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Incest एक परिवार की आत्मकथा (हिंदी संस्करण )

Naik

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अनंगवती नीचे आयी तो उसका कमरा पूरा साफ और सजा हुआ था। अनंगवती ये देखके खुश हुई और मुस्कुराती हुई बिस्तर पर लेट गयी। वो सोचती रही कल रात से अभी तक की सभी घटनाओं को और कुछ ही देर में सुलोचना ने आवाज़ देके उसके ख्यालों में खलल डाला।
अनंगवती अपनी माँ के पास नीचे चली गयी और उधर कबीर गाड़ी भगा रहा था उसे जल्दी घर पहुंचना था की तभी उसका मोबाइल बजा।
फ़ोन स्वीटू का था जिसे कबीर ने उठाया और बात की।
कबीर - हाँ बेटू बोल...
स्वीटू - कहाँ रह गए आप... स्कूल भी जाना है।
कबीर - हाँ आया... बस रास्ते में हूँ...
स्वीटू - ठीक है...
कबीर फटाफट घर पहुंचा और तैयार होके नीचे आया। कबीर और स्वीटू दोनों ने नाश्ता किया और निकल गए स्कूल के लिए। लेकिन कबीर को पहले सारा को भी लेना था तो उसने अपने दूसरे घर की तरफ गाड़ी मोड़ दी।
स्वीटू कबीर को देख के बोली -
स्वीटू - ये कहाँ जा रहे हो... स्कूल नही चलना क्या।
कबीर - हाँ स्कूल ही जा रहे हैं मगर पहले तेरी मैडम तो उठा लें। वो साथ में ही आती जाती हैं।
स्वीटू - अच्छा समझ गयी।
कबीर - बढ़िया है।
कबीर ने घर के बाहर गाड़ी लगायी और बोला -
कबीर - स्वीटू तू बैठ... मैं लेके आया।
स्वीटू - ओके
कबीर घर गया और सारा को आवाज़ लगायी।
सारा जैसे ही बाहर आयी, वो कबीर के गले लग गयी तो कबीर बोला -
कबीर - अभी टाइम नही है... स्कूल चल वहीं कुछ समझ लेंगे।
सारा - जी मालिक।
कबीर - जल्दी कर मैं गाड़ी में इंतेज़ार कर रहा हूँ और स्वीटू भी आयी है।
सारा - वो आपकी बहन है ना मालिक।
कबीर - हाँ क्यों...
सारा - तो वो मेरी मालकिन हुई क्या।
कबीर - नही... अभी तक तो नही... फिलहाल तो तू मेरी है। अब जा और वो खिमार और स्कर्ट पहन के आ जा जल्दी।
सारा - जी मालिक।
सारा तैयार होके आयी तो स्वीटू उसे हैरानी से देख रही थी। सारा का ये हुलिया और नाम मात्र के कपड़ों में हिलते उसके स्तन और चूतड बड़े ही अजीब लग रहे थे मगर वो देखते ही समझ गयी की ये कबीर का किया धरा है ।
स्वीटू और सारा ने एक दूसरे को नमस्ते किया और तीनों स्कूल निकल गए ।
उधर स्कूल में पहुँच के स्वीटू और कबीर ने क्लास में जाके अपना बैग रखा । स्वीटू असेंबली में चली गयी और कबीर प्रिंसिपल के पास गया ।
कबीर - नमस्ते सर ।
प्रिंसिपल - आओ बेटा कबीर... बताओ कुछ काम था क्या...
कबीर - सर वो सारा मैडम को कल कुछ बच्चे छेड़ने की कोशिश कर रहे थे । मैं तो नही जानता कौन थे और शायद मैडम भी नही जानती उन्हें । मैडम ने मुझे बताया इस बारे में तो मैंने उन्हें उनके मुसलमानी लिबास में आने को कहा है ।
प्रिंसिपल - मगर बेटा... हमारे यहाँ तो... कोई भी टीचर ये सब नही पहनता है ।
कबीर - सर अब मैडम काफी परेशान थी तो बोल दिया । आप बस स्कूल का देख लो बाकी मामा को मैं संभाल लूंगा ।
प्रिंसिपल - पक्का ना बेटा... मेरी नौकरी को खतरे में मत डलवा देना ।
कबीर - अरे नही सर... मेरे रहते आपको कुछ नही होगा ।
प्रिंसिपल - ठीक है बेटा ।
बाहर असेंबली शुरू होने वाली थी और कबीर ने सारा को फ़ोन करके अपनी क्लास में बुलाया ।
सारा के आते ही कबीर बोला -
कबीर - मैंने बात कर ली है प्रिंसिपल से । अब से तू रोज़ इन कपड़ों में स्कूल आ सकती है । कोई तुझे कुछ नही बोलेगा ।
सारा - थैंक यू मालिक ।
कबीर - चल आजा अब अपना काम शुरू कर ।
सारा ने अपने बदन को कपड़ों से आज़ाद किया और कपड़े टेबल पे रख के कबीर के पास आयी और उसे चूमने लगी ।
कबीर ने सारा को बोला -
कबीर - रुक जा सारू । आज कुछ अलग करते हैं कुछ नया...
सारा बस चुप चाप कबीर को देखती रही । कबीर उसका हाथ पकड़ के बाहर लाया और उसे नीचे ले जाने लगा ।
सारा को घबराहट होने लगी वो डरते हुए बोली -
सारा - मालिक... नीचे...
कबीर - हाँ... बड़ा मज़ा आएगा... असेंबली भी पास से देखेंगे...
सारा - मालिक... अगर किसी ने देख लिया... मेरे कपड़े भी ऊपर हैं...
कबीर - कुछ नही होगा... चल जल्दी...
कबीर सारा को लेके नीचे आया और बिल्डिंग के एक कोने में सारा के साथ छुपके खड़ा हो गया ।
कबीर - देख यहाँ से हम सबको देख सकते हैं और किसी को पता भी नही है की हम यहाँ है । चल शुरू कर...
सारा को डर तो लग रहा था मगर उसे कबीर की बात भी माननी थी तो उसने कबीर को चूमना शुरू किया ।
सारा कबीर के होठों को चूमती जा रही थी और कबीर उसके स्तनों को और उसकी गांड को दबा रहा था । कबीर ने उसकी जीभ को अपने मुँह में लिया और उसे अपने मुँह में भरके चूमने लगा ।
सारा के मुँह की लार कबीर के मुँह में जा रही थी और वो उसे पी रहा था । फिर कबीर ने उसके मुँह को छोड़ा और उसके स्तनों को दबाते हुए उसकी गार्डन चाटने लगा ।
सारा उम्म... उम्म कर रही थी । कबीर ने उसके स्तनों को ज़ोर ज़ोर से मसलना शुरू किया और उसकी गार्डन को दांतो से काटना शुरू किया ।
सारा को दर्द हो रहा था और उसे मज़ा भी आ रहा था । वो दर्द में कराहने लगी ।
सारा - ओह्ह्ह मालिक... धीरे काटो... दर्द हो रहा है... आह मालिक...
