Nikhil_0812
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Mast updateNew Update... 053
कबीर क्लास में गया तो उस वक़्त लंच टाइम चल रहा था और स्वीटू भी खाने जा रही थी की तभी उसे कबीर दिखा ।
कबीर आके स्वीटू के पास बैठा और स्वीटू बोल पड़ी -
स्वीटू - भाई... कहाँ चले गए थे सुबह से ।
कबीर - कुछ नही... थोड़ा सा ज़रूरी काम आ गया था । बस वो निपटाने गया था ।
स्वीटू - मैं समझ रही हूँ भाई कौन सा काम ।
कबीर - वैसे तू ठीक ही समझ रही है । हिसाब तो अभी बहुत लोगों से लेना है ।
स्वीटू - तो कैसा चल रहा है हिसाब किताब ।
कबीर - अभी तो शुरू किया है लेकिन जल्दी पूरा हो जायेगा ।
स्वीटू - भगवान करे वो दिन जल्दी आये । अच्छा अब तो कहीं नहीं जाना है ना ।
कबीर - अब नही जाना है बेटू । अब हो गए तेरे सवाल जवाब तो थोड़ा खाना खा लें ।
स्वीटू - हाँ भाई... बहुत भूख लगी है ।
उसके बाद दोनों ने साथ में खाना खाया और खाना ख़त्म होते तक कबीर के पास फ़ोन आया ।
आदमी - सर... काम कर दिया है ।
कबीर - उसके घर वालों की सारी जानकारी निकालो फटाफट और उसके बाद वो आदमी दुबारा कभी नज़र ना आये ।
आदमी - समझ गए सर ।
कबीर - सारी जानकारी मिलते ही मुझे मैसेज कर देना । और मैं तुमसे बाद में मिलता हूँ ।
आदमी - जी सर ।
कबीर ने फ़ोन रखा और अपना टिफ़िन समेटा तभी स्वीटू बोली -
स्वीटू - भाई... क्या चल रहा है ।
कबीर - बताऊंगा स्वीटू... मगर सही वक़्त आने दे पहले ।
स्वीटू - ओके भाई ।
उसके बाद का दिन दोनों ने पढ़ाई करते हुए निकाला और आख़री पीरियड में भी कोई घटना नही हुई ।
सारा ने भी बिना किसी शिकवे शिकायत के क्लास को पढ़ाया और फिर छुट्टी के बाद तीनों घर निकल गए ।
सारा को छोड़ने के बाद कबीर स्वीटू के साथ घर पहुंचा और मुँह हाथ धोके कामीनी के पास आया ।
कामीनी - जी... आप कहीं जा रहे हैं क्या ।
कबीर - हाँ... क्यों क्या हो गया ।
कामीनी - आप अभी तो आये हैं और खाना भी नही खाया । वैसे आज कल तो आप कुछ ज़्यादा ही घर से बाहर रहते हैं ।
कबीर - अरे... ये क्या बात हुई ।
कामीनी - आपके परिवार को भी आपकी ज़रूरत है । आप तो समझते ही नही ।
कबीर - कम्मो... मेरी जान... मुझे सब पता है और वैसे भी कल रक्षाबंधन है तो मुझे जाने दे । मुझे स्वीटू के लिए कुछ लेना भी है ।
कामीनी - तो आपको याद था ।
कबीर - नही तो क्या मुझे बेवक़ूफ़ समझ रखा है क्या ।
कामीनी - नही नही... मेरा वो मतलब नही था ।
कबीर - अच्छा... अब मुझे जाने दे और स्वीटू को खाना खिला के उसे अपने पास ही बुला लेना । देखना वो ठीक से पढ़ाई करे । मैं चलता हूँ ।
कामीनी - जी अच्छा...
कबीर कामीनी से बात करके निकला और उसने अपने उसी आदमी को फ़ोन किया और बोला -
कबीर - मुझे एक ~~~~ चाहिए और वो बिलकुल ~~~~ होना चाहिए । और हाँ ये मुझे मेरी बहन स्वीटी के नाम से चाहिए । कब तक होगा ।
आदमी - सर पता करते हैं ।
कबीर - सुनो कल रक्षाबंधन है और मुझे ये आज शाम तक या आज रात तक चाहिए ।
आदमी - हो जायेगा सर...
कबीर - और उस काम का क्या हुआ । तुमने तो बताया ही नही ।
आदमी - सर आपके कहने के हिसाब से आपके स्कूल के गार्ड को उठा लिया था और उससे उसके पूरे परिवार की जानकारी ले ली है ।
कबीर - कौन कौन है ।
आदमी - उसकी पत्नी है और बेटी है ।
कबीर - और उसका कोई बेटा ।
आदमी - है सर लेकिन वो सालों पहले ही घर छोड़कर भाग गया था और उसकी कोई खबर भी नही है ।
कबीर - ठीक है... उसे स्कूल के पास ही सडक हादसे में उड़ा दो और उसके फ़ोन से उसकी बीवी को खबर कर दो और स्कूल के प्रिंसिपल को भी ।
आदमी - ठीक है सर ।
कबीर ने बात ख़त्म की और सारा के पास पहुंचा ।
सारा ने जैसे देखा की कबीर की गाड़ी खड़ी है तो वो भाग के आयी और दरवाज़ा खोलके उसके पैरों में बैठ गयी और रोने लगी ।
कबीर को सारा के बर्ताव से हैरानी होने लगी । सारा नगनावस्था में दरवाज़े पर कबीर के पैरों में बैठी रोती रही । कबीर उसे जितना चुप कराने की कोशिश करता सारा उतना ज़्यादा रोने लगती ।
कबीर - कुछ बोलोगी...
सारा - मुझे माफ़ कर दो मालिक ।
कबीर - हुआ क्या है ।
सारा - मैं जानती हूँ की मुझसे कोई गलती हुई है तभी मेरे मालिक मुझसे नाराज़ हैं ।
सारा ये बोलके और ज़्यादा रोने लगी और कबीर का दिमाग चलना बंद हो गया ।
कबीर - गलती... कौन सी गलती सारू...
सारा - कुछ तो हुआ होगा ना मुझसे... तभी तो आप मुझसे मिलने भी नही आते और मुझसे बात भी नही करते । मुझे माफ़ कर दो मालिक । आप मुझे मार लो मगर ऐसी सजा तो मत दो । मैं मर जाऊँगी मालिक ।
कबीर को ना जाने क्यों सारा का ऐसा बर्ताव और उसकी बातें दिल में चुभ गयीं ।
कबीर ने सारा का चेहरा उठाया और कहा -
कबीर - सारू... कुछ ज़रूरी कामों में उलझ गया हूँ इसलिए तुझे समय नही दे पा रहा हूँ ।
सारा - मैं जानती हूँ मालिक अब आपको मैं पसंद नही हूँ ना । मैं शायद आपको खुश नही कर पा रही हूँ तभी तो आपने मेरी जगह उस दूसरी लड़की को पकड़ लिया ।
कबीर - चुप कर सारू... क्या कुछ भी बकवास किये जा रही है । तुझे अभी कुछ नही पता है । तूने ये कैसे सोच लिया की तेरी जगह कोई और ले लेगा ।
सारा - मालिक तो फिर...
कबीर - चुप कर...
सारा चुप चाप खड़ी कबीर की आँखों में देखती रही और कबीर भी उसकी आँखों में देखता रहा ।
कबीर - सारू... मुझे अंदर नही बुलाएगी ।
सारा - सॉरी मालिक... आओ ना अंदर ।
कबीर अंदर आया और सारा ने जैसे ही दरवाज़ा बंद किया वैसे ही कबीर ने उसे अपनी गोद में उठा लिया और उसे कमरे में ले गया ।
कबीर ने अपने कपड़े निकाले और शॉर्ट्स में बिस्तर पर लेट गया और सारा को भी अपने साथ लिटा लिया ।
सारा कबीर के साथ लेटी तो उसे और ज़्यादा रोना आने लगा । वो रोते हुए बोली -
सारा - मालिक... अब तो मुझे छोड़ के नही जाओगे ना । मुझे अपने से अलग मत करना मालिक ।
कबीर - सारू... मैं कहीं नहीं जा रहा हूँ... तू रोना बंद कर । मैं यहीं हूँ तेरे पास ।
कबीर की बात सुनके सारा कबीर के और पास आयी और उसकी छाती पे सर रखके लेट गयी । ना जाने क्यों कबीर को सारा का इस तरह प्यार करना और प्यार देना अंदर ही अंदर भावुक कर रहा था । उसके हाथ अनायास ही सारा के सर पे चले गए और उसके बालों को सहलाने लगे ।
सारा को तो जैसे खुदा मिल गए थे । उसे कबीर का ये प्यार और अपनापन बड़ा सुकून दे रहा था । थोड़ी ही देर में उसका रोना बंद हो गया और देखते ही देखते वो नींद में चली गयी ।
सारा कबीर से किसी छोटी सी बच्ची की तरह चिपक के सोती रही । शायद बरसों बाद उसे ऐसी सुकून भरी नींद नसीब हुई थी ।
कबीर सारा के बालों को सहलाता रहा और सोचता रहा -
कबीर - ये मुझे क्या हो रहा है । मुझे क्या करना है और मैं कर क्या रहा हूँ । नही नही... मैं ऐसे कमज़ोर नही पड़ सकता । लेकिन क्यों हर बार सारा के करीब आते ही मैं पिघलने लगता हूँ । क्यों हर बार उसे देखते ही मैं सोचता कुछ हूँ और करता कुछ हूँ । मैं कैसे अपने मकसद से भटक सकता हूँ । नही नही... मैं इसके साथ वो सब नही कर पाउँगा । हाँ मुझसे वो सब नही होगा । मगर कैसे भूल जाऊं जो जो मेरे साथ हुआ था... नही नही... मेरे परिवार के साथ हुआ था । मैं भूल भी तो नही सकता । और इस सारा की क्या गलती है । ये तो कितनी प्यारी सी बच्ची है । पर स्वीटू की भी तो कोई गलती नही थी और कामीनी ने भी किसी का क्या बिगाड़ा था । है भगवान... आखिर मैं करूँ तो क्या करूँ...
