अपडेट ६#
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अगली रात को सम्राट अपने कमरे में मूवी लगता है और नूपुर के साथ बैठ कर देखने लगता है, देव जी और सुमित्रा सोने चले जाते हैं। ये एक हॉलीवुड मूवी थी, दोनो मूवी देखने में मगन हो जाते हैं, तभी उसमे एक हॉट सीन आ जाता है, जिसे देख कर दोनों ही कुछ गरम हो जाते हैं, और एक दूसरे की ओर देखते हैं। नूपुर एकदम से आगे बढ़ कर सम्राट के होंटो से अपने होंठ मिला देती है.....
अब आगे -
कुछ सेकंड के लिए तो सम्राट भी भौचक्का हो जाता है, फिर एकदम से वो एक हाथ से नुपुर को पीछे करते हुए खड़ा हो जाता है।
सम्राट: भाभी, ये क्या कर रहीं हैं आप??
नूपुर (थोड़ा नजर चुराते हुए): सम्राट, देखो तुम्हारे भाई ने तुम्हे मेरा खयाल रखने कहा था ना।
सम्राट: तो?
नूपुर: तो? तुम्हारा भाई मेरी प्यास जगा कर चला गया है देश की सेवा करने, तो तुम ही मेरी प्यास बुझ दो।
सम्राट: भाभी, ये क्या कह रहीं हैं आप?? मैं तो आपको अपनी बड़ी बहन मानता हूं, और आप ऐसा खयाल रखती हैं मेरे लिए?
नूपुर: देखो सम्राट, ये जिस्म की आग है, और अगर जो ये जरूरत से ज्यादा भड़क जाय तो ये परिवार की मान मर्यादा को तहस नहस कर देती है। इसीलिए मैं तुमको ३ दिन का समय देती हूं, या तो तुम मेरी प्यास बुझा दो, या फिर मैं इसे घर के बाहर कहीं बुझा लूंगी।
ये कह कर नूपुर वहां से चली गई।
सम्राट सोच में पड़ गया, एक तरफ तो वो अपने परिवार के मान को बरकरार रखना चाहता था, वहीं दूसरी तरफ वो नूपुर में अपनी बहन देखता था, साथ साथ वो अपने भाई से भी बहुत प्यार करता था, और उसे भी धोखा नहीं दे सकता था। यही सब सोचते सोचते उसे नींद आ जाती है।
सुबह सम्राट अपने समय से उठता है, आज उसे महेंद्रगढ़ जाना था, लेकिन कल रात हुए घटनाक्रम से उसका मूड उखड़ा हुआ था। उठते ही उसने आरती को फोन करके नदी के घाट पर मिलने के लिए बुलाया।
कुछ समय बाद दोनो नदी के किनारे बैठे थे।
आरती: सम्राट, क्या बात है, इतने परेशान क्यों हो तुम?
सम्राट: कैसे बताऊं और क्या बताऊं तुमको मैं?
आरती: मुझको भी नही बताओगे तुम?
सम्राट: तुमको कैसे नही बताऊंगा।
फिर कुछ सोचने लगता है। आरती को भी लगता है की कुछ विशेष बात है जिसके लिए सम्राट को शायद शब्द नही मिल राय हैं, इसीलिए वो सम्राट को सोचने का पूरा मौका देती है। कुछ समय बाद सम्राट बोलना शुरू करता है।
देखी आरती, जो मैं तुमको बताने जा रहा हूं, उसे सुन कर तुम मुझे या मेरे परिवार में किसी को गलत न समझना।
आरती: बोलो सम्राट, मैं तुमको कभी गलत नही समझ सकती, अव्वल तो तुम कुछ गलत काम कभी करोगे नही, और अगर जो कभी किया भी, तो वो तुम्हारी कोई मजबूरी होगी, इतना मुझे तुम पर विश्वास है। अब बेझिझक तुम बताओ ऐसी कौन सी बात है जो तुम्हे इस तरह से परेशान कर रही है?
