• If you are trying to reset your account password then don't forget to check spam folder in your mailbox. Also Mark it as "not spam" or you won't be able to click on the link.

Incest एक अनोखा बंधन - पुन: प्रारंभ (Completed)

Nevil singh

Well-Known Member
21,150
53,000
173
चौबीसवाँ अध्याय: उलझते-सुलझते बंधन
भाग-3

अब तक आपने पढ़ा:


अपना मजाक उड़ता देख आयुष ने मुँह फुला लिया और मेरी तरफ देखने लगा;

मैं: आजा मेरा बेटा!

ये कहते हुए मैंने आयुष को आपने गले लगा लिया| आज पहलीबार मैंने सबके सामने आयुष को 'मेरा बेटा' कहा था और ये मैंने जानबूझ कर नहीं कहा था, बल्कि अनायास ही मेरे मुँह से निकल गया था| माँ-पिताजी ने इस बात पर गौर नहीं किया, मगर भौजी आँखें बड़ी कर के मुझे देखने लगीं थीं! जब भौजी ने मुझे यूँ आँखें बड़ी कर के देखा तो मुझे मेरे बोले हुए शब्दों का एहसास हुआ, परन्तु मैंने न इस बात को छुपाने की कोशिश की और न ही इस बात को और बढ़ाया| मैंने आयुष को गोद में लिया और अपने हाथ से पकोड़े खिलाने लगा|



अब आगे:



भौजी के चेहरे पर आई मुस्कान बस कुछ पल के लिए ही थी, वो अब पुनः मुझसे उखड़ी-उखड़ी घर के काम करने में लगी थीं| माँ-पिताजी की मौजूदगी थी इसलिए मैं उनसे खुल कर बात नहीं कर पा रहा था, तो मैंने अपना ध्यान दोनों बच्चों के साथ खेलने में लगा दिया| कुछ देर बाद बारिश रुकी तो पिताजी ने मुझे अपने साथ काम की बात करने के लिए बिठा लिया| आगे भविष्य में काम कैसे बढ़ाना है, किस तरह के projects उठाने चाहिए आदि के विषय में पिताजी ने मेरे विचार जाने| मेरे सपने शुरू से ही ऊँचे रहे हैं, जब मैंने पिताजी से company register करवाने की बात कही तो उन्हें बहुत ख़ुशी हुई! मुझे काम professional ढँग से करने का शौक था, कहने की जर्रूरत तो नहीं की ये शौक मुझे पिताजी से ही लगा था| जब मैं छोटा था तो पिताजी सर्दियों के दिनों में कोर्ट-टाई लगा कर काम पर जाते थे, उन्हें यूँ जाते देख कर मुझे हमेशा गर्व होता था, ऐसा लगता था जैसे मेरे पिताजी किसी बहुत बड़ी company के मालिक हों! Company register करवा कर मैं चाहता था की हम दोनों बाप बेटे ऐसे ही काम पर जाएँ और मेरा बचपन का सपना सच हो जाए| मेरी बात सुन पिताजी मुस्कुराने लगे, फिर उन्होंने मुझसे हिसाब-किताब की बात की तो मैंने उन्हें सारा हिसाब दे दिया| पिताजी मेरे हिसाब-किताब साफ़ रखने से बड़े खुश थे और उनकी ये ख़ुशी गर्व बनकर उनके चेहरे पर झलक रही थी|

वहीं आज पिताजी से बात करते हुए नज़ाने क्यों ऐसा लगा की जैसे वो मेरी तरफ कुछ झुक गए हों! जब से वो गाँव से आये थे, मेरे प्रति उनका व्यवहार कुछ ज्यादा ही नरम हो गया था| शायद गाँव में उन्होंने चन्दर के जो काण्ड देखे उन्हें देखते हुए उन्हें अपने आज्ञाकारी बेटे पर गुमान हो रहा था! बिगड़ने को मैं भी बिगड़ सकता था, शराब मैं भी पीता था, मगर पिताजी के द्वारा पकडे जाने पर मैंने शराब से तौबा कर ली थी और शायद इसी का फक्र पिताजी को हो रहा था! चलो मेरे लिए तो पिताजी का यूँ मेरे प्रति नरम पढ़ना मेरे लिए फायदे की बात थी, क्योंकि मेरे मुख से सच्चाई जानकार वो मुझे सीधा घर से निकाल नहीं देते, बल्कि मुझे मेरी बात रखने का एक मौका अवश्य देते!



बहरहाल दिवाली आने में कुछ दिन रह गए थे, मगर भौजी के वयवहार में रत्ती भर बदलाव नहीं आया था| वही चिचिड़ापन, वही मेरे साथ उखड़े रहना, वही मुझे तड़पाना, मेरी बात न सुनना, मुझसे बात न करना, बच्चों को झिड़कते रहना, बच्चों को मेरे पास सोने न देना बल्कि उन्हें मेरे से दूर रखना! मैं ये सब बर्दाश्त कर रहा था क्योंकि मैं उनके दिल का हाल समझता था| मैं जानता था की वो गलत हैं मगर मैं इस वक़्त उन्हें सही-गलत का भाषण नहीं दे सकता था, क्योंकि उनकी नजर में मैं खुद गलत करने जा रहा था! हाँ एक बात पक्की हो गई थी की भौजी को मेरे ऊपर भरोसा नहीं, या फिर शायद मैं ही अपने ऊपर हद्द से ज्यादा भरोसा करने लगा था!

लेकिन इस सब के बावजूद जहाँ एक ओर भौजी मुझसे खींची-खींची रह रहीं थीं, वहीं दूसरी ओर मैं अपना सब्र दिखाते हुए उनके नजदीक बना हुआ था! हमारा रिश्ता जैसे rubber band बन चूका था जिसे भौजी खींच कर तोडना चाहती थीं, मगर हमारे प्यार का rubber band खींच कर वापस मुझे उनके पास ले आता था|



चूँकि दिवाली नजदीक थी तो छोटे -मोटे कामों का ठेका बढ़ गया था, जिस कारण मैं साइट पर ज्यादा व्यस्त रहने लगा था| रात में मुझे आने में देर हो जाया करती थी, इसलिए भौजी ने जबरदस्ती बच्चों को अपने साथ सुलाना शुरू कर दिया! वहीं दूसरी तरफ मैं व्यस्त होते हुए भी समय निकाल कर भौजी को what's app पर message कर के उन्हें अपनी उपस्थिति से परिचित कराता रहता था| कभी कोई joke भेज देता, तो कभी उन्हें खुश करने के लिए कोई शायरी, कभी-कभी मैं अपनी अच्छी selfie खींच कर भौजी के दिल में अपना प्यार जगाये रखता| भौजी मेरे message तो देख लेतीं मगर किसी message का जवाब नहीं देतीं! मैंने भी हार नहीं मानी और उन्हें kissi की आवाज record कर भेज ने लगा| भले ही भौजी ठंडी पढ़ रहीं हों, पर मैं अपना कर्म करते हुए हमारे romance का दिया जलाये हुए था!



जब से कमाने लायक हुआ था, तब से हर साल दिवाली पर मैं माँ-पिताजी के लिए कुछ न कुछ लिया करता था| इस बार भौजी और मेरे बच्चे साथ थे तो मैंने सब के लिए online कपडे देखना शुरू किया| पिताजी के लिए मैंने branded shirt-pant, माँ के लिए chiffon की साडी, नेहा के लिए लेहंगा चोली और आयुष के लिए मैंने कुरता और धोती order कर दिया| सब के लिए जो भी मैंने मँगाया था वो मैंने घर के पते पर deliver करवाया और माँ को बता दिया की वो ये order ले लें, मगर भौजी के लिए मैंने एक ख़ास बनारसी साडी मँगाई जिसे मैंने अपनी साइट के पते पर मँगवाया ताकि भौजी को पता न चले| माँ की साडी समय से घर आ गई थी, मैंने पीछे पड़ कर माँ को जबरदस्ती के दर्जी के पास भेजा वरना माँ हर बार की तरह ये साडी भी पैक कर के रखतीं, जबकी मैं चाहता था की वो दिवाली पर यही साडी पहने| उधर भौजी की साडी साइट पर deliver हो गई, मगर अब दिक्कत ये थी की उसे दर्जी को दूँ कैसे? दर्जी के पास साडी देने के लिए मुझे भौजी का माप दिलवाना होता, अब अगर भौजी से माप देने की बात कहता तो उन्हें पता चल जाता की मैंने उनके लिए साडी खरीदी है! मुझे ये बात फिलहाल छुपानी थी इसलिए मैंने थोड़ा दिमाग लगाया! मुझे याद आया की कई बार माँ दर्जी को अपना माप न दे कर पहले से सिला कोई कपडा दे देतीं थीं, तो भौजी की साडी के लिए मुझे उनका कोई ब्लाउज चाहिए था! अब उनसे जा कर माँग तो सकता नहीं था इसलिए मैंने चोरी करने का सोचा! अपने घर में, अपनी परिणीता का ब्लाउज चुराने में मुझे बहुत शर्म आ रही थी! लेकिन ब्लाउज तो चाहिए था इसलिए मैं चुपचाप भौजी के कमरे में घुसा और उनका एक ब्लाउज चुरा कर जेब में डालकर अपने कमरे में आ गाय| मैंने एक दूसरे दर्जी को भौजी की साडी और माप के लिए भौजी का चुराया हुआ ब्लाउज दिया ताकि कहीं माँ को पता न चल जाए| आंटी जी (दर्जी) ने माप वाला ब्लाउज साडी के साथ रख लिया था, मैं जानता था की भौजी आज नहीं तो कल ये ब्लाउज ढूँढेंगी जर्रूर, इसलिए मैंने आंटी जी से कहा की वो माप ले कर ब्लाउज मुझे वापस दे दें! आंटी जी ने माप ले कर ब्लाउज मुझे दे दिया, मैंने उन्हें समय से पहले साडी और ब्लाउज तैयार करने को कहा| थोड़े पैसे बढ़ा कर आंटी जी मान गईं और मुझे धनतेरस के दिन साडी और ब्लाउज ले जाने को कहा|



इधर माँ ने मुझे एक दिन भौजी के सामने पूछ लिया;

माँ: तूने सब के लिए कुछ न कुछ मँगाया पर अपनी दोस्त, अपनी भौजी के लिए कुछ क्यों नहीं मँगाया?

माँ का सवाल सुन मैं थोड़ा हैरान था, ऊपर से भौजी भी वहीं बैठीं सब्जी काट रहीं थीं| अगर माँ ने अकेले में पुछा होता तो मैं उन्हें सच बता देता, मगर भौजी के सामने कैसे कुछ कहूँ?

मैं: क्या है न माँ, दोस्ती का रिश्ता दो तरफा होता है! ये तो कहीं की रीत नहीं की सिर्फ मैं ही दोस्ती का रिश्ता निभाऊँ!

मैंने भौजी को उल्हाना देते हुए कहा और उठ कर साइट पर निकल गाय| मैं तो उल्हाना दे कर चल दिया, मगर मेरे पीछे माँ ने भौजी से सवालों की झड़ी लगा दी! पता नहीं बेचारी भौजी ने क्या-क्या कहा होगा, सच तो बोल नहीं पाईं होंगी?! बेचारी ने मन मारकर माँ से झूठ ही कहा होगा! मुझे लगा की भौजी समय मिलने पर जर्रूर मुझे कॉल करेंगी और मुझसे शिकायत करेंगी या लड़ेंगी, परन्तु उन्होंने ऐसा कुछ नहीं किया!



उधर दिवाली के उपलक्ष्य में बच्चों की स्कूल की छुट्टियाँ हो चुकीं थीं, घर में अकेले रहते हुए बच्चे मुझसे दूर रह कर दुखी रहने लगे थे! उधर मैं भी काम बढ़ने के कारण बच्चों को जरा सा भी समय नहीं दे पा रहा था| रात को थक कर चूर देर से घर आना और सुबह 8 बजे तक सो के नींद पूरी करने के कारण मैं बच्चों को देख भी नहीं पाता था| वहीं भौजी बच्चों को मुझसे दूर रखते हुए उन्हें सुबह या रात को मेरे पास आने नहीं देतीं| रात को मेरे घर आने से पहले ही वो बच्चों को जबरदस्ती डाँट-फटकार कर सुला देतीं, मुझे खाना परोस कर वो सोने चली जातीं और अपने कमरे का दरवाजा अंदर से बंद कर लेतीं ताकि देर रात या सुबह बच्चे उठ कर मेरे पास न आ जाएँ| भौजी के दरवाजा बंद कर सोने का एक कारण और भी था, वो ये की कहीं मैं रात को उनसे बात करने न चला आऊँ! जब बच्चों का स्कूल होता था तब वो ये ध्यान रखतीं की बच्चे मेरे पास न आ पाएँ इसके लिए वो दोनों बच्चों के सर पर खड़ीं रहतीं और उन्हें तैयार करतीं थीं| जब बच्चों के स्कूल की छुट्टियाँ हुईं तो उन्होंने बच्चों को सुबह उठने से मना कर दिया! भौजी की इस सख्ती के कारण सुबह-सुबह मुझे मिलने वाली मीठी-मीठी पप्पी भी बंद हो गई थी! दोपहर को बच्चे मुझे फ़ोन करना चाहते तो भौजी उन्हें झूठ बोल देतीं की मैं काम में व्यस्त हूँ और बात नहीं कर सकता| बच्चे बेचारे मन मसोस कर रह जाते और मायूस हो कर बैठ जाते! वो तो मेरे माँ-पिताजी यानी उनके दादा-दादी थे जो उनका मन बहलाये रखते थे, जिससे बच्चे थोड़ा खिले-खिले रहते! दोनों बच्चे जानते थे की उन पर ये जुल्म उनकी मम्मी ही कर रही है, क्योंकि मैं ऐसा कतई नहीं था! आयुष चूँकि छोटा था तो कुछ कह नहीं पाता था, परन्तु नेहा बड़ी थी और उससे अपनी मम्मी का ये उखड़ा हुआ व्यवहार बर्दाश्त नहीं हो रहा था| नेहा का मन दिनभर मेरे बिना नहीं लगता था, रात होती तो उसे मेरे बिना नींद नहीं आती, वो तो उसे अपनी मम्मी का डर था जिसके मारे वो सहती रहती थी| परन्तु अब उसके सब्र की इंतेहा हो रही थी, उसके मन का ज्वालामुखी फटने की कगार पर आ चूका था!



धनतेरस से एक दिन पहले की बात है, रात में आज फिर मैं देर से घर आया था| भौजी ने बच्चों को डरा-धमका कर सुला दिया था, पिताजी तो पहले ही सो चुके थे बस माँ और भौजी टी.वी. देखते हुए मेरा इंतजार कर रहे थे| मैं घर पहुँचा तो भौजी मेरा खाना परोसने लगीं, मैं मुँह-हाथ धो कर खाना खाने बैठ गया| भौजी और मेरे बीच अब भी कोई बात नहीं हो रही थी, मैंने बात शुरु करते हुए माँ से बच्चों के बारे में बात करना शुरू कर दिया| माँ और मेरी बात होने लगी तो भौजी माँ को “शुभरात्रि” बोल कर सोने चली गईं, रोज की तरह मुझे उनके दरवाजा अंदर से बंद करने की आवाज आई| दिल तो बहुत दुखता था की वो मुझे मेरे ही बच्चों से दूर कर रहीं हैं, मगर माँ की उपस्थिति के कारण मैं लाचार था| खाना खा कर बर्तन सिंक में डालकर मैं सोने चला गया और माँ भी सोने चली गईं| रात के 12 बजे थे और नेहा कोई डरावना सपना देख कर दहल गई थी, वो चुपचाप उठ कर मेरे पास आने लगी तो भौजी ने उसे डाँट दिया;

भौजी: चुपचाप सो जा!

भौजी की डाँट सुन कर भी नेहा नहीं मानी और सिसकते हुए कुर्सी खींच कर दरवाजे के पास ले आई| कुर्सी पर चढ़ कर वो दरवाजे की चिटकनी खोलने लगी, अब तक भौजी उठ चुकीं थीं और उन्होंने कमरे की लाइट जला दी थी| भौजी ने जब नेहा को कुर्सी पर चढ़ कर चिटकनी खोलते देखा तो उनका गुस्सा फूट पड़ा;

भौजी: नेहा! तुझे समझ नहीं आती एक बार में?! सो जा चुप चाप!

भौजी का गुस्सा देख नेहा से बर्दाश्त नहीं हुआ और वो रोते हुए अपनी मम्मी पर चिल्लाई;

नेहा: नहीं!

इतना कह वो फटाफट कुर्सी से नीचे कूदी और दरवाजा खोलकर मेरे कमरे की तरफ दौड़ी| उधर नेहा की चीख सुन कर मैं उठ कर बैठ चूका था, मैंने फटाफट कमरे की लाइट जलाई और उठ कर अपने दरवाजे तक पहुँचा था की रोती हुई नेहा आ कर मेरी टाँगों से लिपट गई! मैंने नेहा को गोद में उठाया और उसे पुचकारते हुए चुप कराने लगा| मेरी बेटी फफक कर रो रही थी और उसे यूँ रोता हुआ देख मेरा दिल खून के आँसूँ रोने लगा था! मैं नेहा की पीठ सहलाते हुए उसे ढाँढस बँधा रहा था की तभी मेरी नजर भौजी के कमरे पर पड़ी, मैंने देखा भौजी गुस्से से आँखें बड़ी कर के मुझे और नेहा को देख रहीं हैं! भौजी की आँखों में गुस्सा देख मेरी आँखें गुस्से से जलने लगीं, मैंने घूर कर उन्हें देखा और गुस्से में आ कर मेरे मुँह से कुछ निकलने वाला था की तभी माँ-पिताजी आ गए! नेहा की चीख सुन के वे भी जाग गए थे, उन्हें अपने सामने देख मैंने अपने होंठ सी लिए और गुस्से से दाँत पीसते हुए खामोश हो गया!

पिताजी: क्या हुआ बेटा, नेहा क्यों चीखी?

पिताजी ने चिंतित होते हुए पुछा|

मैं: बुरा सपना देख कर उठ गई!

मैंने दाँत पीसते हुए भौजी को देखते हुए कहा, मेरा गुस्सा देख कर भौजी की जान हलक में आ गई थी और वो सर झुकाये मुझसे नजरें चुराने लगीं! घर में कलेश न हो इसलिए मैं नेहा को गोदी में लिए हुए कमरे में आ गया, बाकी सब भी अपने-अपने कमरे में लौट गए!



मैं नेहा को गोदी में लिए कमरे में टहलने लगा और उसे पुचकार कर शांत कराने लगा, थोड़ा टाइम लगा नेहा का रोना रुकने में|

नेहा: पा..पा (पापा)... म…मम्मी...मु...झे (मुझे)....आप...से....अ...लग (अलग)....कर....रही...है!

नेहा सिसकते हुए बोली| नेहा की बात सुन मैं सख्ते में था क्योंकि मैंने उस छोटी सी बच्ची से इतनी बड़ी बात सोचने की कभी उम्मीद नहीं की थी! मैंने नेहा को गोदी से उतारा और उसे पलंग पर खड़ा करते हुए उसकी आँखों में देखते हुए बोला;

मैं: बेटा कोई मुझे आप से अलग नहीं कर सकता! उन्हें (भौजी को) जो करना है वो करने दो, आप ये कभी मत सोचना की हम दोनों बाप-बेटी कभी अलग होंगें! मैं आपको कभी खुद से दूर जाने नहीं दूँगा, चाहे मुझे उसके लिए किसी से भी लड़ना पड़े!

मेरी आवाज में बहुत आत्मविश्वास था, इतना आत्मविश्वास की मेरी बेटी के मन से मुझसे अलग होने का डर हमेशा-हमेशा के लिए जा चूका था!

डर से मुक्त हो कर नेहा ने मुस्कुराने की कोशिश की, मैंने नेहा के आँसूँ पोछे और उसे समझाते हुए बोला;

मैं: बेटा आपकी मम्मी इस वक़्त बहुत बड़ी उलझन में हैं! सही चीज जो उनके सामने है वो उसे समझ नहीं पा रहीं, डर रहीं हैं और अपने इस डर को छुपाने के लिए अपना गुस्सा आप दोनों पर निकाल रहीं हैं!

मैं नेहा को सब सच नहीं बता सकता था क्योंकि अपनी माँ से बगावत की चिंगारी जो आज नेहा के अंदर जली थी, ये बात जानकार वो चिंगारी कभी भी धधकती हुई आग बन सकती थी, इसीलिए मैंने नेहा से सारी बात गोल-मोल की थी! नेहा ने मुझसे कोई सवाल नहीं पुछा और आ कर मुझसे लिपट गई! दोनों बाप-बेटी रात को चैन से सोये, सुबह हुई तो माँ हमें जगाने आईं| बच्चों के स्कूल की छुट्टी थी इसलिए सुबह सब आराम से उठे थे| नेहा अभी नींद में थी और नींद में होते हुए भी मेरी छाती से चिपटी हुई थी, मैं नेहा को गोद में लिए हुए बाहर आया और बैठक में बैठ गया| पिताजी ने नेहा की पीठ थपथपाई और मुझसे बात करने लगे| आज चूँकि धनतेरस थी तो उन्होंने माँ के साथ खरीदारी करने जाना था और मेरे हिस्से सारे काम आ गए थे| चूँकि मैं नेहा को गोदी लिए हुए था तो पिताजी ने कागज़ पर मेरे लिए आज के काम की लिस्ट बना कर दे दी| इतने में माँ चाय ले आईं, नेहा को यूँ सोता हुआ देख उन्होंने नेहा के सर पर हाथ फेरा और नेहा को पुकारा| नेहा आँख मलते हुए जागी और मेरे गाल पर अपनी मीठी-मीठी पप्पी दी! अब तो आयुष भी जाग चूका था और मेरी आवाज सुन वो अंदर से दौड़ता हुआ आया| नेहा मेरी गोदी से उतरी ताकि उसके भाई को भी थोड़ा प्यार मिले, नेहा बाथरूम गई और इधर आयुष ने मेरे गाल पर मीठी-मीठी पप्पी दी! मैं आयुष को गोदी में ले कर अपने कमरे में आया, नेहा उस समय बाथरूम से निकल रही थी जब आयुष मुस्कुराते हुए बोला;

आयुष: I love you पापा!

