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Incest कमीना

LUCKY4ROD

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"अरे,बेटी मैं कर लूँगा.तुम क्यू तकलीफ़ कर रही हो!"

"हां,हां,देख रही हू आप कर लेंगे.",रीमा स्टूल पे चढ़ गयी,"इस्पे चढ़ने मे ही आप परेशान हो गये,दद्दा."रीमा ने सारी का पल्लू अपनी कमर मे खोंसा,"लाइए डब्बे दीजिए,मैं रखती हू."
किचन मे उपर बने कॅबिनेट्स मे दर्शन डब्बे रखने जा रहा था जब रीमा आकर उसकी मदद करने लगी.

"वाह,दद्दा.तुमने इन्हे नर्स से अपनी असिस्टेंट बना लिया!",शेखर दफ़्तर से लौट आया था.

"मैं तो कर लेता भाय्या, पर इसके आगे तो मेरी 1 नही चलती.",जवाब मे दर्शन हंसते हुए बोला.तभी बाहर सब्ज़ीवाले की आवाज़ आई,"भाय्या,ज़रा स्टूल थाम लो तो मैं सब्ज़ी ले आऊ,रात के खाने के लिए कोई सब्ज़ी नही है."

"ठीक है,दादा.",शेखर ने स्टूल थाम लिया.उसका चेहरा रीमा की नंगी कमर के पास था.बीच-2 मे वो झुक के डब्बे उठाता & उसे थमा देता.वो इस तरह खड़ा था की उसका चेहरा रीमा की कमर से बस कुच्छ इंच दूर था.उसके बदन से आती मस्त खुश्बू शेखर को मदहोश कर रही थी.रीमा का भी बुरा हाल था,उसके जेठ की गरम साँसे वो अपनी कमर पे महसूस कर रही थी & उसकी चूत मचलने लगी थी.

दोनो मदहोश से ये भूल ही गये थे कि 1 स्टूल के उपर खड़ा था तो दूसरा उसे संभालने के लिए नीचे स्टूल को थामे था.रीमा का पैर फिसला & वो नीचे गिरने लगी कि शेखर ने उसे थाम लिया,अब वो अपने जेठ की गोद मे थी.शेखर ने उसे ऐसे पकड़ा कि उसका 1 हाथ उसकी पीठ को घेरे था तो दूसरा उसकी कमर को.वो एकटक रीमा को घुरे जा रहा था,रीमा ने शर्मा के अपनी नज़रे नीची कर ली,"नीचे उतारिये ना."

शेखर ने बहुत धीरे से उसे नीचे उतारा & ऐसा करने मे उसका जो हाथ पीठ को थामे था,उस से उसने रीमा की बगल से उसकी 1 चूच्ची को दबा दिया & दूसरे से उसकी कमर को.ज़मीन पे खड़ा करते हुए उसने अपने गुज़रे हुए भाई की विधवा को अपने बदन से चिपका कर अपने खड़े लंड का एहसास उसे करा दिया.रीमा के गाल लाल हो गये थे & माथे पे पसीना छलक आया था.
गेट बंद होने की आवाज़ आई तो दोनो अलग हो गये.दर्शन किचन मे आया तो शेखर अपने रूम मे जा चुका था.बचा काम करके रीमा भी अपने कमरे मे चली गयी थी,कितने दीनो बाद किसी मर्द के सीने से लग उसने अपनी चूत पे लंड का & चूची पे हाथ का एहसास किया था.पर अभी अपनी आग बुझाने का वक़्त नही था,सास को दवा जो पिलानी थी.-------------------------------------------------------------------------------

रात को खाने के बाद वो छत पे गयी जहा शेखर ने बहाने से कई बार उसके बदन को हाथ लगाया.वो जानती थी कि अगर वो थोड़ी देर और वाहा रुकी तो वो आज खुद उस से चुदने को तैय्यार हो जाएगी जोकि उसे बिल्कुल नही करना था.दोनो बाप-बेटे को बिल्कुल नही लगना चाहिए था कि वो खुद उनके साथ सोई थी बल्कि उन्हे तो हमेशा ये लगना चाहिए था कि उन्होने अपनी बहू का फ़ायदा उठाया.वो शेखर को गुड नाइट कह के नीचे आ गयी.

अपनी सास को सुला उसने परदा हटा वो अपने ससुर के पास गयी,वो बिस्तर पे हेडबोर्ड से टेक लगा पैर फैलाए बैठे थे,"अभी सोए नही आप.",वो उनके पैरो के पास बैठ गयी,"लाइए पैर दबा दू."

"ओह्ह..ओह!रीमा तुम फिर परेशान हो रही हो.मैं दर्शन से करवा लेता ना!"

जवाब मे रीमा बस मुस्कुरा के फिर से घुटनो पे बैठ उनके पैर दबाने लगी.अगर उन्हे उसकी परेशानी की इतनी चिंता होती तो वो अभी तक दर्शन को बुला उस से ये काम करवा चुके होते,पर उन्हे तो अपने बहू के जिस्म का दीदार & एहसास जो करना था.रीमा ये सोच मन ही मन मुस्कुराइ.

"आज तेल के साथ मालिश कर देती हू.ज़्यादा आराम मिलेगा.",वो उठी & थोड़ी देर मे तेल लेकर आ गयी & घुटनो पे बैठ गयी.उसके ससुर ने अपना पाजामा घुटनो तक चढ़ा लिया था.रीमा ने उसे थोड़ा & उपर कर उनकी जाँघो को भी पाजामे से बाहर कर दिया.अपनी बहू के कोमल हाथो का एहसास जाँघो पे महसूस करते ही वीरेन्द्रा साक्शेणा का लंड खड़ा होने लगा.

रीमा ने हाथो मे तेल लगा अपने ससुर के पैरो की मालिश शुरू कर दी.कल ही की तरह आज फिर उसका आँचल सीने से नीचे गिर गया.उसके हाथो मे तेल लगा था & छुने से सारी खराब हो जाती.वो पशोपेश मे पड़ी थी कि तभी कुच्छ ऐसा हुआ जो उसने सपने मे भी नही था,विरेन्द्र जी ने हाथ बढ़ा उसका पल्लू उठाया & उसकी कमर मे अटका दिया.ऐसा करने मे उनका हाथ उसकी कमर के शायद सबसे कोमल हिस्से को छु गया &रीमा के बदन मे बिजली सी दौड़ गयी.
 

