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Incest कर्ज और फर्ज - एक कश्मकश

Premkumar65

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Wowww Rinky is ready t
उसी दोपहर जब मै कॉलेज में लेक्चर दे रहा था मेरे पिताजी का फोन आया वो और मम्मी किसी दूर के रिश्तेदार के यहाँ 'गमी' में जा रहे थे और अगले दिन सुबह तक वापिस आने वाले थे। ये मौका मेरे लिए "आज नही तो कभी नही" वाला था।


बड़े दिनों बाद ऐसा हुआ की मैं इतनी जल्दी घर आया था, मम्मी पापा रिश्तेदारों के यहाँ गमी में शोक व्यक्त करने चले गए थे। मैं फ्रेश ही हुआ था की रिंकी भी स्कूल से वापस आयी…!

आज तो मौका भी था और दस्तूर भी इतने दिनों से मैं रिंकी के ऊपर कुछ भी ध्यान नही दे पाया था, उसने सुबह वाला वो ही टॉप और स्कर्ट पहना हुआ था, मैं जब सुबह कॉलेज के लिए घर से निकला था मैं उसके कंधो को स्पर्श करना चाहता था, उसकी पीठ को सहलाना चाहता था. मैं उसके कोमल मम्मों को दबाना चाहता था. मगर मेरे लिए उस स्तर तक बढ़ना तब तक संभव ना था जब तक मुझे उससे कोई इशारा या संकेत ना मिल जाता कि मुझे एसा करने की इज़ाज़त है.

हम एक दूसरे को पहले भी छेड़ चुके थे मगर उतना जितना अनुकूल परिस्थितिओ में स्वीकार्य होता, उससे बढ़कर या कुछ खुल्लम खुल्ला करने के लिए उनका स्वीकार्य होना अति अवशयक था, और जो सब मैं करना चाहता था वो उन हालातों में तो स्वीकार्य नही होता....।

आज वो मुझे भी अकेला देख थोड़ा सा शर्मा गयी, ऐसा तो नहीं था कि इससे ज़्यादा खूबसूरत लड़की मैंने देखी नही थी पर पता नही क्यों उसके चेहरे से मेरी नज़र हटती नहीं थी। उसकी आंखें झुकी हुई थीं और उसकी सांसें तेज़। बहुत डरी हुई थी वो। उसके बालों की एक लट उसकी दाईं आंख को परेशान कर रही थी और वो उसे झटकने की नाकाम कोशिश कर रही थी।उसके यौवन को देख कर ऐसे भी मेरा सांप अकड़ने लगा था ,

पतले से टॉप में वो गदराया हुआ कच्ची उम्र की नव्योवना का बदन, उसकी कमसिन जवानी, कौन नही भोगना चाहेगा ,उसके उरोज तो बस उसके कसे हुए टॉप से बाहर आने को छटपटा रहे थे,और कमर का वो हिस्सा जो टॉप और स्कर्ट से नही ढका था वो मुझे उसे मसलने को आमंत्रित कर रहा था,वो चुपचाप किचन में जाकर चाय बनाने लगी।

मैं अपने कमरे में जाकर अपना अंडरवियर निकाल फेका मुझे पता था कि आज तो बस मुझे रिंकी के जिस्म से खेलना था,ताकि वो तैयार तो हो सके, मैं अपना लोवर पहन कर किचन में चला गया,...।

उम्र की ढलती हुई जवानी के पड़ाव में अब मेरी बॉडी में कुछ फर्क सा आ गया था, और वो स्टेमिना बिस्तर में भी दिखाई देता था, कुछ गठीला तो मेरा बदन पहले भी था पर अब थोड़ी मोड़ी चर्बी भी बढ़ती जा रही थी।

