हूँ और उसकी (नेहा की) कमी पूरी करने के लिए रत को सोते समय तकिया खुद से चिपका कर सोता हूँ! एक पिता के लिए इस बड़ी उपलब्धि क्या होगी की उसके बच्चे जानते हैं की उनके पिता के दिल में कितना प्यार भरा है!

मैंने नेहा को कस कर अपनी बाहों में भरा और उसके सर को चूमते हुए बड़े गर्व से बोला;

मैं: ठीक है मेरा बच्चा! अब से जब भी आपको miss करूँगा, तो आपको बुला लूँगा! फिर मैं आपको प्यारी-प्यारी कहानी सुनाऊँगा और आप मुझे प्यारी-प्यारी पप्पी देना!

मेरी बात सुन नेहा मुस्कुराने लगी और मेरे दाएँ गाल पर अपनी मीठी-मीठी पप्पी दे कर सो गई|


अब आगे:

अगली सुबह बाप-बेटी समय से उठ गए, नेहा ब्रश करने लगी तो इधर आयुष मेरी गोदी में चढ़ गया| भौजी इस समय अपने कमरे में बच्चों के स्कूल के कपडे इस्त्री कर रहीं थीं, मुझे उनसे बात करने का मन था मगर बात शुरू कैसे करूँ ये सोच रहा था| तभी दिमाग की बत्ती जली और मैंने अपना कंप्यूटर चालु कर उसमें एक गाना लगा दिया, तथा उसके बोल गुनगुनाते हुए भौजी के कमरे की ओर चल पड़ा|

"रूठ ना जाना तुम से कहूँ तो

मैं इन आँखों में जो रहूँ तो

तुम ये जानो या ना जानो

तुम ये जानो या ना जानो

मेरे जैसा दीवाना तुम पाओगे नहीं

याद करोगे मैं जो ना हूँ तो,

रूठ ना जाना तुम से कहूँ तो!”

गाने के बोल सुन भौजी अपने कमरे से बाहर आ गईं और मुझे आयुष को गोदी में लिए हुए देखने लगीं| मुझे गाता हुआ सुन आयुष जाग गया और मुस्कुराते हुए अपने दोनों हाथ उठा कर मेरी गोदी में ही नाचने लगा!

“मेरी ये दीवानगी कभी ना होगी कम,

जितने भी चाहे तुम कर लो सितम,

मुझसे बोलो या ना बोलो,

मुझको देखो या ना देखो,

ये भी माना मुझसे मिलने आओगे नहीं,

सारे सितम हँसके मैं सहूँ तो,

रूठ ना जाना तुम से कहूँ तो!”

मैंने गाने के प्रथम अन्तरे को गुनगुनाते हुए भौजी को उल्हाना दिया, कल से जो वो मुझसे बात नहीं कर रहीं थीं उसके लिए| मैंने गाने के बोलों द्वारा ये भी साफ़ कह दिया की मैं उनके ये सारे सितम सह लूँगा! इस अन्तरे के खत्म होने पर भौजी के चेहरे पर शर्मीली मुस्कान आ ही गई थी! भौजी माँ की चोरी अपने कान पकड़ते हुए दबी आवाज में "sorry" बोल रही थीं! भौजी के इस तरह sorry बोलने से मैं मुस्कुराने लगा और उन्हें तुरंत माफ़ कर दिया! इधर आयुष को गाना सुनने में बहुत मज़ा आ रहा था तो उसने मेरे दाएँ गाल पर पप्पियाँ करनी शुरू कर दी| इतने में नेहा अपनी स्कूल ड्रेस पहन कर आ गई, तो मैंने दोनों बच्चों को गोदी में उठाया और गाने का अंतिम आन्तरा दोनों को गोदी में लिए हुए गाया;

“प्रेम के दरिया में लहरें हज़ार,

लहरों में जो भी डुबा हुआ वही पार,

ऊँची नीची नीची ऊँची,

नीची ऊँची ऊँची नीची,

लहरों में तुम देखूँ कैसे आओगे नहीं,

मैं इन लहरों में जो बहूँ तो,

रूठ ना जाना तुम से कहूँ तो!"

