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Incest कर्ज और फर्ज - एक कश्मकश

Sanju@

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ऐसा नही था कि मुझे अपनी सास किसी आम औरत की भाँति नज़र आ रही थी, मैने कभी अपनी सास को उत्तेजना पूर्ण शब्द के साथ जोड़ कर नही देखा था. वह मेरे लिए उतनी ही पवित्र, उतनी ही निष्कलंक थी जितनी कि कोई दैवीय मूरत. बस एक कसक थी या अजीब सा कौतूहल जो मुझ को मजबूर कर रहा था कि मै उनके विषय में और अधिक जानकारी प्राप्त करू भले वो जानकारी मर्यादित श्रेणी में हो या पूर्न अमर्यादित.. . . . ....!

कौतूहल चंचल मन अश्व समान होता है, विचारों की वल्गा चाहे जितनी भी ज़ोर से तानो लेकिन वह दौड़ता ही जाता है. मेरी सास अधीर हो उठी थी, अवाक हो कर मेरे चेहरे के भाव पढ़ने का प्रयत्न कर रही थी.चाहती थी कि उसका दामाद अत्यंत तुरंत स्वीकार कर ले कि वो उसको सारे शारीरक् सुख देने की काबिलियत इस अधेड़ यौवन में भी रखती है। निश्चित तौर पर तो नही परंतु हमेशा की तरह ही वह अपनी चूत की गहराई में अत्यधिक सिहरन की तीव्र लहर दौड़ती महसूस करने को बेहद आतुर हो चली थी, जिसके एहसास से वह काफ़ी दीनो से वंचित थी.

उन्होंने मंन ही मंन सोचा और मेरे मुख से ही पूर्ण रूप से सच सुनने की प्रतीक्षा करने लगती है.

" मम्मी! मैं परेशान हूँ" मै हौले से बुद्बुदाया, मेरा कथन और स्वर दोनो एक-दूसरे के परिचायक थे.

मेरी सास को पुष्टिकरण चाहिए था वह भी एक मर्द से, फिर चाहे वह मर्द उसका सगा दामाद ही क्यों ना था. उन्होंने अपने चेहरे की शरमाहट को छुपाने का असफल प्रयास किया और फॉरन चहेक पड़ी.

"हां हां बोल ना, मैं सुनना चाहती हूँ अरुण " उनके अल्फाज़ो में महत्वाकांक्षा की प्रचूरता व्याप्त थी जैसे अपने दामाद के व्यक्तिगत रहस्य अपनी सगी सास के साथ सांझा होने पर उन्हें बेहद प्रसन्नता हो रही हो.

मैने अपनी सास के हैरत भरे चेहरे को विस्मय की दृष्टि से देखते हुए कहा.
"वैसे मम्मी! क्या मैं जान सकता हूँ कि एक अच्छे संभोग सुख की चाहत पूरी करने के लिए मुझे क्या करना चाहिए ?" मैने प्रश्न किया.

कुच्छ वक़्त पिछे जिस नकारात्मक सोच से सामना हुवा था अब वो नकारात्मकता प्रबलता से अपने पाँव फ़ैलाने लगी थी.

"कुच्छ ख़ास नही! सासु कुर्सी के हैंडल की सतह पर अपने दाएँ हाथ के नाखूनो को रगड़ते हुवे बोली. उनकी आँखें जो अब तक अपने दामाद की आँखों में झाँक कर वार्तालाप कर रही थीं, गहेन मायूसी, अंजाने भय की वजह से उनकी गर्दन समेत निच्चे झुक जाती हैं.

"अक्सर नौकरी पेशा बीवी होने पर तुम्हारी उमर में अक्सर पति पत्नी को सेक्स संबंधी प्राब्लम'स फेस करनी पड़ती हैं बेटा! लेकिन इसमें बुरा कुच्छ भी नही" स्पष्ट-रूप से ऐसा बोल कर वह मेरी गतिविधियों पर गौर फरमाने लगती है.

अरुण बेटा कितने समय से कुसुम तुम्हारी संभोग सुख की चाहत पूरी नही कर रही है... कुछ पल की चुप्पी के बाद वो फिर से बोली????

महीने भर से मम्मी, आप तो समझ लीजिये जब से उसकी नौकरी लगी है तब से... ;

"क्या! महीने भर से" सास चोंकते हुए.

"उससे भी पहले से" मैने दोबारा विस्फोट किया.

"तो .. तो तुमने मुझे कुच्छ बताया क्यों नही बेटा ?" सास ने व्याकुल स्वर में पुछा, उनके मस्तिष्क में अचानक से चिंता का वास हो गया था. पति पत्नी के बीच होने वाले संभोग में इतने लंबे समय तक का अंतराल बने रहना बहुत ही गंभीर परिणामो का सूचक माना जाता है और जो वाकाई संदेह से परिपूर्ण विषय था.

"कैसे बताता मम्मी ? जब किसी अन्य को नही बता पाया तो फिर तुम तो मेरी मम्मी समान हो" बोलते हुए मेरी आँखें मूंद जाती हैं.

मेरे हाथ पर हाथ रखते हुए सास बोली "तो क्या सिर्फ़ घुट'ते रहने से तुम्हारा दर्द समाप्त हो जाता ?"

"बेशरम बनने से तो कहीं अच्छी थी यह घुटन"

अरुण बेटा "तुम किस युग में जी रहे हो ! क्या तुम्हे ज़रा सा भी अंदाज़ा है ?"

मम्मी "युग बदल जाने से क्या इंसान को अपनी हद्द भूल जानी चाहिए ?"

"हद में रह कर ही तो तुम्हारी इतनी गंभीर हालत हुई है, बेटा! काश की तुमने समय रहते ही सही, मुझे अपना दर्द बया कर दिया होता तो आज कुछ देर पहले जो तू अपनी बेटी रिंकी के साथ कर रहा था, वो करने की नौबत ही नही आती। कुच्छ हद्द तक तू बाप बेटी के रिश्ते को बदनाम करने से मुक्त हो गया होता" सास के दुइ-अर्थी शाब्दिक कथन के उपरांत तो जैसे पूरे मेरे दिल दिमाग में सन्नाटा छा जाता है. मेरी जुबां से बस एक ही शब्द बाहर निकला " सॉरी "

"खैर भूल जाते है,उसे जो हुआ सो हुआ! मुझे अपने दामाद की भावनाओ को भी समझने का प्रयास करना चाहिए था और जिसे मैने पूरी तरह से नज़र-अंदाज़ कर दिया था" "तो क्या अब तुम अपनी उस छोटी सी भूल का इस तरह शोक मनाओगे ?" हमारे बीच बहुत देर से छाई शांति को भंग करते हुवे सास बोली.

अजीब सी स्थिति का निर्माण हो चुका था, मेरे बगल में बैठी स्त्री मेरी सगी सास थी जो अपनी ही सगी बेटी के स्त्रीतत्व पर ही दोषा-रोपण कर रही थी और अपने दामाद को आज के परिवेश में ढल जाने की शिक्षा दे रही थी. उत्तेजना अपनी जगह और मान-मर्यादा, लिहाज, सभ्यता, संस्कार अपनी. हर मनुश्य के खुद के कुच्छ सिद्धांत होते हैं और बुद्धिजीवी वो अपने नियम, धरम के हिसाब से ही अपने जीवन का निर्वाह करता है.

माना सास की दुनिया शुरूवात से बहुत व्यापक रही थी, एक अच्छी ग्रहिणी होने के साथ-साथ वह निचले स्तर की मध्यम वर्गीय गरीव घर की काम-काज़ी महिला भी थी. पति व पुत्र के अलावा ऐसे कयि मर्द रहे जिनके निर्देशन में उन्हे छोटे छोटे चूड़ी के कारखानों में काम करना पड़ा था.

वह यौवन से भरपूर अत्यंत सुंदर, कामुक नारी थी. कयि तरह के लोभ-लालच उनके बढ़ते परंतु बंधन-बढ़ते कदमो में खुलेपन की रफ़्तार देने को निरंतर अवतरित होते रहे थे मगर वह पहले से ही इतनी संतुष्ट थी कि किसी भी लालच की तरफ उनका झुकाव कभी नही हुवा था.

हमेशा वस्त्रो से धकि रहना लेकिन पति संग सहवास के वक़्त उन्ही कपड़ो से दुश्मनी निकालना उनकी खूबी थी, चुदाई के लगभग हर आसान से वह भली भाँति परिचित थी. विवाह के पश्चात से अपने पति की इक्षा के विरुद्ध उन्होंने कभी अपनी झांटो को पूर्न-रूप से सॉफ नही किया था बल्कि कैंची से उनकी एक निश्चित इकाई में काट-छांट कर लिया करती थी और तब से ले कर मेरे ससुर के बीमार होने तक हर रात उनसे अपनी चूत चटवाना और स्खलन के उपरांत पुरूस्कार-स्वरूप उन्हें अपनी गाढ़ी रज पिलवाना उनके बेहद पसंदीदा कार्यों में प्रमुख था, चुदाई से पूर्व वह दो बार तो अवश्य ही अपने पति के मूँह के भीतर झड़ती थी क्यों कि उससे कम में उनकी कामोत्तेजना का अंत हो पाना कतयि संभव नही हो पाता था.

अपनी सास के टुकड़ो में बाते कथन को सुनकर मैने एक गहरी सांस ली और अपने दोनो हाथो को कैंची के आकार में ढाल कर उनके अत्यंत सुंदर चेहरे को बड़ी गंभीरता-पूर्वक निहारने लगा परंतु अब वह चेहरा सुंदर कहाँ रह गया था. कभी मायूस तो कभी व्याकुल, कभी विचार-मग्न तो कभी खामोश, कभी ख़ौफ़ से आशंकित तो कभी लाज की सुर्ख लालिमा से प्रफुल्लित.

हां! मुख मंडल पर कुच्छ कम उत्तेजना के लक्षण अवश्य शामिल थे और जो मेरी ठरकी अनुभवी निगाहों से छुप भी नही पाये मगर चेहरे का बेदाग निखार, शुद्ध कजरारी आँखें, मूंगिया रंगत के भरे हुवे होंठ और उनकी क़ैद में सज़ा पाते अत्यधिक सफेद दाँत, तोतपुरि नाक और अधेड़ यौवन के बावजूद खिले-खिले तरो-ताज़ा गालो के आंकलन हेतु अनुभव की ज़रूरत कहाँ आन पड़नी थी और पहली बार मैने जाना कि किसी औरत के सही मूल्यांकन की शुरूवात ना तो उसके गोल मटोल मम्मो से आरंभ होती है और ना ही उभरे हुवे मांसल चूतडो से, चेहरा हक़ीक़त में उसके दिल का आईना होता है.

