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Incest एक अनोखा बंधन - पुन: प्रारंभ (Completed)

Rockstar_Rocky

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आठवाँ अध्याय: जूनून
भाग - 1

मैं नहा धो के तैयार हो गया और शांत मन से रात के प्लान के लिए मन ही मन योजना बनाने लगा| मन में तो ख्याल था की फूलों की सेज सजी हो पर ये भी डर था की ये फूल किसी से नहीं छुपेंगे और कहीं इन्हीं फूलों का फायदा चन्दर भैया ना उठा लें!!!! अभी मैं मन ही मन सोच रहा था की तभी पिताजी ने मेरे कान के पास एक ऐसा बम फोड़ा की मेरा सारा शरीर सुन हो गया;

पिताजी: क्यों लाड-साहब रात को छत पर क्यों नहीं सोये?

मैं: बहुत थक गया था, इसीलिए कब नींद आ गई पता ही नहीं चला|

पिताजी: थक गया था? ऐसा कौन सा पहाड़ खोद दिया तूने?

चन्दर भैया: चाचा कल रतिया मानु भैया भूसा उठाये रहे ना!

चन्दर भैया ने मजाक किया ओर उनकी बात सुनके दोनों चाचा-भतीजा हँसने लगे| मैं भी उनका साथ देने के लिए झूठी हँसी हँसा, असल में तो मुझे भौजी की बातें याद आ रही थी और मैं भैया से नफरत करने लगा था| पर यदि मैं अपनी नफरत जाहिर करता तो कोई भी भौजी और मुझपर शक करता| अभी तक भौजी और मेरे रिश्ता दोस्ती के नक़ाब के पीछे छुपा हुआ था और सब के सामने इस नक़ाब का रहना जर्रूरी था| पर अभी तो पिताजी की बात शुरू ही हुई थी;

पिताजी: तो लाड-साहब चलना नहीं है क्या?

मैं: (चौंकते हुए) कहाँ?

पिताजी: जिस काम के लिए आये थे?

मैं: किस काम के लिए?

पिताजी: तुम तो यहाँ आके अपनी भौजी के साथ इतना घुल-मिल गए की यात्रा के बारे में भूल ही गए|

पिताजी की बात सुन मैं झेंप गया और मुझे याद आया की गाओं आने का प्लान बनाने के लिए मैंने पिताजी को काशी विश्वनाथ घूमने का लालच दिया था, यही कारन था की पिताजी गाँव आने के लिए माने थे| यात्रा का प्लान मैंने ही बनाया था पर क्योंकि मुझे भौजी से मिलने की इतनी जल्दी थी इसलिए मैंने सबसे पहले गाँव आने का प्लान रखा और उसके बाद हम यात्रा करके दिल्ली लौटना था, जबकि पिताजी का कहना था की हम पहले यात्रा करते हैं उसके बाद गाँव जायेंगे| अब मुझे अपने ऊपर गुस्सा आ रहा था, की आखिर क्यों मैंने थोड़ा सब्र नहीं किया| ऊपर से कहाँ तो मैं अपनी और भौजी की सुहागरात के सपने सजोने में लगा था और कहाँ पिताजी की यात्रा पर जाने की बात ने मेरे होश उड़ा दिए थे!

पिताजी: क्या सोच रहा है? मैंने तुमसे राय नहीं माँगी है, हम कल ही निकालेंगे और यात्र कर के दिल्ली लौट जायेंगे|

चन्दर भैया ने जैसे ही पिताजी की बात सुनी, वो सब को सुनाने के लिए चल दिए| इधर मेरा दिमाग अब कंप्यूटर की तरह काम करने लगा और मैं कोई न कोई तर्क निकालना चाहता था की हम कुछ और दिनों के लिए रुक जाएँ|

उधर जब ये बात भौजी के कानों तक पहुँची तो भौजी भागी-भागी बड़े घर की ओर आईं| पिताजी मुझसे बात करके कल यात्रा पर जाने के लिए रिक्शे का इन्तेजाम करने के लिए निकल चुके थे| मैं घर के आँगन में अपने सर पे हाथ रखे अकेला बैठा हुआ था| अचानक भौजी मेरे सामने ठिठक के खड़ी हो गईं, मेरी नजर जब उनके चेहरे पर पड़ी तो मैंने देखा की उनके आँखों में आँसूँ थे, चेहरे पर सवाल और जुबान पर मेरा नाम!

भौजी: मानु.... क्या मैंने जो सुना वो सच है? तुम कल ही मुझे छोड़ कर जा रहे हो?

मैं: (सर झुकाते हुए) हाँ!

भौजी: तो तुमने मुझे पहले क्यों नहीं बताया?

मैं: भूल गया था!

भौजी: अब मेरा क्या होगा? मैं तुम्हारे बिना नहीं जी सकती! मैं मर जाऊँगी!!!

इतना कह के भौजी बाहर चली गईं, मुझे चिंता होने लगी की कहीं भौजी कुछ ऐसा-वैसा कदम न उठा लें इसलिए मैं उनके पीछे भागा| पर भौजी भूसे वाले कमरे के बाहर खड़ी होके रसिका भाभी से कुछ पूछ रही थीं| दोनों के हाव-भाव से मैं समझ चूका था की भौजी यही पूछ रहीं थीं की क्या मैं सच में वापस जा रहा हूँ? रसिका भाभी ने बात को ज्यादा तूल ना देते हुए हाँ में सर हिलाया और रसोई की ओर चल दीं| मैंने इशारे से भौजी को अपने पास बुलाया, भौजी सर झुकाये भारी क़दमों के साथ मेरी ओर बढ़ने लगीं| उस समय माँ, नेहा, मधु भाभी और बड़की अम्मा खेत में आलू खोद के निकाल रहे थे| पिताजी तो पहले ही रिक्शे वाले से बात करने के लिए जा चुके थे| चन्दर भैया और अजय भैया खेतों में सिंचाई और जुताई में लगे थे और रसिका भाभी तो यूँ ही इधर-उधर टहल रहीं थी, जब से मैं आया था मैंने उन्हें कोई भी काम नहीं करते देखा था!

