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Incest एक अनोखा बंधन - पुन: प्रारंभ (Completed)

Rockstar_Rocky

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मेरे प्रिय पाठक गणों,

हमारा ये thread 600 पन्ने पूरे कर चूका है! आप सभी के प्यार और सहयोग के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद! :bow:

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इसी ख़ुशी में पेश है एक प्यार भरी, खुशियों भरी update! :declare:
 

Rockstar_Rocky

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चौबीसवाँ अध्याय: उलझते-सुलझते बंधन
भाग-4

अब तक आपने पढ़ा:


मैंने खाना खाया और दोनों बच्चों को अपने साथ ले कर कमरे में आ गया, कल दिवाली थी और मैं घर पर ही रहने वाला था इसलिए दोनों बच्चे चहक रहे थे| जहाँ एक तरफ आयुष को अपने नए कपडे पहनने का उत्साह था, वहीं नेहा को पूरा दिन मेरे साथ रहने की ख़ुशी थी! बच्चों का उत्साह इतना था की आज उन्हें सुलाने के लिए एक कहानी कम पड़ी, दोनों ने "please...please" कह कर दूसरी कहानी भी सुनी और तब जा कर वो सोये!



अब आगे:


अगली
सुबह दिवाली के दिन की सुबह थी! 7 बजे मेरी नींद खुली तो मैंने पाया की दोनों बच्चे उसी तरह मुझसे लिपटे हुए सो रहे हैं जैसे रात को लिपट कर सोये थे! मैंने दोनों के सर पर हाथ फेर कर उन्हें जगाया;

मैं: बेटा उठो, आज दिवाली है!

दिवाली का नाम सुन आयुष एकदम से जाग गया, आखिर आज उसे नए कपडे जो पहनने थे! उधर नेहा कुनमुनाती रही और मेरे से कस कर लिपट गई, साफ़ था की उसे अभी और सोना है! मैंने नेहा के सर को चूमा और उसके सर पर हाथ फेरता रहा| इधर आयुष जोश में भरा हुआ उठा और फटाफट ब्रश करने लगा| अब वो ब्रश करे और उसकी दीदी सोये ऐसे कैसे हो सकता था?! आयुष ब्रश करते हुए पलंग पर चढ़ा और नेहा को जगाने लगा| नेहा पिनकते हुए उठी और उसे डाँटते हुए बोली;

नेहा: स्कूल जाने के नाम से तो उठता नहीं, नए कपडे पहनने के लिए फट से उठ गया!

नेहा की बात सुन मैं हँस पड़ा, उधर आयुष पर अपनी दीदी की डाँट का कोई असर नहीं पड़ा बल्कि उसने फटाफट अपना ब्रश किया और अपने गीले हाथों को नेहा के चेहरे पर रगड़ कर भाग गया| ठंडा पानी चेहरे पर पड़ा तो नेहा गुस्से से उठी और आयुष को मारने के लिए दौड़ी! तो इस तरह दोनों बच्चों की घर में पकड़म-पकड़ाई चालु हो गई!

आयुष को अगर अपनी जान बचानी थी तो उसे मेरे पास आना था, आयुष दौड़ता हुआ मेरे पास आया और चिल्लाने लगा;

आयुष: पापा बचाओ! बचाओ!

मैंने आयुष को गोद में उठाया और उसे नेहा से बचाने लगा| इतने में नेहा आयुष को पकड़ने के लिए मेरे ऊपर कूदी, मैंने दोनों बच्चों को एक दूसरे से दूर रखा और नेहा को समझाते हुए बोला;

मैं: बेटा माफ़ कर दो अपने छोटे भाई को!

नेहा की नींद खराब हुई थी तो वो इतनी जल्दी आयुष को छोड़ने वाली नहीं थी! मैंने आयुष को गोद से उतारा तो वो खिड़की की तरफ भागा और नेहा उसके पीछे भागी! मैंने नेहा को पीछे से पकड़ गोदी में उठाया मगर नेहा ने आयुष को पकड़ने के लिए छटपटाना शुरू कर दिया!

मैं: Awwww मेरा बच्चा! बस-बस! गुच्छा (गुस्सा) नहीं करते! आप बड़ी बहन हो, माफ़ कर दो बेचारे को!

