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छुट्टी के समय स्वीटू ने कबीर को जगाया और कबीर स्वीटू और सारा को अपने साथ लेकर घर निकल गया । सारा को छोड़ के कबीर घर आया और खाना खाके दुबारा सो गया । कामीनी ने भी अपना किचन समेटा और वो भी आराम करने चली गयी और स्वीटू पढ़ने बैठ गयी ।
वहीं एक तरफ जहाँ सारा कबीर की वजह से थोड़ी उदास थी तो वहीं दूसरी तरफ तमन्ना कबीर को पाने की चाहत में या कहें कबीर को पाने की ज़िद में उसके दिए गए निर्देशों के हिसाब से अपनी ड्रेस में बदलाव करने में लगी हुई थी ।
तमन्ना सिलाई मशीन पे अपने हाथ चलाते हुए खुद से बातें कर रही थी ।
तमन्ना - भाई अब चाहे जो हो जाये मैं आपको अपना बना के रहूंगी । आपको मुझे अपनाना ही होगा । स्वीटी... देख अब मैं कैसे तुझसे तेरे भाई को छीनती हूँ । बहुत जल्द मैं तुझे कबीर से अलग कर दूंगी ।
उधर प्रताप नारायण के घर का माहौल थोड़ा चिंता जनक था । प्रताप ने मेथी को भले ही घर वापस बुला लिया था मगर उसे माफ़ नही किया था । उसका गुस्सा अभी भी बरकरार था ।
सुलोचना तो अपने बेटे की चिंता में घुली जा रही थी । वो सोच रही थी की कहीं ऐसा ना हो की उसका बेटा उसके हाथ से निकल जाए और अपना जीवन बिगाड़ ले । उसे तो इस बाद का कोई अंदाज़ा भी नही था की कल की एक रात में उसके घर में क्या क्या कांड हुए थे और वो कांड आगे जाके कैसा तूफ़ान लाने वाले थे ।
अनंगवती को तो जैसे किसी भी बात की कोई फ़िक्र नही थी । उसे तो बस कबीर का लंड ही नज़र आ रहा था । कबीर के लंड के अलावा उसे कुछ नही सूझ रहा था । क्या गलत है क्या सही है इन बातों से उसे कोई मतलब नही था । जिस तरह से कबीर ने उसको अपने काबू में किया था उसे अपने इशारों पे नचाया था, अनंगवती तो उसकी इसी अदा पे मर मिटी थी ।
मेथी तो अपने कमरे में मुँह लटकाये बैठा था । वो खुद को और अपने जीवन को कोस रहा था । उसे अपने ऊपर जहाँ घिन्न आ रही थी तो वहीं अपनी रंडी बनती बहन पे गुस्सा भी आ रहा था । इस वक़्त शायद एक मेथी ही था जो ये समझ रहा था की वो और उसकी बहन कबीर के फैलाये जाल मैं फँसते जा रहे हैं । बस एक ही बात वो नही जानता था की कितना ज़्यादा फसने वाले हैं या किस गहराई तक फसने वाले हैं ।
अपने अपने कमरों में बैठे, तीनों ही अपनी ख्याली दुनियाँ में खोये हुए थे, इस बात से बिलकुल बेखबर की कहीं एक तूफ़ान ने जन्म लिया है जो आने वाले समय में इनके ही घर में दस्तक देने वाला है ।
शाम को कामीनी चाय लेके आयी और उसने कबीर को उठाया जो बड़ी ही गहरी नींद में सोया हुआ था । कबीर जैसे ही उठा उसने अपने सामने कामीनी को देखा जो चाय लेके आयी थी । कामीनी ने जैसे ही चाय रखी कबीर ने उसे खींच लिया और वो सीधे कबीर के ऊपर जा गिरी । कबीर ने उसे बाहों में भर लिया और उसके होठों पे अपने होंठ रख दिए ।
कामीनी कबीर के इस उत्तेजक हमले से स्तब्ध हो गयी मगर उसे मज़ा भी आ रहा था । कबीर उसके होठों को चूमने में लगा हुआ था और कामीनी भी उम्म... उम्म... करती हुई उसका बराबरी से साथ दे रही थी । कामीनी का बदन गर्म होने लगा था और उसकी चूत भी गीली होने लगी थी । थोड़ी देर के बाद उसने कबीर को धक्का देके हटाया और बोली -
कामीनी - ये एकदम से आपको क्या हो गया ।
कबीर - क्यों... क्या मैं अपनी बीवी को प्यार नही कर सकता क्या...
