अपडेट- 21…………
सीन- श्याम नवाबी और रात गुलाबी जारी रखते हुए…….॥
श्याम हो चली थी अंधेरा होने ही वाला था, माया और चन्दा घर की ओर वापिस आ जाते है, चन्दा की चूत आधी चुदाई की वजह से पूरी गीली हो गई थी, चूत का छेद अभी भी लंड के लिए फड़फड़ा रहा था, उसकी चड्डी चूत के कामरस की वजह से गीली हो गई थी जिससे उसकी जांघे भी आपस मे चिप चिपी हो चली थी, पर चन्दा के लिए ये आम बात थी, उसे मर्द का वीर्य अपनी अपनी चूत मे लेकर घूमना अच्छा लगता था, ऐसा करने से उसके शरीर से चुदाई की गंध निकलती रहती थी, जो दूसरे मर्दों को आकर्षित करती थी।
चन्दा के चूतड़ पूरा थिरक रहे थे, जो मंदिर से वापिस आते वक्त की मर्दों ने देख लिया, और जिन्हे देखकर मर्दों ने लंगोट मे ही अपना लंड मसल दिया, चन्दा ने भी गाँव के मर्दों की नजरे पहचान ली जो की उसके चूतड़ों पर थी और जल्दी जल्दी कदम बढ़ाने लगी पर उससे सिर्फ उसके चूतड़ों का हिलोड़ और बढ़ गया, चन्दा को पता था घर पर उसका लड़का वीर पहुच गया होगा, अगर उसने इस हालत मे देख लिया तो उसे क्या जवाब देगी वो भी 17 साल का जवान हो रखा था, सब कुछ समझता था।
चन्दा चूतड़ पिक
चन्दा और माया, रामलाल के घर तक पहुच जाते है,
चन्दा- अच्छा दीदी मैं चलती हू, वीर आ चुका होगा और उसके बापू भी राह देखते होंगे
माया- अरे चन्दा थोड़ा रुक कर तो जा इसके ससुर आ गए होंगे मिल कर चली जाना
चन्दा और डर जाती है, अगर रामलाल ने देख लिया तो सब समज जाएगा- अरे नहीं दीदी, मैं फिर मिल लूँगी, कल वैसे भी पंडित से मिलन है तो आपके पास पूजा से पहले आ जाऊँगी
माया- चन्दा तू ठीक तो है ना, गुड़िया की सोच कर परेशान तो नहीं है
चन्दा- अरे नहीं दीदी पंडित जी ने कहा है समाधान हो जाएगा मुजे उन पर भरोसा है
माया- कंचन अंदर ही है, तुम दोनों की जोड़ी हसी मजाक की ही है, तू बात कर ले उससे तेरा मन हल्का हो जाएगा, खिलखिलाती हुई घर जाएगी
चन्दा मन मे (अरे फिलहाल मेरे मन को नहीं मेरी चूत को खुशी की जरूरत है, साले पंडित का पानी तो निकाल गया मैं प्यासी रह गई, भीमसिंगह रात मे पता नहीं चड़ेगा या नहीं) – अरे नहीं दीदी मैं ठीक हू, आप परेशान ना हो, घर का खाना भी बनाना है, पूजा मे भी देर लग गई थी, अब रात का खाना लेट ना हो जाए।
माया- हा माया तू ठीक कह रही है, मंदिर मे पूजा मे काफी समय लग गया, चल ठीक है तू कल आ जाना पूजा से पहले
चन्दा- ठीक है दीदी, भाईसाब को मेरा नमस्ते कहिएगा।
माया- कह दूँगी, वो तुझे याद करते ही रहते है
चन्दा (मन मे मुझे नहीं मेरी चूत को याद करते है वो)- हा दीदी मुझे पता है (ये बोलकर चन्दा थोड़ा मुस्कुरा देती है)
फिर चन्दा अपने घर की और चल देती है, पीछे से चन्दा के बड़े चूतड़ों की हिलोड़ को माया नजरअंदाज नहीं कर पाती, और मन मे सोचती है, हे राम इस उम्र मे भी ये अपना बदन कैसे दिखाती है, कोई शर्म नहीं इसे।
चन्दा के चूतड़
माया अपने घर की और देखती है, तो देखती है बाहर का गेट खुला हुआ था, माया सोचती है ये इनका दिमाग भी कैसा है, गधे है कुछ भी याद नहीं रहता। बाहर घर की चोखट पर लोटे का पानी जो पंडित ने पूजा मे मँगवाया था, उसे घर की चोखट पर हल्का स उड़ेल देती है, माया बाहर का गेट लगा देती है, अंदर जाती है, अपनी जूती उतार कर नंगे पैर हो जाती है, और फिर घर के अंदर पानी छिड़कने के लिए सबसे पहले घर के मंडिर की और जाती है जो बाहर की तरफ था और पानी छिड़क देती है, और फिर अंदर के कमरों की तरफ जाती है, जहा कंचन का और उसका खुद का शयनकक्ष था, जैसे ही उसके कदम शयनकक्ष की ओर बढ़े है उसे उची उची “चप चप चप चप छप छप छप छप पच पच पच पच” की आवाजे आने लगती है, शयनकक्ष का दरवाजा हल्का स खुला हुआ था जिसमे से आवाज बाहर आ रही थी, माया ये सोचती है ऐसी आवाजे तो मंदिर मे भी आ रही ठी जब चन्दा और पंडित अंदर थे, वो ये सोचती है मैं देखती हू की ये अंदर क्या हो रहा है की ऐसी आवाजे आ रही है, ये सोचकर माया तेजी से अपने शयनकक्ष की ओर बढ़ने लगती है, माया देवी के पैर नंगे थे, तो आवाज बिल्कुल भी नहीं हो रही थी, माया के कदम तेजी से कक्ष की ओर बढ़ रहे थे। और शयनकक्ष से “चप चप चप चप छप छप छप छप पच पच पच पच” की आवाजे लगतार आ रही थी।
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तबी माया की बाई ओर से एक शक्स आ जाता है, माया एक दम से डर जाती है, उसके हाथों से पानी का लौटा छूटते छूटते बच जाता है, और उसकी हल्की सी चीख निकाल जाती है- आह कोन है
वीर
शक्स- अरे मैं हू ताई जी आप डर क्यू गई
माया- ऐसे एक दम से आएगा तो डरूँगी ही
शक्स (हकलाता हुआ)- ताई जी मैं तो बस…. …. ….
