Bosskhatri
Active Member
- 1,343
- 2,122
- 143
चलिए भाई, कम से कम आपने पढ़ा तो, कोशिश होगी कि अगले में आपको निराशा न होHa pd liya kya update hai bs 2 min ka
Nice update....अपडेट १५#
अब तक आपने पढ़ा -
अगले 15 दिनो तक यही दिनचर्या रहती है, और अमावस्या के अगले दिन कुलगुरु राजा रानी के साथ वापस लौट जाते हैं।
कुछ दिन बाद रानी की तबियत कुछ खराब होती है, और वैध उनको देख कर खुशखबरी सुना देता है, कि रानी मां बनने वाली हैं....
अब आगे -
ये सुन कर पूरे महल में हर्ष के लहर दौड़ उठती है, राजा फौरन अपने मंत्री सुजान और सेनापति विक्रम को बुला कर मंत्राणा करते है, जहां पता चलता है कि वो दोनों भी पिता बनने वाले हैं। तीनों मित्र एक साथ इस सुख को प्राप्त करने वाले थे ये बात जा कर पूरे राज्य में खुशियां मनाई जाने लगी।
नियत समय पर रानी ने एक सुंदर कन्या को जन्म दिया साथ ही साथ सुजान सिंह के घर भी एक कन्या और विक्रम के घर एक पुत्र ने जन्म लिया। पूरा राज्य उत्सव में डूब गया आखिर इतने वर्षों के बाद उनके राज्य में ये खुशियां आई थी।
तीनों बच्चों का नामकरण संस्कार एक साथ किया गया जिसमे कुलगुरु और भैंरवी भी आए थे। कुलगुरु ने राजा की पुत्री का नाम युविका, मंत्री की पुत्री का नाम सुनैना और सेनापति के पुत्र का नाम कुमारसंभव रखा।
तीनों बच्चों का लालन पोषण एक साथ होने लगा और तीनों भी आपस में घुल मिल कर रहते थे। समय आने पर तीनो को कुलगुरु के आश्रम में शिक्षा के लिए भेजा गया। जहां तीनो एक साथ रह कर ग्रहण करने लगे।
भैंरवी जो वहीं आश्रम के पास में ही रहती थी उसे युविका से कुछ ज्यादा ही प्रेम था, क्योंकि उसकी तंत्र साधना से ही युविका का जन्म संभव हुआ था, और वही परस्पर लगाव युविका का भी भैंरवी के प्रति था। युविका बहुत ही चंचल और जिद्दी होने के साथ साथ जिज्ञासु भी बहुत थी, वो कई बार भैंरवी को साधना करते देखती थी और धीरे धीरे उसकी भी रुचि तंत्र में जगने लगी। उसके कहने पर भैंरवी ने युविका को कुछ जानकारी दी, जिसके बल बूते युविका खुद भी तंत्र साधना करने लगी।
समय बीतता गया और तीनों युवावस्था की दहलीज पर पहुंचे, मन में कई भावनाएं उमड़ने लगी। कुमार और सुनैना एक दूसरे के प्रति आकर्षित हुए, और वहीं युविका कुमार के एकतरफा प्यार में पड़ गई। हालांकि अभी ये बात तीनों ने एक दूसरे को नही बताई थी, इसीलिए तीनों की दोस्ती वैसी ही रही, और उनका शिक्षण कार्य भी जारी रहा।
धीरे धीरे उनमें शारीरिक परिवर्तन भी आने लगा, और वो अपने शरीर की जरूरतों को समझने की कोशिश करने लगे। एक ओर जहां कुमार और सुनैना ने इस परिवर्तन को आराम से ग्रहण कर लिया, वहीं युविका इसे सही से समझ भी नही पा रही थी, और उसमे कामुक भावनाओं का उन्माद कुछ ज्यादा ही रहने लगा, शायद ये विधाता की मर्जी के विरुद्ध जाने का नतीजा था। धीरे धीरे युविका न सिर्फ अपने शरीर को समझने लगी, उसे अब लड़कों के शरीर में भी रुचि जगने लगी, इसका शायद एक ये भी कारण था कि, उसने कई बार महल में काम करने वाले को बीच इन संबंधों को बनते हुए भी चोरी छुपे देखा था। उसके मन में काम के प्रति जिज्ञासा दिन पर दिन और बढ़ने लगी, लेकिन उसके सारे सपने बस कुमार को ले कर ही थे, और वो इस बात से अनजान की कुमार और सुनैना के बीच प्रेम और गहरा होता जा रहा है।