इतने दिनों बाद अपने पापा के गले लग कर आयुष खुश हो गया था| मैंने आयुष के माथे को चूमा और बोला;

मैं: पापा loves you too बेटा!

मेरे दोनों बच्चे जिस प्यार को तरस रहे थे उसे पा कर वो खुश हो गए थे| नाश्ता कर मैं तैयार होने लगा तो नेहा डरी हुई सी मेरे पास आई;

नेहा: पापा जी, मैं भी आपके साथ चलूँ?

नेहा सर झुकाते हुए बोली| दरअसल नेहा जानती थी की आज घर पर बस वो, आयुष और उसकी मम्मी होंगे! ऐसे में भौजी के गुस्से का कोई भरोसा नहीं, हो सकता था की कल रात की नेहा की गुस्ताखी के लिए आज उसे मार पड़ती! इधर मैं अपने साथ दोनों बच्चों को नहीं रख सकता था, क्योंकि साइट पर वो दोनों बोर हो जाते!

मैं: Sorry बेटा! लेकिन मेरा काम दौड़-भाग वाला है! लेकिन आप चिंता मत करो, मेरा पास एक plan है!

मैंने नेहा को अपनी ऊँगली पकड़ाई और उसे पिताजी के पास बैठक में ले आया;

मैं: पिताजी, आप से एक गुजारिश है!

इतना सुन पिताजी उत्सुक्ता से मुझे देखने लगे|

मैं: पिताजी आप खरीदारी करने जा रहे हैं तो दोनों बच्चों को साथ ले जाइये!

बाहर घूमने जाने की बात से आयुष तो दौड़ कर मेरे पास आ गया|

पिताजी: अरे बेटा ये भी कोई कहने की बात है! तू चिंता न कर हम सारे (पिताजी, माँ, आयुष, नेहा और भौजी) चले जाएँगे!

अपनी मम्मी की डाँट से बचने का मौका मिला तो नेहा के चेहरे पर भी ख़ुशी की मुस्कान आ गई|

मैं: बेटा आप दोनों अपने दादा जी और दादी जी को तंग मत करना!

मैंने प्यार से दोनों बच्चों को हिदायत दी| इतने में पीछे से माँ बोल पड़ीं;

माँ: हमारे बच्चे हमें तंग थोड़े ही करते हैं!

माँ को अपनी तरफदारी करते सुन दोनों बच्चे उनके पास दौड़ गए| माँ उस समय dining table पर बैठीं थीं और उन्हीं की बगल में भौजी बैठीं नाश्ता कर रहीं थीं| मैं माँ के पास आया तो भौजी उठ गईं, मैंने दोनों बच्चों को पिताजी के पास भेजा तथा मैं खुद माँ के पास बैठा और धीमी आवाज में उनसे बोला;

मैं: माँ, बच्चों का ध्यान रखना!

इतना कह मैंने भौजी की तरफ गर्दन से इशारा किया और अपनी बात पूरी की;

मैं: मेरे आने तक बच्चों को इनसे दूर रखना!

मेरी बात सुन माँ अचरज में पड़ गईं और पूछ बैठीं;

माँ: क्यों?

माँ ने भोयें सिकोड़ कर पुछा| मैंने फिर से भौजी की तरफ गर्दन से इशारा किया और बोला;

मैं: इनका पारा आजकल बहुत चढ़ा हुआ है!

माँ मेरी बात समझ गईं और बोलीं;

माँ: तू चिंता मत कर मैं समझाऊँगी बहु को!

सच कहूँ तो मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता था की माँ उनसे क्या बात करेंगी, इसलिए मैंने कोई प्रतिक्रया नहीं दी और नकली मुस्कान के साथ उठ गया| मैं दोनों बच्चों को "bye" कहा और बदले में मुझे दोनों बच्चों ने अपनी प्यारी-प्यारी पप्पी दी!

मैं काम पर आया और उधर बच्चों ने माँ-पिताजी के साथ खूब मस्ती की! माँ-पिताजी ने दोनों बच्चों को खूब लाड-प्यार से घुमाया और अच्छे से खिलाया-पिलाया! पिछले कुछ दिनों से बच्चों पर जो अपनी मम्मी का दबाव बन गया था वो आज की मौज-मस्ती ने खत्म कर दिया था| बजार से घूम कर आते-आते सब को 3 बज गए थे, घर आते ही दोनों बच्चों ने अपनी दादी जी के फ़ोन से मुझे कॉल किया और बड़े उत्साह से मुझे सारा ब्यौरा दिया! मैं खुश था की मेरे बच्चे खुश हैं!

रात को जब मैं घर पहुँचा तो बच्चे ख़ुशी से चहक रहे थे| वहीं माँ ने भौजी से उनके गुस्से को ले कर बात की थी और उन्हें बहुत समझाया भी था, यही कारण था की भौजी इस वक़्त शांत थीं मगर मेरे प्रति वो अब भी उखड़ीं थीं! अब तो माँ से उनकी (भौजी की) शिकायत करने की तोहमत भी मेरे सर लग चुकी थी! चलो मुझे तो भौजी के गुस्से की आदत पड़ चुकी थी इसलिए मैंने इस बात का बुरा लगाना ही छोड़ दिया!



अगले दिन छोटी दिवाली थी और आज माँ-पिताजी का plan जान-पहचान में मिठाई देने जाना था| कल की दादा-दादी संग की गई मस्ती के कारण बच्चे आज भी उन्हीं के संग रहना चाहते थे! माँ-पिताजी को इससे कोई परेशानी नहीं थी, बल्कि वो तो बहुत खुश थे! उनका और बच्चों का plan तो सेट था, अब बचे हम दोनों (मैं और भौजी) तो हम दोनों के नसीब में आज मिलना लिखा ही नहीं था! मिश्रा अंकल जी की एक साइट का काम आज फाइनल होना था इसलिए मेरा सारा समय वहीं पर निकला| काम फाइनल हुआ तो मिश्रा अंकल जी ने हाथ के हाथ payment पिताजी के अकाउंट में डलवा दी! रात को जब मैं घर पहुँचा तो दोनों बच्चों ने मुझे घेर लिया और आज की मस्ती के बारे में बताने लगे तथा माँ-पिताजी मुस्कुराते हुए दोनों बच्चों को अपनी बचकानी बात करते हुए देख रहे थे|

मैंने खाना खाया और दोनों बच्चों को अपने साथ ले कर कमरे में आ गया, कल दिवाली थी और मैं घर पर ही रहने वाला था इसलिए दोनों बच्चे चहक रहे थे| जहाँ एक तरफ आयुष को अपने नए कपडे पहनने का उत्साह था, वहीं नेहा को पूरा दिन मेरे साथ रहने की ख़ुशी थी! बच्चों का उत्साह इतना था की आज उन्हें सुलाने के लिए एक कहानी कम पड़ी, दोनों ने "please...please" कह कर दूसरी कहानी भी सुनी और तब जा कर वो सोये!



जारी रहेगा भाग-4 में...
harshpuran update bhai
sarhniye sawand parstuti
 

sunoanuj

Well-Known Member
3,120
8,331
159
बहुत ही उम्दा अपडेट । लेकिन यह अपडेट कब खत्म हो गया पता ही नहीं चला, खासकर जब अपडेट में बच्चों का जिक्र हो ।

👏👏👏👏
 

Akki ❸❸❸

ᴾʀᴏᴜᴅ ᵀᴏ ᴮᴇ ᴴᴀʀʏᴀɴᴠɪ
26,801
31,019
304
चौबीसवाँ अध्याय: उलझते-सुलझते बंधन
भाग-3

अब तक आपने पढ़ा:


अपना मजाक उड़ता देख आयुष ने मुँह फुला लिया और मेरी तरफ देखने लगा;

मैं: आजा मेरा बेटा!

ये कहते हुए मैंने आयुष को आपने गले लगा लिया| आज पहलीबार मैंने सबके सामने आयुष को 'मेरा बेटा' कहा था और ये मैंने जानबूझ कर नहीं कहा था, बल्कि अनायास ही मेरे मुँह से निकल गया था| माँ-पिताजी ने इस बात पर गौर नहीं किया, मगर भौजी आँखें बड़ी कर के मुझे देखने लगीं थीं! जब भौजी ने मुझे यूँ आँखें बड़ी कर के देखा तो मुझे मेरे बोले हुए शब्दों का एहसास हुआ, परन्तु मैंने न इस बात को छुपाने की कोशिश की और न ही इस बात को और बढ़ाया| मैंने आयुष को गोद में लिया और अपने हाथ से पकोड़े खिलाने लगा|



अब आगे:



भौजी के चेहरे पर आई मुस्कान बस कुछ पल के लिए ही थी, वो अब पुनः मुझसे उखड़ी-उखड़ी घर के काम करने में लगी थीं| माँ-पिताजी की मौजूदगी थी इसलिए मैं उनसे खुल कर बात नहीं कर पा रहा था, तो मैंने अपना ध्यान दोनों बच्चों के साथ खेलने में लगा दिया| कुछ देर बाद बारिश रुकी तो पिताजी ने मुझे अपने साथ काम की बात करने के लिए बिठा लिया| आगे भविष्य में काम कैसे बढ़ाना है, किस तरह के projects उठाने चाहिए आदि के विषय में पिताजी ने मेरे विचार जाने| मेरे सपने शुरू से ही ऊँचे रहे हैं, जब मैंने पिताजी से company register करवाने की बात कही तो उन्हें बहुत ख़ुशी हुई! मुझे काम professional ढँग से करने का शौक था, कहने की जर्रूरत तो नहीं की ये शौक मुझे पिताजी से ही लगा था| जब मैं छोटा था तो पिताजी सर्दियों के दिनों में कोर्ट-टाई लगा कर काम पर जाते थे, उन्हें यूँ जाते देख कर मुझे हमेशा गर्व होता था, ऐसा लगता था जैसे मेरे पिताजी किसी बहुत बड़ी company के मालिक हों! Company register करवा कर मैं चाहता था की हम दोनों बाप बेटे ऐसे ही काम पर जाएँ और मेरा बचपन का सपना सच हो जाए| मेरी बात सुन पिताजी मुस्कुराने लगे, फिर उन्होंने मुझसे हिसाब-किताब की बात की तो मैंने उन्हें सारा हिसाब दे दिया| पिताजी मेरे हिसाब-किताब साफ़ रखने से बड़े खुश थे और उनकी ये ख़ुशी गर्व बनकर उनके चेहरे पर झलक रही थी|

वहीं आज पिताजी से बात करते हुए नज़ाने क्यों ऐसा लगा की जैसे वो मेरी तरफ कुछ झुक गए हों! जब से वो गाँव से आये थे, मेरे प्रति उनका व्यवहार कुछ ज्यादा ही नरम हो गया था| शायद गाँव में उन्होंने चन्दर के जो काण्ड देखे उन्हें देखते हुए उन्हें अपने आज्ञाकारी बेटे पर गुमान हो रहा था! बिगड़ने को मैं भी बिगड़ सकता था, शराब मैं भी पीता था, मगर पिताजी के द्वारा पकडे जाने पर मैंने शराब से तौबा कर ली थी और शायद इसी का फक्र पिताजी को हो रहा था! चलो मेरे लिए तो पिताजी का यूँ मेरे प्रति नरम पढ़ना मेरे लिए फायदे की बात थी, क्योंकि मेरे मुख से सच्चाई जानकार वो मुझे सीधा घर से निकाल नहीं देते, बल्कि मुझे मेरी बात रखने का एक मौका अवश्य देते!



बहरहाल दिवाली आने में कुछ दिन रह गए थे, मगर भौजी के वयवहार में रत्ती भर बदलाव नहीं आया था| वही चिचिड़ापन, वही मेरे साथ उखड़े रहना, वही मुझे तड़पाना, मेरी बात न सुनना, मुझसे बात न करना, बच्चों को झिड़कते रहना, बच्चों को मेरे पास सोने न देना बल्कि उन्हें मेरे से दूर रखना! मैं ये सब बर्दाश्त कर रहा था क्योंकि मैं उनके दिल का हाल समझता था| मैं जानता था की वो गलत हैं मगर मैं इस वक़्त उन्हें सही-गलत का भाषण नहीं दे सकता था, क्योंकि उनकी नजर में मैं खुद गलत करने जा रहा था! हाँ एक बात पक्की हो गई थी की भौजी को मेरे ऊपर भरोसा नहीं, या फिर शायद मैं ही अपने ऊपर हद्द से ज्यादा भरोसा करने लगा था!

लेकिन इस सब के बावजूद जहाँ एक ओर भौजी मुझसे खींची-खींची रह रहीं थीं, वहीं दूसरी ओर मैं अपना सब्र दिखाते हुए उनके नजदीक बना हुआ था! हमारा रिश्ता जैसे rubber band बन चूका था जिसे भौजी खींच कर तोडना चाहती थीं, मगर हमारे प्यार का rubber band खींच कर वापस मुझे उनके पास ले आता था|



चूँकि दिवाली नजदीक थी तो छोटे -मोटे कामों का ठेका बढ़ गया था, जिस कारण मैं साइट पर ज्यादा व्यस्त रहने लगा था| रात में मुझे आने में देर हो जाया करती थी, इसलिए भौजी ने जबरदस्ती बच्चों को अपने साथ सुलाना शुरू कर दिया! वहीं दूसरी तरफ मैं व्यस्त होते हुए भी समय निकाल कर भौजी को what's app पर message कर के उन्हें अपनी उपस्थिति से परिचित कराता रहता था| कभी कोई joke भेज देता, तो कभी उन्हें खुश करने के लिए कोई शायरी, कभी-कभी मैं अपनी अच्छी selfie खींच कर भौजी के दिल में अपना प्यार जगाये रखता| भौजी मेरे message तो देख लेतीं मगर किसी message का जवाब नहीं देतीं! मैंने भी हार नहीं मानी और उन्हें kissi की आवाज record कर भेज ने लगा| भले ही भौजी ठंडी पढ़ रहीं हों, पर मैं अपना कर्म करते हुए हमारे romance का दिया जलाये हुए था!



जब से कमाने लायक हुआ था, तब से हर साल दिवाली पर मैं माँ-पिताजी के लिए कुछ न कुछ लिया करता था| इस बार भौजी और मेरे बच्चे साथ थे तो मैंने सब के लिए online कपडे देखना शुरू किया| पिताजी के लिए मैंने branded shirt-pant, माँ के लिए chiffon की साडी, नेहा के लिए लेहंगा चोली और आयुष के लिए मैंने कुरता और धोती order कर दिया| सब के लिए जो भी मैंने मँगाया था वो मैंने घर के पते पर deliver करवाया और माँ को बता दिया की वो ये order ले लें, मगर भौजी के लिए मैंने एक ख़ास बनारसी साडी मँगाई जिसे मैंने अपनी साइट के पते पर मँगवाया ताकि भौजी को पता न चले| माँ की साडी समय से घर आ गई थी, मैंने पीछे पड़ कर माँ को जबरदस्ती के दर्जी के पास भेजा वरना माँ हर बार की तरह ये साडी भी पैक कर के रखतीं, जबकी मैं चाहता था की वो दिवाली पर यही साडी पहने| उधर भौजी की साडी साइट पर deliver हो गई, मगर अब दिक्कत ये थी की उसे दर्जी को दूँ कैसे? दर्जी के पास साडी देने के लिए मुझे भौजी का माप दिलवाना होता, अब अगर भौजी से माप देने की बात कहता तो उन्हें पता चल जाता की मैंने उनके लिए साडी खरीदी है! मुझे ये बात फिलहाल छुपानी थी इसलिए मैंने थोड़ा दिमाग लगाया! मुझे याद आया की कई बार माँ दर्जी को अपना माप न दे कर पहले से सिला कोई कपडा दे देतीं थीं, तो भौजी की साडी के लिए मुझे उनका कोई ब्लाउज चाहिए था! अब उनसे जा कर माँग तो सकता नहीं था इसलिए मैंने चोरी करने का सोचा! अपने घर में, अपनी परिणीता का ब्लाउज चुराने में मुझे बहुत शर्म आ रही थी! लेकिन ब्लाउज तो चाहिए था इसलिए मैं चुपचाप भौजी के कमरे में घुसा और उनका एक ब्लाउज चुरा कर जेब में डालकर अपने कमरे में आ गाय| मैंने एक दूसरे दर्जी को भौजी की साडी और माप के लिए भौजी का चुराया हुआ ब्लाउज दिया ताकि कहीं माँ को पता न चल जाए| आंटी जी (दर्जी) ने माप वाला ब्लाउज साडी के साथ रख लिया था, मैं जानता था की भौजी आज नहीं तो कल ये ब्लाउज ढूँढेंगी जर्रूर, इसलिए मैंने आंटी जी से कहा की वो माप ले कर ब्लाउज मुझे वापस दे दें! आंटी जी ने माप ले कर ब्लाउज मुझे दे दिया, मैंने उन्हें समय से पहले साडी और ब्लाउज तैयार करने को कहा| थोड़े पैसे बढ़ा कर आंटी जी मान गईं और मुझे धनतेरस के दिन साडी और ब्लाउज ले जाने को कहा|



इधर माँ ने मुझे एक दिन भौजी के सामने पूछ लिया;

माँ: तूने सब के लिए कुछ न कुछ मँगाया पर अपनी दोस्त, अपनी भौजी के लिए कुछ क्यों नहीं मँगाया?

माँ का सवाल सुन मैं थोड़ा हैरान था, ऊपर से भौजी भी वहीं बैठीं सब्जी काट रहीं थीं| अगर माँ ने अकेले में पुछा होता तो मैं उन्हें सच बता देता, मगर भौजी के सामने कैसे कुछ कहूँ?

मैं: क्या है न माँ, दोस्ती का रिश्ता दो तरफा होता है! ये तो कहीं की रीत नहीं की सिर्फ मैं ही दोस्ती का रिश्ता निभाऊँ!

मैंने भौजी को उल्हाना देते हुए कहा और उठ कर साइट पर निकल गाय| मैं तो उल्हाना दे कर चल दिया, मगर मेरे पीछे माँ ने भौजी से सवालों की झड़ी लगा दी! पता नहीं बेचारी भौजी ने क्या-क्या कहा होगा, सच तो बोल नहीं पाईं होंगी?! बेचारी ने मन मारकर माँ से झूठ ही कहा होगा! मुझे लगा की भौजी समय मिलने पर जर्रूर मुझे कॉल करेंगी और मुझसे शिकायत करेंगी या लड़ेंगी, परन्तु उन्होंने ऐसा कुछ नहीं किया!



उधर दिवाली के उपलक्ष्य में बच्चों की स्कूल की छुट्टियाँ हो चुकीं थीं, घर में अकेले रहते हुए बच्चे मुझसे दूर रह कर दुखी रहने लगे थे! उधर मैं भी काम बढ़ने के कारण बच्चों को जरा सा भी समय नहीं दे पा रहा था| रात को थक कर चूर देर से घर आना और सुबह 8 बजे तक सो के नींद पूरी करने के कारण मैं बच्चों को देख भी नहीं पाता था| वहीं भौजी बच्चों को मुझसे दूर रखते हुए उन्हें सुबह या रात को मेरे पास आने नहीं देतीं| रात को मेरे घर आने से पहले ही वो बच्चों को जबरदस्ती डाँट-फटकार कर सुला देतीं, मुझे खाना परोस कर वो सोने चली जातीं और अपने कमरे का दरवाजा अंदर से बंद कर लेतीं ताकि देर रात या सुबह बच्चे उठ कर मेरे पास न आ जाएँ| भौजी के दरवाजा बंद कर सोने का एक कारण और भी था, वो ये की कहीं मैं रात को उनसे बात करने न चला आऊँ! जब बच्चों का स्कूल होता था तब वो ये ध्यान रखतीं की बच्चे मेरे पास न आ पाएँ इसके लिए वो दोनों बच्चों के सर पर खड़ीं रहतीं और उन्हें तैयार करतीं थीं| जब बच्चों के स्कूल की छुट्टियाँ हुईं तो उन्होंने बच्चों को सुबह उठने से मना कर दिया! भौजी की इस सख्ती के कारण सुबह-सुबह मुझे मिलने वाली मीठी-मीठी पप्पी भी बंद हो गई थी! दोपहर को बच्चे मुझे फ़ोन करना चाहते तो भौजी उन्हें झूठ बोल देतीं की मैं काम में व्यस्त हूँ और बात नहीं कर सकता| बच्चे बेचारे मन मसोस कर रह जाते और मायूस हो कर बैठ जाते! वो तो मेरे माँ-पिताजी यानी उनके दादा-दादी थे जो उनका मन बहलाये रखते थे, जिससे बच्चे थोड़ा खिले-खिले रहते! दोनों बच्चे जानते थे की उन पर ये जुल्म उनकी मम्मी ही कर रही है, क्योंकि मैं ऐसा कतई नहीं था! आयुष चूँकि छोटा था तो कुछ कह नहीं पाता था, परन्तु नेहा बड़ी थी और उससे अपनी मम्मी का ये उखड़ा हुआ व्यवहार बर्दाश्त नहीं हो रहा था| नेहा का मन दिनभर मेरे बिना नहीं लगता था, रात होती तो उसे मेरे बिना नींद नहीं आती, वो तो उसे अपनी मम्मी का डर था जिसके मारे वो सहती रहती थी| परन्तु अब उसके सब्र की इंतेहा हो रही थी, उसके मन का ज्वालामुखी फटने की कगार पर आ चूका था!



