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Incest कर्ज और फर्ज - एक कश्मकश

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अध्याय - 27 --- " आखिर क्यों "


शायद कुसुम को मेरा अपनी खुद की औलाद के लिए तड़पना सुकून सा दे रहा था. मैने जो उस के साथ विश्वासघात किया था, बिना उस की किसी गलती के उस को जो वेदना दी थी, उस की यह सजा तो मुझ को मिलनी ही चाहिए थी.


कुसुम से तलाकनामा मिलने के कुछ दिनों बाद मैने और रिंकी ने शादी कर ली. अरुण और रिंकी कहीं दूर रहने लग गए यहा तक तो ठीक था लेकिन मेरे माता-पिता (कुसुम के सास ससुर) को जब पता चला कि अरुण और रिंकी ने शादी कर ली है, तो उन्होंने मुझसे सारे रिश्ते नाते तोड़ दिए। उन्होंने सारी संपत्ति अपनी बहू कुसुम के नाम कर दी और सख्त हिदायत दी कि कुसुम बेटा कभी भी अपने पति को माफ नहीं करना । चाहे जिंदगी में किसी भी उम्र में वह तुम्हारे पास वापस आए ।


कुसुम हमेशा सोचती क्या मैं अपने पति को खुश नहीं रख पाई या मेरा सावला रंग उसे पसंद नहीं आया? कितनी ही बातें उसके मन में चलती रहती । क्या किया जा सकता था । समाज में जो बेइज्जती हुई वह अलग अपनी ही कोख से जन्मी बेटी सौतन बन गई । यह तो समझ से परे था कहां गलती हो गई ।


कुसुम के मां बाप भी अब क्या करते , वह तो और ज्यादा शर्मिंदा थे । अपनी ही एक बेटी (नातिन) ने दूसरे बेटी के घर को तबाह कर दिया, नष्ट कर दिया । कम से कम अरुण को तो यह समझना चाहिए था कि इतना पढ़ा लिखा समझदार होने के बाबजूद ये सब किया । अब उनके भविष्य का क्या होगा? जिसके माता पिता ही ऐसे हैं उनके बच्चे कैसे होंगे? उनकी शादी कहां होगी ? किससे होगी ? काश अरुण ने कुछ सोचा होता ।


दोनों ही परिवारों ने मुझ से और रिंकी से अपने सारे रिश्ते तोड़ डाले मै और रिंकी अपनी दुनिया में मस्त हो गए लेकिन एक समय आया जब मेरा रिंकी से मन भर गया। और मुझे फिर से कुसुम से मिलने की बेचनी होने लगी।


कुसुम चाहती तो मुझ को सजा दिलवा सकती थी क्योंकि मैने उसकी बेटी के साथ जो किया था वो किसी अपराध से कम नही था । ऊपर से मै सरकारी नौकरी में था। लेकिन उसने ऐसा कुछ भी नहीं किया और यही बात मुझे बहुत खलने लगी की मैंने कुसुम के साथ कितना गंदा काम किया और कुसुम ने कुछ भी नहीं बोला।


इधर रिंकी भी बहुत अच्छा महसूस नहीं कर रही थी । उसे लगता था कि उसने गलत किया है । उसने विश्वास तोड़ा है अपने परिवार का ,अपनी मां का, अपनी मौसियो का । किस मुंह से अपने परिवार का सामना कर पाएगी । उसे भी समझ में आने लगा कि ये सब कुछ जो हुआ वो सिर्फ उसके तन की प्यास थी, ना कि मन की । क्या किया जा सकता था जो होना था, हो चुका था ।


इसी तरह 6 महीने बीत गए । 1 दिन रिंकी के पेट में जोरदार दर्द हुआ । डॉक्टर से दिखाया तो पता चला उसे कैंसर है । वह भी अंतिम स्टेज का । वह अपने घर वापस जाना चाहती थी । अपनी मम्मी के पास अपनी मम्मी की गोद में सर रखकर माफी मांगना चाहती थी । पर वह किस मुंह से जाती । वह तो खुद मम्मी बनना चाहती थी । लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था । रिंकी अब नहीं रही।