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उसने उनके पैरो पे तेल मालिश शुरू कर दी &थोड़ी ही देर मे उसे अपने ससुर के पाजामे मे वो जाना-पहचाना तंबू नज़र आ गया.विरेन्द्र जी तो जैसे नज़रो से ही उसके सीने की गोलैईयों का रस पी रहे थे.रीमा की चूत जो शाम को शेखर की हर्कतो से गीली हो गयी थी अब तो बस जैसे बहने लगे थी.अपनी जाँघो को हल्के से रगड़ते हुए वो उनकी टाँगे सहलाने लगी.

दोनो इस खेल का मज़ा ले रहे थे.रीमा का दिल तो कर रहा था की अपने ससुर के उपर चढ़ जाए & उनके बदन से अपने बदन की प्यास बुझा ले पर ऐसा वो कर नही सकती थी.

"आज ज़रा कमर की भी मालिश कर दो.",विरेन्द्र जी ने अपना कुर्ता उतार दिया & पलट के पेट के बल लेट गये.रीमा को उनके बालो भरे चौड़े सीने की बस 1 झलक सी मिली.रवि का सीना बिल्कुल चिकना था & वो हमेशा सोचा करती थी कि कैसा लगता होगा बालो भरे सीने मे हाथ फिराना उसे चूमना...

उसके ससुर लेटे उसका इंतेज़ार कर रहे थे.रीमा ने पहले तो बगल मे बैठे हुए ही मालिश शुरू की पर इस पोज़िशन मे वो ठीक से ये काम कर नही पा रही थी.उसके ससुर शायद उसकी परेशानी समझ गये थे,"मेरे दोनो तरफ घुटने रख के बैठो तो ठीक से कर पओगि."

रीमा ने सारी घुटनो तक उठाई & जैसे उन्होने कहा वैसे बैठ गयी.मालिश शुरू हो गयी.रीमा घुटनो पे खड़े-2 थोडा थक गयी तो अपनेआप उसके घुटने मूड गये & वो अपने ससुर की गंद पे बैठ गयी.विरेन्द्र जी के मुँह से आह निकल गयी तो उसे लगा कि उन्हे दर्द हो रहा है,वो फ़ौरन उठ गयी.

"बैठी रहो,बहू.मुझे कोई परेशानी नही है.वैसे भी ऐसे खड़े हुए तो तुम थक जाओगी."

रीमा वापस उनकी गंद पे बैठ गयी & मालिश करने लगी.चूत को 1 मर्दाना जिस्म का एहसास हुआ तो वो अपने आप बहुत हौले-2 उनकी गंद पे रगड़ खाने लगी.रीमा मस्त हो अपने ससुर की कमर सहला रही थी,"ज़रा पीठ की भी मालिश कर दो.",विरेन्द्र जी की आवाज़ आई.

वो झुक कर उनके पीठ की मालिश करने लगी.अब उसकी कमर हल्के-2 हिल कर उसकी चूत को उसके ससुर की गंद पे रगड़ रही थी & जब भी वो आगे झुकती तो उसकी छातिया उनकी पीठ को च्छू सी जाती.रीमा आँखे बंद किए ये खेल खेल रही थी कि तभी उसके ससुर ने करवट ली.
उनके ऐसा करने से वो अब सीधा उनके लंड पे आ बैठी थी.रीमा की साँस अटक गयी.उसके ससुर की आँखो मे वासना की भूख सॉफ नज़र आ रही थी.उसकी सारी घुटनो से कुच्छ उपर आ गयी थी.उनके हाथ वही घुटनो के उपर उसकी जाँघ से लग गये,"ज़रा सीने पे भी मालिश कर दो."

रीमा ने हाथो मे तेल लिया & उनके बालो भरे सीने की मालिश करने लगी.जब वो झुकती तो रीमा की ब्लाउस के गले मे से झँकति चूचिया विरेन्द्र जी के चेहरे के बिल्कुल सामने आ जाती.उनकी नज़रे तो वही टिकी हुई थी....और रीमा...उसे उनके बालो से खेलने बहुत अच्छा लग रहा था.वो आँखे बंद किए उनके सीने को सहलाने लगी & उनके निपल्स के आस-पास उसके हाथ दायरे मे घूमने लगे.कमर हिलाते हुए उनके लंड पे चूत को रगड़ रही थी.तभी विरेन्द्र जी का हाथ उसे जाँघो से होता हुआ उसकी सारी मे घुसता महसूस हुआ तो वो जैसे नींद से जागी.

वो सीधी हुई & अपनी घुटने सीधे करते हुए पलंग से उतर गयी,"अब आप आराम करिए,पिताजी.मैं भी सोने जाती हू."

वो लड़खड़ते हुए जैसे की नशे मे हो,अपने कमरे मे पहुँची & पिच्छली रात की हितरह अपने कपड़े & गीली पॅंटी को उतार अपने हाथोसे अपनी चूत को रगड़ने लगी.

"मालिक,मैने 127 नंबर. वाली कोठी के रामभाजन को कह दिया है,उसका भतीजा गणेश रोज़ आकर काम कर जाएगा...क्या करू मलिक, बात ही ऐसी है,जाना तो पड़ेगा-.."

"..-क्या बेकार की बातें कर रहे हो, दर्शन!",वीरेन्द्रा जी ने नाश्ते की प्लेट अपनी ओर खींची,"..बेफ़िक्र होकर जाओ & बिटिया की शादी निपताओ.यहा हमे कोई तकलीफ़ नही होगी."

"हा,दद्दा.और मैं भी तो हू.यहा कोई परेशानी नही होगी.",रीमा भी आकर टेबल पे बैठ गयी.दर्शन कल से 3 महीने की छुट्टी पे अपने गाओं जा रहा था,उसकी बेटी की की शादी के लिए.उसी के बारे मे बातें हो रही थी.

वीरेंद्र जी ने देखा कि रीमा कहीं जाने के लिए तैय्यार है,आज उसने सलवार कमीज़ पहनी थी जो की काफ़ी कसी हुई थी & उसके बदन की गोलाइयाँ उसमे से पूरी तरह से उभर रही थी.दुपपते सीने से नीचे था & कमीज़ के गले से 1 इंच क्लीवेज नज़र आ रहा था.उनकी निगाहे वही पे अटक गयी,"कही बाहर जा रही हो क्या?"

"जी.वो जो नये अकाउंट के लिए अप्लाइ किया था ना,आज बॅंक मे उसी के लिए बुलाया था.नाश्ता करके वही जाऊंगी."