मैं तो बस क्या बोल यहा इस वक्त क्या कर रहा है तुझे तेरी मम्मी घर मे ढूंढ रही होगी
(इसी बीच कमरे से चप चप चप चप छप छप छप छप पच पच पच पच” की आवाजे आनी बंद हो गई थी)
वीर बड़बड़ाता हुआ बोल-वो वो वो मैं मम्मी को ही देखने आया था, मुझे लगा की यहा होंगी
वीर स्कूल मे पद्धत था कक्षा ११ मे, वो स्कूल मे खेलकूद मे अवल्ल था, और पढ़ने लिखने मे भी अच्छा था, उसका रंग रूप बहुत सुंदर था, कद काठी के हिसाब से उसकी हाइट ५’१० निकाल चुकी थी जो की अभी आगे २ साल मे और बढ़ सकती थी। वीर ने खुल्ले कपड़े पहन रखे थे, साफ था की वो बाहर घूमने और खेलने के लिए निकल था, एक टी-शर्ट और ढीला लोअर पहन रखा था, जिसके अंदर उसका लोड़ा थोड़ा बहुत जोर मार रहा था, पर गाँव मे ऐसे कपड़े पहनना आम बात थी।
माया- क्यू रे तेरा मन नहीं लगता मा के बैगर, आजकल के बच्चे मा से चिपके रहते है
वीर मन मे हस देता है, बोलता है- ऐसा नहीं है मैं तो आपको भी उतना ही प्यार करता हू जितना मा को
माया- चल झूठा, अच्छा तू ये बता तू बहू से मिल लिया होगा, बहू तो यही होगी।
वीर- नहीं ताई जी मैं यहा अभी आया था, पहले भाभी के पास ही गया था, तो वो कमरे मे नहीं थी, तो सोच ताऊ जी से पूछ लू, मैं कमरे मे जा ही रहा था की आप आ गई
माया- अच्छा भाभी से मिलना था, बस उसी के पीछे लगा रहा कर, भाभी-देवर क्या गुल खिलाते रहते है आपस मे पता नहीं। चल मैं बुला देता हू, मिल लिओ
माया- बहू ओ बहू, कहा हो, आना तुम्हारा प्यारा देवर आया है।
रामलाल के कमरे से आवाज आती है, आ आ आ आई माँजी
कंचन बाहर आती है, भागी भागी आती है, वो हाफ रही थी, उसका चेहरा लाल हो रखा था, उसको सांस छड़ी हुई थी, बाल और चेहरा थोड़े बिखरे हुए थे, कपड़े थोड़े बिगड़े हुए थे, और एक ब्रा की तनी कंधे पर कमीज से बाहर दिख रही थी,
माया ये सब देख लेती है, पर वीर के आगे कुछ नहीं बोलती- अरे बहू इतनी हाँफ क्यू रही हो
कंचन थोड़ा डरती हुई बोली- माँजी आपकी चिल्लाने की आवाज से हम डर गए थे, भागे भागे आए है।
माया- तुम हमारे कमरे मे क्या कर रही थी,
कंचन- वो बाबू जी ने चाए गिरा दी थी, हम वहा पोंछा लगा रहे थे तो पोंछा लगाने मे ये हालत हो गई,
माया- आचा बहू, ये भी ना बस काम बढ़ाते रहते है (मायादेवी से घर मे सब डरते थे, पूरा सिक्का माया का ही चलता था, पर रामलाल बहुत शातिर था वो बातों मे फसाकर मायादेवी से अपनी बात मानव लेता था)
कंचन- माँजी ऐसे तो घर मे काम हो ही जाते है।
वीर कंचन की हालत देख मंद मंद मुस्कुरा रहा था, वीर बोला- लगता है बहुत मेहनत से काम कर रही थी भाभी, पूरा जोर लगा दिया
कंचन एक सवालों से भरी नजर से वीर की तरफ देखती है उसे कुछ अटपटा सा लगता है फिर बोलती है, कंचन- तुझे क्या पता पोंछा लगाने मे कितनी मेहनत होती है, तुझ जैसे लल्लूराम से तो पंख भी नहीं हिलता
वीर- देखो ताई भाभी मुझे लल्लूराम बोल रही है,
माया- अरे तुम दोनों के बीच मे मुझे मत लाओ, तुम दोनों ऐसे ही लड़ते रहते हो, बहू एक काम करो ये जल पूरे घर मे छिड़क दो, ये पंडित जी ने घर मे छिड़कने के लिए बोल है,
कंचन- ठीक है माँजी, मैं छिड़क देती हू
माया- अरे भाभी ये काम तो मैं करता हू आप थक गई होंगी
कंचन- अरे नहीं नहीं मैं कर लूँगी, ये छोटा सा काम करके तू नाम मत बना अपना
वीर- एक तो मदद कर रहा हू फिर कहेंगी मैं कुछ नहीं करता
कंचन- अरे तू जा अपनी माँ का हाथ बता घर मे बहुत काम होगा
माया- हा बेटा तू जाके चन्दा की मदद कर वो बेचारी थक गई है उसको भी ऐसे ही लोटा पंडित जी ने दिया, तू जाके घर मे छिड़क दे। (माया को था चन्दा अकेली होगी वीर हाथ बटाएगा तो उसे अच्छा लगेगा)
