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Incest कर्ज और फर्ज - एक कश्मकश

Kuresa Begam

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अध्याय - 22 --- " पश्चाताप ""

अपनी पत्नी के मुख से केस विन्यास के गूढ़ रहस्य को जान मैं हतप्रभ, विस्मित, प्रभावित, और नतमस्तक हो गया।

रात के आठ बजे करीब मै और कुसुम वापस अपने घर आ गये। रिंकी को मेरे ससुर ने जूली के जाने से घर सूना सूना लग रहा और दो तीन बाद वापस भेजने की बात कह कर उसे वही रोक लिया था।

घर वापस आकर अपने मम्मी पापा से शादी में मिले नेग और लीफाफा वगेरा की बातें करने के बाद मै अपने बेडरूम आ गया। थोड़ी देर बाद कुसुम भी आ गयी और चुप सी बिसतर पर बैठ गयी। कुसुम के व्यव्हार मुझे थोड़ा बदलाव लगा वरना वो मेरे साथ बहस करना पसंद करती है , जब वो कुछ देर तक यु ही गुमसुम बैठी रहीं तो मैं उससे लिपट गया ..

“क्या मेरी जान आज अपना मोबाइल नही देख रही हो ..”

“क्या देखू ,कुछ रह नही गया..”

“क्यो वो तुम्हारा पुराना प्रेमी दिनेश तो है ना बात नही हुयी क्या “ मैने उसे छेड़ते हुए हस्ते हुए कहा।

वो मेरी आंखों में थोड़ी देर तक देखने लगी

“आप सच में चाहते हो की मैं उससे बात करू ..या कुछ और आगे जाऊ..”

“ऐसे क्यो बोल रही हो “

वो मुझसे अलग हुई.. .. .. ... ..... ‘क्योकि कल रात जो आपकी आंखों में गुस्सा देखा था वो सच्चा था,और मैं नही चाहती की कुछ ऐसा हो जाए की आपको फिर से उस रूप में आना पड़े ..”

अब मैं समझा की मेरी बीवी इतनी शरीफ क्यो बन रही है , मैंने उसे फिर से जकड़ लिया ..

“मेरी जान वो मामला ही अलग था,गुस्सा होना स्वाभाविक था,लेकिन अगर तुम मेरी जानकारी में ऐसे शक्स को पसंद करो जो मुझे भी पसंद आये तो, मैं तो तुम्हे सेक्स भी करने को नही रोकूंगा ..”

वो गुस्से से मुझे घूरने लगी “चुप रहो बड़े आये ..”

वो बाथरूम में चली गई और मैं उसके पीछे पीछे पहुचा ..

‘मैं मजाक नही कर रहा..”

“पता है मुझे आप क्या कर रहे हो,हवसी तो हो ही, पागल भी हो रहे हो ..”

उसने अपने कपड़े खोले,उसे उस लाल रंग की अंतःवस्त्रों में देख कर मेरा मन मचल उठा,और लंड ने पूरे उठकर सलामी दी जो मेरे शार्ट से बाहर निकलने को बेताब था ,उसे देखकर कुसुम के होठो में मुस्कान आ गई

“हवसी कही के ..” वो वापस बेड की ओर बढ़ रही थी लेकिन मैंने उसे पीछे से पकड़ लिया मेरा लंड उसके कूल्हों में जा धंसा ,

“आह" ऐसा है अब मुझे सो जाना चाहिए,नही तो मेरी ही सामत है ,जब देखो खड़ा करके रखते हो "आह" अब छोड़ भी दो, मुझे सोने दो “

“ऐसे कैसे मेरी जान एक राउंड तो हो जाए “
“नही ना प्लीज़ ..”

मैंने उसे उठाकर बिस्तर में पटक दिया और खुद उसके ऊपर आ गया,हमारे होठ मिले और करवा चल पड़ा ..

“सोचो अगर मैं दिनेश होता तो “

“छि प्लीज् ना “वो बेहद धीमे स्वर में बोली क्योकि वो बहुत ही उत्तेजित थी।

“बताओ ना ..” “तो क्या “

मैं उसकी पेंटी से उसकी योनि को सहलाने लगा सच में वो बहुत गीली हो चुकी थी ,मैं उसे हटा कर सीधे उसकी गीली योनि में अपने लंड को प्रवेश करवाया ..

“आह दिनेश ..”

उसके मुह से ऐसी आवाज सुनकर मुझे ऐसा लगा की मेरा वीर्य ही निकल जाएगा,उसकी सेक्सी आवाज में किसी दूसरे मर्द का नाम सुनने का ये मेरा पहला एक्सपीरियंस था लेकिन कसम से उसने मुझे बेहद ही उत्तेजित कर दिया .,मेरा पूरा लंड आराम से उसके अंदर चला गया ,

वो भी आंखे खोल कर मुस्कुराई क्योकि उसे मेरी बड़ी हुई उत्तेजना का पता चल चुका था,

“ दिनेश करो ना मेरे पति बाहर गये है, आज बहुत टाइम है “

कुसुम की बातो ने मेरा जोश आसमान में पहुचा दिया था ,मैं उसे बुरी तरह से ठोकने लगा ,वो भी बुरी तरह से हांफ रही थी और सच में बेहद ही उत्तेजित लग रही थी ,कमरा हमारे धक्के की आवाज से भर चुका था,साथ ही हमारे आहो से भी ,उत्तेजक आवाजे दोनो के मुह से ही निकल रही थी , कुसुम अब दिनेश को भूल कर बस अरुण अरुण कह रही थी ,पहला राउंड बहुत ही तेजी से खत्म हो गया मैं कुसुम की योनि को पूरी तरह से भिगो चुका था …

“मजा आया उसका नाम सुनकर “

“बहुत मजा आया “

“आप सच में पागल हो......है ना “

मैं उसके होठो में हल्का किस किया “हो सकता हु लेकिन सच बताना पूरे राउंड के दौरान कभी उसका चहरा तेरे दिमाग में आया “

वो झूठे गुस्से से मुझे देखने लगी लेकिन फिर उसके होठो में शरारती सी मुस्कान आ गई, “सच कहु तो हा,कोशिस तो किया की आपके जगह उसे याद करके देखु लेकिन थोड़ी ही देर में वो गायब हो गया और आप ही रह गए,पता नही, आप मुझे क्या बनाने में तुले हुए हो ..”

वो फिर से हल्के गुस्से से मुझे देख रही थी
“कुछ भी नही बनाना है बस मैं चाहता हु की तू जीवन के पूरे मजे ले ..”

“आप साथ रहो तो जीवन में कभी दुख आएगा ही नही ,मेरे लिए तो आप ही सब कुछ हो ..” हम दोनो के होठ फिर से मिल गए । ” वो बस मुझे देखकर मुस्कुरा रही थी।

"एक औरत एक ही समय में दो पुरुषों से कभी प्यार नहीं कर सकती। यह हमेशा एक होता है। अगर तुम नहीं हो, तो तुम नहीं हो। चारों ओर कोई दो रास्ते नहीं हैं। यही कारण है कि आप आम तौर पर दो महिलाओं को एक आदमी के लिए लड़ते हुए देखते हैं "

मैने आज तक कुसुम से कोई भी बात नहीं छुपाई थी, उसके बारे में, मै क्या सोचता था, मेरी सारी कि सारी Fantasies, चाहे जितनी भी गंदी और शर्मनाक क्यूँ ना हो, मै बेझिझक शेयर करता था ! लेकिन मैने कुसुम से अपने और प्रीति के बीच पनपते अवैध रिश्ते के बारे छुपाये रखा था, और छुपाया इसलिए कि मुझे पता था कि ये गलत है,

अब इसे Cheating कहेँगे या नहीं !!! ये Cheating ही थी - इसमें कोई शक नहीं था !!!