मैं भौजी को ले कर बड़े घर में आया और मैंने उन्हें चारपाई पर बिठा दिया| उनके मुख पर हवाइयाँ उड़ रहीं थी, उनके चेहरे पर कोई भी भाव नहीं थे, ऐसा लगा जैसे की कोई लाश हो| इधर मैं मन ही मन अपने आपको कोस रहा था| मैं अपने घुटनों पर उनके समक्ष बैठ गया;

मैं: भौजी... मुझे माफ़ कर दो! सब मेरी गलती है! मैंने आपको कुछ नहीं बताया, सच कहूँ तो इन चार दिनों में आपके प्यार में मैं खुद को भूल गया था| गाओं आने का मेरे पास कोई बहाना नहीं था इसलिए मैंने पिताजी से काशी-विश्वनाथ की यात्रा का बहाना बनाया| पिताजी तो चाहते थे की हम पहले यात्रा करें और फिर गाओं जायेंगे और आखिर में दिल्ली लौट जायेंगे| पर मैं आपसे मिलने को इतना आतुर था की मैंने कहा की हम पहले गाओं जायेंगे और फिर वहाँ से यात्रा करने के लिए निकलेंगे और वहीं से वहीं दिल्ली निकल जायेंगे| मुझे सच में नहीं पता था की आपका प्यार मुझे आपसे दूर नहीं जाने देगा|

भौजी मेरी आँखों में देखते हुए सारी बात सुन रही थी| मेरी बात पूरी होते ही उनकी आँखों में आँसूँ छलक आये| पता नहीं क्यों पर जब-जब मैं भौजी को ऐसे देखता, तो मेरे नस-नस में खून खौल उठता|.

भौजी: मानु मेरा क्या होगा?

भौजी के इस प्रश्न का मेरे पास कोई जवाब नहीं था इसलिए मेरा सर खुद झुक गया| मेरा झुका सर देख भौजी के चेहरे पर मायूसी छा चुकी थी और इधर मुझे अपने ऊपर कोफ़्त होने लगी थी!!! मैं ने भौजी को ढाँढस बँधाने लगा, मैंने उनके चेहरे को ऊपर किये और उनके आँसूँ पोंछें;

मैं: भौजी अभी भी हमारे पास 24 घंटे हैं|

ये सुन भौजी मेरी और बड़ी उत्सुकता से देखने लगीं|

मैं: मैं ये पूरे 24 घंटे आपके साथ ही गुजारूँगा|

तभी पीछे से माँ आ गईं, मुझे और भौजी को इस तरह देख वो हैरान थी| इससे पहले की वो कुछ पूछतीं मैं खुद ही बोल पड़ा;

मैं: माँ देखो ना भौजी को, जब से इन्हें पता चला है की हम कल जा रहे हैं ये मुँह लटका के बैठीं हैं| आप ही कुछ समझाओ न इन्हें|

माँ: पर हम तो....

मैं: (माँ की बात काटते हुए) माँ पिताजी रिक्शे वाले से बात करने निकले हैं और वो कह रहे थे की आप उनका सफारी सूट मत भूल जाना|

मैं: हाँ अच्छा याद दिलाया तूने, मैं अभी रख लेती हूँ और बहु तुम उदास मत हो ...

मैंने फिर से माँ की बात काट दी...

मैं: (फिर से उनकी बात काटते हुए) और हाँ माँ, पिताजी ने कहा था की सर और पेट दर्द की दवा भी रख लेना|

माँ:(गुस्से में) ये सब तू मुझे बताने के बजाये खुद नहीं रख सकता?

अब इससे पहले की माँ कुछ और बोलें, मैं भौजी को खींच के बाहर ले गया| अभी हम दोनों दरवाजे तक पहुँचा ही था की नेहा भी आ गई और भौजी के उदास मुँह का कारन पूछने लगी| मैंने उसकी बात घुमाते हुए कहा की चलो मेरे साथ बताता हूँ| मैंने अपने दाएँ हाथ से भौजी का बायाँ हाथ पकड़ा और अपने बाएँ हाथ की ऊँगली नेहा को पकड़ा रखी थी| मैं दोनों को रसोई के पास छप्पर में ले आया, वहाँ पड़ी चारपाई पर भौजी को बैठाया और नेहा के प्रश्नों का उत्तर देने लगा;

मैं: आप पूछ रहे थे न की आपकी मम्मी उदास क्यों हैं?

नेहा ने हाँ में सर हिलाया|

मैं: आपकी मम्मी की उदासी का कारन मैं हूँ|

मेरी बात सुन के भौजी और नेहा दोनों मेरी ओर देखने लगे|

मैं: मैं कल वापस जा रहा हूँ ना इसलिए आपकी मम्मी उदास हैं|

नेहा: चाचू... आप ...वापस ....नहीं ....आओगे ?

नेहा ने किसी भोले बच्चे की तरह पुछा| मैंने न में सर हिला दिया और ये देख भौजी अपने आप को रोने से नहीं रोक पाईं| मैंने भौजी को गले से लगाया और उनकी पीठ पर हाथ फेरते हुए चुप कराने लगा|

मैं: भौजी प्लीज चुप हो जाओ वरना नेहा भी रोने लगेगी|

भौजी का रोना जारी था और अपनी मम्मी को रोटा हुआ देख नेहा भी सुबकने लगी|

मैं: भौजी आपको मेरी कसम!