कबीर अपनी दिमागी उलझन में खोया रहा और सारा के बालों को ऐसे ही सहलाता रहा ।
सारा को पुरसुकून सोते देखके कबीर के दिल को कहीं ना कहीं बड़ी ठंडक मिल रही थी और शायद अब उसके दिल में सारा के लिए मोहब्बत जाग रही थी ।
सारा जब नींद से जागी तब तक शाम हो चुकी थी । कबीर उसे अब भी अपनी बाहों में लेके लेता हुआ था और उसके बालों को अभी भी उतने ही प्यार से सहला रहा था ।
सारा बहुत खुश थी और इस सुन्दर से सुकून के एहसास से उसका चेहरा खिला हुआ था मगर कबीर के चेहरे पर तकलीफ़ साफ झलक रही थी । सारा कबीर को देखके उसकी परेशानी की वजह ढूंढ़ने की कोशिश कर रही थी लेकिन वो चाह के भी कुछ पूछ नही पा रही थी ।
कबीर ने जब देखा की सारा अब जाग चुकी है तो उसने सारा के चेहरे को पकड़ के ऊपर उठाया और उसके माथे को चूम लिया ।
कबीर - सारु... तू बैठ... मैं तेरे लिए चाय बनाता हूँ ।
सारा - नही मालिक... आप नही... मैं जाती हूँ ।
कबीर ने सारा के गाल को चूमा और कहा -
कबीर - नही... मैं बनाता हूँ और मालिक नही कबीर ।
सारा - मगर मालिक...
कबीर - बोला ना कबीर... आज से कोई मालिक नही सिर्फ कबीर ।
सारा ने ख़ुशी से कबीर को अपनी बाहों में भर लिया और उसके गाल चूम लिए ।
कबीर सारा से अलग हुआ और जाके चाय बनाके लाया । दोनों ने चाय पी और कबीर बोला -
कबीर - अब मुझे चलना चाहिए सारू...
कबीर उठके जाने लगा और सारा उसे दरवाज़ तक छोड़ने आयी ।
कबीर जाते जाते एक दम से पलटा और सारा को गले लगा लिया । सारा का नाजुक और कोमल शरीर तो जैसे कबीर की बाहों में पिस रहा था ।
कबीर ने उसके चेहरे को बेतहाशा चूमा और निकल गया ।
कबीर ने गाड़ी में बैठते बैठे एक नज़र सारा को देखा और पता नही क्यों उसकी आँखें नम हो गयीं मगर कबीर चुप चाप बिना कुछ कहे चला गया ।
सारा कबीर के इस बदले रूप से अचंभित थी । वो वहीं दरवाज़े पर काफी देर तक खड़ी रही ।
कबीर सीधे अपने घर आया और बिना किसी से कुछ कहे सीधे अपने कमरे में चला गया । वो अपने दिल और दिमाग की लड़ाई में उलझ गया था । आज उसे कुछ भी अच्छा नही लग रहा था । उसे अपने अंदर कुछ टूटता हुआ लग रहा था । उसने अपने पिता की डायरी निकाली और उसमें से उनकी एक तस्वीर नीचे जा गिरी ।
कबीर अपने पिता की फोटो को देखता रहा और देखते ही देखते उसकी आँखों से आंसुओं का सैलाब बह निकला । कबीर अपने पिता की तस्वीर हाथ में लिए घंटों रोया ।
उधर कई घंटों तक कबीर जब नीचे नही आया तो कामीनी को कुछ शक़ हुआ और वो कबीर को देखने ऊपर पहुंची तो देखा की कबीर सो रहा था । वो उसके पास आयी तो उसने ध्यान दिया की कबीर की आँखें लगातार रोने की वजह से सूजी हुईं थीं और उसका पूरा चेहरा यहाँ तक की उसका तकिया भी आंसुओं से भीगा हुआ था ।
कामीनी ने कबीर के हाथ में उसके पिता की तस्वीर देखी तो उसे समझते देर ना लगी की कबीर को हुआ क्या है । उसने कबीर के हाथ से वो तस्वीर ली और किनारे पर रखके जाने लगी तभी उसकी नज़र बिस्तर पर रखी उस डायरी पे गयी ।
कामीनी ने वो डायरी उठाई और उसे पढ़ना शुरू किया । जैसे जैसे वो पढ़ती गयी वैसे वैसे उसकी हैरानी बढ़ती गयी । वो तो आज तक ये समझती थी की उसके पति कुमार तो दुश्मनों से लड़ते हुए शहीद हुए थे मगर आज उसे पता चल रहा था की वो पूरा सच नही था । और अब जो सच निकल के आ रहा था उसे हजम करना या उसे स्वीकारना उसके बस की बात नही थी । आज उस डायरी को पढ़ते हुए उसे पता चल रहा था की कैसे उसके सगे भाई महेंद्र प्रताप सिंह ने अपने साथी शिक्षा मंत्री प्रताप नारायण चन्द्रवंशी और उनके एक कश्मीरी साथी मोहम्मद अशर हुसैन हयात के साथ मिलकर कैसे भारतीय थल सेना के कुछ अफसरों को पैसे के लालच से तोड़ा और सेना के हथियारों की चोरी करवा के किस तरह उन्हें आतंकवादियों को बेचा ।
ये काला, घिनोना और कड़वा सच पढ़के कामीनी की सोचने समझने की शक्ति ख़त्म हो गयी थी । उसे यकीन नही हो रहा था की कैसे उसका अपना सगा भाई ऐसा घटिया काम कर सकता है । उसने डायरी को आगे पढ़ा तो पता चला की कुमार को इनके इस चोरी और देश से गद्दारी वाले धंधे की खबर लग गयी और कैसे उन सबने मिलके साज़िश के तहत कुमार को अपने जाल में फंसाया । कुमार तक नौशेरा में कुछ आतंकवादियों के छुपे होने की झूठी खबर फैलाई और उसे अपने जाल में फंसाते हुए चारों तरफ से घर के मौत के घाट उतारा ।
डायरी पूरी पढ़ने तक कामीनी को अपने आप से और अपने भाई से घिन्न आ रही थी । वो लगातार रो रही थी और अपने आपको कोस रही थी की क्यों उसने कुमार को गलत समझा, क्यों वो महेंद्र की बहन है, क्यों इतनी बड़ी बात उसके बेटे कबीर ने आज तक छुपाई । वो सोचती जा रही थी और कुमार को याद करते हुए रोती जा रही थी ।
वहीं कबीर के कमरे के दरवाज़े पर खड़े होकर स्वीटू भी अपनी नम आँखों से अपनी माँ को रोते हुए देख रही थी ।
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Very nice updateNew Update... 052
कबीर जाके तैयार हुआ और स्वीटू को लेके सारा को लेने निकल गया । सारा के घर पहुँच कर स्वीटू बोली -
स्वीटू - भाई आप बैठो... मैं ले आती हूँ मैडम को ।
कबीर - ठीक है ।
स्वीटू ने जाके घंटी बजायी और सारा ने दरवाज़ा खोला । सारा स्वीटू को देखके घबरा गयी तो स्वीटू तो झटका खाके मुँह खोले खड़ी रही ।
सारा को स्वीटू के आने की कोई उम्मीद नही थी । वो तो कबीर का सोचके नंगी चली आयी थी गेट खोलने । उसने तुरंत अपना नंगा बदन ढकने की कोशिश की ।
सारा को दरवाज़े पे नंगी देखके स्वीटू बोली -
स्वीटू - नमस्ते मैडम... आपने तो सच में मेरी गुड मॉर्निंग कर दी । वैसे आज आपको नंगी देखके समझ में आया की क्यों मेरा भाई आपके ऊपर लट्टू है ।
सारा अपने नंगे बदन को छुपाते हुए शर्माती रही ।
स्वीटू - मैडम... आज क्या नंगी चलोगी स्कूल । वैसे एक बात तो सच है की आप वाकई में कपड़ों से ज़्यादा नंगी खूबसूरत लग रही हो । काश के मैं आपको ऐसे ही ले जाती ।
स्वीटू की बातों से सारा तो शर्म से पानी पानी हो रही थी मगर उसी के साथ उसकी चूत भी गीली हो रही थी । सारा फटाफट अंदर गयी और साथ में स्वीटू भी अंदर आ गयी । थोड़ी ही देर में पीछे से कबीर भी आ गया ।
सारा नहाने चली गयी और स्वीटू कबीर से बात करने लगी ।
स्वीटू - भाई... मान गए आपको... मैडम तो सच में कमाल की हैं और तो और नंगी ही आ गयी थीं दरवाज़ा खोलने ।
कबीर तो बस स्वीटू की बात सुनके मुस्कुरा रहा था ।
स्वीटू - भाई मुझे आपसे जलन हो रही है ।
कबीर - क्यों...
स्वीटू - आपने इसे अपना बना रखा है... भाई मुझे भी खेलना है मैडम के साथ ।
कबीर - नही...
स्वीटू - प्लीज भाई...
कबीर - बोला ना नही...
स्वीटू - ठीक है... आज के बाद मुझसे कभी बात मत करना ।
कबीर - अच्छा नाराज़ मत हो बेटू... तू भी खेल ले बस ।
स्वीटू - थैंक यू भाई... अब आप जाओ और गाड़ी में बैठो । मैं मैडम को लेके आ जाउंगी ।
कबीर जाके गाड़ी में बैठ गया और स्वीटू को मस्ती सूझने लगी ।
सारा जैसे ही नहाके निकली तो उसने देखा की स्वीटू उसके कमरे में ही खड़ी थी । सारा फटाफट अपने कमरे में आयी और अपने कपड़े निकालने लगी मगर उसे उसके कपड़े नही मिले । वो काफी परेशान हो गयी ।
स्वीटू सारा की हालत देखके बोली -
स्वीटू - क्या हुआ मैडम... जल्दी करो ना... देर हो रही है ।
स्वीटू की बात से सारा को लगा शायद ये काम स्वीटू का है । उसने हिम्मत करके स्वीटू से कहा -
सारा - मेरे कपड़े नही मिल रहे ।
स्वीटू - ओफ्फो मैडम... आपने भी क्या कपड़े कपड़े लगा रखा है । आपको क्या ज़रूरत है कपड़ों की । अब जल्दी चलो... आपके चक्कर में मुझे लेट नही होना ।
स्वीटू सारा का हाथ पकड़ के ले जाने लगी । सारा तो थर थर काँप रही थी । उसने डरते हुए कहा -
सारा - प्लीज मुझे कपड़े तो दे दो । ऐसे नंगी तो मत ले जाओ ।
स्वीटू - क्या मैडम आप भी... एक बार ऐसे नंगी चलके तो देखो... ना आपकी चूत पानी छोड़ दे तो मेरा नाम बदल देना ।
सारा तो शर्म के मारे ज़मीन में गड़ी जा रही थी । उसकी धड़कने बढ़ी हुई थीं और ऐसे चलने से उसके स्तन और उसकी गांड बड़े ही मादक लय में हिल रही थी ।
स्वीटू सारा को खींच के घर से बाहर ले आयी और बोली -
स्वीटू - मैडम चलो जल्दी ताला लगाओ फिर चलें ।
उधर सारा तो डर के मारे वहीं जम गयी थी ।
सारा की हालत को देखके स्वीटू फिर बोली -
स्वीटू - मैडम... अब क्या सब मोहल्ले वालों को अपने इस नंगे हुस्न का दीदार करा के ही चलोगी क्या ।
स्वीटू की इस बात से सारा होश में आयी और जल्दी से ताला लगा के स्वीटू के साथ गाड़ी में आ गयी ।
कबीर तो सारा को यूँ नंगी देखके दंग ही रह गया ।
कबीर - अरे ये क्या... आज कपड़े नही पहने... आज तो पूरे स्कूल की हालत ख़राब करनी है क्या ।
सारा की शर्म और घबराहट अब बढ़ती ही जा रही थी । मगर उसके पास बात मानने के अलावा और कोई चारा भी नही था इसलिए उसने धीरे से बोला -
सारा - नही मालिक आज मैं नंगी ही चलूंगी... आप ले चलो जल्दी से वरना लेट हो जायेंगे...