"मैं तुम्हे छ्चोड़ दूँगा.",शेखर भी नाश्ता करने आ गया था.रीमा ने आज उसे मना नही किया,जानती थी कि वो मानेगा तो है नही.
थोड़ी देर बाद वो मार्केट मे शेखर की कार से उतर रही थी.आज फिर कार से बॅंक की ओर जाते हुए शेखर का हाथ उसकी कमर पे था.बॅंक मे उसे थोड़ी देर इंतेज़ार करने को कहा गया तो दोनो 1 दीवार से लगी कुर्सियो मे से 2 पे बैठ गयी.शेखर उस से सॅट के यू बैठा था कि उसकी टाँग & जाँघ रीमा की टाँग & जाँघ से बिल्कुल सटे हुए थे.उसका 1 हाथ पीछे से कुर्सी पे टीका रीमा की पीठ सहला रहा था.दोनो इधर-उधर की बाते करने लगे कि तभी किसी आदमी ने 1 फॉर्म फाड़ कर फेंका तो उसके कुच्छ टुकड़े पंखे की हवा से उड़ उनकी तरफ आ गये & 1 टुकड़ा रीमा की क्लीवेज मे अटक गया.
 

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जब तक रीमा कुच्छ करती,शेखर ने बिजली की फुर्ती से अपने हाथ से उस टुकड़े को वाहा से निकाल लिया & ऐसा करने मे उसके सीने की दरार मे 1 उंगली घुसा 1 चूची को हल्के से दबा दिया.रीमा ने घबरा कर देखा कि कही किसी ने उसे ऐसा करते देखा तो नही,उसे शेखर की इस हरकत पे बहुत गुस्सा आया पर साथ ही साथ दिल मे थोड़ी गुदगुदी भी हुई.

तभी क्लर्क ने उसका नाम पुकारा तो दोनो उठ कर काउंटर पे चले गये.रीमा अपने अकाउंट के पेपर्स,पासबुक & कार्ड वग़ैरह लेने लगी & शेखर पिच्छली बार की तरह उस से पीछे से उसकी गंद से अपना लंड सटा कर खड़ा हो गया.

कोई दस-एक मिनिट बाद दोनो बॅंक से बाहर निकल कार की ओर जाने लगे,तभी रीमा को ऐसा लगा जैसे कोई उसे घूर रहा है,उसने बाए घूम देखा तो सड़क के उस पार 1 काले चश्मे लगाए,गर्दन तक लंबे बालो वाले गेंहुए रंग के आदमी को मुँह फेरता पाया.रीमा 1 बहुत खूबसूरत लड़की थी & उसे आदत थी मर्दो की घुरती निगाहो की,पर यहा बात कुच्छ और थी,उस इंसान का मुँह फेरना ऐसा नही था जैसा 1 इंसान तब करता है जब कोई खूबसूरत लड़की खुद को घूरते हुए उसे पकड़ लेती है.उसका मुँह फेरना ऐसा था जैसे वो नही चाहता था कि रीमा की नज़र उसपे पड़े,"क्या देख रही हो,रीमा?बैठो.",शेखर कार का दरवाज़ा पकड़े खड़ा था.

"जी.चलिए.",रीमा कार मे बैठ गयी.

उस दिन उसके दिमाग़ मे उसी अजनबी का चेहरा घूमता रहा.वो तो यहा किसी को जानती भी नही,ऐसा भी तो हो सकता है कि कोई शेखर का पहचँवला हो...वो तो यही पाला-बढ़ा था...या फिर कोई और बात थी..."रीमा!"

"जी..",रीमा अपने ख़यालो से बाहर आई.

"ज़रा मेरे साथ बाज़ार चलो,दर्शन के परिवार वालो के लिए कुच्छ तोहफे ले आते हैं."

"अच्छा.चलिए."
शाम के & बज रहे थे & बाज़ार खचाखच भरा था.सारी खरीदारी कर हाथो मे पॅकेट्स पकड़े दोनो कार पार्किंग की तरफ जाने लगे कि तभी कोई धार्मिक जुलूस वाहा से निकलने लगा.लोगो का हुजूम उसे देखने को आगे बढ़ा तो रीमा अपने को संभाल नही पाई & गिरने लगी की तभी विरेन्द्र जी ने उसे कमर से थाम लिया & उसे ले उस भीड़ से बाहर निकालें.रीमा अपने ससुर से ऐसे चिपकी थी कि उसकी चूचिया उनके सीने मे दबी हुई थी & वो उसकी कमर को थामे हुए थे.

भीड़ का 1 रेला आया तो रीमा फिर लड़खड़ा गयी,मुझे थाम लो,रीमा वरना गिर जाओगी."उसके ससुर ने उसे अपने बगल मे दबाते हुए उसका हाथ अपने पेट पे से होते हुए अपनी कमर पे पकड़ा दिया.अब दोनो जैसे गले से लगे हुए वाहा से निकालने लगे.जब वो भीड़ से बाहर निकल 1 खाली जगह पे खड़े हो साँस लेने लगे तो रीमा ने देखा कि उसकी चूचया उसके ससुर के सीने से ऐसे दबी है कि लग रहा है कि कमीज़ के गले से बाहर ही आ जाएँगी.उनका हाथ उसकी कमर से उसकी गंद पे आ गया था & 1 फाँक को पकड़े हुए था & वो खुद उनकी कमर पे हाथ लपेटे उनसे चिपकी खड़ी थी.

वो धीरे से उनसे अलग हुई & दोनो कार पार्क की ओर चल दिए पर विरेन्द्र जी ने उसे पूरी तरह से अलग नही होने दिया-उनका हाथ उसकी कमर को अभी भी घेरे हुए था.

रात खाना खाने के बाद विरेन्द्र जी फ़ौरन अपने कमरे मे चले गये,रीमा समझ गयी कि उसके ससुर को उसकी मालिश का इंतेज़ार है.वो थोड़ी देर बाद अपनी सास को सुलाने के बहाने वाहा पहुँची तो देखा कि दर्शन वाहा पहले से मौजूद है.

"चलिए,मालिक लेट जाइए.आपके पैर दबा दे."

"अरे नही,दर्शन.हमे दर्द नही हो रहा."

"नही,मालिक.आज बेकार मे हमारे चलते आप बेज़ार गये.इतना चलना पड़ा,ज़रूर दर्द हो रहा होगा.चलिए लेट जाइए.",दर्शन ने उन्हे पलंग पे बिठा दिया.हार कर विरेन्द्र जी को लेटना पड़ा.दर्शन उनके पैर दबाने लगा तो उन्होने अपनी सास को सुलाती रीमा की तरफ देखा,उनके चेहरे का भाव देख रीमा को हँसी आ गयी.अपनी हँसी च्छूपाते हुए वो वाहा से निकल अपने कमरे मे आ गयी.कहा उसके ससुर उसके कोमल बदन के ख़यालो मे डूबे थे & कहा अब दर्शन के खुरदुरे हाथ ज़ोर-2 से उनके पैर दबा रहे होंगे.