मैंने नेहा को समझाते हुए कहा| नेहा को मेरे मुँह से 'Awwww मेरा बच्चा' सुनना अच्छा लगता था इसलिए ये शब्द सुनते ही वो शांत हो गई और मेरे से लिपट गई! मैंने मुस्कुरा कर नेहा के सर पर हाथ फेरा, नेहा फिर से मुस्कुराने लगी और मुस्कुराते हुए उसने मेरे गाल पर पप्पी दी! आयुष दूर से अपनी दीदी को मुस्कुराते हुए देख रहा था, वो अब निश्चिंत था की उसकी दीदी अब उसे नहीं मारेगी इसलिए वो फुदकता हुआ मेरे पास आ गया| अपनी दीदी को मक्खन लगाने के लिए उसने कान पकड़ कर माफ़ी माँगी, नेहा जानती थी की ये माफ़ी तो बस आयुष का ड्रामा है! अब मेरे सामने वो आयुष को सबक नहीं सीखा सकती थी इसलिए उसने हँसते हुए अपने भाई को फिलहाल के लिए माफ़ कर दिया! माफ़ी मिली तो आयुष ने मेरी गोदी में आने के लिए अपने दोनों पँख (हाथ) खोल दिए, मैंने दोनों बच्चों को गोदी में उठाया और दोनों ने मेरे दोनों गालों पर अपनी मीठी-मीठी पप्पी दी! दिवाली के दिन की मीठी शुरुआत हुई थी, मगर अभी तो बहुत कुछ बाकी था!



बाप-बेटा-बेटी की तिगड़ी अभी पप्पियों लेने-देने में व्यस्त थी की तभी भौजी कमरे में आईं| बाकी दिनों की तरह वो मुझसे उखड़ी हुईं थीं लेकिन आज मुझे उनके व्यवहार में कुछ अलग महसूस हुआ| उनके चेहरे पर आज अलग ही तेज था, बाकी दिनों के मुक़ाबले आज उनका मस्तक कुछ ज्यादा तेजोमय लग रहा था| गाल आज कुछ-कुछ गुलाबी थे, आँखों में हलकी सी हया थी, लबों पर शब्द थे जो वो कहना चाहतीं थीं मगर कह नहीं रहीं थीं! तभी भौजी के होंठ थरथराये और उनके कोकिल कंठ से बोल फूटे;

भौजी: आयुष-नेहा बेटा चलो दूध पी लो!

मैं उम्मीद कर के बैठा था की वो मुझसे कुछ कहेंगी पर वो तो बच्चों को दूध पीने का बोल कर नजरें फेर कर चली गईं! मैंने सोचा चलो कोई बात नहीं, मैं न सही कम से कम बच्चों से तो वो प्यार से बात कर रहीं हैं! मैंने दोनों बच्चों को गोदी से उतारा, नेहा ब्रश करने घुसी और आयुष बाहर बैठक में दौड़ गया| इधर मैं अपनी प्रियतमा से आज बात कैसे करूँ ये सोचते हुए मैं भी आयुष के पीछे बाहर आ गया| कमरे से बाहर आया तो मैंने देखा की पिताजी dining table पर अपनी checkbook ले कर बैठे हैं तथा उनके पास मिठाइयों के दो डिब्बे रखे हैं| मिठाई के डिब्बे देख मैं जान गया की आज वो और माँ जर्रूर किसी के यहाँ मिठाई देने जायेंगे और यही वो समय होगा जब मैं भौजी से इत्मीनान से बात कर सकता हूँ| अब मुझे बस दिमाग लगा कर बात बनानी थी ताकि चालाकी से हम चारों (मैं, भौजी और बच्चों) को कहीं जाने का बहाना मिल जाए!

वहीं पिताजी की नजर मुझ पर पड़ी तो उन्होंने मुझे अपने पास dining table पर बिठा लिया;

पिताजी: बेटा कल तूने मिश्रा जी वाली एक साइट का फाइनल का काम जो फाइनल कराया था उसकी payment आ गई है! मेरी गैरहाजरी में तूने सारा काम संभाल लिया वरना हमारा नुक्सान और नाम दोनों खराब हो जाते!

पिताजी मेरी पीठ थपथपाते हुए बोले| भौजी उस वक़्त रसोई में थीं और पिताजी को मेरी पीठ थपथपाते उन्हें बहुत ख़ुशी हो रही थी, बस वो ये ख़ुशी जता नहीं रहीं थीं!