मेरी कसम सुन के भौजी ने रोना बंद किया और आगे जो हुआ उसे देख हम दोनों हँस पड़े| नेहा ने रोना शुरू कर दिया था और उसका रोना ऐसा था जैसे फैक्ट्री का साईरन बजा हो, जो हर सेकंड तेज होता जा रहा था| ये दृश्य इतना हास्यजनक था की मैं और भौजी अपना हँसना रोक नहीं पाये| हम दोनों दहाड़े मार-मार के हँसने लगे! अब नेहा को चुप करना था तो मैंने उसे अपने पास बुलाया और उसके आँसूँ पोछे| नेहा को चिप्स बहुत पसंद थे इसलिए मैंने उसे पैसे दिए और चिप्स खरीद के खाने के लिए कहा| भौजी मना करने लगीं पर मैंने फिर भी उसे जबरदस्ती भेज दिया, भौजी की आँखें अब भी नम थीं तो मैंने उनका मन हल्का करना चाहा;

मैं: भौजी आप स्नान कर लो, तरो-ताजा महसूस करोगे| फिर आपको खाना भी तो बनाना है, क्योंकि रसिका भाभी तो कुछ करने वाली नहीं|

भौजी बड़े बेमन से उठीं, ऐसा लगा जैसे उनका मन ही ना हो मुझसे दूर जाने को| तो मैंने उन्हें छेड़ते हुए कहा;

मैं: भौजी वैसे मैंने आपको वादा किया था की मैं पूरे 24 घंटे आपके साथ रहूँगा, अभी तो आप स्नान करने जा रहे हो अगर कहो तो मैं भी चलूँ आपके साथ?

भौजी: ठीक है.... चलो!!!

उनका जवाब सुन के मैं सन्न रह गया, क्योंकि मैंने तो मजाक में ही बोल दिया था| खेर मैं ख़ुशी-ख़ुशी उनके साथ चल दिया, भाभी ने अंदर से कमरा बंद किया और मैं उनके स्नान घर के सामने चारपाई खींच कर बैठ गया, जैसे मैं कोई मुजरा सुनने आया हूँ|


भौजी ने आज हलके हरे रंग की साडी पहनी हुई थी, वो मेरे सामने खड़ी हुईं और अपना पल्लू नीचे गिरा दिया| उनके स्तन के बीचों बीच की लकीर मुझे साफ़ दिखाई दे रही थी, ये देख मेरे हाथ बेकाबू होने लगे और मन किया की भौजी को किसी शेर की भाँती दबोच लूँ| अब भौजी ने अपने ब्लाउज के बटन खोलने चालु कर दिए थे, इसके आगे देखना मेरे लिए मुश्किल था इसलिए मैं उठ खड़ा हुआ| भौजी को लगा की मैं आ कर उनको छूने वाला हूँ इसलिए वो मुस्कुरा दीं पर मैं उनकी तरफ बढ़ा ही नहीं और वहीँ खड़े-खड़े बोला;

मैं: भौजी मैं जा रहा हूँ|

ये सुन कर भौजी अचरज में पड़ गईं|

भौजी: क्यों?

मैं: आपको इस तरह देख के मेरा कंट्रोल छूट रहा है, मैं ये सब आज रात के लिए बचाना चाहता हूँ|

पर फिर भौजी ने ऐसी बात बोली की मैं एक पल के लिए सोच में पड़ गया|

भौजी: और अगर रात को मौका नहीं मिला तो? तुम तो कल चले जाओगे, पता नहीं फिर कभी हम मिलें भी या नहीं!!!

भौजी की ये बात सुन मेरी आत्मा चोटिल मेहसूस कर रही थी, पर उनकी बातों में सच्चाई थी जिसे मैं नकार नहीं सकता था| पर मैं फिर भी हर खतरा उठाने को तैयार था, मैं किसी भी हालत में भौजी की सुहागरात वाला तौफा ख़राब नहीं करना चाहता था| मैं भौजी की ओर बढ़ा और उन्हें अपनी बाँहों में भरा, उनके बदन पर मेरा दबाव तीव्र था और उन्हें ये संकेत दे रहा था की आप चिंता मत करो सब ठीक होगा, आपका सुहागरात वाला सरप्राइज मैं ख़राब नहीं होने दूँगा| अपनी बात को पक्का करने के लिए मैंने उनके होंठों को चूम लिया, परन्तु ये चुम्बन बहुत ही छोटा था! मैं बाहर जाने को मुड़ा;

मैं: भौजी मैं बाहर जा रहा हूँ, आप दरवाजा बंद कर लो|

भौजी: मानु मेरी एक बात मानोगे? (भौजी की आवाज बहुत भारी थी!)

मैं: हाँजी बोलो!

भौजी: कल मत जाओ! कोई भी बहाना बनाके रुक जाओ, मुझे भरोसे है की तुम ये कर सकते हो|

मैं: भौजी कल की वाराणसी की ट्रैन की टिकट बुक है| अगर मैं अपनी बीमारी का बहाना भी बना लूँ तो भी पिताजी मुझे ले जाए बिना नहीं मानेंगे, फिर तो चाहे उन्हें यहाँ तक एम्बुलेंस ही क्यों न बुलानी पड़े!


मेरी बात सुन भौजी एक बार फिर मायूस हो गईं, मैं इस बारे में और बात कर के फिर से भाभी की आँखें नम नहीं करना चाहता था इसलिए मैं सीधा बाहर की ओर निकल लिया और कमरे का दरवाजा सटा दिया| बाहर आके मैंने चैन की साँस ली और वापस छप्पर के नीचे पहुँचा जहाँ नेहा चारपाई पर बैठी चिप्स खा रही थी| मैं नेहा के पास बैठ गया और उसने चिप्स वाला पैकेट मेरी ओर बढ़ा दिया, मैंने भी उसमें से थोड़े चिप्स निकाले और खाने लगा|

