• If you are trying to reset your account password then don't forget to check spam folder in your mailbox. Also Mark it as "not spam" or you won't be able to click on the link.

Incest कर्ज और फर्ज - एक कश्मकश

Sanju@

Well-Known Member
4,742
19,082
158
अध्याय - 26 --- " विनाश काले विपरीत बुद्धि ""

वो मुझसे लिपट गई और मैं उससे,जिस्म में कोई आग तो नही थी बस अहसास था एक दूसरे के होने का अहसास...मैं उसके बालो को हल्के हल्के ही सहला रहा था वही वो आंखे बंद किये मेरे कंधे पर ही लेटी थी...हमारे रिश्ते में आगे क्या होने वाला था इस बात की गारेंटी दोनो में कोई नही दे सकता था,

दूसरी तरफ मेरी ससुराल में अचानक से रिंकी के हमेशा के लिए वापिस आ जाने से हलचल मचनी शुरु हो गयी थी. कुसुम की मां भी सब कुछ समझ चुकी थी. उन्हे अपनी बेटी कुसुम के भाग्य पर तरस आ रहा था. बेचारी ने सपने में भी नहीं सोचा होगा कि उसके घर में उसके विरुद्ध क्या चल रहा था ?

घर की ऐसी बातें जब घर से बाहर निकल जाती हैं तो अन्य घरों में दुगुनी तेजी पहुँच जाती हैं. सास ने अप्रत्यक्ष रूप से अपनी दोनो बेटियों जूली और प्रीति को भी बता दिया.

हालांकि जूली भी शादी से पहले अपने जीजा यानी मुझ पर लट्टू थी, और वो ही सब करना चाहती थी जो अभी रिंकी करने पर तुली है. लेकिन शादी के बाद उसे रिश्तों की मर्यादा मे बंधना आ गया था, जबकि प्रीति ने जीजा के साथ बनाये हुए शारीरिक संबंध को एक खूबसूरत हादसा समझ कर भुला दिया था, और उसे अपने जीजा अरुण पर गर्व भी था, वो प्यार से जीजा का माथा चूमना चाहती थी क्योकि शादीशुदा साली के साथ शारीरिक संबंध बनाने के उपरांत उसके बदन पर मौजूद तिलों का राज, जीजा ने अपने तक ही सीमित रखा था.

इसलिए दोनो ने अच्छी मौसी का फर्ज निभाते हुए मेरी सास को सलाह दी कि रिंकी अब बड़ी हो गयी , और उसकी जल्द से जल्द शादी कर दो और रिंकी की शादी की बात घर में होने लगी लेकिन रिंकी हमेशा शादी को मना कर देती । मैं शादी नहीं करूंगी मौसियो से बोलती की नाना नानी को कौन देखेगा? आप दोनो तो चली गई . मैं नाना नानी दोनों को छोड़कर कहीं नहीं जाने वाली । मैं हमेशा दोनों के साथ ही रहूंगी, नाना और नानी भी दोनों मिलकर उसे समझाते कि बेटा लड़कियों की शादी जरूरी है ।हम लोग कब तक तुम्हें संभालेंगे? एक समय आएगा कि हमारा अंत हो जाएगा | फिर तुम्हारा क्या होगा? तुम किसके सहारे जियोगी ?

जूली जो की रिंकी कि मौसी होने के साथ साथ सहेली भी थी उसने भी समझाया रिंकी मेरी बात मान लो तुम्हारी सुंदरता को देखकर अच्छे-अच्छे घरों से रिश्ते आ रहे हैं । अच्छे से लड़के को पसंद कर के उस के साथ शादी कर लो । अगर तुम्हें कोई पसंद हो तो तुम बताओ । मैं उसी से तुम्हारी शादी करवा दूंगी । पर रिंकी हमेशा मना कर देती कि नहीं मुझे शादी नहीं करनी तो नहीं करनी ।

***

वक्त अपनी गति से निरंतर चल रहा था रिंकी के कॉलेज का पहला सेमेस्टर ख़त्म हो चुका था, आज रिंकी की सहेली श्रुति का जन्मदिन था.

श्रुति ने अपनी कुछ लोकल फ़्रेंड्ज़ को पार्टी के लिए बुलाया था. और पार्टी करने फ़्रेंड्ज़ के साथ सिटी मॉल चल दी. उन्होंने उस दिन काफ़ी मज़ा-मस्ती की. श्रुति की सहेलियाँ उसके लिए एक केक लेकर आयीं थी —अपना फ़ेवरेट चोक्लेट केक देख वह बहुत ख़ुश हुई. पूरा दिन इसी तरह हँसते-खेलते और खाते पीते बीत गया, कब शाम हो गयी उन्हें पता भी न चला. वे सब अब अपने-अपने घर के लिए निकलने लगीं. आख़िर में रिंकी और उसकी फ़्रेंड श्रुति ही रह गए.

‘आर यू नॉट लीविंग?’ रिंकी ने श्रुति को जाने का नाम न लेते देख पूछा. उसने सोचा था सब के चले जाने के बाद साथ साथ घर के लिए निकलेगी.

‘या या…यू गो रिंकी, आइ विल गो बाय मायसेल्फ़.’ श्रुति बोली.

‘अरे, हाउ केन आइ गो लीविंग यू हियर?’ रिंकी बोली, ‘ हम दोनों तो साथ मे चलने वाले थे…’

‘हाहाहा…आइ एम नॉट गोइंग होम सिली (बेवक़ूफ़).’ श्रुति ने खिखियाकर कहा.

‘वट डू यू मीन?’ रिंकी ने आश्चर्य से पूछा.

‘अरे यार, सोमेश आ रहा है मुझे लेने, मैंने घर पर बहाना बनाया है और बोला है कि आज तेरे पास रुकूँगी…’ श्रुति ने रिंकी को आँख मारते हुए कहा. सोमेश उसका बॉयफ़्रेंड था.

‘हैं…’ रिंकी ने बड़ी-बड़ी आँखें कर के पूछा, ‘तुम उसके साथ रहोगी रात भर?’

‘हाहाहा…हाँ भयी मेरी प्यारी 'पापा की परी'… वी विल हैव सम फ़न टुनाइट…’ श्रुति ने उसे फिर आँख मारी.

‘ ओह माई गोड…’ रिंकी से और कुछ कहते न बना.

तभी श्रुति का फ़ोन बज उठा, सोमेश बाहर आ गया था. श्रुति मुस्कुराते हुए उठ खड़ी हुयी,

‘ओके रिंकी , थैंक्स, अब तुम जा सकती हो…बहुत मज़ा आया आज…काफ़ी पैसे दिये थे मेरे मोम एंड डेड ने उड़ाने के लिए इस बार.’

‘हुह…’ पैसों का ज़िक्र सुन रिंकी ने मुँह बनाया, फिर मुस्का कर बोली, ‘ एंजॉय toinght.’ बाय

श्रुति के जाने के बाद रिंकी एक ऑटो लेकर अपने नानी के घर आ गयी. रास्ते में वह यही सोच रही थी कि श्रुति कितनी चालू निकली, अपने बॉयफ़्रेंड के साथ ‘फ़न’ करेगी मेरा बहाना लेकर. ‘चलो जो भी करे मुझे क्या करना है.’ तब तक उसका नानी का घर आ गया था.

इधर दूसरी तरफ श्रुति को सोमेश ने विश किया अच्छे भविष्य की कामना किया गले लगाया। बोला आज रात की पार्टी के लिए एक होटल में रात के लिए उसने कमरा भी वही बुक किया है, बोला कि यार तेरा बर्थडे इस बार अच्छे से मनाना चाह रहा हूँ।


श्रुति सोची कि ऐसा मौका पता नहीं कितने दिन बाद आएगा तो किसी बात के लिए मना नहीं कि वह जो जो कहते गया श्रुति हां में हां मिलाते गई।

रात को दोनों 8:00 बजे होटल पहुंचे वहां खाना खाए अपने कमरे में गए बड़ा सा केक का इंतजाम था एक बुके भी रखा हुआ था, केक काटे अपने बॉय फ्रेंड को खिलाई उसने भी खिलाया और फिर गले लगा लिया।

धीरे-धीरे करके दोनो करीब आ गये और होंठ को चूमने लगे. श्रुति की वासना भी भड़क उठी थी. और धीरे-धीरे सारे कपड़े उतार दिए पूरी तरह से नंगी हो गई, उसने तुरंत उसका लोड़ा पकड़ ली और चूसने लगी। और फिर अपना चुत चुसवाने के लिए बेड पर लेट गई श्रुति की नशीली आंखें सोमेश को इशारा दे रही थी की आ और मुझे चूस ले। वह तुरंत ही श्रुति की चुत को चूसने लगा। अब वो आह आह कर रही थी। पांच सात मिनिट की चूत चुसायी के बाद वो बोली अब बस करो देर मत करो मुझे खुश कर दो यही मेरा बर्थडे का गिफ्ट होगा।


सोमेश भी तुरंत श्रुति के दोनों पैरों को अलग अलग किया और अपना लौड़ा उसकी चूत पर लगाकर जोर से धक्का देने लगा. श्रुति मजे भी ले रही थी और उसे दर्द भी हो रहा था सोमेश धक्के पर धक्के दिए जा रहा था श्रुति की चूचियां हिल रही थी। वो बीच बीच में चूचियों को दबोच रहा था।

नीचे से श्रुति खुद धक्के दे रही थी ऊपर से वह धक्के दे रहा था. करीब दस पंद्रह मिनिट बाद दोनो झड़ गये फिर दोनों एक दूसरे के बाहों में बाहें डाल कर लेटे रहे श्रुति का बॉय फ्रेंड उसकी चूचियों को सहला रहा था। और वो बाल खोलकर बेड पर लेटी थी

कुछ देर बाद सोमेश बोला यार श्रुति एक बात बता तेरी दोस्त रिंकी का चक्कर किसके साथ चल रहा है, उसके बूब्स बड़े-बड़े दिखाई दे रहे थे, तंग कपड़े से साफ पता चल रहा था कि उसकी चूचियां कितनी बड़ी है. रिंकी तो कली से खिलता फूल बन गयी है, आज तो मै भी उस पर फिदा हो गया.....!