पिताजी: ये रहा चन्दर के हिस्से के मुनाफे का चैक, इससे तू अपने अनुसार दोनों बच्चों के नाम की FD करवा दे!

पिताजी ने मेरी तरफ 15,000/- रुपये का चैक बढ़ाते हुए कहा| ये पैसे बच्चों के लिए बहुत कम थे इसलिए मैंने मन ही मन सोच लिया की इसमें मैं अपने पैसे डाल कर बच्चों के नाम की FD करवा दूँगा|

पिताजी: और तेरे हिस्से का मुनाफ़ा मैंने तेरे अकाउंट में डलवा दिया है!

पिताजी मुस्कुराते हुए बोले| उनके चेहरे पर गर्वपूर्ण मुस्कान थी और हो भी क्यों न, आखिर उनका लड़का जिम्मेदार जो हो चला था!

मैं: जी बेहतर!

मैंने सर हाँ में हिलाते हुए कहा| मैं चैक ले कर उठने लगा तो भौजी का ग़मगीन चहेरा दिखा!

मैं: पिताजी, मुझे दिवाली के लिए कुछ खरीदारी करनी थी तो अगर आप की आज्ञा हो तो हम पाँचों (मैं, माँ, भौजी और दोनों बच्चे) बजार हो आयें?

मैं जानता था की पिताजी माँ को अपने साथ मिठाई देने ले जाएँगे इसलिए मैंने बड़ी चपलता से अपनी बात कही|

पिताजी: बेटा आज मुझे तेरी माँ के साथ मिश्रा जी के यहाँ जाना है| दिवाली का दिन है तो उन्हें मिठाई देने हम दोनों का जाना जर्रूरी है| तू ऐसा कर अपनी भौजी और दोनों बच्चों को ले जा|

बस यही तो मैं सुनना चाहता था! मैं फ़ौरन सर हाँ में सर हिलाते हुए अपना उत्साह दबाते हुए बोला;

मैं: जी ठीक है|

मैं अपने कमरे में आने को उठा, तभी भौजी रसोई से निकल कर अपने कमरे में जा रहीं थीं उन्होंने मेरी बात सुन ली थी इसलिए मैंने जानकार उन्हें कुछ नहीं कहा|



नाश्ता कर के हम सब एक साथ निकले, माँ-पिताजी ऑटो कर के मिश्रा अंकल जी के यहाँ चले गए और मैं, भौजी तथा दोनों बच्चे बजार की ओर चल दिये| आयुष मेरी दाईं तरफ था और नेहा मेरी बाईं तरफ तथा भौजी आयुष की बगल में खामोशी से चल रहीं थीं| दोनों बच्चे अपनी मम्मी की मौजूदगी से घबराये हुए थे इसलिए दोनों मेरी ऊँगली पकडे हुए खामोश थे, जबकि बाकी दिन वो हमेशा बजार जाते समय चहकते रहते थे| मुझे अपने बच्चों की ये ख़ामोशी खल रही थी, इसलिए मैंने बात शुरू करते हुए नेहा से कहा;

मैं: नेहा बेटा आपने स्कूल में रंगोली बनाई थी?

नेहा: जी पापा|

नेहा ने सर हाँ में हिलाते हुए कहा|

मैं: तो आज घर पर भी बनाओगे?

मैंने मुस्कुराते हुए पुछा तो नेहा की आँखें चमक उठीं;

नेहा: जी!

नेहा ने खुश होते हुए कहा| मैंने जेब से 100/- रुपये निकाले और नेहा को देते हुए सामने की दूकान की तरफ इशारा करते हुए कहा;

मैं: ये लो पैसे और जो सामान लाना है ले लो|

नेहा मुझसे पैसे ले कर दूकान की तरफ घूमी ही थी की तभी भौजी पीछे से बोल पड़ीं;

भौजी: कोई जर्रूरत नहीं, घर पर सब रखा है!