कबीर - अरे बिलकुल... तुझे तो मैं इस हाल में सारी दुनियाँ में घुमा सकता हूँ फिर स्कूल क्या चीज़ है... चलो...
कबीर ने अपनी गाड़ी चालू की और वो स्कूल के लिए निकल पड़े ।
रास्ते में स्वीटू ने सारा से पूछा -
स्वीटू - तो मैडम कैसा लग रहा है...
सारा डरते हुए बोली - अच्छा लग रहा है...
स्वीटू - तो ठीक है फिर आज से मैडम हमारे साथ रोज़ नंगी चलेंगी...
कबीर तो बस स्वीटू की बातों से और सारा की हालत के मज़े ले रहा था ।
थोड़ी देर में वो लोग स्कूल पहुँच गए और सारा की धड़कने अब पूरी रफ़्तार से चल रही थीं । उसे लग रहा था की उसका दिल ही निकल के बाहर आ जायेगा ।
खैर कबीर ने गाड़ी स्कूल के पीछे ले जाके खड़ी की और स्वीटू सारा को बाहर निकालने लगी ।
सारा का पूरा बदन इस वक़्त पसीने से भीगा हुआ था और उसके पैर भी काँप रहे थे लेकिन अब कुछ नही हो सकता था ।
कपड़े उसके पास थे नही और पूरा दिन गाड़ी में तो नही बैठ सकती थी तो उसने हार मान के उतरने में ही भलाई समझी ।
आज तो ये तीनों रोज़ के समय से थोड़ा जल्दी आ गए थे इसलिए अभी इन तीनों के अलावा और कोई भी नही था ।
कबीर और स्वीटू सारा को अपने साथ अपनी क्लास में ले गए । क्लास में आने के बाद सारा की घबराहट थोड़ी कम ज़रूर हुई थी मगर अब उसे चिंता थी की वो स्कूल में पूरा दिन नंगी कैसे घूमेगी और बच्चों को पढ़ाएगी कैसे ।
इधर स्वीटू का तो मन ही नही भर रहा था । उसे ना जाने कैसा मज़ा आ रहा था । वो सारा के पास आयी और उसने पूछा -
स्वीटू - मैडम अब बताओ... मज़ा आ रहा है ना ।
सारा डरते हुए बोली - मेरे कपड़े... पूरा दिन... मैं नंगी...
बेचारी सारा तो ठीक से बोल भी नही पा रही थी ।
स्वीटू - मैडम... गलत बात... मैं क्या पूछ रही हूँ और आप क्या बोल रही हो ।
सारा - सॉरी... गलती हो गयी... हाँ मुझे अच्छा लग रहा है ।
स्वीटू - अच्छा... रुको जांच करती हूँ ।
और ये बोलके स्वीटू सारा के पास गयी और उसके पैर फैला के अपनी ऊँगली उसकी चूत में डाल दी ।
सारा तो स्वीटू के हमले से उछल गयी और उसके मुँह से निकला - आउच...
स्वीटू ने अपनी ऊँगली सारा की चूत से निकाली और कबीर को दिखाते हुए बोली -
स्वीटू - भाई... देखो ना मैडम की चूत तो कितना पानी बहा रही है ।
स्वीटू की बात सुन के कबीर मुस्कुरा दिया और सारा शर्माने लगी ।
स्वीटू - ओहो मैडम... क्या गज़ब हो आप... नंगी बैठी हो और शर्माती हो ।
कबीर - चल स्वीटू... अब बस कर... अब तो छोड़ दे उसे...
स्वीटू - ठीक है भाई... मगर मैडम मुझे बहुत पसंद आयी हैं... आज के बाद मैं इन्हे ऐसे ही देखना चाहती हूँ ।
कबीर - अच्छा ठीक है स्वीटू... अब से नंगी ही रहेगी बस...
स्वीटू - थैंक यू भाई...
स्वीटू सारा के पास गयी और उसे होठों को चूम लिया । सारा तो कुछ समझ ही ना पायी की ये एकदम से हुआ क्या मगर पहले से ही गरम होने की वजह से उसने भी स्वीटू को नही रोका और उस मीठे से चुम्बन का आनंद लेने लगी ।
स्वीटू सारा से अलग हुई और बोली -
स्वीटू - कसम से मैडम... अगर मैं लड़का होती तो इसी वक़्त आपसे शादी कर लेती ।
सारा अपनी तारीफ़ सुनकर फूली ना समाई और स्वीटू ने कबीर के पास जाके सारा की ड्रेस निकल के दी और बोली -
स्वीटू - ये लो भाई... ये मैं अपने साथ ले आयी थी । अब आगे आप देखो... मैं चली बाहर ।
स्वीटू क्लास से बाहर चली गयी और सारा को ड्रेस देखते ही जान में जान आ गयी ।
कबीर ने भी जाके सारा को ड्रेस थी और उसके होठों को चूमते हुए कहा -
कबीर - ये ड्रेस पहन ले और असेंबली में चली जाना । अभी तो वैसे भी कुछ करने का मन नही है । इसकी भरपाई बाद में कर दूंगा ।
सारा ने ड्रेस पहनी और वो नीचे चली गयी ।
कबीर अभी क्लास में बैठा ही था की उसके पास तमन्ना का फ़ोन आया ।
तमन्ना - हेलो...
कबीर - हाँ तमन्ना बोल ।
तमन्ना - भाई वो आपने बोला था सुबह मिलने के लिए ।
कबीर भी अनजान बनते हुए - किसलिए...
तमन्ना - वो आपको ड्रेस दिखानी थी अपनी ।
कबीर - तो दिखा...
तमन्ना - मगर आप हो कहाँ...
कबीर - जहाँ कल था... दूसरे माले पर...
तमन्ना - ठीक है... अभी आयी ।
कबीर ने अपना फ़ोन रखा और ऊपर चला गया ।
तमन्ना जैसे ही ऊपर आयी वो कबीर को देखके बोली -
तमन्ना - भाई... देखके बताओ क्या मैं ठीक लग रही हूँ ।
कबीर - इधर आ मेरे पास और नज़दीक से दिखा । अच्छे से सब दिखा घूम घूमके तब बता पाऊंगा ।
तमन्ना ने कबीर के पास आके कबीर को घूम घूमके अपनी ड्रेस दिखानी शुरू की ।
कबीर - वाह तमन्ना... क्या चूँची है तेरी । देख कैसे साफ साफ दिख रही हैं बिलकुल नुकीली और खड़ी । पूरे स्तन नज़र आ रहे हैं । शर्ट में तो तू पास हो गयी अब तेरी स्कर्ट की बारी है ।
तमन्ना अब सीधी खड़ी हो गयी ।
कबीर - क्या बात है तमन्ना... स्कर्ट तो काफी छोटी कर ली तूने । देख कैसी तेरी चिकनी नंगी टाँगे पूरी दिख रही हैं । मेरा तो लंड खड़ा होने लगा देखके । अब ज़रा घूम जा तो तेरी पीछे की दूकान भी देख लूं ।
तमन्ना घूमके खड़ी हो गयी ।
कबीर - उफ्फ्फ तमन्ना... क्या अद्भुत नज़ारा है । बेहतरीन गांड पायी है तूने ।
कबीर ने तमन्ना की गांड को सहलाया तो तमन्ना की भी आह... निकल गयी ।
कबीर - तेरी स्कर्ट तो ठीक है । अब बता स्कर्ट के अंदर क्या पहना है ।
तमन्ना - कुछ नही ।
कबीर - मैं कैसे मान लूं । तू स्कर्ट उतार के दिखा ।
तमन्ना ने अपनी स्कर्ट उतार के कबीर को दे दी ।
कबीर तो तमन्ना की नंगी चिकनी चूत देखके ही पागल होने लगा । उससे रहा नही गया और उसने अपना हाथ तमन्ना की चूत पे रख दिया ।
तमन्ना - आह भाई... उम्म...
कबीर - तेरी चूत तो आग उगल रही है ।
कबीर ने तमन्ना की गांड पे अपने दोनों हाथ रखे और सहलाते हुए उसे अपनी तरफ खींच लिया ।
तमन्ना कबीर से चिपक गयी और कबीर ने उसके होंठ चूमने शुरू किये ।
तमन्ना भी कबीर की पीठ सहलाती रही और कबीर का साथ देती रही ।
कबीर ने तमन्ना के मुँह में अपनी जीभ डाल दी और तमन्ना उसे चूसने लगी । थोड़ी ही देर में कबीर ने भी ऐसा ही किया और तमन्ना उम्म... उम्म की सिसकियाँ लेने लगी ।
कबीर उसे काफी देर तक चूमता रहा और फिर उसे छोड़ के अलग हुआ और बोला -
कबीर - चल जल्दी से नंगी हो जा ।
तमन्ना ने अपने शर्ट और जूते मोज़े उतारने शुरू किये और कबीर ने सारा को मैसेज करके कुछ समझाया और ऊपर बुलाया ।
तमन्ना ने अपनी बची हुई सभी चीज़ें निकाल के कबीर को दीं और उसके पास आके खड़ी हो गयी ।
कबीर ने देर ना करते हुए तमन्ना के स्तन चूसने शुरू कर दिए ।
तमन्ना की सिसकियाँ निकलने लगी और उसकी चूत भी गीली होने लगी ।
कबीर तमन्ना के स्तनों को निचोड़ ही रहा था की तभी सारा भी वहां आ गयी ।
सारा ने जैसे ही ये नज़ारा देखा तो उसकी आँखें बड़ी हो गयीं और उसके मुँह से निकला - या अल्लाह...