"सोमेश सच ही कह रहा था क्योंकि रिंकी के चूचे पूरे 34D के साइज के थे. चूतड़ भी 36 के साइज से ज्यादा ही थे. कमर 30 के साइज की. रंग गोरा और आंखें एकदम शर्मिला टैगोर की तरह. हर कोई उस पर फिदा था"

(श्रुति ने मन ही मन कहा कि अबे चूतिये रिंकीया को कली से फूल तो उसके पापा बहुत पहले ही बना चुके है, मगर तुझे नहीं पता है इस बारे में.)

अपने बॉय फ्रेंड के सवाल का जबाब देने मे तो पहले तो श्रुति ना-नुकर कर मुकरति रही, 'मुझे कुछ भी नही पता' लेकिन उसके प्रेमी के जोर देने पर उसके मुह से धीरे धीरे से सच निकलने लगा. जबकि श्रुति ने रिंकी से वादा किया था कि उसका 'पापा के साथ सेक्स वाले रिश्तों की बात' किसी को नही बताएगी लेकिन वो ठेहरी एक स्त्री (लड़की) जाति, तो कब तक किसी भी राज/बात को सीने में दबा कर रख सकती थी.

" दुनिया का सबसे बड़ा सच ये भी है कि अपने पसंदीदा मर्द की बाहों के आगोश में बिस्तर पर लड़की/औरत अपने सारे राज खोल देती है । पलंग समस्त स्त्री जाति के लिए एक बेहतरीन जगह होती है,जहा वो अपराधी भी बनती है, और सजा देने वाली भी "

श्रुति ने अपने प्रेमी को रिंकी और उसके पापा के रिश्तों की दास्ताँ विस्तार से बताने लगी...! वो भी एक वादे के साथ कि वो ये बात किसी और से नही कहेगा.... उसका प्रेमी उकसा उकसा कर और भी ज्यादा मजे लेते हुए पूछ रहा था, और वो बताती जा रही थी.

श्रुति की पूरी बात सुनकर उसका प्रेमी हस्ते हुए बोला - यह तो हर कोई करता है. आज के डिजिटल युग में अक्सर फैमिली के लोगों के बीच में यह सब होना आम बात है श्रुति तू इस छोटी सी बात को बताने में इतने भाव खा रही थी ?

श्रुति अपने बॉय फ्रेंड को अजीब सी नजरों से देख रही थी असल में उसकी भी यही सोच थी कि सेक्स में कोई रिश्ता नहीं होता है. अगर कोई रिश्ता होता है बस लंड और चूत का होता है. अपने बॉय फ्रेंड की बातों को सुन कर श्रुति के अंदर एक अलग सा रोमांच भर गया.

वही दूसरी तरफ श्रुति का प्रेमी मन ही मन रिंकी का नाम जपते हुए श्रुति के दूधों को पी रहा था और चूत को सहला ला रहा था श्रुति भी पूरी मस्ती में खोयी हुयी थी. उसके मुंह से कामुक सिसकारी निकल रही थी- उम्म्ह… अहह… हय… याह… जोर से करो … पी जाओ … मेरे दूधों को काट लो … आह्ह … बहुत मजा आ रहा है.

उसके बाद दोनो नहीं रुके और श्रुति के प्रेमी ने उसकी चूत को रात में तीन बार पूरा निचोड़ कर रख दिया.

***

दूसरी ओर उसी रात कुसुम के साथ समागम के बाद मै बेड पर लेटा हुआ था. कुसुम बाथरूम में थी. तभी मेरी नज़र अपने फ़ोन पर गयी, जिसकी नोटिफ़िकेशन लाइट जल रही थी. यह सोच कर कि देखें इतनी रात में किसने मेसेज किया हैं मैने फ़ोन उठा कर देखा. सिर्फ़ एक ही मेसेज था. वो भी मेरी लाडो रिंकी का..!

‘‘आप ने अपनी जिंदगी में मेरी जगह क्या सोची है, क्या हमारा चंद दिनों का ही साथ था या फिर सात जन्मों का?’’

मेसेज पढ़ते ही मेरा बदन शोला हो उठा था. मै कुछ समझ नहीं पा रहा था क्या करू, माथे पर पसीने की कुछ बूँदें छलक आयीं थी. तभी कुसुम बाथरूम से निकल आयी, मैने आनन-फ़ानन में फ़ोन एक तरफ़ रख दिया और सोने की एक्टिंग करने लगा. नींद मेरी आँखो से कोसों दूर थी, ख्वाहिशों की आंच मन में अजीब सी बेचैनी पैदा कर रही थी. एक बार फिर से रिंकी के प्रति मेरा रुझान बढ़ने लगा. दिलोदिमाग में बार बार उसी का खयाल उमड़ रहा था.

एक करवट लेटे मै सोचता रहा कि आखिर रिंकी के लिए क्या ऐसा करू कि वो खुश रह सकें, उसे भी उसके हिस्से की खुशिया मिल सकें । मैने अगले दिन उसके कॉलेज की छुट्टी के बाद उससे मिल कर उसे समझाने का फैसला लिया... !

मै रिंकी के कॉलेज के गेट के बाहर खड़ा था. बाहर कई सारे लड़के लड़कियां घूम रहें थे...... साथ ही साथ एक निर्भया पोलिस जीप थी जिसमे लेडी और जेंट्स पुलिस वाले बैठे थे.

दरवाजे के अंदर से रिंकी और उसकी दो और सहेली बाहर की ओर आ रही थी मुझे नाम नही पता था उस वक्त तक..... उसके साथ कॉलेज के दरवाजे की ओर आ रही थी..रिंकी सबसे साइड में थी और बीच में एक और सबसे लास्ट मे एक थी........

रिंकी जैसे ही दरवाजे के पास आई मैने अपनी बाइक निकली और फिर रिंकी को उस पर बैठने का इशारा किया...... सामने उसकी सहेलिया खड़ी थी इसलिए मुझे रिंकी से थोड़ी दूरी बनानी पड़ी...... रिंकी ने मेरे कंधे पर अपना एक हाथ रखा और मुझ को चलने का इशारा किया. उसकी सहेलियों ने उसे बाय कह कर अपने अपने रास्ते चली गई.

थोड़ी दूर जाने पर रिंकी थोड़ा आगे सरक कर मेरे और नज़दीक आ गयी......इस वक़्त उसका एक हाथ मेरी कमर पर था तो दूसरा हाथ मेरी पीठ पर.......रास्ता बहुत खराब था जिसकी वजह से मुझ को बार बार ब्रेक लेने पड़ रहे थे....हर ब्रेक पर रिंकी धीरे धीरे मेरे और करीब आती जा रही थी.......अब तक रिंकी मुझसे से पूरी तरह से सटकर बैठ चुकी थी.......अब उसके दोनो कसे हुए उरोज मेरी पीठ पर चुभ रहें थे....... मै भी उसके दोनो बूब्स को अपने पीठ पर महसूस कर परमआनंद का अनुभव कर रहा था.

मेरी हाथों की रोयें अब पूरे खड़े हो चुके थे.. मगर मैने ऐसी कहीं कोई हरकत नहीं कि जिससे उसे ये लगे की मै उसके उरोजो को अपनी पीठ पर महसूस कर रहा हू.. रिंकी और ज्यादा से सरककर मेरे और करीब आ गयी और अपने दोनो उभारों का वजन पूरा मेरी पीठ पर डाल दिया.......मैने एक बार पीछे उसकी तरफ पलट कर देखा मगर उसे कुछ नहीं कहा......और पहले की तरह बाइक चलाने लगा.......मुझे अब पूरा यकीन था कि मेरे लिंग् का खून पूरी तरह से गरम हो चुका है..आधे घंटे के बाद मेरा ससुराल आ गया..मैने थोड़ी दूर पर बाइक रोक दी.

‘‘क्या अब हमारे रिश्ते के लिए जरूरी नहीं है कि हम दोनों को एकदूसरे को मिल कर करीब से एकदूसरे का एहसास करना चाहिए.’’ रिंकी जैसे तैसे ये शब्द मुझसे कह पायी.

रिंकी की आवाज़ में कपकपाहट थी. मै उसके चेहरे पर पसीने को भी सॉफ महसूस कर रहा था. वो मुझसे बस इतना बोल कर और चुपचाप बाइक से उतर गयी..

‘‘जरूर, जब तुम कहो…’’ कहते हुए मैंने उसे पीछे से बांहों में भर लिया. उस ने मेरी तरफ चेहरा किया तो मैं यह देख कर विचलित हो उठा कि उस की आंखों से आंसू निकल रहे थे. तो वह सीने से लग गई, ‘‘आई लव यू…’’

‘‘आई नो डियर, बट क्या हुआ तुम्हें?’’

‘‘कुछ नही…’’ कह कर रिंकी मुसकराते हुए मेरे सीने से लग गई और मैंने भी पूरी मजबूती के साथ उसे बांहों में भर लिया. मैने एक बार फिर से उसके उरोजो के उभार को अपने सीने पर महसूस किया था.. यक़ीनन आज बहुत दिनों के बाद अपनी बेटी को आलिंगन करते हुए मेरा लंड खड़ा हो चुका था......

चंद सेकंड के आलिंगन के बाद ना चाहते हुए भी हम दोनों अलग अलग खड़े हो गये
और मै अपने पेंट मे खड़े लंड को अड्जस्ट करने लगा. मुझे ऐसा करते देख रिंकी अपने चेहरे पर मुसकान लाने से नहीं रोक पाई.....
और फिर हम अपने अपने घर की दिशा की तरफ चल दिये.