भौजी की झिड़की सुन नेहा सहम गई और सर झुका कर वापस मेरे पास खड़ी हो गई! त्यौहार के दिन बच्चों पर यूँ भौजी का अपना चिड़चिड़ापन निकालना मुझे अच्छा नहीं लगा इसलिए मैंने जोश में आकर नेहा का हाथ पकड़ा और बोला;

मैं: आप चलो मेरे साथ, मैं आपको सामान दिलाता हूँ

मैंने नेहा को होंसला बँधाते हुए कहा| नेहा ने फिर एक नजर अपनी मम्मी को देखा, भौजी उसे आँखें बड़ी कर के देख रहीं थीं और मूक इशारे से मेरे साथ जाने से मना कर रहीं थीं| अपनी मम्मी का इशारा समझ नेहा बेचारी सहमी हुई सी नजर झुका कर सर न में हिला कर मेरे साथ जाने से मना करने लगी! नेहा का न में सर हिलाना देख मैंने भौजी को देखा और उनकी बड़ी आँखे देख मैं समझ गया की वो ही नेहा को मेरे साथ जाने से मना कर रहीं हैं! मैं घुटने मोड़ कर बैठा और नेहा की ठुड्डी ऊपर करते हुए उससे नजरें मिलाकर बोला;

मैं: अपनी मम्मी को मत देखो! मैं आपका पापा हूँ न, तो आप मेरे साथ चलो!

नेहा को अपने पापा की शय मिली तो उसे होंसला आ गया, मैं दोनों बच्चों को ले कर रंगों वाली दूकान पर आया और नेहा को जो-जो चाहिए था वो सब खरीदवाया| भौजी मुँह फुलाये, हाथ बाँधे पीछे खड़ीं रहीं और एक शब्द नहीं बोलीं, बोलतीं भी कैसे वरना आज मैं उनकी ऐसी-तैसी जो कर देता!

नेहा ने रंग, stencil वगैरह खरीदी तो अब बारी आई आयुष की जो चुपचाप बाकी दुकानों की ओर देख रहा था|

मैं: आयुष बेटा, आप फुलझड़ी लोगे?

पटाखे किसे अच्छे नहीं लगता, मगर मेरी बात सुन आयुष बेचारा डर के मारे सीधा अपनी मम्मी को देखने लगा| मैंने आयुष की ठुड्डी पकड़ अपनी तरफ घुमाई ओर मुस्कुराते हुए उसका डर कम करने लगा;

मैं: बेटा आपके पापा इधर हैं, वो आपको पटाखे दिलवा रहे हैं न की मम्मी!

अपने पापा को मुस्कुराता देख आयुष के चेहरे पर प्यारी सी मुस्कान आ गई और उसने पटाखे लेने की अपनी ख़ुशी व्यक्त की| मैं, आयुष और नेहा पटाखे की दूकान पर आये, बच्चों को सिवाए फुलझड़ी के और कोई पटाखा नहीं पता था तो मैंने उनकी सहयता करते हुए अनार, चखरी तथा राकेट खरीद कर दिए| दरअसल हमारे गाँव में दिवाली बड़ी ही फीकी मनाई जाती थी, रात को पूजा होती थी जो बड़के दादा करते थे, घर में दीप जला कर सभी प्रसाद में रखी लड्डू-बर्फी खा कर मुँह मीठा करते हैं| हाँ पिछले 2-4 सालों से अजय भैया पड़ोस के गाँव में कुम्हार के लड़के से घर में सन (चारपाई बुनने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली रस्सी) से बनाये हुए 1-2 बम लाते थे और उसे फोड़ कर ही उनकी दिवाली मन गई! मैंने इस बार ठान लिया था की मैं अपने बच्चों को असली दिवाली दिखाऊँगा!



