अपने गुस्से को काबू कर मुझे धमकी (चेतावनी) देते हुए उन्होंने अपनी उंगलियों को दिखाते हुए कहा 'मैं नहीं चाहती कि मेरी बेटी जूली की शादी इन सब चीजों से प्रभावित हो। किसी को भी इस बारे में पता नहीं चलना चाहिए। मुझे परवाह नहीं है कि आप किस के साथ क्या कर रहे हो, लेकिन एक परिवार के रूप में हमारी प्रतिष्ठा दांव पर नहीं लगनी चाहिए। वरना, इसका अंजाम बहुत बुरा होगा।'
अपनी सासु की इन बातों को सुनकर मैं पूरी तरह से चुप रहा। लेकिन इस दौरान मुझे इस बात का एहसास हुआ कि उन्हें रिंकी की बिल्कुल भी परवाह नहीं थी। अगर उन्हें रिंकी की परवाह की होती, तो वह मुझसे कभी ऐसा नहीं कहती। वह मुझे डराती या धमकाती, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। मैं भी काफी खुश था कि उन्हें मेरे अफेयर से कोई दिक्कत नहीं थी। बशर्ते मैं इसे बस छुपाकर रखूं। मुझे यह अच्छे से पता था कि मैं यह सब बहुत आसानी से कर सकता हूं।
वही दूसरी तरफ अपनी नानी की बातें, ताने, धमकी या चेतवानी सुन कर रिंकी सोच में डूब गई. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि उस की कामुक् जवानी और जिस्मानी भूख की वजह से अनायास जो स्थिति बन गई है, उस से कैसे निपटा जाए. काफी सोचविचार के बाद रिंकी ने अपने दिल को
और अपनी गीली चूत को इस हिदायत के साथ समझाया कि वह अब अपने पापा पर बुरी नजर नहीं डालेगी। और मैने जब उससे वापस मैरिज हॉल में साथ चलने के लिए कहा तो तबियत सही नही है और वो सोना चाहती है केहकर मुझे रवाना कर दिया।
मैं मैरिज हॉल में वापस चला गया।
अब रोशनी मंद थी और एक बहुत ही सेक्सी गाना बज रहा था। बारात में आये हुए बाराती लड़के, लड़किया, लुगाईया, भाभिया, बच्चे बूढ़े जवान सब फुल मस्ती में उछल उछल कर बेहद सेक्सी हरकतो के साथ डांस कर रहे थे। कुछ अपने महिला रिश्तेदारों के कूल्हों और चूचे भी डांस की आड़ में बड़ी चालाकी से दबा दबा कर मजे ले रहे थे।
मैं अपनी पत्नी की तलाश कर रहा था लेकिन वह वहां नहीं थी। अचानक मैंने हॉल के कोने में कुसुम को उसके पुराने प्रेमी दिनेश के साथ बैठे हुए देखा। बातों के दौरान कभी कभी दोनों हँसी मसकरी भी कर रहे थे और दूसरे जोड़ों का नृत्य देख रहे थे। हस्ती हुई मेरी बीवी बहुत ही हसीन लग रही थी।
मैंने उनके बारे में अधिक स्पष्ट दृष्टिकोण लेने के लिए करीब जाने की कोशिश की।
लेकिन कुछ सोचकर मैंने और करीब जाने का विचार छोड़ दिया और एक मेज पर बैठ गया जहां मैं खुद को छुपा सकता था और दिनेश के साथ कुसुम को देख सकता था।
मुझे इस तरह अकेला बैठा देख मेरे साढू (प्रीति के डॉक्टर पति) ना जाने कहाँ से आन टपके। जब उन्होंने मुझे कुसुम को दिनेश के साथ बातें करते देखते हुए देखा तो वह मुस्कुराये और मुझसे कहा- " काफी पुराना और गहरा याराना लगता है "। क्यों?? आपका क्या ख्याल है प्रोफेसर साहब...????