मैंने उसे स्वीकृति तो दे दी मगर मन में एक कसक सी उठ रही थी . शायद यह मेरी जिंदगी का सबसे बड़ी भूल साबित होने वाली थी ।

मुझ को पता था कि मै गलत कर रहा हू, रिंकी को भी पता था । लेकिन हमारा प्रेम रुकने का नाम ही नहीं ले रहा था । अगले दिन से रिंकी और मैने अपने अपने कॉलेज में जाना बंद कर दिया और धीरे धीरे हम होटल में भी मिलने लगे यह आने-जाने मिलने मिलाने का सिलसिला 15 दिन तक लगातार चलता रहा।

और एक दिन मेरी सास ने मुझे रिंकी को गली के नुक्कड़ पर छोड़ते हुए देख लिया और उनको यकीन हो गया कि बाप बेटी की रास लीला फिर से शुरु हो गयी । उन्होंने रिंकी को समझाया भी कि अपनी ही सगी माँ के घर को मत उजाड़ । डायन भी अपने घर को छोड़ देती है। तू तो डायन से भी गई गुजरी है । पर रिंकी कहां सुनने वाली थी । वह तो अपने ही विचारों में खोई रहती और वही करती जो करना चाहती। मेरी सास ने अबकी बार फिर से अपनी बेटी कुसुम को कुछ नहीं बताया कि उसका पति और बेटी क्या गुल खिला रही है । शायद बता देती तो कुछ बच जाता ।





जारी है...... ✍🏻
Awesome update
 
  • Like
Reactions: manu@84

Sanju@

Well-Known Member
4,742
19,082
158
अध्याय - 26 --- " पाप का अंत "

मेरी सास ने अबकी बार फिर से अपनी बेटी कुसुम को कुछ नहीं बताया कि उसका पति और बेटी क्या गुल खिला रही है । शायद बता देती तो कुछ बच जाता ।

एक समय था जब कुसुम मेरी जिंदगी थी और आज रिंकी के आकर्षण ने मुझे इस कदर अपनी गिरफ्त में ले लिया था. कि कब उस का मैसेज आए और मेरी धड़कनों को बहकने का मौका मिले. जरूरी तो नहीं हर चाहत का मतलब इश्क हो…! रोज मेरी सुबह की शुरुआत उस के एक प्यारे से मैसेज से होती. कभी कभी वह बहुत अजीब से मैसेज भेजती.

कभी उस ने एक खूबसूरत सी शायरी सुनाई. हसीं जज्बातों से लबरेज उसकी शायरी का जवाब मै शायरी से ही देने लगा. सालों पहले मैं शायरी लिखा करता था. रिंकी की वजह से आज फिर से मेरा यह पैशन जिंदा हो गया था. देर तक हम दोनों बातें करते रहे. ऐसा लगा जैसे मेरा मन बिलकुल हलका हो गया हो. रिंकी की बातें मेरे मन को छूने लगी थीं. वह बड़े बिंदास अंदाज में बातें करती. समय के साथ मेरी जिंदगी में रिंकी का हस्तक्षेप बढ़ता ही चला जा रहा था., इधर कुसुम अपने पत्नी धर्म का पालन करते हुए नौकरी के साथ साथ अपने सास ससुर और पति की सेवा में दिन रात एक किए हुए थी ना वो दिन देखती ना वो रात देखती ।

एक महीने बाद....... रिंकी अपने कॉलेज गयी थी श्रुति की नज़र जब उस पर पड़ी तो वो सवाल भरी नज़रो से उसे देखने लगी......!

क्या बात है रिंकी तेरे चेहरे पर निखार कुछ ज़्यादा ही बढ़ गया है......लगता है पापा की क्रीम चेहरे पर ज्यादा लगाई जा रही है.......??

श्रुति की बातों को सुनकर रिंकी का चेहरा शरम से लाल पड़ गया उसने अपना चेहरा तुरंत नीचे झुका लिया और श्रुति उसके चेहरे की ओर देखकर मुस्कुराती रही..


मैने सही कहा ना रिंकी . तू इतने दिनों से अपने प्रोफेसर पापा के साथ स्पेशल क्लास ले रही थी, वैसे इसमें छुपाने वाली कौन सी बात है.......जवान तू भी है और मैं भी......जब मैं भी अपने बॉयफ्रेंड की क्रीम मुह पर लगाती हू तब मेरे चेहरे की रोनक तेरी जैसी हो जाती हैं. इसलिए मैने अंदाज़ा लगाया कि तू भी इतने दिनों से..........??

प्लीज़ स्टॉप श्रुति. मुझे शरम आती है तुझे इन सब के अलावा और कोई बात नहीं सूझती क्या.......चल अब लेक्चर शुरू होने वाला है....श्रुति भी आगे कुछ नहीं कहती और दोनो अपने क्लास की ओर चल पड़ते है.......!

आज रिंकी अपने लेक्चर्स पर भी ध्यान दे रही थी.....कल तक उसे सारे पीरियड्स बोर करते थे मगर आज सारे लेक्चर्स उसे अच्छे लग रहें थे, दोपहर तक वक़्त बहुत जल्दी कट गया उसे भूख लगी थी तो रिंकी, श्रुति को वही बैठा छोड़ और एक और सहेली थी उसके साथ कॅंटीन की ओर निकल पड़ी........!

बाहर कई सारे लड़के रिंकी को घूर रहें थे जैसे ही वो आगे बढ़ी तभी किसी ने उसका हाथ पकड़ लिया.. उसका हाथ इस तरह पकड़ने से उसकी साँसें एक पल के लिए मानो रुक सी गयी... उसके जिस्म में इतनी भी हिम्मत नहीं थी कि पलटकर उसकी तरफ देखे की किसकी इतनी जुर्रत हुई ये हरकत करने की... कुछ सोचकर खामोश रही फिर अपनी गर्देन घूमकर उस सक्श को देखने लगी.. उसका हाथ पकड़ने वाला सक्श उसकी सहेली श्रुति का बॉय फ्रेंड सोमेश था ........ शकल से शायद रिंकी उसे अच्छे से जानती थी........वो रिंकी की तरफ देखकर मुस्कुरा रहा था......!


बहुत मुश्किल से अपने जज्बातो को संभालते हुए बोली- रिंकी बोली छोड़ो मेरा हाथ......??

वो उसे देखकर हसे जा रहा था ..... तुम श्रुति के बॉयफ्रेंड सोमेश् हो! रिंकी के इस तरह कहने पर उसने अपने हाथों पर दबाव और ज़ोरों से बढ़ा दिया...!

सही कहा तुमने मैं तेरी सहेली का बॉय फ्रेंड हूँ.......मगर क्या करूँ मैने तो उससे दोस्ती सिर्फ़ इसलिए की थी कि मैं उसके ज़रिए तुझे हासिल कर सकूँ....मगर एक तू है कि मेरी तरफ देखती भी नहीं........क्या कमी है मुझ में.....कॉलेज की कई लड़कियाँ मुझपर मरती है मगर मैं तुझ पर मरता हूँ......? लेकिन जब श्रुति ने बताया " तू अपने बाप से मरवाती (चुदवाती) है " तब मेरे सब्र की सीमा टूट गयी तब मुझे ऐसा करना पड़ा.......!

रिंकी अपनी आँखें फाडे उसके चेहरे की ओर देखती रही उसका दिमाग़ काम करना लगभग बंद कर चुका था......सारे लोग उसे ही देख रहें थे, जिस्म डर से थर थर कांप रहा था. उसके साथ आई सहेली भी अपनी आँखें फाडे उसे तो कभी सोमेश को घूर रही थी वो बेचारी क्या कहती उसने फ़ौरन अपनी नज़रें नीचे झुका ली.....!

चुप क्यों हो रिंकी कुछ तो बोलो....

जस्ट शटअप.........प्लीज़ तुम अभी यहाँ से चले जाओ......मैं तुम्हारे आगे हाथ जोड़ती हूँ......मेरा और तमाशा यहाँ मत बनाओ.

देखो रिंकी मुझे पता तुम्हे अपने पापा के 'बड़े केले' को लेने का शौक है, उनके साथ जो करना है वो बिंदास करो मुझे कोई issue नही है, लेकिन एक बार मेरे 'छोटे पप्पू' को भी मौका दो. उसने अपने पेंट की जिप की तरफ इशारा करते हुए कहा.

अभी सोमेश की बात पूरी भी नहीं हुई थी कि किसी ने उसके गाल पर एक ज़ोर का थप्पड़ मारा. जब उसकी नज़र सामने खड़ी लड़की पर पड़ी तो सोमेश के साथ साथ रिंकी की आँखें भी हैरत से फैलती चली गयी........ उसके सामने श्रुति खड़ी थी. इस वक़्त वो बहुत गुस्से में दिखाई दे रही थी शायद किसी ने उसे इस बात की खबर कर दी थी......!

श्रुति को सामने देख सोमेश चुपचाप वहा से निकल गया... श्रुति ने रिंकी की तरफ देखा उसकी आँखो मे आसु थे, श्रुति ने उससे माफी मांगते हुए उसके कंधे पर हाथ रखा ही था कि रिंकी ने उसका हाथ छिटक दिया और एक जोरदार चांटा श्रुति के गाल पर जड़ दिया. Don't say me sorry श्रुति..... कह कर रिंकी कॉलेज से सीधा घर आ गयी.

आज जो कॉलेज में हुआ वो नही होना चाहिए था, भले ही इस मामले में पूरी गलती श्रुति के प्रेमी की थी. लेकिन श्रुति ने जब रिंकी को सोर्री बोला तो रिंकी को उसे चांटा नही मारना चाइये था....?

मामला रफा-दफा हो भी जाता, लेकिन श्रुति ने इसे अपनी तौहीन समझी, उसकी अन्य सहेलियों ने मामला और पेचीदा बना दिया, न सिर्फ़ पेचीदा बल्कि संगीन, सब सहेलियों ने इसे श्रुति की नाक कटना कहा, यह भी कहा कि जल्द से जल्द श्रुति को इस थप्पड़ का बदला रिंकी से लेना चाहिए.


इधर घर आकर रिंकी ने अपने फोन मे सारे सहेलियों और दोस्तों के no ब्लॉक कर दिये. और उसने घर से निकलना पूरी तरह बंद कर दिया. मेरे मेसेज और काल के reply आना बंद हो गया. दो तीन दिन तक रिंकी के मैसेज काल के इन्तजार करने के बाद मुझे उम्मीद थी शायद मेरी माँ को रिंकी की कुछ फोन पर बातचीत होती हो. लेकिन नही, रिंकी के बारे में उन्हें कुछ भी नही पता था.

उस रात कमरे के अंधेरे में अपने बेड के कोने पर बैठा मैं पिछले दो तीन दिनो के बारे में सोच रहा था. कितना कुछ बदल गया था दो तीन दिनो मैं. बड़ी मुश्किल से इतनी मेहनत करने के बाद अच्छे दिनो के आसार बने थे, लगता था अब हम बेहतर ज़िंदगी जी सकेंगे. अपनी लाडो रिंकी संग कैसे कैसे सपने देखे थे, कैसी कैसी योजनाएँ बनाई थी, भविष्य कितना सुखद लगने लगा था. और फिर एक ही झटके में सब सपने टूट गये, सारी उम्मीदों पर पानी फिर गया, जैसे किसी ने आसमान से ज़मीन पर पटक दिया था. जिसके लिए मै सब कुछ कर रहा था वो ही खामोश हो गयी थी.

