अपडेट १४
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प्रज्ञानंदन: मुझे पता है कि क्या कर सकती है, लेकिन तुझे नही पता कि मैं क्या कर सकता हूं, चल अब सच्चाई बता सारी खुद से।
युविका: नही बताऊंगी।
फिर से एक मंत्र और, और युविका का तड़पना और बढ़ गया।
युविका: बताती हूं, सब बताती हूं....
युविका:
आज से कोई ५०० साल पहले राजा सुरेंद्र सिंह महेंद्रगढ़ के राजा बने, उनकी शादी विष्णुपुर के राजा की पुत्री कुसुमलता से हुई, दोनो एक दूसरे को बचपन से जानते थे और मन ही मन एक दूसरे को पसंद भी करते थे। सुरेंद्र सिंह एक भले राजा था और प्रजा भी उनसे खुश थी। शादी के कोई १० वर्ष बीतने के पश्चात भी दोनो की कोई संतान नहीं हुई, रानी कुसुमलता ने कई बार दबे छिपे रूप में सुरेंद्र सिंह को दूसरी शादी करने की भी सलाह दी, मगर सुरेंद्र सिंह कुसुमलता को बहुत प्यार करते थे और उनके अलावा किसी और के साथ खुद को जोड़ नही सकते थे।
दोनो ने कई मंदिरों के चक्कर लगाए थे संतान सुख को प्राप्त करने के लिए, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला। एक बार राजा सुरेंद्र और रानी कुसुम अपने कुलगुरु से मिलने गए।
कुलगुरू का आश्रम जंगल में था, और दोनो लोग वहां पहुंच कर गुरु को प्रणाम करते हैं।
गुरु जी: राजन प्रजावत्सल हो, रानी जी, सदा सुहागन रहो, सौभाग्वती भाव।
ये सुनते ही रानी की आंखों में आंसू आ गए जिसे देख राजा सुरेंद्र भी कुछ निराश हुए। गुरु जी से भी ये बात छुपी नहीं रही। कुछ समय पश्चात वो सब अकेले बैठे थे, तब गुरु जी ने कहा
"राजन, मैने आप दोनो की कुंडली देखी है, और आपको संतान सुख नही लिखा है। परंतु एक उपाय है।"
इससे पहले राजा कुछ बोलते, कुसुम ने पूछा: क्या उपाय है गुरु जी, हम कुछ भी करेंगे संतान प्राप्ति के लिए।
गुरु जी: पुत्री चूंकि आप दोनो को संतान योग नही है, इसीलिए ये उपाय थोड़ा घातक सिद्ध हो सकता है, क्योंकि हम भाग्य से लड़ कर किसी चीज को पाने की कोशिश करते है, वो कुछ न कुछ दुर्भाग्य लाती है अपने साथ। इसीलिए पहले आप दोनो अच्छे से विचार कर लीजिए, तभी इस उपाय के बारे में मैं बताऊंगा। आप लोग राजमहल जाइए और अच्छे से विचार करिए इस पर, मैं अभी २ माह के लिए साधना करने जा रहा हूं, मेरे वापस आने पर आप अपना निर्णय मुझे बताएंगे।
ये कह कर राजगुरु वहां से प्रस्थान कर गए। राजा और रानी वापस महल आ गए और दोनो में इस बात को ले कर कई दिनों तक मंथन चलता रहा, जहां राजा एक तरफ इसके खिलाफ थे, क्योंकि उनको आने वाले दुर्भाग्य का डर था कि कहीं वो उनके राज्य या प्रजा के खिलाफ न हो, वही रानी इसे करना चाहती थी जिससे वो घर परिवार में भी सर उठा कर जी सकें, और राजा सुरेंद्र के बीज को अपने गर्भ में पोषित होते हुए देखना भी चाहती थी।
लेकिन भला स्त्री हठ के आगे किसी पुरुष की कभी चली है क्या, चाहे वो इंसान हो या स्वयं भगवान। खैर आखिरकार राजा सुरेंद्र भी अपनी पत्नी कुसुमलता की जिद के आगे हार मान गए और संतान प्राप्ति के लिए जो भी उपाय होता उसे करने के लिए तैयार हो गए।
ठीक 2 माह के बाद कुलगगुरु महल में पधारे, दोनो राजा और रानी ने उनकी अवाभागत की।