ऐसे ही एक बार होली के समय की बात है जब युविका अपने प्रेम का इजहार करने के लिए पूरी तरह से तैयार हो गई, और उसने होलिका की रात को इसके लिए चुना, उसने सोचा कि होलिका दहन के बाद जब कुमार अपने घर की ओर जाने लगेगा तब रास्ते में ही वो कुमार से अपनी दिल की बात कहेगी।
राजा सुरेंद्र होलिका दहन का कार्यक्रम अपने महल के प्रांगण में करते थे, ताकि अगली सुबह सारी प्रजा महल से ही रंग खेलने का कार्यक्रम शुरू कर सके। तो इस बार भी वैसा ही आयोजन किया गया, लेकिन इसकी सारी जिम्मेवारी युवाओं को दी गई थी, और युविका, कुमार और सुनैना भी इसका हिस्सा थे। इसी क्रम में होलिका की सुबह को ये तीनो और कुछ और लोग जंगल से लकड़ियां लाने गए हुए थे। वहां सब लोग अलग अलग लकड़ी चीन रहे थे, युविका थोड़ा किनारे हो गई, और बाद में सबको ढूंढते हुए उसे एक तरफ से कुछ आवाजें सुनाई दी, जैसे कोई 2 लोग आपस में धीरे धीरे बात कर रहे हों। उसके मन तो पहले से ही काम क्रीड़ा देखने का कौतूहल रहता था, इसीलिए वो आवाज का पीछा करते हुए उस जगह पर पहुंची और छुप कर देखने लगी की क्या हो रहा है।
पेड़ों के झुरमुट के बीच उसे कुमार और सुनैना दिखाई दिए जो हाथो में हाथ डाल कर एक दूसरे में खोए हुए थे। तभी कुमार ने आगे बढ़ कर सुनैना के माथे को चूम लिया, फिर आंखों को और फिर वो उसके होठों की ओर बढ़ा तो सुनैना ने अपने होठों पर हाथ रख कर उसे रोका और कहा, "ये सब अभी नही, समझो।"
इतना सुनते ही कुमार रुका गया और मासूम सा चेहरा बना कर सुनैना को देखने लगा, जिसे देख सुनैना ने उसको गले से लगा लिया और खुद उसके गालों पर एक चुम्बन अंकित कर दिया।
सुनैना: अब खुश? अच्छा ये बताओ आपने चाचा जी से हमारे बारे में बात की?
कुमार: बस आज रुक जाओ, कल होली के शुभ अवर पर ही ये शुभ बात करूंगा।
सुनैना: कुमार, अब देर मत करो, अब मुझसे भी बर्दास्त नही हो रहा, अब मैं बस तुम्हारी ही होना चाहती हूं। इस बात को अब और मत टालो, कल जरूर से बात कर लेना इस बारे में।
कुमार: तुम चिंता क्यों करती हो नैनू, वैसे भी सब तुमको पसंद करते हैं, कोई मना नहीं करेगा इस बात के लिए। चलो अब चलते हैं, सब हमको ढूंढ रहे होंगे।
और वो दोनो वहां से निकल जाते हैं।
युविका को ये सुन कर झटका लगता है की जिस कुमार को वो बचपन से चाहती आ रही है, वो सुनैना से प्यार करता है। उसका मन उदास हो जाता है ये सब जान कर, मगर उसका जिद्दी चित्त उसे चैन नहीं लेने देता, और वो कुछ सोच कर एक कुटिल मुस्कान के साथ सबके पास चली जाती है.....