सम्राट हिम्मत करके रात की सारी बातें आरती को बता देता है। ये सुन कर आरती भी सोच में पड़ जाती है।
थोड़ी देर बाद आरती सम्राट से कहती है: देखी सम्राट, मुझे लगता है कि भाभी ने जो करा वो बस हीट ऑफ मोमेंट था, उनकी भी कुछ शारीरिक जरूरतें है जो भैया के जाने के बाद पूरी नहीं हुई हैं, ऐसे में उनका तुमको चूमना और वो सब कहना बस उसी के कारण हुआ। मुझे लगता है कि अब वो सही हो गई होंगी, और तुमको भी ये सब भूल जाना चाहिए।
सम्राट: मैं भी समझता हूं की उनकी कुछ जरूरतें हैं, और वो चुम्बन भी आवेश में ही हुआ, लेकिन उसके बाद जो कुछ भी उन्होंने कहा, वो मुझे चिंतित कर रहा है। अगर जो वो ये सब घर के बाहर करने की सोच रही हैं तो सोचो क्या होगा फिर?
आरती: अच्छा अभी २ दिन का समय दिया है न उन्होंने, तो २ दिन बाद ही उनसे बात करना। और अभी चलो, हम महेंद्रगढ़ भी चलना है, जाओ तैयार हो और हम निकलें।
सम्राट: पर मेरा मन नहीं कर रहा है।
आरती: देखी बाबा घर में रहोगे तो यही सब सोचते रहोगे, घूमने चलोगे तो ध्यान बटा रहेगा। और वैसे भी हमको ज्यादा समय मिलेगा साथ बिताने के लिए।
सम्राट कुछ देर सोचता है, फिर: हां आरू तुम सही कह रही हो। चलो आधे घंटे में हम निकलते हैं।
फिर सम्राट सबको मैसेज करके तैयार होने को कहता है और अपने घर चला जाता है। कुछ देर बाद वो तैयार हो कर नीचे आता है, और देव जी और सुषमा से इजाजत ले गाड़ी से निकल जाता है, नूपुर को उसने दूर से ही बताया कि वो जा रहा है, और नूपुर भी उससे कुछ खींची खींची रहती है।
गाड़ी में सारे लोग बैठ जाते हैं, आगे सम्राट गाड़ी ड्राइव कर रहा था, उसके साथ आरती थी, बीच वाली सीट पर शिव और राम्या और आखिरी सीट पर गोपाल शिवानी संग बैठा था। महेंद्रगढ़ उनके शहर से लगभग ५ घंटे की दूरी पर था, इसीलिए बारी बारी से सबने ड्राइव किया और दोपहर बाद वो महेंद्रगढ़ पहुंचते हैं, और शिव के चाचा के घर पर गाड़ी रोकते हैं।
शिव के चाचा एक रिटायर्ड फौजी हैं जिनकी खुद की एक सिक्योरिटी एजेंसी है, उसी को अभी महेंद्रगढ़ किले की सुरक्षा की जिम्मेदारी मिली हुई है, इसीलिए उसके चाचा ने वहां पर एक मकान किराए पर ले रखा है। जब वो लोग उनके घर पहुंचे उस समय उसके चाचा उनका ही इंतजार कर रहे थे, और सबके पहुंचते ही खुशी खुशी सबका स्वागत किया। कुछ हल्का फुल्का नाश्ता करने के बाद, चाचा ने उन सबको आराम करने को कहा, क्योंकि वो जिस काम से आए थे वो रात को ही होना था।
आरती चाचा से बात करना चाहती थी किले के विषय में, जिसे सुन कर सब वहीं बैठे रहे।
चाचा: बोलो बेटा क्या जानना है आपको?