कामीनी - नही... नही... ऐसी बात नही है । मैं तो अब हमेशा के लिए आपकी ही हूँ । मैं तो बस ये कह रही थी की आप चाय पी लो पहले वरना वो ठंडी हो जाएगी ।
कबीर - अरे मेरी कम्मो... तेरे इन रस भरे मीठे होठों के आगे वो चाय बिलकुल फीकी है ।
कामीनी अपनी तारीफ़ सुनके शर्मा गयी और बोली -
कामीनी - आप पहले वो फीकी चाय पी लो उसके बाद अपना मुँह भी मीठा कर लेना ।
कबीर और कामीनी ने चाय पीनी शुरू की तभी स्वीटू भी अपनी चाय लेके वहां चली आयी ।
कबीर - आजा बेटू... कैसा है मेरा बच्चा...
स्वीटू कबीर की बाहों में घुस के बोली -
स्वीटू - अच्छी हूँ पापा ।
कबीर उसके सर पे प्यार से मारते हुए बोला -
कबीर - अच्छा... बड़ी आयी पापा की बच्ची ।
स्वीटू - आह भाई...
कबीर ने उसके सर पे एक बार और मारा और बोला -
कबीर - अच्छा... भाई...
स्वीटू - आह मम्मी... देखो ना कैसे मार रहे हैं ।
कामीनी दोनों को देखके मुस्कुरा रही थी ।
कबीर - पढ़ाई कैसी चल रही है ।
स्वीटू - ठीक चल रही है ।
कबीर - क्यों कम्मो... बता...
कामीनी - वो सच कह रही है ।
कबीर - आज कहीं बाहर चलें क्या...
स्वीटू ने ख़ुशी से कामीनी को देखा और दोनों के मुँह से एक साथ निकला - हाँ चलो... लेकिन कहाँ...
कबीर - हम्म... सोचता हूँ कुछ...
स्वीटू तो ख़ुशी में कबीर के गले लग गयी और कबीर ने कामीनी को भी गले लगा लिया ।
स्वीटू ने कबीर का गाल चूमा और ख़ुशी से उछलती हुई बाहर चली गयी ।
कामीनी कबीर की छाती में मुँह घुसाए उसकी छाती पे हाथ फेरती हुई बोली -
कामीनी - थैंक यू...
कबीर - हैं... थैंक यू किस लिए कम्मो...
कामीनी - इस परिवार को इतनी ख़ुशी देने के लिए ।
कबीर - तो क्या ये मेरा परिवार नही ।
कामीनी - नही... ऐसी बात नही है ।
कबीर - अरे तू तो मेरी जान है कम्मो और स्वीटू मेरे कलेजे का टुकड़ा है ।
कामीनी ने कबीर को कस के बाहों में भर लिया ।
कबीर ने कामीनी के माथे को चूमा और बोला -
कबीर - चल अब जा और सात बजे तक तैयार हो जाना और स्वीटू को भी बता देना ।
कामीनी - जी...
कामीनी के जाने के बाद कबीर ने बालकनी में आके अपनी सिगरेट जलाई और अपना मोबाइल देखने लगा । उसमें काफी सारे मैसेज थे । कुछ उसके दोस्तों के थे कुछ फ़ालतू के थे मगर उनमें तमन्ना का भी मैसेज था ।
कबीर ने तमन्ना का मैसेज खोला तो उसमें लिखा था -
तमन्ना - कल के लिए ड्रेस तैयार है... और कुछ है तो बताओ...
कबीर ने उसको जवाब में लिखा -
कबीर - बहुत बढ़िया... हाँ अब से अपने रोज़ वाले मोज़े मत पहनना... वो बहुत बड़े है... मोज़े हमेशा छोटे होने चाहिए जिससे की जाँघो से लेकर नीचे तक पूरी टाँगे अच्छे से दिखें । बाकी तो कल चेक करूँगा फिर बताऊंगा ।
कबीर ने तमन्ना को मैसेज किया फिर उसने सोचा चलो थोड़ी देर सारा से बात की जाये ।
उसने सारा को फ़ोन लगाया और बात की । उसने सारा से सभी गिले शिकवे दूर किये और बातों बातों में सारा ने उसे बताया की वो नमाज-ए-अस्त्र अता करने जा रही थी । कबीर ने कहा -
कबीर - ये वक़्त सलात का है... इसे ज़ाया ना कर... कल बात कर लेंगे...