निराशा, उदासी, उत्तेजना आदि कयि एहसासो से ओत-प्रोत सास कुछ मन ही मन सोचें जा रही थी कि तभी मेरी आवाज़ से उनकी तंद्रा टूट गयी, विवशता में भी उन्होंने अपनी पलकों को उठा कर कर पुनः अपनी गर्दन ऊपर उठा कर अपने दामाद के चेहरे का सामना करना पड़ता है और जिसके लिए वह ज़रा सी भी तैयार नही थी.

"तो कहो मम्मी! मुझे कुसुम की अनुपस्थि में अपनी शारीरिक जरूररतो की पूर्ति किसके साथ करनी चाहिए ? मैने पुछा.

मेरे सवाल के जबाब में कहे जाने वाले मेरी सास के वे अगले लफ्ज़ शायद अब तक के उनके सम्पूर्न बीते जीवन के सबसे हृदय-विदारक अल्फ़ाज़ बनने वाले थे और खुद ब खुद उनकी आँखें क्षण मात्र में खुल कर मेरे चेहरे को निहारने लगती हैं.

म... म.... मुझे नही पता...???

सास हकला सी गयी, उन्हें अपने दामाद द्वारा ऐसे अट-पटे प्रश्न के पुच्छे जाने की बिल्कुल उम्मीद नही थी...! उनके चेहरे का रंग उड़ गया और वो तेज़ी से दूसरी ओर घूम गयी. वो मेरे पास से उठ कर जल्दी जल्दी मुझसे दूर भाग गयी. मैं कह नही सकता था कि वो घबरा गयी है या शर्मिंदा है मगर मैने इतना ज़रूर देखा था कि मेरी साली जूली की विदा होने तक वो जब भी मेरे नज़दीक आती या जब भी मैं उनके पास जाता तो वो अपनी आँखे फेर लेती थी. उनके रवैये में किसी बढ़ाव की बात उस समय पक्की हो गयी ।

मै तो जैसे उनका मन पढ़ लिया था.कड़ी मेहनत के बाद फल की प्राप्ति होती है और जिसकी शुरूवात मै कर चुका था किंतु फल मिलने में अभी काफ़ी वक़्त लगेगा इस बात से भी मै अच्छी तरह परिचित था. दूसरी ओर सास ने मन ही मन सोचा होगा, अभी भी उनके लिए संभावनाए उतनी प्रबल नही थी कि वह निर्लज्जता-पूर्ण तरीके से अपने दामाद के समक्ष अपनी काम-पीपासा का बखान कर पाती... .. !

साली की विदा के बाद दोपहर तक मेहमानों का जाने का सिलसिला लगातार जारी रहा। कुसुम अपनी नौकरी के कारण शाम को ही अपनी ससुराल और अगली सुबह ड्यूटी पर जाने की मुझसे कह रही थी। कुसुम को जब मैने बड़े प्यार से अपने बालों को सवारते हुए देखा वो तो एक जिज्ञासु की तरह पूछ ही लिया।

कुसुम एक बात बताओ महिलाएं, कभी बाल खुले रखती हैं, कभी एक चोटी, कभी दो ,तो कभी जूड़ा,। इसका कोई गूढ़ रहस्य है, या यह फैशन से है जुड़ा,?

वो मुस्कुराते हुए कहने लगी, जब हमारी शादी नही हुई थी, हम अकेले थे,जैसे दो अलग चोटी , फिर शादी हुई एक हुए ,तो एक चोटी। फिर हम दोनो जूडे के जैसे, ऐसे मिल गए कि, अपना सब कुछ ,
एक,दूसरे को दे दिया।

मैने पूछा फिर ये खुले बाल,,,,?

जवाब मिला,एक हो कर भी, हमारा अपना अलग अस्तित्व है, ये खुले बाल,हमारे अलग विचार, अधिकार, वजूद और शख्सियत का प्रतीक हैं ! जो एक दूसरे के सम्मान से उपजता है!

मैने प्रभावित होकर,माहौल को हल्का करने के लिए ,पूछा,,,,और ये जो तुम बालों में ऊपर रबर बैंड लगा कर खुला छोड़ देती हो,यह तो भ्रमित करता है, कि बंधन या आजादी ?

जवाब मिला,एक दूसरे को स्वतंत्रता तो देनी है,पर पतंग और डोर जैसे, स्वतंत्रता में भी मर्यादा का अंकुश। बालों को पहले मर्यादा के रबर बैंड से बांधा,फिर,स्वछंद छोड़ दिया।!

अपनी पत्नी के मुख से केस विन्यास के गूढ़ रहस्य को जान मैं हतप्रभ, विस्मित, प्रभावित, और नतमस्तक हो गया😜


जारि है........ ✍️
बहुत ही शानदार और लाजवाब अपडेट है लगता है sanju (V.R) भाई से कोचिंग ले रहे हो जब ही आज पूरे अपडेट में ऐसी फिलॉसफी वाली बाते कही है
 

Sanju@

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अध्याय - 22 --- " पश्चाताप ""

अपनी पत्नी के मुख से केस विन्यास के गूढ़ रहस्य को जान मैं हतप्रभ, विस्मित, प्रभावित, और नतमस्तक हो गया।

रात के आठ बजे करीब मै और कुसुम वापस अपने घर आ गये। रिंकी को मेरे ससुर ने जूली के जाने से घर सूना सूना लग रहा और दो तीन बाद वापस भेजने की बात कह कर उसे वही रोक लिया था।

घर वापस आकर अपने मम्मी पापा से शादी में मिले नेग और लीफाफा वगेरा की बातें करने के बाद मै अपने बेडरूम आ गया। थोड़ी देर बाद कुसुम भी आ गयी और चुप सी बिसतर पर बैठ गयी। कुसुम के व्यव्हार मुझे थोड़ा बदलाव लगा वरना वो मेरे साथ बहस करना पसंद करती है , जब वो कुछ देर तक यु ही गुमसुम बैठी रहीं तो मैं उससे लिपट गया ..

“क्या मेरी जान आज अपना मोबाइल नही देख रही हो ..”

“क्या देखू ,कुछ रह नही गया..”

“क्यो वो तुम्हारा पुराना प्रेमी दिनेश तो है ना बात नही हुयी क्या “ मैने उसे छेड़ते हुए हस्ते हुए कहा।

वो मेरी आंखों में थोड़ी देर तक देखने लगी

“आप सच में चाहते हो की मैं उससे बात करू ..या कुछ और आगे जाऊ..”

“ऐसे क्यो बोल रही हो “

वो मुझसे अलग हुई.. .. .. ... ..... ‘क्योकि कल रात जो आपकी आंखों में गुस्सा देखा था वो सच्चा था,और मैं नही चाहती की कुछ ऐसा हो जाए की आपको फिर से उस रूप में आना पड़े ..”

अब मैं समझा की मेरी बीवी इतनी शरीफ क्यो बन रही है , मैंने उसे फिर से जकड़ लिया ..

“मेरी जान वो मामला ही अलग था,गुस्सा होना स्वाभाविक था,लेकिन अगर तुम मेरी जानकारी में ऐसे शक्स को पसंद करो जो मुझे भी पसंद आये तो, मैं तो तुम्हे सेक्स भी करने को नही रोकूंगा ..”

वो गुस्से से मुझे घूरने लगी “चुप रहो बड़े आये ..”

वो बाथरूम में चली गई और मैं उसके पीछे पीछे पहुचा ..

‘मैं मजाक नही कर रहा..”

“पता है मुझे आप क्या कर रहे हो,हवसी तो हो ही, पागल भी हो रहे हो ..”

उसने अपने कपड़े खोले,उसे उस लाल रंग की अंतःवस्त्रों में देख कर मेरा मन मचल उठा,और लंड ने पूरे उठकर सलामी दी जो मेरे शार्ट से बाहर निकलने को बेताब था ,उसे देखकर कुसुम के होठो में मुस्कान आ गई

“हवसी कही के ..” वो वापस बेड की ओर बढ़ रही थी लेकिन मैंने उसे पीछे से पकड़ लिया मेरा लंड उसके कूल्हों में जा धंसा ,

“आह" ऐसा है अब मुझे सो जाना चाहिए,नही तो मेरी ही सामत है ,जब देखो खड़ा करके रखते हो "आह" अब छोड़ भी दो, मुझे सोने दो “

“ऐसे कैसे मेरी जान एक राउंड तो हो जाए “
“नही ना प्लीज़ ..”

मैंने उसे उठाकर बिस्तर में पटक दिया और खुद उसके ऊपर आ गया,हमारे होठ मिले और करवा चल पड़ा ..

“सोचो अगर मैं दिनेश होता तो “

“छि प्लीज् ना “वो बेहद धीमे स्वर में बोली क्योकि वो बहुत ही उत्तेजित थी।

“बताओ ना ..” “तो क्या “

मैं उसकी पेंटी से उसकी योनि को सहलाने लगा सच में वो बहुत गीली हो चुकी थी ,मैं उसे हटा कर सीधे उसकी गीली योनि में अपने लंड को प्रवेश करवाया ..

“आह दिनेश ..”

उसके मुह से ऐसी आवाज सुनकर मुझे ऐसा लगा की मेरा वीर्य ही निकल जाएगा,उसकी सेक्सी आवाज में किसी दूसरे मर्द का नाम सुनने का ये मेरा पहला एक्सपीरियंस था लेकिन कसम से उसने मुझे बेहद ही उत्तेजित कर दिया .,मेरा पूरा लंड आराम से उसके अंदर चला गया ,

वो भी आंखे खोल कर मुस्कुराई क्योकि उसे मेरी बड़ी हुई उत्तेजना का पता चल चुका था,

“ दिनेश करो ना मेरे पति बाहर गये है, आज बहुत टाइम है “

कुसुम की बातो ने मेरा जोश आसमान में पहुचा दिया था ,मैं उसे बुरी तरह से ठोकने लगा ,वो भी बुरी तरह से हांफ रही थी और सच में बेहद ही उत्तेजित लग रही थी ,कमरा हमारे धक्के की आवाज से भर चुका था,साथ ही हमारे आहो से भी ,उत्तेजक आवाजे दोनो के मुह से ही निकल रही थी , कुसुम अब दिनेश को भूल कर बस अरुण अरुण कह रही थी ,पहला राउंड बहुत ही तेजी से खत्म हो गया मैं कुसुम की योनि को पूरी तरह से भिगो चुका था …

“मजा आया उसका नाम सुनकर “

“बहुत मजा आया “

“आप सच में पागल हो......है ना “

मैं उसके होठो में हल्का किस किया “हो सकता हु लेकिन सच बताना पूरे राउंड के दौरान कभी उसका चहरा तेरे दिमाग में आया “

वो झूठे गुस्से से मुझे देखने लगी लेकिन फिर उसके होठो में शरारती सी मुस्कान आ गई, “सच कहु तो हा,कोशिस तो किया की आपके जगह उसे याद करके देखु लेकिन थोड़ी ही देर में वो गायब हो गया और आप ही रह गए,पता नही, आप मुझे क्या बनाने में तुले हुए हो ..”