Very nice update bhaiअपडेट १५#
अब तक आपने पढ़ा -
अगले 15 दिनो तक यही दिनचर्या रहती है, और अमावस्या के अगले दिन कुलगुरु राजा रानी के साथ वापस लौट जाते हैं।
कुछ दिन बाद रानी की तबियत कुछ खराब होती है, और वैध उनको देख कर खुशखबरी सुना देता है, कि रानी मां बनने वाली हैं....
अब आगे -
ये सुन कर पूरे महल में हर्ष के लहर दौड़ उठती है, राजा फौरन अपने मंत्री सुजान और सेनापति विक्रम को बुला कर मंत्राणा करते है, जहां पता चलता है कि वो दोनों भी पिता बनने वाले हैं। तीनों मित्र एक साथ इस सुख को प्राप्त करने वाले थे ये बात जा कर पूरे राज्य में खुशियां मनाई जाने लगी।
नियत समय पर रानी ने एक सुंदर कन्या को जन्म दिया साथ ही साथ सुजान सिंह के घर भी एक कन्या और विक्रम के घर एक पुत्र ने जन्म लिया। पूरा राज्य उत्सव में डूब गया आखिर इतने वर्षों के बाद उनके राज्य में ये खुशियां आई थी।
तीनों बच्चों का नामकरण संस्कार एक साथ किया गया जिसमे कुलगुरु और भैंरवी भी आए थे। कुलगुरु ने राजा की पुत्री का नाम युविका, मंत्री की पुत्री का नाम सुनैना और सेनापति के पुत्र का नाम कुमारसंभव रखा।
तीनों बच्चों का लालन पोषण एक साथ होने लगा और तीनों भी आपस में घुल मिल कर रहते थे। समय आने पर तीनो को कुलगुरु के आश्रम में शिक्षा के लिए भेजा गया। जहां तीनो एक साथ रह कर ग्रहण करने लगे।
भैंरवी जो वहीं आश्रम के पास में ही रहती थी उसे युविका से कुछ ज्यादा ही प्रेम था, क्योंकि उसकी तंत्र साधना से ही युविका का जन्म संभव हुआ था, और वही परस्पर लगाव युविका का भी भैंरवी के प्रति था। युविका बहुत ही चंचल और जिद्दी होने के साथ साथ जिज्ञासु भी बहुत थी, वो कई बार भैंरवी को साधना करते देखती थी और धीरे धीरे उसकी भी रुचि तंत्र में जगने लगी। उसके कहने पर भैंरवी ने युविका को कुछ जानकारी दी, जिसके बल बूते युविका खुद भी तंत्र साधना करने लगी।
समय बीतता गया और तीनों युवावस्था की दहलीज पर पहुंचे, मन में कई भावनाएं उमड़ने लगी। कुमार और सुनैना एक दूसरे के प्रति आकर्षित हुए, और वहीं युविका कुमार के एकतरफा प्यार में पड़ गई। हालांकि अभी ये बात तीनों ने एक दूसरे को नही बताई थी, इसीलिए तीनों की दोस्ती वैसी ही रही, और उनका शिक्षण कार्य भी जारी रहा।
धीरे धीरे उनमें शारीरिक परिवर्तन भी आने लगा, और वो अपने शरीर की जरूरतों को समझने की कोशिश करने लगे। एक ओर जहां कुमार और सुनैना ने इस परिवर्तन को आराम से ग्रहण कर लिया, वहीं युविका इसे सही से समझ भी नही पा रही थी, और उसमे कामुक भावनाओं का उन्माद कुछ ज्यादा ही रहने लगा, शायद ये विधाता की मर्जी के विरुद्ध जाने का नतीजा था। धीरे धीरे युविका न सिर्फ अपने शरीर को समझने लगी, उसे अब लड़कों के शरीर में भी रुचि जगने लगी, इसका शायद एक ये भी कारण था कि, उसने कई बार महल में काम करने वाले को बीच इन संबंधों को बनते हुए भी चोरी छुपे देखा था। उसके मन में काम के प्रति जिज्ञासा दिन पर दिन और बढ़ने लगी, लेकिन उसके सारे सपने बस कुमार को ले कर ही थे, और वो इस बात से अनजान की कुमार और सुनैना के बीच प्रेम और गहरा होता जा रहा है।