वो भी जानती थी की मैं उसके पीछे ही खड़ा हु पर वो भी ठहरी अपने मनपसंद पुरुष से ठुकराई हुई लड़की जो एक शादीशुदा होकर रिश्ते में उसका सौतेला बाप है। इसलिए अपनी मर्यादा को वो कैसे लांघ सकती थी, मैं उसके पास गया मुझे उसकी तेजी से चलने वाली सांसे महसूस हो रही थी ,वो उत्तेजित थी ,किसी अनजान भय से शायद उसकी सांसो की रफ्तार भी बड़ी हुई थी, मैने अंदाज़ा लगाया वो भी उसी दिशा में सोच रही थी जिसमे मैं सोच रहा था और शायद वो कोई रास्ता जानती थी जिससे कम से कम हम दोनो के बीच शारीरिक संपर्क बढ़ाया जा सकता था.

मैंने उसे दबोचा नही जैसा मेरा दिल कर रहा था ,बल्कि मैं उससे थोड़ा सट गया,मेरा लिंग तो तनकर फूल गया था,वो उसके नितंबो के दीवारों को रगड़ने लगा। वो इससे अनभिज्ञ बनते हुए अपना काम करती रही पर उसकी सांसे उसके मन की स्थिति का बयान कर रही थी ,उसका सीना भी अब ऊपर नीचे होने लगा था,मुझे उसकी ये स्थिति देख बड़ा ही मजा आ रहा था।

आजकल मुझे लोगो को तड़पाने में बड़ा ही मजा आने लगा है…..।

मैं उससे पूरी तरह सट के खड़ा हो गया ,वो अब भी अनजान सी अपना काम कर रही थी ,हालांकि उसके हाथ अब काँपने लगे थे,मैंने बेसिन से पानी की कुछ बूंदे ली और उसके खुले पीठ पर छोड़ दी …

“हाय पापा आप ,क्या कर रहे है …”उसकी आवाज में वासना की मादकता घुली हुई थी ,वो लगभग फुसफुसाने की तरह बोली ,
मैं अब भी चुप था,वो बूंदे लुढ़कती हुई उसके पीठ से उसके कमर तक आ पहुचा था और उसके स्कर्ट के बंधन के बीच जाकर समाप्त हो गया….।

मैंने हल्के उंगलियों से उसके पीठ को छूना शुरू किया और जितने आराम से वो बून्द नीचे आया था उतने ही आराम से अपनी उंगलियों को नीचे ले जाने लगा,,,,,

“हाय ,पापा नही …...ओफ़ ... पापा आ आ आ हा आ आ ब बस …”

उसकी आंखे बन्द हो चली थी सांसे तेज थी और धड़कनों की आवाज मुझ तक पहुच रही थी ,और वो हल्के हल्के मादक आहे भर रही थी,मैं भी उसके कमर पर आकर रुक गया ,और अब अपनी उंगलियों को उसके नाभि की ओर ले जाने लगा,वो जैसे जम गई थी पता नही मेरे उंगलियों में इतना जादू कहा से आ गया की वो अवाक सी बस खड़ी हो गयी थी ,बेसिंग का नल चल रहा था और बर्तन धुलने को रखे के रखे रहे पर वो नही हिल पा रही थी।

मेरी उंगलिया जब उसकी नाभि की गहराइयों का मंथन कर रहे थे तब मैंने उसके चहरे को देखा वो आंखे बंद किये शायद मेरे अगले हमले की तैयारी कर रही थी ,पर मैं भी ठहरा 'घाघ' मैं बस वही रुक गया,कुछ ही देर में मुझे कुछ भी ना करता पाकर वो मुड़ी उसका सर मेरे सीने से टकराया,वो हल्के से अपना सर उठाकर देखी मैं हल्के हल्के मुस्कुरा रहा था जिसे देख कर वो बुरी तरह शर्मा गयी ,लेकिन थोड़े पलो में ही उसके चहरे पर भी एक शर्म भरी मुस्कान फैल गयी….