धनतेरस से एक दिन पहले की बात है, रात में आज फिर मैं देर से घर आया था| भौजी ने बच्चों को डरा-धमका कर सुला दिया था, पिताजी तो पहले ही सो चुके थे बस माँ और भौजी टी.वी. देखते हुए मेरा इंतजार कर रहे थे| मैं घर पहुँचा तो भौजी मेरा खाना परोसने लगीं, मैं मुँह-हाथ धो कर खाना खाने बैठ गया| भौजी और मेरे बीच अब भी कोई बात नहीं हो रही थी, मैंने बात शुरु करते हुए माँ से बच्चों के बारे में बात करना शुरू कर दिया| माँ और मेरी बात होने लगी तो भौजी माँ को “शुभरात्रि” बोल कर सोने चली गईं, रोज की तरह मुझे उनके दरवाजा अंदर से बंद करने की आवाज आई| दिल तो बहुत दुखता था की वो मुझे मेरे ही बच्चों से दूर कर रहीं हैं, मगर माँ की उपस्थिति के कारण मैं लाचार था| खाना खा कर बर्तन सिंक में डालकर मैं सोने चला गया और माँ भी सोने चली गईं| रात के 12 बजे थे और नेहा कोई डरावना सपना देख कर दहल गई थी, वो चुपचाप उठ कर मेरे पास आने लगी तो भौजी ने उसे डाँट दिया;

भौजी: चुपचाप सो जा!

भौजी की डाँट सुन कर भी नेहा नहीं मानी और सिसकते हुए कुर्सी खींच कर दरवाजे के पास ले आई| कुर्सी पर चढ़ कर वो दरवाजे की चिटकनी खोलने लगी, अब तक भौजी उठ चुकीं थीं और उन्होंने कमरे की लाइट जला दी थी| भौजी ने जब नेहा को कुर्सी पर चढ़ कर चिटकनी खोलते देखा तो उनका गुस्सा फूट पड़ा;

भौजी: नेहा! तुझे समझ नहीं आती एक बार में?! सो जा चुप चाप!

भौजी का गुस्सा देख नेहा से बर्दाश्त नहीं हुआ और वो रोते हुए अपनी मम्मी पर चिल्लाई;

नेहा: नहीं!

इतना कह वो फटाफट कुर्सी से नीचे कूदी और दरवाजा खोलकर मेरे कमरे की तरफ दौड़ी| उधर नेहा की चीख सुन कर मैं उठ कर बैठ चूका था, मैंने फटाफट कमरे की लाइट जलाई और उठ कर अपने दरवाजे तक पहुँचा था की रोती हुई नेहा आ कर मेरी टाँगों से लिपट गई! मैंने नेहा को गोद में उठाया और उसे पुचकारते हुए चुप कराने लगा| मेरी बेटी फफक कर रो रही थी और उसे यूँ रोता हुआ देख मेरा दिल खून के आँसूँ रोने लगा था! मैं नेहा की पीठ सहलाते हुए उसे ढाँढस बँधा रहा था की तभी मेरी नजर भौजी के कमरे पर पड़ी, मैंने देखा भौजी गुस्से से आँखें बड़ी कर के मुझे और नेहा को देख रहीं हैं! भौजी की आँखों में गुस्सा देख मेरी आँखें गुस्से से जलने लगीं, मैंने घूर कर उन्हें देखा और गुस्से में आ कर मेरे मुँह से कुछ निकलने वाला था की तभी माँ-पिताजी आ गए! नेहा की चीख सुन के वे भी जाग गए थे, उन्हें अपने सामने देख मैंने अपने होंठ सी लिए और गुस्से से दाँत पीसते हुए खामोश हो गया!

पिताजी: क्या हुआ बेटा, नेहा क्यों चीखी?

पिताजी ने चिंतित होते हुए पुछा|

मैं: बुरा सपना देख कर उठ गई!

मैंने दाँत पीसते हुए भौजी को देखते हुए कहा, मेरा गुस्सा देख कर भौजी की जान हलक में आ गई थी और वो सर झुकाये मुझसे नजरें चुराने लगीं! घर में कलेश न हो इसलिए मैं नेहा को गोदी में लिए हुए कमरे में आ गया, बाकी सब भी अपने-अपने कमरे में लौट गए!



मैं नेहा को गोदी में लिए कमरे में टहलने लगा और उसे पुचकार कर शांत कराने लगा, थोड़ा टाइम लगा नेहा का रोना रुकने में|

नेहा: पा..पा (पापा)... म…मम्मी...मु...झे (मुझे)....आप...से....अ...लग (अलग)....कर....रही...है!

नेहा सिसकते हुए बोली| नेहा की बात सुन मैं सख्ते में था क्योंकि मैंने उस छोटी सी बच्ची से इतनी बड़ी बात सोचने की कभी उम्मीद नहीं की थी! मैंने नेहा को गोदी से उतारा और उसे पलंग पर खड़ा करते हुए उसकी आँखों में देखते हुए बोला;

मैं: बेटा कोई मुझे आप से अलग नहीं कर सकता! उन्हें (भौजी को) जो करना है वो करने दो, आप ये कभी मत सोचना की हम दोनों बाप-बेटी कभी अलग होंगें! मैं आपको कभी खुद से दूर जाने नहीं दूँगा, चाहे मुझे उसके लिए किसी से भी लड़ना पड़े!

मेरी आवाज में बहुत आत्मविश्वास था, इतना आत्मविश्वास की मेरी बेटी के मन से मुझसे अलग होने का डर हमेशा-हमेशा के लिए जा चूका था!

डर से मुक्त हो कर नेहा ने मुस्कुराने की कोशिश की, मैंने नेहा के आँसूँ पोछे और उसे समझाते हुए बोला;

मैं: बेटा आपकी मम्मी इस वक़्त बहुत बड़ी उलझन में हैं! सही चीज जो उनके सामने है वो उसे समझ नहीं पा रहीं, डर रहीं हैं और अपने इस डर को छुपाने के लिए अपना गुस्सा आप दोनों पर निकाल रहीं हैं!

मैं नेहा को सब सच नहीं बता सकता था क्योंकि अपनी माँ से बगावत की चिंगारी जो आज नेहा के अंदर जली थी, ये बात जानकार वो चिंगारी कभी भी धधकती हुई आग बन सकती थी, इसीलिए मैंने नेहा से सारी बात गोल-मोल की थी! नेहा ने मुझसे कोई सवाल नहीं पुछा और आ कर मुझसे लिपट गई! दोनों बाप-बेटी रात को चैन से सोये, सुबह हुई तो माँ हमें जगाने आईं| बच्चों के स्कूल की छुट्टी थी इसलिए सुबह सब आराम से उठे थे| नेहा अभी नींद में थी और नींद में होते हुए भी मेरी छाती से चिपटी हुई थी, मैं नेहा को गोद में लिए हुए बाहर आया और बैठक में बैठ गया| पिताजी ने नेहा की पीठ थपथपाई और मुझसे बात करने लगे| आज चूँकि धनतेरस थी तो उन्होंने माँ के साथ खरीदारी करने जाना था और मेरे हिस्से सारे काम आ गए थे| चूँकि मैं नेहा को गोदी लिए हुए था तो पिताजी ने कागज़ पर मेरे लिए आज के काम की लिस्ट बना कर दे दी| इतने में माँ चाय ले आईं, नेहा को यूँ सोता हुआ देख उन्होंने नेहा के सर पर हाथ फेरा और नेहा को पुकारा| नेहा आँख मलते हुए जागी और मेरे गाल पर अपनी मीठी-मीठी पप्पी दी! अब तो आयुष भी जाग चूका था और मेरी आवाज सुन वो अंदर से दौड़ता हुआ आया| नेहा मेरी गोदी से उतरी ताकि उसके भाई को भी थोड़ा प्यार मिले, नेहा बाथरूम गई और इधर आयुष ने मेरे गाल पर मीठी-मीठी पप्पी दी! मैं आयुष को गोदी में ले कर अपने कमरे में आया, नेहा उस समय बाथरूम से निकल रही थी जब आयुष मुस्कुराते हुए बोला;

आयुष: I love you पापा!

इतने दिनों बाद अपने पापा के गले लग कर आयुष खुश हो गया था| मैंने आयुष के माथे को चूमा और बोला;

मैं: पापा loves you too बेटा!

मेरे दोनों बच्चे जिस प्यार को तरस रहे थे उसे पा कर वो खुश हो गए थे| नाश्ता कर मैं तैयार होने लगा तो नेहा डरी हुई सी मेरे पास आई;

नेहा: पापा जी, मैं भी आपके साथ चलूँ?

नेहा सर झुकाते हुए बोली| दरअसल नेहा जानती थी की आज घर पर बस वो, आयुष और उसकी मम्मी होंगे! ऐसे में भौजी के गुस्से का कोई भरोसा नहीं, हो सकता था की कल रात की नेहा की गुस्ताखी के लिए आज उसे मार पड़ती! इधर मैं अपने साथ दोनों बच्चों को नहीं रख सकता था, क्योंकि साइट पर वो दोनों बोर हो जाते!

मैं: Sorry बेटा! लेकिन मेरा काम दौड़-भाग वाला है! लेकिन आप चिंता मत करो, मेरा पास एक plan है!

मैंने नेहा को अपनी ऊँगली पकड़ाई और उसे पिताजी के पास बैठक में ले आया;

मैं: पिताजी, आप से एक गुजारिश है!

इतना सुन पिताजी उत्सुक्ता से मुझे देखने लगे|

मैं: पिताजी आप खरीदारी करने जा रहे हैं तो दोनों बच्चों को साथ ले जाइये!

बाहर घूमने जाने की बात से आयुष तो दौड़ कर मेरे पास आ गया|

पिताजी: अरे बेटा ये भी कोई कहने की बात है! तू चिंता न कर हम सारे (पिताजी, माँ, आयुष, नेहा और भौजी) चले जाएँगे!

अपनी मम्मी की डाँट से बचने का मौका मिला तो नेहा के चेहरे पर भी ख़ुशी की मुस्कान आ गई|

मैं: बेटा आप दोनों अपने दादा जी और दादी जी को तंग मत करना!

मैंने प्यार से दोनों बच्चों को हिदायत दी| इतने में पीछे से माँ बोल पड़ीं;

माँ: हमारे बच्चे हमें तंग थोड़े ही करते हैं!

माँ को अपनी तरफदारी करते सुन दोनों बच्चे उनके पास दौड़ गए| माँ उस समय dining table पर बैठीं थीं और उन्हीं की बगल में भौजी बैठीं नाश्ता कर रहीं थीं| मैं माँ के पास आया तो भौजी उठ गईं, मैंने दोनों बच्चों को पिताजी के पास भेजा तथा मैं खुद माँ के पास बैठा और धीमी आवाज में उनसे बोला;

मैं: माँ, बच्चों का ध्यान रखना!

इतना कह मैंने भौजी की तरफ गर्दन से इशारा किया और अपनी बात पूरी की;

मैं: मेरे आने तक बच्चों को इनसे दूर रखना!

मेरी बात सुन माँ अचरज में पड़ गईं और पूछ बैठीं;

माँ: क्यों?

माँ ने भोयें सिकोड़ कर पुछा| मैंने फिर से भौजी की तरफ गर्दन से इशारा किया और बोला;

मैं: इनका पारा आजकल बहुत चढ़ा हुआ है!

माँ मेरी बात समझ गईं और बोलीं;

माँ: तू चिंता मत कर मैं समझाऊँगी बहु को!

सच कहूँ तो मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता था की माँ उनसे क्या बात करेंगी, इसलिए मैंने कोई प्रतिक्रया नहीं दी और नकली मुस्कान के साथ उठ गया| मैं दोनों बच्चों को "bye" कहा और बदले में मुझे दोनों बच्चों ने अपनी प्यारी-प्यारी पप्पी दी!

मैं काम पर आया और उधर बच्चों ने माँ-पिताजी के साथ खूब मस्ती की! माँ-पिताजी ने दोनों बच्चों को खूब लाड-प्यार से घुमाया और अच्छे से खिलाया-पिलाया! पिछले कुछ दिनों से बच्चों पर जो अपनी मम्मी का दबाव बन गया था वो आज की मौज-मस्ती ने खत्म कर दिया था| बजार से घूम कर आते-आते सब को 3 बज गए थे, घर आते ही दोनों बच्चों ने अपनी दादी जी के फ़ोन से मुझे कॉल किया और बड़े उत्साह से मुझे सारा ब्यौरा दिया! मैं खुश था की मेरे बच्चे खुश हैं!

रात को जब मैं घर पहुँचा तो बच्चे ख़ुशी से चहक रहे थे| वहीं माँ ने भौजी से उनके गुस्से को ले कर बात की थी और उन्हें बहुत समझाया भी था, यही कारण था की भौजी इस वक़्त शांत थीं मगर मेरे प्रति वो अब भी उखड़ीं थीं! अब तो माँ से उनकी (भौजी की) शिकायत करने की तोहमत भी मेरे सर लग चुकी थी! चलो मुझे तो भौजी के गुस्से की आदत पड़ चुकी थी इसलिए मैंने इस बात का बुरा लगाना ही छोड़ दिया!



अगले दिन छोटी दिवाली थी और आज माँ-पिताजी का plan जान-पहचान में मिठाई देने जाना था| कल की दादा-दादी संग की गई मस्ती के कारण बच्चे आज भी उन्हीं के संग रहना चाहते थे! माँ-पिताजी को इससे कोई परेशानी नहीं थी, बल्कि वो तो बहुत खुश थे! उनका और बच्चों का plan तो सेट था, अब बचे हम दोनों (मैं और भौजी) तो हम दोनों के नसीब में आज मिलना लिखा ही नहीं था! मिश्रा अंकल जी की एक साइट का काम आज फाइनल होना था इसलिए मेरा सारा समय वहीं पर निकला| काम फाइनल हुआ तो मिश्रा अंकल जी ने हाथ के हाथ payment पिताजी के अकाउंट में डलवा दी! रात को जब मैं घर पहुँचा तो दोनों बच्चों ने मुझे घेर लिया और आज की मस्ती के बारे में बताने लगे तथा माँ-पिताजी मुस्कुराते हुए दोनों बच्चों को अपनी बचकानी बात करते हुए देख रहे थे|

मैंने खाना खाया और दोनों बच्चों को अपने साथ ले कर कमरे में आ गया, कल दिवाली थी और मैं घर पर ही रहने वाला था इसलिए दोनों बच्चे चहक रहे थे| जहाँ एक तरफ आयुष को अपने नए कपडे पहनने का उत्साह था, वहीं नेहा को पूरा दिन मेरे साथ रहने की ख़ुशी थी! बच्चों का उत्साह इतना था की आज उन्हें सुलाने के लिए एक कहानी कम पड़ी, दोनों ने "please...please" कह कर दूसरी कहानी भी सुनी और तब जा कर वो सोये!



जारी रहेगा भाग-4 में...
:reading:
 

Johnboy11

Nadaan Parinda.
1,183
2,558
159
चौबीसवाँ अध्याय: उलझते-सुलझते बंधन
भाग-3

अब तक आपने पढ़ा:


अपना मजाक उड़ता देख आयुष ने मुँह फुला लिया और मेरी तरफ देखने लगा;

मैं: आजा मेरा बेटा!

ये कहते हुए मैंने आयुष को आपने गले लगा लिया| आज पहलीबार मैंने सबके सामने आयुष को 'मेरा बेटा' कहा था और ये मैंने जानबूझ कर नहीं कहा था, बल्कि अनायास ही मेरे मुँह से निकल गया था| माँ-पिताजी ने इस बात पर गौर नहीं किया, मगर भौजी आँखें बड़ी कर के मुझे देखने लगीं थीं! जब भौजी ने मुझे यूँ आँखें बड़ी कर के देखा तो मुझे मेरे बोले हुए शब्दों का एहसास हुआ, परन्तु मैंने न इस बात को छुपाने की कोशिश की और न ही इस बात को और बढ़ाया| मैंने आयुष को गोद में लिया और अपने हाथ से पकोड़े खिलाने लगा|



अब आगे:



भौजी के चेहरे पर आई मुस्कान बस कुछ पल के लिए ही थी, वो अब पुनः मुझसे उखड़ी-उखड़ी घर के काम करने में लगी थीं| माँ-पिताजी की मौजूदगी थी इसलिए मैं उनसे खुल कर बात नहीं कर पा रहा था, तो मैंने अपना ध्यान दोनों बच्चों के साथ खेलने में लगा दिया| कुछ देर बाद बारिश रुकी तो पिताजी ने मुझे अपने साथ काम की बात करने के लिए बिठा लिया| आगे भविष्य में काम कैसे बढ़ाना है, किस तरह के projects उठाने चाहिए आदि के विषय में पिताजी ने मेरे विचार जाने| मेरे सपने शुरू से ही ऊँचे रहे हैं, जब मैंने पिताजी से company register करवाने की बात कही तो उन्हें बहुत ख़ुशी हुई! मुझे काम professional ढँग से करने का शौक था, कहने की जर्रूरत तो नहीं की ये शौक मुझे पिताजी से ही लगा था| जब मैं छोटा था तो पिताजी सर्दियों के दिनों में कोर्ट-टाई लगा कर काम पर जाते थे, उन्हें यूँ जाते देख कर मुझे हमेशा गर्व होता था, ऐसा लगता था जैसे मेरे पिताजी किसी बहुत बड़ी company के मालिक हों! Company register करवा कर मैं चाहता था की हम दोनों बाप बेटे ऐसे ही काम पर जाएँ और मेरा बचपन का सपना सच हो जाए| मेरी बात सुन पिताजी मुस्कुराने लगे, फिर उन्होंने मुझसे हिसाब-किताब की बात की तो मैंने उन्हें सारा हिसाब दे दिया| पिताजी मेरे हिसाब-किताब साफ़ रखने से बड़े खुश थे और उनकी ये ख़ुशी गर्व बनकर उनके चेहरे पर झलक रही थी|

वहीं आज पिताजी से बात करते हुए नज़ाने क्यों ऐसा लगा की जैसे वो मेरी तरफ कुछ झुक गए हों! जब से वो गाँव से आये थे, मेरे प्रति उनका व्यवहार कुछ ज्यादा ही नरम हो गया था| शायद गाँव में उन्होंने चन्दर के जो काण्ड देखे उन्हें देखते हुए उन्हें अपने आज्ञाकारी बेटे पर गुमान हो रहा था! बिगड़ने को मैं भी बिगड़ सकता था, शराब मैं भी पीता था, मगर पिताजी के द्वारा पकडे जाने पर मैंने शराब से तौबा कर ली थी और शायद इसी का फक्र पिताजी को हो रहा था! चलो मेरे लिए तो पिताजी का यूँ मेरे प्रति नरम पढ़ना मेरे लिए फायदे की बात थी, क्योंकि मेरे मुख से सच्चाई जानकार वो मुझे सीधा घर से निकाल नहीं देते, बल्कि मुझे मेरी बात रखने का एक मौका अवश्य देते!



बहरहाल दिवाली आने में कुछ दिन रह गए थे, मगर भौजी के वयवहार में रत्ती भर बदलाव नहीं आया था| वही चिचिड़ापन, वही मेरे साथ उखड़े रहना, वही मुझे तड़पाना, मेरी बात न सुनना, मुझसे बात न करना, बच्चों को झिड़कते रहना, बच्चों को मेरे पास सोने न देना बल्कि उन्हें मेरे से दूर रखना! मैं ये सब बर्दाश्त कर रहा था क्योंकि मैं उनके दिल का हाल समझता था| मैं जानता था की वो गलत हैं मगर मैं इस वक़्त उन्हें सही-गलत का भाषण नहीं दे सकता था, क्योंकि उनकी नजर में मैं खुद गलत करने जा रहा था! हाँ एक बात पक्की हो गई थी की भौजी को मेरे ऊपर भरोसा नहीं, या फिर शायद मैं ही अपने ऊपर हद्द से ज्यादा भरोसा करने लगा था!

लेकिन इस सब के बावजूद जहाँ एक ओर भौजी मुझसे खींची-खींची रह रहीं थीं, वहीं दूसरी ओर मैं अपना सब्र दिखाते हुए उनके नजदीक बना हुआ था! हमारा रिश्ता जैसे rubber band बन चूका था जिसे भौजी खींच कर तोडना चाहती थीं, मगर हमारे प्यार का rubber band खींच कर वापस मुझे उनके पास ले आता था|



चूँकि दिवाली नजदीक थी तो छोटे -मोटे कामों का ठेका बढ़ गया था, जिस कारण मैं साइट पर ज्यादा व्यस्त रहने लगा था| रात में मुझे आने में देर हो जाया करती थी, इसलिए भौजी ने जबरदस्ती बच्चों को अपने साथ सुलाना शुरू कर दिया! वहीं दूसरी तरफ मैं व्यस्त होते हुए भी समय निकाल कर भौजी को what's app पर message कर के उन्हें अपनी उपस्थिति से परिचित कराता रहता था| कभी कोई joke भेज देता, तो कभी उन्हें खुश करने के लिए कोई शायरी, कभी-कभी मैं अपनी अच्छी selfie खींच कर भौजी के दिल में अपना प्यार जगाये रखता| भौजी मेरे message तो देख लेतीं मगर किसी message का जवाब नहीं देतीं! मैंने भी हार नहीं मानी और उन्हें kissi की आवाज record कर भेज ने लगा| भले ही भौजी ठंडी पढ़ रहीं हों, पर मैं अपना कर्म करते हुए हमारे romance का दिया जलाये हुए था!



