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Thriller एक सफेदपोश की....मौत!

Napster

Well-Known Member
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बहुत ही सुंदर लाजवाब और अद्भुत रमणिय अपडेट है भाई मजा आ गया :adore:
रजिया ने एसीपी राघवन को क्या जानकारी दी जो इस केस के लिये अहम हो
रिया के नाभि के निचे के तिल का क्या राज हो सकता है जो एसीपी राघवन को बेचैन कर दिया
अगले रोमांचकारी और धमाकेदार अपडेट की प्रतिक्षा रहेगी जल्दी से दिजिएगा
 

KANCHAN

New Member
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लवली जी,
मैं हमेशा रोमांचक कहानी ही पसंद करता हूँ, कमेंट ना करने की माफ़ी चाहता हूँ।
अब आगे आपको हमेशा हर अपडेट पर मेरा कमेंट मिलेगा।
शानदार
 

chodumahan

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जासूसी कहानियां हो या इरोटिक साहित्य अक्सर उसे मुख्य साहित्य की धारा से अलग ही देखा जाता है, परन्तु आप का यह प्रयास, ... यह एक लम्बी परपंरा है जासूसी लेखन की जो उन्नीसवीं सदी के अंतिम वर्षों में हिंदी में प्राम्भ हो चुका था।

गोपाल राम गहमरी के साथ हिंदी के जासूसी लेखन की शुरुआत जुडी हुयी है, और सबसे पहले अनुवाद के रूप में १८९६ में उन्होंने प्रसिद्ध बंगाली जासूसी लेखक नागेंद्र दास की कहानी, हिरेर मूल्य या हीरे मूल्य को अनुदित कर वेंकटेश्वर समाचार में छापा, जो प्रसिद्ध वेंकेटेश्वर स्टीम प्रेस मुंबई से प्रकाशित होता था. और इस प्रकार हिंदी में प्रथम जासूसी कहानी छपी. यह सीरियल के रूप में प्रकाशित होती थी। इसी पत्र में मूल जासूसी कहानी 'जोड़ा जासूस; भी गहमरी जी की इसी वर्ष छपी।

उन्नीसवीं शताब्दी के अवसान के पहले गहमरी जी के दो जासूसी उपन्यास हिंदी में प्रकाशित हो चुके थे, अद्भुत लाश (१८९६ ) और गुप्तचर ( १८९९ ).

हिंदी साहित्य में कई विधाओं की जासूसी कहानियों पर भी बंगाल का प्रभाव था। सर्वप्रथम भारतीय भाषाओँ में बंगाली में ही १८८६ में हुआ , नागेन्द्रनाथ गुप्त के उपन्यास से बाद में बहु चर्चित दरोगा का दफ्तर ( जो अभी भी बंगाली और अँगरेजी अनुवाद में उपलब्ध है ) प्रकाशित हुआ जिसके लेखक प्रियनाथ मुखर्जी स्वयं कोलकाता पुलिस में काम करते थे। यह १८९३ में प्रकाशित हुआ.

अगर देखा जाए तो हिंदी और बँगला की यह कहानियां प्रसिद्ध अंग्रेजी कथा के जासूस शर्लाक होल्म्स और उनको रूप देने वाले सर आर्थर कानन डायल की कहानियों के लगभ समकालीन ही है। शर्लाक होल्म्स की पहली कहानी स्टडी इन स्कारलेट १८८७ में छपी।

गहमरी जी ने १९०० में जासूसी नाम की पहली नियमित जासूसी पत्रिका अपने गाँव से प्रकाशित करनी शुरू की जो बहुत अरसे तक चली।


मैं इन सब बातों की चर्चा इस लिए कर रही हूँ की आप यह समझें की आप गहमरी जी की परंपरा के अग्रवाहक हैं। यह माने नहीं रखता की व्यूज दस हजार हैं या दस लाख, या कुछ लोग पढ़ते हैं पर कमेंट नहीं करते, माने यह रखता है की आप एक की लेखनी से हम सब पाठक पाठिकाओं को एक अच्छी कहानी पढ़ने को मिल रही है।
जहाँ तक मेरी जानकारी है .. उसके अनुसार बाबू देवकी नंदन खत्री, जिन्होंने चन्द्रकांता, चन्द्रकांता संतति जैसे उपन्यास लिखे हैं..
उसे पढने के लिए लोगों ने हिंदी पढ़ना लिखना सीखा (उसके पहले उस समय लोग उर्दू की पढाई पर ध्यान देते थे)..
कहानी का परिवेश भी उस समय के चुनार, रोहतास, गया जी, बनारस और आस पास का है..
तो अगर संभव तो हमारा ज्ञानवर्धन करे कि हिंदी जासूसी लेखन और उपन्यास की शुरुआत किसने की ..
उत्तर की प्रतीक्षा में...
 