वीर- पर ताई जी मैं थोड़ी देर यह रुक जाता ना अभी तो आया था
माया- बेटा आज अमावस की रात की पूजा थी, तेरी मा और मंदिर की पूजा मे थक गए है, उसे तेरी जरूरत है, वो वैसे भी तेरे बारे मे ही बोल रही थी आते समय
वीर खुश होके, क्या बोल रही थी मा ताई जी
कंचन- यही की एक नंबर का निकम्मा पैदा हो गया है मेरे यहा, कंचन ये बोल कर खिलखिला कर हस पड़ती है
वीर का मजाक उड़ाते हुए हस्ते हुए कंचन
वीर- ताई जी देखलों भाभी को
माया- मुझे मत बोल वीर तू कुछ भी, तुम दोनों मुझे ऐसे ही अपनी तू-तू मैं-मैं मे फसाते हो
वीर- फसाऊँगा तो मैं भाभी को, आज बहुत बोल रही है
कंचन जीब निकालकर बोली- मैं तो रोज ही बोलती हू बता क्या करेगा बड़ा आया फ़साने वाला
वीर- देखलों भाभी कही फिर आप बोलो
कंचन- जो करना है कर लिओ, अभी जा मेरे लल्लूराम जा कर मम्मी की मदद कर
वीर- नहीं मैं तो यही रहूँगा, ताई जी मैं नहीं जाऊंगा, मम्मी वैसे भी घर का पूरा काम खुद करती है आज भी कर लेंगी
माया कंचन की तरफ देखती है, कंचन समझ जाती है।
कंचन- अरे नहीं देवर जी तुम जाकर मम्मी की मदद करो
वीर- अब क्या हुआ भाभी डर गई
कंचन- देवर जी मैं तो मजाक कर रही थी, अपने प्यारे देवर के साथ इतना भी नहीं हक बनता
वीर- अच्छा पर आपको हरजाना तो देना ही पड़ेगा
कंचन- अच्छा देवर जी, मैं कल तेरे लिए तेरा मन पसंद सूजी का हलवा बना दूँगी, पर अभी तू घर जा और मम्मी की मदद कर मैं भी अभी काम करूंगी, खाना बनाऊँगी।
वीर सब कुछ भूल कर खुश हो जाता है, सच भाभी मेरा मन पसंद हलवा, ठीक है मैं अभी जाता हू।, प्रणाम ताई जी, ताऊ जी को भी मेरा नमस्ते कहना
ये बोलकर वीर दोड़ा दोड़ा चला जाता है,
ये सुनकर माया और कंचन दोनों हस पड़ते है।
वीर के जाने के बाद माया कंचन पर बात कसते हुए कहती है- बहू ये कपड़े कैसे कर रखे है तूने, तेरी ब्रा की तनी दिख रही है, वीर था तो कोई बात नहीं कोई और होता तो क्या सोचता
कंचन ये सुनकर सकपका गई और हड़बड़ाकर बोली- अरे माँजी वो पोंछा लगाते वक्त हट गई होगी, चाय पूरी फैल गई थी, पूरा फर्श साफ करना पड़ा
माया थोड़ा सख्ती से बोली- वो तो बहू ठीक है फिर भी तुम्हें ध्यान रखना चाहिए
कंचन(शर्म से लाल हो गई थी) ठीक है माँजी आगे से ध्यान रखूंगी
पीछे से रामलाल- अरे बड़ी ठकुराइन क्या हुआ घर मे इतना शोर क्यू है
माया- आप बीच ना बोले, आप तो हमेशा तरफदारी करते है
रामलाल- अरे मैंने तो बस यही पूछा क्या हुआ, हम कहा तरफदारी कर रहे है।
माया- मुझे पता है सब, ज्यादा चालाक मत बनो
रामलाल छेड़ता हुआ बोला- अरे ठकुराइन तुम्हें तो सब पता है तुमसे कभी कुछ नहीं छिपा, तुमसे बड़ा ज्ञानी कोई भी नहीं है इस घर मे
माया- बस बस ज्यादा मत बोलो, एक नंबर के गधे हो घर के बाहर का दरवाजा खुला छोड़ दिया
रामलाल- हमने तो ऐसा कुछ नहीं किया, हम तो बंद करके आए थे।
माया- तुम्हें बुढ़ापा चढ़ गया है, तुम्हारी अकाल गधे की तरह घास खाती है
कंचन ये सुनकर मन मन मे हसने लगती है, और सोचती है गधे तो सिर्फ लंड से है, दिमाग और शरीर मे तो जवानी कूट कूट के भारी हुई है
कंचन बीच मे सासु मा को रोकती है- माँजी ये ठीक कह रहे है, दरवाजा तो बंद इन्होंने मेरे सामने ही किया था, हम उस वक्त बाहर ही थे, ये उस वीर के बच्चे ने खुला छोड़ दिया होगा (घर का दरवाजा लोहे का था, जो की खुलने पर तो आवाज नहीं करता था, पर बंद करते वक्त आवाज करता था)
कंचन कुछ वीर को लेकर सोचती है, फिर अपने सास-ससुर की बातों पर ध्यान लगाती है।
माया- अच्छा बहू तुम कहती हो तो मान लेटे है, वैसे भी आजकल के बच्चे इतनी तेजी मे रहते है उन्हे कुछ ध्यान नहीं रहता, उसकी मा को शिकायत करूंगी,