जब से कमाने लायक हुआ था, तब से हर साल दिवाली पर मैं माँ-पिताजी के लिए कुछ न कुछ लिया करता था| इस बार भौजी और मेरे बच्चे साथ थे तो मैंने सब के लिए online कपडे देखना शुरू किया| पिताजी के लिए मैंने branded shirt-pant, माँ के लिए chiffon की साडी, नेहा के लिए लेहंगा चोली और आयुष के लिए मैंने कुरता और धोती order कर दिया| सब के लिए जो भी मैंने मँगाया था वो मैंने घर के पते पर deliver करवाया और माँ को बता दिया की वो ये order ले लें, मगर भौजी के लिए मैंने एक ख़ास बनारसी साडी मँगाई जिसे मैंने अपनी साइट के पते पर मँगवाया ताकि भौजी को पता न चले| माँ की साडी समय से घर आ गई थी, मैंने पीछे पड़ कर माँ को जबरदस्ती के दर्जी के पास भेजा वरना माँ हर बार की तरह ये साडी भी पैक कर के रखतीं, जबकी मैं चाहता था की वो दिवाली पर यही साडी पहने| उधर भौजी की साडी साइट पर deliver हो गई, मगर अब दिक्कत ये थी की उसे दर्जी को दूँ कैसे? दर्जी के पास साडी देने के लिए मुझे भौजी का माप दिलवाना होता, अब अगर भौजी से माप देने की बात कहता तो उन्हें पता चल जाता की मैंने उनके लिए साडी खरीदी है! मुझे ये बात फिलहाल छुपानी थी इसलिए मैंने थोड़ा दिमाग लगाया! मुझे याद आया की कई बार माँ दर्जी को अपना माप न दे कर पहले से सिला कोई कपडा दे देतीं थीं, तो भौजी की साडी के लिए मुझे उनका कोई ब्लाउज चाहिए था! अब उनसे जा कर माँग तो सकता नहीं था इसलिए मैंने चोरी करने का सोचा! अपने घर में, अपनी परिणीता का ब्लाउज चुराने में मुझे बहुत शर्म आ रही थी! लेकिन ब्लाउज तो चाहिए था इसलिए मैं चुपचाप भौजी के कमरे में घुसा और उनका एक ब्लाउज चुरा कर जेब में डालकर अपने कमरे में आ गाय| मैंने एक दूसरे दर्जी को भौजी की साडी और माप के लिए भौजी का चुराया हुआ ब्लाउज दिया ताकि कहीं माँ को पता न चल जाए| आंटी जी (दर्जी) ने माप वाला ब्लाउज साडी के साथ रख लिया था, मैं जानता था की भौजी आज नहीं तो कल ये ब्लाउज ढूँढेंगी जर्रूर, इसलिए मैंने आंटी जी से कहा की वो माप ले कर ब्लाउज मुझे वापस दे दें! आंटी जी ने माप ले कर ब्लाउज मुझे दे दिया, मैंने उन्हें समय से पहले साडी और ब्लाउज तैयार करने को कहा| थोड़े पैसे बढ़ा कर आंटी जी मान गईं और मुझे धनतेरस के दिन साडी और ब्लाउज ले जाने को कहा|



इधर माँ ने मुझे एक दिन भौजी के सामने पूछ लिया;

माँ: तूने सब के लिए कुछ न कुछ मँगाया पर अपनी दोस्त, अपनी भौजी के लिए कुछ क्यों नहीं मँगाया?

माँ का सवाल सुन मैं थोड़ा हैरान था, ऊपर से भौजी भी वहीं बैठीं सब्जी काट रहीं थीं| अगर माँ ने अकेले में पुछा होता तो मैं उन्हें सच बता देता, मगर भौजी के सामने कैसे कुछ कहूँ?

मैं: क्या है न माँ, दोस्ती का रिश्ता दो तरफा होता है! ये तो कहीं की रीत नहीं की सिर्फ मैं ही दोस्ती का रिश्ता निभाऊँ!

मैंने भौजी को उल्हाना देते हुए कहा और उठ कर साइट पर निकल गाय| मैं तो उल्हाना दे कर चल दिया, मगर मेरे पीछे माँ ने भौजी से सवालों की झड़ी लगा दी! पता नहीं बेचारी भौजी ने क्या-क्या कहा होगा, सच तो बोल नहीं पाईं होंगी?! बेचारी ने मन मारकर माँ से झूठ ही कहा होगा! मुझे लगा की भौजी समय मिलने पर जर्रूर मुझे कॉल करेंगी और मुझसे शिकायत करेंगी या लड़ेंगी, परन्तु उन्होंने ऐसा कुछ नहीं किया!



उधर दिवाली के उपलक्ष्य में बच्चों की स्कूल की छुट्टियाँ हो चुकीं थीं, घर में अकेले रहते हुए बच्चे मुझसे दूर रह कर दुखी रहने लगे थे! उधर मैं भी काम बढ़ने के कारण बच्चों को जरा सा भी समय नहीं दे पा रहा था| रात को थक कर चूर देर से घर आना और सुबह 8 बजे तक सो के नींद पूरी करने के कारण मैं बच्चों को देख भी नहीं पाता था| वहीं भौजी बच्चों को मुझसे दूर रखते हुए उन्हें सुबह या रात को मेरे पास आने नहीं देतीं| रात को मेरे घर आने से पहले ही वो बच्चों को जबरदस्ती डाँट-फटकार कर सुला देतीं, मुझे खाना परोस कर वो सोने चली जातीं और अपने कमरे का दरवाजा अंदर से बंद कर लेतीं ताकि देर रात या सुबह बच्चे उठ कर मेरे पास न आ जाएँ| भौजी के दरवाजा बंद कर सोने का एक कारण और भी था, वो ये की कहीं मैं रात को उनसे बात करने न चला आऊँ! जब बच्चों का स्कूल होता था तब वो ये ध्यान रखतीं की बच्चे मेरे पास न आ पाएँ इसके लिए वो दोनों बच्चों के सर पर खड़ीं रहतीं और उन्हें तैयार करतीं थीं| जब बच्चों के स्कूल की छुट्टियाँ हुईं तो उन्होंने बच्चों को सुबह उठने से मना कर दिया! भौजी की इस सख्ती के कारण सुबह-सुबह मुझे मिलने वाली मीठी-मीठी पप्पी भी बंद हो गई थी! दोपहर को बच्चे मुझे फ़ोन करना चाहते तो भौजी उन्हें झूठ बोल देतीं की मैं काम में व्यस्त हूँ और बात नहीं कर सकता| बच्चे बेचारे मन मसोस कर रह जाते और मायूस हो कर बैठ जाते! वो तो मेरे माँ-पिताजी यानी उनके दादा-दादी थे जो उनका मन बहलाये रखते थे, जिससे बच्चे थोड़ा खिले-खिले रहते! दोनों बच्चे जानते थे की उन पर ये जुल्म उनकी मम्मी ही कर रही है, क्योंकि मैं ऐसा कतई नहीं था! आयुष चूँकि छोटा था तो कुछ कह नहीं पाता था, परन्तु नेहा बड़ी थी और उससे अपनी मम्मी का ये उखड़ा हुआ व्यवहार बर्दाश्त नहीं हो रहा था| नेहा का मन दिनभर मेरे बिना नहीं लगता था, रात होती तो उसे मेरे बिना नींद नहीं आती, वो तो उसे अपनी मम्मी का डर था जिसके मारे वो सहती रहती थी| परन्तु अब उसके सब्र की इंतेहा हो रही थी, उसके मन का ज्वालामुखी फटने की कगार पर आ चूका था!



धनतेरस से एक दिन पहले की बात है, रात में आज फिर मैं देर से घर आया था| भौजी ने बच्चों को डरा-धमका कर सुला दिया था, पिताजी तो पहले ही सो चुके थे बस माँ और भौजी टी.वी. देखते हुए मेरा इंतजार कर रहे थे| मैं घर पहुँचा तो भौजी मेरा खाना परोसने लगीं, मैं मुँह-हाथ धो कर खाना खाने बैठ गया| भौजी और मेरे बीच अब भी कोई बात नहीं हो रही थी, मैंने बात शुरु करते हुए माँ से बच्चों के बारे में बात करना शुरू कर दिया| माँ और मेरी बात होने लगी तो भौजी माँ को “शुभरात्रि” बोल कर सोने चली गईं, रोज की तरह मुझे उनके दरवाजा अंदर से बंद करने की आवाज आई| दिल तो बहुत दुखता था की वो मुझे मेरे ही बच्चों से दूर कर रहीं हैं, मगर माँ की उपस्थिति के कारण मैं लाचार था| खाना खा कर बर्तन सिंक में डालकर मैं सोने चला गया और माँ भी सोने चली गईं| रात के 12 बजे थे और नेहा कोई डरावना सपना देख कर दहल गई थी, वो चुपचाप उठ कर मेरे पास आने लगी तो भौजी ने उसे डाँट दिया;

भौजी: चुपचाप सो जा!

भौजी की डाँट सुन कर भी नेहा नहीं मानी और सिसकते हुए कुर्सी खींच कर दरवाजे के पास ले आई| कुर्सी पर चढ़ कर वो दरवाजे की चिटकनी खोलने लगी, अब तक भौजी उठ चुकीं थीं और उन्होंने कमरे की लाइट जला दी थी| भौजी ने जब नेहा को कुर्सी पर चढ़ कर चिटकनी खोलते देखा तो उनका गुस्सा फूट पड़ा;

भौजी: नेहा! तुझे समझ नहीं आती एक बार में?! सो जा चुप चाप!

भौजी का गुस्सा देख नेहा से बर्दाश्त नहीं हुआ और वो रोते हुए अपनी मम्मी पर चिल्लाई;

नेहा: नहीं!

इतना कह वो फटाफट कुर्सी से नीचे कूदी और दरवाजा खोलकर मेरे कमरे की तरफ दौड़ी| उधर नेहा की चीख सुन कर मैं उठ कर बैठ चूका था, मैंने फटाफट कमरे की लाइट जलाई और उठ कर अपने दरवाजे तक पहुँचा था की रोती हुई नेहा आ कर मेरी टाँगों से लिपट गई! मैंने नेहा को गोद में उठाया और उसे पुचकारते हुए चुप कराने लगा| मेरी बेटी फफक कर रो रही थी और उसे यूँ रोता हुआ देख मेरा दिल खून के आँसूँ रोने लगा था! मैं नेहा की पीठ सहलाते हुए उसे ढाँढस बँधा रहा था की तभी मेरी नजर भौजी के कमरे पर पड़ी, मैंने देखा भौजी गुस्से से आँखें बड़ी कर के मुझे और नेहा को देख रहीं हैं! भौजी की आँखों में गुस्सा देख मेरी आँखें गुस्से से जलने लगीं, मैंने घूर कर उन्हें देखा और गुस्से में आ कर मेरे मुँह से कुछ निकलने वाला था की तभी माँ-पिताजी आ गए! नेहा की चीख सुन के वे भी जाग गए थे, उन्हें अपने सामने देख मैंने अपने होंठ सी लिए और गुस्से से दाँत पीसते हुए खामोश हो गया!

पिताजी: क्या हुआ बेटा, नेहा क्यों चीखी?

पिताजी ने चिंतित होते हुए पुछा|

मैं: बुरा सपना देख कर उठ गई!

मैंने दाँत पीसते हुए भौजी को देखते हुए कहा, मेरा गुस्सा देख कर भौजी की जान हलक में आ गई थी और वो सर झुकाये मुझसे नजरें चुराने लगीं! घर में कलेश न हो इसलिए मैं नेहा को गोदी में लिए हुए कमरे में आ गया, बाकी सब भी अपने-अपने कमरे में लौट गए!



मैं नेहा को गोदी में लिए कमरे में टहलने लगा और उसे पुचकार कर शांत कराने लगा, थोड़ा टाइम लगा नेहा का रोना रुकने में|

नेहा: पा..पा (पापा)... म…मम्मी...मु...झे (मुझे)....आप...से....अ...लग (अलग)....कर....रही...है!

नेहा सिसकते हुए बोली| नेहा की बात सुन मैं सख्ते में था क्योंकि मैंने उस छोटी सी बच्ची से इतनी बड़ी बात सोचने की कभी उम्मीद नहीं की थी! मैंने नेहा को गोदी से उतारा और उसे पलंग पर खड़ा करते हुए उसकी आँखों में देखते हुए बोला;

मैं: बेटा कोई मुझे आप से अलग नहीं कर सकता! उन्हें (भौजी को) जो करना है वो करने दो, आप ये कभी मत सोचना की हम दोनों बाप-बेटी कभी अलग होंगें! मैं आपको कभी खुद से दूर जाने नहीं दूँगा, चाहे मुझे उसके लिए किसी से भी लड़ना पड़े!

मेरी आवाज में बहुत आत्मविश्वास था, इतना आत्मविश्वास की मेरी बेटी के मन से मुझसे अलग होने का डर हमेशा-हमेशा के लिए जा चूका था!

डर से मुक्त हो कर नेहा ने मुस्कुराने की कोशिश की, मैंने नेहा के आँसूँ पोछे और उसे समझाते हुए बोला;

मैं: बेटा आपकी मम्मी इस वक़्त बहुत बड़ी उलझन में हैं! सही चीज जो उनके सामने है वो उसे समझ नहीं पा रहीं, डर रहीं हैं और अपने इस डर को छुपाने के लिए अपना गुस्सा आप दोनों पर निकाल रहीं हैं!

मैं नेहा को सब सच नहीं बता सकता था क्योंकि अपनी माँ से बगावत की चिंगारी जो आज नेहा के अंदर जली थी, ये बात जानकार वो चिंगारी कभी भी धधकती हुई आग बन सकती थी, इसीलिए मैंने नेहा से सारी बात गोल-मोल की थी! नेहा ने मुझसे कोई सवाल नहीं पुछा और आ कर मुझसे लिपट गई! दोनों बाप-बेटी रात को चैन से सोये, सुबह हुई तो माँ हमें जगाने आईं| बच्चों के स्कूल की छुट्टी थी इसलिए सुबह सब आराम से उठे थे| नेहा अभी नींद में थी और नींद में होते हुए भी मेरी छाती से चिपटी हुई थी, मैं नेहा को गोद में लिए हुए बाहर आया और बैठक में बैठ गया| पिताजी ने नेहा की पीठ थपथपाई और मुझसे बात करने लगे| आज चूँकि धनतेरस थी तो उन्होंने माँ के साथ खरीदारी करने जाना था और मेरे हिस्से सारे काम आ गए थे| चूँकि मैं नेहा को गोदी लिए हुए था तो पिताजी ने कागज़ पर मेरे लिए आज के काम की लिस्ट बना कर दे दी| इतने में माँ चाय ले आईं, नेहा को यूँ सोता हुआ देख उन्होंने नेहा के सर पर हाथ फेरा और नेहा को पुकारा| नेहा आँख मलते हुए जागी और मेरे गाल पर अपनी मीठी-मीठी पप्पी दी! अब तो आयुष भी जाग चूका था और मेरी आवाज सुन वो अंदर से दौड़ता हुआ आया| नेहा मेरी गोदी से उतरी ताकि उसके भाई को भी थोड़ा प्यार मिले, नेहा बाथरूम गई और इधर आयुष ने मेरे गाल पर मीठी-मीठी पप्पी दी! मैं आयुष को गोदी में ले कर अपने कमरे में आया, नेहा उस समय बाथरूम से निकल रही थी जब आयुष मुस्कुराते हुए बोला;

आयुष: I love you पापा!

इतने दिनों बाद अपने पापा के गले लग कर आयुष खुश हो गया था| मैंने आयुष के माथे को चूमा और बोला;

मैं: पापा loves you too बेटा!

मेरे दोनों बच्चे जिस प्यार को तरस रहे थे उसे पा कर वो खुश हो गए थे| नाश्ता कर मैं तैयार होने लगा तो नेहा डरी हुई सी मेरे पास आई;

नेहा: पापा जी, मैं भी आपके साथ चलूँ?

नेहा सर झुकाते हुए बोली| दरअसल नेहा जानती थी की आज घर पर बस वो, आयुष और उसकी मम्मी होंगे! ऐसे में भौजी के गुस्से का कोई भरोसा नहीं, हो सकता था की कल रात की नेहा की गुस्ताखी के लिए आज उसे मार पड़ती! इधर मैं अपने साथ दोनों बच्चों को नहीं रख सकता था, क्योंकि साइट पर वो दोनों बोर हो जाते!

मैं: Sorry बेटा! लेकिन मेरा काम दौड़-भाग वाला है! लेकिन आप चिंता मत करो, मेरा पास एक plan है!

मैंने नेहा को अपनी ऊँगली पकड़ाई और उसे पिताजी के पास बैठक में ले आया;

मैं: पिताजी, आप से एक गुजारिश है!

इतना सुन पिताजी उत्सुक्ता से मुझे देखने लगे|

मैं: पिताजी आप खरीदारी करने जा रहे हैं तो दोनों बच्चों को साथ ले जाइये!

बाहर घूमने जाने की बात से आयुष तो दौड़ कर मेरे पास आ गया|

पिताजी: अरे बेटा ये भी कोई कहने की बात है! तू चिंता न कर हम सारे (पिताजी, माँ, आयुष, नेहा और भौजी) चले जाएँगे!

अपनी मम्मी की डाँट से बचने का मौका मिला तो नेहा के चेहरे पर भी ख़ुशी की मुस्कान आ गई|

मैं: बेटा आप दोनों अपने दादा जी और दादी जी को तंग मत करना!

मैंने प्यार से दोनों बच्चों को हिदायत दी| इतने में पीछे से माँ बोल पड़ीं;

माँ: हमारे बच्चे हमें तंग थोड़े ही करते हैं!

माँ को अपनी तरफदारी करते सुन दोनों बच्चे उनके पास दौड़ गए| माँ उस समय dining table पर बैठीं थीं और उन्हीं की बगल में भौजी बैठीं नाश्ता कर रहीं थीं| मैं माँ के पास आया तो भौजी उठ गईं, मैंने दोनों बच्चों को पिताजी के पास भेजा तथा मैं खुद माँ के पास बैठा और धीमी आवाज में उनसे बोला;

मैं: माँ, बच्चों का ध्यान रखना!

इतना कह मैंने भौजी की तरफ गर्दन से इशारा किया और अपनी बात पूरी की;

मैं: मेरे आने तक बच्चों को इनसे दूर रखना!

मेरी बात सुन माँ अचरज में पड़ गईं और पूछ बैठीं;

माँ: क्यों?

माँ ने भोयें सिकोड़ कर पुछा| मैंने फिर से भौजी की तरफ गर्दन से इशारा किया और बोला;

मैं: इनका पारा आजकल बहुत चढ़ा हुआ है!

माँ मेरी बात समझ गईं और बोलीं;

माँ: तू चिंता मत कर मैं समझाऊँगी बहु को!

सच कहूँ तो मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता था की माँ उनसे क्या बात करेंगी, इसलिए मैंने कोई प्रतिक्रया नहीं दी और नकली मुस्कान के साथ उठ गया| मैं दोनों बच्चों को "bye" कहा और बदले में मुझे दोनों बच्चों ने अपनी प्यारी-प्यारी पप्पी दी!

मैं काम पर आया और उधर बच्चों ने माँ-पिताजी के साथ खूब मस्ती की! माँ-पिताजी ने दोनों बच्चों को खूब लाड-प्यार से घुमाया और अच्छे से खिलाया-पिलाया! पिछले कुछ दिनों से बच्चों पर जो अपनी मम्मी का दबाव बन गया था वो आज की मौज-मस्ती ने खत्म कर दिया था| बजार से घूम कर आते-आते सब को 3 बज गए थे, घर आते ही दोनों बच्चों ने अपनी दादी जी के फ़ोन से मुझे कॉल किया और बड़े उत्साह से मुझे सारा ब्यौरा दिया! मैं खुश था की मेरे बच्चे खुश हैं!

रात को जब मैं घर पहुँचा तो बच्चे ख़ुशी से चहक रहे थे| वहीं माँ ने भौजी से उनके गुस्से को ले कर बात की थी और उन्हें बहुत समझाया भी था, यही कारण था की भौजी इस वक़्त शांत थीं मगर मेरे प्रति वो अब भी उखड़ीं थीं! अब तो माँ से उनकी (भौजी की) शिकायत करने की तोहमत भी मेरे सर लग चुकी थी! चलो मुझे तो भौजी के गुस्से की आदत पड़ चुकी थी इसलिए मैंने इस बात का बुरा लगाना ही छोड़ दिया!



अगले दिन छोटी दिवाली थी और आज माँ-पिताजी का plan जान-पहचान में मिठाई देने जाना था| कल की दादा-दादी संग की गई मस्ती के कारण बच्चे आज भी उन्हीं के संग रहना चाहते थे! माँ-पिताजी को इससे कोई परेशानी नहीं थी, बल्कि वो तो बहुत खुश थे! उनका और बच्चों का plan तो सेट था, अब बचे हम दोनों (मैं और भौजी) तो हम दोनों के नसीब में आज मिलना लिखा ही नहीं था! मिश्रा अंकल जी की एक साइट का काम आज फाइनल होना था इसलिए मेरा सारा समय वहीं पर निकला| काम फाइनल हुआ तो मिश्रा अंकल जी ने हाथ के हाथ payment पिताजी के अकाउंट में डलवा दी! रात को जब मैं घर पहुँचा तो दोनों बच्चों ने मुझे घेर लिया और आज की मस्ती के बारे में बताने लगे तथा माँ-पिताजी मुस्कुराते हुए दोनों बच्चों को अपनी बचकानी बात करते हुए देख रहे थे|

मैंने खाना खाया और दोनों बच्चों को अपने साथ ले कर कमरे में आ गया, कल दिवाली थी और मैं घर पर ही रहने वाला था इसलिए दोनों बच्चे चहक रहे थे| जहाँ एक तरफ आयुष को अपने नए कपडे पहनने का उत्साह था, वहीं नेहा को पूरा दिन मेरे साथ रहने की ख़ुशी थी! बच्चों का उत्साह इतना था की आज उन्हें सुलाने के लिए एक कहानी कम पड़ी, दोनों ने "please...please" कह कर दूसरी कहानी भी सुनी और तब जा कर वो सोये!


जारी रहेगा भाग-4 में...
Ye hue na baat sirji mjedaar aur interesting update.
.
Full update was amazing aur har line ya paragharph ya fir ghatnakram keh lo mai alag hi twist aur romaanch tha.
.
Ab to kahani mai diwali bhi aane wali h to dhamake bhi kareeb aagye.
.
Company bhi register hone wali h mtlb office bhi banega ab fir to manu bhai k mje ho jayege.
.
Keep writing.
.
Keep posting.
.
..
...
....
 

Sangeeta Maurya

Well-Known Member
5,856
8,642
143
चौबीसवाँ अध्याय: उलझते-सुलझते बंधन
भाग-3

अब तक आपने पढ़ा:


अपना मजाक उड़ता देख आयुष ने मुँह फुला लिया और मेरी तरफ देखने लगा;

मैं: आजा मेरा बेटा!