सारा की आवाज़ सुनते ही तमन्ना एक दम से अलग हुई और अपना बदन छुपाते हुए बोली -
तमन्ना - मैडम आप यहाँ...
सारा - ये क्या हो रहा है तमन्ना...
तमन्ना की तो गांड ही फट गयी थी ।
सारा - मैं कुछ पूछा है... अब बताती है या चलें प्रिंसिपल के पास ।
तमन्ना ने तुरंत सारा के पैर पकड़ लिए और रोने लगी ।
सारा - अब क्यों रोती है... ये सब तुझे पहले सोचना था ।
तमन्ना - माफ़ कर दो मैडम...
तमन्ना की हालत देखके कबीर की हंसी निकल गयी और उसके साथ सारा भी हस पड़ी ।
तमन्ना ने उन दोनों को देखा और कबीर बोला -
कबीर - देखा तमन्ना... बस इतने में ही तेरी हवा निकल गयी ना... तू मेरे लायक़ है ही नही... तुझ जैसी डरपोक को मैं नही अपना सकता । चली जा यहाँ से ।
कबीर की बात से तमन्ना को गहरी चोट लगी और वो बोली -
तमन्ना - नही ऐसा मत करो... एक आख़री मौका दे दो । मैं साबित कर दूंगी ।
कबीर - देखते हैं... चल एक काम कर मेरा लंड चूस जल्दी से और तेरे पास सिर्फ पाँच मिनट हैं मेरा वीर्य निकालने के लिए । अगर नही कर पायी तो सज़ा के लिए तैयार रहना ।
कबीर बेंच पे छड़के खड़ा हो गया और तमन्ना जल्दी से आयी बेंच पे घोड़ी बन गयी । उसने कबीर की पेंट से लंड बाहर निकाला और चूसने लगी ।
कबीर - सारा... इधर आ और नीचे लेट के तमन्ना की चूत चाट ।
सारा बेंच पे लेट गयी और तमन्ना की चूत चाटने लगी ।
तमन्ना का पूरा शरीर काँपने लगा और उसे कबीर का लंड चूसने में दिक्कत होने लगी । सारा से अपनी चूत चटवाने की वजह से तमन्ना के शरीर की गर्मी बढ़ने लगी । जैसे जैसे उसकी चूत पानी बहाती जाती वैसे वैसे उसकी रफ़्तार कम होती जाती ।
कबीर को बड़ा मज़ा आ रहा था । उसे मालूम था की इस तरह से तमन्ना पाँच मिनट में उसका लंड नही चूस पाएगी और उसे तो ऐसा ही चाहिए था ।
कबीर इस पूरे दृश्य को अपने कैमरे से मोबाइल में उतार रहा था और थोड़ी ही देर में कबीर बोला -
कबीर - तमन्ना... हट जा... तेरे पाँच मिनट पूरे हो गए और तुझे सज़ा मिलेगी ।
कबीर ने तमन्ना को हटाया तभी असेंबली ख़त्म हो गयी और वो बोला -
कबीर - सारा अब तू जा... तेरी क्लास का समय हो गया है । मैं तुझे बाद में मिलता हूँ और हाँ... आज का दिन मैं इसी के साथ रहूँगा अगर स्वीटू पूछे तो बता देना की मैं कहीं काम से गया हूँ ।
सारा - जी मालिक ।
सारा वहां से चली गयी और कबीर बोला -
कबीर - चल अब तेरी सज़ा का समय है । तू बैठ यहीं मैं आता हूँ ।
तमन्ना उठके अपने कपड़े पहनने लगी तो कबीर ने छीन लिए और कहा -
तमन्ना - तुझे मैंने बोला कपड़े पहनने को । तू नंगी ही रहेगी और तेरे कपड़े अब मेरे पास ही रहेंगे ।
कबीर तमन्ना के कपड़े लेके चला गया और जाके उसकी क्लास से उसका बैग लेके नीचे अपनी गाड़ी में रख आया ।
कबीर ज़ब वापस लौट रहा था तो उसे गार्ड मिला ।
गार्ड उसे देखके मुस्कुरा रहा था तो कबीर उसके पास चला गया । कबीर के पास जाते ही गार्ड बोला -
गार्ड - कबीर बाबा कैसा चल रहा है ।
कबीर - अरे कहाँ चल रहा है... बस दिन कट रहे हैं...
गार्ड - अब हमसे ही छुपाने लगे क्या कबीर बाबा । पहले वो मैडम फिर वो लड़की ।
कबीर तो गार्ड की बात सुनके एक पल के लिए सोच में पड़ गया ।
गार्ड - कहाँ खो गए कबीर बाबा । मुझे सब पता है असेंबली के वक़्त यहाँ क्या होता है ।
कबीर - तुम्हे कैसे पता...
गार्ड - मैं गार्ड हूँ इस स्कूल का । मुझे तो पूरे स्कूल की निगरानी करनी पड़ती है । मुझसे क्या छुपेगा ।
कबीर कुछ देर सोचता रहा फिर बोला -
कबीर - बहती गंगा में डुबकी लगाओगे क्या ।
गार्ड - कबीर बाबा नेकी और पूछ पूछ...
कबीर - तो ठीक है... मैं तुम्हारा काम करवा दूंगा मगर मुझे खुश करना होगा ।
गार्ड - आप बोलो... क्या करना है...
कबीर - बाद में बताऊंगा... फिलहाल तो मुझे जाना है... अपना अधूरा काम पूरा करना है...
गार्ड - जाओ... और मेरे लायक कोई काम हो बताना...
कबीर - एक काम करोगे मेरा...
गार्ड - बताओ...
कबीर - ऊपर जाके उसे नीचे ला सकते हो क्या...
गार्ड - बस इतनी सी बात...
कबीर - ये इतनी सी बात नही है...
गार्ड - मुझे सब मालूम है कबीर बाबा । आपने जो सामान गाड़ी में रखा है, मैं वो देख चुका हूँ । आप चिंता मत करो, किसी को पता नही चलेगा ।
कबीर - तो जाओ और ले आओ ।
गार्ड ऊपर चला गया और उसके पीछे पीछे कबीर भी छुपते छुपाते ऊपर चला गया ।
उधर तमन्ना नंगी बैठी कबीर की राह देख रही थी की तभी उसको किसी के आने की आहत सुनाई दी । उसे लगा की कबीर आ गया । वो जैसे ही बाहर आयी तो उसने देखा की कबीर की जगह गार्ड चला आ रहा है । वो तुरंत अंदर भागी और अपने आपको छुपाने लगी ।
गार्ड भी अंदर आया और बोला -
गार्ड - अब छुपने से कोई फायदा नही है मैडम... आ जाओ बाहर । आपको नीचे बुलाया है कबीर बाबा ने ।
तमन्ना की गांड फट रही थी की गार्ड ने उसे नंगा देख लिया है और अब कहीं ये बात पूरे स्कूल में ना फ़ैल जाए ।
गार्ड अंदर आया और उसने तमन्ना को खींच के अपनी गोद में उठाया और चलने लगा ।
तमन्ना चिल्लायी -
तमन्ना - छोड़ो मुझे... कहाँ ले जा रहे हो... नीचे उतारो...
गार्ड - कबीर बाबा के पास... उन्होंने बुलाया है... अब चुप चाप चलो वरना पूरे स्कूल को पता चल जाएगा...
तमन्ना डर के मारे चुप हो गयी मगर उसके आंसू बहने लगे ।
इधर गार्ड जैसे ही तमन्ना को लेके बाहर आया तो उसे सामने सीढ़ीयों पे कबीर दिखाई दिया जो वहां खड़ा इनकी वीडियो बना रहा था ।
जब वो पास आये तो कबीर ने मोबाइल बंद करके जेब में रखा और कहा -
कबीर - ले चलो इसे मेरी गाड़ी के पास ।
और ये बोलके कबीर नीचे चला गया । थोड़ी ही देर में गार्ड भी तमन्ना को अपनी गोद में लिए नीचे आ गया और कबीर के पास जाके तमन्ना को नीचे उतार दिया ।
तमन्ना भाग के गाड़ी के पीछे जाने लगी तो कबीर ने उसका हाथ पकड़ के रोक लिया और कहा -
कबीर - यहीं खड़ी रह चुप चाप ।
कबीर गार्ड से बोला -
कबीर - किसी ने देखा तो नही ।
गार्ड - नही कबीर बाबा... सब तो अपनी अपनी क्लासों में हैं तो कोई कैसे देखेगा ।
कबीर - ठीक है... अब तुम जाओ...
गार्ड - जी अच्छा...
गार्ड के जाते ही कबीर ने तमन्ना के स्तन पूरी ताकत से दबा दिए और तमन्ना की चीख निकल गयी -
तमन्ना - आह... मर गयी... मम्मी...
कबीर - दर्द हो रहा है क्या... आज तो तुझे यहीं चोदुँगा... तेरी चीखें आज पूरे स्कूल में गूँजेंगी ।
कबीर ने तमन्ना को घुमाया और उसकी गांड को मार मार के लाल करना शुरू किया ।
तमन्ना - आह भाई... चोद लो मुझे... मगर मारो मत... दर्द हो रहा है भाई...
तमन्ना के बोलते ही कबीर ने और ज़ोर से मारना शुरू किया और तमन्ना रो पड़ी ।
तमन्ना - भगवान के लिए रुक जाओ भाई... प्लीज मत मारो... बहुत दुख रहा है ।
कबीर - चल ठीक है ।
कबीर ने मारना बंद किया तो तमन्ना ने अपनी गांड मलनी शुरू की । वो रोते हुए बोली -
तमन्ना - भाई... आपने मुझे इतना क्यों मारा ।
कबीर - ये इसलिए था की आज के बाद मैं जो भी कहूँ, जहाँ भी कहूँ वो उसी वक़्त करना है... समझ गयी वरना आज तो गार्ड था कल पूरा स्कूल या पूरा शहर भी हो सकता है ।
तमन्ना - जी...
कबीर - चल पीछे घूम और मुझे अपनी गांड दिखा ।
तमन्ना घूम गयी और कबीर ने उसकी लाल हो चुकी गांड चाटना शुरू किया ।
तमन्ना - आउच भाई... क्या कर रहे हो...
कबीर - चुप चाप खड़ी रह... तेरी गांड को चाटके ठंडा कर रहा हूँ ।
थोड़ी देर में तमन्ना को भी मज़ा आने लगा और उसका दर्द भी बंद हो गया तो कबीर ने उसे घुमाया और उसके पैर फैलाके उसकी चूत चाटनी शुरू की ।
तमन्ना - ओह्ह्ह... भाई... चाटो मेरी चूत... मेरे भाई... मुझे ठंडा कर दो...