मै वापस जाना चाहता था अपने घर । अपने माता पिता के पास अपने प्यारे से बेटे के पास और अपनी पत्नी कुसुम के पास । लेकिन मुझे कोई उपाय नहीं दिख रहा था । मैने कितने ही बार अपने घर में फोन किया पर किसी ने मुझसे बात नहीं की । मै माफी मांगना चाहता था । मै वापस आना चाहता था । शायद सारे रास्ते बंद थे । मै अभी भी आस लगाए था कि मै एक दिन अपने घर वापस जरूर जाऊंगा ।


और फिर एक दिन बहुत हिम्मत कर वापस अपने घर चला गया । लेकिन मेरे माता-पिता ने मुझे माफ नहीं किया, ना ही घर में घुसने दिया । अपने छोटे से बेटे से बात करना चाहता था उसे गोद में लेकर प्यार करना चाहता था । कुसुम ने भी मुझसे मुंह फेर लिया ।मानो पूछ रही हो कि हमें किस बात की सजा तुमने दी थी ? आज जब मेरी सौतन नहीं रही तो तुम वापस आ गए और अगर वह जिंदा रहती तो.........????


समाप्त.........!


मै SANJU ( V. R. ) बड़े भाई के शब्द रूपी आशीर्वाद और स्नेह के बडौलत ही इस कहानी को समाप्ति की दिशा में ले जाने मे सफल हुआ हू, भैया के लिखे शब्द हमेशा मुझे आगे लिखने के लिए होंसला देते रहे है, लिखा हुआ को पढ़ना सहज नही होता है, जब तक लिखने वाले और पढ़ने वाले के मनोभाव समतुल्य ना हो, जरा सा भी मनोभाव मे विकार हुआ तो लिखा हुआ काला आखर भैस बराबर हो जाता है😁 संजू भईया की सबसे बड़ी खूबी यही है कि वो अंत से ही शुरु करते है, अर्थात पिछला update जहा समाप्त होता है, और नया जहा से शुरु होता है,

संजू भैया की तरह ही अन्य मै सभी पाठकों का तहे दिल से शुक्रिया अदा करता हूँ आपके सहयोग के बिना कहानी को अपनी मंजिल तक लेकर जाना नामुमकिन था, बिना पाठकों के सहयोग, अभाव में ना जाने कितने लेखक कहानियों को अधूरा छोड़ देते है....!

धन्यवाद..... 🙏🏻
Very nice end
 
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अध्याय - 27 --- " आखिर क्यों "


शायद कुसुम को मेरा अपनी खुद की औलाद के लिए तड़पना सुकून सा दे रहा था. मैने जो उस के साथ विश्वासघात किया था, बिना उस की किसी गलती के उस को जो वेदना दी थी, उस की यह सजा तो मुझ को मिलनी ही चाहिए थी.


कुसुम से तलाकनामा मिलने के कुछ दिनों बाद मैने और रिंकी ने शादी कर ली. अरुण और रिंकी कहीं दूर रहने लग गए यहा तक तो ठीक था लेकिन मेरे माता-पिता (कुसुम के सास ससुर) को जब पता चला कि अरुण और रिंकी ने शादी कर ली है, तो उन्होंने मुझसे सारे रिश्ते नाते तोड़ दिए। उन्होंने सारी संपत्ति अपनी बहू कुसुम के नाम कर दी और सख्त हिदायत दी कि कुसुम बेटा कभी भी अपने पति को माफ नहीं करना । चाहे जिंदगी में किसी भी उम्र में वह तुम्हारे पास वापस आए ।


कुसुम हमेशा सोचती क्या मैं अपने पति को खुश नहीं रख पाई या मेरा सावला रंग उसे पसंद नहीं आया? कितनी ही बातें उसके मन में चलती रहती । क्या किया जा सकता था । समाज में जो बेइज्जती हुई वह अलग अपनी ही कोख से जन्मी बेटी सौतन बन गई । यह तो समझ से परे था कहां गलती हो गई ।