komaalrani

Well-Known Member
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जहाँ तक मेरी जानकारी है .. उसके अनुसार बाबू देवकी नंदन खत्री, जिन्होंने चन्द्रकांता, चन्द्रकांता संतति जैसे उपन्यास लिखे हैं..
उसे पढने के लिए लोगों ने हिंदी पढ़ना लिखना सीखा (उसके पहले उस समय लोग उर्दू की पढाई पर ध्यान देते थे)..
कहानी का परिवेश भी उस समय के चुनार, रोहतास, गया जी, बनारस और आस पास का है..
तो अगर संभव तो हमारा ज्ञानवर्धन करे कि हिंदी जासूसी लेखन और उपन्यास की शुरुआत किसने की ..
उत्तर की प्रतीक्षा में...


आपने एक बहुत रोचक प्रश्न उठाया। जैसा की मैं पहले भी लिख चुकी हूँ, जासूसी उपन्यासों की हिंदी में शुरुआत का श्रेय गोपाल राम गहमरी जी को ही जाता है, जिन्होंने उन्नीसवीं शताब्दी के आखिरी वर्षों में पहले एक अनुवाद के रूप में फिर मूल दो जासूसी उपन्यास लिखे। १९०० से नियमित रूप से जासूसी पत्रिका निकालते थे. गद्य कोष में उनकी एक कहानी उपलब्ध है और एक अच्छी बात ये हुयी है की अभी कुछ दिनों पहले उनकी कुछ कहानियों का संकलन, गोपाल राम गहमरी की जासूसी कहानियां के नाम से संजय कृष्ण जी ने सम्पादित किया है और यह ऑनलाइन उपलब्ध भी है।

बाबू देवकी नंदन खत्री ( १८६१-१९१३ ) हिंदी के प्राम्भिक दौर में सर्वाधिक लोकप्रिय उपन्यासकारों में थे और उनकी पुस्तकें लहरी प्रेस से छपती थीं जो अभी भी सक्रिय है.चंद्रकांता, चंद्रकांता संतति, भूतनाथ, इत्यादि उनकी प्रसिद्ध पुस्तके हैं। उनके उपरांत उनके पुत्र बाबू दुर्गाप्रसाद खत्री जी ने भी उस परम्परा को जीवित रखा, बाबू देवकी नंदन खत्री जी की पुस्तकें तिलस्म और अयारी पर आधारित थीं जिसकी एक लम्बी पर्शियन - भारतीय परम्परा है और जिसे कुछ हद तक दास्तानगोई के नाम से फिर से जिन्दा करने की कोशिश हो रही है। हमजानामा ( जिसपर अकबर के समय चित्र बने ) और तिलस्म ए होशरुबा इन में से महत्वपूर्ण पुस्तकें हैं , लेकिन देवकी नंदन जी ने उस परंपरा के मूल तत्वों को ( तिलस्म बांधना, खोलना, अय्यार इत्यादि ) को पूरी तरह से भारतीय परिवेश में प्रस्तुत किया और हिंदी में बहुत ही रोचक ढंग से , इसलिए वह बहुत लोकप्रिय रहे।

जासूसी कहानियों की परपंरा ( जिससे गहमरी जी जुड़े हैं ) एक पश्चिमी परम्परा है जिसकी शुरआत एडगर एलेन पो की कहानियों से मानी जाती है और उसका स्वर्ण युग आर्थर कानन डायल और अगाथा क्रिस्टी के समय आया, वहीँ से यह स्वरूप पहले बंगाल में फिर हिंदी में आया, जबकि तिलस्म और अयारी की कहानियों की परम्परा पूरी तरह एशियाई है जिसे हिंदी में एक भारतीय स्वरूप देकर खत्री जी ने प्रस्तुत किया। कुछ लोग यह मानते हैं की उनमें भी कुछ जासूसी के तत्व हैं , पर मूल रूप से वह कहानियां तिलस्म पर ही आधारित हैं और भूतनाथ एक बड़े अय्यार हैं जैसे तिलस्म ए होशरुबा में अमर अय्यार हैं.

गहमरी जी ने १५० से ज्यादा उपन्यास, कहानियां लिखी और उनसे अनुप्राणित हो कर उनके समय में ही, बीसवीं सदी के शुरू में ही जिसे हम पल्प फिक्शन कहते हैं उस रूप में जासूसी किताबें अन्य लेखकों ने भी लिखनी शुरू कर दी थीं लेकिन क्योंकि इसे साहित्य नहीं माना जाता था इसलिए इनका इतिहास आसानी से उपलब्ध नहीं है .