मेरी अंर्तरात्मा मुझे कचोट रही थी, मेरे लंड का जोश अब खत्म हो चुका था, मैं कुसुम के प्रेम को महसूस कर रहा था। या यूं कहूँ कि मेरे दिल में चोर था मैंने अपनी प्यारी पत्नी को धोखा जो दिया था।

"यह ठीक है कि यौन संबंध में शायद प्रेयसी पत्नी से अधिक आनन्द विभोर करती है पर पत्नी के प्रेम की तुलना किसी से भी करना शायद पति की सबसे बड़ी बेवकूफी होगी।"

मेरे अंडकोष छोड़ अब मेरे ढीले पड़े लण्ड को सहलाते हुये कुसुम मेरे सीने को चूमते हुये मासूमियत के साथ ज़िद करती हुई बोली.

" और नहीं चोदोगे ? प्लीज् यार... एक बार और करो ना ! आज कितना कम कम चोद रहे हो !!! "

मुझ को भी कुसुम को नाराज़ करना अच्छा नहीं लगता था, सच में मै उससे बेइंतहा प्यार करता था. मैने हँसते हुये कुसुम का सिर चूमा, और बोला.

" सुबह जल्दी उठकर सामान वगैरह पैक करना होगा तुम्हे ! "." मैने बेमन से कहा. " अब सो जाओ... बहुत रात हो चली है ! ".

मेरे सीने पर से अपना मुँह उठाते हुये मुझे अवाक नज़रों से देखते हुए धीरे धीरे कुसुम नींद के गहरे आगोश में चली गई, मेरी आंखों से नींद गायब थी। फिर भी आँखों के आगे बार बार अंधेरा छा रहा था, जीवन धुंधला सा दिखाई देने लगा।

मैं उठकर टायलेट गया, पेशाब करके वापस आया, और एक सख्त निर्णय ले लिया, कि कुछ भी हो जाये मैं अपनी प्यारी पत्नी से कुछ नहीं छुपाऊँगा। फिर भी मैं इससे होने वाले नफे-नुकसान का आंकलन लगातार कर रहा था। हो सकता है यह सब सुनकर कुसुम कुछ ऐसा कर ले कि मेरा सारा जीवन ही अंधकारमय हो जाये।

यह भी संभव था कि कुसुम मुझे हमेशा के लिये छोड़कर चली जाये या शायद मुझसे इतनी लड़ाई करे कि मैं चाहकर भी उसको मना ना पाऊँ ! कम से कम इतना तो उसका हक भी बनता था।

इन सब में कहीं से भी कोई उम्मीद की किरण दिखाई नहीं दे रही थी। मैं कुसुम को सब कुछ बताने का निर्णय तो कर चुका था। पर मेरे अंदर का चालाक प्राणी अभी भी मरा नहीं था। वो सोच रहा था कि ऐसा क्या किया जाये कि कुसुम को सब कुछ बता भी दूं पर कुछ ज्यादा अनिष्ट भी ना हो।
बहुत देर तक सोचने के बाद भी कुछ सकारात्मक सुझाव दिमाग में नहीं आ रहा था। इसी पश्चाताप की कशमकश में मेरी आँख लग गयी।


जारी है...... ✍️
Nice👏 update🙏
 

Kuresa Begam

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इसी पश्चाताप की कशमकश में मेरी आँख लग गयी...........!


सुबह करीब 5.30 बजे मेरे बदन में हरकत होने के कारण मेरी आंख खुल गई। मैंने देखा मेरे बराबर में कुसुम लेटी हुई थी। रात की अलसाई सी अवस्था में, जुल्फें कुसुम के हसीन चेहरे को ढकने की कोशिश कर रही थी। पर कुसुम इससे बेखबर मेरी बगल में लेटी थी मेरी चड्डी में हाथ डालकर मेरे लंड को सहला रही थी।

मुझे जागता देखकर कुसुम की हरकत थोड़ी से तेज हो गई, मैं जाग चुका था, कुसुम की इस हरकत को देखकर मैंने उसको सीने से लगाया, मैंने पूछा- आज जल्दी उठ गई?

कुसुम बोली, “रात तुम्हारा मूड था, और अभी मेरा मूड है, अभी पानी पीने को उठी थी तो तुमको सोता देखकर मन हुआ कि मौका भी है और कुछ देर बाद मुझे अपनी नौकरी पर वापस दिमापुर जाना है ,
तो क्यों ना इश्क लड़ाया जाये।”

बोलकर कुसुम ने अपने होंठ मेरे होंठों पर रख दिए। पर रात की थकान मुझ पर हावी थी। या यूं कहूँ कि मेरे दिल में एक सच छिपा था जो उसे बताना मेरे लिए बहुत जरूरी था। कुछ देर कोशिश करने के बाद कुसुम ने ही पूछा लिया, “क्या हुआ मूड नहीं है क्या?”

अब मैं क्या जवाब देता कुसुम मुझसे बार बार पूछ रही थी, “बोलो ना क्या हुआ? मूड खराब है क्या?”

पर मैं कुछ भी नहीं बोल पा रहा था, मेरी चुप्पी कुसुम को बेचैन करने लगी थी आखिर वो मेरी पत्नी थी। मैं कुसुम के प्रेम को महसूस कर रहा था। कुसुम को लगा शायद मेरी तबियत खराब है, यह सोचकर कुसुम बोली- डाक्टर को बुलाऊँ या फिर चाय पीना पसन्द करोगे?

मैंने बिल्कुल मरी हुई आवाज में कहा, “एक कप चाय पीने की इच्छा है तुम्हारे साथ।”
मुझे लग रहा था कि अगर कुसुम को सब कुछ पता चल गया तो शायद यह मेरी उसके साथ आखिरी चाय होगी। जैसे जैसे समय बीत रहा था मेरी बेचैनी बढ़ती जा रही थी।
कुसुम उठकर चाय बनाने चली गई।

तभी किसी ने मुझे झझकोरा। मैं जैसे होश में आया, कुसुम चाय का कप हाथ में लेकर खड़ी थी, बोली- क्या बात है? आज सुबह से ही बहुत खोये खोये हो? कुछ ना कुछ सोच रहे हो। मेरे वापस जाने से परेशान हो? आप बोलो तो मै दों दिन बाद चली जाऊंगी? मेरे आफिस में सब ठीक चल रहा है मुझे कुछ परेशानी नहीं है? जानू, तुम्हे कोई भी परेशानी है तो मुझसे शेयर करो कम से कम तुम्हारा बोझ हल्का हो जायेगा। आखिर मैं तुम्हारी पत्नी हूँ।

कुसुम की अन्तिम एक पंक्ति ने मुझे ढांढस बंधाया पर फिर भी जो मैं उसको बताने वाला था वो किसी भी भारतीय पत्नी के लिये सुनना आसान नहीं था। मैंने चाय की घूंट भरनी शुरू कर दी, कुसुम अब भी बेचैन थी, लगातार मुझसे बोलने का प्रयास कर रही थी।

पर मैं तो जैसे मौन ही बैठा था, शेर की तरह से जीने वाला पति अब गीदड़ भी नहीं बन पा रहा था। तभी अचानक पता नहीं कहाँ से मुझमें थोड़ी सी हिम्मत आई, मैंने कुसुम को कहा, “मैं तुमको कुछ बताना चाहता हूँ?”


कुसुम ने कहा- हाँ बोलो।

मैंने चाय का कप एक तरफ रख दिया और कुसुम की गोदी में सिर रखकर लेट गया, वो प्यार से मेरे बालों में उंगलियाँ चलाने लगी। मैंने अपनी आँखें बंद कर ली और मेरी साली प्रीति और मेरे बीच जो कुछ भी हुआ था, "साली जीजा" के बीच की हर वो बात जो मैंने कुसुम से छुपाई थी कुसुम को एक-एक करके बता दी।

वो चुपचाप मेरी हर बात सुनती रही, मैं किसी रेडियो की तरह लगातार बोलता जा रहा था। मैंने किसी बात पर कुसुम का प्रतिक्रिया जानने की भी कोशिश नहीं कि क्योंकि उस समय मुझे उसको वो सब कुछ बताना था जो मैंने छुपाया था।

सारी बात बोलकर मैं चुप हो गया और आँख बंद करके वहीं पड़ा रहा। तभी मेरे गाल पर पानी की बूंद आकर गिरी, मैंने आँखें खोली और ऊपर देखा तो कुसुम की आंखों में आंसू थे तो टप टप करके मेरे गालों पर गिर रहे थे !