वो फिर से हल्के गुस्से से मुझे देख रही थी
“कुछ भी नही बनाना है बस मैं चाहता हु की तू जीवन के पूरे मजे ले ..”

“आप साथ रहो तो जीवन में कभी दुख आएगा ही नही ,मेरे लिए तो आप ही सब कुछ हो ..” हम दोनो के होठ फिर से मिल गए । ” वो बस मुझे देखकर मुस्कुरा रही थी।

"एक औरत एक ही समय में दो पुरुषों से कभी प्यार नहीं कर सकती। यह हमेशा एक होता है। अगर तुम नहीं हो, तो तुम नहीं हो। चारों ओर कोई दो रास्ते नहीं हैं। यही कारण है कि आप आम तौर पर दो महिलाओं को एक आदमी के लिए लड़ते हुए देखते हैं "

मैने आज तक कुसुम से कोई भी बात नहीं छुपाई थी, उसके बारे में, मै क्या सोचता था, मेरी सारी कि सारी Fantasies, चाहे जितनी भी गंदी और शर्मनाक क्यूँ ना हो, मै बेझिझक शेयर करता था ! लेकिन मैने कुसुम से अपने और प्रीति के बीच पनपते अवैध रिश्ते के बारे छुपाये रखा था, और छुपाया इसलिए कि मुझे पता था कि ये गलत है,

अब इसे Cheating कहेँगे या नहीं !!! ये Cheating ही थी - इसमें कोई शक नहीं था !!!

मेरी अंर्तरात्मा मुझे कचोट रही थी, मेरे लंड का जोश अब खत्म हो चुका था, मैं कुसुम के प्रेम को महसूस कर रहा था। या यूं कहूँ कि मेरे दिल में चोर था मैंने अपनी प्यारी पत्नी को धोखा जो दिया था।

"यह ठीक है कि यौन संबंध में शायद प्रेयसी पत्नी से अधिक आनन्द विभोर करती है पर पत्नी के प्रेम की तुलना किसी से भी करना शायद पति की सबसे बड़ी बेवकूफी होगी।"

मेरे अंडकोष छोड़ अब मेरे ढीले पड़े लण्ड को सहलाते हुये कुसुम मेरे सीने को चूमते हुये मासूमियत के साथ ज़िद करती हुई बोली.

" और नहीं चोदोगे ? प्लीज् यार... एक बार और करो ना ! आज कितना कम कम चोद रहे हो !!! "

मुझ को भी कुसुम को नाराज़ करना अच्छा नहीं लगता था, सच में मै उससे बेइंतहा प्यार करता था. मैने हँसते हुये कुसुम का सिर चूमा, और बोला.

" सुबह जल्दी उठकर सामान वगैरह पैक करना होगा तुम्हे ! "." मैने बेमन से कहा. " अब सो जाओ... बहुत रात हो चली है ! ".

मेरे सीने पर से अपना मुँह उठाते हुये मुझे अवाक नज़रों से देखते हुए धीरे धीरे कुसुम नींद के गहरे आगोश में चली गई, मेरी आंखों से नींद गायब थी। फिर भी आँखों के आगे बार बार अंधेरा छा रहा था, जीवन धुंधला सा दिखाई देने लगा।

मैं उठकर टायलेट गया, पेशाब करके वापस आया, और एक सख्त निर्णय ले लिया, कि कुछ भी हो जाये मैं अपनी प्यारी पत्नी से कुछ नहीं छुपाऊँगा। फिर भी मैं इससे होने वाले नफे-नुकसान का आंकलन लगातार कर रहा था। हो सकता है यह सब सुनकर कुसुम कुछ ऐसा कर ले कि मेरा सारा जीवन ही अंधकारमय हो जाये।

यह भी संभव था कि कुसुम मुझे हमेशा के लिये छोड़कर चली जाये या शायद मुझसे इतनी लड़ाई करे कि मैं चाहकर भी उसको मना ना पाऊँ ! कम से कम इतना तो उसका हक भी बनता था।

इन सब में कहीं से भी कोई उम्मीद की किरण दिखाई नहीं दे रही थी। मैं कुसुम को सब कुछ बताने का निर्णय तो कर चुका था। पर मेरे अंदर का चालाक प्राणी अभी भी मरा नहीं था। वो सोच रहा था कि ऐसा क्या किया जाये कि कुसुम को सब कुछ बता भी दूं पर कुछ ज्यादा अनिष्ट भी ना हो।
बहुत देर तक सोचने के बाद भी कुछ सकारात्मक सुझाव दिमाग में नहीं आ रहा था। इसी पश्चाताप की कशमकश में मेरी आँख लग गयी।


जारी है...... ✍️
समझ में नहीं आता कि आखिर अरुण चाहता क्या है हवसी के साथ साथ पागल भी है दिनेश से सेक्स करने के लिए भी बोल दिया कुसुम को प्रीति के साथ किए सेक्स के बारे में बताना चाहता है तो फिर किया ही क्यू था पहले नही लगा कि वह कुसुम को धोका दे रहा है किस किस के बारे में बताएगा अब तक कितने ठरकी काम कर चुका है
 

Sanju@

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इसी पश्चाताप की कशमकश में मेरी आँख लग गयी...........!


सुबह करीब 5.30 बजे मेरे बदन में हरकत होने के कारण मेरी आंख खुल गई। मैंने देखा मेरे बराबर में कुसुम लेटी हुई थी। रात की अलसाई सी अवस्था में, जुल्फें कुसुम के हसीन चेहरे को ढकने की कोशिश कर रही थी। पर कुसुम इससे बेखबर मेरी बगल में लेटी थी मेरी चड्डी में हाथ डालकर मेरे लंड को सहला रही थी।

मुझे जागता देखकर कुसुम की हरकत थोड़ी से तेज हो गई, मैं जाग चुका था, कुसुम की इस हरकत को देखकर मैंने उसको सीने से लगाया, मैंने पूछा- आज जल्दी उठ गई?

कुसुम बोली, “रात तुम्हारा मूड था, और अभी मेरा मूड है, अभी पानी पीने को उठी थी तो तुमको सोता देखकर मन हुआ कि मौका भी है और कुछ देर बाद मुझे अपनी नौकरी पर वापस दिमापुर जाना है ,
तो क्यों ना इश्क लड़ाया जाये।”

बोलकर कुसुम ने अपने होंठ मेरे होंठों पर रख दिए। पर रात की थकान मुझ पर हावी थी। या यूं कहूँ कि मेरे दिल में एक सच छिपा था जो उसे बताना मेरे लिए बहुत जरूरी था। कुछ देर कोशिश करने के बाद कुसुम ने ही पूछा लिया, “क्या हुआ मूड नहीं है क्या?”

अब मैं क्या जवाब देता कुसुम मुझसे बार बार पूछ रही थी, “बोलो ना क्या हुआ? मूड खराब है क्या?”

पर मैं कुछ भी नहीं बोल पा रहा था, मेरी चुप्पी कुसुम को बेचैन करने लगी थी आखिर वो मेरी पत्नी थी। मैं कुसुम के प्रेम को महसूस कर रहा था। कुसुम को लगा शायद मेरी तबियत खराब है, यह सोचकर कुसुम बोली- डाक्टर को बुलाऊँ या फिर चाय पीना पसन्द करोगे?

मैंने बिल्कुल मरी हुई आवाज में कहा, “एक कप चाय पीने की इच्छा है तुम्हारे साथ।”
मुझे लग रहा था कि अगर कुसुम को सब कुछ पता चल गया तो शायद यह मेरी उसके साथ आखिरी चाय होगी। जैसे जैसे समय बीत रहा था मेरी बेचैनी बढ़ती जा रही थी।
कुसुम उठकर चाय बनाने चली गई।

तभी किसी ने मुझे झझकोरा। मैं जैसे होश में आया, कुसुम चाय का कप हाथ में लेकर खड़ी थी, बोली- क्या बात है? आज सुबह से ही बहुत खोये खोये हो? कुछ ना कुछ सोच रहे हो। मेरे वापस जाने से परेशान हो? आप बोलो तो मै दों दिन बाद चली जाऊंगी? मेरे आफिस में सब ठीक चल रहा है मुझे कुछ परेशानी नहीं है? जानू, तुम्हे कोई भी परेशानी है तो मुझसे शेयर करो कम से कम तुम्हारा बोझ हल्का हो जायेगा। आखिर मैं तुम्हारी पत्नी हूँ।

कुसुम की अन्तिम एक पंक्ति ने मुझे ढांढस बंधाया पर फिर भी जो मैं उसको बताने वाला था वो किसी भी भारतीय पत्नी के लिये सुनना आसान नहीं था। मैंने चाय की घूंट भरनी शुरू कर दी, कुसुम अब भी बेचैन थी, लगातार मुझसे बोलने का प्रयास कर रही थी।

पर मैं तो जैसे मौन ही बैठा था, शेर की तरह से जीने वाला पति अब गीदड़ भी नहीं बन पा रहा था। तभी अचानक पता नहीं कहाँ से मुझमें थोड़ी सी हिम्मत आई, मैंने कुसुम को कहा, “मैं तुमको कुछ बताना चाहता हूँ?”