मगर कबीर ने उसकी एक ना सुनी और सारा की गार्डन पे अपने लाल लाल निशान छोड़ दिए ।
इस तरह पूरे स्कूल के इतने नज़दीक और बेपर्दा खड़े होकर चुदाई का आनंद लेने से सारा की चूत भी दिल खोल कर बह रही थी । वो कभी कबीर को देखती जो मस्ती में उसके नंगे बदन के एक एक अंग को निचोड़ रहा था तो कभी अपने स्कूल के सभी टीचर्स ओर बच्चों को देखती । सारा का मज़ा और उसकी हवस बढ़ती ही जा रही थी ।
कबीर ने सारा के स्तन मुँह में भरे और उन्हें दबा दबा के चूसने लगा । सारा उसके सर पे हाथ फेरते हुए उसे अपनी छाती पर दबा रही थी और आह... मालिक... और चूसो मालिक बोलती जा रही थी ।
कबीर ने सारा को नीचे बिठाया और उसके पूरे चेहरे पे अपना लंड रागड़ने लगा ।
कबीर अपना लंड पकड़ के सारा के गालों पे मारता तो कभी उसके होठों पे । सारा से भी रहा ना गया और उसने मुँह खोल कर कबीर का लंड अपने मुँह में भर लिया और उसे चूसने लगी । सारा कबीर का लंड अपने गले तक लेके चूस रही थी और सब तरफ बस ऑ... ऑ... ऑ... और उम्म... उम्म... की आवाज़ें गूँज रही थी । कबीर का पूरा लंड सारा की थूक से सन गया था और वो थूक सारा के मुँह से नीचे गिरके उसके बदन को चमका रहा था ।
कबीर अपनी आँखें बंद किये चुसाई का मज़ा ले रहा था और बोल रहा था -
कबीर - आह... मेरी रंडी रानी... ओह्ह्ह... सारू रांड... चूसती रह... वाह... क्या मक्खन जैसा मुँह है तेरा.... आह... मेरा लंड फिसल फिसल जा रहा है... उफ्फ्फ...
कबीर झड़ने वाला था तो उसने सारा को खड़ा किया और नीचे बैठके एक टांग अपने कंधे पर रखी और उसकी चूत चाटने लगा ।
सारा चिल्लायी - आह मालिक... खा जाओ मेरी चूत को... बहुत रोती है साली... ओह्ह्ह मालिक... और चाटो उसे...
कबीर ने अपनी जीभ उसकी चूत में डाली और उसे लंड की तरह अंदर बाहर करने लगा । सारा ने कबीर का सर कस कर पकड़ लिया और आँखें बंद कर ली ।
कबीर अपनी जीभ से उसकी चूत को चोदते हुए उसकी गांड पे मारता भी जा रहा था ।
सारा इस मीठे मीठे दर्द के एहसास में मरी सी जा रही थी । कबीर ने सारा की गांड में ऊँगली घुसाई तो सारा एक दम से उछल गयी और कबीर की ज़ुबान और अंदर तक उसकी चूत में चली गयी ।
सारा का इस हालत में खड़े रहना मुश्किल हो रहा था । वो झड़ने के करीब थी और उसके पैर काँपने लगे थे । कबीर ने सारा की चूत के दाने को ज़ोर से काटा तो सारा दर्द में चिल्लायी -
सारा - आअह्ह्ह्ह... मालिक... मर गयी... या अल्लाह... बचाओ मुझे... धीरे मालिक... आह...
सारा को जैसे ही होश आया उसकी गांड फटने लगी की किसी ने उसकी चीख तो नही सुन ली । मगर उसकी किस्मत अच्छी थी की असेंबली के शोर में उसकी आवाज़ दब गयी थी ।
कबीर ने भी सारा की चूत को चाटते हुए दो तीन बार उसकी चूत के दाने पे हमला किया और सारा झड़ने लगी ।
सारा - मैं आ रही हूँ... ओह्ह्ह मालिक... पकड़ो मुझे... आह... मैं गिर जाउंगी... उफ्फ्फ... पी जाओ मालिक... खाली कर दो मेरी चूत को.... उह्ह्ह...
कबीर सारा की चूत से निकला वीर्य चाट के खड़ा हुआ तो सारा हांफ रही थी और उसका पूरा शरीर काँप रहा था ।
कबीर ने सारा की एक टांग उठायी और अपना लंड उसकी चूत में उतार दिया ।
सारा - नही... आह... मर गयी... धीरे... आहहह...
कबीर उसे पूरी रफ़्तार से चोदता रहा मगर कुछ ही देर में सारा को खड़े खड़े दर्द होने लगा ।
सारा - मालिक... अब और नही खड़ी रह पाऊँगी... आह... पैर दुखने लगे... आह मालिक...
कबीर ने सारा को कमर से झुका के घोड़ी बनाया और उसके दोनों स्तनों को पकड़ के पीछे से अपना लंड उसकी चूत में डाल दिया ।
सारा के लिए ये थोड़ा आराम दायक था । कबीर उसे ऐसे ही चोदता रहा और बेरहमी से उसके स्तनों को मसलता रहा ।
लगभग 10 मिनट की चुदाई में सारा दुबारा झड़ने लगी और सारा के झड़ते ही कबीर ने अपना लंड निकाल लिया और सारा को नीचे बिठा के अपना लंड उसके मुँह में डाल दिया । कुछ ही धक्कों में कबीर के लंड ने अपना वीर्य उगलना शुरू किया और वो सारा के मुँह में झड़ता चला गया ।
सारा कबीर का वीर्य पी के खड़ी हुई और कबीर को बाहों में भर लिया ।
करीब 2 मिनट ऐसे ही एक दूसरे की बाहों में खड़े रहने के बाद कबीर बोला -
कबीर - मज़ा आया सारू...
सारा - मालिक... ये तो बहुत ही मज़ेदार था । हम ऐसा रोज़ करेंगे ।
कबीर - हाँ करेंगे... और तुझे तो अभी और भी मज़े देने हैं ।
सारा - जी मालिक ।
कबीर - अब चल क्लास में ।
सारा - जी मालिक ।
जैसे ही वो जाने लगे तो घंटी बज गयी और कबीर और सारा ने दौड़ लगायी और क्लास में आये ।
सारा ने अपना खिमार पहना और जैसे ही वो स्कर्ट पहनने गयी तो कबीर ने उसे खींच लिया ।
सारा - मालिक... स्कर्ट तो दे दो... मेरी पूरी टाँगे नंगी हैं ।
कबीर - अरे तू ऐसे ही सुन्दर लग रही है...
सारा - मालिक कोई देख लेगा...