वो नादान नटखट लड़की सुलभ झूठे गुस्से से मुझे मुक्के से मारी और जैसे ही उसने बर्तनों को हाथ लगाया मैं अपने कमर को नीचे ले जाकर फिर से उसके नितंबो में एक हल्का सा झटका दे दिया …

“आह पापा काम करने दीजिये ना अभी पूरा काम पड़ा है…”।

मैंने अपना हाथ से उसका चहरा आगे किया वो अब भी शर्म से नीचे देख रही थी ,उसके होठो पर एक किस किया पर वो झट से पलट गयी...मैं उसके छोटे छोटे मांसल और भरे हुए उरोजो को अपने हाथो में भरकर भरपूर ताकत से दबाया ,की उसकी एक हल्की सी चीख निकल गयी …

“आआआआआआहहहहहह पापा आप बड़े 'जुल्मी' हो ..”

उसकी ये अदा इतनी सेक्सी थी की मेरे लिंग ने एक और जोर का झटका दिया और मैं फिर से उसे एक धक्का लगा दिया ,मुझे पता था की अगर मैं इस पटक के पेल भी दु तो कोई प्रोबलम नही है पर उससे वो मजा मुझे नही मिलता जो अभी मिल रहा था...।

मुझे उसकी मम्मी कुसुम ने आज तक कभी 'जुल्मी' नही कहा था, ये सेक्सी शब्द मुझे बड़ा भाया... सेक्सी कमसिन जवानी से लबरेज माल को भोगने का मतलब ही क्या हुआ जब वो सेक्सी शब्द ना बोले …।

मैं अब भी अपने हाथो को उसके उरोजो पर हल्के हल्के फिरता रहा और वो चाय का उबाल लेती रही , हल्के हल्के अपनी लिंग को भी उसके नितंबो पर रगड़ता रहा, जिससे मेरा लिंग और अकड़ रहा था और उसे और चहिये था,लेकिन वो कपड़ो में थी और मुझे कोई भी काम जल्दबाजी में करना पसंद नही….।

पता नही क्यो पर उसे किस करने का दिल ही नही कर रहा था सच बताऊ तो बस उसे पटक के चोदना चाहता था, कुसुम से मुझे इतना प्यार मिला था की मुझे किसी और की जरूरत ही महसूस नही होती थी, मैं भावनात्मक और शारीरिक तौर पर पूरी तरह से संतुष्ट था, तो ये मैं क्यो कर रहा हु…..???? इसका जवाब मेरे पास नही था, शायद इसके पीछे वही कारण है जो कारण कुसुम के वो सब करने के पीछे है।

"एक नशा सा है ये, जिसे जितना करो उतना कम, बस तलब बढ़ती जाती है…"

कुसुम की याद आते ही मेरा खड़ा हथियार कुछ मुरझा सा गया,जिसका पता अब रिंकी को भी चल चुका था, मैं वहां से निकलकर सोफे पे आकर बैठ गया , रिंकी मुझे जानती थी और वो इतना तो समझती ही थी की मैं उसकी मम्मी (कुसुम) से दिलोजान से प्यार करता हु,और शायद यही वजह है की मैं सिग्नल क्लियर होने के बावजूद भी रिंकी के साथ पहले भी कई दफा आगे नही बढ़ पाया था,,,,,

अपना काम खत्म कर वो मेरे पास आयी। लगभग एक घंटा बीत चुका था ,और मैं बस खयालो में ही खोया था, रिंकी उस समय में पूरा खाना बना चुकी थी,वो सभी तैयारी पहले ही करके रखती जो जरूरी काम है उसे बहुत जल्दी निपटा देती फिर गैरजरूरी कामो में वक़्त देती है, वो मेरे पास आकर खड़ी हो गयी,उसके चहरे पर कोई भी खुसी के भाव नही थे,उसका गंभीर चहरा देखकर मुझे भी अच्छा नही लगा,मैं एक झूटी मुस्कान में मुस्काया और वो भी। वो जाने को हुई शायद उसे यहां और रुकना गवारा नही था …