कुसुम ने कहा- हाँ बोलो।

मैंने चाय का कप एक तरफ रख दिया और कुसुम की गोदी में सिर रखकर लेट गया, वो प्यार से मेरे बालों में उंगलियाँ चलाने लगी। मैंने अपनी आँखें बंद कर ली और मेरी साली प्रीति और मेरे बीच जो कुछ भी हुआ था, "साली जीजा" के बीच की हर वो बात जो मैंने कुसुम से छुपाई थी कुसुम को एक-एक करके बता दी।

वो चुपचाप मेरी हर बात सुनती रही, मैं किसी रेडियो की तरह लगातार बोलता जा रहा था। मैंने किसी बात पर कुसुम का प्रतिक्रिया जानने की भी कोशिश नहीं कि क्योंकि उस समय मुझे उसको वो सब कुछ बताना था जो मैंने छुपाया था।

सारी बात बोलकर मैं चुप हो गया और आँख बंद करके वहीं पड़ा रहा। तभी मेरे गाल पर पानी की बूंद आकर गिरी, मैंने आँखें खोली और ऊपर देखा तो कुसुम की आंखों में आंसू थे तो टप टप करके मेरे गालों पर गिर रहे थे !

मैं अन्दर से बहुत दुखी था, कुसुम के आंसू पोंछना चाहता था पर वो आंसू बहाने वाला भी तो मैं ही था। मैंने कुसुम की खुशियाँ छीनी थी मैं कुसुम का सबसे बड़ा गुनाहगार था।

मैंने बोलने की कोशिश की, “जानू !”
“चुप रहो प्लीज !” बोलकर कुसुम ने और तेजी से रोना शुरू कर दिया।

मेरी हिम्मत उसके आँसू पोंछने की भी नहीं थी। मैं चुपचाप कुसुम की गोदी से उठकर उसके पैरों के पास आकर बैठ गया और बोला, “मैं तुम्हारा गुनाहगार हूँ, चाहे तो सजा दे दो, मैं हंसते हंसते मान लूंगा, एक बार उफ भी नहीं करूंगा, पर तुम ऐसे मत रोओ प्लीज…” कुसुम वहाँ से उठकर बाहर निकल गई, मैं कुछ देर वहीं बैठा रहा।

बाहर कोई आहट ना देखकर मैं बाहर गया तो देखा कुसुम वहाँ नहीं थी। मैने कुसुम को पूरे घर में ढूंढा पर वो कहीं नहीं थी। मेरे पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई, इतनी सुबह कुसुम कहाँ निकल गई।

मैंने मोबाइल उठाकर कुसुम के नम्बर पर फोन किया उसका मोबाइल मेरे बैड रूम में रखा था। तो क्या फिर कुसुम सब कुछ यहीं छोड़कर चली गई? वो कहाँ गई होगी? मैं उसको कैसे ढूंढूंगा? कहाँ ढूंढूंगा? सोच सोच कर मेरी रूह कांपने लगी। मुझे ऐसा लगा जैसी जिदंगी यहीं खत्म हो गई। अगर मेरी कुसुम मेरे साथ नहीं होगी, तो मैं जी कर क्या करूंगा? पर मेरा जो भी था कुसुम का ही तो था। सोचा कम से कम एक बार कुसुम मिल जाये तो सबकुछ उसको सौंप कर मैं हमेशा के लिये उसकी जिंदगी से दूर चला जाऊँगा।

बाहर निकला तो लोग सुबह सुबह टहलने जा रहे थे। किससे पूछूं कि मेरी बीवी सुबह सुबह कहीं निकल गई है किसी ने देखा तो नहीं? मन में हजारों विचार जन्म ले रहे थे। शायद कुसुम अपने मायके चली गई होगी। तो बस स्टैण्ड पर चलकर देखा जाये?
नहीं, हो सकता है वो स्टेशन गई हो।
पर कैसे जायेगी, वो आज तक घर का सामान लेने वो मेरे बिना नहीं गई, इतने बड़े शहर में वो कहीं खो गई तो?कहीं किसी गलत हाथों में पड़ गई तो मैं क्या करूंगा? मैंने कुसुम को ढूंढने का निर्णय किया।
घर के अन्दर आकर उसकी फोटो उठाई, सोचा कि सबसे पहले पुलिस स्टेशन फोन करके पुलिस को बुलाऊँ वहाँ मेरा एक मित्र भी था।

घर के अंदर मेरे पापा मम्मी सो रहे थे अगर उनको ये सब पता चल गया कि मेरे और मेरी साली प्रीति के नजाजज् संबंधों की वजह से कुसुम घर से चली गई है तो पता नहीं वो क्या करेंगे?

मेरी तो जैसे जान ही निकली जा रही थी। आंखों से आंसू टपकने लगे। मैंने टेलीफोन वाली डायरी ओर अपना मोबाइल उठाया ताकि छत पर जाकर शांति से अपने 2-4 शुभचिन्तकों को फोन करके बुला लूं। बता दूंगा कि पति-पत्नी का आपस में झगड़ा हो गया था और कुसुम कहीं चली गई है।

कम से कम कुछ लोग तो होंगे मेरी मदद करने को। सोचता सोचता मैं छत पर चला गया। छत कर दरवाजा खुला हुआ था जैसे ही मैंने छत पर कदम रखा। सामने कुसुम फर्श पर दीवार से टेक लगाकर बिल्कुल शान्त बैठी थी।

मुझे तो जैसे संजीवनी मिल गई थी, मैं दौड़ कुसुम के पास पहुँचा, हिम्मत करके उससे शिकायत की और पूछा, “जानू, बिना बताये क्यों चली आई। पता है मेरी तो जान ही निकल गई थी।”

उसने होंठ तिरछे करके मेरी तरफ देखा जैसे ताना मार रही हो। पर गनीमत थी की उसकी आंखों में आंसू नहीं थे। मैं कुसुम के बराबर में फर्श पर बैठ गया, मोबाइल जेब में रख लिया और कुसुम का हाथ पकड़ लिया। मैं एक पल के लिये भी कुसुम को नहीं छोड़ना चाहता था पर चाहकर भी कुछ बोल नहीं पा रहा था।

अभी मैं कुसुम से बहुत कुछ कहना चाहता था पर शायद मेरे होंठ सिल चुके थे। मैं चुपचाप कुसुम के बराबर में बैठा रहा, उसका हाथ सहलाता रहा। मेरे पास उस समय अपना प्यार प्रदर्शित करने का और कोई भी रास्ता नहीं था।

कुसुम बहुत देर तक रोती रही थी शायद उसका गला भी रूंध गया था। मैं वहाँ से उठा नीचे जाकर कुसुम के पीने के लिये पानी लाया गिलास कुसुम को पकड़ा दिया।
वो फिर से सिसकने लगी। मैं उसके बराबर में बैठ गया और उसका सिर अपनी गोदी में रख लिया।

अचानक रोतीरोती उसने होंठ तिरछे करके मेरी तरफ देखा और ताना मारते हुए हंस पड़ी, ‘‘तुम्हें तो ठीक से बेवफाई करनी भी नहीं आती.’’

‘‘क्या?’’ मैंने चौंक कर उस की ओर देखा.

‘‘अपनी साली साहिबा को भला ऐसे मैसेज किए जाते हैं? कल रात क्या मैसेज भेजा था तुमने?’’

‘‘तुम ने लिखा था, डियर प्रीति, जिंदगी हमें बहुत से मौके देती है, नई खुशियां पाने के, जीवन में नए रंग भरने के… मगर वह खुशियां तभी तक जायज हैं, जब तक उन्हें किसी और के आंसुओं के रास्ते न गुजरना पड़े. किसी को दर्द दे कर पाई गई खुशी की कोई अहमियत नहीं. प्यार पाने का नहीं बस महसूस करने का नाम है. मैंने तुम्हारे लिए प्यार महसूस किया. मगर उसे पाने की जिद नहीं कर सकता, क्योंकि मैं अपनी बीवी को धोखा नहीं दे सकता. तुम मेरे हृदय में खुशी बन कर रहोगी, मगर तुम्हें अपने अंतस की पीड़ा नहीं बनने दूंगा. तुम से मिलने का फैसला मैंने प्यार के आवेग में लिया था मगर अब दिल की सुन कर तुम से सिर्फ इतना कहना चाहता हूं कि रिश्तों में सीमा समझना जरूरी है.

‘‘हम कभी नहीं मिलेंगे… आई थिंक, तुम मेरी मजबूरी समझोगी और खुद भी मेरी वजह से कभी दुखी नहीं रहोगी… कीप स्माइलिंग…’’

मैंने चौंकते हुए पूछा, ‘‘पर यह सब तुम्हें कैसे पता…?’’

‘‘क्योंकि जिस कॉलेज के तुम प्रोफेसर हो मै उस कॉलेज की प्रिंसिपल हू.... ह्म्म..........

मै तुम्हारी बीवी हूं और सुबह सुबह जब मै उठी तो तुम्हारे मोबाइल पर प्रीति का reply मैसेज शो हो रहा था, जब तुम मेरे मैसेज पढ़ सकते हो, तो मैने भी तुम्हारे मैसेज पढ़ लिए… मै तो बस तुम्हारे मुह से सच सुनने का इंतजार कर रही थी’’ कह कर कुसुम मुसकराते हुए मेरे सीने से लग गई और मैंने भी पूरी मजबूती के साथ उसे बांहों में भर लिया.

तब कुसुम बोली, “मुझे पता है तुम मुझसे बहुत प्यार करते हो, इसीलिये शायद जो प्रीति और तुम्हारे बीच हुआ वो तुमने सुबह ही मुझे बता दिया तुम्हारी जगह कोई भी दूसरा होता तो शायद इसकी भनक तक भी अपनी पत्नी को नहीं लगने देता। मुझे तुम्हारे प्यार के लिये किसी सबूत की जरूरत नहीं है, ना ही मुझे तुम पर कोई शक है पर खुद पर काबू नहीं कर पा रही हूँ मैं क्या करूं?”

मैं चुप ही रहा।

थोड़ी देर बाद कुसुम फिर बोली, “मुझे नहीं पता था कि कभी कभी किसी की जुबान से निकली बात सच भी हो जाती है?”
इस बार चौंकने की बारी मेरी थी, मैंने पूछा,

“मतलब?”