मैं अन्दर से बहुत दुखी था, कुसुम के आंसू पोंछना चाहता था पर वो आंसू बहाने वाला भी तो मैं ही था। मैंने कुसुम की खुशियाँ छीनी थी मैं कुसुम का सबसे बड़ा गुनाहगार था।

मैंने बोलने की कोशिश की, “जानू !”
“चुप रहो प्लीज !” बोलकर कुसुम ने और तेजी से रोना शुरू कर दिया।

मेरी हिम्मत उसके आँसू पोंछने की भी नहीं थी। मैं चुपचाप कुसुम की गोदी से उठकर उसके पैरों के पास आकर बैठ गया और बोला, “मैं तुम्हारा गुनाहगार हूँ, चाहे तो सजा दे दो, मैं हंसते हंसते मान लूंगा, एक बार उफ भी नहीं करूंगा, पर तुम ऐसे मत रोओ प्लीज…” कुसुम वहाँ से उठकर बाहर निकल गई, मैं कुछ देर वहीं बैठा रहा।

बाहर कोई आहट ना देखकर मैं बाहर गया तो देखा कुसुम वहाँ नहीं थी। मैने कुसुम को पूरे घर में ढूंढा पर वो कहीं नहीं थी। मेरे पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई, इतनी सुबह कुसुम कहाँ निकल गई।

मैंने मोबाइल उठाकर कुसुम के नम्बर पर फोन किया उसका मोबाइल मेरे बैड रूम में रखा था। तो क्या फिर कुसुम सब कुछ यहीं छोड़कर चली गई? वो कहाँ गई होगी? मैं उसको कैसे ढूंढूंगा? कहाँ ढूंढूंगा? सोच सोच कर मेरी रूह कांपने लगी। मुझे ऐसा लगा जैसी जिदंगी यहीं खत्म हो गई। अगर मेरी कुसुम मेरे साथ नहीं होगी, तो मैं जी कर क्या करूंगा? पर मेरा जो भी था कुसुम का ही तो था। सोचा कम से कम एक बार कुसुम मिल जाये तो सबकुछ उसको सौंप कर मैं हमेशा के लिये उसकी जिंदगी से दूर चला जाऊँगा।

बाहर निकला तो लोग सुबह सुबह टहलने जा रहे थे। किससे पूछूं कि मेरी बीवी सुबह सुबह कहीं निकल गई है किसी ने देखा तो नहीं? मन में हजारों विचार जन्म ले रहे थे। शायद कुसुम अपने मायके चली गई होगी। तो बस स्टैण्ड पर चलकर देखा जाये?
नहीं, हो सकता है वो स्टेशन गई हो।
पर कैसे जायेगी, वो आज तक घर का सामान लेने वो मेरे बिना नहीं गई, इतने बड़े शहर में वो कहीं खो गई तो?कहीं किसी गलत हाथों में पड़ गई तो मैं क्या करूंगा? मैंने कुसुम को ढूंढने का निर्णय किया।
घर के अन्दर आकर उसकी फोटो उठाई, सोचा कि सबसे पहले पुलिस स्टेशन फोन करके पुलिस को बुलाऊँ वहाँ मेरा एक मित्र भी था।

घर के अंदर मेरे पापा मम्मी सो रहे थे अगर उनको ये सब पता चल गया कि मेरे और मेरी साली प्रीति के नजाजज् संबंधों की वजह से कुसुम घर से चली गई है तो पता नहीं वो क्या करेंगे?

मेरी तो जैसे जान ही निकली जा रही थी। आंखों से आंसू टपकने लगे। मैंने टेलीफोन वाली डायरी ओर अपना मोबाइल उठाया ताकि छत पर जाकर शांति से अपने 2-4 शुभचिन्तकों को फोन करके बुला लूं। बता दूंगा कि पति-पत्नी का आपस में झगड़ा हो गया था और कुसुम कहीं चली गई है।

कम से कम कुछ लोग तो होंगे मेरी मदद करने को। सोचता सोचता मैं छत पर चला गया। छत कर दरवाजा खुला हुआ था जैसे ही मैंने छत पर कदम रखा। सामने कुसुम फर्श पर दीवार से टेक लगाकर बिल्कुल शान्त बैठी थी।

मुझे तो जैसे संजीवनी मिल गई थी, मैं दौड़ कुसुम के पास पहुँचा, हिम्मत करके उससे शिकायत की और पूछा, “जानू, बिना बताये क्यों चली आई। पता है मेरी तो जान ही निकल गई थी।”

उसने होंठ तिरछे करके मेरी तरफ देखा जैसे ताना मार रही हो। पर गनीमत थी की उसकी आंखों में आंसू नहीं थे। मैं कुसुम के बराबर में फर्श पर बैठ गया, मोबाइल जेब में रख लिया और कुसुम का हाथ पकड़ लिया। मैं एक पल के लिये भी कुसुम को नहीं छोड़ना चाहता था पर चाहकर भी कुछ बोल नहीं पा रहा था।

अभी मैं कुसुम से बहुत कुछ कहना चाहता था पर शायद मेरे होंठ सिल चुके थे। मैं चुपचाप कुसुम के बराबर में बैठा रहा, उसका हाथ सहलाता रहा। मेरे पास उस समय अपना प्यार प्रदर्शित करने का और कोई भी रास्ता नहीं था।

कुसुम बहुत देर तक रोती रही थी शायद उसका गला भी रूंध गया था। मैं वहाँ से उठा नीचे जाकर कुसुम के पीने के लिये पानी लाया गिलास कुसुम को पकड़ा दिया।
वो फिर से सिसकने लगी। मैं उसके बराबर में बैठ गया और उसका सिर अपनी गोदी में रख लिया।

अचानक रोतीरोती उसने होंठ तिरछे करके मेरी तरफ देखा और ताना मारते हुए हंस पड़ी, ‘‘तुम्हें तो ठीक से बेवफाई करनी भी नहीं आती.’’

‘‘क्या?’’ मैंने चौंक कर उस की ओर देखा.

‘‘अपनी साली साहिबा को भला ऐसे मैसेज किए जाते हैं? कल रात क्या मैसेज भेजा था तुमने?’’

‘‘तुम ने लिखा था, डियर प्रीति, जिंदगी हमें बहुत से मौके देती है, नई खुशियां पाने के, जीवन में नए रंग भरने के… मगर वह खुशियां तभी तक जायज हैं, जब तक उन्हें किसी और के आंसुओं के रास्ते न गुजरना पड़े. किसी को दर्द दे कर पाई गई खुशी की कोई अहमियत नहीं. प्यार पाने का नहीं बस महसूस करने का नाम है. मैंने तुम्हारे लिए प्यार महसूस किया. मगर उसे पाने की जिद नहीं कर सकता, क्योंकि मैं अपनी बीवी को धोखा नहीं दे सकता. तुम मेरे हृदय में खुशी बन कर रहोगी, मगर तुम्हें अपने अंतस की पीड़ा नहीं बनने दूंगा. तुम से मिलने का फैसला मैंने प्यार के आवेग में लिया था मगर अब दिल की सुन कर तुम से सिर्फ इतना कहना चाहता हूं कि रिश्तों में सीमा समझना जरूरी है.