रामलाल- अरे ठकुराइन, इतनी गुस्सा क्यू हो रही हो, बच्चा ही तो है, राकेश और रामू भी तो ऐसे ही करते थे
माया- अच्छा अच्छा ठीक है, आप बाहर पूजा की थाली है, उसमे से प्रशाद खा ले, और बहू को भी दे दे, मैं बाहर बरामदे मे बैठी हू
रामलाल- बहू तो बाद मे ही खा पाएगी, इसका पेट भरा हुआ है
माया- क्यू बहू क्या खा लिया तुमने पीछे से कुछ बनाया था क्या
रामलाल- अरे इसने दूध मलाई खाई है
माया- तुम चुपराहोगे बहू को तो बोलने दो
कंचन की साँसे फूल गई थी, कंचन बोली- वो वो वो माँजी हमे दूध मलाई बहुत पसंद है तो हमने सुबह वाले दूध की थोड़ी सी बना के खाई थी
माया- अच्छा बहू कैसी बनी थी,
कंचन चटकारा लेकर एक उंगली मुंह मे डालकर रामलाल को देखकर बोली- हा माँजी बहुत गाढ़ी मलाई थी, टैस्ट भी अच्छा था हमारी भूख शांत हो गई
माया- ठीक है बहू, इसका मतलब हरीलाल दूध अच्छा देता है, उससे दूध मलाई अपनी बहू के लिए और मँगवा देंगे
कंचन- ठीक है माँजी जैसा आप कहे
माया- अब बहू हम बाहर बरामदे मे बैठ रहे है तुम जल छिड़क दो
कंचना- अच्छा माँजी
कंचन जल पूरे घर मे छिड़क रही होती है छिड़कते हुए उसके मन मे चलता अभी श्याम मे गुजरे हुए पालो को याद करके उसका कालेज जोर से धडक उठता है और वो सोचती है की आज तो बच ही गए, सासु मा ने बस पकड़ ही लिया था।
श्याम मे ऐसा क्या हुआ।
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चन्दा और माया के जाने के बाद कंचन रसोई मे ही काम कर रही थी और रामलाल का इंतज़ार कर रही थी, पर वो ये भी सोच रही थी जब चन्दा चाची उससे बात कर रही थी तो उसकी चूत की फड़कन बिल्कुल बंद हो गई थी, उसे चंद लम्हों की वासना से राहत मिल गई थी, पर इसका मतलब ये था की उसे चन्दा से दूर रहना था, पर ऐसा क्यू हुआ, चन्दा तो उसकी अपनी थी कितना प्यार था दोनों के बीच, और दूसरा ये की हरीलाल के नाम से चूत का फिर से फड़कना तेज क्यू हो गया था, ये सब सवाल चल रहे होते है की रामलाल बाहर का गेट खोलता है और जब उसे बंद करता है तो कंचन को आवाज सुन जाती है वो अपने मन से बाहर आती है, और आँगन मे आके देखती है की कोन आया है उसे अपने ससुर का बेसब्री से इंतज़ार था आखिर वो सिर्फ एक मर्द था उसके पास फिलहाल जो उसकी चूत की फड़कन को दूर कर सकता था, ये कैसी कसमकस मे कंचन फस चुकी थी उसकी अपनी कामवासना उसके हाथ मे नहीं था, पर वो लिंगदेव की बातों पर भरोसा रखते हुए सब कर रही थी।
कंचन को देखते ही रामलाल खुश हो गया पूरे दिन से वो वासना मे तप रहा था, अब उसके सामने वही एक नारी थी जिसके लिए पूरे दिन वो कामवासना मे जल रहा था, रामलाल के बदन मे गर्मी आनी शुरू हो गई थी। कंचन को सतरंगी सलवार सूट मे देखकर रामलाल का मन बाग बाग हो गया, कंचन की हरी-भरी जवानी सूट मे कसी हुई गजब ध रही थी, सामने से उठे हुए दोनों भारी स्तनों पर रामलाल की नजर टिक गई थी, और रामलाल को रिझाने का कंचन का पूरा पूरा मन था तो उसने पल्लू भी नहीं किया हुआ था, दोनों चूचियाँ गहरे गले मे दिख रही थी जिनके बीच कंचन का मंगलसूत्र लटका हुआ था,
रामलाल बहू को देखते हुए बोला - बहू माया कहा चली गई अक्सर श्याम को वही होती है आँगन हमारी राह देखते हुए
कंचन मुसकुराते हुए आँख की बोह को चढ़कर बोली- क्यू बाबू जी, हमे देखकर अच्छा नहीं लगा,
पिक
रामलाल- नहीं बहू बस माया की आदत है आँगन मे बैठकर राह देखने की इसीलिए पुच रहे है, तुम्हें देखकर तो हमारा दिल खुश हो गया
कंचन- लग तो नहीं रहा कैसे भुजे भुजे लग रहे है
रामलाल- बस अब तुम दिख गई हो सब खिला-खिला और फूला-फूला हो जाएगा
कंचन- समझ गई थी, पर फिर भी मुस्कुराकर बोली- क्यू ऐसा क्या देख लिया आपने ?