आँखे लगातार रोने और जागने से लाल हो गयी थी, दिमाग़ में तूफान चल रहा था, जिस्म थक कर चूर हो चुका था मगर नींद का कोई नामो निशान नही था. फिर मेने फैसला किया कल मै अपनी ससुराल जाकर रिंकी से फेस टू फेस बात करूँगा आखिर मुझसे इस तरह उसके रूठने की वजह क्या है ??????

******

अगले दिन सुबह नौकरी पर ना जाते हुए मै सीधा अपनी ससुराल चला गया. घर का दरवाजा अंदर से बंद था. मैने बड़े आहिस्ते से कुंडी खटखटाई.....रिंकी ने दरवाजे की दरार से ही झांक लिया था कि बाहर पापा खड़े है, अगले पल ही अपनी दोनों हथेलियों से उसने आंखें ढक ली और मन ही मन सोचने भी लगी-‘यह कैसी आग है, जो स्त्री को पुरुष-दर-पुरुष और पुरुष को स्त्री-दर-स्त्री भटकने पर मजबूर कर देती है।
यह जानने की कोशिश करते-करते पसीने से तरबतर हो गई।

उसके स्तनों से फूट आये पसीने ने उसकी समीज को भिगो दिया उसके हाथ अनायास ही जांघों पर चले गये। चड्डी भी पसीने से भीग गई थी। ऐसा लगा, उसके भीतर भी कुछ-कुछ हो रहा है। उसे अच्छे-बुरे का ज्ञान हो गया था। वो वहां से सीधे अपने कदम बढ़ाते हुए दरवाजे पर चली आई। और उसने दरवाजा खोला.

मैं इतनी देर से कुंडी बजा रहा हूं, इतनी देर लगती हैं दरवाजा खोलने मे’’

बोलते बोलते मेरी नजर जब रिंकी की समीज पर पड़ी, तो शायद उस समय वो नहा रही थी और यही वजह थी कि उस ने उस समय समीज के नीचे कुछ भी नहीं पहन रखा था. जिस्म पर चिपके हुए गीले सफेद पारदर्शी कपड़े मे उसके चूचे ने उस समय मुझको मदहोश कर दिया. मै फटी आंखों से रिंकी को देखता ही रह गया.

रिंकी ने बनावटी गुस्से से कहा, ‘‘इस तरह क्या देख रहे हो? बड़े बेशर्म हो आप.

लगता हैं मेरे यहा आने से तुम्हे खुशी नही हुयी रिंकी....??? मैने प्रशन वाचक निगाहों से उससे पूछा.


देखो पापा अभी घर में कोई नही है आप चले जाओ, किसी ने अगर आपको यहां आते देख लिया होगा, तो बेवजह हम दोनों की बदनामी होगी.

मुझे यहा आते किसी ने नही देखा, दूसरी बात मैं तुम्हें प्यार करता हूँ और तुम्हारे लिए कुछ भी कर सकता हूँ. कहते हुए मै अंदर आ गया.

उसने दरवाजा अंदर से बंद कर लिया.

मैंने मन में सोचा कि रिंकी और मैं अकेले घर पर हैं, ये मौका पर चौका वाला समय इसको सवाल जबाब में बर्बाद नही करना चाहिए.

मै उसकी ओर बढ़ा और उसने मेरा हाथ पकड़ लिया.

मुझसे फिर कहा- पापा प्लीज चले जाओ, कोई आ जायेगा...??

मै हस्ते हुये बोला- अगर जिसको आना होता तो वो जाता ही क्यों...!

उसने अपनी आंखें नीचे झुका लीं. मेरी बात सही थी. रिंकी भी मन ही मन मेरे नीचे आने को तरस रही थी.

मैने उसका हाथ फिर से पकड़ा, उसने अपना हाथ मेरी पकड़ से छुड़ाना चाहा.
लेकिन मेरे हाथों की पकड़ इतनी ज्यादा सख्त थी कि वो अपने आपको मेरी पकड़ से नहीं छुड़ा पा रही थी.

अब मैने उसे आगन में ही धक्का देकर दीवार से सटा दिया. और सामने आकर उसके होंठों पर अपने होंठ रख दिए और उसके होंठों को चूसने लगा.

मेरा चूसने का तरीका इतना ज्यादा मादक था कि वो पानी पानी हो रही थी. फिर भी वो दिखाने के लिए मुझसे बोले जा रही थी- छोड़ो पापा छोड़ो …

कुछ ही पलों में उसने मेरे होंठों को काटना आरम्भ कर दिया. यहां तक कि मेरे मुँह से आ रही सिग्रेट की महक भी उसे अब अच्छी लगने लगी थी.

मै अपने काम में लगा रहा और उसने मेरे गले पर, सीने में, किस करना शुरू कर दिया. दो मिनट किस करने के बाद वह मुझसे दूर हो गयी और मैं उसकी आंखों में देखने लगा.

मैने अपनी शर्ट के बटन खोलना शुरू कर दिया. वो चुपचाप मुझे देख रही थी.

मैने अन्दर बनियान नहीं पहनी थी. जल्दी ही मैने अपनी शर्ट निकाल फेंकी. वो मेरी मर्दानगी भरे सीने को देखकर उस पर निहाल हो गई. वो मेरी आंखों में देख रही थी. मै भी उसकी आंखों में एकटक देख रहा था.

कुछ समय बाद मै उसके करीब आया और उसे अपने सीने से चिपका लिया. वो मेरी गर्दन पर फिर से किस करने लगी.

इस बार मैने अपना हाथ उसकी पीठ पर रख दिया और उसकी कमर को सहलाता हुआ उसकी बढ़ती धड़कनों को सुनने लगा.
धीरे धीरे मै अपना एक हाथ उसके बालों के जूड़े तक ले गया और उसे भी खोल दिया.

उसके बाल खुल कर बिखर चुके थे और मै उसके बालों से खेलने लगा. फिर मैने पीछे अपने हाथ ले गया और उसकी दोनों आस्तीनों से उसकी समीज को निकाल कर अलग कर दिया.

अब वो मेरे सामने ऊपर से नग्न अवस्था में थी.

उसने मुझे धक्का देकर दूर किया और अपने हाथों से अपने स्तन छुपाते हुए बेडरूम की ओर जाने लगी. मै मदमस्त सांड की तरह लार् टपकाते हुए उसका पीछा कर रहा था.

वो बेडरूम के पास जाकर रुक गई और पलट कर मेरी तरफ देखा; मुझे आंखों ही आंखों में बेडरूम में आने का न्यौता सा दे दिया.

फिर से वो आगे बढ़ने लगी. बेड के पास जाकर खड़ी हो गई.

मै उसके पीछे पीछे आ गया और पीछे से हाथ डालते हुए उसके पेट को सहलाने लगा. दूसरे हाथ को उसके सीने पर हाथ रखते हुए मम्मों को हल्का हल्का दबाने लगा.

अब मुझसे कंट्रोल नहीं हो रहा था. बेड के दूसरे तरफ लगे आईने में मैं देख रहा था. मैने आगे से उसकी सलवार के नाड़े को अन्दर हाथ डाल कर खींचा और सलवार एक ही क्षण में जमीन पर गिर गई.

मैंने उसकी तरफ घूम कर देखा. उसकी आंखों में हवस का नशा था. मुझे लग रहा था कि मै जल्दी से उसे बेड पर लेटा दु और अपना काम चालू कर दू. मेरे लिए खुद को कंट्रोल कर पाना बहुत मुश्किल हो रहा था.

हम दोनों बिस्तर पर निवर्स्त्र थे मै बैठकर उसके पूरे शरीर को देख रहा था. उसके मम्मों पर, कमर पर, चेहरे पर हाथ फेरते हुए मैने उसे मदहोश कर दिया था.

मै उसके पूरे जिस्म को चूमे जा रहा था.
चूमते हुए मै उसके मम्मों पर भी आ चुका था और मम्मों को जोर जोर से चूसने लगा.
वो मेरे सिर पर हाथ रखकर अपने मम्मों पर उसे दबाने लगी थी. इसलिए मै मम्मों को दांतों से दबाने काटने भी लगा था. उसे मीठा दर्द होने लगा था लेकिन मेरा साथ पूरी तरह से दे रही थी. और मै उसे मछली जैसे तड़पा रहा था.


कुछ देर बाद मैने उठकर उसके चेहरे पर हाथ रखा और जल्द ही उसका हाथ पकड़कर उसे डॉगी पोजिशन मे घुमा दिया.
उसके बालों को एक साथ करके पकड़ा और खींचते हुए बोला- मेरी जान, मैंने तीन दिनो से इस समय के लिए इंतजार किया है.

रिंकी की चूत तो पहले से ही गीली हो चुकी थी और फिर मुझे पता ही ना चला कब हम दोनों आपस में दो जिस्म एक जान हो गए.

बाप बेटी की वासना की आग जब शांत हुयी तो नंगे बदन एक दूसरे की बाहों के आगोश में मैने बड़े प्यार से रिंकी से कहा-‘तुम सचमुच ही मुझे बहुत ही आनंद देती हो। तेरी मम्मी तो मुझे पसन्द ही नहीं करती है। वह कहती है कि तुम तीन-तीन दिन तक दाढ़ी ही नहीं बनाते हो। तुम्हे किश कौन करेगा। तुम्हारी दाढ़ी कांटों की तरह मेरे गालों पर चुभती है।

रिंकी, दाढ़ी तो मेरी आज भी बढ़ी हुई है। क्या तुम भी मेरी दाढ़ी से परहेज करती हो?’