ऐसे ही एक बार होली के समय की बात है जब युविका अपने प्रेम का इजहार करने के लिए पूरी तरह से तैयार हो गई, और उसने होलिका की रात को इसके लिए चुना, उसने सोचा कि होलिका दहन के बाद जब कुमार अपने घर की ओर जाने लगेगा तब रास्ते में ही वो कुमार से अपनी दिल की बात कहेगी।
राजा सुरेंद्र होलिका दहन का कार्यक्रम अपने महल के प्रांगण में करते थे, ताकि अगली सुबह सारी प्रजा महल से ही रंग खेलने का कार्यक्रम शुरू कर सके। तो इस बार भी वैसा ही आयोजन किया गया, लेकिन इसकी सारी जिम्मेवारी युवाओं को दी गई थी, और युविका, कुमार और सुनैना भी इसका हिस्सा थे। इसी क्रम में होलिका की सुबह को ये तीनो और कुछ और लोग जंगल से लकड़ियां लाने गए हुए थे। वहां सब लोग अलग अलग लकड़ी चीन रहे थे, युविका थोड़ा किनारे हो गई, और बाद में सबको ढूंढते हुए उसे एक तरफ से कुछ आवाजें सुनाई दी, जैसे कोई 2 लोग आपस में धीरे धीरे बात कर रहे हों। उसके मन तो पहले से ही काम क्रीड़ा देखने का कौतूहल रहता था, इसीलिए वो आवाज का पीछा करते हुए उस जगह पर पहुंची और छुप कर देखने लगी की क्या हो रहा है।
पेड़ों के झुरमुट के बीच उसे कुमार और सुनैना दिखाई दिए जो हाथो में हाथ डाल कर एक दूसरे में खोए हुए थे। तभी कुमार ने आगे बढ़ कर सुनैना के माथे को चूम लिया, फिर आंखों को और फिर वो उसके होठों की ओर बढ़ा तो सुनैना ने अपने होठों पर हाथ रख कर उसे रोका और कहा, "ये सब अभी नही, समझो।"
इतना सुनते ही कुमार रुका गया और मासूम सा चेहरा बना कर सुनैना को देखने लगा, जिसे देख सुनैना ने उसको गले से लगा लिया और खुद उसके गालों पर एक चुम्बन अंकित कर दिया।
सुनैना: अब खुश? अच्छा ये बताओ आपने चाचा जी से हमारे बारे में बात की?
कुमार: बस आज रुक जाओ, कल होली के शुभ अवर पर ही ये शुभ बात करूंगा।
सुनैना: कुमार, अब देर मत करो, अब मुझसे भी बर्दास्त नही हो रहा, अब मैं बस तुम्हारी ही होना चाहती हूं। इस बात को अब और मत टालो, कल जरूर से बात कर लेना इस बारे में।
कुमार: तुम चिंता क्यों करती हो नैनू, वैसे भी सब तुमको पसंद करते हैं, कोई मना नहीं करेगा इस बात के लिए। चलो अब चलते हैं, सब हमको ढूंढ रहे होंगे।
और वो दोनो वहां से निकल जाते हैं।
युविका को ये सुन कर झटका लगता है की जिस कुमार को वो बचपन से चाहती आ रही है, वो सुनैना से प्यार करता है। उसका मन उदास हो जाता है ये सब जान कर, मगर उसका जिद्दी चित्त उसे चैन नहीं लेने देता, और वो कुछ सोच कर एक कुटिल मुस्कान के साथ सबके पास चली जाती है.....
अपडेट १४
अब तक आपने पढ़ा -
प्रज्ञानंदन: मुझे पता है कि क्या कर सकती है, लेकिन तुझे नही पता कि मैं क्या कर सकता हूं, चल अब सच्चाई बता सारी खुद से।
युविका: नही बताऊंगी।
फिर से एक मंत्र और, और युविका का तड़पना और बढ़ गया।
युविका: बताती हूं, सब बताती हूं....