हंसते हुए रीमा कपड़े बदलने लगी.सलवार कमीज़ उतार उसने 1 टख़नो तक लंबी,ढीली स्कर्ट & 1 टी-शर्ट पहन ली.थोड़ी गर्मी महसूस हुई तो वो छत पे टहलने चली गयी.

छत पे पहले से ही मौजूद शेखर की आँखे उसे देखते ही चमक उठी.दोनो हल्की-फुल्की बाते करने लगे कि तभी शेखर ने बातो का रुख़ मोड़ दिया,"अजीब बात है ना,रीमा.हम 2 अलग इंसान हैं,फिर भी दोनो की तक़्दीरे 1 जैसी हैं."
रीमा ने सवालिया नज़रो से उसकी ओर देखा.

"तुम भी अकेली हो मैं भी .रवि की मौत ने तुम्हे ये गम दिया तो मेरी बीवी ने तलाक़ देकर मुझे ये चोट पहुँचाई."

"तक़दीर के आगे इंसान कर ही क्या सकता है.",रीमा बोली.

"हां."

"अच्छा चलती हू.गुड नाइट."

"मैं भी चलता हू.कल मुझे 2-3 दीनो के लिए देल्ही जाना है."

दोनो साथ-2 सीढ़िया उतर नीचे आ गया.दर्शन अपने कमरे मे जा चुका था & उसके सास-ससुर भी सो गये लगते थे.

रीमा अपने कमरे की ओर बढ़ने लगी कि शेखर ने उसे आवाज़ दी,"रीमा.तुमने उस दिन उस फोड़े पे मलम लगाया था ना.ज़रा उसे देख लो.अब दवा की ज़रूरत है या नही.",रीमा इस बात को मना नही कर पाई & उसके पीछे उसके कमरे मे आ गयी.शेखर ने दरवाज़ा भिड़ा दिया & अपनी शर्ट उतार उसके सामने खड़ा हो गया.रीमा ने देखा की फोड़े की जगह अब बस छ्होटा सा सूखा घाव जैसा था,उसने उसे जैसे ही च्छुआ की शेखा ने अपनी बाहों मे उसे जाकड़ कर उसे अपने सीने से चिपका लिया & उसका चेहरा चूमने लगा.

"ये..ये...क्या कर रहे हैं..आप?छ्चोड़िए ना!",रीमा छट-पटाने लगी.

"ओह्ह...रीमा मैं तुम्हारे प्यार मे पागल हो चुका हू.प्लीज़ मुझे दूर मत करो.",शेखर ने उसके होंठ चूम लिए.

"ये ग़लत है,भाय्या.....मैं..मैं आपके भाई की बीवी हू."

"बीवी थी,रीमा.प्लीज़,मुझे मत तड़पाव.आइ लव यू.",इस बार शेखर ने अपने होंठ उसके होटो से चिपका दिए & उसे लिए-लिए बिस्तर पे गिर गया.अब रीमा उसके नीचे दबी छॅट्पाटा रही थी & वो उसे बेतहाशा चूम रहा था,"..भाय्या नही..ये..ये ग़लत है.."

मस्ती उस पे भी चढ़ रही थी पर अपने प्लान के मुताबिक सबकुच्छ इस तरह होना चाहिए था कि कही से भी ऐसा ना लगे कि रीमा की भी यही ख्वाहिश थी.शेखर ने उसकी शर्ट मे हाथ घुसा दिया & उसकी कमर को सहलाते हुए उसकी गर्दन चूमने लगा.उसके हाथ उसके ब्रा हुक्स मे जा फँसे & सारे हुक्स पाट-2 करके खुल गये.उसने शर्ट को उपर कर उसके पेट को नंगा कर दिया & नीचे आ वाहा चूमने लगा.
 

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उसकी जीभ उसकी नाभि मे गयी तो रीमा उठ कर उसे अलग करने लगी तो उसने उसे फिर से लिटा दिया.उठा-पटक मे उसकी स्कर्ट घुटनो तक आ गयी थी.शेखर ने 1 झटके मे उसे & उपर कर दिया & झुक कर उसकी भारी जाँघो को चूमने चाटने लगा.रीमा के हाथ उसके बालो मे उलझे उसे अलग करने की कोशिश कर रहे थे.शेखर जाँघो को चूमता उसकी चूत की तरफ बढ़ने लगा तो रीमा की आह निकल गयी & अंजाने मे ही उसके बालो मे फँसे हाथो ने शेखर के सर को खींचने के बजाय उसे और उसकी जाँघो पे दबा दिया.

शेखर समझ गया कि रीमा भी अब अपने जिस्म की गर्मी की गुलाम बन गयी है.उसने जम कर उसकी जाँघो को चूमा & चूसा & ऐसा करते हुए उसके स्कर्ट को निकाल फेंका.उसने अपनी पॅंट उतार दी & अब वो केवल अंडरवेर मे था.उसने कमरे का दरवाज़ा बंद किया & पलंग पे बैठ रीमा को अपनी गोद मे लिटा लिया.रीमा की उठी हुई शर्ट उसके गोरे पेट को नुमाया कर रही थी & नीचे बस आसमैनी रंग की पॅंटी मे उसकी गोरी टाँगे शेखर पे कहर ढा रही र्ही.

शेखर का 1 हाथ उसके सर के नीचे था & दूसरा जाँघो के बीच मे सहला रहा था.उसने रीमा का सर उठाया शर्म से लाल हो रहे रीमा के चेहरे पे किससे की झड़ी लगा दी.

"नही...नही...",रीमा के होंठ अभी भी यही कह रहे थे पर उसकी आवाज़ मे विरोध से ज़्यादा 1 गरम हो चुकी लड़की की मस्ती थी.शेखर ने पॅंटी के नीचे से हाथ घुसा उसकी गंद की 1 फाँक को अपने हाथ मे भर लिया & दबाते हुए उसके होटो को चूमने लगा.जब उसकी जीभ रीमा की जीभ से टकराई तो रीमा फिर से छॅट्पाटा उठी.ज़माने बाद उसके जिस्म मे फिर से वोही हरारत पैदा हो रही थी.