पापा के यह कहते ही रिंकी हंसने लगी-‘डार्लिंग यही तो, मम्मी औरत है या कोई मोम की गुड़िया…? भला पुरुष की दाढ़ी की चुभन भी कहीं स्त्री को पीड़ा पहुँचाती है! स्त्री को पीड़ा तो तब पहुंचती है, जब पुरुष बीच में ही साथ छोड़ जाता है।

पापा क्या तुम्हें नहीं पता, सैक्स में नोंच-खरोच का कितना महत्व है? दाढ़ी नोंच-खरोच का ही तो काम करती है। ईश्वर ने कुछ सोच-समझकर ही पुरुष को दाढ़ी दी है। सच तो यह है कि मैं तुम्हें तुम्हारी दाढ़ी से ही पसन्द करती हूं। यह कहते-कहते रिंकी ने मुझ को बाहों में समेट लिया और अपने चिकने और मुलायम गाल मेरे दाढ़ीदार गाल पर रखकर रगड़ने लगी।

यह मेरे लिए एक नया ही अनुभव था। मैं आश्चर्यचकित होकर सोच रहा था रिंकी मुझे यानि पापा को इसलिए पसन्द करती है, क्योंकि उसे पुरुष की दाढ़ी की चुभन अच्छी लगती है और इसकी मम्मी को मेरे चिकने गाल पसंद हैं। ये दोनों स्त्रियां ही हैं, लेकिन इन की पसन्द अलग-अलग है।

शायद यही वजह है कि स्त्री-पुरुष अपने जीवन साथी को छोड़कर कहीं बहक जाते हैं। बहक क्या जाते हैं, अपने मनपसंद किसी सुयोग्य साथी की तलाश कर लेते हैं। मैं भी तो एक मर्द ही हूं। क्या मेरी पसन्द अपने विचारों के अनुकूल स्त्री की नहीं है? क्या अपनी पसन्द की चीज को ढूंढना या पाना गलत है? नहीं, हम बाप बेटी बहके या भटके नहीं हैं, हमने तो अपनी-अपनी पसंद को हासिल किया है।


जारी है..... ✍🏻
Super update
 
  • Like
Reactions: manu@84

Sanju@

Well-Known Member
4,742
19,082
158
क्या मेरी पसन्द अपने विचारों के अनुकूल स्त्री की नहीं है? क्या अपनी पसन्द की चीज को ढूंढना या पाना गलत है? नहीं, हम बाप बेटी बहके या भटके नहीं हैं, हमने तो अपनी-अपनी पसंद को हासिल किया है।

"कुसुम की व्यस्तता नौकरी में तरक्की होने के साथ साथ बढ़ती जा रही थी. कई बार अपने विभाग के साथ साथ दूसरे विभागों में भी जाना पड़ता था. कई बार बड़े अधिकारियों के प्रेशर को देख कर उसका मन करता नौकरी छोड़ दे. लेकिन उसकी महतावकानछा और आत्म विश्वास उस को नौकरी छोड़ने नहीं दे रहे थे. और फिर कुसुम का अपना बड़ा अफसर बनने का सपना भी उसे पूरा करना था. इसलिए अब उसकी लाइफ दिन प्रतिदिन ऑफिस की फाइलों के साथ उलझी हुई रहती थी."

इस वक्त दिन के एक बज रहे थे हम बाप बेटी एक दूसरे के आगोश में नंगे जिस्म लिपटे हुए सुकून का अनुभव कर रहे थे वही दूसरी ओर उस वक्त कुसुम ऑफिस की फाइलों के साथ उलझी हुई थी तभी अचानक से उसके मोबाइल पर अज्ञात नम्बर से एक वॉइस काल आया.

फोन करने वाली लड़की ने अपना नाम श्रुति बताया... ! कुसुम ने उसे फोन करने के विषय में पूछा, तो वह हकलाते हुए बोली, ‘आंटी, मुझे आपकी बेटी रिंकी के बारे में कुछ बताना है’

अपनी बेटी रिंकी का नाम सुनते ही’ कुसुम का मन शंका से भर गया.

‘क्या बताना है..????

यही कि रिंकी पिछले एक महीने से ज्यादा समय से कॉलेज नही आई है और आपके पति और बेटी रिंकी शायद…’ बोलते बोलते वह रुक गई.

‘बोलो,’ अपनी बढ़ती हुई धड़कनों को काबू करते हुए कुसुम बोली.

‘आंटी, प्लीज, मेरा नाम मत लीजिएगा. उन का न, चक्कर चल रहा है,’ धीरे से उस लड़की ने कहा.

‘क्या?’ कुसुम कुछ पलों के लिए स्तब्ध रह गई. सारी जगह उसे घूमती सी प्रतीत हुई, फिर संभलती हुई बोली, ‘क्या बकवास कर रही हो, ये सब तुम्हे कैसे पता...??? कोई प्रूफ या सबूत है तुम्हारे पास..???

‘आंटी,’ घबराती हुई वह बोली.

‘तुम चिंता मत करो. मैं तुम्हारा नाम नहीं लूंगी,’ कुसुम के आश्वासन पर श्रुति ने एक
वॉइस रिकॉर्डिंग ऑडियो क्लिप जिसमे रिंकी उसे अपने पापा की प्रेम कहानी नमक मिर्च लगा कर बताती थी, wahtsup पर सेंड कर दिया.

पूरी ऑडियो क्लिप सुनने के बाद चिंतित, परेशान कुसुम इधर से उधर चक्कर लगा रही थी. कुसुम को बहुत बार शक भी हुआ. लेकिन उस की स्वयं की व्यस्तता, और अपने अरुण पर अथाह विश्वास ने, उस के विचारों को झटक दिया. उसने अपने पति के कॉलेज के एक-दो कलिग से फोन कर पूछा तो उन्होंने जबाब दिया कि प्रोफेसर अरुण साहब तो कॉलेज आते ही नहीं है.

दोपहर के 2 बजे बजने वाले थे कुसुम ने ऑफिस से हाफ डे की छुट्टी लेकर आखिर, मे निर्णय लिया कि वह खुद देखने जाएगी अपने पति और बेटी की वासना का नँगा नाच... . !

भरी दोपहरी मे अकेले ऑटो में दिमाग में चल रहे तूफान के साथ, वह कब अपने माँ के घर (मायके) के पास पहुंच गई, पता ही न चला. उसके पति अरुण की बाइक सुबूत के तौर पर वहां खड़ी थी.

ऑटो वाले को पैसे देते हुए वो बार बार गुस्से से इधर उधर देख रही थी कि सामने से कुसुम को अपने माँ बाप आते हुए दिखाई दिये बाप की आँखों पर काला चश्मा लगा देख समझ आ रहा था कि वो मोतियाबिंद का ओपरेशन करा कर आ रहे हैं. जैसे ही वो नजदीक आये तो कुसुम की माँ आंखें मलती हुई उससे बोली अरे कुसुम तू बेटी आ गयी जरूर ही अपने पिताजी को देखने आई होगी...????

‘मैं, उस आदमी को देखने आई हूं जो इस समय तुम्हारे घर में मौजूद है,’ तमतमाती हुई कुसुम बोली.

‘यहां तो कोई नहीं है,’ कुसुम की माँ ढीठता से बोली.

‘यह मोटर साइकिल किसकी है?’ दरवाजे पर अपने पति अरुण की खड़ी बाइक की ओर इशारा करती कुसुम ने तल्खी से पूछा.

‘मुझे नहीं पता,’ कुसुम की माँ अभी भी अपनी ढीठता पर कायम थी.

‘और कितना झूठ बोल कर सच छिपाओगी माँ?’ कुसुम चिल्लाती हुई बोली.

गुस्से से भरी विक्षिप्त सी कुसुम तब तक घंटी बजाती रही, जब तक कि दरवाजा न खुल गया.

थोड़ी देर में एक दरवाजा खुलने की आवाज आई. बदन पर अस्तव्यस्त से सिर्फ एक मात्र कपड़े "कुर्ते" को पहने हुए रिंकी बाहर निकली. यह कैसा शोर हो रहा है?,

मम्मी, आप?’ कुसुम को देखते ही उस के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगीं.

नफरत की निगाहों से रिंकी को घूरती हुई कुसुम उस कमरे की ओर जाने लगी जहां से रिंकी निकली थी. घबराई सी रिंकी ने उसे रोकने की असफल कोशिश की. कुसुम ने एक ओर उसे धक्का दे कर कमरे में घुस गई. जहाँ उसका पति प्रोफेसर साहब अरुण कुमार बिस्तर पर आराम से निर्वस्त्र बेखबर सो रहे थे. चादर एक ओर सरकी हुई थी.

‘अरुण,’ पूरी ताकत से कुसुम चिल्लाई.


आंखें मलता हुआ मै उठा. कुसुम को देख कर मै निहायत ही आश्चर्य से भर गया. सकपकाते हुए अपने को ढकने की कोशिश करने लगा.

‘नंगे तो तुम हो ही चुके हो, ढकने के लिए बचा ही क्या है?’ शर्ट मेरी तरफ फेंकती हुई हिकारत से कुसुम बोली और कमरे से बाहर आ गई.

रिंकी सिटपिटाई सी खड़ी हुई थी. थोड़ी देर में मै भी कपड़े पहन कर बाहर आ गया. आंखों में क्रोध की चिंगारी समेटे कुसुम थोड़ी देर मुझे ऐसे देखती रही, जैसे क्रोध की ज्वाला में भस्म कर देगी. लेकिन वह आग उगलती, इस से पहले ही मैने लड़खड़ाते स्वर में पूछा, ‘‘ऐसे क्यो देख रही हो तुम? कभी पहले नहीं देखा क्या मुझे?’’

‘‘देख तो महीनों से रही हूं. लेकिन मन में इंसानियत का भ्रम पाले थी. तुम्हारे अंदर का हैवान आज नजर आया है. दिल चाहता है या तो खुद मर जाऊं या तुम्हें मार डालूं. मैं ने कभी सोचा तक नहीं था कि तुम इतने जाहिल और कमीने निकलोगे.’’

‘‘ऐसा क्या किया मैं ने, जो इतना गुस्सा कर रही हो?’’ मैने कहा तो कुसुम गुस्से में बोली,


‘‘किया तो तुम ने वो है, जिसे करने से पहले हैवान भी कई बार सोचता है. मेरी कोख से जन्मी बेटी रिंकी को मेरी सौत बना दिया तुम ने. बिना यह सोचे कि इस का अंजाम क्या होगा?’’

मेरे पास उसकी बात का कोई जबाब नही था. वो बात ही कुछ ऐसी थी. कुछ नहीं सूझा तो मै हथियार डालते हुए बोला, ‘‘जो हुआ, वो हो गया. मैं खुद अपनी नजरों में गिर गया हूं. तुम मेरी पत्नी हो, जो चाहे सजा दे सकती हो.’’

कुसुम गुस्से में थी. आंखें अंगारे की तरह दहक रही थीं. वह मुझ को देख कर घृणा भरे स्वर में बोली, ‘‘तुम ने मेरी बेटी के साथ जो कुछ किया है, उस के लिए अगर तुम्हें मौत की सजा भी दी जाए तो वह भी कम है.’’