हाँ... शायद, मैने जबाब दिया।
दिनेश डांस करने वाले जोड़ों की ओर इशारा करते हुए कुसुम को कुछ कह रहा था और वह मुस्कुरा कर सिर हिला रही थी।
कुछ मिनट के बाद दोनों एक दूसरे के साथ काफी कंफर्टेबल नजर आते हैं। कुसुम उस दिनेश की संगति का पूरा लुत्फ उठा रही थी। अब दिनेश एक वेटर को इशारे से बुलाता है और कुछ ऑर्डर करता है।
इस बीच उनकी बातचीत जारी रही।
अब वह अपनी कुर्सी कुसुम की कुर्सी के पास ले आया और कुसुम के कान के पास मुँह लाकर कुछ कहने लगा। उसकी बात सुनकर कुसुम ने अपनी आँखें नीची कर लीं और अपना सिर हिला दिया। निश्चय ही उसने कुसुम को कुछ शरारती और फड़फड़ाने वाली बात कह दी थी जिससे कुसुम को शर्मिंदगी महसूस होती है।
अब वेटर वापस परोसने के लिए आता है। उसने कुछ मूंग की दाल के गरम मंगोडे के साथ दो काफी के कप परोसे। दोनों काफी की चुस्की लेने लगते हैं। उनकी बातचीत जारी रही लेकिन अब बातचीत के दौरान दिनेश ने कुसुम की जांघ पर हाथ रखा और सहलाने लगा। कुसुम ने इस पर गौर किया लेकिन विरोध नहीं किया।
काफी खत्म करने के बाद दिनेश ने कुसुम के कान में कुछ कहा। कुसुम नटखट मुस्कान के साथ उठ जाती है और दोनों डीजे के डांस फ्लोर पर चले जाते हैं। और दोनों नाचने लगते हैं।
दिनेश ने कुसुम की कमर पर हाथ रखा और उसे अपने पास ले आया और एक रोमांटिक सेक्सी गाने " तेरा बीमार मेरा दिल, मेरा जीना हुआ मुश्किल " पर नाचने लगा। डांस के दौरान कभी-कभी कुसुम के स्तन उसके सीने को छू जाते थे। वह भी दिनेश के साथ डांस एन्जॉय करती नजर आ रही थी.
डांस के दौरान उसने फिर से अपना मुंह कुसुम के कान के पास लाया और कुछ फुसफुसाया। कुसुम ने अपना सिर हिलाया और दोनों हॉल के एक अंधेरे कोने में जाकर नाचने लगे। वह दिनेश से कुछ कह रही थी।
निश्चित रूप से शायद वह उससे कह रही थी कि उसका पति जल्दी वापस नहीं आएगा।
दिनेश मुस्कुरा रहा था और मेरी पत्नी को अपने बहुत करीब लाकर नाचने लगा।
वह लगभग दिनेश की बांहों में थी। उसके स्तन दिनेश की छाती से दब गए थे। अब दिनेश का हाथ उसके कूल्हों पर था और वह नाचते हुए उसके कूल्हों को सहला रहा था। कुसुम भी कुछ शरारती महसूस करने लगी, उसने दिनेश की कमर को भी कस कर पकड़ लिया। अचानक दिनेश उसके गाल पर एक चुंबन देता है। वापसी में कुसुम ने भी दिनेश के गाल पर एक चुंबन देती है।
कुसुम के व्यवहार से मैं बहुत हैरान था।
कुसुम दिनेश के पूरे वश में थी। दिनेश का लंड उसकी पैंट में सख्त हो रहा था। वह कुसुम की जाँघों पर अपना लंड रगड़ने लगा। कुसुम अब गर्म महसूस कर रही थी।
कभी-कभी दिनेश भी मेरी पत्नी कुसुम के स्तन दूसरे हाथ से दबा देता था। इन हरकतों से वह उत्तेजित हो रही थी। मेरी वाइफ चीटिंग सेक्स के लिए तैयार दिख रही थी.मेरे दिल में एक अजीब सी लहर उठ गई ,साला जिस फेंटेसी के बारे में सोच कर एक्ससाइटेट हो जाता हु ,क्या सच में वो होने वाला था,और अगर वो होगा तो क्या मैं उसे सम्हाल पाऊंगा ..????