कबीर - कोई नही देखेगा... एक काम कर आज अपनी कुर्सी पे बैठे बैठे पढ़ाना सबको । टेबल के नीचे तेरी टाँगे छुपी रहेंगी तो किसी को पता भी नही चलेगा । अब बैठ जा जल्दी से, इससे पहले की कोई तुझे इस हाल में देख ले ।
सारा जल्दी से जाके बैठ गयी । उसे बड़ी शर्म आ रही थी । वो एक तरह से नंगी बैठी थी । उसके ऊपरी बदन पे खिमार का होना ना होना सब बराबर था और ना अंदर कुछ था ना नीचे कुछ था । वो अपने पैर दबाके बैठी थी ।
ज़ब सारे बच्चे आ गए तो सारा ने अपनी कुर्सी पे बैठे बैठे ही पढ़ाना शुरू किया ।
उधर स्वीटू ने कबीर से बातें शुरू की ।
स्वीटू - नीचे क्यों नही आये... कहाँ थे...
कबीर - मैं सारा के साथ...
स्वीटू - ओहो... क्या बात है... सुबह सुबह ही खेल लिए...
कबीर - चुप कर... पढ़ाई पे ध्यान दे ।
स्वीटू - सुनो तो... मेरा भी कुछ कर दो... देखो ना... कितनी मचल रही है ।
और ये बोलके स्वीटू ने अपनी स्कर्ट ऊपर उठाके कबीर को अपनी पैंटी दिखाई जो पूरी गीली थी ।
कबीर - क्या कर रही है तू... नीचे कर उसे...
मगर स्वीटू भी कहाँ मानने वाली थी उसने अपनी पैंटी उतार के टेबल पे रख दी और कबीर का हाथ पकड़ के अपनी चूत पे रख दिया ।
कबीर ने उसकी पैंटी हटाई और धीरे धीरे उसकी चूत को सहलाने लगा । स्वीटू ने अपना सर टेबल पे रख दिया और आँखें बंद कर ली ।
स्वीटू - आह... बहुत अच्छा लग रहा है... रुकना नही... करते रहो... उफ्फ्फ...
कबीर ने अपनी एक ऊँगली उसकी चूत में डाली और उसे अंदर बाहर करने लगा ।
स्वीटू - आह... भाई... ओह्ह्ह... ऐसे ही करो... थोड़ा तेज़ करो... उफ्फ्फ...
थोड़ी ही देर में स्वीटू का शरीर अकड़ने लगा और उसने कबीर के हाथ को कस कर अपनी चूत पर दबाया और झड़ने लगी ।
कबीर का हाथ पूरा भीग चुका था । उसने अपना हाथ हटाया और उसे चाट के साफ किया ।
थोड़ी देर बाद स्वीटू भी सीधी होके बैठ गयी तो कबीर बोला -
कबीर - स्वीटू एक काम कर...
स्वीटू - हाँ बोलो...
कबीर - जाके मैडम को कुछ सामान दे आ...
स्वीटू - कौन सा सामान....
कबीर ने स्वीटू को सारा की स्कर्ट दिखाई । स्वीटू को अपनी आँखों पे यकीन ही नही हुआ । वो बोली -
स्वीटू - भाई ये तो मैडम की स्कर्ट है...
कबीर - हाँ...
स्वीटू - तो क्या मैडम नंगी बैठी है...
कबीर - हाँ...
स्वीटू - ओह माय गॉड... भाई आप तो सच में... कैसे किया ये आपने...
कबीर - पागल वो ग़ुलाम है मेरी...
स्वीटू - सच में...
कबीर - हाँ मैं उसे जो बोलता हूँ वो करती है... अभी तू जा और उसे स्कर्ट वापस दे दे... क्लास खत्म होने से पहले पहन लेगी... वरना सबके सामने नंगी जाएगी क्या...
स्वीटू - लाओ दो जल्दी...
स्वीटू सारा की स्कर्ट छुपा के लेके गयी और सारा की टेबल पे रख के बोली -
स्वीटू - कबीर ने आपकी स्कर्ट दी है... जल्दी पहन लो...
सारा तो शर्म के मारे मरी जा रही थी । उसने स्वीटू की तरफ देखा भी नही और फटाफट अपनी स्कर्ट नीचे करके पहनने लगी ।
वहीं स्वीटू खड़ी खड़ी ये नज़ारा देख रही थी ।
सारा के स्कर्ट पहन लेने के बाद स्वीटू भी वापस आयी और कबीर के साथ बैठ गयी ।
उसके बाद क्लास ख़त्म हुई और सारा अपना सामान लेके चली गयी ।
इधर बाकी का दिन सामान्य रूप से गुज़रता रहा । कबीर और स्वीटू मन लगा के पढ़ते रहे । लंच टाइम में कबीर को एक अनजाने नंबर से मैसेज मिला ।
मैसेज में लिखा था की खाना खाके ऊपर आ जाना ।
कबीर मैसेज को पढ़के सोचने लगा की ये कौन है जो इसे मैसेज कर रहा है । उसने उस नंबर पे फ़ोन किया तो वो बंद था । उसने सोचा जाके देखते हैं की कौन है ।
कबीर को परेशान देखकर स्वीटू ने पूछा -
स्वीटू - क्या हुआ भाई... कुछ परेशान लग रहे हो ।
कबीर - हाँ कुछ ज़रूरी काम आ गया है । मुझे जाना पड़ेगा ।
स्वीटू - सारा के पास जाना है क्या ।
कबीर - चल पागल । उसके पास नही जाना है कुछ दूसरा काम है । मैं आता हूँ 1-2 घंटे में ।
स्वीटू - ठीक है ।
कबीर ने फटाफट खाना खाया और ऊपर चला गया ।
वो जैसे ही ऊपर पहुंचा तो उसे फिर एक मैसेज मिला जिसमें लिखा था की आख़री वाले कमरे में आओ ।
कबीर सबसे आख़री वाले कमरे में गया तो देखा की वहां कोई नही था । कमरा पूरा खाली पड़ा था । कबीर को लगा किसी ने मज़ाक़ किया है । वो वापस जाने ही वाला था की किसी ने उसे पीछे से पकड़ लिया और अपनी बाहों में भर लिया ।
कबीर जब तक कुछ समझ पता तब तक उसके कानों में एक आवाज़ आयी - आई लव यू...
कबीर एकदम पलटा तो उसका दिमाग ख़राब हो गया । वो एकदम चिल्लाया -
कबीर - तमन्ना... तेरा दिमाग ख़राब है क्या... ये क्या हरकत है...
तमन्ना - क्या हुआ भाई... अच्छा नही लगा क्या...
कबीर - छोड़ मुझे जाने दे... तू होश में नही है...
तमन्ना - क्या हुआ भाई... अभी भी नाराज़ हो...
कबीर - देख मैं बोल रहा हूँ तुझे... जाने दे मुझे...