युविका:
आज से कोई ५०० साल पहले राजा सुरेंद्र सिंह महेंद्रगढ़ के राजा बने, उनकी शादी विष्णुपुर के राजा की पुत्री कुसुमलता से हुई, दोनो एक दूसरे को बचपन से जानते थे और मन ही मन एक दूसरे को पसंद भी करते थे। सुरेंद्र सिंह एक भले राजा था और प्रजा भी उनसे खुश थी। शादी के कोई १० वर्ष बीतने के पश्चात भी दोनो की कोई संतान नहीं हुई, रानी कुसुमलता ने कई बार दबे छिपे रूप में सुरेंद्र सिंह को दूसरी शादी करने की भी सलाह दी, मगर सुरेंद्र सिंह कुसुमलता को बहुत प्यार करते थे और उनके अलावा किसी और के साथ खुद को जोड़ नही सकते थे।
दोनो ने कई मंदिरों के चक्कर लगाए थे संतान सुख को प्राप्त करने के लिए, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला। एक बार राजा सुरेंद्र और रानी कुसुम अपने कुलगुरु से मिलने गए।
कुलगुरू का आश्रम जंगल में था, और दोनो लोग वहां पहुंच कर गुरु को प्रणाम करते हैं।
गुरु जी: राजन प्रजावत्सल हो, रानी जी, सदा सुहागन रहो, सौभाग्वती भाव।
ये सुनते ही रानी की आंखों में आंसू आ गए जिसे देख राजा सुरेंद्र भी कुछ निराश हुए। गुरु जी से भी ये बात छुपी नहीं रही। कुछ समय पश्चात वो सब अकेले बैठे थे, तब गुरु जी ने कहा
"राजन, मैने आप दोनो की कुंडली देखी है, और आपको संतान सुख नही लिखा है। परंतु एक उपाय है।"
इससे पहले राजा कुछ बोलते, कुसुम ने पूछा: क्या उपाय है गुरु जी, हम कुछ भी करेंगे संतान प्राप्ति के लिए।
गुरु जी: पुत्री चूंकि आप दोनो को संतान योग नही है, इसीलिए ये उपाय थोड़ा घातक सिद्ध हो सकता है, क्योंकि हम भाग्य से लड़ कर किसी चीज को पाने की कोशिश करते है, वो कुछ न कुछ दुर्भाग्य लाती है अपने साथ। इसीलिए पहले आप दोनो अच्छे से विचार कर लीजिए, तभी इस उपाय के बारे में मैं बताऊंगा। आप लोग राजमहल जाइए और अच्छे से विचार करिए इस पर, मैं अभी २ माह के लिए साधना करने जा रहा हूं, मेरे वापस आने पर आप अपना निर्णय मुझे बताएंगे।
ये कह कर राजगुरु वहां से प्रस्थान कर गए। राजा और रानी वापस महल आ गए और दोनो में इस बात को ले कर कई दिनों तक मंथन चलता रहा, जहां राजा एक तरफ इसके खिलाफ थे, क्योंकि उनको आने वाले दुर्भाग्य का डर था कि कहीं वो उनके राज्य या प्रजा के खिलाफ न हो, वही रानी इसे करना चाहती थी जिससे वो घर परिवार में भी सर उठा कर जी सकें, और राजा सुरेंद्र के बीज को अपने गर्भ में पोषित होते हुए देखना भी चाहती थी।
लेकिन भला स्त्री हठ के आगे किसी पुरुष की कभी चली है क्या, चाहे वो इंसान हो या स्वयं भगवान। खैर आखिरकार राजा सुरेंद्र भी अपनी पत्नी कुसुमलता की जिद के आगे हार मान गए और संतान प्राप्ति के लिए जो भी उपाय होता उसे करने के लिए तैयार हो गए।
ठीक 2 माह के बाद कुलगगुरु महल में पधारे, दोनो राजा और रानी ने उनकी अवाभागत की।