मेरे मस्तिष्क में विचारों का झंझावात निरंतर बना हुआ था। मै प्रकृति के इस पर-पुरुष और पर-स्त्री आकर्षण को समझने की कोशिश कर रहा था। आमतौर पर माना जाता है कि असंतुष्ट पत्नी और पत्नी की उपेक्षा के कारण कामसुख से वंचित पति ही इधर उधर, किसी अन्य की ओर आकर्षित होते हैं और अपनी दमित इच्छाओं को पूरा करने की कोशिश करते हैं।
लेकिन कुसुम के साथ तो ऐसा नहीं था.
मैने और कुसुम ने तो जी भर के एक दूसरे की देह का दोहन किया था। सभी संभव आसनों का प्रयोग करके एक दूसरे को हर तरह का शारीरिक सुख पहुंचाया था।
हमारे बीच तो आज तक कहा सुनी भी नहीं हुई थी. फिर ऐसा क्या हो गया कि सुबह से दिनेश का चेहरा कुसुम की आंखों के सामने से हट नहीं रहा था?
उधर दिनेश तो जैसे इस स्वर्णिम अवसर का लाभ उठाने के चक्कर में था, उसे ऐसा लग रहा था जैसे कुदरत ने उसे यह मौका इसलिए दिया है, जिससे वह कुसुम जैसे तरोताजा फल का स्वाद ले सके। कुसुम को ज़रा भी अंदाजा नहीं था कि डांस करते हुए दिनेश जानबूझकर अपने लंड को सहला और दबा रहा था क्योंकि वह उसकी कामवासना को सुलगाना और भड़काना चाह रहा था।
वह इस स्थिति का मजा भी ले रही थी, साथ ही साथ इन विशेष कामोद्दीपक परिस्थितियों में वह अपने मन को बहकने से रोक भी रही थी। वह समझ रही थी कि घटनाक्रम किस ओर बढ़ रहा था. और वह यह भी जान रही थी कि दुविधा केवल उसको है।
दिनेश तो पूरी तरह से इस अवसर का लाभ उठाते हुए कुसुम के साथ ‘विशेष प्रणय संबंध’ स्थापित करना चाह रहा था। डांस करते हुए बीच-बीच में उसके स्तन् दिनेश के हाथ में छू जाते तो कुसुम के तन-बदन में तरंगे सी उठने लगती. दिनेश तो ठहरा मर्द, कुसुम के स्तनों के स्पर्श सुख से उसके लंड की नस-नस में सनसनी हो रही थी।
दिनेश ने हिम्मत बटोरी और कुसुम के कंधे पर हाथ रखते हुए उसके कान में कहा- कुसुम एक बात कहूं?
कुसुम का पूरा शरीर झनझना उठा, उसने कहा- कहिए।
दिनेश ने कहा- कुसुम, तुमने कुदरत के इस संयोग पर गौर किया कि जूली की वरमाला देखने के बाद ही मेरी पत्नी बच्चे के साथ घर चली गई और इस वक्त तुम्हारे पति भी रिंकी के साथ हॉस्पिटल के लिए निकल गए। उन दोनों के जाने के बाद इस भरी मेहफिल में सिर्फ हम दोनों ही तन्हा हैं। क्या तुम्हें यह नहीं लगता कि प्रकृति यह चाहती है कि हमें अपनी तनहाई दूर करते हुए इस अवसर का लाभ उठाना चाहिए? जब से तुम इस शादी में आई हो, मेरा दिल तुमसे मिलन के लिए तड़प रहा है, क्या तुम्हारे मन में भी मेरे लिए कुछ कोमल भावनाएं हैं? या नहीं?
कुसुम के मुंह से एक शब्द भी नहीं निकला, वह गूंगी गुड़िया सी खड़ी सुनती तथा सोचती रही कि दिनेश ने कैसे उसके सामने इतना सब बोल दिया!
दिनेश ने फिर कहा- कुसुम, मेरी बात का जवाब दो. क्या मैं तुम्हें बिल्कुल पसंद नहीं? क्या हम इस वीराने में बहार ला सकते हैं या नहीं? कुछ तो बोलो कुसुम!
कुसुम ने कहा- अरुण को फोन करना है, मैं ऊपर कमरे में जाती हूं! और वह बिना कुछ जवाब दिए वहा से जाने लगी.