जब से मैं आया था तब से मेरा और नेहा का लगाव बहुत बढ़ गया था| राकेश और वरुण तो दूसरे लड़कों के साथ खेलते रहते थे पर नेहा मेरे आस-पास मंडराती रहती| वैसे भी घर में उसे कोई प्यार नहीं करता था तो मैंने उसे थोड़ा ज्यादा ही लाड करना शुरू कर दिया था| नेहा कहानी सुनने के लिए जिद्द करने लगी, वो हमेशा रात को सोने से पहले मुझसे कहानी सुन्ना पसंद करती थी| मैं उसे मना नहीं कर पाया और चूहे, कबूतरों और गिलहरी की कहनी बना के सुनाने लगा| कहानी सुनते-सुनते नेहा मेरी गोद में ही सर रख के सो गई और मैं उसके सर पर हाथ फेरने लगा| तभी उस अकड़ू ठाकुर की बेटी माधुरी वहाँ आ गई| वो मेरे सामने पड़ी चारपाई पर बैठ गई और भौजी के बारे में पूछने लगी, मैंने उसे बताया की भाभी नहाने गई हैं, अभी आती होंगी पर ये तो उसका बहाना था बात शुरू करने का| अब उसने एक-एक कर अपने सवाल मेरे ऊपर दागे;

माधुरी: तो आप दिल्ली में कहाँ रहते हो?

मैं: डिफेन्स कॉलोनी

माधुरी: आपके स्कूल का नाम क्या है?

मैं: मॉडर्न स्कूल

माधुरी: आपके विषय कौन-कौन से हैं?

मैं: एकाउंट्स और मैथ्स

माधुरी: आपकी कोई गर्लफ्रेंड है?

मैं: मेरी कोई गर्लफ्रेंड नहीं है न ही मैं बनाना चाहता हूँ| आप अपने बारे में भी तो कुछ बताइये?

माधुरी: मैं राजकीय शिक्षा मंदिर में पढ़ती हूँ, दसवीं में हूँ मेरा भी कोई बॉयफ्रेंड नहीं है|


उसने बिना मेरे पूछे ही अपने बॉयफ्रेंड के बारे में बताया जो मुझे बड़ा अजीब लगा! वो मुझसे घुलने-मिलने की कोशिश कर रही थी और कुछ ज्यादा ही मुस्कुरा रही थी| दिमाग कह रहा था की; 'तुम जो इतना मुस्कुरा रही हो, क्या बात है जिसे छुपा रही हो?'

खैर वो आगे भी कुछ न कुछ पूछती रहती और मैं उसके सवालों का जवाब बहुत ही संक्षेप में देता क्योंकि मेरी उसमें कोई दिलचस्पी नहीं थी| मेरा व्यक्तित्व ही बड़े मौन स्वभाव का है, मैं बहुत काम बोलता हूँ और उसका व्यक्तित्व ठीक मेरे उलट था| मुझे ऐसा लगा जैसे वो मेरी और आकर्शित महसूस कर रही हो, तभी उसने सबसे विवादित प्रश्न छेड़ दिया;

माधुरी: तो मानु जी, आपके शादी के बारे में क्या विचार हैं|

मैं: शादी? अभी?

मेरा इतना बोलना था की भौजी भी अपने बाल पोंछते हुए आ गईं, वो हमें बातें करते हुए देख रही थी और जल भून के राख हो चुकीं थी| वो मेरे पास आई और कुछ इस तरह से खड़ी हुई की उनकी पीठ माधुरी की ओर थी| उन्होंने मुझे बड़े गुस्से से देखा और नेहा को मेरी गोद में से उठा के अपने घर की ओर चल दीं| मैं समझ गया की बेटा आज तेरी शामत है! मैं भौजी के पीछे एक दम से तो जा नहीं सकता था वरना माधुरी को शक हो जाता| तो मैं मौके की तलाश में था की कैसे माधुरी को यहाँ से भगाऊँ? मन बड़ा बेचैन हो रहा था, मैं एकदम से खामोश हो गया था पर माधुरी थी की पटर-पटर बोले जा रही थी| मेरी कोई भी प्रतिक्रिया ना पते हुए उसने खुद ही बात खत्म की;

माधुरी: लगता है आपका बात करने का मन नहीं है|

मैं: नहीं ऐसी कोई बात नहीं, दरअसल मुझे कल वापस निकलना है तो उसकी पैकिंग भी करनी है|

माधुरी: ओह! मुझे लगा आप को मैं पसंद नहीं! (माधुरी ने बुदबुदाते हुए कहा) मैं शाम को आती हूँ तब तक तो आपकी पैकिंग हो जाएगी ना?

मैं: हाँ

माधुरी उठ के चल दी पर एक पल के लिए मैं उसकी कही बात को सोचने लगा| आखिर उसका ये कहना की "मुझे लगा आप को मैं पसंद नहीं! " का मतलब क्या था? पर अभी मैं इस बात को ज्यादा तवज्जो नहीं दे सकता था क्योंकि भौजी नाराज थीं| मैं तुरंत भौजी के पीछे उनके घर की ओर भागा, वहाँ पहुँच के देखा तो भौजी अपनी चारपाई पर बैठी हैं और नेहा दूसरी चारपाई पर सो रही है|


मुझे अपने सामने देख भौजी ने अपनी नाराजगी जाहिर करते हुए कहा;

भाभी: कैसी लगी माधुरी?

मैं: क्या? (मैंने हैरान होते हुए कहा|)

भाभी: बड़ा हँस-हँस के बात कर रहे थे उससे?

मैं: भौजी ऐसा नहीं है, आपको ये लग रहा है की वो मुझे अच्छी लगती है और हमारे बीच में वो सब.... (मैंने अपनी बात अधूरी छोड़ दी|)

भाभी: और नहीं तो!