बच्चों को गाने की ये पंक्तियाँ समझ नहीं आईं, उन्हें तो बस 'ऊँची-नीची, नीची-ऊँची" वाली पंक्तियाँ भाईं, जिसे सुन दोनों ने मेरी गोदी में ही नाचना शुरू कर दिया| लेकिन भौजी को अन्तरे की शुरू की दो पंक्तियाँ छू गई थीं, जहाँ एक तरफ मैं हम दोनों (मुझे और भौजी) को एक करने के लिए प्रयास कर रहा था, वहीं दूसरी तरफ वो (भौजी) हमारे पास जो अभी है उसे खोने से डर रहीं थीं| “लहरों में तुम देखूँ कैसे आओगे नहीं” ये पंक्ति ख़ास थी, ये भौजी के लिए एक तरह की चुनौती थी की आखिर कब तक वो इस तरह नाराज रह कर मुझे रोकेंगी?!



गाना खत्म हुआ और माँ ने मुस्कुराते हुए कहा;

माँ: अब बस भी कर! चल जा कर आयुष को तैयार कर!

मैंने बच्चों को स्कूल के लिए तैयार किया और उन्हें उनकी school van में बिठा आया| पिताजी ने मुझे काम की लिस्ट बना दी, आज उनको माँ के साथ कहीं जाना था इसलिए आज सारा काम मेरे जिम्मे था| मैं दिमाग में calculations बिठाने लगा की कैसे भी करके मैं टाइम निकाल कर घर आ सकूँ ताकि भौजी के साथ बिताने के लिए मुझे कुछ समय मिल जाए| मुझे समय बचाना था इसलिए मैं बिना नाश्ता किये ही निकल गया, मेरे निकलने के आधे घंटे बाद माँ-पिताजी भी निकल गए थे| उनके निकलते ही भौजी ने मुझे फ़ोन कर दिया;

भौजी: आपने कुछ खाया?

भौजी ने चिंता जताते हुए पुछा|

मैं: जान, कोशिश कर रहा हूँ की काम जल्दी निपटा कर घर आ जाऊँ!

मैंने उत्साहित होते हुए कहा|

भौजी: वो तो ठीक है, पर पहले कुछ खाओ! मैं आपको 10 मिनट में कॉल करती हूँ|

इतना कह उन्होंने फ़ोन काट दिया| अब हुक्म मिला था तो उसकी तामील करनी थी, इसलिए मैंने चाय-मट्ठी ले ली| पाँच मिनट में उन्होंने (भौजी ने) फिर कॉल कर दिया;

भौजी: कुछ खाया?

भौजी ने एकदम से अपना सवाल दागा|

मैं: हाँ जी, खा रहा हूँ!

मैंने मट्ठी खाते हुए कहा|

भौजी: क्या खा रहे हो?

मैं: चाय-मट्ठी|

मैंने चाय की चुस्की लेते हुए कहा|

भौजी: और कुछ अच्छा नहीं मिला आपको? पता नहीं कैसे पानी की चाय बनाता होगा? कहीं बैठ कर आराम से परांठे नहीं खा सकते थे?!

भौजी नाश्ते को ले कर मेरे ऊपर रासन-पानी ले कर चढ़ गईं!

मैं: जान, जब आपने कॉल किया तब मैं बस में था| आपने खाने का हुक्म दिया तो मैं अगले स्टैंड पर उतर गया, वहाँ जो भी नजदीक खाने-पीने की चीज दिखी वो ले ली|

मैंने अपनी सफाई दी|

भौजी: हुँह!

भौजी मुँह टेढ़ा करते हुए बोलीं और फ़ोन काट दिया| चाय-मट्ठी खा कर मैं साइट की ओर चल दिया, लकिन ठीक 15 मिनट बाद भौजी ने फिर फ़ोन खडका दिया!

भौजी: कहाँ पहुँचे?

भौजी ऐसे बात कर रहीं थीं जैसे वो मुझसे कोई कर्ज़ा वापस माँग रही हों|

मैं: जान अभी रास्ते में ही हूँ! अभी कम से कम पौना घंटा लगेगा!