कबीर ने उसे धक्का दिया और वापस जाने लगा तो तमन्ना उसे आवाज़ देती हुई बोली -
तमन्ना - रुको तो सही... इतनी जल्दी भी क्या है...
कबीर जैसे ही पीछे पलटा तो उसके होश उड़ गए ।
तमन्ना अपनी शर्ट उतारते हुए बोली -
तमन्ना - क्या मैं सुन्दर नही हूँ... बताओ ना भाई...
कबीर - तुझे समझ में नही आता है क्या... हम भाई बहन हैं...
तमन्ना अपनी स्कर्ट उतारते हुए बोली -
तमन्ना - मुझे इतना पता है की मैं आपसे प्यार करती हूँ ।
कबीर - ये नही हो सकता ।
तमन्ना अब सिर्फ अपनी ब्रा और पैंटी में खड़ी थी और अपने हाथ पीछे ले जाके वो अपनी ब्रा खोलते हुए बोली -
तमन्ना - क्यों नही हो सकता भाई... क्या मैं सुन्दर नही... ठीक से देखके बताओ...
कबीर तो बस उसे आँखें फाड़े देखता रहा ।
तमन्ना समझ गयी थी की कबीर जल्दी अपना फैसला बदलने वाला है । उसने अपनी पैंटी को नीचे सरकाते हुए कहा -
तमन्ना - आपने बताया नही... क्या कमी है मुझमें... ठीक से देखो... क्या मेरे स्तन अच्छे नही... क्या मेरे चूतड अच्छे नही... क्या मेरी चूत अच्छी नही...
तमन्ना अपना एक एक अंग कबीर को घुमा घुमाके दिखा रही थी ।
मगर कबीर भी एक मंझा हुआ खिलाड़ी था । उसकी पारखी नज़र ने तमन्ना में छुपी रंडी तो ताड़ लिया था । कबीर ने फैसला किया की इसे भी अपनी उँगलियों पे नचाना पड़ेगा । और कबीर बिना कुछ बोले बाहर जाने लगा ।
तमन्ना के लिए ये बहुत बड़ी बेज़्ज़ती थी । वो सहन नही कर पायी और भाग के बाहर आयी और कबीर को पकड़ लिया ।
कबीर - तमन्ना छोड़... मुझे जाने दे ।
तमन्ना - लेकिन क्यों... मुझमे खराबी क्या है...
कबीर - तुझमें... छोड़ रहने दे... मैं जा रहा हूँ...
तमन्ना - नही... मुझे सुनना है... आप क्या कहने वाले थे...
कबीर - रहने दे... तेरे बस की बात नही...
तमन्ना - ऐसा क्या है जो मैं नही कर सकती... आप बोलके देखो...
कबीर - अगर मुझे पाना है... तो कर खुद को मेरे हवाले... फिर मेरे लिए सब कुछ छोड़ना पड़ेगा... अपने माँ बाप अपनी बहन... सब कुछ...
तमन्ना सोच में पड़ गयी ।
कबीर - बस... हो गया इतने में ही... चल अब जाने दे मुझे...
तमन्ना - रुको भाई... मैं तैयार हूँ सब कुछ छोड़ने के लिए... और बोलो क्या चाहिए...
कबीर - सोच ले एक बार... फिर तू सांस भी लेगी तो मुझसे पूछ के...
तमन्ना - मंज़ूर है...
कबीर ने सोचा की इसकी परीक्षा लेते हैं और देखते हैं की ये किस हद्द तक जाने को तैयार है । कबीर ने जाके उसके सारे कपड़े उठाये और एक एक करके सारे कपड़े फाड़ दिए ।
तमन्ना - हाँ फाड़ दो... मुझे उनकी कोई ज़रूरत नही... और ये मेरे मोज़े भी ले लो... फाड़ दो उन्हें भी...
तमन्ना ने अपने मोज़े भी कबीर को उतार के दे दिए ।
कबीर तो उसकी हद्द को आज़माने में लगा था तो उसने तमन्ना के मोज़े भी फाड़ दिए ।
तमन्ना - अब क्या... अब मुझे कबूल करोगे या और आज़माना चाहते हो ।
कबीर - इतने से क्या पता चलेगा... अभी तो तुझे और साबित करना है ।
तमन्ना - बोलो... और क्या करूँ ।
कबीर - चल अब मेरी पेंट खोल और लंड निकाल मगर अपने हाथों से नही अपने मुँह से खोलना है ।
तमन्ना ने कबीर की ये चुनौती भी स्वीकार की और बड़ी मुश्किलों के बाद उसकी पेंट और चड्डी अपने मुँह से खोल के उसके लंड को आजाद किया ।
कबीर - अब बिना हाथ लगाए मेरे लंड को मुँह में लेके चूस और ज़ब तक मेरा वीर्य नही निकल जाता तब तक चूसती रह और मेरे वीर्य को पीना भी पड़ेगा ।
याद रहें अगर एक भी बार तेरे दाँत लगे तो तू उसकी वक़्त यहाँ से अपनी क्लास में नंगी जाएगी ।
तमन्ना ने कबीर की बात सुनके उसके लंड को मुँह में लेकर चूसना शुरू किया । उसे मुश्किल तो बहुत हो रही थी क्योंकि मुँह भी ज़्यादा खोल के रखना था ताकि दाँत ना लगें और हाथ भी नही लगाने थे । इस तरह से चूसने से उसका मुँह दुखने लगा मगर उसने हार नही मानी और बीस मिनट तक जैसे तैसे चूसने के बाद उसने कबीर के लंड को झड़ा दिया और उसका वीर्य पीने लगी । पहली बार किसी के वीर्य का स्वाद चखने का अनुभव उसके लिए कष्टदायक था और उसे लगा की कहीं वो उलटी ना कर दे । खैर उसने कबीर के वीर्य की एक एक बूँद पी और उसके लंड को चाट के साफ किया और खड़ी हो गयी ।
तमन्ना खड़ी होके खाँसते हुए बोली -
तमन्ना - चलो ये भी कर लिया... और बोलो अभी और भी कुछ करवाने की इच्छा है क्या...
कबीर - हाँ... अभी तेरी परीक्षा ख़त्म नही हुई है... अभी तुझे और आज़माना है ।
तमन्ना - तो बोलो...
कबीर - आज नही... बाद में बताऊंगा... तेरी अगली परीक्षा कल होगी । अभी तू बैठ... मैं नीचे से आया ।
कबीर तमन्ना को छोड़ के नीचे गया और उसके लिए एक नयी स्कूल ड्रेस निकलवा के लाया ।
कबीर ने तमन्ना को उसकी ड्रेस दी और कहा -
कबीर - चल ये कपड़े पहन ।
तमन्ना ने कपड़े पहने और कबीर से पूछा -
तमन्ना - अब मुझे कबूल करते हो...