मैं: भौजी आप पागल तो नहीं हो गए? मैं सिर्फ और सिर्फ आपसे प्यार करता हूँ| मैं वहाँ नेहा को कहानी सुना रहा था, जिसे सुनते हुए नेहा सो गई और तभी माधुरी वहाँ आ घमकी, मैंने उसे नहीं बुलाया था वो अपने आप आई थी और हँस-हँस के वो बोल रही थी, मैं तो बस संक्षेप में उसकी बातों का जवाब दे रहा था| मेरे दिल में उसके लिए कुछ भी नहीं है|

भाभी: मैं नहीं मानती!!!

पर भौजी को मेरी बात पर विश्वास नहीं था|

मैं: ठीक है, मैं ये साबित करता हूँ की मैं आपसे कितना प्यार करता हूँ|

उनकी बात सुन कर मुझे बड़ा ताव आया, भला वो कैसे मुझसे ऐसा कह सकतीं हैं? उनकी हिम्मत कैसे हुई मुझ पर शक करने की?! भौजी के शब्द मुझे शूल की तरह चुभ रहे थे, इसलिए मैं भाग के रसोई तक गया और वहाँ से हँसिया उठा लाया| मैं वो हँसिया भौजी को दिखाते हुए बोला;

मैं: मैं अपनी नस काट लूँ तब तो आपको यकीन हो जायेगा की मैं आपसे कितना प्यार करता हूँ?

मैंने गुस्से से कहा तो भौजी भागती हुई मेरे पास आई और मेरे हाथ से हँसिया छुड़ा के दूर फैंक दिया;

भौजी: मानु मैं तो मजाक कर रही थी, मुझे पता है की तुम मेरे आलावा किसी से प्यार नहीं करते!

मैं: भौजी दुबारा ऐसा मज़ाक मत करना वरना आप मुझे खो.....

मैं अभी अपनी बात पूरी भी नहीं कर पाया था की भौजी ने अपना हाथ मेरे होंठों पे रख दिया और मुझे गले लगा लिया|


भौजी के गले लगे हुए मुझे एहसास हुआ की अभी जो मैं कदम उठाने जा रहा था वो क्या था? अगर मुझे कुछ हो जाता तो मेरे माँ-पिताजी का क्या होता? मैंने आखिर उनके बारे में कुछ सोचा क्यों नहीं? क्या इसी को प्यार कहते हैं?! फिल्मों में, कहानियों में, किताबों में मैंने जो भी पढ़ा उसके अनुसार तो यही प्रेम है पर वास्तविकता में जिन लोगों को मेरे द्वारा उठाये इस कदम से धक्का लगता, दर्द होता या वो टूट जाते तो? क्या प्रेम में सिर्फ और सिर्फ अपना ही स्वार्थ देखा जाता है? अपने परिवार, दोस्तों के बारे में सोचना गलत है?


खेर हम अलग हुए पर भोजन के लिए अब बहुत देर हो चुकी थी, इसलिए भौजी ने जल्दी-जल्दी भोजन बनाना शुरू किया| मैं भी चुपचाप उनके सामने बैठा उन्हें निहारने में लगा था| भौजी बीच-बीच में मेरी ओर देख के मुस्कुरा रही थी, पर मेरा दिमाग रात के उपहार के लिए योजना बना रहा था| मन में एक बात की तसल्ली थी तो एक बात का डर भी| तसल्ली इस बात की कि घर में लोग होने कि वजह से कम से कम चन्दर भैया तो भौजी के साथ नहीं सोयेंगे और डर इस बात का कि अगर रात को फिर से अजय भैया और रसिका भाभी का झगड़ा शुरू हो गया तो घर के सब लोग उठ जायेंगे और मेरे सरप्राइज की धज्जियाँ उड़ जाएंगी|

दोपहर के भोजन के बाद घर के सब लोग खेत में काम करने जा चुके थे, केवल मैं, भौजी, नेहा और रसिका भाभी ही रह गए थे| रसिका भाभी तो हमेशा कि तरह एक चारपाई पर फ़ैल के सो गईं और नेहा मेरे साथ चिड़िया उड़ खेलने लगी| कुछ देर में भौजी भी हमारे साथ खेलने लगीं;

मैं: नेहा बेटा एक बात तो बताओ, आप अशोक भैया, अजय भैया, गट्टू भैया को चाचा कहते हो और मुझे चाचू क्यों?

ये सवाल सुन कर नेहा भौजी की तरफ देखने लगी और मैं समझ गया की भौजी ने ही उसे ये सिखाया है पर इसका कारन मैं नहीं जानता था|

मैं: हम्म्म...तो आपने नेहा से मुझे चाचू कहने को कहा था? (मैंने मुस्कुराते हुए भौजी से पुछा|)

भौजी: इस घर में नेहा से सबसे ज्यादा प्यार आप ही करते हो, तो सबसे ज्यादा प्यार वो आपको ही देगी ना?!

भौजी की इस बात के दो अर्थ थे, एक अर्थ तो नेहा से जुड़ा था और दूसरा अर्थ हम दोनों के प्रेम से जुड़ा था| भौजी की ये बात सुन हम दोनों ही मंद-मंद हँस पड़े, इतने में नेहा चारपाई पर खड़ी हो गई और आ कर मेरे गले लग गई|

मैं: I Love You बेटा!

मैंने नेहा को कस कर जकड़ते हुए कहा, पर भौजी और नेहा इसका मतलब नहीं समझे थे और मेरी तरफ हैरानी से देख रहे थे, तो मैंने अपनी बात हिंदी में दोहराई;

मैं: मतलब मैं आपसे बहुत प्यार करता हूँ!

मेरी बात सुन नेहा के चेहरे पर ख़ुशी की लहार दौड़ गई पर भौजी को अपनी ही बेटी से एक मीठी सी जलन हुई;

भौजी: (मेरे कान में खुसफुसाते हुए) अच्छा? मुझसे प्यार नहीं करते?! (भौजी ने मुस्कुराते हुए कहा|)

मैं: आपको तो बहुत बार कहा है|

मेरा जवाब सुन भौजी के चेहरे पर शर्म की लाली आ गई| तभी नेहा बोली;

नेहा: चाचू...मैं ...भी...आपको....बहुत....प्यार...करती...हूँ!