“रिंकी“
वो जाते जाते रुक गयी

“जी पापा “

वो मेरे पास आकर खड़ी हो गयी और मुझे प्रश्नवाचक दृष्टि से देखने लगी ,मैंने उसे देखा उसका वो मुरझाया चेहरा जो कुछ देर पहले आनंदित था,मैं उसका हाथ पकड़ा और सीधे अपने कमरे में ले गया ,वो मेरे साथ ही खिंची चली आयी ,मैं उसे अपने बिस्तर पर फेक दिया ,वो भी अपने हाथो को फैलाये पड़ी रही ,मैं उसके यौवन को निहार रहा था यही सोचकर की वासना की कोई लहर मेरे शरीर में दौड़े और मैं उसके ऊपर कूद जाऊ पर कोई लहर नही थी।

मैं सच मे एक अजीब से उलझन में था की ये क्या हो रहा है….? ???

उसने मुझे देखा और एक हल्की सी मुस्कान उसके चहरे पर आयी…।

“पापा अच्छाई इतनी आसानी से पीछा नही छोड़ती, मुझे पता है की आप मम्मी से बहुत ज्यादा प्यार करते है, छोड़िए पापा आप अच्छे ही रहिए क्यो ? अपने को बिगाड़ रहे हो ….”

रिंकी की बाते मेरे दिमाग के कोने कोने को हिला कर रख दी ये अजीब सी सच्चाई से उसने मुझे अवगत करा दिया मुझे खुद भी नही पता था की मैं उसकी मम्मी कुसुम से इतना प्यार करता हु….अब तक रिंकी उठकर बैठ चुकी थी मैं भी बिस्तर के एक किनारे पर बैठा हुआ था,वो बड़े ही प्यार से मेरे गालो को सहलाने लगी …

“कितनी लकी (भाग्यवान) है मेरी मम्मी, कि आप सा हबी (हस्बेंड) मिला उन्हें “

मैं उसे देखा मुझे थोड़ी हँसी आ गयी।

“ लेकिन मै लकी नही हू, " ना ही मै इतना अच्छा हू, अगर इतना अच्छा होता तो यहां अभी अपनी बेटी पर मुह नही मार रहा होता। सच कहु तो मै वो हवसी पुरुष हू जो अपनी सौतेली बेटी को वासना के भाव से भोगना चाहता हूँ…”

वो मुझे अजीब निगाहों से देखने लगी।

“मुझे पता है पापा आप क्या चाहते हैं, बस इतना ही कि आपका मेरे प्रति एक सुन्दर व्यवहार हो और ज़रा सा लाड़ प्यार हो !!

पापा यदि पुरुष, महिला पर मोहित नहीं होगा तो फिर किस पर होगा ? हवस की भावना कोई पाप या अपराध नहीं है, महिलाएँ भी पुरुष को हवस की भावना से देखती हैं ! अन्तर केवल स्वभाव का है, महिलाएंँ "पहल" करना पसन्द नहीं करतीं ! हवस सिर्फ़ ज़िस्म की नहीं, चाहत की भी होती, जहाँ दो दिल राजी होते हैं, उसकी आंखे भीग चुकी थी.....!!!

अपनी नादान नटखट खुद की उमर से 15-16 साल छोटी बेटी, की 'बड़ी बड़ी बातें' सुनकर मेरी आंखे आश्चर्य से फैल गयी और मै उसे घूर कर देखने लगा लेकिन अगले ही पल मेरी आंखों में एक पीड़ा सी छा गयी….