‘‘मेरी मौत से अगर तुम्हे शांति मिलती है तो मुझे मौत दे दो, लेकिन सोचो मेरी मौत से तुम्हारी मांग तो उजड़ ही जाएगी, रिंकी भी अनाथ हो जाएगी.’’

मेरी नीयत में बेशक फरेब था. लेकिन मैने जो कहा, वह सोलह आने सच था.

'मेरी मौत के बाद न कुसुम की जिंदगी में कुछ बचता और न उस की बेटी रिंकी का भविष्य सुरक्षित रह पाता.' मेरी बात सुन कर कुसुम सोच में डूब गई. उस की कुछ समझ में नहीं आ रहा था!

मै पास आ कर कुसुम का हाथ पकड़ कर बाहर जाने के लिए मुड़ा. तो कुसुम ने गुस्से से अपना हाथ झटक दिया. जाते जाते अपनी मां से कुसुम बोली, ‘शर्म नहीं आती तुम्हें, क्या ये सब देखने के लिए मैने तुम्हारे भरोसे रिंकी को यहा भेजा था, तुम्हारे ही घर में, तुम्हारे बिस्तर पर, तुम्हारी आँखों के सामने, तुम्हारी नातिन (पोती) मेरे आदमी (पति) के साथ सो रही है.’

‘ हमारे बारे में क्या बक रही है, अपने आदमी (पति) से पूछ,’ बेशर्मी से कुसुम की माँ ने जवाब दिया.

‘तो… यह है तुम्हारी औकात,’ मेरे ओर देखती व्यंग्य से कुसुम कह एक झटके में बाहर निकल गई.

‘कुसुम, कुसुम’ मै बोलता ही रह गया.

वक्त की निस्तब्धता और कालिमा ऑटो में बैठी कुसुम के अंतर्मन को भेद कर उस को तारतार कर रही थी. एक आंधी सी उस के अंदर उठ रही थी. जिस में उड़ा चला जा रहा था उस का मान-सम्मान, प्रेम और विश्वास. दर्द घनीभूत हो सैलाब बन कर उस की आंखों से बह निकला.

आज अपना ही घर कितना पराया सा लग रहा था. थोड़ी देर में मै भी घर पहुंच गया. मेरी हिम्मत ही नहीं हुई कुसुम से कुछ बोलने की. मै सीधे बैडरूम में चला गया. कुसुम वहीं सोफे पर ढह गई. मस्तिष्क में उठा बवंडर रुकने का नाम ही नहीं ले रहा था. मन कर रहा था कि अभी जा कर अरुण को झकझोर कर पूछे ‘क्यों किया मेरे साथ ऐसा’. फिर सास ससुर का खयाल आते ही खामोश हो गई. आहत मन जोर से रोने भी नहीं दे रहा था. समय बहुत भारी लग रहा था. घड़ी में देखा शाम के 7 बज रहे थे.

एक मन कर रहा था कि भाग जाए यहां से. अपने पति के प्रति मन घृणा से भर गया. एक मन कर रहा था कि कभी उस की शक्ल न देखे. उसे समझ ही नहीं आ रहा था अपना दर्द किस को बताए, ससुर को… वह तो हार्ट पेशेंट है.....!


‘क्या हुआ बहू,’ असमंजस से भरी सास बोली.

‘कुछ नही,’ आंसूओं को पोंछ्ती हुई कुसुम बोली.

फिर रो क्यो रही हो...??? जो भी बात है बहू..; बताना तो पड़ेगा अपने सास ससुर को,

हां, यह सही कहा है..... मेरे पूज्य बापूजी (ससुर) ने समर्थन करते हुए कहा.

रोते रोते कुसुम ने उन्हें सारी बातें बता दीं. सास ससुर दोनों सन्न रह गए. अपने बेटे को धिक्कारते हुए और स्वयं अपने बेटे के इस कुकृत्य के लिए कुसुम से देर रात तक माफी माँगते रहे....!

दिल, दिमाग से टूटे शरीर को कब नींद ने अपनी आगोश में ले लिया, बेचारी कुसुम को पता ही न चला.

‘ बहु,’ सास अपने हाथों मे चाय की प्याली पकड़े उसे उठा रही थी. कुसुम एकदम से उठी. घड़ी सुबह के 8 बजा रही थी. समय देख कर कुसुम हड़बड़ा गई. बीते कल की बात याद कर एक बार लगा शायद कोई बुरा सपना देखा था. अगले ही पल सचाई का एहसास होते ही अपने सर को सास के काँधे में रख कर अपनी आगोश में भर कर जोरजोर से रोने लगी. हाल में बैठ कर अखबार पढ़ रहे ससुर साहब एकदम से घबरा गये. सास भी ‘कुसुम…कुसुम’ कहते रोने लगी.

काफी देर रोने के बाद जब मन हल्का हुआ तो अचानक याद आया कुसुम को कि 12 बजे औफिस में मीटिंग थी. उसने तुरंत फोन पर सूचित किया कि वह औफिस नहीं आ पाएगी. जो कुसुम घर से औफिस जाने के लिए बेचैन रहती थी, आज वही ऑफिस भी उस को काटता हुआ लग रहा था.

मन ही मन कुसुम एक घुटन सी महसूस कर रही थी, जो उस को अंदर ही अंदर से तोड़ रही थी. आखिर, उस ने अपने सास ससुर, को बुला कर अपना निर्णय सुना दिया तलाक लेने का........????

इतना आसान नहीं यह सब. कैसे रहेगी अकेले.? हम समझाएंगे अरुण को… सास ससुर ने समझाया लेकिन वो नही मानी.

आखिर में घर में एक पंचायत बुलाई गई, उसमे कुसुम के माँ बाप, दीदी जीजा, रिंकी, भाई, एवम अन्य रिश्तेदारों सब को बुलाया गया.

शाम को पंचायत के शुरु होने से पहले ही मै कुसुम से हाथ जोड़ कर माफी मांगने लगा...!

‘क्यों किया तुम ने मेरे साथ विश्वासघात?’ मेरा हाथ छिटकते हुए आक्रोशित कुसुम चीख उठी.

‘तुम तो अपने जौब में इतनी मस्त रहती थीं, मेरे लिए तुम्हारे पास समय ही नहीं था, क्यो चली गई थी पति, घर-परिवार को छोड़ दो कोड़ी की नौकरी करने दूसरे शहर’ बेशर्मी से मै भी बोला.

मेरे तर्कों से हैरान हो कुसुम बोली. काश तुम्हे ये समझ आ गया होता ‘किस के लिए गयी थी, खुद के लिए या फिर अपने परिवार के बेहतर भविष्य बनाने के लिए.

पति-परिवार का नाम ना ही लो तो अच्छा है,...., एक पत्नी होने की जिम्मेदारी तूने समझी ही कब थी कुसुम..... 'तेरा ही तो सपना है बड़ी अफसर बनने का,’

मै अपने बचाव में जितना गिरता जा रहा था, कुसुम उतना ही आहत होती जा रही थी. हम दोनों को लड़ते देख ‘अब स्थिति रिंकी के सामने बिलकुल ही स्पष्ट थी, न तो वो दोषी है और न ही पापा दोषी हैं। चरित्रहीन कोई नहीं है। एक-दूसरे के प्रति अरूचि, नापसंदगी और परिस्थितिजन्य लाचारी ने ही एक दूसरे से संबंध बनाने के लिए मजबूर किया है। जो लोग इन बातों को नहीं समझते, वे ही ऐसे संबंधों को गलत मानते हैं। '

सोचते सोचते अन्तः रिंकी के विचारों की श्रृंखला टूट गई।

और फिर रिंकी के होंठों से अनायास ही बोल फट पड़े- मै मम्मी को भी जानती हूं और पापा को भी जानती हूं। मुझे अच्छी तरह से याद है, मम्मी पहले ऐसी नहीं थी। मम्मी पापा को नजरअंदाज शुरू से ही करती आ रही है। आखिर कब तक वह अपने प्रति मम्मी की उदासीनता को ओढ़े रहते? कभी न कभी तो किसी न किसी से तो उन्हें जुड़ना ही था। मैं खुद की शुक्रगुजार हूं कि मैने पापा को समझा है और जिसने पापा की पीड़ा को और बढ़ने नहीं दिया है।

अगर पापा के जीवन में मै नहीं आई होती तो क्या पापा दिमागी रूप से पागल नहीं हो गये होते? इन अवैध संबंधों ने ही तो उन्हें यौनरोगी होने से बचाया है।’

जब प्रकृति के सारे कार्य समय से होते हैं तो फिर मनुष्य किसी का इंतजार कब तक करेगा। मै भी जवान हू, मुझे भी इंद्रिय-सुख चाहिए ही चाहिए। किसी को बदचलन या चरित्रहीन कहना जितना आसान है, उसको समझना उतना ही कठिन है।

मम्मी पापा के साथ रह भी रही है और अपने तरीके से जी भी रही है। पापा भी मम्मी के साथ रह रहे हैं और अपना जीवन भी जी रहे हैं। घाटे में कोई है तो वह मैं हूं। मुझे मम्मी-पापा की दोहरी जिन्दगी के साथ आये दिन समझौता करना पड़ता है।

मुझे डर है कहीं मैं भी दोहरी जिन्दगी जीने की आदी न बन जाऊं। मम्मी पापा का झूठा प्यार किसी दिन मेरे लिए धीमा जहर भी बन सकता है।’ रिंकी अभी और बोलती इतने में मेरे पूज्य बापूजी बोल पडे-

‘रिंकी......, तुम यहा से बाहर जाओ।

फिर तपाक से रिंकी उठी और इंसानियत, प्यार, विश्वास सब का गला घोंट कर भड़ाक से दरवाजा खोल कर घर से बाहर चली गयी.

उस के बाद तो कुछ भी सामान्य नहीं रहा. अभी पंचायत मे आये शामिल लोग और रिश्तेदार सोच ही रहे थे कि क्या फैसला करे कि.....????

‘अरुण तुम भी निकलो यहां से, मुझे तुम से अब कोई रिश्ता नहीं रखना,’ कुसुम ने भी अपना फैसला सुना दिया कुसुम पूरी तरह से अपना आपा खो चुकी थी.

‘यह मेरा भी घर है,’ मैने भी ऊंची आवाज में कहा.

‘मत भूलना मै इस घर में ब्याह कर आई हू, भाग कर नही आई हू, इसमें आधा हिस्सा मेरा भी है और मैं, चाहू तो तुम्हे अपनी बेटी के ब्लात्कार के केस में अभी जेल भिजवा सकती हू.’ क्रोध से कांपती हुई कुसुम बोली.