ये कहते हुए मैंने आयुष को आपने गले लगा लिया| आज पहलीबार मैंने सबके सामने आयुष को 'मेरा बेटा' कहा था और ये मैंने जानबूझ कर नहीं कहा था, बल्कि अनायास ही मेरे मुँह से निकल गया था| माँ-पिताजी ने इस बात पर गौर नहीं किया, मगर भौजी आँखें बड़ी कर के मुझे देखने लगीं थीं! जब भौजी ने मुझे यूँ आँखें बड़ी कर के देखा तो मुझे मेरे बोले हुए शब्दों का एहसास हुआ, परन्तु मैंने न इस बात को छुपाने की कोशिश की और न ही इस बात को और बढ़ाया| मैंने आयुष को गोद में लिया और अपने हाथ से पकोड़े खिलाने लगा|



अब आगे:



भौजी के चेहरे पर आई मुस्कान बस कुछ पल के लिए ही थी, वो अब पुनः मुझसे उखड़ी-उखड़ी घर के काम करने में लगी थीं| माँ-पिताजी की मौजूदगी थी इसलिए मैं उनसे खुल कर बात नहीं कर पा रहा था, तो मैंने अपना ध्यान दोनों बच्चों के साथ खेलने में लगा दिया| कुछ देर बाद बारिश रुकी तो पिताजी ने मुझे अपने साथ काम की बात करने के लिए बिठा लिया| आगे भविष्य में काम कैसे बढ़ाना है, किस तरह के projects उठाने चाहिए आदि के विषय में पिताजी ने मेरे विचार जाने| मेरे सपने शुरू से ही ऊँचे रहे हैं, जब मैंने पिताजी से company register करवाने की बात कही तो उन्हें बहुत ख़ुशी हुई! मुझे काम professional ढँग से करने का शौक था, कहने की जर्रूरत तो नहीं की ये शौक मुझे पिताजी से ही लगा था| जब मैं छोटा था तो पिताजी सर्दियों के दिनों में कोर्ट-टाई लगा कर काम पर जाते थे, उन्हें यूँ जाते देख कर मुझे हमेशा गर्व होता था, ऐसा लगता था जैसे मेरे पिताजी किसी बहुत बड़ी company के मालिक हों! Company register करवा कर मैं चाहता था की हम दोनों बाप बेटे ऐसे ही काम पर जाएँ और मेरा बचपन का सपना सच हो जाए| मेरी बात सुन पिताजी मुस्कुराने लगे, फिर उन्होंने मुझसे हिसाब-किताब की बात की तो मैंने उन्हें सारा हिसाब दे दिया| पिताजी मेरे हिसाब-किताब साफ़ रखने से बड़े खुश थे और उनकी ये ख़ुशी गर्व बनकर उनके चेहरे पर झलक रही थी|

वहीं आज पिताजी से बात करते हुए नज़ाने क्यों ऐसा लगा की जैसे वो मेरी तरफ कुछ झुक गए हों! जब से वो गाँव से आये थे, मेरे प्रति उनका व्यवहार कुछ ज्यादा ही नरम हो गया था| शायद गाँव में उन्होंने चन्दर के जो काण्ड देखे उन्हें देखते हुए उन्हें अपने आज्ञाकारी बेटे पर गुमान हो रहा था! बिगड़ने को मैं भी बिगड़ सकता था, शराब मैं भी पीता था, मगर पिताजी के द्वारा पकडे जाने पर मैंने शराब से तौबा कर ली थी और शायद इसी का फक्र पिताजी को हो रहा था! चलो मेरे लिए तो पिताजी का यूँ मेरे प्रति नरम पढ़ना मेरे लिए फायदे की बात थी, क्योंकि मेरे मुख से सच्चाई जानकार वो मुझे सीधा घर से निकाल नहीं देते, बल्कि मुझे मेरी बात रखने का एक मौका अवश्य देते!



बहरहाल दिवाली आने में कुछ दिन रह गए थे, मगर भौजी के वयवहार में रत्ती भर बदलाव नहीं आया था| वही चिचिड़ापन, वही मेरे साथ उखड़े रहना, वही मुझे तड़पाना, मेरी बात न सुनना, मुझसे बात न करना, बच्चों को झिड़कते रहना, बच्चों को मेरे पास सोने न देना बल्कि उन्हें मेरे से दूर रखना! मैं ये सब बर्दाश्त कर रहा था क्योंकि मैं उनके दिल का हाल समझता था| मैं जानता था की वो गलत हैं मगर मैं इस वक़्त उन्हें सही-गलत का भाषण नहीं दे सकता था, क्योंकि उनकी नजर में मैं खुद गलत करने जा रहा था! हाँ एक बात पक्की हो गई थी की भौजी को मेरे ऊपर भरोसा नहीं, या फिर शायद मैं ही अपने ऊपर हद्द से ज्यादा भरोसा करने लगा था!

लेकिन इस सब के बावजूद जहाँ एक ओर भौजी मुझसे खींची-खींची रह रहीं थीं, वहीं दूसरी ओर मैं अपना सब्र दिखाते हुए उनके नजदीक बना हुआ था! हमारा रिश्ता जैसे rubber band बन चूका था जिसे भौजी खींच कर तोडना चाहती थीं, मगर हमारे प्यार का rubber band खींच कर वापस मुझे उनके पास ले आता था|



चूँकि दिवाली नजदीक थी तो छोटे -मोटे कामों का ठेका बढ़ गया था, जिस कारण मैं साइट पर ज्यादा व्यस्त रहने लगा था| रात में मुझे आने में देर हो जाया करती थी, इसलिए भौजी ने जबरदस्ती बच्चों को अपने साथ सुलाना शुरू कर दिया! वहीं दूसरी तरफ मैं व्यस्त होते हुए भी समय निकाल कर भौजी को what's app पर message कर के उन्हें अपनी उपस्थिति से परिचित कराता रहता था| कभी कोई joke भेज देता, तो कभी उन्हें खुश करने के लिए कोई शायरी, कभी-कभी मैं अपनी अच्छी selfie खींच कर भौजी के दिल में अपना प्यार जगाये रखता| भौजी मेरे message तो देख लेतीं मगर किसी message का जवाब नहीं देतीं! मैंने भी हार नहीं मानी और उन्हें kissi की आवाज record कर भेज ने लगा| भले ही भौजी ठंडी पढ़ रहीं हों, पर मैं अपना कर्म करते हुए हमारे romance का दिया जलाये हुए था!



जब से कमाने लायक हुआ था, तब से हर साल दिवाली पर मैं माँ-पिताजी के लिए कुछ न कुछ लिया करता था| इस बार भौजी और मेरे बच्चे साथ थे तो मैंने सब के लिए online कपडे देखना शुरू किया| पिताजी के लिए मैंने branded shirt-pant, माँ के लिए chiffon की साडी, नेहा के लिए लेहंगा चोली और आयुष के लिए मैंने कुरता और धोती order कर दिया| सब के लिए जो भी मैंने मँगाया था वो मैंने घर के पते पर deliver करवाया और माँ को बता दिया की वो ये order ले लें, मगर भौजी के लिए मैंने एक ख़ास बनारसी साडी मँगाई जिसे मैंने अपनी साइट के पते पर मँगवाया ताकि भौजी को पता न चले| माँ की साडी समय से घर आ गई थी, मैंने पीछे पड़ कर माँ को जबरदस्ती के दर्जी के पास भेजा वरना माँ हर बार की तरह ये साडी भी पैक कर के रखतीं, जबकी मैं चाहता था की वो दिवाली पर यही साडी पहने| उधर भौजी की साडी साइट पर deliver हो गई, मगर अब दिक्कत ये थी की उसे दर्जी को दूँ कैसे? दर्जी के पास साडी देने के लिए मुझे भौजी का माप दिलवाना होता, अब अगर भौजी से माप देने की बात कहता तो उन्हें पता चल जाता की मैंने उनके लिए साडी खरीदी है! मुझे ये बात फिलहाल छुपानी थी इसलिए मैंने थोड़ा दिमाग लगाया! मुझे याद आया की कई बार माँ दर्जी को अपना माप न दे कर पहले से सिला कोई कपडा दे देतीं थीं, तो भौजी की साडी के लिए मुझे उनका कोई ब्लाउज चाहिए था! अब उनसे जा कर माँग तो सकता नहीं था इसलिए मैंने चोरी करने का सोचा! अपने घर में, अपनी परिणीता का ब्लाउज चुराने में मुझे बहुत शर्म आ रही थी! लेकिन ब्लाउज तो चाहिए था इसलिए मैं चुपचाप भौजी के कमरे में घुसा और उनका एक ब्लाउज चुरा कर जेब में डालकर अपने कमरे में आ गाय| मैंने एक दूसरे दर्जी को भौजी की साडी और माप के लिए भौजी का चुराया हुआ ब्लाउज दिया ताकि कहीं माँ को पता न चल जाए| आंटी जी (दर्जी) ने माप वाला ब्लाउज साडी के साथ रख लिया था, मैं जानता था की भौजी आज नहीं तो कल ये ब्लाउज ढूँढेंगी जर्रूर, इसलिए मैंने आंटी जी से कहा की वो माप ले कर ब्लाउज मुझे वापस दे दें! आंटी जी ने माप ले कर ब्लाउज मुझे दे दिया, मैंने उन्हें समय से पहले साडी और ब्लाउज तैयार करने को कहा| थोड़े पैसे बढ़ा कर आंटी जी मान गईं और मुझे धनतेरस के दिन साडी और ब्लाउज ले जाने को कहा|



इधर माँ ने मुझे एक दिन भौजी के सामने पूछ लिया;

माँ: तूने सब के लिए कुछ न कुछ मँगाया पर अपनी दोस्त, अपनी भौजी के लिए कुछ क्यों नहीं मँगाया?

माँ का सवाल सुन मैं थोड़ा हैरान था, ऊपर से भौजी भी वहीं बैठीं सब्जी काट रहीं थीं| अगर माँ ने अकेले में पुछा होता तो मैं उन्हें सच बता देता, मगर भौजी के सामने कैसे कुछ कहूँ?

मैं: क्या है न माँ, दोस्ती का रिश्ता दो तरफा होता है! ये तो कहीं की रीत नहीं की सिर्फ मैं ही दोस्ती का रिश्ता निभाऊँ!

मैंने भौजी को उल्हाना देते हुए कहा और उठ कर साइट पर निकल गाय| मैं तो उल्हाना दे कर चल दिया, मगर मेरे पीछे माँ ने भौजी से सवालों की झड़ी लगा दी! पता नहीं बेचारी भौजी ने क्या-क्या कहा होगा, सच तो बोल नहीं पाईं होंगी?! बेचारी ने मन मारकर माँ से झूठ ही कहा होगा! मुझे लगा की भौजी समय मिलने पर जर्रूर मुझे कॉल करेंगी और मुझसे शिकायत करेंगी या लड़ेंगी, परन्तु उन्होंने ऐसा कुछ नहीं किया!



उधर दिवाली के उपलक्ष्य में बच्चों की स्कूल की छुट्टियाँ हो चुकीं थीं, घर में अकेले रहते हुए बच्चे मुझसे दूर रह कर दुखी रहने लगे थे! उधर मैं भी काम बढ़ने के कारण बच्चों को जरा सा भी समय नहीं दे पा रहा था| रात को थक कर चूर देर से घर आना और सुबह 8 बजे तक सो के नींद पूरी करने के कारण मैं बच्चों को देख भी नहीं पाता था| वहीं भौजी बच्चों को मुझसे दूर रखते हुए उन्हें सुबह या रात को मेरे पास आने नहीं देतीं| रात को मेरे घर आने से पहले ही वो बच्चों को जबरदस्ती डाँट-फटकार कर सुला देतीं, मुझे खाना परोस कर वो सोने चली जातीं और अपने कमरे का दरवाजा अंदर से बंद कर लेतीं ताकि देर रात या सुबह बच्चे उठ कर मेरे पास न आ जाएँ| भौजी के दरवाजा बंद कर सोने का एक कारण और भी था, वो ये की कहीं मैं रात को उनसे बात करने न चला आऊँ! जब बच्चों का स्कूल होता था तब वो ये ध्यान रखतीं की बच्चे मेरे पास न आ पाएँ इसके लिए वो दोनों बच्चों के सर पर खड़ीं रहतीं और उन्हें तैयार करतीं थीं| जब बच्चों के स्कूल की छुट्टियाँ हुईं तो उन्होंने बच्चों को सुबह उठने से मना कर दिया! भौजी की इस सख्ती के कारण सुबह-सुबह मुझे मिलने वाली मीठी-मीठी पप्पी भी बंद हो गई थी! दोपहर को बच्चे मुझे फ़ोन करना चाहते तो भौजी उन्हें झूठ बोल देतीं की मैं काम में व्यस्त हूँ और बात नहीं कर सकता| बच्चे बेचारे मन मसोस कर रह जाते और मायूस हो कर बैठ जाते! वो तो मेरे माँ-पिताजी यानी उनके दादा-दादी थे जो उनका मन बहलाये रखते थे, जिससे बच्चे थोड़ा खिले-खिले रहते! दोनों बच्चे जानते थे की उन पर ये जुल्म उनकी मम्मी ही कर रही है, क्योंकि मैं ऐसा कतई नहीं था! आयुष चूँकि छोटा था तो कुछ कह नहीं पाता था, परन्तु नेहा बड़ी थी और उससे अपनी मम्मी का ये उखड़ा हुआ व्यवहार बर्दाश्त नहीं हो रहा था| नेहा का मन दिनभर मेरे बिना नहीं लगता था, रात होती तो उसे मेरे बिना नींद नहीं आती, वो तो उसे अपनी मम्मी का डर था जिसके मारे वो सहती रहती थी| परन्तु अब उसके सब्र की इंतेहा हो रही थी, उसके मन का ज्वालामुखी फटने की कगार पर आ चूका था!



धनतेरस से एक दिन पहले की बात है, रात में आज फिर मैं देर से घर आया था| भौजी ने बच्चों को डरा-धमका कर सुला दिया था, पिताजी तो पहले ही सो चुके थे बस माँ और भौजी टी.वी. देखते हुए मेरा इंतजार कर रहे थे| मैं घर पहुँचा तो भौजी मेरा खाना परोसने लगीं, मैं मुँह-हाथ धो कर खाना खाने बैठ गया| भौजी और मेरे बीच अब भी कोई बात नहीं हो रही थी, मैंने बात शुरु करते हुए माँ से बच्चों के बारे में बात करना शुरू कर दिया| माँ और मेरी बात होने लगी तो भौजी माँ को “शुभरात्रि” बोल कर सोने चली गईं, रोज की तरह मुझे उनके दरवाजा अंदर से बंद करने की आवाज आई| दिल तो बहुत दुखता था की वो मुझे मेरे ही बच्चों से दूर कर रहीं हैं, मगर माँ की उपस्थिति के कारण मैं लाचार था| खाना खा कर बर्तन सिंक में डालकर मैं सोने चला गया और माँ भी सोने चली गईं| रात के 12 बजे थे और नेहा कोई डरावना सपना देख कर दहल गई थी, वो चुपचाप उठ कर मेरे पास आने लगी तो भौजी ने उसे डाँट दिया;

भौजी: चुपचाप सो जा!

भौजी की डाँट सुन कर भी नेहा नहीं मानी और सिसकते हुए कुर्सी खींच कर दरवाजे के पास ले आई| कुर्सी पर चढ़ कर वो दरवाजे की चिटकनी खोलने लगी, अब तक भौजी उठ चुकीं थीं और उन्होंने कमरे की लाइट जला दी थी| भौजी ने जब नेहा को कुर्सी पर चढ़ कर चिटकनी खोलते देखा तो उनका गुस्सा फूट पड़ा;

भौजी: नेहा! तुझे समझ नहीं आती एक बार में?! सो जा चुप चाप!

भौजी का गुस्सा देख नेहा से बर्दाश्त नहीं हुआ और वो रोते हुए अपनी मम्मी पर चिल्लाई;

नेहा: नहीं!

इतना कह वो फटाफट कुर्सी से नीचे कूदी और दरवाजा खोलकर मेरे कमरे की तरफ दौड़ी| उधर नेहा की चीख सुन कर मैं उठ कर बैठ चूका था, मैंने फटाफट कमरे की लाइट जलाई और उठ कर अपने दरवाजे तक पहुँचा था की रोती हुई नेहा आ कर मेरी टाँगों से लिपट गई! मैंने नेहा को गोद में उठाया और उसे पुचकारते हुए चुप कराने लगा| मेरी बेटी फफक कर रो रही थी और उसे यूँ रोता हुआ देख मेरा दिल खून के आँसूँ रोने लगा था! मैं नेहा की पीठ सहलाते हुए उसे ढाँढस बँधा रहा था की तभी मेरी नजर भौजी के कमरे पर पड़ी, मैंने देखा भौजी गुस्से से आँखें बड़ी कर के मुझे और नेहा को देख रहीं हैं! भौजी की आँखों में गुस्सा देख मेरी आँखें गुस्से से जलने लगीं, मैंने घूर कर उन्हें देखा और गुस्से में आ कर मेरे मुँह से कुछ निकलने वाला था की तभी माँ-पिताजी आ गए! नेहा की चीख सुन के वे भी जाग गए थे, उन्हें अपने सामने देख मैंने अपने होंठ सी लिए और गुस्से से दाँत पीसते हुए खामोश हो गया!

पिताजी: क्या हुआ बेटा, नेहा क्यों चीखी?

पिताजी ने चिंतित होते हुए पुछा|

मैं: बुरा सपना देख कर उठ गई!

मैंने दाँत पीसते हुए भौजी को देखते हुए कहा, मेरा गुस्सा देख कर भौजी की जान हलक में आ गई थी और वो सर झुकाये मुझसे नजरें चुराने लगीं! घर में कलेश न हो इसलिए मैं नेहा को गोदी में लिए हुए कमरे में आ गया, बाकी सब भी अपने-अपने कमरे में लौट गए!



मैं नेहा को गोदी में लिए कमरे में टहलने लगा और उसे पुचकार कर शांत कराने लगा, थोड़ा टाइम लगा नेहा का रोना रुकने में|

नेहा: पा..पा (पापा)... म…मम्मी...मु...झे (मुझे)....आप...से....अ...लग (अलग)....कर....रही...है!

नेहा सिसकते हुए बोली| नेहा की बात सुन मैं सख्ते में था क्योंकि मैंने उस छोटी सी बच्ची से इतनी बड़ी बात सोचने की कभी उम्मीद नहीं की थी! मैंने नेहा को गोदी से उतारा और उसे पलंग पर खड़ा करते हुए उसकी आँखों में देखते हुए बोला;

मैं: बेटा कोई मुझे आप से अलग नहीं कर सकता! उन्हें (भौजी को) जो करना है वो करने दो, आप ये कभी मत सोचना की हम दोनों बाप-बेटी कभी अलग होंगें! मैं आपको कभी खुद से दूर जाने नहीं दूँगा, चाहे मुझे उसके लिए किसी से भी लड़ना पड़े!

मेरी आवाज में बहुत आत्मविश्वास था, इतना आत्मविश्वास की मेरी बेटी के मन से मुझसे अलग होने का डर हमेशा-हमेशा के लिए जा चूका था!

डर से मुक्त हो कर नेहा ने मुस्कुराने की कोशिश की, मैंने नेहा के आँसूँ पोछे और उसे समझाते हुए बोला;

मैं: बेटा आपकी मम्मी इस वक़्त बहुत बड़ी उलझन में हैं! सही चीज जो उनके सामने है वो उसे समझ नहीं पा रहीं, डर रहीं हैं और अपने इस डर को छुपाने के लिए अपना गुस्सा आप दोनों पर निकाल रहीं हैं!

मैं नेहा को सब सच नहीं बता सकता था क्योंकि अपनी माँ से बगावत की चिंगारी जो आज नेहा के अंदर जली थी, ये बात जानकार वो चिंगारी कभी भी धधकती हुई आग बन सकती थी, इसीलिए मैंने नेहा से सारी बात गोल-मोल की थी! नेहा ने मुझसे कोई सवाल नहीं पुछा और आ कर मुझसे लिपट गई! दोनों बाप-बेटी रात को चैन से सोये, सुबह हुई तो माँ हमें जगाने आईं| बच्चों के स्कूल की छुट्टी थी इसलिए सुबह सब आराम से उठे थे| नेहा अभी नींद में थी और नींद में होते हुए भी मेरी छाती से चिपटी हुई थी, मैं नेहा को गोद में लिए हुए बाहर आया और बैठक में बैठ गया| पिताजी ने नेहा की पीठ थपथपाई और मुझसे बात करने लगे| आज चूँकि धनतेरस थी तो उन्होंने माँ के साथ खरीदारी करने जाना था और मेरे हिस्से सारे काम आ गए थे| चूँकि मैं नेहा को गोदी लिए हुए था तो पिताजी ने कागज़ पर मेरे लिए आज के काम की लिस्ट बना कर दे दी| इतने में माँ चाय ले आईं, नेहा को यूँ सोता हुआ देख उन्होंने नेहा के सर पर हाथ फेरा और नेहा को पुकारा| नेहा आँख मलते हुए जागी और मेरे गाल पर अपनी मीठी-मीठी पप्पी दी! अब तो आयुष भी जाग चूका था और मेरी आवाज सुन वो अंदर से दौड़ता हुआ आया| नेहा मेरी गोदी से उतरी ताकि उसके भाई को भी थोड़ा प्यार मिले, नेहा बाथरूम गई और इधर आयुष ने मेरे गाल पर मीठी-मीठी पप्पी दी! मैं आयुष को गोदी में ले कर अपने कमरे में आया, नेहा उस समय बाथरूम से निकल रही थी जब आयुष मुस्कुराते हुए बोला;

आयुष: I love you पापा!

इतने दिनों बाद अपने पापा के गले लग कर आयुष खुश हो गया था| मैंने आयुष के माथे को चूमा और बोला;

मैं: पापा loves you too बेटा!