कबीर - वो भी बताऊंगा... इतनी जल्दी क्या है ।
तमन्ना - ठीक है... मुझे कोई जल्दी नही है ।
कबीर - आज स्कूल से जाने के बाद अपनी इस स्कर्ट को छोटा कर । तेरी इस स्कर्ट की लम्बाई 11 इंच होनी चाहिए और अपनी शर्ट को दोनों तरफ से टाइट कर साथ में ऊपर के दो बटन निकाल दे । आज के बाद बिना ब्रा पैंटी के इस नयी ड्रेस में स्कूल आएगी और रोज़ मुझे चेक करवाएगी ।
तमन्ना - और कुछ है तो वो भी बोलो...
कबीर - नही अब जा अपनी क्लास में और कल मिल मुझे ।
कबीर तमन्ना को जाने का बोल के निकल गया और तमन्ना मन में सोचती रही -
तमन्ना - भाई... तुझे तो मैं पाके ही रहूंगी किसी भी कीमत पर... तू मुझसे जो चाहे करवा ले मगर मैं भी जब तक तुझे पा ना लूं मुझे चैन नही आएगा ।
इधर कबीर तमन्ना के इस रंडीपने से भौचक्का था और वो तमन्ना के लिए अब कुछ नया और कुछ इससे भी ज़्यादा साहसी और बेशर्मी वाली योजना बनाने में लगा हुआ था ।
कल रात से अभी तक तीन बार की चुदाई और एक बार की लंड चुसाई से कबीर अब थक चुका था और अब उसमें बिलकुल भी हिम्मत नही थी । वो सीधे अपनी क्लास में गया और वहीं सो गया । कबीर को सोते देख स्वीटू ने भी उसे जगाना ठीक नही समझा और सोने दिया मगर आख़री पीरियड में सारा कबीर के सो जाने से काफी उदास थी जिसे देखके स्वीटू मन ही मन खुश होते हुए मुस्कुरा रही थी ।
स्वीटू मुस्कुराती हुई अपने मन में बोली -
स्वीटू - अभी तो बस शुरुआत है... आगे आगे देखना कैसा मज़ा आएगा ।

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Bahot zaberdast kamukta se bharpoor shaandaar update bhai
 
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छुट्टी के समय स्वीटू ने कबीर को जगाया और कबीर स्वीटू और सारा को अपने साथ लेकर घर निकल गया । सारा को छोड़ के कबीर घर आया और खाना खाके दुबारा सो गया । कामीनी ने भी अपना किचन समेटा और वो भी आराम करने चली गयी और स्वीटू पढ़ने बैठ गयी ।
वहीं एक तरफ जहाँ सारा कबीर की वजह से थोड़ी उदास थी तो वहीं दूसरी तरफ तमन्ना कबीर को पाने की चाहत में या कहें कबीर को पाने की ज़िद में उसके दिए गए निर्देशों के हिसाब से अपनी ड्रेस में बदलाव करने में लगी हुई थी ।
तमन्ना सिलाई मशीन पे अपने हाथ चलाते हुए खुद से बातें कर रही थी ।
तमन्ना - भाई अब चाहे जो हो जाये मैं आपको अपना बना के रहूंगी । आपको मुझे अपनाना ही होगा । स्वीटी... देख अब मैं कैसे तुझसे तेरे भाई को छीनती हूँ । बहुत जल्द मैं तुझे कबीर से अलग कर दूंगी ।
उधर प्रताप नारायण के घर का माहौल थोड़ा चिंता जनक था । प्रताप ने मेथी को भले ही घर वापस बुला लिया था मगर उसे माफ़ नही किया था । उसका गुस्सा अभी भी बरकरार था ।
सुलोचना तो अपने बेटे की चिंता में घुली जा रही थी । वो सोच रही थी की कहीं ऐसा ना हो की उसका बेटा उसके हाथ से निकल जाए और अपना जीवन बिगाड़ ले । उसे तो इस बाद का कोई अंदाज़ा भी नही था की कल की एक रात में उसके घर में क्या क्या कांड हुए थे और वो कांड आगे जाके कैसा तूफ़ान लाने वाले थे ।
अनंगवती को तो जैसे किसी भी बात की कोई फ़िक्र नही थी । उसे तो बस कबीर का लंड ही नज़र आ रहा था । कबीर के लंड के अलावा उसे कुछ नही सूझ रहा था । क्या गलत है क्या सही है इन बातों से उसे कोई मतलब नही था । जिस तरह से कबीर ने उसको अपने काबू में किया था उसे अपने इशारों पे नचाया था, अनंगवती तो उसकी इसी अदा पे मर मिटी थी ।
मेथी तो अपने कमरे में मुँह लटकाये बैठा था । वो खुद को और अपने जीवन को कोस रहा था । उसे अपने ऊपर जहाँ घिन्न आ रही थी तो वहीं अपनी रंडी बनती बहन पे गुस्सा भी आ रहा था । इस वक़्त शायद एक मेथी ही था जो ये समझ रहा था की वो और उसकी बहन कबीर के फैलाये जाल मैं फँसते जा रहे हैं । बस एक ही बात वो नही जानता था की कितना ज़्यादा फसने वाले हैं या किस गहराई तक फसने वाले हैं ।
अपने अपने कमरों में बैठे, तीनों ही अपनी ख्याली दुनियाँ में खोये हुए थे, इस बात से बिलकुल बेखबर की कहीं एक तूफ़ान ने जन्म लिया है जो आने वाले समय में इनके ही घर में दस्तक देने वाला है ।
शाम को कामीनी चाय लेके आयी और उसने कबीर को उठाया जो बड़ी ही गहरी नींद में सोया हुआ था । कबीर जैसे ही उठा उसने अपने सामने कामीनी को देखा जो चाय लेके आयी थी । कामीनी ने जैसे ही चाय रखी कबीर ने उसे खींच लिया और वो सीधे कबीर के ऊपर जा गिरी । कबीर ने उसे बाहों में भर लिया और उसके होठों पे अपने होंठ रख दिए ।
कामीनी कबीर के इस उत्तेजक हमले से स्तब्ध हो गयी मगर उसे मज़ा भी आ रहा था । कबीर उसके होठों को चूमने में लगा हुआ था और कामीनी भी उम्म... उम्म... करती हुई उसका बराबरी से साथ दे रही थी । कामीनी का बदन गर्म होने लगा था और उसकी चूत भी गीली होने लगी थी । थोड़ी देर के बाद उसने कबीर को धक्का देके हटाया और बोली -
कामीनी - ये एकदम से आपको क्या हो गया ।
कबीर - क्यों... क्या मैं अपनी बीवी को प्यार नही कर सकता क्या...