आरती: बस उस किले के बारे में कुछ जानकारी।
चाचा: हम्म्म, वो किला राणा वंश के राजा महेन्द्र राणा ने कोई ५०० साल पहले बनवाया था। वो किला और ये शहर उनके ही नाम पर है। उनके वंश के लोग अभी भी यहां के राजा हैं, और अभी शहर में ही उनका राजमहल है। किले से वो लोग करीब २०० साल पहले ही निकल गए थे। कहते हैं कि उस समय के राजा सुरेंद्र राणा ने एकदम से सबको किला खाली करने का दिया था, और आपाधापी में सब किले को छोड़ शहर में आ गए।
सम्राट: मगर एकदम से किले को क्यों छोड़ा गया?
चाचा: इसकी भी कई कहानियां है, कोई कहता है कि किसी जादूगरनी ने कोई टोटका किया था जिस कारण से वो सब जल्दी से जल्दी बाहर आ गए, कोई कहता है की राजा सुरेंद्र ने कुछ ऐसा कर दिया था जिस कारण वहां रहना उनके लिए प्राण घातक हो जाता। एक कहानी जो सबसे दिलचस्प है, और उसको मानने का कारण भी है, कि उनकी इकलौती पुत्री एकदम से कहीं गायब हो गई थी, जिसे शायद किसी जादूगरनी ने किया, या वो कहीं भा गई, और इसी गम में राजा अब उस किले में और नही रहना चाहते थे।
आरती: और इस कहानी को ज्यादा ठोस मानने का क्या कारण था??
चाचा: राणा वंश में हमेशा बड़ी संतान ही अगला राजा या रानी होता है, लड़का होना जरूरी नहीं है। सुरेंद्र राणा की एक ही बेटी थी, पर सुरेंद्र राणा के बाद उनका भतीजा सुखदेव राणा राजा बना। बस इसीलिए उनकी बेटी वाली थियोरी ज्यादा सटीक लगती है।
शिव: और ये खजाने का क्या चक्कर है।
चाचा: कहते हैं कि जब किले को छोड़ कर सब जा रहे थे, तब राजा सुरेंद्र ने खजाने को अहिमंत्रित कर के छुपा दिया, और वो अब सिर्फ खजाने के असली मालिक को अमावस्या वाली रात को ही मिलेगा। कहा जाता है की अमावस्या को एक दरवाजा दिखता है और जो इस दरवाजे को खोल पाएगा, खजाना उसका हो जायेगा। इसी कारण राजपरिवार और पुरातत्व विभाग ने इस किले में रात का प्रवेश बंद कर रखा है, पहले कई हादसे भी हो चुके हैं वहां, पर अभी तक खुशकिस्मती से किसी की जान नही गई।
शिवानी: बुरा मत मानिएगा चाचाजी, लेकिन आप तो वहां की सुरक्षा देखते हैं, फिर आप हमको क्यों जाने दे रहे हैं??
चाचा: बेटा मैं सुरक्षा देखता हूं, पर ऐसे खोज करना मेरा शौक है, और वैसे तो मैं अकेला भी जा सकता हूं वहा, पर कोई साथ हो तो ज्यादा मजा आता है। और मैं एक किताब भी लिख रहा हूं ऐसी जगहों के बारे में, तो इस जगह को भी उसमे जोड़ लूंगा।
तभी चाचा का फोन बजने लगता है और वो उसको सुनने के बाद बच्चो को आराम करने कह कर बाहर चले जाते हैं।
चाचा वापस रात को 9 बजे के करीब लौटते हैं, और सबको तैयार होने बोलते हैं। वो चार छोटे बैग अपने साथ ले कर रख लेते हैं। बाहर मौसम कुछ खराब सा हो रहा था, तेज हवाएं चल रही थी, जो अमूमन ठंड के मौसम में नही होता। सब चाचा की जीप में बैठ कर निकल जाते हैं। किला शहर से कोई २० किलोमीटर दूर जंगलों में था, सब १०:३० के करीब में किले के बाहर खड़े थे।