एकांत मिलने पर राजा ने कुलगुरु से कहा कि वो और रानी दोनो कुलगुरु के बताए जाने वाले उपाय के करने को इच्छुक हैं। यू सुन कर कुलगुरु ने फिर से दोनो को चेतावनी दी कि ऐसा करने से कुछ न कुछ गलत जरूर होगा। मगर दोनो अपनी बात पर अडिग रहते हैं। फिर कुलुगुरु ने उनको बोला की वो उपाय अगली पूर्णिमा से शुरू करवाएंगे और वो अमावस्या तक चलेगा, उस दौरान जो भी लोग उस अनुष्ठान में शामिल होंगे वो सब किसी अज्ञात जगह पर ही रहेंगे और राज्य के कार्यभार से भी राजा को उतने समय के लिए मुक्त रहना होगा, इसीलिए राजा सुरेंद्र को कुछ उपाय करना पड़ेगा।
ये सुन कर राजा ने फौरन हां कर दी, और बोले की इस मामले के लिए उनके मंत्री और सेनापति इस दौरान राज्य का संचालन कर लेंगे।
ये सुन कर कुलगुरु जाने लगे क्योंकि उनको अनुष्ठान के तैयारी भी करनी थी।
इधर राजा ने अपने मंत्री और सेनापति को सारी बातें बता कर राज्य का संचालन कुछ समय के लिए सम्हालने के लिए बोलते हैं, जिसे सुन कर दोनो, मंत्री सुजान सिंह और सेनापति विक्रम तुरंत हामी भर देते हैं। वो दोनो न सिर्फ राज्य के अहम पदों पर थे, दोनो राजा सुरेंद्र के बचपन के दोस्त भी थे, और उनको राजा और रानी की व्यथा का पता भी था।
पूर्णिमा के पहले राजगुरु वापस से महल में आते हैं और राजा रानी को उनके साथ अकेले चलने की तैयारी करने बोलते है। पूर्णिमा के ठीक एक दिन पहले सब लोग जंगल की तरफ किसी अज्ञात जगह जो कुलगुरु ने चुनी थी वहां चले जाते हैं।
वो जगह एक झील के किनारे पर प्राकृतिक सुंदरता से भरपूर थी, वहां पर तीन छोटी कुटी बनी हुई थी, और एक युवती जो काले कपड़ों में थी, वहां बैठ कर कुछ जाप कर रही थी।
कुलगुरू: भैरवी, हम लोग आ गए हैं।
भैंरवी: प्रणाम गुरुवर, आपके कहने के अनुसार सारी व्यवस्था कर दी है, ये तीन झोपड़ी है, जिसमे एक में राजा और रानी रहेंगे, दूसरे में आप, और तीसरी मेरी है। अनुष्ठान का सारा सामान आपके कक्ष में है, देख लीजिएगा। और अनुष्ठान कल दोपहर से प्रारंभ होगा।
कुलगुरू: राजन, आज से अगली अमावस्या तक आप दोनो इसी जगह रहेंगे, खुद अपना सारा का करेंगे, और अनुष्ठान में भी हिस्सा लेंगे। आप दोनो को एक साथ ही पूरा गृहस्थ जीवन जैसे ही रहना है। समझ रहे हैं आप? ये अनुष्ठान तंत्र साधना से होगा और भैरवी एक तंत्रिका है, इसीलिए इस अनुष्ठान में किसी तरह की कोई मनाही नहीं है, सब कुछ सामान्य तरीके से ही होगा।
राजा: जी गुरुवर सब समझ गए।
कुलगुरू: अगर जो अनुष्ठान सफल हुआ तो महारानी जी यहीं से गर्भवती हो कर जाएंगी।
शाम हो चुकी थी, रानी ने खाना बन कर सबको खिलाती हैं, और फिर सब सो जाते हैं।
अगले दिन दोपहर से भैरवी और सारे लोग बैठ कर अनुष्ठान की रस्में करने लगे। अनुष्ठान देर रात को खत्म हुआ, फिर कुलगुरु ने कहा: राजन, आज का अनुष्ठान पूरा हुआ, हमने अपना काम किया है, आप दोनों जाइए और अपना काम करिए।
ये सुन कर दोनो राजा रानी अपनी झोपड़ी में जाते हैं और एक दूसरे में समा जाते हैं।
अगले 15 दिनो तक यही दिनचर्या रहती है, और अमावस्या के अगले दिन कुलगुरु राजा रानी के साथ वापस लौट जाते हैं।
कुछ दिन बाद रानी की तबियत कुछ खराब होती है, और वैध उनको देख कर खुशखबरी सुना देता है, कि रानी मां बनने वाली हैं....