शेखर का हाथ उसकी गर्दन को घेरते हुए उसकी 1 चूची पा आकर उसे दबाने लगा था.वो उसकी जीभ से खेलते उसे चूमता हुआ उसकी गंद अभी भी दबा रहा था.इस तिहरे हमले ने काई दीनो की प्यासी रीमा को झाड़वा दिया.उसके जिस्म मे वोही जाना पहचाना मज़े का सैलाब बाँध तोड़ता आया तो वो सिसक कर शेखर की गोद से छितक कर उतर गयी & 1 तकिये मे मुँह च्छूपा सिसकने लगी.

शेखर पीछे से उस से आ लगा & उसके बालो को चूमते हुआ अपने हाथ उसकी शर्ट मे घुसाने लगा.शर्ट मे हाथ घुसा उसने थोड़ी देर तक उसकी छातिया दबाई & फिर हाथ को शर्ट के गले मे से निकाल कर उसके चेहरे को अपनी ओर घुमाया & प्यार से उसके खूबसूरत चेहरे को चूमने लगा.रीमा पड़ी हुई उसे उसके दिल की करने दे रही थी.

उसने रीमा को सीधा किया & उसकी शर्ट निकाल दी.सामने रीमा का खुला आसमानी रंग का मॅचिंग ब्रा उसकी तेज़ सांसो से उपर-नीचे होती छातियो पे पड़ा हुआ था.शेखर ने हौले से उसे उसकी बाहो से निकाला & पहली बार उसकी हल्के गुलाबी निपल्स से सजी बड़ी-2 कसी चूचियो का दीदार किया.
"वाउ!रीमा,तुम तो हुस्न की देवी हो.",वो झुक कर अपने छ्होटे भाई की विधवा की चूचिया चूसने लगा.उसे लगा कि वो जन्नत की सैर कर रहा है.इस से बड़ी & उतनी ही कसी छातिया उसने पहले कभी नही देखी थी.उसने जी भर के उन गोलो को दबाया,सहलाया,चूसा & चूमा.उसकी हर्कतो से रीमा 1 बार फिर गरम हो गयी & अपने जेठ के बालो मे मस्ती मे उंगलिया फिराने लगी.

शेखर अब रुक नही सकता था,उसे तो अब बस इस खूबसूरत हसीना की जम कर चुदाई करनी थी.वो उसकी चूचिया छ्चोड़ खड़ा हुआ & पहले रीमा की पॅंटी & फिर अपना अंडरवेर निकाल दिया.रीमा तो शर्म से बहाल हो गयी.रवि के अलावा आज वो पहली बार किसी मर्द के सामने नंगी हुई थी & उसे नंगा देख रही थी & वो मर्द और कोई नही उसका जेठ था.ये तो उसने सपने मे भी नही सोचा था कि वो 1 दिन अपने जेठ से चुदेगि.

शेखर ने थोड़ी देर तक अपनी बहू के नंगे हुस्न को आँखो से पिया.उसी वक़्त रीमा ने भी अधखुली आँखो से अपने जेठ के लंड को देखा.उसे हैरत हुई कि वो बिल्कुल उसके पति के लंड जितना ही लंबा & मोटा था.यहा तक की उसका रंग भी वैसा ही था.

शेखर ने उसकी जंघे फैलाई & उसके उपर लेट गया & उसके होठ चूमने लगा,उसका 1 हाथ नीचे गया & लंड पकड़ कर रीमा की चूत मे घुसा दिया.

"आ..आहह..!",रीमा हल्के से करही.कितने दीनो बाद आज फिर उसकी चूत ने लंड चखा था.कुच्छ तो उसकी बनावट ही ऐसी थी & कुच्छ इतने दीनो तक ना चुदने के कारण शायद रीमा की चूत थोड़ा और कस गयी थी.शेखर ने सपने मे भी नही सोचा था की रीमा इतनी कसी होगी,उसके लंड को ये एहसास हुआ तो उसकी भी आह निकल गयी.

अगले 2-3 धक्को मे उसने अपन पूरा लंड जड़ तक रीमा की चूत मे उतार दिया & ज़ोरदार धक्को के साथ उसकी चुदाई करने लगा.वो तो जोश मे पागल ही हो गया,कभी वो उसके गुलाबी होंठ चूमता तो कभी चूचिया.उसके हाथ कभी रीमा के चेहरे को सहलाते तो कभी उसकी चूचिया दबाते हुए उसके निपल्स को छेड़ते.

थोड़ी देर मे रीमे की चूत भी पानी छ्चोड़ने लगी & वो भी नीचे से कमर हिला-2 कर अपने जेठ के धक्को का जवाब देने लगी.उसने अपने जेठ के जिस्म को अपने बाहों मे भर लिया & आहें भारती हुई अपनी टांगे हवा मे उठा दी.शेखर समझ गया कि वो भी अब झड़ने वाली है.
 

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उसने अपनी रफ़्तार और तेज़ कर दी,"आअ....आ..इयीयैयियी...ईयीई.........एयेए....हह...ढ़ह...ई...र्रररीई.......करीी...ये...नाआअ.....आआ...आअहह..!",रीमा कराह रही थी पर उस से बेपरवाह शेखर बस अपने झड़ने की ओर तेज़ी से बढ़ा चला जा रहा था.

तभी रीमा ने अपने नाख़ून अपने जेठ की पीठ मे गढ़ा दिए & बिस्तर से उठती हुई उसे चूमते हुई उस से कस के चिपेट गयी.वो झाड़ गयी थी.शेखर ने भी 1 आखरी धक्का दिया & उसके बदन ने झटके खाते हुए अपना सारा पानी रीमा की चूत मे छ्चोड़ दिया & उसकी अरसे से प्यासी चूत की प्यास बुझा दी.

थोड़ी देर तक दोनो वैसे ही पड़े रहे फिर शेखर उठ कर बाथरूम चला गया.कुच्छ देर बाद रीमा उठी,तभी उसने बाथरूम का दरवाज़ा खुलने की आवाज़ सुनी तो उसने पास पड़ी चादर खींच कर अपने बदन के गिर्द लपेट ली.शेखर आकर उसकी बगल मे बैठ गया.दोनो बेड के हेडबोर्ड से टेक लगा बैठे थे.शेखर ने अपनी बाँह के घेरे मे उसे लिया तो रीमा मुँह फेर दूर होने लगी.

शेखर ने उसे और मज़बूती से पकड़ लिया & हाथ से उसकी ठुड्डी पकड़ उसका चेहरा अपनी ओर घुमाया.रीमा की भरी आँखे & चेहरे की परेशानी देख उसे सब समझ मे आ गया,"मुझसे नाराज़ हो?"