इतना सुन भौजी ने फ़ोन रख दिया| मुझे भौजी का ये अजीब व्यवहार समझ नहीं आ रहा था? उनसे पूछ भी नहीं सकता था क्योंकि एक तो मैं बस में था और दूसरा भौजी से सवाल पूछना मतलब उनके गुस्से को निमंत्रण देना| मुझे सब्र से काम लेना था इसलिए मैं दिमाग शांत कर के बैठा रहा| ठीक 15 मिनट बाद भौजी ने फिर फ़ोन खड़काया और मुझसे पुछा की मैं कहाँ पहुँचा हूँ तथा साइट पहुँचने में अभी कितनी देर लगेगी?! ये फ़ोन करने का सिलसिला पूरे एक घंटे तक चला, वो फ़ोन करतीं, पूछतीं मैं कहाँ हूँ और फ़ोन काट देतीं| फिर थोड़ी देर बाद कॉल करना, पूछना और कॉल काट देना! पता नहीं उन्हें किस बात की जल्दी थी!



आखिर मैं साइट पर पहुँच ही गया और भौजी ने भी ठीक समय से फ़ोन खड़का दिया!

मैं: हाँ जी बोलिये!

मैंने फ़ोन उठा कर प्यार से कहा|

भौजी: साइट पहुँच गए की नहीं? पाताल पूरी में साइट है क्या?

भौजी चिढ़ते हुए बोलीं|

मैं: हाँ जी बस अभी-अभी पहुँचा हूँ!

मैंने प्यार से कहा|

भौजी: मुझे आपसे कुछ पूछना है?

इतना कह भौजी ने एक लम्बी साँस ली और अपना सवाल दागा;

भौजी: आपने मेरे सामने शादी का प्रस्ताव सिर्फ इसलिए रखा न क्योंकि मैं माँ बनना चाहती थी? अगर मैं ये माँग नहीं करती तो आप मेरे सामने शादी का प्रस्ताव ही नहीं रखते न?

भौजी की आवाज में शक झलक रहा था और मुझे बिना किसी वजह के खुद पर शक किया जाना नागवार था! कोई और दिन होता तो मैं भौजी को अच्छे से झिड़क देता मगर आजकल भौजी का पारा पहले ही चढ़ा हुआ था, अब मैं अगर उन्हें झिड़कता तो उनके पास लड़ने के लिए नया बहाना होता, इसीलिए मैंने हालात को समझते हुए उन्हें प्यार से समझाना शुरू किया;

मैं: जान ऐसा नहीं! चन्दर के गाँव जाने के बाद से मैं एक बिंदु तलाश कर रहा था जिसके सहारे मैं हमारे रिश्ते को बाँध सकूँ और आपको यहाँ अपने पास हमेशा-हमेशा के लिए रोक सकूँ| उस समय मेरे पास सिर्फ और सिर्फ बच्चों का ही बहाना था, मगर जब आपने माँ बनने की बात कही तो मुझे वो बिंदु मिल गया जिसके सहारे मैं हमारे रिश्ते के लिए नै रूप-रेखा खींच सकता हूँ! ऐसी रूप-रेखा जिससे हमारा ही नहीं बल्कि हमारे बच्चों का जीवन भी सुधर जाएगा| अगर आप ने मुझसे माँ बनने की माँग नहीं की होती तो भी मेरे पास हमारे रिश्ते को बचाने के लिए शादी ही आखरी विकल्प रहता! फर्क बस इतना रहता की मैं घर छोड़ने के लिए मानसिक रूप से तत्पर नहीं होता, लेकिन इस वक़्त मैं आपको पाने के लिए सब कुछ छोड़ने को तैयार हूँ!

मैं भौजी को इससे अच्छे तरीके से अपने दिल के जज्बात नहीं समझा सकता था| उधर भौजी ने बड़े गौर से मेरे दिल की बात सुनी, परन्तु उनकी सुई फिर घूम फिरकर मेरे अपने परिवार से अलग होने पर अटक गई;

भौजी: आप सच में मेरे लिए अपने माँ-पिताजी को छोड़ दोगे?