सारा - जी मालिक ।
कबीर ने फ़ोन रखा और सोचा की अब क्या किया जाए अभी तो शाम के पाँच ही बजे थे । उसने मेथी को फ़ोन लगाया ।
मेथी ने जैसे ही कबीर की कॉल देखी उसने उठायी और बोला -
मेथी - नमस्ते जीजाजी... चरण स्पर्श...
कबीर - जुग जुग जियो मेथी... अपनी गांड मरवाते रहो और अपनी बहन चुदवाते रहो ।
कबीर के ऐसे आशीर्वाद से मेथी की हालत रोने जैसी हो गयी थी मगर वो चुप रहा ।
कबीर उसे और ज़्यादा तकलीफ़ देते हुए बोला -
कबीर - और बता गांडू... कहाँ गांड मरवा रहा है...
मेथी - कहीं नही जीजाजी... घर पर ही हूँ...
कबीर - और तेरी बहन मेरा मतलब मेरी रंडी कहाँ है...
मेथी - वो अपने कमरे में ही है...
कबीर - जाके पूछ उसकी तबियत कैसी है...
मेथी - मैं आपकी बात करवाता हूँ...
कबीर - भड़वे... जितना बोला उतना कर... अपना दिमाग मत चला... वैसे भी वो तेरे पास है नही...
मेथी - माफ़ कर दो जीजाजी... मैं अभी पूछ के बताता हूँ ।
मेथी अनंगवती के कमरे में गया और पूछा -
मेथी - जीजाजी पूछ रहे हैं की तबियत कैसी है ।
अनंगवती - ठीक है...
मेथी - ठीक है जीजाजी...
कबीर - उसकी चूत का क्या हाल है...
मेथी - जी...
कबीर - सुना नही क्या तूने... तेरी रंडी बहन की चूत कैसी है...
मेथी के मुँह से तो शब्द ही नही निकल रहे थे ।
कबीर - कल तूने अपनी बहन को जिस तरह से नंगा करके मेरे लिए तैयार किया था... वो वीडियो बड़ा शानदार था... अब पूछता है या...
मेथी - जीजाजी पूछ रहे हैं की तुम्हारी चूत कैसी है...
अनंगवती - ठीक है... सूजन में तो आराम है मगर दर्द अभी भी है थोड़ा थोड़ा ।
मेथी - जीजाजी... सूजन तो कम है मगर दर्द अभी भी है...
कबीर - क्या पहना है रंडी ने ।
मेथी - जीन्स और टॉप...
कबीर - चल अब जाके उसकी जीन्स और पैंटी उतार और गर्म पानी से उसकी चूत की सिकाई कर । और खबरदार जो तूने उसे इधर उधर कहीं हाथ लगाया तो । सिर्फ सिकाई करेगा और वापस कपड़े पहनाएगा... समझा...
मेथी - जी जीजाजी...
कबीर - चल अनंगवती को फ़ोन दे...
मेथी ने अनंगवती को फ़ोन दिया ।
अनंगवती - हेलो...
कबीर - सुन अनंगवती... मेथी अभी तेरी चूत की गर्म पानी से सिकाई करेगा उससे तुझे आराम मिलेगा... करवा लेना सिकाई । और तू कुछ नही करेगी सारा काम मेथी करेगा । तुझे बस लेटे रहना है और याद रखना मेथी सिर्फ सिकाई करेगा और कुछ नही । मैं बाद में बात करता हूँ ।
और ये बोलके कबीर ने फ़ोन रख दिया ।
कबीर जाके तैयार हुआ और नीचे आया । थोड़ी देर में कामीनी और स्वीटू भी आ गए ।
कबीर - चलें...
कामीनी - हम जा कहाँ रहे हैं...
कबीर - सोच रहा हूँ कोई फ़िल्म देखते हैं फिर खाना भी बाहर ही कहाँ लेंगे... क्या बोलते हो...
स्वीटू - वाओ... जल्दी चलो ना...