रामलाल- अरे बहू तुम ही तो यहा जिसके रहते पूरा घर खुशिओ से भर गया है।
कंचन- क्यू ऐसा क्या कर दिया हमने ?
रामलाल- पहले ये बताओ माया तो नहीं है यह पे ? हम अकेले है ?
कंचन- क्यू अकेले होने मे और माँजी जी के होने से क्या फरक पड़ेगा ?
रामलाल- अरे हम खुल के बताएंगे ना फिर
मतलब आप डरते है माँजी से ? बोलकर हस देती है
रामलाल सकपका जाता है- ड़ ड़ ड़ डरता कोन है वो तो बस माया के आगे सारी ससुर-बहू के बीच की बाते नहीं की जाती
कंचन हआ बाबू जी हमे पता है, माँजी तो चन्दा चाची के साथ अमावस की पूजा के लिए चली गई
इसके बाद सीधा रामलाल आँगन मे ही कंचन के पास चल गया और कंचन के सिर पर हाथ रखते हुए बोला- आज तो अमावस है बहू, अपने सारी बहुए श्याम ढलने से पहले अपने सास-ससुर से आशीर्वाद लेती है, और उनकी सेवा करती है
मर्दों को बस अकेली लड़की दिखती नहीं की उनका दिमाग काम करना बंद कर देता है और वो सिर्फ लंड से सोचना शुरू कर देते है यही हाल रामलाल का हुआ,
कंचन रामलाल की चालाकी समझ जाती है, मर्दों को खूब पहचानती थी कंचन-माँजी का आशीर्वाद तो हमने जाने से पहले ले लिया था, आपका अब ले लेटे है
ये बोलकर कंचन रामलाल के सामने झुक जाती है, और उसकी ३८ इंच की चूचियाँ ७०% दिखने लगती है, जिनको देखकर रामलाल के लंगोट धोती के अंदर हलचल होने लगती है, पूरे दिन जिस चीज के वो सपने ले रहा था वो अब उसकी आँखों के सामने थी, रामलाल नजारे मे खो गया था
कंचन समझ गई की रामलाल क्या देख रहा है- अब युही खड़े रहेंगे या आशीर्वाद भी लेंगे
रामलाल-सदा सुहागन रहो बहू, दुधो नहाओ पूतो फलों, ये बोलक रामलाल ने अपना हाथ कंचन के सिर से होता हुआ पीछे पीठ तक ले गया (कंचन मन मन मे खुश हो रही थी, उसकी योजना काम कर रही थी)
कंचन फिर उठ जाती है फिर बोलती है- बाबू जी ये सदा सुहागन का तो समझ गई पर ये दुधो नहाओ और पूतो फलों का क्या मतलब होता है ? (कंचन को मालूम था पर वो भोली बनते हुए बोली)
रामलाल- बहू इसका मतलब होता है खूब दूध से नहाओ, और बच्चों को जनम दो। (रामलाल कंचन की दोनों भारी चूचियोंं को देखता हुआ बोला)
कंचन- पर हम तो पानी से नहाते है, और बच्चे तो बाद मे ही होंगे
रामलाल- तुम कहो तो हम दोनों का इलाज करदे बहू (अपने होंठों पर जीब फिराते हुए बोला )
कंचन शरमाते हुए- हा बाबू जी ये क्या कह रहे है आप कैसे कर सकते है
रामलाल- बहू हमारे पर एक तरीका है जिससे तुम दूध से भी नहा लोगी और बच्चा भी पा लोगी (रामलाल ने एक बार बेशर्मी से ही अपने लंड को धोती के ऊपर से ही पकड़े हुए बोला)
कंचन- हा बाबू जी आप ये क्या कर रहे है डोली के ऊपर से कोई देख लेगा, हम अंदर जा रहे है आप ये ही सब करेंगे तो, हटो आप (ये बोलकर कंचन रामलाल की छाती को हाथ से छटकते हुए धक्का देकर अंदर भाग जाती है)
रामलाल- अरे रे बहू सुनो तो (रामलाल अपना एक हाथ आगे बढ़ाता हुआ कंचन को पकड़ने की कोशिश करता हुआ बोला, पर चिड़िया उड़ चुकी थी)
कंचन को मर्द ko तरसाना और तड़पाना से आता था, कंचन थोड़ी दूर भागी जिससे उसके भारी भरकम ३८ इंची उठे हुए चूतड़ों का हिलोड़ देख रामलाल के दिल पर छुरिया चल गई, दोनों चूतड़ आपस मे रगड़ खाते हुए, दाय बाय ऊपर नीचे बलखा रहे थे, चूतड़ इतने भारी और बाहर को निकले हुए थे की रामलाल बोलता-बोलता बीच मे ही रुक गया और चूतड़ों पर नजर गढ़ा के देख्न लगा, कंचन का यही इरादा जो की सफल हुआ, फिर वो थोड़ी दूर रुक जाती है और पीछे मुड़ कर कहती है,
“बोलिए क्या हुआ” कंचन ने अपनी एक एडी उठा ली थी, जिससे उसके चूतड़ का कटाव और ज्यादा गहरा और कातिल हो जाए, रामलाल ये देख कर जैसे सांस ही भूल गया, और कंचन की आवाज उसे सुनाई नहीं दी
कंचन - बोलीये भी अब कहा गुम है (खिलखिलाकर हस्ते हुए बोली)
रामलाल- वो वो वो बहू हम बड़े बड़े पहाड़ों के बीच घाटियों मे खो गए थे।