एकांत मिलने पर राजा ने कुलगुरु से कहा कि वो और रानी दोनो कुलगुरु के बताए जाने वाले उपाय के करने को इच्छुक हैं। यू सुन कर कुलगुरु ने फिर से दोनो को चेतावनी दी कि ऐसा करने से कुछ न कुछ गलत जरूर होगा। मगर दोनो अपनी बात पर अडिग रहते हैं। फिर कुलुगुरु ने उनको बोला की वो उपाय अगली पूर्णिमा से शुरू करवाएंगे और वो अमावस्या तक चलेगा, उस दौरान जो भी लोग उस अनुष्ठान में शामिल होंगे वो सब किसी अज्ञात जगह पर ही रहेंगे और राज्य के कार्यभार से भी राजा को उतने समय के लिए मुक्त रहना होगा, इसीलिए राजा सुरेंद्र को कुछ उपाय करना पड़ेगा।
ये सुन कर राजा ने फौरन हां कर दी, और बोले की इस मामले के लिए उनके मंत्री और सेनापति इस दौरान राज्य का संचालन कर लेंगे।
ये सुन कर कुलगुरु जाने लगे क्योंकि उनको अनुष्ठान के तैयारी भी करनी थी।
इधर राजा ने अपने मंत्री और सेनापति को सारी बातें बता कर राज्य का संचालन कुछ समय के लिए सम्हालने के लिए बोलते हैं, जिसे सुन कर दोनो, मंत्री सुजान सिंह और सेनापति विक्रम तुरंत हामी भर देते हैं। वो दोनो न सिर्फ राज्य के अहम पदों पर थे, दोनो राजा सुरेंद्र के बचपन के दोस्त भी थे, और उनको राजा और रानी की व्यथा का पता भी था।
पूर्णिमा के पहले राजगुरु वापस से महल में आते हैं और राजा रानी को उनके साथ अकेले चलने की तैयारी करने बोलते है। पूर्णिमा के ठीक एक दिन पहले सब लोग जंगल की तरफ किसी अज्ञात जगह जो कुलगुरु ने चुनी थी वहां चले जाते हैं।
वो जगह एक झील के किनारे पर प्राकृतिक सुंदरता से भरपूर थी, वहां पर तीन छोटी कुटी बनी हुई थी, और एक युवती जो काले कपड़ों में थी, वहां बैठ कर कुछ जाप कर रही थी।
कुलगुरू: भैरवी, हम लोग आ गए हैं।
भैंरवी: प्रणाम गुरुवर, आपके कहने के अनुसार सारी व्यवस्था कर दी है, ये तीन झोपड़ी है, जिसमे एक में राजा और रानी रहेंगे, दूसरे में आप, और तीसरी मेरी है। अनुष्ठान का सारा सामान आपके कक्ष में है, देख लीजिएगा। और अनुष्ठान कल दोपहर से प्रारंभ होगा।
कुलगुरू: राजन, आज से अगली अमावस्या तक आप दोनो इसी जगह रहेंगे, खुद अपना सारा का करेंगे, और अनुष्ठान में भी हिस्सा लेंगे। आप दोनो को एक साथ ही पूरा गृहस्थ जीवन जैसे ही रहना है। समझ रहे हैं आप? ये अनुष्ठान तंत्र साधना से होगा और भैरवी एक तंत्रिका है, इसीलिए इस अनुष्ठान में किसी तरह की कोई मनाही नहीं है, सब कुछ सामान्य तरीके से ही होगा।
राजा: जी गुरुवर सब समझ गए।
कुलगुरू: अगर जो अनुष्ठान सफल हुआ तो महारानी जी यहीं से गर्भवती हो कर जाएंगी।
शाम हो चुकी थी, रानी ने खाना बन कर सबको खिलाती हैं, और फिर सब सो जाते हैं।
अगले दिन दोपहर से भैरवी और सारे लोग बैठ कर अनुष्ठान की रस्में करने लगे। अनुष्ठान देर रात को खत्म हुआ, फिर कुलगुरु ने कहा: राजन, आज का अनुष्ठान पूरा हुआ, हमने अपना काम किया है, आप दोनों जाइए और अपना काम करिए।
ये सुन कर दोनो राजा रानी अपनी झोपड़ी में जाते हैं और एक दूसरे में समा जाते हैं।
अगले 15 दिनो तक यही दिनचर्या रहती है, और अमावस्या के अगले दिन कुलगुरु राजा रानी के साथ वापस लौट जाते हैं।
कुछ दिन बाद रानी की तबियत कुछ खराब होती है, और वैध उनको देख कर खुशखबरी सुना देता है, कि रानी मां बनने वाली हैं....