“यहां आ रिंकी मेरे पास बैंठ“ मैने हाथ पकड़ कर उसे अपनी गोद में बैठा लिया मैं उसके कंधे पर हाथ रखकर उसे सहानभूति देने की कोसिस कर रहा था… नतीजतन उसकी छाती सामने से उभर गई. उसके छोटे छोटे मांसल उरोज टॉप के उपर से अपना आकार दिखा रहे थे. मेरे घुटने उसके चुतड़ों की साइड्स को टच कर रहे थे और मैं उसके कोमल और जलते जिस्म को अपनी जाँघो के बीच महसूस कर रहा था.

लेकिन एक बात मुझे चुभ रही थी, मेरे मुह से अनायास ही निकल गया…....... तुम इतनी अच्छी हो की तुमको हम दोनों के इस रिश्ते में कोई भी बुराई दिखाई नही देती, लेकिन रिंकी तुझे पता है कि अगर इस रिश्ते की भनक 'उसको' लग गयी तो क्या 'उसको' फिर मेरे प्यार की कोई कदर होगी…..'वो' मुझे हमेशा के लिए छोड़ कर चली जायेगी...??

रिंकी प्यार से मेरे गाल पर अपना हाथ रखकर बोली…

“ 'वो' आपको कभी नही छोड़ेगी , 'वो' भी आपसे बहुत प्यार करती है…”

जैसे उसने 'कुसुम' के संदर्भ में मेरे मन की बात पढ़ ली हो,मैं अपना सर ऊँचा किये उसे देखा वो बस मुस्कुरा रही थी…... और मुस्कराते हुए बोली..!

पापा "ये अभी नही, तो कभी नही" का आखिरी मौका है........!



जारी है.......✍️
o offer herself to papa.
 

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जैसे उसने 'कुसुम' के संदर्भ में मेरे मन की बात पढ़ ली हो,मैं अपना सर ऊँचा किये उसे देखा वो बस मुस्कुरा रही थी…... और मुस्कराते हुए बोली..!

पापा "ये अभी नही, तो कभी नही" का आखिरी मौका है........!

मेरी साँसे भारी हो चली थी, मैं अपनी बाहें उसकी पीठ के दोनो और से आगे ले गया और अपने काँपते हाथ उसके ठोस मम्मों पर रख दिए.

वो एक दम से स्थिर हो गयी, बिना हिले डुले उसी तरह बैठी रही. मैं धीरे धीरे सावधानी पूर्वक उसके मम्मों को दबाने लगा, दुलार्ने लगा. वो बस थोड़ा सा कसमसाई. मेरा उत्साह बढ़ गया और मैने उसके टॉप में हाथ डाले और उपर करते हुए उसके नंगे मम्मों को पकड़ लिया. मेरे हाथ नग्न मम्मों को छूते ही उसका जिस्म लरज गया उसने छाती को आगे से उभार दिया. त्वचा से त्वचा का स्पर्श होने पर मेरी साँसे उखड़ रही थी. मैं लाख कोशिस करने पर भी ज़िंदगी भर उस अविश्वसनीय एहसास की कल्पना नही कर सकता था जो एहसास आज मुझे असलियत में उसके मम्मे अपने उत्सुक हाथों में थामने पर हुआ था. उसकी साँसे भी मेरी तरह उखड़ी हुई थी और वो मेरे हाथो मे मम्मे दिए तड़प रही थी.

जितनी तेज़ी से मैने अपनी कमीज़ उतारी उतनी ही तेज़ी से उसका टॉप उतर गया. वो मेरी ओर घूमी और घुटनो के बल खड़ी हो गयी, मैं भी उसके सामने घुटनो के बल हो गया और उसके जिस्म को अपनी बाहों में भर लिया. उसके मम्मे मेरी नग्न छाती पर और भी सुखद और आनंदमयी एहसास दिला रहे थे. हमारे भूखे और लालायित मुँह ने एक दूसरे को ढूँढ लिया और हम ऐसे जुनून से एक एक दूसरे को चूमने और आलिंगंबद्ध करने लगे कि शायद हमारे जिस्मो पर खरोन्चे लग गयी थी. हमारा जुनून हमारी भावनाएँ जैसे किसी ज्वालामुखी की तरह फट पड़ी और हम एक दूसरे के उपर होने के चक्कर में बिस्तर पर करवटें बदल रहे थे.