"मेरी ऐसी औकात कहा."

"ऐसी बातें क्यू कर रही हो रीमा?"

"1 बेबस लड़की और कैसी बातें करती है.",उसने अपनी आँसू भरी आँखे शेखर की आँखो से मिलाई.
"तुम्हे ये लग रहा है कि मैने तुम्हारा फ़ायदा उठाया?नही,रीमा मैं सच मे तुमसे प्यार करता हू.तुम्हारी कसम ख़ाके कहता हू तुम्हे कभी अपने से दूर नही करूँगा & 1 दिन तुम्हे अपनी बनाऊंगा."

"आप मुझे इतना बेवकूफ़ समझते हैं.छ्चोड़िए मुझे जाने दीजिए.",रीमा उसकी पकड़ से छूटने के लिए कसमसाई लेकिन शेखर ने उसकी कोशिश नाकाम कर दी,"रीमा,देखो मेरी आँखो मे.मैं बाते नही बना रहा.अगर तुम्हारे जिस्म से खेलना ही मेरा मक़सद होता तो क्या मैं ऐसा पहले ही नही कर लेता?शायद आज भी मैं ऐसा नही करता पर अब मुझसे बर्दाश्त करना मुश्किल हो गया था.मेरा यकीन मानो,रीमा.आइ लव यू & जल्द से जल्द मैं तुमसे शादी कर तुम्हे अपनी बीवी बनाऊंगा."

रीमा ने उसकी आँखो मे देखा तो उसे कही भी कुच्छ ऐसा नज़र नही आया जो उसे अपने जेठ के झूठा होने का सबूत दे.वैसे भी सबकुच्छ उसके सोचे मुताबिक हो हो रहा था.अगर उसका जेठ केवल उसके जिस्म के ही नही उसके प्यार मे भी फँस गया था तो ये तो और भी अच्छी बात थी.

उसने खामोशी से सर झुका लिया.शेखर ने उसे अपने करीब खींचा तो उसने उसके सीने पे सर रख दिया.शेखर उसके बालो को सहलाने लगा,"रीमा,तुम्हारे जैसी लड़की किस्मतवालो को मिलती है.मैं अव्वल दर्जे का बेवकूफ़ सही पर इतना भी नही की तुम्हारे जैसे हीरे से पत्थर के जैसे पेश आऊँ."

"मेरे पास आपका भरोसा करने के सिवा अब कोई चारा भी नही है.प्लीज़ मेरे यकीन को मत तोड़िएगा."

"जान दे दूँगा पर ऐसा नही करूँगा,मेरी जान.",शेखर ने उसके सर को उठा उसके चेहरे को हाथों मे भर उसे चूम लिया.चूमने के बाद रीमा फिर उसके सीने से लग गयी.शेखर ने उसका हाथ थाम लिया & दोनो की उंगलिया 1 दूसरे से खेलने लगी.

थोड़ी देर दोनो खामोशी से ऐसे ही पड़े रहे.

"जाती हू.मा जी को देखना है.",रीमा ने शेखर के सीने से सर उठाया तो उसके बदन से लिपटी चादर नीचे सरक गयी & उसकी चूचिया शेखर के सामने छल्छला उठी.
"थोड़ी देर मे चली जाना.",उसने उसे खींच कर अपने से लगा लिया & उसके होंठ चूमने लगा,उसके हाथ उसकी छातियो से जा लगे.

"छ्चोड़िए ना.",रीमा ने अलग होना चाहा.

"नही.",शेखर ने टांगे फैला उसे अपनी टाँगो के बीच मे ले लिया,अब वो शेखर के सीने से पीठ लगा बैठी थी & वो उसकी चूचियो को मसलता हुआ उसे चूम रहा था.मस्त हो रीमा ने बाहे पीचे ले जाके अपने जेठ के गले मे डाल दी और उसकी किस का जवाब देने लगी.उसका बदन शेखर की हर्कतो का लुत्फ़ उठा रहा था पर दिमाग़ अपने मक़सद को नही भुला था.उसने सीधे रवि के बारे मे कोई सवाल करना ठीक नही समझा.बात शुरू करने की गरज से उसने सुमित्रा जी के बारे मे पूच्छने की सोचा.

शेखर ने उसके होटो को छ्चोड़ा उसने पूचछा,"1 बात पूच्छू?"

"ह्म्म.",शेखर उसकी गर्दन चूम रहा था.

"मा जी की बीमारी की वजह से ही पिता जी ऐसे गंभीर हो गये हैं क्या?"

"हुन्ह!",शेखर अब उसकी चूत के दाने को सहला रहा था,"..मा की बीमारी का कारण ही वोही है."

"क्या?",शेखर की चूत मे अंदर-बाहर होती उंगली से कमर हिलाती रीमा चौंक गयी.

"हां.",उसने थोड़ा झुक कर रीमा की 1 चूची को चूस लिया.

"ऊओवव......!..मगर कैसे?",रीमा ने उचक कर अपनी चूची उसके मुँह मे थोड़ा और घुसा दी.

"मा की बीमारी तो 1 नुरलॉजिकल डिसॉर्डर से शुरू हुई पर डॉक्टर ने सॉफ ताकीद की थी कि उन्हे कोई भी तनाव ना हो पर उस आदमी की अय्यशिओ ने उन्हे इस हाल मे ही लाके छ्चोड़ा." ,शेखर ने उसकी चूची मुँह से निकाली & उसके दाने को और तेज़ी से रगड़ने लगा.

रीमा बेचैनी से अपनी कमर हिलाने लगी,उसने रवि के हाथ को अपनी जाँघो मे भींच लिया & कसमसाते हुए झाड़ गयी.झाड़ते हुए उसके मन मे बस 1 ही सवाल था क्या शेखर सच कह रहा था विरेन्द्र जी के बारे मे?ऐसा हो भी तो सकता है...आख़िर पिच्छली 2 रातो से मालिश के बहाने वो उसके साथ क्या कर रहे थे..ऐसा कोई शरीफ मर्द तो नही कर सकता अपनी बहू के साथ...या फिर शेखर चिढ़ कर अपने पिता के बारे मे झूठ कह रहा था.

इन्ही सवालो मे उलझी रीमा ने महसूस किया कि वो फिर से बिस्तर पे लेटी हुई है & उसका जेठ 1 बार फिर उसके उपर चढ़ उसकी चूत मे लंड घुसा रहा है.
 