कुसुम के मां बाप भी अब क्या करते , वह तो और ज्यादा शर्मिंदा थे । अपनी ही एक बेटी (नातिन) ने दूसरे बेटी के घर को तबाह कर दिया, नष्ट कर दिया । कम से कम अरुण को तो यह समझना चाहिए था कि इतना पढ़ा लिखा समझदार होने के बाबजूद ये सब किया । अब उनके भविष्य का क्या होगा? जिसके माता पिता ही ऐसे हैं उनके बच्चे कैसे होंगे? उनकी शादी कहां होगी ? किससे होगी ? काश अरुण ने कुछ सोचा होता ।


दोनों ही परिवारों ने मुझ से और रिंकी से अपने सारे रिश्ते तोड़ डाले मै और रिंकी अपनी दुनिया में मस्त हो गए लेकिन एक समय आया जब मेरा रिंकी से मन भर गया। और मुझे फिर से कुसुम से मिलने की बेचनी होने लगी।


कुसुम चाहती तो मुझ को सजा दिलवा सकती थी क्योंकि मैने उसकी बेटी के साथ जो किया था वो किसी अपराध से कम नही था । ऊपर से मै सरकारी नौकरी में था। लेकिन उसने ऐसा कुछ भी नहीं किया और यही बात मुझे बहुत खलने लगी की मैंने कुसुम के साथ कितना गंदा काम किया और कुसुम ने कुछ भी नहीं बोला।


इधर रिंकी भी बहुत अच्छा महसूस नहीं कर रही थी । उसे लगता था कि उसने गलत किया है । उसने विश्वास तोड़ा है अपने परिवार का ,अपनी मां का, अपनी मौसियो का । किस मुंह से अपने परिवार का सामना कर पाएगी । उसे भी समझ में आने लगा कि ये सब कुछ जो हुआ वो सिर्फ उसके तन की प्यास थी, ना कि मन की । क्या किया जा सकता था जो होना था, हो चुका था ।


इसी तरह 6 महीने बीत गए । 1 दिन रिंकी के पेट में जोरदार दर्द हुआ । डॉक्टर से दिखाया तो पता चला उसे कैंसर है । वह भी अंतिम स्टेज का । वह अपने घर वापस जाना चाहती थी । अपनी मम्मी के पास अपनी मम्मी की गोद में सर रखकर माफी मांगना चाहती थी । पर वह किस मुंह से जाती । वह तो खुद मम्मी बनना चाहती थी । लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था । रिंकी अब नहीं रही।


मै वापस जाना चाहता था अपने घर । अपने माता पिता के पास अपने प्यारे से बेटे के पास और अपनी पत्नी कुसुम के पास । लेकिन मुझे कोई उपाय नहीं दिख रहा था । मैने कितने ही बार अपने घर में फोन किया पर किसी ने मुझसे बात नहीं की । मै माफी मांगना चाहता था । मै वापस आना चाहता था । शायद सारे रास्ते बंद थे । मै अभी भी आस लगाए था कि मै एक दिन अपने घर वापस जरूर जाऊंगा ।


और फिर एक दिन बहुत हिम्मत कर वापस अपने घर चला गया । लेकिन मेरे माता-पिता ने मुझे माफ नहीं किया, ना ही घर में घुसने दिया । अपने छोटे से बेटे से बात करना चाहता था उसे गोद में लेकर प्यार करना चाहता था । कुसुम ने भी मुझसे मुंह फेर लिया ।मानो पूछ रही हो कि हमें किस बात की सजा तुमने दी थी ? आज जब मेरी सौतन नहीं रही तो तुम वापस आ गए और अगर वह जिंदा रहती तो.........????


समाप्त.........!