कंचन- अगर इतने बड़े पहाड़ है आपके लिए, तो आप रहने दीजिए, आप चढ़ नहीं पाएंगे, आपके बस की बात नहीं, नजर हटा लीजिए
रामलाल- हम बहुत मेहनती है, और इस पहाड़ की घाटिया तो हमे बहुत पसंद है, और हमारा दिशा सूचक भी अच्छा खासा बड़ा और मजबूत है, हम तो किला फांद ही लेंगे (रामलाल बेशर्मी से लंड को धोती पर से पकाते हुए बोला)
कंचन- अच्छा जी, ठीक है फिलहाल तो आपके लिए कुछ पीने का अंदर आएंगे तो मिलेगा, ऐसे बाहर आपकी बेशर्मी कोई देख लेगा
रामलाल- क्या बहू हमने क्या किया यही बता दो (भोला बनकर रामलाल बोला)
कंचन- अंदर आओ और देखलों (ये बोलकर कंचन ने अपने चूतड़ों को बाहर की तरफ उचका दिया, और फिर से भागती हुई अंदर चली गई, और फिर एक बार कंचन की भारी जालिम गांड की हिलोड़ ने रामलाल के लंड को एक ठुमका लगाने पर मजबूर कर दिया)
कैसी बेनाम ताकत होती है औरत के अंदर मर्द के शरीर मे एक जान फूँक देती है, और जो अंग अब तक बेजान था उसमे ताकत और जीवन भरने लगता है, और वो खुशीसे फूलता हुआ औरत के पीछे पीछे उसकी मादकता की और खीचा चल जाता है, रामलाल कंचन की ऐसी मादक हरकतों से होश खोता जा रहा था, उसका लंड बेताब होकर लंगोट मे फूलने लगा था। वो जल्दी से घर के आँगन से होता हुआ अंदर आ गया,
अंदर जाकर वो देखता है की बहू रसोई मे गैस के पास खड़ी हुई है, उसकी चोड़ी और भारी गाण्ड बाहर को काफी ज्यादा ही निकली हुई है, वो ये देख कर एक पल के लिए खो जाता है, फिर वो सोचता है बहू के चूतड़ इतने ज्यादा भारी और बाहर की और निकले हुए तो नहीं थे, फिर आज क्या हो गया।
अंदर रसोई मे खड़ी हुई कंचन को पता था रामलाल की नजर उसके पिछवाड़े पर है, वो चुप-चाप चाय गरम करती रही, जब कंचन कुछ बोली नहीं तो रामलाल रसोई मे चल गया और कंचन के पीछे खड़ा हो गया, उसकी नजर उसके भारी गांड पर ही थी,
जिसे देखकर रामलाल बोलता है- बहू आज क्या बना रही हो हमारे लिए बहुत अछि महक है
कंचन- जो हम रोज बनाते है वही बना रहे है चाय
रामलाल- अच्छा दिखाओ तो (ये बोलकर रामलाल कंचन के पीछे सट जाता है, उसका लंगोट सीधा कंचन की सलवार मे उसकी गांड को छू रहा था)
रामलाल- हम्म आज तो कुछ ज्यादा मजेदार सुगंध आ रही है, कुछ तो नया है (ये बोलकर रामलाल अपना लंड एक दम से कंचन की गांड पर दबा देता है )
कंचन की आह निकाल जाती है- आह बाबू जी क्या कर रहे है चाय खराब हो जाएगी।
रामलाल-ओह अच्छा ठीक है, (लंड को आराम से पूरा दबा कर बोला)
कंचन- अब ठीक है ठीक नहीं है बाबू जी आप तो माँजी के नया होते हुए पूरी मनमानी कर रहे है,
रामलाल - तंग हो रही हो क्या बहू, ऐसा है तो नहीं करते है बताओ (अब रामलाल का सिर कंचन की गर्दन पर था, उसके बालों की महक और उसके बदन की महक ले रहा था, और अब वो धीरे धीरे आगे पीछे करके लंड को कंचन की गांड पर रगड़ रहा था)
कंचन- तंग तो नहीं कर रहे पर चाय खराब हो जाएगी। (दोनों चूतड़ों के बीच लंड को पाकर कंचन खूब गरम हो गई थी, उसकी चूत वैसे ही पूरी गरम हो गई थी, सलवार का कपड़ा भी पतला था उसमे से लंड की गर्मी उसे साफ अपने चूतड़ों की खाल पर महसूस हो रही थी, aउसने रामलाल को बिल्कुल नहीं रोका आखिर उसने भी वीर्य को ग्रहण करना, वरना कैसे उसकी चूत को शांति मिलती, वो भी अपनी गांड को गोल गोल लंड पर घूम रही थी और मजे ले रही थी)
रामलाल- बहू चाय तो हमे पीनी है तुम क्यू फिकर कर रही हो, हम ऐसे चाय खराब नहीं करेंगे, वैसे सच मे महक तो बहुत बड़िया है दूध कोनसा डाली हो (ये बोलकर रामलाल ने कंचन की चूचियोंं को दाय हाथ से पकड़ लिया, और हल्के से दबाने लगा)
कंचन- आह बाबू जी आप तो रसोई मे ही शुरू हो गए, छोड़ दो कुछ तो शर्म करो
रामलाल- बहू इसमे शर्म कैसी हम तो बस दूध देख रहे है चाय के लिए, हम्म दूध भी बदला हुआ सा लग रहा है।
कंचन- ऐसा कुछ नहीं चाय बिल्कुल वैसी ही है, जैसे हम रोज बनाते थे, बस थोड़ी अदरक ज्यादा है,