“ प्रीति और मैं बचपन से ही हम एक साथ खाते थे एक साथ पढ़ते थे एक साथ ही सारा बचपन गुजार दिया हमने। मम्मी, बुआ और ताई वगेरा अक्सर हम पर कमेंट करते थे और बोलते थे कि तुम दोनों बहनो की शादी भी किसी एक लड़के से ही कर देंगे और हम दोनों हंसकर हाँ कर देते थे। मुझे भी नहीं पता था कि एक दिन हमारा वो मजाक सच हो जायेगा।”

“नहीं कुसुम, तुम गलत सोच रही हो, ऐसा कुछ भी नहीं है, मेरी पत्‍नी बस तुम हो और तुम ही रहोगी। मैं मानता हूँ मुझसे गलती हुई है पर मैं जीवन में तुम्हारा स्थान कभी किसी को नहीं दे सकता।” बोलकर मैं कुसुम के सिर को सहलाने लगा। कुछ देर बैठने के बाद मैंने कुसुम को नीचे चलने के लिये कहा। वो भी उठकर मेरे साथ नीचे चल दी। हम लोग अन्दर पहुँचे तब तक 7.30 बज चुके थे।

मेरी मम्मी भी जाग चुकी थी और हम दोनों को ढूंढ रही थी। जैसे ही हमने हॉल पैर रखा, मम्मी बोली, “कहाँ चले गये थे तुम दोनों? मैं कितनी देर से ढूंढ रही हूँ।”

“ऐसे ही आंख जल्दी खुल गई थी तो ठण्डी हवा खाने चले गये थे छत पर।” कुसुम ने तुरन्त जवाब दिया।

मैं उसके जवाब से चौंक गया। वो बिल्कुल सामान्य व्यव्हार कर रही थी। मैंने भी सामान्य होने की कोशिश की और अपने नित्यकर्म में लग गया। अब मुझे अपना मन बहुत हलका महसूस हो रहा था. "बेवफाई के इलजाम" से आजाद जो हो गया था मैं.


जारी है...... ✍️
बहुत ही शानदार और लाजवाब अपडेट है आखिर प्रीति वाली बात तो प्रोफेसर साहब ने कुसुम को बता दी लेकिन कुसुम को ये बात अरुण के द्वारा प्रीति को किए sms से पता चल गई थी लेकिन अरुण ने अभी तो कई ओर बाते कुसुम को नही बताए । देखा जाए तो बेवफाई के मामले में ही दोनो किसी से भी कम नहीं है दोनो एक दुसरे को धोका देते हैं फिर अपनी कहानी बता कर महान बन जाते हैं एक दूसरे की नजरो में ।
 

Sanju@

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इसी पश्चाताप की कशमकश में मेरी आँख लग गयी...........!


सुबह करीब 5.30 बजे मेरे बदन में हरकत होने के कारण मेरी आंख खुल गई। मैंने देखा मेरे बराबर में कुसुम लेटी हुई थी। रात की अलसाई सी अवस्था में, जुल्फें कुसुम के हसीन चेहरे को ढकने की कोशिश कर रही थी। पर कुसुम इससे बेखबर मेरी बगल में लेटी थी मेरी चड्डी में हाथ डालकर मेरे लंड को सहला रही थी।

मुझे जागता देखकर कुसुम की हरकत थोड़ी से तेज हो गई, मैं जाग चुका था, कुसुम की इस हरकत को देखकर मैंने उसको सीने से लगाया, मैंने पूछा- आज जल्दी उठ गई?

कुसुम बोली, “रात तुम्हारा मूड था, और अभी मेरा मूड है, अभी पानी पीने को उठी थी तो तुमको सोता देखकर मन हुआ कि मौका भी है और कुछ देर बाद मुझे अपनी नौकरी पर वापस दिमापुर जाना है ,
तो क्यों ना इश्क लड़ाया जाये।”

बोलकर कुसुम ने अपने होंठ मेरे होंठों पर रख दिए। पर रात की थकान मुझ पर हावी थी। या यूं कहूँ कि मेरे दिल में एक सच छिपा था जो उसे बताना मेरे लिए बहुत जरूरी था। कुछ देर कोशिश करने के बाद कुसुम ने ही पूछा लिया, “क्या हुआ मूड नहीं है क्या?”

अब मैं क्या जवाब देता कुसुम मुझसे बार बार पूछ रही थी, “बोलो ना क्या हुआ? मूड खराब है क्या?”

पर मैं कुछ भी नहीं बोल पा रहा था, मेरी चुप्पी कुसुम को बेचैन करने लगी थी आखिर वो मेरी पत्नी थी। मैं कुसुम के प्रेम को महसूस कर रहा था। कुसुम को लगा शायद मेरी तबियत खराब है, यह सोचकर कुसुम बोली- डाक्टर को बुलाऊँ या फिर चाय पीना पसन्द करोगे?

मैंने बिल्कुल मरी हुई आवाज में कहा, “एक कप चाय पीने की इच्छा है तुम्हारे साथ।”
मुझे लग रहा था कि अगर कुसुम को सब कुछ पता चल गया तो शायद यह मेरी उसके साथ आखिरी चाय होगी। जैसे जैसे समय बीत रहा था मेरी बेचैनी बढ़ती जा रही थी।
कुसुम उठकर चाय बनाने चली गई।

तभी किसी ने मुझे झझकोरा। मैं जैसे होश में आया, कुसुम चाय का कप हाथ में लेकर खड़ी थी, बोली- क्या बात है? आज सुबह से ही बहुत खोये खोये हो? कुछ ना कुछ सोच रहे हो। मेरे वापस जाने से परेशान हो? आप बोलो तो मै दों दिन बाद चली जाऊंगी? मेरे आफिस में सब ठीक चल रहा है मुझे कुछ परेशानी नहीं है? जानू, तुम्हे कोई भी परेशानी है तो मुझसे शेयर करो कम से कम तुम्हारा बोझ हल्का हो जायेगा। आखिर मैं तुम्हारी पत्नी हूँ।

कुसुम की अन्तिम एक पंक्ति ने मुझे ढांढस बंधाया पर फिर भी जो मैं उसको बताने वाला था वो किसी भी भारतीय पत्नी के लिये सुनना आसान नहीं था। मैंने चाय की घूंट भरनी शुरू कर दी, कुसुम अब भी बेचैन थी, लगातार मुझसे बोलने का प्रयास कर रही थी।

पर मैं तो जैसे मौन ही बैठा था, शेर की तरह से जीने वाला पति अब गीदड़ भी नहीं बन पा रहा था। तभी अचानक पता नहीं कहाँ से मुझमें थोड़ी सी हिम्मत आई, मैंने कुसुम को कहा, “मैं तुमको कुछ बताना चाहता हूँ?”


कुसुम ने कहा- हाँ बोलो।

मैंने चाय का कप एक तरफ रख दिया और कुसुम की गोदी में सिर रखकर लेट गया, वो प्यार से मेरे बालों में उंगलियाँ चलाने लगी। मैंने अपनी आँखें बंद कर ली और मेरी साली प्रीति और मेरे बीच जो कुछ भी हुआ था, "साली जीजा" के बीच की हर वो बात जो मैंने कुसुम से छुपाई थी कुसुम को एक-एक करके बता दी।

वो चुपचाप मेरी हर बात सुनती रही, मैं किसी रेडियो की तरह लगातार बोलता जा रहा था। मैंने किसी बात पर कुसुम का प्रतिक्रिया जानने की भी कोशिश नहीं कि क्योंकि उस समय मुझे उसको वो सब कुछ बताना था जो मैंने छुपाया था।

सारी बात बोलकर मैं चुप हो गया और आँख बंद करके वहीं पड़ा रहा। तभी मेरे गाल पर पानी की बूंद आकर गिरी, मैंने आँखें खोली और ऊपर देखा तो कुसुम की आंखों में आंसू थे तो टप टप करके मेरे गालों पर गिर रहे थे !

मैं अन्दर से बहुत दुखी था, कुसुम के आंसू पोंछना चाहता था पर वो आंसू बहाने वाला भी तो मैं ही था। मैंने कुसुम की खुशियाँ छीनी थी मैं कुसुम का सबसे बड़ा गुनाहगार था।

मैंने बोलने की कोशिश की, “जानू !”
“चुप रहो प्लीज !” बोलकर कुसुम ने और तेजी से रोना शुरू कर दिया।

मेरी हिम्मत उसके आँसू पोंछने की भी नहीं थी। मैं चुपचाप कुसुम की गोदी से उठकर उसके पैरों के पास आकर बैठ गया और बोला, “मैं तुम्हारा गुनाहगार हूँ, चाहे तो सजा दे दो, मैं हंसते हंसते मान लूंगा, एक बार उफ भी नहीं करूंगा, पर तुम ऐसे मत रोओ प्लीज…” कुसुम वहाँ से उठकर बाहर निकल गई, मैं कुछ देर वहीं बैठा रहा।

बाहर कोई आहट ना देखकर मैं बाहर गया तो देखा कुसुम वहाँ नहीं थी। मैने कुसुम को पूरे घर में ढूंढा पर वो कहीं नहीं थी। मेरे पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई, इतनी सुबह कुसुम कहाँ निकल गई।

मैंने मोबाइल उठाकर कुसुम के नम्बर पर फोन किया उसका मोबाइल मेरे बैड रूम में रखा था। तो क्या फिर कुसुम सब कुछ यहीं छोड़कर चली गई? वो कहाँ गई होगी? मैं उसको कैसे ढूंढूंगा? कहाँ ढूंढूंगा? सोच सोच कर मेरी रूह कांपने लगी। मुझे ऐसा लगा जैसी जिदंगी यहीं खत्म हो गई। अगर मेरी कुसुम मेरे साथ नहीं होगी, तो मैं जी कर क्या करूंगा? पर मेरा जो भी था कुसुम का ही तो था। सोचा कम से कम एक बार कुसुम मिल जाये तो सबकुछ उसको सौंप कर मैं हमेशा के लिये उसकी जिंदगी से दूर चला जाऊँगा।

बाहर निकला तो लोग सुबह सुबह टहलने जा रहे थे। किससे पूछूं कि मेरी बीवी सुबह सुबह कहीं निकल गई है किसी ने देखा तो नहीं? मन में हजारों विचार जन्म ले रहे थे। शायद कुसुम अपने मायके चली गई होगी। तो बस स्टैण्ड पर चलकर देखा जाये?
नहीं, हो सकता है वो स्टेशन गई हो।
पर कैसे जायेगी, वो आज तक घर का सामान लेने वो मेरे बिना नहीं गई, इतने बड़े शहर में वो कहीं खो गई तो?कहीं किसी गलत हाथों में पड़ गई तो मैं क्या करूंगा? मैंने कुसुम को ढूंढने का निर्णय किया।
घर के अन्दर आकर उसकी फोटो उठाई, सोचा कि सबसे पहले पुलिस स्टेशन फोन करके पुलिस को बुलाऊँ वहाँ मेरा एक मित्र भी था।

घर के अंदर मेरे पापा मम्मी सो रहे थे अगर उनको ये सब पता चल गया कि मेरे और मेरी साली प्रीति के नजाजज् संबंधों की वजह से कुसुम घर से चली गई है तो पता नहीं वो क्या करेंगे?