कामीनी - नही... नही... ऐसी बात नही है । मैं तो अब हमेशा के लिए आपकी ही हूँ । मैं तो बस ये कह रही थी की आप चाय पी लो पहले वरना वो ठंडी हो जाएगी ।
कबीर - अरे मेरी कम्मो... तेरे इन रस भरे मीठे होठों के आगे वो चाय बिलकुल फीकी है ।
कामीनी अपनी तारीफ़ सुनके शर्मा गयी और बोली -
कामीनी - आप पहले वो फीकी चाय पी लो उसके बाद अपना मुँह भी मीठा कर लेना ।
कबीर और कामीनी ने चाय पीनी शुरू की तभी स्वीटू भी अपनी चाय लेके वहां चली आयी ।
कबीर - आजा बेटू... कैसा है मेरा बच्चा...
स्वीटू कबीर की बाहों में घुस के बोली -
स्वीटू - अच्छी हूँ पापा ।
कबीर उसके सर पे प्यार से मारते हुए बोला -
कबीर - अच्छा... बड़ी आयी पापा की बच्ची ।
स्वीटू - आह भाई...
कबीर ने उसके सर पे एक बार और मारा और बोला -
कबीर - अच्छा... भाई...
स्वीटू - आह मम्मी... देखो ना कैसे मार रहे हैं ।
कामीनी दोनों को देखके मुस्कुरा रही थी ।
कबीर - पढ़ाई कैसी चल रही है ।
स्वीटू - ठीक चल रही है ।
कबीर - क्यों कम्मो... बता...
कामीनी - वो सच कह रही है ।
कबीर - आज कहीं बाहर चलें क्या...
स्वीटू ने ख़ुशी से कामीनी को देखा और दोनों के मुँह से एक साथ निकला - हाँ चलो... लेकिन कहाँ...
कबीर - हम्म... सोचता हूँ कुछ...
स्वीटू तो ख़ुशी में कबीर के गले लग गयी और कबीर ने कामीनी को भी गले लगा लिया ।
स्वीटू ने कबीर का गाल चूमा और ख़ुशी से उछलती हुई बाहर चली गयी ।
कामीनी कबीर की छाती में मुँह घुसाए उसकी छाती पे हाथ फेरती हुई बोली -
कामीनी - थैंक यू...
कबीर - हैं... थैंक यू किस लिए कम्मो...
कामीनी - इस परिवार को इतनी ख़ुशी देने के लिए ।
कबीर - तो क्या ये मेरा परिवार नही ।
कामीनी - नही... ऐसी बात नही है ।
कबीर - अरे तू तो मेरी जान है कम्मो और स्वीटू मेरे कलेजे का टुकड़ा है ।
कामीनी ने कबीर को कस के बाहों में भर लिया ।
कबीर ने कामीनी के माथे को चूमा और बोला -
कबीर - चल अब जा और सात बजे तक तैयार हो जाना और स्वीटू को भी बता देना ।
कामीनी - जी...
कामीनी के जाने के बाद कबीर ने बालकनी में आके अपनी सिगरेट जलाई और अपना मोबाइल देखने लगा । उसमें काफी सारे मैसेज थे । कुछ उसके दोस्तों के थे कुछ फ़ालतू के थे मगर उनमें तमन्ना का भी मैसेज था ।
कबीर ने तमन्ना का मैसेज खोला तो उसमें लिखा था -
तमन्ना - कल के लिए ड्रेस तैयार है... और कुछ है तो बताओ...
कबीर ने उसको जवाब में लिखा -
कबीर - बहुत बढ़िया... हाँ अब से अपने रोज़ वाले मोज़े मत पहनना... वो बहुत बड़े है... मोज़े हमेशा छोटे होने चाहिए जिससे की जाँघो से लेकर नीचे तक पूरी टाँगे अच्छे से दिखें । बाकी तो कल चेक करूँगा फिर बताऊंगा ।
कबीर ने तमन्ना को मैसेज किया फिर उसने सोचा चलो थोड़ी देर सारा से बात की जाये ।
उसने सारा को फ़ोन लगाया और बात की । उसने सारा से सभी गिले शिकवे दूर किये और बातों बातों में सारा ने उसे बताया की वो नमाज-ए-अस्त्र अता करने जा रही थी । कबीर ने कहा -
कबीर - ये वक़्त सलात का है... इसे ज़ाया ना कर... कल बात कर लेंगे...
सारा - जी मालिक ।
कबीर ने फ़ोन रखा और सोचा की अब क्या किया जाए अभी तो शाम के पाँच ही बजे थे । उसने मेथी को फ़ोन लगाया ।
मेथी ने जैसे ही कबीर की कॉल देखी उसने उठायी और बोला -
मेथी - नमस्ते जीजाजी... चरण स्पर्श...
कबीर - जुग जुग जियो मेथी... अपनी गांड मरवाते रहो और अपनी बहन चुदवाते रहो ।
कबीर के ऐसे आशीर्वाद से मेथी की हालत रोने जैसी हो गयी थी मगर वो चुप रहा ।
कबीर उसे और ज़्यादा तकलीफ़ देते हुए बोला -
कबीर - और बता गांडू... कहाँ गांड मरवा रहा है...
मेथी - कहीं नही जीजाजी... घर पर ही हूँ...
कबीर - और तेरी बहन मेरा मतलब मेरी रंडी कहाँ है...
मेथी - वो अपने कमरे में ही है...
कबीर - जाके पूछ उसकी तबियत कैसी है...
मेथी - मैं आपकी बात करवाता हूँ...
कबीर - भड़वे... जितना बोला उतना कर... अपना दिमाग मत चला... वैसे भी वो तेरे पास है नही...
मेथी - माफ़ कर दो जीजाजी... मैं अभी पूछ के बताता हूँ ।
मेथी अनंगवती के कमरे में गया और पूछा -
मेथी - जीजाजी पूछ रहे हैं की तबियत कैसी है ।
अनंगवती - ठीक है...
मेथी - ठीक है जीजाजी...
कबीर - उसकी चूत का क्या हाल है...
मेथी - जी...
कबीर - सुना नही क्या तूने... तेरी रंडी बहन की चूत कैसी है...
मेथी के मुँह से तो शब्द ही नही निकल रहे थे ।
कबीर - कल तूने अपनी बहन को जिस तरह से नंगा करके मेरे लिए तैयार किया था... वो वीडियो बड़ा शानदार था... अब पूछता है या...
मेथी - जीजाजी पूछ रहे हैं की तुम्हारी चूत कैसी है...
अनंगवती - ठीक है... सूजन में तो आराम है मगर दर्द अभी भी है थोड़ा थोड़ा ।
मेथी - जीजाजी... सूजन तो कम है मगर दर्द अभी भी है...
कबीर - क्या पहना है रंडी ने ।
मेथी - जीन्स और टॉप...
कबीर - चल अब जाके उसकी जीन्स और पैंटी उतार और गर्म पानी से उसकी चूत की सिकाई कर । और खबरदार जो तूने उसे इधर उधर कहीं हाथ लगाया तो । सिर्फ सिकाई करेगा और वापस कपड़े पहनाएगा... समझा...
मेथी - जी जीजाजी...
कबीर - चल अनंगवती को फ़ोन दे...