हमारी साँसे इस हद तक उखड़ चुकी थी कि हमें एक दूसरे से अलग होना पड़ा। ताकि हम साँस ले सके. मुझे बहुत तेज़ प्यास भी महसूस हो रही थी और मुझे पानी पीना था. इतना समय काफ़ी था 'हमारी दहकती भावनाओं को थोड़ा सा ठंडा होने के लिए और वापस ज़मीन पर आने के लिए'.

हम ने फिर से एक दूसरे को चूमना और सहलाना चालू कर दिया, पहले कोमलता से मगर जल्द ही हम उत्तेजना के चरम पर पहुँच गये. हम एक दूसरे की जीभों को काटते हुए चूस रहे थे. हम ने अपनी भावनाएँ अपने जज़्बातों को इतने लंबे समय तक दबाए रखा था कि अब सिर्फ़ चूमने भर से हमें राहत नही मिलने वाली थी. हमें अपनी भावनाएँ अपना जुनून व्यक्त करने के लिए कोई प्रचंड, हिंसक रुख़ अपनाना था. हमें अपने अंदर के उस भावनात्मक तूफान को प्रबलता से निकालने की ज़रूरत थी.


उसकी स्कर्ट मेरी लोवर के मुक़ाबले कहीं आसानी से उतर गयी. जब तक मैं कपड़े निकाल पूरा नंगा हुआ, वो फर्श पर टाँगे पूरी चौड़ी किए लेटी हुई थी. मैं जैसे ही उसकी टाँगो के बीच पहुँचा तो उसने एक हाथ आगे बढ़ा मेरा लंड थाम लिया और उसे अपनी चूत के मुँह पर लगा दिया. उसकी चूत अविश्वसनीय हद तक गीली थी और मेरा लंड किसी लोहे की रोड की तरह सख़्त था और मैं कामोत्तेजना के चरम पर था. मैने रिंकी के कंधे पकड़े और पूरा ज़ोर लगाते हुए लंड अंदर घुसेड़ने लगा.

जैसे जैसे मेरा लंड अंदर जा रहा था उसके चेहरे पर पीड़ा की लकीरे उभरती जा रही थी. कुछ दूर जाकर मेरा लंड रुक गया, मैने आगे ठेलना चाहा मगर वो जा नही रहा था, जैसे बीच में कोई अवरोध था. लंड थोड़ा पीछे खींचकर मैने एक ज़ोरदार धक्का मारा और मेरा लंड उस अवरोध को तोड़ता हुआ आगे सरकता चला गया. मेरी बेटी रिंकी जिसके हाथ मेरे कुल्हों पर थे, उस धक्के के साथ ही उसने मेरे कंधे थाम लिए. उसके मुख से एक घुटि सी चीख निकल गयी. वो सर इधर उधर पटक रही थी.

"क्या हुआ? दर्द हो रहा है? अगर ज़्यादा दर्द है तो मैं बाहर निकाल लूँ"

"बाहर नही निकालना" वो मेरी बात काटते हुए लगभग चिल्ला पड़ी "पूरा अंदर डाल दो, रुकना नही" उसके होंठ भिंचे हुए थे जैसे वो असीम दर्द सहन करने की चेस्टा कर रही थी. मैने जो थोड़ा सा बाकी लंड था वो भी उसकी चूत में उतार दिया. जितना शारीरिक तौर पर संभव हो सकता था मैं उसकी चूत के अंदर गहराई तक पहुँच चुका था. जल्दी ही मैने उसकी चूत में ज़ोरदार धक्के लगाने शुरू कर दिए. मेरी लाडो बिटिया की चूत जितनी टाइट थी उतनी ही वो गीली थी.