कबीर - कौन सी फ़िल्म देखनी है स्वीटू...
स्वीटू - के जी एफ...
कामीनी - अरे वो साउथ की मार धाड़ वाली...
कबीर - अरे अच्छी है... चल तो सही...
कामीनी - ठीक है फिर... चलो...
कबीर उनको लेके चला गया और टिकट लेके वो लोग फ़िल्म देखने पहुंचे । स्वीटू और कामीनी कबीर के दोनों तरफ बैठी और दोनों ने ही कबीर का एक एक हाथ पकड़ लिया । ये भी गनीमत थी की फ़िल्म पारिवारिक थी और मज़ेदार भी इसलिए सबने शान्ति से फ़िल्म देखी और और उसके बाद खाना खाने चले गए । कामीनी और स्वीटू की पसंद से खाना खाया और फिर सब के लिए आइसक्रीम लेके कबीर उन्हें लॉन्ग ड्राइव पे ले गया । कामीनी और स्वीटू बड़े खुश थे और इस तरह हंसी ख़ुशी घुमते हुए वो लोग घर पहुंचे ।
स्वीटू ने कबीर को चूमा और गुड नाईट बोल के सोने चली गयी और कबीर कामीनी के साथ उसके कमरे में आ गया ।
कामीनी - कुछ काम है क्या आपको...
कबीर - हाँ मेरी कम्मो... बहुत ज़रूरी काम है...
कामीनी - तो बताइये ना...
कबीर ने कामीनी को खींच के अपनी बाहों में भर लिया और उसे चूमने लगा ।
कामीनी छटपटाते हुए बोली -
कामीनी - अरे... छोड़िये ना... क्या कर रहे हैं...
कबीर - प्यार कर रहा हूँ और क्या...
कामीनी - पहले कपड़े तो बदल लेने दो...
कबीर - बदलने की क्या ज़रूरत है... बस उतार दो...
कामीनी कबीर की छाती में मुक्का मारती हुई बोली -
कामीनी - बहुत बदमाश हो गए हो...
कबीर ने कामीनी को कस के पकड़ा और अपने होंठों से उसके होंठ मिला दिए और शुरू किया चुदाई का खेल ।
कामीनी ने भी कबीर का साथ दिया और दोनों जानवरों की तरह एक दूसरे पे टूट पड़े ।
एक दूसरे को चूमते हुए दोनों ने ही एक दूसरे के कपड़े उतारने शुरू किये और देखते ही देखते दोनों नंगे हो गए ।
कामीनी ने कबीर के लंड को पकड़ के हिलाना शुरू किया तो कबीर ने उसके स्तन को पकड़ के दबाना शुरू किया । दस मिनट तक चूमने और सहलाने के बाद दोनों अलग हुए और कामीनी हाँफ्ते हुए किचन में पानी पीने चली गयी । कामीनी की मटकती गांड को देखके कबीर से रहा नही गया और उसने किचन में जाके कामीनी को पीछे से पकड़ लिया और उसकी गांड को सहलाने लगा ।
कामीनी कसमसाते हुए बोली -
कामीनी - रुको तो सही... पानी तो पीने दो...
कबीर - अब रुक नही सकता मेरी कम्मो... देख कैसे तेरी गांड मुझे बुला रही है...
कबीर ने उसकी गांड को ज़ोर से दबाया ।
कामीनी - आह... धीरे...
कबीर ने कामीनी का एक पैर उठाके किचन के तख़्त पे रखा और नीचे से अपना लंड उसकी गांड पे रखके धक्का लगाया ।
कामीनी - आअह्ह्ह... मार डाला...
कबीर धक्का लगाते हुए -
कबीर - मार डाला नही... मार डाली बोल कम्मो...
कामीनी - आह धीरे करो... उफ्फ्फ...
कबीर ने उसकी कमर को पकड़ा और एक करारा झटका लगाके अपना पूरा लंड उसकी गांड में उतार दिया ।
कामीनी दर्द से उचक गयी और उसके आंसू भी निकल आये ।
कामीनी - आह मम्मी... मार दिया... फाड़ दी मेरी गांड... आअह्ह्ह... निकालो कबीर... ओह्ह्ह...