भौजी भावुक होते हुए बोलीं| ये सवाल हम दोनों के लिए बहुत संवेदनशील था, भौजी मुझे अपने परिवार से अलग होता हुआ नहीं देखना चाहतीं थीं और मैं भी अपने माँ-बाप को छोड़ना नहीं चाहता था! शुक्र है की दो दिन पहले मैंने रात भर इस विषय पर गहन विचार किया था, तथा मेरे दिमाग ने मुझे तर्कसिद्ध (logical) रास्ता दिखा दिया था;

मैं: जान, मैं पूरी कोशिश करूँगा की बात मेरे घर छोड़ने तक नहीं आये, मगर फिर भी अगर ऐसे हालात बने तो भी मैं अपने माँ-पिताजी को अच्छे से जानता हूँ! उनका गुस्सा कुछ दिनों का होगा, शादी कर के हम घर लौट आएंगे और मैं उनके पाँव में गिरकर घर छोड़ने की माफ़ी माँग लूँगा| माता-पिता का गुस्सा कभी इतना बड़ा नहीं होता की वो अपने बच्चों को हमेशा-हमेशा के लिए अपनी जिंदगी से निकाल फेंक दें| मेरी माँ का दिल सबसे कोमल है, वो मुझे झट से माफ़ कर देंगी! रही बात पिताजी की तो उन्हें थोड़ा समय लगेगा, परन्तु जब वो देखेंगे की मैं अपने परिवार की जिम्मेदारी अच्छे से उठा रहा हूँ तो वो भी मुझे माफ़ कर देंगे| सब कुछ ठीक हो जाएगा, आप बस मेरा साथ दो!

मैंने भौजी को इत्मीनान से मेरी बात समझा दी थी, अब ये नहीं पता की उनको कितनी बात समझ में आई और कितनी नहीं, क्योंकि मेरी बात पूरी होते ही भौजी ने बिना कुछ कहे फ़ोन काट दिया! मुझे लगा की शायद माँ घर आ गई होंगी इसलिए भौजी ने फ़ोन काट दिया, पर ऐसा नहीं था क्योंकि माँ शाम को घर पहुँचीं थीं|



खैर मैं कुछ हिसाब-किताब करने में लग गया, लेबर की दिहाड़ी का हिसाब करना था और माल के आने-जाने का हिसाब लिखना था| लंच के समय भौजी ने मुझे कॉल किया, मैं उस वक़्त लेबर से सामान चढ़वा रहा था फिर भी मैंने उनका कॉल उठाया;

भौजी: खाना खाने कब आ रहे हो आप?

भौजी ने बड़े साधारण तरीके से पुछा|

मैं: जान, अभी साइट पर ही हूँ, आना नामुमकिन है लेकिन रात को समय से आ जाऊँगा|

मैंने बड़े प्यार से कहा, इस उम्मीद में की भौजी कुछ प्यार से कह दें| लेकिन कहाँ जी, मैडम जी के तो सर पर पता नहीं कौन सा भूत सवार था! इतने में पीछे से आयुष की आवाज आई;

आयुष: मम्मी मुझे पापा से बात करनी है|

आयुष खुश होते हुए बोला| दरअसल बच्चे जानते थे की अगर उनकी मम्मी फ़ोन पर बात कर रहीं हैं तो वो मुझसे ही बात कर रहीं हैं|

भौजी: तेरे पापा नहीं आने वाले, अब जा कर कपडे बदल!

भौजी ने बड़े रूखे शब्दों से आयुष से कहा|

नेहा: मुझे बात करनी है!

नेहा अपना हाथ उठाते हुए बोली|

भौजी: फ़ोन की बैटरी खत्म हो गई!

ये कहते हुए भौजी ने फ़ोन काटा और अपना फ़ोन switch off कर दिया| मैं इतना तो समझ चूका था की भौजी ने जानबूझ कर मुझे ये सब सुनाने के लिए कहा है, मगर इसका कारन क्या है ये मेरी समझ से परे था!