मेरे दोनों बच्चे जिस प्यार को तरस रहे थे उसे पा कर वो खुश हो गए थे| नाश्ता कर मैं तैयार होने लगा तो नेहा डरी हुई सी मेरे पास आई;

नेहा: पापा जी, मैं भी आपके साथ चलूँ?

नेहा सर झुकाते हुए बोली| दरअसल नेहा जानती थी की आज घर पर बस वो, आयुष और उसकी मम्मी होंगे! ऐसे में भौजी के गुस्से का कोई भरोसा नहीं, हो सकता था की कल रात की नेहा की गुस्ताखी के लिए आज उसे मार पड़ती! इधर मैं अपने साथ दोनों बच्चों को नहीं रख सकता था, क्योंकि साइट पर वो दोनों बोर हो जाते!

मैं: Sorry बेटा! लेकिन मेरा काम दौड़-भाग वाला है! लेकिन आप चिंता मत करो, मेरा पास एक plan है!

मैंने नेहा को अपनी ऊँगली पकड़ाई और उसे पिताजी के पास बैठक में ले आया;

मैं: पिताजी, आप से एक गुजारिश है!

इतना सुन पिताजी उत्सुक्ता से मुझे देखने लगे|

मैं: पिताजी आप खरीदारी करने जा रहे हैं तो दोनों बच्चों को साथ ले जाइये!

बाहर घूमने जाने की बात से आयुष तो दौड़ कर मेरे पास आ गया|

पिताजी: अरे बेटा ये भी कोई कहने की बात है! तू चिंता न कर हम सारे (पिताजी, माँ, आयुष, नेहा और भौजी) चले जाएँगे!

अपनी मम्मी की डाँट से बचने का मौका मिला तो नेहा के चेहरे पर भी ख़ुशी की मुस्कान आ गई|

मैं: बेटा आप दोनों अपने दादा जी और दादी जी को तंग मत करना!

मैंने प्यार से दोनों बच्चों को हिदायत दी| इतने में पीछे से माँ बोल पड़ीं;

माँ: हमारे बच्चे हमें तंग थोड़े ही करते हैं!

माँ को अपनी तरफदारी करते सुन दोनों बच्चे उनके पास दौड़ गए| माँ उस समय dining table पर बैठीं थीं और उन्हीं की बगल में भौजी बैठीं नाश्ता कर रहीं थीं| मैं माँ के पास आया तो भौजी उठ गईं, मैंने दोनों बच्चों को पिताजी के पास भेजा तथा मैं खुद माँ के पास बैठा और धीमी आवाज में उनसे बोला;

मैं: माँ, बच्चों का ध्यान रखना!

इतना कह मैंने भौजी की तरफ गर्दन से इशारा किया और अपनी बात पूरी की;

मैं: मेरे आने तक बच्चों को इनसे दूर रखना!

मेरी बात सुन माँ अचरज में पड़ गईं और पूछ बैठीं;

माँ: क्यों?

माँ ने भोयें सिकोड़ कर पुछा| मैंने फिर से भौजी की तरफ गर्दन से इशारा किया और बोला;

मैं: इनका पारा आजकल बहुत चढ़ा हुआ है!

माँ मेरी बात समझ गईं और बोलीं;

माँ: तू चिंता मत कर मैं समझाऊँगी बहु को!

सच कहूँ तो मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता था की माँ उनसे क्या बात करेंगी, इसलिए मैंने कोई प्रतिक्रया नहीं दी और नकली मुस्कान के साथ उठ गया| मैं दोनों बच्चों को "bye" कहा और बदले में मुझे दोनों बच्चों ने अपनी प्यारी-प्यारी पप्पी दी!

मैं काम पर आया और उधर बच्चों ने माँ-पिताजी के साथ खूब मस्ती की! माँ-पिताजी ने दोनों बच्चों को खूब लाड-प्यार से घुमाया और अच्छे से खिलाया-पिलाया! पिछले कुछ दिनों से बच्चों पर जो अपनी मम्मी का दबाव बन गया था वो आज की मौज-मस्ती ने खत्म कर दिया था| बजार से घूम कर आते-आते सब को 3 बज गए थे, घर आते ही दोनों बच्चों ने अपनी दादी जी के फ़ोन से मुझे कॉल किया और बड़े उत्साह से मुझे सारा ब्यौरा दिया! मैं खुश था की मेरे बच्चे खुश हैं!

रात को जब मैं घर पहुँचा तो बच्चे ख़ुशी से चहक रहे थे| वहीं माँ ने भौजी से उनके गुस्से को ले कर बात की थी और उन्हें बहुत समझाया भी था, यही कारण था की भौजी इस वक़्त शांत थीं मगर मेरे प्रति वो अब भी उखड़ीं थीं! अब तो माँ से उनकी (भौजी की) शिकायत करने की तोहमत भी मेरे सर लग चुकी थी! चलो मुझे तो भौजी के गुस्से की आदत पड़ चुकी थी इसलिए मैंने इस बात का बुरा लगाना ही छोड़ दिया!



अगले दिन छोटी दिवाली थी और आज माँ-पिताजी का plan जान-पहचान में मिठाई देने जाना था| कल की दादा-दादी संग की गई मस्ती के कारण बच्चे आज भी उन्हीं के संग रहना चाहते थे! माँ-पिताजी को इससे कोई परेशानी नहीं थी, बल्कि वो तो बहुत खुश थे! उनका और बच्चों का plan तो सेट था, अब बचे हम दोनों (मैं और भौजी) तो हम दोनों के नसीब में आज मिलना लिखा ही नहीं था! मिश्रा अंकल जी की एक साइट का काम आज फाइनल होना था इसलिए मेरा सारा समय वहीं पर निकला| काम फाइनल हुआ तो मिश्रा अंकल जी ने हाथ के हाथ payment पिताजी के अकाउंट में डलवा दी! रात को जब मैं घर पहुँचा तो दोनों बच्चों ने मुझे घेर लिया और आज की मस्ती के बारे में बताने लगे तथा माँ-पिताजी मुस्कुराते हुए दोनों बच्चों को अपनी बचकानी बात करते हुए देख रहे थे|

मैंने खाना खाया और दोनों बच्चों को अपने साथ ले कर कमरे में आ गया, कल दिवाली थी और मैं घर पर ही रहने वाला था इसलिए दोनों बच्चे चहक रहे थे| जहाँ एक तरफ आयुष को अपने नए कपडे पहनने का उत्साह था, वहीं नेहा को पूरा दिन मेरे साथ रहने की ख़ुशी थी! बच्चों का उत्साह इतना था की आज उन्हें सुलाने के लिए एक कहानी कम पड़ी, दोनों ने "please...please" कह कर दूसरी कहानी भी सुनी और तब जा कर वो सोये!



जारी रहेगा भाग-4 में...

लेखा जी.....कृपया कर अगला अपडेट बहुत बड़ा दीजियेगा.....ताकि उसके अगले अपडेट में मुझे मेरा पसंदीदा पार्ट पढ़ने को मिले...टाइम की कोई बंदिश नहीं....बस मेरा पसंदीदा पार्ट अगली से अगली अपडेट में ले आइये..... मन भी आयुष की तरह होंठ फुला कर प्लीज कहती हूँ 🙏
 

Akki ❸❸❸

ᴾʀᴏᴜᴅ ᵀᴏ ᴮᴇ ᴴᴀʀʏᴀɴᴠɪ
26,801
31,019
304
टाइम की कोई बंदिश नहीं...
images


Bda update mang liya ye to thik h
Lekin time ki koi bandis nhi 😏😏
 
Last edited:

Akki ❸❸❸

ᴾʀᴏᴜᴅ ᵀᴏ ᴮᴇ ᴴᴀʀʏᴀɴᴠɪ
26,801
31,019
304
चौबीसवाँ अध्याय: उलझते-सुलझते बंधन
भाग-3

अब तक आपने पढ़ा:


अपना मजाक उड़ता देख आयुष ने मुँह फुला लिया और मेरी तरफ देखने लगा;

मैं: आजा मेरा बेटा!

ये कहते हुए मैंने आयुष को आपने गले लगा लिया| आज पहलीबार मैंने सबके सामने आयुष को 'मेरा बेटा' कहा था और ये मैंने जानबूझ कर नहीं कहा था, बल्कि अनायास ही मेरे मुँह से निकल गया था| माँ-पिताजी ने इस बात पर गौर नहीं किया, मगर भौजी आँखें बड़ी कर के मुझे देखने लगीं थीं! जब भौजी ने मुझे यूँ आँखें बड़ी कर के देखा तो मुझे मेरे बोले हुए शब्दों का एहसास हुआ, परन्तु मैंने न इस बात को छुपाने की कोशिश की और न ही इस बात को और बढ़ाया| मैंने आयुष को गोद में लिया और अपने हाथ से पकोड़े खिलाने लगा|



अब आगे:



भौजी के चेहरे पर आई मुस्कान बस कुछ पल के लिए ही थी, वो अब पुनः मुझसे उखड़ी-उखड़ी घर के काम करने में लगी थीं| माँ-पिताजी की मौजूदगी थी इसलिए मैं उनसे खुल कर बात नहीं कर पा रहा था, तो मैंने अपना ध्यान दोनों बच्चों के साथ खेलने में लगा दिया| कुछ देर बाद बारिश रुकी तो पिताजी ने मुझे अपने साथ काम की बात करने के लिए बिठा लिया| आगे भविष्य में काम कैसे बढ़ाना है, किस तरह के projects उठाने चाहिए आदि के विषय में पिताजी ने मेरे विचार जाने| मेरे सपने शुरू से ही ऊँचे रहे हैं, जब मैंने पिताजी से company register करवाने की बात कही तो उन्हें बहुत ख़ुशी हुई! मुझे काम professional ढँग से करने का शौक था, कहने की जर्रूरत तो नहीं की ये शौक मुझे पिताजी से ही लगा था| जब मैं छोटा था तो पिताजी सर्दियों के दिनों में कोर्ट-टाई लगा कर काम पर जाते थे, उन्हें यूँ जाते देख कर मुझे हमेशा गर्व होता था, ऐसा लगता था जैसे मेरे पिताजी किसी बहुत बड़ी company के मालिक हों! Company register करवा कर मैं चाहता था की हम दोनों बाप बेटे ऐसे ही काम पर जाएँ और मेरा बचपन का सपना सच हो जाए| मेरी बात सुन पिताजी मुस्कुराने लगे, फिर उन्होंने मुझसे हिसाब-किताब की बात की तो मैंने उन्हें सारा हिसाब दे दिया| पिताजी मेरे हिसाब-किताब साफ़ रखने से बड़े खुश थे और उनकी ये ख़ुशी गर्व बनकर उनके चेहरे पर झलक रही थी|

वहीं आज पिताजी से बात करते हुए नज़ाने क्यों ऐसा लगा की जैसे वो मेरी तरफ कुछ झुक गए हों! जब से वो गाँव से आये थे, मेरे प्रति उनका व्यवहार कुछ ज्यादा ही नरम हो गया था| शायद गाँव में उन्होंने चन्दर के जो काण्ड देखे उन्हें देखते हुए उन्हें अपने आज्ञाकारी बेटे पर गुमान हो रहा था! बिगड़ने को मैं भी बिगड़ सकता था, शराब मैं भी पीता था, मगर पिताजी के द्वारा पकडे जाने पर मैंने शराब से तौबा कर ली थी और शायद इसी का फक्र पिताजी को हो रहा था! चलो मेरे लिए तो पिताजी का यूँ मेरे प्रति नरम पढ़ना मेरे लिए फायदे की बात थी, क्योंकि मेरे मुख से सच्चाई जानकार वो मुझे सीधा घर से निकाल नहीं देते, बल्कि मुझे मेरी बात रखने का एक मौका अवश्य देते!



बहरहाल दिवाली आने में कुछ दिन रह गए थे, मगर भौजी के वयवहार में रत्ती भर बदलाव नहीं आया था| वही चिचिड़ापन, वही मेरे साथ उखड़े रहना, वही मुझे तड़पाना, मेरी बात न सुनना, मुझसे बात न करना, बच्चों को झिड़कते रहना, बच्चों को मेरे पास सोने न देना बल्कि उन्हें मेरे से दूर रखना! मैं ये सब बर्दाश्त कर रहा था क्योंकि मैं उनके दिल का हाल समझता था| मैं जानता था की वो गलत हैं मगर मैं इस वक़्त उन्हें सही-गलत का भाषण नहीं दे सकता था, क्योंकि उनकी नजर में मैं खुद गलत करने जा रहा था! हाँ एक बात पक्की हो गई थी की भौजी को मेरे ऊपर भरोसा नहीं, या फिर शायद मैं ही अपने ऊपर हद्द से ज्यादा भरोसा करने लगा था!

लेकिन इस सब के बावजूद जहाँ एक ओर भौजी मुझसे खींची-खींची रह रहीं थीं, वहीं दूसरी ओर मैं अपना सब्र दिखाते हुए उनके नजदीक बना हुआ था! हमारा रिश्ता जैसे rubber band बन चूका था जिसे भौजी खींच कर तोडना चाहती थीं, मगर हमारे प्यार का rubber band खींच कर वापस मुझे उनके पास ले आता था|



चूँकि दिवाली नजदीक थी तो छोटे -मोटे कामों का ठेका बढ़ गया था, जिस कारण मैं साइट पर ज्यादा व्यस्त रहने लगा था| रात में मुझे आने में देर हो जाया करती थी, इसलिए भौजी ने जबरदस्ती बच्चों को अपने साथ सुलाना शुरू कर दिया! वहीं दूसरी तरफ मैं व्यस्त होते हुए भी समय निकाल कर भौजी को what's app पर message कर के उन्हें अपनी उपस्थिति से परिचित कराता रहता था| कभी कोई joke भेज देता, तो कभी उन्हें खुश करने के लिए कोई शायरी, कभी-कभी मैं अपनी अच्छी selfie खींच कर भौजी के दिल में अपना प्यार जगाये रखता| भौजी मेरे message तो देख लेतीं मगर किसी message का जवाब नहीं देतीं! मैंने भी हार नहीं मानी और उन्हें kissi की आवाज record कर भेज ने लगा| भले ही भौजी ठंडी पढ़ रहीं हों, पर मैं अपना कर्म करते हुए हमारे romance का दिया जलाये हुए था!



जब से कमाने लायक हुआ था, तब से हर साल दिवाली पर मैं माँ-पिताजी के लिए कुछ न कुछ लिया करता था| इस बार भौजी और मेरे बच्चे साथ थे तो मैंने सब के लिए online कपडे देखना शुरू किया| पिताजी के लिए मैंने branded shirt-pant, माँ के लिए chiffon की साडी, नेहा के लिए लेहंगा चोली और आयुष के लिए मैंने कुरता और धोती order कर दिया| सब के लिए जो भी मैंने मँगाया था वो मैंने घर के पते पर deliver करवाया और माँ को बता दिया की वो ये order ले लें, मगर भौजी के लिए मैंने एक ख़ास बनारसी साडी मँगाई जिसे मैंने अपनी साइट के पते पर मँगवाया ताकि भौजी को पता न चले| माँ की साडी समय से घर आ गई थी, मैंने पीछे पड़ कर माँ को जबरदस्ती के दर्जी के पास भेजा वरना माँ हर बार की तरह ये साडी भी पैक कर के रखतीं, जबकी मैं चाहता था की वो दिवाली पर यही साडी पहने| उधर भौजी की साडी साइट पर deliver हो गई, मगर अब दिक्कत ये थी की उसे दर्जी को दूँ कैसे? दर्जी के पास साडी देने के लिए मुझे भौजी का माप दिलवाना होता, अब अगर भौजी से माप देने की बात कहता तो उन्हें पता चल जाता की मैंने उनके लिए साडी खरीदी है! मुझे ये बात फिलहाल छुपानी थी इसलिए मैंने थोड़ा दिमाग लगाया! मुझे याद आया की कई बार माँ दर्जी को अपना माप न दे कर पहले से सिला कोई कपडा दे देतीं थीं, तो भौजी की साडी के लिए मुझे उनका कोई ब्लाउज चाहिए था! अब उनसे जा कर माँग तो सकता नहीं था इसलिए मैंने चोरी करने का सोचा! अपने घर में, अपनी परिणीता का ब्लाउज चुराने में मुझे बहुत शर्म आ रही थी! लेकिन ब्लाउज तो चाहिए था इसलिए मैं चुपचाप भौजी के कमरे में घुसा और उनका एक ब्लाउज चुरा कर जेब में डालकर अपने कमरे में आ गाय| मैंने एक दूसरे दर्जी को भौजी की साडी और माप के लिए भौजी का चुराया हुआ ब्लाउज दिया ताकि कहीं माँ को पता न चल जाए| आंटी जी (दर्जी) ने माप वाला ब्लाउज साडी के साथ रख लिया था, मैं जानता था की भौजी आज नहीं तो कल ये ब्लाउज ढूँढेंगी जर्रूर, इसलिए मैंने आंटी जी से कहा की वो माप ले कर ब्लाउज मुझे वापस दे दें! आंटी जी ने माप ले कर ब्लाउज मुझे दे दिया, मैंने उन्हें समय से पहले साडी और ब्लाउज तैयार करने को कहा| थोड़े पैसे बढ़ा कर आंटी जी मान गईं और मुझे धनतेरस के दिन साडी और ब्लाउज ले जाने को कहा|



इधर माँ ने मुझे एक दिन भौजी के सामने पूछ लिया;

माँ: तूने सब के लिए कुछ न कुछ मँगाया पर अपनी दोस्त, अपनी भौजी के लिए कुछ क्यों नहीं मँगाया?

माँ का सवाल सुन मैं थोड़ा हैरान था, ऊपर से भौजी भी वहीं बैठीं सब्जी काट रहीं थीं| अगर माँ ने अकेले में पुछा होता तो मैं उन्हें सच बता देता, मगर भौजी के सामने कैसे कुछ कहूँ?

मैं: क्या है न माँ, दोस्ती का रिश्ता दो तरफा होता है! ये तो कहीं की रीत नहीं की सिर्फ मैं ही दोस्ती का रिश्ता निभाऊँ!

मैंने भौजी को उल्हाना देते हुए कहा और उठ कर साइट पर निकल गाय| मैं तो उल्हाना दे कर चल दिया, मगर मेरे पीछे माँ ने भौजी से सवालों की झड़ी लगा दी! पता नहीं बेचारी भौजी ने क्या-क्या कहा होगा, सच तो बोल नहीं पाईं होंगी?! बेचारी ने मन मारकर माँ से झूठ ही कहा होगा! मुझे लगा की भौजी समय मिलने पर जर्रूर मुझे कॉल करेंगी और मुझसे शिकायत करेंगी या लड़ेंगी, परन्तु उन्होंने ऐसा कुछ नहीं किया!



उधर दिवाली के उपलक्ष्य में बच्चों की स्कूल की छुट्टियाँ हो चुकीं थीं, घर में अकेले रहते हुए बच्चे मुझसे दूर रह कर दुखी रहने लगे थे! उधर मैं भी काम बढ़ने के कारण बच्चों को जरा सा भी समय नहीं दे पा रहा था| रात को थक कर चूर देर से घर आना और सुबह 8 बजे तक सो के नींद पूरी करने के कारण मैं बच्चों को देख भी नहीं पाता था| वहीं भौजी बच्चों को मुझसे दूर रखते हुए उन्हें सुबह या रात को मेरे पास आने नहीं देतीं| रात को मेरे घर आने से पहले ही वो बच्चों को जबरदस्ती डाँट-फटकार कर सुला देतीं, मुझे खाना परोस कर वो सोने चली जातीं और अपने कमरे का दरवाजा अंदर से बंद कर लेतीं ताकि देर रात या सुबह बच्चे उठ कर मेरे पास न आ जाएँ| भौजी के दरवाजा बंद कर सोने का एक कारण और भी था, वो ये की कहीं मैं रात को उनसे बात करने न चला आऊँ! जब बच्चों का स्कूल होता था तब वो ये ध्यान रखतीं की बच्चे मेरे पास न आ पाएँ इसके लिए वो दोनों बच्चों के सर पर खड़ीं रहतीं और उन्हें तैयार करतीं थीं| जब बच्चों के स्कूल की छुट्टियाँ हुईं तो उन्होंने बच्चों को सुबह उठने से मना कर दिया! भौजी की इस सख्ती के कारण सुबह-सुबह मुझे मिलने वाली मीठी-मीठी पप्पी भी बंद हो गई थी! दोपहर को बच्चे मुझे फ़ोन करना चाहते तो भौजी उन्हें झूठ बोल देतीं की मैं काम में व्यस्त हूँ और बात नहीं कर सकता| बच्चे बेचारे मन मसोस कर रह जाते और मायूस हो कर बैठ जाते! वो तो मेरे माँ-पिताजी यानी उनके दादा-दादी थे जो उनका मन बहलाये रखते थे, जिससे बच्चे थोड़ा खिले-खिले रहते! दोनों बच्चे जानते थे की उन पर ये जुल्म उनकी मम्मी ही कर रही है, क्योंकि मैं ऐसा कतई नहीं था! आयुष चूँकि छोटा था तो कुछ कह नहीं पाता था, परन्तु नेहा बड़ी थी और उससे अपनी मम्मी का ये उखड़ा हुआ व्यवहार बर्दाश्त नहीं हो रहा था| नेहा का मन दिनभर मेरे बिना नहीं लगता था, रात होती तो उसे मेरे बिना नींद नहीं आती, वो तो उसे अपनी मम्मी का डर था जिसके मारे वो सहती रहती थी| परन्तु अब उसके सब्र की इंतेहा हो रही थी, उसके मन का ज्वालामुखी फटने की कगार पर आ चूका था!