पीछे से दिनेश ने कहा- कुसुम, मैं तुम्हारे जबाब का इंतजार कर रहा हूं।
कुसुम उसे अब उस तरह से मना नही कर रही थी जैसा उसने शाम में किया था, लग रहा था की अगर दिनेश थोड़ी कोशिस करे तो कुछ हो जाएगा, कुसुम के व्यव्हार में भी एक चेंज था शायद वो भी दिनेश के साथ अपने जिस्मानी रिश्ते को आगे ले जाना चाहती थी ,और शायद इसका दोषी मैं ही था क्योकि मैंने ही उसे ये छूट दे दी थी ,
कुसुम आहिस्ता आहिस्ता से हॉल से बाहर निकल के ऊपर की ओर जा रही थी और, उसके कानों में अभी तक दिनेश के प्रणय निवेदन के लिए कहे शब्द गूंज रहे थे। शाम की उसकी छोटी सी चूक ( दिनेश को रात रोकने की गलती) ने ऐसी स्थिति पैदा कर दी थी कि वह खुद नहीं समझ पा रही थी कि वह करना क्या चाहती है।
उसने मेरे (अरुण) के बारे में सोचा जो बहुत खुले विचारों और बड़े दिल वाला है, इतना ही नहीं वह उसको जी जान से प्यार भी करता है। फिर उसका मन भटकने पर उतारू क्यों है?
क्या वह दिनेश के प्रणय निवेदन को स्वीकार कर ले? क्या कुछ पलों का आनंद, उसके जीवन को तनाव और दुख से भर तो नहीं देगा? क्या एक पर-पुरुष के पास जाकर, वह अरुण की मोहब्बत का अपमान तो नहीं करेगी?
इस पर उसके मन ने बहकाने वाला तर्क किया कि रोज घर का सादा खाना खाने वाला व्यक्ति, जब कभी बाहर चाट पकौड़ी, पिज़्ज़ा बर्गर आदि खा लेता है तो क्या उससे, घर के खाने का अपमान हो जाता है? क्या एक रात दिनेश के साथ गुजार लेने से, उसके मन में अरुण के लिए जो प्यार है, वह कम हो जाएगा?
पोर्न वीडियो देखते हुए क्या हर स्त्री और पुरुष, उस से कामोत्तेजना प्राप्त नहीं करता? उससे आनंद लेना, क्या इंसान के मन में दबी हुई, नये स्वाद की लालसा का परिणाम नहीं?
क्या पति पत्नी और वो के प्रेम पर आधारित कोई एक भी फिल्म ऐसी है, जिसने दर्शकों की कामुकता को बढ़ाया हो? जवाब मिलेगा- शायद नहीं। वास्तविकता यह है कि विवाहेत्तर संबंधों से झूझती जिंदगी ही रिश्तों में सनसनी उत्पन्न करने की क्षमता रखती है।
फिर कब तक किसी स्त्री का चरित्र, केवल चूत के पैमाने से तोला जाता रहेगा?
कोई स्त्री एकनिष्ठ होकर भी बहुत बुरी हो सकती है। कोई एक से अधिक मर्दों के साथ संबंध रख कर भी अपने कृतित्व से महान हो सकती है।
इसलिए प्रश्न इस बात का है कि ‘पेट की भूख और जिस्म की भूख को, एक समान महत्व क्यों नहीं दिया जा सकता?’ क्या नए स्वाद की शौकीन जुबान और विविधता पसंद दिमाग, एक ही चेहरे और एक ही जिस्म से ऊब नहीं जाता? और क्या इंसान के जीवन में यही ऊब, यही नीरसता, पारिवारिक तनाव को जन्म नहीं देती?