रात सात बजे में घर पहुँचा तो मेरा स्वागत मेरे दोनों बच्चों ने प्यार भरी पप्पी से किया! दोनों को गोदी में ले कर मैं खुश हो गया, दिन भर की जितनी थकान थी वो सब मेरे बच्चों की पप्पी ने उतार दी थी! चलो बच्चों के कारन ही सही कम से कम मेरे चेहरे पर मुस्कान तो आ गई थी!

रात के खाने के बाद मैंने भौजी से बात करनी चाहि, मैं उनके कमरे में बात करने पहुँचा तो वो सरसराती हुई मेरी बगल से बाहर निकल गईं और माँ के साथ बैठ कर टी.वी. देखने लगीं| एक बार फिर मुझे गुस्सा चढ़ने लगा, तभी आयुष आ कर मेरी टाँगों से लिपट गया! मैं आयुष और नेहा को ले कर अपने कमरे में आ गया तथा उन्हें कहानी सुनाते हुए सुला दिया|



भौजी के इस रूखेपन से मैं बेचैन होने लगा था इस कर के मुझे नींद नहीं आ रही थी| मैंने उनके अचानक से ऐसे उखड़ जाने के बारे में बहुत सोचा, बहुत जोड़-गाँठ की, गुना-भाग किया और अंत में मैं समझ ही गया!

रात एक बजे आयुष को बाथरूम जाना था, वो उठा और बाथरूम गया, मेरी आँख उसी वक़्त लगी थी इसलिए आयुष के उठने पर मेरी नींद खुल गई थी| मैंने कमरे की लाइट जला दी ताकि आयुष अँधेरे में कहीं टकरा न जाए, जैसे ही आयुष बाथरूम से निकला भौजी मेरे कमरे में घुसीं और आयुष को गोद में उठा कर ले गईं! उन्होंने (भौजी ने) देख लिया था की मैं जाग रहा हूँ, फिर भी उन्होंने ये जानबूझ कर मुझे गुसा दिलाने के लिए किया था| मैं शांत रहा और नेहा को अपनी बाहों में कस कर लेट गया क्योंकि भौजी का इस वक़्त कोई पता नहीं था, हो सकता था की वो दुबारा वापस आयें और नेहा को भी अपने साथ ले जाएँ|



खैर अगले कुछ दिनों तक भौजी और मेरा ये खेल चलता रहा| वो (भौजी) मुझे गुस्सा दिलाने के लिए ऊल-जुलूल हरकतें करती रहतीं| कभी दिनभर इतने फ़ोन करतीं की पूछू मत तो कभी एक फ़ोन तक नहीं करतीं! मैं जब फ़ोन करूँ तो वो फ़ोन काट देतीं और switch off कर के अपने कमरे में छुपा देतीं! मेरे सामने दोनों बच्चों को हर छोटी-छोटी बात पर डाँट देतीं, कभी सोफे पर बैठ कर पढ़ने पर, तो कभी ज़मीन पर बैठ कर पढ़ने पर! कभी घर में खेलने पर तो कभी कभी घर में दौड़ने पर! मैंने इस पूरे दौरान खुद को काबू में रखा और बच्चों के उदास होने पर उनका मन हल्का करने के फ़र्ज़ निभाता रहा|



एक दिन की बात है, sunday का दिन था और सुबह से पानी बरस रहा था| बच्चों के स्कूल की छुट्टी थी, नेहा तो रात में मेरे साथ सोइ थी मगर आयुष जो रात को अपनी मम्मी के साथ सोया था वो सुबह उठ कर मेरी छाती पर चढ़ कर फिर सो गया| सात बजे भौजी आईं और आयुष को मेरी छाती के ऊपर से खींच कर अपने साथ ले गईं| आयुष बेचारा बहुत छटपटाया मगर भौजी फिर भी जबरदस्ती उसे अपने साथ ले गईं और उसे ब्रश करवा के जबरदस्ती पढ़ाने बैठ गईं| मेरा मन सोने का था पर आयुष के साथ होता हुआ ये जुल्म मैं कैसे बर्दाश्त करता, इसलिए मैं बाहर आया और आँख मलते हुए माँ से शिकायत करते हुए बोला;

मैं: यार देखो न sunday के दिन भी बेचारे आयुष को सोने को नहीं मिल रहा!