नेहा ने प्यार से मुस्कुराते हुए कहा| मैंने ये बात गौर की थी की वो मुझसे बात करते समय शब्दों को थोड़ा खींच-खींच कर बोलती है|

मैं: भौजी नेहा इस तरह शब्दों को खींच-खींच कर क्यों बोलती है?

मैंने चिंता जताते हुए कहा|

भौजी: (मुस्कुराते हुए) मेरी देखा-देखि ये भी तुम से हिंदी में बात करना चाहती है|

भौजी की बात सुन कर मुझे नेहा पर और प्यार आने लगा, एक छोटी सी बच्ची जो गाओं में रही हो और वहाँ की बोली-भाषा बोलती हो वो अचानक हिंदी बोलने लगे वो भी सिर्फ मेरे लिए, इससे बड़ी बात कोई नहीं हो सकती| उम्र में बड़ा बच्चा तो दोनों भाषा आराम से बोल सकता है पर एक होती बच्ची के लिए ये इतना आसान नहीं होता| नेहा बड़ा सोच-सोच कर, शब्दों को तोड़-तोड़ कर बोलती थी और मैंने सोच लिया की मैं उसकी हिंदी ठीक करके रहूँगा;

मैं: बेटा अब से आप सब के साथ हिंदी में ही बात करो ताकि आपकी हिंदी अच्छी हो जाये| फिर जैसे आप आसानी से यहाँ की भाषा बोलते हो वैसे ही आप हिंदी भी बोल पाओगे|

ये सुन कर भौजी और नेहा मुस्कुराने लगे| नेहा मेरी गोद में सर रख के लेट गई और मैं भौजी की गोद में सर रख कर लेट गया| हम तीनों खामोश थे, नेहा की आँख लग गई थी और मैं भौजी को टकटकी बाँधे देख रहा था| तकरीबन 1 घंटा ही बीता था की माधुरी फिर से आ गई, उसे देख मैं भौजी से अलग हो कर बैठ गया ताकि वो हम दोनों पर शक न करने लगे|

देखने में माधुरी बुरी तो नहीं थी...ठीक ही थी, पर मेरे लिए तो भौजी ही सबकुछ थी| उसे सामने देख के मैं और भाभी दोनों ही नाखुश थे, चूँकि वो उस अकड़ू ठाकुर की बेटी थी इसलिए भौजी उसे कुछ कह भी नहीं सकती थी| इसलिए भौजी उठ के स्वयं चली गई और साथ-साथ नेहा को भी ले गई| मुझे उनका ये व्यवहार ऐसा लगा जैसा की फिल्म में जब लड़के वाले लड़की देखने जाते हैं तो अधिकतर माँ बाप लड़का-लड़की को अकेला छोड़ देते हैं ताकि वो आपस में कुछ बात कर सकें| एक बार फिरसे मेरा मन

विचिलित था क्योंकि मुझे पता था की भौजी का मूड फिर ख़राब हो गया है| मैं अभी यही सोच रहा था की माधुरी मेरे पास आ कर बैठ गई और पूछने लगी;

माधुरी: तो मानु जी पैकिंग हो गई आपकी?

मैं: हाँ

माधुरी: अब कब आओगे?

मैं: पता नहीं.... शायद अगले साल|

माधुरी: अगले साल?


जिस तरह से उसने प्रतिक्रिया दी थी उससे मैं हैरान था, उसे बड़ी चिंता थी मेरे अगले साल आने की? इस से पहले की वो अपना अगला सवाल पूछ पाती, नेहा भागती हुई आई और मुझे अपने साथ खींच के ले जाने लगी| माधुरी ने कई बार पुछा की कहाँ ले जा रही है? परन्तु नेहा बस मुझे खींचने में लगी हुई थी, मैंने माधुरी से इन्तेजार करने को कहा और नेहा के पीछे चल दिया| नेहा मेरी ऊँगली पकड़ के खींच के मुझे भुट्टे के खेत में ले आई| मैं हैरान था की भला उसे यहाँ क्या काम? जब आगे जा कर देखा तो भौजी भुट्टे के खेत में बीचों-बीच बैठी है| उन्हें इस तरह बैठे देख पहले तो मैं थोड़ा परेशान हुआ, पर फिर नेहा ने इशारे से ऊपर लगी भुट्टे कि एक बाली मुझे तोड़ने के लिए कहा, मैंने उसे ये बाली तोड़ के दे दी और भौजी से पुछा;

मैं: आप यहाँ क्या कर रहे हो?

भौजी: (मुस्कुराते हुए) तुम्हारा इन्तेजार!!!

मैं: भौजी धीरे बोलो कोई सुन लेगा?

भौजी: यहाँ कोई नहीं है, सभी तालाब के पास वाले खेत में काम कर रहे हैं| चाचा-चाची भी वहीं हैंअब बोलो? (भौजी जैसे सब सोच कर बैठीं थी|)

मैं: और वो जो वहाँ बैठी है? (मेरा मतलब माधुरी से थे)

भौजी: तुम्हारी वजह से उसे कुछ नहीं कहती वरना....

मैं: (भौजी की बात काटते हुए) मेरी वजह से? मैंने कब रोक आपको?

भौजी: मैं देख रही हूँ वो तुम्हें पसंद करने लगी है!!!

भौजी ने मेरी टाँग फिर से खींचते हुए कहा जो मुझे जरा भी रास ना आया, इसलिए मैं चिढ़ते हुए बोला;

मैं: आपने फिर से शुरू कर दिया?

इतना कहके मैं गुस्से में अपने पाँव पटकता हुआ वापस आ गया, पता नहीं क्यों पर भौजी की इस बात पर हमेशा मिर्ची लग जाती थी| मैं वापस आ कर माधुरी के सामने वाली चारपाई पर सर झुकाये बैठ गया|

माधुरी: कहाँ गए थे आप?