इतना तो कुसुम को विश्वास था कि यदि बाद में अरुण को उसने बता भी दिया तो वह खुले मन से, उसकी मन स्थिति को समझते हुए, उसके क्षणिक भटकाव को ज्यादा तूल नहीं देगा। किंतु अनिर्णय का शिकार तो वह स्वयं थी।
वह सोच रही थी कि लोग यह गलत समझते हैं कि औरत की चूत में केवल एक प्राकृतिक सील ही होती है, जिसे पहली चुदाई में पति या प्रेमी तोड़ता है।
वास्तव में औरत की चूत में नैतिक बंधनों वाली एक सील और होती है, जिसे पहला गैर मर्द तोड़ता है। पहली बार किसी गैर मर्द के पास जाने के पहले, औरत को बहुत हिम्मत जुटाना पड़ती है। कई तरह की शंका, कुशंका उसे घेरे रहती है, उसे इन आशंकाओं से बाहर निकल कर, मन को नया आनंद दिलाने के लिए प्रण करना पड़ता है।
फिर जब पहले पर पुरुष द्वारा, स्त्री की यह दूसरी सील टूट जाती है तो उसके साथ स्त्री की झिझक, उसका संकोच भी टूट जाता है और उसमें कभी भी, कहीं भी, किसी के भी साथ, संबंध बनाने का साहस आ जाता है।
अब धीरे धीरे उसका मन भी दिनेश की इस बात पर यकीन करने लगा कि कुदरत ने उन दोनों को, एक नया आनंद उठाने के लिए ही, यह स्वर्णिम अवसर प्रदान किया है।
कुसुम मुड़ी, दिनेश को पलट कर देख कर मुसुकराई फिर उसने आँखों ही आँखों से दिनेश को होटल की छत पर आने का इशारा किया और कामवासना के प्रभाव में बेसुध होकर बढ़ चली अपने जीवन के पहले गैर मर्द के इंतजार में........??
"प्रोफ़ेसर अरुण कुमार आज तो तेरी बीवी कुसुम शत प्रतिशत चुदेगी " मेरे साढू के इन शब्दों के साथ ठाहके वाली हँसी ने मेरी तंद्रा भंग की....... यह सुनकर मुझे बहुत घबराहट हुई मेरे दिल में एक डर उठा,एक अजीब सा डर .. कुसुम की इस हरकत ने मुझे थोड़ा चिंता में डाल दिया था ।
"नही" साढू साहब आपकी गलतफेहमी है, कुसुम मुझे धोख़ा नही देगी, वो शादीशुदा है, मेरी पत्नी है, और मुझसे बहुत मोहब्बत करती है... मैने सब कुछ समझते हुए भी अंजान बनते हुए अपने साढू को जबाब दिया।
"मोहब्बत"........ इस शब्द को दोहराते हुए मेरे साढू बहुत जोर जोर से हँसने लगे.... और टेबल पर रखे नैपकीं पेपर से अपना मुह पोछते हुए बोले.... "मोहब्बत" भृष्टाचार की तरह होती है, जो कभी खतम नही होती है.... बस उसमें बाबुओ का तबादला होता रहता है....! समझे बरखुरदार अरुण कुमार।
साढू की इस बात ने मुझे थोड़ा और चिंता में डाल दिया था । और मैंने कुसुम और दिनेश के बीच दखल देने का फैसला किया और उन्हे वही बैठा छोड़ दिनेश के पीछे पीछे होटल की ओर आहिस्ता आहिस्ता से कदम बढ़ाने लगा। और मैं हर बढ़ते हुए कदम के साथ एक सोच में डूब गया।
दिनेश को लेकर नही क्योकि वो भले ही मेरी बीवी कुसुम का पुराना प्रेमी था लेकिन वो उतना स्योर् नही था की कुसुम जैसी लड़की के साथ कुछ गलत कर पाए, और कुसुम में ये काबिलियत थी की उसे वो अपनी उंगलियों में नचा सकती थी ,लेकिन मुझे चिंता हो रही थी कुसुम के लिए ,वो दिनेश को सही तरीके से मना नही कर पा रही थी , वो अपने पुराने यार से चुदने के लिए छत पर जा रही थी, मुझे समझ नही आ रहा था की मेरी कुसुम को हो क्या रहा है कही ये मेरे द्वारा फैलाया गया चूतियापा तो नही जिसके कारण कुसुम ऐसा करने जा रही है।
मुझे यकीन था की कुसुम कोई भी गलत कदम नही उठाएगी ,वो समझदार थी ,और गलत कदम का मतलब था की किसी भी के साथ संबंध नई बनाएगी लेकिन दिनेश के साथ ….ये कहना तो अभी मुश्किल था,सबसे ज्यादा चिंता वाली बात ये थी की अगर उसने ऐसा किया तो मेरा रियेक्सन क्या होगा,क्या मैं गुस्सा होंउंगा,या मजे लूंगा जैसा मैं उसे कहता हु,...अभी तो मुझे भी नही पता था ...?? ?