कबीर - चुप कर... कब से गांड मरवा रही है और हर बार का यही रोना है ।
कामीनी - आह... कबीर... इतना बड़ा है तेरा... ओह्ह्ह मम्मी...
कबीर ने कामीनी की चूचीयों को पकड़ा और उन्हें खींचते हुए पीछे से अपनी कमर हिलानी शुरू की । जहाँ कबीर कामीनी की गांड फाड़ रहा था तो वहीं कामीनी अपना गला फाड़ रही थी ।
कामीनी - आह... ओह्ह्ह... धीरे... नही... बस... ओह्ह्ह मेरी माँ... आह... आअह्ह्ह...
और थोड़ी ही देर में कामीनी के सुर बदल गए ।
कामीनी - आह... और तेज़... फाड़ दो मेरी गांड को... उफ्फ्फ... मारते रहो... और तेज़... और ताकत लगाओ... उम्म्म... फैला दो इसको... उफ्फ्फ... ओह्ह्ह... आआआहहहह...
कबीर - रुक जा मेरी जान... सब्र कर... अभी तो तेरा सब फ़टेगा... तेरा ये गदराया बदन... उफ्फ्फ...
कामीनी कबीर की गांड फाड़ चुदाई से मदहोश होती चली गयी और उसकी चूत भी पानी बहाती रही ।
कामीनी एक हाथ से अपनी चूत को सहलाती रही और आह्ह... ओह्ह्ह... करती रही ।
कामीनी जैसे झड़ने लगी वैसे ही कबीर ने अपना लंड बाहर निकाला और कामीनी को घुमा के उसके दोनों चूतड़ पकड़ के हवा में उठा लिया ।
कामीनी - आह... क्या कर रहे हो... गिर जाउंगी... मम्मी... आअह्ह्ह...
मगर कबीर ने तुरंत अपना मुँह उसकी चूत में लगा दिया और उसे हवा में उठाये उसकी चूत की बहती धारा को पीने लगा ।
कामीनी ने अपने दोनों पैर कबीर के कंधों पे रखे और उसके सर को अपनी चूत पे दबाने लगी ।
कामीनी - आह... पी जाओ... ओह्ह्ह... बहुत बहती है ये... निगोड़ी ने जीना मुश्किल कर दिया है... ओह्ह्ह... उफ्फ्फ... उम्म्म... और चाटो इसे... आहहह...
कामीनी के झड़ने के बाद कबीर ने उसे अपनी बाहों में उठाया और उसे लेके चलने लगा ।
कामीनी भी किसी बच्चे की तरह उसकी गोद में लिपटी रही ।
कबीर ने कामीनी को बिस्तर पे फेका और उसके ऊपर चढ़ गया । वो अपना खड़ा लंड लेके सीधे कामीनी के मुँह पे जा बैठा ।
कामीनी ने भी देर ना करते हुए अपना मुँह खोला और कबीर के लंड को आगे का रास्ता दिखाया ।
कामीनी बड़े मजे से सुर... सुर... करके कबीर का लंड चूसने लगी ।
कबीर - ओह्ह्ह... कम्मो... क्या लंड चूसती है तू... आह... तू सारे काम छोड़ दे... आअह्ह्ह... तू बस मेरा लंड चूसा कर... उम्म्म... ओह्ह्ह... कम्मो...
कामीनी जोश में कबीर का लंड चूस रही थी जिससे कबीर का जोश भी बढ़ रहा था । थोड़ी ही देर में कबीर ने अपना लंड निकाल लिया ।
कामीनी का तो जैसे मुँह का निवाला ही छीन लिया था ।
कामीनी - क्या हुआ... डालो ना... मुझे चूसना है...
कबीर - सारा माल तू चाट लेगी तो मेरा क्या होगा...
कामीनी - क्यों आपको भी चाटना है क्या...
कबीर - हट... गंदी... मुझे तो मेरा माल तेरी चूत में गिराना है...
कामीनी - अच्छा जी... वो क्यों...
कबीर - तुझे माँ जो बनाना है...
कामीनी - हाय दईया... मैं और माँ...
कबीर - हाँ... अब मुझे तेरा आधा पति रहना मंज़ूर नही... मुझे पूरा पति बनना है... तुझे माँ बनाना है और खुद को बाप...
कामीनी - ओह्ह्ह... मेरे राजा... तो चोदो ना मुझे... और बना दो माँ...