कबीर उसकी चूत दबा दबाके चाटने लगा और अपनी जीभ नुकीली करके अंदर बाहर करने लगा ।
तमन्ना भी कबीर का सर अपनी चूत पे दबाती रही और थोड़ी ही देर में वो झड़ने लगी ।
तमन्ना - भाई... मैं झड़ रही हूँ... मुझे अपना बना लो भाई... आह... भाई... ऊऊह्ह्ह्ह... मैं सब करुँगी भाई... मुझे अपना लो... आह... आअह्ह्ह.... उउफ्फ्फ...
तमन्ना का पूरा शरीर झड़ने के बाद भी काँपता रहा ।
कबीर खड़ा हुआ और तमन्ना को पकड़ के बोला -
कबीर - इधर देख...
तमन्ना - हाँ भाई...
कबीर - अब बता क्या बोल रही थी तू...
तमन्ना - हाँ भाई... मुझे अपना लो भाई... मैं सब करुँगी... जो आप कहोगे मैं सब बात मानूंगी.... प्लीज भाई... मुझे अपना लो... मैं आपके बिना नही रह पाऊँगी ।
कबीर - सोच ले फिर से...
तमन्ना - नही सोचना भाई...
कबीर - तो आजा नीचे ।
तमन्ना तुरंत बैठ गयी और कबीर का लंड निकाल के चूमने लगी । तमन्ना भूखी शेरनी की तरह उसके लंड पे टूट पड़ी और पूरे लंड पे चुम्बनो की बारिश कर दी ।
कबीर से भी रहा ना गया और उसने तमन्ना के सर पे थोड़ा दबाव बनाया और तमन्ना भी इशारा समझ गयी और उसका पूरा लंड मुँह में लेके चूसने लगी ।
कबीर के मुँह सी धीमी धीमी आहें निकल रही थीं तो तमन्ना के मुँह से गूं... गूं... की आवाज़ें ।
कबीर ने थोड़ी ही देर में तमन्ना को रोका और खड़ा किया ।
तमन्ना - भाई... चूसने दो ना...
कबीर ने उसे अपनी कार के बोनट पे लिटाया और उसके पैर फैला के अपना लंड उसकी चूत पे रखा और बोला -
कबीर - तमन्ना... आज तेरी चीखें पूरे ब्रम्हांड में गूँजेंगी ।
कबीर ने एक ज़ोरदार झटका मारा और एक ही झटके में उसकी चूत फाड़ के उसका कोमार्य भंग कर दिया । तमन्ना अब लड़की नही नही रही थी । वो एक औरत बन गयी थी ।
तमन्ना - आआआआहहहहहह... मााााररररररररर दियाााा... भाईईईईई... निकालोोोो... इसे... ओह्ह्ह्हह्ह...
तमन्ना कबीर को धक्का देने लगी मगर कबीर ने तमन्ना की चूँची पकड़ ली जिससे तमन्ना के धक्का देते ही वो खिचने लगी और वो दर्द से छटपटाने लगी ।
तमन्ना - आअह्ह्ह... भाई... छोड़ दो...
कबीर ने अपना लंड बाहर निकला और फिर एक करारा धक्का लगाया । कबीर का आधा लंड उसकी चूत में जा फंसा और तमन्ना की चूत ने अच्छी खासी खून की धार छोड़ी और दोनों की टाँगे रंगीन कर दी ।
इस बार कबीर ने तमन्ना को चीखने नही दिया और उसका मुँह दबा लिया ।
कुछ देर रुकने के बाद कबीर ने धीरे धीरे लंड आगे पीछे हिलाना शुरू किया और तमन्ना को थोड़े दर्द के साथ थोड़ा मज़ा भी आने लगा ।
कबीर ने फिर ज़ोर लगाया और एक आख़री धक्का मार के अपना लंड उसकी चूत की जड़ तक उतार दिया और उसे धीरे धीरे चोदने लगा । कबीर अब काफी आराम से तमन्ना को चोद रहा था और कुछ ही देर में तमन्ना को मज़ा आने लगा ।
तमन्ना - भाई... बहुत मज़ा आ रहा है... मैं हवा में उड़ रही हूँ... ऐसे ही चोदो भाई... अब कभी नही रुकना... बस चोदते रहो... आहहहह... भाई... उउउफ़फ़फ़फ़...
कबीर उसको चोदते हुए बोला -
कबीर - क्यों तमन्ना कैसा लग रहा है...
तमन्ना - भाई ये तो स्वर्ग जैसा लग रहा है... ओह्ह्ह... भाई... ओह्ह्ह... मेरे भगवान... उउउम्म्म... भाई थोड़ा तेज़ करो... उउउफ्फ्फ...
कबीर ने अपने झटके थोड़े तेज़ किये और तमन्ना ने अपनी दोनों टांगों का घेरा बनाके कबीर की कमर जकड़ ली और उसके गले में अपनी बाहें डाल कर खुद भी अपनी कमर हिलाने लगी ।
तमन्ना - आह भाई... और तेज़ भाई... और तेज़...
कबीर - हाँ... ये ले... और ज़ोर से ले...
दोनों ही इस धुआंधार चुदाई में लगे हुए थे और ऐसे ही लगभग बीस मिनट तक चुदाई करने के बाद तमन्ना झड़ने लगी और उसके साथ कबीर भी झड़ने लगा ।
कबीर - मेरा वीर्य निकलने वाला है ।
तमन्ना - मेरा भी भाई । आप अंदर ही निकाल दो । मैं महसूस करना चाहती हूँ । आह भाई... मैं गयी... मुझे सम्भालो... भाई... ओह्ह्ह... आअह्ह्ह... मम्मी... उफ्फ्फ...
कबीर - आह तमन्ना... ये ले... भर ले पूरा... ओह्ह्ह...
थोड़ी देर में वो दोनों झड़ गए और वहीं गाड़ी पर पड़े रहे । जब दोनों की हालत थोड़ी ठीक हुई तो तमन्ना नीचे बैठी और कबीर के पैर पकड़ के बोली -
तमन्ना - भाई... मुझे अपनाओगे ना... अब तो मुझे चोद भी लिया... बोलो ना भाई...
कबीर - ठीक है मगर एक बात याद रखना, अगर कभी भी मेरी कोई बात नही मानी तो मैं छोड़ के चला जाऊंगा ।
तमन्ना - नही भाई... आपके चरणों की सौगंध खाती हूँ... ऐसा कभी नही करुँगी ।
कबीर ने अपनी बाहें फैलाके उसे इशारा किया और वो ख़ुशी से कबीर की बाहों में समा गयी ।
कबीर - अब जाके के गाड़ी में बैठ, अपने आपको साफ कर और कपड़े पहन... उसके बाद तुझे घर छोड़ दूं ।
तमन्ना अंदर जाके अपने आप को साफ करके कपड़े पहन के बाहर आयी और कबीर से बोली -
तमन्ना - चलो भाई...
कबीर तमन्ना को लेके स्कूल से निकल पड़ा मगर जैसे ही वो गेट पे पहुंचा तो गार्ड मुस्कुरा रहा था । तमन्ना उस गार्ड को देखके डर गयी और कबीर उसकी हालत को देखते हुए बोला -
कबीर - कुछ नही करेगा... मेरा ही आदमी है... तू बैठ आराम से ।
तमन्ना को थोड़ी राहत हुई और कबीर उसे घर ले गया ।
कबीर ने तमन्ना को घर छोड़ा और उसे दर्द की दवाई दी और बाहर से ही लौट गया ।
थोड़ी ही देर में कबीर वापस स्कूल पहुंचा और उसने मेथी को फ़ोन लगाया ।
मेथी ने कबीर का फ़ोन देखा तो वो डर गया की अब क्या नयी मुसीबत आने वाली है । उसने फ़ोन उठाया और बात की ।
मेथी - नमस्ते जीजाजी चरण स्पर्श ।
कबीर - हाँ मेथी चुदते रहो और अपनी बहन चुदवाते रहो ।
मेथी - कुछ काम था क्या ।
कबीर - मुझे उस आदमी का नंबर दे जल्दी जिससे तूने माल लिया था और मैंने एक लाख रूपए दिए थे ।
मेथी डरते हुए बोला - क्या हो गया जीजाजी ।
कबीर - गांडू जितना बोला है... उतना कर... सवाल मत कर...
मेथी - मैं देता हूँ नंबर ।
मेथी ने कबीर को नंबर भेजा और कबीर ने उस आदमी को फ़ोन लगाया ।
आदमी - हेलो...
कबीर - कबीर बोल रहा हूँ...