मै SANJU ( V. R. ) बड़े भाई के शब्द रूपी आशीर्वाद और स्नेह के बडौलत ही इस कहानी को समाप्ति की दिशा में ले जाने मे सफल हुआ हू, भैया के लिखे शब्द हमेशा मुझे आगे लिखने के लिए होंसला देते रहे है, लिखा हुआ को पढ़ना सहज नही होता है, जब तक लिखने वाले और पढ़ने वाले के मनोभाव समतुल्य ना हो, जरा सा भी मनोभाव मे विकार हुआ तो लिखा हुआ काला आखर भैस बराबर हो जाता है😁 संजू भईया की सबसे बड़ी खूबी यही है कि वो अंत से ही शुरु करते है, अर्थात पिछला update जहा समाप्त होता है, और नया जहा से शुरु होता है,

संजू भैया की तरह ही अन्य मै सभी पाठकों का तहे दिल से शुक्रिया अदा करता हूँ आपके सहयोग के बिना कहानी को अपनी मंजिल तक लेकर जाना नामुमकिन था, बिना पाठकों के सहयोग, अभाव में ना जाने कितने लेखक कहानियों को अधूरा छोड़ देते है....!

धन्यवाद..... 🙏🏻
Superb Ending ❤️‍🔥👌

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Kuresa Begam

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शायद कुसुम को मेरा अपनी खुद की औलाद के लिए तड़पना सुकून सा दे रहा था. मैने जो उस के साथ विश्वासघात किया था, बिना उस की किसी गलती के उस को जो वेदना दी थी, उस की यह सजा तो मुझ को मिलनी ही चाहिए थी.


कुसुम से तलाकनामा मिलने के कुछ दिनों बाद मैने और रिंकी ने शादी कर ली. अरुण और रिंकी कहीं दूर रहने लग गए यहा तक तो ठीक था लेकिन मेरे माता-पिता (कुसुम के सास ससुर) को जब पता चला कि अरुण और रिंकी ने शादी कर ली है, तो उन्होंने मुझसे सारे रिश्ते नाते तोड़ दिए। उन्होंने सारी संपत्ति अपनी बहू कुसुम के नाम कर दी और सख्त हिदायत दी कि कुसुम बेटा कभी भी अपने पति को माफ नहीं करना । चाहे जिंदगी में किसी भी उम्र में वह तुम्हारे पास वापस आए ।


कुसुम हमेशा सोचती क्या मैं अपने पति को खुश नहीं रख पाई या मेरा सावला रंग उसे पसंद नहीं आया? कितनी ही बातें उसके मन में चलती रहती । क्या किया जा सकता था । समाज में जो बेइज्जती हुई वह अलग अपनी ही कोख से जन्मी बेटी सौतन बन गई । यह तो समझ से परे था कहां गलती हो गई ।


कुसुम के मां बाप भी अब क्या करते , वह तो और ज्यादा शर्मिंदा थे । अपनी ही एक बेटी (नातिन) ने दूसरे बेटी के घर को तबाह कर दिया, नष्ट कर दिया । कम से कम अरुण को तो यह समझना चाहिए था कि इतना पढ़ा लिखा समझदार होने के बाबजूद ये सब किया । अब उनके भविष्य का क्या होगा? जिसके माता पिता ही ऐसे हैं उनके बच्चे कैसे होंगे? उनकी शादी कहां होगी ? किससे होगी ? काश अरुण ने कुछ सोचा होता ।


दोनों ही परिवारों ने मुझ से और रिंकी से अपने सारे रिश्ते तोड़ डाले मै और रिंकी अपनी दुनिया में मस्त हो गए लेकिन एक समय आया जब मेरा रिंकी से मन भर गया। और मुझे फिर से कुसुम से मिलने की बेचनी होने लगी।


कुसुम चाहती तो मुझ को सजा दिलवा सकती थी क्योंकि मैने उसकी बेटी के साथ जो किया था वो किसी अपराध से कम नही था । ऊपर से मै सरकारी नौकरी में था। लेकिन उसने ऐसा कुछ भी नहीं किया और यही बात मुझे बहुत खलने लगी की मैंने कुसुम के साथ कितना गंदा काम किया और कुसुम ने कुछ भी नहीं बोला।