कुछ पलों बाद उसके चेहरे से दर्द के भाव धीरे धीरे कम होने लगे. उसने हाथ वापिस मेरे कुल्हो को थाम कर अपनी ओर खींचने लगे ता कि मैं पूरी गहराई तक उसके अंदर अपना लंड डाल सकूँ. उस रात मैने उसे पूरी कठोरता से चोदा. उसे मैने पूरी गहराई तक चोदा. मैने उसे खूब देर तक चोदा. मैने उसे ऐसे चोदा जैसे वो हमारी ज़िंदगी का आख़िरी दिन हो. उसकी चूत से रस निकल निकल कर मेरे लंड को भिगोते हुए फर्श पर गिर रहा था और वो मेरे लंड के ज़ोरदार धक्के खाती आहें भरती, सिसकती मेरे नीचे किसी जल बिन मछली की तरह मचल रही थी.

मैं नही जानता उसका सखलन कब हुआ, हुआ भी या नही हुआ. मगर मैं इतना जानता हूँ मुझे सखलित होने में काफ़ी समय लग गया हालांकि उसकी चूत में लंड डालते ही मुझे अपने लंड पर ऐसी तपिश महसूस हुई कि मुझे लगा मैं उसी पल झड जाउन्गा. मैं उसे इतनी देर तक तो चोद सका कि उसकी अति सन्करी चूत मे अपने लंड के घर्सन से होने वाली सनसनी का आनंद ले सकूँ.

मेरा स्खलन प्रचंड वेग से आया. जब मेरा स्खलन शुरू हुआ तो मैं जितनी कठोरता और जितनी तेज़ी से धक्के लगा सकता था मैने लगाए. आनंद और दर्द से मेरा शरीर कांप रहा था, हिचकोले खा रहा था जब मैने अपनी बेटी रिंकी की चूत के अंदर मन भर वीर्य निकाला और वो मुझसे कस कर चिपकी हुई थी.

बुरी तरह थका मांदा मैं रिंकी के उपर लेट गया. मेरी साँसे उखड़ी हुई थी. उसने मेरी टाँगो के गिर्द अपनी टाँगे कस कर मुझे अपनी गिरफ़्त में ले लिया और मेरी पीठ सहलाते हुए मुझे शांत करने लगी ताकि मैं वापस धरती पर आ जाऊं. आख़िर में जब मैं उसके उपर से हटा और अपने लंड की ओर देखा तो मुझे एहसास हुआ कि उस को इतनी पीड़ा क्यों हो रही थी.

मेरे लंड और उसकी चूत के मुख पर खूब सारा खून लगा हुआ था. मैने अपनी बेटी का कौमार्य भंग किया था. मैने कभी नही सोचा था कि वो अब तक कुँवारी होगी. एक तरफ तो मैं अपनी बेटी को हुई तकलीफ़ के लिए थोड़ा शर्मसार हो गया मगर वहीं मुझे अपने पर गर्व महसूस हुआ कि मैं वो पहला मर्द था जिसने उसे भोगा था जिसने किसी अप्सरा से भी बढ़ कर उस लड़की का प्यार पाया था. मेने अपने होंठ रिंकी के होंटो पर रख दिए और मैं उसे चूमता रहा, उसे सहलाता रहा, उसे दुलारता रहा.

रात भर मेरा और मेरी बेटी रिंकी का चुदाई कार्यक्रम चलता रहा, मैने 3 बार उस को जबरदस्त तरीके से चोदा और फिर थक हारकर दोनों एक दूसरे की बाहों में बाहें डाले सो गए

सुबह सूरज की पहली किरण के साथ ही रिंकी की आंखे खुल गई, रात की घनघोर अंधेरी वासनामयि कालि रात के बाद मौसम अब बिल्कुल साफ हो चुका था, पक्षियों की चहचहाहट साफ सुनी जा सकती थी,