‘‘हम कभी नहीं मिलेंगे… आई थिंक, तुम मेरी मजबूरी समझोगी और खुद भी मेरी वजह से कभी दुखी नहीं रहोगी… कीप स्माइलिंग…’’

मैंने चौंकते हुए पूछा, ‘‘पर यह सब तुम्हें कैसे पता…?’’

‘‘क्योंकि जिस कॉलेज के तुम प्रोफेसर हो मै उस कॉलेज की प्रिंसिपल हू.... ह्म्म..........

मै तुम्हारी बीवी हूं और सुबह सुबह जब मै उठी तो तुम्हारे मोबाइल पर प्रीति का reply मैसेज शो हो रहा था, जब तुम मेरे मैसेज पढ़ सकते हो, तो मैने भी तुम्हारे मैसेज पढ़ लिए… मै तो बस तुम्हारे मुह से सच सुनने का इंतजार कर रही थी’’ कह कर कुसुम मुसकराते हुए मेरे सीने से लग गई और मैंने भी पूरी मजबूती के साथ उसे बांहों में भर लिया.

तब कुसुम बोली, “मुझे पता है तुम मुझसे बहुत प्यार करते हो, इसीलिये शायद जो प्रीति और तुम्हारे बीच हुआ वो तुमने सुबह ही मुझे बता दिया तुम्हारी जगह कोई भी दूसरा होता तो शायद इसकी भनक तक भी अपनी पत्नी को नहीं लगने देता। मुझे तुम्हारे प्यार के लिये किसी सबूत की जरूरत नहीं है, ना ही मुझे तुम पर कोई शक है पर खुद पर काबू नहीं कर पा रही हूँ मैं क्या करूं?”

मैं चुप ही रहा।

थोड़ी देर बाद कुसुम फिर बोली, “मुझे नहीं पता था कि कभी कभी किसी की जुबान से निकली बात सच भी हो जाती है?”
इस बार चौंकने की बारी मेरी थी, मैंने पूछा,

“मतलब?”

“ प्रीति और मैं बचपन से ही हम एक साथ खाते थे एक साथ पढ़ते थे एक साथ ही सारा बचपन गुजार दिया हमने। मम्मी, बुआ और ताई वगेरा अक्सर हम पर कमेंट करते थे और बोलते थे कि तुम दोनों बहनो की शादी भी किसी एक लड़के से ही कर देंगे और हम दोनों हंसकर हाँ कर देते थे। मुझे भी नहीं पता था कि एक दिन हमारा वो मजाक सच हो जायेगा।”

“नहीं कुसुम, तुम गलत सोच रही हो, ऐसा कुछ भी नहीं है, मेरी पत्‍नी बस तुम हो और तुम ही रहोगी। मैं मानता हूँ मुझसे गलती हुई है पर मैं जीवन में तुम्हारा स्थान कभी किसी को नहीं दे सकता।” बोलकर मैं कुसुम के सिर को सहलाने लगा। कुछ देर बैठने के बाद मैंने कुसुम को नीचे चलने के लिये कहा। वो भी उठकर मेरे साथ नीचे चल दी। हम लोग अन्दर पहुँचे तब तक 7.30 बज चुके थे।

मेरी मम्मी भी जाग चुकी थी और हम दोनों को ढूंढ रही थी। जैसे ही हमने हॉल पैर रखा, मम्मी बोली, “कहाँ चले गये थे तुम दोनों? मैं कितनी देर से ढूंढ रही हूँ।”

“ऐसे ही आंख जल्दी खुल गई थी तो ठण्डी हवा खाने चले गये थे छत पर।” कुसुम ने तुरन्त जवाब दिया।

मैं उसके जवाब से चौंक गया। वो बिल्कुल सामान्य व्यव्हार कर रही थी। मैंने भी सामान्य होने की कोशिश की और अपने नित्यकर्म में लग गया। अब मुझे अपना मन बहुत हलका महसूस हो रहा था. "बेवफाई के इलजाम" से आजाद जो हो गया था मैं.


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Ek number

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इसी पश्चाताप की कशमकश में मेरी आँख लग गयी...........!


सुबह करीब 5.30 बजे मेरे बदन में हरकत होने के कारण मेरी आंख खुल गई। मैंने देखा मेरे बराबर में कुसुम लेटी हुई थी। रात की अलसाई सी अवस्था में, जुल्फें कुसुम के हसीन चेहरे को ढकने की कोशिश कर रही थी। पर कुसुम इससे बेखबर मेरी बगल में लेटी थी मेरी चड्डी में हाथ डालकर मेरे लंड को सहला रही थी।

मुझे जागता देखकर कुसुम की हरकत थोड़ी से तेज हो गई, मैं जाग चुका था, कुसुम की इस हरकत को देखकर मैंने उसको सीने से लगाया, मैंने पूछा- आज जल्दी उठ गई?

कुसुम बोली, “रात तुम्हारा मूड था, और अभी मेरा मूड है, अभी पानी पीने को उठी थी तो तुमको सोता देखकर मन हुआ कि मौका भी है और कुछ देर बाद मुझे अपनी नौकरी पर वापस दिमापुर जाना है ,
तो क्यों ना इश्क लड़ाया जाये।”

बोलकर कुसुम ने अपने होंठ मेरे होंठों पर रख दिए। पर रात की थकान मुझ पर हावी थी। या यूं कहूँ कि मेरे दिल में एक सच छिपा था जो उसे बताना मेरे लिए बहुत जरूरी था। कुछ देर कोशिश करने के बाद कुसुम ने ही पूछा लिया, “क्या हुआ मूड नहीं है क्या?”

अब मैं क्या जवाब देता कुसुम मुझसे बार बार पूछ रही थी, “बोलो ना क्या हुआ? मूड खराब है क्या?”

पर मैं कुछ भी नहीं बोल पा रहा था, मेरी चुप्पी कुसुम को बेचैन करने लगी थी आखिर वो मेरी पत्नी थी। मैं कुसुम के प्रेम को महसूस कर रहा था। कुसुम को लगा शायद मेरी तबियत खराब है, यह सोचकर कुसुम बोली- डाक्टर को बुलाऊँ या फिर चाय पीना पसन्द करोगे?

मैंने बिल्कुल मरी हुई आवाज में कहा, “एक कप चाय पीने की इच्छा है तुम्हारे साथ।”
मुझे लग रहा था कि अगर कुसुम को सब कुछ पता चल गया तो शायद यह मेरी उसके साथ आखिरी चाय होगी। जैसे जैसे समय बीत रहा था मेरी बेचैनी बढ़ती जा रही थी।
कुसुम उठकर चाय बनाने चली गई।

तभी किसी ने मुझे झझकोरा। मैं जैसे होश में आया, कुसुम चाय का कप हाथ में लेकर खड़ी थी, बोली- क्या बात है? आज सुबह से ही बहुत खोये खोये हो? कुछ ना कुछ सोच रहे हो। मेरे वापस जाने से परेशान हो? आप बोलो तो मै दों दिन बाद चली जाऊंगी? मेरे आफिस में सब ठीक चल रहा है मुझे कुछ परेशानी नहीं है? जानू, तुम्हे कोई भी परेशानी है तो मुझसे शेयर करो कम से कम तुम्हारा बोझ हल्का हो जायेगा। आखिर मैं तुम्हारी पत्नी हूँ।

कुसुम की अन्तिम एक पंक्ति ने मुझे ढांढस बंधाया पर फिर भी जो मैं उसको बताने वाला था वो किसी भी भारतीय पत्नी के लिये सुनना आसान नहीं था। मैंने चाय की घूंट भरनी शुरू कर दी, कुसुम अब भी बेचैन थी, लगातार मुझसे बोलने का प्रयास कर रही थी।

पर मैं तो जैसे मौन ही बैठा था, शेर की तरह से जीने वाला पति अब गीदड़ भी नहीं बन पा रहा था। तभी अचानक पता नहीं कहाँ से मुझमें थोड़ी सी हिम्मत आई, मैंने कुसुम को कहा, “मैं तुमको कुछ बताना चाहता हूँ?”