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Chutiyadr

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Tere nabhi me jo kala til hai,wahi katil hai wahi katil hai... :lol1:
Abhi tak ki story bahut hi behtreen tarike se aage ja rahi hai.. :good:
Mera pura shak to jayant aur riya par hi raha hai ,aage dekhte hai...
 

chodumahan

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आपने एक बहुत रोचक प्रश्न उठाया। जैसा की मैं पहले भी लिख चुकी हूँ, जासूसी उपन्यासों की हिंदी में शुरुआत का श्रेय गोपाल राम गहमरी जी को ही जाता है, जिन्होंने उन्नीसवीं शताब्दी के आखिरी वर्षों में पहले एक अनुवाद के रूप में फिर मूल दो जासूसी उपन्यास लिखे। १९०० से नियमित रूप से जासूसी पत्रिका निकालते थे. गद्य कोष में उनकी एक कहानी उपलब्ध है और एक अच्छी बात ये हुयी है की अभी कुछ दिनों पहले उनकी कुछ कहानियों का संकलन, गोपाल राम गहमरी की जासूसी कहानियां के नाम से संजय कृष्ण जी ने सम्पादित किया है और यह ऑनलाइन उपलब्ध भी है।

बाबू देवकी नंदन खत्री ( १८६१-१९१३ ) हिंदी के प्राम्भिक दौर में सर्वाधिक लोकप्रिय उपन्यासकारों में थे और उनकी पुस्तकें लहरी प्रेस से छपती थीं जो अभी भी सक्रिय है.चंद्रकांता, चंद्रकांता संतति, भूतनाथ, इत्यादि उनकी प्रसिद्ध पुस्तके हैं। उनके उपरांत उनके पुत्र बाबू दुर्गाप्रसाद खत्री जी ने भी उस परम्परा को जीवित रखा, बाबू देवकी नंदन खत्री जी की पुस्तकें तिलस्म और अयारी पर आधारित थीं जिसकी एक लम्बी पर्शियन - भारतीय परम्परा है और जिसे कुछ हद तक दास्तानगोई के नाम से फिर से जिन्दा करने की कोशिश हो रही है। हमजानामा ( जिसपर अकबर के समय चित्र बने ) और तिलस्म ए होशरुबा इन में से महत्वपूर्ण पुस्तकें हैं , लेकिन देवकी नंदन जी ने उस परंपरा के मूल तत्वों को ( तिलस्म बांधना, खोलना, अय्यार इत्यादि ) को पूरी तरह से भारतीय परिवेश में प्रस्तुत किया और हिंदी में बहुत ही रोचक ढंग से , इसलिए वह बहुत लोकप्रिय रहे।

जासूसी कहानियों की परपंरा ( जिससे गहमरी जी जुड़े हैं ) एक पश्चिमी परम्परा है जिसकी शुरआत एडगर एलेन पो की कहानियों से मानी जाती है और उसका स्वर्ण युग आर्थर कानन डायल और अगाथा क्रिस्टी के समय आया, वहीँ से यह स्वरूप पहले बंगाल में फिर हिंदी में आया, जबकि तिलस्म और अयारी की कहानियों की परम्परा पूरी तरह एशियाई है जिसे हिंदी में एक भारतीय स्वरूप देकर खत्री जी ने प्रस्तुत किया। कुछ लोग यह मानते हैं की उनमें भी कुछ जासूसी के तत्व हैं , पर मूल रूप से वह कहानियां तिलस्म पर ही आधारित हैं और भूतनाथ एक बड़े अय्यार हैं जैसे तिलस्म ए होशरुबा में अमर अय्यार हैं.

गहमरी जी ने १५० से ज्यादा उपन्यास, कहानियां लिखी और उनसे अनुप्राणित हो कर उनके समय में ही, बीसवीं सदी के शुरू में ही जिसे हम पल्प फिक्शन कहते हैं उस रूप में जासूसी किताबें अन्य लेखकों ने भी लिखनी शुरू कर दी थीं लेकिन क्योंकि इसे साहित्य नहीं माना जाता था इसलिए इनका इतिहास आसानी से उपलब्ध नहीं है .




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आप निश्चित रूप से एक समर्पित और प्रतिबद्ध पाठक हैं...
साथ ही ज्ञान का भंडार भी हैं...
आपके शब्दों का कोश भी प्रशंसनीय है..
सही समय और स्थान पर सही शब्द का प्रयोग विरले लोगों को होता है...
और वाक् पटुता भी अत्युत्तम एवं स्तुत्य है...
मेरा आपको शत शत नमन...
 

Harry killer

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Lovely Anand

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Tere nabhi me jo kala til hai,wahi katil hai wahi katil hai... :lol1:
Abhi tak ki story bahut hi behtreen tarike se aage ja rahi hai.. :good:
Mera pura shak to jayant aur riya par hi raha hai ,aage dekhte hai...