Bahut hi shaandar update diya hai Riky007 bhai.....अपडेट १५#
अब तक आपने पढ़ा -
अगले 15 दिनो तक यही दिनचर्या रहती है, और अमावस्या के अगले दिन कुलगुरु राजा रानी के साथ वापस लौट जाते हैं।
कुछ दिन बाद रानी की तबियत कुछ खराब होती है, और वैध उनको देख कर खुशखबरी सुना देता है, कि रानी मां बनने वाली हैं....
अब आगे -
ये सुन कर पूरे महल में हर्ष के लहर दौड़ उठती है, राजा फौरन अपने मंत्री सुजान और सेनापति विक्रम को बुला कर मंत्राणा करते है, जहां पता चलता है कि वो दोनों भी पिता बनने वाले हैं। तीनों मित्र एक साथ इस सुख को प्राप्त करने वाले थे ये बात जा कर पूरे राज्य में खुशियां मनाई जाने लगी।
नियत समय पर रानी ने एक सुंदर कन्या को जन्म दिया साथ ही साथ सुजान सिंह के घर भी एक कन्या और विक्रम के घर एक पुत्र ने जन्म लिया। पूरा राज्य उत्सव में डूब गया आखिर इतने वर्षों के बाद उनके राज्य में ये खुशियां आई थी।
तीनों बच्चों का नामकरण संस्कार एक साथ किया गया जिसमे कुलगुरु और भैंरवी भी आए थे। कुलगुरु ने राजा की पुत्री का नाम युविका, मंत्री की पुत्री का नाम सुनैना और सेनापति के पुत्र का नाम कुमारसंभव रखा।
तीनों बच्चों का लालन पोषण एक साथ होने लगा और तीनों भी आपस में घुल मिल कर रहते थे। समय आने पर तीनो को कुलगुरु के आश्रम में शिक्षा के लिए भेजा गया। जहां तीनो एक साथ रह कर ग्रहण करने लगे।
भैंरवी जो वहीं आश्रम के पास में ही रहती थी उसे युविका से कुछ ज्यादा ही प्रेम था, क्योंकि उसकी तंत्र साधना से ही युविका का जन्म संभव हुआ था, और वही परस्पर लगाव युविका का भी भैंरवी के प्रति था। युविका बहुत ही चंचल और जिद्दी होने के साथ साथ जिज्ञासु भी बहुत थी, वो कई बार भैंरवी को साधना करते देखती थी और धीरे धीरे उसकी भी रुचि तंत्र में जगने लगी। उसके कहने पर भैंरवी ने युविका को कुछ जानकारी दी, जिसके बल बूते युविका खुद भी तंत्र साधना करने लगी।
समय बीतता गया और तीनों युवावस्था की दहलीज पर पहुंचे, मन में कई भावनाएं उमड़ने लगी। कुमार और सुनैना एक दूसरे के प्रति आकर्षित हुए, और वहीं युविका कुमार के एकतरफा प्यार में पड़ गई। हालांकि अभी ये बात तीनों ने एक दूसरे को नही बताई थी, इसीलिए तीनों की दोस्ती वैसी ही रही, और उनका शिक्षण कार्य भी जारी रहा।
धीरे धीरे उनमें शारीरिक परिवर्तन भी आने लगा, और वो अपने शरीर की जरूरतों को समझने की कोशिश करने लगे। एक ओर जहां कुमार और सुनैना ने इस परिवर्तन को आराम से ग्रहण कर लिया, वहीं युविका इसे सही से समझ भी नही पा रही थी, और उसमे कामुक भावनाओं का उन्माद कुछ ज्यादा ही रहने लगा, शायद ये विधाता की मर्जी के विरुद्ध जाने का नतीजा था। धीरे धीरे युविका न सिर्फ अपने शरीर को समझने लगी, उसे अब लड़कों के शरीर में भी रुचि जगने लगी, इसका शायद एक ये भी कारण था कि, उसने कई बार महल में काम करने वाले को बीच इन संबंधों को बनते हुए भी चोरी छुपे देखा था। उसके मन में काम के प्रति जिज्ञासा दिन पर दिन और बढ़ने लगी, लेकिन उसके सारे सपने बस कुमार को ले कर ही थे, और वो इस बात से अनजान की कुमार और सुनैना के बीच प्रेम और गहरा होता जा रहा है।