मेरी तो जैसे जान ही निकली जा रही थी। आंखों से आंसू टपकने लगे। मैंने टेलीफोन वाली डायरी ओर अपना मोबाइल उठाया ताकि छत पर जाकर शांति से अपने 2-4 शुभचिन्तकों को फोन करके बुला लूं। बता दूंगा कि पति-पत्नी का आपस में झगड़ा हो गया था और कुसुम कहीं चली गई है।

कम से कम कुछ लोग तो होंगे मेरी मदद करने को। सोचता सोचता मैं छत पर चला गया। छत कर दरवाजा खुला हुआ था जैसे ही मैंने छत पर कदम रखा। सामने कुसुम फर्श पर दीवार से टेक लगाकर बिल्कुल शान्त बैठी थी।

मुझे तो जैसे संजीवनी मिल गई थी, मैं दौड़ कुसुम के पास पहुँचा, हिम्मत करके उससे शिकायत की और पूछा, “जानू, बिना बताये क्यों चली आई। पता है मेरी तो जान ही निकल गई थी।”

उसने होंठ तिरछे करके मेरी तरफ देखा जैसे ताना मार रही हो। पर गनीमत थी की उसकी आंखों में आंसू नहीं थे। मैं कुसुम के बराबर में फर्श पर बैठ गया, मोबाइल जेब में रख लिया और कुसुम का हाथ पकड़ लिया। मैं एक पल के लिये भी कुसुम को नहीं छोड़ना चाहता था पर चाहकर भी कुछ बोल नहीं पा रहा था।

अभी मैं कुसुम से बहुत कुछ कहना चाहता था पर शायद मेरे होंठ सिल चुके थे। मैं चुपचाप कुसुम के बराबर में बैठा रहा, उसका हाथ सहलाता रहा। मेरे पास उस समय अपना प्यार प्रदर्शित करने का और कोई भी रास्ता नहीं था।

कुसुम बहुत देर तक रोती रही थी शायद उसका गला भी रूंध गया था। मैं वहाँ से उठा नीचे जाकर कुसुम के पीने के लिये पानी लाया गिलास कुसुम को पकड़ा दिया।
वो फिर से सिसकने लगी। मैं उसके बराबर में बैठ गया और उसका सिर अपनी गोदी में रख लिया।

अचानक रोतीरोती उसने होंठ तिरछे करके मेरी तरफ देखा और ताना मारते हुए हंस पड़ी, ‘‘तुम्हें तो ठीक से बेवफाई करनी भी नहीं आती.’’

‘‘क्या?’’ मैंने चौंक कर उस की ओर देखा.

‘‘अपनी साली साहिबा को भला ऐसे मैसेज किए जाते हैं? कल रात क्या मैसेज भेजा था तुमने?’’

‘‘तुम ने लिखा था, डियर प्रीति, जिंदगी हमें बहुत से मौके देती है, नई खुशियां पाने के, जीवन में नए रंग भरने के… मगर वह खुशियां तभी तक जायज हैं, जब तक उन्हें किसी और के आंसुओं के रास्ते न गुजरना पड़े. किसी को दर्द दे कर पाई गई खुशी की कोई अहमियत नहीं. प्यार पाने का नहीं बस महसूस करने का नाम है. मैंने तुम्हारे लिए प्यार महसूस किया. मगर उसे पाने की जिद नहीं कर सकता, क्योंकि मैं अपनी बीवी को धोखा नहीं दे सकता. तुम मेरे हृदय में खुशी बन कर रहोगी, मगर तुम्हें अपने अंतस की पीड़ा नहीं बनने दूंगा. तुम से मिलने का फैसला मैंने प्यार के आवेग में लिया था मगर अब दिल की सुन कर तुम से सिर्फ इतना कहना चाहता हूं कि रिश्तों में सीमा समझना जरूरी है.

‘‘हम कभी नहीं मिलेंगे… आई थिंक, तुम मेरी मजबूरी समझोगी और खुद भी मेरी वजह से कभी दुखी नहीं रहोगी… कीप स्माइलिंग…’’

मैंने चौंकते हुए पूछा, ‘‘पर यह सब तुम्हें कैसे पता…?’’

‘‘क्योंकि जिस कॉलेज के तुम प्रोफेसर हो मै उस कॉलेज की प्रिंसिपल हू.... ह्म्म..........

मै तुम्हारी बीवी हूं और सुबह सुबह जब मै उठी तो तुम्हारे मोबाइल पर प्रीति का reply मैसेज शो हो रहा था, जब तुम मेरे मैसेज पढ़ सकते हो, तो मैने भी तुम्हारे मैसेज पढ़ लिए… मै तो बस तुम्हारे मुह से सच सुनने का इंतजार कर रही थी’’ कह कर कुसुम मुसकराते हुए मेरे सीने से लग गई और मैंने भी पूरी मजबूती के साथ उसे बांहों में भर लिया.

तब कुसुम बोली, “मुझे पता है तुम मुझसे बहुत प्यार करते हो, इसीलिये शायद जो प्रीति और तुम्हारे बीच हुआ वो तुमने सुबह ही मुझे बता दिया तुम्हारी जगह कोई भी दूसरा होता तो शायद इसकी भनक तक भी अपनी पत्नी को नहीं लगने देता। मुझे तुम्हारे प्यार के लिये किसी सबूत की जरूरत नहीं है, ना ही मुझे तुम पर कोई शक है पर खुद पर काबू नहीं कर पा रही हूँ मैं क्या करूं?”

मैं चुप ही रहा।

थोड़ी देर बाद कुसुम फिर बोली, “मुझे नहीं पता था कि कभी कभी किसी की जुबान से निकली बात सच भी हो जाती है?”
इस बार चौंकने की बारी मेरी थी, मैंने पूछा,

“मतलब?”

“ प्रीति और मैं बचपन से ही हम एक साथ खाते थे एक साथ पढ़ते थे एक साथ ही सारा बचपन गुजार दिया हमने। मम्मी, बुआ और ताई वगेरा अक्सर हम पर कमेंट करते थे और बोलते थे कि तुम दोनों बहनो की शादी भी किसी एक लड़के से ही कर देंगे और हम दोनों हंसकर हाँ कर देते थे। मुझे भी नहीं पता था कि एक दिन हमारा वो मजाक सच हो जायेगा।”

“नहीं कुसुम, तुम गलत सोच रही हो, ऐसा कुछ भी नहीं है, मेरी पत्‍नी बस तुम हो और तुम ही रहोगी। मैं मानता हूँ मुझसे गलती हुई है पर मैं जीवन में तुम्हारा स्थान कभी किसी को नहीं दे सकता।” बोलकर मैं कुसुम के सिर को सहलाने लगा। कुछ देर बैठने के बाद मैंने कुसुम को नीचे चलने के लिये कहा। वो भी उठकर मेरे साथ नीचे चल दी। हम लोग अन्दर पहुँचे तब तक 7.30 बज चुके थे।

मेरी मम्मी भी जाग चुकी थी और हम दोनों को ढूंढ रही थी। जैसे ही हमने हॉल पैर रखा, मम्मी बोली, “कहाँ चले गये थे तुम दोनों? मैं कितनी देर से ढूंढ रही हूँ।”

“ऐसे ही आंख जल्दी खुल गई थी तो ठण्डी हवा खाने चले गये थे छत पर।” कुसुम ने तुरन्त जवाब दिया।

मैं उसके जवाब से चौंक गया। वो बिल्कुल सामान्य व्यव्हार कर रही थी। मैंने भी सामान्य होने की कोशिश की और अपने नित्यकर्म में लग गया। अब मुझे अपना मन बहुत हलका महसूस हो रहा था. "बेवफाई के इलजाम" से आजाद जो हो गया था मैं.


जारी है...... ✍️
बहुत ही शानदार और लाजवाब अपडेट है आखिर प्रीति वाली बात तो प्रोफेसर साहब ने कुसुम को बता दी लेकिन कुसुम को ये बात अरुण के द्वारा प्रीति को किए sms से पता चल गई थी लेकिन अरुण ने अभी तो कई ओर बाते कुसुम को नही बताए । देखा जाए तो बेवफाई के मामले में ही दोनो किसी से भी कम नहीं है दोनो एक दुसरे को धोका देते हैं फिर अपनी कहानी बता कर महान बन जाते हैं एक दूसरे की नजरो में ।
 

Sanju@

Well-Known Member
4,867
19,653
158
अब मुझे अपना मन बहुत हलका महसूस हो रहा था. "बेवफाई के इलजाम" से आजाद जो हो गया था मैं.

"" स्त्रियाँ किसी से प्यार करती हैं, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप उन्हें क्या बताते हैं। कोई फर्क नहीं पड़ता कि वह क्या कहती है, शर्म और आँसू यह निर्धारित करने के लिए एक वैध प्रमाण नहीं हैं कि क्या वह एक अच्छी महिला है, क्योंकि एक महिला इसे एक बॉस की तरह नकली कर सकती है। वे ऐसा करने में सक्षम हैं। जब आप उसे धोखा देते हैं और वह आपसे नफरत नहीं करती है, तो वह उस महिला से नफरत करती है जिसके साथ आपने धोखा दिया था। ऐसा इसलिए है क्योंकि महिलाएं अस्वीकृति, शर्मिंदगी और अपमान का सामना नहीं करना चाहती हैं, चाहे वे हमेशा कुछ भी चाहती हैं, जब तक कोई उन्हें बचा ले और दोष नहीं लेता....""

इस पश्चाताप की अग्नि में अकेला मै नही जला था, एक शक्स और था जो मेरी तरह इस वक्त पश्चाताप करते हुए खुद को कोस रही है... जी हाँ वो थी मेरी सास.....!