कुसुम ने कहा- हाँ बोलो।

मैंने चाय का कप एक तरफ रख दिया और कुसुम की गोदी में सिर रखकर लेट गया, वो प्यार से मेरे बालों में उंगलियाँ चलाने लगी। मैंने अपनी आँखें बंद कर ली और मेरी साली प्रीति और मेरे बीच जो कुछ भी हुआ था, "साली जीजा" के बीच की हर वो बात जो मैंने कुसुम से छुपाई थी कुसुम को एक-एक करके बता दी।

वो चुपचाप मेरी हर बात सुनती रही, मैं किसी रेडियो की तरह लगातार बोलता जा रहा था। मैंने किसी बात पर कुसुम का प्रतिक्रिया जानने की भी कोशिश नहीं कि क्योंकि उस समय मुझे उसको वो सब कुछ बताना था जो मैंने छुपाया था।

सारी बात बोलकर मैं चुप हो गया और आँख बंद करके वहीं पड़ा रहा। तभी मेरे गाल पर पानी की बूंद आकर गिरी, मैंने आँखें खोली और ऊपर देखा तो कुसुम की आंखों में आंसू थे तो टप टप करके मेरे गालों पर गिर रहे थे !

मैं अन्दर से बहुत दुखी था, कुसुम के आंसू पोंछना चाहता था पर वो आंसू बहाने वाला भी तो मैं ही था। मैंने कुसुम की खुशियाँ छीनी थी मैं कुसुम का सबसे बड़ा गुनाहगार था।

मैंने बोलने की कोशिश की, “जानू !”
“चुप रहो प्लीज !” बोलकर कुसुम ने और तेजी से रोना शुरू कर दिया।

मेरी हिम्मत उसके आँसू पोंछने की भी नहीं थी। मैं चुपचाप कुसुम की गोदी से उठकर उसके पैरों के पास आकर बैठ गया और बोला, “मैं तुम्हारा गुनाहगार हूँ, चाहे तो सजा दे दो, मैं हंसते हंसते मान लूंगा, एक बार उफ भी नहीं करूंगा, पर तुम ऐसे मत रोओ प्लीज…” कुसुम वहाँ से उठकर बाहर निकल गई, मैं कुछ देर वहीं बैठा रहा।

बाहर कोई आहट ना देखकर मैं बाहर गया तो देखा कुसुम वहाँ नहीं थी। मैने कुसुम को पूरे घर में ढूंढा पर वो कहीं नहीं थी। मेरे पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई, इतनी सुबह कुसुम कहाँ निकल गई।

मैंने मोबाइल उठाकर कुसुम के नम्बर पर फोन किया उसका मोबाइल मेरे बैड रूम में रखा था। तो क्या फिर कुसुम सब कुछ यहीं छोड़कर चली गई? वो कहाँ गई होगी? मैं उसको कैसे ढूंढूंगा? कहाँ ढूंढूंगा? सोच सोच कर मेरी रूह कांपने लगी। मुझे ऐसा लगा जैसी जिदंगी यहीं खत्म हो गई। अगर मेरी कुसुम मेरे साथ नहीं होगी, तो मैं जी कर क्या करूंगा? पर मेरा जो भी था कुसुम का ही तो था। सोचा कम से कम एक बार कुसुम मिल जाये तो सबकुछ उसको सौंप कर मैं हमेशा के लिये उसकी जिंदगी से दूर चला जाऊँगा।

बाहर निकला तो लोग सुबह सुबह टहलने जा रहे थे। किससे पूछूं कि मेरी बीवी सुबह सुबह कहीं निकल गई है किसी ने देखा तो नहीं? मन में हजारों विचार जन्म ले रहे थे। शायद कुसुम अपने मायके चली गई होगी। तो बस स्टैण्ड पर चलकर देखा जाये?
नहीं, हो सकता है वो स्टेशन गई हो।
पर कैसे जायेगी, वो आज तक घर का सामान लेने वो मेरे बिना नहीं गई, इतने बड़े शहर में वो कहीं खो गई तो?कहीं किसी गलत हाथों में पड़ गई तो मैं क्या करूंगा? मैंने कुसुम को ढूंढने का निर्णय किया।
घर के अन्दर आकर उसकी फोटो उठाई, सोचा कि सबसे पहले पुलिस स्टेशन फोन करके पुलिस को बुलाऊँ वहाँ मेरा एक मित्र भी था।

घर के अंदर मेरे पापा मम्मी सो रहे थे अगर उनको ये सब पता चल गया कि मेरे और मेरी साली प्रीति के नजाजज् संबंधों की वजह से कुसुम घर से चली गई है तो पता नहीं वो क्या करेंगे?

मेरी तो जैसे जान ही निकली जा रही थी। आंखों से आंसू टपकने लगे। मैंने टेलीफोन वाली डायरी ओर अपना मोबाइल उठाया ताकि छत पर जाकर शांति से अपने 2-4 शुभचिन्तकों को फोन करके बुला लूं। बता दूंगा कि पति-पत्नी का आपस में झगड़ा हो गया था और कुसुम कहीं चली गई है।

कम से कम कुछ लोग तो होंगे मेरी मदद करने को। सोचता सोचता मैं छत पर चला गया। छत कर दरवाजा खुला हुआ था जैसे ही मैंने छत पर कदम रखा। सामने कुसुम फर्श पर दीवार से टेक लगाकर बिल्कुल शान्त बैठी थी।

मुझे तो जैसे संजीवनी मिल गई थी, मैं दौड़ कुसुम के पास पहुँचा, हिम्मत करके उससे शिकायत की और पूछा, “जानू, बिना बताये क्यों चली आई। पता है मेरी तो जान ही निकल गई थी।”

उसने होंठ तिरछे करके मेरी तरफ देखा जैसे ताना मार रही हो। पर गनीमत थी की उसकी आंखों में आंसू नहीं थे। मैं कुसुम के बराबर में फर्श पर बैठ गया, मोबाइल जेब में रख लिया और कुसुम का हाथ पकड़ लिया। मैं एक पल के लिये भी कुसुम को नहीं छोड़ना चाहता था पर चाहकर भी कुछ बोल नहीं पा रहा था।

अभी मैं कुसुम से बहुत कुछ कहना चाहता था पर शायद मेरे होंठ सिल चुके थे। मैं चुपचाप कुसुम के बराबर में बैठा रहा, उसका हाथ सहलाता रहा। मेरे पास उस समय अपना प्यार प्रदर्शित करने का और कोई भी रास्ता नहीं था।

कुसुम बहुत देर तक रोती रही थी शायद उसका गला भी रूंध गया था। मैं वहाँ से उठा नीचे जाकर कुसुम के पीने के लिये पानी लाया गिलास कुसुम को पकड़ा दिया।
वो फिर से सिसकने लगी। मैं उसके बराबर में बैठ गया और उसका सिर अपनी गोदी में रख लिया।

अचानक रोतीरोती उसने होंठ तिरछे करके मेरी तरफ देखा और ताना मारते हुए हंस पड़ी, ‘‘तुम्हें तो ठीक से बेवफाई करनी भी नहीं आती.’’

‘‘क्या?’’ मैंने चौंक कर उस की ओर देखा.

‘‘अपनी साली साहिबा को भला ऐसे मैसेज किए जाते हैं? कल रात क्या मैसेज भेजा था तुमने?’’