मैने बिना वक्त गंवाए अपना सामान पैक किया और बाहर निकल गया. सारे परिजन बेबसी से दर्शक बने खड़े रह गए.



जारी है.....??? ✍🏻
Awesome update
श्रुति ने अपन बदला लेने के लिए कई हस्ती खेलती ज़िंदगियों में जहर घोल दिया
 
  • Love
Reactions: manu@84

Sanju@

Well-Known Member
4,742
19,082
158
मैने बिना वक्त गंवाए अपना सामान पैक किया और बाहर निकल गया. सारे परिजन बेबसी से दर्शक बने खड़े रह गए.

मै दरवाजे पर खड़ा था और रिंकी मेरी बाइक के पीछे खड़ी थी। कुछ बोलने से पहले ही हम दोनों नजदीक आकर खड़े हो गये। मैंने देखा, उसके चेहरे पर गजब की ताजगी और आत्मसंतुष्टि थी। उसके मन में दादाजी (मेरे पिता) के प्रति कोई मैल भाव नहीं था। वो खुद को भी एक बदचलन लड़की नहीं मानती थी। अपनी मम्मी के लिए भी उसके मन में कोई बैर भाव नहीं था। परिस्थितियां ही ऐसी बन गई थीं कि सब घालमेल हो गया था।

उसके भीतर एक आत्ममंथन चल रहा था कि मैने उसे टोक दिया-‘ रिंकी, क्या सोच रही हो?

‘कुछ खास नही, पापा।’ मैं सोच रही थी-‘अब मैं इस प्यार और लगाव को क्या कहूं? कैसे यह कह दूं, कि मै बदचलन हूँ या मेरे पापा चरित्रहीन हैं? मुझे एक साथ इतने सारे लोग प्यार करने वाले मिले हैं। मेरे लिए तो सभी अच्छे हैं। यह कहते हुए उसने मेरी ओर देखा तो मै उससे आंखें मिला न सका!

कुछ पल की चुप्पी के बाद वो बोली-‘पापा, तुम मम्मी के लिए या दुनिया के लिए जैसे भी हो लेकिन मेरे लिए तो सिर्फ मेरे सबसे अच्छे पापा हो और मम्मी से जो खुशी तुम्हे मिलनी चाहिए थी वो हर खुशी मै तुमको दूंगी.

‘मैं रिंकी के आशय को समझ गया था, उसका इशारा हमारे इस नाजायज रिंश्ते को जायज बना कर एक नया नाम देने की तरफ था "

मै उससे बोला.. 'मै जानता हूं रिंकी, जैसे ही कुसुम से मेरा तलाक़ होगा हम जल्द ही शादी कर अपने इस रिश्ते को एक नई शुरवात करेंगे’ यह सुनते ही उसने मुझे अपने गले से लगा लिया।

मै बिना ये सोचे समझे कि अपनी जिस पत्नी को मै तलाक़ देकर पीछा छुड़ाने की बात कर रहा हूँ वो 4-5 महीने की गर्भ से थी, और मै कुछ महीनों में पिता बनने वाला हू. रिंकी के मोहजाल में फंसा मै इस बार उसे छोड़ने अपने ससुराल नहीं गया । मै और रिंकी कहीं दूर जाकर बस गए।

दूसरी तरफ एकएक कर के सब घर वाले कुसुम को तसल्ली दे कर चले गए उसकी बहनो को छोड़ कर. बहने भी कब तक रुकती, दो तीन दिन होते होते वह भी चली गयी.

औफिस वालों का बहुत सहयोग कुसुम को मिल रहा था. उसके सीनियर विभाग से बाहर के विभागों की मीटिंग में कुसुम को वे नहीं भेजते. 6-7 महीने की गर्भास्था के दौरान औफिस और घर को संभालना कुसुम के लिए आसान नहीं था. कुसुम शारीरिक रूप से कम मानसिक रूप से ज्यादा थक गई थी. सचाई यह थी कि वह सास ससुर के साथ होने के बाबजूद नितांत अकेली थी.


ऐसा नहीं कि उस को अपने पति अरुण की कमी नहीं खलती थी. कई बार एक अजीब सा अकेलापन उस को डसने लग जाता. रात को जरा सी आहट से डर और घबराहट से आंख खुल जाती थी. थकाहारा शरीर पुरूष के स्नेहसिक्त स्पर्श और मजबूत बांहों के लिए तरस रहा था जिस के सुरक्षित घेरे में वह एक निश्चिंतताभरी नींद सो सके. रात भर बस वो यही गाना गुनगुनाती 👇



दूसरी तरफ उस दिन के बाद तो मै जैसे अपने घर को भूल ही गया. ऐसा कभी मेरे साथ भी हो सकता था ये मैने कभी सोचा नही था. वकील की सलाह मशविरा के बाद मैने कुसुम के ऊपर झूठा मुकदमा दर्ज कराया, मैने कुसुम की चरित्रहीनता का तो कुसुम ने मेरे खिलाफ सिर्फ घरेलू हिंसा, मारपीट का मामला दर्ज कराया।

आपसी सहमति से तलाक मिलने में ज्यादा समय न लगा. और 7-8 महीने के बाद ही हमें तलाक़ मिल गया इन 7-8 महीनों के बीतते बीतते कुसुम ने एक प्यारे से बेटे को जनम दिया.

वह दिन अच्छे से याद है मुझको जब कोर्ट ने हमारे तलाक पर मुहर लगाई थी. हम दोनों पति-पत्नी के हाथ में तलाक के काग़ज़ों की प्रति थी। दोनों चुप थे, दोनों शांत, दोनों निर्विकार।


यह महज़ इत्तेफाक ही था कि दोनों पक्षों के परिजन एक ही टी-स्टॉल पर बैठे थे , यह भी महज़ इत्तेफाक ही था कि हम दोनों तलाकशुदा पति-पत्नी एक ही मेज़ के आमने-सामने जा बैठे।


लकड़ी की बेंच और हम दोनों .


''कांग्रेच्यूलेशन .... आप जो चाहते थे वही हुआ ....'' कुसुम ने कहा।


''तुम्हें भी बधाई ..... तुमने भी तो तलाक दे कर जीत हासिल की ....'' मै बोला।


''तलाक क्या जीत का प्रतीक होता है????'' कुसुम ने पूछा।


''तुम बताओ?''


मेरे पूछने पर कुसुम ने जवाब नहीं दिया, वो चुपचाप बैठी रही, फिर बोली, ''तुमने मेरे खिलाफ चरित्रहीन पत्नी का मुकदमा दर्ज किया था....अच्छा हुआ.... अब तुम्हारा चरित्रहीन स्त्री से पीछा छूटा।''


''वो मेरी गलती थी, मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए था'' ''मै जानता हूँ पुरुष इसी हथियार से स्त्री पर वार करता है, जो स्त्री के मन और आत्मा को लहू-लुहान कर देता है... तुम बहुत उज्ज्वल हो। मुझे तुम्हारे बारे में ऐसी गंदी बात नहीं करनी चाहिए थी। मुझे बेहद अफ़सोस है, '' मै बोला।


कुसुम चुप रही, न दुःख, न गुस्सा। उसने एक बार मुझ को देखा।


कुछ पल चुप रहने के बाद मैने गहरी साँस ली और कहा, ''तुमने भी तो मेरे खिलाफ मारपीट वाला मुकदमा दर्ज किया था।''


'' झूठा किया था''.... कुसुम बोली


कुछ देर चुप रहने के बाद फिर बोली, ''मैं अगर तुम्हारा सच कोर्ट में बताती तो अभी तुम यहा नही जेल में होते... हम दोनों को एक दूसरे से अलग होना था सो हो गये बस अब यही सच है....!


प्लास्टिक के कप में चाय आ गई।
कुसुम ने चाय उठाई, चाय ज़रा-सी छलकी। गर्म चाय उस के उंगलियों पर गिरी।


स्सी... की आवाज़ निकली।


मेरे गले में उसी क्षण 'ओह' की आवाज़ निकली। कुसुम ने मुझको देखा। मै उसी को देखे जा रहा था।


''तुम्हारा कमर दर्द कैसा है?''
''ऐसा ही है कभी वोवरॉन तो कभी काम्बीफ्लेम,'' कुसुम ने बात खत्म करनी चाही।


''तुम एक्सरसाइज भी तो नहीं करती।'' मैने कहा तो कुसुम फीकी हँसी हँस दी।


चाय की पहली चुस्की लेने के बाद मै कुछ देर सोचता रहा, फिर बोला, ''तुम्हें चार लाख रुपए देने हैं और छह हज़ार रुपए महीना भी।''


''चार लाख अगर तुम्हारे पास नहीं है तो मुझे मत देना,'' ''वो तो तुम छह हज़ार रुपए महीना मुझे देते रहना, '' बेटा बड़ा होगा ... सौ खर्च होते हैं....'' हमारे बेटे को आँचल में छिपाते हुए कुसुम ने कहा।


उसके स्वर में पुराने संबंधों की गर्द थी।
मै उसका चेहरा देखता रहा....कितनी सह्रदय और कितनी सुंदर लग रही थी सामने बैठी स्त्री जो कभी मेरी पत्नी हुआ करती थी। मैं अपनी मर्दानगी, वासना, हवस के नशे में रहा। काश, जो मैं इसके जज़्बे को समझ पाता।''


कुसुम भी मुझ को देख रही थी और सोच रही थी, ''कितना सरल स्वभाव का है यह आदमी, जो कभी मेरा पति हुआ करता था। कितना प्यार करता था मुझसे...!


दोनों चुप थे, बेहद चुप।
दुनिया भर की आवाज़ों से मुक्त हो कर, खामोश। दोनों भीगी आँखों से एक दूसरे को देखते रहे....!


''मुझे एक बात कहनी है, '' आवाज़ में झिझक थी।


''कहो, '' कुसुम ने नजल आँखों से मुझे देखा।


''डरता हूँ,'' मैने कहा।


''डरो मत। हो सकता है तुम्हारी बात मेरे मन की बात हो,'' कुसुम ने कहा।


''तुम बहुत याद आती रही,'' मै बोला।


''तुम भी,'' कुसुम ने कहा।


''मैं तुम्हें अब भी प्यार करता हूँ।''


''मैं भी.'' कुसुम ने कहा।


हम दोनों की आँखें कुछ ज़्यादा ही सजल हो गई थीं। दोनों की आवाज़ जज़्बाती और चेहरे मासूम।


''क्या हम दोनों जीवन को नया मोड़ नहीं दे सकते?'' मैने पूछा।


''कौन-सा मोड़?''