धनतेरस से एक दिन पहले की बात है, रात में आज फिर मैं देर से घर आया था| भौजी ने बच्चों को डरा-धमका कर सुला दिया था, पिताजी तो पहले ही सो चुके थे बस माँ और भौजी टी.वी. देखते हुए मेरा इंतजार कर रहे थे| मैं घर पहुँचा तो भौजी मेरा खाना परोसने लगीं, मैं मुँह-हाथ धो कर खाना खाने बैठ गया| भौजी और मेरे बीच अब भी कोई बात नहीं हो रही थी, मैंने बात शुरु करते हुए माँ से बच्चों के बारे में बात करना शुरू कर दिया| माँ और मेरी बात होने लगी तो भौजी माँ को “शुभरात्रि” बोल कर सोने चली गईं, रोज की तरह मुझे उनके दरवाजा अंदर से बंद करने की आवाज आई| दिल तो बहुत दुखता था की वो मुझे मेरे ही बच्चों से दूर कर रहीं हैं, मगर माँ की उपस्थिति के कारण मैं लाचार था| खाना खा कर बर्तन सिंक में डालकर मैं सोने चला गया और माँ भी सोने चली गईं| रात के 12 बजे थे और नेहा कोई डरावना सपना देख कर दहल गई थी, वो चुपचाप उठ कर मेरे पास आने लगी तो भौजी ने उसे डाँट दिया;

भौजी: चुपचाप सो जा!

भौजी की डाँट सुन कर भी नेहा नहीं मानी और सिसकते हुए कुर्सी खींच कर दरवाजे के पास ले आई| कुर्सी पर चढ़ कर वो दरवाजे की चिटकनी खोलने लगी, अब तक भौजी उठ चुकीं थीं और उन्होंने कमरे की लाइट जला दी थी| भौजी ने जब नेहा को कुर्सी पर चढ़ कर चिटकनी खोलते देखा तो उनका गुस्सा फूट पड़ा;

भौजी: नेहा! तुझे समझ नहीं आती एक बार में?! सो जा चुप चाप!

भौजी का गुस्सा देख नेहा से बर्दाश्त नहीं हुआ और वो रोते हुए अपनी मम्मी पर चिल्लाई;

नेहा: नहीं!

इतना कह वो फटाफट कुर्सी से नीचे कूदी और दरवाजा खोलकर मेरे कमरे की तरफ दौड़ी| उधर नेहा की चीख सुन कर मैं उठ कर बैठ चूका था, मैंने फटाफट कमरे की लाइट जलाई और उठ कर अपने दरवाजे तक पहुँचा था की रोती हुई नेहा आ कर मेरी टाँगों से लिपट गई! मैंने नेहा को गोद में उठाया और उसे पुचकारते हुए चुप कराने लगा| मेरी बेटी फफक कर रो रही थी और उसे यूँ रोता हुआ देख मेरा दिल खून के आँसूँ रोने लगा था! मैं नेहा की पीठ सहलाते हुए उसे ढाँढस बँधा रहा था की तभी मेरी नजर भौजी के कमरे पर पड़ी, मैंने देखा भौजी गुस्से से आँखें बड़ी कर के मुझे और नेहा को देख रहीं हैं! भौजी की आँखों में गुस्सा देख मेरी आँखें गुस्से से जलने लगीं, मैंने घूर कर उन्हें देखा और गुस्से में आ कर मेरे मुँह से कुछ निकलने वाला था की तभी माँ-पिताजी आ गए! नेहा की चीख सुन के वे भी जाग गए थे, उन्हें अपने सामने देख मैंने अपने होंठ सी लिए और गुस्से से दाँत पीसते हुए खामोश हो गया!

पिताजी: क्या हुआ बेटा, नेहा क्यों चीखी?

पिताजी ने चिंतित होते हुए पुछा|

मैं: बुरा सपना देख कर उठ गई!

मैंने दाँत पीसते हुए भौजी को देखते हुए कहा, मेरा गुस्सा देख कर भौजी की जान हलक में आ गई थी और वो सर झुकाये मुझसे नजरें चुराने लगीं! घर में कलेश न हो इसलिए मैं नेहा को गोदी में लिए हुए कमरे में आ गया, बाकी सब भी अपने-अपने कमरे में लौट गए!



मैं नेहा को गोदी में लिए कमरे में टहलने लगा और उसे पुचकार कर शांत कराने लगा, थोड़ा टाइम लगा नेहा का रोना रुकने में|

नेहा: पा..पा (पापा)... म…मम्मी...मु...झे (मुझे)....आप...से....अ...लग (अलग)....कर....रही...है!

नेहा सिसकते हुए बोली| नेहा की बात सुन मैं सख्ते में था क्योंकि मैंने उस छोटी सी बच्ची से इतनी बड़ी बात सोचने की कभी उम्मीद नहीं की थी! मैंने नेहा को गोदी से उतारा और उसे पलंग पर खड़ा करते हुए उसकी आँखों में देखते हुए बोला;

मैं: बेटा कोई मुझे आप से अलग नहीं कर सकता! उन्हें (भौजी को) जो करना है वो करने दो, आप ये कभी मत सोचना की हम दोनों बाप-बेटी कभी अलग होंगें! मैं आपको कभी खुद से दूर जाने नहीं दूँगा, चाहे मुझे उसके लिए किसी से भी लड़ना पड़े!

मेरी आवाज में बहुत आत्मविश्वास था, इतना आत्मविश्वास की मेरी बेटी के मन से मुझसे अलग होने का डर हमेशा-हमेशा के लिए जा चूका था!

डर से मुक्त हो कर नेहा ने मुस्कुराने की कोशिश की, मैंने नेहा के आँसूँ पोछे और उसे समझाते हुए बोला;

मैं: बेटा आपकी मम्मी इस वक़्त बहुत बड़ी उलझन में हैं! सही चीज जो उनके सामने है वो उसे समझ नहीं पा रहीं, डर रहीं हैं और अपने इस डर को छुपाने के लिए अपना गुस्सा आप दोनों पर निकाल रहीं हैं!

मैं नेहा को सब सच नहीं बता सकता था क्योंकि अपनी माँ से बगावत की चिंगारी जो आज नेहा के अंदर जली थी, ये बात जानकार वो चिंगारी कभी भी धधकती हुई आग बन सकती थी, इसीलिए मैंने नेहा से सारी बात गोल-मोल की थी! नेहा ने मुझसे कोई सवाल नहीं पुछा और आ कर मुझसे लिपट गई! दोनों बाप-बेटी रात को चैन से सोये, सुबह हुई तो माँ हमें जगाने आईं| बच्चों के स्कूल की छुट्टी थी इसलिए सुबह सब आराम से उठे थे| नेहा अभी नींद में थी और नींद में होते हुए भी मेरी छाती से चिपटी हुई थी, मैं नेहा को गोद में लिए हुए बाहर आया और बैठक में बैठ गया| पिताजी ने नेहा की पीठ थपथपाई और मुझसे बात करने लगे| आज चूँकि धनतेरस थी तो उन्होंने माँ के साथ खरीदारी करने जाना था और मेरे हिस्से सारे काम आ गए थे| चूँकि मैं नेहा को गोदी लिए हुए था तो पिताजी ने कागज़ पर मेरे लिए आज के काम की लिस्ट बना कर दे दी| इतने में माँ चाय ले आईं, नेहा को यूँ सोता हुआ देख उन्होंने नेहा के सर पर हाथ फेरा और नेहा को पुकारा| नेहा आँख मलते हुए जागी और मेरे गाल पर अपनी मीठी-मीठी पप्पी दी! अब तो आयुष भी जाग चूका था और मेरी आवाज सुन वो अंदर से दौड़ता हुआ आया| नेहा मेरी गोदी से उतरी ताकि उसके भाई को भी थोड़ा प्यार मिले, नेहा बाथरूम गई और इधर आयुष ने मेरे गाल पर मीठी-मीठी पप्पी दी! मैं आयुष को गोदी में ले कर अपने कमरे में आया, नेहा उस समय बाथरूम से निकल रही थी जब आयुष मुस्कुराते हुए बोला;

आयुष: I love you पापा!

इतने दिनों बाद अपने पापा के गले लग कर आयुष खुश हो गया था| मैंने आयुष के माथे को चूमा और बोला;

मैं: पापा loves you too बेटा!

मेरे दोनों बच्चे जिस प्यार को तरस रहे थे उसे पा कर वो खुश हो गए थे| नाश्ता कर मैं तैयार होने लगा तो नेहा डरी हुई सी मेरे पास आई;

नेहा: पापा जी, मैं भी आपके साथ चलूँ?

नेहा सर झुकाते हुए बोली| दरअसल नेहा जानती थी की आज घर पर बस वो, आयुष और उसकी मम्मी होंगे! ऐसे में भौजी के गुस्से का कोई भरोसा नहीं, हो सकता था की कल रात की नेहा की गुस्ताखी के लिए आज उसे मार पड़ती! इधर मैं अपने साथ दोनों बच्चों को नहीं रख सकता था, क्योंकि साइट पर वो दोनों बोर हो जाते!

मैं: Sorry बेटा! लेकिन मेरा काम दौड़-भाग वाला है! लेकिन आप चिंता मत करो, मेरा पास एक plan है!

मैंने नेहा को अपनी ऊँगली पकड़ाई और उसे पिताजी के पास बैठक में ले आया;

मैं: पिताजी, आप से एक गुजारिश है!

इतना सुन पिताजी उत्सुक्ता से मुझे देखने लगे|

मैं: पिताजी आप खरीदारी करने जा रहे हैं तो दोनों बच्चों को साथ ले जाइये!

बाहर घूमने जाने की बात से आयुष तो दौड़ कर मेरे पास आ गया|

पिताजी: अरे बेटा ये भी कोई कहने की बात है! तू चिंता न कर हम सारे (पिताजी, माँ, आयुष, नेहा और भौजी) चले जाएँगे!

अपनी मम्मी की डाँट से बचने का मौका मिला तो नेहा के चेहरे पर भी ख़ुशी की मुस्कान आ गई|

मैं: बेटा आप दोनों अपने दादा जी और दादी जी को तंग मत करना!

मैंने प्यार से दोनों बच्चों को हिदायत दी| इतने में पीछे से माँ बोल पड़ीं;

माँ: हमारे बच्चे हमें तंग थोड़े ही करते हैं!

माँ को अपनी तरफदारी करते सुन दोनों बच्चे उनके पास दौड़ गए| माँ उस समय dining table पर बैठीं थीं और उन्हीं की बगल में भौजी बैठीं नाश्ता कर रहीं थीं| मैं माँ के पास आया तो भौजी उठ गईं, मैंने दोनों बच्चों को पिताजी के पास भेजा तथा मैं खुद माँ के पास बैठा और धीमी आवाज में उनसे बोला;

मैं: माँ, बच्चों का ध्यान रखना!

इतना कह मैंने भौजी की तरफ गर्दन से इशारा किया और अपनी बात पूरी की;

मैं: मेरे आने तक बच्चों को इनसे दूर रखना!

मेरी बात सुन माँ अचरज में पड़ गईं और पूछ बैठीं;

माँ: क्यों?

माँ ने भोयें सिकोड़ कर पुछा| मैंने फिर से भौजी की तरफ गर्दन से इशारा किया और बोला;

मैं: इनका पारा आजकल बहुत चढ़ा हुआ है!

माँ मेरी बात समझ गईं और बोलीं;

माँ: तू चिंता मत कर मैं समझाऊँगी बहु को!

सच कहूँ तो मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता था की माँ उनसे क्या बात करेंगी, इसलिए मैंने कोई प्रतिक्रया नहीं दी और नकली मुस्कान के साथ उठ गया| मैं दोनों बच्चों को "bye" कहा और बदले में मुझे दोनों बच्चों ने अपनी प्यारी-प्यारी पप्पी दी!

मैं काम पर आया और उधर बच्चों ने माँ-पिताजी के साथ खूब मस्ती की! माँ-पिताजी ने दोनों बच्चों को खूब लाड-प्यार से घुमाया और अच्छे से खिलाया-पिलाया! पिछले कुछ दिनों से बच्चों पर जो अपनी मम्मी का दबाव बन गया था वो आज की मौज-मस्ती ने खत्म कर दिया था| बजार से घूम कर आते-आते सब को 3 बज गए थे, घर आते ही दोनों बच्चों ने अपनी दादी जी के फ़ोन से मुझे कॉल किया और बड़े उत्साह से मुझे सारा ब्यौरा दिया! मैं खुश था की मेरे बच्चे खुश हैं!

रात को जब मैं घर पहुँचा तो बच्चे ख़ुशी से चहक रहे थे| वहीं माँ ने भौजी से उनके गुस्से को ले कर बात की थी और उन्हें बहुत समझाया भी था, यही कारण था की भौजी इस वक़्त शांत थीं मगर मेरे प्रति वो अब भी उखड़ीं थीं! अब तो माँ से उनकी (भौजी की) शिकायत करने की तोहमत भी मेरे सर लग चुकी थी! चलो मुझे तो भौजी के गुस्से की आदत पड़ चुकी थी इसलिए मैंने इस बात का बुरा लगाना ही छोड़ दिया!



अगले दिन छोटी दिवाली थी और आज माँ-पिताजी का plan जान-पहचान में मिठाई देने जाना था| कल की दादा-दादी संग की गई मस्ती के कारण बच्चे आज भी उन्हीं के संग रहना चाहते थे! माँ-पिताजी को इससे कोई परेशानी नहीं थी, बल्कि वो तो बहुत खुश थे! उनका और बच्चों का plan तो सेट था, अब बचे हम दोनों (मैं और भौजी) तो हम दोनों के नसीब में आज मिलना लिखा ही नहीं था! मिश्रा अंकल जी की एक साइट का काम आज फाइनल होना था इसलिए मेरा सारा समय वहीं पर निकला| काम फाइनल हुआ तो मिश्रा अंकल जी ने हाथ के हाथ payment पिताजी के अकाउंट में डलवा दी! रात को जब मैं घर पहुँचा तो दोनों बच्चों ने मुझे घेर लिया और आज की मस्ती के बारे में बताने लगे तथा माँ-पिताजी मुस्कुराते हुए दोनों बच्चों को अपनी बचकानी बात करते हुए देख रहे थे|

मैंने खाना खाया और दोनों बच्चों को अपने साथ ले कर कमरे में आ गया, कल दिवाली थी और मैं घर पर ही रहने वाला था इसलिए दोनों बच्चे चहक रहे थे| जहाँ एक तरफ आयुष को अपने नए कपडे पहनने का उत्साह था, वहीं नेहा को पूरा दिन मेरे साथ रहने की ख़ुशी थी! बच्चों का उत्साह इतना था की आज उन्हें सुलाने के लिए एक कहानी कम पड़ी, दोनों ने "please...please" कह कर दूसरी कहानी भी सुनी और तब जा कर वो सोये!



जारी रहेगा भाग-4 में...
Bdiya update gurujii :love2:
कोर्ट-टाई लगा कर काम पर जाते थे,
:alright:
अपने घर में, अपनी परिणीता का ब्लाउज चुराने में मुझे बहुत शर्म आ रही थी!
images

मैंने देखा भौजी गुस्से से आँखें बड़ी कर के मुझे और नेहा को देख रहीं हैं! भौजी की आँखों में गुस्सा देख मेरी आँखें गुस्से से जलने लगीं, मैंने घूर कर उन्हें देखा
images


Har bar ghurne tak hi simit h bas manu bhaiya :angry:

Neha ne bilkul shi kiya :claps:
 
Last edited:

Aakash.

ᴇᴍʙʀᴀᴄᴇ ᴛʜᴇ ꜰᴇᴀʀ
Staff member
Moderator
33,387
150,104
304
चौबीसवाँ अध्याय: उलझते-सुलझते बंधन
भाग-3

अब तक आपने पढ़ा:


अपना मजाक उड़ता देख आयुष ने मुँह फुला लिया और मेरी तरफ देखने लगा;

मैं: आजा मेरा बेटा!

ये कहते हुए मैंने आयुष को आपने गले लगा लिया| आज पहलीबार मैंने सबके सामने आयुष को 'मेरा बेटा' कहा था और ये मैंने जानबूझ कर नहीं कहा था, बल्कि अनायास ही मेरे मुँह से निकल गया था| माँ-पिताजी ने इस बात पर गौर नहीं किया, मगर भौजी आँखें बड़ी कर के मुझे देखने लगीं थीं! जब भौजी ने मुझे यूँ आँखें बड़ी कर के देखा तो मुझे मेरे बोले हुए शब्दों का एहसास हुआ, परन्तु मैंने न इस बात को छुपाने की कोशिश की और न ही इस बात को और बढ़ाया| मैंने आयुष को गोद में लिया और अपने हाथ से पकोड़े खिलाने लगा|



अब आगे:



भौजी के चेहरे पर आई मुस्कान बस कुछ पल के लिए ही थी, वो अब पुनः मुझसे उखड़ी-उखड़ी घर के काम करने में लगी थीं| माँ-पिताजी की मौजूदगी थी इसलिए मैं उनसे खुल कर बात नहीं कर पा रहा था, तो मैंने अपना ध्यान दोनों बच्चों के साथ खेलने में लगा दिया| कुछ देर बाद बारिश रुकी तो पिताजी ने मुझे अपने साथ काम की बात करने के लिए बिठा लिया| आगे भविष्य में काम कैसे बढ़ाना है, किस तरह के projects उठाने चाहिए आदि के विषय में पिताजी ने मेरे विचार जाने| मेरे सपने शुरू से ही ऊँचे रहे हैं, जब मैंने पिताजी से company register करवाने की बात कही तो उन्हें बहुत ख़ुशी हुई! मुझे काम professional ढँग से करने का शौक था, कहने की जर्रूरत तो नहीं की ये शौक मुझे पिताजी से ही लगा था| जब मैं छोटा था तो पिताजी सर्दियों के दिनों में कोर्ट-टाई लगा कर काम पर जाते थे, उन्हें यूँ जाते देख कर मुझे हमेशा गर्व होता था, ऐसा लगता था जैसे मेरे पिताजी किसी बहुत बड़ी company के मालिक हों! Company register करवा कर मैं चाहता था की हम दोनों बाप बेटे ऐसे ही काम पर जाएँ और मेरा बचपन का सपना सच हो जाए| मेरी बात सुन पिताजी मुस्कुराने लगे, फिर उन्होंने मुझसे हिसाब-किताब की बात की तो मैंने उन्हें सारा हिसाब दे दिया| पिताजी मेरे हिसाब-किताब साफ़ रखने से बड़े खुश थे और उनकी ये ख़ुशी गर्व बनकर उनके चेहरे पर झलक रही थी|

वहीं आज पिताजी से बात करते हुए नज़ाने क्यों ऐसा लगा की जैसे वो मेरी तरफ कुछ झुक गए हों! जब से वो गाँव से आये थे, मेरे प्रति उनका व्यवहार कुछ ज्यादा ही नरम हो गया था| शायद गाँव में उन्होंने चन्दर के जो काण्ड देखे उन्हें देखते हुए उन्हें अपने आज्ञाकारी बेटे पर गुमान हो रहा था! बिगड़ने को मैं भी बिगड़ सकता था, शराब मैं भी पीता था, मगर पिताजी के द्वारा पकडे जाने पर मैंने शराब से तौबा कर ली थी और शायद इसी का फक्र पिताजी को हो रहा था! चलो मेरे लिए तो पिताजी का यूँ मेरे प्रति नरम पढ़ना मेरे लिए फायदे की बात थी, क्योंकि मेरे मुख से सच्चाई जानकार वो मुझे सीधा घर से निकाल नहीं देते, बल्कि मुझे मेरी बात रखने का एक मौका अवश्य देते!



बहरहाल दिवाली आने में कुछ दिन रह गए थे, मगर भौजी के वयवहार में रत्ती भर बदलाव नहीं आया था| वही चिचिड़ापन, वही मेरे साथ उखड़े रहना, वही मुझे तड़पाना, मेरी बात न सुनना, मुझसे बात न करना, बच्चों को झिड़कते रहना, बच्चों को मेरे पास सोने न देना बल्कि उन्हें मेरे से दूर रखना! मैं ये सब बर्दाश्त कर रहा था क्योंकि मैं उनके दिल का हाल समझता था| मैं जानता था की वो गलत हैं मगर मैं इस वक़्त उन्हें सही-गलत का भाषण नहीं दे सकता था, क्योंकि उनकी नजर में मैं खुद गलत करने जा रहा था! हाँ एक बात पक्की हो गई थी की भौजी को मेरे ऊपर भरोसा नहीं, या फिर शायद मैं ही अपने ऊपर हद्द से ज्यादा भरोसा करने लगा था!

लेकिन इस सब के बावजूद जहाँ एक ओर भौजी मुझसे खींची-खींची रह रहीं थीं, वहीं दूसरी ओर मैं अपना सब्र दिखाते हुए उनके नजदीक बना हुआ था! हमारा रिश्ता जैसे rubber band बन चूका था जिसे भौजी खींच कर तोडना चाहती थीं, मगर हमारे प्यार का rubber band खींच कर वापस मुझे उनके पास ले आता था|



चूँकि दिवाली नजदीक थी तो छोटे -मोटे कामों का ठेका बढ़ गया था, जिस कारण मैं साइट पर ज्यादा व्यस्त रहने लगा था| रात में मुझे आने में देर हो जाया करती थी, इसलिए भौजी ने जबरदस्ती बच्चों को अपने साथ सुलाना शुरू कर दिया! वहीं दूसरी तरफ मैं व्यस्त होते हुए भी समय निकाल कर भौजी को what's app पर message कर के उन्हें अपनी उपस्थिति से परिचित कराता रहता था| कभी कोई joke भेज देता, तो कभी उन्हें खुश करने के लिए कोई शायरी, कभी-कभी मैं अपनी अच्छी selfie खींच कर भौजी के दिल में अपना प्यार जगाये रखता| भौजी मेरे message तो देख लेतीं मगर किसी message का जवाब नहीं देतीं! मैंने भी हार नहीं मानी और उन्हें kissi की आवाज record कर भेज ने लगा| भले ही भौजी ठंडी पढ़ रहीं हों, पर मैं अपना कर्म करते हुए हमारे romance का दिया जलाये हुए था!