मैं: नेहा को भुट्टे कि बाली तोड़ के देने गया था|

माधुरी: वो उसका क्या करेगी?

मैं: पता नहीं.. शायद खेलेगी|

माधुरी: आपके बाल खुश्क लगते हैं, अगर कहो तो मैं तेल लगा दूँ?

माधुरी ने एकदम से बात बदलते हुए कहा पर मैं उसकी बात सुन के हैरानी से उसे देखने लगा| आखिर ये मेरे बालों में तेल क्यों लगाना चाहती है? क्या ये मुझसे प्यार करती है? या इसके बाप ने इसे सीखा-पढ़ा के मुझे फँसाने भेजा है? मुझपर कब से सुर्खाब के पर लग गए की ये मुझमें दिलचस्पी ले रही है? ये सभी सवाल मेरे जहन में एक साथ उठने लगे और मैंने बड़े रूखे मन से जवाब दिया;

मैं: नहीं शुक्रिया|

एक पल को तो लगा की मैं उससे पूछ लूँ की आप मुझ में इतनी दिलचस्पी क्यों ले रहे हो? लेकिन फिर मैंने सोचा कि अगर मैं गलत निकला तो खामखा बेइज्जती हो जाएगी| अभी मैं ये सोच ही रहा था की भौजी आ गईं;

भौजी: अरे माधुरी शाम हो रही है, ठकुराइन तुझे ढूँढती होंगी| (भौजी ने झूठ बोला|)

माधुरी: पर मैं तो उन्हें बता के आई हूँ| (माधुरी ने तपाक से जवाब दिया|)

भौजी: तेरे पापा भी आ गए होंगे|

अब ये सुनते ही उसकी हवा टाइट होगी और वो बोली;

माधुरी: अरे बाप रे! भौजी मैं बाद में आती हूँ|

न जाने क्यों अपने बाप का नाम सुनते ही वो भाग खड़ी हुई और उसके जाते ही मैंने चैन कि साँस ली|

भौजी: अब तो खुश हो ना? (भौजी हँसते हुए बोलीं, मानो उन्होंने मेरी इज्जत बचा ली हो!)

मैं: (एक लम्बी साँस लेते हुए) हाँ!!!

इतने में एक-एक कर सभी घरवाले आ गए और उन सबको देख अब मुझे सच में चिंता होने लगी थी की अगर रात का सरप्राइज फ्लॉप हो गया तो भौजी का दिल टूट जायेगा, मैं किसी भी कीमत पे उनका दिल नहीं तोडना चाहता था| मन में बस एक ही ख़याल आ रहा था की किस्मत कभी भी किसी को दूसरा मौका नहीं देती, तो मुझे ही मौका पैदा करना होगा| मगर कैसे?


शाम होने को आई थी, सभी लोग घर लौट आये थे| पिताजी, चन्दर भैया, अशोक भैया, अजय भैया और बड़के दादा एक साथ बैठे कल कितने बजे निकलना है उसके बारे में बात कर रहे थे| इधर भौजी खाना बनाने में व्यस्त थीं, मैं ठीक उनके सामने बैठा था परन्तु अब समय था प्लान बनाने का| इसलिए मैं चुप-चाप उठा और पिताजी के पास जा कर बैठ गया| किसी भी प्लान को बनाने से पहले हालत का जायज़ा लेना जरुरी होता है इसलिए मैं उनकी बात सुनने के लिए वहीं चुप-चाप बैठ गया| पिताजी ने अभी तक मेरे और उनके बीच हुई बात का जिक्र किसी से भी नहीं किया था, वहाँ हो रही बातों से ये तो साफ़ था की आज सब लोग छत पर नहीं बल्कि रसोई के पास वाली जगह पर ही सोने वाले हैं| अब मुझे सब से मुख्य बातों पर ध्यान देना था;