‘‘तुम ने लिखा था, डियर प्रीति, जिंदगी हमें बहुत से मौके देती है, नई खुशियां पाने के, जीवन में नए रंग भरने के… मगर वह खुशियां तभी तक जायज हैं, जब तक उन्हें किसी और के आंसुओं के रास्ते न गुजरना पड़े. किसी को दर्द दे कर पाई गई खुशी की कोई अहमियत नहीं. प्यार पाने का नहीं बस महसूस करने का नाम है. मैंने तुम्हारे लिए प्यार महसूस किया. मगर उसे पाने की जिद नहीं कर सकता, क्योंकि मैं अपनी बीवी को धोखा नहीं दे सकता. तुम मेरे हृदय में खुशी बन कर रहोगी, मगर तुम्हें अपने अंतस की पीड़ा नहीं बनने दूंगा. तुम से मिलने का फैसला मैंने प्यार के आवेग में लिया था मगर अब दिल की सुन कर तुम से सिर्फ इतना कहना चाहता हूं कि रिश्तों में सीमा समझना जरूरी है.

‘‘हम कभी नहीं मिलेंगे… आई थिंक, तुम मेरी मजबूरी समझोगी और खुद भी मेरी वजह से कभी दुखी नहीं रहोगी… कीप स्माइलिंग…’’

मैंने चौंकते हुए पूछा, ‘‘पर यह सब तुम्हें कैसे पता…?’’

‘‘क्योंकि जिस कॉलेज के तुम प्रोफेसर हो मै उस कॉलेज की प्रिंसिपल हू.... ह्म्म..........

मै तुम्हारी बीवी हूं और सुबह सुबह जब मै उठी तो तुम्हारे मोबाइल पर प्रीति का reply मैसेज शो हो रहा था, जब तुम मेरे मैसेज पढ़ सकते हो, तो मैने भी तुम्हारे मैसेज पढ़ लिए… मै तो बस तुम्हारे मुह से सच सुनने का इंतजार कर रही थी’’ कह कर कुसुम मुसकराते हुए मेरे सीने से लग गई और मैंने भी पूरी मजबूती के साथ उसे बांहों में भर लिया.

तब कुसुम बोली, “मुझे पता है तुम मुझसे बहुत प्यार करते हो, इसीलिये शायद जो प्रीति और तुम्हारे बीच हुआ वो तुमने सुबह ही मुझे बता दिया तुम्हारी जगह कोई भी दूसरा होता तो शायद इसकी भनक तक भी अपनी पत्नी को नहीं लगने देता। मुझे तुम्हारे प्यार के लिये किसी सबूत की जरूरत नहीं है, ना ही मुझे तुम पर कोई शक है पर खुद पर काबू नहीं कर पा रही हूँ मैं क्या करूं?”

मैं चुप ही रहा।

थोड़ी देर बाद कुसुम फिर बोली, “मुझे नहीं पता था कि कभी कभी किसी की जुबान से निकली बात सच भी हो जाती है?”
इस बार चौंकने की बारी मेरी थी, मैंने पूछा,

“मतलब?”

“ प्रीति और मैं बचपन से ही हम एक साथ खाते थे एक साथ पढ़ते थे एक साथ ही सारा बचपन गुजार दिया हमने। मम्मी, बुआ और ताई वगेरा अक्सर हम पर कमेंट करते थे और बोलते थे कि तुम दोनों बहनो की शादी भी किसी एक लड़के से ही कर देंगे और हम दोनों हंसकर हाँ कर देते थे। मुझे भी नहीं पता था कि एक दिन हमारा वो मजाक सच हो जायेगा।”

“नहीं कुसुम, तुम गलत सोच रही हो, ऐसा कुछ भी नहीं है, मेरी पत्‍नी बस तुम हो और तुम ही रहोगी। मैं मानता हूँ मुझसे गलती हुई है पर मैं जीवन में तुम्हारा स्थान कभी किसी को नहीं दे सकता।” बोलकर मैं कुसुम के सिर को सहलाने लगा। कुछ देर बैठने के बाद मैंने कुसुम को नीचे चलने के लिये कहा। वो भी उठकर मेरे साथ नीचे चल दी। हम लोग अन्दर पहुँचे तब तक 7.30 बज चुके थे।

मेरी मम्मी भी जाग चुकी थी और हम दोनों को ढूंढ रही थी। जैसे ही हमने हॉल पैर रखा, मम्मी बोली, “कहाँ चले गये थे तुम दोनों? मैं कितनी देर से ढूंढ रही हूँ।”

“ऐसे ही आंख जल्दी खुल गई थी तो ठण्डी हवा खाने चले गये थे छत पर।” कुसुम ने तुरन्त जवाब दिया।

मैं उसके जवाब से चौंक गया। वो बिल्कुल सामान्य व्यव्हार कर रही थी। मैंने भी सामान्य होने की कोशिश की और अपने नित्यकर्म में लग गया। अब मुझे अपना मन बहुत हलका महसूस हो रहा था. "बेवफाई के इलजाम" से आजाद जो हो गया था मैं.


जारी है...... ✍️
Nice update
 

devil29

Davil
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29
इसी पश्चाताप की कशमकश में मेरी आँख लग गयी...........!


सुबह करीब 5.30 बजे मेरे बदन में हरकत होने के कारण मेरी आंख खुल गई। मैंने देखा मेरे बराबर में कुसुम लेटी हुई थी। रात की अलसाई सी अवस्था में, जुल्फें कुसुम के हसीन चेहरे को ढकने की कोशिश कर रही थी। पर कुसुम इससे बेखबर मेरी बगल में लेटी थी मेरी चड्डी में हाथ डालकर मेरे लंड को सहला रही थी।

मुझे जागता देखकर कुसुम की हरकत थोड़ी से तेज हो गई, मैं जाग चुका था, कुसुम की इस हरकत को देखकर मैंने उसको सीने से लगाया, मैंने पूछा- आज जल्दी उठ गई?

कुसुम बोली, “रात तुम्हारा मूड था, और अभी मेरा मूड है, अभी पानी पीने को उठी थी तो तुमको सोता देखकर मन हुआ कि मौका भी है और कुछ देर बाद मुझे अपनी नौकरी पर वापस दिमापुर जाना है ,
तो क्यों ना इश्क लड़ाया जाये।”

बोलकर कुसुम ने अपने होंठ मेरे होंठों पर रख दिए। पर रात की थकान मुझ पर हावी थी। या यूं कहूँ कि मेरे दिल में एक सच छिपा था जो उसे बताना मेरे लिए बहुत जरूरी था। कुछ देर कोशिश करने के बाद कुसुम ने ही पूछा लिया, “क्या हुआ मूड नहीं है क्या?”

अब मैं क्या जवाब देता कुसुम मुझसे बार बार पूछ रही थी, “बोलो ना क्या हुआ? मूड खराब है क्या?”

पर मैं कुछ भी नहीं बोल पा रहा था, मेरी चुप्पी कुसुम को बेचैन करने लगी थी आखिर वो मेरी पत्नी थी। मैं कुसुम के प्रेम को महसूस कर रहा था। कुसुम को लगा शायद मेरी तबियत खराब है, यह सोचकर कुसुम बोली- डाक्टर को बुलाऊँ या फिर चाय पीना पसन्द करोगे?

मैंने बिल्कुल मरी हुई आवाज में कहा, “एक कप चाय पीने की इच्छा है तुम्हारे साथ।”
मुझे लग रहा था कि अगर कुसुम को सब कुछ पता चल गया तो शायद यह मेरी उसके साथ आखिरी चाय होगी। जैसे जैसे समय बीत रहा था मेरी बेचैनी बढ़ती जा रही थी।
कुसुम उठकर चाय बनाने चली गई।

तभी किसी ने मुझे झझकोरा। मैं जैसे होश में आया, कुसुम चाय का कप हाथ में लेकर खड़ी थी, बोली- क्या बात है? आज सुबह से ही बहुत खोये खोये हो? कुछ ना कुछ सोच रहे हो। मेरे वापस जाने से परेशान हो? आप बोलो तो मै दों दिन बाद चली जाऊंगी? मेरे आफिस में सब ठीक चल रहा है मुझे कुछ परेशानी नहीं है? जानू, तुम्हे कोई भी परेशानी है तो मुझसे शेयर करो कम से कम तुम्हारा बोझ हल्का हो जायेगा। आखिर मैं तुम्हारी पत्नी हूँ।

कुसुम की अन्तिम एक पंक्ति ने मुझे ढांढस बंधाया पर फिर भी जो मैं उसको बताने वाला था वो किसी भी भारतीय पत्नी के लिये सुनना आसान नहीं था। मैंने चाय की घूंट भरनी शुरू कर दी, कुसुम अब भी बेचैन थी, लगातार मुझसे बोलने का प्रयास कर रही थी।

पर मैं तो जैसे मौन ही बैठा था, शेर की तरह से जीने वाला पति अब गीदड़ भी नहीं बन पा रहा था। तभी अचानक पता नहीं कहाँ से मुझमें थोड़ी सी हिम्मत आई, मैंने कुसुम को कहा, “मैं तुमको कुछ बताना चाहता हूँ?”