"क्या अब मैं ऐसी निर्लज्ज स्त्री बन गयी हूँ, सास तो दामाद की माँ समान होती है, जिसके दामाद को पता है कि उसकी सास अपने जिस्म की अधूरी प्यास की वजह से परेशान है. अरे! जिस उमर में उस मा को अपने पुत्र (मेरे साले) की शादी, उसके भविश्य के बारे में सोचना चाहिए वह बेशरम तो अपनी ही चूत के मर्दन-रूपी विचारो में मग्न रहती है" सास कुढते हुए सोच रही थी, हलाकी फोन पर बातों के ज़रिए वह अब भी दामाद के अनुमान को असत्य साबित कर सकती थी परंतु उससे कोई लाभ नही होता उनके मन में भी ग्लानि का अंकुर फुट चुका था और उसकी वर्द्धि बड़ी तीव्रता से हो रही थी.

अपने दामाद को इस तरह अपनी भावनाओ को बता कर उन्होंने ठीक नही किया था, उनसे ना तो उगलते बन रहा था ना ही निगलते. पल प्रतिपल वह उसी ख़याल में डूबती जा रही थी, चाहकर भी उस विचार से अपना पिछा नही छुड़ा पा रही थी. उनके नज़रिए से इस तरह अपनी चोरी पकड़े जाने के भय से एक पल के लिए सास काँप सी गयी थी........!!!!

दूसरी ओर अपने नित्य कर्म से मुक्त होकर जब मै वापस आया, सब कुछ सामान्य हो गया था और तब तक कुसुम ने अपनी पैकिंग कर ली थी, आधे घंटे बाद मै उसे बस स्टैंड पर दिमापुर वाली बस में बैठा कर अपने कॉलेज (नौकरी) निकल गया...!!

अब ऐसे ही दिन निकलने लगे, मुझे कुसुम की id पासवर्ड पता थी जिससे मै उसके हर रोज मैसेज पढ़ता ज्यादतर चार लोगो के मेसेज थे , शर्मा, राज, दिनेश और उसके ऑफिस का नया कलिग रिजवान ..मैं सोच में पड़ गया की ये अब कुसुम को हो क्या गया है सभी को लाइन में ला रही है........ शर्मा के साथ कुछ हँसी मजाक तक ही सीमित थी ,वही राज ने कई बार उसे कहा की तुम आजकल ज्यादा बात क्यो नही करती जवाब में कुसुम ने उसे कहा था की अब से करूंगी फिक्र मत करो…! !! !!


रिजवान कही साथ जाने की जिद में था , कुसुम ने उसे भी आश्वासन दे रखा था , लेकिन मेरे दिल के किसी कोने से ये आवाज भी आ रही थी की कुसुम इन सबके साथ कुछ नही करने वाली,उसका उद्देश्य बस मुझे जलाना था .... .. .... ! !!


मेरा इंटरेस्ट था कुसुम का पुराना प्रेमी दिनेश ,आखिर दिनेश के साथ वो कैसे विहेब करेगी , दिनेश को मेसेज में उसने बस हमेशा यही लिखा था की जल्द ही किसी दिन मिलते है , दिनेश कभी कभी खुशी और थोड़े गुस्से में मैसेज भेजता था और कुसुम भी उसे बड़े से प्यार से मनाती, और जल्द ही किसी दिन मिलने और साथ थोड़ा वक्त बिताने की बात कहती थी …......और अब तक अपनी बीवी के इन फ्लिर्टिंग मैसेजिंग में मुझे कुछ भी बुरा, जलन, अजीब या गलत नहीं लगा था।


मेरी बेटी रिंकी भी वापस आ चुकी थी, इस दरम्यान हमारें बीच बातचीत अब ठहरने लगी थी। मेरे कमरें में अब वो पांव दाब कर आती थी। मैं वहां रहता तो आहिस्ते कोई किताब उठा मद्धम रोशनी में पढ़ने लगती थी। फिर आकर बगल में लेट जाती थी। रुई के मानिंद वो अपने बदन को बिस्तर पर रखती थी कि मुझे कोई खलल न हो। पर इसके पहले ऐसा नही था, वो बगल में फिर लेटती फिर मुझे कोंचने लगती थी। शायद वो मुझे वापस बोलते हुए देखना चाहती थी।


एक रोज वो गुनगुनाते हुए कमरें में दाखिल हुयी और बेड पर आकर पसर गयी। उस रोज तबियत मेरी भी अच्छी थी पर जाने क्या हुआ कि जब उसने मुझे छूने की कोशिश की तो मैं बिफ़र पड़ा और ऐसे बिफरा जिस की उम्मीद मुझे खुद न थी। मैने कहा तुम्हारें जैसी कमसिन कम उम्र की लड़कियों को रोज मै कॉलेज में पढ़ाता हू और मैं बहुत अच्छे से जानता हूँ, और ऐसे प्यार को भी। आगे से मेरे कमरे में मत आना। मुझे तुम्हारी किन्हीं बातों से नही, अब बस तुमसे दिक्कत होती है। पास आती हो तो किसी अनहोनी होने का डर लगता है, हमारे बाप बेटी के रिश्ते को अपवित्र करने की कोशिश मत करो ।


जवाब में वो कुछ न बोली बस मेरे ओर देखती रही। आंख में शायद पानी भी भरा था। पर मैं देख न पाया। मेरा क्रोध पश्चाताप नही हुआ था लेकिन ऐसा कुछ मैं बोल सकता हूँ इसका मुझे भान न था।


वो उठकर चलने को हुई। मैंने इशारा किया .... तुम्हारा नोट बुक छूट रहा। उसने हाथ डाला और उसमें एक पेपर निकालकर बढ़ाया और चली गई।


मैंने सिगरेट जलाई और पेपर पढ़ने लगा। थोड़ी खुशी हुई पर आज जो हुआ था उसके गम में वो खुशी जाती रही।


फिर मैं छत पर आकर खड़ा हो गया। सिगरेट जलती रही और मैं रास्ते को देखता रहा। देखते देखते फिल्टर भी जल गया और मेरा फेफड़ा भी सुलगने लगा अब बस आत्मा भी जलने वाली थी कि अचानक ख्याल आया वो इतनी गलत भी तो नही है। फेफड़ा वापस से हरा होने लगा।


वो अगले आठ-दस दिनों तक मेरे कमरे में नही आई। गए तीन-चार महीनों में ऐसा कभी नही हुआ था। पर दसवें दिन वो मेरे कमरे में आई। पांव दबाए और बगल में किताब दबाएं। उसने आकर कमरें की खिड़की आहिस्ते से खोली किताब पढ़ने की नाटक कि फिर फोन चलाया। उससे भी ऊब गई तो पुराने अखबार निकाल पढ़ने लगी।

फिर मेरी पसन्दीदा कहानियों को उठाकर पढ़ने लगी। उसमें जिन पंक्तियां को मैंने अंडरलाइन किया था। उसे बोलकर पढ़ती थी। वो किसी को सुनाना चाहती थी। खुद को... कमरें को या शायद मुझे। ऐसा बदस्तूर कई रोज तक चलता रहा। उसने इन आदतों में एक नई चीज जोड़ ली। अब वो मेरे सिगरेट के डब्बे में से सिगरेट निकालकर फूंकने लगती थी। उसने कभी सिगरेट नही पी थी। ये देख मुझे हंसी आती थी पर मैं निर्विकार भाव से पड़ा रहता था। कभी सोफे पर कभी बिस्तर पर।

एक दुपहर वो आई तो गुनगुनाते हुए मगर कमरें से पहले पैर दबा लिए शायद कमरें के अंदर कुछ सुनना चाहती थी। फिर कुछ देर में दाखिल हुई और वहीं उटपटांग हरकतें शुरू कर दी। जब उसने सिगरेट का पहला दम भरा तो मुझे हंसी आ गई।

जाने क्यों वो बिफ़र पड़ी। जाने क्या कहती रही इसी रौ में उसने कहा कि पापा आपने सिर्फ दिखावा किया कभी मुझसे प्यार नही किया। मैं मुस्कुराने लगा। वो मुरझा गई और वहीं जलकर राख हो गई। मैं भी वहीं भस्म हो गया। मैं उदासी का देवता था, मेरा हंसना मुस्कुराना मना था।

मैं जबाब में रिंकी से कुछ कह पाता कि कुसुम का काल मेरे मोबाइल में आ गया.. “हैलो मेरी जान “

मोबाइल से बाहर निकलते हुए अपनी मम्मी के प्यार भरे शब्दों को सुनकर वो हल्के से मेरी ओर देख कर गुर्रायी और कमरे से बाहर चली गई।

“जूली की शादी रात वाली बात याद है ना ..” कुसुम ने सीधे ही कहा

“हाँ क्यो ..”

“कुछ नही बस आज से जलना शुरू कर दो ..”

“मतलब “

“मतलब.....मेरे सारे मेसेज तो पढ़ ही लिए होंगे..” मैं बुरी तरह से चौक गया आखिर इसे कैसे पता ..?? “क्या बोल रही हो ..”

वो खिलखिलाई “जान मैं एक प्रोफेसर की बीवी हु,आपके जबाब देने के अंदाज से ही थोड़ा शक सा हो गया। तो आज की तारीख तक आपको मेसेज पढा दिया,लेकिन माफ करना अब से कोई मेसेज और काल आप तक नही पहुचेगा “

वो बेहद ही शरारत से हँसी ,
“अरे जान तुम तो ..”

“हो गया आपका बहुत ,अब देखती हु मेरे जान की हालत क्या होगी ,जलने का इतना शौक था ना, तो जलो अब, और करो मेरी जासूसी... मुझसे कोई उम्मीद मत रखना की मैं कुछ बतलाने वाली हु …” उसने हंसते हुए काल काट दिया,

मैं सर खुजाते रह गया,आखिर ये करने क्या वाली है ,क्या ये सच में किसी के साथ अफेयर करने वाली है...मुझे तो नही लगता की कुसुम कुछ ऐसा करेगी लेकिन फिर भी एक शख्स के ऊपर थोड़ा डाउट जरूर था वो था "दिनेश" …

कुसुम जल्द ही किसी दिन उससे मिलने वाली थी ,मेरा दिमाग बार बार वही जा रहा था की आखिर वो दोनों क्या प्लान कर रहे होंगे,मैंने एक रिस्क तो ले लिया था अब इस पाप की सजा भी तो मुझे ही भुगतनी थी, कुसुम एक मेच्योर लड़की थी लेकिन दिनेश के सामने भावनात्मक रूप से कमजोर हो जाती थी ,वही उसे ये भी पता था की मैं अगर गुस्से में आ जाऊ तो क्या करूंगा लेकिन फिर भी उसने मुझे जलाने की सोची , वो अपने कदम बेहद ही फूंक फूंक कर रखने वाली थी ,मुझे उसके दिमाग पर भरोसा था लेकिन ये खेल कही ऐसे मुकाम में ना पहुच जाय की हमारे रिश्ते में दरार आ जाए ,ये एक चिंता शायद हम दोनो को ही थी..........!!!!!!!