मेरी बात सुन माँ ने बैठक से आयुष को आवाज मारी;

माँ: आयुष बेटा!

अपनी दादी की बात सुन आयुष दौड़ता हुआ बाहर आया| मुझे माँ के पास बैठा देख वो जान गया की उसकी जान बचाने वाले उसके पापा हैं, आयुष ने खुश होते हुए अपने दोनों हाथ खोल दिए और मैंने उसे अपने सीने से चिपका लिया| 5 मिनट बाद भौजी उठ कर आ गईं;

माँ: बहु आज sunday है, कम से कम आज तो बच्चों को सोने देती!

माँ ने प्यार से भौजी को समझाते हुए कहा तो भौजी सर झुकाते हुए बोलीं;

भौजी: Sorry माँ!

इतना कह वो चाय बनाने लग गईं| जान तो वो (भौजी) गईं थीं की मैंने ही उनकी शिकायत माँ से की है इसलिए उनका गुस्सा फिर उबाले मारने लगा|

मैंने आयुष को खेलने जाने को कहा तो वो अपने खिलौनों से खेलने लगा| इधर पिताजी चाय पीने dining table पर बैठ गए, अब मैं जागा हुआ था तो पिताजी ने मुझे हिसाब-किताब की बातों में लगा दिया| आधे घंटे बाद पिताजी की बात खत्म हुई तो मैं अंगड़ाई लेते हुए उठा| मैं अपने कमरे में जा रहा था की तभी बाहर जोरदार बिजली कड़की, बिजली की आवाज से मेरा ध्यान बारिश की ओर गया| मेरे अंदर का बच्चा बाहर आ गया और मैं सबसे नजरें बचाते हुए छत पर आ गया| जब छत पर आया तो देखा की आयुष पहले से ही बारिश में अपने खिलौनों के साथ खेल रहा है! बाप की तरह बेटे को भी बारिश में खलने का शौक था! मैं चुपचाप छत के दरवाजे पर हाथ बाँधे खड़ा हो कर आयुष को खेलते हुए देखने लगा, उसे यूँ बारिश में खेलते हुए देख मुझे अपना बचपन याद आ रहा था|



2 मिनट बाद जब आयुष की नजर मुझ पर पड़ी तो वो बेचारा डर गया! उसे लगा की मैं उसे बारिश में भीगने के लिए डाटूँगा इसलिए आयुष डरते हुए मेरी तरह सर झुका कर खड़ा हो गया! अब मैं आयुष पर गुस्सा थोड़े ही था जो उसे डाँटता, मैं भी बारिश में भीगते हुए उसके पास पहुँचा और आयुष के सामने अपने दोनों घुटने टेक कर बैठ गया, मैंने आयुष की ठुड्डी पकड़ कर ऊपर उठाई और बोला;

मैं: बेटा मैं आपसे गुस्सा नहीं हूँ! आपको पता है, मुझे भी बारिश में भीगना और खेलना बहुत पसंद है|

मेरी बात सुन आयुष के चेहरे पर मुस्कान आ गई और वो हँसने लगा, आखिर उसे अपने पिता के रूप में एक साथी जो मिल गया था| बस फिर क्या था, बाप-बेटों ने मिलकर खुराफात मचानी शरू कर दी| मैंने छत पर मौजूद नाली पर पत्थर रख कर पानी का रास्ता रोक दिया, जिससे छत पर पानी भरने लगा, अब मैंने आयुष से उसके खिलोने लाने को कहा| खिलौनों में प्लास्टिक की एक नाव थी, उस नाव में मैंने 2-3 G.I. Joe’s बिठा दिए और दोनों बाप-बेटे ने मिलकर नाव पानी में छोड़ दी| नाव कुछ दूर जा कर डूब गई! आयुष को खेल समझ आ गया, आयुष ने G.I. Joe’s को नाव में बिठाया और पानी में छोड़ दिया, इस बार भी नाव कुछ दूर जा कर डूब गई! इस छोटी सी ख़ुशी से खुश हो कर हम दोनों बाप-बेटे ने पानी में ‘छपाक-छपाक’ कर उछलना शुरू कर दिया!