खैर इधर बाप-बेटा-बेटी खरीदी कर रहे थे तो उधर भौजी मुँह फुलाये हुए शाम की पूजा के लिए समान खरीदने लगीं| बच्चों को खरीदारी करवा कर मैं भौजी के पास लौट आया और सामान खरीदने में उनकी मदद करने लगा| भौजी दिये ले रहीं थी, तो मैंने दोनों बच्चों को दरवाजे पर बाँधे जाने वाला शुभ दिवाली का sticker खरीदने में लगा दिया, वहीं मैं खुद खील-खिलोने-बताशे खरीदने लगा| भौजी ने दिये खरीद लिए थे, उन्होंने मुझे इशारे से पैसे देने को कहा और वो फल लेने बगल के ठेले पर चली गईं| मैंने सब समान के पैसे दिए और बच्चों को ले कर भौजी के पास आ गया| फल लेने के बाद अब बस एक काम बचा था और वो था मिठाई लेना! अब मिठाई दोनों बाप-बेटे (मेरी और आयुष) की कमजोरी थी तो उसके नाम से ही हम दोनों अपने होठों पर जीभ फिर रहे थे! आयुष तो लड्डू-बर्फी देख कर ही खुश हो गया था, नेहा और भौजी की मिठाई में कुछ ख़ास रूचि नहीं थी| मैंने दुकानदार से सोहन पपड़ी का डिब्बा लिया, अब सोहन पपड़ी भौजी और बच्चों ने कभी खाई नहीं थी तो उनकी जिज्ञासा बनी हुई थी की आखिर ये चीज होती क्या है? डिब्बे पर बने मिठाई के चित्र को देख कर माँ-बेटा-बेटी बस अंदाजा लगा रहे थे की ये मिठाई कैसी होगी| तभी नेहा की नजर रस मलाई पर पड़ी, वो शर्माते हुए मेरे पास आई और मेरा हाथ पकड़ कर नीचे खींचने लगी, मैं अपना कान नेहा के मुँह के पास लाया तो वो शर्माते हुए बोली;

नेहा: पापा जी, मुझे रस मलाई खानी है!

नेहा ने बड़े प्यार से फरमाइश की|

मैंने दुकानदार से 10 पीस रस मलाई पैक करवाई और नेहा से धीमी आवाज में कहा;

मैं: बेटा ये आपको रात को पूजा के बाद मिलेगी!

मेरी बात सुन नेहा मुस्कुराने लगी और हाँ में सर हिलाने लगी|

सारा सामान ले कर हम चारों घर लौटे, बच्चे तो घर आते ही कार्टून देखने में लग गए| दोपहर के साढ़े बारह हुए थे और भौजी खाना बनाने की तैयारी कर रहीं थीं| इतने में पिताजी का फ़ोन आ गया, उन्होंने बताया की वो मिश्रा अंकल जी के यहाँ lunch कर रहे हैं, इसलिए हम चारों उनका इंतजार न करें| पिताजी से बात कर के मैंने फ़ोन रखा, भौजी इस समय गैस पर आलू उबाल रहीं थीं;

मैं: जान खाना मत बनाओ, माँ-पिताजी, मिश्रा अंकल जी के यहीं खाना खाने वाले हैं| मैं हम चारों के लिए बाहर से कुछ मँगवा रहा हूँ|

मैंने प्यार से कहा| इतना सुनना था की भौजी ने गुस्से से गैस बंद की और अपने कमरे की ओर जाने लगीं| मैंने एकदम से उनका (भौजी का) हाथ थाम लिया और खींचते हुए अपने कमरे में ले आया| कमरे में आ कर मैंने भौजी का हाथ छोड़ दिया;

मैं: बैठो, मुझे आपसे कुछ बात करनी है|

मैंने गंभीर होते हुए भौजी को कुर्सी की तरफ बैठने का इशारा करते हुए कहा| मेरी आवाज में चिंता झलक रही थी और इसी चिंता को महसूस कर भौजी कुर्सी पर मुझसे नजरें चुरा कर बैठ गईं| उनके चेहरे पर सुबह वाला तेज अब नहीं था, बल्कि एक उदासी थी! मैं भौजी के सामने पलंग पर बैठ गया और उनका दाहिना हाथ अपने दोनों हाथों में ले कर बोला;

मैं: करवा चौथ के बाद से आप जो ये मेरे साथ रुखा व्यवहार कर रहे हो, मैं इसका कारण जानता हूँ!

मेरी आधी बात सुन भौजी की आँखें बड़ी हो गईं और वो हैरानी से मुझे देखने लगीं| भौजी की ये मुझे गुस्सा दिलाने वाली हरकतें सिर्फ और सिर्फ मुझे खुद से दूर करने के लिए थीं! वो जानतीं थीं की सच सामने आने के बाद हम दोनों को हमेशा-हमेशा के लिए अलग कर दिया जाएगा! उनसे (भौजी से) और बच्चों से दूर हो कर मैं फिर से पीना शुरू कर देता, मैं ऐसा कुछ न करूँ इसके लिए वो जानबूझ कर मुझसे बात न कर के, बच्चों को मुझसे दूर कर के, मेरे मन में अपने लिए नफरत भरना चाहतीं थीं! परन्तु वो ये भूल गईं थीं की 'हमारे दिल connected हैं!'