इधर रिंकी भी बहुत अच्छा महसूस नहीं कर रही थी । उसे लगता था कि उसने गलत किया है । उसने विश्वास तोड़ा है अपने परिवार का ,अपनी मां का, अपनी मौसियो का । किस मुंह से अपने परिवार का सामना कर पाएगी । उसे भी समझ में आने लगा कि ये सब कुछ जो हुआ वो सिर्फ उसके तन की प्यास थी, ना कि मन की । क्या किया जा सकता था जो होना था, हो चुका था ।


इसी तरह 6 महीने बीत गए । 1 दिन रिंकी के पेट में जोरदार दर्द हुआ । डॉक्टर से दिखाया तो पता चला उसे कैंसर है । वह भी अंतिम स्टेज का । वह अपने घर वापस जाना चाहती थी । अपनी मम्मी के पास अपनी मम्मी की गोद में सर रखकर माफी मांगना चाहती थी । पर वह किस मुंह से जाती । वह तो खुद मम्मी बनना चाहती थी । लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था । रिंकी अब नहीं रही।


मै वापस जाना चाहता था अपने घर । अपने माता पिता के पास अपने प्यारे से बेटे के पास और अपनी पत्नी कुसुम के पास । लेकिन मुझे कोई उपाय नहीं दिख रहा था । मैने कितने ही बार अपने घर में फोन किया पर किसी ने मुझसे बात नहीं की । मै माफी मांगना चाहता था । मै वापस आना चाहता था । शायद सारे रास्ते बंद थे । मै अभी भी आस लगाए था कि मै एक दिन अपने घर वापस जरूर जाऊंगा ।


और फिर एक दिन बहुत हिम्मत कर वापस अपने घर चला गया । लेकिन मेरे माता-पिता ने मुझे माफ नहीं किया, ना ही घर में घुसने दिया । अपने छोटे से बेटे से बात करना चाहता था उसे गोद में लेकर प्यार करना चाहता था । कुसुम ने भी मुझसे मुंह फेर लिया ।मानो पूछ रही हो कि हमें किस बात की सजा तुमने दी थी ? आज जब मेरी सौतन नहीं रही तो तुम वापस आ गए और अगर वह जिंदा रहती तो.........????


समाप्त.........!


मै SANJU ( V. R. ) बड़े भाई के शब्द रूपी आशीर्वाद और स्नेह के बडौलत ही इस कहानी को समाप्ति की दिशा में ले जाने मे सफल हुआ हू, भैया के लिखे शब्द हमेशा मुझे आगे लिखने के लिए होंसला देते रहे है, लिखा हुआ को पढ़ना सहज नही होता है, जब तक लिखने वाले और पढ़ने वाले के मनोभाव समतुल्य ना हो, जरा सा भी मनोभाव मे विकार हुआ तो लिखा हुआ काला आखर भैस बराबर हो जाता है😁 संजू भईया की सबसे बड़ी खूबी यही है कि वो अंत से ही शुरु करते है, अर्थात पिछला update जहा समाप्त होता है, और नया जहा से शुरु होता है,

संजू भैया की तरह ही अन्य मै सभी पाठकों का तहे दिल से शुक्रिया अदा करता हूँ आपके सहयोग के बिना कहानी को अपनी मंजिल तक लेकर जाना नामुमकिन था, बिना पाठकों के सहयोग, अभाव में ना जाने कितने लेखक कहानियों को अधूरा छोड़ देते है....!

धन्यवाद..... 🙏🏻
Professor ji maza nahi aaya!!
Is update ko padh kar esha laga aap ko jaldi thi kahani ko end karne ki .
Ab ye kahani to Puri ho chuki hai.
Aap ki agli lakhani ke intejar me. Aap ki ek padika.
 