अपनी मस्ती में हम ये भूल गए की हमारे उछलने से नीचे आवाज जा रही है! हमारी चहलकदमी सुन माँ-पिताजी जान गए की मैं और आयुष ही उधम मचा रहे हैं, उन्होंने भौजी को हमें नीचे बुलाने को भेजा| भौजी जो पहले से ही गुस्से से भरी बैठीं थीं, पाँव पटकते हुए ऊपर आ गईं| मैं उस वक़्त आयुष को गोदी में ले कर तेजी से गोल-गोल घूम रहा था और आयुष खूब जोर से खिखिलाकर हँस रहा था! तभी भौजी बहुत जोर से चीखीं;

भौजी: आयुष!

भौजी की गर्जन सुन आयुष की जान हलक में आ गई| मैंने आयुष को नीचे उतारा तो वो सर झुकाते हुए अपनी मम्मी की ओर चल दिया|

भौजी: बारिश में खेलने से मना किया था न मैंने तुझे?!

भौजी गुस्से से बोलीं| भौजी का गुस्सा देख आयुष रोने लगा, मैं दौड़ कर उसके पास पहुँचा और उसे गोदी में लेकर भौजी को गुस्से से घूर कर देखने लगा! मेरी आँखों में गुस्सा देख भौजी भीगी बिल्ली बन कर नीचे भाग गईं! वो जानती थीं की अगर उन्होंने एक शब्द भी कहा तो मेरे मुँह से अंगारे निकलेंगे जो उन्हें जला कर भस्म कर देंगे!

मैं: बस बेटा रोना नहीं, आप तो मेरे बहादुर बेटे हो न?!

मैंने आयुष को पुचकारते हुए कहा| आयुष ने रोना बंद किया और सिसकने लगा| मेरे बेटे के चेहरे पर आये आँसुओं को देख कर मुझे बहुत दुःख हो रहा था, कहाँ तो कुछ देर पहले मेरे बेटे के चेहरे पर मुस्कान छाई हुई थी और अब मेरे बेटे के चेहरे पर उदासी का काला साया छा गया था| अपने बेटे को फिरसे हँसाने के लिए मैं फिर से उसे गोद में ले कर बारिश में आ गया, फिर से बारिश में भीग कर मेरे मेरे बेटे का दिल खुश हो गया और उसके चेहरे पर फिर से मुस्कान खिल उठी! मैंने नाली पर रखा हुआ पत्थर हटाया और आयुष के खिलोने ले कर नीचे आ गया|

माँ ने मुझे और आयुष को बारिश से तरबतर देखा तो मुझे प्यार से डाँटते हुए बोलीं;

माँ: जा कर जल्दी अपने और आयुष के कपडे बदल वरना सर्दी लग जाएगी!

मैंने फटाफट आयुष के कपडे बदले और उसके बाल सूखा दिए, फिर मैंने अपने कपड़े बदले| इतने में नेहा भी जाग चुकी थी और हम दोनों (आयुष और मुझे) को यूँ देख कर हैरान थी! वो कुछ पूछती या कहती उससे पहले ही आयुष ने मुझसे सवाल पुछा;

आयुष: पापा जी, मम्मी इतना गुस्सा क्यों करती हैं?

आयुष ने अपना निचला होंठ फुला कर पुछा|

मैं: बेटा, ये जो आप और मैं ठंड के मौसम में बारिश में भीग रहे थे, इसी के लिए आपकी मम्मी गुस्सा हो गई थीं! अब आप देखो आपकी दादी जी ने भी मुझे बारिश में भीगने के लिए डाँटा न?

देखा जाए तो भौजी का गुस्सा होना जायज था, नवंबर का महीना था और ठंड शुरू हो रही थी, ऐसे में बारिश में भीगना था तो गलत! लेकिन करें क्या, बारिश में भीगना आदत जो ठहरी!