बहू हमने तुम्हारी चाय अच्छे से चखी है, हम सुगंध से बता सकते है कुछ तो अलग है
कंचन समझ चुकी थी रामलाल उसकी कसी और उठी हुई गांड और चूचियोंं की बात कर रहा है, कंचन को कुछ सूज नहीं रहा था- आपका वहम है, माँजी आपको सही ही गधा बोलती है, आपका दिमाग सही काम नहीं करता
रामलाल- चलो बहू मान लिया दिमाग काम नहीं करता, पर गधा अपने चारे को पहचानता जरूर है, और हम कह रहे है चारे मे बदलाव है
कंचन- इस गधे ने चारा सिर्फ एक बार ही तो खाया है, उसको कहा पता चल होगा, और वैसे भी चार आज अलग पॅकिंग मे है, उस दिन अलग पॅकिंग मे था। (ये बोलकर कंचन अपने चूतड़ रामलाल के लंड पीछे कि और पर दबा देती है)
रामलाल-अच्छा तो ये बात है दिखाओ तो जरा, (ये बोलकर रामलाल ने पीछे खड़े-खड़े ही कंचन की कमीज को थोड़ उठा के बर देख ली, सतरंगी रंग की ब्रा डाली हुई थी, नई लग रही थी)
रामलाल- बहू बहुत सुंदर लग रही है, पॅकिंग तो।
कंचन- बस आपके लिए ही तो डाली है(ये बोल कर जोर से एक अपने चूतड़ों का झटका रामलाल के गांड के बीच फसे हुए लंड पर मार देती है)
मर्दों की यही तो कमजोरी होती, चूत आगे खोली नहीं की सोचना बंद कर देती है, और जब चूत कंचन जैसी लड़की की हो तो अच्छे अच्छे पुजारी तक अपना होश खो बैठे
रामलाल- आह बहू सच मे तुम बड़ा खयाल रखती है हमारा, कितनी सुशील बहू मिली है हमे (ये बोल कर रामलाल ने कंचन की चूचियोंं को कमीज के ऊपर से ही मसल दिया)
कंचन- आप भी हमारा कितना ख्याल रखते है,
रामलाल रसोई मे ही लंड के धक्कों को कंचन के चूतड़ों पर और चूचियोंं को मसलन शुरू कर देता है, (रामलाल का मोटा लंड कंचन को अपने दोनों चूतड़ों के बीच महसूस हो रहा था, उसको मर्द के हाथों मसलन अच्छा लगता था, वो भी मोटे तगड़े ११ इंच लंबे लंड के धक्के ले रही थी, पर वो जानती थी, रसोई मे कुछ भी नहीं हो सकता और समय कम था)
कंचन-आह आह आह बाबू जी मत करिए हमारे कपड़े खराब हो जाएंगे, बस अब बहुत हो गया अपने कमरे मे चले जाए, मैं चाय लेकर आती हू
रामलाल- पर पर बहू
कंचन रामलाल के हाथ छटक देती है, पर वर कुछ नहीं बहुत मनमानी कर ली आपने, माँजी नहीं है तो परेशां कर रहे है, अपने कमरे मे जाए चाय ला रही हू
(रामलाल से ब्रा की तनी कंधों से हट दी, चूचियोंं के निपल टन चुके थे और कंचन और रामलाल की साँसे भारी और तेज हो गई थी)
रामलाल एक दम से घबरा गया ये बहू को क्या हो गया है, वो चुप हो जाता है और बोलता है- ठीक है ठीक है बहू नाराज ना हो हम तो बस अपनी बहू को प्यार कर रहे थे
कंचन-मुझे सब मालूम है, आप जाए अब यह चाय आ रही है आपकी
रामलाल- ठीक है बहू तुम शांत हो जाओ हम जा रहे है,
रामलाल अपने मोटे लंबे लंड को मसलता हुआ, जो की अब पूरी लंबाई मे आ चुका और लंगोट मे से दिख रहा था, रसोई से चला जाता है
कंचन मन ही मन हस रही थी, पर वो रामलाल को उसकी बात मानने का और धैर्य का इनाम जरूर देगी ऐसा उसने सोच लिया था।
रामलाल अपने कमरे मे चल जाता है, और वही से आवाज देता है बहू चाय बन गई क्या
कंचन- हा ला रहे है,
रामलाल का कमरा सजा हुआ था, बड़िया बड़ा दीवान, एक छोटा सा टेबल, और एक कुर्सी, और साथ मे जुड़ा हुआ बाथरूम, रामलाल ने अपने घर पर पैसा पूरा लगा रखा था, घर मे तरह तरह की बहुत फर्निचर थी, और अभी भी घर की जमीन इतनी थी की अगर और कमरे बनाने हो तो वो भी आसानी से बन सकते तह, घर के पीछे बहुत खाली जगह थी।
कंचन ट्रे लेकर रामलाल के कमरे मे चली जाती है, और पूछती है शक्कर कितनी लेंगे आप- बहू बस १ ही चम्मच डालना, रामलाल अपनी कुर्सी पर बैठ था उसके सामने टेबल पर जैसे ही कंचन ने ट्रे रखी कंचन की मोटी भारी चूचियाँ फिर से कमीज को फाड़कर बाहर आने को हो गई, कंचन ने अपनी ब्रा की तनी फिर से कंधों पर चढ़ा ली थी, पर अभी भी पल्लू नहीं था, कंचन की छाती बिल्कुल नंगी थी, और कमीज का गल बहुत गहरा था, दोनों चूचियाँ रामलाल को निमंत्रण दे रही थी और बीच मे मंगलसूत्र झूल रहा था, पीछे कंचन के चूतड़ झुकने से बाहर को निकाल गए थे, जिनका कटाव कंचन की पतली कमर से साफ पता चल रहा था, और रामलाल कुर्सी पर बैठे ये नजारा किसी पसंदीदा फिल्म की तरह देख रहा था, उसका मुंह थोड़ स खुल गया था और गला सूख गया था।