मैं: आखिर क्यों आप मुझे खुद से और हमारे बच्चों से दूर करना चाहते हो?

ये सुनते ही भौजी की आँखों में आँसूँ उतर आये!

मैं: ये सब आप जानबुझ कर इसलिए कर रहे हो न ताकि मैं आपसे खफा हो जाऊँ, आपसे नफरत करने लगूँ और पिताजी से हमारे रिश्ते की बात न करूँ?

मैंने सवाल तो पूछ लिया मगर मैं इसका जवाब पहले से ही जानता था;

भौजी: हाँ!

भौजी ने रूँधे गले से कहा और ये कहते हुए उनकी आँखें छलछला गईं!

मैं: आपको लगा की मैं गुस्से में आ कर आपको छोड़ दूँगा?

ये सुन भौजी से खुद को रोकपाना मुश्किल हो गया और वो फफक कर रोने लगीं!

मैं: जान, आपने ये सोच भी कैसे लिया?

इतना कह मैं भौजी के सामने घुटनों पर आया और वो मेरे गले लग कर रोने लगीं| मैंने भौजी को पुचकारा और उनके आँसूँ पोछते हुए बोला;

मैं: अच्छा मेरी एक बात का जवाब दो, क्या आप नहीं चाहते की हम दोनों हमेशा एक साथ रहे, हमारे रिश्ते को एक जायज नाम मिले, हमारे बच्चे हमें सबके सामने मम्मी-पापा कह सकें, हमें यूँ छुप-छुप कर न मिलना पड़े?

मेरा सवाल सुन भौजी ने हिम्मत बटोरी और बोलीं;

भौजी: मैं आपसे बहुत प्यार करती हूँ और आपके साथ हर पल जीना चाहती हूँ मगर मैं आपको खोना नहीं चाहती! कल जब आप पिताजी से हमारे रिश्ते की बात कहेंगे तो वो हमें हमेशा-हमेशा के लिए अलग कर देंगे!

भौजी का डर एक बार फिर बाहर आया|

मैं: ऐसा कुछ नहीं होगा! और अगर हुआ भी तो हम ये घर छोड़ देंगे!

मैंने भौजी को होंसला देते हुए कहा| मेरी बात सुनते ही वो तपाक से बोलीं;

भौजी: यही मैं नहीं चाहती! मेरे कारण आप अपने माँ-पिताजी से अलग होंगे तो मेरे ऊपर उम्र भर का लांछन लग जायेगा!

ये कहते हुए भौजी की आँखें फिर छलक गईं!

मैं: जान मैंने आपको समझाया था न की मैं ऐसा होने ही नहीं दूँगा! इन कुछ दिनों में माँ-पिताजी मेरे प्रति बहुत नरम हो गए हैं, मैं उन्हें मना लूँगा! फिर भी अगर वो नहीं माने तो हमें बस उनका (माँ-पिताजी का) गुस्सा ठंडा होने तक अलग रहना है! आप खुद सोचो की माँ-बाप अपने खून से कब तक नाराज रह लेंगे? जैसे ही उनका गुस्सा शांत होगा मैं उनके पैरों में गिरकर घर छोड़ने की माफ़ी माँग लूँगा और वो मुझे माफ़ भी कर देंगे, तो आप पर कोई लांछन नहीं लगेगा!

इस समय मेरा आत्मविश्वास अपनी पूरी बुलंदियों पर था, मुझे अपने ऊपर इतना अधिक आत्मविश्वास की मैंने भौजी को अपनी बातों से मना लिया था|

मैं: अब आप इस मुद्दे को सोच कर नहीं रोओगे, आज त्यौहार का दिन है और आज के दिन हमें ख़ुशी-ख़ुशी बिताना है|

मैंने भौजी के आँसूँ पोछते हुए कहा| आखिर भौजी के चेहरे पर थोड़ी से मुस्कान आ ही गई और वो मेरे दोनों हाथ आपने हाथों में लेते हुए मुस्कुराईं और बोलीं;

भौजी: जानू!

हाय! इतना सुनना था की मेरी रूह खुश हो गई! मगर आगे उन्होंने जो कहा उसे सुन कर तो मेरा दिल जैसे धड़कना ही भूल गया;

भौजी: मैं आपके बच्चे की माँ बनने वाली हूँ!