सीढ़ी चढ़ते हुए कुसुम ने पीछे मुड़ कर देखा कि दिनेश आते हुए बेफिजूल की जलती हुई लाइट की स्विच बंद करता हुआ आ रहा है जिससे बरामदे में थोड़ा सा अंधेरा हो जाये और किसी रिश्तेदार की, उस पर नज़र पड़ने की भी कोई आशंका नहीं रहे। कुसुम मन ही मन दिनेश की इस सावधानी पर मुस्कुरा उठी।
दूसरी ओर मेरे दिमाग की हवाइयां उड़ रही थी और मै छत की तरफ जल्दी जल्दी भाग रहा था… अब कितना भी तेज भागु 5 मिनट तो लगेंगे ही, तब तक तो साले अपना काम पूरा कर चुके होंगे पर मैं भागा, धड़कने तो ऐसे भी तेज थी मैं शायद ही जिंदगी ने कभी इतना तेज भागा था,पता नही क्या सुरूर से चढ़ गया था मेरे अंदर ….
जब मैं छत पर पहुँचा तब तक मेरी हालत पूरी तरह से खराब थी मेरी धड़कने ऐसे चल रही थी जैसे राजधानी एक्सप्रेस, लग रहा था अब मारा तब मारा, छत का गेट अंदर से बंद था,
मादरचोद ये क्या है, मैने तुरंत दीवाल पर चढ़ कर छिप कर छत पर मेरी बीवी की हो रही रासलीला देखने का निर्णय लिया।
दिनेश ने कुसुम को जब छत पर खड़ी अकेली सैक्सी ब्लाउस में से छलकते स्तनों को देखा तो उसका दिल बल्लियों उछलने लगा, अब इस बात में तो कोई संशय नहीं था कि कुसुम ने चुदने के इरादे से ही, उसको छत पर आने का इशारा किया था।
दिनेश ने अपनी बाहें फैला दी और कुसुम दिनेश के सीने से लग के पूरे सुकून के साथ उसके दिल की धड़कनों को सुनने लगी।
कुसुम को दिनेश की बाहों में सुरक्षा का वो ही अहसास हो रहा था, जो अपने पति की बाहों में होता है।
दिनेश ने कहा- ओह कुसुम, आई लव यू!
और उसके माथे पर एक चुंबन ले लिया।
कुसुम पहले पर पुरुष के पहले चुम्बन से सिहर उठी; उसकी आंखें बंद हो गईं।
दिनेश ने कुसुम की दोनों बंद आंखें भी चूम ली। कुसुम का समूचा अस्तित्व कमजोर पड़ रहा था, वह फिर सोचने लगी कि हे भगवान, यह मैं क्या करने जा रही हूं?
उसके बाद दिनेश ने कुसुम की ठुड्ढी पर हाथ रखकर, कुसुम के चेहरे को ऊपर उठाया. कुसुम की आंखें बंद थी और होंठ कंपकपा रहे थे।
इतने में दिनेश के लरजते होंठ कुसुम के सुर्ख गुलाब की दो पत्तियों जैसे अधरों पर ठहर गए और जुबान कुसुम के नाज़ुक होठों का रस लेने लगी।
जब कोई मर्द किसी स्त्री के होठों को चूमता है तो उसका एक हाथ स्वतः ही उसके बूब्स पर पहुंच जाता है। दिनेश का दाहिना हाथ, कुसुम के बांए उरोज तक पहुंच गया, दिनेश होंठ चूसते हुए कुसुम के बांए स्तन को सहलाने लगा।
कुसुम के शरीर का अंग अंग कामाग्नि में सुलगने लगा। यह वो पल था जहां से अब वापस लौटना असंभव था। कुसुम ने अब पूरी तरह बहाव के साथ बहने का निश्चय कर लिया और दिनेश की काम आसक्ति के सामने समर्पण करने की ठान ली।
दिनेश ने कुसुम की ब्लाउस की पीठ पर बंधी रेशमी धागे की डोर खींच दी..... ।
जारी है..........