चाचा: तुम सब गाड़ी में रुको, में पहले एक चक्कर लगा कर आता हूं की कही कोई और भी तो नही आ गया है किले में, क्योंकि अमावस्या की रात को कई बार लोग चोरी छिपे घुस आते हैं खजाने के चक्कर में।
आधे घंटे बाद चाचा वापस आए और जीप समेत सबको किले के अंदर ले गए।
बाहर प्रांगण में जीप छोड़ सब एक छोटी सी चढ़ाई चढ़ कर मुख्य किले में प्रवेश करते हैं। सब बीच आंगन में खड़े होते है, तभी चाचा कहते हैं
चाचा: देखो बच्चों, वैसे तो कई लोग उस दरवाजे और खजाने के चक्कर में आए हैं, और लगभग इस किले का चप्पा चप्पा ढूंढ चुके हैं। लेकिन फिर भी हम एक ट्राई कर सकते हैं। इस समय हम किले के बीचों बीच खड़े हैं, और चारो ओर कमरे बने हैं। मैं समझता हूं कि हमको चार ग्रुप में बट जाना चाहिए इससे पूरे किले की खोज एक साथ हो जायेगी।
सब सहमत हो जाते हैं, और सम्राट, आरती एक ग्रुप, शिव राम्या दूसरा, गोपाल शिवानी तीसरा और चाचा, जो अपने साथ अपने ड्राइवर को भी लाय थे, चौथा ग्रुप बन जाते हैं। चाचा सबको अपने साथ ले हुए बैग देते हैं, उस बैग में एक टार्च, एक्स्ट्रा बैटरी, रस्सी, चाकू, फर्स्ट एड बॉक्स वगैरा जैसी जरूरत की चीजें थी।
सब किले के अलग अलग हिस्से में चले जाते हैं।
सम्राट और आरती अपने वाले हिस्से में पहुंचते ही बैग से टार्च निकल लेते हैं, क्योंकि किले के अंदरूनी हिस्से में लाइट की कोई व्यवस्था नहीं थी। वो दोनो एक एक करके सारे कमरों में देख रहे थे, मगर उन्हें कोई सफलता नहीं मिली। कुछ एक घंटों में दोनो ने अपने वाले हिस्से को पूरा छान मारा पर उन्हें कुछ नही मिला। दोनो वापस लौटने लगे, तभी आरती की नजर जमीन में बने एक दरवाजे पर गई, उसने सम्राट को वो दिखते हुए कहा: इसे तो हमने देखा ही नहीं।
सम्राट: हां, रुको मैं इससे खोलने की कोशिश करता हूं।
सम्राट जोर लगा कर उस दरवाजे को उठता है, जो कुछ जोर लगाने पर खुल जाता है। आरती जब खुले हुए हिस्से में टार्च से देखती है तो नीचे की ओर जाती हुई सीढियां दिखती है। दोनो उसमे उतर जाते हैं।
अंदर एक बड़ा सा हॉल था, जिसके चारो ओर छोटे छोटे कमरे थे, जिनके दरवाजे सलाखों से बने थे, देखने में ये जगह जेल जैसी लग रही थी। इसके अलावा और कुछ नही था वहां। दोनो वापस ऊपर आ जाते हैं, और ऊपर आते ही सम्राट के हाथों से उसका बैग फिसल कर नीचे तहखाने में गिर जाता है।
सम्राट आरती को बाहर जाने का बोल, वापस नीचे बैग लेने जाता है, जहां सारा सामान बैग से निकल कर फ़ैल गया होता है। सम्राट चीजे समेटने लगता है, तभी उसे एक कोने में रोशनी जैसी दिखती है। सम्राट उत्सुकता से उधर जाता है, और ऐसा लगता है की दीवाल के पीछे से रोशनी आ रही है, सम्राट इधर उधर देखता है तो दीवाल पर उसे कोई लिपि दिखती है, जिसे देखते ही सम्राट को।लगता है वो उसे पढ़ सकता है, वो कोई मंत्र जैसा होता है, और सम्राट के उसे पढ़ते ही, दीवाल एक तरफ खिसक जाती है, और अंदर एक सुंदर सा कमरा दिखता है, जिसमे मशाल से रोशनी हो रही होती है.......