LUCKY4ROD

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"मुझे विश्वास नही होता..",रीमा ने हाथ पीछे ले जा कर ब्रा के हुक्स लगाए,"..कि पिताजी ऐसा कर सकते हैं.सारे लोग उनकी शराफ़त की मिसाल देते हैं.",उसने पॅंटी उठाई & उसे पहनने लगी.

"हुन्न्ह!",बिस्तर पे नंगा लेटा शेखर हंसा,"वो तो बस ज़माने को दिखाने के लिए शराफ़त का ढोंग करते है वरना उस बाज़ारु औरत के चक्कर मे पड़ मा का ये हाल नही करते."

"क्या अभी भी वो उस औरत के चक्कर मे हैं?",रीमा ने स्कर्ट मे पैर डाल उसे उपर खींचा.

"नही.कोई 2 साल पहले वो उन्हे लात मार किसी और के साथ भाग गयी."

"ओह्ह.",रीमा ने टी-शर्ट पहन ली,"अब मैं जाती हू.आपके चक्कर मे मा जी को भी नही देखा."

शेखर बिस्तर से उठ उसे बाहों मे भर चूमने लगा.थोड़ी देर बाद रीमा उस से अलग हो जाने लगी,"मा को देख कर वापस यही आ जाना."

"धात!चुप-चाप सो जाइए,कल सवेरे जल्दी उठ कर आपको देल्ही जाना है.",रीमा कमरे से दबे पाँव बाहर निकली,घर मे अंधेरा & सन्नाटा पसरा था.उसने दीवार घड़ी की ओर देखा,1 बज रहा था.वो अपने ससुर के कमरे की ओर बढ़ी & बड़े धीरे से बिना आवाज़ किए वाहा का दरवाज़ा खोला.

बीच का परदा लगा हुआ था & उसकी सास गहरी नींद मे थी.वो उनके पास गयी & उनकी ढालकी चादर ठीक कर दी.उसका ध्यान पर्दे के किनार से आती हल्की रोशनी पे गया,क्या पर्दे के उस पार कमरे के अपने हिस्से मे उसके ससुर जागे थे?

उसने पर्दे की ओट से देखा तो लॅंप की मद्धम रोशनी मे उसे उसकी ओर पीठ किए कुर्सी पे बैठे उसके ससुर नज़र आए.रीमा का मुँह आश्चर्य से खुल गया,पूरी तरह से नही दिख रहा था पर सॉफ पता चल रहा था कि उसके ससुर कुर्सी पे नंगे बैठे,टांगे सामने पलंग पे टिकाए ज़ोर-2 से अपना लंड हिला रहे थे.वो उसकी तरफ पीठ किए थे इसलिए रीमा उनका लंड तो नही देख पा रही थी पर उनके हाथ की तेज़ रफ़्तार से वो समझ गयी की वो झड़ने के करीब हैं.

तभी उन्होने अपने 1 हाथ मे कोई चीज़ ले उसे अपने चेहरे पे रख लिया,रीमा के मुँह से तो हैरत की चीख निकलते-2 बची,ये उसका रुमाल था जो किसी तरह उसके ससुर के हाथ लग गया था & वो उसे अपने चेहरे पे लगा,उसकी खुश्बू सूंघते हुए मूठ मार रहे थे.

"ओह्ह्ह...री..ईमम्मा!",वीरेंद्र साक्शेणा के बदन ने झटके खाए & कोई सफेद सी चीज़ उनकी गोद से उड़के ज़मीन पे आ गिरी,वो उस रुमाल को चूम रहे थे.रीमा ने परदा छ्चोड़ा & दबे पाँव कमरे से निकल अपने कमरे मे आ गयी.उसके ससुर का उसका नाम & रुमाल ले मूठ मारने के नज़ारे ने उसे फिर से गरम कर दिया था.वो बिस्तर पे लेट अपने जेठ के विर्य से भीगी चूत मे उंगली डाल अपनी गर्मी शांत करने लगी.

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LUCKY4ROD

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"विरेन्द्र जी,सुमित्रा जी का हाल उपर से तो वैसे का वैसा नज़र आता है पर अंदर से ऐसा नही है.उनका दिमाग़ अब 1 तरह से बेकार हो चुका है.आपलोग अब इस बात के लिए तैय्यार रहिए कि ये कभी भी कोमा मे जा सकती हैं.",सुमित्रा जी के रोटीन चेकप के बाद डॉक्टर ने अपना बॅग उठाया,"..ओके.अब मैं चलता हू."

दर्शन & शेखर जा चुके थे & अब विरेन्द्र जी भी दफ़्तर के लिए निकालने वाले थे,"थॅंक यू,डॉक्टर.",विरेन्द्र जी ने हाथ मिला कर डॉक्टर को विदा किया.उनके चेहरे की परेशानी रीमा को सॉफ दिखाई दे रही थी & उसके दिमाग़ मे रात को कहे शेखर के लफ्ज़ गूँज रहे थे.उसे यकीन नही हो रहा था कि उसके ससुर कभी किसी रांड़ के चक्कर मे पड़े होंगे?

"तुम्हे घर मे अकेले डर तो नही लगेगा.",विरेन्द्र जी ने अपना ब्रीफकेस उठाया.

"नही."

"कोई भी बात हो तो मुझे फ़ौरन फोन करना,हिचकिचाना मत."

"ठीक है."

"..और हां,आज मैं लंच के लिए नही आऊंगा & रात का खाना भी बाहर ही है.मगर फिर भी अगर तुम्हे कोई तकलीफ़ हो तो मुझे बुला लेना.",विरेन्द्र जी निकल गये तो रीमा ने दरवाज़ा बंद कर लिया.

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दोपहर के 2 बज रहे थे & रीमा बैठी टीवी देख रही थी कि फोन घनघनया.

"हेलो.",उसने रिसीवर कान से लगाया पर कोई जवाब नही आया.

"हेलो...हेलो...",अभी भी कोई आवाज़ नही आई.वो फोन रख वापस टीवी देखने लगी.5 मिनिट के बाद फिर से फोन बज उठा.

"हेलो."

इस बार भी कोई आवाज़ नही आई पर उसे ऐसा लगा जैसे किसी के साँस लेने की आवाज़ आ रही हो.

"हेलो..का-कौन है.."बोलते क्यू नही?..",रीमा ने फोन रख दिया,उसे डर लग रहा था.उसके परेशान मन मे 1 बार ख़याल आया की विरेन्द्र जी को फोन करके बुला ले.उसने तय किया कि अगर 1 बार फिर वो ब्लॅंक कॉल आया तो वो अपने ससुर को फोन कर लेगी.