मेथी ने अनंगवती को फ़ोन दिया ।
अनंगवती - हेलो...
कबीर - सुन अनंगवती... मेथी अभी तेरी चूत की गर्म पानी से सिकाई करेगा उससे तुझे आराम मिलेगा... करवा लेना सिकाई । और तू कुछ नही करेगी सारा काम मेथी करेगा । तुझे बस लेटे रहना है और याद रखना मेथी सिर्फ सिकाई करेगा और कुछ नही । मैं बाद में बात करता हूँ ।
और ये बोलके कबीर ने फ़ोन रख दिया ।
कबीर जाके तैयार हुआ और नीचे आया । थोड़ी देर में कामीनी और स्वीटू भी आ गए ।
कबीर - चलें...
कामीनी - हम जा कहाँ रहे हैं...
कबीर - सोच रहा हूँ कोई फ़िल्म देखते हैं फिर खाना भी बाहर ही कहाँ लेंगे... क्या बोलते हो...
स्वीटू - वाओ... जल्दी चलो ना...
कबीर - कौन सी फ़िल्म देखनी है स्वीटू...
स्वीटू - के जी एफ...
कामीनी - अरे वो साउथ की मार धाड़ वाली...
कबीर - अरे अच्छी है... चल तो सही...
कामीनी - ठीक है फिर... चलो...
कबीर उनको लेके चला गया और टिकट लेके वो लोग फ़िल्म देखने पहुंचे । स्वीटू और कामीनी कबीर के दोनों तरफ बैठी और दोनों ने ही कबीर का एक एक हाथ पकड़ लिया । ये भी गनीमत थी की फ़िल्म पारिवारिक थी और मज़ेदार भी इसलिए सबने शान्ति से फ़िल्म देखी और और उसके बाद खाना खाने चले गए । कामीनी और स्वीटू की पसंद से खाना खाया और फिर सब के लिए आइसक्रीम लेके कबीर उन्हें लॉन्ग ड्राइव पे ले गया । कामीनी और स्वीटू बड़े खुश थे और इस तरह हंसी ख़ुशी घुमते हुए वो लोग घर पहुंचे ।
स्वीटू ने कबीर को चूमा और गुड नाईट बोल के सोने चली गयी और कबीर कामीनी के साथ उसके कमरे में आ गया ।
कामीनी - कुछ काम है क्या आपको...
कबीर - हाँ मेरी कम्मो... बहुत ज़रूरी काम है...
कामीनी - तो बताइये ना...
कबीर ने कामीनी को खींच के अपनी बाहों में भर लिया और उसे चूमने लगा ।
कामीनी छटपटाते हुए बोली -
कामीनी - अरे... छोड़िये ना... क्या कर रहे हैं...
कबीर - प्यार कर रहा हूँ और क्या...
कामीनी - पहले कपड़े तो बदल लेने दो...
कबीर - बदलने की क्या ज़रूरत है... बस उतार दो...
कामीनी कबीर की छाती में मुक्का मारती हुई बोली -
कामीनी - बहुत बदमाश हो गए हो...
कबीर ने कामीनी को कस के पकड़ा और अपने होंठों से उसके होंठ मिला दिए और शुरू किया चुदाई का खेल ।
कामीनी ने भी कबीर का साथ दिया और दोनों जानवरों की तरह एक दूसरे पे टूट पड़े ।
एक दूसरे को चूमते हुए दोनों ने ही एक दूसरे के कपड़े उतारने शुरू किये और देखते ही देखते दोनों नंगे हो गए ।
कामीनी ने कबीर के लंड को पकड़ के हिलाना शुरू किया तो कबीर ने उसके स्तन को पकड़ के दबाना शुरू किया । दस मिनट तक चूमने और सहलाने के बाद दोनों अलग हुए और कामीनी हाँफ्ते हुए किचन में पानी पीने चली गयी । कामीनी की मटकती गांड को देखके कबीर से रहा नही गया और उसने किचन में जाके कामीनी को पीछे से पकड़ लिया और उसकी गांड को सहलाने लगा ।
कामीनी कसमसाते हुए बोली -
कामीनी - रुको तो सही... पानी तो पीने दो...
कबीर - अब रुक नही सकता मेरी कम्मो... देख कैसे तेरी गांड मुझे बुला रही है...
कबीर ने उसकी गांड को ज़ोर से दबाया ।
कामीनी - आह... धीरे...
कबीर ने कामीनी का एक पैर उठाके किचन के तख़्त पे रखा और नीचे से अपना लंड उसकी गांड पे रखके धक्का लगाया ।
कामीनी - आअह्ह्ह... मार डाला...
कबीर धक्का लगाते हुए -
कबीर - मार डाला नही... मार डाली बोल कम्मो...
कामीनी - आह धीरे करो... उफ्फ्फ...
कबीर ने उसकी कमर को पकड़ा और एक करारा झटका लगाके अपना पूरा लंड उसकी गांड में उतार दिया ।
कामीनी दर्द से उचक गयी और उसके आंसू भी निकल आये ।
कामीनी - आह मम्मी... मार दिया... फाड़ दी मेरी गांड... आअह्ह्ह... निकालो कबीर... ओह्ह्ह...
कबीर - चुप कर... कब से गांड मरवा रही है और हर बार का यही रोना है ।
कामीनी - आह... कबीर... इतना बड़ा है तेरा... ओह्ह्ह मम्मी...
कबीर ने कामीनी की चूचीयों को पकड़ा और उन्हें खींचते हुए पीछे से अपनी कमर हिलानी शुरू की । जहाँ कबीर कामीनी की गांड फाड़ रहा था तो वहीं कामीनी अपना गला फाड़ रही थी ।
कामीनी - आह... ओह्ह्ह... धीरे... नही... बस... ओह्ह्ह मेरी माँ... आह... आअह्ह्ह...
और थोड़ी ही देर में कामीनी के सुर बदल गए ।
कामीनी - आह... और तेज़... फाड़ दो मेरी गांड को... उफ्फ्फ... मारते रहो... और तेज़... और ताकत लगाओ... उम्म्म... फैला दो इसको... उफ्फ्फ... ओह्ह्ह... आआआहहहह...
कबीर - रुक जा मेरी जान... सब्र कर... अभी तो तेरा सब फ़टेगा... तेरा ये गदराया बदन... उफ्फ्फ...
कामीनी कबीर की गांड फाड़ चुदाई से मदहोश होती चली गयी और उसकी चूत भी पानी बहाती रही ।
कामीनी एक हाथ से अपनी चूत को सहलाती रही और आह्ह... ओह्ह्ह... करती रही ।
कामीनी जैसे झड़ने लगी वैसे ही कबीर ने अपना लंड बाहर निकाला और कामीनी को घुमा के उसके दोनों चूतड़ पकड़ के हवा में उठा लिया ।
कामीनी - आह... क्या कर रहे हो... गिर जाउंगी... मम्मी... आअह्ह्ह...