1. रसिका भाभी को अजय भैया से दूर रखना और

2. चन्दर भैया को भौजी से दूर रखना|

अगर इनमें से एक भी काम ठीक से नहीं हुआ तो भौजी का दिल टूट जायेगा| अब समय था मुझे अपनी पहली चाल चलने का, मैं तुरंत भौजी के पास पहुँचा और उनसे रसिका भाभी के बारे में पूछा| ये सवाल सुन के भौजी थोड़ा हैरान हुईं क्योंकि मैंने आज तक कभी भी किसी से भी रसिका भाभी के बारे में नहीं पूछा था| भौजी ने मुझे घूरते हुए बताया की रसिका भाभी बड़े घर में अपने कमरे में सो रही हैं| मुझे ये निश्चित करना था की रसिका भाभी बड़े घर में ही रहे| इसलिए मैं उनके पास पहुँचा और उन्हें जगाया, जब मैंने उनके सोने का कारन पूछा तो उन्होंने बताया की उनका बदन टूट रहा है| खेर मैंने बात को बदला और हम गप्पें हाँकने लगे, भाभी को लगा की शायद मैं कल जा रहा हूँ तो उनसे ऐसे ही आखरी बार बात करने आया हूँ| इधर भोजन का समय हो चूका था और मुझे अपनी दूसरी चाल चलनी थी| सबसे पहले मैंने रसिका भाभी से जिद्द की कि आज हम एक साथ ही भोजन करेंगे, एक साथ भोजन का मतलब था कि आमने सामने बैठ के भोजन करना साथ मैं तो मैं सिर्फ और सिर्फ अपनी प्यारी भौजी के साथ ही भोजन करता था| ये सुन के रसिका भाभी को थोड़ा अचरज तो हुआ पर मैंने उन्हें ज्यादा सोचने का मौका नहीं दिया और मैं हम दोनों का भोजन लेने रसोई पहुँच गया| इधर मेरी प्यारी भौजी मेरे इस बर्ताव से बड़ी अचंभित थी! मैं खाना लेके रसिका भाभी के पास पहुँच गया और मेरे पीछे-पीछे नेहा भी अपनी थाली ले के आ गई| भोजन करते समय भी रसिका भाभी और मैं गप्पें मारते रहे| भोजन समाप्त होने के बाद मैंने रसिका भाभी से उनकी थाली ले ली उन्होंने काफी मना किया पर मैं अपनी जिद्द पर अड़ा रहा| मैं जल्दी से थाली रख के हाथ मुँह धोके अजय भैया को ढूँढने लगा, अजय भैया मुझे कुऐं के पास टहलते हुए दिखाई दिए| मैं उनके पास पहुँचा और थोड़ा इधर-उधर की बातें करने लगा| बातों ही बातों में मैंने रसिका भाभी की बिमारी की बात छेड़ दी| मेरी बात सुन के भैया को तो जैसे कोई फरक ही नहीं पड़ा, मुझे मेरा प्लान चौपट होता दिख रहा था क्योंकि मुझे उम्मीद थी कि शायद ये बात जान के अजय भैया रसिका भाभी के आस-पास ना भटकें| अब बारी थी चन्दर भैया को सेट करने की, मैं उनके पास पहुँचा तो देखा की वो तो सोने की तैयारी कर रहे थे| उन्हें देख के लग रहा था की थकान उनके शरीर पर भारी हैं| घर के सभी पुरुष भोजन कर चुके थे और रसिका भाभी खाना खाते ही लेट चुकीं थी| मुझे छोड़के सभी पुरषों के बिस्तर आस-पास लगे हुए थे और वे सभी अपने-अपने बिस्तर पर लेट चुके थे| पिताजी, बड़के दादा सो चुके थे, अजय भैया की चारपाई चन्दर भैया के पास ही थी और वो भी लेट चुके थे|


अब केवल घर की स्त्रियाँ ही भोजन कर रहीं थी, मुझे कैसे भी कर के भौजी तक ये बात पहुँचानी थी की वे आज रात के सरप्राइज के लिए तैयार रहें| इसलिए मैं टहलते-टहलते छप्पर के नीचे पहुँच गया, माँ और मधु भाभी भोजन समाप्त कर उठ रहीं थी| बड़की अम्मा भी लगभग उठने ही वालीं थी और भौजी बड़े आराम से भोजन कर रहीं थी| जब सब भोजन कर के चले गए तब मैंने भौजी को आँख मारते हुए कहा;

मैं: भौजी आपका तौफा बिलकुल तैयार है|

भौजी: (खुश होते हुए) अच्छा?

मैं: मैं सोने जा रहा हूँ, जब आपको लगे सब सो गए हैं तब आप मुझे उठा देना|

भौजी: ठीक है!

भौजी के चेहरे से उनकी प्रसन्ता झलक रही थी और उन्हें खुश देख मैं भी खुश था| मैं अपने बिस्तर पर आके लेट गया और ऐसा दिखाया की जैसे मैं घोड़े बेच के सोया हूँ पर असल में तो मैं उस क्षण की प्रतीक्षा कर रहा था जब भौजी मुझे उठाने आएं| रात के ग्यारह बजे भौजी मुझे उठाने आईं, मैं चुप-चाप उठा और उनके पीछे-पीछे चल दिया|

जारी रहेगा भाग 2 में...
 
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aman rathore

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:superb: Amazing update rocky bhai,
behad hi shandaar aur lajawab update hai bhai,
madhuri to haath dho kar maanu ke pichhe pari hui hai,
idhar maanu ke paas ek din ka hi samay hai gaon mein,
bhauji ke surprise ka usne saari taiyari kar li hai,
ab dekhte hain ki aage kya hota hai,
Waiting for next update
 

kamdev99008

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pyar mein milan ke liye mauke sanyog se bante hain...........isliye unhein chhodna nahi chahiye...........

lekin manu ke sath sanyog fir bhi ho hi gaya,,,,,,,,, thodi koshishon ke bad

..........................
agle episode (suhagrat) ko meine jab pahle padha tha tab bhi apki lekhni ka kayal ho gaya tha
aur ab to apne kafi badlav karke.........kahani ko aur bhi umda bana diya hai

keep it up

maanu bhai mere comments kam a rahe hain to ye mat samajhna ki mera interest nahi..............
mein man lagakar padh raha hu.............
lekin padhi hui hai to comment karne ke liye samajh nahi aata kya likhu...........
sare .......lagbhag sare hi sawalon ke jawab pata hain........isliye sawal nahi karta
aur kisi jawab ko open kar diya to........ kahani ka maja kam ho jayega........naye readers ke liye

update dete rahein...........
har update padhunga.....................
pritam dada ke to 225 updates padhe the ..........dobara se.................
akhirkar........... meri favourite kahaniyan hain ye
 

Rockstar_Rocky

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aur ab to apne kafi badlav karke.........kahani ko aur bhi umda bana diya hai

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शुक्रिया सर जी!
आपके Likes बराबर मिल रहे हैं! एक और बाद आपको धन्यवाद की आप कहानी की गोपनीयता को बनाये हुए हैं! :)
 

Rockstar_Rocky

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:superb: Amazing update rocky bhai,
behad hi shandaar aur lajawab update hai bhai,
madhuri to haath dho kar maanu ke pichhe pari hui hai,
idhar maanu ke paas ek din ka hi samay hai gaon mein,
bhauji ke surprise ka usne saari taiyari kar li hai,
ab dekhte hain ki aage kya hota hai,
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:thank_you: :dost:
badhiya .............................mast...................................:yourock:


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Naik

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Superb duper update brother
Tow aaj manu bhai suhag raat mana lenge ya isme bhi koyi twist h dekhte h agle update m kia hota h
 

Rahul

Kingkong
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wonderfull update bhaiya ji
 
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