कंचन- ठीक है बाबू जी, ये लीजिए
कंचन ने एक प्याली चाय की बना लि और उसे प्लेट मे रखते हुए रामलाल को देने लगती है और देखती है की रामलाल का ध्यान उसकी चूचियोंं पर है
कंचन रामलाल को बोलने लगती है बाबू जी
रामलाल- वो वो क्या हुआ बहू (रामलाल जो की तबसे कंचन के बदन से अपनी आंखे सेक रहा था घबरा जाता है अभी थोड़ी देर पहले बहू ने उससे डाट लगाई थी, और उसका हाथ जल्दी से चाय की प्याली की और बढ़ने लगता है )
जल्दी जल्दी मे रामलाल प्याली को पकड़ नहीं पाता और कंचन से चाय उसकी धोती पर गिर जाती है,
रामलाल- ओह आह बहू
कंचन- ओह बाबू जी माफ करिए गा
रामलाल- कोई नहीं बहू हाथ तो मेरा ही लगा था, आह बहुत गरम है
कंचन -लाइए मैं साफ करती हू, कंचन कमरे मे छोटे कपड़े से धोती साफ करने लगती है, रामलाल की जांघ पर हाथ लगते ही रामलाल कराह उठता है
आह बहू, आह रहने दो बहुत गरम है धोती बदलनी ही पड़ेगी
कंचन- ठीक है बाबू जी आप धोती बदल लीजिए, मैं पोंछा लगा देती हू चाय जमीन पर फैल गई है।
कंचन जल्दी से पोंछा लेकर आती है, और इतने मे रामलाल भी धोती लंगोट निकाल देता है, पर उसे दूसरा लंगोट और धोती पहनने मे दिक्कत हो रही थी, क्यू चाय गरम होने की वजह से खाल पर कपड़ा लगते ही जलन हो रही थी, तो उसने सिर्फ तौलिया लपेट कर चाय पीने की सोची। गरम चाय गिरने के बाद महोल थोड़ा ठंडा हो गया था, कंचन जब तक पोंछा लेने गई थी तब तक रामलाल तौलिया लपेट कर बेड पर बैठ गया था, और इस बार खुद चाय डालकर पी रहा था।
कंचन पोंछा लेकर आती है,
कंचन- बाबू जी आपने धोती नहीं डाली क्या हुआ
रामलाल- बहू वो जलन हो रही थी कपड़ा लगने पर, थोड़ी देर मे चाय पीकर पहन लेंगे
कंचन को तौलिए के ऊपर से ही रामलाल के ११ इंच लंबे लंड की बनावट का पता लग रहा था, वो कमरे के दरवाजे पर खड़ी रामलाल के लंड को निहार रही थी, लंड अभी सो रहा था पर अभी भी ७ इंच लंबा लटका हुआ था, और ईचे उसके भारी टट्टो पर टिका हुआ आराम कर रहा था, कंचन लंड की बनावट को देखकर कर फिर से गरम होने लगती है रामलाल भी कंचन के हाव भाव समझ जाता है, और वो अपनी टांगों को थोड़ खोल लेता है ऐसा करने पर कंचन अपनी जीब अपने होंठ पर फेर देती है।
रामलाल
रामलाल- बहू पोंछा तो लगा लो वरना पूरा कमरा गंदा हो जाएगा
कंचन- हा बाबू जी लगाती हू, कंचन सकपका जाती है उसे याद आता है चाय भी साफ करनी है
कंचन नीचे उकड़ू बैठ जाती है, उसकी मांसल जांघे टाइट सलवार मे कस जाती है और उसकी छाती पर लग जाती है जिससे कंचन के भारी स्तन आपस मे बीच जाते है, और कमीज से ८० % बाहर निकाल आते है, स्तनों की पूरी पूरी गोलाइया बाहर थी कंचन के चूचियोंं के areola नजर या रहे थे, सनरंगी रंग की कमीज और पीले रंग की सलवार मे कंचन की जवानी पोंछा लगाते हुए पूरी कस गई थी, और ये देखकर रामलाल की हालत खराब होने लगा जाती है जो लंड अभी तक लंगोट मे कसा हुआ उसे अब तौलिया के अंदर आजादी थी जो अब खुशी से कंचन की मादक गोलाइओ को देखते हुए अपना मुंह उठाना शुरू कर रहा था।
कंचन की जवानी ऐसी कसी हुई थी की कंचन रामलाल को वासना मे जल रही थी, और खुद भी वासना मे जल रही थी, माया कभी भी या सकती थी, इस बेच उसके मन मे था की वो अपनी प्यास भुझा ले। पर रामलाल हिचकिचा रहा था, बहू ने उसके छिड़क दिया था।
अब वो क्या करे, उसके मन मे बड़ी उलझन थी, दोनों ही पूरे दिन से संभोग के लिए तड़प रहे थे, और अब तो तड़प और ज्यादा बढ़ चुकी थी जो बिल्कुल सामने होते हुए भी नहीं मिल रही थी।
बाकी अगले अपडेट मे॥ मिलते है कुछ वक्त बाद।।