मगर कबीर ने तुरंत अपना मुँह उसकी चूत में लगा दिया और उसे हवा में उठाये उसकी चूत की बहती धारा को पीने लगा ।
कामीनी ने अपने दोनों पैर कबीर के कंधों पे रखे और उसके सर को अपनी चूत पे दबाने लगी ।
कामीनी - आह... पी जाओ... ओह्ह्ह... बहुत बहती है ये... निगोड़ी ने जीना मुश्किल कर दिया है... ओह्ह्ह... उफ्फ्फ... उम्म्म... और चाटो इसे... आहहह...
कामीनी के झड़ने के बाद कबीर ने उसे अपनी बाहों में उठाया और उसे लेके चलने लगा ।
कामीनी भी किसी बच्चे की तरह उसकी गोद में लिपटी रही ।
कबीर ने कामीनी को बिस्तर पे फेका और उसके ऊपर चढ़ गया । वो अपना खड़ा लंड लेके सीधे कामीनी के मुँह पे जा बैठा ।
कामीनी ने भी देर ना करते हुए अपना मुँह खोला और कबीर के लंड को आगे का रास्ता दिखाया ।
कामीनी बड़े मजे से सुर... सुर... करके कबीर का लंड चूसने लगी ।
कबीर - ओह्ह्ह... कम्मो... क्या लंड चूसती है तू... आह... तू सारे काम छोड़ दे... आअह्ह्ह... तू बस मेरा लंड चूसा कर... उम्म्म... ओह्ह्ह... कम्मो...
कामीनी जोश में कबीर का लंड चूस रही थी जिससे कबीर का जोश भी बढ़ रहा था । थोड़ी ही देर में कबीर ने अपना लंड निकाल लिया ।
कामीनी का तो जैसे मुँह का निवाला ही छीन लिया था ।
कामीनी - क्या हुआ... डालो ना... मुझे चूसना है...
कबीर - सारा माल तू चाट लेगी तो मेरा क्या होगा...
कामीनी - क्यों आपको भी चाटना है क्या...
कबीर - हट... गंदी... मुझे तो मेरा माल तेरी चूत में गिराना है...
कामीनी - अच्छा जी... वो क्यों...
कबीर - तुझे माँ जो बनाना है...
कामीनी - हाय दईया... मैं और माँ...
कबीर - हाँ... अब मुझे तेरा आधा पति रहना मंज़ूर नही... मुझे पूरा पति बनना है... तुझे माँ बनाना है और खुद को बाप...
कामीनी - ओह्ह्ह... मेरे राजा... तो चोदो ना मुझे... और बना दो माँ...
कबीर ने फटाफट कामीनी की टाँगे खोली और अपना लंड रखके धक्का मारा ।
कामीनी - हाँ... और तेज़ चोदो मुझे... उछल उछल के चोदो... आह... आज ही माँ बना दो... उउउफ्फ्फ्फ़...
कबीर भी कामीनी की हवस में भट्टी की तरह जलने लगा और धड़ाधड धक्के मारे । वो कामीनी को चोदते हुए उसके भारी भरकम स्तन भी निचोड़ रहा था ।
कामीनी - आह... नोच लो मुझे... ओह्ह्ह मम्मी... अम्म्म... उम्म्म.. आअह्ह्ह... और तेज़ चोदो... आह्ह... चोदो कबीर चोदो... उफ्फ्फ...
कबीर लगातार चोद रहा था और वो झड़ने के करीब आ गया था ।
कबीर - मैं आ रहा हूँ कम्मो... ले मेरा वीर्य... भर ले अपनी कोख... आहहह... बना दे मुझे बाप... ऊऊहह... ओह्ह्ह... आहहह... कम्मो...
कामीनी भी कबीर के झड़ने के साथ ही झड़ने लगी ।
कामीनी - हाँ भर दो अपना वीर्य मेरी कोख में... बना दो मुझे अपने बच्चे की माँ... ओह्ह्ह... कबीर... मैं भी गयी... आह... ओह्ह्ह... हाय...
दोनों ही साथ में झड़ गए और कबीर लंबी लंबी साँसे लेते हुए कामीनी के ऊपर की गिर गया ।
कामीनी ने भी उसे अपनी बाहों में भर लिया और उसके पूरे चेहरे को चूमने लगी ।
और ऐसे ही एक दूसरे को चूमते हुए दोनों नींद के आगोश में चले गए ।
सुबह जब स्वीटू नीचे उतर के आयी तो उसने देखा की कबीर और कामीनी एक दूसरे की बाहों में नंगे पड़े थे । उसने दोनों को आवाज़ देके उठाया ।
कबीर ने अपनी आँख खोली तो देखा स्वीटू सामने खड़ी थी । कबीर उसे देखके बोला -
कबीर - उठ गया मेरा बेटू... गुड मॉर्निंग...
स्वीटू - हम्म... गुड मॉर्निंग...
कबीर - क्या बात... आज मेरा बच्चा नाराज़ है...
स्वीटू - हाँ... बहुत नाराज़ है...
कबीर - क्या हो गया...
स्वीटू - मम्मी से पूछो...
इन दोनों की बातों से कामीनी की भी नींद खुल गयी ।
स्वीटू - मम्मी... थोड़ी तो शर्म कर लो...
कामीनी - क्यों... मैंने क्या किया...
स्वीटू - कल जो आपने किया... क्या आपको याद नही...
कामीनी - अब ऐसा भी क्या किया मैंने ।
स्वीटू - कितना चिल्लाती हो आप... आप तो ऐसे चीख रही थीं जैसे कोई बच्ची पहली बार कर रही हो । इतना चिल्लाई हो रात में की मुझे सोने भी नही दिया और शायद पूरा मोहल्ला जग गया होगा ।
कामीनी ने तो शर्म से मुँह झुका लिया । स्वीटू की बात अपनी जगह ठीक ही थी । स्वीटू कामीनी को देखके बोली -
स्वीटू - अब क्या मुँह झुकाये बैठी हो । कल बड़ी चिल्ला रही थीं अब शर्म आ रही है । अगर ऐसे ही शर्माओगी तो मुझे मेरा भाई कैसे पैदा करोगी ।
कामीनी शरमाते हुए बोली -
कामीनी - तो क्या तूने सुन लिया था ।
स्वीटू - मेरी छोड़ो... और ना जाने किस किसने सुना होगा ।
कामीनी - हाय राम...
स्वीटू - और आप क्या लेते ही रहोगे की स्कूल भी चलना है ।
कबीर - हाँ चलो ना ।
स्वीटू - तो जाओ और तैयार हो जाओ ।
ये बोलके स्वीटू भी निकल गयी और कबीर भी उठके चला गया ।
अब बस कामीनी रह गयी थी जो कल की बातों को सोचके कभी मुस्कुराती तो कभी शर्माती ।

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