भौजी शर्माते हुए बोलीं| उनके कहे ये शब्द जा कर सीधा दिल को लगे, ऐसा लगा मानो जैसे दिल धड़कन भूल गया हो!

मैं: सच जान?

मैंने खुश होते हुए पुछा|

भौजी: हाँ जी! आज सुबह ही मैंने pregnancy test kit से चेक किया था!

भौजी शर्म से लाल होते हुए बोलीं| अब मुझे समझ आया की सुबह भौजी के चेहरे पर तेज क्यों था! इधर बाप बनने की ख़ुशी ने मुझे पागल कर दिया था, ख़ुशी से बौराया हुआ मैं नाचने लगा! मुझे भंगड़ा डालते देख भौजी इतने दिनों बाद खिलखिला कर हँस पड़ीं! मैंने भौजी का हाथ पकड़ उन्हें खड़ा किया और अपने साथ नचाने लगा! भौजी मुझे देखते हुए भंगड़ा डालने की कोशिश करने लगीं! अगले ही पल मुझे इतना जोश आया की मैंने भौजी को कमर से पकड़ कर हवा में उठा लिया और गोल-गोल घूमने लगा! भौजी और मेरे चेहरे पर इतनी ख़ुशी थी, इतनी ख़ुशी की इस ख़ुशी के मारे हमारी आँखें छलक आईं! मैंने भौजी को नीचे उतारा और उन्हें कस कर अपने गले लगा लिया, भौजी ने भी आगे बढ़ते हुए अपनी दोनों बाहें मेरी पीठ पर कस लीं तथा मुझ में समां गईं! उन कुछ पलों के लिए हम दोनों खामोश हो गए थे, आँखें बंद किये हुए हम दोनों और हमारे तेजी से धड़कते दिल, जिनकी अलग-अलग धड़कनें एक सुर में धड़कने लगी थी! यहाँ तक की हम दोनों की साँसें एक समान चल रहीं थीं, जो हमारे शांत दिल की सूचक थी|



आँख बंद किये हुए मैंने अपने भरे-पूरे परिवार की कल्पना कर ली थी! अपने बच्चे को पहली बार गोदी में लेने की कल्पना से मेरी आँखों ने नीर बहाना शुरू कर दिया था| जब मेरे आँसूँ बहते हुए भौजी के कँधे पर गिरे तो भौजी ने हमारा आलिंगन तोडा और मेरा चेहरा अपने हाथ में लेते हुए बोलीं;

भौजी: जानू....

लेकिन वो आगे कुछ कहतीं उससे पहले ही मैंने उनके चेहरे को अपने दोनों हाथों में थामा और उनकी आँखों में आँखें डालते हुए उनके होठों के नजदीक आ कर बोला;

मैं: जान! दिवाली का इससे अच्छा तोहफा नहीं हो सकता था!

ये कहते हुए मैंने भौजी के होठों को चूम लिया! मेरा ये दो सेकंड का चुंबन भौजी के दिल की गहराई तक उतर चूका था! इस छोटे से चुंबन के बाद मैंने भौजी की आँख में देखा तो मुझे अलग ख़ुशी दिखाई दी, ये ख़ुशी थी मुझे पिता बनाने की ख़ुशी!

भौजी के चेहरे को छोड़ मैं घुटने मोड़ कर नीचे बैठा और आँख बंद कर के उनके पेट पर अपने होंठ रख दिए! भौजी ने अपनी आँख बंद कर ली और मेरे इस चुंबन को हमारे बच्चे को मिलने वाली पहली 'पप्पी' के रूप में महसूस करने लगीं! हम दोनों उस वक़्त खुदको पूर्ण महसूस कर रहे थे, हमारा ये प्यार भरा रिश्ता ऐसे मुक़ाम पर आ चूका था जिसके आगे हम दोनों को अब कुछ नहीं चाहिए था| अब बस एक आखरी पड़ाव, एक आखरी उपलब्धि मिलनी बाकी थी, वो शिखर जिस पर पहुँच कर हम दोनों एक दूसरे को अपना सर्वस्व सौंप कर हमेशा-हमेशा के लिए के पावन रिश्ते में बँध जाते!


जारी रहेगा भाग-5 में...
 
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