अब चूँकि बारिश हो रही थी तो पिताजी ने माँ से पकोड़े बनाने की माँग की, माँ और भौजी ने मिलकर खूब सारे पकोड़े बना दिए! पकोड़ों की महक सूँघ कर मैं और बच्चे बाहर आ गए| माँ-पिताजी dining table पर बैठ कर पकोड़े खा रहे थे और मैं, भौजी तथा बच्चे थोड़ा दूर टी.वी. के सामने बैठ कर पकोड़े खा रहे थे| पकोड़े खाते समय भौजी का ध्यान खींचने के लिए मैंने बच्चों से बात शुरू की, मैंने ये ध्यान रखा था की मेरी आवाज इतनी ऊँची न हो की माँ-पिताजी सुन लें लेकिन इतनी धीमी भी न हो की भौजी और बच्चे सुन न पाएँ|

मैं: नेहा, बेटा आपको याद है गाँव में एक बार आप, मैं और आपकी मम्मी इसी तरह बैठ कर पकोड़े खा रहे थे?

मैंने भौजी को देखते हुए नेहा से सवाल किया| मेरा सवाल सुन भौजी के चेहरे पर एक तीखी मुस्कान आ गई, वो बारिश में मेरे संग उनका (भौजी का) भीगना, मेरी बाहों में उनका सिमटना, वो खुले आसमान के तले हमारा प्रेम-मिलाप, वो बाहों में बाहें डालकर नाचना, सब उन्हें याद आ चूका था! भौजी के चेहरे पर आई मुस्कान, उस दिन को याद करते हुए बढ़ती जा रही थी! तभी मैंने पकोड़े में मिर्ची लगने का बहाना किया और "सी...सी...सी..." की आवाज निकालने लगा| मेरी सी-सी ने उन्हें (भौजी को) हमारे उस दिन के प्यार भरे चुंबन की याद ताज़ा कर दी थी! भौजी मेरी शरारत जान चुकी थीं तभी वो मुझसे नजरें चुरा कर मसुकुराये जा रहीं थीं! हमारा ये नजरों का खेल और चलता मगर आयुष अपने भोलेपन में बोल उठा;

आयुष: मुझे क्यों नहीं बुलाया?

आयुष की भोलेपन की बात सुन नेहा एकदम से बोल पड़ी;

नेहा: तू तब गेम खेल रहा था!

आयुष के भोलेपन से भरे सवाल और नेहा के टेढ़े जवाब को सुन मैं जोर से ठहाका लगा कर हँस पड़ा! अब जाहिर था की मेरे इस तरह हँसने पर माँ-पिताजी ने कारण जानना था;

मैं: कुछ नहीं पिताजी, वो मैं नेहा को याद दिला रहा था की आखरी बार इस तरह से पकोड़े हमने गाँव में खाये थे, तो आयुष पूछने लगा की तब मैं कहाँ था? इस पर नेहा बोली की तू गेम खेल रहा था!

मेरी बात सुन माँ-पिताजी भी हँस पड़े और उनके संग भौजी तथा नेहा भी हँसने लगे! अपना मजाक उड़ता देख आयुष ने मुँह फुला लिया और मेरी तरफ देखने लगा;

मैं: आजा मेरा बेटा!

ये कहते हुए मैंने आयुष को आपने गले लगा लिया| आज पहलीबार मैंने सबके सामने आयुष को 'मेरा बेटा' कहा था और ये मैंने जानबूझ कर नहीं कहा था, बल्कि अनायास ही मेरे मुँह से निकल गया था| माँ-पिताजी ने इस बात पर गौर नहीं किया, मगर भौजी आँखें बड़ी कर के मुझे देखने लगीं थीं! जब भौजी ने मुझे यूँ आँखें बड़ी कर के देखा तो मुझे मेरे बोले हुए शब्दों का एहसास हुआ, परन्तु मैंने न इस बात को छुपाने की कोशिश की और न ही इस बात को और बढ़ाया| मैंने आयुष को गोद में लिया और अपने हाथ से पकोड़े खिलाने लगा|



जारी रहेगा भाग-3 में...
manmohak update mitr
 
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