कुसुम ने कहा- हाँ बोलो।

मैंने चाय का कप एक तरफ रख दिया और कुसुम की गोदी में सिर रखकर लेट गया, वो प्यार से मेरे बालों में उंगलियाँ चलाने लगी। मैंने अपनी आँखें बंद कर ली और मेरी साली प्रीति और मेरे बीच जो कुछ भी हुआ था, "साली जीजा" के बीच की हर वो बात जो मैंने कुसुम से छुपाई थी कुसुम को एक-एक करके बता दी।

वो चुपचाप मेरी हर बात सुनती रही, मैं किसी रेडियो की तरह लगातार बोलता जा रहा था। मैंने किसी बात पर कुसुम का प्रतिक्रिया जानने की भी कोशिश नहीं कि क्योंकि उस समय मुझे उसको वो सब कुछ बताना था जो मैंने छुपाया था।

सारी बात बोलकर मैं चुप हो गया और आँख बंद करके वहीं पड़ा रहा। तभी मेरे गाल पर पानी की बूंद आकर गिरी, मैंने आँखें खोली और ऊपर देखा तो कुसुम की आंखों में आंसू थे तो टप टप करके मेरे गालों पर गिर रहे थे !

मैं अन्दर से बहुत दुखी था, कुसुम के आंसू पोंछना चाहता था पर वो आंसू बहाने वाला भी तो मैं ही था। मैंने कुसुम की खुशियाँ छीनी थी मैं कुसुम का सबसे बड़ा गुनाहगार था।

मैंने बोलने की कोशिश की, “जानू !”
“चुप रहो प्लीज !” बोलकर कुसुम ने और तेजी से रोना शुरू कर दिया।

मेरी हिम्मत उसके आँसू पोंछने की भी नहीं थी। मैं चुपचाप कुसुम की गोदी से उठकर उसके पैरों के पास आकर बैठ गया और बोला, “मैं तुम्हारा गुनाहगार हूँ, चाहे तो सजा दे दो, मैं हंसते हंसते मान लूंगा, एक बार उफ भी नहीं करूंगा, पर तुम ऐसे मत रोओ प्लीज…” कुसुम वहाँ से उठकर बाहर निकल गई, मैं कुछ देर वहीं बैठा रहा।

बाहर कोई आहट ना देखकर मैं बाहर गया तो देखा कुसुम वहाँ नहीं थी। मैने कुसुम को पूरे घर में ढूंढा पर वो कहीं नहीं थी। मेरे पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई, इतनी सुबह कुसुम कहाँ निकल गई।

मैंने मोबाइल उठाकर कुसुम के नम्बर पर फोन किया उसका मोबाइल मेरे बैड रूम में रखा था। तो क्या फिर कुसुम सब कुछ यहीं छोड़कर चली गई? वो कहाँ गई होगी? मैं उसको कैसे ढूंढूंगा? कहाँ ढूंढूंगा? सोच सोच कर मेरी रूह कांपने लगी। मुझे ऐसा लगा जैसी जिदंगी यहीं खत्म हो गई। अगर मेरी कुसुम मेरे साथ नहीं होगी, तो मैं जी कर क्या करूंगा? पर मेरा जो भी था कुसुम का ही तो था। सोचा कम से कम एक बार कुसुम मिल जाये तो सबकुछ उसको सौंप कर मैं हमेशा के लिये उसकी जिंदगी से दूर चला जाऊँगा।

बाहर निकला तो लोग सुबह सुबह टहलने जा रहे थे। किससे पूछूं कि मेरी बीवी सुबह सुबह कहीं निकल गई है किसी ने देखा तो नहीं? मन में हजारों विचार जन्म ले रहे थे। शायद कुसुम अपने मायके चली गई होगी। तो बस स्टैण्ड पर चलकर देखा जाये?
नहीं, हो सकता है वो स्टेशन गई हो।
पर कैसे जायेगी, वो आज तक घर का सामान लेने वो मेरे बिना नहीं गई, इतने बड़े शहर में वो कहीं खो गई तो?कहीं किसी गलत हाथों में पड़ गई तो मैं क्या करूंगा? मैंने कुसुम को ढूंढने का निर्णय किया।
घर के अन्दर आकर उसकी फोटो उठाई, सोचा कि सबसे पहले पुलिस स्टेशन फोन करके पुलिस को बुलाऊँ वहाँ मेरा एक मित्र भी था।

घर के अंदर मेरे पापा मम्मी सो रहे थे अगर उनको ये सब पता चल गया कि मेरे और मेरी साली प्रीति के नजाजज् संबंधों की वजह से कुसुम घर से चली गई है तो पता नहीं वो क्या करेंगे?

मेरी तो जैसे जान ही निकली जा रही थी। आंखों से आंसू टपकने लगे। मैंने टेलीफोन वाली डायरी ओर अपना मोबाइल उठाया ताकि छत पर जाकर शांति से अपने 2-4 शुभचिन्तकों को फोन करके बुला लूं। बता दूंगा कि पति-पत्नी का आपस में झगड़ा हो गया था और कुसुम कहीं चली गई है।

कम से कम कुछ लोग तो होंगे मेरी मदद करने को। सोचता सोचता मैं छत पर चला गया। छत कर दरवाजा खुला हुआ था जैसे ही मैंने छत पर कदम रखा। सामने कुसुम फर्श पर दीवार से टेक लगाकर बिल्कुल शान्त बैठी थी।

मुझे तो जैसे संजीवनी मिल गई थी, मैं दौड़ कुसुम के पास पहुँचा, हिम्मत करके उससे शिकायत की और पूछा, “जानू, बिना बताये क्यों चली आई। पता है मेरी तो जान ही निकल गई थी।”

उसने होंठ तिरछे करके मेरी तरफ देखा जैसे ताना मार रही हो। पर गनीमत थी की उसकी आंखों में आंसू नहीं थे। मैं कुसुम के बराबर में फर्श पर बैठ गया, मोबाइल जेब में रख लिया और कुसुम का हाथ पकड़ लिया। मैं एक पल के लिये भी कुसुम को नहीं छोड़ना चाहता था पर चाहकर भी कुछ बोल नहीं पा रहा था।

अभी मैं कुसुम से बहुत कुछ कहना चाहता था पर शायद मेरे होंठ सिल चुके थे। मैं चुपचाप कुसुम के बराबर में बैठा रहा, उसका हाथ सहलाता रहा। मेरे पास उस समय अपना प्यार प्रदर्शित करने का और कोई भी रास्ता नहीं था।

कुसुम बहुत देर तक रोती रही थी शायद उसका गला भी रूंध गया था। मैं वहाँ से उठा नीचे जाकर कुसुम के पीने के लिये पानी लाया गिलास कुसुम को पकड़ा दिया।
वो फिर से सिसकने लगी। मैं उसके बराबर में बैठ गया और उसका सिर अपनी गोदी में रख लिया।

अचानक रोतीरोती उसने होंठ तिरछे करके मेरी तरफ देखा और ताना मारते हुए हंस पड़ी, ‘‘तुम्हें तो ठीक से बेवफाई करनी भी नहीं आती.’’