ऐसे ही एक बार होली के समय की बात है जब युविका अपने प्रेम का इजहार करने के लिए पूरी तरह से तैयार हो गई, और उसने होलिका की रात को इसके लिए चुना, उसने सोचा कि होलिका दहन के बाद जब कुमार अपने घर की ओर जाने लगेगा तब रास्ते में ही वो कुमार से अपनी दिल की बात कहेगी।
राजा सुरेंद्र होलिका दहन का कार्यक्रम अपने महल के प्रांगण में करते थे, ताकि अगली सुबह सारी प्रजा महल से ही रंग खेलने का कार्यक्रम शुरू कर सके। तो इस बार भी वैसा ही आयोजन किया गया, लेकिन इसकी सारी जिम्मेवारी युवाओं को दी गई थी, और युविका, कुमार और सुनैना भी इसका हिस्सा थे। इसी क्रम में होलिका की सुबह को ये तीनो और कुछ और लोग जंगल से लकड़ियां लाने गए हुए थे। वहां सब लोग अलग अलग लकड़ी चीन रहे थे, युविका थोड़ा किनारे हो गई, और बाद में सबको ढूंढते हुए उसे एक तरफ से कुछ आवाजें सुनाई दी, जैसे कोई 2 लोग आपस में धीरे धीरे बात कर रहे हों। उसके मन तो पहले से ही काम क्रीड़ा देखने का कौतूहल रहता था, इसीलिए वो आवाज का पीछा करते हुए उस जगह पर पहुंची और छुप कर देखने लगी की क्या हो रहा है।
पेड़ों के झुरमुट के बीच उसे कुमार और सुनैना दिखाई दिए जो हाथो में हाथ डाल कर एक दूसरे में खोए हुए थे। तभी कुमार ने आगे बढ़ कर सुनैना के माथे को चूम लिया, फिर आंखों को और फिर वो उसके होठों की ओर बढ़ा तो सुनैना ने अपने होठों पर हाथ रख कर उसे रोका और कहा, "ये सब अभी नही, समझो।"
इतना सुनते ही कुमार रुका गया और मासूम सा चेहरा बना कर सुनैना को देखने लगा, जिसे देख सुनैना ने उसको गले से लगा लिया और खुद उसके गालों पर एक चुम्बन अंकित कर दिया।
सुनैना: अब खुश? अच्छा ये बताओ आपने चाचा जी से हमारे बारे में बात की?
कुमार: बस आज रुक जाओ, कल होली के शुभ अवर पर ही ये शुभ बात करूंगा।
सुनैना: कुमार, अब देर मत करो, अब मुझसे भी बर्दास्त नही हो रहा, अब मैं बस तुम्हारी ही होना चाहती हूं। इस बात को अब और मत टालो, कल जरूर से बात कर लेना इस बारे में।
कुमार: तुम चिंता क्यों करती हो नैनू, वैसे भी सब तुमको पसंद करते हैं, कोई मना नहीं करेगा इस बात के लिए। चलो अब चलते हैं, सब हमको ढूंढ रहे होंगे।
और वो दोनो वहां से निकल जाते हैं।
युविका को ये सुन कर झटका लगता है की जिस कुमार को वो बचपन से चाहती आ रही है, वो सुनैना से प्यार करता है। उसका मन उदास हो जाता है ये सब जान कर, मगर उसका जिद्दी चित्त उसे चैन नहीं लेने देता, और वो कुछ सोच कर एक कुटिल मुस्कान के साथ सबके पास चली जाती है.....