आदमी - जी सर नमस्ते ।
कबीर - तुम्हारे पुराने नंबर को क्या हो गया और ये नया नंबर लिया तो मुझे बता नही सकते थे ।
आदमी - सॉरी सर... वो अचानक से नंबर बदलना पड़ा । आप बताओ ना क्या काम है ।
कबीर - एक फोटो भेज रहा हूँ और उसके साथ उसका पता भी । अगले आधे घंटे के अंदर उसे उठा लो और फिर उसे गायब कर दो... वो दुबारा कभी नज़र ना आये ।
आदमी - समझ गया सर । आपका काम हो जाएगा ।
कबीर ने बात ख़त्म की और उस आदमी को सारी जानकारी भेज के अपनी क्लास में चला गया ।
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कबीर क्लास में गया तो उस वक़्त लंच टाइम चल रहा था और स्वीटू भी खाने जा रही थी की तभी उसे कबीर दिखा ।
कबीर आके स्वीटू के पास बैठा और स्वीटू बोल पड़ी -
स्वीटू - भाई... कहाँ चले गए थे सुबह से ।
कबीर - कुछ नही... थोड़ा सा ज़रूरी काम आ गया था । बस वो निपटाने गया था ।
स्वीटू - मैं समझ रही हूँ भाई कौन सा काम ।
कबीर - वैसे तू ठीक ही समझ रही है । हिसाब तो अभी बहुत लोगों से लेना है ।
स्वीटू - तो कैसा चल रहा है हिसाब किताब ।
कबीर - अभी तो शुरू किया है लेकिन जल्दी पूरा हो जायेगा ।
स्वीटू - भगवान करे वो दिन जल्दी आये । अच्छा अब तो कहीं नहीं जाना है ना ।
कबीर - अब नही जाना है बेटू । अब हो गए तेरे सवाल जवाब तो थोड़ा खाना खा लें ।
स्वीटू - हाँ भाई... बहुत भूख लगी है ।
उसके बाद दोनों ने साथ में खाना खाया और खाना ख़त्म होते तक कबीर के पास फ़ोन आया ।
आदमी - सर... काम कर दिया है ।
कबीर - उसके घर वालों की सारी जानकारी निकालो फटाफट और उसके बाद वो आदमी दुबारा कभी नज़र ना आये ।
आदमी - समझ गए सर ।
कबीर - सारी जानकारी मिलते ही मुझे मैसेज कर देना । और मैं तुमसे बाद में मिलता हूँ ।
आदमी - जी सर ।
कबीर ने फ़ोन रखा और अपना टिफ़िन समेटा तभी स्वीटू बोली -
स्वीटू - भाई... क्या चल रहा है ।
कबीर - बताऊंगा स्वीटू... मगर सही वक़्त आने दे पहले ।
स्वीटू - ओके भाई ।
उसके बाद का दिन दोनों ने पढ़ाई करते हुए निकाला और आख़री पीरियड में भी कोई घटना नही हुई ।
सारा ने भी बिना किसी शिकवे शिकायत के क्लास को पढ़ाया और फिर छुट्टी के बाद तीनों घर निकल गए ।
सारा को छोड़ने के बाद कबीर स्वीटू के साथ घर पहुंचा और मुँह हाथ धोके कामीनी के पास आया ।
कामीनी - जी... आप कहीं जा रहे हैं क्या ।
कबीर - हाँ... क्यों क्या हो गया ।
कामीनी - आप अभी तो आये हैं और खाना भी नही खाया । वैसे आज कल तो आप कुछ ज़्यादा ही घर से बाहर रहते हैं ।
कबीर - अरे... ये क्या बात हुई ।
कामीनी - आपके परिवार को भी आपकी ज़रूरत है । आप तो समझते ही नही ।
कबीर - कम्मो... मेरी जान... मुझे सब पता है और वैसे भी कल रक्षाबंधन है तो मुझे जाने दे । मुझे स्वीटू के लिए कुछ लेना भी है ।
कामीनी - तो आपको याद था ।
कबीर - नही तो क्या मुझे बेवक़ूफ़ समझ रखा है क्या ।
कामीनी - नही नही... मेरा वो मतलब नही था ।
कबीर - अच्छा... अब मुझे जाने दे और स्वीटू को खाना खिला के उसे अपने पास ही बुला लेना । देखना वो ठीक से पढ़ाई करे । मैं चलता हूँ ।
कामीनी - जी अच्छा...
कबीर कामीनी से बात करके निकला और उसने अपने उसी आदमी को फ़ोन किया और बोला -
कबीर - मुझे एक ~~~~ चाहिए और वो बिलकुल ~~~~ होना चाहिए । और हाँ ये मुझे मेरी बहन स्वीटी के नाम से चाहिए । कब तक होगा ।
आदमी - सर पता करते हैं ।
कबीर - सुनो कल रक्षाबंधन है और मुझे ये आज शाम तक या आज रात तक चाहिए ।
आदमी - हो जायेगा सर...
कबीर - और उस काम का क्या हुआ । तुमने तो बताया ही नही ।
आदमी - सर आपके कहने के हिसाब से आपके स्कूल के गार्ड को उठा लिया था और उससे उसके पूरे परिवार की जानकारी ले ली है ।
कबीर - कौन कौन है ।
आदमी - उसकी पत्नी है और बेटी है ।
कबीर - और उसका कोई बेटा ।
आदमी - है सर लेकिन वो सालों पहले ही घर छोड़कर भाग गया था और उसकी कोई खबर भी नही है ।
कबीर - ठीक है... उसे स्कूल के पास ही सडक हादसे में उड़ा दो और उसके फ़ोन से उसकी बीवी को खबर कर दो और स्कूल के प्रिंसिपल को भी ।
आदमी - ठीक है सर ।
कबीर ने बात ख़त्म की और सारा के पास पहुंचा ।
सारा ने जैसे देखा की कबीर की गाड़ी खड़ी है तो वो भाग के आयी और दरवाज़ा खोलके उसके पैरों में बैठ गयी और रोने लगी ।
कबीर को सारा के बर्ताव से हैरानी होने लगी । सारा नगनावस्था में दरवाज़े पर कबीर के पैरों में बैठी रोती रही । कबीर उसे जितना चुप कराने की कोशिश करता सारा उतना ज़्यादा रोने लगती ।
कबीर - कुछ बोलोगी...
सारा - मुझे माफ़ कर दो मालिक ।
कबीर - हुआ क्या है ।
सारा - मैं जानती हूँ की मुझसे कोई गलती हुई है तभी मेरे मालिक मुझसे नाराज़ हैं ।
सारा ये बोलके और ज़्यादा रोने लगी और कबीर का दिमाग चलना बंद हो गया ।
कबीर - गलती... कौन सी गलती सारू...
सारा - कुछ तो हुआ होगा ना मुझसे... तभी तो आप मुझसे मिलने भी नही आते और मुझसे बात भी नही करते । मुझे माफ़ कर दो मालिक । आप मुझे मार लो मगर ऐसी सजा तो मत दो । मैं मर जाऊँगी मालिक ।
कबीर को ना जाने क्यों सारा का ऐसा बर्ताव और उसकी बातें दिल में चुभ गयीं ।
कबीर ने सारा का चेहरा उठाया और कहा -
कबीर - सारू... कुछ ज़रूरी कामों में उलझ गया हूँ इसलिए तुझे समय नही दे पा रहा हूँ ।
सारा - मैं जानती हूँ मालिक अब आपको मैं पसंद नही हूँ ना । मैं शायद आपको खुश नही कर पा रही हूँ तभी तो आपने मेरी जगह उस दूसरी लड़की को पकड़ लिया ।
कबीर - चुप कर सारू... क्या कुछ भी बकवास किये जा रही है । तुझे अभी कुछ नही पता है । तूने ये कैसे सोच लिया की तेरी जगह कोई और ले लेगा ।
सारा - मालिक तो फिर...
कबीर - चुप कर...
सारा चुप चाप खड़ी कबीर की आँखों में देखती रही और कबीर भी उसकी आँखों में देखता रहा ।
कबीर - सारू... मुझे अंदर नही बुलाएगी ।
सारा - सॉरी मालिक... आओ ना अंदर ।
कबीर अंदर आया और सारा ने जैसे ही दरवाज़ा बंद किया वैसे ही कबीर ने उसे अपनी गोद में उठा लिया और उसे कमरे में ले गया ।
कबीर ने अपने कपड़े निकाले और शॉर्ट्स में बिस्तर पर लेट गया और सारा को भी अपने साथ लिटा लिया ।
सारा कबीर के साथ लेटी तो उसे और ज़्यादा रोना आने लगा । वो रोते हुए बोली -
सारा - मालिक... अब तो मुझे छोड़ के नही जाओगे ना । मुझे अपने से अलग मत करना मालिक ।
कबीर - सारू... मैं कहीं नहीं जा रहा हूँ... तू रोना बंद कर । मैं यहीं हूँ तेरे पास ।
कबीर की बात सुनके सारा कबीर के और पास आयी और उसकी छाती पे सर रखके लेट गयी । ना जाने क्यों कबीर को सारा का इस तरह प्यार करना और प्यार देना अंदर ही अंदर भावुक कर रहा था । उसके हाथ अनायास ही सारा के सर पे चले गए और उसके बालों को सहलाने लगे ।
सारा को तो जैसे खुदा मिल गए थे । उसे कबीर का ये प्यार और अपनापन बड़ा सुकून दे रहा था । थोड़ी ही देर में उसका रोना बंद हो गया और देखते ही देखते वो नींद में चली गयी ।
सारा कबीर से किसी छोटी सी बच्ची की तरह चिपक के सोती रही । शायद बरसों बाद उसे ऐसी सुकून भरी नींद नसीब हुई थी ।
कबीर सारा के बालों को सहलाता रहा और सोचता रहा -
कबीर - ये मुझे क्या हो रहा है । मुझे क्या करना है और मैं कर क्या रहा हूँ । नही नही... मैं ऐसे कमज़ोर नही पड़ सकता । लेकिन क्यों हर बार सारा के करीब आते ही मैं पिघलने लगता हूँ । क्यों हर बार उसे देखते ही मैं सोचता कुछ हूँ और करता कुछ हूँ । मैं कैसे अपने मकसद से भटक सकता हूँ । नही नही... मैं इसके साथ वो सब नही कर पाउँगा । हाँ मुझसे वो सब नही होगा । मगर कैसे भूल जाऊं जो जो मेरे साथ हुआ था... नही नही... मेरे परिवार के साथ हुआ था । मैं भूल भी तो नही सकता । और इस सारा की क्या गलती है । ये तो कितनी प्यारी सी बच्ची है । पर स्वीटू की भी तो कोई गलती नही थी और कामीनी ने भी किसी का क्या बिगाड़ा था । है भगवान... आखिर मैं करूँ तो क्या करूँ...
कबीर अपनी दिमागी उलझन में खोया रहा और सारा के बालों को ऐसे ही सहलाता रहा ।
सारा को पुरसुकून सोते देखके कबीर के दिल को कहीं ना कहीं बड़ी ठंडक मिल रही थी और शायद अब उसके दिल में सारा के लिए मोहब्बत जाग रही थी ।
सारा जब नींद से जागी तब तक शाम हो चुकी थी । कबीर उसे अब भी अपनी बाहों में लेके लेता हुआ था और उसके बालों को अभी भी उतने ही प्यार से सहला रहा था ।
सारा बहुत खुश थी और इस सुन्दर से सुकून के एहसास से उसका चेहरा खिला हुआ था मगर कबीर के चेहरे पर तकलीफ़ साफ झलक रही थी । सारा कबीर को देखके उसकी परेशानी की वजह ढूंढ़ने की कोशिश कर रही थी लेकिन वो चाह के भी कुछ पूछ नही पा रही थी ।
कबीर ने जब देखा की सारा अब जाग चुकी है तो उसने सारा के चेहरे को पकड़ के ऊपर उठाया और उसके माथे को चूम लिया ।
कबीर - सारु... तू बैठ... मैं तेरे लिए चाय बनाता हूँ ।
सारा - नही मालिक... आप नही... मैं जाती हूँ ।
कबीर ने सारा के गाल को चूमा और कहा -
कबीर - नही... मैं बनाता हूँ और मालिक नही कबीर ।
सारा - मगर मालिक...
कबीर - बोला ना कबीर... आज से कोई मालिक नही सिर्फ कबीर ।
सारा ने ख़ुशी से कबीर को अपनी बाहों में भर लिया और उसके गाल चूम लिए ।
कबीर सारा से अलग हुआ और जाके चाय बनाके लाया । दोनों ने चाय पी और कबीर बोला -
कबीर - अब मुझे चलना चाहिए सारू...