जब से कमाने लायक हुआ था, तब से हर साल दिवाली पर मैं माँ-पिताजी के लिए कुछ न कुछ लिया करता था| इस बार भौजी और मेरे बच्चे साथ थे तो मैंने सब के लिए online कपडे देखना शुरू किया| पिताजी के लिए मैंने branded shirt-pant, माँ के लिए chiffon की साडी, नेहा के लिए लेहंगा चोली और आयुष के लिए मैंने कुरता और धोती order कर दिया| सब के लिए जो भी मैंने मँगाया था वो मैंने घर के पते पर deliver करवाया और माँ को बता दिया की वो ये order ले लें, मगर भौजी के लिए मैंने एक ख़ास बनारसी साडी मँगाई जिसे मैंने अपनी साइट के पते पर मँगवाया ताकि भौजी को पता न चले| माँ की साडी समय से घर आ गई थी, मैंने पीछे पड़ कर माँ को जबरदस्ती के दर्जी के पास भेजा वरना माँ हर बार की तरह ये साडी भी पैक कर के रखतीं, जबकी मैं चाहता था की वो दिवाली पर यही साडी पहने| उधर भौजी की साडी साइट पर deliver हो गई, मगर अब दिक्कत ये थी की उसे दर्जी को दूँ कैसे? दर्जी के पास साडी देने के लिए मुझे भौजी का माप दिलवाना होता, अब अगर भौजी से माप देने की बात कहता तो उन्हें पता चल जाता की मैंने उनके लिए साडी खरीदी है! मुझे ये बात फिलहाल छुपानी थी इसलिए मैंने थोड़ा दिमाग लगाया! मुझे याद आया की कई बार माँ दर्जी को अपना माप न दे कर पहले से सिला कोई कपडा दे देतीं थीं, तो भौजी की साडी के लिए मुझे उनका कोई ब्लाउज चाहिए था! अब उनसे जा कर माँग तो सकता नहीं था इसलिए मैंने चोरी करने का सोचा! अपने घर में, अपनी परिणीता का ब्लाउज चुराने में मुझे बहुत शर्म आ रही थी! लेकिन ब्लाउज तो चाहिए था इसलिए मैं चुपचाप भौजी के कमरे में घुसा और उनका एक ब्लाउज चुरा कर जेब में डालकर अपने कमरे में आ गाय| मैंने एक दूसरे दर्जी को भौजी की साडी और माप के लिए भौजी का चुराया हुआ ब्लाउज दिया ताकि कहीं माँ को पता न चल जाए| आंटी जी (दर्जी) ने माप वाला ब्लाउज साडी के साथ रख लिया था, मैं जानता था की भौजी आज नहीं तो कल ये ब्लाउज ढूँढेंगी जर्रूर, इसलिए मैंने आंटी जी से कहा की वो माप ले कर ब्लाउज मुझे वापस दे दें! आंटी जी ने माप ले कर ब्लाउज मुझे दे दिया, मैंने उन्हें समय से पहले साडी और ब्लाउज तैयार करने को कहा| थोड़े पैसे बढ़ा कर आंटी जी मान गईं और मुझे धनतेरस के दिन साडी और ब्लाउज ले जाने को कहा|



इधर माँ ने मुझे एक दिन भौजी के सामने पूछ लिया;

माँ: तूने सब के लिए कुछ न कुछ मँगाया पर अपनी दोस्त, अपनी भौजी के लिए कुछ क्यों नहीं मँगाया?

माँ का सवाल सुन मैं थोड़ा हैरान था, ऊपर से भौजी भी वहीं बैठीं सब्जी काट रहीं थीं| अगर माँ ने अकेले में पुछा होता तो मैं उन्हें सच बता देता, मगर भौजी के सामने कैसे कुछ कहूँ?

मैं: क्या है न माँ, दोस्ती का रिश्ता दो तरफा होता है! ये तो कहीं की रीत नहीं की सिर्फ मैं ही दोस्ती का रिश्ता निभाऊँ!

मैंने भौजी को उल्हाना देते हुए कहा और उठ कर साइट पर निकल गाय| मैं तो उल्हाना दे कर चल दिया, मगर मेरे पीछे माँ ने भौजी से सवालों की झड़ी लगा दी! पता नहीं बेचारी भौजी ने क्या-क्या कहा होगा, सच तो बोल नहीं पाईं होंगी?! बेचारी ने मन मारकर माँ से झूठ ही कहा होगा! मुझे लगा की भौजी समय मिलने पर जर्रूर मुझे कॉल करेंगी और मुझसे शिकायत करेंगी या लड़ेंगी, परन्तु उन्होंने ऐसा कुछ नहीं किया!



उधर दिवाली के उपलक्ष्य में बच्चों की स्कूल की छुट्टियाँ हो चुकीं थीं, घर में अकेले रहते हुए बच्चे मुझसे दूर रह कर दुखी रहने लगे थे! उधर मैं भी काम बढ़ने के कारण बच्चों को जरा सा भी समय नहीं दे पा रहा था| रात को थक कर चूर देर से घर आना और सुबह 8 बजे तक सो के नींद पूरी करने के कारण मैं बच्चों को देख भी नहीं पाता था| वहीं भौजी बच्चों को मुझसे दूर रखते हुए उन्हें सुबह या रात को मेरे पास आने नहीं देतीं| रात को मेरे घर आने से पहले ही वो बच्चों को जबरदस्ती डाँट-फटकार कर सुला देतीं, मुझे खाना परोस कर वो सोने चली जातीं और अपने कमरे का दरवाजा अंदर से बंद कर लेतीं ताकि देर रात या सुबह बच्चे उठ कर मेरे पास न आ जाएँ| भौजी के दरवाजा बंद कर सोने का एक कारण और भी था, वो ये की कहीं मैं रात को उनसे बात करने न चला आऊँ! जब बच्चों का स्कूल होता था तब वो ये ध्यान रखतीं की बच्चे मेरे पास न आ पाएँ इसके लिए वो दोनों बच्चों के सर पर खड़ीं रहतीं और उन्हें तैयार करतीं थीं| जब बच्चों के स्कूल की छुट्टियाँ हुईं तो उन्होंने बच्चों को सुबह उठने से मना कर दिया! भौजी की इस सख्ती के कारण सुबह-सुबह मुझे मिलने वाली मीठी-मीठी पप्पी भी बंद हो गई थी! दोपहर को बच्चे मुझे फ़ोन करना चाहते तो भौजी उन्हें झूठ बोल देतीं की मैं काम में व्यस्त हूँ और बात नहीं कर सकता| बच्चे बेचारे मन मसोस कर रह जाते और मायूस हो कर बैठ जाते! वो तो मेरे माँ-पिताजी यानी उनके दादा-दादी थे जो उनका मन बहलाये रखते थे, जिससे बच्चे थोड़ा खिले-खिले रहते! दोनों बच्चे जानते थे की उन पर ये जुल्म उनकी मम्मी ही कर रही है, क्योंकि मैं ऐसा कतई नहीं था! आयुष चूँकि छोटा था तो कुछ कह नहीं पाता था, परन्तु नेहा बड़ी थी और उससे अपनी मम्मी का ये उखड़ा हुआ व्यवहार बर्दाश्त नहीं हो रहा था| नेहा का मन दिनभर मेरे बिना नहीं लगता था, रात होती तो उसे मेरे बिना नींद नहीं आती, वो तो उसे अपनी मम्मी का डर था जिसके मारे वो सहती रहती थी| परन्तु अब उसके सब्र की इंतेहा हो रही थी, उसके मन का ज्वालामुखी फटने की कगार पर आ चूका था!



धनतेरस से एक दिन पहले की बात है, रात में आज फिर मैं देर से घर आया था| भौजी ने बच्चों को डरा-धमका कर सुला दिया था, पिताजी तो पहले ही सो चुके थे बस माँ और भौजी टी.वी. देखते हुए मेरा इंतजार कर रहे थे| मैं घर पहुँचा तो भौजी मेरा खाना परोसने लगीं, मैं मुँह-हाथ धो कर खाना खाने बैठ गया| भौजी और मेरे बीच अब भी कोई बात नहीं हो रही थी, मैंने बात शुरु करते हुए माँ से बच्चों के बारे में बात करना शुरू कर दिया| माँ और मेरी बात होने लगी तो भौजी माँ को “शुभरात्रि” बोल कर सोने चली गईं, रोज की तरह मुझे उनके दरवाजा अंदर से बंद करने की आवाज आई| दिल तो बहुत दुखता था की वो मुझे मेरे ही बच्चों से दूर कर रहीं हैं, मगर माँ की उपस्थिति के कारण मैं लाचार था| खाना खा कर बर्तन सिंक में डालकर मैं सोने चला गया और माँ भी सोने चली गईं| रात के 12 बजे थे और नेहा कोई डरावना सपना देख कर दहल गई थी, वो चुपचाप उठ कर मेरे पास आने लगी तो भौजी ने उसे डाँट दिया;

भौजी: चुपचाप सो जा!

भौजी की डाँट सुन कर भी नेहा नहीं मानी और सिसकते हुए कुर्सी खींच कर दरवाजे के पास ले आई| कुर्सी पर चढ़ कर वो दरवाजे की चिटकनी खोलने लगी, अब तक भौजी उठ चुकीं थीं और उन्होंने कमरे की लाइट जला दी थी| भौजी ने जब नेहा को कुर्सी पर चढ़ कर चिटकनी खोलते देखा तो उनका गुस्सा फूट पड़ा;

भौजी: नेहा! तुझे समझ नहीं आती एक बार में?! सो जा चुप चाप!

भौजी का गुस्सा देख नेहा से बर्दाश्त नहीं हुआ और वो रोते हुए अपनी मम्मी पर चिल्लाई;

नेहा: नहीं!

इतना कह वो फटाफट कुर्सी से नीचे कूदी और दरवाजा खोलकर मेरे कमरे की तरफ दौड़ी| उधर नेहा की चीख सुन कर मैं उठ कर बैठ चूका था, मैंने फटाफट कमरे की लाइट जलाई और उठ कर अपने दरवाजे तक पहुँचा था की रोती हुई नेहा आ कर मेरी टाँगों से लिपट गई! मैंने नेहा को गोद में उठाया और उसे पुचकारते हुए चुप कराने लगा| मेरी बेटी फफक कर रो रही थी और उसे यूँ रोता हुआ देख मेरा दिल खून के आँसूँ रोने लगा था! मैं नेहा की पीठ सहलाते हुए उसे ढाँढस बँधा रहा था की तभी मेरी नजर भौजी के कमरे पर पड़ी, मैंने देखा भौजी गुस्से से आँखें बड़ी कर के मुझे और नेहा को देख रहीं हैं! भौजी की आँखों में गुस्सा देख मेरी आँखें गुस्से से जलने लगीं, मैंने घूर कर उन्हें देखा और गुस्से में आ कर मेरे मुँह से कुछ निकलने वाला था की तभी माँ-पिताजी आ गए! नेहा की चीख सुन के वे भी जाग गए थे, उन्हें अपने सामने देख मैंने अपने होंठ सी लिए और गुस्से से दाँत पीसते हुए खामोश हो गया!

पिताजी: क्या हुआ बेटा, नेहा क्यों चीखी?

पिताजी ने चिंतित होते हुए पुछा|

मैं: बुरा सपना देख कर उठ गई!

मैंने दाँत पीसते हुए भौजी को देखते हुए कहा, मेरा गुस्सा देख कर भौजी की जान हलक में आ गई थी और वो सर झुकाये मुझसे नजरें चुराने लगीं! घर में कलेश न हो इसलिए मैं नेहा को गोदी में लिए हुए कमरे में आ गया, बाकी सब भी अपने-अपने कमरे में लौट गए!



मैं नेहा को गोदी में लिए कमरे में टहलने लगा और उसे पुचकार कर शांत कराने लगा, थोड़ा टाइम लगा नेहा का रोना रुकने में|

नेहा: पा..पा (पापा)... म…मम्मी...मु...झे (मुझे)....आप...से....अ...लग (अलग)....कर....रही...है!

नेहा सिसकते हुए बोली| नेहा की बात सुन मैं सख्ते में था क्योंकि मैंने उस छोटी सी बच्ची से इतनी बड़ी बात सोचने की कभी उम्मीद नहीं की थी! मैंने नेहा को गोदी से उतारा और उसे पलंग पर खड़ा करते हुए उसकी आँखों में देखते हुए बोला;

मैं: बेटा कोई मुझे आप से अलग नहीं कर सकता! उन्हें (भौजी को) जो करना है वो करने दो, आप ये कभी मत सोचना की हम दोनों बाप-बेटी कभी अलग होंगें! मैं आपको कभी खुद से दूर जाने नहीं दूँगा, चाहे मुझे उसके लिए किसी से भी लड़ना पड़े!

मेरी आवाज में बहुत आत्मविश्वास था, इतना आत्मविश्वास की मेरी बेटी के मन से मुझसे अलग होने का डर हमेशा-हमेशा के लिए जा चूका था!

डर से मुक्त हो कर नेहा ने मुस्कुराने की कोशिश की, मैंने नेहा के आँसूँ पोछे और उसे समझाते हुए बोला;

मैं: बेटा आपकी मम्मी इस वक़्त बहुत बड़ी उलझन में हैं! सही चीज जो उनके सामने है वो उसे समझ नहीं पा रहीं, डर रहीं हैं और अपने इस डर को छुपाने के लिए अपना गुस्सा आप दोनों पर निकाल रहीं हैं!

मैं नेहा को सब सच नहीं बता सकता था क्योंकि अपनी माँ से बगावत की चिंगारी जो आज नेहा के अंदर जली थी, ये बात जानकार वो चिंगारी कभी भी धधकती हुई आग बन सकती थी, इसीलिए मैंने नेहा से सारी बात गोल-मोल की थी! नेहा ने मुझसे कोई सवाल नहीं पुछा और आ कर मुझसे लिपट गई! दोनों बाप-बेटी रात को चैन से सोये, सुबह हुई तो माँ हमें जगाने आईं| बच्चों के स्कूल की छुट्टी थी इसलिए सुबह सब आराम से उठे थे| नेहा अभी नींद में थी और नींद में होते हुए भी मेरी छाती से चिपटी हुई थी, मैं नेहा को गोद में लिए हुए बाहर आया और बैठक में बैठ गया| पिताजी ने नेहा की पीठ थपथपाई और मुझसे बात करने लगे| आज चूँकि धनतेरस थी तो उन्होंने माँ के साथ खरीदारी करने जाना था और मेरे हिस्से सारे काम आ गए थे| चूँकि मैं नेहा को गोदी लिए हुए था तो पिताजी ने कागज़ पर मेरे लिए आज के काम की लिस्ट बना कर दे दी| इतने में माँ चाय ले आईं, नेहा को यूँ सोता हुआ देख उन्होंने नेहा के सर पर हाथ फेरा और नेहा को पुकारा| नेहा आँख मलते हुए जागी और मेरे गाल पर अपनी मीठी-मीठी पप्पी दी! अब तो आयुष भी जाग चूका था और मेरी आवाज सुन वो अंदर से दौड़ता हुआ आया| नेहा मेरी गोदी से उतरी ताकि उसके भाई को भी थोड़ा प्यार मिले, नेहा बाथरूम गई और इधर आयुष ने मेरे गाल पर मीठी-मीठी पप्पी दी! मैं आयुष को गोदी में ले कर अपने कमरे में आया, नेहा उस समय बाथरूम से निकल रही थी जब आयुष मुस्कुराते हुए बोला;

आयुष: I love you पापा!

इतने दिनों बाद अपने पापा के गले लग कर आयुष खुश हो गया था| मैंने आयुष के माथे को चूमा और बोला;

मैं: पापा loves you too बेटा!

मेरे दोनों बच्चे जिस प्यार को तरस रहे थे उसे पा कर वो खुश हो गए थे| नाश्ता कर मैं तैयार होने लगा तो नेहा डरी हुई सी मेरे पास आई;

नेहा: पापा जी, मैं भी आपके साथ चलूँ?

नेहा सर झुकाते हुए बोली| दरअसल नेहा जानती थी की आज घर पर बस वो, आयुष और उसकी मम्मी होंगे! ऐसे में भौजी के गुस्से का कोई भरोसा नहीं, हो सकता था की कल रात की नेहा की गुस्ताखी के लिए आज उसे मार पड़ती! इधर मैं अपने साथ दोनों बच्चों को नहीं रख सकता था, क्योंकि साइट पर वो दोनों बोर हो जाते!

मैं: Sorry बेटा! लेकिन मेरा काम दौड़-भाग वाला है! लेकिन आप चिंता मत करो, मेरा पास एक plan है!

मैंने नेहा को अपनी ऊँगली पकड़ाई और उसे पिताजी के पास बैठक में ले आया;

मैं: पिताजी, आप से एक गुजारिश है!

इतना सुन पिताजी उत्सुक्ता से मुझे देखने लगे|

मैं: पिताजी आप खरीदारी करने जा रहे हैं तो दोनों बच्चों को साथ ले जाइये!

बाहर घूमने जाने की बात से आयुष तो दौड़ कर मेरे पास आ गया|

पिताजी: अरे बेटा ये भी कोई कहने की बात है! तू चिंता न कर हम सारे (पिताजी, माँ, आयुष, नेहा और भौजी) चले जाएँगे!

अपनी मम्मी की डाँट से बचने का मौका मिला तो नेहा के चेहरे पर भी ख़ुशी की मुस्कान आ गई|

मैं: बेटा आप दोनों अपने दादा जी और दादी जी को तंग मत करना!

मैंने प्यार से दोनों बच्चों को हिदायत दी| इतने में पीछे से माँ बोल पड़ीं;

माँ: हमारे बच्चे हमें तंग थोड़े ही करते हैं!

माँ को अपनी तरफदारी करते सुन दोनों बच्चे उनके पास दौड़ गए| माँ उस समय dining table पर बैठीं थीं और उन्हीं की बगल में भौजी बैठीं नाश्ता कर रहीं थीं| मैं माँ के पास आया तो भौजी उठ गईं, मैंने दोनों बच्चों को पिताजी के पास भेजा तथा मैं खुद माँ के पास बैठा और धीमी आवाज में उनसे बोला;

मैं: माँ, बच्चों का ध्यान रखना!

इतना कह मैंने भौजी की तरफ गर्दन से इशारा किया और अपनी बात पूरी की;

मैं: मेरे आने तक बच्चों को इनसे दूर रखना!

मेरी बात सुन माँ अचरज में पड़ गईं और पूछ बैठीं;

माँ: क्यों?

माँ ने भोयें सिकोड़ कर पुछा| मैंने फिर से भौजी की तरफ गर्दन से इशारा किया और बोला;

मैं: इनका पारा आजकल बहुत चढ़ा हुआ है!

माँ मेरी बात समझ गईं और बोलीं;

माँ: तू चिंता मत कर मैं समझाऊँगी बहु को!

सच कहूँ तो मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता था की माँ उनसे क्या बात करेंगी, इसलिए मैंने कोई प्रतिक्रया नहीं दी और नकली मुस्कान के साथ उठ गया| मैं दोनों बच्चों को "bye" कहा और बदले में मुझे दोनों बच्चों ने अपनी प्यारी-प्यारी पप्पी दी!

मैं काम पर आया और उधर बच्चों ने माँ-पिताजी के साथ खूब मस्ती की! माँ-पिताजी ने दोनों बच्चों को खूब लाड-प्यार से घुमाया और अच्छे से खिलाया-पिलाया! पिछले कुछ दिनों से बच्चों पर जो अपनी मम्मी का दबाव बन गया था वो आज की मौज-मस्ती ने खत्म कर दिया था| बजार से घूम कर आते-आते सब को 3 बज गए थे, घर आते ही दोनों बच्चों ने अपनी दादी जी के फ़ोन से मुझे कॉल किया और बड़े उत्साह से मुझे सारा ब्यौरा दिया! मैं खुश था की मेरे बच्चे खुश हैं!

रात को जब मैं घर पहुँचा तो बच्चे ख़ुशी से चहक रहे थे| वहीं माँ ने भौजी से उनके गुस्से को ले कर बात की थी और उन्हें बहुत समझाया भी था, यही कारण था की भौजी इस वक़्त शांत थीं मगर मेरे प्रति वो अब भी उखड़ीं थीं! अब तो माँ से उनकी (भौजी की) शिकायत करने की तोहमत भी मेरे सर लग चुकी थी! चलो मुझे तो भौजी के गुस्से की आदत पड़ चुकी थी इसलिए मैंने इस बात का बुरा लगाना ही छोड़ दिया!



अगले दिन छोटी दिवाली थी और आज माँ-पिताजी का plan जान-पहचान में मिठाई देने जाना था| कल की दादा-दादी संग की गई मस्ती के कारण बच्चे आज भी उन्हीं के संग रहना चाहते थे! माँ-पिताजी को इससे कोई परेशानी नहीं थी, बल्कि वो तो बहुत खुश थे! उनका और बच्चों का plan तो सेट था, अब बचे हम दोनों (मैं और भौजी) तो हम दोनों के नसीब में आज मिलना लिखा ही नहीं था! मिश्रा अंकल जी की एक साइट का काम आज फाइनल होना था इसलिए मेरा सारा समय वहीं पर निकला| काम फाइनल हुआ तो मिश्रा अंकल जी ने हाथ के हाथ payment पिताजी के अकाउंट में डलवा दी! रात को जब मैं घर पहुँचा तो दोनों बच्चों ने मुझे घेर लिया और आज की मस्ती के बारे में बताने लगे तथा माँ-पिताजी मुस्कुराते हुए दोनों बच्चों को अपनी बचकानी बात करते हुए देख रहे थे|

मैंने खाना खाया और दोनों बच्चों को अपने साथ ले कर कमरे में आ गया, कल दिवाली थी और मैं घर पर ही रहने वाला था इसलिए दोनों बच्चे चहक रहे थे| जहाँ एक तरफ आयुष को अपने नए कपडे पहनने का उत्साह था, वहीं नेहा को पूरा दिन मेरे साथ रहने की ख़ुशी थी! बच्चों का उत्साह इतना था की आज उन्हें सुलाने के लिए एक कहानी कम पड़ी, दोनों ने "please...please" कह कर दूसरी कहानी भी सुनी और तब जा कर वो सोये!



जारी रहेगा भाग-4 में...
Gussa...:banghead::argh:
 
Top