‘‘क्या?’’ मैंने चौंक कर उस की ओर देखा.

‘‘अपनी साली साहिबा को भला ऐसे मैसेज किए जाते हैं? कल रात क्या मैसेज भेजा था तुमने?’’

‘‘तुम ने लिखा था, डियर प्रीति, जिंदगी हमें बहुत से मौके देती है, नई खुशियां पाने के, जीवन में नए रंग भरने के… मगर वह खुशियां तभी तक जायज हैं, जब तक उन्हें किसी और के आंसुओं के रास्ते न गुजरना पड़े. किसी को दर्द दे कर पाई गई खुशी की कोई अहमियत नहीं. प्यार पाने का नहीं बस महसूस करने का नाम है. मैंने तुम्हारे लिए प्यार महसूस किया. मगर उसे पाने की जिद नहीं कर सकता, क्योंकि मैं अपनी बीवी को धोखा नहीं दे सकता. तुम मेरे हृदय में खुशी बन कर रहोगी, मगर तुम्हें अपने अंतस की पीड़ा नहीं बनने दूंगा. तुम से मिलने का फैसला मैंने प्यार के आवेग में लिया था मगर अब दिल की सुन कर तुम से सिर्फ इतना कहना चाहता हूं कि रिश्तों में सीमा समझना जरूरी है.

‘‘हम कभी नहीं मिलेंगे… आई थिंक, तुम मेरी मजबूरी समझोगी और खुद भी मेरी वजह से कभी दुखी नहीं रहोगी… कीप स्माइलिंग…’’

मैंने चौंकते हुए पूछा, ‘‘पर यह सब तुम्हें कैसे पता…?’’

‘‘क्योंकि जिस कॉलेज के तुम प्रोफेसर हो मै उस कॉलेज की प्रिंसिपल हू.... ह्म्म..........

मै तुम्हारी बीवी हूं और सुबह सुबह जब मै उठी तो तुम्हारे मोबाइल पर प्रीति का reply मैसेज शो हो रहा था, जब तुम मेरे मैसेज पढ़ सकते हो, तो मैने भी तुम्हारे मैसेज पढ़ लिए… मै तो बस तुम्हारे मुह से सच सुनने का इंतजार कर रही थी’’ कह कर कुसुम मुसकराते हुए मेरे सीने से लग गई और मैंने भी पूरी मजबूती के साथ उसे बांहों में भर लिया.

तब कुसुम बोली, “मुझे पता है तुम मुझसे बहुत प्यार करते हो, इसीलिये शायद जो प्रीति और तुम्हारे बीच हुआ वो तुमने सुबह ही मुझे बता दिया तुम्हारी जगह कोई भी दूसरा होता तो शायद इसकी भनक तक भी अपनी पत्नी को नहीं लगने देता। मुझे तुम्हारे प्यार के लिये किसी सबूत की जरूरत नहीं है, ना ही मुझे तुम पर कोई शक है पर खुद पर काबू नहीं कर पा रही हूँ मैं क्या करूं?”

मैं चुप ही रहा।

थोड़ी देर बाद कुसुम फिर बोली, “मुझे नहीं पता था कि कभी कभी किसी की जुबान से निकली बात सच भी हो जाती है?”
इस बार चौंकने की बारी मेरी थी, मैंने पूछा,

“मतलब?”

“ प्रीति और मैं बचपन से ही हम एक साथ खाते थे एक साथ पढ़ते थे एक साथ ही सारा बचपन गुजार दिया हमने। मम्मी, बुआ और ताई वगेरा अक्सर हम पर कमेंट करते थे और बोलते थे कि तुम दोनों बहनो की शादी भी किसी एक लड़के से ही कर देंगे और हम दोनों हंसकर हाँ कर देते थे। मुझे भी नहीं पता था कि एक दिन हमारा वो मजाक सच हो जायेगा।”

“नहीं कुसुम, तुम गलत सोच रही हो, ऐसा कुछ भी नहीं है, मेरी पत्‍नी बस तुम हो और तुम ही रहोगी। मैं मानता हूँ मुझसे गलती हुई है पर मैं जीवन में तुम्हारा स्थान कभी किसी को नहीं दे सकता।” बोलकर मैं कुसुम के सिर को सहलाने लगा। कुछ देर बैठने के बाद मैंने कुसुम को नीचे चलने के लिये कहा। वो भी उठकर मेरे साथ नीचे चल दी। हम लोग अन्दर पहुँचे तब तक 7.30 बज चुके थे।

मेरी मम्मी भी जाग चुकी थी और हम दोनों को ढूंढ रही थी। जैसे ही हमने हॉल पैर रखा, मम्मी बोली, “कहाँ चले गये थे तुम दोनों? मैं कितनी देर से ढूंढ रही हूँ।”

“ऐसे ही आंख जल्दी खुल गई थी तो ठण्डी हवा खाने चले गये थे छत पर।” कुसुम ने तुरन्त जवाब दिया।

मैं उसके जवाब से चौंक गया। वो बिल्कुल सामान्य व्यव्हार कर रही थी। मैंने भी सामान्य होने की कोशिश की और अपने नित्यकर्म में लग गया। अब मुझे अपना मन बहुत हलका महसूस हो रहा था. "बेवफाई के इलजाम" से आजाद जो हो गया था मैं.


जारी है...... ✍️
Nice update bro but to small
 
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कुसुम मैडम और अरूण सर जैसे दोनो हसबैंड वाइफ के लिए ही शायद यह लाइन प्रचलित रहा होगा - " राम मिलाई जोड़ी , एक अंधा एक कोढ़ी "

कहां अरूण सर ने सोच रखा था कि उसे काफी झटके लगेंगे ! कुसुम द्वारा उसकी भारी बेइज्जती होने वाली है ! शायद कुसुम उसे चप्पल या झाड़ू लेकर पिटाई भी कर दे ! शायद कुसुम हमेशा के लिए घर छोड़कर चली जाए ! शायद कुसुम उसके इज्ज़त का जनाजा न सिर्फ पुरे परिवार मे बल्कि पुरे देश मे निकाल दे ! पर कुसुम ने ऐसा कुछ भी नही किया । कुसुम को अपने हसबैंड के इस बेवफाई से जरा भी एतराज नही हुआ । एतराज तो क्या बल्कि वो काफी खुश नजर आई । कुसुम को यह एहसास हुआ कि उसकी बर्षों की अधूरी तमन्ना पुरी हो गई । दोनो बहन का एक ही पति परमेश्वर ।

अब मै क्या कहूं , समझ ही नही आ रहा है । औरतों को जब विधाता पुरी तरह समझ नही सका फिर हमारी क्या औकात है !

शायद बहुत जल्द सुमन - प्रीति - अरूण का FFM थ्री सम खेल देखने को मिले !
वैसे अरूण साहब ने सच तो कहा लेकिन पुरा सच नही कहा । और कुसुम देवी का अप्रत्याशित रवैया भी खामख्वाह नही लगता ।

बहुत ही बेहतरीन अपडेट मानु भाई।
आउटस्टैंडिंग एंड अमेजिंग अपडेट।
 

manu@84

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Great update 👍 and awesome 👌 writing ✍️.
Arun ne Priti ke baare me Bata kar apne pair per kulhadi maar li.
Per Kusum ne use easily maar kar diya ye Samaj na aaya?.
Gajab ka update 👌👌👌👌👌👌👌👌🔥🔥🔥🔥🔥🔥🔥🔥🔥🔥🔥🔥🔥🔥🔥✨✨✨✨✨✨✨✨✨✨✨✨✨✨🎊🎊🎊🎊🎊🎊🎊🎊🎊🎊🎊🎊🎊
Bahut bahut dhanyavaad dost.
 

manu@84

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Nice update🙏
शुक्रिया
 
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Reactions: Raj_sharma
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