Dhnyavad dr sahab. Aap padhai wale doctor hai ya dawai wale ya phir is phoram ki parampara anusaar.....xxxxaai wale.

क्षमा प्रार्थी हूं मैं ने यह बात सिर्फ बात हंसने हंसाने के लिए लिखी है।
मुस्कुराते रहिये और जुड़े रहिये।
 

Lovely Anand

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आपने एक बहुत रोचक प्रश्न उठाया। जैसा की मैं पहले भी लिख चुकी हूँ, जासूसी उपन्यासों की हिंदी में शुरुआत का श्रेय गोपाल राम गहमरी जी को ही जाता है, जिन्होंने उन्नीसवीं शताब्दी के आखिरी वर्षों में पहले एक अनुवाद के रूप में फिर मूल दो जासूसी उपन्यास लिखे। १९०० से नियमित रूप से जासूसी पत्रिका निकालते थे. गद्य कोष में उनकी एक कहानी उपलब्ध है और एक अच्छी बात ये हुयी है की अभी कुछ दिनों पहले उनकी कुछ कहानियों का संकलन, गोपाल राम गहमरी की जासूसी कहानियां के नाम से संजय कृष्ण जी ने सम्पादित किया है और यह ऑनलाइन उपलब्ध भी है।

बाबू देवकी नंदन खत्री ( १८६१-१९१३ ) हिंदी के प्राम्भिक दौर में सर्वाधिक लोकप्रिय उपन्यासकारों में थे और उनकी पुस्तकें लहरी प्रेस से छपती थीं जो अभी भी सक्रिय है.चंद्रकांता, चंद्रकांता संतति, भूतनाथ, इत्यादि उनकी प्रसिद्ध पुस्तके हैं। उनके उपरांत उनके पुत्र बाबू दुर्गाप्रसाद खत्री जी ने भी उस परम्परा को जीवित रखा, बाबू देवकी नंदन खत्री जी की पुस्तकें तिलस्म और अयारी पर आधारित थीं जिसकी एक लम्बी पर्शियन - भारतीय परम्परा है और जिसे कुछ हद तक दास्तानगोई के नाम से फिर से जिन्दा करने की कोशिश हो रही है। हमजानामा ( जिसपर अकबर के समय चित्र बने ) और तिलस्म ए होशरुबा इन में से महत्वपूर्ण पुस्तकें हैं , लेकिन देवकी नंदन जी ने उस परंपरा के मूल तत्वों को ( तिलस्म बांधना, खोलना, अय्यार इत्यादि ) को पूरी तरह से भारतीय परिवेश में प्रस्तुत किया और हिंदी में बहुत ही रोचक ढंग से , इसलिए वह बहुत लोकप्रिय रहे।

जासूसी कहानियों की परपंरा ( जिससे गहमरी जी जुड़े हैं ) एक पश्चिमी परम्परा है जिसकी शुरआत एडगर एलेन पो की कहानियों से मानी जाती है और उसका स्वर्ण युग आर्थर कानन डायल और अगाथा क्रिस्टी के समय आया, वहीँ से यह स्वरूप पहले बंगाल में फिर हिंदी में आया, जबकि तिलस्म और अयारी की कहानियों की परम्परा पूरी तरह एशियाई है जिसे हिंदी में एक भारतीय स्वरूप देकर खत्री जी ने प्रस्तुत किया। कुछ लोग यह मानते हैं की उनमें भी कुछ जासूसी के तत्व हैं , पर मूल रूप से वह कहानियां तिलस्म पर ही आधारित हैं और भूतनाथ एक बड़े अय्यार हैं जैसे तिलस्म ए होशरुबा में अमर अय्यार हैं.

गहमरी जी ने १५० से ज्यादा उपन्यास, कहानियां लिखी और उनसे अनुप्राणित हो कर उनके समय में ही, बीसवीं सदी के शुरू में ही जिसे हम पल्प फिक्शन कहते हैं उस रूप में जासूसी किताबें अन्य लेखकों ने भी लिखनी शुरू कर दी थीं लेकिन क्योंकि इसे साहित्य नहीं माना जाता था इसलिए इनका इतिहास आसानी से उपलब्ध नहीं है .




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कोमल जी आपकी हर कमेंट को पढ़कर आपके बारे में मेरी राय हमेशा बदलती रहती है आप जैसी जानकार और ज्ञानी पाठिका का कहहनी पर साथ पा कर मैं धन्य हूँ
 
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Lovely Anand

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लवली जी,
मैं हमेशा रोमांचक कहानी ही पसंद करता हूँ, कमेंट ना करने की माफ़ी चाहता हूँ।
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आपका स्वागत है
 
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