पर ऐसा करने की उसे ज़रूरत नही पड़ी क्यूकी फिर कोई फोन नही आया.उसने भी सोचा की वो बेकार मे इतना डर गयी थी.हो सकता है कोई फोन करना चाह रहा हो & लाइन मे कोई गड़बड़ हो.

रात के 11 बज गये थे,रीमा खाना खाने के बाद अपनी सास को सुला उनके कमरे से निकली तो बाहर विरेन्द्र जी की गाड़ी रुकने की आवाज़ आई.उसने दरवाज़ा खोला तो वो अंदर आए.उनके अंदर घुसते ही रीमा चौंक उठी,"अरे!ये क्या हो गया?!ये चोट कैसे लगी आपको?"

विरेन्द्र जी की शर्ट का बाया बाज़ू उपर कंधे के पास फॅट गया था & वाहा से अंदर बाँह पे चोट दिख रही थी,ऐसा हाल बाई जाँघ के साइड मे भी था.

"दफ़्तर के पास 1 कार वाला रिवर्स कर रहा था,मैं पीछे खड़ा था.ना उसने देखा ना मुझे पता चला,जब कार बिल्कुल पास आई तो मैं कूद कर 1 तरफ होने लगा तो दीवार से रगड़ खाकर ये चोट लग गयी."

"आप भी ना!खाना खाया या नही?"

"हां."

"चलिए कमरे मे,दवा लगा दूं."

दोनो उनके कमरे मे आ गये.

"चलिए शर्ट उतरिय.",रीमा अपनी फर्स्ट एड किट ले आई थी.विरेन्द्र जी ने शर्ट उतार दी.बाँह पे बड़ी सी खरोंच थी,रीमा रूई गीली कर घाव को सॉफ करने लगी.उसके सामने उसके ससुर की बालो भरी नंगी छाती कुच्छ ही दूरी पे थी.वो घाव पे मरहम लगते हुए उनका सीना देख रही थी,उसका दिल कर रहा था कि अपनी उंगलिया उनके बालो मे उतार उनके निपल्स को चूम ले.

उसने नीचे देखा,जाँघ की खरोंच के लिए उन्हे पॅंट उतारनी होगी पर ये अपने ससुर से वो कैसे कहती.विरेन्द्र जी शायद उसकी दुविधा समझ गये,"अब जाँघ पे भी तो दवा लगओगि?"

दोपहर के 2 बज रहे थे & रीमा बैठी टीवी देख रही थी कि फोन घनघनया.

"हेलो.",उसने रिसीवर कान से लगाया पर कोई जवाब नही आया.

"हेलो...हेलो...",अभी भी कोई आवाज़ नही आई.वो फोन रख वापस टीवी देखने लगी.5 मिनिट के बाद फिर से फोन बज उठा.

"हेलो."

इस बार भी कोई आवाज़ नही आई पर उसे ऐसा लगा जैसे किसी के साँस लेने की आवाज़ आ रही हो.

"हेलो..का-कौन है.."बोलते क्यू नही?..",रीमा ने फोन रख दिया,उसे डर लग रहा था.उसके परेशान मन मे 1 बार ख़याल आया की विरेन्द्र जी को फोन करके बुला ले.उसने तय किया कि अगर 1 बार फिर वो ब्लॅंक कॉल आया तो वो अपने ससुर को फोन कर लेगी.

पर ऐसा करने की उसे ज़रूरत नही पड़ी क्यूकी फिर कोई फोन नही आया.उसने भी सोचा की वो बेकार मे इतना डर गयी थी.हो सकता है कोई फोन करना चाह रहा हो & लाइन मे कोई गड़बड़ हो.

रात के 11 बज गये थे,रीमा खाना खाने के बाद अपनी सास को सुला उनके कमरे से निकली तो बाहर विरेन्द्र जी की गाड़ी रुकने की आवाज़ आई.उसने दरवाज़ा खोला तो वो अंदर आए.उनके अंदर घुसते ही रीमा चौंक उठी,"अरे!ये क्या हो गया?!ये चोट कैसे लगी आपको?"

विरेन्द्र जी की शर्ट का बाया बाज़ू उपर कंधे के पास फॅट गया था & वाहा से अंदर बाँह पे चोट दिख रही थी,ऐसा हाल बाई जाँघ के साइड मे भी था.

"दफ़्तर के पास 1 कार वाला रिवर्स कर रहा था,मैं पीछे खड़ा था.ना उसने देखा ना मुझे पता चला,जब कार बिल्कुल पास आई तो मैं कूद कर 1 तरफ होने लगा तो दीवार से रगड़ खाकर ये चोट लग गयी."

"आप भी ना!खाना खाया या नही?"

"हां."

"चलिए कमरे मे,दवा लगा दूं."

दोनो उनके कमरे मे आ गये.

"चलिए शर्ट उतरिय.",रीमा अपनी फर्स्ट एड किट ले आई थी.विरेन्द्र जी ने शर्ट उतार दी.बाँह पे बड़ी सी खरोंच थी,रीमा रूई गीली कर घाव को सॉफ करने लगी.उसके सामने उसके ससुर की बालो भरी नंगी छाती कुच्छ ही दूरी पे थी.वो घाव पे मरहम लगते हुए उनका सीना देख रही थी,उसका दिल कर रहा था कि अपनी उंगलिया उनके बालो मे उतार उनके निपल्स को चूम ले.

उसने नीचे देखा,जाँघ की खरोंच के लिए उन्हे पॅंट उतारनी होगी पर ये अपने ससुर से वो कैसे कहती.विरेन्द्र जी शायद उसकी दुविधा समझ गये,"अब जाँघ पे भी तो दवा लगओगि?"
"हां."

सुनते ही उन्होने अपनी पॅंट उतार दी & अपनी बहू के सामने केवल 1 काले अंडरवेर मे खड़े हो गये.शर्म से रीमा का बुरा हाल था.वो घुटनो के बल बैठ गयी & अपने लगभग नंगे ससुर की जाँघ की साइड पे घाव सॉफ करने लगी.उसके चेहरे से कुच्छ इंच की दूरी पे उनका फूला हुआ अंडरवेर था.रीमा ने डेटोल ले जैसे ही घाव पे लगाया विरेन्द्र जी की आह निकल गयी & वो थोड़ा सा उसकी ओर घूम गये तो उनका लंड रीमा के चेहरे से टकरा गया.
 
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