कबीर उठके जाने लगा और सारा उसे दरवाज़ तक छोड़ने आयी ।
कबीर जाते जाते एक दम से पलटा और सारा को गले लगा लिया । सारा का नाजुक और कोमल शरीर तो जैसे कबीर की बाहों में पिस रहा था ।
कबीर ने उसके चेहरे को बेतहाशा चूमा और निकल गया ।
कबीर ने गाड़ी में बैठते बैठे एक नज़र सारा को देखा और पता नही क्यों उसकी आँखें नम हो गयीं मगर कबीर चुप चाप बिना कुछ कहे चला गया ।
सारा कबीर के इस बदले रूप से अचंभित थी । वो वहीं दरवाज़े पर काफी देर तक खड़ी रही ।
कबीर सीधे अपने घर आया और बिना किसी से कुछ कहे सीधे अपने कमरे में चला गया । वो अपने दिल और दिमाग की लड़ाई में उलझ गया था । आज उसे कुछ भी अच्छा नही लग रहा था । उसे अपने अंदर कुछ टूटता हुआ लग रहा था । उसने अपने पिता की डायरी निकाली और उसमें से उनकी एक तस्वीर नीचे जा गिरी ।
कबीर अपने पिता की फोटो को देखता रहा और देखते ही देखते उसकी आँखों से आंसुओं का सैलाब बह निकला । कबीर अपने पिता की तस्वीर हाथ में लिए घंटों रोया ।
उधर कई घंटों तक कबीर जब नीचे नही आया तो कामीनी को कुछ शक़ हुआ और वो कबीर को देखने ऊपर पहुंची तो देखा की कबीर सो रहा था । वो उसके पास आयी तो उसने ध्यान दिया की कबीर की आँखें लगातार रोने की वजह से सूजी हुईं थीं और उसका पूरा चेहरा यहाँ तक की उसका तकिया भी आंसुओं से भीगा हुआ था ।
कामीनी ने कबीर के हाथ में उसके पिता की तस्वीर देखी तो उसे समझते देर ना लगी की कबीर को हुआ क्या है । उसने कबीर के हाथ से वो तस्वीर ली और किनारे पर रखके जाने लगी तभी उसकी नज़र बिस्तर पर रखी उस डायरी पे गयी ।
कामीनी ने वो डायरी उठाई और उसे पढ़ना शुरू किया । जैसे जैसे वो पढ़ती गयी वैसे वैसे उसकी हैरानी बढ़ती गयी । वो तो आज तक ये समझती थी की उसके पति कुमार तो दुश्मनों से लड़ते हुए शहीद हुए थे मगर आज उसे पता चल रहा था की वो पूरा सच नही था । और अब जो सच निकल के आ रहा था उसे हजम करना या उसे स्वीकारना उसके बस की बात नही थी । आज उस डायरी को पढ़ते हुए उसे पता चल रहा था की कैसे उसके सगे भाई महेंद्र प्रताप सिंह ने अपने साथी शिक्षा मंत्री प्रताप नारायण चन्द्रवंशी और उनके एक कश्मीरी साथी मोहम्मद अशर हुसैन हयात के साथ मिलकर कैसे भारतीय थल सेना के कुछ अफसरों को पैसे के लालच से तोड़ा और सेना के हथियारों की चोरी करवा के किस तरह उन्हें आतंकवादियों को बेचा ।
ये काला, घिनोना और कड़वा सच पढ़के कामीनी की सोचने समझने की शक्ति ख़त्म हो गयी थी । उसे यकीन नही हो रहा था की कैसे उसका अपना सगा भाई ऐसा घटिया काम कर सकता है । उसने डायरी को आगे पढ़ा तो पता चला की कुमार को इनके इस चोरी और देश से गद्दारी वाले धंधे की खबर लग गयी और कैसे उन सबने मिलके साज़िश के तहत कुमार को अपने जाल में फंसाया । कुमार तक नौशेरा में कुछ आतंकवादियों के छुपे होने की झूठी खबर फैलाई और उसे अपने जाल में फंसाते हुए चारों तरफ से घर के मौत के घाट उतारा ।
डायरी पूरी पढ़ने तक कामीनी को अपने आप से और अपने भाई से घिन्न आ रही थी । वो लगातार रो रही थी और अपने आपको कोस रही थी की क्यों उसने कुमार को गलत समझा, क्यों वो महेंद्र की बहन है, क्यों इतनी बड़ी बात उसके बेटे कबीर ने आज तक छुपाई । वो सोचती जा रही थी और कुमार को याद करते हुए रोती जा रही थी ।
वहीं कबीर के कमरे के दरवाज़े पर खड़े होकर स्वीटू भी अपनी नम आँखों से अपनी माँ को रोते हुए देख रही थी ।
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कबीर क्लास में गया तो उस वक़्त लंच टाइम चल रहा था और स्वीटू भी खाने जा रही थी की तभी उसे कबीर दिखा ।
कबीर आके स्वीटू के पास बैठा और स्वीटू बोल पड़ी -
स्वीटू - भाई... कहाँ चले गए थे सुबह से ।
कबीर - कुछ नही... थोड़ा सा ज़रूरी काम आ गया था । बस वो निपटाने गया था ।
स्वीटू - मैं समझ रही हूँ भाई कौन सा काम ।
कबीर - वैसे तू ठीक ही समझ रही है । हिसाब तो अभी बहुत लोगों से लेना है ।
स्वीटू - तो कैसा चल रहा है हिसाब किताब ।
कबीर - अभी तो शुरू किया है लेकिन जल्दी पूरा हो जायेगा ।
स्वीटू - भगवान करे वो दिन जल्दी आये । अच्छा अब तो कहीं नहीं जाना है ना ।
कबीर - अब नही जाना है बेटू । अब हो गए तेरे सवाल जवाब तो थोड़ा खाना खा लें ।
स्वीटू - हाँ भाई... बहुत भूख लगी है ।
उसके बाद दोनों ने साथ में खाना खाया और खाना ख़त्म होते तक कबीर के पास फ़ोन आया ।
आदमी - सर... काम कर दिया है ।
कबीर - उसके घर वालों की सारी जानकारी निकालो फटाफट और उसके बाद वो आदमी दुबारा कभी नज़र ना आये ।
आदमी - समझ गए सर ।
कबीर - सारी जानकारी मिलते ही मुझे मैसेज कर देना । और मैं तुमसे बाद में मिलता हूँ ।
आदमी - जी सर ।
कबीर ने फ़ोन रखा और अपना टिफ़िन समेटा तभी स्वीटू बोली -
स्वीटू - भाई... क्या चल रहा है ।
कबीर - बताऊंगा स्वीटू... मगर सही वक़्त आने दे पहले ।
स्वीटू - ओके भाई ।
उसके बाद का दिन दोनों ने पढ़ाई करते हुए निकाला और आख़री पीरियड में भी कोई घटना नही हुई ।
सारा ने भी बिना किसी शिकवे शिकायत के क्लास को पढ़ाया और फिर छुट्टी के बाद तीनों घर निकल गए ।
सारा को छोड़ने के बाद कबीर स्वीटू के साथ घर पहुंचा और मुँह हाथ धोके कामीनी के पास आया ।
कामीनी - जी... आप कहीं जा रहे हैं क्या ।
कबीर - हाँ... क्यों क्या हो गया ।
कामीनी - आप अभी तो आये हैं और खाना भी नही खाया । वैसे आज कल तो आप कुछ ज़्यादा ही घर से बाहर रहते हैं ।
कबीर - अरे... ये क्या बात हुई ।
कामीनी - आपके परिवार को भी आपकी ज़रूरत है । आप तो समझते ही नही ।
कबीर - कम्मो... मेरी जान... मुझे सब पता है और वैसे भी कल रक्षाबंधन है तो मुझे जाने दे । मुझे स्वीटू के लिए कुछ लेना भी है ।
कामीनी - तो आपको याद था ।
कबीर - नही तो क्या मुझे बेवक़ूफ़ समझ रखा है क्या ।
कामीनी - नही नही... मेरा वो मतलब नही था ।
कबीर - अच्छा... अब मुझे जाने दे और स्वीटू को खाना खिला के उसे अपने पास ही बुला लेना । देखना वो ठीक से पढ़ाई करे । मैं चलता हूँ ।
कामीनी - जी अच्छा...
कबीर कामीनी से बात करके निकला और उसने अपने उसी आदमी को फ़ोन किया और बोला -
कबीर - मुझे एक ~~~~ चाहिए और वो बिलकुल ~~~~ होना चाहिए । और हाँ ये मुझे मेरी बहन स्वीटी के नाम से चाहिए । कब तक होगा ।
आदमी - सर पता करते हैं ।
कबीर - सुनो कल रक्षाबंधन है और मुझे ये आज शाम तक या आज रात तक चाहिए ।
आदमी - हो जायेगा सर...
कबीर - और उस काम का क्या हुआ । तुमने तो बताया ही नही ।
आदमी - सर आपके कहने के हिसाब से आपके स्कूल के गार्ड को उठा लिया था और उससे उसके पूरे परिवार की जानकारी ले ली है ।
कबीर - कौन कौन है ।
आदमी - उसकी पत्नी है और बेटी है ।
कबीर - और उसका कोई बेटा ।
आदमी - है सर लेकिन वो सालों पहले ही घर छोड़कर भाग गया था और उसकी कोई खबर भी नही है ।
कबीर - ठीक है... उसे स्कूल के पास ही सडक हादसे में उड़ा दो और उसके फ़ोन से उसकी बीवी को खबर कर दो और स्कूल के प्रिंसिपल को भी ।
आदमी - ठीक है सर ।
कबीर ने बात ख़त्म की और सारा के पास पहुंचा ।
सारा ने जैसे देखा की कबीर की गाड़ी खड़ी है तो वो भाग के आयी और दरवाज़ा खोलके उसके पैरों में बैठ गयी और रोने लगी ।
कबीर को सारा के बर्ताव से हैरानी होने लगी । सारा नगनावस्था में दरवाज़े पर कबीर के पैरों में बैठी रोती रही । कबीर उसे जितना चुप कराने की कोशिश करता सारा उतना ज़्यादा रोने लगती ।
कबीर - कुछ बोलोगी...
सारा - मुझे माफ़ कर दो मालिक ।
कबीर - हुआ क्या है ।
सारा - मैं जानती हूँ की मुझसे कोई गलती हुई है तभी मेरे मालिक मुझसे नाराज़ हैं ।
सारा ये बोलके और ज़्यादा रोने लगी और कबीर का दिमाग चलना बंद हो गया ।
कबीर - गलती... कौन सी गलती सारू...