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आप ने कहानी बहुत जल्द ही समाप्त कर दिया । मुझे लगा शायद इस कहानी मे बहुत सारे ट्विस्ट देखने को मिलेंगे , शायद अरूण को अपनी गलती का एहसास होगा , शायद रिंकी को अपने करनी का पछतावा होगा और शायद कहानी के अंत तक सबकुछ ठीक ठाक हो जाएगा ।
मनुष्य गलतियों का पिटारा होता है । ऐसा कौन मनुष्य है जिसने अपने जीवन मे कभी गलती की ही न हो ! सभी से गलतियाँ होती है लेकिन यह भी सत्य है कि कभी न कभी उसे उन गलतियों का आभास भी होता है ।
अपनी गलती को स्वीकार करना कोई शर्मिंदगी की बात नही होती । यह बड़े जीगर वालों का काम है । और यह भी सत्य है कि जो लोग ऐसा करते हैं उन्हें कोई समझे या न समझे पर उनके दिल , उनकी आत्मा को संतुष्टी अवश्य मिलती है ।
मुझे दुख है रिंकी जैसी अल्प वर्षीय लड़की के मौत की । मुझे अफसोस है कुसुम के दुर्भाग्य नसीब की । मुझे क्रोध है अरूण के विहेवियर पर ।
काश , वक्त रहते अरूण को बुद्धि आ गई होती !

आप ने अपनी इस कहानी को अपने मंजिल तक पहुंचाया , इसके लिए आप को बहुत बहुत धन्यावाद । मुझे विश्वास है आप की यह सफर आगे भी जारी रहेगी । आप के कलम की यात्रा आगे भी जारी रहेगी ।

आप ने मुझे हमेशा बड़े भाई की तरह सम्मान दिया इसके लिए आप को विशेष आभार व्यक्त करता हूं ।

बहुत बढ़िया लिखे आप । इसी तरह से लोगों का मनोरंजन करते रहिए और प्यार बांटते रहिए ।

खुबसूरत कहानी मानु भाई ।
" मर्द पर लगे दाग उसकी कमाई से धुल जाते है, मगर औरत पर लगे दाग उसके मरने के पश्चात भी जिंदा रहते है "

अंतह आपका हमेशा की तरह खूबसूरत विश्लेसन पढ़ कर दिल खुश हो गया🙏,

कहानी का अंत करना लाजमी हो गया था, जिंदगी की उलझनों मे अब इतना उलझ गया हू कि अपनी कल्पनाओ को शब्दों के माध्यम से कहानी किस्सों के रूप में लिखने का वक्त ही नही मिलता। जो भी वक्त मिलता है उसको चिट चैट थ्रेड पर खर्चा कर देता हूँ। जब उलझने सुलझ जायेगी तब फिर से आपके शब्दों के आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए कुछ किस्सों को यहाँ अवश्य लिखूँगा।

धन्यवाद बड़े भाई.... 🙏🏻
 

manu@84

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Professor ji maza nahi aaya!!
Is update ko padh kar esha laga aap ko jaldi thi kahani ko end karne ki .
Ab ye kahani to Puri ho chuki hai.
Aap ki agli lakhani ke intejar me. Aap ki ek padika.
समय के अभाव मे बहुत सी कहानिया अपने जायज मुकाम पर नही पहुँच पाती..... अब मुझे वक्त नही मिलता है और मै आप सभी पाठको को समय पर update नही पोस्ट कर सकता था, इसलिए इस कहानी को आगे बढ़ाने के लिए जो कल्पनाएँ अपने दिल में संजो कर रखी थी उन्हे इस शब्दों के पटल पर उकेर नही सका। भविस्य मे जब भी वक्त मिलेगा तब जरूर एक बार फिर से कल्पनाओ को कहानी का रूप में लिख कर आपके समक्ष प्रस्तुत करूँगा।

धन्यवाद 🙏🏻
 
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Very nice end
आपको बहुत बहुत धन्यवाद देना चाहता हूँ, आप एक्लौते ऐसे पाठक थे इस कहानी के जिसका कॉमेंट हमेशा से सबसे पहले आता था 🙏🏻
 

manu@84

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Superb Ending ❤️‍🔥👌

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Thanks❤

जरूर वक्त मिलते ही हाजिर होता हू.. ।
 
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