''हम फिर से साथ-साथ रहने लगें... एक साथ... पति-पत्नी ना सही तो... बहुत अच्छे दोस्त बन कर।''


''और ये......?'' दूर मोटर साइकिल के पास खड़ी रिंकी की ओर इशारा करते हुए कुसुम ने पूछा।


उस दिन रिंकी भी मौजूद थी. उस के चेहरे पर खिंची विद्रूप विजयी मुसकान कुसुम के दिल को छलनी कर रही थी....!


मेरे पास कुसुम की बात का कोई जबाब न था, मै उठा कुसुम के पास आया और अपने प्यारे से बेटे को उसकी गोदी में से उठाने की कोशिश की. कुसुम ने एकदम से मेरे बेटे को अपनी बांहों में जकड़ कर कठोर शब्दों में बोली, ‘ मेरे बेटे को छूने की भी हिम्मत मत करना.’ और तेज कदमों से उस को ले कर चली गई. मै देखता ही रह गया.


शायद कुसुम को मेरा अपनी खुद की औलाद के लिए तड़पना सुकून सा दे रहा था. मैने जो उस के साथ विश्वासघात किया था, बिना उस की किसी गलती के उस को जो वेदना दी थी, उस की यह सजा तो मुझ को मिलनी ही चाहिए थी.


जारी है..... ✍🏻
Excellent update
वासना के दलदल में फंस कर अरुण ने कुसुम के साथ बहुत ही बुरा किया है और उसे सजा भी मिलनी चाहिए
 
  • Like
Reactions: manu@84

Sanju@

Well-Known Member
4,742
19,082
158
अध्याय - 27 --- " आखिर क्यों "


शायद कुसुम को मेरा अपनी खुद की औलाद के लिए तड़पना सुकून सा दे रहा था. मैने जो उस के साथ विश्वासघात किया था, बिना उस की किसी गलती के उस को जो वेदना दी थी, उस की यह सजा तो मुझ को मिलनी ही चाहिए थी.


कुसुम से तलाकनामा मिलने के कुछ दिनों बाद मैने और रिंकी ने शादी कर ली. अरुण और रिंकी कहीं दूर रहने लग गए यहा तक तो ठीक था लेकिन मेरे माता-पिता (कुसुम के सास ससुर) को जब पता चला कि अरुण और रिंकी ने शादी कर ली है, तो उन्होंने मुझसे सारे रिश्ते नाते तोड़ दिए। उन्होंने सारी संपत्ति अपनी बहू कुसुम के नाम कर दी और सख्त हिदायत दी कि कुसुम बेटा कभी भी अपने पति को माफ नहीं करना । चाहे जिंदगी में किसी भी उम्र में वह तुम्हारे पास वापस आए ।


कुसुम हमेशा सोचती क्या मैं अपने पति को खुश नहीं रख पाई या मेरा सावला रंग उसे पसंद नहीं आया? कितनी ही बातें उसके मन में चलती रहती । क्या किया जा सकता था । समाज में जो बेइज्जती हुई वह अलग अपनी ही कोख से जन्मी बेटी सौतन बन गई । यह तो समझ से परे था कहां गलती हो गई ।


कुसुम के मां बाप भी अब क्या करते , वह तो और ज्यादा शर्मिंदा थे । अपनी ही एक बेटी (नातिन) ने दूसरे बेटी के घर को तबाह कर दिया, नष्ट कर दिया । कम से कम अरुण को तो यह समझना चाहिए था कि इतना पढ़ा लिखा समझदार होने के बाबजूद ये सब किया । अब उनके भविष्य का क्या होगा? जिसके माता पिता ही ऐसे हैं उनके बच्चे कैसे होंगे? उनकी शादी कहां होगी ? किससे होगी ? काश अरुण ने कुछ सोचा होता ।


दोनों ही परिवारों ने मुझ से और रिंकी से अपने सारे रिश्ते तोड़ डाले मै और रिंकी अपनी दुनिया में मस्त हो गए लेकिन एक समय आया जब मेरा रिंकी से मन भर गया। और मुझे फिर से कुसुम से मिलने की बेचनी होने लगी।


कुसुम चाहती तो मुझ को सजा दिलवा सकती थी क्योंकि मैने उसकी बेटी के साथ जो किया था वो किसी अपराध से कम नही था । ऊपर से मै सरकारी नौकरी में था। लेकिन उसने ऐसा कुछ भी नहीं किया और यही बात मुझे बहुत खलने लगी की मैंने कुसुम के साथ कितना गंदा काम किया और कुसुम ने कुछ भी नहीं बोला।


इधर रिंकी भी बहुत अच्छा महसूस नहीं कर रही थी । उसे लगता था कि उसने गलत किया है । उसने विश्वास तोड़ा है अपने परिवार का ,अपनी मां का, अपनी मौसियो का । किस मुंह से अपने परिवार का सामना कर पाएगी । उसे भी समझ में आने लगा कि ये सब कुछ जो हुआ वो सिर्फ उसके तन की प्यास थी, ना कि मन की । क्या किया जा सकता था जो होना था, हो चुका था ।


इसी तरह 6 महीने बीत गए । 1 दिन रिंकी के पेट में जोरदार दर्द हुआ । डॉक्टर से दिखाया तो पता चला उसे कैंसर है । वह भी अंतिम स्टेज का । वह अपने घर वापस जाना चाहती थी । अपनी मम्मी के पास अपनी मम्मी की गोद में सर रखकर माफी मांगना चाहती थी । पर वह किस मुंह से जाती । वह तो खुद मम्मी बनना चाहती थी । लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था । रिंकी अब नहीं रही।


मै वापस जाना चाहता था अपने घर । अपने माता पिता के पास अपने प्यारे से बेटे के पास और अपनी पत्नी कुसुम के पास । लेकिन मुझे कोई उपाय नहीं दिख रहा था । मैने कितने ही बार अपने घर में फोन किया पर किसी ने मुझसे बात नहीं की । मै माफी मांगना चाहता था । मै वापस आना चाहता था । शायद सारे रास्ते बंद थे । मै अभी भी आस लगाए था कि मै एक दिन अपने घर वापस जरूर जाऊंगा ।


और फिर एक दिन बहुत हिम्मत कर वापस अपने घर चला गया । लेकिन मेरे माता-पिता ने मुझे माफ नहीं किया, ना ही घर में घुसने दिया । अपने छोटे से बेटे से बात करना चाहता था उसे गोद में लेकर प्यार करना चाहता था । कुसुम ने भी मुझसे मुंह फेर लिया ।मानो पूछ रही हो कि हमें किस बात की सजा तुमने दी थी ? आज जब मेरी सौतन नहीं रही तो तुम वापस आ गए और अगर वह जिंदा रहती तो.........????


समाप्त.........!


मै SANJU ( V. R. ) बड़े भाई के शब्द रूपी आशीर्वाद और स्नेह के बडौलत ही इस कहानी को समाप्ति की दिशा में ले जाने मे सफल हुआ हू, भैया के लिखे शब्द हमेशा मुझे आगे लिखने के लिए होंसला देते रहे है, लिखा हुआ को पढ़ना सहज नही होता है, जब तक लिखने वाले और पढ़ने वाले के मनोभाव समतुल्य ना हो, जरा सा भी मनोभाव मे विकार हुआ तो लिखा हुआ काला आखर भैस बराबर हो जाता है😁 संजू भईया की सबसे बड़ी खूबी यही है कि वो अंत से ही शुरु करते है, अर्थात पिछला update जहा समाप्त होता है, और नया जहा से शुरु होता है,

संजू भैया की तरह ही अन्य मै सभी पाठकों का तहे दिल से शुक्रिया अदा करता हूँ आपके सहयोग के बिना कहानी को अपनी मंजिल तक लेकर जाना नामुमकिन था, बिना पाठकों के सहयोग, अभाव में ना जाने कितने लेखक कहानियों को अधूरा छोड़ देते है....!

धन्यवाद..... 🙏🏻
बहुत ही शानदार और लाजवाब अपडेट है
रिंकी और अरुण को अपनी गलती का एहसास हो गया लेकिन अब क्या फायदा अब तो सब की जिंदगी तबाह हो गई है अब माफी मांगने से क्या फायदा इंसान वक्त रहते नहीं समझता है लेकिन जब वह पूरी तरह टूट जाता है जब उसे समझ आता है कि उसने गलत किया है यही हाल अरुण का है
 

manu@84

Well-Known Member
8,460
11,832
174
बहुत ही शानदार और लाजवाब अपडेट है
रिंकी और अरुण को अपनी गलती का एहसास हो गया लेकिन अब क्या फायदा अब तो सब की जिंदगी तबाह हो गई है अब माफी मांगने से क्या फायदा इंसान वक्त रहते नहीं समझता है लेकिन जब वह पूरी तरह टूट जाता है जब उसे समझ आता है कि उसने गलत किया है यही हाल अरुण का है
बहुत बहुत शुक्रिया भाई, कहानियों के पटल पर अब ये कहानी अन्य कहानियों के नीचे दब चुकी थी, आपके मंतव्य से फिर से कहानी पटल पर चमकने लगी। इसके लिए आपको धयवाद.... आपके लिखी गई सारे कॉमेंट शानदार और प्रेणना स्त्रोत है...। जिंदगी की उलझनों से सुलझने पर किसी नयी कहानी की शुरुआत होगी।

धन्यवाद भाई 🙏🏻
 
  • Like
Reactions: Sanju@

Sanju@

Well-Known Member
4,742
19,082
158
बहुत बहुत शुक्रिया भाई, कहानियों के पटल पर अब ये कहानी अन्य कहानियों के नीचे दब चुकी थी, आपके मंतव्य से फिर से कहानी पटल पर चमकने लगी। इसके लिए आपको धयवाद.... आपके लिखी गई सारे कॉमेंट शानदार और प्रेणना स्त्रोत है...। जिंदगी की उलझनों से सुलझने पर किसी नयी कहानी की शुरुआत होगी।

धन्यवाद भाई 🙏🏻
नई कहानी का इंतजार रहेगा
 
  • Love
Reactions: manu@84
Top