जारी है....... ✍️
बहुत ही शानदार अपडेट है
देखा जाए तो दोनो पति पत्नी एक दूसरे से कम नहीं है दोनो एक दूसरे को धोखा देने में नंबर 1 है दोनो में चूल मची रहती है दूसरो से चुदवाने की तो अब दोनो झेलो कुसुम अब अपना टांका किसी ओर से भिड़ाने में लग गई है और प्रोफेसर साहब को भी चेता दिया है
 

Siraj Patel

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Hello everyone.

We are Happy to present to you The annual story contest of XForum


"The Ultimate Story Contest" (USC).


"Chance to win cash prize up to Rs 8000"
Jaisa ki aap sabko maloom hai abhi pichhle hafte hi humne USC ki announcement ki hai or abhi kuch time pehle Rules and Queries thread bhi open kiya hai or Chit Chat thread toh pehle se hi Hindi section mein khula hai.

Well iske baare mein thoda aapko bata dun ye ek short story contest hai jisme aap kisi bhi prefix ki short story post kar sakte ho, jo minimum 700 words and maximum 7000 words ke bich honi chahiye (Story ke words count karne ke liye is tool ka use kare — Characters Tool) . Isliye main aapko invitation deta hun ki aap is contest mein apne khayaalon ko shabdon kaa roop dekar isme apni stories daalein jisko poora XForum dekhega, Ye ek bahot accha kadam hoga aapke or aapki stories ke liye kyunki USC ki stories ko poore XForum ke readers read karte hain.. Aap XForum ke sarvashreshth lekhakon mein se ek hain. aur aapki kahani bhi bahut acchi chal rahi hai. Isliye hum aapse USC ke liye ek chhoti kahani likhne ka anurodh karte hain. hum jaante hain ki aapke paas samay ki kami hai lekin iske bawajood hum ye bhi jaante hain ki aapke liye kuch bhi asambhav nahi hai.

Aur jo readers likhna nahi chahte woh bhi is contest mein participate kar sakte hain "Best Readers Award" ke liye. Aapko bas karna ye hoga ki contest mein posted stories ko read karke unke upar apne views dene honge.

Winning Writer's ko well deserved Cash Awards milenge, uske alawa aapko apna thread apne section mein sticky karne ka mouka bhi milega taaki aapka thread top par rahe uss dauraan. Isliye aapsab ke liye ye ek behtareen mouka hai XForum ke sabhi readers ke upar apni chhaap chhodne ka or apni reach badhaane kaa.. Ye aap sabhi ke liye ek bahut hi sunehra avsar hai apni kalpanao ko shabdon ka raasta dikha ke yahan pesh karne ka. Isliye aage badhe aur apni kalpanao ko shabdon mein likhkar duniya ko dikha de.

Entry thread 15th February ko open ho chuka matlab aap apni story daalna shuru kar sakte hain or woh thread 5th March 2024 tak open rahega is dauraan aap apni story post kar sakte hain. Isliye aap abhi se apni Kahaani likhna shuru kardein toh aapke liye better rahega.

Aur haan! Kahani ko sirf ek hi post mein post kiya jaana chahiye. Kyunki ye ek short story contest hai jiska matlab hai ki hum kewal chhoti kahaniyon ki ummeed kar rahe hain. Isliye apni kahani ko kayi post / bhaagon mein post karne ki anumati nahi hai. Agar koi bhi issue ho toh aap kisi bhi staff member ko Message kar sakte hain.



Story se related koi doubt hai to iske liye is thread ka use kare — Chit Chat Thread

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Prizes
Position Benifits
Winner 4000 Rupees + Award + 5000 Likes + 30 days sticky Thread (Stories)
1st Runner-Up 1500 Rupees + Award + 3500 Likes + 15 day Sticky thread (Stories)
2nd Runner-UP 1000 Rupees + 2000 Likes + 7 Days Sticky Thread (Stories)
3rd Runner-UP 750 Rupees + 1000 Likes
Best Supporting Reader 750 Rupees + Award + 1000 Likes
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Regards :- XForum Staff
 
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<b>Well iske baare mein thoda aapko bata dun ye ek short story contest hai jisme aap kisi bhi prefix ki short story post kar sakte ho, <b style="color:blue;">jo minimum 700 words and maximum 7000 words ke bich honi chahiye</b><b> (Story ke words count karne ke liye is tool ka use kare — <a href="https://charactercounttool.com/">Characters Tool)</b></a> . Isliye main aapko invitation deta hun ki aap is contest mein apne khayaalon ko shabdon kaa roop dekar isme apni stories daalein jisko poora XForum dekhega, Ye ek bahot accha kadam hoga aapke or aapki stories ke liye kyunki USC ki stories ko poore XForum ke readers read karte hain.. Aap XForum ke sarvashreshth lekhakon mein se ek hain. aur aapki kahani bhi bahut acchi chal rahi hai. Isliye hum aapse USC ke liye ek chhoti kahani likhne ka anurodh karte hain. hum jaante hain ki aapke paas samay ki kami hai lekin iske bawajood hum ye bhi jaante hain ki aapke liye kuch bhi asambhav nahi hai. </b></br>
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<b>Aur jo readers likhna nahi chahte woh bhi is contest mein participate kar sakte hain "Best Readers Award" ke liye. Aapko bas karna ye hoga ki contest mein posted stories ko read karke unke upar apne views dene honge. </br>
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Winning Writer's ko well deserved Cash Awards milenge, uske alawa aapko apna thread apne section mein sticky karne ka mouka bhi milega taaki aapka thread top par rahe uss dauraan. Isliye aapsab ke liye ye ek behtareen mouka hai XForum ke sabhi readers ke upar apni chhaap chhodne ka or apni reach badhaane kaa.. Ye aap sabhi ke liye ek bahut hi sunehra avsar hai apni kalpanao ko shabdon ka raasta dikha ke yahan pesh karne ka. Isliye aage badhe aur apni kalpanao ko shabdon mein likhkar duniya ko dikha de. </br>
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<b style=" color:#D6175C ;font-size:32px;"> Prizes</b></marquee></center>

<style>
table,th, td {
border: 2px solid black;
border-radius: 15px;
font-size:18px

}
</style>

<table style="color:#D6175C; width:"100%";>
<tr>
<th >Position</th>
<th>Benifits</th>
</tr>
<tr>
<td><b>Winner</td>
<td><b>4000 Rupees + <img src="https://i.ibb.co/yd1GHDB/4-1596536993l-removebg-preview.png" width="25px"> Award + 5000 Likes + 30 days sticky Thread (Stories)</td>
</tr>
<tr>
<td><b>1st Runner-Up</td>
<td><b>1500 Rupees + <img src="https://i.ibb.co/NSKRQ4h/15-1596536597l.png" width="25px"> Award + 3500 Likes + 15 day Sticky thread (Stories)</td>
</tr>
<tr>
<td><b>2nd Runner-UP</td>
<td><b>1000 Rupees + 2000 Likes + 7 Days Sticky Thread (Stories)</td>
</tr>
<tr>
<td><b>3rd Runner-UP</td>
<td><b>750 Rupees + 1000 Likes</td>
</tr>
<tr>
<td><b>Best Supporting Reader</td>
<td><b>750 Rupees + <img src="https://i.ibb.co/8xmLTmS/16-1596537025l.png" width="25px"> Award + 1000 Likes</td>
</tr>
<tr>
<td><b>Members reporting CnP Stories with Valid Proof</td>
<td><b>200 Likes for each report</td>
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</table>
</br></br></br><b>Regards :- <a href="https://xforum.live/members/?key=staff_members">XForum Staff</b></a>
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@rekharaa
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<div style="float: left; margin-right: 8px;margin-bottom: 5px; text-align:center;">
</div><center><b>Hello everyone. </br></b></center>

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<b>Well iske baare mein thoda aapko bata dun ye ek short story contest hai jisme aap kisi bhi prefix ki short story post kar sakte ho, <b style="color:blue;">jo minimum 700 words and maximum 7000 words ke bich honi chahiye</b><b> (Story ke words count karne ke liye is tool ka use kare — <a href="https://charactercounttool.com/">Characters Tool)</b></a> . Isliye main aapko invitation deta hun ki aap is contest mein apne khayaalon ko shabdon kaa roop dekar isme apni stories daalein jisko poora XForum dekhega, Ye ek bahot accha kadam hoga aapke or aapki stories ke liye kyunki USC ki stories ko poore XForum ke readers read karte hain.. Aap XForum ke sarvashreshth lekhakon mein se ek hain. aur aapki kahani bhi bahut acchi chal rahi hai. Isliye hum aapse USC ke liye ek chhoti kahani likhne ka anurodh karte hain. hum jaante hain ki aapke paas samay ki kami hai lekin iske bawajood hum ye bhi jaante hain ki aapke liye kuch bhi asambhav nahi hai. </b></br>
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table,th, td {
border: 2px solid black;
border-radius: 15px;
font-size:18px

}
</style>

<table style="color:#D6175C; width:"100%";>
<tr>
<th >Position</th>
<th>Benifits</th>
</tr>
<tr>
<td><b>Winner</td>
<td><b>4000 Rupees + <img src="https://i.ibb.co/yd1GHDB/4-1596536993l-removebg-preview.png" width="25px"> Award + 5000 Likes + 30 days sticky Thread (Stories)</td>
</tr>
<tr>
<td><b>1st Runner-Up</td>
<td><b>1500 Rupees + <img src="https://i.ibb.co/NSKRQ4h/15-1596536597l.png" width="25px"> Award + 3500 Likes + 15 day Sticky thread (Stories)</td>
</tr>
<tr>
<td><b>2nd Runner-UP</td>
<td><b>1000 Rupees + 2000 Likes + 7 Days Sticky Thread (Stories)</td>
</tr>
<tr>
<td><b>3rd Runner-UP</td>
<td><b>750 Rupees + 1000 Likes</td>
</tr>
<tr>
<td><b>Best Supporting Reader</td>
<td><b>750 Rupees + <img src="https://i.ibb.co/8xmLTmS/16-1596537025l.png" width="25px"> Award + 1000 Likes</td>
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Raj_sharma

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