सारा - कुछ तो हुआ होगा ना मुझसे... तभी तो आप मुझसे मिलने भी नही आते और मुझसे बात भी नही करते । मुझे माफ़ कर दो मालिक । आप मुझे मार लो मगर ऐसी सजा तो मत दो । मैं मर जाऊँगी मालिक ।
कबीर को ना जाने क्यों सारा का ऐसा बर्ताव और उसकी बातें दिल में चुभ गयीं ।
कबीर ने सारा का चेहरा उठाया और कहा -
कबीर - सारू... कुछ ज़रूरी कामों में उलझ गया हूँ इसलिए तुझे समय नही दे पा रहा हूँ ।
सारा - मैं जानती हूँ मालिक अब आपको मैं पसंद नही हूँ ना । मैं शायद आपको खुश नही कर पा रही हूँ तभी तो आपने मेरी जगह उस दूसरी लड़की को पकड़ लिया ।
कबीर - चुप कर सारू... क्या कुछ भी बकवास किये जा रही है । तुझे अभी कुछ नही पता है । तूने ये कैसे सोच लिया की तेरी जगह कोई और ले लेगा ।
सारा - मालिक तो फिर...
कबीर - चुप कर...
सारा चुप चाप खड़ी कबीर की आँखों में देखती रही और कबीर भी उसकी आँखों में देखता रहा ।
कबीर - सारू... मुझे अंदर नही बुलाएगी ।
सारा - सॉरी मालिक... आओ ना अंदर ।
कबीर अंदर आया और सारा ने जैसे ही दरवाज़ा बंद किया वैसे ही कबीर ने उसे अपनी गोद में उठा लिया और उसे कमरे में ले गया ।
कबीर ने अपने कपड़े निकाले और शॉर्ट्स में बिस्तर पर लेट गया और सारा को भी अपने साथ लिटा लिया ।
सारा कबीर के साथ लेटी तो उसे और ज़्यादा रोना आने लगा । वो रोते हुए बोली -
सारा - मालिक... अब तो मुझे छोड़ के नही जाओगे ना । मुझे अपने से अलग मत करना मालिक ।
कबीर - सारू... मैं कहीं नहीं जा रहा हूँ... तू रोना बंद कर । मैं यहीं हूँ तेरे पास ।
कबीर की बात सुनके सारा कबीर के और पास आयी और उसकी छाती पे सर रखके लेट गयी । ना जाने क्यों कबीर को सारा का इस तरह प्यार करना और प्यार देना अंदर ही अंदर भावुक कर रहा था । उसके हाथ अनायास ही सारा के सर पे चले गए और उसके बालों को सहलाने लगे ।
सारा को तो जैसे खुदा मिल गए थे । उसे कबीर का ये प्यार और अपनापन बड़ा सुकून दे रहा था । थोड़ी ही देर में उसका रोना बंद हो गया और देखते ही देखते वो नींद में चली गयी ।
सारा कबीर से किसी छोटी सी बच्ची की तरह चिपक के सोती रही । शायद बरसों बाद उसे ऐसी सुकून भरी नींद नसीब हुई थी ।
कबीर सारा के बालों को सहलाता रहा और सोचता रहा -
कबीर - ये मुझे क्या हो रहा है । मुझे क्या करना है और मैं कर क्या रहा हूँ । नही नही... मैं ऐसे कमज़ोर नही पड़ सकता । लेकिन क्यों हर बार सारा के करीब आते ही मैं पिघलने लगता हूँ । क्यों हर बार उसे देखते ही मैं सोचता कुछ हूँ और करता कुछ हूँ । मैं कैसे अपने मकसद से भटक सकता हूँ । नही नही... मैं इसके साथ वो सब नही कर पाउँगा । हाँ मुझसे वो सब नही होगा । मगर कैसे भूल जाऊं जो जो मेरे साथ हुआ था... नही नही... मेरे परिवार के साथ हुआ था । मैं भूल भी तो नही सकता । और इस सारा की क्या गलती है । ये तो कितनी प्यारी सी बच्ची है । पर स्वीटू की भी तो कोई गलती नही थी और कामीनी ने भी किसी का क्या बिगाड़ा था । है भगवान... आखिर मैं करूँ तो क्या करूँ...
कबीर अपनी दिमागी उलझन में खोया रहा और सारा के बालों को ऐसे ही सहलाता रहा ।
सारा को पुरसुकून सोते देखके कबीर के दिल को कहीं ना कहीं बड़ी ठंडक मिल रही थी और शायद अब उसके दिल में सारा के लिए मोहब्बत जाग रही थी ।
सारा जब नींद से जागी तब तक शाम हो चुकी थी । कबीर उसे अब भी अपनी बाहों में लेके लेता हुआ था और उसके बालों को अभी भी उतने ही प्यार से सहला रहा था ।
सारा बहुत खुश थी और इस सुन्दर से सुकून के एहसास से उसका चेहरा खिला हुआ था मगर कबीर के चेहरे पर तकलीफ़ साफ झलक रही थी । सारा कबीर को देखके उसकी परेशानी की वजह ढूंढ़ने की कोशिश कर रही थी लेकिन वो चाह के भी कुछ पूछ नही पा रही थी ।
कबीर ने जब देखा की सारा अब जाग चुकी है तो उसने सारा के चेहरे को पकड़ के ऊपर उठाया और उसके माथे को चूम लिया ।
कबीर - सारु... तू बैठ... मैं तेरे लिए चाय बनाता हूँ ।
सारा - नही मालिक... आप नही... मैं जाती हूँ ।
कबीर ने सारा के गाल को चूमा और कहा -
कबीर - नही... मैं बनाता हूँ और मालिक नही कबीर ।
सारा - मगर मालिक...
कबीर - बोला ना कबीर... आज से कोई मालिक नही सिर्फ कबीर ।
सारा ने ख़ुशी से कबीर को अपनी बाहों में भर लिया और उसके गाल चूम लिए ।
कबीर सारा से अलग हुआ और जाके चाय बनाके लाया । दोनों ने चाय पी और कबीर बोला -
कबीर - अब मुझे चलना चाहिए सारू...
कबीर उठके जाने लगा और सारा उसे दरवाज़ तक छोड़ने आयी ।
कबीर जाते जाते एक दम से पलटा और सारा को गले लगा लिया । सारा का नाजुक और कोमल शरीर तो जैसे कबीर की बाहों में पिस रहा था ।
कबीर ने उसके चेहरे को बेतहाशा चूमा और निकल गया ।
कबीर ने गाड़ी में बैठते बैठे एक नज़र सारा को देखा और पता नही क्यों उसकी आँखें नम हो गयीं मगर कबीर चुप चाप बिना कुछ कहे चला गया ।
सारा कबीर के इस बदले रूप से अचंभित थी । वो वहीं दरवाज़े पर काफी देर तक खड़ी रही ।
कबीर सीधे अपने घर आया और बिना किसी से कुछ कहे सीधे अपने कमरे में चला गया । वो अपने दिल और दिमाग की लड़ाई में उलझ गया था । आज उसे कुछ भी अच्छा नही लग रहा था । उसे अपने अंदर कुछ टूटता हुआ लग रहा था । उसने अपने पिता की डायरी निकाली और उसमें से उनकी एक तस्वीर नीचे जा गिरी ।
कबीर अपने पिता की फोटो को देखता रहा और देखते ही देखते उसकी आँखों से आंसुओं का सैलाब बह निकला । कबीर अपने पिता की तस्वीर हाथ में लिए घंटों रोया ।
उधर कई घंटों तक कबीर जब नीचे नही आया तो कामीनी को कुछ शक़ हुआ और वो कबीर को देखने ऊपर पहुंची तो देखा की कबीर सो रहा था । वो उसके पास आयी तो उसने ध्यान दिया की कबीर की आँखें लगातार रोने की वजह से सूजी हुईं थीं और उसका पूरा चेहरा यहाँ तक की उसका तकिया भी आंसुओं से भीगा हुआ था ।
कामीनी ने कबीर के हाथ में उसके पिता की तस्वीर देखी तो उसे समझते देर ना लगी की कबीर को हुआ क्या है । उसने कबीर के हाथ से वो तस्वीर ली और किनारे पर रखके जाने लगी तभी उसकी नज़र बिस्तर पर रखी उस डायरी पे गयी ।
कामीनी ने वो डायरी उठाई और उसे पढ़ना शुरू किया । जैसे जैसे वो पढ़ती गयी वैसे वैसे उसकी हैरानी बढ़ती गयी । वो तो आज तक ये समझती थी की उसके पति कुमार तो दुश्मनों से लड़ते हुए शहीद हुए थे मगर आज उसे पता चल रहा था की वो पूरा सच नही था । और अब जो सच निकल के आ रहा था उसे हजम करना या उसे स्वीकारना उसके बस की बात नही थी । आज उस डायरी को पढ़ते हुए उसे पता चल रहा था की कैसे उसके सगे भाई महेंद्र प्रताप सिंह ने अपने साथी शिक्षा मंत्री प्रताप नारायण चन्द्रवंशी और उनके एक कश्मीरी साथी मोहम्मद अशर हुसैन हयात के साथ मिलकर कैसे भारतीय थल सेना के कुछ अफसरों को पैसे के लालच से तोड़ा और सेना के हथियारों की चोरी करवा के किस तरह उन्हें आतंकवादियों को बेचा ।
ये काला, घिनोना और कड़वा सच पढ़के कामीनी की सोचने समझने की शक्ति ख़त्म हो गयी थी । उसे यकीन नही हो रहा था की कैसे उसका अपना सगा भाई ऐसा घटिया काम कर सकता है । उसने डायरी को आगे पढ़ा तो पता चला की कुमार को इनके इस चोरी और देश से गद्दारी वाले धंधे की खबर लग गयी और कैसे उन सबने मिलके साज़िश के तहत कुमार को अपने जाल में फंसाया । कुमार तक नौशेरा में कुछ आतंकवादियों के छुपे होने की झूठी खबर फैलाई और उसे अपने जाल में फंसाते हुए चारों तरफ से घर के मौत के घाट उतारा ।
डायरी पूरी पढ़ने तक कामीनी को अपने आप से और अपने भाई से घिन्न आ रही थी । वो लगातार रो रही थी और अपने आपको कोस रही थी की क्यों उसने कुमार को गलत समझा, क्यों वो महेंद्र की बहन है, क्यों इतनी बड़ी बात उसके बेटे कबीर ने आज तक छुपाई । वो सोचती जा रही थी और कुमार को याद करते हुए रोती जा रही थी ।
वहीं कबीर के कमरे के दरवाज़े पर खड़े होकर स्वीटू भी अपनी नम आँखों से अपनी माँ को रोते हुए देख रही थी ।
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