रिंकी खुद को अपने पापा के आगोश में पाकर एकदम से शर्मसार होने लगी, उसके गालों की लालिमा कश्मीरी सेब की याद दिला रहे थे, हम दोनो संपूर्ण नग्नावस्था में बिस्तर पर एक दूसरे की बाहों में सोए हुए थे,

रिंकी ने उठने के लिए अपने बदन को थोड़ा आगे खिसकना चाहा पर अचानक उसके बदन में एक तेज़ सुरसुराहट दौड़ गयी क्योंकि मेरा लंड अभी भी उसकी चुत की फांको के बीच में फसा हुआ था

अपने पापा के लंड का अहसास अपनी चुत के इर्द गिर्द होते ही रिंकी के दिल की धड़कनें तेज़ होने लगी, वो बिस्तर से उठना तो चाहती थी लेकिन अपने पापा की लंड की गर्माहट उसे वही रुके रहने पर मजबूर कर रही थी

रिंकी का मन एक बार फिर से मचलने लगा, वो अपनी भरावदार गांड को मेरे लंड पर होले होले रगड़ने लगी जिससे उसके चुत की गुलाबी अधखुली पत्तियां मेरे लंड पर दस्तक देने लगी,

रिंकी की सांसे उसके बस में नहीं थी, एक बार तो उसका मन किया कि पापा को जगा कर फिर से अपनी चुत की प्यास बुझा ले पर रात के वासना के सैलाब में शर्म और हया का जो पर्दा तार तार हो चुका था, वो अब दोबारा उसे संस्कारो के बंधन की याद दिलाने लगा था।

किसी उफनती नदी के पानी की तरह रिंकी की वासना का भी पानी भी उतर चुका था, खिड़की से हल्की हल्की रोशनी कमरे में आ रही थी और रोशनी के साथ ही रिंकी की बेशर्मी भी दूर होने लगी थी, अपने नंगे बदन पर गौर करते ही रिंकी ने शरम के मारे अपनी आंखों को बंद कर लिया, अब वो धीरे धीरे अपनी गांड को हिलाती हुई पापा की बाहों के चंगुल से आज़ाद होने की कोशिश करने लगी, क्योंकि वो पापा के जगने से पहले ही कमरे से चली जाना चाहती थी नहीं तो वो रात की हरकत के बाद अपने पापा से नजरें नहीं मिला पाती,

थोड़ी ही देर की कसमसाहट के बाद रिंकी ने खुद को पापा की बाहों से आज़ाद कर लिया, उसका नंगा खूबसूरत बदन और चुत की खुली फांके रात की कारस्तानी को चीख चीख कर बता रही थी ,

रिंकी ने एक बार नज़रे अपने नंगे जिस्म पर घुमाई तो कल रात का मंज़र याद करके उसने अपने चेहरे को अपनी कोमल हथेलियों से छुपाने की नाकाम सी कोशिश की, अब उस कमरे में रुकना उसके लिए मुश्किल हुआ जा रहा था क्योंकि उसको डर था कि कहीं वो दोबारा हवस की शिकार होकर अपने पापा पर न टूट पड़े, इसलिए वो तेज़ तेज़ कदमो से चलती हुई कमरे से बाहर निकली और नीचे जाकर अपने के रूम में बाथरूम में घुस गई,

उसने अपने बदन को पानी की फुंहारो से पोंछा, और अपनी चुत को भी रगड़ रगड़ कर साफ किया, अब उसकी चुत के अंदर से लालिमा की झलक उसे साफ दिखाई दे रही थी, जिसे देखकर उसके चेहरे पर हल्की सी मुस्कुराहट आ गई क्योंकि ये लालिमा उसके कली से फूल बनने की निशानी जो थी


जारी है...... ✍️
Ek hi jhatke me Rinki ki chut khul gai.
 

Raj_sharma

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आपको कम पता है अभी मेरे बारे में, मै बहुत बुरा हू 😁
Ye sacchai bol gaya:haha:
 
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