कबीर ने फटाफट कामीनी की टाँगे खोली और अपना लंड रखके धक्का मारा ।
कामीनी - हाँ... और तेज़ चोदो मुझे... उछल उछल के चोदो... आह... आज ही माँ बना दो... उउउफ्फ्फ्फ़...
कबीर भी कामीनी की हवस में भट्टी की तरह जलने लगा और धड़ाधड धक्के मारे । वो कामीनी को चोदते हुए उसके भारी भरकम स्तन भी निचोड़ रहा था ।
कामीनी - आह... नोच लो मुझे... ओह्ह्ह मम्मी... अम्म्म... उम्म्म.. आअह्ह्ह... और तेज़ चोदो... आह्ह... चोदो कबीर चोदो... उफ्फ्फ...
कबीर लगातार चोद रहा था और वो झड़ने के करीब आ गया था ।
कबीर - मैं आ रहा हूँ कम्मो... ले मेरा वीर्य... भर ले अपनी कोख... आहहह... बना दे मुझे बाप... ऊऊहह... ओह्ह्ह... आहहह... कम्मो...
कामीनी भी कबीर के झड़ने के साथ ही झड़ने लगी ।
कामीनी - हाँ भर दो अपना वीर्य मेरी कोख में... बना दो मुझे अपने बच्चे की माँ... ओह्ह्ह... कबीर... मैं भी गयी... आह... ओह्ह्ह... हाय...
दोनों ही साथ में झड़ गए और कबीर लंबी लंबी साँसे लेते हुए कामीनी के ऊपर की गिर गया ।
कामीनी ने भी उसे अपनी बाहों में भर लिया और उसके पूरे चेहरे को चूमने लगी ।
और ऐसे ही एक दूसरे को चूमते हुए दोनों नींद के आगोश में चले गए ।
सुबह जब स्वीटू नीचे उतर के आयी तो उसने देखा की कबीर और कामीनी एक दूसरे की बाहों में नंगे पड़े थे । उसने दोनों को आवाज़ देके उठाया ।
कबीर ने अपनी आँख खोली तो देखा स्वीटू सामने खड़ी थी । कबीर उसे देखके बोला -
कबीर - उठ गया मेरा बेटू... गुड मॉर्निंग...
स्वीटू - हम्म... गुड मॉर्निंग...
कबीर - क्या बात... आज मेरा बच्चा नाराज़ है...
स्वीटू - हाँ... बहुत नाराज़ है...
कबीर - क्या हो गया...
स्वीटू - मम्मी से पूछो...
इन दोनों की बातों से कामीनी की भी नींद खुल गयी ।
स्वीटू - मम्मी... थोड़ी तो शर्म कर लो...
कामीनी - क्यों... मैंने क्या किया...
स्वीटू - कल जो आपने किया... क्या आपको याद नही...
कामीनी - अब ऐसा भी क्या किया मैंने ।
स्वीटू - कितना चिल्लाती हो आप... आप तो ऐसे चीख रही थीं जैसे कोई बच्ची पहली बार कर रही हो । इतना चिल्लाई हो रात में की मुझे सोने भी नही दिया और शायद पूरा मोहल्ला जग गया होगा ।
कामीनी ने तो शर्म से मुँह झुका लिया । स्वीटू की बात अपनी जगह ठीक ही थी । स्वीटू कामीनी को देखके बोली -
स्वीटू - अब क्या मुँह झुकाये बैठी हो । कल बड़ी चिल्ला रही थीं अब शर्म आ रही है । अगर ऐसे ही शर्माओगी तो मुझे मेरा भाई कैसे पैदा करोगी ।
कामीनी शरमाते हुए बोली -
कामीनी - तो क्या तूने सुन लिया था ।
स्वीटू - मेरी छोड़ो... और ना जाने किस किसने सुना होगा ।
कामीनी - हाय राम...
स्वीटू - और आप क्या लेते ही रहोगे की स्कूल भी चलना है ।
कबीर - हाँ चलो ना ।
स्वीटू - तो जाओ और तैयार हो जाओ ।
ये बोलके स्वीटू भी निकल गयी और कबीर भी उठके चला गया ।
अब बस कामीनी रह गयी थी जो कल की बातों को सोचके कभी मुस्कुराती तो कभी शर्माती ।
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